Satyakatha- दिल्ली: शूटआउट इन रोहिणी कोर्ट- भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

लेखक- शाहनवाज

इसी तरह से फायरिंग करते हुए करीब 9 मिनट के बाद पुलिस ने कोर्टरूम में मौजूद 2 में से एक हमलावर को ढेर कर दिया. अब सिर्फ एक ही हमलावर बचा रह गया था, जिस पर काबू पाना मुश्किल साबित हो रहा था.

वह शारीरिक रूप से काफी तगड़ा और फुरतीला भी था. उस ने किसी तरह से खुद को पुलिस की गोलियों से बचाया हुआ था.

करीब 12 मिनट के बाद भी वह हार मानने को तैयार नहीं था. लेकिन उस पर भी किसी तरह से काबू पा लिया गया, जब एक पुलिसकर्मी की गोली उस के शरीर पर लगी और वह भी ढेर हो कर गिर पड़ा.

कोर्टरूम में यह शूटआउट करीब 12 मिनट तक चलता रहा. इन 12 मिनट के शूटआउट के दौरान हर कोई यही प्रार्थना कर रहा था कि वह किसी तरह से सुरक्षित बच जाए. 12 मिनट के बाद जब दोनों हमलावर पुलिस की गोली से ढेर हो गए तो कोर्टरूम में अचानक से शांति फैल गई.

कोर्टरूम में शांति इसलिए भी फैली क्योंकि अंदर मौजूद सभी लोगों के कान गोलियों की तड़तड़ाहट से सुन्न पड़ गए थे. शूटआउट खत्म होने के बावजूद कमरे में मौजूद लोग अपनी आंखों और कानों को बंद कर के बचाव की मुद्रा में किसी भी चीज का सहारा लेते हुए जमीन पर लेटे हुए थे.

कोर्टरूम नंबर 207 में सुनवाई के लिए आए जितेंद्र गोगी और उस पर हमला करने वाले दोनों हमलावरों की लाशें पड़ी थीं. चारों और गोलियों के खाली खोखे बिखरे पड़े थे. इस पूरे 12 मिनट के शूटआउट के दौरान कमरे में मौजूद कई लोगों को मामूली खरोंचें भी आईं.

शूटआउट की समाप्ति के बाद दोपहर के 1.36 बजे गोगी की डैडबौडी को दिल्ली पुलिस पास के अस्पताल ले कर पहुंची, जिसे देख डाक्टरों ने मृत घोषित कर दिया.

इस के अलावा दोनों हमलावरों में एक की पहचान सोनीपत हरियाणा निवासी जगदीप उर्फ ‘जग्गा’ के रूप में की गई और दूसरा, उत्तर प्रदेश के मेरठ का रहने वाला राहुल त्यागी उर्फ ‘फफूंदी’ था. दोनों हमलावर गैंगस्टर सुनील मान उर्फ टिल्लू के गुर्गे थे.

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इस शूटआउट से यही बात सामने आई कि ये दोनों गुर्गे कुख्यात गैंगस्टर जितेंद्र मान उर्फ गोगी को मारने आए थे.

आखिर यह गोगी है कौन और किस तरह यह अपराध की दुनिया में आ कर इतना बड़ा अपराधी बना, यह जानने के लिए हमें गोगी की जन्मकुंडली खंगालनी होगी.

जितेंद्र मान उर्फ ‘गोगी’ का जन्म साल 1991 में दिल्ली के अलीपुर गांव में हुआ था. गोगी वौलीबाल का अच्छा खिलाड़ी था. उस ने अपने स्कूल के दिनों में वौलीबाल में पदक भी जीते थे. वह वौलीबाल में अपने स्कूल का प्रतिनिधित्व करता था.

इस से पहले कि वह खेल को अपना कैरियर बना पाता, 17 साल की उम्र में एक दुर्घटना में उस का दाहिना कंधा घायल हो गया था, जिस के कारण वह फिर कभी नहीं खेल सका.

गोगी के बड़े भाई रविंदर टैंपो चलाते थे और टैंपो किराए पर देते थे, जबकि उन के पिता मेहर सिंह एक निजी ठेकेदार थे और अलीपुर में प्रमुख जमींदार जाट समुदाय से थे. गोगी के पिता को कैंसर हो गया था.

गोगी पढ़नेलिखने में ठीकठाक था. स्कूल की पढ़ाई के बाद उस का दाखिला दिल्ली विश्वविद्यालय के स्वामी श्रद्धानंद कालेज में हो गया था. कालेज में पढ़ाई के दौरान गोगी के कई दोस्त बने. उन में से एक सुनील उर्फ ‘टिल्लू ताजपुरिया’ भी था. समय के साथसाथ जितेंद्र गोगी और टिल्लू की दोस्ती गहरी होती गई.

कालेज में हर साल होने वाले छात्रसंघ के चुनावों ने गोगी की पूरी जिंदगी ही बदल दी. चुनाव के दौरान उस ने अपने प्रतिद्वंद्वी समूह के साथ लड़ाई की और अपने सहयोगियों रवि भारद्वाज उर्फ बंटी, अरुण उर्फ कमांडो, दीपक उर्फ मोनू, कुणाल मान और सुनील मान के साथ संदीप और रविंदर पर गोलियां चला कर हमला किया था.

इस मामले में एफआईआर भी हुई थी. उस का सहयोगी रवि भारद्वाज उर्फ बंटी एक जमाने में गैंगस्टर भी रहा था, जिस की गिरफ्तारी के लिए दिल्ली पुलिस ने एक लाख रुपए का ईनाम भी घोषित किया था, जिसे स्पैशल सेल ने वर्ष 2014 में गिरफ्तार किया था.

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गोगी का दोस्त अरुण उर्फ कमांडो भी श्रद्धानंद कालेज में पढ़ता था और छात्रसंघ के चुनाव में अलीपुर के एक छात्र नेता का समर्थन कर रहा था. प्रत्याशी गोगी के गांव का ही रहने वाला था.

दूसरी ओर, एक छात्र एक गैंगस्टर का चचेरा भाई टिल्लू, जोकि गोगी का पक्का दोस्त था, के विपक्षी पार्टी से एक उम्मीदवार था.

छात्र संघ के चुनाव के दिनों में सुनील उर्फ टिल्लू के गुट के सदस्यों ने कुछ कारणों से अरुण उर्फ कमांडो को पीट दिया. जिस की वजह से गोगी गुट के प्रत्याशी ने उस चुनाव से नाम वापस ले लिया और टिल्लू के समूह के प्रत्याशी ने वह चुनाव जीत लिया.

लेकिन उस घटना ने दोनों के बीच रंजिश को जन्म दे दिया और यहीं से गोगी और टिल्लू दोनों के बीच दुश्मनी हो गई.

दोनों के बीच दुश्मनी का पौधा इतना गहरा हो गया था, जिसे उखाड़ फेंकना नामुमकिन था. इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि गोगी का मिशन टिल्लू का पूर्ण विनाश था.

पिछले 5 सालों में दोनों पक्षों के कम से कम 12 लोगों की जान जा चुकी है. यही नहीं, यह बात भी फैली कि गोगी तब तक नहीं रुकेगा जब तक वह टिल्लू को नहीं मार देता.

न्यायिक हिरासत के दौरान गोगी का एक सहयोगी सुनील मान उर्फ टिल्लू के करीब आया. जेल से छूटने के बाद गोगी और सुनील मान दबदबे के मुद्दे पर एकदूसरे के प्रतिद्वंदी बन गए.

वहीं दूसरी ओर गोगी की दूर की बहन का अफेयर दीपक उर्फ राजू से था. दीपक उस की दूर की बहन के साथ डेट करता था और इस बात को खुल कर स्वीकार करता था.

दीपक टिल्लू का करीबी दोस्त था. इस के बाद दीपक की हरकतों और अफवाहों के चलते गोगी और उस के साथियों ने दीपक की हत्या को अंजाम दिया. उस मामले में 4 आरोपी योगेश उर्फ टुंडा, कुलदीप उर्फ फज्जा, दिनेश और रोहित को गिरफ्तार किया गया और आरोपी जरनैल को स्पैशल सेल द्वारा गिरफ्तार किया गया.

इस के बाद गोगी को दीपक की हत्या के आरोप में मार्च 2016 को पानीपत पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया, लेकिन जुलाई 2016 को वह बहादुरगढ़ क्षेत्र में न्यायिक हिरासत से फरार हो गया. दीपक की हत्या के प्रतिशोध में टिल्लू गिरोह के सदस्यों ने अरुण उर्फ कमांडो की हत्या को अंजाम दिया, जो गैंगस्टर गोगी का सहयोगी था.

इस मामले में सोनू को गिरफ्तार किया गया और वर्तमान में वह न्यायिक हिरासत में है. इस के बाद दोनों गैंग के बीच कई बार वारदात को अंजाम दिया गया और दोनों के बीच की दुश्मनी बढ़ती ही चली गई.

रोहिणी कोर्ट में मारा गया जितेंद्र गोगी कितना बड़ा अपराधी था, इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दिल्ली पुलिस की गिरफ्तारी से पहले दिल्ली में उस पर 4 लाख रुपए का ईनाम था. इस के अलावा हरियाणा की पुलिस ने भी उस पर 2 लाख रुपए का ईनाम घोषित कर रखा था.

अगले भाग में पढ़ें- गैंगस्टरों ने इस हत्याकांड को अंजाम देने से पहले क्या किया

Satyakatha: फौजी की सनक का कहर- भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

लेखक- शाहनवाज

कुछ समय बाद बाथरूम से आने पर उन्होंने थाने में हलचल पाई. मालूम हुआ कि कोई आदमी अपने हाथ में रक्तरंजित गंडासा ले कर आया है और बुदबुदा रहा है, ‘मैं ने सब को मार दिया, सब खत्म कर दिया. अच्छा किया, न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी.’

उसे 3 कांस्टेबल घेरे हुए थे. पूछ रहे थे कि उस ने क्या किया है, किसे मारा है, गंडासा कहां से लाया है, उस पर खून कैसे लगा है? इन सवालों के जवाब देने के बजाय एक ही रट लगाए हुए था, ‘मैं ने सब को मार दिया..’

थानाप्रभारी ने सभी कांस्टेबलों को हटा कर और उसे अपने सामने की कुरसी पर बिठाया. तब तक उन की चाय आ चुकी थी. उन्होंने अपनी चाय उसे पीने के लिए दे दी, लेकिन उस ने चाय लेने से इनकार कर दी. हाथ में कस कर पकड़ा हुआ गंडासा थानाप्रभारी के सामने टेबल पर रख दिया. उस पर काफी मात्रा में खून लगा हुआ था.

थाना प्रभारी ने पूछा, ‘‘कौन हो तुम? यह गंडासा तुम्हें कहां से मिला?’’

‘‘साहबजी, मैं पूर्व फौजी राव राय सिंह हूं. मैं इसी थानाक्षेत्र के राजेंद्र पार्क में रहता हूं.’’ व्यक्ति बोला.

‘‘और यह गंडासा… इस पर खून कैसा?’’ थानाप्रभारी ने जिज्ञासा जताई.

‘‘यह मेरा ही गंडासा है. मैं ने इस से 5 को मार डाला है.’’ वह बोला. उस के चेहरे पर निश्चिंतता के भाव थे.

‘‘मार डाला? तुम ने मारा 5 को? किसे मारा? क्यों मारा? पूरी बात बताओ.’’ थानाप्रभारी चौंकते हुए बोले.

‘‘साहबजी, बताता हूं, सब कुछ बताता हूं. मैं ने अपने घर में ही सब को मारा है. सभी की लाशें वहीं पड़ी हैं. जाइए, पहले उन का दाह संस्कार करवाइए. मुझे जो सजा देनी है, बाद में दे दीजिएगा.’’ यह कहतेकहते उस ने अपना सिर झुका लिया.

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संभवत: उस की आंखें नम हो गई थीं. वह भावुक हो गया था. सिर झुकाए बोला, ‘‘उन को मारता नहीं तो और क्या करता साहब? वे थे ही इसी लायक. मरने वालों में एक मेरी बहू भी है. मैं ने उसे बहुत समझाने की कोशिश की, लेकिन नहीं मानी तब ऐसा कर दिया.’’

राय सिंह की बातें ध्यान से सुनने के बाद थानाप्रभारी ने उसे तुरंत हिरासत में ले लिया. फिर अपने उच्चाधिकारियों को इस सनसनीखेज हत्याकांड की सूचना देने के बाद टीम के साथ राजेंद्र पार्क की ओर निकल पड़े.

इस के बाद गुरुग्राम थाने की पुलिस दलबल के साथ साढ़े 7 बजे राजेंद्र पार्क स्थित राय सिंह के मकान में पहुंच गई, जैसे उन्हें पहले से सब कुछ मालूम हो. जैसेजैसे राय सिंह ने बताया था, उसी के मुताबिक लाशों की बरामदगी हुई. संयोग से छोटी बच्ची की सांस चल रही थी, जिसे अस्पताल में भरती करवा दिया गया.

पुलिस लाशों का पंचनामा कर पोस्टमार्टम हाउस भिजवाने के बाद आगे की काररवाई के लिए कागजी काम निपटाने में जुट गई थी.

थानाप्रभारी जघन्य हत्याकांड में लिप्त हत्यारे की तलाश को ले कर चिंता में थे. उन्होंने राजेंद्र पार्क मोहल्ले में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज मंगवाने के आदेश दे दिए थे.

थानाप्रभारी ने थाने पहुंच कर राय सिंह से दोबारा पूछताछ की. उस ने दावे के साथ हत्याकांड के बारे में पूरी बातें बताईं. उस के बाद जो कहानी सामने आई, उस के पीछे अवैध रिश्ते का होना सामने आया.

राय सिंह ने बताया कि सुनीता उन की एकलौती बहू थी, लेकिन वह अकसर अपने मायके चली जाती थी. मायके में लंबे समय तक गुजारती थी.

बात जनवरी, 2021 की है. एक दिन जब सुनीता लंबे समय के बाद अपने मायके से ससुराल लौटी तो दिनभर घर का काम करने के बाद शाम को अपनी अनामिका से मिलने चली गई. वह दूसरी मंजिल पर रहती थी, जबकि सुनीता पहली मंजिल पर और राय सिंह अपनी पत्नी के साथ ग्राउंड फ्लोर पर रहता था.

सुनीता जिस समय अनामिका से मिलने उस के कमरे में गई थी, उस समय राय सिंह पानी की टंकी की सफाई करने के लिए अपनी छत पर गया हुआ था.

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अनामिका को कमरे में न पा कर सुनीता वापस लौटने लगी, तभी किचन से कृष्णकांत ने अनामिका से पूछा, ‘‘आ गईं आप? कैसे हैं आप के मायके वाले?’’

‘‘अच्छा, तो आप किचन में हैं. खाना पका रहे हो क्या? अनामिका कहां गई है?’’

‘‘जी, वह दिल्ली में अपने रिश्तेदार के घर पर गई है. एकदो दिनों में आ जाएगी. बच्चे भी जाने की जिद कर रहे थे. बच्चे भी उसी के साथ हैं.’’ कृष्णकांत बोलतेबोलते कमरे में आ गए.

‘‘तभी कहूं कि घर में इतना सन्नाटा क्यों है? मैं तो आज ही आई हूं. आप कैसे हैं?’’ सुनीता बोली.

‘‘अरे आप खड़ी क्यों हैं, बैठिए. गजब का संयोग है, चाय बनाते समय पानी अधिक पड़ गया और आप अचानक…’’ कृष्णकांत बोलने लगे. उन की अधूरी बात को सुनीता ने पूरा किया.

‘‘…मैं अचानक आ गई हूं तब तो आप की चाय पी कर ही जाऊंगी.’’ कहती हुई वह हंसने लगी. उस समय सीढि़यों से उतरते हुए राय सिंह ने सुनीता की हंसी की आवाज सुन ली.

उसे पता था कि कृष्णकांत की बीवीबच्चे दिल्ली गए हुए हैं. उन्हें तुरंत झटका लगा कि सुनीता जरूर कृष्णकांत के साथ हंसीठिठोली कर रही है. कुछ समय के लिए वह वहीं रुक गए. वहां से कृष्णकांत का कमरा दिखता था. दरवाजे पर परदा लगा हुआ था, लेकिन उस के किनारे से अंदर की थोड़ी झलक दिख रही थी.

उस ने ध्यान से देखने की कोशिश की. कमरे में पलंग पर पैर लटकाए सुनीता बैठी दिखी. उस समय कमरे में और कोई नहीं था. जल्द ही कृष्णकांत हाथ में 2 कप चाय लिए हुए आ गए. एक कप उस ने सुनीता को पकड़ाई फिर उस के सामने स्टूल पर बैठ गए.

परदे के किनारे से केवल सुनीता ही नजर आ रही थी. उस का खिला हुआ चेहरा साफ नजर आ रहा था. हाथ में चाय पकड़े हुए थी. पता नहीं क्या बात हुई सुनीता चाय का प्याला लिए हुए किचन में चली गई. पीछेपीछे कृष्णकांत भी चले गए.

राय सिंह समझ गया कि दोनों भीतर के दूसरे कमरे में चले गए होंगे. वे मन ही मन अपनी बहू की इस हरकत को देखते हुए खून का घूंट पी कर रह गया. उसी समय नीचे राय सिंह की पत्नी चिल्लाई, ‘‘पानी का मोटर चला दूं क्या?’’

इस आवाज से राय सिंह का ध्यान टूटा. वह कुछ सीढि़यां ऊपर चढ़ कर बोला, ‘‘हां, चला दो.’’

कुछ देर बाद राय सिंह दोबारा सीढि़यों से उतर रहा था, तब उस ने सुनीता को कृष्णकांत के कमरे से निकलते हुए देखा. वह बदहवासी की हालत में भागती हुई निकली थी. राय सिंह से टकरातेटकराते बची और दनदनाती हुई पहली मंजिल के अपने कमरे में चली गई.

अगले भाग में पढ़ें- किसने सुनीता को मारा?

Manohar Kahaniya: जब उतरा प्यार का नशा- भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

भारती ने अपनी मां को फोन मिलाया. 20 सेकेंड तक रिंग बजती रही. उस की मां ने फोन रिसीव नहीं किया. ऐसा पहली बार हुआ, जब उस की मां ममता कास्ते ने फोन नहीं उठाया हो. वह चिंतित हो गई. ममता अपनी 2 बेटियों रूपाली (20 साल) और दिव्या (16 साल) के साथ मध्य प्रदेश के देवास जिले के नेमावर में अकेली रहती थी.

ममता के पति अपने बेटे संतोष और बड़ी बेटी भारती के साथ पीथमपुर में रहते थे. यह सब काम की तलाश में नेमावर से यहां आए थे. तीनों ही अलगअलग जगहों पर काम कर रहे थे. भारती वहीं एक फैक्ट्री में काम करती थी. अपनी मां और 2 बहनों के अलग रहने के कारण भारती दिन में एकदो बार उन का हालचाल पूछ लिया करती थी. हालांकि भारती की मौसी की एक 16 वर्षीय बेटी पूजा और 14 वर्षीय बेटा पवन भी ममता के साथ नेमावर में रहते थे.

उस रोज 13 मई, 2021 को भी भारती ने हमेशा की तरह मां से हालचाल जानने के लिए फोन किया था. लेकिन मां के फोन नहीं उठाए जाने पर भारती ने परिवार के दूसरे लोगों को भी फोन किया, उन के फोन बंद मिलने पर भारती और भी परेशान हो गई.

कारण, न तो मां उस का फोन उठा रही थी और न ही परिवार के दूसरे लोगों से बात हो पा रही थी. भारती के सामने ऐसी स्थिति पहले कभी नहीं आई थी. घबराहट में उस का मन विचलित होने लगा था. मन में कई तरह के विचार उठने लगे थे. अनहोनी की आशंकाओं से उस का दिमाग झनझना उठा था.

आखिर भारती अपने मन को कब तक समझाती. एकदो नहीं, बल्कि 5 दिन गुजर चुके थे. भारती को उस की मां या परिवार के किसी भी सदस्य से बात नहीं हो पाई थी. वह 13 मई से लगातार अपनी मां से संपर्क करने की कोशिश करती रही.

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कोई सूचना नहीं मिलने पर वह अपने भाई संतोष के साथ 17 मई को नेमावर जाने के लिए पीथमपुर से रवाना हो गई. वह इसी आशा में थी कि नेमावर में सब कुछ ठीक होगा, लेकिन वहां पहुंच कर देखा तो पाया कि उस के मकान पर ताला लगा हुआ था.

परिवार के 5 लोग थे लापता

यह देख कर दोनों भाईबहन की परेशानियां और भी बढ़ गईं. भारती ने आसपास रहने वालों से पूछताछ की. किसी ने भी कोई जानकारी नहीं दी. घर पर ताला लगा देख घबराई भारती तुरंत नेमावर स्थित पुलिस थाने गई. टीआई अविनाश सिंह सेंगर को उस ने पूरी कहानी सुना दी.

एक ही परिवार के 5 लोग लापता थे, इसलिए मामले की गंभीरता को देखते हुए सेंगर ने तत्काल भारती की रिपोर्ट पर ममता, रूपाली, दिव्या, पवन और पूजा की गुमशुदगी दर्ज कर ली.

टीआई ने इस की जानकारी एसपी डा. शिवदयाल एवं एएसपी सूर्यकांत शर्मा को भी दे दी. मामला आदिवासी समाज का था. इस कारण इसे गंभीरता से लिया जाने लगा.

लापता सभी 5 सदस्यों में से सिर्फ रूपाली का मोबाइल ही चालू था, जिस की लोकेशन लगातार बदल रही थी. रूपाली अपने मोबाइल से भारती को लगातार मैसेज कर खुद की सलामती की जानकारी दे रही थी, लेकिन उसे खोजने की कोशिश नहीं करने की भी हिदायत मिल रही थी.

ताज्जुब की बात यह थी कि वह मैसेज द्वारा बात तो कर रही थी लेकिन भारती अथवा परिवार के किसी भी सदस्य का फोन नहीं उठा रही थी.

लापता सदस्यों में 2 रूपाली की मौसी के बच्चे थे. इस की जानकारी भारती की मौसी को मिली तो वह भी भागीभागी नेमावर आ गईं. उन्होंने रूपाली पर अपने बच्चों के अपहरण का आरोप लगाना शुरू कर दिया. उन का कहना था कि रूपाली की हरकतें ठीक नहीं थीं. उसी ने हमारे बच्चों का अपहरण किया है.

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मामले को उलझता देख एसपी ने उज्जैन जोन के आईजी योगेश देशमुख से संपर्क किया. देशमुख नेमावर पहुंच कर एसपी देवास को आवश्यक निर्देश दिए. उस के मुताबिक एसपी ने मामले की जिम्मेदारी एएसपी सूर्यकांत शर्मा को सौंप कर 5 टीमों को फील्ड में उतार दिया.

इस के साथ ही टीआई (नेमावर) अविनाश सिंह सेंगर के अलावा आधा दरजन से अधिक पुलिसकर्मी जांच मे जुट गए.

मामले को सुलझाने की पहली जिम्मेदारी का निर्वाह करते हुए नेमावर पुलिस लापता सदस्यों के परिवार की कुंडली बनाने में जुट गई. इस के लिए मुखबिरों की मदद ली गई.

पुलिस ने रूपाली के मोबाइल फोन की भी डिटेल्स निकाली, जिस से रूपाली के फोन पर कई युवकों से बात होने की जानकारी मिली. उन में एक नेमावर का रहने वाला युवक सुरेंद्र सिंह पुत्र लक्ष्मण सिंह भी था. जबकि बाकी के युवक हरदा और उस के आसपास के इलाके के थे.

सुरेंद्र रूपाली के भाई संतोष का पुराना दोस्त था, जो पड़ोस में ही रहता था. वह संतोष के साथ रूपाली और परिवार के बाकी लोगों की खोजखबर लेने के लिए हमेशा उस के साथ थाने भी आता था. पूछताछ में उस ने बताया कि संतोष उस का दोस्त है. संतोष के पीथमपुर जाने के बाद उस के परिवार का हालचाल जानने के लिए आताजाता था. उस की रूपाली के अलावा परिवार के अन्य लोगों से भी बातचीत होती रहती थी.

पुलिस को मिली महत्त्वपूर्ण जानकारी

रूपाली की काल डिटेल्स में कई लोगों के साथ बातचीत की भी जानकारी मिली. उन में सुरेंद्र के अलावा दूसरे लोग हरदा इलाके के रहने वाले थे. उन के साथ रूपाली की जानपहचान संदिग्ध लगने के संदर्भ में पुलिस इंसपेक्टर शिवमुराद यादव  को एक चौंकाने वाली जानकारी मालूम हुई.

वह यह कि रूपाली ने घर वालों की बिना जानकारी के हरदा में एक किराए का कमरा ले रखा था. वह अकसर उसी कमरे में ठहरती थी. वहीं सुरेंद्र भी नेमावर से हरदा जा कर उस से मिलता था. सुरेंद्र के अलावा दूसरे युवक भी रूपाली के पास आतेजाते देखे गए थे.

पुलिस को रूपाली के बारे में सब से महत्त्वपूर्ण जानकारी यह भी पता चली कि उस ने पड़ोसियों से सुरेंद्र का परिचय अपने पति के रूप में करवाया था.

इन जानकारियों के आधार पर रूपाली परिवार के लापता सदस्यों के सिलसिले में इकलौता सूत्र बन गई थी. एक तरफ जहां रूपाली की संदिग्ध गतिविधियां सामने आ चुकी थीं, वहीं उस के मोबाइल से बदले हुए लोकेशनों के साथ मैसेज भेजे जा रहे थे.

सिर्फ मैसेज आने की स्थिति में पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि रूपाली का मोबाइल कोई और इस्तेमाल कर रहा है. इस मामले में रूपाली की भूमिका महत्त्वपूर्ण होने के बावजूद पुलिस उस तक नहीं पहुंच पा रही थी.

समय बीतता जा रहा था. पुलिस को केस के बारे में कोई ठोस जानकारी हाथ नहीं लग पा रही थी. सुरेंद्र से भी कई बार पूछताछ की जा चुकी थी, लेकिन उस से भी कोई ठोस जानकारी नहीं मिल पाई थी. हां, उस ने इतना जरूर बताया था कि वह रूपाली से प्यार करता था.

पुलिस ने जब जांच का दायरा बढ़ाया तब मालूम हुआ कि 13 मई, 2021 को ममता रूपाली और दिव्या के अलावा पूजा और पवन भी शाम तक नेमावर में ही देखे गए थे. उसी दिन रूपाली और सुरेंद्र को भी गहराती शाम नर्मदा में तैरती नाव में एकदूसरे के साथ देखा गया था.

पुलिस को सुरेंद्र भी संदिग्ध लगा. दूसरे सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सुरेंद्र हरदा में किराए के कमरे पर रूपाली के पास जाता था. यह बात उस ने पूछताछ में नहीं बताई थी. वहां के पड़ोसियों के अनुसार वह रूपाली का कथित पति भी था.

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सुरेंद्र और रूपाली के बीच के संबंधों का पता लगने पर पुलिस ने जांच का रुख बदल दिया. जल्द ही मालूम हो गया कि उन के बीच काफी गहरा संबंध था. ऐसे में निश्चित तौर पर रूपाली ने नेमावर से अचानक कहीं जाने से पहले इस की जानकारी सुरेंद्र को दी होगी.

पुलिस ने इस का अंदाजा लगाते हुए संदेह के आधार पर 2 बातों पर गौर किया. पहला, रूपाली के गायब हो जाने पर सुरेंद्र ने कभी उस के मोबाइल पर फोन क्यों नहीं किया? दूसरा,  रूपाली के नंबर से उस के मोबाइल पर कोई काल या मैसेज क्यों नहीं आया?

पुलिस की नजर में इस का मतलब साफ था कि मामले में कोई सुरेंद्र को दूर रखने की कोशिश कर रहा था या फिर सुरेंद्र एक साजिश के तहत पुलिस के सामने आ कर अपना और रूपाली का बचाव कर रहा था.

इस शक को ध्यान में रख कर नेमावर पुलिस सुरेंद्र को मामले का सब से बड़ा संदिग्ध मानते हुए उस पर नजर रखने लगी. उस के बारे में जानकारियां जुटाई जाने लगीं.

अगले भाग में पढ़ें- सुरेंद्र के साथ लिवइन में रहने लगी रूपाली

Satyakatha- मनीष गुप्ता केस: जब रक्षक बन गए भक्षक- भाग 3

सौजन्य: सत्यकथा

Writer- शाहनवाज

वारदात की रात जब मनीष की सांसें थम गई थीं और पुलिसकर्मियों को एहसास हो गया था कि उन की मौत हो गई है, तब आरोपी शव ठिकाने लगाने के प्रयास में जुटे थे. आखिर में जब उन्हें कोई रास्ता नहीं सूझा, तब वे बीआरडी मैडिकल कालेज पहुंचे थे. इसलिए उन को निजी अस्पताल से मैडिकल कालेज पहुंचने में करीब 2 घंटे का समय लगा. एसआईटी ने इस तथ्य को अपनी जांच में भी शामिल किया है.

एसआईटी की जांच में यह तथ्य पाया गया कि बेजान मनीष को सब से पहले आरोपी पुलिस वाले जीप से ले कर पास के मानसी अस्पताल ले कर पहुंचे थे. वहां डाक्टर ने बताया कि मनीष की नब्ज नहीं मिल रही है, तत्काल इन को ले कर बीआरडी मैडिकल ले जाओ. अस्पताल प्रशासन ने मनीष को वहां से रेफर कर दिया था.

एसआईटी की जांच में सामने आया कि जब यहां से पुलिसकर्मी मनीष को ले कर रवाना हुए तो उन को यकीन हो गया था कि मनीष की मौत हो चुकी है. वे तकरीबन 2 घंटे बाद बीआरडी मैडिकल कालेज पहुंचे थे. जहां डाक्टरों ने मनीष को मृत घोषित कर दिया.

लाश ठिकाने लगाना चाहते थे पुलिस वाले

एसआईटी ने जब यह पता करना शुरू किया कि जिस दूरी को 10 मिनट में कवर करना था, उस में पुलिसकर्मियों को 2 घंटे क्यों लगे. तब सीसीटीवी फुटेज व अन्य तथ्यों से स्पष्ट हुआ कि आरोपी पुलिसकर्मी पहले थाने गए थे और उन्होंने गाड़ी भी बदली थी. इस पूरे समय में वे घूमते रहे थे. कुछ जगहों पर वे रुके भी थे.

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इस दौरान मनीष के शव को ठिकाने लगाने के प्रयास में जुटे थे. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करें. अंत तक जब समझ नहीं सके कि शव का क्या जाए तो वे सीधे मैडिकल कालेज पहुंचे.

सूत्रों के मुताबिक एसआईटी की जांच में सामने आया कि जब गाड़ी में बेजान मनीष को ले कर पुलिसकर्मी घूम रहे थे तो एक पुलिसकर्मी ने इंसपेक्टर जगत नारायण सिंह से कहा कि शव को कहीं ऐसे ही फेंक देते हैं. बाद में लावारिस में बरामद होगा. आगे की जांच होती रहेगी.

इस पर जगत नारायण ने कहा कि ऐसा करने से और फंस जाओगे. होटल से जब मनीष को ले कर चले थे तब उस के दोस्त व होटल प्रशासन मौजूद था. मानसी अस्पताल प्रशासन भी इस का गवाह है.

बाकी तमाम फुटेज में भी हम लोग कैद हुए हैं. लिहाजा मैडिकल कालेज चलने के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं है.

मामले के मुख्य आरोपी जगत नारायण सिंह और अक्षय मिश्रा की गिरफ्तारी के ठीक 2 दिनों बाद 12 अक्तूबर के दिन 2 अन्य आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है. एसआई राहुल दुबे और सिपाही प्रशांत कुमार को मंगलवार की दोपहर गोरखपुर पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था.

दोनों कोर्ट में हाजिर होने की फिराक में गोरखपुर आए थे. पुलिस ने आजाद चौक इलाके से दोनों को गिरफ्तार कर एसआईटी कानपुर के सुपुर्द कर दिया था. दोनों पर कानपुर पुलिस की ओर से एकएक लाख रुपए का ईनाम घोषित कर दिया गया था.

जानकारी के मुताबिक कारोबारी मनीष गुप्ता की हत्या में नामजद आरोपी राहुल दुबे और सिपाही प्रशांत कोर्ट में हाजिर होने के लिए गोरखपुर आए थे. इस की भनक गोरखपुर पुलिस को लग गई थी. लिहाजा एसएसपी डा. विपिन ताडा ने घेराबंदी कराई और अलगअलग टीमें लगा दीं.

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इसी बीच कैंट इंसपेक्टर सुधीर कुमार सिंह को मुखबिर से सूचना मिली कि आरोपी एसआई और सिपाही आजाद चौक चौकी के पास मौजूद हैं. दोनों वाहन पकड़ कर कचहरी जाने की फिराक में थे. सूचना मिलने के साथ ही कैंट इंसपेक्टर सुधीर सिंह, रामगढ़ताल इंसपेक्टर सुशील कुमार शुक्ला व फलमंडी चौकी इंचार्ज शेष कुमार शुक्ला पहुंच गए और दोनों आरोपियों को पकड़ लिया.

गिरफ्तार राहुल दुबे मिर्जापुर के कोतवाली देहात के मिश्र पचेर गांव का रहने वाला है, जबकि प्रशांत कुमार गाजीपुर के सैदपुर थानाक्षेत्र के भटौला गांव का रहने वाला है.

इस कांड के 4 आरोपियों की गिरफ्तारी हो चुकी थी, जबकि 2 अभी भी फरार चल रहे थे.

उधर उत्तर प्रदेश सरकार ने मृतक की पत्नी मीनाक्षी गुप्ता को 10 लाख रुपए की आर्थिक सहायता और कानपुर विकास प्राधिकरण में ओएसडी की नौकरी दे कर उन के दुखों पर मरहम लगाने की कोशिश की है.

इस के अलावा सपा नेता अखिलेश यादव ने भी उन्हें 20 लाख रुपए की आर्थिक सहायता दी.

बहरहार, मीनाक्षी गुप्ता ने 11 अक्तूबर को कानपुर विकास प्राधिकरण में ओएसडी पद पर नौकरी जौइन कर ली. उन का कहना है कि आरोपी पुलिसकर्मियों को फांसी दिलाने तक वह अपना संघर्ष जारी रखेंगी.

Crime- चुग्गा की लालच में फंसते, ये पढ़ें लिखे श्रीमान!

आपने एक कहानी पढ़ी होगी- शिकारी “पंछी” को फसाने के लिए दाने डालता है और फिर जाने कितने पंछी उस चुग्गे के लालच में आकर के दाना चुगने लगते हैं और शिकारी उन्हें अपने जाल में फंसा लेता है.
यह कहानी बचपन में पढ़ने के बाद हम मन ही मन हंसते हैं की पंछी बेचारे कितने अनजान होते हैं. और हम जिंदगी में कभी भी ऐसी कोई भूल नहीं करेंगे. इस कहानी का यही संदेश भी है.

मगर बचपन की कहानी जब हम बड़े हो जाते हैं तो शायद भोले भाले इंसान से  एक लालची, लोधी व्यक्ति के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं, जो कहीं थोड़ा भी लाभ दिखाई देता है तो उसे पाने के लिए लालायित हो जाता है. और यह भूल जाता है कि कहीं वह किसी शिकारी का शिकार तो नहीं है.

देश दुनिया में हमारे आसपास ऐसे जाने कितनी घटनाएं घटती जाती है.समाचार पत्रों में सुर्खियां बनती हैं लोग पढ़ते हैं और फिर भूल जाते हैं.

आइए आज हम आपको एक आंख खुलने वाली रिपोर्ट से रूबरू कराएं और देखें कि कैसे पढ़े लिखे लोग ठगी के जाल में फंस जाते हैं लाखों रुपए लुटा के होश आता है.

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प्रथम घटना-नोएडा की श्रीमती रमा शर्मा को फोन कॉल आया कि आपको कौन बनेगा करोड़पति में मौका मिलने वाला है और उनसे दो लाख रुपए ठग  लिए गए.

दूसरी घटना-मध्य प्रदेश के कटनी में एक इंजीनियर को सोशल मीडिया के माध्यम से लाखों रुपए की लाभ का लालच देकर कई लाख रुपए ठग लिए गए.

तीसरी घटना – महाराष्ट्र के नागपुर में एक पुलिस आरक्षक को एक कॉल आया किया की आपको जिओ से लाखों रुपए का लाभ  मिलने वाला है और उससे लाखों  रुपए ठग लिए गए.

हम आपको सावधान करते हैं

ऐसे ही जाने कितने छोटे-छोटे और बड़े-बड़े लालच देकर के लोगों को ठगा जा रहा है, लूटा जा रहा है. पुलिस और समाजिक संस्थाएं यथासंभव यह प्रयास करती हैं कि लोगों में जागरूकता आए. प्रयास जारी है मगर इसके साथ ही ठगी का या खेल और भी ज्यादा बढ़ता चला जा रहा है. अतः हम आपको सावधान करते हैं कि आप किसी शिकारी का चुग्गा फेंकने पर कदापि ना फंसे.

क्योंकि देखा जा रहा है कि  आम लोगों के अलावा भी पढ़े लिखे लोग, शासकीय पदों में बैठे हुए लोग भी छोटे से लाभ के चक्कर में फंस कर के ठगे जा रहे हैं. एक ज्वलंत उदाहरण यह है-

कम दाम में “कार” पाने की लालच में एक युवक दिल्ली के ठगों से 14 लाख रुपए की ठगी का शिकार हो गया. मामला भिलाई के सुपेला थाना क्षेत्र का है. पुलिस के मुताबिक आवेदक मोनिष लोही उम्र 22 साल सेक्टर 2 में रहता है. करीब 3 वर्ष पूर्व 20 दिसंबर 2018 को 24 शपिंग हब के स्वामी हितेश कुमार के कर्मचारी धनराज सिंह ने फोन पर बताया कि हमारे कंपनी से कार खरीदी करने के लिए ऑफर है उसने दाना फेंका-  “प्रमोशनल इवेंट चल रहे हैं, आप टाटा कंपनी की कार नेक्सन जीत सकते हैं.”

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पढ़ा लिखा और दुनिया जाहन  की जानने समझने वाला मनीष उनकी बातों से प्रभावित हो गया और कार जीतने के लालच ने उसे कंपनी के कर्मचारी के बताए अनुसार बैंक खाते में धीरे-धीरे करके 14 लाख रुपए वर्ष 2018 एवं 2019 में किस्तों में भुगतान किया. लेकिन टाटा नेक्सन कार की डिलीवरी मनीष को आज तक अप्राप्त है. इस रिपोर्ट के आधार पर पर पुलिस ने देश की राजधानी दिल्ली की एक महिला ठग सहित तीन लोगों के खिलाफ धोखाधड़ी का अपराध दर्ज करके कार्रवाई की है.

आज चल रही इस ठगी के तारतम्य में पुलिस अधिकारी विकास शर्मा के मुताबिक यह बहुत ही चिंता की बात है कि आम लोग तो ठगी का शिकार हो ही रहे हैं पढ़े लिखे शिक्षित लोग भी सोशल मीडिया के आने के बाद बहुत बड़ी तादाद में जालसाजी और ठगी का शिकार हो रहे हैं इसका मूल कारण सिर्फ लालच ही है.

Satyakatha- सुहागन की साजिश: सिंदूर की आड़ में इश्क की उड़ान- भाग 3

सौजन्य: सत्यकथा

दोनों के दिल एकदूसरे के लिए धड़के तो नजदीकियां खुदबखुद बन गईं. इस के बाद दीपक शिवगोविंद की गैरमौजूदगी में रीता से मिलने आने लगा. रीता को उस का आना और उस के साथ लच्छेदार बातें करना अच्छा लगता था. जल्द ही वे एकदूसरे से खुल गए और हंसीमजाक होने लगा.

एक रोज दोपहर में दीपक आया. रीता ने उकसाया तो उस दिन दोनों के बीच की हर दीवार टूट गई और अवैध संबंधों का रिश्ता बन गया.

पति का दोस्त बन गया मीत

उस दिन के बाद रीता और दीपक अकसर देहसुख प्राप्त करने लगे. दीपक ऐसे समय आता, जब शिवगोविंद घर पर नहीं होता. सूने घर में दोनों खूब रंगरलियां मनाते. कभीकभी तो रीता स्वयं ही फोन कर लल्ला को बुला लेती. फिर दो शरीर एक हो जाते.

लेकिन ऐसे संबंध छिपाए नहीं छिपते. धीरेधीरे गांव में रीता और दीपक के संबंधों की चर्चा होने लगी.

रीता के पति शिवगोविंद यादव को जब रीता और दीपक के संबंधों के बारे में पता चला तो उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उस ने इस बारे में पत्नी व दोस्त से बात की तो दोनों ने साफ कह दिया कि ऐसी कोई बात नहीं है.

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लेकिन एक रोज जब उस ने अचानक दोनों को हंसीठिठोली करते देख लिया, तो उस ने रीता की पिटाई की तथा दीपक उर्फ लल्ला को भी फटकारा. पर उन दोनों पर इस का कोई असर नहीं हुआ. दोनों पहले की तरह मौजमस्ती करते रहे.

इस के बाद तो यह रवैया ही बन गया. जिस दिन शिवगोविंद को पता चलता कि दीपक उर्फ लल्ला उस के घर आया था, उस दिन वह रीता से मारपीट करता.

शिवगोविंद का परिवार और गांव वाले इस बात को जान गए थे कि दोनों के बीच तनाव रीता और दीपक के नाजायज रिश्तों को ले कर है.

पत्नी की बेवफाई से तंग आ कर एक दिन शिवगोविंद अपनी भाभी ममता के सामने फूटफूट कर रोने लगा, ‘‘भाभी, कल जिस औरत की मांग में सिंदूर सजा कर मैं ने विधवा होने का कलंक मिटाया तथा समाज में सम्मान दिलाया, आज उस औरत ने समाज में मेरा सिर नीचा कर दिया. जी करता है कि या तो उस नागिन का फन कुचल दूं या फिर खुद जान दे दूं.’’

ममता ने शिवगोविंद को समझाया कि वह सब्र से काम ले. वह रीता को समझाएगी, उसे सही रास्ते पर लाने का प्रयास करेगी. लेकिन ऐसा हो न सका. ममता व उस के पति बालगोविंद ने रीता को समझाया, मानमर्यादा में रहने का पाठ पढ़ाया. लेकिन रीता पर कोई असर नहीं पड़ा.

5 जून, 2021 की शाम शिवगोविंद का दोस्त सतीश उस के घर आया. चायपानी के दौरान दोनों में गपशप होने लगी. सतीश ने रीता की तारीफ की तो शिवगोविंद ने मन की भड़ास निकालनी शुरू कर दी.

सतीश के सामने उस ने रीता की पोल खोल कर रख दी. उस ने कुछ ऐसी भी बातें कह दीं, जो रीता के दिल को चुभ गईं.

पति बना इश्क में रोड़ा

पति की बात दिल में चुभी तो रीता ने पति को मिटाने का निश्चय कर लिया. उस ने प्रेमी दीपक उर्फ लल्ला को घर बुला लिया और घडि़याली आंसू बहाते हुए बोली, ‘‘तुम्हारी वजह से मेरा पति मुझे मारतापीटता है, दूसरों के सामने जलील करता है और तुम दुम दबा कर भाग जाते हो. आखिर तुम कुछ करते क्यों नहीं?’’

‘‘घर का मामला है भाभी, मैं कर ही क्या सकता हूं?’’ दीपक ने मजबूरी जाहिर की.

‘‘विरोध तो कर सकते हो, मुझ पर उठने वाला उस का हाथ मरोड़ तो सकते हो. फिर भी न माने तो…’’ रीता बोली.

‘‘तो क्या भाभी..?’’ दीपक ने आश्चर्य से पूछा.

रीता गुस्से में बोली, ‘‘उस का गला घोट दो, मार डालो उसे, ताकि मैं चैन से रह सकूं.’’

‘‘ठीक है जैसा तुम चाहती हो वैसा ही होगा.’’ इस के बाद रीता और दीपक ने मिल कर शिवगोविंद की हत्या की योजना बनाई. इस योजना में दीपक ने अपने दोस्त अमन व निखिल को भी पैसों का लालच दे कर शामिल कर लिया.

योजना के तहत दीपक उर्फ लल्ला ने 6 जून, 2021 की शाम 5 बजे अमन व निखिल को साबड़ व फावड़े के साथ नोन नदी किनारे खेत पर भेज दिया. फिर वह शिवगोविंद के घर पहुंचा. शिवगोविंद घर पर ही था.

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दीपक ने शिवगोविंद से कहा, ‘‘शौचालय पाटने के लिए लकड़ी चाहिए हो तो मेरे साथ खेत पर चलो. वहां यूकेलिप्टस की लकड़ी दिलवा दूंगा. कीमत भी नहीं चुकानी पड़ेगी.’’

शिवगोविंद ने अंधेरा घिर आने का बहाना बनाया. लेकिन रीता ने उस की बात खारिज कर दी और जबरदस्ती दीपक के साथ भेज दिया. शिवगोविंद नोन नदी के किनारे खेत पर पहुंचा तो वहां अमन और निखिल भी मौजूद थे. उन सब में आपस में बातें होने लगीं.

बातचीत के बीच में ही अमन और निखिल ने शिवगोविंद को दबोच लिया और दीपक ने साबड़ का प्रहार शिवगोविंद के सिर पर कर दिया. साबड़ के प्रहार से शिवगोविंद का सिर फट गया. इस के बाद अमन व निखिल ने फावड़े से प्रहार कर शिवगोविंद को मौत के घाट उतार दिया.

हत्या करने के बाद अमन, निखिल व दीपक शव को उठा कर नदी के किनारे लाए. नोन नदी सूखी थी. वहां तीनों ने मिल कर फावड़े से गहरा गड्ढा खोदा और शिवगोविंद की लाश गड्ढे में दफन कर दी. उन्होंने आलाकत्ल फावड़ा व साबड़ झाडि़यों में छिपा दिए. फिर वापस अपने अपने घर आ गए.

दीपक ने रीता को फोन कर के बता दिया कि उस के सुहाग को मिटा दिया गया है और शव को नोन नदी में दफना दिया है.

इधर जब कई दिनों से शिवगोविंद दिखाई नहीं दिया, तो ममता ने रीता से सवालजवाब किया. शक होने पर उस ने सारी बात पति बालगोविंद को बताई. बालगोविंद ने तब थाना अकबरपुर में भाई की गुमशुदगी दर्ज कराई और शक उस की पत्नी रीता पर किया.

शक होने पर थानाप्रभारी तुलसीराम पांडेय ने रीता को गिरफ्तार किया. उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो शिवगोविंद की हत्या का परदाफाश हो गया और कातिल पकड़े गए.

13 जून, 2021 को थाना अकबरपुर पुलिस ने आरोपी दीपक उर्फ लल्ला, अमन तथा रीता को कानपुर देहात की माती अदालत में पेश किया, जहां से उन को जिला जेल भेज दिया गया. कथा लिखने तक निखिल फरार था. पुलिस उसे गिरफ्तार करने का प्रयास कर रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सहयोगी : जय कुमार मिश्र

Manohar Kahaniya- किडनैपिंग: चंबल से ऐसे छूटा अपहृत डॉक्टर- भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

आगरा के ट्रांसयमुना कालोनी के रहने वाले सीनियर डाक्टर उमाकांत गुप्ता अपने रोजाना की रुटीन के मुताबिक 13 जुलाई, 2021 की शाम साढ़े 7 बजे अपने विद्या नर्सिंग होम जाने के लिए घर से अपनी नीले रंग की बलेनो कार से निकले थे. उन का नर्सिंग होम घर से महज 700 मीटर की दूरी पर रौयल कट चौराहे के पास है और रामबाग क्षेत्र में उन का दूसरा बांकेबिहारी हौस्पिटल भी है.

वह हौस्पिटल और नर्सिंग होम में विजिट कर हमेशा रात 10 बजे तक वापस घर लौट आते थे. लेकिन उस दिन वे रात 11 बजे तक घर नहीं लौटे थे. इस कारण घर वालों को  चिंता हुई. उन की पत्नी डा. विद्या गुप्ता ने उन्हें कई बार फोन मिलाया. हर बार फोन स्विच्ड औफ मिला.

डा. विद्या ने नर्सिंग होम फोन कर स्टाफ से डाक्टर साहब के बारे में पूछा. वहां से पता चला कि आज तो डाक्टर साहब विजिट करने नर्सिंग होम आए ही नहीं. यह सुन कर डा. विद्या गुप्ता का माथा ठनका, वह सोच में पड़ गईं, ‘‘आए नहीं तब कहां गए?’’

उन्होंने तुरंत बांकेबिहारी हौस्पिटल में फोन मिलाया. वहां से भी वही सुनने को मिला कि डाक्टर साहब आज आए ही नहीं. डा. विद्या की अपने पति के सकुशल होने की चिंता अनहोनी की आशंका में बदलती जा रही थी. देरी किए बगैर उन्होंने इस की सूचना पुलिस को दे दी.

सूचना पर थाना एत्माद्दौला के थानाप्रभारी देवेंद्र शंकर पांडेय पुलिस टीम के साथ  डाक्टर के आवास पर पहुंच गए. पूरे घटनाक्रम की जानकारी ले कर परिवार के सभी सदस्यों के मोबाइल नंबरों को सर्विलांस पर लगा दिया. इसी के साथ डा. गुप्ता के मोबाइल की अंतिम लोकेशन का पता लगाया, जो सैयां के गांव रोहता की मिली.

इसे देख कर पुलिस भी किसी अप्रिय घटना से आशंकित हो गई. उस ने घरवालों से पूछा कि डाक्टर साहब वहां क्यों गए होंगे. तब उन्होंने बताया कि इस की उन्हें जानकारी नहीं, क्योंकि वहां उन का कोई परिचित या कोई रिश्तेदार भी नहीं रहता.

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डा. विद्या ने बताया कि उन के पति ने कभी भी उस गांव को ले कर चर्चा तक नहीं की थी. फिर भी सवाल था कि डाक्टर साहब वहां क्यों गए, किसी भी तरह से जवाब नहीं मिलने की स्थिति में पुलिस को उन के अपहरण का शक हुआ.

यानी डा. गुप्ता का अपहरण! यह संदेह उन के परिवार वालों के होश उड़ाने वाला था. दबी आवाज में इस की कानोकान खबर भी पूरे शहर में फैल गई.

डा. उमाकांत गुप्ता के मोबाइल पर 13 जुलाई की शाम साढ़े 7 बजे एक अनजान नंबर से काल आई थी. उस के बाद ही वह घर से कार ले कर निकल पड़े थे. पुलिस ने उन के दूसरे काल की भी डिटेल्स जांची. सभी काल के साथ राहुल नाम दर्शा रहा था. पुलिस ने राहुल के बारे में पूछा तो डाक्टर के घर वालों ने अनभिज्ञता प्रकट की.

डाक्टर को ढूंढने में जुटीं 5 टीमें

पुलिस सोच में पड़ गई कि आखिर राहुल कौन है, उस ने डाक्टर को क्यों बुलाया होगा? क्या वह डाक्टर की कार में ही उन के साथ खंदारी से रोहता तक गया होगा? इन सवालों के जवाब के लिए पुलिस सक्रिय हो गई.

घटना की जानकारी आला अधिकारियों को भी दे दी गई. डाक्टर की तलाश तेजी से की जाने लगी. वारदात को ले कर उन के परिजन, नर्सिंग होम या फिर अस्पताल के लोगों से कोई सहयोग नहीं मिल पाया. उन्होंने डाक्टर साहब के किसी से विवाद या धमकी को लेकर अनभिज्ञता जाहिर कर दी.

पुलिस को अपने स्तर से छानबीन करते हुए डाक्टर गुप्ता को सकुशल वापस लाना बड़ी चुनौती थी. सैयां टोल प्लाजा के सारे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज चेक किए, लेकिन उस से किसी भी तरह का सुराग नहीं मिला.

पुलिस को आशंका थी कि डा. गुप्ता का अपहरण करने से पहले गैंग ने पूरी तैयारी की होगी. वे डाक्टर को सैयां रोड पर रोहता की तरफ अकेले गाड़ी चला कर नहीं जा सकते हैं. इसलिए अनुमान लगाया गया कि उन्हें बहाने से फोन कर बुलाया होगा. उस के बाद बदमाशों ने अपहरण कर लिया हो.

डाक्टर गुप्ता के अपहरण की सूचना पर एडीजी (जोन) राजीव कृष्ण, आईजी नवीन अरोड़ा, एसएसपी मुनिराज और एसपी (सिटी) बोत्रे रोहन प्रमोद भी सक्रिय हो गए. उन्होंने परिजनों को आश्वासन देने के साथसाथ हिदायत भी दी कि फिरौती के संबंध में किसी भी तरह के फोन आने पर वे पुलिस को अवश्य सूचित करें.

डा. विद्या को इस बात का विशेष ध्यान रखने को कहा गया. उन्होंने बताया कि डा. गुप्ता दिल के मरीज भी हैं, उन का 3 महीने पहले औपरेशन हुआ था.

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आगरा में अपहरण की यह पहली घटना नहीं हुई थी. इस से पहले भी अपहरण की कई वारदातों में डाक्टर से ले कर व्यापारी तक को निशाना बनाया जा चुका है. अपहर्त्ताओं के गैंग फिरौती में मोटी मोटी रकम वसूलते रहे हैं.

बताते हैं कि इन की सक्रियता धौलपुर (राजस्थान) में है, वह आगरा से अपहृत को ले जाते हैं और उन्हें चंबल के बीहड़ में छिपा कर रखते हैं. फिरौती वसूलने के काम गैंग के अलगअलग सदस्य करते हैं.

इसे ध्यान में रखते हुए पुलिस ने पहले के अपहरण की वारदातों में लिप्त गैंग के ऐसे सरगना और सदस्यों की सूची तैयार की, जो जमानत पर रिहा थे. एसएसपी मुनिराज के निर्देश पर जांच की 5 टीमें गठित की गईं.  टीमों का नेतृत्व एसपी (सिटी) प्रमोद बोत्रे को सौंपी गई.

जांच की शुरुआत मोबाइल नंबरों से हुई. जांच और सर्विलांस के तहत वारदात के दिन की तमाम संदिग्ध सीसीटीवी कैमरों की फुटेज को भी खंगाला गया. इन से मिली जानकारियों के आधार पर पूछताछ की तैयारी की गई. यह सब काम घटना की रात को ही कर लिया गया.

धौलपुर पुलिस के चंगुल में आया पवन

पुलिस ने रात में ही ट्रांसयमुना कालोनी से ले कर रामबाग, भगवान टाकीज और खंदारी तक के सीसीटीवी कैमरे चेक किए. उन में डाक्टर की कार कहीं नजर नहीं आई. जबकि उस के बाद कार एमजी रोड पर हरी पर्वत, धाकरान और प्रतापपुरा चौराहे से आगे जाती हुई दिखाई दी.

अगले रोज 14 जुलाई, 2021 की सुबह 10 बजे धौलपुर के एसपी केसर सिंह शेखावत ने एसएसपी मुनिराज को घटना के बारे में बताया. उन के आदेश पर आगरा पुलिस की एक टीम एसपी (सिटी) के नेतृत्व में राजस्थान बौर्डर पर पहुंची. उस ने धौलपुर पुलिस से संपर्क किया. वहीं डाक्टर गुप्ता के कार की बरामदगी का पता चला, जो रात साढ़े 12 बजे धौलपुर में जब्त की गई थी.

उस के ड्राइवर द्वारा ओवरटेक किए जाने के कारण स्थानीय सिपाहियों ने पकड़ा था. पकड़े गए ड्राइवर पवन ने बताया कि वह आगरा में निबोहरा का निवासी है और डा. गुप्ता की कार का ड्राइवर है. डाक्टर साहब धौलपुर आए हुए हैं. वह उन की कार ले कर अपने काम से जा रहा था.

सिपाहियों को पवन ने पूछे गए सवालों का सटीक जवाब नहीं दिया. क्योंकि कार छोड़ने के लिए उस ने पुलिस को 500 से ले कर 5 हजार तक रिश्वत देने की पेशकश की थी.

इस कारण उस के किसी गंभीर मामले में शामिल होने का संदेह हो गया और उसे थाने लाया गया. कड़ाई से की गई पूछताछ के बाद उस ने आगरा के डाक्टर के अपहरण की बात कुबूल कर ली.

2 अपहर्त्ता और चढ़े पुलिस के हत्थे

एक अन्य घटना के तहत रात के लगभग एक बजे चैकिंग कर रही पुलिस ने बाइक पर जा रहे एक युवक और युवती को रोकने का प्रयास किया. युवक युवती को उतार कर तेजी से बाइक को भगा ले गया. भागते समय युवक की जेब से उस का मोबाइल गिर गया.

पुलिस ने तुरंत युवती और गिरे मोबाइल को अपने कब्जे में ले लिया. पूछताछ में युवती ने अपना नाम मंगला पाटीदार बताया. उसी से पता चला कि वह भी डाक्टर के अपहरण में शामिल है.

इन 2 घटनाओं में 2 अपहर्त्ताओं के पकड़े जाने की सूचना मिलने से आगरा पुलिस ने थोड़ी राहत की सांस ली. मात्र 15 घंटे में ही डाक्टर की कार बरामद होने के साथसाथ 2 अपहर्त्ता पकड़े गए थे. अब पुलिस को उन के चंगुल से डाक्टर को सकुशल वापस लाने की चुनौती थी.

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डा. गुप्ता के आगरा से अपहरण का समाचार जब समाचार पत्रों के अलावा न्यूज चैनलों पर भी आया तो पूरे शहर में सनसनी फैल गई.

इस प्रकरण पर इंडियन मैडिकल एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने डीएम और एसएसपी से बात कर जल्द से जल्द उन की बरामदगी और दोषियों पर काररवाई की मांग की.

पदाधिकारियों ने वर्चुअल मीटिंग कर  पुलिस प्रशासन पर दबाव बनाते हुए 24 घंटे का अल्टीमेटम दे दिया. डाक्टर की बरामदगी नहीं होने पर आगरा के तमाम डाक्टरों ने हड़ताल पर जाने की धमकी दे डाली.

अगले भाग में पढ़ें- पुलिस ने की 20 गांवों में कांबिंग

Satyakatha: खूंखार प्यार- भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

‘‘अच्छा, ऐसी अंतिम धमकियां तो तुम जाने कितनी बार दे चुके हो. तुम मेरा मुंह बंद कर के गुलछर्रे उड़ाना चाहते हो. मेरी जिंदगी, मेरी बच्ची की जिंदगी बरबाद करना चाहते हो. मैं तुम से डरने वाली नहीं. देखो, एक मैं ही हूं जो तुम्हें बारबार माफ करती हूं. कोई दूसरी औरत होती तो अभी तक तुम जेल में होते.’’ वह गुस्से में बोली.

‘‘दीपू, तुम बारबार मुझे जेल की धमकी मत दिया करो, मैं भी कोई आम आदमी नहीं, मेरी भी ऊंची पहुंच है. चाहूं तो तुम्हें गायब करवा दूं, कोई ढूंढ भी नहीं पाएगा. बहुत ऊंची पहुंच है मेरी.’’

वे दोनों इसी तरह आपस में नोकझोंक करते हुए गृहनगर बिलासपुर की ओर बढ़ रहे थे. अचानक देवेंद्र ने कार रोकी और दीप्ति की तरफ देखते हुए बोला, ‘‘मैं एक मिनट में आता हूं.’’

दीप्ति ने उस की तरफ प्रश्नसूचक भाव से  देखा तो देवेंद्र ने छोटी अंगुली दिखाते हुए कहा, ‘‘लघुशंका.’’

देवेंद्र ने गाड़ी को सड़क से नीचे उतार दिया था. रात के लगभग 10 बज रहे थे, दीप्ति पीछे सीट पर बैठी हुई थी. दीप्ति ने गौर किया देवेंद्र देखतेदेखते कहीं दूर चला गया, दिखाई नहीं दे रहा था.

वह चिंतित हो उठी और इधरउधर देखने लगी. तभी उस ने देखा सामने से 2 लोग उस की ओर तेजी से आ रहे हैं. दोनों के चेहरे पर नकाब था, यह देख दीप्ति घबराई मगर देखते ही देखते दोनों उस पर टूट पड़े.

उन में एक पुरुष था और एक महिला, पुरुष ने जल्दी से एक नायलोन की रस्सी उस के गले में डाल दी और उस का गला रस्सी से दबाने लगा. इस में उस की साथी महिला भी उस की मदद करने लगी और दीप्ति का दम घुटने लगा. थोड़ी देर वह छटपटाती रही फिर आखिर में उस का दम टूट गया.

पुरुष और महिला ने मिल कर के उस का पर्स और मोबाइल अपने कब्जे में लिया. रुपए ले लिए, मोबाइल का सिम निकाला और जल्दीजल्दी उसे अपने कब्जे में ले कर के जेब में रखा. और एक झोले में लाए पत्थर से कार का शीशा तोड़ कर चले गए.

मगर उन लोगों ने यह ध्यान नहीं दिया कि इस आपाधापी में मोबाइल में लगा एक दूसरा सिम वहीं नीचे जमीन पर गिर गया है.

देवेंद्र सोनी और दीप्ति का विवाह 2003 में हुआ था. देवेंद्र के पिता रामस्नेही सोनी नगर के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे और उन का संयुक्त परिवार बिलासपुर के सरकंडा बंगाली पारा में रहता था.

देवेंद्र बीकौम की पढ़ाई कर ही रहा था कि पिता ने जिला कोरबा के उपनगर बालको कंपनी में कार्यरत कृष्ण कुमार सोनी की दूसरी बेटी दीप्ति से उस के विवाह की बात चलाई और दोनों परिवारों की सहमति से विवाह संपन्न हो गया.

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विवाह के बाद मानो देवेंद्र सोनी का असली रूप धीरेधीरे सामने आता चला गया. देवेंद्र चार्टर्ड अकाउंटेंट बनने की तैयारी कर रहा था, मगर परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं हो पा रहा था. इधर उस की आकांक्षाएं बहुत ऊंची थीं. अपनी ऊंची उड़ान के कारण ऐसीऐसी बातें कहता और नित्य नईनई लड़कियों से दोस्ती की बातें दीप्ति को बताता.

शुरू में तो वह नजरअंदाज करती रही, परंतु पैसों की कमी होने के बावजूद वह हमेशा अच्छेअच्छे कपड़े पहनता और नईनई लड़कियों से संबंध बनाता रहता था.

यह बात जब दीप्ति को पता चलने लगी तो दोनों में अकसर विवाद गहराने लगा. इस बीच दोनों की एक बेटी सोनिया का जन्म हुआ, जो लगभग 7 साल की हो गई थी. और बिलासपुर के एक अच्छे कौन्वेंट स्कूल में पढ़ रही थी.

रात के लगभग साढ़े 11 बज रहे थे. जिला चांपा जांजगीर के पंतोरा थाने के अपने कक्ष में थानाप्रभारी अविनाश कुमार श्रीवास बैठे अपने स्टाफ से कुछ चर्चा कर रहे थे कि उसी समय घबराए हुए 2 लोग भीतर आए.

एक के चेहरे पर मानो हवाइयां उड़ रही थीं. उन्हें इस हालत में देख अविनाश कुमार को यह समझते देर नहीं लगी कि कोई बड़ी घटना घटित हो गई है. उन्होंने कहा, ‘‘हांहां बताओ, क्या बात है, क्यों इतना घबराए हुए हो?’’

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दोनों व्यक्तियों, जिन की उम्र लगभग 30-35 वर्ष के लपेटे में थी, में से एक ने खड़ेखड़े ही लगभग कांपती हुई आवाज में बोला, ‘‘सर, मैं देवेंद्र सोनी 2-3 जिलों में कई प्रतिष्ठित लोगों के लिए अकाउंटेंट का काम करता हूं. मैं अपनी पत्नी दीप्ति के साथ कोरबा से बिलासपुर जा रहा था कि कुछ लोगों ने हम से लूटपाट की और मेरी पत्नी को…’’ ऐसा कह कर वह इधरउधर देखने लगा.

‘‘क्यों, क्या हो गया आप की पत्नी को… विस्तार से बताओ. आओ, पहले आराम से कुरसी पर बैठ जाओ.’’ अविनाश कुमार श्रीवास ने  उठ कर दोनों को अपने सामने कुरसी पर बैठाया और पानी मंगा कर के पिलाते हुए कहा.

अगले भाग में पढ़ें- श्रीवास ने फोन लगाया तो उस का फोन दिन भर बंद  मिला

Satyakatha: डॉक्टर की बीवी- रसूखदार के प्यार का वार- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

खुशबू विक्रम के प्यार में ऐसी पड़ी कि हमेशा के लिए उस के साथ रहने के बारे में सोचने लगी. उस ने विक्रम से बात की, ‘‘विक्रम, मैं अब तुम्हारे बिना नहीं रह सकती. हमें अब हमेशा के लिए एक हो जाना चाहिए. साथ रहेंगे तो और भी प्यार बढ़ेगा.’’

विक्रम यह सुन कर सन्न रह गया, ‘‘बोलने से पहले आप एक बार सोच लेती कि क्या कहने जा रही हो. तुम शादीशुदा हो और 2 बच्चों की मां हो और एक प्रतिष्ठित परिवार से हो. ऐसा करने पर तुम्हारा परिवार तो बरबाद होगा ही, मैं भी कहीं का नहीं रहूंगा. राजीव सर भी मुझे नहीं छोड़ेगे, जान से मार देंगे.’’

‘‘मैं ने सब सोच लिया है, अब मैं तुम्हारे साथ ही रहूंगी. चाहे कुछ हो जाए. तुम को मेरी बात माननी ही पड़ेगी. एक बात ध्यान रखो कि मैं जो चाहती हूं, वह पा कर रहती हूं, नहीं तो मैं सामने वाले को बरबाद कर देती हूं. अब तुम सोच लो, क्या करना है.’’ कह कर खुशबू वहां से चली गई.

खुशबू हमेशा के लिए अपना बनाना चाहती थी जिम ट्रेनर को

विक्रम तो सिर्फ खुशबू से संबंध बनाने के लिए जुड़ा था, लेकिन अब वह उस के लिए गले की हड्डी बन रही थी. ऐसे में विक्रम ने उस से दूरी बनानी शुरू कर दी. खुशबू को यह बात समझते देर नहीं लगी.

वह विक्रम के जिम जाने लगी, वहां रोज वह घंटों बैठी रहती. वह विक्रम का पीछा छोड़ने को बिलकुल तैयार ही नहीं थी. दोनों में अब प्यार के बजाय झगड़े होने लगे.

खुशबू अपनी जिद पूरी न होती देख कर बौखला सी गई. उस ने विक्रम के साथ रहने के लिए विक्रम को हर तरह से मना कर देख लिया था, लेकिन विक्रम मानने को तैयार ही नहीं था. खुशबू का दीवानापन या कहें पागलपन अपनी सीमाएं लांघने लगा था.

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विक्रम के न मानने पर वह उसे सबक सिखाने पर आमादा हो गई. वह विक्रम के घर जा कर विक्रम और उस के परिवार को धमकाने लगी कि विक्रम अगर उस की बात नहीं मानता तो वह उसे जान से मार देगी. एक बार तो उस ने विक्रम पर सर्जिकल ब्लेड से हमला भी कर दिया, जिस में विक्रम को 14 टांके लगे थे.

खुशबू गुस्से में बिफरी नागिन की तरह विक्रम को डंसने को आतुर थी. विक्रम को जान से मारने के लिए उस ने अपने पूर्व प्रेमी मिहिर सिंह से संपर्क किया. मिहिर दानापुर के नासरीगंज के यदुवंशी नगर में रहता

था. पिछले 5 सालों से उस के खुशबू से प्रेम संबंध थे.

घटना से डेढ़दो साल पहले ही उन का बे्रकअप हुआ था. अब खुशबू ने उस से प्रेम संबंध बनाए रखने के लिए अपने दूसरे प्रेमी विक्रम की जान का सौदा करवाने के लिए कहा. मिहिर उस का काम करवाने के लिए तैयार हो गया.

मिहिर 2 लोगों की मदद से शूटर अमन तक पहुंचा. अमन समस्तीपुर के किशनपुर बैकुंठ में रहता था. वह पत्राचार से एमबीए कर रहा था, साथ ही डिलीवरी बौय का भी काम करता था. अमन विक्रम की सुपारी लेने को तैयार हो गया. अमन ने अपने साथ आर्यन और शमशाद को मिला लिया.

आर्यन उर्फ रोहित सिंह सारण के सोनपुर के जहांगीरपुर का रहने वाला था. जबकि शमशाद बेगूसराय के चेरिया बरियापुर का रहने वाला था. वह गोवा में रह कर राजमिस्त्री का काम करता था. 5 महीने पहले ही वह वापस आया था.

मिहिर ने तीनों से बात कर के पूरा प्लान बनाया. सुपारी की रकम ढाई लाख रुपए तय हुई, जिस में एक लाख 85 हजार रुपए खुशबू ने 2-3 बार में दिए.

2 महीने पहले ही योजना बन गई थी. तीनों शूटर भागवतनगर इलाके में 14 हजार रुपए महीने के किराए के मकान में आ कर रहने लगे थे. 2 महीने पहले ही रुपए दिए जाने के बावजूद भी शूटर्स ने अपना काम नहीं किया तो मिहिर रुपए वापस ले कर खुशबू को दे कर इस झंझट से बाहर निकलना चाहता था.

मगर ऐसा हुआ नहीं, दबाव बढ़ा तो शूटर जल्द ही काम को अंजाम तक पहुंचाने को तैयार हो गए. शूटर्स ने कुछ दिन विक्रम की रेकी की, फिर 18 सितंबर, 2021 की सुबह एक चोरी की बाइक से कदमकुआं थाना क्षेत्र के लोहा मंडी इलाके में पहुंच गए. अमन

और आर्यन रास्ते में निश्चित स्थान पर खड़े हो गए. शमशाद कुछ दूरी पर बाइक ले कर खड़ा हो गया.

जैसे ही विक्रम स्कूटी से उस रास्ते से उन के पास से गुजरने लगा तो अमन और आर्यन ने उस पर ताबड़तोड़ फायरिंग करनी शुरू कर दी. गोलियां मारने के बाद तीनों शूटर भागवतनगर के किराए के मकान पर वापस आ गए. अंतत: पकड़े गए.

पुलिस ने उन के पास से 2 पिस्टल, मैगजीन और गोलियां बरामद कीं. पुलिस ने डाक्टर दंपति, मिहिर सिंह और तीनों शूटर्स को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया. कथा लिखने तक 2 आरोपी गिरफ्तार नहीं हो सके थे.

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खुशबू अपनी जिद और प्यार के पागलपन में इतनी अंधी हो गई कि उस ने अपना बसाबसाया घर तक बरबाद कर लिया. अच्छीखासी घरगृहस्थी और जिंदगी को छोड़ कर अब खुशबू बेउर जेल की बैरक में तन्हा जिंदगी गुजार रही है.

साजिश का पता होते हुए भी पति राजीव ने साथ दिया, वह भी अलग बैरक में बड़ी मुश्किलों में रह रहा है.

यह कहानी उन लोगों के लिए सबक है जो अपनी जिद, चाहत और पागलपन में सब कुछ बरबाद कर देते हैं. समय रहते अपने को संभाल लें तो उन की और उन के अपनों की जिंदगी बरबाद होने से बच सकती है.

—कथा पुलिस सूत्रों व मीडिया रिपोर्टों पर आधारित

Satyakatha- अय्याशी में गई जान: भाग 3

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Writer- प्रमोद गौडि़या

वह फ्लैट सत्यम और विशाल के लिए मौजमस्ती का अड्डा बन कर रह गया था. कई बार वहां सरवन के साथ भी बैठकें होती थीं और पार्टी का दौर चलता था.

उस फ्लैट पर एक और लड़की राधा का भी अकसर आनाजाना लगा रहता था. वह वहां बेधड़क आती थी और अधिकार के साथ कुछ समय वहां गुजार कर चली जाती थी.

हालांकि वह दूसरे मोहल्ल्ले मनीराम बगिया में रहती थी. वास्तव में वह सत्यम की मौसेरी बहन थी. सत्यम ने एक चाबी राधा को भी दे रखी थी. वहीं करीब 2 साल पहले एक बार उस की विशाल से मुलाकात हो गई थी. पहली नजर में ही दोनों एकदूसरे की ओर आकर्षित हो गए थे.

विशाल राधा की खिलती किशोरावस्था को देख कर हतप्रभ रह गया था, जबकि राधा उस की बातें और माचो बदन की दीवानी बन गई थी. उस के बाद से विशाल और राधा अकसर साथसाथ घूमनेफिरने लगे थे, लेकिन दोनों सत्यम की नजरों से बच कर भी रहते थे.

वे नहीं चाहते थे कि उन के प्रेम संबंध के बारे में सत्यम को कोई जानकारी हो. जल्द ही विशाल ने मौका पा कर राधा से शारीरिक संबंध भी बना लिए. राधा की भी उस में स्वीकृति मिल गई थी. सत्यम की गैरमौजूदगी में राधा विशाल को उसी फ्लैट पर बुला लेती थी.

7 सितंबर, 2021 को सत्यम ओमर ने राधा को फोन पर बताया था कि वह आज वहां नहीं आएगा. बाहर बालकनी में उस के कपड़े सूख गए होंगे, उन्हें अलमारी में रख दे. किचन और दूसरे कमरे के बिखरे सामान आ कर ठीक कर दे.

अपने भाई की बातों पर अमल करते हुए राधा ने अपने प्रेमी विशाल के साथ मौज करने की भी योजना बना ली. उस ने तुरंत फोन कर इस की सूचना विशाल को दी और शाम को खानेपीने का सामान ले कर फ्लैट पर आने को कहा.

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शाम होने से पहले वह फ्लैट पर चली गई, किचन और कमरे को दुरुस्त किया. तब तक शाम के साढ़े 8 बज चुके थे. अब तक विशाल को आ जाना चाहिए था, क्योंकि उस ने 8 बजे तक आने को कहा था. देर होने पर राधा ने विशाल को फोन किया, जिसे विशाल ने रिसीव नहीं किया.

करीब 20 मिनट बाद विशाल ने फोन कर राधा को बताया कि वह पहुंचने वाला है. और फिर वह ठीक 9 बजे फ्लैट पर पहुंच गया. वहीं अपार्टमेंट की पार्किंग में उस ने अपनी स्कूटी भी लगा दी.

राधा उस का बेसब्री से इंतजार कर रही थी. उसे देखते ही वह उस के गले लग गई. दोनों अकेले में कई हफ्तों बाद मिले थे. इस मौके को किसी भी सूरत में गंवाना नहीं चाहते थे. राधा के लिए पूरी रात थी. विशाल भी खानेपीने के सामान के साथ आया था.

दोनों बेफिक्र थे. मौजमस्ती के लिए पूरी तरह से तैयार और तत्पर भी थे. इसी तत्परता में उन से एक भूल हो गई. मुख्य दरवाजे की अंदर से कुंडी लगाना भूल गए. वे बैडरूम में थे. ड्राइंगरूम की ओर उन का जरा भी ध्यान नहीं था.

दोनों एकदूसरे पर प्यार की बौछार करते हुए कब यौनाचार में लीन हो गए, पता ही नहीं चला. दूसरी ओर वाटर प्लांट में काम समाप्त हो जाने पर सत्यम फ्लैट पर अचानक आ गया. फ्लैट का दरवाजा खुला होने पर वह सीधे ड्राइंगरूम में दाखिल हुआ. बैडरूम में रोशनी देख कर चौंक गया और वहां जा कर दरवाजे पर लगे परदे को हटाया.

बैड पर अपनी बहन राधा के साथ विशाल को लिपटा देख सन्न रह गया. वे दोनों आंखें मूंदे इतने बेफिक्र थे कि सत्यम के दरवाजे पर आने की जरा भी आहट नहीं हुई. गुस्से की ज्वाला को दबाए सत्यम चुपचाप फ्लैट के नीचे आया.

नीचे से लोहे की रौड निकाली और ऊपर पहुंच कर राधा के आलिंगन में बंधे विशाल के सिर पर दे मारी. एक ही वार में सिर से खून बहने लगा. राधा अपनी जान बचाते हुए दूसरे कमरे में भागी. गुस्से में सत्यम ने विशाल के सिर पर दनादन 3-4 और वार कर दिए.

सिर पर ताबड़तोड़ वार से विशाल की वहीं मौत हो गई. राधा के सामने ही विशाल की मौत हो गई थी, लेकिन वह डर गई थी कि कहीं सत्यम उसे भी न मार डाले.

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सत्यम ने डपटते हुए इस बारे में किसी को बताने की उसे सख्त हिदायत दे दी. उसे जल्दी से दीवार पर लगे खून के दाग मिटाने को कहा. उस के बाद तुरंत अपने दोस्त सरवन को बुलाया.

सरवन भागाभागा आया. लाश देख कर उस के होश उड़ गए, लेकिन जल्द ही सामान्य होने पर लाश को ठिकाने लगाने की योजना बनाई. तब तक रात के साढ़े 11 बज गए थे.

इसलिए सरवन योजना के अनुसार अगले रोज 8 सितंबर को प्लास्टिक का एक ड्रम खरीद लाया. उस में विशाल की लाश ठूंस कर पैक कर दी. ड्रम को उस पर लगी स्टील की स्ट्रिप से पैक कर दिया.

उस के बाद ड्रम को विशाल की स्कूटी पर लादकर कैंट होते हुए जाजमऊ गंगापुल से दही थाने की खेड़ा चौकी क्षेत्र जा पहुंचे. उन्होंने ड्रम को नहर के पास झाडि़यों में फेंक दिया. साथ ही विशाल का मोबाइल फोन भी नहर में फेंक दिया. उस की स्कूटी से वापस कानपुर आ गए.

सत्यम ने विशाल की स्कूटी अपने यशोदा नगर स्थित प्लौट के पास पेड़ के नीचे खड़ी कर दी. जबकि उस के खून से सने कपड़ों को कूड़ाघर में फेंक आया.

आरोपियों द्वारा अपना जुर्म स्वीकार कर लेने के बाद थानाप्रभारी सतीश कुमार सिंह ने आईपीसी की धारा 302/201/120बी के तहत हत्यारोपी सत्यम ओमर, सरवन किशोरी राधा को न्यायालय में पेश किया.

वहां से सत्यम और सरवन को कानपुर के जिला कारागार भेज दिया गया, जबकि साक्ष्य छिपाने के आरोप में राधा को नारी निकेतन के सुरक्षा गृह में भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित है तथा किशोरी राधा का नाम कल्पनिक है

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