सौजन्य- मनोहर कहानियां
जांच अभी चल रही है. जांच का ऊंट किस करवट बैठेगा, अभी कहना मुश्किल है. जांच में महाराष्ट्र की ठाकरे सरकार की सांसें अटकी हुई हैं. पता नहीं, कब चूलें हिल जाएं? भाजपा भी मौके की तलाश में गिद्धदृष्टि जमाए हुए है.
अभी सचिन वाझे ही खलनायक और सब से बड़े खिलाड़ी के रूप में सामने आया है. करीब 52 साल के पतलेदुबले सचिन वाझे को पहली नजर में देख कर कोई यकीन नहीं कर सकता कि इस आदमी ने दाऊद इब्राहिम के 3 दरजन शूटरों को मौत के घाट उतारा होगा.
वाझे से दाऊद तो दबता ही था, मुंबई के सट्टेबाज, ड्रग तस्कर, डांस बार मालिक और बड़ेबड़े बिल्डर भी घबराते थे. अपराधियों और पैसे वालों में उस का खौफ था. खौफ का कारण उस का दिमाग, तीन सितारों वाली खाकी वर्दी और हाथ में भरी रहने वाली पिस्तौल थी.
इसी खौफ के पीछे वाझे और उस की मंडली की मुठभेड़ों के झूठेसच्चे किस्से भी थे, जो दुर्दांत अपराधियों के चेहरे पर पसीने ला देते थे. इसी कारण उस ने अपने अफसरों और सरकार में दबदबा बना लिया था. वाझे के पुलिस महकमे में इतना पावरफुल बनने की कहानी काफी लंबी है.
महाराष्ट्र के कोल्हापुर शहर के एक स्थानीय नेता का बेटा सचिन क्रिकेटर और कालेज टीम का विकेटकीपर था. वह महाराष्ट्र पुलिस में भरती हुए 1990 बैच के पुलिस सबइंसपेक्टरों में से एक था. वाझे की पहली पोस्टिंग गढ़ चिरौली के माओवाद प्रभावित इलाके में हुई थी. 2 साल बाद उसे ठाणे शहर पुलिस में शिफ्ट कर दिया गया.
2000 के दशक में वह सीनियर पुलिस इंस्पेक्टर प्रदीप शर्मा के संपर्क में आया. प्रदीप को तब ‘एनकाउंटर स्पैशलिस्ट’ के रूप में जाना जाता था. ये स्पैशलिस्ट मुंबई पुलिस की अपराध शाखा के क्रिमिनल इंटेलिजेंस यूनिट (सीआईयू) के सदस्य थे, जो सीधे पुलिस कमिश्नर और संयुक्त पुलिस कमिश्नर (अपराध) को रिपोर्ट करते थे.
सीआईयू को तब अंडरवर्ल्ड की बढ़ती ताकत और उन के अपराधों पर लगाम लगाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. साथ आने के बाद वाझे प्रदीप शर्मा का बेहद करीबी बन गया. प्रदीप की टीम में एक एनकाउंटर स्पैशलिस्ट दया नायक पहले से थे. दया नायक के जीवन पर रामगोपाल वर्मा ने फिल्म ‘अब तक छप्पन’ बनाई थी.
ये भी पढ़ें- Crime Story: माया के लिए किया गुनाह- भाग 1
मुंबई पुलिस में सब से ज्यादा 113 एनकाउंटर प्रदीप शर्मा ने किए हैं. वाझे और उस की टीम ने 63 से ज्यादा एनकाउंटर किए. मुन्ना नेपाली जैसे कुख्यात गैंगस्टर को ठिकाने लगाने के बाद वह शोहरत की बुलंदियों पर पहुंच गया था. सन 2002 में मुंबई के घाटकोपर में बेस्ट की बस में हुए बम विस्फोट मामले के संदिग्ध आरोपी सौफ्टवेयर इंजीनियर ख्वाजा यूनुस की पुलिस हिरासत में हुई मौत को ले कर पुलिस टीम का नेतृत्व करने वाला सचिन वाझे फंस गया था.
चर्चा रही कि यूनुस को हिरासत में मार दिया गया और उस की लाश नाले में फेंक दी गई थी. इस मामले में वाझे को 2004 में निलंबित कर दिया गया. उस ने 2006 में इस्तीफा दे दिया लेकिन जांच लंबित होने के कारण इस्तीफा स्वीकार नहीं किया गया.
वाझे ने 2008 में दशहरा रैली के मौके पर बड़ी धूमधाम के साथ शिवसेना का दामन थाम लिया था. तब शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने अपने निवास मातोश्री पर उस का स्वागत किया था.
वाझे का शिवसेना से नाता
वाझे जब पुलिस की नौकरी की पहली पारी खेल रहा था, तभी से उस के महाराष्ट्र की सब से ताकतवर शख्सियत बाला साहेब ठाकरे से अच्छे संबंध थे. इसीलिए वाझे की शिवसेना में एंट्री पर लोगों को आश्चर्य नहीं हुआ.
ये भी पढ़ें- Crime Story: पाताल लोक का हथौड़ेबाज- भाग 1
शिवसेना ने उसे प्रवक्ता बना दिया. वाझे भले ही शिवसेना में शामिल हो गया था, लेकिन सपने बहुत ऊंचे होने के कारण उस का मन पार्टी में नहीं लगा. इसलिए उसने पार्टी की सदस्यता का नवीनीकरण भी नहीं कराया.
शिवसेना से मोहभंग होने के बाद उस ने किताबें लिखीं और खुद को सौफ्टवेयर का हुनरमंद बनाया. सन 2010 में उस ने एक मराठी सोशल मीडिया ऐप लाइ भारी लौंच किया. इस के अलावा कई सौफ्टवेयर फर्मों की शुरुआत की. ये फर्में कुछ साल में बंद हो गईं.
वाझे शिवसेना में सक्रिय नहीं था. इस के बावजूद शिवसेना प्रमुख ठाकरे उस से इतने प्रभावित थे कि जब 2014 में भाजपाशिवसेना ने महाराष्ट्र में सत्ता संभाली, तो ठाकरे ने वाझे को पुलिस में फिर से लेने की सिफारिश की थी, लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने एडवोकेट जनरल की सलाह पर ऐसा नहीं करने का फैसला किया था.
उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री बनने के बाद जून 2020 में वाझे को मुंबई पुलिस में फिर से शामिल कर लिया. उस समय कहा गया था कि मुंबई पुलिस में अफसरों की कमी के कारण वाझे को वापस लिया जा रहा है. मुंबई के तत्कालीन पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह की अध्यक्षता वाली विशेष समिति की सिफारिश पर वाझे को दोबारा पुलिस में शामिल किया गया.
अगले भाग में पढ़ें- देशमुख सीबीआई की जांच में बचें य फंसें ?