Hindi Romantic Story: आसमान छूते अरमान – चंद्रवती के अरमानों की कहानी

Hindi Romantic Story: चंद्रो बस से उतर कर अपनी सहेलियों के साथ जैसे ही गांव की ओर चली, उस के कानों में गांव में हो रही किसी मुनादी की आवाज सुनाई पड़ी.

‘गांव वालो, मेहरबानो, कद्रदानो, सुन लो इस बार जब होगा मंगल, गांव के अखाड़े में होगा दंगल. बड़ेबडे़ पहलवानों की खुलेगी पोल, तभी तो बजा रहा हूं जोर से ढोल. देखते हैं कि मंगलवार को लल्लू पहलवान की चुनौती को कौन स्वीकार करता है. खुद पटका जाता है कि लल्लू को पटकनी देता है. मंगलवार शाम4 बजे होगा अखाड़े में दंगल.’‘‘देख चंद्रो, इस बार तो तेरा लल्लू गांव में ही अखाड़ा जमाने आ गया,’’ एक सहेली बोली.

‘‘धत्… चल, मैं तुझ से बात नहीं करती,’’ चंद्रो ने कहा.

‘‘अब तू हम से क्या बात करेगी चंद्रो. अब तो तू उस के खयालों में खो जाएगी,’’ दूसरी सहेली बोली.

चंद्रो ने शरमा कर दुपट्टे में अपना मुंह छिपा लिया. तब तक उस का घर भी आ चुका था. वह अपनी सहेलियों को छोड़ कर तेजी से घर के दरवाजे की ओर बढ़ गई.

चंद्रो का पूरा नाम चंद्रवती था. वह कभी छुटपन में लल्लू की सहपाठी रही थी, तभी उन के बीच प्यार का बीज फूट गया था. चंद्रवती को चंद्रो नाम देने वाला भी लल्लू पहलवान ही था.

चंद्रवती को पढ़नेलिखने, गीतसंगीत और डांस में ज्यादा दिलचस्पी थी. उस के अरमान बचपन से ही ऊंचे थे. लल्लू पहलवानी का शौक रखता था. पढ़ाई में उस की इतनी दिलचस्पी नहीं थी, जितनी अखाड़े में जोरआजमाइश करने की.

फिलहाज, चंद्रवती हिंदी साहित्य में एमए कर रही थी. यह उस का एमए का आखिरी साल था. उस का कालेज गांव से 14-15 किलोमीटर दूर शहर में था. अपनी सहेलियों के साथ वह रोज ही बस से कालेज जाती थी. उस के मातापिता उस के लिए अच्छे वर की तलाश कर रहे थे.

लल्लू पहलवान को कुश्ती लड़नेका शौक ऐसा चढ़ा था कि पढ़ाई बहुत पीछे छूट गई थी. लेकिन पहलवानी में उस ने अपनी धाक जमा ली थी. 40-50 किलोमीटर दूर तक के गांवों में उस की बराबरी का कोई पहलवान न था. अब वह पेशेवर पहलवान बन चुका था और अच्छी कमाई कर रहा था.

चंद्रवती रातभर लल्लू की यादों में खोई रही. वे बचपन की यादें और अब अल्हड़ जवानी. चंद्रवती को लल्लू से मिले कई साल हो चुके थे, लेकिन उस का वह बचपन का मासूम चेहरा अभी भी आंखों में समाया हुआ था.

मंगलवार को शाम 4 बजे तक अखाड़े में तिल धरने की भी जगह न बची थी. औरतों को बिठाने के लिए अखाड़ा समिति ने अलग से इंतजाम किया था. पहली कुश्ती मुश्किल से 5 मिनट चली. लल्लू ने कुछ देर तक तो पहलवान के साथ दांवपेंच दिखाए और फिर उसे कंधे पर उठा कर अखाड़े का जो चक्कर लगाया, तो तालियों की बरसात होने लगी.

कुछ देर बाद पांच मुकाबले हुए और सब का हाल पहले पहलवानों जैसा ही हुआ.

अब लल्लू के चेहरे पर थकान साफ नजर आ रही थी. उसे सभी मुकाबलों में जीत मिलने का इनाम मिल चुका था.

जब सब गांव वाले जाने लगे, तो चंद्रवती की सहेलियां उसे लल्लू से मिलाने के लिए जबरन पकड़ कर ले गईं.लल्लू भीड़ से घिरा हुआ था, फिर भी सहेलियां चंद्रवती को लल्लू से मिलाने पर आमादा थीं. यह काम किया चंद्रवती की सहेली मधु के भाई माधवन ने. उस ने लल्लू से कान में जा कर कहा, ‘‘तुम्हारी कोई रिश्तेदार उधर खड़ी है. वह एक मिनट के लिए तुम से मिलना चाहती है.’’

लल्लू उठ कर गया, तो वहां 5-6 लड़कियां खड़ी थीं. लेकिन उन में से उसे कोई भी अपनी रिश्तेदार नजर नहीं आई. उस ने पूछा, ‘‘कहां है मेरी रिश्तेदार?’’

‘‘पहलवानजी, अपनी रिश्तेदार को भी नहीं पहचानते. बड़े पहलवान हो गए हो, इसलिए बचपन के रिश्ते को ही भूल गए,’’ चंद्रवती की एक सहेली इंदू ने उलाहना देते हुए कहा.

चंद्रवती का दिल जोरजोर से धड़क रहा था कि कहीं लल्लू उसे भूल ही न गया हो. तब मधु ने कहा, ‘‘किसी चंद्रो को जानते हो तुम? कोई चंद्रो पढ़ती थी तुम्हारे साथ बचपन में?’’

चंद्रो का नाम सुनते ही लल्लू का चेहरा खिल उठा. उस के मुंह से अनायास ही निकला, ‘‘अरे चंद्रो, हां, कहां है मेरी चंद्रो?’’

यह सुनते ही चंद्रो शरमा कर अपनेआप में ही मिसट गई. सहेलियां मुसकरा पड़ीं और लल्लू भी अपने उतावलेपन पर शर्मिंदा हो गया. कुछ ही दिनों में चंद्रवती लल्लू के घरआंगन को महकाने के लिए आ गई. कुछ दिन तक तो लल्लू चंद्रवती के प्यार में ऐसा खोया रहा कि पहलवानी के सारे दांवपेंच भूल गया. दोनों एकदूसरे को पा कर बहुत खुश थे.

उन दोनों की गृहस्थी बड़े आराम से पटरी पर चल रही थी. उन्हीं दिनों गांव में पंचायत चुनाव आ गए. लल्लू की राजनीति में कोई दिलचस्पी न थी, लेकिन चंद्रवती को राजनीति विरासत में मिली थी. उस के दादा अपने गांव में कई साल प्रधान रहे थे और अब उस के चाचा राम सिंह अपने गांव के प्रधान थे.

गांव वालों का लल्लू को प्रधान बनाने का इशारा था, लेकिन चुनाव आयोग ने उन के गांव के प्रधान का पद औरत के लिए रिजर्व कर दिया था.

लल्लू को पूरा गांव अपने पक्ष में लग रहा था, इसलिए वह चाह कर भी मना नहीं कर सका और उस ने चंद्रवती को चुनावी मैदान में उतार दिया. चुनाव एकतरफा रहा और चंद्रवती मालिनपुर गांव की प्रधान बन गई. शुरूशुरू में प्रधान के सारे काम लल्लू ही देखता था, लेकिन किसी कागज पर दस्तखत करने हों या फिर ग्राम प्रधानों की बैठक में जाना हो, तब चंद्रवती का जाना जरूरी हो जाता था.

चंद्रवती पढ़ीलिखी थी, अफसरों से बात करना ठीक से जानती थी, ग्राम प्रधान के अपने हकों को भी वह अच्छी तरह समझती थी. धीरेधीरे ग्राम प्रधानी का कामकाज उस के हाथों में आने लगा और लल्लू किनारे लगने लगा.

अब चंद्रवती पराए मर्दों से शरमाती न थी. उसे कहीं अकेले जाना पड़ता, तो वह लल्लू की बाट न जोहती थी. किसी को चंद्रवती से मिलना होता, तो वह उस से सीधा मिलता. लल्लू सिर्फ दरबारी बन कर रह गया था, सिंहासन पर चंद्रवती बैठी थी.

प्रधानों के संघ में चंद्रवती जितनी खूबसूरत और पढ़ीलिखी कम ही औरतें थीं, इसलिए प्रधान संघ का सचिव पद पाने में वह कामयाब हो गई. चंद्रवती के अरमान अब आसमान छूने लगे थे. वह मर्दों को दुनिया में मुकाम हासिल करने के गुर सीखने लगी. लंगोट के कच्चे मर्द को एक ही मुसकान से कैसे पस्त किया जा सकता है, यह वह अच्छी तरह जान गई थी.

अब चंद्रवती हमेशा बड़े नेताओं और अफसरों से मेलजोल बढ़ाने के मौके तलाशने लगी. यह वह सीढ़ी थी, जिस पर चढ़ कर वह अपनी इच्छाओं के आसमान पर पहुंच सकती थी.

एक बार प्रदेश सरकार का मंत्री भूरेलाल जिले के दौरे पर आया, तो उस की पार्टी के कार्यकर्ताओं ने उस का दौरा मालिनपुर में ही लगा दिया.चंद्रवती अपने दबदबे से मालिनपुर में तरक्की के अनेक काम करवा चुकी थी. जिसे देखने के लिए मंत्री को ग्राम प्रधान से मिलने की इच्छा और बढ़ गई.

चंद्रवती ने पहले से ही मंत्री के लिए नाश्ते का इंतजाम घर पर ही कर रखा था. भूरेलाल का स्वागत करने के लिए चंद्रवती सजीधजी दरवाजे पर ही खड़ी थी. वह खूबसूरती के भूखे इन मर्दों को अच्छी तरह से जानती थी.

चंद्रवती के रूप को देख कर भूरेलाल की आंखें चौंधिया गईं. चंद्रवती ने बैठक को भी ऐसा सजाया था कि भूरेलाल देखता ही रह गया. जब चंद्रवती भूरेलाल के सामने बैठी, तो वह गांव की तरक्की के काम की बात भूल कर उस की खूबसूरती को देखने में मगन हो गया.

जब चंद्रवती ने अपने सुकोमल हाथों और एक मोहन मुसकान से उसे चाय की प्याली पकड़ाई, तब जा कर भूरेलाल की नींद टूटी.

भूरेलाल गांव का दौरा कर के चला तो गया, पर उस का दिल मालिनपुर में ही अटक कर रह गया. शाम को ही मंत्री भूरेलाल ने फोन कर के चंद्रवती को उस की ‘अच्छी चाय’ के लिए धन्यवाद दिया.

चंद्रवती जान गई थी कि तीर निशाने पर लगा है. उस ने योजनाएं बनानी शुरू कर दीं कि मंत्री भूरेलाल से क्याक्या काम करवाने हैं और आगे बढ़ने के लिए इस सीढ़ी का इस्तेमाल कैसे किया जा सकता है.

अब मालिनपुर गांव में तरक्की का जो भी छोटाबड़ा काम होता, उस का उद्घाटन भूरेलाल के ही हाथों होता. भूरेलाल चंद्रवती को पार्टी के कार्यक्रमों में शिरकत करने के लिए बुलाने लगा.

जल्दी ही भूरेलाल ने चंद्रवती की ताजपोशी खादी ग्रामोद्योग बोर्ड के अध्यक्ष पद पर करवा दी. फिर तो चंद्रवती को नीली बत्ती की गाड़ी मिल गई.

ओहदा बढ़ते ही चंद्रवती आजाद पंक्षी हो गई. लल्लू पहलवान ने उसे घोंसले में ही कैद रखने के लिए उस के पर कतरने की काफी कोशिश की, लेकिन चंद्रवती के सामने उस की अब बिसात ही क्या थी.

एक दिन भूरेलाल ने मौका देख कर कहा, ‘‘चंद्रवतीजी, आप खूबसूरत होने के साथसाथ काबिल भी हो. कोशिश करो, तो विधायक भी बन सकती हो.’’

चंद्रवती ने इतराते हुए कहा, ‘‘मंत्रीजी, ऐसे दिन हमारे कहां?’’

‘‘हम तुम्हारे साथ हैं न. बस, तुम्हें साथ देने की जरूरत है,’’ भूरेलाल ने आखिरी शब्द चंद्रवती के हाथ पर हाथ रखते हुए कहा. चंद्रवती मंत्री भूरेलाल के एहसानों से इतना दब चुकी थी कि वह कोई विरोध न कर सकी, सिर्फ अपना हाथ पीछे खींच लिया.

भूरेलाल ने सकपकाते हुए कहा, ‘‘चंद्रवती, देखो राजनीति करने के लिए बहुतकुछ कुरबान करना पड़ता है. अब देखो विधायक का टिकट पाना है, तो अनेक नेताओं से मिलना ही पड़ेगा. अब मैं तुम्हें प्रदेश अध्यक्ष से मिलवाना चाहता हूं, उस के लिए तुम्हें लखनऊ तो चलना ही पड़ेगा. घर जा कर सोचना और ‘हां’ और ‘न’ में जवाब देना. वैसे तो तुम समझदार हो ही.’’

चंद्रवती इस ‘हां’ और ‘न’ का मतलब अच्छी तरह समझती थी. घर पहुंचने पर वह कुछ दुविधा में थी. लल्लू से जब उस ने लखनऊ जा कर प्रदेश अध्यक्ष से मिलने की बात कही, तो उस ने कहा, ‘‘चंद्रवती, धीरेधीरे चलो, तुम उड़ रही हो. हम जितना ऊंचे उड़ते हैं, उतना नीचे भी गिरते हैं.’’

लेकिन चंद्रवती को लल्लू की बात समझ में नहीं आई. उसे लगा कि पहलवानी करतेकरते लल्लू का दिमाग भी छोटा हो गया है. विधायक बनना है, तो कुछ कुरबानी तो देनी ही पड़ेगी.

चंद्रवती प्रदेश अध्यक्ष से मिलने के लिए लखनऊ जाने की तैयारी करने लगी. बुझे मन से लल्लू भी उस के साथ लखनऊ गया.भूरेलाल ने उन के ठहरने का इंतजाम पहले से ही एक होटल में कर दिया था.

अगले दिन भूरेलाल चंद्रवती को लेने होटल गया. चंद्रवती उस के साथ कार में बैठ कर प्रदेश अध्यक्ष से मिलने चली गई. लल्लू को यह बात नागवार गुजरी.

प्रदेश अध्यक्ष भी चंद्रवती की खूबसूरती को निहारता रह गया. मंत्री भूरेलाल ने चंद्रवती की तारीफ के पुल बांध दिए. प्रदेश अध्यक्ष ने चंद्रवती को विधायक का टिकट देने के लिए विचार करने का आश्वासन दिया. चंद्रवती को लगा, जैसे उसे विधायकी का टिकट मिल ही गया.

इस के बाद तो चंद्रवती पार्टी के नेताओं और मंत्रियों के घर और दफ्तर के चक्कर काटने में ही मशगूल हो गई. मंत्री भूरेलाल ने उसे बता दिया था कि जितने नेता और मंत्री उस के टिकट की सिफारिश कर देंगे, उस का टिकट उतना ही पक्का.

अब चंद्रवती अपना ज्यादा समय लखनऊ में ही बिताने लगी थी. उसे लल्लू की अब कोई चिंता नहीं थी. लल्लू भी इस बात को अच्छी तरह से समझ चुका था कि चिडि़या अब उस के हाथ से निकल चुकी है.

भूरेलाल राजनीति का तो मंजा हुआ खिलाड़ी था ही, इश्कमिजाजी का भी वह शौकीन था. वह जानता था कि चंद्रवती उस के जाल में फंस चुकी है. उस ने खादी के विदेशों में प्रचारप्रसार के लिए यूरोपीय देशों का 20 दिन का टूर बनाया और चंद्रवती का नाम भी टूर में जाने वाले लोगों की लिस्ट में शामिल था. लल्लू के विरोध के बावजूद चंद्रवती भूरेलाल के साथ टूर पर गई.

चंद्रवती को लगता था कि भूरेलाल ही वह सहारा और सीढ़ी है, जो उसे उस की मंजिल तक पहुंचाएगा. यूरोप के 20 दिन के टूर में चंद्रवती ने अपना सबकुछ भूरेलाल को सौंप दिया.

इधर लल्लू इतना दुखी हो चुका था कि चंद्रवती से तलाक लेने के अलावा उसे और कोई रास्ता न सूझता था. उस ने तलाकनामा के लिए वकील से कागजात तैयार करा लिए. चंद्रवती इस के लिए खुशी से तैयार थी. न अब उसे गांव पसंद था और न लल्लू ही.

चंद्रवती भूरेलाल के जरीए और मंत्रियों से मिली. अब उस की पौबाहर थी. सुबह से शाम तक न जाने कितने लोग उसे सैल्यूट मारते. एक फोन पर वह मंत्रियों और अफसरों से लोगों के काम करवाती. ऐसा लगता, जैसे चंद्रवती प्रदेश में अलग सरकार चला रही हो.

लेकिन राजनीति में किस का सूरज कब उग जाए और कब डूब जाए, कौन कह सकता है. चंद्रवती की हनक देख कई लोग उस के विरोधी हो गए. वे चंद्रवती को फंसाने की ताक में लग गए. मीडिया भी उस की हनक से हैरान था.

एक दिन चंद्रवती और भूरेलाल की जरा सी लापरवाही से उन के अंतरंग संबंधों की तसवीरें विरोधियों के हाथ पड़ गईं. फिर मीडिया तक जाने में इसे कितनी देर लगती.

अगले ही दिन 2 काम हो गए. खादी ग्रामोद्योग बोर्ड के अध्यक्ष पद से चंद्रवती को बरखास्त कर दिया गया. कहां तो वह विधायक बनने का सपना देख रही थी, प्रदेश अध्यक्ष ने उस की पार्टी की प्राथमिक सदस्यता ही रद्द कर दी. मंत्रियों, नेताओं और अफसरों ने उस का मोबाइल नंबर तक अपने मोबाइलों से निकाल दिया.

भूरेलाल के मंत्री पद पर बन आई, तो उस ने चंद्रवती से अपने संबंधों को विरोधियों की साजिश और मीडिया के गंदे मन की उपज बताया. उस ने सार्वजनिक रूप से ऐलान किया कि वह चंद्रवती को केवल एक पार्टी कार्यकर्ता के रूप में जानता है, उस से ज्यादा उस का चंद्रवती से कोई लेनादेना नहीं है.

चंद्रवती ने इतने दिनों में जो बेनामी दौलत कमाई थी, उस से उस ने लखनऊ में एक बंगला तो खरीद ही लिया था. लेकिन राजनीतिक रुतबा खत्म होते ही उस की सारी शानोशौकत पर रोक लग गई. अब उस का दरबार सूना हो चुका था.

जल्दी ही चंद्रवती को अर्श से फर्श पर गिरने का एहसास हो गया. इस बेकद्री और अकेलेपन के चलते वह तनाव की शिकार हो गई. नींद की गोलियां उस का सहारा बनीं.

भूरेलाल उस के फोन को उठाता तक न था. तब एक दिन उस से मिलने वह उस के दफ्तर पहुंच गई. अर्दली ने उसे रोकने की कोशिश की, लेकिन वह ‘मैडम’ ही कहता रह गया और वह उस के दफ्तर में पहुंच गई. उस के वहां पहुंचते ही भूरेलाल उस पर बिफर पड़ा, ‘‘तेरी यहां आने की हिम्मत कैसे हुई?’’

‘‘भूरेलाल, मैं ने तुझ पर अपना सबकुछ लुटा दिया और अब कहता है कि मेरी यहां आने की हिम्मत कैसे हुई?’’

‘‘बकवास बंद कर. जो औरत अपने आदमी को छोड़ कर दूसरों के साथ हमबिस्तर हो, वह किसी की नहीं होती.’’

‘‘और जो मर्द अपनी औरत को छोड़ दूसरी औरतों के साथ गुलछर्रे उड़ाए, वह किस का होता है?’’

‘‘दो कौड़ी की औरत… जबान लड़ाती है… गार्ड, बाहर निकालो इसे.’’

इस से पहले कि गार्ड चंद्रवती को बाहर निकालता, चंद्रवती ने पैर में से चप्पल निकाली और भूरेलाल के सिर पर दे मारी.

भूरेलाल के गाल पर इतनी चप्पलें पड़ीं कि उस का चेहरा लाल हो गया. उस का कान और होंठ फट गया. नाक से भी खून बहने लगा. जब तक गार्ड और दूसरे लोग चंद्रवती को रोकते, भूरेलाल की काफी फजीहत हो चुकी थी.

भूरेलाल ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उस की ऐयाशी का नतीजा इतना खतरनाक होगा. मामले को दबाए रखने के लिए पुलिस को कोई सूचना नहीं दी गई.

कुछ दिन बाद खबर आई कि चंद्रवती की उस के घर पर ही मौत हो गई. पोस्टमार्टम के लिए लाश भेजी गई, लेकिन उस की मौत में नींद की दवाओं का ज्यादा सेवन करना बताया गया.

जब चंद्रवती का दाह संस्कार किया जा रहा था, तब लल्लू को उस की लाश से अरमानों का धुआं उड़ता नजर आ रहा था. Hindi Romantic Story

Hindi Romantic Story: सूनी आंखें – सीमा के पति का क्या संदेश था?

Hindi Romantic Story: सुबह के समय अरुण ने पत्नी सीमा से कहा,”आज मुझे दफ्तर जरा जल्दी जाना है. मैं जब तक तैयार होता हूं तुम तब तक लंच बना दो ब्रेकफास्ट भी तैयार कर दो, खा कर जाऊंगा.”

बिस्तर छोड़ते हुए सीमा तुनक कर बोली,”आरर… आज ऐसा कौन सा काम है जो इतनी जल्दी मचा रहे हैं.”अरुण ने कहा,”आज सुबह 11 बजे  जरूरी मीटिंग है. सभी को समय पर बुलाया है.”

“ठीक है जी, तुम तैयार हो जाओ. मैं किचन देखती हूं,” सीमा मुस्कान बिखेरते हुए बोली.अरुण नहाधो कर तैयार हो गया और ब्रेकफास्ट मांगने लगा, क्योंकि उस के दफ्तर जाने का समय हो चुका था, इसलिए वह जल्दबाजी कर रहा था.

गैराज से कार निकाली और सड़क पर फर्राटा भर अरुण  समय पर दफ्तर पहुंच गया. दफ्तर के कामों से फुरसत पा कर अरुण आराम से कुरसी पर बैठा था, तभी दफ्तर के दरवाजे पर एक अनजान औरत खड़ी अजीब नजरों से चारों ओर देख रही थी.

चपरासी दीपू के पूछने पर उस औरत ने बताया कि वह अरुण साहब से मिलना चाहती है. उस औरत को वहां रखे सोफे पर बिठा कर चपरासी दीपू अरुण को बताने चला गया.

‘‘साहब, दरवाजे पर एक औरत खड़ी है, जो आप से मिलना चाहती है,’’ दीपू ने अरुण से कहा.‘‘कौन है?’’ अरुण ने पूछा.‘‘मैं नहीं जानता साहब,’’ दीपू ने जवाब दिया.

‘‘बुला लो. देखें, किस काम से आई है?’’ अरुण ने कहा.चपरासी दीपू उस औरत को अरुण के केबिन तक ले गया.केबिन खोलने के साथ ही उस अजनबी औरत ने अंदर आने की इजाजत मांगी.

अरुण के हां कहने पर वह औरत अरुण के सामने खड़ी हो गई. अरुण ने उस औरत को बैठने का इशारा करते हुए कहा, ‘‘बताइए, मैं आप के लिए क्या कर सकता हूं?”

“सर, मेरा नाम संगीता है. मेरे पति सुरेश आप के दफ्तर में काम करते हैं.” अरुण बोला,”जी, ऑफिस के बहुत से काम वे देखते हैं. उन के बिना कई काम रुके हुए हैं.”

अरुण ने चपरासी दीपू को बुला कर चाय लाने को कहा.चपरासी दीपू टेबल पर पानी रख गया और चाय लेने चला गया.कुछ देर बाद ही चपरासी दीपू चाय ले आया.

चाय की चुस्की लेते हुए अरुण पूछने लगा, ” कहो, कैसे आना हुआ?’’‘‘मैं बताने आई थी कि मेरे पति सुरेश की तबीयत आजकल ठीक नहीं रहती है, इसलिए वे कुछ दिनों के लिए दफ्तर नहीं आ सकेंगे.”

“क्या हुआ सुरेश को,” हैरान होते हुए अरुण बोला”डाक्टर उन्हें अजीब सी बीमारी बता रहे हैं. अस्पताल से उन्हें आने ही नहीं दे रहे,”संगीता रोने वाले अंदाज में बोली.

संगीता को रोता हुआ देख कर अरुण बोला, “रोइए नहीं. पूरी बात बताइए कि उन को यह बीमारी कैसे लगी?””कुछ दिनों से ये लगातार गले में दर्द बता रहे थे, फिर तेज बुखार आया. पहले तो पास के डाक्टर से इलाज कराया, पर जब कोई फायदा न हुआ तो सरकारी अस्पताल चले गए.

“सरकारी अस्पताल में डाक्टर को दिखाया तो देखते ही उन्हें भर्ती कर लिया गया. “ये तो समझ ही नहींपाए कि इन के साथ हो क्या गया है?””जब अस्पताल से इन का फोन आया तो मैं भी सुन कर हैरान रह गई,” संगीता ने अपने आंसू पोंछते हुए कहा.

“अभी वे अस्पताल में ही हैं,” संगीता से अरुण ने पूछा.”जी,” संगीता ने जवाब दिया.अरुण यह सुन कर परेशान हो गया. सुरेश का काम किसी और को देने के लिए चपरासी दीपू से कहा.

अरुण ने सुरेश की पत्नी संगीता को समझाते हुए कहा कि तुम अब बिलकुल चिंता न करो. घर जाओ और बेफिक्र रहो, उन्हें कुछ नहीं होगा.संगीता अरुण से आश्वस्त हो कर घर आ गई और उसे भी घर आने के लिए कहा. अरुण ने भी जल्द समय निकाल कर घर आने के लिए कहा.

“सर, कुछ कहना चाहती हूं,” कुर्सी से उठते समय संगीता ने झिझकते हुए पूछा.”हां, हां, कहिए, क्या कहना चाहती हैं आप,” अरुण ने संगीता की ओर देखते हुए कहा.”जी, मुझे कुछ पैसों की जरूरत है. इन की तनख्वाह मिलने पर काट लेना,” संगीता ने सकुचाते हुए कहा.

“बताइए, कितने पैसे चाहिए?” अरुण ने पूछा.”जी, 20 हजार रुपए चाहिए थे…” संगीता संकोच करते हुए बोली.”अभी तो इतने पैसे नहीं है, आप कलपरसों में आ कर ले जाना,” अरुण ने कहा. “ठीक है,” यह सुन कर संगीता का   उदास चेहरा हो गया.

“आप जरा भी परेशान न होइए. मैं आप को पैसे दे दूंगा,” संगीता के उदास चेहरे को देख कर कहा.अरुण के दफ्तर से निकलने का समय हो चुका था, इसलिए संगीता भी अपने घर लौट आई.

अगले दिन दफ्तर के काम जल्द निबटा कर अरुण कुछ सोच में डूबा था, तभी उस के मन में अचानक ही सुरेश की पत्नी संगीता की पैसों वाली बात याद आ गई.2 दिन बाद ही संगीता अरुण के दफ्तर पहुंची. चपरासी दीपू ने चायपानी ला कर दी.

अरुण ने सुरेश की तबीयत के बारे में जानना चाहा. संगीता आंखों में आंसू लाते हुए बोली,”वहां तो अभी वे ठीक नहीं हैं. मैं अस्पताल गई थी, पर वहां किसी को मिलने नहीं दे रहे.”

“क्या…” अरुण हैरानी से बोला.”अस्पताल वाले कहते हैं, जब वे ठीक हो जाएंगे तो खुद ही घर आ जाएंगे.”यह जान कर अरुण हैरान हो गया कि अस्पताल वाले किसी से मिलने नहीं दे रहे. वह आज शाम को उस से मिलने जाने वाला था.

अरुण ने संगीता को 20 हजार के बजाय 30 हजार रुपए दिए और कहा कि और भी पैसे की जरूरत हो तो बताना.संगीता पैसे ले कर घर लौट आई. 21 मार्च की शाम जब अरुण हाथपैर धो कर बिस्तर पर बैठा, तभी उस की पत्नी सीमा चाय ले आई और बताने लगी कि रात 8 बजे रास्ट्र के नाम संदेश आएगा.

अरुण टीवी खोल कर तय समय पर बैठ गया. मोदी का संदेश सुनने के बाद अरुण ने पत्नी सीमा को अगले दिन रविवार को जनता कर्फ्यू के बारे में बताया कि घर से किसी को बाहर नहीं निकलना है. साथ ही, यह भी बताया कि शाम 5 बजे अपनेअपने घरों से बाहर निकल कर थाली या बरतन, कुछ भी बजाएं.

उस दिन शाम को जब पड़ोसी ने घर से बाहर निकल थाली बजाई तो अरुण भी शोर सुन कर बाहर आया. पत्नी सीमा भी खुश होते हुए थाली हाथ में लिए बाहर जोरजोर से बजाने लगी. उसे देख अरुण भी खुश हुआ.

सोमवार 23 मार्च को अरुण किसी जरूरी काम के निकल आने की वजह से ऑफिस नहीं गया.उसी दिनशाम को फिर से रास्ट्र के नाम संदेश आया. 21 दिनों के लॉक डाउन की खबर से वह भी हैरत में पड़ गया.

अगले दिन किसी तरह अरुण ऑफिस गया और जल्दी से सारे काम निबटा कर घर आ गया.घर पर अरुण ने सीमा को ऑफिस में साथ काम करने वाले सुरेश के बारे में बताया कि उस की तबीयत ठीक नहीं है.

अगले दिन सड़क पर सख्ती होने से अरुण दफ्तर न जा सका. लॉक डाउन होने की वजह से अरुण घर में रहने को विवश था.इधर जब सुरेश को कोरोना होने की तसदीक हो गई तो संगीता के घर को क्वारन्टीन कर दिया. अब वह घर से जरा भी बाहर नहीं निकल सकती थी.

उधर क्वारन्टीन होने के कुछ दिन बाद ही अस्पताल से सुरेश के मरने की खबर आई तो क्वारन्टीन होने की वजह से वह घर से निकल नहीं सकती थी.

संगीता को अस्पताल वालों ने फोन पर ही सुरेश की लाश न देने की वजह बताई. वजह यह कि ऐसे मरीजों को वही लोग जलाते हैं ताकि किसी और को यह बीमारी न लगे.

यह सुन कर संगीता घर में ही दहाड़े मारते हुए गश खा कर गिर पड़ी. ऑफिस में भी सुरेश के मरने की खबर भिजवाई गई, पर ऑफिस बंद होने से किसी ने फोन नहीं उठाया.जब लॉक डाउन हटा तो अरुण यों ही संगीता के दिए पते पर घर पहुंच गया.

अरुण ने सुरेश के घर का दरवाजा खटखटाया तो संगीता ने ही खोला.संगीता को देख अरुण मुस्कुराते हुए बोला, “कैसे हैं सुरेश? उस की तबीयत पूछने चला आया.”संगीता ने अंदर आने के लिए कहा, तो वह संगीता के पीछेपीछे चल दिया.

कमरे में अरुण को बिठा कर संगीता चाय बनाने किचन में चली गई. कमरे का नजारा देख अरुण  हैरत में पड़ गया क्योंकि सुरेश की तसवीर पर फूल चढ़े हुए थे, अरुण समझ गया कि सुरेश अब नहीं रहा.

संगीता जब चाय लाई तो अरुण ने हैरानी से संगीता से पूछा तो उस ने रोते हुए बताया कि ये तो 30 मार्च को ही चल बसे थे. अस्पताल से खबर आई थी. मुझे तो क्वारन्टीन कर दिया गया. फोन पर ही अस्पताल वालों ने लाश देने से मना कर दिया.

क्या करती,घर में फूटफूट कर रोने के सिवा.अरुण ने गौर किया कि सुरेश की फोटो के पास ही पैसे रखे थे, जो उस ने संगीता को दिए थे.संगीता ने उन पैसों की ओर देखा और अरुण ने संगीता की इन सूनी आंखों में  देखा. थके कदमों से अरुण वहां से लौट आया.इन सूनी आंखों में अरुण को जाते देख  संगीता की आंखों में आंसू आ गए.

Romantic Story: ग्रहण – आखिर क्या था प्रिया का राज

Romantic Story: कल से मेरे पैर धरती पर नहीं पढ़ रहे थे. रात को मारे उत्तेजना के नींद नहीं आई थी. इस पल की कितनी प्रतीक्षा थी मुझे. रात जब खाने के बाद रितिक मेरे कमरे में आया तो मुझे लगा शायद उसे कुछ चाहिए. मेरे पूछने पर उस ने अपनी दोनों बांहें मेरे गले में डाल दीं, “नहीं मां, मुझे कुछ बताना था आप को.”

शर्म से गुलाबी हो आए उस के गोरे मुखड़े को देख कर मेरे चेहरे पर प्यार भरी मुसकान तैर गई.

“तो तुझे मेरी बहू मिल गई?”
“अगर आप उसे स्वीकार करेंगी तो…”

“तुम जानते हो, तुम्हारी खुशी से बढ़ कर मेरे लिए और कुछ भी नहीं. कौन है वह, जिस ने मेरे बेटे के दिल की घंटी बजाई है?” बेटे के गाल पर प्यार की चपत लगाते हुए मैं ने पूछा.

“मां, प्रिया नाम है उस का. मेरे साथ एमबीए किया है उस ने. हम ढाई साल से एकदूसरे को जानते हैं और पसंद करते हैं. उस को भी अपने शहर में अच्छी नौकरी मिल गई है.”

“कब मिलवाओगे?” मेरा सीधा प्रश्न था.

“मां, कल सुबह नाश्ते पर बुला लेता हूं.”

“बुला नहीं लेता हूं. जा कर ले आना उसे. अब जा सो जाओ.”

पूरी रात मैं करवटें बदलती रही. सुबह 4 बजे ही मैं ने बिस्तर छोड़ दिया और रसोई में घुस गई. मन करता यह भी बना लूं, वह भी बना लूं. सुबह 7 बजे तक मेरी रसोई तरहतरह के पकवानों से महकने लगी.

“मां, क्याक्या बना लिया आप ने? पूरा घर महक रहा है. आप क्या रात भर बनाती रही हैं?” आश्चर्य और प्यार दोनों रितिक के स्वर में था.

“मेरी बहू पहली बार आ रही है. यह दिन एक बार ही आता है. तुम चाय पीयो मैं नहा कर आती हूं.”

रितिक के जाने के बाद मैं ने गुलाबी रंग की साड़ी पहनी. मोती की माला और कानों में टौप्स पहन कर शीशे के सामने खड़ी हो गई और अपने कटे हुए बालों में ब्रश करने लगी.

आज कितने सालों बाद श्रृंगार करने का मन हुआ था मेरा.

“मां…मां…” ऋतिक की आवाज सुन कर मैं चौंक गई.

“मां, प्रिया आ गई.” ऋतिक मेरे सामने खड़ा था.

“अरे, दरवाजा किस ने खोला?”
“खुला था मां, शायद आप बंद करना भूल गई थीं.”

“हां यही हुआ होगा…”

बैठक में घुसते ही प्रिया से मेरी नजरें मिलीं तो हम दोनों ही जड़ हो गए. मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई. लगा जैसे पूरा कमरा घूमने लगा है. खुद को संभालना मुश्किल हो गया. रितिक ने सहारा दे कर मुझे बैठाया.

“मां… क्या हुआ आप को?”

मैं चेतना शून्य होती जा रही थी. बंद होती आंखों से देखा, रितिक और प्रिया दोनों मेरे ऊपर झुके हुए थे और मुझे पुकार रहे थे. मुझे उन की आवाजें दूर से आती प्रतीत हो रही थीं.

जब होश आया तो देखा मैं अपने पलंग पर लेटी हुई थी. रितिक और प्रिया के साथ साथ डा. रजत भी मेरे कमरे में बैठे हुए थे.

“मां, क्या हुआ आप को?” परेशान रितिक की आंखें डबडबाई हुई थीं. मेरा हाथ उस के हाथों में था.

“बेटा, मैं ठीक हूं.”

“डाक्टर रागिनी, आप दोस्त को तो डाक्टर मानती ही नहीं हैं. मैं ने कितनी दफा आप से कहा कि थोड़ा अपनी सेहत का भी ध्यान रखिए, मगर…” डाक्टर रजत फिर से उठ कर डाक्टर रागनी का ब्लड प्रैशर नापने लगे.

“मम्मी की तबीयत खराब चल रही थी? पर अंकल, मम्मी ने तो कुछ भी नहीं बताया कभी. क्या हुआ है उन्हें?” रितिक परेशान हो उठा.

“कुछ नहीं बेटा, तुम्हारे रजत अंकल ऐसे ही बोलते रहते हैं,” मैं ने बेटे का हाथ स्नेह से दबाते हुए कहा.

“कोई यों ही बेहोश नहीं हो जाता मम्मी. अंकल आप बताइए न ?”

रितिक बहुत परेशान था और इस परेशानी में प्रिया को भी भूल गया था, जो पास ही चुपचाप बैठी हुई थी और मुश्किल से अपने आंसुओं को संभाले थी.

“परेशान होने वाली भी बात नहीं है रितिक. तुम्हारी मम्मी को थोड़ा आराम करने की जरूरत है. बहुत थका देती हैं खुद को. वैसे पूरा चैकअप करा लेना हमेशा अच्छा होता है. मैं ने कुछ टेस्ट लिख दिए हैं. करा लेना. इतना ब्लड प्रैशर बढ़ना ठीक बात नहीं है,” रितिक की पीठ थपथपा कर रजत बोले.

“जी अंकल.”

“अच्छा अब सब कंट्रोल में है. मां को आराम करने दो. परेशान मत हो. मैं चलता हूं. वैसे अब जरूरत नहीं पड़ेगी पर मैं एक फोन काल की ही दूरी पर हूं,” उठते हुए डाक्टर रजत बोले.

“अरे, अंकल चाय….”

“मम्मी को ठीक होने दो, फिर साथ में पीते हैं.”

“प्रिया, मम्मी का ध्यान रखना. मैं अंकल को छोड़ कर आता हूं,” कहते हुए रितिक कमरे के बाहर चला गया.

“सौरी आंटी, मुझे बिलकुल नहीं पता था कि रितिक आप का बेटा है.”

उस की आंखें अब बरसने लगी थीं.

“प्रिया, मेरे पास आओ.”

मैं ने उस का हाथ अपने हाथ में ले लिया, “आंटी नहीं प्रिया, मां बोलो.”

वह फफकफफक कर रोने लगी और अपना सिर मेरे सीने पर रख दिया. स्नेह से मैं उस के सिर पर हाथ फेरने लगी. अतीत मुझ पर हावी होता जा रहा था…

लगभग 12 वर्ष पूर्व का वह दिन मेरी आंखों के सामने जीवंत हो उठा. मैं क्लीनिक में मरीज देख रही थी. एक दंपत्ति अपनी 13-14 साल की बेटी के साथ क्लीनिक पर आए. बच्ची दर्द में थी और एक ही बात बोले जा रही थी, “मुझे इंजैक्शन लगा दीजिए. मुझे मार दीजिए. मुझे नहीं जीना है.”

रोते हुए उस के पिता ने बताया कि वे लोग एक रिश्तेदार के घर गृहप्रवेश में गए थे. बेटी का 10वीं का बोर्ड था तो वह अपने शिक्षक की प्रतीक्षा में घर पर ही रुक गई थी. हम जब शाम को लौटे तो बेटी इस हाल में मिली. वह शिक्षक दरिंदा निकला.

वे हाथ जोड़ कर बोले, “हम पुलिस के पास नहीं जाना चाहते डाक्टर. उस का तो कुछ नहीं होगा पर हमारी लड़की बदनाम हो जाएगी. हम इस की परीक्षा के बाद यह शहर ही छोड़ देंगे. हमारी मदद कर कीजिए.”

मैं उन की पीड़ा को समझ सकती थी. मेरे जेठ की बेटी इस हादसे से गुजरी थी. जेठजी स्वयं पुलिस में थे. पर क्या लाभ हुआ पुलिस, कोर्टकचहरी, इन सब का तनाव और समाज की हिकारत भरी नजर, वह बेचारी नहीं झेल पाई और साल पूरा होतेहोते पंखे से लटक कर मर गई.

मैं बच्ची के इलाज के साथसाथ उस की काउंसलिंग भी करने लगी. वह जब घबराती अपनी मम्मी के साथ मेरे पास आ जाती. फिर धीरेधीरे अकेले आने लगी. दूसरे शहर जा कर भी वह फोन से संपर्क में रही.

एक दिन मैं ने उस से कहा,”देखो बेटा तुम 12वीं में आ गई हो और अब पूरी तरह से ठीक हो गई हो. तुम्हारे लिए जरूरी है कि तुम इस घटना को भूल जाओ. इस के लिए तुम्हें मुझे भी भूलना होगा.”

“आप को? आप को कैसे भूल सकती हूं मैं? मेरी मां ने मुझे जन्म दिया है, पर यह नई जिंदगी आप की दी हुई है,” वह कांपती हुई आवाज में बोली.

“मां कह रही हो तो मां की बात मानो. सबकुछ भूल कर एक नई जिंदगी जियो. जब शादी करोगी तो मुझे जरूर बताना, मैं आऊंगी.”

“शादी? मैं… मैं… मुझ से कौन शादी करेगा?”

“क्यों तुम ने कौन सा पाप किया है?यह पाप पुण्य का पाठ हम औरतों को जबरन सिखाया गया है ताकि हम कभी भी आजादी सेे न जी सकें. तुुुम शादी करोगी और एक आम जिंदगी  जीओगी. बस इस दुर्घटना का जिक्र किसी से कभी नहीं करना. मैं ने अपनी मैडिकल फाइल में भी तुम्हारा असली नाम नहीं लिखा है. उस में तुम छाया हो. तुम अपने असली नाम के साथ आराम से जियो.”

मगर 8 साल के लंबे अंतराल के बाद आज अचानक वही छाया, प्रिया के रूप में मेरे सामने थी.

बेटे की आवाज से मैं वापस वर्तमान में लौट आई.

“मां, इसे क्या हुआ?”

“डर गई है,” प्रिया के सिर पर हाथ फेरते हुए मैं ने जवाब दिया.

“इसी की वजह से तो आप इतना थकीं,” प्रिया की ओर देखते हुए रितिक बोला.

“प्रिया सिर उठा कर अपलक रितिक को देख रही थी.

“अब तुम्हारी सजा य. है प्रिया कि अब तुम मां के लिए चाय बना कर लाओ और जो बचे उस में से थोड़ी सी मुझे भी दे देना.”

कमरे का वातावरण थोड़ा हलका हो गया. तकिए की टेक के सहारे दोनों ने मुझे बैठा दिया.

चाय पीते हुए मैं ने प्रिया की ओर देखा और बोली,”प्रिया, चाय तो तुम ने अच्छी बनाई है. चलो रसोई में तुम पास हो गई. पर अभी तुम्हारी परीक्षा बाकी है. मेरी बहू बनने के लिए तुम्हें एक परीक्षा और पास करनी होगी.”

प्रिया और रितिक दोनों एकदूसरे की ओर देखने लगे.

हिचकता हुआ रितिक बोला,”मां, तुम्हें कोई ऐतराज है क्या?”

“नहीं… बिलकुल नहीं. मगर तुम अपने कमरे में जाओ, मुझे अकेले में  प्रिया से कुछ बात करनी है. उसके बाद तुम्हें बुला लेंगे.”

“जी…” रितिक प्रिया की ओर देखता हुआ बाहर चला गया.

प्रिया अब सीधे मेरी ओर देख रही थी.

“प्रिया, मुझे तुम से एक वादा चाहिए.”

“मां, मुझ जैसी ग्रहण लगी लड़की को जानतेसमझते हुए आप क्यों स्वीकार कर रही हैं? आप मना भी तो कर सकती हैं…”

“क्यों मना करूंगी, तुम्हारी जैसी कोमल हृदय वाली बेटी, मेरी बहू बने यही तो हमेशा चाहा है मैंने. तुम्हारे साथ से ही मेरे बेटे की खुशियां हैं. यह खुशी मैं उसे देना चाहती हूं. बस एक वादा चाहिए तुम से…”

“कौन सा वादा माँ?”

“कभी, किसी भी कमजोर पल में उस हादसे का जिक्र रितिक से नहीं करोगी.”

“इतनी बड़ी बात छिपाना क्या उचित होगा?”

“प्रिया, जिंदगी में बहुत से हादसे होते हैं. क्या हम हमेशा उन का बोझा पीठ पर ढोते रहते हैं? वे घट कर अतीत हो जाते हैं. यही होना भी चाहिए.”

वह मौन मुझे देख रही थी.

“प्रिया, मेरा बेटा बहुत सुलझा हुआ है फिर भी मैं नहीं चाहती कि किसी अनचाहे अतीत का काला साया मेरे बेटेबहू के जीवन को परेशान करे.”

“आप की भावना समझ सकती हूं. मां, मैं आप से वादा करती हूं कि इस बात का जिक्र मेरी जबान पर कभी नहीं आएगा.”

“प्रिया, अपनी मम्मीपापा से कहना कि जब वे आएंगे तो हम पहली बार मिल रहे होंगे. यह याद रखें.”

“मां, आप बहुत महान हैं,” भावुकता में प्रिया मेरे गले लग गई.

प्यार से उस की पीठ थपथपा कर मैं ने कहा,”अब रितिक को बुला लो.”

प्रिया के साथ रितिक कमरे में आया तो उस के चेहरे पर कई प्रश्न साफ दिखाई दे रहे थे.

“तेरी प्रिया, मेरी परीक्षा में पास हो गई. यह चांद सी सुंदर लड़की मुझे बहू के रूप में स्वीकार है.”

“चांद में तो दाग होता है मां. ग्रहण लगता है,” रितिक ने प्रिया को छेड़ते हुए कहा.

“चांद उस ग्रहण के साथ ही तो पूर्ण होता है बेटा. वैसे ही हम सब भी अनेक अच्छाई और बुराई के पुतले हैं और हमें एकदूसरे को संपूर्णता में स्वीकारना होता है. प्रिया हम दोनों को हमारी कमियों के साथ स्वीकारेगी और हम दोनों को भी प्रिया को उस की सारी अच्छाइयों और बुराईयों के साथ उसे स्वीकारना होगा.”

” मैं तो मां….”

“मैं जानती हूं. तुम उसे छेड़ रहे हो. अच्छा अब तुम दोनों रसोई से कुछ ला कर खिलाओ तो मुझे, भूख लग रही है.”

उठते हुए प्रिया बोली,”मैं लाती हूं मां.”

“और हां प्रिया, अपने मम्मीपापा से बोलना मुझ से जल्दी आ कर मिलें और उन्हें यह भी बता देना कि मुझे शादी की जल्दी है.”

रितिक और प्रिया के चेहरे खिल उठे और दोनों मुसकराते हुए कमरे से बाहर चले गए .

Romantic Story: एक नई शुरुआत – क्या समर की प्रेम कहानी आगे बढ़ पाई

Romantic Story: रोजरोज के ट्रैफिक जाम, नेताओं की रैलियां, वीआईपी मूवमैंट्स और अकसर होने वाले फेयर की वजह से दिल्ली में ट्रैवल करना समस्या बनता जा रहा है. अब अगर आप किसी बड़ी पोस्ट पर हैं तो कार से ट्रैवल करना आप की अनिवार्यता बन जाता है. बड़े शहरों में प्रैस्टिज इश्यू भी किसी समस्या से कम नहीं है. ड्राइवर रखने का मतलब है एक मोटा खर्च और फिर उस के नखरे. भीड़ भरी सड़कों पर जहां आधे से ज्यादा लोगों में गाड़ी चलाने की तमीज न हो, गाड़ी चलाना किसी चुनौती से कम नहीं है और ऐसी सूरत में ड्राइविंग को ऐंजौय कर पाना तो बिलकुल ही संभव नहीं है.

समर को ड्राइविंग करना बेहद पसंद है. पर रोजरोज की परेशानी से बचने के लिए उस ने सोचा कि अब अपने ओहदे को भूल उसे मैट्रो की शरण ले लेनी चाहिए. कहने दो, लोग या उस के जूनियर जो कहें. पैट्रोल का खर्चा जो कंपनी देती है, उसे बचाने के चक्कर में बौस मैट्रो से आनेजाने लगे हैं, ऐसी बातें उस के कानों में भी अवश्य पड़ीं, पर सीधे उस के मुंह पर कहने की तो किसी की हिम्मत नहीं थी.

आरंभ के कुछ दिन तो उसे भी दिक्कत महसूस हुई. मैट्रो में कार जैसा

आराम तो नहीं मिल सकता था, पर कम से कम वह टाइम पर औफिस पहुंच रहा था और वह भी सड़कों पर झेलने वाले तनाव के बिना. हालांकि मैट्रो में इतनी भीड़ होती थी कि कभीकभी उसे झुंझलाहट हो जाती थी. धीरेधीरे उसे मैट्रो के सफर में मजा आने लगा.

दिल्ली की लाइफलाइन बन गई मैट्रो में किस्मकिस्म के लोग. लेडीज का अलग डब्बा होने के बावजूद उन का कब्जा तो हर डब्बे में होना और पुरुषों का इस बात को ले कर खीजते रहना देखना और उन की बातों का आनंद लेना भी मानो उस का रूटीन बन गया. पुरुषों के डब्बे में भी महिलाओं के लिए आरक्षित सीटें होती हैं. लेकिन वह उन पर कम ही बैठता था. उस दिन मैट्रो अपेक्षाकृत खाली थी. सरकारी छुट्टी थी. वह कोने की सीट पर बैठ गया.

वह अखबार पढ़ने में तल्लीन था कि तभी एक मधुर स्वर उस के कानों में पड़ी, ‘‘ऐक्सक्यूज मी.’’

उस ने नजरें उठाईं. लगभग 30-32 साल की कमनीय काया वाली एक महिला उस के सामने खड़ी थी. एकदम परफैक्ट फिगर… मांस न कहीं कम न कहीं ज्यादा. उस ने पर्पल कलर की शिफौन की प्रिंटेड साड़ी और स्लीवलैस ब्लाउज पहना था. गले में मोतियों की माला थी और कंधे पर डिजाइनर बैग झूल रहा था. होंठों पर लगी हलकी पर्पल लिपस्टिक एक अलग ही लुक दे रही थी. नफासत और सौंदर्य दोनों एकसाथ. कुछ पल उस पर नजरें टिकी ही रह गईं.

‘‘ऐक्सक्यूज मी, यह लेडीज सीट है. इफ यू डौंट माइंड,’’ उस ने बहुत ही तहजीब से कहा.

‘‘या श्योर,’’ समर एक झटके से उठ गया.

अगले स्टेशन के आने की घोषणा हो रही थी यानी वह खान मार्केट से चढ़ी थी. समर की नजरें उस के बाद उस से हटी ही नहीं. बारबार उस का ध्यान उस पर चला जाता था. बहुत चाहा उस ने कि उसे न देखे, पर दिल था कि जैसे उसी की ओर खिंचा जा रहा था. लेकिन यों एकटक देखते रहने का मतलब था कि उस के जैसे भद्र पुरुष का बदतमीजों की श्रेणी में आना और इस समय तो वह कतई ऐसा नहीं करना चाहता था. अपनी खुद की 35 साल की जिंदगी में किसी के प्रति इस तरह का आकर्षण या किसी को लगातार देखते रहने की चाह इस से पहले कभी उस के अंदर इतनी तीव्रता से उत्पन्न नहीं हुई थी. वैसे भी सफर लंबा था और वह उस में किसी तरह का व्यवधान नहीं चाहता था.

वैल सैटल्ड और पढ़ीलिखी व कल्चर्ड फैमिली का होने के बावजूद न जाने क्यों उसे अभी तक सही लाइफ पार्टनर नहीं मिल पाया था. कभी उसे लड़की पसंद नहीं आती तो कभी उस के मां बाप को. कभी लड़की की बैकग्राउंड पर दादी को आपत्ति होती. ऐसा नहीं था शादी को ले कर उस ने सैट रूल्स बना रखे थे पर पता नहीं क्यों फिर भी 25 साल की उम्र से शादी के लिए लड़की पसंद करने की कोशिश 35 साल तक भी किसी तरह के निर्णय पर नहीं पहुंच पाई थी.

धीरेधीरे चौइस भी कम होने लगी थी और रिश्ते भी आने कम हो गए थे.

उस ने भी अपनी इस एकाकी जिंदगी को ऐंजौय करना शुरू कर दिया था. अब तो मम्मीपापा और भाईबहन भी उस से यह पूछतेपूछते थक गए थे कि उसे कैसी लड़की चाहिए. वह अकसर कहता लड़की कोई फोटो फ्रैम तो है नहीं, जो परफैक्ट आकार व डिजाइन की मिल जाएगी. मेरे मन में कोई इमेज तो नहीं है उस की, बस जैसी मुझे चाहिए जब वह सामने आएगी तो मैं खुद ही आप लोगों को बता दूंगा.

उस के बाद से घर वाले भी शांत हो कर बैठ गए थे और वह भी मस्त रहने लगा था. वह सीट से उठी तो एक बार उस ने फिर से उसे गहरी नजरों से देखा. एक स्वाभाविक मुसकान मानो उस के चेहरे का हिस्सा ही बन गई थी.

गालों पर डिंपल पड़ रहे थे. समर को सिहरन सी महसूस हुई. क्या है यह… क्यों उस के भीतर जलतरंग सी बज रही है. वह कोई 20-21 साल का नौजवान तो नहीं, एक मैच्योर इनसान है… फिर भी उस का रोमरोम तरंगित होने लगा था. अजीब सी फीलिंग हुई… अनजानी सी… इस से पहले किसी लड़की को देख कर ऐसा कभी महसूस नहीं हुआ था. मानो मिल्स ऐंड बून्स का कोई किरदार पन्नो में से निकल कर उस के भीतर समा गया हो और उसे आंदोलित कर रहा हो. यह खास फीलिंग उसे लुभा रही थी.

उस के नेहरू प्लेस उतरने के बाद जब तक मैट्रो चली नहीं वह उसे जाते देखता रहा. मन तो कर रहा था कि वहीं उतर जाए और पता करे कि वह कहां काम करती है. पर यह उसे शिष्ट आचरण नहीं लगा. उसे आगे ओखला जाना था. लेकिन मैट्रो से उतरने के बाद भी उसे लगा कि जैसे उस का मन तो उस कोने वाली सीट पर ही जा कर अटक गया है.

औफिस में भी वह बेचैन ही रहा. काम कर रहा था पर कंसनट्रेशन जैसे गायब हो चुका था. वह बारबार खुद से यही सवाल कर रहा था कि आखिर उस महिला के बारे में वह इतना क्यों सोच रहा है. क्यों उस के अंदर एक समुद्र उफान ले रहा है, क्यों वह चाहता है कि उस से दोबारा मुलाकात हो… बहुत बार उस ने अपने खयालों पर फाइलों के बोझ को डालना चाहा, बहुत बार कंप्यूटर स्क्रीन पर आंखें गड़ाने की कोशिश की पर नाकामयाब रहा. खुद को धिक्कारा भी कि किसी के बारे में यों मन में खयाल लाना अच्छी बात नहीं है. फिर भी घर लौटने के बाद और रात भर वह अपने अंदरबाहर फैली सिहरन को महसूस करता रहा.

सुबह बारबार यह सोच रहा था कि आज भी मैट्रो में उस से मुलाकात हो जाए. फिर खुद पर ही उसे हंसी आ गई. मान लो उस ने वही मैट्रो पकड़ी तब भी क्या गारंटी है कि वह आज भी उसी डब्बे में चढ़ेगी जिस में वह हो. उसे लग रहा था कि अगर उस का यही हाल रहा तो कहीं वह स्टौकर न बन जाए. समर खुद को संभाला… उस ने अपने को हिदायत दी. मैच्योर इनसान इस तरह की हरकतें करते अच्छे नहीं लगते… सही है पर खान मार्केट आते ही नजरें उसे ढूंढ़ने लगीं. पर नहीं दिखी वह.

अब तो जैसे सुबहशाम उसे तलाशना ही उस का रूटीन बन गया था. उसे लगा कि हो सकता है वह रोज ट्रैवल न करती हो. मायूस रहने लगा था समर… कोई इस तरह दिमाग पर हावी रहने लग सकता है. उस ने कभी सोचा नहीं था. क्या इसे ही लव ऐट फर्स्ट साइट कहते हैं. किताबी और फिल्मी बातें जिन का कभी वह मजाक उड़ाया करता था आज उसे सच लग रही थीं. काश, एक बार तो वह कहीं दिख जाए.

खान मार्केट से समर को कुछ शौपिंग करनी थी. वैलेंटाइनडे की वजह से खूब चहलपहल थी. बाजार रोशनी से जगमगा रहे थे, खरीदारी करने के बाद वह कौफी कैफे डे में चला गया. कौफी पी कर सारी थकान उतर जाती है उस की. एक सिप लिया ही था कि सामने से वह अंदर आती दिखी. हाथों में बहुत सारे पैकेट थे. आज मैरून कलर का कुरता और क्रीम कलर की लैगिंग पहन रखी थी उस ने. कानों में डैंगलर्स लटक रहे थे जो बीचबीच में उस की लटों को चूम लेते थे.

चांस की बात है कि सारी टेबलें भरी हुई थीं. वह बिना झिझक उस के सामने वाली कुरसी पर आ कर बैठ गई. समर को लगा जैसे उस की मनचाही मुराद पूरी हो गई. कौफी का और्डर देने के बाद वह अपने मोबाइल पर उंगली घुमाने लगी. फिर अचानक बोली, ‘‘आई होप मेरे यहां बैठने से आप को कोई प्रौब्लम नहीं होगी… और कोई टेबल खाली नहीं है…’’

उस की बात पूरी होने से पहले ही तुरंत समर बोला, ‘‘इट्स माई प्लैजर.’’

‘‘ओह रियली,’’ उस ने कुछ इस अंदाज में कहा कि समर को लगा जैसे उस ने व्यंग्य सा कसा हो. कहीं उस के चेहरे पर आए भावों का वह कोई गलत मतलब तो नहीं निकाल रही… कहीं यह सोचे कि वह उस पर लाइन मारने की कोशिश कर रहा है.

‘‘वैसे आप को कोने वाली सीट ही पसंद है… डिस्टर्बैंस कम होती है और आप को वैसे भी पसंद नहीं कि कोई आप की लाइफ में आप को डिस्टर्ब करे… अपने हिसाब से फैसले लेने पसंद करते हैं आप.’’

हैरानी, असमंजस… न जाने कैसेकैसे भाव उस के चेहरे पर उतर आए.

‘‘आप परेशान न हों, समर… मैं ने उस दिन मैट्रो में ही आप को पहचान लिया था. संयोग देखिए फिर आप से मुलाकात हो गई तो सोच रही हूं आज बरसों से दबा गुबार निकाल ही लूं. आप की हैरानी जायज है. हो सकता है आप ने मुझे पहचाना न हो. पर मैं आप को भूल नहीं पाई. अब तक तो आप को अपना परफैक्ट लाइफ पार्टनर मिल ही गया होगा. अच्छा ही है वरना बेवजह लड़कियों को रिजैक्ट करने का सिलसिला नहीं रुकता.’’

‘‘हम पहले कहीं मिल चुके हैं क्या?’’ समर ने सकुचाते हुए पूछा.

समर कहां तो इस से मुलाकात हो जाने की कामना कर रहा था और कहां अब

वही कह रही थी कि वह उसे जानती है और इतना ही नहीं उसे एक तरह से कठघरे में ही खड़ा कर दिया था.

‘‘हम मिले तो नहीं हैं, पर हमारा परिवार अवश्य एकदूसरे से मिला है. थोड़ा दिमाग पर जोर डालें तो याद आ जाए शायद कि एक बार आप के घर वाले मेरे घर आए थे. यहीं शाहजहां रोड पर रहते थे तब हम. पापा आईएएस अफसर थे. हमारी शादी की बात चली थी. आप के घर वालों को मैं पसंद आ गई थी. आप का फोटो दिखाया था उन्होंने मुझे. वे तो जल्दी से जल्दी शादी की डेट तक फिक्स करने को तैयार हो गए थे. फिर तय हुआ कि आप के और मेरे मिलने के बाद ही आगे की बात तय की जाएगी.

मैं खुश थी और मेरे मम्मीपापा भी कि इतने संस्कारी और ऐजुकेटेड लोगों के यहां मेरा रिश्ता तय हो रहा है. हम मिल पाते उस से पहले ही पापा पर किसी ने फ्रौड केस बना दिया. आप की दादी ने घर आ कर खूब खरीखरी सुनाई कि ऐसे घर में जहां बाप बेईमानी का पैसा लाता हो हम रिश्ता नहीं कर सकते हैं. पापा ने बहुत समझाया कि उन्हें फंसाया गया है पर उन्होंने एक न सुनी.

‘‘मुझे दुख हुआ पर इसलिए नहीं कि आप से रिश्ता नहीं हो पाया, बल्कि इसलिए कि बिना सच जाने इलजाम लगा कर आप की दादी ने मेरे पापा का अपमान किया था. उस के बाद मैं ने तय कर लिया था कि शादी करूंगी ही नहीं. पापा तो खैर बेदाग साबित हुए पर मेरा रिश्ता टूटने का गम सह नहीं पाए और चले गए इस दुनिया से.

‘‘हमारे समाज में किसी लड़की को रिजैक्ट कर देना आम बात है पर कोई एक बार भी यह नहीं सोचता कि इस से उस के मन पर क्या बीतती होगी, उस के घर वालों की आशा कैसे बिखरती होगी… आप को कोई रिजैक्ट करे तो कैसा लगेगा समर?’’

‘‘मेरा यकीन करो…’’

‘‘मेरा नाम निधि है.’’

नाम सुन कर समर को लगा कि जैसे घर में उस ने कई बार इस नाम को सुना था. मम्मीपापा, भाईबहन यहां तक कि दादी के मुंह से भी. वह भी कई बार कि लड़की तो वही अच्छी थी पर उस का बाप… दादी उन से शादी हो जाती तो भैया अब तक कुंआरे न होते, बहन को भी उस ने कहते सुना था कई बार. पर आप की जिद ने सब गड़बड़ कर दिया… पापा भी उलाहना देते थे कई बार दादी को. अब तक जितनी लड़कियां देखी थीं, समर के लिए वही मुझे सब से अच्छी लगी थी. मम्मी के मुंह से भी वह यह बात सुन चुका था. जिसे देखा न हो उस के बारे में वह क्या कहता. इसलिए चुप ही रहता था.

‘‘निधि, सच में मुझे कोई जानकारी नहीं है. हालांकि घर में अकसर तुम्हारी बात होती थी पर तुम मेरे लिए किसी अनजान चेहरे की तरह थीं. आई एम सौरी… मेरे परिवार वालों की वजह से तुम्हें अपने पापा को खोना पड़ा और इतना अपमान सहना पड़ा. पर…’’ कहतेकहते रुक गया समर. आखिर कैसे कहता कि जब से उसे देखा है वही उस के दिलोदिमाग पर छाई हुई है. अपने दिल की बात कह कर कहीं वह उस का दिल और न दुखा दे और फिर अब उस ने ही उसे रिजैक्ट कर दिया तो क्या होगा…

‘‘समर मुझे आप की सौरी नहीं चाहिए. यह तो आम लड़की की विडंबना है जिसे वह सहती आ रही है, उस के हर तरह से काबिल होने के बावजूद. एनी वे चलती हूं. आई होप फिर हमारी मुलाकात…’’

‘‘हो…’’ समर जल्दी से बोला, ‘‘एक मौका भूल सुधार का तो हर किसी को मिलता है. यह मेरा कार्ड है. फेसबुक पर आप को ढूंढ कर फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजूंगा, प्लीज निधि ऐक्सैप्ट कर लेना… विश्वास है कि आप रिजैक्ट नहीं करेंगी… कोने वाली सीट नहीं चुनूंगा अब से,’’ समर ने अपना विजिटिंग कार्ड उसे थमाते हुए कहा, ‘‘पुराना सब कुछ भुला कर नई शुरुआत की जा सकती है.’’

कार्ड लेते हुए निधि ने अपने शौपिंग बैग उठाए. बाहर जाने के लिए पलटी तभी उस के डैंगलर ने उस की बालों की लटों को यों छुआ और लटें इस तरह हिलीं मानो कह रही हों इस बार ऐक्सैप्ट आप को करना है.

Romantic Story: अतीत की यादें – जब चेतन का अतीत आया सामने

Romantic Story: फोन की घंटी बजी तो चोंगा उठाने पर आवाज आई, ‘‘डायरैक्टर साहब हैं?’’

‘‘कौन बोल रहे हैं?’’

‘‘जी, मैं रामनिवास बोल रहा हूं. जरा साहब से बात करा दीजिए.’’

‘‘कहिए, मैं बोल रहा हूं.’’

‘‘मुझे आप से कुछ जरूरी बात करनी है. क्या मैं अभी 5 मिनट के लिए आ सकता हूं.’’

‘‘आप 3 बजे दफ्तर में आ जाइए.’’

‘‘अच्छी बात है. मैं 3 बजे आप के दफ्तर में हाजिर हो जाऊंगा.’’ चेतन ऊंचे पद पर हैं. उद्योग विभाग में निदेशक हैं. उन के पास नगर के बड़ेबड़े उद्योगपति और व्यापारी आते रहते हैं. रामनिवास शहर के बड़े व्यापारी हैं. कुछ  साल पहले मामूली हैसियत के थे, लेकिन अब वे करोड़पति हैं. शहर में उन की धाक है. चेतन इस नगर में 1 साल से हैं. वे सभी व्यापारियों को जानते हैं. उन्हें यह भी पता है कि कौन व्यापारी कैसा है. ठीक 3 बजे रामनिवास आ गए. चपरासी के द्वारा परची भेजी तो चेतन ने उन्हें फौरन बुला लिया. अभिवादन के बाद उन्होंने कहा, ‘‘आप से मिलने की बड़ी इच्छा थी. कई दिनों से आने की सोच रहा था. पर आप तो जानते ही हैं कि हम व्यापारियों की जिंदगी में बीसियों झंझट लगे रहते हैं.’’

चेतन ने उन की ओर देखा, फिर पूछा, ‘‘कहिए, मैं आप की क्या सेवा कर सकता हूं?’’ उन के इस प्रश्न पर रामनिवास भीतर ही भीतर कुछ बुझ से गए. फिर संभल कर बोले, ‘‘आप की सालगिरह आ रही है, सोचा, मुबारकबाद दे दूं. आप जैसे अफसर मिलते कहां हैं. साहब, सारा शहर आप की बड़ी तारीफ करता है.’’ चेतन अकसर ऐसी बातें सुनते रहते हैं. जानते हैं कि इस के पीछे असलियत क्या है. उन्होंने कहा, ‘‘बोलिए, काम क्या है?’’

रामनिवास धीरे से बोले, ‘‘कोई खास काम तो नहीं है, आप के पास हमारी एक फाइल है. आप के दस्तखत होने हैं. उस पर दस्तखत कर दें तो बड़ी मेहरबानी होगी.’’

इतना कहतेकहते उन्होंने अपने बैग में से एक बड़ा लिफाफा निकाल कर चेतन के सामने रख दिया और बोले, ‘‘साहब, आप बुरा मत मानिए, हमारे घर में एक परंपरा है कि जब किसी से मिलने जाते हैं तो कुछ भेंट ले जाते हैं.’’ चेतन व्यापारियों के हथकंडे अच्छी तरह जानते हैं. मन ही मन उन्हें बड़ी खीझ हुई. आखिर सेठ ने यह जुर्रत कैसे की? क्या ये सोचते हैं कि मैं इतना भोला या मूढ़ हूं जो इन के जाल में फंस जाऊंगा? इन का लिफाफा मुझे खरीद लेगा? उसी समय एक आकृति उन के सामने आ खड़ी हुई. वह कह रही थी, पैसा हाथ का मैल है. आदमी की सब से बड़ी दौलत उस का चरित्र है. यह आकृति चेतन की मां की थी. वह क्षणभर उस की ओर देखती रही और फिर गायब हो गई. चेतन ने मन के ज्वार को दबाने की कोशिश की. पर वे अपनी कोशिश में पृरी तरह सफल न हुए. उन्होंने लिफाफे को रामनिवास की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘आप ने बड़ी कृपा की, जो मिलने आए. पर इतना याद रखिए कि सारे अफसर एक से नहीं होते. आप ने बहुत दुनिया देखी है, पर थोड़ाबहुत अनुभव हमें भी है.’’

तभी चपरासी ने एक चिट ला कर उन्हें दी. चिट देख कर चेतन ने कहा, ‘‘क्षमा कीजिए, मुझे एक मीटिंग में जाना है.’’

वे उठ खड़े हुए. रामनिवास भी नमस्कार कर के चले गए. यह चेतन के जीवन की पहली घटना नहीं थी. अनेक बार उन के सामने ऐसे प्रलोभन आए थे, पर कभी उन्होंने एक पैसा तक न छुआ. इतना ही नहीं, अपना खर्चा निकाल कर जो बचता, उसे वे जरूरतमंदों को दे देते. आज जाने क्यों, मां की उन्हें बारबार याद आ रही थी. मां ने जिन बातों के बीज अपने लाड़ले बेटे के मन में सदा के लिए बो दिए थे उन बातों को उन्होंने अपने जीवन में चरितार्थ कर के भी दिखा दिया था. उन की मां एक रियासत के दीवान की लड़की थीं. उन के चारों ओर बड़े ठाटबाट थे, लेकिन उन का तनिक भी उन में रस न था. उन का विवाह भी एक बड़े घराने में हुआ. वहां भी किसी तरह की कोई कमी न थी. पर मां उस सब के बीच ऐसे रहीं, जैसे कीचड़ के बीच कमल रहता है. चेतन उन का अकेला बेटा था, पर रिश्तेदारों के 1-2 बच्चे हमेशा उन के घर पर बने रहते थे. मां सब को खिला कर खातीं और सब को सुला कर सोतीं.

मां की मृत्यु हो गई पर चेतन को उन की एकएक बात याद है. घर में खूब पैसा था और मां का हाथ खुला था. जिसे तंगी होती, वही आ जाता और कभी खाली हाथ न लौटता. जाने कितने पैसे उन्होंने दूसरों को दिए, उस में से चौथाई भी वापस न आया.

चेतन कभीकभी उन से कहता, ‘मां, तुम यह क्या करती हो?’

तब उन का एक ही जवाब होता, ‘अरे, बड़ी परेशानी में है. पैसा न लौटा पाई तो क्या हुआ, हमारे यहां तो कोई कमी आने वाली है नहीं, उसे सहारा मिल जाएगा.’

ऐसी 1-2 नहीं, बीसियों घटनाएं चेतन अपनी आंखों देखता. पैसा न आता तो न आता, किंतु मां पर उस का कोई असर न होता.

देश आजाद हुआ. जमींदारी खत्म हो गई. लेकिन मां जैसी की तैसी बनी रहीं. उन्होंने पैसे पर कभी मुट्ठी नहीं बांधी. दिनभर काम में लगी रहतीं और रात को चैन से सोतीं.

वे लोग एक देहात में रहते थे. चेतन ने स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद मां से कहा, ‘मैं आगे पढ़ना चाहता हूं.’

‘तो पढ़, तुझे रोकता कौन है?’ मां ने सहज भाव से उत्तर दिया.

चेतन ने कहा, ‘आप ने तो कह दिया कि पढ़. पर मां, शहर का खर्चा बहुत है.’

मां ने सहज भाव से कहा, ‘तू उस की चिंता क्यों करता है, उस का प्रबंध हम करेंगे.’

चेतन उम्र के लिहाज से छोटे थे, पर बड़े समझदार थे. देखते थे, आमदनी कम हो गई है और खर्च बढ़ गया है. यही बात उन्होंने मां से कह दी तो वे खूब हंसीं, फिर बोलीं, ‘चेतन, तू हमेशा पागल ही रहेगा. अरे, तुझे क्या लेनादेना है आमदनी और खर्चे से. तुझे पढ़ना है, पढ़. इधरउधर की फालतू बातें क्यों करता है? मेरे पास बहुत जेवर हैं. वे किस दिन काम आएंगे? आखिर मांबाप अपने बच्चों के लिए नहीं करेंगे तो किस के लिए करेंगे?’

यह सुन कर चेतन का जी भर आया था. मां की गोद में सिर रख कर वे रो पड़े थे. बड़े प्यार से मां उस के सिर पर हाथ फेरती रही थीं. चेतन को लगा कि मां का हाथ आज भी उन के सिर को सहला रहा है. उन की  आंखें डबडबा आईं. चेतन शहर में पढ़ने चले गए. मां बराबर खर्चा भेजती रहीं. चेतन ने भी खूब मेहनत से पढ़ाई की. वजीफा मिला तो मां को सूचना दी. वे बड़ी खुश हुईं. उन्हें भरोसा था कि उन का बेटा आगे चल कर बहुत नाम कमाएगा.  धीरेधीरे समय गुजरता गया. चेतन की पढ़ाई का 1 साल रह गया कि अचानक एक दिन उन्हें घर से सूचना मिली, मां बीमार हैं. वे घर पहुंचे तो मां बिस्तर पर पड़ी थीं. उन का ज्वर विषम हो गया था. बहुत दुबली हो गई थीं. चेतन को देख कर उन की आंखें चमक उठीं. उन्होंने बैठने का प्रयत्न किया पर बैठ न पाईं. चेतन ने उन्हें सहारा दे कर बिठाया. मां का हाल देख कर उन्हें रोना आ गया.

मां ने एक बार पूरा जोर लगा कर कहा, ‘बेटा, तू रोता है? अरे, मैं जल्दी ही अच्छी हो जाऊंगी.’

पर मां अच्छी न हुईं, 2 दिन बाद ही उन की जीवनलीला समाप्त हो गई. मां के प्यार से वंचित हो कर चेतन अपने को असहाय सा अनुभव करने लगे. साथ ही, उन्हें यह चिंता भी सताने लगी कि घर में पिताजी अकेले रह गए हैं, अब उन का क्या होगा. पर संयोग से घर में पुराना नौकर था, उस ने सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली. चेतन पढ़ाई पूरी करने के लिए शहर चले गए पर कई दिनों तक उन का मन बड़ा बेचैन रहा.

एक दिन जब वे होस्टल के कमरे में बैठे थे, उन्होंने देखा, दरवाजे पर कोई खड़ा है. वे उठ कर दरवाजे पर आए तो पाया कि क्लास की रंजना है. वे सकपका से गए और बोले, ‘कहिए.’

रंजना ने मुसकराते हुए कहा, ‘क्यों, अंदर आने को नहीं कहेंगे?’

‘नहींनहीं, आइए,’ चेतन ने कमरे का दरवाजा पूरी तरह खोल दिया. कमरे में एक ही कुरसी थी, वह उन्होंने रंजना को दे दी और स्वयं पलंग पर बैठ गए. थोड़ी देर दोनों चुप रहे, फिर रंजना ने कहा, ‘मैं एक काम से आई हूं.’

‘बताइए?’ चेतन ने उत्सुकता से उस की ओर देखा.

‘मुझे एक निबंध लिखना है, लेकिन सूझता नहीं कि क्या लिखूं. आप की मदद चाहती हूं.’

इतना कह कर उस ने सारी बात विस्तार से बता दी और अंत में कहा, ‘यह निबंध एक प्रतियोगिता में जाएगा, पर समय कम है.’

चेतन का वह प्रिय विषय था. उन्होंने बिना समय खोए निबंध लिखवा दिया. रंजना तो यह सोच कर आई थी कि वे कुछ मोटीमोटी बातें बता देंगे और उन के आधार पर वह निबंध लिख डालेगी. लेकिन उन्होंने तो सारा निबंध स्वयं लिखवा दिया और ऐसा कि हजार कोशिश करने पर रंजना वैसा नहीं लिख सकती थी. उन का आभार मानते हुए वह चली गई.

कुछ समय बाद एक दिन पुस्कालय में रंजना मिल गई तो चेतन ने पूछा, ‘कहिए, उस निबंध का क्या हुआ?’

रंजना मारे शर्म के गड़ गई. बोली, ‘क्षमा कीजिए, मैं आप को बता नहीं पाई. वह निबंध प्रतियोगिता में प्रथम आया और उस पर मुझे 100 रुपए का पुरस्कार मिला.’

‘बधाई,’ चेतन ने कहा, ‘आप को मिठाई खिलानी चाहिए.’

रंजना के अंदर का तार झंकृत हो उठा. बोली, वह निबंध तो आप का था, बधाई आप को मिलनी चाहिए.’

चेतन ने मुसकराते हुए कहा, ‘यह कह कर मेरी मिठाई मत मारिए, वह पक्की रही, क्यों?’

रंजना ने चेतन की ओर देख कर  निगाह नीची कर ली. पर वह मन ही  मन चाह रही थी कि वे कुछ कहें. लेकिन चेतन को किसी से मिलना था. वे चले आए और रंजना खोई सी खड़ी रही.

इस के तीसरे दिन रंजना की वर्षगांठ थी. अगले दिन वह कालेज से सीधी चेतन के होस्टल गई. चेतन वहां नहीं थे. थोड़ी देर उन्होंने राह देखी और फिर एक परचे पर लिखा, ‘कल मेरी वर्षगांठ है. आप जरूर आइएगा. मुझे बड़ी खुशी होगी. मुझे ही क्यों, सारे घर को अच्छा लगेगा. मैं राह देखूंगी, रंजना.’

उस के जाने के बाद चेतन लौटे तो उन्हें रंजना का नोट मिला, जिसे पढ़ कर उन्होंने रंजना के मन में झांकने के कोशिश की. थोड़ी ऊहापोह के बाद उन्होंने सोचा कि हो न हो, वह उन के नजदीक आना चाहती हो. क्या यह उचित होगा?

तभी उन्हें मां की बात याद आई, ‘इंसान की सब से बड़ी दौलत उस का चरित्र है.’ वे सोचने लगे, लेकिन चरित्र का अर्थ क्या है? मन का संयम. चरित्रवान वही है जो अपने को वश में रखता है. उन्होंने अपने मन को टटोला. रंजना के प्रति उन के मन में सहानुभूति थी, वासना का लेशमात्र भी नहीं था. वे बुदबुदाए, ‘तब मुझे वहां जरूर जाना चाहिए.’

वर्षगांठ के दिन उपहार में एक पुस्तक ले कर वे रंजना के घर गए. रंजना उन्हें देख कर बड़ी खुश हुई. उस ने उन्हें अपने मातापिता से मिलवाया. चेतन जितनी देर रहे, रंजना उन के आसपास चक्कर लगाती रही. आयोजन छोटा सा था, ज्यादातर घर के लोग थे. खापी कर चेतन चले आए.

इस के बाद रंजना उन से 2-3 बार मिली. पर मारे संकोच के वह मन की बात उन से कह न पाई. उस के लिए जिस साहस की जरूरत थी वह रंजना में नहीं था.

चेतन की पढ़ाई पूरी हो गई. परीक्षा भी समाप्त हो गई. जिस शाम को वे घर के लिए रवाना होने वाले थे, रंजना उन के पास आई. उस ने चेतन के पैर छुए और बिना उस के कुछ कहे कुरसी पर बैठ गई. वह अपने मन को पूरी तरह खोल कर उन के सामने रख देने का संकल्प कर के आई थी. उस ने कहना आरंभ किया, ‘अब आगे आप का क्या विचार है?’

‘घर जा रहा हूं. जैसा पिताजी कहेंगे, करूंगा,’ चेतन ने मुसकरा कर कहा, ‘पर आप का इरादा क्या है?’

रंजना जानती थी कि पढ़ाई पूरी हो जाने पर लड़कियों का क्या भविष्य होता है. पर उस ने वह कहा नहीं. बस, इतना बोली, ‘अभी कुछ सोचा नहीं है.’

चेतन ने मुक्तभाव से कहा, ‘पढ़ाई पूरी हो गई. अब आप को क्या सोचना है. वह काम तो आप के मातापिता करेंगे.’

यह सुन कर रंजना का चेहरा आरक्त हो गया. धरती को पैर के नाखून से कुरेदती हुई बोली, ‘क्या यह संभव हो सकता है…?’ आगे के शब्द उस के होंठों के पीछे रह गए. चेतन ने उसे आगे कुछ भी कहने को मौका न दिया. बोले, ‘रंजनाजी, आप को एक भाई चाहिए था, मुझे एक बहन की जरूरत थी. हालात और वक्त ने दोनों की इच्छा पूरी कर दी. क्यों, है न?’ चेतन के चेहरे पर इतनी सात्विकता थी और शब्दों में इतनी निश्छलता कि रंजना भीतर से भीग सी गई. उसे ऐसा लगा, मानो चेतन ने उसे गंगा की निर्मल धारा मेें डुबकी लगवा कर उस के तप्त हृदय को शीतल कर दिया हो. वह भारी मन ले कर आई थी, हलका मन ले कर लौटी.

बात बहुत पुरानी थी, लेकिन शाम को अपने बंगले के बरामदे में कुरसी पर बैठे चेतन अतीत की याद में ऐसा खो गए कि उन्हें पता भी न चला कि कब शाम बीत गई और कब उन का सेवक आ कर बत्ती जला गया. उन के मन में आनंद हिलोरें ले रहा था. जीवन के रणक्षेत्र की इस विजय से उन का रोमरोम पुलकित हो रहा था.

Romantic Story: अंधेरा छंट गया – क्या नीला और आकाश के सपने पूरे हुए?

Romantic Story: शाम का सुरमई अंधेरा फैलने लगा था. खामोशी की आगोश में पार्क सिमटने लगा था. कुछ प्रेमी जोड़ों की मीठी खिलखिलाहटें सन्नाटे को चीरती हुई नीला और आकाश को विचलित कर देती थीं. हमेशा की तरह फूलों की झाडि़यों से बनी पर्णकुटी में एकदूजे का हाथ थामे, उदासी की प्रतिमूर्ति बने, सहमे से बैठे, आंसुओं से भरी मगर मुहब्बत से लबरेज नजरों से एकदूसरे को निहार रहे थे. दोनों के बीच मौन पसरा हुआ था पर वातावरण में सायंसायं की आवाज मुखरित थी.

‘‘कुछ तो कहो आकाश, 2 दिन ही रह गए हैं मेरी मंगनी होने में. उस के बाद मैं बाबूजी के अजीज मित्र के बेटे रितेश की मंगेतर हो जाऊंगी जो शायद मेरे जीतेजी संभव नहीं है,’’ नीला के हृदय से निकले इन शब्दों ने आकाश के हृदय को चीर कर रख दिया.

‘‘शायद यही हमारी नियति है, वरना इन 6 महीनों में क्या मुझे एक छोटीमोटी नौकरी भी नहीं मिलती. पिताजी के गुजर जाने के बाद किसी तरह ट्यूशन आदि कर के अपनी एमबीए की पढ़ाई पूरी की और नौकरी की तलाश में लग गया. नौकरी तो नहीं मिली लेकिन बड़े भाई की दया पर जीने के लिए मजबूर हो कर भाभी की आंखों की किरकिरी बन गया हूं. ऐसे में तुम्हीं कहो न, मैं क्या करूं? केवल प्यार के सहारे तो जीवन नहीं चलता है. बेरोजगारी के माहौल में झुलस जाएंगे. फूलों की सेज पर पली राजकुमारी को अपने साथ ठोकर खाने के लिए मैं कोई ऐसावैसा कदम भी नहीं उठाना चाहता. मेरी मानो तो तुम रितेश से शादी कर लो,’’  आकाश के स्वर रुकरुक कर निकले थे.

‘‘नहीं आकाश, तुम ऐसा कैसे कह सकते हो? मेरा जीवन तुम में बस गया है और जीवन के बिना क्या कोई जीवित रह पाया है. मेरी समझ से कल हम इस शहर को छोड़ कर दिल्ली चले जाएंगे. वहां मेरी बचपन की सहेली नीता रहती है, जो हमारे रहने की व्यवस्था करेगी. मैं ने उस से बात कर ली है. उस के पति एक महीने के लिए अमेरिका गए हैं. उन के आने तक हम वहीं रहेंगे. फिर उसी बीच हम कुछ न कुछ इंतजाम कर ही लेंगे. मैं ने कुछ रुपए भी जोड़ रखे हैं. पहले हम यहां से निकलें तो.’’

‘‘तुम्हारे कहने का मतलब यह है कि हम यहां से कायरों की तरह भाग जाएं? मेरा मन यह रास्ता कभी स्वीकार नहीं करेगा.’’

नीला रोती हुई बोली, ‘‘अगर तुम्हें नौकरी मिल भी जाती है, तो भी मेरे घर वाले तुम्हारे साथ मेरा रिश्ता करने के लिए तैयार नहीं होंगे. जिस जाति के लोग नौकर बन कर आज तक हमारी सेवा कर रहे हैं, मजाल है कि वे कभी हमारी बराबरी में बैठने का साहस कर के हम से ऊंचे स्वर में बात करें. उसी जाति के लड़के को वे इस जन्म में तो क्या, अगले सौ जन्मों में भी अपना दामाद स्वीकार नहीं करेंगे. ब्राह्मण की लड़की कुर्मी जाति के लड़के से प्यार कर के शादी करने का दुस्साहस करे, तुम क्या समझते हो, वे स्वीकार करेंगे? मुझे जीतेजी काटकूट कर गाड़ देंगे. मैं ने नीता की मदद से सारा इंतजाम कर लिया है. कल रात को हम दिल्ली के लिए रवाना हो जाएंगे. अब तुम मुझे स्टेशन पर ही मिलोगे. पार्लर जाने के बहाने मैं घर से निकल कर सीधे वहीं चली आऊंगी.’’ और आकाश के साथ नीला पार्क से निकल गई.

सच में प्रेम का आगमन जीवन का अर्थ तो बदलता ही है, नातेरिश्तों के तमाम बंधनों से मुक्त भी कर देता है.

दूसरे दिन अपने आकाश के साथ, नीला ने मां के नाम संदेश छोड़ते हुए बचपन की दहलीज छोड़ दी.

संदेश यों था, ‘मेरे प्यार को किसी तरह आप लोग अपनाते नहीं और मैं आप की पसंद को जीतेजी स्वीकृत नहीं करती. मेरे समक्ष यही विकल्प था कि हम कहीं दूर जा कर अपने सपनों में रंग भरते हुए दुनिया बसा लें. आकाश मुझे नहीं, मैं आकाश को भगा कर लिए जा रही हूं. सवर्णों से लड़ने की इतनी हिम्मत उस में कहां? पुलिस आदि के चक्कर में पड़े तो आप लोग अपनी ही रुसवाई करवाएंगे. हम दोनों बालिग हैं, कानून या समाज हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता. मेरी इस धृष्टता को क्षमा करिएगा. कभी, प्यार से हमें अपनाया तो ठीक है वरना अपनी इकलौती बेटी को भूल कर मेरे दोनों भाइयों के साथ सुखी रहिएगा, मां.’

दिल्ली पहुंच कर नीता की सहायता से कोर्ट में आकाश के साथ शादी कर ली तो नीला को ऐसा प्रतीत हुआ कि जैसे सारी दुनिया ही सिमट कर उस की बांहों में आ गई हो.

कुछ हफ्तों के अंदर ही नीला और आकाश ने नीता को हृदय से आभार प्रकट करते हुए एक रिहायशी इलाके में अपना आशियाना ढूंढ़ ही लिया. तीसरी मंजिल पर एक कमरे के फ्लैट में नीला और आकाश की प्यारभरी गृहस्थी रचबस गई तो नौकरी की तलाश करना दोनों का जनून बन गया. सुबह होते ही जैसेतैसे खाना बना कर डब्बे में पैक कर के दोनों ही नौकरी की खोज में निकल जाया करते थे.

मेहनत रंग लाई. नीला को एक पांचसितारा होटल में रिसैप्शनिस्ट की नौकरी मिल गई. असीम सौंदर्य की मलिका होने के साथ वह अति प्रतिभाशाली भी थी. फर्राटेदार अंगरेजी भी बोल लेती. होटल का मैनेजर तो नीला की शालीनता से इतना प्रभावित हुआ कि उस ने जो भी अपनी मांग और शर्त रखी बेझिझक उस पर स्वीकृति की मुहर लगा दी. नीला को नौकरी मिलने से आकाश को खुशी नहीं हुई. नौकरी मिलने का कारण उस ने नीला की प्रतिभा से ज्यादा उस के सौंदर्य को समझा. दरअसल, पढ़लिख जाने से ही वर्षों की पुरुषवादी मानसिकता समाप्त नहीं हो जाती. नीला ने आकाश के अंतर्मन को पढ़ लिया. बड़े प्यार से उसे समझाते हुए बोली, ‘‘निराश क्यों होते हो, बहुत जल्द तुम्हें भी नौकरी मिल जाएगी. फिर हम और हमारे इंद्रधनुषी सपने होंगे. इतनी बेकारी में इतनी जल्दी नौकरी मिलना बहुत ही खुशी की बात है. चलो, खुश हो जाओ. आज की इस बड़ी उपलब्धि को हम ठंडीठंडी कुल्फी के साथ सैलिब्रेट करेंगे.’’

आरंभ में नीला, आकाश के साथ ही घर से निकल जाया करती थी. वह होटल की राह मुड़ जाती थी और आकाश दूसरी राह की ओर. वह नौकरी की तलाश में जीतोड़ मेहनत कर रहा था. ऐसे ही कशमकश में दिन पंख लगा कर उड़ते रहे पर आकाश को कोई नौकरी नहीं मिली. आशा के साथ हर दिन सूर्योदय होता और निराशा के साथ अस्त हो जाता. घरबाहर की जिम्मेदारियों के बोझ तले नीला की जवानी कुम्हलाई जा रही थी. फूल से भी कोमल नीला वज्र से भी कठोर हो गई थी. जानबूझ कर सबकुछ ओढ़ा गया था, फिर किस से शिकवाशिकायत की जाती. पर आकाश की वेदना को नीला निराशा व उदासीभरी आंखों से ही सहला दिया करती थी. टूटन दोनों ओर थी जिसे अनछुई छुअन से ही दोनों बांटते हुए जी रहे थे.

सिर्फ नीला की तनख्वाह से गृहस्थी के खर्च पूरे नहीं हो पा रहे थे. नीला के बदन से एकएक कर के सारे जेवर गायब हो रहे थे जिस का मलाल आकाश को भी था पर अपनी बेकारी में कर ही क्या सकता था. गृहस्थी के पहिए तले दोनों के अरमान दम तोड़ रहे थे. सारे इंद्रधनुषी सपने लुप्त हो चुके थे. तसल्ली के लिए दोनों के होंठों पर छिटकी हुई थकी मुसकान, निराशा के गहन अंधेरे को चीर अंतरंग उमंग बन कर उन्हें परिस्थितियों से लड़ने की शक्ति दे रही थी.

नीता के पति ने आकाश को किसी फैक्टरी में 10 हजार रुपए प्रतिमाह की तनख्वाह पर नौकरी दिला दी जो इतनी महंगाई और दिल्ली जैसे शहर में पर्याप्त तो नहीं थी पर डूबते जहाज को एक तिनके का सहारा जैसा जरूर मिल गया था. उन दोनों की खुशियों का ठिकाना नहीं था. जैसेतैसे डूबतेउतराते उन की गृहस्थी की नैया आगे बढ़ रही थी. मकानमालकिन से नीला की घनिष्ठता दिनोंदिन गहराती जा रही थी. अपने दुखसुख को नीला निसंकोच उन से साझा करती थी. वे भी हर प्रकार की सहायता के लिए तत्पर रहती थीं. उन का वश चलता तो वे उन से किराए की रकम भी न लेतीं लेकिन उन के पति पक्के बिजनैसमैन थे. नौकरी करने के साथ आकाश अच्छी और ऊंची तनख्वाह वाली नौकरी तलाश करता रहा जो उतना आसान नहीं था जितना उस ने सोच रखा था.

इधर, नीला भी होटल से थक कर चूर लौटती थी. लंच और डिनर तो वह होटल में ही ले लिया करती. घर आ कर कुछ भी करने की स्थिति में नहीं रहती थी. नीला आ कर रात का खाना बनाएगी, इस आशा में आकाश बैठा रहता था.

‘‘मैं बहुत थक गई हूं, कुछ भी करने की हिम्मत नहीं है. प्लीज आकाश, कुछ भी अपने लिए बना लो. सोचती हूं कल से तुम्हारा खाना होटल से ही लेती आऊंगी. वहां पर काम करने वालों को कम रेट पर ऐसी सुविधाएं हैं.’’ आकाश को खीझ तो बहुत आती पर भूख तो कोई बहाना नहीं सुनती. ब्रैड खा कर सो जाता.

इधर, कितने दिनों से नीला के होटल से देर से घर आने में, और वह भी मैनेजर की गाड़ी में, आकाश को परेशान कर के रख दिया था. नीला भी तो कितनी बदल गई थी. पहले उस पर कितना प्यार उड़ेलती थी पर अब रात में आकाश जब भी उस की ओर हाथ बढ़ाता, अपनी थकान की बात कहते हुए वह दूर छिटक जाती थी. रविवार को भी वह ड्यूटी करने लगी थी. पूछने पर सपाट सा उत्तर, ‘‘अतिरिक्त समय में काम करने पर जो कमाई होगी उस से हम घरगृहस्थी का समान खरीदेंगे.’’

मैनेजर जरूरत से ज्यादा उस पर मेहरबान है, इधर कुछ दिनों से नीला यह देख व महसूस कर रही थी. दिन में कई बार किसी न किसी बहाने से उसे अपने चैंबर में बुला लेता था. चायकौफी के दौर के साथ इधरउधर की बातें किया करता था. कभी अपनी मृत पत्नी को याद कर के भावुक हो जाता तो कभी अपनी बेटी की बातें कर के खुश हो लेता. कभी उस ने मर्यादा की सीमा का अतिक्रमण नहीं किया था, इसलिए नीला को उस का साथ भाने लगा था.

आकाश अब उस के देर से लौटने पर आपत्तियां उठाने लगा था, पति नाम का जीव जो था वह. सुसज्जित घर, खाना, कमाई, सब से बढ़ कर पत्नी का सान्निध्य चाहिए था उसे. नीला कभीकभी खीझ कर रह जाती थी. राजकुमारी की तरह पलीबढ़ी नीला को अपने निर्णय पर कभीकभी पश्चात्ताप होने लगता था. एक सीमा तक उस ने अपने प्यार से आकाश को बदल दिया था पर अब एकदूसरे के प्रति दोनों की भावनाएं परिवर्तित हो चुकी थीं.

नीला और मैनेजर के बीच निश्चय ही अवैध संबंध है, यह सोचसोच कर आकाश अंदर ही अंदर पागल हो रहा था. नीला के सहयोग न करने के बावजूद उस के शरीर से जबरदस्ती करने में बड़ी आत्मसंतुष्टि मिलती थी उसे. आपसी मनमुटावों ने आएदिन तूतूमैंमैं का रूप अख्तियार कर लिया था. अब घर लौट कर आने में भी नीला को कोई आकर्षण नहीं रह गया था. उसे मैनेजर का संगसाथ भाने लगा था. मन लायक नौकरी नहीं मिलने के कारण आकाश का रौद्र रूप नीला को सहमा कर रख देता था. सारी मर्यादाओं की सीमा का अतिक्रमण करते हुए एक दिन उस ने नीला पर हाथ उठा दिया तो किसी घायल शेरनी की तरह उस ने भी आकाश को नहीं बख्शा.

उस दिन उस ने होटल में रात की ड्यूटी ले ली. युद्ध का अखाड़ा बने उस प्यार के आशियाने में लौटने की उस की जरा सी भी इच्छा नहीं हुई. नीला को रुके देख कर मैनेजर भी होटल में ही रुक गया. रात के सन्नाटे में मैनेजर ने नीला का सान्निध्य चाहा तो चीखनेचिल्लाने के बदले नीला ने बड़ी शालीनता से उन्हें समझा दिया.

‘‘माना कि आकाश को जीवनसाथी बनाना मेरा हद तक पागलपन था. बरात नहीं आई, सात फेरे क्या, कोई रस्म नहीं हुई. मां के गले लिपट कर रोई नहीं. उन की कोख को लज्जित करते हुए चोर की तरह बाबुल की दहलीज से भाग निकली. उस के प्यार और विश्वास के सहारे ही तो इतना बड़ा कदम उठा सकी थी. सर, दिल का वह भी इतना बुरा नहीं है. बस, हमारा समय खराब है. कितनी तकलीफ उठा कर बाधाओं से लड़ कर उस ने इतनी ऊंची डिगरी ली थी पर उस डिगरी का हुआ क्या, बेरोजगारी का दावानल सारे देश में फैला हुआ है जिस में झुलस रहे हैं आकाश जैसे युवकों के सपने. हर क्षेत्र में अमरबेल की तरह पसरी हुई राजनीति ने युवकों का सर्वनाश कर के रख दिया है. जिस दिन आकाश अपनी बेकारी पर विजय प्राप्त कर लेगा, उस के योग्य उस की पसंद की नौकरी मिल जाएगी, हमारा छोटा सा आशियाना खूबसूरत जहां बन जाएगा. हम उस के राजारानी बन कर चांदतारे पकड़ेंगे.

‘‘लेकिन कब तक, कह नहीं सकती. सर, आप बहुत अच्छे हैं. आप को एक से एक सहगामिनी मिल जाएंगी. आप के आकर्षणपाश में मैं भी बंधी हूं. एक बार आप हाथ बढ़ाएंगे, मैं किसी लता की तरह आप से लिपट जाऊंगी. फिर वह हो जाएगा जिसे कदापि नहीं होना चाहिए. प्लीज सर, शरीरप्राप्ति के लिए हमारी दोस्ती को दांव पर न लगाइए,’’ कह कर नीला ने अपनी हथेलियों में मुंह को छिपा लिया और फूटफूट कर रो पड़ी. दोनों के बीच समय मूक बना रहा. बेकारी के भूलभुलैये में एक पत्नी ने अपनी अस्मिता की गरिमा को खोने नहीं दिया था. यह बेकारी के मुंह पर एक बहुत बड़ा तमाचा था. अपनी पीठ पर छुअन का एहसास होते ही नीला ने चौंक कर सिर उठाया. मैनेजर के मुख से रुकरुक कर निकलता स्वर उस के कानों में अनमोल बूंदों को टपका रहा था, ‘‘मेरी इस अक्षम्य गलती को क्षमा कर देना, नीला. बेहद सुंदरता व असीम प्रतिभा की स्वामिनी का इतना मर्यादित रूप मैं ने जीवन में पहली बार देखा है. शिखर सी ऊंची तुम्हारी मानसिकता पर मुझे गर्व है. तुम ने मुझ भटके को राह दिखाई तो क्या मैं तुम्हारे लिए कुछ कर नहीं सकता.

‘‘सुनो, कल तुम आकाश को साथ लाना. होटल का पूरा ऐडमिनिस्ट्रेशन कल से वही संभालेगा. रहने को फ्लैट, गाड़ी व सारी सुविधाएं तुम दोनों को मिलेंगी. तुम्हारे जीवन से अंधेरे के एकएक कतरे को खींच कर मैं रोशनी भर दूंगा. होेटल के मालिक होटल की सारी जिम्मेदारी मुझे सौंप कर अपने बेटे के पास अमेरिका जा चुके हैं. मैं जो चाहूं, करूं.

‘‘कसौटी पर कसे ऐसे खरे सोने मिलते कहां हैं. यह एक दोस्त को एक दोस्त का प्यारभरा तोहफा होगा.’’ निसंकोच हो कर नीला ने होटल मैनेजर की बांहों को थाम लिया. वहां कोई वासना नहीं थी. इस छुअन से स्नेह, प्यार, मनुहार, विश्वास छलक रहा था. कहीं दूर सूर्य की स्वर्णिम किरणें बिखर रही थीं. उन के साथ नीला के भी जीवन के अंधेरे का अंत हो चुका था. जितना हो सके, पढ़ेलिखे बेकारों का मार्गदर्शन कर के उन का हौसला बढ़ाएगी वह. घने घिरे बादलों में उन को क्षितिज तलाशने में किसी दामिनी की तरह सभी हताश लोगों का मार्ग प्रशस्त करने की कोशिश करेगी. इस निश्चय के साथ ही नीला उत्सुक हो कर अपने आकाश की बांहों में सिमटने के लिए जल्द से जल्द घर पहुंचने को बेचैन हो उठी. उस का पोरपोर आकाश के प्यार में ध्वनितप्रतिध्वनित हो रहा था.

Romantic Story: स्वीकार – क्यों आनंद से आनंदी परेशान थी?

Romantic Story: आनंदी के ब्याह को लगभग 5 वर्ष होने को हैं. आनंदी सुशील, मृदुभाषी, गृहकार्य में दक्ष और पूरे परिवार का कुशलतापूर्वक ध्यान रखने वाली, सारे गुणों से परिपूर्ण, एक कुशल गृहिणी है. इस‌ के‌ बावजूद, आज तक वह अपनी ससुराल के लोगों का दिल नहीं जीत पाई. वैसे तो वह पूरे परिवार की पसंद से इस घर में ब्याह कर आई थी लेकिन आज केवल अपने पति आनंद की पसंद बन कर रह गई है.

एक आनंद ही है जिस का प्यार आनंदी को घर के दूसरे सदस्यों के अपशब्द, बेरुखी और तानों को सहने व उन्हें नज़रअंदाज़ करने की ताकत देता है. आनंद के प्यार के आगे उसे सारे दुख फीके लगते हैं. आनंदी अपने दुख का आभास आनंद को कभी नहीं होने देती, क्योंकि वह जानती है यदि आनंद को उस के दुख का भान हुआ तो वह उस से भी ज्यादा दुखी होगा. आनंद सदा उस से कहता है, “आनंदी, तुम्हें मुसकराता देख मैं अपने सारे ग़म भूल जाता हूं. तुम सदा अपने नाम की भांति यों ही हंसती, मुसकराती, खिलखिलाती और आनंदित रहा करो.”

आनंदी को याद है वह दिन जब वह ब्याह कर इस घर में आई थी. उस‌ की मुंहदिखाई की रस्म में नातेरिश्तेदार और आसपड़ोस की सारी महिलाओं की हंसीठिठोली के बीच हर कोई आनंदी की खूबसूरती की तारीफ किए जा रहा था और घर का हर सदस्य इस बात पर इतरा रहा था कि घर में बेहद खूबसूरत बहू ब्याह कर आई है.

आनंदी से शादी के पहले आनंद से शादी के लिए क‌ई लड़कियां इनकार कर चुकी थीं. आज आनंदी जैसी बेहद खूबसूरत बहू पा कल्याणी फूले नहीं समां रही थी. आनंद सांवला और साधारण नैननक्श वाला था.  वहीं, आनंदी दूध की तरह गोरी और तीखे नैननक्श की. जो आनंदी को एक बार देख ले तो उस का दीवाना हो जाए और कभी न भूल पाए यह हसीन चेहरा.

स्कूलकालेज के दिनों में तो आनंदी के क‌ई दीवाने थे. महल्ले से ले कर कालेज तक हर कोई आनंदी को पाना चाहता था. हर किसी की आंखों में आनंदी की खूबसूरती का नशा और उस के शरीर को पाने की हवस साफ झलकती थी. कभीकभी पड़ोस की चाची, उस की मां से बातोंबातों में कह जातीं, ‘अपनी आनंदी के  हाथ जल्दी पीले कर दो, वरना उस की खुबसूरती की वजह से कभी कोई ऊंचनीच हो गई तो कहीं मुंह दिखाने के लायक नहीं रहोगी.’ यह सब सुन आनंदी की  मां के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच जातीं और आनंदी को उस की खूबसूरती बेमानी लगने लगती.

इसी हंसीठिठोली के बीच सासुमां की एक सहेली ने कहा, “कल्याणी, तेरी बहू तो चांद है चांद.” उस पर सासुमां अपनी भौंहें मटकाती और थोड़ा इतराती हुई बोलीं, “चांद में दाग होता है. मेरी बहू बेदाग है. लाखों में एक है मेरी बहू.” ऐसा कहती हुईं सासुमां ने अपनी आंखों से काजल निकाल आनंदी के कानों के पीछे लगा दिया. सासुमां का प्यार देख आनंदी मन ही मन प्रकृति का धन्यवाद करने लगी कि उसे इतना प्यार करने वाला परिवार मिला है.

इसी दौरान कुछ ही देर में एक बुजुर्ग महिला के आने पर जब आनंदी ने उस महिला के पैर छुए तो  वे आशीष देती हुई बोलीं, “दूधो नहाओ पूतो फलो.” फिर आगे बोलीं, “बहूरानी, अब जल्दी से इस घर को एक वारिस दे दो.” इस बात पर तो जैसे सासुमां की खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा और वे हसंती हुई बोलीं, “अरे मौसी, आप के आशीर्वाद से तो मैं जल्द ही दादी बन जाऊंगी.” जैसे ही आनंदी के कानों में ये शब्द पड़े, वह बेचैन हो उठी और उसे हर्ष व उल्लास का यह मौका बोझिल लगने लगा.

कुछ समय तक सब  ठीक चलता रहा. घर के सभी सदस्यों से आनंदी को भरपूर प्यार मिलता रहा. लेकिन सब के प्यार में कुछ न कुछ स्वार्थ छिपा था. हर रिश्ता कुछ न कुछ मांग रहा था. सासुमां अकसर आनंदी से दबी आवाज़ में धीरे से पूछतीं, ‘खट्टा खाने का मन तो नहीं…?’

इस सवाल पर आनंदी थोड़ा असहज और दुखी हो जाती. जवाब में हलके से सिर नहीं में हिला देती. सालदरसाल धीमी आवाज बढ़ती ‌हुई तेज आवाज में तबदील हो गई और फिर तानों में.घर के अन्य सदस्यों के बीच अब आनंद की दूसरी शादी की फुसफुसाहट शुरू होने लगी. इन सब से बेखबर आनंद, आनंदी पर निस्वार्थ प्रेम लुटाए जा रहा था.

आज रविवार का दिन है, आनंद की छुट्टी है. घर पर सभी सदस्य हैं. आनंद और आनंदी मां से कुछ कहना चाहते हैं. लेकिन मां और घर के अन्य सदस्य किसी दूसरे कार्य में व्यस्त हैं. सभी के क्रियाकलापों से ऐसा लग रहा है मानो घर पर ख़ास मेहमान आने वाले हैं. पर इस बात की जानकारी न तो आनंदी को है और न ही आनंद को.  तभी, मां आनंद को संबोधित करती हुई बोलीं, “आनंद, अभी‌ तुम घर पर ही रहना, कहीं जाना मत.”

आनंद ने प्रश्न किया, “मां, क्या मेरा रहना जरूरी है?” इस पर मां झुंझलाती हुई‌ बोलीं, “जरूरी है, तभी तो कह रही हूं.”

निर्धारित समय पर आगंतुक आ पहुंचे. उन के आदरसत्कार का सिलसिला शुरू हुआ. तभी आनंदी चायनाश्ता ले कर पहुंची. उसे देखते ही अतिथि में से एक महिला, जो साथ आई लड़की की मां थी, बोली, “देखिए कल्याणी जी, मैं अपनी बेटी की शादी आप के बेटे आनंद ‌से तभी करूंगी जब आप का बेटा अपनी‌ पहली पत्नी से तलाक लेगा.” इस‌ बात पर कल्याणी आगंतुक महिला को आश्वस्त करती हुई बोलीं, “आप चिंता न करें, मेरा बेटा वही करेगा जो मैं चाहूंगी.”

आनंदी वहीं खड़ी सब चुपचाप सुन रही थी. आनंद भी वहीं उपस्थित था और वह भी सारी बातें सुन रहा था. अचानक आनंद मां की ओर देखते हुए बोला, “हां, मां, क्यों नहीं, मैं बिलकुल वही करूंगा जो आप चाहेंगीं.” यह‌ सुनते ही आनंदी के पैरोंतले जमीन खिसक गई. उस की आंखें डबडबा गईं. वह सोचने लगी, ‘क्या यह वही आनंद है जिस से उस की 5 मिनट की पहली मुलाकात में ही उस के मन में आनंद के लिए प्यार जगा गया. आनंद की वह बेबाक सचाई बयां करने का अंदाज जिस ने आनंदी का दिल जीत लिया और जिस की वजह से वह इस शादी के लिए हां कर बैठी.’

तभी आनंदी के कानों में आनंद के ये शब्द पड़े,  “मैं आप सभी को एक सचाई बताना चाहूंगा.” ऐसा कहते हुए आनंद कोने में खड़ी आनंदी को खींचते हुए सब के सामने ला कर बोला, “ये जो आप सब के सामने खड़ी है, ये कभी भी मां बन सकती है लेकिन मैं पिता नहीं बन सकता क्योंकि कमी इस में नहीं, मुझ में है और यह सब जानते हुए भी इस ने मुझे स्वीकार किया है. यह चाहती तो बाकी लड़कियों की तरह मुझे अस्वीकार कर सकती थी, लेकिन इस ने ऐसा नहीं‌ किया. आप‌ लोगों को क्या लगता है जिन लड़कियों ने मुझ से‌ शादी से इनकार किया, वे मेरे साधारण नैननक्श की वजह से था. नही. उन्होंने मुझ से शादी इसलिए नहीं की क्योंकि मैं उन्हें पहले ही बता देता कि मैं उन्हें वह सुख नहीं दे पाऊंगा जिस की वे कामना रखती हैं. लेकिन इस ने मुझे मेरी कमियों के साथ स्वीकार किया. इस ने मेरी भावनाओं को समझा. इसे पता है शादी केवल 2 जिस्मों का मेल नहीं, 2 परिवारों का भी मेल है.”

आनंद अपनी मां की ओर  देखते हुए बोला, “मां, तुम तो एक नारी हो‌, तुम्हें क्या लगता है, हर वक्त हर परिस्थिति में केवल नारी ही जिम्मेदार होती है?  मां, अब तुम बताओ, क्या मुझे आनंदी को इस बात के लिए तलाक देना चाहिए कि वह अपने सुख की परवा किए बगैर मेरा साथ चुपचाप निभाती रही.

आनंद के मुख से यह सब सुन सभी शांत हो ग‌ए जैसे भयानक तूफान के बाद सब शांत हो जाता है. घर के सभी लोगों के चेहरे पर अब पश्चात्ताप साफ नजर आ रहा था. सासुमां की आंखों में भी आनंदी से क्षमायाचना के भाव साफ़ झलक रहे थे. सासुमां कुछ कहती, उस से पहले आनंदी मां के पैरों को छू कर बोली, “मां, मैं और ‌आनंद अनाथालय से एक बच्ची गोद लेना चाहते हैं. आप की स्वीकृति चाहिए.”

मां बहू आनंदी के माथे पर अपना चुंबन अंकित करती हुई बोलीं, “हां, क्यों नहीं, कहो बेटा, कब चलना है हमें.”

Romantic Story: कितने दिल – क्या रमन और रमा का कोई पुराना रिश्ता था?

Romantic Story: वे दोनों तकरीबन एक महीने से एकदूसरे को जानने लगे थे. रोज शाम को अपनेअपने घर से टहलने निकलते और पार्क में बतियाते.

आज भी दोनों ने एकदूसरे को देखा और मुसकरा कर अभिवादन किया.‘‘तो सुबह से ही सब सही रहा आज?’’ रमा ने पूछ लिया तो रमन ने ‘हां’ कह कर जवाब दिया.

‘‘और फिर दोनों में सिलसिलेवार मीठीमीठी गपशप  शुरू हो गई. रमा रमन से 5 साल छोटी थीं. वे रमण की बातें गौर से सुनतीं और अपना विचार व्यक्त करतीं. रमन ने उन को बताया था कि वे परिवार से बहुत ही नाखुश रहने लगे हैं. सब को अपनीअपनी ही सू झती है. सब की अपनी मनपसंद दुनिया और अपने  मनपसंद अंदाज हैं.

रमन का स्वभाव ही ऐसा था कि जब भी गपशप करते तो अचानक ही पोंगा पंडित जैसी बात करने लगते, कहते, ‘‘रमाजी, पता है…’’ तो वे तुरंत कहतीं, ‘‘जी नहीं, नहीं पता है.’’

तब वे बगैर हंसे अपनी रौ में बोलते रहते, ‘‘इस दुनिया में 2 ही फल  हैं, एक तुम जो चाहो वह न मिले और दूसरा तुम जो चाहो वह मिल जाए.’’

यह सब सुन कर रमा अपनी हंसी दबा कर कहतीं, ‘‘अच्छा जी, तो आप का आश्रम कहां है. जरा दीक्षा लेनी थी.’’

यह सुन कर रमन काफी गंभीर और उदास हो जाते. तो वे मन बदलने को कुछ लतीफे सुनाने लगतीं, ‘‘रमनजी, ‘गुरुजी, जो तुम को हो पसंद वही बात करेंगे, तुम दिन को अगर रात कहो रात कहेंगे…’ उक्त गीत में नायक नायिका से क्या कहना चाहता है, संक्षेप में भावार्थ बताओ रमनजी?’’

रमन सवाल सुन कर सकपका ही जाते. वे बहुत सोचते, पर उन से उत्तर देते ही नहीं बनता था. रमा कुछ पल के बाद खुद ही कह देतीं, ‘‘रमनजी, इस गाने में नायक नायिका से कह रहा है कि ठीक है तुम से माथाफोड़ी कौन करे.’’

उस के बाद दोनों ही जोरदार ठहाका लगाते. अकसर रमन उपदेशक हो जाते. वे कहते, ‘‘मेरे मन में प्रकृतिप्रेम भरा है और  मैं तुम को यह सलाह इसलिए नहीं दे रहा कि मैं बहुत सम झदार हूं बल्कि इसलिए कि मैं ने गलतियां तुम से ज्यादा की हैं और इस राह में जा कर मु झे सुकून मिला.’’

रमा भी किसी वामपंथी की मानिंद  बोल उठतीं, ‘‘रमनजी, 3 बातों पर निर्भर करता है हमारा भरोसा, हमारा अपना सीमित विवेक, हम पर सामाजिक दबाव और आत्मनियंत्रण का अभाव.

अब इस में मैं ने अपने भरोसे की चीज तो पा ली है और खुश हूं.’’

मगर रमन तब भी रमा के मन को नहीं सम झ पाते थे. उन की भारीभरकम बातें  सुन कर पहलेपहल तो रमा को ऐसा लगता था कि रमन शायद बहुत बड़े कुनबे का बो झा ढो रहे होंगे, बहुत सहा होगा, और इसीलिए अब उन को उदासी ने अपनी गिरफ्त में ले लिया है.

फिर एक दिन रमा ने जरा खुल कर ही जानना चाहा कि आखिर माजरा क्या है और रमन से बोलीं, ‘‘मैं अब 60 वर्ष पूरे कर रही हूं.’’

‘‘और मैं 65,’’ कह कर रमन हंस दिए.

‘‘मेरा मतलब यह है कि मेरे बेटेबहू मु झे कहते हैं जवान बूढ़ी.’’

‘‘अच्छाअच्छा,’’ रमन ने गरदन हिला कर जवाब दिया. जरा सा मुसकरा भी दिए.

‘‘मैं जानना चाहती हूं कि आप को कितने लोग मिल कर इतना दुखी कर रहे हैं कि आप परेशान ही नजर आते हो?’’

रमाजी में बहुत ही अपनापन था. वे रमन के साथ बहुत चाहत से बात करती थीं. यही कारण था कि रमन ने बिना किसी संकोच के सब बता दिया कि वे सेवानिवृत्ति फैक्ट्री सुपरवाइजर हैं और इकलौते बेटे को 5 साल की उम्र से उन्होंने अपने दम पर ही पाला. कभी सिगरेट, शराब, सुपारी, पान, तंबाकू किसी चीज को हाथ तक नहीं लगाया.

पिछले साल ही बेटे का विवाह हो गया है. आज स्थिति ऐसी है कि वह और उस की पत्नी अपने ही में मगन हैं. बहू एक स्टोर चलाती है और बेटा शू स्टोर चलाता है. दोनों का  अलगअलग काम है और बहुत अच्छा चल रहा है.

‘‘ओह, तो यह बात है. आप को यह महसूस हो रहा है कि अब आप की कोई वैल्यू ही नहीं रही, है न?’’ रमा ने कहा.

‘‘मगर, वैल्यू तो अब आप की नजर में भी कम ही हो गई होगी. अब आप को यह पता लग गया कि मैं महज सुपरवाइजर था,’’ रमन फिर उदास हो गए.

उन की इस बात पर रमा हंस पड़ीं और बोलीं, ‘‘कोई भी काम छोटा नहीं होता. आप हर बात पर उदासी को अपने पास मत बुलाया कीजिए, यह थकान की  जननी है और थकान बिन बुलाए ही बीमारियों को आप के शरीर में प्रवेश करा देगी.

‘‘आप को पता नहीं, मैं खुद भी ऐसी ही हूं. मगर मेरा अंदाज ऐसा है कि मेरे बेटाबहू मु झ को बहुत प्यार करते हैं क्योंकि मैं मन की बिलकुल साफ हूं. मैं ने 20 साल की उम्र में प्रेमविवाह किया और 22 साल की उम्र में अपने बेटे को ले कर पति को उन की प्रेमिका के पास छोड़ दिया. उस के बाद पलट कर भी नहीं देखा कि उस बेवफा ने बाकी जिंदगी क्या किया और कितनी प्रेमिकाएं बनाईं, कितनों का जीना दूभर किया.

‘‘मैं मातापिता के पास आ कर रहने लगी और बेटे की परवरिश के साथ ही बचत पर अपना पूरा ध्यान लगा दिया. मेरा बेटा भी सिर्फ सरकारी स्कूल और कालेज में ही पढ़ा है. अब वह एक  शिक्षक है और पूरी तरह से सुखी है.

‘‘हां, तो मैं बता रही थी कि मेरे पीहर में बगीचे हैं जिन में 50 आम के पेड़ हैं,

50 कटहल और इतने ही जामुन व आंवले के. मैं ने इन की पहरेदारी का  काम किया और पापा ने मु झे बाकायदा पूरा वेतन दिया. जब मेरा बेटा 10वीं में आया तो मेरे पास पूरे 20 लाख रुपए की  पूंजी थी. मेरे भाई और भाभी ने मु झे कहीं जाने नहीं दिया.

‘‘मेरी उन से कभी अनबन नहीं हुई. वे हमेशा मु झे चाहते रहे क्योंकि उन के बच्चों को मेरे बेटे के रूप में एक मार्गदर्शक मिल रहा था. और मेरी पूंजी बढ़ती गई.

‘‘बेटे की नौकरी पक्की हो गई थी और उस ने विवाह का इरादा कर लिया था, इसलिए हम लोग यहां इस कालोनी में रहने लगे. पिछले साल ही मेरे बेटे का  भी विवाह हुआ है. अपनी बढि़या बचत से और जीवनशैली के बल पर ही मैं आज करोड़पति हूं, मगर सादगी से रहती हूं. अपना सब काम खुद करती हूं और कभी भी उदास नहीं रहती.

‘‘पर आप तो हर बात पर गमगीन हो जाते हो. इतने दिनों से आप की व्यथाकथा सुन कर यही लगता है कि आप पर बहुत ही अत्याचार किया जा रहा है. आप इस तरह लगातार दुख में भरे रहे तो दुनिया से जल्दी विदा हो जाएंगे. आप हर बात पर परेशान रहते हो, यह मु झ को बहुत विचलित कर देता है. सुनो, एक आइडिया आया है मु झे. आप एक काम करो, मैं कुछ दिन आप के घर चलती हूं, वहां का माहौल बदलने की कोशिश करूंगी. मैं तो हर जगह सामंजस्य बना लेती हूं. मैं 20 साल पीहर में रही हूं.’’

‘‘मगर, आप को ऐसे कैसे, कोई कारण तो होगा न. मेरे घर पर… वहां मैं क्या कहूंगा?’’ रमन बोले.

‘‘बहुत आसान है. मेरी बात गौर से सुनो. आज आप एक गरम पट्टी बांध कर घर वापस जाओ, कह देना कि यह कलाई अब अचानक ही सुन्न हो गई है, कोई सहारा देने वाला तो चाहिए न जो हाथ पकड़ कर जरा संभाल ले. फिर कहना मैं आप के दोस्त की कोई रिश्तेदार हूं. आप कह देना कि बुढि़या है, मगर ईमानदार है, मेरा पूरा ध्यान रख लेगी वगैरहवगैरह. वे भी सोचेंगे कि चलो सही है बैठेबैठे सहायिका भी मिल गई.’’

‘‘कोशिश कर के देखता हूं,’’ रमन ने कहा और पास के मैडिकल स्टोर से गरम पट्टी खरीद कर अपने घर की तरफ जाने वाली गली में चले गए.

रमा का तीर निशाने पर लगा. तैयारी कर के वे रमन के घर पहुंच गई थीं. उन के आने से पहले तो रमन के बेटेबहू ने उन की एक इमेज बना रखी थी और उन को एक अति साधारण महिला सम झा था मगर जब आमनासामना हुआ तो रमा का  आकर्षक व्यक्तित्व देख कर उन्होंने रमा के पैर छू लिए.

रमा ने भी खूब दिल से सिर पर हाथ फेरा. रमा को तो पहली नजर में रमन के  बेटेबहू बहुत ही अच्छे लगे. खैर, सब की अपनीअपनी सम झ होती है, यह सोच कर वे किसी निर्णय पर नहीं पहुंचीं और सब आने वाले समय पर छोड़ दिया.

अगली सुबह से ही रमा ने मोरचा संभाल लिया था. रमन अपने कलाई वाले दर्द पर कायम थे और बहुत ही अच्छा अभिनय कर रहे थे. रमा को सुबह जल्दी जागने की आदत थी, इसलिए सब के जागने तक वे नहाधो कर चमक रही थीं. खुद चाय पी चुकी थीं. रमन को भी

2 बार चाय मिल गई थी. साथ ही, वे हलवा और पोहे का नाश्ता तैयार कर चुकी थीं.

बेटेबहू बिलकुल ही भौचक थे. वे इतना लजीज नाश्ता कर के गद्गद थे.  बेटा और बहू दोनों अपने काम पर निकले तो रमन ने हाथ चलाया और रसोई में बरतन धोने लगे.

रमा ने मना किया तो वे जिद कर के मदद करने लगे क्योंकि वे जानते थे कि 3 दिनों तक बाई छुट्टी पर रहेगी.

शाम को बेटा और बहू रमा से कह कर गए थे कि आज वे बाहर से पावभाजी ले कर आएंगे, इसलिए रमा भी पूरी निश्ंिचत रहीं और आराम से बाकी काम करती रहीं. उन्होंने आलू के चिप्स बना दिए और साबूदाने के पापड़ भी. गमलों की सफाई कर दी. एक ही दिन में उन की इतनी मेहनत देख कर रमन का परिवार हैरत में था.

रात को सब ने मिलजुल कर पावभाजी का आनंद लिया. रमन और रमा रोज शाम को लंबी सैर पर भी जा रहे थे. कुछ जानने वालों ने अजीब निगाहों  से देखा. मगर दोनों ने इस की परवा नहीं की.

इसी तरह पूरा एक सप्ताह कैसे गुजर गया, कुछ पता ही न चला.

रमन और उन के बेटेबहू रमा के दिल से प्रशंसक हो चुके थे. वे चाहते थे कि रमा वहां कुछ दिन और रहें. रमन का  चेहरा निखर उठा था. उन की उदासी जाने कहां चली गई थी. बेटेबहू उन से बहुत प्रेम से बात करते थे. वातावरण बहुत ही आनंदमय हो गया था.

रमा अपने मकसद में कामयाब रहीं. उन को कुछ सिल्क की  साडि़यां  उपहार में मिलीं क्योंकि रमा ने रुपए लेने से मना कर दिया था.

रमा चली गईं और रमन को शाम की  सैर पर आने को कह गईं. शाम को रमा सैर पर नहीं आ सकीं. रमन को उन्होंने संदेश भेजा कि वे सपरिवार 2 दिनों के  लिए कहीं बाहर जा रही हैं.

रमन ने अपना मन संभाला. मगर तकरीबन एक सप्ताह गुजर गया और रमा नहीं आईं. रमन के किसी संदेश का जवाब नहीं दिया.

रमन को फोन करते हुए कुछ संकोच होने लगा, तो वे मनमसोस कर रह गए.

एक पूरा महीना ऐसे ही और आगे  निकल गया. लगता था रमन और बूढ़े हो गए थे. मगर वे रमा के बनाए आलू के  चिप्स और पापड़ खाते तो लगता कि रमा यहीं पर हैं और उन से बातें कर रही हैं.

एक शाम उन का मन सैर पर जाने का  हुआ ही नहीं. वे नहीं गए. अचानक देखते क्या हैं कि रमा उन के घर के दरवाजे पर आ कर खड़ी हो गई हैं. वे हतप्रभ रह गए. वे सोचने लगे कि अरे, यह क्या हुआ. पीछेपीछे उन के बेटेबहू भी आ गए.

अब तो रमन को सदमा लगा. वे अपनी जगह पर से खड़े हो गए. बहू ने कहा, ‘‘रमा आंटी, अब यहां एक महीना रहेंगी और हम उन के गुलाम बन कर रहेंगे.’’ रमन ने कारण जानना चाहा तो बहू ने बताया कि उस की छोटी बहन अभी होम साइंस पढ़ रही है. उस को कालेज के  अंतिम प्रोजैक्ट के लिए अनुभवी महिला के साथ समय बिताना है और डायरी बनानी है, इसलिए.

‘‘ओह अच्छा, बहुत अच्छा. बहू, बहुत ही सही निर्णय है,’’ रमन के चेहरे पर लाली आ गई, ‘‘मगर उन के परिवार से बात कर ली?’’

‘‘परिवार मना कैसे करता. मेरी बहन और रमा आंटी तो फेसबुक दोस्त हैं और आंटी का परिवार तो समाजसेवा का  शौकीन है. है न रमा आंटी?’’ रमन की बहू चहक रही थी.

रमा ने अपने व्यवहार की दौलत से अपने जीवन में कितने सारे दिल जीत लिए थे.

बात ऐसे बनी

एक फ्रूट विक्रेता बहुत चालाक था. वह अपने हाथों का ऐसा हुनर दिखाता था कि ग्राहक के फल वाले लिफाफे में वह एक दागी फल डाल कर उस से साफ फल निकाल लेता था.

ग्राहकों को इस का पता घर जा कर लगता था. और बाद में इस बाबत कोई ग्राहक उस से शिकायत करता तो वह कहता था, ‘‘मां कसम, मैं ने आप को खराब फल नहीं दिया था.’’

एक दिन मैं ने उस से 160 रुपए के फ्रूट्स खरीदे और उसे सारे नोट जो कई जगह से कटेफटे थे दे दिए.

अगले दिन वह कहने लगा, भैया कल तुम ने सारे नोट खराब दिए हैं, उन्हें बदलो. मैं ने उसे कहा कि हां मैं ने नोट खराब ही दिए थे परंतु अब मैं उन्हें वापस नहीं लूंगा.

मैं ने उस से कहा कि तुम हर ग्राहक को एक सड़ागला फल जरूर देते हो तो घर जा कर उस ग्राहक को कितना बुरा लगता होगा, जब वह खराब फल देखता होगा. मेरी इस बात को सुन कर वह बोल उठा, ‘‘बाबूजी, आप ने मेरी आंखें खोल दीं.’’

Romantic Story: टूटा हुआ रिश्ता – मालवा सुहागरात की रस्म पर क्यों रोने लगी?

Romantic Story, लेखक- चंद्रशेखर दुबे

मालवा के विवाह के अवसर पर एक बड़ी मनोरंजक रस्म अदा होती है. बरात के रवाना हो जाने के बाद वर के घर पर रतजगा होता है. महल्ले व नातेरिश्ते की सभी स्त्रियां उस रात वर के घर पर इकट्ठी होती हैं और फिर जागरण की उस बेला में विवाह की सारी रस्में पूरे विधिविधान से संपन्न की जाती हैं. कोई स्त्री वर का स्वांग भरती है तो कोई वधू का.

फिर पूजन, कन्यादान, पलंगफेरे वगैरह की रस्में पूरी की जाती हैं. मंचोच्चार भी होता है, दानदहेज भी दियालिया जाता है, अच्छाखासा नाटक सा होता है. हंसीमजाक का वह आलम रहता है कि हंसतेहंसते स्त्रियों के पेट दुखने लगते हैं. घर में पुरुषों के न होने से स्त्रियां खूब खुल कर हंसतीखेलती हैं. सारे महल्ले को जैसे वे सिर पर उठा लेती हैं.

इस मनोरंजक प्रथा को इन स्त्रियों ने नाम दिया है, ‘टूटिया’ यानी टूटा हुआ. न जाने इस प्रथा को यह अनोखा नाम क्यों दिया गया? उधर असली विवाह होता है और इधर बरात में वर के साथ न जा पाने वाली स्त्रियां विवाह में भाग लेने के अपने शौक को इस ‘टूटिया’ रस्म द्वारा पूरा करती हैं.

बसंती भाभी को इस रस्म से बड़ा लगाव सा है. महल्ले में टूटिया का अवसर आते ही वे सब काम छोड़ कर दौड़ी चली जाती हैं. इस अवसर पर वधू बनने के लिए भी वे बड़ी उत्सुक रहती हैं. दूसरी स्त्रियों की तो इस के लिए खुशामद करनी पड़ती है, मगर बसंती भाभी तो खुद ही कह देती हैं, ‘‘अरी, तो चिंता क्यों करती हो? कोई नहीं बनती तो मैं ही बन जाती हूं दुलहन. दुलहन बनने में कैसा संकोच. औरत जात दुलहन बनने के लिए ही सिरजी है. समय की बलवान ही दुलहन बनती है. और नकली दुलहन बनना भी सब को बदा है?’’

यों दुलहन बनने के साथ ही अपने नकली वर का अपने हाथों से शृंगार करने का भी बसंती भाभी को शौक रहा है. दूल्हे का निर्णय होते ही वे उस का हाथ थाम कर गद्गद कंठ से कहती हैं, ‘‘चलो, दूल्हे राजा, मेरा मनचीता शृंगार करो. तुम मेरे दूल्हे बन रहे हो, तो मेरे मनमाफिक शृंगार करना पड़ेगा.’’

मास्टर साहब के लड़के की बरात जाते ही बंसती भाभी अपनी आदत के अनुसार सब से पहले उन के घर पहुंच गईं. आते ही स्त्रियों के इकट्ठा होने की बड़ी व्यग्रता से प्रतीक्षा करने लगीं. उन्हें आश्चर्य हो रहा था कि पड़ोसिनों व नातेरिश्ते वालियों का कामकाज अभी तक क्यों नहीं निबटा. अगर देर से टूटिया शुरू करेंगी तो सारी रस्में रातभर में पूरी नहीं होंगी. कैसी हैं ये औरतें? इन्हें इस मामले में उत्साह ही नहीं है. इस बहाने हंसनेखेलने का मौका मिल जाता है, इतना भी ये नहीं समझतीं. कामकाज तो रोज ही करना है, पर यह टूटिया रोज कहां होता है?

8-10 स्त्रियों के आ जाने पर सहज ही बात चल पड़ी, ‘‘आज दुलहन कौन बनेगी?’’

बसंती भाभी ने फौरन जवाब दिया, ‘‘मैं बनूंगी. दुलहन की फिकर मत करो. दुल्हा की तलाश करो. बोलो, कौन बनेगा मेरा दूल्हा?’’

सभी स्त्रियों ने इनकार करते हुए कहा, ‘‘नहीं, बाबा, तुम्हारा दूल्हा बनने की सामर्थ्य हम में नहीं है.’’

तभी रेखा आ गई. उस ने आते ही पूछा, ‘‘क्या बात है, दूल्हादुलहन अभी तक सजे क्यों नहीं?’’

बसंती भाभी ने फौरन कहा, ‘‘अरी, मैं दुलहन बनी कब की सजीसंवरी बैठी हूं. लेकिन अभी तक दूल्हा ही नहीं सजा.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘बस, तेरा ही इंतजार था.’’

‘‘क्यों भला?’’

‘‘तुझे दूल्हा बनाना है न.’’

‘‘नहीं, बाबा, तुम्हारा दूल्हा मैं नहीं बन सकूंगी.’’

‘‘क्यों? मैं क्या इतनी बुरी हूं?’’

‘‘नहीं, बसंती भाभी, तुम तो हजारों में एक हो. रूपरंग, चालढाल, नाकनक्श, बातचीत सब में हीरा हो.’’

‘‘क्यों मजाक कर रही है रेखा?’’

‘‘यह मजाक नहीं है, बसंती भाभी. मैं अगर पुरुष होती तो…’’

‘‘तो क्या करती?’’

‘‘तो मैं सचमुच तुम से शादी कर लेती, और अगर शादी नहीं हो पाती तो मैं तुम्हें भगा ले जाती.’’

रेखा की इस बात पर ऐसे कहकहे लगे, ऐसी तालियां बजीं कि  आसपास के घरों से जो स्त्रियां अभी तक नहीं आई थीं, वे भी निकल आईं.

बंसती भाभी रेखा का हाथ थाम कर गद्गद कंठ से बोलीं, ‘‘तब तो आज मैं तुझे दूल्हा बनाए बिना नहीं मानूंगी.’’

‘‘नहीं, बाबा, मुझे बख्शो.’’

‘‘नहीं, रेखा, मैं आज तुझे नहीं छोड़ूंगी.’’

‘‘नहीं, बसंती भाभी, किसी और को दूल्हा बना लो.’’

‘‘अरी, तेरे से अच्छा दूल्हा भला मुझे कहां मिलेगा.’’

रेखा ने चुहल की, ‘‘घर से ठेकेदार भैया को बुला दूं?’’

‘‘अरी, वे तो बरात में गए हैं. आज की रात तो बस तू ही मेरा दूल्हा है.’’

‘‘तुम हमें परेशान तो नहीं करोगी, बसंती भाभी?’’

‘‘अरी, अपने मन के दूल्हे को भला कोई परेशान करती है?’’

सभी स्त्रियों ने इस बात का समर्थन करते हुए कहा, ‘‘मन से तेरे

को दूल्हा बना रही है तो बन

जा भागवान.’’

कहकहे पर कहकहे लगाते हुए सभी रेखा को विवश करने लगीं. बसंती भाभी तो मास्टर साहब के घर में से मरदाना लिबास भी ले आईं. रेखा की साड़ी उतारते हुए वे उसे पैंटशर्ट पहनाने लगीं. रेखा न…न… करती रही मगर बसंती भाभी ने उसे मरदाना लिबास पहना दिया.

पांवों में मोजे पहनातेपहनाते बसंती भाभी ने रेखा के कोट के खुले हुए बटन को लक्ष्य कर कहा, ‘‘अरी, तू मेरा दूल्हा बन रही है तो इसे तो ढक ले.’’

दूसरी स्त्रियों ने भी चुटकी ली, ‘‘हां, री. और जरा मूंछें भी लगा ले.’’

बसंती भाभी को यह बात पसंद नहीं आई. वे बोलीं, ‘‘नहीं, री, अब तो मुंछमुंडों का जमाना है. मूंछें भला कौन रखता है?’’

स्त्रियों ने चुटकी ली, ‘‘भाभी, दूर क्यों जाती हो, अपने घर में ही देखो न. हमारे ठेकेदार भैया तो अभी भी बड़ीबड़ी झबरी मूंछों के कायल हैं. तू भी बड़ी सी मूंछें लगा ले रेखा.’’

रेखा ने भी बसंती भाभी को छेड़ने के खयाल से कहा, ‘‘हां री, ले आओ मूंछें. मूंछों से मैं पूरा मर्द दिखूंगी.’’

बसंती भाभी का चेहरा उतर गया. वे तुनक कर बोलीं, ‘‘मैं नहीं लगाने दूंगी मूंछें.’’

रेखा ने शरारत से मुसकराते हुए कहा, ‘‘हम तो लगाएंगे मूंछें.’’

‘‘तो फिर मैं तुझे दूल्हा नहीं बनाऊंगी.’’

‘‘मत बनाओ.’’

रेखा कोट उतारने लगी. बसंती भाभी ने रेखा का हाथ थाम लिया और अनुनय के स्वर में बोलीं, ‘‘रेखा, मुझे परेशान

मत कर.’’

‘‘परेशान तो तुम कर रही हो, भाभी.’’

‘‘मैं ने क्या किया?’’

‘‘मुझे मूंछें क्यों नहीं लगाने दे रही हो? ठेकेदार भैया की भी मूंछें हैं तो फिर मेरी…’’

‘‘तू उन का नाम यहां मत ले.’’

‘‘क्यों न लूं?’’

‘‘इस टूटिया में तो मेरी मरजी का शृंगार करने दे, पगली.’’

बसंती भाभी के भीगे कंठ व उन की इस भंगिमा से रेखा द्रवित हो गई. शरारत की मुद्रा को त्याग कर आज्ञाकारी बच्चे की तरह वह उन के सामने बैठती हुई बोली, ‘‘अच्छा, भाभी, तुम अपना मनचीता शृंगार कर दो.’’

बसंती भाभी को जैसे वरदान सा मिल गया. वे ललक कर रेखा का शृंगार करने लगीं. रजवाड़ा ढंग से उन्होंने रेखा के सिर पर साफा बांधा. भाल पर चमचच चमकती बिंदिया भी लगा दी और फूलों का सेहरा भी बांध दिया.

सारा शृंगार हो जाने पर बंसती भाभी ने अपनी जीरो नंबर की ऐनक उतारी और उसे दूल्हे को पहनाने लगीं.

रेखा की आंखों में फिर शरारत की चमक आ गई. अपनी फूटती हंसी को रोक कर वह बोली, ‘‘बसंती भाभी, ऐनक मैं नहीं लगाऊंगी.’’

बसंती भाभी ने दयनीय मुद्रा बना कर कहा, ‘‘नहीं, री, ऐनक बिना तो दूल्हा जंचता ही नहीं है.’’

‘‘नहीं, भाभी. ऐनक लगाने पर लोग चश्मा चंडूल कहते हैं.’’

‘‘कहने दे. तू तो चश्मा लगा ले.’’

रेखा जानती थी कि बसंती भाभी ऐनक लगवाए बिना मानेंगी नहीं. मगर वह फिर भी इनकार करती ही रही, ‘‘आजकल ऐनक का फैशन ही नहीं है.’’

‘‘कौन कहता है? आजकल ही तो ऐनक का फैशन है.’’

‘‘नहीं है, भाभी. चाहो तो सब से पूछ लो.’’

सभी स्त्रियों को इस शरारत में मजा आ रहा था. इसीलिए बिना पूछे ही उन्होंने अपना मत व्यक्त किया, ‘‘कमजोर नजर वाले ही लगाते हैं ऐनक.’’

रेखा ने फौरन इस बात का सिरा थाम कर कहा, ‘‘भाभी, सुना आप ने?’’

‘‘मुझे कुछ नहीं सुनना है…मैं तो अपने दूल्हे को ऐनक पहनाऊंगी.’’

रेखा ने भाभी के कान से मुंह सटाते हुए फुसफुसा कर कहा, ‘‘क्यों, ऐनक वाला अभी भी मन में बैठा है क्या?’’

भाभी का गुस्से से मुंह फूल गया. दूसरी स्त्रियां इस बात को सुन नहीं पाईर् थीं, इसलिए वे चिल्लाईं, ‘‘यह क्या गुपचुप बातें हो रही हैं? शादी अभी हुई नहीं और अभी से कानाफूसी चलने लगी.’’

इस बात का न तो बसंती भाभी ने उत्तर दिया, न ही रेखा ने. रेखा ने भाभी के हाथ से ऐनक ले कर पहन लिया और दूसरी ही बात छेड़ दी, ‘‘यह क्या देरदार लगा रखी है? जल्दी कराओ न हमारी शादी.’’

स्त्रियों ने चुटकी ली, ‘‘क्यों, ऐसी क्या बेकरारी है?’’

रेखा इठलाती हुई बोली, ‘‘बेकरारी क्यों नहीं होगी? एक रात के ही लिए तो दुलहन मिल रही है, और वह भी भाभी जैसी नगीना.’’

‘‘अभी भी अपनी दुलहन को भाभी ही कहे जाएगी?’’

‘‘नहीं, री, शादी तो करा दो. फिर मैं इसे प्राणप्यारी कहूंगी, प्रियतमा कहूंगी.’’

‘‘पर दूल्हा तो दुलहन के सामने हलका लग रहा है.’’

‘‘लगने दो. है तो दुलहन का मनपसंद.’’

कहकहे पर कहकहे लगते रहे. मगर भाभी का चेहरा फिर भी नहीं खिला.

रेखा से यह छिपा न रहा. वह भाभी के कान के पास मुंह ले जा कर फिर फुसफुसाई, ‘‘मेरी बात का बुरा मान गईं, भाभी?’’

भाभी ने फुसफुसाते हुए उत्तर दिया, ‘‘नहीं, री, बुरा क्यों लगेगा? तूने सच ही तो कहा है. यह बावरा मन उस छलिया को अब क्यों…?’’

‘‘मन की लीला मन ही समझता है भाभी, और कोई नहीं…’’

रेखा की बात को काटते हुए एक स्त्री बोली, ‘‘अरी, मन की लीला को सुहागरात के समय समझनासमझाना. अभी पूजन तो होने दे. इतनी उतावली मत बन.’’

यह बात ठहाकों में ही डूब गई और विवाह की रस्में विधिवत शुरू हो गईं. वर और वधू के फर्जी मांबाप ने अपनीअपनी संतान को अपने पास खींच लिया. तुरंत मंत्रों का उच्चारण होने लगा. हर शब्द पर अनुस्वर लगालगा कर नई संस्कृत में मंत्र बनाए गए. जो कुछ कमी रह गई थी, उस की पूर्ति अस्पष्ट उच्चारण से कर ली गई. विवाहघर जैसी धूमधाम मच गई.

देखतेदेखते पूजन, कन्यादान सब हो गया. विवाह कराने वाले पंडितजी ने दहेज के लिए मंत्रोच्चार किया, ‘‘दहेज फौरन दें.’’

ठहाके लगाने वाली और ताली पीटने वाली स्त्रियां फौरन दौड़ीं और दहेज की वस्तुएं ले आईं. किसी ने दहेज में झाड़ू दी तो किसी ने जूतों की जोड़ी. कोई अलबेली कंकड़ ले आई तो किसी ने टूटी कंघी ही दी. इसी तरह एक से एक निराली वस्तुएं दहेज में आती गईं. बाकायदा सब की सूची बनी. उस सूची में नाम व वस्तु दर्ज की गई. हंसतेहंसते सभी के पेट दुखने लगे.

दानदहेज से निबटते ही दूल्हादुलहन का जलूस निकाला गया. दूल्हादुलहन को तांगे में बैठाया गया. बैंडबाजा आगेआगे और तांगा पीछेपीछे चला. बाकी स्त्रियां मंगल गीत गाती हुई तांगे के पीछेपीछे हो लीं. सारे महल्ले में खलबली मच गई. कुछ लोग हैरान हुए, कुछ मुसकराए.

सब रस्मों को निबटाने के बाद विवाह की खास रस्म सुहागरात का आयोजन हुआ. दूल्हादुलहन को एक कमरे में धकेल कर कुंडी चढ़ा दी गई. कुछ अलबेली इस मौके के गीत गाने लगीं तो कुछ चुहल करने लगीं. ऐसेऐसे फिकरे कसे गए, ऐसेऐसे मजाक हुए कि यदि कोईर् पुरुष सुन ले तो उसे अपने कानों पर विश्वास न हो. भले घरों की स्त्रियां भी ऐसा मजाक कर सकती हैं, यह वह कभी मान भी नहीं सकता.

बसंती भाभी इस सब से बेखबर सी अपने आज के दूल्हे को बांहों में भींचे जा रही थीं. चुंबन पर चुंबन लिए जा रही थीं. दूल्हा बनी रेखा चुंबनों की इस बाढ़ से जैसे घबरा गईर् थी. वह अपनी इस दुलहन की बांहों की कैद से मुक्त होने की कोशिश कर रही थी. वह बारबार समझा रही थी. मगर भाभी पर तो तो जैसे नशा सा सवार हो गया था. वे जैसे होश में ही नहीं थीं. तमाशा देखने वाली स्त्रियां हंसहंस कर दोहरी हुई जा रही थीं.

बसंती भाभी को परे झटक कर रेखा बाहर आने के लिए उठी कि तमाशा देखने वालियों ने बाहर से दरवाजे की कुंडी लगा दी. भाभी ने दौड़ कर भीतर से कुंडी लगा ली.

रेखा चीखी, ‘‘यह क्या कर रही हो?’’

भाभी ने नाटकीय स्वर में कहा, ‘‘छलिया, आज तो खुल कर खेल लेने दे.’’

रेखा ने साश्चर्य कहा, ‘‘होश में आओ भाभी. मैं छलिया नहीं हूं, यह टूटिया है.’’

रेखा को बांहों में भींचते हुए भाभी फुसफुसाईं, ‘‘वह भी तो टूटिया ही था. वह छलिया मुझे छल कर चला गया. उसे दौलत चाहिए थी तो वह मुझे भुलावा क्यों देता रहा? मेरे बाबूजी ने तो पहले ही कह दिया था कि उन के पास कुमकुम और कन्या के सिवा और कुछ भी नहीं है. फिर भला वह छलिया ऐनक लगा कर, मोहिनी मूरत बना कर मुझे क्यों ठगता रहा? ठगने के बाद भी अब वह मेरे मन में क्यों डेरा जमाए हुए है? जाता क्यों नहीं?’’

भाभी फफकफफक कर रोने लगीं. रेखा ने उन्हें अपनी बांहों में ले कर उन के आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘उसे अब भूल जाजो, भाभी. ठेकेदार भैया में ही मन लगाओ.’’

‘‘ठेकेदार तो अब मेरे सबकुछ हैं ही. भले ही वे मेरे काका की उमर के हों, पर अब हैं तो मेरे पति. उन्होंने गरीब बाप की इस बेटी को अपनाया तो. दुहाजू ही सही, पर वर तो मिल गया मुझे. मेरा रोमरोम उन का है री. पर इस मुए मन को कैसे समझाऊं? वह छलिया…’’

भाभी का कंठ रुंध सा गया. बाहर से स्त्रियां कुंडी खटखटाती हुई शोर मचाए जा रही थीं. फब्ती पर फब्ती कस रही थीं, मगर भाभी और रेखा अपनेआप में ही डूबी हुई थीं. भाभी की व्यथा से रेखा भी अभिभूत हो गई थी. वह भाभी के गालों पर चुंबन अंकित करती हुई उन्हें अपनी बांहों में कसे जा रही थी. भाभी उन बांहों में पड़ी बुदबुदाए जा रही थीं, ‘‘छलिया, अब तो मुझे छोड़ दे. तेरामेरा नाता टूट गया. अब क्यों मुझे सताता है रे?’’

Romantic Story: मन के बंधन – दिल पर किसी का जोर नहीं चलता!

Romantic Story, लेखक-  डा. अशोक बंसल

मैं ने बहुत कोशिश की उस के नाम को याद कर सकूं. असफल रहा. इंग्लिश वर्णमाला के सभी अक्षरों को बिखेर कर उस के नाम को मानो बनाया गया था. यह उस का कुसूर न था. चेकोस्लोवाकिया में हर नाम ऐसा ही होता है. वह भी चैक नागरिक था. वेरिवी के शानदार शौपिंग कौंप्लैक्स की एक बैंच पर बैठा था. 70-80 वर्ष के मध्य का रहा होगा.

यह बात ज्यादा पुरानी नहीं. आस्ट्रेलिया आए मुझे एक माह ही तो हुआ था. म्यूजियम और घूमनेफिरने की कई जगहों की घुमक्कड़ी हो गई, तो परदेश के अनजान चेहरों को निहारने में ही मजा आने लगा. आभा बिखेरते शहर मेलबर्न के उपनगर वेरिवी के इस वातानुकूलित भव्य मौल में जब मैं चहलकदमी करतेकरते थक गया, तो बरामदे में पड़ी एक बैंच पर जा बैठा. पास में एक छहफुटा गोरा पहले से बैठा था. गोरे की आंखों की चमक गायब थी, खोईखाई आंखें मानो किसी को तलाश रही थीं.

आस्ट्रेलिया की धरती ने डेढ़ सौ साल पहले सोना उगलना शुरू किया था. धरती की गरमी को आज भी विराम नहीं लगा है. इस धरती में समाए सोने की चमक ने परदेशियों को लुभाने का सिलसिला सदियों से बनाए रखा है. शानदार और संपन्न महाद्वीप में लोग सात समंदर पार कर चारों दिशाओं से आ रहे हैं. नतीजा यह है कि सौ से ज्यादा देशों के लोग अपनीअपनी संस्कृतियों को कलेजे से लगाए यहां जीवन जी रहे हैं.

बैंच पर बैठा मैं इधर से उधर तेज कदमों से गुजरती गोरी मेमों को कनखियों से निहारतेनिहारते सोचने लगता था कि वे किस देश की होंगी. भारत, पाकिस्तान, लंका और चीन के लोगों की पहचान करने में ज्यादा दिक्कत नहीं हो रही थी. पर सैकड़ों देशों के लोगों की पहचान करना सरल काम न था. एकजैसी लगने वाली गोरी मेमों को देख कर जब आंखों में बेरुखी पैदा हुई तो बैंच पर बैठे पड़ोसी के देश की पहचान करने की पहेली में मन उलझ गया. स्पेन का हो नहीं सकता, इटली का है नहीं, तो फिर कहां का. तभी एक गोरे ने मेरे पड़ोसी बूढ़े के पास आ कर ऐसी विचित्र भाषा में बतियाना शुरू किया कि मेरे पल्ले एक शब्द न पड़ा. गोरा चला गया, तो मैं अपनेआप को न रोक पाया.

मैं ने बूढ़े की आंखों में आंखें डालते बड़ी विनम्रता से हिंदुस्तानी इंग्लिश में पूछा, ‘‘आप किस देश से हैं?’’

मेलबर्न में बसे मेरे मित्र ने मुझे समझा दिया था कि परदेश में अपरिचितों से बिना जरूरत बात करने से बचना चाहिए. लेकिन पड़ोसी गोरे ने जिस सहजता और आत्मीयता से मेरे सवाल का जवाब दिया था उस से मेरे सवालों में गति आ गई. उस ने अपने देश चेकोस्लोवाकिया का नाम उच्चारित किया तो मैं ने उस का नाम पूछा. नाम काफी लंबा था. मेरे लिए उसे बोलना संभव नहीं. सच पूछो तो मुझे याद भी नहीं. सो, मैं उसे चैक के नाम से उस का परिचय आप से कराऊंगा.

उस की इंग्लिश आस्ट्रेलियन थी. पर वह संभलसंभल कर बोल रहा था ताकि मैं समझ सकूं.

मेरे 2 सवालों के बाद चैक ने मुझ में दिलचस्पी लेनी शुरू की, ‘‘आप तो इंडियन हैं.’’ उस की आवाज में भरपूर आत्मविश्वास था.

मेरे देश की पहचान उस ने बड़ी सरलता से और त्वरित की, इसे जान कर मुझे गर्व हुआ और खुशी भी. मेरी दिलचस्पी बूढ़े चैक में बढ़ती गई, ‘‘आप कहां रहते हैं?’’

‘‘एल्टोना,’’ उस ने जवाब दिया.

दरअसल, मेलबर्न में 10 से

15 किलोमीटर की दूरी पर छोटेछोटे अनेक उपनगर हैं. एल्टोना उन में एक है. उपनगर वेरिवी, जहां हम चैक से बतिया रहे थे, एल्टोना से 10 किलोमीटर दूर है.

चैक खानेपीने के सामान को खरीदने के लिए अपनी बस्ती के बाजार के बजाय

10 किलोमीटर की दूरी अपनी कार में तय करता है. पैट्रोल पर फुजूलखर्ची करता है. वक्त की कोई कीमत चैक के लिए नहीं क्योंकि वह रिटायर्ड जिंदगी जी रहा है. लेकिन सरकार से मिलने वाली पैंशन

15 सौ डौलर में गुजरबसर करने वाला फुजूलफर्ची करे, यह मेरी समझ से बाहर था. इस पराई धरती पर रहते हुए मुझे मालूम पड़ गया था कि यहां एकएक डौलर की कीमत है.

चैक की दरियादिली कहें या उस का शौक, मैं ने सोचा कि अपनी जिज्ञासा को चैक से शांत करूं.

तभी सामने की दुकान से मेरी पत्नी को मेरी ओर आते देख चैक बोला, ‘‘आप की पत्नी?’’

मैं ने मुसकराते कहा, ‘‘आप ने एक बार फिर सही पहचाना.’’

चैक अपने अनुमान पर मेरी मुहर लगते देख थोड़ी देर इस प्रकार प्रसन्न दिखाई दिया मानो किसी बालक द्वारा सही जवाब देने पर किसी ने उस की पीठ थपथपाई हो.

‘‘आप कितने समय से साथ रह रहे हैं?’’ उस ने पूछा.

‘‘40 वर्ष से,’’ मैं ने कहा.

वह बोला, ‘‘आप समय के

बलवान हैं.’’

मुझे यह कुछ अटपटा लगा. पत्नी के साथ रहने को वह मेरे समय से क्यों जोड़ रहा था, जबकि यह एक सामान्य स्थिति है. इस के साथ ही मेरी जबान से सवाल निकल पड़ा, ‘‘और आप की पत्नी?’’

मेरा इतना पूछना था कि चैक के माथे पर तनाव उभर आया. चैक की आंखों ने क्षणभर में न जाने कितने रंग बदले, मुझे नहीं मालूम. पलकें बारबार भारी हुईं, पुतलियां कई बार ऊपरनीचे हुईं. मैं कुछ अनुमान लगाऊं, इस से पहले चैक के भरेगले से स्वर फूटे, ‘‘थी, लेकिन अब वह वेरिवी में किसी दूसरे पुरुष के साथ रहती है.’’

मैं चैक के और करीब खिसक आया. उस के कंधे पर मेरा हाथ कब चला गया, मुझे नहीं मालूम. चैक ने इस देश में हमदर्दी की इस गरमी को पहले कभी महसूस नहीं किया था. उस ने मन को हलका करने की मंशा से कहा, ‘‘हम 30 साल साथसाथ रहे थे.’’

मैं ने देखा, यह बात कहते चैक के होंठ कई बार किसी बहेलिया के तीर लगे कबूतर के पंखों की तरह फड़फड़ाए थे.

‘‘यह सब कैसे हुआ, क्यों हुआ?’’ मुझ से रुका न गया.

शब्द उस के मुंह में थे, पर नहीं निकले. गला रुंध आया था. उस ने हाथों से जो इशारे किए उस से मैं समझ गया. मानो कह रहा हो, सब समयसमय का खेल है. मगर, मेरी जिज्ञासा मुझ पर हावी थी.

मैं ने अगला सवाल आगे बढ़ा दिया, ‘‘आप का कोई झगड़ा हुआ था?’’

‘‘ऐसा तो कुछ नहीं हुआ था,’’ वह बोला, ‘‘वह एक दिन मेरे पास आई और बोली, ‘चैक, आई एम सौरी, मैं अब तुम्हारे साथ नहीं रहूंगी. मैं ने और स्टीफन ने एकसाथ रहने का फैसला किया है.’ फिर वह चली गई.’’

‘‘आप ने उसे रोका नहीं?’’

‘‘मैं कैसे रोकता, यह उस का फैसला था. यदि वह किसी दूसरे व्यक्ति के साथ रह कर ज्यादा खुश है तो मुझे बाधा नहीं बनना चाहिए.’’

मैं हैरानी से उसे देख रहा था.

‘‘लेकिन हां, आप से झूठ नहीं कहूंगा. मैं ने उस के लौटने का इंतजार किया था.’’ वह आगे बोला.

उस की आंखें नम हो रही थीं. वह फिर बोला, ‘‘आखिर, हम लोग 30 साल साथ रहे थे. मुझे हर रोज उसे देखने की आदत पड़ गई थी,’’ हाथ के इशारे से बैंच के सामने वाली दुकान की ओर संकेत करते हुए उस ने कहा, ‘‘इस दुकान में हम लोग अकसर आते थे. यह उस की पसंदीदा दुकान थी.’’

मैं समझ गया कि वेरिवी के शौपिंग कौंपलैक्स में वह उस दुकान के सामने की बैंच पर क्यों बैठता है.

मैं ने उस से पूछा, ‘‘यहां उस से मुलाकात होती है?’’

‘‘मुलाकात नहीं कह सकते. वह स्टीफन के साथ यहां आती थी. बहुत खुश नजर आती थी. मैं उसे यहीं से देख लिया करता था. उसे देख कर लगता था कि उन दोनों को किसी तीसरे व्यक्ति की जरूरत नहीं है. वह खुश थी. लेकिन…’’ वह कुछ देर चुप रहा, फिर बोला, ‘‘पिछली बार मैं ने उसे देखा था तो वह अकेली थी.’’

मैं ने देखा कि रोजलिन के चेहरे पर गहरी उदासी उतर आई थी. कुछ परेशान लग रही थी. उस ने मुझे देख लिया था. हमारी नजरें मिलीं, मगर वह बच कर निकल जाना चाहती थी. मैं ने आगे बढ़ कर अनायास ही उस का हाथ थाम लिया था, पूछा था, ‘कैसी हो?’ उस ने मेरी आंखों में देखा था, मगर कुछ बोल नहीं पाई थी. उस के हाथ फड़फड़ा कर रह गए थे. वह हाथ छुड़ा कर चली गई थी. मैं सिर्फ इतना जानना चाहता था कि वह ठीक तो है. अब जब वह मिलेगी, तो पूछूंगा कि वह खुश तो है.’’

‘‘आप की यह मुलाकात कब हुई थी?’’

‘‘करीब 2 साल पहले.’’

उस की आंखें डबडबा रही थीं और मैं हैरत से उसे देख रहा था. वह पिछले 2 साल से इस बैंच पर बैठ कर इंतजार कर रहा था ताकि वह उस से पूछ सके कि ‘वह खुश तो है.’

उस दिन मैं ने उस के कंधे पर सहानुभूति से हाथ रख कामना की थी कि उस का इंतजार खत्म हो.

मैं अपने देश लौट आया था. मगर चैक मेरे दिमाग पर दस्तक देता रहा. बहुत से सवाल मेरे मन में कौंधते रहे. क्या उस की मुलाकात हुई होगी? क्या रोजलिन उस को मिल गई होगी या वह उसी बैंच पर आज भी उस का इंतजार कर रहा होगा?

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