हरनाम सिंह की जलती हुई चिता देख कर शरद बाबू का कलेजा मुंह को आ रहा था. शरद बाबू को हरनाम के मरने का दुख इस बात से नहीं हो रहा था कि उन का प्यारा दोस्त अब इस दुनिया में नहीं था बल्कि इस बात की चिंता उन्हें खाए जा रही थी कि हरनाम को 2 लाख रुपए शरद बाबू ने अपने बैंक के खाते से निकाल कर दिए थे और जिस की भनक न तो शरद बाबू की पत्नी को थी और न ही हरनाम के घरपरिवार वालों को, उन रुपयों की वापसी के सारे दरवाजे अब बंद हो चुके थे.

हरनाम का एक ही बेटा था और वह भी 10-12 साल का. उस की आंखों से आंसू थम नहीं रहे थे, और प्रीतो भाभी, हरनाम की जवान पत्नी, वह तो गश खा कर मूर्छित पड़ी थी. शरद बाबू ने सोचा कि उन्हें तो अपने 2 लाख रुपयों की पड़ी है, इस बेचारी का तो सारा जहान ही लुट गया है.

मन ही मन शरद बाबू हिसाब लगाने लगे कि 2 लाख रुपयों की भरपाई कैसे कर पाएंगे. चोर खाते से साल में 30-40 हजार रुपए भी एक तरफ रख पाए तो भी कहीं 7-8 साल में 2 लाख रुपए वापस उसी खाते में जमा हो पाएंगे. हरनाम को अगर उन्होंने दुकान के खाते से रुपए दिए होते तो आज उन्हें इतना संताप न झेलना पड़ता. उस समय वे हरनाम की बातों में आ गए थे.

हरनाम ने कहा था कि बस, एकाध साल का चक्कर है. कारोबार तनिक डांवांडोल है. अगले साल तक यह ठीकठाक हो जाएगा. जब सरकार बदलेगी और अफसरों के हाथों में और पैसा खर्च करने के अधिकार आ जाएंगे तब नया माल भी उठेगा और साथ में पुराने डूबे हुए पैसे भी वसूल हो जाएंगे.

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