Manohar Kahaniya: नशा मुक्ति केंद्र में चढ़ा सेक्स का नशा- भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

कहते हैं कि जो व्यक्ति जैसा होता है, उसे वैसे ही लोग मिलने लगते हैं. विद्यादत्त के साथ भी यही हुआ. नशा मुक्ति केंद्र में उस की मुलाकात विभा सिंह से हुई. विभा सिंह उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ शहर की विष्णुपुरी कालोनी की रहने वाली थी. उसे भी शराब की लत थी. अपनी इस लत के कारण ही नशा मुक्ति केंद्र में भरती हुई थी.

विद्यादत्त और विभा के बीच अच्छी जानपहचान हो गई. एक दिन दोनों बैठे हुए थे तभी विद्यादत्त ने कहा, ‘‘मैं ने एक प्लान किया है.’’

‘‘क्या?’’ विभा ने पूछा.

‘‘हम दोनों अपना नशा मुक्ति केंद्र खोल लें तो कमाई अच्छी हो सकती है.’’

विद्यादत्त का आइडिया विभा को जम गया. उस ने तपाक से कहा, ‘‘चाहती तो मैं भी यहीं हूं, लेकिन क्या यह इतना आसान है.’’

‘‘बिलकुल हम दोनों कोशिश करेंगे तो हो जाएगा, वैसे हमें खुद रह कर इतना तो पता चल ही गया है कि नशा मुक्ति केंद्र कैसे चलाया जाता है. इस में कमाई भी अच्छी है.’’

‘‘ठीक है, मैं तुम्हारे साथ हूं.’’ विद्या ने सहमति जताई.

संचालक और डायरेक्टर खुद भी थे नशेड़ी

इस के बाद दोनों बाहर आए और अपनी तैयारियों में जुट गए. उन्होंने प्रकृति विहार में एक कोठी किराए पर ली और जरूरी तैयारियां कर के फरवरी, 2021 में नशा मुक्ति केंद्र खोल कर उस का प्रचारप्रसार शुरू कर दिया.

विद्यादत्त खुद संचालक बना और विभा को डायरेक्टर बना दिया. समाज में कितने ही लोग अपने बच्चों के नशा करने से परेशान रहते हैं. ऐसे लोगों की ही दोनों को तलाश थी. जल्द ही उन के यहां लड़केलड़कियां आने शुरू हो गए. नशे के लती युवाओं के रहनेखाने की व्यवस्था कोठी में ही की गई थी.

ये भी पढ़ें- Satyakatha: बेटे की खौफनाक साजिश

कोठी के एक हिस्से में लड़कियों को रखा जाता था जबकि दूसरे हिस्से में लड़कों को. निर्धारित समय पर उन की घरवालों से बात भी कराई जाती थी.

विद्यादत्त शातिरदिमाग व्यक्ति था. वह खुद नशेबाज था, इसलिए नशा करने वालों की तलब और उन की कमजोरियों को बखूबी जानता था. उस ने अपने यहां नशे का उपचार कराने के लिए रहने वाली लड़कियों को ही अपना शिकार बनाने की ठान ली.

उस ने सोचा था कि नशे के लालच में लड़कियां किसी से शिकायत नहीं करेंगी और यदि वह ऐसा करेंगी भी तो उन के परिवार वाले भरोसा नहीं करेंगे. हालांकि विद्यादत्त खुद 3 बेटियों का पिता था. उस का परिवार पौढ़ी गढ़वाल में रहता था. परिवार के पास वह आताजाता रहता था.

जो खुद भी बेटियों का पिता हो, वैसे तो उसे ऐसी बात सोचते हुए भी शर्म आनी चाहिए थी, लेकिन उस के दिमाग में बेशर्मी हावी हो चुकी थी. वह मौका देख कर लड़कियों के साथ छेड़छाड़ करने लगा.

लड़कियां विरोध करतीं, तो वह उन के साथ मारपीट करता था. एक लड़की नशे के लिए ज्यादा बेचैन हो जाती थी. वह ड्रग्स लेती थी. विद्यादत्त ने उसे ही अपना सौफ्ट टारगेट बनाने का मन बना लिया.

एक दिन उस ने काउंसलिंग के बहाने उसे अपने पास बुलवाया और बड़े प्यार से कहा, ‘‘देखो, मैं तुम्हारी परेशानी जानता हूं, नशे की आदतें एकदम नहीं छूटतीं.’’

ये भी पढ़ें- Crime Story: पीपीई किट में दफन हुई दोस्ती- भाग 2

‘‘हां सर, बहुत बेचैनी होती है.’’

‘‘ठीक है, मैं तुम्हारे लिए कुछ इंतजाम करता हूं.’’ इस के बाद विद्यादत्त ने उस लड़की के लिए नशे की पुडि़या का इंतजाम कर दिया. इस से लड़की खुश हो गई.

मन ही मन विद्यादत्त भी खुश हो रहा था. इस का नतीजा यह निकला कि लड़की की नशे की लिए बेचैनी और भी बढ़ गई.

एक दिन उस ने ज्यादा जिद की तो विद्यादत्त उसे अपने कमरे में ले गया और उस के सामने पुडि़या रखते हुए बोला, ‘‘यह तुम्हारी है, लेकिन तुम्हें एक शर्त माननी होगी.’’

‘‘क्या सर?’’ वह चौंकते हुए बोली.

‘‘मैं तुम्हें यह देता रहूंगा. बस, तुम्हें मुझे खुश करना होगा.’’ कहने के साथ ही बिना लड़की का जवाब सुने, वह उस पर हावी हो गया. लड़की ने विरोध किया, लेकिन विद्यादत्त मनमानी कर के ही माना. विद्यादत्त का असली रूप सामने आ चुका था. लड़की को उस से घृणा हो गई और उस ने उसे सबक सिखाने की ठान ली. उस ने डायरेक्टर विभा से इस हरकत की शिकायत की तो विभा ने लड़की की ही पिटाई कर दी.

विद्यादत्त ने अपनी मनमानी को एक सिलसिला बना लिया. अन्य लड़कियों के साथ भी उस ने छेड़छाड़ की. विद्यादत्त वास्तव में लड़कियों की जिंदगी को बरबाद कर रहा था.

नशा मुक्ति केंद्र के अंदर क्या हो रहा था, बाहर इस बारे में किसी को कुछ नहीं पता था. उस का शिकार लड़की अपने घर फोन करती थी तो विद्यादत्त और विभा डंडा ले कर उस के पास खड़े हो जाते थे.

पिटाई के डर से वह कुछ बोल नहीं पाती थी. इस मजबूरी में वह कुछ बता नहीं पाती थी. मातापिता खुश होते थे कि उन की बेटी का नशा छूट जाएगा, लेकिन वहां दूसरा ही खेल चल रहा था.

सभी लड़कियां विद्यादत्त से परेशान थीं. अपनी इज्जत का उन्हें खतरा सताने लगा था. उन्हें नशा मुक्ति केंद्र से छुटकारा पाना भी मुश्किल लग रहा था. दुष्कर्म का शिकार हुई लड़की के लिए जिंदगी बोझिल सी हो गई. उस के दिल में आत्महत्या का खयाल भी आता था. जिस के बाद उन्होंने वहां से भागने की प्लानिंग की.

5 अगस्त को 4 लड़कियों को मौका मिल गया और वहां से भाग कर वह एक होटल में जा कर छिप गईं. जहां से पुलिस ने उन्हें बरामद किया.

विद्यादत्त की करतूत ने लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या नशा मुक्ति केंद्रों में यह सब भी होता है. जांचपड़ताल के दौरान पता चला कि नशा मुक्ति केंद्र में

कोई एक्सपर्ट डाक्टर भी नहीं था, जो वहां भरती युवकयुवतियों की काउंसलिंग कर सके.

विद्यादत्त और विभा खुद ही एक्सपर्ट बन जाया करते थे जबकि वह खुद नशे के आदी रहे थे. वैसे उन का अतीत कोई जानता भी नहीं था. उन का मकसद केवल पैसा कमाना था. वह मारपीट के जरिए युवाओं को सुधारना चाहते थे.

संचालक हो गया अंडरग्राउंड

लड़कियों के भागते ही विद्यादत्त तनाव में आ गया. उसे यही डर था कि लड़कियां उस की हरकतों के बारे में किसी को बता न दें. जब अगले दिन उसे यह पता लगा कि उन लड़कियों को पुलिस ने बरामद कर लिया है, तो लग गया कि उस की पोल खुलेगी और फिर पुलिस उसे नहीं छोड़ेगी.

इस से बचने के लिए उस ने अपना मोबाइल स्विच्ड औफ कर दिया और होटल में जा कर छिप गया, लेकिन वह बच नहीं सका. प्रकरण सामने आने के बाद मातापिता लड़केलड़कियों को नशा मुक्ति केंद्र से अपने घर ले गए. प्रिया व नवीन की बेटी निधि भी इन में से एक थी.

ये भी पढ़ें- Satyakatha: रिश्तों का कत्ल- भाग 2

नशा छुड़ाने के चक्कर में उन की बेटी कलंक से बच गई. निधि अब खुद भी सबक ले कर सुधार की तरफ है.

पुलिस ने मुख्य आरोपी विद्यादत्त रतूड़ी को न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया. कथा लिखने तक पुलिस मामले की और भी बारीकी से जांच कर रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में कुछ पात्रों के नाम परिवर्तित हैं

छाया : विनोद पुंडीर

Satyakatha: रिश्तों का कत्ल- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

दामाद की करतूतों की भनक जब सासससुर को लगी तो उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई. दामाद पवन ने काम ही ऐसा किया था. जिस थाली में उस ने खाया था, उसी में छेद कर दिया था. और तो और उस ने सृष्टि का जीवन भी बरबाद कर दिया था. बेटी की जिंदगी को ले कर मांबाप चिंता के अथाह सागर में डूब गए थे.

शैलेंद्र ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उन का दामाद ऐसी करतूत करेगा कि उन का समाज में उठनाबैठना तक मुहाल हो जाएगा.

इतना होने के बावजूद उन्होंने बेटी को यही सीख दी कि कुछ भी हो जाए, अपने हक के लिए लड़ना. वहां से कायरों की तरह भागना मत. बेचारी सीधीसादी सृष्टि करती भी क्या, किस्मत पर रोने के सिवाय.

खैर, होनी को कौन टाल सकता है, जो होना है उसे हो कर रहना है. अपनी किस्मत की लकीर समझ कर सृष्टि ससुराल में जीवन काटने लगी थी. इधर पवन सलहज से पत्नी बनी निभा को साथ ले कर पटना में रहने लगा था.

अब पवन और निभा की नजरें ससुराल की करोड़ों की संपत्ति पर जम गई थीं. पवन और निभा दोनों को पता था कि इसी साल फरवरी में ससुर शैलेद्र कुमार सिन्हा नौकरी से रिटायर हो जाएंगे. रिटायरमेंट के दौरान उन्हें लाखों रुपए मिलने वाले हैं.

ससुर के जीवन भर की कमाई पर दोनों की गिद्ध दृष्टि जम गई थी और उन रुपयों को हासिल करना उन का मकसद बन गया था. कैसे और क्या करना है, यह उन्होंने पहले से ही योजना बना ली थी. इस योजना में पवन ने अपने छोटे भाई टिंकू को भी शामिल कर लिया था.

ये भी पढ़ें- Best of Satyakatha: विधवा का करवाचौथ

फरवरी, 2021 में बैंक मैनेजर शैलेंद्र कुमार सिन्हा नौकरी से रिटायर हुए. उन्हें जीपीएफ, ग्रैच्युटी आदि के मिला कर 70-80 लाख रुपए मिले थे. उन रुपयों से वह छोटे बेटे के लिए किसी वीआईपी एरिया में जमीन खरीदना चाहते थे और जमीन की तलाश में वह जुट भी गए थे.

उसी दौरान कहीं से इस की जानकारी पवन को हो गई थी कि ससुरजी छोटे साले के लिए जमीन खरीदने की फिराक में हैं.

पवन ससुर शैलेंद्र से मिला और उन्हें भरोसा दिलाया कि बिहारशरीफ रेलवे स्टेशन के पास एक अच्छी और कीमती जमीन है. वह कीमती जमीन उस के जानपहचान वाले की है. देखना चाहें तो उसे देख लें. जमीन पसंद आने पर बात आगे बढ़ाई जाएगी, नहीं तो कोई बात नहीं.

दामाद की बात उन्हें पसंद आ गई. उन्होंने दामाद से जमीन दिखाने की बात कही तो उस ने वह जमीन दिखा दी. वह जमीन उन्हें पसंद आ गई.

बातचीत भी हो गई. 60 लाख रुपयों में सौदा फाइनल हो गया और शैलेंद्र ने एकमुश्त रकम दामाद को दे दी. 60 लाख की रकम देख कर पवन की नीयत बदल गई.

शैलेंद्र ने पवन से कह दिया था कि जमीन की रजिस्ट्री छोटे बेटे मनीष के नाम होगी. ससुर को झांसे में रख पवन ने विश्वास दिया कि वह जैसा चाहते हैं वैसा ही होगा. लेकिन इधर उस के मन में तो कुछ और ही चल रहा था.

पवन जमीन मालिक को 60 लाख में से कुछ रुपए दे कर बाकी के रुपए डकार गया. शैलेंद्र रजिस्ट्री बेटे के नाम पर करने के लिए बारबार दामाद पर दबाव बना रहे थे जबकि वह ऐसा करने वाला नहीं था. वह तो रुपए डकार गया था.

ससुर शैलेंद्र के दबाव बनाने से पवन घबरा गया था. वह समझ गया था कि उसे छोड़ने वाले नहीं हैं अगर जमीन की रजिस्ट्री मनीष के नाम पर नहीं की तो. इस मुसीबत से छुटकारा पाने का

एक ही रास्ता बचा है ससुर को रास्ते से हटाने का. फिर क्या था उस के साथ दूसरी पत्नी निभा और उस का छोटा भाई टिंकू पहले से थे ही. सो उन्होंने इस खतरनाक योजना में साथ देने के लिए भी हामी भर दी.

इस बीच लौकडाउन लग गया. लौकडाउन लगने की वजह से सभी काम बंद पड़े थे. मई के महीने में थोड़ी ढील मिली तो ससुर ने फिर दबाव बढ़ाया कि जमीन की रजिस्ट्री जल्द से जल्द करा दे.

आखिरकार मामला 60 लाख रुपए का है. तो उस ने ससुर को बताया कि 17 जून को रजिस्ट्री होगी, समय से छोटे साले मनीष को बुला लीजिएगा.

इधर, पवन ने ससुर को रास्ते से हटाने के लिए अपने छोटे भाई टिंकू के जरिए कांट्रैक्ट किलर अमर को एक लाख रुपए की सुपारी दे दी. जिस में पेशगी के तौर 40 हजार रुपए शूटर अमर को दे दिए और बाकी रकम काम पूरा होने के बाद देनी तय हुई.

ये भी  पढ़ें- Satyakatha: लॉकडाउन में इश्क का उफान- भाग 3

उस के बाद से टिंकू और अमर दोनों शैलेंद्र की रेकी करने लगे कि वह कब और कहां जाते हैं? किस से मिलते हैं? एक हफ्ते की रेकी में जारी जानकारी दोनों ने जमा कर ली. बस घटना को अंजाम देना शेष था.

5 जून, 2021 को छोटा बेटा मनीष गुवाहाटी से पटना आने वाला था. यह जानकारी पवन को हो गई थी. उस ने घटना को अंजाम देने के लिए इसी दिन को अच्छा समझा और इस की पूरी जानकारी शूटर अमर को दे दी.

5 जून, 2021 की सुबह करीब पौने 8 बजे शैलेंद्र बेटे को रिसीव करने अपनी स्कौर्पियो कार से पटना के लिए

निकले. कार में वह पीछे बैठे थे और ड्राइवर अनिल उर्फ धर्मेंद्र कार चला रहा था.

कार जैसे ही फतुहा हाइवे पहुंची तो टिंकू शूटर अमर को अपनी बाइक पर पीछे बैठा कर कार का पीछा करने लगा और थोड़ी देर बाद उस ने कार को ओवरटेक कर के ड्राइवर अनिल के हाथ में गोली मार कर कार रोकवाई.

ड्राइवर से शैलेंद्र के बारे में कन्फर्म होने के बाद शूटर अमर ने 3 गोलियां मार कर पूर्व बैंक मैनेजर शैलेंद्र कुमार सिन्हा की हत्या कर दी और मौके से दोनों फरार हो गए.

बहरहाल, पुलिस को शुरू से ही इस में करीबियों के शामिल होने का शक था और हुआ भी वही. पवन को हिरासत में ले कर जब पूछताछ हुई तो परदा उठ गया और चारों आरोपी पवन, निभा, टिंकू और अमर गिरफ्तार कर लिए गए.

ये भी पढ़ें- Satyakatha: बेटे की खौफनाक साजिश- भाग 2

पुलिस ने शूटर अमर की निशानदेही पर उस के पास से एक पिस्टल, एक जिंदा कारतूस, एक बाइक और एक स्कूटी, 3 मोबाइल फोन और सिम बरामद किए.

कथा लिखे जाने तक चारों आरोपी जेल में बंद थे. पुलिस उन के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल करने की तैयारी में जुटी थी. जेल की सलाखों के पीछे पहुंचने के बाद पवन को अपने किए पर पश्चाताप हो रहा था.  द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Manohar Kahaniya: किसी को न मिले ऐसी मां- भाग 4

सौजन्य- मनोहर कहानियां

दीदार सिंह जब अपने काम से वापस गांव आता तो यह चर्चा उसे भी सुनने का मिलने लगी. शुरुआत में तो दीदार सिंह ने नजरअंदाज कर दिया, क्योेंकि एक तो उसे अपनी पत्नी मंजीत पर पूरा विश्वास था. दूसरे बलजीत उस के लिए सगे भाई से भी ज्यादा भरोसेमंद था.

लेकिन जब बारबार ऐसा होने लगा तो दीदार सिंह के मन में भी शक का कीड़ा कुलबुलाने लगा, जिस के बाद उस ने अपनी पत्नी की गतिविधियों पर भी नजर रखनी शुरू कर दी.

एक दिन उस ने खुद भी बलजीत को मंजीत की दुकान में उस के साथ संदिग्ध स्थिति में पकड़ लिया. दरअसल, दोनों दुकान का शटर गिरा कर एकदूसरे के साथ आलिंगनबद्ध थे.

उस दिन दीदार ने बलजीत को जम कर खरीखोटी सुनाई और उस की खूब बेइज्जती की. साथ ही उस ने बलजीत को यह भी हिदायत दी कि आज के बाद वह उस के घर और परिवार के किसी भी सदस्य से मिलने की कोशिश न करे.

दीदार ने उस दिन घर आ कर खूब शराब पी और शराब के नशे में मंजीत कौर पर बदचलनी का तोहमत लगा कर मारपीट भी कर दी.

दीदार सिंह का मन नहीं भरा तो अगले दिन वह अपनी मौसी के घर भी चला गया और वहां पूरे परिवार को ये बात बता दी कि किस तरह बलजीत ने उस की भोलीभाली पत्नी को अपने जाल में फंसा कर भाई की पीठ में छुरा घोंपा है और रिश्तों को कलंकित किया है.

ये भी पढ़ें- Crime Story: शादी के बीच पहुंची दूल्हे की प्रेमिका तो लौटानी पड़ी बरात

मंजीत ने रची थी साजिश

परिवार के बीच जब ये खुलासा हुआ तो वहां भी बलजीत को परिजनों ने खूब लानतमलामत दी, जिस के बाद बलजीत के मन में दीदार सिंह के लिए नफरत और जहर भर गया. उस ने मन बना लिया कि अपने इस अपमान का बदला वह दीदार सिंह से ले कर रहेगा.

दीदार सिंह अब अकसर रोज ही काम से अपने घर लौट आता था. इधर, मंजीत के ऊपर भी वह पूरी निगरानी रखता था. इसलिए मंजीत और बलजीत के मिलनेजुलने में अड़चनें पैदा होने लगीं.

आशिक और माशूक की इस दूरी ने दोनों के दिलों में धीरेधीरे दीदार सिंह के लिए घृणा का भाव पैदा कर दिया. दोनों ही इस बात पर विचार करने लगे कि किस तरह दीदार को सबक सिखाया जाए.

दरअसल, मंजीत की घृणा का एक कारण यह भी था कि दीदार सिंह ने उस के मायके में जा कर बलजीत के साथ उस के संबधों की बात बता दी थी और कहा था कि वह केवल अपने दोनों बच्चों के कारण उसे पत्नी के रूप में अपने साथ रख रहा है अन्यथा उसे ऐसी हरकत करने के कारण कभी का छोड़ देता.

दीदार अपने दोनों बच्चों को बेहद प्यार करता था. मंजीत और बलजीत ने फैसला किया कि दीदार सिंह को अगर चोट पहुंचानी है तो क्यों न उस के बच्चों को ही खत्म कर दिया जाए. क्योंकि अगर उस के बच्चे खत्म हो जाएंगे तो कुछ दिन बाद मंजीत भी बहाना बना कर अपने मायके चली जाएगी और बाद में बलजीत के साथ रहना शुरू कर देगी.

बस, एक बार मंजीत के दिमाग में यह कुविचार आया तो इस के बाद यह और ज्यादा पुख्ता होता चला गया.

बलजीत ने दीदार को सबक सिखाने की पूरी योजना बना ली थी. उसी योजना के तहत मंजीत कौर ने अपने प्रेमी बलजीत सिंह के साथ मिल कर 22 जुलाई, 2019 की रात साढ़े 8 बजे इसे अंजाम देने का काम शुरू किया. संयोग से उस शाम दीदार सिंह भी जल्दी घर आ गया था.

घर में दीदार की भांजी आई हुई थी, जिसे छोड़ने के लिए वह राजपुरा रोड गया हुआ था. उसी बीच मंजीत ने अपने दोनों बच्चों हरन व जश्न को गुरुद्वारा साहिब से कोल्डड्रिंक लाने को यह कहते हुए भेजा कि आप के चाचा बलजीत सिंह वहां खड़े आप का इंतजार कर रहे हैं. वह आप को कोल्डड्रिंक पिलाएंगे.

ये भी पढ़ें- Crime Story- गुड़िया रेप-मर्डर केस: भाग 3

बच्चे आमतौर पर खानेपीने की किसी चीज का लालच मिलने पर किसी भी परिचित से मिलने चले ही जाते हैं. दोनों बच्चे जब वहां पहुंचे तो बलजीत सिंह पहले ही वहां स्कूटी लिए खड़ा था. मंजीत से उस की पहले ही फोन पर बातचीत हो चुकी थी.

वह अपने गांव के दोस्त से स्कूटी मांग कर लाया था. उस दिन मंजीत ने अपने चेहरे को कपड़े से इस तरह लपेट रखा था कि कोई अनजान व्यक्ति उसे पहचान न सके.

वह दोनों बच्चों को एक लंबे रास्ते से गुरुद्वारा साहिब से होते हुए भाखड़ा नहर तक स्कूटी पर बैठा कर ले गया. उस ने बच्चों से कहा था कि वहां उन्हेें कोल्डड्रिंक के साथ एक बहुत अच्छी चीज दिखाएगा.

नहर पर ला कर उस ने दोनों बच्चों को नहर दिखाने के बहाने नहर की पटरी पर खड़ा कर दिया गया और फिर नहर में धकेल दिया. इस के बाद उस ने मंजीत कौर को फोन कर के बच्चों को खत्म करने की बात बता दी, जिस के बाद मंजीत कौर ने बच्चोें के गुम होने का नाटक शुरू कर दिया. बाद में उस ने धीरेधीरे यह अफवाह फैला दी कि उन के बच्चों का किसी ने अपहरण कर लिया है.

जांच में पुलिस को पता चला कि बलजीत ने अपने नाम से एक सिम कार्ड खरीद कर मंजीत कौर को दे रखा था, जिस पर बातचीत करते हुए उन्होंने इस पूरी साजिश को अंजाम दिया.

ये भी पढ़ें- मैं हल्दीराम कंपनी से बोल रहा हूं…. ठगी के रंग हजार

बलजीत सिंह ने पूछताछ में बताया कि वह उसी रात घटना को अंजाम देने के बाद फोन बंद कर दिया गया था. रात करीब 11 बजे बलजीत चोरीछिपे मंजीत के घर के पास आया था और मंजीत से मोबाइल भी ले कर चला गया था. उस ने मोबाइल का सिम निकाल कर उसे तोड़ कर फेंक दिया था.

जरूरी पूछताछ के बाद पुलिस ने मंजीत व बलजीत को 8 मार्च, 2021 तक पुलिस रिमांड पर ले लिया. पुलिस ने इस दौरान उन के वारदात में शामिल होने के साक्ष्य जुटाए. पुलिस ने उस फोन को भी बरामद कर लिया, जो बलजीत सिंह ने मंजीत कौर को दिया था. इसी फोन पर दोनों के बीच बातचीत होती थी.

पूछताछ के बाद पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश कर के 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया.

Manohar Kahaniya: 10 साल में सुलझी सुहागरात की गुत्थी- भाग 4

सौजन्य- मनोहर कहानियां

अगले दिन सुबह ही रवि शकुंतला को ले कर दिल्ली में अपने घर समालखा चला गया. इस दौरान कमल ने शकुंतला को अपनी साजिश समझा दी.

जिस के तहत 22 मार्च की दोपहर में शकुंतला अपनी सास से जिद कर के रवि को अपनी बहन के घर जाने के लिए साथ ले गई. कमलेश का घर करीब 3 किलोमीटर दूर था.

घर से निकल कर जैसे ही रवि शकुंतला को ले कर मेनरोड पर किसी सवारी को बुलाने के लिए आगे बढ़ा तो वहां उस से पहले

ही सामने अपनी सफेद सैंट्रो कार का बोनट खोल कर कमल अपने ड्राइवर गणेश के साथ खड़ा मिला.

उस ने रवि और शकुंतला को देख कर चौंकने का अभिनय करते हुए कहा कि वह किसी काम से समालखा आया था, लेकिन गाड़ी बंद हो गई जो उसी वक्त ही ठीक हुई थी.

कमल ने साजिश के तहत जिद कर के रवि और शकुंतला को गाड़ी में बैठा लिया और बोला कि वह उन्हें कमलेश के घर छोड़ता हुआ निकल जाएगा.

संकोचवश रवि कुछ नहीं बोला. दरअसल, कमल सोचीसमझी साजिश के तहत वहां बोनट खोल कर उन्हीं दोनों के आने का इंतजार कर रहा था.

इस के बाद कमल ने गाड़ी में रवि को अपनी बातों के जाल में फंसा कर शकुंतला को कमलेश के घर के पास छोड़ने के लिए मना लिया. कमल ने रवि से कहा कि वह उस के साथ समालखा में एक परिचित के घर चले, जहां से कुछ पैसे लेने हैं. रवि इनकार नहीं कर सका.

कमलेश के घर से कुछ दूर शकुंतला को छोड़ कर वे गाड़ी को आगे बढ़ा ले गए. गणेश गाड़ी चला रहा था. कमल व रवि पीछे बैठे थे.

कुछ दूर जाने के बाद प्यास का बहाना कर के कमल ने डिक्की से कोल्डड्रिंक की 2 बोतलें निकलवा कर एक खुद पी, दूसरी रवि को पिलाई. लेकिन कोल्डड्रिंक पीते ही रवि का सिर चकराने लगा था और उस पर बेहोशी छा गई.

ये भी पढ़ें- Crime Story: पीपीई किट में दफन हुई दोस्ती

थोड़ी ही देर में रवि पूरी तरह बेहोश हो गया. कमल ने गाड़ी में बेहोश पडे़ रवि की गला दबा कर हत्या कर दी. उस ने रवि के मोबाइल फोन को बंद कर दिया और रास्ते में फोन की बैटरी, सिमकार्ड व दूसरे हिस्से तोड़ कर फेंक दिए.

ड्राइवर गणेश कमल के आदेश पर गाड़ी अलवर ले आया. वहां पहुंच कर कमल ने बिल्डिंग मटीरियल के अपने गोदाम में पड़ी रोड़ी हटाई और रवि के शव को 5 फुट गहरा गड्ढा खोद कर उस में दबा दिया और उस पर फिर से रोड़ी डाल दी. कमल वारदात वाले दिन अपना मोबाइल दिल्ली नहीं ले गया था.

इधर, रवि के घर नहीं पहुंचने पर शकुंतला ने उस के परिवार वालों को वही कहानी सुना दी, जो कमल ने उसे पढ़ाई थी. पुलिस को पूछताछ में न तो शकुंतला ने और न ही उस के किसी ससुराल वालों ने ये बात बताई थी कि शकुंतला के पास मोबाइल फोन भी है.

शकुंतला ने पुलिस को बताया कि शादी से पहले उस के पास एक फोन था, लेकिन वह उसे जब दोबारा आई तो अपने भाई को दे आई थी.

इसलिए शुरू से ही पुलिस ने इस केस में शकुंतला के मोबाइल फोन की भी काल डिटेल्स निकालने की जरूरत महसूस नहीं की.

मृतक रवि के मोबाइल की जो काल डिटेल्स पुलिस ने निकलवाई, उस में भी कोई संदिग्ध नंबर नहीं मिला था. इसलिए भी पुलिस ने मोबाइल डिटेल्स की थ्यौरी पर ज्यादा काम नहीं किया.

लेकिन जब कमल से पूछताछ हुई तो खुलासा हुआ कि साजिश के तौर पर शकुंतला अपना मोबाइल फोन छिपा कर साथ लाई थी, लेकिन उसे साइलेंट कर के उस ने पर्स में छिपा कर रखा था ताकि जरूरत पड़ने पर कमल से बात हो सके.

22 मार्च, 2011 की दोपहर को शकुंतला कमल के ड्राइवर के मोबाइल से आए एक मैसेज के बाद ही वह घर से पति रवि को ले कर निकली थी, जिस में उस ने बताया था कि वह सड़क पर उन का इंतजार कर रहा है.

शकुंतला जब तक अपनी ससुराल में रही, उस ने किसी को भी यह पता नहीं चलने दिया कि वह मोबाइल फोन का इस्तेमाल कर रही है. इस दौरान वह न सिर्फ छिपछिप कर कमल से बातें करती रही, बल्कि उसे वहां होने वाली हर गतिविधि की जानकारी दे कर उस से लाश ठिकाने लगा देने की जानकारी भी लेती रही.

क्राइम ब्रांच ने जब जयभगवान के शक के आधार पर कमल सिंगला को नोटिस दे कर पूछताछ के लिए बुलाया तो उसे पकड़े जाने का डर सताने लगा. लिहाजा उस ने पूछताछ के लिए जाने से पहले एक दिन औनेपौने दाम में खाली प्लौट में पड़ी रोड़ी को बेच कर ड्राइवर गणेश के साथ उस के नीचे पड़ी जमीन की खुदाई की.

वहां कई फुट की खुदाई के बाद उसे रवि का शव मिल गया. 5 महीने में शव हड्डियों का ढांचा बन चुका था. कमल ने हड्डियों के ढांचे को गड्ढे से निकाल कर प्लास्टिक की बोरी में भरा. अस्थिपंजर बटोरना बेहद मुश्किल था. लेकिन उस ने सावधानी से अस्थियों को बटोर कर हड्डियों से भरी बोरी को अपने एक ट्रक में रखवाया और उस की छत पर खुद बैठ गया.

ये भी पढ़ें- Satyakatha: लॉकडाउन में इश्क का उफान

अलवर से रेवाड़ी के रास्ते में 70 किलोमीटर के रास्ते पर एकएक हड्डी को बोरी से निकाल कर जंगल की तरफ फेंकता चला गया. रवि की हड्डियों को ठिकाने लगाने के बाद कमल ने अपने ड्राइवर गणेश को 70 हजार रुपए दिए और उस से कहा कि अब वह अपने गांव चला जाए और कभी वापस न आए. क्योंकि हो सकता है पुलिस उसे पकड़ ले. डर कर गणेश अपने गांव चला गया.

इस दौरान शकुंतला भी अलवर में आ चुकी थी. कुछ दिन तक तो कमल उस से छिपछिप कर ही मिलता रहा. लेकिन बाद में उस ने उस के परिवार से हमदर्दी का दिखावा कर के कहा कि उस का एक ड्राइवर है, जो कुंआरा है. वह शकुंतला की शादी उस के साथ करवा देगा.

कमल ने बेहद शातिराना ढंग से अपने ड्राइवर बबली के साथ शकुंतला की शादी का ढोंग रचा और उस के बाद टपूकड़ा में ही एक दूसरे इलाके में मकान ले कर दे दिया. लेकिन वहां बबली की जगह वह खुद शकुंतला के साथ पति की तरह रहता था.

पूछताछ में यह भी खुलासा हुआ कि कमल और शकुंतला का एक बच्चा भी हो चुका है. हालांकि समाज के सामने कमल शकुंतला को बबली की ही बीवी बताता था.

जब कमल का ब्रेन मैपिंग टेस्ट हुआ और उस से शकुंतला के साथ उस के संबंधों को ले कर सवालजवाब हुए तो पुलिस को पहली बार उन के नाजायज संबंधों पर शक हुआ था. इसी टेस्ट की रिपोर्ट के बाद से वह पुलिस की नजर में चढ़ गया था.

ब्रेन मैपिंग टेस्ट के बाद से ही शकुंतला और कमल पकड़े जाने के डर से फरार हो गए, जिस से पुलिस का शक यकीन में बदल गया. वे किसी भी स्थान पर कुछ दिन से ज्यादा नहीं रुकते थे. महीनों से कमल व शकुंतला लगातार अपने फोन नंबर बदल रहे थे.

क्राइम ब्रांच ने कड़ी मशक्कत के बाद कमल के खाली प्लौट की खुदाई करवा कर उस की रीढ़, कूल्हे और कमर के हिस्से की हड्डियां और पसलियों के 25 टुकड़े बरामद कर लिए. जिन का टेस्ट कराया गया तो वे उस के पिता के डीएनए से मैच कर गईं.

क्राइम ब्रांच ने इस मामले में अपहरण की धारा 364 के साथ हत्या की धारा 302, सबूत नष्ट करने की धारा 201 व साजिश रचने की धारा 120बी जोड़ कर कमल व गणेश को जेल भेज दिया.

इधर शंकुतला ने अपनी गिरफ्तारी पर कोर्ट से स्टे ले लिया. लेकिन जब अदालत में रवि के अपहरण व हत्या के मामले में शकुंतला के शामिल होने के साक्ष्य पेश किए तो अदालत ने उस का स्टे खारिज कर गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिए.

शकुंतला को जब इस की भनक लगी तो एक बार फिर उस ने दिल्ली पुलिस के साथ लुकाछिपी का खेल शुरू कर दिया. पुलिस छापे मारती रही, लेकिन वह पुलिस के हाथ नहीं लगी तो दिल्ली पुलिस आयुक्त ने उस की गिरफ्तारी पर भी 50 हजार का ईनाम घोषित कर दिया.

ये भी पढ़ें – Satyakatha: लॉकडाउन में इश्क का उफान

ईनाम घोषित होने के बाद क्राइम ब्रांच की कई टीमें महीनों से शकुंतला की गिरफ्तारी के प्रयास में लगी थीं. 17 जुलाई को क्राइम ब्रांच के स्पैशल औपरेशन स्क्वायड-2 में तैनात एएसआई प्रदीप गोदारा को अपने एक मुखबिर से शकुंतला के अलवर में ही एक स्थान पर छिपे होने की जानकारी मिली. प्रदीप गोदारा ने अपने इंसपेक्टर राजीव रंजन को सारी बात बताई.

राजीव रंजन ने जब इस बारे में अपने एसीपी डा. विकास शौकंद को बताया तो उन्होंने राजीव रंजन और प्रदीप गोदारा के साथ एएसआई कुलभूषण, नरेश, कांस्टेबल राजेंद्र आर्य, दिनेश, हिमांशु, विनोद महिला कांस्टेबल ममता को अलवर रवाना कर दिया.

संयोग से बताए गए स्थान पर शकुंतला मिल गई और पुलिस उसे गिरफ्तार कर दिल्ली ले आई. अदालत में पेश कर उसे 2 दिन के लिए पुलिस रिमांड में जब पूछताछ की गई तो उस ने भी रवि के अपहरण व हत्याकांड की वही कहानी सुनाई, जो कमल पहले ही बता चुका था.

शकुंतला की गिरफ्तारी के बाद 10 साल पहले हुए रवि कुमार हत्याकांड का पटाक्षेप हो गया.

(कथा पुलिस की जांच, रवि के परिजनों से बातचीत और आरोपियों से पूछताछ पर आधारित)

Satyakatha: बेटे की खौफनाक साजिश- भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

लेखक- शाहनवाज

11जून, 2021 की शाम करीब सवा 6 बजे गाजियाबाद के लोनी में बलराम नगर के डी- ब्लौक में रहने वाला रवि ढाका अपनी दुकान से घर लौटा. उस ने गली में मकान के आगे अपनी बाइक खड़ी की. उस ने बाइक की चाबी निकाली. और चाबी के छल्ले में अपने दाएं हाथ की तर्जनी उंगली डाल कर छल्ला घुमाते हुए अपने घर के मेन गेट से अंदर आगे बढा. उस ने महसूस किया कि घर एकदम शांत और सुनसान पड़ा था.

वैसे अकसर जब वह इसी समय पर घर वापस आया करता था तो उस के पिता सुरेंद्र सिंह ढाका टीवी पर तेज आवाज में न्यूज देखते हुए मिला करते थे. टीवी की आवाज मेन गेट तक सुनाई देती थी. लेकिन उस दिन न तो कोई टीवी की आवाज आ रही थी और न ही उस के मातापिता के बात करने की कोई गूंज सुनाई दे रही थी.

इन सब चीजों के बारे में अपने मन में सवाल उठाते हुए, वह बेफिक्र अंदाज में ग्राउंड फ्लोर पर उस कमरे की ओर आगे बढ़ा, जहां उस के मातापिता रहते थे. कमरे में घुसने से पहले ही उसे टीवी का रिमोट दरवाजे के बाहर नीचे जमीन पर टूटा पड़ा मिला. जिस की बैटरियां वहीं पड़ी थीं.

यह देख कर रवि ने सोचा कि शायद मम्मी पापा के बीच कुछ नोकझोंक हुई है. तभी तो इतना सन्नाटा पसरा हुआ है. उस ने वह रिमोट और बैटरियां उठाईं और उस रिमोट में बैटरियां सेट करते हुए कमरे की दहलीज पर ही पहुंचा था कि तभी उस की नजर कमरे में पहुंची. और उस कमरे का दृश्य देख कर वह सन्न रह गया.

कमरे का सारा सामान अस्तव्यस्त था. कमरे की अलमारी खुली हुई थी और उस के पिता सुरेंद्र सिंह ढाका पलंग और जमीन के सहारे पड़े थे.

ये भी पढ़ें- Satyakatha: 10 साल बाद सर चढ़कर बोला अपराध

‘बाबा’ कहते हुए उस की चीख निकली. अपने पिता को इस हालत में देख कर रवि इतनी जोर से चिल्लाया कि गली के अन्य लोगों तक उस की आवाज पहुंच गई. जिस से कुछ ही देर में उस के घर के बाहर कई लोग पहुंच गए.

रवि को मां दिखाई नहीं दे रही थीं, इसलिए वह बिना देरी के ग्राउंड फ्लोर से निकल कर कमरे से सटी सीढि़यों से भागता हुआ पहली मंजिल पर मौजूद कमरे में पहुंचा. वहां उस की मां संतोष देवी की लाश बिस्तर पर पड़ी मिली.

उन के गले में फोन चार्जर का तार लपेटा हुआ था. मां की लाश देख रवि एकदम से हैरान रह गया. उस की आंखों से आंसुओं की धार बहनी शुरू हो गई.

रोतेबिलखते हुए उस ने मां के गले में लिपटे हुए चार्जर के तार को निकाला. इस के बाद वह रोता हुआ सीढि़यां उतर कर घर के बाहर निकल गया. घर के मेन गेट पर लोगों की भीड़ रवि की चीख सुन कर पहले से ही जमा थी.

रवि को इस हाल में देख कर उन्होंने पूछा, ‘‘रवि क्या हुआ जो तुम रो रहे हो?’’

रवि के आंसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे. मोहल्ले के लोगों के सवालों का जवाब देते हुए वह रोते हुए बोला, ‘‘मेरे मांबाबा को किसी ने मार दिया. घर का सामान सारा बिखरा पड़ा है. ये कैसे हो गया.’’

यह सुनते ही कुछ लोग रवि के घर में उत्सुकतावश घुसे कि आखिर यह कैसे हो गया. घर में उन्होंने भी जब सुरेंद्र सिंह और उन की पत्नी को मृत अवस्था में देखा तो वह भी आश्चर्यचकित रह गए. फिर उन्हीं में से एक व्यक्ति ने इस की सूचना लोनी बौर्डर थाने में फोन कर के दे दी.

ये भी पढ़ें- Best of Satyakatha: डोली के बजाय उठी अर्थी

सूचना पा कर थोड़ी देर में थाना पुलिस मौके पर पहुंच गई.

मौकाएवारदात को पुलिस ने बारीकी से परखा. ग्राउंड फ्लोर पर रवि ढाका के पिता सुरेंद्र सिंह ढाका की लाश थी और पहली मंजिल पर उस की मां संतोष देवी की लाश पड़ी थी. दोनों ही कमरों में घर का सामान बिखरा हुआ था. दोनों ही कमरों की अलमारियों के दरवाजे खुले थे. देख कर लग रहा था कि हत्याएं लूट के मकसद से की गई हैं.

थानाप्रभारी ने इस बारे में रवि व अन्य लोगों से पूछताछ की. इस के बाद लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

अगले भाग में पढ़ें- किन सवालों को सुन कर रवि बुरी तरह से हकला गया

Satyakatha: 10 साल बाद सर चढ़कर बोला अपराध

सौजन्य- सत्यकथा

पूरे 10 साल बाद संतोष यादव अपने ननिहाल आया था. साल 2021 में मार्च महीने से ही लौकडाउन का दौर चल रहा था.

जून की 10 तरीख थी. उस का ननिहाल रायपुर जिले में खरोरा थानांतर्गत फरहदा गांव में था. गांव में बहुत कुछ बदल गया था. कच्चे मकान पक्के बन चुके थे. सड़कें पहले से अच्छी बन गई थी.

गांव में लोगों को कोरोना का डर तो था, लेकिन उन पर लौकडाउन का कोई खास असर नहीं दिख रहा था. अधिकतर लोगों का आनाजाना पहले की तरह ही बगैर मास्क के सामान्य बना हुआ था.

हां, कुछ लोग मास्क लगा कर, या फिर गमछे, रुमाल आदि से नाकमुंह ढंके हुए थे. इस कारण संतोष को उन्हें पहचानने में थोड़ी दिक्कत आ रही थी.

वैसे भी संतोष गांव के अधिकतर लोगों को नहीं पहचानता था. गांव वालों के लिए भी वह अधिक पहचाना हुआ व्यक्ति नहीं था.

गांव की एक पतली सड़क पर टहलता हुआ संतोष अपने पूर्व चिरपरिचित स्थान तालाब के पास जा पहुंचा. गांव के एक छोर पर बने बड़े तालाब के निकट सड़क की पुलिया के पास उस के पैर ठिठक गए.

तालाब को दूर तक देखता हुआ बीती यादों में खो गया. अचानक उस की आंखों के सामने खूबसूरत रानी का मुसकराता चेहरा घूम गया. रानी की ठेठ ग्रामीण छवि, दाईं आंख के आगे और गालों पर लटकती लटें, अल्हड़पन की चाल और बातूनी अदाएं बरबस याद हो आ आईं.

तभी उसे किसी ने पीछे से कंधे पर हाथ रख दिया. उस ने पीछे मुड़ कर देखा तो देखता ही रह गया. उस का पुराना यार रमेश खड़ा मुसकरा रहा था.

‘‘अरे यार, तू कब आया? पहचाना मुझे, मैं रमेश.’’ वह बोला.

‘‘त..त…त…तुम रमेश…’’ बोलते हुए संतोष ने उस का हाथ पकड़ लिया.

रमेश को देख संतोष बहुत खुश हुआ. खुशी में दोनों गले लग गए. वे 10 साल बाद मिल रहे थे. उसे निहारते हुए संतोष चुटकी ले कर बोला, ‘‘मोटा हो गया है रे तू. तुझे तो तेरी आवाज से ही पहचान पाया.’’ संतोष ने कहा.

‘‘हां यार, क्या करूं 4 महीने से घर में पड़ेपड़े खाखा कर मोटा हो गया हूं. कहीं आनाजाना नहीं होता. बस, एक बार शाम के वक्त मन बहलाने के लिए तालाब का चक्कर लगा लेता हूं.’’ रमेश बोला.

‘‘आओ न कहीं बैठते हैं.’’ संतोष ने कहा.

‘‘यहां नहीं, चलो न मेरे घर पर ही चलते हैं. शाम ढलने वाली है. आज मेरे घर पर ही खाना खा लेना. वहीं खूब बातें करेंगे. पुरानी यादें भी ताजा करेंगे.

ये भी पढ़ें- Crime Story: कुटीर उद्दोग जैसा बन गया सेक्सटॉर्शन

थोड़ी देर में संतोष अपने लंगोटिया यार रमेश के घर पर था. उन के बीच बातों का सिलसिला शुरू हो गया. दोनों सालों से मन में दबी अनगिनत यादों के गुबार को निकाल देना चाहते थे बातोंबातों में संतोष ने पूछा, ‘‘यार, रानी कहां होगी, उस का क्या हालचाल है?’’

संतोष के इस सवाल पर रमेश पहले थोड़ी देर चुप रहा, फिर बोला, ‘‘कौन रानी? साहूकार की बेटी? उस का पास के ही गांव में ब्याह हो गया है. वह अब 3 बच्चों की मां बन चुकी है.’’

यह सुन कर संतोष बोला, ‘‘लेकिन भाई, क्या तुम मुझे उस से मिलवा सकते हो? वो आज भी मेरे मन में बसी हुई है.’’

‘‘क्या बात करते हो यार, उस की शादी हो गई है, उस का अपना परिवार है, ससुराल में सुखी जीवन गुजार रही है, तुम उसे भूल जाओ.’’ रमेश ने सलाह दी.

‘‘मैं उसे भला कैसे भूल सकता हूं, उस के कारण मैं ने क्या नहीं किया. अब मैं तुम्हें क्या बताऊं?’’

‘‘क्या कह रहे हो, कुछ समझा नहीं,’’ रमेश बोला.

‘‘उस की वजह से जेल चला जाता, किसी तरह किस्मत से बच गया.’’ संतोष ने कहा.

‘‘क्या कह रहे हो? साफसाफ बताओ, उस ने क्या किया था तुम्हारे साथ?’’ रमेश ने उत्सुकता दिखाई.

‘‘अब मैं और क्या कहूं. रानी ने मेरे साथ कुछ गलत नहीं किया, बल्कि उस के कारण मेरे हाथों एक अपराध हो गया था.’’ संतोष बोला.

‘‘अपराधऽऽ कैसा अपराध? क्या किया तुम ने? कैसा कांड किया?’’ रमेश उत्सुकता से सवाल पर सवाल पूछता चला गया, लेकिन संतोष निरुत्तर बना रहा.

रमेश ने विस्तार से जानने की जिज्ञासा जताई, ‘‘यार, खुल कर बताओ आखिर बात क्या है?’’ इस का जवाब संतोष ने नहीं दिया. उस ने गोलमोल बातें करते हुए रानी से जुड़ी बातें टाल दीं. कुछ समय बाद संतोष वापस अपने घर लौट आया.

अगले दिन शाम के वक्त तालाब के पास दोनों की फिर मुलाकात हुई. वे पास की पुलिया पर बैठ गए. वहां से तालाब का नजारा काफी दूर तक दिखता था. संतोष और रमेश के बीचें बातों का सिलसिला फिर शुरू हो गया.

संतोष ने कहा, ‘‘यार, 10 साल पहले इसी तालाब के पास झाडि़यों से एक आदमी की लाश बरामद हुई थी. उस का क्या हुआ? उन दिनों मैं यहीं था, लेकिन उसी रोज अपने गांव चला गया था.’’

कुछ सोचता हुआ रमेश बोला, ‘‘हां हां, याद आया, तुम शायद लेखराम सेन की बात कर रहे हो. उस का तो पता ही नहीं चला कि उस के साथ आखिर हुआ क्या था? उस ने आत्महत्या कर ली थी या फिर अधिक शराब पीने के कारण उस की मौत हो गई थी.

‘‘कुछ लोग बताते हैं कि उस ने जहर खाया था और कुछ लोग बताते हैं कि वह तेंदुए का शिकार हो गया था. याद होगा उन दिनों गांव में तेंदुए का आतंक था.’’

रमेश की बातें सुन कर संतोष हंसने लगा. फिर बोला, ‘‘यार, तुम्हें एक हैरत की बात बताऊं, लेकिन किसी से मत बताना.’’

ये भी पढ़ें- Crime Story: कुटीर उद्दोग जैसा बन गया सेक्सटॉर्शन- भाग 2

‘‘यार दोस्ती में क्या तुम मुझ पर इतना भी विश्वास नहीं करोगे.’’

‘‘तुम पर तो पूरा भरोसा है, तभी तो मैं ने उस के बारे में पूछा.’’ संतोष बोला.

सहजता दिखाते हुए रमेश भी बोला, ‘‘ठीक है बताओ, तुम क्या बताना चाहते हो?’’

संतोष ने रहस्यमयी मुसकराहट के साथ बताया, ‘‘लेखराम ने न तो खुदकुशी की थी और न ही वह किसी तेंदुए का शिकार हुआ था. उसे तो मैं ने अपनी बेल्ट से गला घोंट कर मार डाला था और यहीं खेत के किनारे की झाडि़यों में फेंक दिया था.’’

‘‘नहींनहीं तुम क्यों मारोगे?’’ रमेश ने आश्चर्य प्रकट किया.

‘‘अरे भाई, उस ने मुझे रानी के साथ देख लिया था और धमकी देने लगा था कि वह गांव वालों को बता देगा. बस, इसी बात पर मैं ने उसे मार डाला.’’

‘‘क्या तुम सच कह रहे हो, इस में कुछ झूठ तो नहीं है?’’ रमेश ने सवाल किया.

‘‘मैं झूठ क्यों बोलूंगा? अब इतने साल बाद मेरा कोई क्या बिगाड़ लेगा? अब तो मामला भी खत्म हो गया है.’’

‘‘हां, यह बात तो सही है कि कोई तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता है. उस समय के पुलिस वाले भी अब नहीं हैं. जांच कौन करेगा?’’

संतोष हत्या की बातें बता कर अपने सिर पर से किसी बोझ के उतरने जैसा बेहद हल्का महसूस कर रहा था, जबकि रमेश उस की रहस्यमयी बातें सुन कर चिंता में पड़ गया था.

अपने दोस्त के आचरण और कृत्य के बारे में जान कर उस का मन बोझिल हो गया था. थोड़ी देर तक संतोष और रमेश के बीच शून्यता जैसी स्थिति बन गई थी. वे एकदूसरे को शांत भाव से देखने लगे. अंत में संतोष फिर मिलने का वादा कर खड़ा हुआ और चला गया. रमेश भी उस के पीछेपीछे होता हुआ अपने घर आ गया.

रमेश घर आ कर सोच में पड़ गया कि वह गांव के जिस व्यक्ति की मौत को आत्महत्या समझ रहा था, वास्तव में उस की हत्या हुई थी. और हत्यारा भी खुद उस के सामने अपना गुनाह कबूल चुका था. उसे क्या करना चाहिए और क्या नहीं, इस अंतरद्वंद्व में पूरी रात करवटें बदलता रहा. किसी तरह से सुबह के करीब 5 बजे उस की आंख लग गई.

रमेश सुबह 8 बजे तक सोता रहा. फटाफट नहानेधोने का काम किया और नाश्ता कर सीधा खरोरा पुलिस थाने जा पहुंचा. उस के साथ यहां तक तो सब कुछ मशीन की तरह होता रहा, किंतु थाने के गेट पर आ कर उस के पैर ठिठक गए.

रमेश वापस लौट आया, लेकिन उस ने निर्णय लिया कि संतोष के अपराध की सूचना वह पुलिस को जरूर देगा. उस के बारे में फोन से बताएगा, जिस से उस का चेहरा किसी के सामने नहीं आएगा.

थाने से कुछ दूर हट कर उस ने पुलिस मुख्यालय को फोन लगा कर कहा, ‘‘मुझे किसी पुलिस अधिकारी से बात करनी है.’’ उधर से कारण पूछने पर बताया कि उसे एक हत्या के आरोपी के खिलाफ जानकारी देनी है. यह कहने पर पर रमेश की बात राजधानी रायपुर के एडिशनल एसपी (ग्रामीण) तारकेश्वर पटेल से करवाई गई.

रमेश ने पूरी जानकारी एसपी साहब को दे दी. इस सिलसिले में रमेश ने बताया कि 10 साल पहले गांव के लेखराम सेन की हत्या गला घोंट कर कर दी गई थी. इन दिनों हत्यारा उस के गांव में निश्चिंत हो ठहरा हुआ है.

ये भी पढ़ें- Best Of Manohar Kahaniya: आधी रात के बाद हुस्न और हवस का खेल

तरकेश्वर पटेल ने कहा, ‘‘तुम फोन पर नहीं, सामने आओ. मुझ से मिलो. घबराओ नहीं, तुम्हें कुछ नहीं होगा, बल्कि पुरस्कार भी दिया जाएगा.’’

‘‘सर, मुझे कोई ईनाम नहीं चाहिए. मैं सिर्फ इतना चाहता हूं कि हत्यारे को सजा मिले, ताकि उस जैसे अपराधी कभी छिपने की कोशिश न करें. वैसे लोगों का यह घमंड भी टूटना चाहिए कि कानून उन का कुछ नहीं बिगाड़ सकता है.’’

रमेश की बातें सुन कर एडिशनल एसपी बहुत खुश हुए और उन्होंने एसएसपी अजय यादव से समुचित दिशानिर्देश ले कर लेखराम सेन हत्याकांड की फाइल खुलवाई.

साथ ही एसडीओपी राहुल देव शर्मा और खरोरा थानाप्रभारी तीरथ सिंह ठाकुर को एक पुलिस टीम बनाने के निर्देश दिए.

पुलिस टीम ने संतोष यादव को 24 जून, 2021 को उस के गांव जरौद से हिरासत में ले लिया गया. संतोष पहले तो अचानक हुई गिरफ्तारी से घबराया बाद में उस ने पुलिस के सामने इधरउधर की बातें करते हुए फरहाद गांव में कभी भी जाने तक से इनकार कर दिया.

पुलिस ने जब उस का काला चिट्ठा खोलते हुए उस के ननिहाल में सभी दोस्तों और प्रेमिका के नाम लिए तब वह टूट गया. विवश हो कर उस ने यह स्वीकार कर लिया कि 14 जनवरी, 2011 की रात को उस ने किस तरह से अपने चचेरे भाई लोकेश यादव के साथ मिल कर लेखराम सेन की हत्या कर दी थी.

संतोष यादव ने उस रात की घटना के साथसाथ बारबार अपने ननिहाल और वहां रानी के साथ मौजमस्ती की बातें इस प्रकार बताईं—

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के गांव जरौद थाना मंदिर हसौदा निवासी संतोष यादव उर्फ घनश्याम रमेश यादव का बेटा है. करीब 20 साल की उम्र में उस का अपने ननिहाल फरहदा गांव अकसर आनाजाना होता था. वहां हमउम्र युवाओं के साथ उस की अच्छी दोस्ती हो गई थी.

वहीं उस की जानपहचान 17 साल की रानी से भी हो गई थी. वह रानी को दिल से चाहने लगा था. उसी वजह से वह अपने ननिहाल में हफ्तों तक पड़ा रहता था और इधरउधर मटरगस्ती भी किया करता था. इस मौजमस्ती में उस ने अपने चचेरे भाई लोकेश यादव को भी शामिल कर लिया था.

बात 14 जनवरी, 2011 की है. संतोष रात के 9 बजे के करीब लोकेश के साथ रानी का इंतजार कर रहा था. लोकेश कुछ दिन पहले ही वहां आया था. रमेश ने उसे भी किसी लड़की के साथ संपर्क करवाने का वादा किया था.

उधर रानी अपनी सहेली मधु के साथ घर से शौच के लिए निकली थी. उस ने मधु को फुसलाते हुए तालाब के पास चलने के लिए कहा. मधु के इनकार करने पर उसे अच्छी सहेली होने का हवाला दिया और फिर दोनों तालाब के पास जा पहुंचे.

वहां संतोष पहले से मौजूद था. मधु पहले से 2 लड़कों को देख कर सकपका गई और वहीं सड़क के किनारे बनी पुलिया के पास रुक गई.

रानी तेज कदमों से संतोष के पास चली गई. उसे साथ ले कर मधु के पास आई और उस का परिचय करवाया.

साथ में संतोष के भाई लोकेश का परिचय भी करवाती हुई उस से बोली, ‘‘तुम दोनों यहीं बातें करो.’’

तभी संतोष ने रानी का हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘‘मुझे तुम से कुछ कहना है.’’

‘‘बोलो,’’ रानी बोली.

‘‘यहां नहीं उधर चलते हैं.’’ झाडि़यों की ओर इशारा करते हुए संतोष रानी का हाथ खींचने लगा. रानी भी उस का साथ देती हुई साथ चल पड़ी. मधु और लोकेश वहीं रुक गए. झाडि़यों के पास हल्का अंधेरा था. रानी और संतोष उन के पीछे एकदूसरे के प्यार में खो गए.

मधु और लोकेश परिचय के बाद वहीं पुलिया पर बैठ गए. मधु रानी के वापस आने का इंतजार करने लगी.

कुछ समय में मधु को गांव में सैलून की दुकान चलाने वाले लेखराम सेन के गाना गाने की आवाज सुनाई दी. वह घबरा गई. कारण लेखराम उस के पड़ोस में रहता था, उसे अच्छी तरह से पहचानता था.

मधु ने उस से कहा, ‘‘मैं घर जा रही हूं, रानी को बता देना.’’

यह कह कर मधु वहां से चली गई.

लेखराम लोकेश के पास आ कर रुक गया. लड़खड़ाती आवाज में पूछा. ‘‘कौन है भाई? यहां क्या कर रहा है?’’

लोकेश ने कुछ जवाब नहीं दिया. लेखराम ने दोबारा पूछा, ‘‘बोलता क्यों नहीं, तू तो इस गांव का नहीं लगता है.’’

लोकेश अभी कुछ बोलने वाला ही था कि लेखराम की नजर झाडि़यों की ओर घूम गई. वहां से कुछ हलचल दिखी. वह लोकेश से हट कर उस ओर जाने लगा. लेकिन लोकेश ने उधर जाने से रोका, ‘‘बाबूजी, उधर मत जाइए.’’

‘‘क्यों, उधर क्यों नहीं जाऊं? तुम यहां क्या कर रहे हो?’’ लेखराम बोला.

‘‘बाबूजी, आप अपने घर जाइए न. नशे में हैं, गिरपड़ जाएंगे.’’ लोकेश ने समझाया.

‘‘तू कौन होता है मुझे रोकने वाला. आज का लौंडा है, तुम्हारी इतनी हिम्मत.’’ लेखराम कहता हुआ झाडि़यों के पास चला गया. वहां का दृश्य देख कर चीखता हुआ बोला, ‘‘अच्छा तो यह बात है. यहां मौज की जा रही है.’’

लेखराम ने संतोष का हाथ पकड़ कर झाडि़यों में से खींच निकाला. रानी ने अपने कपड़े सहेजते हुए उस की ओर अपनी पीठ कर ली.

‘‘कौन है रे लड़की तू? गांव की इज्जत मिट्टी में मिलाने चली है.’’ लेखराम डांटते हुए बोला. इस बीच संतोष ने उस से हाथ छुटा कर उसे धक्का दिया. लेखराम गिर पड़ा. संतोष ने उसे पीछे से दबोच लिया. उसी समय लोकेश भी वहां पहुंच गया.

‘‘हमारे गांव में यह सब नहीं चलता है. तुम गलत कर रहे हो.’’ लेखराम ने चिल्लाते हुए धमकी दी कि उन्हें गांव में सब के सामने उस की करतूत बताएगा.’’

अब लोकेश ने भी उसे पकड़ लिया. 40 की उम्र का लेखराम जल्द ही असहाय हो गया. तभी उस ने हल्के अंधेरे में लड़की का चेहरा देख लिया. चिल्लाया, ‘‘अरे तू तो साहूकार की बेटी है. चल, मैं तेरे बाप को तुम्हारी करतूत बताता हूं.’’ लेखराम शिकायती लहजे में बोला.

रानी घबरा कर चेहरा हाथों से छिपाती हुई वहां से भाग गई. रानी को जाते देख संतोष और भी तिलमिला गया. उस ने तुरंत अपने पैंट से बेल्ट निकाली और देदनादन लेखराम पर बरसानी शुरू कर दी.

नशे की हालत में लेखराम उठ नहीं पाया. वह एकदम अधमरा हो गया. तब संतोष जाने लगा. इस पर लोकेश ने कहा कि भैया यह तो चोट खाया सांप बन गया है. कभी भी डंस लेगा.

यह सुन कर संतोष बोला, ‘‘ऐसा है क्या, चलो इस का काम ही तमाम कर देते हैं.’’

उस के बाद संतोष ने बेल्ट से ही उस का गला घोंट दिया’’ कुछ समय में ही लेखराम की मौत हो गई.

लेखराम की हत्या से बचने के लिए संतोष और रमेश ने उस की लाश वहां से थोड़ी दूर अंधेरे में फेंक दी. फिर वे तालाब में नहाधो कर अपने नानी के घर आ गए. वहां से एकदम सवेरेसवेरे दोनों अपने गांव लौट आए.

पुलिस की जांच और उस के पकड़े जाने पर संतोष को काफी हैरत हुई. पुलिस ने 10 साल पुरानी लाश के संबंध में जांच का दोबारा विश्लेषण करने के लिए नई फाइल बनाई. उस में संतोष द्वारा सभी इकरारनामे को दर्ज किया.

साथ में उस के दोस्त रमेश के बयान भी गवाही के तौर शामिल कर लिए गए. पुलिस ने 32 वर्षीय लोकश यादव को भी हिरासत में ले लिया और उस के बयान लिए.

इस आधार पर दोनों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 302, 201 और 34 के तहत मामला दर्ज कर आरोप पत्र तैयार कर लिया गया. दोनों को रायपुर की अदालत में पेश करने के बाद न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्र के आधार पर और इसमें रानी और मधु के नाम काल्पनिक रखे गए हैं

Crime- डर्टी फिल्मों का ‘राज’: राज कुंद्रा पोनोग्राफी केस- भाग 3

बाद में जब पत्नी ऊषा रानी खर्च में हाथ बंटाने के लिए चश्मे की दुकान में काम करने लगीं. तो धीरेधीरे पैसा जुड़ने लगा. उन के 4 बच्चे थे 3 बेटियां और इकलौता बेटा राज.

कुछ साल की मेहनत के बाद बाल कृष्ण कुंद्रा ने पैसे जोड़जोड़ कर बाद में एक ग्रौसरी की दुकान खोल ली. दुकान ठीक चल गई. जिस के मुनाफे से उन्होंने एक पोस्ट औफिस खरीद लिया. इंग्लैंड में पोस्ट औफिस खरीदा जा सकता है.

बाल कृष्ण एक व्यापार से दूसरे व्यापार में घुसने में ज्यादा देर नहीं लगाते थे. जैसे ही वह देखते कि इस धंधे में गिरावट आने के आसार हैं, वह उस धंधे को बेच दूसरे बिजनैस में चले जाते थे.

इसी बिजनैस सेंस और अपनी मेहनत की बदौलत बाल कृष्ण कुंद्रा कुछ सालों में एक सफल मिडिल क्लास बिजनैसमैन बन कर उभरे. बच्चों के जवानी में कदम रखने तक उन का परिवार आर्थिक रूप से समृद्ध हो चुका था.

लंदन से ही इकौनामिक्स  में ग्रैजुएशन करने के बाद जब राज 18 साल के हुए तब उस के पिता का रेस्तरां का बिजनैस था. पिता ने राज को अल्टीमेटम दे दिया कि या तो वह उन के रेस्तरां को संभाले या वो उन्हें 6 महीने में कुछ कर के दिखाए. राज सारी जिंदगी रेस्तरां में नहीं बिताना चाहता था.

लिहाजा पिता से बिजनैस करने के लिए 2000 यूरो ले कर वह हीरों का कारोबार करने के लिए दुबई चला गया. लेकिन दुबई में बात बनी नहीं. इसी बीच किसी काम से राज को नेपाल जाना पड़ा. वहां घूमते हुए राज को पश्मीना शाल नजर आए. वहां ये शाल बहुत कम कीमत में मिल रहे थे. लेकिन राज को पता था कि इन शालों की कीमत इस से बहुत ज्यादा है.

राज के पास जो रकम बची थी उस से तकरीबन 100 से ऊपर शाल खरीद लिए और लंदन वापस आ गया. लंदन आ कर बड़ेबड़े क्लोथिंग ब्रांड्स के दरवाजे खटखटाने लगा. इन ब्रांड्स को पश्मीना शाल बहुत पसंद आए और देखते ही देखते पश्मीना शाल इंग्लैंड में फैशन ट्रेंड बन गया.

ये भी पढ़ें- Crime Story: पीपीई किट में दफन हुई दोस्ती

फिर क्या था नेपाल से सस्ते पश्मीना शाल ला कर लंदन में महंगी कीमत में बेचने का कुंद्रा का बिजनैस ऐसा फलाफूला कि उस साल उस के बिजनैस का टर्नओवर 20 मिलियन यूरो छू गया. वो भी सिर्फ शाल बेच कर.

3-4 साल बाद राज ने शाल का व्यापार छोड़ दिया और वापस दुबई जा कर हीरे की ट्रेडिंग का काम ही करने लगा. पिता की ही तरह राज भी किसी एक धंधे को जीवन भर नहीं करना चाहता था.

जब किसी धंधे में घाटा दिखाई देता तो वह दूसरा मुनाफे का धंधा शुरू कर देता. किस्मत अच्छी थी कि वह जिस कारोबार में हाथ भर डालता, वह चल पड़ता.

बाद में उस ने हीरों के अलावा रियल एस्टेट, स्टील स्क्रैप का भी काम शुरू कर दिया. इन दिनों वह 10 कंपनियों का मालिक था. लंदन में उस ने करीब 100 करोड़ की कीमत का एक पैलेसनुमा मेंशन बनवाया हुआ था.

2005 में राज कुंद्रा की शादी कविता नाम की युवती से हुई थी. इन दोनों की एक बेटी भी हुई. लेकिन मात्र 2 साल बाद 2007 में राज और कविता का तलाक हो गया और कोर्ट ने उन की बेटी की कस्टडी भी कविता को ही दे दी.

ये भी पढ़ें- Satyakatha: लॉकडाउन में इश्क का उफान

हालांकि राज दुनिया के सामने हमेशा यही कहता रहा कि कविता से उस के तलाक की वजह उस की बहन रीना के पति से उस के अवैध संबध होना था. इसी कारण से उस की बहन ने भी अपने पति को तलाक दिया था.

लेकिन राज की पत्नी कविता ने कई बार मीडिया को बताया कि अभिनेत्री और मौडल शिल्पा शेट्टी के कारण राज कुंद्रा ने उसे तलाक दिया था.

साल 2007 की ही बात है जब शिल्पा शेट्टी के साथ राज कुंद्रा की नजदीकियां बढ़ने लगी थीं. राज के पास करोड़ों की दौलत तो थी लेकिन शोहरत के नाम पर तब तक उसे कोई ज्यादा लोग नहीं जानते थे. लेकिन शिल्पा से मिलने के बाद शोहरत भी उस के करीब आ गई.

शिल्पा और राज की मुलाकात भी कम फिल्मी नहीं है. जैसे इंडिया में लोग ‘बिग बौस’ के दीवाने हैं, वैसे ही इंग्लैंड के लोग इसी शो के संस्करण ‘बिग ब्रदर’ के दीवाने हैं. इसी शो में 2007 में शिल्पा शेट्टी ने शिरकत की थी और इसे जीता भी था.

जिस के बाद शिल्पा इंग्लैंड में खूब लोकप्रिय हो गईं. राज कुंद्रा के घर में भी ‘बिग ब्रदर’ बिना मिस किए देखा जाता था. राज भी देखता था और इंडियन कनेक्शन होने के नाते शिल्पा के लिए वोट भी किया करता था.

संयोग से शिल्पा के यूके में बिजनैस मैनेजर से राज की अच्छीखासी पहचान हो गई थी. शिल्पा शेट्टी के ‘बिग ब्रदर’ जीतने के बाद उन्हें बहुत सी यूके फिल्मों के औफर आ रहे थे. इसी सिलसिले में सलाह लेने के लिए शिल्पा के मैनेजर ने राज को एक दिन फोन किया.

राज ने उन से कहा कि अभी तो शिल्पा लोकप्रिय हैं, लेकिन जब तक फिल्म बन कर रिलीज होगी उन की इंग्लैंड में लोकप्रियता घट चुकी होगी. इसलिए फिल्म बनाने में घाटा होगा. उस से अच्छा है कि उन के नाम से परफ्यूम ब्रैंड लौंच किया जाए.

कुंद्रा ने शिल्पा शेट्टी के नाम से परफ्यूम ब्रांड लौंच करने का औफर भी दिया. जब मैनेजर ने औफर की जानकारी शिल्पा की मां को दी तो उन्होंने राज को बताया कि उन के पास ऐसा औफर पहले ही आ चुका है.

ये सुन कर राज ने उन्हें डबल पेमेंट का औफर दे दिया. राज को पता था कि यह घाटे की डील थी. लेकिन वह शिल्पा के साथ वक्त बिताना चाहता था. करीब आना चाहता था और दोस्ती करना चाहता था.

ये भी पढ़ें- Satyakatha: दोस्त की दगाबाजी

इसलिए उस ने एक तरीके से दोगुने पैसे दे कर वक्त खरीद लिया था, दरअसल जब से  राज ने शिल्पा को बिग ब्रदर शो में देखा था तभी से उसे पहली नजर का शिल्पा से प्यार हो गया था.

खैर, राज जिस कारोबार में हाथ डालता था, वो खूब चलता था. शिल्पा के नाम से लौंच हुआ परफ्यूम भी खूब बिका. इंग्लैंड में परफ्यूम मार्केट में नंबर एक पर रहा. शिल्पा  को दोगुने पैसे दे कर की गई डील भी उस के लिए फायदेमंद ही रही.

एक तो परफ्यूम खूब बिका. दूसरा इस दौरान शिल्पा से इतनी घनिष्ठता हो गई कि शिल्पा भी उस के करीब आ गईं और 2009 में दोनों की शादी हो गई.

अगले भाग में पढ़ें- राज कुंद्रा हो या शिल्पा शेट्टी पोर्नोग्राफी रैकेट के अलावा पहले भी दोनों सुखिर्यो में रह चुके हैं

Crime Story: पीपीई किट में दफन हुई दोस्ती- भाग 2

27 जून, 2021 को परिजनों को जैसे ही पता चला कि सचिन की हत्या उस के कुछ नजदीकी दोस्तों ने कर दी है तो घर में कोहराम मच गया. परिजनों का रोरो कर बुरा हाल  हो गया. सचिन अपने घर का इकलौता चिराग था, जिसे दोस्तों ने ही बुझा दिया था.

पुलिस की कड़ी पूछताछ में सभी आरोपी टूट गए. सभी ने स्वीकार किया कि उन्होंने सचिन का अपहरण कर उस की हत्या कर दी और लाश का अंतिम संस्कार पीपीई किट पहना कर करने के बाद उस की अस्थियां भी यमुना में विसर्जित कर दीं.

28 जून, 2021 को प्रैस कौन्फ्रैंस में एसएसपी मुनिराज जी. ने इस सनसनीखेज हत्याकांड का परदाफाश कर दिया.

सचिन की मौत की पटकथा एक महीने पहले ही लिख ली गई थी. आरोपियों ने पहले ही तय कर रखा था कि सचिन का अपहरण कर हत्या कर देंगे. उस के बाद 2 करोड़ रुपए की फिरौती उस के पिता से वसूलेंगे.

पुलिस पूछताछ में हत्यारोपियों द्वारा सचिन के अपहरण और हत्या के बाद उस के शव का दाह संस्कार करने की जो कहानी सामने आई, वह बड़ी ही खौफनाक थी—

मूलरूप से बरहन कस्बे के गांव रूपधनु निवासी सुरेश चौहान आगरा के दयाल बाग क्षेत्र की जयराम बाग कालोनी में अपने परिवार के साथ रहते हैं. उन का गांव में ही एस.एस. आइस एंड कोल्ड स्टोरेज है.

ये भी पढ़ें- Satyakatha: दोस्त की दगाबाजी

इस के अलावा वह आगरा और हाथरस में जिला पंचायत की ठेकेदारी भी करते हैं. लेखराज चौहान भी उन के गांव का ही है. दोनों ने एक साथ काम शुरू किया. दोनों ठेकेदारी भी साथ करते थे. उन दोनों के बीच पिछले 35 सालों से बिजनैस की साझेदारी चल रही थी. सुरेश चौहान का बेटा सचिन व लेखराज का बेटा हर्ष भी आपस में अच्छे दोस्त थे और एक साथ ही व्यापार व ठेकेदारी करते थे.

दयाल बाग क्षेत्र की कालोनी तुलसी विहार का रहने वाला सुमित असवानी बड़ा कारोबारी है. 2 साल पहले तक वह अपनी पत्नी व 2 बेटों के साथ चीन में रहता था. वहां उस का गारमेंट के आयात और निर्यात का व्यापार था. लेकिन 2019 में चीन में जब कोरोना का कहर शुरू हुआ तो वह परिवार सहित भारत आ गया.

दयालबाग में ही सौ फुटा रोड पर उस ने सीबीजेड नाम से स्नूकर और स्पोर्ट्स क्लब खोला. सुमित महंगी गाड़ी में चलता था. वहीं वह रोजाना दोस्तों के साथ पार्टी भी करता था. उस के क्लब में हर्ष और सचिन भी स्नूकर खेलने आया करते थे. इस दौरान सुमित की भी उन दोनों से गहरी दोस्ती हो गई.

बताया जाता है कि हर्ष चौहान के कहने पर सुमित असवानी ने धीरेधीरे सचिन चौहान को 40 लाख रूपए उधार दे दिए. जब उधारी चुकाने की बारी आई तो सचिन टालमटोल कर देता. जबकि उस के खर्चों में कोई कमी नहीं आ रही थी. कई बार तकादा करने पर भी सचिन ने रुपए नहीं लौटाए. यह बात सुमित असवानी को नागवार गुजरी. तब उस ने मध्यस्थ हर्ष चौहान पर भी पैसे दिलाने का दबाव बनाया, क्योंकि उस ने उसी के कहने पर सचिन को पैसे दिए थे.

हर्ष के कहने पर भी सचिन ने उधारी की रकम नहीं लौटाई. यह बात हर्ष को भी बुरी लगी. इस पर एक दिन सुमित असवानी ने हर्ष से कहा, ‘‘अब जैसा मैं कहूं तुम वैसा करना. इस के बदले में उसे भी एक करोड़ रुपए मिल जाएंगे.’’

रुपयों के लालच में हर्ष चौहान सुमित असवानी की बातों में आ गया.

दोनों ने मिल कर घटना से एक महीने पहले सचिन चौहान के अपहरण की योजना बनाई. फिर योजना के अनुसार, सुमित असवानी ने इस बीच सचिन चौहान से अपने मधुर संबंध बनाए रखे ताकि उसे किसी प्रकार का शक न हो.

इस योजना में सुमित असवानी ने रुपयों का लालच दे कर अपने मामा के बेटे हैप्पी खन्ना को तथा हैप्पी ने अपने दोस्त मनोज बंसल और उस के पड़ोसी रिंकू को भी शामिल कर लिया.

ये भी पढ़ें- Satyakatha: बेटे की खौफनाक साजिश- भाग 1

उन्होंने यह भी तय कर लिया था कि अपहरण के बाद सचिन की हत्या कर के उस के पिता से जो 2 करोड़ रुपए की फिरौती वसूली जाएगी. उस में से एक करोड़ हर्ष चौहान को, 40 लाख सुमित असवानी को और बाकी पैसे अन्य भागीदारों में बांट दिए जाएंगे.

षडयंत्र के तहत उन्होंने अपनी योजना को अमलीजामा 21 जून को पहनाया. सुमित असवानी ने अपने मोबाइल से उस दिन सचिन चौहान को वाट्सऐप काल की. उस ने सचिन से कहा, ‘‘आज मस्त पार्टी का इंतजाम किया है. रशियन लड़कियां भी बुलाई हैं. बिना किसी को बताए, चुपचाप आ जा.’’

सचिन उस के जाल में फंस गया. घर पर बिना बताए वह पैदल ही निकल आया. वे लोग क्रेटा गाड़ी से उस के घर के पास पहुंच गए और सचिन को कार में बैठा लिया. रिंकू कार चला रहा था. मनोज बंसल उस के बगल में बैठा था. वहीं सुमित और हैप्पी पीछे की सीट पर बैठे थे. सचिन बीच में बैठ गया.

सुमित असवानी व साथी शाम 4 बजे पहले एक शराब की दुकान पर पहुंचे. वहां से उन्होंने शराब खरीदी. इस के बाद सभी दोस्त कार से शाम साढ़े 4 बजे सौ फुटा रोड होते हुए पोइया घाट पहुंचे. हैप्पी के दोस्त की बहन का यहां पर पानी का प्लांट था. इन दिनों वह प्लांट बंद पड़ा था. हैप्पी ने पार्टी के नाम पर प्लांट की चाबी पहले ही ले ली थी.

वहां पहुंच कर सभी पहली मंजिल पर बने कमरे में पहुंचे. शाम 5 बजे शराब पार्टी शुरू हुई. जब सचिन पर नशा चढ़ने लगा, तभी सभी ने सचिन को पकड़ लिया. जब तक वह कुछ समझ पाता, उन्होंने उस के मुंह पर टेप लगा कर चेहरा पौलीथिन से बांध दिया, जिस से सचिन की सांस घुटने लगी. उसी समय सुमित असवानी उस के ऊपर बैठ गया और उस का गला दबा कर हत्या कर दी. इस बीच अन्य साथी उस के हाथपैर पकड़े रहे.

सचिन की हत्या के बाद उस के शव का अंतिम संस्कार करने का निर्णय लिया गया. इस के लिए शातिर दिमाग सुमित असवानी ने पीपीई किट में लाश को श्मशान घाट पर ले जाने का आइडिया दिया ताकि पहचान न हो सके और कोई उन के पास भी न आए.

इस के लिए कमला नगर के एक मैडिकल स्टोर से एक पीपीई किट उन्होंने यह कह कर खरीदी कि एक कोरोना मरीज के अंतिम संस्कार के लिए चाहिए. रिंकू शव को बल्केश्वर घाट पर ले जाने के लिए एक मारुति वैन ले आया.

सचिन के शव को पीपीई किट में डालने के बाद वह बल्केश्वर घाट पर रात साढ़े 8 बजे पहुंचे. वहां उन्होंने बल्केश्वर मोक्षधाम समिति की रसीद कटवाई व अंतिम संस्कार का सामान खरीदा. उन्होंने मृतक का नाम रवि वर्मा और पता 12ए, सरयू विहार, कमला नगर लिखाया था.

अगले भाग में पढ़ें- सबूत मिटाने के लिए अंतिम संस्कार भी पीपीई किट में कर दिया

Crime Story: कुटीर उद्दोग जैसा बन गया सेक्सटॉर्शन- भाग 1

खाने की टेबल पर बैठे जितेंद्र सिंह  फेसबुक मैसेंजर पर आई उस वीडियो काल के बाद अचानक असहज हो गए. क्योंकि सामने बेटी, बेटा, बहू और पत्नी, पोता और पोती सभी डाइनिंग टेबल पर मौजूद थे. उन्होंने फोन को झटपट साइलैंट मोड पर किया. प्लेट में रखे खाने के अंतिम 2 कौर झटपट मुंह में डाले और पानी पी कर झट से उन्हें गले से नीचे उतार कर बोले, ‘‘तुम लोग खाना खाओ, मेरा बाहर से कोई अर्जेंट काल है, उसे अटेंड करता हूं.’’

वह उठे और तेजी के साथ अपने रूम की तरफ बढ़ गए. वे कमरे में घुसते ही सीधे अटैच्ड बाथरूम में गए. फेसबुक की मैसेंजर काल डिस्कनेक्ट हो कर दोबारा शुरू हो चुकी थी. बाथरूम में घुसते ही उन्होंने वीडियो काल अटैंड की.

सामने स्क्रीन पर नजर आ रही खूबसूरत हसीना से फुसफुसाते हुए बोले, ‘‘सौरी जानू… डाइनिंग टेबल पर था और पूरी फैमिली सामने बैठी थी इसलिए काल अटैंड नहीं की.’’

सामने खड़ी हसीना ने कहा, ‘‘कोई बात नहीं जानेमन, लेकिन अब अगर अकेले हो तो जल्दी से कपड़े उतारो और मेरी प्यास बुझा दो… बहुत देर से तड़प रही हूं… देखो मेरे बदन से कपड़े कैसे उतर रहे हैं… जल्दी करो… मेरी प्यास बुझा दो…’’

और कहते हुए फोन की स्क्रीन पर नजर आने वाली लड़की ने एकएक कर अपने कपड़े उतार कर निर्वस्त्र बदन को इस तरह सहलाना शुरू किया कि उत्तेजना के चरम पर पहुंच चुके जितेंद्र सिंह ने झटपट अपने कपड़े उतार कर अपने अंगों से खेलना शुरू कर दिया.

दूसरी तरफ वीडियो काल पर मौजूद युवती अपने बदन को सहलाते हुए ऐसी कामोत्तेजक आवाजें निकाल कर जितेंद्र को उत्तेजित कर रही थी कि कुछ ही देर में उन का शरीर शिथिल और ठंडा पड़ गया.

ये भी पढ़ें- Manohar Kahaniya: पुलिस अधिकारी का हनीट्रैप गैंग

फेसबुक पर 4-5 दिन पहले ही जितेंद्र सिंह की दोस्त बनी रुचिका नाम की इस प्रेमिका ने लगातार दूसरे दिन उन्हें उम्र के उस पड़ाव पर चरम सुख दे कर अपना दीवाना बना लिया था.

60 की उम्र पार कर चुके जितेंद्र सिंह के जीवन में रुचिका कुछ रोज पहले अचानक बहार बन कर आई थी. अचानक चंद रोज पहले फेसबुक पर रुचिका ने उन के मैसेंजर बौक्स में हाय लिख कर दोस्ती करने का निमंत्रण दिया.

रुचिका के प्रोफाइल में उस की निहायत खूबसूरत तसवीरों को देखने के बाद जितेंद्र  खुद को उस की दोस्ती कबूल करने से रोक नहीं सके. रुचिका को दोस्ती का प्रत्युत्तर मिलते ही फेसबुक मैसेंजर पर उन की दोस्ती की चैट का सिलसिला शुरू हो गया. दिन में कई बार बातें होतीं.

रुचिका ने खुद को नौकरीपेशा और हौस्टल में रहने वाली अविवाहित लड़की बताया. 1-2 दिन में जितेंद्र रुचिका से इतनी करीबी महसूस करने लगे कि अपनी फोटो उस के मैसेंजर में भेजने और उस की फोटो मांगने का सिलसिला शुरू हो गया.

2 दिन बाद ही दोनों के बीच वाट्सऐप नंबरों का भी आदानप्रदान शुरू हो गया. इस के बाद शुरू हुआ देर रात तक चैटिंग और वीडियो काल करने का सिलसिला और ऐसी कामुक बातों का दौर जिस ने रहेसहे फासलों की दूरी भी पाट दी.

धीरेधीरे खुलते गए जितेंद्र सिंह

चौथे दिन चैट करते समय रुचिका ने जितेंद्र से अचानक उन के प्राइवेट पार्ट की वीडियो दिखाने की फरमाइश की तो उन्होंने रुचिका से पहले अपना बदन दिखाने को कहा.

रुचिका ने फरमाइश पूरी कर दी तो बेकाबू हुए जितेंद्र ने भी बाथरूम में जा कर वीडियो काल से उसे भी खुद को आदमजात स्थिति में दिखा दिया.

अगले दिन जब वे खाने की टेबल पर थे तो इसी बीच मैसेंजर पर रुचिका का प्रणय निवेदन आया कि वह उन का देखना चाहती है. इसी के बाद जितेंद्र जल्दी से खाना खत्म कर के बाथरूम में पहुंचे और वहां वही सब हुआ, जो पिछली रात को हुआ था.

ये भी पढ़ें- Best of Satyakatha: डोली के बजाय उठी अर्थी

दरअसल, पिछले चंद रोज में रुचिका फेसबुक से हुई दोस्ती के बाद उन की जिंदगी में इतनी तेजी से समा गई थी कि वह उन की सोच पर हावी हो गई थी. अपनी उम्र, समाज की ऊंचनीच और भलेबुरे का उन्हें कोई खयाल ही नहीं रहा.

अहसास तो उन्हें तब हुआ जब अचानक उन के फेसबुक वाल पर उन की कुछ न्यूड फोटो किसी ने अपलोड कर दीं. चूंकि जितेंद्र  सिंह सोशल मीडिया पर ज्यादा ही एक्टिव रहते थे, लिहाजा उन्होंने जैसे ही वह अश्लील फोटो देखी तो उन्हें डिलीट कर अपनी फेसबुक वाल को ब्लौक कर दिया ताकि उस पर कोई कुछ भी अपलोड न कर सके. शुक्र था कि अपलोड होने के तुरंत बाद उन्होंने इन्हें डिलीट कर दिया था.

अचानक वह परेशान हो उठे. कहीं उन की ये तसवीरें फेसबुक के किसी फ्रैंड ने देख तो नहीं लीं… यही सोचतेसोचते वह डिप्रेशन में चले गए. बेटियां जवान और शादीशुदा हों और घर में पत्नी के अलावा बेटा, बहू व पोतेपोती हों तो उम्र के इस पड़ाव में बदनामी के डर से परेशान होना लाजिमी होता है.

शुरू हुई ब्लैकमेलिंग

इस घटनाक्रम की परेशानी अभी कम नहीं हुई थी कि उन के वाट्सऐप पर रुचिका की वाइस काल आई, ‘‘जितेंद्रजी, बहुत मजे ले लिए एक मजबूर लड़की से, अब जेल जाने के लिए तैयार हो जाओ… मैं तुम को पूरी दुनिया में इतना बदनाम कर दूंगी कि कहीं मुंह दिखाने के लायक नहीं रहोगे.’’

‘‘यार, ये तुम कैसी बातें कर रही हो… हमारे बीच जो कुछ हुआ है वो तो अंडरस्टैंडिंग से हुआ है. और तुम ने मुझ से बात किए बिना मेरी फोटो मेरे फेसबुक पर क्यों डाली?’’ जितेंद्र  सिंह अचानक रुचिका का फोन आने के बाद सहम गए और गिड़गिड़ाते हुए बोले.

‘‘चलो तब बात नहीं की थी तो अब बात कर लेते हैं… बताइए कितना हरजाना देंगे अपनी रुसवाई से बचने के लिए?’’ रुचिका ने अचानक किसी शातिर कारोबारी की तरह बात करनी शुरू कर दी.

‘‘यार, ये तुम कैसी बात कर रही हो… हम दोनों दोस्त हैं. फिर यह हरजाने वाली बात कहां से आ गई.’’ अचानक जितेंद्र रुआंसे हो गए.

उन्हें अपना पूरा अस्तित्व डूबता हुआ सा नजर आने लगा. वह समझ गए कि एक साजिश के तहत वह एक ब्लैकमेलर लड़की के चंगुल में फंस चुके हैं.

उन्होंने समझदारी और चतुराई से काम लिया और बोले, ‘‘देखो यार, मैं कोई अमीर आदमी नहीं हूं और तुम्हारे पास अगर मेरे खिलाफ सबूत हैं तो मेरे पास भी इस बात के सबूत हैं कि तुम ने मुझ से दोस्ती की शुरुआत कर मुझे फंसाया था. तुम शायद मुझे जानती नहीं हो, मेरे कौन्टैक्ट पुलिस के कई अफसरों से हैं.’’

लेकिन साथ ही उन्होंने उसे शांत करने के लिए यह भी बोला, ‘‘हां, अगर तुम कहोगी तो मैं तुम्हारी थोड़ीबहुत हेल्प कर दूंगा. लेकिन मुझे थोड़ा वक्त चाहिए.’’

जितेंद्र सिंह आगे कुछ कह पाते उस से पहले ही रुचिका ने धमकी भरे अंदाज में कहा, ‘‘देख बे ठरकी… तेरे पास केवल 2 दिन का वक्त है 5 लाख रुपए का इंतजाम कर ले, नहीं तो पूरी दुनिया देखेगी कि तेरे जैसे बुड्ढे किस तरह मासूम लड़कियों से फेसबुक पर दोस्ती कर के अपनी ठरक मिटाते हैं. बाकी का हिसाब तुझ से पुलिस अपने आप ले लेगी. मैं बाद में फोन करूंगी. जल्दी से पैसे का इंतजाम कर.’’

फोन कटने के बाद घबराहट में जितेंद्र  की सांसें लोहार की धौंकनी की तरह चलने लगीं.

अगले भाग में पढ़ें- जितेंद्र सिंह ने भी बदले तेवर

Crime Story: पुलिस वाले की खूनी मोहब्बत- भाग 3

संयोग ऐसा रहा कि पूजा और स्वीटी करीब 3 साल पहले एक ही समय गर्भवती हुईं. बाद में स्वीटी ने बेटे को जन्म दिया और पूजा ने बेटी को.

बच्चा होने के कई दिन बाद स्वीटी को अजय की दूसरी शादी के बारे में पता चला. इस बात पर स्वीटी का अजय से झगड़ा होने लगा. दिन पर दिन झगड़ा बढ़ता गया. अजय 2 नावों की सवारी कर रहा था. वह न तो स्वीटी को छोड़ना चाहता था और न ही पूजा को.

स्वीटी से रोज होने वाले झगड़े को देखते हुए अजय ने उस का काम तमाम करने पर विचार किया. किरीट सिंह जड़ेजा अजय का दोस्त था. किरीट के पास पैसा भी था और राजनीतिक प्रभाव भी.

भरूच जिले के अटाली गांव में वह एक होटल बनवा रहा था, लेकिन उस का निर्माण कार्य किसी वजह से बीच में ही अधूरा छोड़ दिया था.

गला घोंट कर की थी स्वीटी की हत्या

एक दिन अजय ने किरीट से एक लाश ठिकाने लगाने के बारे में बात की. अजय ने किरीट को यह नहीं बताया कि लाश किस की होगी.

उस ने बताया कि परिवार में एक महिला के गैर व्यक्ति से संबंध हो गए. इस से वह महिला गर्भवती हो गई है. परिवार के लोग उसे मार कर लाश ठिकाने लगाना चाहते हैं. किरीट सिंह ने दोस्ती में अजय से इस काम में सहयोग करने का वादा किया.

ये भी पढ़ें- Crime- डर्टी फिल्मों का ‘राज’: राज कुंद्रा पोनोग्राफी केस- भाग 1

4 जून, 2021 की रात अजय जब घर पहुंचा, तो पूजा से शादी को ले कर स्वीटी से उस का फिर विवाद हुआ. रोजाना के झगड़े से तंग आ कर अजय ने उसे ठिकाने लगाने का फैसला किया.

वह काफी देर तक इस पर सोचता रहा. स्वीटी जब सो गई तो आधी रात बाद उस ने गला घोंट कर उस को मार डाला.

रात भर वह अपने फ्लैट पर ही रहा. सुबह नहाधो कर तैयार हुआ. उस ने अपने दोस्त किरीट सिंह को फोन कर कहा कि परिवार के लोगों ने रिश्ते की बहन को मार डाला है, अब लाश ठिकाने लगानी है.

किरीट ने इस काम में सहयोग करने का वादा करते हुए कहा कि वह लाश को अटाली गांव में उस के निर्माणाधीन होटल के पिछवाड़े ले जा कर ठिकाने लगा दे.

इस के बाद अजय ने अपने साले जयदीप को फोन कर कहा कि स्वीटी रात एक बजे से सुबह साढ़े 8 बजे के बीच घर से बिना बताए कहीं चली गई है. उस समय लाश घर में थी.

बाद में अजय स्वीटी की लाश को एक एसयूवी कार में रख कर अटाली गांव ले गया और दोस्त किरीट सिंह के निर्माणाधीन होटल के पिछवाड़े रख कर जला दी. इस के लिए उस ने कुछ लकडि़यां और कैमिकल का भी इंतजाम कर लिया था. लाश जलाने के बाद वह वापस अपने घर आ गया. इस के बाद की कहानी आप पढ़ चुके हैं.

पुलिस ने स्वीटी की हत्या के आरोप में अजय और किरीट सिंह जडेजा को रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि के दौरान पुलिस ने

27 जुलाई को स्वीटी की हत्या से ले कर उस की लाश जलाने तक की घटना का रीक्रिएशन किया.

बाद में पुलिस ने अटाली में निर्माणाधीन बिल्डिंग के पिछवाड़े से स्वीटी की अंगुलियों की हड्डियां, जला हुआ मंगलसूत्र, हाथ का ब्रैसलेट, अंगूठी आदि बरामद किए.

परिवार वालों ने मंगलसूत्र स्वीटी का होने की पुष्टि की. पुरानी तसवीरों में भी स्वीटी वही मंगलसूत्र पहने हुए थी.

पुलिस इसे अहम सबूत मान रही है. अजय के पौलीग्राफ टेस्ट और एसडीएस परीक्षण की रिपोर्ट भी पौजिटिव आई है.

ये भी पढ़ें- Satyakatha: शादी से 6 दिन पहले मंगेतर ने दिया खूनी

अहम सबूत मिले पुलिस को

रिमांड अवधि पूरी होने पर पुलिस ने अदालत के आदेश पर अजय और किरीट सिंह को न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया. स्वीटी का बेटा अंश पूजा के पास था. सरकार ने भी पुलिस इंसपेक्टर अजय देसाई को सस्पेंड कर दिया.

अजय भले ही पुलिस इंसपेक्टर था. वह 48 दिनों तक पुलिस को छकाता रहा, लेकिन पुरानी कहावत आज भी सच है कि अपराधी कितना भी शातिर हो, वह कोई न कोई सबूत जरूर छोड़ता है. अजय के साथ भी ऐसा ही हुआ. आखिर वह गिरफ्तार हुआ.

अजय एक म्यान में दो तलवारें रखना चाहता था. यह न तो सामाजिक नजरिए से उचित था और न ही उस की सरकारी नौकरी के लिहाज से. उस ने पूजा से शादी करने की बात स्वीटी को नहीं बता कर अलग सामाजिक अपराध किया.

कोई भी महिला अपने पति का बंटवारा नहीं चाहती. पति की दो नावों की सवारी में पूजा बेमौत मारी गई. 2 शादियां करने के बाद भी उसे कफन तक नसीब नहीं हुआ और स्वीटी के दोनों बेटे भी मां की ममता से महरूम हो गए.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें