नौकरी से निकाले जाने पर इतना गुस्सा, कि मैनेजर के किए 3 टुकड़े

घर वालों के दबाव में प्रमोद ने अर्चना से शादी तो कर ली. लेकिन वह अपनी पहली प्रेमिका सरिता को कभी भुला नहीं सका. यही वजह थी कि उस ने सरिता के लिए अर्चना की जिंदगी का सूर्य अस्त कर दिया.   उत्तर प्रदेश के जिला पीलीभीत के थाना गजरौला कलां का संतरी बरामदे में खड़ा इधरउधर ताक रहा था. उसी समय एक युवक तेजी से आया और थानाप्रभारी भुवनेश गौतम के औफिस में घुसने लगा तो उस ने टोका, ‘‘बिना पूछे कहां घुसे जा रहे हो भाई?’’

युवक रुक गया. वह काफी घबराया हुआ लग रहा था. उस ने कहा, ‘‘साहब से मिलना है, मेरी पत्नी को बदमाश उठा ले गए हैं.’’

‘‘तुम यहीं रुको, मैं साहब से पूछता हूं, उस के बाद अंदर जाना.’’ कह कर संतरी थानाप्रभारी के औफिस में घुसा और पल भर में ही वापस कर बोला, ‘‘ठीक है, जाओ.’’

संतरी के अंदर जाने के लिए कहते ही युवक तेजी से थानाप्रभारी के औफिस में घुस गया. अंदर पहुंच कर बिना कोई औपचारिकता निभाए उस ने कहा, ‘‘साहब, मैं लालपुर गांव का रहने वाला हूं. मेरा नाम प्रमोद है. मैं अपनी पत्नी को विदा करा कर घर जा रहा था. गांव से लगभग 2 किलोमीटर पहले कुछ लोग बोलेरो जीप से आए और मेरी पत्नी को उसी में बैठा कर ले कर चले गए.’’

थानाप्रभारी भुवनेश गौतम ने प्रमोद को ध्यान से देखा. उस के बाद मुंशी को बुला कर उस की रिपोर्ट दर्ज करने को कहा. मुंशी ने प्रमोद के बयान के आधार पर उस की रिपोर्ट दर्ज कर ली. रिपोर्ट दर्ज कराने के बाद प्रमोद ने थानाप्रभारी के औफिस में कर कहा, ‘‘साहब, अब मैं जाऊं?’’

थानाप्रभारी भुवनेश गौतम ने उसे एक बार फिर ध्यान से देखा. प्रमोद ने उन से एक बार भी नहीं कहा था कि वह उस की पत्नी को तुरंत बरामद कराएं. उस के चेहरे के हावभाव से भी नहीं लग रहा था कि उसे पत्नी के अपहरण का जरा भी दुख है. उन्होंने उस की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘तुम हमें वह जगह नहीं दिखाओगे, जहां से तुम्हारी पत्नी का अपहरण हुआ है? अपहर्त्ता जिस बोलेरो जीप से तुम्हारी पत्नी को ले गए हैं, उस का नंबर तो तुम ने देखा ही होगा. वह नंबर नहीं बताओगे?’’

थानाप्रभारी की बातें सुन कर प्रमोद के चेहरे के भाव बदल गए. वह एकदम से घबरा सा गया. उस ने हकलाते हुए कहा, ‘‘साहब, मैं गाड़ी का नंबर नहीं देख पाया था. यह सब इतनी जल्दी और अचानक हुआ था कि गाड़ी का नंबर देखने की कौन कहे, मैं तो यह भी नहीं देख पाया कि अपहर्त्ता कितने थे.’’

‘‘ठीक है, हम अभी तुम्हारे साथ चल कर वह जगह देखते हैं, जहां से तुम्हारी पत्नी का अपहरण हुआ है. तुम घबराओ मत, हम नंबर और अपहर्त्ताओं के बारे में भी पता कर लेंगे.’’ कह कर थानाप्रभारी ने गाड़ी निकलवाई और सिपाहियों के साथ प्रमोद को भी गाड़ी में बैठा कर घटनास्थल की ओर चल पड़े. सिपाहियों के साथ बैठा प्रमोद काफी परेशान सा लग रहा था. जिस की पत्नी का अपहरण हो जाएगा, वह परेशान तो होगा ही, लेकिन उस की परेशानी उस से हट कर लग रही थी. थानाप्रभारी जब गांव के मोड़ पर पहुंचे तो प्रमोद ने कहा, ‘‘साहब, मुझे तो अब याद ही नहीं कि अपहरण कहां से हुआ था? मैं तो पत्नी के साथ पैदल ही जा रहा था. अंधेरा होने की वजह से मैं वह जगह ठीक से पहचान नहीं सका.’’

‘‘तुम ने शोर मचाया था?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘साहब, शोर मचाने का मौका ही कहां मिला. वह आंधी की तरह आए और मेरी पत्नी को जीप में जबरदस्ती बैठा कर ले गए.’’ प्रमोद ने कहा. थानाप्रभारी को प्रमोद की इस बात से लगा कि मामला अपहरण का नहीं, कुछ और ही है. पूछने पर प्रमोद यह भी नहीं बता रहा था कि उस की ससुराल कहां है. संदेह हुआ तो उन्होंने गुस्से में कहा, ‘‘सचसच बता, क्या बात है?’’ प्रमोद कांपने लगा. थानाप्रभारी को समझते देर नहीं लगी कि यह झूठ बोल रहा है. उन्होंने उसे जीप में बैठाया और थाने गए. थाने ला कर उन्होंने उस से पूछताछ शुरू की. शुरूशुरू में तो प्रमोद ने पुलिस को गुमराह करने की कोशिश की, लेकिन जब उस ने देखा कि पुलिस अब सख्त होने वाली है तो उस ने रोते हुए कहा, ‘‘साहब, अपने दोस्त मुकेश के साथ मिल कर मैं ने अपनी पत्नी की हत्या कर दी है और लाश एक गन्ने के खेत में छिपा दी है.’’

रात में तो कुछ हो नहीं सकता था, इसलिए पुलिस सुबह होने का इंतजार करने लगी. सुबहसुबह पुलिस लालपुर पहुंची तो गांव वाले हैरान रह गए. उन्हें लगा कि जरूर कुछ गड़बड़ है. जब प्रमोद ने गन्ने के खेत से लाश बरामद कराई तो लोगों को पता चला कि प्रमोद ने अपनी पत्नी की हत्या कर दी है. थोड़ी ही देर में वहां भीड़ लग गई. पुलिस ने लाश का निरीक्षण किया. मृतका की उम्र 20 साल के करीब थी. वह साड़ीब्लाउज पहने थी. गले पर दबाने का निशान स्पष्ट दिखाई दे रहा था. गांव वालों से जब प्रमोद के घर वालों को पता चला कि प्रमोद ने अर्चना की हत्या कर दी है तो वे भी हैरान रह गए. उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि प्रमोद ऐसा भी कर सकता है. लेकिन जब वे घटनास्थल पर पहुंचे तो अर्चना की लाश देख कर सन्न रह गए. पुलिस ने मृतका अर्चना के पिता डालचंद को भी फोन द्वारा सूचना दे दी थी कि उन की बेटी अर्चना की हत्या हो चुकी है

इस सूचना से डालचंद और उन की पत्नी शारदा हैरान रह गए थे. उन की समझ में नहीं रहा था कि यह सब कैसे हो गया. कल शाम को ही तो उन्होंने बेटी को विदा किया था. उस समय तो सब ठीकठाक लगा था. रास्ते में ऐसा क्या हो गया कि अच्छीभली बेटी की हत्या हो गई. डालचंद ने सिर पीट लिया. उन के मुंह से एकदम से निकला, ‘‘किस ने मेरी बेटी को मार दिया? उस ने आखिर किसी का क्या बिगाड़ा था?’’

‘‘हमारी बेटी को किसी और ने नहीं, प्रमोद ने ही मारा है.’’ रोते हुए शारदा ने कहा.

पत्नी की इस बात से डालचंद हैरान रह गया, ‘‘ऐसा कैसे हो सकता है?’’

‘‘तुम्हें पता नहीं है. दामाद का गांव की ही किसी लड़की से चक्कर चल रहा था. उसी की वजह से उस ने मेरी बेटी को मार डाला है.’’ शारदा ने कहा. पत्नी भले ही कह रही थी कि अर्चना की हत्या प्रमोद ने की है, लेकिन डालचंद को विश्वास नहीं हो रहा था. सूचना पाने के बाद डालचंद परिवार के कुछ लोगों के साथ थाना गजरौला कलां जा पहुंचा. अर्चना की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया था. थानाप्रभारी ने जब उसे बताया कि अर्चना की हत्या उस के दामाद प्रमोद ने ही की है, तब कहीं जा कर उसे विश्वास हुआ. पूछताछ में शारदा ने बताया कि अर्चना ने उन से बताया था कि प्रमोद का गांव की ही किसी लड़की से प्रेमसंबंध है.

लेकिन उस ने बेटी की इस बात को गंभीरता से नहीं लिया था. उसे लगा कि हो सकता है शादी के पहले रहे होंगे. शादी के बाद संबंध खत्म हो जाएंगे. उसे क्या पता कि उसी संबंध की वजह से प्रमोद उस की बेटी को मार डालेगा. पुलिस ने प्रमोद के बयान के आधार पर उस के साथी मुकेश को भी गिरफ्तार कर लिया था. उस ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया था. प्रमोद और मुकेश के बयान से अर्चना की हत्या की जो कहानी सामने आई, उस के अनुसार, निर्दोष अर्चना पति प्रमोद के प्रेमसंबंधों की भेंट चढ़ गई थी. हाईस्कूल पास करने के बाद प्रमोद ने पढ़ाई छोड़ दी थी. घर के कामों से वह कोई मतलब नहीं रखता था, इसलिए दिन भर गांव में घूमघूम कर अड्डेबाजी करता रहता था. अड्डेबाजी करने में ही उस की नजर गांव की सरिता पर पड़ी तो उस पर उस का दिल गया. फिर तो वह उस के पीछे पड़ गया. उस की मेहनत रंग लाई और सरिता का झुकाव भी उस की ओर हो गया. दोनों ही एकदूसरे को प्यार करने लगे. लेकिन इस में परेशानी यह थी कि दोनों की जाति अलगअलग थी.

सरिता पढ़ रही थी, जबकि प्रमोद पढ़ाई छोड़ चुका था. उस का पिता के साथ खेतों में काम करने में मन भी नहीं लग रहा था, ही उसे कोई ठीकठाक नौकरी मिल रही थी. उसी बीच वह सरिता में रम गया तो उस का पूरा ध्यान उसी पर केंद्रित हो गया. वह अपने भविष्य की चिंता करने के बजाय सरिता को सुनहरे सपने दिखाने लगा. इसी के साथ अन्य प्रेमियों की तरह साथ जीनेमरने की कसमें भी खाता रहा. लेकिन प्यार को अंजाम तक पहुंचाने के लिए उस के पास तो कोई व्यवस्था थी, ही समाज उस के साथ था. सरिता और प्रमोद का मिलनाजुलना लोगों की नजरों में आया तो गांव में उन्हें ले कर चर्चा होने लगी. ऐसे में सरिता को डर सताने लगा कि उस के प्यार का क्या होगा? क्योंकि अब तक उसे लगने लगा था कि वह प्रमोद के बिना जी नहीं पाएगी. वह यह भी जानती थी कि उस का बाप किसी भी कीमत पर इस रिश्ते को स्वीकार नहीं करेगा, वह उस के साथ मनमरजी से भी शादी नहीं कर सकती थी, क्योंकि तो प्रमोद ज्यादा पढ़ालिखा था, ही वह कोई कामधाम कर रहा था. ऐसे लड़के को कौन अपनी लड़की देना चाहेगा?

यह बात सरिता प्रमोद से कहती तो वह उसे आश्वस्त करते हुए कहता, ‘‘तुम्हें इतना परेशान होने की जरूरत नहीं है. मैं तुम्हारे लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाऊंगा. लेकिन हर हालत में तुम्हें हासिल कर के रहूंगा.’’ प्रमोद सरिता को कितना भी आश्वस्त करता, लेकिन वह हर वक्त तनाव में रहती. उस के लिए परेशानी यह थी कि वह प्रमोद को छोड़ भी नहीं सकती थी, क्योंकि उस का दिल इस के लिए तैयार नहीं था. जब उस से नहीं रहा गया तो उस ने प्रमोद से कहा कि वह कोई नौकरी कर ले, जिस से अगर घर छोड़ कर भागना पड़े तो गृहस्थी बसाने के लिए उस के पास कुछ पैसे तो हों. लेकिन तो केवल हाईस्कूल पास था. इतने पढ़े पर भला उसे कौन सी नौकरी मिल सकती थी.

प्रमोद और सरिता जीवन के रंगीन सपने तो देख रहे थे, लेकिन उन के इन सपनों का कोई भविष्य नहीं था. गांव में प्रमोद और सरिता के प्रेमसंबंधों की चर्चा हो और उन के घर वालों को पता चले, भला ऐसा कैसे हो सकता था. सरिता के पिता जीवनराम को भी किसी ने इस बारे में बता दिया. एक तो इज्जत की बात थी, दूसरे जीवनराम की नजरों में प्रमोद ठीक लड़का नहीं था. इसलिए वह परेशान हो उठा. घर जा कर पहले तो उस ने पत्नी को डांटा कि वह जवान हो रही बेटी का ध्यान नहीं रखती. उस के बाद सरिता को बुला कर पूछा ‘‘यह प्रमोद के साथ तेरा क्या चक्कर है? वह आवारा तेरा कौन है, जो तू उस से मिलतीजुलती है.’’

बाप की इन बातों से सरिता कांप उठी. वह जान गई कि पिता को उस के संबंधों की जानकारी हो गई है. वह उन के सामने सीधेसीधे तो अपने और प्रमोद के संबंधों को स्वीकार नहीं कर सकती थी, इसलिए उस ने कहा, ‘‘पापा, प्रमोद से मेरा कोई संबंध नहीं है. कभीकभार स्कूल आतेजाते रास्ते में मिल जाता है तो पढ़ाई के बारे में पूछ लेता है.’’ जीवनराम जानता था कि बेटी झूठ बोल रही है. जवान बेटी से ज्यादा कुछ कहा भी नहीं जा सकता था. फिर उन्हें यह भी पता नहीं था कि बात कहां तक पहुंची है, इसलिए उन्होंने सरिता को समझाते हुए कहा, ‘‘बेटा, हम तुम्हें इसलिए पढ़ा रहे हैं कि तुम्हारी जिंदगी बन जाए, लेकिन अगर मुझे कुछ ऐसावैसा सुनने को मिलेगा तो मैं तुम्हारी पढ़ाई छुड़ा कर शादी कर दूंगा.’’

‘‘पापा, आप बिलकुल चिंता करें. मैं कोई ऐसा काम नहीं करूंगी, जिस से आप को कोई परेशानी हो.’’

सरिता के इस आश्वासन पर जीवनराम को थोड़ी राहत तो मिली, लेकिन वह निश्चिंत नहीं हुए. उन्होंने पत्नी से तो सरिता पर नजर रखने के लिए कहा ही, खुद भी उस पर नजर रखते थे. जब उन्हें लगा कि इस तरह बात नहीं बनेगी तो एक दिन वह प्रमोद के बाप से मिल कर उस की शिकायत करते हुए बोले, ‘‘प्रमोद सरिता का पीछा करता है. यह अच्छी बात नहीं है. आप उसे रोकें.’’ प्रमोद का बाप वैसे ही बेटे की आवारगी से परेशान था. जब उसे इस बात की जानकारी हुई तो वह बेचैन हो उठा, क्योंकि वह नहीं चाहता था कि कोई ऐसी स्थिति आए कि उसे मुंह छिपाना पड़े. इसलिए जीवनराम के जाते ही उस ने प्रमोद को बुला कर पूछा, ‘‘जीवनराम शिकायत ले कर आया था, सरिता से तुम्हारा क्या चक्कर है?’’

प्रमोद साफ मुकर गया. लेकिन उस का बाप अपने आवारा बेटे के बारे में जानता था, इसलिए उसे डांटफटकार कर कहा, ‘‘प्रमोद, बेहतर होगा कि तुम कोई कामधाम करो, वरना हमारा घर छोड़ दो. मैं नहीं चाहता कि तुम्हारी करतूतों की वजह से गांव में मेरा सिर नीचा हो.’’ प्रमोद सिर झुकाए बाप की बातें सुनता रहा. उस ने सोचा, सरिता भी कोई कामधाम करने के लिए कह रही थी. अब बाप भी घर से भगा रहा है. इसलिए अब कुछ कर लेना ही ठीक है. बाप किसी बिजनैस के लिए पैसे दे नहीं सकता था, इसलिए उस ने दिल्ली जाने का मन बना लिया. उस का एक दोस्त सुरेश दिल्ली में पहले से ही रहता था. उस ने उस से बात की और दिल्ली आ गया.

प्रमोद का विचार था कि वह काम कर के खुद को इस काबिल बनाएगा कि कोई उस का विरोध नहीं कर सकेगा. दिल्ली में सुरेश ने उसे एक जींस बनाने वाली फैक्टरी में नौकरी दिला दी थी. काम भी बढि़या था और पैसे भी ठीकठाक मिल रहे थे, लेकिन कुछ ही दिनों में प्रमोद को सरिता की याद सताने लगी तो वह नौकरी छोड़ कर गांव चला गया. उस के बाहर जाने से जहां जीवनराम ने राहत की सांस ली थी, वहीं वापस आने से उस की चिंता फिर बढ़ गई थी. उसी दौरान उन्होंने सरिता को देर रात प्रमोद से मोबाइल फोन पर बातें करते पकड़ लिया तो उसे लगा कि अब वह बेटी को प्रमोद से अलग नहीं कर पाएगा, क्योंकि वह सरिता के साथ मारपीट, डांटफटकार कर के हार चुका था. सरिता प्रमोद को छोड़ने को तैयार नहीं थी. हद तो तब हो गई, जब सरिता ने मां से साफ कह दिया, ‘‘मां, आखिर प्रमोद में बुराई ही क्या है, हम दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं. आप लोगों को मेरी शादी कहीं न कहीं तो करनी ही है, उसी से कर दीजिए.’’

बेटी की बात सुन कर मां हैरान रह गई थी. बेटी के इसी इरादे से जीवनराम चिंतित था. उस ने देखा कि अब वह खुद कुछ नहीं कर सकता तो उस ने पंचायत बुलाई. पंचायत ने सलाह दी कि इस झंझट से बचने का एक ही तरीका है कि दोनों ही अपनेअपने बच्चों की शादी जल्द से जल्द कर दें. पंचायत ने प्रमोद से साफसाफ कह दिया था कि अगर उस ने कोई उल्टीसीधी हरकत की तो उसे गांव से निकाल दिया जाएगए. प्रमोद की समझ में नहीं रहा था कि वह क्या करे. सरिता का स्कूल जाना बंद करा दिया गया था. उसे घर से बिलकुल नहीं निकलने दिया जा रहा था. उन्हीं दिनों डालचंद अपनी बेटी अर्चना की शादी के लिए प्रमोद के घर पहुंचे तो प्रमोद के बाप छदामीलाल ने तुरंत यह रिश्ता स्वीकार कर लिया. इस के बाद 14 जून, 2013 को अर्चना और प्रमोद की शादी हो गई.

अर्चना ससुराल आई तो सभी ने उसे हाथोंहाथ लिया. इस से अर्चना बहुत खुश हुई. लेकिन पहली रात को प्रमोद ने उस के साथ जो व्यवहार किया, वह उसे कुछ अजीब सा लगा था. एक पति पहली रात जिस तरह पत्नी से प्यार करता है, वैसा प्रमोद के प्यार में नजर नहीं आया था. अर्चना सप्ताह भर ससुराल में रही. इस बीच प्रमोद के बातव्यवहार से अर्चना ने अंदाजा लगा लिया कि पति उसे पसंद नहीं करता. लेकिन मायके आने पर यह बात उस ने किसी से नहीं कही क्योंकि अगर वह यह बात मायके में किसी से बताती तो वे काफी परेशान होते.

कुछ दिनों बाद अर्चना फिर ससुराल गई. पति का व्यवहार संतोषजनक नहीं था, इसलिए अर्चना परेशान रहने लगी थी. उस ने यह भी देखा कि प्रमोद दिनभर मटरगश्ती करता रहता है. घर का एक काम नहीं करता. पति की बेजा हरकतों से उस से रहा नहीं गया तो एक दिन उस ने कहा, ‘‘तुम दिनभर इधरउधर घूमा करते हो, पापा के साथ खेतों पर काम क्यों नहीं करते?’’

‘‘मुझ से खेती के काम नहीं होते.’’ प्रमोद ने जवाब दिया.

‘‘तो फिर कोई दूसरा काम करो. इस तरह आवारा की तरह घूमना ठीक नहीं है.’’ अर्चना ने कहा

पत्नी की इस सलाह पर प्रमोद को गुस्सा गया. उस ने उसे डांट कर कहा, ‘‘तू अपने काम से काम रख. मैं क्या करूं, यह मुझे तू बताएगी?’’

‘‘तुम्हारी स्थिति से तो यही लगता है कि तुम कोई कामधंधा करने वाले नहीं. पापा से तो तुम्हारे घर वालों ने बताया था कि तुम दिल्ली में नौकरी करते हो. शादी के बाद तुम मुझे दिल्ली ले जाओगे. लेकिन मैं देख रही हूं कि आवारागर्दी करने के अलावा तुम्हारे पास कोई काम नहीं है.’’ अर्चना ने गुस्से में बोली. प्रमोद ने हंसते हुए कहा, ‘‘तुम ने अपनी शक्ल देखी है. तुम जैसी गंवार लड़की दिल्ली में रहेगी तो यहां गांव में चूल्हाचौका कौन करेगा?’’

‘‘अगर मैं गंवार थी तो मुझ से शादी ही क्यों की.’’ अर्चना ने कहा.

‘‘बहुत हो गया, अब चुप रह. मैं फालतू की बकवास सुनना नहीं चाहता.’’

अर्चना को लगा कि कुछ ऐसा है जिस की जानकारी उसे नहीं है. लेकिन जल्दी ही उसे उस की भी जानकारी हो गई. उस ने प्रमोद के पर्स में सरिता के साथ उस की फोटो देख ली. उस ने तुरंत वह फोटो प्रमोद के सामने रख कर पूछा, ‘‘तुम्हारे साथ यह किस की फोटो है?’’ जवाब देने के बजाय प्रमोद उस के गाल पर जोरदार तमाचा मार कर बोला, ‘‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरा पर्स छूने की?’’

अर्चना तड़प कर बोली, ‘‘आज तो मार दिया, लेकिन फिर कभी ऐसी गलती मत करना, वरना जिंदगीभर पछताओगे. सब के सामने मैं विवाह कर के आई हूं. इसलिए तुम पर मेरा पूरा हक है. मेरे रहते यह सब नहीं चलेगा.’’

प्रमोद चुपचाप घर से निकल गया. अर्चना जान गई कि उस के पति के जीवन में उस के अलावा भी कोई है. यह उस के लिए चिंता की बात थी. अभी उस के हाथ की मेहंदी भी नहीं छूटी थी कि उसे पता चल गया कि उसे बचाखुचा प्यार मिल रहा है. अगर यह संबंध इसी तरह चलते रहे तो अर्चना का जीवन नरक हो जाता, इसलिए रात में प्रमोद आया तो उस ने साफसाफ कह दिया, ‘‘शादी से पहले तुम्हारी जिंदगी में जो भी रही हो, मुझ से कोई मतलब नहीं है. लेकिन शादी के बाद यह सब नहीं चलेगा. मैं तुम्हारे प्रति समर्पित हूं तो तुम्हें भी मेरे प्रति समर्पित होना पड़ेगा.’’

‘‘अगर मैं समर्पित हो सका तो…?’’

…तो इस का भी इलाज है, मुझे कानून का सहारा लेना होगा.’’ अर्चना ने कहा. प्रमोद सन्न रह गया. जिसे वह सीधीसादी गंवार समझता था, वह तो उस से भी तेज निकली. अर्चना ने उसी समय अपने बाप को फोन कर के कह दिया कि वह मायके आना चाहती है. प्रमोद को लगा कि अर्चना से उस की शादी गले की हड्डी बन रही है. उस ने घर वालों के दबाव में यह शादी की थी. उस ने सोचा था कि पत्नी को जैसे चाहेगा, रखेगा, लेकिन यह तो उस के लिए मुसीबत बन रही है. अब वह इस मुसीबत से छुटकारा पाने के बारे में सोचने लगा. जब उस की समझ में कुछ नहीं आया तो वह अपने दोस्त मुकेश से मिला और उस से पूरी बात बता कर कहा, ‘‘यार! मैं किसी भी तरह इस अर्चना नाम की मुसीबत से छुटकारा चाहता हूं.’’

‘‘क्या मतलब?’’ मुकेश ने पूछा.

‘‘मतलब यह कि जीतेजी तो उस से छुटकारा मिल नहीं सकता. ठिकाने लगाने के बाद ही शुकून मिल सकता है. और इस काम में तुम्हें मेरा साथ देना होगा.’’ प्रमोद ने कहा. इस के बाद दोनों कई दिनों तक योजनाएं बनाते रहे. आखिर में जब योजना फाइनल हो गई तो दोनों मौके की तलाश करने लगे. अर्चना को घर में तो मारा नहीं जा सकता था, क्योंकि घर में प्रमोद उसे मारता तो सीधे आरोप उसी पर लगता. यानी उस का फंसना तय था. इसलिए वह उसे घर के बाहर ही मारना चहाता था. उस ने ससुर को फोन किया कि पत्नी को विदा कराने रहा है.

अर्चना इस बार पिता के साथ मायके पहुंची थी तो उस ने मां से प्रमोद के गांव की किसी लड़की से संबंध होने की बात बता दी थी. बेटी की बात सुन कर शारदा स्तब्ध रह गई थी. कुछ महीने पहले ही तो उस ने बेटी की शादी की थी. अभी तो बेटी की पूरी जिंदगी पड़ी थी. उस ने बेटी को समझाया कि वह पति को संभाले. अब वह इस बात का जिक्र किसी और से न करे, क्योंकि अगर उस के पिता को इस बारे में पता चल गया तो मामला काफी संगीन हो जाएगा. प्रमोद ससुराल पहुंचा तो अर्चना को उस के साथ जाना ही था. उसी दिन प्रमोद ने दोपहर के बाद विदाई के लिए कहा तो डालचंद ने कहा, ‘‘यह समय विदाई करने का नहीं है. लालपुर पहुंचतेपहुंचते रात हो जाएगी. इसलिए तुम कल चले जाना.’’

‘‘नहीं पापा, जाना बहुत जरूरी है. साधन से ही तो जाना है. आराम से पहुंच जाएंगे.’’ डालचंद को क्या पता था कि उस के मन में क्या है. उन्होंने अर्चना को विदा कर दिया. प्रमोद खुश था कि सब कुछ उस के मन मुताबिक हो रहा है. अर्चना भी पति के मन की बात से बेखबर थी. वह प्रमोद के साथ गजरौला कलां पहुंची तो वहां मुकेश मिल गया. दोनों अर्चना को ले कर लालपुर की ओर चल पड़े. अंधेरा हो जाने की वजह से लालपुर जाने वाली सड़क सुनसान हो गई थी. रास्ते में खेतों के बीच प्रमोद ने अर्चना को दबोच लिया तो वह चीखी, ‘‘यह क्या कर रहे हो? छोड़ो मुझे.’’

लेकिन प्रमोद ने उसे छोड़ने के लिए थोड़े ही पकड़ा था. उस ने उसे जमीन पर गिरा दिया तो मुकेश ने फुरती से उस के दोनों हाथ पकड़ लिए. इस के बाद प्रमोद ने उस का गला दबा कर उसे मार डाला. इस तरह अर्चना का खेल खत्म कर के प्रमोद ने रास्ते का कांटा निकाल दिया था. इस के बाद प्रमोद ने जल्दीजल्दी अर्चना के गहने उतारे और फिर लाश को उठा कर गन्ने के खेत में फेंक दिया. फिर योजना के मुताबिक प्रमोद थाना गजरौला कलां पहुंचा, जहां उस ने अपनी पत्नी के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा दी. लेकिन उस के हावभाव से ही थानाप्रभारी भुवनेश गौतम ने ताड़ लिया कि यह झूठ बोल रहा है. इस के बाद तो उन्होंने उसे थाने ला कर सच्चाई उगलवा ही ली

पूछताछ के बाद थानाप्रभारी ने प्रमोद और मुकेश को अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. बाद में डालचंद ने कहा कि उन की बेटी की हत्या की साजिश में प्रमोद का बाप छदामीलाल भी शामिल था तो पुलिस ने उसे भी इस मामले में अभियुक्त बना कर जेल भेज दिया

जांच अधिकारी ने सीओ दिनेश शर्मा की देखभाल में इस मामले की चार्जशीट तैयार कर के अदालत में पेश कर दी गई है. अब देखना यह है कि इस मामले में दोषियों को सजा क्या होती है.

   — कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कलियुग, काला धन और कौआ

यह कहा जाता है कि 3 चीजें जाने के बाद कभी वापस नहीं आतीं. मुंह से निकली हुई बात, कमान से निकला हुआ तीर और गुजरा हुआ वक्त. इस में चौथी चीज और जोड़ सकते हैं, जो है देश से बाहर गया हुआ काला धन.

अब तकनीक ने काफी तरक्की कर ली है तो पुराने वाले जो 3 ‘आइटम’ हैं, उन के वापस आने या अपना असर खत्म करने की काफी ज्यादा संभावनाएं पैदा हुई हैं. पर जो चौथा वाला जुड़ा है, उस का तोड़ किसी तांत्रिक तो क्या उस के फूफा के पास भी नहीं है.

कलियुग के कारनामों से यह सच निकल कर आया है कि एक बार देश से बाहर गया हुआ काला धन वापस नहीं आ सकता तो नहीं आ सकता.

हालांकि बड़े कौओं ने देश की मुंड़ेर पर बैठ कर काले धन के आने की सूचना दी है पर सूचना देने से क्या होता है? वह भी काले धन की सूचना. जमाना भी काला, कौआ भी काला और धन भी काला. ‘काला’ गुण समान है तीनों में. अंगरेजी में कहें तो ‘कौमन फैक्टर’ है.

इतिहास गवाह है कि जहांजहां गुण समान होते हैं वहां कोई भी असामान्य सी घटना नहीं घटती है. सब जुड़ा ही रहता है. वैरविरोध खत्म हो जाता है, चोरसिपाही का खेल नहीं रहता. हां, कभीकभार एकदूसरे के खिलाफ विरोध जरूर दिख जाता है. यह महज एक ही परिवार की अंदरूनी नोकझोंक सी होती है और कुछ नहीं. आप ही बताइए कि ऊपर से कई फांकों में दिखने वाला तरबूज अंदर से अलगअलग होता है क्या? पूरे का ‘ब्लड ग्रुप’ एक ही होता है. एक ही गुणधर्म.

वैसे तो हर एक का अपनाअपना गुणधर्म होता है. बिच्छू का डंक मारना, सांप का डसना, कुत्ते का भूंकना वगैरह. इसी तरह काले धन का गुणधर्म देश के बाहर जा कर न आना और कौओं का कांवकांव करना होता है. कौआ धीरे बोलेगा या कम बोलेगा तो भी कोयल जैसी ‘कुहूकुहू’ की आवाज तो आएगी नहीं. कांवकांव ही करेगा.

एक समय था जब अम्मां छत पर गेहूं सुखाते समय एक आईना रख देती थीं. कौआ जब आता तो अपना अक्स आईने में देख कर डर जाता. वह गेहूं को चोंच लगाए बिना ही उड़ कर चला जाता. अम्मां, बाबा और उन का पूरा परिवार भूखा नहीं रहता था.

अब धीरेधीरे कौओं ने आईने के पीछे से आ कर उस की पौलिश हटा दी है. इधरउधर उसे गेहूं ही गेहूं दिखता है. हमारीआप की रोटियों का एकमात्र आसरा.

अब कौआ इस आईने में अपनेआप को नहीं देख पाता तो डरता भी नहीं. आराम से अपने कौलर जैसे पंखों को ऊपर उठा कर खुश होता है और गेहूं के दानों को अपने दूसरे साथियों के साथ चोंच में भरता जाता है. अम्मां, बाबूजी और उन के बच्चे भूखे रह जाते हैं.

खैर, उदास होने की बात नहीं है. काला धन और काले कौए हमारे गौरवशाली इतिहास से सजेधजे देश पर काले टीके के समान हैं. देश पर नजर नहीं लगती. वह साफसुथरा रहता है.

अरे भई, घर की सफाई करने के बाद गंदगी बाहर ही तो डालते हैं, अंदर तो नहीं लाते? दाल साफ करते हैं तो भी कंकड़ों को बाहर निकाल दिया जाता है. उन्हें फिर थाली में तो नहीं डालते? शरीर की रोज की पाचन क्रियाओं से गंदगी बाहर ही तो निकलती है. इस से शरीर साफ रहता है.

तो मित्रो, देश की आर्थिक क्रियाओं से काला धन बाहर निकलता है तो देश भी सेहतमंद रहता है, खुशहाल रहता है, इसलिए कलियुग में कौओं को कोसना व काले धन की वापसी के बारे में सोचना बंद कर देना चाहिए. इस से देश की सेहत खराब होने का डर रहता है. देशद्रोही का आरोप लगेगा, सो अलग. ठीक कहा न…?

आराम हराम है: आराम करने की तकनीक

आज मेरी जो हालत है इस के जिम्मेदार पूरी तरह नेहरूजी हैं. कहना तो मुझे चाचा नेहरू चाहिए था पर क्या है कि जब मैं बच्ची थी तब भी वह मुझे चाचा नहीं लगते थे. वह हमारे दादा की उम्र के थे और हमारे सगे चाचा सजीले नौजवान थे, उन के केश पंडित नेहरू की तरह सफेद न थे.

यहां गौर करने की एक बात यह भी है कि चाचा नेहरू हमें बता गए हैं कि आराम हराम है और हमारे पिताजी ने इसे पत्थर की लकीर समझा. खुद तो सुबह उठते ही हमें भी उठा देते कि उठ जाग मुसाफिर भोर भई. उसी के साथ हमारे सामने वह पोथियां खुल जातीं जिन्हें पढ़ कर कोई पंडित नहीं बनता और जिस ढाई आखर को पढ़ कर इनसान पंडित हो सकता है वह भरे पेट का चोंचला है.

प्रेम के लिए फुरसत होनी चाहिए कि बैठे रहें तसव्वुरएजानां किए हुए. सुबह 4 बजे से रात 11 बजे तक की इस समय सारिणी में प्रेम के लिए हमारे पास कोई घंटा ही न बचा था. पढ़ोलिखो, नौकरीचाकरी, घरगृहस्थी, चौकाचूल्हा, बालबच्चे, और फिर पांव की लंबाई का एडजस्टमेंट, इन सब के साथ लिफाफा चंगा दिखाई दे, यह भी काम बड़ा था. जब तेजतेज गाड़ी हांकतेहांकते यह पता चला कि अब तो सफर खत्म ही हो चला है तो इस में आराम का समय न था, इसलिए आराम का अभ्यास भी न रहा.

जैसे हर कोई प्रेम नहीं कर सकता, एवरेस्ट पर नहीं चढ़ सकता, ऐसे ही हर कोई आराम भी नहीं कर सकता. आराम करना हुनर का काम है. हम चाहें तोे भी आराम नहीं कर सकते. आता ही नहीं है. पिताजी ने सिखाया कि सुबह से रात तक कुछ न कुछ करते ही रहो. अम्मां ने देखा कि लड़की खाली तो नहीं बैठी है, सब काम हो गए तो पुराने स्वेटर को उधेड़ कर फिर से बुन लो. परदे पुराने, बदरंग हो गए तो उन से गद्दे का कवर बना डालो.

दिमाग खाली न था  इसलिए शैतान उस में न रहा और भरा था इसलिए भगवान उस में न समा सके. भगवान का निवास यों भी दिमाग में नहीं दिल में होता है. हमारे यहां दिल वाले आदमी ही होते हैं, औरतें दिलविल की लग्जरी में नहीं पड़तीं. दिल होता नहीं, विल उन की कोई पूछता नहीं. एक दिल वाली ने विल कर दी तो देखा  कैसे कोर्टकचहरी हुई.

जब कहा गया है कि आराम हराम है तो इस का अर्थ है कि सुख न मिलेगा. हाथों में हथकड़ी, पैरों में छाले होंगे, आगे होगा भूख और बेकारी का जीवन, हड़तालें होंगी, अभाव यों बढे़ंगे जैसे दु्रपद सुता का चीर.

मान लीजिए चाचा नेहरू ने काम हराम कहा होता तो मुल्क सुख के हिंडोले में झूलता. किसान काम न करते, मजदूर काम न करते. सब ओर दूध की नदियां बहतीं. अप्सराएं नृत्य करतीं. आप ने कभी स्वर्ग में देवताओं को काम करते सुना है, पढ़ा है. कोई काम करे तो उन के सिंहासन हिलने लगते हैं. वह उत्सवधर्मी हेलीकाप्टरों की तरह  होते हैं जो केवल पुष्पवर्षा करते हैं. उन्हें तो बस अपना गुणगान सुनना अच्छा लगता है और यज्ञ भाग न पहुंचे तो नाराज हो जाते हैं. यह खुशी की बात है कि हमारे अधिकारी देवतुल्य होते हैं. उन्हें भी देवताओं की तरह आराम चाहिए होता है. दोनों ही उसे दारुण दुख देने को तैयार रहते हैं, जो दुष्ट उन की भक्ति नहीं करता. गरीबों को सताने का अपना आनंद जो ठहरा.

आराम हराम है का राग अलापने वाले यह भी जानते हैं कि जितने आदमी उतने ही हरामखोर. आखिर इस धरती पर कौन इतना फरमाबरदार है कि आराम का मौका मिले तो उसे हाथ आए बटेर की तरह छोड़ दे. जनगणना वालों के पास आंकड़े उपलब्ध बेशक न हों लेकिन सब को पता है कि सौ में से 10 काम करते हैं, शेष हरामखोरी कर के ही काम चलाते हैं. पूरे आलम में कुछ नहीं चलता फिर भी शासन प्रशासन चलते हैं, राजधर्म निभते हैं और तख्त भी पलटते हैं. देखा जाए तो यह सब भी एक तरह से काम  ही है. भूख और बाढ़ से मरने वालों को लगता बेशक हो पर यह काम नहीं होता. काम होता है इस की समीक्षा, कारण, दौरे और रिपोर्ट.

जिन्हें आराम करना आता है वे जानते हैं कि कब और कैसे आराम किया जाता है. उस के लिए समय कैसे निकाला जाए, इस की भी एक तकनीक होती है. आप कैसे ‘रिलैक्स’ कर सकते हैं, तनाव से कैसे छुटकारा पा सकते हैं, इस के लिए भी विशेषज्ञ सलाह देते हैं. इधर सुबह की सैर के दौरान जगहजगह ऐसे प्रशिक्षक होते हैं जो नियम के अनुसार 3 बार हंसाते हैं. हंसो, हंसो जोर से हंसो, हंसो हंसो दिलखोल कर हंसो, लोग हंसने में भी शरमाते हैं, सकुचाते हैं, हम कैसे हंसें, हमें तो हंसना ही नहीं आता.

अभी वह समय भी आएगा जब आराम करना सिखाने के लिए भी टें्रड प्रशिक्षक होंगे. आंखें बंद कीजिए, शरीर को ढीला छोडि़ए और गहरी सांस लीजिए.

ऐसे में मेरी जैसी कोई लल्ली पूछेगी, ‘‘एक्सक्यूज मी, यह सांस क्या होती है?’’

जिंदगी के रंग (अंतिम भाग)

पूर्व कथा

काम की तलाश में भटकती एक लड़की कालोनी के घरों में जा कर काम मांगती है तो सभी डांटडपट कर भगा देते हैं. अंत में वह एक कोठी में जाती है तो एक प्रौढ़ महिला श्रीमती चतुर्वेदी उस का नामपता पूछती हैं तो वह अपना नाम कमला बताती है और उन के घर कमला को काम मिल जाता है.

कुछ घंटे बाद कमला बाहर जाने की अनुमति मांगती है ताकि वह अपना सामान ले कर आ सके तो श्रीमती चतुर्वेदी उसे जाने की इजाजत दे देती हैं. शाम को श्रीमती चतुर्वेदी की बेटियां और पति आफिस से आते हैं तो नई काम वाली को देख खुश होते हैं और उस की जांचपड़ताल के बारे में श्रीमती चतुर्वेदी से पूछते हैं. श्रीमती चतुर्वेदी उसे स्टोर रूम में रहने की जगह देती हैं. बिस्तर पर लेटते ही अतीत की यादें ताजा हो जाती हैं.

आज की नौकरानी कल की डा. लता थी. पीएच.डी. करने के बाद उस ने मुंबई विश्वविद्यालय में लेक्चरर के पद के लिए आवेदन किया था. लेकिन एक रात कुछ अज्ञात लोग उस के घर में घुस आते हैं और सब को मार देते हैं पर लता को छोड़ देते हैं. वह तड़के ही अपनी जान बचा कर वहां से भाग जाती है और मुंबई आ जाती है काम की तलाश में.

और अब आगे…

एक बार सविता से मिलने उस की मामी होस्टल में आई थीं तो उन से लता की भी अच्छी जानपहचान हो गई थी. उस ने योजना बनाई कि धर्मशाला में सामान रख कर पहले वह सविता की मामी के यहां जा कर बात करेगी, क्योंकि उस ने मुंबई विश्वविद्यालय के फार्म पर मुरादाबाद का पता लिखा है और वहां के पते पर इंटरव्यू लेटर जाएगा तो इस की सूचना उसे किस तरह मिलेगी.

टे्रन से उतरने के बाद लता स्टेशन से बाहर आई और कुछ ही दूरी पर एक धर्मशाला में अपने लिए कमरा ले कर थैले में से उस डायरी को निकालने लगी जिस में सविता की मामी का पता उस ने लिख रखा था. फिर उस किताब में से रुपए ढूंढ़े और सविता की मामी के घर पहुंच गई.

मामी के सामने अपनी असलियत कैसे बताती इसलिए उस ने कहा कि उस की मुंबई में नौकरी लग गई है, लेकिन स्थायी पते का चक्कर है इसलिए मैं आप के घर का पता विश्वविद्यालय में लिखा देती हूं.

वहां से लौट कर काम की तलाश करते लता को श्रीमती चतुर्वेदी ने काम पर रख लिया था. वैसे लता मुंबई में किसी प्राइवेट कालिज में कोशिश कर के नौकरी पा सकती थी, पर एक तो प्राइवेट कालिजों में तनख्वाह कम, ऊपर से किराए का मकान ले कर रहना, खाने का जुगाड़, बिजली, पानी का बिल चुकाना, यह सब उस थोड़ी सी तनख्वाह में संभव नहीं था. दूसरे, वह अभी उस घटना से इतनी भयभीत थी कि उस ने 24 घंटे की नौकरानी बन कर रहना ही अच्छा समझा.

इस तरह लता से कमला बनी वह रोज सुबह उठ कर काम में लग जाती. दिन भर काम करती हुई उस ने बीबीजी और सभी घर वालों का मन मोह लिया था. कमला के लिए अच्छी बात यह थी कि वह लोग शाम का खाना 5 बजे ही खा लेते थे, इसलिए सारा काम कर के वह 7 बजे फ्री हो जाती थी.

काम से निबट कर वह अपने छोटे से कमरे में पहुंच जाती और फिर सारी रात बैठ कर इंटरव्यू की तैयारी करती. वैसे छात्र जीवन में वह बहुत मेहनती रही थी, इसलिए पहले से ही काफी अच्छी तैयारी थी. लेकिन फिर भी मुंबई विश्वविद्यालय में प्राध्यापक के पद पर नियुक्ति पाना और वह भी बिना किसी सिफारिश के बहुत ही मुश्किल था. वह तो केवल अपनी योग्यता के बल पर ही इंटरव्यू में पास होने की तैयारी कर रही थी. आत्मविश्वास तो उस में पहले से ही काफी था. दिल्ली विश्वविद्यालय में भी उस ने कितने ही सेमिनार अटेंड किए थे. अब तो वह बस, सारे कोर्स रिवाइज कर रही थी.

श्रीमती चतुर्वेदी के घर 4 दिन उस के बहुत अच्छे गुजरे. 5वें दिन धड़कते दिल से उस ने पूछा, ‘‘आप ने क्या सोचा बीबीजी, मुझे काम पर रखना है या हटाना है?’’

बीबीजी और घर के सभी सदस्य उस के काम से खुश तो थे ही, इसलिए मालकिन हंसते हुए बोलीं, ‘‘चल, तू भी क्या याद रखेगी कमला, तेरी नौकरी इस घर में पक्की, लेकिन एक बात पूछनी थी, तू पूरी रात लाइट क्यों जलाती है?’’

‘‘वह क्या है बीबीजी, अंधेरे में मुझे डर लगता है, नींद भी नहीं आती. बस, इसीलिए रातभर बत्ती जलानी पड़ती है,’’ बड़े भोलेपन से उस ने जवाब दिया.

कभीकभी तो लता को अपने कमला बनने पर ही बेहद आश्चर्य होता था कि कोई उसे पहचान नहीं पाया कि वह पढ़ीलिखी भी हो सकती है. एक दिन तो उस की पोल खुल ही जाती, पर जल्दी ही वह संभल गई थी.

हुआ यह कि मालकिन की छोटी बेटी, जो बी.एससी. कर रही थी, अपनी बड़ी बहन से किसी समस्या पर डिस्कस कर रही थी, तभी कमला के मुंह से उस का समाधान निकलने ही वाला था कि उसे अपने कमलाबाई होने का एहसास हो गया.

अब तो मालकिन उस से इतनी खुश थी कि दोपहर को खुद ही उस से कह देती थी कि तू दोपहर में थोड़ी देर आराम कर लिया कर.

कमला को और क्या चाहिए था. वह भी अब दोपहर को 2 घंटे अपनी स्टडी कर लेती थी. इतना ही नहीं उसे कमरे में एक सुविधा और भी हो गई थी कि रोज के पुराने अखबार ?मालकिन ने उसे ही अपने कमरे में रखने को कह दिया था. इस से वह इंटरव्यू की दृष्टि से हर रोज की खास घटनाओं के संपर्क में बनी रहने लगी थी.

श्रीमती चतुर्वेदी के यहां काम करते हुए कमला को अब 2 महीने हो गए. एक दिन बीबीजी की तबीयत अचानक अधिक खराब हो गई, लगभग बिस्तर ही पकड़ लिया था उन्होंने. उस दिन बीमार मालकिन को दिखाने के लिए घर के सभी लोग अस्पताल गए थे, तभी टेलीफोन की घंटी बजी, फोन सविता की मामी का था.

‘‘हैलो लता, तुम्हारा साक्षात्कार लेटर आ गया है, 15 दिन बाद इंटरव्यू है तुम्हारा. कहो तो इंटरव्यू लेटर वहां भिजवा दूं.’’

मामी को उस समय टालते हुए कमला ने कहा, ‘‘नहीं, मामीजी, आप भिजवाने का कष्ट न करें, मैं खुद ही आ कर ले लूंगी.’’

इंटरव्यू से 2 दिन पहले कमला ने मालकिन से बात की, ‘‘बीबीजी, परसों 15 सितंबर को मुझे छुट्टी चाहिए.’’

‘‘क्यों?’’ श्रीमती चतुर्वेदी बोलीं.

‘‘ऐसा है, बीबीजी, मेरी दूर के रिश्ते की बहन यहां रहती है, जब से आई हूं उस से मिल नहीं पाई. 15 सितंबर को उस की लड़की का जन्मदिन है, यहां हूं तो सोचती हूं कि वहां हो आऊं.’’

फिर बच्चे की तरह मचलते हुए बोली, ‘‘बीबीजी उस दिन तो आप को छुट्टी देनी ही पड़ेगी.’’

15 सितंबर के दिन एक थैला ले कर कमला चल दी. वह वहां से निकल कर उसी धर्मशाला में गई और वहां कुछ देर रुक कर कमला से लता बनी.

काटन की साड़ी पहन, जूड़ा बना कर, माथे पर छोटी सी बिंदी लगा कर, हाथ में फाइल और थीसिस ले कर जब उस ने वहां लगे शीशे में अपने को देखा तो जैसे मानो खुद ही बोल उठी, ‘वाह लता, क्या एक्ंिटग की है.’

सविता की मामी के पास से इंटरव्यू लेटर ले कर वह विश्वविद्यालय पहुंच गई. सभी प्रत्याशियों में इंटरव्यू बोर्ड को सब से अधिक लता ने प्रभावित किया था.

लौटते समय लता सविता की मामी से यह कह आई थी कि अगर उस का नियुक्तिपत्र आए तो वह फोन पर उसी को बुला कर यह खबर दें, किसी और से यह बात न कहें.

धर्मशाला में जा कर लता कपड़े बदल कर कमला बन गई और फिर मालकिन के घर जा कर काम में जुट गई थी. मन बड़ा प्रफुल्लित था उस का. अपने इंटरव्यू से वह बहुत अधिक संतुष्ट थी, इस से अच्छा इंटरव्यू हो ही नहीं सकता था उस का.

खुशी मन से जल्दीजल्दी काम करती हुई कमला से श्रीमती चतुर्वेदी ने कहा, ‘‘सच कमला, तेरे बिना अब तो इस घर का काम ही चलने वाला नहीं है. इसलिए अब जब भी तुझे अपनी बहन के यहां जाना हुआ करे तो हमें बता दिया कर, हम मिलवा कर ले आया करेंगे तुझे.’’

‘‘ठीक है, बीबीजी,’’ इतना कह कर वह काम में लग गई थी.

एक दिन सविता की मामी ने फोन पर उसे बुला कर सूचना दी कि उस का चयन हो गया है, अपना नियुक्तिपत्र आ कर उन से ले ले.

अब वह सोचने लगी कि बीमार बीबीजी से इस बारे में क्या और कैसे बात करे, क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि नौकरी ज्वाइन करने से पहले बीबीजी को यह बात बताए. उसे डर था कहीं कोई अडं़गा न आ जाए.

वहां से जा कर ज्वाइन करने का पूरा गणित बिठाने के बाद कमला बीबीजी से बोली, ‘‘बीबीजी, आज जब मैं सब्जी लेने गई थी, तब मेरी उसी बहन की लड़की मिली थी, उस ने बताया कि उस की मां की तबीयत बहुत खराब है, इसलिए बीबीजी मुझे उस की देखभाल के लिए जाना पड़ेगा.’’

‘‘और यहां मैं जो बीमार हूं, मेरा क्या होगा? हमारी देखभाल कौन करेगा? यह सब सोचा है तू ने,’’ बीबीजी नाराज होते बोलीं, ‘‘देख, तनख्वाह तो तू यहां से ले रही है, इसलिए तेरा पहला फर्ज बनता है कि तू पहले हम सब की देखभाल करे.’’

‘‘बीबीजी, आप मेरी तनख्वाह से जितने पैसे चाहे काट लेना, मेरी देखभाल के बिना मेरी बहन मर जाएगी, हां कर दो न बीबीजी,’’ अत्यंत दीनहीन सी हो कर उस ने कहा.

कमला की दीनता को देख कर बीबीजी को तरस आ गया और उन्होंने जाने के लिए हां कर दी.

सारी औपचारिकताएं पूरी करते हुए लता ने मुंबई विश्वविद्यालय में व्याख्याता पद पर कार्यभार ग्रहण कर लिया था. उसे वहीं कैंपस में स्टाफ क्वार्टर भी मिल गया था. आज उस की खुशी का ठिकाना नहीं था. इन 5 दिन में सविता की मामी के पास ही रहने का उस ने मन बना लिया था.

जाते ही उसे एम.एससी. की क्लास पढ़ाने को मिल गई थी. क्लास में भी क्या पढ़ाया था उस ने कि सारे विद्यार्थी उस के फैन हो गए थे.

5 दिनो के बाद 3 दिन की छुट्टियों में डा. लता फिर कमलाबाई बन कर बीबीजी के घर पहुंच गई.

‘‘अरी, कमला, तू इस बीमार को छोड़ कर कहां चली गई थी. तुझे मुझ पर जरा भी तरस नहीं आया. कितना भी कर लो पर नौकर तो नौकर ही होता है, तुझे तो तनख्वाह से मतलब है, कोई अपनी बीबीजी से मोह थोड़े ही है. अगर मोह होता तो 5 दिनों में थोड़ी देर के लिए ही सही खोजखबर लेने नहीं आती क्या? अब मैं कहीं नहीं जाने दूंगी तूझे, मर जाऊंगी मैं तेरे बिना, सच कहे देती हूं मैं,’’ मालकिन बोले ही जा रही थीं.

कमला खामोश हो कर बीबीजी से सबकुछ कहने की हिम्मत जुटा रही थी. तभी शाम के समय चतुर्वेदीजी के एक मित्र घर आए. वह मुंबई विश्वविद्यालय में बौटनी विभाग के हेड थे और उस की ज्वाइनिंग उन्होंने ही ली थी. ड्राइंगरूम से ही बीबीजी ने आवाज लगाते हुए कहा, ‘‘कमला, अच्छी सी 3 कौफी तो बना कर लाना.’’

‘‘अभी लाई, बीबीजी,’’ कह कर कमला कौफी बना कर जैसे ही ड्राइंगरूम में पहुंची, डा. भार्गव को देख कर उस की समझ में नहीं आया कि वह क्या करे. लेकिन फिर भी वह अंजान ही बनी रही.

डा. भार्गव लता को देख कर चौंक कर बोले, ‘‘अरे, डा. लता, आप यहां?’’

‘‘अरे, भाई साहब, आप क्या कह रहे हैं, यह तो हमारी बाई है, कमला. बड़ी अच्छी है, पूरा घर अच्छे से संभाल रखा है इस ने.’’

‘‘नहीं भाभीजी, मेरी आंखें धोखा नहीं खा सकतीं, यह डा. लता ही हैं, जिन्होंने 5 दिन पहले मेरे विभाग में ज्वाइन किया है. डा. लता, आप ही बताइए, क्या मेरी आंखें धोखा खा रही हैं?’’

‘‘नहीं सर, आप कैसे धोखा खा सकते हैं, मैं लता ही हूं.’’

‘‘क्या…’’ घर के सभी सदस्यों के मुंह से अनायास ही एकसाथ निकल पड़ा. सभी लता के मुंह की ओर देख रहे थे.

उन के अभिप्राय को समझ कर लता बोली, ‘‘हां, बीबीजी, सर बिलकुल ठीक कह रहे हैं,’’ यह कहते हुए उस ने अपनी सारी कहानी सुनाते हुए कहा, ‘‘तो बीबीजी, यह थी मेरे जीवन की कहानी.’’

‘‘खबरदार, जो अब मुझे बीबीजी कहा. मैं बीबीजी नहीं तुम्हारी आंटी हूं, समझी.’’

‘‘डा. लता, वैसे आप अभिनय खूब कर लेती हैं, यहां एकदम नौकरानी और वहां यूनिवर्सिटी में पूरी प्रोफेसर. वाह भई वाह, कमाल कर दिया आप ने.’’

‘‘मान गई लता मैं तुम्हें, क्या एक्टिंग की थी तुम ने, कह रही थी कि मुझे लाइट बिना नींद ही नहीं आती. लेकिन लता, सच में मुझे बहुत खुशी हो रही है…हम सभी को, कितने संघर्ष के बाद तुम इतने ऊंचे पद पर पहुंचीं. सच, तुम्हारे मातापिता धन्य हैं, जिन्होंने तुम जैसी साहसी लड़की को जन्म दिया.’’

‘‘पर बीबीजी…ओह, नहीं आंटीजी, मैं तो आप का एहसान कभी नहीं भूलूंगी, यदि आप ने मुझे शरण नहीं दी होती तो मैं कैसे इंटरव्यू की तैयारी कर पाती? मैं जहां भी रहूंगी, इस परिवार को सदैव याद रखूंगी.’’

‘‘क्या कह रही है…तू कहीं नहीं रहेगी, यहीं रहेगी तू, सुना तू ने, जहां मेरी 2 बेटियां हैं, वहीं एक बेटी और सही. अब तक तू यहां कमला बनी रही, पर अब लता बन कर हमारे साथ हमारे ही बीच रहेगी. अब तो जब तेरी डोली इस घर से उठेगी तभी तू यहां से जाएगी. तू ने जिंदगी के इतने रंग देखे हैं, बेटी उन में एक रंग यह भी सही.’’

खुशी के आंसुओं के बीच लता ने अपनी सहमति दे दी थी.

जिंदगी के रंग (भाग-1)

‘‘बीबीजी…ओ बीबीजी, काम वाली की जरूरत हो तो मुझे आजमा कर देख लो न,’’ शहर की नई कालोनी में काम ढूंढ़ते हुए एक मकान के गेट पर खड़ी महिला से वह हाथ जोड़ते हुए काम पर रख लेने की मनुहार कर रही थी.

‘‘ऐसे कैसे काम पर रख लें तुझे, किसी की सिफारिश ले कर आई है क्या?’’

‘‘बीबीजी, हम छोटे लोगों की सिफारिश कौन करेगा?’’

‘‘तेरे जैसी काम वाली को अच्छी तरह देख रखा है, पहले तो गिड़गिड़ा कर काम मांगती हैं और फिर मौका पाते ही घर का सामान ले कर चंपत हो जाती हैं. कहां तेरे पीछे भागते फिरेंगे हम. अगर किसी की सिफारिश ले कर आए तो हम फिर सोचें.’’

ऐसे ही जवाब उस को न जाने कितने घरों से मिल चुके थे. सुबह से शाम तक गिड़गिड़ाते उस की जबान भी सूख गई थी, पर कोई सिफारिश के बिना काम देने को तैयार नहीं था.

कितनों से उस ने यह भी कहा, ‘‘बीबीजी, 2-4 दिन रख के तो देख लो. काम पसंद नहीं आए तो बिना पैसे दिए काम से हटा देना पर बीबीजी, एक मौका तो दे कर देखो.’’

‘‘हमें ऐसी काम वाली की जरूरत नहीं है. 2-4 दिन का मौका देते ही तू तो हमारे घर को साफ करने का मौका ढूंढ़ लेगी. ना बाबा ना, तू कहीं और जा कर काम ढूंढ़.’’

‘आज के दिन और काम मांग कर देखती हूं, यदि नहीं मिला तो कल किसी ठेकेदार के पास जा कर मजदूरी करने का काम कर लूंगी. आखिर पेट तो पालना ही है.’ मन में ऐसा सोच कर वह एक कोठी के आगे जा कर बैठ गई और उसी तरह बीबीजी, बीबीजी की रट लगाने लगी.

अंदर से एक प्रौढ़ महिला बाहर आईं. काम ढूंढ़ने की मुहिम में वह पहली महिला थीं, जिन्होंने बिना झिड़के उसे अंदर बुला कर बैठाते हुए आराम से बात की थी.

‘‘तुम कहां से आई हो? कहां रहती हो? कौन से घर का काम छोड़ा है? क्याक्या काम आता है? कितने रुपए लोगी? घर में कौनकौन हैं? शादी हुई है या नहीं?’’ इतने सारे प्रश्नों की झड़ी लगा दी थी उन्होंने एकसाथ ही.

बातों में मिठास ला कर उस ने भी बड़े धैर्य के साथ उत्तर देते हुए कहा, ‘‘बीबीजी, मैं बाहर से आई हूं, मेरा यहां कोई घर नहीं है, मुझे घर का सारा काम आता है, मैं 24 घंटे आप के यहां रहने को तैयार हूं. मुझ से काम करवा कर देख लेना, पसंद आए तो ही पैसे देना. 24 घंटे यहीं रहूंगी तो बीबीजी, खाना तो आप को ही देना होगा.’’

उस कोठी वाली महिला पर पता नहीं उस की बातों का क्या असर हुआ कि उस ने घर वालों से बिना पूछे ही उस को काम पर रखने की हां कर दी.

‘‘तो बीबीजी, मैं आज से ही काम शुरू कर दूं?’’ बड़ी मासूमियत से वह बोली.

‘‘हां, हां, चल काम पर लग जा,’’ श्रीमती चतुर्वेदी ने कहा, ‘‘तेरा नाम क्या है?’’

‘‘कमला, बीबीजी,’’ इतना बोल कर वह एक पल को रुकी फिर बोली, ‘‘बीबीजी, मेरा थोड़ा सामान है, जो मैं ने एक जगह रखा हुआ है. यदि आप इजाजत दें तो मैं जा कर ले आऊं,’’ उस ने गिड़गिड़ाते हुए कहा.

‘‘कितनी देर में वापस आएगी?’’

‘‘बस, बीबीजी, मैं यों गई और यों आई.’’

काम मिलने की खुशी में उस के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. उस ने अपना सामान एक धर्मशाला में रख दिया था, जिसे ले कर वह जल्दी ही वापस आ गई.

उस के सामान को देखते ही श्रीमती चतुर्वेदी चौंक पड़ीं, ‘‘अरे, तेरे पास ये बड़ेबड़े थैले किस के हैं. क्या इन में पत्थर भर रखे हैं?’’

‘‘नहीं बीबीजी, इन में मेरी मां की निशानियां हैं, मैं इन्हें संभाल कर रखती हूं. आप तो बस कोई जगह बता दो, मैं इन्हें वहां रख दूंगी.’’

‘‘ऐसा है, अभी तो ये थैले तू तख्त के नीचे रख दे. जल्दी से बर्तन साफ कर और सब्जी छौंक दे. अभी थोड़ी देर में सब आते होंगे.’’

‘‘ठीक है, बीबीजी,’’ कह कर उस ने फटाफट सारे बर्तन मांज कर झाड़ूपोंछा किया और खाना बनाने की तैयारी में जुट गई. पर बीबीजी ने एक पल को भी उस का पीछा नहीं छोड़ा था, और छोड़तीं भी कैसे, नईनई बाई रखी है, कैसे विश्वास कर के पूरा घर उस पर छोड़ दें. भले ही काम कितना भी अच्छा क्यों न कर रही हो.

उस के काम से बड़ी खुश थीं वह. उन की दोनों बेटियां और पति ने आते ही पूछा, ‘‘क्या बात है, आज तो घर बड़ा चमक रहा है?’’

मिसेज चतुर्वेदी बोलीं, ‘‘चमकेगा ही, नई काम वाली कमला जो लगा ली है,’’ यह बोलते समय उन की आंखों में चमक साफ दिखाई दे रही थी.

‘‘अच्छी तरह देखभाल कर रखी है न, या यों ही कहीं से सड़क चलते पकड़ लाईं.’’

‘‘है तो सड़क चलती ही, पर काम तो देखो, कितना साफसुथरा किया है. अभी तो जब उस के हाथ का खाना खाओगे, तो उंगलियां चाटते रह जाओगे,’’ चहकते हुए मिसेज चतुर्वेदी बोलीं.

सब खाना खाते हुए खाने की तारीफ तो करते जा रहे थे पर साथ में बीबीजी को आगाह भी करा रहे थे कि पूरी नजर रखना इस पर. नौकर तो नौकर ही होता है. ऐसे ही ये घर वालों का विश्वास जीत लेते हैं और फिर सबकुछ ले कर चंपत हो जाते हैं.

यह सब सुन कर कमला मन ही मन कह रही थी कि आप लोग बेफिक्र रहें. मैं कहीं चंपत होने वाली नहीं. बड़ी मुश्किल से तो तुझे काम मिला है, इसे छोड़ कर क्या मैं यों ही चली जाऊंगी.

खाना वगैरह निबटाने के बाद उस ने बीबीजी को याद दिलाते हुए कहा, ‘‘बीबीजी, मेरे लिए कौन सी जगह सोची है आप ने?’’

‘‘हां, हां, अच्छी याद दिलाई तू ने, कमला. पीछे स्टोररूम है. उसे ठीक कर लेना. वहां एक चारपाई है और पंखा भी लगा है. काफी समय पहले एक नौकर रखा था, तभी से पंखा लगा हुआ है. चल, वह पंखा अब तेरे काम आ जाएगा.’’

उस ने जा कर देखा तो वह स्टोररूम तो क्या बस कबाड़घर ही था. पर उस समय वह भी उसे किसी महल से कम नहीं लग रहा था. उस ने बिखरे पड़े सामान को एक तरफ कर कमरा बिलकुल जमा लिया और चारपाई पर पड़ते ही चैन की सांस ली.

पूरा दिन काम में लगे रहने से खाट पर पड़ते ही उसे नींद आ गई थी, रात को अचानक ही नींद खुली तो उसे, उस एकांत कोठरी में बहुत डर लगा था. पर क्या कर सकती थी, शायद उस का भविष्य इसी कोठरी में लिखा था. आंख बंद की तो उस की यादों का सिलसिला शुरू हो गया.

आज की कमला कल की डा. लता है, एस.एससी., पीएच.डी.. उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के कितने बड़े घर में उस का जन्म हुआ था. मातापिता ने उसे कितने लाड़प्यार से पाला था. 12वीं तक मुरादाबाद में पढ़ाने के बाद उस की जिद पर पिता ने उसे दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए भेज दिया था. गुणसंपन्न (मेरिटोरिअस) छात्रा होने के कारण उसे जल्द ही हास्टल में रहने की भी सुविधा मिल गई थी.

लता ने बी.एससी. बहुत अच्छे अंकों से उत्तीर्ण की. फिर वहीं से एस.एससी. बौटनी कर लिया. पढ़ाई के अलावा वह दूसरी गतिविधियों में भाग लेती थी. भाषण और वादविवाद के लिए जब वह मंच पर जाती थी तो श्रोताओं के दिलोदिमाग पर अपनी छाप छोड़ जाती थी. उस के अभिनय का तो कोई जवाब ही नहीं था, यूनिवर्सिटी में होने वाली नाटकप्रतियोगिताओं में उस ने कई बार प्रथम स्थान प्राप्त किया था. बाद में दिल्ली विश्वविद्यालय से ही लता ने एम.फिल और पीएच.डी. भी कर ली थी.

पीएच.डी. पूरी करने के बाद उस ने मुंबई विश्वविद्यालय में लेक्चरर पद के लिए आवेदन किया था. वह इंतजार कर रही थी कि कब साक्षात्कार के लिए पत्र आए, तभी एक दिन अचानक घटी एक घटना ने उसे आसमान से जमीन पर पटक दिया.

एक रात घर में सभी लोग सोए हुए थे कि अचानक कुछ लोगों ने हमला बोल दिया. उस की आंखों के सामने उन्होंने उस के मातापिता को गोलियों से भून डाला. भाई ने विरोध किया तो उसे भी गोली मार दी गई. वह इतना डर गई कि अपनी जान बचाने के लिए पलंग के नीचे छिप गई.

अपने सामने अपनी दुनिया को बरबाद होते देखती रही, बेबस लाचार सी, पर कुछ भी नहीं बोल पाई थी वह. ये लोग पिता के किसी काम का बदला लेने आए थे. पिता की पुश्तैनी लड़ाई चल रही थी. कितने ही खून हो चुके थे इस बारे में.

6 लोगों के सामने वह कर भी क्या सकती थी. पलंग के नीचे छिपी वह अपने आप को सुरक्षित अनुभव कर रही थी. पिता ने कभीकभार सुनाई भी थीं ये बातें. अत: उसे कुछ आभास सा हो गया था कि ये लोग कौन हो सकते हैं. उस के जेहन में पिता की कही बातें याद आ रही थीं.

डर का उस ने अपने को और सिकोड़ने की कोशिश की तो उन में से एक की नजर उस पर पड़ गई और उस ने पैर पकड़ कर उसे पलंग के नीचे से खींच लिया और चाकू से उस पर वार करने जा रहा था कि उस के एक साथी ने उस का हाथ पकड़ कर मारने से रोक दिया.

‘लड़की, हम क्या कर सकते हैं यह तो तू ने देख ही लिया है. इस घर का सारा कीमती सामान हम ले कर जा रहे हैं. चाहें तो तुझे भी मार सकते हैं पर तेरे बाप से बदला लेने के लिए तुझे जिंदा छोड़ रहे हैं कि तू दरदर घूम कर भीख मांगे और अपने बाप के किए पर आंसू बहाए. हमारे पास समय कम है. हम जा रहे हैं पर कल इस मकान में तेरा चेहरा देखने को न मिले. अगर दिखा तो तुझे भी तेरे बाप के पास भेज देंगे,’ इतना कह कर वे सभी अंधेरे में गुम हो गए.

अब सबकुछ शांत था. कमरे में उस के सामने खून से लथपथ उस के परिवार के लोगों की मृत देह पड़ी थी. वह चाह कर भी रो नहीं सकती थी. घड़ी पर नजर पड़ी तो रात के सवा 3 बजे थे. लता का दिमाग तेजी से चल रहा था. उस के रुकने का मतलब है पुलिस के सवालों का सामना करना. अदालत में जा कर वह अपने परिवार के कातिलों को सजा दिला पाएगी. इस में उसे संदेह था क्योंकि भ्रष्ट पुलिस जब तक कातिलों को पकड़ेगी तब तक तो वे उसे मार ही डालेंगे.

उस ने अपने सारे सर्टिफिकेट और अपनी किताबें, थीसिस, 4 जोड़ी कपड़े थैली में भर कर घर से निकलने का मन बना लिया, पापा और मम्मी ने उसे जेब खर्च के लिए जो रुपए दिए वे उस ने किताबों के बीच में रखे थे. उन पैसों का ध्यान आया तो वह कुछ आस्वस्त हुई.

किसी की हंसतीखेलती दुनिया ऐसे भी उजड़ सकती है, ऐसी तो उस ने कल्पना भी नहीं की थी. फिर भी चलने से पहले पलट कर मांबाप और भाई के बेजान शरीर को देखा तो आंखों से आंसू टपक पड़े. फिर पिता के हत्यारे की कही बातें याद आईं तो वह तेजी से निकल गई. चौराहे तक इतने सारे सामान के साथ वह भागती गई थी. उस में पता नहीं कहां से इतनी ताकत आ गई थी. शायद हत्यारों का डर ही उसे हिम्मत दे रहा था, वहां से दूर भागने की.

लता ने सोचा कि किसी रिश्तेदार के यहां जाने से तो अच्छा है, जहां नौकरी के लिए आवेदन कर रखा है वहीं चली जाती हूं. आखिर छात्र जीवन में की गई एक्ंिटग कब काम आएगी. किसी के यहां नौकरानी बन कर काम चला लूंगी. जब तक नौकरी नहीं मिलेगा, किसी धर्मशाला में रह लूंगी. मुंबई जाते समय उसे याद आया कि उस की रूम मेट सविता की मामी मुंबई में ही रहती हैं.

-क्रमश:

…क्या क्या ख्वाब दिखाए: मेरी पत्नी छंदा

ख्वाब दिखाना तो महिलाओं का शगल होता है. मेरी पत्नी छंदा को भी सपने दिखाने का शौक है. मैं ने एक दिन छंदा से कहा, ‘‘तुम प्लीज मुझे सपने मत दिखाया करो. यह सब काम तो प्रेमिका का होता है.’’

वह गार्डन में मिलती है. मुसकराती है, जूड़े में लगे फूल को संवारती है, फिर धीरे से कहती है, ‘‘हमारी शादी हो जाएगी न हैंडसम, तब मैं डैड से कह कर दफ्तर में पीए बनवा दूंगी. कार दिलवा दूंगी फिर हम हनीमून के लिए बैंकाक, सिंगापुर जाएंगे. बड़ा मजा आएगा न.’’

प्रेमी ख्वाब के समुद्र में गोता लगाने लगता है. बाद में पता चलता है कि ऐसे ख्वाब के चक्कर उस ने कई पे्रमियों के साथ चलाए हैं. सब को पतंग समझ कर सपनों के आसमान पर जी भर कर उड़ाया है. अपनी जमीन छोड़ चुके प्रेमी हवा में उड़ते रहे और वे अब जमीन के रहे न आसमान के, त्रिशंकु बन कर अधर में लटकते रहे.

मैं ने कहा, ‘‘क्षमा करना देवी, मैं शादीशुदा हूं, घर में सपने दिखाने के लिए पत्नी है. वह रातदिन सपने दिखाती रहती है.’’

प्रेमिका ठहाका मार कर हंसते हुए बोली, ‘‘पत्नी व सपने? अच्छा मजाक कर लेते हो. सपने दिखाना प्रेमिका को ही शोभा देता है. पत्नी तो बेचारी चूल्हाचौका,  झाड़ूपोंछा, बर्तनों की सफाई में, बच्चों की चिल्लपों में उलझी रहती है. उस के पास न तो सोने की फुरसत होती है न सपने देखने का समय बचता है. एक पल पति से बात करने के लिए तरस जाती है बेचारी. घरगृहस्थी का चक्कर होता ही ऐसा है. पत्नी तो ब्लाटिंगपेपर बन कर रह जाती है जहां सारे सपने एकएक कर सोख लिए जाते हैं.’’

इस के बाद प्रेमिका की खिल- खिलाहट काफी देर तक मेरे कान में गूंजती रही. मैं मन ही मन एक फिल्मी गीत गुनगुनाने लगा, ‘‘रात ने क्याक्या ख्वाब दिखाए…’’

सात फेरों के समय पत्नी का हर फेरा किसी रंगीन ख्वाब से कम नहीं होता. पहले फेरे में छंदा ने ख्वाब का पहला फंदा डालते हुए कहा था, ‘‘डार्लिंग, मैं वचन देती हूं कि मेरी ओर से तुम्हें किसी प्रकार की शिकायत नहीं होगी.’’

मैं ने कहा था, ‘‘थैंक्स…’’

दूसरा फेरा लेते हुए वह बोली थी, ‘‘मैं तुम्हें वह सब सुख दूंगी जो हर पति चाहता है.’’

मैं ने प्रसन्न मुद्रा में कहा, ‘‘ख्वाब अच्छा है. बुनती जाओ.’’

वह तुरंत बोली, ‘‘हम अपने बच्चों को जापान पढ़ने भेजेंगे.’’

ख्वाबों के आकाश से वह तारे तोड़ने लगी. तब मेरा पति धर्म जाग गया.

मैं ने पूछा, ‘‘ठंडा पीओगी? सपने बुनने में तुम्हें राहत मिलेगी.’’

‘‘आप ऐसा कैसे बोल रहे हैं. मैं तो अपनी गृहस्थी की नींव मजबूत करने के लिए अपनी कोमल भावनाएं जाहिर कर रही थी. तुम्हारी पत्नी बन रही हूं. खाना बनाऊंगी भी और पेट भर तुम्हें खिलाऊंगी भी. तुम तो जानते ही होगे कि पत्नी अपने पति के दिल पर शासन करने के लिए उस के पेट से ही रास्ता बनाती है.’’

छंदा नारी रहस्य बताती जा रही थी.

‘‘मतलब?’’ मैं ने पूछा.

‘‘जो पत्नी स्वादिष्ठ भोजन बनाना जानती है उस का पति हमेशा उस के आसपास मंडराता रहता है, फुदकता रहता है. उन के बीच सदैव प्रेम बना रहता है. प्यार कभी मुरझाता नहीं.’’

छंदा सप्तपदी की एकएक शपथ में ख्वाबों का उल्लेख करती रही, जिस में कम खर्च, सहनशीलता, आपसी सहयोग ‘…सुख मेरा ले ले मैं दुख तेरा ले लूं’ टाइप के फिल्मी गीत के मुखड़े शामिल थे.

ऐसी बातें कर जो सपने छंदा ने मुझे दिखाए तब मैं ने अपने भाग्य को सराहा था. अपने को दुनिया का सब से भाग्यशाली पति समझा था, जिसे ऐसी सुशील, दूरदर्शी पत्नी मिली थी.

 

गृहस्थी के विषय में मैं निश्ंिचत था. ख्वाबगाह में आराम से लेटेलेटे चैन की बांसुरी बजाता रहा. तब मुझे क्या पता था कि छंदा ने अभी तो सिर्फ मेरी उंगली पकड़ी है, वह धीरेधीरे पहुंचा पकड़ने की गुप्त तैयारी कर रही है.

छंदा ने कहा, ‘‘सुनो, मिसेज चोपड़ा ने बसंत विहार में 45 लाख का फ्लैट लिया है. क्यों न हम भी एक फ्लैट वहां बुक करा लें. आप का ख्वाब पूरा हो जाएगा.’’

मेरे कान खड़े हो गए. एक पल को मुझे लगा कि मेरा ख्वाब टूटने से कहीं मेरा ब्लडप्रेशर न बढ़ जाए. गंभीर हो कर मैं ने कहा, ‘‘प्रिय छंदा, मध्यवर्गीय परिवार के सपने भी छोटेछोटे होते हैं. बड़ेबड़े सपने देखना हमें शोभा नहीं देता. इन के टूटने पर हम डिप्रेशन के शिकार हो सकते हैं. ख्वाब तो शुद्ध घी की तरह होता है जिसे हर कोई पचा नहीं पाता. अपना यह छोटा सा मकान क्या बुरा है. सिर पर बस, छत होनी चाहिए. रातोंरात तुम्हारे लखपति बनने के ख्वाब ने ही हमें शेयरमार्केट के आकाश से पटक कर जमीन दिखला दी. तब तुम ने इस हादसे को सहजता से लिया था.’’

‘‘ऐसी करवटें तो शेयर बाजार का ऊंट बदलता रहता है. आज घाटे में हैं कल फिर लाभ में आ जाएंगे. सब दिन एक जैसे नहीं होते,’’ कहते हुए वह मुझे फिर से अच्छे दिन आने के ख्वाब दिखाने लगी.

मैं जानता हूं कि बीवी के ख्वाब के पीछे उस की महत्त्वाकांक्षी भावनाएं ही हैं. मैं ने विवाह के समय ली गई शपथ याद दिलाते हुए कहा, ‘‘तुम सभी सुख मुझे दोगी जो हर पति चाहता है.’’ मेरे द्विअर्थी संवाद सुन कर वह ‘धत’ कहते हुए शरमा गई.

मेरी स्थिति ‘खरबूजे को देख खरबूजा रंग बदलता है’ की तरह हो गई. मैं भी पत्नी के साथ रहतेरहते रातदिन ख्वाब देखने लगा हूं. हम शाम को साथसाथ ख्वाब बुनते हैं. ख्वाब देखना आज देश की पहली जरूरत है. ख्वाब ही तो हमें आगे बढ़ाते हैं. पहले जब मैं ख्वाब नहीं देखता था तब रक्तचाप, मधुमेह बीमारी का शिकार था. अब ख्वाब साकार करने के लिए नईनई योजनाएं बना रहे हैं. इसी अनुसार अर्थात चादर के अनुसार पैर पसार रहे हैं. आशा का संचार मन में हो रहा है. छंदा अब पत्नी के रूप में प्रेमिका नजर आने लगी है. नएनए ख्वाबों की जननी है वह, उसे मैं अब ख्वाबों की मलिका कहने लगा हूं.

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