रामशरण जी को अपनी सरकारी नौकरी के वे दिन याद आ गए जब उन के औफिस में आने वाला हर व्यक्ति उस महकमे के लिए शिकार समझा जाता था. जिसे काटना और आर्थिकरूप से निचोड़ना हर सरकारी कर्मचारी का प्रथम कर्तव्य था. दूसरों की क्या बातें करें, स्वयं
रामशरण जी प्रत्येक किए जाने वाले कार्य का दाम लगाया करते थे बिना यह जानेसमझे कि सामने वाला किस आर्थिक परिस्थिति का है, उस का कार्य समय पर न किए जाने की दशा में उस का कितना नुकसान हो सकता है.
सरकार की तरफ से मिलने वाला वेतन तो उन के लिए औफिस बेअरिंग चार्जेज जैसा ही था. बाकी जिस को जैसा कार्य करवाना हो उस के अनुसार भुगतान करना आवश्यक होता था.
रामशरण जी के औफिस का अपना नियम था- ‘देदे कर अपना काम करवाएं, न दे कर अपनी बेइज्जती करवाएं.’ और इसी नारे वाले सिद्धांत के तहत काम कर के उन्होंने वसूले गए पैसों से शहर में 5 आलीशान प्रौपर्टीज बना रखी हैं जिन का किराया ही लाखों रुपए में आता है और मिलने वाली पैंशन ज्यों की त्यों बैंक में जमा रहती है.
‘शाबाश बेटा. अपने सिद्धांतों पर सदा कायम रहो,’ रामशरण जी के मुंह से अचानक ही आशीर्वचन फूट पड़े. लेकिन मन ही मन कह रहे थे शादी होने के बाद बढ़ती जरूरतों के आगे सब सिद्धांत धरे के धरे रह जाएंगे.
टीटीई अगले कोच में चला गया और रामशरण जी अपनी बर्थ पर सो गए.
सुबह करीब 10 बजे रामशरण जी अपने गंतव्य स्थल पर पहुंच गए. अभी अपनी बर्थ से उठने का उपक्रम कर ही रहे थे कि लगभग 40 साल का व्यक्ति उन के सामने आ खड़ा हुआ.
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‘सर, आप रामशरण जी हैं?’ उस व्यक्ति ने नम्रता से पूछा.
‘जी, हां, मैं रामशरण ही हूं,’ उन्होंने जवाब दिया.
‘मैं ईरिकशा का ड्राइवर रहमत खान हूं. आप को आप की कैब एट जीरो एट जीरो तक छोड़ने के लिए निर्देशित किया गया हूं,’ वह व्यक्ति बोला.
‘लेकिन मैं ने तो ऐसा कोई निर्देश नहीं दिया. खैर, बाहर तो जाना ही है, सो चलते हैं. कितने चार्जेज लेंगे आप?’ रामशरण जी ने पूछा.
‘आप जैसे बुजुर्गों के अनुभवों का लाभ उठाने और आशीर्वाद पाने के लिए यह सेवा मुफ्त है,’ रहमत खान बोला.
‘क्या बुजुर्गों का इतना सम्मान?’ रामशरण जी आश्चर्य से बोले. बोलने के साथ ही उन्हें यह भी याद आ गया कि एक बार उन के दफ्तर में एक बुजुर्ग किसी छोटे से काम के लिए आ गए थे. यद्यपि काम छोटा सा ही था और रामशरण जी चाहते तो उसे मिनटों में कर देते. लेकिन समस्या, बस, इतनी सी थी कि उसूले के पक्के उस बुजुर्ग ने ऊपर से ‘कुछ’ देने से इनकार कर दिया था. रामशरण जी ने तब उसे इतना परेशान कर दिया था कि भूख के मारे वह बूढ़ा गश खा कर गिर पड़ा था. बौस के हस्तक्षेप के बाद रामशरण जी को उस खूसट का काम मुफ्त
में करना पड़ा था.
‘जी, हां, आप तो हमारे देश कि धरोहर हैं. आप के अनुभवों से ही तो शिक्षा ग्रहण कर हमें आगे बढ़ना है,’ रहमत खान रिकशा चलाते हुए बोला, ‘लीजिए यह रही आप की टैक्सी कैब एट जीरो एट जीरो.’
‘इतनी भीड़ में से प्लेटफौर्म नंबर 5 से पार कर के यहां टैक्सी तक आना सचमुच एक दुष्कर कार्य था. आप का बहुतबहुत धन्यवाद. यह रहा आपका ईनाम,’ कहते हुए रामशरण जी ने ड्राइवर की तरफ 50 रुपए का एक नोट बढ़ा दिया.
‘जी धन्यवाद, मगर मैं इस तरह के ईनाम या बख्शिश को स्वीकार नहीं कर सकता. मैं अपनी कमाई से सुखी जीवन व्यतीत कर रह हूं. मुझे मेरी मेहनत का पर्याप्त पैसा मेरे नियोक्ता द्वारा दिया जा रहा है. वैसे भी, आप जो दे रहे हैं उसे साधारण भाषा में रिश्वत कहते है और उस का आधुनिक भारत में कोई स्थान नहीं है,’ ड्राइवर रहमत खान मुसकराते हुए बोला.
टीटीई के बाद एक छोटे से ड्राइवर की ईमानदारी ने रामशरण जी को सोचने पर विवश कर दिया. उन के लिए यह अनुभव बहुत ही शर्मिंदगीभरा था.
‘क्या यह टैक्सी एट जीरो एट जीरो भी फ्री है?’ रामशरण जी ने अचकचाते हुए रिकशा के ड्राइवर से पूछा.
‘जी, नहीं. मगर इस में आप को सिर्फ 30 फीसदी किराया ही देना होगा,’ रिकशा के ड्राइवर ने बतलाया.
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‘क्या आप ही रामशरण जी हैं?’ कैब के ड्राइवर ने टैक्सी का दरवाज़ा खोलते हुए पूछा.
‘जी, हां, मैं ही रामशरण हूं,’ जवाब में रामशरण जी ने बोला.
‘कृपया अपना आधारकार्ड दे दीजिए. उसे सिस्टम में अपडेट करना आवश्यक है,’ ड्राइवर बोला. डिटेल्स फीड होते ही कैब अपनी रफ़्तार से चल पड़ी. लगभग डेढ़ घंटे चलने के बाद कैब अपने गंतव्य स्थान पर थी. फेयर मीटर 930 रुपए का चार्ज बतला रहा था.
‘कितने पैसे हुए, भैया?’ रामशरण जी ने पूछा यद्यपि वे जानते थे कि उन्हें 30 फीसदी के हिसाब से 310 रुपए ही देना है.
‘279 रुपए, सर,’ कैब ड्राइवर कैलकुलेशन करने के बाद बोला.
‘अरे भैया, ठीक से कैलकुलेशन करो. 930 का थर्टी परसैंट 310 होता है, न कि 279. अपना नुकसान क्यों कर रहे हैं? आप को जेब से भरना पड़ेगा,’ रामशरण जी ने कहा.
‘जी, आप जैसे बाहर से आए हुए बुजुर्गों के लिए कैब कंपनी ने कुल बिल का 10 परसैंट डिस्काउंट औफर भी दिया हुआ है. सो 310 का 10 परसैंट 279 ही हुआ ना,’ कैब ड्राइवर मुसकराकर समझाता हुआ बोला.
‘अच्छा, अच्छा. यह लो 300 रुपए और बचे हुए पैसे अपने पास रख लो,’ रामशरण जी बोले.