17 दिन की दुल्हन: भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

10 दिसंबर, 2020 को आरजू अमनदीप गुप्ता की दुलहन बन कर ससुराल कानपुर आ गई. ससुराल में उसे जिस ने भी देखा, उसी ने उस के रूपसौंदर्य की सराहना की. सुंदर व गुणवान पत्नी पा कर अमनदीप जहां खुश था, वहीं अच्छा घरवर पा कर आरजू भी खुश थी. सुंदर व सुशील बहू मिलने से सास पिंकी व ससुर आर.सी. गुप्ता भी फूले नहीं समा रहे थे. वह आरजू को बेटी की तरह स्नेह करते थे.

आर.सी. गुप्ता की बेटी का नाम भी आरजू था और बहू का भी. अब घर में 2 आरजू थीं. अत: उन्होंने दोनो को नंबर अलाट कर दिए थे. बहू को वह आरजू फर्स्ट कह कर बुलाते थे और बेटी को आरजू सेकेंड.

आर.सी. गुप्ता के घर किसी चीज की कमी न थी, सो आरजू हर तरह से खुश थी. मोबाइल फोन पर बतियाने का भी किसी प्रकार का कोई प्रतिबंध न तो पति की तरफ से था और न ही सासससुर की तरफ से. अत: आरजू दिन में कई बार अपनी मां अर्चना से मोबाइल फोन पर बतियाती थी और उन्हें बताती थी कि वह ससुराल में हर तरह से खुश है.

आरजू ने अपने परिवार का एक वाट्सऐप ग्रुप बनाया था, जिस में वह अकसर फोटो शेयर करती थी. आरजू की अपनी ननद आरजू गुप्ता से भी खूब पटती थी. ननदभौजाई सहेली जैसी थीं. खूब हंसतीबोलती थीं. हंसीमजाक में खूब ठहाके लगते थे. आरजू के सरल स्वभाव तथा मृदुल व्यवहार से पड़ोसी भी प्रभावित थे. वह अकसर पिंकी से उस की बहू की तारीफ करते थे. पिंकी बहू की तारीफ सुन कर गदगद हो उठती थी. लेकिन यह खुशी शायद प्रकृति को मंजूर नहीं थी. फिर तो जो हुआ, शायद उस की उम्मीद किसी को नहीं थी.

25 दिसंबर, 2020 की सुबह 9 बजे आरजू नींद से जागी. उस के बाद उस ने मोबाइल पर अपनी मां अर्चना से बात की और बताया कि वह फ्रैश होने बाथरूम जा रही है. अमनदीप उस समय कमरे में ही था. उस के बाद क्या कुछ हुआ, किसी को पता नहीं. पिंकी और उस की बेटी रसोईघर में थीं और आर.सी. गुप्ता ड्यूटी पर जा चुके थे.

कुछ देर बाद नौकरानी रज्जो साफसफाई के लिए कमरे में आई. वह पानी लेने के लिए बाथरूम की तरफ गई. उस ने बाथरूम का दरवाजा खोला तो बहू आरजू बाथरूम के गीले फर्श पर गिरी पड़ी थी. उस ने उसे हिलायाडुलाया. जब कोई हरकत नहीं हुई तो वह चीख पड़ी.

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उस की चीख सुन कर अमनदीप, उस की मां पिंकी व बहन आरजू आ गई. उस के बाद तो माही वाटिका अपार्टमेंट में सनसनी फैल गई. सूचना पा कर आर.सी. गुप्ता भी आ गए.

इस के बाद अमनदीप व आर.सी. गुप्ता पड़ोसियों के सहयोग से आरजू को कार से मधुलोक अस्पताल ले गए. लेकिन डाक्टरों ने उसे देखते ही जवाब दे दिया. उस के बाद आरजू को कार्डियोलौजी तथा रीजेंसी अस्पताल लाया गया. लेकिन यहां भी डाक्टरों ने हाथ खड़े कर लिए.

फिर आरजू को हैलट अस्पताल लाया गया. जहां डाक्टरों ने उस का परीक्षण किया और आरजू को मृत घोषित कर दिया. शव को घर लाया गया और थाना नौबस्ता पुलिस को आरजू की मौत की सूचना दी गई.

इधर सुबह 11 बजे अमनदीप की बहन आरजू ने नीरज कटारे के बड़े बेटे अमन कटारे से मोबाइल फोन पर बात की और बताया कि आरजू भाभी बाथरूम में फिसल गई हैं. आप लोग तुरंत आ जाइए.

अमन को कुछ संदेह हुआ तो उस ने दबाव डाल कर पूछा. इस पर उस ने कभी बाथरूम में फिसल कर तो कभी गीजर से करंट लगने की बात बताई. अमन को लगा कि दाल में कुछ काला जरूर है. बहन की जिंदगी खतरे में हो सकती है. अत: उस ने सारी बात अपने मांबाप को बताई. उस के बाद तो परिवार में सनसनी फैल गई.

नीरज कटारे ने देर करना उचित नहीं समझा. उन्होंने फोन पर जानकारी दे कर अपने खास रिश्तेदारों को बुलवा लिया. फिर अपने बेटे अमन, अनंत, पत्नी अर्चना तथा 20-25 रिश्तेदारों को साथ ले कर निजी वाहनों से कानपुर के लिए निकल पड़े.

रात लगभग डेढ़ बजे नीरज कटारे कानपुर स्थित बेटी की ससुराल माही वाटिका पहुंचे. वहां बेटी का शव देख कर फफक पड़े. अर्चना बेटी के शव से लिपट कर फफक पड़ी. अमन व अनंत भी बहन का शव देख कर बिलख पड़े.

रिश्तेदारों ने उन सब को सांत्वना दे कर किसी तरह से शव से अलग किया. ससुरालीजनों से नीरज कटारे ने जब बेटी की मौत का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि आरजू बाथरूम में फिसल कर गिर पड़ी थी, जिस से उस की मौत हो गई. उस की जिंदगी बचाने के लिए वह उसे हर बड़े अस्पताल ले गए. लेकिन बचा नहीं पाए.

इधर आरजू की मौत की सूचना पा कर थाना नौबस्ता प्रभारी इंसपेक्टर सतीश कुमार सिंह पुलिस टीम के साथ आ गए. चूंकि मौत का यह मामला एक धनाढ्य परिवार की बहू का था, अत: सिंह ने सूचना पुलिस अधिकारियों को दे दी.

सूचना पा कर एसएसपी प्रीतिंदर सिंह, एसपी (साउथ) दीपक भूकर, तथा डीएसपी विकास कुमार पांडेय आ गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल व शव का निरीक्षण किया तथा मृतका के पति अमनदीप, सास पिंकी, ससुर आर.सी. गुप्ता तथा मृतका की ननद आरजू से घटना के संबंध में पूछताछ की.

ससुरालीजनों ने बताया कि आरजू की मौत बाथरूम में फिसल कर गिरने से हुई है. पुलिस अधिकारियों ने मृतका के मातापिता से भी जानकारी हासिल की. चूंकि मायके वालों ने अभी तक ससुरालीजनों पर कोई सीधा आरोप नहीं लगाया था, अत: उन्होंने शव पोस्टमार्टम के लिए भेजने का आदेश दिया.

अधिकारियों के जाने के बाद दरोगा अशोक कुमार ने मृतका आरजू का शव पोस्टमार्टम हाउस हैलट अस्पताल कानपुर भेज दिया. लेकिन यहां दरोगा अशोक कुमार से चूक हो गई. दरअसल नियम के मुताबिक किसी विवाहित युवती की शादी के 7 साल के भीतर संदिग्ध मौत हो जाती है तो उस का पंचनामा मजिस्ट्रैट की मौजूदगी में भरा जाता है और मजिस्ट्रैट ही पंचनामा पर हस्ताक्षर करता है.

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इस चूक के कारण पोस्टमार्टम हाउस के डाक्टरों ने शव का पोस्टमार्टम नहीं किया. कागज दुरुस्त होने के बाद ही उन्होंने पोस्टमार्टम किया और रिपोर्ट नौबस्ता के पुलिस को सौंप दी.

प्रभारी इंसपेक्टर सतीश कुमार सिंह ने जब पोस्टमार्टम रिपोर्ट पढ़ी तो उन के आश्चर्य का ठिकाना न रहा. क्योंकि आरजू की मौत हादसा नहीं हत्या थी. उस का मुंह और नाक दबा कर हत्या की गई थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक आरजू के माथे, गाल, कंधे पर चोट के निशान पाए गए. आंखों में खून उतर आने से लालपन था. इस से ऐसा प्रतीत होता था कि आरजू का मुंह किसी चीज से ढंक कर जोर से दबाया गया. इस से उस के होंठ अंदरबाहर फट गए और आंखोें में खून उतर आया. माथे, कंधे और गाल पर जख्म से माना गया कि उस ने मौत से पहले काफी संघर्ष किया था. दम घुटने से उस के फेफड़ों का वजन भी बढ़ गया था. रिपोर्ट के अनुसार आरजू की मौत दम घुटने से हुई थी.

आरजू की हत्या की खबर जब समाचार पत्रों में छपी तो कानपुर शहर में सनसनी फैल गई. आरजू के मायके वालों का भी गुस्सा फट पड़ा. उन्होंने माही वाटिका अपार्टमेंट जा कर आर.सी. गुप्ता के घर धावा बोल दिया. उन्होंने उन को खूब खरीखोटी सुनाई और दहेज के लिए बेटी को मार डालने का आरोप लगाया.

अपार्टमेंट में झगड़े की खबर पा कर पुलिस पहुंच गई और इंसपेक्टर सतीश कुमार सिंह ने अमनदीप व उस के पिता आर.सी. गुप्ता को हिरासत में ले लिया तथा थाना नौबस्ता ले आए.

अगले भाग में पढ़ें- फोरैंसिक टीम ने जांच में आरजू की मौत को हादसे में उलझा दिया

17 दिन की दुल्हन: भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

मध्य प्रदेश का एक चर्चित शहर है शहडोल. इसी शहर में नीरज कटारे अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी अर्चना के अलावा 2 बेटे अमन, अनंत तथा एक बेटी आरजू थी. नीरज कटारे ईंट कारोबारी थे. शहर में उन का आलीशान मकान था और उन की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. शहर के व्यापारियों में उन की अच्छी प्रतिष्ठा थी. वह गहोई समाज से ताल्लुक रखते थे.

नीरज की बेटी आरजू 2 भाइयों के बीच एकलौती बहन थी, सो घरपरिवार सभी की दुलारी थी. अर्चना व नीरज आरजू को बेहद प्यार करते थे और उस की हर ख्वाहिश पूरी करते थे.

आरजू बचपन से ही खूबसूरत थी. जब उस ने युवावस्था में कदम रखा तो उस की सुंदरता में और भी निखार आ गया. वह जितनी खूबसूरत थी, उतनी ही पढ़नेलिखने में भी तेज थी. उस ने अपनी मेहनत और लगन से इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल कर ली थी और सौफ्टवेयर इंजीनियर के तौैर पर बेंगलुरु की एक निजी कंपनी में जौब करने  लगी थी.

हालांकि नीरज कटारे धनवान व्यापारी थे, आरजू को नौकरी की आवश्यकता नहीं थी, वह उसे अपने से दूर भी नहीं भेजना चाहते थे, लेकिन बेटी की इच्छा का सम्मान करते हुए, उन्होंने आरजू को बेंगलुरुमें जौब करने की इजाजत दे दी थी.

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आरजू जब जौब करने लगी, तब नीरज कटारे को उस के ब्याह की चिंता सताने लगी. वह अपनी लाडली बेटी की शादी ऐसे घर में करना चाहते थे, जो संपन्न हो. घर में किसी चीज का अभाव न हो तथा लड़का भी आरजू के योग्य हो.

उन्होंने आरजू के लिए योग्य लड़के की तलाश शुरू की तो उन्हें अमनदीप पसंद आ गया. अमनदीप के पिता आर.सी. गुप्ता कानपुर शहर के नौबस्ता थानांतर्गत केशव नगर में माही वाटिका अपार्टमेंट में रहते थे. परिवार में पत्नी पिंकी गुप्ता के अलावा बेटा अमनदीप तथा बेटी आरजू थी.

अमनदीप सौफ्टवेयर इंजीनियर था. बेंगलुरु स्थित जिस कंपनी में आरजू इंजीनियर थी, उसी कंपनी में अमनदीप भी सौफ्टवेयर इंजीनियर था.

आर.सी. गुप्ता रेलवे में लोको पायलट थे. बेटा अमनदीप भी अच्छा कमाता था. अत: उन की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. परिवार भी छोटा था और वह गहोई समाज से भी जुड़े थे. इसलिए आर.सी. गुप्ता का बेटा अमनदीप उन्हें पसंद आ गया था. अमन की पसंद का एक कारण और भी था, वह यह कि नीरज कटारे के परिवार की एक बेटी कानपुर में आर.सी. गुप्ता के परिवार में ब्याही थी. वह सुखी व संपन्न थी. इसलिए भी उन्होंने अमनदीप को पसंद कर लिया था.

रिश्ते की बात के समय दोनों पक्षों में तय हुआ कि रिश्ता फाइनल तब माना जाएगा जब लड़कालड़की एकदूसरे को पसंद कर लेंगे. इस के लिए निश्चित दिन अमनदीप अपने परिवार के साथ शहडोल गया और आरजू तथा उस के घरवालों से मुलाकात की. आरजू व अमनदीप ने एकदूसरे को देखा और आपस में बातचीत की. दोनों शादी को राजी हो गए.

नीरज कटारे आरजू की शादी जल्द करना चाहते थे. लेकिन मार्च 2020 में कोरोना महामारी की वजह से देश में तालाबंदी हो गई, जिस से सारी गतिविधियां ठप्प हो गईं. तालाबंदी के बाद अमनदीप बेंगलुरु से कानपुर आ गया और घर से ही कंपनी का काम करने लगा. लेकिन आरजू ने शादी तय होने के बाद नौकरी छोड़ दी और शहडोल आ गई. वह परिवार के साथ हंसीखुशी से रहने लगी.

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5 महीने बाद जब लौकडाउन में ढील मिली और शादी तथा अन्य समारोह में सशर्त छूट मिली तब नीरज कटारे ने आरजू के रिश्ते की तारीख तय की और शादी की तैयारी में जुट गए. 8 दिसंबर, 2020 को उन्होंने अपनी लाडली बेटी का ब्याह अमनदीप के साथ धूमधाम से कर दिया. शादी में उन्होंने लगभग 28 लाख रुपया खर्च किया और हर वह सामान दहेज में दिया था, जिस की इच्छा लड़के व उस के घरवालों ने जताई थी.

अगले भाग में पढ़ें- आरजू बाथरूम के गीले फर्श पर गिरी पड़ी थी

17 दिन की दुल्हन: भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

चूंकि मृतका के मातापिता अब दहेज हत्या का आरोप लगा रहे थे और रिपोर्ट दर्ज करने की मांग कर रहे थे. अत: थानाप्रभारी सतीश कुमार सिंह ने मृतका के पिता नीरज कटारे की तरफ से भादंवि की धारा 498ए/304बी के तहत ससुरालीजनों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर जांच शुरू कर दी. अधिकारियों का आदेश था कि दोषियों को छोड़ा न जाए और निर्दोष को जेल न भेजा जाए.

दामाद की गिरफ्तारी के बाद अर्चना अपने पति नीरज कटारे के साथ थाना नौबस्ता पहुंचीं. वह रोते हुए कह रही थीं कि शादी में 28 लाख रुपया खर्च किया था. लेकिन लाल जोड़े में बेटी को 18 दिन भी न देख पाई. वह हवालात में बंद दामाद अमनदीप से एक ही बात पूछ रही थी कि उन की बेटी से कौन सी गलती हो गई जो उसे मार डाला. अगर दहेज की बात थी तो बताते, हम तुम सब लोगों को नोटों से तौल देते और अपनी बेटी की जान बचा लेते.

आरजू की हत्या की जांच सीओ (गोविंद नगर) विकास पांडेय को सौंपी गई थी. उन्होंने सब से पहले मृतका के पति अमनदीप से पूछताछ की. अमनदीप ने बताया कि उस ने अपनी मरजी से आरजू से शादी की थी. वह 38 लाख रुपया सालाना पैकेज पर कंपनी में काम कर रहा था. उस ने आरजू की हत्या नहीं की. दहेज की कोई मांग भी नहीं की थी.

इस पर थानाप्रभारी ने उस से पूछा कि अगर उस ने आरजू की हत्या नहीं की तो किस ने की, उसी का नाम बता दो. इस पर वह चुप्पी साध गया. बारबार कुरेदने पर भी कुछ जवाब नहीं दिया. उस से कई राउंड पूछताछ की गई, लेकिन उस का एक ही जवाब था, उस ने आरजू की हत्या नहीं की.

सीओ विकास कुमार पांडेय ने मृतका की सास पिंकी, ससुर आर.सी. गुप्ता, ननद आरजू गुप्ता तथा नौकरानी रज्जो से पूछताछ की तथा उन सब के बयान दर्ज किए. सभी ने एक स्वर से हत्या के संबंध में अनभिज्ञता जताई और आरजू की मौत को हादसा बताया.

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पूछताछ के बाद बाकी लोगों को तो थाने से जाने दिया गया. लेकिन संदेह के आधार पर मृतका के पति अमनदीप गुप्ता को दहेज हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया.

आरजू की मौत के बाद पुलिस ने घटनास्थल को सील कर दिया था. अत: 28 दिसंबर की सुबह 11 बजे फोरैंसिक टीम एसपी (साउथ) दीपक भूकर, सीओ विकास कुमार पांडेय तथा नौबस्ता थानाप्रभारी सतीश कुमार सिंह के साथ माही वाटिका अपार्टमेंट स्थित अमनदीप के फ्लैट पर पहुंची और बाथरूम तथा कमरे की जांच शुरू की. आरजू के कमरे को खंगालने पर टीम को टूटी चूडि़यां, बाल तथा चप्पलें मिलीं.

इस सामान को टीम ने सुरक्षित कर लिया. टीम ने बाथरूम चैक किया तो टीम को गीजर से गैस लीकेज होने के सबूत मिले. इस के अलावा जांच से पता चला कि बाथरूम का दरवाजा बंद करने के बाद वह स्थान क्लोज चैंबर बन जाता है यानी बाथरूम से हवा बाहर निकलने का कोई स्थान नहीं मिला.

फोरैंसिक टीम ने जांच में आरजू की मौत को हादसे में उलझा दिया. पुलिस अधिकारियों को सौंपी गई 5 पन्नों की रिपोर्ट में फोरैंसिक टीम ने आरजू की मौत को हादसा बताया. टीम ने पोस्टमार्टम की रिपोर्ट को नकार दिया.

उन की रिपोर्ट के अनुसार गैस गीजर में एलपीजी गैस सिलेंडर लगाया गया था जो लीकेज था. एलपीजी में प्रोपेन व न्यूटेन गैस होती हैं जो हवा से भारी होती हैं. गीजर की टोंटी खोलते वक्त गैस निकल रही थी. इस केस में यही लग रहा है.

किसी कारण से आरजू मुंह के बल बाथरूम में गिर कर बेहोश हुई. सतह पर जमी गैस ने उस की जान ले ली. टीम ने आरजू की मौत की वजह सफोकेशन स्मूथरिंग बताई.

फोरैंसिक टीम ने आरजू के कत्ल की थ्यौरी पर सवालिया निशान जरूर लगाया लेकिन एसएसपी प्रीतिंदर सिंह ने फोरैंसिक टीम की अपेक्षा पोस्टमार्टम रिपोर्ट को ज्यादा अहम माना, जिस में हत्या की पुष्टि हुई थी. उन्होंने कहा जो आरोप मृतका के घरवालों ने लगाए हैं, उसी आधार पर जांच जारी रहेगी. ससुरालीजनों पर दहेज हत्या का केस चलेगा.

इधर आरजू के पिता नीरज कटारे व मां अर्चना कटारे ने एसएसपी प्रीतिंदर सिंह से मुलाकात की और जांच अधिकारी पर जांच में शिथिलता बरतने का आरोप लगाया.

इस शिकायत पर एसएसपी ने सीओ विकास पांडेय से जांच वापस ले ली और सीओ (नजीराबाद) संतोष सिंह को जांच सौंप दी. संतोष सिंह ने जांच शुरू की और मृतका के पिता नीरज व मां अर्चना कटारे के बयान दर्ज किए.

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मृतका आरजू की मां अर्चना कटारे ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी एक मार्मिक ट्वीट लिख कर न्याय की मांग की. उन्होंने ट्वीट मे लिखा, ‘योगीजी मुझे आप से तुरंत मिलना है. मैं वह अभागिन मां हूं जिस की इंजीनियर बेटी की शादी के 17 दिन के भीतर हत्या कर दी गई. हमें केवल न्याय चाहिए. हम अपनी आंखों के सामने दोषियों को सजा ए मौत चाहते हैं.’

आरजू की हत्या से शहडोल की महिलाओं में भी गुस्सा फट पड़ा. हत्या के विरोध में सैकड़ों महिलाओं ने न्याय यात्रा निकाली. वे नारे लगा रही थीं, ‘शहडोल की जनता करे पुकार, आरजू को न्याय दे सरकार. शहडोल की बेटी को जिस ने मारा है, फांसी दो वो हत्यारा है’. यात्रा जैन मंदिर से होते हुए कलेक्ट्रैट पहुंची. यहां महिलाओं ने एसपी के माध्यम से मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपते हुए मांग रखी कि नगर की बेटी आरजू की हत्या के आरोपियों को शीघ्र गिरफ्तार किया जाए.

30 दिसंबर, 2020 को पुलिस ने अमनदीप गुप्ता को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया. कथा संकलन तक उस की जमानत नहीं हुई थी. पुलिस की जांच जारी है. अन्य आरोपियों की गिरफ्तारी जांच के बाद ही की जाएगी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बेगैरत औरत का खेल: भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

संजय उर्फ कल्लू शाहजहांपुर के सदर बाजार क्षेत्र के मोहल्ला महमंद जलालनगर में रहता था. उस के पिता अनिल प्राइवेट नौकरी करते थे. मां रमा देवी गृहिणी थीं. संजय का एक छोटा भाई दीपक भी था.

करीब 11 साल पहले संजय ने रेशमा नाम की युवती से प्रेम विवाह किया था, वह दूसरे धर्म की थी. कालांतर में रेशमा ने 2 बेटों अंशू (10 वर्ष), अजय (4 वर्ष) और एक बेटी चांदनी (डेढ़ वर्ष) को जन्म दिया. संजय मैडिकल कालेज में प्राइवेट तौर पर लगी बोलेरो को चलाता था.

संजय चूंकि संयुक्त परिवार में रहता था, इसलिए रेशमा की आजादी पर बंदिशें थीं. उस ने संजय से कहना शुरू कर दिया, ‘‘आखिर कब तक तुम अपने पिता के बताए रास्ते पर चल कर दिन भर की गाढ़ी कमाई उन के हाथों में थमाते रहोगे. अब हमारा भी तो परिवार है, क्या हम अपने परिवार के लिए कुछ भी जमा कर के नहीं रखेंगे? तुम कहीं और मकान देख लो, अब हम यहां नहीं रह सकते.’’

रेशमा की बातों को एकाध बार तो संजय ने नजरअंदाज कर दिया और रेशमा को समझाया भी लेकिन वह नहीं मानी और बारबार उस पर अलग होने का दबाव बनाने लगी. आखिर संजय ने रेशमा की इच्छा के सामने घुटने टेक दिए.

इस के बाद संजय रेशमा और तीनों बच्चों के साथ कांशीराम कालोनी में रहने चला गया. यहां वे सब मजे से रहने लगे. कालोनी की जिस बिल्डिंग में संजय रहता था, उसी बिल्डिंग में भूतल पर सचिन नाम का एक 19 वर्षीय युवक रहता था.

सचिन शहर के ही अजीजगंज मोहल्ले में रहने वाले सुमित कुमार का बेटा था. कांशीराम कालोनी में भी उसे आवास आवंटित हो गया था. सचिन का परिवार अजीजगंज में तो सचिन कांशीराम कालोनी में रहता था. सचिन ईरिक्शा चलाता था. वह अविवाहित था.

सचिन कम पढ़ालिखा था, लेकिन उस के व्यक्तित्व और बात करने के अंदाज से कभी यह नहीं लगता था कि वह अधिक पढ़ा नहीं है. देखने में भी काफी सुंदर था. उस का मन होता तो ईरिक्शा ले कर काम पर चला जाता, मन नहीं होता तो घर पर ही पड़ा रहता.

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एक ही बिल्डिंग में होने के कारण सचिन की नजर रेशमा पर पड़ गई थी. रेशमा भी सचिन के सामने आने पर एकटक उसे निहारती रहती थी. निगाहें मिलतीं तो दोनों के होंठ मुसकराने लगते. उन के बीच परिचय हुआ तो बातें भी होने लगीं.

सचिन के पास एक कुत्ता था जो रेशमा को बहुत अच्छा लगता था. उसी कुत्ते की वजह से ही सचिन और रेशमा में परिचय और बातें होनी शुरू हुई थीं. रेशमा के नजदीक बने रहने के लिए सचिन को कुत्ते से बढि़या कोई तरीका नहीं लगा.

सचिन ने संजय से भी दोस्ती कर ली. रेशमा ने संजय से सचिन का कुत्ता मांग लेने की जिद की तो संजय ने उसे कई बार समझाया लेकिन रेशमा नहीं मानी. रेशमा की जिद के आगे संजय को झुकना पड़ा.

एक दिन संजय ने सचिन से बात की कि अगर उसे बुरा न लगे तो वह उस का कुत्ता लेना चाहता है. इस पर सचिन ने अपना कुत्ता उसे दे दिया. सचिन ने उस से इस की कोई कीमत भी नहीं ली. संजय के दिमाग में यह कभी नहीं आया कि यह भेंट उस पर कितनी भारी पड़ेगी.

जिस फ्लोर पर संजय रहता था, वहां तक पानी आसानी से नहीं पहुंचता था. इसलिए संजय ने सचिन से कह दिया कि वह अपनी मोटर से पाइप लगा कर पानी भरवा दिया करे. सचिन ने हामी भर दी.

सचिन काफी खुश था, वह जानता था कि संजय सुबह का निकला शाम को ही घर में घुसता था, पूरे दिन उस की पत्नी रेशमा घर में अकेली रहती थी. बच्चे तो उस के छोटे थे. ऐसे में रेशमा को अपने रंग में रंगने का उसे अच्छा मौका मिला था.

जब से उस ने रेशमा को देखा था, उस का सौंदर्य उस की आंखों में रचबस गया था. संजय तो उस के सामने पानी भरता था, मतलब लंगूर के हाथ हूर लग गई थी.

अब हर रोज किसी भी समय पानी खत्म हो जाता तो रेशमा आवाज दे कर सचिन को पानी का पाइप लगाने को कह देती. पहले कुत्ते के बहाने से और अब पानी भरवाने के बहाने से सचिन रेशमा के पास उस के कमरे में जाने लगा. इस के बाद उन के बीच बातचीत का सिलसिला और तेजी से बढ़ने लगा. धीरेधीरे दोनों एकदूसरे से काफी खुल गए. उन के बीच हंसीमजाक भी शुरू हो गया.

दिन भर अकेले रहने के कारण रेशमा का मन नहीं लगता था. लेकिन जब से सचिन ने उस के यहां आनाजाना शुरू किया था, तब से उस का अकेलापन दूर हो गया था. वह अब दिन भर हंसतीमुसकराती रहती थी. उस के खिले चेहरे को देख कर सचिन को भी अच्छा लगता था. रेशमा सचिन से 12 साल बड़ी थी. रेशमा की उम्र 31 साल थी तो सचिन की 19 साल.

सर्दी का समय था. घना कोहरा छाया था. ऐसे में सचिन ने रेशमा के घर का पानी भरवाया तो उस में वह भीग गया, जिस से वह सर्दी से और कांपने लगा. उस ने जा कर कपड़े चेंज किए और रेशमा के पास उस के कमरे में पहुंच गया.

उसे सर्दी से कंपकंपाते हुए रेशमा ने देखा तो उस से कहा, ‘‘बैठो, मैं तुम्हारे लिए चाय बना कर लाती हूं.’’ कह कर रेशमा रसोई में चाय बनाने चली गई. सचिन भी उस के साथ पीछेपीछे रसोई में पहुंच गया.

‘‘अरे तुम क्यों आ गए, वहीं कुरसी पर बैठते. और कुछ खाना हो तो बताओ?’’

‘‘जो चाहो, खिला दो. मैं तो तुम्हारे इन कोमलकोमल हाथों से जहर खाने के लिए भी तैयार हूं.’’ कह कर सचिन ने रेशमा का हाथ अपने हाथ में ले कर चूम लिया.

‘‘हाय राम, ये क्या कर रहे हो.’’ रेशमा ने झट से अपना हाथ छुड़ा लिया.

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‘‘क्यों, कुछ गलत कर दिया क्या? तुम भी तो मुझे प्यार करती हो, मैं यह अच्छी तरह से जानता हूं.’’ सचिन ने कहा.

‘‘किस ने कहा?’’ रेशमा इठलाते हुए बोली.

‘‘तुम्हारी आंखों ने…क्यों सच कह रही हैं न तुम्हारी आंखें?’’ सचिन ने रेशमा की आंखों में आंखें डाल

कर कहा.

‘‘तुम बड़े बेशर्म हो.’’ रेशमा ने इतरा कर बोली..

‘‘वह कैसे?’’

‘‘इतना भी नहीं जानते कि दरवाजा खुला है और इस बीच कोई आ गया तो आफत आ जाएगी.’’ वह मुसकरा कर बोली.

‘‘अरे हां, मैं तो भूल ही गया था. क्या करूं, तुम्हारा रूप ही ऐसा है कि देखते ही सब भूल जाता हूं. संजय भाई की तो पांचों अंगुलियां घी में तैरती हैं.’’

रेशमा ने ठंडी सांस ले कर कहा, ‘‘उन की छोड़ो वह जैसे हैं वैसे ही रहेंगे जिंदगी भर. तुम अपनी बताओ कि तुम्हारे दिल में क्या है मेरे रूप का नशा तुम पर किस हद तक चढ़ा है.’’ रेशमा ने कहा.

अगले भाग में पढ़ें- ड्राइविंग सीट के पास वाली सीट पर खून फैला हुआ था

बेगैरत औरत का खेल: भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

संजय के घर आनेजाने वाले लोगों के बारे में पूछने पर गुड्डू ने बताया कि 2 महीने पहले तक कांशीराम कालोनी की उसी बिल्डिंग में रहने वाले सचिन का संजय के घर काफी आनाजाना था. संजय की पत्नी रेशमा से सचिन के अवैध संबंध थे. लेकिन संजय ने उसे रंगेहाथों पकड़ा, तब से वह अपने अजीजगंज के पुराने घर में रहने लगा था. यह जानकारी पुलिस के लिए बड़े काम की थी.

इंसपेक्टर सिंह ने रेशमा के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस की सचिन से रोज घंटों बातें होने की बात पता चली. यह भी पता चला कि संजय के घर से निकलने के समय पर ही रेशमा ने सचिन को काल भी की थी, शायद संजय के घर से बाहर निकलने की बात बताने के लिए. उस ने सचिन को फोन किया होगा.

साक्ष्य मिले तो इंसपेक्टर सिंह ने सचिन के घर पर दबिश दी, लेकिन वह घर से फरार मिला. 9 दिसंबर, 2020 को दोपहर लगभग 2 बजे इंसपेक्टर प्रवेश सिंह ने चांदापुर तिराहे से सचिन को गिरफ्तार कर लिया. उस के बाद रेशमा को भी उस के घर से गिरफ्तार कर लिया गया. कोतवाली में जब उन दोनों से कड़ाई से पूछताछ की गई तो दोनों ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया और हत्या के पीछे की पूरी कहानी बयां कर दी.

घटना से 2 महीने पहले रंगेहाथों पकड़े जाने के बाद से रेशमा और संजय में अकसर विवाद होने लगा. यहां तक कि संजय ने रेशमा का मोबाइल भी तोड़ दिया था. इस पर सचिन ने उसे बात करने के लिए दूसरा मोबाइल ला कर दे दिया था. सचिन अब कांशीराम कालोनी में नहीं रहता था, लेकिन वहां रोज आताजाता था.

अपने बीच संजय को आया देख कर रेशमा बौखला उठी. वह पति को छोड़ कर सचिन से शादी कर के उस के साथ रहना चाहती थी. इस के लिए रेशमा ने सचिन पर दबाव बनाया कि वह संजय की हत्या कर दे. उस के बाद वह शादी कर के उस के साथ रहने लगेगी. संजय के जीवित रहते यह  संभव नहीं होगा.

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प्रेमिका की सलाह पर अमल करने के लिए सचिन तैयार हो गया. इस के बाद उस ने तमंचे व कारतूस का इंतजाम किया. उस ने एकदो नहीं 4 बार संजय को मारने की कोशिश की थी, लेकिन तमंचा चलाने की उस की हिम्मत नहीं हुई. इस पर रेशमा ने सचिन को धमकी दी कि यदि उस में यह थोड़ा सा काम करने की हिम्मत नहीं है तो वह उसे छोड़ देगी. इस से सचिन ने अगली बार हर हाल में संजय को मारने का वादा किया.

3 दिसंबर को रात साढ़े 11 बजे जब गुड्डू का फोन आया तो संजय बोलेरो से उस से मिलने के लिए निकला. संजय के घर से निकलते ही रेशमा ने सचिन को फोन किया और संजय के घर से निकलने की बात बताई. सचिन उस समय कांशीराम कालोनी में ही था. सचिन के पास बजाज पल्सर बाइक थी.

सचिन संजय को ओवरटेक करते हुए आगे निकला और गोल चक्कर से मुड़ कर वापस आते हुए संजय को रुकने का इशारा किया. उस के इशारे को समझ कर संजय ने गाड़ी रोक दी. संजय ने जैसे ही कार का शीशा नीचे किया. सचिन ने साथ लाए तमंचे से संजय पर फायर कर दिया.

गोली संजय की कनपटी के पास लग कर माथे से निकल गई. गोली लगते ही संजय बाईं ओर लुढ़क गया और उस की मौत हो गई. गोली मारने के बाद सचिन ने तमंचा और 2 कारतूस गर्रा नदी के किनारे फेंक दिए. इस के बाद रेशमा को संजय का काम तमाम होने की बात पता चली तो उस ने भी अपना मोबाइल तोड़ दिया.

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लेकिन दोनों के गुनाह छिप न सके और पकड़े गए. इंसपेक्टर सिंह ने सचिन की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त तमंचा, 2 जिंदा कारतूस, पल्सर बाइक नंबर यूपी27यू1043, सचिन का मोबाइल 2 सिम सहित और रेशमा का टूटा मोबाइल एक सिम सहित बरामद कर लिया.

मुकदमे में रेशमा को धारा 120बी का अभियुक्त बना दिया गया. आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी करने के बाद पुलिस ने दोनों को न्यायालय में पेश किया, वहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बेगैरत औरत का खेल: भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

रेशमा की बात सुन कर सचिन को इस बात का एहसास हो गया कि रेशमा को भी उस से लगाव हो गया है. वह भी उस के सान्निध्य में आना चाहती है. उस ने देर न करते हुए रेशमा को बांहों में भर लिया. रेशमा ने कोई विरोध नहीं किया, बल्कि मंदमंद मुसकराने लगी. क्योंकि वह भी यही चाहती थी.

दरअसल, जब से उस ने सचिन को देखा था तब से वह उस के मन को भा गया था. संजय से मिलने वाले सुख की उसे कमी नहीं थी, लेकिन वह उतना उसे पसंद नहीं था जितना सचिन. सचिन के आगे संजय कहीं नहीं ठहरता था.

जब आंखें किसी को देखना पसंद करने लगें तो दिल भी उसे चाहने लगता है. दिल की चाहत में वह बहकती चली गई और सचिन ने भी अपना हाथ बढ़ा कर उसे पाना चाहा तो वह उस के आगोश में जाने से अपने आप को रोक न सकी.

सचिन ने उसे गोद में उठा कर बैड पर लिटाया और उस के दिल के अरमानों को हवा देनी शुरू कर दी. थोड़ी ही देर में दोनों के निर्वस्त्र शरीर एकदूसरे से गुंथे हुए थे.

उस दिन रेशमा ने मानमर्यादा की सारी सीमाएं तोड़ कर नाजायज रिश्तों के दलदल में पैर डाले तो उस में धंसती चली गई. अब हर रोज संजय की गैरमौजूदगी में सचिन उस के घर में ही पड़ा रहता और रेशमा भी उस की बांहों का हार बनी रहती.

इस की जानकारी कालोनी के लोगों को भी हो गई. वे तरहतरह की बातें करने लगे. जल्द ही यह बात संजय के कानों तक भी पहुंच गई.

संजय ने जब रेशमा से इस बारे में बात की तो वह संजय से बोली कि सचिन के साथ भाईबहन के रिश्ते के अलावा कोई रिश्ता नहीं है. संजय को पत्नी रेशमा की बात पर यकीन करना ही पड़ा. लेकिन उस के मन से शक का बीज नहीं निकला. फिर एक दिन उस ने अचानक घर पहुंच कर दोनों को रंगेहाथ पकड़ा तो उस ने रेशमा की जम कर पिटाई की.

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रेशमा नाराज हो कर अपने मायके चली गई. बाद में संजय उसे मायके से बुला कर ले आया. पर रेशमा के दिल से सचिन के लिए मोहब्बत कम न हुई.

3/4 दिसंबर, 2020 की रात चौक कोतवाली की अजीजगंज चौकी के इंचार्ज जितेंद्र प्रताप सिंह रात्रि गश्त पर निकले. रात करीब साढ़े 12 बजे आवास विकास कालोनी पावर हाउस के सामने एक बोलेरो खड़ी मिली, जिस में ड्राइविंग सीट पर एक व्यक्ति था जो बाईं ओर लुड़का हुआ था.

जब पास जा कर जांच की तो उस व्यक्ति की कनपटी के पीछे गोली लगने का निशान था. गोली कनपटी से लग कर माथे के पास से निकल गई थी. चौकी इंचार्ज सिंह घायल व्यक्ति को तुरंत जिला अस्पताल ले गए. वहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.

मृत व्यक्ति की जेब से मिले मोबाइल फोन में सेव नंबरों पर पुलिस ने बात की तो उन्हीं नंबरों में उस की पत्नी रेशमा का फोन नंबर मिल गया. पुलिस ने रेशमा को जिला अस्पताल बुलाया. लाश देख कर रेशमा ने इस की शिनाख्त अपने पति संजय के रूप में की.

चौक थानाप्रभारी प्रवेश सिंह को चौकी इंजार्ज जितेंद्र प्रताप सिंह ने सूचना दे दी थी. सूचना पा कर वह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंचे. बोलेरो का निरीक्षण किया तो बाईं ओर खिड़की के पास पायदान पर हत्या में प्रयुक्त गोली पड़ी मिली, जिसे उन्होंने अपने कब्जे में ले लिया.

ड्राइविंग सीट के पास वाली सीट पर खून फैला हुआ था. इस का मतलब यह था कि किसी ने दाईं ओर से ड्राइविंग सीट पर बैठे संजय को गोली मारी थी और गोली काफी नजदीक से मारी गई थी. हत्यारा संजय का परिचित था, जिस के कहने पर या उसे देख कर संजय ने गाड़ी रोक ली होगी. गाड़ी रुकते ही हत्यारे ने तमंचे से संजय पर फायर कर दिया होगा.

इस के बाद जिला अस्पताल जा कर उन्होंने संजय की लाश का निरीक्षण किया. निरीक्षण कर डाक्टरों से बात करने के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी.

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रेशमा से थानाप्रभारी ने पूछताछ की तो उस ने बताया कि रात साढ़े 11 बजे पति के मोबाइल पर किसी का फोन आया था, जिस के बाद वह बोलेरो ले कर घर से निकल गए थे. इस के बाद क्या हुआ, उसे कुछ नहीं पता.

कोतवाली आ कर इंसपेक्टर प्रवेश सिंह ने रेशमा की तहरीर पर अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.

संजय के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई गई तो रात साढे़ 11 बजे गुड्डू नाम के व्यक्ति द्वारा काल करने की बात पता चली. गुड््डू संजय का दोस्त था. इंसपेक्टर सिंह ने उस से पूछताछ की तो उस ने बताया कि एक काम के सिलसिले में उस ने संजय को बुलाया था.

अगले भाग में पढ़ें- अपने बीच संजय को आया देख कर रेशमा बौखला उठी

Crime News: बंगला गाड़ी की हसरतें और जेल!

हमारी आज की इस रिपोर्ट में  एक ऐसे शख्स की सच्ची कहानी बयां है, जो बंगला और गाड़ी के ख्वाब देखता है और चोरी करने के बाद जेल के सीखचों में पहुंच जाता है.

छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में बीते दिनों एक दुकान में  बीस लाख से अधिक की चोरी की घटना से सनसनी का माहौल बन गया. और लोग सोचने लगे कि आखिर चोरी करने वाले हैं कौन?

आखिरकार, जब चोरी की इस घटना का खुलासा हुआ तो लोग देखते ही रह गए क्योंकि
घटना का पुलिस ने खुलासा करते हुए मास्टर माइंड एक “सुरक्षागार्ड” को गिरफ्तार किया . जो उसी दुकान में नौकरी करता था. मजे की बात है कि उसके पास से चोरी की पूरी की पूरी रकम भी पुलिस द्वारा बरामद कर ली गई . इस घटनाक्रम के बारे में जिसने भी सुना आश्चर्यचकित हो गया क्योंकि कोई ख्वाब में भी यह नहीं सोच पा रहा था कि एक सुरक्षा गार्ड ही चोरी को अंजाम दे देगा. मगर कुल मिलाकर के इस घटनाक्रम से या एक बार पुनः जाहिर हो गया कि अपना कोई भी कभी भी कर सकता है अतः सावधान….!

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सुरक्षा गार्ड के बड़े बड़े ख्वाब

पुलिस ने हमारे संवाददाता को इस चोरी और घटनाक्रम के संदर्भ में बताया कि दरअसल,सुरक्षागार्ड ने घर बनाने और गाड़ी खरीदने के “लोभ” में आकर चोरी की वारदात को अंजाम दिया था.
महासमुंद जिला के पुलिस कप्तान प्रफुल्ल ठाकुर के मुताबिक  14 फरवरी की रात सरायपाली स्थित किराना दुकान से 6 लाख 79 हजार 200 रुपए और कपड़ा दुकान से 13 लाख 27 हजार 350 रुपए (कुल 20 लाख 6 हजार 550 रुपए ) की चोरी हुई थी.

प्रार्थी दुकानदार द्वारा घटना की शिकायत के बाद टीम गठित कर और सीसीटीवी कैमरे खंगाले गए. इसके आधार पर दुकान में तैनात सुरक्षा गार्ड 22 वर्षीय संजय यादव पुलिसिया जांच में  पूछताछ की गई, तो उसने चोरी करने का अपराध करना स्वीकार कर लिया.

शातिर ने ताले बदल दिए

स्थानी  कंपनी के सुरक्षागार्ड संजय कुमार यादव ने जांच अधिकारी को पूछताछ में बताया कि उसके ख्वाब बचपन से ही ऊंचे ऊंचे थे पढ़ लिख सका नहीं, मगर चाहत हसरतें ऊंची थी घर बनाने और गाड़ी खरीदने के लिए पैसे की जरूरत थी. उसे एहसास था कि 3-4 दिनों से बैंक बंद होने के कारण दुकान की बिक्री की रकम दुकान में ही रखी हुई है. इसी लालच से योजना के तहत एक दिन पहले ही दुकान के गेट में नया ताला-चाबी खरीदकर ताले को बदल दिया और एक चाभी अपने मालिक और एक चाभी अपने पास रख लिया था. चोरी करने के लिए वह दुकान के पीछे से अंदर घुसा और सीसीटीवी से बचने के लिए  पास में पड़े कंम्बल को ओढकर कैश काॅउन्टर में रखे नगदी और ड्राज के अन्दर रखे कैश रकम को पेचकश से तोड़कर निकाल भाग निकला.

Crime News: उधार के पैसे और हत्या

मगर जैसा कि अक्सर होता है कानून के लंबे हाथों में चोर की गिरेबान आ ही जाती है यहां भी पुलिस ने आरोपी को पकड़ लिया और चोरी की पूरी रकम बरामद  आरोपी संजय कुमार यादव के निशानदेही पर उसके पास से बैग में रखे पूरे नगदी 20 लाख 6 हजार 550 रुपए बरामद कर लिया. पुलिस ने मुझे ख्वाब देखने वाली सुरक्षाकर्मी के  पास से घटना में इस्तेमाल पेचकस भी जब्त किया गया है.

त्रिकोण प्रेम: दीपिका का खूनी खेल- भाग 1

सौजन्य-  मनोहर कहानियां

बहकी हुई महिला के कदम अकसर किसी अपराध को जन्म देते हैं. एक पुलिसकर्मी की बेटी दीपिका शुक्ला ने पति बल्ली शुक्ला और 2 बेटियों को छोड़ कर अवनीश शर्मा से शादी कर ली. इस के बाद हिस्ट्रीशीटर और कथित पत्रकार आशू यादव से उस के अनैतिक संबंध हो गए. फिर वह अमित के संपर्क में आई. इस का नतीजा यह हुआ कि…

2जनवरी, 2021 की सुबह धर्मेंद्र नगर, कच्ची बस्ती के कुछ लोग मार्निंग वाक पर निकले तो उन्होंने सीटीआई नहर किनारे सरस्वती शिशु मंदिर स्कूल की बाउंड्री वाल के पास एक

लावारिस कार खड़ी देखी. कार के संबंध में स्थानीय लोगों में चर्चा शुरू हुई, तो लोगों की भीड़ जुट गई. इसी बीच किसी ने थाना बर्रा पुलिस को फोन कर के सूचना दे दी.

सूचना मिलते ही थानाप्रभारी हरमीत सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने कार का बारीकी से निरीक्षण किया. कार के शीशों पर काली फिल्म चढ़ी थी, जिस से अंदर का कुछ भी दिखाई नहीं पड़ रहा था. कार के पिछले शीशे पर एक स्टिकर चिपका था, जिस पर लिखा था ‘अमर स्तंभ हिंदी दैनिक समाचार पत्र’ आशू यादव संवाददाता.

स्टिकर पर ‘पुलिस’ और मोबाइल नंबर भी लिखा था. हरमीत सिंह ने अनुमान लगाया कि कार किसी पत्रकार की हो सकती है. उन्होंने स्टिकर पर लिखा मोबाइल नंबर मिलाया, लेकिन वह बंद था.

कार के अंदर की स्थिति को जानने के लिए हरमीत सिंह ने कार का पिछला दरवाजा खोला, तो वह सहम गए. पिछली सीट पर एक युवक की लाश पड़ी थी. श्री सिंह ने लावारिस कार से शव बरामद होने की सूचना पुलिस अधिकारियों को दी तो मौके पर एसएसपी प्रीतिंदर सिंह, एसपी (पूर्वी) राजकुमार अग्रवाल, एसपी (साउथ) दीपक भूकर तथा सीओ (गोविंद नगर) विकास कुमार पांडेय आ गए. पुलिस अधिकारियोें ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया.

पुलिस अधिकारियों ने बारीकी से कार तथा शव का निरीक्षण किया. मृतक की उम्र 30 वर्ष के आसपास थी. उस के शरीर पर चोटों के निशान थे और गले पर रगड़ का निशान था. इस से अनुमान लगाया कि युवक की हत्या रस्सी से गला घोंट कर की गई होगी तथा हत्या से पहले उस के साथ मारपीट की गई होगी. फोरैंसिक टीम ने भी कार से फिंगरप्रिंट लिए तथा अन्य साक्ष्य जुटाए.

कार की तलाशी में शराब की एक खाली बोतल, 4 शिकायती पत्र, 2 माइक, आगे की सीट के नीचे प्लास्टिक बैग में 2 टेडीबियर, कोटी, फोटो लगे कई स्टिकर तथा मृतक की जेब से 300 रुपए नकद बरामद हुए. इस सामान को पुलिस ने सुरक्षित कर लिया.

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अब तक सैकड़ों लोग शव को देख चुके थे, लेकिन कोई उस की पहचान नहीं कर पाया था. जिस से पुलिस अधिकारियों ने अनुमान लगाया कि मृतक आसपास का नहीं है. अत: उन्होंने शव की पहचान कराने के लिए कानपुर शहर के सभी थानों को कंट्रोलरूम से अज्ञात की लाश मिलने के संबंध में सूचना प्रसारित करा दी गई.

कुछ देर बाद ही थाना रेलबाजार के थानाप्रभारी दधिबल तिवारी ने एसपी (पूर्वी) राजकुमार अग्रवाल को सूचना दी कि उन के थाने में आशू यादव नाम के युवक की गुमशुदगी दर्ज है, जो कथित पत्रकार तथा हिस्ट्रीशीटर है. चूंकि कार में लगे पोस्टर में भी आशू यादव का नाम छपा था, अत: एसपी अग्रवाल ने दधिबल तिवारी को आदेश दिया कि वह आशू के घरवालों को साथ ले कर जल्द ही धर्मेंद्र नगर कच्ची बस्ती स्थित नहर पटरी पर पहुंचें.

लाश की हुई शिनाख्त

आदेश पाते ही दधिबल तिवारी ने आशू यादव के घरवालों को सूचना दी, फिर उन्हें साथ ले कर वहां पहुंच गए. घरवालों ने कार में पड़े शव को देखा तो वे फफक कर रो पड़े. कंचन, शानू, धर्मेंद्र तथा जितेंद्र ने बताया कि शव उन के भाई आशू यादव का है. कार भी उसी की है.

मृतक की बहन शानू व कंचन ने पुलिस अधिकारियों को बताया कि 31 दिसंबर की रात डेढ़ बजे किसी का फोन आने पर आशू अपनी कार से घर से निकला था, फिर रात को वापस नहीं आया. आशू अपने पास 3 मोबाइल फोन रखता था. सुबह हम लोगों ने उस के तीनों मोबाइल नंबरों पर संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन तीनों नंबर बंद थे.

इस के बाद हम लोग उस की खोज में जुट गए. चिंता इसलिए भी बढ़ गई कि पहली जनवरी को उस का जन्मदिन था. अपना जन्मदिन वह धूमधाम से मनाता था और दोस्तों को बुलाता था. लेकिन उस का कुछ पता नहीं चल रहा था.

दिन भर खोजने के बाद जब उस का कुछ भी पता नहीं चला तो शाम को थाना रेलबाजार जा कर उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी थी.

बहन कंचन ने यह भी बताया कि आशू गले में सोने की जंजीर तथा दोनों हाथों में सोने की 6 अंगूठियां पहने हुआ था. हत्यारों ने उस के तीनों मोबाइल, जंजीर तथा अंगूठियां भी लूट ली हैं.

चूंकि शव की शिनाख्त हो गई थी. अत: पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई निपटाने के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय अस्पताल भिजवा दिया. आशू यादव की गुमशुदगी थाना रेलबाजार में दर्ज थी, अत: थानाप्रभारी दधिबल तिवारी ने मृतक की बहन कंचन की ओर से भादंवि की धारा 364/302/201/120बी के तहत अज्ञात हत्यारों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली.

रिपोर्ट दर्ज होने के बाद एसएसपी प्रीतिंदर सिंह ने मृतक आशू यादव के भाई धर्मेंद्र यादव से घटना के संबंध में पूछताछ की. पूछताछ में धर्मेंद्र ने बताया कि उस का भाई आशू यादव हिंदी दैनिक समाचार पत्र ‘अमर स्तंभ’ में काम करता था. कुछ समय पहले उस ने क्षेत्रीय पार्षद मधु के पति राजू सोनकर व उन के बेटों के कारनामोें के खिलाफ समाचार छापा था, जिस पर राजू ने झगड़ा किया था और उस के बेटे अति व सोनू सोनकर ने आशू को जान से मारने की घमकी दी थी. आशू की हत्या में इन्हीं लोगों का हाथ है.

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3 टीमें जुटीं जांच में

संदेह के आधार पर पुलिस ने राजू व उस के बेटों से पूछताछ की. लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा. अत: पूछताछ के बाद उन्हें थाने से घर भेज दिया. चूंकि मामला एक कथित पत्रकार व हिस्ट्रीशीटर की हत्या का था. अत: एसएसपी प्रीतिंदर सिंह ने इस ब्लाइंड मर्डर की गुत्थी सुलझाने के लिए तीन टीमों का गठन किया, जिस की बागडोर एसपी (पूर्वी) राजकुमार अग्रवाल व एसपी (साउथ) दीपक भूकर को सौंपी गई.

टीम में इंसपेक्टर (नौबस्ता) सतीश कुमार सिंह, इंसपेक्टर (बर्रा) हरमीत सिंह, इंसपेक्टर (रेलबाजार) दधिबल तिवारी, सीओ (गोविंदनगर) विकास कुमार पांडेय तथा सर्विलांस टीम को शामिल किया गया.

पुलिस की तीनों टीमों ने अलगअलग जांच शुरू की. आशू यादव 31 दिसंबर की रात डेढ़ बजे अपने घर खपरा मोहाल से निकला था और उस के मोबाइल फोन की आखिरी लोकेशन 31 दिसंबर की रात 2:37 बजे मसवानपुर की मिली थी.

पुलिस की एक टीम ने खपरा मोहाल से घंटाघर, जरीब चौकी, विजय नगर व मसवानपुर तक रोड पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली तथा दूसरी टीम ने दूसरे रोड की फुटेज को खंगाला, जिस में आशू की कार मसवानपुर जाते समय फजलगंज व विजयनगर चौराहे पर जाते समय तो दिखी पर लौटते समय नहीं दिखी.

स्पष्ट था कि हत्या के बाद हत्यारे आशू की कार को किसी दूसरे रूट से लाए थे और धर्मेंद्र नगर स्थित नहर पटरी पर कार को खड़ा कर दिया था.

इधर सर्विलांस टीम ने मृतक आशू के तीनों मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि 31 दिसंबर की देर रात आशू के मोबाइल फोन पर आखिरी काल एक महिला की आई थी. वह महिला सीतापुर में रहने वाली शालिनी थी. पुलिस जब उक्त पते पर पहुंची तो पता चला कि उस फोन का इस्तेमाल मसवानपुर निवासी दीपिका शुक्ला कर रही थी.

टीम ने दीपिका के संबंध में जानकारी जुटाई तो पता चला कि वह शातिर अपराधी है. शिवली, सचेंडी व कोहना थाने में उस के खिलाफ कई मुकदमे दर्ज हैं. नकली शराब बनाने व बेचने के जुर्म में वह पति के साथ जेल गई थी और अब जमानत पर है. सर्विलांस टीम ने उस के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई तो हिस्ट्रीशीटर अमित गुप्ता के बारे में जानकारी मिली.

अगले भाग में पढ़ें- आरोपियों ने खोला राज

त्रिकोण प्रेम: दीपिका का खूनी खेल- भाग 2

अमित गुप्ता के फोन की डिटेल्स के जरिए टीम को उस के 2 साथियों जूहीलाल कालोनी निवासी किशन वर्मा व सचिन वर्मा की जानकारी मिली. अमित के मोबाइल फोन पर एक मैसेज 31 दिसंबर की रात 2:08 बजे भेजा गया था, जिस में लिखा था- ‘बुला लो भाई उस को, आज हो जाएगा काम.’ जांच से पता चला कि जिस नंबर से मैसेज भेजा गया था, वह किशन का था.

पुख्ता सबूत मिलने के बाद पुलिस की संयुक्त टीमों ने 3 जनवरी, 2021 की रात 11 बजे किशन वर्मा व सचिन वर्मा के जूही लाल कालोनी स्थित घर से दोनों को गिरफ्तार कर लिया. उन दोनों को थाना रेलबाजार लाया गया.

थाने में जब किशन व सचिन वर्मा से आशू यादव की हत्या के संबंध में सख्ती से पूछताछ की गई तो वे टूट गए और हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. उन दोनों की निशानदेही पर पुलिस टीमों ने मसवानपुर स्थित दीपिका के घर छापा मारा. लेकिन दीपिका और अमित फरार हो चुके थे. दीपिका के घर से पुलिस ने वह रस्सी बरामद कर ली, जिस से आशू का गला घोंटा गया था.

आरोपियों ने खोला राज

पूछताछ में आरोपी किशन वर्मा व सचिन ने बताया कि आशू की हत्या प्रेम त्रिकोण में की गई थी. दीपिका से नाजायज रिश्ता आशू व अमित दोनों का था. अमित को आशू और दीपिका की नजदीकियां पसंद न थीं, इसलिए उस ने दीपिका के साथ मिल कर आशू को मौत की नींद सुला दिया. रुपयों के लालच में उन दोनों ने भी अमित का साथ दिया. हत्या मसवानपुर स्थित दीपिका के घर की गई थी.

4 जनवरी, 2021 को रेलबाजार थाना प्रभारी दधिबल तिवारी ने आशू यादव की हत्या का खुलासा करने की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी तो एसएसपी प्रीतिंदर सिंह, एसपी (पूर्वी) राजकुमार अग्रवाल, एसपी (साउथ) दीपक भूकर ने पुलिस लाइन सभागार में प्रैसवार्ता की. एसएसपी ने केस का खुलासा करने वाली टीम को 25 हजार रुपया ईनाम देने की भी घोषणा की.

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चूंकि आशू यादव की हत्या का मुकदमा रेलबाजार थाने में पहले से अज्ञात में दर्ज था. अत: खुलासा होने के बाद थानाप्रभारी दधिबल तिवारी ने इस मामले में 4 आरोपी दीपिका शुक्ला, अमित गुप्ता, किशन वर्मा व सचिन वर्मा को नामजद कर दिया. 2 आरोपी दीपिका व अमित फरार हो गए थे. आरोपियों से पूछताछ में प्रेम त्रिकोण में हुई हत्या का सनसनीखेज खुलासा हुआ.

उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर के थाना रेलबाजार अंतर्गत एक मोहल्ला है-खपरा मोहाल. इसी मोहल्ले के मकान नंबर डी-19 में छोटे सिंह यादव रहते थे. उन के परिवार में पत्नी मालती के अलावा 3 बेटे धर्मेंद्र, जितेंद्र, आशू तथा 2 बेटियां शानू व कंचन थीं. छोटे सिंह की जनरल स्टोर की दुकान थी. उसी की आमदनी से परिवार का भरणपोषण होता था.

3 भाइयों में आशू यादव मंझला था. उस का पूरा परिवार आपराधिक प्रवृत्ति का था. आशू का भाई धर्मेंद्र व चाचा बड़े यादव रेलबाजार थाने में हिस्ट्रीशीटर थे. आशू यादव भी अपने घरवालों की राह पर ही चल पड़ा. यद्यपि वह पढ़ालिखा व तेजतर्रार था. आशू ने अपराध जगत से नाता जोड़ा तो उस ने अपने चाचा व भाइयों को भी पीछे छोड़ दिया.

कुछ समय बाद ही उस पर थाना रेलबाजार, छावनी, फीलखाना समेत अन्य थानों में एनडीपीएस ऐक्ट, शस्त्र अधिनियम, गुंडा अधिनियम, रंगदारी, अपहरण समेत अन्य संगीन धाराओं के 10 मुकदमे दर्ज हो गए. रेलबाजार थाने का वह हिस्ट्रीशीटर बन गया.

आशू यादव ने पुलिसकर्मी राकेश कुमार की बेटी ज्योति से लवमैरिज की थी. राकेश कुमार उन दिनों कानपुर शहर के हरवंश मोहाल थाने में तैनात थे. उन का परिवार भी साथ रहता था. इसी दौरान आशू की मुलाकात ज्योति से हुई. दोनों में प्रेम संबंध बने, फिर ज्योति ने घरवालोें की मरजी के खिलाफ आशू से प्रेम विवाह कर लिया. ज्योति के 7 वर्षीय बेटा शुभ तथा 5 वर्षीया बेटी सोनाक्षी है.

हिस्ट्रीशीटर बन गया पत्रकार

आशू यादव बड़े ही शानोशौकत से रहता था. अवैध कमाई से उस ने कार भी खरीद ली थी. आशू शातिर दिमाग था. पुलिस से बचने के लिए उस ने हिंदी दैनिक समाचार पत्र ‘अमर स्तंभ’ में काम करना शुरू कर दिया था. उस ने अपनी कार पर भी अमर स्तंभ का स्टिकर लगा लिया था. शासनप्रशासन के अधिकारियों से वह पत्रकार के रूप में ही मिलता था. पत्रकारिता की आड़ में वह जायजनाजायज काम करने लगा था. धन वसूली भी करता था.

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सन 2019 में आशू यादव किसी मामले में जेल गया तो वहां उस की मुलाकात मोती मोहाल निवासी अमित गुप्ता व कल्याणपुर निवासी अवनीश कुमार शर्मा से हुई. तीनों एक ही बैरक में थे. अमित शातिर अपराधी था. उस ने रुपए व जेवर हड़पने के लिए कल्याणपुर निवासी बुआ बिट्टो, फूफा पवन गुप्ता तथा बिट्टो की सास रानी की हत्या कर दी थी. पकड़े जाने के बाद अदालत ने उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. अवनीश कुमार शर्मा नकली शराब बनाने व बेचने के जुर्म में जेल में था. चूंकि तीनों शातिर अपराधी थे, अत: उन के बीच दोस्ती हो गई.

अवनीश शर्मा की ही पत्नी का नाम दीपिका शुक्ला था. वह भी पति के अवैध कारोबार में हाथ बंटाती थी. दीपिका मूलरूप से शिवली थाने के गांव भीखर की रहने वाली थी. उस के पिता अशोक चतुर्वेदी मुंबई पुलिस में हवलदार थे. रिटायर होने के बाद उन की मुजफ्फरनगर में हत्या कर दी गई थी. कुछ दिनों बाद मां की भी मौत हो गई. उस के बाद सन 2002 में दीपिका ने शिवली थाने के बैरी सवाई गांव निवासी बल्ली शुक्ला उर्फ हरीराम शुक्ला से शादी कर ली. बल्ली शुक्ला से दीपिका ने 2 बेटियों को जन्म दिया.

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बल्ली शुक्ला के पड़ोस में अवनीश शर्मा रहता था. उस का आनाजाना बल्ली शुक्ला के घर था. घर आतेजाते अवनीश शर्मा ने दीपिका को अपने प्यार के जाल में फंसा लिया. वर्ष 2016 में अवनीश की दीवानी दीपिका 2 बेटियों को छोड़ कर अवनीश के साथ भाग गई.

अवनीश कल्याणपुर में रहता था और नकली शराब बनाता व बेचता था. दीपिका भी अवनीश के साथ नकली शराब बनाने व बेचने का काम करने लगी. उस ने अनेक शराब तस्करों से अपने संबंध मजबूत कर लिए और उन के मार्फत शिवली, सचेंडी, घाटमपुर तथा कानपुर में नकली शराब बेचने लगी थी.

सन 2017 में नकली व जहरीली शराब पीने से घाटमपुर व सचेंडी में 17 लोगों की मौत हो गई थी. इस मामले में वह अवनीश के साथ पहली बार जेल गई. उस के बाद सन 2019 में कोहना तथा शिवली थाने से भी नकली शराब बनाने व बेचने के जुर्म में जेल गई. कोहना थाने से उसे गैंगस्टर ऐक्ट में जेल भेजा गया था. इस मामले में उसे जून 2020 में जमानत मिली और वह बाहर आ गई.

आशू यादव जब जेल से बाहर आया तो उस ने दीपिका से मुलाकात की. मुलाकातें प्यार में बदलीं, फिर दोनों के बीच नाजायज रिश्ता बन गया. दीपिका उस की कार में बैठ कर घूमने लगी तथा उस के घर भी जाने लगी. आशू उस की आर्थिक मदद भी करने लगा.

इधर आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे अमित गुप्ता को सितंबर 2020 में पैरोल मिल गई. अमित पैरोल पर बाहर आ रहा था, तो अवनीश ने उस से कहा कि वह उस की पत्नी दीपिका का खयाल रखे तथा उसे भी जेल से बाहर निकलवाने की कोशिश करे.

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कपड़ों की तरह बदलती रही प्रेमी

अमित ने जेल से बाहर आ कर दीपिका से संपर्क किया. कुछ दिनों में ही दोनों के बीच अवैध संबंध बन गए. वह दीपिका को ले कर अपने घर मोतीमोहाल पहुंचा. अमित के घरवालों ने दीपिका को घर में रखने की इजाजत नहीं दी. इस पर वह दीपिका को ले कर मसवानपुर में अनिल शुक्ला के मकान में किराए पर रहने लगा. दिखावे के लिए उस ने बाजार में कपड़े की दुकान खोल ली.

दीपिका के साथ रहते अमित को पता चला कि दीपिका के उस के दोस्त आशू यादव से पहले से ही नाजायज संबंध हैं. यह बात अमित को नागवार लगी और उस ने आशू को मिटाने की ठान ली. उस ने दीपिका से साथ देने को कहा तो वह आनाकानी करने लगी. इस पर अमित ने दीपिका को धमकी दी कि वह साथ नहीं देगी तो वह आशू और उस के नाजायज रिश्तों की बात उस के पति अवनीश को बता देगा.

इस धमकी से दीपिका डर गई और वह अमित का साथ देने को राजी हो गई. इस के बाद अमित ने दीपिका के साथ मिल कर आशू के कत्ल की योजना बनाई और अपनी योजना में दोस्त किशन वर्मा व सचिन वर्मा को भी पैसों का लालच दे कर शामिल कर लिया.

योेजना के तहत 31 दिसंबर की रात डेढ़ बजे दीपिका ने आशू के मोबाइल फोन पर काल की और जन्मदिन की बधाई दी फिर घर आने तथा मौजमस्ती करने का आमंत्रण दिया. उस के बाद आशू सजसंवर कर अपनी कार से दीपिका के घर मसवानपुर पहुंच गया. जन्मदिन की खुशी में दीपिका ने उसे खूब शराब पिलाई.

आशू जब नशे में धुत हो गया तभी अमित अपने साथियों किशन व सचिन के साथ घर आ गया. दोनों ने आशू को दबोच लिया और खूब पिटाई की. फिर अमित व दीपिका ने मिल कर आशू का रस्सी से गला घोंट दिया.

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इस बीच दीपिका ने आशू के 3 मोबाइल फोन कब्जे में ले कर स्विच्ड औफ कर दिए तथा आशू के गले से सोने की चेन तथा दोनों हाथों से सोने की 6 अंगूठियां उतार लीं. इस के बाद सब ने मिल कर आशू के शव को उस की कार में रखा और कार बर्रा थाना क्षेत्र के धर्मेंद्र नगर कच्ची बस्ती ला कर नहर पटरी पर खड़ी कर दी. उस के बाद वे सब फरार हो गए.

थाना रेलबाजार पुलिस ने अभियुक्त किशन वर्मा व सचिन वर्मा से पूछताछ के बाद उन्हें 4 जनवरी, 2021 को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. मुख्य आरोपी अमित गुप्ता तथा दीपिका शुक्ला फरार थीं. पुलिस सरगरमी से उन की तलाश में जुटी थी. द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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