दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 : आप का दम बाकी बेदम

सियासत में जो सत्ता पर काबिज होता है, वही सिकंदर कहलाता है. इन चुनावों में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने इसे दोबारा सच साबित कर दिया. उन्हें दिल्ली की जनता ने अपना दिल ही नहीं दिया, बल्कि ‘झाड़ू’ को वोट भी भरभर कर दिए, 70 में से 62 सीटें.

किसी सत्तारूढ़ दल के लिए इस तरह से अपना तख्त बचाए रख पाना ढोलनगाड़े बजाने की इजाजत तो देता ही है, वह भी तब जब दिल्ली को किसी भी तरीके से जीतने के ख्वाब देखने वाली भारतीय जनता पार्टी के तमाम दिग्गज नेता यह साबित में करने लगे थे कि यह चुनाव राष्ट्रवाद और राष्ट्रद्रोही सोच के बीच जंग है, यह चुनाव भारत और पाकिस्तान के हमदर्दों के बीच पहचान करने की लड़ाई है, यह चुनाव टुकड़ेटुकड़े गैंग को नेस्तनाबूद करने की आखिरी यलगार है.

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पर, दिल्ली की जनता ने पाकिस्तान की सरहदों को वहीं तक समेटे रखने में ही अपनी भलाई समझी और बिजली, पानी, सेहत और पढ़ाईलिखाई को तरजीह देते हुए 8 फरवरी, 2020 को आम आदमी पार्टी के चुनावी निशान ‘झाड़ू’ पर इतना प्यार लुटाया कि 11 फरवरी, 2020 को जब नतीजे आए, तो भाजपाई ‘कमल’ 8 पंखुडि़यों में सिमट कर मुरझा सा गया. कांग्रेस के ‘हाथ’ पर तो जो 0 पिछली बार चस्पां हुआ था, उस का रंग और भी गहरा हो गया.

केजरीवाल के माने

साल 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव से तकरीबन 2 साल पहले जब देश की राजधानी के जंतरमंतर पर एक बूढ़े, लेकिन हिम्मती समाजसेवी अन्ना हजारे ने 5 अप्रैल, 2011 को देश की तमाम सरकारों को भ्रष्टाचार के मुद्दे और लोकपाल की नियुक्ति पर घेरा था, तब अरविंद केजरीवाल और उन के कुछ जुझारू दोस्तों ने दिल्ली की तब की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के कार्यकाल में हुए भ्रष्टाचार को पानी पीपी कर कोसा था और दिल्ली की जनता को सपना दिखाया था कि अगर उसी के बीच से कोई ईमानदार आम आदमी सत्ता पर अपनी पकड़ बनाता है तो यकीनन वह उन को बेहतर सरकार दे सकता है. तब दिल्ली के तकरीबन हर बाशिंदे को ‘मैं आम आदमी’ कहने में गर्व महसूस हुआ था.

अरविंद केजरीवाल का तीर निशाने पर लगा था. साल 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में उन की पार्टी को उम्मीद से बढ़ कर 28 सीटें मिली थीं. भाजपा 32 सीटें जीत कर सब से बड़ी पार्टी बनी थी, जबकि कांग्रेस महज 7 सीटों पर सिमट कर रह गई थी.

इस के बाद अरविंद केजरीवाल कांग्रेस के समर्थन से 28 दिसंबर, 2013 से 14 फरवरी, 2014 तक 49 दिनों के लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री बने थे, पर विधानसभा में कांग्रेस और भाजपा के लोकपाल बिल के विरोध में एक हो जाने पर और भ्रष्ट नेताओं पर लगाम कसने वाले इस लोकपाल बिल के गिर जाने के बाद उन्होंने नैतिक आधार पर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था.

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इस के बाद साल 2014 में देश में लोकसभा चुनाव हुए और भाजपा की अगुआई वाली सरकार देश में बनी. दिल्ली की सातों सीटें भाजपा को मिलीं. इसे नरेंद्र मोदी युग की शुरुआत माना गया और तब दिल्ली के आगामी विधानसभा चुनाव को ले कर भाजपाई आश्वस्त थे कि अब तो दिल्ली भी उन की हुई, पर अरविंद केजरीवाल की अगुआई में फरवरी, 2015 के चुनावों में उन की आम आदमी पार्टी ने 70 में से रिकौर्ड 67 सीटें जीत कर भारी बहुमत हासिल किया और 14 फरवरी, 2015 को वे दोबारा दिल्ली के मुख्यमंत्री पद पर काबिज हुए.

आप के पिछले 5 साल

अरविंद केजरीवाल ने पिछले 5 सालों में अपने किए गए कामों पर इस बार के चुनाव में जनता से वोट मांगे. उन्होंने तो इतना तक कह दिया था कि अगर उन्होंने काम नहीं कराया है, तो जनता उन्हें वोट न दे.

अरविंद केजरीवाल की यह साफगोई और ईमानदार छवि उन के द्वारा दिल्ली को मुफ्त में बिजली, पानी, मोहल्ला क्लिनिक, साफसुथरे सरकारी स्कूल और चिकित्सा सुविधाओं को जनता तक पहुंचाने के दम पर बनी थी. उन्होंने हर मौके पर दिल्ली पुलिस को आड़े हाथ लिया था और खुद को जनता का कवच बना दिया था.

मुफ्त बिजलीपानी का फार्मूला जनता को बहुत रास आया. 200 यूनिट बिजली मुफ्त मिलना जनता को यह बात सिखा गया कि अगर वह चौकस रहे तो तय कोटे में अपना काम भी चला सकती है और बिजली बचाने में अपना योगदान भी दे सकती है. अब उसे सरकारी खंभे में कांटा लगाने की जरूरत नहीं थी. मुफ्त पानी ने तो सोने पर सुहागे जैसा काम किया. बहुत से लोग टैंकर माफिया के चंगुल से निकल गए.

अरविंद केजरीवाल के दूसरे वजीर मनीष सिसोदिया ने एक कदम आगे बढ़ कर सरकारी स्कूलों के साथसाथ सरकारी अस्पतालों में कई ऐसे सुधार किए कि दिल्ली की जनता के जेहन में यह बात बैठ गई कि सरकार का मन हो तो वह अपनी अवाम का खयाल रख सकती है. इस के साथ ही आम आदमी पार्टी ने कच्ची कालोनियों को पक्का करने की अपनी मुहिम भी चलाए रखी.

चुनाव से ठीक पहले दिल्ली की सरकारी बसों में महिलाओं को मुफ्त में सफर करने का जो तोहफा इस सरकार ने दिया, वह गरीब जनता की जेब पर सीधा असर डाल गया. निचले तबके की औरतों और लड़कियों को इस से बहुत फायदा मिला.

भाजपा के दांव पड़े उलटे

एक के बाद एक कई राज्यों में अपनी सरकार गंवाने वाली और दिल्ली में मजबूत चेहरे और आपसी तालमेल से जूझ रही भारतीय जनता पार्टी के पास अरविंद केजरीवाल को घेरने के लिए कोई खास मुद्दे थे ही नहीं.

दिल्ली भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी अपनी ‘रिंकिया के पापा’ वाली इमेज से बाहर निकल ही नहीं पा रहे थे. दूसरे बड़े नेता भी अपने कार्यकर्ताओं से दूरी बनाए हुए थे.

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शायद सभी इस बात की राह देख रहे थे कि कब नरेंद्र मोदी और अमित शाह अपनी जादुई छड़ी घुमाएंगे और दिल्ली में बिना कोई मेहनत किए सत्ता उन की झोली में आ गिरेगी.

लेकिन जब आलाकमान को ऐसा होता नहीं दिखा तो उस ने अपना वही पुराना हिंदूमुसलिम कार्ड खेला और सीएए के लागू होने पर भारत के मुसलिम समाज में छटपटाहट हुई, तो दिल्ली में धरने पर बैठे शाहीन बाग के लोगों को टुकड़ेटुकड़े गैंग से जोड़ने की तिकड़म भिड़ाई गई.

गृह मंत्री अमित शाह अपने रंग में दिखाई दिए और उन्होंने अरविंद केजरीवाल को शाहीन बाग का अगुआ बताते हुए आतंकवादी तक कह दिया, तो उन का एजेंडा सामने आ गया कि वे दिल्ली में वोटों का ध्रुवीकरण कर के सारे हिंदू वोट अपने पक्ष में कर लेना चाहते हैं.

इस के अलावा भाजपा के पास कोई भी ऐसा चेहरा नहीं था, जो मुख्यमंत्री पद का इतना तगड़ा दावेदार हो जो अरविंद केजरीवाल को टक्कर दे सके. यहां भी नरेंद्र मोदी का चेहरा दिखा कर राष्ट्रवाद के नाम पर जनता से वोट बटोरने की सोची गई थी जिसे जनता ने नकार दिया.

भाजपा ने उस समय अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारी, जब उस ने जनता को अरविंद केजरीवाल की खामियां तो खूब गिनाईं, पर यह नहीं बताया कि अगर वह सत्ता में आई तो दिल्ली वालों की भलाई के क्याक्या काम करेगी. उस के लोकल नेता भी जनता के सामने नरेंद्र मोदी की ही बातें करते दिखे. कश्मीर, गाय, राम मंदिर, अर्बन नक्सली की हवाहवाई चिंघाड़ लगाते रहे.

सब से बड़ी बात तो यह कि भारतीय जनता पार्टी अरविंद केजरीवाल को घेरने में पूरी तरह नाकाम रही. उस के पास आम आदमी पार्टी द्वारा जनता को दी गई सुविधाओं का कोई जवाब नहीं था. न ही कोई ऐसा रोडमैप था, जो सत्ता में आने के लिए उस की राह बनता. यही वजह थी कि भाजपा के इतने तामझाम के बाद भी दिल्ली की जनता ने अपना विश्वास आम आदमी पार्टी में दिखाया और पूरे देश के लिए एक रोल मौडल पेश किया कि केंद्र सरकार की नाराजगी और सीमित सरकारी खजाने के बावजूद अगर कोई मुख्यमंत्री चाहे तो वह अपने राज्य के लोगों की भलाई के काम कर सकता है.

कांग्रेस गई गड्ढे में

लगता है, कांग्रेस यह मान कर चल रही है कि अब वह वहीं लड़ेगी जहां कम से कम नंबर 2 पर तो आ ही जाए. दिल्ली के इन चुनाव ने तो यही साबित किया है. साल 2015 के बाद अब साल 2020 में भी नतीजा वही ढाक के तीन पात रहा. कभी दिल्ली और देश में अपनी धाक जमाने वाली इस पार्टी की जीरो इस बार भी नहीं टूटी, तो सवाल उठता है कि दिल्ली की जनता ने उसे पूरी तरह क्यों नकार दिया? वह क्यों एक नालायक छात्र की तरह पूरे चुनाव में इम्तिहान देने से बचती रही? क्यों नाम के लिए हिस्सा लिया और अपनी मिट्टी पलीद करा ली?

लगता है, कांग्रेस ने अपनी कमियों पर आंखें मूंदे रहने का मन बना लिया है. उस के पास कीमती 5 साल थे, जिन में वह जनता से जुड़ कर अपनी सियासी जमीन को दोबारा बंजर से उपजाऊ बना सकती थी.

याद रहे कि आम आदमी का आज का वोटर कल का कांग्रेसी प्रेमी था. ऐसे में सुभाष चोपड़ा को आगे कर देना कांग्रेस के लिए खुदकुशी कर देने जैसा था.

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इस पर कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी का यह कहना कि सब को मालूम था कि आम आदमी पार्टी फिर से सत्ता में आएगी, पार्टी के गिर चुके कंधों की तरफ इशारा करता है.

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ अपनी हार से ज्यादा इस बात पर खुश दिखे कि बड़ेबड़े दावे करने वाली भाजपा का ऐसा हश्र हुआ?

हो सकता है कि कांग्रेस चाहती हो कि किसी भी तरह भाजपा को दिल्ली की सत्ता से दूर रखा जाए. अगर वह चुनाव में दम दिखाती तो आम आदमी पार्टी के वोट बैंक में ही सेंध लगाती. इस से भाजपा ही मजबूत होती तो उस ने पहले से ही सोचीसमझी चाल के तहत दिल्ली की गद्दी अरविंद केजरीवाल को सौंप दी.

पर अगर ऐसा है, तो यह राहुल गांधी के सियासी सफर को और ज्यादा मुश्किल बना देगा, क्योंकि राजनीति में कब, कौन पलटी मार दे, कह नहीं सकते.

केजरीवाल की चुनौतियां

अगले 5 साल फिर केजरीवाल. इस जीत से आम आदमी पार्टी की कामयाबी का ग्राफ बहुत ज्यादा बढ़ा है, तो चुनौतियां भी कम नहीं हैं. अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की जनता से जो 10 वादे किए हैं, उन्हें उन पर खरा उतरना होगा. मुफ्त की सुविधाओं और सरकारी खजाने के बीच भी तालमेल बनाना होगा. सब से बड़ी समस्या तो दिल्ली के सामने गंदगी की है.

आज जहां देखो, कचरा ही कचरा दिखाई देता है और अरविंद केजरीवाल दिल्ली को लंदन बनाने के ख्वाब देख रहे हैं. दिल्ली की कच्ची बस्तियों के हाल तो और भी बुरे हैं. नाले पर बस्ती है या बस्ती में से नाला है, इस का पता ही नहीं चलता है. बहुत से मोहल्ला क्लिनिक तक गंदगी का दूसरा नाम बन गए हैं.

आप वाले कह सकते हैं कि नगरनिगम पर भाजपा का कब्जा है, तो वह कैसे साफसफाई की मुहिम चलाए? लेकिन जनता तो आप पर ही विश्वास करती है न? सफाई मुहिम को जनता की मुहिम बना कर भी इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है और जब नगरनिगम के चुनाव हों, तो उन पर भी कब्जा जमाया जा सकता है.

इस के अलावा बेरोजगारी, माली मंदी और बढ़ती आबादी दिल्ली को बैकफुट पर ला रही है. अरविंद केजरीवाल ने जीतने के बाद दिल्ली को ‘आई लव यू’ कहा है, तो उन्हें यह भी याद रखना चाहिए कि जिस से प्यार करते हैं, उस का हर तरह से खयाल भी रखा जाता है. लिहाजा, वे दिल्ली में ही जमे रहें और पिछली बार की तरह अभी से देश की सियासत पर कब्जा जमाने के सपने न देखें, क्योंकि अभी इस लिहाज से आप के लिए भी दिल्ली दूर है.

आप की महिला उम्मीदवार भी कम नहीं

चुनाव से ऐन पहले दिल्ली की महिलाओं को डीटीसी बस में मुफ्त सफर कराने के ऐलान ने आम आदमी पार्टी को बहुत फायदा पहुंचाया. उसे दिल्ली की गद्दी पर तीसरी बार पहुंचाने में महिला वोटरों ने खूब योगदान दिया.

वैसे, इस बार के विधानसभा चुनाव में कुल 79 महिलाएं बतौर उम्मीदवार मैदान में थीं, लेकिन जलवा रहा आम आदमी पार्टी की 8 महिलाओं का. अरविंद केजरीवाल ने 9 महिला उम्मीदवारों को टिकट दी थी, जिन में से 8 ने जीत हासिल की.

कांग्रेस ने 10 महिला उम्मीदवारों पर दांव लगाया था, पर एक भी सीट नहीं हासिल हो पाई. ऐसा ही कुछकुछ भाजपा का भी हाल रहा. उस ने सब से कम 5 महिला उम्मीदवारों को टिकट दी थी, पर उन में से एक भी नहीं जीत पाई.

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सफाई वाले का बेटा भी विधायक बना इस चुनाव में 18 ऐसे चेहरे हैं, जो पहली बार विधानसभा में पहुंचे हैं. इन में से 16 विधायक तो आम आदमी पार्टी के ही हैं और 2 विधायक भाजपा के हैं. लेकिन सब से ज्यादा सुर्खियां बटोरीं आम आदमी पार्टी के कोंडली सीट से चुन कर आए कुलदीप कुमार ने. वे एक सामान्य परिवार से आते हैं. उन के पिता नगरनिगम में सफाईकर्मी हैं. वैसे, कुलदीप कुमार साल 2007 में पार्षद भी बने थे. वे 30 साल के हैं और इस बार सब से कम उम्र के विधायक बने हैं.

पौलिटिकल राउंडअप : विधानपरिषद को खत्म किया

अमरावती. हाल ही में आंध्र प्रदेश में 3 राजधानी का फार्मूला लाने वाले मुख्यमंत्री जगन  मोहन रेड्डी ने 27 जनवरी को विधानपरिषद को खत्म करने संबंधी प्रस्ताव को विधानसभा में पास कर दिया.

याद रहे कि जगन रेड्डी के ही पिता वाईएस रेड्डी ने साल 2007 में विधानपरिषद को बहाल कराया था, जबकि तेलुगु देशम पार्टी के संस्थापक एनटी रामाराव ने भी इस के 23 साल पहले साल 1985 में विधानपरिषद को खत्म कर दिया था.

वाईएसआर कांग्रेस पार्टी का आरोप है कि 3 राजधानी वाले प्रस्ताव को रोकने के लिए विपक्षी दल टीडीपी विधानपरिषद में अपने बहुमत का गलत इस्तेमाल कर रही थी, जबकि विधानसभा में इस पर मुहर लग चुकी थी.

ममता ने भी नकारा

कोलकाता. देशभर में आग लगाने वाले नागरिकता संशोधन कानून को नकराते हुए केरल, पंजाब और राजस्थान ने अपनीअपनी विधानसभा में इस के विरोध में प्रस्ताव पास कर दिया था. इसी कड़ी में एक और नाम पश्चिम बंगाल का भी जुड़ गया और 27 जनवरी को संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ पश्चिम बंगाल विधानसभा में भी प्रस्ताव पास हो गया.

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इस दौरान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विधानसभा में कहा, ‘यह प्रदर्शन केवल अल्पसंख्यकों का नहीं, बल्कि सभी का है. इस आंदोलन का सामने से नेतृत्व करने के लिए मैं हिंदू भाइयों का धन्यवाद करती हूं. पश्चिम बंगाल में हम सीएए, एनआरसी, एनपीआर को लागू नहीं होने देंगे.’

उमर अब्दुल्ला को भेजा रेजर

चेन्नई. भारत के हैंडसम नेताओं में शुमार उमर अब्दुल्ला का श्रीनगर में हाल ज्यादा अच्छा नहीं है. कश्मीर से अनुच्छेद 370 के हटने के बाद वहां इंटरनैट सेवाएं बहाल नहीं थीं. अभी हाल ही में उन्हें दोबारा बहाल किया गया तो इस प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके उमर अब्दुल्ला का एक फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिस में उन की दाढ़ी बहुत ज्यादा बढ़ी हुई नजर आ रही थी.

इसी फोटो पर तंज कसते हुए मंगलवार, 28 जनवरी को तमिलनाडु भाजपा ने उमर अब्दुल्ला को शेविंग रेजर भेज दिया और साथ ही कांग्रेस को भी लपेटे में ले लिया कि उमर अब्दुल्ला को ऐसे देखना निराशाजनक है, जबकि उन के कई ‘भ्रष्ट’ दोस्त बाहर ऐंजौय कर रहे हैं.

मायावती का सवाल

लखनऊ. नागरिकता संशोधन कानून पर उस समय और ज्यादा बहस तीखी हो गई, जब पाकिस्तानी मूल के गायक अदनान सामी को केंद्र सरकार ने ‘पद्मश्री अवार्ड’ दे दिया.

इस से नाराज बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने 28 जनवरी को कहा कि अगर पाकिस्तानी मूल के किसी गायक को नागरिकता और सम्मान मिल सकता है, तो पाकिस्तानी मुसलिमों को भी नागरिकता संशोधन कानून के तहत देश में शरण मिलनी चाहिए.

मायावती ने केंद्र की मोदी सरकार को इस कानून पर दोबारा विचार करने की नसीहत भी दी.

प्रवेश वर्मा के बिगड़े बोल

नई दिल्ली. दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को किसी भी मुद्दे पर घेरने में नाकाम रही भाजपा ने उस के नेताओं पर ही देशद्रोही होने के आरोप लगा दिए.

29 जनवरी को भाजपाई नेता प्रवेश वर्मा ने एक चुनावी रैली में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को ही नक्सली और आतंकी कह डाला.

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पश्चिमी दिल्ली से भाजपा सांसद प्रवेश वर्मा ने शाहीन बाग के बाद अरविंद केजरीवाल को निशाने पर लेते हुए कहा, ‘जैसे आतंकी और नक्सली देश को नुकसान पहुंचाते हैं, सड़कों को तोड़ते हैं, सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाते हैं, वही काम मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी कर रहे हैं.’

उद्धव ने सराहा

मुंबई. महाराष्ट्र का नया मुख्यमंत्री बनने के बाद भले ही उद्धव ठाकरे की शिव सेना और भाजपा अलगअलग राह पर चल पड़ी हैं, फिर भी उद्धव ठाकरे ने 29 जनवरी को एक कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री रह चुके देवेंद्र फडणवीस और भाजपाई नेता नितिन गडकरी की जम कर तारीफ की और उन दोनों को राज्य के विकास के लिए कदम उठाने का क्रेडिट दिया.

इस सिलसिले में उद्धव ठाकरे ने कहा, ‘हम सरकार का हिस्सा थे. भले ही हम एक ट्रेन में नहीं थे, लेकिन आज हम एक ही स्टेशन पर आ खड़े हुए हैं. राजनीति में जब किसी काम के क्रेडिट की बात आती है, तो एक नेता तब तक नेता नहीं होता जब तक वह क्रेडिट न ले, लेकिन मैं नम्रता से कहना चाहता हूं कि हमें क्रेडिट नहीं, लोगों का आशीर्वाद चाहिए.’

दिखाया बाहर का रास्ता

पटना. कभी जनता दल (यूनाइटेड) को बिहार में सत्ता का स्वाद चखाने वाले प्रशांत किशोर को इस पार्टी ने बाहर का रास्ता दिखा दिया है. उन के साथ पवन वर्मा को भी चलता कर दिया है.

29 जनवरी को जद (यू) के प्रधान महासचिव और राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी ने अपने बयान में कहा कि पिछले कई महीनों से दल के अंदर पदाधिकारी रहते हुए प्रशांत किशोर ने कई विवादास्पद बयान दिए, जो दल के फैसले के खिलाफ थे. किशोर और ज्यादा नहीं गिरें, इस के लिए जरूरी है कि वे पार्टी से मुक्त हों.

इसी तरह केसी त्यागी ने पवन वर्मा के बारे में भी कहा कि पार्टी अध्यक्ष को चिट्ठी लिख कर उसे सार्वजनिक करना, उस में निजी बातों का जिक्र करना और उसे सार्वजनिक करना यह दिखाता है कि दल का अनुशासन उन्हें स्वीकार नहीं है.

बढ़ा बेरोजगारी भत्ता

भोपाल. मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री कमलनाथ की सरकार ने बेरोजगारों को लुभाने के लिए नया काम शुरू किया है. राज्य के जनसंपर्क मंत्री पीसी शर्मा ने 29 जनवरी को संवाददाताओं को बताया, ‘राज्य के शहरी गरीब नौजवानों के लिए 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराने के लिए ‘मुख्यमंत्री युवा स्वाभिमान योजना’ चलाई गई है. इस योजना में नौजवानों को ट्रेनिंग के साथ 4,000 रुपए मासिक मानदेय दिया जाता है. इसे बढ़ा कर अब 5,000 रुपए किया जा रहा है.’

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जेल से बाहर आते ही धरे गए

गांधीनगर. एक समय गुजरात में नई क्रांति के अगुआ माने गए हार्दिक पटेल ने पूरे देश को हिला दिया था. फिर वे राजनीति में आए और  कांग्रेस में शामिल हो गए. फिलहाल वे जेल में बंद थे और जमानत पर साबरमती जेल से बाहर आए थे, पर गुरुवार, 30 जनवरी को महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया.

हार्दिक पटेल को साल 2017 के एक मामले में गांधीनगर जिला पुलिस ने गिरफ्तार किया.

पोस्टर वार के साथ चुनावी सरगर्मी

बिहार में मौसम के मिजाज के साथसाथ राजनीतिक चुनावी तापमान भी बढ़ने लगा है और राजनीतिक दलों द्वारा एकदूसरे पर पोस्टर वार जारी है.

साल 2020 में बिहार राज्य में विधानसभा चुनाव होने वाला है. शहर से ले कर गंवई इलाकों तक में चुनाव की गरमाहट के साथसाथ इस बार किस की सरकार बनेगी यह चर्चा जोरों पर है.

सरकार का पोस्टर वार

सब से पहले जनता दल (यूनाइटेड) के प्रदेश कार्यालय के बाहर होर्डिंग लगाया गया, जिस में यह दिखाया गया, ‘क्या करें विचार ठीके तो हैं नीतीश कुमार’, वहीं एक और होर्डिंग पर लिखा था, ‘चलो नीतीश के साथ चलें’.

देशी अंदाज में पोस्टर के जरीए लोगों को सम झाने की कोशिश की गई कि जब नीतीश कुमार हैं ही, तो दूसरे के नाम पर विचार क्यों करना है.

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चुनावी साल का आगाज दूसरे इस पोस्टर के साथ हुआ. पटना की कई बड़ी सड़कों पर इस तरह के पोस्टर जनता दल (यू) की तरफ से लगाए गए हैं, जिस में ऊपर के हिस्से में लिखा है, ‘हिसाब दो- हिसाब लो’. बडे़ फ्लैक्स पर बने पोस्टर को 2 हिस्सों में बांटा गया है और फिर एक शीर्षक बनाया गया है, ‘पंद्रह साल बनाम पंद्रह साल’.

एक हिस्से में लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी की तसवीर के साथ उन के कार्यालय की हालत दिखाई गई है, वहीं दूसरे हिस्से में नीतीश कुमार के साथ उन के कार्यकाल को दिखाया गया है. इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव को ले कर जद (यू) ने भय और भरोसे को केंद्रित कर नारा गढ़ा है. भय के 15 साल और भरोसे के 15 साल. यह फ्लैक्स भी जद (यू) कार्यालय के बाहर लगाया गया है.

तसवीरों के साथ बनाए गए इस बडे़ आकार के पोस्टर में सड़क और बिजली की चर्चा की गई है. लालूराबड़ी वाले शासनकाल के हिस्से में यह दिखाया गया है, वहीं नीतीश कुमार के 15 साल का जो हिस्सा है, उस में दिखाया गया है चमचमाती सड़क, फ्लाईओवर, बिजली के टावर और रोशन इलाके. इस पोस्टर में साइकिल से स्कूल जाती लड़कियां और महिला सशक्तीकरण को दिखाया गया है.

लालूराबड़ी के हिस्से वाली तसवीर में लालू प्रसाद को भैंसों के साथ एक कार्टून के साथ जोड़ा गया है. कुछ हिंसक घटनाओं की तसवीरें भी दिखाई गई हैं.

राजद का जवाबी हमला 

राजद के विधायक रविंद्र सिंह का कहना है कि  जद (यू) ने अपने नारों से ही हकीकत को बयान कर दिया कि नीतीश कुमार ठीके हैं, न कि  ठीक हैं. नीतीश कुमार को उन की पार्टी भी मजबूरी का मुख्यमंत्री मान रही है.

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छात्र राजद नेता राहुल यादव का कहना है कि ‘ठीके हैं और ठीक हैं’ में बड़ा फर्क है. ठीके हैं का मतलब कामचलाऊ होता है. ऐसे में नीतीश कुमार की हालत को सम झ सकते हैं.

राजद ने पोस्टर जारी किया, जिस का नारा है, ‘क्यों न करें विचार, बिहार जो है बीमार’. राजद ने बिहार सरकार और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की नाकामियों को उजागर किया है और अपने पोस्टर पर बिहार के नक्शे में चमकी बुखार, बाढ़, हत्या, सुखाड़, डकैती, अपहरण, लूट को दिखाते हुए बिहार की बुरी व्यवस्था को दिखाया है.

राजद ने जद (यू) का जवाब देते हुए अपने प्रदेश कार्यालय के बाहर पोस्टर लगाया, ‘ झूठ की टोकरी, घोटालों का धंधा’.

राजद ने राज्य के साथसाथ केंद्र सरकार को भी आडे़ हाथों लिया. देश में महंगाई, राफेल खरीद पर सवाल, नीरव मोदी, ललित मोदी, विजय माल्या को देश से भागने पर तंज कसा. केंद्र सरकार को जुमलों की टोकरी बताया, तो वहीं पोस्टर के एक हिस्से में बिहार सरकार पर निशाना साधते हुए सृजन घोटाला अपराध और कानून व्यवस्था के मसले को दिखाया गया है. हत्या, बलात्कार, लूट में बढ़ोतरी का आरोप है. महंगाई से जनता के परेशान होने का जिक्र है. रोजी, रोजगार, छात्रवृत्ति, हर घर नल का जल वगैरह योजनाओं पर सवाल उठाए हैं. राजद ने अपने पोस्टर में राज्य सरकार के ऐलानों को  झूठ की टोकरी कहा है.

लालू प्रसाद यादव ने नया नारा दिया, ‘दो हजार बीस, नीतीश फिनिश’. राजद का नया पोस्टर भी आया ‘दो हजार बीस, हटाओ नीतीश’.

पोस्टर वार अभी राज्य की राजधानी तक ही सिमटी है. यह संदेश पक्ष औैर विपक्ष दोनों की तरफ से गांव और कसबे में भी आ जाएगा. दोनों तरफ से अभी से ही शब्द अपनी मर्यादा खोने लगे हैं.

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भूपेश बघेल की अमेरिका यात्रा के कुछ यक्ष-प्रश्न

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल अमेरिका यात्रा प्रदेश में चर्चा का और आलोचना का सबब बनी हुई है. छत्तीसगढ़ सरकार का तर्क है भूपेश बघेल की अमेरिका यात्रा से छत्तीसगढ़ की शान, मान मे वृद्धि हुई है. अमेरिका से छत्तीसगढ़ उद्योग धंधे, पैसे आएंगे. जबकि विपक्ष विशेषकर डॉ. रमन सिंह और धरमलाल कौशिक ने भूपेश बघेल की अमेरिका यात्रा पर कटाक्ष करते हुए कहा है कि एक तरफ छत्तीसगढ़ में किसान त्राहि-त्राहि कर रहे हैं, खून के आंसू बहा रहे हैं. सरकार धान का एक-एक दाना खरीदा नहीं पा रही है और मुख्यमंत्री अमेरिका जैसे समृद्ध देश में पिकनिक मना रहे है.

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अमेरिका यात्रा पर जिस तरह भाजपा हमलावर हुई है उससे कांग्रेस तिलमिला गई है और 15 वर्ष भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री और मंत्रियों के विदेश यात्रा का ब्यौरा मांग रही है.कांग्रेस कहती है भूपेश बघेल की अमेरिका यात्रा सफल है भाजपा कहती है कि भूपेश बघेल  की यात्रा असफल है! और छत्तीसगढ़ की अस्मिता उड़ान पर प्रश्नचिन्ह लगाने वाली है. अब सवाल है कि यहां की आवाम अमेरिका यात्रा को लेकर क्या धारणा बनाती है या जिस तरह भाजपा के 15 वर्षों के कार्यकाल में डॉ रमन सिंह और उनका मंत्रिमंडल विदेश भ्रमण करता रहा,अधिकारी विदेश मे खरीददारी करते रहे वहीं सब कुछ कांग्रेस की सरकार में भी होगा? यह एक बड़ा यक्ष प्रश्न है जिसका जवाब शायद न कांग्रेस के पास है न भाजपा के पास.

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भूपेश बघेल की निवेशकों के साथ बैठक

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल  ने पहले चरण में सैन फ्रांसिस्को में करीब 250 निवेशकों से संवाद किया. आधिकारिक  जानकारी के अनुसार, बघेल को अमेरिकी निवेशकों से छत्तीसगढ़ में उद्योग लगाने के लिए अनेक  प्रस्ताव मिले हैं. यात्रा के अगले पड़ाव के लिए मुख्यमंत्री और छत्तीसगढ़ की टीम बोस्टन गयी जहां बघेल इंस्टीट्यूट फॉर कम्पीटिटीवनेस में वहां के औद्योगिक प्रतिनिधियों को छत्तीसगढ़ में निवेश करने के लिए आमंत्रित किया.

यात्रा के पहले पड़ाव में मुख्यमंत्री बघेल ने सैन फ्रांसिस्को के सिलिकन वैली और रेड वुड शोर्स में औद्योगिक प्रतिनिधियों और निवेशकों से सीधी चर्चा की.उन्होंने निवेशकों को बताया कि छत्तीसगढ़ ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ के लिए भारत के शीर्ष राज्यों में शामिल है। उन्होंने भरोसा जताया कि छत्तीसगढ़ निवेश करने के लिए सबसे अच्छी जगह है, क्योंकि यह देश के मध्य में स्थित है और यहां बेहतर कनेक्टिविटी है.

उन्होंने कहा कि राज्य की नई औद्योगिक नीति निवेशकों के लिए काफी अनुकूल है।बघेल ने एक इंटरव्यू मे कहा, ”हमारा राज्य खनिज समृद्ध है और हमारे यहां खनिज आधारित कई उद्योग हैं। हम अमेरिका की कंपनियों और निवेशकों को आने तथा मुख्य क्षेत्रों में अवसर तलाशने का न्यौता देते हैं.”छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री  अमेरिका के कई शहरों की यात्रा पर रहे. वह इस दौरान विभिन्न क्षेत्रों के प्रतिनिधियों से मुलाकात कर राज्य की, निवेशकों के अनुकूल और कारोबार सुगम नीतियों की जानकारी देते रहे .

भूपेश बघेल की दृष्टि 

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि उनकी सरकार अगले कुछ साल राज्य के लोगों की क्रयशक्ति बढ़ाने पर ध्यान देगी. राज्य सरकार गरीबी हटाने तथा खनिज, इस्पात एवं विद्युत जैसे मुख्य उद्योगों के साथ ही कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण, सूचना प्रौद्योगिकी, जैव इथेनॉल, इलेक्ट्रॉनिक्स, वस्त्र एवं परिधान, इंजीनियरिंग एवं रक्षा, उच्च शिक्षा, दवा, वाहन आदि जैसे क्षेत्रों के लिये भी प्रतिबद्ध है.

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मुख्यमंत्री के अनुसार, ” हमारा लक्ष्य लोगों की क्रयशक्ति बढ़ाना है. यदि लोगों के पास खरीदने का पैसा नहीं हो तो इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि हम कितने उद्योग लगाते हैं.बघेल ने कहा कि इस संतुलन को बनाये रखने के लिये लोगों की क्रयशक्ति बढ़ाना महत्वपूर्ण है, जो अंतत: उद्योगों और कंपनियों को फायदा  छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल का अमेरिका की कंपनियों को राज्य में निवेश का न्योता दिया .

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अमेरिका की कंपनियों को राज्य में विभिन्न क्षेत्रों में निवेश करने के लिये आमंत्रित किया. उन्होंने कहा कि उनकी सरकार खनिज व इस्पात जैसे मुख्य क्षेत्रों के साथ ही छत्तीसगढ़ के सर्वांगीण विकास में ध्यान केंद्रित कर रही है.”

दिल्ली में राजनीति के सफल प्रयोग को बिहार में दोहारने के आसार, पीके ने किया इशारा

राजधानी दिल्ली में आप ने लगातार तीसरी बार सरकार बनाई. सीएम केजरीवाल साल के पहले चुनाव में 70 में से 62 सीटों पर फतह हासिल कर विरोधियों को चारों खाने चित कर दिया. इसबार के दिल्ली चुनाव हर बार से बहुत अलग थे. आम आदमी पार्टी ने इस चुनाव को बहुत ही होशियारी के साथ लड़ा और इसमें विजय भी पाई. लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि दिल्ली जैसा प्रयोग बिहार में भी देखने को मिल सकता है. वैसे तो यूपी और बिहार की राजनीति दिल्ली की राजनीति से बहुत अलग है. यहां के मुद्दों,नेताओं,जनता सभी में काफी असमानताएं हैं फिर भी चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की बातों से ऐसा लग रहा है कि वो भी बिहार की राजनीति में हाथ आजमाना चाहते हैं.

जेडीयू से निकाले गए नेता और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने बिहार के लिए बड़ी योजना का ऐलान कर दिया है. राजधानी पटना में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रशांत ने हालांकि किसी राजनीतिक दल बनाने का तो ऐलान नहीं किया लेकिन उन्होंने राज्य के लाखों युवकों को जोड़ने के लिए ‘बात बिहार की’ कार्यक्रम की घोषणा की. अपनी योजना की घोषणा करते हुए किशोर ने आज कहा कि वह बिहार को देश के अग्रणी राज्यों में शामिल होते हुए देखना चाहते हैं और इसके लिए वह मिशन पर निकलेंगे और युवाओं की फौज तैयार करेंगे. प्रशांत की इस तैयारी को राज्य में तीसरे मोर्चे के संकेत में रूप में भी देखा जा रहा है.

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प्रशांत ने सीधे तौर पर बिहार की राजनीति में एंट्री का ऐलान तो नहीं किया लेकिन ये संकेत तो जरूर दे दिया कि वह भविष्य में ऐसा जरूर कर सकते हैं. बिहार में इस साल नवंबर में चुनाव होने हैं. उससे पहले प्रशांत की ‘बात बिहार की’ कार्यक्रम के जरिए युवाओं को जोड़ने की मंशा को तीसरे मोर्चे की कवायद से जोड़कर देखा जा रहा है. प्रशांत ने कहा कि वह बिहार के युवाओं को राजनीति सिखाएंगे और उन्हें आगे करेंगे. उन्होंने कहा, ‘मैं चुनाव नहीं लड़ूंगा लेकिन पंचायत स्तर से युवाओं को चुनकर उन्हें आगे बढ़ाया जाएगा.’ उन्होंने दावा किया बिहार में उनके पास सवा लाख सक्रिय सदस्य हैं.

किशोर ने कहा कि वह युवाओं के अपने से जोड़ने के लिए एक कार्यक्रम शुरू करने जा रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘ 20 फरवरी से बात बिहार की नाम से एक कार्यक्रम शुरू करने जा रहा हूं. राज्य के 8,800 पंचायतों में से लड़कों की एक टीम बनाने जा रहा हूं. अभी तक हमारे साथ 2 लाख 93 हजार लड़के जुड़ चुके हैं. हमसे जुड़े लोगों में बीजेपी के भी लोग शामिल हैं. 20 मार्च तक हम राज्य के 10 लाख लड़कों को शामिल करने की योजना है.’ उन्होंने कहा कि बिहार के गांव-गांव से लड़कों को जोड़कर आगे बढ़ाने की रणनीति है. हमारी योजना है कि राज्य में 10 हजार अच्छे मुखिया जीतकर आएं.’

प्रशांत किशोर की राह यहां आसान नहीं होगी क्योंकि उनको शायद नहीं मालूम की अमित शाह की अगुआई में बीजेपी का संगठन हर बूथ पर पन्ना प्रमुख साल भर पहले बना चुका है. बिहार में बीजेपी के 90 लाख तो सिर्फ प्राथमिक सदस्य हैं. अगर बूथ लेवल तक पहुंच को काउंट करें तो संख्या कहीं अधिक हो जाएगी. इसलिए जिस बुनियाद का सपना संजोकर पीके बिहार की राजनीति के महारथियों से लोहा लेने उतरे हैं, उसके बारे में खुद भी आश्वस्त नहीं हैं.

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प्रशांत किशोर ने सामाजिक और आर्थिक सूचकांक गिनाए. हर मोर्चे पर नीतीश कुमार को फेल बताया. उनका कहना था, “लड़कियों को फ्री साइकल मिल गई लेकिन शिक्षा बर्बाद हो गई, बिजली पहुंच गई लेकिन प्रति व्यक्ति आय नहीं बढ़ी. लालू के 15 साल के नाम पर राज करते रहे नीतीश लेकिन बेहतरी के लिए कुछ नहीं किया.” हालांकि प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने के लिए पीके क्या करेंगे ये बताना भूल गए. उनकी प्राथमिक शिक्षा नीति क्या होगी ये भी बताना भूल गए. कुल मिलाकर पीके वही काम कर रहे थे जिसे तेजस्वी यादव ठीक से नहीं कर पा रहे हैं.

मोटे तौर पर ये कहा जा सकता है कि पीके ने सरकार की विफलताएं तो खूब गिनाई लेकिन वो बिहार की जनता के लिए क्या करेंगे इसका कोई ठोस रोडमैप वो नहीं बता पाए. पीके भी कुछ वैसा ही कर रहे हैं जैसा की कई सालों से तेजस्वी यादव करते आ रहे हैं. फिलहार तो प्रशांत किशोर की बातों से तो यही समझ आता है कि वो पंचायत स्तर से शुरूआत करके बिहार की राजनीति में बड़ा उलटफेर करने की सोच रहे हैं लेकिन यहां मुकाबला विश्व की सबसे बड़ी पार्टी से है तो पीके को खास रणनीति के साथ मैदान पर उतरलना पड़ेगा.

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तो क्या विकास की राजनीति के आगे फीकी पड़ गई शाहीन बाग की राजनीति

लुटियंस दिल्ली की आवाम ने इस बार भी अरविंद केजरीवाल की दिल खोलकर वोट दिए. विरोधी पार्टियों के खेमों में मातम पसरा हुआ है. भाजपा लगातार हिंदी बेल्टों में चुनाव हारती जा रही है. फिलहाल दिल्ली के चुनावों में दो पार्टियों के बीच ही टक्कर देखने को मिली. भाजपा और आप. भाजपा के पास न तो चेहरा और न ही काम. वहीं इसके उलट आप नेता सीएम केजरीवाल के पास खुद का उनका चेहरा था और पांच साल में दिल्ली में किया गया विकास. इसमें कोई दोराय नहीं कि दिल्ली में सरकारी स्कूलों की हालत बेहतर हुई है. दिल्ली में 24 घंटे बिजली आई और 200 यूनिट तक फ्री बिजली. इसके साथ ही साथ एक ईमानदार छवि.

लगभग 21 दिनों तक चले आक्रामक प्रचार के बावजूद दिल्ली में भाजपा की नैया डूब गई. भाजपा ने ध्रुवीकरण की आक्रामक पिच तैयार कर रखी थी, इसके बावजदू पार्टी को सफलता नहीं मिली. शाहीनबाग में प्रदर्शन से मानों भाजपा को मुंहमागी मुराद जैसा कुछ हाथ लग गया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर गृहमंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा सहित अन्य छोटे से लेकर बड़े नेता हर रैली और सभाओं में शाहीनबाग का मुद्दा उछालते रहे. सभाओं में ये नेता जनता के बीच सवाल उछालते रहे कि आप शाहीनबाग के साथ हैं या खिलाफ?

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इसके अलावा शरजील इमाम के असम वाले बयान, जेएनयू, जामिया हिंसा को भी भाजपा ने मुद्दा बनाकर बहुसंख्यक मतदाताओं को साधने की कोशिश की. छोटे से केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली के लिए भाजपा ने जितनी ताकत झोंक दी, उतनी बड़े-बड़े राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी पार्टी ने मेहनत नहीं की थी. लगभग 4500 सभाओं का आयोजन किया गया. भाजपा ने गली-गली मुख्यमंत्री, पूर्व मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री, सांसद-विधायकों की फौज दौड़ा दी. कोई मुहल्ला नहीं बचा, जहां बड़े नेताओं ने नुक्कड़ सभाएं नहीं कीं. भाजपा ने अपने पक्ष में जबरदस्त माहौल बनाने की कोशिश की, लेकिन आम आदमी पार्टी की मुफ्त बिजली-पानी देने की योजना पर पार नहीं पा सकी.

दिल्ली भाजपा के एक बड़े नेता ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर कहा, “केंद्रीय नेतृत्व ने जबरदस्त उत्साह के साथ काम किया. सिर्फ केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने केवल 11 दिनों में 53 सभाएं की, दूसरी तरफ भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने 63 सभाएं की. केंद्रीय नेतृत्व ने महज 21 दिन में चुनाव को टक्कर का बना दिया. लेकिन पूरे पांच साल तक दिल्ली भाजपा सोती रही, जिसकी वजह से हम हार गए.”

भाजपा के नेता मानते हैं कि केजरीवाल ने जिस तरह से दो सौ यूनिट बिजली, महीने में 20 हजार लीटर पानी मुफ्त कर दिया, उससे आम जन और गरीब परिवारों की जेब पर भार कम हुआ है. लाभ पाने वाला गरीब तबका चुनाव में साइलेंट वोटर बना नजर आया.

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बिजली कंपनियों के आंकड़ों की बात करें, तो एक अगस्त को योजना की घोषणा होने के बाद दिल्ली में कुल 52 लाख 27 हजार 857 घरेलू बिजली कनेक्शन में से 14,64,270 परिवारों का बिजली बिल शून्य आया. लाभ पाने वालों ने झाड़ू पर बटन दबाया. दूसरी तरफ, भाजपा का यह भी मानना है कि शाहीनबाग से हुए ध्रुवीकरण का फायदा आप सरकार को हुआ. नागरिकता संशोधन कानून आने के बाद से मुस्लिमों की बड़ी आबादी के मन में डर बैठ गया है. मुसलमानों ने उस पार्टी को जमकर वोट दिया जो भाजपा को हराने में सक्षम थी.

कांग्रेस दिल्ली चुनाव में कहीं नजर नहीं आई, ऐसे में मुसलमानों का अधिकतर वोट आम आदमी पार्टी को गया. यहां तक कि चांदनी चौक, सीलमपुर, ओखला आदि सीटों पर मुस्लिमों का वोट कांग्रेस को न जाकर आम आदमी पार्टी को गया. आम आदमी पार्टी ने महिलाओं पर भी फोकस किया, और इसके जवाब में भाजपा ने कुछ नहीं किया. केजरीवाल सरकार ने बसों में 30 अक्टूबर को भैयादूज के दिन से मुफ्त सफर की महिलाओं को सौगात दी. एक आंकड़े के मुताबिक, प्रतिदिन करीब 13 से 14 लाख महिलाएं दिल्ली में बसों में सफर करती हैं.

स्कूलों की वजह से दिल्ली का एक बड़ा तबका प्रभावित हुआ है. दिल्ली सरकार ने सबसे ज्यादा लाभ निजी स्कूलों की फीस पर अंकुश लगाकर मध्यमवर्गीय जनता को दिया. गौरतलब है कि अधिकांश स्कूल कांग्रेस और भाजपा नेताओं के हैं. ऐसे में केजरीवाल ने फीस पर नकेल कस दी. इसका लाभ मध्यमवर्गीय परिवारों को हुआ है और चुनाव में जिसका सीधा फायदा आप को हुआ.

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भाजपा नेता मानते हैं कि अनाधिकृत कॉलनियों का मुद्दा काम नहीं आया. उलटे ‘जहां झुग्गी, वहां मकान’ का मुद्दा पार्टी के लिए सिरदर्द बन गया. इस योजना को लेकर झुग्गियों में खूब अफवाह फैलाया गया. भाजपा का एक बड़ा वर्ग का यह भी मानना है कि भाजपा का हद से ज्यादा आक्रामक चुनाव प्रचार फायदा देने की जगह नुकसान कर गया. केजरीवाल खुद भाजपा की भारी-भरकम बिग्रेड का बार-बार हवाला देते हुए खुद को अकेला बताते रहे. ऐसे में जनता की केजरीवाल के प्रति सहानुभूति उमड़ी और भाजपा को नुकसान हुआ.

भाजपा को ये समझना पड़ेगा कि सिर्फ राष्ट्रवाद के सहारे चुनाव नहीं जीते जा सकते. चुनाव के लिए आपके पास काम का भी लंबा चिट्ठा सामने होना चाहिए. भाजपा के हाथ से लगातार बड़े राज्य छूटते गए हैं. बात करें तो मध्य प्रदेश, राजस्थान, झारखंड, महाराष्ट्र और अब दिल्ली में भाजपा को करारी हार मिली है. कहीं न कहीं जनता को समझ आ गया है कि केंद्र और  राज्य की राजनीति में फर्क क्या होता है. इसी दिल्ली के लोगों ने पीएम मोदी को सात की सात सीटें लोकसभा में दी थी लेकिन वहीं विधानसभा चुनावों में जीत का सेहरा आप को पहनाया.

छत्तीसगढ़ : सुपर सीएम भूपेश चले अमेरिका!

छत्तीसगढ़ के सुपर सीएम बन चुके भूपेश बघेल अपनी प्रथम विदेश यात्रा पर “अमेरिका” के लिए निकल पड़े हैं. भूपेश बघेल 11 फरवरी  अर्थात आज से अमेरिका के दौरे पर रहेंगे. इस दौरान  मुख्यमंत्री सैनफ्रांसिस्को, बोस्टन और न्यूयौर्क में कुछ  कार्यक्रमों में शामिल होंगे. 15 से 16 फरवरी को हार्वर्ड में आयोजित ‘इंडिया कॉन्फ्रेंस’ के विशेष चर्चा में शिरकत करेंगे , जहां ‘लोकतांत्रिक भारत में जाति और राजनीति’ विषय पर व्याख्यान भी देंगे.

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अमेरिका यात्रा इन दिनों छत्तीसगढ़ में चर्चा में है जहां सरकार यह बता रही है कि यह यात्रा अमेरिका के उद्योगपतियों को निवेश के लिए मील का पत्थर बनेगी  वहीं भाजपा नेताओं सहित  पहले  के सुपर  मुख्यमंत्री  रहे अजीत जोगी ने गहरे तंज किए हैं.अजीत जोगी ने यात्रा के एक दिन पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के साथ छत्तीसगढ़ में पेंड्रा जिला के उद्घाटन मौके पर तंज का बाण चलाते हुए कहा – भूपेश बघेल अमेरिका जा रहे हैं,आज पेंड्रा जिला का उद्घाटन है उनसे आग्रह है कि “पेंड्रा जिला” को भी अमेरिका जैसा बना दें! अजीत जोगी आजकल भूपेश बघेल पर संकेतिक हमले कर रहे हैं. उनके इस तंज में छिपा हुआ है कि मुख्यमंत्री जी अमेरिका तो जा रहे हैं पेंड्रा और छत्तीसगढ़ क्या अमेरिका जैसा बन पाएगा!

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और यह सभी जानते हैं कि छत्तीसगढ़ ना कभी लंदन बन सकता है, अमेरिका या जापान अथवा चीन मगर राजनेता देशों का दौरा करके चाहते हैं हमारा राज्य भी विकसित हो जाए. यह कैसे होगा कब होगा यह जनता को सोचना होगा.अजीत जोगी के मेहमान स्वरूप उपस्थिति और तंज के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने शालीनता से कहा कि पेंड्रा जिला को “अमेरिका” बनाने के लिए सभी का सहयोग चाहिए. जाहिर है मुख्यमंत्री ने सच को स्वीकार किया और यह संकेत दिया कि सत्ता के साथ-साथ विपक्ष के ताल पर ही छत्तीसगढ़ का “विकास” हो सकता है.

दरियादिल  मुख्यमंत्री भूपेश!

आपको बताते चलें कि छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री बने भूपेश बघेल को लगभग सवा साल  हो गए हैं और यह आपकी पहली विदेश यात्रा है. जब इस अमेरिका यात्रा का समाचार सुर्खियों में आया तो विधानसभा अध्यक्ष डॉक्टर चरणदास महंत ने  बिना झिझक मुख्यमंत्री से आग्रह किया कि वह भी अमेरिका चलना चाहेंगे. मुख्यमंत्री ने दरियादिली दिखाते हुए अपने साथ अपने अग्रज राजनेता और वर्तमान में विधानसभा अध्यक्ष डॉ चरणदास को भी ले लिया है.इस तरह छत्तीसगढ़ के 2 बड़े राजनीतिज्ञ अमेरिका के राजकीय दौरे पर निकल पड़े हैं . ऐसे में याद आता है डॉ रमन सिंह के विदेश भ्रमण के अनेक दौरे, जो उन्होंने मुख्यमंत्री मंत्री रहते हुए किए थे और जनता ने इन दोनों का इस्तकबाल किया था.

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मुख्यमंत्री भूपेश बघेल  10 दिवसीय अमेरिका प्रवास पर हार्वर्ड में आयोजित ‘इंडिया कॉन्फ्रेंस’ में शामिल होने के साथ ही उद्योग से जुड़े विभिन्न प्रतिनिधियों से चर्चा कर उन्हें छत्तीसगढ़ में निवेश के लिए आकर्षित करेंगे, मुख्यमंत्री अमेरिका में रहने वाले छत्तीसगढ़ियों से भी मुलाक़ात करेंगे. इसके अलावा बोस्टन के गवर्नर और नोबल विजेता अभिजीत बनर्जी से मुलाक़ात का भी कार्यक्रम है.

भूपेश बघेल का ‘दिल’

बता दें ‘इंडिया कॉन्फ्रेंस’ मूल रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका में भारत पर ध्यान केंद्रित करने वाले सबसे बड़े छात्र-सम्मेलन में से एक है. यह हार्वर्ड बिजनेस स्कूल और हार्वर्ड केनेडी स्कूल में हार्वर्ड विश्वविद्यालय के स्नातक छात्रों द्वारा आयोजित किया जाता है. इनकी 17वीं वर्षगांठ पर 15 और 16 फरवरी को भूपेश बघेल व डाक्टर  चरणदास महंत  कार्यक्रम में शामिल होंगे. यहां उल्लेखनीय है कि जब मुख्यमंत्री भूपेश बघेल  अमेरिका जाने ही वाले थे जब पत्रकारों ने उन्हें घेरा और अमेरिका यात्रा पर बातचीत की तब भूपेश बघेल ने कहा वे भले ही 10 दिनों के लिए अमेरिका जा रहे हैं मगर उनका “दिल” तो छत्तीसगढ़ में ही रहेगा.

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इलाहाबाद में तिरंगे के साथ धरना

इलाहाबाद से प्रयागराज हुए इस शहर के रोशनबाग इलाके में पिछले 100 साल की ठंड का रिकौर्ड असर भी प्रदर्शनकारियों के हौसले के आगे हार गया. प्रशासन की मानमनौव्वल के बाद भी एनआरसी, सीएए और एनपीआर को ले कर रविवार, 12 जनवरी, 2020 को दोपहर के 3 बजे से शुरू हुआ प्रदर्शन तीसरे दिन भी जोश और जज्बे के साथ रहा. लगातार भीड़ बढ़ती जा रही थी.

सब से बड़ी बात यह थी कि इस प्रदर्शन में वे औरतें भी बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रही थीं, जो अपने घरों से बहुत कम बाहर निकलती हैं. धरना पूरे दिन और पूरी रात चलता रहा.

इस आंदोलन की यह भी खासीयत है कि यह शांति से हो रहा था और पार्क के अंदर था. आंदोलनकारी अपने बैनर सड़क पर लगाना चाह रहे थे, लेकिन पुलिस द्वारा कानून का हवाला देने पर उन्हें वहां से हटा लिया गया.

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विरोध जता रहे लोगों के हाथों में तिरंगा भी था. वे मानते हैं कि तिरंगे का साया उन्हें ताकत देता है.

इस आंदोलन में आई एक औरत ने कहा, ‘‘देश की शान तिरंगा हमें एक राष्ट्र, एक देश और एक समाज के रूप में बांधता है. हम कभी अशांति नहीं फैलाएंगे.’’

दिल्ली से चला यह प्रदर्शन अब छोटे शहरों में भी फैल रहा है. प्रयागराज में रात में प्रदर्शनकारियों की भीड़ बढ़ रही थी. लोग रजाईगद्दे ले कर आ रहे थे.

इस आंदोलन की शुरुआत करने वाली सायरा को समर्थन देने के लिए औरतें बड़ी तादाद में दुधमुंहे बच्चों के साथ पहुंच रही थीं. मर्द व बूढ़े भी आंदोलन में बराबर से भागीदारी निभा रहे थे.

सै. मो. अस्करी ने बताया कि खुलदाबाद थाना क्षेत्र के मंसूर अली पार्क में चल रहे प्रदर्शन में तिरंगे  झंडे, भीमराव अंबडेकर की तसवीर व एनआरसी, सीएए और एनपीआर जैसे काले कानून को वापस लेने की मांग से शहर के पुराने इलाके रोशनबाग का ऐतिहासिक मंसूर अली पार्क दिल्ली का शाहीन बाग बन गया था.

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क्षेत्रीय पार्षद रमीज अहसन, अब्दुल्ला तेहामी, काशान सिद्दीकी, मोहम्मद हमजा वगैरह प्रदर्शनकारियों का हौसला बढ़ा रहे थे. इस के अलावा वे खाने और पानी, चाय व अलाव के इंतजाम के साथसाथ लोगों की मदद में दिनरात जुटे हुए थे.

प्रदर्शनकारियों का कहना था कि वे कोई भी दस्तावेज नहीं दिखाएंगे. वे हिंदुस्तानी हैं और कई पुश्तों से यहां रह रहे हैं. उन के बापदादा, परदादा सब इसी जमीन में दफन हैं और वे भी इसी जमीन में दफन होंगे, लेकिन वे न तो एनसीआर और एनपीआर का विरोध करना छोड़ेंगे और न ही किसी कागजात पर दस्तखत करेंगे. उन का आंदोलन तब तक जारी रहेगा, जब तक सरकार यह काला कानून वापस नहीं ले लेती.

सीमेंट : भूपेश, विपक्ष और अफवाहें

छत्तीसगढ़ के मुखिया भूपेश बघेल सीमेंट के मसले पर इन दिनों विपक्ष भाजपा और आम जनता के निशाने पर है. कांग्रेस की सरकार आने के बाद अब धीरे-धीरे ही सही माफियाओं के मुंह खुलने लगे हैं. जिनमें सबसे आगे है- सीमेंट के बड़े कारोबारी और फैक्ट्रियां.  यह चर्चा सरगम है कि फैक्ट्रियों को खुली छूट दे दी गई है, की दाम आप बढ़ा लो! सत्ता और सीमेंट किंग आपस में एक हो चुके हैं. परिणाम स्वरूप सीमेंट के भाव बेतहाशा बढ़ते चले गए. लगभग प्रति बैग 20 रुपये  का अतिरिक्त भार अब उठाना होगा.

प्रदेश में इस मसले पर एक तरह से हाहाकार मचा हुआ है सीमेंट के साथ-साथ रेत माफिया भी करोड़ों रुपए का खेल कर रहा है. वहीं यह भी खबर आ रही है कि स्टील के दाम भी बढ़ने जा रहे हैं. यह सब भूपेश बघेल की सरकार के समय हो रहा है जिन्होंने लंबे समय तक विपक्ष की राजनीति करते हुए इन्हीं मसलों पर डॉक्टर रमन सरकार को घेरा था.

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इधर सीमेंट की कीमतों में हो चुके  इजाफे से  सियासत गरमाते जा रही है. नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने कीमतों में बढ़ोत्तरी को लेकर राज्य सरकार पर उद्योगपतियों से सांठगांठ का खुला  आरोप लगा दिया  है. कौशिक ने कहा कि महीनेभर के भीतर दो बार सीमेंट के दाम बढ़ना कई सवाल खड़ा करता है. उद्योगपतियों और सरकार की मिलीभगत से छत्तीसगढ़ की जनता के जेब मे “डाका” डाला जा रहा है.कौशिक ने कहा कि सरकार जिस प्रकार से गुपचुप तरीके से उनके साथ बैठकें कर रही है, उस समय आरोप लगाया था कि सीमेंट के दामों में वृध्दि होगी. लेकिन उनके प्रवक्ता ने कहा था कि धरमलाल कौशिक के पास कोई काम नहीं है. मैं जिस बात को बोलता हूं प्रमाणिकता के साथ बोलता हूं, आज वो बात सच साबित हो गई कि ये लोग सीमेंट के रेट को कैसे बढ़ा रहे हैं. सरकार ने उद्योगपतियों के सामने घुटने टेक दिए हैं, इसका क्या कारण है वो मैं नहीं जानता लेकिन इनकी मिलीभगत से ये संभव नहीं है.

एक करोड़ का डाका!!

धरमलाल कौशिक ने जो आरोप लगाए हैं वह सोचने को विवश करते हैं और सच्चाई के निकट प्रतीत होते हैं  उन्होंने कहा,  छत्तीसगढ़ में सीमेंट के जो उपभोक्ता हैं खासकर प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत जो काम चल रहा है, अब उसका रेट बढ़ेगा. छत्तीसगढ़ के लोगों के जेब से 1 करोड़ प्रतिदिन के हिसाब से डाका डाला जा रहा है.

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महीने के हिसाब से छत्तीसगढ़ के लोगों के जेब से निकाला जा रहा है ये अत्यंत दुर्भाग्य जनक घटना है.  भूपेश सरकार को इस पर रोक लगानी होगी मै उद्योगपतियों से भी आग्रह करूंगा कि रेट कम करें. छत्तीसगढ़ की फिजा में सीमेंट रेट  स्टील चर्चा का सबब बने हुए हैं गली चौराहे और नुक्कड़ पर सीमेंट की बेतहाशा दाम बढ़ने पर चर्चा हो गई है सीधे-सीधे इसका असर कांग्रेश की भूपेश सरकार की छवि पर पड़ रहा है.

सीमेंट के दाम पर घमासान

छत्तीसगढ़ में सीमेंट के बढ़ते  दाम  सियासी मुद्दा बन जाते हैं. छत्तीसगढ़ राज्य बनने के पश्चात मुख्यमंत्री अजीत जोगी के समय काल 2003 में यहां सीमेंट की कीमत  प्रति बैग सौ स्र्पये से  भी कम थी.राजनीति  घुसी तो 2004 में दाम सीधे 120 स्र्पये प्रति बैग हो गया. 2005 के शुरूआत में डॉ रमन सिंह के आशीर्वाद से सीमेंट के दाम 155  रुपए और 2006 में यह दाम सीधे 200 के पार पहुंच गया.

जब- जब दाम बढ़े तब-तब इसका विरोध भी होता  है .आगे सन 2008 में दाम सीधे 250 से 300 पहुंच गये.अजीत जोगी  और जनता ने इस वृद्धि का  तीव्र विरोध  किया.भाजपा  सरकार पर सीमेंट कंपनियों से मिलीभगत सरंक्षण  का आरोप लगा. आगे  आर्थिक मंदी के कारण सीमेंट के दाम गिर कर  250 तक पहुंच गये. दिसंबर 2018 में छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के समय दाम 225 से 230 रुपये ही था.

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तानाशाह है सरकार एसआर दारापुरी: रिटायर्ड आईपीएस और सामाजिक कार्यकर्ता

साल 1972 के बैच के आईपीएस एसआर दारापुरी पुलिस की सर्विस से साल 2003 में आईजी के पद से रिटायर हुए थे. वे अब उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की इंदिरानगर कालोनी में रहते हैं.

पुलिस से रिटायर होने के बाद एसआर दारापुरी ने सामाजिक कार्यकर्ता और राजनीतिक पार्टी के जरीए जनता की सेवा का काम करना शुरू किया.

उन की पहचान दलित चिंतक के रूप  में भी है.

76 साल के एसआर दारापुरी आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के राष्ट्रीय प्रवक्ता  हैं. नागरिकता कानून के विरोध प्रदर्शन में पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया था.

14 दिन जेल में रहने के बाद वे जेल से छूट कर वापस आए और कहा, ‘‘सरकार के दमन का हमारे ऊपर कोई असर नहीं हुआ है. हम ने नागरिकता कानून का पहले भी विरोध किया था, आज भी कर रहे हैं और आने वाले कल में भी करेंगे. हम ने पहले भी हिंसा नहीं की, आज भी नहीं कर रहे और आगे भी नहीं करेंगे. शांतिपूर्ण तरीके से हम अपना विरोध दर्ज कराते रहेंगे.’’

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गैरकानूनी थी हिरासत

एसआर दारापुरी अपनी गिरफ्तारी पर जानकारी देते हुए कहते हैं, ‘‘5 दिसंबर, 2019 को नागरिकता कानून के खिलाफ हजरतगंज पर बनी डाक्टर अंबेडकर की प्रतिमा के नीचे धरना दिया गया था. वहां बहुत सारे सामाजिक संगठनों के लोग थे. वहां पर 19 दिसंबर, 2019 को नागरिकता कानून के विरोध की घोषणा हुई थी.

‘‘बाद में हमारे इस अभियान में दूसरे कई राजनीतिक लोग भी जुड़ गए थे.

19 दिसंबर, 2019 को विरोध प्रदर्शन को देखते हुए मुझे अपने घर में पुलिस ने नजरबंद कर दिया था.

‘‘19 दिसंबर की सुबह 7 बजे जब मैं अपने घर से टहलने के लिए सामने बने पार्क में गया तो गाजीपुर थाने के पुलिस के 2 सिपाही वहां बैठे मिले. इस की मुझे पहले से कोई जानकारी नहीं थी. जब मैं वापस आया और सिपाहियों से पूछा तो बोले कि हमें थाने से यहां ड्यूटी पर भेजा गया है.

‘‘तकरीबन 2 घंटे के बाद सीओ गाजीपुर और एसओ गाजीपुर यहां जीप से आए. उस समय मुझे यह बताया कि घर से बाहर नहीं जाना है. तब मैं ने घर से अपने हाउस अरैस्ट होने और नागरिकता कानून के विरोध का फोटो अपने फेसबुक पेज पर पोस्ट किया.

‘‘शाम के तकरीबन 5 बजे मुझे नागरिकता कानून के विरोध और हिंसा की खबरें मिलीं तो मैं ने अपने कुछ साथियों से पीस कमेटी बना कर काम करने के लिए कहा, जिस में यह तय हुआ कि शनिवार को हम लोग प्रशासन से मिल कर इस काम को अंजाम देंगे.

‘‘20 दिसंबर की सुबह 11 बजे पुलिस मेरे घर आई. सीओ और एसओ गाजीपुर ने मुझे थाने चलने के लिए कहा. मैं ने उन से पूछा कि क्या मुझे गिरफ्तार किया जा रहा है? तो वे बोले कि नहीं, आप को थाने चलना है.

‘‘मैं अपने साधारण कपड़ों में ही पुलिस की जीप में बैठ कर थाने चला आया. मुझे लगा कि शाम तक वापस छोड़ देंगे. मैं दिनभर गाजीपुर थाने में बैठा रहा. शाम के तकरीबन 6 बजे मुझे हजरतगंज थाने चलने के लिए बोला गया.

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‘‘मैं पुलिस के साथ हजरतगंज थाने आ गया. वहां मैं ने फिर अपनी गिरफ्तारी की बात पूछी तो इंस्पैक्टर हजरतगंज ने कहा कि 39 पहले हो चुके हैं, आप 40वें हैं. उम्र में बड़ा होने या पहले पुलिस में रहने के चलते मुझे बैठने के लिए कुरसी दे दी गई थी, पर खाने के लिए कुछ नहीं दिया गया.

‘‘रात को तकरीबन 11 बजे मुझे रिमांड मजिस्ट्रेट के सामने पेश होने के लिए रिवर बैंक कालोनी ले जाया गया. वहां मजिस्ट्रेट के सामने मैं ने पूरी बात बताई. पुलिस ने मुझ पर हिंसा की साजिश रचने की धारा 120 बी का मुकदमा कायम किया था. पुलिस तथ्यों और अपनी बात से मजिस्ट्रेट को सहमत नहीं कर पाई. ऐसे में मजिस्ट्रेट ने रिमांड नहीं दी.’’

नहीं दिया कंबल

‘‘रात तकरीबन 12 बजे मुझे वापस हजरतगंज थाने लाया गया. उस समय तक मुझे सर्दी लगने लगी थी. मैं साधारण कपड़ों में था. मैं ने कंबल मांगा, तो पुलिस ने नहीं दिया.

‘‘मैं ने किसी तरह से घर पर फोन कर बेटे को कंबल लाने के लिए कहा, तो वह डरा हुआ था. उस को यह जानकारी मिल रही थी कि जो भी ऐसे लोगों से मिलने जा रहा है, उस को पकड़ा जा रहा है. इस डर के बाद भी वह किसी तरह से कंबल ले कर घर से थाने आया.

‘‘इस दौरान मुझे खाने के लिए कुछ भी नहीं दिया गया था. मेरे पास पानी की बोतल थी, वही पी कर प्यास बुझा रहा था. पुलिस ने मनगढं़त लिखापढ़ी की और बताया कि रिमांड मजिस्ट्रेट मिले नहीं थे. फिर मेरी गिरफ्तारी को घर से न दिखा कर महानगर के किसी पार्क से होना दिखाया.

‘‘21 दिसंबर की शाम मुझे जेल भेजा गया. जेल में रिमांड मजिस्ट्रेट के सामने मुझे पेश किया गया. जेल में जाने के समय रात के 9 बज गए थे. मैं रात को भूखा ही सो गया. 22 दिसंबर की सुबह मुझे जेल में नाश्ता मिला.

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‘‘तकरीबन 37 घंटे मुझे पुलिस ने बिना किसी तरह के खाने के रखा. मेरा 161 का बयान नहीं कराया गया.

‘‘जेल में मुझे तमाम ऐसे लोग मिले, जिन को लखनऊ में दंगा फैलाने के आरोप में पकड़ा गया था. ऐसे लोगों को शारीरिक प्रताड़ना की भी जानकारी मिली.

‘‘मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दंगा करने वालों से बदला लेने के बयान के बाद पुलिस बेहद क्रूर हो गई. हिंसा में पकड़े गए लोगों को हजरतगंज थाने से अलग ले जा कर मारा गया.

‘‘एक पुलिस अधिकारी ने कहा कि इन को इतना मारो कि पीठ डेढ़ इंच से कम सूजी नहीं होनी चाहिए. जेल में दिखे कई लोगों के चेहरे ऐसे सूजे थे कि वे पहचान में नहीं आ रहे थे.’’

निचली अदालत से जमानत खारिज होने के बाद एसआर दारापुरी को सैशन कोर्ट से जमानत मिली.

एसआर दारापुरी जितने दिनों जेल में थे, उन की बीमार पत्नी घर पर थीं. इस बीच कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी उन से मिलने उन के घर भी गई थीं.

इन की मिलीभगत

एसआर दारापुरी कहते हैं, ‘‘हमारा नागरिकता कानून का विरोध शांतिपूर्ण था. इस को दबाने के लिए हिंसा फैलाई गई. सदफ जफर नामक महिला फेसबुक पर लाइव करते पुलिस से कह रही थीं कि इन लोगों को पकड़ो. पुलिस ने उन को नहीं पकड़ा. थाने में लाने के बाद भी कुछ लोगों को छोड़ दिया गया.

‘‘जिन के बारे में सुना गया कि वे लोग भाजपा समर्थन के चलते छोड़ दिए गए. ऐसे में साफ है कि पुलिस की मिलीभगत से भाजपा और आरएसएस के लोगों ने यह काम कराया.’’

एसआर दारापुरी लखनऊ पुलिस को खुलेआम चुनौती देते हुए कहते हैं, ‘‘अगर पुलिस ने सही लोगों को पकड़ा है तो 19 दिसंबर के दंगे के सारे वीडियो फुटेज सार्वजनिक करे. यह दिखाए कि जिन लोगों को पकड़ा है, ये वही लोग हैं जो दंगा फैलाने में शामिल थे. पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए.

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‘‘यही नहीं, लखनऊ की हिंसा में मारा गया वकील नामक आदमी पुलिस की गोली से ही मरा है. अगर ऐसा नहीं है तो पुलिस वीडियो के जरीए यह क्यों नहीं दिखाती कि वह किस की गोली से मरा है. मरने वाले का परिवार पुलिस के दबाव में है.’’

एसआर दारापुरी कहते हैं, ‘‘यह सरकार का एक दमनकारी कदम है, जो मानवाधिकार, लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है. यह तानाशाही सरकार है. यह तो खुला दमन है. योगी राज में पुलिस पूरी तरह से क्रूर और हत्यारी हो चुकी है. इस सरकार के दौरान पुलिस के ऐनकाउंटर में 95 फीसदी मामले झूठे हैं. पुलिस जब घटना के दिन वाले वीडियो जारी करेगी, तो सच खुद सामने आ जाएगा.’’

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