अंधेरे की छाया : किस बीमारी का शिकार हुई प्रमिला

महेंद्र सिंह ने अपनी पत्नी प्रमिला के कमरे में झांक कर देखा. अंदर पासपड़ोस की 5-6 महिलाएं बैठी थीं. वे न केवल प्रमिला का हालचाल पूछने आई थीं बल्कि उस से इसलिए भी बतिया रही थीं कि उस की दिलजोई होती रहे. जब से प्रमिला फालिज की शिकार हुई थी, महल्ले के जानपहचान वालों ने अपना यह रोज का क्रम बना लिया था कि 2-4 की टोलियों में सुबह से शाम तक उस का मन बहलाने के लिए उस के पास मौजूद रहते थे. पुरुष नीचे बैठक में महेंद्र सिंह के पास बैठ जाते थे औैर औरतें ऊपर प्रमिला के कमरे में फर्श पर बिछी दरी पर विराजमान रहती थीं.

वे लोग प्रमिला एवं महेंद्र की प्रत्येक छोटीबड़ी जरूरतों का ध्यान रखते थे. महेंद्र को पिछले 3-4 महीनों के दौरान उसे कुछ कहना या मांगना नहीं पड़ा था. आसपास मौजूद लोग मुंह से निकलने से पहले ही उस की जरूरत का एहसास कर लेते थे और तुरंत इस तरह उस की पूर्ति करते थे मानो वे उस घर के ही लोग हों. उस समय भी 2 औरतें प्रमिला की सेवाटहल में लगी थीं. एक स्टोव पर पानी गरम कर रही थी ताकि उसे रबर की थैली में भर कर प्रमिला के सुन्न अंगों का सेंक किया जा सके. दूसरी औरत प्रमिला के सुन्न हुए अंगों की मालिश कर रही थी ताकि पुट्ठों की अकड़न व पीड़ा कम हो. कमरे में झांकने से पहले महेंद्र सिंह ने सुना था कि प्रमिला वहां बैठी महिलाओं से कह रही थी, ‘‘तुम देखना, मेरा गौरव मेरी बीमारी का पत्र मिलते ही दौड़ादौड़ा चला आएगा. लाठी मारे से पानी जुदा थोड़े ही होता है. मां का दर्द उसे नहीं आएगा तो किस को आएगा? मेरी यह दशा देख कर वह मुझे पीठ पर उठाएउठाए फिरेगा. तुरंत मुझे दिल्ली ले जाएगा और बड़े से बड़े डाक्टर से मेरा इलाज कराएगा.’’ महेंद्र के कमरे में घुसते ही वहां मौन छा गया था. कोई महिला दबी जबान से बोली थी, ‘‘चलो, खिसको यहां से निठल्लियो, मुंशीजी चाची से कुछ जरूरी बातें करने आए हैं.’’ देखतेदेखते वहां बैठी स्त्रियां उठ कर कमरे के दूसरे दरवाजे से निकल गईं. महेंद्र्र ऐेनक ठीक करता हुआ प्रमिला के पलंग के समीप पहुंचा. उस ने बिस्तर पर लेटी हुई प्रमिला को ध्यान से देखा.

शरीर के पूरे बाएं भाग पर पक्षाघात का असर हुआ था. मुंह पर भी हलका सा टेढ़ापन आ गया था और बोलने में जीभ लड़खड़ाने लगी थी. महेंद्र प्रमिला से आंखें चार होते ही जबरदस्ती मुसकराया था और पूछा था, ‘‘नए इंजेक्शनों से कोई फर्क पड़ा?’’ ‘‘हां जी, दर्द बहुत कम हो गया है,’’ प्रमिला ने लड़खड़ाती आवाज में जवाब दिया था और बाएं हाथ को थोड़ा उठा कर बताया था, ‘‘यह देखो, अब तो मैं हाथ को थोड़ा हरकत दे सकती हूं. पहले तो दर्द के मारे जोर ही नहीं दे पाती थी.’’ ‘‘और टांग?’’ ‘‘यह तो बिलकुल पथरा गई है. जाने कब तक मैं यों ही अपंगों की तरह पलंग पर पड़ी रहूंगी.’’ ‘‘बीमारी आती हाथी की चाल से है औैर जाती चींटी की चाल से है. देखो, 3 महीने के इलाज से कितना मामूली अंतर आया है, लेकिन अब मैं तुम्हारा और इलाज नहीं करा सकता. सारा पैसा खत्म हो चुका है. तमाम जेवर भी ठिकाने लग गए हैं. बस, 50 रुपए और तुम्हारे 6 तोले के कंगन और चूडि़यां बची हैं.’’ ‘‘हां,’’ प्रमिला ने लंबी सांस ली, ‘‘तुम तो पहले ही बहुत सारा रुपया गौरव और उस के बच्चों के लिए यह घर बनाने में लगा चुके थे. पर वे नहीं आए. अब मेरी बीमारी की सुन कर तो आएंगे. फिर मेरा गौरव रुपयों का ढेर…’’ ‘‘नहीं, मैं और इंतजार नहीं कर सकता,’’ महेंद्र बाहर जाते हुए बोला, ‘‘तुम इंतजार कर लो अपने बेटे का. मैं डा. बिहारी के पास जा रहा हूं, कंपाउंडर की नौकरी के लिए…’’ ‘‘तुम करोगे वही जो तुम्हारे मन में होगा,’’ प्रमिला चिढ़ कर बोली, ‘‘आने दो गौरव को, एक मिनट में छुड़वा देगा वह तुम्हारी नौकरी.’’ ‘‘आने तो दें,’’ महेंद्र बाहर निकल कर जोर से बोला, ‘‘लो, सलमा बाजी और उन की बहुएं आ गई हैं तुम्हारी सेवा को.’’ ‘‘हांहां तुम जाओ, मेरी सेवा करने वाले बहुत हैं यहां. पूरा महल्ला क्या, पूरा कसबा मेरा परिवार है. अच्छी थी तो मैं इन सब के घरों पर जा कर सिलाईकढ़ाई सिखाती थी. कितना आनंद आता था दूसरों की सेवा में. ऐसा सुख तो अपनी संतान की सेवा में भी नहीं मिलता था.’’ ‘‘हां, प्रमिला भाभी,’’ सलमा ने अपनी दोनों बहुओं के साथ कमरे में आ कर आदाब किया और प्रमिला की बात के जवाब में बोली, ‘‘तुम से ज्यादा मुंशीजी को मजा आता था दूसरों की खिदमत में.

अपनी दवाओं की दुकान लुटा दी दीनदुखियों की सेवा में. डाक्टरों का धंधा चौपट कर रखा था इन्होंने. कहते थे गौरव हजारों रुपया महीना कमाता है, अब मुझे दुकान की क्या जरूरत है. बस, गरीबों की खिदमत के लिए ही खोल रखी है. वरना घर बैठ कर आराम करने के दिन हैं.’’ ‘‘ठीक कहती हो, बाजी,’’ प्रमिला का कलेजा फटने लगा, ‘‘क्या दिन थे वे भी. कैसा सुखी परिवार था हमारा.’’ कभी महेंद्र और प्रमिला का परिवार बहुत सुखी था. दुख तो जैसे उन लोगों ने देखा ही नहीं था. जहां आज शानदार गौरव निवास खड़ा है वहां कभी 2 कमरों का एक कच्चापक्का घर था. महेंद्र का परिवार छोटा सा था. पतिपत्नी और इकलौता बेटा गौरव. महेंद्र की स्टेशन रोड पर दवाओं की दुकान थी, जिस से अच्छी आय थी. उसी आय से उन्होंने गौरव को उच्च शिक्षादीक्षा दिला कर इस योग्य बनाया था कि आज वह दिल्ली में मुख्य इंजीनियर है. अशोक विहार में उस की लाखों की कोठी है. वह देश का हाकी का जानामाना खिलाड़ी भी तो था. बड़ेबडे़ लोगों तक उस की पहुंच थी और आएदिन देश की विख्यात पत्रपत्रिकाओं में उस के चर्चे होते रहते थे. गौरव ने दिल्ली में नौकरी मिलने के साथ ही अपनी एक प्रशंसक शीला से शादी कर ली थी. महेंद्र व प्रमिला ने सहर्ष खुद दिल्ली जा कर अपने हाथों से यह कार्य संपन्न किया था. शीला न केवल बहुत सुंदर थी बल्कि बहुत धनवान एवं कुलीन घराने से थी. बस, यहीं वे चूक गए. चूंकि शादी गौरव एवं शीला की सहमति से हुई थी, इसलिए वे महेंद्र और प्रमिला को अपनी हर बात से अलग रखने लगे. यहां तक कि शीला शादी के बाद सिर्फ एक बार अपनी ससुराल नसीराबाद आई थी.

फिर वह उन्हें गंवार और उन के घर को जानवरों के रहने का तबेला कह कर दिल्ली चली गई थी. पिछले 15 वर्षों में उस ने कभी पलट कर नहीं झांका था. महेंद्र और प्रमिला पहले तो खुद भी ख्ंिचेखिंचे रहे थे, लेकिन जब उन के पोता और पोती शिखा औैर सुदीप हो गए तो वे खुद को न रोक सके. किसी न किसी बहाने वे बहूबेटे के पास दिल्ली पहुंच जाते. गौरव और शीला उन का स्वागत करते, उन्हें पूरा मानसम्मान देते. लेकिन 2-4 दिन बाद वे अपने बड़प्पन के अधिकारों का प्रयोग शुरू कर देते, उन के निजी जीवन में हस्तक्षेप करना शुरू कर देते. वे उन्हें अपने फैसले मानने और उन की इच्छानुसार चलने पर विवश करते. यहीं बात बिगड़ जाती. संबंध बोझ लगने लगते और छोटीछोटी बातों को ले कर कहासुनी इतनी बढ़ जाती कि महेंद्र और प्रमिला को वहां से भागना पड़ जाता. प्रमिला और महेंद्र आखिरी बार शीला के पिता की मृत्यु पर दिल्ली गए थे. तब शिखा और सुदीप क्रमश: 10 और 8 वर्ष के हो चुके थे.

उन के मन में हर बात को जानने और समझने की जिज्ञासा थी. उन्होंने दादादादी से बारबार आग्रह किया था कि वे उन्हें अपने कसबे ले जाएं ताकि वे वहां का जीवन व रहनसहन देख सकें. गौरव के दिल में मांबाप के लिए बहुत प्यार व आदर था. उस ने घर ठीक कराने के लिए शीला से छिपा कर मां को 10 हजार रुपए दे दिए ताकि शीला को बच्चों को ले कर वहां जाने में कोई आपत्ति न हो. परंतु प्रमिला की असावधानी से बात खुल गई. सासबहू में महाभारत छिड़ गया और एकदूसरे की शक्ल न देखने की सौगंध खा ली गई. परंतु नसीराबाद पहुंचते ही प्रमिला का क्रोध शांत हो गया. वह पोतापोती और गौरव को नसीराबाद लाने के लिए मकान बनवाने लगी. गृहप्रवेश के दिन वे नहीं आए तो प्रमिला को ऐसा दुख पहुंचा कि वह पक्षाघात का शिकार हो गईर् औैर अब प्रमिला को चारों ओर अंधेरा ही अंधेरा दीख रहा था.

महेंद्र डा. बिहारी के यहां से लौटा तो अंधेरा हो चुका था. पर घर का दृश्य देख कर वह हक्काबक्का रह गया. प्रमिला का कमरा अड़ोसपड़ोस के लोगों से भरा हुआ था. प्रमिला अपने पलंग पर रखी नोटों की गड्डियां उठाउठा कर एक अजनबी आदमी पर फेंकती हुई चीख रही थी, ‘‘ले जाओ इन को मेरे पास से और उस से कहना, न मुझे इन की जरूरत है, न उस की.’’ आदमी नोट उठा कर बौखलाया हुआ बाहर आ गया था. उसे भीतर खड़े लोगों ने जबरदस्ती बाहर धकेल दिया था. कमरे से कईकई तरह की आवाजें आ रही थीं. ‘‘जाओ, भाई साहब, जाओ. देखते नहीं यह कितनी बीमार हैं.’’ ‘‘रक्तचाप बढ़ गया तो फिर कोई नई मुसीबत खड़ी हो जाएगी. जल्दी निकालो इन्हें यहां से.’’ और 2 लड़के उस आदमी को बाजुओं से पकड़ कर जबरदस्ती बाहर ले गए. वह अजनबी महेंद्र से टकरताटकराता बचा था. महेंद्र ने भी गुस्से में पूछा था, ‘‘कौन हो तुम?’’ ‘‘मैं गौरव का निजी सहायक हूं, जगदीश. साहब ने ये 50 हजार रुपए भेजे हैं और यह पत्र.’’ महेंद्र ने नोटोें को तो नहीं छुआ, लेकिन जगदीश के हाथ से पत्र ले लिया. पत्र को पहले ही खोला जा चुका था और शायद पढ़ा भी जा चुका था. महेंद्र ने तत्काल फटे लिफाफे से पत्र निकाल कर खोला. पत्र गौरव ने लिखा था: पूज्य पिताजी एवं माताजी, सादर प्रणाम, आप का पत्र मिला. माताजी के बारे में पढ़ कर बहुत दुख हुआ. मन तो करता है कि उड़ कर आ जाऊं, मगर मजबूरी है. शीला और बच्चे इसलिए नहीं आ सकते, क्योंकि वे परीक्षा की तैयारी में लगे हैं. मैं एशियाड के कारण इतना व्यस्त हूं कि दम लेने की भी फुरसत नहीं है. बड़ी मुश्किल से समय निकाल कर ये चंद पंक्तियां लिख रहा हूं. मैं समय मिलते ही आऊंगा. फिलहाल अपने सहायक को 50 हजार रुपए दे कर भेज रहा हूं ताकि मां का उचित इलाज हो सके. आप ने लिखा है कि आप ने हर तरफ से पैसा समेट कर नए मकान के निर्माण में लगा दिया है, जो बचा मां की बीमारी खा गईर्.

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यह आप ने ठीक नहीं किया. बेकार मकान बनवाया, हम लोगों के लिए वह किसी काम का नहीं है. हम कभी नसीराबाद आ कर नहीं बसेंगे. मां की बीमारी पर भी व्यर्थ खर्च किया. पक्षाघात के रोग का कोई इलाज नहीं है. मैं ने कईर् विशेषज्ञ डाक्टरों से पूछा है. उन सब का यही कहना है मां को अधिकाधिक आराम दें. यही इलाज है इस रोग का. मां को दिल्ली लाने की भूल तो कभी न करें. यात्रा उन के लिए बहुत कष्टदायक होगी. रक्तचाप बढ़ गया तो दूसरा आक्रमण जानलेवा सिद्ध होगा. एक्यूपंक्चर विधि से भी इस रोग में कोई लाभ नहीं होता. सब धोखा है… महेंद्र इस से आगे न पढ़ सका. उस का मन हुआ कि उस पत्र को लाने वाले के मुंह पर दे मारे. लेकिन उस में उस का क्या दोष था. उस ने बड़ी कठिनाई से अपने को संभाला और जगदीश को पत्र लौटाते हुए कहा, ‘‘आप उस से जा कर वही कहिए जो उसे जन्म देने वाली ने कहा है. मेरी तरफ से इतना और जोड़ दीजिए कि हम तो उस के लिए मरे हुए ही थे, आज से वह हमारे लिए मर गया.

काश, वह पैदा होते ही मर जाता.’’ जगदीश सिर झुका कर चला गया. महेंद्र प्रमिला के कमरे में घुसा. उस ने देखा कि वहां सब लोग मुसकरा रहे थे. प्रमिला की आंखें भीग रही थीं, लेकिन उस के होंठ बहुत दिनों के बाद हंसना चाह रहे थे. महेंद्र ने प्रमिला के पास जाते हुए कहा, ‘‘तुम ने बिलकुल ठीक किया, पम्मी.’’ तभी बिजली चली गई. कमरे में अंधेरा छा गया. प्रमिला ने देखा कि अंधेरे में खड़े लोगों की परछाइयां उस के समीप आती जा रही हैं. कोई चिल्लाया, ‘‘अरे, कोई मोमबत्ती जलाओ.’’ ‘‘नहीं, कमरे में अंधेरा रहने दो,’’ प्रमिला तत्काल चीख उठी, ‘‘यह अंधेरा मुझे अच्छा लग रहा है. कहते हैं कि अंधेरे में साया भी साथ छोड़ देता है. मगर मेरे चारों तरफ फैले अंधेरे में तो साए ही साए हैं. मैं हाथ बढ़ा कर इन सायों का सहारा ले सकती हूं,’’ प्रमिला ने पास खड़े लोगों को छूना शुरू किया, ‘‘अब मुझे अंधेरे से डर नहीं लगता, अंधेरे में भी कुछ साए हैं जो धोखा नहीं हैं, ये साए नहीं हैं बल्कि मेरे अपने हैं, मेरे असली संबंधी, मेरा सहारा…यह तुम हो न जी?’’ ‘‘हां, पम्मी, यह मैं हूं,’’ महेंद्र ने भर्राई आवाज में कहा, ‘‘तुम्हारे अंधेरों का भी साथी, तुम्हारा साया.’’ ‘‘तुम नौकरी करना डा. बिहारी की. रोगियों की सेवा करना. अपनी संतान से भी ज्यादा सुख मिलता है परोपकार में. मुझे संभालने वाले यहां मेरे अपने बहुत हैं. मैं निचली मंजिल पर सिलाई स्कूल खोल लूंगी, मेरे कंगन औैर चूडि़यां बेच कर सिलाई की कुछ मशीनें ले आना औैर पहियों वाली एक कुरसी ला देना.’’ ‘‘पम्मी.’’ ‘‘हां जी, मेरा एक हाथ तो चलता है. ऊपर की मंजिल किराए पर उठा देना. वह पैसा भी मैं अपने इन परिवार वालों की भलाई पर खर्च करना चाहती हूं. हमारे मरने के बाद हमारा जो कुछ है, इन्हें ही तो मिलेगा.’’ एकाएक बिजली आ गई. कमरे में उजाला फैल गया. सब के साथ महेंद्र ने देखा था कि प्रमिला अपने एक हाथ पर जोर लगा कर उठ बैठी थी. इस से पहले वह सहारा देने पर ही बैठ पाती थी. महेंद्र ने खुशी से छलकती आवाज में कहा, ‘‘पम्पी, तुम तो बिना सहारे के उठ बैठी हो.’’ ‘‘हां, इनसान को झूठे सहारे ही बेसहारा करते हैं.

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मैं इस आशा में पड़ी रही कि कोई आएगा, मुझे अपनी पीठ पर उठा कर ले जाएगा औैर दुनिया के बड़े से बड़े डाक्टर से मेरा इलाज कराएगा. मेरा यह झूठा सहारा खत्म हो चुका है. मुझे सच्चा सहारा मिल चुका है…अपनी हिम्मत का सहारा. फिर मुझे किस बात की कमी है? मेरा इतना बड़ा परिवार जो खड़ा है यहां, जो जरा से पुकारने पर दौड़ कर मेरे चारों ओर इकट्ठा हो जाता है.’’ यह सुन कर महेंद्र की छलछलाई आंखें बरस पड़ीं. उसे रोता देख कर वहां खड़े लोगों की आंखें भी गीली होने लगीं. महेंद्र आंसुओं को पोंछते हुए सोच रहा था, ‘ये कैसे दुख हैं, जो बूंद बन कर मन की सीप में टपकते हैं और प्यार व त्याग की गरमी पा कर खुशी के मोती बन जाते हैं.

संबंधों का कातिल: जब आंखों पर चढ़ जाए स्वार्थ का चश्मा  

‘‘माफ करना भाई, तुम्हें तो बात भी करना नहीं आता,’’ इतना बोल कर सुबोध ने अपने हाथ जोड़ लिए तो मानव खीज कर रह गया.

अचानक बात करतेकरते दोनों को ऐसा करता देख मैं भी घबरा गया. कमरे में झगड़ा हो और नकारात्मक माहौल बन जाए तो बड़ी घुटन होती है. मैं तनाव में नहीं जी सकता. पता नहीं कैसाकैसा लगने लगता है. ऐसा लगता है जैसे किसी ने नाक तक मुझे पानी में डुबो दिया हो.

‘‘शांत रहो भाई, तुम दोनों को क्या हो गया है?’’

‘‘कुछ नहीं, मैं भूल गया था कि कुपात्र को सीख नहीं देनी चाहिए. जिसे कुछ लेने की चाह ही न हो उसे कुछ कैसे दिया जा सकता है. बरतन सीधे मुंह रखा हो तभी उस में कोई चीज डाली जा सकती है, उलटे बरतन में कुछ नहीं डाला जा सकता. चाहे पूरी की पूरी सावन की बदली बरस कर चली जाए पर उलटे पात्र में एक बूंद तक नहीं डाली जा सकती. जिस चरित्र का यह मालिक है उस चरित्र पर तो किसी की अच्छी सलाह काम ही नहीं कर सकती. ऐसे लोग कभी किसी के हो कर नहीं रहते.’’

मानव चेहरे पर विचित्र भाव लिए कभी मेरा मुंह देख रहा था और कभी सुबोध का…जैसे कोई चोरी पकड़ी गई हो, जैसे उस का कोई परदा उठा दिया हो किसी ने. अभी कुछ दिन पहले ही तो सुबोध हमारे साथ रहने आया है. हम तीनों एक ही कमरा शेयर करते हैं. हमारे पेशे अलगअलग हैं लेकिन रहने को छत एक ही है जिस के नीचे हमारी रात और सुबह बीतती है.

‘‘चरित्र से…क्या मतलब है तुम्हारा?’’

‘‘क्या इस का मतलब तुम्हें नहीं पता? इतने तो नासमझ नहीं हो तुम, जो तुम्हें चरित्र का मतलब पता ही न हो. पढ़ेलिखे हो, अच्छी कंपनी में काम करते हो, हर महीने अच्छाखासा वेतन पाते हो, जूता तक तो तुम्हारा ब्रांडेड होता है. कंपनी में ऊपर तक जाने की जितनी तीव्र इच्छा  तुम्हें है उस के लिए अनैतिकता के कितने गहरे गड्ढे में धंस चुके हो, तुम्हें खुद ही नहीं पता…तुम कहां से हो और कहां जा रहे हो तुम्हें जरा सी भी समझ है? क्या जानते भी हो, कहां जा रहे हो…और कहां तक जाना चाहते हो उस की कोई तो सीमा होगी?’’

‘‘सीमा…सीमा कौन? किस की बात कर रहे हो?’’

‘‘मैं तुम्हारी पत्नी सीमा की बात नहीं कर रहा हूं. मैं तो उस सीमा की बात कर रहा हूं जिसे हद भी कहा जाता है. हद यानी एक वह सूक्ष्म सी रेखा जिस के पार जाने से पहले मनुष्य को लाख बार सोचना चाहिए.’’

मैं आश्चर्यचकित रह गया. सीमा नाम की लड़की मानव की पत्नी है लेकिन मानव ने तो कहा था कि वह अविवाहित है और अपनी ही कंपनी में साथ काम कर रही एक सहयोगी के साथ उस के संबंध बहुत गहराई तक जुड़े हैं, सब जानते हैं. तो क्या मानव सब के साथ झूठ बोल रहा है? हाथ का काम छोड़ मैं सुबोध के समीप चला आया. मानव की शक्ल से तो लग रहा था जैसे काटो तो खून का कतरा भी न निकले. एक निश्छल सी मुसकान थी सुबोध के होंठों पर. बेदाग चरित्र है उस का. पहले ही दिन जब मिला था बहुत प्यारा सा लगा था. बड़े मस्त भाव से दाढ़ी बनाता जा रहा था.

‘‘हर इच्छा की सीमा होती है, कितनी भूख है तुम्हें पैसे की? सोचा जाए तो मात्र पैसे की ही नहीं, तुम्हें तो हर शह की भूख है. इतनी भूख से पेट फट जाएगा मानव, बदहजमी हो जाती है. प्रकृति ने इंसानों का हाजमा इतना मजबूत नहीं बनाया कि पत्थर या शीशा खा सके. हम अनाज या ज्यादा से ज्यादा जानवर खा सकते हैं.’’

यह कह कर मुंह धोने चला गया सुबोध और मानव मेरे सामने बुत बना यों खड़ा था मानो उसे बीच चौराहे पर किसी ने नंगा कर दिया हो.

‘‘तुम ये कैसी बातें कर रहे हो, सुबोध?’’ मैं ने पूछा.

‘‘क्या हुआ? जी मिचलाने लगा क्या? मानव का जी तो नहीं मिचलाता. पूछो, इसे इंसान का गोश्त कितना स्वाद लगता है. पिछले 4 साल से यह इंसान का गोश्त ही तो खा रहा है…अपने मांबाप का गोश्त, उस के बाद अपनी पत्नी और उस के पिता का गोश्त, यह तो एक बच्चे का पिता भी होता यदि पत्नी का गर्भपात न हो जाता. एक तरह से अपने बच्चे का गोश्त भी खा चुका है यह इंसान.’’

‘‘बकवास बंद करो सुबोध,’’ मानव ने चिढ़ कर कहा.

‘‘मेरी क्या मजाल है जो मैं बकवास करूं. उस का ठेका तो तुम ने ले रखा है. साल भर पहले घर गए थे तुम, सोचो, तब वहां क्या बकवास कर के आए थे? पत्नी को छोड़ना चाहते थे इसलिए उस पर चरित्रहीनता का आरोप लगा दिया.

‘‘एमबीए करने के लिए अपनी पत्नी के पिता से 8 लाख रुपए ले लिए. उन की बेटी का घरसंसार समृद्धि से भर जाएगा, उन को तुम ने ऐसा आश्वासन दिया था. पत्नी बेचारी घर पर इस के मातापिता की सेवा करती रही, इसी उम्मीद पर कि उस का पति बड़ा आदमी बन कर लौटेगा.

‘‘अजन्मा बच्चा अपने पिता का दोषारोपण सुनते ही चलता बना. मुड़ कर कभी नहीं देखता पीछे क्याक्या छूट गया. किसकिस के सिर पर पैर रख कर यहां तक पहुंचे हो, मानव. क्या जरा सा भी एहसास है?

‘‘अब क्या उस नेहा नाम की लड़की के कंधे पर पैर नहीं हैं तुम्हारे, जिस का भाई तुम्हें अमेरिका ले जाने वाला है? अमेरिका पहुंच कर नेहा को भी छोड़ देना. मानव नहीं हो तुम तो दानव बन गए हो. क्या तुम्हारे अंदर सारी की सारी संवेदनाएं मर गई हैं? पता है न तुम्हें कि कौनकौन कोस रहा है तुम्हें. तुम्हारे मातापिता, तुम्हारे ससुर…जिन की भविष्यनिधि भी तुम खा गए और उन की बेटी का घर भी नहीं बस पाया.’’

मानव की अवस्था विचित्र सी हो गई. बारबार कुछ कहने को वह मुंह खोलता तो सुबोध उस पर नया वार कर देता. प्याज के छिलकों की तरह परतदरपरत उस के भूतकाल की परतें उतारता जा रहा था. सफाई दे भी तो कैसे दे और शुरू कहां से करे, उस का तो आदि से अंत सब ही विश्वास और अपनत्व से शून्य था. जो इंसान अपने मांबाप का सगा न हुआ, अपनी पत्नी के प्रति वफादार न हुआ वह किसी और का भी क्या होगा? सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है. अपनी संतान के प्रति भी जिस ने कोई जिम्मेदारी न समझी, वह कहांकहां से पलायन कर रहा है समझा जा सकता है.

‘‘सुबोध, तुम यह सब कैसे जानते हो. जरा बताओ तो?’’ मैं ने सुबोध का हाथ पकड़ कर पूछा था. शांत रहने वाला सुबोध इस पल जरा आवेश में था.

‘‘तुम मुझ से क्यों पूछ रहे हो कि मैं यह सब कैसे जानता हूं. तुम इस नाशुक्रे इंसान से सिर्फ यह पूछो कि जो कुछ भी मैं ने इस के लिए कहा है वह सच है या नहीं. मैं कैसे जानता हूं कैसे नहीं, इस से क्या फर्क पड़ता है. पूछो इस से कि इस के मातापिता आजकल कहां हैं? जिंदा भी हैं या मर गए? तलाक के बाद इस की पत्नी और उस के पिता का क्या हुआ? क्या यह जानता है? अपने ससुर के 8 लाख रुपए यह कब लौटाने वाला है जो अब सूद मिला कर 10-12 लाख रुपए तो होने ही चाहिए.’’

‘‘सीमा ने अभी मुझे तलाक दिया कहां है…’’ पहली बार मानव ने अपने होंठ खोले, ‘‘और क्या सुबूत है उस के पास कि वे रुपए उस के पिता ने ही दिए थे.’’

‘‘जिस दिन अदालत का नोटिस तुम्हारे औफिस पहुंच जाएगा, उस दिन अपनेआप पता चल जाएगा किस के पास कितने और कैसे सुबूत हैं…इतना लाचार और बेवकूफ किसे समझ रहे हो तुम?’’

सुबोध इतना सब कह कर अपने कपड़े बदलने लगा.

‘‘आजकल मुंह छिपा कर भागना आसान कहां है. इंसान मोबाइल नंबर से पकड़ा जाता है, जिस कंपनी में काम करो वहां से छोड़ कर कहीं और भी चले जाओ तो भी सिरा हाथ में आ जाता है. यह दुनिया इतनी बड़ी कहां रह गई है कि इंसान पकड़ में ही न आए. जल्दी ही नेहा को भी पता चल जाएगा तुम्हारा कच्चा चिट्ठा. यह मत सोचो कि तुम सारी दुनिया को बेवकूफ बना लोगे.’’

बदहवास सा होने लगा मानव. 15 दिन पहले ही तो सुबोध हमारे साथ रहने आया है. उस ने कहा था जम्मू से है, मानव भी जम्मू से है, तब मुझे क्षण भर को लगा भी था कि मानव जम्मू का नाम सुन कर जरा सा परेशान हो गया था, बड़ी गहराई से परख रहा था कि वह किस हिस्से से है, किस कोने से है.

‘‘अगर इंसान जिंदा है और अच्छी नौकरी में है तो छिप नहीं सकता और मुझे पूरा विश्वास है तुम अभी जिंदा हो.’’

धड़ाम से वहीं बैठ गया मानव. सुबोध जल्दीजल्दी तैयार होने लगा. उस ने अपना नाश्ता किया और जातेजाते मानव का कंधा थपथपा दिया.

‘‘अभी भी देर नहीं हुई. मर जाओ या जिंदा रहो, अपने ही काम आते हैं. रोते भी अपने ही हैं, ऐसा दुनिया कहती है. अपना घरपरिवार संभालो, अपनों के साथ छल मत करो वरना वह दिन दूर नहीं जब यही छल घूमफिर कर तुम्हारे ही सामने परोसा जाएगा…अपने घर जाओ मानव, तुम्हारी मां बहुत बीमार हैं.’’

‘‘क्या?’’ मानव के होंठों से पहली बार यह शब्द अपनेआप ही निकला था.

‘‘अपनी मां तो याद हैं न. जाओ उन के पास. नेहा जैसी कल बहुत मिल जाएंगी. आज मां हाथ से निकल गईं तो पूरी उम्र जमीन से जुड़ने को ही तरस जाओगे. पत्नी को छोड़ा है, जाहिर है वह भी मर तो नहीं जाएगी. वह तो कल अपना रास्ता स्वयं ढूंढ़ लेगी, लेकिन आज जो छूट जाएगा वह कभी हाथ नहीं आएगा. अच्छे इंसान बनो मानव…मांबाप ने इतना अच्छा नाम रखा था…कुछ तो उसे सार्थक करो.’’

सुबोध चला गया. कहां से बात शुरू हुई थी और कहां आ पहुंची थी. हैरान हूं मानव के बारे में इतना सब जानते हुए वह 15 दिन से चुप क्यों था. और मानव का चरित्र भी कैसा था, जिस ने साल भर में कभी मांबाप का जिक्र तक नहीं किया. घर में पालतू जानवर पाल लो तो उस का भी नाम कभीकभार इंसान ले ही लेता है.

सुबोध ने बताया था कि उस के कई मित्र मानव के गांव से हैं. हो सकता है उन्हीं से उसे सारी कहानी पता चली हो. मैं तो कितना अच्छा दोस्त समझ रहा था मानव को. अब लग रहा है अपनी समझ को अभी मुझे और परिपक्व करना पड़ेगा. इंसान को परखना अभी मुझे नहीं आया.

मैं सोचने लगा हूं…मानव, जो अच्छा इंसान ही नहीं है वह अच्छा मित्र कैसे होगा. प्यार पाने के लिए तो प्यार बोना पड़ता है और विश्वास पाने के लिए विश्वास. मानव के तो दोनों हाथ खाली हैं, यह क्या लेगा जब कभी दिया ही नहीं. इस के हिस्से तो मात्र खालीपन और अकेलापन ही है. मानव बुत बना चुपचाप बैठा रहा.

पगली: कैसे पति के धोखे का शिकार हुई नंदिनी

‘‘आजकल आप के टूर बहुत लग रहे हैं. क्या बात है जनाब?’’ नंदिनी संजय से चुहलबाजी कर रही थी.

‘‘क्या करूं, नौकरी का सवाल है, नहीं तो तुम्हें छोड़ कर जाने का मेरा मन बिलकुल भी नहीं करता है,’’ संजय ने भी हंसी का जवाब हंसी में दे दिया.

‘‘पहले तो ऐसा नहीं था, फिर अचानक इतने ज्यादा टूर क्यों हो रहे हैं?’’ इस बार नंदिनी ने संजीदगी से पूछा था.

‘‘तो क्या घर बैठ जाऊं?’’ संजय को गुस्सा आ गया.

‘‘इस में इतना गुस्सा होने की क्या बात है? मैं तो यों ही पूछ रही थी,’’ नंदिनी बोली.

‘‘जैसा कंपनी कहेगी, वही करना पड़ेगा.’’

‘‘ठीक है, पर…’’

‘‘तुम मु?ा पर शक कर रही हो…’’ संजय ने कहा, ‘‘जैसे मैं किसी और से मिलने जाता हूं… है न?’’

‘‘अरे, मैं तो मजाक कर रही थी,’’ नंदिनी ने कहा.

‘‘तुम्हारे मन में ऐसेऐसे खयाल आ जाते हैं, जिन का कुछ भी मतलब नहीं होता है.’’

‘‘अच्छा बाबा, माफ कर दो. मैं तो इसलिए कह रही थी कि गरमी की छुट्टियों में हम सब बच्चों के साथ कहीं बाहर घूमने चलें,’’ नंदिनी जैसे अपनी सफाई पेश कर रही थी.

‘‘ठीक है, देखते हैं,’’ संजय ने कहा.

एक दिन घर के कामकाज निबटा कर नंदिनी छत पर चली गई थी, तभी दरवाजे की घंटी बजी.

जब दरवाजा खोला, तो सामने पड़ोसन रागिनी खड़ी थी.

‘‘आओ रागिनी भाभी, अचानक कैसे आना हुआ?’’ नंदिनी ने पूछा.

‘‘तुम्हें पता है नंदिनी कि आजकल कालोनी में क्या हो रहा है.’’

‘‘ऐसा क्या हो रहा है, जो मु?ो नहीं पता?’’

‘‘अरे, पिछले कई दिनों से एक पगली इस कालोनी में आई हुई है और सब बच्चे उसे छेड़ते रहते हैं.’’

‘‘हां, मैं ने भी उसे देखा है, पर बच्चों को ऐसा नहीं करना चाहिए.’’

अभी वे दोनों बातें कर ही रही थीं कि बाहर बहुत शोर सुनाई दिया. दोनों घर के बाहर आ गईं.

नंदिनी ने देखा कि एक लड़की भाग रही थी और कुछ बच्चे उस के पीछे भाग रहे थे.

नंदिनी ने उन बच्चों को डांट लगाई और उसे अपने साथ घर में ले आई.

अंदर आते ही वह लड़की बेहोश हो गई. नंदिनी ने उस के चेहरे पर पानी के छींटे मारे. होश में आने पर वह नंदिनी से लिपट कर रोने लगी.

नंदिनी ने लड़की से उस का नाम पूछा, लेकिन वह चुप रही, फिर वह जोरजोर से चिल्लाने लगी और नंदिनी से ऐसे लिपट गई, जैसे उसे कुछ याद आ गया हो.

नंदिनी ने उसे आराम से बैठाया और उसे खाने को दिया, तो वह फटाफट    5-6 रोटियां खा गई, जैसे बहुत दिनों से भूखी हो.

‘‘कौन हो तुम?’’ पड़ोसन रागिनी ने उस लड़की से पूछा, तो वह चुप रही. कई बार पूछने पर वह बोली, ‘रेवा…रेवा…रेवा.’

‘‘नंदिनी, पता नहीं यह कहां से आई है? अब इसे यहां से जाने को कह दे,’’ रागिनी ने नंदिनी को सलाह दी.

‘‘कैसी बातें कर रही हो भाभी?  कुछ देर आराम कर ले, फिर जाने को कह दूंगी,’’ नंदिनी बोली.

‘‘देख, मैं कह रही हूं कि ऐसे लोगों से दूर ही रहना चाहिए,’’ रागिनी ने उसे फिर से सम?ाने की कोशिश की.

‘‘भाभी, आप को पता है कि मैं एक एनजीओ के साथ काम कर रही हूं. मैं उन से बात करूंगी. आप परेशान न हों,’’ नंदिनी बोली.

‘‘ठीक है, जैसी तुम्हारी मरजी,’’ कह कर रागिनी चली गई.

नंदिनी जब वापस आई, तो देखा कि वह लड़की कमरे के एक कोने में दुबकी डरीसहमी बैठी थी.

नंदिनी ने उसे आवाज लगाई, ‘‘रेवा…’’

वह कुछ नहीं बोली, बल्कि और सिमट कर बैठ गई.

नंदिनी उस के पास गई और पूछा, ‘‘रेवा नाम है न तुम्हारा?’’

उस लड़की ने धीरे से अपना सिर ‘हां’ में हिला दिया.

नंदिनी ने उस से कहा, ‘‘देखो, डरो नहीं. बताओ, तुम कहां से आई हो? हम तुम्हें तुम्हारे घर पहुंचा देंगे.’’

वह लड़की इतना ही बोली, ‘‘मेरा कोई घर नहीं है बीबीजी.’’

नंदिनी को हैरानी हुई कि यह तो कहीं से पागल नहीं लग रही है.

अचानक उस लड़की ने नंदिनी के पैर पकड़ लिए. नंदिनी को उस का बदन गरम लगा. ऐसा लगता था, जैसे उसे बुखार हो.

‘‘अच्छा ठीक है, आज की रात तुम यहीं रह जाओ. कल मैं तुम्हें अपनी संस्था में ले जाऊंगी.’’

‘‘बीबीजी, आप मु?ो अपने पास रख लो. मैं घर का सारा काम करूंगी,’’ कह कर वह फिर से रोने लगी.

‘‘अच्छा, आज तो तुम यहीं रहो, फिर कल देखेंगे,’’ नंदिनी बोली.

संजय रात को काफी देर से आया था. सो, उसे उस लड़की के बारे में कुछ नहीं पता था.

अगली सुबह नंदिनी ने संजय को उस लड़की के बारे में बताया.

संजय ने साफ शब्दों में कह दिया, ‘‘नंदिनी, इस को अभी घर से निकालो, पता नहीं कौन है….’’

‘‘हां संजय, लेकिन अभी मैं इसे अपनी संस्था में ले जाती हूं.’’

‘‘मैं रात को घर आऊं, तो मु?ो कोई बखेड़ा नहीं चाहिए,’’ कह कर संजय चला गया.

नंदिनी नीचे आई, तो देखा कि उस लड़की को तेज बुखार था.

रात को संजय ने नंदिनी से पूछा, ‘‘क्या वह लड़की चली गई?’’

नंदिनी ने कहा, ‘‘नहीं.’’

‘‘क्यों…?’’ संजय बोला.

‘‘संजय, उसे बहुत तेज बुखार है और ऐसी हालत में वह लड़की कहां जाएगी? अगर वह मर गई तो…’’

‘‘मु?ो नहीं पता,’’ कहते हुए संजय नीचे चला गया.

वहां वह लड़की बेहोश पड़ी थी. पता नहीं क्यों संजय उसे देख कर हैरानी में पड़ गया.

‘‘नंदिनी, शायद तुम ठीक कह रही हो. अगर यह यहां से गई और मर गई, तो क्या होगा?’’

‘‘फिर क्या करें?’’

‘‘ऐसा करते हैं, जब तक यह ठीक नहीं हो जाती, इसे अपने पास ही रख लेते हैं.’’

‘‘ठीक है.’’

आजकल करतेकरते कई दिन हो गए, पर रेवा वहां से न जा सकी.

वैसे, नंदिनी अब तक सिर्फ इतना ही जान पाई कि वह एक पहाड़ी लड़की थी और किसी बाबूजी से मिलने आई थी.

‘‘तुम्हें यहां कौन छोड़ गया है?’’ नंदिनी ने पूछा.

‘‘मेरे गांव में कई लोग यहां पर फेरी लगाने आते हैं. उन्हीं लोगों के साथ मैं भी आ गई.’’

‘‘देखो, अगर तुम हमें अपने गांव का नामपता बता दोगी, तो हम तुम्हें वहां पहुंचा देंगे,’’ नंदिनी ने कहा.

‘‘मैं पहली बार अपने गांव से बाहर निकली हूं और मु?ो तो यह भी नहीं पता कि मेरे गांव का क्या नाम है.’’

पता नहीं, वह सच बोल रही थी या ?ाठ, पर नंदिनी को उस की बातों पर कभी भरोसा हो जाता, तो कभी नहीं.

अभी रेवा को आए हुए कुछ समय ही बीता था कि नंदिनी को पता चला कि वह मां बनने वाली है.

नंदिनी हैरानी में पड़ गई कि अब वह क्या करे. उस ने रेवा से पूछा कि यह सब क्या है? कौन है इस बच्चे का पिता? लेकिन रेवा का एक ही जवाब होता, ‘‘बीबीजी, मु?ो नहीं पता. शायद पागलपन के दौरे में मेरा किसी ने फायदा उठा लिया होगा.’’

‘‘तू याद करने की कोशिश तो कर, शायद याद आ जाए.’’

‘‘नहीं बीबीजी, क्योंकि जब मु?ो दौरा पड़ता है, तो उस वक्त की सारी बातें मैं भूल जाती हूं.’’

नंदिनी को कुछ भी सम?ा नहीं आ रहा था कि वह क्या करे.

उस ने संजय से बात की. यह सब सुन कर वह भड़क उठा, ‘‘मैं ने तो पहले ही कहा था कि इस ?ां?ाट में मत फंसो. अब भुगतो.’’

‘‘तो क्या उसे घर से निकाल दूं?’’

‘‘अब क्या घर से निकालोगी? रहने दो अब.’’

नंदिनी ने अपने पड़ोसियों से बात की. सब ने यही राय दी कि उसे फौरन घर से निकाल देना चािहए.

पर नंदिनी रेवा को वहां से जाने के लिए एक बार भी नहीं कह पाई.

रेवा के मां बनने का समय भी आ गया था. नंदिनी अब तक एक बड़ी बहन की तरह रेवा की देखभाल कर रही थी.

रेवा को एक बहुत ही प्यारा बेटा हुआ. उस बच्चे को देख कर नंदिनी को अपने बच्चों के बचपन याद आ गए.

ठीक होने के बाद रेवा ने फिर से घर के काम करने शुरू कर दिए थे. सबकुछ ठीक चल रहा था कि अचानक एक दिन सुबह नंदिनी ने देखा कि रसोई बिखरी पड़ी है. इस का मतलब अभी तक रेवा नहीं आई थी.

कुछ देर उस का इंतजार करने के बाद नंदिनी उस के कमरे में आई, तो देखा कि रेवा कमरे में नहीं थी और उस का बच्चा पलंग पर सो रहा था.

नंदिनी ने बच्चे को गोद में उठा लिया. बच्चे के पास एक चिट्ठी रखी  थी. नंदिनी ने उसे पढ़ना शुरू किया:

‘दीदी, मैं पागल नहीं हूं, लेकिन मु?ो पागल बनना पड़ा, क्योंकि अगर मैं ऐसा नहीं करती, तो आप मु?ो अपने घर में नहीं रखतीं.

‘मैं बहुत गरीब घर से हूं. कुछ समय पहले संजय साहब मेरे गांव आए थे. उन्होंने मु?ो एक अच्छी जिंदगी के सपने दिखाए, लेकिन बदले में आप ने जान ही लिया होगा कि मैं ने कितनी बड़ी कीमत चुकाई है.

‘दीदी, मैं ने ही साहब को मजबूर किया था कि अगर वे मु?ो अपने घर में नहीं रहने देंगे, तो मैं आप को सबकुछ सच बता दूंगी.

‘साहब जैसे भी हैं, लेकिन वह अपना घर नहीं तोड़ना चाहते हैं. अगर मैं चाहती, तो आप के घर रह सकती थी, लेकिन मैं जानती हूं कि सच को ज्यादा दिनों तक नहीं छिपाया जा सकता.

‘दीदी, आप इतनी अच्छी हैं कि कभीकभी मु?ो लगता था कि मैं आप के साथ बेईमानी कर रही हूं, लेकिन इस बच्चे की वजह से चुप कर जाती थी.

‘दीदी, अब यह आप का बच्चा है. आप जैसे चाहें इस की परवरिश कर सकती हैं.

‘मैं ने साहब को माफ कर दिया है. आप भी उन को माफ कर दो.’

नंदिनी चिट्ठी पढ़ कर मानो आसमान से नीचे गिर पड़ी. इतना बड़ा धोखा, इतना बड़ा गुनाह. उस की आंखों के सामने सबकुछ होता रहा और उसे पता भी नहीं चला.

उस ने कभी भी संजय और रेवा को एकसाथ नहीं देखा था और न ही दोनों को कभी बातें करते सुना था, तो फिर कब…?

नंदिनी को लगा कि कमरे की दीवारें चीखचीख कर कह रही हैं, ‘नंदिनी, पगली वह नहीं तू थी, जो अपने पति और एक अनजान लड़की पर भरोसा कर बैठी. पगली…पगली…पगली…’

पिंकी खुराना

प्यासी नदी : क्या थी नौकरानी की कहानी

मेरे पतिदेव को चलतेफिरते मुझे छेड़ते हुए शरारत करने की आदत है. वे कभी गाल छू लेते हैं, तो कभी कमर पर चुटकी ले लेते हैं. यह भी नहीं देखते कि आसपास कोई है या नहीं. बस, मेरे प्रति अपना ढेर सारे प्यार को सरेआम जता देते हैं.  मेरे मना करने पर या ‘शर्म करो’ कहने पर कहते हैं, ‘अरे यार, अपनी खुद की बाकायदा बीवी को छेड़ रहा हूं, कोई राह चलती लड़की को नहीं और प्यार जता रहा हूं, सता नहीं रहा… समझी जानू…’

बेशक, मुझे भी उन का यों प्यार जताना गुदगुदा जाता है. कभी चुपके से मैं भी इन की पप्पी ले लेती हूं… हम मियांबीवी जो हैं.  पर, 1-2 बार मैं ने नोटिस किया है कि मेरी कामवाली गीता हम पतिपत्नी की ये अठखेलियां दरवाजे के पीछे खड़ी रह कर छिपछिप कर देखती है. पहले तो मुझे लगा कि यह मेरा भरम है, पर अब तो गीता ऐसी हरकतें बारबार करने लगी थी. वैसे, गीता बहुत अच्छी है. स्वभाव भी मिलनसार और काम भी परफैक्ट, कभी शिकायत का मौका नहीं देती.

जब वह कुंआरी थी, तभी से हमारे घर में काम कर रही है. अभी एक साल पहले ही उस की शादी हुई थी. ससुराल यहीं पास ही में है, तो शादी के बाद भी गीता ने काम  नहीं छोड़ा. वह हमारे परिवार से घुलमिल गई है. दरअसल, कुंआरी लड़कियों को ऐसी हरकतें देखने की उत्सुकता रहती है, पर गीता की तो अब शादी हो गई है. उस का पति भी उसे प्यार करता होगा, शारीरिक सुख देता होगा, फिर हमें प्यार जताते देखने की इतनी ललक क्यों है? मैं ने अपने पति अभिराज को इस बारे में बताया भी, पर उन्होंने बात को मजाक में टाल दिया. पर, मैं अब सतर्क हो गई थी.

जब गीता काम करने आती थी, तब मैं अपने पति से दूरी बनाने  की कोशिश करती थी. यों ही सालभर बीत गया. एक दिन बिना बताए गीता काम पर नहीं आई. आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ, क्योंकि जब छुट्टी लेनी होती है, तब वह बता कर जाती है या फोन कर देती है. हम ने सोचा कि आ गया होगा कोई काम, पर जब वह दूसरे दिन भी नहीं आई, तो मैं ने उस के पति को फोन लगाया, पर कोई रिप्लाई नहीं. मैं ने अभिराज से कहा, ‘‘चलिए न गीता के घर, मुझे फिक्र हो रही है. जरूर कुछ हुआ है,

वरना गीता यों बिना बताए कभी छुट्टी नहीं लेती.’’ इन को ज्यादा फिक्र नहीं थी, तो बोले, ‘‘अरे शालू, कोई दूसरी कामवाली रख लो न यार, कहां दूसरों के झमेलों में पड़ती हो. मुझे औफिस के लिए देर हो रही है. मैं चलता हूं.’’ पर, मेरे मन को चैन नहीं था, तो इन के औफिस जाते ही मैं एक्टिवा ले कर निकल गई. एक बार भारी बारिश थी, तो हम गीता को गाड़ी में छोड़ने गए थे.

पास वाली बस्ती में ही रहती है, इसलिए घर देखा हुआ था. मैं ने एक्टिवा गली के नाके पर पार्क की और छोटी सी पगडंडी पर चलते हुए उस के घर पहुंची. देखा तो गीता की सास आंगन में बैठी लहसुन छिल रही थीं.  मैं ने पूछा, ‘‘मौसी, गीता कहां है?  2 दिन से काम पर नहीं आई.’’ यह सुनते ही मौसी तुनक कर खड़ी हो गईं और दहाड़ते हुए बोलीं, ‘‘नाम मत लो उस कुलटा का… हमारी इज्जत पर पानी फेर दिया उस करमजली ने.’’ मैं ने हकीकत जाननी चाही, पर वे तो गीता को गालियां देती मेरे मुंह पर दरवाजा बंद कर के घर के भीतर चली गईं. पड़ोस के घर में खड़ी एक लड़की चुपके से मुझे देख रही थी. मैं उस के पास गई, तो वह भी दरवाजा बंद करने लगी, पर मैं ने धक्का दे कर दरवाजा खोल दिया और पूछा, ‘‘अगर तुम्हें पता हो, तो सिर्फ इतना बता दो कि गीता कहां है?’’

‘‘सरकारी अस्पताल में,’’ कह कर वह लड़की दरवाजा बंद कर के चली गई. मैं ने एक्टिवा ली और सरकारी अस्पताल आ गई. कितनी देर इधरउधर भटकते हुए मुश्किल से गीता को ढूंढ़ा. देखा तो वहां पुलिस भी थी. मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि गीता ने ऐसा क्या किया होगा?

मैं नजदीक गई, तो मुझे देख कर गीता ने शर्म के मारे चेहरा दूसरी तरफ कर लिया. मैं एक कुरसी पर बैठ गई और गीता से कहा, ‘‘इधर देखो…’’ गीता नजरें झुकाए बोली, ‘‘मैडम, आप यहां…?’’ मैं ने कहा, ‘‘जब तुम ने कोई खबर नहीं दी, तो मुझे आना ही पड़ा. बताओ भी क्या हुआ है? कहीं गिरविर गई या किसी ने मारा? एकएक बात बताओ.’’

गीता ने कहा, ‘‘मैडम, सब बताऊंगी. थोड़ी ठीक हो जाऊं, फिर घर आती हूं. यहां कुछ बताना ठीक नहीं. मेरी बात सुन कर आप ही इंसाफ करना कि मैं सही हूं या गलत.’’ मुझे लगा कि शायद कोई गंभीर बात है, इसलिए मैं ने कहा, ‘‘ठीक है, मैं इंतजार करूंगी. ये ले 5,000 रुपए रख और किसी भी चीज की जरूरत हो, तो फोन कर के बता देना,’’ और मैं घर आ गई.

सब से पहले जब तक गीता ठीक हो कर वापस नहीं आती, तब तक किसी दूसरी कामवाली का इंतजाम करना पड़ेगा. इंटरकौम पर पूरी सोसाइटी से पूछ लिया. सविता नाम की एक कामवाली मिल गई.  मैं ने अपने पति को गीता के बारे में बताया, पर हमदर्दी के बदले डांट मिली, ‘‘यार, अब नई कामवाली मिल गई न, छोड़ो कि गीता की लाइफ में क्या हुआ, वह जानने की तुम्हें क्या जरूरत है.’’ फिर भी मेरे मन में गीता के प्रति अपनापन था. सालों से वह हमारी जिंदगी का हिस्सा रही है, अगर वह किसी मुसीबत में है, तो हमारा फर्ज बनता है उस की मदद करना.

आहिस्ताआहिस्ता 2 महीने बीत गए. एक दिन अचानक गीता का फोन आया, ‘‘मैडम, आप घर पर हैं क्या?’’ मैं ने कहा, ‘‘हां, घर पर ही हूं.’’ वह बोली, ‘‘अभी आई…’’ गैस पर चाय चढ़ा कर मैं गीता की कहानी सुनने के लिए खुद को तैयार करने लगी कि दरवाजे की घंटी बजी. गीता ही थी.  मैं ने पूछा, ‘‘कैसी हो अब?’’ ‘‘मैडम, तन के घाव तो ठीक हो गए, मन में जो पीड़ा और जलन है, उस का इलाज कैसे करूं?’’ मैं ने पानी और चाय पिला कर गीता को शांत करवाया. मैं ने भी चाय पी और कहा, ‘‘चल, अब दोनों शांति से बात करते हैं… बता?’’ गीता ने कहा, ‘‘मैडम, सब से पहले आप बताइए कि क्या सिर्फ पेट की भूख ही तन को जलाती है? जवान खून को तन की प्यास भी लगती है कि नहीं?

सैक्स के लिए शारीरिक जरूरत जितनी मर्दों को जलाती है, उतनी ही औरतों को भी जलाती है कि नहीं? शादी के बाद भी इस जोश का इलाज न हो, तो औरत को क्या करना चाहिए? ‘‘मैडम, मेरी शादी को 2 साल हो गए हैं, पर अभी तक कुंआरी हूं. मेरा पति संजय नामर्द है. आज तक उस ने मुझे छुआ तक नहीं. मेरे भीतर का जोश लावा की तरह धधक रहा है. अगर यही सब मर्द के साथ होता, तो अपनी जरूरत पूरी करने के लिए वह कहीं भी मुंह मारता कि नहीं? कौन इस तन की आग से बच पाया है.  ‘‘एक लड़की कितने सपने आंखों में भर कर शादी करती है.

पति के प्यार को तरसती है, पर मेरे नसीब खोटे कि मुझे एक ऐसा पति मिला, जो औरत की जिस्मानी जरूरत पूरी करने में नाकाम है.’’ मैं ने कहा, ‘‘गीता, तू इस बिना पर अपने पति से तलाक ले सकती है और दूसरी शादी कर सकती है.’’ गीता ने कहा, ‘‘मैडम, हमारे समाज में एक बार लड़की जिस घर में ब्याह दी जाती है, वहीं से उस की अर्थी उठती है. तलाकशुदा लड़की का पूरा समाज बहिष्कार करता है. मैडम, इसी नामर्द के साथ मुझे जिंदगी बितानी होगी. तिलतिल मरना होगा.

‘‘मेरे जेठजेठानी का कमरा हमारे कमरे के पास ही है. आधी रात तक उन दोनों के कमरे से आ रही प्यार की मदभरी आवाजें मेरे कानों में ऐसे चुभती हैं, जैसे धधकता लावा किसी ने मेरे कानों में उड़ेल दिया हो.  ‘‘जेठजी के बदन मसलने पर जेठानी के मुंह से निकलती आहें और सिसकियां मेरे भीतर हवस की ज्वाला भड़का देती हैं. मैं बेकाबू सी अपने पति से लिपट  कर उन को जोश में लाने की कोशिश करती हूं, पर उस ठंडे समंदर में उफान उठता ही नहीं.’’

आप को शायद पता होगा कि साहब जब आप को छेड़ते और शरारत करते थे, तब मैं चुपके से देखती थी. आप को देख कर मेरा भी मन करता कि कोई मुझे भी छेड़े, मुझे भी प्यार करे… ‘‘एक दिन मेरे ताऊ ससुर का लड़का वनराज घर आया था. एकदम बांका जवान. उस के गठीले बदन को देख कर मेरे भीतर खलबली मच गई. उस की नजर मेरे ऊपर पड़ते ही मैं ने होंठों  पर जीभ रगड़ कर अपनी प्यास जाहिर कर दी.  ‘‘फिर तो वह बारबार हमारे घर आने लगा. हम दोनों एकदूसरे को जीजान से चाहने लगे. एक दिन मेरी बूआ सास की लड़की की सगाई थी, तो घर के सारे लोग पड़ोस के गांव जा रहे थे. पर मैं पेटदर्द का बहाना बना कर घर पर ही रुक गई.  ‘‘फिर जैसे ही सब गए, मैं ने वनराज को अपने घर बुला लिया और उस दिन मैं ने अपने कुंआरेपन को वनराज को सौंप दिया.

‘‘मैं जानती हूं कि मैं ने गलत किया और शादीशुदा हो कर एक गैरमर्द के साथ रिश्ता बनाया, पर परंपरा के नाम पर अपने एहसासों का खून मुझे हरगिज मंजूर नहीं था.  ‘‘इस पूरे कांड में गलती सिर्फ मेरे पति संजय की थी, जिस ने जानबूझ कर मेरी जिंदगी खराब की, इसलिए मैं ने अपनी आग बुझाने का जो रास्ता सही लगा वह अपनाया. उस दिन मैं ने और वनराज ने जीभर कर एकदूसरे पर प्यार लुटाया. उस के बाद जब भी मौका मिलता, वनराज मेरी शारीरिक जरूरत पूरी कर देता. ‘‘मैडम, मैं ने सिर्फ सैक्स के लिए वनराज से रिश्ता नहीं बनाया, बल्कि  हम दोनों एकदूसरे से दिलोजान से प्यार करते हैं.

‘‘लेकिन, एक दिन मैं और वनराज घर की छत पर एकदूसरे के प्यार में पागल होते खो गए थे कि मेरे पति ने हमें ऐसी हालत में देख लिया. वह पास ही पड़ी लाठी उठा कर मुझे पीटने लगा, पर मैं दिलजली अधूरी प्यासी थी, इसलिए उस के हाथ से लाठी छीन कर मैं उस नामर्द पर ऐसे टूट पड़ी कि सारी हड्डियों का चूरमा बना दिया. अब आप ही बताइए कि मैं ने क्या गलत किया?’’ सारा किस्सा सुनने के बाद मुझे गीता किसी पहलू से गलत नहीं लगी, बस उस ने हालात को उलझा दिया था.

मैं ने गीता को समझाने की कोशिश की, ‘‘तुम और संजय आमनेसामने बैठ कर इस मसले का हल निकाल लो.’’ गीता ने कहा, ‘‘मैडम, अब जो भी अंजाम हो, पर मैं उस नामर्द के साथ एक दिन भी नहीं बिता सकती. कुछ भी कर के इस से छुटकारा पाना चाहती हूं और वनराज के साथ अपनी जिंदगी बिताना चाहती हूं. परिवार और समाज के डर से मुझे अपनी जिंदगी ढोनी नहीं, बल्कि जश्न सी जीनी है.’’ गीता की आंखों में प्यार की खुमारी और हिम्मत को देख कर मैं ने गीता की जगह खुद को रख कर देखा तो किसी पहलू से गीता मुझे गलत नहीं लगी.  मैं ने उस से कहा,

‘‘देखो, तुम गलत बिलकुल नहीं हो. प्यार और जंग में सब जायज है. शादी टूटने में हर बार औरत ही जिम्मेदार नहीं होती, बल्कि इस तरह थोपा गया रिश्ता टूट जाए वही सही है.’’ गीता मेरे गले लगते हुए बोली, ‘‘मेरी भावनाओं को समझने के लिए बहुतबहुत धन्यवाद मैडम. अब मुझ में हिम्मत आ गई है. मैडम, जब तक यह मामला सुलझ न जाए, तब तक शायद काम पर न आ सकूंगी, पर वादा करती हूं कि सब ठीक होते ही वापस काम पर लौट आऊंगी,’’

कह कर गीता चली गई. इस बात को 4-5 महीने हो गए थे. मैं तो गीता को भूलने भी लगी थी कि एक दिन अखबार में पढ़ा कि ‘एक शरीफ पति के हाथों गीता नाम की एक बदचलन औरत का कत्ल’.  मैं ने तसवीरें ध्यान से देखीं और मन ही मन बोली कि यह तो मेरी वाली  गीता है.  मैं तुरंत उस अखबार के दफ्तर गई और संपादक को सारी सचाई बता कर कहा,

‘‘कल के अखबार में अब वही छपेगा, जो अब मैं कहने जा रही हूं…’’ दूसरे दिन उस अखबार में खबर थी कि ‘कल वाले मर्डर केस में एक सनसनीखेज खुलासा. एक नामर्द पति के हाथों गीता नाम की मासूम और शादी के नाम पर छली गई औरत की हत्या.’  यह पढ़ कर मुझे संतोष मिला. मैं सोचने लगी, ‘पाखंडी समाज में न जाने ऐसी कितनी गीताएं दूसरे की गलती के चलते बलि चढ़ जाती होंगी. सहना सिर्फ औरतों के हिस्से ही क्यों आता है?’ इतने में पतिदेव ने चुटकी बजाते हुए मेरे खयालों की डोर तोड़ते हुए कहा, ‘‘हैलो बीवी, एक कप चाय मिलेगी क्या?’’ मैं मुसकराते हुए अभिराज के गले लग गई.

हिजाब : क्या बंदिशों को तोड़ पाई चिलमन?

‘‘आपा,दरवाजा बंद कर लो, मैं निकल रही हूं. और हां, आज आने में थोड़ी देर हो सकती है. स्कूटी सर्विसिंग के लिए दूंगी.’’

‘‘अब्बा ने निगम का टैक्स भरने को भी तो दिया था. उस का क्या करेगी?’’

‘‘भर दूंगी… और भी कई काम हैं. रियाद और शिगुफ्ता की शादी की सालगिरह का गिफ्ट भी ले लूंगी.’’

‘‘ठीक है, जो भी हो, जल्दी आना. 2 घंटे में आ जाना. ज्यादा देर न हो,’’ कह आपा ने दरवाजा बंद कर लिया.

मैं अब गिने हुए चंद घंटों के लिए पूरी तरह आजाद थी. जब भी घर से निकलती हूं मेरी हाथों में घड़ी की सूईयां पकड़ा दी जाती हैं. ये सूईयां मेरे जेहन को वक्तवक्त पर वक्त का आगाह कराती बेधती हैं- अपराधबोध से, औरत हो कर खतरों के बीच घूमने के डर से, खानदान की नाक की ऊंचाई कम हो जाने के खतरे से और मैं दौड़ती होती हूं काम निबटा कर जल्दी दरवाजे के अंदर हो जाने को.

किन दिमागी खुराफातों में उलझा दिया मैं ने… इतने बगावती तेवर तो हिजाब की तौहीन हैं. खैर, क्यों न इन चंद घंटों में लगे हाथ अपने घर वालों से भी रूबरू करा दूं.

तो हम कानपुर के बाशिंदे हैं. मेरे अब्बा होम्योपैथी के डाक्टर हैं. 70 की उम्र में भी उन की प्रैक्टिस अच्छी चल रही है. मेरे वालिदान अपनी बिरादरी के हिसाब से बड़े खुले दिलोदिमाग वाले हैं, ऐसा कहा जाता है.

6 बहनों में मैं सब से छोटी. मैं ने माइक्रोबायोलौजी में एमएससी की है. मेरी सारी बहनों को भी अच्छी तालीम की छूट दी गई थी और वे भी बड़ी डिगरियां हासिल करने में कामयाब हुईं. हमें याद है हम सारी बहनें बढि़या रिजल्ट लाने के लिए कितनी जीतोड़ मेहनत करती थीं और पढ़ने से आगे कैरियर भी मेरे लिए माने रखता ही था. मुझे एक प्राइवेट संस्थान में अच्छी सैलरी पर लैक्चरर की जौब मिल रही थी. लेकिन यह बात मेरे अब्बा की खींची गई आजादी की लकीर से उस पार की हो जाती थी.

साहिबा आपा को छोड़ वैसे तो मेरी सारी बहनों ने ऊंची डिगरियां हासिल की थीं, लेकिन दीगर बात यह भी थी कि अब वे सारी अपनीअपनी ससुराल की मोटीतगड़ी चौखट के अंदर बुरके में कैद थीं. हां, मेरे हिसाब से कैद ही. उन्होंने अपने सर्टिफिकेट को दिमाग के जंग लगे कबूलनामे के बक्से में बंद कर राजीखुशी ताउम्र इस तरह बसर करने का अलिखित हुक्म मान लिया था.

वे उन गलतियों के लिए शौक से शौहर की डांट खातीं, जिन्हें उन के शौहर भी अकसर सरेआम किया करते. वे सारी खायतों को आंख मूंद कर मानतीं और लगे हाथों मुझे मेरे तेवर पर कोसती रहतीं.

वालिदान के घर मैं और सब से बड़ी आपा रहती थीं. बाकी मेरी 4 बहनों की कानपुर के आसपास ही शादी हुई थी. ये सभी बहनें पढ़ीलिखी होने के साथसाथ बाहरी कामकाज में भी स्मार्ट थीं. वैसे अब ये बातें बेजा थीं, ससुराली कायदों के खिलाफ थीं. सब से बड़ी आपा साहिबा की शादी कम उम्र में ही हो गई थी. उन का पढ़ाई में मन नहीं था और शादी के लिए वे तैयार थीं.

बाद के कुछ सालों में उन का तलाक हो गया और वे अपने बेटे रियाद के साथ हमारे पास रहने आ गईं. मेरी दूसरी आपा जीनत की शादी पड़ोस के गांव में हुई थी. उन की बेटी शिगुफ्ता की अच्छी तालीम के लिए अब्बा ने अपने पास रखा. उम्र बढ़ने के साथ रियाद और शिगुफ्ता के बीच ‘गुल गुलशन गुलफाम’ होने लगे तो इन लोगों की शादी पक्की कर दी गई.

अब्बा के बनाए घर में हम सब बड़े प्रेम से रहते थे. हां, प्रेम के बाड़े के अंदर उठापटक तब होती जब अब्बा की दी गई आजादी के निशान से हमारे कदम कुछ कमज्यादा हो जाते.

घर में पूरी तरह इसलामी कानून लागू था. बावजूद इस के अब्बा कुछ हद तक अपने खुले विचारों के लिए जाने जाते थे. मगर यह ‘हद’ जिस से अब मेरा ही हर वक्त वास्ता पड़ता मेरे लिए कोफ्त का सबब बन गया था. मैं चिढ़ी सी रहती कि मैं क्यों न अपनी तालीम को अपनी कामयाबी का जरीया बनाऊं? क्यों वालिदान का घर संभालते ही मैं जाया हो जाऊं?

सारे काम निबटा कर रियाद और शिगुफ्ता के तोहफे ले कर मैं जब अपनी स्कूटी सर्विसिंग में देने पहुंची तो 4 बजने में कुछ ही मिनट बाकी थे. मन में बुरे खयालात आने लगे… घर में फिर वही बेबात की बातें… दिमाग गरम…

मैं स्कूटी दे कर जल्दी सड़क पर आई और औटो का इंतजार करने लगी. अभी औटो के इंतजार में बेचैन ही हो रही थी कि पास खड़ी एक दुबलीपतली सांवली सामान्य से कुछ ऊंची हाइट की लड़की विचित्र स्थिति से जूझती मिली. उस की तुलना में उस की भारीभरकम ड्युऐट ने उसे खासा परेशान किया हुए था.

सर्विस सैंटर के सामने उस की गाड़ी सड़क से उतर गई थी और वह उसे खींच कर सड़क पर उठाने की कोशिश में अपनी ताकत जाया कर रही थी. हाइट वैसे मेरी उस से भले ही कुछ कम थी, लेकिन अपनी बाजुओं की ताकत का जायजा लिया मैं ने तो वे उस से 20 ही लगीं मुझे. मैं ने पीछे से उस की गाड़ी को एक झटके में यों धक्का दिया कि गाड़ी आसानी से सड़क पर आ गई. पीछे से अचानक मिल गई इस आसान राहत पर उसे बड़ी हैरानी हुई. उस ने पीछे मुड़ कर मुझे देख मुझ पर अपनी सवालिया नजर रख दी.

मैं ने मुस्करा कर उस का अभिवादन किया. बदले में उस सलोनी सी लड़की ने मुझ पर प्यारी सी मुसकान डाली. मैं पढ़ाई पूरी कर के 3 सालों से घर में बैठी हूं, मेरी उम्र 26 की हो रही. उस की भी कोई यही होगी. उस की शुक्रियाअदायगी से अचानक ऐसा लगा मुझे जैसे कभी हम मिली थीं.

मेरी उम्मीद से आगे उस ने मुझ से पूछ लिया कि मैं कहां जा रही हूं. वह मुझे मेरी मंजिल तक छोड़ सकती है. तब तक औटो को मैं ने रोक लिया था, इसलिए उसे मना करना पड़ा. हां, वह मुझे बड़ी प्यारी लगी थी, इसीलिए मैं ने उस से उस का फोन नंबर मांग लिया.

औटो में बैठ कर मैं उस सलोनी लड़की के बारे में ही सोचती रही…

वह नयनिका थी. छोटीछोटी आंखें, छोटी सी नाक पर मासूम सी सूरत. सांवली त्वचा निखरी ऐसी जैसे चमक शांति और बुद्धि की हो. बारबार मेरे जेहन में एहसास जगता रहा कि इसे मैं कहीं मिली हूं, लेकिन वे पल मुझे याद नहीं आए.

शाम को 4 बजे तक घर लौट आने का हुक्मनामा साथ ले गई थी, लेकिन अब 6 बजने में कुछ ही मिनटों का फासला था.

सूर्य का दरवाजा बंद होते ही एक लड़की बाहर महफूज नहीं रह सकती या तो बेवफाई की कालिख या फिर बिरादरी वालों की तोहमत अथवा औरत पर मंडराता जनूनी काला साया.

कहते हैं हिजाब हट रहा है. हिजाब तो समाज के दिमाग पर पड़ा है. समाज की सोच हिजाब के पीछे चेहरा छिपाए खड़ी है… वह रोशनी से खौफ खाती है. जब तक उस हिजाब को नहीं हटाओगे औरतों के हिजाब हट भी गए तो क्या?

अब्बा अम्मी पर बरस रहे थे, ‘‘लड़की जात को ज्यादा पढ़ालिखा देने से

यही होता है. मैं ही कमअक्ल था जो अपनी बिरादरी के उसूलों के खिलाफ जा कर लड़कियों को इतना पढ़ा डाला.. पैर मैं चटके बांध दिए… उस की सभी बहनें खानदान के रिवाजों की कद्र करते चल रही हैं… उन की कौन सी बेइज्जती हो रही है? वे तो किसी बात का मलाल नहीं करतीं… और इस छोटी चिलमन का यह हाल क्यों? मैं कहे देता हूं, वह कितना भी रोक ले, वाकर अली से उसे निकाह पढ़ना ही है. उस के आपा के बेटेबेटियों की शादी हो गई और यह अभी तक…

‘‘कैरियर बनाएगी… और क्या बनाएगी? इतना पढ़ा दिया… बिन बुरके यूनिवर्सिटी जाती रही… अब भी बुरका नहीं पहनती. मैं भी कुछ कहता नहीं… चलो जमाने के हिसाब से हम भी उसे छूट दें, लेकिन यह तो किसी को कुछ मानना ही नहीं चाहती?’’

अब्बा की पीठ दरवाजे की तरफ थी.

उन्होंने देखा नहीं मुझे. वैसे मुझे और उन्हें इस से फर्क भी नहीं पड़ने वाला था. मुझे जितनी आजादी थमाई गई थी, उस का सारा रस बारबार निचोड़ लिया जाता था और मैं सूखे हुए चारे की जुगाली करती जाती थी. वैसे मेरा मानना तो यह था कि जो दी गई हो वह आजादी कहां? मेरी शादी मेरे खाला के बेटे से तय करने की पहल चल रही थी.

वाकर अली नाम था उस का. वह मैट्रिक पास था. अपनी बैग्स की दुकान थी.

दिनरात एक कर के ईमानदारी से कमाई गई मेरी माइक्रोबायोलौजी की एमएससी की डिगरी चुल्लू भर पानी मांग रही थी डूब मरने को… और घर वाले मेरी बहनों का नाम गिना रहे थे. कैसे

वे ऊंची डिगरियां ले कर भी कम पढ़ेलिखे बिजनैस और खेती करने वाले पतियों से बाखुशी निभा रही हैं… वाकई मैं घर वालों की नजरों में उन बहनों जैसी अक्लमंद, गैरतमंद और धीरज वाली नहीं थी.

वाकर अली आज मुझे देखने आया. वैसे देखा मैं ने उसे ज्यादा… मुझ जैसी हाइट 5 फुट

5 इंच से ज्यादा नहीं होगी. सामान्य शक्लसूरत वैसे इस की कोई बात नहीं थी, लेकिन जो बात हुई वह तो जरूर कोई बात थी.

वकौल वाकर अली, ‘‘घर पर रह लेंगी न? हमारे यहां शादी के बाद औरत को घर से बाहर अकेले घूमते रहने की इजाजत नहीं होती… और आप को बुरके की आदत डाल लेनी होगी. आप को बिरादरी का खयाल रखना चाहिए था.’’

मैं अब्बा की इज्जत का खयाल कर चुप रही. मगर मैं चुप नहीं थी. सोच रही थी कि ये इजाजत देने वाले क्याक्या सोच कर इजाजत देते हैं.जेहन में सवाल थे कि क्या क्या फायदा होता है अगर आप के घर लड़कियां शादी बाद घर से अकेले नहीं निकलें या क्या नुकसान हो जाता है अगर निकलें तो? क्या बीवी पर भरोसे की कमी है या मर्दजात पर…

खानदानी आबरू के नाम पर काले सायों से ढकी रहने वाली औरतों की इज्जत घर में कितनी महफूज है?

वाकर अली मेरे अब्बा की तरह ही कई सारे कानून मुझ पर थोप कर चला गया कि अगर राजी रहूं तो अब्बा उस से बात आगे बढ़ाएं.

अब्बा तो जैसे इस बंदे के गले में मुझे बांधने को बेताब हुए जा रहे थे. घर में 2 दिन से इस बात पर बहस छिड़ी थी कि आखिर मुझे उस आदमी से दिक्कत क्या है? एक जोरू को चाहिए क्या- अपना घरबार, दुकान इतना कमाऊ पति, गाड़ी, काम लेने को घर में 2-3 मददगार हमेशा हाजिर… क्या बताऊं, क्या नहीं चाहिए मुझे? मुझे तो ये सब चाहिए ही नहीं.

मैं ने सोचा एक बार साहिबा आपा से बात की जाए. दीदी हैं कुछ तो समझेंगी मुझे. अभी मैं सोच कर अपने बिस्तर से उठी ही थी कि साहिबा आपा मेरे कमरे का दरवाजा ठेल अंदर आ गईं. बिना किसी लागलपेट के मैं ने कहा, ‘‘आपा, मैं परेशान हूं आप से बात करने को…’’

बीच में टोक दिया आपा ने, ‘‘हम सब भी परेशान हैं… आखिर तू निकाह क्यों नहीं करना चाहती? वाकर अली किस लिहाज से बुरा है?’’

‘‘पर वही क्यों?’’

‘‘हां, वही क्योंकि वह हमारी जिन जरूरतों का खयाल रख रहा है उन का और कोई नहीं रखेगा.’’

मैं उत्सुक हो उठी थी, ‘‘क्या? कैसी मदद?’’

‘‘वह तुझे बुटीक खुलवा देगा, तू घर पर ही रह कर कारीगरों से काम करवा कर पैसा कमाएगी.’’

‘‘पर सिर्फ पैसा कमाना मेरा मकसद नहीं… मैं ने जो पढ़ा वह शौक से पढ़ा… उस डिगरी को बक्से में बंद ही रख दूं?’’

‘‘बड़ी जिद्दी है तू!’’

‘‘हां, हूं… अगर मैं कुछ काम करूंगी तो अपनी पसंद का वरना कुछ नहीं.’’

‘‘निकाह भी नहीं?’’

‘‘जब मुझे खुद कोई पसंद आएगा तब.’’

साहिबा आपा गुस्से में पैर पटकती चली गईं. मैं सोच में पड़ गई कि वाकर अली से ब्याह कराने का बस इतना ही मकसद है कि वह मुझे बुटीक खुलवा देगा. वह बुटीक न भी खुलवाए तो इन लोगों को क्या? बात कुछ हजम नहीं हो रही थी. मन बहुत उलझन में था.

बिस्तर पर करवटें बदलते मेरा ध्यान पुरानी बातों और पुराने दिनों पर चला गया.

अचानक नयनिका याद आ गई. फिर मैं उसे पुराने किसी दिन से मिलान करने की कोशिश करने लगी. अचानक जैसे घुप्प अंधेरे में रोशनी जल उठी…

अरे, यह तो 5वीं कक्षा तक साथ पढ़ी नयना लग रही है… हो न हो वही है… अलग सैक्शन में थी, लेकिन कई बार हम ने साथ खेल भी खेले. उस की दूसरी पक्की सहेलियां उसे नयना बुलाती थीं और इसीलिए हमें भी इसी नाम का पता था. वह मुझे बिलकुल भी नहीं समझ पाई थी. ठीक ही है…

16-17 साल पुरानी सूरत आसान नहीं था समझना. रात के 12 बजने को थे. सोचा उसे एक मैसेज भेज रखूं. अगर कहीं वह देख ले तो उस से बात करूं. संदेश उस ने कुछ ही देर में देख लिया और मुझे फोन किया.

बातों का सिलसिला शुरू हो कर हम ज्यों 5वीं क्लास तक पहुंचे हमारी घनिष्ठता गहरी होती गई. जल्दी मिलने का तय कर हम ने फोन रखा तो बहुत हद तक मैं शांत महसूस कर रही थी.

कुछ ही मुलाकातों में विचारों और भावनाओं के स्तर पर मैं खुद को नयनिका के करीब पा रही थी. वह सरल, सभ्य शालीन और कम बोलने वाली लड़की थी. बिना किसी ऊपरी पौलिश के एकदम सहज. उस के घर में पिता सरकारी अफसर थे और बड़ा भाई सिविल इंजीनियर. मां भी काफी पढ़ीलिखी महिला थीं, लेकिन घर की साजसंभाल में ही व्यस्त रहतीं.

नयनिका कानपुर आईआईटी से ऐरोस्पेस इंजीनियरिंग में डिगरी हासिल कर के अब पायलट बनने की नई इबारत लिख रही थी.

इतनी दूर तक उस की जिंदगी भले ही समतल जमीन पर चलती दिख रही हो, लेकिन उस की जिंदगी की उठापटक से मैं भी दूर नहीं रह पा रही थी.

इधर मेरे घर पर अचानक अब्बा अब वाकर अली से निकाह के लिए जोर देने के साथसाथ बुटीक खोल लेने की बात मान लेने को ले कर मुझ से लड़ने लगे थे. साथ कभीकभार अम्मी भी बोल पड़तीं. हां, आपा सीधे तो कुछ नहीं कहतीं, लेकिन उन का मुझ से खफा रहना मैं साफ समझती थी. अब तो रियाद और शिगुफ्ता भी बुटीक की बात को ले कर मुझ से खफा रहने लगे थे. अलबत्ता निकाह की बात पर वे कुछ न कहते. मैं बड़ी हैरत में थी. दिनोदिन घर का माहौल कसैला होता जा रहा था. आखिर बात थी क्या? मुझे भी जानने की जिद ठन गई.

साहिबा आपा से पूछने की मैं सोच ही रही थी कि रात को किचन समेटते वक्त बगल के कमरे से अब्बा की किसी से बातचीत सुनाई पड़ी. अब्बा के शब्द धीरेधीरे हथौड़ा बन मेरे कानों में पड़ने लगे.

अच्छा, तो यह वाकर अली था फोन पर.

रियाद की प्राइवेट कंपनी में घाटा होने की वजह से उस के सिर पर छंटनी की तलवार लटक रही थी. इधर शिगुफ्ता को बुटीक का काम अच्छा आता था. रियाद और शिगुफ्ता के लिए एक विकल्प की तलाश थी. मुझ से बुटीक खुलवाना. लगे हाथ मेरे हाथ पीले हो जाएं… रियाद और शिगुफ्ता को मेरे नाम से बुटीक मिल जाए… मालिकाना हक रियाद और शिगुफ्ता का रहे, लेकिन मेरा नाम आगे कर के कामगारों से काम लेने का जिम्मा मेरा रहे. शिगुफ्ता को जब फुरसत मिले वह बुटीक जाए.

मैं रात को साहिबा आपा के पास जा बैठी… कहीं उन का मन मेरे लिए पसीजे. मगर वे लगीं उलटा मुझे समझाने, ‘‘वाकर तो अपनी खाला का बेटा है. गैर थोड़े ही है. पहली बीवी बेचारी मर गई थी… दूसरी भी तलाक के बाद चली गई… 38 का जवान जहान लड़का… क्यों न उस का घर बस जाए? शादी तो तुझे करनी ही है… कहीं तेरी शादी से मेरे बच्चों का जरा भला न हो जाए वह तुझे फूटी आंख नहीं सुहा रहा न?’’

‘‘अब आगे इन के बच्चे होंगे, हमारा घर छोटा पड़ेगा… इन का कारोबार जम जाए तो ये फ्लैट ले लें… यहां भी जगह बने. अब्बा फिर इस घर को बड़ा करवा कर किराए पर चढ़ाएं तो हमें भी कुछ आमदनी हो.’’

‘‘घर तोड़ेंगे क्या अब्बा… किस का कमरा?’’

‘‘किस का क्या बाहर वाला?’’

‘‘पर वह तो मेरा कमरा है?’’

‘‘तो तू कौन सी घर में रह जाएगी… वाकर के घर चली तो जाएगी ही न? जरा घर वालों का भी सोच चिलमन.’’

‘‘क्या मतलब? सुबह से ले कर रात तक सब की सेवा में लगी रहती हूं… और क्या सोचूं?’’

‘‘कमाल है… तुझे बिना बुरके के आनेजाने, घूमनेफिरने की आजादी दी गई है… और क्या चाहिए तुझे?’’

हताश हो कर मैं आपा के कमरे से अपने कमरे में बिस्तर पर आ कर लेट गई… सच मैं क्या चाहती हूं? क्या चाहना चाहिए मुझे? एक औरत को खुद के बारे में कभी सोचना नहीं है, यही सीख है परिवार और समाज की?

मुझे एक दोस्त की बेहद जरूरत थी. नयनिका से मिलतेमिलाते सालभर होने को था. बचपन का सूत्र कहूं या हम दोनों की सोच की समानता दोनों ही एकदूसरे की दोस्ती में गहरे उतर रहे थे.

मैं जिस वक्त उस के घर गई वह अपनी पढ़ाई की तैयारी में व्यस्त थी. नयनिका कमर्शियल पायलट के लाइसैंस के लिए तैयारी कर रही थी. हम दोनों उस के बगीचे में आ गए थे. रंगबिरंगे फूलों के बीच जब हम जा बैठे तो कुछ और करीबियां हमारे पास सिमट आईं. उस की आंखों में छिपा दर्द शायद मुझे अपना हाल सुनाने को बेताब था. शायद मैं भी. बरदाश्त की वह लकीर जब तक अंगारा नहीं बन जाती, हम उसे पार करना नहीं चाहतीं, हम अपने प्रियजनों के खिलाफ जल्दी कुछ बुरा कहना-सुनना भी नहीं चाहते.

मैं ने उस से पूछा, ‘‘उदास क्यों रहती हो हमेशा? तैयारी तो अच्छी चल रही न?’’

उस ने कहा, ‘‘कारण है, तभी तो उदास हूं… कमर्शियल पायलट बनने की कामयाबी मिल भी जाए तो हजारों रुपए लगेंगे इस की ट्रेनिंग में जाने को. बड़े भैया ने तो आदेश जारी कर दिया है कि बहुत हो गया, हवा में उड़ना… अब घरगृहस्थी में मन रमाओ.’’

‘‘हूं, दिक्कत तो है… फिर कर लो शादी.’’

‘‘क्यों, तुम मान रही हो वाकर से शादी और बुटीक की बात? वह तुम्हारे

हिसाब से, तुम्हारी मरजी से अलग है… अमेरिका में हर महीने लाखों कमाने वाले खूबसूरत इंजीनियर से शादी वैसे ही मेरी मंजिल नहीं. जो मैं बनना चाहती हूं, वह बनने न देना और सब की मरजी पर कुरबान हो जाना… यह इसलिए कि एक स्त्री की स्वतंत्रता मात्र उस के सिंदूर, कंगन और घूमनेफिरने के लिए दी गई छूट या रहने को मिली छत पर ही आ कर खत्म हो जाती है.’’

‘‘वाकई तुम प्लेन उड़ा लोगी,’’

मैं मुसकराई.

वह अब भी गंभीर थी. पूछा, ‘‘क्यों? अच्छेअच्छे उड़ जाएंगे, प्लेन क्या चीज है,’’ वह उदासी में भी मुसकरा पड़ी.

‘‘क्या करना चाहती हो आगे?’’

‘‘कमर्शियल पायलट का लाइसैंस मिल जाए तो मल्टीइंजिन ट्रैनिंग के लिए न्यूजीलैंड जाना चाहती हूं. पापा किसी तरह मान भी जाएं तो भैया यह नहीं होने देंगे.’’

‘‘क्यों, उन्हें इतनी भी क्या दिक्कत?’’

‘‘वे एक सामान्य इंजीनियर मैं कमर्शियल पायलट… एक स्त्री हो कर उन से ज्यादा डेयरिंग काम करूं… रिश्तेदारों और समाज में चर्चा का विषय बनूं? बड़ा भाई क्यों पायलट नहीं बन सका? आदि सवाल न उठ खड़े हों… दूसरी बात यह है कि अमेरिका में उन का दोस्त इंजीनियर है. अगर मैं उस दोस्त से शादी कर लूं तो वह अपनी पहचान से भैया को अमेरिका में अच्छी कंपनी में जौब दिलवाने में मदद करेगा. तीसरी बात यह है कि इन की बहन को मेरे भैया पसंद करते हैं और शादी करना चाहते हैं, जो अभी अमेरिका में ही जौब कर रही है.’’

‘‘उफ, बड़ी टेढ़ी खीर है,’’ मैं बोल पड़ी.

‘‘सब सधे लोग हैं… पक्के व्यवसायी… मैं तो उस दोस्त को पसंद भी नहीं करती और न ही वह मुझे.’’

‘‘हम ही नहीं सीख पा रहे दुनियादारी.’’

‘‘सीखना पड़ेगा चिलमन… लोग हम जैसों के सिर पर पैर रख सीढि़यां चढ़ते रहेंगे… हम आंसुओं पर लंबीलंबी शायरियां लिख उन पन्नों को रूह की आग में जलाते जाएंगे.’’

‘‘तुम्हें मिलाऊंगी अर्क से… आने ही वाला है… शाम को उस के साथ मुझे डिनर पर जाना पड़ेगा… भैया का आदेश है,’’ नयनिका उदास सी बोली जा रही थी.

मैं अब यहां से निकलने की जल्दी में थी. मेरी मोहलत भी खत्म होने को आई थी.

‘ये सख्श कौन? अर्क साहब तो नहीं? फुरसत से बनाया है बनाने वाले ने,’ मैं मन ही मन अनायास सोचती चली गई.

अर्क ही थे महाशय. 5 फुट 10 इंच लंबे, गेहुंए रंग में निखरे… वाकई खूबसूरत नौजवान. उन्हें देखते मैं पहली बार छुईमुई सी हया बन गई… न जाने क्यों उन से नजरें मिलीं नहीं कि चिलमन खुद आंखों में शरमा कर पलकों के अंदर सिमट गई.

अर्क साहब मेरे चेहरे पर नजर रख खड़े हो गए. फिर नयनिका की ओर मुखाबित हुए, ‘‘ये नई मुहतरमा कौन?’’

‘‘चिलमन, मेरी बचपन की सहेली.’’

अर्क साहब ने हाथ मिलाने को मेरी ओर हाथ बढ़ाया. मैं ने हाथ तो मिलाया, पर फिर घर वालों की याद आते ही मैं असहज हो गई. मैं ने जोर दे कर कहा, ‘‘मैं चलूंगी.’’

नयनिका समझ रही थी, बोली, ‘‘हां, तुम निकलो.’’

अर्क मुझ पर छा गए थे. मैं नयनिका से मन ही मन माफी मांग रही थी, लेकिन इस अनजाने से एहसास को जाने क्यों अब रोक पाना संभव नहीं था मेरे लिए.

कुछ दिनों बाद नयनिका ने खुशखबरी सुनाई. उस की लड़ाई कामयाब हुई थी… उसे मल्टी इंजिन ट्रेनिंग के लिए राज्य सरकार के खर्चे पर न्यूजीलैंड भेजा जाना था.

इस खुशी में उस ने मुझे रात होटल में डिनर पर बुलाया.

उस की इस खबर ने मुझ में न सिर्फ उम्मीद की किरण जगाई, बल्कि काफी हिम्मत भी दे गई. मैं ने भी आरपार की लड़ाई में उतर जाने को मन बना लिया.

होटल में अर्क को देख मैं अवाक थी और नहीं भी.

हलकेफुलके खुशीभरी माहौल में नयनिका ने मुझ से कहा, ‘‘तुम दोनों को यहां साथ बुलाने का मेरा एक मकसद है. अर्क और तुम्हारी बातों से मैं समझने लगी हूं कि यकीनन तुम दोनों एकदूसरे को पसंद करते हो वरना अर्क माफी मांगते हुए तुम्हारे मोबाइल नंबर मुझ से न मांगते… चिलमन, अर्क जानते हैं मैं किस मिट्टी की बनी हूं… यह घरगृहस्थी का तामझाम मेरे बस का नहीं है… सब लोग एक ही सांचे में नहीं ढल सकते… मैं अभी न्यूजीलैंड चली जाऊंगी, फिर आते ही पायलट के काम में समर्पण. चिलमन तुम अर्क से आज ही अपने मन की बात कह दो.’’

अर्क खुशी से सुर्ख हो रहे थे. बोले, ‘‘अरे, ऐसा है क्या? मैं तो सोच रहा था कि मैं अकेला ही जी जला रहा हूं.’’

कुछ देर चुप रहने के बाद अर्क फिर बोले, ‘‘नयनिका के पास बड़े मकसद हैं.’’

मेरे मुंह से अचानक निकला, ‘‘मेरे पास भी थे.’’

‘‘तो बताइए न मुझे.’’

नयनिका ने कहा, ‘‘जाओ उस कोने वाली टेबल पर और औपचारिकता छोड़ कर बातें कर लो.’’

अर्क ने पूरी सचाई के साथ मेरा हाथ थाम लिया था… विदेश जा कर मेरे कैरियर को नई ऊंचाई देने का मुझ से वादा किया.

इधर शादी के मामले में अर्क ने नयनिका के घर वालों का भी मोरचा संभाला.

अब थी मेरी बारी. अर्क का साथ मिल गया तो मुझे राह दिख गई.

घर से निकलते वक्त मन भारी जरूर था, लेकिन अब डर, बेचारगी की जंजीरों से अपने पैर छुड़ाने जरूरी हो गए थे.

कानपुर से दिल्ली की फ्लाइट पकड़ी हम ने. फिर वक्त से अमेरिकन एयरवेज में दाखिल हो गए.

साहिबा आपा को फोन से सूचना दे दी कि अर्क के साथ मैं अपनी नई जिंदगी शुरू करने अमेरिका जा रही हूं. वहां माइक्रोबायोलौजी ले कर काम करूंगी और अर्क को खुश रखूंगी.’’

साहिबा आपा जैसे आसमान से गिरी हों. हकला कर पूछा, ‘‘यह क्या है?’’

हमारी आजादी हिजाब हटनेभर से नहीं है आपा… हमारी आजादी में एक उड़ान होनी चाहिए.

आपा के फोन रख देने भर से हमारी आजादी की नई दास्तां शुरू हो गई थी.

जूलियट की अनोखी मुहब्बत : कैसे प्यार में पड़ा जय

जय अपने घूमनेफिरने के शौक को पूरा करने के लिए गाइड बन गया था. उस ने इतिहास औनर्स से ग्रेजुएशन की थी. उस के पास अपने पुरखों की खूब सारी दौलत थी.

जय के पिता एक किसान थे. पूरे इलाके में सब से ज्यादा जमीन उन्हीं के पास थी. उन्होंने खेती की देखभाल के लिए नौकर रखे हुए थे. जय 3 बहनों में अकेला भाई था. तीनों बहनों की नामी खानदान में शादी हुई थी. जय की मां एक घरेलू औरत थी.

भारत के बहुत से ऐतिहासिक पर्यटक  स्थलों के मुलाजिम, वहां के दुकानदार और तमाम लोग जय को पहचानते थे. इस बार जय गाइड के रूप में बोधगया  गया हुआ था. विदेशी पर्यटकों में उस की मुलाकात जूलियट और उस की मां से हुई.

जूलियट की उम्र 19 साल थी. वह अपनी मां के साथ ताजमहल देखने आई थी. जूलियट और उस की मां को जय का जानकारी देने का तरीका बहुत पसंद आता है, इसलिए उन्होंने उसे अपना पर्सनल गाइड बना लिया. पहली ही नजर में जूलियट को जय का कसरती बदन भा गया और वह उस के तीखे नैननक्श पर फिदा हो गई. जय दोपहर के भोजन के लिए भारतीय व्यंजन खिलाने के लिए उन्हें एक होटल में ले गया. जूलियट को खाना इतना तीखा लगा कि उस ने पानी पीने की जल्दी में गरमगरम सब्जी जय के ऊपर गिरा दी और फिर अपने रूमाल से बड़े प्यार और अपनेपन से साफ किया. अब जय भी जूलियट की तरफ खिंचने लगा.

जूलियट और उस की मां की ताजमहल देखने की बहुत इच्छा थी और जय का गांव आगरा में ताजमहल के पास ही था. बोधगया और एयरपोर्ट के रास्ते के बीच में बड़ी नदी पड़ती थी. बारिश की वजह से नदी अपने उफान पर थी. जय के बारबार मना करने के बावजूद नाविक ने ज्यादा मुसाफिर अपनी नाव में बिठा लिए. नाव बीच नदी में जा कर अपना कंट्रोल खोने लगी और नदी में पलट गई. इस वजह से बहुत से लोगों की जानें चली गईं.

इस भयानक हादसे का जूलियट की मां पर बहुत बुरा असर पड़ा और उन्होंने उसी समय अपने देश लौट जाने का फैसला ले लिया. पर इस हादसे के बाद जय जूलियट की निगाह में उस का असली हीरो बन गया. वह उसे मन ही मन अपना सबकुछ मानने लगी और उस की दीवानी हो गई. पर मां की जिद के आगे झुक कर जूलियट को वापस अपने देश लौट जाना पड़ा. पर अपने घर लौटने के बाद भी जूलियट दिन में एक बार जय को फोन जरूर करती थी.

एक रात जय अपने घर की छत पर बैठा हुआ था. गुलाबी मौसम था. जय की छत पर गमलों में फूलों के पौधे लगे हुए थे. उन फूलों की खुशबू चारों तरफ फैल रही थी. उसी समय जूलियट का फोन आ गया. उस दिन जय सुबह से ही रोमांटिक था. वह फोन पर जूलियट के बालों, होंठों और रंगरूप की बहुत तारीफ करने लगा और फिर हिम्मत कर के अपने प्यार का इजहार कर दिया.

जूलियट तो प्यार के ये खूबसूरत शब्द सुनने के लिए कब से बेकरार थी. वह बिना सोचेसमझे जय के प्रस्ताव को अपना लेती है. फिर उन दोनों के प्यार का सिलसिला फोन पर शुरू हो जाता है. दोनों रोजाना फोन पर घंटों प्यार की बातें किया करते थे. उन्हीं दिनों एक बड़े घर से जय की शादी का रिश्ता आया. जय के ससुर ने जय के पिताजी से यह वादा किया था कि जय की शादी के बाद वे आगरा शहर की 10,000 गज जमीन जय के नाम कर देंगे.

जय जूलियट से प्यार करता था और उसी से शादी करना चाहता था, इसलिए उस ने शादी से साफ इनकार कर दिया. इस बात से नाराज जय के पिताजी ने परिवार वालों को अपना घर छोड़ने की धमकी दी, इसलिए जय की मां और तीनों बहनें बहुत घबरा गईं और उन्होंने जय पर दबाव डाल कर उसे शादी करने के लिए मजबूर कर लिया.

जय ने उन के प्यार और दुख को समझ कर अपना मन मार कर हां कह दी, पर जूलियट और अपने संबंध के बारे में अपनी मां और बहनों को भी बता दिया, फिर फोन कर के जूलियट को अपने घर की सारी समस्या समझा दी. जय का फोन सुनने के बाद जूलियट ने अपनी मां को बताया कि वह जय से बहुत प्यार करती है और वह उसी समय भारत आने का फैसला लेती है.

जय जूलियट और उस की मां को एयरपोर्ट से सीधे अपने घर ले कर आया. वहां उस की शादी की तैयारियां बहुत जोरशोर से चल रही थीं. शादी बहुत धूमधाम और शानोशौकत से होने वाली थी.

जूलियट से मिलने के बाद जय की मां और उस की तीनों बहनों को जूलियट का स्वभाव इतना मीठा और सुंदर लगा कि वे भी जूलियट को पसंद करने लगीं. जय के पिता को भी जूलियट बहुत अच्छी लड़की लगी. शादी के रीतिरिवाज शुरू हो गए थे. जूलियट को हलदी और गीतों की रस्म बहुत पसंद आई और उस की आंखों से आंसू बह निकले, क्योंकि वह बारबार यही सोच रही थी कि काश, वह जय की दुलहन होती.

शादी का दिन आ गया और जय की शादी भी हो गई. जूलियट की मां को भारतीय शादी के रीतिरिवाज और खानपान बहुत पसंद आया, पर उन्हें अपनी बेटी के दुख का एहसास भी था. उन्हें भी जय बहुत पसंद था. जय की बरात जिस दिन वापस आती है, जूलियट उसी दिन दुखी मन से अपनी मां के साथ अपने देश लौट जाने का फैसला लेती है. जय बहुत गुजारिश कर के जूलियट को रोक लेता है. जय उन से कहता है, ‘‘मैं जिंदगीभर आप लोगों को भूल नहीं सकता. मेरे घर के दरवाजे आप लोगों के लिए हमेशा खुले रहेंगे. मैं गाइड का काम छोड़ दूंगा. मेरी आखिरी इच्छा आप लोगों को ताजमहल दिखाने की है.’’

जूलियट और उस की मां जय के साथ ताजमहल देखने के लिए तैयार हो जाते हैं. आज ही के दिन जय की सुहागरात थी, पर जय जूलियट और उस की मां को ताजमहल दिखाने के लिए घर से निकल जाता है.

जय की मां और बहनें जूलियट और उस की मां को बहुत से उपहार देती हैं. उन्हें ताजमहल घुमाने के बाद जय दोपहर को एक रैस्टोरैंट में ले कर जाता है. जूलियट को फिर खाना बहुत तीखा लगता है. वह हड़बड़ाहट में फिर उसी तरह गरम सब्जी जय पर गिरा देती है.

दोबारा वही घटना होने पर वे दोनों हंसने लगते हैं. फिर उन की आंखों में आंसू आ जाते हैं.

जय जूलियट को छोटा सा खूबसूरत ताजमहल उपहार में देता है. जूलियट  की मां को वह भारत की ऐतिहासिक चीजें उपहार में देता है.

जूलियट एयरपोर्ट पर बारबार पीछे मुड़मुड़ कर जय को देखती है, फिर ‘बायबाय’ कर के अपनी मां के साथ अपने देश चली जाती है. इस तरह जूलियट का प्यार अधूरा रह जाता है.

जिस्म का पसीना : कम पढी लिखी रीना की दास्तां

पैसे कमाने की चाह में रीना का पति सुरेश पिछले 3 साल से गाजा गया हुआ था. वहां से वह रोज रात को रीना से फोन पर जल्द से जल्द अपने वतन वापस आने की बात कहता और यह भी कहता कि जब वह वापस आएगा तो रीना के लिए ढेर सारे पैसे और कपड़े ले कर आएगा और रातों को जम कर कर उस से प्यार करेगा.

रीना को भी बड़ी बेसब्री से अपने पति के लौटने का इंतजार था, पर ऐसा नहीं हो सका. उस का पति तो वापस नहीं आया अलबत्ता, लड़ाई छिड़ जाने के चलते उस की मौत की खबर जरूर आ गई.

बेचारी रीना पर तो जैसे दुखों का पहाड़ ही टूट पड़ा था. उस की 10 साल की बेटी निम्मी भी रोरो कर हलकान हुए जाती थी.

महल्ले वालों में भी गाजा में मारे गए रीना के पति की मौत की खबर बिजली की तरह फैल गई थी. महल्ले वालों ने आ कर रीना और उस की बेटी को दिलासा दिया.

कम पढ़ीलिखी रीना अपने पति की मौत के बाद उस की लाश का गाजा से वापस आने का इंतजार कर रही थी.

महल्ले के एक चाचा ने आगे आ कर उसे सम?ाया कि जब 2 देशों में लड़ाई होती है, तो न जाने कितने बेकुसूर लोग मारे जाते हैं और ऐसे में उन की लाश इस लायक भी नहीं रह जाती कि उन्हें उन के देश भेजा जा सके और न ही किसी को ऐसी लाशों की कोई फिक्र ही होती है.

पूरे दिन शोक मनाने के बाद रीना को समझ आ चुका था कि वह अब अपने मरे हुए पति का मुंह भी नही देख पाएगी.

दुख की इस घड़ी में आसपास के लोगों से रीना की जितनी मदद हो सकती थी, उतनी मदद रीना को मिली, पर आगे की जिंदगी तो रीना और उस की बेटी को अपने दम पर ही काटनी थी.

समय से बड़ा मरहम कोई नहीं होता. सुरेश की मौत को 3 महीने हो चुके थे. रीना धीरेधीरे पति की मौत से उबर रही थी, पर अब उस के पास जमा पैसे खत्म हो रहे थे. वह कसबे में 2 कमरे के घर में किराए पर रह रही थी. इस घर के किराए के साथसाथ और दूसरे खर्चे चलाने के लिए उसे एक नौकरी की बहुत जरूरत थी, पर उस ने तो कभी घर

से बाहर कदम नहीं निकाला था. अब मजबूरी में उसे कुछ तो करना ही था, इसलिए वह महल्ले के सामाजिक कार्यकर्ता रमेशजी के पास गई.

रमेशजी के पास महल्ले के सभी लोगों की समस्याओं का हल रहता था. रीना की समस्या का हल भी उन्होंने चुटकियों में निकाल दिया. उन्होंने उसे बताया कि एक पापड़ बनाने वाली फैक्टरी में पैकिंग करने वाली औरतों की जरूरत है. वह उस फैक्टरी के मालिक के पास जाए और नौकरी के बारे में जानकारी ले. उम्मीद है कि उसे नौकरी जरूर मिल जाएगी.

यह कह कर रमेशजी ने उसे उस छोटी सी कुटीर उद्योग वाली जगह का पता और फोन नंबर लिख कर दे दिया.

निचली जाति की रीना कम पढ़ीलिखी थी, पर खर्चा चलाने के लिए तो अब घर से निकलना ही था, इसलिए अगले दिन ही उस ने नौकरी करने के लिए फैक्टरी जाने की बात सोची.

पति की मौत के बाद आज रीना ने पहली बार आईने में अपना चेहरा देखा था. माना कि वह विधवा हो चुकी थी, पर अभी उस की उम्र महज 33 साल की ही थी और अब भी उस के जिस्म की खूबसूरती किसी को भी अपनी तरफ खींच सकती थी. उस के बदन की त्वचा गोरी और चमकदार थी और सीने के मांसल हिस्से में कसावट भी थी. रीना अपनी पतली कमर पर जबजब नाभि दिखाते हुए साड़ी बांधती, तब लोग उसे देखते रह जाते थे.

रीना ने हलकी पीली रंग की साड़ी पहनी थी, पर अब तो वह लोकलाज के डर से विधवा होने के नाते कोई  मेकअप भी नहीं कर सकती थी. एक आटोरिकशा वाले को बुला कर उस ने रमेशजी के द्वारा दिए हुए पते पर चलने को कहा.

रीना को तकरीबन 45 मिनट लगे उस फैक्टरी तक पहुंचने में. यह एक छोटी सी फैक्टरी थी. गेट पर बैठे गार्ड से मिल कर वह उस के मालिक प्रकाशराज के पास पहुंची.

प्रकाशराज तकरीबन 45 साल का स्मार्ट सा दिखने वाला मर्द था. रीना ने उसे अपनी मजबूरी के बारे में सब बताते हुए एक नौकरी की मांग की.

‘‘मेहनत से काम करोगी, तो पैसा मिलेगा और टाइम पर आना मत भूलना. इस के अलावा कभीकभार देर तक रुकना भी पड़ सकता है. नानुकर मत करना,’’ कहते हुए प्रकाशराज ने उसे ऊपर से नीचे तक घूरा.

रीना को एक पल को तो लगा था कि प्रकाशराज भी दूसरे मर्दों की तरह है, जो औरतों के जिस्म के अंदर झांकने

की कोशिश करते रहते हैं, इसलिए मालिक को पटाना कोई मुश्किल काम नहीं होगा. अगर मालिक को पटा लिया, फिर तो उस के लिए पैसा कमाना आसान हो जाएगा.

अगले दिन रीना ने तड़के ही जाग कर घर का सारा काम बड़े ही मन से निबटा लिया था. अपनी बेटी को स्कूल जाने के लिए तैयार करते समय रीना ने ढेर सारी नसीहतें भी दे डाली थीं.

आज उस की नौकरी का पहला दिन  था, सो आज सादगी के दायरे में रहते हुए बड़े करीने से रीना ने अपनेआप को तैयार किया था. बादामी रंग की साड़ी और काले रंग के ब्लाउज के बीच उस की गोरी कमर दूर से ही चमक रही थी. खुद को आईने में देख कर वह मुसकरा उठी थी, पर अगले ही पल उसे अपने विधवा होने का खयाल आया, तो उस की मुसकराहट गायब हो गई.

‘तो क्या हुआ, अगर मैं विधवा हूं… पति अगर 2 देशों की लड़ाई में मर गया है, तो इस में मेरा क्या कुसूर है? मु?ो भी तो जीने का हक है,’ यह सोचते हुए रीना ने अपने माथे पर एक छोटी सी बिंदी भी लगा ली.

रीना जब काम पर पहुंची, तो प्रकाशराज ने उस पर एक भरपूर नजर डाली. रीना के अंदर एक घमंड सा भरने लगा था. बौस ने पुराने काम कर रहे लोगों से रीना को काम बताने और सिखाने को कहा और खुद बीचबीच में रीना का काम देखने आने लगा.

रीना वहां पर काम करने वाली दूसरी औरतों से ज्यादा जवान थी. उस का कसावट भरा बदन बहुत सैक्सी था और धीरेधीरे रीना को लगने लगा कि बौस प्रकाशराज उस के काम में ज्यादा दिलचस्पी लेने लगा है और दूसरी औरतों के पास जाने के बजाय उस के पास ज्यादा आता है.

रीना ने शादी से पहले अपने महल्ले की औरतों को आपस में बातें करते सुना था कि चाहे कोई भी मर्द हो, उस की नजरें हमेशा औरतों का सीना देखना चाहती हैं. एक औरत तो अकसर कहती थी :

‘औरत का सीना है एक अनमोल नगीना. जब सीने पर आए पसीना तो मर्दों का मुश्किल हो जीना.’

अपने सीने की गोलाइयों से किसी को भी अपनी ओर खींचना हर औरत को आता है और यह बात अब रीना को भी सम?ा आ गई थी, इसलिए जब भी प्रकाशराज रीना की तरफ नजरें करता, तो वह अपना साड़ी का पल्लू जरा सा नीचे खिसका देती, जिस से उस के सीने का उभरापन हलका सा दिखने लगता. बौस की नजरें उस के सीने के बीच उल?ा जाती थीं.

उसी फैक्टरी में रामकुमार नाम का एक आदमी भी काम करता था, जिस की उम्र 50 साल थी. उस की बीवी मर चुकी थी और पहली बीवी से उस के 2 बच्चे भी थे, फिर भी जब से उस ने विधवा रीना को देखा, तब से ही वह रीना पर लट्टू हो गया और उस से दूसरी शादी रचाने की बात सोचने लगा, इसलिए वह अकसर रीना के आगेपीछे डोलता रहता और एक दिन उस ने मौका देख कर रीना से अपने मन की बात भी कह दी.

रीना को बड़ी उम्र वाले और बदसूरत से दिखने रामकुमार में बिलकुल भी इंटरैस्ट नही था, पर रामकुमार ने रीना को एक से एक महंगे तोहफे देने शुरू कर दिए. उन तोहफों के लालच में रीना ने रामकुमार को झांसा देना शुरू कर दिया था कि वह उस से जल्द ही शादी कर लेगी, पर इस के लिए उसे अपनी बेटी निम्मी को विश्वास में लेना होगा.

रामकुमार इस बात को सच मान बैठा और जम कर रीना पर पैसे उड़ाने लगा. उस ने रीना और निम्मी के लिए नएनए कपड़े, खानेपीने का सामान और मोबाइल ला कर दिया था.

रीना इस बात से मन ही मन खुश हो रही थी, पर वह तो सिर्फ अपने बौस  प्रकाशराज पर डोरे डालना चाह रही थी और यह रामकुमार तो अपनेआप ही पट गया था.

इन सब बातों के अलावा रीना काम तो कर रही थी, पर वह कामचोर थी और मेहनत करने से भी डरती थी. यह रोजरोज नौकरी पर आना और घर जा कर फिर से घरेलू काम निबटाना उसे अच्छा नहीं लग रहा था, इसलिए वह अपने बौस को पटा कर आसानी से ढेर सारे पैसे पाना चाहती थी, पर प्रकाशराज उसे घास ही नहीं डाल रहा था, इसलिए रीना ने एक कदम और आगे बढ़ाने की सोची.

एक दोपहर को लंच टाइम हो रहा था. सब लोग खानेपीने में मस्त थे और प्रकाशराज दरवाजे के पास खड़ा हो कर मोबाइल पर बातें कर रहा था कि तभी रीना अपने सीने के उभारों को थोड़ा और उचका कर आगे की ओर बढ़ते हुए आई और अपने उभारों को बौस के सीने से रगड़ते हुए निकल गई.

बौस प्रकाशराज रीना की इस हरकत को देख कर हैरान रह गया. तभी रीना कुछ भूल जाने का नाटक करते हुए फिर पलटी और प्रकाशराज के सीने से अपनी गोलाइयों को सटा दिया. उस की यह हरकत प्रकाशराज को ठीक नहीं लगी.

‘‘रीना, जा कर अपने काम पर ध्यान दो,’’ बौस ने कहा, तो रीना और भी इठलाने लगी, ‘‘इतना सारा काम तो करती हूं… और कोई काम बताओ तो वह भी कर दूंगी,’’ रीना ने अपने हाथों की उंगलियों को तोड़तेमरोड़ते हुए कहा और मटकते हुए अपनी जगह पर जा कर बेमन से काम करने लगी.

रामकुमार को यों रीना का अपने बौस के आगेपीछे डोलते देखना बिलकुल अच्छा नहीं लगता था.

‘‘देख रीना, बौस पर डोरे डालना ठीक नहीं है. उन में और तुम में बहुत फर्क है. और वैसे भी वे तुम्हें नहीं अपनाने वाले,’’ रामकुमार ने यह बात रीना को सम?ाई.

रीना समझ चुकी थी कि रामकुमार अब उस पर अपना हक सम?ाने लगा है, पर उसे उस का यों टांग अड़ाना ठीक नहीं लग रहा था, इसीलिए अब उस से पीछा छुड़ाना जरूरी लगने लगा था.

भले ही रीना विधवा हो चुकी थी, पर उस का शरीर तो अभी जवान ही था और उस की जवानी की गरमी को ठंडे पानी की बौछार की जरूरत थी. उसे एक मर्द के साथ की चाह थी, जो उस के जिस्म को रातरात भर प्यार करे और अलगअलग आसनों में उठाबिठा कर उस के जिस्म की भूख मिटा दे. जब से रीना अपने बौस से शरीर की नजदीकी बढ़ा रही थी, तब से उस के बदन की ज्वाला और भी भड़क चुकी थी.

एक दिन रामकुमार ने रीना को एक छोटा सा दिल के आकार का लौकेट गिफ्ट किया था और बातोंबातों में वह उस पर शादी करने का दबाव बना रहा था, ताकि उस के बच्चों को मां का प्यार मिल सके, पर रीना थी कि बात को टाले ही जा रही थी. वह तो बस रामकुमार

को इस्तेमाल करना चाहती थी, पर आज रामकुमार के इरादे कुछ और ही नजर आ रहे थे. जब लंच ब्रेक हुआ, तो वह रीना को बाहर खाना खिलाने के बहाने फैक्टरी के बाहर बने एक छोटे से होटल के कमरे में ले गया और कमरा बंद कर के उस ने रीना के होंठों को चूमना और चूसना शुरू कर दिया.

रीना भी सैक्स की प्यासी थी. वह भी रामकुमार का साथ देने लगी. दोनों सबकुछ भूल कर एकदूसरे में समाने की कोशिश करने लगे.

रीना बहुत उतावली हो रही थी. वह जल्दी ही अपनी मंजिल को पा लेना चाहती थी. रामकुमार प्यास भड़काना तो जानता था, पर उसे बुझाना नहीं जानता था. वह जल्दी ही थक कर रीना से अलग हो गया.

रीना बिस्तर पर जल बिन मछली की तरह तड़पने लगी और उस ने नफरत भरे भाव से रामकुमार को झिड़क दिया, ‘‘तुम मुझ से शादी करने की बात करते हो, पर उस के लायक हो नहीं. नामर्द कहीं का…’’ कह कर वह जल्दी से अपने कपड़े पहनने लगी.

अपने बारे में ऐसे शब्द सुन कर रामकुमार बहुत दुखी हो गया. उसे रीना से ऐसी उम्मीद नहीं थी. पर फिर भी इतनी बेरुखी और बेइज्जती सहने के बाद भी रामकुमार का रीना के प्रति मोह भंग नहीं हुआ.

‘‘अरे रीना, तुम तो दोनों हाथों में लड्डू रखना चाह रही हो. अरे, एकएक कर के खाओ,’’ एक दिन रीना की फैक्टरी की एक औरत ने चुटकी ली, तो रीना ने सच उगल दिया और कह दिया कि उस का असली लड्डू तो बौस है, रामकुमार को उस ने अपना खर्चापानी चलाए रखने के लिए पटा रखा है.

रीना के द्वारा कही गई यह बात रामकुमार के कानों तक पहुंचने में देर  नहीं लगी. यह बात सुन कर राजकुमार बेचारा  एक बार फिर रीना के द्वारा छला गया और बेइज्जत महसूस कर रहा था. अब वह रीना से बदला लेना चाहता था, इसलिए उस ने अपने बौस के कान भरने शुरू कर दिए थे.

रामकुमार ने बौस को बताया कि कैसे रीना अपने जिस्म का फायदा उठा कर मर्दों से पैसे वसूलती है और यहां तक कि उन के साथ बिस्तर पर सोने से बाज भी नहीं आती.

अगले 2 दिनों तक रीना ने किसी को बिना बताए ही छुट्टी कर ली और तीसरे दिन जब वह इठलाते हुए औफिस पहुंची, तो बौस प्रकाशराज ने उसे अपने केबिन में बुलाया.

‘‘तुम काम पर ध्यान क्यों नहीं देती?  तुम्हारे काम में बहुत शिकायतें मिल रही हैं. केवल अपना नंगा बदन दिखा कर नौकरी नहीं चल सकती. तुम्हें काम से निकाला जा रहा है. अपना हिसाब ले लो और कल से काम पर आने की जरूरत नहीं है,’’ बौस का लहजा सख्त था.

रीना अगरमगर करती रह गई, पर बौस वहां से जा चुका था. कोई चारा न देख रीना मुंह लटका कर वहां से चली आई.

रीना को नौकरी से हटे हुए 2 महीने चुके थे. घर में रखे हुए पैसे खत्म हो चुके थे और अब घर का खर्चा चलाना मुश्किल हो रहा था. बेटी निम्मी भी फीस के लिए बारबार पैसे मांग रही थी. अभी तक तो तनख्वाह के पैसे मिल जाते थे और रामकुमार से भी हथियाए हुए पैसों से घर का खर्च चलता रहता था, पर अब दोनों जगह से पैसे का आना बंद हो गया था, इसलिए रीना को काफी तंगी महसूस हुई.

ऐसे समय में रीना को रामकुमार की याद आई. उस ने फोन लगा कर रामकुमार से शादी कर लेने की इच्छा जताई, तो रामकुमार ने दोटूक शब्दों में उसे बताया, ‘‘तुम मुझे माफ करो. तुम ने मुझे खूब बेवकूफ बनाया और मैं बनता भी रहा, क्योंकि मैं तो तुम्हारा जिस्म देख कर भटक गया था और 2 बच्चों के होते हुए भी दूसरी शादी करना चाहता था, पर अब मैं अकेले ही इन्हें पालूंगा और इन का ध्यान रखूंगा. मुझे लगता है कि अब मैं ठीक राह पर आ गया हूं.’’

रामकुमार के इस तरह खरा जवाब देने से रीना सन्न रह गई थी. उसे रामकुमार के रूप में एक पैसे उगाही करने का जरीया मिला हुआ था, पर अब वह उस के हाथ से फिसल चुका था और अब उसे कैसे घर का खर्चा चलाना है, यह समझ नहीं आ रहा था. अब तो उसे यह मकान छोड़ कर छोटी सी खोली में जाना पड़ेगा, क्योंकि उस के पास किराया देने के पैसे नहीं हैं.

रीना और उस की बेटी अपना सामान बांध रही थीं और रीना मन ही मन सोच रही थी कि अगर वह पढ़ीलिखी होती, तो कोई अच्छी नौकरी कर सकती थी.

आज रीना और उस की बेटी का भविष्य अंधेरे में है. अब वह कहां से पैसे लाएगी? कौन उसे नौकरी देगा? इन सब सवालों के जवाब उस के पास नही थे.

अपना सामान पैक करतेकरते और इन सवालों के जवाब सोचतेसोचते रीना के गोरे सीने पर ही नहीं, बल्कि उस के पूरे मांसल और सैक्सी बदन पर पसीना आ चुका था, लेकिन अफसोस, उस के खूबसूरत जिस्म पर आए पसीने को देखने के लिए रीना के पास कोई नहीं था.

बेवफाई की सजा : रहमान की शादी

आज से 5 साल पहले रहमान की शादी रेशमा से हुई थी, जो देखने में निहायत ही खूबसूरत और अच्छे डीलडौल की थी. उस की खूबसूरती की मिसाल ऐसे सम?ा जैसे आसमान से कोई अप्सरा उतर कर जमीन पर आ गई हो. गुलाबी होंठ, सुर्ख गाल, काले घने लंबे बाल, उन के बीच में चमकता चेहरा ऐसा लगता था, जैसे बादलों को चीरता हुआ चांद बाहर निकल आया हो.

रेशमा को पा कर रहमान अपनेआप को बहुत खुशनसीब समझ रहा था. उस के बिना एक पल भी रहना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन था.

रहमान अपनी रेशमा को दिलोजान से चाहता था. उस की हर तमन्ना पूरी करने में वह कोई कसर नहीं छोड़ता था. यही वजह थी कि शादी के एक महीने बाद ही रहमान उसे अपने साथ मुंबई ले आया, क्योंकि उस का कारोबार मुंबई में था.

वे दोनों हंसीखुशी अपनी जिंदगी गुजार रहे थे. शादी के एक साल के अंदर ही रेशमा ने एक चांद से बेटे को जन्म दिया, जिसे पा कर रहमान फूला नहीं समा रहा था.

शादी के दूसरे साल ही रेशमा ने एक बेटी को भी जन्म दिया. घर में 2 नन्हेमुन्ने बच्चों के आने से हर समय खुशी का माहौल बना रहता था.

रेशमा के भाई की शादी थी. इस सिलसिले में गांव जाना था. वैसे, हर साल रेशमा के मांबाप मुंबई ही उस से मिलने आ जाते थे. इन 4 सालों में रेशमा को कभी गांव जाने का मौका नहीं मिला था और न ही रेशमा ने कभी गांव जाने की जिद की थी.

रहमान और रेशमा ने अपनी पैकिंग की और बच्चों के साथ गांव चले आए. घर में खुशी का माहौल था. मेहमानों का आनाजाना लगा था. चारों तरफ चहलपहल थी. रेशमा की खुशी का ठिकाना न था. वह अपनी सहेलियों से मिल कर चहक रही थी.

आखिरकार वह  दिन भी आ गया, जब रेशमा के भाई की शादी होनी थी. शाम को सब शादी से लौट कर सोने की तैयारी कर रहे थे. रहमान भी थका हुआ था, इसलिए वह जल्दी सो गया.

रात को जब रहमान की अचानक नींद खुली, तो रेशमा को कमरे में न पा कर वह इधरउधर नजर दौड़ाने लगा. फिर वह छत की तरफ गया, तो वहां किसी लड़के को रेशमा से बात करते सुना.

रेशमा उस लड़के की बांहों में थी और कह रही थी, ‘‘साजिद, मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती. मैं सिर्फ तुम से प्यार करती हूं. तुम कहां चले गए थे? तुम जानते हो कि मैं तुम से कितना प्यार करती हूं. मुझे अपने साथ कहीं दूर ले चलो.

‘‘पता नहीं तुम कहां गायब हो गए थे. तुम्हारा कुछ अतापता नहीं था और अब्बाअम्मी ने मुझे अपनी कसम दे कर जबरदस्ती मेरी शादी करा दी. मैं तुम्हारे सिवा किसी और के साथ अपनी जिंदगी नहीं गुजार सकती.’’

यह सुनते ही रहमान के पैरों तले जमीन खिसक गई और वह एक जिंदा लाश बन कर धड़ाम से वहीं गिर गया.

जब रहमान की आंख खुली, तो वह नीचे पलंग पर पड़ा था. उस की सास और ससुर हवा कर रहे थे और रेशमा एक कोने में ऐसे बैठी थी, जैसे कुछ जानती ही न हो. उसे अपनी इस हरकत का कोई अफसोस नहीं था.

रेशमा की अम्मी और अब्बू सब जान चुके थे, फिर रेशमा की अम्मी ने जो असलियत रहमान को बताई, उस ने उस के रोंगटे खड़े कर दिए.

रेशमा की अम्मी ने बताया, ‘‘बेटा, वह जो लड़का रेशमा के साथ था, वह मेरी दूर की बहन का बेटा था, जो यहां पास के ही गांव में रहता है. रेशमा उस से प्यार करती थी. एक बार वह उस के साथ घर छोड़ कर भी चली गई थी.

‘‘हम रेशमा को समझबुझ कर यहां ले आए थे. उस की जिद थी कि वह साजिद से ही शादी करेगी, लेकिन साजिद बहुत ही गरीब परिवार का लड़का था. कामकाज कुछ करता नहीं था, दिनभर आवारागर्दी करता फिरता था. कई बार वह चोरी के इलजाम में भी पकड़ा गया था, इसलिए हम ने उस के घर वालों पर दबाव बना कर उसे गांव से दूर दिल्ली जाने पर मजबूर कर दिया.

‘‘उस के एक महीने बाद हम ने रेशमा को सम?ाया कि साजिद बिगड़ा हुआ लड़का है, उस का कुछ अतापता नहीं है कि कहां गायब हो गया है. तुम्हारा रिश्ता आया है. तुम चुपचाप इस रिश्ते के लिए हां कर दो और अगर ऐसा नहीं करोगी, तो हम दोनों अपनी जान दे देंगे.

‘‘कुछ दिनों तक तो रेशमा चुप रही, लेकिन हमारे रोने और घर की इज्जत की दुहाई देने से आखिर उसे हमारा फैसला मानना पड़ा और तुम्हारी शादी उस से हो गई. यही वजह थी कि हम कई साल से रेशमा को घर नहीं लाए थे, उस से वहीं मिलने आ जाते थे.

‘‘हम ने सोचा था कि शादी के कुछ साल बाद रेशमा के सिर से साजिद का भूत उतर जाएगा और शौहर और बच्चों की मुहब्बत में वह साजिद को भूल जाएगी.’’

रहमान चुपचाप उन की बातें सुन रहा था. उस की आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे. रेशमा के अम्मीअब्बू उसे दिलासा दे रहे थे और वह सोच रहा था कि रेशमा और उस के अम्मीअब्बू ने उस की जिंदगी क्यों बरबाद कर दी. अगर रेशमा उस के साथ रहने को तैयार नहीं हुई, तो इन मासूम बच्चों का क्या होगा? लेकिन, फिर कुछ सोच कर रहमान ने रेशमा को अपने साथ मुंबई ले जाने का फैसला कर लिया.

अगले ही दिन वे मुंबई के लिए रवाना हो गए. घर पहुंच कर उन दोनों में ज्यादा बातें नहीं हुईं. अगले दिन रहमान फ्रैश हो कर काम पर चला गया, पर अगले कई दिनों तक वे दोनों अनजान की तरह घर में रहे.

अभी इस वाकिए को 3 महीने ही गुजरे थे कि एक दिन रहमान किसी काम से घर जल्दी आ गया. घर का मेन दरवाजा खुला था. जैसे ही वह घर के अंदर दाखिल हुआ, तो वहां का सीन देख कर दंग रह गया. रेशमा अपने आशिक साजिद की बांहों में पड़ी थी.

रहमान उसे देख कर चिल्लाया, तो उस का आशिक झट से खड़ा हो गया. इस बार रेशमा भी चुप न रही और तपाक से बोली, ‘‘मैं साजिद से प्यार करती हूं और इस के बिना नहीं रह सकती.’’

रहमान ने रेशमा को पुलिस की धमकी दी, तो वह बोली, ‘‘जाओ, कहीं भी जाओ. मैं बोल दूंगी कि तुम ने ही इसे यहां बुलाया था और इस से पैसे लिए थे. मुझे मारपीट कर मुझ से गलत काम करवाते हो. देखते हैं कि पुलिस किस की सुनती है. साजिद भी तुम्हारे खिलाफ गवाही देगा.’’

रहमान यह सब सुन कर सन्न रह गया और सोफे पर बैठ गया. रेशमा उठी और अपने कपड़े सही कर के लेट गई.

रहमान रेशमा के सामने खूब रोयागिड़गिड़ाया, ‘‘ऐसी हरकत मत करो, हमारे छोटेछोटे बच्चे हैं. इन का क्या होगा.’’

लेकिन रेशमा ने रहमान की एक न सुनीं. वह बोली, ‘‘मैं बच्चे घर से लाई थी क्या? तुम्हारे बच्चे हैं, तुम पालो.’’

रहमान ने उसी समय रेशमा के अम्मीअब्बू को फोन किया और उन्हें सब बातें बताईं. वे अगले ही दिन मुंबई के लिए रवाना हो गए.

बच्चे भूखेप्यासे रो रहे थे. रेशमा को किसी की परवाह नहीं थी. रहमान बच्चों के लिए खाना लेने बाहर चला गया. वापस आ कर उस ने देखा कि रेशमा घर पर नहीं थी. रहमान ने आसपड़ोस में सब से मालूम किया, पर किसी को उस का कोई पता न था.

थकहार कर रहमान बच्चों को चुप कराने में लग गया, जो अभी तक रो रहे थे. काफी इंतजार के बाद वह पुलिस स्टेशन गया और वहां रेशमा के गायब होने की सूचना दी.

एक पुलिस वाले ने कहा, ‘‘तुम्हारा झगड़ा हुआ होगा. गुस्से में वह कहीं चली गई होगी. उस की रिश्तेदारी में मालूम करो. अगर नहीं मिली, तो 24 घंटे बाद उस की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराना. उस के बाद हम खोजबीन चालू करेंगे.’’

बेइज्जती के डर से रहमान ने रेशमा के अफेयर के बारे में किसी को नहीं बताया, क्योंकि वह उस से सच्ची मुहब्बत करता था. वह नहीं चाहता था कि उस की बदनामी हो.

अगले दिन रेशमा के अम्मीअब्बू भी आ गए. रहमान उस के अब्बू के साथ पुलिस स्टेशन पहुंचा और रेशमा की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करा दी. इस से पहले पुलिस उसे ढूंढ़ती, 4 दिन बाद वह खुद ही पुलिस स्टेशन आ गई.

वहां पर रहमान को भी बुलाया गया. इंस्पैक्टर ने रेशमा से पूछा कि वह कहां गई थी, तो उस ने साफ शब्दों में कह दिया, ‘‘मुझे अपने शौहर के साथ नहीं रहना है. मैं आप के किसी सवाल का जवाब यहां नहीं दूंगी. सब सवालों के जवाब कोर्ट में मेरा वकील देगा. ये रहे केस के कागजात.’’

रेशमा ने रहमान के ऊपर दहेज और मारपीट का केस दर्ज करा दिया था. पुलिस ने कहा कि वह इस में कुछ नहीं कर सकती, क्योंकि अब मामला कोर्ट में है. रेशमा को जाने दिया गया. उस के जाने के कुछ देर बाद रहमान को भी छोड़ दिया गया.

समय गुजरता गया. रेशमा के अम्मीअब्बू भी कुछ दिन बाद अपने गांव चले गए. रहमान के पास कोर्ट की तारीख का मैसेज आया. वह वकील के पास गया. उस ने कहा, ‘‘जब तक नोटिस नहीं आता, तब तक तुम मत आओ.’’

इस तरह तकरीबन एक साल तक कोर्ट की तारीख मैसेज के जरीए रहमान के फोन पर आती रही.

एक दिन रहमान के पास एक अनजान फोन नंबर से मैसेज आया कि ‘मुझे ढूंढ़ने की कोशिश मत करना. मैं अपनी जिंदगी से खुश हूं. मैं तुम से प्यार नहीं करती थी. मेरे अम्मीअब्बू ने जबरदस्ती तुम से मेरी शादी करवा दी थी, इसलिए तुम से छुटकारा पाने के लिए मुझे तुम पर केस करना पड़ा’.

रहमान समझ चुका था कि मेरा एकतरफा प्यार रेशमा को अपना नहीं बना सका. समय गुजरता गया और कुछ ही महीनों में रेशमा ने जो केस उस के ऊपर किया था, उस में उस के हाजिर न होने के चलते केस खारिज हो गया.

इस तरह रहमान की जबरदस्ती की गई शादी ने उस की जिंदगी तो बरबाद की ही, दोनों बच्चे भी अपनी मां की ममता से महरूम रह गए. उन मासूमों की जिंदगी भी मां के बगैर वीरान बन कर रह गई.

रहमान के कई दोस्तों ने उसे दूसरी शादी करने की सलाह दी और कई रिश्ते भी ले कर आए, पर शादी के नाम से तो उसे डर लगने लगा था कि क्या पता कब किस की शादी जबरदस्ती करा दी जाए. वैसे भी, रेशमा ने भले ही रहमान से प्यार नहीं किया, पर वह तो उस से प्यार करता था. उस के लिए उसे भुलाना नामुमकिन था.

इस तरह किसी की गलती की सजा किसी और को मिलती है. यहां रेशमा और उस के अम्मीअब्बू की गलती की सजा रहमान और उस के मासूम बच्चे भुगत रहे थे.

पार्ट टाइम जॉब : श्याम का व्यस्त जीवन

दुबलापतला श्याम श्रीवास्तव उर्फ पेपर वाला सवेरेसवेरे रोज की तरह मनोज के कमरे में अखबार देने के लिए दाखिल हुआ. उस ने दरवाजा खोलते ही मनोज की लाश पंखे से लटकी देखी.

इस के बाद अफरातफरी मच गई. कुछ ही समय में एंबुलैंस और पुलिस की गाडि़यों का काफिला, जिस में सीनियर इंस्पैक्टर श्रीप्रकाश, सबइंस्पैक्टर परितेश शर्मा और हवलदार बहादुर सिंह जैसे कई काबिल अफसर शामिल थे, मौका ए वारदात पर पहुंचा.

घर के बाहर लोगों का हुजूम देख कर पुलिस को समझने में देर न लगी कि यही वह जगह है, जहां से उन्हें फोन किया गया था.

पुलिस को देख कर भीड़ एक ओर हट कर खड़ी हो गई. फोन करने वाले श्याम से जब पूछताछ की गई, तो उस ने बताया कि वह शुरू से ही हर रोज मनोज के कमरे में अखबार डालने आता है, पर आज जैसे ही उस ने अखबार देने के लिए दरवाजा खोला, वैसे ही सामने उसे मनोज पंखे से फांसी पर लटका हुआ मिला.

सीनियर इंस्पैक्टर श्रीप्रकाश को अखबार वाले श्याम का बयान थोड़ा खटका. इतने में ही आसपास रह रहे छात्रों से सूचना मिली कि मनोज का पूरा नाम मनोज दास है और अभी कुछ ही महीनों पहले वह कोलकाता से दिल्ली पढ़ने के लिए आया था और आते ही इस स्टूडैंट हब में कमरा किराए पर ले कर रहना शुरू कर दिया था. उस के साथ यहां और कोई नहीं आया था.

मनोज के पिताजी ही उसे शुरू में यहां कमरा किराए पर दिलवा कर गए थे. मनोज यहीं पर अपनी कोचिंग किया करता था.

मनोज की लाश को फौरन जांच के लिए फौरैंसिक लैब भेज दिया गया और उस के कमरे के सामान की छानबीन शुरू कर दी गई.

साइबर ऐक्सपर्ट की मदद से मनोज की कौल हिस्ट्री निकाल ली गई. उन के पिता का नंबर तलाश कर उन्हें सूचना भिजवा दी गई.

पर, एक नंबर था, जिस से मनोज दिन में कई बार बातें किया करता. उस नंबर को ट्रेस करने के बाद सिर्फ  इतना ही मालूम हुआ कि वह नंबर दिल्ली का ही है. इस से ज्यादा पता लगाना मुश्किल था, क्योंकि वह नंबर बिना किसी आइडैंटिटी के खरीदा  गया था.

कमरे की छानबीन से कुछ खास सुबूत तो हाथ न लगा, पर एक बात अभी भी इंस्पैक्टर श्रीप्रकाश के मन में किसी सवाल की तरह घूमे जा रही थी और वह थी अखबार वाले श्याम का बयान, क्योंकि अमूमन अखबार वाला अखबार बालकनी में फेंक देता है या दरवाजे के नीचे से सरका देता?है. उसे इतनी फुरसत कहां होती है, जो सब के हाथ में अखबार पकड़ाए और क्या मनोज ने दरवाजा खोल कर खुदकुशी की थी?

सीनियर इंस्पैक्टर श्रीप्रकाश ने हवलदार को इस श्याम अखबार वाले पर नजर रखने को कहा और साथ ही, खबरियों को भी इस की जानकारी निकलवाने का आदेश दिया.

उधर अगले ही दिन की फ्लाइट से मनोज के मातापिता दिल्ली पहुंचे और थाने जा कर अपना परिचय दिया. अपने बेटे की चादर से ढकी लाश देख कर मनोज के मातापिता का रोरो कर बुरा हाल हो गया.

पुलिस ने मनोज के मातापिता को दिलासा दी और पूछताछ के लिए सीनियर इंस्पैक्टर श्रीप्रकाश के पास ले आए.

मनोज के पिता पुरुषोत्तम दास और माता संगीता दास ने बताया कि मनोज बचपन से ही पढ़ाईलिखाई में काफी होशियार था, जिस के चलते उन्होंने उसे पढ़ने के लिए दिल्ली भेजा था.

इंस्पैक्टर श्रीप्रकाश ने मनोज से मिलतेजुलते और कई सवाल पूछे और फिर उन के बेटे की लाश उन्हें सौंप दी.

अभी मनोज के मातापिता को लाश के साथ विदा किया ही गया था कि एक खबरी से खबर मिली, जिस में उस ने बताया, ‘‘साहब, श्याम का असली रोजगार अखबार बेचना नहीं है. इस के अलावा वह और भी कई गैरकानूनी धंधों में शामिल है, पर पूरी तरह से नहीं.’’

हवलदार बहादुर सिंह ने भी यही बताया, ‘‘श्याम का पिछले कई सालों से छोटीमोटी चोरीचकारी और छीनाझपटी के लिए थानों में नाम आता रहा है, पर इस का नाम ऐसे किसी संगीन मामले में नहीं पाया गया है.’’

सीनियर इंस्पैक्टर श्रीप्रकाश के इशारे पर आधी रात को ही श्याम को घर से उठवा कर थाने में बुलवा लिया गया. शुरुआत में किसी भी सवाल का सही जवाब न मिलने पर श्याम को रिमांड में लेने को कहा गया, जिस से डर कर उस ने तोते की तरह सबकुछ सच उगलना शुरू कर दिया.

बात कुछ महीने पहले की है. श्याम छोटामोटा जेबकतरा था, पर इस काम में आगे जातेजाते उस की मुलाकात कई गैरकानूनी धंधे करने वाले गिरोह से हुई. उन्हीं में से एक था विकी छावरा उर्फ ‘सिकंदर’ जिस का काम बड़ेबड़े रईसजादों के लिए ड्रग्स और लड़कियों की तस्करी करना था. इस काम के लिए उसे दलाल की जरूरत थी.

श्याम भी जानता था कि बड़े कामों में पैसा भी बड़ा है, ऊपर से खुद का भी अलग ही रोब होता है महल्ले वालों में. उस ने धीरेधीरे सिकंदर के करीब  आना शुरू कर दिया और देखते ही देखते उस का खास और भरोसेमंद आदमी बन गया.

श्याम का काम ड्रग्स सप्लाई करने के लिए लड़के तलाशना था और किसी भी तरह उन्हें अपने साथ काम करने के लिए मजबूर करना था, जिस के चलते उस ने अखबार बेचने का काम शुरू कर दिया, जिस से घर से दूर यहां पढ़ने आए छात्रों से बातचीत कर उन के नजदीक आया जाए और नएनए लड़के तैयार किए जाएं.

तकरीबन 5 महीने पहले मनोज भी यहां पढ़ने के लिए आया था. यों तो सभी अपने साथियों के साथ रहा करते थे, पर मनोज अकेला था, जिस से  श्याम का काम कुछ हद तक आसान हो गया था.

कुछ दिनों की दोस्ती में बातों ही बातों में श्याम को पता लगा कि मनोज माली तंगी झेल रहा है, जिस के लिए उसे छोटेमोटे पार्टटाइम जौब की तलाश है.

श्याम ने भी लगे हाथ अपना पत्ता फेंक दिया और कहा, ‘देख मनोज, तुझे पार्टटाइम जौब चाहिए, तो मैं दिलवा सकता हूं. बस डिलीवरी का काम है. पैसा भी किसी फुलटाइम जौब से कम नहीं मिलेगा.’

‘भैया, फिर तो मैं तैयार हूं,’ मनोज ने कहा.

‘अरे, जहां का पता दिया जाए, वहां पर एक छोटी सी थैली पहुंचानी है,’ श्याम ने झूठी हंसी हंसते हुए कहा.

मनोज काम करने के लिए तैयार हो गया. उसे लिफाफे में कुछ दिया जाता और साथ ही एक परची पर पता भी लिख कर दे दिया जाता.

मनोज वह छोटी सी थैली पैंट की जेब में डाल कर उसे दिए गए पते पर छोड़ आता, जिस के बदले में उसे अच्छीखासी रकम नकद मिल जाती.

ऐसे ही कुछ महीनों तक यह सिलसिला चलता रहा. एक दिन मनोज के जेहन में आया कि आखिर छोटी सी थैली में ऐसी क्या कीमती चीज है, जिस के लोग इतने रुपए दे देते हैं.

उस ने थैली को खोल कर देखा. उस के अंदर सफेद चूर्ण सा दिखने वाला कोई पदार्थ था.

मनोज पढ़ालिखा था. उसे शक हो गया कि कहीं यह उसी चीज की थैली तो नहीं, जिस के बारे में उस ने कई फिल्मों में देखा है. उस का शक तब और भी पक्का हुआ, जब उस ने उस सफेद चूर्ण से दिखने वाले पाउडर को सूंघ कर देखा और एहसास हुआ कि उस से इतने दिनों से एक गैरकानूनी काम करवाया जा रहा है.

उस ने तुरंत श्याम को फोन कर धमकी दी कि वह सुबह होते ही उस का भांड़ा फोड़ देगा और उस के खिलाफ केस करेगा.

इधर, श्याम ने यह सारा माजरा सिकंदर को फोन कर के बताया. सिकंदर एक शातिर मुजरिम था. उसे ऐसे हालात से भी मुनाफा कमाना खूब अच्छी तरह से आता था.

उस ने कुछ गुरगे भेज कर मनोज को अपने पास बुलवाया और खूब मीठीमीठी बातों से आदरसत्कार किया.

मनोज नहीं जानता था कि श्याम के भी ऊपर कोई है, जो इन चीजों का मास्टरमाइंड है. सिकंदर की दबंगई देख कर उस का भी दिल सहम गया. उसे महसूस हुआ कि वह ज्यादा पैसा कमाने के चक्कर में कैसे लोगों के चक्कर में फंस चुका है.

सिकंदर ने मीठी जबान में कहा, ‘अरे, क्या है भाई. पढ़ेलिखे हो, समझदार हो, यह पुलिस की धमकी देते हुए अच्छे लगते हो क्या? अच्छा, यह लो, इसे ले जाओ अपने साथ और मजे करो.’

सिकंदर ने अपने बगल में खड़ी एक खूबसूरत लड़की को पकड़ मनोज की ओर धकेल दिया. उस लड़की को देख मनोज का भी दिल बहक सा गया और वह सिकंदर के दिए हुए तोहफे को मना नहीं कर सका.

मनोज उसे अपने घर ले आया. उस लड़की ने मौका पा कर मनोज को बेहोश कर दिया और बाहर हाथ में रस्सी लिए उस लड़की के इशारे ओर देख रहे श्याम और सिकंदर को जैसे ही कमरे के अंदर से उस लड़की का फोन आया, वे दोनों चुपचाप मनोज को रस्सी के सहारे पंखे से लटका कर अपनेअपने ठिकाने पर लौट गए.

अगले दिन योजना के मुताबिक श्याम अनजान आदमी की तरह मनोज के कमरे में अखबार देने गया और खुद शक के घेरे से बाहर निकलने के लिए सामने से पुलिस को फोन कर दिया.

इतना बताने के बाद ही हवलदार बहादुर सिंह फौरैंसिक रिपोर्ट ले कर हाजिर हुआ, जिस में साफसाफ  लिखा था, ‘मौत बेहोशी की हालत में हुई है’.

जाल: आखिर अनस को गिरफ्तार क्यों किया गया

लल्लन मियां ने बहुत मेहनत से यह गैराज बनाया था और आज उन का यह काम इतना बढ़ गया था कि लल्लन मियां के सभी बेटे भी इसी काम में लग गए थे.

पर आजकल गैराज के काम में भी कंपीटिशन बहुत बढ़ गया था. ग्राहक भी यहांवहां बंट गए थे, जिस के चलते धंधा थोड़ा मंदा हो गया था. इस से लल्लन मियां थोड़ा परेशान भी रहते थे. उन की परेशानी की वजह थी कि उन का मकान अभी पूरी तरह से बन नहीं पाया था.  2 कमरे और एक रसोईघर ही थी.

लल्लन मियां के 3 बेटे थे, जिन में से 2 बेटों की शादी हो चुकी थी और तीसरा बेटा अनस अभी तक कुंआरा था.

दोनों बहुओं का दोनों कमरों पर कब्जा हो गया. अम्मीअब्बू बरामदे में सो जाते और अनस आंगन में.

पता नहीं क्यों, पर जब भी अनस के अब्बू उस से रिश्ते की बात करते, तो वह उन की बात सिरे से ही खारिज कर देता.

‘‘अब अनस से क्या कहूं…? तुम्हीं बताओ अनस की अम्मी कि वह अब  25 बरस का हो चुका है… शादी करने की सही उम्र है और फिर फरजाना जैसी अच्छी लड़की भी तो न मिलेगी… पर यह मानता ही नहीं,’’ लल्लन मियां अनस की अम्मी से मशवरा कर रहे थे.

‘‘अजी, आप इतनी गरमी से बात मत करो… जवान लड़का है… क्या पता, कहीं उस के दिमाग में किसी और लड़की का खयाल बसा हो…? मैं अपने हिसाब से पता लगाती हूं,’’ अनस की अम्मी ने शक जाहिर करते हुए कहा.

जुम्मे वाली रात को अम्मी ने अनस को अपने पास बिठाया और पीठ पर हाथ फेरते हुए कहने लगीं, ‘‘देख अनस, तेरे अब्बू ने बड़ी मेहनत से इस परिवार की खुशियों को संजोया है. यह छोटा सा मकान बनवा कर उन्होंने अपने सपनों में सुनहरे रंग भरे हैं और अब हम दोनों ही यह चाहते हैं कि तेरी शादी अपनी इन आंखों से देख लें.’’

‘‘पर अम्मी, मैं तो अभी निकाह करना ही नहीं चाहता,’’ अनस बोला.

‘‘देख बेटा, हर चीज की एक उम्र होती है और तेरी शादी कर लेने की उम्र हो गई है. हां, अगर कोई लड़की खुद  के लिए पसंद कर रखी हो, तो मुझे बेफिक्र हो कर बता सकता है. मैं किसी से नहीं कहूंगी.’’

‘‘नहीं अम्मी, ऐसी तो कोई बात नहीं है,’’ इतना कह कर अनस चला गया.

अगले दिन ही अनस ने शमा से मुलाकात की.

‘‘सब लोग मेरे पीछे पड़े हैं…  शादी कर लो, शादी कर लो,’’ अनस परेशान हालत में कह रहा था.

‘‘तो कर लो शादी… इस में हर्ज ही क्या है?’’ शमा ने हंसते हुए कहा.

‘‘तुम अच्छी तरह से जानती हो शमा कि अब्बू ने बड़ी मुश्किल से 2 कमरे का मकान बनवाया है. उन दोनों कमरों में दोनों बड़े भाई रह रहे हैं. अब तुम ही बताओ कि मैं शादी कर के भला क्या तुम्हें आंगन में बिठा दूं…’’ अनस काफी गुस्से में था.

‘‘अब तो ऐसे में हमारे सामने सिर्फ 2 ही रास्ते हैं… पहला रास्ता यह है कि हम शादी कर लें और उसी घर में जैसेतैसे गुजारा करें. दूसरा रास्ता यह है कि हमतुम पैसे जमा करें और जो छोटीमोटी रकम जमा हो सके, उस  से एक छोटा सा कमरा बनवा लें,’’ शमा ने कहा.

दरअसल, अनस ने अपनी जिंदगी में एक वह समय भी देखा था, जब अब्बू ने प्लाट खरीदने के बाद दीवारें तो खड़ी कर ली थीं, पर पैसों की तंगी के चलते कमरे बनवा पाना उन के बस में नहीं रह गया था.

इस से अनस के दोनों बड़े भाइयों कमर और जफर को दिक्कत हुई, क्योंकि दोनों शादीशुदा थे और दिनभर के काम के बाद अपनी बीवियों के साथ रात गुजारें भी तो कैसे?

हालात कुछ ऐसे बने कि दोनों भाइयों की चारपाई अलग और उन की बीवियों की चारपाई अलग पड़ने लगी.

पर भला ऐसा कब तक चलता? उन सभी की जिस्मानी जरूरत उन लोगों को एकसाथ रात गुजारने को कहती थी, पर हालात के चलते ऐसा हो पाना मुमकिन नहीं लग रहा था.

अपनी जिस्मानी जरूरत और रात गुजारने की मुहिम की शुरुआत करने में पहला कदम बड़े भाई कमर ने उठाया. बड़े ही करीने से कमर ने अपनी चारपाई को दीवार से सटा कर डाल दिया और उस के ऊपर आड़ेतिरछे बांस अड़ा कर एक खाका बनाया और उस के ऊपर से एक बेहतरीन टाट का परदा डाल दिया. अब यह जगह ही कमर और बीवी का ड्राइंगरूम थी और यही जगह उन का बैडरूम भी.

छोटे भाई जफर को यह सब थोड़ा अजीब भले ही लगा हो, पर उस ने कभी हावभाव से कुछ जाहिर नहीं होने दिया. अलबत्ता, कुछ दिनों के बाद उस ने भी दूसरी दीवार के पास अपनी चारपाई डाल कर उसे भी टाट से कवर कर के अपना बैडरूम बना लिया.

कमर और जफर और उन की बीवियां तो अब टाट के परदे के अंदर सोते और बाकी सब लोग आंगन में,

अनस के दोनों बड़े भाई बेफिक्री से रात में अपनी शादीशुदा जिंदगी का मजा लूटते, पर उन लोगों की चारपाई की चूंचूं की आवाज अनस की नींद खराब करने को काफी होती. भाभियों की खनकती चूडि़यां अनस को बिना कुछ देखे ही टाट के अंदर का सीन दिखा जातीं.

कुंआरा अनस आंगन में लेटेलेटे ही बेचैन हो उठता. कुछ समय तक एक खास अंदाज में चारपाई की चूंचूं होती और उस के बाद एक खामोशी छा जाती. कहने को तो हर काम परदे में हो रहा था, पर हर चीज बेपरदा हो रही थी.

अगर किसी रात में कमर की चारपाई पर खामोशी रहती, तो जफर की चारपाई पर आवाजें शुरू हो जातीं. अनस अकसर सोचता कि भला ये आवाजें अम्मीअब्बू को सुनाई नहीं देती होंगी क्या? क्या वे लोग जानबूझ कर इन आवाजों को अनसुना कर देते हैं?

रात में होने वाली इन आवाजों से अनस परेशान हो जाता. उस के भी कुंआरे मन में कई उमंगें जोर मारने लगतीं और वह कभीकभार तो अपने बिस्तर पर ही उठ कर बैठ जाता और जब सुबह के समय गैराज में नींद न पूरी होने के चलते काम में उस का मन नहीं लगता, तब अब्बू और उस के बड़े भाई उसे डांटते.

ये सारी परेशानियां कम जगह और पैसे की तंगी के चलते ही तो थीं. अनस हमेशा ही एक अलादीन के चिराग की खोज में रहता, जिस से उस की सारी माली तंगी दूर हो जाती.

हालांकि वक्त हमेशा एकजैसा नहीं रहता. कमर और जफर ने खूब मेहनत कर के पैसा इकट्ठा किया और छोटेछोटे 2 कमरे बनवा लिए, जिन्हें दोनों शादीशुदा भाइयों ने आपस में बांट लिया.

पर, अनस और अम्मीअब्बू के लिए अब भी कमरा नहीं था. वे सब अब भी बाहर बरामदे में ही सोते थे.

पैसे और जगह की तंगी के चलते ही अनस ने अपने मन में यह फैसला ले लिया था कि जब तक घर में रहने के लिए एक कमरा नहीं बनवा लेगा, तब तक वह शादी के लिए हामी नहीं भरेगा और इसीलिए अनस ने अब तक शादी के लिए हामी नहीं भरी थी.

उस दिन पता नहीं क्यों शमा फोन पर बहुत घबराई हुई थी, ‘हां अनस… आज ही तुम से मिलना जरूरी है… बताओ, कहां और कितनी देर में मिल सकोगे?’

‘‘हां… मिल तो लूंगा… पर सब खैरियत तो है?’’

पर उस की इस बात का शमा ने कोई जवाब नहीं दिया. फोन काटा जा चुका था.

दोपहर को 2 बजे शमा और अनस उसी पार्क में एकसाथ थे, जहां वे अकसर मिला करते थे.

‘‘अब्बू मेरा निकाह कहीं और करने जा रहे हैं… अगर मुझ से निकाह  नहीं करना है तो कोई बात नहीं,’’ शमा ने कहा.

‘‘अरे, ऐसी कोई बात नहीं है. पर जब तक मैं अपने घर में एक कमरा न बनवा लूंगा, तब तक कैसे निकाह कर लूं, तुम्हीं बताओ?’’ अनस ने अपनी परेशानी जाहिर की.

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‘‘हां… मैं तुम्हारे घर की परेशानी समझती हूं, पर एक कमरा न सही तो क्या हुआ, जहां दिलों में गुंजाइश होती है वहां सबकुछ हो जाता है… और फिर मेरे हाथों में भी हुनर है. शादी के बाद मैं भी कशीदाकारी का काम करूंगी और हम दोनों मिल कर पैसे कमाएंगे तो हम एक कमरा बहुत जल्दी ही बनवा लेंगे,’’ शमा ने राह सुझाई.

अनस बेचारा दोराहे पर फंस गया था. अगर वह शमा से निकाह करता है, तो उस के घर में कमरे की परेशानी है. और अगर यह बात सोच कर वह शादी नहीं करता है, तो शमा ही उस की जिंदगी से चली जाएगी… क्या करे और क्या न करे?

इसी ऊहापोह में अनस गैराज में आ कर काम करने लगा, पर उस का मन काम में न लगता था. बारबार उस की आंखों के सामने शमा का चेहरा घूम जाता था और वह खुद को एक हारा हुआ खिलाड़ी महसूस करने लगता था.

एक दिन जब अनस को और कोई रास्ता नहीं सूझा, तो उस ने अपनी और शमा की मुहब्बत के बारे में अम्मी को सबकुछ बता दिया.

अम्मी को अनस की यह साफगोई पसंद आई और उन्होंने भी अब्बू से बात कर के शमा के घर पैगाम भिजवा दिया.

शमा के घर वाले भी सुलझे हुए लोग थे. उन्होंने भी रिश्ता पक्का करने में कोई देरी नहीं की और अनस का निकाह शमा के साथ कर दिया गया.

घर के दोनों कमरों में बड़े भाईभाभियों का कब्जा था. लिहाजा, अपनी शादी की पहली रात में अनस को भी एक दीवार का ही सहारा लेना पड़ा. उस ने अपनी चारपाई एक दीवार के सहारे लगा कर उस पर एक सुनहरे रंग का परदा लगा दिया.

‘‘नई दुलहन के लिए कोई भाभी अपना कमरा 2-4 दिन के लिए खाली नहीं कर सकती थी क्या? पर नहीं… यहां तो बूढ़ों के भी रंगीन ख्वाब हैं,’’ भनभना रहा था अनस.

पूरी रात अनस ने शमा को हाथ भी नहीं लगाया, क्योंकि वह चारपाई से निकलने वाली आवाजों से अनजान न था. अपने मन को कड़ा किए वह चारपाई के एक कोने में बैठा रहा, जबकि शमा दूसरी तरफ. 2 दिल कितने पास थे, पर उन के जिस्म एकदूसरे से कितनी दूर.

अगले दिन से ही अनस को पैसे कमाने की धुन लग गई थी. वह जल्दी से जल्दी पैसे कमा कर अपने और शमा के लिए एक कमरा बनवा लेना चाहता था, इसीलिए गैराज में 12-12 घंटे काम करने लगा था.

एक दिन की बात है, अनस जब गैराज में काम कर रहा था, तभी एक बड़े आदमी की गाड़ी वहां आ कर रुकी. उस गाड़ी के एयरकंडीशनर की गैस निकल जाने के चलते एयरकंडीशनर नहीं चल रहा था और उस में बैठा हुआ आदमी बेहाल हुआ जा रहा था.

अनस ने उस की परेशानी समझी और फटाफट काम में लग गया. तकरीबन आधा घंटे में उस की गाड़ी का एयरकंडीशनर ठीक कर दिया.

‘‘बड़े मेहनती लगते हो… मुझे मेरे काम में भी तुम्हारे जैसे जवान और मेहनती लोगों की जरूरत रहती है… अगर तुम चाहो, तो मेरे साथ जुड़ सकते हो. मैं तुम्हें तुम्हारे काम की अच्छी कीमत दूंगा.’’

‘‘पर, मुझे क्या करना होगा?’’

‘‘एक गाड़ी वाले से गाड़ी का ही काम तो लूंगा न… उस की चिंता मत करो… अगर मन करे, तो मेरे इस पते  पर आ जाना,’’ इतना कह कर वह सेठ चला गया.

यह एजाज खान का कार्ड था, जो दवाओं का होलसेलर था.

अनस पैसे के लिए परेशान तो था ही, इसलिए एक दिन एजाज खान के पते पर जा पहुंचा और काम मांगा.

‘‘ठीक है, तुम्हें काम मिलेगा… पर, मैं तुम से कुछ छिपाऊंगा नहीं. मुझे तुम्हारे जैसे तेज ड्राइवर की जरूरत है, जो रात में ही इस गाड़ी को शहर के बाहर ले जा सके और सुबह होने से पहले वापस भी आ सके.’’

शहर के बाहर वाले पैट्रोल पंप पर एक आदमी तुम्हारे पास आएगा, जिसे तुम्हें ये दोनों डब्बे देने होंगे और वापस यहीं आना होगा.’’

‘‘पर, इन डब्बों में क्या है?’’

‘‘इन डब्बों में ड्रग्स हैं… मैं ड्रग्स का काम करता हूं और इस के शौकीन लोगों को इस की डिलीवरी करवाना मेरी जिम्मेदारी है.’’

अनस अच्छी तरह समझ गया था कि एजाज खान उस से गैरकानूनी काम कराना चाहता?है, पर अपनी शादीशुदा जिंदगी में रंग घोलने के लिए अनस को भी पैसे की जरूरत थी.

अनस को यह काम करने में थोड़ी हिचक तो हुई, पर उस ने इसे करना मंजूर कर लिया. उस ने एजाज खान की गाड़ी शहर से बाहर ले जा कर पैट्रोल पंप पर खड़ी कर के वे डब्बे एक शख्स को दे दिए और वापस आ गया.

एजाज खान ने उसे इस जरा से काम के 25,000 रुपए दिए, तो अनस बहुत खुश हुआ.

‘‘बस शमा… अब देर नहीं है… ये देखो 25,000 रुपए… मुझे एक नया काम मिल गया?है, जिस के जरीए मैं खूब सारे पैसे कमा लूंगा और फिर अपना एक अलग कमरा होगा, जिस में हम दोनों खूब प्यार कर सकेंगे,’’ घर आ कर अनस ने शमा के हाथ को हलके से दबाते हुए कहा. यह सुन कर एक अच्छे भविष्य की कल्पना से शमा की आंखें भी छलछला आईं. 2 दिन बाद अनस के मोबाइल  पर एजाज खान का फोन आया, जिस  में उस ने एक बार और गाड़ी से दवा  की डिलीवरी करने के लिए अनस  को बुलाया.

हालांकि इस बार दवाओं के डब्बों की मात्रा ज्यादा थी, लेकिन पिछली बार की तरह अनस इस बार भी आराम से दवाएं डिलीवर कर आया था और इस के बदले में एजाज खान ने उसे 40,000 रुपए दिए.

अनस से ज्यादा खुश आज कोई नहीं था. वह पैसे ले कर सीधा बाजार पहुंचा और वहां से एक मिस्त्री की सलाह से ईंट, सीमेंट और मौरंग का और्डर कर दिया. वह जल्द से जल्द अपना कमरा बनवा लेना चाहता था.

अनस बिस्तर पर लेटा हुआ था. उस के नथुने में सीमेंट और मौरंग की महक रचबस जाती थी. वह सोच रहा था कि जिंदगी में सारी तकलीफें पैसे की कमी से आती?हैं, पर आज अनस के पास पैसा भी था और मन ही मन में ये सुकून भी था कि अब उसे और शमा को टाट के साए में नहीं सोना पड़ेगा.

रात के 11 बजे होंगे कि अचानक अनस का मोबाइल बजा, उधर से  एजाज खान बोल रहा था, ‘तुम अभी  मेरे पास चले आओ और एक गाड़ी दवा की ले कर तुम्हें शहर के बाहर जाना  है. वहां पर एक आदमी तुम से माल  ले लेगा.’

‘‘पर, अभी तो आधी रात हो रही है. और फिर मैं सोया भी नहीं हूं… मैं कैसे जा सकता हूं.’’

‘ज्यादा चूंचपड़ मत करो और चले आओ… पिछली बार से दोगुना दाम दूंगा… और वैसे भी हमारे धंधे में आने का रास्ता तो है, पर जाने का कोई रास्ता नहीं,’

कह कर एजाज खान ने फोन  काट दिया.

‘‘इतनी रात गए जाना पड़ेगा…?’’ शमा ने पूछना चाहा.

‘‘बस मैं यों गया और यों आया.’’

एजाज खान से गाड़ी ले कर अनस चल पड़ा. हाईवे पर उस की कार तेजी से भागी जा रही थी. अचानक अनस चौंक पड़ा था. सामने पुलिस की

2 जीपें रोड के बीचोंबीच खड़ी थीं. न चाह कर भी अनस को अपनी कार रोकनी पड़ी.

‘‘हमें तुम्हारी गाड़ी चैक करनी है… पीछे का दरवाजा खोलो,’’ एक पुलिस वाले ने कहा.

अनस के माथे पर पसीना आ गया, ‘‘पीछे कुछ नहीं है सर… दवाओं के डब्बे हैं. बस इन्हें ही पहुंचाने जा रहा हूं,’’ अनस ने कहा.

‘‘हां तो ठीक है… जरा हम भी तो देखें कि कौन सी दवाएं हैं, जिन्हें तू इतनी रात को ले जा रहा हैं,’’ पुलिस वाला बोला.

अनस को अब भी उम्मीद थी कि वह बच जाएगा, पर शायद ऐसा नहीं था. पुलिस ने दवा के डब्बे में छिपी हुई चरस बरामद कर ली थी. अनस को गिरफ्तार कर लिया गया.

अनस के हाथपैर फूल गए थे.

अगले दिन खुद पुलिस वालों ने अनस के मोबाइल से उस के घर वालों को सारी सूचना दी. शमा यह खबर सुन कर बेहोश हो गई.

अब अनस को किसी कमरे की जरूरत नहीं थी. उस की बाकी की जिंदगी के लिए तो जेल का ही कमरा काफी था, क्योंकि ड्रग्स के जाल में वह फंस चुका था.

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