सौजन्य- सत्यकथा
10 दिसंबर, 2020 को आरजू अमनदीप गुप्ता की दुलहन बन कर ससुराल कानपुर आ गई. ससुराल में उसे जिस ने भी देखा, उसी ने उस के रूपसौंदर्य की सराहना की. सुंदर व गुणवान पत्नी पा कर अमनदीप जहां खुश था, वहीं अच्छा घरवर पा कर आरजू भी खुश थी. सुंदर व सुशील बहू मिलने से सास पिंकी व ससुर आर.सी. गुप्ता भी फूले नहीं समा रहे थे. वह आरजू को बेटी की तरह स्नेह करते थे.
आर.सी. गुप्ता की बेटी का नाम भी आरजू था और बहू का भी. अब घर में 2 आरजू थीं. अत: उन्होंने दोनो को नंबर अलाट कर दिए थे. बहू को वह आरजू फर्स्ट कह कर बुलाते थे और बेटी को आरजू सेकेंड.
आर.सी. गुप्ता के घर किसी चीज की कमी न थी, सो आरजू हर तरह से खुश थी. मोबाइल फोन पर बतियाने का भी किसी प्रकार का कोई प्रतिबंध न तो पति की तरफ से था और न ही सासससुर की तरफ से. अत: आरजू दिन में कई बार अपनी मां अर्चना से मोबाइल फोन पर बतियाती थी और उन्हें बताती थी कि वह ससुराल में हर तरह से खुश है.
आरजू ने अपने परिवार का एक वाट्सऐप ग्रुप बनाया था, जिस में वह अकसर फोटो शेयर करती थी. आरजू की अपनी ननद आरजू गुप्ता से भी खूब पटती थी. ननदभौजाई सहेली जैसी थीं. खूब हंसतीबोलती थीं. हंसीमजाक में खूब ठहाके लगते थे. आरजू के सरल स्वभाव तथा मृदुल व्यवहार से पड़ोसी भी प्रभावित थे. वह अकसर पिंकी से उस की बहू की तारीफ करते थे. पिंकी बहू की तारीफ सुन कर गदगद हो उठती थी. लेकिन यह खुशी शायद प्रकृति को मंजूर नहीं थी. फिर तो जो हुआ, शायद उस की उम्मीद किसी को नहीं थी.