मर कर भी न होंगे जुदा

उत्तर प्रदेश का एक शहर एवं जिला मुख्यालय है फिरोजाबाद. यह शहर कांच की चूडि़यों के लिए प्रसिद्ध है. इसी जिले के थाना बसई मोहम्मदपुर के गांव आलमपुर कनैटा में राजवीर सिंह लोधी अपने परिवार के साथ रहता था. उस की पत्नी की करीब 3 साल पहले मौत हो गई थी.

राजवीर की गांव में आटा चक्की थी. उस के 2 बेटे बलजीत व जितेंद्र के अलावा 2 बेटियां राधा, ललिता उर्फ लता थीं. वह एक बेटे और एक बेटी की शादी कर चुका था. छोटा बेटा जितेंद्र पिता के साथ चक्की के काम में हाथ बंटाता था जबकि ललिता उर्फ लता गांव के ही स्कूल में पढ़ रही थी.

इसी गांव में रामवीर सिंह लोधी भी अपने परिवार के साथ रहता था. वह निजी तौर पर पशुओं का इलाज करने का काम करता था. उस के 4 बेटों में अनिल कुमार सब से छोटा था. वह बीएससी कर चुका था और नौकरी की तलाश में था. अनिल का बड़ा भाई जितेंद्र दिल्ली के एक होटल में नौकरी करता था.

ललिता 11वीं कक्षा में पढ़ती थी. जब वह स्कूल जाती, तो रास्ते में अकसर उसे गांव का युवक अनिल मिल जाता था. वह उसे चाहत भरी नजरों से देखता था. उस की उम्र करीब 20 साल थी. लता ने भी उन्हीं दिनों जवानी की दहलीज पर कदम रखा था. अनिल लता की जाति का ही था. लता को भी अनिल अच्छा लगता था. उस का झुकाव भी अनिल की तरफ होने लगा. दोनों ही एकदूसरे को देख कर मुसकरा देते थे.

दोनों के बीच यह सिलसिला काफी दिनों तक चलता रहा. दोनों एकदूसरे से प्यार का इजहार करने में सकुचा रहे थे, क्योंकि उन का यह पहलापहला प्यार था. आखिर एक दिन अनिल ने हिम्मत कर के लता से पूछ ही लिया, ‘‘लता, तुम्हारी पढ़ाई कैसी चल रही है?’’

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लता को तो जैसे इसी पल का ही इंतजार था. उस ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘मेरी पढ़ाई तो ठीक चल रही है, पर तुम कैसे हो?’’

‘‘मैं अच्छा हूं,’’ अनिल ने जवाब दिया.

इस औपचारिक बातचीत के बाद दोनों ने एकदूसरे को अपनेअपने फोन नंबर भी दे दिए थे, जिस से उन के बीच फोन पर भी बातचीत होने लगी. रही बात मिलने की तो लता के स्कूल जातेआते समय अनिल पहुंच जाता था, जिस से वे एकदूसरे से मिल लेते थे.

धीरेधीरे उन का प्यार परवान चढ़ने लगा. कभीकभी लता सहेली के पास जाने की बात कह कर घर से निकल जाती और अनिल से एक निश्चित जगह पर मिल लेती थी. उन के प्रेम संबंध यहां तक पहुंच गए थे कि दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया था.

उस समय अनिल बेरोजगार था. उस ने लता से वादा किया कि शादी के लिए हम तब तक इंतजार करेेंगे, जब तक वह अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो जाता. नौकरी लगने के बाद वह उसे अपने साथ ले जाएगा. यह बात सुन कर ललिता बहुत खुश हुई.

दोनों एक ही जाति के थे, इसलिए उन्हें पूरा विश्वास था कि दोनों के घर वालों को उन की शादी पर कोई ऐतराज नहीं होगा. पिछले डेढ़ साल से दोनों का प्रेम प्रसंग बिना किसी बाधा के चल रहा था.

मिलने और मोबाइल पर बात करने में दोनों पूरी सावधानी बरतते थे. लेकिन ऐसी बातें ज्यादा दिनों तक छिपी नहीं रहतीं. किसी तरह लता के परिजनों को उन के प्रेम संबंधों की भनक लग गई.

लिहाजा उन्होंने लता को समझाया कि वह अनिल से मिलना बंद कर दे. इस से परिवार की बदनामी ही हो रही है. लता ने उस समय तो उन से वादा कर दिया कि वह घर की मानमर्यादा का ध्यान रखेगी. उस के वादे से घर वाले निश्चिंत हो गए.

2-4 दिनों तक तो लता ने अनिल से बात नहीं की. लेकिन इस के बाद प्रेमी की यादें उसे विचलित करने लगीं. उधर अनिल भी परेशान रहने लगा. दोनों की यह बेचैनी ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह सकी.

दिल की लगी नहीं छूटी

घर वालों की बातों को दरकिनार कर के लता ने अनिल से फोन पर बतियाना शुरू कर दिया. लेकिन अब वह सावधानी बरतने लगी ताकि घर वालों को पता न चले.

लेकिन एक बार लता की मां ने रात में उसे मोबाइल पर बात करते देख लिया. उस ने यह बात पति राजवीर को बताई. उस ने जब लता का मोबाइल चैक किया तो पता चला कि वह अनिल से ही बात कर रही थी.

यह जान कर राजवीर का खून खौल उठा. उस ने लता को बहुत लताड़ा और उस पर पहरा लगा दिया. इतना ही नहीं, राजवीर ने इसकी शिकायत अनिल के पिता रामवीर सिंह से भी कर दी. रामवीर ने भी अनिल को बहुत डांटा.

अब दोनों पर ही पाबंदियां लग गई थीं, जिस से वे बेचैन रहने लगे. लता का फोन भी उस के घर वालों ने अपने पास रख लिया था. लता किसी भी तरह अनिल से बात करना चाहती थी. एक दिन लता को यह मौका मिल गया. घर पर उस की सहेली मिलने आई थी. लता ने उस के मोबाइल फोन से अनिल से बात की और कहा कि यह दूरियां अब उस से सही नहीं जा रही हैं.

तब अनिल ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘लता, कुछ दिनों के लिए मैं भाई के पास दिल्ली जा रहा हूं. जब मामला ठंडा पड़ जाएगा तो मैं गांव आ जाऊंगा.’’

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लता को भी अनिल की बात सही लगी और उस ने न चाहते हुए भी दिल पर पत्थर रख कर उसे दिल्ली जाने की इजाजत दे दी. अनिल अपने भाई जितेंद्र के पास दिल्ली पहुंच गया. जितेंद्र ने अनिल की नौकरी एक निजी अस्पताल में लगवा दी.

दिल्ली जा कर अनिल के नौकरी करने की जानकारी लता के पिता राजवीर को हुई तो उस ने राहत की सांस ली. उस ने निर्णय लिया कि मौका अच्छा है, क्यों न लता के हाथ पीले कर दिए जाएं. लिहाजा आननफानन में उस ने लता के लिए लड़का तलाशना शुरू कर दिया गया.

यह तलाश जल्द ही पूरी हो गई. एटा जिले के जलेसर नगर में सुनील नाम का लड़का पसंद कर लिया गया. शादी की बात भी पक्की कर दी गई. दोनों पक्षों ने इसी साल नवंबर महीने में देवउठान के पर्व पर शादी करने की बात तय कर ली.

लता को जब अपनी शादी तय होने की बात पता चली, तो उस की नींद उड़ गई. क्योंकि वह तो अनिल की दुलहन बनने का सपना संजोए बैठी थी. लता ने अपनी शादी का विरोध किया लेकिन घर वालों के आगे उस की एक नहीं चली.

अनिल भी उस समय दिल्ली में था. लता ने उसे फोन कर के अपनी शादी तय होने की बात बता दी. यह बात सुन कर वह भी परेशान हो गया. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसी स्थिति में क्या करे.

जुलाई के पहले सप्ताह में गोदभराई की रस्म संपन्न हो गई. लता गोदभराई के दिन चाह कर भी किसी से कुछ नहीं कह सकी. वह उदास थी. उस का दिल रो रहा था. वह अनिल से मिलने के लिए तड़प रही थी.

15 अगस्त को रक्षाबंधन था. लता को पता था कि रक्षाबंधन पर अनिल गांव जरूर आएगा. उस ने सोचा तभी अनिल से मिल कर अपने मन की बात कहेगी. इतना ही नहीं, लता ने निर्णय ले लिया था कि अनिल के गांव आने पर वह अपने घर वालों की मरजी के खिलाफ अनिल के साथ शादी कर लेगी, चाहे इस के लिए उसे अपना घर छोड़ कर भागना ही क्यों न पड़े.

प्रेमी के लिए तड़प रही थी लता

लेकिन लता के अरमानों पर उस समय बिजली गिर गई, जब रक्षाबंधन के दिन भी अनिल गांव नहीं आया, इस से वह बहुत निराश हुई. घर वालों ने लता को उस का मोबाइल फोन लौटा दिया था. लता ने अनिल को फोन किया तो उस ने बताया कि छुट्टी नहीं मिलने की वजह से वह इस बार घर नहीं आ सका. लेकिन अगले महीने गांव जरूर आएगा.

लता को अब तसल्ली नहीं हो रही थी. उस के घर वालों ने शादी की खरीदारी शुरू कर दी थी. उसे अपने ही घर में एकएक दिन काटना बड़ा मुश्किल हो रहा था. सारीसारी रात वह बिस्तर पर करवटें बदलती रहती. उस ने एक दिन रात में ही निर्णय लिया, जिस की भनक उस ने अपने परिजनों को नहीं लगने दी.

16-17 अगस्त, 2019 की रात को जब लता के घर वाले सोए हुए थे, सुबह 4 बजे वह घर से गायब हो गई. परिजन जब सो कर उठे तो ललिता घर में दिखाई नहीं दी. उन्होंने सोचा कि वह मंदिर गई होगी. जब काफी देर तक वह वापस नहीं आई तो उस की तलाश की गई. उस का मोबाइल भी बंद था.

बदनामी के डर से इस की सूचना पुलिस को भी नहीं दी गई. सुबह के समय गांव के कुछ लोगों ने ललिता को बाइक पर किसी युवक के साथ जाते देखा था. यह जानकारी राजवीर सिंह को मिली तो उस ने बदनामी की वजह से यह बात भी पुलिस तक को बताना ठीक नहीं समझा.

राजवीर व उस के परिवार वालों को शक था कि ललिता अनिल के पास दिल्ली चली गई होगी. राजवीर ने रामवीर से दिल्ली में रह रहे उस के बेटे अनिल का मोबाइल नंबर ले कर उस से बात की. अनिल ने बताया कि लता उस के पास नहीं आई है. इस के बाद घर वाले लगातार लता के मोबाइल पर फोन करते रहे, लेकिन उस का फोन बंद मिला. 17 अगस्त की दोपहर में राजवीर ने जब लता को फोन मिलाया तो उस से बात हो गई.

19 अगस्त, 2019 की सुबह थाना मटसेना के आकलपुर गांव की कुछ महिलाएं जंगल की तरफ गईं तो उन्होंने गांव के बाहर बेर की बगिया में एक पेड़ से फंदों पर 2 शव लटके देखे. इन में एक शव युवक का था और दूसरा युवती का.

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यह देख कर महिलाएं भाग कर घर आईं और यह बात लोगों को बता दी. इस के बाद तो आकलपुर गांव में कोहराम मच गया. जिस ने सुना, वही बगिया की ओर दौड़ पड़ा.

सूरज की पौ फटतेफटते वहां सैकड़ों की भीड़ जुट गई. गांव के लोगों ने पेड़ पर शव लटके देख पुलिस को सूचना दे दी. सूचना मिलते ही थानप्रभारी मोहम्मद उमर फारुक पुलिस टीम के साथ मौकाएवारदात पर पहुंच गए.

पुलिस ने फोटो खींचने के बाद दोनों शव नीचे उतरवाए. उन की तलाशी ली तो दोनों के पास आधार कार्ड मिले. पुलिस को पता चला कि मृतक युवक आलमपुर कनैटा निवासी रामवीर का 20 वर्षीय बेटा अनिल कुमार था, जबकि मृतका उसी गांव के रहने वाले राजवीर की बेटी ललिता उर्फ लता थी.

थानाप्रभारी ने घटना की जानकारी अपने आला अधिकारियों के साथ ही युवकयुवती के घर वालों को भी दे दी. सूचना मिलते ही दोनों परिवारों में कोहराम मच गया. आकलपुर गांव आलमपुर गांव की सीमा से सटा हुआ था, इसलिए घर वाले रोतेबिलखते वहां पहुंच गए. इसी दौरान सीओ (सदर) बलदेव सिंह खनेड़ा व एसपी (ग्रामीण) राजेश कुमार सिंह भी घटनास्थल पर पहुंच गए. अपने बच्चों की लाशें देख कर दोनों के परिजनों का रोरो कर बुरा हाल था.

पुलिस को दोनों के पास से सुसाइड नोट भी मिले. अनिल का सुसाइड नोट उस की पैंट की जेब से जबकि ललिता ने सुसाइड नोट अपनी कलाई में बंधे कलावे से बांध रखा था. आधार कार्ड, सुसाइड नोट के अलावा दोनों के मोबाइल फोन पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिए. जरूरी काररवाई पूरी करने के बाद पुलिस ने दोनों शव पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिए.

पुलिस ने जब केस की जांच शुरू की तो पता चला कि अनिल और ललिता ने गांव लौटने का फैसला कर लिया था और यह बात घर वालों को बता दी थी. ऐसे में दोनों के शव पेड़ से लटके मिलने पर सवाल उठने लगे.

मिलन नहीं तो मौत ही सही

इस प्रेमी युगल की प्रेम कहानी की इबारत सुसाइड नोट में लिखी मिली. दोनों ने एक साथ जीनेमरने की कसम खाई और सुसाइड नोट लिखे. ललिता ने अपने सुसाइड नोट में अनिल के अलावा किसी और से शादी न करने की बात लिखी थी. एक पेज के सुसाइड नोट में उस ने लिखा था कि मैं अनिल के पास दिल्ली चली गई थी.

मेरे घर वालों ने मेरी शादी तय कर दी थी, जबकि मैं किसी दूसरे से शादी नहीं कर सकती थी. अनिल मुझ से घर वापस जाने के लिए कह रहा था, लेकिन मैं घर नहीं जाना चाहती थी. मैं अनिल के बिना नहीं रह सकती. इसलिए अपनी मरजी से आत्महत्या कर रही हूं. इस के लिए किसी को परेशान न किया जाए.

वहीं अनिल ने अपने सुसाइड नोट में लिखा कि ललिता मेरे पास दिल्ली आ गई थी. 18 अगस्त को वह उसे गांव छोड़ने आया था, लेकिन लता ने अपने घर जाने से इनकार कर दिया. उस ने लिखा कि मम्मीपापा मुझे माफ कर देना. मैं लता के बिना नहीं रह सकता. मैं अपनी मरजी से आत्महत्या कर रहा हूं.

पुलिस ने अनिल के घर मिले एक रजिस्टर से उस के सुसाइड नोट की राइटिंग का मिलान भी किया.

प्रेम विवाह को ले कर परिवार के लोगों ने दोनों के बीच में दीवारें खड़ी कर दीं तो प्रेमी युगल ने मरने का फैसला ले लिया. प्रेमी जोड़े ने इतना बड़ा कदम उठा लिया कि एक पेड़ पर एक ही दुपट्टे से एक ही फंदे पर लटक कर मौत को गले लगा लिया.

इस प्रेम कहानी का अंत लता के घर वालों की जिद के कारण हुआ. 16 अगस्त को जब लता अचानक गांव से गायब हो गई थी, तब वह सीधे दिल्ली में रह रहे अपने प्रेमी अनिल के पास पहुंची थी. 17 अगस्त को लता के पिता की उस से मोबाइल पर बात भी हुई.

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लता ने परिजनों को सारी बात बताई और कहा कि उस ने अनिल के साथ शादी करने का फैसला कर लिया है. घर वालों ने इस रिश्ते को मानने से इनकार कर दिया और उसे ऊंचनीच समझाते हुए घर लौटने को कहा. इस के बाद प्रेमी युगल ने घर वालों से 18 अगस्त को गांव आने की बात कही थी. लेकिन 19 अगस्त को दोनों ने आत्महत्या कर ली.

चूंकि मृतकों के परिजनों ने पुलिस को कानूनी काररवाई करने की कोई तहरीर नहीं दी, इसलिए पुलिस ने कोई मामला दर्ज नहीं किया. इस के अलावा पोस्टमार्टम रिपोर्ट से भी स्पष्ट हो गया कि अनिल और लता ने आत्महत्या की थी. अत: पुलिस ने इस मामले की फाइल बंद कर दी.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Satyakatha: बेटे की खौफनाक साजिश- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

लेखक- शाहनवाज

उस दिन से ही रवि ने हर छोटी बात पर अपने मांबाप से झगड़ना शुरू कर दिया. घर में झगड़े इतने आम होने लगे की गलीमोहल्ले में ढाका परिवार के बारे में बच्चेबच्चे को मालूम हो गया कि यहां हर दिन झगड़ा होता है.

रवि पहले भी शराब पी कर घर आता था लेकिन अब वह हर दिन नशे में धुत हो कर अपने मातापिता से झगड़ा करता. कभी परचून की दुकान में पैसों के हिसाब को ले कर, कभी संपत्ति को ले कर, कभी अपनी पत्नी से की शादी को ले कर.

घर में फैली अशांति को देखते हुए रवि की मां संतोष का रुख उस के प्रति नरम होना भी शुरू हो गया था. लेकिन उस के पिता सुरेंद्र उस से हमेशा नाराज ही रहते थे.

जब कभी उस के पिता की रवि से बहस होती तो वह बातबात में संपत्ति गौरव के बच्चों के नाम कर देने की धमकी दिया करते थे.

ऐसे ही एक दिन कोरोना की दूसरी लहर के बाद प्रदेश में लौकडाउन हटाया गया तो रवि ने अपनी पत्नी सुमन को उस के मायके भेज दिया. घर में सिर्फ रवि, उस के पिता सुरेंद्र और उस की मां संतोष ही रह गए थे.

हत्या के ठीक एक दिन पहले रवि का फिर से अपने मांबाप के साथ झगड़ा हो गया. झगड़े के बाद रात को सोते समय रवि ने अंत में अपने मांबाप को जान से मार देने की प्लानिंग कर डाली.

हर दिन की तरह वह 11 जून की सुबह 6 बजे दुकान पर गया और 9 बजे घर वापस आया. उस की मां ने उस के लिए खाना परोसा और वह पहली मंजिल पर नहाने चली गईं. उस के पिता ग्राउंड फ्लोर पर सोफे पर बैठ कर टीवी देख रहे थे.

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रवि ने खाना खाया और अपने प्लान के अनुसार उस ने बिस्तर पर पड़ा गमछा अपना हाथमुंह पोछने के लिए उठाया. गमछा ले कर कमरे में टहलते हुए वह सोफे के पास उस जगह पर जा कर खड़ा हो गया, जहां उस के पिता अपनी आंखें टीवी पर गड़ाए बैठे थे.

देखते ही देखते रवि ने एक पल में गमछे को अपने पिता के गले में पीछे से डाला और अपनी पूरी ताकत के साथ गमछा को ऐंठ कर कस कर खींच दिया.

ऐसे में वह चिल्ला भी नहीं पाए और खुद को बचाने के के लिए वह सोफे से उठ कर बिस्तर की ओर जा कर गिर गए. लेकिन रवि ने अपने पिता का गला नहीं छोड़ा, रवि के दिमाग में बस एक ही चीज घूम रही थी, वह थी उस के पिता की संपत्ति.

कुछ देर बाद बिस्तर पर जब सुरेंद्र सिंह ढाका सांस लेने में असमर्थ हो गए और उन्होंने हलचल करनी छोड़ दी तब आहिस्ता से रवि ने गमछे को ढीला छोड़ा. जब वह अपने पिता की हलचल बंद होते देखा तो गले से गमछा निकाल कर पिता के शव के पास ही रख दिया.

उस ने अपने कान पिता की नाक के पास ले जा कर क्रौस चेक किया कि कहीं अभी भी जान तो नहीं बची. जब उसे पूरा यकीन हो गया तो वह पसीने में लथपथ हो कर ऊपर पहली मंजिल पर अपनी मां संतोष देवी की हत्या करने के लिए आगे बढ़ा और सीढि़यां चढ़ते हुए कमरे में दाखिल हुआ.

संतोष देवी ने नहाने के बाद बिस्तर पर लेटे हुए अपनी आंखें बंद कर के, एक तरफ से अपने बाल लटका रखे थे ताकि उन के बाल जल्दी से सूख जाएं.

रवि के कदमों की आहट इतनी हलकी थी की उस की मां के कानों तक कोई आवाज ही नहीं पहुंची. रवि कमरे में दाखिल हुआ और दरवाजे से सटे सौकेट में लगे फोन के चार्जर को उस से बाहर निकाला.

फोन चार्जर की तार को उस ने डबल कर के एक फंदा बनाया और बिस्तर पर लेटी अपनी मां के गले में उसे डाल कर ठीक वही किया, जो उस ने कुछ देर पहले अपने पिता के साथ किया था.

कुछ देर में उस की मां की सांसों ने भी उन का साथ छोड़ दिया. उस ने चार्जर की तार को वहीं अपनी मां के गले में ही रहने दिया. उस ने अपनी मां के गले और कानों में पहने सोने के आभूषण निकाल लिए.

मांबाप की इस तरह से निर्मम हत्या करने के बाद रवि ढाका फिर से नीचे अपने पिता के कमरे में आया और अपने प्लान के अनुसार उस ने एकएक कर घर का सामान इधरउधर बिखेर दिया. टीवी का रिमोट भी फेंका, जिस से उस की बैटरियां बाहर निकल गईं.

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उस ने अलमारी का ताला खोला जिस में उसे 15 हजार रूपए नकद मिले और करीब 5 लाख की एक एफडी मिली. उस ने तुरंत उन्हें निकाला और घटनास्थल को अस्तव्यस्त कर अपने घर से चुपचाप काम के लिए निकल गया.

उस के घटनास्थल को अस्तव्यस्त करने के पीछे एक ही कारण था कि कोई भी उस पर शक न करे और हत्या को लूटपाट और चोरी की लगे.

वह अपने औफिस से काम निपटा कर दोपहर को घर नहीं लौटा. उस ने सोचा कि इस बीच कोई दूसरा व्यक्ति उस के घर जाएगा और इस हत्या की खबर उसे सुनाएगा, जिस से उस पर किसी तरह का कोई शक नहीं होगा.

इसलिए वह जब दोपहर को अपने औफिस से लौटा तो दुकान खोलने के बजाय दुकान के ऊपर बने कमरे में शाम के 6 बजे तक अपने दोस्तों के साथ ताश खेलता रहा.

अंत में जब उस ने देखा कि उसे घर पर आने के लिए किसी का फोन नहीं आया तो वह हार मान कर अपने घर खुद निकल गया. जहां पर पहुंचने के बाद उस ने वो सारा ड्रामा किया, जो उस ने सोचा हुआ था.

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यह सब कुछ कुबूल करने के बाद संपत्ति के लालच में अपने मातापिता की हत्या करने वाला रवि ढाका पुलिस हिरासत में हैं.

पुलिस की टीम ने घटना के महज 24 घंटे के अंदर ही अभियुक्त को धर दबोचा.

पुलिस ने रवि ढाका से पूछताछ करने के बाद उसे कोर्ट में पेश किया जहां से उसे जेल भेज दिया.

Crime Story in Hindi: बहुरुपिया- भाग 2: दोस्ती की आड़ में क्या थे हर्ष के खतरनाक मंसूबे?

आखिर किस पत्थरदिल पर ऐसी बातों का असर न होता? मैं उस से अकसर मिलने लगी. अब इन मुलाकातों का सिलसिला शुरू हो चुका था और परिचय गहरी दोस्ती में बदल चुका था. ऐसी ही एक मुलाकात के दौरान हर्ष ने बताया कि वह विवाहित है और उस की 3 साल की बेटी भी है. उस की पत्नी मीनाक्षी लोकल विश्वविद्यालय में संस्कृत प्रवक्ता थी और वह स्वयं कोई काम नहीं करता था.

‘‘मुझे कुछ करने की क्या जरूरत है? मेरे एमएलए पिता ने काफी कुछ कमा रखा है. अगली बार मुझे भी एमएलए का टिकट मिल ही जाएगा. क्या रखा है दोचार कौड़ी की नौकरी में? हर्ष ने बड़ी अकड़ के साथ कहा.’’

‘‘जब नौकरी से इतना ही परहेज है तो फिर मीनाक्षी जैसी नौकरीशुदा से क्यों शादी कर ली तुम ने?’’ मैं ने दुविधा में पड़ कर पूछा.

‘‘बेवकूफ है वह, अपनी ढपली अपना राग अलापती है. शादी से पहले उस ने और उस के परिवार वालों ने वादा किया था कि वह शादी के बाद नौकरी छोड़ देगी, लेकिन बाद में उस का रंग ही बदल गया और उस ने अपनी बहनजी वाली नौकरी नहीं छोड़ी. वह नहीं जानती कि एमएलए परिवार में किस तरह रहा जाता है,’’ हर्ष का चेहरा अंधे अभिमान से दपदपा रहा था.

उस के जवाब को सुन कर मैं हत्प्रभ रह गई. मेरी चेतना मुझ से कह रही थी कि मेरा मन एक गलत आदमी के साथ जुड़ने लगा है. मगर चाहेअनचाहे मैं इस डगर पर आगे बढ़ती जा रही थी. उस की बातों में मेरी तारीफों के पुल और उस के एमएलए पिता के ताल्लुकात में मुझे अपनी शोहरत में दीए को तेल मिलता सा लगता था. इस दीए की टिमटिमाहट की चमक हर्ष के सच की कालिमा को ठीक से नहीं देखने दे रही थी.

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‘‘तुम मेरे लिए मंदिर में रखी एक मूर्ति के समान हो. मैं जो कहूं वह बस सुन लिया करो, मगर उसे ज्यादा दिल से लगाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि मैं एक शादीशुदा आदमी हूं और इस रास्ते पर तुम्हारे साथ ज्यादा लंबा नहीं जा सकता,’’ उस ने साफसाफ कहा.

‘‘मुझे पता है हर्ष तुम शादीशुदा हो. मैं भी तुम से उस तरह की कोई उम्मीद नहीं कर रही हूं. मगर समझ में नहीं आता कि अब हम दोनों जानते हैं कि हम इस रास्ते पर आगे नहीं जा सकते तो ये बेवजह की मुलाकातें किस लिए हैं?’’

‘‘इबादत करता हूं मैं तुम्हारी, मैं तुम्हें सफलता की ऊंचाइयों पर देखना चाहता हूं. मैं अपने लिए तुम से किसी तरह की उम्मीद नहीं करता. बस एक सच्चा दोस्त बन कर तुम्हें आगे बढ़ाना चाहता हूं. अगले साल थाईलैंड में होने वाली प्रदर्शनी के लिए तुम्हें ललित कला ऐकैडमी स्कौलरशिप दिलवाऊंगा. मेरे डैडी के बड़ेबड़े कौंटैक्ट्स हैं, इसलिए ऐसा कर पाना मेरे लिए कोई बड़ी बात नहीं है. बस तुम्हारी 2-4 इंटरनैशनल प्रदर्शनियां हो गईं तो फिर तुम्हें मशहूर होने में देर नहीं लगेगी.’’

यह सुन कर मैं मन ही मन गद्गद हो रही थी. मैं अकसर सोचा करती कि मैं मशहूर हो पाऊं  या न हो पाऊं, पर कम से कम मेरे पास एक इतना बड़ा प्रशंसक तो है. देखा जाए तो क्या कम है. अब हमारी मुलाकात रोज होने लगी थी. हर्ष की मेरे प्रति इबादत अब किसी और भाव में बदलने लगी थी. जो हर्ष पहले मुझे अपने सामने बैठा कर मुझे देखने मात्र की और मेरी पेंटिंग्स के बारे में बातें करने की चाहत रखता था. वह अब कुछ और भी चाहने लगा था.

‘‘एक चीज मांगू तुम से?’’

‘‘क्या?’’

‘‘क्या मैं तुम्हें अपनी बांहों में ले सकता हूं?’’

‘‘बिलकुल नहीं.’’

‘‘सिर्फ 1 बार प्लीज. पता है मुझे क्या लगता है?’’

‘‘क्या?’’

‘‘कि मैं तुम्हें अपनी बांहों में भर लूं और वक्त बस वहीं ठहर जाए. तुम सोच भी नहीं सकतीं कि मैं तुम्हारा कितना सम्मान करता हूं.’’

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‘‘और मैं कठपुतली सी उस की बांहों में समा गई.’’

‘‘इबादत करता हूं मैं तुम्हारी और तुम्हें आकाश की बुलंदियों को छूते हुए देखना चाहता हूं,’’ मेरे बालों को सहलाते हुए उस का पुराना एकालाप जारी रहा.

‘‘हर्ष, प्लीज अब घर जाने दो मुझे. 1-2 पेंटिंग्स पूरी करनी हैं कल शाम तक.’’

‘‘ठीक है, जल्दी फिर मिलूंगा. इस हफ्ते मौका मिलते ही डैडी से तुम्हारे लिए ललित कला ऐकैडमी की स्कौलरशिप के बारे में बात करूंगा.’’

कुछ दिनों के बाद हम फिर से अपने पसंदीदा रेस्तरां में आमनेसामने बैठे थे. डिनर खत्म होतेहोते रात की स्याही बढ़ने लगी थी. कई दिनों की लगातार बारिश के बाद आज दिन भर सुनहली धूप रही थी. हर्ष ने रेस्तरां के पास के पार्क में टहलने की इच्छा व्यक्त की. मौसम मनभावन था. पार्क में टहलने के लिए बिलकुल परफैक्ट. इसलिए बिना किसी नानुकुर के मैं ने हामी भर दी.

‘‘जरा उधर तो देखो, क्या चल रहा है,’’ हर्ष ने पार्क के एक कोने में लताओं के झुरमुट पर झूलते हुए कतूबरकतूबरी के जोड़े की तरफ इशारा करते हुए कहा.

‘‘क्या चल रहा है… कुछ भी नहीं,’’ मैं ने जानबूझ कर अनजान बनते हुए कहा.

‘‘देखो यह एक प्राकृतिक भावना है. कोई भी जीव इस से अछूता नहीं है, फिर हम ही इस से कैसे अछूते रह सकते हैं?’’

‘‘हर्ष, तुम जो कहना चाहते हो साफसाफ कहो, पहेलियां न बुझाओ.’’

‘‘कहना क्या है, तुम्हें तो पता है कि मैं शादीशुदा हूं और शहर भर में मेरे एमएलए पिता की बड़ी इज्जत है, इसलिए मैं तुम्हारे साथ ज्यादा आगे तो जा ही नहीं पाता. मगर जैसी गहरी दोस्ती तुम्हारे और मेरे बीच में है उस में मेरा इतना हक तो बनता है कि मैं कभीकभार तुम्हारा चुंबन ले लूं और फिर इस में हर्ज ही क्या है. यह भावना तो प्रकृति की देन है और हर जीव में बनाई है.’’

मेरे कोई प्रतिक्रिया करने से पहले ही वह मुझे एक बड़े से पेड़ की आड़ में खींच चुका था और कुछ कहने को खुलते हुए मेरे होंठों को अपने होंठों से सिल चुका था.

‘‘एक दिन तुम दुनिया की सब से अच्छी चित्रकार बनोगी. तुम्हारी पेंटिंग्स दुनिया की हर मशहूर आर्ट गैलरी की शान बढ़ाएंगी. कई महीनों  से डैडी बहुत व्यस्त हैं, इसलिए मैं उन से तुम्हारी स्कौलरशिप के बारे में बात नहीं कर पाया. मगर आज घर पहुंचते ही सीधा उन से यही बात करूंगा.’’ चंद पलों की इस अवांछित समीपता के बाद उस ने मुझे अपनी गिरफ्त से आजाद करते हुए अपना एकालाप दोहराया.

‘‘मैं ने बिना कुछ कहे अपना सिर उस कठपुतली की तरह हिलाया जिस की डोर पर हर्ष की पकड़ दिनबदिन मजबूत होती जा रही थी.’’

‘‘रिलैक्स डार्लिंग, जल्द ही तुम एमएफ हुसैन की श्रेणी में खड़ी होगी. चलो, मैं तुम्हें तुम्हारे फ्लैट पर छोड़ता हुआ निकल जाऊंगा.’’ उस ने अपनी कार का दरवाजा मेरे लिए खोलते हुए कहा.

Manohar Kahaniya: पुलिस अधिकारी का हनीट्रैप गैंग- भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

विनोद ने कहा, ‘‘नहीं, मैं ने कुछ नहीं किया. मुझे झूठे जाल में फंसाया जा रहा है.’’

उस के बाद विधायक ने होशंगाबाद थानाप्रभारी संतोष सिंह चौहान को फोन कर के इस मामले की जांच करने को कहा. विधायक और पुलिस की समझाइश से मामला रफादफा हो गया .

सुनीता ठाकुर होशंगाबाद शहर में खुलेआम लोगों को हनीट्रैप के खेल में फंसा कर रुपयों की वसूली कर रही थी. उस ने अपने इस काम में कोतवाली पुलिस के कुछ पुलिसकर्मियों को भी शामिल कर लिया था.

पिछले 4-5 महीने से चल रहे इस खेल में हर बार किसी नए युवक को सुनीता शहर के आलीशान होटल या रूम पर ले जाती. युवकों के साथ अंतरंग संबंधों के वीडियो और फोटो सुनीता खुद बनाती थी. इस के बाद वह मोबाइल फोन के जरिए मैसेज कर पुलिस को बुला लेती और युवकों को ब्लैकमेल करती थी.

यह गैंग आधा दरजन लोगों को ब्लैकमेल कर लाखों रुपए की वसूली कर चुका था. ज्यादातर पीडि़त युवक इटारसी, होशंगाबाद, आंवलीघाट के रहने वाले थे.

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वीडियो से हुई ब्लैकमेलिंग

सुनीता ने अपना सातवां शिकार बनाया सलकनपुर के सुशील मालवीय को. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के विधानसभा क्षेत्र के गांव सलकनपुर का सुशील मालवीय किराना दुकान चलाता था. सोशल मीडिया के जरिए सुनीता ने सुशील का नंबर ले कर उस से नजदीकियां बढ़ाई थीं.

लौकडाउन के पहले अप्रैल महीने के शुरू में सुशील नई बाइक खरीदने होशंगाबाद गया था. सुनीता को जब पता चला कि सुशील होशंगाबाद आया है तो उस ने फोन कर के शहर के नर्मदा नदी के पास एक होटल में उसे मिलने बुला लिया.

होटल के कमरे में दोनों प्रेमालिंगन कर ही रहे थे कि उसी दौरान पुलिसकर्मी होटल में आ धमके. पुलिसकर्मियों ने डराधमका कर उस से बाइक खरीदने के लिए साथ लाए 80 हजार रुपए ले लिए.

मामला यहीं खत्म नहीं हुआ. पुलिस वालों ने उस से कहा कि 5 लाख रुपयों का इंतजाम और करो, नहीं तो तुम्हें लड़की के यौनशोषण करने के मामले में फंसा कर जेल भिजवा देंगे. पुलिस ने सुशील को डराधमका कर कहा कि जब तक तुम रुपयों का इंतजाम नहीं करते, सुनीता पुलिस हिरासत में ही रहेगी.

इधर सुनीता भी पुलिस के सामने नाटक करते हुए रोरो कर कहने लगी, ‘‘सुशील, मैं तुम्हारे हाथ जोड़ती हूं . किसी तरह रुपयों का इंतजाम कर के मुझे पुलिस से बचा लो.’’

पुलिस के चक्कर से बचने के लिए सुशील ने जैसेतैसे सलकनपुर में अपने परिचित रिश्तेदारों की मदद से 5 लाख रुपए उधार ले कर पुलिस को देने बुधनी के पास पीलीकरार गांव आया तो हैडकांसटेबल ज्योति मांझी और कांसटेबल मनोज वर्मा ने सुशील से रुपए ले लिए और सुनीता को आजाद कर दिया.

पुलिसकर्मियों को पैसा वसूली का यह खेल इतना रास आ चुका था कि वे सुनीता को कामधेनु गाय समझ कर उस का दोहन कर रहे थे.

सुशील से होशंगाबाद थाने के पुलिसकर्मियों ने लाखों रुपयों की वसूली तो कर ली, लेकिन उन्होंने हनीट्रैप गैंग की लीडर सुनीता को केवल 2 हजार रुपए ही दिए. इस बात को ले कर सुनीता का गुस्सा गैंग में शामिल पुलिसकर्मियों पर फूट पड़ा.

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सुनीता ने की पुलिसकर्मियों की शिकायत

जब सुनीता ने उन से और पैसों की मांग की तो वे उलटे सुनीता को ब्लैकमेलिंग में फंसाने की धमकी देने लगे. दूसरों को अपने जाल में फंसाने वाली सुनीता इस बार खुद ही पुलिस वालों के जाल में फंस चुकी थी. लिहाजा उस ने विद्रोह करते हुए 7 जून को होशंगाबाद थाने और एसपी औफिस में जा कर एक लिखित शिकायत दी. उस ने आरोप लगाया कि एसआई जयकुमार नलवाया, हैडकांस्टेबल ताराचंद जाटव, ज्योति मांझी और कांस्टेबल मनोज वर्मा ने उस के नाम से झूठे मामले में ठगी की है.

कोतवाली थाने के टीआई संतोष सिंह चौहान ने एसआई श्रद्धा राजपूत को पूरे मामले की जांच करने को कहा.

सुनीता ने पुलिस को होशंगाबाद थाने की मोहर लगे 7 फरजी शिकायती पत्र भी दिए, जिस में युवकों द्वारा उस के साथ शादी का झांसा दे कर संबंध बनाने के आरोप थे.

मामले की जांच चल ही रही थी कि होशंगाबाद के शांतिनगर इलाके में रहने वाले एक युवक भविष्य बाधवानी ने सिटी थाने में शिकायत दे कर सुनीता ठाकुर के द्वारा की जा रही ब्लैकमेंलिंग की शिकायत कर दी.

भविष्य नाम का यह युवक शहर में ही अंडा बेचने का काम करता था. भविष्य का संपर्क सुनीता से फेसबुक के जरिए हुआ तो सुनीता ठाकुर उसे फोन कर के पैसों की मांग करने लगी.

वह बारबार फोन लगा कर भविष्य को धमकाती कि यदि 10 हजार रुपए नहीं दिए तो उसे झूठे मामले में फंसा देगी. एक दिन सुनीता रुपए मांगने उस की दुकान पर

आ धमकी तो भविष्य ने अपने दिमाग से काम लिया.

जब सुनीता ने उस से रुपए मांगे और न देने पर पुलिस में झूठी शिकायत करने की धमकी दी तो भविष्य ने 10 हजार रुपए देते हुए चालाकी से वीडियो बना कर मोबाइल फोन में सुनीता से हुई बातचीत रिकौर्ड कर ली.

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सुनीता के वहां से जाते ही भविष्य ने सिटी थाने में सुनीता के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी. उस ने सबूत के तौर पर मोबाइल में हुई रिकौर्डिंग भी पुलिस को सौंप दी.

थानाप्रभारी अपने ही थाने के पुलिस वालों की करतूत से शर्मसार थे, लेकिन वह सुनीता के खिलाफ कोई शिकायत न होने से उस पर कोई काररवाई नहीं कर पा रहे थे. ऐसे में शहर के युवक भविष्य ने सुनीता ठाकुर के खिलाफ शिकायत की तो वह पुलिस के लिए वरदान सिद्ध हो गई.

पुलिस ने मामले पर संज्ञान लेते हुए 18 जून, 2021 को सुनीता को भोपाल से गिरफ्तार कर लिया. पुलिस द्वारा सख्ती से की गई पूछताछ में सुनीता ने जिन बातों का खुलासा किया, वह पुलिस की खाकी वरदी को शर्मसार करने वाली थीं.

सुनीता द्वारा की गई शिकायत की जांच में होशंगाबाद थाने के एसआई जय कुमार नलवाया, हैडकांस्टेबल ज्योति मांझी, ताराचंद जाटव और कांस्टेबल मनोज वर्मा के शामिल होने की पुष्टि हुई.

जैसे ही जांच प्रतिवेदन एसपी संतोष गौर के पास पहुंचा तो उन्होंने इन पुलिसकर्मियों को तत्काल निलंबित कर दिया.

पुलिस अधिकारी था मास्टरमाइंड

22 जून, 2021 को जैसे ही होशंगाबाद थाने के 4 पुलिसकर्मियों के निलंबन की खबर सोशल मीडिया पर वायरल हुई तो मीडियाकर्मियों का जमावड़ा लग गया. हर कोई हनीट्रैप के इस मामले की सच्चाई जानने को बेताब था.

जिस पुलिस को सरकार ने जनता की सेवा और सुरक्षा के लिए वरदी दी, वही खाकी वरदी वाले 4 पुलिसकर्मियों की चौकड़ी हनीट्रैप करवाने में शामिल निकली. खाकी वरदी के नाम पर कलंक कहे जाने वाला एसआई जय कुमार हनीट्रैप मामले का मास्टरमाइंड था.

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Crime Story in Hindi: सोने का घंटा- भाग 1: एक घंटे को लेकर हुए दो कत्ल

प्रस्तुति : शकीला एस. हुसैन

लाश बिलकुल सीधी पड़ी थी. सीने पर दो जख्म थे. एक गरदन के करीब, दूसरा ठीक दिल पर. नीचे नीली दरी बिछी थी, जिस पर खून जमा था. वहीं मृतक के सिर के कुछ बाल भी पडे़ थे. वारदात अमृतसर के करीबी कस्बे ढाब में हुई थी.

मरने वाले का नाम रंजन सिंह था, उम्र करीब 45 साल. उस की किराने की दुकान थी. फिर अचानक ही उस के पास कहीं से काफी पैसा आ गया था. उस ने एक छोटी हवेली खरीद ली थी. 3 महीने पहले उस ने उसी पैसे से बड़ी धूमधाम से अपनी बेटी की शादी की थी.

रंजन का कत्ल उस की नई हवेली में हुआ था. उस के 2 बेटे थे, दोनों अलग रहते थे. बाप से उन का मिलनाजुलना नहीं था. बीवी 3 साल पहले मर चुकी थी. घर पर वह अकेला रहता था. नौकरानी सुगरा दोपहर में रंजन के घर तब आती थी, जब वह अपने काम पर होता था. सुगरा घर का काम और खाना वगैरह बना कर चली जाती थी.

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रंजन ने घर के ताले की एक चाबी उसे दे रखी थी. कत्ल के रोज भी सुगरा खाना बना कर चली गई थी. रात को रंजन आया और खाना खा कर सो गया. सुबह कोई उस से मिलने आया. खटखटाने पर भी दरवाजा नहीं खुला तो वह पड़ोसी की छत से रंजन के घर में घुसा, जहां खून में लथपथ उस की लाश पड़ी मिली.

मैं ने बहुत बारीकी से जांच की. कमरे में संघर्ष के आसार साफ नजर आ रहे थे. चीजे बिखरी हुई थीं. सबूत इकट्ठा कर के मैं ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी. उस के बाद मैं गवाहों के बयान लेने लग गया. सब से पहले पड़ोसी गफूर का बयान लिया गया.

उस ने दावे से कहा कि रात को रंजन की हवेली से लड़ाईझगडे़ की कोई आवाज नहीं आई थी. उस ने बताया कि रंजन सिंह बेटी की शादी के बाद से खुद शादी करना चाहता था. उस ने एक दो लोगों से रिश्ता ढूंढने को कहा था. बेटों और बहुओं से उस की कतई नहीं बनती थी. मैं ने गफूर से पूछा, ‘‘तुम पड़ोसी हो तुम्हें तो पता होगा उस के पास 6-7 महीने पहले इतना पैसा कहां से आया था?’’

गफूर ने सोच कर जवाब दिया, ‘‘साहब, यह तो मुझे नहीं मालूम, पर सब कहते हैं कि उसे कहीं से गड़ा हुआ खजाना मिल गया. पर रंजन कहता था उस का अनाज का व्यापार बहुत अच्छा चल रहा है.’’

पता चला वह सोने का घंटा था, उसी को ले कर 2 कत्ल हुए लेकिन घंटा…

जरूरी काररवाई कर के मैं थाने लौट आया. शाम को मैं ने बिलाल शाह को भेज कर सुगरा और उस के शौहर को बुलवाया. सुगरा 22-23 साल की खूबसूरत औरत थी. उस की गोद में डेढ़ साल का प्यारा सा बच्चा था. गरीबी और भूख ने उस की हालत खराब कर रखी थी. उस के कपड़े पुराने और फटे हुए थे. यही हाल उस के शौहर का था. उस के हाथ पर पट्टी बंधी हुई थी. मैं ने नजीर से पूछा, ‘‘तुम्हारे हाथ पर चोट कैसे लगी?’’

‘‘साहब, खराद मशीन में हाथ आ गया था. 2 जगह से हड्डी टूट गई थी. 2-3 औपरेशन हो चुके हैं पर फायदा नहीं है.’’

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‘‘क्या खराद मशीन तुम्हारी अपनी है?’’

‘‘नहीं जनाब, मैं दूसरे के यहां 50 रुपए महीने पर नौकरी करता था. हाथ टूटने के बाद उस ने निकाल दिया.’’

दोनों मियां बीवी सिसकसिसक कर रो रहे थे. पर मैं अपने फर्ज से बंधा हुआ था. मैं ने नजीर को बाहर भेज दिया और सुगरा से पूछा, ‘‘सुना है तुम्हारा शौहर पसंद नहीं करता था कि तुम किसी और के घर काम करो. इस बात पर वह तुम से झगड़ता भी था. क्या यह सच है?’’

‘‘जी हां साहब, उसे पसंद नहीं था पर मेरी मजबूरी थी. मेरे तीनों बच्चे भूखे मर रहे थे. काम कर के मैं उन्हें खाना तो खिला सकती थी. मैं ने गुड्डू के अब्बा से हाथ जोड़ कर रंजन चाचा के घर काम करने की इजाजत मागी थी और वह मान भी गया था.’’

‘‘पर गांव वाले तुम्हारे और रंजन के बारे में बेहूदा बातें करते थे. यह बातें तुम्हें और तुम्हारे शौहर को भी पता चलती होंगी?’’

‘‘साहब, जिन के दिल काले हैं, वही गंदी बातें सोचते हैं. रंजन चाचा मेरे साथ बहुत अच्छा सलूक करते थे. जब मैं काम करती थी, तब वह घर पर होते ही नहीं थे. लोगों की जुबान बंद करने के लिए मैं अपने बच्चों को भूखा नहीं मार सकती थी.’’

‘‘सुगरा, ऐसा भी तो हो सकता है कि गुस्से में आ कर नजीर ने रंजन सिंह को मार डाला हो?’’

‘‘नहीं साहब, वह कभी किसी का खून नहीं कर सकता. वैसे भी वह हाथ से मजबूर है, सीधा हाथ हिला भी नहीं सकता.’’

इस बारे में मैं ने नजीर से भी पूछताछ की. उस ने बताया कि उस रात 11 बजे तक वह अपने दोस्त अशरफ के यहां था. मैं ने नजीर से कहा, ‘‘लोग तुम्हारी बीवी के बारे में जो बेहूदा बातें करते थे, उस पर तुम्हें गुस्सा नहीं आता था, कहीं इसी गुस्से में तो तुम ने रंजन को नहीं मार डाला?’’

‘‘तौबा करें साहब, हम गरीब मजबूर इंसान हैं. ऐसा सोच भी नहीं सकते. हमारी भूख और मजबूरी के आगे गैरत हार जाती है.’’ मैं ने उन दोनों को घर जाने दिया, क्योंकि वे लोग बेकसूर नजर आ रहे थे.

मैं ने एक बार फिर रंजन के घर की अच्छे से तलाशी ली. दरी के ऊपर एक घड़ी पड़ी थी. अलमारियां खुली हुई थीं, पर यह पता लगाना मुश्किल था कि क्याक्या सामान गया है? बेटों को भी कुछ पता नहीं था, क्योंकि वह बाप की दूसरी शादी के सख्त खिलाफ थे, इसलिए आनाजाना बंद था.

पोस्टमार्टम के बाद रंजन सिंह का अंतिम संस्कार कर दिया गया. इस मौके पर सभी रिश्तेदार मौजूद थे. उस के दोनों बेटे रूप सिंह और शेर सिंह भी थे. बाद में मैं ने रूप सिंह को बुलाया. वह आते ही फट पड़ा, ‘‘थानेदार साहब, हमारे बापू को किसी और ने नहीं नजीर ने ही मारा है. दोनों मियांबीवी बापू के पीछे हाथ धो कर पड़े थे. सुगरा को पता होगा जेवर और पैसे कहां हैं. उसी के लिए मेरा बापू मारा गया.’’

मैं ने उसे समझाया, ‘‘हमारी नजर सब पर है. तुम उस की फिक्र मत करो. तुम यह बताओ कि हादसे की रात तुम कहां थे और बाप से क्यों झगड़ा चल रहा था?’’

‘‘मैं अपने घर में था. मेरी घर वाली को बेटा हुआ था. दोस्त और रिश्तेदार मिल कर जश्न माना रहे थे.’’

‘‘तुम्हारे यहां बेटा हुआ, जश्न मना, पर बाप को खबर देने की जरूरत नहीं समझी, क्यों? तुम काम क्या करते हो.’’

‘‘बापू की दूसरी शादी की वजह से झगड़ा चल रहा था. इसलिए उसे नहीं बताया. मैं मोमबत्ती और अगरबत्ती बनाने का काम करता हूं.’’

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दोनों बेटों से पूछताछ करने से भी कोई नतीजा नहीं निकला. पोस्टमार्टम की रिपोर्ट आ गई, जिस से पता चला रंजन नींद की गोलियों के नशे में था. इस रिपोर्ट से मेरा शक सुगरा की तरफ बढ़ गया. पर मेरे पास कोई सबूत नहीं था.

रिपोर्ट मिलने के बाद मैं रंजन सिंह के घर पहुंचा. वहां देनों बेटे और बेटी भी मौजूद थे. बेटी रोरो कर बेहाल थी. मैं ने नींद की गोलियों की तलाश में अलमारी छान मारी पर कहीं कुछ नहीं मिला. उस की बेटी का कहना था कि उस का बापू नींद की गोलियां नहीं खाता था.

2 दिन बाद डीएसपी बारा सिंह खुद ढाब आ पहुंचा. वह बहुत गुस्से में था. कहने लगा, ‘‘सारी कहानी और सबूत सुगरा और नजीर की तरफ इशारा कर रहे हैं कि कत्ल उन्होंने ही किया है. फौरन उन्हें गिरफ्तार कर के पूछताछ करो.’’

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सौजन्य- मनोहर कहानियां

रविवार 24 जून, 2018 की सुबह करीब 9 बजे का वक्त था. उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले के रहने वाले शरीफुद्दीन और बाबू मियां जलालनगर मोहल्ले के बगल से गुजरने वाले नाले के किनारे होते हुए पैदल ही बस अड्डे की तरफ जा रहे थे. अचानक शरीफुद्दीन की नजर नाले में गिरी पड़ी एक मोटरसाइकिल पर पड़ी, जिस का कुछ हिस्सा नाले के पानी के ऊपर था. यह देखते ही शरीफुद्दीन बोला, ‘‘अरे बाबू भाई, लगता है कोई आदमी नाले में गिर गया है. उस की बाइक यहीं से दिख रही है.’’

शरीफुद्दीन की बात पर बाबू ने जब नाले की तरफ देखा तो वह चौंकते हुए बोला, ‘‘हां शरीफ भाई, लग तो रहा है… चलो चल कर देखते हैं.’’

इस के बाद वह दोनों तेजी से कदम बढ़ाते हुए उधर ही पहुंच गए जहां मोटरसाइकिल पड़ी थी. उन्होंने देखा कि वहां न सिर्फ मोटरसाइकिल थी बल्कि चंद कदम की दूरी पर एक आदमी भी औंधे मुंह पड़ा हुआ था.

ऐसा लग रहा था कि या तो वह शराब के नशे में बाइक समेत नाले में जा गिरा या किसी चीज से टकरा कर वह बाइक समेत नाले में गिर गया है. वह दोनों उस व्यक्ति के करीब पहुंच गए, उस व्यक्ति के शरीर के ऊपर का कुछ भाग नाले के किनारे पर था. उस के सिर से खून बह कर जम गया था. वह व्यक्ति कौन है जानने के लिए दोनों ने जैसे ही उसे पलट कर देखा तो बाबू के मुंह से चीख निकल गई, ‘‘अरे बाप रे, ये तो अपने दरोगाजी भौंदे खान हैं.’’

दरोगा भौंदे खान उर्फ मेहरबान अली उन्हीं के मोहल्ले में रहते थे.

‘‘चल, इन के घर जा कर खबर करते हैं.’’ बाबू ने अपने साथी से कहा और उल्टे पांव अपने मोहल्ले की तरफ चल दिए.

वहां से बमुश्किल 400 मीटर की दूरी पर एमनजई जलालनगर मोहल्ला था. उस मोहल्ले में घुसते ही 20 कदम की दूरी पर दरोगा मेहरबान अली उर्फ भौंदे खान का घर था. चेहरे पर उड़ती हवाइयों के बीच दरोगाजी के घर पहुंचे तो घर के बाहर ही उन्हें दरोगाजी का दामाद अनीस मिल गया. दरोगाजी अपने दामाद के साथ ही रहते थे. शरीफुद्दीन और बाबू मियां ने एक ही सांस में अनीस को बता दिया कि उस के ससुर दरोगाजी अपनी मोटरसाइकिल के साथ नाले में गिरे पड़े हैं.

यह सुनते ही अनीस ने दौड़ कर अपने घर में अपनी सास जाहिदा, पत्नी और सालियों को ये बात बताई. जैसे ही परिवार वालों को भौंदे खान के नाले में गिरने की बात पता चली तो पूरे घर में जैसे कोहराम मच गया. उन की पत्नी जाहिदा और घर में मौजूद तीनों बेटियां अनीस के साथ नाले के उसी हिस्से की तरफ दौड़ पड़ीं, जहां उन के गिरे होने की जानकारी मिली थी. मोहल्ले के अनेक लोग भी उन के साथ हो लिए.

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मरने वाला निकला दरोगा भौंदे खान

जाहिदा ने अपने पति को काफी हिलायाडुलाया लेकिन खून से लथपथ पति के शरीर में कोई हलचल नहीं हुई तो कुछ लोगों ने उन की नब्ज टटोली तब पता चला कि उन की मौत हो चुकी है. इस के बाद तो जाहिदा और उन की बेटियां छाती पीटपीट कर रोने लगीं. थोड़ी ही देर में घटनास्थल पर लोगों का हुजूम लग गया. अनीस ने पुलिस कंट्रोल रूम को फोन कर के दरोगा मेहरबान अली का शव नाले में मिलने की सूचना दे दी.

यह इलाका सदर कोतवाली क्षेत्र में पड़ता था. मामला चूंकि विभाग के ही एक सबइंसपेक्टर की मौत से संबंधित था, इसलिए सूचना मिलते ही सदर कोतवाली थानाप्रभारी डी.सी. शर्मा तथा एसएसआई रामनरेश यादव पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. थानाप्रभारी ने जब मेहरबान अली के शव को नाले से बाहर निकलवा कर बारीकी से उस की पड़ताल की तो पहली ही नजर में मामला दुर्घटना का नजर आया.

ऐसा लग रहा था कि नाले में गिरने पर सिर में लगी चोट के कारण शायद उन की मौत हो गई है. सूचना मिलने पर एसपी का प्रभार देख रहे एसपी (ग्रामीण) सुभाष चंद्र शाक्य, एसपी (सिटी) दिनेश त्रिपाठी और सीओ (सदर) सुमित शुक्ला भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से मुआयना किया. फोरैंसिक टीम ने भी वहां पहुंच कर सबूत जुटाए. घटना की सूचना आईजी और डीआईजी तक पहुंच गई थी लिहाजा अगले 2 घंटे में पुलिस के ये आला अफसर भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. अगले दिन दरोगा मेहरबान अली के शव की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो उसे पढ़ कर पुलिस भी हैरान रह गई. क्योंकि उस में बताया गया कि उन की मौत दुर्घटना के कारण नहीं हुई थी बल्कि उन की हत्या की गई थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि सिर में दाहिनी तरफ चोट लगने के अलावा इस तरह की चोट थी, जैसे किसी ने कई बार भारीभरकम चीज से सिर पर चोट पहुंचाई हो. साथ ही गला भी दबाया गया था. उन की गरदन पर बाकायदा कुछ लोगों की अंगुलियों के निशान थे, मानो उन का गला दबाने की कोशिश भी की गई हो.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट सीधे तौर पर उन की हत्या की ओर इशारा कर रही थी. मृतक दरोगाजी के परिवार वालों से जब पूछा कि उन्हें किसी पर हत्या करने का शक है तो उन्होंने किसी पर शक नहीं जताया. लेकिन उन के दामाद अनीस ने सदर कोतवाली में तहरीर दे कर अज्ञात लोगों के खिलाफ उन की हत्या करने की शिकायत दर्ज करा दी.

रिपोर्ट दर्ज करने के बाद थानाप्रभारी डी.सी. शर्मा ने जांच अपने हाथ में ले ली. अनीस ने थानाप्रभारी को बताया कि एक दिन पहले शनिवार को भौंदे खान दोपहर करीब साढ़े 11 बजे खाना खा कर मोटसाइकिल ले कर ड्यूटी के लिए गए थे.

पुलिस ने की दरोगा के घर वालों से पूछताछ

वह ड्यूटी से रात 8 बजे तक घर लौटने वाले थे. लेकिन 11 बजे तक भी वह नहीं लौटे तो घर वालों को चिंता होने लगी तब साजिदा ने वायरलैस कंट्रोल रूम में फोन कर के पूछा तो पता चला कि मेहरबान अली तो उस दिन ड्यटी पर पहुंचे ही नहीं थे.

जाहिदा जानती थी कि उस के पति कभीकभी दोस्तों के साथ शराब की पार्टी में बैठ जाते हैं. ऐसे में वह कभीकभी ड्यटी पर भी नहीं जाते थे और देर रात तक घर लौटते थे. उस ने सोचा कि हो सकता है आज भी वह कहीं ऐसी ही किसी पार्टी में शामिल हो गए होंगे और सुबह तक आ जाएंगे. यह सोच कर जाहिदा सो गई.

सुबह हो गई, भौंदे खान तब भी घर नहीं लौटे. अनीस उस रोज शहर से बाहर गया हुआ था. सुबह जब वह घर लौटा तो सास जाहिदा ने उसे यह बात बताई. अनीस ने सास से कहा कि वह कुछ देर बाद पुलिस लाइन जा कर देख आएगा कि आखिर बात क्या है. लेकिन उस से पहले ही उसे भौंदे खान की लाश मिलने की सूचना मिल गई.

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सीओ (सदर) सुमित शुक्ला और थानाप्रभारी डी.सी. शर्मा की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर ऐसी कौन सी वजह रही होगी जिस के कारण उन की हत्या की गई. मामला लूटपाट का नहीं था क्योंकि उन की मोटरसाइकिल, कलाई घड़ी और जेब में उन का पर्स ज्यों का त्यों बरामद हुआ था. पर्स में आईडी कार्ड से ले कर डेबिट कार्ड तथा कुछ रुपए सहीसलामत पाए गए थे.

थानाप्रभारी डी.सी. शर्मा को लग रहा था कि दरोगा मेहरबान अली की हत्या का मामला उतना सीधा नहीं है, जितना कि नजर आ रहा है. इसलिए उन्होंने एक टीम मेहरबान अली के परिवार और उन के मेलजोल वालों के बारे में जानकारी एकत्र करने के लिए गठित कर दी, जिस में एसएसआई रामनरेश यादव, महिला एसआई ज्योति त्यागी, कांस्टेबल अनूप मिश्रा, माधुरी के साथ एक दरजन पुलिस वाले शामिल थे.

थानाप्रभारी ने यह कदम यूं ही नहीं उठाया, बल्कि उन्हें 2 महीने पहले दरोगा मेहरबान अली के घर में हुई एक ऐसी घटना याद आ गई जिस की तफ्तीश खुद उन्होंने ही की थी.

मेहरबान अली उर्फ भौंदे खान मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला मुजफ्फरनगर की तहसील बुढ़ाना के गांव कसेरवा के रहने वाले थे. वह उत्तर प्रदेश पुलिस में सब इंसपेक्टर के पद पर तैनात थे. उन की नियुक्ति उत्तर प्रदेश के अलगअलग जिलों में रहने के बाद सन 2007 में शाहजहांपुर जिले की पुलिस लाइन में वायरलैस सेल में हुई थी.

वह थाना सदर क्षेत्र के मोहल्ला एमनजई जलालनगर में अपने दामाद अनीस के साथ रहते थे. मकान की दूसरी मंजिल पर अनीस अपनी पत्नी सबा के साथ रहता था. अनीस मशीनरी टूल की ट्रेडिंग का धंधा करता था. जिस के सिलसिले में उसे अकसर शहर से बाहर भी आनाजाना पड़ता था.

जिस दिन मेहरबान अली गायब हुए थे, अनीस उस दिन शहर से बाहर गया हुआ था. मेहरबान अली के परिवार में उन की पत्नी जाहिदा के अलावा 5 बेटियां व एक बेटा था. बड़ी बेटी सबा की शादी अनीस के साथ डेढ़ साल पहले हुई थी. उस से छोटी 4 बेटियां सना, जीनत, इरम, आलिया तथा एक बेटा मोहसिन है, जो परिवार में सब से छोटा है. दूसरे नंबर की बेटी सना खान की 2 महीने पहले हत्या हो गई थी. थानाप्रभारी डी.सी. शर्मा ने ही उस मामले की जांच की थी.

दरोगा की बेटी की हुई थी हत्या

सना जी.एस. कालेज में बीए फाइनल की छात्रा थी. वह यूपी पुलिस परीक्षा की तैयारी कर रही थी. इस के लिए वह रामनगर कालोनी स्थित एक कोचिंग सेंटर, अपनी छोटी बहन जीनत के साथ जाती थी. 7 अप्रैल, 2018 को भी सना जीनत के साथ कोचिंग सेंटर से बाहर निकल कर 200 मीटर दूर पहुंची थी. तभी अरशद वहां आया. वह अपने एक दोस्त के साथ बाइक पर सवार था. उस ने सना से बात करने के लिए दोनों बहनों को रोक लिया.

अरशद भी उन के साथ उसी कोचिंग सेंटर में जाता था. दोनों आपस में अच्छे दोस्त थे. अरशद सना से बात करने लगा. बात करतेकरते दोनों जैसे ही इलाके के डा. मुबीन के घर के पास पहुंचे तभी अरशद की सना से किसी बात को ले कर नोकझोंक और गालीगलौज होने लगी. तभी गुस्से में आ कर अरशद ने जेब से तमंचा निकाल कर सना को गोली मार दी. गोली उस के सीने पर लगी और वह वहीं जमीन पर गिर पड़ी. गोली मारते ही अरशद अपने दोस्त के साथ बाइक से फरार हो गया था.

इधर, बहन को गोली लगते ही जीनत जोरजोर से चीखने लगी. जीनत की चीखपुकार सुन कर कोचिंग सेंटर से अन्य छात्र बाहर आ गए. उन्होंने खून से लथपथ सना को देखा तो तुरंत एंबुलेंस को फोन किया. लेकिन एंबुलेंस के आने से पहले ही कोचिंग के दोस्त सना को मोटरसाइकिल पर बीच में बैठा कर अस्पताल ले गए. लेकिन अस्पताल पहुंचने पर डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.

जिस इलाके में वारदात हुई वह सदर थाना क्षेत्र में आता है. सना के पिता मेहरबान अली चूंकि पुलिस में ही दरोगा थे, इसलिए थानाप्रभारी डी.सी. शर्मा ने मामले को गंभीरता से लिया. जीनत के बयान के आधार पर सना की हत्या की रिपोर्ट दर्ज की गई.

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अरशद नाम के जिस युवक ने सना को गोली मारी थी उस के बारे में जानकारी हासिल करने में पुलिस को ज्यादा वक्त नहीं लगा. अरशद प्रतापगढ़ के थाना कन्हई के कठहार गांव का रहने वाला था. उस के पिता जहीरूद्दीन सिद्दीकी भी उत्तर प्रदेश पुलिस में थे. अरशद के चाचा सौराब खां शाहजहांपुर में ही बतौर कांस्टेबल तैनात थे. अरशद उन्हीं के साथ रहता था. वह पुलिस लाइन में रह कर पुलिस सेना में भरती होने की तैयारी करता था. इसलिए वह रोजाना दौड़ लगाने के लिए पुलिस लाइन के परेड ग्राउंड में जाता था.

उसी ग्राउंड में सना खान और उस की बहन जीनत भी दौड़ने आती थी. वह भी पुलिस में भरती होने की तैयारी कर रही थीं. बातों ही बातों में अरशद की उन से दोस्ती हो गई. सना मन ही मन अरशद को पसंद करने लगी और जल्द ही दोनों का अकेले में मिलनाजुलना शुरू हो गया. लेकिन अरशद सना की बहन जीनत को ज्यादा पसंद करता था और उसी के साथ निकाह करना चाहता था. जीनत भी अरशद को चाहने लगी थी.

अरशद जब जीनत के साथ हंसीमजाक करता तो सना को ये बात नागवार गुजरती थी. उस ने इस बात पर अरशद को कई बार झिड़कते हुए कह दिया था कि वह उसे पसंद करती है इसलिए वह उस की बहन जीनत पर गलत नजर न रखे.

सना के कई बार ऐसा कहने पर एक दिन अरशद ने सना से साफ कह दिया कि वह उस से नहीं बल्कि जीनत को पसंद करता है और उस से निकाह करना चाहता है. इस के बाद से सना अरशद के जीनत से मेलजोल का विरोध करने लगी. इतना ही नहीं उस ने अपनी मां जाहिदा और पिता मेहरबान अली को भी यह बात बता दी थी. जिस पर जीनत को घर वालों से डांट भी पड़ी थी.

अरशद ने मारा था सना को

जीनत ने यह बात अरशद को बताई तो अरशद ने सना की हत्या कराने का फैसला कर लिया. उस ने सोचा कि सना के न रहने पर उसे जीनत से मिलने में कोई बाधा नहीं आएगी. इस बारे में अरशद ने अपने गांव के बचपन के दोस्त सलमान से बात की. सलमान अरशद का साथ देने के लिए तैयार हो गया और एक दिन उस ने सना को गोली मार दी.

हत्याकांड की जानकारी मिलने के बाद सदर पुलिस ने अगले 24 घंटे में ही अरशद को गिरफ्तार कर के उस के कब्जे से हत्या में प्रयुक्त 315 बोर का देशी तमंचा, 2 कारतूस और मोटरसाइकिल बरामद कर ली थी.

अरशद से पूछताछ में पता चला था कि हत्या में मदद करने वाला उस का दूसरा साथी भी प्रतापगढ़ जिले के गांव कढ़ार का रहने वाला सलमान है, तो पुलिस ने सलमान की गिरफ्तारी के प्रयास करते हुए कई बार उस के ठिकानों पर दबिशें दीं, लेकिन सलमान हर बार पुलिस की पकड़ में आने से बचता रहा.

आखिरकार एसपी सुभाष चंद्र शाक्य ने उस की गिरफ्तारी पर 25 हजार रुपए का ईनाम घोषित कर दिया. जिस के एक हफ्ते बाद सलमान को सदर पुलिस ने रोडवेज बस स्टैंड से गिरफ्तार कर लिया. आरोपी को न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

थानाप्रभारी डी.सी. शर्मा को अनायास सना की हत्या करने वाले कातिल अरशद का वह कबूल नामा भी याद आने लगा जब उस ने बताया था कि सना चाहती थी कि अगर वह उस के पिता मेहरबान अली को मार देने में उस की मदद करे तो अनुकंपा के आधार पर उन की नौकरी उसे मिल जाएगी.

सना ने अरशद से ये भी कहा था कि यदि वह ऐसा कर देगा तो वह उस से शादी कर लेगी. अरशद ने ये भी बताया था कि सना ने उस से कहा था कि उस के पिता उस की मां और सभी बहनों के साथ न सिर्फ मारपीट करते हैं बल्कि सभी बहनों पर पाबंदियां भी लगाते हैं. लेकिन अरशद ने सना का ये औफर इसलिए ठुकरा दिया था, क्योंकि वह सना से नहीं बल्कि उस की बहन जीनत से प्यार करता था.

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घर वालों के बयानों में मिला विरोधाभास

उस वक्त तो थानाप्रभारी को लगा था कि अरशद शायद अपने बचाव में और सना को ही दोषी ठहराने के लिए झूठी कहानी गढ़ रहा है. लेकिन अब जबकि दरोगा मेहरबान अली की हत्या हुई तो उन्हें अरशद के उस बयान में सच्चाई नजर आने लगी. उन्हें लगने लगा कि संभव है, मेहरबान अली की हत्या का राज कहीं न कहीं उन के घर में ही छिपा हो.

अगली सुबह सब से पहले उन्होंने पुलिस टीम के साथ मेहरबान अली के घर का दौरा किया. उन्होंने एकएक कर के मेहरबान अली की पत्नी और उस की बेटियों से पूछताछ की. उन्होंने सभी से मेहरबान अली के शनिवार को घर से बाहर जाने का घटनाक्रम पूछा था. तो न जाने क्यों मांबेटियों के बयानों में एक के बाद एक कई विरोधाभास नजर आए.

किसी ने बताया कि वह दोपहर को खाना खा कर ड्यूटी चले गए थे. किसी ने बताया कि वह सुबह 10 बजे ही रात की ड्यूटी कर के घर लौटे थे और शाम को घर से गए थे. यह भी पता चला कि उन्होंने रात को घर न लौटने पर पुलिस लाइन में फोन कर के उन के घर न लौटने के बारे में पूछा था. लेकिन वहां से पता चला कि उस दिन मेहरबान अली ड्यूटी पर आए ही नहीं थे.

थानाप्रभारी शर्मा ने एसएसआई रामनरेश यादव को पुलिस लाइन में बने वायरलैस कंट्रोल रूम भेजा तो उन्हें पता चला कि मेहरबान अली के बारे में जानकारी लेने के लिए उन की पत्नी जाहिदा ने पुलिस लाइन में कोई फोन नहीं किया था. यह सुन कर थानाप्रभारी का शक यकीन में बदलने लगा कि हो न हो मेहरबान अली के कातिल उन के घर में ही छिपे हैं.

अपने शक को पुख्ता करने के लिए जब उन्होंने वायरलैस औफिस में मेहरबान अली की ड्यूटी का चार्ट निकलवाया तो जानकारी मिली कि मेहरबान अली इस सप्ताह रात की ड्यूटी पर तैनात थे. वह शुक्रवार की रात को ड्यूटी कर के शनिवार सुबह अपने घर आए थे.

डी.सी. शर्मा सोचने लगे कि अगर मेहरबान अली रात की ड्यूटी कर के घर लौटे थे तो दोपहर साढ़े 12 बजे वह भला दोबारा ड्यूटी पर क्यों जाएंगे. अब उन्हें लगने लगा कि मेहरबान अली को ले कर घर वाले झूठ बोल रहे हैं. इस झूठ का परदाफाश करना ही पड़ेगा.

थानाप्रभारी पुलिस टीम और फोरेंसिक टीम को ले कर एक बार फिर मेहरबान अली के घर पहुंचे. उन्होंने जब उन के घर व आसपास के घरों का निरीक्षण किया तो अनायास उन की नजर उन के घर के सामने वाले घर की छत पर लगे सीसीटीवी कैमरे पर पड़ी.

सीसीटीवी कैमरे से मिला क्लू

संयोग से सीसीटीवी कैमरे की दिशा ऐसी थी कि मेहरबान अली के घर आनेजाने वाला हर शख्स वीडियो में कैद हो सकता था. उन्होंने सीसीटीवी की फुटेज देखी तो अचानक मेहरबान अली हत्याकांड का पूरा सच सब के सामने आ गया.

सीसीटीवी वीडियो में 23 जून, 2018 को सुबह 9 बजे दरोगा मेहरबान अली घर के अंदर दाखिल होते दिखे थे. संभवत: वह उस वक्त अपनी ड्यूटी से लौटे थे. लगभग डेढ़ घंटे बाद घर के अंदर 2 अन्य लोग जाते दिखे लेकिन देर रात तक वह दोनों वापस लौटते नहीं दिखे. इस के बाद रात होने तक कोई असामान्य बात नहीं दिखी. लेकिन रात को 10 बजे के बाद अचानक मेहरबान अली की पत्नी व बेटियों की असामान्य गतिविधियां दिखाई पड़ीं.

करीब 10 बजे मेहरबान अली की पत्नी जाहिदा दरवाजे तक आई कुछ देर रोड पर इधरउधर देखा और लौट गई. उस के बाद कुछ देर बाद उस की बेटी आलिया और इरम बाहर आईं उन्होंने भी गली में इधरउधर देखा और वहां रुक कर मोबाइल देखती रहीं फिर वापस घर में भीतर चली गईं. इस के बाद मेहरबान अली की बड़ी बेटी शबा भी बाहर आई और कुछ देर रुक कर वह भी अंदर चली गई.

इस के बाद जाहिदा फिर एक बार दरवाजे पर आ कर लौट गई. फिर रात 10 बज कर 40 मिनट पर घर के बाहर 2 लोग जो सुबह घर के भीतर घुसे थे, वह एक बाइक पर मेहरबान अली को बीच में बैठा कर बाहर आते दिखाई दिए. घर से बाइक बाहर निकालने के लिए पीछे से जाहिदा और उस की 2 बेटियों को बाइक को धक्का लगाते देखा गया.

जाहिदा फिर गली में आई. उस ने देखा कि रोड पर कोई नहीं है तो रास्ता साफ होने का इशारा कर के बाइक को आगे ले जाने का उस ने इशारा किया.

इस के बाद 2 लोग बाइक को ले कर चले गए. लेकिन हैरानी की बात यह थी कि इस दौरान मेहरबान अली का शरीर बेजान सा बीच में रखा था. सीसीटीवी फुटेज को देख कर ऐसा लग रहा था कि वह मेहरबान अली के मृत शरीर को मोटरसाइकिल पर ले जा रहे थे.

जाहिदा और बेटियां ही निकलीं कातिल

अब सब कुछ आईने की तरह साफ था. सीसीटीवी फुटेज कब्जे में ले कर थानाप्रभारी शर्मा एक बार फिर जाहिदा के घर पहुंचे. उन्होंने जब पूछा कि शनिवार की सुबह उन के यहां कौन 2 लोग आए थे तो कोई भी ठीकठाक उन के सवालों का जवाब नहीं दे सका. वह जानते थे कि कोई भी गुनहगार आसानी से अपना गुनाह नहीं कबूलता.

उन्होंने जाहिदा और उस की बेटियों को पुरुषोत्तम आहूजा के घर से बरामद की गई सीसीटीवी फुटेज दिखाई तो उन के पास बचने का कोई बहाना नहीं रहा. थोड़ी सी डांटफटकार के बाद ही जाहिदा ने कबूल कर लिया कि अपने पति मेहरबान अली की हत्या उस ने अपनी बेटियों के साथ साजिश रच कर भाडे़ के 2 हत्यारों से कराई थी. और उन की लाश को करीब 11 घंटे तक अपने कमरे में ही रखा. इस दौरान दोनों हत्यारे भी उन के साथ घर में मौजूद रहे. फिर मौका मिलने पर रात के अंधेरे में लाश फेंकी गई.

जाहिदा से पूछताछ के बाद थानाप्रभारी डी.के. शर्मा ने उसे व उस की चारों बेटियों जीनत, इरम, आलिया तथा शादीशुदा बेटी सबा को उन के घर से गिरफ्तार कर लिया. पांचों को थाने ला कर उन्होंने उच्चाधिकारियों को हत्याकांड का खुलासा करने की सूचना दे दी. इस के बाद एसपी सुभाषचंद्र शाक्य, एसपी (सिटी) दिनेश त्रिपाठी और सीओ(सदर) सुमित शुक्ला के समने मेहरबान अली हत्याकांड की साजिश बेनकाब हो गई.

जाहिदा के अपने बहनोई से थे अवैध संबंध

जाहिदा ने बताया कि उस के नाजायज संबंध मुजफ्फरनगर के गांव तावली में रहने वाले अपने बहनोई फारुख से थे. उस के संबंधों की जानकारी जब मेहरबान अली को हुई तो उस ने जाहिदा को समझानेबुझाने की कोशिश की लेकिन बाद में जब जाहिदा नहीं मानी तो मेहरबान अली उस के साथ मारपीट करने लगे इसलिए जाहिदा के मन में अपनी पति के लिए नफरत भर गई.

इतना सब तो ठीक था, लेकिन जाहिदा ने अपनी बेटियों को भी अपने रंग में ढालना शुरू कर दिया. मेहरबान अली धार्मिक प्रवृत्ति के थे उन्हें बेटियों का आधुनिक फैशन करना और बेपर्दा हो कर घर से निकलना पसंद नहीं था. वह उन के आधुनिक फैशन पर रोकटोक लगाते थे. इसलिए उन की बेटियां भी उन के से तंग थीं. वे भी अपनी मां की तरह चाहने लगीं कि ऐसे पिता उन की जिंदगी में न रहे.

आए दिन मेहरबान अली की टोकाटाकी और अपने बहनोई से मेलजोल में बाधा बनने की वजह से जाहिदा ने करीब 6 महीने पहले अपने पति मेहरबान अली की हत्या कराने की साजिश रचनी शुरू कर दी.

वह इस बात की कोशिश कर रही थी कि किसी तरह पति रास्ते से हट जाएगा तो उन की जगह अनुकंपा के आधार पर बेटी जीनत को नौकरी पर लगवा दिया जाएगा. इस से उस का रास्ता भी साफ हो जाएगा और परिवार की गुजरबसर भी होती रहेगी.

पति की हत्या कराने के लिए जाहिदा ने 6 महीने पहले अपने बहनोई फारुख के गांव के रहने वाले तहसीन तथा कासिम से बात की. वे दोनों फारुख के दूर के रिश्तेदार भी थे.

जाहिदा ने उन से एक लाख रुपए में सौदा तय कर लिया. इस के लिए वह सही मौके का इंतजार करने लगी. जिस के लिए वह अकसर उन दोनों से फोन पर बात करती रहती. इधर जीनत से एकतरफा प्यार करने के कारण अरशद ने जब सना की हत्या कर दी तो मेहरबान अली ने पत्नी और बेटियों पर ज्यादा सख्ती करनी शुरू कर दी.

भाड़े के हत्यारों से कराया था कत्ल

जाहिदा को लगा कि इस काम को अब जल्द अंजाम देना होगा. सना की भले ही हत्या हो चुकी थी लेकिन वह जानती थी कि मेहरबान अली की मौत हो जाएगी तो जीनत को ये नौकरी मिल जाएगी. लिहाजा इस के लिए 23 जून, 2018 जाहिदा ने तहसीन और कासिम को फोन कर के मुजफ्फरनगर से शाहजहांपुर बुला लिया.

क्योंकि उस दिन सुबह उस का दामाद अनीस शहर से बाहर जाने वाला था और उस के न होने पर बारदात को अंजाम देना आसान था. जाहिदा के बुलाने पर तहसीन और कासिम शाहजहांपुर आ गए. और सुबह करीब साढ़े 10 बजे घर में पहुंचे.

उस वक्त मेहरबान अली खाना खा कर रात की ड्यूटी से थका होने के कारण बिस्तर पर जा लेटे थे और जल्द ही गहरी नींद में सो गए. तहसीन और कासिम ने गहरी नींद में सोए हुए मेहरबान अली का गला दबा दिया.

बचने की कोई गुंजाइश न रहे, इसलिए उन्होंने उन के सिर को कई बार दीवार से दे कर मारा. जिस से उन के सिर में चोट आई. इस के बाद रात को उन्होंने करीब साढ़े 10 बजे मेहरबान अली की बाइक पर ही डैडबौडी को बीच में बैठाने की स्थिति में रखा और लाश 400 मीटर दूर नाले में ले जा कर डाल दी. लेकिन इस से पहले उन्होंने मेहरबान अली के शरीर पर वही कपड़े पहना दिए जिन्हें पहन कर वह ड्यूटी जाते थे.

हाथ में घड़ी और जेब पर्स डाल कर ऐसा बना दिया ताकि लगे कि वह वाकई अपनी ड्यूटी पर गया हो. जाहिदा ने अपने पति के वेतन में से 50 हजार रुपए भाडे़ के कातिलों को एडवांस के रूप में दे दिए. 5 जून, 2018 को ही मेहरबान अली अपनी सैलरी 68 हजार 500 रुपए निकाल कर घर लाए थे. वह पैसे उस ने जाहिदा को दिए थे.

जाहिदा ने उसी रकम में से 50 हजार रुपए हत्यारों को दिए थे. शेष रकम उस ने जल्द ही देने का आश्वासन दिया था और उन से यह भी कह दिया था कि वह उस से संपर्क न करें. काम निपटाने के बाद रात को ही अपने घर चले गए थे.

दरोगा की पत्नी और बेटियां हुईं गिरफ्ता

जाहिदा ने अपने नाजायज रिश्तों को बनाए रखने के लिए पति मेहरबान अली को रास्ते से हटाने की साजिश तो पुख्ता रची थी लेकिन वह यह बात शायद नहीं जानती थी कि अपराध चाहे कितनी भी चालाकी से क्यों न किया जाए, एक न एक दिन वह खुल ही जाता है.

कहते हैं कि कातिल कितना भी चालाक हो वह कोई चूक कर ही जाता है.

जरूरी पूछताछ के बाद थानाप्रभारी ने जाहिदा और उस की चारों बेटियों को अदालत में पेश किया जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. उन के जेल भेजने के बाद थानाप्रभारी डी.सी. शर्मा को आशंका थी कि हत्याकांड का खुलासा होने के बाद कहीं भाड़े के हत्यारे पुलिस के चंगुल से दूर न हो जाएं इसलिए शाहजहांपुर एसपी सुभाषचंद्र शाक्य ने एसएसपी मुजफ्फरनगर अनंत देव को वारदात की जानकारी देते हुए तावली गांव में रहने वाले दोनों आरोपियों तहसीन और कासिम को तुरंत गिरफ्तार कराने का अनुरोध किया.

तावली गांव शाहपुर थानाक्षेत्र में आता था. पता चला कि तहसीन और कासिम इलाके के शातिर बदमाश हैं. उन के ऊपर जिला पुलिस ने 5-5 हजार रुपए का ईनाम भी घोषित किया हुआ था.

एसएसपी मुजफ्फरनगर अनंत देव के निर्देश पर शाहपुर के थानाप्रभारी कुशलपाल ने उक्त दोनों बदमाशों के घर दबिश दी लेकिन वह घर पर नहीं मिले. इस के बाद मुखबिर की सूचना पर उन दोनों को एक मुठभेड़ के बाद गिरफ्तार कर लिया.

पूछताछ में कासिम और तहसीन ने बताया कि दोनों ने जाहिदा के कहने पर दरोगा मेहरबान अली की हत्या कर उन का शव नाले में डाला था. शाहजहांपुर पुलिस को जब उन के गिरफ्तार होने की जानकारी मिली तो उस ने मुजफ्फनगर पहुंच कर कोर्ट के द्वारा उन्हें हिरासत में ले लिया. बाद में वह उन्हें शाहजहांपुर ले आई. पुलिस ने रिमांड पर ले कर उन से विस्तार से पूछताछ की फिर कोर्ट में पेश कर न्यायिक हिरासत में भेज दिया.

Manohar Kahaniya: पुलिस में भर्ती हुआ जीजा, नौकरी कर रहा साला!- भाग 2

अनिल कुमार के बारे में विस्तृत जानकारी जुटाने के बाद पुलिस टीम अनिल को साथ ले कर ठाकुरद्वारा कोतवाली आ गई.

कोतवाली लाते ही पुलिस ने अनिल से पूछताछ शुरू की तो सारा फरजीवाड़ा खुल कर सामने आ गया. अनिल बतौर एक सिपाही उत्तर प्रदेश पुलिस में भरती हुआ, लेकिन उस की जगह पर उसी का साला सुनील कुमार पिछले 5 साल से उस की एवज में नौकरी करता रहा.

पुलिस विभाग की लापरवाही आई सामने

इस फरजीवाड़े के सामने आते ही पुलिस को संदेह हो गया कि अनिल ने पुलिस में भरती होने के लिए शैक्षिक प्रमाणपत्रों में भी कोई फरजीवाड़ा किया होगा.

अब पता चला कि थाने से जो तथाकथित सिपाही भागा था, वह अनिल का साला सुनील कुमार था. सुनील कुमार अभी तक पुलिस पकड़ से बाहर था.

पुलिस ने उसे हरसंभव स्थान पर खोजा, लेकिन उस का कहीं भी अतापता न चल सका. उस की गिरफ्तारी के लिए पुलिस ने हर जगह मुखबिरों का जाल बिछा दिया था.

अगले दिन एक मुखबिर से सूचना मिली कि फरजी सिपाही सुनील ठाकुरद्वारा बसस्टैंड तिकोनिया चौराहे के पास कहीं जाने की फिराक में खड़ा है.

यह जानकारी मिलते ही पुलिस ने चारों ओर से घेराबंदी कर उसे अपनी हिरासत में ले लिया. पुलिस ने आरोपी के पास से पुलिस की वरदी भी बरामद की.

सुनील को थाने लाते ही उस से भी कड़ी पूछताछ की गई. वहां अपने बहनोई अनिल को देख कर उस के होश उड़ गए. जीजासाले से गहन पूछताछ के दौरान जो हैरतअंगैज कहानी उभर कर सामने आई, उस ने न केवल पुलिस विभाग की लापरवाही की पोल खोल दी, बल्कि जीजासाले के रिश्ते का रहस्य भी सामने ला दिया था.

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सिपाही अनिल और उस का साला फरजी सिपाही सुनील दोनों ही जिला मुजफ्फरनगर के खतौली थानाक्षेत्र के अलगअलग गांव के रहने वाले थे. दोनों की बहुत पुरानी दोस्ती थी.

दोस्ती होने के नाते दोनों का ही एकदूसरे के घर आनाजाना था. दोनों ने एक ही साथ पुलिस में भरती होने के लिए आवेदन भी किया था. जिस में अनिल का चयन तो हो गया था, लेकिन सुनील फेल हो गया था.

अनिल और सुनील थे गहरे दोस्त

जिला मुजफ्फरनगर के खतौली थानाक्षेत्र में पड़ता है एक गांव दहौड़. इसी गांव में रहते थे सुखपाल सिंह. सुखपाल सिंह का सुखी संपन्न परिवार था. उन के 3 बेटे थे. तीनों ने ही उचित शिक्षा भी ग्रहण की थी. सुखपाल सिंह स्वयं पंजाब में रेलवे विभाग में कार्यरत थे.

उन के तीनों बेटों में अनिल सब से छोटा था. अनिल शुरू से ही एक टीचर बनने के सपने देखा करता था. यही कारण था कि जैसे ही उस ने अपनी शिक्षा पूरी की, शिक्षा विभाग में जाने की तैयारी शुरू कर दी.

उसी दौरान एक दिन उस की मुलाकात मुजफ्फरनगर के ही गांव गंधाड़ी निवासी सुनील से हुई. सुनील उस का बचपन का दोस्त था. सुनील एक सामान्य परिवार से था. उस के पिता राजपाल मेहनतमजदूरी कर अपने परिवार का पेट पालते थे. रामपाल सिंह के 4 बच्चों में सुनील चौथे नंबर का था. उस से बड़ी उस की एक बहन थी.

सुनील उस वक्त पुलिस में जाने की तैयारी में जुटा था. वह सुबहशाम दौड़ लगाने जाता था. उसी दौरान सुनील ने अनिल से कहा कि यार तेरे शरीर की अच्छी फिटनैस है. अगर तू पुलिस में जाने की तैयारी करे तो तेरा नंबर बड़ी आसानी से आ सकता है.

हालांकि अनिल ने बीएड कर लिया था. उस के बाद उसे टेट की परीक्षा भी पास करनी थी. यह परीक्षा पास करने के बाद ही वह शिक्षा विभाग में नौकरी के लिए आवेदन कर सकता था. इस के बाद भी जरूरी नहीं कि उसे नौकरी मिले.

यही सोच कर अनिल ने सुनील के कहने पर पुलिस में भरती की तैयारी शुरू कर दी. हालांकि अनिल पहले से ही पुलिस की नौकरी पसंद नहीं करता था. लेकिन जब सुनील ने उस से बारबार कहा तो उस का मन भी बदल गया.

अनिल और सुनील ने एक साथ पुलिस में भरती के लिए आवेदन किया. साथ ही दोनों ने तैयारी भी की थी. इस तैयारी में अनिल तो पास हो गया, लेकिन सुनील पास न हो सका.

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अनिल हुआ पुलिस में भरती

अनिल का चयन हो जाने के बाद सब से पहले वर्ष 2011 में पुलिस में आरक्षी पद पर जिला मुजफ्फरनगर में भरती हुआ. जिस की ट्रेनिंग बरेली पुलिस लाइन में हुई थी. लेकिन ट्रेनिंग के दौरान अनिल ने सारी परीक्षाएं छोड़  दीं, जिस के कारण वह फेल हो गया.

उस के बाद फिर से उसे एक और मौका मिला. उस के बाद ही 3 महीने की आरक्षी की ट्रेनिंग पीटीएस मुरादाबाद में हुई. अनिल वहां भी एक विषय में फेल हो गया. अगली बार उस की आरक्षी की ट्रेनिंग पीएसी गोरखपुर में हुई. वहां पर पासआउट होने के बाद आरक्षी की प्रथम पोस्टिंग जनपद बरेली पुलिस लाइन में हुई.

पुलिस लाइन बरेली से उस की पोस्टिंग भोजीपुरा में हुई. बाद में 2016 तक आरक्षी अनिल की पोस्टिंग कभी बरेली में, कभी पुलिस लाइन और कभी थाने पर रही. इस दौरान सुनील हर जगह उसी के साथ ही रहा.

उसी दौरान एकदूसरे के घर आनेजाने के दौरान ही अनिल सुनील की बहन को चाहने लगा था. हालांकि सुनील के घर की माली हालत उस वक्त सही नहीं थी. लेकिन जब अनिल उस की बहन शालू को चाहने लगा तो दोनों के संबंधों में और भी मधुरता आ गई थी.

सुनील हर समय ही अनिल के सामने अपनी किस्मत का रोना रोता रहता था, जिसे देख कर अनिल को भी बहुत दुख होता था. सुनील की हालत देख कर एक दिन अनिल ने उस से कहा, ‘‘दोस्त परेशान मत हो, एक दिन तेरी भी इच्छा पूरी होगी और तू भी पुलिस की नौकरी करेगा.’’

दोस्त की बहन से हुआ प्यार

अनिल सुनील को अपना सब से अच्छा दोस्त समझता था. वैसे भी उस की इच्छा पुलिस में जाने की नहीं थी. इस के बाद वह सुनील की परेशानी को देख कर उस के लिए तरहतरह के उपाय खोलने लगा था.

साल 2016 में अनिल का स्थानांतरण बरेली से मुरादाबाद हो गया. मुरादाबाद पुलिस लाइन में अपनी आमद कराने के बाद वह विभिन्न जगहों पर ड्यूटी करता रहा. उस समय तक वह सुनील की बहन को इतना चाहने लगा था कि उस के बिना उस का कहीं भी मन नहीं लगता था.

इस के बावजूद भी वह न चाहते हुए पुलिस की नौकरी करता रहा. अनिल को उम्मीद थी कि एक न एक दिन उस की टीचर की नौकरी लग ही जाएगी. फिर वह पुलिस की नौकरी छोड़ कर शिक्षा विभाग में चला जाएगा.

सुनील की बहन शालू से प्यार हो जाने के बाद अनिल उस के बारे में भी सोचता रहता था. उसी समय एक दिन उस के दिमाग में एक ऐसा ही आइडिया आया.

उस ने सोचा कि किसी तरह से अपनी पुलिस की नौकरी सुनील को दे दूं. फिर में शिक्षक की नौकरी के लिए भी पूरी तैयारी कर सकूंगा.

यह विचार मन में आते ही उस ने इस बारे में सुनील से भी बात की. लेकिन उस की योजना को सुन कर सुनील बुरी तरह से घबरा गया था.

अगले भाग में पढ़ें- फरजी सिपाही बन कई साल की ड्यूटी

Manohar Kahaniya: जिद की भेंट चढ़ी डॉक्टर मंजू वर्मा- भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

रिपोर्ट दर्ज होते ही थानाप्रभारी ने मृतका के पति डा. सुशील वर्मा को हिरासत में ले लिया. मृतका डा. मंजू वर्मा के शव का पोस्टमार्टम 3 डाक्टरों के एक पैनल ने किया. परीक्षण के बाद शव को मृतका के पिता अर्जुन प्रसाद को सौंप दिया गया. दरअसल ससुराल पक्ष से शव लेने कोई भी पोस्टमार्टम हाउस नहीं आया था.

अर्जुन प्रसाद बेटी का शव प्रयागराज ले जाना चाहते थे और वहीं अंतिम संस्कार करना चाहते थे, जबकि बिठूर पुलिस कोई रिस्क नहीं उठाना चाहती थी और अंतिम संस्कार कानपुर के भैरवघाट पर कराना चाहती थी. थानाप्रभारी ने इस बाबत अर्जुन प्रसाद से बात की तो वह इस शर्त पर मान गए कि बेटी को मुखाग्नि उस का पति दे.

इस पर बिठूर थानाप्रभारी मृतका के पति डा. सुशील वर्मा को ले कर भैरव घाट पहुंचे, जहां सुशील वर्मा ने पत्नी मंजू की चिता को अग्नि दी. उस के बाद उसे पुन: थाने लाया गया.

इधर मृतका की मां मीरा देवी व उस की बेटियों सरिता व गरिमा सुशील वर्मा के फ्लैट पर पहुंचीं. उस समय फ्लैट पर डा. सुशील वर्मा की मां कौशल्या देवी तथा छोटा भाई सुधीर वर्मा मौजूद था. मांबेटियों ने वहां जम कर भड़ास निकाली और बेटी की सास कौशल्या देवी को खूब खरीखोटी सुनाई.

मीरा देवी ने आरोपों की झड़ी लगाई तो कौशल्या देवी ने कहा कि वह गांव में रहती है. बेटा और बहू शहर में रहते हैं. उन्हें न तो लोन के संबंध में जानकारी थी और न ही दोनों के बीच मनमुटाव की. बहू ने क्यों और कैसे जान दी, वह नहीं जानती. दहेज मांगने और प्रताडि़त करने की बात सरासर गलत है.

उधर एसपी (वेस्ट) संजीव त्यागी ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट को गौर से पढ़ा. रिपोर्ट के अनुसार लगभग 75 फीट की ऊंचाई से गिरने के कारण डा. मंजू वर्मा की लगभग सारी पसलियां टूट कर चकनाचूर हो गई थीं. दिल और लिवर फट गया था. आंतरिक रक्तस्राव हुआ, जिस की वजह से मौत हो गई.

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पोस्टमार्टम रिपोर्ट का अध्ययन करने के बाद एसपी संजीव त्यागी व डीएसपी दिनेश कुमार शुक्ला ने आरोपी डा. सुशील वर्मा से बिठूर थाने में पूछताछ की. उस ने बताया कि 14 मई, 2021 की शाम सब कुछ सामान्य था. रात 8 बजे उस ने औनलाइन पिज्जा मंगाया. इस के बाद उस ने व मंजू ने पिज्जा खाया. कुछ देर तक हम दोनों बातचीत करते रहे. उस के बाद सोने चले गए.

रात 2 बजे डेढ़ वर्षीय बेटे रुद्रांश के रोने की आवाज सुन कर उस की नींद खुल गई. कमरे में आया तो देखा मंजू कमरे में नहीं है. कमरे से बाहर आ कर बालकनी में देखा तो मंजू वहां भी नहीं थी. बालकनी से नीचे झांका तो शोर सुनाई पड़ा. नीचे आ कर देखा तो मंजू की लाश पड़ी थी. इस के बाद उस ने अपने घर वालों को सूचना दी.

‘‘तुम्हारी पत्नी मंजू वर्मा ने आत्महत्या की या तुम ने उसे मार डाला?’’ डीएसपी दिनेश शुक्ला ने पूछा.

‘‘सर, मैं ने उस की हत्या नहीं की. मंजू ने स्वयं आत्महत्या की है.’’ सुशील ने जवाब दिया.

‘‘लेकिन डा. मंजू वर्मा ने आत्महत्या क्यों की?’’ श्री शुक्ला ने पूछा.

‘‘सर, डा. मंजू वर्मा ने एमबीबीएस की डिग्री हासिल की थी. शादी के पूर्व वह प्रैक्टिस करती थी. लेकिन शादी के बाद उन की प्रैक्टिस छूट गई थी. उन की साथी उन्हें चिढ़ाती थीं कि एमबीबीएस करने से क्या फायदा जो प्रैक्टिस न कर सको. वह एमडी करना चाहती थी. लेकिन बच्चा होने से वह पढ़ाई नहीं कर पा रही थी. इसी कारण वह डिप्रेशन में चली गई और उन्होंने आत्महत्या कर ली.’’

लेकिन सुशील कुमार की बात पुलिस अधिकारियों के गले नहीं उतरी और उन्होंने सुशील कुमार को दहेज हत्या में विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने सुशील के बड़े भाई सुनील वर्मा से भी पूछताछ की, जो बेसिक शिक्षा अधिकारी के पद पर कानपुर (देहात) जिले में तैनात थे.

उन्होंने बताया कि डा. मंजू वर्मा की मौत से उन का कोई लेनादेना नहीं है. डा. मंजू वर्मा ने मौत को गले क्यों लगाया, उन्हें कोई जानकारी नही है. डा. मंजू वर्मा के पिता अर्जुन प्रसाद ने उन की प्रतिष्ठा को धूमिल करने के लिए उन के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई है.

पुलिस द्वारा की गई जांच, आरोपी के बयानों एवं मृतका के घर वालों द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर डा. मंजू वर्मा की मौत की जो कहानी प्रकाश में आई, वह इस प्रकार थी.

उत्तर प्रदेश का प्रयागराज शहर कई मायनों में चर्चित है. गंगा यमुना के संगम तट पर बसा प्रयागराज धर्म नगरी के रूप में भी जाना जाता है. हर 12 साल में यहां संगम तट पर कुंभ का मेला लगता है. देशविदेश के लाखों श्रद्धालु एवं संत मेले में आते हैं और गंगा नदी में डुबकी लगाते हैं. मेले का आकर्षण देख कर विदेशी श्रद्धालु अचरज से भर उठते हैं.

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प्रयागराज शहर में उच्च न्यायालय भी है, जहां प्रदेश के मुकदमों की सुनवाई होती है. पूर्व में प्रयागराज को इलाहाबाद के नाम से भी जाना जाता था.

इसी प्रयागराज का एक बड़ी आबादी वाला क्षेत्र है-नैनी. नैनी क्षेत्र की पीडीए कालोनी में अर्जुन प्रसाद अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी मीरा देवी के अलावा 3 बेटियां मंजू, सरिता, गरिमा तथा एक बेटा विष्णुकांत था.

अर्जुन प्रसाद औद्योगिक न्यायाधिकरण प्रयागराज में सहायक लिपिक पद पर कार्यरत थे. वह एक प्रतिष्ठित व्यक्ति थे. उन की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. लेकिन रहनसहन साधारण था.

अर्जुन प्रसाद की बड़ी बेटी मंजू दिखने में जितनी सुंदर थी, पढ़ने में भी उतनी ही तेज थी. हाईस्कूल तथा इंटर की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास करने के बाद मंजू ने प्रयागराज के स्वरूप रानी मैडिकल कालेज से एमबीबीएस की डिग्री हासिल कर ली थी. उस के बाद वह प्रैक्टिस करने लगी थी.

मंजू डाक्टर बन गई थी और कमाने भी लगी थी. लेकिन अर्जुन प्रसाद के माथे पर चिंता की लकीरें खिंचने लगी थीं. एक देहाती कहावत है ‘जब बेटी भई सयानी, फिर पेटे नहीं समानी.’ अर्जुन प्रसाद और उन की पत्नी मीरा भी इस कहावत से अछूते नहीं थे. मंजू के ब्याह की चिंता उन्हें सताने लगी थी.

मातापिता मंजू का विवाह ऐसे युवक से करना चाहते थे, जो उस के समकक्ष हो. मंजू डाक्टर थी, सो वह डाक्टर वर की ही खोज कर रहे थे. अथक प्रयास के बाद उन्हें एक लड़का पसंद आ गया. लड़के का नाम था सुशील कुमार वर्मा.

डाक्टर से ही की बेटी की शादी

सुशील कुमार वर्मा मूलरूप से उत्तर प्रदेश रायबरेली जिले के चतुर्भुज गांव का रहने वाला था. 3 भाइयों में वह मंझला था. सुशील का छोटा भाई सुधीर, गांव में मां कौशल्या देवी के साथ रहता था और पेशे से वकील था, जबकि सुशील का बड़ा भाई सुनील बेसिक शिक्षा अधिकारी था.

सुशील कुमार वर्मा स्वयं डाक्टर था. वह उरई मैडिकल कालेज में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर तैनात था और कानपुर (बिठूर) स्थित रुद्रा ग्रींस अपार्टमेंट में रहता था.

अर्जुन प्रसाद बेटी के लिए जैसा वर चाहते थे, सुशील कुमार वैसा ही था. अत: उन्होंने उसे पसंद कर लिया. इस के बाद 29 जनवरी, 2019 को अर्जुन प्रसाद ने अपनी बेटी डा. मंजू वर्मा का विवाह डा. सुशील कुमार वर्मा के साथ धूमधाम से कर दिया. शादी में उन्होंने अपनी हैसियत से ज्यादा खर्च किया था.

अगले भाग में पढ़ें- सिक्योरिटी गार्ड ने क्या सूचना दी

Crime Story: कुटीर उद्दोग जैसा बन गया सेक्सटॉर्शन- भाग 3

पुलिस ने उन के कब्जे से 23 मोबाइल फोन बरामद किए थे. जांच के बाद पता चला कि बड़ी संख्या में इन के अलगअलग नाम से बैंक खाते हैं. महिलाओं के नाम से खुद के पेटीएम, वाट्सऐप और फेसबुक सहित अधिकतर प्लेटफार्म पर एकाउंट खोल रखे थे. ताकि दूसरे लोगों को विश्वास हो जाए कि ये खाते महिला के नाम से ही हैं.

इस के कुछ दिन बाद अगस्त, 2021 में राजस्थान के अलवर जिले की रामगढ़ थाना पुलिस ने भी लड़की के नाम से फरजी आईडी बना कर अश्लील चैंटिग कर लोगों को ब्लैकमेल करने और लाखों रुपए ठगने वाले शातिर गिरोह का परदाफाश कर सैक्सटौर्शन करने वाले शातिर अपराधियों इकबाल और साहिल को गिरफ्तार किया था. ये दोनों भी भरतपुर के मेवात क्षेत्र रहने वाले थे.

ठगी करने वाले लोग पहले फ्रैंडशिप लिस्ट में बड़ी चतुराई से शामिल हो जाते हैं. अगर आप पुरुष हैं तो महिला बन कर और महिला हैं तो पुरुष बन कर आप से दोस्ती की जाती है. कई बार महिला के साथ महिला और पुरुष के साथ पुरुष बन कर भी दोस्ती का जाल बिछाया जाता है.

सैक्सी बातों में फंस जाते हैं लोग

फेसबुक मैसेंजर के जरिए शुरू होने वाली बातचीत बाद में वाट्सऐप और कई बार मोबाइल पर भी होने लगती है. बातचीत के झांसे में ‘साम दाम दंड भेद’ सभी का पूरा सहारा लिया जाता है.

भावुक बातें, जरूरत से ज्यादा केयर करना, कुछ जोक्स, वीडियो और मैसेज के साथ सैक्सी बातें भी होने लगती हैं. यही नहीं, वीडियो चैट तक होने लगती है.

इस के बाद अचानक डिमांड शुरू हो जाती है. आजकल पैसा ट्रांसफर करना इतना सरल हो गया है कि लोग भावुकता में पड़ कर तुरंत पैसा भेज देते हैं. ठगों के लिए सरल बात यह है कि फेसबुक में प्रोफाइल बनाना आसान काम है. इसलिए वे सब से ज्यादा सोशल मीडिया फेसबुक प्लेटफार्म को ही ठगी के लिए इस्तेमाल करते हैं.

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रामपुर के भाजपा नेता का सैक्सटौर्शन

उसी दौरान जितेंद्र सिंह को मीडिया की सुर्खी बना एक किस्सा याद आ गया, जिस में उन्हीं की तरह उत्तर प्रदेश में रामपुर के एक भाजपा नेता को ब्लैकमेल किया गया था.

उन्हें भी कई बार दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच का फरजी अधिकारी बता कर फोन

किया गया और जेल जाने डर दिखा कर धमकाया गया.

पैसे न देने पर उन का वीडियो यूट्यब पर डाल दिया गया और फिर नेताजी से कहा गया कि अगर वीडियो हटवाना चाहते हैं

तो यूट्यूब कस्टमर केयर पर बात कर लें. एक नंबर भी दिया गया, जिस पर काल करने पर कहा गया कि अगर वीडियो हटवाना चाहते हो तो यूट्यूब को प्रोसेसिंग फीस देनी पड़ेगी.

नेताजी जब ज्यादा परेशान हो गए तो उन्होंने रामपुर के एसपी से मिल कर इस बात की शिकायत की और साइबर क्राइम की टीम ने जांचपड़ताल शुरू की.

न्यूड काल कर भाजपा नेता को ब्लैकमेल करने वाला गैंग बाद में पकड़ा गया. इस गैंग के पकड़े गए 2 सदस्य आमिर और मुस्तकीम राजस्थान के भरतपुर के रहने वाले थे, जबकि तीसरा आरोपी इमरान नेताजी के गृह जनपद रामपुर का ही रहने वाला था.

इस गैंग के लोगों से पूछताछ और जांच में पुलिस को पता चला था कि इन का नेटवर्क कई राज्यों में फैला था, जिस कारण उन्हें पकड़ना आसान काम नहीं था.

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राजस्थान से जुड़े गिरोह के तार

क्योंकि ये अपराधी जिन सिमकार्ड का इस्तेमाल करते थे, वे सिमकार्ड ओडिशा के मजदूरों के नाम पर लिए थे. जबकि काल भरतपुर से किए जा रहे थे. इसी गिरोह के कुछ लोग दिल्ली से भी फोन करते थे.

पुलिस की जांच में यह भी सामने आया कि इस गिरोह के तार राजस्थान के भरतपुर, ओडिशा, दिल्ली और हरियाणा के मेवात से जुड़े थे. ये अपराधी अपने शिकार को कौन्फ्रैंसिंग के जरिए काल करते थे. जिस से हर बार अलगअलग लोकेशन आती थी. कभी भरतपुर तो कभी रामपुर की.

इस गैंग ने नेताजी को पैसे डालने के लिए जो बैंक खाते दिए थे, वे भी जांच करने पर फरजी दस्तावेजों से खोले पाए गए. रामपुर पुलिस शायद बीजेपी नेता के सैक्सटौर्शन करने वाले गैंग को पकड़ ही नहीं पाती. क्योंकि पुलिस 15 दिन की कोशिशों के बाद सिर्फ एक नंबर ही ट्रैस कर सकी थी.

तब पुलिस ने चालाकी खेली और नेताजी के जरिए ब्लैकमेलर्स को नकद पैसा देने का लालच दिलाया गया. नेताजी को पैसे देने के लिए रामपुर से दूर दिल्ली में पैसे देने के लिए बुलाया गया.

बस यहीं पर गैंग से चूक हो गई और पैसा लेने पहुंचे गैंग के एक सदस्य  को रामपुर पुलिस ने दबोच लिया. जब गैंग के 3 लोग पकड़े गए तो पूछताछ में पता चला कि रामपुर का रहने वाला इमरान सेंट बेचने राजस्थान गया था. वहां उस की मुलाकात सैक्सटौर्शन करने वाले अपराधियों से हो गई. शार्टकट से पैसा कमाने के लालच में वह इस गैंग से जुड़ गया और इस गैंग से ट्रेनिंग ले कर रामपुर आ गया.

रामपुर आ कर वह लोगों के साथ इस तरह की ठगी करने लगा. अपने गैंग की मदद से इमरान ने बरेली, उत्तराखंड, हापुड़ और कई दूसरे जिलों में कई लोगों को अपना शिकार बनाया.

बदनामी का रहता है डर

जितेंद्र सिंह ने मीडिया की सुर्खी बने बीजेपी नेता के सैक्सटौर्शन के किस्से की खबरें समाचार पत्र में पढ़ी थीं. इसी से प्रेरित हो कर उन्होंने भी ऐसा ही साहस जुटाया था.

पहले तो उन्हें बदनामी का डर सता रहा था, लेकिन बाद में उन्हें लगा कि एक बार उन्होंने रकम दे दी तो ब्लैकमेल करने वालों का साहस बढ़ जाएगा. वे फिर उन से पैसे मांगेंगे. लिहाजा उन्होंने दिल्ली पुलिस में बड़े अधिकारी के पद पर बैठे अपने दोस्त से मदद मांगी.

रुचिका नाम की लड़की और खुद को साइबर क्राइम का इंसपेक्टर बताने वाले शख्स विक्रम सिंह राठौर ने जब देखा कि उन का पासा गलत जगह पड़ गया है तो उन दोनों ने अपने फोन बंद कर दिए और फेसबुक एकाउंट को डिलीट कर दिया. जिस कारण पुलिस जितेंद्र सिंह को ब्लैकमेल करने वाले लोगों तक नहीं पहुंच पाई.

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जितेंद्र सिंह किस्मत वाले निकले कि वह थोड़ी सूझबूझ और अपनी हिम्मत के कारण बच गए क्योंकि उन के संबध एक बड़े पुलिस अधिकारी से थे.

लेकिन इन दिनों देश के अलगअलग हिस्सों खासतौर से महानगरों में सोशल मीडिया के जरिए लोगों को हनीट्रैप में फंसा कर उन से जबरन वसूली यानी सैक्सटौर्शन करने वाले गिरोह का आतंक फैला हुआ है.

इसी दौरान दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने 10 जुलाई, 2021 को एक ऐसे बड़े सैक्सटौशन गैंग का खुलासा किया, जिस के सरगना इंजीनियर युवकयुवती थे और वे टिंडर ऐप से ग्राहकों को फंसाते थे.

अगले भाग में पढ़ें- टिंडर ऐप से भी चल रहा है सैक्सटौर्शन

Best of Satyakatha: विधवा का करवाचौथ

वह कोई दैवीय शक्तियों का मालिक नहीं था, लेकिन महज तजुर्बे से औरतों की बौडी लैंग्वेज का विशेषज्ञ बन गया था. वह औरतों के हावभाव देख कर ही ताड़ लेता था कि कहां कामयाबी की गुंजाइश ज्यादा है. जहां भी उसे संभावनाएं दिखतीं, वहां वह तनमनधन से जुट जाता था और जल्द ही अपने मकसद में कामयाब भी हो जाता था.

उस ने कितनी औरतों से उन की सहमति से शारीरिक संबंध बनाए थे, यह बताने को अब रामचरण जिंदा नहीं रहा, लेकिन कटनी के उस के जानने वाले बेहिचक बताते हैं कि ऐसी औरतों की तादाद किसी भी सूरत में दर्जन भर से कम नहीं हो सकती.

कटनी के एक प्राइवेट स्कूल में ड्राइवर की नौकरी कर रहे रंगीनमिजाज रामचरण की एकलौती कमजोरी औरतें थीं. जवानी से ही उसे तरहतरह की औरतों से संबंध बनाने का शौक या रोग कुछ भी कह लें, लग गया था. हालांकि घर में उस की पत्नी थी, जो जीजान से उसे चाहती थी और उस की इस फितरत से वाकिफ भी थी.

लेकिन घरगृहस्थी न उजड़े और बच्चों पर कलह का बुरा असर न पड़े, यह सोच कर उस ने खामोश रहने में ही भलाई समझी.

रामचरण की इन हरकतों का चूंकि घरगृहस्थी की सुखशांति पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा था, इसलिए गाड़ी ठीकठाक चल रही थी. रामचरण की एक और खूबी यह थी कि वह कभी किसी प्रेमिका से जोरजबरदस्ती नहीं करता था. कम पढ़ेलिखे इस शख्स को यह ज्ञान जाने कहां से मिल गया था कि 2 बालिग अगर सहमति से शारीरिक संबंध बनाते हैं तो उन्हें नाजायज करार देने वाले खुद गलत हैं.

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मरजी के सौदे में यकीन करने वाले रामचरण को बीते कुछ सालों से लगने लगा था कि उस की जिस्मानी ताकत और यौनोत्तेजना में कमी आ रही है, लिहाजा उस ने कुछ आयुर्वेदिक और मर्दाना ताकत बढ़ाने वाली इश्तहारी दवाओं के बाद स्थाई रूप से वियाग्रा का सेवन शुरू कर दिया था, जो वाकई असरकारक दवा साबित हुई थी.

स्कूल की जिंदगी में रम चुके रामचरण की ड्राइवरी का हर कोई कायल था और वक्त की पाबंदी व ईमानदारी के मामले में भी उस की मिसाल दी जाती थी. इन सब खूबियों और बातों से परे रामचरण की खोजी निगाहें हर वक्त नए शिकार यानी ऐसी औरतों की तलाश करती रहती थीं, जिन्हें शीशे में उतार कर अपनी हवस मिटा सके.

इसी तलाश में एक दिन उस ने स्कूल की नई बाई (चपरासी) अंजलि बर्मन को देखा तो देखता ही रह गया. सांवली रंगत वाली अंजलि की उम्र 29 साल थी और वह खासी खूबसूरत और गठीले बदन की मालकिन थी. अंजलि को देखते ही इस अधेड़ बहेलिए ने जैसे मन ही मन संकल्प कर लिया कि जैसे भी हो, इस चिडि़या का शिकार करना है.

इस बाबत जब उस ने अंजलि को अपने स्तर पर टटोला तो नतीजा उस के हक में आया. लेकिन इस बात का भी अंदाजा हुआ कि स्कूल की यह नईनवेली बाई आसानी से उस के काबू में नहीं आने वाली. इस के लिए उसे थोड़ी मेहनत करनी पड़ेगी. इस चुनौती को स्वीकार करते हुए उस ने अपने नए मकसद की तरफ पहला कदम बढ़ा दिया.

विधवा अंजलि 2 बच्चों की मां थी और कटनी की एक बस्ती में रह रही थी. ये दोनों बातें रामचरण को सुकून देने वाली थीं. अपने स्तर की छानबीन में उसे यह भी पता चला कि विधवा होने के बावजूद अंजलि का कोई प्रेमी या आशिक नहीं है तो उस की बांछें और भी खिल उठीं.

स्कूल में रोज अंजलि से उस का सामना होता था. रामचरण ने जब अपने स्टाइल में उस से नजदीकियां बढ़ानी शुरू कीं तो अंजलि चौंकी. इस की वजह यह थी कि रामचरण उस से उम्र में लगभग दोगुना था. साथ ही घरगृहस्थी तथा बालबच्चेदार भी. इस के बाद भी वह उस पर डोरे डाल रहा था.

लेकिन जल्दी ही कुछ बातें उसे अपने हक की लगने लगीं. अंजलि को भी सुरक्षित ढंग से मर्द की और जिस्मानी सुख की जरूरत थी, यह बात स्त्री मनोविज्ञान का ज्ञाता हो चुका रामचरण पहली बार में ही ताड़ गया था. इसी दिशा में कदम बढ़ाते हुए वह यही अहसास अंजलि को भी करा रहा था.

जाहिर है, किसी बाहरी नौजवान से अंजलि का नाम जुड़ता तो उस की बदनामी होती और स्कूल वाले उसे नौकरी से बाहर करने में एक मिनट भी न लगाते. एक तरह से रामचरण की बड़ी उम्र और सहकर्मी होना किसी भी तरह का शक पैदा न करने वाली बातें थीं.

तजुर्बा और हालात दोनों काम आए तो जल्द ही रामचरण की रातें अंजलि के घर गुजरने लगीं. वह जानता था कि जितना ज्यादा वह अंजलि को बिस्तर में संतुष्टि देगा, वह उतनी ही उस की दीवानी और मुरीद होती जाएगी. ऐसा करने के लिए उस ने वियाग्रा की खुराक बढ़ा दी थी.

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अंजलि की संगत में आ कर खुद को जवान महसूस करने वाले रामचरण के सिलेबस में त्रियाचरित्र का यह पाठ नहीं था कि जवान औरत को बातें भी रोमांटिक और जवानों जैसी चाहिए. मर्द कितनी ही शारीरिक संतुष्टि दे दे, पर उम्र का फर्क कहीं न कहीं झलक ही जाता है. एक वक्त ऐसा भी आता है जब ताकत बढ़ाने वाली दवाइयां भी एक हद के बाद असर दिखाना बंद कर देती हैं.

अंजलि की तरफ से बेफिक्र और अभिसार में डूबे रामचरण को कतई अहसास नहीं था कि उस का अनुभव उसे धोखा दे रहा है और मौत दबेपांव उस की तरफ बढ़ी चली आ रही है. वह 10 अक्तूबर की सुबह थी, जब दमोह जिले के हिंडोरिया थाने के थानाप्रभारी पी.डी. मिंज को खबर मिली कि दमोह कटनी रेलवे लाइन के गेट नंबर 3 पर एक लाश पड़ी है. यह सूचना उन्हें रेलवे गेट के चौकीदार दीपक मंडल ने दी थी.

मामला संगीन था, इसलिए पी.डी. मिंज तुरंत अपनी टीम के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. चलने से पहले उन्होंने वारदात की खबर दमोह के एसपी विवेक अग्रवाल को देने की अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली थी.

लाश देख कर ही उन की समझ में आ गया था कि इस में शक की कोई गुंजाइश नहीं कि मामला बेरहमी से की गई हत्या का है. रेलवे पुलिया के नीचे पड़े मृतक की उम्र 50-55 साल थी. लाश के आसपास जानकारी देने वाला कोई सुराग नहीं मिला था, पर मृतक की तलाशी में उस की जेब से 2 चीजें बरामद हुईं, जिस में एक था मोबाइल फोन और दूसरी चौंका देने वाली चीज थी वियाग्रा का पूरा पत्ता.

इस चौंका देने वाली चीज से एक बात साफ जाहिर हो रही थी कि मामला जायज या फिर नाजायज संबंधों का था. तय था कि इस में कोई औरत भी शामिल थी. लेकिन जो भी था, सच जानना जरूरी था. इस के लिए मृतक की शिनाख्त जरूरी थी.

यह काम बहुत ज्यादा मुश्किल नहीं था. लाश की जेब से मिले मोबाइल फोन के नंबरों ने मिनटों में साफ कर दिया कि मृतक का नाम रामचरण बर्मन है और वह इंद्रा ज्योतिनगर कटनी का रहने वाला है.

रामचरण के फोन में मिले नंबरों पर बात करने से उस की शिनाख्त तो हो गई, पर यह कोई नहीं बता सका कि वह कटनी से दमोह कैसे पहुंच गया था. उस की पत्नी और घर वाले भी यह बात नहीं बता सके थे.

मामला जल्द सुलझाने की गरज से एसपी विवेक अग्रवाल ने पी.डी. मिंज के नेतृत्व में एक टीम गठित कर दी, जिस में थाना पटेरी के थानाप्रभारी रमा उदेनिया के साथ बांदकपुर चौकी के इंचार्ज पी.डी. दुबे को भी शामिल किया गया.

मामला हाथ में आते ही इस टीम ने सब से पहले रामचरण की काल डिटेल्स खंगाली तो पता चला कि उस की सब से ज्यादा बातें अंजलि बर्मन से हुई थीं. दिलचस्प और मामला लगभग सुलझा देने वाली एक बात यह भी थी कि 9 अक्तूबर को अंजलि के मोबाइल फोन की लोकेशन आनू गांव की मिल रही थी, जो घटनास्थल के नजदीक था.

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शक की कोई गुंजाइश नहीं थी कि हत्या की इस वारदात में अंजलि का हाथ न हो या वह इस कत्ल के बारे में न जानती हो. इसलिए जब उस से पूछताछ की गई तो शुरुआती नानुकुर के बाद उस ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. इस के बाद उस ने जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

अपने और रामचरण के संबंधों की बात तो अंजलि ने नहीं स्वीकारी, लेकिन ईमानदारी से यह जरूर बता दिया कि हत्या में उस का साथ 28 साल के सूरज पटेल के अलावा उस के दोस्तों 24 साल के संतोष पटेल और 26 साल के जगत पटेल ने दिया था.

अंजलि के मुताबिक रामचरण उस पर बुरी नजर रखता था और उस से नाजायज संबंध बनाने के लिए दबाव डाल रहा था. स्कूल में जानपहचान होने के बाद रामचरण ने सीधे शारीरिक संबंध बनाने की मांग कर डाली थी, अंजलि इनकार करने के साथ उस से दूरी बना कर रहने लगी थी.

तजुर्बेकार रामचरण ने आदत के मुताबिक इस इनकार को इकरार समझा और उस के पीछे पड़ गया. अकसर आधी रात को वह फोन कर के उस से सैक्सी बातें करते हुए शारीरिक संबंध बनाने के लिए कहता.

पिछले कुछ दिनों से अंजलि की दोस्ती सूरज से हो गई थी. जब उस ने अपनी यह परेशानी उसे बताई तो वह रामचरण को रास्ते से हटाने को तैयार हो गया. इस बाबत उस ने अपने दोस्तों संतोष और जगत से बात की तो वे उस का साथ देने को तैयार हो गए.

इस के बाद चारों ने मिल कर रामचरण की हत्या की योजना बनाई और फिर उस पर अमल कर डाला. इन का सोचना यह था कि रामचरण को कटनी से दूर ले जा कर मारा जाए तो लाश की शिनाख्त नहीं हो सकेगी और वे बच जाएंगे.

योजना के मुताबिक, हादसे के कुछ दिन पहले जब रामचरण ने अंजलि से जिस्मानी ताल्लुक बनाने की मांग की तो इस बार उस ने मना करने के बजाय उसे उकसाने वाली यानी सैक्सी बातें कीं. रामचरण को मेहनत रंग लाती दिखी. फोन पर अंजलि ने कहा था कि वाकई उस ने उस जैसा दीवाना नहीं देखा, पर यहां कटनी में ऐसा करने से बदनामी हो सकती है, इसलिए इच्छा पूरी करने के लिए कहीं बाहर चलना पड़ेगा.

रामचरण की हालत तो अंधा क्या चाहे 2 आंखें वाली थी, इसलिए वह अंजलि के कहे अनुसार बांदकपुर चलने को तैयार हो गया. तय हुआ कि सैक्स करने से पहले दोनों बांदकपुर के मंदिर में दर्शन करेंगे.

पहले अंजलि ने उसे करवाचौथ वाले दिन चलने को कहा था, पर औरतों के रसिया रामचरण को अपनी पत्नी की भावनाओं और व्रत का पूरा खयाल था, इसलिए 9 अक्तूबर का दिन तय हुआ. त्रियाचरित्र तो अपना रंग दिखा ही रहा था, पुरुष चरित्र भी उन्नीस नहीं था, जो यह कह रहा था कि करवाचौथ के दिन पत्नी का व्रत खुलवाना है, इसलिए अगले दिन चलेंगे.

9 अक्तूबर को तय वक्त पर रामचरण ने अंजलि को अपनी मोटरसाइकिल पर बैठाया और बांदकपुर की तरफ चल पड़ा. जाने से पहले उस ने वियाग्रा का पूरा पत्ता खरीद कर जेब में रख लिया था.

बांदकपुर जाने के बाद दोनों अंधेरा होने का इंतजार करने लगे, जिस से संबंध बनाने में सहूलियत हो. अंधेरा होते ही इस इलाके से वाकिफ रामचरण अंजलि को आनू गांव की रेलवे पुलिया के नीचे ले गया, जहां आमतौर पर सुनसान रहता है. इस के पहले उस ने वियाग्रा की दो गोलियां खा ली थीं.

रामचरण को जरा भी अहसास नहीं था कि प्रेयसी भले ही पहलू में है, पर मौत भी उस के पीछे दौड़ रही है. सूरज और उस के दोस्त अंजलि के इशारे पर उन का पीछा कर रहे थे. जैसे ही रामचरण पुलिया के नीचे सहवास के लिए अंजलि के ऊपर झुका, सूरज और उस के दोस्तों ने उसे खींच लिया.

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इस के बाद तीनों ने रामचरण के साथ मारपीट कर के उस का गला दबा दिया. फिर उस के सिर पर पत्थर से वार कर के उस की हत्या कर दी.

हत्या कर के चारों कटनी आ गए, पर मोबाइल फोन की लोकेशन ने इन्हें पकड़वा दिया. अंजलि का कहना था कि रामचरण उसे धमकी देता रहता था कि अगर उस ने उस की बात नहीं मानी तो वह सूरज और उस के प्रेमप्रसंग को आम कर देगा. अंजलि इस धमकी से डर गई थी, क्योंकि एक विधवा के प्रेमप्रसंग और नाजायज संबंधों से बदनामी होती तो उस की नौकरी जानी तय थी.

कटनी में किसी ने अंजलि के पुलिस को दिए बयान से इत्तफाक नहीं रखा. उलटे यह चर्चा आम रही कि रामचरण से ऊब जाने के बाद उस ने सूरज से पींगे बढ़ानी शुरू कर दी थीं, इस से रामचरण नाराज था. एक दिन रामचरण ने उसे सूरज के साथ रंगरलियां मनाते रंगेहाथों पकड़ भी लिया था. इस पर दोनों में खूब झगड़ा भी हुआ था.

सच जो भी हो, पर अब अंजलि अपने आशिक सहित जेल में है, जिस ने हत्या जैसे जघन्य अपराध को अंजाम देने से पहले अपनी मासूम बच्चियों के भविष्य के बारे में बिलकुल नहीं सोचा, जिन की कोई गलती नहीं थी.

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