मंत्री महोदय की भावना को जान कर सचिव ने तुरंत संवाददाता सम्मेलन बुलाया. अगले ही दिन यह समाचार सुर्खियों में आ गया कि आगामी दौरे में मंत्रीजी किसी गरीब के घर भोजन करेंगे.

मंत्रीजी का सचिव काफी समझदार जीव था. साहब के मन की बात भांप कर, उन के लिए दौरे का मौका तलाशने लगा और बहुत जल्द ही एक मौका मिल गया.

वह खुशनसीब कसबा मेरा था, जहां विद्युत एवं उद्योग मंत्री का पदार्पण तय हुआ. सेठ मुरारीलाल की नई चावल मिल का उद्घाटन जो होना था. फिर कसबे में तलाश हुई एक समझदार गरीब की और वह लाटरी खुली जयराम के हक में. तय था कि मंत्री महोदय भोजन वहीं करेंगे, हर हालत में. तभी एक बात आड़े आ गई.

सेठ मुरारीलाल का प्रबल आग्रह आया कि मंत्री महोदय का भोजन उस की कुटिया पर हो. बात खजूर में अटकने जैसी हो गई थी. दरहकीकत, सेठ मुरारीलाल हर साल पार्टी को खासा तगड़ा चंदा दिया करते थे. भला ऐसे दानवीर को निराश कैसे किया जाता.

उस विषम परिस्थिति को सुलझाया जनाब सचिव महोदय ने. फौरन एक प्रेस नोट अखबारों को भेजा गया, ‘‘चूंकि मंत्री महोदय पहली दफा किसी गरीब के यहां भोजन करेंगे अतएव आमाशय पर बुरा असर पड़ने की आशंका को देखते हुए, फिलहाल मंत्रीजी गरीब के घर सिर्फ नाश्ता करेंगे.’’

प्रेस नोट छपने के बाद कूच की तैयारी होने लगी.

मेरे कसबे का गरीब जयराम, जिस ने बैंक से ऋण ले कर हाल ही में फोटो स्टेट एवं टाइपिंग सेंटर खोला था, मंत्रीजी की मेजबानी के सपने देखते हुए हलाल होने वाले बकरे की तरह फूला न समा रहा था. उसे जो भी मिलता, जहां भी मिलता, सगर्व टोक कर कहता, ‘‘सुना आप ने? मंत्रीजी नाश्ता मेरे यहां करेंगे और भोजन, सेठ मुरारीलाल की कोठी पर.’’

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 महीना)
USD2
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...