‘तुम्हारा साहस कैसे हुआ मुझ से ऐसी बात कहने का? मैं कोई ऐसीवैसी लड़की नहीं हूं. 2 वर्षों में भी यदि तुम मेरी कमजोरियों और खूबियों को नहीं जान पाए तो भाड़ में जाओ, मेरी बला से,’ मुग्धा पूरी शक्ति लगा कर चीखी थी.
‘इस में इतना नाराज होने की क्या बात है, मुझे कोई जल्दी नहीं है, सोचसमझ लो. अपने मातापिता से सलाहमशविरा कर लो. मैं चोरीछिपे कोई काम करने में विश्वास नहीं करता. आज के अत्याधुनिक मातापिता भी इस में कोई बुराई नहीं देखते. वे भी तो अपने बच्चों को सुखी देखना चाहते हैं.’
‘किसी से विचारविनिमय करने की आवश्यकता नहीं है. मैं स्वयं इस तरह साथ रहने को तैयार नहीं हूं,’ मुग्धा पैर पटकती चली गई थी.
उधर, काम में उस की व्यस्तता बढ़ती ही जा रही थी. किसी और से मेलजोल बढ़ाने का न तो उस के पास समय था और न ही इच्छा. इसलिए जब मां ने उस के विवाह की बात उठाई तो उस ने सारा भार मातापिता के कंधों पर डालने में ही अपनी भलाई समझी.
मुग्धा करवटें बदलतेबदलते कब सो गई, पता भी न चला. प्रात: जब वह उठी तो मन से स्वस्थ थी.
मुग्धा ने अपनी ओर से तुरुप का पत्ता चल दिया था. उस ने सोचा था कि अब कोई उसे विवाह से संबंधित प्रश्न कर के परेशान नहीं करेगा.
पर शीघ्र ही उसे पता चल गया कि उस का विचार कितना गलत था.
मानिनी और राजवंशीजी भला कब चुप बैठने वाले थे. उन्होंने युद्धस्तर पर वर खोजो अभियान प्रारंभ कर दिया था. दोनों पतिपत्नी में मानो नवीन ऊर्जा का संचार हो गया था.
मित्रों, संबंधियों, परिचितों से संपर्क साधा गया. समाचारपत्रों, इंटरनैट का सहारा लिया गया और आननफानन विवाह प्रस्तावों का अंबार लग गया.
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वर खोजो अभियान का पता चलते ही मुग्धा के बड़े भाईबहन दौड़े आए.
‘‘क्यों आप अपना पैसा और समय दोनों बरबाद कर रहे हैं. मुग्धा जैसी लड़की आप के द्वारा चुने गए वर से कभी विवाह नहीं करेगी,’’ मुग्धा के सब से बड़े भाई मानस ने तर्क दिया था.
‘‘इस समस्या का समाधान तो तुम मुग्धा से मिल कर ही कर सकते हो. हम ने उस की सहमति से ही यह कार्य प्रारंभ किया है,’’ राजवंशीजी का उत्तर था.
मुग्धा के औफिस से आते ही तीनों भाईबहनों ने उसे घेर लिया था, ‘‘यह क्या मजाक है? तुम अपने लिए एक वर भी स्वयं नहीं ढूंढ़ सकतीं?’’ मुग्धा की बहन मानवी ने प्रश्न किया था.
‘‘मैं बहुत व्यस्त हूं, दीदी. वर खोजो अभियान के लिए समय नहीं है. मम्मीपापा शीघ्र विवाह करने पर जोर दे रहे थे तो मैं ने यह कार्य उन्हीं के कंधों पर डाल दिया. कुछ गलत किया क्या मैं ने?’’
‘‘बिलकुल पूरी तरह गलत किया है तुम ने. बिना किसी को जानेसमझे केवल मांपापा के कहने से तुम विवाह कर लोगी? यह एक दिन का नहीं, पूरे जीवन का प्रश्न है यह भी सोचा है तुम ने,’’ उस के बड़े भैया मानस बोले थे.
‘‘मुझे लगा मम्मीपापा हमारे हितैषी हैं. जिस प्रकार वे इस प्रकरण में सारी छानबीन कर रहे हैं, मैं तो कभी नहीं कर पाती.’’
‘‘क्या छानबीन करेंगे वे, धनदौलत पढ़ाईलिखाई, शक्लसूरत, पारिवारिक पृष्ठभूमि इस से अधिक क्या देखेंगे वे. इस से भी बड़ी कुछ बातें होती हैं,’’ छोटे भैया, जो अब तक चुप थे, गुरुगंभीर वाणी में बोले थे.
‘‘आप शायद ठीक कह रहे हैं पर आप तीनों के वैवाहिक जीवन की भी कुछ जानकारी है मुझे. मानस भैया को नियम से हर माह प्लेटें, प्याले खरीदने पड़ते हैं. नीरजा भाभी को उन्हें फेंकने और तोड़ने का ज्यादा ही शौक है. तन्वी भाभी और अवनीश जीजाजी…’’
‘‘रहने दो, हम यहां अपने वैवाहिक जीवन की कमजोरियां सुनने नहीं, तुम्हें सावधान करने आए हैं. अपने जीवन के साथ यह जुआ क्यों खेल रही हो तुम?’’ मानवी थोड़े ऊंचे स्वर में बोली.
‘‘यह जीवन जुआ ही तो है. हमारा कोई भी निर्णय गलत या सही हो सकता है, इसीलिए मैं ने अपने विवाह की आउटसोर्सिंग करने का निर्णय लिया है,’’ मुग्धा ने मानो अंतिम निर्णय सुना दिया था.
‘‘जैसी तुम्हारी मरजी. जब विवाह निश्चित हो जाए तो हमें बुलाना मत भूलना,’’ तीनों व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोल कर अपनी दुनिया में लौट गए थे.
इधर, मानिनी और राजवंशीजी की चिंता बढ़ती ही जा रही थी. 3 माह बाद ही मुग्धा को आयरलैंड जाना था और एक माह बीतने पर भी कहीं बात बनती नजर नहीं आ रही थी.
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यों उन के पास प्रस्तावों का अंबार लग गया था पर उन में से उन के काम के 4-5 ही थे. लड़के वालों को मुग्धा से मिलवाने और अन्य औपचारिकताओं का प्रबंध करते हुए उन के पसीने छूटने लगे थे पर बात कहीं बनती नजर नहीं आ रही थी.
उस दिन प्रतिदिन की तरह मुग्धा अपने औफिस गई हुई थी. राजवंशीजी जाड़े की धूप में समाचारपत्र में डूबे हुए थे कि द्वार की घंटी बजी.
राजवंशीजी ने द्वार खोला तो सामने एक सुदर्शन युवक खड़ा था. वे तो उसे देखते ही चकरा गए.
‘‘अरे बेटे तुम? अचानक इस तरह न कोई चिट्ठी न समाचार? अपने मातापिता को नहीं लाए तुम?’’
‘‘जी उन के आने का तो कोई कार्यक्रम ही नहीं था. मां ने आप के लिए कुछ मिठाई आदि भेजी है.’’
‘‘इस की क्या आवश्यकता थी, बेटा? तुम्हारी माताजी भी कमाल करती हैं. आओ, बैठो, मैं अभी आया,’’ युवक को वहीं बिठा कर वे लपक कर अंदर गए थे.
‘‘जल्दी आओ, जनार्दन आया है,’’ वे मानिनी से हड़बड़ा कर बोले थे.
‘‘कौन जनार्दन?’’ मानिनी ने प्रश्न किया था.
‘‘लो, अब यह भी मुझे बताना पड़ेगा? याद नहीं मुग्धा के लिए प्रस्ताव आया था. विदेशी तेल कंपनी में बड़ा अफसर है. याद आया? उन्होंने फोटो भी भेजा था,’’ राजवंशी ने याद दिलाया.
मानिनी ने राजवंशीजी की बात पर विशेष ध्यान नहीं दिया. वे लपक कर ड्राइंगरूम में पहुंचीं, सौम्यसुदर्शन युवक को देख कर उन की बाछें खिल गईं.
युवक ने उन्हें देखते ही अभिवादन किया. उत्तर में मानिनी ने प्रश्नों की बौछार ही कर डाली, ‘‘कैसे आए? घर ढूंढ़ने में कष्ट तो नहीं हुआ? तुम्हारे मातापिता क्यों नहीं आए? वे भी आ जाते तो अच्छा होता, आदिआदि.’’
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युवक ने बड़ी शालीनता से हर प्रश्न का उत्तर दिया. मानिनी उस की हर भावभंगिमा का बड़ी बारीकी से निरीक्षण कर रही थीं. मन ही मन वे उसे मुग्धा के साथ बिठा कर जोड़ी की जांचपरख भी कर चुकी थीं.
इसी बीच राजवंशीजी जा कर ढेर सारी मिठाईनमकीन आदि खरीद लाए थे. मानिनी ने शीघ्र ही चायनाश्ते का प्रबंध कर दिया था.