खुशी के आंसू- भाग 3: आनंद और छाया ने क्यों दी अपने प्यार की बलि?

लेखिका- डा. विभा रंजन  

“यही कि शादी हो गई होती, अब तक छाया और आनंद, मम्मीपापा बन गए होते,”

तबस्सुम ने सच्ची बात कह दी.

ज्योति ने यह सुना तो सन्न रह गई. जो उस ने सुना वह सच है या तबस्सुम दी ने ऐसे ही यह बात कह दी. पर वे आनंद का नाम क्यों ले रही हैं वे किसी और का भी तो नाम ले सकती हैं. इस का मतलब है, दीदी और आनंद जी… ज्योति को कुछ समझ नहीं आ रहा था. उस ने जैसेतैसे खुद को संभाला और अपने चेहरे के भाव को सामान्य कर कर लिया.

तबस्सुम दिनभर रही और रात होने से पहले वापस घर चली गई. पर ज्योति के मन में हलचल मचा गई. मतलब साफ है, पापा भी इन लोगों के बारे में जानते थे, वह कैसे नहीं जान पाई. पापा की बीमारी में अस्पताल में आनंदजी आते रहते थे. उस समय की परिस्थिति ऐसी थी जिस में इन सभी विषयों पर सोचने की फुरसत भी नहीं थी. जब पापा के कैंसर का पता चला तब हम सभी पापा में लग गए. एक बात तो स्पष्ट है कि आनंद और दीदी का प्यार बहुत गहरा है. एकदूसरे के प्रति अटूट विश्वास है. इसी कारण इन्हें किसी को दिखाने की जरूरत नहीं पडी. उसी प्यार में दीदी ने आनंदजी को मुझ से विवाह करने के लिए मना भी लिया. दीदी ने ऐसा क्यों किया? काश, एक बार मुझे सब सच बता दिया होता. यह तो अच्छा हुआ कि तबस्सुम दी ने मुझे सच से अवगत करा दिया वरना…

स्कूल की परीक्षा समाप्त होने के बाद छाया ने ज्योति से कहा, “ज्योति, पापा की बरसी के बाद  मैं तेरे विवाह की सोच रही हूं. बरसी को 2 महीने रह गए हैं. तब तक मैं धीरेधीरे शादी की तैयारियां भी करती रहूंगी.”

ये भी पढ़ें- मजाक: गिरधारी राम खिचड़ी वाला स्कूल

ये भी पढ़ें- Short Story: हिंडोला- दीदी के लिए क्या भूल गई अनुभा अपना प्यार?

“इतनी जल्दी क्या है दीदी,”  ज्योति ने कहा.

“नहीं ज्योति, शुभकार्य में विलंब ठीक नहीं,”  छाया को जैसे हड़बड़ी थी.

“हां, तो ठीक है. अगले सप्ताह 27 तारीख को तुम्हारा जन्मदिन है, उस दिन कुछ कार्यक्रम कर लो,”    ज्योति ने कहा.

“धत, मेरे जन्मदिन के समय ठीक नहीं है, किसी और दिन रखूंगी.” छाया ने मना कर दिया.

“दीदी, मुझे कुछ कहना है,” ज्योति ने आग्रह किया.

“हां, बोलो,” छाया ज्योति को देखते हुए बोली.

“दीदी, इस बार  मैं तुम्हारा जन्मदिन अपनी पसंद से सैलिब्रेट करना चाहती हूं,” ज्योति ने बहुत लाड़ से कहा.

“अरे, मेरा जन्मदिन क्या मनाना,” छाया ने टालना चाहा.

“मैं ने कहा न, इस बार मैं तुम्हारा जन्मदिन सैलिब्रेट करूंगी, फिर तो मैं ससुराल चली जाऊंगी, तुम तो मेरी हर इच्छा पूरी करती हो, इतनी सी बात नहीं मानोगी,” ज्योति  छाया से मनुहार करने लगी.

“अच्छा बाबा, तुम सैलिब्रेट करना, पर भीड़भाड़ नहीं, समझीं,” छाया ने अपनी बात रख दी.

“ठीक है, मैं समझ गई,” ज्योति खुश हो गई.

छाया स्कूल में आनंद से, बस, काम की बात किया करती थी. वह कोशिश करती कि आनंद से उस का सामना कम हो. उस ने आनंद को छोड़ने का फैसला तो कर लिया पर जैसेजैसे दिन बीत रहे थे, उस का मन बोझिल होता जा रहा था. अपने जन्मदिन के दिन उस का मन खिन्न हो उठा क्योंकि हर जन्मदिन पर सब से पहले आनंद का ही फोन आता था. इस रास्ते को तो वह स्वयं ही बंद कर आई है.

छाया का मन बेचैन था, इंतजार करता रहा, आनंद का फोन नहीं आया. छाया ने ज्योति से काम का बहाना बनाया और आनंद से मिलने के लिए स्कूल चली आई. स्कूल आ कर पता चला आनंद ने 2 दिनों की छुट्टी ले रखी है. थोड़ी देर स्कूल में रुकने के बाद वह घर आ गई.

ज्योति उस की बेचैनी समझ रही थी. पर वह चुप थी. ज्योति ने पूरे घर को छाया की पसंद के फूलों से सजाया था. उस ने सारा खाना अपने हाथों से बनाया, यहां तक कि केक भी उस ने बडे प्यार से बनाया. छाया ने कहा था इतनी मेहनत करने की क्या जरूरत है, केक मंगा लेते हैं. पर वह तैयार नहीं हुई.

ये भी पढ़ें- वह नाराज ही चली गई

ज्योति ने छाया को मां की साड़ी दे कर कहा, “दीदी, शाम को यही पहनना.”

“मां की साडी, क्यों?” छाया ने अचरज से पूछा.

“पहन लो न. बस, ऐसे ही. आज तो मेरी हर बात माननी है, याद है न,” ज्योति ने और्डर से कहा.

“अच्छा, हां.”  छाया ने कहा. छाया का मन हो रहा था वह ज्योति से पूछे कि आनंद को बुलाया है या नहीं. पर उस की हिम्मत नहीं हुई. “तुम क्या पहन रही हो?”  छाया ने प्यार से पूछा.

“आज तुम ने जो पीला सूट दिया था न, वह वाला पहनूंगी. ठीक है न?”  ज्योति खुशी से बोली.

शाम को दोनों बहनें तैयार हो रही थीं, तभी बाई ने बताया कि आनंद बाबू आए हैं. छाया का दिल जोर से धड़कने लगा. उसे लगा, वह गिर जाएगी. उस ने अपनेआप को संभाला.

“आ गए आप, मैं ने तो आप को और पहले से आने को कहा था. आप इतनी देर में क्यों आए?” ज्योति का आनंद से बेतकल्लुफ़ हो कर बोलना आनंद और छाया दोनों ने गौर किया.

“वह कुछ काम था, इसलिए देर हो गई, हैप्पी बर्थडे छाया,” आनंद ने रजनीगंधा का एक खुबसूरत बुके देते हुए छाया से सकुचाते हुए कहा.

छाया ने “थैक्स” कह बुके को झट से अपने कलेजे से लगा लिया और अंदर कमरे में जाने लगी.

“दीदी, कहां जा रही हो, केक नहीं काटोगी,” ज्योति ने छाया का हाथ पकड़ा और उसे खींचती हुई आनंद के पास ला कर सोफे पर बिठा दिया और फिर बोली, “मैं केक ले कर आ रही हूं.”

छाया को बड़ी बेचैनी हो रही थी. आनंद से मिलना भी चाह रही थी, जब आनंद सामने आया तब घबराहट सी होने लगी. तभी ज्योति केक ले आई, “हैप्पी बर्थडे टू यू डीयर दीदी, हैप्पी बर्थडे टू यू.”

ज्योति का उत्साह देखते बन रहा था. दोनों बहनों ने एकदूसरे को केक खिलाया फिर आनंद को केक दिया.”केक तो बहुत अच्छा है,” आनंद ने कहा.“ज्योति ने बनाया है,” छाया ने बड़े गर्व से कहा, “आज का सारा इंतजाम मेरी ज्योति ने किया है.”

“ओह, और गिफ्ट क्या दिया?”

“नहीं दी हूं, अभी दूंगी,” ज्योति ने तपाक से कहा, फिर ज्योति ने आनंद के दिए हुए रजनीगंधा के बुके से एक फूल की डंडी निकाल कर छाया को देते हुए कहा,

“त्वदीयं वस्तु दीदी तुभ्यमेव समर्पये.” यानी, “ तुम्हारी चीज तुम्हें ही सौपती हूं दीदी.”

“क्या बोल रही है,” छाया हड़बड़ा गई.

“सही बोल रही हूं दीदी, तुम्हारी चीज मैं तुम्हें वापस लौटा रही हूं,” ज्योति ने आनंद की ओर अपना हाथ दिखाते हुए कहा.

ये भी पढ़ें- सिंदूरी मूर्ति- भाग 1: जब राघव-रम्या के प्यार के बीच आया जाति का बंधन

“मुझे पता चल चुका है दीदी आप दोनों के बारे में. आप दोनों की तो शादी होने वाली थी, पर पापा के असमय मौत से टल गई. सब जानते हुए आप ने कैसे मेरी शादी आनंदजी से तय कर दी. मैं नहीं जानती आप ने आनंदजी को किस तरह मुझ से शादी के लिए मजबूर किया होगा, लेकिन यह सब करते आप ने एक बार भी नहीं सोचा कि जिस दिन मुझे इस सच का पता चलेगा, उस दिन मुझ पर क्या बीतेगी. यह सच जान कर मैं तो आत्महत्या ही कर लेती दीदी.”

“ज्योति, ऐसा मत बोल,” छाया ने उस की बात काटते हुए तड़प कर उस के मुंह पर अपना हाथ रख दिया.

“मैं ने, बस, तेरी खुशी चाही, और कुछ नहीं.”

“ऐसी खुशी किस काम की दीदी, जिस में बाद में पछताना पडे. आप को क्या लगा, अगर आप सच बता देतीं, तब मैं आप से नफरत करने लगती, आप से दूर हो जाती? नहीं दीदी, मैं आप से कभी नफरत कर ही नहीं सकती दीदी, लेकिन आप ने मुझे अपनी ही नजरों में गिरा दिया,” यह सब  बोल कर ज्योती हांफने लगी.

“बस कर ज्योति, बस कर. मैं ने इतनी गहरी बात कभी सोची ही नहीं. मैं बहुत बडी गलती करने जा रही थी, मुझे माफ कर दे. कभीकभी बड़ों से भी नादानियां हो जाती हैं. बस, एक बार मुझे माफ कर दे मेरी बहन.”

“एक शर्त पर,” ज्योति ने कहा.”मैं तेरी हर शर्त मानने को तैयार हूं, तू बोल कर तो देख,” छाया ने कहा.”आप अभी यह केक मेरे होने वाले आनंद जीजाजी को खिलाइए,” ज्योती ने आनंद की ओर इशारा करते हुए  कहा.

“ओके.” छाया ने केक का टुकड़ा आनंद के मुंह में डाला. उस की आंखें, उस का तनमन, उस का रोमरोम  उस से क्षमायाचना कर रहा था. तीनों की आंखें भरी थीं, पर ये आंसू खुशी के थे.

इधर-उधर- भाग 3: अंबर को छोड़ आकाश से शादी के लिए क्यों तैयार हो गई तनु?

Writer- Rajesh Kumar Ranga

आकाश ने वेटर को बिल लाने को कहा तो मैनेजर ने बिल लाने से इनकार कर दिया, ‘‘यह हमारी तरफ से.’’

‘‘नहीं मैनेजर साहब, अभी हम इस होटल के मालिक नहीं बने हैं और बन भी जाएं तो भी मैं नहीं चाहूंगा कि हमें या किसी और को कुछ भी मुफ्त में दिया जाए. मेरा मानना है कि मुफ्त में सिर्फ खैरात बांटी जाती है और खैरात इंसान की अगली नस्ल तक को बरबाद करने के लिए काफी होती है.’’

होटल के बाहर निकल कर आकाश ने तनु की ओर नजर डाली और कहा,

‘‘बहुत दिनों से लोकल में सफर करने की इच्छा थी, आज छुट्टी का दिन है भीड़भाड़ भी कम होगी. क्यों न हम यहां से लोकल ट्रेन में चलें फिर वहां से टैक्सी.’’

तनु ने अविश्वास से आकाश की ओर देखा और फिर दोनों स्टेशन की तरफ चल पड़े.

‘‘आप तो अकसर विदेश जाते रहते होंगे. क्या फर्क लगता है हमारे देश में और विदेशों में?’’

‘‘सच कहूं तो लंदन स्कूल औफ इकौनोमिक्स से डिगरी लेने के बाद मैं विदेश बहुत कम गया हूं. आजकल के जमाने में इंटरनैट पर सबकुछ मिल जाता है और जहां तक घूमने की बात है यूरोप की छोटीमोटी भुतहा इमारतें जिन्हें वे कैशल कहते हैं और किले मुझे ज्यादा भव्य लगते हैं… स्विटजरलैंड से कहीं अच्छा हमारा कश्मीर है, सिक्किम है, अरुणाचल है, बस जरूरत है सफाई की, सुविधाओं की और ईमानदारी की…’’

‘‘जो हमारे यहां नहीं है… है न?’’ तनु ने प्रश्न किया.

‘‘आप इनकार नहीं कर सकतीं कि बदलाव आया है और अच्छी रफ्तार से आया है. जागरूकता बढ़ी है, देश की प्रतिष्ठा बढ़ी है, हमारे पासपोर्ट की इज्जत होनी शुरू हो गई है. आज का भारत कल के भारत से कहीं अच्छा है और कल का भारत आज के भारत से लाख गुना अच्छा होगा.’’

‘‘आप तो नेताओं जैसी बातें करने लगे आकाशजी,’’ तनु को उस की बातों में कोई दिलचस्पी नहीं थी.

गेटवे के किनारे तनु ने फिर नारियल पानी पीने की इच्छा जाहिर कर दी. दोनों ने नारियल पानी पीया.

सही कहा गया है कि इंसान के हालात का और मुंबई की बरसात का कोई भरोसा नहीं. एक बार फिर बादलों ने पूरे माहौल को अपने आगोश में ले कर लिया और चारों ओर रात जैसा अंधेरा छा गया. अगले ही पल मोटीमोटी बूंदों ने दोनों को भिगोना शुरू कर दिया. दोनों भाग कर पास की एक छप्परनुमा दुकान में घुस कर गरमगरम भुट्टे खाने लगे.

ये भी पढ़ें- सालते क्षण: उसे सालते क्षण की कमी कब महसूस हुई?

आकाश ने जेब से पैसे निकाले और भुट्टे वाली बुजुर्ग महिला के हाथ में थमा दिए. उस की नजर उमड़ते बादलों पर ही थी. प्रश्नवाचक दृष्टि से उस ने तनु की ओर देखा और दोनों बाहर निकल गए. टैक्सी लेने की तमाम कोशिशें नाकामयाब होने के बाद दोनों स्टेशन की ओर पैदल ही निकल पड़े. रास्ते में आकाश ने ड्राइवर को फोन कर के कामा होटल से गाड़ी ले कर स्टेशन आने को कह दिया.

घर पहुंचतेपहुंचते रात हो चुकी थी. आकाश और उस के परिवार वालों ने इजाजत

मांगी. उन के जाते ही जयनाथजी कुछ कहने के लिए मानो तैयार ही थे, ‘‘कितने पैसे वाले लोग हैं, मगर कोई मिजाज नहीं, कोई घमंड नहीं, हम जैसे मध्यवर्ग वालों की लड़की लेना चाहते हैं. कोई दहेज की मांग नहीं, यहां तक कि…’’

‘‘तो मुझे क्या करना चाहिए अंबर कि बजाय आकाश को पसंद कर लेना चाहिए, क्योंकि आकाश करोड़पति है, उस के मातापिता घमंडी नहीं हैं. वे धरातल से जुड़े हैं और सब से बड़ी बात कि उन्हें हम, हमारा परिवार, हमारी सादगी पसंद है. अपनी पसंद मैं भाभी को सुबह ही बता चुकी हूं, आकाश से मिलने के बाद उस में कोई तबदीली नहीं आई है…’’

‘‘ठीक है इस बारे में हम बाकी बातें कल करेंगे…’’ जयनाथजी ने लगभग पीछा छुड़ाते हुए कहा.

रात के करीब 2 बजे तनु ने भाभी को फोन मिलाया, ‘‘भाभी मुझे आप से मिलना है. भैया तो बाहर गए हैं. जाहिर है आप भी जग रही होंगी, मुझे अंबर के बारे में कुछ बातें करनी हैं, मैं आ जाऊं?’’

‘‘तनु मैं गहरी नींद में हूं… हम सुबह मिलें?’’

‘‘मैं तो आप के दरवाजे पर ही हूं… गेट खोलेंगी या खिड़की से आना पड़ेगा?’’

अगले ही पल तनु अंदर थी. बातों का सिलसिला शुरू करते हुए भाभी ने तनु से पूछा, ‘‘तुम मुझे अपना फैसला सुना चुकी हो. अब इतनी रात मेरी नींद क्यों खराब कर रही हो?’’

‘‘भाभी, अंबर को फोन कर के कहना है कि मैं उस से शादी नहीं कर सकती.’’

‘‘क्या?’’ भाभी को लगा कि वह अभी भी नींद में ही है.

पलक झपकते ही तनु ने अंबर को फोन लगा दिया, ‘‘हैलो अंबर मैं तनु बोल रही हूं… मैं इधरउधर की बात करने के बजाय सीधा मुद्दे पर आना चाहती हूं…’’

‘‘ठीक है… जल्दी बता दो मैं इधर हूं या उधर…’’

‘‘इधरउधर की छोड़ो और सुनो सौरी यार मैं तुम से शादी नहीं कर सकती…’’

‘‘ठीक है मगर इतनी रात को क्यों बता रही हो… सुबह तक…’’

‘‘सुबह तक मेरा दिमाग बदल गया तो? तुम चीज ही ऐसी हो कि तुम्हें मना करना बहुत मुश्किल है…’’

‘‘अच्छा औल द बैस्ट, अब सो जाओ और मुझे भी सोने दो, किसी उधर वाले से शादी तय हो जाए तो जगह, तारीख वगैरह बता देना मैं आ जाऊंगा, मुफ्त का खा कर चला जाऊंगा…’’

‘‘मुफ्ती साहब, गिफ्ट लाना पड़ेगा. शादी में खाली लिफाफे देने का रिवाज दिल्ली में होगा, मुंबई में नहीं…’’

ये भी पढ़ें – बदला: सुगंधा ने कैसे लिया रमेश से बदला

‘‘ठीक है 2-4 फूल ले आऊंगा. अब मुझे सोने दो… सुबह मेरी फ्लाइट है…’’

भाभी बिलकुल सकते में थी, ‘‘ये सब क्या है तनु? तुम तो अंबर पर फिदा हो गई थी… क्या आकाश का पैसा तुम्हें आकर्षित कर गया? क्या उस की बड़ी गाड़ी अंबर की मोटरसाइकिल से आगे निकल गई?’’

‘‘भाभी अंबर पर फिदा होना स्वाभाविक है. ऐसे लड़के के साथ घूमनाफिरना,

मजे करना, अच्छा लगेगा मगर शादी एक ऐसा बंधन है, जिस में एक गंभीर, संजीदा इंसान चाहिए न कि कालेज से निकला हुआ एक हीरोनुमा लड़का.

‘‘हम घर से बाहर निकले तो आकाश ने पूरे शिद्दत से ट्रैफिक के सारे नियमों का पालन किया, मेरे लाख कहने के बावजूद उस ने गाड़ी नो ऐंट्री में नहीं घुमाई, अपने देश के बारे में उस के विचार सकारात्मक थे. उसे देश से कोई शिकायत न थी, रेस्तरां में वेटर से इज्जत से बात की न कि उसे वेटर कह कर आवाज दी, मुफ्त का खाने के बजाय उस ने पैसे देने में अपनी खुद्दारी समझ.

‘‘बड़ी गाड़ी छोड़ कर लोकल ट्रेन में जाने में उसे कोई परहेज नहीं, नारियल पानी पी कर उस ने नारियल एक ओर उछाला नहीं, बल्कि डस्टबिन की तलाश की, भुट्टे वाली माई को उस ने जब मुट्ठीभर पैसे दिए तो उस का सारा ध्यान इस पर था कि मैं कहीं देख न लूं.

‘‘इतने पैसे उस भुट्टे वाली ने एकसाथ कभी नहीं देखे होंगे… इतने संवेदनशील व्यक्तित्व के मालिक के सामने मैं एक प्यारे से हीरो को चुन कर जीवनसाथी बनाऊं? इतनी बेवकूफ मैं लगती जरूर हूं, मगर हूं नहीं.’’

भाभी सिर पर हाथ रख कर बैठ गई.

‘‘क्या सर दर्द हो रहा है.’’

‘‘नहीं बस चक्कर से आ रहे हैं…’’

‘‘रुको, अभी सिरदर्द दूर हो जाएगा…’’ तनु ने कहा.

भाभी बोल पड़ी, ‘‘अब क्या बाकी है?’’

तनु ने फोन उठाया और एक नंबर मिलाया, ‘‘हैलो आकाश, मैं ने फैसला कर लिया है… मुझे आप पसंद हैं. मैं आप से शादी करने को तैयार हूं. मुझे पूरा यकीन है कि मैं भी आप को पसंद हूं.’’

‘‘तुम ने फैसला ले कर मुझे बताने का जो समय चुना वह वाकई काबिलेतारीफ है,’’ दूसरी ओर से आवाज आई.

‘‘हूं… मगर भाभी इस बात को मानती ही नहीं… देखो मुझे धक्के मार कर अपने कमरे से बाहर निकालने पर उतारू है…’’

‘‘आकाश ने जेब से पैसे निकाले और भुट्टे वाली बुजुर्ग महिला के हाथ में थमा दिए.

उसकी नजर उमड़ते बादलों पर ही थी. प्रश्नवाचक दृष्टि से उस ने तनु की ओर देखा और दोनों बाहर निकल गए…’’

सिंदूरी मूर्ति- भाग 3: जब राघव-रम्या के प्यार के बीच आया जाति का बंधन

रम्या को औफिस आ कर ही पता चला कि आज की लंच पार्टी रम्या की स्वागतपार्टी और राघव की विदाई पार्टी है. दोनों ही सोच में डूबे हुए अपनेअपने कंप्यूटर की स्क्रीन से जूझने लगे.

राघव सोच रहा था कि रम्या की जिंदगी के इस दिन का उसे कितना इंतजार था कि स्वस्थ हो दोबारा औफिस जौइन कर ले. मगर वही दिन उसे रम्या की जिंदगी से दूर भी ले कर जा रहा था.

रम्या सोच रही थी कि जब मैं अस्पताल में थी तो राघव नियम से मुझ से मिलने आता था और कितनी बातें करता था. शुरूशुरू में तो मां को उसी पर शक हो गया था कि यह रोज क्यों आता है? कहीं इसी ने तो हमला नहीं करवाया और अब हीरो बन सेवा करने आता है? और अप्पा को तो मामा पर शक हो गया था, क्योंकि मैं ने मामा से शादी करने को मना कर दिया था और छोेटा मामा तो वैसे भी निकम्मा और बुरी संगत का था. अप्पा को लगा मामा ने ही मुझ से नाराज हो कर हमला करवाया है. जब राघव को मैं ने मामा की शादी के प्रोपोजल के बारे में बताया तो वह हैरान रह गया. उस का कहना था कि उन के यहां मामाभानजी का रिश्ता बहुत पवित्र माना जाता है. अगर गलती से भी पैर छू जाए तो भानजी के पैर छू कर माफी मांगते हैं. पर हमारी तरफ तो शादी होना आम बात है. मामा की उम्र अधिक होने पर उन के बेटे से भी शादी कर सकते हैं.

ये भी पढ़ें-  Family Story in Hindi: बाजारीकरण- जब बेटी के लिए नीला ने किराए पर रखी कोख

उन दिनों कितनी प्रौब्ल्म्स हो गई थीं घर में… हर किसी को शक की निगाह से देखने लगे थे हम. राघव, मामा, हमारे पड़ोसियों सभी को… अम्मां को भी अस्पताल के पास ही घर किराए पर ले कर रहना पड़ा. आखिर कब तक अस्पताल में रहतीं. 1 महीने बाद अस्पताल छोड़ना पड़ा. मगर लकवाग्रस्त हालत में गांव कैसे जाती? फिजियोथेरैपिस्ट कहां मिलते? राघव ने भी मुझ से ही पूछा था कि अगर वह शनिवार, रविवार को मुझ से मिलने घर आए तो मेरे मातापिता को कोई आपत्ति तो नहीं होगी. अम्मांअप्पा ने अनुमति दे दी. वे भी देखते थे कि दिन भर की मुरझाई मैं शाम को उस की बातों से कैसे खिल जाती हूं, हमारा अंगरेजी का वार्त्तालाप अम्मां की समझ से दूर रहता. मगर मेरे चेहरे की चमक उन्हें समझ आती थी.

मामा ने गुस्से में आना कम कर दिया तो अप्पा का शक और बढ़ गया. वह तो

2 महीने पहले ही पुलिस ने केस सुलझा लिया और हमलावर पकड़ा गया वरना राघव का भी अपने घर जाना मुश्किल हो गया था. मैं ने आखिरी कौल राघव को ही की थी कि मैं स्टेशन पहुंच गई हूं, तुम भी आ जाओ. उस के बाद उस अनजान कौल को रिसीव करने के बीच ही वह हमला हो गया.

राघव ने जब बताया था कि वह बाराबंकी के कुंभकार परिवार से है और उस का बचपन मूर्ति में रंग भरने में ही बीता है, तो मैं ने कहा था कि वह मूर्ति बना कर दिखाए. तब उस ने रंगीन क्ले ला कर बहुत सुंदर मूर्ति बनाई जो संभाल कर रख ली.

‘रम्या भी तो एक बेजान मूर्ति में परिवर्तित हो गई थी उन दिनों,’ राघव ने सोचा. वह हर शनिवाररविवार जब मिलने जाता तब उसे रम्या में वही स्वरूप दिखाई देता जैसा उस के बाबा दीवाली में लक्ष्मी का रूप बनाते थे. काली मिट्टी से बनी सौम्य मूर्ति. उस मूर्ति में जब वह लाल, गुलाबी, पीले और चमकीले रंगों में ब्रश डुबोडुबो कर रंग भरता, तो उस मूर्ति से बातें भी करता.

यही स्थिति अभी भी हो गई है. रम्या के बेजान मूर्तिवत स्वरूप से तो वह कितनी बातें करता था. लकवाग्रस्त होने के कारण शुरूशुरू में वह कुछ बोल भी नहीं पाती थी, केवल अपने होंठ फड़फड़ा कर या पलकें झपका कर रह जाती. बाद में तो वह भी कितनी बातें करने लगी थी. उस की जिंदगी में भी रंग भरने लगे थे. वह समझ ही नहीं पाया कि रंग भर कौन रहा है? वह रम्या की जिंदगी में या रम्या उस की जिंदगी में? अब रम्या जीवन के रंगों से भरपूर है. अपने अम्मांअप्पा के संरक्षण में गांव लौट गई है, उस की पहुंच से दूर. अब उस की सेवा की रम्या को क्या आवश्यकता? अब वह भी यहां से चला जाएगा. रम्या से फेसबुक और व्हाट्सऐप के माध्यम से जुड़ा रहेगा वैसे ही जैसे पंडाल में सजी मूर्तियों से मन ही मन जुड़ा रहता था.

ये भी पढ़ें- Romantic Story in Hindi: चार आंखों का खेल

‘‘चलो, सब आज सब का लंच साथ हैं याद है न?’’ रमन ने मेज थपथपाई.

सभी एकसाथ लंच करने बैठ गए तो रम्या ने कहा, ‘‘धन्यवाद तो मुझे तुम सब का देना चाहिए जो रक्तदान कर मेरे प्राण बचाए…’’

‘‘सौरी, मैं तुम्हें रोक रहा हूं. मगर सब से पहले तुम्हें राघव को धन्यवाद करना चाहिए. इस ने सर्वप्रथम खून दे कर तुम्हें जीवनदान दिया है,’’ मुरली मोहन बोला.

‘‘ठीक है, उसे मैं अलग से धन्यवाद दे दूंगी,’’ कह रम्या हंस रही थी. राघव ने देखा आज उस ने काले की जगह लाल रंग की बिंदी लगाई थी.

‘‘वैसे वह तेरा वनसाइड लवर भी बड़ा खतरनाक था… तुझे अपने इस पड़ोसी पर पहले कभी शक नहीं हुआ?’’ सुभ्रा ने पूछा.

‘‘अरे वह तो उम्र में भी 2 साल छोटा है मुझ से. कई बार कुछ न कुछ पूछने को किसी न किसी विषय की किताब ले कर घर आ धमकता था. मगर मैं नहीं जानती थी कि वह क्या सोचता है मेरे बारे में,’’ रम्या अपना सिर पकड़ कर बैठ गई.

लगभग सभी खापी कर उठ चुके थे. राघव अपने कौफी के कप को घूरने में लगा था मानो उस में उस का भविष्य दिख रहा हो.

‘‘तुम्हारा क्या खयाल है उस लड़के के बारे में?’’ रम्या ने पास आ कर उस से पूछा.

‘‘प्यार मेरी नजर में कुछ पाने का नहीं, बल्कि दूसरे को खुशियां देने का नाम है. अगर हम प्रतिदान चाहते हैं, तो वह प्यार नहीं स्वार्थ है और मेरी नजर में प्यार स्वार्थ से बहुत ऊपर की भावना है.’’

‘‘इस के अलावा भी कुछ और कहना है तुम्हें?’’ रम्या ने शरारत से राघव से पूछा.

‘‘हां, तुम हमेशा इसी तरह हंसतीमुसकराती रहना और अपनी फ्रैंड लिस्ट में मुझे भी ऐड कर लेना. अब वही एक माध्यम रह जाएगा एकदूसरे की जानकारी लेने का.’’

‘‘ठीक है, मगर तुम ने मुझ से नहीं पूछा?’’

‘‘क्या?’’

‘‘यही कि मुझे कुछ कहना है कि नहीं?’’ रम्या ने कहा तो राघव सोच में पड़ गया.

‘‘क्या सोचते रहते हो मन ही मन? राघव, अब मेरे मन की सुनो. अगले महीने अप्पा बाराबंकी जाएंगे तुम्हारे घर मेरे रिश्ते की बात करने.’’

‘‘उन्हें मेरी जाति के बारे में नहीं पता शायद,’’ राघव को अप्पा का कौफी पीना याद आ गया.

‘‘यह देखो इन रगों में तुम्हारे खून की लाली ही तो दौड़ रही है और जो जिंदगी के पढ़ाए पाठ से भी सबक न सीख सके वह इनसान ही क्या… मेरे अप्पा इनसानियत का पाठ पढ़ चुके हैं. अब उन्हें किसी बाह्य आडंबर की जरूरत नहीं है,’’ रम्या ने अपना हाथ उस की हथेलियों में रख कर कहा, ‘‘अब अप्पा भी चाह कर मेरे और तुम्हारे खून को अलगअलग नहीं कर सकते.’’

ये भी पढ़ें- Social Story in Hindi: कोरा कागज- माता-पिता की सख्ती से घर से भागे राहुल के साथ क्या हुआ?

‘‘तुम ने आज लाल बिंदी लगई है,’’ राघव अपने को कहने से न रोक सका.

‘‘नोटिस कर लिया तुम ने? यह तुम्हारा ही दिया रंग है, जो मेरी बिंदी में झलक आया है और जल्द ही सिंदूर बन मेरे वजूद में छा जाएगा,’’ रम्या बोली और फिर दोनों एकदूसरे का हाथ थामें जिंदगी के कैनवास में नए रंग भरने निकल पड़े.

मिसफिट पर्सन- भाग 3: जब एक जवान लड़की ने थामा नरोत्तम का हाथ

नरोत्तम ने अपना सिर धुन लिया. वह बारबार कहता रहा कि हवाई अड्डे पर उस का अघोषित सामान पकड़ा था उसी से वह उस को जानती है. और अब जानबूझ कर मजे लेने के लिए ड्रामा कर रही थी. मगर पत्नी को कहां विश्वास करना था.

‘‘सर, नरोत्तम की वजह से कोई भी सहजता से काम नहीं कर पाता,’’ डिप्टी डायरैक्टर, कस्टम ने अपने बौस से कहा.

नरोत्तम को कोई भी विभाग अपने यहां लेने को तैयार नहीं था. एक तो उस का स्वभाव ही ऐसा था, दूसरे, उस के कर्म खोटे थे. वह जहां जाता वहां कोई न कोई पंगा हो जाता था.

कार्गो कौम्प्लैक्स, कस्टम विभाग में सुरक्षा महकमा समझा जाता था. इस विभाग में ऊपर की कमाई के अवसर काफी कम थे. नरोत्तम को इस विभाग में भेज दिया गया.

नरोत्तम कर्तव्यनिष्ठ अफसर था. उस को कहीं भी ड्यूटी करने में संकोच नहीं था.

एक रोज एक शिपमैंट की चैकिंग के दौरान एक पेटी मजदूर के हाथों से गिर कर टूट गई. पेटी में फ्रूट जूस की बोतलें भरी थीं. कुछ बोतलें टूट गईं. उन में से छोटीछोटी पाउचें निकल कर बिखर गईं. सब चौंक पड़े. नरोत्तम ने पाउचें उठा लीं और एक को फाड़ कर सूंघा. उन में सफेद पाउडर भरा था, जो हेरोइन थी.

मामला पहले पुलिस, फिर मादक पदार्थ नियंत्रण ब्यूरो के हवाले हो गया. शिपमैंट भेजने वाले निर्यातक की शामत आ गई. उस के बाद हर कंटेनर को खोलखोल कर देखा जाने लगा. निर्यात में देरी होने लगी. कई अन्य घपले भी सामने आ गए. कार्गो कौम्प्लैक्स भी अब निगाहों में आ गया.

जिस निर्यातक की शिपमैंट में नशीला पदार्थ पकड़ा गया था उस ने नरोत्तम को मारने के लिए गुंडेबदमाशों को ठेका दे दिया. नरोत्तम नया रंगरूट था. उस को हथियार चलाने का प्रशिक्षण भी मिला था और साथ ही सुरक्षा हेतु रिवौल्वर भी. एनसीसी कैडेट भी रह चुका था. वह दक्ष निशानेबाज था.

एक दिन वह ड्यूटी समाप्त कर अपनी मोटरसाइकिल पर सवार हुआ. मेन रोड पर आते ही उस के पीछे एक काली कार लग गई. बैक व्यू मिरर से उस की निगाहों में वह पीछा करती कार आ गई.

ये भी पढ़ें- Romantic Story in Hindi- भूलना मत: नम्रता की जिंदगी में क्या था उस फोन कौल का राज?

वह चौकस हो गया. उस ने कमर से बंधे होलेस्टर का बटन खोल दिया. शाम का धुंधलका अंधेरे में बदल रहा था. सड़क पर ट्रैफिक बढ़ रहा था. दफ्तरों से, दुकानों से घर लौटते लोग अपनेअपने वाहन तेजी से चलाते जा रहे थे.

कार लगातार पीछे चलती बिलकुल समीप आ गई. फिर साथसाथ चलने लगी. नरोत्तम ने देखा, कार में 4 आदमी सवार थे.

एक ने हाथ उठाया, उस के हाथ में रिवौल्वर थी. नरोत्तम ने मोटरसाइकिल को एक झोल दिया. एक फायर हुआ, झोल देने से निशाना चूक गया. कार आगे निकल गई. उस ने फुरती से अपनी रिवौल्वर निकाली. निशाना साध कर फायर किया.

कार का पिछला एक पहिया बर्स्ट हो गया. कार डगमगाती हुई रुक गई. नरोत्तम ने मोटरसाइकिल रोक कर सड़क के किनारे खड़ी कर दी. सड़क के किनारे थोड़ीथोड़ी दूरी पर बिजली के खंभे थे. उन के साथ कूड़ा डालने के ड्रम थे. वह लपक कर डम के पीछे बैठ गया. कार रुक गई. 4 साए अंधेरे में आगे बढ़ते उस की तरफ आए. रेंज में आते ही उस ने एक के बाद एक 3 फायर किए. 2 साए लहरा कर नीचे गिर पड़े. नरोत्तम फुरती से उठा और दौड़ कर पीछे वाले खंभे की ओट में जा छिपा.

जैसी उम्मीद थी वैसा हुआ. 2 रिवौल्वरों से ड्रम पर गोलियां बरसने लगीं. मगर नरोत्तम पहले से जगह छोड़ कर पीछे पहुंच गया था. उस ने निशाना साध गोली चलाई. एक साया हाथ पकड़ कर चीखा, फिर दोनों भाग कर कार की तरफ जाने लगे.

नरोत्तम मुकाबला खत्म समझ छिपने के स्थान से बाहर निकल आया. तभी भागते दोनों सायों में से एक मुड़ा और नरोत्तम पर फायर कर दिया. गोली नरोत्तम के कंधे पर लगी. वह कंधा पकड़ कर बैठ गया.

सड़क पर चलता ट्रैफिक लगातार होती गोलीबारी से रुक गया. टायर बर्स्ट हुई कार में बैठ कर चारों बदमाश भाग निकले. नरोत्तम पर बेहोशी छाने लगी. तभी 2 जनाना हाथों ने उसे थाम लिया. पुलिस की गाडि़यों के सायरन गूंजने लगे. नरोत्तम बेहोश हो गया.

नरोत्तम की आंख खुली तो उस ने खुद को अस्पताल के बिस्तर पर पाया. उस के कंधे और छाती पर पट्टियां बंधी थीं. उस के साथ स्टूल पर उस की पत्नी बैठी थी. दूसरी तरफ उस के मातापिता और संबंधी थे.

होश में आने पर पुलिस उस का औपचारिक बयान लेने आई. नरोत्तम फिर सो गया. शाम को उस की आंख खुली तो उस ने अपने सामने ज्योत्सना को हाथ में छोटा फूलों का गुलदस्ता लिए खड़ा पाया.

‘‘हैलो हैंडसम, हाऊ आर यू?’’ मुसकराते हुए उस ने पूछा.

उस ने आश्चर्य से उस की तरफ देखा. वह यहां कैसे?

‘‘उस शाम संयोग से मैं आप के पीछेपीछे ही अपनी कार पर आ रही थी. मैं ने ही पुलिस को फोन किया था.’’

तब नरोत्तम को याद आया, बेहोश होते समय 2 जनाना हाथों ने उसे थामा था. ज्योत्सना चली गई.

नरोत्तम 3-4 दिन बाद घर आ गया. उस का कुशलक्षेम पूछने बड़ेछोटे अधिकारी भी आए. ज्योत्सना भी हर शाम आने लगी. उस के यों रोज आने से उस की पत्नी का चिढ़ना स्वाभाविक था.

ये भी पढ़ें- बलात्कारी की हार: भाग 3

पतिपत्नी में बनती पहले से ही नहीं थी. नरोत्तम के ठीक होते पत्नी मायके जा बैठी. उस के मातापिता, दामाद के मिसफिट नेचर की वजह से पहले ही क्षोभ में थे और अब उस की इस खामखां की प्रेयसी के आगमन ने आग में घी का काम किया. पतिपत्नी में संबंधविच्छेद यानी तलाक की प्रक्रिया शुरू हो गई.

बौयफ्रैंड को कमीज के समान बदलने वाली ज्योत्सना को कड़क जवान नरोत्तम जांबाजी के कारण भा गया था. वह अब उस के यहां नियमित आने लगी.

असमंजस में पड़ा नरोत्तम इस सोचविचार में था कि त्रियाचरित्र को क्या कोई समझ सकता था? रिश्वतखोर न होने के कारण उस की पत्नी उस को छोड़ कर चली गई थी. और अब एक तेजतर्रार नवयौवना उस के पीछे पड़ गई थी. एक तरफ जबरदस्ती के प्यार का चक्कर था तो दूसरी तरफ उस की नियति. दोनों पता नहीं भविष्य में क्या गुल खिलाएंगे?

Romantic Story in Hindi: भोर- भाग 1: क्यों पति का मजाक उड़ाती थी राजवी?

Writer- Kalpana Mehta

उस दिन सवेरे ही राजवी की मम्मी की किट्टी फ्रैंड नीतू उन के घर आईं. उन की कालोनी में उन की छवि मैरिज ब्यूरो की मालकिन की थी. किसी की बेटी तो किसी के बेटे की शादी करवाना उन का मनपसंद टाइमपास था. वे कुछ फोटोग्राफ्स दिखाने के बाद एक तसवीर पर उंगली रख कर बोलीं, ‘‘देखो मीरा बहन, इस एनआरआई लड़के को सुंदर लड़की की तलाश है. इस की अमेरिका की सिटिजनशिप है और यह अकेला है, इसलिए इस पर किसी जिम्मेदारी का बोझ नहीं है. इस की सैलरी भी अच्छी है. खुद का घर है, इसलिए दूसरी चिंता भी नहीं है. बस गोरी और सुंदर लड़की की तलाश है इसे.’’

फिर तिरछी नजरों से राजवी की ओर देखते हुए बोलीं, ‘‘उस की इच्छा तो यहां हमारी राजवी को देख कर ही पूरी हो जाएगी. हमारी राजवी जैसी सुंदर लड़की तो उसे कहीं भी ढूंढ़ने से नहीं मिलेगी.’’ यह सब सुन रही राजवी का चेहरा अभिमान से चमक उठा. उसे अपने सौंदर्य का एहसास और गुमान तो शुरू से ही था. वह जानती थी कि वह दूसरी लड़कियों से कुछ हट कर है.

चमकीले साफ चेहरे पर हिरनी जैसी आंखें और गुलाबी होंठ उस के चेहरे का खास आकर्षण थे. और जब वह हंसती थी तब उस के गालों में डिंपल्स पड़ जाते थे. और उस की फिगर व उस की आकर्षक देहरचना तो किसी भी हीरोइन को चैलेंज कर सकती थी. इस से अपने सौंदर्य को ले कर उस के मन में खुशी तो थी ही, साथ में जानेअनजाने में एक गुमान भी था. मीरा ने जब उस एनआरआई लड़के की तसवीर हाथ में ली तो उसे देखते ही उन की भौंहें तन गईं. तभी नीतू बोल पड़ीं, ‘‘बस यह लड़का यानी अक्षय थोड़ा सांवला है और चश्मा लगाता है.’’

‘लग गई न सोने की थाली में लोहे की कील,’ मीरा मन में ही भुनभुनाईं. उन्हें लगा कि मेरी राजवी शायद इसे पसंद नहीं करेगी. पर प्लस पौइंट इस लड़के में यह था कि यह नीतू के दूर के किसी रिश्तेदार का लड़का था, इसलिए एनआरआई लड़के के साथ जुड़ी हुई मुसीबतें व जोखिम इस केस में नहीं था. जानापहचाना लड़का था और नीतू एक जिम्मेदार के तौर पर बीच में थीं ही.

ये भी पढ़ें- Social Story in Hindi- फरिश्ता: क्या जीशान ने मोना को धोखा दिया ?

फिर कुछ सोच कर मीरा बोलीं, ‘‘ओह, बस इतनी सी बात है. आजकल ये सब देखता कौन है और चश्मा तो किसी को भी लग सकता है. और इंडियन है तो रंग तो सांवला होगा ही. बाकी जैसा तुम कहती हो लड़का स्मार्ट भी है, समझदार भी. फिर क्या चाहिए हमें… क्यों राजवी?’’

अपने ही खयालों में खोई, नेल पेंट कर रही राजवी ने कहा, ‘‘हूं… यह बात तो सही है.’’

तब नीतू ने कहा, ‘‘तुम भी एक बार फोटो देख लो तो कुछ बात बने.’’

‘‘बाद में देख लूंगी आंटी. अभी तो मुझे देर हो रही है,’’ पर तसवीर देखने की चाहत तो उसे भी हो गई थी.

मीरा ने नीतू को इशारे में ही समझा दिया कि आप बात आगे बढ़ाओ, बाकी बात मैं संभाल लूंगी. मीरा और राजवी के पापा दोनों की इच्छा यह थी कि राजवी जैसी आजाद खयाल और बिंदास लड़की को ऐसा पति मिले, जो उसे संभाल सके और समझ सके. साथ में उसे अपनी मनपसंद लाइफ भी जीने को मिले. उस की ये सभी इच्छाएं अक्षय के साथ पूरी हो सकती थीं.

नीतू ने जातेजाते कहा, ‘‘राजवी, तुम जल्दी बताना, क्योंकि मेरे पास ऐसी बहुत सी लड़कियों की लिस्ट है, जो परदेशी दूल्हे को झपट लेने की ख्वाहिश रखती हैं.’’

नीतू के जाने के बाद मीरा ने राजवी के हाथ में तसवीर थमा दी, ‘‘देख ले बेटा, लड़का ऐसा है कि तेरी तो जिंदगी ही बदल जाएगी. हमारी तो हां ही समझ ले, तू भी जरा अच्छे से सोच लेना.’’

पर राजवी तसवीर देखते ही सोच में डूब गई. तभी उस की सहेली कविता का फोन आया. राजवी ने अपने मन की उलझन उस से शेयर की, तो पूरे उत्साह से कविता कहने लगी, ‘‘अरे, इस में क्या है. शादी के बाद भी तो तू अपना एक ग्रुप बना सकती है और सब के साथ अपने पति को भी शामिल कर के तू और भी मजे से लाइफ ऐंजौय कर सकती है. फिर वह तो फौरेन कल्चर में पलाबढ़ा लड़का है. उस की थिंकिंग तो मौडर्न होगी ही. अब तू दूसरा कुछ सोचने के बजाय उस से शादी कर लेने के बारे में ही सोचना शुरू कर दे…’’

कविता की बात राजवी समझ गई तो उस ने हां कह दिया. इस के बाद सब कुछ जल्दीजल्दी होता गया. 2 महीने बाद नीतू का दूर का वह भतीजा लड़कियों की एक लिस्ट ले कर इंडिया पहुंच गया. उसे सुंदर लड़की तो चाहिए ही थी, पर साथ में वह भारतीय संस्कारों से रंगी भी होनी चाहिए थी. ऐसी जो उसे भारतीय भोजन बना कर प्यार से खिलाए. साथ ही वह मौडर्न सोच और लाइफस्टाइल वाली हो ताकि उस के साथ ऐडजस्ट हो सके. पर उस की लिस्ट की सभी मुलाकात के बाद एकएक कर के रिजैक्ट होती गईं. तब एक दिन सुबह राजवी के पास नीतू का फोन आया, ‘‘शाम को 7 बजे तक रेडी हो जाना. अक्षय के साथ मुलाकात करनी है. और हां, मीरा से कहना कि वे तुझे अच्छी सी साड़ी पहनाएं.’’

‘‘साड़ी, पर क्यों? मुझ पर जींस ज्यादा सूट करती है,’’ कहते हुए राजवी बेचैन हो गई.

‘‘वह तुम्हारी समझ में नहीं आएगा. तुम साड़ी यही समझ कर पहनना कि उसी में तुम ज्यादा सुंदर और अटै्रक्टिव लगती हो.’’

नीतू आंटी की बात पर गर्व से हंस पड़ी राजवी, ‘‘हां, वह तो है.’’

और उस दिन शाम को वह जब आकर्षक लाल रंग की डिजाइनर साड़ी पहन कर होटल शालिग्राम की सीढि़यां चढ़ रही थी, उस की अदा देखने लायक थी. होटल के मीटिंग हौल में राजवी को दाखिल होता देख सोफे पर बैठा अक्षय उसे देखता ही रह गया. नीतू ने जानबूझ कर उसे राजवी का फोटो नहीं भेजा था, ताकि मिलने के बाद ही अक्षय उसे ठीक से जान ले, परख ले. नीतू को वहीं छोड़ कर दोनों होटल के कौफी शौप में चले गए.

ये भी पढ़ें- Social Story in Hindi: नो गिल्ट ट्रिप प्लीज

‘‘प्लीज…’’ कह कर अक्षय ने उसे चेयर दी. राजवी उस की सोच से भी अधिक सुंदर थी. हलके से मेकअप में भी उस के चेहरे में गजब का निखार था. जैसा नाम वैसा ही रूप सोचता हुआ अक्षय मन ही मन में खुश था. फिर भी थोड़ी झिझक थी उस के मन में कि क्या उसे वह पसंद करेगी?

ऐसा भी न था कि अक्षय में कोई दमखम न था और अब तो कंपनी उसे प्रमोशन दे कर उस की आमदनी भी दोगुनी करने वाली थी. फिर भी वह सोच रहा था कि अगर राजवी उसे पसंद कर लेती है तो वह उस के साथ मैच होने के लिए अपना मेकओवर भी करवा लेगा. मन ही मन यह सब सोचते हुए अक्षय ने राजवी के सामने वाली चेयर ली. अक्षय के बोलने का स्मार्ट तरीका, उस के चेहरे पर स्वाभिमान की चमक और उस का धीरगंभीर स्वभाव राजवी को प्रभावित कर गया. उस की बातों में आत्मविश्वास भी झलकता था. कुल मिला कर राजवी को अक्षय का ऐटिट्यूड अपील कर गया.

उस मुलाकात के बाद दोनों ने एकदूसरे को दूसरे दिन जवाब देना तय किया. पर उसी दिन रात में राजवी ने अक्षय को फोन लगाया, ‘‘एक बात का डिस्कशन तो रह गया. क्या शादी के बाद मैं आगे पढ़ाई कर सकती हूं? और क्या मैं आगे जा कर जौब कर सकती हूं? अगर आप को कोई एतराज नहीं तो मेरी ओर से इस रिश्ते को हां है.’’

‘‘ओह. इस में पूछने वाली क्या बात है? मैं मौडर्न खयालात का हूं क्योंकि मौडर्न समाज में पलाबढ़ा हूं. नारी स्वतंत्रता मैं समझता हूं, इसलिए जैसी तुम्हारी मरजी होगी, वैसा तुम कर सकोगी.’’

अक्षय को भी राजवी पसंद आ गई थी, उसे इतनी सुंदर पत्नी मिलेगी, उस की कल्पना ही उस को रोमांचित कर देने के लिए काफी थी. फिर तो जल्दी ही दोनों की शादी हो गई. रिश्तेदारों की उपस्थिति में रजिस्टर्ड मैरिज कर के 4 ही दिनों के बाद अक्षय ने अमेरिका की फ्लाइट पकड़ ली और उस के 2 महीने बाद आंखों में अमेरिका के सपने संजोए और दिल में मनपसंद जिंदगी की कल्पना लिए राजवी ने ससुराल का दरवाजा खटखटाया. ये ऐसे सपने थे जिन्हें हर कुंआरी, महत्त्वाकांक्षी और उत्साही लड़की देखती है. राजवी खुश थी, लेकिन एक हकीकत उसे खटक रही थी. वह इतनी सुंदर और पति था सांवला. जोड़ी कैसे जमेगी उस के साथ उस की? पर रोमांचित कर देने वाली परदेशी धरती ने उसे ज्यादा सोचने का समय ही कहां दिया.

Romantic Story in Hindi- बात एक रात की: भाग 1

लेखक : श्री प्रकाश

तपन रहने वाला तो झारखंड के बोकारो शहर का था, पर किसी काम से कोलकाता गया हुआ था. वह बस से बोकारो आ रहा था. उस की बगल की सीट पर एक हसीन लड़की बैठी थी. उसे भी बोकारो ही आना था. उस की उम्र 25 के आसपास रही होगी. इस हसीना के गोरे रंग, गोल आकर्षक चेहरे पर जिस की भी नजर पड़ती, तारीफ किए बिना नहीं रह सकता था. दोनों अपनीअपनी सीट पर बैठे मैगजीन पढ़ रहे थे. जब उन की बस कोलकाता शहर से बाहर निकल कर हाईवे पर आई तो यात्रियों को अल्पाहार दिया गया. दोनों ने अपनीअपनी मैगजीन रख कर एकदूसरे की ओर मुसकराते हुए देखा.

‘‘हाय, मैं तपन,’’ तपन ने पहल करते हुए कहा, ‘

‘‘और मैं चित्रा,’’ उस लड़की ने कहा.

खाते हुए दोनों कुछ बातें करने लगे.

फिर अपनीअपनी मैगजीन पढ़ने लगे. थोड़ी देर बाद दुर्गापुर आया तो बस 10 मिनट के लिए रुकी. तपन ने उतर कर चाय पी और एक कप चाय चित्रा के लिए ले कर बस में चढ़ गया. चित्रा ने ‘थैंक्स’ कहते हुए चाय ले कर पीना शुरू की.

कुछ देर बाद जब बस आसनसोल के पास पहुंचने वाली थी तभी अचानक बस रुक गई. कुछ यात्री सो रहे थे तो कुछ जगे थे. पर बस के अचानक रुकते ही सोने वाले यात्री भी जग गए. यात्रियों ने पहले तो आपस में एकदूसरे से बस रुकने का कारण जानना चाहा, पर सही कारण किसी को पता नहीं था. तभी कंडक्टर ने यात्रियों को बताया कि किसी बड़ी दुर्घटना के कारण रोड जाम है और यह जाम खत्म होने में काफी समय लग सकता है. यात्री बस के अंदर ही आराम करें. थोड़ी देर में बस का एसी बंद कर दिया गया. गरमी के दिन थे. ज्यादातर लोग बस से नीचे उतर गए.

तपन भी नीचे आ चुका था. पर चित्रा बस में ही बैठी रही. उस ने खिड़की खोल रखी थी. तपन ने उस की ओर देखा तो उसे महसूस हुआ कि वह चिंतित है. तपन ने उस से नीचे आने को कहा, क्योंकि बस में गरमी बहुत थी पर बाहर अच्छा लग रहा था.

चित्रा बस से नीचे आ गई पर काफी बेचैन लग रही थी. उसे देख कर कोई भी कह सकता था कि वह चिंतित और सहमी थी. तपन ने उस की चिंता का कारण जानना चाहा तो वह बोली, ‘‘मुझे बोकारो बस स्टैंड पर लेने एक दूर के रिश्तेदार आने वाले हैं. अब पता नहीं बस कब पहुंचे. रात भर तो वे बस स्टैंड पर वेट नहीं कर सकते हैं पर आज रात मेरा बोकारो पहुंचना भी बहुत जरूरी है.’’

‘‘इस आपदा के बारे में तो किसी ने नहीं सोचा था. पर तुम चिंता न करो, अपने रिश्तेदार को फोन कर मना कर दो कि वे तुम्हारा वेट न करें. जाम के सुबह के बाद ही खत्म होने की उम्मीद लगती है. वह भी श्योर नहीं है. सुबह होने के बाद ही कोई विकल्प सोचा जा सकता है.’’

ये भी पढ़ें- Romantic Story in Hindi- काश, तुम भाभी होती

चित्रा ने फोन कर अपने रिश्तेदार को बस स्टैंड आने से मना तो कर दिया, पर उस की आंखें भर आई थीं जिसे तपन ने आसानी से देख लिया था. उस की परेशानी वैसी ही बनी थी.

तपन ने पूछा, ‘‘क्या बात है तुम कुछ ज्यादा ही परेशान लग रही हो? सभी यात्री फंसे हैं, सब को बोकारो ही जाना है… हम सब मजबूर हैं… तुम्हारी कोई खास वजह हो तो चाहो तो बता सकती हो. शायद मैं कुछ मदद कर सकूं?’’

वह कुछ देर चुप रही, फिर बोली, ‘‘मेरा आज रात बोकारो पहुंचना बहुत जरूरी है. कल सुबह मेरा एक बहुत ही जरूरी काम है…समय पर न पहुंचने से बहुत नुकसान हो सकता है.’’

‘‘वैसे तो मुझे जानने का कोई हक नहीं है, पर अगर कुछ खुल कर कहो तो कोई हल खोजने की कोशिश जरूर करूंगा.’’

अपने को थोड़ा संभालते हुए कहा, ‘‘कल सुबह 7 बजे मुझे कोर्ट में हाजिर होना है और यह दिन कोर्ट का आखिरी वर्किंग डे है. उस के बाद कोर्ट लगभग 2 महीनों के लिए समर वेकेशन के चलते बंद हो जाएंगे.’’

‘‘अगर आज रात तक ही पहुंचना है तो मैं कोई विकल्प देखूं क्या?’’

‘‘मैं आजीवन आप की आभारी रहूंगी. कुछ हो सके तो करें प्लीज.’’

तपन ने बस के कंडक्टर से पूछा कि आखिर जाम क्यों लगा है तो उस ने बताया कि आगे पुलिया पर एक ट्रक खराब हो गया है. वहां बस इतनी जगह बची है कि एक टू व्हीलर ही निकल सकता है… दोनों तरफ से बड़ी गाडि़यों का जाम लगा है. तपन ने जब उस से आगे कहा कि उस का जल्दी आगे जाना बहुत जरूरी है. कोई उपाय सुझाओ तो कंडक्टर ने कहा कि अगर आप के पास सामान ज्यादा नहीं है तो पैदल पुलिया पार कर रिकशे से टैक्सी स्टैंड तक जा कर बोकारो की टैक्सी पकड़ लो पर बस का भाड़ा वह नहीं लौटा सकता.

ये भी पढ़ें- Family Story in Hindi: अम्मां जैसा कोई नहीं

‘‘नहीं, भाड़े कि कोई चिंता नहीं है,’’ बोल कर वह चित्रा के पास गया और बोला, ‘‘चलो, आगे जाने का उपाय हो गया है. तुम्हारे पास कोई हैवी सामान तो नहीं?’’

‘‘नहीं, बस एक बैग ही है.’’

फिर दोनों ने अपना सामान उठाया और पैदल चल कर पुलिया पार कर रिकशा ले कर टैक्सी स्टैंड की ओर चल पड़े. रास्ता ऊबड़खाबड़ था. रिकशे के बारबार हिचकोले खाने से चित्रा की बाहों का स्पर्श पा कर उसे मीरा की याद आ गई. उसे 5 साल पहले की बात याद आ गई जब वह अपनी पत्नी मीरा के साथ रिकशे पर होता था और रिकशे के हिचकोले खाने से उस का शरीर मीरा के स्पर्श का आनंद लिया करता था. पर अब मीरा उस की जिंदगी से जा चुकी थी.

खैर दोनों टैक्सी स्टैंड पहुंचे. उन्होंने बोकारो के लिए एक टैक्सी ली. पर बोकारो पहुंचतेपहुंचते रात के 2 बज गए.

तपन ने चित्रा से पूछा कि बोकारो में उसे किस सैक्टर में जाना है तो उस ने कहा, ‘‘मुझे जाना तो सैक्टर 1 में है जो कोर्ट के समीप ही है, पर मुझे उन का फ्लैट नंबर याद नहीं है. दरअसल, मेरे पिताजी एक जरूरी टैंडर के सिलसिले में नेपाल गए हैं. मैं मातापिता की इकलौती संतान हूं,’’ इसलिए अकेले आना पड़ा… काम ही कुछ ऐसा है.

Romantic Story in Hindi: भोर- भाग 2: क्यों पति का मजाक उड़ाती थी राजवी?

Writer- Kalpana Mehta

कई दिन दोनों खूब घूमे. शौपिंग, पार्टी जो भी राजवी का मन किया अक्षय ने उसे पूरा किया. फिर शुरू हुई दोनों की रूटीन लाइफ. वैसे भी सपनों की दुनिया में सब कुछ सुंदर सा, मनभावन ही होता है. जिंदगी की हकीकत तो वास्तविकता के धरातल पर आ कर ही पता चलती है. एक दिन अक्षय ने फरमाइश की, ‘‘आज मेरा इंडियन डिश खाने को मन कर रहा है.’’

‘‘इंडियन डिश? यू मीन दालचावल और रोटीसब्जी? इश… मुझे ये सब बनाना नहीं आता. मैं तो अपने घर में भी खाना कभी नहीं बनाती थी. मां बोलती थीं तब भी नहीं. और वैसे भी पूरा दिन रसोई में सिर फोड़ना मेरे बस की बात नहीं. मैं उन लड़कियों में नहीं, जो अपनी जिंदगी, अपनी खुशियां घरेलू कामकाज के जंजालों में फंस कर बरबाद कर देती हैं.’’

ये भी पढ़ें- Romantic Story in Hindi: तू मुझे कबूल

चौंक उठा अक्षय. फिर भी संभलते हुए बोला, ‘‘अब मजाक छोड़ो, देखो मैं ये सब्जियां ले कर आया हूं. तुम रसोई में जाओ. तुम्हारी हैल्प करने मैं आता हूं.’’

दालसब्जी वगैरह मुझे तो भाती भी नहीं और बनाना भी मुझे आता नहीं

‘‘तुम्हें ये सब आता है तो प्लीज तुम ही बना लो न… दालसब्जी वगैरह मुझे तो भाती भी नहीं और बनाना भी मुझे आता नहीं. और हां, 2 दिनों के बाद तो मेरी स्टडी शुरू होने वाली है, क्या तुम भूल गए? फिर मुझे टाइम ही कहां मिलेगा इन सब झंझटों के लिए. अच्छा यही रहेगा कि तुम किसी इंडियन लेडी को कुक के तौर पर रख लो.’’

अक्षय का दिमाग सन्न रह गया. राजवी को हर रोज सुबह की चाय बनाने में भी नखरे करती थी और ठीक से कोई नाश्ता भी नहीं बना पाती थी. लेकिन आज तो उस ने हद ही कर दी थी. तो क्या यही है राजवी का असली रूप? लेकिन कुछ भी बोले बिना अक्षय औफिस के लिए निकल गया. पर यह सब तो जैसे शुरुआत ही थी. राजवी के उस नए रंग के साथ जब नया ढंग भी सामने आने लगा अक्षय के तो होश ही उड़ गए. एक दिन राजवी बिलकुल शौर्ट और पतले से कपड़े पहन कर कालेज के लिए निकलने लगी.

अक्षय ने उसे टोकते हुए कहा, ‘‘यह क्या पहना है राजवी? यह तुम्हें शोभा नहीं देता. तुम पढ़ने जा रही हो तो ढंग के कपड़े पहन कर जाओगी तो अच्छा रहेगा…’’

‘‘ये अमेरिका है मिस्टर अक्षय. और फिर तुम ने ही तो कहा था न कि तुम मौडर्न सोच रखते हो, तो फिर ऐसी पुरानी सोच क्यों?’’

‘‘हां कहा था मैं ने पर पराए देश में तुम्हारी सुरक्षा की भी चिंता है मुझे. मौडर्न होने की भी हद होती है, जिसे मैं समझता हूं और चाहता हूं कि तुम भी समझ लो.’’

‘‘मुझे न तो कुछ समझना है और न ही तुम्हारी सोच और चिंता मुझे वाजिब लगती है. और यह मेरी निजी लाइफ है. मैं अभी उतनी बूढ़ी भी नहीं हो गई कि सिर पर पल्लू रख कर व साड़ी लपेट कर रहूं. और बाई द वे तुम्हें भी तो सुंदर पत्नी चाहिए थी न? तो मैं जब सुंदर हूं तो दुनिया को क्यों न दिखाऊं?’’

अक्षय को समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करे?

राजवी के इस क्यों का कोई जवाब नहीं था अक्षय के पास. फिर जैसेजैसे दिन बीतते गए, दोनों के बीच छोटीमोटी बातों पर झगड़े बढ़ते गए. अक्षय को समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करे? भूल कहां हो रही है और इस स्थिति में क्या हो सकता है, क्योंकि अब पानी सिर के ऊपर शुरू हो चुका था. राजवी ने जो गु्रप बनाया था उस में अमेरिकन युवकों के साथ इंडियन लड़के भी थे. शर्म और मर्यादा की सीमाएं तोड़ कर राजवी उन के साथ कभी फिल्म देखने तो कभी क्लब चली जाती. ज्यादातर वह उन के साथ लंच या डिनर कर के ही घर आती. कई बार तो रात भर वह घर नहीं आती. अक्षय के पूछने पर वह किसी सहेली या प्रोजैक्ट का बहाना बना देती.

ये भी पढ़ें- Social Story in Hindi: खुल गई पोल

अक्षय बहुत दुखी होता, उसे समझाने की कोशिश करता पर राजवी उस के साथ बात करने से भी कतराती. अक्षय को ज्यादा परेशानी तो तब हुई जब राजवी अपने बौयफ्रैंड्स को ले कर घर आने लगी. अक्षय उन के साथ मिक्स होने या उन्हें कंपनी देने की कोशिश करता तो राजवी सब के बीच उस के सांवले रंग और चश्मे को मजाक का विषय बना देती और अपमानित करती रहती. एक दिन इस सब से तंग आ कर अक्षय ने नीतू आंटी को फोन लगाया. उस ने ये सब बातें बताना शुरू ही किया था कि राजवी उस से फोन छीन कर रोने जैसी आवाज में बोलने लगी, ‘‘आंटी, आप ने तो कहा था कि तुम वहां राज करोगी. जैसे चाहोगी रह सकोगी. पर आप का यह भतीजा तो मुझे अपने घर की कुक और नौकरानी बना कर रखना चाहता है. मेरी फ्रीडम उसे रास नहीं आती.’’

अक्षय आश्चर्यचकित रह गया. उस ने तब तय कर लिया कि अब से वह न तो किसी बात के लिए राजवी को रोकेगा, न ही टोकेगा. उस ने राजवी को बोल दिया कि तुम अपनी मरजी से जी सकती हो. अब मैं कुछ नहीं बोलूंगा. पर थोड़े दिनों के बाद अक्षय ने नोटिस किया कि राजवी उस के साथ शारीरिक संबंध भी नहीं बनाना चाहती. उसे अचानक चक्कर भी आ जाता था. चेहरे की चमक पर भी न जाने कौन सा ग्रहण लगने लगा था.

अब वह न तो अपने खाने का ध्यान रखती थी न ही ढंग से आराम करती थी. देर रात तक दोस्तों और अनजान लोगों के साथ भटकते रहने की आदत से उस की जिंदगी अव्यवस्थित बन चुकी थी. एक दिन रात को 3 बजे किसी अनजान आदमी ने राजवी के मोबाइल से अक्षय को फोन किया, ‘‘आप की वाइफ ने हैवी ड्रिंक ले लिया है और यह भी लगता है कि किसी ने उस के साथ रेप करने की कोशिश…’’

अक्षय सहम गया. फिर वह वहां पहुंचा तो देखा कि अस्तव्यस्त कपड़ों में बेसुध पड़ी राजवी बड़बड़ा रही थी, ‘‘प्लीज हैल्प मी…’

ये भी पढ़ें- Romantic Story in Hindi: अलविदा काकुल

पास में खड़े कुछ लोगों में से कोई बोला, ‘‘इस होटल में पार्टी चल रही थी. शायद इस के दोस्तों ने ही… बाद में सब भाग गए. अगर आप चाहो तो पुलिस…’’

‘‘नहींनहीं…,’’ अक्षय अच्छी तरह जानता था कि पुलिस को बुलाने से क्या होगा. उस ने जल्दी से राजवी को उठा कर गाड़ी में लिटा दिया और घर की ओर रवाना हो गया. राजवी की ऐसी हालत देख कर उस कलेजा दहल गया था. आखिर वह पत्नी थी उस की. जैसी भी थी वह प्यार करता था उस को. घर पहुंचते ही उस ने अपने फ्रैंड व फैमिली डाक्टर को बुलाया और फर्स्ट ऐड करवाया. उस के चेहरे और शरीर पर जख्म के निशान पड़ चुके थे. दूसरे दिन बेहोशी टूटने के बाद होश में आते ही राजवी पिछली रात उस के साथ जो भी घटना घटी थी, उसे याद कर रोने लगी. अक्षय ने उसे रोने दिया. ‘जल्दी ही अच्छी हो जाओगी’ कह कर वह उसे तसल्ली देता रहा पर क्या हुआ था, उस के बारे में कुछ भी नहीं पूछा. खाना बनाने वाली माया बहन की हैल्प से उसे नहलाया, खिलाया फिर उसे अस्पताल ले जाने की सोची.

‘‘नहींनहीं, मुझे अस्पताल नहीं जाना. मैं ठीक हो जाऊंगी,’’ राजवी बोली.

उलझे रिश्ते- भाग 1: क्या प्रेमी से बिछड़कर खुश रह पाई रश्मि

Writer- Ravi

दिन भर की भागदौड़. फिर घर लौटने पर पति और बच्चों को डिनर करवा कर रश्मि जब बैडरूम में पहुंची तब तक 10 बज चुके थे. उस ने फटाफट नाइट ड्रैस पहनी और फ्रैश हो कर बिस्तर पर आ गई. वह थक कर चूर हो चुकी थी. उसे लगा कि नींद जल्दी ही आ घेरेगी. लेकिन नींद न आई तो उस ने अनमने मन से लेटेलेटे ही टीवी का रिमोट दबाया. कोई न्यूज चैनल चल रहा था. उस पर अचानक एक न्यूज ने उसे चौंका दिया. वह स्तब्ध रह गई. यह क्या हुआ?

सुधीर ने मैट्रो के आगे कूद कर सुसाइड कर लिया. उस की आंखों से अश्रुधारा बह निकली. उस का मन किया कि वह जोरजोर से रोए. लेकिन उसे लगा कि कहीं उस का रोना सुन कर पास के कमरे में सो रहे बच्चे जाग न जाएं. पति संभव भी तो दूसरे कमरे में अपने कारोबार का काम निबटाने में लगे थे. रश्मि ने रुलाई रोकने के लिए अपने मुंह पर हाथ रख लिया, लेकिन काफी देर तक रोती रही. शादी से पूर्व का पूरा जीवन उस की आंखों के सामने घूम गया.

बचपन से ही रश्मि काफी बिंदास, चंचल और खुले मिजाज की लड़की थी. आधुनिकता और फैशन पर वह सब से ज्यादा खर्च करती थी. पिता बड़े उद्योगपति थे. इसलिए घर में रुपयोंपैसों की कमी नहीं थी. तीखे नैननक्श वाली रश्मि ने जब कालेज में प्रवेश लिया तो पहले ही दिन सुधीर से उस की आंखें चार हो गईं.

‘‘हैलो आई एम रश्मि,’’ रश्मि ने खुद आगे बढ़ कर सुधीर की तरफ हाथ बढ़ाया. किसी लड़की को यों अचानक हाथ आगे बढ़ाता देख सुधीर अचकचा गया. शर्माते हुए उस ने कहा, ‘‘हैलो, मैं सुधीर हूं.’’

‘‘कहां रहते हो, कौन सी क्लास में हो?’’ रश्मि ने पूछा.

‘‘अभी इस शहर में नया आया हूं. पापा आर्मी में हैं. बी.कौम प्रथम वर्ष का छात्र हूं.’’ सुधीर ने एक सांस में जवाब दिया.

‘‘ओह तो तुम भी मेरे साथ ही हो. मेरा मतलब हम एक ही क्लास में हैं,’’ रश्मि ने चहकते हुए कहा. उस दिन दोनों क्लास में फ्रंट लाइन में एकदूसरे के आसपास ही बैठे. प्रोफैसर ने पूरी क्लास के विद्यार्थियों का परिचय लिया तो पता चला कि रश्मि पढ़ाई में अव्वल है. कालेज टाइम के बाद सुधीर और रश्मि साथसाथ बाहर निकले तो पता चला कि सुधीर को पापा का ड्राइवर कालेज छोड़ गया था. रश्मि ने अपनी मोपेड बाहर निकाली और कहा, ‘‘चलो मैं तुम्हें घर छोड़ती हूं.’’

ये भी पढ़ें- Romantic Story in Hindi- तेरा मेरा साथ

‘‘नहीं नहीं ड्राइवर आने ही वाला है.’’

‘‘अरे, चलो भई रश्मि खा नहीं जाएगी,’’ रश्मि के कहने का अंदाज कुछ ऐसा था कि सुधीर उस की मोपेड पर बैठ गया. पूरे रास्ते रश्मि की चपरचपर चलती रही. उसे इस बात का खयाल ही नहीं रहा कि वह सुधीर से पूछे कि कहां जाना है. बातोंबातों में रश्मि अपने घर की गली में पहुंची, तो सुधीर ने कहा, ‘‘बस यही छोड़ दो.’’

‘‘ओह सौरी, मैं तो पूछना ही भूल गई कि आप को कहां छोड़ना है. मैं तो बातोंबातों में अपने घर की गली में आ गई.’’

‘‘बस यहीं तो छोड़ना है. वह सामने वाला मकान हमारा है. अभी कुछ दिन पहले ही किराए पर लिया है पापा ने.’’

‘‘अच्छा तो आप लोग आए हो हमारे पड़ोस में,’’ रश्मि ने कहा

‘‘जी हां.’’

‘‘चलो, फिर तो हम दोनों साथसाथ कालेज जायाआया करेंगे.’’ रश्मि और सुधीर के बाद के दिन यों ही गुजरते गए. पहली मुलाकात दोस्ती में और दोस्ती प्यार में जाने कब बदल गई पता ही न चला. रश्मि का सुधीर के घर यों आनाजाना होता जैसे वह घर की ही सदस्य हो. सुधीर की मम्मी रश्मि से खूब प्यार करती थीं. कहती थीं कि तुझे तो अपनी बहू बनाऊंगी. इस प्यार को पा कर रश्मि के मन में भी नई उमंगें पैदा हो गईं. वह सुधीर को अपने जीवनसाथी के रूप में देख कर कल्पनाएं करती. एक दिन सुधीर घर में अकेला था, तो उस ने रश्मि को फोन कर कहा, ‘‘घर आ जाओ कुछ काम है.’’

ये भी पढ़ें- Romantic Story in Hindi: हम दिल दे चुके सनम

जब रश्मि पहुंची तो दरवाजे पर मिल गया सुधीर. बोला, ‘‘मैं एक टौपिक पढ़ रहा था, लेकिन कुछ समझ नहीं आ रहा था. सोचा तुम से पूछ लेता हूं.’’

‘‘तो दरवाजा क्यों बंद कर रहे हो? आंटी कहां है?’’

‘‘यहीं हैं, क्यों चिंता कर रही हो? ऐसे डर रही हो जैसे अकेला हूं तो खा जाऊंगा,’’ यह कहते हुए सुधीर ने रश्मि का हाथ थाम उसे अपनी ओर खींच लिया. सुधीर के अचानक इस बरताव से रश्मि सहम गई. वह छुइमुई सी सुधीर की बांहों में समाती चली गई.

‘‘क्या कर रहे हो सुधीर, छोड़ो मुझे,’’ वह बोली लेकिन सुधीर ने एक न सुनी. वह बोला,  ‘‘आई लव यू रश्मि.’’

Romantic Story in Hindi- बात एक रात की: भाग 2

लेखक : श्री प्रकाश

‘‘इतनी देर रात में बिना फ्लैट नंबर तो उन्हें ढूंढ़ना संभव नहीं है. बस कुछ घंटों की तो बात है, मेरे घर चलो. अपने रिश्तेदार को इतनी रात में क्यों तंग करोगी?’’

‘‘नहीं, यह ठीक नहीं होगा. मैं टैक्सी स्टैंड में रुक जाऊंगी. सुबह उन्हें फोन कर बुला लूंगी.’’

‘‘नहीं, स्टैंड पर रुकना सेफ नहीं है,’’ कह कर तपन ने अपने घर फोन किया और बोला, ‘‘मां, तुम अभी तक सोई नहीं थीं. एक ही रिंग पर फोन उठा लिया. मां, मैं 10 मिनट के अंदर घर पहुंच रहा हूं,’’ कह कर चित्रा से बोला, ‘‘मेरी बूढ़ी मां अभी तक मेरे लिए जाग रही हैं. तुम्हें कोई प्रौब्लम नहीं होगी. तुम मेरे घर चलो.’’

चित्रा ने सिर हिला कर अपनी सहमति

जाता दी. थोड़ी देर में दोनों घर पहुंचे, तो चित्रा को देख उस की मां बोलीं, ‘‘क्यों, मीरा को मना लाया है क्या?’’

दरअसल, उस की मां की आंखों की रोशनी बहुत कमजोर थी और फिर रात की वजह से और परेशानी होती थी, इसलिए ठीक से नहीं देख पा रही थीं.

तपन बोला, ‘‘मां, आप समझती क्यों नहीं? अब वह यहां क्यों आएगी? आप जा कर सो जाओ.’’

पर मां ने जब उस से चित्रा के बारे में पूछा तो तपन ने संक्षेप में उस के बारे में बता कर मां को सोने के लिए भेज दिया.

फिर उस ने चित्रा को गैस्टरूम में आराम करने को कहा.

चित्रा ने तपन से पूछा, ‘‘बुरा न मानें तो एक बात पूछूं?’’

फिर तपन के हां कहने पर वह बोली, ‘‘मीरा आप की पत्नी है?’’

‘‘है नहीं थी. हमारा तलाक हो चुका है.’’

‘‘सौरी. क्या इत्तफाक है. कल कोर्ट में मेरे तलाक पर फाइनल फैसला होना है. फैसला क्या बस तलाक पर मुहर लगनी है. मेरा और चेतन का आपसी सहमति से तलाक हो रहा है.’’

ये भी पढ़ें- Romantic Story: अंधेरे से उजाले की ओर

कुछ देर तक दोनों खामोश एकदूसरे को हैरानी से देखते रहे. फिर तपन ने कहा, ‘‘तुम तो पढ़ीलिखी हो, काफी खूबसूरत भी हो. तुम्हारे पति को तो तुम पर गर्व होना चाहिए.’’

‘‘नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं था. मेरी ससुराल यहीं है, पर अब हमारा तलाक हो रहा है, इसलिए मैं वहां नहीं जा सकती हूं. मेरे पति कोलकाता में बहुराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी करते हैं. मेरा मायके तो पटना में है. मैं भी सौफ्टवेयर इंजीनियर हूं. मैं ने अपने कालेज के 3 सीनियर लड़कों के साथ मिल कर एक स्टार्टअप कंपनी खोली है. शुरू में तो यह कंपनी मेरे पति के गैराज में ही थी. लगभग 1 साल तक ठीकठाक रहा था. हम एक अमेरिकन कंपनी के लिए प्रोडक्ट बना रहे हैं. अकसर देर रात तक गैराज में ही हम चारों काम किया करते थे. बीचबीच में मैं चायकौफी भी बना लाती थी. कभी हम चारों होते तो कभी मैं किसी एक के साथ अकेले भी होती थी. अपना मूड ठीक करने के लिए कभी हंसीमजाक भी कर लेते थे. यह सब मेरे पति चेतन को ठीक नहीं लगा. अकसर झगड़ा होने लगा. इसी बीच हमें अमेरिकन कंपनी से कुछ फंड भी मिला, तो अपने घर की बगल में ही एक छोटा फ्लैट किराए पर ले लिया और कंपनी को वहां शिफ्ट करा लिया, पर अकसर रात में देर हो जाती थी. हालांकि यह नितांत आवश्यक था, क्योंकि प्रोडक्ट को समय पर देना होता है. इस से हम लोगों को लाखों रुपए का लाभ होता.’’

चित्रा ने फिर बोलना शुरू किया, ‘‘पर चेतन हमारी मजबूरी समझने को तैयार नहीं था. एक दिन तो हद हो गई जब उस ने कहा कि काम के साथसाथ वहां रंगरलियां भी मनाते हो तुम लोग… या तो मैं कंपनी छोड़ दूं या हम दोनों को तलाक लेना होगा. मैं ने उन्हें समझाने की भरपूर कोशिश की पर वह नहीं माना, उलटे उस ने मेरे चरित्र पर ऊंगली उठाई थी. फिर हम दोनों आपसी सहमति से तलाक के लिए तैयार हो गए.’’

अब तक सुबह के 5 बज गए थे. तपन चाय ले कर चित्रा के पास गया और बोला, ‘‘अभी चाय के साथ कुछ बिस्कुट या स्नैक्स लोगी? नाश्ते में थोड़ा वक्त लगेगा.’’

चित्रा ने कहा कि फिलहाल सिर्फ चाय ही लेगी. फिर दोनों वहीं बैठ कर चाय पीने लगे. चित्रा ने अपने रिश्तेदार को फोन किया तो पता चला कि उन की ए शिफ्ट ड्यूटी है. प्लांट चले गए हैं. दोपहर 3 बजे तक लौटेंगे. चित्रा ने उन्हें फोन पर बता दिया कि वह थोड़ी देर में कोर्ट जाएगी और फिर वहां का काम कर सीधे कोलकाता लौट जाएगी.

चित्रा ने फिर तपन से कहा, ‘‘अगर उचित समझें तो बताएं कि आप और मीरा क्यों अलग हुए थे?’’

‘‘मैं यहां के प्लांट में इंजीनियर हूं, परचेज डिपार्टमैंट में हूं. मशीनों के पार्ट्स खरीदने के लिए बीचबीच में कोलकाता जाना पड़ता है. मैं मध्यवर्गीय परिवार से हूं. मीरा के पिता का अपना अच्छाखासा बिजनैस है, पर मीरा भी इसी प्लांट में अकाउंट औफिस में काम करती थी. हम दोनों में जानपहचान हुई. आगे चल कर प्यार हुआ और हम ने शादी कर ली. शुरू में 6 महीने काफी अच्छे बीते. उस के बाद उस ने जिद पकड़ ली अलग घर लेने की. उस ने कहा कि मां को किसी अच्छे वृद्धाश्रम में छोड़ देंगे. मैं इस के लिए तैयार नहीं?था. रोज खिचखिच होने लगी. अंत में उस ने कहा कि मुझे मां या मीरा में से किसी एक को चुनना होगा. मैं ने जब कहा कि मैं मां को अकेली नहीं छोड़ सकता तो उस ने कहा कि फिर मुझे छोड़ दो. मैं ने इस रिश्ते को बचाने की बहुत कोशिश की, पर वह नहीं मानी और उस ने तलाक के विकल्प को ही बेहतर समझा.’’

‘‘आजकल हमारे देश में भी तलाक लेने वालों की संख्या काफी बढ़ गई है. यह दुख की बात है न? लड़कियां भी पढ़लिख कर कमाने लगी हैं मर्दों की तरह तो उन को भी घर में उतनी इज्जत देनी होगी जितना मर्द अपने लिए चाहते हैं. उन्हें भी अपना कैरियर बनाने का हक है न? क्या मैं गलत बोल रही हूं?’’

‘‘नहीं, पर लड़के क्या अपने मातापिता के भले के लिए कुछ करना चाहें तो यह गलत है?’’

आखिर चित्रा और चेतन के तलाक पर कोर्ट ने मुहर लगा दी. तपन ने कहा कि यह एक ऐसा फैसला है जिस पर खुशी भी जाहिर नहीं की जा सकती है. चित्रा और चेतन अब सदा के लिए अलग हो चुके थे.

इस के बाद तपन चित्रा को अपने घर ले कर आया. उस ने उस दिन छुट्टी ले ली थी. मां ने दोनों को भोजन परोसा. मां ने पूछा, ‘‘बेटी, तुम ने भविष्य के बारे में क्या सोचा है? अभी तुम्हारे आगे लंबी जिंदगी है.’’

ये भी पढ़ें- Romantic Story in Hindi- तेरा मेरा साथ

‘‘मैं ने अभी कुछ नहीं सोचा है. अभी मैं कंपनी के जरूरी काम में कुछ महीने इतनी व्यस्त रहूंगी कि कुछ और सोचने की फुरसत ही नहीं है,’’ चित्रा ने कहा.

‘‘चिंता नहीं करना, एक रास्ता बंद होता है तो दूसरा खुल जाता है…’’

Romantic Story in Hindi- रिश्तों की परख: भाग 1

लेखक- शैलेंद्र सिंह परिहार

हर रिश्ते की एक पहचान होती है. हर रिश्ते का अपना एक अलग एहसास होता है और एक अलग अस्तित्व भी. इन में कुछ कायम रहते हैं, कुछ समय के साथ बिखर जाते हैं. बस, उन के होने का एक एहसास भर रह जाता है. समय की धूल परत दर परत कुछ इस तरह उन पर चढ़ती चली जाती है कि वे धुंधले से हो जाते हैं. और जब भी कोई ऐसा रिश्ता अचानक सामने आ कर खड़ा हो जाता है तो इनसान को एक पल के लिए कुछ नहीं सूझता. उसे क्या नाम दें? कुछ ऐसी ही हालत मेरी भी हो रही थी. मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था कि 7 वर्ष बाद वह अचानक ही मेरे सामने आ खड़ा होगा.

‘‘टिकट,’’ उस ने हाथ बढ़ाते हुए मुझ से पूछा था. उसे देखते ही मैं चौंक पड़ी थी. चौंका तो वह भी था किंतु जल्दी ही सामान्य हो खाली बर्थ की तरफ देखते हुए उस ने पूछा, ‘‘और आप के साथ…’’

मैं थोड़ा गर्व से बोली थी, ‘‘जी, मेरे पति, किसी कारण से साथ नहीं आ सके.’’

‘‘यह बच्चा आप के साथ है,’’ उस ने मेरे 5 वर्षीय बेटे की तरफ इशारा करते हुए पूछा.

‘‘मेरा बेटा है,’’ मैं उसी गर्व के साथ बोली थी.

वह कुछ देर तक खड़ा रहा, जैसे मुझ से कुछ कहना चाहता हो लेकिन मैं ने ध्यान नहीं दिया, उपेक्षित सा अपना मुंह खिड़की की तरफ फेर लिया. मेरे मन में एक सवाल बारबार उठ रहा था कि नायब तहसीलदार की पोस्ट को तुच्छ समझने वाला कमलकांत वर्मा टी.सी. की नौकरी कैसे कर रहा है?

बड़ी अजीब बात लग रही थी. कभी अपने उज्ज्वल भविष्य…अपनी जिद के लिए अपने प्यार को ठुकराने वाला, क्या अपनी जिंदगी से उस ने समझौता कर लिया है? क्या यह वही आदमी है जिसे मैं लगभग 17 वर्ष पहले पहली बार मिली थी…10 वर्षों का साथ…ढेर सारे सपने…और फिर लगभग 7 वर्ष पूर्व आखिरी बार मिली थी?

17 साल पहले मेरे पापा का तबादला जबलपुर में हुआ था. आयकर विभाग में आयकर निरीक्षक की पोस्ट पर तरक्की हुई थी. नयानया माहौल था. एक अजनबी शहर, न कोई परिचित न कोई मित्र. वह दीवाली का दिन था, अपने घर के बरामदे में ही मैं और मेरे दोनों छोटे भाई फुलझड़ी, अनार और चकरी जला कर दीवाली मना रहे थे कि गेट पर एक लड़का खड़ा दिखाई दिया. पहले तो मैं ने सोचा कि राह चलते कोई रुक गया होगा, लेकिन जब वह काफी देर तक वहीं खड़ा रहा तो मैं ने जा कर उस से पूछा था, ‘जी, कहिए…आप को किस से मिलना है?’

मुझे देख कर वह नर्वस हो गया था, ‘जी…वह आयकर विभाग वाले निगमजी का घर यही है…’

‘हां, क्यों?’ मैं ने उस की बात भी पूरी नहीं होने दी थी.

ये भी पढ़ें- विश्वास: भाग 2

‘जी…मैं ये प्रसाद लाया था…मुझे उन से…’ वह रुकरुक कर बोला था.

मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था, मैं ने पापा से ही मिलवाने में भलाई समझी. उस ने पापा को ही अपना परिचय दिया था. पापा के आफिस में कार्यरत वर्माजी का बेटा था वह. वर्माजी पापा के मातहत क्लर्क थे. वह लगभग 10 मिनट तक रुका था. मां ने उसे प्रसाद और मिठाइयां दीं लेकिन वह प्लेट को छू तक नहीं रहा था. मैं उस के सामने बैठी थी. उस का लजानासकुचाना बराबर चालू था. मैं ने मन ही मन कहा था, ‘लल्लू लाल.’

‘आप किस क्लास में पढ़ते हैं?’ मैं ने ही पूछा था.

‘जी…मैं…’ वह घबरा सा गया था, ‘जी हायर सेकंडरी में…’

उस के जाते ही मम्मीपापा में बहस शुरू हो गई थी

उस समय मैं हाईस्कूल में पढ़ रही थी. इस के बाद न तो मैं ने उस से कुछ पूछा और न ही उस ने मुझ से बात की. जातेजाते पापा से कह गया था, ‘अंकल, आप को पापा ने कल लंच पर पूरे परिवार के साथ बुलाया है.’

‘हूं…’ पापा ने कुछ सोचते हुए कहा था, ‘ठीक है, मैं वर्माजी से फोन पर बात कर लूंगा, पर बेटा, अभी कुछ निश्चित नहीं है.’

उस के जाते ही मम्मीपापा में बहस शुरू हो गई थी कि निमंत्रण स्वीकार करें या न करें. पापा को ज्यादा मेलजोल पसंद नहीं था. पापा ने ही बताया था कि वर्माजी बड़े ही ‘पे्रक्टिकल’ इनसान हैं. कलम भर न फंसे, शेष सब जायज है.

पापा ठहरे ईमानदार, ‘केरबेर’ का संग कैसे निभे? पापा के साथ वर्माजी की हालत नाजुक थी. पापा न तो खाते थे न ही वर्माजी को खाने का मौका मिलता था.

ये भी पढ़ें- नैपकिंस का चक्कर

पापा ने मां को समझाया, ‘देखो, यह निमंत्रण मुझे शीशे में उतारने का एक जरिया है.’ लेकिन मां के तर्क के सामने पापा के विचार ज्यादा समय के लिए नहीं टिक पाते थे.

‘इस अजनबी शहर में हमारा कौन है? आप तो दिन भर के लिए आफिस चले जाते हैं, बच्चे स्कूल और मैं बचती हूं, मैं कहां जाऊं? जब कहती थी कि कुछ लेदे कर तबादला ग्वालियर करा लीजिए तो उस समय भी यही ईमानदारी का भूत सवार था, मैं नहीं कहती कि ईमानदारी छोड़ दीजिए, लेकिन हर समय हर किसी पर शक करने का क्या फायदा? आफिस की बात आफिस तक रखिए, हो सकता है मुझे एक अच्छी सहेली मिल जाए.’

मम्मी की बात सही निकली. उन्हें एक अच्छी सहेली मिल गई थी. आंटी का स्वभाव बहुत ही सरल लगा था. हम बच्चों को देख कर तो वह खुशी से पागल सी हो रही थीं. मुझे अपनी बांहों में भरते हुए कहा था, ‘कितनी प्यारी बेटी है, इसे तो मुझे दे दीजिए,’ फिर उन की आंखों में आंसू आ गए थे, ‘बहनजी, जिस घर में एक बेटी न हो वह घर, घर नहीं होता.’

हम लोगों को बाद में पता चला कि उन की कमल से बड़ी एक बेटी थी जिस की 3-4 साल पहले ही मृत्यु हुई थी. आंटीजी ने मुझे अपने हाथ से कौर खिलाए थे.

‘मैं खा लूंगी न आंटीजी,’ मैं ने प्रतिरोध किया था.

और उन्होंने स्नेह से मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए कहा था, ‘अपने हाथ से तो रोज ही खाती होगी, आज मेरे हाथ से खा ले बेटी.’

अंकल और आंटीजी हमें छोड़ने गेट तक आए थे

हम लोग लगभग 2 घंटे तक उन के घर में रुके थे, इस बीच मुझे कमल की सूरत तक देखने को नहीं मिली थी. मैं ने सोचा था, हो सकता है घर के बाहर हो. जब हम लोग चलने लगे तो अंकल और आंटीजी हमें छोड़ने गेट तक आए थे.

ये भी पढ़ें- पक्षाघात: भाग 2

‘अब आप लोग कब हमारे यहां आ रहे हैं?’ मम्मी ने पूछा था.

‘आप को बुलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी बहनजी,’ आंटीजी ने हंसते हुए कहा था, ‘जब भी अपनी बेटी से मिलने का मन होगा, आ जाऊंगी.’

हमारा घर पास में ही था, अत: पैदल ही हम सब चल पड़े थे. अनायास ही मेरी नजर उन के घर की तरफ गई थी तो देखा कमल खिड़की से हमें जाते हुए देख रहा था. जब तक उस के घर में थे तो जनाब बाहर ही नहीं आए, और अब छिप कर दीदार कर रहे हैं. मेरे मुख से अचानक ही निकल गया था, ‘लल्लू कहीं का.’

फिर तो आनेजाने का सिलसिला सा शुरू हो गया था. दोनों घर के सदस्य एकदूसरे से घुलमिल गए थे. कमल का शरमानासकुचाना अभी भी पूरी तरह से नहीं गया था. हां, पहले की अपेक्षा अब वह छिपता नहीं था. सामने आता और कभीकभी 2-4 बातें भी कर लेता था. आंटीजी का स्नेह तो मुझ पर सदैव ही बरसता रहता था.

छमाही परीक्षा में गणित में मेरे बहुत कम अंक आए थे. पापा कुछ परेशान से थे कि कहीं मैं सालाना परीक्षा में गणित में फेल न हो जाऊं. यह बात जब आंटीजी तक पहुंची तो उन्होंने कहा था, ‘इसे कमल गणित पढ़ा दिया करेगा, वह गणित से ही तो हायर सेकंडरी कर रहा है और वैसे भी उस की गणित बहुत अच्छी है. देख लीजिए, यदि स्नेह की समझ में न आए तो फिर किसी दूसरे को रख लीजिएगा.’

‘लेकिन बहनजी, उस की भी तो बोर्ड की परीक्षा है, उसे भी तो पढ़ना होगा?’ पापा ने अपनी शंका जताई थी पर दूसरे दिन ठीक 6 बजे कमल मुझे पढ़ाने के लिए हाजिर हो गया था. मैं भी अपनी कापीकिताब ले कर बैठ गई. 3-4 दिन तक तो मुझे कुछ समझ में नहीं आया था कि वह क्या पढ़ा रहा है. कोई सवाल समझाता तो ऐसा लगता जैसे वह मुझे नहीं बल्कि खुद अपने को समझा रहा है. लेकिन धीरेधीरे उस की भाषा मुझे समझ में आने लगी थी. वह स्वभाव से लल्लू जरूर था लेकिन पढ़ने में होशियार था..

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें