"आप को पता है, जीशान सर ने शादी कर ली है..."

"क्या? कैसे? कब? लेकिन वे ऐसा कैसे कर सकते हैं?"

जिस ने भी सुना वह इन्हीं सारे सवालों की गोलियां दनादन दागने लगा. किसी की समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था. हर कोई, हर किसी से यह सवाल पूछता, मगर जवाब में हर कोई हैरानी जाहिर करता...

लेकिन मोना, वह 'काटो तो खून नहीं' वाली हालत में थी. हर एक की तरफ यों आंखें गड़ाए देख रही थी मानो वह आंखोें के रास्ते उस के दिल और दिमाग में उतर जाना चाह रही हो. उसे सच का पता लगाना था कि आखिर जीशान ने क्या वाकई शादी कर ली है? लेकिन नहीं, वे ऐसा कर ही नहीं सकते. वे ऐसा कर कैसे सकते हैं?

मोना के सामने सब से बड़ा सवाल था कि वह 'किस से' सवाल करे और ऐसा वहां कौन था जो मोना के सवालों भरी आंखों में देख सकने की हिम्मत रखता हो.

बात तब की है जब मोना हमारे दफ्तर में पहली बार नौकरी के लिए आई थी. सुडौल और कसा हुआ बदन, बड़ीबड़ी आंखें, गोल लुभावना चेहरा और रंग एकदम साफ, बल्कि यों लगता था जैसे वह गुलाबी रंग का गुलाब है जिसे छू लिया जाए तो वह सकुचा कर खून जैसा लाल हो जाए.

उम्र में छोटी होने के चलते मोना मुझे 'दीदी' कह कर पुकारती थी, जो मुझे पसंद भी था. नहीं तो हर कोई 'मैडममैडम' कह कर ही बुलाता था. 'दीदी' का संबोधन मुझे बहुत अच्छा लगता है, सो मैं ने भी खुशीखुशी उस अनजान सी लड़की को अपनी 'छोटी बहन' समझ लिया था.

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