होली स्पेशल: बनारसी साड़ी

मेहंदी लगी मेरे हाथ: क्या दीपा और अविनाश की शादी हुई

शादी के बहुत दिनों बाद मैं पीहर आई थी. पटना के एक पुराने महल्ले में ही मेरा पीहर था और आज भी है. यहां 6-7 फुट की गलियों में मकान एकदूसरे से सटे हैं. छतों के बीच भी 3-4 फुट की दूरी थी. मेरे पति संकल्प मुझे छोड़ कर विदेश दौरे पर चले गए थे. साल में 2-3 टूअर तो इन के हो ही जाते थे.

मैं मम्मी के साथ छत पर बैठी थी. शाम का वक्त था. हमारी छत से सटी पड़ोसी की छत थी. उस घर में एक लड़का अविनाश रहता था. मुझ से 4-5 साल बड़ा होगा. मेरे ही स्कूल में पढ़ता था. मुझे अचानक उस की याद आ गई. मैं मम्मी से पूछ बैठी, ‘‘अविनाश आजकल कहां है?’’

‘‘मैं उस के बारे में कुछ नहीं जानती हूं. तुम्हारी शादी से कुछ दिन पहले वह यह घर छोड़ कर चला गया था. वैसे भी वह तो किराएदार था. पटना पढ़ने के लिए आया था.’’

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मैं किचन में चाय बनाने चली गई पर मुझे अपने बीते दिन अनायास याद आने लगे थे. मन विचलित हो रहा था. किसी काम में मन नहीं लग रहा था. कप में चाय छान रही थी तो आधी कप में और आधी बाहर गिर रही थी. मन रहरह कर अतीत के गलियारों में भटकने लगा था. खैर, मैं चाय बना कर छत पर आ गई. ऊपर मम्मी पड़ोस वाली छत पर खड़ी आंटी से बातें कर रही थीं. दोनों के बीच बस 3 फुट की दूरी थी. मैं ने अपनी चाय आंटी को देते हुए कहा, ‘‘आप दोनों पी लें. मैं अपने लिए फिर बना लूंगी.’’

मैं उन दोनों से अलग छत के दूसरे कोने पर जा खड़ी हुई. अंधेरा घिरने लगा था. बिजली चली गई, तो बच्चे शोर मचाते बाहर निकल आए. कुछ अपनीअपनी छत पर आ गए. ऐसे ही अवसर पर मैं जब छत पर होती थी, अविनाश मुझे देख कर मुसकराता था, तो कभी हवा में हाथ उठाता था. मैं उस वक्त 8वीं कक्षा में थी. मैं अकसर कपड़े सुखाने छत पर आती थी. अविनाश भी उस समय छत पर ही होता था खासकर छुट्टी के दिन.

एक दिन जब मैं छत पर खड़ी थी तो बिजली चली गई. कुछ अंधेरा था. अविनाश ने पास आ कर एक परची मुझे पकड़ा दी और फिर जल्द ही वहां से मुसकराता हुआ भाग खड़ा हुआ. मैं बहुत डर गई थी. परची को कुरते के अंदर छिपा लिया. बचपन और जवानी के बीच के कुछ वर्ष लड़कियों के लिए बड़े कशमकश भरे होते हैं. कभी मन उछलनेकूदने को करता है तो कभी बाली उम्र से डर लगता है. कभी किसी को बांहों में लेने को जी चाहता है तो कभी खुद किसी की बांहों में कैद होने को जी करता है.

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मैं ने बाद में उस परची को पढ़ा. लिखा था, ‘‘दीपा, तुम मुसकराती हो तो बहुत सुंदर लगती हो और मुझे यह देख कर खुशी होती है.’’

ऐसे ही समय बीत रहा था. मेरी दीदी की शादी थी. मेहंदी की रस्म थी. मैं ने भी

दोनों हाथों में मेहंदी लगवाई और शाम को छत पर आ गई. अविनाश भी अपनी छत पर था. उस ने मुसकरा कर हाथ लहराया. न जाने मुझे क्या सूझा कि मैं ने भी अपने मेहंदी लगे हाथ उठा दिए. उस ने इशारों से रेलिंग के पास बुलाया तो मैं किसी आकर्षणवश खिंची चली गई. उस ने तुरंत मेरे हाथों को चूम लिया. मैं छिटक कर अलग हो गई.

अविनाश को जब भी मौका मिलता मुझे चुपके से परची थमा जाता था. यों ही मुसकराती रहो, परची में अकसर लिखा होता. मुझे अच्छा तो लगता था, पर मैं ने न कभी जवाब दिया और न ही कोई इजहार किया.

मैं ने प्लस टू के बाद कालेज जौइन किया था. एक दिन अचानक दीदी ने अपनी ससुराल से कोई अच्छा रिश्ता मेरे लिए मम्मीपापा को सुझाया. मैं पढ़ना चाहती थी पर सब ने एक सुर में कहा, ‘‘इतना अच्छा रिश्ता चल कर अपने दरवाजे पर आया है. इस मौके को नहीं गंवाना है. तुम बाकी पढ़ाई ससुराल में कर लेना.’’

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मेरी शादी की तैयारी चल रही थी. अविनाश ने एक परची मुझे किसी छोटे बच्चे के हाथ भिजवाई. लिखा था कि शादी मुबारक हो. ससुराल में भी मुसकराती रहना. शायद तुम्हारी शादी की मेहंदी लगे हाथ देखने का मौका न मिले, इस का अफसोस रहेगा.

मैं शादी के बाद ससुराल इंदौर आ गई. पति संकल्प अच्छे नेक इंसान हैं, पर अपने काम में काफी व्यस्त रहते थे. काम से फुरसत मिलती तो क्रिकेट के शौकीन होने के चलते टीवी पर मैच देखते रहेंगे या फिर खुद बल्ला उठा कर अपने क्रिकेट क्लब चले जाएंगे. वैसे इस के लिए मैं ने उन से कोई गिलाशिकवा नहीं किया था.

मम्मी की आवाज से मेरा ध्यान टूटा, ‘‘दीपा, कल पड़ोसी प्रदीप अंकल की बेटी मोहिनी की मेहंदी की रस्म है और लेडीज संगीत भी है. तुम तो उसे जानती हो. तुम्हारे स्कूल में ही थी. तुम से 2 क्लास पीछे. तुम्हें खासकर बुलाया है. मोहिनी ने भी कहा था दीपा दी को जरूर साथ लाना. तुम्हें चलना होगा.’’

अगले दिन शाम को मैं मोहिनी के यहां गई. दोनों हाथों में कुहनियों तक मेहंदी लगवाई. कुछ देर तक लेडीज संगीत में भाग लिया, फिर बिजली चली गई तो मैं अपने घर लौट आई. हालांकि वहां जनरेटर चल रहा था. म्यूजिक सिस्टम काफी जोर से बज रहा था. मैं यह शोरगुल ज्यादा नहीं झेल पाई, इसलिए चली आई.

मैं अपनी छत पर गई. मुझे अविनाश की याद आ गई. मैं ने अचानक मेहंदी वाले दोनों हाथों को हवा में लहरा दिया. पड़ोस वाली आंटी ने अपनी छत से मुझे देखा. वे समझीं कि मैं ने उन्हें हाथ दिखाए हैं. रेलिंग के पास आ कर मुझे पास बुलाया और फिर मेरे हाथ देख कर बोलीं, ‘‘काफी अच्छे लग रहे हैं मेहंदी वाले हाथ. रंग भी पूरा चढ़ा है. दूल्हा जरूर बहुत प्यार करता होगा.’’

मैं ने शरमा कर अपने हाथ हटा लिए. रात में मैं लैपटौप पर औनलाइन थी. मैं ने अप्रत्याशित अविनाश की फ्रैंड रिक्वैस्ट देखी और तत्काल ऐक्सैप्ट भी कर लिया. थोड़ी ही देर में उस का मैसेज आया कि कैसी हो दीपा और तुम्हारी मुसकराहट बरकरार है न? संकल्प को भी तुम्हारी मुसकान अच्छी लगती होगी.’’

मैं आश्चर्यचकित रह गई. इसे संकल्प के बारे में कैसे पता है. अत: मैं ने पूछा, ‘‘तुम उन्हें कैसे जानते हो?’’

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‘‘मैं दुबई के सैंट्रल स्कूल में टीचर हूं. संकल्प यहां हमारे स्कूल में कंप्यूटर और वाईफाई सिस्टम लगाने आया था. बातोंबातों में पता चला कि वह तुम्हारा पति है. उस ने ही तुम्हारा व्हाट्सऐप नंबर दिया है.’’

‘‘खैर, तुम बताओ, कैसे हो? बीवीबच्चे कैसे हैं?’’ मैं ने पूछा.

‘‘पहले बीवी तो आए, फिर बच्चे भी आ जाएंगे.’’

‘‘तो अभी तक शादी नहीं की?’’

‘‘नहीं, अब कर लूंगा.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘हर क्यों का जवाब हो, जरूरी नहीं है. वैसे एक बार तुम्हारी मुसकराहट देखने की इच्छा थी. खैर, छोड़ो और क्या हाल है?’’

‘‘पड़ोस में मोहिनी की मेहंदी की रस्म में गई थी.’’

‘‘तब तो तुम ने भी अपने हाथों में मेहंदी जरूर लगवाई होगी.’’

‘‘हां.’’

‘‘जरा वीडियो औन करो, मुझे भी दिखाओ. तुम्हारी शादी की मेहंदी नहीं देख सका था.’’

‘‘लो देखो,’’ कह कर मैं ने वीडियो औन कर अपने हाथ उसे दिखाए.

‘‘ब्यूटीफुल, अब एक बार वही पुरानी मुसकान भी दिखा दो.’’

‘‘यह तुम्हारे रिकौर्ड की सूई बारबार मुसकराहट पर क्यों अटक जाती है.’’

‘‘तुम्हें कुछ पता भी है, एक भाषा ऐसी है जो सारी दुनिया जानती है.’’

‘‘कौन सी भाषा?’’

‘‘मुसकराहट. मैं चाहता हूं कि सारी दुनिया मुसकराती रहे और बेशक दीपा भी.’’ मैं हंस पड़ी.

वह बोला, ‘‘बस यह अरमान भी पूरा हो गया.’’

मुझे लगा मेरी भी सुसुप्त अभिलाषा पूरी हुई. अविनाश के बारे में जानना चाह रही थी. अत: बोली, ‘‘अपनी शादी में बुलाना नहीं भूलना.’’

‘‘अब पता मिल गया तो भूलने का सवाल ही नहीं उठता. इसी बहाने एक बार फिर तुम्हारे मेहंदी वाले हाथ और वही मुसकराता चेहरा भी देख लूंगा.’’

‘‘अब ज्यादा मसका न लगाओ. जल्दी से शादी का कार्ड भेजो.’’

‘‘खुशी हुई शादी के बाद तुम्हें बोलना तो आ गया. आज से पहले तो कभी बात भी नहीं की थी.’’

‘‘हां, इस का अफसोस मुझे भी है.’’

एक बार फिर बिजली चली गई. इंटरनैट बंद हो गया. अविनाश कितना चाहता था मुझे शायद मैं नहीं जान पाती अगर उस से आज बात नहीं हुई होती.

Holi Special: पैर की जूती

Holi Special: ये कैसा सौदा- भाग 2

‘‘नहींनहीं, संगीता, यह कोई मजाक नहीं. हम सचमुच तुम्हारी जिया को पूरी कानूनी कार्यवाही के साथ अपनी बेटी बनाना चाहते हैं.’’

संगीता के सामने कीमती कपड़ों और गहनों से लदी एक धनवान औरत आज अपनी झोली फैलाए बैठी थी लेकिन वह न तो उस की खाली झोली भर सकती थी और न ही अपनी झोली पर गुमान ही कर सकती थी. उस की आंखों से आंसू बह चले.

श्रीमती दीक्षित जानती हैं कि उन्होंने एक मां से उस के दिल का टुकड़ा मांगा है लेकिन वे भी क्या करें? अपने सूने जीवन और सूने आंगन में बहार लाने के लिए उन्हें मजबूर हो कर ऐसा फैसला लेना पड़ा है. वरना सालों से वे (दीक्षित दंपती) किसी दूसरे का बच्चा गोद लेने के लिए भी कहां तैयार हो रहे थे. कल जिया को देख कर पता नहीं कैसे उन का मन इस के लिए तैयार हो गया था.

उन्होंने संगीता की गरीबी पर एक भावुकता भरा पैंतरा फेंका, ‘‘संगीता, क्या तुम नहीं चाहोगी कि तुम्हारी बेटी बंगले में पहुंच जाए और राजकुमारी जैसा जीवन जिए?’’

‘‘हम गरीब हैं बीबीजी, हमारे जैसे साधन, वैसे ही सपने. हमें तो सपनों में भी फांके और अभाव ही आते हैं,’’ संगीता अपने आंसू पोंछते हुए बोली.

‘‘इसलिए कहती हूं कि कीमती सपने देखने का एक अवसर मिल रहा है तो उस का लाभ उठा और अपनी छोटी बेटी मेरी झोली में डाल दे,’’ श्रीमती दीक्षित ने फिर अपना पक्ष रखा.

‘‘कोई कितना भी गरीब क्यों न हो बीबीजी, अपनी जरूरत के वक्त गहना, जमीन, बरतन आदि बेचेगा, पर औलाद तो कोई नहीं बेचता न?’’ कहते हुए संगीता उठ कर चल दी.

‘‘ऐसी कोई जल्दी नहीं है संगीता, तू अपने आदमी से भी बात कर, हो सकता है उसे हमारी बात समझ में आ जाए,’’ श्रीमती दीक्षित ने संगीता को रोकते हुए कहा.

‘‘नहीं बीबीजी, मरद से क्या पूछना है? हमारी बेटियां हमारी जिम्मेदारी बेशक हैं, बोझ नहीं हैं. मैं तो कुछ और ही सोच कर आई थी,’’ कहते हुए संगीता तेज कदमों से बाहर निकल गई.

घर पहुंचते ही संगीता रिया और जिया को सीने से चिपटा कर फूटफूट कर रो पड़ी. विक्रम को समझ नहीं आ रहा था कि हुआ क्या है. वह कुछ पूछता इस से पहले संगीता ने ही उसे सारी कहानी सुना दी.

सब सुन कर विक्रम को अपनी गरीबी पर झुंझलाहट हुई. फिर भी अपने को संयत कर उस ने संगीता को समझाया कि जब वह अपनी जिया को देने के लिए तैयार ही नहीं है तो कोई क्या कर लेगा. लेकिन मन ही मन वह डर रहा था कि पैसे वालों का क्या भरोसा. कहीं जिया को अगवा कर विदेश ले गए तो वह कहां फरियाद करेगा और कौन सुनेगा उस गरीब की?

वह रात संगीता और विक्रम पर बहुत भारी गुजरी. कितने ही बुरेबुरे खयाल रात भर उन्हें परेशान करते रहे. उन का प्यार और जिया का भविष्य रात भर तराजू में तुलता रहा. रात भर आंखें डबडबाती रहीं, दिल डूबता रहा.

सुबह होते ही दीक्षित साहब ने विक्रम को कोठी पर बुलवाया. बुलावे के नाम पर तिलमिला गया और वहां पहुंचते ही चिल्लाया, ‘‘नहीं दूंगा मैं अपनी बेटी. नहीं चाहता मैं कि मेरी बेटी राजकुमारी सा जीवन जिए. आप इतने ही दयावान हैं तो दुनिया भरी है गरीबों से, अनाथों से, हम पर ही इतनी मेहरबानी क्यों?’’

उस की बात सुन कर दीक्षित दंपती को जरा भी बुरा नहीं लगा. बड़े प्यार से उस का स्वागत किया और उसे अपने बराबर सोफे पर बिठाया. बड़ी सहजता से उन्होंने पूरी बात समझाते हुए अपनी याचना उस के सामने रखी, लेकिन विक्रम बारबार मना ही करता रहा. तब उन्होंने विक्रम के सामने एक ऐसा प्रस्ताव रख दिया जिसे सुन कर वह हैरान रह गया. उस ने तो पहले इस बारे में कभी सुना ही नहीं था.

दीक्षित दंपती ने विक्रम के सामने संगीता की कोख किराए पर लेने का प्रस्ताव रखा था. विक्रम का चेहरा बता रहा था कि वह कुछ नहीं समझा है तो उन्होंने विक्रम को समझाया कि जैसे आजकल हम जरूरतमंदों को अपना खून, आंखें, दान करते हैं वैसे ही किसी निसंतान दंपती को संतान का सुख देने के लिए कोख का भी दान किया जा सकता है. ऐसे निसंतान मातापिता को किसी की संतान गोद नहीं लेनी पड़ती बल्कि वे अपनी ही संतान पा सकते हैं.

विक्रम तब भी कुछ नहीं समझा तो दीक्षित साहब ने उसे फिर समझाया, ‘‘बस, तुम इतना समझो कि ऐसे में डाक्टरों की मदद से संतान के इच्छुक पिता का बीज किराए की कोख में रोप दिया जाता है जिसे 9 महीने तक गर्भ में रख कर शिशु का रूप देने वाली मां, सैरोगेट मां कहलाती है. हमारी सरकार ने इसे कानूनी तौर पर वैध भी घोषित कर दिया है.’’

इतना ही नहीं उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया कि इस दौरान वे संगीता के इलाज, दवाइयों, अस्पताल के खर्च के अलावा उस की खुराक आदि का पूरा खयाल रखेंगे. संगीता भले ही लड़के को जन्म दे या लड़की को उन्हें वह बच्चा स्वीकार्य होगा और वे उसे ले कर विदेश जा बसेंगे. यह सब पूरी लिखापढ़ी और कानूनी कार्यवाही के साथ होगा. संगीता जिस दिन डाक्टरी प्रक्रिया से गुजर कर गर्भवती हो जाएगी उन्हें पहली किस्त के रूप में 50 हजार रुपए दे दिए जाएंगे. उस के बाद बच्चे के जन्म पर उन्हें 2 लाख रुपए और दिए जाएंगे.

दीक्षित साहब ने सबकुछ विक्रम को कुछ इस तरह समझाया कि उस ने संगीता को इस काम के लिए राजी कर लिया. एक परिवार का सूना आंगन बच्चे की किलकारियों से गूंज उठेगा और उन का अपना जीवन अभावों की दलदल से निकल कर खुशियों से भर जाएगा. जल्दी ही पूरी डाक्टरी प्रक्रिया और कागजी कार्यवाही से गुजर कर विक्रम और संगीता अपनी बेटियों के साथ दीक्षित की कोठी के पीछे नौकरोें के क्वार्टर में रहने को आ गए. उन्हें पहली किस्त के रूप में 50 हजार रुपए भी मिल गए थे.

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Holi Special: अधूरी चाह- भाग 2

उस का घर शालिनी की लेन में नहीं था, बस थोड़ा लेन से कट मार कर था, इसलिए सामने से नजर नहीं आता था. 4 साल से वह शालिनी पर नजर रखे हुए था, उस की हर हरकत को नोटिस करता. उस ने शालिनी के बारे में सब जानकारी निकाल ली थी.

दरअसल, इस समय बच्चे बड़े हो रहे थे और खर्चे बढ़ने की वजह से शालिनी और संजय ने फैसला लिया कि शालिनी को कोई नौकरी करनी चाहिए, वैसे भी बच्चों की जिम्मेदारी अब थोड़ा कम है, बच्चे खुद को संभाल सकते हैं, तो शालिनी का काफी समय फ्री रहता है.

अजय श्रीवास्तव ने इसी मौके का फायदा उठाया. पहले उस ने शालिनी से जानपहचान बढ़ाई, फिर शालिनी को अपने औफिस में जौब का औफर दिया. शालिनी को भी यही चाहिए था. उस ने नौकरी जौइन कर ली.

अजय ने अपनेआप को बहुत अमीर शो किया हुआ था. शालिनी उस की गाड़ी और कपड़ों को देखती तो रश्क करती कि काश, उस के पास भी ऐसी गाड़ी हो. न जाने अजय श्रीवास्तव में शालिनी को कैसा खिंचाव महसूस हुआ कि वह उस की तरफ खिंचती चली गई.

अजय श्रीवास्तव के मातापिता की मौत हो चुकी थी, एक बहन है, उस की शादी हो गई है और अजय अभी तक कुंआरा है. वह शादी नहीं करना चाहता, क्योंकि जिस दिन शालिनी ने वहां शिफ्ट किया था, उसी दिन अजय के दिल में वह बस गई थी. 4 साल से वह राह तक रहा था कि कब और कैसे शालिनी को अपना बनाए.

आज अजय का जन्मदिन है. उस ने शालिनी को अपने घर पर बुलाया है. बस केवल शालिनी और अजय जन्मदिन मना रहे हैं, लेकिन शालिनी को उस के घर की भव्यता देख कर अच्छा लग रहा है.

अजय ने पूछा, ‘‘शालिनी, तुम्हें कैसा लगा मेरा छोटा सा आशियाना?’’

शालिनी बोली, ‘‘अजयजी, यह छोटा है? अरे, यह तो महल है महल… काश, मैं इस महल की रानी होती.’’

‘‘अरे, तो आप खुद को इस महल की रानी ही सम?ा न…’’

शालिनी शरारत से बोली, ‘‘ओहो, अच्छाजी, तो राजा कौन है?’’

‘‘डियर, तुम चाहो तो हम तैयार हैं…’’ और शालिनी को जैसे ही अजय अपनी ओर खींचना चाहता है, शालिनी खुद को उस की बांहों में सौंप देती है.

2 जवां दिल तेजी से धड़कने लगे, रगों में खून गर्मजोशी दिखाने लगा, अजय की चाहत उस की बांहों में खुद को समेटे हुए है और शालिनी की अधूरी चाह ने भी अंगड़ाई ली है. वह भी खुद को रोक नहीं पा रही, बेकाबू हो रही थी अजय में समा जाने को. दोनों के होंठ थरथराए और उल?ा गए एकदूसरे से. एक बहाव आया और दोनों को बहा कर ले गया.

आज अजय की मुराद पूरी हो गई. शालिनी को भी बहुत अच्छा लग रहा है. बहुत खुश है आज वह. घर आ कर भी चहकती रहती है.

अगले दिन जैसे ही वह नौकरी के लिए घर से निकलती है, अजय का फोन आता है, ‘शालिनी डियर, ऐसा करो तुम घर पर आ जाओ. मैं अभी घर पर हूं, बाद में साथ में औफिस चलते हैं…’

‘‘ओके, मैं आ रही हूं.’’

शालिनी अजय के घर गई तो देखा कल का सबकुछ फैला हुआ था. केक भी वहीं पड़ा था. खानेपीने का सामान जो बचा था, सब ऐसा पड़ा था.

शालिनी ने पूछा, ‘‘आज बाई नहीं आई क्या अभी तक?’’

‘‘नहीं, आज मैं ने उसे आने को मना किया, कहीं हमारे बीच में जो कल हुआ, उस के बारे में किसी चीज से उसे कोई शक न हो, इसलिए…’’

‘‘कोई बात नहीं. हम सब अभी साफसफाई कर लेते हैं और फिर औफिस चलेंगे,’’ इतना कह कर शालिनी सब साफ करने की कोशिश करती है, लेकिन अजय उस का हाथ पकड़ लेता है, ‘‘डार्लिंग रहने दो यह सब, इन में कल के प्यार की खुशबू है…’’ और दोनों एकदूसरे की तरफ देखते हैं. उन के चेहरों पर एक शरारती मुसकराहट है.

पूरा दिन दोनों घर पर रह कर ही समय बिताते हैं. ऐसा अब रोज होने लगा. शालिनी घर से औफिस की कह कर अजय के घर चली जाती और दोनों पूरा दिन घर पर मौजमस्ती करते. किसी को कानोंकान खबर नहीं थी, क्योंकि अजय ने बाई को काम से निकाल दिया था. उस के घर का सारा काम अब शालिनी करती थी.

खैर, इस तरह से कई महीने बीत गए. अजय श्रीवास्तव की कुछ पुश्तैनी जायदाद थी, जिस की घर बैठे ही आमदनी आती थी और काम चल रहा था, लेकिन ऐसा कब तक चलता आखिर बिजनैस हो या प्रोपर्टी हो, कभी तो देखभाल की जरूरत होती ही है.

अब अजय औफिस जाने लगा और शालिनी को घर पर छोड़ कर बाहर से ताला लगा कर जाता. शालिनी ही घर का सारा काम करती और सारा दिन उस के घर पर रहती.

अजय का जब जी चाहता तो घर आ जाता और फिर शाम या रात के समय ही शालिनी घर जाती. जब वह लेट हो जाती, तो काम के ज्यादा होने का बहाना करती. काम के ज्यादा होने के चलते फिर उसे घर पर आराम के लिए कहा जाता और रात का खाना संजय खुद ही मैनेज करता.

इस तरह से न तो अजय ने किसी और लड़की से शादी की, न शालिनी को ही छोड़ा. न जाने क्या था… शालिनी भी रोज इसी तरह से अजय के घर पर ही सारा दिन रहती.

जब कभी अजय के घर कोई रिश्तेदार या मेहमान आता, तो उस दिन वह शालिनी को नहीं बुलाता था और शालिनी तबीयत खराब होने का बहाना कर घर पर रहती और कहती कि औफिस से छुट्टी ले ली है, लेकिन यहां बाजी पलटती है.

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Holi Special: अधूरी चाह- भाग 3

अब शालिनी जो पैसे कमाने के चक्कर में नौकरी करने लगी थी, वह अब पति यानी संजय की जमापूंजी खत्म कर रही है. कभी संजय से 50,000 तो कभी एक लाख रुपए लेती, किसी न किसी काम के बहाने. घर के खर्चों और बच्चों के खर्चों की संजय को बिलकुल भी जानकारी नहीं थी, इसलिए जितना वह मांगती संजय दे देता.

इस तरह कई साल बीत गए, लेकिन कोई भी राज कहां तक राज रह सकता है. आखिरकार यह राज भी जगजाहिर हो गया. बात उठी है तो न जाने कितने कानों तक पहुंचेगी. जाहिर सी बात है कि संजय के कानों तक भी तो पहुंचनी ही थी, पहुंच गई.

संजय ने पूछा, तो शालिनी ने साफ इनकार कर दिया, लेकिन संजय को जहां से भी खबर मिली थी, वह खबर पक्की थी.

संजय को यह फिक्र थी कि बच्चे अब बड़े हैं, सम?ादार हैं, हर बात को सम?ाते हैं, उन के सामने वह कोई तमाशा नहीं करना चाहता था. बस, शालिनी को सम?ाता कि वह यह सब छोड़ दे या उसे छोड़ वहीं जा कर बसे, लेकिन शालिनी सच स्वीकार न करती.

इस बात को अब 11 साल बीत गए. शालिनी का वही रूटीन है. संजय अपनी नौकरी और ऐक्स्ट्रा काम में बिजी है, क्योंकि केवल नौकरी से घर का गुजारा नहीं चल रहा था.

शालिनी तकरीबन संजय का पैसा सब खत्म कर चुकी है और संजय ने औफिस से लोन भी लिया हुआ है. शालिनी जान गई कि संजय के साथ कोई भविष्य नहीं. वह संजय को तलाक के कागज थमा कर कहती है कि उसे तलाक चाहिए. संजय उसे तलाक दे देता है. शालिनी अजय से शादी कर लेती है.

शालिनी बच्चों को साथ ले जाती है अजय के घर. संजय अकेला बैठा सोच रहा है कि उस ने कहां क्या गलती की?

हां, याद आता है संजय को वह हर पल जबजब वह शालिनी के साथ हमबिस्तर हुआ, उस ने कभी शालिनी के इमोशन को नहीं सम?ा और जाना, बस केवल अपनी हवस शांत की और सो गया.

शालिनी कहती, ‘मु?ो तुम्हारा तन नहीं मन चाहिए. मु?ो केवल प्यार चाहिए, सैक्स ही जिंदगी की धुरी नहीं, जिंदगी का मतलब तो प्यार है.’’

लेकिन संजय इन बातों पर ध्यान न देता, क्योंकि उसे अपनी जवानी पर नाज था, फख्र था कि उस पर हजारों लड़कियां मरती हैं, यही घमंड उस की रगरग में बस चुका था. उस की नजर में औरत का प्यार कोई माने नहीं रखता, औरत केवल बिस्तर की शोभा ही बन सकती है.

शालिनी, जो जब तक संजय के साथ थी, सच्चे प्यार को तरसती रही, लेकिन उसे वह प्यार अजय श्रीवास्तव ने दिया. वह उस की दीवानी हो गई. कहते हैं कि औरत जब कुरबान करने पर आती है, तो अपनी जान की भी परवाह नहीं करती.

आज शालिनी अपनी जान देना चाहती है, संजय या अजय के लिए नहीं, बल्कि इसलिए कि अब उसे एहसास हो गया कि उस ने कितना गलत कदम उठाया था, लेकिन उसे इस बात का सुकून है कि उसे थोड़े समय के लिए ही सही, अजय से सच्चा प्यार तो मिला था. अब अजय ने बेशक शादी कर ली उस से, लेकिन वह उसे वह खुशी नहीं दे रहा, क्योंकि उस के सिर से शालिनी नाम का भूत उतर चुका है.

वह अब सम?ा चुका है कि शालिनी के पास अब कोई धनदौलत नहीं, वह तो केवल पैसों का भूखा निकला, शालिनी के लिए तो उस का प्यार चंद महीनों में ही खत्म हो गया था. अब उस ने शालिनी को भी पैसेपैसे के लिए मुहताज कर दिया है, बच्चे भी परेशान हैं.

संजय बच्चों को अपने पास लाना चाहता है, मगर बच्चे जानते हैं कि मां परेशान हैं. अब उन्हें छोड़ कर नहीं जा सकते वरना मां डिप्रैशन में न चली जाएं कहीं.

शालिनी अपने किए पर शर्मिंदा है और संजय को अब अपनी गलती का एहसास हो रहा है, लेकिन अब इस समस्या का समाधान नहीं है.

संजय ने कश्मीर छोड़ दिया हमेशा के लिए, करता भी क्या वहां रह कर. सिर पर कर्ज है लोगों का, जो लेले कर शालिनी की ख्वाहिशें पूरी करता रहा और किस तरह शालिनी को अपने सामने गैर के साथ देखता. रातोंरात भाग आया दिल्ली अपने भाइयों के पास. दोनों अपनी गलतियों पर पछता रहे हैं, लेकिन इन सब में बच्चों का भविष्य कहीं सुखद दिखाई नहीं देता.

Holi Special: ये कैसा सौदा- भाग 3

समय सपनों की तरह बीतने लगा था. संगीता की हर छोटीबड़ी खुशी का खयाल दीक्षित दंपती रखने लगे थे. संगीता की सेवा के लिए अलग से एक आया रखी गई थी. रिया और जिया अच्छी तरह रहने लगी थीं. विक्रम यह सब देख कर खुश था कि उस का परिवार सुखों के झूले में झूलने लगा था.

संगीता अपनी बेटियों के खिले चेहरों को देख कर, अपने पति को निश्चिंत देख कर खुश थी लेकिन अपने आप से खुश नहीं हो पाती थी. पता नहीं क्यों, अपने अंदर पल रहे जीव से वह जुड़ नहीं पा रही थी. उसे वह न अपना अंश लगता था न उस के प्रति ममता ही जाग रही थी. उसे हर पल लगता कि वह एक बोझ उठाए ड्यूटी पर तैनात है और उसे अपने परिवार के सुनहरे भविष्य के लिए एक निश्चित समय तक यह बोझ उठाना ही है.

भले ही अपनी दोनों बेटियों के जन्म के दौरान संगीता ने बहुत कष्ट व कठिनाइयां झेली थीं. तब न डाक्टरी इलाज था और न अच्छी खुराक ही थी. उस पर घर का सारा काम भी उसे करना पड़ता था फिर भी उसे वह सब सुखद लगता था, लेकिन अब कदमकदम पर बिछे फूल भी उसे कांटों जैसे लगते थे. अपने भीतर करवट लेता नन्हा जीव उसे रोमांचित नहीं करता था. उस के दुनिया में आने का इंतजार जरूर था लेकिन खुशी नहीं हो रही थी.

आखिर वह दिन भी आ गया जिस का दीक्षित दंपती को बहुत बेसब्री से इंतजार था. सुबह लगभग 4 बजे का समय था, संगीता प्रसव पीड़ा से बेचैन होने लगी. घबराया सा विक्रम दौड़ कर कोठी में खबर करने पहुंचा. संगीता को तुरंत गाड़ी में बिठा कर नर्सिंगहोम ले जाया गया. महिला डाक्टरों की एक पूरी टीम लेबररूम में पहुंच गई जहां संगीता दर्द से छटपटा रही थी.

प्रसव पूर्व की जांच पूरी हो चुकी थी. अभी कुछ ही क्षण बीते थे कि लेबर रूम से एक नर्स बाहर आ कर बोली कि संगीता ने बेटे को जन्म दिया है. यह खबर सुनते ही दीक्षित दंपती के चेहरों पर खुशी की लहर दौड़ गई जबकि विक्रम का चेहरा लटक गया कि काश, 2 बेटियों के बाद संगीता की कोख से जन्म लेने वाला यह उन का अपना बेटा होता, लेकिन पराई अमानत पर कैसी नजर? विक्रम अपने मन को समझाने लगा.

गुलाबी रंग के फरवाले बेबी कंबल में लपेट कर लेडी डाक्टर जैसे ही बच्चे को ले कर बाहर आई श्रीमती दीक्षित ने आगे बढ़ कर उसे गोद में ले लिया. संगीता ने आंखों में आंसू भर कर मुंह मोड़ लिया. दीक्षित साहब ने धन्यवादस्वरूप विक्रम के हाथ थाम लिए. जहां दीक्षित साहब के चेहरे पर अद्भुत चमक थी वहीं विक्रम का चेहरा मुरझाया हुआ था.

तभी श्रीमती दीक्षित चिल्लाईं, ‘‘डाक्टर, बच्चे को देखो.’’

डाक्टरों की टीम दौड़ती हुई उन के पास पहुंची. बच्चे का शरीर अकड़ गया. नर्सें बच्चे को ले कर आईसीयू की तरफ दौड़ीं. डाक्टर भी पीछेपीछे थे. बच्चा ठीक से सांस नहीं ले पा रहा था. पल भर में ही आईसीयू के बाहर खड़े चेहरों पर दुख की लकीरें खिंच गईं.

एक डाक्टर ने बाहर आ कर बड़े ही दुख के साथ बताया कि बच्चे की दोनों टांगें बेकार हो गई हैं. बहुत कोशिश के बाद उस की जान तो बच गई है लेकिन अभी यह भी नहीं कहा जा सकता कि वह सामान्य बच्चे की तरह होगा या नहीं क्योंकि अचानक उस के दिमाग में आक्सीजन की कमी से यह सब हुआ है.

डाक्टर की बात सुनते ही दीक्षित दंपती के चेहरे पर प्रश्नचिह्न लग गया. विक्रम को वहां छोड़ कर वे वहां से चले गए. एक पल में आया तूफान सब की खुशियां उड़ा ले गया था. 3 दिन बाद संगीता की नर्सिंगहोम से छुट्टी होनी थी. नर्सिंगहोम का बिल और संगीता के नाम 2 लाख रुपए नौकर के हाथ भेज कर दीक्षित साहब ने कहलवाया था कि वे आउट हाउस से अपना सामान उठा लें.

पैसे वालों ने यह कैसा सौदा किया था? पत्नी की कोख का सौदा करने वाला विक्रम अपने स्वाभिमान का सौदा न कर सका. उसे वे 2 लाख रुपए लेना गवारा न हुआ. उस ने पैसे नौकर के ही हाथ लौटा कर अमीरी के मुंह पर वही लात मारी थी जो दीक्षित परिवार ने संगीता की कोख पर मारी थी.

नर्सिंगहोम से छुट्टी के समय नर्स ने जब बच्चा संगीता की गोद में देना चाहा तो वह पागलों की तरह चीख उठी, ‘‘यह मेरा नहीं है.’’ 9 महीने अपनी कोख में रख कर भी इस निर्जीव से मांस के लोथड़े से वह न तो कोई रिश्ता जोड़ पा रही थी और न तोड़ ही पा रही थी. उस की छाती में उतरता दूध उसे डंक मार रहा था. उस के परिवार के भविष्य पर अंधकार के काले बादल छा गए थे.

उस दिन जब विक्रम आउट हाउस से अपना सामान उठाने गया तो कोठी के नौकरों से पता लगा कि दीक्षित दंपती तो विदेश रवाना हो गए हैं.

गानों के बिना होली अधूरी – अनन्या सिंह, लोक गायिका

जब लोक गायकी की बात होती है तो होली (Holi) की याद बरबस ही आ जाती है. होली ऐसा त्योहार है जो अपनी मौजमस्ती के लिए जाना जाता है. गानों के बिना होली की कल्पना अधूरी होती है. होली खेलने के दौरान गाए जाने वाले फाग की अपनी अलग अहमियत होती है.

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर की रहने वाली युवा लोक गायिका अनन्या सिंह (Ananya Singh) होली के गाने गाती हैं और मशहूर स्टेज कलाकार हैं. वे कहती हैं कि होली अकेला ऐसा त्योहार है, जो गानों के बिना अधूरा होता है. होली की मस्ती तभी आती है, जब होली के गाने बज रहे हों. इस में भोजपुरी के साथसाथ अवधी और ब्रज के गानों की अपनी अलग अहमियत होती है. पेश हैं, उन से हुई बातचीत के खास अंश:

आप को होली के गानों का म्यूजिक इंडस्ट्री पर क्या असर दिखता है?

होली अब केवल त्योहार नहीं रह गया है, बल्कि यह तमाम तरह के बिजनैस को ले कर आता है. म्यूजिक इंडस्ट्री पर होली का गहरा असर है. होली आने के 6 महीने पहले से ही कलाकार होली के गाने तैयार करने लगते हैं.

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पहले इन के लिए कैसेट बनते थे, पर अब होली के गानों को रिकौर्ड कर के उन्हें यूट्यूब के जरीए लोगों तक पहुंचाया जाता है.

वैसे तो होली में नएपुराने तमाम तरह के गाने सुने जाते हैं, पर हर कलाकार कुछ न कुछ नया भी रिकौर्ड करता है. होली के गानों की वजह से म्यूजिक इंडस्ट्री में रौनक आ जाती है.

रिएलिटी शो में कैसे काम शुरू हुआ?

सब से पहले संस्कृति विभाग की वर्कशौप से साल 2017 में मुझे मंडल लैवल पर कामयाबी मिली. साल 2018 में महुआ प्लस सीरियल के ‘चल बलिए कुरुक्षेत्र’ के टौप 10 में चुनी गई. इस के बाद मैं स्टेज शो करने लगी, फिर गोरखपुर से नोएडा आ गई.

यहां पर मैं ने कई राजनीतिक नेताओं के लिए चुनाव प्रचार किया. इन में नरेंद्र मोदी, राजनाथ सिंह, महेश शर्मा, वीके सिंह और पंकज सिंह प्रमुख रहे हैं. मैं ने स्टेज पर शब्बीर कुमार के साथ भी काम किया है.

आप अपने अब तक के कैरियर को कैसे देखती हैं?

मैं प्लेबैक सिंगर के रूप में फिल्मों में काम करना चाहती हूं. इस के अलावा मैं फोक कल्चर का संरक्षण भी करना चाहती हूं. हम ने एक संस्था भी बनाई है, जिस के जरीए हम गरीब बच्चों को गायकी में प्लेटफार्म देना चाहते हैं. पटेल संस्कृति संस्थान इस में हमारी मदद कर रहा है.

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‘मिस बौलीवुड’ नामक प्रतियोगिता में मैं ने हिस्सा लिया और टौप 5 में अपनी जगह बनाई. मैं स्टेट लैवल की वौलीबाल खिलाड़ी रही हूं. अब मेरा फोकस सिंगिग और स्टेज शो पर ही है. इस के साथसाथ मैं टैलीविजन या फिल्मों में ऐक्टिंग भी करना चाहती हूं.

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