‘‘आजकल आप के टूर बहुत लग रहे हैं. क्या बात है जनाब?’’ नंदिनी संजय से चुहलबाजी कर रही थी.
‘‘क्या करूं, नौकरी का सवाल है, नहीं तो तुम्हें छोड़ कर जाने का मेरा मन बिलकुल भी नहीं करता है,’’ संजय ने भी हंसी का जवाब हंसी में दे दिया.
‘‘पहले तो ऐसा नहीं था, फिर अचानक इतने ज्यादा टूर क्यों हो रहे हैं?’’ इस बार नंदिनी ने संजीदगी से पूछा था.
‘‘तो क्या घर बैठ जाऊं?’’ संजय को गुस्सा आ गया.
‘‘इस में इतना गुस्सा होने की क्या बात है? मैं तो यों ही पूछ रही थी,’’ नंदिनी बोली.
‘‘जैसा कंपनी कहेगी, वही करना पड़ेगा.’’
‘‘ठीक है, पर...’’
‘‘तुम मु?ा पर शक कर रही हो...’’ संजय ने कहा, ‘‘जैसे मैं किसी और से मिलने जाता हूं... है न?’’
‘‘अरे, मैं तो मजाक कर रही थी,’’ नंदिनी ने कहा.
‘‘तुम्हारे मन में ऐसेऐसे खयाल आ जाते हैं, जिन का कुछ भी मतलब नहीं होता है.’’
‘‘अच्छा बाबा, माफ कर दो. मैं तो इसलिए कह रही थी कि गरमी की छुट्टियों में हम सब बच्चों के साथ कहीं बाहर घूमने चलें,’’ नंदिनी जैसे अपनी सफाई पेश कर रही थी.
‘‘ठीक है, देखते हैं,’’ संजय ने कहा.
एक दिन घर के कामकाज निबटा कर नंदिनी छत पर चली गई थी, तभी दरवाजे की घंटी बजी.
जब दरवाजा खोला, तो सामने पड़ोसन रागिनी खड़ी थी.
‘‘आओ रागिनी भाभी, अचानक कैसे आना हुआ?’’ नंदिनी ने पूछा.
‘‘तुम्हें पता है नंदिनी कि आजकल कालोनी में क्या हो रहा है.’’
‘‘ऐसा क्या हो रहा है, जो मु?ो नहीं पता?’’
‘‘अरे, पिछले कई दिनों से एक पगली इस कालोनी में आई हुई है और सब बच्चे उसे छेड़ते रहते हैं.’’
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