
वह आज जरा उत्तेजित है, विचलित है, क्योंकि उस की मनमानी नहीं हुई है. कभीकभी उस का पति किसी बात पर अड़ जाता है तो टस से मस नहीं होता और उसे मजबूरन उस के आगे हार माननी पड़ती है. उस की शादी को 4 साल हो गए और अभी तक वह समझ न पाई कि वह अपने पति से कैसे पेश आए.
खयालों में डूबी रोहिणी को समय का भान ही न हुआ. अचानक उस ने चौंक कर देखा कि उस के आसपास की भीड़ अब छंट चुकी थी. खोमचे वाले, आइसक्रीम वाले अपना सामान समेट कर चल दिए थे. हां, ताज होटल के सामने अभी भी काफी रौनक थी. लोग आ जा रहे थे. मुख्यद्वार पर संतरी मुस्तैद था.
एक और बात रोहिणी ने नोट की. समुद्र के किनारे की सड़क पर अब कुछ स्त्रियां भड़कीले व तंग कपड़े पहने चहलकदमी कर रही हैं. उन्हें देख कर साफ लगता है कि वे स्ट्रीट वाकर्स हैं यानी रात की रानियां.
हर थोड़ी देर में लोग गाडि़यों में आते. किसी एक स्त्री के पास गाड़ी रोकते, मोलतोल करते और वह स्त्री गाड़ी में बैठ कर फुर्र हो जाती. यह सब देख कर रोहिणी को बड़ी हंसी आई.
सहसा एक गाड़ी उस के पास आ कर रुकी. उस में 3-4 युवक सवार थे, जो कालेज के छात्र लग रहे थे.
‘‘हाय ब्यूटीफुल,’’ एक युवक ने कार की खिड़की में से सिर निकाल कर उसे आवाज दी, ‘‘अकेली बैठी क्या कर रही हो? हमारे साथ आओ… कुछ मौजमस्ती करेंगे, घूमेंगेफिरेंगे.’’
रोहिणी दंग रह गई कि क्या ये पाजी लड़के उसे एक वेश्या समझ बैठे हैं? हद हो गई. क्या इन्हें एक भले घर की स्त्री और एक वेश्या में फर्क नहीं दिखाई देता? अब यहां इतनी रात गए यों अकेले बैठे रहना ठीक नहीं. उसे अब घर चल देना चाहिए.
रोहिणी तेजी से घर का रूख किया. कार उस के पास से सर्र से निकल गई. पर कुछ ही देर बाद वही कार लौट कर फिर उस के पास आ कर रुकी.
‘‘आओ न डियर. होटल में बियर पीएंगे. तुम्हें चाइनीज खाना पसंद है? हम तुम्हें नौनकिंग रेस्तरां में खाना खिलाएंगे. उस के बाद डांस करेंगे. हम तुम्हारा भरपूर मनोरंजन करेंगे,’’ एक लड़के ने खिड़की से सिर निकाल कर कहा.
‘‘आप को गलतफहमी हुई है,’’ वह संयत स्वर में बोली, ‘‘मैं एक हाउसवाइफ हूं. अपने घर जा रही हूं.’’
‘‘तो चलो न हम आप को आप के घर छोड़ देते हैं. कहां रहती हैं आप?’’ वे लड़के कार धीरेधीरे चलाते हुए उस का पीछा करते रहे और लगातार उस से बातें करते रहे. जाहिर था कि वे कंगाल थे. वे बिना पैसा खर्च किए उस की सोहबत का आनंद उठाना चाहते थे.
रोहिणी अपनी राह चलती रही. सहसा गाड़ी उस के पास आ कर झटके से रुकी. एक लड़का गाड़ी से उतरा और उस के पास आ कर बोला, ‘‘आखिर इतनी जिद क्यों कर रही हो स्वीटी?’’ हम तुम्हें सुपर टाइम देंगे… आई प्रौमिस. चलो गाड़ी में बैठो और वह रोहिणी से हाथापाई करने लगा.
‘‘मुझे हाथ मत लगाना नहीं तो मैं शोर मचा पुलिस बुला लूंगी,’’ उस ने कड़क आवाज में कहा.
अचानक एक और कार उस के पास आ कर रुकी. उस का हौर्न जोर से बज उठा. रोहिणी ने चौंक कर देखा तो कार्तिक अपनी कार में बैठा उसे आवाजें लगा रहा था, ‘‘रोहिणी जल्दी आओ गाड़ी में बैठो.’’
रोहिणी अपना हाथ छुड़ा दौड़ कर गाड़ी में बैठ गई.
‘‘इतनी रात को यह तुम्हें क्या सूझी?’’ कार्तिक ने उसे लताड़ा, ‘‘यह क्या घर से अकेले बाहर निकलने का समय है?’’ रोहिणी तुम्हें कब अक्ल आएगी? देखा नहीं कैसेकैसे गुंडेमवाली रात को सड़कों पर घूमते शिकार की ताक में रहते हैं… मेरी नजर तुम पर पड़ गई वरना जानती हो क्या हो जाता?’’
‘‘क्या हो जाता?’’
‘‘अरे वे लोफर तुम्हें गाड़ी में बैठा कर अगवा कर ले जाते.’’
‘‘अगवा करना क्या इतना आसान है?’’ हर समय पुलिस की गाड़ी गश्त लगाती रहती है.
‘‘हां, लेकिन पुलिस के आने से पहले ही अगर वे गुंडे तुम्हें ले उड़ते तो तुम समझ सकती हो फिर वे तुम्हारा क्या हश्र करते? तुम्हें रेप कर के अधमरी हालत में कहीं झाडि़यों में फेंक कर चलते बनते. रोहिणी तुम रोज अखबार में इस तरह की घटनाओं के बारे में पढ़ती हो, टीवी पर देखती हो. फिर भी तुम ने ऐसा खतरा मोल लिया. तुम्हारी अक्ल क्या घास चरने चली गई?’’
‘‘ये सब वे कैसे कर पाते?’’ रोहिणी ने प्रतिवाद किया, ‘‘मैं जोर से चिल्लाती तो भीड़ इकट्ठी हो जाती, पुलिस पहुंच जाती.’’
‘‘ये सब कहने की बातें हैं. इस सुनसान सड़क पर तुम्हारे शोर मचाने से पहले ही बहुत कुछ घट जाता. वे तुम्हें मिनटों में गायब कर देते और फिर तुम्हारा अतापता भी न मिलता. मत भूलो कि वे 4 थे तुम अकेली. तुम उन से मुकाबला कैसे कर पातीं. इस तरह की हठधर्मिता की वजह से ही आए दिन औरतों के साथ हादसे होते रहते हैं. इतनी रात को अकेले घर से निकलना, अनजान लोगों से लिफ्ट लेना, गैरों के साथ टैक्सी शेयर करना ये सब सरासर नादानी है.’’
रोहिणी ने चुप्पी साध ली. घर पहुंच कर कार्तिक ने उसे अपनी बांहों में समेट लिया, ‘‘डार्लिंग एक वादा करो कि अब से जब भी तुम मुझ से खफा होगी तो बेशक मुझे जो चाह कर लेना पर इस तरह का पागलपन नहीं करोगी,’’ कह उस ने इटली जाने के लिए होटल की बुकिंग और प्लेन के टिकट रोहिणी को थमा दिए.
‘‘यह क्या? तुम तो कह रहे थे कि इस साल जाना नहीं हो सकता.’’
‘‘हां, कहा तो था, पर मैं अपनी प्रिये का कहना कैसे टाल सकता हूं?’’
‘‘प्रोग्राम कैंसल कर दो.’’
‘‘क्यों?’’
‘‘अरे भाई, शकुंतला दीदी की बेटी की शादी जो हो रही है… हमें वहां जाना पड़ेगा न.’’
‘‘दीदी से शादी में न आने का कोई बहाना बना दूंगा.’’
‘‘जी हां, और फिर सब से डांट सुनोगे. तुम तो आसानी से छूट जाओगे पर सब मुझे ही परेशान करेंगे कि रोहिणी अपने ससुराल वालों से अलगथलग रहती है और अपने पति को भी अपने चंगुल में कर रखा है. उसे अपने परिवार से दूर कर देना चाहती है.’’
‘‘हद हो गई रोहिणी. चित भी तुम्हारी और पट भी तुम्हारी. तुम से मैं कभी पार नहीं पा सकता.’’
‘‘सो तो है,’’ रोहिणी ने विजयी भाव से कहा.
मगर आज रात खाने के बाद जब उस ने यह बात उठाई तो कार्तिक बोला, ‘‘इस बार तो विदेश जाना जरा मुश्किल होगा.’’
‘‘क्यों?’’
‘‘इसलिए कि बड़ी दीदी शकुंतला की बेटी रीना की शादी पक्की हो गई है. मैं ने तुम्हें बताया तो था… आज ही सुबह उन का फोन आया कि इसी महीने सगाई की रस्म है और हमारा वहां पहुंचना बहुत जरूरी है. आखिर मैं एकलौता मामा हूं न… भानजी की शादी में मेरी प्रमुख भूमिका रहेगी.’’
‘‘आप के घर में तो हमेशा कुछ न कुछ लगा रहता है,’’ वह मुंह बना कर बोली, ‘‘कभी किसी का जन्मदिन है, तो कभी किसी का मुंडन तो कभी कुछ और.’’
‘‘अरे जन्मदिन तो हर साल आता है. उस की इतनी अहमियत नहीं… पर शादीब्याह तो रोजरोज नहीं होते न? दीदी ने बहुत आग्रह किया है कि हम जरूर आएं. वे कोई भी बहाना सुनने को तैयार नहीं हैं.’’
‘‘मैं पूछती हूं कि क्या हम कभी अपनी मरजी से नहीं जी सकते?’’
‘‘डार्लिंग, इतना क्यों बिगड़ती हो… हम शादी की सालगिरह मनाने अगले साल भी तो जा सकते हैं… अभी से तय कर लो कि कहां जाना है और कितने दिनों के लिए जाना है… मैं सारी प्लानिंग तुम्हीं पर छोड़ता हूं.’’
‘‘जी हां, बड़ी मेहरबानी आप की… हम सारा प्लान बना लेंगे और फिर आप के घर वालों का एक फोन आएगा और सब कुछ कैंसल.’’
‘‘यह हमेशा थोड़े न होता है?’’
‘‘यह हमेशा होता है… हर बार होता है. हमारी अपनी कोई जिंदगी ही नहीं है.’’
‘‘तुम बेकार में नाराज हो रही हो… क्या मैं ने कभी तुम्हें किसी चीज से वंचित रखा है? हमेशा तुम्हारी इच्छा पूरी की है. तुम्हारे सारे नाजनखरे सहर्ष उठाता हूं.’’
‘‘इस में कौन सी बड़ी बात है…. यह तो हर पति करता है, बशर्ते वह अपनी पत्नी से प्यार करता हो.’’
‘‘तो तुम्हारा खयाल है कि मैं तुम्हें प्यार नहीं करता?’’ कार्तिक रोहिणी की आंखों में झांक कर मुसकराया.
‘‘लगता तो ऐसा ही है.’’
‘‘रोहिणी, यह तुम ज्यादती कर रही हो. जानती हो मेरा तुम्हारे प्रति प्रेम देख कर मेरे यारदोस्त मुझे बीवी का गुलाम कह कर चिढ़ाते हैं.’’
‘‘अच्छा? वे ऐसा क्यों कहते हैं भला, जब मेरी हर बात काटी जाती है… मेरा हर प्रस्ताव ठुकराया जाता है. हां, अगर कोई तुम्हें मां के पल्लू से बंधा लल्लू या बहनों का पिछलग्गू कहे तो मैं मान सकती हूं.’’
कार्तिक खिलखिला कर हंस पड़ा, ‘‘तुम्हारा भी जवाब नहीं.’’
कार्तिक ने टीवी औन कर लिया. रोहिणी थोड़ी देर बड़बड़ाती रही. वह इस मसले को कल पर नहीं छोड़ना चाहती थी. अभी कोई फैसला कर लेना चाहती थी. अत: बोली, ‘‘तो क्या तय किया तुम ने?’’
‘‘किस बारे में?’’
‘‘यह लो घंटे भर से मैं क्या बकबक किए जा रही हूं… हम इस टूअर पर जा रहे हैं या नहीं?’’
‘‘कह तो दिया भई कि इस बार जरा मुश्किल हैं. तुम तो जानती हो कि मुझे साल में सिर्फ 2 हफ्ते की छुट्टी मिलती है. शादी में जाना जरूरी है… पर अगले साल इटली अवश्य…’’
‘‘जी नहीं, मुझे तुम इन खोखले वादों से नहीं टाल सकते.’’
‘‘पर अगले साल भी इटली उसी जगह बना रहेगा और हम दोनों भी.’’
‘‘और तुम्हारा परिवार भी तो वैसे ही सहीसलामत ही रहेगा.’’
‘‘तुम कभीकभी बड़ी बचकानी बातें करती हो.’’
‘‘हां, मैं तो हूं ही बेवकूफ, सिरफिरी, अदूरदर्शी… सारी बुराइयां मुझ में कूटकूट कर भरी हैं.’’
‘‘तुम से इस विषय में बात करना बेकार है… अभी तुम्हारा दिमाग जरा गरम है. कल
सुबह ठंडे दिमाग से इस बारे में बात करेंगे.
मैं जरा दफ्तर का जरूरी काम निबटा कर आता हूं,’’ कह कार्तिक अपने औफिसरूम में चला गया.
रोहिणी अपनी बात न मनवा पाई तो गुस्से से बिफर गई. कुछ देर वह क्रोध में भरी बैठी रही. फिर सहसा उठ कर बाहर की ओर चल दी.
कोलाबा के बाजार में अभी भी काफी चहलपहल थी. रीगल सिनेमा के पास पहुंची तो देखा कि वहां भी भीड़ है. उस ने सोचा कि टिकट खरीद कर रात का शो देख ले. 2 घंटे आराम से बीत जाएंगे. पर फिर यह सोच कर कि इस बीच अगर कार्तिक ने उसे घर में न पाया तो वह परेशान हो जाएगा. उसे पागलों की तरह ढूंढ़ेगा. इधरउधर फोन घुमाएगा, अपना इरादा बदल दिया. फिर वह गेट वे औफ इंडिया की तरफ मुड़ गई.
यहां लोग समुद्र के किनारे बैठे ठंडी हवा का लुत्फ उठा रहे थे. रोहिणी भी वहां मुंडेर पर बैठ गईर् और अपनी नजरें समुद्र के पार क्षितिज पर गड़ा दीं.
समुद्र के बीच 2-3 समुद्री जहाज लंगर डाले थे. उन की बत्तियां पानी में झिलमिला रही थीं. रोहिणी ने हसरत भरी नजरों से समुद्र की गहराइयों में झांका. बस इस अथाह जल में समाने की देर है, उस ने सोचा. एक ही पल में उस के प्राणों का अंत हो जाएगा.
उस ने मन की आंखों से देखा कार्तिक उस के निष्प्राण शरीर से लिपट कर बिलख रहा है कि हाय प्रिये, मैं ने क्यों तुम्हारी बात न मानी. मैं जानता न था कि तुम इतनी सी बात पर मुझ से रूठ जाओगी और मुझे हमेशा के लिए छोड़ कर चली जाओगी.
पर नहीं, वह क्यों अपनी जान दे. उस ने अभी दुनिया में देखा ही क्या है और उस के ऊपर कौन सा गमों का पहाड़ टूट पड़ा है, जो वह अपनी जान देने की सोचे. ठीक है पति से थोड़ी खटपट हुई है. यह तो हर शादीशुदा स्त्री के जीवन का हिस्सा है. कभी खुशी तो कभी गम. और सच पूछा जाए तो उस के जीवन में खुशियां ज्यादा हैं गम न के बराबर.
आगे पढ़ें
Ramni Motana
हमेशा की तरह इस बार भी जब रोहिणी और कार्तिक के बीच जम कर बहस हुई, तो कार्तिक झगड़ा समाप्त करने की गरज से अपने कमरे में जा कर लैपटौप में व्यस्त हो गया.
रोहिणी उत्तेजित सी कुछ देर कमरे में टहलती रही. फिर एकाएक बाहर चल दी.
गेट से निकल ही रही थी कि वाचमैन दौड़ता हुआ आया और बोला, ‘‘कहीं जाना है मेमसाब? टैक्सी बुला दूं?’’
‘‘नहीं, मैं पास ही जा रही हूं. 10 मिनट में लौट आऊंगी.’’
रात के 10 बज रहे थे, पर कोलाबा की सड़कों पर अभी भी काफी गहमागहमी थी. दुकानें अभी भी खुली हुई थीं और लोग खरीदारी कर रहे थे. रेस्तरां और हलवाईर् की दुकानों के आसपास भी भीड़ थी.
रोहिणी के मन में खलबली मची हुई थी. आजकल जब भी उस की पति के साथ बहस होती, तो बात कार्तिक के परिवार पर ही आ कर थमती. कार्तिक अपने मातापिता का एकलौता बेटा था. अपनी मां की आंखों का तारा, उन का बेहद दुलारा. उस की 3 बड़ी बहनें थीं, जो उसे बेहद प्यार करती थीं और उसे हाथोंहाथ लेती थीं.
रोहिणी को इस बात से कोई परेशानी नहीं थी, पर कभीकभी उसे लगता था कि उस का पति अभी भी बच्चा बना हुआ है. वह एक कदम भी अपनी मरजी से नहीं उठा सकता है. रोज जब तक दिन में एकाध बार वह अपनी मां व बहनों से बात नहीं कर लेता उसे चैन नहीं पड़ता था.
जब भी इस बात को ले कर रोहिणी भुनभुनाती तो कार्तिक कहता, ‘‘पिताजी के देहांत के बाद उन की खोजखबर लेने वाला मैं अकेला ही तो हूं. मेरे पैदा होने के बाद से मां बीमार रहतीं… मेरी तीनों बहनों ने ही मेरी परवरिश की है. मेरे पिता के देहांत के बाद मेरी मां ने मुझे बड़ी मुश्किल से पाला है. मैं उन का ऋण कभी नहीं चुका सकता.’’
ऐसी दलीलों से रोहिणी चुप हो जाती थी. पर उसे यह बात समझ में न आती थी कि बच्चों को पालपोस कर बड़ा करना हर मातापिता का फर्ज होता है, तो इस में एहसान की बात कहां से आ गई? पर वह जानती थी कि कार्तिक से बहस करना बेकार था. वैसे उसे अपने पति से और कोई शिकायत नहीं थी. वह उस से बेहद प्यार करता था. वह एक भला इनसान था और उस के प्रति संवेदशील था. उसे कोफ्त केवल इस बात से होती कि उसे अपने पति का प्यार उस के घर वालों से साझा करना पड़ता है.
जब उस की शादी हुई तो कार्तिक ने उस से कहा था, ‘‘जानेमन, तुम्हें पूरा अधिकार है कि तुम अपना घर जैसे चाहे सजाओ, जिस तरह चाहे चलाओ. मैं ने अपने को भी तुम्हारे हवाले किया. मेरी तुम से केवल एक ही गुजारिश है कि चूंकि मैं अपने परिवार से बेहद जुड़ा हुआ हूं इसलिए चाहता हूं तुम भी उन से मेलजोल रखो, उन का आदरसम्मान करो. मैं अपनी मां की आंखों में आंसू नहीं देख सकता और अपनी बहनों को भी किसी भी कीमत पर दुख नहीं पहुंचाना चाहता.’’
उसे याद आया कि अपने हनीमून पर जब वे सिंगापुर गए थे, तो उन्होंने खूब मौजमस्ती की थी.
एक दिन जब वे बाजार से हो कर गुजर रहे थे, तो कार्तिक एक जौहरी की दुकान के सामने ठिठक गया. बोला, ‘‘चलो जरा इस दुकान में चलते हैं.’’
वह मन ही मन पुलकित हुई कि क्या कार्तिक उसे कोई गहना खरीद कर देने वाला है.
उन्होंने दुकान में रखे काफी गहने देख डाले. फिर कार्तिक ने एक हार उठा कर कहा, ‘‘यह हार तुम्हें कैसा लगता है?’’
‘‘अरे, यह तो बहुत ही खूबसूरत है,’’ खुशी से बोली.
‘‘तुम्हें पसंद है तो ले लो. हमारे हनीमून की एक यादगार भेंट’’
‘‘ओह कार्तिक, तुम कितने अच्छे हो. लेकिन इतनी महंगी…?’’
‘‘कीमत की तुम फिक्र न करो और हां सुनो 1-1 गहना अपनी तीनों बहनों के लिए भी ले लेते हैं. यहां से लौटेंगे तो वे सब मुझ से किसी भेंट की अपेक्षा करेंगी.’’
सुन कर रोहिणी मन ही मन कुढ़ गई पर कुछ बोली नहीं.
‘‘और मांजी के लिए?’’ उस ने पूछा.
‘‘उन के लिए एक शाल ले लेते हैं.’’
वे घर सामान से लदेफदे लौटे. उस के बाद भी हर तीजत्योहार पर अपने परिवार के लिए तोहफे भेजता. जब भी विदेश जाता, तो उस के पास भानजेभानजियों की मनचाही वस्तुओं की लिस्ट पहले पहुंच जाती. अपने परिवार वालों के लिए उन के कहने की देर होती कि वह उन की फरमाइश तुरंत पूरी कर देता.
रोहिणी को इस पर कोई आपत्ति न थी. कार्तिक एक आईटी कंपनी में कार्यरत था और अच्छा कमा रहा था. उसे पूरा हक था कि वह अपनी कमाई जैसे चाहे, जिस पर चाहे, खर्च करे. पर उसे यह बात बुरी तरह अखरती थी कि कार्तिक के जिस कीमती समय को वह अपने लिए सुरक्षित रखना चाहती उसे भी वह बिना हिचक अपने परिवार को समर्पित कर देता. रोहिणी को अपने पति का प्यार उस के घर वालों के साथ बांटना बहुत नागवार गुजरता.
अब आज ही की बात ले लो. उन की शादी की सालगिरह थी. वह कब से सोच रही थी कि इस बार एक शानदार जगह जा कर ठाट से छुट्टियां मनाएंगे पर सब गुड़ गोबर हो गया. जब से उस की 2-4 किट्टी पार्टी वाली सहेलियां इटली हो कर आई थीं वे लगातार उस जगह की तारीफ के पुल बांध रही थीं कि उन्होंने वहां कितना लुत्फ उठाया. सुनसुन कर उस के कान पक गए थे. उस की 1-2 सहेलियों के पति जो अरबपति थे, वे उन की दौलत दोनों हाथों से लुटातीं थीं और नित नईर् साडि़यों और गहनों की नुमाइश करती थीं. इस से रोहिणी जलभुन जाती थी.
बड़ी मुश्किल से उस ने अपने पति को राजी कर लिया था कि इस बार वे भी विदेश जा कर दिल खोल कर पैसा खर्च करेंगे, खूब मौजमस्ती करेंगे.
उस ने मन ही मन कल्पना की थी कि जब वह फ्रैंच शिफौन की साड़ी में लिपटी, महंगे फौरेन सैंट की खुशबू बिखेरती, हाथ में चौकलेट का डब्बा लिए किट्टी पार्टी में पहुंचेगी तो सब उसे देख कर ईर्ष्या से जल मरेंगी पर ऊपरी मन से उस की खूब तारीफ करेंगी.
आगे पढ़ें
उस का घर शालिनी की लेन में नहीं था, बस थोड़ा लेन से कट मार कर था, इसलिए सामने से नजर नहीं आता था. 4 साल से वह शालिनी पर नजर रखे हुए था, उस की हर हरकत को नोटिस करता. उस ने शालिनी के बारे में सब जानकारी निकाल ली थी.
दरअसल, इस समय बच्चे बड़े हो रहे थे और खर्चे बढ़ने की वजह से शालिनी और संजय ने फैसला लिया कि शालिनी को कोई नौकरी करनी चाहिए, वैसे भी बच्चों की जिम्मेदारी अब थोड़ा कम है, बच्चे खुद को संभाल सकते हैं, तो शालिनी का काफी समय फ्री रहता है.
अजय श्रीवास्तव ने इसी मौके का फायदा उठाया. पहले उस ने शालिनी से जानपहचान बढ़ाई, फिर शालिनी को अपने औफिस में जौब का औफर दिया. शालिनी को भी यही चाहिए था. उस ने नौकरी जौइन कर ली.
अजय ने अपनेआप को बहुत अमीर शो किया हुआ था. शालिनी उस की गाड़ी और कपड़ों को देखती तो रश्क करती कि काश, उस के पास भी ऐसी गाड़ी हो. न जाने अजय श्रीवास्तव में शालिनी को कैसा खिंचाव महसूस हुआ कि वह उस की तरफ खिंचती चली गई.
अजय श्रीवास्तव के मातापिता की मौत हो चुकी थी, एक बहन है, उस की शादी हो गई है और अजय अभी तक कुंआरा है. वह शादी नहीं करना चाहता, क्योंकि जिस दिन शालिनी ने वहां शिफ्ट किया था, उसी दिन अजय के दिल में वह बस गई थी. 4 साल से वह राह तक रहा था कि कब और कैसे शालिनी को अपना बनाए.
आज अजय का जन्मदिन है. उस ने शालिनी को अपने घर पर बुलाया है. बस केवल शालिनी और अजय जन्मदिन मना रहे हैं, लेकिन शालिनी को उस के घर की भव्यता देख कर अच्छा लग रहा है.
अजय ने पूछा, ‘‘शालिनी, तुम्हें कैसा लगा मेरा छोटा सा आशियाना?’’
शालिनी बोली, ‘‘अजयजी, यह छोटा है? अरे, यह तो महल है महल… काश, मैं इस महल की रानी होती.’’
‘‘अरे, तो आप खुद को इस महल की रानी ही सम?ा न…’’
शालिनी शरारत से बोली, ‘‘ओहो, अच्छाजी, तो राजा कौन है?’’
‘‘डियर, तुम चाहो तो हम तैयार हैं…’’ और शालिनी को जैसे ही अजय अपनी ओर खींचना चाहता है, शालिनी खुद को उस की बांहों में सौंप देती है.
2 जवां दिल तेजी से धड़कने लगे, रगों में खून गर्मजोशी दिखाने लगा, अजय की चाहत उस की बांहों में खुद को समेटे हुए है और शालिनी की अधूरी चाह ने भी अंगड़ाई ली है. वह भी खुद को रोक नहीं पा रही, बेकाबू हो रही थी अजय में समा जाने को. दोनों के होंठ थरथराए और उल?ा गए एकदूसरे से. एक बहाव आया और दोनों को बहा कर ले गया.
आज अजय की मुराद पूरी हो गई. शालिनी को भी बहुत अच्छा लग रहा है. बहुत खुश है आज वह. घर आ कर भी चहकती रहती है.
अगले दिन जैसे ही वह नौकरी के लिए घर से निकलती है, अजय का फोन आता है, ‘शालिनी डियर, ऐसा करो तुम घर पर आ जाओ. मैं अभी घर पर हूं, बाद में साथ में औफिस चलते हैं…’
‘‘ओके, मैं आ रही हूं.’’
शालिनी अजय के घर गई तो देखा कल का सबकुछ फैला हुआ था. केक भी वहीं पड़ा था. खानेपीने का सामान जो बचा था, सब ऐसा पड़ा था.
शालिनी ने पूछा, ‘‘आज बाई नहीं आई क्या अभी तक?’’
‘‘नहीं, आज मैं ने उसे आने को मना किया, कहीं हमारे बीच में जो कल हुआ, उस के बारे में किसी चीज से उसे कोई शक न हो, इसलिए…’’
‘‘कोई बात नहीं. हम सब अभी साफसफाई कर लेते हैं और फिर औफिस चलेंगे,’’ इतना कह कर शालिनी सब साफ करने की कोशिश करती है, लेकिन अजय उस का हाथ पकड़ लेता है, ‘‘डार्लिंग रहने दो यह सब, इन में कल के प्यार की खुशबू है…’’ और दोनों एकदूसरे की तरफ देखते हैं. उन के चेहरों पर एक शरारती मुसकराहट है.
पूरा दिन दोनों घर पर रह कर ही समय बिताते हैं. ऐसा अब रोज होने लगा. शालिनी घर से औफिस की कह कर अजय के घर चली जाती और दोनों पूरा दिन घर पर मौजमस्ती करते. किसी को कानोंकान खबर नहीं थी, क्योंकि अजय ने बाई को काम से निकाल दिया था. उस के घर का सारा काम अब शालिनी करती थी.
खैर, इस तरह से कई महीने बीत गए. अजय श्रीवास्तव की कुछ पुश्तैनी जायदाद थी, जिस की घर बैठे ही आमदनी आती थी और काम चल रहा था, लेकिन ऐसा कब तक चलता आखिर बिजनैस हो या प्रोपर्टी हो, कभी तो देखभाल की जरूरत होती ही है.
अब अजय औफिस जाने लगा और शालिनी को घर पर छोड़ कर बाहर से ताला लगा कर जाता. शालिनी ही घर का सारा काम करती और सारा दिन उस के घर पर रहती.
अजय का जब जी चाहता तो घर आ जाता और फिर शाम या रात के समय ही शालिनी घर जाती. जब वह लेट हो जाती, तो काम के ज्यादा होने का बहाना करती. काम के ज्यादा होने के चलते फिर उसे घर पर आराम के लिए कहा जाता और रात का खाना संजय खुद ही मैनेज करता.
इस तरह से न तो अजय ने किसी और लड़की से शादी की, न शालिनी को ही छोड़ा. न जाने क्या था… शालिनी भी रोज इसी तरह से अजय के घर पर ही सारा दिन रहती.
जब कभी अजय के घर कोई रिश्तेदार या मेहमान आता, तो उस दिन वह शालिनी को नहीं बुलाता था और शालिनी तबीयत खराब होने का बहाना कर घर पर रहती और कहती कि औफिस से छुट्टी ले ली है, लेकिन यहां बाजी पलटती है.
आगे पढ़ें
शफीका के दिन कपड़े सिलते, स्वेटर बुनते हुए कट जाते लेकिन रातें नागफनी के कांटों की तरह सवाल बन कर चुभतीं. ‘जिन की बांहों में मेरी दुनिया सिमट गई थी, जिन के चौड़े सीने पर मेरे प्यार के गुंचे महकने लगे थे, उन की जिंदगी में दूसरी औरत के लिए जगह ही कहां थी भला?’ खयालों की उथली दुनिया के पैर सचाई की दलदल में कईकई फुट धंस गए. लेकिन सच? सच कुछ और ही था. कितना बदरंग और बदसूरत? सच, डाक्टर शादी के बाद दूसरी बीवी को ले कर इंगलैंड चला गया.
मलयेशिया से उड़ान भरते हुए हवाईजहाज हिमालय की ऊंचीऊंची प्रहरी सी खड़ी पहाडि़यों पर से हो कर जरूर गुजरा होगा? शफीका की मुहब्बत की बुलंदियों ने तब दोनों बाहें फैला कर उस से कश्मीर में ठहर जाने की अपील भी की होगी. मगर गुदाज बीवी की आगोश में सुधबुध खोए डाक्टर के कान में इस छातीफटी, दर्दभरी पुकार को सुनने का होश कहां रहा होगा?
शफीका को इतने बड़े जहान में एकदम तनहा छोड़ कर, उन के यकीन के कुतुबमीनार को ढहा कर, अपनी बेवफाई के खंजर से शफीका के यकीन को जख्मी कर, उन के साथ किए वादों की लाश को चिनाब में बहा दिया था डाक्टर ने, जिस के लहू से सुर्ख हुआ पानी आज भी शफीका की बरबादी की दास्तान सुनाता है.
शफीका जारजार रोती हुई नियति से कहती थी, ‘अगर तू चाहती, तो कोई जबरदस्ती डाक्टर का दूसरा निकाह नहीं करवा सकता था. मगर तूने दर्द की काली स्यायी से मेरा भविष्य लिखा था, उसे वक़्त का ब्लौटिंगपेपर कभी सोख नहीं पाया.’
शफीका के चेहरे और जिस्म की बनावट में कश्मीरी खूबसूरती की हर शान मौजूद थी. इल्म के नाम पर वह कश्मीरी भाषा ही जानती थी. डाक्टर की दूसरी बीवी, जिंदगी की तमाम रंगीनियों से लबरेज, खुशियों से भरपूर, तनमन पर आधुनिकता का पैरहन पहने, डाक्टर के कद के बराबर थी.
इंगलैंड की चमकदमक, बेबाकपन और खुद की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिए हाथ आई चाचा की बेशुमार दौलत ने एक बेगर्ज मासूम मुहब्बत का गला घोंट दिया. शफीका ने 19 साल, जिंदगी के सब से खूबसूरत दिन, सास के साथ रह कर गुजार दिए. दौलत के नशे में गले तक डूबे डाक्टर को न ही मां की ममता बांध सकी, न बावफा पत्नी की बेलौस मुहब्बत ही अपने पास बुला सकी.
डाक्टर की वादाखिलाफी और जवान बहन की जिंदगी में फैलती वीरानी और तनहाई के घनघोर अंधेरे के खौफ से गमगीन हो कर शफीका के बड़े भाई ने अपनी बीवी को तलाक देने का मन बना लिया जो डाक्टर की सगी बहन थी. लेकिन शफीका चीन की दीवार की तरह डट कर सामने खड़ी हो गई, ‘शादी के दायित्व तो इन के भाई ने नहीं निभाए हैं न, दगा और फरेब तो उन्होंने मेरे साथ किया है, कुसूर उन का है तो सजा भी उन्हें ही मिलनी चाहिए. उन की बहन ने आप की गृहस्थी सजाई है, आप के बच्चों की मां हैं वे, उस बेकुसूर को आप किस जुर्म की सजा दे रहे हैं, भाई जान? मेरे जीतेजी यह नहीं होगा,’ कह कर भाई को रोका था शफीका ने.
खौफजदा भाभी ने शफीका के बक्से का ताला तोड़ कर उस का निकाहनामा और डाक्टर के साथ खींची गई तसवीरों व मुहब्बतभरे खतों को तह कर के पुरानी किताबों की अलमारी में छिपा दिया था. जो 15 साल बाद रद्दी में बेची जाने वाली किताबों में मिले. भाभी डर गई थीं कि कहीं उन के भाई की वजह से उन की तलाक की नौबत आ गई तो कागजात के चलते उन के भाई पर मुकदमा दायर कर दिया जाएगा. लेकिन शफीका जानबूझ कर चुपचाप रहीं.
लंबी खामोशी के धागे से सिले होंठ, दिल में उमड़ते तूफान को कब तक रोक पाते. शफीका के गरमगरम आंसुओं का सैलाब बड़ीबड़ी खूबसूरत आंखों के रास्ते उन के गुलाबी गालों और लरजाते कंवल जैसे होंठों तक बह कर डल झील के पानी की सतह को और बढ़ा जाता. कलैंडर बदले, मौसम बदले, श्रीनगर की पहाडि़यों पर बर्फ जमती रही, पिघलती रही, बिलकुल शफीका के दर्दभरे इंतजार की तरह.
फूलों की घाटी हर वर्ष अपने यौवन की दमक के साथ अपनी महक लुटा कर वातावरण को दिलकश बनाती रही, लेकिन शफीका की जिंदगी में एक बार आ कर ठहरा सूखा मौसम फिर कभी मौसमेबहार की शक्ल न पा सका. शफीका की सहेलियां दादी और नानी बन गईं. आखिरकार शफीका भी धीरेधीरे उम्र के आखिरी पड़ाव की दहलीज पर खड़ी हो गईं.
बड़े भाईसाहब ने मरने से पहले अपनी बहन के भविष्य को सुरक्षित कर दिया. अपनी पैंशन शफीका के नाम कर दी. पूरे 20 साल बिना शौहर के, सास के साथ रहने वाली बहन को छोटे भाईभाभी ले आए हमेशा के लिए अपने घर. बेकस परिंदे का आशियाना एक डाल से टूटा तो दूसरी डाल पर तिनके जोड़तेजोड़ते
44 साल लग गए. चेहरे की चिकनाई और चमकीलेपन में धीरेधीरे झुर्रियों की लकीरें खिंचने लगीं.
प्यार, फिक्र और इज्जत, देने में भाइयों और उन के बच्चों ने कोई कमी नहीं छोड़ी. भतीजों की शादियां हुईं तो बहुओं ने सास की जगह फूफीसास को पूरा सम्मान दिया. शफीका के लिए कभी भी किसी चीज की कमी नहीं रही, मगर अपने गर्भ में समाए नुकीले कंकड़पत्थर को तो सिर्फ ठहरी हुई झील ही जानती है. जिंदगी में कुछ था तो सिर्फ दर्द ही दर्द.
अपनी कोख में पलते बच्चे की कुलबुलाहट के मीठे दर्द को महसूस करने से महरूम शफीका अपने भतीजों के बच्चों की मासूम किलकारियों, निश्छल हंसी व शरारतों में खुद को गुम कर के मां की पहचान खो कर कब फूफी से फूफीदादी कहलाने लगीं, पता ही नहीं चला.
शरीर से एकदम स्वस्थ 80 वर्षीया शफीका के चमकते मोती जैसे दांत आज भी बादाम और अखरोट फोड़ लेते हैं. यकीनन, हाथपैरों और चेहरे पर झुर्रियों ने जाल बिछाना शुरू कर दिया है लेकिन चमड़ी की चमक अभी तक दपदप करती हुई उन्हें बूढ़ी कहलाने से महफूज रखे हुए है.
पैरों में जराजरा दर्द रहता है तो लकड़ी का सहारा ले कर चलती हैं, लेकिन शादीब्याह या किसी खुशी के मौके पर आयोजित की गई महफिल में कालीन पर तकिया लगा कर जब भी बैठतीं, कम उम्र औरतों को शहद की तरह अपने आसपास ही बांधे रखतीं.
उन के गाए विरह गीत, उन की आवाज के सहारेसहारे चलते चोटखाए दिलों में सीधे उतर जाते. शफीका की गहरी भूरी बड़ीबड़ी आंखों में अपना दुलहन वाला लिबास लहरा जाता, जब कोई दुलहन विदा होती या ससुराल आती. उन की आंखों में अंधेरी रात के जुगनुओं की तरह ढेर सारे सपने झिलमिलाने लगते. सपने उम्र के मुहताज नहीं होते, उन का सुरीला संगीत तो उम्र के किसी भी पड़ाव पर बिना साज ही बजने लगता है.
एक घर, सजीधजी शफीका, डाक्टर का चंद दिनों का तिलिस्म सा लगने वाला मीठा मिलन, बच्चों की मोहक मुसकान, सुखदुख के पड़ाव पर ठहरताबढ़ता कारवां, मां, दादी के संबोधन से अंतस को सराबोर करने वाला सपना…हमेशा कमी बन कर चुभता रहता. वाकई, क्या 80 साल की जिंदगी जी या सिर्फ जिंदगी की बदशक्ल लाश ढोती रहीं? यह सवाल खुद से पूछने से डरती रहीं शफीका.
शफीका ने एक मर्द के नाम पूरी जिंदगी लिख दी. जवानी उस के नाम कर दी, अपनी हसरतों, अपनी ख्वाहिशों के ताश के महल बना कर खुद ही उसे टूटतेबिखरते देखती रहीं. जिस्म की कसक, तड़प को खुद ही दिलासा दे कर सहलाती रहीं सालों तक.
रिश्तेदार, शफीका से मिलते लेकिन कोई भी उन के दिल में उतर कर नहीं देख पाता कि हर खुशी के मौके पर गाए जाने वाले लोकगीतों के बोलों के साथ बजते हुए कश्मीरी साजों, डफली की हर थाप पर एक विरह गीत अकसर शफीका के कंपकंपाते होंठों पर आज भी क्यों थिरकता जाता है-
‘तू आए न आए
लगी हैं निगाहें
सितारों ने देखी हैं
झुकझुक के राहें
ये दिल बदगुमां है
नजर को यकीं है
तू जो नहीं है
तो कुछ भी नहीं है
ये माना कि महफिल
जवां है हसीं है.’
अब आज पूरे 3 महीनों बाद मुझे अचानक डायरी में फूफीदादी का दिया हुआ परचा दिखाई दिया तो इंटरनैट पर कश्मीरी मुसलमानों के नाम फिर से सर्च कर डाले. पता वही था, नाम डा. खालिद अनवर, उम्र 90 साल. फोन मिलाया तो एक गहरी लेकिन थकी आवाज ने जवाब दिया, ‘‘डाक्टर खालिद अनवर स्पीकिंग.’’
‘‘आय एम फ्रौम श्रीनगर, इंडिया, आई वांट टू मीट विद यू.’’
‘‘ओ, श्योर, संडे विल बी बैटर,’’ ब्रिटिश लहजे में जवाब मिला.
जी चाहा फूफीदादी को फोन लगाऊं, दादी मिल गया पता…वैसे मैं उन से मिल कर क्या कहूंगा, अपना परिचय कैसे दूंगा, कहीं हमारे खानदान का नाम सुन कर ही मुझे अपने घर के गेट से बाहर न कर दें, एक आशंका, एक डर पूरी रात मुझे दीमक की तरह चाटता रहा.
आगे पढ़ें
अब शालिनी जो पैसे कमाने के चक्कर में नौकरी करने लगी थी, वह अब पति यानी संजय की जमापूंजी खत्म कर रही है. कभी संजय से 50,000 तो कभी एक लाख रुपए लेती, किसी न किसी काम के बहाने. घर के खर्चों और बच्चों के खर्चों की संजय को बिलकुल भी जानकारी नहीं थी, इसलिए जितना वह मांगती संजय दे देता.
इस तरह कई साल बीत गए, लेकिन कोई भी राज कहां तक राज रह सकता है. आखिरकार यह राज भी जगजाहिर हो गया. बात उठी है तो न जाने कितने कानों तक पहुंचेगी. जाहिर सी बात है कि संजय के कानों तक भी तो पहुंचनी ही थी, पहुंच गई.
संजय ने पूछा, तो शालिनी ने साफ इनकार कर दिया, लेकिन संजय को जहां से भी खबर मिली थी, वह खबर पक्की थी.
संजय को यह फिक्र थी कि बच्चे अब बड़े हैं, सम?ादार हैं, हर बात को सम?ाते हैं, उन के सामने वह कोई तमाशा नहीं करना चाहता था. बस, शालिनी को सम?ाता कि वह यह सब छोड़ दे या उसे छोड़ वहीं जा कर बसे, लेकिन शालिनी सच स्वीकार न करती.
इस बात को अब 11 साल बीत गए. शालिनी का वही रूटीन है. संजय अपनी नौकरी और ऐक्स्ट्रा काम में बिजी है, क्योंकि केवल नौकरी से घर का गुजारा नहीं चल रहा था.
शालिनी तकरीबन संजय का पैसा सब खत्म कर चुकी है और संजय ने औफिस से लोन भी लिया हुआ है. शालिनी जान गई कि संजय के साथ कोई भविष्य नहीं. वह संजय को तलाक के कागज थमा कर कहती है कि उसे तलाक चाहिए. संजय उसे तलाक दे देता है. शालिनी अजय से शादी कर लेती है.
शालिनी बच्चों को साथ ले जाती है अजय के घर. संजय अकेला बैठा सोच रहा है कि उस ने कहां क्या गलती की?
हां, याद आता है संजय को वह हर पल जबजब वह शालिनी के साथ हमबिस्तर हुआ, उस ने कभी शालिनी के इमोशन को नहीं सम?ा और जाना, बस केवल अपनी हवस शांत की और सो गया.
शालिनी कहती, ‘मु?ो तुम्हारा तन नहीं मन चाहिए. मु?ो केवल प्यार चाहिए, सैक्स ही जिंदगी की धुरी नहीं, जिंदगी का मतलब तो प्यार है.’’
लेकिन संजय इन बातों पर ध्यान न देता, क्योंकि उसे अपनी जवानी पर नाज था, फख्र था कि उस पर हजारों लड़कियां मरती हैं, यही घमंड उस की रगरग में बस चुका था. उस की नजर में औरत का प्यार कोई माने नहीं रखता, औरत केवल बिस्तर की शोभा ही बन सकती है.
शालिनी, जो जब तक संजय के साथ थी, सच्चे प्यार को तरसती रही, लेकिन उसे वह प्यार अजय श्रीवास्तव ने दिया. वह उस की दीवानी हो गई. कहते हैं कि औरत जब कुरबान करने पर आती है, तो अपनी जान की भी परवाह नहीं करती.
आज शालिनी अपनी जान देना चाहती है, संजय या अजय के लिए नहीं, बल्कि इसलिए कि अब उसे एहसास हो गया कि उस ने कितना गलत कदम उठाया था, लेकिन उसे इस बात का सुकून है कि उसे थोड़े समय के लिए ही सही, अजय से सच्चा प्यार तो मिला था. अब अजय ने बेशक शादी कर ली उस से, लेकिन वह उसे वह खुशी नहीं दे रहा, क्योंकि उस के सिर से शालिनी नाम का भूत उतर चुका है.
वह अब सम?ा चुका है कि शालिनी के पास अब कोई धनदौलत नहीं, वह तो केवल पैसों का भूखा निकला, शालिनी के लिए तो उस का प्यार चंद महीनों में ही खत्म हो गया था. अब उस ने शालिनी को भी पैसेपैसे के लिए मुहताज कर दिया है, बच्चे भी परेशान हैं.
संजय बच्चों को अपने पास लाना चाहता है, मगर बच्चे जानते हैं कि मां परेशान हैं. अब उन्हें छोड़ कर नहीं जा सकते वरना मां डिप्रैशन में न चली जाएं कहीं.
शालिनी अपने किए पर शर्मिंदा है और संजय को अब अपनी गलती का एहसास हो रहा है, लेकिन अब इस समस्या का समाधान नहीं है.
संजय ने कश्मीर छोड़ दिया हमेशा के लिए, करता भी क्या वहां रह कर. सिर पर कर्ज है लोगों का, जो लेले कर शालिनी की ख्वाहिशें पूरी करता रहा और किस तरह शालिनी को अपने सामने गैर के साथ देखता. रातोंरात भाग आया दिल्ली अपने भाइयों के पास. दोनों अपनी गलतियों पर पछता रहे हैं, लेकिन इन सब में बच्चों का भविष्य कहीं सुखद दिखाई नहीं देता.
निश्चित दिन, निश्चित समय, उन के घर की डौरबैल बजाने से पहले, क्षणभर के लिए हाथ कांपा था, ‘तुम शफीका के भतीजे के बेटे हो. गेटआउट फ्रौम हियर. वह पृष्ठ मैं कब का फाड़ चुका हूं. तुम क्या टुकड़े बटोरने आए हो?’ कुछ इस तरह की ऊहापोह में मैं ने डौरबैल पर उंगली रख दी.
‘‘प्लीज कम इन, आई एम वेटिंग फौर यू.’’ एक अनौपचारिक स्वागत के बाद उन के द्वारा मेरा परिचय और मेरा मिलने का मकसद पूछते ही मैं कुछ देर तो चुप रहा, फिर अपने ननिहाल का पता बतलाने के बाद देर तक खुद से लड़ता रहा.
अनौपचारिक 2-3 मुलाकातों के बाद वे मुझ से थोड़ा सा बेबाक हो गए. उन की दूसरी पत्नी की मृत्यु 15 साल पहले हो चुकी थी. बेटों ने पाश्चात्य सभ्यता के मुताबिक अपनी गृहस्थियां अलग बसा ली थीं. वीकैंड पर कभी किसी का फोन आ जाता, कुशलता मिल जाती. महीनों में कभी बेटों को डैड के पास आने की फुरसत मिलती भी तो ज्यादा वक्त फोन पर बिजनैस डीलिंग में खत्म हो जाता. तब सन जैसी सफेद पलकें, भौंहें और सिर के बाल चीखचीख कर पूछने लगते, ‘क्या इसी अकेलेपन के लिए तुम श्रीनगर में पूरा कुनबा छोड़ कर यहां आए थे?’
हालांकि डाक्टर खालिद अनवर की उम्र चेहरे पर हादसों का हिसाब लिखने लगी थी मगर बचपन से जवानी तक खाया कश्मीर का सूखा मेवा और फेफड़े में भरी शुद्ध, शीतल हवा उन की कदकाठी को अभी भी बांस की तरह सीधा खड़ा रखे हुए है. डाक्टर ने बुढ़ापे को पास तक नहीं फटकने दिया. अकसर बेटे उन के कंधे पर हाथ रख कर कहते हैं, ‘‘डैड, यू आर स्टिल यंग दैन अस. सो, यू डौंट नीड अवर केयर.’’ यह कहते हुए वे शाम से पहले ही अपने घर की सड़क की तरफ मुड़ जाते हैं.
शरीर तो स्वस्थ है लेकिन दिल… छलनीछलनी, दूसरी पत्नी से छिपा कर रखी गई शफीका की चिट्ठियां और तसवीरों को छिपछिप कर पढ़ने और देखने के लिए मजबूर थे. प्यार में डूबे खतों के शब्द, साथ गुजारे गिनती के दिनों के दिलकश शाब्दिक बयान, 63 साल पीछे ले जाता, यादों के आईने में एक मासूम सा चेहरा दिखलाई देने लगता. डाक्टर हाथ बढ़ा कर उसे छू लेना चाहते हैं जिस की याद में वे पलपल मरमर कर जीते रहे. बीवी एक ही छत के नीचे रह कर भी उन की नहीं थी. दौलत का बेशुमार अंबार था. शानोशौकत, शोहरत, सबकुछ पास में था अगर नहीं था तो बस वह परी चेहरा, जिस की गरम हथेलियों का स्पर्श उन की जिंदगी में ऊर्जा भर देता.
मेरे अपनेपन में उन्हें अपने वतन की मिट्टी की खुशबू आने लगी थी. अब वे परतदरपरत खुलने लगे थे. एक दिन, ‘‘लैपटौप पर क्या सर्च कर रहे हैं?’’
‘‘बेटी के लिए प्रौपर मैच ढूंढ़ रहा हूं,’’ कहते हुए उन का गला रुंधने लगा. उन की यादों की तल्ख खोहों में उस वक्त वह कंपा देने वाली घड़ी शामिल थी, जब उन की बेटी का पति अचानक बिना बताए कहीं चला गया. बहुत ढूंढ़ा, इंटरनैशनल चैनलों व अखबारों में उस की गुमशुदगी की खबर छपवाई, लेकिन सब फुजूल, सब बेकार. तब बेटी के उदास चेहरे पर एक चेहरा चिपकने लगा. एक भूलाबिसरा चेहरा, खोयाखोया, उदास, गमगीन, छलछला कर याचना करती 2 बड़ीबड़ी कातर आंखें.
किस का है यह चेहरा? दूसरी बीवी का? नहीं, तो? मां का? बिलकुल नहीं. फिर किस का है, जेहन को खुरचने लगे, 63 साल बाद यह किस का चेहरा? चेहरा बारबार जेहन के दरवाजे पर दस्तक दे रहा है. किस की हैं ये सुलगती सवालिया आंखें? किस का है यह कंपकंपाता, याचना करता बदन, मगर डाक्टर पर उस का लैशमात्र भी असर नहीं हुआ था. लेकिन आज जब अपनी ही बेटी की सिसकियां कानों के परदे फाड़ने लगीं तब वह चेहरा याद आ गया.
दुनियाभर के धोखों से पाकसाफ, शबनम से ज्यादा साफ चेहरा, वे कश्मीर की वादियां, महकते फूलों की लटकती लडि़यों के नीचे बिछी खूबसूरत गुलाबी चादर, नर्म बिस्तर पर बैठी…खनकती चूडि़यां, लाल रेशमी जोड़े से सजा आरी के काम वाला लहंगाचोली, मेहंदी से सजे 2 गोरे हाथ, कलाई पर खनकती सोने की चूडि़यां, उंगलियों में फंसी अंगूठियां. हां, हां, कोई था जिस की मद्धम आवाज कानों में बम के धमाकों की तरह गूंज रही थी, मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी खालिद, हमेशा.
लाहौर एयरपोर्ट पर अलविदा के लिए लहराता हाथ, दिल में फांस सी चुभी कसक इतनी ज्यादा कि मुंह से बेसाख्ता चीख निकल गई, ‘‘हां, गुनहगार हूं मैं तुम्हारा. तुम्हारे दिल से निकली आह… शायद इसीलिए मेरी बेटी की जिंदगी बरबाद हो गई. मेरे चाचा के बहुत जोर डालने पर, न चाहते हुए भी मुझे उन की अंगरेज बेटी से शादी करनी पड़ी. दौलत का जलवा ही इतना दिलफरेब होता है कि अच्छेअच्छे समझदार भी धोखा खा जाते हैं.
‘‘शफीका, तुम से वादा किया था मैं ने. तुम्हें लाहौर ला कर अपने साथ रखने का. वादा था नए सिरे से खुशहाल जिंदगी में सिमट जाने का, तुम्हारी रातों को हीरेमोती से सजाने का, और दिन को खुशियों की चांदनी से नहलाने का. पर मैं निभा कहां पाया? आंखें डौलर की चमक में चौंधिया गईं. कटे बालों वाली मोम की गुडि़या अपने शोख और चंचल अंदाज से जिंदगी को रंगीन और मदहोश कर देने वाली महक से सराबोर करती चली गई मुझे.’’
अचानक एक साल बाद उन का दामाद इंगलैंड लौट आया, ‘‘अब मैं कहीं नहीं जाऊंगा. आप की बेटी के साथ ही रहूंगा. वादा करता हूं.’’
दीवानगी की हद तक मुहब्बत करने वाली पत्नी को छोड़ कर दूसरी अंगरेज औरत के टैंपरेरी प्यार के आकर्षण में बंध कर जब वह पूरी तरह से कंगाल हो गया तो लौटने के लिए उसे चर्चों के सामने खड़े हो कर वायलिन बजा कर लोगों से पैसे मांगने पड़े थे.
ये भी पढ़ें- विदेशी दामाद: भाग 1
पति की अपनी गलती की स्वीकृति की बात सुन कर बेटी बिलबिला कर चीखी थी, ‘‘वादा, वादा तोड़ कर उस फिनलैंड वाली लड़की के साथ मुझ पत्नी को छोड़ कर गए ही क्यों थे? क्या कमी थी मुझ में? जिस्म, दौलत, ऐशोआराम, खुशियां, सबकुछ तो लुटाया था तुम पर मैं ने. और तुम? सिर्फ एक नए बदन की हवस में शादी के पाकीजा बंधन को तोड़ कर चोरों की तरह चुपचाप भाग गए. मेरे यकीन को तोड़ कर मुझे किरचियों में बिखेर दिया.
‘‘तुम को पहचानने में मुझ से और मेरे बिजनैसमैन कैलकुलेटिव पापा से भूल हो गई. मैं इंगलैंड में पलीपढ़ी हूं, लेकिन आज तक दिल से यहां के खुलेपन को कभी भी स्वीकार नहीं कर सकी. मुझ से विश्वासघात कर के पछतावे का ढोंग करने वाले शख्स को अब मैं अपना नहीं सकती. आई कांट लिव विद यू, आई कांट.’’ यह कहती हुई तड़प कर रोई थी डाक्टर की बेटी.
आज उस की रुलाई ने डाक्टर को हिला कर रख दिया. आज से 50 साल पहले शफीका के खामोश गरम आंसू इसी पत्थरदिल डाक्टर को पिघला नहीं सके थे लेकिन आज बेटी के दर्द ने तोड़ कर रख दिया. उसी दम दोटूक फैसला, दामाद से तलाक लेने के लिए करोड़ों रुपयों का सौदा मंजूर था क्योंकि बेटी के आंसुओं को सहना बरदाश्त की हद से बाहर था.
डाक्टर, शफीका के कानूनी और मजहबी रूप से सहारा हो कर भी सहारा न बन सके, उस मजलूम और बेबस औरत के वजूद को नकार कर अपनी बेशुमार दौलत का एक प्रतिशत हिस्सा भी उस की झोली में न डाल सके. शफीका की रात और दिन की आह अर्श से टकराई और बरसों बाद कहर बन कर डाक्टर की बेटी पर टूटी. वह मासूम चेहरा डाक्टर को सिर्फ एक बार देख लेने, एक बार छू लेने की चाहत में जिंदगी की हर कड़वाहट को चुपचाप पीता रहा. उस पर रहम नहीं आया कभी डाक्टर को. लेकिन आज बेटी की बिखरतीटूटती जिंदगी ने डाक्टर को भीतर तक आहत कर दिया. अब समझ में आया, प्यार क्या है. जुदाई का दर्द कितना घातक होता है, पहाड़ तक दरक जाते हैं, समंदर सूख जाते हैं.
मैं यह खबर फूफीदादी तक जल्द से जल्द पहुंचाना चाहता था, शायद उन्हें तसल्ली मिलेगी. लेकिन नहीं, मैं उन के दिल से अच्छी तरह वाकिफ था. ‘मेरे दिल में डाक्टर के लिए नफरत नहीं है. मैं ने हर लमहा उन की भलाई और लंबी जिंदगी की कामना की है. उन की गलतियों के बावजूद मैं ने उन्हें माफ कर दिया है, बजी,’ अकसर वे मुझ से ऐसा कहती थीं.
मैं फूफीदादी को फोन करने की हिम्मत जुटा ही नहीं सका था कि आधीरात को फोन घनघना उठा था, ‘‘बजी, फूफीदादी नहीं रहीं.’’ क्या सोच रहा था, क्या हो गया. पूरी जिंदगी गीली लकड़ी की तरह सुलगती रहीं फूफीदादी.
सुबह का इंतजार मेरे लिए सात समंदर पार करने की तरह था. धुंध छंटते ही मैं डाक्टर के घर की तरफ कार से भागा. कम से कम उन्हें सचाई तो बतला दूं. कुछ राहत दे कर उन की स्नेहता हासिल कर लूं मगर सामने का नजारा देख कर आंखें फटी की फटी रह गईं. उन के दरवाजे पर एंबुलैंस खड़ी थी. और घबराई, परेशान बेटी ड्राइवर से जल्दी अस्पताल ले जाने का आग्रह कर रही थी. हार्टअटैक हुआ था उन्हें. हृदयविदारक दृश्य.
मैं स्तब्ध रह गया. स्टेयरिंग पर जमी मेरी हथेलियों के बीच फूफीदादी का लिखा खत बर्फबारी में भी पसीने से भीग गया, जिस पर लिखा था, ‘बजी, डाक्टर अगर कहीं मिल जाएं तो यह आखिरी अपील करना कि वे मुझ से मिलने कश्मीर कभी नहीं आए तो मुझे कोई शिकवा नहीं है लेकिन जिंदगी के रहते एक बार, बस एक बार, अपनी मां की कब्र पर फातेहा पढ़ जाएं और अपनी सरजमीं, कश्मीर की खूबसूरत वादियों में एक बार सांस तो ले लें. मेरी 63 साल की तपस्या और कुरबानियों को सिला मिल जाएगा. मुझे यकीन है तुम अपने वतन से आज भी उतनी ही मुहब्बत करते हो जितनी वतन छोड़ते वक्त करते थे.’
गुनाहों की सजा तो कानून देता है, लेकिन किसी का दिल तोड़ने की सजा देता है खुद का अपना दिल.
‘तू आए न आए,
लगी हैं निगाहें
सितारों ने देखी हैं
झुकझुक के राहें…’
इस गजल का एकएक शब्द खंजर बन कर मेरे सीने में उतरने लगा और मैं स्टेयरिंग पर सिर पटकपटक कर रो पड़ा.