Patriotic Story : देशभक्ति की “बू”

Patriotic Story : मैं ने नींद में देखा, लोग मुझ को घेर कर खड़े हुए हैं और मैं भयभीत निकल भागने का रास्ता ढूंढ रहा हूं. भीड़ मेरी और कुत्सित भाव से देख रही है, मानो आज मुझे अपने हाथों से दंड देकर अपना कर्तव्य, धर्म भीड़ निभाएगी .मैं सहमा इधर उधर तक रहा हूं.मगर भागने या बचाव का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है.

जी हां! मुझ पर, आज कल का प्रचलित सबसे गर्मा गर्म  आरोप लगा दिया गया है, मुझे देश द्रोही करार दिया गया है. और भीड़ मेरी और ऐसे देख रही है जैसे मैं उसका जानी दुश्मन हूं और भीड मुझको ठीक करके ही सुख पाएगी.

दरअसल, हुआ यह की मैंने सीधे सरल शब्दों में माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी व गृहमंत्री अमित शाह की शैली पर प्रश्नचिन्ह लगा दिए .मैं ने कल्पना नहीं की थी कि मेरे दो शब्द के बोल, मुझे देशद्रोही बना देंगे.मैं ने जैसे ही कहा की हमारे प्रधानमंत्री देश को एक प्रयोगशाला बना चुके हैं और मोदी और शाह मिलकर आर एस एस के एजेंडे पर देश को एक दिन हिंदू राष्ट्र घोषित कर देंगे .उन लोगों ने मेरी तरफ कुछ इस दृष्टि से देखा मानो मैं ने कोई राष्ट्रीय अपराध कर दिया है.

मेरी बातें अभी खत्म ही नहीं हुई की एक आदमी ने कहा- तुम्हारी बातों से हम इत्तेफाक नहीं रखते.

एक दूसरे ने कहा- तुम्हारी बात में देशद्रोह की “बू” आती है.

मैं मुस्कुराया और बोला- भाई ! देश प्रेम की परिभाषा क्या है.

एक व्यक्ति चिल्लाया- तुम्हें इतना भी नहीं मालूम तुम्हें इस देश से चले जाना चाहिए। तुम्हें एक पल भी यहां रहने का अधिकार नहीं है.

मैंने कहा- मगर मैं कहां जाऊं और क्यों जाऊं ? मैं तो यहीं पैदा हुआ हूं,मैं यही मरूंगा.

इस पर एक शख्स चीखा- तो फिर तुम अपने को सीमा के भीतर क्यों नहीं रखते अगर तुम पजामे से बाहर जाओगे तो फिर हम नहीं जानते, तुम देशद्रोही कहलाओगे और हम तुम्हें…

हमारे बीच कहासुनी चलती रही मैं, मेरे तर्क उनके सामने भोथरे सिद्ध हो गए उन्होंने एक स्वर में कहा- तुम अकेले हो और अकेले आदमी की कोई बखत नहीं होती. हम बहुसंख्यक हैं, तुम वही करोगे, जो हम चाहेंगे. अगर ज्यादा होशियारी दिखाई तो तुम्हें पाकिस्तान भेज देंगे.

मैं घबराया, मगर साहस के साथ अपनी बात को एक दफे उनके समक्ष रखने का प्रयास किया.मैं ने भोलेपन  से  कहा- भाई! तुम मुझे पाकिस्तान भेजने की बात कह रहे हो, मगर मैं तो एक विशुद्ध भारतीय हूं मैं भला क्यों कहीं जाऊं.

वे ठठाकर हंसने लगे- देखो ! संसार मे सबसे ताकतवर शै है भीड़ ! अगर भीड़ ने कुछ ठान लिया तो फिर न तुम जैसे बुद्धिजीवी की चलती है, न ही सरकार की चलती है. भीड सब को साफ करके, आगे बढ़ जाती है.भीड़ के लिए कानून कोई मायने नहीं रखता. हम स्वयं अपना कानून है.

मैं गंभीर हो गया .एक आदमी ने मेरे सर पर हाथ रख स्नेह पूर्ण  शब्दों में कहा- देखो ! अभी भी सुधर जाओ, नहीं तो पाकिस्तान जाने से तुम्हें कोई रोक नहीं सकेगा… नहीं जाओगे तो तुम्हें यहीं मार-मार कर दुरुस्त कर दिया जाएगा .

मैं बोला- तो… तो मैं क्या करूं.

एक व्यक्ति ने कहा- कुछ नही बस हां में हां मिलाते रहो. मन को कस लो.चार आदमी जो कहें, उसे सुनो और प्रत्ति उत्तर मत दो .सवाल जवाब मत करो. अगर भीड़ के स्वर के खिलाफ जाओगे तो तुम्हें देश की पुलिस कानून और भगवान भी नहीं बचा सकता .

– मगर मैं क्यों गलत बात स्वीकार करूंगा. मैं तो रामधारी सिंह दिनकर का मुरीद हूं जिन्होंने कहा था ” जो तटस्थ रहेगा समय लिखेगा उसका भी अपराध ” तो मैं मर जाऊंगा मगर चुप नहीं रहूंगा.

मैं चुप हुआ तो भीड़ ने मेरी ओर घृणा से देखा और चिल्लाई यह बहुत बड़ा देशद्रोही है रे ! बहुत बड़ा.यह हमारी ताकत नहीं जानता या फिर यह सिरफिरा है इसको ठीक कर दो.जब भीड़ मेरी ओर मुट्ठी तान कर आगे बढ़ी तो मैं कांप गया.

मैं इधर-उधर देखने लगा की कैसे भीड़ के हाथों अपनी जान बचाऊं . मन ही मन सोचने लगा- प्रभु ! बचाओ! काश यह स्वपन हो… मैं सवा रुपए का प्रसाद चढ़ाऊगा प्रभु ! मैं यह कहते- कहते पसीने से लथपथ हो चला था भीड़ दांत किटकिटाते मुट्ठी भींचे मेरी ओर बढ़ रही थी.

Cyber Fraud : 50 लाख का इनाम

Cyber Fraud : ‘सर, हमारी मोबाइल कंपनी ने लकी ड्रा में आप को विजेता चुना है. मुंबई में होने वाले शानदार समारोह में आप को 50 लाख रुपए का इनाम दिया जाएगा. कृपया उस के अग्रिम टैक्स और प्रोसैसिंग फीस के रूप में 25 हजार रुपए आज ही 11 बजे तक कंपनी के बैंक अकाउंट 18760… में जमा करा दें. अगर आप 11 बजे तक यह रकम जमा नहीं करा पाते हैं, तो यह इनाम किसी दूसरे शख्स को दे दिया जाएगा.’

कामता प्रसाद के मोबाइल फोन पर सुबहसुबह यह संदेश आया. उसे पढ़ कर वे खुशी से झूम उठे.

कामता प्रसाद के गांव से बैंक तकरीबन 15 किलोमीटर दूर शहर में था. वे रुपए ले कर फौरन बैंक की ओर चल दिए. 11 बजे से पहले उन्होंने बैंक में रुपए जमा करा दिए.

कामता प्रसाद का बेटा रमन राजधानी के एक नामी इंजीनियरिंग कालेज में पढ़ता था. वह उसी दिन अपने एक दोस्त सुकेश के साथ गांव आ गया.

कामता प्रसाद ने जब 50 लाख का इनाम जीतने की बात बताई, तो वह बोला, ‘‘पिताजी, बैंक में रुपए जमा कराने से पहले आप ने मुझे बताया क्यों नहीं?

‘‘जरा से पैसों के लालच में आप ने अपनी पूंजी भी गंवा दी,’’ रमन ने अफसोस के साथ कहा.

‘‘क्या मतलब…?’’ कामता प्रसाद ने हैरानी से पूछा.

‘‘चाचाजी, कोई मोबाइल कंपनी इस तरह के इनाम नहीं बांटती है. यह ठगी का नया तरीका है, जिस में आप जैसे भोलेभाले लोग फंस जाते हैं,’’ सुकेश ने कहा.

ठगी की बात जान कर कामता प्रसाद परेशान हो उठे. सुकेश ने उन्हें समझाया, ‘‘आप परेशान मत होइए. मेरे मामाजी पुलिस इंस्पैक्टर हैं. हम लोग उन के साथ बैंक जा कर पता करते हैं.’’

कामता प्रसाद को समझाबुझा कर रमन और सुकेश उसी समय शहर की ओर चल दिए.

सुकेश के मामा देवांशु राय पुलिस स्टेशन में ही थे. पूरी बात सुन कर वे फौरन बैंक की ओर चल दिए.

बैंक मैनेजर ने अपने कंप्यूटर पर उस अकाउंट की जांच की, फिर बोला, ‘‘इस खाते में औनलाइन बैंकिंग होती है. इस में आज सुबह से 5 आदमियों ने 25-25 हजार की रकम जमा कराई है और यह सारी रकम थोड़ी ही देर बाद निकाल ली गई है.’’

‘‘इस का मतलब है कि कई लोग इस ठगी के शिकार हुए हैं,’’ इंस्पैक्टर देवांशु राय ने कहा.

‘‘जी हां, इस खाते की पिछली जानकारी बता रही है कि इस में पिछले कई दिनों से 25-25 हजार की रकम जमा हो रही है और वह थोड़ी ही देर में औनलाइन ट्रांसफर कर दी जाती है,’’ मैनेजर ने बताया.

‘‘क्या आप हमें इस के खाताधारी का पता दे सकते हैं?’’ रमन ने कहा.

‘‘हांहां, क्यों नहीं,’’ मैनेजर ने खाताधारी का पता प्रिंट कर के दे दिया.

रमन इंस्पैक्टर देवांशु राय की ओर मुड़ते हुए बोला, ‘‘अंकल, मुझे पूरी उम्मीद है कि यह पता फर्जी होगा, लेकिन फिर भी वहां चल कर एक बार जांच कर लेनी चाहिए.’’

‘‘ठीक है,’’ देवांशु राय ने सिर हिलाया, फिर मैनेजर से बोले, ‘‘आप यह खाता फ्रीज कर दीजिए.’’

‘‘आप चिंता मत कीजिए,’’ मैनेजर ने कहा.

रमन और सुकेश इंस्पैक्टर देवांशु राय के साथ उस पते पर चल दिए. जैसा कि अंदाजा था, वह पता फर्जी निकला.

‘‘अंकल, जिस मोबाइल फोन से एसएमएस आया था, उस के दफ्तर में चल कर पता करना चाहिए कि यह नंबर किस का है,’’ रमन ने अपनी राय दी.

‘‘ओके,’’ इंस्पैक्टर देवांशु राय ने कहा.

वहां से पता चला कि यह नंबर सिविल लाइंस में रहने वाले गिरिजा कुमार का था. वहां से सभी लोग सीधे गिरिजा कुमार के घर पहुंचे. वे तकरीबन 55 साल के शख्स थे.

इंस्पैक्टर देवांशु राय ने उन्हें मोबाइल नंबर बताते हुए पूछा, ‘‘मिस्टर गिरिजा कुमार, इस मोबाइल नंबर से आज सुबह आप ने किसकिस को एसएमएस किया था?’’

‘‘इंस्पैक्टर साहब, यह मोबाइल नंबर मेरा नहीं है,’’ गिरिजा कुमार ने कहा.

‘‘यह कैसे हो सकता है. मोबाइल कंपनी ने हमें बताया है कि पिछले हफ्ते यह सिम कार्ड आप ने खरीदा है,’’ इंस्पैक्टर देवांशु राय ने कहा.

‘‘जरूर कोई गलतफहमी हुई है. मैं ने पिछले हफ्ते इस कंपनी का सिम कार्ड जरूर खरीदा था, लेकिन उस का नंबर दूसरा है,’’ गिरिजा कुमार ने अपना मोबाइल नंबर दिखाते हुए कहा.

‘‘इस का मतलब है कि आप ने एक नहीं, 2 सिम कार्ड खरीदे हैं. आप की भलाई इसी में हैं कि दूसरा मोबाइल भी चुपचाप हमारे हवाले कर दें,’’ इंस्पैक्टर देवांशु राय की आवाज सख्त हो गई.

‘‘इंस्पैक्टर साहब, मेरा विश्वास कीजिए. मैं ने एक सिम कार्ड ही खरीदा है,’’ गिरिजा कुमार ने मजबूती से अपनी बात रखी.

रमन ने इंस्पैक्टर देवांशु को अलग ले जा कर कहा, ‘‘अंकल, ये शख्स शरीफ आदमी मालूम पड़ते हैं. कहीं ऐसा तो नहीं कि इन्होंने सिम कार्ड खरीदते समय जो आईडी दी हो, उस पर ही दूसरा सिम कार्ड बेच दिया गया हो.’’

‘‘ऐसा हो भी सकता है, लेकिन इस की जांच कैसे की जाए? हमारे पास इस समय और कोई सूत्र भी तो नहीं है,’’ इंस्पैक्टर देवांशु ने कुछ सोचते हुए कहा.

‘‘जिन लोगों ने उस खाते में 25-25 हजार रुपए जमा करवाए हैं, अगर उन से किसी तरह संपर्क हो सके तो पता लगाया जा सकता है कि उन को एमएमएस किस मोबाइल नंबर से आया था. उस के बाद शायद हमें कोई और सूत्र मिल सके,’’ रमन ने अपना विचार बताया.

‘‘उन सब के संपर्क सूत्र बैंक मैनेजर से मिल सकते हैं,’’ इंस्पैक्टर देवांशु राय ने कहा. वे गिरिजा कुमार के पास आए और बोले, ‘‘फिलहाल तो हम आप के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं कर रहे हैं, लेकिन आप शक के घेरे में हैं, इसलिए बिना पुलिस की इजाजत के शहर से बाहर मत जाइएगा.’’

इस के बाद सभी लोग बैंक मैनेजर के पास वापस आए. मैनेजर ने कहा, ‘‘जिन लोगों ने पैसे जमा किए हैं, उन के  पते तो नहीं हैं, लेकिन मोबाइल नंबर जरूर मिल जाएंगे. क्योंकि फार्म में मोबाइल नंबर का कौलम होता है.’’

‘‘इतना ही काफी होगा,’’ इंस्पैक्टर देवांशु राय ने कहा, तो मैनेजर ने सारे फार्म मंगवा दिए. इंस्पैक्टर ने उन में से 5 लोगों के नंबर नोट कर लिए.

इंस्पैक्टर देवांशु राय ने उन नंबरों पर फोन किया, तो पता चला कि उन में से 2 लोगों को उसी नंबर से एसएमएस आया था, जिस से कामता प्रसाद को फोन आया था. बाकी 3 लोगों को दूसरे नंबरों से एसएमएस आया था. इस समय वे सारे नंबर स्विच औफ चल रहे थे.

‘‘अंकल पता कीजिए, अगर इन सारे नंबरों के सिम कार्ड एक ही दुकान से बेचे गए हैं, तो समझिए कि हम अपराधियों तक पहुंच गए हैं,’’ रमन ने अपनी राय दी.

‘‘वह कैसे?’’ इंस्पैक्टर देवांशु राय ने हैरानी से पूछा.

‘‘आप पता तो कीजिए,’’ रमन ने जोर देते हुए कहा.

इंस्पैक्टर देवांशु राय ने पुलिस स्टेशन आ कर पूछताछ कराई, तो रमन का अंदाजा सही निकला. ये सारे नंबर न केवल एक ही कंपनी के थे, बल्कि उन के सिम कार्ड भी एक ही शोरूम से बेचे गए थे. वे रमन और सुकेश को ले कर उस शोरूम में पहुंच गए.

रमन के कहने पर उन्होंने शोरूम के मालिक को उन नंबरों को नोट कराते हुए कहा, ‘‘इन नंबरों के सिम कार्ड खरीदने के लिए जो फार्म भरे गए थे, आप उन्हें अभी मंगवाइए.’’

शोरूम के मालिक ने थोड़ी ही देर में फार्म मंगवा दिए. रमन ने उन्हें देखते हुए कहा, ‘‘ये सारे फार्म एक ही हैंडराइटिंग में भरे गए हैं. क्या आप बता सकते हैं कि इन्हें आप के किसी मुलाजिम ने भरा है या कस्टमर ने खुद भरा है?’’

शोरूम के मालिक ने उन फार्मों को गौर से देखा, फिर बोला, ‘‘यह हमारे मुलाजिम रमेश की हैंडराइटिंग है.’’

‘‘आप अभी रमेश को बुलवाइए,’’ इंस्पैक्टर देवांशु राय ने कहा. वे रमन की बात समझ गए थे.

रमेश के आने पर इंस्पैक्टर देवांशु राय ने उसे वे फार्म दिखाते हुए पूछा, ‘‘यह फार्म तुम ने भरे हैं?’’

‘‘जी,’’ रमेश ने हां में सिर हिलाया.

‘‘तुम ने क्यों भरे हैं?’’

‘‘ग्राहकों की मदद के लिए ज्यादातर फार्म हम लोग ही भरते हैं.’’

‘‘इन फार्मों के साथ ग्राहकों के जो आईडी लगे हैं, वे तुम कहां से लाए थे?’’ रमन ने पूछा.

‘‘इन्हें ग्राहकों ने खुद ही दिया था,’’ रमेश ने कहा.

‘‘इन मोबाइल नंबरों का इस्तेमाल अपराध के लिए किया गया है. तुम्हारी भलाई इसी में है कि सचसच बता दो, वरना तुम्हें भी इन अपराधों में शामिल माना जाएगा,’’ इंस्पैक्टर देवांशु राय ने सख्त लहजे में कहा.

‘‘जी, मैं सच कह रहा हूं.’’

‘‘मिस्टर रमेश, हमें शक है कि आप ने किन्हीं दूसरे ग्राहकों के आईडी को इन सिम कार्डों को बेचने में इस्तेमाल किया है, इसलिए मेरा कहना मानिए और पुलिस के साथ सहयोग कीजिए,’’ रमन ने अपनी आंखें रमेश के चेहरे पर गड़ाते हुए कहा.

यह सुन कर रमेश घबरा उठा. थोड़ी सख्ती करने पर उस ने कबूल कर लिया कि जो ग्राहक इस दुकान से सिम कार्ड खरीदते थे, उन के ही आईडी की फोटोकौपी करवा कर उस ने 2-2 हजार रुपए में ये सिम कार्ड एक शख्स को बेचे थे, पर उसे उस शख्स का नाम और पता नहीं मालूम था.

‘‘तुम्हें अंदाजा भी नहीं होगा कि तुम ने कितना खतरनाक काम किया है,’’ इंस्पैक्टर देवांशु राय ने रमेश पर गुस्से से भरी नजर डाली, फिर अफसोस के साथ बोले, ‘‘अगर उस शख्स का नाम या पता मालूम होता, तो उसे पकड़ा जा सकता था, लेकिन अब तो कुछ भी नहीं हो सकता.’’

‘‘अभी भी बहुतकुछ हो सकता है,’’ रमन हलका सा मुसकराया, फिर रमेश से बोला, ‘‘इस शोरूम में सीसीटीवी कैमरे लगे हैं. जिन दिनों ये सिम कार्ड बेचे गए, क्या उन दिनों की रेकौर्डिंग देख कर तुम उस आदमी को पहचान सकते हो?’’

‘‘जी, मैं तुरंत पहचान लूंगा,’’ रमेश ने पछतावे के साथ कहा.

रमेश ने रेकौर्डिंग देख कर उस आदमी को पहचान लिया. इंस्पैक्टर देवांशु राय ने रेकौर्डिंग की एक कौपी ले ली, फिर अपने बड़े अफसर से बात कर उस आदमी का फोटे न्यूज चैनलों पर चलवा दिया.

थोड़ी ही देर में इंस्पैक्टर देवांशु राय के पास एक आदमी का फोन आ गया कि यह अपराधी उस के पड़ोस में रहता है.

इंस्पैक्टर देवांशु राय ने उस का पता नोट कर तुरंत वहां छापा मार कर उसे गिरफ्तार कर लिया. उस के घर से भारी मात्रा में नकदी बरामद हुई. थोड़ी सख्ती होते ही उस ने कबूल कर लिया कि इनाम का एसएमएस भेज कर उस ने काफी लोगों को ठगा था.

इंस्पैक्टर देवांशु राय ने उस आदमी को जेल भेज दिया. अपने पैसे वापस मिलने पर कामता प्रसाद ने रमन और सुकेश को जी भर कर आशीर्वाद दिया.

Short Story : बुद्धिजीवी अर्थात!

Short Story : रोहरानंद को देख, लंबी-लंबी फलांग भरता, मानौ दौड़ता भागने लगा. रोहरानंद ने पुकारा- “अरे भाई ! रुको ! रुको तो…”

बुद्धिजीवी ने पलट कर देखा और पुनः लंबे-लंबे डग भरता हवा से बातें करने लगा. विवश रोहरानंद पीछे दौडा. सोचा,आज बमुश्किल एक बुद्धिजीवी मिला है, चार बातें कर लूं तो जीवन धन्य हो जाए.

-“भाई साहब ! सुनिए तो…” रोहरानंद ने दौड़ते हुए पास पहुंच मानो गुहार लगाई.

-“क्यों?”बुद्धिजीवी  ने घूर कर देखा

-“कुछ शंका समाधान करना चाहता हूं.”

-“मैं अभी शीघ्रता में हूं, फिर कभी मिलना.”

-” ऐसा अनर्थ न करें,मेरी बस एक-दो ही शंका, कुशंका है.” रोहरानंद ने  लरजते स्वर में कहा.

-“अच्छ, जरा जल्दी पूछो.” बुद्धिजीवी ठहर गए.

-” धन्यवाद !” रोहरानंद ने  इधर उधर देखा और फिर कहा,- “भाई साहब सामने काफी हाउस है, वहीं बैठते हैं न !”

-“ठीक है !”अब बुद्धिजीवी मुस्कुराया. रोहरानंद को लगा चिड़िया फंसने को तैयार है.

दोनों काफी हाउस में प्रविष्ट हुए . कुर्सियों पर बैठ गए. रोहरानंद ने सधे खिलाड़ी की तरह उंगली पकड़ी और कहा,” भाई साहब और क्या हाल है ?”

बुद्धिजीवी ने गर्म हवा छोडी-” देश तालिबानी संस्कृति की ओर अग्रसर है ! बेहद दुखी है हम.”

रोहरानंद- “तालिबानी अर्थात बर्बर सभ्यता .. नहीं… नहीं हमारा देश तो लोकतंत्र की ताजी हवाओं के झोंके से खुशनुमा है…”

बुद्धिजीवी- “यह सब कहने की बातें हैं. लोकतंत्र तो एक मृगतृष्णा है, हमारा देश अभी बर्बर अवस्था में ही सांसे ले रहा है .”

रोहरानंद ने आश्चर्य से कहा- “भाई साहब ! वह भला कैसे.”

बुद्धिजीवी- “इंटेलेक्यूअल पर्सन को आज देशद्रोही ठहराया जा रहा है, इससे बड़ा काला दिन और क्या होगा. जब बुद्धिजीवियों के साथ सरकार ऐसा दमनकारी कृत्य कर रही है फिर आम लोगों के पीड़ा की आप कल्पना भी नहीं कर सकते.”

रोहरानंद- “मगर भाई साहब ! मुझे लगता है इसमें गलती बुद्धिजीवी की होती है .वह अपनी सीमा का सदैव अतिक्रमण करता है और यह खतरा तो उसे उठाना ही होगा. यह तो हर देश- काल में होता रहा है.”

बुद्धिजीवी – “मगर आज हम क्या करें ? क्या इसका प्रतिकार नहीं करें . सरकार एक कार्टूनिस्ट को राष्ट्रद्रोही बता रही है .यह कैसी व्यवस्था है, कैसा लोकतंत्र है. क्या कलाकार आम आदमी अपनी भावना को प्रकट करने स्वतंत्र नहीं है.”

रोहरानंद-( दोसे का ऑर्डर देने के बाद )-” भाई साहब, मेरी एक सलाह मानेंगे… बुद्धिजीवी की सार्थकता तभी है जब वह लकीर को तोड़े.”

बुद्धिजीवी अब थोड़ा मुस्कुराए और कहा-” ठीक कहते हो, किसी ने कहा है न, लकीर को तोड़ते हैं सिर्फ तीन शायर, सिंह और फकीर.”

रोहरानंद- “और अगर बुद्धिजीवी देशद्रोही नहीं हुआ तो बुद्धिजीवी क्या खाक हुआ… बुद्धिजीवी का तो अर्थ ही है विद्रोही होना.जेल जाना जेल में मरना, सच्चा इंटेलेक्यूअल तो यही है.”

बुद्धिजीवी के सामने अब दोसा आ चुका था. कांटे से एक टुकड़ा काटते हुए उसने कहा- “तुम ठीक कह रहे हो, दुनिया के सारे शीर्ष बुद्धिजीवी जेल में ठूंसे गए हैं, चाहे राजसत्ता हो या लोकसत्ता .”

रोहरानंद – “और आपको उनका धन्यवाद करना चाहिए अगर राष्ट्रदोही कहकर न सताए बुद्धिजीवी को जेल में नहीं ठूंसेगी तो उसकी प्रतिभा को संसार भला कैसे जानेगा ?”

बुद्धिजीवी के समक्ष अब काफी आ चुकी थी उन्होंने शांत भाव से कप उठाया और होठों से लगा एक घूंट पीकर कहा- “तुम ठीक कहते हो, मगर हम तो नाम मात्र के बुद्धिजीवी रह गए हमारी प्रतिभा को देश-दुनिया ने जाना  ही नहीं. चलो ठीक है हम अपना काम करेंगे हम विद्रोह को कंधे पर उठा उठा प्रदर्शन करेंगे.”

Social Story : कैसे जीता बृजलाल ने चुनाव

Social Story : बृजलाल यादव के लिए प्रधानी का चुनाव जीतना इतना आसान नहीं था. ठाकुरों से मिल कर ब्राह्मण यादवों पर भारी पड़ रहे थे. दलितों के वोट अपनी बिरादरी के अलावा किसी और को मिलने की उम्मीद नहीं थी, इसलिए कल्पनाथ गांव के सभी अल्पसंख्यकों को रिझा कर चुनाव जीतने का गुणाभाग लगा रहा था.

बृजलाल यादव किसी भी कीमत पर चुनाव नहीं हारना चाहता था, इसलिए वह हर हथकंडा अपना रहा था. अगर उसे ठाकुरों और ब्राह्मणों का समर्थन मिल जाए, तो उस की जीत पक्की थी.

प्रभाकर चौबे भी अपनी जीत पक्की समझ कर जम कर प्रचारप्रसार कर रहा था.

बृजलाल बचपन से ही छोटेमोटे अपराध किया करता था. बलिया से शाम को दिल्ली जाने वाली बस में कारोबारियों की तादाद ज्यादा होती थी. उन को लूटने में मिली कामयाबी से बृजलाल का मनोबल बढ़ा, तो वह गिरोह बना कर बड़ी वारदातें करने लगा.

इसी बीच बृजलाल की पहचान मोहित यादव से हो गई थी. जब से वह मोहित का शागिर्द बन गया था, तब से लोगों के बीच में उस की पहचान एक गुंडे के रूप में होने लगी थी. मोहित यादव की भी इच्छा थी कि बृजलाल प्रधानी का चुनाव जीत जाए, इसलिए वह कभीकभार उस के गांव आ कर उस का कद ऊंचा कर जाता था.

समाज में मोहित यादव की इमेज साफसुथरी नहीं थी. उस के ऊपर हत्या, लूट वगैरह के तमाम मुकदमे चल रहे थे, पर राजनीतिक दबाव के चलते जिस पुलिस को उसे गिरफ्तार करना था, वह उस की हिफाजत में लगी थी. रोजाना शाम को बृजलाल का दरबार लग जाता था. एक घूंट शराब पाने के लालच में लोग उस की हां में हां मिला कर तारीफों की झड़ी लगा देते.

जैसेजैसे चुनाव की तारीख नजदीक आ रही थी, वैसेवैसे लोगों के भीतर का कुतूहल बढ़ता जा रहा था. आज बृजलाल को आने में काफी देर हो रही थी. उस के घर के बाहर बैठे लोग बड़ी बेसब्री से उस का इंतजार कर रहे थे. गरमी का मौसम था. बरसात होने के चलते उमस बढ़ गई थी.

जगन बोला, ‘‘बड़ी उमस है. अभी पता नहीं, कब तक आएंगे भैया?’’

‘‘आते होंगे… उन के जिम्मे कोई एक ही काम थोड़े ही न हैं. उन को अगले साल विधायक का चुनाव भी तो लड़ना है,’’ रामफल ने खीसें निपोरते हुए कहा.

सुबरन से रहा नहीं गया. वह रामफल की हां में हां मिलाते हुए बोला, ‘‘विधायक का चुनाव जिता कर भैया को मंत्री बनवाना है.’’

उन सब के बीच बैठे बृजलाल के पिता राम सुमेर इस बातचीत से मन ही मन खुश हो रहे थे. एकाएक जब तेज रोशनी के साथ गाड़ी की ‘घुर्रघुर्र’ की आवाज लोगों के कानों में पड़ी, तो वे एकसाथ बोले, ‘लो, भैया आ गए…’

बृजलाल जब उन सब के सामने आया, तो सभी लोग खड़े हो गए. जब वह बैठा, तो उस के साथ सभी लोग बैठ गए. बृजलाल ने लोगों से पूछा, ‘‘आज आप लोगों ने क्याक्या किया? प्रचारप्रसार का क्या हाल है? प्रभाकर और कल्पनाथ के क्या हाल हैं?’’

बृजलाल के इन सवालों पर संदीप तिवारी ने हंसते हुए कहा, ‘‘दुबे और पांडे के पुरवा से तो मैं सौ वोट जोड़ चुका हूं. दलितों में कोशिश चल रही है.’’ ‘‘दलितों में सोमारू की ज्यादा पकड़ है, आज मैं उस से मिला था. वह कह रहा था कि अगर बृजलाल भैया प्रधानी जीतने के बाद मुझे अपना सैक्रेटरी बना लें, तो मैं अपनी पूरी बस्ती के वोट उन्हें दिलवा दूं,’’ थोड़ा संजीदा होते हुए जब जगन ने कहा, तो बृजलाल बोला, ‘‘तो उसे बुलवा लिए होते, मैं उस से बात कर लेता.’’

‘‘ठीक है, मैं कल आप से मिलवा दूंगा.’’

फिर शराब की बोतलें खुलीं, नमकीन प्लेटों में रखी गई. सभी लोगों ने छक कर शराब पी और झूमते हुए चले गए. कल्पनाथ को भी अपनी जीत का पूरा भरोसा था. जहां एक ओर वह छोटी जातियों के लोगों की तरक्की की लड़ाई लड़ रहा था, वहीं दूसरी ओर प्रभाकर चौबे गांव की तरक्की के साथसाथ सभी की तरक्की की बात कर अपनी जीत के लिए वोट करने को कह रहा था.

कई गुटों में बंटे ब्राह्मण प्रभाकर का साथ खुल कर नहीं दे पा रहे थे. प्रभाकर को ठाकुरों का ही भरोसा था. ब्राह्मणों की आपसी लड़ाई का फायदा बृजलाल को मिल रहा था. चुनाव हुआ. सोमारू ने अपनी बस्ती वालों के ही नहीं, बल्कि अपनी पूरी बिरादरी को भरोसा दे कर बृजलाल को वोट दिलाने की पुरजोर कोशिश की.

चुनाव में धांधली भी हुई. शातिर दिमाग के बृजलाल ने धन, बल और फर्जी वोटों का खूब इस्तेमाल किया और चुनाव जीत गया. शाम से जश्न शुरू हुआ, तो रात के 12 बजे तक चला. शराब और मांस के सेवन से वहां का माहौल तामसी हो गया था.

लोगों की भलाई, गांव की तरक्की, भरोसा देने वाला बृजलाल अब अपने असली रूप में आ गया था. समाजसेवा के नाम पर वह ग्राम सभा की तरक्की के लिए आए रुपए को दोनों हाथ से लूटने लगा था. सारे काम कागजों तक ही सिमट कर रह गए थे. सोमारू की तो लौटरी खुल गई थी. ग्राम सभा की जमीन पर कब्जा करना, सरकारी योजना से तालाब खुदवा कर अपने परिवार या जानकार को मछली पालन के लिए दे देना, गांव की तरक्की के लिए आए पैसे को हड़प लेना उस की आदत बन गई थी.

मनरेगा के तहत कार्डधारकों को काम पर न लगा कर वह एक तालाब जेसीबी मशीन से खुदवा रहा था. इस की शिकायत जब ऊपर गई, तो जांच करने वाले आए और रिश्वत खा कर रात को जेसीबी चलवाने की सलाह दे कर चले गए. इस तरह से ग्राम पंचायत से संबंधित सभी अफसरों व मुलाजिमों को साम, दाम, दंड और भेद के जरीए चुप करा कर सारी योजनाओं का रुपया डकारा जा रहा था.

सोमारू बृजलाल का विश्वासपात्र ही नहीं, नुमाइंदा बन कर सारा काम कर रहा था. अपनी बिरादरी वालों व सभी लोगों से धोखा कर के विधवा पैंशन, वृद्धावस्था पैंशन, आवासीय सुविधा वगैरह सभी योजनाओं और कामों में जो भी कमीशन मिलता था, उस में सोमारू का भी हिस्सा तय रहता था.

Funny Story : दलित दूल्हे

लेखक- अनुराग वाजपेयी, Funny Story : वे तो इस बात पर अड़े हुए थे कि दूल्हा घोड़ी पर नहीं बैठेगा. हमारे प्रदेश में हर साल ऐसी 10-20 घटनाएं होती हैं, जब बड़ी जातियों के लोग अपने गांव में जाति की इज्जत बचाए रखने के लिए दलित जाति के दूल्हे को घोड़ी से उतार देते हैं.

किले ढह गए, महल बिक गए, खेत बंट गए, लड़के शराबी बन गए, पर मूंछें नहीं झुकीं. इन लोगों को भरोसा है कि अगर बड़प्पन बचाए रखना है, तो एक ही तरीका है कि दलित जाति के दूल्हे की बरात ही मत निकलने दो.

इस गांव में भी यही हो रहा था. कई दिनों से दलित दूल्हे को घोड़ी से उतारने की तैयारी चल रही थी.

मैं ने एक से कहा, ‘‘भाई, दूल्हा तो वैसे ही दलित होता है, सामने दिखती आफत को गले लगाने के बावजूद वह गाजेबाजे के साथ निकलने को तैयार हो जाता है. उस से ज्यादा दलित, पीडि़त और कौन होगा? फिर अलग से इन्हें दलित दूल्हा कहने की क्या जरूरत है?’’

वह बोला, ‘‘हम भी इन दूल्हों को यही बात तो समझाना चाहते हैं कि शादी के बाद जिंदगी में वैसे ही दलित हो जाओगे तो अच्छा है कि अभी से धरती पर रहो.’’

खैर, यह बात तो हंसने की है, लेकिन जब सारा देश अयोध्या में मंदिरमसजिद, सीएए, पाकिस्तान और ऐसे ही खास मुद्दों में उलझा हुआ था, तब इस गांव में सब से बड़ा मुद्दा यह था कि दलित दूल्हा घोड़ी पर बैठ सकेगा या नहीं.

मैं ने दूल्हे के  पिता से पूछा, ‘‘भाई, क्या तैयारी हो रही है शादी की?’’

वह बेचारा चौक में जूते गांठने का काम करता था. बोला, ‘‘बाबूजी, तैयारी क्या है, आप लोगों का आशीर्वाद है. किसी तरह शादी हो जाए बस.’’

उस ने अपने 2 बेटों में से इसी बेटे को स्कूल भेजा था. वह कालेज तक पढ़ा था और अब घोड़ी पर चढ़ कर बरात निकालने को तैयार था.

मैं ने उस से पूछा, ‘‘भाई, तुम क्यों जिद कर रहे हो घोड़ी पर ही बैठ कर ससुराल जाने की?’’

उस 19 साल के लड़के ने, जिस की हलकीहलकी मूंछें उग आई थीं और जिस ने बड़े चाव से शहर के दर्जी से गुलाबी रंग का सूट सिलवाया था, बड़े भोलेपन से मुझ से ही सवाल पूछा, जिस का जवाब किसी शास्त्र में नहीं है.

उस ने पूछा, ‘‘भाई साहब, मैं क्यों नहीं बैठ सकता घोड़ी पर?’’

इस सवाल पर आज तक सारा समाज बगलें झांक रहा है.

इस सवाल में न कोई राजनीति थी, न किसी को बहकाने की नीयत, न अपने किसी खोए हुए हक को पाने की लड़ाई. यह शहर में पढ़ रहे एक 19 साल के लड़के का सहज सवाल था.

यह सवाल भले ही सहज हो, पर इस का जवाब सहज नहीं है.

मैं ने लड़के से पूछा, ‘‘पर यह बताओ, इस गांव में तुम्हारा बड़ा भाई, पिता या तुम्हारी जाति का बड़े से बड़ा कोई भी आदमी आज तक घोड़ी पर चढ़ कर शादी करने नहीं गया, तो फिर तुम ही क्यों जाना चाहते हो?’’

वह बोला, ‘‘दरअसल, जो लोग मुझे घोड़ी से उतारना चाहते हैं, उन के सारे परिवार के लोग घोड़ी पर चढ़ कर शादी करने जाते हैं. मैं देखना चाहता हूं कि घोड़ी में ऐसा क्या है, जो आदमी को दूसरों से ऊंचा बना देती है.’’

मैं ने कहा, ‘‘घोड़ी में कुछ नहीं है भैया, आजकल वे कार में भी जाते हैं. पहले घोड़ी ताकत और पैसे की निशानी थी, अब कार है. अगर तुम ताकत और पैसे में उन के बराबर हो जाओगे तो वे बरदाश्त करेंगे.’’

लड़का बोला, ‘‘बात पैसे की है, तो भाई साहब जैसे वे किराए की घोड़ी लाते हैं, वैसे ही मैं लाया हूं. अगर बात ताकत की है, तो आज वोट की ताकत हमारे पास भी है. मैं तो घोड़ी पर चढ़ कर ही बरात ले जाऊंगा.’’

लड़का लड़ाई को न्योता दे रहा था. उस के बड़ेबुजुर्ग समझाबुझा कर हार गए कि इस से कुछ नहीं मिलने वाला. तुम एक दिन घोड़ी पर चढ़ कर भी जाओगे तो क्या होगा? कल से तुम्हारे बाप को वहीं चौक पर बैठ कर जूते गांठने हैं.

लड़का बोला, ‘‘जूते गांठने में क्या दिक्कत है, जो मुझे रोकते हैं? वे तो दारू पी कर हल्ला मचाते हैं. उन के लड़के पढ़ेलिखे भी नहीं हैं. मैं उन से क्यों डरूं?’’ समझाने का दौर सुबह से चलता रहा और शाम हो गई.

मैं ने सोचा कि जरा दूसरे पक्ष का भी हाल देख आऊं. उधर माहौल बड़ा ही गरम था. एक दलित लड़के की बरात घोड़ी पर निकलने वाली है, यह बात इतनी गंभीर थी कि मानो बमों से लैस कोई हवाईजहाज उन के घरों पर बमबारी के लिए उड़ान भरने वाला हो.

मैं ने एक से पूछा, ‘‘चढ़ने क्यों नहीं देते उस लड़के को घोड़ी पर? क्या हो जाएगा?’’

वह बोला, ‘‘वाह भाई साहब, वाह, आज घोड़ी पर चढ़ने दें, कल हमारे साथ खाना खिला दें, परसों आप कहिएगा कि उन से रिश्ता भी कर लें…’’

मैं ने कहा, ‘‘पर, इतनी दूर तक जाने की क्या जरूरत है? लड़के की जिद है तो आप लोग ही सम्मान करिए. आप लोगों ने इतने लोगों को घोड़ी पर चढ़ा कर क्या पा लिया?’’

वह बोला, ‘‘आप उस का पक्ष न लें. यह लड़का शहर में चार अक्षर क्या पढ़ लिया है, इस के तो पंख उग आए हैं. पिछले साल हम ने इन को तालाब से पानी भरने की छूट दे कर नतीजा देख लिया. ससुरे उस में हमारे साथ नहाने की मांग करने लगे.’’

मैं ने कहा, ‘‘पर, तालाब तो पंचायत का है, सब का है.’’

उस ने पूछा, ‘‘और पंचायत किस की है भाई साहब?’’

मैं चुप हो गया. वहां लोग तैयार थे, दुनिया इधर से उधर हो जाए, पर यह बरात घोड़ी पर नहीं निकलेगी.

इसी माहौल में रात हुई. बरात सजी, घोड़ी आई और लड़का उस पर बैठ गया. हजारों साल में इस गांव में पहली बार यह ऐतिहासिक घटना हुई. चंद्रमा पर पहुंचने से भी बड़ी घटना थी यह.

बरात चली और जब अपने महल्ले को पार कर दूसरे महल्ले में पहुंची, तो सबकुछ तयशुदा कार्यक्रम से हुआ. 100-150 आदमी आए, उन्होंने दूल्हे को घोड़ी से उतारा, पीटा, उस के बाप को भी पीटा और चले गए.

गांव में पुलिस चौकी भी थी और प्रशासन भी सतर्क था. उस ने चारों ओर घेरा बनाया और बरात को दूल्हे व घोड़ी समेत ससुराल तक पहुंचा दिया.

ऐसा ही होता है, बीसियों बार हो चुका है. पुलिस निश्चिंत हुई, तभी लोग फिर पहुंचे, अब की उन्होंने पत्थरों और लाठियों से हमला किया, पुलिस भाग गई, दूल्हे को फिर उतार दिया गया और वह अपने बापदादा की तरह पैदल शादी करने पहुंचा.

अगले दिन प्रशासन ने दावा किया कि दूल्हा घोड़ी पर ही गया था. अखबारों में छपा कि ऐसा नहीं हुआ था. अखबार शाम तक पुराना हो गया.

एक ऐतिहासिक घटना होतेहोते रह गई. इसी अखबार में एक खबर और थी कि देश के वैज्ञानिकों ने लंबी दूरी तक मार करने वाले एक मिसाइल का कामयाब परीक्षण किया था.

इस पर प्रधानमंत्री ने खुशी जाहिर करते हुए कहा था कि देश अब तरक्कीशुदा देशों की कतार में खड़ा हो गया है.

Social Story : आत्मकथा एक हीरोइन की

Social Story : ‘‘अरे नीलू, एंबुलैंस को फोन किया कि नहीं?’’ नीलू की सहेली मधु हंसते हुए बोली.

‘‘क्यों…?’’ नीलू ने पूछा.

‘‘इस स्काई ब्लू ड्रैस में तो तुम बला की खूबसूरत दिख रही हो. रास्ते में कम से कम 15-20 दिलजले तो बेहोश हो कर गिर पड़े होंगे,’’ मधु बोली.

‘‘तुझे तो ब्यूटी कौंटैस्ट में हिस्सा लेना ही चाहिए. गोरा गुलाबी रंग, शानदार फिगर, तीखे नैननक्श, मीठी खनकती हुई आवाज और उस पर यह कातिलाना अदाएं… तुम से बेहतर तो इस शहर में होना मुश्किल है,’’ साथ में खड़ी सुजाता ने कहा.

‘‘हां, बिलकुल ठीक बात है. इसी महीने के आखिर में ब्यूटी कौंटैस्ट हो भी रहा है,’’ मधु ने सूचना दी.

‘‘सच में… क्या मैं यह कौंटैस्ट जीत सकती हूं?’’ नीलू ने पूछा.

‘‘क्यों, क्या कमी है तुझ में. ऐसा फिगर तो कई हीरोइनों का भी नहीं है,’’ सुजाता ने कहा.

‘‘पर, शायद मम्मीपापा इजाजत न दें,’’ नीलू ने डर जाहिर किया.

‘‘हम सब चल कर उन्हें मना लेंगी,’’ मधु ने कहा.

पूछने पर नीलू की मम्मी बोलीं, ‘‘अरे, नहींनहीं. ऐसे किसी ब्यूटी कौंटैस्ट में हिस्सा लेने की जरूरत नहीं है. अभी कालेज का एक साल और बचा है. पहले पढ़ाई पूरी कर लो, फिर किसी ऐसीवैसी बात के बारे में सोचना.’’

‘‘आंटी, सिर्फ एक ही दिन की तो बात है, बाकी समय तो हम कालेज और किताबों में ही रहेंगे न,’’ मधु बोली.

‘‘अगर यह जीत गई तो हम सब को कितना अच्छा लगेगा, आत्मविश्वास तो बढ़ेगा ही,’’ सुजाता ने अपनी तरफ से जोर लगाया.

‘‘चलो, तुम सब इतना जोर दे रही हो तो मैं इस के पापा से पूछ कर ही कोई फैसला लूंगी,’’ नीलू की मम्मी बोलीं.

‘‘आंटी, प्लीज अपनी तरफ से पूरी कोशिश कीजिएगा,’’ मधु बोली.

शाम को मम्मी ने पापा को बताया.

‘‘बच्चों की इच्छा पूरी करना हमारा फर्ज बनता है. वैसे भी हमारे कौन से 5-7 बच्चे हैं. लेदे कर एक लड़की ही तो है, इसलिए हमें इसे इस कौंटैस्ट में भाग लेने की इजाजत दे देनी चाहिए. लेकिन यह पहली और आखिरी बार होगा. इस के बाद अपने कैरियर की तरफ ध्यान देना होगा,’’ नीलू के पापा ने अपना फैसला सुनाया. यह सुन कर नीलू बहुत खुश हुई.

नीलू जब फार्म भरने पहुंची, तो उसे बताया गया कि महीने के आखिरी रविवार को सुबह 11 बजे से इवैंट शुरू हो जाएगा.

इवैंट के मुख्य जज के रूप में फिल्मी दुनिया की एक मशहूर हस्ती आएगी, जिन का नाम अभी गुप्त रखा गया है. इस सिलसिले में सभी प्रतियोगियों को मुफ्त ग्रूमिंग क्लास की सुविधा भी दी जाएगी.

आखिरकार प्रतियोगिता वाला दिन आ ही गया. नीलू सभी प्रतियोगियों पर भारी पड़ी और आखिरी 10 वाले राउंड तक पहुंच ही गई. वहां पहुंच कर मालूम पड़ा कि मुख्य निर्णायक के तौर पर फिल्म स्टार कुशाल आने वाले हैं.

नीलू फिल्म स्टार कुशाल की बहुत बड़ी फैन थी. अब उस का उत्साह सातवें आसमान पर पहुंच गया.

10वें नंबर पर नीलू का नाम पुकारा गया. इस प्रतियोगिता में सभी से 1-1 सवाल पूछा गया था, जिस का उन्हें एक मिनट में जवाब देना था.

नीलू से सवाल पूछा गया कि आप का आदर्श कौन है? बाकी प्रतियोगियों से भी इसी तरह के सवाल पूछे गए थे. सभी ने रटेरटाए जवाब दिए थे और तकरीबन सभी ने मातापिता, गुरु, दोस्त को अपने जवाबों में शामिल किया था, पर नीलू ने अपने जवाब को एक नया मोड़ दे दिया था.

‘‘मेरा आदर्श इस सृष्टि की एक छोटी सी रचना है, जिसे हम सब चींटी के नाम से जानते हैं. चींटी अपने शारीरिक वजन से कई गुना ज्यादा भार उठा कर बिना थके मेहनत करती है. जरूरत पड़ने पर हाथी से टकराने की भी हिम्मत रखती है. हमें भी इसी तरह बिना थके कामयाबी मिलने तक अपनी मेहनत जारी रखनी चाहिए.’’

नीलू के जवाब से काफी देर तक हाल में तालियां बजती रहीं. नीलू को इस इवैंट में पहला नंबर मिला था. इनाम देते हुए कुशाल ने नीलू की दिल खोल कर तारीफ की.

‘‘कमाल की खूबसूरत हैं आप. क्या फिगर है. क्या आंखें हैं. क्या बाल हैं. एकएक चीज लाजवाब और सब से ऊपर आप का जवाब. वाह, कमाल हो गया. इसे कहते हैं ब्यूटी विद ब्रेन.

‘‘मैं तो आप की डायलौग डिलीवरी का कायल हो गया हूं. बिना किसी ट्रेनिंग के किस जगह सांस लेना है, कितनी देर रोकना है, सब एकदम प्रोफैशनल. आप जैसे लोगों की तो बौलीवुड को जरूरत है. आप मुंबई आइए, मैं आप की पूरी मदद करूंगा,’’ कुशाल नीलू की तारीफ करते हुए बोला.

अवार्ड के अलावा विजेता नीलू को कुशाल के साथ डिनर भी करना था.

डिनर के समय नीलू ने कुशाल से पूछा, ‘‘क्या मैं सचमुच हीरोइन बन सकती हूं?’’

‘‘हां, तुम बिलकुल हीरोइन बन सकती हो,’’ कुशाल बोला.

‘‘क्या आप मेरी मदद करेंगे?’’ नीलू ने पूछा.

‘‘अरे, आप मंबई आइए तो सही, जो हम से बन पड़ेगा, जरूर करेंगे,’’ कुशाल ने जवाब दिया.

‘‘कुशाल साहब का तो नाम चलता है. अगर साहब कह रहे हैं तो चली जाओ सुबह की फ्लाइट से ही,’’ एक चमचाटाइप आदमी बोला.

‘‘मम्मीपापा से पूछना पड़ेगा,’’ नीलू थोड़ा सोच कर बोली.

‘‘ये पापा लोग ही तो विलेन होते हैं… फिल्मों में भी…’’ हंसते हुए कुशाल बोला, ‘‘जब इजाजत मिल जाए, तब आ जाना.’’

‘‘जी, आप अपना नंबर दे दीजिए,’’ नीलू ने कहा.

‘‘जरा नंबर दे दो,’’ कुशाल ने पास खड़े चमचे से कहा.

चमचे ने नंबर लिखवा दिया.

नीलू ने घर में घुसते ही कह दिया, ‘‘मैं फिल्मों में काम करना चाहती हूं.’’

मातापिता दोनों जानते थे कि ऐसा ही होने वाला है, क्योंकि उस प्रोग्राम में वे भी शामिल थे. मना करने पर नीलू के गलत कदम उठाने की संभावना बनी हुई थी. इस पर भी वे विचार कर रहे थे.

उस के पापा ने कहा, ‘‘2 महीने बाद तुम्हारे इम्तिहान हैं. पहले अच्छे से इम्तिहान दे दो, फिर मैं खुद तुम्हारे साथ चलूंगा, क्योंकि 1-2 दिन में तो तुम्हें कोई काम देगा नहीं, इसलिए हम वहां  महीनाभर रुक कर कोशिश कर लेंगे.’’

‘‘वैसे, इस की जरूरत नहीं पड़ेगी, क्योंकि कुशाल ने कहा है कि वहां पहुंचते ही मुझे काम दिलवा देंगे,’’ नीलू चहक कर बोली.

‘‘उस दुनिया की सारी चकाचौंध दिखावटी है. परदे के पीछे का सच बहुत स्याहा और कड़वा है,’’ पापा ने चेतावनी देते हुए कहा.

‘‘जिस पर कुशाल का हाथ हो, वह हर तरफ से सुरक्षित है,’’ नीलू पर तो जैसे कुशाल का जादू छा गया था.

इस बीच नीलू ने सैकड़ों बार कुशाल को फोन लगाया. कई बार तो घंटी जाने के बाद भी फोन नहीं उठाया. कई बार दूसरे ने उठाया. कभी कुशाल साहब शूटिंग कर रहे होते, तो कभी स्टोरी सीटिंग या कभी सो रहे होते.

आखिर वह दिन भी आ गया, जब नीलू को मुंबई जाना था. अभी तक कुशाल से उस की बात नहीं हो पाई थी, फिर भी उसे यकीन था कि कुशाल उसे पहचान ही लेगा और और मदद करेगा.

विभिन्न पत्रपत्रिकाओं और इंटरनैट से नीलू ने कुशाल के घर का पता निकाल ही लिया था.

अपने पापा के साथ नीलू मुंबई में एक छोटे से होटल में रुक गई. सुबह होते ही वह कुशाल के बंगले पर पहुंच गई. वहां उस जैसे पचासों लोग खड़े थे. गार्ड ने उस की कोई बात नहीं सुनी और बाकी लोगों के साथ भीड़ में खड़ा कर दिया.

तकरीबन 4 घंटे धूप में खड़े रहने के बाद 12 बजे कुशाल अपने घर की गैलरी में आया और हाथ हिला कर मौजूद लोगों को देखा और फिर हाथ जोड़ कर अंदर चला गया.

इतनी दूर से उस का नीलू को पहचान पाना मुश्किल था. यही हाल स्टूडियो का था. वहां भी गार्ड किसी को अंदर नहीं जाने दे रहा था.

दूसरे दिन नीलू फिर भीड़ का हिस्सा बन कर खड़ी हो गई, पर आज उस ने अपने हाथों में दुपट्टा ले कर लहराया.

तकरीबन 7 दिनों तक लगातार ऐसा चलने के बाद आखिर एक दिन कुशाल का ध्यान उस की तरफ चला ही गया. वह उसे पहचान नहीं पाया था, फिर भी गार्ड को आदेश दे कर नीलू को अंदर बुलवा लिया.

सारी बातें जानने के बाद कुशाल ने पूछा, ‘‘कहां रुकी हो?’’

नीलू ने जब उसे अपना पता बताया, तो उस ने उसे अपने गैस्ट हाउस में रुकने को कहा. यह भी कहा कि तुरंत काम मिलना मुमकिन नहीं है, इसलिए बेहतर होगा कि वह अपने पिता को वापस घर भेज दे. यहां तो काम की तलाश में इधरउधर जाना पड़ेगा.

गैस्ट हाउस में अच्छीखासी सुविधाएं  थीं. स्टाफ भी अच्छा था, पर किसी भी बात का जवाब हां या न से ज्यादा नहीं देता था.

कुशाल ने अपनी एक कार ड्राइवर के साथ नीलू को दे रखी थी, जहां वह अपने पिता के साथ अलगअलग डायरैक्टरों के यहां मिलने जाती थी.

6-7 घंटे गुजरने के बाद भी किसी से मुलाकात नहीं हो पाती थी, इसलिए 10 दिनों के बाद नीलू के पिता ने वापस जाने का फैसला कर लिया.

नीलू के पिता के जाने के दूसरे ही दिन कुशाल गैस्ट हाउस में आ गया.

‘‘गुड मौर्निंग नीलू, कुछ काम मिला क्या?’’ कुशाल नीलू के कमरे में घुसता हुआ बोला.

‘‘नहीं, अभी तक तो नहीं मिला. किसी से मुलाकात नहीं हो पाई,’’ नीलू निराशा भरी आवाज में बोली.

‘‘हम तुम्हें सिखाते हैं काम कैसे मिलता है. चलो, हमारे साथ,’’ कुशाल मुसकराते हुए बोला.

नीलू में इतनी हिम्मत नहीं थी कि पूछे कहां चलना है, किस से मिलना है. वह तैयार हो कर आ गई.

‘‘मैडम, यह क्या कपड़े पहने हैं. ये सब शूटिंग के दौरान पहनना. कोई छोटी ड्रैस नहीं है क्या?’’ सलवारकुरता पहने नीलू को देख कर कुशाल बोला.

‘‘जी, एक शौर्ट स्कर्ट तो है,’’ नीलू बोली.

‘‘तो फिर वही पहनो. यहां अकेले चेहरा नहीं देखा जाता है, बाकी चीजें

भी गौर से देखते हैं. समझी?’’ कुशाल कुटिलता से बोला.

‘‘जी, समझी,’’ कह कर नीलू ड्रैस बदल कर आ गई.

कमरे से बाहर निकलते ही कुशाल ने नीलू की कमर में हाथ डाल दिया. नीलू को असहज लगा.

‘‘लाइमलाइट में रहने के लिए यह सब तो करना ही पड़ेगा, तभी मीडिया में फोटो छपेगा और लोग जानेंगे. हम और हमारी टीम के जितना नजदीक रहोगी, उतनी ही ज्यादा कामयाब हो पाओगी, समझी?’’ कुशाल की आंखों में शरारत साफ नजर आ रही थी.

‘‘समझ गई,’’ कह कर नीलू उस से और चिपक गई. बाहर कई फोटोग्राफर खड़े थे, जो धड़ाधड़ इस पल को कैमरे में कैद कर रहे थे.

‘‘चलो, तुम्हें डायरैक्टर सोबर कुमार से मिलवाते हैं. वह एक फिल्म बनाने की प्लानिंग कर रहा है, हमारे साथ,’’ कुशाल बोला.

‘‘मैं वहां गई थी, पर 7 घंटे बाद भी वे मिल नहीं पाए थे,’’ नीलू बोली.

‘‘तुम हमारे साथ जा रही हो और हम तुम्हारे गौडफादर हैं, फादर नहीं. समझी?’’ कुशाल बोला.

कार में बैठते ही कुशाल ने नीलू की खुली जांघ पर अपना हाथ रख दिया. नीलू उसे हटाना चाहती थी, पर हाथ का दबाव इतना ज्यादा था कि वह चाह कर भी नहीं हटा पाई.

सारे रास्ते वह अलगअलग जगहों पर इस तरह का दबाव महसूस करती रही और खून के घूंट पी कर सहन करती रही.

तकरीबन एक घंटे बाद दोनों सोबर कुमार के औफिस में थे.

‘‘यह रही हमारी नई फिल्म की हीरोइन, जिस के बारे में हम ने तुम से बात की थी,’’ कुशाल बोला.

‘‘साहब, कम से कम 7 नई हीरोइनों को तो आप इंट्रोड्यूस करा ही चुके हैं,’’ सोबर कुमार हाथ जोड़ कर बोला.

‘‘यह 8वीं है,’’ कुशाल बोला.

‘‘साहब, स्क्रीन टैस्ट लेना पड़ेगा,’’ सोबर कुमार ने कहा.

‘‘स्क्रीन टैस्ट, स्टोरी सीटिंग, प्रोड्यूसर से मीटिंग सब 7 दिन के बाद फिक्स कर लो. अभी 7 दिन तक तो यह हमारे साथ है,’’ कुशाल बोला.

‘‘जी, साहब,’’ सोबर कुमार ने कहा.

‘‘चलो, बधाई हो मैडम, आप हीरोइन बन गई हैं,’’ कुशाल बोला.

‘‘थैंक्यू सर,’’ नीलू ने कहा.

‘‘सर नहीं, साहब कहो. साहब हैं ये,’’ सोबर कुमार नीलू की तरफ देख कर बोला.

‘‘अभी नईनई हैं, धीरेधीरे सब समझ जाएंगी,’’ कुशाल बोला.

लौटतेलौटते रात के 11 बज गए. गैस्ट हाउस में आ कर कुशाल ने खाने का और्डर दिया.

‘‘ड्रिंक करोगी?’’ कुशाल ने पूछा.

‘‘जी, मैं शराब नहीं पीती,’’ नीलू ने जवाब दिया.

‘‘मैडमजी, यह शराब नहीं है. ट्रेनिंग है आप की. फिल्म के रोल के हिसाब से तैयारी तो करनी पड़ेगी न? लो पियो,’’ कह कर कुशाल ने एक पैग बढ़ा दिया.

नीलू में मना करने की हिम्मत नहीं थी. उस ने जिंदगी में पहली बार शराब पी थी.

खाना खा कर कुशाल ने एक विदेशी सिगरेट निकाली और सुलगा ली. एक सिगरेट नीलू की तरफ बढ़ाते हुए बोला, ‘‘यह ट्रेनिंग का दूसरा हिस्सा है. हमारा साथ देने के लिए इसे पी लो.’’

नीलू मना करती रही, पर कुशाल ने सिगरेट सुलगा कर उसे जबरन दे दी. मजबूरन नीलू को सिगरेट पीनी पड़ी.

2-3 कश लेते ही उस पर अजीब सी बेहोशी छाने लगी.

सुबह जब नीलू की नींद खुली तो अपनेआप को बिस्तर पर बिना कपड़ों के पाया. तकरीबन इसी अवस्था में कुशाल उस के पास लेटा हुआ था.

नीलू समझ चुकी थी कि ट्रेनिंग के नाम पर वह जिंदगी की अनमोल चीज गंवा चुकी है.

तकरीबन एक हफ्ते तक यही चलता रहा, बस अब फर्क इतना हो गया था कि कुशाल के आते ही नीलू खुद पैग बना लाती और सिगरेट पेश कर देती.

7 दिन बाद सोबर कुमार के पास स्क्रीन टैस्ट के लिए जाना पड़ा. जैसे ही सोबर कुमार ने सिगरेट पेश की, नीलू बोली, ‘‘मैं रियल ऐक्टिंग करती हूं. मुझे सिगरेट की जरूरत नहीं. बताइए, कहां देना है स्क्रीन टैस्ट.’’

‘‘वाह,’’ सोबर कुमार बोला.

इस के बाद तो प्रोड्यूसर, स्टोरी राइटर, डायलौग राइटर, म्यूजिक डायरैक्टर और कैमरामैन तक सभी ने नीलू को अलगअलग ढंग से टैस्ट किया और टे्रनिंग दी.

नीलू फिर भी दूसरे लोगों की तुलना में खुशकिस्मत थी. उसे कम से कम एक फिल्म तो मिल गई और वह फिल्म हिट भी हो गई.

किसी फिल्म की शूटिंग के दौरान वह अपनी वैनिटी वैन में मेकअप करवा रही थी, तभी बाहर जा रहे 2 लोग जोरजोर से बातें कर रहे थे.

‘‘अरे कालगर्ल है वह तो,’’ एक आदमी दूसरे से कह रहा था.

नीलू को लगा, शायद वह आदमी उसे आवाज दे रहा था.

Short Story : आया विदेशी यार

Short Story : अपने शहर में पुराने यार के आने, बुलाने की खुशी में शहर को बूढ़ी दुलहन की तरह सजाया जा रहा था. ‘सात समंदर पार से आया मेरा दोस्त, दोस्त को सलाम करो…’ वाला गाना छोटे बच्चों को स्कूल बंद करा कर उन के स्वागत के लिए सिखाया जा रहा था.

शहर में दिनरात विकास का काम चालू था. सरकारी ठेकेदार मजदूरों को हड़का कर उन का खून पानी समझ उसे बहा कर सरकार के यार के स्वागत के लिए कदमकदम पर तोरणद्वार बनवा रहे थे. सड़कों के साथ लगती गरीबों की बस्तियों को छिपाने के लिए उन के आगे उन से दोगुनी ऊंची ईंट की दीवारें चिनवा कर उन्हें छिपवा रहे थे.

…और सरकार ने हर अपने मातहत को आदेश दिया कि सरकार के यार के स्वागत में जंगल को मंगल की तरह सजाया जाए. हर गरीब की झुग्गी के आगे दीवार लगाई जाए, ताकि यार को पता चले कि हमारे राज में कोई गरीब नहीं है. हमें पता ही नहीं है कि गरीबी क्या होती है. हमें पता ही नहीं है कि गरीब कैसा होता है.

सब से बड़े सरकार ने अपने से नीचे वाले सरकार को यह हुक्म पोस्ट किया तो देखते ही देखते हुक्म बिन पैर सरपट दौड़ने लगा. उस से निचले वाले सरकार ने अपने से नीचे वाले सरकार को हुक्म सौंपा.

ज्यों ही उस से नीचे वाले सरकार को हुक्म मिला तो उस ने आव देखा न ताव, हुक्म पर घुग्घी मार कर हुक्म अपने से निचले सरकार के सिर पर डंडे की तरह चला दिया. आखिर में जब सब से निचले सरकार के पास सरकार का हुक्म आया, तो उस ने आंखें फाड़फाड़ कर हुक्म देखा.

उस के बाद अपने आगे देखा, अपने पीछे देखा, अपने दाएं देखा, अपने बाएं देखा, जब उसे लगा कि अपने आगे भी वही है, अपने पीछे भी वही है. अपने दाएं भी वही है, और अपने बाएं भी वही है तो उस ने पहले तो खुद को जीभर कर कोसा, फिर सरकार के हुक्म को. उस से नीचे कोई सरकार क्यों न हुआ, जो उस का हुक्म बजाता?

जब सब से निचले सरकार को पता चल गया कि अब सरकार का आया हुक्म उसे ही बजाना है, तो उस ने हुक्म बजाने के लिए खुद को सजाना शुरू किया.

मुनादी वाले से 1,000 रुपए की रसीद ले कर 500 रुपए दे कर अपने अंडर के सबडिवीजन में सब से निचले सरकार ने तत्काल मुनादी पिटवा दी, ‘मेरे अंडर के सबडिवीजन के हर आम और खास गरीब को ये सख्त हिदायत देते हुए सूचित किया जाता है कि शहर के दर्शन करने सात समंदर पार से सरकार के यार आ रहे हैं, इसलिए सरकार के यार को अपना सच न बताने के मकसद से हर किस्म के गरीब को यह सख्त आदेश दिए जाते हैं कि जब तक सरकार के यार शहर में रहें, शहर में घूमें, सरकार के हाथ चूमें, तब तक कोई भी किसी भी तरह का गरीब गलती से भी मेरे अंडर सबडिवीजन की सड़कों पर न उतरे.

‘रैड लाइटों पर इस बीच जो भी गरीब देखा जाएगा, उसे… मेरे अंडर सबडिवीजन के हर गरीब पर यह बैन तब तक जारी रहेगा, जब तक कि सरकार के यार देश घूम कर गरीबों की झुग्गियों के आगे लगी ईंट की दीवारों के आगे से हमारी अमीरी की तसवीरें साथ नहीं ले जाते. मुझ सब से निचली सरकार का यह आदेश मेरे अंडर के सबडिवीजन में अभी से लागू माना जाए.’

आखिर सब से निचले सरकार खुद को गालियां देते हुए हाथ में कानून का डंडा लिए अपने अंडर वाले सबडिवीजन की मेन सड़क पर सरकार के यार को रोतेपीटते खड़े हो गए, ताकि जब तक शहर में सरकार के यार रहें, सरकार के यार उन के अंडर वाले सबडिवीजन से गुजरें, तो उन को गरीबों से भरे उन के सबडिवीजन में कोई भी गरीब न दिखे.

सरकार अपने सबडिवीजन की मेन सड़क पर गरीबों पर कड़ी नजर रखे हुए थे. सरकार का काफिला सरकार के यार के पुतले को बख्तरबंद गाड़ी में बैठाए उसे अपना चमत्कारी शहर दिखा रहा था. सड़क के दोनों ओर अमीर ही अमीर मुसकराते खड़े हुए थे.

जिधर भी सरकार के यार के पुतले की नजर जाती, उसे न पेड़ दिखते, न पौधे, बस, अमीर ही अमीर दिखते. वाह, यह शहर तो उस के शहर से भी ज्यादा अमीर है.

सड़क के दोनों ओर 4 दिन पहले ही लगाए 100 साल पुराने बरगदों से ऊंचे हवा में झूमते नकली पेड़. मौक ड्रिल में सरकार के यार का पुतला यह सब देख कर खुश था.

…कि तभी सामने एक गरीब आ गया. ड्यूटी पर सोएसोए तैनात सब से निचले सरकार के उस गरीब के सड़क पर आते ही हाथपैर फूले. उसे लगा, अब गए हराम की खाने के दिन. इस से पहले कि सरकार के पुतले यार का काफिला वहां पहुंचता, उस ने गरीब को हड़काते हुए पूछा, ‘‘कहां से आया सड़क पर…?’’

‘‘हुजूर सामने से?’’ कह कर उस ने हाथ में टूटी बालटी वाले दोनों हाथ जोड़े.

‘‘कैसे?’’

‘‘हुजूर इन टांगों से,’’ कह कर उस ने अपनी नंगी टांगों की ओर इशारा किया.

‘‘कैसे…?’’

‘‘अपनी झुग्गी के आगे लगी दीवार फांद कर साहब.’’

‘‘हद है यार, इन मरियल टांगों में अभी भी इतना दम? सुना नहीं था कि जब तक सरकार के यार शहर में रहेंगे, तुम्हारा सड़कों पर आना बंद है?’’

‘‘सुना तो है साहब, पर…’’

‘‘पर क्या…? शहर की असली तसवीर दिखाना चाहता है. चल, अभी तेरी चमड़ी उधेड़ता हूं,’’ कह कर सब से निचले सरकार ने उस गरीब की बांह पकड़ी, तो वह टूट कर उस के हाथ में आ गई तो सब से निचले सरकार उसे डांटते हुए बोले, ‘‘शर्म नहीं आती, इतनी कमजोर बाजुएं ले कर कानून तोड़ते हो? बाजुएं देखो तो अखबार के पुराने कागज जैसी और… जबान देखो तो… मतलब तुम…’’

‘‘बीवी को प्यास लगी थी, सो सड़क पर पानी भरने आ गया साहब. इस में मेरा क्या कुसूर?’’

‘सरकार से जबान लड़ाता है? अपनी चालाकी के बीच में बीवी को लाता है? सरकार हवा में पुरजोर डंडा लहराता हुआ दहाड़ा, तो उस गरीब ने कांपते हुए कहा, ‘‘साहब, बस एक बालटी पानी भर लेने दो. फिर जब तक आप खुद नहीं कहेंगे, तब तक अपनी झुग्गी से बाहर नहीं निकलेंगे.’’

दूरदूर तक सरकार के यार के काफिले की कोई आवाज न थी. तब सब से निचले सरकार ने उस गरीब की बीवी पर रहम करते हुए उसे झट से बालटी भरने की हिदायत देते हुए कहा, ‘‘देख, तेरी बीवी पर तरस खा कर तुझे छोड़े दे रहा हूं. मैं किसी भी किस्म के शौहरों पर रहम नहीं करता, पर हर किस्म के शौहरों की बीवियों पर बहुत रहम करता हूं.

‘‘और हां, अपनी बस्ती के तमाम गरीबों को मेरी तरफ से डरा देना कि

5 दिन तक जो कोई सड़क पर रात को दिखा तो देख लेना कि मुझ से बुरा कोई नहीं होगा.’’

‘‘ठीक है हुजूर, आप का आदेश सिरमाथे. आप कहो तो मरने तक अपनी झुग्गियों से बाहर न आएं,’’ उस गरीब ने पानी की बालटी सड़क पर सजे नल से ठूंसठूंस कर भरी और ताजाताजा ईंट लगी दीवार के पीछे अपनी झुग्गी बस्ती में जा कर दुबक गया.

Religious Story : बहुरंगी आस्था

लेखिका- एकता बृजेश गिरि, Religious Story : ‘‘ऐ छोकरी… चल, पीछे हट…’’ मंदिर का पुजारी कमली को गणेश की मूर्ति के बहुत करीब देख कर आगबबूला हो उठा. वह अपनी आंखों से अंगारे बरसाते हुए कमली के पास आ गया और चिल्लाते हुए बोला, ‘‘सुनाई नहीं देता… मूर्ति को छू कर गंदा करेगी क्या… चल, पीछे हट…’’

कमली 10 साल की थी. उस समय वह ऊंची जातियों की मेम साहबों की नकल करने के लिए अपनी ही धुन में गणेश की मूर्ति के बिलकुल सामने खड़ी सिद्धि विनायक मंत्र के जाप में मगन थी.

उसे पहली बार ऐसा मौका मिला था, जब वह मंदिर में गणेश चतुर्थी की पूजा के लिए सब से पहले आ कर खड़ी हो गई थी. अभी तक दर्शन के लिए कोई लाइन नहीं लगी थी. मंदिर के अहाते को रस्सियों से घेरा जा रहा था, ताकि औरत और मर्द अलगअलग लाइनों में खड़े हो कर गणेश के दर्शन कर सकें और किसी तरह की कोई भगदड़ न मचे.

कमली पूजा शुरू होने के बहुत पहले ही चली आई थी और चूंकि मंदिर में भीड़ नहीं थी, इसलिए वह बेझिझक गणेश की मूर्ति के बिलकुल ही सामने बने उस ऊंचे चबूतरे पर भी चढ़ गई, जिस पर खड़े हो कर पुजारी सामने लाइन में लगे श्रद्धालुओं का प्रसाद ग्रहण करते हैं और फिर उन में से थोड़ा सा प्रसाद ले कर मूर्ति की ओर चढ़ाते हुए बाकी प्रसाद श्रद्धालुओं को वापस कर देते हैं.

उस ऊंचे चबूतरे पर खड़े रहने का हक केवल और केवल मंदिर के पुजारियों के पास ही था, इसलिए कमली का उस चबूतरे पर खड़े हो कर गणेश की पूजा करना पुजारी को कतई स्वीकार नहीं था. उस ने फिर चिल्ला कर कहा, ‘‘ऐ लड़की… परे हट…’’ इस बार उस ने कमली की बांह पकड़ कर धक्का दे दिया.

अपनी पूजा में अचानक से आई इस बाधा से कमली ठिठक गई. उस ने खुद को गिरने से बचा कर सामने खड़े पुजारी को देखा और फिर हाथ जोड़ कर बोली, ‘‘क्या हुआ पंडितजी, आप मुझे धक्का क्यों दे रहे हैं?’’

‘‘तो क्या मैं तेरी यहां आरती उतारूं…?’’ गुस्से से तमतमाते हुए पुजारी के मुंह से आग के गोले फूट पड़े, ‘‘तेरी हिम्मत कैसे हुई इस चबूतरे पर चढ़ने की… प्रभु की मूर्ति को गंदा कर दिया… चल भाग यहां से…’

कमली को अब भी समझ में नहीं आया कि यह पंडितजी को क्या हो गया… अब तक तो हमेशा उस ने इन से ज्ञान की बातें ही सुनी थीं, लेकिन… आज… उस ने फिर कहा, ‘‘गुस्सा क्यों होते हैं आप? सामने कोई लाइन तो थी नहीं, इसलिए मैं ऊपर चढ़ आई. बस, मंत्र खत्म होने ही वाले हैं,’’ कह कर उस ने फिर आंखें बंद कर लीं और मूर्ति के आगे अपने हाथ जोड़ लिए.

‘यह तो सरासर बेइज्जती है… एक लड़की की इतनी हिम्मत… पहले तो चबूतरे तक चढ़ आई और अब… कहने से भी पीछे नहीं हटती…’ सोच कर पुजारी बौखला गया और बादलों सा गरजा, ‘‘कोई है…’’

देखते ही देखते भगवा कपड़ों में 2 लड़के आ कर पुजारी के पास खड़े हो गए. कमली अब भी रटेरटाए मंत्रों को बोलने में ही मगन थी.

पुजारी ने दोनों लड़कों को इशारे में जाने क्या समझाया, दोनों ने कमली को पीछे धक्का देते हुए चबूतरे से नीचे गिरा दिया और फिर दोनों ओर से कमली को जमीन पर घसीटते हुए मंदिर के बाहर ले कर चले गए.

पुजारी ने अपने हाथ की उंगलियों को देखा और फिर अपनी नाक के पास ले जा कर सूंघते हुए नफरत से बोला, ‘‘इतनी सुबहसुबह फिर से दोबारा नहाना पड़ेगा.’’

मंदिर से जबरदस्ती निकाली गई कमली मंदिर के बाहर जमीन पर ही बैठ कर फफक पड़ी. कितने मन से उस ने रातभर जाग कर मां से कह कर गणेश के लिए लड्डू बनाए थे और फिर आज सुबह ही वह नहाधो कर नई फ्रौक पहने पूजा के लिए दौड़ी चली आई थी.

साथ ही, भाई को भी कह आई थी कि जल्दी से नहाधो कर मां से लड्डू व फलफूल की गठरी लिए मंदिर में चले आना. मां ने बड़ी जतन से घी, आटे का इंतजाम किया था.

कमली का भाई सूरज मंदिर के बाहर आ कर ठिठक गया. कमली धूलमिट्टी में अपने दोनों घुटने मोड़ कर बैठी हुई थी. उस की नई फ्रौक भी तो धूल में गंदी हो गई थी. माथे पर हाथ रख कर बैठी कमली ने सामने अपने भाई को देखा तो मानो उसे आसरा मिला.

‘‘क्या हुआ…’’ सूरज ने झट से गठरी उस के पास ही जमीन पर रख दी और उस के कंधे पर हाथ रख कर पूछा, ‘‘तू तो यहां पूजा करने आई थी… फिर ऐसी हालत कैसे?’’

‘‘वह… पुजारी ने…’’ रोतेरोते कमली की हिचकियां बंध गईं. उस ने वैसे ही रोते हुए सूरज को सारा हाल कह सुनाया.

सबकुछ सुन कर सूरज भी ताव में आ गया और बोला, ‘‘यह पुजारी तो… खुद को भगवान का दूत समझ बैठा है… जो औरत पूरे महल्ले और मंदिर के बाहर की सफाई करती है, उस औरत की बेटी के छूने से मंदिर गंदा हो जाता है… वाह रे पंडित…’’

फिर उस ने कमली को भी फटकारते हुए कहा, ‘‘ऐसे भगवान की पूजा करने के लिए तू इतने दिनों से पगलाई थी, जो मूर्ति बने तेरी बेइज्जती होते देखते रहे… चल उठ यहां से… हमें कोई पूजा नहीं करनी…’’

‘‘लेकिन, ये लड्डू और…’’ कमली को अब अपनी मेहनत का खयाल हो आया. आखिर मां को रातभर जगा कर उस ने गणेश के लिए एक किलो लड्डू बनवाए थे. मेहनत तो थी ही, साथ ही रुपए भी लगे थे… उसे लगा, सबकुछ बरबाद हो गया.

‘‘कमली, मुझे ये लड्डू अब तो खाने को दे दे…’’ सूरज को पूजा से क्या लेनादेना था, वह तो बस अपने लिए ही परेशान था.

‘‘ले, तू सब खा ले…’’ कह कर कमली ने पास रखी पोटली गुस्से से सूरज के आगे कर दी और खुद खड़ी हो कर बोली, ‘‘मेरी तो मेहनत और मां के पैसे दोनों पर पानी फिर गया… बेइज्जती हुई सो अलग…’’ फिर मंदिर की ओर देखते हुए वह सूरज से बोली, ‘‘अब इस मंदिर में मैं कभी पैर न धरूंगी… मां ठीक कहती हैं… बप्पा भी मूर्ति बने सब देखते रहे… मेरा साथ उन्होंने न दिया… वे भी उसी पुजारी और लड़कों से मिले हैं…’’ फिर अपने आंसू पोंछ कर उस ने कहा, ‘‘अगर बप्पा को मेरी जरूरत नहीं है तो मुझे भी उन की जरूरत नहीं है, रह लूंगी मैं उन के बिना…’’ और फिर पैर पटक कर कमली घर की ओर जाने लगी, तो सूरज ने उसे रोकते हुए पूछा, ‘‘इन लड्डुओं का क्या करूं?’’

‘‘जो जी में आए… फेंक दे… जो मन करे वह कर…’’

‘‘गणेश को चढ़वा दूं…’’ सूरज ने अपना सिर खुजाते हुए पूछा.

‘‘बप्पा को… मगर, कैसे… इतनी बेइज्जती के बाद मैं तो अंदर न जाऊंगी और न तुझे जाने दूंगी… फिर कैसे…?’’

‘‘पुजारी ने तुझे गंदा कहा है न… अब यही तेरे हाथ के बने लड्डुओं को वह छुएगा और गणेश को चढ़ाएगा भी…’

‘‘मगर, कैसे…?’’

‘‘बस तू देखती जा…’’ कह कर सूरज मंदिर से थोड़ा आगे बढ़ कर एक ढाबे पर गया और वहां से मिट्टी के कुछ बरतन मांग लाया. फिर उस ने मंदिर के पास लगे नल से सभी बरतनों को धोया और फिर एक साफ पक्की जगह पर गठरी और बरतन ले कर जा बैठा.

मंदिर के बाहर अब श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ने लगी थी. सूरज ने गठरी खोल दी और आनेजाने वाले लोगों को देख कर आवाज लगाने लगा, ‘‘बप्पा के लिए घी के लड्डू… फलफूल समेत केवल 21 रुपए में.’’

और फिर क्या था, देखते ही देखते कमली के हाथ के बने लड्डू, फलफूल समेत एक श्रद्धालु और पुजारी के हाथों से होते हुए गणेश की मूर्ति को चढ़ गए. सूरज ने रुपयों का हिसाब किया, लागत से ज्यादा मुनाफा हुआ था.

सूरज ने सारे रुपए कमली के हाथ पर धर दिए और कहा, ‘‘ले… तेरी बेइज्जती का बदला पूरा हो गया. जिस के हाथ के छूने से गणेश मैले हुए जा रहे थे, उसी हाथ के बने लड्डुओं से वे पटे हुए हैं और वह पुजारी… आज तो वह न जाने कितनी बार मैला हुआ होगा…’’

सूरज की बात सुन कर कमली हंस दी और बोली, ‘‘कितनी बेवकूफ थी मैं, जो कितने दिनों से पैसे जमा कर के इन की पूजा करने का जुगाड़ कर रही थी. यही अक्ल पहले आई होती तो अब तक कितने पैसे बच गए होते…’’ फिर कुछ सोच कर वह बोली, ‘‘गणेश चतुर्थी का यह उत्सव तो अभी 3-4 दिन तक चलना है… क्या ऐसा नहीं हो सकता कि बप्पा पर रोज मेरे ही हाथों का प्रसाद चढ़े…’’

‘‘क्यों नहीं हो सकता… यहां बेवकूफों की कोई कमी है क्या…’’ फिर कुछ रुक कर सूरज ने आगे कहा, ‘‘तू एक काम कर, घर चली जा… कुछ देर आराम कर ले… मैं लाला से जा कर बेसन, घी, चीनी वगैरह ले आता हूं. कल फिर हम यहीं लड्डू बेचेंगे…’’

उधर मंदिर के अंदर पुजारी अपने साथ के लोगों को बताते नहीं थक रहा था कि कैसे आज एक अछूत लड़की के मलिन स्पर्श से उस ने अपने प्रभु को बचाया. और गणेशजी, उन्हें इस फलफूल, मानअपमान, स्पर्शअस्पर्श से कहां कुछ फर्क पड़ने वाला था. वे अब भी पहले के समान ही जड़ थे.

Love Story : लव इन मालगाड़ी

Love Story : देश में लौकडाउन का ऐलान हो गया, सारी फैक्टरियां बंद हो गईं, मजदूर घर पर बैठ गए. जाएं भी तो कहां. दिहाड़ी मजदूरों की शामत आ गई. किराए के कमरों में रहते हैं, कमरे का किराया भी देना है और राशन का इंतजाम भी करना है. फैक्टरियां बंद होने पर मजदूरी भी नहीं मिली.

मंजेश बढ़ई था. उसे एक कोठी में लकड़ी का काम मिला था. लौकडाउन में काम बंद हो गया और जो काम किया, उस की मजदूरी भी नहीं मिली.

मालिक ने बोल दिया, ‘‘लौकडाउन के बाद जब काम शुरू होगा, तभी मजदूरी मिलेगी.’’

एक हफ्ते घर बैठना पड़ा. बस, कुछ रुपए जेब में पड़े थे. उस ने गांव जाने की सोची कि फसल कटाई का समय है, वहीं मजदूरी मिल जाएगी. पर समस्या गांव पहुंचने की थी, दिल्ली से 500 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के सीतापुर के पास गांव है. रेल, बस वगैरह सब बंद हैं.

तभी उस के साथ काम करने वाला राजेश आया, ‘‘मंजेश सुना है कि आनंद विहार बौर्डर से स्पैशल बसें चल रही हैं. फटाफट निकल. बसें सिर्फ आज के लिए ही हैं, कल नहीं मिलेंगी.’’

इतना सुनते ही मंजेश ने अपने बैग में कपड़े ठूंसे, उसे पीठ पर लाद कर राजेश के साथ पैदल ही आनंद विहार बौर्डर पहुंच गया.

बौर्डर पर अफरातफरी मची हुई थी. हजारों की तादाद में उत्तर प्रदेश और बिहार जाने वाले प्रवासी मजदूर अपने परिवार के संग बेचैनी से बसों के इंतजार में जमा थे.

बौर्डर पर कोई बस नहीं थी. एक अफवाह उड़ी और हजारों की तादाद में मजदूर सपरिवार बौर्डर पर जमा हो गए. दोपहर से शाम हो गई, कोई बस नहीं आई. बेबस मजदूर पैदल ही अपने गांव की ओर चल दिए.

लोगों को पैदल जाता देख मंजेश और राजेश भी अपने बैग पीठ पर लादे पैदल ही चल दिए.

‘‘राजेश, सीतापुर 500 किलोमीटर दूर है और अपना गांव वहां से 3 किलोमीटर और आगे, कहां तक पैदल चलेंगे और कब पहुंचेंगे…’’ चलतेचलते मंजेश ने राजेश से कहा.

‘‘मंजेश, तू जवान लड़का है. बस 10 किलोमीटर के सफर में घबरा गया. पहुंच जाएंगे, चिंता क्यों करता है. यहां सवारी नहीं है, आगे मिल जाएगी. जहां की मिलेगी, वहां तक चल पड़ेंगे.’’

मंजेश और राजेश की बात उन के साथसाथ चलते एक मजदूर परिवार ने सुनी और उन को आवाज दी, ‘‘भैयाजी क्या आप भी सीतापुर जा रहे हैं?’’

सीतापुर का नाम सुन कर मंजेश और राजेश रुक गए. उन के पास एक परिवार आ कर रुक गया, ‘‘हम भी सीतापुर जा रहे हैं. किस गांव के हो?’’

मंजेश ने देखा कि यह कहने वाला आदमी 40 साल की उम्र के लपेटे में होगा. उस की पत्नी भी हमउम्र लग रही थी. साथ में 3 बच्चे थे. एक लड़की तकरीबन 18 साल की, उस से छोटा लड़का तकरीबन 15 साल का और उस से छोटा लड़का तकरीबन 13 साल का.

‘‘हमारा गांव प्रह्लाद है, सीतापुर से 3 किलोमीटर आगे है,’’ मंजेश ने अपने गांव का नाम बताया और उस आदमी से उस के गांव का नाम पूछा.

‘‘हमारा गांव बसरगांव है. सीतापुर से 5 किलोमीटर आगे है. हमारे गांव आसपास ही हैं. एक से भले दो. बहुत लंबा सफर है. सफर में थोड़ा आराम रहेगा.’’

‘‘चलो साथसाथ चलते हैं. जब जाना एक जगह तो अलगअलग क्यों,’’ मंजेश ने उस से नाम पूछा.

‘‘हमारा नाम भोला प्रसाद है. ये हमारे बीवीबच्चे हैं.’’

मंजेश की उम्र 22 साल थी. उस की नजर भोला प्रसाद की बेटी पर पड़ी और पहली ही नजर में वह लड़की मंजेश का कलेजा चीर गई. मंजेश की नजर उस पर से हट ही नहीं रही थी.

‘‘भोला अंकल, आप ने बच्चों के नाम तो बताए ही नहीं?’’ मंजेश ने अपना और राजेश का नाम बताते हुए पूछा.

‘‘अरे, मंजेश नाम तो बहुत अच्छा है. हमारी लड़की का नाम ममता है. लड़कों के नाम कृष और अक्षय हैं.’’

मंजेश को लड़की का नाम जानना था, ममता. बहुत बढि़या नाम. उस का नाम भी म से मंजेश और लड़की का नाम भी म से ममता. नाम भी मैच हो गए.

मंजेश ममता के साथसाथ चलता हुआ तिरछी नजर से उस के चेहरे और बदन के उभार देख रहा था. उस के बदन के आकार को देखता हुआ अपनी जोड़ी बनाने के सपने भी देखने लगा.

मंजेश की नजर सिर्फ ममता पर टिकी हुई थी. ममता ने जब मंजेश को अपनी ओर निहारते देखा, उस के दिल में भी हलचल होने लगी. वह भी तिरछी नजर से और कभी मुड़ कर मंजेश को देखने लगी.

मंजेश पतले शरीर का लंबे कद का लड़का है. ममता थोड़े छोटे कद की, थोड़ी सी मोटी भरे बदन की लड़की थी. इस के बावजूद कोई भी उस की ओर खिंच जाता था.

चलतेचलते रात हो गई. पैदल सफर में थकान भी हो रही थी. सभी सड़क के किनारे बैठ गए. अपने साथ घर का बना खाना खाने लगे. कुछ देर के लिए सड़क किनारे बैठ कर आराम करने लगे.

जब दिल्ली से चले थे, तब सैकड़ों की तादाद में लोग बड़े जोश से निकले थे, धीरेधीरे सब अलगअलग दिशाओं में बंट गए. कुछ गिनती के साथी अब मंजेश के साथ थे. दूर उन्हें रेल इंजन की सीटी की आवाज सुनाई दी. मंजेश और राजेश सावधान हो कर सीटी की दिशा में कान लगा कर सुनने लगे.

‘‘मंजेश, रेल चल रही है. यह इंजन की आवाज है,’’ राजेश ने मंजेश से कहा.

‘‘वह देख राजेश, वहां कुछ रोशनी सी है. रेल शायद रुक गई है. चलो, चलते हैं,’’ सड़क के पास नाला था, नाला पार कर के रेल की पटरी थी, वहां एक मालगाड़ी रुक गई थी.

‘‘राजेश उठ, इसी रेल में बैठते हैं. कहीं तो जाएगी, फिर आगे की आगे सोचेंगे. भोला अंकल जल्दी करो. अभी रेल रुकी हुई है, पकड़ लेते हैं,’’ मंजेश के इतना कहते ही सभी गोली की रफ्तार से उठे और रेल की ओर भागे. उन को देख कर आतेजाते कुछ और मजदूर भी मालगाड़ी की ओर लपके. जल्दबाजी में सभी नाला पार करते हुए मालगाड़ी की ओर दौड़े, कहीं रेल चल न दे.

ममता नाले का गंदा पानी देख थोड़ा डर गई. मंजेश ने देखा कि कुछ दूर लकड़ी के फट्टों से नाला पार करने का रास्ता है. उस ने ममता को वहां से नाला पार करने को कहा. लकड़ी के फट्टे थोड़े कमजोर थे, ममता उन पर चलते हुए डर रही थी.

मंजेश ने ममता का हाथ पकड़ा और बोला, ‘‘ममता डरो मत. मेरा हाथ पकड़ कर धीरेधीरे आगे बढ़ो.’’

मंजेश और ममता एकदूसरे का हाथ थामे प्यार का एहसास करने लगे.

राजेश, ममता का परिवार सभी तेज रफ्तार से मालगाड़ी की ओर भाग रहे थे. इंजन ने चलने की सीटी बजाई. सभी मालगाड़ी पर चढ़ गए, सिर्फ ममता और मंजेश फट्टे से नाला पार करने के चलते पीछे रह गए थे. मालगाड़ी हलकी सी सरकी.

‘‘ममता जल्दी भाग, गाड़ी चलने वाली है,’’ ममता का हाथ थामे मंजेश भागने लगा. मालगाड़ी की रफ्तार बहुत धीमी थी. मंजेश मालगाड़ी के डब्बे पर लगी सीढ़ी पर खड़ा हो गया और ममता का हाथ पकड़ कर सीढ़ी पर खींचा.

एक ही सीढ़ी पर दोनों के जिस्म चिपके हुए थे, दिल की धड़कनें तेज होने लगीं. दोनों धीरेधीरे हांफने लगे.

तभी एक झटके में मालगाड़ी रुकी. उस झटके से दोनों चिपक गए, होंठ चिपक गए, जिस्म की गरमी महसूस करने लगे. गाड़ी रुकते ही मंजेश

सीढ़ी चढ़ कर डब्बे की छत पर पहुंच गया. ममता को भी हाथ पकड़ कर ऊपर खींचा.

मालगाड़ी धीरेधीरे चलने लगी. मालगाड़ी के उस डब्बे के ऊपर और कोई नहीं था. राजेश और ममता के परिवार वाले दूसरे डब्बों के ऊपर बैठे थे.

भोला प्रसाद ने ममता को आवाज दी. ममता ने आवाज दे कर अपने परिवार को निश्चित किया कि वह पीछे उसी मालगाड़ी में है.

मालगाड़ी ठीकठाक रफ्तार से आगे बढ़ रही थी. रात का अंधेरा बढ़ गया था. चांद की रोशनी में दोनों एकदूसरे को देखे जा रहे थे. ममता शरमा गई. उस ने अपना चेहरा दूसरी ओर कर लिया.

‘‘ममता, दिल्ली में कुछ काम करती हो या फिर घर संभालती हो?’’ एक लंबी चुप्पी के बाद मंजेश ने पूछा.

‘‘घर बैठे गुजारा नहीं होता. फैक्टरी में काम करती हूं,’’ ममता ने बताया.

‘‘किस चीज की फैक्टरी है?’’

‘‘लेडीज अंडरगारमैंट्स बनाने की. वहां ब्रापैंटी बनती हैं.’’

‘‘बाकी क्या काम करते हैं?’’

‘‘पापा और भाई जुराब बनाने की फैक्टरी में काम करते हैं. मम्मी और मैं एक ही फैक्टरी में काम करते हैं. सब से छोटा भाई अभी कुछ नहीं करता है, पढ़ रहा है. लेकिन पढ़ाई में दिल नहीं लगता है. उस को भी जुराब वाली फैक्टरी में काम दिलवा देंगे.

‘‘तुम क्या काम करते हो, मेरे से तो सबकुछ पूछ लिया,’’ ममता ने मंजेश से पूछा.

‘‘मैं कारपेंटर हूं. लकड़ी का काम जो भी हो, सब करता हूं. अलमारी, ड्रैसिंग, बैड, सोफा, दरवाजे, खिड़की सब बनाता हूं. अभी एक कोठी का टोटल वुडवर्क का ठेका लिया है, आधा काम किया है, आधा पैंडिंग पड़ा है.’’

‘‘तुम्हारे हाथों में तो बहुत हुनर है,’’ ममता के मुंह से तारीफ सुन कर मंजेश खुश हो गया.

चलती मालगाड़ी के डब्बे के ऊपर बैठेबैठे ममता को झपकी सी आ गई और उस का बदन थोड़ा सा लुढ़का, मंजेश ने उस को थाम लिया.

‘‘संभल कर ममता, नीचे गिर सकती हो.’’

मंजेश की बाहों में अपने को पा कर कुछ पल के लिए ममता सहम गई, फिर अपने को संभालती हुई उस ने नीचे झांक कर देखा ‘‘थैंक यू मंजेश, तुम ने बांहों का सहारा दे कर बचा लिया, वरना मेरा तो चूरमा बन जाता.’’

‘‘ममता, एक बात कहूं.’’

‘‘कहो.’’

‘‘तुम मुझे अच्छी लग रही हो.’’

मंजेश की बात सुन कर ममता चुप रही. वह मंजेश का मतलब समझ गई थी. चुप ममता से मंजेश ने उस के दिल की बात पूछी, ‘‘मेरे बारे में तुम्हारा क्या खयाल है?’’

ममता की चुप्पी पर मंजेश मुसकरा दिया, ‘‘मैं समझ गया, अगर पसंद नहीं होता, तब मना कर देती.’’

‘‘हां, देखने में तो अच्छे लग रहे हो.’’

‘‘मेरा प्यार कबूल करती हो?’’

‘‘कबूल है.’’

मंजेश ने ममता का हाथ अपने हाथों में लिया, आगे का सफर एकदूसरे की आंखों में आंखें डाले कट गया.

लखनऊ स्टेशन पर मंजेश, ममता, राजेश और ममता का परिवार मालगाड़ी से उतर कर आगे सीतापुर के लिए सड़क के रास्ते चल पड़ा.

सड़क पर पैदल चलतेचलते मंजेश और ममता मुसकराते हुए एकदूसरे को ताकते जा रहे थे.

ममता की मां ने ममता को एक किनारे ले जा कर डांट लगाई, ‘‘कोई लाजशर्म है या बेच दी. उस को क्यों घूर रही है, वह भी तेरे को घूर रहा?है. रात गाड़ी के डब्बे के ऊपर क्या किया?’’

‘‘मां, कुछ नहीं किया. मंजेश अच्छा लड़का है.’’

‘‘अच्छा क्या मतलब?’’ ममता की मां ने उस का हाथ पकड़ लिया.

ममता और मां के बीच की इस बात को मंजेश समझ गया. वह भोला प्रसाद के पास जा कर अपने दिल की बात कहने लगा, ‘‘अंकल, हमारे गांव आसपास हैं. आप मेरे घर चलिए, मैं अपने परिवार से मिलवाना चाहता हूं.’’

मंजेश की बात सुन कर भोला प्रसाद बोला, ‘‘वह तो ठीक है, पर क्यों?

‘‘अंकल, मुझे ममता पसंद है और मैं उस से शादी करना चाहता हूं. हमारे परिवार मिल कर तय कर लें, मेरी यही इच्छा है.’’

मंजेश की बात सुन कर ममता की मां के तेवर ढीले हो गए और वे मंजेश के घर जाने को तैयार हो गए.

लौकडाउन जहां परेशानी लाया है, वहीं प्यार भी लाया है. मंजेश और ममता का प्यार मालगाड़ी में पनपा.

सभी पैदल मंजेश के गांव की ओर बढ़ रहे थे. ममता और मंजेश हाथ में हाथ डाले मुसकराते हुए एक नए सफर की तैयारी कर रहे थे.

Family Story : नरगिस

लेखक – मनोज शर्मा, Family Story : घर की दहलीज पर चांदनी हाथ बांधे खड़ी थी. सामने आतेजाते लोगों में अपनी शाम ढूंढ़ रही थी. कोई दूर से देख लेता तो एक पल के लिए दिल मचल जाता, पर उसे वापस लौटते देखते ही सारी उम्मीदें टूट जातीं.

लौकडाउन से पहले ही आखिरी बार कोई आया था शायद…वह बंगाली, जिस के पास पूरे पैसे तक नहीं थे, फिर अगली बार रुपए देने का वादा कर के सिर्फ 50 का नोट ही थमा गया था.

उस रोज ही नहीं, बल्कि उस से पहले से ही लगने लगा था कि अब इस धंधे में भी चांदनी जैसी अधेड़ औरतों के लिए कुछ नहीं रखा, पर उम्र के इस पड़ाव पर कहां जाएं? उम्र का एकतिहाई हिस्सा तो यहीं निकल गया. सारी जवानी, सारे सपने इसी धंधे में खाक हो चुके हैं. अब तो यही नरक उस का घर है.

कभी जब चांदनी कुछ खूबसूरत थी, सबकुछ जन्नत लगता था. हर कोई उस की गदराई जवानी पर मचल जाता था. पैसे की चाह में सब की रात रंगीन करना कितना अच्छा लगता था.

पर, अब तो जिंदगी जहन्नुम बन चुकी है. लौकडाउन में पहले कुछ दिन बीते, फिर हफ्ते और अब तो महीने. यहां कई दिनों से फांके हैं. कैसे जी रही है, चांदनी खुद ही जानती है. सरकार कुछ नहीं करती इस के लिए. न अनाज का दाना है अब और न ही फूटी कौड़ी. कोई फटकता तक नहीं है अब.

जब चांदनी नईनई आई थी, तब बात ही अलग थी. 12 साल पहले, पर ठीक से याद नहीं. वे भी क्या दिन थे, जब दर्जनों ड्रैस और हर ड्रैस एक से बढ़ कर एक फूलों से सजी. कभी गुलाबी, कभी सुनहरी और कभी लाल. कभी रेशमी साड़ी या मखमली लाल चमकीला गाउन.

रोजरोज भोजन में 3 किस्म की तरकारी, ताजा मांस, बासमती पुलाव, पूरीनान. क्या स्वाद था, क्या खुश थी. घर पर पैसा पहुंचता था, तो वहां भी चांदनी की तूती बोलती थी. नएनए कपड़े, साजोसामान के क्या कहने थे. बस राजकुमारी सी फीलिंग रहती थी.

हर ग्राहक की पहली पसंद उन दिनों चांदनी ही थी और दाम भी मनचाहा. जितना मांगो उतना ही. और कई बार तो डबल भी. हर शिफ्ट में लोग उस का ही साथ मांगते थे. सोने तक नहीं देते थे रातभर. और वह बूढ़ा तो सबकुछ नोच डालता था और फिर निढाल हो कर पड़ जाता था. वे कालेज के लड़के तो शनिवार की शाम ही आते थे, पर मौका पाते ही चिपट जाते थे. हां, पर एक बात तो थी, अगर शरीर चाटते थे तो पैसा भी मिलता था और फिर कुछ घंटों में ही हजारों रुपए.

आज देह भी काम की नहीं रही और एक धेला तक साथ में नहीं. शक्ल ही बदल गई, जैसे कोई पहचानता ही न हो. बूढ़ा बंगाली या गुटका खाता वह ट्रक ड्राइवर या 2-4 और उसी किस्म के लोग, बस वही दोचार दिनों में. सब मुफ्तखोर हैं. मुफ्त में सब चाहते हैं. अब यहां कुछ भी नहीं बचा. यह तो जिंदगी का उसूल है कि जब तक किसी से कोई गर्ज हो, फायदा हो, तभी तक उस से वास्ता रखते हैं, वरना किसी की क्या जरूरत.

अब तो कालेज के छोकरे चांदनी की सूरत देखते ही फूहड़ता से हंसने लगते हैं, पास आना तो दूर रहा. 100-50 में भी शायद अब कोई इस शरीर को सूंघे. आंखें यह सब सोचते हुए धरती में गढ़ गईं. चांदनी रेलिंग पर हथेली टिकाए सुनसान सड़क को देखती रहती है.

कितना बड़ा घर था, पर अब समय के साथसाथ इसे छोटा और अलहदा छोड़ दिया गया है. कभी यह बीच में होता था. जब सारी आंखें चांदनी को हरपल खोजती थीं, पर अब इसे काट कर या मरम्मत कर एक ओर कर दिया है, ताकि चांदनी जवान और पैसे वाले ग्राहकों के सामने न आ सके, शायद ही कभीकभार कोई आंखें इस ओर घूरती हैं.

और फिर गलती से यहां कोई पहुंच भी जाता है तो आधे पैसे तो दलाल ले जाता है. वह मुच्छड़ वरदी वाला या वह टकला वकील और छोटेमोटे व्यवसायी या दूरदराज से आए नौकरीपेशा लोग ही यहां आते हैं. इस शरीर की इतनी कम कीमत, यह सोच कर ही मन सहम जाता है.

टैलीविजन का स्विच औन करते हुए चांदनी खिड़की से बाहर सुनसान सड़क पर देखती है. 2-1 पियक्कड़ इस ओर घूर रहे हैं. जाने कभी आए हों यहां किसी रोज. अब तो याद भी नहीं.

आज चांदनी का उदास चेहरा और अलसाई सी आंखें उन्हें खींचने में पूरी तरह नाकाम हैं. शायद भूखा पेट किसी की हवस को पूरा करने में अब नाकाम है और शरीर का गोश्त भी ढल चुका है.

चांदनी ने चैनल बदलतेबदलते किसी न्यूज चैनल पर टीवी पर कोरोना के बढ़ते प्रकोप को देखा. मर्तबान से मुट्ठीभर चने निकाल कर धीरेधीरे चबाने लगी. कुछ ही देर में टैलीविजन बंद कर के वह पलंग पर लेट गई. उस की खुली आंखें छत पर घूमतेरेंगते पंखे की ओर कुछ देर देखती रहीं और फिर वह गहरी नींद में खो गई.

सुबह कमरे के बाहर से चौधरी के चीखने की सी आवाज सुनाई पड़ी. रात की चुप्पी कहीं खो गई और सुबह का शोर चल पड़ा.

जाने क्यों लगा, सींखचों से कोई कमरे में झांक रहा है. आवाज बढ़ने लगी और गहराती गई.

‘‘3 महीने हो गए भाड़ा दिए हुए…’’ चौधरी के स्वर कानों में पड़ने लगे, ‘‘तुम्हारे बाप का घर है? मुझे शाम तक भाड़ा चाहिए, कैसे भी दो.’’

वही पुरानी तसवीर, जो 10-12 बजे के आसपास 2-3 महीनों में अकसर उभरती है.

चांदनी ने सींखचों से झांक कर देखा चौधरी का रौद्र रूप. लंबातगड़ा गंजा आदमी, सफेद कमीज पर तहमद बांधे मूंछों पर ताव देता गुस्से में चीख रहा था. वह बारीबारी से हर बंद कमरे की ओर देख कर दांत पीसता और आंखें तरेरता.

उस के सामने कुरसी रख दी गई, पर वह खड़ा ही खड़ा सब को आतंकित करता रहा.

‘‘अरे चौधरी साहब, बैठ भी जाइए अब,’’ अमीना बानो ने कुरसी पर बैठने के लिए दोबारा इशारा किया.

एक बनावटी हंसी लिए अमीना कितने ही दिनों से चौधरी को फुसला रही है, ‘‘अच्छा बताइए, आप चाय लेंगे या कुछ और?’’

‘‘मुझे कुछ नहीं चाहिए, केवल भाड़ा चाहिए.’’

8-9 साल की लड़की के कंधे को मसलते हुए अमीना ने चौधरी के लिए चाय बनवा कर लाने को बोला.

‘‘नहींनहीं, मैं यहां चाय पीने नहीं आया हूं. अपना भाड़ा लेने आया हूं.’’

छोटी लड़की झगड़ा देखते हुए तीसरे कमरे में घुस जाती है.

उसी कमरे के बाहर झड़ते पलस्तर की ओर देखते हुए चौधरी ने कहा, ‘‘घर को कबाड़खाना बना कर रख दिया है अमीना तुम लोगों ने… न साफसफाई, न लिपाईपुताई. देखो, हर तरफ बस कूड़ाकरकट और जर्जर होती दीवारें. सोचा था कि इस बार इस घर की मरम्मत करा दूंगा, पर यहां तो भाड़ा तक नहीं मिलता कभी टाइम से.

‘‘मैं 10 तारीख को फिर आऊंगा. मुझे भाड़ा चाहिए जैसे भी दो. घर से पैसा मंगवाओ या कहीं और से, मुझे
नहीं मालूम.’’

‘‘अरे चौधरी साहब, इन दिनों कोई नहीं आता यहां,’’ दूसरी कुरसी करीब सरका कर चौधरी को समझाने की कोशिश करते हुए अमीना ने कहा.

‘‘आप का भाड़ा क्यों नहीं देंगे… हाथ जोड़ कर देंगे. बहुत जल्दी सब ठीक हो जाएगा, टैंशन न लो आप. आप के चलते ही तो हम सब हैं यहां, वरना इस धरती पर हमारा कोई वजूद कहां.’’

सामने एक कमरे से एक जवान होती लड़की उठी. दरवाजा खोल कर अमीना के पास आई और ऊंघने लगी, ‘‘अम्मां क्या हुआ? कौन है ये बाबू? क्या कह रहे हैं?’’

इतना कह कर चौधरी की तरफ देख कर वह जबान पर जीभ फिरा कर हंसने लगी. उस लड़की की शक्लोसूरत पर अजीब सी मासूमियत है, पर उस की छाती पूरी भरी है, जिस पर इस अल्हड़ लड़की को खास गुमान है. उस के बदन पर एक टाइट मैक्सी है.

चेहरे पर गिरी जुल्फें उसे और खूबसूरत बना रही हैं. चौधरी की नजरें अमीना से हट कर उस ओर चली गईं और रहरह कर उस के गदराए बदन पर टिक जाती हैं.

अमीना की तरफ देखते हुए चौधरी बोला, ‘‘कौन है यह? नई आई है क्या? पहले तो इसे कभी नहीं देखा?’’

लड़की अपनी उंगलियों से बालों की लटों के गोले बनाती रही.

‘‘हां, यह कुछ दिन पहले ही यहां आई है. मुस्तफाबाद की जान है. अभी 17 की होगी, शायद दिसंबर में.’’

‘‘क्या नाम है तेरा?’’ लड़की को देखते हुए चौधरी बोला.

लड़की चुप रही, पर मुसकराती रही.

अमीना ने लड़की की कमर सहलाते हुए कहा, ‘‘बेटी, नाम बताओ अपना. ये चौधरी साहब हैं अपने. यह पूरा घर इन्हीं का है.’’

चौधरी किसी रसूखदार आदमी की तरह अपने गालों पर उंगली फिराने लगा.

लड़की गौर से देखती रही, कभी अमीना को तो कभी चौधरी को.

‘‘नरगिस है यह. नमस्ते तो करो साहब को.’’

लड़की हंसते हुए दोनों हथेलियां जोड़ कर सीने तक ले आई, पर चौधरी की आंखें अभी भी नरगिस के सीने पर थीं.

‘‘ओह नरगिस, कितना अच्छा नाम है,’’ एक भौंड़ी मुसकराहट लिए चौधरी बोला.

नरगिस अपनी तारीफ सुन कर चहकने लगी और अमीना की एक बांह पर लहर गई.

घड़ी में समय देखते हुए चौधरी कुछ सोचते हुए कुरसी से उठा. पहले इधरउधर देखा, पर जल्दी ही लौटने की बात कहता हुआ देहरी की ओर बढ़ने लगा.

अमीना ने कहा, ‘‘चाय की एक प्याली तो ले ही लेते?’’

मुंह पर मास्क लगाते हुए चौधरी ने नरगिस को भी मास्क लगाने की सलाह दी, ‘‘फिर आऊंगा. सब अपना खयाल रखना.’’

नरगिस के सीने पर नजर रखता और जबान पर होंठ फिराता हुआ चौधरी चला गया.

एकएक कर के कमरों की सांकलें खुलने लगीं. भूखेअलसाए चेहरे, जो अभी तक कमरों में बंद थे, बाहर दालान में इकट्ठा हो गए मानो किसी खास बात पर जिरह करनी हो.

‘‘कौन था? चौधरी?’’ एक अधेड़ उम्र की धंधे वाली ने अमीना से पूछा.

‘‘हां, चौधरी ही लग रहा था,’’ दूसरी ने बेमन से कहा.

‘‘और क्या हुआ तेरे सेठ का? कल भी नहीं आया क्या?’’ रोशनी की तरफ देखते हुए एक ने पूछा.

‘‘नहीं. लौकडाउन है न. फोन पर ही मजा लेता रहा, पर मैं ने भी पेटीएम से 500 रुपए झाड़ ही लिए.’’

‘‘अरे, यहां तो कोई ऐसा भी नहीं,’’ एक बोली और फिर वे एकदूसरे को देखते हुए बतियाने लगीं.

‘‘जैसे भी हो, अपनेअपने ग्राहकों को बुलाओ, नहीं तो चौधरी यहां से निकाल देगा,’’ अमीना ने नेता भाव से सब को इकट्ठा कर के कहा.

‘‘3 महीने हो गए हैं, एक धेला तक नहीं दे पाए उन को. वह महारानी कहां है? उसे यह सब दिखता नहीं क्या?’’ चांदनी के कमरे की तरफ देख कर अमीना ने आवाज दी, ‘‘चांदनी, ओ चांदनी.’’

चांदनी जैसे सपने से जाग गई हो.

एक बार तो दिल ने चाहा कि सांकल खोल कर सब की जबान पर लगाम लगा दे कि एक वक्त था, जब सारे उस की आमदनी पर जीते थे, पर आज मुश्किल घड़ी में ऐसे दिन देखने पड़ रहे हैं और यह चौधरी जब मूड करता था आ जाता था मुंह मारने, पर देखो तो आज कैसे सुर बदल गए हैं इस मरदूद के.

बाहर दालान में कुछ देर की बहस हुई. सब एकदूसरे को देखती रहीं, पर नतीजा कुछ नहीं निकला. सब को लगा कि अब नए सिरे से शुरुआत करनी होगी.

सुरैया पास ही खड़ी थी. चांदनी की रोंआसी सूरत देख और करीब आ गई. उस की ठुड्डी को सहलाते हुए बोली, ‘‘चांदनी दीदी, सब ठीक हो जाएगा.’’

सब अपनेअपने कमरे में लौट गईं. सुरैया न केवल शक्लोसूरत से खूबसूरत थी, बल्कि अच्छा गाती भी थी.

लौकडाउन से पहले सब से ज्यादा ग्राहक इसी के होते थे. कुछ तो केवल गायकी के फन को तराशने आते थे और 2-1 ने तो गाने के लिए बुलावा भी भेजा. जिस्म तो यहां सभी बेचती हैं, पर उस के सुर की बात ही अलग है. अगर वह यहां न आती और गायकी पर फोकस रखती तो जरूर ही नाम कमाती.

वह खाकी वरदी वाला रोज नई उम्मीद की किरण दे कर मुफ्त में सुरैया को नोच जाता है. बेचारी पढ़ीलिखी है. 10वीं तक स्कूल गई है, पर यहां आ कर सब एकसमान हो जाते हैं. आई तो यहां बाप के साथ कुछ बनने, पर इस खाकी वरदी वाले ने झूंठा झांसा दे कर इस धंधे में उतार दिया. अब खुद तो आता है 2-4 और भी आ जाते हैं. सुरैया न सही, मेरे जैसी अधेड़ ही मिल जाए.

सुरैया चांदनी का हाथ पकड़ कर अपने कमरे में ले गई.

‘‘क्या हुआ? रो क्यों रही हो?’’ सुरैया ने चांदनी के बालों में उंगलियां फिराते हुए पूछा.

‘‘कुछ नहीं बस ऐसे ही. परसों देर रात तक तुम्हारे कमरे से आवाजें आ रही थीं,’’ चांदनी ने सुरैया से पूछा.

‘‘कब? अच्छा, परसों? वही वरदी वाला आया था. 3 और भी थे. मुंह पर मास्क बांधे थे. मैं ने जब पूछा कि दारोगा साहब कुछ बात बनी, मेरे गाने की तो वह हंसने लगा और मेरे सीने को छूने लगा. मैं ने उस से कुछ पैसे मांगे तो गाली देने लगा, पर एक धेला तक नहीं दिया…

‘‘उस का मुंह सूखे पान से भरा था. बीड़ी की राख फेंकते हुए बोला, ‘रानी, हो जाएगा सब. देखती नहीं कि अभी सब बंद है.’

‘‘और पीछे से उस ने आगोश में भर लिया. मैं ने कहा कि अच्छा दारोगा साहब थोड़े पैसे ही दे दो?’’

यह सुन कर उस का सारा नशा जाता रहा और गालीगलौज करने लगा.

‘‘चांदनी दीदी, आप ही बताओ कि अब कैसे चलेगा? सब मुफ्त में मजा चाहते हैं. कुत्ते कहीं के.’’

सुरैया बोलती रही, चांदनी सब ध्यान से सुनती रही.

‘‘पर, अब चारा भी क्या है. जब पेट की प्यास बुझाने को पैसा नहीं तो कोई क्या देह को दिखाए. वह रातभर के लिए अपने कमरे पर ले जाना चाहता था. बोलता था, ‘मेरी रानी, ऐश करवा दूंगा, चल तो बस एक बार.’

‘‘जब मैं ने मना किया तो मुझे घसीटने लगा. अमीना मैम ने समझाबुझा कर उसे चलता किया.’’

‘‘तुम ने बताया क्यों नहीं मुझे?’’ चांदनी बोली.

‘‘चांदनी दीदी, अब क्या किसी को तंग करूं. तुम्हें मैं अपना मानती हूं, फिर यह सब देख कर तुम और ज्यादा दुखी होगी.’’

सुरैया की रोती आंखें चांदनी को देखती रहीं, कुछ देर तक वे दोनों चुप रहीं.

‘‘सुरैया एक काम करोगी मेरे लिए?’’

‘‘हांहां, कहो न?’’

‘‘नरगिस… जो अभी नई लड़की आई है न…’’

‘‘हां…’’

‘‘उसे यहां से कहीं दूर भेज दो, जहां वह जिस्मबाजारी न कर सके.’’

‘‘अभी तो वह बच्ची है. मैं उस में अपनी सूरत देखती हूं. इस जुम्मेरात जब अमीना बाई 1-2 घंटे के लिए बाहर जाए, तब किसी भी तरह उसे वापस भिजवा दो. तुम्हारा एहसान मैं कभी नहीं भूलूंगी या तुम 500-600 रुपए का इंतजाम कर दो, मैं ही उसे घर छोड़ आऊंगी सुरैया.’’

‘‘अरे दीदी, अभी सब बंद है. तुम कैसे जाओगी? और उस लड़की को भी तो समझाना होगा. वह तो अभी नासमझ है. देह ही निखरी है अभी, दिमाग से तो नादान ही है?’’

‘‘मैं जानती हूं, पर मौका पाते ही उसे भी समझा दिया जाएगा. वह चौधरी ही कहीं 1-2 दिन में… उस की नजर ही गंदी है. अब तो उस का वह छोकरा भी…’’

‘‘नहींनहीं दीदी, ऐसा नहीं होगा.’’

‘‘सुनो, एक बात बताऊं. यहां पास ही कालेज है. उस में पढ़ने वाला एक शरीफ लड़का है. उस से फोन पर बात करती हूं. वह कोई पढ़ाई कर रहा है धंधे वाली औरतों की जिंदगी पर. शायद, वह कुछ मदद कर दे.

‘‘जैसे भी हो, हम सब तो यहां बरबाद हो गईं अब और किसी नई को यहां न खराब होने दें.’’

‘‘ठीक है दीदी. आज दोपहर जब सब सोए होंगे, तब बात करते हैं. अच्छा, मैं भी अब चलती हूं. तुम से बतिया कर सच में सुकून पाती हूं. बहुत उम्मीद है तुम से.’’

‘‘अरे दीदी, ये बिसकुट तो खाती जाओ.’’

‘‘नहींनहीं, बस.’’

कमरे में लौट कर मानो चांदनी सब भूल गई. काम हो जाए. हमारा तो अब कोई नहीं हो सकता, पर उस की तो पूरी जिंदगी बन जाएगी. वह लड़का जरूर कुछ करेगा.

आज ही उस लड़के का फोन भी आना है. मेरी जिंदगी पर कुछ लिख रहा है वह. हां, रिसर्च कर रहा है. ये लोग काफी पढ़ेलिखे हैं, जरूर हमारी कुछ न कुछ मदद करेंगे.

चांदनी का दिल कहता है कि वह लड़का नरगिस के लिए कुछ करेगा. क्या नाम था उस का…?

जो भी हो, इस जहन्नुम भरी जिंदगी से इस लड़की को भेजना ही पहला काम होगा. सरकार और ग्राहकों के भरोसे भी कब तक बैठे रह सकते हैं. कोई किसी का नहीं इस नरक में.

अभी लौट गई तो कोई अपना भी लेगा. नहीं तो यह भी दूसरी धंधे वालियों जैसी हो जाएगी. जरूर कुछ होगा. अच्छा होगा, यकीनन.

3 महीने बाद…

‘‘ओह, कितना अच्छा लग रहा है आज 3 महीने बाद. नरगिस कैसी होगी? सुरैया, बात हुई कोई?’’

‘‘हां दीदी, कल रात हुई थी,’’ सुरैया चहकते हुए बोली.

चांदनी जैसे खुशी से झूम गई.

‘‘यह नया सूट कब लाई सुरैया? पहले तो कभी न देखा इस में.’’

‘‘दीदी, यह सूट उस पढ़ने वाले साहब ने दिया है. बहुत अच्छे हैं ये पढ़ने वाले लोग. हमारे जज्बात समझते हैं. कभी छुआ तक नहीं, पर हरमुमकिन मदद देते हैं. आप की बहुत तारीफ करता है वह.’’

‘‘कौन सा…?’’ चांदनी ने पूछा.

‘‘अरे वही, जिस ने नरगिस को यहां से उस के घर तक भिजवाया था. और न केवल भिजवाया था, बल्कि उस के घर वालों को अच्छे से समझाया भी था.’’

‘‘अच्छा…’’

‘‘हां, दीदी…’’

‘‘एक बात कहूं?’’

‘‘कहो न…’’

‘‘वे प्रोफैसर बन जाएंगे, कालेज में जल्दी ही.’’

‘‘अच्छा.’’

‘‘हां, वे बोलते हैं कि मेरे साथ घर बसाएंगे.’’

‘‘अरे वाह सुरैया, तेरा सपना अब पूरा हो जाएगा.’’

‘‘दीदी आप बहुत अच्छी हो, सब तुम्हारी बदौलत ही मुमकिन हुआ है. तुम सच में महान हो.’’

‘‘अरे नहीं सुरैया, मैं इस लायक कहां.’’

‘‘दीदी, अगर उन की किताब छप गई न, तो वे तुम्हें भी तुम्हारे घर पर भिजवा देगा.’’

‘‘अरे नहीं सुरैया, मेरा तो यही है सब स्वर्ग या नरक.’’

इस के बाद वे दोनों चहकते हुए घंटों तक बतियाती रहीं.

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