Crime Story: केशरबाई की खूनी प्रेम कहानी- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

बोरडाबरा का आदमी खालीपीली धमकी नहीं देता. वह सचमुच ऐसा कर सकता है, यह सोच कर सोहन और गोविंद दोनों के प्राण गले में अटक गए. केशरबाई के संग अय्याशी के चक्कर में जान पर बन आई तो सोहन और गोविंद दोनों उस से बचने का रास्ता सोचने लगे.

पहली अक्तूबर, 2020 को गंधवानी थाना इलाके के अवल्दामान गांव निवासी एक आदमी ने थाने आ कर गांव में प्राथमिक स्कूल के पास किसी महिला की अधजली लाश पड़ी होने की खबर दी. अवल्दामान गांव अपराध के लिए कुख्यात बोरडाबरा गांव के नजदीक है, इसलिए गंधवानी टीआई को लगा कि यह बोरडाबरा के बदमाशों का ही काम होगा.

लगभग 30 वर्षीय महिला के शरीर पर धारदार हथियार के घाव भी थे, इसलिए मामला सीधेसीधे हत्या का प्रतीक होने पर टीआई गंधवानी ने इस बात की जानकारी एसपी आदित्य प्रताप सिंह को देने के बाद शव पोस्टमार्टम के लिए इंदौर भेज दिया.

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मामला गंभीर था क्योंकि आमतौर पर लोग पहचान छिपाने के लिए शव को जलाते हैं, ताकि उस की पहचान न हो सके. लेकिन इस मामले में अजीब बात यह थी कि हत्यारों ने युवती का धड़ तो जला दिया था लेकिन चेहरा पूरी तरह से सुरक्षित था. ऐसा प्रतीक होता था मानो हत्यारे खुद यह चाहते हों कि शव की शिनाख्त आसानी से हो जाए.

ऐसा हुआ भी. मृतका के चेहरे और हाथ पर बने एक निशान ने उस की पहचान केशरबाई भील के रूप में हो गई जो पति को छोड़ कर अपने प्रेमी गोविंद के साथ रह रही थी. मामला रहस्यमयी था, इसलिए एसपी (धार) ने एडीशनल एसपी देवेंद्र पाटीदार के नेतृत्व में एक टीम गठित कर दी. जिस में पता चला कि मृतका को घटना से 1-2 दिन पहले सोहन के साथ मोटरसाइकिल पर घूमते देखा गया था.

सोहन अपने घर से गायब था, इसलिए उस पर शक गहराने के बाद पुलिस ने उस की घेराबंदी कर लाश मिलने के 3 दिन बाद उसे गिरफ्तार कर लिया. जिस में पहले तो वह खुद को निर्दोष बताता रहा, लेकिन बाद में गोविंद के साथ मिल कर केशरबाई की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली.

सोहन को पुलिस उठा कर ले गई है, इस बात की जानकारी लगते ही गोविंद भी गांव से गायब हो गया था. इसलिए जब काफी प्रयास के बाद उसे पकड़ने में सफलता नहीं मिली, तब टीम में साइबर सेल को शामिल किया गया. कहना नहीं होगा कि जिम्मेदारी मिलते ही प्रभारी संतोष पांडेय की टीम सक्रिय हो गई और हत्या के 2 महीने बाद आखिर टीम ने फरार आरोपी गोविंद को गिरफ्तार करने में सफलता हासिल कर ली और उसे सलाखों के पीछे पहुंचा ही दिया.

आरोपियों ने बताया कि उन्होंने केशरबाई की हत्या खेरवा के जगंल में ले जा कर की थी. जहां से उन्होंने लाश को अवल्दामान गांव में ला कर इस तरह जलाया था कि उस की पहचान हो जाए.

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अवल्दामान गांव बोरडाबरा के नजदीक है. बोरडाबरा में रहने वाले दिनेश ने केशरबाई को जान से मारने की धमकी दी है यह बात कई लोगों को मालूम थी. इसलिए आरोपियों का सोचना था कि अवल्दामान में लाश मिलने से पुलिस दिनेश भिलाला को हत्यारा मान कर उसे जेल भेज देगी, जिस से सोहन और गोविंद आराम से रह सकेंगे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ और असली गुनहगार पकड़े गए.

Crime Story: केशरबाई की खूनी प्रेम कहानी- भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

26नवंबर, 2020 की दोपहर का समय था. धार क्राइम ब्रांच एवं साइबर सेल प्रभारी संतोष पांडेय कुछ पुराने मामलों के आरोपियों तक पहुंचने के लिए धूल चढ़ी फाइलों से जूझ रहे थे, तभी उन के मोबाइल पर एक खास मुखबिर के नंबर से घंटी बज उठी.

इस मुखबिर को उन्होंने बेहद खास जिम्मेदारी सौंप रखी थी. इसलिए उस मुखबिर की फोन काल को उन्होंने तुरंत रिसीव किया. मुखबिर ने उन्हें एक खास सूचना दी थी. सूचना पाते ही संतोष पांडेय के चेहरे पर मुसकान तैर गई, उस के बाद उन्होंने मुखबिर से मिली खबर के बारे में पूरी जानकारी एसपी (धार) आदित्य प्रताप सिंह और अन्य अधिकारियों को दी. फिर उन से मिले निर्देश के बाद कुछ ही देर में अपनी टीम ले कर मागौद चौराहे पर जा कर डट गए.

दरअसल, धार पुलिस को लंबे समय से गंधवानी थाना इलाके में हुई एक हत्या के आरोपी गोविंद की तलाश थी. एसपी ने गोविंद की गिरफ्तारी पर 10 हजार रुपए का ईनाम भी घोषित कर रखा था.

गोविंद को पकड़ने की जिम्मेदारी जिस टीम को सौंपी गई थी, उस में धार साइबर सेल के प्रमुख संतोष पांडेय और उन का स्टाफ भी शामिल था. इसलिए उस रोज जब मुखबिर ने गोविंद के मोटरसाइकिल से मागौद आने की जानकारी पांडेयजी को दी तो उन्होंने इस ईनामी आरोपी को पकड़ने के  लिए मागौद चौराहे पर अपना जाल  बिछा दिया.

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मुखबिर की सूचना गलत नहीं थी. कुछ ही घंटों के बाद पांडेय ने एक बिना नंबर की मोटरसाइकिल पर सवार युवक को तेजी से मागौद की तरफ आते देखा तो उन्होंने उसे घेरने के लिए अपनी टीम को इशारा किया, लेकिन संयोग से मोटरसाइकिल सवार की नजर पुलिस पर पड़ गई. इसलिए खतरा भांप कर उस ने तेजी से मोटरसाइकिल राजगढ़ की तरफ मोड़ दी.

संतोष पांडेय इस स्थिति के लिए पहले से ही तैयार थे सो गोविंद के वापस मुड़ कर भागते ही वे अपनी टीम के साथ उस के पीछे लग गए. दूसरी तरफ इस स्थिति की जानकारी एसपी आदित्य प्रताप सिंह को दी गई तो उन के निर्देश पर एसडीपीओ (सरदारपुर) ऐश्वर्य शास्त्री और राजगढ़ टीआई मगन सिंह वास्केल ने रोड पर आगे की तरफ से घेराबंदी कर दी थी.

इसलिए दोनों तरफ से पुलिस से घिर जाने पर गोविंद ने मोटरसाइकिल खेतों की तरफ मोड़ कर भागने की कोशिश की, मगर साइबर सेल प्रभारी संतोष पांडेय और उन की टीम उसे दबोचने में कामयाब हो ही गई. पुलिस ने उस की तलाशी ली गई तो उस के पास से एक कट्टा, जिंदा कारतूस और चोरी की मोटरसाइकिल भी बरामद कर ली.

चूंकि केशरबाई भील नाम की जिस महिला की हत्या के आरोप में गोविंद को गिरफ्तार किया गया था, उस में शामिल गोविंद के साथी उदियापुर के सोहन वास्केल को पुलिस पहले ही गिरफ्तार कर चुकी थी. इसलिए पूछताछ के दौरान गोविंद ने बिना किसी हीलहुज्जत के अपनी प्रेमिका और रखैल केशरबाई की हत्या करने की बात स्वीकार करते हुए पूरी कहानी सुना दी, जो इस प्रकार निकली—

कुक्षी थाना इलाके के एक गांव की रहने वाली केशरबाई भील को सिगरेट, शराब और सैक्स की लत किशोर उम्र में ही लग गई थी. संयोग से उस का रूप भी कुछ ऐसा दिया था कि उसे नजर भर कर देखने वाले घायल हो ही जाते थे. इसलिए शौक पूरा करने के लिए उसे अपने रूप का उपयोग करने में भी कोई गुरेज नहीं थी.

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केशरबाई की हरकतों से चिंतित उस के मातापिता ने छोटी उम्र में ही उस की शादी कर दी, लेकिन एक पुरुष से केशरबाई का मन भरने वाला नहीं था.

इसलिए शादी के बाद भी उस ने अपने शौक पर लगाम लगाने की कोई जरूरत नहीं समझी. जिस के चलते पति से होने वाले विवादों से तंग आ कर उस ने पति का घर छोड़ कर बच्चों के साथ अलग दुनिया बसा ली.

केशरबाई जानती थी की उस की सुंदरता उसे कभी भूखा नहीं मरने देगी. ऐसा हुआ भी, केशरबाई पति को छोड़ कर भी अपने सभी शौक पूरे करते हुए आराम से जिंदगी बसर करने लगी. पति से अलग रहते हुए केशरबाई को इस बात का अनुभव हो चुका था कि मर्द की पहली जरूरत एक जवान औरत ही होती है. इसलिए उस ने ऐसे लोगों की तलाश कर उन्हें बड़ी रकम के बदले शादी के नाम पर दुलहन उपलब्ध करवाने का काम शुरू कर दिया, जिन की किसी कारण से शादी नहीं हो पा रही थी.

उस ने आसपास के गांव में रहने वाली गरीब परिवार की जरूरतमंद युवतियों के अलावा विधवा और तलाकशुदा महिलाओं से दोस्ती कर ली थी, जो केशरबाई के कहने पर कुछ पैसों के बदले में चंद दिनों के लिए किसी भी युवक की नकली दुलहन बनने को तैयार हो जाती थीं.

केशरबाई जरूरतमंद लोगों से बड़ी रकम ले कर उस में से कुछ पैसे संबंधित युवती को दे कर उस की शादी युवक से करवा देती, जिस के बाद युवती कुछ रातों तक युवक को दुलहन का सुख देने के बाद किसी बहाने से मायके वापस आ कर गायब हो जाती थी. इस पर लोग यदि केशरबाई से शिकायत करते या अपना पैसा वापस मांगते तो वह उन्हें बलात्कार के आरोप में फंसाने की धमकी दे कर चुप करा देती.

कहना नहीं होगा कि इन्हीं सब के चलते केशरबाई ने इस काम में खूब नाम और दाम कमाया.

अगले भाग में पढ़ें- केशरबाई  नकली दुल्हन क्यों बनना चाहती थी

Crime Story: केशरबाई की खूनी प्रेम कहानी- भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

गांव उदियापुर निवासी सोहन वास्केल की केशरबाई से अच्छी पटती थी. उस का केशरबाई के यहां अकसर आनाजाना था जिस से वह केशरबाई के सभी कामों से परिचित भी था. सोहन की दोस्ती गांव सनावदा के रहने वाले गोविंद बागरी से थी.

गोविंद आपराधिक और अय्याश प्रवृत्ति का था. उस ने भी इलाके में रहने वाली केशरबाई के चर्चे सुन रखे थे, इसलिए जब उसे पता चला कि सोहन की केशरबाई के संग अच्छी दोस्ती है तो उस ने सोहन से अपनी दोस्ती भी केशरबाई से करवा देने के लिए कहा. सोहन को भला क्या ऐतराज हो सकता था, इसलिए उस ने एक रोज गोविंद की मुलाकात केशरबाई से करवा दी.

गोविंद केशरबाई की खूबसूरती देखते ही उस का दीवाना हो गया. इस पर जब उसे पता चला कि केशरबाई शराब पीने की भी शौकीन है तो वह 2 दिन बाद ही शराब की दरजन भर बोतलें ले कर केशरबाई के पास पहुंच गया.

मर्द की नजर भांपने में केशरबाई कभी गलती नहीं करती थी. वह समझ गई कि गोविंद उस से क्या चाहता है, इसलिए उस ने उस रात गोविंद को शराब के साथ अपने रूप के नशे में भी गले तक डुबो दिया.

वास्तव में केशरबाई ने यह सब एक योजना के तहत किया था. केशरबाई को इस बात की जानकारी लग गई थी कि गोविंद न केवल पैसे वाला आदमी है बल्कि दबंग भी है. उस के खिलाफ कई थानों में अनेक मामले भी दर्ज हैं.

इसलिए केशरबाई गोविंद से दोस्ती कर उस का उपयोग अपनी नकली दुलहन के कारोबार में करना चाहती थी. ताकि गोविंद ऐसे लोगों से उसे बचा सके जो शादी के नाम पर ठगे जाने के बाद उस से विवाद करने के लिए उस के दरवाजे पर आ जाते थे.

केशरबाई के रूप का दीवाना हो कर गोविंद उस के इस काम में मदद करने लगा तो इस का एक कारण यह भी था कि इस काम में केशरबाई के हाथ बड़ी रकम आती थी और गोविंद का सोचना था कि वह केशरबाई की मदद कर के उस की नजदीकी तो हासिल करता ही रहेगा. साथ ही साथ इस रकम में से भी वह अपनी हिस्सेदारी तय कर लेगा.

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इसलिए उस ने केशरबाई के सामने दीवाना होने का नाटक किया और अपनी पत्नी एवं बच्चों को छोड़ कर केशरबाई के संग जा कर सेंधवा में रहने लगा.

लेकिन केशरबाई के पैसों पर ऐश करने का गोविंद का सपना चकनाचूर हो गया. केशरबाई फरजी शादी में ठगे पैसों में गोविंद को हाथ भी लगाने नहीं देती थी, उलटे घर का खर्च भी गोविंद से मांगती थी. गोविंद फंस गया था. केशरबाई के रूप का नशा उस के दिमाग से उतर गया. वह समझ गया कि केशरबाई बड़ी शातिर है.

इतना नहीं, केशरबाई परिवार का खर्च तो गोविंद से मांगती थी, ऊपर से अपनी अय्याशी के लिए दूसरे युवकों को खुलेआम घर बुलाती थी. गोविंद इस पर ऐतराज करता तो वह साफ बोल देती कि मैं तुम्हारी बीवी नहीं हूं, जो अकेले तुम्हारे बिस्तर पर सोऊं. मेरा अपना बिस्तर है और मैं जिसे चाहूं उसे अपने साथ सुला सकती हूं.

गोविंद ने उसे अपनी ताकत से दबाना चाहा तो केशरबाई ने जल्द ही उसे इस बात का अहसास भी करवा दिया कि केशरबाई को वह अपनी ताकत से नहीं दबा सकता. कहना नहीं होगा कि सब मिला कर गोविंद केशरबाई नाम की इस खूबसूरत बला के कांटों में उलझ कर रह गया था.

इसी बीच एक और घटना घटी. हुआ यह कि गंधवानी थाना सीमा के बोरडाबरा गांव में सोहन के एक परिचित दिनेश भिलाला को शादी के लिए एक लड़की की जरूरत थी. चूंकि बोरडाबरा गांव अपनी आपराधिक गतिविधियों के लिए पूरे इलाके में कुख्यात है, इसलिए कोई भी भला आदमी अपनी बेटी को बोरडाबरा में रहने वाले युवक से ब्याहना पसंद नहीं करता.

दिनेश भिलाला भी यहां रहने वाले खूंखार आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों में से एक था, इसलिए उम्र गुजर जाने के बाद भी उसे शादी के लिए लड़की नहीं मिल रही थी. उस ने अपनी यह समस्या सोहन के सामने रखी तो सोहन ने केशरबाई के माध्यम से उस की शादी करवा देने का भरोसा दिलाया.

सोहन जानता था कि केशरबाई शादी के नाम पर ठगी का खेल करती है. उस की लड़कियां शादी के कुछ दिन बाद पति के घर से मालपैसा समेट कर फरार हो जाती हैं. लेकिन उसे भरोसा था कि चूंकि केशरबाई उस की परिचित है, इसलिए वह उस के कहने पर ईमानदारी से दिनेश के लिए किसी अच्छी लड़की का इंतजाम करवा देगी.

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केशरबाई ने ऐसा किया भी. सोहन के कहने पर उस ने 80 हजार रुपए के बदले में दिनेश भिलाला की शादी एक बेहद खूबसूरत युवती से करवा दी.

लेकिन सोहन का यह सोचना कि केशरबाई उसे धोखा नहीं देगी, गलत साबित हुआ. शादी के बाद वह युवती 15 दिन तक तो दिनेश भिलाला के साथ उस की पत्नी बन कर रही, उस के बाद केशरबाई  के इशारे पर वह दिनेश के बिस्तर से उतर कर वापस आने के बाद कहीं गायब हो गई.

पत्नी के भाग जाने की बात दिनेश को पता चली तो उस ने सीधे जा कर सोहन का गला पकड़ लिया. उस का कहना था कि या तो पत्नी को उस के पास भेजो या फिर शादी के नाम पर उस से लिया गया पैसा 80 हजार मय खर्च के वापस करो.

सोहन ने इस बारे में केशरबाई से बात की तो उस ने साफ  मना कर दिया. उस का कहना था कि मेरी जिम्मेदारी शादी करवाने की थी, लड़की को दिनेश के गले बांध कर रखने की नहीं. लड़की कहां गई, इस का उसे पता नहीं और न ही वह दिनेश को उस का पैसा वापस करेगी.

लेकिन दिनेश इतनी जल्दी हार मानने वाला नहीं था. उस ने सोहन के साथसाथ केशरबाई और उस के आशिक गोविंद को भी धमकी दी कि अगर 10 दिन में उस की पत्नी वापस नहीं आई तो 11वें दिन उस का पैसा वापस कर देना. और अगर यह भी नहीं कर सकते तो फिर तीनों मरने के लिए तैयार रहना.

अगले भाग में पढ़ें- केशरबाई की हत्या किसने की

Crime Story: मीठे रिश्तों की कड़वाहट- भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

नीरज बनसंवर कर घर से जाने लगा, तो उस के भाई धीरज ने टोका, ‘‘नीरज, इतनी रात को तुम कहां जा रहे हो? क्या कोई जरूरी काम है या फिर किसी की शादी में जा रहे हो?’’ ‘‘भैया, मेरे दोस्त के घर भगवती जागरण है. मैं वहीं जा रहा हूं.’’ नीरज बोला.

फिर नीरज ने कलाई पर बंधी घड़ी पर नजर डाली और बोला, ‘‘भैया, अभी साढ़े 9 बजे हैं. मैं 12 बजे तक लौट आऊंगा.’’ कहते हुए नीरज घर से बाहर चला गया. नीरज उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर शहर की सुरेखापुरम कालोनी में रहता था. धीरज और उस की पत्नी नीरज के इंतजार में रात 12 बजे तक जागते रहे. जब वह घर नहीं आया तो उन्हें चिंता हुई. वे दोनों घर के अंदरबाहर कुछ देर चहलकदमी करते रहे, फिर धीरज ने अपने मोबाइल से नीरज को फोन किया. पर उस का फोन बंद था. धीरज ने कई बार फोन मिलाया, लेकिन हर बार फोन बंद ही मिला.

रात 2 बजे तक वह नीरज के इंतजार में जागता रहा. उस के बाद उस की आंख लग गई.

अभी सुबह का उजाला ठीक से फैला भी नहीं था कि धीरज का दरवाजा किसी ने जोरजोर से पीटना शुरू किया. धीरज ने अलसाई आंखों से दरवाजा खोला तो सामने एक अनजान व्यक्ति खड़ा था. धीरज ने उस से पूछा, ‘‘आप कौन हैं और दरवाजा क्यों पीट रहे हैं?’’

उस अनजान व्यक्ति ने अपना परिचय तो नहीं दिया. लेकिन यह जरूर बताया कि उस का भाई नीरज डंगहर मोहल्ले में मीना किन्नर के घर के पास गंभीर हालत में पड़ा है. उस ने घर का पता बताया था और खबर देने का अनुरोध किया था, सो वह चला आया.

भाई के घायल होने की जानकारी पा कर धीरज घबरा गया. उस ने अड़ोसपड़ोस के लोगों को जानकारी दी और फिर उन को साथ ले कर डंगहर मोहल्ले में मीना किन्नर के घर के पास पहुंच गया.

उस समय वहां भीड़ जुटी थी. धीरज ने अपने भाई नीरज को मरणासन्न स्थिति में देखा तो वह घबरा गया. उस का सिर फटा हुआ था, जिस से वह लहूलुहान था. लग रहा था जैसे उस के सिर पर किसी ने भारी चीज से हमला किया था.

धीरज ने इस की जानकारी थाना कटरा पुलिस को दी फिर सहयोगियों के साथ नीरज को इलाज के लिए निजी डाक्टर के पास ले गया. लेकिन डाक्टर ने हाथ खड़े कर लिए और पुलिस केस बता कर सदर अस्पताल ले जाने की सलाह दी. यह बात 28 नवंबर, 2020 की सुबह 8 बजे की है.

जीवित होने की आस में धीरज अपने भाई नीरज को सदर अस्पताल मिर्जापुर ले गया. डाक्टरों ने नीरज को देखते ही मृत घोषित कर दिया. भाई की मृत्यु की बात सुन कर धीरज फफक कर रोने लगा. चूंकि यह पुलिस केस था, इसलिए अस्पताल प्रशासन ने सूचना थाना कटरा पुलिस को दी.

सूचना पाते ही प्रभारी निरीक्षक रमेश यादव पुलिस बल के साथ सदर अस्पताल आ गए. उन्होंने धीरज को धैर्य बंधाया और घटना के संबंध में पूछताछ की. धीरज ने बताया कि वह सुरेखापुरम कालोनी में रहता है.

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उस का भाई नीरज बीती रात साढ़े 9 बजे यह कह कर घर से निकला था कि वह दोस्त के घर जागरण में जा रहा है. लेकिन सुबह उसे उस के घायल होने की जानकारी मिली. तब उस ने उसे सदर अस्पताल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.

‘‘क्या तुम्हें पता है कि तुम्हारे भाई पर कातिलाना हमला किस ने किया है?’’ यादव ने पूछा.

‘‘सर, मुझे कुछ भी पता नहीं है.’’ धीरज ने जवाब दिया.

पूछताछ के बाद यादव ने नीरज के शव का बारीकी से निरीक्षण किया. नीरज की उम्र 32 वर्ष के आसपास थी. उस के सिर पर किसी ठोस वस्तु से प्रहार किया गया था, जिस से उस का सिर फट गया था. संभवत: सिर में गहरी चोट लगने के कारण ही उस की मौत हो गई थी. शरीर के अन्य भागों पर भी चोट के निशान थे. निरीक्षण के बाद उन्होंने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

इधर नीरज की हत्या की खबर सुरेखापुरम कालोनी पहुंची तो कालोनी में सनसनी फैल गई. धीरज के घर लोगों की भीड़ जमा हो गई. लोगों में जवान नीरज की हत्या को ले कर गुस्सा था. गुस्साई भीड़ ने मिर्जापुर नगर के बथुआ के पास मिर्जापुर-रीवा मार्ग जाम कर दिया तथा पुलिस विरोधी नारे लगाने शुरू कर दिए.

सड़क जाम की सूचना कटरा कोतवाल रमेश यादव को हुई तो वह पुलिस टीम के साथ वहां पहुंचे. उन्होंने भीड़ को समझाने का प्रयास किया तो भीड़ और उत्तेजित हो गई. लोगों की शर्त थी कि जब तक पुलिस अधिकारी नहीं आएंगे, तब तक वह सड़क पर बैठे रहेंगे. इस पर रमेश यादव ने जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी. उन्होंने अधिकारियों को यह भी बताया कि भीड़ बढ़ती जा रही है तथा स्थिति बिगड़ रही है.

हत्या के विरोध में सड़क जाम की सूचना पा कर एसपी अजय कुमार सिंह, एडीशनल एसपी (सिटी) संजय कुमार तथा सीओ अजय राय मौके पर पहुंचे. उन्होंने मृतक के घर वालों एवं उत्तेजित लोगों को समझाया तथा आश्वासन दिया कि नीरज के कातिलों को जल्द ही पकड़ा जाएगा. पुलिस अधिकारियों के इस आश्वासन पर भीड़ ने सड़क खाली कर दी.

एसपी अजय कुमार सिंह ने नीरज की हत्या को चुनौती के रूप में लिया. अत: हत्या का खुलासा करने के लिए उन्होंने एक विशेष टीम का गठन एएसपी (सिटी) संजय कुमार व सीओ अजय राय की देख रेख में गठित कर दी.

इस टीम में प्रभारी निरीक्षक रमेश चंद्र यादव, चौकी इंचार्ज अजय कुमार श्रीवास्तव, हैडकांस्टेबल भोलानाथ, दारा सिंह, अरविंद सिंह, महिला कांस्टेबल रिचा तथा पूजा मौर्या को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने सब से पहले घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया फिर पोस्टमार्टम रिपोर्ट का अध्ययन किया. उस के बाद मृतक नीरज के भाई धीरज का बयान दर्ज किया. पुलिस टीम ने अपनी जांच किन्नर मीना के घर के आसपास से शुरू की और दरजनों लोगों से पूछताछ की.

इस का परिणाम भी सार्थक निकला. पूछताछ से पता चला कि मृतक का आनाजाना डंगहर मोहल्ला निवासी विशाल यादव के घर था. विशाल की पत्नी सीमा (परिवर्तित नाम) और मृतक नीरज के बीच दोस्ती थी. लेकिन विशाल को नीरज का घर आना पसंद नहीं था.

पुलिस टीम ने अपनी जांच आगे बढ़ाई और विशाल यादव के पड़ोसियों से पूछताछ की तो पता चला कि बीती रात 12 बजे के आसपास विशाल यादव के घर झगड़ा हो रहा था. मारपीट और चीखनेचिल्लाने की आवाजें आ रही थीं. फिर कुछ देर बाद खामोशी छा गई थी. झगड़ा किस से और क्यों हो रहा था, यह बात पता नहीं चल सकी.

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विशाल यादव और उस की पत्नी सीमा पुलिस टीम की रडार पर आए तो टीम ने दोनों को हिरासत में ले कर पूछताछ करने की योजना बनाई. योजना के तहत पुलिस टीम रात 10 बजे विशाल यादव के घर पहुंची और उसे हिरासत में ले लिया.

अगले भाग में पढ़ें- हत्यारोपियों ने अपना जुर्म कबूल किया

Crime Story: मीठे रिश्तों की कड़वाहट- भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

महिला कांस्टेबल रिचा और पूजा मौर्या ने विशाल की पत्नी सीमा को अपनी कस्टडी में ले लिया. दोनों को थाना कटरा लाया गया. थाने पर जब उन से नीरज की हत्या के संबंध में पूछताछ की गई तो विशाल व उस की पत्नी सीमा ने सहज ही अपना जुर्म कबूल कर लिया.

विशाल यादव ने बताया कि वह मंजू रिटेलर टायर बरौंधा में काम करता है. उस की ड्यूटी रात में लगती है. बीती रात साढ़े 11 बजे नीरज उस के घर में घुस आया था और उस की पत्नी सीमा के साथ शारीरिक छेड़छाड़ कर रहा था. नीरज ने जब सीमा के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की तो उस ने इस का विरोध किया.

इसी बात को ले कर सीमा और नीरज में विवाद होने लगा. उस की पत्नी सीमा ने अपने बचाव में घर में रखे एक छोटे सिलेंडर से नीरज के सिर पर प्रहार कर दिया. जिस से उस के सिर में गंभीर चोट आ गई.

इसी बीच विशाल भी घर आ गया, सच्चाई पता चली तो उसे भी गुस्सा आ गया, उस ने भी नीरज को मारापीटा और घर से भगा दिया. शायद गंभीर चोट लगने से उस की मौत हो गई. जुर्म कबूलने के बाद विशाल यादव ने अपने घर से आलाकत्ल छोटा सिलेंडर तथा ईंट पुलिस टीम को बरामद करा दी.

पुलिस टीम ने नीरज हत्याकांड का परदाफाश करने तथा आलाकत्ल सहित उस के कातिलों को पकड़ने की जानकारी एसपी अजय कुमार सिंह को दी तो उन्होंने पुलिस सभागार में प्रैसवार्ता की और आरोपियों को मीडिया के समक्ष पेश कर नीरज हत्याकांड का खुलासा किया.

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चूंकि हत्यारोपियों ने अपना जुर्म कबूल कर लिया था और आलाकत्ल भी बरामद करा दिया था, अत: थानाप्रभारी रमेश यादव ने मृतक के भाई धीरज की तरफ से धारा 304 आईपीसी के तहत विशाल यादव व उस की पत्नी सीमा के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली और उन्हें विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस जांच में एक औरत और उस के जुर्म की सनसनीखेज घटना प्रकाश में आई. उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर शहर के सुरेखापुरम कालोनी में 2 भाई धीरज व नीरज श्रीवास्तव रहते थे. यह कालोनी थाना कटरा के अंतर्गत आती है. धीरज की शादी हो चुकी थी जबकि नीरज अविवाहित था. उन के पिता रमेशचंद्र श्रीवास्तव की मौत हो चुकी थी. धीरज की बथुआ में मोबाइल फोन और एसेसरीज की दुकान थी, जबकि उस का छोटा भाई नीरज मोबाइल पार्ट्स की सप्लाई करता था. दोनों भाई खूब कमाते थे और मिलजुल कर रहते थे.

एक रोज नीरज सुरेखापुरम कालोनी स्थित एक मोबाइल की दुकान पर कुछ मोबाइल पार्ट्स देने पहुंचा तो वहां उस की मुलाकात एक खूबसूरत युवती से हुई. वह अपना मोबाइल फोन ठीक कराने आई थी.

युवती और नीरज की आंखें एकदूसरे से मिलीं तो पहली ही नजर में दोनों एकदूसरे को भा गए. दोनों में बातचीत शुरू हुई तो युवती ने अपना नाम सीमा बताया. वह भी सुरेखापुरम कालोनी में ही रहती थी.

बातचीत के दौरान दोनों ने एकदूसरे का मोबाइल नंबर ले लिया. फिर दोनों में मोबाइल पर अकसर बातें होने लगीं. बातों का दायरा बढ़ता गया. धीरेधीरे वे प्यारमोहब्बत की बातें करने लगे.

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दरअसल सीमा विवाहित थी. उस के पिता ने उस की शादी एक सजातीय युवक के साथ की थी. सीमा दुलहन बन कर ससुराल तो गई लेकिन उसे वहां का वातावरण बिलकुल रास नहीं आया. ऊंचे ख्वाब सजाने वाली स्वच्छंद युवती को ससुराल की मानमर्यादा की सीमाओं में बंध कर रहना भला कैसे भाता. सुहागरात में तो उस के सारे अरमान धूल धूसरित हो कर रह गए. उस का पति उस की इच्छापूर्ति की कसौटी पर खरा नहीं उतर पाया.

सीमा को ससुराल बंद पिंजरे की तरह लगती थी, जहां वह किसी परिंदे की तरह फड़फड़ाती थी. स्वच्छंदता पर सामाजिक मानमर्यादा की बंदिशें लग चुकी थीं. मन की तरंगे घूंघट के भीतर कैद हो कर रह गई थीं. ससुराल में उस का एकएक दिन मुश्किल में बीतने लगा.

सीमा ने एक दिन निश्चय कर लिया कि एक बार यहां से निकलने के बाद वह कभी ससुराल नहीं आएगी. आखिर एक दिन उस के घर वाले उसे बुलाने आ गए तो वह अपनी ससुराल को हमेशा के लिए अलविदा कह कर अपने मायके आ गई.

मायके आ कर सीमा सजसंवर कर स्वच्छंद हो कर घूमने लगी. एक रोज उस का फोन खराब हो गया तो वह उसे ठीक कराने के लिए पास की ही एक मोबाइल शौप पर गई तो वहां उस की मुलाकात नीरज से हुई. उस के बाद दोनों अकसर मिलने लगे. बाद में सीमा नीरज के साथ घूमने भी जाने लगी.

कुछ ही दिनों में दोनों इतने नजदीक आ गए कि उन के बीच अंतरंग संबंध बन गए. अवैध रिश्तों का सिलसिला एक बार शुरू हुआ तो फिर उस ने रुकने का नाम नहीं लिया. जब भी दोनों को मौका मिलता, एकदूसरे की बांहों में समा जाते.

लेकिन ऐसी बातें समाज की नजरों से ज्यादा दिनों तक छिपती कहां हैं. धीरेधीरे पूरे मोहल्ले में नीरज और सीमा के नाजायज रिश्ते की चर्चा होने लगी.

अगले भाग में पढ़ें- क्या विशाल सीमा को माफ कर पाया

Crime Story: मीठे रिश्तों की कड़वाहट- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

जवान बेटी ससुराल छोड़ कर बाप की छाती पर मूंग दले, इस से बड़ा कष्ट बाप के लिए और क्या हो सकता है. ऊपर से जब उस के नाजायज रिश्तों की बात पता चले तो उस के लिए चुल्लू भर पानी में डूब मरने वाली स्थिति बन जाती है.

सीमा के बाप का धैर्य टूटा तो उस ने बेटी पर लगाम कसनी शुरू की और उस के योग्य कोई लड़का खोजना शुरू कर दिया. इस बीच प्रतिबंध लग जाने से सीमा और नीरज का मिलना कुछ कम हो गया. काफी दौड़धूप के बाद घर वालों ने वर्ष 2019 में सीमा का दूसरा विवाह विशाल यादव के साथ कर दिया. विशाल यादव के पिता कल्लू यादव की मृत्यु हो चुकी थी.

विशाल मिर्जापुर शहर के कटरा थाना अंतर्गत डंगहर मोहल्ले में रहता था और मंजू रिटेलर टायर बरौंधा कचार में काम करता था.

विशाल यादव से विवाह करने के बाद सीमा हंसीखुशी से ससुराल में रहने लगी. यहां उस पर कोई बंधन नहीं था. न घर में सास थी न ससुर. पति भी सीधासादा था. वह पति से जिस भी चीज की मांग करती, वह उसे पूरा कर देता था. क्योंकि वह पत्नी की खुशी में ही अपनी खुशी समझता था. उस की मांग पर उस ने उसे नया मोबाइल फोन भी ला कर दे दिया था.

होना यह चाहिए था कि जब सीमा ने दूसरी शादी कर ली तो नीरज को उस की ससुराल नहीं जाना चाहिए था. लेकिन नीरज नहीं माना. वह शारीरिक सुख पाने के लिए सीमा के घर जाने लगा. सीमा कभी तो उसे लिफ्ट दे देती, तो कभी उसे दुत्कार भी देती. सीमा नाराज हो जाती तो नीरज उसे उपहार दे कर या फिर आर्थिक मदद कर उस की नाराजगी दूर करता.

सीमा के पति विशाल की ड्यूटी रात में रहती थी. उस के जाने के बाद ही नीरज सीमा से मिलने आता था. फिर घंटा, 2 घंटा उस के साथ बिताने के बाद वापस चला जाता था.

पड़ोसियों ने पहले तो गौर नहीं किया, लेकिन जब नीरज अकसर वहां आने लगा तो उन के कान खड़े हो गए. उन्होंने विशाल को हकीकत बताई तो उस के मन में शंका का बीज उपज आया.

विशाल ने इस बाबत सीमा से जवाब तलब किया तो वह उसे बरगलाने की कोशिश करने लगी. विशाल ने सख्ती की तो सीमा ने सच्चाई बयां कर दी और यह कहते हुए माफी मांग ली कि आज के बाद वह नीरज से कोई वास्ता नहीं रखेगी.

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विशाल ने घर टूटने के खौफ से सीमा को माफ कर दिया. इस के बाद सीमा ने सख्त रुख अख्तियार करना शुरू कर दिया. अब नीरज जब भी उस के घर आता, सीमा उसे दुत्कार कर भगा देती, लेकिन नीरज दुत्कारने के बावजूद सीमा से मिलने पहुंच जाता. वह सीमा को मनाने की भी कोशिश करता.

27 नवंबर, 2020 की रात साढ़े 9 बजे नीरज बनसंवर कर घर से निकला. उस ने अपने भाई धीरज से झूठ बोला कि वह दोस्त के घर जागरण में जा रहा है. घर से निकल कर वह कुछ देर इधरउधर घूमता रहा फिर रात साढ़े 11 बजे डंगहर स्थित सीमा के घर जा पहुंचा. सीमा ने उसे दुत्कारा और घर से निकल जाने को कहा.

लेकिन नीरज नहीं माना. उस ने सीमा को धकेल कर दरवाजा अंदर से बंद कर लिया और सीमा से जोरजबरदस्ती करने लगा. सीमा ने विरोध किया तो वह जबरदस्ती उसे अपनी हवस का शिकार बनाने की कोशिश करने लगा.

सीमा बचाव में हाथपैर चलाने लगी. इसी बीच उस की निगाह छोटे गैस सिलेंडर पर पड़ी. उस ने लपक कर सिलेंडर उठाया और नीरज के सिर पर दे मारा.

नीरज का सिर फट गया और वह जमीन पर गिर पड़ा. उसी समय किसी ने दरवाजा खटखटाया. सीमा ने दरवाजा खोला तो सामने उस का पति विशाल था. वह पति के सीने से लिपट गई और बोली, ‘‘नीरज जबरदस्ती घर में घुस आया था और उसे अपनी हवस का शिकार बनाना चाहता था.’’

सीमा की बात सुन कर विशाल का गुस्सा बढ़ गया. उस ने ईंट से उसे पीटना शुरू कर दिया. इस पर नीरज चीखने लगा और माफी मांगने लगा.

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बुरी तरह पीटने के बाद विशाल ने नीरज को घर के बाहर धकेल दिया. नीरज घायल अवस्था में कुछ दूर तक गया फिर मीना किन्नर के घर के सामने गिर पड़ा. रात भर ठंड में वह वहीं पड़ा रहा. सुबह कुछ लोग घर से टहलने निकले तो उन्होंने नीरज को गंभीर हालत में देखा.

उधर से गुजरने वाले एक व्यक्ति को अपने घर का पता देते हुए उस ने खबर देने का अनुरोध किया. जब उस व्यक्ति ने नीरज के घर खबर की तो उस का भाई धीरज आया. धीरज ने उसे अस्पताल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.

विशाल यादव और सीमा से पूछताछ के बाद पुलिस ने 29 नवंबर, 2020 को दोनों अभियुक्तों को मिर्जापुर की जिला अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में सीमा नाम परिवर्तित है.

Crime: जब सेवक “किडनैपर” बन जाए!

आमतौर पर किसी आम व्यक्ति की सेवाएं लेना जीवन को सहज बनाने के लिए एक जरूरी आवश्यकता होती है. घर हो या दफ्तर अथवा कोई दुकान किसी न किसी  शख्स की सेवाएं तो लेनी पड़ती है. यह सेवा हमारे काम को सहज बनाने में मददगार होती है.

मगर आपके यहां काम करते हुए अगर “सेवक” यानी सर्वेंट से मनमुटाव हो और उसे आप काम से अलग कर दें तो यह कोई बड़ी गंभीर घटना नहीं मानी जाती. छत्तीसगढ़ से जिला रायगढ़ में एक शख्स ऊपर यह घटना मानो एक आफत बनकर गिर पड़ी. उसके मासूम बालक‌ का अपहरण का शिकार हो गया.

छ:  साल के मासूम शिवांश के अपहरणकर्ताओं के इरादे  खतरनाक थे. अगवा करने के बाद बच्चे को छत्तीसगढ़ के पड़ोसी राज्य झारखंड के खूंखार “किडनैपर्स गैंग” के हवाले कर 25 लाख फिरौती वसूली की योजना बन गई थी, लेकिन छत्तीसगढ़ पुलिस ने रास्ते में ही अपहर्ताओं को धर दबोचा.

यहां महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि किडनैपिंग का मास्टर माइंड एक रसोईया खिलावन महंत है, जो पेशेवर रसोईया है और  हाल तक शिवांश के घर  ही खाना बनाने का काम किया करता था. यही रह उसने घर परिवार को देखा और घुलमिल गया, मगर जब परिस्थितियां बदली तो उसके तेवर भी बदल गए.

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जब “सेवक राम” को हटा दिया गया…

जब हम किसी सर्वेंट और घरेलू नौकर की बात करते हैं तो अनेक चित्र हमारे सामने खींचे जाते हैं.

फिल्मकार ऋषिकेश मुखर्जी की मशहूर फिल्म “बावर्ची” का रसोईया राजेश खन्ना का चरित्र जो कि एक आदर्श प्रस्तुत करता हमें दिखाई देता है.

इसी तरह फिल्म राजेश खन्ना की फिल्म “अवतार” में सचिन का चरित्र जो अपने मालिक के लिए अपने खून तक बेचने पहुंच जाता है.

ऐसे में जीवन की सच्चाई खुलकर सामने आ जाती है, जब कोई सेवक कानून और अपनी मर्यादाओं को तोड़ कर छोटे बड़े  किसी लालच अथवा क्रोध में आकर बदला लेने पर उतारू हो जाता है.

छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिला के खरसिया में मासूम  शिवांश के पिता राहुल अग्रवाल ने काम नहीं होने का हवाला देकर जब  रसोईया खिलावन को रूखसत कर दिया और खिलावन का बकाया पैसा भी दे दिया . इसके दो दिन पश्चात 20 फरवरी 21 को खिलावन फिर  राहुल अग्रवाल के घर मोबाइल चार्जर लेने के बहाने से पहुंचा और चिप्स खिलाने के बहाने से  शिवांश को लेकर शाम करीब साढे 5 बजे बाइक से फरार हो गया. काफी देर बाद खोजबीन पर भी जब शिवांश का पता नहीं चला तो परिजनों ने अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करायी.

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सीसीटीवी में आरोपी हुआ कैद

घटना की सूचना पर पुलिस अधीक्षक तुरंत खरसिया चौकी पहुंचे. वहीं  साइबर टीम  संदेही के संभावित आरोपी की पड़ताल में जुट गयी. इसी बीच बिलासपुर पुलिस महानिरीक्षक रतनलाल डांगी भी मौके पर पहुंच गये. इसी दरम्यान शातिर आरोपीगण पुलिस की नाकेबंदी के रास्तों को जानते हुए मुख्य मार्ग को छोड़ते हुए पहाड़ी व अंदरूनी रास्तों का प्रयोग करते बम्हनीनडीह- नंदेली- तारापुर अमलीभौना होते हुए रायगढ़ की सीमा पार करने की जानकारी मिली. जबकि खरसिया में संदेही अपने परिचितों को बिहार जाने की बात बताई थी ताकि पुलिस भ्रमित होकर बिहार की ओर टीम रवाना करें.  यही नहीं संदेही खिलावन महंत बालक को घर से मोटरसाइकिल में बिठा कर ले गया था.

सीसीटीवी फुटेज में भी वह बाइक में दिखा परन्तु अपने साथियों के साथ अपनी पूर्व प्लानिंग अनुसार खिलावन महंत पुलिस को चकमा देने बाइक से निकला और रास्ते में बाइक छोड़ अपने दो साथी अमर दास महंत व संजय सिदार (ड्राइवर) जो किराये की अर्टिगा कार के साथ रास्ते में उसका इंतजार कर रहे थे, उनसे मिला. अब तीनों आरोपी बालक को कार में बिठाकर झारखंड रवाना हुये, वे इस घटना में अपने को सुरक्षित रखने झारखंड के पेशेवर अपहरण गिरोह को सौंपने के लिये सम्पर्क कर रहे थे. उसके बाद आरोपियों की योजना  बालक के पिता से 25 लाख रूपये की डिमांड करने की थी. मगर पुलिस की चाक-चौबंद व्यवस्था में अंतर अपहरणकर्ता गिरफ्तार हुए और जेल की सीखचों में पहुंच गए हैं.

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Crime Story- सोनू का खूनी खेल: भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

‘‘तारीफ के लिए शुक्रिया जनाब. आप को इस बात का पता तो चला कि मैं आप का कितना खयाल रखती हूं. मैं तो अभी तक यही सोचती थी कि न जाने कब आप को पता चलेगा और कब मैं अपने दिल का हाल बयां कर पाऊंगी.’’ कह कर सोनू ने अपनी नजरें झुका लीं.

‘‘क्या मतलब…’’ आशीष ने उस के चेहरे पर नजरें गड़ा कर पूछा, ‘‘कहना क्या चाहती हो?’’

‘‘अब इतने भी अंजान नहीं हो तुम कि इस का क्या मतलब ही न जानते हो. जो मैं तुम्हारा हर समय हरदम खयाल रखती हूं, वह भी एक पत्नी की तरह, तो क्यों रखती हूं.’’

‘‘तो तुम ही खुल कर बता दो कि तुम्हें मेरा इतना खयाल क्यों है.’’ उस ने पूछा.

‘‘मैं तुम को पसंद करती हूं तुम से प्यार करती हूं, इसीलिए मुझे तुम्हारा इतना खयाल रहता है. मुझे तुम्हारा साथ पसंद है इसीलिए हमेशा तुम्हारे पास ही बनी रहती हूं, लेकिन तुम हो कि मेरे जज्बातों की फिक्र ही नहीं है.’’ सोनू ने यह कह कर एक बार फिर अपनी नजरें झुका लीं और मायूसी का लबादा ओढ़ लिया.

आशीष उस की बात पर मंदमंद मुसकराते हुए बोला, ‘‘मैं जानता था लेकिन जानबूझ कर अंजान बना था. तुम्हारे इतना सब करने पर कोई मूर्ख व्यक्ति भी समझ जाएगा कि तुम्हारे दिल में क्या है तो मैं तो पढ़ालिखा हूं. तुम्हारी जुबां से सुनना चाहता था, इसलिए अंजान बनने का नाटक कर रहा था.’’

यह सुनते ही सोनू की खुशी का पारावार न रहा, ‘‘मतलब मुझे इतने दिनों से बना रहे थे कि कुछ नहीं जानते हो. मुझे बता तो देते मैं तो वैसे भी तुम पर वारी जा रही थी.’’ कह कर सोनू आशीष के सीने से लग गई. उस की आंखों में अपनी जीत की खुशी चमक रही थी.

‘‘तुम पत्नी जैसे सब काम कर रही थीं लेकिन एक काम छोड़ कर…’’ शरारती अंदाज में तिरछी नजरों से आशीष ने सोनू को देख कर कहा.

सोनू ने एक पल के लिए दिमाग पर जोर दे कर सोचा, फिर अगले ही पल आशीष की बात का मतलब समझते ही वह शरमा गई और उस के सीने में अपना मुंह छिपा लिया. उस के बाद उन के बीच शारीरिक रिश्ता भी कायम हो गया.

आशीष और सोनू के बीच उम्र में 18 साल का अंतर था. सोनू 27 साल की थी तो आशीष 45 वर्ष का. सोनू आशीष के साथ उस की पत्नी बन कर रहने लगी. अपने नाम के आगे शुक्ला लगाने लगी. जिस से भी मिलती, बातें करती तो अपने आप को आशीष की पत्नी ही बताती.

समय के साथ ब्याहता राखी को पता चल गया कि उस का पति आशीष सोनू नाम की किसी महिला के साथ रह रहा है. पति आशीष से राखी ने बात की तो उस ने कह दिया कि जैसा वह सोच रही है वैसा कुछ नहीं है. काम के सिलसिले में वह उस के पास रह रही है.

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आशीष के साथ रहते सोनू उसे अपने वश में करने की पूरी कोशिश करती थी. मसलन किसी भी कागज/दस्तावेज में पत्नी के नाम की जगह आशीष उस का ही नाम डाले. कोई संपत्ति खरीदे तो उस के नाम से ही खरीदे. इस के लिए वह आशीष पर दबाव बनाती थी. आशीष उस की बात को नजरअंदाज कर देता था.

सोनू के कहने पर ऐसा वह कर भी नहीं सकता था. लेकिन आशीष को अपनी बात न मानते देख कर सोनू नाराज हो जाती थी. अब उन दोनों में अकसर विवाद होने लगा. सोनू अपने भविष्य को ले कर चिंतित रहने लगी. आशीष से उस ने जिस वजह से रिश्ता बनाया, वह वजह उसे पूरी होती नहीं दिख रही थी.

आशीष का एक दोस्त था 23 वर्षीय आनंद तिवारी. आनंद अकबरपुर थाना क्षेत्र के सिंहमई कारीरात गांव में रहता था. उस के पिता रमेश तिवारी किसान थे. 3 भाइयों में वह सब से बड़ा था और अविवाहित था.

आनंद तिवारी आशीष से मिलने उस के कमरे पर आता रहता था. आनंद भी काफी स्मार्ट और जवान था. सोनू से 4 साल छोटा था. आशीष तो दोनों से उम्र में काफी बड़ा था. आनंद से कुछ छिपा नहीं था, वह जानता था कि सोनू आशीष की पत्नी नहीं है, उसे केवल अपने पास रखे हुए है. उस से अपना स्वार्थ सिद्ध कर रहा है. ऐसे में वह भी सोनू के नजदीक आने की जुगत में लग गया.

सोनू आशीष के द्वारा बात न मानने पर तनाव में रहती थी. ऐसे में आनंद उस के पास आता, उस से बातें करता, बातों के दौरान ही हलकाफुलका मजाक भी कर देता तो सोनू का मन बहल जाता. कुछ समय के लिए वह अपना सारा तनाव भूल जाती थी.

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सोनू भी उस से घुलनेमिलने लगी. दोनों एकदूसरे की चाहत को अपने प्रति समझ रहे थे. चाहत दिल में पैदा हुई तो अधिक समय साथ बिताने लगे.

एक दिन आनंद आया तो सोनू चाय बनाने लगी. आनंद को शरारत सूझी तो वह चुपके से सोनू के पीछे पहुंच गया और अचानक चिल्ला दिया. सोनू हड़बड़ा गई. हड़बड़ाहट में वह पीछे मुड़ी तो आनंद को खडे़ पाया, वह मुसकरा रहा था.

अगले भाग में पढ़ें- आशीष की हत्या क्यों हुई

Crime Story- सोनू का खूनी खेल: भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

नवंबर 2020 माह की 28 तारीख थी. जनपद अंबेडकरनगर के मालीपुर थाना क्षेत्र में मझुई नदी के नेमपुर घाट पर किसी अज्ञात व्यक्ति की लाश पड़ी हुई थी. सुबहसवेरे घाट पर पहुंचे लोगों ने लाश देखी तो कुछ देर में वहां देखने वालों का तांता लग गया. उसी दौरान किसी ने इस की सूचना मालीपुर थाने में फोन कर के दे दी.

सूचना पा कर थानाप्रभारी विवेक वर्मा पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. लाश पौलिथिन में लिपटी हुई थी. मृतक की उम्र लगभग 43-44 साल थी. उस के गले पर किसी तेज धारदार हथियार से वार किए जाने के निशान मौजूद थे. आसपास का निरीक्षण करने पर कोई सुबूत हाथ नहीं लगा. अनुमान लगाया गया कि हत्या कहीं और कर के लाश वहां फेंकी गई है. वहां मौजूद लोगों में से कोई भी लाश की शिनाख्त नहीं कर सका. मौके की काररवाई निपटाने के बाद थानाप्रभारी वर्मा ने लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी. यह बात 28 नवंबर, 2020 की है.

थाने आ कर थानाप्रभारी विवेक वर्मा ने जिले के समस्त थानों में दर्ज गुमशुदगी के बारे में पता किया तो अकबरपुर थाने में 45 वर्षीय आशीष शुक्ला नाम के व्यक्ति की गुमशुदगी दर्ज होने की बात पता चली. गुमशुदगी आशीष के साथ लिवइन में रहने वाली सोनू नाम की युवती ने दर्ज कराई थी. सोनू को बुला कर लाश की शिनाख्त कराई गई तो उस ने उस की शिनाख्त आशीष के रूप में की.

सोनू ने पूछताछ में बताया कि एक दिन पहले देर रात किसी का फोन आया था, जिस के बाद आशीष घर से चले गए थे. आज उन की लाश मिली.

पता चला कि आशीष लखीमपुर जिले की कोतवाली सदर अंतर्गत कनौजिया कालोनी में रहता था. आशीष अंबेडकरनगर में अमीन पद पर कार्यरत था और कोतवाली शहर के मुरादाबाद मोहल्ले में किराए के मकान में रहता था. उस के साथ उस की कथित पत्नी सोनू शुक्ला रहती थी.

लखीमपुर में आशीष की पत्नी राखी और बच्चे रहते थे. राखी को पति की लाश मिलने की सूचना मिली तो वह तुरंत अंबेडकरनगर पहुंच गई. मालीपुर थाने में उस ने दी तहरीर में पति की हत्या का आरोप सोनू शुक्ला और उस के 3 साथियों विवेक, विकास पर लगाया.

राखी की तहरीर के आधार पर थानाप्रभारी विवेक वर्मा ने सोनू और उस के साथियों के खिलाफ भादंवि की धारा 302/201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

30 नवंबर को थानाप्रभारी ने सोनू को हिरासत में ले कर पूछताछ की तो थोड़ी सख्ती करने पर वह टूट गई और आशीष की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. उस ने बताया कि आशीष की हत्या में उस के प्रेमी आनंद तिवारी, उस के साथी मूलसजीवन पांडेय और राजीव कुमार तिवारी उर्फ राजू ने साथ दिया था.

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पूछताछ के बाद पुलिस ने उसी दिन आनंद और मूल सजीवन को गिरफ्तार कर लिया गया.  उन सभी से पूछताछ के बाद आशीष की हत्या की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार थी—

आशीष शुक्ला लखीमपुर खीरी क्षेत्र में एलआरपी रोड पर स्थित कनौजिया कालोनी में रहते थे. 18 वर्ष पहले उन का विवाह राखी से हुआ था. राखी काफी सरल स्वभाव की थी. उस ने आते ही आशीष की जिंदगी को महका दिया था.

आशीष भी सरल स्वभाव की राखी को हमसफर के रूप में पा कर काफी खुश हुआ. कालांतर में राखी ने एक बेटे आयुष (17 वर्ष) और बेटी अर्चिता (12 वर्ष) को जन्म दे दिया. आयुष के जन्म के बाद 2006 में आशीष की नौकरी अमीन के पद पर लग गई. वह अंबेडकरनगर में ही कोतवाली शहर के मुरादाबाद मोहल्ले में किराए पर कमरा ले कर रह रहा था.

जब सब कुछ अच्छा चल रहा होता है, कभीकभी तभी अचानक से जिंदगी में ऐसा खतरनाक मोड़ आ जाता है कि इंसान न संभले तो सब कुछ तहसनहस हो जाता है.

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आशीष की जिंदगी में भी सब कुछ अच्छा चल रहा था कि जिंदगी में एक ऐसा मोड़ आया कि उस की जिंदगी दूसरे रास्ते पर चल पड़ी. वह रास्ता उस के और उस के परिवार के लिए कितना खतरनाक होने वाला था, आशीष को इस का बिलकुल आभास नहीं था.

अंबेडकरनगर में काम के दौरान उस की मुलाकात सोनू नाम की युवती से हुई. 27 वर्षीय सोनू इब्राहिमपुर थाना क्षेत्र के बड़ा गांव की रहने वाली थी. उस के पिता विजय कुमार तिवारी की मृत्यु हो चुकी थी.

सोनू 2 भाई व 3 बहनें थीं. सोनू काफी महत्त्वाकांक्षी थी. पिता के न रहने पर उस के विवाह होने में भी अड़चन आ रही थी. इसलिए उस ने अपने लिए खुद ही अच्छा हमसफर तलाश करने की ठान ली.

इसी तलाश ने उसे आशीष शुक्ला तक पहुंचा दिया. आशीष एक तो सरकारी नौकरी करता था, साथ ही काफी स्मार्ट भी था. सोनू ने उस की तरफ अपने कदम बढ़ाने शुरू कर दिए. सोनू ने आशीष के बारे में पूरी जानकारी जुटा ली. उसे यह भी पता था कि आशीष शादीशुदा है और 2 बच्चों का पिता है. लेकिन सोनू के लिए अच्छी बात यह थी कि उस की पत्नी और बच्चे लखीमपुर में रहते थे.

आशीष को सोनू ने अपने रूपजाल में फांसना शुरू कर दिया. आशीष के साथ वह अधिक से अधिक समय बिताने लगी. उस के लिए खाना बना देती. घर में बना उस के हाथ का खाना खा कर आशीष को बड़ा अच्छा लगता था. वैसे आशीष कभी खुद खाना बना लेता था या होटल पर खा लेता था.

सोनू अच्छी तरह जानती थी कि किसी भी मर्द के दिल तक पहुंचने का रास्ता उस के पेट से हो कर जाता है. भरपेट मनपसंद खाना मिलता तो आशीष सोनू की जम कर तारीफ करता. समय के साथ दोनों काफी नजदीक आने लगे.

आशीष अपनी पत्नी राखी को धोखा नहीं देना चाहता था, लेकिन सोनू का साथ पा कर वह दिल के हाथों ऐसा मजबूर हुआ कि वह अपने आप को रोक नहीं पाया और अपनी जिंदगी को दूसरे रास्ते पर ले गया. उस रास्ते पर सोनू बांहें फैलाए उस का इंतजार कर रही थी.

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अब सोनू हर दूसरेतीसरे दिन आशीष के कमरे पर ही रुकने लगी. रुकती तो खाना बनाने के साथ ही बाकी काम भी वह कर देती थी. सोनू उस के साथ ऐसा व्यवहार करती जैसे उस की पत्नी हो. आशीष को यह सब काफी अच्छा लगता.

एक रात जब दोनों बैठे बातें कर रहे थे तो आशीष ने उस से कह दिया, ‘‘सोनू तुम मेरा बहुत खयाल रखती हो. इतना खयाल तो सिर्फ पत्नी ही रख सकती है. तुम मेरी पत्नी न होते हुए भी पत्नी जैसा खयाल रख रही हो.’’

अगले भाग में पढ़ें- राखी को पता चल गया कि उस का पति किसी महिला के साथ रह रहा है

Crime Story- सोनू का खूनी खेल: भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

सोनू उस की शरारत समझ गई. वह उसे मारने दौड़ी तो वह वापस हुआ तो आगे पलंग था. वह उस से टकराने से बचने के लिए रुका तो पीछे भागी सोनू उस से टकरा गई. दोनों आपस में टकराए तो एक साथ पलंग पर गिर गए. दोनों की सांसें एकदूसरे के चेहरे से टकरा रही थी तो दिल भी आपस में मिल गए. उस समय दोनों के दिल की धड़कनें काफी तेज थीं.

तन सटे होने के कारण एकदूसरे के दिल की तेज धड़कनों को दोनों ही महसूस कर रहे थे. दोनों जुबां से तो कुछ नहीं कह रहे थे लेकिन आंखें बहुत कुछ कह रही थीं. आनंद सोनू को इतने नजदीक पा कर खुशी से भर उठा और बेसाख्ता बोला, ‘‘आई लव यू…आई लव यू, सोनू.’’

आनंद के इन मीठे बोलों ने सोनू के कानों को सुखद अनुभूति कराई. उस ने आंखें बंद कीं तो होंठ थिरक उठे, ‘‘आई लव यू टू आनंद.’’

इस के बाद उन के बीच शारीरिक रिश्ता कायम हो गया. सोनू को आनंद के साथ आनंद का सुखद एहसास हुआ.

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उस दिन के बाद उन के बीच संबंधों का सिलसिला अनवरत चलने लगा. अब सोनू आनंद के साथ जिंदगी बिताने के सपने देखने लगी थी. क्योंकि आशीष से अब उसे किसी प्रकार की उम्मीद

नहीं रह गई थी. लेकिन आशीष की सरकारी नौकरी और संपत्ति का लालच उसे जरूर था.

आनंद के साथ जिंदगी बिताने के लिए उसे आशीष की नौकरी और संपत्ति की जरूरत थी. वैसे भी इन चीजों को पाने के लिए सोनू ने काफी प्रयास किया था और समय भी बर्बाद किया था. वह ऐसे आसानी से सब छोड़ नहीं छोड़ सकती थी.

इसलिए उस ने आनंद से बात की तो आनंद के मन में भी लालच पैदा हो गया. सरकारी नौकरी और संपत्ति तभी हाथ लग सकती थी, जब आशीष जिंदा न रहे. इसलिए दोनों ने आशीष की हत्या करने का फैसला कर लिया.

आशीष की हत्या में साथ देने के लिए आनंद तिवारी ने अपने 2 साथियों मूलसजीवन पांडेय निवासी गांव गंगापुर भुलिया जिला सुलतानपुर और राजीव कुमार तिवारी उर्फ राजू निवासी गांव भारीडीहा अंबेडकरनगर को तैयार कर लिया. मूलसजीवन और राजू दोनों ही अकबरपुर के आरडी लौज में काम करते थे और इस समय वहीं रह रहे थे.

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27 नवंबर की रात 11 बजे के करीब सोनू और आशीष का विवाद हुआ. विवाद के बाद आशीष सो गया. सोनू ने आनंद को उस के साथियों के साथ बुला लिया. आनंद अपनी बजाज पल्सर बाइक से दोनों साथियों को ले कर आशीष के कमरे पर पहुंचा.

उन लोगों को आया देख कर सोनू ने धीरे से दरवाजा खोल दिया. तीनों अंदर आ गए. सोते समय आशीष के गले पर तेज धारदार चाकू व कैंची से कई प्रहार किए गए. आशीष चीख भी न सका और उस की सांसों की डोर टूट गई.

आशीष को मारने के बाद उन्होंने उस की लाश एक पौलिथिन में लपेट कर उस की ही हुंडई इयान इरा कार में डाल दी और उसे मालीपुर थाना क्षेत्र में मझुई नदी के नेमपुर घाट पर फेंक आए. आने के बाद कार सुलतानपुर के दोस्तपुर थाना क्षेत्र में लावारिस हालत में छोड़ दी.

अगले दिन सोनू ने अकबरपुर थाने जा कर आशीष की गुमशुदगी लिखाई. लेकिन चारों का गुनाह छिप न सका. गिरफ्तार तीनों अभियुक्तों की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त चाकू, कैंची, 5 मोबाइल फोन, पल्सर बाइक और आशीष की इयान कार बरामद कर ली.

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कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद तीनों को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक थानाप्रभारी विवेक वर्मा ने चौथे अभियुक्त राजीव तिवारी उर्फ राजू को भी गिरफ्तार कर लिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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