लेखक: शकीला एस हुसैन
स्टेशन मास्टर का शुक्रिया अदा कर के मैं बाहर आ गया. जिन दिनों की यह बात है उन दिनों स्टेशन के बाहर मुश्किल से 2-3 तांगे खड़े रहते थे. मैं एक तांगे की तरफ बढ़ा. कोचवान बूढ़ा आदमी था. मैं ने उस से कहा, ‘‘चाचा, यह फोटो देख कर बताओ. मुझे इन दोनों की तलाश है. ये दोनों औरतें 3-4 दिन पहले स्टेशन से निकल कर तांगें में बैठ कर कहीं गई थीं. क्या तुम बता सकते हो वे किस के तांगे में गई थीं?’’
चाचा ने जवाब दिया, ‘‘14 तारीख को ये दोनों औरतें गुलाम अब्बास के तांगे में बैठ कर छछेरीवाल गई थीं, क्योंकि गुलाम अब्बास का रूट स्टेशन से छछेरीवाल तक ही जाता है क्योंकि वह खुद वहीं रहता है.’’
मैं ने कहा, ‘‘चाचा, हमें छछेरीवाल ही जाना है और गुलाम अब्बास से मिलना है.’’
मैं अपने 2 सिपाहियों के साथ छछेरीवाल रवाना हो गया. वह हमें सीधे गुलाम अब्बास के घर ले गया. मैं पुलिस की वरदी में था. पहले तो वह घबरा गया. मैंने दोनों फोटो दिखा कर उन औरतों के बारे में पूछा तो वह फौरन ही बोला, ‘‘जी सरकार, इन दोनों औरतों को 14 दिसंबर की दोपहर रेलवे स्टेशन से छछेरीवाल लाया था. इस में से मोटी औरत को मैं जानता हूं. इस का नाम गुलशन है. सब इसे गुलशन आंटी कहते हैं पर वह गोरी खूबसूरत लड़की मेरे लिए नई थी.’’
उस ने हमें गुलशन के घर का पता बता दिया. हम वहां पहुंचे. घर के बाहर एक गंजा बूढ़ा आदमी फल और सब्जी का ठेला लगाए बैठा था. उस ने जल्दी से हमें सलाम किया. मैं ने उस से गुलशन आंटी के बारे में पूछा. वह बोला, ‘‘गुलशन मेरी बीवी है.’’
मैं उस के साथ घर के अंदर गया. धीरे से उस ने पूछा, ‘‘हुजूर, कुछ गलती हो गई है क्या?’’
‘‘हां, एक केस में उस से पूछताछ करनी है.’’ वह बड़बड़ाया, ‘‘वह जरूर फिर कोई कमीनी हरकत कर के आई होगी.’’
‘‘क्या तुम्हारी बीवी हमेशा कोई लफड़े करती रहती है?’’
‘‘बस सरकार, वह ऐसी ही है मेरी कहां सुनती है.’’
उसी वक्त अंदर के कमरे से एक तेज आवाज आई, ‘‘तुम्हारा दिल दुकान पर नहीं लगता. घर में क्यों चले आते हो?’’
मैं ने कहा, ‘‘इसे बाहर बुलाओ.’’
उस ने उसे आवाज दी, ‘‘गुलशन बाहर आओ. तुम से मिलने कोई आया है.’’
घर का दरवाजा एक झटके से खोल कर जो औरत बाहर आई, वह गोलमटोल, 45 साल की औरत थी. उस के चेहरे पर चालाकी और कमीनापन झलक रहा था. हमें देखते ही उस ने दरवाजा बंद करना चाहा. मैं ने पांव अड़ा दिया और तेज लहजे में कहा, ‘‘गुलशन, सीधेसीधे हमारे सवालों के जवाब दो. नहीं तो मैं हथकड़ी डाल कर ले जाऊंगा.’’
मेरी धमकी का असर हुआ. वह हमें अंदर ले गई जहां 2 पलंग बिछे थे. हम उन पर बैठ गए.
‘‘गुलशन, 24 दिसंबर को जो लड़की तुम्हारे साथ तुम्हारे घर आई थी, वह कहां है?’’
‘‘कौन सी लड़की सरकार?’’
सिपाही ने फौरन ही फोटो निकाल कर उस के सामने रख दिया.
‘‘अच्छा! आप इस की बात कर रहे हैं. यह तो फरजाना है. मेरी रिश्ते की भांजी.’’ वह मजबूत लहजे में बोली, ‘‘वे लोग लालामूसा में रहते हैं. फरजाना मुझ से मिलने आई थी. मैं उसे लेने रेलवे स्टेशन गई थी.’’
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मैं समझ गया, वह सरासर झूठ बोल रही है. मैं ने उस के आदमी से पूछा, ‘‘तुम कभी फरजाना से मिलने लालामूसा गए हो?’’
वह हड़बड़ा गया, ‘‘नहीं…हां…जी…नहीं…’’
अब मैं गुलशन की तरफ बढ़ा और डांट कर कहा, ‘‘देखो गुलशन, तुम सच बोल दो उसी में भलाई है. वरना मैं तुम से बहुत बुरी तरह पेश आऊंगा. जिस लड़की को तुम अपनी भांजी बता रही हो, उस से तुम स्टेशन पर पहली बार मिली थी. उस से तुम्हारा कोई रिश्ता नहीं है. अगर होता तो तुम हरगिज उसे कादिर के हवाले नहीं करती. तुम्हें अंदाजा भी नहीं है कि फरीदपुर में कैसी कयामत बरपी है. तुम जिस लड़की को बहलाफुसला कर अपने साथ लाई थीं, 2 रोज बाद उसे तुम ने कादिर के हवाले कर दिया.’’
‘‘मैं किसी कादिर को नहीं जानती.’’
‘‘बकवास बंद करो. तुम बहुत ढीठ और बेशर्म औरत हो. थाने जा कर तुम्हारी जुबान खुलेगी.’’
उसे भी तांगे में बैठा कर हम थाने आ गए. मैं ने एक हवलदार को बुला कर गुलशन को उस के हवाले करते हुए कहा, ‘‘यह आंटी गुलशन हैं. इन्होंने एक लड़की चौधरी रुस्तम के डेरे पर भिजवाई थी, पर अब गूंगी हो गई हैं. तुम्हें रात भर में इसे अच्छा करना है. तुम्हारे पास जुबान खुलवाने के जितने मंत्र हैं, सब आजमा लो.’’
वह गुलशन आंटी को ले कर चला गया. उसी वक्त सादिक पहलवान मुझ से मिलने पहुंचा. ऊंचा पूरा मजबूत काठी का आदमी था. चेहरे से ही शराफत टपकती थी. मैं ने उस से काफी पूछताछ की.
सब से बड़ी बात यह थी कि वारदात के एक दिन पहले ही वह कुश्ती के मैच में शामिल होने दूसरे शहर चला गया था, जिस के कई गवाह थे. चौधरी सिकंदर के मुताबिक वह सच्चा और खरा आदमी था और फरीदपुर की शान था. वह 3 मैच जीत कर आया था. मैं ने उसे जाने दिया. शाम हो चुकी थी. मैं भी अपने क्वार्टर पर चला गया.
अगली सुबह तैयार हो कर मैं थाने पहुंचा. हवलदार ने खुशखबरी सुनाई कि आंटी गुलशन बोलने लगी है. मैं ने हवलदार से पूछा, ‘‘तुम ने मारपीट तो नहीं की न?’’
‘‘नहीं साहब, सिर्फ पेशाब लाने वाली दवा पिला दी थी और उसे बाथरूम नहीं जाने दिया. मजबूर हो कर उस ने जुबान खोल दी.’’
आंटी गुलशन ने बताया कि वह शहरशहर घूमने वाली औरत है. जब कोई मजबूर, बेबस लावारिस लड़की नजर आती, उस से हमदर्दी जता कर उसे अपने साथ छछेरीवाल ले आती. कुछ दिन खिलापिला कर उसे फरेब में रखती, फिर किसी ग्राहक को बेच देती और अपने पैसे खड़े कर लेती.
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कादिर जैसे कई लोगों से उस की जानपहचान थी, जिन्हें वह लड़कियां सप्लाई करती थी. यह लड़की, जिस का नाम जबीन था, उस ने कादिर के हवाले की थी. कादिर पहले भी रुस्तम के लिए गुलशन से कई लड़कियां ले चुका था. जबीन गुलशन को गुजरांवाला रेलवे स्टेशन पर मिली थी. वह पहली नजर में ही पहचान गई कि वह उस का शिकार है.
वह उस के करीब जा कर बैठ गई. 10 मिनट में ही प्यार जता कर उस की असल कहानी मालूम कर ली. जबीन का ताल्लुक वजीराबाद से था. उस का बाप मर चुका था. उस की मां ने दूसरी शादी कर ली थी. सौतेला बाप उस पर बुरी नजर रखता था. कई बार उसे परेशान भी करता था.