Hindi Story : पटवारी गंगाराम प्रसाद की मोटरसाइकिल जब गांव के छोर पर बने उन के दोमंजिला मकान के सामने रुकी, तब शाम का अंधेरा गहरा चुका था. उन्होंने मोटरसाइकिल बरामदे में खड़ी की ही थी कि उन की बीवी सुशीला देवी हमेशा की तरह गिलास में पानी ले कर बाहर निकल आई. गंगाराम ने मोटरसाइकिल की डिक्की से एक छोटा सा बैग निकाला. पानी भरा गिलास एक हाथ से थामते हुए, दूसरे हाथ में पकड़ा बैग बीवी के आगे बढ़ाते हुए वे बोले, ‘‘लो, इस को अपनी अलमारी में संभाल कर रख दो.’’

सुशीला बैग के वजन को हाथों पर ही तौलते हुए बोली, ‘‘लगता है, आज का दिन काफी अच्छा रहा है.’’ गंगाराम कुल्ला करने लगे थे, इसलिए जल्दी से कोई जवाब न दे सके. पलट कर रूमाल से होंठों को पोंछते हुए वे बोले, ‘‘वाकई आज का दिन बहुत अच्छा रहा. जाने कब से लटकते आ रहे 2 केस आज निबट गए और मुझे भी उम्मीद से ज्यादा मिला है.’’

‘‘आओ,’’ सुशीला ने घर के अंदर जाने के लिए मुड़ते हुए कहा, ‘‘चाय तैयार है.’’ कुछ देर बाद गंगाराम एक आराम कुरसी पर बैठे हुए चाय पी रहे थे और अपने पास खड़ी सुशीला से कह रहे थे, ‘‘पूरे 25 हजार दिए हैं एक ने और दूसरे ने 18 हजार. दोनों का इस रकम से

4-5 गुना कीमत का फायदा जो कराया है मैं ने.’’ ‘‘अब तो रमन के लिए दुकान पक्की हो जाएगी न?’’ सुशीला देवी की बात सुन कर गंगाराम के चौड़े माथे पर शिकन पड़ गई. वे बोले, ‘‘अभी नहीं. तुम रमन के पीछे क्यों पड़ी हो? दुकान तो शहर की नई बाजार में पहले से ही ले ली है, पर अभी उसे चालू नहीं करवाऊंगा. वह दुकान कपड़े का धंधा करने के लिए बड़े मौके की है. और तुम्हारे बेटे को तो मैडिकल स्टोर खोलने की सनक सवार है. तुम ने उसे इतना सिर चढ़ा रखा है कि मेरी बात उस के पल्ले ही नहीं पड़ती.’’

सुशीला से एकाएक ही कुछ कहा न गया. गंगाराम ही बोले, ‘‘कहां गए हैं तुम्हारे साहबजादे?’’ ‘‘शहर गया है. कह रहा था कि किसी दोस्त के घर

दावत है.’’ सुशीला के इतना कहते ही गंगाराम ने बड़बड़ाना शुरू कर दिया, ‘‘अब क्या आधी रात के पहले लौट कर आएगा? अपना आगापीछा कुछ सोचता ही

नहीं. बस पैसे उड़ाना जानता है, पैसे कमाना नहीं.’’ ‘‘इन सब बातों से क्या फायदा है?’’ सुशीला बोली, ‘‘जब वह कहता है, तो आप उसे दुकान क्यों नहीं खुलवा देते?’’

‘‘वह अपने अंदर दुकान की जिम्मेदारी संभालने लायक हुनर भी तो पैदा करे.’’ कुछ देर की चुप्पी के बाद सुशीला ने अचानक कहा, ‘‘आप जो रकम घर ले आए हैं, उसे बैंक में जमा नहीं करेंगे क्या?’’

‘‘नहीं,’’ गंगाराम ने कहा, ‘‘बल्कि कल बैंक से और पैसे निकालूंगा और ईंटसीमेंट वगैरह सारा सामान मंगवाने की सोच रहा हूं कि मंदिर बनवाने का काम शुरू करवा दूं. ‘‘हां सुशीला, मां की आत्मा की शांति के लिए यह जरूरी है. मैं ने मां को वचन दिया था कि उन के नाम से मैं अपने गांव में एक बढि़या सा मंदिर जरूर बनवाऊंगा.

‘‘तुम तो जानती ही हो कि बचपन में मैं ने बड़े ही कष्ट के दिन देखे हैं. मैं ने तुम को पहले भी बताया है कि मां ने सूत कातकात कर मुझे पढ़ायालिखाया और पालापोसा. यह उन का ही आशीर्वाद है कि मैं इस नौकरी के लायक हो सका. ‘‘लेकिन, सुख के दिन आने से पहले ही मां गुजर गईं. मैं जीतेजी तो उन को कोई सुख न दे सका, पर उन की अंतिम इच्छा जरूर पूरी करूंगा.’’

तभी बाहर रमन की मोपेड की आवाज सुनाई दी. गंगाराम के चेहरे पर तनाव आ गया. सुशीला ने जल्दी से कहा, ‘‘अब आप उस पर बिगड़ना मत. मैं उसे समझा दूंगी,’’ इतना कह कर सुशीला कमरे से बाहर निकल गई.

सुबह की गुलाबी धूप में गंगाराम का चेहरा चमक रहा था. वे सुशीला पर गरज रहे थे, ‘‘मैं कहता हूं कि उस ने जब 3 सौ रुपए मांगे थे, तो तुम ने बगैर मुझ से पूछे हामी भरी ही क्यों? मैं क्या मर गया था? पैसे देने ही थे, तो उस के सामने अलमारी खोली ही क्यों?’’ ‘‘मैं क्या जानती थी कि वह इतनी बड़ी रकम को ही उड़ा ले जाएगा? मेरी तो समझ में नहीं आ रहा कि वह इतनी बड़ी रकम का करेगा क्या?’’

‘‘क्या करेगा? अरे, जिसे पैसे बरबाद करने की लत पड़ चुकी हो, उस के लिए लाखोंकरोड़ों की रकम भी कम पड़ जाएगी,’’ गंगाराम ने कहा और दोनों हाथों में अपना सिर थाम लिया. गंगाराम ने थोड़ी देर बाद अपना चेहरा ऊपर उठाया. सुशीला देवी रोंआसी हो उठी थी. गंगाराम ने दांत किटकिटा कर कहा, ‘‘आने दो उसे घर वापस. जाएगा कहां? मैं उस की अच्छी खबर लूंगा.’’ ‘‘उसे कुछ भी कहना, पर एक बात ध्यान रखना कि वह अब बच्चा नहीं है. जवान खून में उबाल जल्दी आता है. कहीं कोई बात लग गई और उस ने कुछ करकरा लिया, तो हम तो कहीं मुंह दिखाने लायक न रहेंगे.’’

‘‘कुछ नहीं करेगा वह,’’ गंगाराम ने कड़क आवाज में कहा. उसी शाम जब गंगाराम घर लौटे, तो सुशीला देवी ने पानी से भरा गिलास पकड़ाते हुए पहला सवाल यही किया, ‘‘रमन का कुछ पता चला?’’

‘‘भाड़ में जाए वह,’’ गंगाराम गुस्से में बोले. सुशीला ने आगे कुछ न पूछा. गंगाराम ने बरामदे में ही पड़ी आराम कुरसी पर पसरते हुए

शरीर को ढीला छोड़ कर आंखें बंद कर लीं. अभी कुछ ही मिनट बीते थे कि रमन लाल रंग की मोटरसाइकिल खड़ी कर के नीचे उतरा और अपनी ओर घूरते गंगाराम व सुशीला की ओर उड़ती नजरों से देखते हुए वह घर की ओर बढ़ा.

गंगाराम ने कहा, ‘‘ठहरो.’’ रमन खड़ा हो गया. अपनी आंखों से फैंसी चश्मा उतार कर कमीज की जेब में रखते हुए वह बोला, ‘‘कहिए?’’

‘‘तुम अलमारी से पैसे ले गए थे?’’ गंगाराम के बोलने से पहले ही सुशीला ने पूछा. रमन ने उसी सपाट लहजे में कह दिया, ‘‘और कौन ले जा सकता था? मुझे यह मोटरसाइकिल खरीदने के लिए पैसों की जरूरत थी, सो ले गया. उस खटारा मोपेड से मैं तंग आ चुका था. पहले भी कहा था कि मैं उसे बेच कर एक ठीकठाक गाड़ी लेना चाहता हूं.’’

‘‘तुम…?’’ गंगाराम गुस्से में न जाने क्याक्या बकते चले गए. रमन चुपचाप खड़ा सबकुछ सुनता रहा. सुशीला ने गंगाराम को शांत करने के लिए कुछ कहना चाहा, पर गंगाराम ने उस को भी डपट दिया. हांफते हुए गंगाराम की जबान लड़खड़ाने लगी, तो वे चुप हो गए और जल्दीजल्दी सांसें लेने लगे.

रमन ने शांतिपूर्वक कहा, ‘‘पैसे मैं ने ही तो खर्च किए हैं. कोई डकैती तो हो नहीं गई, जो आप इतना परेशान हुए जा रहे हैं?’’ गंगाराम भड़क उठे, ‘‘तुम अपने बाप को सिखा रहे हो? जब कमाओगे, तब पता चलेगा…’’

‘‘ओह, तो इसे भी आप अपनी कमाई मानते हैं,’’ रमन कुटिल हंसी हंसते हुए बोला, ‘‘काश, हिंदुस्तान का हर आदमी ऐसे ही कमाई करने लायक हो जाए, तो इस देश से गरीबी मिट जाए. ‘‘और फिर आप के बारे में तो मशहूर है कि आप 2 पक्षों में से जो पक्ष कमजोर होता है, उस की जायदाद को हड़पने में मालदार और ताकतवर की मदद कर उन से एक मोटी रकम वसूल लेते हैं.

‘‘बोलिए, ऐसा होता?है या नहीं? इस हराम की दौलत को अपनी कमाई कहने में शर्म नहीं आती आप को?’’ सुशीला हैरान रह गई, जब गंगाराम रमन की इतनी सारी कड़वी बातें सुन कर भी भड़के नहीं, बल्कि धीरे से कहा, ‘‘तुम को पता है कि तुम्हारी दादी की अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए मैं ने वह रकम…’’

रमन बोला, ‘‘कैसा है आप का वह भगवान, जिसे आप हराम की कमाई से मंदिर बनवा कर देंगे? ‘‘आप का कहना है कि आप की

मां ने सूत कातकात कर आप को पढ़ायालिखाया, उसी मां की आखिरी इच्छा पूरी करने के लिए आप गरीबों की गरदनें काटकाट कर पुण्य कमा रहे हैं?’’ गंगाराम के मुंह से इस के आगे एक बोल न फूटा.

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