Crime Story: एंटीलिया को दहलाने में हिल गई सरकार- भाग 6

सौजन्य- मनोहर कहानियां

मुंबई पुलिस के इंसपेक्टर अनूप डांगे के अनुसार, परमबीर सिंह भी दूध के धुले नहीं हैं. इस बारे में डांगे ने महाराष्ट्र के अतिरिक्त गृह सचिव को एक पत्र भी लिखा था.

पत्र में डांगे ने कहा था 22 नवंबर 2019 की रात जब वह ब्रीच कैंडी इलाके के एक क्लब को बंद कराने पहुंचा, तो उस के मालिक जीतू नवलानी ने धमकी दी और परमबीर सिंह से अपने संपर्कों की बात कही. वहीं पर फिल्म फाइनेंसर भरत शाह के नाती ने एक कांस्टेबल से बदसलूकी की.

बाद में फरवरी, 2020 में जब परमबीर सिंह पुलिस कमिश्नर बने, तो उन्होंने नवलानी के खिलाफ आरोपपत्र दायर नहीं करने के आदेश दिए. नवलानी को अंडरवर्ल्ड डौन इकबाल मिर्ची के मनी लांड्रिंग मामले में ईडी ने गिरफ्तार किया था.

सचिन वाझे अप्रैल के पहले सप्ताह में जब एनआईए की हिरासत में था, तब उस का एक लिखित बयान मीडिया में सामने आया. इस में उस ने पूर्व गृहमंत्री देशमुख के साथ शिवसेना के वरिष्ठ नेता और महाराष्ट्र के परिवहन मंत्री अनिल परब पर भी वसूली के लिए दबाव बनाने का आरोप लगाया था. साथ ही कहा था कि वसूली मामले की पूरी जानकारी देशमुख के पीए कुंदन को थी.

वाझे ने इस बयान में कहा था कि एनसीपी चीफ शरद पवार ने उन की बहाली का विरोध किया था. वह चाहते थे कि वाझे की बहाली रद्द कर दी जाए. पवार ने मुझे दोबारा निलंबित करने के लिए देशमुख से कहा था.

मुझे यह बात देशमुख ने ही बताई थी और पवार साहब को मनाने के लिए 2 करोड़ रुपए मांगे थे. इतनी बड़ी रकम देना मेरे लिए मुमकिन नहीं था. इस पर देशमुख ने यह रकम बाद में चुकाने को कहा था. इसी के बाद मुझे सीआईयू में नियुक्ति दी गई थी.

वाझे ने पत्र में कहा कि अनिल परब ने पिछले साल जुलाई, अगस्त, अक्टूबर और इस साल जनवरी में मुझे बुलाया और कुछ शिकायतों के आधार पर बीएमसी के कौन्ट्रैक्टरों पर दबाव बना कर अवैध वसूली करने को कहा.

देशमुख ने इस साल जनवरी में अपने सरकारी बंगले पर बुला कर पब व बार आदि से वसूली करने को कहा. ये सब बातें मैं ने तत्कालीन पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह को बता दी थीं और कहा था कि भविष्य में ये लोग मुझे किसी कंट्रोवर्सी में फंसा सकते हैं.

इस पर परमबीर सिंह ने मुझे किसी भी तरह की अवैध वसूली करने से मना कर दिया था. वाझे ने पत्र के आखिर में लिखा कि जज साहब, मैं न्याय चाहता हूं, इसलिए ये सब बातें लिख रहा हूं. इस लेटर बम परभाजपा और शिवसेना ने आरोपप्रत्यारोप लगाए.

महिला मित्र रखती थी हिसाब

निलंबित सहायक पुलिस निरीक्षक सचिन वाझे की एक महिला मित्र है, जिस का नाम मीना जार्ज है. वह ठाणे के मीरा रोड पर एक कौंप्लेक्स के फ्लैट में रहती है. मीना के फ्लैट से एनआईए को वाझे से जुड़े कई दस्तावेज मिले हैं.

कहा जाता है कि मीना ब्लैक मनी को वाइट करने में वाझे की मदद करती थी. उस के पास नोट गिनने की कई मशीनें भी मिली हैं. वह वाझे से मिलने के लिए दक्षिण मुंबई के ट्राइडेंट होटल गई थी. इस होटल की सीसीटीवी फुटेज के आधार पर ही एनआईए ने उस की तलाश शुरू की थी. मीना इस होटल में नोट गिनने की मशीन ले कर वाझे से मिलने गई थी.

कहा जा रहा है कि मूलरूप से गुजरात की रहने वाली मीना जार्ज ने आटो पार्ट्स की कई फरजी कंपनियां बना रखी थीं. बैंकों में भी उस के करीब एक दरजन खाते सामने आए हैं.

चर्चा है कि वाझे अपनी अवैध वसूली का पैसा मीना को देता था. वह उसे अपनी आटो पार्ट्स कंपनियों की कमाई बता कर बैंकों के सीसी खातों में जमा कराती थी. फिर इन पैसों से शेयर खरीदे जाते थे.

चर्चा है कि वाझे ने सरकारी नौकरी की दूसरी पारी शुरू करने के बाद से करोड़ों रुपए शेयर बाजार में निवेश किए. अंदेशा है कि मीना ही वाझे की काली कमाई का हिसाबकिताब रखती थी.

मीना जार्ज को वाझे कई सालों से जानता है. 2016 में उस की लग्जरी बाइक से वह एक बार मनाली गया था. यह बाइक एनआईए ने जब्त की है. एनआईए ने मीना से कई बार पूछताछ की है.

वाझे की 3 कंपनियां हैं. इन में मल्टीबिल्ड इंफ्रा प्रोजैक्ट, टकलीगल सोल्यूशंस और डीजी नेक्स्ट मल्टीमीडिया शामिल हैं. शिवसेना के नेता संजय माशेलकर और विजय गवई उन के बिजनैस पार्टनर हैं.

वाझे के पास 8 लग्जरी गाडि़यां हैं. इस के अलावा इटालियन बेनेली कंपनी की स्पोर्ट्स बाइक है, जिस की कीमत 7-8 लाख रुपए है. ठाणे में उस के फ्लैट की कीमत एक करोड़ रुपए के आसपास है. जबकि वाझे का मासिक वेतन कुल करीब 70 हजार रुपए है.

जांच में पता चला कि वाझे ने अंबानी के घर के सामने स्कौर्पियो में रखने के लिए जिलेटिन के छड़ें खरीदी थीं. उस ने ही क्रिकेट सटोरिए नरेश गोरे के जरिए अहमदाबाद से 11 सिमकार्ड मंगाए थे.

इन सिम का उपयोग शिंदे, नरेश और वाझे आदि ने पूरी साजिश की बातचीत में किया. वाझे के घर से एक अज्ञात व्यक्ति का पासपोर्ट मिला था. आशंका थी कि इस व्यक्ति को किसी फरजी मुठभेड़ में मारा जाना था.

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अंबानी के घर के सामने स्कौर्पियो में मिला धमकीभरा पत्र शिंदे के घर कंप्यूटर पर टाइप किया गया था, पुलिस ने उस के घर से प्रिंटर बरामद किया. इस पूरे मामले में वाझे का सहयोगी सहायक पुलिस निरीक्षक प्रकाश ओवल भी जांच के दायरे में है. उस से भी पूछताछ की गई है.

सीबीआई ने पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख, उन के पीए कुंदन शिंदे और निजी सचिव संजीव पलांडे सहित परमबीर सिंह और सचिन वाझे से पूछताछ की है. वहीं एनआईए ने भी परमबीर सिंह, वाझे, पूर्व पुलिस अधिकारी प्रदीप शर्मा, वकील जयश्री पाटिल और कुछ मौजूदा पुलिस अधिकारियों से पूछताछ की गई है.

Crime Story: एंटीलिया को दहलाने में हिल गई सरकार- भाग 5

सौजन्य- मनोहर कहानियां

16 साल बाद सचिन वाझे की मुंबई पुलिस में यह दूसरी पारी थी. उसे पुलिस की हाईप्रोफाइल क्राइम ब्रांच में नियुक्त कर सीआईयू का प्रमुख बना दिया गया. वाझे को सीआईयू का चीफ बनाने पर दबे स्वर में विरोध भी हुआ था. इस का कारण था आमतौर पर इस पद की जिम्मेदारी सीनियर पुलिस इंसपेक्टर को दी जाती है जबकि वाझे सहायक पुलिस इंसपेक्टर था.

वाझे ने अपनी दूसरी पारी में सुर्खियों में आने के लिए उखाड़पछाड़ शुरू कर दी. उस ने दिसंबर 2020 में अवैध रूप से कारें मोडिफाई करने के मामले में सेलेब्रिटी कार डिजायनर दिलीप छाबडि़या को गिरफ्तार किया था.

इस से पहले वह नवंबर 2020 में रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक अर्नब गोस्वामी को गिरफ्तार करने गई रायगढ़ पुलिस के साथ पहुंचा था. अर्नब का मामला रायगढ़ पुलिस का था, लेकिन कहा जाता है कि वाझे सरकार के इशारे पर वहां पहुंचा था और अर्नब को गिरफ्तार कर लाते हुए दिखाई दिया था.

खास बात यह कि वाझे ने अर्नब गोस्वामी के घर जाने के लिए मनसुख हिरेन की उसी स्कौर्पियो का इस्तेमाल किया था, जिस में इस साल 25 फरवरी को मुकेश अंबानी के आवास के सामने जिलेटिन की छड़ें मिली थीं.

मनसुख हिरेन की हत्या के मामले में गिरफ्तार पूर्व कांस्टेबल विनायक शिंदे के दामन पर भी कालिख पुती हुई है. शिंदे पर 11 नवंबर, 2006 को रामनारायण गुप्ता उर्फ लखन भैया की सनसनीखेज हत्या का आरोप था. इस मामले में अदालत ने सन 2013 में 13 पुलिसकर्मियों को दोषी ठहराया था. इन में शिंदे भी एक था.

हालांकि इस मामले में अदालत ने पुलिस टीम के मुखिया प्रदीप शर्मा को बरी कर दिया था. इस मामले में नवी मुंबई की पुलिस ने दावा किया था कि लखन भैया को वर्सोवा में मुठभेड़ में मारा गया था, लेकिन हकीकत यह थी कि उसे ठाणे जिले के उस के घर से उठाया गया और बाद में मार दिया गया था.

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश ने दोषी पुलिस वालों को ‘कौन्ट्रैक्ट किलर’ बताया था. जेल में उम्रकैद की सजा काट रहा शिंदे एक साल से पैरोल पर बाहर था. वह वाझे से मिलताजुलता रहता था.

एनकाउंटर स्पैशलिस्ट प्रदीप शर्मा भी 2008 में माफिया से संबंधों और फरजी मुठभेड़ मामले में निलंबित किए गए थे. शर्मा को भी परमबीर सिंह ने 2017 में वापस नौकरी में रखा था. परमबीर सिंह उस समय ठाणे पुलिस कमिश्नर थे. तब प्रदीप को एंटी एक्सटौर्शन सेल में लगाया गया था. मुंबई के पुलिस कमिश्नर रहे परमबीर सिंह के बारे में कई तरह के खुलासे हुए हैं. कहने को और पुलिस महकमे के प्रोटोकाल के हिसाब से वाझे उन के लिए एक अदना सा अधिकारी था, लेकिन वाझे से उन के गहरे ताल्लुक थे. कहा जाता है कि लगभग रोजाना परमबीर सिंह और वाझे एक बार साथ बैठ कर कौफी पीते थे.

पैसा तो परमबीर सिंह ने भी कमाया

परमबीर सिंह के पास सरकारी रिकौर्ड के अनुसार, 8 करोड़ 54 लाख रुपए की प्रौपर्टी है. उन के पास हरियाणा में कृषि भूमि है. अभी इस की वैल्यू 22 लाख रुपए बताई है. इस से 51 हजार रुपए की सालाना आय होती है. सन 2003 में उन्होंने मुंबई के जुहू इलाके में 48.75 लाख का फ्लैट खरीदा था. इस की मौजूदा कीमत 4.64 करोड़ रुपए है. इस से उन्हें 25 लाख रुपए की सालाना आय होती है.

जुहू में उन की एक और प्रौपर्टी है. इस की कीमत उन्होंने नहीं बताई है. उन्होंने नवी मुंबई में 2005 में 3.60 करोड़ का एक और फ्लैट खरीदा था. इस की मौजूदा कीमत केवल 2.24 करोड़ रुपए बताई जाती है. यह फ्लैट पतिपत्नी के नाम है. इस से बतौर किराया 9.60 लाख रुपए की सालाना आय होती है.

फरीदाबाद में भी परमबीर सिंह ने 2019 में जमीन खरीदी थी, जिस की वर्तमान कीमत 14 लाख रुपए  है. जबकि उन का मासिक वेतन 2.24 लाख रुपए है.

पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले परमबीर सिंह को अब महाराष्ट्र सरकार घेरने की तैयारी में है. वाझे के मामले में सरकार परमबीर सिंह की अलग से जांच करा रही है.

इस जांच का जिम्मा परमबीर सिंह के कट्टर विरोधी सीनियर आईपीएस अधिकारी संजय पांडे को सौंपा गया है. सरकार ने संजय पांडे को पुलिस महानिदेशक का अतिरिक्त कार्यभार सौंपा है.

देशमुख सीबीआई की जांच में बचेंगे या फंसेंगे?

पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह ने 22 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका दायर कर अनिल देशमुख के खिलाफ सीबीआई जांच की मांग की थी. भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि एक पूर्व पुलिस आयुक्त अपने राज्य के गृहमंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरापों की सीबीआई से जांच के लिए अदालत पहुंचा था.

तब सुप्रीम कोर्ट ने मामले को गंभीर बताते हुए उन्हें हाईकोर्ट जाने की सलाह दी थी. इस के बाद परमबीर सिंह ने 24 मार्च को बौंबे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. हाईकोर्ट ने 31 मार्च को परमबीर सिंह की याचिका पर सुनवाई की. चीफ जस्टिस दीपंकर दत्ता और जस्टिस जी.एस. कुलकर्णी ने परमबीर सिंह को फटकार लगाई.

उन्होंने कहा कि आप ने गृहमंत्री देशमुख के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए हैं, लेकिन उन्हें ले कर कोई एफआईआर क्यों नहीं दर्ज कराई. बिना किसी रिपोर्ट के आखिर उस की सीबीआई जांच कैसे कराई जा सकती है?

चीफ जस्टिस ने कहा कि भले ही आप पुलिस कमिश्नर रहे हैं, लेकिन आप कानून से ऊपर नहीं हैं. क्या पुलिस अधिकारी, मंत्री और नेता कानून से ऊपर हैं? खुद को बहुत ऊपर मत समझिए.

जब आप को पता था कि बौस अपराध कर रहा है, तो एफआईआर दर्ज क्यों नहीं की? अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया.

बाद में 5 अप्रैल को बौंबे हाईकोर्ट ने देशमुख पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच सीबीआई से कराने के आदेश दिए. अदालत ने कहा कि हम ने इस तरह का मामला पहले कभी नहीं देखा, न ही सुना. एक पुलिस अफसर ने इतने खुले रूप में एक मंत्री पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं. ऐसे हालात में अदालत मूकदर्शक नहीं बनी रह सकती. मामले की स्वतंत्र जांच होनी चाहिए.

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हाईकोर्ट से सीबीआई जांच के आदेश होने के कुछ देर बाद ही देशमुख एनसीपी प्रमुख शरद पवार से मिले. फिर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को अपना इस्तीफा सौंप दिया. इस्तीफे में लिखा कि हाईकोर्ट के आदेश के बाद मेरा पद पर बने रहना नैतिक रूप से सही नहीं होगा. बाद में उसी दिन एनसीपी के दिलीप वल्से पाटिल को महाराष्ट्र का नया गृहमंत्री बना दिया गया.

हाईकोर्ट के आदेश पर सीबीआई ने 6 अप्रैल को देशमुख पर लगे आरोपों की जांच शुरू कर दी. दूसरी ओर, हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार और देशमुख ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई.

सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को उन की अरजी खारिज करते हुए कहा कि यह 2 बड़े पदों पर बैठे लोगों से जुड़ा मामला है. लोगों का भरोसा बना रहे, इसलिए निष्पक्ष जांच जरूरी है. हम हाईकोर्ट के आदेश में दखल नहीं देंगे.

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Crime Story: 3 करोड़ के सोने की लूट- भाग 1

सौजन्य: मनोहर कहानियां

इसी साल 15 मार्च की बात है. दोपहर के तकरीबन डेढ़ बजे का समय था. राजस्थान के हनुमानगढ़ शहर में टाउन बस स्टैंड पर स्थित मणप्पुरम गोल्ड लोन शाखा में लंच का समय था. कर्मचारी गपशप कर रहे थे.

वैसे तो इस औफिस में 5 कर्मचारी हैं, लेकिन उस समय असिस्टैंट मैनेजर संजय सिंह शेखावत सहित केवल 3 कर्मचारी ही औफिस में थे. एक महिला कर्मचारी किसी काम से रेलवे जंक्शन गई थी और एक महिला कर्मचारी औफिस आने के बाद तबीयत खराब होने की बात कह कर घर चली गई थी.

मणप्पुरम कंपनी सोने के जेवरों पर लोन देने का काम करती है. सालों पुरानी इस कंपनी के पूरे देश में लगभग हर जिला मुख्यालय पर कईकई ब्रांच औफिस हैं. कंपनी के लगभग सभी औफिसों में सोने के जेवर और नकदी रहती है, लेकिन सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं होते. यही कारण है कि हर साल देश भर में इस कंपनी के 5-7 औफिसों में लूट की वारदात होती है.

इन में कुछ वारदातों में अपराधी पकड़े जाते हैं और कुछ में नहीं. पकड़े गए अपराधियों से भी माल की आधीअधूरी बरामदगी ही होती है. बिहार के 2-3 कुख्यात गिरोह तो केवल गोल्ड लोन वाली कंपनियों में ही लूट की वारदात करते हैं.

कंपनी की हनुमानगढ़ शाखा में भी सुरक्षा के कोई खास इंतजाम नहीं थे. सुरक्षा के नाम पर कर्मचारी औफिस समय में चैनल गेट बंद रखते थे. कोई ग्राहक आता, तो गेट खोल देते और उस के जाने के बाद बंद कर देते थे.

उस दिन भी कर्मचारियों ने औफिस का चैनल गेट बंद कर ताला लगा रखा था. दोपहर करीब पौने 2 बजे 2 युवक बैंक के चैनल गेट पर पहुंचे. उन्होंने गेट खुलवाने के लिए बाहर लगी घंटी बजाई. युवकों ने अपने चेहरे ढके हुए थे. एक युवक के पास पिट्ठू बैग था.

घंटी की आवाज सुन कर औफिस के अंदर से एक कर्मचारी मोबाइल पर बातें करते हुए आया. उस ने 2 युवकों को बाहर खड़ा देखा, तो ग्राहक समझ कर उन से बिना कुछ पूछताछ किए चैनल गेट का ताला खोल दिया.

चैनल गेट खुलते ही दोनों युवक औफिस के अंदर घुस गए. अंदर आते ही दोनों ने अपने कपड़ों में छिपा कर लाई पिस्तौल निकाल ली. औफिस में मौजूद तीनों कर्मचारियों पर पिस्तौल तान कर बदमाशों ने जान से मारने की धमकी दी और सोने के बारे में पूछा.

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पिस्तौल देख कर कर्मचारी घबरा गए. उन्होंने सोने के जेवर लौकर में रखे होने की बात कही, तो बदमाशों ने गोली चलाने की धमकी दी. इस पर असिस्टैंट मैनेजर संजय सिंह ने लौकर खोल कर नीचे की दराज में रखे सोने के जेवरों के पैकेट लुटेरों के हवाले कर दिए.

लुटेरों ने लौकर में रखी नकदी भी निकाल ली. एक बदमाश ने जेवर और नकदी अपने कंधे पर लटके बैग में भर लिए. इस के बाद दोनों बदमाश कर्मचारियों को धमकी देते हुए चैनल गेट खोल कर तेजी से निकल गए.

बदमाशों को इस वारदात को अंजाम देने में मुश्किल से 4 मिनट लगे थे. लुटेरों के डर से औफिस के कर्मचारी कुछ देर सहमे से अंदर ही खड़े रहे. बाद में वे औफिस से बाहर निकले और आसपास के लोगों को बताया. बाद में पुलिस को सूचना दी.

सूचना मिलने के कुछ ही देर बाद हनुमानगढ़ एसपी प्रीति जैन, डीएसपी प्रशांत कौशिक, टाउन सीआई लक्ष्मण सिंह राठौड़ और जंक्शन सीआई नरेश गेरा आदि मौके पर पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने मौकामुआयना कर कंपनी की शाखा के कर्मचारियों और आसपास के लोगों से पूछताछ की.

पूछताछ में पता चला कि औफिस में सायरन लगा होने के बावजूद कर्मचारियों ने वारदात के दौरान या तुरंत बाद उसे नहीं बजाया. अलार्म नहीं बजाने पर एसपी ने कर्मचारियों को फटकार लगाई और 3 बार अलार्म बजा कर उस की जांच भी की.

शाखा के कर्मचारियों ने बताया कि बदमाश सोने के जेवर और कैश ले गए. कितना सोना ले गए, यह रिकौर्ड देखने के बाद बता सकेंगे. उन्होंने नकदी करीब एक लाख रुपए बताई.

आसपास के लोगों से पुलिस को पता चला कि कंपनी की गोल्ड लोन शाखा के सामने टाउन जंक्शन रोड पर एक ट्रक की ओट में एक बाइक सवार खड़ा था. वारदात के बाद दोनों नकाबपोश युवक उस बाइक सवार के साथ फरार हो गए.

पुलिस अधिकारियों ने शहर के सभी मार्गों पर नाकेबंदी करा दी. लुटेरों का पता लगाने के लिए गोल्ड लोन शाखा के बाहर और आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी. औफिस के चैनल गेट के पास लगे कैमरे में दोनों बदमाश नजर आ गए, लेकिन उन के चेहरे ढके होने से पहचान नहीं हो सकी. ये बदमाश दोपहर 1.47 बजे औफिस में घुसे और 1.51 बजे बाहर निकल गए थे.

गोल्ड लोन शाखा में लूट की वारदात होने की सूचना पूरे शहर में फैल गई. इस से वे लोग बड़ी संख्या में मौके पर पहुंच गए, जिन्होंने अपने जेवर गिरवी रख कर कंपनी से लोन ले रखा था. पुलिस अधिकारियों ने इन लोगों को यह कह कर वापस भेजा कि अभी जांच चल रही है. लूटे गए जेवरों का रिकौर्ड मिलने पर ही कुछ पता चल सकेगा.

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वारदात के तुरंत बाद हालांकि यह पता नहीं चला कि कितना सोना और कितना कैश लूटा गया है. फिर भी एसपी प्रीति जैन ने वारदात को गंभीरता से लेते हुए अधिकारियों की टीम बना कर लुटेरों का पता लगाने के निर्देश दिए.

दूसरे दिन 16 मार्च को पुलिस अधिकारी जांचपड़ताल में जुटे रहे. सीसीटीवी फुटेज के आधार पर लुटेरों की खोजबीन चलती रही. अधिकारियों ने एक बार फिर गोल्ड लोन शाखा के औफिस पहुंच कर कर्मचारियों से पूछताछ की ताकि लुटेरों के बारे में कोई सुराग मिल सके, लेकिन ऐसी कोई बात पता नहीं चली, जिस से लुटेरों का पता लगाया जाता. कंपनी के कर्मचारियों ने वारदात के करीब 32 घंटे बाद 16 मार्च की रात लगभग साढ़े 9 बजे हनुमानगढ़ टाउन पुलिस थाने पहुंच कर केस दर्ज कराया.

मणप्पुरम गोल्ड लोन हनुमानगढ़ टाउन की ब्रांच मैनेजर भावना मेघवाल ने पुलिस में दर्ज कराई रिपोर्ट में बताया कि लुटेरे सोने के जेवरों के 290 पैकेट और एक लाख 7 हजार 951 रुपए नकद ले गए.

लूटे गए सोने के जेवरों का अनुमानित वजन 6 किलो से ज्यादा बताया गया. इन जेवरों में सोने की अंगूठी, कान की बाली, झुमके, कंगन, टौप्स आदि थे.

अगले भाग में पढ़ें- पुलिस ने जेवरों की लूट का खुलासा किया

Crime Story: 3 करोड़ के सोने की लूट- भाग 2

सौजन्य: मनोहर कहानियां

हालांकि पुलिस ने शाखा मैनेजर की ओर से दी गई रिपोर्ट दर्ज कर ली, लेकिन पुलिस अधिकारियों के मन में कई सवाल भी गहरा गए थे.

लूटे गए 6 किलो सोने की कीमत मौजूदा समय में करीब 3 करोड़ रुपए थी. कंपनी के अधिकारियों की ओर से करीब 30 घंटे तक रिकौर्ड का मिलान करने के बाद इतना सोना लूटे जाने की बात पुलिस अधिकारियों के गले नहीं उतरी.

पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज कराने आई कंपनी की ब्रांच मैनेजर रायसिंहनगर निवासी भावना मेघवाल और दूसरे स्टाफ से थाने में काफी देर तक पूछताछ की. इस में पता चला कि वारदात के समय लौकर में सोने के जेवरों के करीब 1300 पैकेट थे. असिस्टैंट मैनेजर संजय सिंह ने इन में से नीचे की दराज में रखे 290 पैकेट ही निकाल कर लुटेरों को दिए थे. जेवरों के बाकी लगभग एक हजार पैकेट जो ऊपर की दराज में थे, बच गए थे.

सुरक्षित बच गए जेवरों के पैकेटों में जीपीएस ट्रैकर भी लगा हुआ था जबकि लुटेरों के हाथ लगे जेवरों के पैकेटों में जीपीएस ट्रैकर नहीं था. इसलिए पुलिस अधिकारियों के दिमाग में संदेह पैदा हुआ कि आखिर लुटेरों को नीचे की दराज से ही जेवरों के पैकेट क्यों निकाल कर दिए गए.

लुटेरों को बिना जीपीएस ट्रैकर वाले सोने के जेवरों के पैकेट निकाल कर देने के बारे में पुलिस ने असिस्टैंट मैनेजर संजय सिंह ने सवाल किए, तो उस ने बताया कि ऐसा घबराहट और हड़बड़ाहट में हुआ. पुलिस की पूछताछ में एक बार वह उखड़ भी गया और कहा कि उसे 6 हजार रुपए तनख्वाह मिलती है. इतनी सी तनख्वाह के लिए क्या मैं अपनी जान दांव पर लगा देता? तीसरे दिन 17 मार्च को एडिशनल एसपी जस्साराम बोस और डीएसपी प्रशांत कौशिक ने एक बार फिर गोल्ड लोन शाखा का बारीकी से मुआयना किया और कर्मचारियों से पूछताछ की.

इस के अलावा पुलिस की टीमें सीसीटीवी में नजर आए बदमाशों का सुराग लगाने और संदिग्ध बदमाशों से पूछताछ में जुटी रही. साइबर एक्सपर्ट की टीम लुटेरों के भागने की दिशा में लगे सभी सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देख कर रूट चार्ट बनाने में लगी रहीं. 6 किलो सोने के जेवरों की लूट के मामले में पुलिस हर एंगल से बारीकी से जांचपड़ताल करती रही. कुछ ऐसी बातें थी, जिन से पुलिस अधिकारियों का शक गोल्ड लोन शाखा के कर्मचारियों पर हो रहा था.

इस में वारदात के करीब 32 घंटे बाद रिपोर्ट दर्ज कराना, मुंह पर कपड़ा बांध कर आए दोनों युवकों को बिना कोई पूछताछ किए चैनल गेट खोल कर औफिस के अंदर प्रवेश दे देना, असिस्टैंट मैनेजर संजय सिंह की ओर से लुटेरों को बिना जीपीएस ट्रैकर वाले सोने के जैवरों के पैकेट देना, संदेह को बढ़ावा दे रहे थे.

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वारदात के दौरान या तुरंत बाद कर्मचारियों की ओर से अलार्म नहीं बजाना आदि भी ऐसे बिंदु थे, जो कंपनी के कर्मचारियों को शक के दायरे में खड़ा कर रहे थे. इसलिए पुलिस की एक टीम गोल्ड लोन शाखा के कर्मचारियों की कुंडली खंगालने में जुट गई.

पुलिस ने 20 मार्च को 3 लोगों को गिरफ्तार कर सोने के जेवरों की लूट का खुलासा कर दिया. लूट का मास्टरमाइंड मणप्पुरम गोल्ड लोन शाखा का असिस्टैंट मैनेजर संजय सिंह शेखावत निकला.

पुलिस ने संजय सिंह सहित मदन सोनी और पवन जाट को गिरफ्तार कर लिया. इन में संजय सिंह सीकर जिले की श्रीमाधोपुर तहसील के जालपाली गांव का रहने वाला था. मदन सोनी हनुमानगढ़ टाउन में नाथावाली थेढ़ी वार्ड नंबर 8 और संजय जाट रावतसर के निरवाल का निवासी था. इन लोगों से पूछताछ में जो कहानी उभकर सामने आई, वह इस प्रकार है—

असिस्टैंट मैनेजर संजय सिंह ने कंपनी की इस शाखा में काफी घोटाला कर रखा था. उस ने फरजी आईडी से कंपनी की इस शाखा में खाते खोल कर सोने के जेवर गिरवी रखे बगैर ही दूसरे कई नामों से लोन उठा रखा था. यह घोटाला वह काफी दिनों से कर रहा था, लेकिन कंपनी को पता नहीं चल सका था. पिछले दिनों कंपनी ने संजय सिंह का तबादला गुजरात कर दिया था. तबादला होने के बावजूद संजय रिलीव नहीं हो रहा था. उसे डर था कि हनुमानगढ़ शाखा से रिलीव होने पर कंपनी का हिसाबकिताब देते समय उस का घोटाला सामने आ जाएगा. इस घोटाले को दबाने के लिए संजय ने मदन सोनी के साथ मिल कर अपनी ही शाखा में लूट की योजना बनाई. हनुमानगढ़ टाउन का रहने वाला मदन सोनी सोने का मूल्यांकन करता था.

संजय ने लूट के लिए बदमाशों का इंतजाम करने की जिम्मेदारी मदन सोनी को सौंप दी. मदन सोनी ने इस काम के लिए अपने परिचित डिप्टी उर्फ अनमोल मेघवाल से संपर्क किया.

डिप्टी उर्फ अनमोल हरियाणा के सिरसा जिले के बेहरवाला खुर्द ऐलनाबाद का रहने वाला था. मदन सोनी ने अनमोल को अपनी योजना बताई. इस पर अनमोल ने लूटे जाने वाले सोने में बराबर का हिस्सा लेने की बात कही. मदन ने इस पर हामी भर ली.

लूटे जाने वाले सोने के बंटवारे की बात तय हो जाने पर अनमोल ने इस काम के लिए अपने परिचित बदमाश तलवाड़ा के बेहरवाला कलां निवासी सोनू, रावतसर के निरवाल गांव निवासी पवन जाट और अपने ही गांव बेहरा वालां खुर्द के रहने वाले भीम को तैयार किया.

इन में सोनू के सोपू गैंग और पवन के बीकानेर की 007 गैंग से तार जुड़े हुए थे. ये दोनों इन अपराधी गिरोह के सक्रिय बदमाश थे. सोनू के खिलाफ हत्या का प्रयास के अलावा आर्म्स ऐक्ट के मुकदमे दर्ज थे.

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इन लोगों ने वारदात के लिए हनुमानगढ़ के संडे मार्केट से मोटरसाइकिल खरीदी. ऐलनाबाद और तलवाड़ा से हथियार जुटाए गए. अनमोल, पवन, सोनू और भीम 12 मार्च को हनुमानगढ़ आ गए. संजय सिंह और मदन सोनी ने इन बदमाशों के ठहरने के लिए पहले ही 2 अलगअलग होटलों का इंतजाम कर रखा था.

हनुमानगढ़ पहुंचने पर संजय सिंह और मदन सोनी ने लूट की अपनी पूरी योजना बता कर उन्हें सारी बातें समझा दीं. चारों बदमाशों ने मणप्पुरम गोल्ड लोन शाखा की 2 दिन तक बाहर से रैकी कर वारदात करने और भागने के रास्ते देख लिए.

अगले भाग में पढ़ें-  फुटेज के आधार पर पुलिस ने बदमाशों से पूछताछ की

Crime Story: 3 करोड़ के सोने की लूट- भाग 3

सौजन्य: मनोहर कहानियां

बाद में सभी ने मिल कर लूट की योजना को अंतिम रूप दिया. यह तय किया गया कि वारदात 15 मार्च को दोपहर एक से 2 बजे के बीच लंच टाइम में की जाएगी. लंच का समय इसलिए चुना गया क्योंकि इस दौरान आमतौर पर कोई ग्राहक नहीं होता.

योजना के अनुसार, पवन और सोनू शाखा में घुसे. सोनू ने 315 बोर की पिस्तौल और पवन ने एयरगन दिखा कर कर्मचारियों को डराया और गोली चलाने की धमकी दी. इस दौरान असिस्टैंट मैनेजर संजय सिंह ने बदमाशों के धमकाने पर लौकर में से सोने के जेवरों के पैकेट निकाल कर उन्हें दे दिए.

पवन और सोनू 4 मिनट में ही वारदात को अमलीजामा पहना कर बाहर निकल आए.

गोल्ड लोन शाखा के बाहर एक ट्रक की आड़ में भीम पहले से ही मोटरसाइकिल पर तैयार खड़ा था. भीम ही इन दोनों को होटल से मणप्पुरम गोल्ड लोन शाखा तक लाया था. वारदात के दौरान वह बाहर खड़ा था. इस दौरान वह पवन जाट से मोबाइल पर सीधे संपर्क में था. पवन ने हैडफोन लगा अपना मोबाइल चालू रख रखा था ताकि कोई खतरा होने पर बाहर खड़ा भीम उन को सचेत कर सके.

वारदात के बाद भीम के साथ मोटरसाइकिल पर बैठ कर पवन और सोनू भाग लिए. हनुमानगढ़ से ये तीनों मसीतांवाली हैड होते हुए हरियाणा चले गए. बाद में मदन सोनी और डिप्टी उर्फ अनमोल ने इन तीनों से मिल कर लूटे गए जेवर और नकदी का बंटवारा कर लिया.

संजय सिंह को लौकर में रखे सारे जेवरों के बारे में पता था. उसे पता था कि लौकर में ऊपर की दराज में जेवरों के पैकेट जीपीएस ट्रैकर सिस्टम के साथ रखे हुए हैं और नीचे की दराज में रखे जेवरों के पैकट में जीपीएस ट्रैकर नहीं है. इसलिए उस ने चालाकी से बिना जीपीएस ट्रैकर वाले जेवरों के पैकेट नीचे की दराज से निकाल कर लुटेरों के हवाले कर दिए.

दरअसल, कंपनी ने लूट व चोरी की वारदातों को देखते हुए सुरक्षा के तौर पर लौकर में जेवरों के साथ जीपीएस ट्रैकर रखे हुए हैं. ये जीपीएस ट्रैकर ऊपर वाली दराज में जेवरों के पैकेट के बीच में ही रखे गए थे ताकि कोई वारदात होने पर जीपीएस ट्रैकर के जरिए अपराधी तक पहुंचा जा सके.

संजय सिंह की इसी कारस्तानी ने पुलिस अधिकारियों के दिमाग में संदेह पैदा किया और वह लुटेरों तक पहुंच गई.

वारदात के बाद पुलिस ने मणप्पुरम गोल्ड लोन शाखा के सीसीटीवी कैमरों की फुटेज में नजर आए लुटेरों की तलाश में हनुमानगढ़ टाउन और जंक्शन के तमाम होटल, धर्मशालाओं के अलावा बसअड्डे और रेलवे स्टेशन पर जांचपड़ताल की. इन जगहों पर लगे कैमरों की फुटेज देखी.

इस जांचपड़ताल में हनुमानगढ़ जंक्शन स्थित कमल होटल और अमर होटल में वारदात से 3-4 दिन पहले रुके लोगों के फुटेज और वारदातस्थल की फुटेज में दिखे संदिग्ध लुटेरों से मिलान कर गए. इन संदिग्धों ने 15 मार्च को ही होटल से चैकआउट कर दिया था.

इन फुटेज के आधार पर पुलिस ने बदमाशों से पूछताछ कर सब से पहले पवन जाट को पकड़ा. पूछताछ में उस ने मदन सोनी और संजय सिंह का नाम लिया. संजय सिंह पहले से ही पुलिस के शक के दायरे में था. पुलिस ने इन दोनों को भी पकड़ कर पूछताछ की, तो लूट की सारी कहानी सामने आ गई. पुलिस ने तीनों को गिरफ्तार कर लिया.

इन तीनों से पूछताछ के आधार पर दूसरे दिन 21 मार्च को पुलिस ने सोनू और डिप्टी उर्फ अनमोल मेघवाल को भी गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस की जांच में सामने आया कि असिस्टैंट मैनेजर संजय सिंह ने कंपनी की हनुमानगढ़ शाखा में 841 ग्राम सोने के लोन का घोटाला किया था. उस ने गोल्ड वैल्यूअर मदन सोनी, उस के भाई और दूसरे परिचितों के नाम से गोल्ड लोन के नाम से फरजी खाते खोल कर रुपए उठा लिए थे.

संजय ने फरजीवाड़ा कर कंपनी के कागजातों में इन लोगों से सोना जमा करना दिखाया था, जबकि सोना कंपनी में जमा नहीं हुआ था. कंपनी की औडिट होने पर वह सोने के जेवरों के पैकेट औनलाइन रिलीज कर अकाउंट होल्ड कर देता था.

औडिट टीम के जाने के बाद वह लोन के जेवर जमा बता कर पैसा रिलीज करना दिखा देता था. इस तरह कंपनी की औडिट में भी उस का फरजीवाड़ा पकड़ में नहीं आया था. तबादले के बाद रिलीव होने पर चार्ज देने के समय उस का घोटाला सामने आ सकता था, इसीलिए उस ने कंपनी में लूट की वारदात करवा कर नमकहरामी की.

बाद में पुलिस ने 21 साल के भीम उर्फ भीमसेन मेघवाल और 29 साल के सुभाष जाट को भी इस मामले में गिरफ्तार कर लिया. ये दोनों हरियाणा के बेहरवाला खुर्द ऐलनाबाद के रहने वाले थे. पुलिस ने आरोपियों की निशानदेही पर 4 किलो 862 ग्राम सोने के आभूषण बरामद कर लिए.

इन में सोने की चूडि़यां, अंगूठी, बाजूबंद, हार, मंगलसूत्र व टौप्स आदि शामिल थे. बदमाशों ने सोने के इन जेवरों से करीब 350 ग्राम वजन के डोरे, चीड व स्टोन आदि ब्लेड से काट कर जला दिए थे.

कंपनी की मैनेजर ने लूटे गए जेवरों का कुल वजन 6 किलो 136.87 ग्राम बताया था. इस में से असिस्टैंट मैनेजर संजय सिंह की ओर से फरजीवाड़ा किया गया 841 ग्राम सोना केवल कागजों में ही था.

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यानी लूटे गए सोने के जेवरों का असल वजन 5 किलो 295.87 ग्राम था. इस में 4 किलो 862 ग्राम जेवर बरामद हो गए और 350 ग्राम वजनी नग वगैरह जला दिए गए. इस तरह लूटे गए लगभग 99 फीसदी जेवर बरामद हो गए.

बदमाशों से पुलिस ने एक लाख 390 रुपए नकद, वारदात में इस्तेमाल एक देसी कट्टा, एक एयरगन, 6 कारतूस और मोटरसाइकिल भी बरामद कर ली. गिरफ्तार बदमाश भीम उर्फ भीमसेन वारदात के दौरान बाहर मोटरसाइकिल ले कर खड़ा था.

वारदात के बाद पवन और सोनू उसी के साथ बाइक पर भाग गए थे. बदमाशों ने लूटे गए सोने के जेवर और नकदी हरियाणा के बेहरवाला खुर्द गांव में सुभाष जाट के खेत में बने कमरे में 2 फुट गहरा गड्ढा खोद कर दबा दी थी. सुभाष जाट को लूट का माल अपने खेत में छिपाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया.   द्य

Crime Story: पाताल लोक का हथौड़ेबाज- भाग 1

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पारसी व्यवसाई जमशेदजी नौशरवानजी टाटा द्वारा बसाया गया झारखंड का जमशेदपुर भारत के सब से प्रगतिशील औद्योगिक नगरों में एक है. इस शहर की बुनियाद सन 1907 में टाटा आयरन ऐंड स्टील कंपनी (टिस्को) की स्थापना से पड़ी.

जमशेदपुर को टाटानगर भी कहते हैं. इस शहर में टिस्को के अलावा टेल्को, टायो, उषा मार्टिन, जेम्को, टेल्कान, बीओसी सहित आधुनिक स्टील ऐंड पावर के कई उद्योग और देश की नामी इकाइयां हैं.

दीपक कुमार अपने परिवार के साथ इसी जमशेदपुर शहर में कदमा थाना इलाके में तीस्ता रोड पर क्वार्टर नंबर एन-97 में रहता था. परिवार में कुल 4 लोग थे. दीपक, उस की पत्नी वीणा और 2 बेटियां. बड़ी बेटी श्रावणी 15 साल की थी और छोटी बेटी दिव्या 10 साल की. दीपक खुद करीब 40 साल का था और उस की पत्नी वीणा 36 साल की.

मूलरूप से बिहार के खगडि़या जिले का रहने वाला दीपक टाटा स्टील कंपनी में फायर ब्रिगेड कर्मचारी था. पिछले कुछ सालों से नौकरी के सिलसिले में वह जमशेदपुर में रहता था, वेतन ठीकठाक था. साइड बिजनैस के रूप में वह ट्रांसपोर्ट का काम भी करता था. इसलिए घर में किसी तरह की कोई कमी नहीं थी. लेकिन दोस्तों के धोखा देने और लौकडाउन में ट्रांसपोर्ट से आमदनी घटने से वह आर्थिक संकट में आ गया था.

इसी 12 अप्रैल की बात है. दीपक ने अपने दोस्त रोशन और उस की पत्नी आराध्या को लंच पर घर बुलाया. सुबह करीब साढ़े 9 बजे जब दीपक का फोन आया था, तब रोशन ने तबीयत ठीक न होने की बात कह कर मना कर दिया था, लेकिन दीपक के काफी इसरार करने पर रोशन ने कह दिया कि तबीयत ठीक रही, तो वह दोपहर बारह-एक बजे तक आने या नहीं आने के बारे में बता देगा.

रोशन और उस की बीवी आराध्या से दीपक के पारिवारिक संबंध थे. दरअसल, रोशन आराध्या से प्यार करता था, लेकिन दोनों के घर वाले इस रिश्ते के लिए राजी नहीं थे. तब दीपक ने दोनों परिवारों को रजामंद कर के रोशन और आराध्या की शादी कराई थी.

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दीपक का छत्तीसगढ़ में ट्रांसपोर्ट का काम था. वहां रोशन का भी ट्रक चलता था. आराध्या दीपक को मामा कहती थी. रोशन और आराध्या कुछ महीने पहले ही जमशेदपुर में शिफ्ट हुए थे.

आराध्या या रोशन का फोन नहीं आया, तो दीपक ने दोपहर करीब एक बजे पत्नी वीणा के मोबाइल से आराध्या को फोन कर लंच पर जरूर आने का आग्रह किया. आराध्या मना नहीं कर सकी. उस ने कहा, ‘‘ठीक है. हम जरूर आएंगे.’’

दोपहर करीब ढाई बजे रोशन अपनी पत्नी आराध्या और एक साल की बेटी के साथ कार से कदमा में दीपक के घर पहुंचे. उन के साथ रोशन का साला अंकित भी था. अंकित दिल्ली रहता था. वह बहनबहनोई से मिलने जमशेदपुर आया था. रोशन और आराध्या दीपक के घर लंच पर जा रहे थे, अंकित घर में अकेला बोर होगा. सोच कर वे उसे भी अपने साथ लेते गए.

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घर पहुंचने पर दीपक ने गेट खोला. उस ने रोशन और उस की बीवी का गर्मजोशी से स्वागत किया. उन के साथ तीसरे युवक को देख कर दीपक ने रोशन की तरफ सवालिया नजरों से देखा. उस की नजरों को भांप कर रोशन ने हंसते हुए कहा, ‘‘यार, ये मेरा साला और मेरी बेगम साहिबा का भाई है. नाम है अंकित. दिल्ली से आया है.’’

रोशन, उस की बीवी और अंकित को ड्राइमरूम में सोफे  पर बैठने का इशारा करते हुए दीपक ने कहा, ‘‘आप लोग बैठो, मैं फ्रिज से ठंडा पानी ले कर आता हूं.’’

दीपक पानी लाने के लिए जाने लगा, तो आराध्या चौंक कर बोली, ‘‘मामा, आप पानी क्यों ला रहे हो? वीणा मामी को कह दो, वह ले आएंगी.’’

‘‘अरे यार, मैं तुम्हें बताना भूल गया. वीणा कुछ देर पहले मेरे भाई के घर रांची चली गई. साथ में दोनों बच्चों को भी ले गई,’’ दीपक ने कुछ सोचते हुए कहा, ‘‘घर में अकेला मैं ही हूं. मुझे ही आप लोगों की आवभगत करनी पड़ेगी.’’

‘‘मामा, हमें शर्मिंदा मत कीजिए. आप ने हमें बेकार ही लंच पर बुलाया,’’ आराध्या ने नाराजगी भरे स्वर में कहा, ‘‘मामीजी घर पर नहीं हैं, तो हम लंच के लिए फिर कभी आ जाएंगे.’’

दीपक ने आराध्या को भरोसा दिलाते हुए कहा, ‘‘आप को लंच पर बुलाया है, तो बाजार से खाना ले आएंगे.’’

दीपक की इस बात पर आराध्या ने पति रोशन की ओर देखा. रोशन क्या कहता, उस ने फ्रिज से पानी लेने जा रहे दीपक को सोफे पर ही बैठा लिया और बातें करने लगे. घरपरिवार और बच्चों की बातें करते हुए वे ठहाके भी लगाते जा रहे थे.

उन्हें बातें करते हुए 5-7 मिनट ही हुए थे कि आराध्या की बेटी ने पौटी कर दी. आराध्या बेटी को गोद में ले कर बाथरूम में चली गई. बाथरूम में उस ने बच्ची को साफ किया. पीछेपीछे रोशन भी बीवी की मदद के लिए बाथरूम में आ गया और उस ने बेटी का नैपकिन धोया.

बाथरूम से ड्राइंगरूम में आते समय उन्हें चिल्लाने की आवाज सुनाई दी. वे तेज कदमों से ड्राइंगरूम में पहुंचे, तो दीपक हथौड़े से अंकित पर हमला कर रहा था.

रोशन कुछ समझ नहीं पाया कि अचानक ऐसी क्या बात हो गई, जो दीपक अंकित को मार रहा है. वह दीपक से पूछते हुएअंकित को बचाने लगा, तो दीपक ने उस की बच्ची को अपनी ओर खींचते हुए मारने की कोशिश की. रोशन बचाने लगा, तो दीपक ने उस पर भी हथौड़े से हमला कर दिया. इस से रोशन को भी चोटें लगीं.

किसी तरह रोशन ने अपनी बेटी, पत्नी और साले को बचा कर वहां से बाहर निकाला. अंकित के सिर से खून बह रहा था. उस के सिर पर रुमाल बांध कर खून रोकने की कोशिश की गई. फिर वे कार से सीधे टाटा मैमोरियल हौस्पिटल पहुंचे. अंकित का तुरंत इलाज जरूरी था. उसे हौस्पिटल में भरती कराया गया. रोशन को भी डाक्टरों ने भरती कर लिया.

बाद में रोशन ने दीपक के साले विनोद को फोन कर पूरी बात बताई. विनोद को दाल में कुछ काला नजर आया. उस ने यह बात अपने छोटे भाई आनंद साहू को बताईं. दीपक की ससुराल जमशेदपुर के ही शास्त्रीनगर में थी.

शाम करीब 4 बजे विनोद और उस के घर वाले दीपक के क्वार्टर पर पहुंचे. वहां गेट पर ताला लगा हुआ था, लेकिन अंदर एसी चल रहा था. विनोद और उस के घर वाले सोचविचार कर ही रहे थे कि इसी दौरान रिंकी को ढूंढते हुए उस की मां नीलिमा और मंझली बहन बिपाशा भी वहां पहुंच गईं.

उन्होंने बताया कि रिंकी दीपक के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने आती थी. वह सुबह 11 बजे घर से निकली थी और अभी तक घर नहीं पहुंची. रोजाना वह दोपहर एक बजे घर वापस आ जाती थी. बहनों की औनलाइन क्लास होने के कारण रिंकी उस दिन मोबाइल नहीं ले गई थी.

जब रोजाना के समय पर रिंकी वापस घर नहीं पहुंची, तो घर वालों ने दीपक को फोन किया. दीपक ने कहा कि वह ट्यूशन पढ़ा कर जा चुकी है. इस के बाद भी दोपहर 3 बजे तक जब रिंकी घर नहीं पहुंची, तो नीलिमा और बिपाशा दीपक के क्वार्टर पर पहुंची थीं.

चिंता में मांबेटी वहां से कदमा थाने पहुंचीं और पुलिस को पूरी बात बताई.

पुलिस ने कोई घटना दुर्घटना होने की आशंका जताते हुए एक बार हौस्पिटल में देख आने की सलाह दी. वे टीएमएच गईं, लेकिन वहां कुछ पता नहीं चला, तो थकहार कर दोनों दोबारा दीपक के क्वार्टर पर आईं. यहां उन्हें विनोद और उस के घर वाले मिले.

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विनोद ने रिंकी की मांबहन के साथ सोचविचार कर दीपक के क्वार्टर के दरवाजे पर लगा ताला तोड़ दिया. विनोद अंदर कमरे में गया और चिल्लाते हुए बाहर निकल आया. उस ने बताया कि वीणा और दोनों बेटियां मरी पड़ी हैं.

यह सुन कर विनोद के साथ दूसरे लोग कमरे में गए. उन्होंने वीणा और दोनों बच्चियों को हिलायाडुलाया, लेकिन कोई हलचल नहीं हुई. उन की नब्ज भी ठंडी पड़ चुकी थी. वीणा और उस की दोनों बेटियों की लाश देख कर विनोद और उस के घर वाले रोने लगे.

दीपक की पत्नी और बेटियों की लाश देख कर रिंकी की मां और बहन को शक हुआ. खोजबीन में रिंकी की एक चप्पल बाहर पड़ी मिल गई. इस से संदेह और बढ़ गया. वे घर में रिंकी को तलाशने लगीं. उस की स्कूटी तो बालकनी में खड़ी मिली, लेकिन रिंकी नहीं मिली.

मंझली बेटी बिपाशा मां को दिलासा देते हुए अलगअलग कमरों में बड़ी चीजें हटा कर देखने लगी. उस ने एक कमरे में पलंग का बौक्स खोला, तो उस में रिंकी की लाश पड़ी थी. उस के हाथ बंधे हुए और कपड़े अस्तव्यस्त थे. रिंकी की लाश देख कर नीलिमा और बिपाशा रोने लगीं.

अगले भाग में पढ़ें- चारों हुईं हथौड़े का शिकार

Crime Story: पाताल लोक का हथौड़ेबाज- भाग 3

सौजन्य: मनोहर कहानियां

पहले दीपक परसुडीह थाना इलाके के गांव सोपोडेरा में मातापिता के साथ रहता था. वहां उन का आलीशान पैतृक मकान था. प्रभु उस का जिगरी दोस्त था साल 2004 में दीपक की शादी वीणा से हो गई. बाद में 2012 में दीपक की टाटा स्टील में फायरमैन के पद पर नौकरी लग गई. इस के बाद वह जमशेदपुर के कदमा इलाके में रहने लगा.

परिवार बढ़ने के साथ जिम्मेदारियां और खर्च भी बढ़ गए थे. एक दिन दीपक ने दोस्त प्रभु से कोई साइड बिजनेस कराने की बात कही. इस पर प्रभु ने उसे ट्रांसपोर्ट का काम करने की सलाह दी. प्रभु ने उसे काम तो बता दिया लेकिन इतना पैसा दीपक के पास नहीं था. इस पर प्रभु ने उस से कहा कि वह सोपोडेरा का अपना पुश्तैनी मकान बेच दे और उस का पैसा ट्रांसपोर्ट में लगा दे, तो अच्छी आमदनी होगी. दीपक को यह बात जंच गई.

दोस्तों ने ही दिया धोखा

उस ने अपना मकान 40 लाख रुपए में बेच दिया. इस में से 20 लाख रुपए उस ने अपने भाई मृत्युंजय को दे दिए. बाकी के 20 लाख रुपए दीपक के पास रहे. करीब दो साल पहले प्रभु ने उसे 17 लाख रुपए में एक हाइवा (मालवाहक ट्रक) और एक बुलेट दिलवा दी. यह हाइवा उस ने प्रभु के मार्फत जोजोबेड़ा में चलवा दिया.

इस से उसे अच्छी आमदनी होने लगी. पिछले साल कोरोना के कारण लौकडाउन हो जाने से उस की आमदनी कम हो गई. इस बीच, दीपक को पता चला कि प्रभु ने जो ट्रक दिलवाया था, उस पर 5 लाख रुपए रोड टैक्स बकाया है.

परिवहन विभाग का नोटिस आने पर उस ने कर्ज ले कर टैक्स जमा कराया. इस के लिए उस ने टिस्का कोआपरेटिव सोसायटी से साढ़े चार लाख रुपए और अपने पीएफ अकाउंट से डेढ़ लाख रुपए का कर्ज लिया.

दीपक की तनख्वाह 34 हजार रुपए महीना थी. सोसायटी से कर्ज लेने के बाद उसे केवल 8 हजार रुपए ही मिलने लगे. ट्रक से भी आमदनी कम हो गई थी. करीब छह महीने पहले प्रभु ने बताया कि उस का भांजा रोशन खुद का और उस का ट्रक पश्चिम बंगाल में खड़गपुर की एक स्टील कंपनी में चलवा रहा है. रोशन पहले से ही उस का दोस्त था.

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उस की शादी भी उस ने ही कराई थी. कमाई की उम्मीद में दीपक ने भरोसा कर बिना किसी लिखापढ़ी के अपना ट्रक रोशन को सौंप दिया. रोशन ने दीपक का ट्रक तो कंपनी में लगवा दिया, लेकिन उसे कमाई का हिस्सा नहीं दिया. इस बीच, दीपक लगातार कर्जदार होता गया.

दीपक अपनी इस बर्बादी के लिए प्रभु और रोशन को जिम्मेदार मानता था. उस ने उन से बदला लेने की योजना बनाई. दीपक अपने मोबाइल पर वेबसीरीज देखा करता था. पाताल लोक और असुर वेबसीरीज देख कर उस ने उन की हत्या करने का मन बनाया. वह एक वेबसीरीज पाताललोक के कैरेक्टर हथौड़ा त्यागी से काफी प्रभावित था.

इसीलिए उस ने हथौड़े से हत्या करने का फैसला किया. उस ने दोनों दोस्तों को मारने की तो योजना बना ली लेकिन इस बात से परेशान था कि वह पकड़ा गया और जेल चला गया, तो बीवीबच्चों का क्या होगा? काफी सोचविचार के बाद उस ने अपने परिवार को भी खत्म करने का निर्णय लिया.

12 अप्रैल को दीपक सुबह जल्दी उठ गया. देखा कि पत्नी वीणा पानी भर रही थी. वह बिस्तर पर ही बेचैनी से इधरउधर करवटें बदलता रहा. पानी भरने और छोटेमोटे घरेलू काम निपटाने के बाद सुबह करीब 8 बजे वीणा फिर बैड पर लेट गई. दीपक ने उसी दिन अपने परिवार और दोनों दोस्तों का काम तमाम करने का आखिरी फैसला कर लिया.

दीपक ने पहले से ही बैड के पास छिपा कर रखा हथौड़ा निकाला और वीणा के सिर में पीछे से वार कर दिया. वीणा चीखती, इस से पहले ही उस ने तकिए से उस का गला दबा दिया. वीणा की मौत हो गई.

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इस के बाद दीपक दूसरे कमरे में गया. वहां बैड पर दोनों बेटियां सो रही थीं. दीपक ने एक नजर उन्हें देखा. फिर बेरहमी से पहले बड़ी बेटी के सिर में हथौड़ी से वार कर के उसे मौत के घाट उतारा. फिर इसी तरह छोटी बेटी को भी मौत की नींद सुला दिया.

पत्नी और दोनों बेटियों की हत्या के बाद उस ने रोशन को लंच पर आने के लिए फोन किया. इस के बाद दूसरे दोस्त प्रभु को फोन कर शाम 4 बजे जोजोबेड़ा में मिलने की बात कही. दोनों दोस्तों से बात करने के बाद वह नहाधो कर ससुराल गया और अपने जेवर ले कर ज्वैलर्स के पास पहुंचा. जेवर बेच कर वह वापस घर आया.

कुछ देर बाद ही रिंकी घोष उस के बच्चों को पढ़ाने आ गई. रिंकी ने वीणा और बच्चों की लाशें देख लीं, तो दीपक को भेद खुलने का डर हुआ. उस ने उस के भी सिर पर हथौड़ी से हमला कर उसे मार डाला. इस के बाद उस ने उस की लाश से दुष्कर्म किया और शव पलंग के बौक्स में छिपा दिया.

रोशन की हत्या की योजना फेल हो जाने पर वह डर गया था. इसलिए अपने क्वार्टर पर ताला लगा कर बुलेट से भाग निकला. उस की प्रभु को मारने की योजना भी अधूरी रह गई.

जल्लाद बने दीपक की सनक में ट्यूशन टीचर रिंकी बेमौत मारी गई. वह जमशेदपुर में कदमा रामजनम नगर की रहने वाली नीलिमा घोष की 3 बेटियों में सब से बड़ी थी और जमशेदपुर वीमंस कालेज में बीए अंतिम वर्ष की छात्रा थी. मंझली बेटी बिपाशा केरला पब्लिक स्कूल में 10वीं और छोटी बेटी विशाखा 5वीं कक्षा में पढ़ती थी. दीपक की बड़ी बेटी श्रावणी बिपाशा की क्लासमेट थी. श्रावणी के कहने पर ही रिंकी 2 साल से दीपक के घर ट्यूशन पढ़ाने जाती थी.

दीपक का भाई मृत्युंजय रांची में एसबीआई में ब्रांच मैनेजर था. बाद में वह एक निजी फाइनैंस कंपनी में क्रेडिट इंचार्ज के पद पर काम करने लगा था.

मृत्युंजय अब जमशेदपुर आना चाहता था. इस के लिए उस ने दीपक से कहा भी था. दीपक ने अपने ससुराल वालों को भी यह बात बताई थी.

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इस घटना से कुछ दिन पहले ही दीपक अपने परिवार के साथ पुरी घूम कर आया था. 11 अप्रैल की रात भी वह परिवार के साथ एक पार्टी में गया था और 10 बजे के बाद लौटा था.

दीपक ने अपना परिवार उजाड़ दिया और रिंकी के परिवार की खुशियां छीन लीं. कानून उसे उस के किए की सजा देगा, लेकिन उस के ससुराल वाले और रिंकी के परिवार वाले जीवन भर इस दुख को नहीं भुला पाएंगे. दीपक ने पकड़े जाने पर पुलिस को बताया था कि उस का आत्महत्या करने का प्लान था. इसलिए जेल में अब उस पर कड़ी निगरानी रखी जा रही है.

Crime Story: पाताल लोक का हथौड़ेबाज- भाग 2

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चारों हुईं हथौड़े का शिकार

एक क्वार्टर में 4 लोगों की हत्या होने की बात पूरे शहर में फैल गई. सूचना मिलने पर कदमा थानाप्रभारी से ले कर डीएसपी, एसपी (सिटी) सुभाषचंद्र जाट और एसएसपी डा. एम. तमिलवाणन के अलावा फोरैंसिक टीम मौके पर पहुंच गई.

पुलिस अफसरों ने मौकामुआयना किया. एक कमरे की दीवार पर खून के छींटे मिले. तलाशी के दौरान कमरे में खून लगी हथौड़ी और खून से सना तकिया भी मिला. शराब की एक बोतल भी मिली. फोरैंसिक टीम ने फिंगरप्रिंट लिए और जरूरी सबूत जुटाए.

मौके के हालात से लग रहा था कि वीणा और उस की दोनों बेटियों की हत्या कई घंटे पहले की गई थी. अनुमान लगाया गया कि सुबह करीब 11 बजे के बाद ट्यूशन टीचर रिंकी जब दीपक की बेटियों को पढ़ाने आई होगी, तो उस ने वीणा और दोनों बच्चियों की लाश देख ली होगी. इस पर दीपक ने भेद खुलने के डर से रिंकी को दूसरे कमरे में ले जा कर मार डाला होगा.

रिंकी की हत्या 11 से दोपहर 1 बजे के बीच की गई होगी, क्योंकि करीब एक बजे दीपक ने रोशन की पत्नी आराध्या को लंच पर बुलाने के लिए फोन किया था. 21 साल की रिंकी के अस्तव्यस्त कपड़े देख कर उस से दुष्कर्म किए जाने का अनुमान भी लगाया गया.

पुलिस ने जरूरी जांचपड़ताल और लिखापढ़ी के बाद चारों शव पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भिजवा दिए. पुलिस की कार्रवाई में रात हो गई थी, इसलिए रात में पोस्टमार्टम नहीं हो सके.

चारों हत्याओं में सीधा शक दीपक पर था और उस का कुछ अतापता नहीं था. अधिकारियों ने दीपक के ससुराल वालों से उस के बारे में पूछताछ की. पता चला कि वह उस दिन सुबह ही ससुराल गया था.

ससुर पारसनाथ साहू ने दामाद दीपक से जब बेटी और नातिनों के बारे में पूछा, तो उस ने कहा था कि वे रांची में उस के भाई के घर गई हैं.

पारसनाथ ने पुलिस अफसरों को बताया कि कदमा तीस्ता रोड पर कुछ दिनों से चोरी की वारदातें हो रही थीं. इसलिए बेटी वीणा ने कुछ दिन पहले करीब 5 लाख रुपए के अपने कीमती जेवर सुरक्षा के लिहाज से उन के घर पर रख दिए थे.

दीपक एक दिन पहले 11 अप्रैल की शाम को भी अपनी ससुराल गया था, तब वह बच्चों के साथ खेलता रहा फिर कुछ देर रुक कर चला गया था. इस के बाद दूसरे दिन सुबह वह दोबारा आया, तो उस ने अपने जेवर वापस मांगे. हम ने उसे जेवर दे दिए. जेवर ले कर वह चला गया.

पुलिस ने ससुराल वालों से दीपक का मोबाइल नंबर ले कर उस की लोकेशन पता कराई. करीब 3 बजे की उस की आखिरी लोकेशन जमशेदपुर में ही रमाडा होटल के पास बिष्टुपुर में मिली. फिर उस का मोबाइल बंद हो गया था.

दीपक की बुलेट मोटरसाइकिल भी नहीं मिली. इसलिए अनुमान लगाया गया कि ससुराल से गहने ले कर वह बुलेट से फरार हो गया.

जांचपड़ताल में पुलिस को रात के 10 बज गए. इसलिए क्वार्टर सील कर बाकी जांच अगले दिन करने का फैसला किया गया.

13 अप्रैल को सुबह से ही पुलिस इस मामले की जांचपड़ताल में जुट गई. दीपक के क्वार्टर की तलाशी में एक कमरे से सीमन लगा एक गमछा और रिंकी के कुछ कपड़े मिले. इसी कमरे में पलंग के बौक्स में रिंकी की लाश मिली थी.

जांचपड़ताल में यह भी पता चला कि 12 अप्रैल की सुबह दीपक ससुराल से जो जेवर ले कर आया था, वे जेवर उस ने सुबह करीब साढ़े 10 बजे कदमा उलियान स्थित आरके ज्वैलर्स पर बेच दिए थे.

दीपक ज्वैलर का परिचित था. परिवार के जेवर वह इसी दुकान से बनवाता था. दुकानदार रमेश सोनी से उस ने जमीन खरीदने के लिए जेवर बेचने की बात कही थी. सारे जेवरों का वजन 109 ग्राम था. इन का सौदा 4 लाख 40 हजार रुपए में हुआ. रुपया देने के लिए दुकानदार ने 2-3 घंटे का समय मांगा.

पुलिस ने अनुमान लगाया कि इस के बाद दीपक अपने क्वार्टर पर आ गया होगा. कुछ देर बाद ट्यूशन टीचर रिंकी घोष वहां पहुंची होगी. रिंकी ने कमरे में लाशें देख लीं, तो दीपक ने उस को पकड़ लिया होगा और दुष्कर्म करने के बाद उस की हत्या कर लाश पलंग के बौक्स में छिपा दी होगी.

रिंकी की लाश ठिकाने लगाने के बाद दोपहर करीब डेढ़ बजे दीपक वापस ज्वैलर के पास पहुंचा. ज्वैलर ने उसे 3 लाख रुपए नकद दिए. बाकी पैसे एकदो दिन में देने की बात कही, तो दीपक ने बाकी 1.40 लाख रुपए अपने भाई के बैंक खाते में ट्रांसफर करने को कहा. इस के लिए दुकानदार ने हामी भर ली.

इस के बाद दीपक वापस अपने क्वार्टर पर आया होगा. कुछ देर बाद रोशन अपनी पत्नी, बेटी और साले के साथ लंच के लिए वहां पहुंच गया. वहां दीपक ने अंकित और रोशन पर जानलेवा हमला किया. इस से बच कर वे भाग गए, तो दीपक दोपहर 3 बजे अपने क्वार्टर पर ताला लगा कर बुलेट से फरार हो गया होगा.

शादी कराने वाला ही बना दुश्मन

पुलिस को दीपक के ससुराल वालों से पूछताछ में पता चला कि दीपक का किसी ना किसी बात पर वीणा से झगड़ा होता रहता था. वह अपने पारिवारिक विवाद के लिए रोशन और उस की पत्नी आराध्या को दोषी मानता था.

शायद इसीलिए दीपक ने पत्नी और दोनों बेटियों की हत्या करने के बाद रोशन और आराध्या को जान से मारने की नीयत से ही लंच पर बुलाया था, लेकिन रोशन के साथ उस का साला भी पहुंच गया. 2 पुरुषों के बीच दीपक का हमला कमजोर पड़ गया और रोशन के परिवार की जान बच गई.

ससुराल वालों से ही पता चला कि दीपक अपने बड़े साले विनोद साहू को भी जान से मारने की फिराक में था. उस ने फोन कर जमीन संबंधी कोई बात करने के लिए दोपहर में विनोद को अपने घर बुलाया था, लेकिन विनोद काम में व्यस्त होने के कारण नहीं जा सका था.

विनोद ने कुछ साल पहले किसी लड़की से अफेयर के मामले में दीपक की पिटाई कर दी थी, तब से दीपक उस से रंजिश रखता था.

दीपक के छोटे साले आनंद साहू के बयान पर कदमा थाने में दीपक के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया गया. रोशन ने पहले ही दीपक के खिलाफ जानलेवा हमला करने की शिकायत थाने में दे दी थी. कोल्हान के डीआईजी राजीव रंजन सिंह ने जमशेदपुर पहुंच कर मौकामुआयना किया और रोशन सहित दीपक के ससुराल वालों से पूछताछ की. दूसरी ओर, पुलिस ने पोस्टमार्टम कराने के बाद शव परिजनों को सौंप दिए.

सूचना देने और इतनी बड़ी घटना के बाद भी दीपक के परिवार से कोई भी जमशेदपुर नहीं आया. वीणा और उस की बेटियों के शवों का दाह संस्कार मायके वालों ने किया. रिंकी के शव की अंत्येष्टि उस के घर वालों ने की.

पुलिस की जांच और पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि दीपक ने 12 अप्रैल की सुबह हथौड़े से वार कर पत्नी और बेटियों की हत्या की थी. उस ने वीणा के सिर में 2 जगह और चेहरे पर वार किए थे. फिर तकिए से उस का मुंह दबाया था.

बड़ी बेटी श्रावणी के सिर में पीछे से चोट की गई थी. उस का भी गला दबाया गया था. दीपक सब से ज्यादा प्यार छोटी बेटी दिव्या को करता था. उस के सिर के पीछे तेज चोट मारी गई थी. इस से उस की कई हड्डियां टूट गई थीं.

दीपक को तलाशना जरूरी था. दोस्तों और ससुराल वालों से उस के छिपने के ठिकानों का पता लगा कर पुलिस ने अलगअलग टीमें बनाईं और जमशेदपुर व रांची के अलावा बिहार, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल तक उस की तलाश शुरू कर दी.

कई जगह छापे मारे गए. इस के साथ ही उस की मोटरसाइकिल की तलाश भी शुरू की गई. पुलिस ने दीपक के भाई और बहनों से बात की और उन के मोबाइल नंबरों की जांच की.

ट्यूशन टीचर रिंकी घोष की हत्या के आरोपी को गिरफ्तार करने की मांग को ले कर टाइगर्स क्लब के संस्थापक सदस्य आलोक मुन्ना के नेतृत्व में 15 अप्रैल को कदमा रंकिणी मंदिर से गोल चक्कर तक कैंडल मार्च निकाला गया. इन लोगों की मांग थी कि हत्यारे को पकड़ कर अदालत में स्पीडी ट्रायल चलाया जाए और उसे फांसी दी जाए.

4-5 दिन की भागदौड़ के बाद 16 अप्रैल को दीपक धनबाद में पकड़ा गया. वह 12 अप्रैल की दोपहर जमशेदपुर से बुलेट ले कर निकला और राउरकेला पहुंचा. बुलेट उस ने राउरकेला में छोड़ दी. वहां से टैक्सी ले कर वह पुरी व रांची हो कर 15 अप्रैल को धनबाद पहुंचा, जहां एक होटल में रुका.

दीपक अपने पास रखे पैसों में से डेढ़ लाख रुपए भाई मृत्युंजय के खाते में जमा कराना चाहता था. इस के लिए वह 16 अप्रैल को धनबाद में एक प्राइवेट बैंक में पैसे जमा कराने गया. बैंक में पैसे जमा होते ही दीपक के भाई के मोबाइल पर मैसेज आया.

पुलिस ने दीपक और उस के भाई का मोबाइल पहले ही सर्विलांस पर लगा रखा था. मैसेज आते ही पुलिस को दीपक का सुराग मिल गया. जमशेदपुर पुलिस ने धनबाद पुलिस को सूचना दे दी. धनबाद पुलिस बैंक में पहुंची. इसी दौरान दीपक दोबारा बैंक पहुंचा, तो पुलिस ने उसे पकड़ लिया. पुलिस 16-17 अप्रैल की दरम्यानी रात उसे धनबाद से जमशेदपुर ले आई.

जमशेदपुर में पुलिस ने दीपक से पूछताछ की तो उस के हथौड़ीमार नर पिशाच बनने की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार है.

अगले भाग में पढ़ें- दोस्तों ने ही दिया धोखा

Crime Story: पराई मोहब्बत के लिए दी जान- भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

अरविंद दोहरे अपने काम से शाम को घर लौटा तो उस की पत्नी सरिता के साथ दलबीर सिंह घर में मौजूद था. उस समय दोनों हंसीठिठोली कर रहे थे. उन दोनों को इस तरह करीब देख कर अरविंद का खून खौल उठा. अरविंद को देखते ही दलबीर सिंह तुरंत बाहर चला गया.

उस के जाते ही अरविंद पत्नी पर बरस पड़ा, ‘‘तुम्हारे बारे में जो कुछ सुनने को मिल रहा है, उसे सुन कर अपने आप पर शरम आती है मुझे. मेरी नहीं तो कम से कम परिवार की इज्जत का तो ख्याल करो.’’

‘‘तुम्हें तो लड़ने का बस बहाना चाहिए, जब भी घर आते हो, लड़ने लगते हो. मैं ने भला ऐसा क्या गलत कर दिया, जो मेरे बारे में सुनने को मिल गया.’’ सरिता ने तुनकते हुए कहा तो अरविंद ताव में बोला, ‘‘तुम्हारे और दलबीर के नाजायज रिश्तों की चर्चा पूरे गांव में हो रही है. लोग मुझे अजीब नजरों से देखते हैं. मेरा भाई मुकुंद भी कहता है कि अपनी बीवी को संभालो. सुन कर मेरा सिर शरम से झुक जाता है. आखिर मेरी जिंदगी को तुम क्यों नरक बना रही हो?’’ ‘‘नरक तो तुम ने मेरी जिंदगी बना रखी है. पत्नी को जो सुख चाहिए, तुम ने कभी दिया है मुझे? अपनी कमाई जुआ और शराब में लुटाते हो और बदनाम मुझे कर रहे हो.’’ सरिता  तुनक कर बोली.

पत्नी की बात सुन कर अरविंद का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. उस ने उस की पिटाई करनी शुरू कर दी. वह उसे पीटते हुए बोला, ‘‘साली, बदजात एक तो गलती करती है, ऊपर से मुझ से ही जुबान लड़ाती है.’’

सरिता चीखतीचिल्लाती रही, लेकिन अरविंद के हाथ तभी रुके जब वह पिटतेपिटते बेहाल हो गई. पत्नी की जम कर धुनाई करने के बाद अरविंद बिस्तर पर जा लेटा.

सरिता और अरविंद के बीच लड़ाईझगड़ा और मारपीट कोई नई बात नहीं थी. दोनों के बीच आए दिन ऐसा होता रहता था. उन के झगड़े की वजह था अरविंद का दोस्त दलबीर सिंह.

अरविंद के घर दलबीर सिंह का आनाजाना था. अरविंद को शक था कि सरिता और दलबीर सिंह के बीच नाजायज संबंध हैं. इस बात को ले कर गांव वालों ने भी उस के कान भरे थे. बीवी की किसी भी पुरुष से दोस्ती चाहे जायज हो या नाजायज, कोई भी पति बरदाश्त नहीं कर सकता. अरविंद भी नहीं कर पा रहा था. जब भी उस के दिमाग में शक का कीड़ा कुलबुलाता, वह बेचैन हो जाता था.

उत्तर प्रदेश के औरैया जिले के फफूंद थाना क्षेत्र में एक गांव है लालपुर. अरविंद दोहरे अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता था. उस के परिवार में पत्नी सरिता के अलावा 2 बच्चे थे. अरविंद के पास मामूली सी खेती की जमीन थी. वह जमीन इतनी नहीं थी कि मौजमजे से गुजर हो पाती. फिर भी वह सालों तक हालात से उबरने की जद्दोजहद करता रहा.

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सरिता अकसर अरविंद को कोई और काम करने की सलाह देती थी. लेकिन अरविंद पत्नी की बात को नजरअंदाज करते हुए अपनी खेतीकिसानी में ही खुश था. पत्नी की बात न मानने के कारण ही दोनों में अकसर झगड़ा होता रहता था.

अरविंद अपनी जमीन पर खेती करने के साथसाथ गांव के दूसरे लोगों की जमीन भी बंटाई पर ले लेता था. फिर भी परिवार के भरणपोषण के अलावा वह कुछ नहीं कर पाता था. अगर बाढ़ या सूखे से फसल चौपट हो जाती, तो उसे हाथ मलने के अलावा कुछ नहीं मिल पाता था.

इसी सब के चलते जब अरविंद पर कर्ज हो गया तो वह खेती की देखभाल के साथ फफूंद कस्बे में एक ठेकेदार के पास मजदूरी करने लगा.

वहां से उस का रोजाना घर आना संभव नहीं था, इसलिए वह फफूंद कस्बे में ही किराए का कमरा ले कर रहने लगा. अब वह हफ्ता-15 दिन में ही घर आता और पत्नी के साथ 1-2 रातें बिता कर वापस चला जाता. 30 वर्षीय सरिता उन दिनों उम्र के उस दौर से गुजर रही थी, जब औरत को पुरुष की नजदीकियों की ज्यादा चाहत होती है.

जैसेतैसे कुछ वक्त तो गुजर गया. लेकिन फिर सरिता का जिस्म अंगड़ाइयां लेने लगा. एक रोज उस की नजर दलबीर सिंह पर पड़ी तो उस ने बहाने से उसे घर बुला लिया. दलबीर सिंह गांव के दबंग छोटे सिंह का बड़ा बेटा था. उस की आर्थिक स्थिति मजबूत थी.

दूध के व्यवसाय से वह खूब कमाता था. दलबीर सिंह और उस के पति अरविंद हमउम्र थे. दोनों में खूब पटती थी. अरविंद जब गांव आता था, तो शाम को दोनों बैठ कर शराब पीते थे. सरिता को वह भाभी कहता था. घर के अंदर आते ही सरिता ने पूछा, ‘‘देवरजी, हम से नजरें चुरा कर कहां जा रहे थे?’’

‘‘भाभी, अभीअभी तो घर से आ रहा हूं. खेत की ओर जा रहा था कि आप ने बुला लिया.’’ दलबीर सिंह ने मुसकरा कर जवाब दिया.

उस दिन दलबीर सिंह को सरिता ज्यादा खूबसूरत लगी. उस की निगाहें सरिता के चेहरे पर जम गईं. यही हाल सरिता का भी था. दलबीर सिंह को इस तरह देखते सरिता बोली, ‘‘ऐसे क्या देख रहे हो मुझे. क्या पहली बार देखा है? बोलो, किस सोच में डूबे हो?’’

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‘‘नहीं भाभी, ऐसी कोई बात नहीं है, मैं तो यह देख रहा था कि साधारण मेकअप में भी तुम कितनी सुंदर लग रही हो. अड़ोसपड़ोस में तुम्हारे अलावा और भी हैं, पर तुम जैसी सुंदर कोई नहीं है.’’

‘‘बस… बस रहने दो, बहुत बातें बनाने लगे हो. तुम्हारे भैया तो कभी तारीफ नहीं करते. महीना-15 दिन में आते हैं, वह भी किसी न किसी बात पर झगड़ते रहते हैं.’’

‘‘अरे भाभी, औरत की खूबसूरती सब को रास थोड़े ही आती है. अरविंद भैया तो अनाड़ी हैं. शराब में डूबे रहते हैं. इसलिए तुम्हारी कद्र नहीं करते.’’

‘‘और तुम?’’ सरिता ने आंखें नचाते हुए पूछा.

‘‘मुझे सचमुच तुम्हारी कद्र है भाभी. यकीन न हो तो परख लो. अब मैं तुम्हारी खैरखबर लेने आता रहूंगा. छोटाबड़ा जो भी काम कहोगी, करूंगा.’’ दलबीर सिंह ने सरिता की चिरौरी सी की.

अगले भाग में पढ़ें- पत्नी की इस बेवफाई से अरविंद टूट चुका था

Crime Story: पराई मोहब्बत के लिए दी जान- भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

दलबीर सिंह की यह बात सुन कर सरिता खिलखिला कर हंस पड़ी. फिर बोली, ‘‘तुम आराम से चारपाई पर बैठो. मैं तुम्हारे लिए चाय बनाती हूं.’’

थोड़ी देर में सरिता 2 कप चाय ले आई. दोनों पासपास बैठ कर गपशप लड़ाते हुए चाय पीते रहे और चोरीछिपे एकदूसरे को देखते रहे. दोनों के दिलोदिमाग में हलचल सी मची हुई थी. सच तो यह था कि सरिता दलबीर पर फिदा हो गई थी. वह ही नहीं, दलबीर सिंह भी सरिता का दीवाना बन गया था.

दोनों के दिल एकदूसरे के लिए धड़के तो नजदीकियां खुदबखुद बन गईं. इस के बाद दलबीर सिंह अकसर सरिता से मिलने आने लगा. सरिता को दलबीर सिंह का आना अच्छा लगता था.

जल्द ही वे एकदूसरे से खुल गए और दोनों के बीच हंसीमजाक होने लगा. सरिता चाहती थी कि पहल दलबीर सिंह करे, जबकि दलबीर चाहता था कि जिस्म की भूखी सरिता स्वयं उसे उकसाए.

आखिर जब सरिता से नहीं रहा गया तो एक रोज रात में उस ने दलबीर सिंह को अपने घर रोक लिया. फिर तो उस रात दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं. हर रिश्ता टूट कर बिखर गया और एक नए रिश्ते ने जन्म लिया, जिस का नाम है अवैध संबंधों का रिश्ता.

उस दिन के बाद सरिता और दलबीर सिंह अकसर एकांत में मिलने लगे. लेकिन यह सच है कि ऐसे संबंध ज्यादा दिनों तक छिपते नहीं हैं. उन का भांडा एक न एक दिन फूट ही जाता है. सरिता और दलबीर के साथ भी ऐसा ही हुआ.

एक रात जब सरिता और दलबीर सिंह देह मिलन कर रहे थे तो सरिता की देवरानी आरती ने छत से दोनों को देख लिया. उस ने यह बात अपने पति मुकुंद को बताई. फिर तो यह बात गांव में फैल गई. और उन के नाजायज रिश्तों की चर्चा पूरे गांव में होने लगी.

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सरिता के पति अरविंद दोहरे को जब सरिता और दलबीर सिंह के संबंधों का पता चला तो उस के पैरों तले से जैसे जमीन खिसक गई. उस ने इस बारे में पत्नी व दोस्त दलबीर से बात की तो दोनों मुकर गए और साफसाफ कह दिया कि ऐसी कोई बात नहीं है. गांव के लोग उन्हें बेवजह बदनाम कर रहे हैं.

लेकिन एक रोज अरविंद ने जब दोनों को हंसीठिठोली करते अचानक देख लिया तो उस ने सरिता की पिटाई की तथा दलबीर सिंह को भी फटकारा. लेकिन उन दोनों पर इस का कोई

असर नहीं हुआ. दोनों पहले की तरह ही मिलते रहे. पत्नी की इस बेवफाई से अरविंद टूट चुका था. महीना-15 दिन में जब वह घर आता था तो दलबीर को ले कर सरिता से उस की जम कर तकरार होती थी. कई बार नौबत मारपीट तक आ जाती थी. अरविंद का पूरा परिवार और गांव वाले इस बात को जान गए थे कि दोनों के बीच तनाव सरिता और दलबीर सिंह के नाजायज संबंधों को ले कर है.

अरविंद की जब गांव में ज्यादा बदनामी होने लगी तो उस ने फफूंद कस्बे में रहना जरूरी नहीं समझा और अपने गांव आ कर रहने लगा. पर सरिता तो दलबीर सिंह की दीवानी थी. उसे न तो पति की परवाह थी और न ही परिवार की इज्जत की. वह किसी न किसी बहाने दलबीर से मिल ही लेती थी.

हां, इतना जरूर था कि अब वह उस से घर के बजाय बाहर मिल लेती थी. दरअसल घर से कुछ दूरी पर अरविंद का प्लौट था. इस प्लौट में एक झोपड़ी बनी हुई थी. इसी झोपड़ी में दोनों का मिल लेते थे.

जुलाई, 2020 में सरिता का छोटा बेटा नीरज उर्फ जानू बीमार पड़ गया. उस के इलाज के लिए सरिता ने अपने प्रेमी दलबीर सिंह से पैसे मांगे, लेकिन उस ने धंधे में घाटा होने का बहाना बना कर सरिता को पैसे देने से इनकार कर दिया.

उचित इलाज न मिल पाने से एक महीने बाद सरिता के बेटे जानू की मौत हो गई. बेटे की मौत का सरिता को बेहद दुख हुआ.

विपत्ति के समय आर्थिक मदद न करने के कारण सरिता दलबीर सिंह से नाराज रहने लगी थी. वह न तो स्वयं उस से मिलती और न ही दलबीर को पास फटकने देती. सरिता सोचती, ‘जिस प्रेमी के लिए उस ने पति से विश्वासघात किया. परिवार की मर्यादाओं को ताक पर रख दिया, उसी ने बुरे वक्त पर धोखा दे दिया. समय रहते यदि उस ने आर्थिक मदद की होती, तो आज उस का बेटा जीवित होता.’

सरिता ने प्रेमी से दूरियां बनाईं तो दलबीर सिंह परेशान हो उठा. वह उसे मनाने की कोशिश करता, लेकिन सरिता उसे दुत्कार देती. दलबीर सरिता को भोगने का आदी बन चुका था. उसे सरिता के बिना कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था.

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आखिर जब उस से नहीं रहा गया तो उस ने सरिता को मनाने के लिए उसे प्लौट में बनी झोपड़ी में बुलाया. सरिता वहां पहुंची तो दलबीर ने उस से पूछा, ‘‘सरिता, तुम मुझ से दूरदूर क्यों भागती हो. मैं तुम्हें बेइंतहा प्यार करता हूं.’’

‘‘तुम मुझ से नहीं, मेरे शरीर से प्यार करते हो. तुम्हारा प्यार स्वार्थ का है. सच्चे प्रेमी सुखदुख में एकदूसरे का साथ देते हैं. लेकिन तुम ने हमारे दुख में साथ नहीं दिया. जब तुम स्वार्थी हो, तो अब मैं भी स्वार्थी बन गई हूं. अब मुझे भी तन के बदले धन चाहिए.’’

‘‘क्या तुम प्यार की जगह अपने तन का सौदा करना चाहती हो?’’ दलबीर ने पूछा.

‘‘जब प्यार की जगह स्वार्थ पनप गया हो तो समझ लो कि मैं भी तन का सौदा करना चाहती हूं. अब तुम मेरे शरीर से तभी खेल पाओगे, जब एक लाख रुपया मेरे हाथ में थमाओगे.’’

‘‘यदि रुपयों का इंतजाम न हो पाया तो..?’’ दलबीर ने पूछा.

‘‘…तो मुझे भूल जाना.’’

अगले भाग में पढ़ें- राजेश कुमार सिंह ने सरिता की हत्या का खुलासा किया

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