जल समाधि: आखिर क्यूं परेशान था सुशील? भाग 2

प्रकाश समझ गया था कि लोहा गरम है. उस ने रीता को अपनी बांहों में भर लिया और उस के होंठों को चूमने लगा. रीता भी किसी लता की तरह उस की बांहों में समा गई और फिर दोनों की गरम सांसें पूरे कमरे में गूंजने लगीं. दोनों के शरीर एकदूसरे से ऐसे चिपटे हुए थे, जैसे उन्हें किसी ने एक ही कर दिया हो. उस दिन के बाद उन दोनों ने कई बार जम कर सैक्स का मजा लूटा.

ऐसा नहीं था कि यह जिस्मानी रिश्ता अनजाने में बना था, बल्कि रीता ने जानबूझ कर प्रकाश के साथ संबंध को बढ़ने दिया, ताकि वह उस के साथ हमबिस्तर हो कर एक लड़का पैदा कर सके. यही नहीं, बातोंबातों में रीता ने यह डर भी प्रकाश पर जाहिर कर दिया था कि उसे फिर से लड़की हुई तो क्या होगा? प्रकाश ने रीता से वादा किया था कि उस की मर्दानगी में वह दम है, जो लड़की नहीं, बल्कि लड़का ही पैदा करेगी और अगर फिर भी भ्रूण की जांच में लड़की होती है, तो वह उसे गिरवा देगा.

और ऐसा भी लगता था कि रीता के ससुर ने इन दोनों के बीच आने की कोई कोशिश नहीं की. कहीं न कहीं वे भी चाहते थे कि जो हो रहा है, होने दिया जाए. आखिरकार वे भी तो एक पोता चाहते ही थे. कुछ समय के बाद वही हुआ, जिस का इंतजार रीता को था. वह पेट से हो गई. सुशील खुश तो हुआ, पर अगले पल ही मायूसी ने उसे घेर लिया.

‘‘इस बार भी लड़की हो गई तो…?’’ सुशील बोला. ‘‘हम पहले जांच करा लेंगे, उस के बाद ही इसे पनपने देंगे,’’ यह कहते हुए रीता के चेहरे पर चमक थी. जांच के नतीजे ने बताया कि रीता के पेट में पल रहा बच्चा एक लड़का ही है, तो यह जान कर राममोहन, सुशील और रीता सभी खुशी से झूम उठे.

ठीक समय आने पर रीता ने सुंदर चेहरे वाले गोरे लड़के को जन्म दिया… छोटे बालक को देख कर सब की आंखें फैल गई थीं, क्योंकि राममोहन के परिवार में तो सभी सांवले थे, ऐसे में एक गोरे बालक का जन्म सब को सुहा रहा था. राममोहन तो बस इसी बात से खुश थे कि उन के वंश को आगे बढ़ाने के लिए उन्हें एक पोता मिल गया था. 2 महीने बीत गए थे. रीता अपने बेटे को जी भर कर देखती और मन ही मन अपने उस फैसले पर खुश होती, जब उस ने प्रकाश के साथ संबंध कायम किए थे.

आज प्रकाश रीता के घर पहुंचा, तो राममोहन सिर्फ मुसकरा कर रह गए. रीता अपने कमरे में बैठी थी, जिस की देह चिकनी और गदराई हो गई थी… इधर कई महीनों से प्रकाश रीता के साथ हमबिस्तर भी नहीं हुआ था और आज इसी उम्मीद में वह रीता के पास आया था. प्रकाश ने रीता को चूमना चाहा, तो रीता ने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा, ‘‘मुझ से दूर ही रहो, अब मैं एक बेटे की मां हूं.’’ ‘‘अजी, इस में मेरी भी मेहनत लगी है,’’ प्रकाश ने रीता की पीठ सहलाते हुए कहा.

दादी अम्मा : आखिर कहां चली गई थी दादी अम्मा

विश्वास: क्या थी कहानी शिखा की

दादी अम्मा : आखिर कहां चली गई थी दादी अम्मा- भाग 4

जब नर्सिंग होम से डिस्चार्ज होने का समय आया तो दादी अम्मा ने दोनों से कहा, ‘बेटा, अब मुझे घर छोड़ आओ और तुम भी अपना घर देखो. तुम ने मुझ पर बहुत बड़ा एहसान किया है.’

‘यह क्या कह रही हैं, अम्मा. हम दोनों के मांबाप तो रहे नहीं. आप की खिदमत से लगा जैसे उन की कमी दूर हो गई,’ मेहनाज ने कहा.

अम्मा उस के सिर पर हाथ फिराने लगीं. लेकिन अम्मा को आरजू और पोतेपोतियों की याद सता रही थी. इसलिए साजिद और मेहनाज को आगे कभी उन के साथ रहने की तसल्ली दे कर अपने घर आ गईं. उन के आने पर कुछ दिन तक तो बेटेबहुएं उन के आसपास रहे, लेकिन फिर उन का रवैया पहले जैसा हो गया, अम्मा के प्रति उपेक्षित व्यवहार. वे फिर अपनी मौजमस्ती में डूब गए.

कुछ समय बीता तो दादी अम्मा की तबीयत फिर बिगड़ने लगी. अब कौन उन की देखभाल करेगा. वे जबरदस्ती अपने बेटों पर बोझ नहीं बनना चाहती थीं. एक दिन दादी अम्मा ने घर छोड़ दिया. किसी को बता कर नहीं गईं कि कहां जा रही हैं.

आज उन्हें घर छोड़े हुए 1 महीने से ऊपर हो चला था. सभी रिश्तेदारों के बीच खोजा, लेकिन कहीं पता नहीं चला. जब पूरा घर सूना और उजड़ा सा लगा तो बेटों को उन की अहमियत का पता चला. अब वे चाह रहे थे कि किसी भी तरह अम्मा घर वापस आ जाएं. इसीलिए हाजी फुरकान के आगे वे दुखड़ा रो रहे थे.

दूसरे दिन हाजी फुरकान, गफूर मियां, जाबिर मियां और मजहबी कार्यक्रमों के नाम पर चंदा उगाहने वाले रशीद अली को ले कर रेहान के घर पर पहुंच गए. आंगन में दरी बिछा कर उस पर कालीन डाल दी गई और बीच में हुक्का व पानदान रख दिया गया.

‘‘बताओ मियां, क्या परेशानी है?’’ थोड़ी देर हुक्का गुड़गुड़ाने के बाद राशिद अली ने पूछा.

‘‘अम्मा का कुछ पता नहीं चल रहा है. पता नहीं किस हाल में हैं. दुनिया में हैं भी या नहीं?’’ रेहान ने बुझी आवाज में कहा.

‘‘देखो मियां, घबराओ नहीं, हम अपने इलम से अभी पता लगा लेते हैं,’’ जाबिर मियां ने तसल्ली दी, फिर सब से बोले, ‘‘सब लोग खामोश रहें. हमें अपना काम करने दें.’’

वे कुछ देर तक आंखें बंद कर के मुंह ऊपर उठा कर बुदबुदाते रहे. फिर धीरे से बोले, ‘‘बेटा, सब्र से काम लेना. हम ने पता लगा लिया है. तुम्हारी अम्मा अब इस दुनिया में नहीं हैं.’’

‘‘आप ने कैसे पता लगाया?’’ जुबैर ने जिज्ञासावश पूछना चाहा कि गफूर मियां ने उसे बीच में ही झिड़क दिया, ‘‘देखो बेटे, या तो हम पर यकीन करो या फिर हमें बुलाते ही नहीं.’’ फिर हाजी फुरकान पर बिगड़ते हुए बोले, ‘‘मियां, कैसे दीन से फिरे हुए लोगों के घर ले आए हमें. चलो, जाबिर मियां. यहां रुकना अब ठीक नहीं है.’’

इस पर हाजी फुरकान ने जुबैर को डांटना शुरू कर दिया, ‘‘तुम लोग क्या जाबिर मियां को ऐसावैसा समझ रहे हो. बड़े पहुंचे हुए हैं. अपने कब्जे में की हुई रूहानी ताकतों से वे सात समंदर पार की खबर निकाल लेते हैं, यह तो फिर भी यहीं का मामला है. और सुनो, मेरे कहने से तो आ भी गए, वरना ऐसीवैसी जगह तो वैसे भी ये लोग हाथ नहीं डालते हैं,’’ फिर गफूर मियां और जाबिर मियां को समझाते हुए बोले, ‘‘बच्चा है, गलती से पूछ बैठा. आप कहीं मत जाइए, आप की जो खिदमत करनी होगी, उस के लिए ये लोग तैयार हैं. मैं गारंटी लेता हूं.’’

थोड़ी देर तक नाकभौं सिकोड़ने के बाद जाबिर मियां दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए रेहान से बोले, ‘‘देखो बेटे, आप की वालिदा को तो कोई वापस ला नहीं सकता, अलबत्ता उन को शांति मिले, इस के लिए काफी कुछ किया जा सकता है.’’

‘‘वह कैसे?’’ रेहान ने पूछा.

‘‘उन के जीतेजी जो ख्वाहिशें अधूरी रह गई हैं उन्हें पूरा कर के उन को सुकून मिल सकता है. बताओ, क्याक्या ख्वाहिशें थीं उन की? फिर हम ऐसे उपाय बताएंगे कि अम्मा को शांति मिल जाएगी और आप लोगों का प्रायश्चित्त भी हो जाएगा,’ जाबिर मियां उगलदान में पान की पीक थूकने के बाद बोले.

‘‘चचाजान, अम्मा को खीर, पान, रसगुल्ले, फल और मुरब्बे बहुत पसंद थे. बिरयानी भी चाव से खाती थीं,’’ फैजान ने बताया.

‘‘अजी मियां, ये दोचार बातें क्या बता रहे हो, हम ने अपने इलम से पता लगा लिया है कि उन्हें क्याक्या पसंद था,’’ जाबिर मियां हुक्का गुड़गुड़ाने के बाद बोले, ‘‘देखो बेटे, तुम्हारी अम्मा को जो पसंद था, उस की लिस्ट हम दे देते हैं. ये सारा सामान ले आओ, जब तक हम और साथियों को बुला लेते हैं.’’

रेहान ने जब लिस्ट देखी तो उस के होश उड़ गए. उस में 40 मुल्लाओं को धार्मिक अनुष्ठान के मौके पर मुर्गमुसल्लम, पुलाव, खीर, फल और मिठाई मिला कर 25 व्यंजन खिलाने और कपड़े दिए जाने के अलावा गफूर मियां और रशीद अली को अलग से 11-11 हजार रुपए दिए जाने की हिदायत दे डाली थी जाबिर मियां ने.

इन कठमुल्लों के फरमान को टालना तीनों भाइयों के बस की बात नहीं थी. फिर भी थोड़ी देर के लिए वे सोच में पड़ गए.

उन्हें चुप देख कर हाजी फुरकान ने व्यंग्यात्मक शब्दों की तोप दागी, ‘‘मियां, ये लोग तो समझो मुफ्त में परेशानी दूर कर रहे हैं, वरना इस नेक काम के तो लाखों लेते हैं. और यह भी समझो कि अगर इन से आप लोगों का रिश्ता बना रहा तो अपनी रूहानी ताकत और तावीजगंडों से आगे भी इस घर को बुरी हवा से बचाए रखेंगे.’’

इस से आगे बढ़ कर गफूर मियां ने और डरा दिया, ‘‘बेटा, सोच लो, अगर मजहब की परंपराओं को भुला दिया तो इस घर को बरबाद होने से कोई नहीं बचा सकेगा, समझे. हमारा क्या, यहां नहीं तो दूसरों के दुखदर्द दूर करेंगे.’’

‘‘आप नाराज मत होइए. कल अम्मा का चालीसवां है. हम सारा इंतजाम कर देंगे. बस, आप दुआएं देते रहें, आप ही सहारा हैं,’’ रेहान उन के आगे गिड़गिड़ाने लगा.

दूसरे दिन सुबह से ही रेहान, जुबैर और फैजान व उन की पत्नियां चालीसवें के धार्मिक अनुष्ठान की तैयारी में जुट गए. घर के आंगन में बड़ी सी दरी बिछ गई, भट्ठियों पर देगें चढ़ा दी गईं और कठमुल्लों के प्रवचनों के लिए छत के कोनों पर लाउडस्पीकर लगा दिए गए.

दोपहर होतेहोते कठमुल्लों की भीड़ आंगन में इकट्ठी हो गई. जाबिर मियां के आदेश पर दरी के बीच में अम्मा की पसंद का नाम ले कर तरहतरह के पकवान सजा दिए गए. आरजू यह सब देख कर दुखी हो रही थी. वह खुले विचारों की थी और रूढि़यों व मजहब के नाम पर धंधेबाजों से उसे नफरत थी.

वह सोच रही थी कि मुसलिम समाज में कितना ढकोसला है. जब दादी अम्मा जीवित थीं तो ये बेटे उन को 2 रोटी और 1 कटोरी दालसब्जी नहीं देते थे और अब उन की मृत्यु हो जाने पर कितने पकवान उन के नाम पर बना रहे हैं, जिन्हें वे स्वयं ही खाएंगे. उसे जब इस ढकोसले से चिढ़ होने लगी तो कमरे में चली गई.

थोड़ी देर बाद जाबिर मियां ने प्रवचन शुरू किया. उन्होंने संबोधन के कुछ शब्द ही बोले थे कि दरवाजा खटखटाने की आवाज आई. कमरे से निकल कर आरजू ने जब दरवाजा खोला तो सामने दादी अम्मा खड़ी थीं, साथ में साजिद और मेहनाज भी थे.

कुछ पल के लिए आरजू चौंकी, फिर ‘दादी अम्मा’ कहते हुए उन से लिपट कर रोने लगी. जब दादी अम्मा आंगन में आईं तो उन्हें जिंदा देख कर अफरातफरी मच गई. तीनों बेटे और बहुएं उन्हें भय व आश्चर्य से देखने लगे.

‘‘घबराओ नहीं, अम्मा जिंदा हैं. लेकिन तुम लोगों ने तो इन्हें जीतेजी मार ही दिया था. जब इन्हें रोटी और कपड़ों की जरूरत थी तो पूछा नहीं और अब पकवानों व कपड़ों के ढेर लगा रहे हो. और ये लोग प्रवचन कर रहे हैं, इन की झूठी मौत का बहाना बना कर कमाई कर रहे हैं,’’ साजिद ने अपने दिल की भड़ास निकाल डाली.

आंगन में सन्नाटा सा छा गया. हाजी फुरकान और उन के साथ आए कठमुल्लों की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई. उन्होंने वहां से खिसकने में ही भलाई समझी. कठमुल्लों के जाने के बाद सारे बच्चे अम्मा से लिपट गए.

‘‘कहां चली गई थीं, दादी अम्मा, मुझे छोड़ कर?’’ आरजू ने आंसू पोंछते हुए पूछा.

‘‘मैं बताता हूं,’’ साजिद ने कहा. और फिर साजिद ने जो बताया उसे सुन कर बेटे और बहुएं शर्म से गड़ गए.

दरअसल, पिछली बार जब दादी अम्मा बीमार पड़ीं तो वे लापरवाह बेटों व बहुओं पर बोझ बनने और अपनी देखभाल न हो पाने के दुख से बचने के लिए दूसरे शहर में बुजुर्गों की देखभाल करने वाले संस्थान में चली गईं, ताकि बाकी जिंदगी वहीं काट सकें. वे साजिद और मेहनाज के पास भी यह सोच कर नहीं गईं कि जब सगे बेटेबहुएं अपने नहीं हुए तो दूर के रिश्तेदार पर बोझ क्यों बना जाए. इस की जानकारी होने पर साजिद और मेहनाज ने तमाम दौड़धूप के बाद उन का पता लगाया और किसी तरह उन्हें वापस घर आने के लिए राजी किया.

‘‘अम्मा, हमें माफ कर दो. हम से बड़ी भूल हो गई. अब हम कभी ऐसा नहीं करेंगे. हमें एक मौका दे दो,’’ कहते हुए तीनों बेटे और बहुएं दादी अम्मा के पास आ गए. उन्होंने एकएक कर के सब को गले लगाया. ऐसा करते उन की आंखों में खुशी के आंसू छलक आए.

उदास क्षितिज की नीलिमा: आभा को बहू नीलिमा से क्या दिक्कत थी- भाग 3

अच्छा पूजापाठ की बात कह कर मजाक बनाया जा रहा. वह दुखी हो जाता मन ही मन.

उस की हंसी उड़ती और वह अलसाए कदमों को खींचते हुए उन से दूर चला जाता, हमेशा एकाकी.

पहाड़ी मंदिर पर दर्शनार्थी का पूजा निबटा कर अभी नल में हाथमुंह धोते हुए वह दुनियाभर की इन्हीं बातों पर अपना सिर पीट रहा था कि नीलिमा ने उसे आवाज दी- “पंडित जी.”

“क्या है?” पुकारने वाले को बिना देखे ही वह चिड़चिड़ा कर बोल पड़ा था. मन ही मन जिस बात पर खफा था, दुखी था, उसी शब्द के कानों में पड़ते ही उस ने पलट कर जवाब दिया. मगर जैसे ही उस ने बोलने वाले की ओर देखा, खूबसूरत नीलिमा को पा कर सकपका गया. अभी तक वह सास के साथ ही ऊपर आती थी, इसलिए क्षितिज ने कभी उस पर गौर नहीं किया था.

आज पीली सिफोन की साड़ी में सोने सा उस का उज्ज्वल रंग सुनहरे सूरज सा चमक रहा था. 5.4 फुट की हाइट, लंबी, भींगी, एक अलसायी सी चोटी, ललाट पर गोल लाल बिंदी और कलाई में पीली चूड़ियों की धूम थी.

क्षितिज ने शांति से निहारा, वह नल पर अपना पैर धोती रही. फिर क्षितिज की ओर मुखातिब हुई, “आप को देर तो न हो जाएगी? पूजा कर देंगे?”

“हां, क्यों नहीं? देर किस बात की?”

“आप को कचहरी जाना है न.”

“हां, आप को किस ने बताया?”

“आप के पापा ने मेरी सासुमां को बताया था, आप वहां जूनियर वकील हैं.”

“चलिए, पूजा कर देता हूं.”

पूजा की थाली ले  कर मंदिर के गर्भगृह तक चलते हुए नीलिमा पिछड़ जाती है तो क्षितिज मुड़ कर देखता है. नीलिमा लंगड़ा कर चल रही थी.

“अरे, क्या हुआ आप को?” क्षितिज ने चौंकते हुए पूछा. नीलिमा ने घटना बताई. क्षितिज ने पूजा की थाली उस के हाथ से ले ली और उसे सहारा दे कर मंदिर के गर्भगृह तक ले आया.

पूजा करते हुए उसे बारबार नीलिमा के बारे में जानने की इच्छा होती रही. पूजा के बाद किसी  तरह क्षितिज ने नाम से बातचीत शुरू की.

“अगर बुरा न मानें तो आप का नाम जान सकता हूं?”

“नाम तो नीलिमा है, लेकिन बुरा क्यों मानने लगी?”

“आप शादीशुदा हैं न, शादीशुदा स्त्री में दिलचस्पी लेना…”

“देखिए, शादीशुदा स्त्री कोई अजूबा नहीं होती, वह शादी के बाद अपने सारे अधिकार खो नहीं देती.”

“वह तो ठीक है लेकिन पति को पसंद नहीं होता न.”

“पत्नी को भी पति की ढेरों बातें पसंद नहीं होतीं, क्या पति, पत्नी के अनुसार चलता है?

और मेरी तो बात ही अलग है. पति ही पसंद नहीं, तो पति की पसंद पर जाऊं ही क्यों?”

क्षितिज अचरज से उसे देख रहा था, बोला, “काश, आप मेरी दोस्त हो पातीं. आप में तो गजब का आत्मविश्वास है.”

“दोस्त होने में दिक्कत क्या है. मैं कल से आधा घंटा पहले आ जाया करूंगी, फिर हमें बात करने को कुछ वक्त मिल जाया करेगा. दोस्ती तो एकदूसरे को अच्छी तरह जानने से ही होगी न.”

दोनों ने अब अपने लिए समय निकालना शुरू किया.

नीलिमा का खिला रूप, धूपधूप सा आत्मविश्वास, जिंदगी को तसल्ली से जीने की इच्छा… उदास क्षितिज में भी आसमानी रंग भरने लगे, उस की झिझक जाती रही.

नीलिमा और क्षितिज मंदिर के पीछे पहाड़ पर बैठ कुछ देर बातें करते.

“जानते हो क्षितिज, मैं शादी से पहले की जिंदगी को खूब याद करती हूं.”

“क्यों, ऐसा क्या था पहले, जो अब नहीं है?”

“कालेज, घूमनाफिरना, अपनी पसंद का खाना, पहनना, अपने शौक…सबकुछ. ग्रेजुएशन करते हुए मैं ने केक बनाना सीखा. शादी से पहले तक मेरा बिसनैज अच्छा चल निकला था.”

“फिर शादी की जल्दी क्या थी?”

“जल्दी मुझे नहीं, मेरे बड़े भाई व भाभी को थी.

“बचपन में पापा की मौत के बाद मां ने बड़ी मुश्किल से हमें संभाला और बड़े भाई, जो मुझ से 5 साल बड़े हैं, मात्र 19 साल के होते ही पापा के औफिस में नौकरी में लगा दिए गए. नौकरी लग गई, तो 22 साल में 20 साल की लड़की से मां ने उन का विवाह भी करवा दिया. इसलिए जैसे ही मेरी स्नातक पूरी हुई, बड़े भाईभाभी ने मेरी शादी का कर्तव्य निभा कर छुट्टी पा जाने में ही अपनी भलाई समझी.

“जब भाई की शादी 22 साल में हुई तो मां के पास भी चारा नहीं था कि वे मेरी शादी रोक लें और वह भी तब जब अच्छाभला लड़का मिल गया था.  इकलौता लड़का, अपना अच्छा बड़ा घर, सरकारी नौकरी और सास के सिवा कोई जिम्मेदारी भी न थी. अब अलग बात है कि यह अकेली सास सौ बोलने वाली औरतों के बराबर है.

“अभी तो यह हाल है कि हमारा जिंदा रहना ही पूजापाठ और कर्मकांड के लिए रह गया है.

आएदिन तीनचार घंटे पूजा की तैयारी में लगाओ,  पूजा की सामग्री के पीछे पैसा और समय बहा, अपने शौक और जरूरी कामों को मारो.  इस के बाद भी सास की सहेली मंडली के नाज उठा कर बदनामी भी सहो. एक और बड़ी मुश्किल मेरी ड्रैस को ले कर है. मैं वैस्टर्न ड्रैस की शौकीन हूं, लेकिन यहां तो बहू का ऐसा लेबल लग गया है कि साड़ी के सिवा कुछ पहन ही नहीं सकती.”

“तुम्हारी जिंदगी तो बिलकुल मेरी जैसी है नीलू.”

नीलिमा ने देखा क्षितिज की ओर. आसमान की नीलिमा से क्षितिज के संधिस्थल की दूरी मिट चुकी थी. नीलिमा धीरे से उठ कर क्षितिज के बिलकुल पास बैठ गई. दोनों के चेहरे पास थे, सांसें गहरी हो चली थीं. क्षितिज ने उम्रभर की शिद्दत जुटा कर नीलू के होंठों पर अपने होंठ रख दिए. नीलू की आंखें बंद हो गईं.

क्षितिज ने हटते हुए कहा- “नीलू, मुझे माफ करो. प्यार पर जोर न चल सका.”

“अब कोई माफी नहीं होगी.”

क्षितिज का चेहरा पीला पड़ने लगा. नीलिमा ने उसे गले से लगा लिया और उस के होंठों पर भरपूर चुंबन रख दिया.

“नीलू…”

“अब पाप की धारणा में मत बहना. अगर पाप ही कहना है तो मेरा निरूपम से रिश्ता पाप है, वह रिश्ता जहां सिर्फ शरीर के सुख के लिए एक स्त्री को रौंदा जाता है. अगर पाप है तो वही है. प्रेम तो सब से शुद्ध है, शांत है, आनंद है.”

“नीलू,  पापा बता रहे थे तुम्हारा मायका टाटी सिलवे है, सुवर्ण रेखा नदी से आगे. क्यों न मायके जाओ और उधर मैं सुवर्ण रेखा के तट पर तुम से मिलूं?”

“जाने नहीं देते और घर में चाहता भी कौन है कि मैं वहां जाऊं. लेकिन हम सुवर्ण रेखा पर मिलेंगे जरूर. तुम बता देना, मैं आ जाऊंगी.”

और इस तरह दोनों का सफर शुरू हुआ.

नीलिमा जब भी आती, अपने पसंदीदा वैस्टर्न ड्रैस में. और क्षितिज को भी मिल गई थी अपने पसंद से जीनेपहनने की आजादी.

वैसे यह सबकुछ उन्हें मिला था कुछ कीमत चुका कर ही.

कभी झूठ, कभी बहाने- नीलिमा और क्षितिज  को बड़ी मुश्किलों से  निभानी पड़ रही थी यह दोस्ती.

लेकिन जब 2 दिलों के दर्द एक थे, उदासियां एक थीं, सपने और जिंदगी एक सी थी, तो दोस्ती की सारी बाधाओं को तो पार पाना ही था.

नीलिमा और क्षितिज आज के युवा थे, उन्हें यह कतई पसंद नहीं था कि उन के जीवन और इच्छा की डोर किसी और के हाथों में बंधी रहे.

जब दोनों ने कुछ अपनी कही, कुछ उन की सुनी, लगा उन का दर्द उन की असुविधाएं अलग कहां.

नीलिमा ने उस दिन नदी के किनारे बैठ क्षितिज से पूछा- “तो तुम्हारा आखिरी फैसला यही है?”

“हां, बस यही. तुम न मत कहना.”

नीलिमा और क्षितिज वापस घर आ गए थे. वे बेचैन थे. क्या यह फैसला सही था? क्षितिज ने  इस बारे में रामेश्वर सर से बात की. उन्होंने भी माना, इस तरह चोरीछिपे मिलना सही नहीं. अब ज्यादा दिन ऐसे ही बीते तो निश्चित ही परिवार व समाज के हाथों उन दोनों की बुरी गत होगी.

रामेश्वर सर ने क्षितिज को सारी बातें समझा दीं.

महीनेभर नीलिमा ने जैसेतैसे बिताया.

एक दिन रामेश्वर सर नीलिमा की ससुराल आए. उन लोगों से कहा कि वे नीलिमा के पापा के दोस्त हैं, उन के घरवालों ने नीलिमा को खाने पर बुलाया है, साथ ले जाने आए हैं, शाम तक नीलिमा को वापस भेज देंगे. नीलिमा सारी बातें जानती थी, वह रामेश्वर के साथ चली आई.

शाम को नीलिमा के बदले आया नीलिमा के निरूपम से तलाक के कागज. वे अवाक रह गए. ससुराल और मायके में हड़कंप मच गया.

नीलिमा ने साफ कर दिया कि वह बालिग है, जिंदगीभर मरमर कर नहीं जिएगी.

सारा कुसूर, सारा दोष जब लड़की का ही है और उसे शांति से, अपनी मरजी से सजनेसंवरने व पसंदीदा काम करने का अधिकार ही नहीं, तो वह घुटघुट कर नहीं जी सकती.

चूंकि तलाक के साथ नीलिमा ने किसी संपत्ति की मांग नहीं की थी, उसे बहुत जल्द तलाक मिल गया.

रामेश्वर के पास अपने 3 मकान थे. उन में 2 को वे किराए पर दिया करते थे.  उन में से एक के किराएदार पहले से ही घर खाली करने वाले थे. उन के घर खाली करते ही क्षितिज और नीलिमा  कोर्टमैरिज का फैसला कर रामेश्वर के इस बढ़िया हवादार मकान में साथ रहने चले आए.

अब सेवाराम की नींद उड़ी. बेटे को बुलवा कर लाख समझाया लेकिन बेटा टस से मस नहीं हुआ. तो सेवाराम बिफर पड़े- “पंडित हो कर कुर्मी की शादीशुदा औरत से विवाह. बहुत हेठी होगी, पूरा धंधा चौपट हो जाएगा, पंडित बिरादरी में नाक कटेगी, यजमानों के घर छूट जाएंगे. कुछ तो समझो.”

“कुछ नहीं समझना है पिताजी. प्यार में निर्णय लिया जाता है, आप समझें मेरी परेशानी.

पूजापाठ बहुत हुआ, अब मुझे मेरी जिंदगी जीने दीजिए. और यह मेरी अकेली की बात भी नहीं, नीलिमा को अकेला क्यों छोड़ दूं? उस ने तो मेरी खातिर इतनी हिम्मत की. अगर आज की युवा पीढ़ी अंधविश्वास और कर्मकांड के पीछे, जातपांत, भेदभाव और कुसंस्कार के पीछे अपना सुकून गंवा दे, तो उस की सारी ऊर्जा व्यर्थ चली जाएगी. समाज के लिए, आर्थिक और राजनीतिक बेहतरी के लिए एक युवा क्या कुछ नहीं कर सकता है. आप लोग उन की क्षमता को अंधविश्वास व भेदभाव की परंपरा में नष्ट करना चाहते हैं?”

क्षितिज खुद आश्चर्य में था कि उस ने अपनी दिल की बात इतनी बेझिझक कही कैसे? क्या यह नीलिमा की दी हुई शक्ति और प्रेरणा है…

सेवाराम अब भी अड़े थे- “बेटा, तू यह सब बातें छोड़, चल एक काम कर, तुझे जितना रहना है उस के साथ रह ले, घूम ले, शादी मत करना. ब्राह्मण का बेटा सोने की अंगूठी है, सोने की अंगूठी में दोष नहीं होता. एकदो साल बाद मैं तेरे लिए  ब्राह्मण की अच्छी लड़की ले आऊंगा.”

“पिताजी, आप इतने वर्षों से पूजापाठ करते आ रहे हैं, लेकिन आप ने पूजा का अर्थ नहीं समझा. जिस दिन मानव से प्रेम कर लेंगे, धर्मजाति का भेद भूल जाएंगे. आप की पूजा पूरी हो जाएगी. मैं नीलिमा के साथ जिंदगीभर का साथ निभाने जा रहा हूं पिता जी.  हां, आप की जरूरतों पर मैं हमेशा आप का साथ दूंगा.”

कोर्टमैरिज के बाद नीलिमा और क्षितिज के नए घर में प्रेम की नीलवर्णी अपराजिता खिल उठी. वह उदास क्षितिज नीलिमा की गहराई में समा कर आशा का आकाश हो गया था.

विश्वास: क्या थी कहानी शिखा की- भाग 3

‘‘तब क्या दूसरों को खुश करने के लिए तुम अपनी मां को चरित्रहीन करार दे दोगी? उन की झूठी बातों पर विश्वास कर के अपनी मां को उस की सब से प्यारी सहेली से दूर करने की जिद पकड़ोगी?’’

‘‘मुझ पर क्या गुजर रही है, इस की आप को भी कहां चिंता है, मम्मी,’’ शिखा चिढ़ कर गुस्सा हो उठी, ‘‘मैं आप की सहेली नहीं बल्कि सहेली के चालाक पति से आप को दूर देखना चाहती हूं. अपनी बेटी की सुखशांति से ज्यादा क्या कमल अंकल के साथ जुडे़ रहना आप के लिए जरूरी है?’’

‘‘कमल अंकल मेरे लिए तुम से ज्यादा महत्त्वपूर्ण कैसे हो सकते हैं, शिखा? मुझे तो अफसोस और दुख इस बात का है कि मेरी बेटी को मुझ पर विश्वास नहीं रहा. मैं पूछती हूं कि तुम ही मुझ पर विश्वास क्यों नहीं कर रही हो?  अपनी सहेलियों की बकवास पर ध्यान न दे कर मेरा साथ क्यों नहीं दे रही हो? मेरे मन में खोट नहीं है, इस बात को मेरे कई बार दोहराने के बावजूद तुम ने उस पर विश्वास न कर के मेरे दिल को जितनी पीड़ा पहुंचाई है, क्या उस का तुम्हें अंदाजा है?’’ बोलते हुए अंजलि का चेहरा गुस्से से लाल हो गया.

‘‘यों चीखचिल्ला कर आप मुझे चुप नहीं कर सकोगी,’’ गुस्से से भरी शिखा उठ कर खड़ी हो गई, ‘‘चित भी मेरी और पट भी मेरी का चालाकी भरा खेल मेरे साथ न खेलो.’’

‘‘क्या मतलब?’’ अंजलि फौरन उलझन का शिकार बन गई.

‘‘मतलब यह कि पापा ने अपनी बिजनेस पार्टनर सीमा आंटी को ले कर आप को सफाई दे दी तब तो आप ने उन की एक नहीं सुनी और यहां भाग आईं, और जब मैं आप से कमल अंकल के साथ संबंध तोड़ लेने की मांग कर रही हूं तो किस आधार पर आप मुझे गलत और खुद को सही ठहरा रही हो?’’

अंजलि को बेटी का सवाल सुन कर तेज झटका लगा. उस ने अपना सिर झुका लिया. शिखा आगे एक भी शब्द न बोल कर अपने कमरे में लौट गई. दोनों मांबेटी ने तबीयत खराब होने का बहाना बना कर रात का खाना नहीं खाया. शिखा के नानानानी को उन दोनों के उखडे़ मूड का कारण जरा भी समझ में नहीं आया.

उस रात अंजलि बहुत देर तक नहीं सो सकी. अपने पति के साथ चल रहे मनमुटाव से जुड़ी बहुत सी यादें उस के दिलोदिमाग में हलचल मचा रही थीं. शिखा द्वारा लगाए गए आरोप ने उसे बुरी तरह झकझोर दिया था.

राजेश ने कभी स्वीकार नहीं किया था कि अपने दोस्त की विधवा के साथ उस के अनैतिक संबंध थे. दूसरी तरफ आफिस में काम करने वाली 2 लड़कियों और राजेश के दोस्तों की पत्नियों ने इस संबंध को समाप्त करवा देने की चेतावनी कई बार उस के कानों में डाली थी.

तब खूबसूरत सीमा को अपने पति के साथ खूब खुल कर हंसतेबोलते देख अंजलि जबरदस्त ईर्ष्या व असुरक्षा की भावना का शिकर रहने लगी.

राजेश ने उसे प्यार से व डांट कर भी खूब समझाया पर अंजलि ने साफ कह दिया, ‘मेरे मन की सुखशांति, मेरे प्यार व खुशियों की खातिर आप को सीमा से हर तरह का संबंध समाप्त कर लेना होगा.’

‘मैं ऐसा कुछ नहीं करूंगा जिस से अपनी नजरों में गिर जाऊं. मैं कुसूरवार हूं ही नहीं, तो सजा क्यों भोगूं? अपने दिवंगत दोस्त की पत्नी को मैं बेसहारा नहीं छोड़ सकता हूं. तुम्हारे बेबुनियाद शक के कारण मैं अपनी नजरों में खुद को गिराने वाला कोई कदम नहीं उठाऊंगा,’ राजेश के इस फैसले को अंजलि किसी भी तरह से नहीं बदलवा सकी.

पहले अपने पति और अब अपनी बेटी के साथ हुए टकरावों में अंजलि को बड़ी समानता नजर आई. उस ने सीमा को ले कर राजेश पर चरित्रहीन होने का आरोप लगाया था और शिखा ने कमल को ले कर खुद उस पर.

वह अपने को सही मानती थी, जैसे अब शिखा अपने को सही मान रही थी. वहां राजेश अपराधी के कटघरे में खड़ा हो कर सफाई देता था और आज वह अपनी बेटी को सफाई देने के लिए मजबूर थी.

अपने दिल की बात वह अच्छी तरह जानती थी. उस के मन में कमल को ले कर रत्ती भर भी गलत तरह का आकर्षण नहीं था. इस मामले में शिखा पूरी तरह गलत थी.

तब सीमा व राजेश के मामले में क्या वह खुद गलत नहीं हो सकती थी? इस सवाल से जूझते हुए अंजलि ने सारी रात करवटें बदलते हुए गुजार दी.

अगली सुबह शिखा के जागते ही अंजलि ने अपना फैसला उसे सुना दिया, ‘‘अपना सामान बैग में रख लो. नाश्ता करने के बाद हम अपने घर लौट रहे हैं.’’

‘‘ओह, मम्मी. यू आर ग्रेट. मैं बहुत खुश हूं,’’ शिखा भावुक हो कर उस से लिपट गई.

अंजलि ने उस के माथे का चुंबन लिया, पर मुंह से कुछ नहीं बोली. तब शिखा ने धीमे स्वर में उस से कहा, ‘‘गुस्से में आ कर मैं ने जो भी पिछले दिनों आप से उलटासीधा कहा है, उस के लिए मैं बेहद शर्मिंदा हूं. आप का फैसला बता रहा है कि मैं गलत थी. प्लीज मम्मा, मुझे माफ कर दीजिए.’’

अंजलि ने उसे अपने सीने से लगा लिया. मांबेटी दोनों की आंखों में आंसू भर आए. पिछले कई दिनों से बनी मानसिक पीड़ा व तनाव से दोनों पल भर में मुक्त हो गई थीं.

उस के बुलावे पर वंदना उस से मिलने घर आ गई. कमल के आफिस चले जाने के कारण अंजलि के लौटने की खबर कमल तक नहीं पहुंची.

वंदना को अंजलि ने अकेले में अपने वापस लौटने का सही कारण बताया, ‘‘पिछले दिनों अपनी बेटी शिखा के कारण राजेश और सीमा को ले कर मुझे अपनी एक गलती…एक तरह की नासमझी का एहसास हुआ है. उसी भूल को सुधारने को मैं राजेश के पास बेशर्त वापस लौट रही हूं.

‘‘सीमा के साथ उस के अनैतिक संबंध नहीं हैं, मुझे राजेश के इस कथन पर विश्वास करना चाहिए था, पर मैं और लोगों की सुनती रही और हमारे बीच प्रेम व विश्वास का संबंध कमजोर पड़ने लगा.

‘‘अगर राजेश निर्दोष हैं तो मेरा झगड़ालू रवैया उन्हें कितना गलत और दुखदायी लगता होगा. बिना कुछ अपनी आंखों से देखे, पत्नी का पति पर विश्वास न करना क्या एक तरह का विश्वासघात नहीं है?

‘‘मैं राजेश को…उन के पे्रम को खोना नहीं चाहती हूं. हो सकता है कि सीमा और उन के बीच गलत तरह के संबंध बन गए हों, पर इस कारण वह खुद भी मुझे छोड़ना नहीं चाहते. उन के दिल में सिर्फ मैं रहूं, क्या अपने इस लक्ष्य को मैं उन से लड़झगड़ कर कभी पा सकूंगी?

‘‘वापस लौट कर मुझे उन का विश्वास फिर से जीतना है. हमारे बीच प्रेम का मजबूत बंधन फिर से कायम हो कर हम दोनों के दिलों के घावों को भर देगा, इस का मुझे पूरा विश्वास है.’’

अंजलि की आंखों में दृढ़निश्चय के भावों को पढ़ कर वंदना ने उसे बडे़ प्यार से गले लगा लिया.

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जिस गली जाना नहीं: क्या हुआ था सोम के साथ- भाग 3

आज भी अजय उस से प्यार करता है, यह सोच आशा की जरा सी किरण फूटी सोम के मन में. कुछ ही सही, ज्यादा न सही.

‘‘कैसे हो, सोम?’’ परदा उठा कर अंदर आया अजय और सोम को अपने हाथ रोकने पड़े. उस दिन जब दुकान पर मिले थे तब इतनी भीड़ थी दोनों के आसपास कि ढंग से मिल नहीं पाए थे.

‘‘क्या कर रहे हो भाई, यह क्या बना रहे हो?’’ पास आ गया अजय. 10 साल का फासला था दोनों के बीच. और यह फासला अजय का पैदा किया हुआ नहीं था. सोम ही जिम्मेदार था इस फासले का. बड़ी तल्लीनता से कुछ बना रहा था सोम जिस पर अजय ने नजर डाली.

‘‘चाची ने बताया, तुम परेशान से रहते हो. वहां सब ठीक तो है न? भाभी, तुम्हारा बेटा…उन्हें साथ क्यों नहीं लाए? मैं तो डर रहा था कहीं वापस ही न जा चुके हो? दुकान पर बहुत काम था.’’

‘‘काम था फिर भी समय निकाला तुम ने. मुझ से हजारगुना अच्छे हो तुम अजय, जो मिलने तो आए.’’

‘‘अरे, कैसी बात कर रहे हो, यार,’’ अजय ने लपक कर गले लगाया तो सहसा पीड़ा का बांध सारे किनारे लांघ गया.

‘‘उस दिन तुम कब चले गए, मुझे पता ही नहीं चला. नाराज हो क्या, सोम? गलती हो गई मेरे भाई. चाची के पास तो आताजाता रहता हूं मैं. तुम्हारी खबर रहती है मुझे यार.’’

अजय की छाती से लगा था सोम और उस की बांहों की जकड़न कुछकुछ समझा रही थी उसे. कुछ अनकहा जो बिना कहे ही उस की समझ में आने लगा. उस की बांहों को सहला रहा था अजय, ‘‘वहां सब ठीक तो है न, तुम खुश तो हो न, भाभी और तुम्हारा बेटा तो सकुशल हैं न?’’

रोने लगा सोम. मानो अभीअभी दोनों रिश्तों का दाहसंस्कार कर के आया हो. सारी वेदना, सारा अवसाद बह गया मित्र की गोद में समा कर. कुछ बताया उसे, बाकी वह स्वयं ही समझ गया.

‘‘सब समाप्त हो गया है, अजय. मैं खाली हाथ लौट आया. वहीं खड़ा हूं जहां आज से 10 साल पहले खड़ा था.’’

अवाक् रह गया अजय, बिलकुल वैसा जैसा 10 साल पहले खड़ा रह गया था तब जब सोम खुशीखुशी उसे हाथ हिलाता हुआ चला गया था. फर्क सिर्फ इतना सा…तब भी उस का भविष्य अनजाना था और अब जब भविष्य एक बार फिर से प्रश्नचिह्न लिए है अपने माथे पर. तब और अब न तब निश्चित थे और न ही आज. हां, तब देश पराया था लेकिन आज अपना है.

जब भविष्य अंधेरा हो तो इंसान मुड़मुड़ कर देखने लगता है कि शायद अतीत में ही कुछ रोशनी हो, उजाला शायद बीते हुए कल में ही हो.

मेज पर लकड़ी के टुकड़े जोड़ कर बहुत सुंदर घर का मौडल बना रहा सोम उसे आखिरी टच दे रहा था, जब सहसा अजय चला आया था उसे सुखद आश्चर्य देने. भीगी आंखों से अजय ने सुंदर घर के नन्हे रूप को निहारा. विषय को बदलना चाहा, आज त्योहार है रोनाधोना क्यों? फीका सा मुसकरा दिया, ‘‘यह घर किस का है? बहुत प्यारा है. ऐसा लग रहा है अभी बोल उठेगा.’’

‘‘तुम्हें पसंद आया?’’

‘‘हां, बचपन में ऐसे घर बनाना मुझे बहुत अच्छा लगता था.’’

‘‘मुझे याद था, इसीलिए तो बनाया है तुम्हारे लिए.’’

झिलमिल आंखों में नन्हे दिए जगमगाने लगे. आस है मन में, अपनों का साथ मिलेगा उसे.

सोम सोचा करता था पीछे मुड़ कर देखना ही क्यों जब वापस आना ही नहीं. जिस गली जाना नहीं उस गली का रास्ता भी क्यों पूछना. नहीं पता था प्रकृति स्वयं वह गली दिखा देती है जिसे हम नकार देते हैं. अपनी गलियां अपनी होती हैं, अजय. इन से मुंह मोड़ा था न मैं ने, आज शर्म आ रही है कि मैं किस अधिकार से चला आया हूं वापस.

आगे बढ़ कर फिर सोम को गले लगा लिया अजय ने. एक थपकी दी, ‘कोई बात नहीं. आगे की सुधि लो. सब अच्छा होगा. हम सब हैं न यहां, देख लेंगे.’

बिना कुछ कहे अजय का आश्वासन सोम के मन तक पहुंच गया. हलका हो गया तनमन. आत्मग्लानि बड़ी तीव्रता से कचोटने लगी. अपने ही भाव याद आने लगे उसे, ‘जिस गली जाना नहीं उधर देखना भी क्यों.

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