मनोहर कहानियां: मैनेजर निकली किडनैपिंग की मास्टरमाइंड

नसीम अंसारी कोचर

उत्तरपश्चिमी दिल्ली के शालीमार बाग के रहने वाले विकास अग्रवाल के बैंक्वेट हाल के बिजनैस में रंगत आ गई थी. बीते साल अच्छी तरह से बीते दशहरादीपावली के बाद शादियों का मौसम आ चुका था. वह खुश थे कि 2021 के लौकडाउन की कई बंदिशें हटाई जा चुकी थीं. जिस से शादियों के लिए बैंक्वेट हाल की बुकिंग तेजी से होने लगी थी.

दिसंबर 2021 की बात है. विकास अग्रवाल 17-18 दिसंबर की शादी की बुकिंग के लिए तैयारियों में लगे थे. काम बहुत था. सब कुछ शादी करवाने वाली पार्टियों के और्डर और फरमाइशों के मुताबिक करना था. बैंड वाले, कैटरिंग वाले, डीजे वाले, फोेटोवीडियो शूट वाले, घोड़ी वाले से ले कर सजावट तक में किसी भी तरह की चूक नहीं रहने देना चाहते थे.

सजावट पर तो उन का विशेष ध्यान था. वे चाहते थे कि लाइटों के अलावा सजावट में ताजे फूलों को ज्यादा से ज्यादा लगाएं. इन सब के लिए अग्रवाल ने अलगअलग डिपार्टमेंट बना रखे थे. मैनेजर ऋचा सब्बरवाल को सभी डिपार्टमेंट को संभालने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. साथ ही वह डेकोरेशन का काम भी देखती थी. डेकोरेशन में कोई कमी होने पर एक पार्टी ने पैसा काट लेने की बात कही थी. इसलिए अग्रवाल अपने साथ 18 साल के बेटे किंशुक का भी सहयोग लेने लगे थे. मार्केटिंग के लिए उसे भी अपने स्टाफ के साथ भेजते थे.

विकास अग्रवाल चाहते थे कि 12वीं में पढ़ने वाला उन का बेटा धीरेधीरे उन के बिजनैस के बारे में सीखसमझ ले. यही कारण था कि मार्केटिंग वगैरह के लिए उसे भी अपने स्टाफ के साथ भेजते थे.

विकास ने 17 दिसंबर 2021 की सुबहसुबह फूल खरीद लाने के लिए मैनेजर ऋचा और ड्राइवर जितेंद्र के साथ किंशुक को भी दिल्ली-यूपी बोर्डर से सटे गाजीपुर फूलमंडी भेज दिया था.

वे सुबह 6 बजे के करीब फूलमंडी पहुंच गए थे. गाजीपुर फूलमंडी पटपड़गंज इंडस्ट्रियल एरिया पुलिस स्टेशन के अंतर्गत आती है. उन्होंने मंडी जा कर अच्छेखासे फूल खरीद लिए थे. जितेंद्र, ऋचा और किंशुक अपनेअपने हाथों में फूलों का एकएक गट्ठर ले कर सड़क के किनारे पार्क गाड़ी के पास आ गए. ड्राइवर ने गाड़ी की डिक्की खोली और सभी ने उन में फूलों के गट्ठर रख दिए.

तब तक किंशुक गाड़ी की अगली सीट पर जा कर बैठने लगा. ऋचा मना करती हुई उस से बोली, ‘‘अरे वहां नहीं, पीछे की सीट पर बैठो न सेठ की तरह. तुम हमारे मालिक के बेटे हो, तो तुम भी तो सेठ हुए न.’’

और फिर ऋचा मुसकराने लगी. किंशुक भी आज्ञाकारी की तरह पीछे की सीट जा बैठा और ऋचा ड्राइवर सीट के बगल में बैठ गई. कुछ समय में जितेंद्र भी रजनीगंधा के फूलों का बंडल ले आया. उसे डिक्की में संभाल कर रख दिया और ड्राइवर की सीट पर बैठ गया.

तभी काले रंग की जैकेट, कैप और मास्क पहने हुए एक व्यक्ति किंशुक का गेट खोलते हुए घुस आया और उसे दूसरी तरफ धकेल दिया. उस ने फुरती से सामने बैठे ड्राइवर पर पिस्तौल तान दी. बोला, ‘‘चुपचाप मैं जैसे कहता हूं करो. जहां कहता हूं चलो.’’

तब तक जितेंद्र गाड़ी स्टार्ट कर चुका था. ऋचा अचानक हुई इस हलचल से पीछे देखने के लिए मुड़़ी. गाड़ी में जबरन आ घुसा व्यक्ति पिस्तौल की नोंक उस की तरफ घुमाते हुए बोला, ‘‘कोई आवाज नहीं. कोई फोन नहीं. तू चुपचाप बैठी रह और आगे देख, पीछे नहीं मुड़ना, वरना…’’

ऋचा डर कर आगे देखने लगी और जितेंद्र ने गाड़ी आगे बढ़ा दी.

‘‘अरे उधर नहीं, अशोक विहार चलो.’’ कहते हुए अज्ञात व्यक्ति ने पिस्तौल जितेंद्र की कनपटी पर तान दी. दूसरे हाथ से उस ने किंशुक के सिर को साथ लाए गमछे से लपेट लिया और अपनी गोद में नीचे झुका दिया. उसे भी डांटते हुए बोला, ‘‘चुपचाप से बैठा रह नहीं तो तुम्हें भी नहीं छोडूंगा.’’

‘‘मुंह खोल दो सांस नहीं ले पा रहा हूं. मैं चुपचाप बैठूंगा. शोर नहीं मचाऊंगा.’’ किंशुक मिमियाता हुआ बोला.

‘‘चलो ठीक है गमछा हटा लेता हूं.’’ किंशुक के चेहरे से भले ही गमछा हटा दिया गया हो, लेकिन उस की गरदन में लिपटा रहा और उसे वह अज्ञात व्यक्ति मजबूती से पकड़े रहा.

यह सब जितेंद्र अपने सामने लगे शीशे में देख कर समझ गया कि किंशुक का किडनैप हो चुका है और वे सभी किडनैपर की गिरफ्त में हैं. पिस्तौल देख कर तीनों घबरा गए. फिर जितेंद्र ने वैसा ही किया, जैसा वह किडनैपर कहता गया. उस के इशारे पर दाएंबाएं गाड़ी को मोड़ता रहा. अशोक विहार के रास्ते पर किडनैपर ने किंशुक के मोबाइल फोन से उस के पिता विकास अग्रवाल को वाट्सऐप काल किया. उन से कहा कि उस ने उन के बेटे का किडनैप कर लिया है. एक करोड़ रुपए की फिरौती मिलने के बाद ही उसे छोड़ेगा.

सुबहसुबह एक करोड़ फिरौती की बात सुन कर विकास अग्रवाल के होश उड़ गए. वह फोन पर किडनैपर से मिन्नतें करने लगे, ‘‘मेरे पास उतने पैसे नहीं हैं. मैं कहां से दूं पैसे… प्लीज मेरे बेटे को कुछ मत करना…’’

किडनैपर ने बात पूरी होने से पहले ही फोन कट कर दिया और भुनभुनाने लगा, ‘‘हरामजादा, कहता है पैसे नहीं हैं. शादियों के 20-20 लाख की बुकिंग करता है, कहां गए पैसे? …चल रे, गाड़ी घुमा इसे गाजियाबाद ले चलते हैं. वहीं ठिकाने लगा देंगे.’’

‘‘ऐसा मत करना, मेरे मालिक बहुत अच्छे हैं. मुझे पता है उन्होंने बड़ी मुश्किल से काम शुरू किया है.’’ जितेंद्र बोला.

उस की बात खत्म होते ही किंशुक के मोबाइल पर विकास अग्रवाल की काल आ गई. किडनैपर काल में पापा लिखा देख कर समझ गया विकास का ही फोन है. उस ने तुरंत फोन काट दिया और किंशुक से बोला, ‘‘पापा को बोल वाट्सऐप से काल करें.’’

किंशुक ने वैसा ही किया, जैसा किडनैपर ने कहा.  कुछ सेकेंड में ही वाट्सऐप पर काल आ गई. किडनैपर ने झट अपने हाथ में फोन ले लिया. उधर से विकास के गिड़गिड़ाने की आवाज आने लगी, ‘‘देखो, मेरे पास उतने पैसे नहीं हैं. मेरे बेटे को कुछ मत करना. 50 लाख तक का इंतजाम कर सकता हूं मैं.’’

‘‘ज्यादा चालाकी मत दिखाओ. जल्दी करो, वरना मैं इसे ले कर गाजियाबाद जा रहा हूं. फिर इस का जो होगा समझ लेना.’’

‘‘नहींनहीं, मैं आधे घंटे में 50 लाख का इंतजाम कर लूंगा,’’ विकास ने कहा.

‘‘चलो तुम्हारी बात मान लेता हूं, लेकिन आधा घंटा नहीं. केवल 20 मिनट. पैसे 2 अलगअलग थैलियों में आधाआधा रख कर अशोक विहार में पार्क के गेट से पहले कूड़ेदान के पास मिलना.’’ यह कहते हुए किडनैपर ने फोन कट कर दिया. जितेंद्र ने पीछे मुड़ना चाहा, तो किडनैपर फिर पिस्तौल उस की कनपटी पर सटाते हुए बोला, ‘‘तू अशोक विहार ही चल. तिकोना पार्क की बाउंड्री के पास.’’

फिरौती में दे दिए 50 लाख रुपए

उधर विकास अग्रवाल जल्दी ही रुपए ले कर बताई गई जगह पर पहुंच गए. कुछ मिनट में ही जितेंद्र की गाड़ी वहां पहुंच गई. किडनैपर ने विकास से पैसे की थैलियां ले लीं और किंशुक, जितेंद्र और ऋचा को गाड़ी से उतरने को कहा.

विकास को जितेंद्र की जगह ड्राइविंग सीट पर बैठने को कह कर खुद उस की बगल वाली सीट पर बैठ गया. पिस्तौल अब भी उस के हाथ में थी, जो विकास की ओर तनी थी. उस ने विकास को गाड़ी चलाने को कहा.

विकास उस के इशारे पर अपनी कार को आधे घंटे तक सड़कों पर दौड़ाते रहे. अंत में किडनैपर ने पश्चिम विहार की मुख्य सड़क पर रेडिसन होटल के पास गाड़ी रोकने को कहा. गाड़ी रुकते ही किडनैपर उतर गया. विकास को गाड़ी ले जाने के लिए कहा.

किडनैपर के उतरते ही विकास की जान में जान आई. किंशुक के मुक्त होने पर वह पहले ही निश्चिंत हो चुके थे. उन्होंने तुरंत शालीमार बाग की ओर गाड़ी घुमा ली और तेजी से अपने घर की ओर निकल गए.

विकास दिन में करीब 11 बजे घर आ गए. घर पर किंशुक को खाने की टेबल पर देख कर खुश हो गए. गले लगे और सिर्फ इतना पूछा, ‘‘तू ठीक है न? उस ने तुम्हारे साथ मारपीट तो नहीं की न?’’

किंशुक बोला, ‘‘नहीं पापा.’’

विकास अग्रवाल के दिमाग में खलबली मची हुई थी. वह पूरा वाकया जानना चाहते थे. बेटे के मुंह से सुनना चाहते थे.

किंशुक ने फूल खरीदने से ले कर किडनैपिंग और घर तक पहुंचने की सिलसिलेवार ढंग से कहानी सुना दी. उसी क्रम में उस ने बताया कि ऋचा रास्ते से ही औफिस चली गई और वह ड्राइवर के साथ घर आया.

विकास को यह बात बड़ी अजीब लगी कि इतनी बड़ी घटना हो जाने के बावजूद वह उन का घर लौटने तक इंतजार करना तो दूर घर तक आई भी नहीं. हालांकि इस पर ज्यादा सोचने के बजाय इस उधेड़बुन में लग गए कि इस घटना की सूचना पुलिस को दी जानी चाहिए या नहीं?

थोड़ी देर में वह तैयार हो कर वैंक्वेट हाल का काम देखने के लिए अपने औफिस आ गए. वहां ऋचा उस रोज की बुकिंग के लिए सजावट के काम में लगी हुई थी.

उन्होंने उसे और जितेंद्र को औफिस में बुलवाया. उन से भी किडनैपिंग की घटना के बारे में पूरा किस्सा सुना. साथ ही पूछा कि क्या वे लोग किडनैपर को पहचान लेंगे?

इस पर उन्होंने कहा कि वह अपना चेहरा पूरी तरह से ढंके हुए था और गाड़ी में आगे बैठे होने के कारण उस की कदकाठी या चालढाल पर ध्यान ही नहीं दिया.

औफिस के केबिन से ऋचा के जाने के बाद जितेंद्र से विकास ने पूछा, ‘‘जितेंद्र, ऋचा इतनी निराश और उखड़ी हुई क्यों लग रही है?’’

‘‘सर जी, वह इस घटना के बाद निराश इसलिए हो गई, क्योंकि उसे लगता है कि अब तो उस की सैलरी किसी भी कीमत पर नहीं बढ़ सकती. यह बात आप के आने से पहले बोल रही थी.’’ जितेंद्र बोला.

‘‘अब तू ही बता न मैं क्या करूं? अभी काम थोड़ा चलना शुरू हुआ ही था कि एक और आफत आ गई. मैं ने कैसेकैसे कर उतने रुपए जुटाए, मैं ही जानता हूं. सोचता हूं पुलिस में इस की शिकायत करवा दूं. शायद किडनैपर पकड़ा जाए और पैसे मिल जाएं. क्यों तुम क्या कहते हो?’’ विकास ने सलाह ली.

‘‘अपने लोगों से भी इस पर सलाह ले लीजिए. मैं क्या बोलूं? मैं ठहरा छोटा आदमी.’’ ऐसा बोल कर ड्राइवर चला गया.

उस के जाने के बाद विकास अग्रवाल ने एक कप कौफी मंगवाई. कौफी की घूंट लेते हुए इसी सोच में डूबे रहे पुलिस को शिकायत करें या नहीं. मन में 2 बातें आजा रही थीं. अगर करते हैं, तो थाने कोर्ट का चक्कर लग जाएगा. काफी काम पसरा हुआ है. अगर नहीं करते हैं, तो किडनैपर उसे डरा हुआ समझेगा और हो सकता है वह दोबारा ऐसा कर दे.

इसी उहापोह में उन्होंने अपने कुछ खास कारोबारी मित्रों और पत्नी तक से सलाह ली. अधिकतर का कहना था कि पुलिस में शिकायत की जानी चाहिए. कइयों ने दावे के साथ कहा कि ऐसा करने पर पुलिस अगर चाहे तो फिरौती का पैसा वापस भी मिल सकता है.

अंतत: विकास अग्रवाल ने अगले रोज 18 दिसंबर, 2021 को पूर्वी दिल्ली के पटपड़गंज इंडस्ट्रियल एरिया थाने में अपहरण की शिकायत दर्ज करवाने पहुंचे. उन्होंने थानाप्रभारी सुरेंद्र कुमार को पूरी घटना का जिक्र करते हुए गुजारिश की कि अपहर्त्ता के खिलाफ काररवाई कर उन से वसूला गया पैसा वापस दिलाया जाए.

थानाप्रभारी ने जितेंद्र और किंशुक के अलावा ऋचा को भी गवाही के लिए बुलाया. लेकिन ऋचा नहीं आ पाई. उस ने जितेंद्र को सुबह के समय ही फोन पर कह दिया था कि उस की तबीयत ठीक नहीं है, इसलिए वह औफिस नहीं आ पाएगी.

थानाप्रभारी ने इस की सूचना डीसीपी प्रियंका कश्यप को दे दी. अपहरण और फिरौती दे कर छूटे किशोर की घटना पुलिस को काफी अलग तरह की लगी. इसलिए डीसीपी प्रियंका कश्यप ने किडनैपर की तलाश के लिए एसीपी (मधु विहार) नीरव पटेल के नेतृत्व में एक पुलिस टीम का गठन किया. टीम में थानाप्रभारी सुरेंद्र कुमार, एसआई नरेंद्र, एएसआई खलील, हैडकांस्टेबल भूपेंद्र, संदीप, कांस्टेबल नितिन राठी, आदि शामिल किए गए.

पुलिस टीम ने खंगाली 200 सीसीटीवी कैमरों की फुटेज

विकास अग्रवाल ने जांच टीम को घटनाक्रम की पूरी कहानी बताई. उन्होंने बताया कि वह दिल्ली के शालीमार बाग में परिवार के साथ रहते हैं. उन के 2 बच्चे हैं. 18 वर्षीय बेटा किंशुक और उस से छोटी एक बेटी है.

घटना के दिन किंशुक बैंक्वेट हाल की सजावट के लिए गाजीपुर फूलमंडी से अपने ड्राइवर और बैंक्वेट हाल की मैनेजर कम डेकोरेटर के साथ फूल खरीदने गया था. वहीं उस का किडनैप हो गया था.

मधु विहार क्षेत्र के एसीपी नीरव पटेल ने जांच टीम को 2 मुख्य काम सौंपें. पहला, उन सड़कों और दुकानों आदि पर लगे सभी सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली जाए, जिन पर एक दिन पहले विकास अग्रवाल की कार करीब 4 घंटे घूमती रही और दूसरा सभी के फोन काल रिकौर्ड्स की जांच की जाए.

इस सिलसिले में पुलिस ने जांच शुरू की, लेकिन 70 किलोमीटर की सड़कों पर जगहजगह लगे सीसीटीवी कैमरों की जांच का काम आसान नहीं था, मगर उन की टीम इस काम को अंजाम देने में जुट गई थी. 4 दिनों तक रातदिन एक कर करीब 200 सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली गई.

उन में विकास की कार कई सड़कों पर दौड़ती दिखाई दी. फिर वह जगह सामने आई, जहां किडनैपर कार से नीचे उतरा था. कुछ मिनट बाद वह एक आटो में बैठ गया था.

पुलिस टीम उन सभी रास्तों के सीसीटीवी फुटेज खंगालती है जिन रास्तों पर किडनैपर को ले कर जाता वह आटो दिखाई दिया. बीच में एक किलोमीटर के रास्ते में आटो कहीं नजर नहीं आया.

ऐसा होने पर पुलिस को लगा कि उन की सारी मेहनत बेकार हो गई. फिर भी टीम ने हिम्मत नहीं हारी. एक बार फिर से सीसीटीवी देखे गए. कड़ी मेहनत के बाद अचानक एक रास्ते पर फिर वह आटो दिखाई दे गया. किडनैपर उसी आटो से एक पैट्रोल पंप के पास उतर गया था. टीम ने लगातार उस के मूवमेंट पर नजर बना रखी थी.

स्कूटी सवार से मिली सफलता

अगली फुटेज में एक स्कूटी सवार उस के पास आता दिखा. किडनैपर जल्दी से उस स्कूटी पर बैठ कर चल दिया. स्कूटी त्रिनगर के ओंकार नगर की ओर जाती नजर आई. सीसीटीवी फुटेज के जरिए पुलिस ने स्कूटी और लड़के की पहचान कर ली गई.

इस तरह मिले महत्त्वपूर्ण सुरागों के सहारे पुलिस पहले उस स्कूटी वाले लड़के तक पहुंची. उस के बाद पुलिस के हाथ वह किडनैपर भी लग गया, जिस ने किंशुक का अपहरण कर 50 लाख रुपए की फिरौती वसूली थी.

पुलिस ने उस से सख्ती से पूछताछ की. किडनैपर ने अपना नाम  गुरमीत सिंह बताया. उस की गिरफ्तारी के बाद किडनैपिंग की चौंका देने वाली कहानी सामने आई, जिस के बारे में विकास अग्रवाल कभी सोच भी नहीं सकते थे.

उन्हें आश्चर्य हुआ कि पूरी तरह से उन के खिलाफ रची गई साजिश के तहत अपहरण  किया गया था. उस का मास्टरमाइंड और कोई नहीं, बल्कि उन की मैनेजर 33 वर्षीया ऋचा सब्बरवाल थी.

घटना के अगले दिन से ही ऋचा तबीयत खराब होने का बहाना बना कर काम पर भी नहीं आ रही थी. पुलिस ने उस के मानसरोवर गार्डन निवास से उसे गिरफ्तार कर लिया. उस से गुरमीत का सामना करवाया गया. फिर पूछताछ की गई.

वह अपने पति निकुल सब्बरवाल और 2 बच्चों के साथ दिल्ली के मानसरोवर गार्डन क्षेत्र में रह रही है. उस ने बताया कि किडनैपिंग का काम उस ने मजबूरी में किया. लौकडाउन में उस के पति को कारोबार में भारी घाटा हुआ था. कारोबार ठप हो गया था. उस के लिए अपनी थोड़ी सी तनख्वाह से घर चलाना मुश्किल हो गया था.

2 बच्चों की पढ़ाई का बोझ भी उस पर था. उस के पति ने कई जगह से पैसा उधार ले रखा था. परिवार पर मोटा कर्ज भी चढ़ गया था. बैंक्वेट हाल में उसे 25 हजार रुपए महीने मिलते थे. इस से घर का खर्च ही पूरा नहीं हो पा रहा था. कर्ज की भरपाई करना तो बहुत दूर की बात थी.

मैनेजर ऋचा ने रची पूरी साजिश

उस ने अपने मालिक विकास अग्रवाल से सैलरी बढ़ाने और प्रमोशन करने को कहा था. उन्होंने सैलरी बढ़ाने से साफ इनकार कर दिया था. इस कारण ही ऋचा ने अपने एक 36 वर्षीय दोस्त गुरमीत सिंह और उस के दोस्त 35 वर्षीय कमल बंसल के साथ मिल कर विकास अग्रवाल के बेटे किंशुक के अपहरण की साजिश रच डाली.

बैंक्वेट हाल की सजावट के लिए फूलमंडी गाजीपुर से फूल लेने किंशुक को भी जाना था. ऋचा को यह मौका सब से अच्छा लगा. उस ने गुरमीत और कमल से बात की.

दोनों ऋचा की साजिश में शामिल हो गए. ऋचा ने इस साजिश में अपनी 56 वर्षीय मां अनीता सब्बरवाल को भी शामिल कर लिया, लेकिन पति निकुल सब्बरवाल को इस साजिश की भनक तक नहीं लगने दी.

17 दिसंबर की सुबह किंशुक ऋचा और जितेंद्र के साथ गाजीपुर मंडी पहुंचे थे. फूल आदि खरीदने के बाद जब तीनों बाहर निकले और अपनी कार में बैठे. तभी कार के पिछले दरवाजे को खोल कर गुरमीत सिंह अंदर घुस आया था.

इस तरह अपहरण की घटना को अंजाम देने के बाद पैसे ले कर आराम से चला गया. पहले आटो, फिर स्कूटी से फरार होने में सफल हो गया. पुलिस ने उस से फिरौती की 50 लाख की रकम में से 40 लाख रुपए बरामद भी कर लिए. बाकी के 10 लाख रुपए ऋचा ने अपन कर्ज आदि चुकाने में लगा दिए थे.

नीरव पटेल ने बताया कि पूरी साजिश ऋचा व गुरमीत सिंह की रची हुई थी. इस में ऋचा के पति की कोई भूमिका नहीं थी. बाद में ऋचा की मां अनीता को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

स्कूटी चालक कमल बंसल को भी पुलिस ने ओंकार नगर से ही गिरफ्तार किया. इन लोगों के पास से कुल 40 लाख रुपए की बरामदगी हुई. इस में सब से मजे की बात यह  रही कि किडनैपर ने जिस पिस्तौल की नोक पर पूरे कांड को अंजाम दिया था वह एक टौय गन यानी नकली थी.

दिल्ली पुलिस ने सभी अपराधियों को भारतीय दंड संहिता की धारा 364ए (अपहरण व फिरौती के लिए अपहरण) और 506 (आपराधिक धमकी के लिए सजा) और आर्म्स एक्ट की धारा 25 और 27 के तहत गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है.

मनोहर कहानियां: चांदनी को लगा शक का तीर

शाहनवाज

26दिसंबर, 2021 की सुबह के करीब 6 बज रहे थे, जब कानपुर के नौबस्ता थाना क्षेत्र में राजीव नगर की एक कालोनी के एक घर में दूसरी मंजिल पर रहने वाले हैदर के घर से बच्चों के रोने की आवाजें तेज हो गईं. हालांकि हैदर के घर से बच्चों की रोने की आवाजें बहुत पहले से ही आ रही थीं, लेकिन ठंड के दिनों में इतनी सुबहसुबह वह बिस्तर से उठना नहीं चाहता था. वैसे भी हैदर के घर के झगड़ेझमेलों में मकान का कोई भी दूसरा पड़ोसी पड़ने को तैयार नहीं था.

उन के घर पर लगभग रोजाना झगड़ा होना, मारपीट और बच्चों के चीखनेचिल्लाने व रोनेपीटने की आवाजें आम बात सी हो गई थी. कुछ ही देर में बच्चों के रोने की आवाजें इतनी तेज हो गईं कि अब लोगों की आंखों की नींद टूटने लगी थी. मकान की पहली मंजिल पर रहने वाला मकान मालिक तो उन के आपसी झगड़ों से इतना परेशान हो गया था कि उस ने तय कर लिया कि वो हैदर को घर खाली करने को कह देगा.

मकान मालिक गुस्से और तैश में अपने बिस्तर से निकला, अपने कमरे से निकलते हुए उस ने अपने पैरों में चप्पल डाली और तेजी से भागता हुआ सीढि़यां चढ़ कर दूसरी मंजिल पर हैदर के कमरे का दरवाजा खटखटाते हुए बोला, ‘‘हैदर जल्दी बाहर निकल. तुम लोगों का हर दिन का ये ड्रामा अब मैं नहीं सह सकता. जल्दी निकल. तेरा इलाज तो मैं आज करता हूं.’’

कुछ ही देर में दरवाजा खुला. दरवाजा हैदर ने नहीं बल्कि रोते हुए हैदर की 5 साल की बेटी सायमा ने खोला था. उसे रोता देख मकान मालिक ने उसे अपनी गोद में उठा लिया और बोला, ‘‘अरे रो क्यों रही है? पापा कहां हैं तेरे? सुबह से तुम ने रोरो कर सब की नींद हराम कर डाली है.’’

सायमा को गोद में उठाते हुए मकान मालिक ने कमरे के दरवाजे का दूसरा पल्ला खोला और अंदर का नजारा देख उस की आंखें खुली की खुली रह गईं.

उस ने देखा कि कमरे में बिखरे सामान के बीचोबीच जमीन पर हैदर की बीवी चांदनी पड़ी है. चांदनी के ठीक बगल में उन का 2 साल का बेटा हसन अपनी मां के गालों पर हाथ लगा कर उसे उठाने की लगातार कोशिश कर रहा है. लेकिन चांदनी कोई जवाब ही नहीं दे रही है.

यह देख कर मकान मालिक के ठंडे पड़े कान एकदम से गरम हो गए. उस के हाथपांव सुन्न पड़ गए. उस के गले से आवाज नहीं निकल रही थी और उस के शरीर की मानों सारी ऊर्जा खत्म सी हो गई.

बड़ी हिम्मत जुटा कर मकान मालिक अपनी गोद में सायमा को उठा कर कमरे में दाखिल हुआ और बिखरे सामान को अपने पैरों से हटा कर कदमों को आगे बढ़ाया. जैसेजैसे वह चांदनी की ओर आगे बढ़ता जा रहा था, वैसेवैसे उस के पैरों की हड्डियां मानों लचीली होती जा रही थीं.

उस ने चांदनी को देखने के बाद मन ही मन यह अंदाजा लगा लिया था कि उसे क्या हुआ होगा, लेकिन वह इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं था.

दम तोड़ चुकी थी चांदनी

जब वह जमीन पर पड़ी चांदनी के एकदम नजदीक पहुंचा तो वह झुका और सायमा को अपनी गोद से उतारा. बिना कुछ कहे दोनों हाथों का इस्तेमाल कर उस ने चांदनी की कलाई उठाई और अपने दूसरे हाथ से उस की नब्ज टटोलने लगा. नब्ज मिलने पर उस ने उसे दबाया और उस की धड़कन महसूस करने की कोशिश की.

इस बीच कमरे में दोनों बच्चों की सुगबुगाहट और रोने का शोर पूरा था, लेकिन उसे मानो कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था. करीब 2 मिनट तक चांदनी के हाथों की नब्ज टटोलने के बाद उसे महसूस हुआ कि चांदनी की धड़कने थम चुकी हैं. लेकिन उस ने हार नहीं मानी. उस ने अपने कानों को चांदनी की नाक के पास ले जार कर चैक किया. चांदनी की सांस चल रही है या नहीं.

मकान मालिक यह मंजर देख कर इतना डर गया कि उस ने फिर से एक बार चांदनी की नब्ज दबाई. लेकिन उसे असफलता ही हाथ लगी. जब उस के मन ने यह मान लिया कि चांदनी मर चुकी है तो डरेसहमे मकान मालिक ने कमरे में मौजूद 2 साल के हसन को अपनी गोद में उठाया और सायमा का हाथ पकड़ कर उन्हें कमरे से बाहर ले कर निकला और मकान में जोर से शोर मचाया. देखते ही देखते हैदर के कमरे के सामने मकान में रहने वाले सभी किराएदारों का झुंड लग गया. मकान में खड़े रहने की इतनी जगह नहीं थी तो लोगों की मकान के बाहर गली में भीड़ जुटने लगे.

इस बीच मकान मालिक ने फोन कर स्थानीय पुलिस को इस घटना की सूचना दे दी और सभी पुलिस के आने का इंतजार करने लगे. हर कोई जिस को यह बात पता लगती जाती कि फलां घर में फलां महिला की मौत हो गई है. वह मकान के आगे खड़ा हो जाता और मामले में होने वाली हलचल को देखने में व्यस्त हो जाता.

हैदर के मकान के आगे जुटी भीड़ की खुसफुसाहट से इलाके में धीमा शोर सा फैल गया. थाना वहां से बहुत दूर नहीं था. कुछ देर के बाद ही स्थानीय पुलिस सूचना मिलते ही वहां पहुंच गई तो मकान के आगे जुटी भीड़ ने पुलिसवालों के लिए रास्ता बनाया.

नौबस्ता थानाप्रभारी अमित कुमार भड़ाना के नेतृत्व में पुलिसकर्मी मकान में उस कमरे में गए, जहां पर हत्या को अंजाम दिया गया था. कमरे में चांदनी की लाश जमीन पर पड़ी थी और घर का हर सामान अपनी जगह पर नहीं था. कमरे का माहौल इतना अस्तव्यस्त था कि घटनास्थल को सही से समझने में पुलिसकर्मियों को काफी समय लग गया.

घटनास्थल से जुटाए सबूत

पुलिस की टीम ने देखा कि कमरे में ऊपर टंगे हुए पंखे की पंखुडियां नीचे की ओर मुड़ी हुई थीं. लाश के पास ही चांदनी का दुपट्टा भी मौजूद था. यह देख कोई भी यह अंदाजा लगा सकता था कि हत्या को अंजाम पीडि़ता को फांसी पर लटका कर दिया गया था. देरी न करते हुए मौके पर पहुंची पुलिस टीम ने चांदनी की लाश को पास के सरकारी अस्पताल में पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. इस के साथ ही घटनास्थल से पुलिस टीम ने फोरैंसिक टीम की मदद ले कर सभी जरूरी सबूतों को इकट्ठा कर लिया.

यह सब करने के बाद अब बारी थी पूछताछ की. थानाप्रभारी ने अपनी टीम की सहायता ले कर मामले को समझने के लिए मकान मालिक समेत सभी किराएदारों से हैदर और चांदनी के बारे में पूछताछ की. इस के साथ ही पुलिस ने चांदनी के रिश्तेदार, जिस में उस का भाई अब्दुल माजिद जो कानपुर के बाबुपुरवा में रहता था, को इस घटना की सूचना दी और जल्द से जल्द राजीव नगर अपनी बहन के घर पर आने को कहा.

पूछताछ के दौरान मकान मालिक और मकान में रहने वाले सभी किराएदारों ने पुलिस को बताया कि हैदर और चांदनी के बीच लगभग हर दिन झगड़े होते रहते थे. हैदर पेशे से पेंटर था और कोविड की वजह से उस के काम पर काफी असर पड़ा था.

इन दिनों उस का काम थोड़ाबहुत बढ़ा था, जिस के बाद ही वह मकान मालिक को किराए के पैसे दे पाया था. जब पुलिस ने उन के बीच झगड़ों की वजह पूछी तो पता चला कि हैदर हर रात को दारू पी कर घर आता था और वह घर के खर्चों के लिए चांदनी को पैसे भी नहीं देता था. इसलिए चांदनी घर के खर्चों के लिए घर पर ही पतंग बनाने का काम किया करती थी और उसी से ही बच्चों की जरूरतें पूरा किया करती थी.

हर किसी से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने चांदनी और हैदर के बच्चों का रुख किया. हालांकि बच्चे उस समय भी लगातार रो ही रहे थे. पुलिस की टीम ने उन्हें खिलौने और खाने के लिए चौकलेट खरीद कर दिए तो बच्चे कुछ पल के लिए शांत हुए.

सायमा ने पुलिस को बताई कहानी

इसी दौरान थानाप्रभारी ने चांदनी की बेटी सायमा से इस घटना के बारे में पूछा. सायमा फफकते हुए धीमी आवाज में बोली, ‘‘पापा ने मम्मी के गले में दुपट्टा डाला और खींच कर पकड़ा. मम्मी जवाब नहीं दे रही थीं.’’

यह सुन कर थानाप्रभारी चौकन्ने हो गए और सायमा से इस बारे में थोड़ा और खुल कर बताने के लिए कहा. सायमा थानाप्रभारी को कुछ भी बताने से काफी डर रही थी. थानाप्रभारी उस छोटी बच्ची के डर को साफ महसूस कर रहे थे. इसलिए उन्होंने सायमा के डर को दूर करने के लिए उसे अपने विश्वास में ले कर थोड़ी दूर आए.

वह सायमा से बोले, ‘‘बेटा डरने की जरूरत नहीं है. हम हैं न यहां पर. जो कुछ हुआ उसे बिना डरे बताओ. तुम्हें कोई कुछ नहीं कहेगा.’’

रोती हुई सायमा को थानाप्रभारी की बात सुन कर थोड़ा अच्छा महसूस हुआ तो उस ने जवाब दिया, ‘‘पापा ने बोला कि अगर किसी को इस बारे में बताया तो वे हमें भी मम्मी की तरह मार डालेंगे.’’

यह सुन कर थानाप्रभारी के कान खड़े हो गए. उन्होंने सायमा को फिर से भरोसा दिलाया कि उसे कुछ नहीं होगा, अगर वो सब कुछ सचसच बता देगी तो वह उस की अम्मी के कातिल को सजा दिला पाएंगे.

सायमा को थानाप्रभारी की बातों पर भरोसा हो गया तो उस ने कहा, ‘‘पापा की मम्मी से कल रात को भी लड़ाई हुई थी. पापा दारू पी कर आए थे और मम्मी को पैसे देने के लिए बोल रहे थे. कल रात को भी पापा ने मम्मी को मारा था. उस के हाथ पर चोट आई थी कल रात को. आज सुबह भी उन के बीच झगड़ा हुआ था. पापा काम के लिए सुबह निकलने वाले थे और मम्मी से पैसे मांग रहे थे. मम्मी ने पैसे नहीं दिए तो पापा ने गुस्से में मम्मी के गले में उन का दुपट्टा डाला और कस दिया. उस के बाद मम्मी कुछ नहीं बोलीं.

‘‘जब पापा ने मम्मी के गले में उन का दुपट्टा डाला था तो मैं और मेरा छोटा भाई पापा के सामने हाथ जोड़ कर रो रहे थे कि मम्मी को छोड़ दीजिए पापा. लेकिन पापा ने तब तक मम्मी को नहीं छोड़ा, जब तक मम्मी ने बोलना बंद नहीं किया था.

ऐसा करने के बाद पापा ने मेरा गला पकड़ लिया और जोर से दबा दिया था और मुझ से बोले कि अगर मैं ने किसी को भी इस के बारे में बताया तो वह मुझे भी मम्मी की तरह चुप करा देंगे. अंकल मुझे डर लग रहा है अब. क्या पापा सही में मुझे मम्मी की तरह चुप करवा देंगे?’’

यह सब सुन कर थानाप्रभारी की आंखें खुली रह गईं. 5 साल की बच्ची ने पूरा किस्सा पुलिस को बता दिया था. लेकिन थानाप्रभारी के मन में अभी भी एक अहम सवाल बना हुआ था कि हैदर ने चांदनी की हत्या क्या सिर्फ पैसों की वजह से की होगी?

हैदर को चांदनी पर हो गया था शक

इस सवाल का जवाब उन्हें चांदनी के भाई अब्दुल माजिद से मिला जो सायमा से पूछताछ के दौरान ही अपने कुछ और करीबी रिश्तेदारों के साथ राजीव नगर पहुंचा था. अब्दुल माजिद ने थानाप्रभारी को बताया कि हैदर और चांदनी की शादी 8 साल पहले कानपुर में ही हुई थी. उस समय हैदर पेंटिंग का काम किया करता था और ठीकठाक कमाता था.

लेकिन जब से कोविड की शुरुआत हुई और सब के कामधंधे ठप पड़ गए तो वह भी घर पर बैठ गया. लेकिन लौकडाउन के उन दिनों में भी वह घर से निकलता था और अड़ोसपड़ोस के लफाडि़यों के संग दो पैसे कमाने के मकसद से जुआ खेलने लगा था. लेकिन जुए में वह पैसे कमाने की जगह पैसे गंवाने लगा और धीरेधीरे उस ने अपनी पूरी जमापूंजी जुए में गंवा दी. इन सब के लिए चांदनी उसे बहुत टोका करती थी और जुआ खेलने को ले कर उस से झगड़े करती थी. लेकिन वह नहीं माना.

हार मान कर चांदनी ने घर खर्च चलाने के लिए पतंग बनानी शुरू कर दीं. चांदनी दिन भर घर के काम, बच्चों की देखरेख और पतंग बनाने में व्यस्त रहने लगी और उन के आपस के झगड़े भी कम होने लगे. झगड़े कम होने की वजह से हैदर को सुकून तो मिला, लेकिन उस के मन में चांदनी को ले कर शक पैदा होने लगा कि कहीं उस की बीवी गलत काम कर के पैसे तो नहीं जोड़ रही है.

जैसेजैसे दिन बीतते जाते, हैदर के मन का शक भी बढ़ता ही जाता. कुछ समय बाद जब देश में कोविड से हालात सामान्य हुए और हैदर का पेंटिंग का काम फिर से चालू हुआ तो हैदर भी पूरा दिन घर से बाहर काम में लगाने लगा. हैदर ने शराब पीने की लत भी तभी से ही लगाई थी.

धीरेधीरे उन के बीच फिर से पहले की तरह ही झगड़े होने शुरू हो चुके थे, लेकिन अब झगड़ा पैसों को ले कर नहीं बल्कि चांदनी के चरित्र को ले कर हुआ करता था.

दरअसल, हैदर को चांदनी पर इस बात का शक था कि चांदनी जिस दुकानदार के लिए पतंग बनाने का काम करती है, शायद उसी के साथ ही उस के अवैध संबंध हैं. इस बात पर उन के बीच आए दिन झगड़ा होने लगा. इसी दौरान हैदर ने अपने शक्की दिमाग में चांदनी के लिए न जाने क्याक्या खयाल पैदा कर लिए और झगड़े मारपीट में बदल गए. चांदनी बच्चों की चिंता कर हैदर की मारपीट को सहन कर लिया करती और अपना काम जारी रखती.

लेकिन 25 दिसंबर, 2021 की रात को उन के बीच फिर से झगड़ा हुआ और अगली सुबह हैदर ने चांदनी को जान से मार दिया.

इस पूरी घटना के बाद पुलिस ने फरार आरोपी हैदर के खिलाफ हत्या की धाराओं में मामला दर्ज कर लिया है और उस की तलाश जारी है. कथा लिखने तक पुलिस आरोपी हैदर को गिरफ्तार नहीं कर सकी थी.

Crime: भाई पर भारी पड़ी बहन की हवस

गांवों में वैसे भी रात जल्दी हो जाती है और जब दिसंबर की सर्द रात हो तो गांव की गलियों में सन्नाटा पसरना आम बात है. उत्तर प्रदेश के प्रयागराज के कौंधियारा ब्लौक के बड़गोहना गांव में भी ऐसा ही कुछ माहौल था. ज्यादातर घरों की बत्तियां बंद थीं और लोग बिस्तरों में दुबक कर ठंड से मुकाबला कर रहे थे.

लेकिन सर्द हवा से सांयसांय करती गांव की एक गली में 16 साल की नाबालिग लड़की मोबाइल फोन से किसी से हंसहंस कर बातें कर रही थी. वह इस बात से बेखबर थी कि उस को किसी ने देख लिया है. उस लड़की की बातचीत का अंदाज बता रहा था कि दूसरी तरफ वाला शख्स उस का प्रेमी ही हो सकता है.

मांबाप की गैरमौजूदगी में उस लड़की के सिर पर इश्क का भूत सवार था. उस की उम्र 16 साल जरूर थी, लेकिन मोबाइल फोन पर मुहैया इंटरनैट से उस ने सैक्स की काफी जानकारी हासिल कर ली थी, इसीलिए उस ने सर्द रात में अपने सूने घर में प्रेमी को आने का न्योता दे दिया.

19 साल का प्रेमी शिवशंकर उर्फ छोटू तो ऐसे मौके की तलाश में था. उस लड़की मीना का फोन आते ही वह झटपट मोटरसाइकिल से उस के घर पहुंच गया. कई किलोमीटर की दूरी उस ने इतने कम समय में पूरी कर ली कि अपने सामने खड़े प्रेमी को देख कर भी मीना को आसानी से यकीन नहीं हुआ.

मीना ने अपने छोटे भाई अमन को पहले ही किसी तरह गहरी नींद में सुला दिया था. जवानी की दहलीज पर खड़े दोनों बहुत देर तक अपने को रोक नहीं पाए. इश्क की पेंगें बढ़ाते हुए वे उस में इतना खो गए कि उन को होश ही नहीं रहा कि घर में कोई और भी है. शिवशंकर भी अपनी माशूका को सामने पा कर अपनी सुधबुध खो बैठा था.

इधर बातचीत और हंसीमजाक की आवाज सुन कर 14 साल के अमन की आंख खुल गई. वह अपने घर में बहन के साथ किसी अनजान को देख कर सबकुछ जल्दी ही समझ गया. उम्र में छोटा होने के बाद भी भाई को बहन की यह हरकत नागवार लगी और वह बहन का विरोध करने लगा. डांटफटकार के बाद भी वह चुप नहीं हुआ और आंखों देखी सारी बात पिता को बताने के लिए कहने लगा.

छोटे भाई की इस घमकी के बाद उस की बड़ी बहन डर गई, लेकिन उसे अपने प्यार में बाधा बन रहे भाई की ये बातें अच्छी नहीं लगीं. इस के बाद उस ने जो किया वह जान कर लोगों के रोंगटे खड़े हो जाएंगे.

मीना ने अपने प्रेमी के साथ मिल कर पहले अपने छोटे भाई पर लोहे की एक छड़ से हमला किया और बाद में पीटपीट कर उस का कत्ल कर दिया.

मीना के घर वालों को समझ नहीं आ रहा था कि आखिरकार ऐसा क्यों हो गया और किस ने मासूम लड़के को जान से मार दिया. इस वारदात की खबर मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची और लाश को पोस्टमौर्टम के लिए भेज दिया. इस के बाद पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर की.

पुलिस जांचपड़ताल में जो मामला सामने आया उस से सब की आंखें खुली की खुली रह गईं. अमन के पिता गुलाब खेती करते हैं. वे अपनी पत्नी को ले कर अपनी ससुराल गए थे और रात में वहीं पर रुक गए थे. घर पर उन का 14 साल बेटा अमन और 16 साल की बेटी मीना थी.

कौंधियारा पुलिस को जब एक 14 साल के लड़के की घर के भीतर हत्या की खबर मिली तो वह भी चकरा गई. पुलिस जब गुलाब के घर पहुंची तो 14 साल के मासूम अमन की खून से लथपथ लाश बिस्तर पर पड़ी थी. पुलिस को भी पहले समझ नही आ रहा था कि एक मासूम का कत्ल क्यों और कौन करेगा, वह भी घर के भीतर, जब घर में केवल भाईबहन ही हों?

पुलिस ने लाश को कब्जे में ले कर पोस्टमौर्टम के लिए भेज दिया और इस के बाद मामले की जांच शुरू कर की. घर और गांव वालों को समझ नहीं आ रहा था कि आखिरकार ऐसा क्या हो गया कि किसी ने नाबालिग लड़के को मार दिया. एक 14 साल के मासूम से किस की दुश्मनी हो सकती है?

इस से पहले सुबह आरोपी लड़की ने सब को चीखते हुए बताया था कि अमन को किसी ने मार दिया है. वैसे, पुलिस को शुरुआती जांच में ही बहन पर शक हो गया था. इस के बाद क्राइम ब्रांच ने जब लड़की का मोबाइल फोन सर्विलांस पर ले कर काल डिटेल निकाली तो सारा भेद खुल गया.

पुलिस की पूछताछ में लड़की घबरा गई, लेकिन उस ने अपने बयान बारबार बदल कर पुलिस को गुमराह करने की कोशिश भी की. बाद में घर की तलाशी पर पुलिस को एक मोबाइल फोन मिला जिस से वह लड़की केवल अपने प्रेमी शिवशंकर उर्फ छोटू निवासी बस्तर करछना से बात करती थी.

गांव के एक बुजुर्ग ने भी पुलिस को बताया कि रात को 12 बजे के आसपास वह लड़की किसी से फोन पर बात कर रही थी. बातचीत में मशगूल मीना उन बुजुर्ग को नहीं देख सकी थी.

पुलिस को रात में शिवशंकर के मोबाइल फोन की लोकेशन बड़गोहना गांव में ही मिली. वह मौके से फरार हो चुका था, लेकिन क्राइम ब्रांच ने तेजी दिखाते हुए आरोपी को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने हत्या में इस्तेमाल की गई लोहे की छड़ भी हत्यारोपियों की निशानदेही पर बरामद कर ली.

जिस प्यार को पाने के लिए एक बहन ने अपने छोटे भाई की बलि दे दी उसी प्रेमी के साथ अब वह जेल में अपने गुनाहों की सजा पाने के लिए भेज दी गई है.

चूड़ियों ने खोला हत्या का राज

सौजन्य-मनोहर कहानियां

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के थाना निगोहां के गांव भगवानगंज के रहने वाले सरकारी नौकरी से रिटायर सत्यनारायण ने अपनी बहू रागिनी के रंगढंग से क्षुब्ध हो कर कहा, ‘‘बहू, जब तुम्हारा पति बाहर रहता है तो मायके के ऐसे लोगों को घर में न रोका करो, जो तुम्हारे करीबी न हों. देखने वालों को यह अच्छा नहीं लगता. लोग तरहतरह की बातें करते हैं.’’

सत्यनारायण की बहू रागिनी जिला रायबरेली के थाना बछरावां के गांव भक्तिनखेड़ा की रहने वाली थी. 14 जून, 2012 को सत्यनारायण के बेटे दिलीप के साथ उस की शादी हुई थी. तब से वह ससुराल में ही रहती थी. उस का मायका ससुराल के नजदीक ही था, इसलिए अकसर उस से मिलने के लिए घर के ही नहीं, गांव के लोग भी आते रहते थे. उन में से कुछ लोगों की रिश्तेदारी उस के ससुराल के गांव में थी, इसलिए जब भी उस के मायके का कोई आता, वह रागिनी से भी मिलने चला आता.

इसीलिए ससुर की बात का जवाब देते हुए रागिनी ने कहा, ‘‘पिताजी, मायके के लोग हम से मिलने पहले भी आते थे. जब पहले नहीं रोका तो अब उन्हें कैसे रोक सकते हैं. अगर किसी को आने से मना करेंगे तो लोग क्या कहेंगे. और रही बात गांव वालों की तो उन का क्या, वे तो कुछ न कुछ कहते ही रहते हैं.’’

दरअसल, पहले सत्यनारायण को बहू के मायके से कोई आता था तो उन्हें कोई दिक्कत नहीं होती थी, लेकिन जब 10 महीने पहले उन की पत्नी कलावती की मौत हो गई तो घर में रागिनी अकेली ही रह गई. 61 साल के सत्यनारायण एक साल पहले ही नौकरी से रिटायर हुए थे. रागिनी के डेढ़ साल का बेटा भी था.

रागिनी का पति दिलीप उन्नाव जिले के जुनाबगंज के एक प्राइवेट अस्पताल में नौकरी करता था. बहू के अकेली होने की वजह से सत्यनारायण को किसी से उस का मिलना अच्छा नहीं लगता था. इसीलिए वह बहू को बारबार मना करते थे कि वह अपने मायके वालों को अपने घर में न रोके.

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उन्होंने कहा, ‘‘बहू, गांव वालों का सब से अधिक ऐतराज मोनू के आने पर है. उसी को ले कर लोग तरहतरह की बातें करते हैं. वह गांव के दूसरे लोगों के पास बैठ कर उलटीसीधी बातें करता है.’’

‘‘पिताजी, गांव वालों के पास कोई कामधाम तो होता नहीं, इसलिए वे दूसरों के घरों में झांकते रहते हैं और तरहतरह की बातें करते रहते हैं. दूसरों के बारे में बातें बनाने में उन्हें मजा आता है.’’ गुस्से से रागिनी बोली.

उस के बात करने के तरीके से सत्यनारायण समझ गए कि रागिनी उन की बात मानने वाली नहीं है. इन्हीं बातों को ले कर ससुरबहू के बीच मतभेद बढ़ने लगे. फिर दोनों में झगड़ा होने लगा. बात बढ़ी तो गांव वालों को भी पता चल गया.

सत्यनारायण ने ही नहीं, रागिनी ने भी यह बात अपने दोस्त मोनू को बताई. मोनू जिला रायबरेली की तहसील महराजगंज के गांव पारा का रहने वाला था. एक दिन फिर वह रागिनी से मिलने आया तो उस ने कहा, ‘‘मोनू, तुम्हारे आने से मेरे ससुर को परेशानी होती है. उन्हें गांव वालों से पता चला है कि मेरे और तुम्हारे बीच गलत संबंध हैं.’’

‘‘यह तो चिंता वाली बात है. अब हम कैसे मिल पाएंगे. लगता है, हमें कोई और रास्ता निकालना होगा.’’

‘‘रास्ता क्या निकालना है. हम ने उन से साफसाफ कह दिया है कि हम गलत नहीं हैं, इसलिए मैं किसी को घर आने से रोक नहीं सकती. तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है.’’ रागिनी ने कहा.

25 साल की रागिनी देखने में बहुत सुंदर तो नहीं थी, पर वह मोनू के साथ लंबे समय से रह रही थी, इसलिए दोनों के बीच नाजायज रिश्ते बन गए थे. रागिनी की शादी के बाद वह उस की ससुराल भी उस से मिलने आने लगा था. रागिनी की सास की मौत हो गई तो उस का आनाजाना बढ़ गया. उस का पति दिलीप नौकरी की वजह से अधिकतर बाहर ही रहता था. वह घर में अकेली होती थी, जिस से उसे मोनू से मिलने में कोई दिक्कत नहीं होती थी. जब इस खेल के बारे में सत्यनारायण को पता चला तो उन्होंने ऐतराज किया. उन्हें लगा कि बहू को समझाने से बात बन जाएगी, इसीलिए उन्होंने यह बात अपने बेटे दिलीप को भी नहीं बताई.

रागिनी ने ससुर की बात अनसुनी कर दी

ससुर के कहने पर भी रागिनी ने मोनू को घर आने से मना नहीं किया. इस बात से नाराज हो कर सत्यनारायण ने कहा, ‘‘बहू, मैं सोच रहा था कि मेरे समझाने से तुम मान जाओगी और उसे घर आने से मना कर दोगी. लेकिन मेरी बात तुम्हारी समझ में नहीं आ रही है. लगता है, मुझे सख्ती करनी पड़ेगी. मैं चाहता हूं कि तुम मान जाओ और उसे आने से मना कर दो. यह मैं तुम से आखिरी बार कह रहा हूं.’’

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‘‘पिताजी, लगता है आप के कान किसी ने भर दिए हैं. मोनू से मेरा कोई गलत संबंध नहीं है. आप को गलतफहमी हुई है.’’ रागिनी ने ससुर को उन्हीं की भाषा में जवाब दिया.

बहू के तेवर देख कर सत्यनारायण सकते में आ गए. अब उन्हें अपनी ही नहीं, बेटे की भी चिंता होने लगी. दरअसल सत्यनारायण के कोई औलाद नहीं थी. वह लखनऊ के कमिश्नर औफिस में नौकरी करते थे. नातेरिश्तेदार चाहते थे कि वह किसी बच्चे को गोद ले लें क्योंकि उन्हें पता था कि सत्यनारायण सरकारी नौकरी करते हैं. उन के पास खूब पैसा है, जिसे वह गोद लेंगे, वह मौज करेगा.

सत्यनारायण को लगता था कि लोग उन की संपत्ति के लालच में अपना बच्चा उन्हें गोद देना चाहते हैं, जबकि उन की पत्नी कलावती चाहती थी कि वह किसी रिश्तेदार का ही बच्चा गोद लें. लेकिन वह इस के लिए राजी नहीं थे. उन्होंने पत्नी को समझाया. इस के बाद दोनों ने मिलजुल कर फैसला लिया कि वे अनाथालय से बच्चा गोद लेंगे.

सत्यनारायण ने दिलीप को अनाथालय से गोद लिया था. उसे खूब पढ़ायालिखाया. दिलीप को काफी दिनों तक इस बात का पता नहीं था कि वह गोद लिया बच्चा है. वह अपने मांबाप को बहुत प्यार करता था. कलावती बीमार रहने लगीं तो उन्होंने दिलीप की शादी रागिनी से कर दी थी.

शादी के 3 सालों बाद रागिनी को बेटा हुआ, सब बहुत खुश हुए. लेकिन यह खुशी ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह सकी, क्योंकि कलावती की मौत हो गई थी. बेटेबहू के लिए उन्होंने बढि़या मकान पहले ही बनवा दिया था. पत्नी की मौत के बाद वह अकेले पड़ गए थे. बुढ़ापे में अब उन्हें बेटे और बहू का ही सहारा था.

रागिनी के व्यवहार से घर में कलह शुरू हो गई थी. वह ससुर से खुल कर लड़ने लगी थी. इस बात को ले कर सत्यनारायण को बहुत तकलीफ थी. अपनी यह तकलीफ वह गांव वालों से व्यक्त भी करने लगे थे. गांव वालों ने उन्हें समझाया तो उन्होंने कहा, ‘‘बहू मेरी हत्या भी करा सकती है.’’

गांव वालों को लगा कि बुढ़ापे की वजह से वह ऐसा सोच रहे हैं, इसलिए किसी ने उन की बात को गंभीरता से नहीं लिया.

25 सितंबर की सुबह गांव के बाहर खेत में सत्यनारायण की लाश पड़ी मिली. इस बात की सूचना उन के बेटे दिलीप और पुलिस को दी गई. घटनास्थल पर पहुंच कर दिलीप पिता की लाश से लिपट कर रोने लगा. वह बारबार यही कह रहा था कि रागिनी ने इन्हें मरवा दिया.

आखिरी रागिनी आ गई शक के घेरे में

घटना की सूचना पा कर थाना निगोहां के थानाप्रभारी चैंपियनलाल पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर आ पहुंचे. सभी का कहना था कि बहू ने ही सत्यनारायण की हत्या कराई है. चैंपियनलाल नहीं चाहते थे कि कोई निर्दोष जेल जाए, इसलिए बिना सबूतों के वह रागिनी को जेल भेजने के पक्ष में नहीं थे. क्योंकि रागिनी खुद को निर्दोष कह रही थी.

चैंपियनलाल ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तो उन्हें लाश के पास से लाल रंग की चूडि़यों के टुकड़े मिले. चूडि़यों के उन टुकड़ों को देख कर उन्हें लगा कि इस हत्या में रागिनी का हाथ हो सकता है, इसलिए उन्होंने उन टुकड़ों का रागिनी के हाथ में पहनी चूडि़यों का मिलान कराया तो वे रागिनी की चूडि़यों से मिल गए.

यही नहीं, चूड़ी टूटने से रागिनी के हाथ में खरोंच के निशान भी पाए गए. इस के बाद उन्होंने रागिनी से पूछताछ शुरू की तो रागिनी ने ससुर की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर हत्या की पूरी कहानी सुना दी.

24 सितंबर को मोनू रागिनी से मिलने आया तो इस की जानकारी सत्यनारायण को हो गई. उन्होंने गुस्से में कहा, ‘‘अब तक मैं चुप था, लेकिन अब मुझे यह सब दिलीप से बताना ही पड़ेगा.’’

इस से रागिनी डर गई, क्योंकि अब उस का भेद पति को पता चल जाता. डर की वजह से उस ने ससुर से किसी भी तरह की बहस नहीं की. चुपचाप उन की बात सुन ली. लेकिन उस ने मन ही मन तय कर लिया कि अब यह शिकायत का सिलसिला बंद होना चाहिए. उस ने फोन कर के यह बात मोनू को बता दी.

उसी समय दोनों ने तय कर लिया कि आज रात वे शिकायतों का कांटा हमेशाहमेशा के लिए निकाल फेंकेंगे. उस रात गांव में आर्केस्ट्रा हो रहा था. सत्यनारायण उसे देखने के लिए निकले, तभी रागिनी ने दिलीप से कहा कि वह शौच के लिए बाहर जा रही है.

घर से बाहर आ कर रागिनी ने दरवाजे को बाहर से बंद कर दिया इस के बाद मोनू को फोन कर के कहा कि बुड्ढा घर से निकल गया है. मोनू अपने साथी के साथ आ गया. मोनू और उस के साथी ने सत्यनारायण को पकड़ लिया. सत्यनारायण मजबूत कदकाठी के थे, इसलिए वे दोनों उन्हें काबू नहीं कर पा रहे थे. उन्होंने मोनू के गले में अंगौछा डाल कर उसे गिरा दिया.

जब रागिनी को लगा कि ये दोनों बुड्ढे को काबू नहीं कर पाएंगे, तो वह भी उन के साथ लग गई. तीनों ने मिल कर सत्यनारायण को गिरा दिया और उन्हें मार डाला. लाश को वहीं छोड़ कर तीनों अपनेअपने घर चले गए. रागिनी घर आई तो दिलीप ने पिता के बारे में पूछा. रागिनी ने कहा कि वह आर्केस्ट्रा देखने गए हैं.

काफी रात बीतने पर भी सत्यनारायण घर नहीं आए तो दिलीप वहां गया, जहां आर्केस्ट्रा हो रहा था. पिता वहां नहीं मिले तो देर रात तक वह उन्हें खोजता रहा. परेशान हो कर वह घर आ गया. सुबह गांव वालों से पता चला कि पिता की हत्या हो गई है तो उस की समझ में आ गया कि रागिनी ने ही पिता को मरवाया है.

5 घंटे के अंदर ही थाना निगोहां पुलिस ने जिस तरह से सबूतों के साथ हत्या का खुलासा किया, उस से लोगों में एक भरोसा जाग गया. रागिनी और मोनू को गिरफ्तार कर के पुलिस ने जेल भेज दिया. रागिनी के जेल जाने के बाद दिलीप के सामने सब से बड़ी समस्या यह थी कि वह छोटे से बच्चे का पालनपोषण कैसे करे. क्योंकि बिना मां के बच्चे का पालनपोषण करना ही परेशानी की बात है.

– कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चाओं पर आधारित

आखिरी मंगलवार: भाग -1

   वेणी शंकर पटेल ‘ब्रज’

सपना की शादी को 8 साल बीत चुके हैं. जब वह मायके से ब्याह कर पहली बार अपनी ससुराल आई थी, तो नईनवेली दुलहन का खूब स्वागत हुआ था. मंडप के नीचे मुंहदिखाई की रस्म में जो भी सपना को देखता, उस की खूबसूरती की तारीफ करते नहीं थकता था. उसे याद है कि दिनभर शादी की रस्मों के चलते कब शाम हो गई थी, उसे पता ही नहीं चला. खाने के बाद रात को सपना की ननद प्रीति जब उसे सुहागरात वाले कमरे में ले गई तो फूलों से सजी सेज और कमरे की खुशबू से सपना की खुशी दोगुनी हो गई थी. सुहागरात को ले कर जो डर सपना के मन में था, उस की ननद की हंसीठिठोली ने दूर कर दिया था.

सपना पूरी रात के एकएक पल को इसी तरह रोमांटिक तरीके से जीना चाहती थी, पर सुभाष का उतावलापन भी वह साफ महसूस कर रही थी. वह चाहती थी कि वे एकदूसरे के नाजुक अंगों को चूमतेसहलाते आगे बढ़ें कि तभी अचानक सुभाष उस के जिस्म से कपड़े एकएक कर के हटाने लगा था. उन दोनों की सांसों की गरमाहट तेज होती जा रही थी.

अगले कुछ पलों में ही सुभाष के अंदर उठा तूफान एक झटके में ही शांत हो गया था और सपना की चाह अधूरी रह गई थी. सुभाष मुंह फेर कर दूसरी तरफ खर्राटे भर रहा था और सपना के अंदर लगी आग उसे बेचैन कर रही थी. शादी का एक साल बीतते ही सपना की सास उस की तरफ उम्मीद भरी नजरों से देखने लगी थीं कि कब उन की बहू की गोद भरे और आंगन में बच्चे की किलकारियां गूंजें, मगर सपना सुभाष की कमजोरी जान गई थी. इसी के चलते साल दर साल बीतते गए, लेकिन सपना का मां बनने का सपना अधूरा ही रह गया.

घरपरिवार और रिश्तेदारों की चहेती सपना अब सब की नजरों में खटकने लगी थी. कोई तीजत्योहार हो या शादीब्याह का मौका औरतें उस की सूनी कोख को ले कर ताने देने लगी थीं. एक बार तो सपना अपने पति के साथ  सैक्सोलौजिस्ट के पास भी गई थी. वहां पर हुई जांच रिपोर्ट से उसे पता चल गया था कि वह तो मां बन सकती है, पर सुभाष के पिता बनने के कोई चांस नहीं थे. सपना इसी वजह से न जाने कितने मंदिरों और संतमहात्माओं के दरबार में मन्नत मांग चुकी थी, मगर फिर भी उस की गोद नहीं भर पाई.

सपना वैसे तो नए जमाने के खयालों की हिमायती लड़की थी, जो किसी तरह के अंधविश्वास पर भरोसा नहीं रखती थी, पर समाज के तानों की वजह से वह अपनी सूनी गोद भरने के लिए कुछ भी करने को तैयार थी. रातदिन, सोतेजागते इसी चिंता में वह सूख कर कांटा हुए जा रही थी. सुभाष की किराना दुकान आज भी इस छोटे से शहर में खूब चलती है. सुभाष दिनभर दुकानदारी में लगा रहता और रात को ही घर पहुंचता. सपना की सास रातदिन औलाद के लिए उसे भलाबुरा कहती, मगर सपना किसी से अपना दर्द नहीं बांट पाती थी.

ऐसा नहीं था कि औलाद न होने के तानों से अकेले सपना ही परेशान थी, बल्कि सुभाष भी दिनरात इसी चिंता में डूबा रहता. उस के यारदोस्त भी उसे ताने देने लगे थे. एक बार तो सुभाष के खास दोस्त ने उस की मर्दानगी का भी मजाक उड़ाया था. अपनी मर्दाना कमजोरी के चलते औलाद न होने के दुख ने उन दोनों की हंसीखुशी से भरी जिंदगी को बोझिल बना दिया था.

पिछले साल जब पास के गांव में रहने वाली सुभाष की बूआ उस के घर आई थी तो उसी दौरान बूआ ने बताया कि उस के गांव के पास ही एक मंदिर है, जहां पर धर्मराज स्वामी का दरबार लगता है. उन के दरबार में मंगलवार को हाजिरी लगाने से मन की हर मुराद पूरी हो जाती है. वैसे तो धर्मराज स्वामी के बारे में सपना ने भी सुन रखा था, लेकिन जब से बाबाओं द्वारा धर्म के नाम पर औरतों के साथ यौन शोषण की घटनाएं हुई हैं, उस का तो बाबाओं से भरोसा ही उठ गया है.

एक दिन अखबार में सपना ने उसी धर्मराज स्वामी का एक परचा देखा था, जिस में लिखा था कि केवल एक नारियल द्वारा सभी समस्याओं का समाधान किया जाता है. परचे में बताया गया था कि पतिपत्नी को एकदूसरे के वश में करने के अलावा औलाद भी पा सकते हैं. वह परचा देख कर सपना के मां बनने की उम्मीद एक बार फिर से जिंदा हो उठी. उस ने आसपड़ोस की औरतों से जब इस की चर्चा की तो कुछ औरतों ने तो इतना तक भरोसा दिलाया कि एक बार उन बाबा के दरबार में जा कर तो देख, तुझे औलाद जरूर होगी.

सपना ने जब सुभाष को धर्मराज स्वामी के दरबार के बारे में बताया और वहां चलने को कहा, तो सुभाष ने साफ मना कर दिया, ‘‘मैं इस तरह के अंधविश्वास पर भरोसा नहीं करता.’’ सपना ने उसे समझने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘इतने सालों में हम ने औलाद के लिए कहांकहां की खाक नहीं छानी, तो इतने पास बूआ के गांव जाने में हर्ज क्या है.’’

सुभाष सपना का दर्द समझता था. वह उसे दुखी नहीं करना चाहता था, इसलिए उस ने यह सोच कर हां कर दी कि इसी बहाने बूआ के घर घूमना भी हो जाएगा.

सुभाष और सपना मंगलवार को बूआ के गांव पहुंचे, तो बुआ उन्हें शाम के समय मंदिर ले गई. मंदिर के बड़े दरवाजे से अंदर जाते ही उन दोनों ने देखा कि गले में लाल गमछा डाल कर घूम रहे सेवादार, जिन में औरतें भी शामिल थीं, हर आनेजाने वाले से पूछताछ कर रही थीं. लोगों के सामने वे धर्मराज की तारीफों के पुल बांधते नहीं थक रही थीं. सपना और सुभाष ने भी धर्मराज स्वामी से मिलने की इच्छा जताई तो सेवादारों ने उन्हें अंदर भेज दिया.

अंदर एक बड़े से हाल में एक चबूतरे पर बिछे आसन पर पीले कपड़ों से सजेधजे तकरीबन 45-50 साल की उम्र के धर्मराज स्वामी के सामने लोगों का हुजूम लगा हुआ था. लाइन में खड़े लोगों में नारियल दे कर उन के पैर छूने की होड़ सी मची थी. लोग उन के पैर छू कर अपनी परेशानी बताते और धर्मराज स्वामी उन्हें 5 से 7 मंगलवार को दरबार में हाजिरी लगाने की सलाह देते.

देखतेदेखते सपना का नंबर भी आ गया. बूआ के साथ सपना और सुभाष ने धर्मराज के पैर छूते हुए नारियल दे कर अपनी परेशानी बताई.

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सत्यकथा: ठग भाभियों की टोली

सुरेशचंद्र रोहरा

‘‘आओआओ, भाभी बहुत दिनों बाद आई हो, आओ.’’ कह कर सरिता

कुर्रे ने सुनीता साहू उर्फ कुमकुम का स्वागत करते हुए ड्राइंग रूम में बैठाया.

‘‘बहन, मैं इधर से गुजर रही थी तुम्हारी याद आ गई. सोचा, तुम्हारा हालचाल ले लूं और हो सके तो तुम्हें भी मालामाल करवा दूं.’’ सुनीता साहू उर्फ  कुमकुम ने बड़े ही मीठे स्वर से सरिता कुर्रे से कहा.

अपने मालामाल होने की बात सुन कर के सरिता कुर्रे चौकन्नी हो गई. उस ने कहा, ‘‘भाभी, क्या बात है कैसे मालामाल करोगी भला बताओ तो!’’

इस पर कुमकुम ने बिंदास हो कर कहा, ‘‘आप को सोना चाहिए क्या, बताओ. असली गोल्ड बहुत ही कम पैसों में?’’

‘‘अच्छा भाभी, भला वो कैसे?’’ सविता कुर्रे ने आश्चर्य व्यक्त किया.

‘‘देखो, मैं तो चाहती हूं कि मेरे जितने भी जानपहचान वाले हैं, वे इस का फायदा उठा लें. मेरे कुछ ऐसे लोगों से संबंध हैं कि हमें बहुत सस्ते में सोना मिल सकता है. कुछ लोग तो मालामाल हो भी गए हैं.’’यह सुन कर सरिता की बांछें खिल गईं. मोहक अदा से उस ने कहा, ‘‘ऐसा है तो बताओ मैं भी सोना ले लूं.’’

‘‘बताऊंगी, बताती हूं थोड़ा चैन की सांस तो ले लेने दो.’’ कह कर कुमकुम सरिता कुर्रे के  यहां ड्राइंगरूम में आराम से पसर कर बैठ गई.

सरिता कुर्रे ने सुनीता साहू उर्फ कुमकुम की अब खूब आवभगत करनी शुरू कर दी. उस के लिए किचन से कुछ मीठा, नमकीन ले आई और पूछा, ‘‘क्या पियोगी चाय या ठंडा?’’

कुमकुम ने सहज भाव से कहा, ‘‘बहन तकलीफ मत करो, जो घर में है चलेगा.’’ और आराम से बैठ कर के मिठाई पर हाथ साफ करने लगी.

चायपानी करने के बाद सुनीता उर्फ कुमकुम ने रहस्यमय स्वर में सरिता कुर्रे से कहा, ‘‘अभी सोने का दाम क्या चल रहा है तुम्हें मालूम है?’’

‘‘हां, कुछकुछ तो पता है लगभग 40 हजार रुपए तोले का रेट हो गया है.’’

‘‘हां, तुम सही कह रही हो. आज के समय में 42 हजार रुपए तोला का मार्केट भाव है. तुम्हें पता है मैं कितने में दिलवा सकती हूं.’’

‘‘बताओ, कितने में मिल जाएगा.’’ उत्सुकतावश सरिता ने कहा.

‘‘अगर मैं आप को 25 से 28 हजार रुपए तोला सोना दिलवा दूं तो बताओ, कैसा रहेगा?’’

यह सुन कर के सरिता कुर्रे खुशी से उछल पड़ी और बोली, ‘‘ऐसा है तो मैं 30 लाख रुपए का सोना ले लूंगी.’’

‘‘ठीक है, तुम पैसे का इंतजाम करो. मगर हां सुनो, यह बात ज्यादा हल्ला नहीं करने की है. हमें चुपचाप फायदा उठा लेना है.’’

 

यह सुन कर के कुमकुम गंभीर हो गई और सिर हिलाते हुए सहमति से उस ने कहा, ‘‘तुम सही कह रही हो, दीवारों के भी कान होते हैं. मैं ध्यान रखूंगी किसी को भी नहीं बताऊंगी. मगर तुम मुझे जल्द से जल्द सोना दिलवा दो.’’

‘‘हां बहन, सोने में ही इनवैस्ट करना सब से समझदारी का काम है. अब देखो न 5 साल पहले 20 हजार रुपए तोला सोना हुआ करता था. आज इतना महंगा हो गया है और हर साल और भी ज्यादा महंगा होता जाएगा.’’

सरिता कुर्रे सुनीता साहू उर्फ कुमकुम की बातों से सहमत थी. वह महसूस कर रही थी कि सुनीता उस का बहुत भला करने आई है. उस ने फिर भी जिज्ञासावश पूछा, ‘‘भाभी, आखिर तुम मुझे इतना सस्ता सोना कहां से और कैसे दिलओगी.’’

‘‘अब सुनो, मैं बताती हूं तुम से क्या छिपाना. तुम तो मेरी बहन जैसी हो, क्या है कि तुम ने मणप्पुरम गोल्ड का नाम सुना है. यह एक बैंक है, जो लोगों का सोना गिरवी रख कर के उन्हें पैसे लोन देता है. कुछ जरूरत के मारे, बेचारे लोग यहां पैसा लेते हैं, अपना सोना भी गिरवी रख देते हैं और फिर बाद में छुड़ा नहीं पाते. मैं तुम को बताऊं मेरा एक भाई इसी कंपनी में काम करता है. बस जो लोग अपना सोना यहां से नहीं ले पाते, उसे सेटिंग कर के हम सस्ते में ले लेते हैं. अब तुम इस बात को किसी को बताना नहीं, नहीं तो तुम्हारा खेल बिगड़ जाएगा.’’

सविता कुर्रे ने यह बात सुनी तो उसे पूरी तरह विश्वास हो गया कि सुनीता साहू उर्फ कुमकुम की एकएक बात सौ फीसदी सही है.

चलतेचलते कुमकुम ने कहा, ‘‘ तुम  रुपए की व्यवस्था जितनी जल्दी हो सके कर लो. फिर देखना कैसे तुम्हें मैं मालामाल करवा दूंगी.’’

सुनीता उर्फ कुमकुम चली गई. मगर सरिता कुर्रे की तो मानो रातों की नींद उड़ गई. वह रात भर सोचती रही कि किस तरह वह आने वाले समय में सोना खरीद लेगी और मालामाल हो जाएगी. रात भर जागजाग के उस ने अपने सारे बैंक बैलेंस के रुपयों की गिनती लगानी शुरू कर दी.

उस ने जोड़ा तो उस के पास विभिन्न खातों में लगभग 40 लाख रुपए का अमाउंट होने का अंदाजा हो गया. उस ने मन ही मन निर्णय किया कि कल ही 1-2 बैंक से 8-10 लाख  रुपए इकट्ठा कर के कुमकुम को पहली किस्त में दे कर के सोना ले लेगी. उस ने सोचा एक साथ दांव लगाना ठीक नहीं, पहले कम पैसे दे कर के देख लो क्या होता है.

 

सरिता को अपनी होशियारी पर नाज हो आया. वह सोचने लगी कि यही सही रहेगा एक साथ 40 लाख रुपए का सोना लेना और रुपए देना ठीक नहीं रहेगा. कहीं कोई गड़बड़ हो गई तो…

उस ने यह बात अपने पति को भी नहीं बताई और सोचा कि पहले 10 लाख रुपए का सोना मैं अपने हाथ ले लूं फिर पतिदेव को बताऊंगी तो वह भी कितने खुश होंगे.

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के गांव खमतराई में सविता कुर्रे अपने परिवार के साथ रहती थी. यहीं पास ही भनपुरी में सुनीता साहू उर्फ कुमकुम हाल ही में उड़ीसा नवापारा से आ कर रहने लगी थी. अपने अच्छे व्यवहार से आसपास के लोगों से हिलमिल कर सब की भाभी बन गई थी.

दूसरे दिन सरिता कुर्रे अपने स्थानीय बैंक पहुंची और वहां से 7 लाख रुपए निकलवा कर के घर आ कर सुनीता साहू को फोन लगाया और उसे बताया, ‘‘भाभी, पैसों का इंतजाम हो गया है. तुम कब आओगी?’’

यह सुन कर सहज भाव से कुमकुम ने कहा, ‘‘मैं अभी तो कहीं व्यस्त हूं. शाम को आती हूं.’’

 

सरिता कुर्रे बहुत बेचैन थी. दोपहर को एक दफा और फोन कर के कुमकुम से बात की और आश्वस्त हो गई कि शाम को 4 बजे कुमकुम आएगी और ठीक शाम को 4 बजे कुमकुम घर पर आ पहुंची तो मानो सरिता कुर्रे की खुशी का ठिकाना नहीं था.

कुमकुम के साथ पूर्णिमा और प्रतिभा गीता महानंदा नामक 2 महिलाएं भी थीं. कुमकुम ने उन का भी सरिता से परिचय कराया और बताया कि ये मेरी सहेलियां हैं और मेरी मदद करती हैं.

तीनों महिलाओं ने सरिता को ऊंचेऊंचे ख्वाब दिखा करके कहा तुम्हारे कितना पैसा है बताओ.

इस पर सरिता ने 7 लाख रुपए ला कर के उन के सामने रख दिया और कहा, ‘‘अभी इतने ही रुपए की व्यवस्था हुई है. मुझे इतने का सोना दिलवा दो.’’

‘‘अच्छी बात है हम तुम्हें कल 7 लाख रुपए का सोना दिलवा देंगी.’’

यह कह कर कुमकुम ने 7 लाख रुपए अपने पास रखे और सरिता कुर्रे को आश्वस्त कर तीनों चली गईं.

यह मार्च, 2019 का महीना था. इस दरमियान सरिता कुर्रे कई दिनों तक सुनीता साहू का इंतजार करती रही. फोन पर बात होती तो वह कहती, ‘‘बहन, मैं अचानक शहर से बाहर चली गई हूं 2 दिन बाद आ रही हूं, तुम बिलकुल चिंता मत करो. यह समझो कि बैंक में पैसा तुम्हारा सुरक्षित है.’’

सरिता कुर्रे को इस तरह बारबार विश्वास दिलाया जाता रहा. इस दरमियान खुद कुमकुम ने सरिता को फोन किया और उसे भरोसा दिलाती रही.

एक दिन अचानक सुनीता साहू उर्फ कुमकुम अनुसइया, पूर्णिमा, प्रतिभा गीता महानंद इन 4 महिलाओं के साथ घर आई और बोली,  ‘‘बहन, तुम तनिक भी चिंता न करो. कहो तो अभी तुम्हें मैं पैसे लौटा दूंगी, बैंक का मामला है, लो तुम खुद बैंक कर्मचारी से बात कर लो.’’

यह सुन कर के सरिता कुर्रे को ढांढस बंधा. कुमकुम ने उसे एक नंबर दिया जोकि मणप्पुरम बैंक के एक अधिकारी शेखर का बताया गया. सरिता कुर्रे ने बात की तो बताया गया कि वह मणप्पुरम गोल्ड लोन बैंक का अधिकारी बोल रहा है. सरिता ने जब सुनीता साहू के बारे में पूछा तो उधर से जवाब मिला, ‘‘हां, हम उस को जानते हैं. उस का हमारे यहां 85 तोला सोना गिरवी रखा हुआ है जो सुरक्षित है.’’

बैंक अधिकारी शेखर से बात करने के बाद सरिता के टूटते मन को ढांढस बंधा. उसे सुकून महसूस हुआ. जब सुनीता ने देखा कि सरिता कुर्रे निश्चिंत हो गई है तो उस ने कहा, ‘‘बहन, देखो मैं तुम्हारे लिए कुछ सोना लाई हूं. इसे अभी रख लो बाकी मैं 82 तोला तुम्हें और जल्दी दे दूंगी. मैं पैसे की व्यवस्था कर रही हूं सारा पैसा दे कर के एक साथ पूरा सोना में बैंक से ले लूंगी.’’

इतना सुनते ही सरिता बोली, ‘‘अब मुझे तुम पर पूरा विश्वास हो गया है. बताओ, तुम्हें कुल कितना पैसा वहां जमा करना है?’’

इस पर सुनीता ने कहा, ‘‘मुझे 14 लाख रुपए और चाहिए इस के बाद मैं सारा गोल्ड मणप्पुरम गोल्ड लोन ब्रांच से छुड़वा लूंगी.’’

सुनीता को सरिता ने आश्वस्त किया, ‘‘ठीक है, ऐसा है तो रुपए का मैं इंतजाम कर देती हूं.’’

दूसरे दिन सरिता कुर्रे ने अपने पति व घर के अन्य लोगों को बताए बगैर बैंक से सारे रुपए निकाले और शाम को जब कुमकुम अपनी महिला मंडली के साथ आई तो 14 लाख रुपए उस के सामने रख दिए गए.

यह देख कर के सुनीता ने गंभीर स्वर में कहा, ‘‘बहन, यह तुम ने बहुत अच्छा किया. अब मैं ये पैसे जमा कर के सारा सोना कल ही बैंक से छुड़वा कर के तुम्हें दे दूंगी.’’ यह कह कर  सुनीता वहां से चली गई.

दूसरे दिन जब सरिता कुर्रे ने फोन किया तो सुनीता ने कहा, ‘‘मैं ने पैसे जमा कर दिए हैं. बस, थोड़ी सी प्रक्रिया बाकी है. जैसे ही गोल्ड हाथ आएगा मैं आ कर के तुम्हें सौंप दूंगी.’’

2-3 दिन ऐसे ही गुजर गए. कोई न कोई बहाना बना कर के सुनीता साहू उसे टाल रही थी. अब सरिता कुर्रे की चिंता बढ़ती चली गई. एक दिन अचानक उस की एक सहेली रमा  ने कहा, ‘‘देखो, कैसेकैसे ठग पैदा हो गए हैं. कवर्धा में सोना दिलाने के नाम पर कुछ महिलाओं ने ठगी की है, मामला पुलिस तक पहुंच गया है.’’

यह सुन कर सरिता कुर्रे पसीनापसीना हो गई और सोचने लगी कि क्या सचमुच ऐसा हुआ है? क्या वह भी कुमकुम के हाथों ठग ली गई है? उस ने रमा से कहा, ‘‘बहन, कुमकुम कैसी महिला है?’’

इस पर हंसते हुए रमा ने कहा, ‘‘सुना है कुमकुम रोज पति बदलती है. अभी चौथे पति के साथ रह रही है. उस का रंगढंग मुझे ठीक नहीं लगता, क्यों क्या बात है?’’

‘‘अब क्या बताऊं, एक दिन कुमकुम आई थी और मुझ से पैसे मांग रही थी कुछ लाख रुपए.’’ सरिता कुर्रे ने बात छिपाते हुए कहा.

‘‘लाखों रुपए! उस की औकात है कुछ लाख रुपए गिनने की?’’  रमा ने व्यंग्यभाव से  कहा, ‘‘देखो, कुमकुम जैसी महिलाओं पर तुम एक पैसे का भी भरोसा नहीं करना.’’

महिला मित्र रमा की बातें सुन कर के सविता कुर्रे की आंखें खुल गईं. उस ने सारी बातें रमा को बताईं और उस से सलाहमशविरा किया.

 

सरिता कुर्रे उसी दोपहर रमा के साथ अचानक सुनीता साहू के घर भनपुरी पहुंच गई. सुनीता घर पर ही थी. सरिता ने कहा, ‘‘कहां है मेरा सोना, कब दोगी, कितने दिन हो गए.’’

यह सुन कर के सुनीता साहू ने उसे अपने पास बैठाया और कहा, ‘‘बहन, मुझे कुछ समय दो.’’

‘‘मैं और कितना समय दूं. मैं कुछ नहीं जानती, मुझे मेरा सोना दो नहीं तो मैं पुलिस में जा रही हूं.’’ सरिता कुर्रे ने साफसाफ चेतावनी देते हुए कहा.

यह सुन कर के सुनीता साहू मुसकराई और बोली, ‘‘यह तुम बहुत बड़ी गलती करोगी, पुलिस भला हमारा क्या कर लेगी.’’

इतने में घर के भीतर से 2-3 पुरुष बाहर आए. ये थे पति मुकेश चौबे, उस के दोस्त सिंधु वैष्णव, बंटी उर्फ शेखर. इन लोगों ने सरिता से बातचीत में साफसाफ कहा, ‘‘तुम पैसे भूल जाओ. क्या सबूत है कि तुम ने पैसे दिए हैं?’’

यह सुन कर सरिता कुर्रे मानो आसमान से जमीन पर आ गिरी. उस ने तड़प कर कहा, ‘‘तुम लोग इस तरीके से झूठ पर उतर आओगे, मैं ने सोचा नहीं था.’’

सरिता ने सुनीता साहू की ओर देखते हुए कहा, ‘‘तुम मुझे अगर आज पैसे नहीं दोगी तो ठीक नहीं होगा.’’ और यह कह कर के सरिता रमा के साथ घर से चली गई.

दिन बीतता चला गया, जब उसे लगा कि वह बुरी तरीके से ठग ली गई है तो उस की आंखों के आगे अंधेरा घिर आया.

अगले दिन सरिता कुर्रे सहेली रमा के साथ  थाना खमतराई पहुंची और रिपोर्ट दर्ज कराई. उस ने थानाप्रभारी को बताया कि वह शिवानंद नगर सेक्टर-1 खमतराई रायपुर में रहती है. फरवरी, 2019 में सुनीता उर्फ कुमकुम साहू के साथ अन्य महिलाएं उस के घर आईं तथा उसे सस्ते दाम में सोना देने का प्रस्ताव रखा. कुछ दिन बाद वह सभी दोबारा आईं तथा 85 तोला सोना 28 हजार रुपए प्रति तोला देने की बात की.

इस तरह से उन्होंने उस से सोना दिलाने के नाम पर कुल 22 लाख 70 हजार रुपए ठग लिए.

सोना देने के नाम पर लाखों रुपए की ठगी की घटना को डीआईजी एवं एसएसपी अजय यादव ने गंभीरता से लेते हुए एएसपी (सिटी) लखन पटले, एसपी (सिटी उरला) अक्षय कुमार एवं थानाप्रभारी खमतराई विनीत दुबे को आरोपियों की गिरफ्तारी हेतु आवश्यक दिशानिर्देश दिए.

आरोपियों की गिरफ्तारी में लगी टीम ने आरोपियों की खोजबीन शुरू कर दी. आखिर पुलिस को आरोपी सुनीता साहू उर्फ कुमकुम, पी. अनुसुईया राव, पूर्णिमा साहू, प्रतिभा मिश्रा एवं गीता महानंद को गिरफ्तार करने में सफलता मिल गई. उन से सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. पूछताछ में पता चला कि सुनीता साहू उर्फ कुमकुम उड़ीसा के जिला नवापारा की है. सिर्फ छठवीं कक्षा तक पढ़ी है.

उस की जब पति से नहीं बनी तो उसे छोड़ कर रायपुर आ गई और यहां महेश राव से विवाह कर लिया. कुछ समय बाद जब उस से भी नहीं पटी तो तीसरा पति बनाया और वर्तमान में चौथे पति मुकेश चौबे के साथ वह रह रही थी और उस का जीवन ऐश के साथ बीत रहा था. रोज गहने और कपड़े खरीदती, महंगी शराब पीती थी. अपने गिरोह के पुरुष सदस्य को मणप्पुरम कंपनी का कर्मी बताते हुए उस से मोबाइल फोन पर बात करा दी जाती थी, जिस से शिकार आसानी से इन पर भरोसा कर इन के झांसे में आ जाते थे.

आरोपियों द्वारा जिला कवर्धा में भी इसी तरीके से लोगों को सस्ते दाम में सोना देने का झांसा दे कर लगभग 17 लाख रुपए की ठगी की गई थी. कथा लिखे जाने तक पुलिस द्वारा घटना में शामिल सुनीता साहू उर्फ कुमकुम सहित 5 महिला आरोपियों व उस के चौथे पति मुकेश चौबे सहित एक पुरुष साथी मुश्ताक को गिरफ्तार कर लिया था तथा शेष आरोपियों की पतासाजी कर उन के छिपने के हर संभावित स्थानों में लगातार छापेमारी कर उन की गिरफ्तारी के हरसंभव प्रयास किए जा रहे थे.

महिलाओं के ठग गिरोह की सरगना सुनीता साहू ने रामेश्वर नगर की रहने वाली नरगिस बेगम को अपनी बेटी रानी के एक्सीडेंट की झूठी कहानी सुना कर इमोशनल किया था. सुनीता साहू ने सोना फाइनेंस कंपनी में गिरवी होने की बात कही. बारबार बेटी की इमोशनल कहानी सुन कर नरगिस उस की बात में आ गई और कुमकुम को 2 लाख रुपए दे दिए.

पैसा नहीं मिला तो नरगिस बेगम ने मणप्पुरम गोल्ड लोन बैंक में जा कर गिरवी रखे जेवर के बारे में पता किया तो ठगी के राज से परदा उठ गया. वहां बताया गया कि कुमकुम का कोई जेवर गिरवी था ही नहीं. नरगिस को यह समझते देर नहीं लगी कि कुमकुम ने उसे ठग लिया है.

पुलिस की जांच में सामने आया कि कुमकुम इस के पहले भी जिला कवर्धा में पैसा डबल करने की फरजी स्कीम चला चुकी है. कवर्धा में वह 17 लाख की हेराफेरी कर चुकी है. शातिर कुमकुम हर साल अपना पता बदल लिया करती थी. पुलिस यह भी पता लगा रही है कि 4 शादियां करने के पीछे की असल वजह क्या है, दूसरी तरफ ठग भाभियों के गैंग का शिकार हुई महिलाएं अपने रुपयों के वापस मिलने की आस में हैं.

इसी तरह पुलिस ने जांच में पाया कि आरोपियों द्वारा सोना दिलाने के नाम पर  इंदु सिंह से 2 लाख 77 हजार रुपए, नरगिस साखरे से ढाई लाख रुपए, अनिता वर्मा से साढ़े 5 लाख रुपए, मिसेज चौहान से एक लाख 70 हजार रुपए तथा अन्य लोगों को बैंक में रखे सोना को सस्ते में दिलाने के नाम से कुल 35 लाख 18 हजार रुपए की ठगी की गई थी.

खमतराई पुलिस ने 28 जून, 2021 को आरोपी ठग महिलाओं के खिलाफ भादंवि की धारा 420, 34 के तहत गिरफ्तार कर उन्हें कोर्ट में पेश किया, जहां माननीय न्यायालय द्वारा इन ठग महिलाओं को सेंट्रल जेल रायपुर भेज दिया गया.

सत्यकथा: मददगार बने यमदूत

रात 9 बजे संध्या की अपने पति रंजीत खरे से मोबाइल पर बात हुई. संध्या ने पति से पूछा, ‘‘पार्टी से कितने बजे तक घर आ जाओगे?’’

‘‘अभी पार्टी शुरू होने वाली है, थोड़ा टाइम लगेगा. जैसे ही मैं यहां से निकलूंगा, फोन कर के बता दूंगा,’’ रंजीत ने बताया.

आगरा के सिकंदरा हाईवे स्थित सनी टोयोटा कार शोरूम में बौडी शौप मैनेजर रंजीत खरे 18 अक्तूबर, 2021 की रात को दोस्तों के साथ पार्टी मनाने सिंकदरा में एक दोस्त के यहां गए थे. उन्होंने घर वालों से फोन पर रात में घर आने की बात कही थी.

आगरा के मोती कटरा निवासी 45 वर्षीय रंजीत खरे के कार शोरूम के एक कर्मचारी दुर्गेश को दूसरी कंपनी में नौकरी मिल गई थी. उस ने ही कारगिल पैट्रोल पंप के पास स्थित एक रेस्टोरेंट में विदाई पार्टी रखी थी. रंजीत उसी में शामिल होने के लिए गए थे.

देर रात तक जब रंजीत मोती कटरा स्थित अपने घर नहीं पहुंचे तो पत्नी व अन्य भाइयों को चिंता हुई. इस पर छोटे भाई अमित ने रात पौने 12 बजे रंजीत को फोन लगाया. बातचीत में रंजीत ने बताया कि 20 मिनट में घर पहुंच जाएगा.

घर वाले रंजीत का इंतजार करते रहे. जब साढ़े 12 बजे तक रंजीत घर नहीं आए तो चिंता बढ़ गई. अमित ने फिर फोन लगाया, लेकिन फोन स्विच्ड औफ मिला. मोबाइल बंद होने पर घर वाले परेशान हो गए.

उस ने रंजीत के मित्र दुर्गेश को जब फोन मिलाया तो उस ने बताया, ‘‘रंजीत खाना खा कर लगभग 2 घंटे पहले ही अपनी कार से चले गए थे.’’

लेकिन वह घर नहीं पहुंचे थे. आखिर रंजीत बिना बताए कहां चले गए? घर वाले सारी रात बेचैनी से रंजीत का इंतजार करते रहे. बारबार वह रंजीत को फोन मिला रहे थे, लेकिन उन का फोन बंद मिल रहा था.

इस से घर वालों की चिंता बढ़ रही थी. अगली सुबह रंजीत को तलाशने के लिए घर वाले निकल पड़े. शोरूम के साथ ही सभी दोस्तों, यहां तक कि रिश्तेदार व अन्य परिचितों के यहां उन्हें तलाशा. लेकिन रंजीत कहीं नहीं मिले.

परिवार के लोग 19 अक्तूबर, 2021 मंगलवार को रंजीत के लापता होने की सूचना थाने में दर्ज कराने की तैयारी कर रहे थे. इसी दौरान दोपहर 12 बजे उन्हें मुरैना (मध्यप्रदेश) के सराय छौला थाने से सूचना दी गई कि रंजीत खरे का शव चंबल नदी के पास हाईवे किनारे पड़ा मिला है.

मृतक रंजीत आगरा में ही सनी टोयोटा कार के शोरूम में पदस्थ थे. 4 भाइयों में वे सब से बड़े थे. आगरा में ही पैतृक मकान में अपने तीनों छोटे भाइयों विक्रांत खरे, सुरजीत खरे व सब से छोटे भाई अमित खरे के साथ रहते थे. भाइयों ने इस संबंध में पुलिस से जानकारी ली.

पुलिस के अनुसार शव की पहचान शर्ट पर लगे टोयोटा के बैज (लोगो) से हुई थी. मृतक रंजीत की कार, मोबाइल, सोने की अंगूठी, पर्स, एटीएम कार्ड आदि लाश के पास नहीं मिले थे. सूचना मिलते ही मृतक रंजीत खरे के तीनों भाई अमित, विक्रांत और सुरजीत मुरैना पहुंच गए.

मृतक के गले, चेहरे व सिर पर धारदार हथियारों के निशान दिखाई दे रहे थे. घटनाक्रम से लग रहा था कि हत्यारों ने रंजीत का घर आते समय रास्ते से किसी तरह कार सहित अपहरण कर लिया. उन की कार के साथ सभी सामान भी लूट लिया और उन की हत्या कर शव को मुरैना फेंक कर फरार हो गए.

मृतक के भाइयों के अनुसार रंजीत की हत्या सिकदंरा में ही की गई थी. हत्या के बाद हत्यारे उन के शव को मुरैना फेंक आए थे. क्योंकि रात को जब रंजीत से उन की बात हुई थी, तब उन्होंने कहा था कि वह 20 मिनट में घर पहुंच जाएंगे. इस के बाद उन का फोन बंद हो गया था.

चंबल नदी के पास मिला था शव

थानाप्रभारी सराय छौला जितेंद्र नागाइच के अनुसार अल्लाबेली चौकी के पास मंदिर से 15-20 कदम दूर चंबल नदी के पास हाईवे पर रंजीत का शव मिला था. शव की शिनाख्त मृतक की शर्ट पर टोयोटा के लोगो से हुई. लोगो देख कर पुलिस ने कार कंपनी से संपर्क किया, तब पता चला कि मृतक आगरा निवासी रंजीत खरे हैं. थानाप्रभारी के अनुसार इस संबंध में जांच की जा रही है.

मुरैना पुलिस ने मृतक के शव का पोस्टमार्टम कराने के बाद शव परिजनों के सुपुर्द कर दिया था, लेकिन मुकदमा दर्ज नहीं किया. परिजनों ने जब आगरा में थाना सिकंदरा में मुकदमा दर्ज कराना चाहा, तो घटनास्थल मुरैना का होने के कारण वहां की पुलिस भी मुकदमा लिखने को तैयार नहीं हुई.

इसी बीच 20 अक्तूबर बुधवार की दोपहर को रकाबगंज पुलिस चौकी क्षेत्र में आगरा फोर्ट स्टेशन के बाहर लावारिस हालत में एक कार पुलिस को खड़ी मिली. कार टैक्सी स्टैंड की पार्किंग के पास खड़ी थी. उस पर नंबर प्लेट नहीं थी. कार कौन और कब ले कर आया, पता नहीं चला.

कार का पिछला हिस्सा क्षतिग्रस्त भी था. तलाशी में नंबर प्लेट कार के अंदर ही मिल गई. नंबर प्लेट से कार मालिक की जानकारी हुई. तब देर रात परिजनों को चौकी इंचार्ज संतोष गौतम ने कार के बारे में जानकारी दी.

मुकदमा लिखाने को भटकते रहे घर वाले

मुकदमा लिखाने के लिए परिजन फुटबाल बन गए. रंजीत के परिजनों का रोरो कर हाल बेहाल हो रहा था.

जब मुरैना पुलिस और थाना सिकंदरा पुलिस भी मुकदमा लिखने को तैयार नहीं हुई तो मृतक के भाई विक्रांत खरे 22 अक्तूबर शुक्रवार को एडीजी (जोन) राजीव कृष्ण से मिले और कहा कि यदि मुकदमा नहीं लिखा जाएगा तो हत्यारे कैसे पकड़े जाएंगे.

जब राजीव कृष्ण के संज्ञान में यह मामला आया, तब उन्होंने थाना सिकंदरा पुलिस को हत्या का मुकदमा दर्ज करने के आदेश दिए. शाम को अज्ञात के खिलाफ हत्या और साक्ष्य मिटाने की धारा में मुकदमा थाना सिकंदरा में दर्ज कर लिया गया.

मुकदमा दर्ज होने के बाद सिकंदरा पुलिस ने तेजी से जांच शुरू कर दी. इस संबंध में घर वालों से पूछताछ की गई. उन्होंने बताया कि सिकदंरा क्षेत्र में रंजीत का मित्र दुर्गेश रहता है. उस ने पार्टी दी थी शाम को साढ़े 5 बजे रंजीत उसी पार्टी में शामिल होने शोरूम से सीधे चले गए थे.

पत्नी संध्या ने पुलिस को बताया, ‘‘पति सोमवार की सुबह 9 बजे शोरूम गए थे. रात में करीब 9 बजे फोन पर बात हुई. इस के बाद भाई अमित से रात लगभग पौने 12 बजे बात हुई. उन्होंने अमित से 20 मिनट में घर आने की बात कही. लेकिन नहीं आए. इस के बाद मोबाइल भी बंद हो गया.’’

जांच में पुलिस को पता चला कि रंजीत शाम साढ़े 5 बजे शोरूम से पार्टी के लिए निकले थे. वह रात पौने 12 बजे तक जीवित थे. इस के बाद ही उन का अपहरण कर हत्या कर दी गई. लाश को कार से ले जा कर मुरैना में फेंका गया. इस के बाद हत्यारों ने कार आगरा ला कर लावारिस छोड़ दी.

जांच में कार के अंदर खून के निशान भी मिले थे. पुलिस इस बात की भी जांच कर रही थी कि क्या रंजीत की हत्या कार में करने के बाद उन की लाश को किसी अन्य वाहन से मुरैना ले जाया गया था अथवा उन्हीं की कार से शव को ले जा कर वहां फेंका गया था?

पुलिस ने दुर्गेश से भी इस संबंध में पूछताछ की. दुर्गेश ने पुलिस को बताया, ‘‘रंजीत लगभग साढ़े 9 बजे रात में पार्टी से चले गए थे.’’

पार्टी रेस्टोरेंट की जगह दुर्गेश के फ्लैट पर ही आयोजित की गई थी. पुलिस द्वारा अब तक की गई छानबीन में रंजीत द्वारा 4 दोस्तों के साथ पार्टी करने की जानकारी सामने आई थी. पुलिस उन चारों की काल डिटेल्स और लोकेशन की जांच में जुट गई. पुलिस ने क्षेत्र के सीसीटीवी कैमरे भी चैक किए.

काफी हाथपैर मारने के बाद भी पुलिस को कोई सुराग नहीं मिल रहा था. पुलिस कयास लगा रही थी कि रंजीत के हत्यारे आगरा के ही निवासी हैं. वे हत्या व लूट की घटना को अंजाम देने के बाद शव को ठिकाने लगा कर वापस आगरा आ गए होंगे. कार से उन्हें अपने पकड़े जाने का खतरा होगा, इसलिए उसे लावारिस हालत में छोड़ गए.

जांच में सीसीटीवी कैमरे की फुटेज में सामने आया कि घटना वाली रात 1 बज कर 13 मिनट पर रंजीत की कार ने सैंया टोल पार किया था.

इस से इतना तो साफ हो गया कि रंजीत की कार में ही हत्या की गई थी. क्योंकि कार में खून के निशान मिले थे. पहले उसी कार से शव को मुरैना ले जा कर ठिकाने लगाया गया. उस के बाद वापस लौट कर कार को लावारिस छोड़ दिया गया. मतलब साफ था कि हत्यारे आगरा के ही हैं.

पुलिस मृतक के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स खंगालने में जुट गई, जिस से यह पता चल सके कि हत्या वाले दिन रंजीत की किनकिन लोगों से बात हुई थी. वहीं दोस्तों के बारे में भी जानकारी जुटाने में पुलिस लग गई.

एसएसपी सुधीर कुमार सिंह ने सिकंदरा थाने के इंसपेक्टर विनोद कुमार के नेतृत्व में गठित टीम को कुछ दिशानिर्देश दे कर इस मामले में लगाया. पहले दिन यह नहीं पता था कि हत्या क्यों हुई है, किस ने की है? कार मिल गई है. इस कारण यह लगने लगा है कि मामला कार लूट के लिए हत्या का नहीं है. पुलिस को सर्विलांस से भी कुछ सुराग मिले.

एसएमएस से खुला राज

रंजीत खरे के मोबाइल की काल डिटेल्स की जांच के दौरान पुलिस के हाथ एक महत्त्वपूर्ण सुराग लगा. हुआ यह कि जांच के दौरान रंजीत खरे के मोबाइल पर एक एसएमएस आया था कि जिस नंबर पर उन्होंने मिस काल दी थी, वह नंबर चालू हो गया था.

हुआ यह था कि जिस नंबर को रंजीत ने मिलाया था, उस समय वह स्विच्ड औफ था. जब वह मोबाइल चालू किया गया तो रंजीत के मोबाइल पर उस नंबर से एसएमएस आ गया.

जांच में पुलिस ने इस नंबर की काल डिटेल्स निकाली. जिस रास्ते से रंजीत की कार को ले जाया गया था, उसी रास्ते पर उस की लोकेशन मिली.

इस केस से जुड़े रहस्य की तब परतें खुलनी शुरू हो गईं. यह मोबाइल नंबर आगरा में हौस्पिटल रोड पर स्थित शिवपुरी कालोनी निवासी अर्जुन शर्मा का था. पुलिस ने उस की फोटो से उसे पहचान लिया.

अर्जुन का नाम सामने आते ही पुलिस के कान खड़े हो गए. थाना में उस का पुराना आपराधिक रिकौर्ड था. पुलिस उस के घर पहुंची, वह फरार था. उस का मोबाइल भी बंद था. अर्जुन शर्मा 2 बार पहले भी हत्या के आरोप में जेल जा चुका है. हत्या की दोनों वारदातों के समय वह नाबालिग था. लेकिन वह इस समय 20 साल का हो चुका था.

पुलिस सरगर्मी से उस की तलाश में जुट गई. घटना के 5 दिन बाद यानी 23 अक्तूबर को जैसे ही अर्जुन अपने घर पहुंचा, मुखबिर ने पुलिस को जानकारी दे दी. पुलिस ने उसे व उस के साथी रोशन विहार, सिकंदरा निवासी अमन शर्मा को भी गिरफ्तार कर लिया.

थाने ला कर उन से पूछताछ की गई तो दोनों ने रंजीत खरे की हत्या करने का जुर्म कुबूल कर लिया. उन की निशानदेही पर पुलिस ने एक .315 बोर का तमंचा व कारतूस के साथ ही रंजीत की हत्या के बाद उन का लूटा हुआ कुछ सामान भी बरामद कर लिया.

अभियुक्तों की गिरफ्तारी पर एसएसपी सुधीर कुमार सिंह ने प्रैस कौन्फ्रैंस आयोजित कर हत्यारोपियों की गिरफ्तारी की जानकारी देते हुए रंजीत खरे हत्याकांड का परदाफाश कर दिया. हत्याकांड के पीछे रंजीत खरे की कार, नकदी, आभूषण आदि लूटना था.

मददगारों को पार्टी देना पड़ा भारी

पकड़े गए आरोपियों में अर्जुन शर्मा शातिर बदमाश था. अर्जुन ने 2017 में हत्या की थी इस के बाद वर्ष 2019 में भी हत्याकांड को अंजाम दिया. वह जेल से जमानत पर आया था. अब उस ने तीसरी हत्या को अंजाम दिया है. अर्जुन और अमन दोस्त हैं. दोनों ने एक साथ इंटरमीडिएट तक पढ़ाई की थी.

हत्याभियुक्त अमन का किरावली में बाइक का शोरूम है. अभियुक्तों से पूछताछ के बाद इस सनसनीखेज हत्याकांड व लूट की कहानी जो सामने आई, वह इस तरह थी—

रंजीत की कार घटना से एक दिन पहले ककरैठा के पास नाले में फंस गई थी. कार के अगले 2 पहिए नाले में फंस जाने से कार बाहर नहीं निकल पा रही थी. रंजीत ने कार को नाले से निकलवाने में रास्ते से बाइक पर जा रहे 2 युवकों से मदद मांगी थी.

युवकों ने नाले से रंजीत की कार को बाहर निकलवाने में मदद कर दी. मदद करने के कारण दोस्ती जैसा माहौल हो गया.

उस समय रंजीत नशे में थे. उन्होंने अपना नाम रंजीत खरे बताया और जानकारी दी कि वह कार शोरूम का मैनेजर है. रंजीत जिंदादिल इंसान थे. उन्होंने दोनों युवकों को इसी बातचीत के दौरान शराब की पार्टी का औफर दिया. इस पर उन में से एक युवक का रंजीत ने मोबाइल नंबर ले लिया.

कार निकलवाने में मदद के दौरान अर्जुन और अमन को लगा कि इस के पास बहुत पैसे होंगे. जो मामूली मदद पर शराब की पार्टी देने को तैयार हो गया. रहनसहन देख कर दोनों की नीयत में खोट आ गई.

दूसरे दिन यानी 18 अक्तूबर, 2021 को पार्टी की बात तय हुई. रंजीत ने सोचा कि वह दोस्त दुर्गेश की पार्टी में जाने की कह कर आया है, इसी बहाने दोनों नए दोस्तों को भी पार्टी दे दी जाए.

शराब में मिला दी थीं नींद की गोलियां

रंजीत अपने दोस्त दुर्गेश की पार्टी में शामिल होने के बाद रात साढ़े 9 बजे घर जाने की बात कह कर वहां से निकल गए. इस के बाद तय स्थान पर दोनों मददगार अनजान दोस्त अर्जुन और अमन मिल गए.

रंजीत ने दोनों को अपनी कार में बैठा लिया. दोनों युवक कार को हाईवे पर ले गए. कार को रास्ते में रुकवा कर कार में ही पार्टी शुरू हो गई.

दोनों दोस्तों ने शराब में नींद की गोलियां मिला कर रंजीत को शराब पिला दी. कुछ ही देर में रंजीत पर बेहोशी छाने लगी. दोनों ने इसी दौरान रंजीत को दबोच लिया और उन के सिर, गरदन व चेहरे पर कार के व्हील पाना से प्रहार कर हत्या कर दी.

रंजीत के पर्स में रखे 4 हजार रुपए, अंगूठी, चैकबुक, एटीएम, मोबाइल आदि लूट लिए. शव को कार की डिक्की में डाल कर ठिकाने लगाने के लिए मुरैना की ओर जा रहे थे. सैंया टोल क्रास कर गए. हड़बड़ी में यह ध्यान नहीं रहा कि कार में लगे फास्टटैग से कार की एंट्री हो गई थी.

दोनों घबरा गए कि अब पकड़े जाएंगे. इसलिए लाश को ठिकाने लगाने के बाद पुलिस की नजरों से बचने के लिए कार की नंबर प्लेट निकाल कर कार में डाल दी और फास्टटैग को हटा दिया ताकि पहचान न हो सके.

टोल पर गाड़ी का गलत नंबर बता कर नकद भुगतान कर परची कटाई. कार को लूटने पर पकड़े जाने का खतरा था, इसलिए कार फोर्ट स्टेशन पर खड़ी कर दी. कार की चाबी भावना एस्टेट के पास फेंक दी.

पुलिस ने दोनों हत्यारोपियों अर्जुन शर्मा व अमन शर्मा को न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल दिया गया.

अनजान व्यक्तियों से मदद लेना रंजीत के लिए जानलेवा साबित हुआ. मददगारों ने दोस्त बन कर रंजीत के ठाठ देख कर बड़ा आदमी समझा और लालच में हत्या व लूट की घटना को अंजाम दे कर एक हंसतेखेलते परिवार को उजाड़ दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Manohar Kahaniya: पति पर पहरा

सौजन्य- मनोहर कहानियां

कोई भी महिला इस बात को हरगिज बरदाश्त नहीं कर सकती कि उस के पति के किसी और महिला से संबंध हों. दिल्ली की रीना गुलिया को जब पता चला कि उस के पति नवीन गुलिया का किसी लड़की से चक्कर चल रहा है, तब वह उस पर वीडियो कालिंग कर के नजर रखने लगी.

रीना गुलिया को पिछले 5 महीने से लगने लगा था कि उस के ग्लैमर और खूबसूरती में कमी आ गई है.

वह एक बच्चे की मां थी और पति नवीन गुलिया केबल कारोबारी. पति पहले की तरह अब उस की तारीफ नहीं करता था और न ही उस को कहीं घुमानेफिराने ले कर जाने की बातें ही करता था.

कनाट प्लेस में कैंडल डिनर और टूरिस्ट प्लेस के लिए डेटिंग तो बीते जमाने की बातें हो चुकी थीं. हर बात पर उसे झिड़की सुनने को मिलती थी. वह उस के प्यार में आई नीरसता और व्यवहार के रूखेपन से चिंतित होने लगी थी. वह समझ नहीं पा रही थी कि उस में इस तरह का बदलाव क्यों और कैसे आ गया है.

नवीन के स्वभाव में आए अचानक फर्क से रीना का चिंतित होना स्वाभाविक था. पहले तो उस ने सोचा कि शायद ऐसा लंबे समय से लौकडाउन के बाद कारोबार में बिजी होने की वजह से होगा, किंतु एक दिन नवीन को चार्मिंग फेस के साथ फोन पर बातें करते सुना. फोन पर लंबी बातचीत करने पर रीना को बेहद आश्चर्य हुआ.

रीना ने अपने सिक्स्थ सेंस से इतना तो अंदाजा लगा ही लिया था कि नवीन की जरूर किसी लड़की से बातें हो रही होंगी. उस के बारे में सीधेसीधे पूछने के बजाय उस ने उस पर निगरानी शुरू कर दी.

रीना का शक सही निकला. जल्द ही उसे पता चल गया कि नवीन किसी भारती नाम की लड़की से बातें करता है. फिर क्या था, रीना का पति को अंकुश में रखने का सिलसिला शुरू हो गया.

एक दिन जब पति घर से बाहर गया हुआ था तो रीना ने शाम के समय उसे वीडियो काल कर के पूछा, ‘‘नवीन तुम कहां हो?’’

‘‘गजब का सवाल करती हो. वीडियो काल किया है तो अंदाजा लगा लो. वैसे दिखाता हूं… देखो मालवीय नगर मेट्रो स्टेशन का मेनगेट दिखा?’’ कहते हुए नवीन ने मोबाइल कैमरे को मेट्रो स्टेशन की तरफ घुमा दिया.

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‘‘अरे…अरे, तुम तो नाराज हो गए. दरअसल, मुझे कालकाजी मंदिर जाना था, इसलिए मैं पूछ रही थी,’’ रीना बोली.

‘‘इस बारे में सुबह ही बताना था. मैं बस पर्किंग से गाड़ी ले कर मार्केट होता हुआ पहुंच रहा हूं. वैसे भी इस समय वहां जाएंगे तो काफी जाम में फंस जाएंगे,’’ नवीन बोला.

‘‘चलो कोई बात नहीं, अगले शुक्रवार को चलते हैं.’’ रीना बोली और फोन कट

कर दिया.

नवीन बड़बड़ाने लगा, ‘‘…पता नहीं इसे आजकल क्या हो गया है. बातबात पर वीडियो काल करती रहती है. मेरी भी कोई प्राइवेसी है या नहीं?’’

नवीन थोड़े समय में ही घर आ गया था. साथ में 3 बर्गर भी लाया था. उस का 7 वर्षीय बेटा बोल पड़ा, ‘‘पिज्जा नहीं लाए? उस के साथ कोका कोला भी मिलता है.’’

नवीन का चल रहा था भारती से चक्कर

नवीन कुछ बोलने को ही था कि उस का फोन आ गया. उस ने झट से काल रिसीव किए बगैर काट दिया. क्योंकि फोन भारती का ही था. अपने हिस्से का एक बर्गर लिया और वह छत पर चला गया.

छत पर पहुंच कर नवीन ने भारती को फोन मिलाया, ‘‘हां, हैलो, बताओ मेरी जान. कैसे फोन किया? तुम्हें मैं ने कहा है कि मुझे काल मत किया करो, मैसेज भेज दो. मैं खुद ही काल कर लूंगा.’’

‘‘अरे नवीन, मैं ने तुम्हें एक खुशखबरी देने के लिए फोन किया था. मैं संडे को देहरादून जा रही हूं. साथ चलोगे क्या?’’ भारती बोली.

‘‘संडे को यानी परसों. देखता हूं… तुम्हारे लिए तो समय निकालना ही पड़ेगा. रीना से कोई नया झूठ भी बोलना पड़ेगा,’’ नवीन

ने कहा.

‘‘झूठ नहीं, बहाना बनाना पड़ेगा.’’ कहती हुई भारती हंस पड़ी. नवीन भी हंस पड़ा और बर्गर की एक बाइट ले कर चबाने लगा.

‘‘तुम कुछ खा रह हो न! वह भी अकेलेअकेले?’’ भारती मुंह चलाने की आवाज सुन कर बोली.

‘‘…एक मिनट होल्ड करना, रीना की काल आ रही है.’’ कहते हुए नवीन ने भारती का फोन होल्ड पर कर दिया.

‘‘एक मिनट चैन से नहीं रहते देती है…’’ बड़बड़ाते हुए नवीन ने पत्नी की काल रिसीव की, ‘‘हां, बोलो… क्या चाय बन गई है. मैं अभी आ रहा हूं नीचे.’’ और फिर नवीन ने भारती के काल को दोबारा औन कर उस से सौरी बोला. इसी के साथ देहरादून चलने का वादा भी किया.

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‘‘किस का फोन था, जो तुम उस के लिए छत पर चले गए?’’ रीना सेंटर टेबल पर चाय रखती हुई बोली.

‘‘औफिस के किसी आदमी का फोन था, मुझे संडे को देहरादून जाना पड़ेगा.’’ नवीन ने झूठ बोला.

‘‘देहरादूनऽऽ, रास्ते में तो हरिद्वार, ऋषिकेश आएगा न? मैं भी चलूं क्या?’’ रीना चहकते हुए बोली.

‘‘नहींनहीं, मुझे अकेले जाना होगा, फैमिली के साथ नहीं.’’ नवीन ने उसे डपटते हुए कहा.

इतना कहना था कि रीना बिफरती हुई कहने लगी, ‘‘मुझे कहीं नहीं ले जाते हो, खुद घूमते रहते हो. मैं यहां घर में पड़ीपड़ी सड़ती रहती हूं. खुद तो मौजमस्ती करते हो. मैं सब जानती हूं कि तुम मुझे क्यों नहीं ले जाना चाहते…’’

पत्नी के सवालों से चिढ़ जाता था नवीन

नवीन और रीना के बीच की यह नोंकझोंक आए दिन की हो गई थी. नवीन बातबात पर रीना से उलझ जाता था, उस के कई उलझाने वाले शिकायती सवालों के संतुष्ट करने लायक जवाब नहीं दे पाता था.

वह जब भी अपना बचाव करने लगता, तब तूतूमैंमैं की नौबत आ जाती थी. ढाई-3 महीने से तो रीना कुछ ज्यादा ही आक्रामक हो गई थी. बातबात पर सवाल करने लगी थी. उसे हमेशा लगता था कि नवीन उस से बहुत सारी बातें छिपा रहा है. हालांकि वह अब कंफर्म हो चुकी थी कि नवीन के किसी भारती नाम की लड़की के साथ संबंध हैं.

वह नवीन को उस का नाम ले कर ताने भी मारने लगी थी. नवीन उस की बातों से जितना परेशान रहता था, उस से कहीं अधिक उस के बाहर रहने पर वीडियो कालिंग से तंग आ गया था. इस तरह दोनों की ही जिंदगी भारी तनाव में गुजर रही थी.

बात 18 नवंबर, 2021 की है. मालवीय नगर निवासी नवीन गुलिया शाम के करीब 5 बजे अपनी रक्तरंजित पत्नी रीना गुलिया को ले कर शेख सराय स्थित पीएसआरआई अस्पताल पहुंचा था. डाक्टर को मरीज की हालत देखते ही अपराध का मामला लगा और उन्होंने तत्काल मालवीय नगर थाने में इस की सूचना दे दी थी.

सूचना के बाद अस्पताल पहुंची पुलिस टीम को पता चला कि नवीन की 33 वर्षीय पत्नी रीना गुलिया बेहद जख्मी है. उस की किसी ने चाकुओं से गोद कर सुनियोजित ढंग से हत्या करने की कोशिश की है.

उपचार के सिलसिले में डाक्टर को शरीर पर चाकू के अनेक निशान मिले थे. उन्हें गिनना शुरू किया तब वह भी दंग रह गए. शरीर पर कुल 17 वार थे. ऐसा लग रहा था, जैसे किसी ने ताबड़तोड़ चाकू से गोद डाला है. डाक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया.

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पूछताछ में नवीन ने घटना के दिन के बारे में बताया कि वह दोपहर करीब ढाई बजे

अपने बेटे के साथ डिफेंस कालोनी में एक डाक्टर के पास गया था. उस वक्त रीना घर पर अकेली थी.

डाक्टर से मिलने के बाद उस ने अपने बेटे के लिए खरीदारी की. फिर वह बेटे को शिव मंदिर बांध रोड के पास नाई की दुकान पर छोड़ कर कालकाजी स्थित अपने औफिस चला गया था.

वहां पर उस ने नाई को ही फोन कर के कह दिया कि वह औफिस में व्यस्त है इसलिए बेटे के बाल काटने के बाद उसे घर भिजवा दे.

वह नाई नवीन का परिचित था, इसलिए उस ने अपने एक कर्मचारी के साथ बेटे को घर भिजवा दिया. घर पहुंचने पर रीना घर में खून से लथपथ पड़ी मिली. कर्मचारी ने यह बात नाई को बता दी.

तब नाई ने शाम करीब पौने 5 बजे नवीन के मोबाइल पर फोन कर बताया कि उन की पत्नी खून से लथपथ पड़ी है और उसे चाकू लगे हैं. यह सुन कर नवीन तुरंत अपने घर पहुंचा और रीना को पीएसआरआई अस्पताल ले गया.

नवीन के बयान पर पुलिस ने आईपीसी की धारा 302, 449, 201,120बी और 34 के तहत मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी.

जांच में पता चला कि रीना को 16-17 बार चाकू मारा गया है. मामले को सुलझाने के लिए एसीपी अरुण चौहान की देखरेख और एसएचओ कुमारकांत मिश्रा के नेतृत्व में हत्या की गुत्थी सुलझाने के लिए विशेष तरीके से जांचपड़ताल और पूछताछ की जाने लगी.

नवीन से की गई प्रारंभिक पूछताछ से पुलिस संतुष्ट नहीं हुई थी, इसलिए पुलिस ने नवीन से दोबारा पूछताछ की.

इस वारदात की सूचना डीसीपी बेनितो मोरिया जयकर को भी दे दी गई. तब डीसीपी ने इस वारदात की जांच के लिए थानाप्रभारी कुमारकांत मिश्रा के नेतृत्व में पुलिस टीम बनाई गई थी. टीम में इंसपेक्टर पंकज कुमार, एसआई संदीप कुमार आदि को शामिल किया गया.

घर पर मिले खून के निशान

घटनास्थल पर पहुंची पुलिस टीम के साथ नवीन भी था. वह पत्नी की मौत पर विलाप करने लगा था. वहीं उस का बेटा भी ‘मम्मीमम्मी’ रट लगा कर रोए जा रहा था. पुलिस ने उन्हें ढांढस बंधाते हुए उस दिन की पूरी गतिविधियों की जानकारी ली. इस से पहले ड्राइंगरूम समेत पूरे मकान का मुआयना किया.

घर में फर्श पर खून के बड़ेबड़े धब्बे दिखाई दिए. उन्हें देख कर कोई भी सहज अंदाजा लगा सकता था कि हत्या की पूरी वारदात ड्राइंगरूम में ही हुई होगी.

हत्यारे ने उसे वहां से दूसरे कमरे में या कहीं और भागने तक का मौका ही नहीं दिया होगा. बाकी कमरों में सब कुछ व्यवस्थित था. लूटपाट जैसी कोई बात कहीं से भी नजर नहीं आ रही थी, सिवाय कुछ सामान बिखरने के.

पुलिस टीम ने जांच के दौरान सीसीटीवी फुटेज की जांच के अलावा पड़ोसियों से भी पूछताछ की. जांच के दौरान सीसीटीवी की एक फुटेज मिली, जिस में 2 संदिग्ध व्यक्ति रीना के घर में जाते हुए दिखाई पड़े. कुछ देर बाद घर से 3 लोग बाहर आते दिखाई पड़े.

इस के अलावा, सीसीटीवी फुटेज की जांच करने पर स्कूटी सवार तीनों संदिग्ध व्यक्तियों की पहचान पंपोश एनक्लेव, कालकाजी निवासी के तौर पर हुई.

जांच के दौरान पुलिस को रीना के पति नवीन पर भी शक और गहरा हो गया. फिर नवीन के मोबाइल नंबर की जांच की गई. उस से पता चला कि वह एक नंबर पर लगातार बातचीत कर रहा है. वह नंबर गोविंदपुरी में रहने वाली एक महिला का निकला.

नवीन के मोबाइल फोन को पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया. उस के नंबर की काल डिटेल्स निकाली गई. वाट्सऐप, इंस्टाग्राम और फेसबुक को खंगाला गया. उस से पता चला कि वह भारती नाम की महिला से काफी लंबी बातें करता था.

भारती के बारे में पूछने पर नवीन ने स्वीकार कर लिया कि 2 साल पहले इंस्टाग्राम पर उस की भारती से दोस्ती हुई थी. वह गोविंदपुरी की रहने वाली है.

दोनों एकदूसरे से प्रेम करते थे. वे दोनों किसी तरह समय निकाल कर हर रोज एक बार मिल भी लिया करते थे. उन का आपसी प्रेम धीरेधीरे परवान चढ़ चुका था. 2-3 बार दोनों साथसाथ शहर से बाहर भी जा चुके थे.

इस की गवाही इंस्टाग्राम और वाट्सऐप पर उन की पोस्ट की गई तसवीरें दे रही थीं. कुछ को तो उन्होंने यादगार के तौर पर रखा हुआ था, जबकि कुछ को डिलीट करने की कोशिश की गई थी.

पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि रीना की हत्या की जड़ निश्चित तौर पर भारती और नवीन का प्रेम संबंध हो सकता है.

सख्ती से की गई पूछताछ में टूट गया नवीन

उस के बाद पुलिस नवीन से और भी सख्ती से पूछताछ करने लगी. साथ ही पुलिस ने तर्क दिया कि प्रेम संबंध की खातिर उस की पत्नी अब इस दुनिया में नहीं है, तो क्या अब प्रेमिका को भी खोना चाहता है? उस पर बच्चे के पालनपोषण की भी जिम्मेदारी है. अगर उस ने सब कुछ सचसच बता दिया तो उस के गुनाह को कम किया जा सकता है.

यह बात नवीन को पसंद आ गई और वह पुलिस को सब कुछ बताने के लिए राजी हो गया. नवीन ने बताया कि उस के भारती से प्रेम संबंध के बारे पता चलने पर रीना बेहद परेशान रहने लगी थी.

उस ने खुल कर विरोध नहीं जताया, लेकिन उस के लोकेशन के बारे जानने की कोशिश करने लगी. इसलिए वह हमेशा वीडियो काल से ही बात करती थी.

इस बात से उसे परेशानी होती थी. उसे लगने लगा था कि उस की अपनी प्राइवेसी छिन गई है. इसी कारण उस की कई बार रीना से बहस और लड़ाईझगड़े भी होने लगे थे. वह रीना की लोकेशन जानने की आदत से तंग आ गया था. एक दिन ऊब कर उस ने पत्नी की हत्या की योजना बना ली.

नवीन ने मालवीय नगर के ही रहने वाले राहुल नाम के बदमाश को 5 लाख रुपए में पत्नी की हत्या की सुपारी दे दी. राहुल ने अपने 2 दोस्तों चंदू और सोनू को योजना में शामिल कर लिया.

घटना के दिन हत्यारों को घर का पता दे कर नवीन खुद अपने औफिस चला गया. इसे उस ने बड़े ही सुनियोजित तरीके से किया. पहले उन्हें अपने घर की फोटो वाट्सऐप पर भेज दी थी. साथ ही घर की लोकेशन भी भेजी थी. इसी के जरिए सुपारी किलर उस के फ्लैट पर पहुंचा था.

घटना के दिन 18 नवंबर, 2021 को जब रीना बाथरूम में थी, तब नवीन अपने बेटे को होम्योपैथी डाक्टर के यहां दिखाने के बहाने से उसे ले कर डिफेंस कालोनी जाने के लिए घर से निकला था. उस से पहले उस ने फ्लैट का दरवाजा बाहर से लौक कर दिया था.

तीनों बदमाशों ने चाकू से गोद दिया रीना को

इस की जानकारी नवीन ने राहुल नाम के बदमाश को वाट्सऐप से दे दी थी. डिफेंस कालोनी जाने के रास्ते में ही राहुल उसे मिल गया था, जिसे नवीन ने चाबी दे दी.

राहुल चाबी ले कर उस के घर पहुंचा और दरवाजे का ताला खोल कर बैडरूम में छिप गया था. अपने बैडरूम में रीना को इन बातों का जरा भी आभास नहीं हुआ.

राहुल ने बाहर का दरवाजा खुला छोड़ दिया था. थोड़ी देर में स्कूटी से राहुल के साथी चंदू और सोनू आ गए. जब वे फ्लैट में दाखिल हुए तब तक रीना ड्रांइरूम में आ गई थी. वह तीनों को वहां पा कर हक्कीबक्की रह गई. सिर्फ इतना ही पूछ पाई, ‘‘तुम लोग नए स्टाफ हो?’’

बदमाशों ने उस से आगे रीना को कुछ बोलने का मौका ही नहीं दिया और ताबड़तोड़ चाकुओं से उसे बुरी तरह से जख्मी कर दिया. कुछ हमले उस की गरदन पर हुए. उस की सांसें थमने के बाद तीनों स्कूटी पर बैठ कर वहां से फरार हो गए.

इसी दौरान नवीन बेटे को सैलून पर छोड़ कर अपने औफिस चला गया. वहां से नाई ने अपने एक स्टाफ हरि को सैलून से नवीन के बेटे को घर पहुंचाने को भेज दिया.

हरि घर पहुंचा, तब उस ने पाया कि घर का दरवाजा खुला था और ड्राइंगरूम में फर्श पर रीना की लाश पड़ी थी. बाद में जब नवीन घर पहुंचा तो वह पत्नी को इलाज के लिए अस्पताल ले गया.

इस हत्याकांड का खुलासा हो चुका था. नवीन की निशानदेही पर 3 हत्यारोपियों की गिरफ्तारी भी हो गई. नवीन को भी हिरासत में ले लिया गया. हत्या में इस्तेमाल चाकू व वारदात में इस्तेमाल स्कूटी बरामद कर ली. राहुल के पास से सुपारी के दिए गए 50 हजार रुपए भी बरामद कर लिए.

गिरफ्तार आरोपियों मालवीय नगर निवासी नवीन कुमार गुलिया, सोनू और राहुल को पुलिस ने गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

Manohar Kahaniya: गलतफहमी में प्यार बना शोला

सौजन्य- मनोहर कहानियां

विज्ञान और तकनीक के जमाने में बांझ औरत की कोख से बच्चे का पैदा होना कोई अजूबा नहीं रहा. लेकिन 70 साल की औरत द्वारा बच्चे को जन्म देना विज्ञान जगत के लिए भी किसी अचंभे से कम नहीं होगा. ऐसी अचरज भरी एक घटना गुजरात की है, जहां झुर्रियों से भरी चेहरे वाली औरत ने मां बन कर दुनिया की सब से अधिक उम्र में बच्चा जन्म देने वाली औरत का दरजा भी हासिल कर लिया.

जीवुबेन ने पड़ोस में रहने वाली मीराबेन को कराहते हुए आवाज लगाई. उन की आवाज सुनते ही

मीराबेन भागती हुई उन के पास आ कर बोली, ‘‘हां दादी, कोई बात है… कुछ चाहिए क्या?’’

‘‘अरे हां, बहुत दर्द हो रहा बेटा, दर्द वाली दवाई दे दो, वहां ताखे पर रखी होगी,’’ बिछावन पर लेटी जीवुबेन  बोली.

‘‘लेकिन दादी, आप को दर्द की ज्यादा दवा लेने से डाक्टर ने मना किया है. थोड़ा बरदाश्त कर लिया करो… देखो तो तुम्हारा बेटा भी मेरी बात सुन रहा है… कैसा मुसकरा रहा है…’’ मीरा समझाती हुई बोली.

‘‘अभी तक मैं तुम्हारी ही तो बात मानती आई हूं और आगे भी मान… ना… ओह! आह!!’’ जीवुबेन बोलतेबोलते कराह उठी.

‘‘ये दर्द उस दर्द के सामने कुछ भी नहीं है दादी, जो तुम 40 से अधिक सालों से बरदाश्त किए हुए थीं,’’ मीरा बोली.

‘‘तुम तो मेरी भी अम्मादादी बन रही हो. वैसे कह सही रही हो… बेऔलाद होने का दर्द कहीं अधिक बड़ा और तकलीफ देने वाला था. मगर क्या करूं, बरदाश्त नहीं हो रहा है…’’ कहती हुई जीवु करवट बदलने की कोशिश करने लगीं.

मीरा ने उन्हें सहारा दे कर उन का मुंह बगल में लेटे बच्चे की ओर कर दिया.

‘‘लो, अब बेटे को देखती रहो. सारा दर्द छूमंतर हो जाएगा.’’ कहती हुई मीरा भी सिरहाने बैठ बगल में लेटे नवजात शिशु को पुचकारने लगी.

2 दिन पहले ही जीवुबेन का सीजेरियन औपरेशन हुआ था. घर में 45 साल बाद किलकारी गूंजी थी. उन का औपरेशन परिवार के सभी सदस्यों से ले कर डाक्टर तक के लिए खास था, कारण उन की उम्र 70 साल की थी.

इस औपरेशन की सफलता से सभी खुश थे. जच्चाबच्चा दोनों सुरक्षित और स्वस्थ थे. केवल औपरेशन के जख्म हरे होने के कारण जीवुबेन को थोड़ी तकलीफ थी. सब के लिए किसी अचंभे से कम नहीं था उन का औपेरशन.

डाक्टर ने बताया था कि अधिक उम्र में औपरेशन होने से उन का जख्म भरने में समय लग सकता है. डाक्टर ने दूसरी एंटीबायोटिक दवाओं के साथसाथ दर्द की दवा भी दी थी, लेकिन दर्द की दवा ज्यादा खाने से मना करते हुए हिदायत भी दी थी. कहा था कि असनीय या तेज दर्द हो तभी वह दवा खाएं, वरना उस का असर सीधे किडनी पर पड़ेगा.

थोड़ी देर बैठने के बाद मीरा वहां से जाने को उठी, तभी जीवु के पति मालधारी आ गए. मीरा सिर पर दुपट्टा संभालती हुई बोली, ‘‘नमस्ते दादाजी.’’

‘‘कैसी है रे तू?’’ मालधारी मीरा से बोले.

‘‘अच्छी हूं, दादाजी. आप अब तो खुश हैं न?’’ मीरा बोली.

‘‘तू खुश रहने की बात बोल रही है, मैं तो इतना खुश हूं कि तुझे बता नहीं सकता… और बेटा तूने जो औलाद की मुराद पूरी करवाई है वह कभी नहीं भूलने वाला उपकार है.’’ बोलतेबोलते मालधारी भावुक हो गए.

‘‘उपकार किस बात का दादाजी, सब ऊपर वाले की मरजी से हुआ है.’’ मीरा बोली.

‘‘कुछ भी कह लो, लेकिन मेरे घर आई औलाद की खुशी बेटा तेरी ही बदौलत मिली है. जो मैं 75 साल की उम्र में बाप बन गया हूं… और देखो जीवु मुझ से कुछ ही साल तो छोटी है…‘‘ मालधारी ने कहा.

‘‘बस दादाजी, बस. मेरी तारीफ और मत करो…’’ मीरा बोली.

‘‘अरे, मैं तेरी तारीफ नहीं कर रहा हूं बल्कि मैं यह नहीं समझ पा रहा हूं कि तू ठहरी निपट अनपढ़ औरत, फिर भी इतनी गहरी बात की जानकारी तुझे मिली कैसे? मैं तो वही सोचसोच कर अचरज में हूं.’’ मालधारी काफी दिनों तक मन में दबी जिज्ञासा को और नहीं रोक पाए.

‘‘अच्छा तो यह बात है. चलो, मैं आज बता ही देती हूं दादादी… मैं जब 2 साल पहले सूरत में काम करने गई थी, तब मुझे एक नर्सिंगहोम में काम मिला था. वहां केवल बच्चा जन्म देने वाली औरतों को ही रखा जाता था. मुझे उन की देखभाल करने की नौकरी मिली थी. वहां और भी कई नर्सें और दाई काम करती थीं. भरती औरतों को समय पर दवाइयां खिलानी होती थी, खानेपीने की देखभाल करनी थी और उन्हें घुमानेफिराने के लिए ले जाना होता था…’’

‘‘तुम भी तो वहां गए थे.’’ बीच में जीवु बोली.

‘‘लगता है, अब दर्द कम हो गया है,’’ मीरा मुसकराती हुई बोली.

‘‘हां, तुम्हारी कहानी सुन कर दर्द चला गया,’’ जीवु गहरी सांस लेती हुई बोली.

‘‘…लेकिन तुम्हें टेस्टट्यूब के बारे में किस ने बताया?’’ मालधारी ने पूछा.

‘‘अरे तुम क्या समझोगे, मैं बताती हूं न सब कि कितने तरह की जांच हुई मेरी. वैसे तुम को भी तो डाक्टर ने बताया ही होगा. तुम्हारी भी तो डाक्टर ने जांच की थी,’’ जीवु बोली.

‘‘मेरी जांच का तो कुछ पता ही नहीं चला. डाक्टर ने सिर्फ बोला कि देखता हूं… अभी कुछ कह नहीं सकता.’’ मालधारी बोले.

‘‘मैं जब मीरा के पास 2 साल पहले गई थी, तब मीरा मुझे एक दिन जहां काम करती थी अपने साथ ले गई थी. वहीं भरती औरतों से मालूम हुआ कि उस के पेट में पलने वाला बच्चा उन का है, जो खुद मांबाप नहीं बन सकते थे. उसे पालने के बदले में पैसे मिले हैं.’’ जीवु बोली.

‘‘उस से क्या हुआ?’’ मालधारी ने पूछा.

‘‘हुआ यह कि जब एक दफा उन को देखने डाक्टर आए तब उन से मीरा ने पूछ लिया कि डाक्टर साहब मेरी दादी ‘मां’ नहीं बन सकती? डाक्टर साहब मुझे देख कर मुसकराए.’’ जीवु बोली.

‘‘..और दादाजी?’’ डाक्टर साहब के मुसकराने का अर्थ मैं समझ गई थी. अगले रोज ही उन के चैंबर में दादी को ले कर चली गई थी. दादी से उन्होंने बहुत देर तक बात की. अब रहने भी दो न दादाजी, वह सब पुरानी बातें हो गईं.’’ मीरा बोली.

‘‘अरे नहीं मीरा, कैसे रहने दूं उन बातों को, जिस से मेरी इस उम्र में औलाद की मुराद पूरी हुई. इस उम्र में कोई बाप बनता है भला! …और इस उम्र में कोई आज तक किसी औरत ने बच्चे को जन्म दिया है क्या? मैं तो अब उस बारे में सब को बताना चाहता हूं… क्या कहते हैं उसे आईवीएफ. उस इलाज के बारे में उन्हें समझाना चाहता हूं, जो बच्चा जन्म के लिए औरत को ही दोषी ठहराते हैं.’’

दरअसल, गुजरात के कच्छ इलाके में रापर तालुका स्थित एक छोटे से गांव मोरा की रहने वाली जीवुबेन रबारी ने सितंबर, 2021 में शादी के 45 साल बाद आईवीएफ तकनीक की बदौलत एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया था.

उस के पति मालधारी को पिता बनने का सौभाग्य तब मिला, जब वह 75 साल के हो गए. इस कारण दोनों मीडिया में चर्चा का विषय बन गए.

बच्चे के जन्म के बाद परिवार और रिश्तेदारों में खुशी की लहर दौड़ गई. बच्चा सीजेरियन से हुआ था. उन को यह उपलब्धि आईवीएफ तकनीक के विशेषज्ञ डा. नरेश भानुशाली की देखरेख से मिली, जो सभी के लिए अचंभे से भरी हुई थी. जिस ने भी सुना, सभी जीवुबेन और मालधारी से मिलने को बेचैन हो गए.

जीवुबेन ने जब इस बारे में डा. नरेश भानुशाली से संपर्क किया था, तब उन्होंने अधिक उम्र में मां बनने की मुश्किलों को ले कर सचेत किया था. डा. भानुशाली ने एक तरह से दंपति को शुरू में तो साफतौर पर पर कहा था कि उम्र अधिक होने के कारण बच्चे को जन्म देना मुश्किल होगा, लेकिन वृद्ध दंपति ने डाक्टर पर विश्वास जताते हुए अपनी मजबूत इच्छाशक्ति का हवाला दिया था. यही वजह रही कि प्रजनन का असंभव और कठिन काम संभव बन गया. यह घटना चिकित्सा जगत के लिए भी किसी चमत्कार से

कम नहीं थी. ऐसा कर जीवुबेन और मालधारी ने दुनिया भर में एक मिसाल पेश कर दी.

इसे ले कर ही मीडिया ने जीवुबेन द्वारा दुनिया में सब से अधिक उम्र में मां बनने का दावा किया.

जीवुबेन विवाह के कई सालों तक गर्भवती नहीं हो पाई थीं. उन के द्वारा की गई तमाम कोशिशें बेकार गई थीं. कई डाक्टरी इलाज भी चले थे और पतिपत्नी देवीदेवताओं के पूजापाठ से ले कर धार्मिक स्थलों की कठिन से कठिन यात्राएं तक कर चुके थे. फिर भी असफलता ही हाथ लगी थी.

नतीजा यह था कि उन्हें संतान नहीं होने का दंश सताता रहता था. उन्हें जरा सी भी उम्मीद की किरण दिखती थी, वे उस ओर दौड़ पड़ते थे. उस के उपायों और प्रयासों को आजमाने में कोई भी लापरवाही नहीं बरतते थे. एक बार उन्होंने बच्चा गोद लेने की भी सोची थी, जो उन्हें सामाजिक और पारिवारिक स्तर पर अच्छा नहीं लगा.

इसी तरह से समय गुजरता गया. एक दिन उन की एक रिश्तेदार मीराबेन के माध्यम से आईवीएफ तकनीक के जरिए से नई उम्मीद जागी थी. इस बारे में उन्हें पहली बार जानकारी मिली थी.

जीवुबेन और मालधारी ने टेस्टट्यूब बच्चा और किराए की कोख के बारे में सुन तो रखा था, लेकिन उस बारे में बहुत अधिक नहीं जानते थे. मीरा की बदौलत वे डा. नरेश भानुशाली के संपर्क में आए. वह आईवीएफ तकनीक से गर्भधारण करवाने और बच्चा प्रसव के स्त्रीरोग विशेषज्ञ थे.

जीवु ने जब डा. भानुशाली को अपनी इच्छा जताई, तब वह भी सोच में पड़ गए. पहली बार में ही उन्होंने कहा कि उन की उम्र काफी अधिक हो गई है. ऐसा कहते हुए उन्होंने एक तरह से सीधेसीधे मना ही कर दिया था. समझाया था कि ज्यादा से ज्यादा 50-55 साल की माहिलाएं मेनोपाज के कारण आईवीएफ अर्थात इन विट्रो फर्टिलाइजेशन तकनीक की मदद से गर्भधारण कर सकती हैं, लेकिन उन की उम्र 70 साल के करीब हो चुकी है. इस उम्र में इस की संभावना नहीं के बराबर रहती है.

डाक्टर द्वारा इनकार करने के बावजूद दंपति ने एक बार जांच करने का जोर दिया. दंपति के कहने पर डाक्टर ने चुनौतीपूर्ण काम के लिए तैयारी शुरू की. मालधारी जांच में स्वस्थ पाए गए. उन के स्पर्म की भी जांच हुई.

महत्त्वपूर्ण जांच जीवुबेन की होनी थी, कारण बच्चा उन्हें जन्म देना था, या फिर उन्हें किसी किराए की कोख का इंतजाम करना था. दंपति चाहते थे कि बच्चे का जन्म भी जीवुबेन की कोख से ही हो, ताकि उन के पीछे बच्चे को किसी तरह की सामाजिक या पारिवारिक उपेक्षा का दंश नहीं झेलना पड़े.

डाक्टर ने जीवुबेन की डाक्टरी जांच शुरू की. उन्होंने पाया कि शरीर के भीतरी अंग सही तरह से काम कर रहे हैं. उन में कोई कमी नहीं है सिर्फ उम्र के अनुसार उन की कोख काफी सिकुड़ चुकी है.

पहले उसे दुरुस्त करने के लिए दवाई खिलाई गईं. उसी के साथ मासिक चक्र को नियमित करने के लिए भी दवाइयां दी गईं. कुछ समय में ही उन का सिकुड़ा हुआ गर्भाशय चौड़ा हो गया. उस के बाद उन के अंडों को निषेचित कर प्रजनन की जगह बना दी गई, फिर उस में उन के पति के अलग से निकाल कर रखे गए स्पर्म को डाला गया.

इस तरह से पूरी हुई गर्भधारण की प्रक्रिया के नतीजे अच्छे आने पर डाक्टर आश्वस्त हो गए.

गर्भावस्था के 8 महीने बाद डाक्टरों से जीवुबेन का सी-सेक्शन किया, जिस से उन को पहली संतान की प्राप्ति हुई.

इस सफलता पर डा. भानुशाली ने हर्ष जताते हुए बताया कि इस में जितना योगदान उन का है, उतना ही जीवुबेन का भी है, उन की हिम्मत और नीयत काम कर गई और एकदो नहीं, पूरे 45 साल के इंतजार के बाद 70 साल की उम्र में उन की सूनी गोद भर गई.

बाझ औरत भी बन सकती है आईवीएफ तकनीक से मां

संतानहीनों के लिए वरदान साबित हुआ आईवीएफ तकनीक का चिकित्सा जगत में पूरा वैज्ञानिक नाम इन विट्रो फर्टिलाइजेशन कहा जाता है. इस तकनीक की मदद से पुरुष के शुक्राणु यानी स्पर्म और महिला के अंडाणु को लैब में मिला कर उसे ऐसी महिला के गर्भाशय में डाला जाता है, जो मां बनना चाहती है.

इस प्रक्रिया को अपनाने के लिए गहन चिकित्सीय सलाह की जरूरत होती है तथा इस का फायदा 5 तरह की शिकायत वालों मिल सकता है. जैसे— किसी महिला की फैलोपियन ट्यूब में ब्लौकेज हो जाना. पुरुष बांझपन यानी स्पर्म की संख्या में कमी का आना. किसी जेनेटिक बीमारी से ग्रसित होना. इनफर्टिलिटी का सही कारण का पता नहीं चलना या फिर महिला को हारमोंस विकार की समस्या से पीसीओएस की समस्या की शिकायत रहना.

इस तकनीक की सफलता भी 5 चरणों में पूरी होती है. जैसे पहले चरण में औरत के कोख को दुरुस्त किया जाता है. यह काम दवाइयों के अलावा माइनर औपरेशन से कर लिया जाता है.

दूसरे चरण में अंडे की पर्याप्त मात्रा को गर्भाशय में डाला जाता है. उस के बाद तीसरे चरण की प्रक्रिया में अंडे के साथ स्पर्म को लैब में अलग से मिला कर फर्टिलाइज करवाया जाता है. उस के बाद बच्चे की चाह रखने वाली महिला के गर्भ में डाल दिया जाता है.

कई बार इसे किसी दूसरी महिला के गर्भ में डाल कर गर्भधारण की प्रक्रिया पूरी कर ली जाती है. कुछ समय बाद अंतिम चरण के अनुसार महिला के गर्भावस्था की जांच की होती है.

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