Crime Story: बहुचर्चित जाह्नवी कुकरेजा हत्याकांड- मौत की पार्टी भाग 3

सौजन्य: मनोहर कहानियाां

दीया उस की बात सुन कर सजग हो गई. फिर दोनों ने मिल कर योजना बनाई कि कुछ ऐसा किया जाए कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.

31 दिसंबर, 2020 को जाह्नवी के पिता प्रकाश कुकरेजा का जन्मदिन था. वे धूमधाम से जन्मदिन की पार्टी मनाने में जुटे हुए थे. घर के अलावा उन के खास मेहमान उस पार्टी में आए हुए थे. पापा की बर्थडे पार्टी पर जाह्नवी सब से ज्यादा खुश थी. खुश हो भी क्यों न, प्रकाश कुकरेजा ने यह पार्टी बेटी के विदेश जाने से पहले आयोजित की थी.

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अभी केक कटने वाला ही था कि उसी बीच जाह्नवी का बौयफ्रैंड श्री जोगधनकर और उस की बेस्ट फ्रैंड दीया पडनकर वहां आ गई. दोनों कुछ देर पार्टी में रुके. फिर दोनों ने जाह्नवी से कहा कि नए साल की खुशी में भगवती हाइट्स में पार्टी रखी गई है, चलो मजे करेंगे वहां मिल कर. और भी फ्रैंड्स आ रहे हैं वहां. जाह्नवी घर की पार्टी बीच में छोड़ कर बाहर की पार्टी में जाने के लिए तैयार हो गई.

बातों में फंसा कर ले गए थे आरोपी

जाह्नवी जानती थी कि आज उसे घर से बाहर जाने की परमिशन नहीं मिलेगी तो उस ने श्री जोगधनकर और दीया को समझाया कि वे पार्टी में चलने के लिए मेरे मम्मीपापा से बात करें. दोनों ने वैसा ही किया, जैसा जाह्नवी ने कहा था. जाह्नवी की मां ने उसे पार्टी में जाने की इजाजत दे दी. तीनों खुश हुए और पार्टी एंजौय करने मस्तानी चाल में भगवती हाइट्स की ओर चल दिए.

भगवती हाइट्स के 15वें फ्लोर पर पार्टी चल रही थी. पार्टी इसी बिल्डिंग में दूसरे माले पर रहने वाले यश आहूजा ने आयोजित की थी. डीजे जोरजोर से बज रहा था. सभी नशे में चूर हो, मस्ती में झूम रहे थे, डांस कर रहे थे. जोगधनकर, दीया और जाह्नवी भी डांस करने लगे. डांस करतेकरते अचानक से जोगधनकर और दीया पार्टी से गायब हो गए थे.

जाह्नवी को अचानक होश आया तो वह दोनों को ढूंढने लगी. वहां न तो जोगधनकर था और न ही दीया. वह सोचने लगी कि अचानक दोनों कहां जा सकते हैं. तभी उस के दिमाग की घंटी बजी कि कहीं दोनों कोई गुल तो नहीं खिला रहे हैं. मन में यह खयाल आते ही जाह्नवी पागल हो गई और डांस छोड़ कर दोनों को खोजने में जुट गई.

वह सीढि़यों से कई मंजिल नीचे उतरी, लेकिन दोनों वहां नहीं थे. फिर वह उन्हें खोजते हुए ऊपर 16वें फ्लोर पर आई. वह छत पर खोजते हुए वहां बनी पानी के टंकी के पास पहुंची तो वहां का नजारा देख कर सन्न रह गई.

श्री जोगधनकर और दीया पडनकर दोनों एकदूसरे में खोए हुए थे. उन्हें इस अवस्था में देख कर जाह्नवी जोर से चीखी. उस की चीख सुन कर दोनों सकपका गए और अपनेअपने कपड़े दुरुस्त कर जाह्नवी के सामने हाथ जोड़ कर किसी से न बताने की विनती करने लगे.

जाह्नवी ने उन की एक न सुनी. तीनों के बीच खूब झगड़ा हुआ. एकदूसरे से हाथापाई भी हो गई. उस के बाद जाह्नवी रोती हुई सीढि़यों से नीचे उतरने लगी. उधर पार्टी में म्यूजिक जोर से बजने के कारण उन के झगड़े की आवाज किसी को सुनाई नहीं दी. दोनों की पोल जाह्नवी किसी के सामने खोल न दे, यह सोच कर दोनों उस के पीछेपीछे हो लिए.

सीसीटीवी में हो गए थे कैद

जाह्नवी, श्री जोगधनकर और दीया पडनकर के सीढि़यों से नीचे उतरने की फुटेज सीसीटीवी में कैद हो गई थी. उस समय रात के साढ़े 12 बज रहे थे. अपनी करतूत छिपाने के लिए श्री जोगधनकर और दीया ने पांचवें फ्लोर से दूसरे फ्लोर तक जाह्नवी का सिर सीढि़यों की रेलिंग से लड़ा कर मौत के घाट उतार दिया. उस के बाद उसे दूसरे फ्लोर से उठा कर नीचे फेंक दिया. इस झगड़े में जाह्नवी अपने बचाव के लिए श्री और दीया से लड़ी थी, जिस में उन दोनों को भी चोटें आई थीं.

जाह्नवी को मौत के घाट उतारने के बाद दोनों पुलिस से बचने के लिए अस्पताल में जा कर भरती हो गए थे. लेकिन मुंबई पुलिस और फोरैंसिक जांच ने उन की कलई खोल दी थी. मारपीट के दौरान जाह्नवी के शरीर पर कुल 48 चोटें पाई गई थीं. फोरैंसिक जांच में जोगधनकर और दीया के कपड़ों पर जाह्नवी के खून के धब्बे भी पाए गए थे.

बहरहाल, श्री जोगधनकर और दीया पडनकर जाह्नवी की हत्या के जुर्म में सलाखों के पीछे कैद थे. पुलिस ने दोनों आरोपितों के खिलाफ 30 मार्च, 2021 को अदालत में 600 पेज का आरोप पत्र दाखिल कर दिया था.

इस बीच श्री जोगधनकर और दीया के वकीलों ने दोनों की जमानत के लिए बांद्रा अदालत में याचिका दायर की थी, लेकिन जाह्नवी के तेजतर्रार वकील त्रिमुखे ने उन की याचिका खारिज करा दी. कथा लिखे जाने तक दोनों आरोपी जेल में बंद थे.

—कथा जाह्नवी के वकील और पुलिस सूत्रों पर आधार

Crime Story: एंटीलिया को दहलाने में हिल गई सरकार- भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

एनआईए और महाराष्ट्र एटीएस की जांच में रोजाना नई बातें सामने आने लगीं. एटीएस ने हिरेन की मौत के मामले में 2 दिन तक वाझे से लगातार पूछताछ की. वहीं, एनआईए की जांच शुरू होते ही 11 मार्च को गृहमंत्री अनिल देशमुख ने वाझे के मुंबई से बाहर तबादले का ऐलान कर दिया.

स्कौर्पियो वाझे ने खड़ी की थी

एनआईए को शुरुआती जांच में कई महत्त्वपूर्ण तथ्य और सबूत मिले. एनआईए ने अंबानी के आवास को जानेवाले रास्तों पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी, तो पता चला कि 24-25 फरवरी की दरम्यानी रात वाझे वह स्कौर्पियो ले कर अंबानी के आवास के बाहर पहुंचा था.

स्कौर्पियो के पीछे मुंबई पुलिस की एक इनोवा चल रही थी. स्कौर्पियो गाड़ी वहां लावारिस छोड़ने के बाद वाझे उस इनोवा कार में बैठ कर चला गया.

वाझे को शायद एनआईए और एटीएस की जांच अपने खिलाफ जाने का अहसास हो गया था. ठाणे की सत्र अदालत से अग्रिम जमानत की अरजी खारिज होने के दूसरे दिन उस ने 13 मार्च को अपना वाट्सऐप स्टेटस अपडेट करते हुए लिखा, ‘दुनिया को अलविदा कहने का समय नजदीक आ रहा है.’

उसी दिन एनआईए ने वाझे को हिरासत में ले कर कई घंटे तक पूछताछ की. फिर 13 मार्च की रात उसे गिरफ्तार कर लिया. एनआईए ने वाझे के मोबाइल और आईपैड अपने कब्जे में ले लिए. उस के औफिस पर भी छापेमारी की गई.

सीसीटीवी फुटेज की जांच में सामने आया कि अंबानी के आवास एंटीलिया के सामने मिली मनसुख हिरेन की स्कौर्पियो चोरी नहीं हुई थी, बल्कि यह गाड़ी 18 से 24 फरवरी के बीच कई बार वाझे के आवास की सोसायटी में दिखाई दी थी.

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एनआईए की जांच में यह बात भी सामने आई कि वाझे और हिरेन एकदूसरे से अच्छी तरह परिचित थे. हिरेन ने अपनी हलके हरे रंग की महिंद्रा स्कौर्पियो गाड़ी नवंबर 2020 में वाझे को किसी काम के लिए दी थी. वाझे ने स्कौर्पियो में कोई खराबी आने पर 5 फरवरी, 2021 को यह गाड़ी हिरेन को वापस लौटा दी थी.

हिरेन ने रिश्तेदार के पास जाते समय 17 फरवरी को स्टीयरिंग जाम हो जाने पर अपनी स्कौर्पियो विक्रोली में ईस्टर्न एक्सप्रेस हाइवे पर छोड़ दी थी. अगले दिन वह विक्रोली पहुंचा, तो वहां गाड़ी नहीं मिली.

तब उस ने विक्रोली थाने में शिकायत दी. पुलिस ने शिकायत दर्ज नहीं की, तो वाझे ने विक्रोली थाने फोन कर शिकायत दर्ज करने को कहा था.

जांच के दौरान एनआईए ने मुंबई पुलिस कमिश्नरेट के पास क्राफोर्ड मार्केट की एक पार्किंग से वाझे की काली मर्सिडीज बरामद की, जिस में 5 लाख रुपए नकद और नोट गिनने की मशीन के अलावा मनसुख हिरेन की उस स्कौर्पियो की असली नंबर प्लेट भी रखी मिली, जिस में अंबानी के आवास के सामने से जिलेटिन की छड़ें बरामद हुई थीं. इस के बाद वाझे के साकेत स्थित मकान से एक और लग्जरी कार लैंड क्रूजर बरामद की गई.

इस बीच, महाराष्ट्र सरकार ने 17 मार्च को मुंबई के पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह का तबादला होमगार्ड्स में कर दिया. सिंह के तबादले पर गृहमंत्री अनिल देशमुख ने कहा कि परमबीर सिंह को इसलिए हटाया गया, क्योंकि अंबानी मामले की जांच में गंभीर लापरवाहियां पाई गई थीं.

परमबीर सिंह को हटाने पर मुंबई पुलिस कमिश्नरेट के 146 साल के इतिहास में सब से गंभीर संकट पैदा हो गया.

तबादले से तिलमिलाए परमबीर सिंह ने महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ जहर उगलना शुरू कर दिया. उन्होंने 20 मार्च को मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को लिखे पत्र में यह सनसनीखेज आरोप लगाया कि गृहमंत्री अनिल देशमुख ने वाझे जैसे पुलिस अधिकारियों को मुंबई के 1750 बार, रेस्तरां और दूसरे स्रोतों से हर महीने सौ करोड़ रुपए की उगाही करने के लिए कहा था.

इस सनसनीखेज धमाके से महाराष्ट्र सरकार हिल जरूर गई, लेकिन राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के कोटे वाले गृहमंत्री अनिल देशमुख को अपनी पार्टी के मुखिया शरद पवार से राजनीतिक अभयदान मिल गया.

मुख्यमंत्री की ओर से कोई काररवाई नहीं किए जाने पर परमबीर सिंह ने 22 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर अनिल देशमुख के खिलाफ सीबीआई जांच की मांग की.

भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि एक पूर्व पुलिस कमिश्नर अपने राज्य के गृहमंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की सीबीआई से जांच के लिए सब से बड़ी अदालत पहुंचा था.

हिरेन की हत्या में गिरफ्तारी

इस से एक दिन पहले 21 मार्च को एटीएस ने हिरेन की मौत की गुत्थी सुलझाने का दावा करते हुए एक पूर्व पुलिस कांस्टेबल विनायक शिंदे और एक क्रिकेट सटोरिए नरेश गोरे को गिरफ्तार कर लिया. एटीएस ने इस मामले में वाझे को मुख्य संदिग्ध बताया. बाद में एनआईए ने अदालत के जरिए हिरेन हत्या मामले की जांच भी अपने हाथ में ले ली.

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एनआईए की जांच जैसेजैसे आगे बढ़ती गई, वैसेवैसे नएनए राज सामने आते गए. इन में एंटीलिया के सामने विस्फोटकों से भरी स्कौर्पियो खड़ी करने और मनसुख हिरेन की हत्या की परतें खुलती गईं.

सचिन वाझे 13 मार्च से 27 दिन तक एनआईए की हिरासत में रहा. एनआईए अदालत ने 9 अप्रैल को उसे न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया. इस के बाद वाझे का नया ठिकाना मुंबई की तालोजा जेल की बैरक बन गई.

एनआईए की जांच में खुली परतों और सामने आए सबूतों के आधार पर जो कहानी उभर कर सामने आई, वह सचिन वाझे की ओर से शतरंज की बिसात पर सब से बड़ा खिलाड़ी बनने के लिए पासा फेंकने की थी, जिस में दांव उलटा पड़ने से वह मात खा गया था.

अपराधियों में खौफ का पर्याय माने जाने वाले मुंबई क्राइम ब्रांच के सब से तेजतर्रार अफसर सचिन वाझे की दोस्ती सभी तरह के लोगों से थी. इन में शरीफ भी थे और बदमाश भी. ठाणे इलाके में कार डेकोरेशन का काम करने वाला मनसुख हिरेन भी वाझे के दोस्तों में था.

हिरेन कोई गुंडाबदमाश नहीं था. न ही वह कोई गैरकानूनी काम करता था. वह तो वाझे की दिलेरी का प्रशंसक था. इसीलिए वाझे से उस की दोस्ती थी. वाझे कभीकभार कुछ दिनों के लिए उस की गाड़ी ले लेता था. हिरेन को इस से कोई फर्क नहीं पड़ता था.

वाझे ने 16 साल तक निलंबित रहने के बाद 6 जून, 2020 को ही मुंबई पुलिस में अपनी दूसरी पारी शुरू की थी. वह अपनी पहली पारी में एनकाउंटर स्पैशलिस्ट के रूप में 63 बदमाशों को मौत की नींद सुला चुका था.

दोबारा खाकी वर्दी और सरकारी पिस्तौल मिलने पर वाझे ने मुंबई क्राइम ब्रांच की सीआईयू का मुखिया बन कर जल्दी ही अपना खौफ कायम कर लिया. वाझे की एक खासियत यह थी कि वह छोटेमोटे केस में हाथ नहीं डालता था. उसे बड़े अपराधियों, फिल्म वालों और दौलत वालों के केसों की जांच करने में ज्यादा आनंद आता था.

अगले भाग में पढ़ें- सचिन वाझे: मोहरा या बड़ा खिलाड़ी बनने की तमन्ना

Crime Story: एंटीलिया को दहलाने में हिल गई सरकार- भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिख कर मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह ने 20 मार्च को जब आरोप लगाया कि गृहमंत्री अनिल देशमुख ने सचिन वाझे को हर महीने बार, रेस्तरां और दूसरे स्रोतों से 100 करोड़ रुपए उगाहने के निर्देश दिए थे, तो आम लोगों को भले ही खाकी और खादी की ऐसी लूटखसोट पर हैरानी हुई हो, लेकिन राजनीति करने वालों और नौकरशाहों को इस पर कतई आश्चर्य नहीं हुआ था.

करीब एक करोड़ 20 लाख लोगों की आबादी वाले मुंबई महानगर की जान फिल्म इंडस्ट्री तो है ही, साथ ही डेढ़ हजार से ज्यादा बार, रेस्तरां और नाइट क्लब भी हैं. कहा जाता है कि मुंबई कभी नहीं सोती. यह सच भी है. दुनिया का ऐसा कोई कालासफेद धंधा नहीं है, जो मुंबई में न होता हो. जो मुंबई को समझ गया, उसे मुंबई ने गले लगा लिया और वह मालामाल होता चला गया.

शायद इसीलिए मुंबई में अपराधी गिरोह पनपते रहे. संगठित अपराधियों ने बेताज बादशाह बनने के लिए एक से बढ़ कर एक अपराध किए. आजादी के बाद सब से पहले कुख्यात तस्कर के रूप में हाजी मस्तान का नाम उभर कर सामने आया था.

बाद में अंडरवर्ल्ड के अपराधियों के आने से गैंगवार और खूनखराबा होने लगा. बड़े उद्योगपतियों, कारोबारियों और फिल्म वालों से वसूली की जाने लगी. यह लगभग 21वीं सदी की शुरुआत तक चलता रहा.

इस के बाद सरकारों की सख्ती से अंडरवर्ल्ड के सरगनाओं ने पड़ोसी देशों में अपने ठिकाने बना लिए, लेकिन उन के गुर्गे मुंबई में लोगों को डरातेधमकाते और वही तमाम अपराध करते रहे, जो पहले होते थे. फर्क इतना था कि इन अपराधों में कुछ पुलिस वाले भी शामिल होते चले गए. इस के भयानक रूप कई बार सामने आए हैं. अब एक नया रूप निलंबित सहायक पुलिस निरीक्षक सचिन वाझे के कारनामों से सामने आया है.

सचिन वाझे महाराष्ट्र पुलिस का कोई बहुत बड़ा अफसर नहीं है. वह सहायक पुलिस निरीक्षक है. दूसरे राज्यों में यह पद एक थानेदार के बराबर होता है. एक थानेदार की हैसियत वाला सचिन वाझे मुंबई पुलिस में सब से ज्यादा रुतबेदार और ताकतवर था.

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पुलिस महकमे के प्रोटोकाल के हिसाब से उसे अपराध शाखा में अपने वरिष्ठ अधिकारियों एसीपी, डीसीपी, एडिशनल सीपी और जौइंट सीपी को रिपोर्ट करनी चाहिए थी, लेकिन सरकार के वरदहस्त से वह इन अफसरों को कुछ नहीं समझता था. पुलिस में तत्कालीन कमिश्नर परमबीर सिंह उस के बौस थे और उद्धव सरकार में गृहमंत्री अनिल देशमुख उस के संरक्षक.

सचिन वाझे ‘खलनायक’ है या ‘मोहरा’ या फिर ‘सब से बड़ा खिलाड़ी’, यह बात मुंबई पुलिस के अलावा देश की प्रमुख सुरक्षा एजेंसियों एनआईए और सीबीआई की जांच से भी अभी तक साफ नहीं हुई, लेकिन जो परतें खुली हैं, उन से जरूर सामने आ गया है कि वह मंझा हुआ खिलाड़ी है.

वाझे ‘खलनायक’ कैसे बना, यह कहानी बहुत लंबी है. जबकि नई कहानी की शुरुआत इसी साल 25 फरवरी को हुई.

अंबानी परिवार था निशाना

उस दिन दक्षिण मुंबई के पैडर रोड पर एशिया के सब से अमीर व्यक्ति मुकेश अंबानी के 27 मंजिला आवास ‘एंटीलिया’ के सामने लावारिस हालत में एक स्कौर्पियो गाड़ी खड़ी मिली थी. उस गाड़ी के ड्राइवर या मालिक का पता नहीं लगने पर अंबानी के सुरक्षाकर्मियों ने गामदेवी पुलिस को सूचना दी.

पुलिस ने पहुंच कर गाड़ी का एक शीशा तोड़ कर अंदर देखा. गाड़ी के अंदर जिलेटिन की छड़ें थीं. तलाशी ली गई तो उस में जिलेटिन की 2 किलो 600 ग्राम वजन की 20 छड़ें मिलीं.

जिलेटिन की छड़ें विस्फोट करने के काम आती हैं, लेकिन धमाके के लिए इन छड़ों के साथ कोई डेटोनेटर नहीं था. इन छड़ों के साथ पुलिस को कागज का एक पुर्जा भी मिला. टाइप किए हुए इस पुर्जे पर हिंदी में लिखा था, ‘ये तो सिर्फ एक ट्रेलर है. नीता भाभी, मुकेश भैया फैमिली, ये तो सिर्फ एक झलक है. अगली बार ये सामान पूरा हो कर तुम्हारे पास आएगा.’

पुलिस ने स्कौर्पियो सहित जिलेटिन की छड़ें और धमकी भरा पत्र जब्त कर लिया. अंबानी के आवास की सुरक्षा सीआरपीएफ संभालती है. मुकेश अंबानी को जेड प्लस और उन की पत्नी नीता को वाई श्रेणी की सुरक्षा मिली हुई है.

अंबानी की सुरक्षा से जुड़ा मामला होने के कारण आला अफसरों ने इस की जांच मुंबई पुलिस की क्राइम ब्रांच की इंटेलिजेंस यूनिट के प्रमुख सचिन वाझे को सौंप दी. जांचपड़ताल में उस स्कौर्पियो पर लगी नंबर प्लेट नकली निकली. उस पर लिखा नंबर अंबानी परिवार के सुरक्षा काफिले में शामिल गाडि़यों जैसा था.

दूसरे दिन ही पुलिस को पता लग गया कि स्कौर्पियो का मालिक मनसुख हिरेन है. पुलिस ने हिरेन को तलब किया. उस ने बताया कि 18 फरवरी को उस की गाड़ी चोरी हो गई थी. उस ने पुलिस में इस की शिकायत भी दर्ज करा दी थी. बाद में हिरेन ने वाझे के कहने पर मुंबई पुलिस के आला अफसरों को पत्र लिख कर आरोप लगाया कि पुलिस उसे एंटीलिया मामले में बेवजह परेशान कर रही है, क्योंकि उस की गाड़ी चोरी हो गई थी.

इसी दौरान पहली मार्च को सोशल मीडिया ऐप टेलीग्राम के एक चैनल के पोस्ट में अंबानी के घर के बाहर विस्फोटक रखने के लिए जैश उल हिंद नामक आतंकी संगठन ने खुद को जिम्मेदार बताया. लेकिन इस के अगले ही दिन दिल्ली पुलिस ने कहा कि जैश उल हिंद नाम का कोई आतंकी संगठन है ही नहीं.

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पुलिस इस मामले की जांच कर ही रही थी कि 4 मार्च को मनसुख हिरेन लापता हो गए. हिरेन घर पर अपनी पत्नी विमला से कह कर गए थे कि तावड़े नाम के किसी पुलिस वाले का फोन आया है, उस ने पूछताछ के लिए बुलाया है.

इस के बाद हिरेन वापस घर नहीं लौटे. पत्नी विमला ने रात को उन्हें फोन किया, तो उन का मोबाइल बंद मिला.

इस के अगले ही दिन 5 मार्च को हिरेन की लाश उत्तरपश्चिम मुंबई के रेतीबंदर की मुंब्रा खाड़ी में तैरती हुई मिली. उन के हाथ बंधे हुए थे और मुंह में कई रुमाल ठूंसे हुए थे. इसे ले कर ठाणे पुलिस ने दुर्घटना में मौत का मामला दर्ज किया.

हिरेन की पत्नी विमला ने अपने पति की हत्या करवाने का आरोप वाझे पर लगाया. करीब 49 साल के मनसुख हिरेन कार डेकोरेशन का काम करते थे. हिरेन की पत्नी की शिकायत पर पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज कर लिया.

हिरेन की हत्या हो जाने से यह मामला और पेचीदा हो गया. इस के बाद महाराष्ट्र सरकार ने इस मामले की जांच पुलिस के आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) को सौंप दी. दूसरी ओर, अंबानी परिवार को धमकी देने के मामले में आतंकी संगठन का नाम आने के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 8 मार्च को इस मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंप दी.

अगले भाग में पढ़ें- हिरेन की हत्या में हुई गिरफ्तारी

Crime Story: एंटीलिया को दहलाने में हिल गई सरकार- भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

दूसरी पारी में वाझे ने जब खाकी वर्दी पहनी, तभी सोच लिया था कि इस बार बड़े काम करेगा. उस ने दिलीप छाबडि़या और रिपब्लिक भारत टीवी चैनल के प्रधान संपादक अर्नब गोस्वामी जैसे बड़े लोगों पर हाथ डाले, तो मुंबई में फिर से उस के चर्चे होने लगे.

वाझे इस बार ‘बड़े खेल’ करना चाहता था. इसीलिए उस ने अंबानी परिवार को धमकाने के मकसद से उन के आवास के सामने जिलेटिन की छड़ों से भरी गाड़ी रखने की साजिश रची. इस साजिश में उस ने हिरेन के अलावा अपने महकमे के कुछ नएपुराने लोगों को भी शामिल किया. वाझे ने हिरेन को मोटी रकम देने का वादा किया था.

इसी साजिश के तहत 17 फरवरी को हिरेन की स्कौर्पियो चोरी होने का नाटक रचा गया. जिलेटिन की छड़ें रखने के बाद इस स्कौर्पियो को 24-25 फरवरी की दरम्यानी रात अंबानी के आवास एंटीलिया के बाहर लावारिस हालत में छोड़ दिया गया.

अपने उच्चाधिकारियों से कह कर वाझे ने एंटीलिया केस की जांच खुद अपने हाथ में ले ली. उस ने हिरेन और साजिश में शामिल दूसरे लोगों को यह भरोसा दिलाया कि जांच में वह किसी पर भी आंच नहीं आने देगा. लेकिन बाद में यह मामला विपक्ष ने गरमा दिया, जिस से हालात विपरीत होते चले गए.

वाझे ने अपने हाथ से बाजी निकलते देखी, तो उसे डर हुआ कि हिरेन उस का भांडा फोड़ सकता है. एंटीलिया मामले की साजिश की सब से कमजोर कड़ी हिरेन ही था. इसलिए वाझे ने एक अपराध पर परदा डालने के लिए दूसरा अपराध करने की साजिश रची. उस ने हिरेन को ही ठिकाने लगाने का फैसला किया ताकि न रहे बांस और न बजे बांसुरी.

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करा दी हिरेन की हत्या

सचिन वाझे ने पूर्व कांस्टेबल विनायक शिंदे और क्रिकेट सटोरिए नरेश गोरे सहित कुछ दूसरे लोगों के सहयोग से 4 मार्च की रात हिरेन की हत्या करवा दी. वाझे के कहने पर शिंदे ने पुलिस अधिकारी तावड़े के नाम से हिरेन को फोन कर के पूछताछ के लिए बुलाया. उसी रात हिरेन को मार कर मुंब्रा खाड़ी में फेंक दिया गया. हिरेन को ठिकाने लगवाने के बाद वाझे जानबूझ कर एक डांस बार की जांच करने गया था.

एंटीलिया केस और हिरेन की हत्या के मामले में बाद में एनआईए ने 10 अप्रैल को वाझे के सब से करीबी सहायक पुलिस निरीक्षक रियाजुद्दीन काजी को गिरफ्तार कर लिया. काजी से एनआईए ने मार्च के महीने में दसियों बार पूछताछ की थी. उस के खिलाफ कई अहम सबूत मिले. उस ने वाझे के आपराधिक सबूतों को नष्ट किया था. उस की सोसायटी में कई बार खड़ी रही वाझे की स्कौर्पियो के फुटेज निकाल कर उसी ने नष्ट किए थे.

एनआईए ने वाझे की महिला मित्र मीना जार्ज को भी जांच के दायरे में रख कर कई बार पूछताछ की. कहा जाता है कि वह वाझे की काली कमाई का हिसाबकिताब रखती थी. वाझे एक होटल में बैठ कर अपने काले कारनामों की योजना बनाता था. इसी होटल में वह अपने विश्वस्त लोगों से मिलता भी था.

पता चला कि वाझे 16 से 20 फरवरी के बीच नरीमन पौइंट के सब से आलीशान होटल ट्राइडेंट में रुका था. वाझे ने इस होटल में फरजी आधार कार्ड से बुकिंग कराई थी.

महाराष्ट्र एटीएस और एनआईए ने वाझे की 8 लग्जरी कारों के अलावा बैंकों में लाखों रुपए के लेनदेन के सबूत हासिल किए हैं. एक बैंक खाते में डेढ़ करोड़ रुपए जमा होने का पता चला है. उसे सर्विस रिवौल्वर के लिए दी गई 25 गोलियां कम मिलीं, जबकि 62 बेनामी कारतूस मिले. एक डायरी भी बरामद की गई है, जिस में अवैध वसूली और बड़े लोगों को ‘नजराना’ देने का हिसाबकिताब था.

अब इस मामले की जांच में सीबीआई भी जुड़ गई है. बौंबे हाईकोर्ट ने पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह की याचिका पर महाराष्ट्र के पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख के खिलाफ सीबीआई को जांच करने के आदेश दिए हैं. हाईकोर्ट का आदेश होने पर देशमुख ने 5 अप्रैल को गृहमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था.

एंटीलिया केस से शुरू हुए मामलों की जांच सीबीआई और एनआईए कर रही है. जबकि महाराष्ट्र एटीएस ने भी अपनी जांच बंद नहीं की है. हिरेन की स्कौर्पियो चोरी के मामले की जांच मुंबई पुलिस अलग से कर रही है.

एनआईए की पूछताछ में यह बात भी सामने आई है कि अंबानी के आवास के सामने विस्फोटकों से भरी स्कौर्पियो खड़ी करने के बाद वाझे ने एक बड़े एनकाउंटर की योजना बनाई थी. इस में वाझे कुछ लोगों का एनकाउंटर कर पूरे मामले को उन के सिर मढ़ने वाला था.

इस के लिए औरंगाबाद से चोरी एक मारुति ईको कार का उपयोग किया जाना था. आतंकी संगठन जैश उल हिंद के जिम्मेदारी लेने का मामला भी वाझे की ही चाल थी. वाझे को यह उम्मीद नहीं थी कि एनआईए की एंट्री इतनी जल्दी हो जाएगी. एनआईए की एंट्री के साथ ही वाझे का खेल बिगड़ने लग गया था.

इस कहानी में 3 मुख्य किरदार हैं— अनिल देशमुख, परमबीर सिंह और सचिन वाझे. इन में सब से अहम सचिन वाझे और उस की मित्र मंडली है. अब तीनों ही संकट में फंसे हुए हैं और तीनों की ही अलगअलग स्तरों पर जांच चल रही है. वाझे को नौकरी से बर्खास्त करने की प्रक्रिया चल रही है.

सचिन वाझे: मोहरा या बड़ा खिलाड़ी बनने की तमन्ना

करीब 2 महीने की जांचपड़ताल के बाद भी इस सवाल का जवाब सामने नहीं आया कि वाझे का अंबानी परिवार को धमकाने का मकसद अवैध रूप से धन वसूली था या कुछ और?

माना यही जा रहा है कि वाझे ने यह खेल अवैध वसूली के लिए खेला था. इस खेल के पीछे किसी पुलिस अधिकारी या नेता का हाथ था या फिर वाझे खुद अपने लिए वसूली करना चाहता था, यह पहेली भी नहीं सुलझी है.

अगले भाग में पढ़ें- वाझे का शिवसेना से  क्या नाता था

Crime Story: एंटीलिया को दहलाने में हिल गई सरकार- भाग 4

सौजन्य- मनोहर कहानियां

जांच अभी चल रही है. जांच का ऊंट किस करवट बैठेगा, अभी कहना मुश्किल है. जांच में महाराष्ट्र की ठाकरे सरकार की सांसें अटकी हुई हैं. पता नहीं, कब चूलें हिल जाएं? भाजपा भी मौके की तलाश में गिद्धदृष्टि जमाए हुए है.

अभी सचिन वाझे ही खलनायक और सब से बड़े खिलाड़ी के रूप में सामने आया है. करीब 52 साल के पतलेदुबले सचिन वाझे को पहली नजर में देख कर कोई यकीन नहीं कर सकता कि इस आदमी ने दाऊद इब्राहिम के 3 दरजन शूटरों को मौत के घाट उतारा होगा.

वाझे से दाऊद तो दबता ही था, मुंबई के सट्टेबाज, ड्रग तस्कर, डांस बार मालिक और बड़ेबड़े बिल्डर भी घबराते थे. अपराधियों और पैसे वालों में उस का खौफ था. खौफ का कारण उस का दिमाग, तीन सितारों वाली खाकी वर्दी और हाथ में भरी रहने वाली पिस्तौल थी.

इसी खौफ के पीछे वाझे और उस की मंडली की मुठभेड़ों के झूठेसच्चे किस्से भी थे, जो दुर्दांत अपराधियों के चेहरे पर पसीने ला देते थे. इसी कारण उस ने अपने अफसरों और सरकार में दबदबा बना लिया था. वाझे के पुलिस महकमे में इतना पावरफुल बनने की कहानी काफी लंबी है.

महाराष्ट्र के कोल्हापुर शहर के एक स्थानीय नेता का बेटा सचिन क्रिकेटर और कालेज टीम का विकेटकीपर था. वह महाराष्ट्र पुलिस में भरती हुए 1990 बैच के पुलिस सबइंसपेक्टरों में से एक था. वाझे की पहली पोस्टिंग गढ़ चिरौली के माओवाद प्रभावित इलाके में हुई थी. 2 साल बाद उसे ठाणे शहर पुलिस में शिफ्ट कर दिया गया.

2000 के दशक में वह सीनियर पुलिस इंस्पेक्टर प्रदीप शर्मा के संपर्क में आया. प्रदीप को तब ‘एनकाउंटर स्पैशलिस्ट’ के रूप में जाना जाता था. ये स्पैशलिस्ट मुंबई पुलिस की अपराध शाखा के क्रिमिनल इंटेलिजेंस यूनिट (सीआईयू) के सदस्य थे, जो सीधे पुलिस कमिश्नर और संयुक्त पुलिस कमिश्नर (अपराध) को रिपोर्ट करते थे.

सीआईयू को तब अंडरवर्ल्ड की बढ़ती ताकत और उन के अपराधों पर लगाम लगाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. साथ आने के बाद वाझे प्रदीप शर्मा का बेहद करीबी बन गया. प्रदीप की टीम में एक एनकाउंटर स्पैशलिस्ट दया नायक पहले से थे. दया नायक के जीवन पर रामगोपाल वर्मा ने फिल्म ‘अब तक छप्पन’ बनाई थी.

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मुंबई पुलिस में सब से ज्यादा 113 एनकाउंटर प्रदीप शर्मा ने किए हैं. वाझे और उस की टीम ने 63 से ज्यादा एनकाउंटर किए. मुन्ना नेपाली जैसे कुख्यात गैंगस्टर को ठिकाने लगाने के बाद वह शोहरत की बुलंदियों पर पहुंच गया था. सन 2002 में मुंबई के घाटकोपर में बेस्ट की बस में हुए बम विस्फोट मामले के संदिग्ध आरोपी सौफ्टवेयर इंजीनियर ख्वाजा यूनुस की पुलिस हिरासत में हुई मौत को ले कर पुलिस टीम का नेतृत्व करने वाला सचिन वाझे फंस गया था.

चर्चा रही कि यूनुस को हिरासत में मार दिया गया और उस की लाश नाले में फेंक दी गई थी. इस मामले में वाझे को 2004 में निलंबित कर दिया गया. उस ने 2006 में इस्तीफा दे दिया लेकिन जांच लंबित होने के कारण इस्तीफा स्वीकार नहीं किया गया.

वाझे ने 2008 में दशहरा रैली के मौके पर बड़ी धूमधाम के साथ शिवसेना का दामन थाम लिया था. तब शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने अपने निवास मातोश्री पर उस का स्वागत किया था.

वाझे का शिवसेना से नाता

वाझे जब पुलिस की नौकरी की पहली पारी खेल रहा था, तभी से उस के महाराष्ट्र की सब से ताकतवर शख्सियत बाला साहेब ठाकरे से अच्छे संबंध थे. इसीलिए वाझे की शिवसेना में एंट्री पर लोगों को आश्चर्य नहीं हुआ.

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शिवसेना ने उसे प्रवक्ता बना दिया. वाझे भले ही शिवसेना में शामिल हो गया था, लेकिन सपने बहुत ऊंचे होने के कारण उस का मन पार्टी में नहीं लगा. इसलिए उसने पार्टी की सदस्यता का नवीनीकरण भी नहीं कराया.

शिवसेना से मोहभंग होने के बाद उस ने किताबें लिखीं और खुद को सौफ्टवेयर का हुनरमंद बनाया. सन 2010 में उस ने एक मराठी सोशल मीडिया ऐप लाइ भारी लौंच किया. इस के अलावा कई सौफ्टवेयर फर्मों की शुरुआत की. ये फर्में कुछ साल में बंद हो गईं.

वाझे शिवसेना में सक्रिय नहीं था. इस के बावजूद शिवसेना प्रमुख ठाकरे उस से इतने प्रभावित थे कि जब 2014 में भाजपाशिवसेना ने महाराष्ट्र में सत्ता संभाली, तो ठाकरे ने वाझे को पुलिस में फिर से लेने की सिफारिश की थी, लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने एडवोकेट जनरल की सलाह पर ऐसा नहीं करने का फैसला किया था.

उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री बनने के बाद जून 2020 में वाझे को मुंबई पुलिस में फिर से शामिल कर लिया. उस समय कहा गया था कि मुंबई पुलिस में अफसरों की कमी के कारण वाझे को वापस लिया जा रहा है. मुंबई के तत्कालीन पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह की अध्यक्षता वाली विशेष समिति की सिफारिश पर वाझे को दोबारा पुलिस में शामिल किया गया.

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Crime Story: एंटीलिया को दहलाने में हिल गई सरकार- भाग 6

सौजन्य- मनोहर कहानियां

मुंबई पुलिस के इंसपेक्टर अनूप डांगे के अनुसार, परमबीर सिंह भी दूध के धुले नहीं हैं. इस बारे में डांगे ने महाराष्ट्र के अतिरिक्त गृह सचिव को एक पत्र भी लिखा था.

पत्र में डांगे ने कहा था 22 नवंबर 2019 की रात जब वह ब्रीच कैंडी इलाके के एक क्लब को बंद कराने पहुंचा, तो उस के मालिक जीतू नवलानी ने धमकी दी और परमबीर सिंह से अपने संपर्कों की बात कही. वहीं पर फिल्म फाइनेंसर भरत शाह के नाती ने एक कांस्टेबल से बदसलूकी की.

बाद में फरवरी, 2020 में जब परमबीर सिंह पुलिस कमिश्नर बने, तो उन्होंने नवलानी के खिलाफ आरोपपत्र दायर नहीं करने के आदेश दिए. नवलानी को अंडरवर्ल्ड डौन इकबाल मिर्ची के मनी लांड्रिंग मामले में ईडी ने गिरफ्तार किया था.

सचिन वाझे अप्रैल के पहले सप्ताह में जब एनआईए की हिरासत में था, तब उस का एक लिखित बयान मीडिया में सामने आया. इस में उस ने पूर्व गृहमंत्री देशमुख के साथ शिवसेना के वरिष्ठ नेता और महाराष्ट्र के परिवहन मंत्री अनिल परब पर भी वसूली के लिए दबाव बनाने का आरोप लगाया था. साथ ही कहा था कि वसूली मामले की पूरी जानकारी देशमुख के पीए कुंदन को थी.

वाझे ने इस बयान में कहा था कि एनसीपी चीफ शरद पवार ने उन की बहाली का विरोध किया था. वह चाहते थे कि वाझे की बहाली रद्द कर दी जाए. पवार ने मुझे दोबारा निलंबित करने के लिए देशमुख से कहा था.

मुझे यह बात देशमुख ने ही बताई थी और पवार साहब को मनाने के लिए 2 करोड़ रुपए मांगे थे. इतनी बड़ी रकम देना मेरे लिए मुमकिन नहीं था. इस पर देशमुख ने यह रकम बाद में चुकाने को कहा था. इसी के बाद मुझे सीआईयू में नियुक्ति दी गई थी.

वाझे ने पत्र में कहा कि अनिल परब ने पिछले साल जुलाई, अगस्त, अक्टूबर और इस साल जनवरी में मुझे बुलाया और कुछ शिकायतों के आधार पर बीएमसी के कौन्ट्रैक्टरों पर दबाव बना कर अवैध वसूली करने को कहा.

देशमुख ने इस साल जनवरी में अपने सरकारी बंगले पर बुला कर पब व बार आदि से वसूली करने को कहा. ये सब बातें मैं ने तत्कालीन पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह को बता दी थीं और कहा था कि भविष्य में ये लोग मुझे किसी कंट्रोवर्सी में फंसा सकते हैं.

इस पर परमबीर सिंह ने मुझे किसी भी तरह की अवैध वसूली करने से मना कर दिया था. वाझे ने पत्र के आखिर में लिखा कि जज साहब, मैं न्याय चाहता हूं, इसलिए ये सब बातें लिख रहा हूं. इस लेटर बम परभाजपा और शिवसेना ने आरोपप्रत्यारोप लगाए.

महिला मित्र रखती थी हिसाब

निलंबित सहायक पुलिस निरीक्षक सचिन वाझे की एक महिला मित्र है, जिस का नाम मीना जार्ज है. वह ठाणे के मीरा रोड पर एक कौंप्लेक्स के फ्लैट में रहती है. मीना के फ्लैट से एनआईए को वाझे से जुड़े कई दस्तावेज मिले हैं.

कहा जाता है कि मीना ब्लैक मनी को वाइट करने में वाझे की मदद करती थी. उस के पास नोट गिनने की कई मशीनें भी मिली हैं. वह वाझे से मिलने के लिए दक्षिण मुंबई के ट्राइडेंट होटल गई थी. इस होटल की सीसीटीवी फुटेज के आधार पर ही एनआईए ने उस की तलाश शुरू की थी. मीना इस होटल में नोट गिनने की मशीन ले कर वाझे से मिलने गई थी.

कहा जा रहा है कि मूलरूप से गुजरात की रहने वाली मीना जार्ज ने आटो पार्ट्स की कई फरजी कंपनियां बना रखी थीं. बैंकों में भी उस के करीब एक दरजन खाते सामने आए हैं.

चर्चा है कि वाझे अपनी अवैध वसूली का पैसा मीना को देता था. वह उसे अपनी आटो पार्ट्स कंपनियों की कमाई बता कर बैंकों के सीसी खातों में जमा कराती थी. फिर इन पैसों से शेयर खरीदे जाते थे.

चर्चा है कि वाझे ने सरकारी नौकरी की दूसरी पारी शुरू करने के बाद से करोड़ों रुपए शेयर बाजार में निवेश किए. अंदेशा है कि मीना ही वाझे की काली कमाई का हिसाबकिताब रखती थी.

मीना जार्ज को वाझे कई सालों से जानता है. 2016 में उस की लग्जरी बाइक से वह एक बार मनाली गया था. यह बाइक एनआईए ने जब्त की है. एनआईए ने मीना से कई बार पूछताछ की है.

वाझे की 3 कंपनियां हैं. इन में मल्टीबिल्ड इंफ्रा प्रोजैक्ट, टकलीगल सोल्यूशंस और डीजी नेक्स्ट मल्टीमीडिया शामिल हैं. शिवसेना के नेता संजय माशेलकर और विजय गवई उन के बिजनैस पार्टनर हैं.

वाझे के पास 8 लग्जरी गाडि़यां हैं. इस के अलावा इटालियन बेनेली कंपनी की स्पोर्ट्स बाइक है, जिस की कीमत 7-8 लाख रुपए है. ठाणे में उस के फ्लैट की कीमत एक करोड़ रुपए के आसपास है. जबकि वाझे का मासिक वेतन कुल करीब 70 हजार रुपए है.

जांच में पता चला कि वाझे ने अंबानी के घर के सामने स्कौर्पियो में रखने के लिए जिलेटिन के छड़ें खरीदी थीं. उस ने ही क्रिकेट सटोरिए नरेश गोरे के जरिए अहमदाबाद से 11 सिमकार्ड मंगाए थे.

इन सिम का उपयोग शिंदे, नरेश और वाझे आदि ने पूरी साजिश की बातचीत में किया. वाझे के घर से एक अज्ञात व्यक्ति का पासपोर्ट मिला था. आशंका थी कि इस व्यक्ति को किसी फरजी मुठभेड़ में मारा जाना था.

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अंबानी के घर के सामने स्कौर्पियो में मिला धमकीभरा पत्र शिंदे के घर कंप्यूटर पर टाइप किया गया था, पुलिस ने उस के घर से प्रिंटर बरामद किया. इस पूरे मामले में वाझे का सहयोगी सहायक पुलिस निरीक्षक प्रकाश ओवल भी जांच के दायरे में है. उस से भी पूछताछ की गई है.

सीबीआई ने पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख, उन के पीए कुंदन शिंदे और निजी सचिव संजीव पलांडे सहित परमबीर सिंह और सचिन वाझे से पूछताछ की है. वहीं एनआईए ने भी परमबीर सिंह, वाझे, पूर्व पुलिस अधिकारी प्रदीप शर्मा, वकील जयश्री पाटिल और कुछ मौजूदा पुलिस अधिकारियों से पूछताछ की गई है.

Crime Story: एंटीलिया को दहलाने में हिल गई सरकार- भाग 5

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16 साल बाद सचिन वाझे की मुंबई पुलिस में यह दूसरी पारी थी. उसे पुलिस की हाईप्रोफाइल क्राइम ब्रांच में नियुक्त कर सीआईयू का प्रमुख बना दिया गया. वाझे को सीआईयू का चीफ बनाने पर दबे स्वर में विरोध भी हुआ था. इस का कारण था आमतौर पर इस पद की जिम्मेदारी सीनियर पुलिस इंसपेक्टर को दी जाती है जबकि वाझे सहायक पुलिस इंसपेक्टर था.

वाझे ने अपनी दूसरी पारी में सुर्खियों में आने के लिए उखाड़पछाड़ शुरू कर दी. उस ने दिसंबर 2020 में अवैध रूप से कारें मोडिफाई करने के मामले में सेलेब्रिटी कार डिजायनर दिलीप छाबडि़या को गिरफ्तार किया था.

इस से पहले वह नवंबर 2020 में रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक अर्नब गोस्वामी को गिरफ्तार करने गई रायगढ़ पुलिस के साथ पहुंचा था. अर्नब का मामला रायगढ़ पुलिस का था, लेकिन कहा जाता है कि वाझे सरकार के इशारे पर वहां पहुंचा था और अर्नब को गिरफ्तार कर लाते हुए दिखाई दिया था.

खास बात यह कि वाझे ने अर्नब गोस्वामी के घर जाने के लिए मनसुख हिरेन की उसी स्कौर्पियो का इस्तेमाल किया था, जिस में इस साल 25 फरवरी को मुकेश अंबानी के आवास के सामने जिलेटिन की छड़ें मिली थीं.

मनसुख हिरेन की हत्या के मामले में गिरफ्तार पूर्व कांस्टेबल विनायक शिंदे के दामन पर भी कालिख पुती हुई है. शिंदे पर 11 नवंबर, 2006 को रामनारायण गुप्ता उर्फ लखन भैया की सनसनीखेज हत्या का आरोप था. इस मामले में अदालत ने सन 2013 में 13 पुलिसकर्मियों को दोषी ठहराया था. इन में शिंदे भी एक था.

हालांकि इस मामले में अदालत ने पुलिस टीम के मुखिया प्रदीप शर्मा को बरी कर दिया था. इस मामले में नवी मुंबई की पुलिस ने दावा किया था कि लखन भैया को वर्सोवा में मुठभेड़ में मारा गया था, लेकिन हकीकत यह थी कि उसे ठाणे जिले के उस के घर से उठाया गया और बाद में मार दिया गया था.

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश ने दोषी पुलिस वालों को ‘कौन्ट्रैक्ट किलर’ बताया था. जेल में उम्रकैद की सजा काट रहा शिंदे एक साल से पैरोल पर बाहर था. वह वाझे से मिलताजुलता रहता था.

एनकाउंटर स्पैशलिस्ट प्रदीप शर्मा भी 2008 में माफिया से संबंधों और फरजी मुठभेड़ मामले में निलंबित किए गए थे. शर्मा को भी परमबीर सिंह ने 2017 में वापस नौकरी में रखा था. परमबीर सिंह उस समय ठाणे पुलिस कमिश्नर थे. तब प्रदीप को एंटी एक्सटौर्शन सेल में लगाया गया था. मुंबई के पुलिस कमिश्नर रहे परमबीर सिंह के बारे में कई तरह के खुलासे हुए हैं. कहने को और पुलिस महकमे के प्रोटोकाल के हिसाब से वाझे उन के लिए एक अदना सा अधिकारी था, लेकिन वाझे से उन के गहरे ताल्लुक थे. कहा जाता है कि लगभग रोजाना परमबीर सिंह और वाझे एक बार साथ बैठ कर कौफी पीते थे.

पैसा तो परमबीर सिंह ने भी कमाया

परमबीर सिंह के पास सरकारी रिकौर्ड के अनुसार, 8 करोड़ 54 लाख रुपए की प्रौपर्टी है. उन के पास हरियाणा में कृषि भूमि है. अभी इस की वैल्यू 22 लाख रुपए बताई है. इस से 51 हजार रुपए की सालाना आय होती है. सन 2003 में उन्होंने मुंबई के जुहू इलाके में 48.75 लाख का फ्लैट खरीदा था. इस की मौजूदा कीमत 4.64 करोड़ रुपए है. इस से उन्हें 25 लाख रुपए की सालाना आय होती है.

जुहू में उन की एक और प्रौपर्टी है. इस की कीमत उन्होंने नहीं बताई है. उन्होंने नवी मुंबई में 2005 में 3.60 करोड़ का एक और फ्लैट खरीदा था. इस की मौजूदा कीमत केवल 2.24 करोड़ रुपए बताई जाती है. यह फ्लैट पतिपत्नी के नाम है. इस से बतौर किराया 9.60 लाख रुपए की सालाना आय होती है.

फरीदाबाद में भी परमबीर सिंह ने 2019 में जमीन खरीदी थी, जिस की वर्तमान कीमत 14 लाख रुपए  है. जबकि उन का मासिक वेतन 2.24 लाख रुपए है.

पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले परमबीर सिंह को अब महाराष्ट्र सरकार घेरने की तैयारी में है. वाझे के मामले में सरकार परमबीर सिंह की अलग से जांच करा रही है.

इस जांच का जिम्मा परमबीर सिंह के कट्टर विरोधी सीनियर आईपीएस अधिकारी संजय पांडे को सौंपा गया है. सरकार ने संजय पांडे को पुलिस महानिदेशक का अतिरिक्त कार्यभार सौंपा है.

देशमुख सीबीआई की जांच में बचेंगे या फंसेंगे?

पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह ने 22 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका दायर कर अनिल देशमुख के खिलाफ सीबीआई जांच की मांग की थी. भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि एक पूर्व पुलिस आयुक्त अपने राज्य के गृहमंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरापों की सीबीआई से जांच के लिए अदालत पहुंचा था.

तब सुप्रीम कोर्ट ने मामले को गंभीर बताते हुए उन्हें हाईकोर्ट जाने की सलाह दी थी. इस के बाद परमबीर सिंह ने 24 मार्च को बौंबे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. हाईकोर्ट ने 31 मार्च को परमबीर सिंह की याचिका पर सुनवाई की. चीफ जस्टिस दीपंकर दत्ता और जस्टिस जी.एस. कुलकर्णी ने परमबीर सिंह को फटकार लगाई.

उन्होंने कहा कि आप ने गृहमंत्री देशमुख के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए हैं, लेकिन उन्हें ले कर कोई एफआईआर क्यों नहीं दर्ज कराई. बिना किसी रिपोर्ट के आखिर उस की सीबीआई जांच कैसे कराई जा सकती है?

चीफ जस्टिस ने कहा कि भले ही आप पुलिस कमिश्नर रहे हैं, लेकिन आप कानून से ऊपर नहीं हैं. क्या पुलिस अधिकारी, मंत्री और नेता कानून से ऊपर हैं? खुद को बहुत ऊपर मत समझिए.

जब आप को पता था कि बौस अपराध कर रहा है, तो एफआईआर दर्ज क्यों नहीं की? अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया.

बाद में 5 अप्रैल को बौंबे हाईकोर्ट ने देशमुख पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच सीबीआई से कराने के आदेश दिए. अदालत ने कहा कि हम ने इस तरह का मामला पहले कभी नहीं देखा, न ही सुना. एक पुलिस अफसर ने इतने खुले रूप में एक मंत्री पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं. ऐसे हालात में अदालत मूकदर्शक नहीं बनी रह सकती. मामले की स्वतंत्र जांच होनी चाहिए.

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हाईकोर्ट से सीबीआई जांच के आदेश होने के कुछ देर बाद ही देशमुख एनसीपी प्रमुख शरद पवार से मिले. फिर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को अपना इस्तीफा सौंप दिया. इस्तीफे में लिखा कि हाईकोर्ट के आदेश के बाद मेरा पद पर बने रहना नैतिक रूप से सही नहीं होगा. बाद में उसी दिन एनसीपी के दिलीप वल्से पाटिल को महाराष्ट्र का नया गृहमंत्री बना दिया गया.

हाईकोर्ट के आदेश पर सीबीआई ने 6 अप्रैल को देशमुख पर लगे आरोपों की जांच शुरू कर दी. दूसरी ओर, हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार और देशमुख ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई.

सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को उन की अरजी खारिज करते हुए कहा कि यह 2 बड़े पदों पर बैठे लोगों से जुड़ा मामला है. लोगों का भरोसा बना रहे, इसलिए निष्पक्ष जांच जरूरी है. हम हाईकोर्ट के आदेश में दखल नहीं देंगे.

अगले भाग में पढ़ें-  पत्र में लिखा था महिला मित्र रखती थी हिसाब

Crime Story: 3 करोड़ के सोने की लूट- भाग 1

सौजन्य: मनोहर कहानियां

इसी साल 15 मार्च की बात है. दोपहर के तकरीबन डेढ़ बजे का समय था. राजस्थान के हनुमानगढ़ शहर में टाउन बस स्टैंड पर स्थित मणप्पुरम गोल्ड लोन शाखा में लंच का समय था. कर्मचारी गपशप कर रहे थे.

वैसे तो इस औफिस में 5 कर्मचारी हैं, लेकिन उस समय असिस्टैंट मैनेजर संजय सिंह शेखावत सहित केवल 3 कर्मचारी ही औफिस में थे. एक महिला कर्मचारी किसी काम से रेलवे जंक्शन गई थी और एक महिला कर्मचारी औफिस आने के बाद तबीयत खराब होने की बात कह कर घर चली गई थी.

मणप्पुरम कंपनी सोने के जेवरों पर लोन देने का काम करती है. सालों पुरानी इस कंपनी के पूरे देश में लगभग हर जिला मुख्यालय पर कईकई ब्रांच औफिस हैं. कंपनी के लगभग सभी औफिसों में सोने के जेवर और नकदी रहती है, लेकिन सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं होते. यही कारण है कि हर साल देश भर में इस कंपनी के 5-7 औफिसों में लूट की वारदात होती है.

इन में कुछ वारदातों में अपराधी पकड़े जाते हैं और कुछ में नहीं. पकड़े गए अपराधियों से भी माल की आधीअधूरी बरामदगी ही होती है. बिहार के 2-3 कुख्यात गिरोह तो केवल गोल्ड लोन वाली कंपनियों में ही लूट की वारदात करते हैं.

कंपनी की हनुमानगढ़ शाखा में भी सुरक्षा के कोई खास इंतजाम नहीं थे. सुरक्षा के नाम पर कर्मचारी औफिस समय में चैनल गेट बंद रखते थे. कोई ग्राहक आता, तो गेट खोल देते और उस के जाने के बाद बंद कर देते थे.

उस दिन भी कर्मचारियों ने औफिस का चैनल गेट बंद कर ताला लगा रखा था. दोपहर करीब पौने 2 बजे 2 युवक बैंक के चैनल गेट पर पहुंचे. उन्होंने गेट खुलवाने के लिए बाहर लगी घंटी बजाई. युवकों ने अपने चेहरे ढके हुए थे. एक युवक के पास पिट्ठू बैग था.

घंटी की आवाज सुन कर औफिस के अंदर से एक कर्मचारी मोबाइल पर बातें करते हुए आया. उस ने 2 युवकों को बाहर खड़ा देखा, तो ग्राहक समझ कर उन से बिना कुछ पूछताछ किए चैनल गेट का ताला खोल दिया.

चैनल गेट खुलते ही दोनों युवक औफिस के अंदर घुस गए. अंदर आते ही दोनों ने अपने कपड़ों में छिपा कर लाई पिस्तौल निकाल ली. औफिस में मौजूद तीनों कर्मचारियों पर पिस्तौल तान कर बदमाशों ने जान से मारने की धमकी दी और सोने के बारे में पूछा.

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पिस्तौल देख कर कर्मचारी घबरा गए. उन्होंने सोने के जेवर लौकर में रखे होने की बात कही, तो बदमाशों ने गोली चलाने की धमकी दी. इस पर असिस्टैंट मैनेजर संजय सिंह ने लौकर खोल कर नीचे की दराज में रखे सोने के जेवरों के पैकेट लुटेरों के हवाले कर दिए.

लुटेरों ने लौकर में रखी नकदी भी निकाल ली. एक बदमाश ने जेवर और नकदी अपने कंधे पर लटके बैग में भर लिए. इस के बाद दोनों बदमाश कर्मचारियों को धमकी देते हुए चैनल गेट खोल कर तेजी से निकल गए.

बदमाशों को इस वारदात को अंजाम देने में मुश्किल से 4 मिनट लगे थे. लुटेरों के डर से औफिस के कर्मचारी कुछ देर सहमे से अंदर ही खड़े रहे. बाद में वे औफिस से बाहर निकले और आसपास के लोगों को बताया. बाद में पुलिस को सूचना दी.

सूचना मिलने के कुछ ही देर बाद हनुमानगढ़ एसपी प्रीति जैन, डीएसपी प्रशांत कौशिक, टाउन सीआई लक्ष्मण सिंह राठौड़ और जंक्शन सीआई नरेश गेरा आदि मौके पर पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने मौकामुआयना कर कंपनी की शाखा के कर्मचारियों और आसपास के लोगों से पूछताछ की.

पूछताछ में पता चला कि औफिस में सायरन लगा होने के बावजूद कर्मचारियों ने वारदात के दौरान या तुरंत बाद उसे नहीं बजाया. अलार्म नहीं बजाने पर एसपी ने कर्मचारियों को फटकार लगाई और 3 बार अलार्म बजा कर उस की जांच भी की.

शाखा के कर्मचारियों ने बताया कि बदमाश सोने के जेवर और कैश ले गए. कितना सोना ले गए, यह रिकौर्ड देखने के बाद बता सकेंगे. उन्होंने नकदी करीब एक लाख रुपए बताई.

आसपास के लोगों से पुलिस को पता चला कि कंपनी की गोल्ड लोन शाखा के सामने टाउन जंक्शन रोड पर एक ट्रक की ओट में एक बाइक सवार खड़ा था. वारदात के बाद दोनों नकाबपोश युवक उस बाइक सवार के साथ फरार हो गए.

पुलिस अधिकारियों ने शहर के सभी मार्गों पर नाकेबंदी करा दी. लुटेरों का पता लगाने के लिए गोल्ड लोन शाखा के बाहर और आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी. औफिस के चैनल गेट के पास लगे कैमरे में दोनों बदमाश नजर आ गए, लेकिन उन के चेहरे ढके होने से पहचान नहीं हो सकी. ये बदमाश दोपहर 1.47 बजे औफिस में घुसे और 1.51 बजे बाहर निकल गए थे.

गोल्ड लोन शाखा में लूट की वारदात होने की सूचना पूरे शहर में फैल गई. इस से वे लोग बड़ी संख्या में मौके पर पहुंच गए, जिन्होंने अपने जेवर गिरवी रख कर कंपनी से लोन ले रखा था. पुलिस अधिकारियों ने इन लोगों को यह कह कर वापस भेजा कि अभी जांच चल रही है. लूटे गए जेवरों का रिकौर्ड मिलने पर ही कुछ पता चल सकेगा.

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वारदात के तुरंत बाद हालांकि यह पता नहीं चला कि कितना सोना और कितना कैश लूटा गया है. फिर भी एसपी प्रीति जैन ने वारदात को गंभीरता से लेते हुए अधिकारियों की टीम बना कर लुटेरों का पता लगाने के निर्देश दिए.

दूसरे दिन 16 मार्च को पुलिस अधिकारी जांचपड़ताल में जुटे रहे. सीसीटीवी फुटेज के आधार पर लुटेरों की खोजबीन चलती रही. अधिकारियों ने एक बार फिर गोल्ड लोन शाखा के औफिस पहुंच कर कर्मचारियों से पूछताछ की ताकि लुटेरों के बारे में कोई सुराग मिल सके, लेकिन ऐसी कोई बात पता नहीं चली, जिस से लुटेरों का पता लगाया जाता. कंपनी के कर्मचारियों ने वारदात के करीब 32 घंटे बाद 16 मार्च की रात लगभग साढ़े 9 बजे हनुमानगढ़ टाउन पुलिस थाने पहुंच कर केस दर्ज कराया.

मणप्पुरम गोल्ड लोन हनुमानगढ़ टाउन की ब्रांच मैनेजर भावना मेघवाल ने पुलिस में दर्ज कराई रिपोर्ट में बताया कि लुटेरे सोने के जेवरों के 290 पैकेट और एक लाख 7 हजार 951 रुपए नकद ले गए.

लूटे गए सोने के जेवरों का अनुमानित वजन 6 किलो से ज्यादा बताया गया. इन जेवरों में सोने की अंगूठी, कान की बाली, झुमके, कंगन, टौप्स आदि थे.

अगले भाग में पढ़ें- पुलिस ने जेवरों की लूट का खुलासा किया

Crime Story: 3 करोड़ के सोने की लूट- भाग 2

सौजन्य: मनोहर कहानियां

हालांकि पुलिस ने शाखा मैनेजर की ओर से दी गई रिपोर्ट दर्ज कर ली, लेकिन पुलिस अधिकारियों के मन में कई सवाल भी गहरा गए थे.

लूटे गए 6 किलो सोने की कीमत मौजूदा समय में करीब 3 करोड़ रुपए थी. कंपनी के अधिकारियों की ओर से करीब 30 घंटे तक रिकौर्ड का मिलान करने के बाद इतना सोना लूटे जाने की बात पुलिस अधिकारियों के गले नहीं उतरी.

पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज कराने आई कंपनी की ब्रांच मैनेजर रायसिंहनगर निवासी भावना मेघवाल और दूसरे स्टाफ से थाने में काफी देर तक पूछताछ की. इस में पता चला कि वारदात के समय लौकर में सोने के जेवरों के करीब 1300 पैकेट थे. असिस्टैंट मैनेजर संजय सिंह ने इन में से नीचे की दराज में रखे 290 पैकेट ही निकाल कर लुटेरों को दिए थे. जेवरों के बाकी लगभग एक हजार पैकेट जो ऊपर की दराज में थे, बच गए थे.

सुरक्षित बच गए जेवरों के पैकेटों में जीपीएस ट्रैकर भी लगा हुआ था जबकि लुटेरों के हाथ लगे जेवरों के पैकेटों में जीपीएस ट्रैकर नहीं था. इसलिए पुलिस अधिकारियों के दिमाग में संदेह पैदा हुआ कि आखिर लुटेरों को नीचे की दराज से ही जेवरों के पैकेट क्यों निकाल कर दिए गए.

लुटेरों को बिना जीपीएस ट्रैकर वाले सोने के जेवरों के पैकेट निकाल कर देने के बारे में पुलिस ने असिस्टैंट मैनेजर संजय सिंह ने सवाल किए, तो उस ने बताया कि ऐसा घबराहट और हड़बड़ाहट में हुआ. पुलिस की पूछताछ में एक बार वह उखड़ भी गया और कहा कि उसे 6 हजार रुपए तनख्वाह मिलती है. इतनी सी तनख्वाह के लिए क्या मैं अपनी जान दांव पर लगा देता? तीसरे दिन 17 मार्च को एडिशनल एसपी जस्साराम बोस और डीएसपी प्रशांत कौशिक ने एक बार फिर गोल्ड लोन शाखा का बारीकी से मुआयना किया और कर्मचारियों से पूछताछ की.

इस के अलावा पुलिस की टीमें सीसीटीवी में नजर आए बदमाशों का सुराग लगाने और संदिग्ध बदमाशों से पूछताछ में जुटी रही. साइबर एक्सपर्ट की टीम लुटेरों के भागने की दिशा में लगे सभी सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देख कर रूट चार्ट बनाने में लगी रहीं. 6 किलो सोने के जेवरों की लूट के मामले में पुलिस हर एंगल से बारीकी से जांचपड़ताल करती रही. कुछ ऐसी बातें थी, जिन से पुलिस अधिकारियों का शक गोल्ड लोन शाखा के कर्मचारियों पर हो रहा था.

इस में वारदात के करीब 32 घंटे बाद रिपोर्ट दर्ज कराना, मुंह पर कपड़ा बांध कर आए दोनों युवकों को बिना कोई पूछताछ किए चैनल गेट खोल कर औफिस के अंदर प्रवेश दे देना, असिस्टैंट मैनेजर संजय सिंह की ओर से लुटेरों को बिना जीपीएस ट्रैकर वाले सोने के जैवरों के पैकेट देना, संदेह को बढ़ावा दे रहे थे.

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वारदात के दौरान या तुरंत बाद कर्मचारियों की ओर से अलार्म नहीं बजाना आदि भी ऐसे बिंदु थे, जो कंपनी के कर्मचारियों को शक के दायरे में खड़ा कर रहे थे. इसलिए पुलिस की एक टीम गोल्ड लोन शाखा के कर्मचारियों की कुंडली खंगालने में जुट गई.

पुलिस ने 20 मार्च को 3 लोगों को गिरफ्तार कर सोने के जेवरों की लूट का खुलासा कर दिया. लूट का मास्टरमाइंड मणप्पुरम गोल्ड लोन शाखा का असिस्टैंट मैनेजर संजय सिंह शेखावत निकला.

पुलिस ने संजय सिंह सहित मदन सोनी और पवन जाट को गिरफ्तार कर लिया. इन में संजय सिंह सीकर जिले की श्रीमाधोपुर तहसील के जालपाली गांव का रहने वाला था. मदन सोनी हनुमानगढ़ टाउन में नाथावाली थेढ़ी वार्ड नंबर 8 और संजय जाट रावतसर के निरवाल का निवासी था. इन लोगों से पूछताछ में जो कहानी उभकर सामने आई, वह इस प्रकार है—

असिस्टैंट मैनेजर संजय सिंह ने कंपनी की इस शाखा में काफी घोटाला कर रखा था. उस ने फरजी आईडी से कंपनी की इस शाखा में खाते खोल कर सोने के जेवर गिरवी रखे बगैर ही दूसरे कई नामों से लोन उठा रखा था. यह घोटाला वह काफी दिनों से कर रहा था, लेकिन कंपनी को पता नहीं चल सका था. पिछले दिनों कंपनी ने संजय सिंह का तबादला गुजरात कर दिया था. तबादला होने के बावजूद संजय रिलीव नहीं हो रहा था. उसे डर था कि हनुमानगढ़ शाखा से रिलीव होने पर कंपनी का हिसाबकिताब देते समय उस का घोटाला सामने आ जाएगा. इस घोटाले को दबाने के लिए संजय ने मदन सोनी के साथ मिल कर अपनी ही शाखा में लूट की योजना बनाई. हनुमानगढ़ टाउन का रहने वाला मदन सोनी सोने का मूल्यांकन करता था.

संजय ने लूट के लिए बदमाशों का इंतजाम करने की जिम्मेदारी मदन सोनी को सौंप दी. मदन सोनी ने इस काम के लिए अपने परिचित डिप्टी उर्फ अनमोल मेघवाल से संपर्क किया.

डिप्टी उर्फ अनमोल हरियाणा के सिरसा जिले के बेहरवाला खुर्द ऐलनाबाद का रहने वाला था. मदन सोनी ने अनमोल को अपनी योजना बताई. इस पर अनमोल ने लूटे जाने वाले सोने में बराबर का हिस्सा लेने की बात कही. मदन ने इस पर हामी भर ली.

लूटे जाने वाले सोने के बंटवारे की बात तय हो जाने पर अनमोल ने इस काम के लिए अपने परिचित बदमाश तलवाड़ा के बेहरवाला कलां निवासी सोनू, रावतसर के निरवाल गांव निवासी पवन जाट और अपने ही गांव बेहरा वालां खुर्द के रहने वाले भीम को तैयार किया.

इन में सोनू के सोपू गैंग और पवन के बीकानेर की 007 गैंग से तार जुड़े हुए थे. ये दोनों इन अपराधी गिरोह के सक्रिय बदमाश थे. सोनू के खिलाफ हत्या का प्रयास के अलावा आर्म्स ऐक्ट के मुकदमे दर्ज थे.

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इन लोगों ने वारदात के लिए हनुमानगढ़ के संडे मार्केट से मोटरसाइकिल खरीदी. ऐलनाबाद और तलवाड़ा से हथियार जुटाए गए. अनमोल, पवन, सोनू और भीम 12 मार्च को हनुमानगढ़ आ गए. संजय सिंह और मदन सोनी ने इन बदमाशों के ठहरने के लिए पहले ही 2 अलगअलग होटलों का इंतजाम कर रखा था.

हनुमानगढ़ पहुंचने पर संजय सिंह और मदन सोनी ने लूट की अपनी पूरी योजना बता कर उन्हें सारी बातें समझा दीं. चारों बदमाशों ने मणप्पुरम गोल्ड लोन शाखा की 2 दिन तक बाहर से रैकी कर वारदात करने और भागने के रास्ते देख लिए.

अगले भाग में पढ़ें-  फुटेज के आधार पर पुलिस ने बदमाशों से पूछताछ की

Crime Story: 3 करोड़ के सोने की लूट- भाग 3

सौजन्य: मनोहर कहानियां

बाद में सभी ने मिल कर लूट की योजना को अंतिम रूप दिया. यह तय किया गया कि वारदात 15 मार्च को दोपहर एक से 2 बजे के बीच लंच टाइम में की जाएगी. लंच का समय इसलिए चुना गया क्योंकि इस दौरान आमतौर पर कोई ग्राहक नहीं होता.

योजना के अनुसार, पवन और सोनू शाखा में घुसे. सोनू ने 315 बोर की पिस्तौल और पवन ने एयरगन दिखा कर कर्मचारियों को डराया और गोली चलाने की धमकी दी. इस दौरान असिस्टैंट मैनेजर संजय सिंह ने बदमाशों के धमकाने पर लौकर में से सोने के जेवरों के पैकेट निकाल कर उन्हें दे दिए.

पवन और सोनू 4 मिनट में ही वारदात को अमलीजामा पहना कर बाहर निकल आए.

गोल्ड लोन शाखा के बाहर एक ट्रक की आड़ में भीम पहले से ही मोटरसाइकिल पर तैयार खड़ा था. भीम ही इन दोनों को होटल से मणप्पुरम गोल्ड लोन शाखा तक लाया था. वारदात के दौरान वह बाहर खड़ा था. इस दौरान वह पवन जाट से मोबाइल पर सीधे संपर्क में था. पवन ने हैडफोन लगा अपना मोबाइल चालू रख रखा था ताकि कोई खतरा होने पर बाहर खड़ा भीम उन को सचेत कर सके.

वारदात के बाद भीम के साथ मोटरसाइकिल पर बैठ कर पवन और सोनू भाग लिए. हनुमानगढ़ से ये तीनों मसीतांवाली हैड होते हुए हरियाणा चले गए. बाद में मदन सोनी और डिप्टी उर्फ अनमोल ने इन तीनों से मिल कर लूटे गए जेवर और नकदी का बंटवारा कर लिया.

संजय सिंह को लौकर में रखे सारे जेवरों के बारे में पता था. उसे पता था कि लौकर में ऊपर की दराज में जेवरों के पैकेट जीपीएस ट्रैकर सिस्टम के साथ रखे हुए हैं और नीचे की दराज में रखे जेवरों के पैकट में जीपीएस ट्रैकर नहीं है. इसलिए उस ने चालाकी से बिना जीपीएस ट्रैकर वाले जेवरों के पैकेट नीचे की दराज से निकाल कर लुटेरों के हवाले कर दिए.

दरअसल, कंपनी ने लूट व चोरी की वारदातों को देखते हुए सुरक्षा के तौर पर लौकर में जेवरों के साथ जीपीएस ट्रैकर रखे हुए हैं. ये जीपीएस ट्रैकर ऊपर वाली दराज में जेवरों के पैकेट के बीच में ही रखे गए थे ताकि कोई वारदात होने पर जीपीएस ट्रैकर के जरिए अपराधी तक पहुंचा जा सके.

संजय सिंह की इसी कारस्तानी ने पुलिस अधिकारियों के दिमाग में संदेह पैदा किया और वह लुटेरों तक पहुंच गई.

वारदात के बाद पुलिस ने मणप्पुरम गोल्ड लोन शाखा के सीसीटीवी कैमरों की फुटेज में नजर आए लुटेरों की तलाश में हनुमानगढ़ टाउन और जंक्शन के तमाम होटल, धर्मशालाओं के अलावा बसअड्डे और रेलवे स्टेशन पर जांचपड़ताल की. इन जगहों पर लगे कैमरों की फुटेज देखी.

इस जांचपड़ताल में हनुमानगढ़ जंक्शन स्थित कमल होटल और अमर होटल में वारदात से 3-4 दिन पहले रुके लोगों के फुटेज और वारदातस्थल की फुटेज में दिखे संदिग्ध लुटेरों से मिलान कर गए. इन संदिग्धों ने 15 मार्च को ही होटल से चैकआउट कर दिया था.

इन फुटेज के आधार पर पुलिस ने बदमाशों से पूछताछ कर सब से पहले पवन जाट को पकड़ा. पूछताछ में उस ने मदन सोनी और संजय सिंह का नाम लिया. संजय सिंह पहले से ही पुलिस के शक के दायरे में था. पुलिस ने इन दोनों को भी पकड़ कर पूछताछ की, तो लूट की सारी कहानी सामने आ गई. पुलिस ने तीनों को गिरफ्तार कर लिया.

इन तीनों से पूछताछ के आधार पर दूसरे दिन 21 मार्च को पुलिस ने सोनू और डिप्टी उर्फ अनमोल मेघवाल को भी गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस की जांच में सामने आया कि असिस्टैंट मैनेजर संजय सिंह ने कंपनी की हनुमानगढ़ शाखा में 841 ग्राम सोने के लोन का घोटाला किया था. उस ने गोल्ड वैल्यूअर मदन सोनी, उस के भाई और दूसरे परिचितों के नाम से गोल्ड लोन के नाम से फरजी खाते खोल कर रुपए उठा लिए थे.

संजय ने फरजीवाड़ा कर कंपनी के कागजातों में इन लोगों से सोना जमा करना दिखाया था, जबकि सोना कंपनी में जमा नहीं हुआ था. कंपनी की औडिट होने पर वह सोने के जेवरों के पैकेट औनलाइन रिलीज कर अकाउंट होल्ड कर देता था.

औडिट टीम के जाने के बाद वह लोन के जेवर जमा बता कर पैसा रिलीज करना दिखा देता था. इस तरह कंपनी की औडिट में भी उस का फरजीवाड़ा पकड़ में नहीं आया था. तबादले के बाद रिलीव होने पर चार्ज देने के समय उस का घोटाला सामने आ सकता था, इसीलिए उस ने कंपनी में लूट की वारदात करवा कर नमकहरामी की.

बाद में पुलिस ने 21 साल के भीम उर्फ भीमसेन मेघवाल और 29 साल के सुभाष जाट को भी इस मामले में गिरफ्तार कर लिया. ये दोनों हरियाणा के बेहरवाला खुर्द ऐलनाबाद के रहने वाले थे. पुलिस ने आरोपियों की निशानदेही पर 4 किलो 862 ग्राम सोने के आभूषण बरामद कर लिए.

इन में सोने की चूडि़यां, अंगूठी, बाजूबंद, हार, मंगलसूत्र व टौप्स आदि शामिल थे. बदमाशों ने सोने के इन जेवरों से करीब 350 ग्राम वजन के डोरे, चीड व स्टोन आदि ब्लेड से काट कर जला दिए थे.

कंपनी की मैनेजर ने लूटे गए जेवरों का कुल वजन 6 किलो 136.87 ग्राम बताया था. इस में से असिस्टैंट मैनेजर संजय सिंह की ओर से फरजीवाड़ा किया गया 841 ग्राम सोना केवल कागजों में ही था.

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यानी लूटे गए सोने के जेवरों का असल वजन 5 किलो 295.87 ग्राम था. इस में 4 किलो 862 ग्राम जेवर बरामद हो गए और 350 ग्राम वजनी नग वगैरह जला दिए गए. इस तरह लूटे गए लगभग 99 फीसदी जेवर बरामद हो गए.

बदमाशों से पुलिस ने एक लाख 390 रुपए नकद, वारदात में इस्तेमाल एक देसी कट्टा, एक एयरगन, 6 कारतूस और मोटरसाइकिल भी बरामद कर ली. गिरफ्तार बदमाश भीम उर्फ भीमसेन वारदात के दौरान बाहर मोटरसाइकिल ले कर खड़ा था.

वारदात के बाद पवन और सोनू उसी के साथ बाइक पर भाग गए थे. बदमाशों ने लूटे गए सोने के जेवर और नकदी हरियाणा के बेहरवाला खुर्द गांव में सुभाष जाट के खेत में बने कमरे में 2 फुट गहरा गड्ढा खोद कर दबा दी थी. सुभाष जाट को लूट का माल अपने खेत में छिपाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया.   द्य

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