राजनीति का डीएनए : भाग 1

अचानक अवध वापस आ गया. रूपमती दरवाजा बंद करना भूल गई थी. वह बिस्तर पर अपने प्रेमी के साथ थी. वह रंगे हाथों पकड़ी गई थी. पलभर के लिए तो उसे लगा कि मौत का फरिश्ता सामने खड़ा है, लेकिन वह औरत ही क्या, जो चालबाज न हो. रूपमती चीखनेचिल्लाने लगी. प्रेमी के ऊपर से हट कर वह अपने कपड़े ले कर अवध की तरफ ऐसे दौड़ी मानो अवध की गैरहाजिरी में उस की पत्नी के साथ जबरदस्ती हो रही थी.

प्रेमी जान बचाने के लिए भागा और अवध अपनी पत्नी के साथ रेप करने वाले को मारने के लिए दौड़ा. जैसा रूपमती साबित करना चाहती थी, अवध को वैसा ही लगा. जब रूपमती ने देखा कि अवध कुल्हाड़ी उठा कर प्रेमी की तरफ दौड़ने को हुआ है, तो उस के अंदर की प्रेमिका ने प्रेमी को बचाने की सोची.

रूपमती ने अवध को रोकते हुए कहा, ‘‘मत जाओ उस के पीछे. आप की जान को खतरा हो सकता है. उस के पास तमंचा है. आप को कुछ हो गया, तो मेरा क्या होगा?’’ तमंचे का नाम सुन कर अवध रुक गया. वैसे भी वह गुस्से में दौड़ा था. कदकाठी में सामने वाला उस से दोगुना ताकतवर था और उस के पास तमंचा भी था.

रूपमती ने जल्दीजल्दी कपड़े पहने. खुद को उस ने संभाला, फिर अवध से लिपट कर कहने लगी, ‘‘अच्छा हुआ कि आप आ गए. आज अगर आप न आते, तो मैं किसी को मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहती.’’ अवध अभी भी गुस्से में था. रूपमती उस के सीने से चिपटी हुई यह जानना चाहती थी कि वह क्या सोच रहा है? कहीं उसे उस पर शक तो नहीं हुआ है?

अवध ने कहा, ‘‘लेकिन, तुम तो उस के ऊपर थीं.’’ रूपमती घबरा गई. उसे इसी बात का डर था. लेकिन औरतें तो फरिश्तों को भी बेवकूफ बना सकती हैं, फिर उसे तो एक मर्द को, वह भी अपने पति को बेवकूफ बनाना था.

सब से पहले रूपमती ने रोना शुरू किया. औरत वही जो बातबात पर आंसू बहा सके, सिसकसिसक कर रो सके. उस के रोने से जो पिघल सके, उसी को पति कहते हैं. अवध पिघला भी. उस ने कहा, ‘‘देखो, मैं ठीक समय पर आ गया और वह भाग गया. तुम्हारी इज्जत बच गई. अब रोने की क्या बात है?’’

‘‘आप मुझ पर शक तो नहीं कर रहे हैं?’’ रूपमती ने रोते हुए पूछा. ‘‘नहीं, मैं सिर्फ पूछ रहा हूं,’’ अवध ने उस के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा.

रूपमती समझ गई कि सिर पर हाथ फेरने का मतलब है अवध को उस पर यकीन है, लेकिन जो सीन अवध ने अपनी आंखों से देखा है, उसे झुठलाना है. पहले रूपमती ने सोचा कि कहे, ‘उस आदमी ने मुझे दबोच कर अपनी ताकत से जबरदस्ती करते हुए ऊपर किया, फिर वह मुझे नीचे करने वाला ही था कि आप आ गए.’

लेकिन जल्दी ही रूपमती ने सोचा कि अगर अवध ने ज्यादा पूछताछ की, तो वह कब तक अपने झूठ में पैबंद लगाती रहेगी. कब तक झूठ को झूठ से सिलती रहेगी. लिहाजा, उस ने रोतेसिसकते एक लंबी कहानी सुनानी शुरू की, ‘‘आज से 6 महीने पहले जब आप शहर में फसल बेचने गए थे, तब मैं कुएं से पानी लेने गई थी. दिन ढल चुका था. ‘‘मैं ने सोचा कि अंधेरे में अकेले जाना ठीक नहीं होगा, लेकिन तभी दरवाजा खुला होने से न जाने कैसे एक सूअर अंदर आ गया. मैं ने उसे भगाया और घर साफ करने के लिए घड़े का पानी डाल दिया. अब घर में एक बूंद पानी नहीं था.

‘‘मैं ने सोचा कि रात में पीने के लिए पानी की जरूरत पड़ सकती है. क्यों न एक घड़ा पानी ले आऊं. ‘‘मैं पानी लेने पनघट पहुंची. वहां पर उस समय कोई नहीं था. तभी वह

आ धमका. उस ने बताया कि मेरा नाम ठाकुर सूरजभान है और मैं गांव

के सरपंच का बेटा हूं. ‘‘वह मेरे साथ जबरदस्ती करने लगा. उस ने मेरी इच्छा के खिलाफ मेरे कपड़े उतार डाले. मैं दौड़ते हुए कुएं के पास पहुंच गई.

‘‘मैं ने रो कर कहा कि अगर मेरे साथ जबरदस्ती की, तो मैं कुएं में कूद कर अपनी जान दे दूंगी. उस ने डर कर कहा कि अरे, तुम तो पतिव्रता औरत हो. आज के जमाने में तुम जैसी सती औरतें भी हैं, यह तो मैं ने सोचा ही नहीं था. ‘‘लेकिन तभी उस ने कैमरा निकाल कर मेरे फोटो खींच लिए और माफी मांग कर चला गया.

‘‘मैं डरी हुई थी. जान और इज्जत तो बच गई, पर फोटो के बारे में याद ही नहीं रहा. ‘‘दूसरे दिन मैं हिम्मत कर के उस के घर पहुंची और कहा कि तुम ने मेरे जो फोटो खींचे हैं, वे वापस कर दो, नहीं तो मैं बड़े ठाकुर और गांव वालों को बता दूंगी. थाने में रिपोर्ट लिखाऊंगी.

‘‘उस ने डरते हुए कहा कि मैं फोटो तुम्हें दे दूंगा, पर अभी तुम जाओ. वैसे भी चीखनेचिल्लाने से तुम्हारी ही बदनामी होगी और सब बिना कपड़ों की तुम्हारे फोटो देखेंगे, तो अच्छा नहीं लगेगा. मैं तुम्हारे पति की गैरहाजिरी में तुम्हें फोटो दे जाऊंगा. ‘‘आप 2 दिन की कह कर गए थे. मैं ने ही उसे खबर पहुंचाई कि मेरे पति घर पर नहीं हैं. फोटो ला कर दो.

‘‘सूरजभान फोटो ले कर आया, लेकिन मुझे अकेला देख उस के अंदर का शैतान जाग उठा. उस ने फिर मेरे कपड़े उतारने की कोशिश की और मुझे नीचे पटका. ‘‘मैं ने पूरी ताकत लगाई. खुद को छुड़ाने के चक्कर में मैं ने उसे धक्का दिया. वह नीचे हुआ और मैं उस के ऊपर आ गई. अभी मैं उठ कर भागने ही वाली थी कि आप आ गए…’’

रूपमती ने अवध की तरफ रोते हुए देखा. उसे लगा कि उस के ऊपर उठने वाले सवाल का जवाब अवध को मिल गया था और उस का निशाना बिलकुल सही था, क्योंकि अवध उस के सिर पर प्यार से दिलासा भरा हाथ फिरा रहा था. अवध ने कहा, ‘‘मुझे इस बात की खुशी है कि तुम ने पनघट पर अकेले बिना कपड़ों के हो कर भी जान पर खेल कर अपनी इज्जत बचाई और आज मैं आ गया. तुम्हारा दामन दागदार नहीं हुआ.’’

रूपमती ने बनावटी गुस्से से कहा, ‘‘आप क्या सोचते हैं कि मैं उसे कामयाब होने देती? मैं ने नीचे तो गिरा ही दिया था बदमाश को. उस के बाद उठ कर कुल्हाड़ी से उस की गरदन काट देती. और अगर कहीं वह कामयाब हो जाता, तो तुम्हारी रूपमती खुदकुशी कर लेती.’’

‘‘तुम ने मुझे बताया नहीं. अकेले इतना सबकुछ सहती रही…’’ अवध ने रूपमती के माथे को चूमते हुए कहा, ‘‘मैं बड़े ठाकुर, गांव वालों और पुलिस से बात करूंगा. तुम्हें डरने की जरा भी जरूरत नहीं है. जब तुम इतना सब कर सकती हो, तो मैं भी पति होने के नाते सूरजभान को सजा दिला सकता हूं. वे फोटो लाना मेरा काम है,’’ अवध ने कहा. ‘‘नहीं, ऐसा मत करना. मेरी बदनामी होगी. मैं जी नहीं पाऊंगी. आप के कुछ करने से पहले वह मेरे फोटो गांव वालों को दिखा कर मुझे बदनाम कर देगा.

‘‘पुलिस के पास जाने से क्या होगा? वह लेदे कर छूट जाएगा. इस से अच्छा तो यह है कि आप मुझे जहर ला कर दे दें. मैं मर जाऊं, फिर आप जो चाहे करें,’’ रूपमती रोतेरोते अवध के पैरों पर गिर पड़ी. ‘‘तो क्या मैं हाथ पर हाथ धरे बैठा रहूं? कुछ न करूं?’’ अवध ने कहा, ‘‘तुम्हारी इज्जत, तुम्हारे फोटो लेने वाले को मैं यों ही छोड़ दूं?’’

‘‘मैं ने ऐसा कब कहा? लेकिन हमें चालाकी से काम लेना होगा. गुस्से में बात बिगड़ सकती है,’’ रूपमती ने अवध की आंखों में झांक कर कहा. ‘‘तो तुम्हीं कहो कि क्या किया जाए?’’ अवध ने हथियार डालने वाले अंदाज में पूछा.

‘‘आप सिर्फ अपनी रूपमती पर भरोसा बनाए रखिए. मुझ से उतना ही प्यार कीजिए, जितना करते आए हैं,’’ कह कर रूपमती अवध से लिपट गई. अवध ने भी उसे अपने सीने से लगा लिया. अगले दिन गांव के बाहर सुनसान हरेभरे खेत में सूरजभान और रूपमती एकदूसरे से लिपटे हुए थे.

सूरजभान ने कहा ‘‘तुम तो पूरी गिरगिट निकलीं.’’ ‘‘ऐसी हालत में और क्या करती? वह 2 दिन की कह कर गया था. मुझे क्या पता था कि वह अचानक आ जाएगा. तुम ने अंदर से कुंडी बंद करने का मौका भी नहीं दिया था…’’ रूपमती ने सूरजभान के बालों को सहलाते हुए कहा, ‘‘मुझे कहानी बनानी पड़ी. तुम भागते हुए मेरे कुछ फोटो खींचो. कहानी के हिसाब से मुझे तुम से अपने वे फोटो हासिल करने हैं. तुम से फोटो ले कर मैं उसे दिखा कर फोटो फाड़ दूंगी, तभी मेरी कहानी पूरी होगी.’’

सूरजभान ने कैमरे से उस के कुछ फोटो लेते हुए कहा, ‘‘लेकिन आज नहीं मिल पाएंगे. 1-2 दिन लगेंगे.’’ ‘‘ठीक है, लेकिन सावधान रहना. फोटो मिलने के बाद वह मेरी इज्जत लूटने वाले के खिलाफ कुछ भी कर सकता है,’’ रूपमती ने हिदायत दी.

‘‘तुम चिंता मत करो. मैं निबट लूंगा,’’ सूरजभान ने कहा. रूपमती ने वापस जाते समय मन ही मन कहा, ‘मैं क्यों चिंता करूं. तुम मरो या वह मरे, मुझे क्या?

‘लेकिन हां, अवध को अचानक नहीं आना चाहिए था. उस के आने से मेरी मुश्किलें बढ़ गईं. सबकुछ ठीकठाक चल रहा था. सूरजभान को भी ध्यान रखना चाहिए था. इतनी जल्दबाजी ठीक नही. अब भुगतें दोनों. ‘मुझे तो दोनों चाहिए थे. मिल भी रहे थे, पर अब दोनों का आमनासामना हो गया है, तो कितना भी समझाओ, मानेंगे थोड़े ही.’

घर आने पर रूपमती ने अवध से कहा, ‘‘सूरजभान का कहना है कि मैं फोटो तुम्हारे पति को माफी मांग कर दूंगा. शराब के नशे में मुझ से गलती हो गई. इज्जत लूटने की कोशिश में कामयाब तो हुआ नहीं, सो चाहे वे जीजा बन कर माफ कर दें. मैं राखी बंधवाने को तैयार हूं. चाहे अपना छोटा भाई समझ कर भाई की पहली गलती को यह सोच कर माफ कर दें कि देवरभाभी के बीच मजाक चल रहा था.’’

सुगंध: भाग 2

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लेखक- सुधीर शर्मा

भाग- 2

चोपड़ा को दिल का दौरा पड़ने की चर्चा शुरू हुई, तो नवीन उत्तेजित लहजे में बोला, ‘‘चाचाजी, यह तो होना ही था.’’ रोजरोज की शराब और दौलत कमाने के जनून के चलते उन्हें दिल का दौरा कैसे न पड़ता?

‘‘और इस बीमार हालत में भी उन का घमंडी व्यवहार जरा भी नहीं बदला है. शिखा उन से मिलने पहुंची तो उसे डांट कर कमरे से बाहर निकाल दिया. उन के जैसा खुंदकी और अकड़ू इनसान शायद ही दूसरा हो.’’

‘‘बेटे, बड़ों की बातों का बुरा नहीं मानते और ऐसे कठिन समय में तो उन्हें अकेलापन मत महसूस होने दो. वह दिल का बुरा नहीं है,’’ मैं उन्हें देर तक ऐसी बातें समझाने के बाद जब वहां से उठा तो मन बड़ा भारी सा हो रहा था.

चोपड़ा ने यों तो नवीन को पूरी स्वतंत्रता से ऐश करने की छूट हमेशा दी, पर जब दोनों के बीच टकराव की स्थिति पैदा हुई तो बाप ने बेटे को दबा कर अपनी चलानी चाही थी.

जिस घटना ने नवीन के जीवन की दिशा को बदला, वह लगभग 3 साल पहले घटी थी.

उस दिन मेरे बेटे विवेक का जन्मदिन था. नवीन उसे नए मोबाइल फोन का उपहार देने के लिए अपने साथ बाजार ले गया.

वहां दौलत की अकड़ से बिगडे़ नवीन की 1 फोन पर नीयत खराब हो गई. विवेक के लिए फोन खरीदने के बाद जब दोनों बाहर निकलने के लिए आए तो शोरूम के सुरक्षा अधिकारी ने उसे रंगेहाथों पकड़ जेब से चोरी का मोबाइल बरामद कर लिया.

‘गलती से फोन जेब में रह गया है. मैं ऐसे 10 फोन खरीद सकता हूं. मुझे चोर कहने की तुम सब हिम्मत कैसे कर रहे हो,’ गुस्से से भरे नवीन ने ऐसा आक्रामक रुख अपनाया, पर वे लोग डरे नहीं.

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मामला तब ज्यादा गंभीर हो गया जब नवीन ने सुरक्षा अधिकारी पर तैश में आ कर हाथ छोड़ दिया.

उन लोगों ने पहले जम कर नवीन की पिटाई की और फिर पुलिस बुला ली. बीचबचाव करने का प्रयास कर रहे विवेक की कमीज भी इस हाथापाई में फट गई थी.

पुलिस दोनों को थाने ले आई. वहीं पर चोपड़ा और मैं भी पहुंचे. मैं सारा मामला रफादफा करना चाहता था क्योंकि विवेक ने सारी सचाई मुझ से अकेले में बता दी थी, लेकिन चोपड़ा गुस्से से पागल हो रहा था. उस के मुंह से निकल रही गालियों व धमकियों के चलते मामला बिगड़ता जा रहा था.

उस शोरूम का मालिक भी रुतबेदार आदमी था. वह चोपड़ा की अमीरी से प्रभावित हुए बिना पुलिस केस बनाने पर तुल गया.

एक अच्छी बात यह थी कि थाने का इंचार्ज मुझे जानता था. उस के परिवार के लोग मेरे दवाखाने पर छोटीबड़ी बीमारियों का इलाज कराने आते थे.

उस की आंखों में मेरे लिए शर्मलिहाज के भाव न होते तो उस दिन बात बिगड़ती ही चली जाती. वह चोपड़ा जैसे घमंडी और बदतमीज इनसान को सही सबक सिखाने के लिए शोरूम के मालिक का साथ जरूर देता, पर मेरे कारण उस ने दोनों पक्षों को समझौता करने के लिए मजबूर कर दिया.

हां, इतना उस ने जरूर किया कि उस के इशारे पर 2 सिपाहियों ने अकेले में नवीन की पिटाई जरूर की.

‘बाप की दौलत का तुझे ऐसा घमंड है कि पुलिस का खौफ भी तेरे मन से उठ गया है. आज चोरी की है, कल रेप और मर्डर करेगा. कम से कम इतना तो पुलिस की आवभगत का स्वाद इस बार चख जा कि कल को ज्यादा बड़ा अपराध करने से पहले तू दो बार जरूर सोचे.’

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मेरे बेटे की मौजूदगी में उन 2 पुलिस वालों ने नवीन के मन में पुलिस का डर पैदा करने के लिए उस की अच्छीखासी धुनाई की थी.

उस घटना के बाद नवीन एकाएक उदास और सुस्त सा हो गया था. हम सब उसे खूब समझाते, पर वह अपने पुराने रूप में नहीं लौट पाया था.

फिर एक दिन उस ने घोषणा की, ‘मैं एम.बी.ए. करने जा रहा हूं. मुझे प्रापर्टी डीलर नहीं बनना है.’

यह सुन कर चोपड़ा आगबबूला हो उठा और बोला, ‘क्या करेगा एम.बी.ए. कर के? 10-20 हजार की नौकरी?’

‘इज्जत से कमाए गए इतने रुपए भी जिंदगी चलाने को बहुत होते हैं.’

‘क्या मतलब है तेरा? क्या मैं डाका डालता हूं? धोखाधड़ी कर के दौलत कमा रहा हूं?’

‘मुझे आप के साथ काम नहीं करना है,’ यों जिद पकड़ कर नवीन ने अपने पिता की कोई दलील नहीं सुनी थी.

बाद में मुझ से अकेले में उस ने अपने दिल के भावों को बताया था, ‘चाचाजी, उस दिन थाने में पुलिस वालों के हाथों बेइज्जत होने से मुझे मेरे पिताजी की दौलत नहीं बचा पाई थी. एक प्रापर्टी डीलर का बेटा होने के कारण उलटे वे मुझे बदमाश ही मान बैठे थे और मुझ पर हाथ उठाने में उन्हें जरा भी हिचक नहीं हो रही थी.

‘दूसरी तरफ आप के बेटे विवेक के साथ उन्होंने न गालीगलौज की, न मारपीट. क्यों उस के साथ भिन्न व्यवहार किया गया? सिर्फ आप के अच्छे नाम और इज्जत ने उस की रक्षा की थी.

‘मैं जब भी उस दिन अपने साथ हुए दुर्व्यवहार को याद करता हूं, तो मन शर्म व आत्मग्लानि से भर जाता है. मैं आगे इज्जत से जीना चाहता हूं…बिलकुल आप की तरह, चाचाजी.’

अब मैं उस से क्या कहता? उस के मन को बदलने की मैं ने कोशिश नहीं की. चोपड़ा ने उसे काफी डराया- धमकाया, पर नवीन ने एम.बी.ए. में प्रवेश ले ही लिया.

इन बापबेटे के बीच टकराव की स्थिति आगे भी बनी रही. नवीन बिलकुल बदल गया था. अपने पिता के नक्शेकदम पर चलने में उसे बिलकुल रुचि नहीं रही थी. किसी भी तरह से बस, दौलत कमाना उस के जीवन का लक्ष्य नहीं रहा था.

फिर उसे अपने साथ पढ़ने वाली शिखा से प्यार हो गया. वह शिखा से शादी करना चाहता है, यह बात सुन कर चोपड़ा बेहद नाराज हुआ था.

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‘अगर इस लड़के ने मेरी इच्छा के खिलाफ जा कर शादी की तो मैं इस से कोई संबंध नहीं रखूंगा. फूटी कौड़ी नहीं मिलेगी इसे मेरी दौलत की,’ ऐसी धमकियां सुन कर मैं काफी चिंतित हो उठा था.

दूसरी तरफ नवीन शिखा का ही जीवनसाथी बनना चाहता था. उस ने प्रेमविवाह करने का फैसला किया और पिता की दौलत को ठुकरा दिया.

नवीन और शिखा ने कोर्ट मैरिज की तो मेरी पत्नी और मैं उन की शादी के गवाह बने थे. इस बात से चोपड़ा हम दोनों से नाराज हो गया पर मैं क्या करता? जिस नवीन को मैं ने गोद में खिलाया था, उसे कठिन समय में बिलकुल अकेला छोड़ देने को मेरा दिल राजी नहीं हुआ था.

नवीन और शिखा दोनों नौकरी कर रहे थे. शिखा एक सुघड़ गृहिणी निकली. अपनी गृहस्थी वह बड़े सुचारु ढंग से चलाने लगी. चोपड़ा ने अपनी नाराजगी छोड़ कर उसे अपना लिया होता तो यह लड़की उस की कोठी में हंसीखुशी की बहार निश्चित ले आती.

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगने भाग में…

सुगंध: भाग 3

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लेखक- सुधीर शर्मा

भाग- 3

चोपड़ा ने मेरे घर आना बंद कर दिया. कभी किसी समारोह में हमारा आमनासामना हो जाता तो वह बड़ा खिंचाखिंचा सा हो जाता. मैं संबंधों को सामान्य व सहज बनाने का प्रयास शुरू करता, तो वह कोई भी बहाना बना कर मेरे पास से हट जाता.

अब उसे दिल का दौरा पड़ गया था. शराब, सिगरेट, मानसिक तनाव व बेटेबहू के साथ मनमुटाव के चलते ऐसा हो जाना आश्चर्य की बात नहीं थी.

उसे अपने व्यवहार व मानसिकता को बदलना चाहिए, कुछ ऐसा ही समझाने के लिए मैं अगले दिन दोपहर के वक्त उस से मिलने पहुंचा था.

उस दिन चोपड़ा मुझे थकाटूटा सा नजर आया, ‘‘यार अशोक, मुझे अपनी जिंदगी बेकार सी लगने लगी है. आज किसी चीज की कमी नहीं है मेरे पास, फिर भी जीने का उत्साह क्यों नहीं महसूस करता हूं मैं अपने अंदर?’’

उस का बोलने का अंदाज ऐसा था मानो मुझ से सहानुभूति प्राप्त करने का इच्छुक हो.

‘‘इस का कारण जानना चाहता है तो मेरी बात ध्यान से सुन, दोस्त. तेरी दौलत सुखसुविधाएं तो पैदा कर सकती है, पर उस से अकेलापन दूर नहीं हो सकता.

‘‘अपनों के साथ प्रेमपूर्वक रहने से अकेलापन दूर होता है, यार. अपने बहूबेटे के साथ प्रेमपूर्ण संबंध कायम कर लेगा तो जीने का उत्साह जरूर लौट आएगा. यही तेरी उदासी और अकेलेपन का टौनिक है,’’ मैं ने भावुक हो कर उसे समझाया.

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कुछ देर खामोश रहने के बाद उस ने उदास लहजे में जवाब दिया, ‘‘दिलों पर लगे कुछ जख्म आसानी से नहीं भरते हैं, डाक्टर. शिखा के साथ मेरे संबंध शुरू से ही बिगड़ गए. अपने बेटे की आंखों में झांकता हूं तो वहां अपने लिए आदर या प्यार नजर नहीं आता. अपने किए की माफी मांगने को मेरा मन तैयार नहीं. हम बापबेटे में से कोई झुकने को तैयार नहीं तो संबंध सुधरेंगे कैसे?’’

उस रात उस के इस सवाल का जवाब मुझे सूझ गया था. वह समाधान मेरी पत्नी को भी पसंद आया था.

सप्ताह भर बाद चोपड़ा को नर्सिंग होम से छुट्टी मिली तो मैं उसे अपने घर ले आया. सविता भाभी भी साथ में थीं.

‘‘तेरे भतीजे विवेक की शादी हफ्ते भर बाद है. मेरे साथ रह कर हमारा मार्गदर्शन कर, यार,’’ ऐसी इच्छा जाहिर कर मैं उसे अपने घर लाया था.

‘‘अरे, अपने बेटे की शादी का मेरे पास कोई अनुभव होता तो मार्गदर्शन करने वाली बात समझ में आती. अपने घर में दम घुटेगा, यह सोच कर शादीब्याह वाले घर में चल रहा हूं,’’ उस का निराश, उदास सा स्वर मेरे दिल को चीरता चला गया था.

नवीन और शिखा रोज ही हमारे घर आते. मेरी सलाह पर शिखा अपने ससुर के साथ संबंध सुधारने का प्रयास करने लगी. वह उन्हें खाना खिलाती. उन के कमरे की साफसफाई कर देती. दवा देने की जिम्मेदारी भी उसी को दे दी गई थी.

चोपड़ा मुंह से तो कुछ नहीं कहता, पर अपनी बहू की ऐसी देखभाल से वह खुश था लेकिन नवीन और उस के बीच खिंचाव बरकरार रहा. दोनों औपचारिक बातों के अलावा कोई अन्य बात कर ही नहीं पाते थे.

शादी के दिन तक चोपड़ा का स्वास्थ्य काफी सुधर गया था. चेहरे पर चिंता, नाराजगी व बीमारी के बजाय खुशी और मुसकराहट के भाव झलकते.

वह बरात में भी शामिल हुआ. मेरे समधी ने उस के आराम के लिए अलग से एक कमरे में इंतजाम कर दिया था. फेरों के वक्त वह पंडाल में फिर आ गया था.

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हम दोनों की नजरें जब भी मिलतीं, तो एक उदास सी मुसकान चोपड़ा के चेहरे पर उभर आती. मैं उस के मनोभावों को समझ रहा था. अपने बेटे की शादी को इन सब रीतिरिवाजों के साथ न कर पाने का अफसोस उस का दिल इस वक्त जरूर महसूस कर रहा होगा.

बहू को विदा करा कर जब हम चले, तब चोपड़ा और मैं साथसाथ अगली कार में बैठे हुए थे. सविता भाभी, मेरी पत्नी, शिखा और नवीन पहले ही चले गए थे नई बहू का स्वागत करने के लिए.

हमारी कार जब चोपड़ा की कोठी के सामने रुकी तो वह बहुत जोर से चौंका था.

सारी कोठी रंगबिरंगे बल्बों की रोशनी में जगमगा रही थी. जब चोपड़ा मेरी तरफ घूमा तो उस की आंखों में एक सवाल साफ चमक रहा था, ‘यह सब क्या है, डाक्टर?’

मैं ने उस का हाथ थाम कर उस के अनबुझे सवाल का जवाब मुसकराते हुए दिया, ‘‘तेरी कोठी में भी एक नई बहू का स्वागत होना चाहिए. अब उतर कर अपनी बहू का स्वागत कर और आशीर्वाद दे. रोनेधोने का काम हम दोनों यार बाद में अकेले में कर लेंगे.’’

चोपड़ा की आंखों में सचमुच आंसू झलक रहे थे. वह भरे गले से इतना ही कह सका, ‘‘डाक्टर, बहू को यहां ला कर तू ने मुझे हमेशा के लिए अपना कर्जदार बना लिया… थैंक यू… थैंक यू वेरी मच, मेरे भाई.’’

चोपड़ा में अचानक नई जान पड़ गई थी. उसे अपनी अधूरी इच्छाएं पूरी करने का मौका जो मिल गया था. बडे़ उत्साह से उस ने सारी काररवाई में हिस्सा लिया.

विवेक और नई दुलहन को आशीर्वाद देने के बाद अचानक ही चोपड़ा ने नवीन और शिखा को भी एक साथ अपनी छाती से लगाया और फिर किसी छोटे बच्चे की तरह बिलख कर रो पड़ा था.

ऐसे भावुक अवसर पर हर किसी की आंखों से आंसू बह निकले और इन के साथ हर तरह की शिकायतें, नाराजगी, दुख, तनाव और मनमुटाव का कूड़ा बह गया.

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‘‘तू ने सच कहा था डाक्टर कि रिश्तों के रंगबिरंगे फूल ही जिंदगी में हंसीखुशी और सुखशांति की सुगंध पैदा करते हैं, न कि रंगीन हीरों की जगमगाहट. आज मैं बहुत खुश हूं क्योंकि मुझे एकसाथ 2 बहुओं का ससुर बनने का सुअवसर मिला है. थैंक यू, भाई,’’ चोपड़ा ने हाथ फैलाए तो मैं आगे बढ़ कर उस के गले लग गया.

मेरे दोस्त के इस हृदय परिवर्तन का वहां उपस्थित हर व्यक्ति ने तालियां बजा कर स्वागत किया.

सुगंध: भाग 1

लेखक- सुधीर शर्मा

अपने दोस्त राजीव चोपड़ा को दिल का दौरा पड़ने की खबर सुन कर मेरे मन में पहला विचार उभरा कि अपनी जिंदगी में हमेशा अव्वल आने की दौड़ में बेतहाशा भाग रहा मेरा यार आखिर जबरदस्त ठोकर खा ही गया.

रात को क्लिनिक कुछ जल्दी बंद कर के मैं उस से मिलने नर्सिंग होम पहुंच गया. ड्यूटी पर उपस्थित डाक्टर से यह जान कर कि वह खतरे से बाहर है, मेरे दिल ने बड़ी राहत महसूस की थी.

मुझे देख कर चोपड़ा मुसकराया और छेड़ता हुआ बोला, ‘‘अच्छा किया जो मुझ से मिलने आ गया पर तुझे तो इस मुलाकात की कोई फीस नहीं दूंगा, डाक्टर.’’

‘‘लगता है खूब चूना लगा रहे हैं मेरे करोड़पति यार को ये नर्सिंग होम वाले,’’ मैं ने उस का हाथ प्यार से थामा और पास पड़े स्टूल पर बैठ गया.

‘‘इस नर्सिंग होम के मालिक डाक्टर जैन को यह जमीन मैं ने ही दिलाई थी. इस ने तब जो कमीशन दिया था, वह लगता है अब सूद समेत वसूल कर के रहेगा.’’

‘‘यार, कुएं से 1 बालटी पानी कम हो जाने की क्यों चिंता कर रहा है?’’

‘‘जरा सा दर्द उठा था छाती में और ये लोग 20-30 हजार का बिल कम से कम बना कर रहेंगे. पर मैं भी कम नहीं हूं. मेरी देखभाल में जरा सी कमी हुई नहीं कि मैं इन पर चढ़ जाता हूं. मुझ से सारा स्टाफ डरता है…’’

दिल का दौरा पड़ जाने के बावजूद चोपड़ा के व्यवहार में खास बदलाव नहीं आया था. वह अब भी गुस्सैल और अहंकारी इनसान ही था. अपने दिल के दौरे की चर्चा भी वह इस अंदाज में कर रहा था मानो उसे कोई मैडल मिला हो.

कुछ देर के बाद मैं ने पूछा, ‘‘नवीन और शिखा कब आए थे?’’

अपने बेटेबहू का नाम सुन कर चोपड़ा चिढ़े से अंदाज में बोला, ‘‘नवीन सुबहशाम चक्कर लगा जाता है. शिखा को मैं ने ही यहां आने से मना किया है.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘अरे, उसे देख कर मेरा ब्लड प्रेशर जो गड़बड़ा जाता है.’’

‘‘अब तो सब भुला कर उसे अपना ले, यार. गुस्सा, चिढ़, नाराजगी, नफरत और शिकायतें…ये सब दिल को नुकसान पहुंचाने वाली भावनाएं हैं.’’

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‘‘ये सब छोड़…और कोई दूसरी बात कर,’’ उस की आवाज रूखी और कठोर हो गई.

कुछ पलों तक खामोश रहने के बाद मैं ने उसे याद दिलाया, ‘‘तेरे भतीजे विवेक की शादी में बस 2 सप्ताह रह गए हैं. जल्दी से ठीक हो जा मेरा हाथ बंटाने के लिए.’’

‘‘जिंदा बचा रहा तो जरूर शामिल हूंगा तेरे बेटे की शादी में,’’ यह डायलाग बोलते हुए यों तो वह मुसकरा रहा था, पर उस क्षण मैं ने उस की आंखों में डर, चिंता और दयनीयता के भाव पढ़े थे.

नर्सिंग होम से लौटते हुए रास्ते भर मैं उसी के बारे में सोचता रहा था.

हम दोनों का बचपन एक ही महल्ले में साथ गुजरा था. स्कूल में 12वीं तक की शिक्षा भी  साथ ली थी. फिर मैं मेडिकल कालिज में प्रवेश पा गया और वह बी.एससी. करने लगा.

पढ़ाई से ज्यादा उस का मन कालिज की राजनीति में लगता. विश्वविद्यालय के चुनावों में हर बार वह किसी न किसी महत्त्वपूर्ण पद पर रहा. अपनी छात्र राजनीति में दिलचस्पी के चलते उस ने एलएल.बी. भी की.

‘लोग कहते हैं कि कोई अस्पताल या कोर्ट के चक्कर में कभी न फंसे. देख, तू डाक्टर बन गया है और मैं वकील. भविष्य में मैं तुझ से ज्यादा अमीर बन कर दिखाऊंगा, डाक्टर. क्योंकि दौलत पढ़ाई के बल पर नहीं बल्कि चतुराई से कमाई जाती है,’ उस की इस तरह की डींगें मैं हमेशा सुनता आया था.

उस की वकालत ठीक नहीं चली तो वह प्रापर्टी डीलर बन गया. इस लाइन में उस ने सचमुच तगड़ी कमाई की. मैं साधारण सा जनरल प्रेक्टिशनर था. मुझ से बहुत पहले उस के पास कार और बंगला हो गए.

हमारी दोस्ती की नींव मजबूत थी इसलिए दिलों का प्यार तो बना रहा पर मिलनाजुलना काफी कम हो गया. उस का जिन लोगों के साथ उठनाबैठना था, वे सब खानेपीने वाले लोग थे. उस तरह की सोहबत को मैं ठीक नहीं मानता था और इसीलिए हम कम मिलते.

हम दोनों की शादी साथसाथ हुई और इत्तफाक से पहले बेटी और फिर बेटा भी हम दोनों के घर कुछ ही आगेपीछे जन्मे.

चोपड़ा ने 3 साल पहले अपनी बेटी की शादी एक बड़े उद्योगपति खानदान में अपनी दौलत के बल पर की. मेरी बेटी ने अपने सहयोगी डाक्टर के साथ प्रेम विवाह किया. उस की शादी में मैं ने चोपड़ा की बेटी की शादी में आए खर्चे का शायद 10वां हिस्सा ही लगाया होगा.

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रुपए को अपना भगवान मानने वाले चोपड़ा का बेटा नवीन कालिज में आने तक एक बिगड़ा हुआ नौजवान बन गया था. उस की मेरे बेटे विवेक से अच्छी दोस्ती थी क्योंकि उस की मां सविता मेरी पत्नी मीनाक्षी की सब से अच्छी सहेली थी. इन दोनों नौजवानों की दोस्ती की मजबूत नींव भी बचपन में ही पड़ गई थी.

‘नवीन गलत राह पर चल रहा है,’ मेरी ऐसी सलाह पर चोपड़ा ने कभी ध्यान नहीं दिया था.

‘बाप की दौलत पर बेटा क्यों न ऐश करे? तू भी विवेक के साथ दिनरात की टोकाटाकी वाला व्यवहार मत किया कर, डाक्टर. अगर वह पढ़ाई में पिछड़ भी गया तो कोई फिक्र नहीं. उसे कोई अच्छा बिजनेस मैं शुरू करा दूंगा,’’ अपनी ऐसी दलीलों से वह मुझे खीज कर चुप हो जाने को मजबूर कर देता.

आज इस करोड़पति इनसान का इकलौता बेटा 2 कमरों के एक साधारण से किराए वाले फ्लैट में अपनी पत्नी शिखा के साथ रह रहा था. नर्सिंग होम से सीधे घर न जा कर मैं उसी के फ्लैट पर पहुंचा.

नवीन और शिखा दोनों मेरी बहुत इज्जत करते थे. इन दोनों ने प्रेम विवाह किया था. साधारण से घर की बेटी को चोपड़ा ने अपनी बहू बनाने से साफ मना कर दिया, तो इन्होंने कोर्ट मैरिज कर ली थी.

चोपड़ा की नाराजगी को नजरअंदाज करते हुए मैं ने इन दोनों का साथ दिया था. इसी कारण ये दोनों मुझे भरपूर सम्मान देते थे.

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

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प्रीत किए दुख होए : भाग 2

पिछले अंक में आप ने पढ़ा था:

काजल दलित थी और सुंदर ब्राह्मणों का लड़का. दोनों गांव के एक ही स्कूल में पढ़ते थे. छोटे स्कूल की पढ़ाई पूरी होने के बाद सुंदर बड़ी क्लास में पढ़ने के लिए न चाहते हुए भी अपने मामा के यहां चला गया. काजल गांव में ही पढ़ने लगी. वहां मामा सुंदर को पढ़ाने के नाम पर घर के सारे काम कराता था. उस के साथ मारपीट भी करता था. इस बात से सुंदर बहुत दुखी था. उसे काजल और अपने परिवार की बहुत याद आती थी.

अब पढ़िए आगे… 

मामा बबलू को आया देख आंसू पोंछ कर सुंदर ने चूल्हे पर पतीली चढ़ाई. देखते ही देखते एक साल बीत गया.

पंडिताइन ने सारे गहने बेच कर पैसा मामा बबलू को भेज दिया, क्योंकि सुंदर को हाकिम बनाने का झांसा जो दिया था. हर महीने फोन आता और डिमांड होती, कभी 2 हजार, कभी 5 हजार की.

एक दिन सुंदर को मौका मिल गया. यों तो मामा खुद जाता था सड़क पर पान खाने, पर पैर में बिवाई निकलने के चलते वह दर्द से चल नहीं पाता था, सो 10 का नोट दे कर सुंदर को ही भेजा. बस फिर क्या था, वह नोट रिकशे वाले को दे कर सुंदर वहां से पहुंच गया बेगुसराय स्टेशन.

एक ट्रेन खगडि़या के लिए चलने वाली थी, सो वह उस में चढ़ गया. पहुंच तो गया वह खगडि़या, लेकिन अब नंदीग्राम कैसे पहुंचे? पैसे नहीं थे, जो आटोरिकशा वाले को देता. चल पड़ा पैदल. रास्ते में एक गांव का तांगा मिला. चढ़ गया उस में. तांगे वाला गांव के चाचा लगते थे, जिन्होंने पैसे नहीं लिए.

सुंदर ज्यों ही घर पहुंचा कि मां की आवाज सुनाई दी, ‘‘कल कहीं से जुगाड़ कर 2 हजार रुपए भेज दो भाई को. बड़ा स्कूल है. एक दिन की देर में बहुत फाइन लग जाता है.’’

तभी सुंदर रो पड़ा और उस ने पुकारा, ‘‘मां.’’

मां दौड़ कर आवाज की ओर भागीं. किवाड़ की आड़ में छिपे सुंदर को सिसकता देख वे पिघल गईं.

‘‘सुंदर, क्या स्कूल में छुट्टी हो गई? तू वहां से अकेला कैसे आया?’’

‘‘अपने भरोसे. और स्कूल? वहां स्कूल ही नहीं है तो छुट्टी कैसी?’’ उस ने पीठ और हाथ दिखाए, जो मामा की मार से फफोले उठ कर चिपक गए थे.

‘‘देखो, देखो अपना सुंदर हाकिम बन कर आ गया,’’ मां इतना कह कर बेहोश हो कर गिर पड़ीं.

पंडितजी जो सोने वाले थे, एकदम उठे और पंडिताइन को पानी के छींटे मारे, तब कहीं वे होश में आईं और दहाड़ कर बोलीं, ‘‘भैया… नहीं छोड़ूंगी तुझे. तू भाई नहीं कसाई है. तू आ तो जरा,’’ और बेटे सुंदर को खिलानेपिलाने लगीं.

‘‘इस का नाम यहीं स्कूल में लिखा दूंगी. नहीं बनाना हाकिम,’’ मां बोलीं.

दूसरे दिन दोनों मांबेटे चले स्कूल, जिस में काजल भी पढ़ती थी. अब वह 10वीं जमात में थी.

‘‘मां, काजल मुझ से पढ़ने में आगे हो गई होगी?’’

‘‘क्यों नहीं? किसी मामा के फेर में पड़ी होगी क्या वह?’’

‘‘मां, मैं उस स्कूल में कभी नहीं जाऊंगा. वहां मुझे शर्म आएगी. काजल ताना कसेगी,’’ रुक कर सुंदर ठुनकने सा लगा.

‘‘मजाल है जो एक शब्द भी निकाले. चल मेरे साथ…’’

‘‘अरे सुंदर,’’ सुंदर को स्कूल में आया देख काजल चहक कर नजदीक आ गई, ‘‘तू तो शहर गया था न?’’

सुंदर ने कोई जवाब नहीं दिया और मां की आड़ में छिप गया.

‘‘चाची, सुंदर अब यहीं पढ़ेगा न?’’ काजल ने पूछा.

‘‘हां… क्यों? स्कूल तेरे बाप का है क्या? जा, अपनी सीट पर बैठ,’’ सुंदर की मां बोलीं.

बेचारी काजल अपना सा मुंह लिए सीट पर जा बैठी. सुंदर का भी दाखिला हो गया, वह भी उसी की क्लास में.

दूसरे दिन सुंदर स्कूल आया तो काजल से दूरी बना कर बैठा. काजल हारी नजरों से कभीकभार उसे देख लेती और अपनी किताब खोल कर उस में सुंदर को भूलने की कोशिश करती. छमाही इम्तिहान हुए. सब को नंबर मिले. जहां काजल सब से अव्वल थी, वहीं सुंदर सब से फिसड्डी.

इस बार पंडितजी चढ़े आए, ‘‘आप पढ़ाते हैं या खेल करते हैं?’’

‘‘क्या हुआ?’’ हैडमास्टर ने पूछा.

‘‘आप जानते हैं न कि सुंदर मेरा

बेटा है?’’

‘‘जी हां, अच्छी तरह.’’

‘‘फिर भी सभी बच्चेबच्चियां इस से बाजी मार गए. कैसे?’’

‘‘क्यों? इम्तिहान क्या आप ने दिया था या सुंदर ने?’’

‘‘मतलब?’’ पंडितजी गरम दिखे.

‘‘यह तो होना ही था. पिछली क्लास के छात्र को आगे की क्लास के इम्तिहान में बिठा दिया जाए तो क्या होगा? यही होगा न?’’

‘‘नहीं, आप तो दलित टीचर हैं, इसलिए. क्या काजल से काबिल

कोई लड़का नहीं है बाबू लोगों के लड़कों में?’’

‘‘मैं तो कहूंगा कि नहीं.’’

‘‘समझ गया. चल सुंदर, नहीं पढ़ना दलितों के स्कूल में,’’ और वे सुंदर को अपने साथ ले गए.

पंडितजी ने सुंदर का दाखिला अपने गांव से 10 किलोमीटर दूर एक मिडिल स्कूल में करा दिया. वहां बाबू लोगों के बच्चे ही पढ़ा करते थे. गांव से एक आटोरिकशा जाता था.

एक दिन सुंदर के अंगरेजी के एक टीचर मिश्राजी की नजर उस पर पड़ी. वे पारखी नजर रखते थे. तुरंत अपनी बेटी मीनाक्षी की जोड़ी मन ही मन बिठा ली.

स्कूल में सुंदर की सीट मीनाक्षी के साथ ही थी. इस से मीनाक्षी को मिलने वाली सारी मदद सुंदर को भी मिलने लगी.

मिश्राजी ने पूछताछ कर के पता कर लिया था कि सुंदर एक ब्राह्मण का लड़का है. इसे पास रख कर बचपन से ही दोनों के बीच प्यार के बीज खिल सकते हैं. उन्होंने पंडित रमाकांत को बुलवाया और अपनी मंशा जाहिर की.

‘‘बाप रे बाप, घर में कुबेर आ जाए, और पूछे कि कितना पैसा चाहिए?’’ कह कर पंडितजी खुश हो कर उन के पैरों की ओर झुके, ‘‘मैं ने तो सिर्फ जन्म दिया है, बाकी सबकुछ तो आप ही देंगे सरकार.’’

‘‘आप ने हीरा पैदा किया है हीरा.’’

‘‘हीरा क्या खाक होगा? इस के सब साथी इस से 2 क्लास ऊपर हैं.’’

‘‘कोई बात नहीं. स्कूल में जो पढ़े सो पढ़े. घर पर मैं इस के साथ मेहनत करूंगा. यह सब के बराबर हो जाएगा. मीनाक्षी भी पढ़ने में तेज है. वह उस की अच्छी मदद करेगी. आप को आगे के लिए कुछ नहीं सोचना है.’’

‘‘ठीक है माईबाप. जब भी आऊंगा तो खाली हाथ नहीं आऊंगा सरकार,’’ कह कर पंडितजी चलते बने.

‘‘सुदर की मां, उसे सही जगह पर दे आया हूं. समझो, देवता मिल गए हैं,’’ घर आते ही पंडितजी ने सारी बात पंडिताइन को सुनाई.

पंडिताइन के चेहरे पर कोई भाव नहीं आया.

‘‘अरी भाग्यवान, तुम किस सपने में खोई हुई हो? कुछ सुना कि नहीं, जो मैं ने कहा?’’

‘‘सुन लिया. यहां काजल थी, वहां मीनाक्षी है. यही तो कह रहे थे तुम? बेटे को जानते हो न? छोटी सी उम्र में ही प्रेम रोग लगा बैठा है?’’

‘‘इसीलिए तो मैं ने वहां दे दिया. जगहंसाई की वजह तो न बनेगा. कम से कम मीनाक्षी तो ऊंची जाति की है.’’

‘‘तो यह कहो न कि सुंदर का सौदा कर दिया है. मैं तो कहती हूं, उस का मन जजमानी में लगाओ. ट्रेनिंग दो. आप के बाद क्या होगा, सोचा है कभी?’’

‘‘तुम दोनों कान की बहरी हो, कुछ नहीं सुनोगी,’’ कहते हुए पंडितजी कंधे पर गमछा डाल कर बाहर निकल गए. काजल ज्योंज्यों बड़ी होने लगी, त्योंत्यों उस के बदन का उभारनिखार भी बढ़ने लगा. इसी के चलते वह सभी लड़कों के ख्वाबों में बस गई थी. सभी उस का साथ पाने को बावले हो गए थे.

काजल ने पढ़ाई में ऐड़ीचोटी का जोर लगा दिया. कभीकभी सुंदर की याद आती तो वह सोचती कि पता नहीं, उस ने फार्म भरा भी है या नहीं. वैसे, एक क्लास तो वह चूक ही गया था.

इधर, सुंदर को टीचर मिश्राजी ने जीजान से पढ़ाना शुरू कर दिया. सुबहशाम उस पर इतना समय लगाया कि वह एक क्लास चूकने के बावजूद फार्म भरने के लायक हो गया.

मिश्राजी ने किसी दूसरे स्कूल से उसे भी मैट्रिक का छात्र बनवा दिया. सुंदर ने भी अपनी ओर से पढ़ाई करने में कोई कमी नहीं छोड़ी. कभीकभी वह मीनाक्षी से काजल की बातें करता तो मीनाक्षी कहती, ‘‘दिखाओ न एक दिन?’’

‘‘नहीं आएगी वह. ग्राम पंचायत का फैसला है कि कोई भी ऊंची जाति का शख्स उस से नहीं मिल सकता,’’ ऐसा कह कर सुंदर उदास हो गया.

‘‘क्यों?’’ मीनाक्षी ने पूछा.

‘‘क्यों, क्या? सारा गांव बाबुओं का है और वह दलित है.’’

‘‘काजल दलित है?’’

‘‘हां, लेकिन उस से क्या? यह कोई छूत की लाइलाज बीमारी तो है नहीं. दिल की बड़ी अच्छी है. देखने में भी सुंदर है,’’ कह कर सुंदर सिसक उठा.

मीनाक्षी ने प्यार से सुंदर की पीठ पर हाथ रखा, ‘‘अच्छा, मैं समझी. तुझे इसी बात का दुख है कि वह तुझ से आगे निकल जाएगी?’’ सुंदर बस हिचकियां भरता रहा.

‘‘फिर भी तू काजल से अच्छे नंबर लाएगा,’’ मीनाक्षी ने उस का हौसला बढ़ाया. सुंदर भी यह सोच कर खिल उठा कि अगर ऐसा हुआ तो काजल की हेकड़ी टूट जाएगी.

मैट्रिक का इम्तिहान हुआ. नतीजा आया तो काजल राज्य में 5वें नंबर पर आई. अखबार में उस के फोटो समेत छपा, ‘गुदड़ी की लाल, जिले में कमाल’.

मुख्यमंत्री ने टौप 10 छात्रा को 25-25 हजार रुपए व कलक्टर ने 10-10 हजार रुपए दे कर सम्मानित करने का ऐलान किया.

समारोह में जिले के डीईओ साहब बतौर मुख्य अतिथि पधारे थे. इन के ही हाथों काजल को कामयाबी की माला पहनानी थी और 10 हजार रुपए का चैक देना था. सो, दोनों मांबेटी को बुलाया गया.

आई तो बस काजल की मां और माइक थाम कर बोल गई, ‘‘अब काहे की काजल? काहे की माला? हुजूर, गांव में 2 ही घर दलितों के हैं. बाकी हैं बाबू लोग. इन लोगों ने अपने बच्चों को काजल से दूर रहने की हिदायद दे रखी है. सभी हिकारत की नजर से देखते हैं. आज उस के लिए ही माला? नहीं आएगी काजल, साहब,’’ उस ने डीईओ साहब को नमस्ते किया और मंच से उतर कर घर चली गई.

मंच पर ही कोलाहल मच गया. कानाफूसी होने लगी कि अब क्या होगा? डीईओ साहब खुद दलित थे. कहीं स्कूल की यूनिट खत्म कर दी तो बच्चे 10 किलोमीटर दूर जा कर पढ़ सकेंगे क्या?

डीईओ साहब खुद काजल के घर आए और पुचकार कर माला पहनाई और चैक दिया. फिर पूछा कि किस कालेज में दाखिला लोगी. जहां वह दाखिला लेना चाहेगी, वहां उस के लिए सीट रिजर्व रहेगी. यह सरकारी इंतजाम है.

‘‘नहीं साहब, मेरी मां अकेली रह जाएंगी. फिर ज्यादा पढ़लिख कर दलितों में शादीब्याह की भी समस्या आती है. पढ़ेलिखे लड़के मिलते ही नहीं. मिलते हैं तो दहेज में मोटी रकम चाहिए. मैं ठहरी गरीब लड़की.’’

‘‘नहीं, ऐसी कोई समस्या नहीं आएगी. तुम्हारे पीछे पूरी सरकार खड़ी है. शादीब्याह की जब बात आएगी तो लड़के भी मिलेंगे और वे भी बिना दहेज के. केवल तुम अपने पढ़ने की रफ्तार कम मत करो,’’ इतना समझा कर वे चले गए.

काजल को तो बस सुंदर की चिंता सता रही थी कि वह मैट्रिक में पास हुआ भी है या नहीं. उस ने तय किया कि अगर सुंदर फेल हो गया होगा तो वह भी आगे दाखिला नहीं लेगी.

काजल का फोटो अखबार में देख सुंदर चहक उठा, ‘‘यही है मेरी काजल. मीनाक्षी, यही है मेरी काजल…’’ और उस का गला भर्रा गया, ‘‘मीनाक्षी, काजल कितनी दूर चली गई? कटी पतंग की तरह बदलों के पार. मुझे मिल पाएगी या नहीं?’’ और गमछे से वह आंसू पोंछने लगा.

‘‘पागल… एक तो तुम कहते हो कि वह दलित है, दूसरे तुम से अव्वल. अब वह तुम्हें देखेगी भी क्या?’’

‘‘नहीं मीनाक्षी, वह मेरी बचपन की दोस्त है. हम ऊंची जाति वाले उसे भूल सकते हैं, पर वह नहीं भूलेगी.’’

तभी मिश्राजी गरजे, ‘‘चुप… जाति का ब्राह्मण हो कर दलित लड़की का नाम रटे बैठा है. तुझ पर मैं दिनरात मेहनत और खर्च कर रहा हूं. मैं अंधा

हूं क्या?

(क्रमश:)

क्या काजल व मीनाक्षी कभी मिल पाईं? सुंदर की जिंदगी में काजल आई या मीनाक्षी? पढ़िए अगले अंक में…

प्रीत किए दुख होए : भाग 1

नंदीग्राम खगडि़या जिले का एक कसबा था, जो वहां से महज 10 किलोमीटर ही दूर था. कहलाता तो वह दलित बस्ती इलाका था, लेकिन वहां के सारे दलित ब्राह्मणों को ‘बाबू लोग’ पुकारते थे. इक्कादुक्का घर राजपूतों के भी थे.

आबादी में ज्यादा होने के बावजूद वहां के दलितों को ‘बाबू लोगों’ ने हड़प नीति का इस्तेमाल कर सब की जरजमीन छीन कर गांव छोड़ने पर मजबूर कर दिया था. वहां 2 घर बचे थे, जो भूमिहीन व गरीब थे. वे लोग किसी के सहारे पलते थे. इन्हीं 2 घरों में से एक घर में जैसे कीचड़ में कमल खिल गया था.

झुग्गीझोंपड़ी योजना के तहत वहां पुराना स्कूल था, जिस में ज्यादातर ‘बाबू लोगों’ के बच्चे ही पढ़ा करते थे. दलितों के लड़के रहे ही कहां, जो स्कूल में दिखते. बस, एकमात्र काजल थी, जो दलित तबके से आती थी.

हालांकि सभी लड़के काजल से अलग बैठते थे, लेकिन एक ब्राह्मण छात्र सुंदर था, जो उस के एकाकीपन का साथी बन गया था, इसलिए सुंदर से भी सब चिढ़ते थे. एक ब्राह्मण का लड़का दलित लड़की से नजदीकियां बनाए, यह किसी को गवारा न था.

काजल दलित जरूर थी, लेकिन खूबसूरती में बेजोड़ सुंदर. उस की इसी खूबसूरती का मुरीद था सुंदर.

स्कूल से विदाई का दिन आ गया. अब यहां से निकल कर छात्रों को मध्य विद्यालय में दाखिला लेना था. काजल अच्छे नंबरों से पास हुई थी. ‘‘काजल, आगे कहां पढ़ोगी? बाबा तो मुझे शहर भेजने पर तुले हैं… खगडि़या,’’ सुंदर ने कहा.

‘‘मैं…? मैं कैसे जा सकती हूं शहर? मेरी मां अकेली हैं. वैसे, गांव से बाहर एक किलोमीटर दूर है मध्य विद्यालय. मैं वहीं दाखिला लूंगी और रोज आनाजाना करूंगी.’’ ‘‘सोचा तो मैं ने भी यही था, लेकिन बाबा का सपना है मुझे हाकिम बनाने का.

‘‘चल न तू भी शहर? मैं मनाऊंगा चाची को…’’ सुंदर ने कहा, ‘‘मेरा वहां अकेले मन नहीं लगेगा.’’

‘‘तो मैं क्या करूं? हो सकता है कि मेरी पढ़ाई भी छूट जाए. मैं गरीब भी हूं और मां मुझे बेहद प्यार करती हैं. वे मुझे दूर नहीं जाने देंगी,’’ काजल ने भोलेपन से कहा.

‘‘तो मेरी भी पढ़ाई छूट जाएगी…’’ सुंदर बोला, ‘‘मैं मर जाऊं तभी तेरा साथ छूटेगा.’’

‘‘मरे तेरे दुश्मन. मैं तो लड़की हूं… चूल्हाचक्की के लिए पढ़ाई करना जरूरी नहीं है. लेकिन तुम्हें तो पढ़ाई करनी ही पड़ेगी. हाकिम न बन सके तो शादी न होगी. बच्चे होंगे तो उन को भूखा मारोगे क्या? कमाई तो करनी ही पड़ेगी…’’ काजल ने कहा, ‘‘कहीं बाबागीरी न करनी पड़ जाए…’’

‘‘अरी मेरी दादी…’’ कहते हुए सुंदर ने उस के कान उमेठ दिए, ‘‘तू मुझे मेरी जन्मपत्री बता रही है क्या? आखिर मेरे बाबा की पूजापाठ, कथावाचन और शादीश्राद्ध की रोजरोज की आमदनी कहां जाएगी?’’

‘‘उई बाबा…’’ कह कर काजल वहां से भाग गई.

सुंदर वहां ठगा सा खड़ा रह गया. स्कूल के और भी बच्चे थे. एक तगड़ा लड़का भी था, जो सरपंच का बेटा था. वह सुंदर से जलता था.

‘‘वह उड़नपरी है, उड़नपरी. वह किसी की नहीं होती. उस पर भी वह दलित है. कानून जानता है क्या? अंदर हो जाओगे और बाबाजी की जन्मपत्री, लगनपत्री, मरणपत्री सब की सब छिन जाएगी,’’ उस लड़के ने सुंदर की हंसी उड़ाई.

‘‘चल भाग यहां से. अपना चेहरा देख. काजल तो क्या, कोई काली भैंस भी तुझे घास नहीं डालेगी,’’ सुंदर ने जवाब दिया.

‘‘अच्छा, तो तुझे अपने चेहरे पर घमंड है?’’

शुरू हो गई दोनों में उठापटक. तगड़े लड़के ने सचमुच सुंदर का चेहरा भद्दा कर दिया. काजल को मालूम हुआ, तो दौड़ कर देखने आई और हिम्मत देने के बजाय हंसी उड़ा दी, ‘‘वाह, नाम सुंदर, मुंह छछूंदर?’’ सुंदर ने गुस्से में दौड़ कर उसे पकड़ा और कहा, ‘‘काजल, तुम भी.. ठीक है, अब मैं शहर जाऊंगा और तुझे एकदम भूल जाऊंगा.

‘‘देखना, मैं हाकिम बन कर ही आऊंगा,’’ दुखी हो कर सुंदर अपने घर की ओर चल दिया. यह सुन कर काजल भी रो पड़ी, ‘‘ऐसा मत करना सुंदर. एक तेरा ही तो सहारा है मुझे.’’

लेकिन, सुंदर ने उस का कहा नहीं सुना और अपने घर चला गया. पंडित रमाकांत को जब सब मालूम हो गया, तो उन्होंने भी सुंदर को खूब पीटा, ‘‘एक तो दलित लड़की है, दूसरे तुम ब्राह्मण. क्या होगा बिरादरी में मेरा? कम से कम मुझ पर तो रहम कर. आखिर उम्र ही क्या है तेरी? ठहर, तेरे मामा को फोन करता हूं. वह तुझे ले जाएगा और मारमार कर हाकिम बनाएगा.’’

सुंदर को भी उस मामा के बारे में मालूम था कि वे काफी बेरहम हैं. उन की अब तक 2 बीवियां भाग चुकी हैं.

‘‘नहीं बाबा, नहीं. मुझे कहीं और भेज दो, पर मैं वहां नहीं जाऊंगा,’’ कह कर सुंदर रो पड़ा.

‘‘अरे, चुप हो जा. मैं समझ गया सबकुछ. अच्छा है… जब 2-4 थप्पड़ रोज पड़ेंगे न, तो भाग जाएगा काजल के इश्क का भूत,’’ उन्होंने सचमुच ही उसी रात फोन कर के अगले दिन उस के मामा को बुलवा लिया.

‘‘तुम बेफिक्र रहो. इसे मैं अच्छे स्कूल में पढ़ाऊंगा और खुद निगरानी करूंगा,’’ मामा ने सुंदर की मां से कहा.

‘‘देखना भैया, बच्चा कोमल है. मारना मत. और हां, पंडितजी की इसे हाकिम बनाने की इच्छा है,’’ मां ने हाथ जोड़ कर कहा.

‘‘बनेगाबनेगा हाकिम, कैसे नहीं बनेगा. सुनी नहीं है वह कहावत कि मारमार कर हाकिम बनाना,’’ इतना कह कर मामा खुद रिकशा लेने चले गए और तुरंत ही रिकशा ले कर आ भी गए.

सामान रिकशे में रखा और मामाभांजे दोनों चल पड़े खगडि़या स्टेशन. रास्ते में ही काजल का घर था. ‘काजल माफ करना. तेरा दिल दुखा कर मैं ने अच्छा नहीं किया. तुझे कभी नहीं भूलूंगा काजल,’ इतना सोचते ही सुंदर रो पड़ा.

‘‘चुप हो जा… नई दुलहन की तरह रो रहा है… पड़ेगा एक थप्पड़,’’ मामा ने लताड़ा.

सुंदर एकदम चुप. मामा ऐसे मूंछें ऐंठ रहे थे, जैसे सीताहरण के दौरान रावण ने सीता के रोने पर तेज हंसी के साथ मूंछें ऐंठी थीं. गाड़ी मिली, चली और उतर गए बेगुसराय. फिर वहां से 10 किलोमीटर सवारी गाड़ी से और 5 किलोमीटर आगे मैदान बौराही, जहां न तो कोई स्कूल था, न ही कालेज.

काजल को जैसे ही पता चला कि सुंदर वाकई शहर चला गया है तो वह भी रो पड़ी और दौड़ कर मां का आंचल खींच कर ठुनकने लगी, ‘‘सुंदर शहर चला गया मां. मैं भी शहर में पढ़ूंगी.’’

‘‘अरी बावली, वे बाबू लोग हैं और तुम ठहरी दलित. फिर शहर जाने के लिए पैसे कहां हैं बेटी?’’ मां ने काजल को बड़े ही प्यार से समझाया.

‘‘मां, अब सुंदर पढ़लिख कर कब आएगा? मैं ने उस की हंसी उड़ाई थी. शायद वह मुझ से रूठ कर चला गया है,’’ काजल की आंखों से टपकते आंसू उस के कोमल गालों पर लकीर बनाने लगे.

‘‘बेटी, अगर तुम उस से लगाव रखती हो तो तुझे आंसू नहीं बहाने चाहिए. हंस कर दुआ करनी चाहिए कि वह पढ़लिख कर हाकिम बन कर ही तुझ से मिले,’’ मां ने आंचल से उस के आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘क्या मालूम, कल वह हाकिम बन कर अंगरेजी में बातें करेगा. समझोगी तुम?

‘‘अच्छा है कि तुम इस गांव में ही मन लगा कर पढ़ो. हाकिम तो गांव में भी पढ़ कर हुए हैं लोग. हमारे पहले राष्ट्रपति राजेंद्र बाबू, प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और दूसरे कई शख्स हैं, जिन्होंने गांव में ही पढ़ाई की थी. कल चलना, हैडमास्टर सर से कह कर स्कूल में दाखिला करा दूंगी.’’

काजल समझ गई और चहकते हुएबोली, ‘‘हां मां, मैं उसे दिखा दूंगी कि बड़ा बनने के लिए शहर में ही नहीं, बल्कि गांव में भी पढ़ाई की जा सकती है. शहर या वहां के स्कूल नहीं पढ़ते, पढ़ते हैं छात्र, जो गांव में भी होते हैं.’’

‘‘मेरी अच्छी बेटी,’’ इतना कह कर मां ने उस का मुंह चूम लिया.

दूसरे दिन ही मां ने काजल का दाखिला गांव के ही मिडिल स्कूल में करा दिया. उसे यह सुन कर और भी खुशी हुई कि मुफ्त में ड्रैस, किताबें और कौपियां  मिलेंगी.

‘‘साइकिल भी दूंगा… अगर मन से पढ़ेगी तो… साइकिल चलाना आता है न तुझे?’’ हैडमास्टर सर ने पूछा.

‘‘साइकिल भी चलाना सीख लूंगी,’’ काजल ने पूछा.

‘‘गुड गर्ल… कल से तुम स्कूल आना शुरू कर दो.’’

‘‘जी सर,’’ इतना कह कर काजल अपनी मां के साथ घर चली आई.

इधर सुंदर को मामा के घर गए महीनों बीत गए. सुंदर की मां ने फोन किया तो सुंदर के मामा बबलू ने कहा, ‘‘हांहां, खूब मन लगा कर पढ़ रहा है वह. बगैर हाकिम बनाए इसे छोड़ूंगा क्या? पटना से ले कर दिल्ली तक के नेताओं का झोला टांगा है, अटैची ढोई है. वह सब कब काम आएगा?’’

सुंदर चूल्हा फूंक रहा था. दौड़ादौड़ा वह वहां आया और बोला, ‘‘मामा, मां से मेरी भी बात करा दो. कई दिन पहले उन्हें मैं ने अपने सपने में देखा था.’’

‘‘जब देख ही लिया था तो बातें क्यों न कर लीं? चल भाग. ऐसा जोर का घूंसा दूंगा कि तेरी बत्तीसी बाहर निकल जाएगी,’’ मामा बबलू बिगड़ गए. सुंदर रो पड़ा और रोतेरोते ही फिर चूल्हा फूंकने लगा.

बाहर बंगले पर बबलू गए, तो सुंदर ने दौड़ कर फोन का चोगा उठा लिया. अब लगाए तो कौन नंबर? घर में तो फोन है नहीं. मां हाट आई होंगी और एसटीडी से बातें की होंगी. वह ठगा सा चोगा रख कर रो पड़ा, ‘मुझे कहां फंसा दिया बाबा? यहां जब कोई स्कूल ही नहीं है, तो पढ़ूंगा क्या खाक?

‘दिनरात मामा की तीमारदारी करनी पड़ती है. घर से लाई किताबें भी खोलने नहीं देते. यह मामा नहीं कंस है, कंस…

‘मैं ने काजल को भी धोखा दिया है. यह सब मुझे उसी की सजा मिल रही है. बाबा, अपने बच्चे की खुशी क्यों नहीं देखी गई आप से?’ सोच कर सुंदर और भी उदास हो गया.

(क्रमश:)

प्रीत किए दुख होए : भाग 4

पिछले अंकों में आप ने पढ़ा था:

काजल और सुंदर बचपन से एकदूसरे से प्यार करते थे. सुंदर ऊंची जाति का था और काजल दलित थी. सुंदर के पिता ने उसे मामा के पास भेज दिया. वहां सुंदर का शोषण हुआ. वह वापस आ गया. इसी बीच उस की मुलाकात मीनाक्षी से हुई. वह उसी की जाति की थी. काजल पढ़ाई में होशियार निकली और पढ़ने शहर जा पहुंची. मीनाक्षी सुंदर को चाहती थी.

अब पढ़िए आगे…

 यह बात सुंदर के भी कानों में पड़ी कि पूरे ही गांव का कायाकल्प हो रहा है और वह भी काजल की बदौलत. सुंदर पिंजरे में बंद पंछी की तरह तड़प उठा.

सुंदर की यह तड़प देख कर मीनाक्षी उस पर हंस पड़ती, ताने देती. एक बार तो सुंदर ने मीनाक्षी को पीट दिया क्योंकि उस ने काजल के लिए बेहूदा बात कही थी. लेकिन एक सच्ची प्रेमिका की तरह वह यह सब झेल गई और परिवार को इस की भनक तक न लगने दी.

‘‘सुंदर, तुम मेरी जान भी ले लोगे न तो भी मैं उफ न करूंगी,’’ रोने के बजाय मीनाक्षी ने बेबाक हो कर कहा था.

सुंदर घबराया और मीनाक्षी के पैर पकड़ लिए, ‘‘मुझे माफ कर दो. मेरे दिल को समझो. मैं अपना दिल काजल के नाम कर चुका हूं.’’

मीनाक्षी ने आंसू पोंछे, ‘‘अगर तेरा प्यारा सच्चा होगा तो तुझे मिल जाएगी काजल.’’ ‘‘नहीं मीनाक्षी, मैं इस जेल में बेकुसूर कैदी हूं. मुझे तुम आजाद कर दो. मीनाक्षी, तुम मेरी प्रेरणा हो तो मंजिल है काजल. मैं तुम्हारा बड़ा एहसानमंद रहूंगा, अगर मुझे मंजिल तक पहुंचाने में मदद कर दी.’’

‘‘जब कुदरत तेरे साथ होगा तो कोई रोक सकता है क्या?’’

‘‘चलो, अपने कमरे में. मां शायद इधर ही आ रही हैं,’’ दोनों अपनेअपने कमरे में चले गए.

कुछ दिन बाद सुंदर के कालेज में टूर का प्रोग्राम बना. सरकारी फंड से एकबस की गई. उस में पहले साल के सभी छात्रछात्राएं सवार हो शहर घूमने चले. गाइड के रूप में 2 टीचर साथ थे, जिन में एक मिश्राजी भी थे.

शहर घूमने के बाद तकरीबन 4 बजे बस जिले के राजकीय महाविद्यालय परिसर में रुक गई. सभी छात्रछात्राएं बाहर निकल कर घूमने लगे.

गाइड से सुंदर को पता चला कि वह जिले का सब से अच्छा कालेज है जहां टौपर छात्रछात्राएं ही पढ़ते हैं. उस ने अंदाजा लगाया कि हो सकता है कि काजल भी यहीं पढ़ती हो.

सुंदर काजल को ढूंढ़ने लगा. काजल अभीअभी क्लास में से बाहर निकली. सिक्योरिटी गार्ड भी पीछेपीछे था. सुंदर को गार्ड का पता नहीं था, सो उस ने धीरे से पुकारा, ‘‘काजल…’’

इतना सुनना था कि काजल दौड़ कर उस के गले लग गई.

‘‘तू ने मुझे भुला दिया काजल?’’

‘‘नहीं रे, कहां भूली हूं मैं? देख मेरी हालत. क्या ऐसी थी मैं?’’ और काजल ने सुंदर को जोर से भींच लिया.

सुरक्षा गार्ड ने देखा तो उस ने दौड़ कर सुंदर को पकड़ा और गेट के पास बने थाने में डीएसपी अंजन कुमार को सौंप दिया.

डीएसपी अंजन कुमार ने सुंदर की बेरहमी से पिटाई कर दी और थाने में बंद कर दिया. सारे छात्रछात्राएं धरने पर बैठ गए और नारेबाजी करने लगे.

मामला गंभीर होता देख कर डीएसपी अंजन कुमार ने सुंदर को छोड़ दिया और मिश्राजी ने राजकीय अस्पताल में उसे भरती करा दिया.

थाने में सुंदर की इतनी पिटाई की गई थी कि 3 महीने तक उसे अस्पताल में रहना पड़ा. मीनाक्षी कभीकभी अस्पताल आती तो उस पर ताना कसती, ‘‘दिल दिया, दर्द लिया. वही थी न तुम्हारी काजल…? अच्छी है तुम्हारी पसंद.’’

सुंदर कुछ नहीं बोला, बस सिसकता रहा. आखिर डाक्टरों के इलाज और मीनाक्षी की सेवा से वह घर जाने लायक हो गया. छुट्टी के दिन वह किसी की निगरानी न देख चुपके से अपने घर आ गया.

उधर मीनाक्षी अस्पताल पहुंची तो बिस्तर खाली देख बगल वाले से पूछा. पता चला कि सुंदर अभीअभी घर चला गया है. मीनाक्षी ने घर जा कर अपने पिता को बताया तो मिश्राजी के तनबदन में आग लग गई. उन्होंने प्रण किया कि चाहे जान चली जाए, सुंदर को मीनाक्षी से शादी करनी ही पड़ेगी.

उधर, डीएसपी अंजन कुमार भी काजल की चाहत में दीवाने हो गए थे.

कालेज में 15 दिन की छुट्टियां हुईं. काजल के मन में आया कि मां के साथ गांव घूम लिया जाए. दोनों मांबेटी गांव आ गईं. बदलाव देख कर वे दंग रह गईं.

काजल के कच्चे घर के बजाय वहां पक्का बड़ा घर बन गया था. ठेकेदार ने आ कर घर की चाबी देते हुए सारी बातें बताईं कि यह काजल का ही कमाल है.

बड़ा घर देख कर मांबेटी दोनों बड़ी खुश हुईं और ठेकेदार को चाय पिलाई. मां ने ठेकेदार से गांव का हालचाल पूछा, खासकर बाबू लोगों का.

‘‘गजब की खबर है. पंडित रमाकांत के बेटे सुंदर को 2 दिन पहले दूर गांव के कोई मिश्राजी मास्टर के हथियारबंद लोग अपहरण कर के ले गए. सभी बाबू लोगों ने मिश्राजी के यहां दबिश दे दी.

आखिरकार मिश्राजी ने हथियार डाल दिए और पंडित रमाकांत के बेटे सुंदर को मुखिया के हवाले कर दिया. चेतावनी देते हुए सभी लोग वापस गांव आ गए.

यह सुन कर काजल परेशान हो गई और छत पर टहलने लगी, तभी उस की नजर सड़क पर जाती अपनी सहेली ममता पर पड़ी, जो मुखियाजी की बेटी थी.

काजल ने ऊपर से ही अपनी सहेली ममता को अंदर आने का इशारा किया और दनदनाते हुए नीचे आ कर दरवाजा खोल दिया. दोनों सहेलियां गले मिलीं.

‘‘शहर में कैसी पढ़ाई चल रही है तुम्हारी?’’ ममता ने पूछा.

‘‘अच्छी, लेकिन तू बता कि उंगली में चमक रही अंगूठी कब से है? कहीं टांका भिड़ गया क्या?’’ काजल ने ममता से पूछा और अपनी परेशानी भूल गई.

‘‘अब समझ ही गई है तो कहना क्या?

‘‘मुझे क्यों भूल गई?’’

‘‘नहीं भूली काजल, चाहे जिस की कसम दे दो. लेकिन तुम तो जान रही हो न हमारी बिरादरी को. पापा मुखिया हैं. भी बदनाम हो जाते.’’

‘‘खैर, तू बस जीजाजी से मिलवा दे, ताकि मैं देख सकूं कि मेरी चालाक सहेली ने कैसी बाजीगरी दिखाई है.’’

‘‘अभी तो वे कालेज में होंगे. क्या तू चलेगी वहां?’’

‘‘तू साथ चलेगी तब न? मैं कैसे पहचानूंगी?’’

‘‘अभी चल. घर जा कर आना मुमकिन नहीं.’’

‘‘तो चल.’’

काजल ने आननफानन कपड़े बदले और आटोरिकशा में सवार हो कर दोनों सहेलियां कालेज पहुंच गईं.

लंच की घंटी बजने में 10 मिनट की देरी थी, सो दोनों सहेलियां कालेज कैंपस में लगे नीम के घने पेड़ के नीचे इंतजार करने लगीं.

‘‘देख, जब घंटी बजेगी तब मैं क्लास के सामने जा कर खड़ी हो जाऊंगी. तब तक तुम मुझ पर ही नजर गड़ाए रखना. जैसे ही वे मिलेंगे, मैं उन्हें कालेज के पिछवाड़े में ले जाऊंगी. तुम तेजी से हमारे पीछे आना,’’ ऐसा कह कर ममता क्लास के सामने जा कर खड़ी हो गई.

घंटी बजी. वैसा ही हुआ. काजल ने तेजी से ममता का पीछा किया. वह ज्यों ही कालेज के पिछवाड़े की ओर मुड़ी कि उसे सांप सूंघ गया. ममता का वह मंगेतर कोई और नहीं, बल्कि काजल का सुंदर था.

‘‘रुक क्यों गई काजल, आओ न. मिलो तुम मेरे मंगेतर से,’’ यह कह कर ममता मुसकरा दी.

काजल की आंखों में खून उतर आया. वह बोली, ‘‘धोखेबाज, तो यही है तेरा असली रूप?’’

सुंदर कुछ बोलना चाह रहा था, लेकिन काजल अपनी रौ में थी, ‘‘मैं दलितों व कमजोर लोगों को समाज में इज्जत दिलाने की हसरत लिए चल रही थी और इस में तुम ने भी साथ देने की कसमें खाई थीं… कहां गया वह जज्बा?’’

ममता की समझ में कुछ नहीं आ रहा था. वह हैरानी से दोनों को देख रही थी.

काजल बोले जा रही थी, ‘‘तुम ऐसे इनसान हो, जो खुद अशुद्ध रह कर यजमानों का शुद्धीकरण कराते हैं और पंडित होने का ढोंग रचते हैं. क्या किया है तुम लोगों ने? दलितों और कमजोरों की जायदाद हड़प कर उन्हें बेघर कर गांव निकाले जाने की सजा दे दी है.

‘‘झूठ, फरेब व वादाखिलाफी कर तू ने मेरे दिल के टुकड़ेटुकड़े कर दिए. मैं कैसे और कहां जीऊंगी सुंदर? तेरे लिए मैं ने अपनी बिरादरी के ही होनहार, स्मार्ट डीएसपी का औफर ठुकराया. तू ने मुझे तो कहीं का न रखा.

‘‘कान खोल कर सुन ले. मेरी जिंदगी को हराम कर के तुम भी नहीं जी सकोगे. मेरी जगह तो अब गंगा की गोद में हैं. मैं चली,’’ और काजल बेतहाशा भागी. पास ही में गंगा नदी बहती थी.

‘‘काजल सुनो तो… रुको तो,’’ कह कर जब तक सुंदर पीछा करते हुए उसे पकड़ता, तब तक वह गंगा में कूद पड़ी.

सुंदर ने भी छलांग लगा दी. अब ममता को पूरी बात समझ में आई. उस ने इस घटना को वहां नहा रहे लड़कों को बताया. जो तैरना जानते थे, वे कूद पड़े.

सुंदर और काजल बीच गंगा में डूबतेउतरा रहे थे. कुछ लड़कों ने हिम्मत दिखाई और दोनों को बाहर निकाल लिया. सुंदर रोए जा रहा था, वहीं काजल बेहोश थी. कुछ लड़के दौड़ कर डाक्टर को बुला लाए. उन्होंने काजल की सांस चैक की जो धीमेधीमे डूबती जा रही थी. दोनों को तुरंत गाड़ी में लाद कर नर्सिंगहोम ले आए. पेट का पानी निकालने के बाद औक्सिजन लगा दी गई.

2 घंटे के इलाज के बाद काजल होश में आई. यह सब देख ममता के भी आंसू नहीं सूख रहे थे.

‘‘काजल, तू ने जरा भी बताया होता कि तुम सुंदर से बचपन से प्यार करती हो तो मैं इस दबंग समाज से लड़ जाती और तेरा ब्याह सुंदर से ही करवाती. लेकिन तू ने कभी इस बारे में बात नहीं की. मुझे माफ कर दे काजल,’’ और ममता ने सगाई की अंगूठी निकाल सुंदर को देते हुए कहा, ‘‘सुंदर, पहना दे काजल को.’’

सुंदर झिझका, लेकिन लड़कों के हुजूम में से एक ने हिम्मत दी, ‘‘पहना दे काजल भाभी को अंगूठी. मरते दम तक हम सब तेरे साथ हैं. भाभी होश में आ गई हैं. तेरी शादी अभी होगी. हमारे कुछ साथी जरूरी सामान व पंडित को लाने चले गए हैं. बस, आने की देरी है.’’

सुंदर ने काजल को वह अंगूठी पहना दी. सब ने तालियां बजाईं, तभी पंडितजी व सारा सामान आ गया.

ममता ने काजल को सजाया. तभी उन्हें भनक मिली कि मिश्राजी के गुंडों ने घेराबंदी कर दी है. लड़कों ने भी नर्सिंगहोम घेरे रखा. कोई अनहोनी न हो जाए, इसलिए ममता ने कोतवाली और अपने पिता को फोन कर दिया.

मुखियाजी ने तुरंत आ कर अपनी दोनाली तान दी, ‘‘बच्चो, हट जाओ. नादानी मत करो. मारे जाओगे. अंदर क्या हो रहा है?’’ मुखियाजी ने घुसने की कोशिश की. अंदर से शादी कराने के मंत्र सुनाई पड़ रहे थे.

‘‘सुन नहीं रहे हैं चाचा. अंदर सुंदर और काजल की शादी हो रही है,’’ एक लड़के ने बताया.

‘‘खबरदार मुखियाजी, एक भी गोली चली तो…’’ कोतवाली से डीएसपी अंजन कुमार ने आ कर अपनी रिवाल्वर मुखियाजी की कनपटी से सटा दी. तब तक एसटीएफ के जवानों ने भीड़ की कमान अपने हाथ में ले ली थी. मिश्राजी के गुरगे भाग चुके थे.

शोर सुन कर ममता बाहर आई और पिताजी को देख कर रो पड़ी, ‘‘अच्छे आए आप. कन्यादान तो आज आप को ही करना है. चलिए भीतर, कर दीजिए कन्यादान.’’

‘‘कन्यादान…? एक दलित लड़की का कन्यादान मैं करूं? दिमाग तो ठीक है तेरा,’’ मुखियाजी बोले.

‘‘हांहां, आप… आप दलित किसे कहते हैं? उसे जिस ने दलित घर में जन्म लिया है? लेकिन उस ने जन्म देते वक्त कहीं कोई निशान दिया कि मैं उसे दलित मान लूं? मैं और काजल दोनों बचपन की सहेलियां हैं. बताइए, क्या फर्क है हम दोनों में? यहां दलित के नाम पर नफरत के बीज बोने का हक किस ने किस को दिया?

‘‘सुंदर और काजल के बीच बचपन का प्यार है. हम सब जातिवाद के चक्कर में इसे नहीं पहचान सके. प्यार की कोई जाति नहीं होती. अब तो सरकार ने भी इसे मान लिया है,’’ इतना कह कर ममता ने उन के हाथ से बंदूक छीन ली और उसे दूर फेंक दिया.

मुखियाजी ने भी अपनी बेटी की सामने घुटने टेक दिए, ‘‘बेटी, आज तू ने बेटी की सही परिभाषा दे कर मुझे एहसानमंद कर दिया. तू ने मुझे आईना दिखा दिया है.’’

दोनों भीतर गए और पंडित ने मुखियाजी से कन्यादान कराया. सभी बाहर निकले. काजल की मांग में सिंदूर और सुंदर के सिर पर सेहरा देखते ही बनता था.

ममता काजल को संभाले खड़ी थी. मुखियाजी ठीक सुंदर के बगल में सीना ताने खड़े हुए थे. डीएसपी साहब भी सादा कपड़ों में काजल व ममता के बगल में खड़े थे.

मुखियाजी ने कहा, ‘‘बच्चो, इस समाज की बेहतरी का जिम्मा तुम्हारे ही कंधों पर है. ममता ने जो कहा, मैं तो उस से बड़ा प्रभावित हुआ और मान लिया.’’

पूरी भीड़ ने एक सुर में कहा, ‘हां.’

सरपंच ने कहा, ‘‘मुखियाजी, हम दलित बस्ती के हैं. इसे सही माने में दलित बस्ती बनाएंगे और सब को समान अधिकार दिलाएंगे. जिन बाबू लोगों के पास दलितों की जमीन, मकान वगैरह कब्जे में हैं, उसे कागज समेत वापस करवाएंगे और तमाम दलितों को भी वह सहूलियतें दिलाएंगे, जो बाबू लोगों को मिली हुई हैं.’’

तभी झाड़ी में से एक दनदनाती गोली मुखियाजी के सीने पर जा लगी. वे कटे पेड़ की तरह गिरे और मर गए. एसटीएफ के जवानों ने खदेड़ कर गोली चलाने वाले को पकड़ लिया और डीएसपी के सामने खड़ा कर दिया. उस ने तुरंत एक थप्पड़ में ही कबूल कर लिया कि उसे मारना था सुंदर को, धोखे से गोली लग गई मुखियाजी को.

सुंदर, काजल व ममता दहाड़ें मार कर मुखियाजी की लाश पर गिरे. ममता रोतेरोते बेहोश हो गई.

डीएसपी अंजन कुमार ने लाश को तत्काल पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और खुद 4-5 जवानों के साथ भीड़ को काबू करने में लगे रहे. ममता जब होश में आई, तो रोरो कर कहने लगी, ‘‘आज मेरा कन्यादान होना था. अब कब होगा कन्यादान? कौन करेगा कन्यादान?’’

डाक्टर दिलासा देते हुए बोला, ‘‘बेटी, मैं करूंगा यह कन्यादान. मेरा आशीर्वाद है तुझे.’’

तभी लोगों ने देखा कि काजल ने डीएसपी के पैर पकड़ लिए.

‘‘काजल,’’ उन्हें हैरानी हुई और पैर हटा लिए, ‘‘कुछ कहना है?’’

‘‘हां.’’

‘‘तो कहो, सब के सामने.’’

‘‘सर, आप भी मुझ से प्यार करते थे न?’’

‘‘बिलकुल, पर अब तुम मेरी बहन हो गई हो. बोलो, कौन सा बलिदान करूं मैं? मेरी बड़ी हसरत थी कि तुम कुछ कहो और मैं उस पर अमल करूं?’’

‘‘मेरी गुजारिश है कि आप ममता की मांग भर दें. एक डीएसपी भाई का यह नायाब तोहफा होगा एक गरीब बहन को.’’

काजल ने ममता को खड़ा कर के पूछा, ‘‘ममता, मेरी सहेली, डीएसपी वर पसंद हैं न तुझे? बोल बहन.’’

ममता ने बुझी आंखों से डीएसपी को देखा और उन के सीने से लग गई.

डीएसपी ने ममता की मांग भर दी. पंडितजी ने विधिविधान से मंत्र पढ़े और डाक्टर ने कन्यादान किया. भीड़ ने तालियां बजा कर जोड़े का स्वागत किया.

मुखिया मर्डर केस में अदालत ने मास्टर मिश्रा को 20 साल की कैद और हत्यारे को फांसी की सजा सुनाई.

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लौकडाउन स्पेशल : शिकार

महेंद्र थाने में आ कर बैठा ही था कि एक सिपाही ने उसे खबर दी, ‘‘साहब, निजामुद्दीन से अहमदाबाद आने वाली ‘राजधानी ऐक्सप्रैस’ ट्रेन में एक आदमी बेहोशी की हालत में मिला है.’’

यह सुन कर महेंद्र को आज से एक साल पहले की घटना याद आ गई. तब उस की बेरावल रेलवे स्टेशन पर आरपीएफ के थानेदार के रूप में नईनई पोस्टिंग हुई थी.

एक दिन की बात है. सुबहसुबह थाने के एक सिपाही ने आ कर बताया, ‘साहब, राजकोट से सोमनाथ आने वाली पैसेंजर ट्रेन में एक लड़की बेहोश पड़ी मिली है.’

यह सुन कर महेंद्र तुरंत उस सिपाही के साथ चल पड़ा. उस ने देखा कि इंजन से पीछे वाले डब्बे में एक लड़की, जिस की उम्र 22-23 साल होगी, ऊपर वाली बर्थ पर बेहोशी की हालत में पड़ी थी.

महेंद्र के साथ गए सिपाही रामलाल ने कहा, ‘साहब, मुझे तो मामला जहरखुरानी का लगता है. इस के पास कोई सामान भी दिखाई नहीं दे रहा है.’

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महेंद्र ने रामलाल से कहा, ‘इसे तुरंत डाक्टर के पास ले जाओ और होश में आने पर मुझे बताना.’

दिन के तकरीबन 10 बजे रामलाल ने बताया, ‘साहब, उस लड़की को होश आ गया है और अब वह ठीक है.’

महेंद्र ने रामलाल से कहा, ‘उस लड़की को थाने ले आओ.’

जब वह लड़की थाने आई, तो बेहतर दिख रही थी.

महेंद्र ने पूछा, ‘क्या नाम है तुम्हारा?’

उस लड़की ने बताया, ‘मेरा नाम राजबाला है और मैं राजस्थान के भरतपुर इलाके की रहने वाली हूं.’

यह पूछने पर कि यहां और इस हालत में वह कैसे पहुंची, तो उस ने बताया कि वह प्रेमी के साथ घर से भाग कर आई है, लेकिन उस के प्रेमी ने रास्ते में उसे नशीली दवा खिला दी और उस के जेवर व पैसे ले उड़ा.

महेंद्र ने उस लड़की के मातापिता का मोबाइल नंबर पूछा, तो उस ने कहा, ‘साहब, उन्हें मत बताइए. मैं खुद ही अपने घर चली जाऊंगी.’

पता नहीं उस की बातों में क्या जादू था कि महेंद्र उस की बात मान गया.

उस लड़की ने कहा, ‘मेरे सिर में अभी भी थोड़ा दर्द है. आराम कर के मैं अपने घर चली जाऊंगी.’

महेंद्र ने रामलाल से कहा, ‘इसे मेरे रैस्टहाउस में लिटा दो. बाद में किसी ट्रेन में बिठा देना.’

महेंद्र अपने काम में लग गया, लेकिन उस के मन में राजबाला के प्रति काम भावना जाग गई थी. रात को तकरीबन 8 बजे वह अपने रैस्टहाउस में पहुंचा, तो राजबाला पलंग पर बैठी थी.

महेंद्र ने पूछा, ‘कैसी तबीयत है?’

उस ने बताया, ‘पहले से ठीक है.’

महेंद्र ने कहा, ‘रुको, मैं तुम्हारे लिए खानेपीने का इंतजाम करता हूं.’

इस के बाद महेंद्र ने बाहर आ कर एक सिपाही को बुलाया और उस लड़की के लिए खाना और अपने लिए शराब मंगाई. महेंद्र ने एक सिपाही के घर पर बैठ कर पहले जम कर शराब पी और वहीं बैठ कर खाना खाया.

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रात के तकरीबन साढ़े 11 बजे महेंद्र अपने रैस्टहाउस में पहुंचा, तो देखा कि राजबाला खाना खा कर सो चुकी थी.

एक तो शराब का नशा, ऊपर से एक जवान लड़की का शबाब… महेंद्र ने आते ही दरवाजा बंद किया और राजबाला पर झपट पड़ा.

अचानक हुई इस हरकत से वह जाग गई, लेकिन महेंद्र उसे कहां छोड़ने वाला था. वह रोतीगिड़गिड़ाती रही, पर महेंद्र पर इस का कोई असर न हुआ. वह उस पर छाता गया और अपनी मंजिल पा कर ही उस से अलग हुआ.

वह बेचारी महेंद्र से अलग हो कर एक कोने में जा कर रोने लगी. महेंद्र अपनी हवस मिटाने के बाद सो गया.

सुबह तकरीबन 9 बजे एक सिपाही ने महेंद्र को जगाया. वह अधनंगी हालत में बिस्तर पर पड़ा था. महेंद्र ने जागते ही उस लड़की के बारे में पूछा, तो सिपाही ने कहा, ‘मुझे तो कुछ नहीं मालूम साहब. रात को वह इसी कमरे में ही तो सोई थी. जब आप सुबह से नहीं दिखे, तो मैं आप को देखने चला आया.’

अचानक महेंद्र का ध्यान हाथों पर गया, तो चौंक गया. उस की दोनों अंगूठियां और घड़ी गायब थी. पैंट में रखा पर्स भी नदारद था. अलमारी खुली पड़ी थी. वहां जा कर देखा, तो 50 हजार रुपए भी गायब थे.

महेंद्र ने अपना सिर पकड़ लिया. उसे समझ में आ गया कि उस ने उस लड़की का नहीं, बल्कि उस लड़की ने उस का शिकार किया था.

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