डेथ रेप ड्रग्स: लड़कियों को मिली आजादी पर अंकुश

आमतौर पर हमारे यहां रेप का कुसूर पिछड़ी जातियों के उद्दंड बेरोजगार और कट्टर बन रहे नौजवानों पर डाला जाता हैजो दलित लड़कियों को रेप कर के जला तक डालते हैं. पर समस्याएं ऊंची जातियों में भी हैं और ओबीसी जातियों की लड़कियों में भीजो पैसे और पढ़ाईलिखाई के चलते अब मेनस्ट्रीम में आने लगी हैं. इन में एक समस्या डेट रेप की है.

एक मल्टीनैशनल कंपनी में काम करने वाली अनामिका मुंबई के अंधेरी इलाके के एक पेइंग गैस्टहाउस में रहती थी. वह एक पिछड़े समाज की खातेपीते घर की लड़की थीजो शहर में पढ़ने व काम करने आई थी. उस ने पंखे से लटक कर खुदकुशी कर ली.

सुसाइड नोट में उस ने लिखा, ‘एक दिन जब मैं औफिस में थीतब मेरे ह्वाट्सएप में वीडियो मैसेज आया. वह जिस नंबर से आया थावह भारत का नहीं था. मेरे मन में उत्सुकता पैदा हुई कि आखिर यह किस बारे में है और किस ने भेजा है. मैं ने इंटरनैट से मालूम किया तो पता चला कि नंबर सिंगापुर से आपरेट किया जा रहा था.

मैं स्टाफरूम में गई और चुपचाप  मैसेज देखा. देख कर मेरे पैरों तले से जमीन खिसक गईक्योंकि वह मु?ा से ही संबंधित था. वह एक पोर्न फिल्म थी. मैं डर के मारे सिहर उठी.

घर आ कर मैं ने कई बार वीडियो मैसेज देखा. मैं हैरान थी कि उस में कई लड़कों को मेरे साथ जिस्मानी संबंध बनाते हुए दिखाया गया था. मु?ो यह तक याद न था कि यह कब व कैसे हुआ. उस में न मेरी तरफ से विरोध था और न ही मैं नशे की हालत में थी. बिना हीलहुज्जतपूरी सहमति से दिखाए गए इतने सारे सैक्स संबंध मु?ो डरा रहे थे. हर दृश्य में मैं तो साफतौर पर दिख रही थीपर सैक्स करने वालों के चेहरे छिपे हुए थे. अंत में धमकी भरी सूचना थी कि अमुक जगह व समय पर मिलोनहीं तो इसे सार्वजनिक कर दिया जाएगा.

मु?ो सम?ा नहीं आ रहा था कि यह हादसा कब व कैसे घटित हुआजबकि मैसेज तनिक भी फर्जी नहीं लग रहा था.

मैं ने दिमाग पर बहुत जोर डालातब याद आया कि पिछली बार जब बौयफ्रैंड डेट’ पर ले गया थातब कान व गले में यही तो पहने थेजो उस वीडियो में नजर आ रहे हैं. ड्रिंक्स के बाद मैं असामान्य हो गई थी. इस वजह से रात वहीं गुजारनी पड़ी. मगर वहां रहते हुए ऐसा हुआयह सोच कर मैं हैरान थी.

ऐसा एमएमएस कबकहां व कैसे बना और बनाने व भेजने वाला कौन है का जवाब नहीं मिल रहा था. सब से बड़ी उल?ान यह थी कि वीडियो में मैं पूरे होशोहवास में सहयोग करती नजर आ रही थी. अगर बौयफ्रैंड को बताती या पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवाने जातीतो कैसे साबित करती कि जो हुआवह मेरी इच्छा के खिलाफ था.

इस के बाद मैं हथियार डालने को मजबूर हो गई. मेरी बोल्डनैस पलभर में छूमंतर हो गई. निश्चित समय व तय जगह पर पहुंचना मेरी मजबूरी थी. फिर तो मैं पतन के गर्त में समाती चली गई. मैं उन लोगों के हाथों की कठपुतली बन गई और गैंग रेप’ की शिकार होने लगी. बाद में पता चला कि मेरा बौयफ्रैंड फ्रौड था. वह उसी गैंग के लिए काम करता था. मेरी जैसी अनेक लड़कियां वहां पोर्न फिल्मों’ की हीरोइनें बनी हुई थीं. इस दलदल से निकलने के लिए खुदकुशी करने के अलावा मेरे पास और कोई रास्ता न था.

अफसोस तो मु?ो इस बात का है कि मैं ने बिना परखे बौयफ्रैंड बनाया और बाद में समय रहते पुलिस के पास नहीं जा पाईवरना मु?ो यह जलालत तो नहीं सहनी पड़ती.

रोहित शेट्टी की फिल्म संडे’ में सेहर नाम की लड़की लाख कोशिश करने पर भी एक संडे को याद नहीं कर पातीजबकि उस के लिए वह संडे खास थाक्योंकि जांच एजेंसियां उस संडे के बारे में उस से जानना चाहती थीं.

देखा जाएतो सेहर के गुम संडे और अनामिका के साथ घटे हादसे का राज समान ही नजर आता है और वह यह कि वे दोनों अनजाने में किसी की साजिश का शिकार बन गई थीं.

आमतौर पर ऐसे मामलों में लड़कियां ऐसी दवा की शिकार बन जाती हैंजिस के सेवन से शारीरिक व मानसिक रूप से वे इतनी कमजोर हो जाती हैं कि ठीक तरह से विरोध भी नहीं कर पातीं. इन दवाओं में ऐसी चीजें मिली होती हैंजिन से यौन उत्तेजना बढ़ जाती है.

जाहिर हैऐसी हालत में पीडि़ता खिलाफत के बजाय सहयोगी बन कर सैक्स की भूख शांत करती नजर आती हैक्योंकि बढ़ी हुई यौन उत्तेजना के चलते जाहिर होने वाला विरोध भी दब कर रह जाता है और यही उस के पक्ष को कमजोर बना देता है. नतीजतनऐसे रेप या साजिश साबित नहीं हो पाती और वह ब्लैकमेल’ होने को मजबूर हो जाती है.

यह उन लड़कियों के लिए गंभीर चेतावनी हैजो पार्टियोंक्लबों या पबों में जाती हैं व खुद को बोल्ड’ साबित करने की धुन में नशे की आदी हो गई हैं.

ऐसी लड़कियां मर्द साथियों के साथ ड्रिंक्स से परहेज नहीं करतींकिंतु बोल्डनैस के चलते सैक्स के लिए समर्पित भी नहीं होतीं. ऐसी लड़कियों से निबटने के लिए गलत मर्द साथी ड्रिंक्स में यह दवा मिला देते हैंजिन्हें डेट रेप ड्रग्स’ के नाम से जाना जाता है. इस के बाद वे बेखौफ उन्हें जिस्मानी शोषण का शिकार बना लेते हैं और ब्लैकमेल’ करते रहने के लिए पुख्ता सुबूत भी जुटा लेते हैं. गामा हाईड्रौक्सीब्यूट्रिक एसिड के नाम से जानी जाने वाली एक ड्रग्स इन्हीं में से है.

जयपुर के जगतपुरा क्षेत्र में डेट रेप ड्रग्स’ की खेपें जाती रहती हैंक्योंकि इस का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होने लगा है. इन में से एक केटामाइन प्रतिबंधित दवा भी हैजो मानसिक मरीजों के लिए इस्तेमाल होती हैपर इस का सब से ज्यादा इस्तेमाल नाइट क्लबोंरेव पार्टियों में होने लगा है. इन्हें लेने वाला तकरीबन होश खो देता है और होश में आने पर अपराध में शरीक रहे अपराधियों तक को नहीं पहचान पाता.

फोरैंसिक माहिरों का कहना है कि आमतौर पर पार्टी के दौरान लड़कियों को कैटामाइन इंजैक्शन या ड्रिंक्स के रूप में दिया जाता है. इस के बाद वे सपने जैसी हालत में पहुंच जाती हैं. होश में आने पर उन्हें कुछ भी याद नहीं रहता. इस तरह वे बेहोश तो नहीं होतींपर सोचनेसम?ाने व पहचानने तक की ताकत खो बैठती हैं.

यहां तक कि वे बौयफ्रैंड और दूसरे में फर्क नहीं कर पातीं. तभी तो ऐसी क्लब पार्टियों में पार्टनरों के बदलते रहने के चलते वे गैंग रेप’ की शिकार बन जाती हैं और होश में आने के बाद न अपने बरताव को याद कर पाती हैं और न ही बलात्कारी पार्टनरों को पहचान पाती हैं.

गांवों व छोटे कसबों से आने वाली लड़कियां आमतौर पर शहरी बनने के चक्कर में बहुत से जोखिम भी लेती हैंइसलिए वे हर न्योते को स्वीकार कर लेती हैं. उन्हें अपने शारीरिक दम पर भरोसा होता हैपर ये ड्रग्स दिमाग पर काम करती हैंशरीर के मसल्स पर नहीं.

जहां तक इन दवाओं से सावधान रहने की बात हैयह भी तकरीबन नामुमकिन सा ही हैक्योंकि ऐसी दवाएं रंगगंध व स्वादहीन होती हैंइसीलिए इन्हें आसानी से बिना जानकारी के किसी भी पेय पदार्थ में मिला कर पिलाया जा सकता है. इसे पानी के साथ भी दिया जा सकता है. पीने वालों को तनिक भी पता नहीं चलता और वे सहज विश्वास से उसे पी जाते हैं.

इस के कुछ समय बाद ही दवा अपना असर दिखाने लगती है. साजिश रचने वाला इंतजार में रहता है. उस का तनिक सा आमंत्रण सभी दूरियां मिटा देता है और वह हालात का फायदा उठाने से नहीं चूकता.

डाक्टरों का कहना है कि ऐसी

ड्रग्स का बेसिक कंपोनैंट है हाईड्रौक्सीब्यूट्रिक एसिड’. इस का असर तकरीबन 6 से 8 घंटे तक बना रहता है. यह दवा शरीर में तकरीबन

12 घंटे तक रहती है. 8 से 12 घंटे की अवधि तक उसे लेने वाली लड़की ढुलमुल व मतिभ्रम की शिकार बनी रहती है. अगर 12 घंटे में उस की पैथोलौजिकल जांच हो जाएतब तो दवा दिए जाने के सुबूत मिल सकते हैंवरना वे पता नहीं चल पाते. जाहिर है कि इतने समय में पीडि़त के सामान्य न होने से मामले का पता नहीं चल पाता और अपराधी के कांड पर परदा पड़ा रह जाता है.

पश्चिमी देशों में इस तरह की घटनाएं घटित होना आम बात है. अकेले ब्रिटेन में हर हफ्ते तकरीबन 30 से ज्यादा महिलाएं ऐसे हादसों की शिकार बनती हैं.

ये आंकड़े उन महिलाओं के हैंजो पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवा पाती हैं. जाहिर हैअनेक महिलाएं ऐसी भी होंगीजिन्हें अपराधियों द्वारा समयसमय पर उपयोग तो किया जाता हैकिंतु उन्हें उस का ज्ञान तक नहीं होता. यह भी मुमकिन है कि उन्हें पता तो चल गयापर उलट हालात को देखते हुए ब्लैकमेल होना नियति मान बैठी हों और पुलिस के पास जाना उन्हें फुजूल लग रहा हो.

जरूरी है कि लड़कियां ऐसे मामलों से बच कर रहेंखासकर वे जो पार्टियोंक्लबोंपबों या बार में जाती हैं और मर्द साथियों के साथ ड्रिंक्स लेने की आदी हैं. न जाने कौनकब उन के ड्रिंक्स में कुछ मिला दे और अपना शिकार बना ले. इसी तरह जो लड़कियां दोस्त या मंगेतर के साथ डेट’ पर जाती हैंवे भी आसानी से विश्वासघात की शिकार बन सकती हैं.

दिल्ली में द्वारका में एक लड़कीजो 12वीं क्लास की छात्रा थीमहीनों तक इसी तरह की डेट रेप ड्रग्स की शिकार रही. उसे बारबार पेटीएम से पैसे भेजने को कहा जाता रहा. आखिर में उसे मातापिता को विश्वास में ले कर पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज करानी पड़ी.

चाहे अपराधी पकड़ में आ जाएपर करीब के सब लोग लड़की के कारनामोें को जान जाते हैं और नाम बताए जाने के बाद वह बदनाम हो जाती है.        

प्रेमी की खातिर पति को मौत का संदेश: भाग 3

इस मुलाकात में दोनों के जवानी में तपते हुए तन एकदूसरे के नजदीक आए तो फिर एकदूसरे में समा कर ही अलग हुए. जवानी के पहले पायदान पर पे्रमी के संग सैक्स सुख के अनुभव ने नीलम को पागल कर कर दिया था.

इस के बाद वह खुल कर रोहित से मिलने लगी. छोटे से कस्बे में 2 प्रेमियों की यह नजदीकी जल्द ही लोगों में चर्चा का विषय बन गई.

बात रोहित के अलावा नीलम के घर पर भी पहुंच गई थी. लेकिन अब तक रोहित और नीलम एकदूसरे के साथ जिंदगी बिताने की कसमें खा चुके थे.

बात रोहित के घर वालों के अलावा नीलम के घर तक पहुंच गई थी. रोहित ने देखा कि पारिवारिक दबाव के बाद भी नीलम पीछे नहीं हट रही है तो रोहित भी जिद पर अड़ गया.

स्कूल के बाद रोहित राजपूत डीजे का काम करने लगा. जबकि नीलम के दिल में रोहित के प्यार की गूंज उस के डीजे की आवाज से कहीं ज्यादा ऊंची आवाज में गूंजती थी. वक्त के साथ नीलम के घर वालों ने झाबुआ निवासी लकी पांचाल के साथ उस का रिश्ता पक्का कर दिया.

नीलम नहीं चाहती थी कि वह रोहित के अलावा किसी और की दुलहन बने. इसलिए यह देख कर नीलम ने रोहित को संदेश पहुंचा दिया कि वह जल्द से जल्द घर आ कर उस के घर वालों से शादी की बात करे. लेकिन शायद रोहित हिम्मत नहीं जुटा सका.

इस के बाद इसी साल जनवरी महीने में नीलम की लकी के साथ शादी हो गई तो वह झाबुआ आ गई.

नीलम ने मजबूरी में लकी के साथ शादी तो कर ली, लेकिन वह अपने मन से अपने प्यार रोहित को नहीं भुला पा रही थी. इसलिए जैसे ही वह शादी के बाद पहली बार मायके गई, वह कटला पहुंच कर अपने पे्रमी रोहित से मिली.

वास्तव में नीलम मिली तो थी रोहित से उस की बुजदिली की शिकायत करने, लेकिन नीलम को देखते ही रोहित ने उसे अपनी बांहों में भर लिया तो नीलम सारी शिकायतें भूल कर प्रेमी के संग एक बार फिर प्यार के सागर में डूब गई.

पुराने प्यार की कहानी एक बार फिर नए जोश के साथ शुरू हो जाने के चलते नीलम जितने दिन भी मायके में रही, लगभग रोज किसी न किसी तरह रोहित से मिलती थी.

रोहित की मोहब्बत में डूबी नीलम वापस ससुराल नहीं जाना चाहती थी, इसलिए एकदो बार लकी ने उसे लिवाने के लिए कटला आने का प्लान बनाया तो नीलम ने बहाना बना कर उसे टाल दिया.

जांच में सामने आया कि लकी के साथ नीलम की शादी को केवल 5 महीने ही हुए थे. इस दरमियान नीलम 20 दिन भी अपनी ससुराल नहीं रही थी. इतना ही नहीं, वह जितने दिन भी ससुराल में रही, खुद को अपने कमरे में बंद कर दिन भर रोहित से फोन पर बातें किया करती थी.

इस बात की गवाही नीलम के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स ने दी. एक दिन में 9 घंटे बात होने की जानकारी काल डिटेल्स से पुलिस को मिली.

कुछ दिन पहले जब नीलम झाबुआ से वापस मायके गई तो उस ने उसी दिन रोहित से साफ कह दिया था कि लकी की बांहों में उसे कांटे चुभते हैं. इसलिए अब वह कभी झाबुआ नहीं जाएगी.

ऐसे में रोहित ने नीलम को लकी से तलाक लेने को कहा तो उस का कहना था कि वह इतना इंतजार नहीं कर सकती. इसलिए उस ने रोहित को ही लकी को हमेशा के लिए रास्ते से हटाने की चुनौती  दी ताकि दोनों साथ रह सकें.

इस के बाद मार्च महीने में ही दोनों ने लकी को खत्म करने की ठान ली थी. चूंकि इस काम में रिस्क बहुत था, इसलिए लकी की हत्या उस ने सुपारी किलर से कराने की योजना बनाई.

डीजे का काम करते हुए लकी ब्याज पर भी पैसे बांटता था. इसलिए काम का फायदा उठाने की योजना बना कर 3 कर्जदार बच्चू उर्फ बस्सू, मांगू उर्फ मग्गू, रंजीत और पप्पू से बात की.

दरअसल, रोहित ने इन सभी आरोपियों को लगभग 3 लाख रुपए उधार दिए हुए थे. इसलिए रोहित ने इन पर उधार दिया पैसा वापस मांग कर दबाव बनाया, जिस के बाद उन्हें लालच दिया कि अगर वे मिल कर लकी की हत्या कर दें तो वह न केवल उन का यह कर्ज माफ कर देगा, बल्कि उन्हें 60 हजार रुपए और भी देगा.

इस तरह कुल 3 लाख 60 हजार रुपए की सुपारी दे कर रोहित ने उक्त आरोपियों को लकी की हत्या के लिए राजी कर लिया और इस बात की खबर अपनी पे्रमिका नीलम को दी और उस के संग योजना बना कर मौके की तलाश करने लगे.

लेकिन धीरेधीरे 2 महीने बीत गए, रोहित लकी की हत्या के लिए मौका नहीं तलाश पाया. दूसरी तरफ लकी बारबार नीलम को फोन कर झाबुआ आने को कह रहा था. इस पर वह रोहित को जल्दी से जल्दी रास्ते से हटाने को बोलने लगी.

संयोग से 2 जून को रोहित की मां की मृत्यु हो गई तो रोहित ने अपनी मां की मृत्यु का उपयोग अपनी मोहब्बत को हासिल करने में किया. उस का कहना था कि मां की मौत के कारण पुलिस उस पर शक नहीं करेगी.

जब यह बात उस ने नीलम को बताई तो उस ने कहा कि ऐसा है तो ठीक है. तुम आदमी तैयार कर लो मैं लकी को जाल में फंसा कर मौत के पास ला कर खड़ा कर देती हूं.

इस के बाद नीलम ने लकी को फोन कर मीठीमीठी बातें कर उसे कटला बुला लिया. चूंकि इस से पहले नीलम ने कभी लकी को कटला आने को नहीं कहा था, इसलिए जब उस ने लकी को अपनी बातों मे फांस कर कटला आ कर अपने साथ लिवा जाने को कहा तो पत्नी की बात सुन कर लकी दूसरे दिन ही नीलम को लिवाने कटला के लिए निकल पड़ा.

जिस के बाद रास्ते में घात लगा कर बैठे सुपारी किलर लकी की हत्या कर पिपलौदा बड़ा के जंगल में लाश फेंक कर वापस गुजरात चले गए. लकी की हत्या की बात सुन कर नीलम बहुत खुश हुई, लेकिन पति की हत्या पर दुखी होने का नाटक कर तेरहवीं का इंतजार करने लगी.

दरअसल, उस की योजना लकी की तेरहवीं होने के बाद हमेशा के लिए मायके चली जाने की थी. लेकिन लकी ही हत्या के 7 दिन के बाद ही एसपी अरविंद तिवारी के निर्देशन में गठित टीम ने दोनों मुख्य आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया.

इन दोनों की गिरफ्तारी की खबर लगते ही सुपारी किलर भूमिगत हो गए थे. कथा लिखे जाने तक वे  गिरफ्तार नहीं हुए थे.

पुलिस ने लकी पांचाल की हत्या की आरोपी उस की पत्नी नीलम और उस के प्रेमी रोहित राजपूत को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्

सत्यकथा: जब पत्नी ने मांगा रानीहार

   —जगदीश प्रसाद शर्मा ‘देशप्रेमी’  

29 दिसंबर, 2021 की रात को देहरादून के थाना नेहरू कालोनी के थानाप्रभारी प्रदीप चौहान इलाके में गश्त लगा रहे थे. तभी उन्हें वायरलेस से पुलिस कंट्रोल रूम द्वारा डिफेंस कालोनी से सटे फ्रैंड्स एनक्लेव में एक महिला के आत्महत्या करने की सूचना मिली.

सूचना मिलते ही थानाप्रभारी थाने से सिपाही देवेंद्र और विजय को साथ ले कर फ्रैंड्स कालोनी जाने के लिए निकल पड़े.

इस की जानकारी चौहान ने सीओ अनिल जोशी और एसपी (सिटी) सरिता डोवाल व एसएसपी जन्मेजय खंडूरी को भी दे दी थी. साथ ही चौहान ने डिफेंस कालोनी पुलिस चौकीप्रभारी चिंतामणि मैठाणी को भी घटनास्थल पर जल्दी पहुंचने को कह दिया.

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मात्र 10 मिनट में ही थानाप्रभारी घटनास्थल पर पहुंच गए. वहां जमा भीड़ को हटा कर पुलिस सूचना में बताए गए मकान के भीतर पहुंची तो वहां करीब 32 वर्षीया एक महिला बिछावन पर मृत पड़ी थी. उस का गला धारदार हथियार से रेता हुआ था.

उस शव के पास ही एक चाकू और कपड़े इस्तरी करने की आइरन का तार पड़ा हुआ था. शव के पास ही करीब एक साल का बच्चा लेटा था. जबकि उसी कमरे के कोने में एक 7 वर्षीय लड़की डरीसहमी सी खड़ी थी.

मौके की जांचपड़ताल के बाद थानाप्रभारी ने पाया कि शायद महिला की गला काट कर हत्या की गई है.वहां मौजूद आसपास के लोगों से पूछताछ करने पर मृतका का नाम श्वेता श्रीवास्तव मालूम हुआ. उस का पति सौरभ श्रीवास्तव घर पर नहीं मिला. पड़ोसियों ने बताया कि वे इस मकान में काफी समय से रह रहे थे. घटना के बाद सौरभ श्रीवास्तव अपनी स्कूटी ले कर कहीं चला गया था.

शव और घटना की जानकारी जुटाए जाने के दरम्यान सीओ अनिल जोशी और एसपी (सिटी) सरिता डोवाल भी वहां पहुंच गईं. पुलिस ने श्वेता की मौत की सूचना उन की बेटी के मोबाइल से उस के मायके वालों को दे दी.

फिर मौके की काररवाई पूरी कर शव पोस्टमार्टम के लिए दून अस्पताल भेज दिया. बच्चों को पड़ोसियों ने संभाल लिया. श्वेता की मौत की खबर पा कर उस के पिता अजय कुमार श्रीवास्तव भागेभागे कुशीनगर से देहरादून आ गए.

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अगले दिन ही अजय कुमार ने थाने पहुंच कर थानाप्रभारी से अपनी बेटी श्वेता के संबंध में जानकारी ली. पुलिस से मिली जानकारी के अनुसार श्वेता की गला काट कर हत्या हुई थी. थानाप्रभारी ने जब उन से किसी पर शक करने के बारे में पूछा तो अजय ने साफ कह दिया कि उन की बेटी का हत्यारा कोई और नहीं बल्कि उन का दामाद सौरभ श्रीवास्तव ही है.

उस के बाद अजय श्रीवास्तव ने अपने दामाद सौरभ श्रीवास्तव के खिलाफ अपनी बेटी श्वेता की हत्या करने की तहरीर थानाप्रभारी को दे दी. अजय कुमार की तहरीर पर सौरभ श्रीवास्तव के खिलाफ श्वेता श्रीवास्तव की हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया.

इस हत्याकांड की जांच डिफेंस कालोनी चौकीप्रभारी चिंतामणि मैठाणी को सौंपी गई थी. हत्या का आरोपी सौरभ फरार हो गया था. उस की तलाश के लिए मुखबिर लगा दिए गए थे.

अजय श्रीवास्तव ने स्थानीय लोगों की मदद से श्वेता के शव का अंतिम संस्कार देहरादून के ही श्मशान घाट में कर दिया था.

उस के 3 दिन बाद नेहरू कालोनी पुलिस को श्वेता की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई थी. रिपोर्ट में श्वेता की मौत का कारण गला काटना बताया गया था. उस के बाद तो पुलिस के सामने सौरभ को गिरफ्तार करना बड़ी चुनौती बन गई थी.

उस की खोजबीन और पकड़ के लिए एसएसपी जन्मेजय खंडूरी ने एसओजी टीम को भी लगा दिया. नए सिरे से पुलिस की 2 टीमों का गठन किया गया था.

बात 31 जनवरी, 2022 की है. शाम का अंधेरा घिर चुका था. एसओजी टीम को मुखबिर के द्वारा एक महत्त्वपूर्ण सूचना मिली. उस सूचना के आधार पर एसओजी टीम थानाप्रभारी प्रदीप चौहान के साथ डिफेंस कालोनी की एक सुनसान जगह पर पहुंच गई.

वहां पर सड़क के किनारे एक बड़े पत्थर पर एक युवक खोयाखोया सा बैठा था. मुखबिर के इशारे पर पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया. हिरासत में लेते ही वह युवक बोला, ‘‘अरे, मुझे क्यों पकड़ रहे हो? मैं ने क्या किया है?’’

‘‘तुम से कुछ पूछताछ करनी है, इसलिए चुपचाप थाने चलो,’’ थानाप्रभारी ने कहा.

‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’ थाने पहुंचने पर थानाप्रभारी ने उस से पूछा. वह युवक चुप रहा.

‘‘जल्दी बताओ,’ उस के कुछ नहीं बोलने पर थानाप्रभारी ने डपट दिया.

‘‘जी…जी, सौरभ श्रीवास्तव.’’

‘‘पिता का नाम?’’

‘‘शंभूलाल श्रीवास्तव.’’

‘‘पूरा पता बताओ,’’ चौहान बोले.

‘‘कुशीनगर जिले का रहने वाला हूं. देहरादून में फ्रैंड्स एनक्लेव में रहता हूं.’’

‘‘इसे तुम पहचानते हो?’’ यह कहते हुए चौहान ने अपने मोबाइल की एक तसवीर उस के सामने कर दी. तसवीर देख कर सौरभ चुप लगा गया.

‘‘जवाब दो, हां या नहीं?’’

‘‘जी, पहचानता हूं. यह मेरी पत्नी श्वेता है.’’

‘‘वह अभी कहां है?’’

‘‘मुझे नहीं मालूम?’’ सौरभ बोला.

‘‘नहीं मालूम मतलब? कई दिनों से तुम कहां थे?’’

‘‘कंपनी के काम के सिलसिले में दिल्ली गया हुआ था,’’ सौरभ ने बताया. उन दिनों में पत्नी और परिवार की तुम ने कोई खोजखबर क्यों नहीं ली?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘जी, मेरा मोबाइल दिल्ली जाते समय खो गया था.’’

‘‘इसे देखो,’’ चौहान ने दूसरी तसवीर उस के सामने कर दी. तसवीर देख कर उस के मुंह से आवाज ही नहीं निकल पा रही थी. सर्दी में भी उस के चेहरे पर पसीना आ गया था. उस ने सिर झुका लिया और फफकफफक कर रोने लगा.

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दरअसल, वह तसवीर भी उस की पत्नी श्वेता की ही थी, लेकिन तसवीर में वह मृत थी. सौरभ को रोता देख कर एक पुलिसकर्मी ने पानी का गिलास ला कर उस के सामने रख दिया. सौरभ एक सांस में पूरा पानी गटागट पी लिया.

सौरभ थाने में अपनी पत्नी की लाश के फोटो देख कर हिल गया था. उस से श्वेता की हत्या की बाबत विस्तार से पूछताछ होने लगी. वह एक माह तक खुद को बचातेबचाते शरीर और दिमाग से काफी थक गया था. टूट चुके सौरभ ने पुलिस को पत्नी की हत्या के बारे में जो कुछ बताया, वह इस प्रकार था—

उत्तर प्रदेश में जिला कुशीनगर के पिटेरवा कस्बे के रहने वाले अजय कुमार श्रीवास्तव ने अपनी बेटी श्वेता श्रीवास्तव की शादी साल 2014 में हरिद्वार निवासी सौरभ श्रीवास्तव के साथ की थी.

श्वेता 6 माह ससुराल में रहने के बाद अपने पति के साथ देहरादून आ गई थी. ग्रैजुएट सौरभ को सरकारी नौकरी भले ही नहीं मिली थी, लेकिन वह सीएसडी कंपनी में मार्केटिंग के काम से संतुष्ट था.

उस की इतनी कमाई हो जाती थी कि वह पत्नी के शौक पूरे कर सके. उस की पसंद के कपड़े दिलवा सके. साथसाथ घूमनेफिरने जा जा सके, रेस्टोरेंट में डिनर कर सके, या फिर कीमती सामानों में एंड्रायड फोन या ज्वैलरी आदि की खरीदारी करने में नानुकुर नहीं करे. सौरभ की कोशिश रहती थी कि वह पत्नी की ख्वाहिश हरसंभव पूरी करता रहे.

दोनों की जिंदगी हंसीखुशी से गुजरने लगी थी. समय का पहिया भी अपनी गति से घूम रहा था. खुशहाल जीवन बिताते हुए श्वेता 2 बच्चों की मां बन गई थी. पहली संतान बेटी और उस के बाद बेटे के जन्म के बाद सौरभ ने पत्नी से परिवार पूरा होने की बात कही थी. पत्नी ने भी संतोष जताया था.

इसी के साथ सौरभ अपने छोटे से परिवार को हमेशा खुश रखने की कोशिश में रहने लगा था. अपने बढ़े हुए खर्च को पूरा करने के लिए सौरभ और मेहनत करने लगा था, ताकि पत्नी की कोई फरमाइश अधूरी न रह जाए.

यह कहा जा सकता है कि सौरभ और श्वेता के दांपत्य जीवन की गाड़ी पटरी पर सरपट दौड़ रही थी. इस में खलल तब पड़ गई, जब 2 साल पहले कोरोना वायरस का प्रकोप बढ़ा और लौकडाउन से अचानक कई विकट परिस्थितियां पैदा हो गईं.

सौरभ का कामधंधा भी प्रभावित हो गया. आमदनी धीरेधीरे कम होने लगी. इस के विपरीत श्वेता ने घरेलू खर्च, अपनी फरमाइशों और शौक में कोई कमी नहीं आने दी.

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शुरुआत में तो कुछ महीने तक सौरभ जमापूंजी काम में लाता रहा, किंतु जैसेजैसे लौकडाउन की तारीखें बढ़ती चली गईं, वैसेवैसे उस की हालत बिगड़ने लगी. नौबत कर्ज ले कर घर खर्च पूरे करने की आ गई.

कुछ महीने बाद लौकडाउन में ढील मिली, लेकिन उस का काम पहले की तरह रफ्तार नहीं पकड़ पाया. इस के विपरीत श्वेता के फरमाइशों की लिस्ट बढ़ती रही. एक दिन सौरभ के काम से घर लौटते ही उस ने टोका, ‘‘तुम्हें कुछ याद है?’’

‘‘क्या याद नहीं है? मैं कुछ समझा नहीं.’’ सौरभ बोला.

‘‘मैं जानती हूं, तुम जानबूझ कर अनजान बन रहे हो,’’ श्वेता ने मुंह बना कर कहा, ‘‘तुम्हें सच में कुछ नहीं पता या कोई और बात है?’’

‘‘अरे, साफसाफ बोलो न, बात क्या है?’’ सौरभ ने पूछा.

इसी बीच उस की बेटी आ कर बोल पड़ी, ‘‘पापापापा, आज मम्मी का बर्थडे है. आप ने सुबह हैप्पी बर्थडे भी नहीं बोला.’’

‘‘अच्छा तो यह बात है. लो, अभी बोल देता हूं,’’ यह कहते हुए सौरभ ने ‘हैप्पी बर्थडे श्वेता डार्लिंग,’ बोल दिया.

‘‘केवल विश करने से नहीं होगा. बर्थडे गिफ्ट लाओ,’’ श्वेता बोली.

‘‘तुम कैसी बात करती हो, तुम्हें मालूम है, इन दिनों मेरा काम पहले की तरह नहीं चल रहा है,’’ सौरभ उदास लहजे में बोला.

‘‘तो मैं क्या करूं?’’ श्वेता ने कहा.

‘‘देखो, मुझे समझने की कोशिश करो. ऐसा तो पहली बार हुआ है, जब मैं तुम्हें बर्थडे गिफ्ट नहीं दे पा रहा हूं. पिछली बार तुम्हारी पसंद का मोबाइल फोन दिया था,’’ सौरभ बोला.

‘‘उस फोन पर तो बेटी का कब्जा हो गया है. उसी से पढ़ाई करती है.’’

‘‘अच्छा चलो, बर्थडे गिफ्ट उधार रहा मुझ पर.’’ सौरभ ने समझाया.

‘‘चलो मैं मान गई, लेकिन कम से कम आज कहीं डिनर पर तो ले चलो,’’ श्वेता बोली.

‘‘फिर वही बात श्वेता, अभी मैं एकएक पैसा जोड़ रहा हूं और तुम खर्च बढ़ाने की बात कर रही हो,’’ सौरभ तुनकते हुए बोला.

‘‘कितना खर्च बढ़ जाएगा? देखो, आज मैं ने घर में कुछ पकाया भी नहीं है. महीनों से घर में पड़ेपड़े बोर होने लगी हूं,’’ श्वेता ने कहा.

‘‘बाहर जाने में कई दिक्कतें हैं. वैसे भी रेस्टोरेंट में बैठ कर खाने पर रोक है.’’

‘‘तब कुछ औनलाइन ही मंगवा लो.’’ श्वेता के बोलते ही दूसरे कमरे से बेटी बोल पड़ी, ‘‘पापापापा, पिज्जा मंगवाना. मैं चीज वाला और्डर सेलेक्ट करूंगी. उस में कोल्डड्रिंक्स फ्री मिलेगा. …और मम्मी, चौकलेट वाला केक भी मंगवाना.’’

सौरभ और श्वेता के बीच बहस जैसी बातचीत औनलाइन और्डर पर आ कर थम गई. उस रोज सौरभ को 1150 रुपए का एक्सट्रा खर्च आ गया. श्वेता का बर्थडे घर पर ही  मना लिया गया, किंतु सौरभ इस चिंता में पड़ गया कि वह स्कूटी की किस्त कैसे दे पाएगा.

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उस के बाद सौरभ ने खुद को कंपनी के काम में झोंक दिया. काफी मुश्किलों के बाद जरूरी खर्च पूरे करने लगा, लेकिन कर्ज चुका पाने में असमर्थ बना रहा. कभी घर की परेशानी तो कभी काम में आने वाली रुकावटों से जूझता रहा. परिवार की देखभाल की जिम्मेदारी का निर्वाह करतेकरते वह थक सा गया था.

हालांकि वह जितना परेशान अपने काम को ले कर नहीं रहता था, उस से कहीं अधिक श्वेता की बातों को ले कर तनाव में रहता था.

श्वेता की फरमाइशें तो जैसे खत्म होने का नाम ही नहीं लेती थीं. कई बार तो अपनी मांगों के लिए बच्चों की तरह जिद पकड़ लेती थी. इस बीच कोरोना का दूसरा फेज भी आया. उस झटके ने उसे और भी झकझोर कर रख दिया. पत्नी की फिजूलखर्ची से वह तंग आ गया था. इस की वजह से वह मकान मालिक को 3 महीने का किराया नहीं दे पाया था, जिस से वह काफी तनाव में रहने लगा था. इस के बाद भी श्वेता ने अपने खर्च कम नहीं किए थे. वह उस से रोज अपने खर्च के लिए पैसे मांगती रहती थी.

इसी दौरान सौरभ की छोटी बहन की शादी 10 फरवरी, 2022 को होनी तय हो गई थी. जब सौरभ ने श्वेता को शादी में चलने के लिए कहा तो वह इस बात पर अड़ गई थी कि वह शादी में तभी जाएगी, जब वह उसे रानीहार खरीद कर देगा.इस पर सौरभ ने उसे काफी समझाया कि शादी में पहले के जो जेवर हैं उन्हीं को पहन ले, लेकिन उस की जिद थी कि नया रानीहार ही चाहिए.

सौरभ की समस्या यह थी कि उसे शादी के लिए और भी दूसरे खर्च करने थे. सभी को नए कपड़े दिलवाने थे. बेटी को अच्छा फ्रौक और सैंडल खरीदने थे. जबकि पत्नी रानीहार की जिद पर अड़ी रही.

29 दिसंबर, 2021 की रात को श्वेता उस से रानीहार दिलाने के लिए बुरी तरह से झगड़ पड़ी. तब तक सौरभ का दिमाग काम करने की स्थिति में नहीं बचा था. पत्नी के व्यवहार से उसे काफी गुस्सा आ गया. बेटी दूसरे कमरे में सो रही थी. तूतूमैंमैं काफी बढ़ गई.

बात बढ़ने पर सौरभ ने पत्नी को गुस्से में उठा कर उसे बिछावन पर पटक दिया. उस के बाद पहले बच्चे की बैल्ट, फिर आइरन के तार से ही उस का गला कस दिया. दम घुटने से श्वेता तड़प उठी. तब सौरभ तुरंत किचन से चाकू लाया और पत्नी का गला रेत डाला. उस की मौत के बाद वह बच्चों को उसी हालत में छोड़ कर स्कूटी से चला गया था.

श्वेता की हत्या के बाद वह देहरादून के ही अलगअलग स्थानों पर छिपता रहा. उस ने पुलिस पर नजर बनाए रखी. जब विधानसभा की ओर से डिफेंस कालोनी की ओर आ रहा था, तब काफी थके होने के कारण सुस्ताने के लिए सड़क किनारे एक बड़े पत्थर पर ओट ले कर बैठ गया था. तभी पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर उसे गिरफ्तार कर लिया.

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पुलिस ने सौरभ श्रीवास्तव के बयान दर्ज कर के अगले दिन उस का मैडिकल करवाया. उसी दिन उसे अदालत में पेश कर दिया, जहां से वह जेल भेज दिया गया. सौरभ द्वारा श्वेता की हत्या में प्रयुक्त चाकू व आइरन की तार, बेल्ट आदि पहले से ही बरामद हो चुकी थी. कथा लिखे जाने तक सौरभ श्रीवास्तव देहरादून जेल में बंद था. दोनों बच्चों को अजय श्रीवास्तव अपने साथ कुशीनगर ले गए थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सत्यकथा: इश्क में दिल हुआ बागी

     —मुकेश तिवारी/पंकज द्विवेदी 

गुरुवार 10 फरवरी, 2022 का दिन ढल चुका था. शाम के यही कोई 6 बजे का वक्त था. मध्य प्रदेश के जिला भिंड के सिटी कोतवाली स्थित थाने के ड्यूटी अफसर थाने पहुंचे ही थे कि एक युवक बदहवास हालत में थाना परिसर में दाखिल हुआ. उस के बाल बिखरे हुए थे. कपड़ों पर भी खून के ताजा दाग लगे हुए थे.

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पहरा ड्यूटी पर मुस्तैदी के साथ तैनात संतरी ने उसे रोकने की भरसक कोशिश की, लेकिन वह सीधे ड्यूटी अफसर के सामने जा खड़ा हुआ और फिर हाथ जोड़ कर नमस्कार कर अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘सर, मेरा नाम रितेश शाक्य है. मैं भिंड जिला अस्पताल में वार्डबौय के पद पर नौकरी करता हूं और गांधीनगर में अपनी पत्नी और 2 बच्चों के साथ रहता हूं.

कुछ देर पहले मैं ने स्टाफ नर्स के पद पर काम करने वाली अपनी प्रेमिका नेहा की गोली मार कर हत्या कर दी है. उस की लाश नवीन आईसीयू वार्ड के स्टोर रूम में पड़ी हुई है. सर, क्योंकि मैं ने अपनी प्रेमिका की हत्या कर के बड़ा अपराध किया है, अत: मुझे गिरफ्तार कर लीजिए.

युवक की बातें सुन कर ड्यूटी पर तैनात सुरजीत तोमर सन्न रह गए. वह आंखें फाड़े उस युवक को देखने लगे कि कहीं यह नशेड़ी या सनकी तो नहीं है जो इस तरह की बात कर रहा है.

हालांकि थाने में आ कर कोई इस तरह का मजाक करने का साहस तो नहीं कर सकता, इसलिए जब उन्होंने उस युवक को गौर से देखा तो मासूम सा दिखने वाला वह युवक काफी संजीदा लगा. इस का मतलब साफ था कि वह जो कुछ कह रहा है, सच है.

तोमर ने इस बात की जानकारी कार्यवाहक थानाप्रभारी सुरजीत यादव को दी तो उन्होंने तुरंत उस युवक को हिरासत में लेने के निर्देश दिए. तोमर ने तुरंत युवक को हिरासत में ले लिया. थानाप्रभारी उस समय क्षेत्र में थे. सूचना पा कर वह तुरंत थाने पहुंच गए.

सुरजीत यादव ने आरोपी रितेश से पूछताछ करने के बाद अस्पताल परिसर में स्थित पुलिस चौकी पर तैनात कांस्टेबल नागेंद्र राजावत से बात की तो उन्होंने भी घटना की पुष्टि कर दी.

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साथ ही यह भी बताया कि घटना के विरोध में अस्पताल की नर्सें और अन्य कर्मचारी अस्पताल में धरने पर बैठ गए हैं. धरने को ले कर लोगों में काफी आक्रोश है.

थानाप्रभारी ने यह जानकारी एसपी शैलेंद्र सिंह को दी. इस के बाद एसपी के आदेश पर जिले के कई थानों की पुलिस जिला अस्पताल पहुंच गई. पुलिस ने सब से पहले अस्पताल के स्टोर रूम में पहुंच कर स्टाफ नर्स नेहा की लाश अपने कब्जे में ली. वह वहां खून से लथपथ पड़ी थी.

उस की कनपटी के बाईं ओर गोली मारी गई थी. वह सलवारसूट के ऊपर सफेद रंग का एप्रिन पहने हुए थी, जो खून से भीगा हुआ था.

घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण करने के बाद वहां मौजूद नर्सों से पूछताछ करने पर यह मालूम हुआ कि मृतका आज ड्यूटी खत्म होने के बाद छुट्टी की एप्लीकेशन दे कर एक सप्ताह के लिए अपने मातापिता के पास अपना जन्मदिन मनाने के लिए मंडला जाने वाली थी. इस से पहले कि नेहा अवकाश पर मंडला के लिए रवाना हो पाती, यह घटना घट गई.

नेहा का जन्मदिन 14 फरवरी, 2022 को उस के गृहनगर मंडला में धूमधाम से मनाया जाने वाला था. स्टाफ नर्स की हत्या के बाद दिए जा रहे धरने से स्वास्थ्य सेवा लड़खड़ा जाने और वहां से तनावपूर्ण हालात के बारे में सूचना पा कर एसपी शैलेंद्र सिंह चौहान एसपी (सिटी) आनंद राय, एसडीएम उदय सिंह सिकरवार फोरैंसिक टीम के साथ घटनास्थल पर आ गए थे.

फोरैंसिक टीम ने घटनास्थल से सबूत जुटाए. फोरैंसिक टीम का काम खत्म होते ही एसपी ने सीएमओ डा. अजीत मिश्रा, सिविल सर्जन डा. अनिल गोयल सहित जिला स्वास्थ्य अधिकारी डा. देवेश शर्मा की मौजूदगी में घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण तो किया ही, साथ ही जिला अस्पताल में कार्यरत स्टाफ से पूछताछ कर नेहा के अतीत के बारे में जानकारी एकत्र की.

इस से पता चला कि जिला अस्पताल में वार्डबौय के पद पर कार्यरत रितेश नेहा से प्रेम करता था और उस से मिलने उस के धर्मपुरी स्थित कमरे पर भी आताजाता रहता था. लेकिन आज उन दोनों के बीच ऐसा क्या हुआ, किसी को पता नहीं था.

इस के बाद पुलिस ने नेहा के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और उस के परिजनों को भी इस घटनाक्रम से अवगत कराते हुए शीघ्र भिंड आने के लिए कहा.

वहीं इस हत्याकांड की विवेचना का दायित्व सीएसपी आनंद राय को सौंप दिया. इस से पहले जिला अस्पताल पुलिस चौकी में तैनात कांस्टेबल नागेंद्र राजावत की तहरीर पर भादंवि की धारा 302 तथा आर्म्स एक्ट 25, 27, 54, 59 के अंतर्गत मामला दर्ज कर लिया.

जिला अस्पताल की नर्स नेहा चंदेला की हत्या के विरोध में नर्सों का दूसरे दिन भी धरना जारी रहा. इस से जिला अस्पताल के अंदर वार्डों में स्वास्थ्य सेवाएं बुरी तरह लड़खड़ा गई थी. तमाम लोग अपने मरीज की वक्त पर देखभाल न होने की वजह से मरीज को बिना छुट्टी के ही बेहतर उपचार के लिए वहां से ग्वालियर ले कर रवाना हो गए.

हड़ताली नर्सों को समझाने के लिए एसडीएम उदय सिंह सिकरवार, सीएमओ डा. अजीत मिश्रा, सिविल सर्जन डा. अनिल गोयल ने काफी जतन किया, लेकिन जब वे इस में सफल नहीं हुए तो उन्हें थकहार कर नर्सेज एसोसिएशन की प्रांतीय अध्यक्ष रेखा पवार को ग्वालियर वाहन भेज कर बुलाना पड़ा, जिस के बाद उन की समझाइश पर आक्रोशित नर्सें शाम 4 बजे काम पर लौटने के लिए राजी हुईं.

हालांकि इस से पहले जिला अस्पताल के द्वार पर ताला जड़े रहने से उपचार के अभाव में नयापुरा निवासी फिरोज खान की बेगम नाजिया की मृत्यु हो गई थी.

रोज की तरह 10 फरवरी, 2022 को भी नेहा चंदेला अपनी ड्यूटी पर पहुंच कर अपने कामकाज में जुट गई थी. शाम के कोई 5 बजे के करीब उस के मोबाइल फोन की घंटी बजी तो उसे हैरानी हुई कि ड्यूटी समाप्त होने को है इस वक्त कौन फोन कर रहा है.

लेकिन जब मोबाइल फोन की स्क्रीन पर चिरपरिचित नंबर देखा तो वह चौंकी भी और परेशान भी हुई कि रितेश कैसा बेशरम शख्स है जो उस के मना करने के बावजूद भी हाथ धो कर पीछे पड़ गया है.

फोन रिसीव न करना शिष्टाचारवश उसे उचित नहीं लगा, क्योंकि वह इस बात को भलीभांति जानती थी कि रितेश तब तक काल करता रहेगा, जब तक कि वह उस की काल रिसीव नहीं कर लेगी.

लिहाजा नेहा ने मन मार कर रितेश का फोन रिसीव कर लिया तो रितेश ने उस से अनुरोध किया, ‘‘आज शाम छुट्टी खत्म करने के बाद मंडला जाने से पहले प्लीज एक मर्तबा तुम मुझ से अकेले में मुलाकात कर लो. इस के बाद मुझे कभी भी तुम से बात करने का मौका नहीं मिलेगा.’’

नेहा असमंजस में पड़ गई कि क्या करे क्या न करे. रितेश शाक्य नेहा का बौयफ्रैंड था. वह भी उसी अस्पताल में वार्डबौय था.

6 दिसंबर को नेहा की सगाई गौरव पटेल के साथ तय हो जाने के बाद उस ने रितेश से न सिर्फ बातचीत करनी बंद कर दी थी, बल्कि मेलमुलाकात करनी भी लगभग बंद कर दी थी. नेहा ने रितेश से साफतौर पर कह दिया था कि मेरी सगाई हो जाने के बाद मैं अब तुम से किसी भी तरह का रिश्ता नहीं रखना चाहती.

नेहा का रिश्ता तय होने से खार खाए बैठे रितेश ने नेहा से मोबाइल पर गिड़गिड़ाते हुए कहा था कि आज मिलने के बाद आइंदा वह न तो कभी फोन करेगा और न कभी मिलने की कोशिश करेगा, यह उस का वायदा है.

जिस दिन से नेहा ने रितेश से बात करनी और अकेले में मेलमुलाकात का सिलसिला बंद किया था, उसी दिन से रितेश काफी तनाव में रहने लगा था. रितेश के अनुरोध पर नेहा ने ड्यूटी खत्म होने के बाद स्टोररूम में सिर्फ अंतिम बार बात करने के लिए इस शर्त के साथ अनुमति दे दी थी कि वह अपनी बात मनवाने के लिए किसी तरह की हठ नहीं करेगा.

ड्यूटी समाप्त होने से कुछ समय पहले शाम 5 बज कर 10 मिनट पर रितेश कमर में देशी पिस्टल लगा कर स्टोररूम में दाखिल हुआ. रितेश को देख कर नेहा ने रूखी आवाज में कहा, ‘‘जो भी बात करनी है जल्दी करो, मुझे छुट्टी का एप्लीकेशन दे कर मंडला के लिए निकलना भी है.’’

वार्डबौय रितेश को इतनी तो समझ थी ही कि जिस नम्रता के साथ अपनी प्रेमिका से अंतिम बार मिलने के बहाने स्टोररूम में दाखिल हुआ है, उसी का आश्रय ले कर वह अपनी बात मनवाने के लिए नेहा पर दबाव बनाने का प्रयास करेगा.

बातचीत की शुरुआत में ऐसा हुआ भी. उस ने नेहा से एक बार फिर गुजारिश की कि वह उस का ज्यादा वक्त नहीं लेगा, सिर्फ 10 मिनट ही इत्मीनान के साथ बातचीत करेगा.

नेहा चूंकि जिला अस्पताल में ड्यूटी पर थी, इसलिए उसे किसी तरह का खतरा रितेश से महसूस नहीं हुआ. नेहा का सोचना था कि रितेश अंतिम बार उस से इत्मीनान के साथ बातचीत कर अपनी भड़ास निकाल लेगा तो उस की शादी करने वाली हठ खत्म हो जाएगी.

इस के बाद हमेशा के लिए उस का रितेश से पीछा छूट जाएगा. यही सब सोच कर उस ने रितेश को बातचीत करने के लिए अपनी सहमति दी थी.

उस वक्त उसे इस बात का कतई अंदेशा नहीं था कि आज रितेश के सिर पर हैवानियत सवार है. और वह उसे चिरनिद्रा में सुलाने की मंशा से आ रहा है. बातचीत का दौर शुरू करने से पहले जैसे ही रितेश ने कमर में लगा देसी पिस्टल निकाल कर मेज पर रखा तो नेहा को यह समझते जरा भी देर नहीं लगी कि उस ने रितेश को बातचीत के लिए बुला कर बहुत बड़ी मुसीबत मोल ले ली है.

नेहा के साथ बातचीत का दौर शुरू होते ही रितेश ने नेहा से दोटूक शब्दों में कहा, ‘‘तुम सिर्फ मेरी हो, मेरी ही रहोगी. मैं हरगिज किसी भी सूरत में तुम्हारी शादी गौरव पटेल के साथ नहीं होने दूंगा. बोलो, मेरे से शादी करोगी या नहीं?’’

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नेहा ने रितेश से कहा, ‘‘तुम पहले से ही शादीशुदा ही नहीं 2 बच्चों के बाप भी हो. इसलिए मैं तुम से शादी नहीं कर सकती. मेरे मांबाप ने जिस लड़के से मेरा रिश्ता तय किया है, मैं उसी के साथ शादी करूंगी.’’

इतना सुनते ही रितेश बुरी तरह बौखला गया. उस ने तत्काल मेज पर रखी देसी पिस्टल उठा कर उस की नाल का रुख नेहा की बाएं कनपटी की ओर कर के ट्रिगर दबा दिया. गोली लगते ही नेहा कुरसी पर बैठे ही बैठे चिरनिद्रा में डूब गई.

गोली चलने की आवाज सुनते ही अस्पताल का स्टाफ स्टोर रूम की ओर गया तो नेहा को कुरसी पर लहूलुहान देख कर सभी के जैसे होश उड़ गए. वार्डबौय रितेश के हाथ में तमंचा देख कर उन्हें वाकया समझने में देर नहीं लगी.

रितेश सभी को धमकाते हुए अस्पताल से निकल कर सिटी कोतवाली थाने में चला गया और आत्मसमर्पण कर दिया. कार्यवाहक थानाप्रभारी सुरजीत यादव ने मृतका के मातापिता का पता ले कर उस के घर वालों को मंडला फोन कर के घटना की सूचना दे दी. सूचना पा कर नेहा का बड़ा भाई करीबी रिश्तेदारों को ले कर दूसरे दिन भिंड पहुंच गया.

पुलिस ने रितेश के पिता को भी थाने बुला कर पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि रितेश का नेहा नाम की नर्स से प्रेम प्रसंग चल रहा था, जिस की वजह से रितेश की अपनी पत्नी से भी अनबन चल रही थी. वह नेहा से शादी करना चाह रहा था, लेकिन उन्हें इस बात की कतई जानकारी नहीं थी कि वह उक्त नर्स की हत्या कर देगा.

पूछताछ के बाद रितेश के पिता को घर जाने की अनुमति दे दी गई. पोस्टमार्टम के बाद नेहा का शव उस के घर वाले अंतिम संस्कार के लिए मंडला ले आए. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार नेहा की मौत गोली लगने से हुई थी.

जांच में पुलिस को पता चला कि नेहा और रितेश के इश्क की नींव वर्ष 2018 में उस वक्त रखी गई, जब वह मंडला से भिंड जिला अस्पताल में बतौर स्टाफ नर्स की नौकरी करने आई थी.

उन दोनों की पहली मुलाकात अस्पताल परिसर में बनी चाय की गुमटी पर हुई थी. उस समय नेहा चाय पीने वहां आई थी, संयोग से तभी रितेश भी वहां पर चाय पीने आया हुआ था. चूंकि रितेश भी जिला अस्पताल में वार्डबौय के पद पर कार्यरत था.

दरअसल, वह नेहा से काफी सीनियर था इसलिए नौकरी के साथ शुरुआती दौर में नर्स के कार्य के गुर सिखाने में उस ने नेहा की काफी मदद की थी.नेहा उस के इस उपकार से काफी प्रभावित हुई थी. दोनों की जान पहचान होने के बाद उन के बीच मोबाइल पर बातचीत होनी शुरू हो गई. हालांकि रितेश की नौकरी 2009 में संविदा वार्डबौय के तौर पर भिंड के जिला अस्पताल में लगी थी.

लेकिन उसे इस बात की उम्मीद थी कि निकट भविष्य में वह स्थाई हो जाएगा. नेहा से मोबाइल पर होने वाली लंबी बातचीत से उस की दोस्ती गहरी होती गई और मित्रता कब इश्क में बदल गई पता नहीं चला.

कहते हैं कि इश्क अंधा होता है वह जातपात के भेद को नहीं मानता. नेहा और रितेश अलगअलग जाति के थे, इस के बावजूद भी रितेश ने तय कर रखा था कि वे ताउम्र साथ रहेंगे और दुनिया की कोई भी ताकत उन्हें जुदा नहीं कर सकेगी.

नेहा से रोज मुलाकात कर के वह अपने भावी जीवन के सुनहरे सपने देखने लगा था. कहते हैं कि इश्क को कितना भी छिपाने का जतन किया जाए, वह छिपता नहीं है.

नेहा के साथ काम करने वाले स्टाफ से ले कर रितेश के घर वालों को पता चल गया था कि ड्यूटी खत्म होने के बाद रितेश नेहा को बाइक पर ले कर खुल्लमखुल्ला घूमताफिरता है.

रितेश नेहा के प्यार में इतना दीवाना हो गया था कि वह अपनी पत्नी प्रीति की भी उपेक्षा करने लगा था. इस बारे में प्रीति ने रितेश से बात की तो उस ने झिड़कते हुए साफतौर पर कह दिया था कि वह नेहा से सिर्फ प्यार ही नहीं करता है, बल्कि उसे अपने दिल की रानी बना चुका है. निकट भविष्य में वह उसे अपनी जीवनसंगिनी बनाने वाला है.

पति का यह फैसला सुनने के बाद प्रीति भी परेशान रहने लगी कि आखिर वह पति को कैसे समझाए. इस बात को ले कर उन दोनों का आपस में झगड़ा भी रहता था.

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रितेश से विस्तार से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त तमंचा भी बरामद कर लिया. इस के बाद उसे भिंड जिला अदालत में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.

रितेश ने नासमझी और मूर्खतापूर्ण कदम उठा कर न सिर्फ नेहा को असमय मौत की नींद सुला दिया, बल्कि अपने सुनहरे भविष्य पर भी कालिख पोत ली. रितेश के जेल जाने के बाद उस के दोनों मासूम बच्चों सहित पत्नी के भविष्य पर भी ग्रहण लग गया है.

सत्यकथा: मोह में मिली मौत

   —वीरेंद्र बहादुर सिंह 

19जनवरी, 2022 को अमेरिका से लगी कनाडा सीमा के पास मिनेसोटा राज्य के एमर्शन शहर के नजदीक कनाडा की ओर मेनिटोबा रौयल कैनेडियन माउंटेन पुलिस (आरसीएमपी) ने अमेरिका में चोरीछिपे यानी अवैध रूप से घुस रहे 7 लोगों को गिरफ्तार किया था. इन लोगों से पता चला कि इन के 4 लोग और थे, जो पीछे छूट गए हैं.

पीछे छूट गए लोगों की तलाश में जब आरसीएमपी के जवानों ने सीमा की तलाशी शुरू की तो उन्हें सीमा के पास बर्फ में ढके 4 शव मिले.

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आरसीएमपी के जवानों ने जिन 7 लोगों को गिरफ्तार किया था, वे गुजरात के गांधीनगर के आसपास के रहने वाले थे. इस से उन जवानों ने अंदाजा लगाया कि ये मृतक भी शायद उन्हीं के साथी होंगे.

बर्फ में जमी मिली चारों लाशों में एक  पुरुष, एक महिला, एक लड़की और एक बच्चे की लाश थी. ये लाशें सीमा से 10 से 13 मीटर की दूरी पर कनाडा की ओर पाई गई थीं. मेनिटोबा रायल कैनेडियन पुलिस ने लाशों की तलाशी ली तो उन के पास मिले सामानों में बच्चे के उपयोग में लाया जाने वाला सामान मिला था.

अंदाजा लगाया गया कि इन की मौत ठंड से हुई है. बर्फ गिरने की वजह से उस समय वहां का तापमान माइनस 35 डिग्री सेल्सियस था.

अगले दिन जब यह समाचार वहां की मीडिया द्वारा प्रसारित किया गया तो भारत के लोग भी स्तब्ध रह गए थे. खबर में मृतकों के गुजरात के होने की संभावना व्यक्त की गई थी, इसलिए उस समय गुजरात से कनाडा गए लोगों के भारत में रहने वाले परिजन बेचैन हो उठे. सभी लोग कनाडा गए अपने परिजनों को फोन करने लगे.

उसी समय गांधीनगर की तहसील कलोल के गांव डिंगुचा के रहने वाले बलदेवभाई पटेल का बेटा जगदीशभाई पटेल भी अपनी पत्नी, बेटी और बेटे के साथ कनाडा गया था. इसलिए उन्हें चिंता होने लगी कि कहीं उन का बेटा ही तो सीमा पार करते समय हादसे का शिकार नहीं हो गए. उन का बेटे से संपर्क भी नहीं हो रहा था.  सच्चाई का पता लगाने के लिए उन्होंने कनाडा स्थित दूतावास को मेल किया, पर कुछ पता नहीं चला. पता चला 9 दिन बाद.

पुलिस को चारों लाशों की पहचान कराने में 9 दिन लग गए थे. 9 दिन बाद 27 जनवरी, 2022 को आरसीएमपी की ओर से रोब हिल द्वारा अधिकृत रूप से भारतीय उच्चायोग को सूचना दी गई कि चारों मृतक भारत के गुजरात राज्य के जिला गांधीनगर के डिंगुचा गांव के रहने वाले थे. चारों मृतक एक ही परिवार के थे.

उन की पहचान बलदेवभाई पटेल के बेटे जगदीशभाई पटेल (39 साल), बहू वैशाली पटेल (37 साल), पोती विहांगी पटेल (11 साल) और पोते धार्मिक पटेल (3 साल) के रूप में हुई थी.

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यह परिवार 12 जनवरी को कनाडा जाने की बात कह कर घर से निकला था और वहां पहुंच कर फोन करने की बात कही थी. यह परिवार उसी दिन कनाडा के टोरंटो शहर पहुंच गया था. इस के बाद यह परिवार 18 जनवरी को मैनिटोबा प्रांत के इमर्शन शहर पहुंचा था और 19 जनवरी को पूरे परिवार की लाशें मेनिटोबा प्रांत से जुड़ी अमेरिका कनाडा सीमा पर कनाडा सीमा में 12 मीटर अंदर मिली थीं.

दूसरी ओर जब पता चला कि यह परिवार अवैध रूप से अमेरिका में घुस रहा था तो गुजरात के डीजीपी आशीष भाटिया ने पटेल परिवार को गैरकानूनी रूप से विदेश भेजने से जुड़े लोगों से ले कर पूरी जांच की जिम्मेदारी सीआईडी क्राइम ब्रांच की एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग ब्रांच को सौप दी.

जिस के लिए डिप्टी एसपी सतीश चौधरी के नेतृत्व में टीम गठित कर जांच शुरू भी कर दी गई थी. विदेशमंत्री एस. जयशंकर ने भी इस घटना को गंभीरता से लिया. जिस की वजह से भारत, अमेरिका और कनाडा की जांच एजेसियां इस मामले की संयुक्त रूप से जांच करने लगीं.

पता चला है कि अमेरिका की पुलिस ने डिंगुचा गांव के पटेल परिवार के 4 सदस्यों सहित 11-12 अन्य लोगों को अवैध रूप से सीमा पार कराने के आरोप में फ्लोरिडा के स्टीव शैंड नामक एजेंट को गिरफ्तार किया था.

चारों लाशें कनाडा में थीं. अंतिम संस्कार के लिए के लिए जब उन्हें भारत लाने की बात चली तो पता चला कि एक लाश लाने में करीब 40 लाख रुपए का खर्च आएगा. मतलब करोड़ों का खर्च था. इसलिए तय हुआ कि चारों मृतकों का अंतिम संस्कार कनाडा में ही करा दिया जाए. और फिर किया भी यही गया. चारों मृतकों का अंतिम संस्कार वहीं करा दिया गया. चूंकि अमेरिका, कनाडा में पटेल बहुत बड़ी संख्या में रहते हैं, इसलिए मृतकों का अंतिम संस्कार करने में कोई दिक्कत नहीं आई थी. क्योंकि इस परिवार की मदद के लिए पटेल समाज आगे आ गया था.

इतना ही नहीं, अमेरिका और कनाडा के रहने वाले पटेलों ने जगदीशभाई पटेल के परिवार के लिए 66 हजार डालर की रकम इकट्ठा भी कर के भेज दी है.

जगदीशभाई पटेल गुजरात के जिला गांधीनगर की तहसील कलोल के गांव डिंगुचा के रहने वाले थे. उन के पिता बलदेवभाई पटेल पत्नी मधुबेन और बड़े बेटे महेंद्रभाई पटेल के साथ डिंगुचा में ही रहते हैं. उन के साथ ही बड़े बेटे का परिवार भी रहता है.

बलदेवभाई गांव के संपन्न आदमी थे. उन के पास अच्छीखासी जमीन, इसलिए उन्हें किसी चीज की कमी नहीं थी. बड़े बेटे महेंद्रभाई की शादी पहले ही हो गई थी. जगदीश भी गांव के स्कूल में नौकरी करने लगा तो पिता ने उस की भी शादी कर दी.

शादी के बाद जब जगदीशभाई को बिटिया विहांगी पैदा हुई तो वह बेटी की पढ़ाई अच्छे से हो सके, इस के लिए पत्नी वैशाली और बेटी विहांगी को ले कर कलोल आ गए थे.जगदीश ने गांव की अपनी स्कूल की नौकरी छोड़ दी थी. कलोल में परिवार के खर्च के लिए उन्होंने बिजली के सामानों की दुकान खोल ली थी. कलोल आने के बाद उन्हें बेटा धार्मिक पैदा हुआ था. सब कुछ बढि़या चल रहा था. बेटी विहांगी 11 साल की हो गई थी तो बेटा 3 साल का हो गया था. इस बीच उन्हें न जाने क्यों विदेश जाने की धुन सवार हो गई.

दरअसल, गुजरात और पंजाब में विदेश जाने का कुछ अधिक ही क्रेज है. डिंगुचा गांव में करीब 7 हजार की जनसंख्या में से 32 सौ से 35 सौ के आसपास लोग विदेश में रहते हैं. इसी वजह से इस गांव के लोगों में विदेश जा कर रहने का बड़ा मोह है.

ऐसा ही मोह जगदीश के मन में भी पैदा हो गया था. तभी तो वह एक लाख डालर (75 लाख) रुपए खर्च कर के एजेंट के माध्यम से अमेरिका जाने को तैयार हो गए थे. वह चले भी गए थे, पर उन के और उन के परिवार का दुर्भाग्य ही था कि बौर्डर पर बर्फ गिरने लगी और उन का पूरा परिवार ठंड की वजह से काल के गाल में समा गया.

यह कोई पहली घटना नहीं है. इस तरह की अनेक हारर स्टोरीज इतिहास के गर्भ में छिपी हैं. मात्र कनाडा ही नहीं, मैक्सिको की सीमा से भी लोग गैरकानूनी रूप से अमेरिका में प्रवेश करते हैं. आज लाखों पाटीदार (पटेल) यूरोप और अमेरिका में रह रहे हैं.

अमेरिका विश्व की महासत्ता है. सालों से गुजरातियों ने ही नहीं, दुनिया के तमाम देशों के लोगों में अमेरिका जाने का मोह है. क्योंकि अमेरिका में कमाने के तमाम अवसर हैं. गुजरात के पटेल सालों से अमेरिका जा कर रह रहे हैं. अमेरिका की 32 करोड़ की आबादी में आज 20 लाख से अधिक भारतीय हैं, जिन में 10 लाख लोग पाटीदार हैं.

गैरकानूनी रूप से किसी को भी अमेरिका ही नहीं बल्कि किसी भी देश में नहीं जाना चाहिए. कलोल के पास के डिंगुचा गांव के पटेल परिवार की करुणांतिका जितना हृदय को द्रवित करने वाली है, उतनी ही आंखें खोलने वाली भी है.

एक समय अमेरिका में 10 लाख रुपए में गैरकानूनी रूप से प्रवेश हो जाता था. लेकिन अब यह एक करोड़ तक पहुंच गया है. इस धंधे को कबूतरबाजी कहा जाता है. इस तरह के कबूतरबाज रोजीरोटी की तलाश और अच्छे जीवन की चाह रखने वाले गुजराती परिवारों के साथ धोखेबाजी करते हैं और इस के लिए तमाम एजेंट गुजरात में भी हैं.

अमेरिका या कनाडा से फरजी स्पांसर लेटर्स मंगवा कर विजिटर वीजा पर उन्हें अमेरिका में प्रवेश करा देते हैं और फिर वे सालों तक गैरकानूनी रूप से अमेरिका में रहने के लिए संघर्ष करते रहते हैं. उन्हें कायदे की नौकरी न मिलने की वजह से होटलों या रेस्टोरेंट में साफसफाई या वेटर की नौकरी करनी पड़ती है.यह एक तरह से दुर्भाग्यपूर्ण ही है. सोचने वाली बात यह है कि जो लोग करोड़ों रुपए खर्च कर के चोरीछिपे अमेरिका जाते हैं, वे 50 या सौ करोड़ की आसामी नहीं होते. वे बेचारे वेटर और क्वालिटी लाइफ की तलाश में अपना मकान, जमीन या घर के गहने बेच कर जाते हैं.

इस की वजह यह होती है कि देश में उन के लिए नौकरी नहीं होती. वे बच्चों को अच्छी शिक्षा या अच्छा इलाज दे सकें, उन के पास इस की व्यवस्था नहीं होती.

ऐसा ही कुछ सोच कर जगदीशभाई ने भी 75 लाख रुपए खर्च किए. पर उन का दुर्भाग्य था कि अच्छे जीवन की तलाश में उन्होंने जो किया, वह उन का ही नहीं, उन के पूरे परिवार का जीवन लील गया. रोजगार और अच्छे भविष्य के लिए गुजराती अमेरिका, कनाडा और आस्ट्रेलिया जैसे देशों में जान को खतरे में डाल कर गैरकानूनी रूप से घुसते हैं. जब इस बारे में पता किया गया तो जो जानकारी मिली, उस के अनुसार एजेंट को पैसा वहां पहुंचने के बाद मिलता है.

गुजरात से हर साल हजारों लोग गैरकानूनी रूप से विदेश जाते हैं. इस में उत्तर गुजरात तथा चरोतर के पाटीदार शामिल हैं. विदेश जाने की चाह रखने वाले परिवार मात्र आर्थिक ही नहीं, सामाजिक और शारीरिक यातना भी सहन करते हैं.

इस समय इमिग्रेशन की दुनिया में कनाडा का बोलबाला है. जिन्हें कनाडा हो कर अमेरिका जाना होता है या कनाडा में ही रहना होता है, उन के लिए कनाडा के वीजा की डिमांड होती है. इस समय जिन एजेंटों के पास कनाडा का वीजा होता है, उस में स्टीकर के लिए वे ढाई लाख रुपए की मांग करते हैं.

गैरकानूनी रूप से विदेश जाने के लिए सब से पहले समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति से बात की जाती है. अगर कोई स्वजन विदेश में है तो उस से सहमति ली जाती है. इस के बाद तांत्रिक से दाना डलवाने यानी धागा बंधवाने का भी ट्रेंड है. तांत्रिक की मंजूरी के बाद एजेंट को डाक्यूमेंट सौंप दिए जाते हैं.

यहां हर गांव का एजेंट तय है. एजेंट समाज की संस्था या मंडल से संपर्क करता है. मंडल या संस्था एक व्यक्ति या परिवार का हवाला लेता है, जहां रुपए की डील तय होती है.

अगर समाज का प्रतिष्ठित व्यक्ति एजेंट का हवाला नहीं लेता तो जमीन, घर लिखाया जाता है. एक व्यक्ति का एक करोड़ रुपया और कपल का एक करोड़ 30 लाख रुपया एजेंट लेता है. अगर बच्चे या अन्य मेंबर हुए तो यह रकम बढ़ जाती है.

डील के बाद समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति की भूमिका शुरू होती है. समाज का प्रतिष्ठित व्यक्ति रुपए की जिम्मेदारी लेता है तो एजेंट डाक्यूमेंट का काम शुरू करता है. यह स्वीकृति किसी भी कीमत पर बदल नहीं सकती. अगर बदल गई तो समाज में परिवार की बहुत बेइज्जती होती है.

एजेंट पहले कानूनी तौर पर वीजा के लिए आवेदन करता है. रिजेक्ट होने के बाद गैरकानूनी रूप से खेल शुरू होता है. जिस देश के लिए वीजा आन अराइवल होता है, उस देश के लिए प्रोसेस शुरू होता है. वहां पहुंचने पर विदेशी एजेंट मनमानी शुरू कर देता है. महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार तक करता है.

कभीकभी तो रातदिन सौ किलोमीटर तक पैदल चलाता है. माइनस 40 डिग्री सेल्सियस तापमान में सुनसान जंगलों और बर्फ पर संघर्ष करना पड़ता है. अगर कोई ग्रुप से छूट गया या पीछे रह गया तो उस का इंतजार नहीं किया जाता. उसे उस के हाल पर छोड़ दिया जाता है. जैसा जगदीशभाई और उन के परिवार के साथ हुआ.

इस स्थिति में कभीकभी मजबूरी में बर्फ, जंगल या फायरिंग रेंज में आगे बढ़ना पड़ता है. ऐसे में अमेरिकी बौर्डर पर पहुंच कर 3 औप्शन होते हैं. पहला औप्शन है अमेरिकी सेना के समक्ष सरेंडर कर देना. दूसरा औप्शन होता है कि वह अपने देश में सुरक्षित नहीं है और तीसरा औप्शन है कि अमेरिका में अपने सोर्स से छिपे रहना.

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इस के बाद कंफर्मेशन होने के बाद पेमेंट होता है. अमेरिका में कदम रखते ही दलाल एक फोन करने देता है. समाज के उस प्रतिष्ठित व्यक्ति से सिर्फ ‘पहुंच गया’ कहने दिया जाता है. इस कंफर्मेशन के बाद भारत में दलाल को रुपए मिल जाते हैं.

समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति को 5 से 10 प्रतिशत मिला कर देने की डील होती है. पास में पैसा न हो और अमेरिका जाना हो तो समाज की मंडली से आर्थिक मदद मिलती है. अमेरिका पहुंच कर रकम मंडल में जमा करा दी जाती है.

करीब 100 करोड़ जितनी रकम का हवाला पड़ गया है. ईमानदारी ऐसी कि यह रकम समय पर अदा कर दी जाती है. ऐसा ही कुछ जगदीशभाई पटेल के भी मामले में हुआ था. पर वह अमेरिका में कदम नहीं रख पाए.

अमेरिका-कनाडा की सीमा पर काल के गाल में समाए जगदीशभाई पटेल और उन के परिवार वालों के लिए 7 फरवरी, 2022 को उन के गांव डिंगुचा में शोक सभा का आयोजन किया गया.

जगदीशभाई और उन के परिवार के लिए पूरा देश दुखी है. पर इस हादसे के बाद क्या कबूतरबाजी बंद होगी? कतई नहीं. लोग इसी तरह जान जोखिम में डाल कर विदेश जाते रहेंगे. क्योंकि विदेश का मोह है ही ऐसा.

मनोहर कहानियां: ममता का खूनी लव

   —नितिन कुमार शर्मा  

उत्तर प्रदेश का एक जिला है सोनभद्र. इसी जिले के विंढमगंज थाना क्षेत्र के फुलवार गांव में रहते थे ज्वाला प्रसाद श्रीवास्तव. वह स्वास्थ्य विभाग से मलेरिया सुपरवाइजर के पद से सेवानिवृत्त हो चुके थे. उन के 3 बेटे थे रामेंद्र, रविंद्र और राजीव उर्फ पवन.

कुछ साल पहले ज्वाला प्रसाद ने सोनभद्र के ही दुद्धी कस्बा थाना क्षेत्र के वार्ड नंबर 6 में तीनमंजिला मकान बनवाया था. उस में उन के 2 बेटे रामेंद्र और राजीव रहते थे.

रविंद्र रेनूकूट में रह कर काम करता था, इसलिए पत्नी व बच्चों के साथ वहीं रहता था. ज्वाला प्रसाद खुद गांव में रहते थे. पिछले साल कोरोना काल में उन के बड़े बेटे रामेंद्र की मौत हो गई, जिस से ज्वाला प्रसाद टूट गए. इस के बाद वह ऐसे बीमार हुए कि उन्होंने चारपाई ही पकड़ ली.

उन का छोटा बेटा 32 वर्षीय राजीव दिव्यांग था. वह एक पैर से कमजोर था. उस का विवाह ममता नाम की युवती से हुआ था. उस के 2 बेटे थे एक 4 वर्ष का तो दूसरा 2 साल का. राजीव बेरोजगार था.

3 फरवरी, 2022 की सुबह 4 बजे ममता अचानक चीखनेचिल्लाने लगी. उस के चीखने की आवाज सुन कर उसी मकान में रह रहे रामेंद्र का परिवार और आसपास के लोग वहां आ गए.

ममता जहां चीखचिल्ला रही थी, वहीं उस के पति राजीव की लाश पड़ी हुई थी. घटना के बारे में पूछने पर ममता ने बताया कि रात में 3 नकाबपोश बदमाश घर में घुस आए, उसे और राजीव को मारापीटा. उस के पति की हत्या करने के बाद वे वहां से फरार हो गए.

सभी के कहने पर ममता ने 112 नंबर पर फोन कर के पुलिस को घटना की सूचना दे दी. घटनास्थल दुद्धी थाना क्षेत्र में आता था, इसलिए कंट्रोल रूम से वायरलैस सेट पर पुलिस अधिकारियों और दुद्धी थाना पुलिस को सूचना दे दी गई.

सूचना मिलते ही एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह, सीओ रामाशीष यादव, और थानाप्रभारी राघवेंद्र सिंह पुलिस फोर्स के साथ मौके पर पहुंच गए.

लाश का निरीक्षण किया गया. राजीव के चेहरे और नाक पर चोट के निशान साफ दिख रहे थे, साथ ही गला दबाए जाने के निशान मौजूद थे. गले में मफलर पड़ा था. अनुमान लगाया गया कि मारपीट के बाद ही हत्या की गई है.

पुलिस ने मृतक की पत्नी ममता से पूछताछ की तो ममता ने बताया कि रात साढ़े 10 बजे वे लोग खाना खा रहे थे, तभी 3 नकाबपोश बदमाश घर में घुस आए. वह दोनों को मारनेपीटने के बाद राजीव की हत्या कर के वहां से भाग गए.

लेकिन पुलिस को ममता की बात पर यकीन नहीं हो रहा था. पुलिस को मामला संदिग्ध लगा. रात साढ़े 10 बजे की घटना के बाद सुबह 4 बजे पुलिस को सूचना क्यों दी गई. साढ़े 5 घंटे तक घटना को क्यों छिपाया गया. इस से ममता पुलिस के शक के घेरे में आ गई.

पुलिस ने राजीव ममता के 4 साल के बेटे से पूछा तो उस ने बताया कि रात में लवकुश मामा आए थे. यह सुन कर पुलिस अधिकारियों के कान खड़े हो गए.

लवकुश के बारे में पता किया गया तो जानकारी मिली कि वह राजीव की पत्नी ममता के बड़े भाई का साला है जोकि झारखंड राज्य के गवा जिले के गांव कोसडेहरा का रहने वाला है.

पुलिस ने उस का नंबर ले लिया. लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजने के बाद पुलिस अधिकारी वहां से वापस आ गए. थाने में धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

लवकुश श्रीवास्तव के नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया गया. 4 फरवरी, 2022 को उस की लोकेशन विंढमगंज रेलवे स्टेशन के पास की मिली. फिर मुखबिर की सटीक सूचना पर पुलिस ने रेलवे स्टेशन के गेट से लवकुश को गिरफ्तार कर लिया गया. उस के पास से .315 बोर का एक तमंचा और 2 जिंदा कारतूस बरामद हुए.

थाने ला कर जब पूछताछ की गई तो उस ने राजीव की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. उस से पूछताछ के बाद ममता को भी घर से गिरफ्तार कर लिया गया, क्योंकि वारदात में वह भी शामिल थी.

पुलिस जांच में पता चला कि ममता के शादी से पहले ही लवकुश से प्रेम संबंध थे. काफी समय तक उन के संबंध बने रहे. उसी दौरान लवकुश कमाने के लिए सूरत चला गया. दूसरी ओर ममता की शादी राजीव से हो गई. लवकुश से उस के संबंध टूट गए.

समय के साथ ममता 2 बच्चों की मां बन गई. राजीव कुछ भी कमाता नहीं था. इस बात को ले कर दोनों में वादविवाद होता था. गुस्से में राजीव ममता की पिटाई कर देता था. इस से नाराज हो कर ममता लवकुश के संपर्क में फिर से आ गई.

उन के पुराने रिश्ते में फिर से रंग भरने लगे. एकदूसरे के साथ रहने के कसमेवादे करने लगे. लेकिन राजीव के रहते यह संभव नहीं था. इसलिए उन्होंने राजीव को रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया और उस के लिए पूरी योजना बना ली.

2 फरवरी, 2022 की शाम 6 बजे लवकुश सूरत से दुद्धी आ गया. उस समय राजीव घर पर नहीं था. लवकुश ने खाना खाया और फिर राजीव की चारपाई के नीचे छिप गया.

राजीव घर लौटा. उस ने खाना खाया, फिर अपनी चारपाई पर जा कर सो गया. उसे बिलकुल भी भनक नहीं लगी कि कोई उस की चारपाई के नीचे छिपा है. बच्चों को ममता दूसरे कमरे में पहले ही सुला चुकी थी.

रात साढ़े 10 बजे राजीव के सोने के बाद ममता हाथ में प्लास्टिक का पाइप ले कर वहां आ गई. उस ने बिना बोले इशारे से लवकुश को बाहर आने को कहा. लवकुश चारपाई के नीचे से निकल आया.

फिर दोनों प्लास्टिक के पाइप से राजीव का गला दबाने लगे. इस कारण राजीव की नींद खुल गई.  वह बचने के लिए संघर्ष करने लगा. दोनों ने उस के साथ मारपीट की. फिर उस की पाइप से गला दबा कर हत्या कर दी.

हत्या करने के बाद सूरत से अपने साथ लाए सिंदूर से लवकुश ने ममता की मांग भरी और मंगलसूत्र पहनाया. पास में ही राजीव की लाश पड़ी थी. इस के बाद लवकुश वहां से चला गया.

सुबह 4 बजे ममता ने शोर मचा कर सब को इकट्ठा किया और पुलिस को सूचना दी. फिर पुलिस को बदमाशों के घर में घुसने की झूठी कहानी सुनाई.

लेकिन देर से पुलिस को सूचना देने और बेटे के द्वारा लवकुश के घर आने की बात बताने से वे दोनों शक के घेरे में आ गए. अंतत: वे पकड़े गए. पुलिस ने दोनों को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया.

Satyakatha: जान का दुश्मन बना मजे का इश्क

सौजन्य- सत्यकथा

Writer- सचिन तुलसा त्रिपाठी

6जुलाई, 2021 की बात है. मध्य प्रदेश के सतना जिला मुख्यालय से तकरीबन 90 किलोमीटर दूर स्थित अमदरा थाने में किसी ने फोन कर के सूचना दी कि नैशनल हाईवे-30 पर रैगवां गांव के नजदीक एक जीप और कार में जबरदस्त भिड़ंत हुई है. सूचना देने वाले ने खुद को कार चालक बताते हुए कहा कि कि दुर्घटनास्थल पर एक बच्चा काफी रो रहा है.

यह सूचना मिलने के बाद अमदरा पुलिस कुछ ही देर में घटनास्थल पर पहुंच गई.

घटनास्थल सिंहवासिनी मंदिर के पास था. वहां 2 साल का एक बच्चा बहुत रो रहा था, जबकि दुर्घटना के कोई चिह्न वहां नजर नहीं आ रहे थे. वहां कुछ दूरी पर एक जीप जरूर खड़ी मिली, तब पुलिस बच्चे को थाने ले आई. थाने में भी वह बहुत रो रहा था. उसे खानेपीने की चीजें दे कर किसी तरह चुप कराया.

अब यह प्रश्न उठ रहा था कि आखिर ये बच्चा किस का हो सकता है? कौन है जो उसे वहां छोड़ कर चला गया? उस के परिजन कौन हो सकते हैं? दुर्घटना की झूठी खबर किस ने और क्यों दी? इत्यादि…

इस बात की तफ्तीश चल ही रही थी कि एक बार फिर थाने में किसी का फोन आया. उन के द्वारा दी गईसूचना सन्न कर देने वाली थी. सूचना मिली कि नैशनल हाइवे-30 पर रैगवां गांव की झाडि़यों के पास एक महिला की लाश पड़ी है.

देर न करते हुए थानाप्रभारी हरीश दुबे अपने सहयोगियों के साथ घटनास्थल पर जा पहुंचे. थोड़ी देर में ही मैहर की एसडीपीओ हिमाली सोनी भी पहुंच गईं. अमदरा पुलिस साथ में उस बच्चे को भी ले गई थी.

बच्चा महिला की लाश को देखते ही मम्मी…मम्मी… कह कर रोने लगा. यह देख पुलिस भी भौचक्की रह गई. बच्चे को चुप करवा कर पुलिस ने बच्चे से पूछा कि मम्मी को किस ने मारा है?

2 साल के उस बच्चे ने तुरंत जवाब दिया ‘‘पापा ने.’’

2 साल के बच्चे के इन 2 शब्दों से इतना तो स्पष्ट हो ही गया था कि करीब 30-32 साल की महिला की वह लाश उस बच्चे की मां की है. पास ही एमपी 21सीए 3195 नंबर की एक जीप भी खड़ी थी.

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पुलिस उस जीप की छानबीन करते हुए लाश के साथ उस के किसी कनेक्शन का अंदेशा भी जता रही थी. पुलिस ने बारीकी से जीप की जांच की. जीप में बच्चे के जूते, बिखरी चूडि़यां मिलीं. उस के बाद पुलिस को जीप, बच्चा और औरत की लाश के साथ कनेक्शन का मामला समझ में आ गया था.

थानाप्रभारी को 6 जुलाई, 2021 की सुबह 10 बजे की सूचना के अनुसार सिंहवासिनी मंदिर के पास बच्चा मिला था. उसी दिन दोपहर 2 बजे महिला की लाश मिली थी. इस पर सतना के एसपी धर्मवीर सिंह ने मैहर की एसडीपीओ हिमाली सोनी और अमदरा थाना टीआई हरीश दुबे के नेतृत्व में 3 टीमें गठित कर दीं.

इन टीमों में एसआई लक्ष्मी बागरी, अजीत सिंह, एएसआई दीपेश कुमार, अशोक मिश्रा, दशरथ सिंह, अजय त्रिपाठी, हैडकांस्टेबल अशोक सिंह, कांस्टेबल जितेंद्र पटेल, गजराज सिंह, नितिन कनौजिया, अखिलेश्वर सिंह, दिनेश रावत, महिला कांस्टेबल पूजा चौहान आदि को शामिल किया गया.

तीनों टीमें अलगअलग दिशाओं में आरोपियों की तलाश में जुट गई थीं. अमदरा थाने की टीम टीआई हरीश दुबे के नेतृत्व में उस जीप के मालिक के पास पहुंच गई जो मृतका के पास सड़क पर खड़ी मिली थी. वह जीप राधेश्याम नाम के व्यक्ति की थी. वह कटनी जिले में रीठी का निवासी था.

पूछताछ के दौरान राधेश्याम ने बताया वह जीप उस ने अखिलेश यादव नाम के व्यक्ति को किराए पर दी थी. पुलिस टीम तुरंत अखिलेश के घर जा धमकी थी. वह घर पर नहीं था. 2 अन्य टीमें रैपुरा और जबलपुर में भी उस की खोज कर रही थीं.

इसी सिलसिले में अखिलेश यादव के भाई से भी पूछताछ की गई. उसे विश्वास में ले कर अखिलेश की लोकेशन पर नजर रखी गई. इस तरह से घटना की जानकारी के 24 घंटे के अंदर ही अखिलेश और उस के साथी पुलिस के हाथ लग गए, जिन के संबंध महिला की हत्या से थे.

गहन छानबीन से पुलिस को पता चला कि बरामद लाश आदिवासी महिला मेमबाई (32 वर्ष) की थी. मेमबाई कटनी जिले के गांव रीठी की रहने वाली थी. पुलिस को आरोपी तक पहुंचने में ज्यादा मुश्किल इसलिए भी नहीं आई, क्योंकि कई सुराग जीप में ही मिल गए थे.

पुलिस को मेमबाई और अखिलेश के मधुर संबंधों के बारे में जो कुछ और जानकारी मिली, वह काफी चौंकाने वाली थी.

इस हत्याकांड में भले ही किसी तरह की धनसंपदा के लालच की बू नहीं आ रही थी, लेकिन शादीशुदा औरत से प्यार में अंधे व्यक्ति द्वारा मजबूरी और बौखलाहट में उठाया गया कदम जरूर कहा जा सकता है. उस की विस्तृत कहानी इस प्रकार निकली—

अखिलेश जवानी की दहलीज पर था. एक भावी जीवनसाथी के सपनों में खोया हुआ अपनी जीवनसंगिनी को ले कर कल्पनाएं करता रहता था.

2 साल पहले की बात है. अखिलेश की जिंदगी मजे में कट रही थी. उस का कामधंधा भी गति पर था. वह पेशे से ड्राइवर था.

अखिलेश रीठी गांव के सिंघइया टोला में रहता था, जबकि मेमबाई के पति गोविंद प्रसाद आदिवासी का मकान गांव रीठी में बना हुआ था.

अखिलेश एक अस्पताल की एंबुलैंस चलाता था. उस का अकसर उसी रास्ते से गुजरना होता था, जहां मेमबाई अपने पति और बच्चों के साथ रहती थी. इसी आनेजाने में एक दिन उस की निगाह अदिवासी युवती मेमबाई पर पड़ गई, जिस की खूबसूरती उस के मांसल देह से टपकती थी. उसे देखते ही अखिलेश उस का दीवाना बन बैठा था.

मेमबाई अभी जवानी के शबाब में थी. बातें भी बड़ी मजेदार करती थी. अखिलेश से उस की अचानक मुलाकात हो गई. पहली ही नजर में उसे देखा तो देखता ही रह गया था, और जब उस से बातें करने की शुरुआत की तो ऐसे लगा जैसे उस की बातें सुनता ही रहे.

फिर दोनों के बीच बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया. बात बढ़ी, परवान चढ़ी और आंखों के रास्ते दोनों एकदूसरे के दिल में उतर गए.

अखिलेश को जब मालूम हुआ कि मेमबाई 3 बच्चों की मां है, तब उसे थोड़ा झटका लगा. लेकिन तब तक तो बहुत देर हो चुकी थी. कारण वह उसे अपना दिल दे चुका था. उस के मन मिजाज में अपनी इच्छाओं और तमन्नाओं का बीजारोपण कर चुका था. उस ने मन को दृढ़ता से समझा लिया था कि ‘शादीशुदा है तो क्या हुआ, प्यार तो उसी से करेगा… वह उस का पहला प्यार जो है.’

यह ठीक वैसी ही बात थी, जैसे कहा जाता है कि प्यार अंधा होता है. अखिलेश को मेमबाई अक्की कह कर बुलाती थी. वह उस से उम्र में छोटा था. बहुत जल्द ही वह मेमबाई के प्यार में काफी हद तक अंधा हो गया. उस की वह सब तमाम जरूरतें पूरी करने लगा था, जो मेमबाई को अपने मजदूर पति गोविंद आदिवासी से नसीब नहीं हो पाती थीं.

उन के जिस्मानी संबंध भी बन गए. उन के प्रेम संबंध में एक बार यौनसंबंध की दखल हो गई तो फिर उन का यह सिलसिला बन गया. अखिलेश को इस में आनंद आने लगा. इस में कोई खलल नहीं आने पाए, इस के लिए वह मेमबाई और उस के परिवार पर पैसे खर्च करने लगा. उन की हर जरूरतों के लिए तैयार रहने लगा.

जब गोविंद अपने काम के लिए घर से बाहर होता, तब अखिलेश उस के घर के अंदर घुस जाता. उस के दिलोदिमाग पर अखिलेश का बांकपन छा गया था. वैसे गोविंद जान चुका था कि अखिलेश के उस की पत्नी से अवैध संबंध हैं, फिर भी वह चुप रहता था. इस की वजह यह थी कि अखिलेश उस की आर्थिक मदद भी करता था.

कभीकभी गोविंद की मेमबाई से कहासुनी हो जाती तो वह उलटे पति पर ही हावी हो जाती थी. वह मुंह बनाती हुई पति को कोसती, ‘‘मैं तो केवल बच्चे पैदा करने की मशीन हूं न, तुम से मुझे न सुख मिल रहा है और न सुकून.’’

पत्नी के ताने सुनसुन कर उस के कान पक गए थे, लेकिन वह पलट कर कभी जवाब नहीं देता था. कई बार उस के तंज का जवाब देने के लिए पत्नी से केवल इतना कहता, ‘‘जा, चली जा, जहां सुख मिले और चैन.’’

फिर एक दिन मेमबाई फटेहाल जिंदगी को लात मारती हुई अपने आशिक अखिलेश के साथ चली आई. साथ में अपने अबोध बेटे राज को भी ले आई.

2 बेटियों को वह पति गोविंद के भरोसे छोड़ आई. पति से बेवफाई कर मेमबाई अपने दिलदार अखिलेश के साथ कटनी के भट्टा मोहल्ला में एक किराए के मकान में रहने लगी. वहीं उस ने अपनी गृहस्थी बसा ली.

अखिलेश की कमाई से मेमबाई के कई सपने पूरे हुए. अपने बेटे राज के लिए भी ख्वाब बुनने लगी. अखिलेश भी माशूका के हाथों में अपनी महीने भर की कमाई रख देता था. इस का पता जब अखिलेश के मातापिता को चला, तब वे उस से काफी खफा हो गए और विरोध करने लगे.

वे नहीं चाहते थे कि उन का बेटा किसी शादीशुदा महिला के साथ रहे. उन्होंने अपने घर अपनी मनपसंद बहू के सपने देखे थे.

मांबाप के विरोध के आगे अखिलेश की एक नहीं चली. उसे आखिरकार उन की पसंद की लड़की से ही ब्याह करना पड़ा. उस का रूपा यादव से ब्याह हो गया. अब अखिलेश के सामने 2 महिलाओं के बीच पिसने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था.

वह प्रेमिका और पत्नी के बीच के संबंधों को ले कर चिंतित रहने लगा. मेमबाई ने भी महसूस किया कि उस के बुने सपने बिखरने में अब ज्यादा वक्त नहीं लगने वाला है.

इस पर अखिलेश और मेमबाई के बीच कहासुनी भी होने लगी. अखिलेश परिस्थितियों को संभालने के लिए अपनी कमाई का आधाआधा दोनों को देने लगा.

मेमबाई तो मान गई, लेकिन ब्याहता रूपा यादव से उस की बातबात पर तल्खी बनी रही. कई बार उस की छोटीछोटी बातों की नाराजगी या शिकायतों का गुस्सा फूट पड़ता था.

यही नहीं मेमबाई पुरानी बातों को ले कर अखिलेश को ताने देने लगी थी, ‘‘काहे लाए थे, जब दूसरी शादी करनी थी. पहले तो हमारा रूप बहुत भाता था, अब घर में सुंदरी ले आए हो तो हम बंदरिया लग रहे हैं.’’

अखिलेश इन तानों पर प्रतिक्रिया देता, ‘‘जो मिलता है उस में आधाआधा इसलिए ही तो कर दिए हैं. इतने में ही काम चलाना होगा. हम तुम्हें घर से भगा तो नहीं रहे.’’

इस तरह से दोनों के बीच रोजाना झगड़े होने लगे थे. दिनप्रतिदिन अखिलेश टूटने लगा था. अब अखिलेश के परिवार वाले भी उस पर दवाब बनाने लगे थे. उस की पत्नी का भी पारा चढ़ने लगा था. वह भी जब तब अखिलेश को ताने मारने लगी थी.

अखिलेश ने भी मन ही मन ठान लिया कि अब मेमबाई को रास्ते से हटाना ही पड़ेगा. एक दिन अखिलेश ने एक योजना बनाई. 3 दोस्तों को बुलाया. उन के साथ उस ने मैहर की मां शारदा के दर्शन करने का प्लान बनाया. प्लान में सोहन लोधी, अजय यादव और एक नाबालिग बालक को शामिल कर लिया.

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प्लान की रूपरेखा तैयार करने के बाद वह घर में नाराज बैठी मेमबाई से बोला, ‘‘चलो, एक दिन मैहर शारदा मां के दर्शन कर आते हैं. वैसे भी इस समय बहुत लोग जा रहे हैं.’’

यह सुन कर मेमबाई के चेहरे पर मुसकान आ गई. खुशी से बोली, ‘‘मैं भी सोच रही थी, लेकिन तुम जितना खर्च दे रहे हो उस से पेट भरना तक मुश्किल है.’’

अखिलेश ने कहा, ‘‘मंदिरवंदिर चल कर पहले मन को पवित्र कर के आना चाहिए. इस से मन को शांति मिलती.’’

मेमबाई ने कहा, ‘‘ठीक है फिर कल ही चलो.’’

अखिलेश तो जैसे तैयार ही बैठा था बोला, ‘‘तैयार हो जाना और राज को भी ले लेना.’’

मेमबाई तो खुश थी, जो उस के चेहरे और हावभाव से झलक रहा था. अखिलेश भी प्लान के मुताबिक

सही उठ रहे कदम से मन ही मन खुश हो रहा था.

अगले ही दिन यानी 5 जुलाई, 2021 को अखिलेश ने पहले से ही 3195 रुपए किराए में राधेश्याम की जीप बुक कर ली. उस पर अपने दोस्तों को बैठा लिया. दोनों साथी मेमबाई के साथ बीच वाली सीट पर बैठ गए और एक साथी पीछे.

उन दोस्तों में से एक को मेमबाई अच्छी तरह पहचानती थी, इसलिए उस ने जरा भी सवालजवाब नहीं किया. अखिलेश जीप खुद चला रहा था.

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वे सभी निर्धारित समय के अनुसार मैहर पहुंच गए, लेकिन वे मंदिर में दर्शन के लिए नहीं गए. इस पर मेमबाई को शक हुआ. इस से पहले कि वह कुछ पूछती, अखिलेश ने जीप को यूटर्न दे कर घुमा ली. तब तक अंधेरा होचुका था.

उसी समय जीप की पिछली सीट पर बैठे अखिलेश के एक साथी ने अपने लोअर का नाड़ा निकाला और मेमबाई के गले में फंसा दिया. यह देख बगल में बैठे अन्य साथियों ने मेमबाई के हाथपैर कस कर जकड़ लिए. मेमबाई छटपटा कर रह गई.

संयोग से नाड़ा टूट गया. तभी फुरती के साथ अखिलेश ने जीप रोकी और रस्सी निकालते हुए बीच वाली सीट की तरफ भागा.

तब तक जीप का गेट खोल कर मेमबाई बाहर निकलने की कोशिश करने लगी, लेकिन जीप से उतरने से पहले ही अखिलेश उस के गले में रस्सी बांध चुका था. वह जीप के अंदर ही छटपटा कर रह गई.

अंत में वह हार गई. अखिलेश और उस के साथियों ने गला घोंट कर उसे मौत के घाट उतार दिया. लाश को राष्ट्रीय राजमार्ग 30 में आने वाले गांव रैगवां की झाडि़यों के बीच फेंक कर वे फरार हो गए.

इस पूरे मामले की तहकीकात के बाद अमदरा पुलिस ने सभी आरोपियों अखिलेश यादव (25 वर्ष) उर्फ अक्की निवासी ग्राम सिंघइया टोला, जिला कटनी, सोहन लोधी (19 वर्ष) व अजय यादव (18 वर्ष) निवासी ग्राम लोधी जिला पन्ना (मध्य प्रदेश) के खिलाफ हत्या कर लाश छिपाने का मामला दर्ज कर उन्हें निचली अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

मनोहर कहानियां: प्रेमी की खातिर

 नसीम अंसारी कोचर 

18सितंबर, 2021 की रात को बिहार के शहर मुजफ्फरपुर के टाउन थाना क्षेत्र के बालूघाट इलाके में स्थित एक मकान की तीसरी मंजिल के कमरे में अचानक तेज धमाका हुआ. धमाके की आवाज के साथ बंद कमरे के खिड़कीदरवाजे की झिर्रियों से काला धुआं निकलने लगा.

पहले लोगों को लगा कि मकान के भीतर कोई बम फटा है. कुछ लोगों ने अंदाजा लगाया कि शायद गैस सिलिंडर फटा है. कुछ ही देर में वहां भारी भीड़ जुट गई, मगर मकान के भीतर जाने की हिम्मत किसी की नहीं हो रही थी. मकान से निकलने वाला बदबूदार धुआं हवा में फैलता जा रहा था.

इसी दौरान भीड़ में मौजूद किसी व्यक्ति ने इस की सूचना फोन द्वारा पुलिस को दे दी. इस सूचना पर थोड़ी देर में पुलिस की गाड़ी और फायर ब्रिगेड वहां पहुंच गई. पुलिस और फायर ब्रिगेड कर्मचारी जब दरवाजा तोड़ कर भीतर पहुंचे तो वहां का दृश्य देख कर उन के होश उड़ गए. वहां एक ड्रम गिरा पड़ा था. आसपास मांस के लोथड़े बिखरे हुए थे. ड्रम से बदबूदार धुआं बाहर निकल रहा था. लग रहा था जैसे कि ड्रम में कोई कैमिकल हो.

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फायर ब्रिगेड ने खिड़की और अन्य सामान में लगी आग बुझाई. धुआं छंटा तो ड्रम के भीतर मानव शरीर के टुकड़े मिले. पुलिस ने सभी टुकड़े इकट्ठे किए तो उन की संख्या 8 थी. वे टुकड़े किसी पुरुष के थे, जिन्हें शायद ड्रम के भीतर भरे कैमिकल में गलाने के लिए डाला गया था. कमरे में और कोई नहीं था.

पुलिस के सामने बड़ा सवाल उस लाश की पहचान का था. आखिर वह कौन था? उसे क्यों मारा गया? किस ने मारा? मार कर उस की लाश गलाने के लिए ड्रम में कैमिकल के भीतर किस ने डुबोई? कातिल एक था या कई थे? ऐसे अनेक सवाल पुलिस के सामने थे.

पुलिस ने लाश की पहचान के लिए बाहर खड़े लोगों को बुलाया. मगर कोई भी उस लाश को नहीं पहचान पाया. तभी भीड़ से एक आदमी निकल कर लाश के काफी करीब पहुंच गया. वह झुक कर लाश को गौर से देखने लगा और फिर उस ने एक चौंकाने वाला खुलासा किया.

उस ने कहा कि उस का नाम दिनेश साहनी है और यह लाश उस के भाई राकेश साहनी की है, जो शराब का अवैध धंधा करता था और जिस के खिलाफ पुलिस ने वारंट निकाल रखा था.

गौरतलब है कि बिहार में शराबबंदी लागू है. राकेश लंबे समय से पुलिस से छिपछिप कर यहांवहां रह रहा था. मगर वह मारा जा चुका है, इस बात से उस के घरवाले बेखबर थे.

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लाश की शिनाख्त होने के बाद पुलिस ने मकान मालिक सुनील कुमार शर्मा को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. दरअसल, किताब कारोबारी सुनील कुमार शर्मा के इस मकान में कई कमरे थे, जिसे उस ने अलगअलग लोगों को किराए पर दे रखे थे.

जिस कमरे से लाश मिली, वह सुनील ने सुभाष नाम के व्यक्ति को किराए पर दिया हुआ था. लेकिन इधर काफी दिनों से सुभाष और उस का परिवार यहां दिख नहीं रहा था. आसपास के लोग सोच रहे थे कि शायद वह सपरिवार गांव गया हुआ है.

दिनेश साहनी की तहरीर पर पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज कर तफ्तीश शुरू कर दी. पुलिस का पहला लक्ष्य था सुभाष की तलाश करना. राकेश नाम के जिस व्यक्ति की लाश टुकड़ों में पुलिस को मिली थी, वह शराब का अवैध धंधा करता था और सुभाष भी उस के धंधे में बराबर का शरीक था.

मकान मालिक से हुई पूछताछ

मकान मालिक सुनील कुमार शर्मा ने पुलिस को बताया कि जब उस ने सुभाष को यह कमरा किराए पर दिया था, तब उस ने बताया था कि वह मुजफ्फरपुर के कर्पूरी नगर का रहने वाला है. वहां उस के घर में बाढ़ का पानी घुस गया है, इस वजह से वह कुछ दिन इस मकान में किराए पर रहना चाहता है.

सुनील ने अपने बयान में कहा, ‘‘मैं ने उस को कमरा इसलिए किराए पर दे दिया क्योंकि उस ने किराए में कोई रियायत नहीं मांगी, उलटा बाकी किराएदारों द्वारा दिए जा रहे किराए से एक हजार रुपए ज्यादा दिए और एडवांस किराया औनलाइन ही अकाउंट में जमा करवा दिया.

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‘‘फिर वह अपनी पत्नी और 3 बच्चों के साथ यहां रहने लगा. कुछ दिन बाद उस की साली और साढ़ू भी यहां आ कर उस के साथ रहने लगे. मगर 3 दिन से कमरे पर ताला लटका था तो लगा कि वह अपने पुराने मकान में गए होंगे.’’

उधर राकेश के बारे में पुलिस को पता चला कि 5 साल पहले उस ने राधा से शादी की थी. उस के 3 बच्चे हैं. वह सुभाष के साथ मिल कर अवैध शराब का धंधा चलाता था और फिलहाल पुलिस से जान बचा कर भागा हुआ था. उस की पत्नी राधा भी उसी दिन से गायब है जिस दिन से राकेश गायब है.

पुलिस को यह भी पता चला कि जबजब राकेश पुलिस से बचने के लिए फरार होता था, उस की पत्नी बच्चों को ले कर सुभाष के इसी मकान में आ जाती थी और सुभाष ही उन का खयाल रखता था.

कुछ लोगों ने यह भी बताया कि सुभाष और राधा के बीच अफेयर चल रहा था. आसपास के कुछ लोग तो यही समझते थे कि राधा सुभाष की पत्नी है. ऐसा समझने वालों में मकान मालिक सुनील शर्मा भी था.

पुलिस को सुभाष और राधा के ऊपर शक पक्का हो गया और वह तेजी से उन की तलाश में जुट गई. शहर भर के होटलों, बस अड््डों और रेलवे स्टेशन पर उन की खोज शुरू हो गई. आखिरकार पुलिस की तेजी काम आई और पुलिस ने सुभाष और राधा को शहर के स्टेशन रोड से गिरफ्तार कर लिया. दोनों दिल्ली भागने की फिराक में थे और ट्रेन पकड़ने के लिए निकले थे.

पुलिस ने उन की निशानदेही पर अहियापुर थाने के संगम घाट के पास से खून से सने कपड़े व बिस्तर भी बरामद किया. कपड़े  सुभाष, राधा और अन्य आरोपियों के थे.

जिन लोगों को पुलिस और अन्य लोग सुभाष की साली और साढ़ू समझ रहे थे, दरअसल वे राकेश की साली यानी राधा की बहन कृष्णा देवी और उस का पति विकास कुमार था, जो सुभाष और राधा के साथ राकेश साहनी की हत्या में शामिल थे.

सुभाष के बताने पर पुलिस ने दोनों को पकड़ने के लिए सीतामढ़ी व शिवहर में छापेमारी की, मगर सुभाष और राधा की गिरफ्तारी की खबर पा कर दोनों वहां से फरार हो चुके थे.

राधा निकली मास्टरमाइंड

पुलिस ने सुभाष और राधा को थाने ला कर जब सख्ती से पूछताछ की तो राकेश की हत्या की रोंगटे खड़े कर देने वाली एक भयानक कहानी सामने आई.

दरअसल, अवैध शराब के धंधेबाज राकेश कुमार की हत्या की साजिश 2 माह से रची जा रही थी. इस साजिश में उस का दोस्त सुभाष, राकेश की पत्नी और सुभाष की प्रेमिका राधा, राधा की बहन कृष्णा और उस का पति विकास शामिल था.

राकेश की हत्या कर शव के डिस्पोजल की तैयारी भी पूरी कर ली थी. शव को गलाने के लिए कैमिकल का इंतजाम किया गया था. शव से उठने वाली दुर्गंध को बाहर फैलने से रोका जा सके, इस के लिए अगरबत्ती का इंतजाम भी किया गया था.

राकेश की हत्या के पीछे कारण था सुभाष और राधा का नाजायज रिश्ता. दरअसल, शराब के धंधे के चलते राकेश के पीछे अकसर पुलिस पड़ी रहती थी. इस के चलते राकेश कईकई दिनों तक अंडरग्राउंड हो जाता था. उस के पीछे उस की पत्नी राधा और बच्चों की देखभाल सुभाष ही करता था.

पति के बाहर कहीं छिपते रहने की वजह से राधा की सुभाष के साथ नजदीकियां बढ़ती गईं. सुभाष भी राधा को चाहता था. इस तरह उन दोनों के बीच अवैध संबंध बन गए.

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राकेश को जब इस बात का पता चला तो उस ने पत्नी राधा को खूब पीटा. राधा ने उस से माफी मांग ली. सुभाष ने भी उस से माफी मांग ली. राकेश की भी मजबूरी थी. क्योंकि वह बीवीबच्चों की देखभाल के लिए सुभाष पर आश्रित था. लिहाजा उस ने दोनों को माफ कर दिया.

लेकिन यही उस की भूल थी. राकेश जबजब परेशान होता तो वह राधा से लड़ता और राधा भाग कर सुभाष के घर चली जाती थी. फिर राकेश उसे समझाबुझा कर वापस ले आता. यह चक्र काफी समय से चल रहा था.

सुभाष ने राधा को अपने प्रेम जाल में पूरी तरह फांस रखा था और राधा भी अब राकेश की गालीगलौज और मारपीट से तंग आ चुकी थी. राधा पति के बजाय अपने प्रेमी सुभाष के साथ ज्यादा खुशी महसूस करती थी. वह तनमन दोनों से सुभाष की हो चुकी थी.

अब राकेश दिनरात उस की नजर में खटक रहा था. वह उस की कोई भी जलीकटी बात सुनने को तैयार नहीं थी. सुभाष और राधा अब राकेश को अपने बीच कांटा समझने लगे थे.

पति के बाहर रहने पर बहक गई राधा

राकेश की जिंदगी स्थिर नहीं थी. पुलिस उस के पीछे थी और घर में बीवी उसे धोखा दे रही थी. वह काफी तनाव में रहता था और अकसर शराब पी कर राधा को पीट देता था.

राधा अब राकेश से ज्यादा ही परेशान हो चुकी थी. वह उस की मोहब्बत के रास्ते का रोड़ा भी था, लिहाजा राधा और सुभाष ने इस रोड़े को हटाने का मन बना लिया था.

कर्पूरी नगर में जहां सुभाष का घर था, वहां उस के अन्य परिवार वाले भी रहते थे. सभी का एकदूसरे के घर में आनाजाना लगा रहता था. काफी घनी बस्ती होने के कारण वहां हत्याकांड को अंजाम देना संभव नहीं था. इसलिए सुभाष बालूघाट में नया ठिकाना तलाशने लगा.

उसे पता चला कि सुनील शर्मा के मकान की तीसरी मंजिल खाली है. उस ने किसी के माध्यम से सुनील कुमार शर्मा की मां से संपर्क साधा और बाढ़ पीडि़त होने की बात कह कर किराए पर कमरा देने का आग्रह किया.

उस ने मकान में अन्य कमरों के किराएदारों से एक हजार रुपए अधिक किराया देना भी स्वीकार किया और फटाफट एडवांस किराया औनलाइन उस के अकाउंट में जमा करवा दिया.

वह अपने कुछ सामान के साथ सुनील कुमार के मकान में आ गया. थोड़े दिन में राधा भी अपने तीनों बच्चों के साथ उस के पास आ गई. आसपास के लोगों को राधा का परिचय सुभाष ने अपनी पत्नी के रूप में कराया. इस के कुछ रोज बाद ही राधा की बहन कृष्णा और बहनोई विकास भी उन के साथ रहने आ गए.

राकेश को खत्म करने की साजिश इन चारों ने बैठ कर बनाई. राधा की बहन और बहनोई को साजिश में शामिल करना सुभाष की मजबूरी थी. दरअसल, राकेश अच्छी कदकाठी का आदमी था. उस पर काबू पाना एकदो लोगों के बस की बात नहीं थी. इन दोनों को भी लाने का मकसद यह था कि जब राकेश वहां आएगा तो सब मिल कर उस का काम आसानी से तमाम कर देंगे.

हत्या कर कैमिकल के ड्रम में डाले लाश के टुकड़े

सारी तैयारियां हो जाने के बाद राधा ने तीज वाले दिन राकेश को फोन कर के वहां बुलाया. उस वक्त राकेश पुलिस के डर से कहीं छिप कर रह रहा था. उस के खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट भी निकला हुआ था.

हालांकि एक माह पहले राकेश की सुभाष से लड़ाई भी हुई थी. तब सुभाष ने उसे धमकाते हुए कहा था, ‘‘राकेश, तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम हम दोनों के बीच में मत आओ.’’

राकेश उस का मंसूबा भांप गया था. इस के बावजूद पत्नी के बुलाने पर आ गया था. उस रात वहां सभी ने शराब पी और मुरगा खाया. राकेश को राधा और सुभाष ने जम कर शराब पिलाई थी. जब वह नशे में धुत हो गया तो उन्होंने उस की निर्मम हत्या कर दी.

शराब के नशे में बेसुध राकेश के सिर पर हथौड़ा मार कर उसे खत्म कर दिया और तेजधार वाले चाकू से उस के शरीर के 8 टुकड़े कर दिए. इस के बाद एक बड़े ड्रम में उस के शव के सभी टुकड़ों को डाल कर गलाने के लिए ऊपर से यूरिया, नमक और तेजाब भर दिया.

हत्या: प्रेम गली अति सांकरी

कमरे से बदबू बाहर न जाए, इसलिए खिड़की और दरवाजे में कपड़े ठूंस दिए गए. रात में कमरे के दरवाजे और आसपास काफी संख्या में अगरबत्ती जलाने के बाद सभी आरोपी वहां से निकल गए.

4 दिन तक यूरिया, सल्फ्यूरिक एसिड और नमक से शव गलने के कारण ड्रम में अमोनियम नाइट्रेट गैस बनने लगी. इस गैस के जलती अगरबत्ती के संपर्क के कारण ही वहां धमाका हुआ और सारे राज का परदाफाश हो गया.

सुभाष व राकेश की शराब के धंधे की चलती थी फ्रैंचाइजी

अखाड़ा घाट रोड, बालूघाट व सिकंदरपुर क्षेत्र में सुभाष व राकेश की जोड़ी ने अवैध शराब के धंधे की फ्रैंचाइजी खोल रखी थी. बड़े धंधेबाजों से शराब ले कर इस क्षेत्र के छोटेछोटे विक्रेताओं को आपूर्ति की जाती थी. इस धंधे की कमाई से राकेश और सुभाष दोनों ने कई स्थानों पर जमीन भी खरीदी थी. अब पुलिस उन संपत्तियों का पता लगा रही है.

2 महीने पहले जब राकेश के ठिकाने से पुलिस ने शराब की बड़ी खेप पकड़ी तभी उस का खेल बिगड़ गया था. पुलिस के भय से राकेश शुरू में इधरउधर छिपता रहा, फिर वह भाग कर दिल्ली चला गया था. इधर उस की पत्नी को मौका मिल गया और वह बच्चों को ले कर सुभाष के पास चली गई थी.

साली और साढ़ू की तलाश में छापेमारी

घटना में शामिल मृतक राकेश की साली कृष्णा और साढ़ू विकास की तलाश में एक टीम समस्तीपुर और सीतामढ़ी में छापेमारी कर रही है. हालांकि, कथा लिखने तक दोनों का सुराग नहीं मिला था. गिरफ्तार आरोपियों से उन दोनों के ठिकाने के बारे में पूछताछ की गई. सुभाष ने बताया, ‘‘विकास और कृष्णा के बारे में कोई जानकारी नहीं है. घटना के बाद से दोनों का उस से संपर्क नहीं हुआ है.’’  हालांकि उस के बयान पर पुलिस संदेह कर रही है.

टाउन डिप्टी एसपी रामनरेश पासवान का कहना है, ‘‘कई बिंदुओं पर आरोपियों से पूछताछ की गई. पुलिस की पूछताछ में आरोपियों ने बताया है कि घटना के बाद सभी एक साथ शहर से भागे थे. पहले वे सब बसस्टैंड पर छिप गए थे. वहीं रात गुजारी थी. फिर दूसरे दिन अलगअलग जगहों के लिए निकले थे. विकास और कृष्णा ने सीतामढ़ी जाने की बात कही थी. वहां से निकलने के बाद सुभाष का उन से संपर्क नहीं हुआ.’’

सभी आरोपियों से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

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—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौल्वर गैंग : पैसा फेंको, इम्तिहान पास करो

बीरेंद्र बरियार

लाखों रुपए ले कर फर्जी तरीके से इम्तिहान देने वालों की जगह किसी सौल्वर (सवाल हल करने वाला) को बिठा कर इम्तिहान देने वालों के एक गैंग का खुलासा हुआ है. इस गैंग के सरगना के तार बिहार के छपरा और जहानाबाद जिले से जुड़े हुए हैं. सौल्वर गैंग के ज्यादातर लोग मैडिकल और इंजीनियरिंग का इम्तिहान पास कर चुके हैं या उस की तैयारियों में लगे हुए हैं.

सौल्वरों के जरीए नीट (नैशनल ऐलिजिबिलिटी कम ऐंट्रैंस टैस्ट) पास कराने का सौदा करने वाले गैंग का सरगना पीके उर्फ प्रेम कुमार उर्फ प्रमोद कुमार उर्फ नीलेश इस के लिए 30 लाख से 50 लाख रुपए तक वसूलता था.

इसी पैसे से पीके ने पटना में तिमंजिला मकान और दानापुर में 4 प्लौट खरीदे. उस के पास फौर्चुनर, हुंडई लिवो और एक वैगनआर कार बरामद हुई. बिहार, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और त्रिपुरा की पुलिस पीके की तलाश में लगी हुई थी. वाराणसी पुलिस ने पीके को पकड़ने वाले को एक लाख रुपए का इनाम देने का ऐलान कर रखा था.

पीके पिछले 6-7 सालों से नीट (यूजी) और पीजी के इम्तिहान में सौल्वरों को बिठा कर कैंडिडेट को पास कराने का गेम खेल रहा था. इस के अलावा वह बिहार और उत्तर प्रदेश में मास्टरों की बहाली, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में अधीनस्थ सेवा, बिहार पुलिस सेवा वगैरह में भी अपना गोरखधंधा चला रहा था. उसे पिछली 18 नवंबर को छपरा में दबोचा गया.

पीके की बहन प्रिया भी इस गिरोह में शामिल है. प्रिया साल 2019 में पटना के इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट औफ मैडिकल साइंसेज से एमबीबीएस की डिगरी ले कर डाक्टर बनी थी. फिलहाल वह छपरा के सारण में नगरा ब्लौक के प्राइमरी हैल्थ सैंटर में पोस्टेड है.

प्रिया की शादी रीतेश कुमार सिंह के साथ साल 2014 में हुई थी, जो बिहार सरकार के कला एवं संस्कृति विभाग में क्लर्क है. वह इस पद पर साल 2004 में बहाल हुआ था. पीके की गिरफ्तारी के बाद उस की बहन प्रिया की एमबीबीएस की डिगरी भी जांच के घेरे में आ गई है.

पीके ने कोरैस्पोंडेंस कोर्स के जरीए पटना यूनिवर्सिटी से बीए का इम्तिहान पास किया था. उस ने अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को बता रखा था कि वह डाक्टर है.

पीके मूल रूप से छपरा के सारण के एकमासिंटू गांव का रहने वाला है. उस के पिता कमलवंश नारायण सिंह बिहार सरकार के उद्योग विभाग से साल 1990 में रिटायर हो चुके हैं. पीके अपने पिता के साथ ही पटना की पाटलिपुत्र कालोनी के अपने मकान में रहता था.

12 सितंबर को सारनाथ के एक परीक्षा केंद्र पर त्रिपुरा के रहने वाली हिना विश्वास की जगह बीएचयू की बीडीएस की छात्रा जूली कुमारी को इम्तिहान देते हुए पकड़ा गया था. इस मामले में जूली, उस की मां बबीता, भाई ओसामा, विकास कुमार महतो, रवि कुमार गुप्ता और तपन साहा को पुलिस ने गिरफ्तार किया था.

उस के बाद 22 सितंबर को पटना के रघुनाथ गर्ल्स हाईस्कूल में डिप्लोमा इन ऐलीमैंट्री ऐजूकेशन के इम्तिहान में 4 लड़कियों समेत 9 सौल्वर को पकड़ा गया.

इम्तिहान के दौरान वहां आए इंविजीलेटर को कुछ छात्रों पर शक हुआ. उस ने मजिस्ट्रेट को इस बात की जानकारी दी. जब सभी छात्रों के एडमिट कार्ड की जांच की गई, तो सौल्वर गैंग के लोग पकड़ में आ गए.

सौल्वर गैंग के सदस्य रिंकू कुमारी (मधुबनी), शैलेंद्र कुमार (मधेपुरा), शिवम सौरभ (मधुबनी), बीरेंद्र कुमार (मधुबनी), सुरुचि कुमारी (नालंदा), रंजीत कुमार (निर्मली), विनोद कुमार (सुपौल), गुडि़या कुमार (नालंदा), गुंजन कुमारी (मधेपुरा) को पुलिस ने गिरफ्तार किया.

पाटलिपुत्र थाना क्षेत्र के मंगलदीप अपार्टमैंट्स के पास औनलाइन परीक्षा केंद्र आईडीजेड-5 में इम्तिहान देने के दौरान किसी दूसरे की जगह इम्तिहान दे रहे दीपक कुमार को पकड़ा गया. बाद में उस से मिली जानकारी के आधार पर ओरिजनल उम्मीदवार लकी कुमार को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया.

लकी कुमार सारण के गरखा गांव का रहने वाला है. दीपक ने पुलिस को बताया कि एक लाख रुपए में सौदा तय हुआ था और एडवांस के तौर पर 10,000 रुपए मिले थे. बाकी रकम कैंडिडेट के पास होने के बाद मिलने वाली थी.

पुलिस से मिली जानकारी के मुताबिक, लकी कुमार ने दीपक को अपने एडमिट कार्ड के साथ इम्तिहान सैंटर में पहुंचा दिया था. इम्तिहान शुरू होने से पहले जब सभी कैंडिडेट की जांच की गई, तो दीपक का चेहरा एडमिट कार्ड में चिपकाए गए फोटो से मेल नहीं खा रहा था. शक होने पर दीपक से पूछताछ की गई. पहले तो उस ने चकमा देने की कोशिश की, पर कुछ ही देर में सबकुछ सचसच उगल दिया.

पीके के गैंग में उस की प्रेमिका समेत दूसरी 12 लड़कियां भी शामिल थीं. सभी लड़कियां एजेंट का काम करती थीं और मैडिकल और इंजीनियरिंग का इम्तिहान देने वाले छात्रों को अपने जाल में फंसाती थीं. जब कोई छात्र जाल में फंस जाता था, तो उस की काउंसलिंग भी कराई जाती थी.

पुलिस रिकौर्ड के मुताबिक, बिहार के जहानाबाद जिले के अतुल वत्स ने सब से पहले सौल्वर गैंग बनाया था. उस के बाद उस ने काफी कम समय में बिहार समेत हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, झारखंड, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश तक अपना जाल फैला लिया था.

उस के गैंग में तकरीबन 60 लड़के थे. सभी लड़कों को बाकायदा ट्रेनिंग दी गई थी कि किस तरह से शिकार को फंसाया जाए.

सभी एजेंट लग्जरी गाडि़यों में घूमते थे और महंगे होटलों में ठहरते थे. तमाम सुविधाओं के साथ उन्हें 20,000 से 25,000 रुपए हर महीने तनख्वाह के रूप में दिए जाते थे.

सौल्वर गैंग के लोगों ने पुलिस से बचने के लिए ऐसा पक्का इंतजाम कर रखा था कि उन का मोबाइल फोन सर्विलांस पर ट्रेस न हो सके. गैंग के सभी लोगों को कोडवर्ड में बात करने की हिदायत थी. जैसे ‘टिशू मिलना’ का मतलब होता था, डौक्यूमैंट मिलना. इसी तरह ‘खजूर मिलना’ का मतलब होता था, एडवांस मिलना. ‘डनडन’ कहा गया तो समझिए डील पक्की हो गई.

बीटैक, नीट, बीबीए क्वालिफाई कर चुके स्टूडैंट रातोंरात करोड़पति बनने के चक्कर में सौल्वर गैंग के जाल में फंसते रहे हैं.

गैंग का सरगना अतुल वत्स खुद बीटैक है. इस के अलावा गैंग में शामिल उज्ज्वल कश्यप, रमेश सिंह, प्रशांत कुमार और रोहित कुमार के पास भी बीटैक की डिगरी है.

साल 2006 में अतुल ने एनईईटी में और कंप्यूटर साइंस में दाखिला लिया था. साल 2010 में बीटैक करने के बाद अतुल ने दिल्ली जा कर एमबीए किया.

एमबीए में उसे काफी कम नंबर मिले, जिस से वह बहुत परेशान हुआ था. उस के बाद वह पटना लौट आया और अपने दोस्त दीपक के साथ मिल कर उस ने बोरिंग रोड इलाके में इंजीनियरिंग और मैडिकल कोचिंग इंस्टीट्यूट खोला.

कोचिंग में अतुल फिजिक्स और कार्बनिक रसायन पढ़ाता था. साल 2014 में उस ने यूको बैंक के पीओ का इम्तिहान पास किया, लेकिन एक साल में ही उस का मन ऊब गया और उस ने नौकरी छोड़ दी.

साल 2016 में नीट पेपर सौल्वर गैंग में अतुल का नाम आया था. साल 2017 में वह पहली बार पुलिस के हत्थे चढ़ा था. दिल्ली पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया था.

मनोहर कहानियां: 1 मोक्ष, 5 मौतें

  भारत भूषण श्रीवास्तव

बात 20 दिसंबर, 2021 की सुबह के समय की है. हरियाणा के हिसार जिले की बरवाला-अग्रोहा रोड पर गांव वालों ने एक अधेड़ व्यक्ति की लाश पड़ी देखी. पहली नजर में लग रहा था कि किसी गाड़ी ने कुचला है. यानी यह सड़क हादसे का मामला लग रहा था. कुछ ही देर में वहां आनेजाने वालों की भीड़ जमा हो गई.

आसपास के गांवों के लोग भी वहां जमा हो गए. भीड़ में से किसी व्यक्ति ने इस की सूचना पुलिस को दे दी. वहां मौजूद लोगों में कुछ लोगों ने मृतक को पहचान लिया. वह पास के ही नंगथला गांव का रहने वाला 45 वर्षीय रमेश था.

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रमेश का समाज में मानसम्मान था. इसलिए आसपास के गांवों के लोग उसे अच्छी तरह जानते थे. तभी तो उस की इतनी जल्द शिनाख्त हो गई. सूचना पा कर पुलिस कुछ ही देर में वहां पहुंच गई और घटनास्थल की जांच करने लगी.

इधर कुछ लोग यह खबर देने के लिए रमेश के घर की तरफ दौड़े, लेकिन जब वह घर पर पहुंचे तो वहां का नजारा देख कर और सन्न रह गए. क्योंकि घर पर 4 और लाशें पड़ी थीं. इस के बाद गांव में ही नहीं, बल्कि क्षेत्र में सनसनी फैल गई. क्योंकि एक ही परिवार के 5 सदस्यों की मौत बहुत बड़ी घटना थी.

रोड पर रमेश के एक्सीडेंट के मामले की जांच कर रहे पुलिस अधिकारियों को जब पता चला कि रमेश के घर में 4 सदस्यों की लहूलुहान लाशें पड़ी हैं तो वे भी सन्न रह गए. उन्हें मामला जरूरत से ज्यादा संगीन लगा, लिहाजा इस की सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को देने के बाद वहां से कुछ पुलिसकर्मी रमेश के घर की तरफ चल दिए. उन के पीछेपीछे भीड़ भी चल दी.

पुलिस जब रमेश के घर पहुंची तो घर के अंदर का दृश्य दख कर हक्कीबक्की रह गई. जितने मुंह थे, उतनी बातें भी हुईं लेकिन कोई किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सका. एक हैरानी जरूर सभी को थी कि यह क्या हो गया. रमेश तो बहुत सीधासादा और धार्मिक प्रवृत्ति वाला था, जिस की किसी से दुश्मनी होने का सवाल ही नहीं उठता था और हर तरह के नशापत्ती से वह दूर रहता था.

बैडरूम में 2 पलंगों पर 4 लाशें पड़ी थीं, जिन्हें देखने पर साफ लग रहा था कि उन की बेरहमी से हत्या की गई है. साथ ही समझ यह भी आ रहा था कि मृतकों ने कोई विरोध नहीं किया था.

हाथापाई के निशान वहां कहीं नजर नहीं आ रहे थे. ये लाशें रमेश की 38 वर्षीय पत्नी सुनीता, 14 साल की बेटी अनुष्का, 12 साल की दीपिका और 11 साल के इकलौते बेटे केशव की थीं. जिस ने भी यह नजारा देखा, वह सिहर उठा क्योंकि एक अच्छाखासा घर उजड़ चुका था.

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मामला सनसनीखेज तो निकला पर वैसा नहीं जैसा कि आमतौर पर ऐसी वारदातों में होता है. पुलिस टीम को ज्यादा मशक्कत नहीं करना पड़ी, क्योंकि रमेश इस केस की खुद ही गुत्थी सुलझा कर गया था.

कागजों पर उतरी काली कथा

पुलिस जांच शुरू करती, इस के पहले ही उस के हाथ एक नोटबुक लग गई जोकि रमेश का सुसाइड नोट था. यह नोटबुक केशव के स्कूल की थी, जो रखी इस तरह गई थी कि आसानी से पुलिस को नजर आ जाए.

नोटबुक क्या थी रमेश की परेशानियों, मूर्खताओं और वहशीपन का पुलिंदा थी जिसे टुकड़ोंटुकड़ों में लिखा गया था. इस के बाद भी इस के 11 पेज भर गए थे.

अब हर कोई यह जानना चाह रहा था कि अगर अपनी पत्नी और बच्चों की हत्या रमेश ने ही की है तो इस की वजह क्या है.

अधिकृत रूप से यह वजह दोपहर को लोगों को पता चली, जब डीआईजी (हिसार) बलवान सिंह राणा ने इस बारे में जानकारी दी. इस के पहले वह डीएसपी नारायण सिंह और अग्रोहा थानाप्रभारी के साथ घटनास्थलों पर पहुंचे थे.

शुरुआती जांच के बाद पांचों शव अग्रोहा मैडिकल कालेज पोस्टमार्टम के लिए भेज दिए गए थे. अब तक इस वारदात की खबर जंगल की आग की तरह देश भर में फैल चुकी थी. रमेश ने अपने सुसाइड नोट में आत्महत्या करने की जो वजह बताई, उसे जान कर हर कोई हैरान था कि एक पढ़ालिखा और सभ्य आदमी भला यह कैसे कर सकता है. पता चला कि उन्होंने यह सब मोक्ष पाने के लिए किया.

हरियाणा के हिसार जिले की अग्रोहा तहसील का छोटा सा गांव है नंगथला. कहने को और सरकारी कागजों में ही यह अब गांव रह गया है नहीं तो अग्रोहा से महज 4 किलोमीटर दूर होने से यह उसी का ही हिस्सा बन गया है. 700 साल पुराने इस गांव में दाखिल होते ही लोगों की नजरें एक घर पर जरूर ठहर जाती हैं जिस की दीवारों पर पक्षियों के लिए कोई एकदो नहीं बल्कि 50 इको फ्रैंडली घोंसले बने हुए हैं.

घर पर बना रखे थे पक्षियों के घोंसले

पक्षी संरक्षण के इस अनूठे तरीके से देश भर के लोग प्रभावित थे और आए दिन इस बाबत रमेश वर्मा को फोन किया करते थे.

45 वर्षीय रमेश वर्मा अब इस दुनिया में नहीं है. पक्षियों के लिए बसाया उस का छोटा सा संसार भी अब उजड़ रहा है, जहां कुछ दिन पहले तक 100 से भी ज्यादा चिडि़या चहचहाया करती थीं. रमेश बच्चों की तरह उन का ध्यान रखता था और उन्हें वक्त पर दानापानी दिया करता था. इस मिशन में उस का परिवार भी उस का साथ देता था.

इन घोंसलों को देख कर कुछ लोग उसे सनकी भी कहते थे लेकिन रमेश किसी और धुन या सनक में ही पिछले कुछ दिनों से जी रहा था, जिस के बीज तो किशोरावस्था में ही उस के दिलोदिमाग में पड़ चुके थे.

उन में से एक बीज कैक्टस से भी ज्यादा कंटीला और विषैला पेड़ कब बन गया, यह न तो वह समझ पाया और न ही कोई उसे ढंग से समझा पाया. दिसंबर की हड्डी गला देने वाली ठंडी रातों में जब सारी दुनिया कंबलों, रजाइयों में दुबकी सो रही होती थी, तब रमेश एक कशमकश में डूबा कुछ सोच रहा होता था.

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एक निरर्थक सी बात पर कोई जितना खुद से लड़ सकता है रमेश उस से ज्यादा खुद से लड़ चुका था. आखिरकार 20 दिसंबर को उस की हिम्मत जबाब दे गई. ऐसा नहीं कि उस के पास किसी चीज की कमी थी, बल्कि वह तो दुनिया के उन खुशकिस्मत लोगों में से एक था, जिन के पास सब कुछ था.

परिवार में एक सीधीसादी आज्ञाकारी पत्नी, 2 हंसमुख सुंदर बेटियां और उन के बाद हुआ मासूम सा दिखने वाला बेटा, जिस का नाम उस ने कृष्ण के नाम पर प्यार से केशव रखा था.

नंगथला में प्रिंटिंग प्रैस चलाने वाले रमेश की कमाई इतनी थी कि घर खर्च आराम से चलने के बाद पैसा बच भी जाता था, जिस का बड़ा हिस्सा वह कारोबार बढ़ाने में लगा भी रहा था.

शादी के कार्ड छाप कर खासी कमाई कर लेने वाले इस तजुर्बेकार कारोबारी ने फ्लेक्स प्रिंटिंग का भी काम शुरू कर दिया था. इस के पहले वह पेंटिंग भी किया करता था.

फिर किस चीज की कमी थी रमेश के पास, जो उसे मुंहअंधेरे आत्महत्या कर लेनी पड़ी? इस बात को समझने से पहले और भी बहुत सी बातें समझ लेनी जरूरी हैं, जो आए दिन हर किसी के दिमाग में उमड़तीघुमड़ती रहती हैं.

मैं कौन हूं कहां से आया हूं मरने के बाद कहां जाऊंगा, क्या मेरी आत्मा को मुक्ति मिलेगी या मुझे भी 84 लाख योनियों में भटकना पड़ेगा और नर्क की सजा भुगतनी पड़ेगी, जैसे दरजनों सवाल रमेश को आज से नहीं बल्कि सालों से परेशान कर रहे थे.

इन्हीं सवालों से आजिज आ कर वह संन्यास लेना चाहता था, यानी घर से पलायन करना चाहता था. लेकिन घर वालों ने शादी कर उसे घरगृहस्थी के बंधन में बांध दिया.

धर्म के दुकानदारों के पैदा किए इन सवालों के कोई माने नहीं हैं इसलिए समझदार लोग इन्हें दिमाग से झटक कर अपने काम में लग जाते हैं और थोड़ी सी दक्षिणा पंडे, पुजारियों, पुरोहितों को दे कर अपना परलोक सुधरने की झूठी तसल्ली और मौखिक गारंटी ले कर अपनी जिम्मेदारियां निभाने में जुट जाते हैं और जिंदगी का पूरा लुत्फ उठाते हैं.

लोगों को धर्म के धंधेबाजों के हाथों ठगा कर एक अजीब सा सुख मिलता है, जिस की कीमत रमेश जैसे लोगों को मर कर चुकानी पड़ती है, जो पाखंडों के चक्रव्यूह में अभिमन्यु की तरह फंस कर दम तोड़ देते हैं.

क्या कोई धार्मिक व्यक्ति ऐसे जघन्य हत्या कांड को अंजाम दे सकता है? इस सवाल का जवाब हर कोई न में देना चाहेगा लेकिन हकीकत में यह धार्मिक सनक थी.

हैवान बनने की है अनोखी कहानी

रमेश ने हैवान बनने की कहानी भी खुद अपने हाथों से इस भूमिका के साथ लिखी कि यह दुनिया रहने लायक नहीं है. मैं इस दुनिया में नहीं रहना चाहता, लेकिन सोचता हूं कि मेरी मौत के बाद मेरे घर वालों का क्या होगा. मैं उन से बहुत प्यार करता हूं मैं कोई मानसिक रोगी नहीं हूं.

सुसाइड नोट में आगे रमेश ने लिखा, ‘मैं ने जिंदगी के आखिरी दिनों में बहुत मन लगाने की कोशिश की थी. मशीनें खरीदीं, दुकान भी खरीद ली थी. 2 लाख रुपए दे भी दिए थे और भी बहुत पैसा आ रहा था. चुनाव में कई लाख रुपए आए थे लेकिन शरीर और दिमाग हार मान चुके हैं. मन अब आजाद होना चाहता था कोई सुख, कोई बात अब रोक नहीं सकती. रोज रात को सब सोचता हूं. 3 दिन से पूरी रात जागा हूं आखों में नींद नहीं है. मन को बहुत लालच दिए, लेकिन बहुत देर हो चुकी है. अब रुकना मुश्किल था. कोई अफसोस कोई दुख नहीं.’

अपनी बात जारी रखते रमेश जैसे इस हादसे का आंखों देखा हाल बता देना चाहता था. इस के बाद उस ने लिखा, ‘सुबह के 4 बज चुके हैं घर से निकल चुका हूं. इतनी सर्दी में सब को परेशान कर के जा रहा हूं, माफ करना. सब से माफी.’ जाहिर है कि रमेश ने बेहद योजनाबद्ध तरीके से अपने प्यार करने वालों के मर्डर का प्लान किया था.

खीर में मिला दी थीं नींद की गोलियां

19 दिसंबर को उस ने अपनी दुकान दोपहर 3 बजे ही बंद कर दी थी जबकि आमतौर वह रात 10 बजे दुकान बढ़ाता था, इस दिन बेटा केशव भी उस के साथ था. दूसरे दुकानदारों से वह कम ही बातचीत करता था, इसलिए किसी ने यह नहीं पूछा कि आज इतनी जल्दी घर क्यों जा रहे हो.

कोई भी उसे देख कर अंदाजा नहीं लगा सकता था कि इस आदमी के दिमाग में क्या खुराफात चल रही है. घर पहुंच कर उस ने अपने हाथों से खीर बनाई और पत्नी सहित तीनों बच्चों को बड़े प्यार से खिला दी. फिर वह उन के सोने का इंतजार करने लगा, क्योंकि खीर में उस ने नींद की गोलियां मिला दी थीं.

इन चारों के नींद की गोलियों के असर में आ जाने के बाद उस ने उन सभी के सो जाने का इंतजार किया. सो जाने की तसल्ली हो जाने के बाद कुछ धार्मिक अनुष्ठान किए और फिर कुदाल उठा कर एकएक कर सभी की हत्या कर दी, जो वे बेचारे सपने में भी नहीं सोच सकते थे कि माली ही अपनी बगिया उजाड़ रहा है.

जन्ममरण के चक्र से मुक्त होने की इच्छा लिए इस धार्मिक आदमी को यह एहसास तक नहीं हुआ कि वह 4 बेकुसूर लोगों को महज मोक्ष की अपनी सनक पूरी करने के लिए बलि चढ़ा रहा है.

अपनी दिमागी परेशानी की चर्चा उस ने सुनीता से की भी थी, इस पर सुनीता ने हथियार डालते हुए आदर्श पत्नियों की तरह यह वादा किया था कि साथ जिए हैं तो मरेंगे भी साथसाथ ही. पति के पागलपन को बेहतर तरीके से समझने लगी.

सुनीता कितनी हताशनिराश हो चुकी थी, यह समझना बहुत ज्यादा मुश्किल काम नहीं. जब चारों ने दम तोड़ दिया तो इस पगलाए जुनूनी रमेश ने खुद को भी मारने की गरज से बिजली का नंगा तार अपनी जीभ पर रख लिया लेकिन इस से वह मरा नहीं, क्योंकि बिजली का करंट उस पर असर नहीं करता था, इस बात का जिक्र भी उस ने अपने सुसाइड नोट में किया था.

अब तक रमेश की सोचनेसमझने की ताकत पूरी तरह खत्म हो चुकी थी और जैसे भी हो वह मर जाना चाहता था, क्योंकि सूरज उगने में कुछ वक्त बाकी था फिर खुदकुशी करना आसान नहीं रह जाता और 4 हत्याओं के अपराध में वह हवालात में होता.

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अब उस ने घर से निकल कर सड़क पर आ कर किसी वाहन के नीचे आ कर मरने का फैसला कर लिया और जातेजाते यह बात भी सुसाइड नोट में लिख दी. इस के बाद क्या हुआ, इस के बारे में पुलिस का अंदाजा है कि वह झाडि़यों में छिप कर बैठ गया होगा और तेज रफ्तार से आती किसी गाड़ी के सामने आ गया, जिस से उस की मौके पर ही मौत हो गई.

काफी कोशिशों के बाद भी उस गाड़ी का अतापता नहीं चला, जिस के पहियों ने रमेश की मोक्ष की सनक को पूरा किया.

बुराड़ी कांड का दोहराव

एक और दुखद कहानी का अंत हुआ, जिस की तुलना दिल्ली के 21 जुलाई, 2018 को हुए बुराड़ी कांड से की गई. क्योंकि उस में भी मोक्ष के चक्कर में एक ही घर के 11 सदस्यों ने थोक में आत्महत्या कर ली थी.

मोक्ष नाम के पाखंड का स्याह और वीभत्स सच सामने आने के बाद भी अधिकतर लोगों ने इस बात से इत्तफाक नहीं रखा कि मोक्ष बकवास है बल्कि कहा यह कि रमेश को अगर मोक्ष चाहिए था तो खुद मर जाता, बीवीबच्चों की हत्या न करता. और जिन लोगों ने यह माना कि रमेश को मोक्ष के लिए आत्महत्या नहीं करना चाहिए थी, वे भी मोक्ष की औचित्यता पर सवाल नहीं कर पा रहे.

सवाल यह है कि मोक्ष का इतना फरजी गुणगान क्यों किया जाता है कि लोग अच्छीखासी हंसतीखेलती जिंदगी छोड़ आत्महत्या करने पर उतारू हो जाते हैं और इस के लिए अपने घर वालों की हत्या तक करने लगे हैं. पंडेपुजारियों और मोक्ष का महिमामंडित कर दक्षिणा बटोरने वालों पर गैरइरादतन हत्या का मामला दर्ज क्यों नहीं किया जाता.

रमेश ने गलत किया, यह कहने वाले तो बहुत मिल जाएंगे लेकिन धार्मिक अंधविश्वास और दहशत फैलाने वाले कौन सा सही काम करते हैं. यह कहने वाले जब तक इनेगिने हैं, तब तक इस प्रवृत्ति पर रोक लगने की उम्मीद करना एक बेकार की बात है. रमेश मानसिक कम धार्मिक रोगी ज्यादा था.

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