सीमेंट : भूपेश, विपक्ष और अफवाहें

छत्तीसगढ़ के मुखिया भूपेश बघेल सीमेंट के मसले पर इन दिनों विपक्ष भाजपा और आम जनता के निशाने पर है. कांग्रेस की सरकार आने के बाद अब धीरे-धीरे ही सही माफियाओं के मुंह खुलने लगे हैं. जिनमें सबसे आगे है- सीमेंट के बड़े कारोबारी और फैक्ट्रियां.  यह चर्चा सरगम है कि फैक्ट्रियों को खुली छूट दे दी गई है, की दाम आप बढ़ा लो! सत्ता और सीमेंट किंग आपस में एक हो चुके हैं. परिणाम स्वरूप सीमेंट के भाव बेतहाशा बढ़ते चले गए. लगभग प्रति बैग 20 रुपये  का अतिरिक्त भार अब उठाना होगा.

प्रदेश में इस मसले पर एक तरह से हाहाकार मचा हुआ है सीमेंट के साथ-साथ रेत माफिया भी करोड़ों रुपए का खेल कर रहा है. वहीं यह भी खबर आ रही है कि स्टील के दाम भी बढ़ने जा रहे हैं. यह सब भूपेश बघेल की सरकार के समय हो रहा है जिन्होंने लंबे समय तक विपक्ष की राजनीति करते हुए इन्हीं मसलों पर डॉक्टर रमन सरकार को घेरा था.

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इधर सीमेंट की कीमतों में हो चुके  इजाफे से  सियासत गरमाते जा रही है. नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने कीमतों में बढ़ोत्तरी को लेकर राज्य सरकार पर उद्योगपतियों से सांठगांठ का खुला  आरोप लगा दिया  है. कौशिक ने कहा कि महीनेभर के भीतर दो बार सीमेंट के दाम बढ़ना कई सवाल खड़ा करता है. उद्योगपतियों और सरकार की मिलीभगत से छत्तीसगढ़ की जनता के जेब मे “डाका” डाला जा रहा है.कौशिक ने कहा कि सरकार जिस प्रकार से गुपचुप तरीके से उनके साथ बैठकें कर रही है, उस समय आरोप लगाया था कि सीमेंट के दामों में वृध्दि होगी. लेकिन उनके प्रवक्ता ने कहा था कि धरमलाल कौशिक के पास कोई काम नहीं है. मैं जिस बात को बोलता हूं प्रमाणिकता के साथ बोलता हूं, आज वो बात सच साबित हो गई कि ये लोग सीमेंट के रेट को कैसे बढ़ा रहे हैं. सरकार ने उद्योगपतियों के सामने घुटने टेक दिए हैं, इसका क्या कारण है वो मैं नहीं जानता लेकिन इनकी मिलीभगत से ये संभव नहीं है.

एक करोड़ का डाका!!

धरमलाल कौशिक ने जो आरोप लगाए हैं वह सोचने को विवश करते हैं और सच्चाई के निकट प्रतीत होते हैं  उन्होंने कहा,  छत्तीसगढ़ में सीमेंट के जो उपभोक्ता हैं खासकर प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत जो काम चल रहा है, अब उसका रेट बढ़ेगा. छत्तीसगढ़ के लोगों के जेब से 1 करोड़ प्रतिदिन के हिसाब से डाका डाला जा रहा है.

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महीने के हिसाब से छत्तीसगढ़ के लोगों के जेब से निकाला जा रहा है ये अत्यंत दुर्भाग्य जनक घटना है.  भूपेश सरकार को इस पर रोक लगानी होगी मै उद्योगपतियों से भी आग्रह करूंगा कि रेट कम करें. छत्तीसगढ़ की फिजा में सीमेंट रेट  स्टील चर्चा का सबब बने हुए हैं गली चौराहे और नुक्कड़ पर सीमेंट की बेतहाशा दाम बढ़ने पर चर्चा हो गई है सीधे-सीधे इसका असर कांग्रेश की भूपेश सरकार की छवि पर पड़ रहा है.

सीमेंट के दाम पर घमासान

छत्तीसगढ़ में सीमेंट के बढ़ते  दाम  सियासी मुद्दा बन जाते हैं. छत्तीसगढ़ राज्य बनने के पश्चात मुख्यमंत्री अजीत जोगी के समय काल 2003 में यहां सीमेंट की कीमत  प्रति बैग सौ स्र्पये से  भी कम थी.राजनीति  घुसी तो 2004 में दाम सीधे 120 स्र्पये प्रति बैग हो गया. 2005 के शुरूआत में डॉ रमन सिंह के आशीर्वाद से सीमेंट के दाम 155  रुपए और 2006 में यह दाम सीधे 200 के पार पहुंच गया.

जब- जब दाम बढ़े तब-तब इसका विरोध भी होता  है .आगे सन 2008 में दाम सीधे 250 से 300 पहुंच गये.अजीत जोगी  और जनता ने इस वृद्धि का  तीव्र विरोध  किया.भाजपा  सरकार पर सीमेंट कंपनियों से मिलीभगत सरंक्षण  का आरोप लगा. आगे  आर्थिक मंदी के कारण सीमेंट के दाम गिर कर  250 तक पहुंच गये. दिसंबर 2018 में छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के समय दाम 225 से 230 रुपये ही था.

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तानाशाह है सरकार एसआर दारापुरी: रिटायर्ड आईपीएस और सामाजिक कार्यकर्ता

साल 1972 के बैच के आईपीएस एसआर दारापुरी पुलिस की सर्विस से साल 2003 में आईजी के पद से रिटायर हुए थे. वे अब उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की इंदिरानगर कालोनी में रहते हैं.

पुलिस से रिटायर होने के बाद एसआर दारापुरी ने सामाजिक कार्यकर्ता और राजनीतिक पार्टी के जरीए जनता की सेवा का काम करना शुरू किया.

उन की पहचान दलित चिंतक के रूप  में भी है.

76 साल के एसआर दारापुरी आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के राष्ट्रीय प्रवक्ता  हैं. नागरिकता कानून के विरोध प्रदर्शन में पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया था.

14 दिन जेल में रहने के बाद वे जेल से छूट कर वापस आए और कहा, ‘‘सरकार के दमन का हमारे ऊपर कोई असर नहीं हुआ है. हम ने नागरिकता कानून का पहले भी विरोध किया था, आज भी कर रहे हैं और आने वाले कल में भी करेंगे. हम ने पहले भी हिंसा नहीं की, आज भी नहीं कर रहे और आगे भी नहीं करेंगे. शांतिपूर्ण तरीके से हम अपना विरोध दर्ज कराते रहेंगे.’’

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गैरकानूनी थी हिरासत

एसआर दारापुरी अपनी गिरफ्तारी पर जानकारी देते हुए कहते हैं, ‘‘5 दिसंबर, 2019 को नागरिकता कानून के खिलाफ हजरतगंज पर बनी डाक्टर अंबेडकर की प्रतिमा के नीचे धरना दिया गया था. वहां बहुत सारे सामाजिक संगठनों के लोग थे. वहां पर 19 दिसंबर, 2019 को नागरिकता कानून के विरोध की घोषणा हुई थी.

‘‘बाद में हमारे इस अभियान में दूसरे कई राजनीतिक लोग भी जुड़ गए थे.

19 दिसंबर, 2019 को विरोध प्रदर्शन को देखते हुए मुझे अपने घर में पुलिस ने नजरबंद कर दिया था.

‘‘19 दिसंबर की सुबह 7 बजे जब मैं अपने घर से टहलने के लिए सामने बने पार्क में गया तो गाजीपुर थाने के पुलिस के 2 सिपाही वहां बैठे मिले. इस की मुझे पहले से कोई जानकारी नहीं थी. जब मैं वापस आया और सिपाहियों से पूछा तो बोले कि हमें थाने से यहां ड्यूटी पर भेजा गया है.

‘‘तकरीबन 2 घंटे के बाद सीओ गाजीपुर और एसओ गाजीपुर यहां जीप से आए. उस समय मुझे यह बताया कि घर से बाहर नहीं जाना है. तब मैं ने घर से अपने हाउस अरैस्ट होने और नागरिकता कानून के विरोध का फोटो अपने फेसबुक पेज पर पोस्ट किया.

‘‘शाम के तकरीबन 5 बजे मुझे नागरिकता कानून के विरोध और हिंसा की खबरें मिलीं तो मैं ने अपने कुछ साथियों से पीस कमेटी बना कर काम करने के लिए कहा, जिस में यह तय हुआ कि शनिवार को हम लोग प्रशासन से मिल कर इस काम को अंजाम देंगे.

‘‘20 दिसंबर की सुबह 11 बजे पुलिस मेरे घर आई. सीओ और एसओ गाजीपुर ने मुझे थाने चलने के लिए कहा. मैं ने उन से पूछा कि क्या मुझे गिरफ्तार किया जा रहा है? तो वे बोले कि नहीं, आप को थाने चलना है.

‘‘मैं अपने साधारण कपड़ों में ही पुलिस की जीप में बैठ कर थाने चला आया. मुझे लगा कि शाम तक वापस छोड़ देंगे. मैं दिनभर गाजीपुर थाने में बैठा रहा. शाम के तकरीबन 6 बजे मुझे हजरतगंज थाने चलने के लिए बोला गया.

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‘‘मैं पुलिस के साथ हजरतगंज थाने आ गया. वहां मैं ने फिर अपनी गिरफ्तारी की बात पूछी तो इंस्पैक्टर हजरतगंज ने कहा कि 39 पहले हो चुके हैं, आप 40वें हैं. उम्र में बड़ा होने या पहले पुलिस में रहने के चलते मुझे बैठने के लिए कुरसी दे दी गई थी, पर खाने के लिए कुछ नहीं दिया गया.

‘‘रात को तकरीबन 11 बजे मुझे रिमांड मजिस्ट्रेट के सामने पेश होने के लिए रिवर बैंक कालोनी ले जाया गया. वहां मजिस्ट्रेट के सामने मैं ने पूरी बात बताई. पुलिस ने मुझ पर हिंसा की साजिश रचने की धारा 120 बी का मुकदमा कायम किया था. पुलिस तथ्यों और अपनी बात से मजिस्ट्रेट को सहमत नहीं कर पाई. ऐसे में मजिस्ट्रेट ने रिमांड नहीं दी.’’

नहीं दिया कंबल

‘‘रात तकरीबन 12 बजे मुझे वापस हजरतगंज थाने लाया गया. उस समय तक मुझे सर्दी लगने लगी थी. मैं साधारण कपड़ों में था. मैं ने कंबल मांगा, तो पुलिस ने नहीं दिया.

‘‘मैं ने किसी तरह से घर पर फोन कर बेटे को कंबल लाने के लिए कहा, तो वह डरा हुआ था. उस को यह जानकारी मिल रही थी कि जो भी ऐसे लोगों से मिलने जा रहा है, उस को पकड़ा जा रहा है. इस डर के बाद भी वह किसी तरह से कंबल ले कर घर से थाने आया.

‘‘इस दौरान मुझे खाने के लिए कुछ भी नहीं दिया गया था. मेरे पास पानी की बोतल थी, वही पी कर प्यास बुझा रहा था. पुलिस ने मनगढं़त लिखापढ़ी की और बताया कि रिमांड मजिस्ट्रेट मिले नहीं थे. फिर मेरी गिरफ्तारी को घर से न दिखा कर महानगर के किसी पार्क से होना दिखाया.

‘‘21 दिसंबर की शाम मुझे जेल भेजा गया. जेल में रिमांड मजिस्ट्रेट के सामने मुझे पेश किया गया. जेल में जाने के समय रात के 9 बज गए थे. मैं रात को भूखा ही सो गया. 22 दिसंबर की सुबह मुझे जेल में नाश्ता मिला.

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‘‘तकरीबन 37 घंटे मुझे पुलिस ने बिना किसी तरह के खाने के रखा. मेरा 161 का बयान नहीं कराया गया.

‘‘जेल में मुझे तमाम ऐसे लोग मिले, जिन को लखनऊ में दंगा फैलाने के आरोप में पकड़ा गया था. ऐसे लोगों को शारीरिक प्रताड़ना की भी जानकारी मिली.

‘‘मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दंगा करने वालों से बदला लेने के बयान के बाद पुलिस बेहद क्रूर हो गई. हिंसा में पकड़े गए लोगों को हजरतगंज थाने से अलग ले जा कर मारा गया.

‘‘एक पुलिस अधिकारी ने कहा कि इन को इतना मारो कि पीठ डेढ़ इंच से कम सूजी नहीं होनी चाहिए. जेल में दिखे कई लोगों के चेहरे ऐसे सूजे थे कि वे पहचान में नहीं आ रहे थे.’’

निचली अदालत से जमानत खारिज होने के बाद एसआर दारापुरी को सैशन कोर्ट से जमानत मिली.

एसआर दारापुरी जितने दिनों जेल में थे, उन की बीमार पत्नी घर पर थीं. इस बीच कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी उन से मिलने उन के घर भी गई थीं.

इन की मिलीभगत

एसआर दारापुरी कहते हैं, ‘‘हमारा नागरिकता कानून का विरोध शांतिपूर्ण था. इस को दबाने के लिए हिंसा फैलाई गई. सदफ जफर नामक महिला फेसबुक पर लाइव करते पुलिस से कह रही थीं कि इन लोगों को पकड़ो. पुलिस ने उन को नहीं पकड़ा. थाने में लाने के बाद भी कुछ लोगों को छोड़ दिया गया.

‘‘जिन के बारे में सुना गया कि वे लोग भाजपा समर्थन के चलते छोड़ दिए गए. ऐसे में साफ है कि पुलिस की मिलीभगत से भाजपा और आरएसएस के लोगों ने यह काम कराया.’’

एसआर दारापुरी लखनऊ पुलिस को खुलेआम चुनौती देते हुए कहते हैं, ‘‘अगर पुलिस ने सही लोगों को पकड़ा है तो 19 दिसंबर के दंगे के सारे वीडियो फुटेज सार्वजनिक करे. यह दिखाए कि जिन लोगों को पकड़ा है, ये वही लोग हैं जो दंगा फैलाने में शामिल थे. पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए.

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‘‘यही नहीं, लखनऊ की हिंसा में मारा गया वकील नामक आदमी पुलिस की गोली से ही मरा है. अगर ऐसा नहीं है तो पुलिस वीडियो के जरीए यह क्यों नहीं दिखाती कि वह किस की गोली से मरा है. मरने वाले का परिवार पुलिस के दबाव में है.’’

एसआर दारापुरी कहते हैं, ‘‘यह सरकार का एक दमनकारी कदम है, जो मानवाधिकार, लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है. यह तानाशाही सरकार है. यह तो खुला दमन है. योगी राज में पुलिस पूरी तरह से क्रूर और हत्यारी हो चुकी है. इस सरकार के दौरान पुलिस के ऐनकाउंटर में 95 फीसदी मामले झूठे हैं. पुलिस जब घटना के दिन वाले वीडियो जारी करेगी, तो सच खुद सामने आ जाएगा.’’

भूपेश बघेल: धान खरीदी का दर्द!

छत्तीसगढ़ में  किसान के लिए धान बेचना एक दर्द, यातना बन गया है, तो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के लिए धान खरीदी सरदर्द बन चुकी है. सरकार का एक ऐसा कदम, जिसके लिए कहा जा सकता है कि “ना उगलते बने न निगलते बने”. छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है, यहां  धान की खरीदी समर्थन मूल्य पर, सरकार बोनस के साथ किया करती थी.

एक उत्सव के रूप में, गांव गांव में किसान खुशहाल दिखाई देते थे.धान मंडियों में किसानों का मेला लगा रहता था. रमन सिंह के समयकाल में  2100 रुपए कुंटल में सरकार धान खरीदी किया करती थी. मगर किसानों को खुश करने के लिए भूपेश बघेल ने एक बड़ा दांव चला कि कांग्रेस सरकार आती है तो 2500 रुपये  क्विंटल धान का दिया जाएगा. और 2018 के विधानसभा चुनाव में इसी मुद्दे पर भाजपा का सूपड़ा ही साफ हो गया. अब स्थितियां बदल रही है भूपेश सरकार के पास किसानों के लिए  25 सौ रुपये  तो है नहीं, हां! आश्वासन का एक बड़ा पिटारा जरूर है.

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इस रिपोर्ट में हम धान खरीदी को लेकर के ग्राउंड की सच्चाई को आपके सामने प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे. हमारे संवाददाता ने छत्तीसगढ़ के 4 जिलों रायपुर, बेमेतरा,  जांजगीर, कोरबा  के किसानों से बातचीत की जिस का सारांश प्रस्तुत है-

भाजपा-कांग्रेस आमने-सामने 

धान खरीदी मामले को लेकर भाजपा कांग्रेस  आमने-सामने है. भाजपा ने कांग्रेस पर निशाना साधा है. खाद्य मंत्री अमरजीत भगत के बयान को लेकर बीजेपी ने बड़ा आरोप लगाया है. प्रदेश अध्यक्ष विक्रम उसेंडी ने कहा कि मंत्री अमरजीत भगत का ये कहना कि खरीदी की तारीख नहीं बढ़ाई जाएगी!कांग्रेस सरकार की किसान विरोधी मानसिकता को दर्शाती है. उन्होंने कहा कि “पंचायत चुनाव” निपटते कांग्रेस का नकाब उतर गया है. कांग्रेस ने अब अपना असल चेहरा दिखा दिया है. कांग्रेस का यही चरित्र है. बीजेपी लगातार कांग्रेस की मंशा को लेकर सवाल उठाती रही है.

उसेंडी ने कहा कि किसानों को धान ख़रीदी के नाम पर “ख़ून के आँसू” रुलाने वाली सरकार ने धान ख़रीदी की मियाद नहीं बढ़ाने का एलान करके अपने अकर्मण्यता का  परिचय दिया है. भूपेश सरकार द्वारा पहले धान ख़रीदी एक माह विलंब से शुरू की गई और किसानों का पूरा धान 25सौ रुपए प्रति क्विंटल की दर पर ख़रीदने से बचने के लिए नित-नए नियमों के तुगलकी फ़रमानों का छल-प्रपंच रचा गया, धान की लिमिट तय करके किसानों को चिंता में डाला, धान का रक़बा घटाने तक का  कृत्य तक किया, ख़रीदी केंद्रों से धान का समय पर उठाव नहीं करके धान ख़रीदी में दिक़्क़तें पैदा कीं और इस तरह पिछले वर्ष के मुक़ाबले इस साल लाखों मीटरिक टन धान कम ख़रीदा गया.

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भाजपा के एक बड़े नेता शिवरतन शर्मा ने ने कहा कि खाद्य मंत्री का यह एलान किसानों के साथ दग़ाबाज़ी का प्रदेश सरकार द्वारा लिखा गया काला अध्याय है और कांग्रेस को इस दग़ाबाज़ी की समय पर भारी क़ीमत  चुकानी  पड़ेगी.

भाजपा के समय काल में संसदीय सचिव रहे लखन देवांगन कहते हैं  पंचायत चुनावों के दौरान प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने धान ख़रीदी की समय-सीमा बढ़ाने की बात कही थी, तो अब मुख्यमंत्री को यह सफाई देनी ही होगी कि उनके वादे के बावजूद उनकी सरकार के मंत्री किस आधार पर समय-सीमा नहीं बढ़ाने की बात कह रहे हैं?

छत्तीसगढ़ में भाजपा के बड़े नेता चाहे वे डॉ रमन सिंह हों अथवा विक्रम उसेंडी सभी एक सुर में भूपेश बघेल सरकार को धान खरीदी के मसले पर घेर चुके हैं. मगर कहते हैं ना सत्ता कठोर होती है वह हाथी की मदमस्त चाल से अपनी ही धुन में चलती है वही सत्य छत्तीसगढ़ में भी दिखाई दे रहा है.

किसानों के चेहरे मुरझाए क्यों हैं?

छत्तीसगढ़ में धान खरीदी के दरमियान किसान और आम आदमी जहां प्रसन्न दिखाई देता था वहीं आजकल किसान और गांव के आम आदमी दुखी, पीड़ित दिखाई देते हैं. किसान को पटवारी के यहां, राजस्व निरीक्षक के यहां, तहसीलदार के यहां कई कई चक्कर लगाने पड़ रहे हैं. खाद्य अधिकारियों की नकेल कसी हुई है. एसडीएम और कलेक्टर की निगाह एक एक किसान पर लगी हुई है. कहीं कोई किसान पीछे दरवाजे से सरकार को इधर उधर का धान न थमा दे.

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किसानों की ऐसी निगरानी की जा रही है, मानो किसान कोई अपराधी हो. एक किसान ने बताया कि स्थिति इतनी बदतर है कि हमारे बच्चों के लिए चॉकलेट खरीदने के लिए भी हमारे पास पैसे नहीं हैं! एक अन्य  किसान के अनुसार त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में धान बिक नहीं पाया तो चुनाव में हम कुछ भी खर्च  नहीं कर पाए. इन्हीं विसंगतियों के बीच धान खरीदी का उपक्रम जारी है. जो मात्र अब 10 दिन बच गया है. मगर बीते दो महीने किसानों के लिए एक त्रासदी, पीड़ा और दर्द छोड़ कर गया है जो शायद किसान कभी नहीं भूल पाएगा.

इस दरमियान छत्तीसगढ़ सरकार की धान खरीदी नीतियों के खिलाफ छत्तीसगढ़ की अनेक जिलों में किसानों ने चक्का जाम किया आंदोलन किया मगर सरकार के कान में जूं तक नहीं रेंगी .  शायद भूपेश बघेल सरकार यह कहना चाहती है कि हे किसान! अगर पच्चीस सौ रुपये कुंटल में धान बचोगे तो सरकार के नियम कायदे रूपी प्रताड़ना से तो गुज़रना ही होगा. अंतिम  मे यह कि भूपेश बघेल स्वयं को किसान कहते हैं उनसे यही गुजारिश है कि एक  दिन भेष बदलकर किसी अनजान गांव, अनजान किसानों के बीच पहुंच जाएं और उनसे बात कर ले तो सारा सच उनके सामने खुली किताब की तरह होगा.

दिल्ली चुनाव: बहुत हुई विकास की बात, अबकी बार शाहीन बाग… क्या BJP का होगा बेड़ा पार?

दिल्ली चुनाव के लिए मतदान होने में अब ज्यादा वक्त नहीं बचा. इन चुनावों में कांग्रेस कहीं भी नजर नहीं आ रही है. लड़ाई आप और बीजेपी के बीच है. इन चुनावों की घोषणा हुई तो लोगों ने कहा कि इस बार तो केजरीवाल ही सरकार बनाएगा. उसके पीछे का कारण है दिल्ली में विकास. सीएम केजरीवाल अब तो मंजे हुए नेता बन गए हैं लेकिन जब वो सीएम के पद पर बैठे थे तब वो राजनीति के दांव-पेंच से वाकिफ़ नहीं थे. फिर भी दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने शिक्षा, स्वास्थ्य पर अच्छा काम किया. इसके अलावा 200 यूनिट तक बिजली फ्री और पानी भी फ्री. इससे जनता को बहुत बड़ी राहत मिली. चुनाव आते-आते महिलाओं के लिए डीटीसी बस सेवा को भी मुफ्त कर दिया गया. ये भी सोने पर सुहागा.

इन सब कामों के आगे ‘रिंकिया के पापा’ की एक नहीं चल पा रही. सभी सर्वे एक सुर में यही कह रहे थे कि इस बार भी केजरीवाल को 60 से ऊपर सीटें मिलेंगी. फिर बीजेपी ने अपनाया अपना ब्रम्हास्त्र रूपी राष्ट्रवाद. दिल्ली में बीजेपी 2500 से ज्यादा छोटी बड़ी रैली कर चुकी है. गृह मंत्री अमित शाह दिल्ली में शाहीन बाग का मसला बार-बार उठा रहे हैं. शाहीन बाग में लोग सीएए-एनआरसी के विरोध में पिछले 50 दिनों से धरने पर बैठे हुए हैं. बीजेपी ने दिल्ली के चुनाव इसी पर केंद्रित कर दिया है.

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भाजपा की हताशा इसी बात से समझ लीजिए कि अब तक जो पार्टी विकास-विकास का राग अलापती थी वो अब शाहीन बाग-शाहीन बाग चिल्ला रही है. भाजपा ने शाहीन बाग को ही चुनावी मुद्दा बना लिया है और वो काफी हद तक इसमें कामयाब भी होती दिख रही है लेकिन इससे चुनाव जीत लिया जाएगा ये कहना मुश्किल होगा. दिल्ली में भले ही केजरीवाल की सरकार हो लेकिर यहां की पुलिस तो केंद्र सरकार के अंडर में हैं. केंद्र में मोदी सरकार और इस सरकार के गृह मंत्री हैं अमित शाह. शाह खुद कई जगह भाषणों में शाहीन बाग के प्रदर्शनकारियों को कोसते रहते हैं लेकिन जब यहां की पुलिस आपके अंडर है तो फिर आप क्यों नहीं उठवा देते. लेकिन वो ऐसा नहीं करेंगे.

भाजपा नेता और वित्त राज्य मंत्री ने बयान दिया ‘देश के गद्दारों को गोली मारो सालों को’. जिसके बाद एक नाबालिग युवक ने उसी दिन गोली चलाई जिसदिन नाथूराम गोडसे ने बापू को गोली मारी थी. गोली मारी गई जामिया के पास. पहले जामिया में गोली चली, फिर शाहीन बाग में और अब फिर से जामिया में. पहले गोली चलाने वाले दोनों ही लड़के कोई पेशेवर अपराधी नहीं हैं. उनके नाम कोई पुराना अपराध का रिकॉर्ड नहीं है. अब दोनों ही अपराधी हैं और भारत के भविष्य भी. एक नाबालिग है जबकि दूसरा भी महज 25 साल का. रविवार रात को हुई तीसरी घटना में उन दो स्कूटी सवारों की तलाश है, जो फायरिंग कर भाग निकले. इस तीसरी घटना को अंजाम देने वालों की सोच भी पहले दो से अलग होगी, ऐसा लगता नहीं.

शाहीन बाग में फायरिंग करने वाला कपिल कहता है कि इस देश में सिर्फ हिन्दुओं की चलेगी, किसी और की नहीं. जामिया में गोली चलाने वाला नाबालिग भगवान राम की भक्ति के लिए नहीं, बल्कि हिंसक भावावेश के साथ ‘जय श्री राम’ के नारे लगाता है. नागरिकता कानून के विरोधियों को गोली मारकर ‘आजाद’ कर देने की बात करता है. ये सब क्यों हो रहा है इसके पीछे महज एक ही कारण है कि इन लोगों के दिलों पर महज नफरत भर दी गई है.

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फिजूल की बातें हैं. गलत आरोप हैं. जामिया के गोलीबाज को किसी ने कट्टा नहीं थमाया. शाहीन बाग के सिरफिरे को भी किसी ने हथियार नहीं दिया. शरजील को भी किसी राजनीतिक दल ने एएमयू में दिया उसका भाषण लिखकर नहीं दिया. मुंबई के आजाद मैदान में शरजील के समर्थन में नारे किसी राजनीतिक खेमे ने नहीं लगवाए. हमारे राजनीतिक दल और नेता इतनी टुच्ची बातें और काम नहीं करते. वे तो एक साथ लाखों लोगों पर असर डालने वाले प्रपंच करते हैं. फिर उसी असर में कोई शरजील देश विरोधी नारे लगाता है, तो कोई सिरफिरा (वस्तुत: बेचारा) शाहीन बाग या जामिया में कट्टा लहराता है.

अब भाजपा दिल्ली के हर तबके को साधना चाहती है. इसके लिए पार्टी अध्यक्ष ने नेताओं की फौज इकट्ठा कर दी है. इन नेताओं को वहां-वहां भेजा जा रहा है जहां की जनता या तो उनको पहचानती है या फिर उनका क्षेत्रीय या जातीय रिश्ता हो. दिल्ली में बिहार से आए लोगों की संख्या खूब है इसलिए नीतीश कुमार ने यहां की जनता को लुभाया. उसके बाद यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ तो हैं हीं स्टार और फायरब्रांड नेता. वो दिल्ली क्या पूरे देश में कहीं भी चुनाव होता है तो बीजेपी उनको भेजती है. दिल्ली में पूर्वांचली और जाटों के बाद दक्षिण भारत के लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है. तकरीबन 12 लाख मतदाता दक्षिण भारत के बताए जा रहे हैं. ऐसे में इन बिखरे हुए वोटरों को साधने के लिए भाजपा ने दक्षिण भारत के अपने 42 सांसदों के साथ लगभग 100 बड़े नेताओं को चुनावी मैदान में उतारा है.

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पुलिस को फटकार

दिल्ली की जिला अदालत ने भीम आर्मी के मुखिया चंद्रशेखर को जमानत पर रिहा करने का आदेश तो दिया पर जो फटकार पुलिस को लगाई वह मजेदार है. आजकल पुलिस की आदत बन गई है कि किसी पर भी शांति भंग करने, देशद्रोह, भावनाएं भड़काने का आरोप लगा दो और जेल में बंद कर दो. आमतौर पर मजिस्ट्रेट पुलिस की बात बिना नानुकर किए मान जाते हैं और कुछ दिन ऐसे जने को जेल में यातना सहनी ही पड़ती है.

जिला न्यायाधीश कामिनी लाऊ ने पुलिस के वकील से पूछा कि क्या जामा मसजिद के पास धरना देना गुनाह है? क्या धारा 144 जब मरजी लगाई जा सकती है और जिसे जब मरजी जितने दिन के लिए चाहो गिरफ्तार कर सकते हो? क्या ह्वाट्सएप पर किसी आंदोलन के लिए बुलाना अपराध हो गया है? क्या यह संविधान के खिलाफ है? क्या बिना सुबूत कहा जा सकता है कि कोई भड़काऊ भाषण दे रहा था? पुलिस के वकील के पास कोई जवाब न था.

दलितों के नेता चंद्रशेखर से भाजपा सरकार बुरी तरह भयभीत है. डरती तो मायावती भी हैं कि कहीं वह दलित वोटर न ले जाए. छैलछबीले ढंग से रहने वाला चंद्रशेखर दलित युवाओं में पसंद किया जाता है और भाजपा की आंखों की किरकिरी बना हुआ है. वे उसे बंद रखना चाहते हैं.

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सहारनपुर का चंद्रशेखर धड़कौली गांव के चमार घर में पैदा हुआ था और ठाकुरों के एक कालेज में छुटमलपुर में पढ़ा था. कालेज में ही उस की ठाकुर छात्रों से मुठभेड़ होने लगी और दोनों दुश्मन बन गए. जून, 2017 में उसे उत्तर प्रदेश सरकार ने गिरफ्तार कर लिया और महीनों तक बेबात में जेल में रखा और कानूनी दांवपेंचों में उलझाए रखा. कांग्रेस ने उसे सपोर्ट दी है और प्रियंका गांधी उस से मिली भी थीं, जब वह जेल के अस्पताल में था. उसे बहुत देर बाद रिहा किया गया था और फिर नागरिक कानून पर हल्ले में पकड़ा गया था.

पुलिस का जिस तरह दलितों और पिछड़ों को दबाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है, यह कोई नया नहीं है. हार्दिक पटेल भी इसी तरह गुजरात में महीनों जेल में रहा था. नागरिकता संशोधन कानून के बारे में सरकार ने मुसलिमों के साथ चंद्रशेखर की तरह बरताव की तैयारी कर रखी थी, पर जब असल में हिंदू ही इस के खिलाफ खड़े हो गए और दलितपिछड़ों को लगने लगा कि यह तो संविधान को कचरे की पेटी में डालने का पहला कदम है तो वे उठ खड़े हुए हैं. चंद्रशेखर को पकड़ कर महीनों सड़ाना टैस्ट केस था. फिलहाल उसे जमानत मिल गई है, पर कब उत्तर प्रदेश या कहीं और की पुलिस उस के खिलाफ नया मामला बना दे, कहा नहीं जा सकता.

सरकारों के खिलाफ जाना आसान नहीं होता.

जब पूर्व गृह मंत्री व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम को 100 दिन जेल में बंद रखा जा सकता है तो छोटे नेताओं को सालों बंद रखने में क्या जाता है. अदालतें भी आमतौर पर पुलिस की मांग के आगे झुक ही जाती हैं.

देश दिवालिएपन की ओर

देश के छोटे व्यापारियों को किस तरह बड़े बैंक, विदेशी पूंजी लगाने वाले, सरकार, धुआंधार इश्तिहारबाजी और आम जनता की बेवकूफी दिवालिएपन की ओर धकेल रही है, ओला टैक्सी सर्विस से साफ है. उबर और ओला 2 ऐसी कंपनियां हैं, जो टैक्सियां सप्लाई करती हैं. कंप्यूटरों पर टिकी ये कंपनियां ग्राहकों को कहीं से भी टैक्सी मंगाने के लिए मोबाइल पर एप देती हैं और इच्छा जाहिर करने के 8-10 मिनट बाद कोई टैक्सी आ जाती है, जिस का नंबर पहले सवारी तक पहुंच जाता है और सवारी का मोबाइल नंबर ड्राइवर के पास.

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पर यह सेवा सस्ती नहीं है. बस, मिल जाती है. इस ने कालीपीली टैक्सियों का बाजार लगभग खत्म कर दिया है और आटो सेवाओं को भी धक्का पहुंचाया है. इन्होंने जवान, मोबाइल में डूबे, अच्छे जेबखर्च पाने वालों का दिल जीत लिया है. वे अपनी खुद की बाइक को भूल कर अब ओलाउबर पर नजर रखते हैं.

अब इतनी बड़ी कंपनियां हैं तो इन्हें मोटा मुनाफा हो रहा होगा? नहीं. यही तो छोटे व्यापारियों के लिए आफत है. ओला कंपनी ने 2018-19 में 2,155 करोड़ रुपए का धंधा किया, पर उस को नुकसान जानते हैं कितना है? 1,158 करोड़ रुपए. इतने रुपए का नुकसान करने वाले अच्छेअच्छे धन्ना सेठ दिवालिया हो जाएं पर ओलाउबर ही नहीं अमेजन, फ्लिपकार्ट, बुकिंगडौटकौम, नैटफिलिक्स जैसी कंपनियां भारत में मोटा धंधा कर रही हैं, जबकि भारी नुकसान में चल रही?हैं. उन का मतलब यही है कि भारत के व्यापारियों, धंधे करने वालों, कारीगरों, सेवा देने वालों की कमर इस तरह तोड़ दी जाए कि वे गुलाम से बन जाएं.

ओलाउबर ने शुरूशुरू में ड्राइवरों को मोटी कमीशनें दीं. ज्यादा ट्रिप लगाने पर ज्यादा बोनस दिया. ड्राइवर 30,000-40,000 तक महीना कमाने लगे, पर जैसे ही कालीपीली टैक्सियां बंद हुईं, उन्होंने कमीशन घटा दी. अब 10-12 घंटे काम करने के बाद भी 15,000-16,000 महीना बन जाएं तो बड़ी बात है.

यह गनीमत है कि आटो और ईरिकशा वाले बचे हैं, क्योंकि उस देश में हरेक के पास क्रेडिट कार्ड नहीं है और यहां अभी भी नकदी चलती है. ओलाउबर मोबाइल के बिना चल ही नहीं सकतीं. आटो, ईरिकशा 2 या 4 की जगह 6 या 10 जनों तक बैठा सकते हैं और काफी सस्ते में ले जा सकते है. यही हाल आम किराने की दुकानों का है. जो सस्ता माल, चाहे कम क्वालिटी का हो, हाटबाजार में मिल सकता है वह अमेजन और फ्लिपकार्ट पर नहीं मिल सकता, पर ये अरबों नहीं खरबों का नुकसान कर के छोटे दुकानदारों को सड़क पर ला देना चाहते हैं और सड़कों से अपना आटो और ईरिकशा चलाने वाले लोगों को भगा देना चाहते हैं.

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यह अफसोस है कि सरकार गरीबों की न सोच कर मेढकों की तरह छलांग लगाने के चक्कर में देश को साफ पानी तक पहुंचाने की जगह लूट और बेईमानी के गहरे गड्ढे में धकेलने में लग गई है.

पौलिटिकल राउंडअप : दिल्ली में चुनावी फूहड़ता

दिल्ली. फरवरी की 8 तारीख को दिल्ली में विधानसभा चुनाव होंगे. लिहाजा, दिल्ली चुनावी रंग में रंगने लगी है. इसी सिलसिले में यहां की बड़ी सियासी पार्टियों ने सोशल मीडिया का नए अंदाज में इस्तेमाल किया. किसी ने कार्टून बनाया तो कोई मीम बनाने लगा. बात तीखे, मजेदार और फनी वीडियो तक जा पहुंची.

13 जनवरी को भारतीय जनता पार्टी हिंदी फिल्म ‘नायक’ का ऐडिट किया गया ऐसा वीडियो सामने ले कर आई जिस में अरविंद केजरीवाल को अमरीश पुरी के रूप में दिखाया गया. इस के जवाब में आम आदमी पार्टी ने फिल्म ‘नायक’ का अपना वीडियो पेश किया, जिस में अरविंद केजरीवाल को ठेकेदारों को फटकार लगाते देखा गया.

वेंकैया का हिंदूवादी बयान

चेन्नई. नागरिकता संशोधन कानून और नैशनल रजिस्टर औफ सिटीजंस पर पूरे देश के विरोध के साथसाथ सियासी तकरार लगातार बढ़ती ही जा रही है. इसी बीच 12 जनवरी को देश के उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने श्री रामकृष्ण मठ द्वारा छपने वाली तमिल मासिक ‘श्री रामकृष्ण विजयम’ के शताब्दी समारोह और स्वामी विवेकानंद जयंती के मौके पर हुए एक कार्यक्रम में कहा कि भारत में कुछ लोगों को हिंदू शब्द से एलर्जी है. हाल?ांकि यह ठीक नहीं है, फिर भी उन्हें इस तरह का नजरिया रखने का हक है.

एम. वेंकैया नायडू ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता का मतलब दूसरे धर्मों की बेइज्जती नहीं है.

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गरजीं मायूस मायावती

लखनऊ. उत्तर प्रदेश में अपनी सियासी जमीन तलाश रही बसपा सुप्रीमो मायावती का कभी पूरे प्रदेश में राजकीय उत्सव सा जन्मदिन मनाया जाता था. इस 15 जनवरी को वैसा माहौल तो नहीं दिखा, पर 64 किलो के केक ने सब का ध्यान जरूर खींचा कि हाथी अभी उतना भी कमजोर नहीं हुआ है.

उस दिन मायावती ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि वे नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करती हैं. साथ ही यह भी कहा, ‘‘आज देश की तकरीबन 130 करोड़ जनता के सामने जो तकलीफें और तनाव खड़े हैं, उन के चलते देश में हर जगह गरीबी और बेरोजगारी फैली हुई है. देश में माली मंदी बीमार हालत में पहुंच गई है. यह भी कड़वा सच है कि देश की जनता ने ऐसी खराब हालत पहले कांग्रेस की सरकार में देखी है.’’

पर सच यह है कि मायावती अब न जाने क्यों सरकार को हाथी पर सवारी देने की तैयारी में लगती हैं.

किताब पर मचा बवाल

मुंबई. भाजपा का एक पैतरा उसी पर तब भारी पड़ गया, जब छत्रपति शिवाजी महाराज के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना वाली किताब ‘आज के शिवाजी: नरेंद्र मोदी’ पर पार्टी ने यह कहते हुए दूरी बना ली कि पार्टी का इस पब्लिकेशन से कुछ भी लेनादेना नहीं है और इस किताब में लेखक के अपने ‘निजी विचार’ हैं.

14 जनवरी को भाजपा में मीडिया विभाग के सहइंचार्ज संजय मयूख ने कहा कि किताब के लेखक जय भगवान गोयल, जो भाजपा के एक सदस्य हैं, ने अपनी किताब वापस मंगाने की भी बात कही है.

याद रहे कि जय भगवान गोयल ने भाजपा से जुड़ने से पहले लंबे वक्त तक दिल्ली में शिव सेना के लिए काम किया था और वे कहते हैं कि किताब में जिस हिस्से को ले कर विपक्ष के नेताओं को दिक्कत है, उसे सुधार दिया जाएगा.

ममता बनर्जी का घेराव

कोलकाता. देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लोहा लेने वाली पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने ही राज्य में वामपंथियों से घिर गईं.

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दरअसल, संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ 11 जनवरी को कोलकाता में हुई ममता बनर्जी की रैली में वामपंथी छात्र कार्यकर्ताओं ने उन्हें घेरा था, जिस के बाद 150 अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था. इन में नुकसान पहुंचाने, आपराधिक धमकी देने के साथसाथ गैरजमानती धाराएं भी शामिल थीं और साथ ही, एक जनसेवक को उस की ड्यूटी करने से रोकने का मामला भी शामिल था.

इस के उलट माकपा से जुड़े छात्र संगठन एसएफआई ने आरोप लगाया कि उस ने ममता बनर्जी के खिलाफ इसलिए प्रदर्शन किया, क्योंकि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बैठक कर सीएए के खिलाफ लड़ाई कमजोर कर दी थी.

दिग्विजय सिंह की सफाई

भोपाल. भाजपा के प्रवक्ता गौरव भाटिया ने कांग्रेस पार्टी और दिग्विजय सिंह पर आरोप लगाया था कि कांग्रेस बड़े पैमाने पर इसलामिक उपदेशक जाकिर नाइक की फाउंडेशन से डोनेशन लेती है और उन के बीच हमेशा से ही अच्छे संबंध रहे हैं.

इस पर कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने सफाई दी कि भाजपा की तरफ से लगाया गया यह आरोप एकदम गलत है. कांग्रेस ने कभी भी आधिकारिक रूप से डाक्टर जाकिर नाइक का समर्थन नहीं किया.

वैसे, दिग्विजय सिंह ने माना कि उन्होंने मुंबई में जाकिर नाइक के मंच से एक सांप्रदायिक सद्भाव सम्मेलन को संबोधित किया था.

लालू की खरीखरी

पटना. जेल में बंद लालू प्रसाद यादव बिहार की प्रदेश सरकार के साथसाथ केंद्र सरकार को घेरने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते हैं. उन्होंने मंगलवार,

14 जनवरी को फिर से बिहार और केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए ट्वीट किया कि देश में प्यार लगातार घट रहा है, जबकि नफरत बढ़ रही है.

उन्होंने आगे कहा कि आजादी घटी है, जबकि तानाशाही बढ़ी है. विकास घटा विनाश बढ़ा, ईमान घटा बेईमानी बढ़ी काम घटा बेरोजगारी बढ़ी.

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. इस से पहले नीतीश कुमार और भाजपा पर तंज कसते हुए लालू प्रसाद यादव ने ट्वीट किया था, ‘एक गिरगिटिया दूसरा खिटपिटिया…कुल जोड़ मिला के शासन घटिया.’

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पुलिस पदक लिया वापस

श्रीनगर. अर्श से फर्श पर. 15 जनवरी को जम्मूकश्मीर प्रशासन ने आतंकवादियों को जम्मूकश्मीर से बाहर निकलने में पैसे ले कर मदद करने के आरोप में गिरफ्तार किए गए पुलिस उपाधीक्षक देविंदर सिंह को बहादुरी के लिए दिया गया पुलिस पदक  ‘शेर ए कश्मीर’ वापस ले लिया.

याद रहे कि वहां की पुलिस ने शनिवार, 11 जनवरी को देविंदर सिंह को दक्षिणी कश्मीर के कुलगाम जिले के मीर बाजार में हिजबुल मुजाहिदीन के 2 आतंकवादियों के साथ गिरफ्तार किया था.

इसी बीच देविंदर सिंह ने आरोप लगाया था कि पुलिस बल में तैनात एक और बड़ा अफसर आतंकवादियों के लिए काम कर रहा है.

गंगा यात्रियों को खाना खिलाने का काम करेंगे शिक्षक

उत्तर प्रदेश की राजनीति में गाय और गंगा दोनो का बहुत महत्व है. गाय को सडक पर आने से रोकने के लिये पीडब्ल्यूडी विभाग ने अपने ही इंजीनियरों को रस्सी लेकर छुट्टा जानवरों को पकडने का आदेश जारी किया तो शिक्षा विभाग ने अपने स्कूल में खाना बनाने का काम करने वाले रसोइयों और शिक्षकों को कहा है कि वह गंगा यात्रा करने वालों को खाना खिलानेे की जिम्मेदारी संभाले. इस तरह के आदेश से शिक्षक और इंजीनियरों में असंतोष में है. मजेदार बात यह है कि आलोचनाओं के बाद एक आदेश लिखित में वापस होता है तो दूसरा आदेश जारी हो जाता है. छुट्टा जानवर पकडने का आदेश वापस हुआ तो अगले ही दिन गंगा यात्रा करने वालों को खाने खिलाने का आदेश जारी हो गया.

शिक्षा विभाग से जारी हुआ आदेश हरदोई जिले से जुडा हुआ है. जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी हरदोई के द्वारा यह आदेश जारी हुआ है. इसमें लिखा है कि ‘गंगा यात्रा के आयोजन में गंगा किनारे स्थित ग्राम पंचायतों में 30 जनवरी को गंगा दल यात्री प्रवास करेगे. गंगा दल के ठहरने, नाश्ते और आदि की व्यवस्था विद्यालयों में कार्यरत शि़क्षकों और रसोइयों द्वारा की जानी है.‘ आदेश में ही बिलग्राम और सांडी ब्लाक में आने वाले स्कूलों के नाम भी लिखे है. शिक्षा विभाग का कोई भी अधिकारी और कर्मचारी इस आदेश पर बोलने को तैयार नहीं है. यह पत्र खंड शिक्षा अधिकारी बिलग्राम और सांडी के द्वारा जारी किया गया है.

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गंगा यात्रा की शुरूआत उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के द्वारा 27 जनवरी को बिजनौर और राज्यपाल आंनदी बेन ने बलिया से शुरू की गई. गंगा यात्रा दो हिस्सो में पूरी हो रही है. गंगा यात्रा को सफल बनाने के लिये पार्टी और सरकार स्तर पर काम किया जा रहा है. बिजनौर से कानपुर बैराज तक यह यात्रा 579 किलोमीटर लंबी सडक मार्ग से गुजरेगी. 657 किलोमीटर बलिया से कानुपर तक यह यात्रा गुजरेगी. कुल 1338 किलोमीटर यात्रा 27 जिलों से होकर निकल रही है. इसमें 21 नगर पंचायत और 1038 ग्राम पंचायते पडेगी. उत्तर प्रदेश में गंगा की कुल लंबाई 1140 किलोमीटर है. पावन गंगा यात्रा के व्यापक प्रचार प्रसार की व्यवस्था भी गई है.

हरदोई शिक्षा विभाग के पत्र से पता चलता है कि लोगो के खाने की व्यवस्था स्कूलों को सौंपी गई है. इस आदेश से स्कूल में पढाने वाले शिक्षको की हालत के बारे पता चलता है. शिक्षकों से पढाने के अलावा बहुत सारे काम लिये जाते है. इस बात को लेकर शिक्षकों में गुस्सा भी है. पर खुलकर वह कह नहीं पा रहे. शिक्षकों की यह हालत तब है जब उत्तर प्रदेश के दो डिप्टी सीएम में से एक डाक्टर दिनेश शर्मा खुद लखनऊ विश्वविद्यालय में शिक्षक है. शिक्षकों को उम्मीद थी कि वह शिक्षकों की मजबूरियों को समझते होगे. इसके बाद भी कभी शिक्षकों की डयूटी दुल्हनों को सजाने पर लगा दिया जाता है तो कभी गंगा दल के खाने की व्यवस्था को देखने के लिये.

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डर के साए में अवाम

केंद्र सरकार की मनमरजी से लागू हुई नीतियों, संशोधनों और नए कानूनों ने माली मोरचे पर सब से ज्यादा कमर कामधंधा करने वालों की तोड़ी है. अनुच्छेद 370 हो, नोटबंदी हो, जीएसटी हो, या फिर ताजा नागरिकता संशोधन कानून ने देशभर में कामधंधों को सिरे से तबाह कर दिया है.

उत्तर प्रदेश के गोसाईंगंज इलाके में नागरिकता संशोधन कानून से उपजे दंगे के बाद अघोषित कर्फ्यू ने चूड़ी उद्योग व उस से जुड़े गोदामों व ट्रांसपोर्ट कंपनियों में काम कर रहे हजारों मजदूरों के सामने दो जून की रोटी का संकट खड़ा कर दिया है.

तनाव के चलते शहर के अलगअलग हिस्सों में चलने वाले चूड़ी गोदाम बंद हैं. चूड़ी उद्योग से जुड़े काम ठप होने के चलते नगर के ट्रांसपोर्टर भी हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं.

नगर क्षेत्र की सीमा में 50-60 चूड़ी कारखाने हैं. इन कारखानों में दिहाड़ी पर काम करने वाले मजदूरों की तादाद 40,000 से ज्यादा है. 8-8 घंटे की

3 शिफ्टों में 300 से 500 रुपए वाले दिहाड़ी मजदूरों के घरों में चूल्हे की तपिश पैसे की कमी के चलते ठंडी पड़ चुकी है.

बेनूर पर्यटन का बाजार

उत्तराखंड जैसे राज्य की माली तरक्की बहुत हद तक पर्यटन पर टिकी है. मसूरी, नैनीताल जैसे कई शहर इस समय पर्यटकों की राह देखते हैं. इस समय की आमदनी अगले कुछ महीनों के लिए राहत ले कर आती है. लेकिन इस समय नैनीताल के लोग नागरिकता संशोधन कानून रद्द करने की मांग कर रहे हैं.  झील किनारे यह बैनर फहराया जा रहा है कि ‘वे तुम्हें हिंदुमुसलिम बताएंगे, लेकिन तुम भारतीय होने पर अड़े रहना’.

नैनीताल में कई संगठनों के अलावा हर धर्म और वर्ग से जुड़े शहर के आम लोगों ने मौन जुलूस निकाला. सीएए और एनआरसी के विरोध में इस जुलूस में शामिल लोगों ने मल्लीताल पंत पार्क में संविधान की शपथ ली और तल्लीताल में गांधीजी की मूर्ति के पास ‘भारत माता की जय’ के नारों के साथ जुलूस पूरा हुआ.

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इस बारे में नैनीताल होटल एसोसिएशन के अध्यक्ष दिनेश शाह कहते हैं, ‘‘नए कानून से हमारे कारोबार पर बहुत बुरा असर पड़ा है. हमारे लिए दिसंबरजनवरी माह का महीना कारोबार के लिहाज से अमूमन काफी अच्छा रहता है. लेकिन रामपुर में लोग सड़कों पर हैं. हल्द्वानी में लोग अपनी नागरिकता बचाने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं. नैनीताल आने के सभी रास्तों पर विरोध प्रदर्शन चल रहा है, तो इस का असर बुरा पड़ रहा है.

‘‘होटलों की बुकिंग कैंसिल हो रही हैं. जो होटल इस समय 80-90 फीसदी तक बुक रहते थे, उन की 30-35 फीसदी तक ही बुकिंग है.

‘‘रामनगर में जिम कौर्बेट टाइगर रिजर्व आने वाले पर्यटकों की संख्या भी प्रभावित हुई है. हरिद्वार आने वाले पर्यटक भी इस समय ठिठके हुए हैं.’’

टे्रडर्स ऐंड वैलफेयर एसोसिएशन के प्रैसिडैंट रजत अग्रवाल कहते हैं कि क्रिसमस और नए साल को देखते हुए इस बार अब तक कारोबार में 30-35 फीसदी तक की गिरावट देखी जा रही है.

रजत अग्रवाल आगे कहते हैं कि दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान जैसे राज्यों से ज्यादा पर्यटक आते हैं. उत्तराखंड आने के लिए सभी को उत्तर प्रदेश से हो कर आना पड़ता है. वहां अभी कई जगह धारा 144 लगी है. माहौल शांत नहीं है. दिसंबरजनवरी माह तक आमतौर पर मसूरी में अच्छा कारोबार चलता है, लेकिन अभी लोग सफर करने में खुद को असहज महसूस कर रहे हैं.

रजत अग्रवाल बताते हैं कि साल 2013 में केदारनाथ आपदा के समय पर्यटन के लिहाज से व्यापारियों को सब से ज्यादा नुकसान हुआ था. उस के बाद नोटबंदी ने सबकुछ ठप कर दिया था. उस समय व्यापारियों का कारोबार 50 फीसदी तक प्रभावित हुआ था. अब यह नया कानून आम आदमी की रोजीरोटी को प्रभावित कर रहा है.

नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 को ले कर देशवासियों में उपजे असंतोष को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ के अलावा कनाडा, यूनाइडेट किंगडम, सऊदी अरब, रूस, आस्ट्रेलिया और इजराइल ने अपने देशवासियों को सावधान किया है. खासतौर पर पूर्वोत्तर के राज्यों में जाने से बचने की सलाह दी है.

बेजार हर कारोबार

पहले नोटबंदी हुई, जीएसटी लागू हुई और फिर जम्मूकश्मीर में अनुच्छेद 370 रद्द होने के बाद बंद हुए व्यापार और अब नागरिकता संशोधन विधेयक ने उद्योगपतियों और व्यापारियों को बेजार कर दिया है. यूसीपीएम के चेयरमैन डीएस चावला कहते हैं कि इन दिनों जो नुकसान लुधियाना की इंडस्ट्री का हो रहा है, उस की भरपाई में बहुत समय लगेगा.

फोपासिया के अध्यक्ष बदिश जिंदल के मुताबिक, केंद्र की नीतियां और नएनए कानून माली रूप से हमें खोखला कर रहे हैं.

लुधियाना के कारोबारी हलकों में फैला सन्नाटा बहुतकुछ कहता है. जिन राज्यों में नागरिकता संशोधन विधेयक का पुरजोर विरोध हो रहा है, उन्हीं राज्यों के सड़क और रेल मार्ग लुधियाना के उद्योगों के लिए एक तरह से ‘कौरिडोर’ का काम करते हैं. उन राज्यों में तो माल की सप्लाई और कारोबार एकदम बंद है ही, भूटान, नेपाल और बंगलादेश वगैरह की सप्लाई भी पूरी तरह से ठप हो गई है. अमृतसर के भी लुधियाना सरीखे हालात हैं.

गौरतलब है कि पंजाब से असम, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल के रास्ते भूटान व दूसरे नजदीकी देशों को सड़क और रेल मार्ग के जरीए हौजरी, कपड़ा, साइकिल और साइकिल पार्ट, मशीनरी टूल, नटबोल्ट, खराद, सिलाई मशीनें व सिलाई मशीनों के कलपुरजे व विभिन्न दूसरी किस्म के सामान भेजे जाते हैं. नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध में जारी आंदोलन का सब से ज्यादा असर इन में से कुछ राज्यों में हो रहा है. अब इन राज्यों के रास्तों से माल नहीं जा रहा.

लुधियाना के एक बड़े कारोबारी और सीसू के प्रधान उपकार सिंह आहूजा कहते हैं, ‘‘हमारे साथसाथ औद्योगिक संस्थानों में काम करने वाले मजदूर और कर्मचारी भी मुश्किल में हैं.’’

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अमृतसर के कपड़ा व्यापारी नंदलाल शर्मा भी इस बारे में ऐसा ही कुछ कहते हैं, ‘‘अमृतसर से कपड़ा, बडि़यां, अचार, मुरब्बे, पापड़ और मसाले भी दूसरे राज्यों और नेपाल, भूटान और बंगलादेश जाते हैं. सब जगह की सप्लाई फिलहाल रुकी हुई है और हम ने नया माल बनाना बंद कर दिया है. कारीगरों और ढुलाई का काम करने वाले मजदूरों को मजदूरी नहीं मिल रही. ज्यादातर ऐसे हैं, जो दिहाड़ी मजदूर के तौर पर काम करते हैं, लेकिन अब वे बेकार हैं.’’

एक मजदूर रोशनलाल ने बताया कि उस के घर की रोटी चलनी मुश्किल हो रही है. जून, 1984 में अमृतसर के व्यापारिक जगत में ऐसे हालात तब पैदा हुए थे, जब मजदूरों को रोटी के लाले पड़ गए थे और अब वैसा ही सबकुछ है.

लुधियाना की सिलाई मशीन डवलपमैंट क्लब के प्रधान जगबीर सिंह सोखी कहते हैं, ‘‘नागरिकता संशोधन विधेयक के बाद जिन राज्यों में तनाव है, वहां न तो हम जा पा रहे हैं और न हमारा माल. बैंक किस्तों के लिए दबाव बना रहे हैं. सम झ नहीं आ रहा कि बैंक के कर्ज की किस्त कैसे चुकाएं. नया माल जा नहीं रहा और पुराने माल की रकम की वापसी नहीं हो रही. इंटरनैट सेवाएं बंद होने से ट्रांजैक्शन भी रुक गई है.’’

अमृतसर के 80,000 से ज्यादा परिवार और व्यापारी भारतपाकिस्तान के बीच व्यापार बंद होने के चलते तगड़ी माली दिक्कतों से जूझ रहे हैं. 17 फरवरी के बाद अटारी आईसीसी के जरीए होने वाले कपड़े, सीमेंट, मसालों और मेवों का आनाजाना समूचे तौर पर बंद है.

सिर्फ आईसीपी पर ही 3,300 कुली, 2,000 सहायक, 550 क्लियरिंग एजेंट और 6,000 से ज्यादा ट्रांसपोर्टर काम करते थे. उन का धंधा अब छूट गया है. इस से बदहाली का अंदाजा लगाया जा सकता है.

सांसद गुरजीत सिंह ओंजला ने बताया कि वे भारतपाक ट्रेड ठप होने से बद से बदतर हुए हालात के मद्देनजर केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी से कई बार मिले, लेकिन सबकुछ जस का तस है.

कश्मीर में हरे हैं जख्म

‘‘बीते 4-5 महीने में मेरा तकरीबन 10 लाख रुपए का नुकसान हो चुका है. अपने काम को फिर से जिंदा करने के लिए मु झे श्रीनगर छोड़ कर जम्मू आना पड़ा है.’’

फोन पर अपनी परेशानी बयां करते हुए शारिक अहमद कुछ इस तरह बात की शुरुआत करते हैं. वे कहते हैं, ‘‘काम के सिलसिले में मु झे 8,000 रुपए का एक कमरा किराए पर लेना पड़ा है. नए ब्रौडबैंड कनैक्शन के 2,000 रुपए हर महीने देने होंगे. घर से दूर बाकी खर्चे भी ज्यादा करने होंगे.’’

पिछले एकडेढ़ महीने से शारिक अहमद जम्मू में हैं. वे श्रीनगर में टूर ऐंड टै्रवल से जुड़ी एक दुकान चलाते थे. नए शहर में नए तरीके से काम जोड़ने पर खर्च बढ़ेंगे. इस से ज्यादा चिंता उन्हें अपने बीवीबच्चों की है, जिन्हें श्रीनगर में ही छोड़ कर आना पड़ा.

5 अगस्त को अनुच्छेद 370 हटाए जाने के साथ ही भारत प्रशासित जम्मूकश्मीर में इंटरनैट सेवा को बंद कर दिया गया था. इस से कश्मीर घाटी के आम शहरियों के कामधंधे तकरीबन चौपट हो चुके हैं.

श्रीनगर के सानी हुसैन एक बुक स्टोर चलाते हैं. इंटरनैट सेवा बंद होने की वजह से नई किताबों के और्डर के लिए उन्हें हाल ही में दिल्ली जाना पड़ा. वे कहते हैं, ‘‘श्रीनगर से एक बार दिल्ली जाने का मतलब है 30,000 रुपए खर्च करना. किताबों के व्यापार में इतना तो मार्जिन भी नहीं बनता. 5 अगस्त से पहले किताबें लेने के लिए मु झे कभी दिल्ली नहीं जाना पड़ा था. मैं ने हमेशा ही इंटरनैट के जरीए किताबें और्डर कीं.’’

5 अगस्त, 2019 को जब अनुच्छेद 370 हटाए जाने की घोषणा हुई थी, तब इंटरनैट और दूरसंचार सेवाएं सब से पहले प्रभावित हुई थीं. इन के अलावा कसबों और गांवों तक में कर्फ्यू लगा दिया गया था. स्कूलकालेज बंद करा दिए गए थे. साथ ही, बंद हो गए थे सब छोटे व्यापार.

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हालांकि श्रीनगर में स्थानीय बाजार अब सामान्य हालात में लौट चुके हैं. पोस्टपेड मोबाइल और लैंडलाइन फोन सेवाएं शुरू हो चुकी हैं, लेकिन घाटी में इंटरनैट और प्रीपेड मोबाइल सेवा का शुरू होना अभी बाकी?है.

इसी मुद्दे पर उमर कहते हैं, ‘‘जब अनुच्छेद 370 पर फैसला होने वाला था तो मैं ने विदेश में रह रहे अपने रिश्तेदारों को सब से पहले सूचित किया. मैं ने उन्हें बताया कि मेरी वैबसाइट बंद होने वाली है. मेरे काम का एक बड़ा हिस्सा इंटरनैट पर आधारित है. औनलाइन और्डर वहीं से मिलते हैं.

‘‘तकरीबन डेढ़ महीने तक वैबसाइट बंद रही. बाद में हम ने दिल्ली में एक टीम रखी, जो वैबसाइट को चला सके. वैबसाइट बंद रहने के चलते इस सीजन में हमें 70 फीसदी का नुकसान हुआ है.’’

हिंदू राष्ट्र की राह पर

राम मंदिर बनाने का मामला हो या हिंदुत्व का मामला हो, अनुच्छेद 370 को हटाना हो, तीन तलाक या फिर नागरिकता संशोधन कानून, हर मामले में भाजपा का एकमात्र एजेंडा मुसलिमों के खिलाफ माहौल बना कर अपने परंपरागत हिंदू वोट बैंक को एकजुट करना रहा है. जामिया मिल्लिया इसलामिया यूनिवर्सिटी में पुलिस का कहर भी इसी बात को दिखाता है.

भाजपा में अटल बिहारी वाजपेयी, राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली को उदारवादी हिंदुओं की श्रेणी में रख कर देखा जाता रहा है. लाल कृष्ण आडवाणी ने भाजपा में जो पौध तैयार की, वह कट्टर हिंदुत्व की राह पर चलने वाली?है.

राजनीति की गहरी सम झ रखने वाले लोग तभी सम झ गए थे, जब नरेंद्र मोदी ने राजनाथ सिंह को गृह मंत्री पद से हटा कर अपने पुराने सहयोगी अमित शाह को गृह मंत्री बनाया था कि अब वे दोनों मिल कर गुजरात का एजेंडा पूरे देश में लागू करेंगे.

जब देश में बेरोजगारी, भुखमरी, महंगाई और कानून व्यवस्था जैसे मुद्दे विकराल समस्या का रूप धारण कर चुके हैं, ऐसे समय में मोदी सरकार ने सारे मुद्दों को दरकिनार कर उन मुद्दों को प्राथमिकता के आधार पर लिया, जो सीधे मुसलिमों के खिलाफ जा कर हिंदुओं की हमदर्दी बटोरने वाले थे.

अनुच्छेद 370 हटाने के बाद गृह मंत्री अमित शाह की भाषा उन के भाषण में देखिए तो वह बारबार इस बात पर जोर दे रहे थे कि अनुच्छेद 370 के हटने पर विपक्ष कह रहा था कि देश में खून की नदियां बह जाएंगी, पर देश में तो एक पटाका भी नहीं फूटा है.

उन का मतलब साफ था कि उन्होंने विपक्ष के साथ ही देश के मुसलिमों को भी इतना डरा दिया है कि अब ये लोग कुछ भी करेंगे, तब भी कोई चूं नहीं करेगा.

दूसरी बार प्रचंड बहुमत में आने के बाद भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सब को साथ ले कर चलने की बात कही हो, पर उन के दूसरे कार्यकाल में अब तक जो कुछ भी हुआ है, वह धर्म और जाति के आधार पर हुआ है. हकीकत यह है कि मोदी सरकार में ऐसा कुछ नहीं हुआ, जिस से देश का मुसलिम अपने को सुरक्षित महसूस करता.

यदि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का थोड़ा सा भी ध्यान देश के भाईचारे पर होता तो सुप्रीम कोर्ट के राम मंदिर बनने का रास्ता पक्का करने के तुरंत बाद ये लोग नागरिकता संशोधन कानून न लाते.

प्रचंड बहुमत का मतलब यह नहीं है कि आप कुछ भी कर सकते हैं. इन लोगों ने यह सोच लिया था कि अब उन के डर से पूरा देश सहमा हुआ है, जो मरजी आए करो. देश और संविधान की रक्षा के लिए बनाए गए तंत्रों विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया उन की कठपुतली की तरह काम कर रहे हैं.

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जो लोग नागरिकता संशोधन कानून के विरोध को मुसलिमों का विरोध सम झ रहे हैं, वे गलती कर रहे हैं. इस आंदोलन में मुसलिम के साथ ही दलित, पिछड़ों के अलावा सवर्ण समाज के लोग भी हैं.

दरअसल, यह वह गुस्सा है, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दमनकारी नीतियों के चलते दबा रखा था. इस आंदोलन में बड़ी संख्या में बेरोजगार नौजवान हैं, जो मोदी सरकार से नाराज हैं.

पूर्वोत्तर के बाद जब यह आंदोलन दिल्ली और उत्तर प्रदेश में आया तो इस ने विकराल रूप ले लिया. उत्तर प्रदेश में 21 लोगों के मरने की खबर है.

एनआरसी के समर्थन में पूरे देश में भाजपा व कुछ चरमपंथी संगठन रैलियां कर रहे हैं और प्रधानमंत्री व गृह मंत्री कह रहे हैं कि एनआरसी पर अभी तक कोई चर्चा तक नहीं हुई है. खैर, जो भी हो,  झूठ पकड़ा गया और देश ने सच जान लिया है.

यह तानाशाहों की सोच होती?है कि भारी विरोध को देखते हैं, तो अपने फैसलों पर दोबारा सोचने के बजाय  झूठ बोलने लग जाते हैं, क्योंकि उन को हार कभी स्वीकार नहीं होती है.

जरमनी बरबाद हो रहा था, मगर हिटलर ने गलती स्वीकार नहीं की और आखिर में चाहे खुदकुशी करनी पड़ी हो, मगर हारा हुआ मानना उस को स्वीकार नहीं था.

विपक्ष में राजनीतिक दलों के बजाय इस बार नागरिक समाज है और नागरिक समाज विपक्ष की भूमिका में खड़ा होता है तो भागने की लाख कोशिश कर लो, मगर असली मुद्दे पर ला कर खड़ा कर ही दिया जाएगा.

महाराष्ट्र राजनीति में हो सकता है गठबंधन का नया ‘सूर्योदय’, राज ठाकरे ने बदला झंडा और चिन्ह

महाराष्ट्र में महा अघाडी गठबंधन के बाद जिस बात के कयास लगाए जा रहे थे वो अब हकीकत बनने के नजदीक पहुंच गया. राजनीति में 13 सालों के अतीत के बाद महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) ने नए झंडे, चिन्ह और नई विचारधारा के साथ नई शुरुआत की. मनसे अध्यक्ष राज ठाकरे ने पार्टी के नए झंडे का अनावरण किया, जो गहरे भगवा रंग का है. इसके साथ छत्रपति शिवाजी महाराज के शासन की मुद्रा (रौयल सील) को चिन्ह के तौर पर जारी किया गया. पार्टी का भव्य सम्मेलन गोरेगांव में एनएसई ग्राउंड में अयोजित किया गया.

पिछले दिनों महाराष्ट्र की राजनीति में कैसी उठा पटक रही पूरे देश ने देखी और समझी. सीएम उद्धव ठाकरे के पिता बाला साहेब ठाकरे की कट्टर हिंदुत्व वाली राजनीति के विपरीत जाकर फैसला किया कि वो स्टेट में सरकार बनाए. हुआ भी कुछ ऐसा ही. काफी ड्रामेबाजी के बाद एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना ने मिलकर सरकार बनाई. इसके बाद से एक बात का अंदेशा लग रहा था. कई राजनीतिक पंडितों का अनुमान था कि अब हो सकता है कि बीजेपी और मनसे चीफ राज ठाकरे की कुछ न कुछ नजदीकियां हो जाएं. और अब कुछ वैसा ही हो रहा है.

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राज ठाकरे ने मुंबई में कहा कि भगवा झंडा साल 2006 से मेरे दिल में था. हमारे डीएनए में भगवा है. मैं मराठी हूं और एक हिंदू हूं. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि मुसलमान भी अपने हैं. उन्होंने इस दौरान नागरिकता संशोधन कानून का समर्थन किया. मनसे प्रमुख ने कहा कि मैं हमेशा कहता रहा हूं कि पाकिस्तान और बांग्लादेश के घुसपैठियों को देश से बाहर फेंक देना चाहिए.

शिवसेना पर निशाना साधते हुए राज ठाकरे ने बोला कि मैं रंग बदलने वाली सरकारों के साथ नहीं जाता. राज ठाकरे का निशाना शिवसेना की तरफ था जिसने कुछ माह पहले कांग्रेस और एनसीपी के साथ सरकार बनाई है. राज ठाकरे ने यह भी कहा कि जिन दलों ने सीएए के खिलाफ मोर्चा खोला है, उनकी पार्टी मनसे उनके खिलाफ मोर्चा खोलेगी. सीएए के बारे में उन्होंने कहा कि जो लोग बाहर से अवैध ढंग से आए हैं, उन्हें क्यों शरण दी जानी चाहिए?

नया झंडा पेश किए जाने के साथ हालांकि विरोध भी शुरू हो गया. संभाजी ब्रिगेड, मराठा क्रांति मोर्चा व अन्य ने राज ठाकरे से राजनीतिक उद्देश्यों के लिए शिवाजी के ‘रॉयल सील’ का उपयोग न करने और संयम बरतने का आह्वान किया. संभाजी ब्रिगेड ने पुणे पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, जबकि मराठा क्रांति मोर्चा ने मनसे को कोर्ट में खींचने की धमकी दी.

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इस मौके पर राज ठाकरे ने अपने बेटे अमित ठाकरे को औपचारिक रूप से पार्टी में शामिल किया और अपनी अगली पीढ़ी के लिए राजनीति में रास्ता बनाया. मनसे के एक वरिष्ठ नेता ने राज ठाकरे के नया ‘हिंदू हृदय सम्राट’ होने का दावा किया. इस पर भी विवाद छिड़ गया. शिवसेना के संस्थापक दिवंगत बालासाहेब ठाकरे को आमतौर पर ‘हिंदू हृदयसम्राट’ के रूप में जाना जाता था.

शिवसेना के वरिष्ठ नेता अनिल परब ने कहा कि केवल दिवंगत बाला साहेब ठाकरे ही ‘हिंदू हृदय सम्राट’ हैं और उनकी जगह लेने का कोई और दावा नहीं कर सकता. मनसे अब विपक्षी भारतीय जनता पार्टी के साथ तालमेल बिठा रही है और भाजपा से शिवसेना के अलग होने के बाद ‘हिंदुत्व’ की रिक्तता को भरने का प्रयास कर रही है. राज ठाकरे ने लोकसभा चुनाव के समय हालांकि ‘मोदी-शाह’ के खिलाफ जनसभाएं की थीं और अपने भाषणों का वीडियो जारी किया था.

विधानसभा चुनाव 2019: सरकार में हेमंत, रघुवर बेघर

रघुवर दास ने नरेंद्र मोदी के चुनावी नारे ‘घरघर मोदी’ की नकल कर के  झारखंड विधानसभा चुनाव में ‘घरघर रघुवर’ का नारा दिया था, लेकिन  झारखंड की जनता ने उन्हें पूरी तरह से बेघर कर दिया. एक तरफ उन की मुख्यमंत्री की कुरसी गई तो वहीं दूसरी तरफ उन्होंने विधायकी भी गंवा दी. भाजपा के ही बागी नेता सरयू राय ने उन्हें जमशेदपुर पूर्व सीट पर पटकनी दे दी. उस सीट से रघुवर दास पिछले 24 सालों से लगातार जीत रहे थे.

रघुवर दास ने ‘जन आशीर्वाद यात्रा’ शुरू कर जनता से 64 से ज्यादा सीटें जीतने का आशीर्वाद भी मांगा था, पर जनता ने उन पर अपना गुस्सा ही निकाला और उन्हें 25 सीटों पर ही समेट दिया.

वहीं विपक्ष किसी आदिवासी को मुख्यमंत्री बनाने की रणनीति में कामयाब रहा. राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव समेत महागठबंधन के सभी नेताओं ने किसी आदिवासी को मुख्यमंत्री बनाए जाने की पुरजोर वकालत की थी. गौरतलब है कि रघुवर दास  झारखंड के पहले गैरआदिवासी मुख्यमंत्री बने थे.

झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन की ‘बदलाव यात्रा’ कामयाब रही और राज्य की जनता ने उन पर भरोसा करते हुए बदलाव की इबारत लिख डाली.

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हेमंत सोरेन रघुवर दास के ‘घरघर रघुवर’ के नारे का मजाक उड़ाते हुए कहते थे कि घरघर में चूहा होता है, चूहे को चूहेदानी में डाल कर वे छत्तीसगढ़ में छोड़ आएंगे.

गौरतलब है कि रघुवर दास मूल रूप से छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं. हेमंत सोरेन की इन बातों को जनता ने हकीकत में बदल दिया.

झारखंड का हाथ से फिसलना भाजपा के लिए बड़ा  झटका है. महाराष्ट्र को खोने और हरियाणा में हार के दर्द से भाजपा अभी उबर भी नहीं पाई थी कि  झारखंड भी उसे बड़ा जख्म दे गया.

भाजपा के ‘चाणक्य’ माने जाने वाले अमित शाह को अपनी रणनीति पर नए सिरे से सोचने की दरकार है. केंद्र में तो उन की रणनीति कामयाब रही, लेकिन राज्यों में उन की रणनीति फेल हो रही है या फिर वे जनता की नब्ज पकड़ने और लोकल मुद्दों को सम झने में पूरी तरह से नाकाम रहे हैं.

राम मंदिर, अनुच्छेद 370, तीन तलाक, नागरिकता संशोधन कानून जैसे नैशनल मुद्दों को राज्यों में भी भुनाने की सोच ने ही भाजपा को जोर का  झटका जोर से दिया है. वहीं दूसरी ओर  झामुमो, कांग्रेस और राजद ने  झारखंड के आदिवासियों की तरक्की और रघुवर सरकार की नाकामियों को उजागर कर जनता का दिल जीत लिया.

81 सीटों वाली  झारखंड विधानसभा में  झामुमो को 30, कांग्रेस को 16 और राजद को एक सीट मिली.  झामुमो को पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले 11 सीटें और कांग्रेस को 10 सीटों की बढ़त मिली. राजद ने एक सीट खोई.

भाजपा को 25 सीटें हासिल हुईं और उसे 12 सीटों का नुकसान हुआ. बाबूलाल मरांडी को 3, आजसू को 2 और निर्दलीय को 4 सीटें मिली हैं. पिछले चुनाव के मुकाबले बाबूलाल मरांडी ने 5 और आजसू ने 3 सीटें गंवाईं.

काफी खींचतान के बाद बने  झामुमो, कांग्रेस और राजद के महागठबंधन को जनता का साथ मिला. इस गठबंधन ने समय रहते सीटों का बंटवारा कर लिया था, जबकि भाजपा अपनों में ही उल झी रही. बड़े नेता सरयू राय और राधाकृष्ण किशोर का टिकट काट कर पार्टी के अंदर ही बखेड़ा खड़ा कर लिया था.

पार्टी के कई बड़े नेता मानते हैं कि अमित शाह और रघुवर दास की अहंकारी सोच ने ही राज्य में भाजपा की लुटिया डुबो दी. कार्यकर्ताओं को दरकिनार कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषणों के दम पर चुनाव जीतने की सोच ही भाजपा का बेड़ा गर्क कर रही है.

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प्रदेश भाजपा द्वारा सरयू राय और संसदीय मामलों के बड़े जानकार राधाकृष्ण किशोर को दरकिनार कर भानुप्रताप शाही और ढुल्लू महतो जैसे विवादास्पद नेताओं को आगे करना बड़ी भूल रही. 11 सीटिंग विधायकों के टिकट काट कर भाजपा आलाकमान ने खुद ही अपनी कब्र खोद ली थी.

इस का नतीजा यह हुआ कि 33.37 फीसदी वोट हासिल करने के बाद भी भाजपा 25 सीटें ही जीत सकी, जबकि  झामुमो के खाते में 18.74 फीसदी ही वोट पड़े और उस ने 30 सीटें जीत लीं. पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले भाजपा का वोट फीसदी तो बढ़ा, पर सीटें घट गईं. वहीं पिछले चुनाव में  झामुमो को 20.78 फीसदी वोट मिले थे, उस हिसाब से इस बार  झामुमो के वोट शेयर में गिरावट आई.

साल 1995 में पहली बार जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा सीट पर रघुवर दास को 1,101 वोटों से जीत मिली थी. उस के बाद से वे लगातार इस सीट से जीतते रहे थे. पिछले विधानसभा चुनाव में उन्होंने अपने विरोधी को 70 हजार वोटों से हराया था. इस बार उन के ही साथी और रणनीतिकार रहे सरयू राय ने उन के विजय रथ को रोक डाला.

यह चोला उतारे भाजपा

भाजपा को अपनी रणनीति के साथ ही प्रदेश अध्यक्षों और मुख्यमंत्रियों के रवैए पर सोचने की जरूरत है. धर्म, पाखंड, मंदिर जैसी काठ की हांड़ी से अब उसे किनारा कर जनता के मसलों पर ध्यान देने की ज्यादा जरूरत है. 2 साल पहले 20 राज्यों में राजग की सरकार थी, जो अब सिमट कर 11 पर रह गई है. राजग ने पिछले 2 सालों में 7 राज्य गंवा दिए. सब से पहले 2017 में पंजाब उस के हाथ से निकल गया. उस के बाद 2018 में 3 राज्य से उस की सत्ता चली गई. राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में राजग को सत्ता खोनी पड़ी. साल 2019 में महाराष्ट्र और  झारखंड से भी उस का दखल खत्म हो गया.

फिलहाल उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, कर्नाटक, त्रिपुरा, मणिपुर, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, गोवा, असम, हरियाणा और अरुणाचल प्रदेश में भाजपा या राजग की सरकारें हैं.

जनता का भरोसा नहीं टूटने दूंगा : हेमंत सोरेन

रघुवर दास के अहंकारी रवैए पर हेमंत सोरेन की सादगी भारी पड़ी. रघुवर दास और भाजपा आलाकमान केवल नैशनल मसलों के भरोसे चुनाव जीतने की बात करते रहे, वहीं हेमंत सोरेन जनता और आदिवासियों की सरकार बनने का ऐलान करते रहे.

हेमंत सोरेन दावा करते हैं कि उन की सरकार गरीबों, आदिवासियों और वंचित तबके के लिए खास काम करेगी. आदिवासियों को उन का हक दिलाना और राज्य की खनिज संपदा को दोहन से बचाना उन की प्राथमिकता है.  झारखंड की जनता ने उन के ऊपर जो भरोसा जताया है, उसे वे टूटने नहीं देंगे.

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40 साल के हेमंत सोरेन अपने पिता की अक्खड़ और उग्र सियासत के उलट शांत, हंसमुख और हमेशा मुसकराने वाले नेता हैं. वे हर किसी की बात को गौर से सुनते हैं और उस के बाद ही अपनी बात कहते हैं.

बीआईटी (मेसरा) से मेकैनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले इस युवा नेता ने साल 2003 में सियासत के अखाड़े में कदम रखा था और  झामुमो के  झारखंड छात्र मोरचा के अध्यक्ष के तौर पर राजनीति की एबीसीडी सीखना शुरू किया था. साल 2005 में अपने पिता की सीट दुमका से चुनावी राजनीति की शुरुआत की, पर मुंह की खानी पड़ी. साल 2009 में दुमका विधानसभा सीट से चुनाव जीत कर पहली बार विधानसभा पहुंचे. उस के बाद अर्जुन मुंडा की सरकार में 11 सितंबर, 2010 को उपमुख्यमंत्री बने. 13 जुलाई को मुख्यमंत्री बने और 14 दिसंबर, 2014 तक उस कुरसी पर रहे.

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