पिछले अंक में आप ने पढ़ा था : मलय अकेला आगरा में रहता था. उस की पत्नी अनुराधा अपने बूढ़े सासससुर के साथ गांव में रहती थी, पर वह आगरा जाने को बेताब थी. वहां आगरा में मलय एक लड़की अर्पणा के नजदीक हो गया था. अर्पणा के जन्मदिन की पार्टी थी. अनुराधा ने मलय को फोन किया. फोन अर्पणा ने उठाया. अब पढि़ए आगे…
‘अच्छा, अब समझी. आप की शादी में मैं नहीं आ सकी थी, इसलिए आप से भेंट नहीं हुई. मलय आप को यहां कभी लाया भी नहीं. मैं उस की कलीग अर्पणा बोल रही हूं. आज मेरा जन्मदिन था. अभी वह मेरे यहां ही है. जरा बाथरूम में गया है. आता है तो आप को फोन करने के लिए बोलती हूं. वैसे, आप कैसी हैं?’ अर्पणा ने अनुराधा से पूछा.
‘‘अच्छी हूं. आप को जन्मदिन की बधाई. बाथरूम से लौटने पर मलय से फोन करने के लिए जरूर कहिएगा,’’ अनुराधा बोली.
‘जी जरूर,’ अर्पणा ने कहा और इस के कुछ देर बाद डिस्चार्ज हो कर फोन स्विच औफ हो गया.
बर्थडे फंक्शन के बाद खानेपीने का दौर शुरू हुआ, तो अर्पणा उसी में उलझ गई. उसे याद ही न रहा कि मलय को फोन के बारे में बताना था.
स्विच औफ हो जाने से अनुराधा के फोन के बारे में उसे पता ही न चला. उस के फोन का चार्जर न होने के चलते वह अपना मोबाइल भी चार्ज न कर पाया.
उधर अनुराधा ने मलय द्वारा फोन न करने पर फिर से फोन किया, पर जब उस का फोन स्विच औफ बताने लगा, तब उस की घबराहट और भी बढ़ गई. कई तरह के शक उस के मन में पैदा होने लगे.
जल्दी में अनुराधा उस लड़की का नाम भी पूछना भूल गई थी, जिस ने मलय का फोन रिसीव किया था.
‘पता नहीं, कौन थी वह…? उस का जन्मदिन था भी या झूठ बोल रही थी. दाल में कुछ काला तो नहीं. आखिर मलय ने इस के बाद फोन स्विच औफ क्यों कर दिया? ऐसा तो नहीं कि मलय का उस लड़की से नाजायज रिश्ता हो और उस ने जानबूझ कर मोबाइल स्विच औफ कर दिया हो?
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‘आखिर इतनी देर तक जाड़े की रात में मलय को उस लड़की के घर जाने की क्या जरूरत पड़ गई? अगर वह लड़की सच भी कहती हो, तब भी इतनी रात को बर्थडे में रहने की क्या जरूरत? इस मौसम में रात 9 बजे तक बर्थडे फंक्शन खत्म हो ही जाता है.’
अनुराधा ने सोचा कि अब वह दूसरे दिन सुबह फोन करेगी. वह सोने की कोशिश करने लगी, लेकिन उसे नींद नहीं आ रही थी. मन बेचैन था.
ऐसा तो होना ही था. आखिर मलय उस का पति था. पति रात में किसी अनजान औरत के घर में हो, तो नईनवेली पत्नी के दिल पर क्या बीतेगी?
अब अनुराधा के मन में यह भी बात घर करने लगी कि यह सब उस के मलय से दूर रहने का नतीजा है. अगर वह मलय के साथ रहती तो ऐसा नहीं होता. उस ने सोचा कि अब उसे आगरा जाना ही होगा. सासससुर की सेवा के लिए वह अपने कैरियर का नुकसान तो कर ही रही थी, अब अपनी शादीशुदा जिंदगी को दांव पर नहीं लगा सकती.
किसी तरह रात कटी. सुबह उठते ही अनुराधा ने मलय को फोन लगाया. उस समय मलय गहरी नींद में सो रहा था. उस ने अर्पणा के घर से आते ही फोन को चार्ज में लगा दिया था, लेकिन उसे औन करना भूल गया था, इसलिए अभी भी मोबाइल स्विच औफ बता रहा था.
अब तो अनुराधा का शक पक्का होने लगा. जरूर मलय उस लड़की के साथ रात बिता रहा होगा और कोई उन्हें डिस्टर्ब न करे, इसलिए फोन को स्विच औफ कर दिया होगा.
यह तो सच था कि मलय की दोस्ती अर्पणा से बढ़ रही थी और यह भी सही था कि इस को हवा देने का काम अनुराधा का उस के साथ न रहना था, लेकिन यह बिलकुल गलत था कि मलय ने जानबूझ कर अपना मोबाइल स्विच औफ कर दिया था और वह अर्पणा के घर रात में था.
अब मलय फोन रिसीव करता और इस बारे में सफाई भी देता तो अनुराधा शायद उस की बात का यकीन नहीं करती.
हुआ भी यही. जब मलय जगा और उस ने अनुराधा को बताने की कोशिश की कि वह मोबाइल डिस्चार्ज होने के चलते रात में उस से बात नहीं कर पाया, तो उस ने उस की बात पर बिलकुल भी यकीन नहीं किया और बोली कि वह भी अब आगरा आएगी और सासससुर के लिए कोई न कोई इंतजाम जरूर कर देगी.
मलय उस को मना नहीं कर पाया. हां, इतना जरूर कहा कि वह अगले हफ्ते घर आ रहा है, फिर इस बारे में बात करेगा.
जब मलय ने कह दिया कि वह अगले हफ्ते घर आ रहा है, तब अनुराधा को इस बीच आगरा जाने की कोई जरूरत नहीं थी.
सासससुर गांव छोड़ना नहीं चाहते थे और गांव छोड़ना उन के लिए मुफीद भी नहीं था. अनुराधा जानती थी कि ऐसा करने से दोनों की जिंदगी आसान न रहेगी.
उन्हीं के पड़ोस में एक अधेड़ विधवा माधवी रहती थी. उसे परिवार वालों ने छोड़ दिया था. वह कम उम्र में ही विधवा हो गई थी और घर वाले समझते थे कि उस के घर में आने के बाद से ही उस के पति की तबीयत खराब रहने लगी थी और आखिर में वह बीमारी से ही मर गया, जबकि सचाई यह थी कि उसे दिल की बीमारी थी, जिस का समय पर उचित ढंग से इलाज न होने के चलते उस की मौत हुई थी.
माधवी अकसर अनुराधा के घर आती थी और उस के काम में हाथ बंटाती थी. अनुराधा के सासससुर भी उस का बहुत खयाल रखते थे और उस को खाना खिलाने के लिए अनुराधा से कहते थे. उस की पैसे से मदद भी किया करते थे.
अनुराधा ने माधवी से बात की, तो वह सासससुर की सेवा और देखभाल करने के लिए तैयार हो गई. इस तरह अनुराधा ने मलय के आने से पहले ही उस की गैरहाजिरी में सासससुर की देखभाल का इंतजाम कर दिया.
अब अनुराधा तय कर चुकी थी कि वह मलय के पास आगरा जाएगी.
अपने वादे के मुताबिक मलय घर आया. अनुराधा के मन में उस के प्रति कई सवाल थे, लेकिन जब तय समय पर मलय आ गया और उसे उम्मीद बंध गई कि अब वह भी उस के साथ आगरा जाएगी, तब उस का डर खत्म हो गया.
अनुराधा ने सासससुर के रहने का इंतजाम तो कर दिया था, लेकिन मलय उसे आगरा ले जाने के पक्ष में नहीं था. उस का कहना था कि माधवी उस के मांबाबूजी का वैसा ध्यान न रख पाएगी, जैसा उन्हें इस उम्र में जरूरत है. लेकिन अनुराधा ने जिद पकड़ ली, तो उसे आगरा ले जाने के लिए तैयार होना ही पड़ा.
सासससुर की जिम्मेदारी माधवी पर डाल दी गई. यह तय हुआ कि उसे हर महीने एक तय रकम दे दी जाएगी. माधवी को इस से ज्यादा चाहिए भी क्या था. रहने का ठौर और खाने का इंतजाम तो यहां था ही, हर महीने खर्चे के लिए कुछ पैसे भी, और वह भी जब तक माधवी चाहे.
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अनुराधा आज पहली बार आगरा आई थी. मलय जिस घर में रहता था, वह एक बिजी महल्ले में था और उस के बैंक से काफी दूरी पर था.
गांव में रहने की आदी अनुराधा को यह भीड़भाड़ वाला महल्ला काफी दमघोंटू लगा. उसे समझ नहीं आया कि बैंक से इतनी दूरी पर मलय ने यह मकान किराए पर क्यों लिया है.
जब अनुराधा ने इस बारे में मलय से पूछा, तो उस ने यह कह कर टाल दिया कि बैंक के नजदीक कोई ढंग का किराए का मकान नहीं मिला, लेकिन इस बात पर अनुराधा को यकीन नहीं हुआ, क्योंकि मलय का बैंक किसी पौश इलाके में नहीं था, जहां किराए पर कोई मकान ही न मिले या इतना महंगा हो कि उस का किराया वह दे न पाए.
पर इस की वजह का पता उसे तब लगा, जब उसी शाम अर्पणा उस से मिलने आई.
‘‘जानती हो भाभी, आज जब तुम्हारे बारे में मलय ने बताया तो तुम से मिलने चली आई. मेरी नानी का एक मकान इसी महल्ले में है. नाना आगरा में ही पहले बिजली महकमे में थे. उन्होंने एक बनाबनाया मकान इसी महल्ले में बड़े ही सस्ते में खरीद लिया था. जब तक नाना जिंदा रहे, उन्होंने आगरा नहीं छोड़ा.
‘‘कई सालों तक रहने के चलते इस शहर से उन का लगाव ही नहीं हो गया था, बल्कि कई लोगों से पारिवारिक संबंध भी बन गए थे.
‘‘नानाजी हमेशा कहते थे कि अपनी जिंदगी की शाम हमेशा परिचितों के बीच ही बितानी चाहिए, वरना अकेलेपन का दंश हमेशा झेलना पड़ेगा.
‘‘लेकिन, नानाजी के मरने के बाद नानी कोलकाता चली गईं, क्योंकि वहीं मामाजी एक कालेज में प्रोफैसर थे. इस के बाद मेरी नौकरी यहीं लग गई, तो मैं उन के ही मकान में रहने लगी,’’ अर्पणा एक ही सांस में सबकुछ कह गई.
‘‘अच्छा तो उस दिन शायद मेरा फोन तुम ने ही रिसीव किया था, जन्मदिन था न तुम्हारा?’’
‘‘हां भाभी, तुम ठीक कहती हो, उस दिन मेरा ही जन्मदिन था. तुम से पहले कभी भेंट नहीं हुई थी, इसलिए तुम मेरी आवाज नहीं पहचान पाई थीं.’’
‘‘तुम से मिल कर खुशी हुई. लेकिन अर्पणा, तुम्हारा तो यहां मकान है, पर मलय इतनी घनी और दमघोंटू जगह में क्यों रहता है?’’
अर्पणा मुसकराई और बोली, ‘‘इसलिए भाभी कि हम दोनों कालेज में एकसाथ पढ़ते थे. यहां रहने से हम लोगों का आपस में मिलनाजुलना होता है और अब तो मैं मलय की ही मोटरसाइकिल से बैंक जाती हूं.’’
यह सुन कर अनुराधा को अच्छा नहीं लगा. अब अच्छा लग भी कैसे सकता था. कौन पत्नी यह चाहेगी कि उस का पति किसी जवान और खूबसूरत लड़की को अपनी मोटरसाइकिल पर बैठा कर रोज औफिस ले जाए.
यह सुन कर अनुराधा के दिल पर सांप लोट गया, फिर भी वह बनावटी मुसकराहट चेहरे पर लाते हुए बोली, ‘‘अच्छा है, जब अगलबगल ही मकान हैं और दोनों को एक ही औफिस में जाना है, तो एकसाथ जाने में कोई हर्ज नहीं है.’’
लेकिन, अंदर से अनुराधा को मलय पर गुस्सा आ रहा था. यह कोई बात हुई… एक तो बैंक से इतनी दूर किराए का मकान लिया, ऊपर से एक कुंआरी लड़की को लिफ्ट भी देने लगा. क्या अर्पणा उसे पीछे से पकड़ कर नहीं बैठती होगी? लोग क्या कहते होंगे? लेकिन उसे तो मजा मिल रहा है, इस के लिए उसे शर्म क्यों आएगी?
अर्पणा के जाने के बाद अनुराधा ने मलय से पूछा, ‘‘तुम्हारा अर्पणा से क्या संबंध है?’’
‘‘अचानक यह सवाल क्यों पूछ रही हो? पहले तो ऐसा कभी नहीं पूछा?’’ मलय अनुराधा के अचानक हुए इस हमले से घबरा गया.
‘‘इसलिए कि तुम इस महल्ले में सिर्फ अर्पणा के चलते रहते हो. जानते हो, यहां बहुत गंदगी है, फिर भी बैंक से इतनी दूर रहने की क्या वजह है? तुम उसे रोज अपनी मोटरसाइकिल से बैंक ले जाते हो. न तुम्हें अपनी सेहत का खयाल है, न बदनामी का,’’ अनुराधा चाहते हुए भी अपनी भावनाओं को न रोक पाई.
‘‘तुम बहुत ही ज्यादा गलतफहमी की शिकार हो. ऐसी कोई बात नहीं है. बैंक के नजदीक कोई किराए का अच्छा सा मकान नहीं मिल रहा था.’’
‘‘तुम्हारे बैंक का कोई साथी बैंक के अगलबगल नहीं रहता क्या…?’’
‘‘रहता है, लेकिन किसी का मकान अच्छा नहीं है,’’ मलय ने बहाना बनाने की कोशिश की, पर उस की बात भरोसा करने लायक नहीं थी.
अब अनुराधा क्या कहती और कहती भी तो इस से मलय पर क्या फर्क पड़ता, लेकिन उसे यह बात तो समझ में आ ही गई थी कि मलय और अर्पणा के बीच कोई न कोई संबंध जरूर है.
अर्पणा और मलय का संबंध ऐसे ही नहीं बना था और यह 1-2 दिन में नहीं बना था. इस के पीछे हालात भी कम दोषी नहीं थे. हालात ऐसे बने कि अनुराधा को मलय को अकेला छोड़ कर गांव में रहना पड़ा और इस बीच कुंआरी होने के चलते अर्पणा मलय से चिपकती चली गई.
मलय के अकेले होने का फायदा अर्पणा ने बखूबी उठाया और उसी की नजदीकियों के चलते मलय ने अनुराधा को कभी आगरा लाने पर जोर नहीं दिया.
मलय को क्या फर्क पड़ता. उसे गांव आने पर उस की जिस्मानी भूख मिट ही जाती थी. आगरा में रोमांस करने के लिए अर्पणा थी ही, मारी तो अनुराधा जा रही थी. मशीन बन कर रह गई थी वह.
गांव में रातदिन सासससुर की सेवा का फर्ज अनुराधा पर थोप कर मलय निश्चिंत हो गया था. सासससुर भी अनुराधा के सामने ही किसी के आने पर बहू की तारीफ के पुल बांध कर उस के त्याग की जैसे कीमत चुका देना चाहते थे. अनुराधा की भावनाओं का खयाल न मलय को था, न सासससुर को.
अब आगरा में अनुराधा का कोई नहीं था. उसे अकेले ही सारे फैसले लेने थे. सब से पहले तो किसी भी हालत में मलय को अर्पणा से अलग करना था.
इस की शुरुआत क्वार्टर बदलने से करनी थी और इस के लिए मलय तो कोशिश करता नहीं, इसलिए अनुराधा ने उस के साथ औफिस जाने का फैसला किया, ताकि खुद ही उस इलाके में कोई अच्छा सा मकान खोज सके.
शुरू में तो मलय अनुराधा के इस प्रस्ताव से बहुत खीझा. वह बोला, ‘‘तुम बैंक में जा कर क्या करोगी,’’ लेकिन जब अनुराधा ने कहा कि एक बार वह उस के बैंक को देखना चाहती है, पता नहीं कब क्या जरूरत पड़ जाए, तो वह इनकार न कर सका.
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मलय ने फोन कर के अर्पणा को बताया, ‘‘मैं अनुराधा के साथ बैंक जाऊंगा, इसलिए तुम किसी आटोरिकशा से बैंक चली जाना.’’
‘अरे यार, यह बात पहले ही बता देते. इस समय मुझे आटोरिकशा के लिए एक किलोमीटर पैदल जाना पड़ेगा.’
‘‘आज थोड़ी तकलीफ उठा लो. पता नहीं, अनुराधा को क्या हो गया है, मुझ पर तुम्हारे साथ संबंधों को ले कर शक करने लगी है,’’ मलय छत पर जा कर बोला. वह नहीं चाहता था कि अनुराधा उस की बातें सुन ले.
अनुराधा ने भी मलय को यह नहीं बताया था कि वह उस के साथ इसलिए जा रही है, ताकि उस के बैंक के आसपास कोई किराए का मकान खोज सके.
अनुराधा बैंक पहुंच कर बोली कि वह अगलबगल कोई किराए का मकान खोजने जा रही है, तब मलय घबराया. वह बोला, ‘‘इस के लिए तुम्हें यहां आने की क्या जरूरत थी. मैं यह काम खुद भी कर सकता था. अगर तुम्हें इसी काम के लिए आना था, तो रविवार तक का इंतजार करना चाहिए था. मैं भी तुम्हारा साथ देता. क्या अनजान जगह में अकेले तुम्हें गलीगली मकान के लिए भटकना अच्छा लगता है?’’
तब अनुराधा को लगा कि उस ने मलय पर अविश्वास कर और उस से झूठ बोल कर गलत किया है. वह शर्मिंदगी से भर उठी. उस ने कहा, ‘‘मैं थोड़ी देर के लिए अर्पणा को साथ ले लेती हूं.’’
‘‘देखो अनुराधा, यह बैंक है. यहां स्टाफ की ऐसे भी कमी है. अगर तुम अर्पणा को साथ ले जाओगी, तो यहां का अकाउंट सैक्शन कौन संभालेगा? बैंक में कस्टमर तुरंत हल्ला मचाना शुरू कर देंगे.’’
उस दिन चाह कर भी अनुराधा बैंक से बाहर नहीं निकल पाई और दिनभर बैठेबैठे बोर होती रही. बैंक में उस का अर्पणा के अलावा किसी से परिचय नहीं था, इसलिए वह उसी के पास बैठी रही.
अर्पणा काम में इतनी बिजी थी कि उसे उस से भी बात करने की फुरसत नहीं थी, फिर भी उस ने उस का काफी खयाल रखा.
मलय अनुराधा के इस बरताव से काफी दुखी था. अर्पणा भी अब जान गई थी कि अनुराधा मलय को उस से अलग करने के लिए उस के साथ बैंक तक आई थी, पर उस ने अपने मन की बात उस से नहीं की.
अर्पणा के इस अच्छे बदलाव ने अनुराधा के मन में उस के प्रति विचार को बदल दिया. अब उसे इस बात का अफसोस था कि उसी के कारण अर्पणा को उस दिन आटोरिकशा से आना पड़ा. अब बैंक से घर लौटने का समय हो रहा था. अनुराधा उस समय अर्पणा के टेबल के पास बैठी थी. मलय किसी जरूरी काम से चीफ ब्रांच मैनेजर के चैंबर में गया हुआ था.
तभी अर्पणा मुसकरा कर बोली, ‘‘मैं कल से अपनी स्कूटी से बैंक आऊंगी. अब तो आप खुश हैं?’’
यह सुन कर अनुराधा को लगा, जैसे किसी ने चाबुक मार कर पीठ पर नीला कर दिया हो. उस से इस का जवाब देते नहीं बना. तभी मलय आता हुआ दिखाई दिया.
‘‘अभी मुझे कुछ काम है, इसलिए घर लौटने में देरी होगी. तुम अर्पणा के साथ घर लौट जाओ,’’ मलय ने अनुराधा से कहा.
‘‘चलो भाभी, इसी बहाने तुम मेरा भी मकान देख लोगी,’’ अर्पणा ने खुशी जाहिर करते हुए कहा.
‘‘लेकिन अर्पणा, मैं तुम से एक बात बताना भूल गई थी. वह कोने में बैठी हुई जो दुबली सी लड़की दिखाई पड़ रही है न, उस से मैं दोपहर में मिली थी. वह बहुत कम उम्र की लग रही थी और मलय के साथ तुम भी काम में लगी थी, तब उस के पास चली गई थी. उस समय वह अपने केबिन में अकेली थी. मैं उस से जानना चाह रही थी कि वह इतनी कम उम्र में सर्विस में कैसे आ गई.
‘‘मैं ने जब उस को अपना परिचय दिया, तब वह बहुत खुश हुई और औफिस के बाद चाय पर अपने घर चलने का न्योता दिया. जब मैं ने उस से किराए के मकान के बारे में पूछा, तब वह बोली कि उस के मकान में 2 कमरे खाली हैं. अब हमें 2 कमरे से ज्यादा की जरूरत तो है नहीं, क्यों न चल कर बात कर लूं.’’
‘‘हां शायद तुम लूसी के बारे में बात कर रही हो. वह ईसाई है और यहां से थोड़ी ही दूरी पर उस के किसी रिश्तेदार का मकान है, वह वहीं रहती है.’’
अभी वे दोनों बातें कर ही रही थीं कि लूसी आ गई. अब वह भी घर जाने की तैयारी कर रही थी.
‘‘आप भैया को भी साथ ले लीजिएगा भाभी. मैं ने अपने रिश्तेदार से बात कर ली है, वे उस फ्लैट को किराए पर देने के लिए तैयार हैं. अभी आप मेरे साथ चल कर देख लीजिए. आप को मकान पसंद आएगा,’’ लूसी मुसकराते हुए बोली
‘‘लेकिन आज तो मुझे बैंक से निकलने में देर हो जाएगी,’’ मलय ने कहा, तो अनुराधा बोली, ‘‘उस से क्या फर्क पड़ता है. आज होटल में डिनर कर लेंगे. रोजरोज इतनी दूर आने से तो फुरसत मिलेगी.’’
मलय ने कहा, ‘‘तुम लूसी के साथ बैठो, मैं थोड़ी देर में अपना काम निबटा कर आता हूं,’’ और वह अपने केबिन में चला गया.
तभी अर्पणा ने कहा, ‘‘आज डिनर मेरे यहां रहेगा भाभी. मैं घर जा कर इस का इंतजाम करती हूं, जब तक तुम लोग लौटोगे, डिनर तैयार मिलेगा.’’
‘‘ठीक है,’’ अनुराधा ने कहा. सुबह जिस अर्पणा को ले कर उसे चिंता सता रही थी, वह भी अब नहीं रही. जिस तरह अर्पणा उस का सहयोग कर रही थी, उस से तो यही लग रहा था कि वह बेवजह उस के और मलय के संबंधों को ले कर इतनी चिंतित थी.
अर्पणा आटोरिकशा से घर लौट गई और डिनर की तैयारी में जुट गई.
इधर मलय ने अपना काम झटपट निबटाया और मोटरसाइकिल को बैंक परिसर में ही गार्ड के हवाले कर अनुराधा और लूसी के साथ उस के मकान पर पहुंचा.
लूसी वहां अपनी मां के साथ रहती थी. उस के पिता एक बीमारी में गुजर गए थे. एक बहन थी जिस की शादी हो गई थी. चेन्नई में उन का एक पुश्तैनी घर था, जिसे उस की मां ने बेच कर रुपए बैंक में जमा करा दिए थे.
अब उस की मां उसी पैसे से आगरा में ही एक फ्लैट खरीदने का मन बना रही थी, लेकिन लूसी का कहना था कि बैंक से उसे बहुत ही कम ब्याज पर लोन मिल जाएगा, इसलिए अब फ्लैट लूसी के नाम से लोन ले कर खरीदने का मन था. ईएमआई बैंक में जमा पैसे के ब्याज से देना था.
मलय लूसी से काफी सीनियर था, इसलिए लूसी उस की काफी इज्जत कर रही थी. आज तो उस की पत्नी भी आई थी. मकान मालिक लूसी का रिश्तेदार ही था, इसलिए मलय को किराए पर मकान देने के लिए राजी करने में उन्हें दिक्कत नहीं हुई.
मलय और अनुराधा को मकान बहुत पसंद आया. यह न हवादार था, बल्कि काफी साफसुथरा भी था. किराए का एडवांस दे कर और चायनाश्ता करने के बाद मलय और अनुराधा सीधे अर्पणा के घर पहुंचे, क्योंकि अब काफी समय हो गया था और अपने क्वार्टर जा कर लौटने में काफी रात हो जाती.
‘‘अगर आप फ्रेश होना चाहते हो तो हो लो, डिनर तैयार है,’’ अर्पणा बोली, तो अनुराधा बाथरूम में चली गई.
मलय ने कहा, ‘‘मुझे बाथरूम जाने की जरूरत नहीं है.’’
‘‘मकान ठीक लगा?’’ अर्पणा ने पूछा.
‘‘हां, कमरे तो 2 ही हैं, लेकिन बड़ेबड़े हैं, हवादार भी.’’
‘‘अच्छा है, भाभी की चिंता खत्म हुई.’’
‘‘लेकिन, अब तुम्हें परेशानी हो गई.’’
अर्पणा कुछ न बोली. तभी अनुराधा आ गई. खाने की मेज पर तीनों बैठे.
‘‘कब तक नए मकान में शिफ्ट होना है?’’ अर्पणा ने पूछा.
‘‘अगले हफ्ते तक. इस बीच मकान में सफाई का काम करवाऊंगा, क्योंकि पिछले 6 महीने से मकान बंद था और पिछले किराएदार ने उस में जगहजगह कीलें गाड़ रखी?हैं. बाथरूम और किचन दोनों गंदे हैं.’’
‘‘जब तक हम नए मकान में शिफ्ट नहीं हो जाते, अर्पणा को अपने साथ ही ले जाना मलय,’’ अनुराधा ने कहा, तो मलय चुप हो गया.
‘‘पर, अब मैं खुद ही मलय के साथ न जाऊंगी भाभी,’’ अर्पणा ने कहा, तो अनुराधा को कुछ कहते न बना. सच तो यही था कि उसी के चलते मलय को दूसरा मकान लेना पड़ा था, वरना जैसे चल रहा था, वैसे ही चलने देती वह, लेकिन औरत सबकुछ बरदाश्त कर सकती है किसी पराई औरत की अपनी शादीशुदा जिंदगी में दखलअंदाजी नहीं.
‘‘भाभी, अब तुम मलय को संभालो. उसे तुम्हारे प्यार की जरूरत है. मैं तुम्हारी जिंदगी में दखल देना नहीं चाहती.
‘‘अब मैं अपने दिल की बात छिपाऊं, तो तुम्हारे प्रति नाइंसाफी होगी. यह सच है कि मैं मलय से प्यार करने लगी थी. कई बार दिमाग हमें सलाह देता है, क्या करना चाहिए, क्या नहीं, हिदायत देता है, लेकिन दिल उसे अनसुना कर देता है, लेकिन भाभी, जीवन सिर्फ भावनाओं से नहीं चलता. मैं भूल गई थी अपनी हैसियत को, बेवजह मलय की जिंदगी में दखल दे रही थी. माफ कर देना मुझे,’’ यह कहते हुए अर्पणा रो पड़ी.
‘‘ऐसा कुछ भी गलत नहीं हुआ था अर्पणा, जिन हालात में मलय और तुम रह रहे थे, उन में ऐसा होना कोई अजूबा नहीं था. पर मैं भी क्या करती, सासससुर को गांव में बिना किसी सही इंतजाम के छोड़ भी तो नहीं सकती थी.
‘‘एक बार जिद कर यहां आना चाहती थी, लेकिन जानती हो, दिल ने मेरी बात नहीं सुनी और मैं ने अपना विचार बदल दिया.
‘‘पर, बर्थडे के दिन जब मलय के बदले तुम ने फोन रिसीव किया था, तब मैं रातभर न सो पाई. मन किसी डर से बेचैन था और उसी दिन मैं सासससुर की देखभाल के लिए किसी को खोजने लगी.
‘‘और जब कल मैं यहां आई और जाना कि मलय तुम्हें मोटरसाइकिल से बैंक ले जाता है और तुम्हारा साथ पाने के लिए ही वह इतनी दूर इस दमघोंटू महल्ले में रहता है, तब मुझे सच ही बरदाश्त नहीं हुआ और मैं ने तुरंत तय कर लिया कि मलय को इस महल्ले से बाहर निकालना है.’’
‘‘और तुम अपने मिशन में कामयाब हो गई,’’ कह कर मलय मुसकराया.
कुछ तनावग्रस्त हो रहे वातावरण में हलकापन आ गया और जब अर्पणा के आंसू अनुराधा ने अपने रूमाल से पोंछे तब दोनों के दिल स्नेह से भर गए.
जब मलय और अनुराधा अर्पणा से विदा लेने लगे, तब दोनों ने एकदूसरे को गले लगाया. भटका मन अब वापस आ गया था.
अ‘‘इसलिए कि तुम इस महल्ले में सिर्फ अर्पणा के चलते रहते हो. जानते हो, यहां बहुत गंदगी है, फिर भी बैंक से इतनी दूर रहने की क्या वजह है? तुम उसे रोज अपनी मोटरसाइकिल से बैंक ले जाते हो. न तुम्हें अपनी सेहत का खयाल है, न बदनामी का,’’ अनुराधा न चाहते हुए भी अपनी भावनाओं को न रोक पाई.
‘‘तुम गलतफहमी की शिकार हो. ऐसी कोई बात नहीं है. बैंक के नजदीक कोई किराए का अच्छा सा मकान नहीं मिल रहा था.’’
‘‘तुम्हारे बैंक का कोई साथी बैंक के अगलबगल नहीं रहता क्या…?’’
‘‘रहता है, लेकिन किसी का मकान अच्छा नहीं है,’’ मलय ने बहाना बनाने की कोशिश की, लेकिन उस की बात भरोसा करने लायक नहीं थी.
अब अनुराधा क्या कहती और कहती भी तो इस से मलय पर क्या फर्क पड़ता, लेकिन उसे यह बात तो समझ में आ ही गई थी कि मलय और अर्पणा के बीच कोई न कोई संबंध जरूर है.
अर्पणा और मलय का संबंध ऐसे ही नहीं बना था और यह 1-2 दिन में नहीं बना था. इस के पीछे हालात भी कम दोषी नहीं थे. हालात ऐसे बने कि अनुराधा को मलय को अकेला छोड़ कर गांव में रहना पड़ा और इस बीच कुंआरी होने के चलते अर्पणा मलय से चिपकती चली गई.
मलय के अकेले होने का फायदा अर्पणा ने बखूबी उठाया और उसी की नजदीकियों के चलते मलय ने अनुराधा को कभी आगरा लाने पर जोर नहीं दिया.
मलय को क्या फर्क पड़ता. उसे गांव आने पर उस की जिस्मानी भूख मिट ही जाती थी. आगरा में रोमांस करने के लिए अर्पणा थी ही, मारी तो अनुराधा जा रही थी. मशीन बन कर रह गई थी वह.
गांव में रातदिन सासससुर की सेवा का फर्ज अनुराधा पर थोप कर मलय निश्चिंत हो गया था. सासससुर भी अनुराधा के सामने ही किसी के आने पर बहू की तारीफ के पुल बांध कर उस के त्याग की जैसे कीमत चुका देना चाहते थे. अनुराधा की भावनाओं का खयाल न मलय को था, न सासससुर को.
अब आगरा में अनुराधा का कोई नहीं था. उसे अकेले ही सारे फैसले लेने थे. सब से पहले तो किसी भी हालत में मलय को अर्पणा से अलग करना था.
इस की शुरुआत क्वार्टर बदलने से करनी थी और इस के लिए मलय तो कोशिश करता नहीं, इसलिए अनुराधा ने उस के साथ औफिस जाने का फैसला किया, ताकि खुद ही उस इलाके में कोई अच्छा सा मकान खोज सके.
शुरू में तो मलय अनुराधा के इस प्रस्ताव से बहुत खीझा. वह बोला, ‘‘तुम बैंक में जा कर क्या करोगी,’’ लेकिन जब अनुराधा ने कहा कि एक बार वह उस के बैंक को देखना चाहती है, पता नहीं कब क्या जरूरत पड़ जाए, तो वह इनकार न कर सका.
मलय ने फोन कर अर्पणा को बताया, ‘‘मैं अनुराधा के साथ बैंक जाऊंगा, इसलिए तुम किसी आटोरिकशा से बैंक चली जाना.’’
‘अरे यार, यह बात पहले ही बता देते. इस समय मुझे आटोरिकशा के लिए एक किलोमीटर पैदल जाना पड़ेगा.’
‘‘आज थोड़ा कष्ट उठा लो, पता नहीं अनुराधा को क्या हो गया है, मुझ पर तुम्हारे साथ संबंधों को ले कर शक करने लगी है,’’ मलय छत पर जा कर बोला. वह नहीं चाहता था कि अनुराधा उस की बातें सुन ले.
अनुराधा ने भी मलय को यह नहीं बताया था कि वह उस के साथ इसलिए जा रही है, ताकि उस के बैंक के आसपास कोई किराए का मकान खोज सके.
अनुराधा बैंक पहुंच कर बोली कि वह अगलबगल कोई किराए का मकान खोजने जा रही है, तब मलय घबराया. वह बोला, ‘‘इस के लिए तुम्हें यहां आने की क्या जरूरत थी. मैं यह काम खुद भी कर सकता था. अगर तुम्हें इसी काम के लिए आना था तो रविवार तक का इंतजार करना चाहिए था. मैं भी तुम्हारा साथ देता. क्या अनजान जगह में अकेले तुम्हें गलीगली मकान के लिए भटकना अच्छा लगता है?’’
तब अनुराधा को लगा कि उस ने मलय पर अविश्वास कर और उस से झूठ बोल कर गलत किया है. वह शर्मिंदगी से भर उठी. उस ने कहा, ‘‘मैं थोड़ी देर के लिए अर्पणा को साथ ले लेती हूं.’’
‘‘देखो अनुराधा, यह बैंक है. यहां स्टाफ की ऐसे भी कमी है. अगर तुम अर्पणा को साथ ले जाओगी तो यहां का अकाउंट सैक्शन कौन संभालेगा? बैंक में कस्टमर तुरंत हल्ला मचाना शुरू कर देंगे.’’
उस दिन चाह कर भी अनुराधा बैंक से बाहर नहीं निकल पाई और दिनभर बैठेबैठे बोर होती रही. बैंक में उस का अर्पणा के अलावा किसी से परिचय नहीं था, इसलिए वह उसी के पास बैठी रही.
अर्पणा काम में इतनी बिजी थी कि उसे उस से भी बात करने की फुरसत नहीं थी, फिर भी उस ने उस का काफी खयाल रखा.
मलय अनुराधा के इस बरताव से काफी दुखी था. अर्पणा भी अब जान गई थी कि अनुराधा मलय को उस से अलग करने के लिए उस के साथ बैंक तक आई थी, पर उस ने अपने मन की बात उस से नहीं की.
अर्पणा के इस अच्छे बदलाव ने अनुराधा के मन में उस के प्रति विचार को बदल दिया. अब उसे इस बात का अफसोस था कि उसी के कारण अर्पणा को उस दिन आटोरिकशा से आना पड़ा. अब बैंक से घर लौटने का समय हो रहा था. अनुराधा उस समय अर्पणा के टेबल के पास बैठी थी. मलय किसी जरूरी काम से चीफ ब्रांच मैनेजर के चैंबर में गया हुआ था.
तभी अर्पणा मुसकरा कर बोली, ‘‘मैं कल से अपनी स्कूटी से बैंक आऊंगी. अब तो आप खुश हैं?’’
यह सुन कर अनुराधा को लगा, जैसे किसी ने चाबुक मार कर पीठ पर नीला कर दिया हो. उस से इस का जवाब देते नहीं बना. तभी मलय आता हुआ दिखाई दिया.
‘‘अभी मुझे कुछ काम है, इसलिए घर लौटने में देरी होगी. तुम अर्पणा के साथ घर लौट जाओ,’’ मलय ने अनुराधा से कहा.
‘‘चलो भाभी, इसी बहाने तुम मेरा भी मकान देख लोगी,’’ अर्पणा ने खुशी जाहिर करते हुए कहा.
‘‘लेकिन अर्पणा, मैं तुम से एक बात बताना भूल गई थी. वह कोने में बैठी हुई जो दुबली सी लड़की दिखाई पड़ रही है न, उस से मैं दोपहर में मिली थी. वह बहुत कम उम्र की लग रही थी और मलय के साथ तुम भी काम में लगी थी, तब उस के पास चली गई थी. उस समय वह अपने केबिन में अकेली थी. मैं उस से जानना चाह रही थी कि वह इतनी कम उम्र में सर्विस में कैसे आ गई.
‘‘मैं ने जब उस को अपना परिचय दिया, तब वह बहुत खुश हुई और औफिस के बाद चाय पर अपने घर चलने का न्योता दिया. जब मैं ने उस से किराए के मकान के बारे में पूछा, तब वह बोली कि उस के मकान में 2 कमरे खाली हैं. अब हमें 2 कमरे से ज्यादा की जरूरत तो है नहीं, क्यों न चल कर बात कर लूं.’’
‘‘हां शायद तुम लूसी के बारे में बात कर रही हो. वह ईसाई है और यहां से थोड़ी ही दूरी पर उस के किसी रिश्तेदार का मकान है, वह वहीं रहती है.’’
अभी वे दोनों बातें कर ही रही थीं कि लूसी आ गई. अब वह भी घर जाने की तैयारी कर रही थी.
‘‘आप भैया को भी साथ ले लीजिएगा भाभी. मैं ने अपने रिश्तेदार से बात कर ली है, वे उस फ्लैट को किराए पर देने के लिए तैयार हैं. अभी आप मेरे साथ चल कर देख लीजिए. आप को मकान पसंद आएगा,’’ लूसी मुसकराते हुए बोली.