अपराध: हाईवे पर फैला लूट व ठगी का जाल

लोगों के घरों व दुकानों में जा कर और रास्ता चलते राहगीरों को बहलाफुसला कर या फिर उन्हें झांसा या लालच दे कर ठगने और लूटने की दास्तानें हम अकसर सुनते ही रहते हैं.

कभी कोई शातिर ठग या लुटेरा किसी के गहनों को साफ करने के बहाने सोने व चांदी के जेवरात उड़ा ले जाता है, तो कभी कोई ठग किसी के कपड़ों पर गंदगी लगी होने की बात कह कर उस का बैग ले कर चंपत हो जाता है.

कोई किसी को नोट दोगुना किए जाने का लालच दे कर ठग लेता है, तो कोई किसी को सस्ते दामों पर सोना, लोहा, सीमेंट जैसी चीजें देने के बहाने ठग कर ले जाता है.

देश में शातिर चोरों का एक ऐसा गिरोह हरकत में है, जो एक बड़े सूटकेस में 10-12 साल के बच्चे को बंद कर देता है. उस बच्चे के हाथ में एक मोबाइल फोन व एक टौर्च को थमा दिया जाता है. उस के बाद वह सूटकेस वोल्वो या दूसरी ऐसी बसों में, जिन में पिछले हिस्से में सामान रखने की जगह होती है, रख दिया जाता है.

इस तरह बच्चा सूटकेस में बैठ कर सामान रखने वाली जगह पर पहुंच जाता है. उधर उस सूटकेस को रखने वाला आदमी सवारी के तौर पर बस में बैठ कर अपना सफर शुरू कर देता है.

बस के चलते ही वह लड़का भीतर से सूटकेस की चेन खोल कर बाहर निकल आता है और टौर्च के द्वारा पीछे रखे सारे सूटकेस देख कर उन में अपने पास रखी चाबियां लगा कर उन्हें बारीबारी से खोलता है और उन में रखे सभी कीमती सामान अपने सूटकेस में डाल कर खुद अपने सूटकेस में वापस बैठ जाता है और भीतर से चेन बंद कर अपने आका को फोन पर मिशन पूरा होने की सूचना दे देता है.

लड़के द्वारा सूचना पाते ही अगले ही स्टौप पर वह आदमी बस से उतर जाता है और कंडक्टर से कह कर अपना सूटकेस ले जाता है.

इसी तरह पुणेमुंबई हाईवे पर शातिर अपराधियों, लुटेरों व ठगों का एक बड़ा गिरोह हरकत में है, जो कार सवारों को अपना शिकार बनाता है.

एक खबर के मुताबिक, एक लड़की ने मुंबई से पुणे जाते समय एक पैट्रोल पंप पर पैट्रोल डलवा कर जैसे ही अपनी कार आगे बढ़ानी चाही, एक अनजान आदमी उस के मुंह के करीब विजिटिंग कार्ड दिखा कर उस में लिखा पता पूछने लगा.

लड़की ने उस कार्ड को देख कर अपनी जानकारी के मुताबिक उसे पता समझाया. उस के बाद वह लड़की कार चलाते हुए पैट्रोल पंप से आगे बढ़ गई. कुछ ही दूर पहुंचने पर उस लड़की को चक्कर आने लगा और उस ने अपनी कार हाईवे के किनारे सुनसान जगह पर खड़ी कर दी.

चंद सैकंड में वह लड़की बेहोश हो गई. इतने में पीछे से वही अपराधी, जिन्होंने पैट्रोल पंप पर विजिटिंग कार्ड दिखा कर उस से पता पूछा था, जा पहुंचे और लड़की के पास मौजूद नकदी, गहने व कीमती सामान लूट कर ले गए.

होश में आने पर लड़की ने अपनी आपबीती पुलिस को बताई. फिर पता चला कि अपराधियों ने उस विजिटिंग कार्ड में कोई ऐसा नशीला कैमिकल लगा रखा था, जो उस लड़की के नाक के करीब आते ही उस की सांस की नली में चढ़ गया और उसे बेहोश कर दिया.

एक आदमी अपने परिवार के साथ पुणे हाईवे पर सफर कर रहा था. पीछे से आ रहे 2 मोटरसाइकिल सवारों ने उस की कार को ओवरटेक किया और यह इशारा किया कि उस की कार का पिछला पहिया पंक्चर हो गया है.

पहले तो उस कार चालक ने ध्यान नहीं दिया और अपनी कार चलाता रहा. इतने में उन मोटरसाइकिल सवारों ने इशारा किया.

मोटरसाइकिल सवारों के बारबार इशारा करने पर उस कार चालक ने चलती कार में पीछे झांक कर देखने की कोशिश की, पर वह पक्का नहीं कर सका कि उस की कार का पिछला पहिया पंक्चर है भी या नहीं.

जैसे ही पंक्चर लगाने की दुकान दिखाई दी, उस ने कार उस दुकान पर रोक दी. उस ने पंक्चर लगाने वाले दुकानदार से अपनी कार के चारों पहिए चैक करने को कहा. 3 पहिए तो उस दुकानदार ने कार चालक की नजरों के सामने चैक किए, जिन में हवा का दबाव बिलकुल ठीक था.

जैसे ही वह पीछे का आखिरी पहिया चैक करने लगा, उतने में उसी दुकान पर मौजूद एक आदमी ने फुजूल की बातों में उस कार चालक का ध्यान खींच लिया.

बस, इतने में ही उस पंक्चर लगाने वाला दुकानदार पहिए में पंक्चर होने की बात बोल बैठा. उस ने दुकानदार से कार का पहिया खोल कर पंक्चर लगाने को कह दिया.

इधर वह पंक्चर लगाने की तैयारी कर रहा था, तो उधर उस दुकान पर खड़े दो आदमी कार चालक को फुजूल की बातों में उलझाए हुए थे. नतीजतन, दुकानदार ने उस ट्यूबलैस टायर में 7-8 पंक्चर दिखा दिए. कार चालक के पास टायर में पंक्चर लगवाने के सिवा और कोई चारा नहीं था.

दुकानदार ने सभी पंक्चर लगाने की कीमत 2,750 रुपए बताई. कार चालक के बहुत कहने पर उस ने 1,500 रुपए ले कर सारे पंक्चर लगा दिए. बाद में कार चालक को पता चला कि हाईवे पर इस तरह की ठगी के नैटवर्क का वह शिकार हो चुका है.

हाईवे पर अपराध की घटनाओं को अंजाम देने वाले लोगों द्वारा लड़कियों का भी इस्तेमाल किया जाता है. ऐसी कई घटनाएं हो चुकी हैं, जिन से यह पता चलता है कि हाईवे पर आकर्षक लिबास पहने कोई औरत या लड़की किसी सुनसान इलाके में खड़ी हो कर कार या ट्रक चालकों को हाथ से इशारा कर के रोक रही है. अगर कोई उस के आकर्षण का शिकार हो कर रुक गया, तो बस आप उसे तो लुटा हुआ ही समझिए.

उस लड़की या औरत की आड़ में पेड़ों के पीछे कुछ अपराधी छिपे होते हैं. जैसे ही कोई गाड़ी सवार गाड़ी से उतर कर पास रुकता है और उस से बातें करने पहुंचता है, उसी समय उस लुटेरे गिरोह के सदस्य वहां आ धमकते हैं और लूटपाट की घटनाको अंजाम देते हैं.

इस के अलावा हाईवे पर टैक्सी के रूप में देर रात चलने वाले गिरोह द्वारा कई वारदातें अंजाम दी जा चुकी हैं. इन में खुद को टैक्सी चालक बताने वाला कार में बैठे लोगों को सवारी बताता है और रास्ते में मिलने वाली किसी एक सवारी को उसी कार में बैठा लेता है.  फिर वे सब उस आदमी को लूट लेते हैं.

हाईवे पर चलने वाले लोगों को इस तरह की लूट व ठगी की घटनाओं से खुद को महफूज रखने के लिए पूरी तरह चौकस रहने की जरूरत है, क्योंकि ठगों व लुटेरों द्वारा इस तरह के जाल कहीं भी बिछे मिल सकते हैं.

निर्मल रानी

सत्यकथा: कातिल ही बन गया हत्या का चश्मदीद गवाह

20 जनवरी, 2022 की सुबह के करीब 7 बज रहे थे. कभी न सोने वाले शहर मुंबई के भिवंडी इलाके में सुबहसुबह लोग अपने घरों से काम के लिए निकले थे. कुछ पैदल तो कुछ आटोरिक्शा में, कुछ अपनी गाडि़यों में, हर कोई अपने काम पर पहुंचने के लिए भाग रहा था.

ऐसे ही पैदल काम पर जा रहा एक शख्स जोकि भिवंडी के रुपाला ब्रिज के नीचे से होते हुए सड़क के दूसरी ओर जा रहा था, उसे ब्रिज के नीचे झाडि़यों के पास एक बड़ी सी सफेद रंग की बोरी दिखाई दी. उस बोरी का मुंह ऊपर से बंधा हुआ था.

यह देख उस शख्स के कदम धीमे हो गए और वह रुक गया. उस ने बोरे पर नजर डाली तो देखा उस बोरी के अंदर से खून निकला था, जिस से वहां आसपास की जमीन भी लाल हो गई थी. यह देख उस शख्स के माथे पर पसीना आ गया. उसे यही लग रहा था कि जरूर इस बोरी में किसी की लाश है.

यह देख उस ने आसपास चलते हुए लोगों को बुला कर ब्रिज के नीचे बोरे में लाश पड़ी होने के बारे में बताया. इस के बाद उस युवक ने पुलिस कंट्रोल रूम में फोन कर के इस बारे में सूचना दी.

सूचना मिलते ही भिवंडी के निजामपुरा थानाप्रभारी नरेश पवार के नेतृत्व में पुलिस की टीम घटनास्थल पर पहुंच गई. जिस शख्स ने फोन कर पुलिस को इस बारे में सूचना दी थी, पुलिस ने उस से पूछताछ की.

उस शख्स ने थानाप्रभारी नरेश पवार को जो कुछ उस ने देखा था, वह सब बयान कर दिया.

पुलिस ने जब वह बोरी खोली तो अंदर खून से लथपथ एक व्यक्ति की लाश निकली. उस के सिर, गरदन, सीने, चेहरे लगभग हर जगह पर जख्म के काफी गहरे निशान थे.

लाश की पहचान वहां जमा भीड़ नहीं कर पाई. लाश के कपड़ों में से सिर्फ डाक्टर की एक परची और एक हैडफोन मिला, जिसे पुलिस ने सबूत के तौर पर अपने पास रख लिया. लेकिन उस की जेब में कहीं कोई पहचानपत्र, पैसे या और कोई चीज नहीं बरामद हुई.

थानाप्रभारी नरेश पवार की मुश्किलें और भी बढ़ गईं. थानाप्रभारी बारबार डैडबौडी को देख रहे थे कि किसी तरह से लाश की पहचान हो जाए तो मामला सुलझाने में मदद मिले. व्यक्ति के कपड़ों से डाक्टर की जो परची मिली थी, वह पुलिस के लिए एक बड़ी लीड थी.

पुलिस टीम ने सबूत जुटाने के लिए आसपास के इलाकों की अच्छी तरह से छानबीन की, लेकिन उन्हें किसी तरह के कोई और ठोस सबूत नहीं मिले. लेकिन जब थानाप्रभारी नरेश पवार ने व्यक्ति की कमीज को बहुत ध्यान से देखा तो उन का दिमाग अचानक से घूम गया.

दरअसल, व्यक्ति ने लाल रंग की शर्ट पहनी हुई थी, जिस में सुनहरे रंग के छोटेछोटे धब्बे पूरी शर्ट पर मौजूद थे. यह देख उन्हें अचानक से याद आया कि ऐसे सुनहरे रंग के छोटे धब्बे अकसर मोतियों की फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूरों के कपड़ों पर दिखाई पड़ते हैं.

थानाप्रभारी ने इस मामले की गुत्थी सुलझाने के लिए पुलिस की 3 टीमों का गठन कर दिया.

भिवंडी के एसपी प्रशांत धोले ने एक टीम को डाक्टर के पास पूछताछ करने के लिए भेजा, दूसरी टीम को उन्होंने आसपास के सभी मोतियों की फैक्ट्री में पूछताछ के लिए भेजा और तीसरी टीम को आसपास के सभी पुलिस थानों में किसी के गुमशुदा होने का पता लगाने के लिए भेजा.

हत्या के इस मामले की छानबीन करने के लिए पहली टीम शव की कमीज की जेब से बरामद हुई डाक्टर की मुड़ीतुड़ी, खून से भीगी हुई परची की मदद से एक डाक्टर के पते पर पहुंची.

इस डाक्टर की दुकान भिवंडी के खोनी गांव में अब्दुल्लाह मसजिद के पास थी. यह कोई बहुत बड़ा डाक्टर नहीं था, बल्कि वह बीएससी पास डाक्टर था, जोकि मरीजों को छोटेमोटे मर्ज की दवा दे दिया करता था.

पुलिस ने जब डाक्टर को परची दिखाते हुए यह पूछा कि क्या वह इस मरीज को जानता है जोकि 2 दिन पहले ही उस के पास से दवा ले कर गया था तो जवाब में डाक्टर ने कहा कि वह दिन भर करीब 100 मरीजों को देखता है. कौन, कब, किस चीज के लिए आया, वह इस की पहचान नहीं कर सकता.

टीम को डाक्टर से कुछ ठोस काम का सुराग नहीं मिला. लेकिन फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी. उन्होंने एक और तरीका आजमाया. उन्होंने उस डाक्टर की दुकान के पास जितने भी फार्मेसी (दवाई) की दुकानें थीं, उन सभी से पूछताछ की. लेकिन अफसोस कहीं से भी कुछ भी काम नहीं आया.

एक तरफ जहां पहली टीम डाक्टर के पते पर मृत व्यक्ति की पहचान के लिए पहुंची थी तो वहीं दूसरी टीम निजामपुरा इलाके में जितने भी पर्ल वर्कशौप (मोतियों की फैक्ट्री) थीं, उन सभी में पूछताछ के लिए पहुंची.

दूसरी टीम ने एकएक कर सभी फैक्ट्री मालिकों से उन के मजदूरों के बारे में पूछा कि क्या उन की फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूरों में से कोई था, जो 2 दिन से बिना बताए छुट्टी पर रहा हो.

निजामपुरा इलाके में काफी बड़ी संख्या में पर्ल वर्कशौप (फैक्ट्री) थीं, जिन्हें एक दिन में कवर कर पाना संभव नहीं था. ऐसी स्थिति में दूसरी टीम को भी कुछ खास लीड नहीं मिली.

पुलिस की पहली और दूसरी टीम को अपनेअपने टास्क दिए हुए थे तो तीसरी टीम भी अपना टास्क पूरा करने के लिए मैदान में उतरी हुई थी. तीसरी टीम का काम आसपास के सभी इलाकों के पुलिस थानों में लापता लोगों की सूची तैयार करना और उन के बारे में पता लगाना था.

इस काम को करने के लिए सब से पहले आसपास के इलाकों के थानों में पहले ही फोन कर जरूरी सूचना दे दी गई.

कुछ देर बाद आसपास के पुलिस थानों से तीसरी टीम को जो कुछ जानकारियां हासिल हुईं, वह उन की मांगी हुई जानकारियों से मेल नहीं खा रही थीं.

इस में जरूरी यह भी था कि हो सकता है कि हत्या को अंजाम एक दिन में ही दिया गया हो तो यह संभव है कि व्यक्ति के शव का पता लगाने के लिए अभी तक उस के घरपरिवार वाले पुलिस थाने में उस की गुमशुदगी के लिए न पहुंचे हों.

ऐसे में पुलिस के पास इंतजार करने के अलावा और कोई दूसरा रास्ता बचा नहीं था.

पुलिस द्वारा बनाई गई तीनों टीमों के हाथ कोई ठोस सबूत या सुराग नहीं मिल पाया, जिस के दम पर आगे की छानबीन की जा सके.

20 जनवरी, 2022 की शाम तक मकतूल (कत्ल किए गए व्यक्ति) की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ चुकी थी, लेकिन उस की पहचान अभी तक पुलिस की टीम नहीं कर पाई थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार व्यक्ति के सिर पर गहरी चोट और ज्यादा खून बह जाने की वजह से उस की मौत हुई थी. लेकिन सिर्फ पोस्टमार्टम रिपोर्ट को ले कर केस सुलझाना आसान नहीं था.

इस केस का अगला चैप्टर अगले दिन 21 जनवरी, 2022 को उस समय खुला, जब एक व्यक्ति, जिस का नाम मोहम्मद सलमान था, वह शाम को निजामपुरा थाने में पहुंचा. थानाप्रभारी को उस ने खुद को उस व्यक्ति की हत्या का चश्मदीद गवाह बताया. यह सुन कर थानाप्रभारी और केस में जुड़े अन्य पुलिसकर्मी दंग रह गए.

इतनी मशक्कत करने के बाद आखिरकार पुलिस के हाथों ऐसा बिंदु मिल गया था, जिसे आधार बना कर वे हत्यारों को पकड़ सकते थे. और यह अहम गवाह खुद चल कर पुलिस थाने में आया था.

एक पल के लिए पुलिस को सलमान पर शक तो हो रहा था, लेकिन इस मामले में सिवाए उस के और कोई भी जरूरी तथ्य मौजूद नहीं था.

उस ने पुलिस को बताया कि हत्या के समय वह मौकाएवारदात से मात्र 50 मीटर की दूरी पर था और उस व्यक्ति की हत्या होते हुए अपनी आंखों से देखी थी.

उस ने बताया कि जिस की हत्या हुई थी, उस की शक्ल वह नहीं देख पाया था. लेकिन उस ने हत्यारों को देखा था. उस ने पुलिस को इस मामले के बारे में सब कुछ बताने की बात कही.

लिहाजा निजामपुरा पुलिस की टीम सलमान को अपने साथ मौकाएवारदात पर ले गई और सलमान ने बारीबारी से जो कुछ अपनी आंखों से देखा था, वह सब बताया. उस ने हत्या की उस घटना को बारीकी से बयान किया.

पुलिस ने जब उस से पूछा कि क्या वह हत्यारों की पहचान कर सकता है तो उस ने कहा कि अगर कोई उन्हें उस के सामने ले कर आए तो वह उन की पहचान कर सकता है.

ऐसे में पुलिस ने भिवंडी के आर्ट कालेज से एक छात्र को हत्यारे का स्केच बनाने के लिए बुलाया. अगले दिन 22 जनवरी की सुबह 10 बजे तक सलमान के कहे अनुसार स्केच आर्टिस्ट ने हत्यारे का स्केच बना कर तैयार कर दिया.

उस स्केच की कौपी निजामपुरा पुलिस थाने के जरिए आसपास के सभी थानों में भेजी गई ताकि उस शक्ल का कोई व्यक्ति यदि पुलिस के रेकौर्ड में पहले से मौजूद हो तो उसे जल्द ही पकड़ लिया जाए.

लेकिन अफसोस ऐसा नहीं हुआ. सलमान ने जिस व्यक्ति का स्केच बनवाया था, वह पुलिस रेकौर्ड में कहीं पर भी पाया नहीं गया.

अभी पुलिस इस मामले की तह तक पहुंचने से काफी दूर थी कि निजामपुरा पुलिस थाने के पास शांतिनगर पुलिस थाने से एक खबर आई.

खबर यह थी कि एक महिला, जिस का नाम नजमा बानो (बदला हुआ नाम) था, वह थाने में अपने 45 वर्षीय पति की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कराने पहुंची थी.

थानाप्रभारी ने बिना समय गंवाए तुरंत 2 पुलिसकर्मियों की एक टीम को उस महिला को निजामपुरा थाने ले कर आने को कहा. नजमा बानो से पूछताछ में पता चला कि उस का पति अरमान शेर अली 2 दिन से घर पर नहीं आया है. उस ने बताया कि इस से पहले उस ने कभी भी ऐसा नहीं किया.

उस ने बताया कि वह काम के अलावा जहां कहीं भी जाते थे, तो उसे अपने साथ ले कर जाते थे या फिर बता कर जाते थे. वह कभी भी घर से कहीं रात गुजारने के लिए नहीं गए.

अभी थाने में नजमा बानो से पूछताछ चल ही रही थी कि मामले की तह तक जाने के लिए जिन 3 टीमों का गठन किया गया था, उस में से दूसरी टीम को भी अहम लीड हाथ लगी.

दूसरी टीम इलाके में पर्ल वर्कशौप पर छानबीन कर रही थी तो पता चला कि एक फैक्ट्री में 45 वर्षीय एक मजदूर, जोकि पिछले 7-8 सालों से काम कर रहा था, वह पिछले 3 दिनों से काम पर नहीं आया था.

टीम ने थानाप्रभारी को सूचना दी कि उस मजदूर का नाम अरमान शेर अली शाह था और वह 3 दिनों से छुट्टी पर था, वह भी बिना बताए.

इस मामले की कडि़यां एकएक कर के जुड़ती जा रही थीं. ऐसे में नजमा को अरमान शेर अली शाह की पहचान के लिए उस मृत व्यक्ति के फोटो दिखाए.

नजमा ने तो उसे पहचानने से इनकार कर दिया. लेकिन नजमा के बेटे शारिक शाह ने शव की पहचान अपने पिता शेर अली शाह के रूप में कर ली.

शव का चेहरा देख उस की पहचान कर पाना मुमकिन नहीं था, लेकिन शारिक ने पुलिस को बताया कि उस के पिता की गरदन के पास एक बर्थ मार्क था, जोकि शव की गरदन पर भी था. ऐसे में दोनों मांबेटे को पतिपिता के खोने के दुख में बहुत गहरा सदमा लगा.

22 जनवरी, 2022 की शाम तक पुलिस की टीम को कुछ ऐसा हाथ लगा, जिस से मामला साफ हो गया.

मोहम्मद सलमान, जिस ने खुद को इस मामले का एकमात्र चश्मदीद गवाह करार दिया था, असलियत में सारे मामले की जड़ वही था.

दरअसल, सलमान पर पुलिस को पहले दिन से ही शक था, जिसे दूर करने के लिए थानाप्रभारी नरेश पवार ने अंदर ही अंदर एक और टीम को तैनात किया था जिस का काम सलमान के दावों की सच्चाई जानना था.

सलमान की गुप्त छानबीन में उस की काल डिटेल्स खंगाली गई तो पता चला कि जिस रात उस ने हत्या होते हुए देखने का दावा किया, उस रात को उस ने शेर अली शाह को कई फोन किए थे.

सिर्फ यही नहीं, पुलिस ने जब सलमान के पिछले ट्रैक रेकौर्ड को देखा तो पता चला कि जिस परोल रोड पर रुपाला ब्रिज के नीचे हत्या होने की बात कही, दरअसल उस रोड पर वह इस से पहले कभी गया ही नहीं था.

सलमान के रेकौर्ड पुलिस के सामने कई सवाल उठा रहे थे. ऐसे में पुलिस ने सलमान को हिरासत में लिया और उस से सख्ती से पूछताछ की.

वह पुलिस के सवालों के आगे ज्यादा देर तक टिक नहीं पाया. उस ने पुलिस के सामने जब सच्चाई बयान की तो सभी सुनने वालों के होश उड़ गए.

सलमान ने बताया कि जिस पर्ल वर्कशौप में शेर अली शाह काम करता था, वहीं पर करीब 2 साल पहले 30 वर्षीय तसलीम अली अंसारी काम करने के लिए आया था. जहां पर उन दोनों की दोस्ती हुई. समय बीता तो दोनों की दोस्ती गहरी होती गई.

दोनों ने एकदूसरे के घर पर आनाजाना शुरू कर दिया. लेकिन इसी दौरान तसलीम और शेर अली शाह की पत्नी नजमा बानो के बीच जानपहचान बढ़ती गई.

शेर अली जब घर पर नहीं होता था, उस समय तसलीम उस के घर पर आताजाता था. लेकिन दोनों के बीच बन रहे इस नए रिश्ते की डोर ज्यादा दिनों तक छिपी नहीं रही. शेर अली को जल्द ही उस की पत्नी और तसलीम के बीच पनप रहे रिश्ते की खबर लग गई.

तभी से उन की दोस्ती में दरार पैदा हो गई और शेर अली ने तसलीम को धमकी देते हुए अपने घर न आने की हिदायत दी. लेकिन शेर अली के रोकने से उन दोनों के बीच रिश्ते खत्म नहीं हुए.

नजमा के लिए तसलीम का प्यार परवान चढ़ता जा रहा था. वह नजमा के लिए कुछ भी करने को तैयार था. लेकिन वहीं दूसरी ओर शेर अली ने नजमा पर पाबंदियां बढ़ा दीं. वह जहां कहीं भी जाता, नजमा को अपने साथ ले कर जाने लगा. यहां तक कि शेर अली काम पर भी नजमा को साथ ले कर जाने लगा.

यह बात तसलीम को बहुत खलने लगी. वह नजमा के साथ अपनी पूरी जिंदगी गुजारना चाहता था, लेकिन शेर अली द्वारा नजमा पर पाबंदियों से वह बेहद परेशान रहने लगा.

इसी से छुटकारा पाने के लिए और नजमा को अपने साथ उत्तर प्रदेश अपने गांव भगा ले जाने के लिए उस ने शेर अली को रास्ते से हटाने की योजना बनाई. उस ने सलमान जोकि शेर अली को जानता था, उस के जरिए 19 जनवरी, 2022 की रात को शेर अली को फोन करवाया.

सलमान ने शेर अली से बात कर कहा कि तसलीम उस के जीवन से हमेशा के लिए निकल जाएगा, बस एक बार वो उस से मिलना चाहता है. आखिरी बार मिलने के लिए शेर अली सलमान की बात मान गया और उस रात साढ़े 10 बजे रुपाला ब्रिज के नीचे पहुंच गया.

शेर अली के रुपाला ब्रिज के पास पहुंचते ही तसलीम, सलमान और उन के साथ एक और युवक चंदबाबू अंसारी तीनों ने मिल कर शेर अली पर हमला कर दिया.

वे अपने साथ लोहे की रौड ले कर आए थे, जिस से उन्होंने शेर अली के सिर, गरदन और चेहरे पर जोरदार वार किए.

सिर पर चोट और ज्यादा खून बह जाने की वजह से शेर अली की मौत हो गई. जिस के बाद वह शेर अली की लाश को प्लास्टिक की सफेद रंग की बोरी में डाल कर वहां से भाग निकले.

सलमान को पुलिस के पास जा कर हत्या का चश्मदीद बनने का प्लान भी तसलीम ने ही दिया था. वह पुलिस की तफ्तीश को भटकाना चाहता था.

उसे यकीन था कि कुछ ही दिनों में यह मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा, जिस के बाद कोई उन के पीछे नहीं पड़ेगा. लेकिन अफसोस उन का यह प्लान असफल रहा.

सलमान के सच उगलने के बाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. साथ ही 48 घंटों के भीतर ही सलमान की निशानदेही पर बाकी दोनों आरोपियों को भिवंडी में एक कालोनी से गिरफ्तार कर लिया.

सभी आरोपियों से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पैसा बना देता है अपनों का दुश्मन: जब खूनी बनी शादीशुदा प्रेमिका

उस रात वह मेरा इंतजार करती रही. मन में चल रही उल  झन व सवालों ने बेचैनी को और भी बढ़ा दिया था. मन में एक ही सवाल था कि क्या हुआ होगा. आखिरकार चैन आ गया, जब प्रेमी का फोन ही आ गया. उस की बातों को सुन कर यही लगा कि अपने पति की यादों से बाहर निकल जाएगी और वह  अपने प्रेमी के साथ एक प्यार भरी जिंदगी बिताने का सपना देख कर सो गई. लेकिन यह सपना एक चुटकी में ही ढेर हो जाएगा, इस बात का अंदाजा नहीं था. एक ऐसा प्यार, जिस ने सिर्फ इनसानियत का खून नहीं किया, बल्कि एक परिवार को भी तबाह कर दिया.

पहली मुलाकात

बात साल 2013 की है. मोहनदास की 34 वर्षीय पत्नी सीमा केरल के मुख्य शहर कोच्चि में एक कंपनी में काम करती थी. वहीं उसी औफिस टौवर में गिरीश एक गारमेंट शौप में अकाउंटैंट की जौब करता था.

एक ही बिल्डिंग में काम करने की वजह से सीमा और गिरीश की मुलाकात हो गई और यह सिलसिला चलता रहा. उन की दोस्ती प्यार का रूप ले चुकी थी. वे दोनों आपस में एकदूसरे से अपने सुखदुख बांटने लगे.

सीमा ने गिरीश को अपने कर्ज के बारे में बताया. सीमा ने पैसे की मदद करने के लिए ही गिरीश से दोस्ती की थी. गिरीश ने कई बार सीमा की मांग के मुताबिक उस की मद्द करने के लिए पैसा भी दिया और कभी भी यह दी गई रकम वापस नहीं मांगी.

इस तरह सीमा की कई जरूरतें पूरी होने लगीं. गिरीश के बारे में सीमा ने मोहनदास को बताया तो था, लेकिन वह असलियत से फिर भी अनजान ही था. मोहनदास को इन रिश्ते में कोई छिपी बात महसूस नहीं हुई.

दोस्त बन कर गिरीश वैकेम से एर्नाकुलम तक  हर दिन बाइक से आताजाता था. सीमा से रिश्ता बनाए रखने के लिए गिरीश और पैसा कमाने में लगा रहता और इस के लिए उस ने अपने दफ्तर में हेराफेरी भी शुरू कर दी.

अकाउंटैंट होने की वजह से गिरीश बहुत जल्दी लाखों रुपए की हेरफेर करने में सफल भी हुआ और उस ने वह सारे पैसे सीमा के अकाउंट में ट्रांसफर कर दिए.

शुरुआत में सीमा इस बात से अनजान थी कि गिरीश के पास यह पैसे कहां से आ रहे हैं. मोहनदास ने भी कभी नहीं पूछा. इन लोगों ने 17 लाख रुपए की गाड़ी भी खरीद ली थी.

अचानक से जिंदगी में आया इतना बदलाव देख कर जब रिश्तेदारों को भी शक हुआ, तब सीमा और मोहनदास ने अपने रिएल ऐस्टेट के धंधे में मुनाफा बताया.

कभी न बिछुड़ने वाले प्रेमी

गिरीश का सीमा को पैसे देने का सिलसिला जारी रहा. एक बार मोहदनदास अपने दोस्तों व परिवार के सदस्यों के साथ घूमने चले गए. इसी बीच सीमा और गिरीश के बीच निकटता ज्यादा बढ़ गई. एकसाथ बाहर जाना, खाना खाना और वह सीमा के घर भी जाने लगा.

गिरीश का सीमा के प्रति पागलपन का सा प्यार था. 6 साल तक का लंबा परिचय कभी न टूटने वाले रिश्ते में बदल गया था. इतने सालों तक गिरीश सीमा को तकरीबन 1 करोड़ रुपए तक दे चुका था, जो उस ने कंपनी के अकाउंट से चुराए थे.

गिरीश के औफिस वालों को भी उस की बेईमानी का पता चलने लगा. कंपनी उस से अपने सारे पैसे वापस मांगने लगी.

हत्या की योजना

सीमा गिरीश की असलियत से वाकिफ हो गई थी, लेकिन वह गिरीश को सारे पैसे वापस न करने की हालत में थी. पति के सामने कोई भी माली हेराफेरी मुमकिन नहीं थी. वे दोनों गुरुवायूर में कमरा ले कर समस्याओं के समाधान सोचते रहे.

इसी बीच सीमा ने बताया कि मोहनदास के तमिलनाडु में ट्रांसफर होने की योजना बन रही है. अब हम सब वहीं चले जाएंगे.

सीमा की यह बात सुन कर गिरीश को लगा कि भविष्य में वह फिर सीमा से कभी भी नहीं मिल पाएगा. सीमा को दिया हुआ सारा पैसा व रिश्ता खत्म होते सोच गिरीश डर गया. फिर इन दोनों ने मिल कर मोहनदास की हत्या की योजना बनाई.

रची साजिश

सीमा और गिरीश दोनों ने मिल कर मोहनदास की हत्या का दिन 2 दिसंबर तय किया. जिस दिन सीमा के भाई के बच्चों का जन्मदिन होता है. मोहनदास भी वहीं पार्टी में गया हुआ था और दोपहर तक वापस लौट आया. शाम को साढ़े 7 बजे वह कहीं जाने की तैयारी में था. इस मौके का उन दोनों ने भरपूर फायदा उठाया.

7 बज कर 40 मिनट पर सीमा ने मोहनदास से यह कहा कि गिरीश अमृत अस्पताल में एक दोस्त से मिलने गया है. वापस लौटते समय पालम जंक्शन पर वह आप का इंतजार करेगा. उसे बाइक में लिफ्ट दे कर किसी सुविधाजनक जगह पर उतार देना.

मोहनदास के घर से निकलते ही सीमा ने गिरीश को फोन कर दिया. मोहनदास पालम जंक्शन पर पहुंच गया, तो उस ने वहां गिरीश को खड़े देखा. वह बाइक पर सवार हो गया और उस ने मोहनदास को फाक्ट आनवातिल जंक्शन जैसी वीरान जगह पर गाड़ी रोकने को कहा.

फिर गिरीश ने एक तौलए पर क्लोरोफोम डाल कर उस की नाक पर लगाने की कोशिश की. मोहनदास ने भागने की कोशिश की, तो गिरीश ने उसे पीछे से पकड़ कर चाकू मार दिया. गहरे घाव और लगातार खून बहने की वजह से मोहनदास की मौके पर ही मौत हो गई. चाकू मारने के बाद गिरीश कमलेश्वरी की ओर चला गया, जहां उस की बाइक थी.

पुलिस की जांचपड़ताल

8 बजे के करीब मौका ए वारदात पर लोगों की भीड़ जमा हो गई थी. मोहनदास की हत्या जहां उस की बाइक खड़ी थी वहां से कुछ ही दूरी पर की गई थी. मौका ए वारदात पर एक चश्मा पाया गया. उस के गले की चेन के 2 टुकड़े हो चुके थे. 40,000 रुपए का कीमती मोबाइल फोन व पर्स से 30,000 रुपए गायब थे, जिसे गिरीश ने निकाल लिया था, क्योंकि वह यह साबित करना चाहता था कि हत्या सामान की लूट व मार से हुई है. लेकिन पोस्टमार्टम की रिपोर्ट में यह बात सामने आई कि मोहनदास की हत्या की गई है.

हत्या के बाद गिरीश ने सीमा को बताने के लिए फोन किया था. मोहनदास के सभी परिचितों के नंबर पर जांच विभाग द्वारा जांच की गई. जब पुलिस द्वारा सीमा जहां नौकरी करती थी, वहां से जांचपड़ताल की गई तो पता चला कि वह काम पर 17 नवंबर से ही नहीं गई थी. सीमा ने वहां तबीयत खराब होने व अस्पताल जाने का कारण बताया था.

सीमा के मोबाइल पर ज्यादातर गिरीश के ही फोन देख पुलिस ने उस के औफिस में जा कर पूछताछ की, तो वहां पता चला कि पैसे की हेराफेरी करने की वजह से वह यहां पर नहीं आ रहा है, तभी दोनों के संबंध सामने आए.

कोच्चि टाउन नौर्थ पुलिस सबइंस्पैक्टर एस. जयशंकर का कहना है, ‘‘ये दोनों जहां काम कर रहे थे, वहां के लोग इन के रिश्ते से अनजान थे. पुलिस ने गिरीश के घर के आसपास जांच की. पुलिस ने जब सीमा से पूछताछ की, तो उस के जवाब व बरताव में घबराहट महसूस हुई. इतना ही नहीं, मोहनदास के रिश्तेदारों को भी सीमा पर शक होने लगा था. सख्ती से पूछताछ करने पर गिरीश का हत्या में हाथ सामने आया. घटना के 10 दिनों के अंदर ही मुजरिम सामने आ गए.’’

पछतावा नहीं

पकड़े जाने के बाद भी बिना किसी शर्म व डर के दोनों सामने खड़े थे. दोनों को घटनास्थल पर ले जाया गया, तो गिरीश ने फेंके हुए विदेशी चाकू, जिस से मोहनदास की हत्या की थी, को   झुरमुट से ढूंढ़ निकाला. फोरैंसिक विभाग द्वारा की गई जांच में बाइक पर खून के धब्बे भी पाए गए.

सीमा और गिरीश ने सोचा था कि इस हत्या के बारे में कभी भी किसी को पता नहीं चलेगा, पर दोनों के फोन की काल हिस्ट्री ने इन का जुर्म उजागर कर दिया. मोहनदास व सीमा के बच्चे अब रिश्तेदारों के सहारे ही पलने लगे.

प्यार और पैसे का चोलीदामन का साथ है. हर प्रेमिका चाहती है कि उस का प्रेमी उस पर खर्च करे, चाहे कहीं से भी पैसा आए. अगर प्रेमिका शादीशुदा है तो वह बहुत लालची भी हो जाती है और अपनी कामुक अदाओं का भी इस्तेमाल करती है. आमतौर पर पति चुप ही रहते हैं, क्योंकि पत्नी के साथ पैसे का फायदा उसे भी मिलता है. सोने के अंडे देने वाली पत्नी किसे नहीं भाती?

जयादेवन आर.      

सत्यकथा: सविता के जिस्म की आग ने ही ले ली जान

27 फरवरी, 2022 की सुबह करीब 9 बजे ग्वालियर के थाना जनकगंज के थानाप्रभारी संतोष यादव अपने कक्ष में बैठे थे. तभी एक युवक उन के पास आया. उस के चेहरे पर परेशानी के भाव और आंखों में चिंता झलक रही थी. वह बेहद घबराया हुआ लग रहा था. उस युवक की शक्ल देख कर ही लगा कि वह किसी भारी मुसीबत में है.

उन्होंने उसे बैठा कर उस की परेशानी पूछी तो उस ने रोते हुए बताया, ‘‘साहब, बीती रात किसी ने मेरी बहन सविता की गुप्तेश्वर पहाड़ी के जंगल में गला रेत कर हत्या कर दी.’’

‘‘क्या नाम है तुम्हारा? तुम कहां रहते हो और क्या काम करते हो?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

युवक ने रोते हुए बताया, ‘‘साहब, मेरा नाम परमाल बंजारा है और मैं काली माता मंदिर के सामने गोल पहाडि़या इलाके में बंजारों की बस्ती में रहता हूं. मैं लक्ष्मीगंज सब्जीमंडी में पल्लेदारी का काम करता हूं.’’

‘‘अपनी बहन के बारे में पूरी बात विस्तार से बताओ, वह घर से बाहर गुप्तेश्वर पहाड़ी के जंगल में कब गई थी और वह करती क्या थी?’’

‘‘साहब, उस का नाम सविता बंजारा था. उस के पति प्रकाश बंजारा की 10 साल पहले बिलौआ में स्थित महाकालेश्वर स्टोन क्रैशर वालों की खदान में काम करते समय हुए ब्लास्ट में मौत हो गई थी. पति की अचानक हुई मौत का सविता को काफी सदमा लगा था. पति की मौत के बाद उस के देवर ने उसे रख लिया था.

‘‘लेकिन वह आपराधिक प्रवृत्ति का है. एक केस में उसे जेल जाना पड़ा. उस के जेल जाते ही ससुराल वाले उसे ताने देने लगे थे कि वह डायन है, उस ने पति को डंस लिया. ससुराल में दिए जाने वाले तानों से जब वह बहुत ज्यादा दुखी रहने लगी तो फिर एक दिन अपनी ससुराल को हमेशा के लिए छोड़ बेटे रवि और बेटी खुशी को साथ ले कर मायके में ग्वालियर आ गई और अपना मकान बनवा कर रहने लगी थी.

‘‘साहब, धीरेधीरे उस का जीवन सामान्य होता जा रहा था. हालांकि उस की माली हालत कोई खास नहीं थी, किसी तरह मेहनतमजदूरी कर के अपने बच्चों को पाल रही थी. वह मेरे साथ लक्ष्मीगंज सब्जी मंडी में भी काम पर जाने लगी थी.

‘‘हम लोगों को इस बात की चिंता सताने लगी कि विधवा होने के कारण बहन का पहाड़ सा जीवन कैसे कटेगा. हम उस के लिए बिरादरी में ही लड़का तलाशने में लगे हुए थे. इसी बीच यह घटना घट गई.’’

थानाप्रभारी ने परमाल से पूछा, ‘‘तुम्हें सविता की हत्या की जानकारी कैसे मिली?’’

‘‘साहब, मैं वहां पर नहीं गया था. सुबह होते ही मेरी भतीजी सपना नित्यक्रिया के लिए जंगल में गई थी. उस ने ही सुबहसुबह यह खबर दी. हत्या की खबर सुन कर घर में रोनाधोना शुरू हो गया तो पड़ोसी भी हमारे घर पर जमा हो गए. इस के बाद जब पहाड़ी पर पहुंचे तो वहां सविता की खून में सनी लाश झाडि़यों में पड़ी मिली.’’

कत्ल की सूचना मिलते ही थानाप्रभारी संतोष यादव तुरंत सविता के भाई परमाल बंजारा को साथ ले कर घटनास्थल की तरफ निकल गए.

पुलिस के पहुंचने तक घटनास्थल पर काफी भीड़ जमा हो चुकी थी. पुलिस ने लाश का निरीक्षण किया. मृतका की उम्र 35 साल के आसपास थी और वह सलवारसूट पहने हुए थी.

उस का गला किसी धारदार हथियार से रेता हुआ था. थानाप्रभारी की सूचना पर फोरैंसिक और डौग स्क्वायड  की टीमें भी घटनास्थल पर पहुंच गईं.

फोरैंसिक टीम का काम खत्म हो गया तो खबर पा कर एसपी अमित सांघी, एएसपी (सिटी पश्चिम) सत्येंद्र सिंह तोमर, एसपी (सिटी लश्कर) आत्माराम शर्मा भी मौकाएवारदात पर पहुंच गए थे.

इन पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल एवं लाश का निरीक्षण किया. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल और मृतका की लाश का अवलोकन करने के बाद अनुमान लगाया कि हत्यारा मृतका का कोई करीबी हो सकता है. इस की कुछ खास वजह भी थी जैसे कि सुनसान जगह पर रात के वक्त कोई क्यों जाएगा.

आसपड़ोस के किसी भी व्यक्ति को इस हत्या के बारे में सुबह होने तक भी बिलकुल पता नहीं चल सका था. घटनास्थल पर किसी को आतेजाते भी नहीं देखा गया था.

पुलिस अधिकारियों ने परमाल बंजारा से पूछा, ‘‘तुम्हें किसी पर संदेह है?’’

कुछ पल के लिए खामोश रहने के बाद उस ने शून्य में ताकते हुए कहा, ‘‘नहीं साहब.’’

‘‘तुम आखिरी बार सविता से उस के घर पर कब मिले थे?’’

‘‘साहब, 26 फरवरी की  रात 10 बजे,’’ परमाल ने बिलखते हुए कहा.

घटनास्थल की जरूरी काररवाई निपटा कर थानाप्रभारी ने सविता की लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी.

प्राथमिक काररवाई के बाद थानाप्रभारी ने मोहल्ले के कुछ लोगों से बात की तो पता चला कि शफीकुल से सविता के गहरे ताल्लुकात थे. दोनों के बीच प्रेम प्रसंग था, वह सविता के परिवार का खर्च भी उठाता था.

इस महत्त्वपूर्ण जानकारी से थानाप्रभारी को पक्का यकीन हो गया कि सविता की हत्या अवैध संबंधों के कारण ही हुई होगी. हकीकत जानने के लिए थानाप्रभारी ने उसी दिन सविता और शफीकुल  के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई.

काल डिटेल्स देख कर पुलिस हैरान रह गई. उस से पता चला कि उन दोनों की एकदूसरे से अकसर बातें होती रहती थीं. इस घटना से पहले भी दोनों की बातें हुई थीं. पुलिस उस वक्त और ज्यादा चौंकी, जब शफीकुल के मोबाइल की लोकेशन रात के 11 बजे गुप्तेश्वर पहाड़ी के जंगल की मिली.

इस का मतलब हत्या वाली रात वह गुप्तेश्वर पहाड़ी के जंगल में ही था. पुलिस के शक की सुई उसी पर जा कर ठहर गई. पुलिस टीम ने आरोपी के बिलौआ, ग्वालियर में स्थित घर पर दबिश डाली तो वह अपने  घर से नदारद मिला, जिस से पुलिस का शक और बढ़ गया. उस की तलाश के लिए पुलिस ने अपने मुखबिरों को अलर्ट कर दिया. तब एक मुखबिर ने आरोपी शफीकुल के बारे में एक महत्त्वपूर्ण जानकारी थानाप्रभारी को दी.

इस के बाद थानाप्रभारी अपनी टीम के साथ मुखबिर द्वारा बताए स्थान बिजली घर रोड गोल पहाडि़या पर पहुंच गए. वहां से उन्होंने शफीकुल को हिरासत में ले लिया.

पुलिस को देखते ही शफीकुल की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई थी. उस ने बिना किसी हीलहुज्जत के अपना अपराध स्वीकार करते हुए सविता की हत्या के पीछे की सारी सच्चाई बयां कर दी.

पुलिस ने शफीकुल की निशानदेही पर खून से सने कपड़े और हत्या में प्रयुक्त उस्तरा भी बरामद कर लिया.

शफीकुल पश्चिम बंगाल का रहने वाला था और 14 साल पहले वहां से भाग कर ग्वालियर के कस्बा बिलौआ आया था. वह सविता के पति प्रकाश के साथ महाकालेश्वर स्टोन क्रेशर की खदान में काम करता था, इसलिए प्रकाश का अच्छा दोस्त बन गया था.

प्रकाश की मौत के बाद शफीकुल ने प्रकाश के बच्चों और पत्नी सविता की खैरखबर लेने के बहाने नजदीकी बढ़ा ली और काफी देर तक सविता के बच्चों से बतियाता रहता था. उस की बातचीत का यह सिलसिला तभी टूटता, जब सविता उस के लिए चाय बना कर ले आती.

एक दिन सविता ने चाय की प्याली उस के हाथ में थमाते हुए मुसकरा कर कहा, ‘‘शफीकुल भाई, क्या आप सिर्फ बच्चों से ही बतियाते रहोगे? हम से बात नहीं करोगे?’’

‘‘क्यों मजाक कर रही हो भाभी, अगर आप को सच में मुझ से बात करनी होती तो इतनी दूरदूर न रहती,’’ शफीकुल ने सविता को ऊपर से नीचे तक गहरी नजरों से देखते हुए जवाब दिया.

शफीकुल का जवाब सुन सविता के चेहरे पर दिलकश मुसकान दौड़ गई. उस की निगाहें शफीकुल की चौड़ी छाती और बलिष्ठ भुजाओं का मुआयना करने लगीं, क्योंकि पति की मौत के बाद तन्हा जिंदगी उसे उबाऊ लगने लगी थी. दिन तो मंडी में काम में कट जाता था पर रातें कटनी मुश्किल थीं.

महीनों से अतृप्त सविता की देह समुद्री ज्वार की तरह ठाठे मारमार कर शफीकुल से संसर्ग करने को उकसाने लगी. सविता सोचने लगी कि शफीकुल सचमुच कुंवारा और एकदम जिंदादिल मर्द है. उस की बाहों में अलग ही आनंद आएगा.

अभी सविता यह सब सोच ही रही थी कि शफीकुल ने चारपाई से उठते हुए कहा, ‘‘अच्छा भाभी, अब मैं चलता हूं.’’

सविता तुरंत बोल पड़ी, ‘‘शफीकुल, कल कुछ जल्दी आना, तुम्हारे देर से आने की वजह से बच्चों के सामने मुझे तुम से बात करने का मौका ही नहीं मिलता.’’

सविता ने जिस अदा और अंदाज से यह बात कही, उस से शफीकुल के दिल में कुछकुछ होने लगा. वह मुसकराते हुए अपनी मोटरसाइकिल पर सवार हो कर अपने घर चला गया.

उस दिन के बाद शफीकुल नियमित रूप से बच्चों से मिलने के बहाने सविता के घर आने लगा. शफीकुल की जाति ही नहीं धर्म भी अलग था, इस के बावजूद सविता ने उस में ऐसा न जाने क्या देखा कि उस का मन उस पर रीझ गया.

नियमित रूप से सविता के घर इस आवाजाही से जहां सविता के दोनों बच्चे उस से काफी घुलमिल गए थे, वहीं उसे सविता पर डोरे डालने का भरपूर मौका मिल गया.

2 बच्चों की मां होने के बाद भी सविता के शरीर में कसाव था, ऊपर से वह बनसंवर कर रहती  थी.

शफीकुल ने पहले सविता से हंसीमजाक शुरू की, फिर थोड़ीबहुत शारीरिक छेड़खानी भी करने लगा. लेकिन सविता को इतने से संतोष नहीं हुआ. वह चाहती थी कि शफीकुल और आगे बढ़े.

संकोच और डर की वजह से शफीकुल ज्यादा आगे नहीं बढ़ पा रहा था तो सविता ने खुद ही पहल करने का फैसला ले लिया. एक दिन ऐसा भी आया, जब दोपहर को शफीकुल सविता के  घर जा पहुंचा. दरवाजे पर पहुंच कर हलकी सी दस्तक दी और हौले से दरवाजा धकेला. दरवाजा खुद ही अंदर की तरफ खुल गया.

उस वक्त दोनों बच्चे स्कूल गए हुए थे. दरवाजे से ही उस ने आवाज दी, ‘‘भाभी, कहां हो?’’

सविता भीतर चारपाई पर लेटी हुई थी. शफीकुल की आवाज सुन कर वह बोली, ‘‘मैं भीतर वाले कमरे में हूं. दरवाजे की कुंडी बंद कर के यहीं चले आओ. दरवाजा ठीक से बंद कर देना, वरना बिल्ली चौके में घुस जाएगी और सारा दूध पी जाएगी. आज मेरी तबीयत कुछ खराब है.’’

शफीकुल ने दरवाजा बंद कर के कुंडी लगा दी और सीधे भीतर वाले कमरे में जा पहुंचा. उस ने देखा सविता अस्तव्यस्त लेटी हुई थी. उस की साड़ी, पेटीकोट जांघ तक सरका हुआ था. ब्लाउज के ऊपरी हुक भी खुले हुए थे. बेताब हुस्न अपने जलवे दिखा रहा था.

सविता का उघड़ा बदन देख कर उत्तेजना से शफीकुल का हलक सूखने लगा. बड़ी मुश्किल से थूक निगल कर वह बोला, ‘‘भाभी, कल तो तुम बिलकुल ठीक थी, फिर अचानक तुम्हारी तबीयत कैसे खराब हो गई?’’

कह कर शफीकुल चारपाई के सिरहाने बैठ कर सविता के माथे पर हाथ रख बोला, ‘‘भाभी तुम्हें बुखार तो नहीं है, फिर क्या तकलीफ है?’’

‘‘बुखार तो बदन में चढ़ा हुआ है, पर तुम्हें एहसास नहीं हो रहा,’’ कहते हुए सविता ने शफीकुल का हाथ थाम लिया. फिर उसे हौलेहौले सहलाने लगी.

अब उस का इरादा शफीकुल की समझ में आने लगा. सविता उस का हाथ अपने वक्ष के ऊपर रखते हुए बोली, ‘‘अंदर हाथ डाल कर तो देखो, तब तुम्हें पता चलेगा कितना बुखार चढ़ा हुआ है.’’

‘‘भाभी, अभी सारा बुखार उतार देता हूं, क्यों परेशान हो रही हो.’’ कहते हुए उस ने सविता के ब्लाउज के बाकी हुक भी खोल दिए.

सविता के सुडौल वक्ष अब पूरी तरह आजाद हो चुके थे. शफीकुल ने उन्हें हाथों में भर कर आहिस्ताआहिस्ता दबाना शुरू किया तो सविता को भी मजा आने लगा.

जिस्म की आग ने सविता को इतना झुलसा रखा था कि वह सारी लोकलाज, मानमर्यादा भूल गई थी.

सविता से चारपाई पर लिपटा शफीकुल धीरेधीरे मदहोश हो रहा था, उत्तेजना से उस का भी जिस्म आग सा तप रहा था. सविता के वक्ष का मर्दन करतेकरते उस ने फुसफुसा कर पूछा, ‘‘भाभी, बुखार कुछ कम हुआ?’’

‘‘हां,’’ सविता ने स्वीकारते हुए कहा, ‘‘मुआ छाती से नीचे उतर गया है.’’

‘‘चिंता मत करो भाभी,’’ शफीकुल उस की साड़ी पलटते हुए बोला, ‘‘मुझे मालूम है कि छाती का ताप जब नीचे उतर जाए तो उसे कैसे कम किया जाता है.’’

कुंवारेपन से उस ने ऐसे ही ठोस जवाब की तमन्ना की थी. शफीकुल उस की कसौटी पर एकदम खरा उतरा.

शफीकुल सविता से 10 साल छोटा था, लेकिन उस का गठीला बदन सविता को भा गया, उस ने अपनी मर्दानगी के ऐसेऐसे जौहर दिखाए कि सविता की कलीकली खिल गई.

अवैध संबंधों की राह एक मर्तबा खुली तो शफीकुल और सविता अकसर वासना के कुंड में गोते लगाने लगे. सविता अब हरदम खिलीखिली रहने लगी थी.

इसी तरह महीनों बीत गए, उन दोनों के अवैध संबंधों की किसी को भनक तक नहीं लगी. शफीकुल सविता के सान्निध्य में मस्त था. उधर शफीकुल ने सविता के दिल में अपने लिए जगह बना ली, सविता शफीकुल की ऐसी दीवानी हुई कि सुबह से शाम तक उसी के खयालों में खोई रहने लगी.

सविता अपने घर में एक बेटी और एक बेटे के साथ रहती थी. उसे रोकनेटोकने वाला कोई न होने की वजह से वह पूरी तरह से स्वच्छंद हो गई थी.

उसे अपने प्रेमी को घर में बुलाने के लिए किसी मौके की जरूरत नहीं रहती थी. जब भी दोनों का जिस्म वासना की आग मे दहकने लगता तो दोनों अपनी हसरतें पूरी कर लेते थे.

वक्त गुजरता रहा, प्रेमी के साथ मौजमस्ती करते 9 साल बीत गए. इन 9 सालों में सविता और शफीकुल खूब खुल कर खेले. अवैध संबंध छिपते कहां हैं सविता और शफीकुल के साथ भी ऐसा ही हुआ.

बंजारा बस्ती वालों को ही नहीं, रिश्तेदारों को भी सविता और शफीकुल के नाजायज रिश्तों की जानकारी हो गई, इस के बावजूद भी दोनों ने किसी की परवाह नहीं की और पापलीला करते रहे.

सविता के बेटे के जन्मदिन के मौके पर शफीकुल ने सविता को बाजार ले जा कर जम कर खरीदारी भी कराई थी.

बाजार से सामान खरीद कर दोनों जैसे ही घर वापस आए, सविता का कोई जानपहचान वाला उस से मिलने आ गया. उसे देख कर शफीकुल का माथा ठनका.

उसे सविता के साथ बातचीत में मशगूल होते देख शफीकुल उस के घर से अपने घर बिलौआ वापस लौट गया था. उसे शक हो गया कि यह जरूर सविता का कोई यार ही होगा. अपने घर पहुंच कर उस ने धोखेबाज सविता को ठिकाने लगाने की योजना बना ली थी.

दरअसल, शफीकुल के दिमाग में शक का कीड़ा घर कर गया था. वह अपनी प्रेमिका सविता के चरित्र पर शक करने लगा था. उसे शक हो गया कि सविता के किसी और युवक के साथ भी संबंध हैं. शफीकुल के शक्की स्वभाव ने उसे शैतान बना दिया था.

26 फरवरी, 2022 को जब उसे लगा कि सविता के दोनों बच्चे सोने चले गए होंगे तो उस ने अपनी योजनानुसार रात 11 बजे सविता को फोन कर उसे बात करने के बहाने गुप्तेश्वर पहाड़ी के जंगल में बुलाया.

जैसे ही सविता अपने घर से शौच के बहाने शफीकुल की बताई जगह पर पहुंची, हैवान बने शफीकुल ने अपनी प्रेमिका पर जरा भी दया न दिखाते हुए उस का उस्तरे से गला रेत कर उसे मौत के घाट उतार दिया.

इस के बाद जब शफीकुल को पूरी तरह इत्मीनान हो गया कि सविता मर चुकी है तो उस ने खून से सने हाथ और मुंह पर लगे खून के दागों को रास्ते में एक नल पर साफ किया और अपने घर जा कर बिस्तर पर लेट गया.

सवा 4 बजे उस ने उस्तरा और खून लगे अपने कपड़ों को साथ लिया और घर से ग्वालियर के लिए निकल पड़ा. यह संयोग ही था कि उसे आते हुए किसी ने नहीं देखा था. फिर ग्वालियर आ कर उस ने उस्तरा और कपड़े छिपा दिए. इस के बाद दिन निकलने का इंतजार करने लगा.

सुबह का उजाला होने पर वह सविता के घर से अपनी प्रेमिका की हत्या होने की सूचना मिलने का इंतजार करने लगा था. सूचना मिलते ही वह सविता के घर पहुंच कर दुखी होने का नाटक करने लगा.

वहां मौजूद शोकग्रस्त लोगों में से किसी को अंदाजा नहीं था कि शफीकुल इतना जघन्य अपराध भी कर सकता है. उस ने नाटक तो बहुत बढि़या किया था, लेकिन पुलिस के शिकंजे से बच नहीं सका.

जनकगंज थाने के प्रभारी संतोष यादव ने इस अंधे कत्ल को पहली तफ्तीश में ही 6 घंटे के भीतर कातिल के गिरेबान पर हाथ डाल कर सुलझा दिया.

सविता की हत्या का जुर्म शफीकुल कुबूल कर चुका था और पुलिस ने उस की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त उस्तरा और खून से सने कपड़े भी बरामद कर लिए थे.

थानाप्रभारी ने सविता के भाई परमाल बंजारा की तरफ से शफीकुल के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर अभियुक्त शफीकुल को न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

सविता के 10 और 14 वर्षीय दोनों बच्चों को उन के मामा परमाल बंजारा अपने घर ले गए थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

एक तरफा प्यार में जिंदा जल गई अंकिता: भाग 1

शाहरुख के खौफ से बेहद डरीसहमी अंकिता महीनों से तनाव में थी. गलीमोहल्ले से ले कर घर तक पीछा करने वाले शाहरुख के कड़वे, तीखे बोल मोबाइल फोन तक से जबतब कानों में गूंजने लगते थे. रात के अंतिम पहर में शाहरुख ने जो कदम उठाया, वह अमानवीय और रूह कंपा देने वाला अपराध था. पैट्रोल से जिंदा जलाई गई अंकिता ने अंतिम सांस लेते हुए कहा था, ‘‘जैसे मैं मर रही हूं, वैसी ही मौत उसे दी जाए.’’

झारखंड के दुमका में सोमवार 22 अगस्त, 2022 की सुबह अंकिता की आंखें सूर्योदय के बाद तब खुली थीं, जब बंद खिड़की की टूटी किवाड़ से सूर्य की किरणें सीधे उस के चेहरे पर पड़ने लगी थीं. बिस्तर छोड़ते ही उस की नजर खिड़की की टूटी किवाड़ पर गई, जिसे उस ने रात को सोने से पहले सहारा दे कर लगा दिया था.

कुछ सोच कर खिड़की के पास जा कर उसे देखते हुई बुदबुदाने लगी, ‘‘इसे आज ही बनवाने के लिए पापा से बोलना होगा. लेकिन पापा टूटने का कारण पूछेंगे, तब वह उन से क्या बोलेगी?’’

और फिर वह उस के टूटने के कारण को याद कर सिहर गई.

दरअसल, घर के पिछवाड़े की ओर आनेजाने की आम रास्ते की गली में खुलने वाली खिड़की की किवाड़ टूटी नहीं, बल्कि तोड़ी गई थी. उसे एक दिन पहले ही मोहल्ले के शाहरुख नाम के युवक ने ही तोड़ डाला था.

शाहरुख के रहनसहन, उद्दंड बातव्यवहार और मिजाज के साथ पढ़ाकू अंकिता के शांत सौम्य स्वभाव का कोई मेल नहीं था. वह झारखंड के मिश्रित समुदाय की आबादी वाले एक चर्चित शहर दुमका के जरुआडीह मोहल्ले में रहती थी. वहां हिंदू और मुसलमानों की मिलीजुली आबादी है.

उस के पिता संजीव सिंह एक बिसकुट कंपनी में सेल्समैन थे. मां की एक साल पहले मौत हो गई थी. घर में पिता, दादा और 12 साल के छोटे भाई हैं और बड़ी बहन की शादी हो चुकी है.

अंकिता सुंदर और अपने पारिवारिक संस्कारों में बंधी एक आज्ञाकारी क्षत्रिय समाज की लड़की थी. वह घर से बाहर ट्यूशन पढ़ने या किसी जरूरी काम के लिए ही निकलती थी. बाकी समय में घर में दादादादी और भाई के साथ समय बिताती थी. वह अपने करियर को ले कर भी चिंतित रहती थी. उस की तमन्ना आईपीएस बनने की थी.

शाहरुख उसी मोहल्ले में रहता था. उस की छवि एकदम से फिल्मी और मटरगश्ती करने वाले नवयुवक जैसी थी. वह खुद को बौलीवुड स्टार शाहरुख खान का हमशक्ल समझता था और उस जैसा पोज दे कर दोस्तों का मनोरंजन करता था.

वह दोस्तों के साथ ही सड़कोंगलियों में आतीजाती लड़कियों पर फब्तियां भी कसता रहता था. उन्हें टकटकी निगाह से निहारते हुए भद्दे कमेंट करने से भी बाज नहीं आता था.

वह लड़कियों के मोबाइल नंबर लेने की कोशिश में रहता था. सोशल साइटों पर दोस्ती करने और फोटो, वीडियो आदि शेयर किया करता था. तरहतरह के मजाकिया मीम्स बनाने में माहिर था.

उस ने अंकिता का भी मोबाइल नंबर हासिल कर लिया था. किसी भी लड़की को अकेली देख कर वह रोक लेता था और उस से बातें करने की कोशिश करना उस की बुरी आदतों में से एक थी.

कुछ महीने पहले उस ने एक बार ट्यूशन पढ़ने जा रही अंकिता को भी रास्ते में रोक लिया था. रोकते ही बोला, ‘‘तुम्हें अपनी सुंदरता पर बहुत घमंड है क्या? मैं क्या कम हैंडसम हूं?’’

अंकिता जवाब में कुछ नहीं बोली, लेकिन पीछे से स्कूटी पर आ रही सहेली ने उसे अपने साथ बैठा लिया था. उस के जाते ही पीछे से शाहरुख चिल्लाया, ‘‘देख लेना, तुम्हारा घमंड मैं एक दिन तोड़ दूंगा. प्यार करता हूं तुम से… कोई ऐरागैरा नहीं हूं मैं.’’

‘‘तू उस के बारे में अपने पापा से शिकायत क्यों नहीं करती? बड़ा बदतमीज है. मोहल्ले में रहता है इस का मतलब यह तो नहीं कि वह राह चलती लड़कियों को छेड़ेगा?’’ स्कूटी चला रही अंकिता की सहेली ने उस से कहा.

अंकिता जवाब में कुछ नहीं बोली. वह चुप रही. वह जानती थी कि शाहरुख उस के पीछे कई हफ्ते से पड़ा हुआ है. जब भी मिलता है, उस से प्यार करने का दावा करता है. अंकिता किसी न किसी बहाने से उस से बच कर निकल जाती थी.

उस रोज एकदम से उस का सामना हो गया था. हालांकि सहेली की बदौलत वह उस रोज भी बच गई थी.

उसी दिन जब अंकिता घर आई तब उस के मोबाइल पर वीडियो काल आया. उस ने रिसीव नहीं किया, कारण काल अनजाना था. फिर उस के वाट्सऐप मैसेज पर वायस मैसेज आया, ‘काल भले ही नहीं रिसीव करो, लेकिन वायस मैसेज सुन लो. मैं तुम्हें चाहता हूं तो चाहता हूं. मुझे तुम से प्यार करने से कोई नहीं रोक सकता. तुम भी नहीं.’ मुश्किल से 7 सेकेंडके शाहरुख के इस वायस मैसेज ने अंकिता को भीतर से झकझोर दिया था.

उस के दिमाग में खलबली मच गई थी, ‘शाहरुख मोहल्ले का आवारा किस्म का लड़का और मुसलिम. कोई क्या सोचेगा, उस के साथ संबंध के बारे में. बदनामी उस की ही होगी. लोग उसे ही मां के नहीं होने पर बदचलन लड़की बोलेंगे. और मोहल्ले वाले तो ऐसे ही हैं दूसरे की मजबूरियों और मुसीबतों में टांग अड़ाने की ताक में रहते हैं. बगैर सच जाने हुए टीकाटिप्पणी करने से पीछे नहीं हटते. बात का बतंगड़ बना देते हैं…’

सेक्स की सनक: क्या था सोफे में छिपाई लाश का राज

सत्यकथा

मुंबई से सटे ठाणे स्थित चर्चित कालोनी डोंबीवली में ओम साईं रेजीडेंसी की एक बिल्डिंग में किशोर शिंदे का परिवार 14 फरवरी की सुबह तक काफी खुशहाल जिंदगी गुजार रहा था.

सुबहसुबह शिंदे अपने औफिस जाने की तैयारी कर रहे थे. पत्नी सुप्रिया उन के लिए नाश्ता लगा चुकी थी.

नाश्ता कर निकलते समय जब सुप्रिया ने अपने पति शिंदे को लंच का टिफिन पकड़ाया, तब उन की नजर पत्नी के उतरे हुए चेहरे पर ठहर गई. उन्होंने पूछा, ‘‘क्या बात है सुप्रिया, तुम सुस्त दिख रही हो?’’

‘‘हां, आज मेरी तबीयत ठीक नहीं लग रही है.’’ सुप्रिया धीमी आवाज में बोली.

‘‘घर का काम ज्यादा करने की आज जरूरत नहीं है. तुम आराम कर लो, कपड़े मशीन में डाल कर छोड़ देना, ड्यूटी से आ कर चला दूंगा… रात को कपडे़ धुल जाएंगे,’’ शिंदे ने कहा.

‘‘लेकिन श्लोक स्कूल जा चुका है, दोपहर को उसे लाना होगा.’’ सुप्रिया बोली.

‘‘कोई बात नहीं, स्वाति को बोल देना वह उसे अपने बच्चों के साथ ही लेती आएगी.’’

‘‘ठीक है, वैसे एकडेढ़ घंटे की नींद ले लूंगी, तब ठीक हो जाएगा. सिर दर्द ही तो है,’’ सुप्रिया बोली.

‘‘ठीक है. कुछ खाना खा कर सिरदर्द की दवा ले लेना. मैं निकलता हूं,’’ कहते हुए शिंदे अपना बैग और टिफिन ले कर मुंबई के लिए निकल पड़े. पहले वह लोकल ट्रेन पकड़ कर चर्चगेट जाते, फिर उन्हें बस ले कर औफिस तक जाना होता था.

परिवार में सदस्य के नाम पर सुप्रिया और उन का 10 साल का बेटा श्लोक था. बेटे का स्कूल हाल में ही खुला था. उसे लाने के लिए दोपहर में सुप्रिया उस के स्कूल तक जाती थी.

शाम के करीब साढ़े 4 बजे स्वाति ने शिंदे को फोन कर पूछा कि सुप्रिया श्लोक को लेने स्कूल क्यों नहीं आई? इस पर शिंदे अनमने भाव से बोले, ‘‘हां, सुबह उस ने बताया था कि उस की तबीयत थोड़ी ठीक नहीं है, इसलिए नहीं गई होगी. श्लोक घर आ गया न?’’

‘‘हां श्लोक तो मेरे साथ आ गया है, लेकिन घर पर मां को नहीं पा कर मुझ से ही उस के बारे में पूछने आया था. मेरे घर पर ही नाश्ता किया और अभी श्लोक दोस्तों के साथ ग्राउंड में खेलने गया हुआ है,’’ स्वाति बोली.

‘‘सुप्रिया घर पर नहीं है? वह कहां गई होगी?’’ शिंदे चिंतित हो कर बोले.

‘‘यही पूछने के लिए तो मैं ने आप को फोन किया है. उस का फोन भी नहीं मिल रहा है, मैं घर जा कर भी देख चुकी हूं. घर का दरवाजा भी बंद है. श्लोक का स्कूल बैग भी बाहर बरामदे में पड़ा है. भाईसाहब, मुझे तो डर लग रहा है, आप जल्द आ जाइए.’’ स्वाति घबराहट भरी आवाज में बोली.

‘‘घर पर भी नहीं है. फिर कहां गई होगी? दवा वगैरह लाने या डाक्टर के पास तो नहीं गई? कहीं तबीयत ज्यादा तो नहीं बिगड़ गई उस की? अभी मैं उसे फोन करता हूं.’’ शिंदे बोले और तुरंत सुप्रिया को मोबाइल पर फोन करने के लिए स्वाति का काल डिसकनेक्ट कर दिया.

शिंदे ने सुप्रिया को फोन मिलाया. लेकिन उस का फोन बंद आ रहा था. शिंदे चिंतित हो गए. तब उन्होंने पड़ोसी दोस्त को घर जा कर सुप्रिया का पता करने को कहा.

दोस्त ने भी 5 मिनट में आ कर वही सब बताया जो स्वाति ने कहा था. शिंदे ने फटाफट औफिस का बचा काम निपटाया और शाम के 7 बजे तक घर आ गए.

घर का दरवाजा भीतर से बंद था. बेटा श्लोक ग्राउंड से खेल कर घर आ चुका था. बरामदे में कुछ पड़ोसी भी जमा थे. सुप्रिया बाहर जाने पर अकसर घर की चाबी अपने पड़ोसी के पास छोड़ जाती थी. लेकिन उस रोज सुप्रिया ने ऐसा नहीं किया था.

इसे ले कर एक सवाल सभी के मन में कुलबुला रहा था कि आखिर सुप्रिया कहां है? खैर, शिंदे ने अपने बैग से घर के इंटरलौक की एक्सट्रा चाबी से मेन दरवाजा खोला. अंदर कमरे में उन के साथ कई लोग दाखिल हुए. भीतर का माहौल सामान्य था. कमरे में लाइटें जल रही थीं.

कुछ पल वे कमरे में रुके. उन की आंखें सुप्रिया को तलाश रही थीं. उन्होंने अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से उस के बारे में पूछा. किसी ने भी सुप्रिया के बारे में कुछ भी बताने से इनकार कर दिया. यहां तक कि सभी ने कहा कि उन की उस रोज सुप्रिया से मुलाकात ही नहीं हुई थी.

शिंदे को मामला कुछ संदिग्ध लगा. वह अधिक समय गंवाए बगैर अपने खास दोस्तों के साथ डोंबीवली मानपाड़ा पुलिस थाने गए. थानाप्रभारी के पास जा कर उन्होंने सुप्रिया की गुमशुदगी की सूचना लिखवा दी.

इधर शिंदे के घर पर कुछ पड़ोसियों की नजर एक सोफे पर टिक गई, जो खिसका कर दोबारा उसी जगह पर सेट किए जाने जैसा दिख रहा था. ऐसा जमीन पर बने ताजा निशान से पता चल रहा था. लोगों को वह निशान कुछ संदिग्ध लगा.

वे यह नहीं समझ पाए कि सोफे को दीवार से सटा कर क्यों लगाया गया है, जबकि सुप्रिया इस के खिलाफ रहती थी. वह हमेशा दीवार पर निशान पड़ने से बचाने के लिए दीवार से थोड़ी दूरी बना कर रखती थी. जमीन पर भी कुछ निशान ऐसे बने हुए थे, जो अधूरी सफाई लगते थे.

पड़ोसियों में से एक ने सोफे को खींचने का प्रयास किया. वह भारी महसूस हुआ, खिसक नहीं पाया. जबकि वह बैड कम सोफा आसानी से खिसकाया जाने वाला था. सोफा ऊपर से गीला भी दिख रहा था. उसे 2 लोगों ने ताकत से जैसे ही खिसकाया, उस के नीचे का हिस्सा एक झटके में अपने आप बाहर की ओर निकल आया.

उसे देख कर सभी की आंखें फटी रह गईं. उस में सुप्रिया बेजान पड़ी थी. उसे सोफे में ठूंस कर डाला गया था. पैर मुड़े हुए थे. सिर आगे की ओर झुका और गरदन टेढ़ी थी. चेहरा आधा ही दिख रहा था.

इस की सूचना तुरंत पुलिस को दी गई. संयोग से शिंदे भी वहीं थे. पुलिस जिसे गुमशुदा के रूप में तलाश कर रही थी, उस के घर में ही मिलने की सूचना मिल गई थी. पुलिस टीम 10 मिनट में ही शिंदे को साथ ले कर आ गई.

पुलिस टीम में सीनियर इंसपेक्टर शेखर बागड़े, इंसपेक्टर अनिल पडवल, एपीआई मनीषा जोशी और अविनाश वनवे शामिल थे.

पुलिस के आला अधिकारियों की टीम के सामने सुप्रिया की लाश को सोफे से बाहर निकाला गया. उस के सिर पर चोट के निशान थे. मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया गया. मौके की प्रारंभिक काररवाई पूरी करने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई.

इस मामले की जानकारी एडिशनल पुलिस कमिश्नर (पूर्वी क्षेत्रीय संभाग) कल्याण के दत्तात्रेय कराले, डीसीपी सचिन गंजाल, और डोंबीवली डिवीजन के एसीपी जे.डी. मोरे को भी दे दी गई.

शिंदे और सभी पड़ोसियों समेत पुलिस के सामने कई सवाल खड़े हो चुके थे. उन में मुख्य थे कि सुप्रिया की हत्या किस ने की? उन की हत्या के पीछे कारण क्या हो सकता है? हत्यारा घर में घुस कर वारदत में सफल कैसे हो गया? क्या वह पहले से सुप्रिया को जानता था?

सुप्रिया की लाश को पोस्स्मार्टम के लिए भेजने से पहले की गई शुरुआती जांच में पुलिस ने हत्या के कुछ बिंदुओं को भी नोट किया.

प्राथमिक जांच रिपोर्ट के अनुसार पुलिस के सामने अनगिनत सवाल थे. सुप्रिया के सिर पर चोट के निशान थे. वहां खून फैला नजर आया था. गरदन नायलोन की रस्सी और केबल से टाइट बंधी हुई थी. गरदन पर छिलने जैसे जख्म के निशान थे.

इसी तरह पुलिस ने कमरे की जांच में पाया कि सोफे को अपनी जगह से हटाया गया था. सिर पर लगे चोट से निकले खून के निशान को फर्श से साफ कर दिया गया था. अपराधी ने वैसा एक भी निशान नहीं छोड़ा था, जिस से उस की पहचान हो सके.

घर का दरवाजा बंद होने का मतलब था कि अपराधी वारदात के बाद आराम से घर को बंद कर चला गया होगा. यानी अपराधी घर की बहुत सी जानकारियों से वाकिफ रहा होगा.

पुलिस ने जांच के सिलसिले में 37 वर्षीय किशोर शिंदे से भी पूछताछ की. उन्होंने बताया कि वे महाराष्ट्र में सतारा जिले के रहने वाले हैं. उन का पैतृक गांव सतारा जिले के कराड तहसील में है. उन की उसी जिले की सुप्रिया से 12 साल पहले शादी हुई थी.

वे पिछले साल ही इस रेजीडेंसी के फ्लैट में रहने आए थे. उन्होंने हाल में ही इसे खरीदा था. इस से पहले भी किशोर इसी इलाके में एक कमरे के मकान में किराए पर रहते थे.

इसी के साथ किशोर ने यह भी बताया कि उन का इलाके में किसी के साथ कभी कोई मतभेद नहीं हुआ था. उन की पत्नी शिक्षित महिला थी. उन का स्वभाव काफी मिलनसार था.

पासपड़ोस के लोगों के साथ अच्छे मधुर संबंध थे. किशोर को ड्यूटी से घर लौटते हुए अकसर देर हो जाती थी. घर का अधिकतर काम सुप्रिया ही संभालती थी.

पुलिस का ध्यान अपराधी के घर में घुसने की दिशा में जांच की ओर भी गया. कालोनी के परिसर में बिल्डिंग के पास लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज निकलवाई गई.

इसी दरम्यान बिल्डिंग के ही एक व्यक्ति ने पुलिस को सुप्रिया के घर के बाहर एक जोड़ी चप्पलें देखने की बात भी बताई. उस का कहना था कि शिंदे परिवार के लोग अपनी चप्पलें हमेशा स्टैंड पर रखते रहे हैं. स्टैंड भी बरामदे में एक कोने में था. बरामदे के बाहर चप्पल होने का मतलब किसी बाहरी व्यक्ति का घर में आना था.

पुलिस के लिए यह जानकारी महत्त्वपूर्ण थी कि शिंदे के घर के बाहर एक से डेढ़ बजे के बीच जो चप्पलें देखी गई थीं, उस की पहचान की जाए. इस की जानकारी देने वाले व्यक्ति को तरहतरह के चप्पलों की तसवीरें दिखाई गईं.

उस ने कुछ तसवीरें देख कर शिंदे के घर के बाहर पाए गई चप्पलों की पहचान कर ली. यह भी बताया कि ऐसी चप्पलें इस इलाके में एक व्यक्ति पहनता है.

इसी के साथ जांच कर रही पुलिस को ध्यान आया कि थाने में किशोर शिंदे के साथ सुप्रिया की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवाने आया युवक भी इसी तरह की चप्पलें पहने हुए था.

शिंदे से उस युवक के बारे में जानकारी ली गई. वह शिंदे की बिल्डिंग से कुछ दूरी पर रहने वाला विशाल था. उस का शिंदे के घर पहले भी 2-3 बार आना हुआ था.

उसे उसी वक्त पूछताछ के लिए थाने लाया गया. युवक ने अपना नाम बताने से पहले बताया कि उसी ने तो शिंदे को पत्नी के लापता होने की शिकायत लिखवाने के लिए कहा था.

पुलिस ने जब पूछा कि उसे कैसे पता था कि सुप्रिया लापता ही है? इस सवाल पर वह सकपका गया. उस के चेहरे के उड़ते रंग को देख कर पुलिस ने जबरदस्त डांट लगाई. उस का पूरा नामपता पूछा.

तब युवक ने अपना नाम विशाल भाऊ भाट बताया. उस के बाद सुप्रिया हत्याकांड के बारे में उस ने जो चौंकाने वाली कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली—

दरअसल, 27 वर्षीय विशाल ठाणे जिले में मुरवाड़ी तहसील के घावसड़ी गांव का रहने वाला था. उस के मातापिता और भाईबहन गांव में ही रहते थे. ओम रेजीडेंसी के इलाके में ही वह किराए का कमरा ले कर रहता था. उस की नवी मुंबई में प्राइवेट नौकरी थी.

उस की कई बुरी आदतों में मोहल्ले की लड़कियों और औरतों पर नजर गड़ाए रखना भी था. वह उन्हें कामुक निगाहों से निहारता रहता था. उन से संपर्क बनाने के मौके भी ढूंढने की कोशिश करता था.

उस ने पुलिस को बताया कि उस की नवी मुंबई में ही एक प्रेमिका भी थी, जो किसी दूसरे शहर की रहने वाली थी.

बीते 3 माह से वह अपने घर चली गई थी, उस के बाद से वह नहीं लौटी थी. उसे याद कर विशाल की रातें तन्हाई में गुजरती थीं. उस की कल्पनाओं में खोया रहता था.

इन्हीं दिनों उस की निगाह सुप्रिया पर पड़ी थी. वह कई दिनों से उस की दैनिक गतिविधियों पर नजर गड़ाए हुए था. विशाल सुप्रिया से अकेले में मिलने को व्याकुल हो गया था. एक दिन विशाल को तब मौका मिल गया, जब वह एक मैगजीन की दुकान पर पुरानी सरिता और गृहशोभा पत्रिकाओं की मांग कर रही थी.

दुकानदार के पास उस समय वे पत्रिकाएं नहीं थीं. संयोग से विशाल भी वहीं था. विशाल ने झट कहा कि पुरानी मैगजीन की दुकान के बारे में वह जानता है. नवी मुंबई में जहां वह काम करता है, उस के पास ही है. सुप्रिया ने उस की बात पर विश्वास कर के सरिता और गृहशोभा के उन अंकों की लिस्ट उसे दे दी, जिन की उसे जरूरत थी. और कहा कि इन में से जो भी मिल जाएं, वह ले आए. यह बात घटना के ठीक 2 दिन पहले की है.

विशाल 14 फरवरी, 2022 की दोपहर को किताबों का एक पैकेट ले कर सुप्रिया के घर आ गया. कालबेल की 3-4 आवाज सुन कर सुप्रिया ने दरवाजा खोला. वह अलसाई हुई थी. अपना दुपट्टा संभालती हुई उस ने पूछा, ‘‘आप?’’

बरामदे से बाहर विशाल खड़ा था. सुप्रिया चार कदम चलती हुई उस के पास आ गई.

‘‘यह लीजिए मैडम, आप की मैगजीन. सारी की सारी मिल गईं, जिन की आप को जरूरत थी,’’ विशाल ने हाथ में पकड़ा पैकेट सुप्रिया की ओर बढ़ा दिया.

‘‘थैंक्यू, आप मेरी वजह से कितने परेशान हुए.’’ विशाल के हाथ से पैकेट लेते हुए सुप्रिया बोली.

पैकेट ले कर अंदर जाने के लिए मुड़ते हुए विशाल से उस ने कहा, ‘‘आइए न, इस का पैसा भी तो देना होगा न.’’

विशाल बरामदे की सीढि़यां चढ़ कर अपनी चप्पलें उतार कर सुप्रिया के पीछे हो लिया. कुछ सेकेंड में सुप्रिया और विशाल हाल में थे. उन के हाल के गेट में आटोमेटिक लौक लगा हुआ था.

सुप्रिया ने विशाल को सोफे पर बैठने को कहा और उस के लिए पानी लाने चली गई. तुरंत ही पानी का गिलास भी ले आई. विशाल धीरेधीरे पानी पीने लगा और सुप्रिया मैगजीन का पैकेट खोलने लगी.

पैकेट के खुलते ही सुप्रिया चौंक पड़ी. उस के हाथ से कुछ पत्रिकाएं नीचे जमीन पर गिर गईं. विशाल कुटिलता से बोला, ‘‘क्यों पसंद नहीं आईं? इस से भी अच्छी किताबें वहां मिलती हैं.’’

‘‘बदतमीज, निकल जा यहां से. तूने क्या समझ लिया, मैं यह लाने को बोली थी?’’ सुप्रिया चीखती हुई बोली.

विशाल सरिता और गृहशोभा के बजाय अश्लील मैगजींस लाया था. उसे देखते ही सुप्रिया नाराज हो गई थी.

‘‘ज्यादा सतीसावित्री मत बनो. मैं सब जानता हूं, तुम जैसी सैक्स की भूखी औरतों के बारे में. नाटक करती हैं हरामजादी.’’ यह कहते हुए विशाल ने सुप्रिया का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया.

इस तरह विशाल के बदले हुए तेवर और अचानक हुए हमले से सुप्रिया अनजान थी. वह उस के ऊपर गिर पड़ी. पास रखा कांच का गिलास जमीन पर गिर कर टूट गया. कुछ पानी भी फैल गया.

सुप्रिया विशाल को धकेलती हुई उठ खड़ी हुई. जमीन पर बिखरा कांच उस के पैर में चुभ गया. जिस से खून निकल आया. वह वहां से भाग कर दूसरे कमरे में जाने लगी. तब तक विशाल और भी सैक्स का उन्मादी बन  चुका था.

वह सुप्रिया को फिर से दबोचने की कोशिश करने लगा, लेकिन वह उस की पकड़ से बचती रही. अंतत: उस की गरदन विशाल की पकड़ में आ गई.

विशाल ने सुप्रिया को काबू में लाने के लिए नायलोन की रस्सी उस के गले में फंसा दी. वह रस्सी अपनी जेब में रख कर लाया था. गले में फंसी रस्सी दोनों हाथों से कस दी, जिस से जल्द ही सुप्रिया बेजान हो गई और गिर पड़ी. उसी अवस्था में उस ने उस के शरीर के साथ छेड़छाड़ की. तब तक सुप्रिया की सांसें थम चुकी थीं. यह देख कर विशाल घबरा गया और आननफानन में अपने बचाव का रास्ता निकालने लगा.

उस ने पाया कि उस की सुप्रिया के साथ हाथापाई बैड कम सोफे पर हो रही थी. उस के दिमाग में आइडिया कौंध गया. उस ने तुरंत सोफे को खोला और सुप्रिया की लाश उस के अंदर ठूंस दी.

सोफे को करीने से पहले की तरह लगा दिया, लेकिन वह भूल गया कि सोफा पहले दीवार से थोड़ा अलग था. जमीन पर गिरे पानी और सुप्रिया के कुछ खून को साफ करने के बाद गेट की चाबी ढूंढी. चाबी उसे किचन में फ्रिज के ऊपर रखी मिल गई.

इस तरह वारदात को अंजाम देने के बाद विशाल बड़े आराम से अपने कमरे पर चला आया. खुद को बचाने के लिए डोंबीवली थाने भी गया और किशोर शिंदे का हितैषी होने का ढोंग किया. लेकिन उस की ही चप्पलों ने उस के अपराध की चुगली कर दी.

आरोपी विशाल भाऊ भाट से विस्तार से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से जेल भेज दिया गया.

रविंद्र शिवाजी दुपारगुडे

प्रेमी ने लगाया शक का चश्मा: भाग 2

इस के 2 साल बाद 4 फरवरी, 2009 को डुमरिया के जादूगोड़ा गांव में आयोजित फुटबाल टूर्नामेंट में पुरस्कार वितरण के दौरान कैलाश हेम्ब्रम को नक्सलियों ने गोलियों से भून कर अपने साथियों की मौत का बदला ले लिया.

नक्सली हमले में कैलाश की मौत के बदले राज्य सरकार ने अनुकंपा के आधार पर उस की पत्नी सविता को 2013 में सिपाही की नौकरी दी थी.

सविता की इस नौकरी के लिए ससुराल में विवाद छिड़ गया था. सविता की सास बहू के बजाय अपने दूसरे बेटे को नौकरी दिलाना चाहती थी जबकि छोटा बेटा दाखीन हेम्ब्रम नेत्रहीन था. कानूनन उस नौकरी पर सविता का ही अधिकार बनता था. उस के पास उस समय 5 साल की बेटी गीता थी. पति का सिर से साया उठ जाने के बाद बेटी की परवरिश का वही एक सहारा था.

सास, देवर और भौजाई के बीच नौकरी को ले कर सालों तक रस्साकशी चलती रही. इस बीच सविता की सास की स्वाभाविक मौत हो गई तो दाखीन ने कोर्टकचहरी शुरू कर दी. अंतत: जीत सविता की हुई और वह नौकरी करने लगी.

सविता पढ़ीलिखी तो थी ही. योग्यता के आधार पर उसे एसएसपी का रीडर बना दिया गया. तब से वह इसी पद पर तैनात थी.

पति की मौत के बाद सविता की मां लखिमा मुर्मू अकेली रह गई थीं. 70 साल की उम्र में सविता के अलावा उन के आगेपीछे सेवाजतन करने वाला कोई नहीं था.

ऐसी हालत में वह मां को अकेला छोड़ भी नहीं सकती थी, इसलिए उस ने उन्हें अपने पास बुला लिया. मां के पास आ जाने से सयानी हो रही बेटी गीता की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी उस के सिर से कम हो गई थी.

समय करवट कैसे लेता है, कोई नहीं जानता. समय के साथ ही सविता की जिंदगी में भी बदलाव आया. सविता जवान थी, सुंदर थी, उस का भरापूरा बदन था.

बेवा होने के बावजूद उस के अंगअंग से सौंदर्य झलकता था. हमदर्द तो कम लेकिन उस के हुस्न के दीवाने बहुत थे, जिस में से एक नाम सुंदर का भी था, जो सविता के दिल पर अपने प्यार की मुहर लगा चुका था.

सविता भी सुंदर के लिए अपने दिल का दरवाजा खोल चुकी थी ताकि उस के दिल पर सुंदर की हुकूमत चले. हमदर्दी का मरहम लगातेलगाते उस ने सविता के दिल पर कब्जा कर लिया.

दिल के साथसाथ सुंदर के लिए सविता के घर के दरवाजे खुले थे. सविता की मां लखिमा मुर्मू और बेटी गीता को सुंदर के घर आनेजाने से कतई गुरेज नहीं था.

यहां तक कि वह उस पर पति जैसा अधिकार जताता था. इस पर भी किसी को ऐतराज नहीं था, बल्कि उन के मिलन की घड़ी में कोई बाधा नहीं डालता था. उन्हें एक कमरे में अकेले रहने के लिए छोड़ दिया जाता था. ऐसा रिश्ता सविता और सुंदर के बीच में बन चुका था.

सुंदर सविता के प्यार में इस कदर अंधा हो चुका था कि उसे अपनी शादीशुदा जिंदगी भी याद नहीं थी. घर पर उस की पत्नी और 2 छोटेछोटे बच्चे थे. उसे तो कुछ याद था तो आंखों के सामने नाचता सविता का हसीन चेहरा.

वह कईकई दिनों तक अपने घर नहीं जाता था. प्रेमिका के घर पर ही पड़ा रहता था. ऐसा भी नहीं था कि सविता सुंदर की शादीशुदा जिंदगी से रूबरू नहीं थी, बावजूद इस के वह उस से टूट कर प्यार करती थी.

दोनों शादी के बंधन में अभी बंधे नहीं थे, लेकिन प्यार की पींगें भरते कैसे 6 साल बीत गए, न तो सविता ही जान सकी और न ही सुंदर. बस, दोनों अपने प्यार की दुनिया में मस्त थे.

सुंदर सविता पर करने लगा था शक

पता नहीं सविता और सुंदर के प्यार को किस की बुरी नजर लग गई थी. जान छिड़कने वाला सुंदर उस पर शक करने लगा था. हुआ कुछ यूं था कि पति जैसा हक जताने वाला सुंदर यह कभी नहीं चाहता था कि उस का प्यार बंटे. सविता उस की ब्याहता तो थी नहीं लेकिन पत्नी से कम भी नहीं थी.

दिलदार और हंसमुख स्वभाव की सविता हर किसी से हंस कर बातें करती थी. उस के हंस कर बातें करने के अंदाज को लोग दूसरे अर्थों में समझने लगते थे. उस के विभाग के ऐसे कई लोग थे, जिन का सविता पर दिल लट्टू था लेकिन सविता उन्हें घास तक नहीं डालती थी. हां, टाइमपास के लिए गपशप जरूर कर लेती थी.

सविता की यही बातें सुंदर को खटकती थीं. उस के दिल में शक ने घर कर लिया था. सुंदर ने फैसला कर लिया था कि सविता सिर्फ उस की है और उसी की रहेगी. अगर उस ने किसी और की बाहें थामने की कोशिश की तो उस की जिंदगी की बची हुई सांसों की डोर काट देगा.

सुंदर के मन में उसे ले कर कैसीकैसी खिचड़ी पक रही थी, इस से वह बिलकुल बेखबर थी. सविता ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उस पर जान छिड़कने वाला उसे शक की नजरों से देखता होगा.

एक दिन की बात है. शाम का समय था. घर पर सविता अकेली थी. बेटी और मां बाजार गई हुई थीं. उसी समय सुंदर वहां आ पहुंचा. देखा घर में सन्नाटा पसरा है, किसी की आवाज नहीं आ रही थी. भीतर से सविता भी सोफे पर बैठी हुई थी.

‘‘क्या बात है, घर में बड़ी शांति है? मांजी और गीता बेटी कहीं गई हैं क्या?’’ सुंदर ने सवाल किया.

सत्यकथा: 50 से ज्यादा प्रेमिकाओं वाला सेक्स एडिक्ट

जयपुर पुलिस 23 फरवरी, 2022 को रोशनी नाम की युवती की हत्या के मामले में 28 वर्षीय विक्रम बैरवा उर्फ मिंटू की तलाश कर रही थी. वह करघनी के आर्मी नगर मोहल्ले में एक किराए के मकान में विक्रम के साथ लिवइन रिलेशन में रह रही थी. उस की मौत की खबर सुनने के बाद से ही विक्रम फरार हो गया था. पुलिस को उसे दबोचने मे काफी पापड़ बेलने पड़े थे.

मोबाइल नंबर से उस की जो लोकेशन मिलती, पुलिस जब वहां पहुंचती तो पुलिस के पहुंचने के पहले विक्रम वहां से फरार हो जाता था. काफी मशक्कत के बाद आखिर डेढ़ महीने बाद 8 अप्रैल को उसे अलवर जिले के कठुमर से गिरफ्तार कर लिया. उस वक्त वह उस इलाके के टपूकड़ा में एक दंपति के घर पर ठहरा हुआ था.

जयपुर के करघना थाने की पुलिस टीम उसे अपने थाने ले आई. उस से गहन पूछताछ हुई. पूछताछ में उस ने न केवल 26 वर्षीया रोशनी की हत्या की बात कुबूल कर ली, बल्कि ग्वालियर से जुड़े हत्याकांड और गैंगरेप में शामिल होने की भी बात स्वीकार की. इस के अलावा उस ने झांसा दे कर झूठे प्रेम में लड़कियों को फंसाने के चौंकाने वाले कई खुलासे भी किए.

उस के बाद विक्रम बैरवा उर्फ मिंटू के कुख्यात कारनामों की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह काफी हैरान करने वाली निकली, जिस की शुरुआत 7 साल पहले तभी से हो गई थी, जब उस ने घरबार छोड़ दिया था.

आजादखयाल और बेफिक्री की मौजमस्ती जैसी जिंदगी के शौक के अलावा उस की एक कमजोरी सैक्स की चाहत थी. उस की बुरी आदतें दिनप्रतिदिन बढ़ती चली गईं.

बात अक्तूबर 2021 की है. विक्रम मानसरोवर, जयपुर के एक होटल में ठहरा हुआ था. शाम होने पर कमरे से बाहर सजसंवर कर निकला. रिसैप्शन पर आ कर रूम की चाबी देने के लिए हाथ आगे बढ़ाया. काउंटर पर बैठी लड़की अपना सिर उठाते ही बिंदास बोल पड़ी, ‘‘क्या गजब का तेज परफ्यूम है!’’

‘‘अच्छा नहीं है?’’ विक्रम मुसकराते हुए बोला.

‘‘मैं खराब तो नहीं बोली,’’ लड़की ने तुरंत जवाब दिया.

‘‘बड़ी हाजिरजवाब हो. यहां की ड्यूटी है क्या? जो सुबह बैठे थे वह कहां गए?’’ विक्रम ने पूछा.

‘‘अच्छा तो मैनेजर साहब, अभी आने वाले हैं. मुझे यहां बैठा दिया और 2 मिनट में आता हूं बोल कर पास में ही गए हैं,’’ लड़की बोली.

‘‘बैठा दिया… इस का मतलब?’’ विक्रम ने सवाल किया.

‘‘मैं यहां की स्टाफ नहीं हूं. लीजिए वह आ गए,’’ लड़की बोली और काउंटर से बाहर निकल आई. अपना छोटा सा बैग उठाया और कमर लचकाती हुई तेजी से रिसैप्शन से बाहर निकल गई.

‘‘गजब की लड़की है, कुछ तो बोलती बताती. मेरे पीछे कौन आया, क्या हुआ?’’ मैनेजर अपने आप से बोल पड़ा.

‘‘बड़ी तेज लगती है.’’

‘‘ऐसा ही समझ लीजिए. आज के वाट्सऐप इंस्टाग्राम के जमाने की है. 2 दिन से नौकरी मांग रही है. एक बात बताऊं, आप की परफ्यूम बड़ी अच्छी है. किसी को भी अपनी ओर खींच लेने वाली है. धांसू.’’ मैनेजर बोला.

‘‘लेकिन उस लड़की को तो इतनी तीखी लगी कि वह तेजी से भाग गई,’’ विक्रम मजाकिया अंदाज में बोला.

‘‘अच्छा उसे छोडि़ए साहब, मेरे लायक कोई और सेवा हो तो बताइए.’’ मैनेजर बोला.

‘‘एक सेवा तो चाहिए आप की, यदि आप करवा सकें तो… उस के बगैर मेरी रात ही नहीं कटेगी,’’ विक्रम बोला.

‘‘बताइए तो सही,’’ मैनेजर छूटते ही बोला.

विक्रम अपना मुंह मैनेजर के कान के पास ले जा कर बोला, ‘‘आज रात के लिए कोई इंतजाम हो जाएगा क्या? एकदम उसी जैसी छमकती हुई देसी, जैसी यहां से गई.’’ विक्रम बोला.

‘‘मैं समझ गया साहब, आप फौजी हो न! हो जाएगा, बेफिक्र रहिए.’’

‘‘जो लगेगा बता दो, अभी ट्रांसफर कर देता हूं.’’ विक्रम बोला.

‘‘आप अभी जहां जा रहे हैं, वहां से हो आइए. रात के ठीक 9 बजे आप के कमरे में होगी 3 से 4 घंटे के लिए.’’ मैनेजर ने बोलते हुए अपने मोबाइल पर 2000 टाइप कर स्क्रीन विक्रम की आंखों के सामने कर दी.

‘‘ओके, तुम तो बहुत समझदार निकले. हो जाएगा. कहां ट्रांसफर करना है, उस का नंबर बता दो.’’ विक्रम बोला.

‘‘ठीक है,’’ मैनेजर के आश्वासन मिलने के बाद विक्रम ने काउंटर पर से अपना मोबाइल ले कर जेब में रखा और गेट से बाहर हो गया.

रात के करीब सवा 9 बज चुके थे. विक्रम बड़ी बेसब्री में था. मैनेजर के आश्वासन के इंतजार का पलपल काटे नहीं कट रहा था. बारबार टीवी का चैनल बदल रहा था. उस ने सोचा जा कर नीचे मैनेजर से मिला जाए या फिर इंटरकौम से बात की जाए.

कुछ सेकेंड रुक कर उस ने इंटरकौम की ओर अपना हाथ बढ़ाया ही था कि रूम की बैल बज उठी. वो तुरंत बोल पड़ा, ‘‘खुला है. आ जाओ.’’

दरवाजा खुलते ही एक लड़की ने अंगरेजी में कहा, ‘‘मैं अंदर आ जाऊं, मैनेजर साहब ने भेजा है.’’

‘‘अरे तुम? तुम तो वही हो, जो…’’ विक्रम फटीफटी आंखों से लड़की को देखते हुए सहसा बोल पड़ा.

‘‘हां, तुम भी तो वही हो…परफ्यूम वाले.’’

‘‘तुम तो छिपी रूस्तम निकली. तो तुम कालगर्ल हो?’’ विक्रम बोला.

‘‘हूं नहीं, मजबूरी में बनना पड़ा है. क्या करूं?’’ लड़की बोली.

इस तरह दोनों के बीच बातें होने लगीं. कुछ समय में ही दोनों दोस्त बन गए. बातोंबातों में लड़की ने अपना नाम रोशनी बताया. उस ने यह भी बताया उस ने यह कदम मजबूरी में उठाया है.

विक्रम उस का दूसरा ग्राहक है. वह जेल में बंद अपने पिता को बाहर निकालने के लिए पैसा जमा कर रही है, ताकि मुकदमा जीत सके.

विक्रम को रोशनी के दिल की बातें चुभ गईं. दोनों पूरी रात कमरे में रहे. उन की नींद सुबह मैनेजर की काल से खुली. बांहों में समाई रोशनी को विक्रम ने खुद से अलग किया. रोशनी हड़बड़ाती हुई उठी. कलाई घड़ी देखी, ‘‘अरे, सुबह के 6 बज गए!’’

रोशनी ने 5-7 मिनट में ही फटाफट कपड़े पहने, अपना मेकअप ठीक किया. बैग उठा कर चलने लगी. विक्रम ने उसे गले लगा लिया. चूमता हुआ बोला, ‘‘वादा करो, आज के बाद से यह काम नहीं. हम लोग साथ रहेंगे. तुम्हारी समस्या मेरी समस्या है. हम लोग मिल कर उसे दूर करेंगे. मैं आर्मी का आदमी हूं. जो कहता हूं करता हूं.’’

‘‘इस के लिए पहले तुम्हें मेरे घर चलना होगा,’’ रोशनी बोली.

‘‘कोई बात नहीं मैं पक्का 8 बजे होटल छोड़ दूंगा. तुम अपने घर का एड्रैस मुझे दो, मैं वहां मिलता हूं,’’ विक्रम ने कहा.

‘‘मेरा एड्रैस फिलहाल जयपुर का बस अड्डा है. हमें हरदोई जाना होगा. कपड़ेलत्ते इसी होटल के एक कमरे में हैं. वह जा कर ले लेती हूं. यहां से साथ चलेंगे.’’

दोनों उसी रोज जयपुर से हरदोई के लिए रवाना हो गए. देर रात तक दोनों हरदोई पहुंच गए. रोशनी ने अपने घर वालों से विक्रम का परिचय एक इनकम टैक्स इंसपेक्टर के रूप में करवाया. उस ने बताया कि पिता को जेल से छुड़वाने में यह मदद करेंगे. साथ ही उस ने यह भी बताया कि पिता के छूटने के बाद वह उस से शादी कर लेगी.

रोशनी के घर वालों ने विक्रम की खूब आवभगत की. उस की मां खुश थी कि उन्हें घर बैठे अच्छी नौकरी करने वाला दामाद मिल गया. विक्रम ने जब देखा कि हवा उस की ओर बह रही है, तब उस ने कोर्टमुकदमे के खर्च के नाम पर कुछ कैश और लाखों रुपए के गहने ले लिए.

अगले रोज दोनों चंडीगढ़ और अन्य शहर होते हुए जयपुर आ गए. वहां उन्होंने आर्मीनगर में थानेदार राजेंद्र यादव के मकान में पहली मंजिल पर एक कमरा किराए पर ले लिया. उन्होंने मकान मालिक को स्पष्ट बता दिया कि वे लिवइन रिलेशन में हैं. उन की शादी तय हो चुकी है. कोर्ट का मामला निपटने तक रहेंगे.

कुछ दिनों में ही उन के बीच खटपट होने लगी. दरअसल विक्रम सैक्स का एडिक्ट था. वह सैक्स के दरम्यान रोशनी को यातनाएं दिया करता था. इसे ले कर रोशनी परेशान रहने लगी थी.

इस कारण उस का ध्यान रोशनी के पिता संबंधी काम से हट गया था. पैसा खत्म होने पर विक्रम उस पर घर से और पैसे मंगवाने की जिद करने लगा था.

तब तक रोशनी को भी उस की असलियत मालूम हो गई थी. इसे ले कर वह पुलिस में शिकायत करने की धमकी भी दे चुकी थी.

रात में उन के बीच इन्हीं सब के लिए बहस हो जाती थी. उसी दौरान एक रोज रोशनी ने कह दिया कि उस के साथ रातें गुजारने से तो अच्छा है दूसरे मर्दों के साथ रातें गुजारे, उन लोगों से पैसा तो मिलेगा.

यह बात 22 फरवरी, 2022 की थी. रोशनी के मुंह से कालगर्ल बनने की बात सुन कर विक्रम आगबबूला हो गया था और उस ने उसी रात तकिए से मुंह दबा दिया. जब वह बेसुध हो गई तब उस ने चुन्नी से उस का गला घोट दिया. उस की हत्या करने के बाद वह उस पर कंबल ओढ़ा कर फरार हो गया. यह सब घटना 15 दिनों में ही हो गई.

अगले रोज सुबह यादव के परिवार वालों ने रोशनी को मृत पाया. इस की सूचना उन्होंने करघनी थाने के प्रभारी बनवारी लाल मीणा को दी. यादव भी उसी थाने में एसआई थे. मामला तुरंत उच्च अधिकारियों तक जा पहुंचा.

यादव ने विक्रम को फोन कर रोशनी के मृत पाए जाने की जानकारी दी. उस ने तुरंत थाने आने की बात तो की, लेकिन वह नहीं आया और उस ने अपना फोन भी स्विच्ड औफ कर लिया.

विक्रम ने इस मामले को आत्महत्या का रूप देने की कोशिश की थी. लेकिन फोरैंसिक जांच टीम ने पहली ही नजर में इसे हत्या करार दिया था. शिनाख्त के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई. उस के बाद हत्यारे की तलाश की जाने लगी.

विक्रम के लापता होने पर सौ फीसदी संदेह उस पर ही था. किंतु उस का मोबाइल बंद होने से उस की ट्रैसिंग नहीं हो पा रही थी. संयोग से यादव ने कमरा किराए पर देने के समय उस की और मृतका की पुलिस वेरिफिकेशन तक नहीं करवाई थी.

लाश बरामदगी वाले कमरे में उन के कुछ कागजात में रोशनी और विक्रम के घर का पता मिल गया था. जांच टीम ने रोशनी के घर वालों को हरदोई से बुला कर उन्हें लाश सौंप दी.

पुलिस की एक टीम विक्रम की तलाशी के लिए उस के पैतृक स्थान दौसा जिलांतर्गत धर्मपुरा गांव भेजी गई. वहां विक्रम के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.

गांव के लोगों से मालूम हुआ कि वह कई सालों से गांव नहीं आया था. उस के बाद पुलिस ने विक्रम के मोबाइल नंबर को सर्विलांस में लगा दिया गया.

रोशनी के बारे में पुलिस को पता चला कि उस के पिता जयपुर जेल में हत्या के आरोप में बंद थे. जबकि रोशनी 4 सालों से जयपुर की एक स्पा में काम कर रही थी.

उस के घर वालों ने बताया कि विक्रम जब उस के घर आया था, तब उस ने खुद को बड़ेबड़े अधिकारियों तक पहुंच होने की बात बताई थी.

घर वाले उस की बातों में आ गए थे और उस ने जैसा कहा वैसा किया था. यही नहीं विक्रम ने रोशनी के पिता को जेल से रिहा करवाने का दावा किया था. इस के लिए मोटी रकम खर्च करने की बात की थी. इसी आश्वासन पर उस ने एक लाख रुपए कैश और करीब 5 लाख रुपए के जेवर ले लिए थे.

विक्रम के बारे में तहकीकात में मालूम हुआ कि वह कुछ दिनों तक चंडीगढ़ में प्राइवेट नौकरी करता था. उस की कदकाठी अच्छी थी. लंबा कद और गठा हुआ शरीर होने का फायदा उठाता था.

उस ने फौजी कट बाल कटवा रखे थे, जिस से लोग उसे सेना का जवान समझ लेते थे. बातें करने में माहिर और मिलनसार प्रवृत्ति का था. रौबरुतबे से वह किसी को भी बड़ी आसानी से अपने झांसे में ले लेता था.

रोशनी की मौत के एक माह बाद भी जयपुर पुलिस विक्रम को अपने कब्जे में नहीं ले पाई थी. जबकि उस की तलाश में दिल्ली, सीकर, अलवर, दौसा के अलावा कई छोटीबड़ी जगहों पर पुलिस छानबीन कर चुकी थी.

आखिर में उस की गिरफ्तारी सर्विलांस में लगे उस के मोबाइल फोन नंबर से ही हुई. उस आधार पर अनवर जिले के वह टपूकड़ा में एक दंपति के घर से पकड़ा गया था.

उस की गिरफ्तारी के बाद जयपुर पुलिस ने राहत की सांस ली थी. डीसीपी (वेस्ट) ऋचा तोमर, एडिशनल डीसीपी जयपुर (वेस्ट) राम सिंह शेखावत, एसीपी (झोवाड़ा) प्रमोद कुमार स्वामी और करघनी थाने के प्रभारी बनवारी लाल मीणा ने विक्रम बैरवा से कड़ी पूछताछ की.

इसी सिलसिले में रोशनी की हत्या के जुर्म के अलावा 2 अन्य वारदातों का भी राज सामने आ गया.

एक मामला अलवर का था. साल 2019 में विक्रम ने 2 दोस्तों के साथ मिल कर एक नाबालिग लड़की का अपहरण कर लिया था. इस की रिपोर्ट अलवर के सदर थाने में दर्ज है. उस के साथ उस ने गैंगरेप किया था. उस मामले में भी वह फरार चल रहा था.

इस से भी खतरनाक एक मामला गुजरात की पूजा शर्मा के साथ का था. उस के बारे में थाने में दर्ज रिपोर्ट के अनुसार विक्रम ने उस का 4 अप्रैल को अपहरण कर ग्वालियर ले गया था.

इस में पूजा के प्रेमी संजय ने भी साथ दिया था. दोनों ने उस का सामूहिक बलात्कार कर हत्या कर दी थी. पूजा की भी गला घोट कर हत्या की गई थी.

उस के बाद उस की लाश को ठिकाने लगाने के लिए ग्वालियर में रेलवे की पटरी पर डाल दिया था. उस ने पूजा की मौत को आत्महत्या दिखाने की कोशिश की थी. इस में वह बच निकला था, लेकिन रोशनी के मामले में नहीं बच पाया.

ठीक इसी तरह से विक्रम जिस लड़की की चाहत को दिल और दिमाग में बिठा लेता था, उसे हासिल कर के छोड़ता था. चाहे लड़की स्टूडेंट हो, घरेलू महिला हो, कालगर्ल हो या फिर नौकरीपेशा क्यों न हो. वह सैक्स का भूखा इंसान था.

इस तरह विक्रम ने मुंबई, चंडीगढ़, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान में अलगअलग जगहों पर रह कर प्राइवेट काम किया और 50 से अधिक लड़कियों को प्रेमजाल में फंसा चुका था.

यह अलग बात है कि उन में अधिकतर सैक्स वर्कर थीं. उन से वह न केवल सैक्स संबंध बनाता था, बल्कि पैसे भी ऐंठता था. कथा लिखे जाने तक विक्रम बैरवा उर्फ मिंटू से ग्वालियर और अलवर पुलिस पूछताछ कर रही थी.

खुदकुशी: सोनी का आखिर क्या दोष था

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खुदकुशी- भाग 4: सोनी का आखिर क्या दोष था

रात होतेहोते जब वह किसी तरह घर पहुंची तो उस की मां बहुत चिंतित नजर आ रही थीं. सोनी के पापा अभी तक औफिस से लौटे नहीं थे. सोनी की मां ने जब सोनी को देखा तो वह डर गईं. सोचने लगीं कि उस की मासूम सी बच्ची के साथ न जाने कौन सा हादसा हो गया. सोनी को वे उस के कमरे में ले गईं, उसे पानी पीने को दिया, फिर उस के सिर को सहलाते हुए पूछा कि क्या बात है, क्या हुआ, सबकुछ सचसच बताओ बेटी. सोनी समझ नहीं पा रही थी कि उस के साथ जो हुआ वह क्या था. ऐसा उस ने कभी कल्पना में भी नहीं सोचा था कि उस के साथ जो हुआ वह सब उसे अपनी मां और पापा को बताना पड़ेगा. हालांकि दर्द से वह लगभग कराह रही थी. उस ने अपनी मां को बाथरूम में जा कर दिखाया, देखते ही उस की मां बेहोश हो गईं. सोनी ने हिम्मत कर अपनी मां के सिर पर पानी के छींटें दिए, सिर सहलाया, तब जा कर कहीं उस की मां होश में आई और होश में आते ही रोने लगीं, पूरा वृत्तांत सुनने के बाद सोनी की मां तो लगभग अर्द्धमूर्छित अवस्था में पहुंच चुकी थीं.

किसी तरह सोनी को फर्स्टऐड दे कर, उसे आराम करने को कह, दूसरे कमरे में निढाल सी पड़ गई थीं सोनी की मां. डाक्टर को दिखाने की खबर सोनी के भविष्य को बदनुमा न बना दे, यही सोच रही थीं सोनी की मां. अगर इस बात की जरा भी भनक किसी को लगी तो कौन करेगा सोनी से ब्याह? इसी तरह के खयाल सोनी की मां के मन में चल रहे थे कि कौल बेल बजी. सोनी की मां की तंद्रा टूटी. सोनी की मां ने जा कर दरवाजा खोला, सोनी के पापा आ गए थे, आते ही सोनी के बारे में पूछा, सोनी की मां ने कहा कि वह अपने कमरे में सो गई है. सोनी की मां ने सोनी के साथ हुए हादसे को छिपा लिया था. बेटी के साथ हुए गैंगरेप को शायद बरदाश्त नहीं कर पाएंगे सोनी

के पिता. रात को अपनी मां से हुई बातचीत से सोनी इतना तो समझ चुकी थी कि उस ने पूजा और सीमा के साथ मिल कर अनजाने में ही सही ऐसा गलत कदम उठाया है कि जिस की भरपाई इस जन्म में तो संभव नहीं. सोनी सोच रही थी कि उस के साथ जो कुछ हुआ और उस की मां ने जो कुछ बताया, इस से तो यही नतीजा निकलता है कि मैं बहुत बुरी लड़की हूं, मेरी सभी सहेलियां बुरी हैं, उन लोगों से मुझे दूरी बना कर रखनी चाहिए थी, पर ऐसा करने पर मेरी पढ़ाई, कहीं जाना, ऐग्जाम देना सब बंद हो जाता. पागल की तरह सोचे जा रही थी सोनी.

दूसरे दिन घर पर सन्नाटा छाया रहा, न जाने सोनी की मां ने सोनी के पिता को क्या कह दिया था इस संबंध में कि वे सिर्फ सोनी के कमरे के बाहर ही एक मिनट रुक कर औफिस चले गए. सोनी घर से दोपहर के वक्त चुपचाप, बिना कुछ बोले निकल कर चल दी और पास ही के थाने में जा कर थानेदार को पूरा वृत्तांत सुना दिया. हालांकि सोनी की कहानी उस की जबानी सुनते हुए थानेदार के साथसाथ अन्य पुलिसकर्मी भी मजा ले रहे थे.

पूरी बात सुनने के बाद थानेदार ने पूछा कि जब घटना हुई उस वक्त तुम ने थाने में आ कर रिपोर्ट क्यों नहीं लिखवाई. जवाब में सोनी कुछ न बोल सकी सिर्फ इतना ही कहा कि मैं आने की हालत में नहीं थी. थानेदार ने उसे जाने को कहा और कार्यवाही करने की बात कही. सोनी घर चली गई. पूजा और सीमा ने उसे इन दोचार दिनों में कभी कौंटैक्ट करने की कोशिश नहीं की. वीरेंद्र और उस के साथियों ने हालांकि एक बार सोनी को थाने से निकलते देखा था.

वीरेंद्र एक अमीरजादा था, ऐयाशी के साथसाथ वह शराब और शबाब का भी आदी था. अपनी पहुंच लगा कर वह साफ बच निकला. लिहाजा, मुकदमा क्षेत्राधिकार के बिंदु पर दर्ज नहीं किया गया और सोनी को थानेदार ने बतलाया कि घटना जहां हुई थी उसी इलाके के थाने में मुकदमा दर्ज हो सकता है और इतने विलंब से तो उस इलाके के भी थाने में मुकदमा अब दर्ज नहीं होगा. सोनी बिना घर में बताए इस थाने से उस थाने के चक्कर लगाती रही परंतु जैसा पुलिस का हाल है कि रसूख वालों की ही वह सुनती है औरों की नहीं इसलिए सोनी कोई मुकदमा दर्ज नहीं करवा पाई बल्कि थानेदार ने उसे ही भलाबुरा कहा और यह साबित करने की कोशिश करते रहे कि वह एक मनगढ़ंत घटना बयान कर रही है जैसा उस ने बताया वैसा कुछ हुआ ही नहीं. जबकि सोनी की मां चाहती थीं कि वह फिर से सामान्य जिंदगी के लिए खुद को तैयार करे और इस के लिए वे अपनी बेटी को समझाती रहती थीं कि वह घर से निकले. कहीं अगर जाना भी हो तो उसे साथ ले ले. परंतु सोनी पर इस का कोई असर नहीं पड़ रहा था, वह सजा दिलवाना चाहती थी वीरेंद्र और उस के साथियों को और साथ में पूजा और सीमा को भी. न्याय न पाने का सदमा उसे अपने साथ हुए हादसे से भी ज्यादा लगा. उस ने उस रात एक कागज पर लिखा, ‘मैं बहुत बुरी लड़की हूं. वीरेंद्र और उस के साथी हर सीमा को लांघ चुके थे. मेरे मां और पापा मुझ से बहुत प्यार करते हैं. मैं नहीं जानती थी कि मेरे लिए क्या बुरा और क्या अच्छा है.

मुझे पूजा और सीमा ने कई गलत रास्ते दिखाए लेकिन मैं ने उन्हें नहीं अपनाया पर न जाने उस दिन पूजा और सीमा ने ऐसा क्या कह दिया वीरेंद्र और उस के साथियों को कि मैं उस दिन के हादसे के बाद वैसी नहीं हूं जैसी मैं थी अगर उन लोगों को पुलिस सजा देती तो शायद मुझे जीने की कोई वजह मिल जाती. तब मैं यह साबित कर सकती कि मैं निर्दोष हूं पर ऐसा नहीं हुआ. अब जीने की कोई वजह मेरे पास नहीं है, मैं अपने मांपापा को समाज में शर्मिंदा होते नहीं देख सकती. इसलिए मैं हमेशा के लिए जा रही हूं… सोनी.’ सोनी की लाश उस के कमरे के पंखे से झूल रही थी. पहले तो पुलिस ने खोजबीन में सक्रिय होने की तत्परता दिखाई पर सुसाइड नोट पढ़ने के बाद सोनी के मातापिता ने कोई उत्सुकता नहीं दिखाई हत्यारों को पकड़वाने में. हत्यारे तो अभी भी खुले घूम रहे थे. सोनी के मातापिता अपनी इज्जत को सरेआम नीलाम होते नहीं देखना चाहते थे. पत्थर रख लिया था दोनों ने अपने सीने पर और खून का घूंट पी कर भी चुप थे. पुलिस अपने कर्तव्य के प्रति सचेत नहीं थी कि अनुसंधान करे कि सोनी ने क्यों खुदकुशी की और सोनी को खुदकुशी करने के लिए मजबूर करने वाले हत्यारों को खोज निकाले और सजा दे.

शायद सोनी के मातापिता परिवार की इज्जतप्रतिष्ठा को दावं पर नहीं लगाना चाहते थे इसलिए वे भी खामोश थे अपनी बेटी की तरह, जो खामोश हो चुकी थी हमेशा के लिए

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