Satyakatha- सोनू पंजाबन: गोरी चमड़ी के धंधे की बड़ी खिलाड़ी- भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

लेखक- सुनील वर्मा  सोनू

कुछ समय बाद गीता ने निक्कू से कुछ पैसा ले कर गीता कालोनी में ही अपना खुद का ब्यूटीपार्लर खोल लिया और इस की आड़ में खुद तो जिस्मफरोशी का धंधा करती ही थी, साथ में उस ने नौकरी दे कर कुछ लड़कियों को भी पार्लर में जोड़ लिया.

सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन एक बार फिर उस की खुशियों को ग्रहण लग गया. साल 2000 में एक दिन ऐसा आया जब यूपी पुलिस ने निक्कू त्यागी को हापुड़ के पास मुठभेड़ में मार गिराया.

एक बार फिर गीता के सिर से उस के सरपरस्त का साया उठ गया और वह उदास हो गई. लेकिन तब तक वह जिस्मफरोशी की दुनिया के जिस धंधे में वह उतर चुकी थी, उस ने गम की परछाई को ज्यादा दिन गीता के ऊपर रहने नहीं दिया.

गीता धीरेधीरे यमुनापार के गरीब परिवार की खूबसूरत लड़कियों को अपने साथ जोड़ कर उन से धंधा कराने लगी.

एक दिन गीता की मुलाकात दीपक जाट से हुई. दीपक उस के पास आया तो था अपने जिस्म की प्यास बुझाने के लिए, लेकिन वह गीता की अदाओं और हुस्न के जाल में इस तरह उलझा कि तन ही नहीं, मन से भी उस से प्यार करने लगा. इस के बाद तो दीपक अकसर गीता से मिलनेजुलने लगा.

ऐसा लगता था कि तकदीर ने गीता की जिंदगी में आने वाले हर मर्द के हाथों में अपराध की लकीरें बना कर भेजी थीं. नजफगढ़ इलाके का रहने वाला दीपक भी विजय और निक्कू की तरह अपराधी ही था. उस की गिनती दिल्ली के नामी वाहन चोरों में होती थी.

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दिल्ली के नजफगढ़ इलाके में दीपक और उस के छोटे भाई हेमंत उर्फ सोनू का जबरदस्त खौफ था. गीता जीवन में आई तो दीपक को लगने लगा कि जैसे भटकती जिंदगी को किनारा मिल गया हो. कुछ समय बाद दीपक ने बिना सात फेरे लिए ही गीता के साथ पतिपत्नी की तरह रहना शुरू कर दिया.

लेकिन 2003 में असम पुलिस ने दीपक को स्कौर्पियो कार चुराने के आरोप में मुठभेड़ में मार गिराया. गीता फिर तन्हा हो गई. लेकिन इस बार उस का ये तन्हापन ज्यादा दिन नहीं रहा क्योंकि इस बार उसे सहारा देने वाला कोई और नहीं वरन दीपक का छोटा भाई हेमंत उर्फ सोनू था.

दीपक के भाई हेमंत उर्फ सोनू ने भाई की मौत के बाद गीता से अपनी इकरारे मोहब्बत बयान कर उसे अपनी जिंदगी में शामिल कर लिया.

सोनू भी दिल्ली से ले कर हरियाणा और यूपी के कई गैंगस्टरों के साथ मिल कर लूट, डकैती, अपहरण, जबरन वसूली और ठेके पर हत्या करने की वारदातों को अंजाम देता था.

लेकिन 6 मार्च, 2006 को स्पैशल सेल के एसीपी संजीव यादव की टीम ने गुड़गांव के सागर अपार्टमेंट में हेमंत को उस के 2 साथियों जसवंत और जयप्रकाश के साथ मुठभेड़ में मार गिराया.

हेमंत की मौत के बाद गीता एक बार फिर अकेली हो गई. लेकिन अब तक गीता का नाम बदल चुका था. सोनू की पत्नी होने के कारण लोग उसे गीता की जगह सोनू और जाति से पंजाबी होने के कारण पंजाबन ज्यादा कहने लगे थे.

एक बार सोनू नाम क्या पड़ा कि जल्द ही गीता अरोड़़ा सोनू पंजाबन के नए नाम से विख्यात हो गई. अपने अतीत की वजह से सोनू पंजाबन का अपराध से करीब का रिश्ता बन चुका था.

सोनू पंजाबन हेमंत के एक दोस्त गैंगस्टर अशोक बंटी से पहले से परिचित थी. इस के बाद उस ने बुलंदशहर के अशोक उर्फ बंटी के साथ दिलशाद गार्डन में रखैल की तरह रहना शुरू कर दिया. लेकिन सोनू को शायद पता नहीं था कि अपराध से उस ने जो नाता जोड़ा है, उस से अभी उस का पीछा छूटा नहीं है.

उसे शायद ये भी नहीं पता था कि उस की किस्मत में स्थायी रूप से किसी मर्द का साथ लिखा ही नहीं था.

बंटी को अप्रैल 2006 में एक दिन दिल्ली पुलिस की स्पैशल सेल ने मुठभेड़ में मारा गिराया.

सोनू के जीवन में जो भी मर्द आया वह पुलिस के हाथों मारा गया. इसलिए अब उस ने किसी का आसरा लेने की जगह जिस्मफरोशी के अपने धंधे को ही चमकाने और बढ़ाने का काम शुरू किया. वह अपने धंधे को संगठित रूप से बढ़ाने व चलाने लगी.

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सोनू गीता कालोनी इलाके में बदनामी के कारण अपने बेटे को अपनी मां और भाइयों के पास छोड़ कर साकेत के पर्यावरण कौंप्लैक्स में रहने चली गई और वहीं से धंधा औपरेट करने लगी.

सोनू पंजाबन को जिस्मफरोशी के आरोप में पहली बार 31 अगस्त, 2007 को प्रीत विहार पुलिस ने 7 लड़कियों के साथ गिरफ्तार किया था. इस के बाद सोनू पूरी तरह एक कालगर्ल सरगना के रूप में बदनाम हो गई.

उस ने प्रीत विहार छोड़ कर साकेत में नया ठिकाना बना लिया. लेकिन वहां भी 21 नवंबर, 2008 को साकेत पुलिस ने सोनू को सैक्स रैकेट चलाने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया.

सोनू ने फिर ठिकाना बदला और प्रीत विहार में एक दूसरा बंगला किराए पर ले लिया. लेकिन 22 नवंबर, 2009 को वहां भी प्रीत विहार पुलिस ने छापा मार दिया. सोनू को फिर से 4 लड़कियों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया.

इस के बाद तो सोनू के दिमाग से पुलिस का खौफ पूरी तरह निकल गया. अब वह खुल कर बड़े पैमाने पर धंधा करने लगी.

उस ने अपराध की दुनिया से जुड़े प्रेमियों और जिस्मफरोशी के कारोबार से जुटाई गई दौलत से दिल्ली के महरौली इलाके के सैदुल्लाजाब के अनुपम एनक्लेव में एक आलीशान फ्लैट खरीद लिया और वहीं से अंडरग्राउंड रह कर धंधे का संचालन करने लगी.

सोनू अब लड़कियों को खुद ले कर नहीं जाती थी उस ने एजेंट रख लिए. सोनू ने अपने सभी फोन नंबर भी बदल लिए थे. वह आमतौर पर अंजान लोगों से फोन पर बात नहीं करती बल्कि किसी पुराने ग्राहकों का रैफरेंस देने पर ही नए ग्राहकों को लड़की उपलब्ध कराती थी.

5 अप्रैल, 2011 को सोनू को महरौली पुलिस ने 5 लड़कियों और साथ धर दबोचा. इस बार पुलिस ने उस के ऊपर मकोका कानून के तहत मुकदमा दर्ज किया.

इस बार उस के साथ पकड़ी गई लडकियों में ज्यादातर लड़कियां मौडल या टेलीविजन कार्यक्रमों में काम करने वाली अभिनेत्रियां थीं.

इस बार यह खुलासा हुआ कि सोनू का धंधा कई राज्यों तक फैल चुका था. उस का पूरा कारोबार संगठित तरीके से चलता था.

हालांकि पुलिस सोनू पंजाबन पर मकोका कानून के आरोप सिद्ध नहीं कर सकी, इसीलिए 2013 में वह मकोका के आरोप से बरी हो कर जेल से रिहा हो गई.

3 साल जेल में रहने के बाद सोनू पंजाबन अदालत से बरी हुई तो उस ने बेहद सावधानी से अपने धंधे को आगे बढ़ाना शुरू किया. अब वह खुद सामने नहीं आती थी बल्कि अपने लोगों को सामने रख कर इस काम को करती थी.

सोनू पंजाबन ने अब लड़कियों को अपने यहां काम पर रख लिया है. इन लड़कियों को वह ग्राहक के पैसों में हिस्सा नहीं देती थी, बल्कि उन्हें एकमुश्त सैलरी देती थी.

यूं कहें तो गलत न होगा कि उस ने अपने काम करने के तरीके को एकदम कारपोरेट शैली में बदल दिया था.

उस के सिंडीकेट से जुड़े हर शख्स का काम बंटा हुआ था. कोई लड़कियों को एस्कार्ट करता था तो कोई उन का ड्राइवर बन कर उन्हें बड़ेबड़े ग्राहकों के पास छोड़ कर आता था.

सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन 2011 में प्रीति नाम की एक लड़की को खरीदने के आरोप में उसे 24 साल तक जेल की सलाखों के पीछे रहने की सजा मिलेगी, यह उस ने कभी नहीं सोचा था.

दरअसल, उन दिनों प्रीति 13 साल की थी. जब वह कोंडली में स्थित दिल्ली सरकार के स्कूल में 7वीं कक्षा में पढ़ती थी. गरीब परिवार में जन्मी प्रीति के पिता एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे.

अभावों में पलीबढ़ी लेकिन सूरत व शरीर से बेहद खूबसूरत प्रीति की दोस्ती स्कूल आतेजाते संदीप बेलवाल से हो गई, जो उस से 4-5 साल बड़ा था.

संदीप कभी उसे कार तो कभी मोटरसाइकिल से घुमाने लगा. संदीप से प्रभावित होने के बाद प्रीति उस के प्यार में कुछ ऐसी दीवानी हो गई कि वह उस पर आंख बंद कर के भरोसा करने लगी.

एक दिन इसी विश्वास में प्रीति संदीप के साथ उस के जन्मदिन की पार्टी मनाने नजफगढ़ में उस की किसी सीमा आंटी के पास चली गई. बस यही उस के जीवन की सब से बड़ी भूल थी.

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संदीप ने उस दिन कोल्डड्रिंक में उसे कोई मदहोश करने वाली दवा पिला कर उस की इज्जत को तारतार कर दिया. इतना ही नहीं वह उसे सीमा आंटी के पास एक लाख रुपए में बेच कर चला गया. बाद में उसे पता चला कि सीमा आंटी देहव्यापार करने वाली औरत थी और संदीप उस के साथ जुड़ा था.

इस के बाद शुरू हुआ प्रीति की जिंदगी में हर रोज होने वाले यौनशोषण का ऐसा सिलसिला जो कई साल तक चला.

अगले भाग में पढ़ें- लुधियाना के होटल में बिकता जिस्म

Crime Story- गुड़िया रेप-मर्डर केस: भाग 3

खैर, अगली सुबह शिवेंद्र बेटी की खोज में निकल गए तो उन के व्यवहार के कायल रिश्तेदार भी गुडि़या की तलाश में शिमला के जंगलों की खाक छानते फिरते रहे लेकिन गुडि़या का कहीं पता नहीं चला. रहस्यमय तरीके से गुडि़या को लापता हुए 24 घंटे से ऊपर बीत चुके थे. लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला.

6 जुलाई की सुबह कोई पौने 8 बजे कोटखाई थाना स्थित हलाइला गांव के पास तांदी के जंगल के एक गड्ढे के भीतर एक लड़की की नग्नावस्था में लाश मिली. उस की उम्र यही कोई 16-17 साल के करीब रही होगी.

लाश मिलते ही वन अधिकारी ने इस की सूचना कोटखाई थाने के इंसपेक्टर राजिंदर सिंह को दे दी थी. सूचना मिलते ही वह एसआई दीपचंद, हैडकांस्टेबल सूरत सिंह, कांस्टेबल मोहन लाल, रफीक अली, महिला कांस्टेबल नेहा को साथ ले कर घटनास्थल पहुंच गए थे.

घटनास्थल पहुंच कर उन्होंने मुआयना किया और गुडि़या के पिता शिवेंद्र को भी मौके पर बुलवा लिया था. उन्हें आशंका थी कि यह लाश कहीं 2 दिनों से लापता गुडि़या की तो नहीं है. उन के यहां होने से लाश की शिनाख्त करने में आसानी होगी.

हलाइला गांव के निकट स्थित तांदी के जंगल में लड़की की लाश मिलने की सूचना मिलते ही शिवेंद्र के हाथपांव फूल गए और वह तुरंत मौकाएवारदात पर चल दिए. रास्ते भर वह यही प्रार्थना करते रहे कि बेटी जहां भी हो, सुरक्षित रहे.

खैर, थोड़ी देर बाद बेटे अमन के साथ वह मौके पर पहुंच गए. वहां भारी भीड़ जमा थी और जंगल बीच एक गड्ढे के भीतर लाश के ऊपर सफेद चादर डाल दी गई थी.

चादर से ढकी लाश देख कर शिवेंद्र का दिल जोरजोर से धड़कने लगा था. मानो अभी हलक के रास्ते मुंह के बाहर आ जाएगा.

पिता को एक किनारे खड़ा कर अमन ने हिम्मत जुटा कर लाश के ऊपर से चादर उठाई. चेहरा देखते ही अमन का कलेजा मुंह को आ गया और वह दहाड़ मार कर रोने लगा. पुलिस अधिकारी भी पहुंचे मौके पर अमन को रोता देख इंसपेक्टर राजिंदर सिंह को समझते देर न लगी कि 2 दिनों से रहस्य बनी लाश की शिनाख्त हो गई है. बेटे को रोता देख कर पिता की आंखें भी नम हो गई थीं. तब तक घटना की सूचना पा कर एसपी डी.डब्ल्यू. नेगी, एएसपी (ग्रामीण) भजन देव नेगी और डीएसपी मनोज जोशी मौके पर पहुंच चुके थे.

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लाश की स्थिति देख कर पुलिस अधिकारियों की रूह कांप गई थी. गुडि़या के शरीर पर कई जगह चोट और वक्षस्थल पर दांत काटने के निशान पाए गए थे. ये देख कर लगता था कातिलों ने इंसानियत की सारी हदें पार कर दी थीं.

घटना चीखचीख कर कह रही थी हत्यारों ने दुष्कर्म करने के बाद अपनी पहचान छिपाने के लिए मासूम गुडि़या को मार डाला था.

खैर, काफी खोजबीन के बाद मौके पर लाश के अलावा कुछ नहीं मिला था. गुडि़या के स्कूल की ड्रेस, जूतेमोजे और स्कूल का बैग नहीं मिला था. हत्यारों ने कहां छिपा रखा था, किसी को कुछ पता नहीं था.

जंगल में आग की तरह गुडि़या की हत्या की खबर शिमला में चारों ओर फैल गई थी. खबर मिलते ही शिवेंद्र की जानपहचान वाले मौके पर पहुंचने लगे थे. ये देख कर पुलिस के पसीने छूटने लगे थे. एसपी नेगी ने जल्द लाश का पंचनामा भर कर उसे पोस्टमार्टम भेजने का आदेश दिया.

आननफानन में इंसपेक्टर राजिंदर सिंह ने मौके की काररवाई निपटा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला चिकित्सालय शिमला भेज दी और गुमशुदगी की धारा को धारा 302, 376 आईपीसी एवं पोक्सो एक्ट की धारा 4 में तरमीम कर अज्ञात के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया था.

विद्रोह और जन आंदोलन ने पकड़ी रफ्तार

7 जुलाई की सुबह गुडि़या रेपमर्डर केस ने शिमला की सड़कों पर विद्रोह और जनआंदोलन की जो रफ्तार पकड़ी, उस से पुलिस प्रशासन हिल गया था. शिमला प्रशासन के हाथों से यह मामला निकल कर डीजीपी के दफ्तर तक पहुंच चुका था.

मामले की गंभीरता को समझते हुए डीजीपी ने कड़ा रुख अपनाया और 10 जुलाई को स्पेशल इनवैस्टीगेशन टीम (एसआईटी) का गठन करने का आदेश दिया. जिस में आईजी (दक्षिणी रेंज) जहूर हैदर जैदी, एसपी डी.डब्ल्यू. नेगी, एएसपी (ग्रामीण) भजन देव नेगी और इंसपेक्टर कोटखाई राजिंदर सिंह शामिल हुए.

अपने मातहतों को कड़े शब्दों में डीजीपी ने कह दिया था कि मासूम बेटी के कातिल हर हाल में सलाखों के पीछे कैद होने चाहिए.

इस बीच गुडि़या के कातिलों को सलाखों तक पहुंचाने के लिए शिमला की जानीमानी एनजीओ मदद सेवा ट्रस्ट के चेयरमैन विकास थाप्टा और उन की सहयोगी तनुजा थाप्टा जन आंदोलन में कूद पड़े थे.

पुलिस की नाकामी की पोल स्थानीय समाचारपत्रों ने खोल कर रख दी थी. पुलिस के ऊपर कातिलों को गिरफ्तार करने के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री और डीजीपी का भारी दबाव था. वह पलपल जांच की काररवाई की रिपोर्ट तलब करा रहे थे.

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पुलिस की 3 दिनों की कड़ी मेहनत ने अपना रंग दिखाया. शक के आधार पर पुलिस ने 13 जुलाई की शाम को 5 लोगों को धर दबोचा. जिन के नाम सूरज सिंह, राजेंद्र सिंह उर्फ राजू निवासी हलाइला, सुभाष बिष्ट निवासी गढ़वाल, लोकजन उर्फ छोटू और दीपक निवासी पौड़ी गढ़वाल थे.

एसआईटी ने निर्दोषों को बनाया आरोपी

सभी आरोपी शिमला में ही रह रहे थे और आपस में गहरे दोस्त थे. पुलिस ने उक्त पांचों को फर्द पर नामजद करते हुए रेप और मर्डर केस का आरोपी बना दिया था. पांचों आरोपियों से लगातार 5 दिनों तक थाने में कड़ाई से पूछताछ चलती रही. पुलिस ने सूरज सिंह को गैंगरेप का सरगना मानते हुए उसे खूब प्रताडि़त किया.

पुलिस के बेइंतहा जुल्म से हिरासत में सूरज सिंह ने दम तोड़ दिया था. पुलिस हिरासत में गैंगरेप आरोपी सूरज सिंह की मौत होते ही शिमला की ठंडी वादियों में अचानक ज्वालामुखी फट गया, जिस की तपिश से पुलिस महकमा धूधू कर जलने लगा था. ये 18 जुलाई, 2021 की बात है.

आरोपी सूरज सिंह की मौत के बाद सियासी मामला गरमा गया. कांग्रेस के वीरभद्र सिंह की सरकार के खिलाफ भाजपा ने मोरचा खोल दिया और मामले की जांच सीबीआई को सौंपने पर अड़ गई.

आखिरकार सरकार को उन के आगे झुकना पड़ा और 19 जुलाई को मामले की जांच सीबीआई की झोली में आ गिरी.

जांच की कमान सीबीआई के तेजतर्रार एसपी एस.एस. गुरम ने संभाली और उन का साथ दिया था डीएसपी सीमा पाहूजा ने. जांच की कमान संभालते ही एसपी गुरम ने दिल्ली मुख्यालय सीबीआई के दफ्तर में अपने तरीके से 2 अलगअलग मामले दर्ज किए.

पहला मुकदमा गुडि़या रेप और मर्डर केस में आरोपी सूरज सिंह की पुलिस हिरासत में हुई मौत का था. यह मुकदमा संख्या 101/2017 भादंवि की धारा 120बी, 302, 330, 331, 348, 323, 326, 218, 195, 196 और 201 भादंसं के तहत 22 जुलाई 2017 को दर्ज किया गया था. इस मुकदमे के आरोपी बनाए गए थे- आईजी (दक्षिणी रेंज) जहूर हैदर जैदी, एसपी डी.डब्ल्यू. नेगी, एएसपी (ग्रामीण) भजन देव नेगी, इंसपेक्टर (कोटखाई) राजिंदर सिंह, एएसआई दीप चंद, हैडकांस्टेबल सूरत सिंह, कांस्टेबल मोहन लाल, रफीक मोहम्मद और रंजीत.

पुलिस अधिकारियों पर आरोप था कि आरोपी सूरज सिंह को हिरासत में ले कर बेरहमी से पिटाई की गई थी. जिस से हिरासत में उस की मौत हो गई थी.

वहीं आईजी जैदी ने सूरज की मौत पुलिस हिरासत की बजाय आरोपी राजेंद्र सिंह उर्फ राजू के सिर पर मढ़ कर नया बवाल खड़ा कर दिया था. लेकिन जांचपड़ताल में यह बात झूठी साबित हुई थी.

खैर, सीबीआई एसपी एस.एस. गुरम ने हिमाचल पुलिस द्वारा शक के बिना पर आरोपी बनाए गए चारों लोगों राजेंद्र सिंह उर्फ राजू, सुभाष बिष्ट, लोकजन उर्फ छोटू और दीपक को जमानत पर छोड़ दिया और गुडि़या रेपमर्डर केस की जांच नए सिरे से शुरू कर दी.

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उन्होंने जांच की काररवाई जहां से गुडि़या की लाश पाई गई थी, वहीं से शुरू की. सब से पहले उन्होंने जंगल की भौगोलिक परिस्थितियों को जांचापरखा. फिर उस के आनेजाने वाले रास्ते का अवलोकन किया.

सीबीआई के हाथ लगा चश्मदीद

इधर सीबीआई के द्वारा पकड़े गए चारों आरोपियों को छोड़े जाने पर मदद सेवा ट्रस्ट के चेयरमैन विकास थाप्टा और तनुजा थाप्टा मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह से मिले और सीबीआई के क्रियाकलापों पर नाराजगी जताई.

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सौजन्य- मनोहर कहानियां

मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले के वारासिवनी थाने के टीआई कमल निगवाल को रात करीब 9 बजे किसी अज्ञात व्यक्ति ने फोन कर के सूचना दी कि क्षेत्र के गांव कायदी के बनियाटोला, वैष्णो देवी मंदिर के पास एक युवक ट्रेन से कट गया है. खबर मिलते ही टीआई थाने में मौजूद एएसआई विजय पाटिल व महिला आरक्षक लक्ष्मी के साथ घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए.

टीआई निगवाल ने घटनास्थल पर देखा कि एक युवक का शव रेल लाइनों पर बुरी तरह क्षतविक्षत हालत में पड़ा था. वहीं लाइनों के पास सड़क किनारे एक मोटरसाइकिल भी खड़ी थी. इस से टीआई ने अंदाजा लगाया कि युवक आत्महत्या करने के लिए ही अपनी मोटरसाइकिल से यहां आया होगा.न लाइनों पर टूटा हुआ मोबाइल भी पड़ा था. जिसे पुलिस ने कब्जे में ले लिया. शव को देख कर उस की पहचान संभव नहीं थी, इसलिए पुलिस ने कपड़ों की तलाशी ली. तलाशी में मृतक की जेब में एक सुसाइड नोट मिला. पुलिस ने उस टूटे हुए मोबाइल फोन से मिले सिम कार्ड को दूसरे फोन में डाल कर जांच की. फलस्वरूप जल्द ही मृतक की पहचान हो गई, वह वारासिवनी के निकटवर्ती गांव सोनझरा का रहने वाला डा. संजय डहाके था.

पुलिस ने फोन कर के डा. संजय डहाके के सुसाइड करनेकी खबर उस के घर वालों को दे दी. खबर सुनते ही डा. संजय के घर में मातम छा गया. डा. संजय की पत्नी और भाई रोतेबिलखते वारासिवनी पहुंच गए. उन्होंने कपड़ों के आधार पर उस की शिनाख्त संजय डहाके के रूप में कर दी.

लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद टीआई कमल निगवाल ने केस की जांच एएसआई विजय पाटिल को सौंप दी. दूसरे दिन मृतक का पोस्टमार्टम हो जाने के बाद पुलिस ने डा. संजय का शव उन के परिवार वालों को सौंप दिया. डा. संजय के अंतिम संस्कार के बाद एएसआई विजय पाटिल ने डा. संजय के परिवार वालों से पूछताछ की.  पता चला कि एमबीबीएस करने के बाद डा. संजय काफी लंबे समय से बालाघाट के अंकुर नर्सिंग होम में काम कर रहे थे. वह रोजाना अपनी बाइक से बालाघाट जाते और रात 8 बजे ड्यूटी पूरी कर बाइक से ही घर आते थे. घटना वाले दिन भी वह अपनी ड्यूटी पूरी कर बाइक से घर लौट रहे थे, लेकिन उस रोज उन के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था. इसलिए रास्ते में बाइक खड़ी कर के ट्रेन के आगे कूद गए.

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डा. संजय उच्चशिक्षित थे, इस के बावजूद ऐसी क्या वजह रही जो उन्होंने अपनी जीवन लीला खुद ही समाप्त कर ली. जेब में मिले सुसाइड नोट की जांच की गई तो आत्महत्या करने के पीछे की कहानी पता चल गई.

डा. संजय ने अपने सुसाइड नोट में अपने साथ काम करने वाली 22 वर्षीय खूबसूरत नर्स सुधा पर ब्लैकमेल करने का आरोप लगाया था. उन्होंने नोट में लिखा था कि सुधा ने उन्हें अपने रूपजाल में फंसा कर संबंध बना लिए थे. इस के बाद अस्पताल के सामने स्थित एक मैडिकल स्टोर पर नौकरी करने वाले अपने 25 वर्षीय जीजा मनोज दांदरे के साथ मिल कर उन पर शादी करने का दबाव बना रही थी.

चूंकि डा. संजय पहले से ही शादीशुदा थे, इसलिए उन्होंने सुधा के साथ शादी करने से मना कर दिया तो वह अपने जीजा के साथ मिल कर उन्हें ब्लैकमेल करने लगी.

इस पत्र के आधार पर जांच अधिकारी एएसआई विजय पाटिल ने बालाघाट जा कर अंकुर नर्सिंग होम के दूसरे कर्मचारियों से पूछताछ की. पूछताछ में यह बात साफ हो गई कि डा. संजय और वहां काम करने वाली नर्स सुधा ठाकरे में काफी नजदीकियां थीं.

सुधा नौकरी के साथसाथ बीएससी की परीक्षा भी दे रही थी. इसलिए पढ़ाई के चलते कुछ समय पहले वह अस्पताल आती रहती थी. इस दौरान दोनों में कुछ विवाद होने की बात भी कर्मचारियों ने बताई. यह भी पता चला कि इस विवाद के बाद डा. संजय पिछले कुछ दिनों से काफी परेशान रहने लगे थे.

घटना वाले दिन वह कुछ ज्यादा ही परेशान थे. उस दिन उन्होंने अस्पताल में किसी से भी ज्यादा बात नहीं की थी और शाम को अपनी ड्यूटी पूरी कर अस्पताल से चुपचाप चले गए थे. इस के बाद अस्पताल वालों को दूसरे दिन सुबह उन के द्वारा अत्महत्या करने की खबर मिली.

एएसआई विजय पाटिल और उन की टीम ने वारासिवनी सिकंदरा निवासी सुधा ठाकरे और मरारी मोहल्ला, बालाघाट निवासी उस के जीजा मनोज से गहराई से पूछताछ की, जिस में उन दोनों के द्वारा डा. संजय को प्रताडि़त करने की बात समाने आई. सुधा ठाकरे और उस के जीजा मनोज दांदरे से की गई पूछताछ और अन्य सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार कहानी कुछ इस तरह सामने आई—

एमबीबीएस करने के बाद डा. संजय बालाघाट स्थित एक प्रसिद्ध निजी नर्सिंग होम में नौकरी करने लगे थे. गांव सोनझरा से बालाघाट ज्यादा दूर नहीं था, इसलिए वे अपनी ड्यूटी पर रोजाना मोटरसाइकिल पर आतेजाते थे. अपनी योग्यता के चलते डा. संजय ने जल्द ही अच्छा नाम कमा लिया था.

इसी बीच करीब 2 साल पहले वारासिवनी के सिकंदरा इलाके की रहने वाली सुधा ठाकरे ने उसी अस्पताल में नर्स के रूप में काम शुरू किया, जिस में डा. संजय काम करते थे.

सुधा बेहद खूबसूरत थी. वह अपनी खूबसूरती का फायदा उठा कर नर्सिंग होम में सब से चर्चित डा. संजय के नजदीक आने की कोशिश करने लगी. बालाघाट में ही सुधा की बड़ी बहन की शादी हुई थी. उस का पति मनोज दांदरे इसी नर्सिंग होम के सामने स्थित एक मैडिकल स्टोर पर काम करता था. सुधा बालाघाट में अपनी बहन के साथ ही रहती थी. लेकिन साप्ताहिक छुट्टी पर वह अपने घर वारासिवनी चली जाती थी.

सुधा डा. संजय के नजदीक आने की पूरी कोशिश कर रही थी. लेकिन डा. संजय उस की तरफ ध्यान नहीं दे रहे थे. इसलिए सुधा ने एक चाल चली. करीब डेढ़ साल पहले एक रोज बारिश का मौसम था. उस ने डा. संजय से कहा कि वह घर जाते समय अपनी मोटरसाइकिल पर उसे भी वारासिवनी तक ले चलें. डा. संजय को भला इस पर क्या ऐतराज हो सकता था सो उन्होंने उसे अपनी मोटरसाइकिल पर लिफ्ट दे दी.

सुधा की योजना बहुत दूर तक की थी, इसलिए मोटरसाइकिल जैसे ही शहर से बाहर निकली वह डा. संजय से सट कर बैठ गई. डा. संजय को अजीब तो लगा लेकिन वे भी आखिर इंसान थे, खूबसूरत जवान लड़की का सट कर बैठना उन के दिल की धड़कन बढ़ाने लगा. संयोग से उस रोज मौसम ने सुधा का साथ दिया और कुछ ही दूर जाने के बाद अचानक तेज बारिश होने के कारण दोनों को मोटरसाइकिल खड़ी कर एक पेड़ के नीचे आश्रय लेना पड़ा. तब तक रात का अंधेरा भी फैल चुका था. अंधेरे में अपने साथ जवान लड़की को भीगे कपड़ों में खड़ा देख डा. संजय का दिल भी मचलने लगा था.

कुछ देर बाद ठंड लगने के बहाने सुधा उन के पास आ कर खड़ी हुई तो डा. संजय ने उस की कमर में हाथ डाल दिया. सुधा को तो मानो इस पल का इंतजार था. वह एकदम से उन के सीने से लग कर गहरी सांसें लेने लगी.

बारिश काफी देर तक होती रही और उतनी ही देर तक दोनों एकदूसरे के दिल की धड़कनें सुनते हुए पेड़ के नीचे खड़े रहे. इस के बाद सुधा और डा. संजय एकदूसरे से नजदीक आ गए, नतीजतन कुछ ही समय बाद उन के बीच शारीरिक संबंध बन गए. फिर ऐसा अकसर होने लगा.

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सुधा ने अपने जीजा के कहने पर बिछाया जाल

डा. संजय शादीशुदा थे, यह बात सुधा पहले से ही जानती थी. लेकिन उसे इस से कोई फर्क नहीं पड़ता था. क्योंकि उस की योजना कुछ और ही थी. वैसे सुधा के अवैध संबंध अपने जीजा मनोज से भी थे. मनोज काफी चालाक किस्म का इंसान था.

मैडिकल पर काम करते हुए उसे इस बात की जानकारी थी कि डा. संजय को नर्सिंग होम से तो बड़ा वेतन मिलता ही है, इस के अलावा भी उन्हें कई दवा कंपनियों से कमीशन मिलता है. इसलिए उस के कहने पर ही सुधा ने साजिश रच कर संजय को अपने जाल में फंसा लिया था.

कुछ समय बाद जब सुधा को लगने लगा कि डा. संजय अब पूरी तरह से उस के कब्जे में आ चुके हैं तो उस ने उन पर शादी करने का दबाव बनाना शुरू कर दिया. डा. संजय ने शादी करने से मना किया तो सुधा का जीजा मनोज सामने आया और डा. संजय को बदनाम करने की धमकी देने लगा. इस से डा. संजय परेशान हो गए. वे जानते थे कि यदि ऐसा हुआ तो उन की नौकरी जाने में एक पल भी नहीं लगेगा और पूरे इलाके में बदनामी होगी सो अलग. इसलिए उन्होंने सुधा और मनोज को समझाने की कोशिश की तो दोनों उन से चुप रहने के बदले पैसों की मांग करने लगे. जिस से डर कर डा. संजय ने अलगअलग किस्तों में सुधा और मनोज को 8 लाख रुपए दे भी दिए. लेकिन सुधा जहां उन पर लगातार शादी के लिए दबाव बना रही थी, वहीं मनोज चुप रहने के बदले कम से कम 5 लाख रुपयों की और मांग कर रहा था.

इसी बीच सुधा ने नौकरी छोड़ दी और डा. संजय को धमकी दी कि एक महीने के अंदर अगर उन्होंने उस के संग शादी नहीं की तो वह अपने संबंधों का ढिंढोरा पूरे बालाघाट में पीट देगी.

इस बात से डा. संजय काफी परेशान रहने लगे थे. जब उन्हें इस परेशानी से बचने का कोई रास्ता नहीं सूझा तो उन्होंने नर्सिंग होम में ही सुसाइड नोट लिख कर अपनी जेब में रख लिया.

वह सुसाइड करने का फैसला ले चुके थे. अपने गांव सोनझरा लौटते समय रात लगभग 8 बजे वह बनियाटोला स्थित वैष्णो देवी मंदिर के पास पहुंचे. उन्होंने अपनी मोटरसाइकिल वहीं खड़ी कर दी और बालाघाट की ओर से कटंगी जाने वाली ट्रेन के सामने कूद कर आत्महत्या कर ली.

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पुलिस ने सुधा और उस के जीजा मनोज को भादंवि की धारा 306/34 के तहत गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

Manohar Kahaniya: किसी को न मिले ऐसी मां- भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

अधिकारियों के निर्देश पर जश्न व हरन की गुमशुदगी के मामले को गलत नीयत से हुए अपहरण की धारा में दर्ज कर लिया गया. मामले का खुलासा करने के लिए थाना खेड़ी गंडियां इंचार्ज कुलविंदर सिंह के नेतृत्व में थाने के तेजतर्रार पुलिसकर्मियों की टीम गठित कर दी गई.

जिस के बाद पुलिस ने दीदार सिंह के आसपड़ोस के दुकानदारों से पूछताछ तेज कर दी. पड़ोसियों से भी पूछताछ कर ली गई. लेकिन किसी ने भी इस बात की तस्दीक नहीं की कि दोनों बच्चे उन के यहां कोल्डड्रिंक लेने आए थे.

एक बच्चे की मिली लाश

पुलिस ने दीदार सिंह के परिवार की कुंडली भी खंगालनी शुरू कर दी. दीदार सिंह के पिता दर्शन सिंह के3 बच्चे हैं. सब से बड़ी बेटी है गुरमेज कौर जिस की शादी हो चुकी है. छोटा भाई जसंवत सिंह भी शादीशुदा है. जिस घर में दीदार अपनी पत्नी मंजीत कौर व दोनों बेटों हरन व जश्न के साथ रहता है वह उस का पैतृक मकान है.

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दोनों बेटों की शादी के बाद दर्शन सिंह ने मकान 2 हिस्सों में बांट दिया. दोनों भाई अपने परिवारों के साथ अपनेअपने हिस्सों में रहने लगे. दीदार सिंह और जसवंत सिंह दोनों ही पेशे से ड्राइवर थे.

दीदार पटियाला की एक बड़ी ट्रांसपोर्ट कंपनी में ड्राइवर था और ज्यादा समय घर के बाहर ही रहता था. वैसे दोनों भाइयों और उन के परिवार अलग जरूर रहते थे, लेकिन उन के बीच भाईचारे और प्यार की कोई कमी नहीं थी.

पुलिस को दुश्मनी के बिंदु पर जांच करने के बाद कोई सुराग नहीं मिला. जांच चल ही रही थी कि 27 जुलाई, 2019 को भाखड़ा नहर नरवाना ब्रांच में करीब 6-7 साल के एक बच्चे का शव सड़ीगली अवस्था में तैरते हुए पुलिस ने बरामद किया.

पुलिस ने जब आसपास के इलाकों में इस उम्र के लापता बच्चों के बारे में जानकारी हासिल की तो पता चला कि दीदार सिंह के छोटा बेटा हरनदीप सिंह भी इसी उम्र का था.

थानाप्रभारी कुलविंदर सिंह ने परिवार वालों को बुलवा कर जब शव की शिनाख्त का प्रयास किया तो उन्होंने शव को पहचानने से ही इनकार कर दिया.

दरअसल शव इतनी बुरी तरह सड़गल गया था कि उस में पहचान करने के लिए कोई चिह्न ही नहीं बचा था. बहरहाल पुलिस ने शव को बिना पहचान के ही डीएनए टेस्ट के लिए उस का सैंपल ले कर मोर्चरी में सुरक्षित रखवा दिया.

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दरअसल, दीदार सिंह को यकीन ही नहीं था कि उस के बच्चे की कोई हत्या भी कर सकता है. इसीलिए उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि भाखड़ा नहर के नरवाना इलाके में जो शव बरामद हुआ है वह उन के बेटे का हो सकता है.

इधर खेड़ी प्रभारी कुलविंदर सिंह को लगने लगा कि अगर नहर से एक बच्चे का शव बरामद हो गया है तो निश्चित ही दूसरा शव भी नहर में ही मिलेगा.

लिहाजा उन्होंने उच्चाधिकारियों से अनुमति ले कर तैराक व गोताखोरों को बुला कर भाखड़ा नहर के खेड़ी गंडिया से लगे 5 किलोमीटर इलाके में दूसरे शव की तलाश शुरू कर दी.

आखिरकार 4 अगस्त, 2019 को भाखड़ा नहर से करीब 10 साल के एक और बच्चे  का सड़ागला शव बरामद हुआ. उस की उम्र दीदार सिंह के बडे़ बेटे जशनदीप सिंह जितनी थी. लेकिन इस बार बच्चे के हेयरस्टाइल, काला धागा व कपड़ों को देख कर दीदार सिंह के पिता दर्शन सिंह ने उसकी पहचान अपने बडे़ पोते जश्न के रूप में कर दी.

अब दीदार सिंह की समझ में भी यह बात आ गई थी कि अगर बड़े बेटे का शव नहर में मिला है तो जाहिर है पहले जो शव मिला था वह छोटे बेटे का ही होगा.

आखिरकार 5 अगस्त को दीदार सिंह के परिवार ने दोनों बच्चों की लाश पहचानने व उन के शव अपनी सुपुर्दगी में लेने की काररवाई पूरी कर दी. उसी दिन दोनों बच्चों के शवों का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

सवाल था कि दीदार के दोनों बच्चों की मौत नहर में डूबने से हुई थी या उन्हें  किसी ने नहर में ले जा कर धकेल दिया था. दीदार का तो कोई ऐसा दुश्मन भी नहीं था जो ऐसा कर सके. आखिर कौन ऐसा शख्स हो सकता है.

बच्चों का अंतिम संस्कार होने के बाद पुलिस ने दीदार सिंह से एक बार फिर पूछताछ की और उस से ऐसे लोगों के बारे में जानकारी ली जो उस के बच्चों को अपहरण कर हत्या कर सकते थे.

लेकिन दिमाग पर पूरा जोर डालने के बाद भी दीदार सिंह या उन का परिवार किसी ऐसे शख्स के बारे में नहीं बता सका, जिस पर शक किया जा सके.

धीरेधीरे वक्त तेजी से गुजरने लगा. 17 अगस्त, 2019 को पटियाला के एसएसपी विक्रमजीत दुग्गल ने हत्या की आशंका को देखते हुए एक स्पैशल इनवैस्टीगेशन टीम गठित कर दी, जिस में डीएसपी (घनौर) जसविंदर सिंह टिवाणा, डीएसपी (हैडक्वार्टर) गुरदेव सिंह धालीवाल तथा थानाप्रभारी कुलविंदर सिंह को शामिल किया गया.

इस बीच अक्तूबर, 2019 को पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ गई, जिस से साफ हो गया कि बच्चों की मौत डूबने से हुई थी.

इस मामले में दर्ज अपहरण के केस को दोनों बच्चों के शव मिलने के बाद अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का केस दर्ज कर लिया गया था. चूंकि इस मामले में कोई खास जानकारी मिल नहीं रही थी, लिहाजा पुलिस केवल धूल में लट्ठ मारती रही.

वक्त तेजी से गुजरता चला गया. पहले दिन बीते, फिर महीने बीतने लगे. दीदार सिंह थाने से ले कर एसआईटी के अफसरों और उच्चाधिकारियों के सामने अपने बच्चों के कातिलों का सुराग जल्द लगाने के लिए धक्के खाता रहा.

इधर इलाके के विधायक व सांसद भी पुलिस पर दबाव देते रहे. पुलिस अपने काम में कुछ कदम आगे बढ़ती, इस से पहले ही मार्च 2020 में कोरोना महामारी के कारण देशव्यापी लौकडाउन लग गया.

5 महीने तक लौकडाउन लगा रहा, जिस कारण पुलिस की जांच जहां की तहां फाइलों में कैद हो कर रह गई. इस दौरान एक साल का वक्त गुजर चुका था. दिसंबर, 2020 में एसएसपी दुग्गल ने हरन व जश्न की जांच के मामले में गठित हुई एसआईटी के इंचार्ज डीएसपी घनौर जसविंदर सिंह टिवाणा को बुला कर जांच को तेजी से आगे बढ़ाने के निर्देश दिए.

अगले भाग में पढ़ें- घटनास्थल से पलटी हत्याकांड की थ्यौरी

Satyakatha: स्पा सेंटर की ‘एक्स्ट्रा सर्विस’- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

राजेश ने खुश हो कर अपने बटुए से रीटा को उस की एक्स्ट्रा सर्विस के पैसे दिए और नीचे रिसैप्शन पर आ कर पूनम को स्पैशल मसाज के लिए शुक्रिया कहा और दुकान के बाहर से आटो पकड़ा और घर आ गया. राजेश शारीरिक थकावट और दर्द के मारे अगले 2 दिनों तक औफिस नहीं जा पाया.

स्पा सेंटर की अनोखी दुकानें, जिस का बोर्ड देख कर ही लोगों के मन में अनोखे खयाल पैदा हो जाते हैं, आजकल बढ़ते ‘गुलाबी धंधे’ का अड्डा बन रहे हैं. बौडी मसाज के नाम पर लोग आजकल स्पा सेंटरों में जाते हैं और अपने दिलों में दबी इच्छाओं की पूर्ति कर लेते हैं.

स्पा सेंटरों में मसाज कराने का मेनू कार्ड बेशक लंबाचौड़ा क्यों न हो, लेकिन लोग कीमत की परवाह किए बगैर स्पा व मसाज सेंटरों में जा कर अपनी पसंद की महिला से मनचाहा मसाज करवाते हैं.

चाहे वह स्वीडिश मसाज हो, डीप टिश्यू मसाज हो, हौट स्टोन मसाज हो या फिर ट्रिगर पौइंट मसाज हो. मसाज कराने के ग्राहक के पास दरजनभर औप्शन होते हैं, जिस में से वह कोई एक चुनता है और उस के दिल में एक ही तरह के मसाज की तमन्ना होती है.

दिल्ली के बड़ेबड़े और हर रिहाइशी इलाकों में स्पा सेंटर खुले हैं. पहाड़गंज, करोलबाग, ग्रीन पार्क, महिपालपुर, द्वारका, रमेश नगर, लाजपत नगर वगैरह जैसे कई इलाकों में स्पा सेंटरों की दुकानों की भरमार है.

पहले के समय देह व्यापार के लिए खास जगह मौजूद होते थे. लेकिन जैसेजैसे प्रशासन का शिकंजा इस तरह के गैरकानूनी धंधों को रोकने के लिए मजबूत हुए हैं, वैसेवैसे देह व्यापार से जुड़े लोगों ने खुद को बनाए रखने के लिए अपना रूप भी बदला है.

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बड़े शहरों में मौजूद रेलवे स्टेशनों के आस पास मौजूद होटल आज कल स्पा सेंटरों में तब्दील होने लगे हैं. यही नहीं बड़ेबड़े होटलों के भीतर भी स्पा सेंटर जैसी सुविधाएं मौजूद होती हैं, जो चौबीसों घंटे काम करती हैं.

इन स्पा सेंटरों में देह व्यापार से जुड़े कई लोग जुड़े हुए होते हैं. स्पा सेंटरों में मौजूद मसाज करने वाले कई ऐसे हैं जिन्हें मसाज करना आता भी नहीं है, बस, वो देह व्यापार के चलते इन स्पा सेंटरों से जुड़ जाते हैं और अपना धंधा चला रहे हैं.

ऐसे सेंटरों से कई विदेशी कालगर्ल्स भी जुड़ी होती हैं. ग्राहकों की मांग पर विशेष रूप से मसाज करने के बहाने उन्हें बुलाया जाता है.

दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने साल 2018 में दिल्ली पुलिस, श्रम विभाग और सिविक एजेंसियों से उन के इलाके में चलने वाले स्पा सेंटरों की एक सूची मांगी थी. इस में मुख्यरूप से, कितनों के पास लाइसेंस हैं, कितनों के खिलाफ काररवाई हुई, स्पा सेंटरों का निरीक्षण इत्यादि जानकारी देने के लिए कहा गया था. 28 नवंबर, 2018 तक इन सभी के बारे में विस्तृत जानकारी मांगी गई थी.

स्पा सेंटर वाले कहते हैं कि उन के स्पा सेंटर सुरक्षित और सही हैं, रेड पड़ने का कोई चांस ही नहीं है. लेकिन अखबारों में बेहद कम ही ऐसी खबरें देखने को मिलती हैं जिस में स्पा सेंटरों पर काररवाई होती हुई कोई खबर दिखाई देती हो.

इस से अंदाजा लगाया जा सकता है कि स्पा सेंटरों की हर किसी से सेटिंग हैं और इन सेंटरों में होने वाला ‘गुलाबी धंधा’ धड़ल्ले से चल रहा है.  द्य

दिल्ली सरकार के सख्त कदम

हाल ही में 2 अगस्त को दिल्ली सरकार ने शहर में स्पा और मालिश केंद्रों के संचालन पर नजर रखने और विनियमित करने के लिए सख्त दिशानिर्देश दिए. जिस में ग्राहकों और कर्मचारियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सभी कर्मचारियों के लिए अनिवार्य रूप से पुलिस मंजूरी हासिल करना और परिचालन घंटे को सुबह 9 बजे से रात 9 बजे तक सीमित करना शामिल है.

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दिल्ली सरकार ने यौन शोषण, तसकरी और क्रौस जेंडर मालिश को रोकने के लिए भी इन दिशानिर्देशों को जारी किया है. इसी के साथ ही दिल्ली सरकार कई गाइडलाइंस जारी कर के इन स्पा सेंटरों पर पैनी नजर गड़ाने का काम कर रही है.

नए दिशानिर्देशों में कई प्रावधानों को शामिल किया गया हैं. जैसे केंद्रों के कमरों में केवल स्वत: बंद होने वाले दरवाजे लगाने होंगे, कोई कुंडी या बोल्ट की अनुमति नहीं होगी. और सभी बाहरी दरवाजे काम के घंटों के दौरान खुले रहने के आदेश दिए हैं.

इसी के साथ ही इन स्पा सेंटरों में पुरुषों और महिलाओं के लिए अलगअलग मालिश के कमरे, शौचालय, चेंजिंग रूम और स्नानघर के होने की बातें कही हैं.

अब देखना यह है कि क्या सरकार के इन कठोर दिशानिर्देशों और नियमों का स्पा सेंटरों में चलने वाले देह व्यापार पर कोई असर पड़ता है या नहीं.

Best of Crime Story: मोहब्बत दूसरी नहीं होती

लेखक- सुरेशचंद्र मिश्र 

कानपुर शहर में आवास विकास द्वारा निर्मित एक जगह है केशवपुरम. वहां के नागेश्वर अपार्टमेंट में फ्लैट नंबर 612 कोचिंग से करोड़पति बने मोहम्मद सहवान का था. अन्य दिनों की तरह बीती 30 अप्रैल को भी नौकरानी राधा सहवान के फ्लैट पर पहुंची तो दरवाजा बंद था. लेकिन चाबी लौक में फंसी हुई थी.  इस फ्लैट में सहवान अपनी दूसरी बीवी नमरा खान के साथ रहते थे. नौकरानी राधा ने पहले तो घंटी बजाई, लेकिन जब जवाब नहीं मिला तो वह दरवाजा खोल कर अंदर दाखिल हुई. वहां फर्श पर खून से लथपथ नमरा का शव पड़ा देख कर उस की चीख निकल गई. वह उलटे पैर फ्लैट के बाहर आई और शोर मचाना शुरू कर दिया. राधा की आवाज सुन कर अन्य फ्लैटों में रहने वाले लोग बाहर आ गए. राधा ने उन्हें नमरा की हत्या की सूचना दी तो सभी अवाक रह गए. इसी नागेश्वर अपार्टमेंट के फ्लैट नंबर 610 में सहवान का भाई इरफान रहता था. लोगों ने उसे जानकारी दी तो वह भी आ गया. इरफान ने राधा से कुछ सवालजवाब किए, फिर तत्काल मोबाइल फोन द्वारा थाना कल्याणपुर पुलिस को भाभी नमरा की हत्या की सूचना दे दी. इमरान ने ही मृतका के पिता शहंशाह खान तथा अपने अन्य परिजनों को यह खबर दी. इस के बाद तो कोहराम मच गया.

सुबह 10 बजे हत्या की सूचना पा कर थाना कल्याणपुर के इंसपेक्टर अश्वनी पांडेय चौंके. उन्होंने महिला की हत्या की सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दी, फिर पुलिस टीम के साथ केशवपुरम स्थित नागेश्वर अपार्टमेंट जा पहुंचे.बहुमंजिला अपार्टमेंट के बाहर भीड़ जुटी थी और लोग कानाफूसी कर रहे थे. इंसपेक्टर अश्वनी पांडेय फ्लैट नंबर 612 पर पहुंचे, जहां महिला की हत्या किए जाने की सूचना मिली थी. फ्लैट के बाहर कुछ लोग बदहवास हालत में खड़े थे. पुलिस को देख कर एक युवक सामने आ कर बोला, ‘‘सर, मेरा नाम इरफान है. मैं ने ही आप को नमरा भाभी की हत्या की सूचना दी थी.’’

इंसपेक्टर अश्वनी पांडेय ने एक नजर इरफान पर डाली, फिर उसे साथ ले कर फ्लैट के अंदर दाखिल हुए. कमरे के अंदर का दृश्य बड़ा ही वीभत्स था. खून में डूबी नमरा की लाश फर्श पर पड़ी थी. पलंग पर बिछी सफेद चादर पर भी खून लगा था. पलंग पर खून से सना चाकू, चश्मा तथा कान में लगाने वाली हैंड्सफ्री लीड पड़ी थी. शव के पास खून सना नया कुकर पड़ा था. देखने से लग रहा था कि कुकर से सिर पर प्रहार कर नमरा की हत्या की गई थी. बाथरूम में खून से सनी जींस हुक पर टंगी थी.

कमरे के अंदर नमरा की लाश तो पड़ी थी, लेकिन उस के शौहर मोहम्मद सहवान का कोई अतापता नहीं था. पूछने पर इरफान ने बताया कि भाईसाहब अपनी स्कोडा कार सहित घर से गायब हैं.वह कहां हैं, किस हालत में हैं, हम में से किसी को कुछ नहीं पता. मैं ने हर संभावित स्थान पर पता किया है, लेकिन उन की कोई जानकारी नहीं मिल रही है. इरफान की बात सुन कर इंसपेक्टर अश्वनी पांडेय का माथा ठनका. वह सोचने लगे कि कहीं शौहर ही तो बीवी का कत्ल कर फ रार नहीं हो गया. इंसपेक्टर अश्वनी पांडेय अभी जांचपड़ताल कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसएसपी अनंतदेव तिवारी, एसपी (पश्चिम) संजीव सुमन, एएसपी (ट्रेनिंग) आदित्य लांग्हे तथा सीओ (कल्याणपुर) अजय कुमार भी घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया और पांडेय जी से कत्ल के बारे में जानकारी ली. फोरैंसिक टीम ने भी बड़ी बारीकी से जांच की. टीम ने घर का कोनाकोना छान मारा. इस टीम को रसोई में गैस चूल्हे पर भगौने में कौफी मिली जो उबल कर चूल्हे पर गिरी थी. गैस के पास ही एक कप रखा था. टीम ने उस कप की जांच की तो उस में जहर के अंश मिले. पुलिस टीम ने कुकर, चश्मा, खून सनी जींस, चाकू तथा कप जांच के लिए कब्जे में ले लिए. बाथरूम, वाश बेसिन तथा जींस पर मिले खून के धब्बों का भी परीक्षण किया गया. जांच में वाश बेसिन में खून सने हाथ धोने की पुष्टि हुई. जींस व बाथरूम में भी खून होने की पुष्टि हुई. इस के अलावा टीम ने अन्य साक्ष्य भी जुटाए.

डायरी के पन्नों पर बिखरा दर्द और कत्ल की हकीकत

पुलिस अधिकारियों ने भी पूरे घर की छानबीन की. इस छानबीन में सीओ अजीत कुमार को सहवान की एक डायरी मिली. उन्होंने डायरी के  पन्नों को पलटा तो 2 पेज का एक नोट मिला. इस में सहवान ने अपनी दूसरी शादी से ले कर आए दिन तकरार, बेटे से अलग होने का दर्द और दूसरी पत्नी नमरा की हत्या से ले कर अपनी आत्महत्या की मजबूरी बयां की थी. डायरी के अंश इस तरह थे.

‘बीवी (पहली) से मेरी लड़ाई थी. सितंबर 2016 में नमरा मेरी जिंदगी में आई. मैं ने इसे कई बार टोका, लेकिन नहीं मानी. अपने बच्चों के बारे में भी बताया फिर भी… इस के कहने पर मैं ने समराना को तलाक दे दिया. फिर हम दोनों ने 21 जुलाई, 2018 में शादी कर ली.

‘नमरा के घर वालों को पता चला तो वे लोग उसे घर ले गए. उन्होंने 27 सितंबर, 2018 को हमारी दोबारा शादी कराई. इस के घर वालों ने बहुत दबाव दे कर 20 करोड़ मेहर बंधवाया. शादी के बाद से ही इस ने मेरे बेटे को मारनापीटना शुरू कर दिया. फाइनली मुझे अपने बच्चे को दूर करना पड़ा. नमरा खुद दिन भर सोती थी और रात में मुझे सोने नहीं देती थी. सीने पर नोचती और इतनी गंदी तरह से बात करती कि मन करता मर जाओ या कहीं भाग जाओ. पता नहीं कैसेकैसे लड़कों से बात करती थी. आज मुझ से यह हो गया, अब मैं भी नहीं जी सकता.’

डायरी के पन्नों में बयां दर्द से स्पष्ट था कि मोहम्मद सहवान ने अपनी दूसरी बीवी नमरा का कत्ल किया और खुद भी जान देने के लिए अपनी कार से घर से निकल गया. लेकिन वह कहां है, किस हालत में है, इस की जानकारी पुलिस अधिकारियों को अभी तक नहीं थी. नागेश्वर अपार्टमेंट की बहुमंजिला इमारत में लगभग 60 सीसीटीवी कैमरे लगे थे. मोहम्मद सहवान के फ्लैट के बाहर भी कैमरा लगा था.

पुलिस अधिकारियों ने उस कैमरे को खंगाला तो पता चला कि वह 28 अप्रैल से बंद था, जिस से मोहम्मद सहवान के आनेजाने का पता नहीं चल सका. लेकिन नमरा की हत्या के बाद तथा सहवान के घर से जाने के बाद सीसीटीवी कैमरा चालू हो गया था.

कैमरा किस ने बंद और चालू किया, इस पर पुलिस को संदेह हुआ. पुलिस अधिकारियों ने वाचमैन रमेशचंद से पूछताछ की तो उस ने रजिस्टर चैक कर बताया कि 29 अप्रैल की रात पौने 9 बजे मोहम्मद सहवान अपने फ्लैट पर आए थे और रात 12.10 बजे अपनी कार से बाहर चले गए थे. तब से वापस नहीं आए.

पुलिस अधिकारी अभी जांच कर ही रहे थे कि थाना बिल्हौर पुलिस से सूचना मिली कि एक युवक ने जहर खा लिया है. उसे गंभीर हालत में हैलट अस्पताल में भरती कराया गया है. इस सूचना पर कल्यापुर के इंसपेक्टर अश्वनी पांडेय इरफान को साथ ले कर हैलट अस्पताल पहुंचे. वहां भरती व्यक्ति को देख कर इरफान फफक कर रो पड़ा. उस ने भाई की मौत की सूचना घर वालों को भी दे दी.

थाना बिल्हौर पुलिस ने इंसपेक्टर अश्वनी पांडेय को बताया कि धौरसलार रेलवे स्टेशन के पास जीटी रोड पर सड़क किनारे एक स्कोडा कार खड़ी थी. वहां से थोड़ी दूरी पर यह व्यक्ति सड़क किनारे अचेतावस्था में पड़ा मिला. यह सूचना श्याम मिश्रा नाम के व्यक्ति ने पुलिस को दी थी.

सूचना पर पहुंची पुलिस ने तत्काल इसे हैलट अस्पताल में भरती कराया, जहां इस ने दम तोड़ दिया. कार की जामातलाशी में प्रौपर्टी के कागजात, थाना कल्याणपुर को दिया गया एक प्रार्थनापत्र तथा सल्फास की 3 खाली पुडि़या बरामद हुई थी. कार में सीट पर उल्टी भी की गई थी.

आत्महत्या ही ठीक लगी सहवान को

चूंकि प्रार्थनापत्र में थाना कल्याणपुर का जिक्र था, अत: कल्याणपुर के सीओ को सूचना दी गई. इंसपेक्टर अश्वनी पांडेय ने मोहम्मद सहवान के शव को मोर्च्युरी में रखवा दिया. फिर कार से बरामद कागजात व सल्फास की खाली पुडि़या अपने कब्जे में ले कर वापस लौट आए. पांडेय ने सारी जानकारी पुलिस के आला अधिकारियों को दी और कार से मिले कागजात उन्हें सौंप दिए. अधिकारियों ने निरीक्षण हेतु मृतक सहवान की स्कोडा कार यूपी 78सीबी 6040 को भी थाना कल्याणपुर मंगवा लिया.

अब तक घटनास्थल पर मृतका नमरा खान के पिता शहंशाह खान तथा मृतक सहवान की पहली पत्नी समराना भी आ गई थी. नौकरानी राधा तथा मृतक के भाई इरफान, इमरान तथा जिबरान पहले से ही पुलिस की निगरानी में थे.

पुलिस अधिकारियों ने सारे सबूत एकत्र कर मृतका नमरा खान के शव को पोस्टमार्टम के लिए हैलट अस्पताल भिजवा दिया. उधर इंसपेक्टर अश्वनी पांडेय ने हैलट अस्पताल की मोर्च्युरी में रखे मृतक सहवान के शव को पोस्टमार्टम हाउस भिजवा दिया.

दोनों शवों को पोस्टमार्टम हाउस भिजवाने के बाद पुलिस अधिकारियों ने मामले की तह तक जाने के लिए सब से पहले मृतक के भाई इरफान से पूछताछ की. इरफान ने अधिकारियों को बताया कि भैयाभाभी में आपस में नहीं बनती थी. उन में अकसर झगड़ा होता रहता था. उस से लड़ाईझगड़े की बात सहवान भाई बताया करते थे, लेकिन वह उन दोनों के बीच पड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाता था.

इमरान ने बताया कि उस की पत्नी निदा गर्भवती थी. 2 दिन पहले वह उसे छोड़ने ससुराल मसवानपुर गया था और वहां से आज सुबह ही लौटा था. कोचिंग जाने के लिए निकला तो पार्किंग में सहवान भाई की कार न देख कर गार्ड से जानकारी ली. लेकिन वह सही जवाब नहीं दे पाया. इसी बीच अपार्टमेंट में हत्या का शोर मचा. लोगों ने बताया कि फ्लैट नंबर 612 में एक महिला की हत्या हो गई है. चूंकि यह फ्लैट उस के भाई का था, सो वह तुरंत वहां पहुंचा. नौकरानी राधा वहां बदहवास हालत में खड़ी थी. उस ने राधा से बातचीत की, फिर भाभी की हत्या की जानकारी थाना कल्याणपुर पुलिस को दी.

इरफान के भाई इमरान व जिबरान ने बताया कि वह मांबाप के साथ मछरिया नौबस्ता में रहते हैं. वे दोनों सहवान की काकादेव स्थित कोचिंग में पढ़ाते थे. उन दोनों को पढ़ाने के एवज में सहवान 40-40 हजार रुपए प्रतिमाह देते थे. उन की निजी जिंदगी के बारे में उन्हें ज्यादा जानकारी नहीं थी. आज जब वे दोनों कोचिंग में थे, तभी इरफान भाई द्वारा नमरा की हत्या और सहवान भाई द्वारा आत्महत्या किए जाने की जानकारी मिली. इस के बाद दोनों यहां आ गए.

राधा ने बताया कलह के बारे में

नौकरानी राधा ने पुलिस अधिकारियों को बताया कि साहब और मेमसाहब के बीच बहुत खराब रिश्ता था. दोनों अकसर मारपीट करते रहते थे. झगड़ा ज्यादातर रात में होता था. सुबह जब वह काम करने आती थी तो फर्श पर ग्लास या फूलदान टूटा मिलता था. एक दिन तो टीवी बिखरा पड़ा था. आज सुबह जब वह काम पर आई तो दरवाजा बंद था, लेकिन चाबी लौक में फंसी थी.

पहले तो उस ने घंटी बजाई लेकिन जब जवाब नहीं मिला तो वह दरवाजा खोल कर अंदर दाखिल हुई. फर्श पर मेमसाहब की खून से लथपथ लाश देख कर उस के मुंह से चीख निकल गई. तब वह बाहर आई और यह जानकारी लोगों को दी.

मृतक सहवान की पहली पत्नी समराना ने पुलिस अधिकारियों को बताया कि सन 2007 में उस का निकाह मोहम्मद सहवान से हुआ था. शादी के बाद उस के 2 बच्चे भी हुए. वह शौहर के साथ खुशहाल जिंदगी गुजार रही थी. लेकिन उस के जीवन में ग्रहण लगा वर्ष 2016 में जब नमरा खान कोचिंग में पढ़ने आई.

पढ़ने के दौरान उस के और सहवान के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं, जो बाद में प्यार में तब्दील हो गईं. इस के बाद नमरा को ले कर उस के और शौहर सहवान के बीच झगड़ा होने लगा. फिर एक दिन नमरा के उकसाने पर सहवान ने उसे तलाक दे दिया. वह बेटी अंसरा के साथ मायके जा कर रहने लगी. फिर नमरा और सहवान ने शादी कर ली. नमरा उस के बेटे अयान को मारतीपीटती थी, जिस की वजह से सहवान ने बेटे को अपने मांबाप के पास छोड़ दिया था.

इस के बावजूद दोनों में लड़ाई होती थी. नमरा के व्यवहार से सहवान बहुत दुखी रहते थे. उस के और सहवान के बीच गुजाराभत्ता तथा उत्पीड़न का मुकदमा चल रहा था, फिर भी  वह उस से नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश करने लगे थे. वह बेटी अंसरा से मिलने के बहाने घर आते थे. बेटी से वह फोन पर भी बात किया करते थे. उन्हें लगने लगा था कि नमरा से दूसरा निकाह कर के उन्होंने भारी भूल की है.

29 अप्रैल, 2019 की रात 8 बजे सहवान ने उसे फोन किया और बेटी अंसरा से बात कराने को कहा. उस ने अंसरा से उन की बात करा दी. सहवान ने अंसरा से कहा था कि बेटी मैं तुम को बहुत मिस करता हूं. आई लव यू.

अंसरा ने भी आई लव यू पापा कहने के साथ फल और कुछ सामान ले कर आने को कहा था. सहवान ने उसे जल्द आने का भरोसा दिया था. सहवान तो नहीं आए लेकिन आज उन की मौत की खबर जरूर आ गई. इतना कह कर समराना फफक पड़ी.

पुलिस अधिकारियों ने मृतका नमरा खान के पिता शहंशाह खान से पूछताछ की तो वह रो पड़े और बोले, ‘‘नमरा ने अगर उन की बात मानी होती तो वह जिंदा होती. नमरा छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय से बीटेक की पढ़ाई कर रही थी. वह काकादेव स्थित सहवान की कोचिंग में पढ़ाई करने जाती थी. पढ़ाई के दौरान ही नमरा को सहवान से मोहब्बत हो गई और दोनों ने शादी रचा ली. जब यह जानकारी उन्हें हुई तो वह नमरा को बांगरमऊ, उन्नाव स्थित अपने घर ले आए. उन्होंने नमरा को समझाया कि सहवान शादीशुदा और 2 बच्चों का पिता है. उम्र में भी वह उस से दोगुना बड़ा है. लेकिन सहवान के प्रेम में अंधी नमरा ने उन की बात नहीं मानी. मजबूर हो कर बेटी की जिद के आगे उन्हें झुकना पड़ा.’’

नमरा की हत्या की तसवीर तो साफ हो गई लेकिन कई सवाल खड़े हो रहे थे.

नमरा खान की हत्या की तसवीर अब तक काफी साफ हो चुकी थी. फिर भी पुलिस के मन में काफी आशंकाएं पनप रही थीं. जैसे सीसीटीवी कैमरा किस ने बंद किया और फिर किस ने चालू किया. नमरा की हत्या की सूचना थाना पुलिस को देर से क्यों दी गई. सहवान ने अगर घर में जहर पीया तो वह इतनी देर तक कैसे जिंदा रहा. क्या नमरा की हत्या में कोई और भी शामिल था, जो नमरा की हत्या कर सहवान को उतनी दूर तक ले गया था?

अभी तक पुलिस को दोनों मृतकों के मोबाइल फोन नहीं मिले थे. पुलिस को शक था कि दोनों मोबाइलों को सहवान ने कहीं फेंक दिया होगा. पुलिस ने दोनों मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई, जिस से पता चला कि रात 12.10 बजे अपार्टमेंट से निकलने के बाद सहवान कार से नवाबगंज क्षेत्र में घूमता रहा.

सुबह पौने 4 बजे उस की लोकेशन चिडि़याघर के पास मिली. 4 बजे रानीघाट तथा 4 बज कर 8 मिनट पर उस की लोकेशन गंगा बैराज के पास की थी. पुलिस को शक हुआ कि उस ने गंगा बैराज के पास ही दोनों मोबाइल तोड़ कर फेंक दिए होंगे.

नमरा के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स से पता चला कि उसने 28 अप्रैल की रात 3 बजे से 5 बजे के बीच लगातार एक नंबर पर बात की. उस के बाद उस के नंबर पर कोई बात नहीं हुई. नमरा ने जिस नंबर पर बात की थी, उस की लोकेशन उस समय दिल्ली से सटे नोएडा की थी.

पुलिस ने उस नंबर को डायल किया तो पता चला कि वह नंबर एक जिम ट्रेनर का था. वह जिम टे्रनर पहले कल्याणपुर में रहता था और एक जिम में ट्रेनर था. इस जिम में नमरा हर रोज तथा सहवान कभीकभी कसरत करने जाते थे. इसी जिम में नमरा की मुलाकात जिम ट्र्रेनर से हुई थी. बाद में अकसर दोनों के बीच बातचीत होने लगी थी. कुछ दिन पहले जिम ट्रेनर नौकरी छोड़ कर नोएडा चला गया था, तब भी नमरा की उस से बात होती रहती थी.

सीओ अजय कुमार ने जब इस जिम ट्रेनर से नमरा के बारे में जानकारी चाही तो उस ने बताया कि नमरा और सहवान का वैवाहिक जीवन सही नहीं चल रहा था. दोनों के विचारों में अहं और विरोधावास था. दोनों एकदूसरे के चरित्र पर शक करते थे. इस सब का जिक्र नमरा उस से फोन पर करती रहती थी. वह अपनी हर बात उस से शेयर करती थी.

जांचपड़ताल से पुलिस को यह भी पता चला कि सहवान ने पत्नी की हत्या करने के बाद चिडि़याघर पहुंचने पर पुलिस के 100 नंबर पर भी फोन किया था. उस ने कहा था कि मैं सहवान बोल रहा हूं. मैं ने अपनी पत्नी की हत्या कर दी है. उस की लाश केशवपुरम के फ्लैट नंबर 612 में पड़ी है.

इस सूचना पर पुलिस केशवपुरम तक गई थी लेकिन अपार्टमेंट का सही नाम मालूम न होने के कारण वापस लौट आई थी. पुलिस ने पलट कर वही नंबर डायल किया, लेकिन नंबर बंद मिला. पुलिस ने समझा कि किसी ने मजाक किया होगा क्योंकि पुलिस कंट्रोल रूम को आए दिन झूठी काल मिलती रहती हैं.

पुलिस टीम ने इस चर्चित हत्याकांड की तह तक पहुंचने के लिए एक सप्ताह से अधिक गहन जांचपड़ताल की. इस बीच पुलिस ने दरजनों लोगों से पूछताछ की. उन के मोबाइल की कालडिटेल्स भी खंगाली. सहवान की पहली पत्नी समराना से भी कई राउंड पूछताछ की गई. सीसीटीवी कैमरे से छेड़छाड़ की जांच भी हुई तथा श्याम मिश्रा का बयान भी दर्ज किया. उस ने ही सहवान को सब से पहले कार से नीचे उतरते समय तड़पते देखा था.

सिमराना ने पुलिस को वह रिकौर्डिंग भी सौंपी, जिस में सहवान ने कहा था कि यदि मुझे कुछ हो जाए तो सारी प्रौपर्टी तुम्हारी होगी. नौमिनी तुम ही हो. बच्चों को अच्छी तालीम देना. जांच के बाद पुलिस इस नतीजे पर पहुंची कि नमरा की हत्या सहवान ने ही की थी. फिर बचाव का कोई रास्ता न देख कर स्वयं भी सल्फास खा कर आत्महत्या कर ली थी.

सहवान की पृष्ठभूमि

उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर के नौबस्ता थानांतर्गत एक मोहल्ला है मछरिया. मुसलिम बाहुल्य मछरिया के सी ब्लौक में मोहम्मद रमजान सिद्दीकी अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी हाजरा खातून के अलावा 4 बेटे मोहम्मद सहवान सिद्दीकी, मोहम्मद इरफान, मोहम्मद इमरान, मोहम्मद जिबरान तथा एक बेटी नूरजहां थी. मोहम्मद रमजान सिद्दीकी एक्सपोर्ट कंपनी में नौकरी करते थे. उन्हें जो वेतन मिलता था, उसी से वह परिवार का भरणपोषण करते थे.

मोहम्मद रमजान सिद्दीकी खुद तो ज्यादा पढ़ेलिखे नहीं थे लेकिन वह अपने बच्चों को अच्छी तालीम देना चाहते थे. इस के लिए वह खानपान व अन्य घरेलू खर्चों में कटौती कर बच्चों की पढ़ाई पर खर्च करते थे. वैसे तो उन के चारों बच्चे पढ़ने में होशियार थे लेकिन बड़ा बेटा मोहम्मद सहवान पढ़ाई में कुछ ज्यादा ही तेज था.

मोहम्मद सहवान का सपना आईआईटी करना था. उस ने इस की तैयारी शुरू की. फलस्वरूप उस का चयन आईआईटी रुड़की में हो गया. उस ने जी जान से पढ़ाई की और सन 1998 में आईआईटी रुड़की से कंप्यूटर साइंस से बीटेक पास किया. यही नहीं वह अपने बैच का टौपर भी बना.

साधारण परिवार से ताल्लुक रखने वाले मोहम्मद सहवान ने बीटेक करने के बाद सन 2003 में कोचिंग मंडी काकादेव में हार्वर लिमिट क्लासेज नाम से कोचिंग इंस्टीट्यूट खोला. शुरुआत में उस के इंस्टीट्यूट में छात्रों की संख्या कम रही लेकिन बाद में बढ़ती गई. सहवान ने एक बार इस क्षेत्र में कदम रखा तो फिर आगे और आगे बढ़ता गया. अपने काम की बदौलत उसे इज्जत, शोहरत और नाम मिला. वह मैथ का जानामाना टीचर था.

कोचिंग इंस्टीट्यूट चल जाने के बाद उस का ध्यान अपने भाइयों की ओर गया. उस ने एक भाई इरफान को अपने इंस्टीट्यूट का मैनेजिंग डायरेक्टर बना दिया, जबकि अन्य 2 भाइयों इमरान व जिबरान को पहले एक प्राइवेट संस्थान से बीटेक कराया फिर अपने ही इंस्टीट्यूट में जौब दे दी. इमरान फिजिक्स पढ़ाता था जबकि जिबरान कैमिस्ट्री का टीचर था.

पूरी तरह सेटल होने के बाद मोहम्मद सहवान ने अगस्त 2007 में समराना से निकाह कर लिया. समराना रेडीमेड मार्केट बेकनगंज निवासी नासिर की बेटी थी. समराना पढ़ीलिखी व खूबसूरत थी. उस ने क्राइस्ट चर्च कालेज से एमएससी किया था. निकाह के बाद समराना मछरिया स्थित अपनी ससुराल में रहने लगी.

समराना अपने शौहर के प्रति पूर्णरूप से समर्पित थी और उस का हर तरह से खयाल रखती थी. मोहम्मद सहवान भी समराना को बहुत चाहता था. दोनों की जिंदगी खुशहाल थी. समय के साथ समराना एक बेटे अयान और एक बेटी अंसरा की मां बन गई.

समराना लकी चार्म थी सहवान की

समराना सहवान के घर साक्षात लक्ष्मी बन कर आई थी. जब से वह उस के घर आई थी, तभी से उस की आय, इज्जत और शोहरत बढ़ती गई. मोहम्मद सहवान ने अब तक हार्वर लिमिट क्लासेज कोचिंग को बंद कर ग्लोबल कैरियर एकेडमी के नाम से 3 कोचिंग सेंटर खोल लिए थे. इन में एक काकादेव, दूसरा गोविंदनगर तथा तीसरा साकेत नगर में था.

इन कोचिंग सेंटरों पर हजारों की संख्या में छात्रछात्राएं आते थे. बेहतरीन गणित पढ़ाने के चलते सहवान ने कोचिंग के क्षेत्र में बड़ा मुकाम हासिल कर लिया था. उस की कोचिंग आईआईटी, जेईई की तैयारी के लिए गणित के साथ ही फिजिक्स, कैमिस्ट्री ही नहीं एनडीए, सीडीएस, एसएसबी, नेवी, एयरफोर्स, एसएससी, बैंक आदि की तैयारी के लिए भी मशहूर थी.

मोहम्मद सहवान ने कोचिंग से बहुत पैसा कमाया. इस कमाई से उस ने कई फ्लैट, फार्महाउस, करोड़ों का बैंक बैलेंस और जगुआर, स्कोडा, एंडेवर, इंडिगो जैसी महंगी कारें खरीदीं. उस के पास जो जगुआर कार थी, उस की कीमत 1.31 करोड़ रुपए थी.

सहवान ने कानपुर की आवास विकास कालोनी केशवपुर के नागेश्वर अपार्टमेंट में 5 फ्लैट खरीदे. जिस में एक उस के भाई इरफान, दूसरा समराना तथा तीसरा खुद उस के नाम है. नागेश्वर अपार्टमेंट के फ्लैट नंबर 612 में सहवान पत्नी सिमराना के साथ रहने लगा. फ्लैट नंबर 610 में उस का भाई इरफान अपनी पत्नी निदा के साथ रहता था. फ्लैट नंबर 309 जो समराना के नाम था, उस में ताला लगा दिया था.

समराना शौहर के साथ खुशहाल जिंदगी व्यतीत कर रही थी, लेकिन सन 2016 में उस की जिंदगी में एक ऐसा तूफान आया कि उस का सब कुछ तहसनहस हो गया. दरअसल सन 2016 में नमरा खान उस के शौहर सहवान की काकादेव स्थित ग्लोबल कैरियर एकेडमी में कोचिंग के लिए आई.

18 वर्षीया नमरा खान उन्नाव के बांगरमऊ कस्बा निवासी शहंशाह खान की बेटी थी. वह धनाढ्य परिवार की थी. नमरा के पिता शहंशाह खान सपा के दबंग नेता तथा चर्चित व्यापारी थे. नमरा के बाबा जुम्मन खान बांगरमऊ नगर पालिका के चेयरमैन रहे थे.

नमरा खान कानपुर के शारदा नगर स्थित गर्ल्स हौस्टल में रह कर बीटेक की पढ़ाई कर रही थी. वह छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय की छात्रा थी. साथ ही आईआईटी की भी तैयारी कर रही थी. इस के लिए उस ने कोचिंग जौइन की थी.

40 वर्षीय मोहम्मद सहवान अपने पहनावे, शारीरिक फिटनैस व लाइफस्टाइल के लिए छात्राओं के बीच चर्चित था. नमरा खान भी उस के लाइफस्टाइल से प्रभावित थी और मन ही मन अपने सहवान सर से मोहब्बत करने लगी थी.

नमरा की खतरनाक एंट्री

मोहम्मद सहवान के पास कुछ स्टूडेंट्स एक्स्ट्रा क्लास के लिए आते थे. इन में नमरा खान भी थी. एक रोज पढ़ने के बाद अन्य छात्रछात्राएं तो चले गए लेकिन नमरा खान नहीं गई. उस रोज उस ने हिम्मत जुटा कर सहवान से अपने प्यार का इजहार कर दिया. इतना ही नहीं, उस ने यह भी कह दिया कि वह उस से शादी करना चाहती है.

नमरा खान की बात सुन कर सहवान चौंक पडे़, ‘‘तुम यह कैसी बातें कर रही हो? मैं शादीशुदा और 2 बच्चों का बाप हूं. मेरी तुम्हारी उम्र में दोगुना का अंतर है. इसलिए तुम मुझे पाने का खयाल दिल से निकाल दो और अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो. पहले कैरियर सुधारो फिर शादी की सोचना.’’

‘‘सर, मैं बहुत जिद्दी हूं. मैं ने आप को दिल में बसा लिया है तो हासिल कर के ही दम लूंगी.’’ वह बोली.

उस रोज के बाद नमरा सहवान के पीछे पड़ गई. इस के बाद सहवान के दिल में भी हलचल होने लगी. दरअसल 18 वर्षीय नमरा बेहद खूबसूरत व हंसमुख थी, जबकि उस की पत्नी समराना की उम्र ढल चुकी थी. नमरा के आगे वह उसे फीकी लगने लगी थी. सहवान ने नमरा के प्यार को स्वीकारा तो इस प्यार के चर्चे आम होने लगे.

नमरा और सहवान की मोहब्बत की जानकारी समराना को हुई तो उसे अपने पैरों तले से जमीन खिसकती नजर आई. समराना ने इस बेमेल मोहब्बत का विरोध किया तो पतिपत्नी में झगड़ा होने लगा. एक रोज झगड़े के दौरान ही सहवान ने समराना को 3 तलाक कह दिया.

इस के बाद मार्च, 2017 में समराना अपने मायके बेकनगंज चली गई. वह अपने साथ बेटी अंसरा को भी ले आई थी. समराना अपने बेटे अयान को भी साथ लाना चाहती थी लेकिन सहवान व उस के घर वालों ने बेटे को नहीं जाने दिया. मायके में रहते समराना ने शौहर सहवान, उस के मातापिता तथा भाइयों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न तथा घरेलू हिंसा का मुकदमा दर्ज करा दिया. साथ ही गुजारा भत्ता भी मांगा.

लेकिन सहवान ने मुकदमे की परवाह नहीं की और अपनी उम्र से आधी उम्र की नमरा खान से 21 जुलाई, 2018 को निकाह कर लिया. इस प्रेम विवाह की जानकारी जब नमरा के पिता शहंशाह खान को हुई तो उन्होंने बेटी को समझाया. लेकिन सहवान के प्यार में अंधी नमरा ने पिता की बात नहीं मानी.

निकाह के बाद नमरा और सहवान केशवपुरम स्थित नागेश्वर अपार्टमेंट के फ्लैट नंबर 612 में रहने लगे. शादी के 4 महीने तो सब कुछ ठीक रहा लेकिन उस के बाद दोनों के बीच तनाव बढ़ने लगा. तनाव का पहला कारण बना सहवान का 8 वर्षीय बेटा अयान.

मासूम अयान नमरा के प्यार के क्षणों में दखल देता था सो वह उसे पीट देती थी. अयान को पीटना सहवान को खलता था. नमरा का अत्याचार जब ज्यादा बढ़ा तो सहवान ने अयान को मछरिया वाले घर में अपने मातापिता के पास छोड़ दिया.

तनाव का दूसरा कारण बना उम्र का अंतर. नमरा जवानी के उस दौर में थी, जहां उसे रात दिन शौहर का साथ चाहिए था. वह उसे नींबू की तरह निचोड़ना चाहती थी. लेकिन सहवान के पास वक्त नहीं था. उसे कोचिंग से ही फुरसत नहीं थी. यही कारण था कि जब सहवान रात को सोता तो वह उसे नोचतीखसोटती और हिंसक हो जाती. गुस्से में उसे जो भी सामान दिखता, तोड़ देती थी.

तनाव का तीसरा कारण था एकदूसरे पर शक करना. नमरा की कामेच्छा पूरी नहीं होती तो उसे शौहर पर शक होता कि उस का झुकाव कहीं और है. सहवान जब नमरा को गैरमर्दों से मोबाइल पर बात करते देखता तो उसे शक होता कि नमरा किसी अन्य के प्यार के जाल में फंसी हुई है.

नमरा और सहवान दोनों स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहते थे. दोनों जिम जाते थे. नमरा रोज जिम जाती थी. जबकि सहवान कभीकभी जाता था. जिम ट्रेनर हंसमुख और मृदुभाषी था. नमरा की उस से खूब पटती थी. वह अपनी परेशानी उस से साझा कर लेती थी. जब वह जिम से नौकरी छोड़ कर नोएडा चला गया तो नमरा ने भी जिम जाना छोड़ दिया. लेकिन उस से फोन पर बात करना बंद नहीं किया.

नमरा सहवान को नोचतीखसोटती ही नहीं थी, बल्कि भद्दी व गंदी गालियां भी बकती थीं. उस के इस व्यवहार से सहवान टूट चुका था. उसे लगता था कि वह या तो कहीं भाग जाए या फिर नमरा को ही सबक सिखा दे.

सहवान को अब आभास होने लगा था कि उस ने समराना को तलाक दे कर अच्छा नहीं किया. वह समराना से समझौते का प्रयास करने लगा था. बेटी से बात करने के बहाने वह उसे फोन करता था. उस ने एक रोज कहा था कि अगर उसे कुछ हो जाए तो सारी संपत्ति उसी (समराना) की होगी. नौमिनी वही है. बच्चों का खूब खयाल रखे और उन्हें पढ़ाएलिखाए.

नमरा खान तो दिन में सो लेती थी, लेकिन दिन में काम करने वाले सहवान को रात में सोने नहीं देती थी. वह उस के सीने पर सवार हो कर नोचती भद्दी गालियां देती तथा पानी उड़ेल देती थी. कभीकभी गुस्से में सहवान उसे पीट देता था. दोनों के बीच दिन पर दिन तनाव बढ़ा तो सहवान को लगने लगा कि अब उस का नमरा के साथ रहना संभव नहीं है.

खतरनाक स्थितियां नमरा ने ही बनाई थीं

28 अप्रैल, 2019 की रात सहवान की आंख खुली तो नमरा दूसरे कमरे में जिम ट्रेनर से बतिया रही थी. वह उस से प्रात: 5 बजे तक बतियाती रही. सुबह सहवान ने फोन पर बात करने के बारे में पूछा तो नमरा उस से भिड़ गई और हिंसा पर उतर आई. उस ने नाखूनों से सहवान का चेहरा, गरदन और पीठ नोच डाली.

गुस्से में सहवान गाड़ी ले कर घर से निकल गया. उस ने सोच लिया कि वह या तो नमरा को मार देगा या फिर खुद जहर खा कर मर जाएगा. यही सोच कर वह रावतपुर बीज भंडार पर गया और सल्फास की 4 पुडि़या खरीद कर ले आया. उस रोज वह कोचिंग भी नहीं गया. देर शाम उस ने बेटी अंसरा से बात की और फोन पर रोया भी.

रात पौने 9 बजे सहवान अपने फ्लैट पर लौट आया. कुछ देर बाद नमरा ने कौफी बनाई और सहवान से कौफी पीने के लिए पूछा लेकिन सहवान ने मना कर दिया. इस पर नमरा गुस्सा हो गई और अपशब्द बकने लगी. फिर वह पलंग पर आ कर बैठ गई. सहवान गुस्से में था ही, उस ने किचन में रखा नया कुकर उठाया और लपक कर नमरा के सिर पर वार कर दिया. भरपूर वार से नमरा का सिर फट गया और वह बेहोश हो कर पलंग के नीचे आ गिरी. कुछ ही पल में उस ने दम तोड़ दिया.

नमरा की हत्या के बाद सहवान घबरा गया. वह अपने बचाव का प्रयत्न करने लगा. वह रसोई से चाकू ले आया और हाथ की नस काटने का प्रयास किया पर हिम्मत नहीं जुटा पाया. कुछ देर वह नमरा के शव के पास बैठा रहा, फिर उस ने नमरा का मोबाइल अपनी जेब में रख लिया.

बचाव का कोई उपाय नहीं सूझा तो उस ने सल्फास की एक पुडि़या चाय वाले कप में पानी में घोली और किसी तरह आधीअधूरी पी ली. फिर रात 12.10 बजे वह स्कोडा कार से घर से निकला और नवाबगंज क्षेत्र में घूमता रहा. उस ने दोनों फोन तोड़ कर फेंक दिए. रात पौने 4 बजे उसने 100 नंबर डायल कर के पुलिस कंट्रोल रूम को पत्नी की हत्या की सूचना दे दी. लेकिन सही पता न होने से पुलिस वहां तक नहीं पहुंच पाई. प्रात: 5 बजे मोहम्मद सहवान धौरसलार रेलवे स्टेशन क्रौसिंग पहुंचा.

सड़क किनारे उस ने गाड़ी खड़ी की और सल्फास की तीनों पुडिया एक के बाद एक फांक कर पानी पी लिया. कुछ देर बाद ही जहर ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया. उसे कार में ही उल्टियां होने लगीं. बेचैनी और घबराहट में सहवान गाड़ी से बाहर आ गया.

उसी समय श्याम मिश्रा नाम का युवक वहां से गुजरा. सहवान ने उसे भाई का मोबाइल नंबर बताया और फोन करने को कहा. लेकिन श्याम सही नंबर नोट नहीं कर पाया. तब तक सहवान बेहोश हो कर सड़क किनारे गिर गया था. इस पर श्याम मिश्रा ने थाना बिल्हौर जा कर सूचना दी. सूचना के बाद बिल्हौर पुलिस ने सहवान को हैलट अस्पताल में भरती कराया, जहां उस ने दम तोड़ दिया.

इधर नमरा की हत्या की जानकारी तब हुई जब नौकरानी राधा फ्लैट में काम करने आई. उस के बाद पुलिस को सूचना दी गई. थाना काकादेव पुलिस मौके पर आई और शव को कब्जे में ले कर जांच शुरू की. जांच में दोनों लोगों की मौत की वजह बेमेल विवाह निकला.

थाना काकादेव पुलिस ने मृतका नमरा के पिता शहंशाह खान को वादी बना कर भादंवि की धारा 302 के तहत मोहम्मद सहवान के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज कर ली. लेकिन सहवान द्वारा स्वयं आत्महत्या कर लेने से पुलिस ने इस मामले में फाइनल रिपोर्ट लगा दी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Manohar Kahaniya: नशा मुक्ति केंद्र में चढ़ा सेक्स का नशा- भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

परिवार में मानो तूफान आ गया था. मातापिता अपने बच्चों को हमेशा अच्छी नजर से देखते हैं और उन्हें प्यार भी करते हैं, इसलिए जल्द शक नहीं कर पाते. यह अच्छी बात है, लेकिन बच्चों की संगत को भी नजरंदाज कर दिया जाए, यह लापरवाही है.

निधि का परिवार भी यह गलती कर चुका था. निधि अपने परिवार की इकलौती बेटी थी. मातापिता ने उसे समझाया. एकदो दिन तो वह घर पर ही रही, लेकिन फिर बाहर घूमने की जिद करने लगी. उस का स्वभाव भी बदल चुका था. वास्तव में नशे की तलब उसे बेचैन कर रही थी.

दरअसल, निधि ड्रग्स की बुरी तरह आदी हो चुकी थी. वह पहले जैसी कतई नहीं रही थी. पढ़ाई का रिजल्ट आया तो उस में भी वह फेल थी. एक समय ऐसा भी आया जब वह अपनी तलब पूरी करने को पैसे मांगती और न देने पर झगड़ा करती.

घर के हालात तनावपूर्ण थे. मातापिता की रातों की नींद उड़ चुकी थी, क्योंकि वह बेटी को समझा कर थक चुके थे, लेकिन वह मानने को तैयार नहीं थी. बेटी के भविष्य को बचाना उन के लिए चुनौतीपूर्ण हो गया. वह हर सूरत में निधि को बुरी लत से निकालना चाहते थे.

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उन लोगों के सामने अब एक ही रास्ता था कि बेटी को किसी नशा मुक्ति केंद्र में छोड़ दिया जाए. देहरादून में ऐसे कई नशा मुक्ति केंद्र थे. ऐसे ही एक अच्छे सेंटर के बारे में नवीन को पता चला.

उस का नाम था ‘वाक एंड विन सोबर लिविंग होम एंड काउंसलिंग सेंटर’. यह नशा मुक्ति केंद्र थाना क्लेमेनटाउन के अंतर्गत टर्नर रोड पर प्रकृति विहार में स्थित था. एक आवासीय कोठी को नशा मुक्ति केंद्र का रूप दिया गया था.

नशा मुक्ति केंद्र में ऐसे लड़केलड़कियों को रखा जाता था, जो नशे के आदी थे. नशा छुड़ाने के बदले उन के परिजनों से महीने में तय फीस ली जाती थी. यह फीस 20 से 40 हजार रुपए होती थी.

बच्चों के भविष्य के लिए मातापिता खुशीखुशी फीस चुकाने को तैयार रहते थे. इस नशा मुक्ति केंद्र के संचालक विद्यादत्त रतूड़ी थे, जबकि डायरेक्टर विभा सिंह.

नवीन और प्रिया ने यहां अपनी बेटी के बारे में बताया और सभी बातें तय होने के बाद बेटी को वहां रहने के लिए छोड़ दिया. वह खुश थे कि बेटी वहां रह कर अब पूरी तरह ठीक हो जाएगी, लेकिन उस की फिक्र जरूर बनी रहती थी.

प्रिया के लिए बेटी का नशा मुक्ति केंद्र में जाना किसी बुरे सपने की तरह था. प्रिया अकसर बेटी के बारे में सोचती रहती थीं. उस दिन भी वह फोटो एलबम देखते हुए बेटी को याद कर रही थीं तभी पतिपत्नी उस के बारे में चर्चा करने लगे थे.

4 लड़कियां हुईं गायब

प्रिया फोन पर बेटी से बात कर लिया करती थीं तो एक दिन बेटी ने बताया था कि वहां सब कुछ ठीक नहीं है. इस बात ने उन्हें चिंतित किया था, लेकिन नवीन ने अपनी बातों से उन की चिंता को दूर कर दिया था. लेकिन उन की बेटी की बात तब सच साबित हुई, जब नशा मुक्ति केंद्र से एक हैरान कर देने वाली खबर निकली.

दरअसल, 6 अगस्त, 2021 के अखबारों में एक खबर सुर्खी बनी कि ‘नशा मुक्ति केंद्र से 4 लड़कियां फरार’. इस खबर ने लोगों को चौंका दिया. थाना क्लेमेनटाउन पुलिस को सूचना मिली कि नशा मुक्ति केंद्र से 5 अगस्त की शाम 4 लड़कियां वार्डन को चकमा दे कर भाग गईं.

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जातेजाते वह सेंटर का बाहर से ताला भी लगा गईं. इस से सेंटर में हड़कंप मच गया. जिस की सूचना नशा मुक्ति केंद्र की डायरेक्टर विभा सिंह की तरफ  से पुलिस को दी गई थी. थानाप्रभारी धर्मेंद्र रौतेला अपनी टीम के साथ सेंटर पहुंचे और पूछताछ की.

पूछताछ में पता चला कि चारों लड़कियां चकमा दे कर भागी थीं, लेकिन बड़ा सवाल यह था कि लड़कियां सेंटर से आखिर क्यों भागीं? इस का ठीक जवाब लड़कियां ही दे सकती थीं. पुलिस को इस की आशंका जरूर हुई कि वजह कोई बड़ी रही होगी. बहरहाल पुलिस ने गुमशुदगी दर्ज कर ली.

किसी नशा मुक्ति केंद्र से लड़कियों का इस तरह से भाग जाना बेहद संवेदनशील था. एसएसपी योगेंद्र सिंह रावत ने अधीनस्थों को तुरंत लड़कियों की तलाश करने के निर्देश दिए. एसपी (सिटी) सरिता डोभाल ने इस प्रकरण की मौनिटरिंग शुरू कर दी.

जिस के बाद एक पुलिस टीम का गठन कर दिया गया. सीओ अनुज कुमार के निर्देशन में इस टीम में थानाप्रभारी धर्मेंद्र रौतेला, एसआई शोएब अली, रजनी चमोली, आशीष रवियान, हैड कांस्टेबल राजकुमार, कांस्टेबल सुनील पंवार, हितेश, भूपेंद्र व पिंकी आदि को शामिल किया गया.

पुलिस ने सीसीटीवी कैमरों की फुटेज की मदद ली, लेकिन तत्काल कोई सफलता नहीं मिली. 7 अगस्त को पुलिस ने चारों लड़कियों को एक होटल से खोज निकाला.

पुलिस ने लड़कियों से पूछताछ की तो उन्होंने नशा मुक्ति केंद्र के बारे में ऐसा सनसनीखेज खुलासा किया, जिसे सुन कर पुलिस भी चौंक गई. एक लड़की ने आगे बढ़ कर बताया, ‘‘सर, वह नशा मुक्ति केंद्र नहीं नरक केंद्र है.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘वहां छेड़छाड़ की जाती है, मेरे साथ तो कई बार दुष्कर्म किया गया. मैं ने इस की शिकायत डायरेक्टर विभा से की तो उन्होंने उल्टा मेरे साथ मारपीट की.’’

लड़कियों के आरोप वाकई संगीन थे, ऐसे में तत्काल एक्शन लेना जरूरी था. पुलिस ने लड़की की तहरीर पर नशा मुक्ति केंद्र के संचालक विद्यादत्त रतूड़ी व डायरेक्टर विभा सिंह के खिलाफ  दुराचार, मारपीट, छेड़छाड़ व गालीगलौज की धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया.

डायरेक्टर हुई गिरफ्तार

पुलिस टीम नशा मुक्ति केंद्र पहुंची और वहां से डायरेक्टर विभा सिंह को गिरफ्तार कर लिया, जबकि संचालक फरार हो चुका था. डायरेक्टर विभा सिंह ने चौंकाने वाली बातें पुलिस को बताईं.

अगले दिन पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया. इस बीच लड़कियों को उन के परिजनों के हवाले कर दिया गया.

इस जांच में पुलिस को पता चला कि उक्त नशा मुक्ति केंद्र का संचालक विद्यादत्त रतूड़ी मूलरूप से पौड़ी गढ़वाल के उरमोला पट्टी गांव का रहने वाला था. पुलिस टीम उस के गांव रवाना हो गई, लेकिन वह वहां भी नहीं मिला. उस का मोबाइल भी स्विच्ड औफ  आ रहा था.

यह सनसनीखेज प्रकरण सुर्खियां बन चुका था. पुलिस उस की तलाश में जुटी रही. आखिर 9 अगस्त, 2021 को आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया. वह श्यामपुर क्षेत्र के एक होटल में छिपा हुआ था.

पुलिस ने उस से गहराई से पूछताछ की तो संचालक, डायरेक्टर के साथ ही नशा मुक्ति केंद्र की ऐसी कहानी निकल कर सामने आई जिस ने न सिर्फ चौंका दिया, बल्कि नशा मुक्ति केंद्र का काला सच भी सामने आ गया.

दरअसल, विद्यादत्त रतूड़ी के पिता हर्ष मनी रतूड़ी एयरफोर्स में नौकरी करते थे. कई साल पहले उन की तैनाती कानपुर में थी. विद्यादत्त कम उम्र में ही बुरी संगत का शिकार हो गया और उसे शराब पीने की लत लग गई.

मातापिता ने बेटे को बहुत संभालने की कोशिश की, लेकिन वह हाथ से निकल चुका था. समय अपनी गति से चलता रहा. इस बीच उस का विवाह भी कर दिया गया. वह नशे का इतना आदी हो गया कि दिन में भी नशा करने लगा.

साल 2018 में उसे देहरादून के सरस्वती विहार स्थित एक नशा मुक्ति केंद्र में भरती कराया गया. वहां पर अपने नशे के इलाज के दौरान ही उस ने नशा मुक्ति केंद्र में स्टाफ के रूप में काम करना शुरू कर दिया. विद्यादत्त ने करीब 3 साल वहां काम किया.

अगले भाग में पढ़ें- संचालक हो गया अंडरग्राउंड

छाया : विनोद पुंडीर

Satyakatha- ऊधमसिंह नगर में: धंधा पुराना लेकिन तरीके नए- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

इस सूचना पर काररवाई करते हुए इंसपेक्टर बसंती आर्या अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंचीं. अपनी टीम के साथ चारों तरफ से कार को घेरते हुए उस कार से 3 लोगों को पकड़ा गया. उन में एक आदमी और 2 औरतें थीं.

जब वे पकड़े गए, तब उन की हरकतें बेहद आपत्तिजनक थीं. तीनों को अपनी कस्टडी में ले कर पूछताछ के लिए थाने लाया गया.

आदमी की पहचान उत्तर प्रदेश में बरेली जिले के बहेड़ी थाना के रहने वाले 29 वर्षीय भगवान दास उर्फ अर्जुन के रूप में हुई. महिला की पहचान 32 वर्षीया भारती के रूप में हुई.

उस ने बताया कि वह उत्तर प्रदेश में रामपुर जिले के अंतर्गत दिनकरी की रहने वाली है, लेकिन अब वह ऊधमसिंह नगर जिला में  सिडकुल ढाल ट्रांजिट कैंप में रहती है.

इसी तरह से दूसरी 21 वर्षीया युवती ने अपना नाम पूजा यादव बताया. उस ने कहा कि उस का पति उत्तर प्रदेश में बाराबंकी जिले के गांव सनसडा में रहता है. तीनों से गहन पूछताछ के बाद उन की तलाशी ली गई. तलाशी में उन के पास से 2 स्मार्टफोन बरामद हुए. मोबाइलों में तमाम अश्लील फोटो, वीडियो के साथ ही अनेक अश्लील मैसेज भी भरे हुए थे.

उन्हीं मैसेज से मालूम हुआ कि ये दोनों महिलाएं एक रात के 1000 से 1500 रुपए लेकर ग्राहकों की रातें रंगीन करती थीं.

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उन के साथ पकड़ा गया भगवान दास का काम ग्राहक तलाशना होता था. वह उन्हें ग्राहकों तक पहुंचाने का काम करता था. बदले में 500 रुपए वसूलता था. दास ने बताया कि वह ग्राहक की जानकारी होटलों में ठहरने वालों से जुटाता था.

इस के लिए अपने संपर्क में आई युवतियों को किसी एकांत जगह पर कार में बैठा कर रखता था और फिर वहीं से ग्राहकों के फोन का इंतजार करता था. जैसे ही किसी ग्राहक का फोन आता वह 10 से 15 मिनट में उस के बताए स्थान पर लड़की को पहुंचा देता था.

तीनों 21 जुलाई को ग्राहक का फोन आने का ही इंतजार कर रहे थे. उन की कोई सूचना नहीं मिल पाने के कारण वे आपस में ही हंसीमजाक करते हुए टाइमपास कर रहे थे. ऐसा करते हुए वे बीचबीच में अश्लील हरकतें भी करने लगे थे.

उस दिन भगवान दास ने दोनों को 1500-1500 रुपयों में तय किया था. लेकिन जब काफी समय गुजर जाने के बाद भी उसे कोई ग्राहक नहीं आया था. पुलिस मुखबिर की निगाह उन पर गई और उन्होंने पुलिस को इस की सूचना दे दी.

पूछताछ में भगवान दास ने कई मोबाइल नंबर दिए, जो देहव्यापार करने वाली महिलाओं के थे.

वे अपनी बुकिंग एक दिन पहले करवा लेती थीं. बुकिंग के आधार पर ही उन्हें होटल या किसी निजी घर पर ले जाया जाता था. उन्हें ले जाने वाला ही उन का सौदा पक्का कर देता था. औनलाइन पेमेंट आने के बाद ही बताए जगह पर पहुंचती थीं.

इस मामले को थाना ट्रांजिट कैंप में दर्ज किया गया. पकड़े गए व्यक्तियों पर  सार्वजनिक स्थान पर अश्लील हरकतें कर अनैतिक देह व्यापार करने के संबंध में रिपोर्ट दर्ज की गई.

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उन पर आईपीसी की धारा 294/34 लगाई गईं. इसी के साथ उन्हें अनैतिक देह व्यापार निवारण अधिनियम की धारा 5/7/8 के तहत काररवाई की गई.

3साल पहले यानी 2018 तक काशीपुर की अनाज मंडी भी इस धंधे के लिए काफी बदनाम थी. आज भी स्थिति कमोबेश वैसी ही बनी हुई है. हालांकि कोरोना काल की वजह से उस में थोड़े समय के लिए मंदी जरूर आई, फिर पहले जैसी स्थिति बन गई.

मंडी देह का फूलनेफलने की भी वजह है. फसल ले कर आने वाले किसानों के अनाज की साफसफाई के लिए आढ़तियों की दुकानों पर औरतें काम करती हैं. उन की संख्या वे 2 ढाई सौ के करीब है.

फसल के ढेर पर झाड़ू लगाने वाली अधिकतर औरतें बिजनौर जिले की रहने वाली हैं, लेकिन काशीपुर में ही किराए का कमरा ले कर रहती हैं.

वे औरतें सुबहसुबह सजसंवर कर मंडी पहुंच जाती हैं. अपनी खूबसूरती का जलवा दिखा कर किसानों और व्यापारियों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं. वह मजदूरों को भी अपने जाल में आसानी से फांस लेती हैं. यह सब उन की आमदनी का एक अतिरिक्त जरिया होता है.

जितने पैसे वे मंडी में अनाजों के ढेर पर झाड़ू लगा कर नहीं कमा पातीं, उस से कहीं ज्यादा पैसा उन्हें देह व्यापार के धंधे में मिल जाता है.

हालांकि वह सब उन को ठीक भी नहीं लगता. उन्हें न केवल परिवार और समाज की नजरों से छिप कर रहना पड़ता है, बल्कि पुलिसप्रशासन से बच कर भी रहना जरूरी होता है. ऊपर से बदनामी का भी डर लगा रहता है.

उन की कोशिश रहती कि वे किसी के साथ आपत्तिजनक स्थिति में नहीं पकड़ी जाएं. जबकि हमेशा उन के मन के अनुकूल स्थिति बनी रहना संभव नहीं होती. नतीजा पुलिस की छापेमारी में कुछ पकड़ी जाती हैं तो कुछ अड्डे से भागने में सफल हो जाती हैं.

देह व्यापार के धंधे में लगे रहने की उन की मजबूरी थी. एक अड्डा बंद होता है तो उन के द्वारा तुरंत नया ठिकाना बना लिया जाता है. वैसे अधिकतर औरतों के पति दिहाड़ी मजदूरी करने वाले या फिर रिक्शा चलाने वाले हैं. वह शाम तक जितना कमाते हैं, उस का बड़ा हिस्सा शराब में उड़ा देते हैं.

शाम को घर पहुंचने पर घर का खर्च बीवी से चलाने की उम्मीद करते हैं. घर चलाने के खर्च से ले कर कमरे का किराया, कपड़ेलत्ते, बच्चों की परवरिश आदि तक उन्हीं के कंधों पर रहती है.

उस के बावजूद शराबी पतियों की मारपीट भी झेलनी पड़ती है. यह उन की दिनचर्या में शामिल हो चुका है. इस तरह देह के धंधे को अपनाने की मजबूरी बन गई है.

किसान कानून में बदलाव आने का असर उन के धंधे पर भी हुआ. कारण इस कानून के लागू होने पर किसान अपनी फसल कहीं भी बेचने के लिए आजाद हो गए. इस वजह से उन का काशीपुर की मंडी में आनाजाना बहुत कम हो गया. इस का असर उन औरतों के धंधे पर भी हुआ.

अनाज की मंडियों का काम ढीला होने से पहले के मुकाबले वहां औरतें कम आने लगी हैं. मजबूरी में उन्होंने नया तरीका निकाला और अपने घरों में ही धंधा करना शुरू कर दिया. जबकि वह जानती हैं कि यह धंधा किसी भी सूरत में महफूज नहीं है.

मैं हल्दीराम कंपनी से बोल रहा हूं…. ठगी के रंग हजार

अब आपको सावधान रहना है डिजिटल ठगी ट्रेंडिंग से. जी हां! आप अपने शहर में कोई दुकान चलाते हैं प्रतिष्ठित व्यवसायी हैं तो आपको सावधान रहने की दरकार है. क्योंकि अब ठगों ने देश की प्रतिष्ठित कंपनियों की डीलरशिप की लुभावनी लालच देकर के ठगने की एक नई योजना पर क्रियान्वयन करना शुरू कर दिया है.

इसी क्रम में रांची झारखंड में एक युवक से हल्दीराम नाम की स्नैक्स कंपनी के नाम पर 5 लाख रुपए ठग लिए गए.

हमारे संवाददाता ने इस संबंध में पुलिस अधिकारियों से चर्चा की तो उन्होंने जो जानकारियां दी वह चौंकाने वाली हैं .

पुलिस अधिकारी के मुताबिक दूसरी तरफ से कहा जाता है- हैलो, मैं हल्दीराम कंपनी से बोल रहा हूं आपके लिए एक अच्छा ऑफर आया है.

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हल्दीराम जैसी प्रतिष्ठित कंपनी के फोन को भला कोई छोटा मोटा व्यापारी कैसे इग्नोर कर सकता है. वह तो स्वयं को धन्य समझने लगता है और मुंगेरीलाल के सपनों में खो जाता है की हल्दीराम की मिलने के बाद कैसे लाखों रुपए कमा लूंगा.

सोशल मीडिया बड़ा माध्यम

छोटी पूंजी में कुछ बड़ा करने का सपना लिए अशोक नगर इलाके में रहने वाले अक्षर भारती नाम के युवक ने इंटरनेट पर कुछ सर्च किया. उसने सोचा कि हल्दीराम स्नैक्स कंपनी की एजेंसी लेकर काम शुरू भला कैसे किया जा सकता है और उसके बाद जो कुछ हुआ वह चौंकाने वाला है. अक्षर के मुताबिक मैंने एक वेबसाइट पर हल्दीराम फ्रेंचाइजी डिस्ट्रीब्यूटर के अप्लाय किया था वेबसाइट थी WWW. Franchiseidea.org इसके बाद  जुलाई के दूसरे पखवाड़े में  करण  नाम के आदमी ने मुझे अपने नंबर 7208612492 से कॉल किया.उसने कहा – मैं हल्दीराम कंपनी से बोल रहा हूं. मैं सेल्स मैनेजर हूं.

करण ने रजिस्ट्रेशन, प्रोसेसिंग और सिक्योरिटी मनी के तौर पर कुल 2 लाख 6 सौ रुपए मांग लिए. बातों में आकर अक्षर ने गूगल पे के जरिए रुपए करण के बताए खाते में जमा करवा दिए.

उसके बाद ठगी का खेल देखिए- Haldiram Foods International Pvt Ltd info@haldiram.online के ईमेल से कंपनी का कंन्फर्मेशन लेटर भी मिल गया. ठग ने नागपुर के भारतीय स्टेट  बैंक खाते में रुपए जमा करवाए.और  इसके बाद ठग करण से लुट चुके अक्षर का कोई संपर्क नहीं हो पाया. ठगी का शिकार हो चुके अक्षर को इंटरनेट से ही अक्षर को हल्दीराम कंपनी के कुछ और नंबर मिले. उसने आगे पूछताछ की तो  पता चला कि वहां करण वर्मा नाम का तो कोई आदमी काम ही नहीं करता.फिर टिकरा पारा थाने आकर अक्षर ने रपट दर्ज करवाई. कुल मिलाकर के दिन बीतते चले जा रहे हैं और अक्षर ठगी के बाद अपना सर पकड़े बैठा है क्योंकि उसे कोई राहत नहीं मिल पा रही इसलिए अच्छा है कि आप समझदारी से काम ले और किसी भी तरह की लेनदेन से पहले अच्छी तरीके से जानकारी एकत्र कर लें इसके पश्चात ही पैसों का निवेश करें.

किस्म किस्म के ठग

इन दिनों जहां सोशल मीडिया का प्रभाव बढ़ता चला जा रहा है. उसके साथ ही ठगी के प्रकरण भी तेजी से सामने आ रहे हैं. इसलिए इस आलेख के माध्यम से हम ऐसे तथ्य आपके समक्ष रख रहे हैं जिन्हें पढ़ समझ कर के आप ठगी से बच सकते हैं.

छत पर मोबाइल टावर लगाने का झांसा देकर ठगी के अनेक मामले लंबे समय से सामने आ रहे हैं जो अभी भी जारी है. बिहार के पटना के एक रेलकर्मी की पत्नी से मोबाइल टावर लगाने के नाम पर 5 लाख की ऑनलाइन ठग लिए गए. टीएस नारायण रेलकर्मी हैं. उनकी पत्नी के पास  जियो कंपनी के नाम से फोन कॉल आया कहा गया -आप भाग्यशाली हैं जियो ने मोबाइल टावर लगाने आपका घर चुना है. टावर लगेगा तो हर माह 40-50 हजार किराया मिलेगा. वह झांसे में आ गई और रुपए लुटा बैठी. इस तरीके के प्रकार सामने आ रहे हैं वह बताते हैं कि इतने चतुर सुजान हैं और ठगी के शिकार कितने भोले भाले. इस लेख में हम आपको ठगी से बचने के सहज रास्ते बता रहे हैं.

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दरअसल , साइबर सेल ने लोगों से अपील की है कि ऑनलाइल डेटिंग एप पर लड़के, लड़कियों से दोस्ती न करें, कोई लुभावनी स्कीम, बिजनेस प्रॉफिट वगैरह की बातों पर सरलता से  यकीन न करें, और किसी भी तरह  अपनी बैंक डिटेल किसी अनजान कॉलर को न दें. बहुत जरूरी ट्रांजेक्शन होने पर नजदीकी बैंक में जाकर खुद संपर्क करें. ऑनलाइन ठगी की घटना होने पर या फोन आने पर रायपुर साइबर सेल के नंबर पर कॉल करें. आप नजदीकी थाने पहुंचकर भी अपनी शिकायत दर्ज करवा सकते हैं.

Manohar Kahaniya:10 साल में सुलझी सुहागरात की गुत्थी- भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

एएसआई जयवीर की टीम बारबार अलवर में कमल सिंगला और शकुंतला की तलाश करने के लिए जाती. लेकिन उन दोनों का कोई सुराग नहीं मिल रहा था.

क्राइम ब्रांच की इस टीम में एक कांस्टेबल हरेंद्र संयोग से राजस्थान का ही रहने वाला था. उस की मदद से पुलिस टीम को स्थानीय स्तर पर ऐसे लोगों की मदद मिलने लगी, जिस से कमल व शकुंतला के बारे में छनछन कर जानकारियां सामने आने लगी थीं. लेकिन इस पूरी कवायद में कई महीने गुजर गए.

इसी बीच एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट के एसीपी सुरेंद्र गुलिया ने रवि के अपहरण की जांच करने वाले इंसपेक्टर अमलेश्वर राय और एसआई करमवीर सिंह, एएसआई जयवीर सिंह, नरेश कुमार तथा कास्टेबल हरेंद्र से जांच में तेजी लाने के लिए कहा. तब तक पुलिस टीम को कमल सिंगला के मोबाइल का नंबर हासिल हो चुका था.

कमल के फोन नंबर की मौनिटरिंग शुरू हो गई और उस की काल डिटेल्स खंगालने का काम शुरू कर दिया गया. रवि के अपहरण में कमल की भूमिका होने की पुष्टि हो चुकी थी, इसलिए पुलिस ने उस के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट हासिल कर लिया.

लेकिन जब वह कहीं नहीं मिला तो उसे भगोड़ा घोषित कर के उस के ऊपर 50 हजार का ईनाम दिल्ली पुलिस ने घोषित कर दिया.

इस दौरान पुलिस ने उस के घर की कुर्की के वारंट भी जारी करवा लिए. पुलिस की एक टीम ने स्थाई रूप से अलवर में ही डेरा डाल दिया.

मोबाइल की लोकेशन और उस से बात करने वाले हर शख्स की जानकारी अलवर में बैठी पुलिस टीम को मिल रही थी. लेकिन इसे संयोग कहें या कमल की किस्मत कि पुलिस टीम के पहुंचने से पहले ही वह मौजूद जगह से निकल जाता था.

लेकिन पुलिस जब किसी को पकड़ने की ठान लेती है तो देर से ही सही, चालाक अपराधी भी पुलिस के चंगुल में फंस ही जाता है.

आखिरकार 27 सितंबर, 2019 को कमल सिंगला (27) को अलवर की शालीमार कालोनी से गिरफ्तार कर लिया गया. यहां भी उस का एक घर था, जहां छिप कर वह रह रहा था. हालांकि शकुंतला उस के साथ नहीं थी. लेकिन कमल का पकड़ा जाना भी पुलिस के लिए बड़ी उपलब्धि थी.

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दिल्ली ला कर जब पुलिस टीम ने उस से पूछताछ शुरू की तो वह हमेशा की तरह पुलिस को अपने झूठ के जाल में उलझाने की कोशिश करता रहा.

लेकिन इस बार जांच दल के पास उस के खिलाफ ब्रेनमैपिंग टेस्ट की रिपोर्ट से ले कर बबली से अदालत में शकुंतला की शादी से जुड़ा गलत शपथपत्र दिलाने जैसे कई ठोस सबूत मौजूद थे. जिन का उस के पास कोई उत्तर नहीं था.

पुलिस टीम ने थोड़ी सख्ती की तो कमल सिंगला सब कुछ तोते की तरह बताने लगा. पूछताछ में पता चला कि रवि का अपहरण कर उस की हत्या कर दी गई थी और इस काम में उस की मदद उस के ड्राइवर गणेश महतो ने की थी. गणेश को उस ने 2012 में ही नौकरी से हटा दिया था, जिस के बाद वह बिहार चला गया.

कमल यह तो नहीं बता सका कि ड्राइवर गणेश किस गांव का है और उस का फोन नंबर क्या है, लेकिन दिल्ली में रहने वाले उस के जीजा अनिल का नंबर पुलिस को कमल से मिल गया.

पुलिस टीम ने उसी दिन अनिल से संपर्क किया और गणेश महतो के बारे में जानकारी हासिल कर ली. अनिल को साथ ले कर पुलिस टीम तत्काल बिहार के समस्तीपुर में करवां थानांतर्गत चकमहेशी गांव पहुंची, जहां से गणेश महतो पुत्र सुरेश महतो (31) को गिरफ्तार कर लिया गया. उस ने शुरुआती पूछताछ में ही अपना गुनाह कुबूल कर लिया.

पुलिस टीम गणेश को ट्रांजिट रिमांड पर दिल्ली ले आई. इस के बाद कमल व गणेश से आमनेसामने बैठा कर पूछताछ की गई, फिर उन से हुई पूछताछ का मिलान किया गया.

पुलिस टीम दोनों को ले कर टपूकड़ा गई, जहां स्थानीय पुलिस की मदद से कमल के औफिस के सामने एक खाली प्लौट की जेसीबी मशीनों से खुदाई करवाई, जिसमें करीब 25 मानव अस्थियां बरामद हुईं, जिन्हें जांच के लिए फोरैंसिक लैब भेज दिया गया.

इश्क में अंधा हुआ कमल

ये अस्थियां रवि कुमार की थीं या नहीं, यह पुष्टि करने के लिए पुलिस ने 10 अक्तूबर, 2019 को दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल में डीएनए जांच के लिए जयभगवान और उन की पत्नी के ब्लड सैंपल लिए.

रवि कुमार के अपहरण व हत्या के मामले की जांच जितनी पेचीदा थी, उस के अपहरण व हत्या की कहानी उस से कहीं ज्यादा चौंकाने वाली है. जिस से पता चलता है कि प्रेम में अंधा एक आशिक किस तरह शातिर अपराधी की तरह न सिर्फ अपने गुनाह को अंजाम देता रहा बल्कि 8 साल तक चली जांच में पुलिस की आंखों में भी धूल झोंकता रहा.

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2010 में टपूकड़ा में रहने वाली शकुंतला अचानक कमल सिंगला के संपर्क में आई थी. कमल का ट्रांसपोर्ट और बिल्डिंग मटीरियल सप्लाई का कारोबार था. उस के कुछ ट्रक, टैक्सियां और मैटाडोर भी किराए पर चलते थे. इस के अलावा कमल प्लौट ले कर उन में फ्लैट बना कर बेचने का भी काम करता रहता था.

साल 2010 में कमल ने शकुंतला के पड़ोस में एक एक खाली प्लौट ले कर उस में फ्लैट निर्माण का काम कराया तो इसी दौरान बगल के मकान में रहने वाली शकुंतला पर उस की नजर पड़ी.

कमल उन दिनों ठीक से बालिग भी नहीं हुआ था, जबकि तीखे नाकनक्श और गदराए बदन वाली शकुंतला जवानी की दहलीज पर पहले ही कदम रख चुकी थी.

यहीं पर दोनों की एकदूसरे से आंखें लड़ीं और कमल ने किसी तरह शकुंतला के घर में आनाजाना शुरू कर दिया. दोनों का इश्क परवान चढ़ने लगा और नाजायज रिश्ते बन गए. जबकि परिवार बेटी की इस करतूत से अंजान था.

इसी बीच 8 फरवरी, 2011 को परिवार ने शकुंतला की शादी समालखा के रवि से करा दी. कमल को जब  शकुंतला के रिश्ते की भनक लगी तो उस ने शकुंतला से इस का विरोध किया.

उस पर दबाव बनाया कि वह अपने परिवार वालों से इस रिश्ते के लिए मना कर दे. लेकिन लोकलाज और मातापिता के डर से शकुंतला ऐसा न कर सकी. इसी असमंजस में उस के हाथ में किसी और के नाम की मेहंदी लग गई.  लेकिन कमल सिंगला ने तय कर लिया था कि वह शकुंतला को किसी और की होने नहीं देगा. उस के मन में एक साजिश पलने लगी.

इसी साजिश के तहत रवि को देखने जाने के लिए जब शकुंतला के परिवार वाले पहली बार गए तो कमल खुद अपनी गाड़ी में परिवार के लोगों को ले कर गया था.

शकुंतला की शादी होने तक जितनी बार भी उस का परिवार के रवि के घर गया, हर बार कमल ही उन्हें अपनी गाड़ी से ले कर दिल्ली गया.

सुहागरात पर नहीं छूने दिया शरीर

जैसेतैसे शादी हो गई. लेकिन ससुराल जाने से पहले ही कमल ने शकुंतला से वादा ले लिया कि वह ससुराल जा तो रही है लेकिन वह किसी भी कीमत पर अपना तन अपने पति को न सौंपे.

शकुंतला तो खुद ये शादी मजबूरी में कर रही थी. इसलिए उस ने भी कमल से वादा कर लिया कि ऐसा ही होगा. लेकिन तुम को मुझे अपनी बनाना है तो जल्द ही कुछ करना होगा.

शादी के बाद उस ने इसी साजिश के तहत बहाने बना कर रवि को अपना शरीर छूने तक नहीं दिया.

इस दौरान कमल के दिमाग में रवि को रास्ते से हटाने की साजिश तैयार हो चुकी थी. साजिश के मुताबिक 20 मार्च, 2011 को रवि अपनी ससुराल टपूकड़ा, अलवर पहुंचा तो कमल भी दोस्त की तरह उस से मिला और दोस्त की तरह घुमायाफिराया.

अगले भाग में पढ़ें- रवि कुमार हत्याकांड का पटाक्षेप हो गया

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