Family Story : मदरसे की एक रात – उस रात आखिर क्या हुआ

Family Story : मौलाना राशिद मदरसे में अपने काम में मशगूल थे कि तभी उन के कमरे में बुरके में लिपटी एक औरत 20 सालकी खूबसूरत लड़की के साथ दाखिल हुईं .

मौलाना राशिद ने उन्हें गौर से देख कर पूछा, ‘‘बाहर दरवाजे पर कोई नहीं है क्या?’’

‘‘जी, कोई नहीं है?’’ कह कर वह औरत चुप हो गई.

‘‘कहिए, क्या काम है आप को?’’ मौलाना राशिद ने पूछा.

‘‘जी, यह मेरी बेटी है. इसे मैं ने गोद लिया है. सोचती हूं कि इसे अपने पैरों पर खड़ा कर के इस की शादी करा दूंगी. आप की नेक दुआओं से इस की जिंदगी संवर जाएगी. मुझे किसी दूसरे पर एतबार नहीं है. क्या आप के मदरसे में पढ़ाने के लिए कोई नौकरी है?’’

मदरसे की शर्तों को मानने पर उस लड़की को वहां रख लिया गया. तकरीबन 60 साल की उम्र पूरी कर रहे मौलाना राशिद तकरीबन 20 साल से शहर से लगे एक गांव में मदरसा चला रहे थे. मदरसा खूब फलफूल रहा था.

बीवी की मौत के बाद मौलाना राशिद मदरसे के एक कमरे में रहते थे. मदरसे में ही होस्टल का इंतजाम था, जहां गरीब लड़कियां रहती थीं.

मौलाना राशिद ने वहां के नेताजी के कहने पर एक गांव की विधवा को वार्डन पद पर रखा था, इसलिए उन्हें खानेपीने का सामान व दूसरी सुविधाएं आसानी से मिल जाती थीं.

‘‘जरा सुनिए,’’ मौलाना राशिद ने आवाज दी.

‘‘जी,’’ कह कर वह लड़की पलटी.

‘‘आप मुझे ‘चाचा’ कह सकती हैं. मैं तुम्हें ‘आरजू’ कह कर ही बुलाऊंगा,’’ मौलाना राशिद ने हंसते हुए कहा.

वह लड़की शरमा कर अपनी जमात की ओर बढ़ गई.

‘‘शमा, तुम्हारा चेहरा पीला सा लग रहा है. क्या बात है? तबीयत तो ठीक है न?’’ आरजू ने एक लड़की से पूछा.

‘‘जी, मुझे अपनी तबीयत ठीक नहीं लग रही है.’’

‘‘मैं मौलाना साहब से कह कर तुम्हें छुट्टी दिलवा देती हूं.’’

आरजू ने मौलाना से इस बाबत बात की. मौलाना ने खुद उस का इलाज कराने की बात कह कर डाक्टर को फोन किया.

‘जी मौलाना, उसे वार्डन के साथ अस्पताल भेज दीजिए. मैं देख लूंगा,’ कह कर डाक्टर ने फोन रख दिया.

नेताजी के दोस्त डाक्टर रमेश मदरसे की सभी लड़कियों का इलाज करते थे. इस के एवज में उन्हें नेताओं की सरपरस्ती और काफी रकम मिलती थी.

‘‘अभी ज्यादा समय नहीं हुआ है. ये गोलियां खिला दो, ठीक हो जाएगी.’’ डाक्टर ने वार्डन से कहा.

2-3 दिन के आराम के बाद शमा ठीक हो गई और मदरसे में जाने लगी. जब भी मौका मिलता, मौलाना राशिद आरजू को अपने औफिस के कमरे में बिठा लेते और बातचीत करते.

मौलाना की बातचीत, हंसमुख स्वभाव के चलते आरजू भी उन के पास बैठ कर समय गुजारती. मौलाना राशिद ने वार्डन को आरजू को उन के करीब लाने की पेशकश की.

वार्डन ने आरजू पर डोरे डालने शुरू कर दिए. जब भी मौका मिलता, वह आरजू से मौलाना राशिद की तारीफ करती. अनजान आरजू भी मौलाना से घुलनेमिलने लगी थी.

वार्डन ने मौलाना राशिद को बताया, ‘‘नेताजी ने होस्टल से नई उम्र की किसी सुंदर लड़की को रात में बुलाया है. अगर आप कहें तो मैं किसी को भेज दूं?’’

‘‘तुम खुद साथ ले कर जाओ. पैसों का लालच दे देना. आधे पैसे उसे दे कर सुबह होने के पहले ही अपने कमरे में सुला लेना ताकि किसी को शक न हो.’’

होस्टल की लड़कियों पर महीने की 2-4 रातें कयामत बन कर आतीं और वे मदरसे के अहाते से निकल कर मजबूरी में अपने जिस्म का सौदा करातीं. उन्हें इतना डरा दिया जाता था कि उन के मुंह से आवाज तक नहीं निकलती थी.

बड़े लोगों, नेताओं की हवस की भूख मिटाने के लिए मदरसे का इस्तेमाल काफी लंबे समय से चल रहा था, जिस की किसी को कानोंकान खबर नहीं थी.

आरजू को मदरसे में बच्चों को पढ़ाते हुए एक साल पूरा होने को आया था. वक्त अपनी रफ्तार से चल रहा था. लड़कियां दहशत में जी कर पढ़ाई कर रही थीं. वे न घर पर, न बाहर जबान खोल सकती थीं. कुछ लड़कियां यतीम थीं, जिन्हें पढ़ाई के लिए सरकार की ओर से रखा गया था.

वार्डन को एक  दिन की छुट्टी दे कर मौलाना राशिद ने आरजू को सारी जिम्मेदारी सौंप दी. नियमानुसार दिनरात उसे मदरसे में ही गुजारनी थी.

दिन तो कट गया, अब रात भी गुजारनी थी. खाना खा कर सब लड़कियां सो गईं. मौलाना राशिद के अंदर का शैतान जाग गया. उस की कई दिनों से आरजू के गदराए बदन पर नजर थी.

‘‘आरजू,’’ कहते हुए किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी.

आरजू ने दरवाजा खोला. सामने मौलाना राशिद को देख कर वह बोली, ‘‘जी चाचा.’’

‘‘मेरे पेट में दर्द हो रहा है. जरा गरम पानी से सेंक दो.’’

‘‘जी,’’ कह कर वह खामोश हो गई.

‘‘मैं अपने कमरे में हूं,’’ कह कर मौलाना राशिद लौट गए.

आरजू पास ही बने कमरे में गई तो देखा कि मौलाना बिस्तर पर करवटें लेते हुए कराह रहे थे.

‘‘दरवाजे को बंद कर दो. किसी ने देख लिया तो बेवजह का शक करेगा.’’

दरवाजा बंद कर आरजू मौलाना का गरम पानी की बोतल से पेट सेंकने लगी. मौलाना उस का हाथ पकड़ कर पेटदर्द की जगह बता रहे थे.

आधा घंटे बाद मौलाना ने कहा, ‘‘टेबल पर केतली में चाय रखी है. अभी गरम होगी. एक कप मुझे दे दो और एक कप तुम ले लो.’’

आरजू ने चाय केतली से निकाल कर एक कप मौलाना को दिया, दूसरा कप खुद ले लिया.

‘‘पानी देना,’’ मौलाना ने कहा. आरजू ने देखा कि वहां रखा पानी का जग खाली था.

‘‘मैं अंदर से लाती हूं,’’ कह कर आरजू पानी लेने चली गई.

इसी बीच मौलाना ने तकिए के नीचे से एक पुडि़या निकाल कर उस के कप में मिला दी.

आरजू ने पानी ला कर दिया.

चाय पी कर वह फिर मौलाना का पेट सेंकने लगी.

कुछ देर बाद आरजू को बेहोशी छाने लगी. वह बिस्तर पर ही गिर गई. मौलाना ने उठ कर उसे अपने बगल में लिटाया.

थोड़ी ही देर में मौलाना ने आरजू के कोरे बदन पर गुनाह की एक लकीर खींच दी.

जब आरजू को सुबह होश आया तो उस ने उठ कर अपनेआप को सिर्फ कुरती में पाया. सलवार, जो उस की आबरू का कवच थी, एक तरफ पड़ी सिसक रही थी.

आरजू ने अपने कपड़े संभाले और बिना कुछ कहे मदरसे के गेट के बाहर चली गई.

Social Story : एक्सीडैंट – आखिर क्या थी हरनाम सिंह की गलती

Social Story : सड़क पर ज्यादा भीड़ को देख कर हरनाम सिंह ने ट्रक की रफ्तार कम कर दी. सारी रात ट्रक चलाते रहने के चलते वह बुरी तरह थक गया था. उस की इच्छा थी कि वह किसी ढाबे में चायनाश्ता कर के कुछ देर वहीं आराम करे. शहर खत्म होते ही सड़क खाली पा कर हरनाम सिंह ने ट्रक की रफ्तार फिर बढ़ा दी. उसे सड़क के बीचोंबीच एक मोपैड सवार जाता दिखाई दिया. उस ने साइड मांगने के लिए हौर्न बजाया. हौर्न की आवाज सुन कर मोपैड सवार ने पलट कर देखा और किनारे होने के बजाय मोपैड की रफ्तार बढ़ा दी.

हरनाम सिंह ने देखा कि वह एक 15-16 साल का लड़का था, जो साइड देने के बजाय ट्रक से मुकाबला करने के मूड में दिख रहा था.

हरनाम सिंह का वास्ता ऐसे शरारती लड़कों से पड़ता रहता था. उस पर गुस्सा आने के बजाय हरनाम सिंह के चेहरे पर एक मुसकान आ गई. उसे देख कर हरनाम सिंह को अपने बेटे की याद आ गई. वह भी बहुत शरारती था. हरनाम सिंह धीमी रफ्तार से ट्रक चलाता रहा.

मोपैड सवार को ट्रक से आगे निकलने में काफी मजा आ रहा था. ट्रक को काफी फासले पर देख कर उस ने खुशी में अपना दाहिना हाथ उठा कर हिलाया.

तेज रफ्तार और दाहिना हाथ हैंडल से हट जाने के चलते वह लड़का बैलैंस नहीं रख सका और सिर के बल पथरीली सड़क पर जा गिरा.

हरनाम सिंह मोपैड सवार का ऐसा भयंकर अंजाम देख सकते में आ गया. उस का ट्रक तेज रफ्तार से दौड़ रहा था. एक सैकंड की भी चूक उस लड़के की जान ले सकती थी.

तेज रफ्तार के बावजूद ट्रक घिसटते हुए घायल मोपैड सवार से कुछ पहले ही रुक गया. अचानक ब्रेक लगने के चलते पिछली सीट पर सोया क्लीनर भानु गिरतेगिरते बचा.

‘‘क्या हुआ उस्ताद?’’ भानु ने घबरा कर पूछा, ‘‘गाड़ी क्यों रोक दी?’’

‘‘उस्ताद के बच्चे, जल्दी से नीचे उतर,‘‘ कह कर हरनाम सिंह नीचे उतरा.

वह लड़का बुरी तरह घायल था. उस का सिर किसी नुकीले पत्थर से टकरा कर फट गया था. उस ने कराह कर एक बार आंखें खोलीं और हरनाम सिंह की ओर देखने लगा, जैसे जान बचाने के लिए कह रहा हो.

हरनाम सिंह दुविधा में पड़ गया. आसपास कोई घर भी नहीं था, जहां से मदद की उम्मीद की जा सके. उस ने 1-2 कारों को रोक कर मदद मांगने की कोशिश की, लेकिन मदद करना तो दूर, किसी ने रुकने की भी जरूरत नहीं समझी.

‘‘घबरा मत बेटा…’’ हरनाम सिंह ने उस लड़के को दिलासा दी, ‘‘मैं तुझे अस्पताल ले कर चलता हूं.’’

‘‘मरने दो उस्ताद. क्यों फालतू के झंझट में पड़ते हो?’’ भानु ने समझाने की कोशिश की, ‘‘यह कोई अपनी गाड़ी से तो नहीं टकराया है.’’ यह सुन कर हरनाम सिंह का खून खौल उठा. उसे ऐसा लगा कि यह बात उस के अपने बेटे के लिए कही गई हो. उस की इच्छा भानु को एक जोरदार थप्पड़ मारने की हुई, लेकिन समय की नजाकत को देख कर उस ने खुद पर काबू पा लिया.

‘‘बकवास मत कर…’’ हरनाम सिंह दहाड़ा, ‘‘इसे ट्रक पर चढ़ाने में मेरी मदद कर.’’

उन दोनों ने मिल कर उस घायल लड़के को ट्रक की पिछली सीट पर लिटा दिया. सीट खून से रंगती जा रही थी. हरनाम सिंह ने खून का बहाव रोकने के लिए अपनी पगड़ी उतार कर लड़के के सिर पर बांध दी.

‘‘तू लड़के की मोपैड ले कर पीछेपीछे आ,’’ हरनाम सिंह ने भानु से कहा और ट्रक ले कर शहर की ओर चल पड़ा.

ज्यादा खून बह जाने के चलते वह लड़का बेहोश हो चुका था. हरनाम सिंह की जगह कोई दूसरा ड्राइवर होता, तो शायद उस घायल लड़के को वहीं छोड़ कर आगे बढ़ गया होता, लेकिन हरनाम सिंह अपने दयालु स्वभाव के चलते उसे अस्पताल तक तो ले कर आया ही, भूखाप्यासा रह कर लड़के की हालत जानने के लिए बेचैन रहा. भानु भी उस के करीब ही बैठा रहा.

‘‘कैसी हालत है डाक्टर साहब?’’ हरनाम सिंह ने आपरेशन थिएटर से डाक्टर को बाहर निकलते देख कर पूछा.

‘‘कुछ कहा नहीं जा सकता…’’ डाक्टर ने बताया, ‘‘खून बहुत ज्यादा बह गया है और उस के ग्रुप का खून नहीं मिला तो…’’

हरनाम सिंह को एक झटका सा लगा, ‘तो क्या मेरी मेहनत बेकार हो जाएगी…’ यह सोच कर वह बोला, ‘‘डाक्टर साहब, आप मेरा खून ले लीजिए.’’

डाक्टर ने अचरज से उसे देखा और कहा, ‘‘आइए सरदारजी, आप का खून टैस्ट किए लेते हैं.’’ हरनाम सिंह का खून लड़के के ग्रुप का ही निकला. उस का खून उस लड़के को दे दिया गया.

कुछ ही समय बाद वह लड़का खतरे से बाहर हो गया, लेकिन उसे होश नहीं आया था. हरनाम सिंह ने अपने दिल में एक अजीब सी खुशी महसूस की. एक्सीडैंट का मामला होने के चलते अस्पताल वालों ने पुलिस में खबर कर दी थी. सूचना पा कर जांच के लिए काशीनाथ नामक एक रिश्वतखोर इंस्पैक्टर अस्पताल पहुंच गया. वह रिश्वत लेने का कोई भी मौका हाथ से जाने नहीं देता था.

वह बयान लेने के लिए हरनाम सिंह के पास पहुंचा, ‘‘क्या नाम है तेरा?’’ उस इंस्पैक्टर ने हरनाम सिंह को घूरते हुए पूछा, ‘‘कहां जा रहा था? लड़के को टक्कर कैसे मार दी?’’

ड्राइवर होने के चलते हरनाम सिंह ऐसे पुलिस वालों के घटिया बरताव से परिचित था. उसे गुस्सा तो बहुत आया, पर खुद पर काबू रखा. उस ने पूरी घटना सचसच बता दी.

इंस्पैक्टर काशीनाथ पर हरनाम सिंह की शराफत का कोई असर नहीं पड़ा. वह तो कुछ रकम झटकने की तरकीब सोच रहा था.

‘‘जानता है, अस्पताल के सामने ट्रक खड़ा करना मना है…’’ इंस्पैक्टर काशीनाथ धमकी भरी आवाज में बोला, ‘‘तेरा चालान काटना पड़ेगा.’’

‘‘गलती हो गई साहबजी…’’ हरनाम सिंह गिड़गिड़ा कर बोला, ‘‘उस समय लड़के की जान बचाना जरूरी था.’

‘‘एक तो तू ने नियम तोड़ा है, ऊपर से मुझ से बहस कर रहा है,’’ इंस्पैक्टर काशीनाथ घुड़क कर बोला.

हरनाम सिंह ने पुलिस वाले से उलझना ठीक नहीं समझा. उस ने धीरे से कहा, ‘‘ठीक है, काटिए मेरा चालान.’’

काशीनाथ का धूर्त दिमाग फौरन सक्रिय हो उठा, ‘यह ड्राइवर जरूरत से ज्यादा सीधासादा है…’ उस ने सोचा और कड़क आवाज में कहा, ‘‘ट्रक ले कर कहां जा रहा था? क्या है ट्रक में?’’ ‘‘सीमेंट है साहब. आगे नदी पर बांध बन रहा है, वहीं पर जा रहा था…’’ हरनाम सिंह ने जानकारी देते हुए कहा, ‘‘मेहरबानी कर के मेरी जल्दी छुट्टी कीजिए. मैं बहुत लेट हो गया हूं. अगर समय पर नहीं पहुंचा तो…’’

‘‘ट्रक ले कर थाने चल,’’ इंस्पैक्टर काशीनाथ उस की बात काट कर बोला.

‘‘क्या…’’ यह सुन कर हरनाम सिंह जैसे आसमान से गिरा, ‘‘थाने क्यों साहब? मैं ने क्या किया है?’’

‘‘क्या सुना नहीं तू ने…’’ इंस्पैक्टर काशीनाथ डपट कर बोला, ‘‘ट्रक ले कर थाने चल.’’

कुछ ही समय बाद हरनाम सिंह व भानु थाने में थे. इंस्पैक्टर काशीनाथ जानता था कि ट्रक वाले कानूनी पचड़ों में फंस कर समय बरबाद करने के बजाय कुछ लेदे कर मामला निबटाना बेहतर समझते हैं. ऐसी ही योजना बना कर वह हरनाम सिंह को थाने में लाया था.

‘‘अब बोल, क्या इरादे हैं तेरे?’’ इंस्पैक्टर काशीनाथ ने उसे इस अंदाज से घूरा, जैसे कसाई बकरे को देखता है.

‘‘कैसे इरादे साहब?’’ हरनाम सिंह की समझ में कुछ नहीं आया, ‘‘आप चालान कीजिए. जो जुर्माना होगा, मैं भरने को तैयार हूं. मेहरबानी कर के जल्दी कीजिए. अगर मैं समय पर वहां नहीं पहुंचा, तो मेरा भारी नुकसान हो जाएगा,’’ हरनाम सिंह बोला.

‘‘अबे, कुछ खर्चापानी दे, तभी जा सकता है तू यहां से,’’ इंस्पैक्टर काशीनाथ बेशर्मी से बोला.

हरनाम सिंह के सब्र का बांध टूट गया, ‘‘क्यों खर्चापानी दूं? एक इनसान की जान बचा कर मैं ने क्या जुर्म किया है? तुम पुलिस वाले हो या लुटेरे.’’

एक ट्रक ड्राइवर को इस तरह से ऊंची आवाज में बात करते देख इंस्पैक्टर काशीनाथ का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. उस ने डंडा उठा कर हरनाम सिंह की बेरहमी से पिटाई शुरू कर दी. अपने साहब की मदद करने के लिए दूसरे सिपाही भी आ गए.

हरनाम सिंह पर चारों तरफ से लातघूंसों और डंडों की बौछार होने लगी. उस की दिल दहला देने वाली चीखों से पूरा थाना गूंज उठा. क्लीनर भानु एक ओर खड़ा थरथर कांप रहा था.

24 घंटे से भी ज्यादा समय से भूखाप्यासा हरनाम सिंह खून देने के चलते पहले ही कमजोर हो चुका था. वह पुलिस वालों की मार ज्यादा देर तक सहन न कर सका और पिटतेपिटते बेहोश हो गया.

इस के बाद इंस्पैक्टर काशीनाथ भानु की ओर पलटा और उस से पूछा, ‘‘लिखना जानता है?’’ सूखे पत्ते की तरह कांपते भानु ने सहमति में सिर हिलाया.

‘‘मैं जैसा कहता हूं, वैसा ही लिख दे,’’ इंस्पैक्टर काशीनाथ धमकी भरी आवाज में भानु से बोला, ‘‘नहीं तो तेरी हालत तेरे उस्ताद से भी बुरी बनाऊंगा.’’ भानु ने अपने उस्ताद के अंजाम से डर कर वही लिखा, जो इंस्पैक्टर काशीनाथ चाहता था. उस ने लिखा कि एक्सीडैंट हरनाम सिंह की गलती से हुआ था. उस ने लापरवाही से ट्रक चलाते हुए मोपैड सवार लड़के को टक्कर मार दी थी.

कुछ लोगों की फितरत सांप जैसी होती है. उन्हें कितना भी दूध पिलाओ, लेकिन वे जहर ही उगलते हैं. घायल लड़के का बाप उन्हीं में से एक था. उस ने सारी हकीकत जानने के बावजूद अपने बेटे को जीवनदान देने वाले की मदद करने की बात तो दूर, रिश्वत की रकम में हिस्सा पाने के लिए हरनाम सिंह के खिलाफ झूठी रिपोर्ट कर दी.

हरनाम सिंह के मुंह पर पानी डाल कर उसे होश में लाया गया.

‘‘अब कैसी तबीयत है सरदारजी?’’ इंस्पैक्टर काशीनाथ ने पूछा.

हरनाम सिंह चुप रहा.

इंस्पैक्टर काशीनाथ बेचैन हो उठा. वह जल्दी से जल्दी मामला निबटा देना चाहता था. देर होने से बात बिगड़ सकती थी. उस ने हरनाम सिंह से 10 हजार रुपए की रिश्वत मांगी.

पुलिस की मार से हरनाम सिंह पहले ही टूट चुका था. उसे यह जान कर सदमा लगा कि जिस लड़के की उस ने जान बचाई थी, उस का बाप भी इस धूर्त पुलिस वाले का साथ दे रहा है. उस ने कानूनी चक्कर में फंस कर समय बरबाद करने के बजाय रिश्वत दे कर जान छुड़ाना बेहतर समझा.

ड्राइवर हरनाम सिंह ने अपने ट्रक के थोड़े पुराने 2 टायर बेच कर और अपने पास से कुछ पैसा मिला कर 10 हजार रुपए जुटाए और इंस्पैक्टर काशीनाथ के हवाले कर दिए.

थाने से हाईवे तक पहुंचने के लिए अस्पताल के सामने से हो कर गुजरना पड़ता था. अस्पताल के फाटक पर वही डाक्टर खड़ा था, जिस ने उस घायल लड़के का इलाज किया था. हरनाम सिंह ने ट्रक वहीं रोक दिया.

‘‘अब वह लड़का कैसा है डाक्टर साहब?’’ हरनाम सिंह ने ट्रक पर बैठेबैठे पूछा. डाक्टर ने हरनाम सिंह को पहचान लिया, ‘‘वह एकदम ठीक है. अब उसे होश भी आ गया है, लेकिन आप को क्या हो गया है? आप की यह हालत…’’ हरनाम सिंह ने डाक्टर की बात का कोई जवाब नहीं दिया और ट्रक आगे बढ़ा दिया

Funny Story : कवि सम्मेलन और रात्रिभोज

Funny Story : देशप्रदेश में हमेशा की भांति काव्य संसार की सहज अनुप्रास छटा छाई है. शहर में 3-दिवसीय कविता विमर्श था. प्रथम दिवस संध्या 7 बजे से 11 बजे तक कार्यक्रम में रोहरानंद बहैसियत  आम व कवि उपस्थित हुआ. सब से पहले, समकालीन कविता क्या शै है, वरिष्ठतम कवियों ने हमें बताया. फिर शुरू हुआ अथिति कवियों का काव्यपाठ. अंत में जिस बात का इंतजार था, वही हुआ, रात्रिभोज.

रोहरानंद को जीवन में पहली बार कवि होने का लाभ मिला, मगर… डिनर में लंबी लाइन थी. कविगण  पंक्तिबद्ध एकदूसरे के पीछे  अनुशासित खड़े थे, हाथों में प्लेट थामने को आतुर.

एक अकवि मित्र ने कहा, “चलिए, पंक्ति में स्थान ग्रहण करें.”

मगर रोहरानंद का कविमन इस के लिए तैयार न था. कवि अर्थात विशिष्ट प्राणी. अगर कवि हो कर आम आदमी की भांति लाइन में खाना अर्थात डिनर का लुत्फ़  उठाया, तो क्या खाक कवि हुए ? नहींनहीं, भले खाना घर जा कर खाऊंगा, मगर निरीह आम आदमी सा पंक्तिबद्ध श्रृंखला में, साधारण मनुष्य सा, मैं भोजन नहीं ग्रहण कर सकता?

आयोजकों ने बड़ी गलती की है, मेरे कविमन को ठेस पहुंचाई है. या फिर आयोजक यह समझते हैं कि मैं कवि नहीं हूं, आम आदमी हूं? कोई भेड़बकरी…

रोहरानंद ने कहा, “पंक्ति ख़त्म हो जाएगी, तब डिनर का आनंद लेंगे.”

अकवि मित्र ने चिंता जताई, “भैया, यहां शर्म छोड़िए, कौन जानता है तुम कवि हो, कहीं भोजन सामग्री खत्म हो गई तो?”

रोहरानंद मुसकराया, “ नहींनहीं, आतुर  न हो मित्र. थोड़ी ही देर में लंबी पंक्ति हवा की भांति चंहुओर व्याप्त हो जाएगी.  भोजन फिर ग्रहण कर लेंगे.”

मगर, दोनों मित्र बेचैन थे. जिस तरह राजनीतिक दल के नेता आलाकमान की बात अंतिम मानते हैं, दोनों ने हथियार डाल समर्पण कर दिया. और सचमुच रोहरानंद ने देखा, भीड़ हट गई है. भोजन सामग्री आजाद है. वह अकवि मित्र की ओर देख कर मुसकराया.

“आओ दोस्तो, अब मौका सम्मान का है. कोई पंक्ति नहीं. हम पंक्तिबद्ध हो लें.” रोहरानंद के साथ मित्रगण भोजन की और बढ़े मानो युद्ध के मैदान की ओर सेना चल पड़ी. सहजता से सलाद, कढ़ी, चावल, रोटी, दाल और पापड़ को प्लेट को युद्ध भूमि में उतार रोहरानंद भोजन का आनंद लेने लगा. थोड़ी देर में भोज्य सामग्री की सादगी की  उसे अनुभूति हुई. आज कवि होने का सच्चा लाभ उठा रहा है. अगर वह कवि न होता तो क्या इरेक्टर्स होस्टल में आयोजित समकालीन कविता पर केंद्रित विमर्श में सम्मिलित हो पाता? क्या उसे आमंत्रण मिलता? तो कवि होने की गर्वानुभूति उसे होने लगी.

“आह, क्या कढ़ी है… वर्षों बाद ऐसी कठोर रोटी मिली है. तोड़ने पर टूटती नहीं,”

अकवि मित्र ने कहा, “हाय, मेरा दांत,”

रोहरानंद ने सहानुभूतिपूर्वक उस की ओर देखा, “क्यों, क्या हुआ?”

“रोटी चबाते मेरा दांत हिल गया.”

“देखा… कवि के मित्र होने का लाभ. तुम्हें डाक्टर के पास जाने की दरकार नहीं, एकाध रोटी और लो, दांत बाहर आ जाएगा.”

रोहरानंद ने गौर किया. प्रदेश स्तरीय कार्यक्रम बल्कि राष्ट्रीय  मगर उपस्थिति मात्र अस्सी से सौ की. यहां भोजन आम कवियों के लिए था, विशिष्ट और मुख्य अतिथि सहित अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कवि नदारद. रोहरानंद को समझते देर नहीं लगी- वरिष्ठतम और उस के जैसे कवियों की व्यवस्था अलगअलग की गई है ताकि दूरी और सम्मानभाव बना रहे.

रोहरानंद को पहली दफा कवि होने पर गर्व की अनुभूति सिर चढ़ कर बोलने लगी. कवि होने के लाभ ही लाभ आंखों के समक्ष आसमान के सितारों की तरह झिलमिलाने लगे.

कार्यक्रम  पुलिस के एक बड़े अधिकारी के इंट्रेस्ट पर संभव हुआ था. रोहरानंद कईकई बार सोचता था- ऐसा एकाध कार्यक्रम हो, मगर अर्थाभाव के कारण कभी कार्यक्रम संभव नहीं हुआ. हुआ भी तो इतना उम्दा. रोहरानंद ने मन ही मन संकल्प लिया किसी भांति  साहब के सन्निकट पहुंचना होगा. संबंध मधुर बना लिए तो आनंद ही आनंद और कवि होने का लाभ ही लाभ.

साहब कवि हैं और विशाल हृदय भी. वे दृष्टिपारखी भी हैं. अगर  मैं सन्निकट पहुंचा तो मेरी कविता कमल की भांति और व्यक्तित्व चांदसितारे की भांति खिल उठेगा. और फिर कवि होने का लाभ मैं दोनों हाथों से उठाऊंगा. राम की दृष्टि में निरीह निषाद राज क्या आए, उसे ससम्मान रामायण में स्थान मिला. रोहरानंद  साहब की दृष्टि में आ गया, तो कविता की किताबों और कवि सम्मेलनों में स्थान प्राप्त कर अमर हो जाऊंगा.

रोहरानंद सम्मेलन से लौट आया. रातभर नींद ही नहीं आई.

भविष्य का सवाल था. एक अदद उच्च  अधिकारी या आईएएस अथवा राजनीतिक कवि विभूति के सान्निध्य के बगैर कवि होने का न लाभ मिलेगा, न कविधर्म निभाने का मौका. रोहरानंद कब बड़ा कवि बनेगा? वह रातभर रास्ता ढूंढता रहा ढूंढता रहा. मगर खोज अभी खत्म नहीं हुई है. रोहरानंद को कविता की देवी पर आस्था है – कभी न कभी उसे भी एक उच्च अधिकारी का राज्याश्रय मिलेगा और वह भी कवि होने का लाभ उठाएगा.

Short Story : छिछोरेपन की क्रीम – क्या थी इस की असलियत

Short Story : दरअसल, इन दिनों रमेश भी साथ वाले कपिलजी की वजह से अपने काले होते चेहरे को ले कर कुछकुछ परेशान था. भाई साहब, आप औफिस में अपना चेहरा चाहे कितना ही क्यों न ढक कर रखें, पर कालिख यहांवहां से उड़ कर कमबख्त चेहरे पर वैसे ही आ कर बैठ जाती है जैसे फूल पर मधुमक्खियां.

जैसे हिरन शिकारी के जाल में एक बार फंस जाता है और उस के बाद वह उस जाल से निकलने की जितनी कोशिश करता है, उतना ही उस जाल में उलझता चला जाता है, ठीक उसी तरह से रमेश भी हिरन की तरह शिकारीरूपी बाजार में आई काले चेहरे को गोरा करने वाली क्रीमों के जाल में एक बार जो फंसा तो उस के बाद बाजार की गोरेपन की क्रीमों के जाल से निकलने की जितनी कोशिश की, उतना ही उस जाल में उलझता चला गया.

जब रमेश गोरेपन की क्रीमों के बाजार के जाल से निकलने के बजाय उस में उलझताउलझता थक गया कि तभी कपिलजी सामने से अपना काला चेहरा लिए आ धमके.

दरअसल, जब कपिलजी को लगा कि उन का चेहरा अब पूरी तरह से काजल की कोठरी में रहतेरहते काला हो गया है तो वे रमेश के पास काले चेहरे को गोरा करने की सलाह लेने आए.

गोरेपन की क्रीमों के जाल में रमेश को उलझा हुआ देखने के बाद भी वे उस की पीड़ा की परवाह किए बिना बोले, ‘‘यार, मैं देख रहा हूं कि आजकल तेरा काला चेहरा कुछकुछ गोरा हो रहा है. इन दिनों काले चेहरे पर किस बाबा की गोरेपन की क्रीम लगा रहा है तू?’’

रमेश ने अपने मन की पीड़ा को दबाए हुए उस काले चेहरे वाले दोस्त से कहा, ‘‘दोस्त, स्वदेशी गोरेपन की क्रीम से अपने भक्तों का चेहरा गोरा करने वाले तो आजकल अपना ही चेहरा काला किए रोज जेलों की हवा खा रहे हैं. ऐसे में सूझ नहीं रहा कि…’’

रमेश ने गोरेपन की क्रीमों के तमाम ब्रांडों को कोसते हुए कहा तो कपिलजी बोले, ‘‘बस यार, देश को बहुत खा लिया अब. बहुत मुंह काला कर लिया. अब तो अपने ही काले चेहरे से घिन आने लगी है. अब तो मरते हुए बस एक ही इच्छा बाकी है कि मरूं तो गोरा चेहरा ले कर मरूं.’’

कपिलजी ने जिस पीड़ा से कहा तो उन के चेहरे से लगा कि उन के मन में चेहरा काला होने का कहीं न कहीं मलाल जरूर है वरना यों ही कोई अपने काले चेहरे को नहीं कोसता, आदमी को यों ही अपने काले चेहरे से घिन नहीं आती.

चलो, मरते हुए ही सही, उन्हें अपने चेहरे के कालेपन का अहसास तो हुआ. दोस्तो, मरते हुए ही सही जो कोई अपने काले चेहरे को गोरा करने की सोचे तो उस चेहरे को काला चेहरा नहीं कहना चाहिए, ठीक उसी तरह जैसे सुबह का भूला जब शाम को घर आ जाए तो उसे भूला हुआ नहीं कहते.

‘‘तो यह गोरेपन की क्रीम कैसी रहेगी?’’ पूछने के तुरंत बाद कपिलजी ने अपनी सदरी की जेब से अखबार में छपा छिछोरेपन… सौरी, गोरेपन की क्रीम का इश्तिहार निकाल कर गोरेपन की क्रीमों के जाल में उलझे रमेश के आगे दरी की तरह बिछा दिया.

रमेश ने गौर से इश्तिहार पढ़ा. क्रीम वाली कंपनी ने सीना तान कर दावा किया था कि चेहरे पर किसी भी वजह से, किसी भी तरह के, कैसे भी दाग हों, हफ्तेभर में साफ. साफ न हों तो पूरे 10 लाख रुपए का इनाम. उस क्रीम के इश्तिहार की बगल में गोरेपन की क्रीम की प्रामाणिकता के लिए बीसियों ऐसे लोगों के फोटो क्रीम लगाने से पहले और उस कंपनी की गोरेपन की क्रीम लगाने के बाद के नामपते समेत छपे थे, जिन्होंने इसे अपने कालिख सने चेहरे पर मला था और

7 दिन बाद ही उन के चेहरे का कालापन यों गोरा हो गया था कि उन्हें भी अपने चेहरे को पहचानने में मुश्किल हो रही थी कि यह चेहरा उन का ही है या स्वर्ग के किसी देवता का. उन के चेहरे की कालिख यों गायब थी ज्यों गधे के सिर से सींग.

दोस्तो, देश में काले चेहरे को गोरा करने के नाम पर जितना काले चेहरे वालों को तो छोडि़ए गोरे चेहरे वालों तक को ठगा जा सकता है, उतना किसी और चेहरे वालों को नहीं.

हम अपने चेहरे को गोरा करने के लिए अनादिकाल से चेहरे पर क्याक्या नहीं मलते आए हैं. आज भी देश में हर कोई चाहता है कि उस का चेहरा चांद से भी गोरा हो, इसीलिए देश में काले चेहरों के उद्धार के लिए एक से एक गोरेपन की क्रीमों ने अपनी पतली कमर कसी हुई है.

अपने काले चेहरे को गोरा करतेकरते भले ही चेहरे वालों की कमर ढीली हो जाए तो हो जाए, पर गोरेपन की क्रीम बेचने वाले अपनी कमर जरा भी ढीली नहीं होने देते.

गोरेपन की क्रीमों का बाजार आटे के बाजार से भी ज्यादा तेजी से फलफूल रहा है. आदमी को रोटी मिले या न मिले, पर वह अपने चेहरे को हर हाल में गोरा बनाए रखना चाहता है. आदमी को पानी मिले या न मिले, पर वह अपने चेहरे को गोरा बनाए रखना चाहता है तभी तो पाउडर के नाम पर सड़ा आटा मजे से बिक रहा?है.

अब तो सड़क से ले कर संसद तक जिसे देखिए, जहां देखिए, सब सारे काम छोड़ कर अपने चेहरे को चमकाने वाली क्रीमों को अपनी हैसियत के हिसाब से पाउच खरीद कर गोरा बनाने में जुटे हैं.

आखिर रमेश ने कपिलजी का मन रखने के लिए उन्हें अखबार में छपी गोरेपन की क्रीम को लगाने पर मुहर लगा दी तो मुसकराते हुए, गुनगुनाते हुए अपने रास्ते हो लिए.

हफ्तेभर बाद वे मिले तो उन का चेहरा देख कर रमेश दंग रह गया. उन के चेहरे पर बुढ़ापे में भी कीलमुंहासे निकल आए थे. उन के चेहरे की तो छोडि़ए, उन की हरकतें तक अजीबोगरीब थीं. रमेश परेशान. बंदे ने गोरेपन की क्रीम के पैक में बंद चेहरे पर गोरेपन की क्रीम के बदले किस गैंड़े का गोबर मल लिया था?

‘‘बंधु, यह क्या मल लिया चेहरे पर?’’ रमेश ने खुल कर हंसना चाहा, पर नकली दोस्त पर सच्चे दोस्त को हंसना नहीं चाहिए, इसलिए वह मन ही मन हंसा.

‘‘गोरेपन की क्रीम और क्या…’’ जब कपिलजी ने कहा तो रमेश सब समब गया कि बंदा असली बाजार की नकली गोरेपन की क्रीम का शिकार हो गया है.

‘‘अपनी क्रीम तो दिखाना…’’

‘‘अपने चेहरे पर लगानी है क्या? देखो दोस्त, तुम भले ही मेरी जान ले लो, पर इस क्रीम में से एक रत्तीभर भी क्रीम न दूंगा. गोरेपन की क्रीम अपनीअपनी, दोस्ती पक्की,’’ कपिलजी आधी बदतमीजी, पूरे होशोहवास में करते हुए बोले तो रमेश को उन पर रोना आया. बड़ी मिन्नतें करने के बाद उन से गोरेपन की क्रीम ले कर ध्यान से उस में मिलाए गए सामान को पढ़ा तो पता चला कि वह क्रीम गोरेपन की नहीं, बल्कि छिछोरेपन की थी.

Family Story : परीक्षाफल – क्या चिन्मय सपने को साकार कर सका

Family Story : जैसे किसान अपने हरेभरे लहलहाते खेत को देख कर गद्गद हो उठता है उसी प्रकार रत्ना और मानव अपने इकलौते बेटे चिन्मय को देख कर भावविभोर हो उठते थे.

चिन्मय की स्थिति यह थी कि परीक्षा में उस की उत्तर पुस्तिकाओं में एक भी नंबर काटने के लिए उस के परीक्षकों को एड़ीचोटी का जोर लगाना पड़ता था. यही नहीं, राज्य स्तर और राष्ट्रीय स्तर की अन्य प्रतिभाखोज परीक्षाओं में भी उस का स्थान सब से ऊपर होता था.

इस तरह की योग्यताओं के साथ जब छोटी कक्षाओं की सीढि़यां चढ़ते हुए चिन्मय 10वीं कक्षा में पहुंचा तो रत्ना और मानव की अभिलाषाओं को भी पंख लग गए. अब उन्हें चिन्मय के कक्षा में प्रथम आने भर से भला कहां संतोष होने वाला था. वे तो सोतेजागते, उठतेबैठते केवल एक ही स्वप्न देखते थे कि उन का चिन्मय पूरे देश में प्रथम आया है. कैमरों के दूधिया प्रकाश में नहाते चिन्मय को देख कर कई बार रत्ना की नींद टूट जाती थी. मानव ने तो ऐसे अवसर पर बोलने के लिए कुछ पंक्तियां भी लिख रखी थीं. रत्ना और मानव उस अद्भुत क्षण की कल्पना कर आनंद सागर में गोते लगाते रहते.

चिन्मय को अपने मातापिता का व्यवहार ठीक से समझ में नहीं आता था. फिर भी वह अपनी सामर्थ्य के अनुसार उन्हें प्रसन्न रखने की कोशिश करता रहता. पर तिमाही परीक्षा में जब चिन्मय के हर विषय में 2-3 नंबर कम आए तो मातापिता दोनों चौकन्ने हो उठे.

‘‘यह क्या किया तुम ने? अंगरेजी में केवल 96 आए हैं? गणित में भी 98? हर विषय में 2-3 नंबर कम हैं,’’ मानव चिन्मय के अंक देखते ही चीखे तो रत्ना दौड़ी चली आई.

‘‘क्या हुआ जी?’’

‘‘होना क्या है? हर विषय में तुम्हारा लाड़ला अंक गंवा कर आया है,’’ मानव ने रिपोर्ट कार्ड रत्ना को थमा दिया.

‘‘मम्मी, मेरे हर विषय में सब से अधिक अंक हैं, फिर भी पापा शोर मचा रहे हैं. मेरे अंगरेजी के अध्यापक कह रहे थे कि उन्होंने 10वीं में आज तक किसी को इतने नंबर नहीं दिए.’’

‘‘उन के कहने से क्या होता है? आजकल बच्चों के अंगरेजी में भी शतप्रतिशत नंबर आते हैं. चलो, अंगरेजी छोड़ो, गणित में 2 नंबर कैसे गंवाए?’’

‘‘मुझे नहीं पता कैसे गंवाए ये अंक, मैं तो दिनरात अंक, पढ़ाई सुनसुन कर परेशान हो गया हूं. अपने मित्रों के साथ मैं पार्क में क्रिकेट खेलने जा रहा हूं,’’ अचानक चिन्मय तीखे स्वर में बोला और बैट उठा कर नौदो ग्यारह हो गया.

मानव कुछ देर तक हतप्रभ से बैठे शून्य में ताकते रह गए. चिन्मय ने इस से पहले कभी पलट कर उन्हें जवाब नहीं दिया था. रत्ना भी बैट ले कर बाहर दौड़ कर जाते हुए चिन्मय को देखती रह गई थी.

‘‘मानव, मुझे लगता है कि कहीं हम चिन्मय पर अनुचित दबाव तो नहीं डाल रहे हैं? सच कहूं तो 96 प्रतिशत अंक भी बुरे नहीं हैं. मेरे तो कभी इतने अंक नहीं आए.’’

‘‘वाह, क्या तुलना की है,’’ मानव बोले, ‘‘तुम्हारे इतने अंक नहीं आए तभी तो तुम घर में बैठ कर चूल्हा फूंक रही हो. वैसे भी इन बातों का क्या मतलब है? मेरे भी कभी 80 प्रतिशत से अधिक अंक नहीं आए, पर वह समय अलग था, परिस्थितियां भिन्न थीं. मैं चाहता हूं कि जो मैं नहीं कर सका वह मेरा बेटा कर दिखाए,’’ मानव ने बात स्पष्ट की.

उधर रत्ना मुंह फुलाए बैठी थी. मानव की बातें उस तक पहुंच कर भी नहीं पहुंच रही थीं.

‘‘अब हमें कुछ ऐसा करना है जिस से चिन्मय का स्तर गिरने न पाए,’’ मानव बहुत जोश में आ गए थे.

‘‘हमें नहीं, केवल तुम्हें करना है, मैं क्या जानूं यह सब? मैं तो बस, चूल्हा फूंकने के लायक हूं,’’ रत्ना रूखे स्वर में बोली.

‘‘ओफ, रत्ना, अब बस भी करो. मेरा वह मतलब नहीं था, और चूल्हा फूंकना क्या साधारण काम है? तुम भोजन न पकाओ तो हम सब भूखे मर जाएं.’’

‘‘ठीक है, बताओ क्या करना है?’’ रत्ना अनमने स्वर में बोली थी.

‘‘मैं सोचता हूं कि हर विषय के लिए एकएक अध्यापक नियुक्त कर दूं जो घर आ कर चिन्मय को पढ़ा सकें. अब हम पूरी तरह से स्कूल पर निर्भर नहीं रह सकते.’’

‘‘क्या कह रहे हो? चिन्मय कभी इस के लिए तैयार नहीं होगा.’’

‘‘चिन्मय क्या जाने अपना भला- बुरा? उस के लिए क्या अच्छा है क्या नहीं, यह निर्णय तो हमें ही करना होगा.’’

‘‘पर इस में तो बड़ा खर्च आएगा.’’

‘‘कोई बात नहीं. हमें रुपएपैसे की नहीं चिन्मय के भविष्य की चिंता करनी है.’’

‘‘जैसा आप ठीक समझें,’’ रत्ना ने हथियार डाल दिए पर चिन्मय ने मानव की योजना सुनी तो घर सिर पर उठा लिया था.

‘‘मुझे किसी विषय में कोई ट्यूशन नहीं चाहिए. मैं 5 अध्यापकों से ट्यूशन पढ़ूंगा तो अपनी पढ़ाई कब करूंगा?’’ उस ने हैरानपरेशान स्वर में पूछा.

‘‘5 नहीं केवल 2. पहला अध्यापक गणित और विज्ञान के लिए होगा और दूसरा अन्य विषयों के लिए,’’ मानव का उत्तर था.

‘‘प्लीज, पापा, मुझे अपने ढंग से परीक्षा की तैयारी करने दीजिए. मेरे मित्रों को जब पता चलेगा कि मुझे 2 अध्यापक घर में पढ़ाने आते हैं तो मेरा उपहास करेंगे. मैं क्या बुद्धू हूं?’’ यह कह कर चिन्मय रो पड़ा था.

पर मानव को न मानना था, न वह माने. थोड़े विरोध के बाद चिन्मय ने इसे अपनी नियति मान कर स्वीकार लिया. स्कूल और ट्यूशन से निबटता चिन्मय अकसर मेज पर ही सिर रख सो जाता.

मानव और रत्ना ने उस के खानेपीने पर भी रोक लगा रखी थी. चिन्मय की पसंद की आइसक्रीम और मिठाइयां तो घर में आनी ही बंद थीं.

समय पंख लगा कर उड़ता रहा और परीक्षा कब सिर पर आ खड़ी हुई, पता ही नहीं चला.

परीक्षा के दिन चिन्मय परीक्षा केंद्र पहुंचा. मित्रों को देखते ही उस के चेहरे पर अनोखी चमक आ गई, पर रत्ना और मानव का बुरा हाल था मानो परीक्षा चिन्मय को नहीं उन्हें ही देनी हो.

परीक्षा समाप्त हुई तो चिन्मय ही नहीं रत्ना और मानव ने भी चैन की सांस ली. अब तो केवल परीक्षाफल की प्रतीक्षा थी.

मानव, रत्ना और चिन्मय हर साल घूमने और छुट्टियां मनाने का कार्यक्रम बनाते थे पर इस वर्ष तो अलग ही बात थी. वे नहीं चाहते थे कि परीक्षाफल आने पर वाहवाही से वंचित रह जाएं.

धु्रव पब्लिक स्कूल की परंपरा के अनुसार परीक्षाफल मिलने का समाचार मिलते ही रत्ना और मानव चिन्मय को साथ ले कर विद्यालय जा पहुंचे थे. उन की उत्सुकता अब अपने चरम पर थी. दिल की धड़कन बढ़ी हुई थी. विद्यालय के मैदान में मेला सा लगा था. कहीं किसी दिशा में फुसफुसाहट होती तो लगता परीक्षाफल आ गया है. कुछ ही देर में प्रधानाचार्या ने इशारे से रत्ना को अंदर आने को कहा तो रत्ना हर्ष से फूली न समाई. इतने अभिभावकों के बीच से केवल उसे ही बुलाने का क्या अर्थ हो सकता है, सिवा इस के कि चिन्मय सदा की तरह प्रथम आया है. वह तो केवल यह जानना चाहती थी कि वह देश में पहले स्थान पर है या नहीं.

उफ, ये मानव भी ऐन वक्त पर चिन्मय को ले कर न जाने कहां चले गए. यही तो समय है जिस की उन्हें प्रतीक्षा थी. रत्ना ने दूर तक दृष्टि दौड़ाई पर मानव और चिन्मय कहीं नजर नहीं आए. रत्ना अकेली ही प्रधानाचार्या के कक्ष में चली गई.

‘‘देखिए रत्नाजी, परीक्षाफल आ गया है. हमारी लिपिक आशा ने इंटरनेट पर देख लिया है, पर बाहर नोटिसबोर्ड पर लगाने में अभी थोड़ा समय लगेगा,’’ प्रधानाचार्या ने बताया.

‘‘आप नोटिसबोर्ड पर कभी भी लगाइए, मुझे तो बस, मेरे चिन्मय के बारे में बता दीजिए.’’

‘‘इसीलिए तो आप को बुलाया है. चिन्मय के परीक्षाफल से मुझे बड़ी निराशा हुई है.’’

‘‘क्या कह रही हैं आप?’’

‘‘मैं ठीक कह रही हूं, रत्नाजी. कहां तो हम चिन्मय के देश भर में प्रथम आने की उम्मीद लगाए बैठे थे और कहां वह विद्यालय में भी प्रथम नहीं आया. वह स्कूल में चौथे स्थान पर है.’’

‘‘मैं नहीं मानती, ऐसा नहीं हो सकता,’’ रत्ना रोंआसी हो कर बोली थी.

‘‘कुछ बुरा नहीं किया है चिन्मय ने, 94 प्रतिशत अंक हैं. किंतु…’’

‘‘अब किंतुपरंतु में क्या रखा है?’’ रत्ना उदास स्वर में बोली और पलट कर देखा तो मानव पीछे खड़े सब सुन रहे थे.

‘‘चिन्मय कहां है?’’ तभी रत्ना चीखी थी.

‘‘कहां है का क्या मतलब है? वह तो मुझ से यह कह कर घर की चाबी ले गया था कि मम्मी ने मंगाई है,’’ मानव बोले.

‘‘क्या? उस ने मांगी और आप ने दे दी?’’ पूछते हुए रत्ना बिलखने लगी थी.

‘‘इस में इतना घबराने और रोने जैसा क्या है, रत्ना? चलो, घर चलते हैं. चाबी ले कर चिन्मय घर ही तो गया होगा,’’ मानव रत्ना के साथ अपने घर की ओर लपके थे. वहां से जाते समय रत्ना ने किसी को यह कहते सुना कि पंकज इस बार विद्यालय में प्रथम आया है और उसी ने चिन्मय को परीक्षाफल के बारे में बताया था, जिसे सुनते ही वह तीर की तरह बाहर निकल गया था.

विद्यालय से घर तक पहुंचने में रत्ना को 5 मिनट लगे थे पर लिफ्ट में अपने फ्लैट की ओर जाते हुए रत्ना को लगा मानो कई युग बीत गए हों.

दरवाजे की घंटी का स्विच दबा कर रत्ना खड़ी रही, पर अंदर से कोई उत्तर नहीं आया.

‘‘पता नहीं क्या बात है…इतनी देर तक घंटी बजने के बाद भी अंदर से कोई आवाज नहीं आ रही है मानव, कहीं चिन्मय ने कुछ कर न लिया हो,’’ रत्ना बदहवास हो उठी थी.

‘‘धीरज रखो, रत्ना,’’ मानव ने रत्ना को धैर्य धारण करने को कहा पर घबराहट में उस के हाथपैर फूल गए थे. तब तक वहां आसपास के फ्लैटों में रहने वालों की भीड़ जमा हो गई थी.

कोई दूसरी राह न देख कर किसी पड़ोसी ने पुलिस को फोन कर दिया. पुलिस अपने साथ फायर ब्रिगेड भी ले आई थी.

बालकनी में सीढ़ी लगा कर खिड़की के रास्ते फायरमैन ने चिन्मय के कमरे में प्रवेश किया तो वह गहरी नींद में सो रहा था. फायरमैन ने अंदर से मुख्यद्वार खोला तो हैरानपरेशान रत्ना ने झिंझोड़कर चिन्मय को जगाया.

‘‘क्या हुआ, बेटा? तू ठीक तो है?’’ रत्ना ने प्रेम से उस के सिर पर हाथ फेरा था.

‘‘मैं ठीक हूं, मम्मी, पर यह सब क्या है?’’ उस ने बालकनी से झांकती सीढ़ी और वहां जमा भीड़ की ओर इशारा किया.

‘‘हमें परेशान कर के तुम खुद चैन की नींद सो रहे थे और अब पूछ रहे हो यह सब क्या है?’’ मानव कुछ नाराज स्वर में बोले थे.

‘‘सौरी पापा, मैं आप की अपेक्षाओं की कसौटी पर खरा नहीं उतर सका.’’

‘‘ऐसा नहीं कहते बेटे, हमें तुम पर गर्व है,’’ रत्ना ने उसे गले से लगा लिया था. मानव की आंखों में भी आंसू झिलमिला रहे थे. कैसा जनून था वह, जिस की चपेट में वे चिन्मय को शायद खो ही बैठते. मानव को लग रहा था कि जीवन कुछ अंकों से नहीं मापा जा सकता, इस का विस्तार तो असीम, अनंत है.

Short Story : मीनू – एक सच्ची कहानी

Short Story : बात उन दिनों की है, जब मैं मिलिटरी ट्रेनिंग के लिए 3 एमटीआर मडगांव, गोवा गया हुआ था. कुछ दिनों के लिए मिलिटरी अस्पताल, पणजी में मैं अपने पैरदर्द के इलाज के लिए रुका हुआ था.

एक दिन यों ही मैं अपने एक दोस्त साजन के साथ कंडोलिम बीच की तरफ घूमने निकला था. पहले हम मिलिटरी अस्पताल से बस ले कर फैरी टर्मिनल पहुंचे. फिर हम ने पंजिम का मांडोवी दरिया फैरी से पार किया. फिर वहां से हम दोनों कंडोलिम बीच के लिए बस में बैठ गए.

आप को बता दूं कि कंडोलिम बीच पंजिम से 13 किलोमीटर दूर है. साथ ही, यह भी बता दूं कि पणजी को ही आम बोलचाल में पंजिम कहा जाता है.

खैर, हम बस में सवार हो चुके थे. हम 3 सवारी वाली सीट पर बैठ गए थे. तीसरी सवारी कोई और थी. वह मर्द था.

मेरा दोस्त साजन शीशे की तरफ वाली सीट पर बैठ गया था. मैं बीच वाली सीट पर बैठ गया.

अचानक मेरी नजर हम से अगली सीट पर बैठी लड़की पर गई. उस पर सिर्फ एक ही सवारी बैठी थी. वह 18-19 साल की लड़की थी. उस का रंग सांवला था. उस के हाथ में गोवा मैडिकल कालेज और अस्पताल का कार्ड था. कार्ड पर उस का नाम मीनू लिखा हुआ था.

मैं ने अचानक ही पूछ लिया, ‘‘आप जीएमसी से आ रही हैं?’’

उस ने कहा, ‘‘हां.’’

मैं ने कहा, ‘‘मैं भी इलाज के लिए जीएमसी में जाता रहता हूं.’’

मैं ने एकदम पूछ लिया, ‘‘आप को क्या हुआ है?’’

वह बोली, ‘‘छाती में दर्द है.’’

मैं ने अफसोस में कहा, ‘‘ओह.’’

फिर उस ने पूछा, ‘‘आप कहां जा रहे हैं?’’

मैं ने कहा, ‘‘हम भारतीय सेना में हैं. मैं अपने दोस्त साजन को कंडोलिम बीच दिखाने ले जा रहा हूं.’’

वह लड़की मेरे साथ बात करने में खुशी महसूस कर रही थी, इसलिए मैं बातें जारी रखना चाहता था. फिर मैं ने पूछा, ‘‘क्या आप भी कंडोलिम बीच पर जा रही हैं?’’

उस ने जवाब में कहा, ‘‘नहीं, रास्ते में मेरा गांव है. मैं वहां जा रही हूं.’’

अब मीनू मुझे अपनी सी लगने लग गई थी. मैं भी उस के सपने देखने लगा था. उस की भावनाएं भी शायद कुछ ऐसी ही होंगी. उस उम्र में हर लड़कालड़की के मन में अपने एक जीवनसाथी की तलाश रहती है.

मीनू बोली, ‘‘आगे आ जाइए.’’

उस के साथ वाली सीट खाली थी. वह फिर बोली, ‘‘आप को बात करने में दिक्कत आ रही है, आगे आ जाइए.’’

मेरा दोस्त साजन बोला, ‘‘जाओ, आगे चले जाओ.’’

मैं आगे जा कर मीनू के साथ वाली सीट पर बैठ गया.

वह बोली, ‘‘तुम्हारा दोस्त अकेला रह गया. उसे भी बुला लो.’’

मैं ने साजन से आगे आने के लिए कहा. पर उस ने कहा कि कोई बात नहीं, आप अपनी बातें करो.

मैं ने मीनू को अपनेपन से कहा, ‘‘आप भी हमारे साथ बीच पर चलो. हमें भी बीच घुमा लाओ.’’

उस ने कहा, ‘‘जी नहीं, मैं नहीं जा सकती. मेरा घर जाना जरूरी है.’’

इतने में कंडक्टर आ गया. मैं ने उस से कहा, ‘‘2 टिकट कंडोलिम बीच के और एक टिकट…’’

उस के गांव का नाम मेरे मुंह में ही रह गया. उस ने बात मेरे मुंह से छीनते हुए कहा, ‘‘3 टिकट कंडोलिम बीच…’’

फिर वह मेरी तरफ मुंह घुमा कर बोली, ‘‘कोई बात नहीं, मैं तुम्हारे साथ ही चलती हूं. जल्दी वापस आ जाएंगे.’’

मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा.

हम जल्दी ही कंडोलिम बीच पहुंच गए. हम वहां पर घूमे, खाना खाया और इधरउधर की बातें कीं.

मैं ने मीनू से पूछा, ‘‘आप के पिताजी क्या काम करते हैं?’’

उस ने जवाब दिया, ‘‘मेरे डैडी मजदूरी करते हैं. मेरी मम्मी घरों में बरतन धोने का काम करती हैं. मैं एक गारमैंट्स स्टोर पर काम करती हूं और साथ में बरतन धोने का काम भी करती हूं.’’

मीनू ने यह भी बताया कि एक उस की बड़ी बहन है, जो शादीशुदा है और पणजी में अपने पति के साथ रहती है. उस के मम्मीडैडी कोल्हापुर से यहां आ कर बसे हुए हैं. बिना संकोच किए उस ने सबकुछ साफसाफ बता दिया था.

उस समय मेरी उम्र 23 साल थी और उस की उम्र 19 साल थी. उम्र का अंतर ठीक था.

मैं ने पूछा, ‘‘आप कितना पढ़ीलिखी होंगी?’’

उस ने बताया कि वह एसएससी पास है.

वैसे, मेरी पढ़ाई उस से काफी ज्यादा थी, पर चूंकि हमारे दिल मिल चुके थे, इसलिए सबकुछ ठीक लग रहा था. फिर हम एक होटल में कुछ देर के लिए रुके. हम एक हो गए थे.

अब हमें लौटना था. मैं चाहता था कि मेरे बाकी आर्मी के दोस्त भी अपनी भाभी को देख लें. मैं बहुत जोश में था. अब मैं अकेला नहीं था. मैं ने उस से कहा कि मेरे साथ मिलिटरी अस्पताल चले. वह बोली, ‘‘ठीक है.’’

मीनू मेरे साथ मिलिटरी अस्पताल आई. मैं ने अपने दोस्तों को उन की भाभी दिखाई. उस ने खुद हमारे कर्नल साहब से बात की. उस के बाद वह वापस चली गई.

एक दिन बाद ही मुझे मडगांव सैंटर जाना था. मैं ने मीनू को वहां का पता लिख कर दे दिया था.

मैं मडगांव सैंटर चला गया था. मीनू की बहुत याद आ रही थी. उस का खत आ गया. वह भी उदास थी. वह मुझ से मिलना चाहती थी. उस ने लिखा कि मैं उस को जीएमसी, पणजी में 10 तारीख को 12 बजे मिलूं.

मैं ने उसे जवाब दिया कि मैं भी बहुत उदास हूं. मुझे भी तुम्हारी बहुत याद आ रही है. मैं जीएमसी, पणजी आ रहा हूं. वहां मेरे पैर का आपरेशन है. आप से भी मिल लूंगा.

उस के आने के एक दिन पहले मेरे पैर का आपरेशन हो गया था. मैं वार्ड में भरती था. जब उस ने मेरा नाम ले कर इनक्वायरी पर पता किया, तो स्टाफ ने मुझ से मिला दिया. मिलने के लिए उसे कम समय दिया गया था.

मैं ने उसे बताया कि मैं परमानैंट डिसएबल्ड हो गया हूं. अब मुझे नौकरी छोड़नी होगी और मजबूरन अपने घर पंजाब जाना होगा.

मुझे नौकरी छूट जाने का गम था. मन में बहुत सी बातें घूम रही थीं कि बिना नौकरी के मेरा कैसे गुजारा होगा, मीनू को कहां रखूंगा. क्या करूं? वापस अपने घर पंजाब चला जाऊं या यहीं रह कर कुछ कामधंधा करूं?

वह मुझ से मिल कर जल्दी चली गई. मैं और उदास हो गया था. उस के अगले दिन मैं अपने मडगांव सैंटर चला गया.

एक हफ्ते बाद टांके कटवाने के लिए जीएमसी आया था और टांके कटवा कर वापस मडगांव सैंटर चला गया था. नौकरी से डिस्चार्ज के कागज तैयार हो गए थे. पैंशन नहीं लगी थी, क्योंकि मैडिकल बोर्ड ने डिसएबल्टी की वजह ट्रेनिंग नहीं लिखी थी.

मैं अपने घर पंजाब नहीं जाना चाहता था. जिस के साथ मैं नई जिंदगी बसाने के सपने देख रहा था, उसे कैसे छोड़ कर जाता. नौकरी छोड़ कर गरीब मातापिता को कैसे मुंह दिखाता. पैसे से हाथ खाली थे. कोई छोटामोटा कमरा या घर भी तो किराए पर नहीं ले सकता था. सेहत भी ठीक नहीं थी, जिस वजह से कोई काम भी नहीं कर सकता था.

मैं ने सोचा कि कोई न कोई काम करने की कोशिश करनी चाहिए. कर्नल साहब की सिफारिश पर मुझे एक पैट्रोल पंप पर नौकरी मिल गई. पहले ही दिन काम कर के देखा था. शरीर साथ नहीं दे रहा था. मन भी उदास था.

शाम को बस में बैठ कर मैं मीनू के गांव की तरफ चल पड़ा. उस के गांव उतर कर मैं वहीं बैठ गया. वहां से उस के गांव जाने के लिए थोड़ा पैदल रास्ता था. कदम आगे जाने से रुक गए थे. मन कोई फैसला नहीं ले पा रहा था कि क्या करूं.

इतने में वापसी की बस आ कर रुकी. मैं बिना कुछ सोचे ही उस बस में बैठ गया. वहां से पणजी, पणजी से मडगांव सैंटर पहुंच गया. अगले दिन रेलवे का टिकट वारंट लिया और वापस अपने घर पंजाब के लिए चल पड़ा उदास मन ले कर.

आज मेरी उम्र 50 साल से ऊपर हो गई है. उस को मैं एक पल के लिए भी नहीं भूल पाया हूं. मीनू के साथ बिताया एकएक पल मुझे ऐसे याद रहता है, जैसे कल की ही बात हो.

(यह कहानी एक सच्ची घटना पर लिखी गई है. पात्रों के नाम व जगह बदल दी गई है)  

Family Story : रिश्ता – जिस्मानी रिश्तों की कड़वी हकीकत

Family Story : रात के 2 बजे अचानक विमला की नींद जो टूटी, तो बिस्तर पर पति मनोज को न पा कर चिंता में पड़ गई. ‘शायद वह बाथरूम गया होगा,’ उस ने सोचा. मगर 15 मिनट बाद भी मनोज नहीं आया, तो वह फिर से चिंता में पड़ गई. मन नहीं माना, तो उसे ढूंढ़ने बैडरूम से बाहर चली गई.

मनोज बाथरूम में नहीं था. रसोईघर में भी नहीं था. बालकनी में भी नहीं था.

अपनी सौतेली बेटी सरिता के कमरे के दरवाजे के पास खड़ी हो कर विमला सोचने लगी, ‘मनोज घर में नहीं है. मकान का मेन दरवाजा भी अंदर से बंद है. फिर गया कहां वह?’

तभी सरिता के कमरे से उसे मनोज की आवाज सुनाई पड़ी. वह कह रहा था, ‘तुम्हें विमला से डरने की कोई जरूरत नहीं है. मैं हूं न. तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकता हूं. तुम बेखौफ हो कर मेरी बांहों में आ जाओ.’ ‘मुझे आप पर भरोसा है, तभी तो मैं अपना जिस्म आप को सौंपने के लिए तैयार हो गई हूं,’ यह आवाज सरिता की थी.

यह सुन कर विमला सन्न रह गई. पिछले कई दिनों से मनोज और सरिता की हरकतें देखदेख कर उसे यह शक हो गया था कि दोनों में कुछ चल रहा है, मगर वह विश्वास नहीं कर पा रही थी. अब दोनों के रिश्तों की सचाई समझते उसे देर नहीं लगी.

एक बार विमला का मन हुआ कि दोनों को रंगे हाथ पकड़ ले, मगर कुछ सोच कर वह रुक गई और बगैर कुछ कहे अपने बैडरूम में लौट गई और मनोज के आने का इंतजार करने लगी.

विमला को जब मनोज से प्यार हुआ था, उस समय यह पता नहीं था कि उस की तरह वह भी गरीब परिवार से है. मनोज जब भी उस से मिलता था, शानदार और कीमती कपड़े पहना रहता था. इस से उसे लगा था कि वह अमीर बाप का बेटा होगा.

विमला को उस दिन सचाई का पता चला, जब एक दिन उस ने मनोज से कहा, ‘हम दोनों एक साल से एकदूसरे से बराबर मिलतेजुलते हैं, मगर तुम ने आज तक मुझे बताया नहीं कि तुम्हारे पिता करते क्या हैं और परिवार में कौनकौन हैं?’

‘तुम ने कभी पूछा ही नहीं, इसलिए बताया नहीं. आज पूछ रही हो तो बता दे रहा हूं. मेरे पिता लौंड्री चलाते हैं. इस के सिवा उन के पास और कोई जायदाद नहीं है. हमारा अपना मकान भी नहीं है. हम किराए के मकान में रहते हैं.

‘परिवार में मातापिता के अलावा मेरी 2 छोटी बहनें हैं. एक 7वीं में पढ़ती है और दूसरी 5वीं में.

‘लौंड्री से जो आमदनी होती है, उस से बड़ी मुश्किल से हमारा गुजारा होता है. मैं कुछ बच्चों को ट्यूशन दे कर अपनी पढ़ाई का खर्च निकालता हूं.

‘लेकिन तुम किसी बात की चिंता मत करो. मैं ने पहले भी कहा था, फिर कहता हूं कि तुम से तभी शादी करूंगा, जब मुझे कोई अच्छी सी नौकरी मिल जाएगी.’

मनोज की सचाई जान कर विमला चौंक गई थी. उस के दिल को धक्का लगा था. उसे लगा कि किसी अमीर लड़के से शादी कर के सुखी जिंदगी जीने का उस ने जो सपना देखा था, मनोज के साथ शादी कर के कभी पूरा नहीं होगा, इसलिए उस ने मनोज से साफसाफ बात करने का फैसला किया.

‘ग्रेजुएशन पूरी करने में अभी एक साल बाकी है. उस के बाद तुम्हें नौकरी कब मिलेगी, इस की कोई गारंटी नहीं है. 1-2 साल भी लग सकते हैं और 4-5 साल भी.’ ‘मुझे नहीं लगता कि तब तक मेरे पिता मुझे कुंआरी रहने देंगे. वे तो अभी से मेरे लिए लड़का ढूंढ़ रहे हैं.

‘तुम ने अपने घर की जो हालत बताई है, उस से तुम चाह कर भी अभी मुझ से शादी नहीं कर सकते, इसलिए मेरे खयाल से तुम्हें मुझे भूल जाना होगा,’ बात खत्म करते ही विमला ने सिर झुका लिया. ‘यह सच है विमला कि मैं चाह कर भी अभी तुम से शादी नहीं कर सकता. मेरे घर की हालत बहुत ही खराब है.

‘मेरे बदन पर तुम जो शानदार कपड़े देखा करती हो, वे सब मेरे नहीं, बल्कि मेरे पिता की लौंड्री के किसी न किसी ग्राहक के होते हैं…’ थोड़ी देर चुप रह कर मनोज ने फिर कहा, ‘मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं विमला. अगर तुम मेरे ग्रेजुएट होने तक रुक जाती, तो बहुत अच्छा होता.’

‘मैं भी तुम्हें बहुत प्यार करती हूं, मगर मेरे वश में कुछ नहीं है. मेरे पिता मेरा हाथ जिस के हाथ में देंगे, मैं उस के साथ शादी कर के चली जाऊंगी.’

मनोज कुछ और कहता, उस से पहले विमला चली गई. मनोज हैरान रह गया. बात यह थी कि विमला ने बचपन से अपने मातापिता को बहुत ही गरीबी में देखा था. भाईबहनों को भूख से बिलखते देखा था, इसलिए होश संभालते ही उस ने सोच लिया कि वह किसी भी सूरत में किसी गरीब लड़के से शादी नहीं करेगी.

विमला के पिता ने मजदूरी कर के अपने परिवार को पाला था. विमला अपने सभी भाईबहनों में बड़ी थी. किसी तरह 10वीं तक पढ़ाई पढ़ने के बाद पैसे की कमी के चलते विमला की पढ़ाई उस के पिता ने छुड़ा दी थी. तब से वह घर के काम में मां का हाथ बंटाती थी.

मनोज से विमला की मुलाकात तकरीबन एक साल पहले एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में हुई थी. उस में मनोज ने अपने कालेज की तरफ से गाना गाया था.

विमला को उस का गाना बहुत पसंद आया था. अपनी सहेलियों के साथ उस के पास जा कर उसे बधाई दी थी. विमला से मनोज काफी प्रभावित हुआ. उस की खूबसूरती पर वह फिदा भी हुआ.

अगले 3-4 दिनों के बाद भी मनोज विमला को न भूल सका, तो अपने दिल का हाल उसे बताने का फैसला किया. कुछ दिनों की कोशिश के बाद उस ने विमला के घर का पता लगा लिया. फिर उस की सहेली रचना की मदद से एक दिन उस ने मुलाकात की.

अपने दिल की बेकरारी बताने के बाद मनोज ने विमला से कहा, ‘अभी मैं ग्रेजुएशन कर रहा हूं. मेरा इरादा ग्रेजुएशन के बाद शादी करने का है.

‘अगर तुम मेरा प्यार स्वीकार कर लोगी, तो मेरी जिंदगी कामयाब हो जाएगी. तुम मुझ पर विश्वास करो. मैं तुम्हें हमेशा अपनी पलकों पर बैठा कर रखूंगा.’

पहली नजर में ही विमला को भी मनोज से प्यार हो गया था, इसलिए बगैर देर किए उस के प्यार को स्वीकार कर लिया. चाह कर भी उस समय उस ने उस के घर वालों के बाबत कोई पूछताछ नहीं की थी.

उस दिन के बाद से दोनों ही एकदूसरे से बराबर मिलनेजुलने लगे थे. विमला समझती थी कि मनोज अमीर परिवार से है, इसलिए वह उस से शादी कर के सुखी जिंदगी जीने का सपना देखने लगी थी. एक दिन विमला की मां ने उसे बताया कि उस के पिता उस के लिए लड़का ढूंढ़ रहे हैं, जल्दी ही उस की शादी हो जाएगी, तो उस ने मनोज के मन की थाह लेने का निश्चय किया.

फिर उस दिन वह मनोज से मिली, तो उस के पिता का काम और परिवार के बारे में पूछ लिया. जब उसे पता चला कि मनोज भी उसी की तरह गरीब है, तो उस ने मनोज से रिश्ता तोड़ लेने का फैसला किया.

उस दिन के बाद विमला ने मनोज से मिलनाजुलना बंद कर दिया. हालांकि मनोज उस से मिलने की कोशिश करता रहता था.

इस तरह 4 महीने बीत गए. उस के बाद मां से विमला को पता चला कि उस के पिता ने उस के लिए लड़का ढूंढ़ लिया है. लड़का मजदूर है और बिना दहेज लिए उस से शादी करेगा.

विमला ने शादी करने से मना कर दिया. उस ने मां को साफसाफ बताया कि वह किसी गरीब लड़के से शादी नहीं करेगी. जब भी शादी करेगी अमीर लड़के से ही करेगी.

मातापिता ने उसे खूब समझाया, मगर विमला के कान पर जूं तक नहीं रेंगी. आखिरकार पिता ने शादी तोड़ दी.

एक साल बाद विमला के पिता को उस के जानने वाले ने एक प्रस्ताव दिया. उस परिचित के एक रिश्तेदार की पत्नी की मौत तकरीबन 6 महीने पहले हो गई थी. उस की 12 साल की एक बेटी थी. बेटी की परवरिश के लिए वह विमला से शादी करना चाहता था. बेटी का नाम सरिता था.

शहर में उस का अपना मकान था और कपड़े की एक दुकान थी. वह हर तरह से सुखी था. उस में एक ही कमी थी कि उस की उम्र 40 पार कर गई थी.

विमला 20 साल की थी, इसलिए उस के पिता ने प्रस्ताव खारिज कर दिया, मगर विमला न कर सकी. उस ने जिद की, तो मजबूर हो कर पिता ने अधेड़ सकलदेव से उस की शादी कर दी.

सुहागरात में पलंग पर विमला के पास बैठ कर सकलदेव ने कहा, ‘तुम कभी यह मत समझना कि मैं ने हवस शांत करने के लिए शादी की है.

‘मैं ने अपनी बेटी सरिता के लिए शादी की है. मुझे विश्वास है कि जिंदगीभर तुम उसे सगी मां की तरह प्यार करती रहोगी.

‘अगर सरिता ने कभी तुम्हारी शिकायत की, तो उस का अंजाम तुम्हें भुगतना पड़ेगा.’

पति का प्यार पाने के लिए विमला का जो दिल बल्लियों उछल रहा था, वह पर कटे कबूतर की तरह फड़फड़ा कर रह गया. उस के बाद सकलदेव ने उस से कोई बात नहीं की. चुपचाप वहशी दरिंदे की तरह वह उस पर टूट पड़ा.

सकलदेव ने कहा था कि उस ने हवस शांत करने के लिए शादी नहीं की थी, जबकि वह हर रोज रात को बिस्तर पर वहशी जानवर की तरह विमला पर जुल्म करता था.

इतना ही नहीं, वह शक्की भी था. महल्ले में कभी विमला किसी मर्द से बात कर लेती, तो वह गालियां देते हुए उस की पिटाई कर देता था.

सारा दिन घर का काम करना, पति की गालियां सुनना और रात में पति की वासना शांत करना, यही विमला की दिनचर्या थी. इस तरह 3 साल बीत गए.

धीरेधीरे विमला अंदर ही अंदर घुटने लगी और इस से नजात पाने का रास्ता ढूंढ़ने लगी. अब तक उस की समझ में यह आ गया था कि सकलदेव अपनी वासना तो शांत कर सकता था, मगर उसे कभी मां नहीं बना सकता था. न ही उस की प्यास बुझा सकता था. कोई रास्ता ढूंढ़ पाती, उस से पहले अचानक सकलदेव को कैंसर हो गया.

इलाज का दौर शुरू हुआ, तो 2 साल में सारी जमापूंजी खत्म हो गई. दुकान भी बिक गई. सिर्फ मकान रह गया था.

घर चलाने के लिए सकलदेव की रजामंदी से विमला को एक दफ्तर में नौकरी करनी पड़ी.

फिर भी सकलदेव ने उस पर शक करना बंद नहीं किया. जिस किसी दिन घर लौटने में जरा सी देर हो जाती, तो वह यह कहे बिना नहीं रहता, ‘किसी यार का बिस्तर गरम करने लगी थी क्या, जो इतनी देर हो गई?’

विमला कुछ कहती नहीं थी. होंठ सिल कर बेइज्जती का घूंट पी कर रह जाती थी.

विमला का कई बार मन हुआ था कि वह किसी नौजवान से शादी कर ले, मगर दिल नहीं माना था.

विमला हर हाल में पति के साथ वफा करना चाहती थी, इसीलिए चाह कर भी वह उस का साथ नहीं छोड़ पा रही थी.

विमला चाहती थी कि मकान न बिके और सकलदेव अच्छा हो जाए, मगर उस का सोचा नहीं हुआ. अच्छे इलाज के लिए मकान भी बेचना पड़ा.

पति और सरिता के साथ विमला को किराए के मकान में जाना पड़ा. इस के बावजूद वह पति को बचा न सकी. भरी जवानी में वह विधवा हो गई. उस के नाजुक कंधों पर जवान सरिता का बोझ भी आ गया.

विमला दिनरात यह सोचने लगी कि क्या उसे सकलदेव की विधवा बन कर सरिता की परवरिश करनी होगी या उस की जिम्मेदारी उठाते हुए पूरी जिंदगी गुजार देनी चाहिए या फिर सरिता को उस के हाल पर छोड़ कर किसी दूसरे मर्द का दामन थाम कर नई जिंदगी की शुरुआत करनी चाहिए?

विमला कुछ फैसला कर पाती, उस से पहले एक दिन अचानक उस के घर मनोज आ गया.

शादी के बाद विमला मनोज को एकदम से भूल गई थी. उसे देख कर वह हैरान हुए बिना न रह सकी.

विमला को हैरत में देख मनोज ने ही कहा, ‘तुम मुझे भूल सकती हो, मगर मैं तुम्हें कैसे भूल सकता हूं?’

‘तुम्हारी शादी हो गई थी, इसी वजह से मैं ने तुम से मिलने की कभी कोशिश नहीं की. मगर तुम्हारी सहेली रचना से बराबर तुम्हारी खबर लेता रहता था.’

‘ग्रेजएशन होते ही मुझे कोलकाता में नौकरी मिल गई. मेरे घर वालों ने मेरी शादी करने की बहुत कोशिश की, पर मैं ने नहीं की. मैं ने दिल तुम्हें दिया है, फिर किसी और से कैसे शादी करता?

‘कुछ दिन पहले रचना से पता चला कि तुम विधवा हो गई हो. मुझे काफी दुख हुआ. मुझ से रहा नहीं गया, तो तुम से मिलने चला आया.

‘जो होना था, सो हो गया. अब तुम्हें अपने बारे में सोचना है. अगर तुम्हें बुरा न लगे, तो शादी कर के तुम मेरे साथ कोलकाता चलो.’

मनोज का प्यार पा कर विमला खुश हो गई. वह उस से बोली, ‘तुम मुझे अब भी चाहते हो?’

‘मैं ने बताया न कि तुम मेरी धड़कन हो. मुझ से शादी करो या न करो, जिंदगीभर मैं तुम्हें प्यार करता रहूंगा. अपनी जिंदगी में किसी और लड़की को शामिल नहीं होने दूंगा.’

विमला खुशी से मनोज से लिपट गई और बोली, ‘‘मैं नहीं जानती थी कि तुम मुझे इतना प्यार करते हो. मैं तुम से शादी करने के लिए तैयार हूं, मगर मेरी एक विनती है.’

‘विनती नहीं, तुम आदेश दो. मैं तुम्हें इतना ज्यादा प्यार करता हूं कि किसी बात के लिए मना नहीं कर सकता.’

‘मेरे सिवा सरिता का कोई नहीं है, इसलिए मैं उसे अपने साथ ही रखना चाहती हूं. उस की शादी की जिम्मेदारी भी मैं तुम्हें सौंपना चाहती हूं.’

कुछ सोच कर मनोज ने विमला की बात मान ली. फिर वह यह कह कर चला गया कि घर वालों से शादी की बात कर के 15 दिन बाद आएगा.

15 दिन बाद मनोज आया, तो उस ने विमला को बताया कि उस के घर वाले उसे अपने घर की बहू बनाने के लिए तैयार नहीं हैं. मगर वह हर हाल में उस से शादी करेगा और सरिता की शादी की जिम्मेदारी उठाएगा.

मनोज ने ऐसा किया भी. अपने घर वालों से नाता तोड़ कर विमला से शादी की, फिर उस के साथ सरिता को भी कोलकाता ले आया. कोलकाता में 3 कमरे का एक फ्लैट किराए पर मनोज ने पहले से ही ले रखा था.

विमला को मनोज पर पूरा विश्वास था. मनोज भी उसे प्यार करता था. इस तरह 2 साल बड़े आराम से बीत गए. इस बीच विमला पेट से भी हुई, मगर मनोज ने यह कह कर उस का पेट गिरवा दिया कि बच्चे की जिम्मेदारी वह सरिता की शादी के बाद उठाएगा.

विमला ने ऐसा कभी नहीं सोचा था कि मनोज कभी उस के साथ बेवफाई भी करेगा. 2 घंटे बाद मनोज बैडरूम में आया. विमला को जगा देख वह चौंक गया.

वह कुछ कहता, उस से पहले विमला ही बोली, ‘‘मैं जानती हूं कि इस समय तुम सरिता के साथ अपना मुंह काला कर के आ रहे हो. मैं सिर्फ यह जानना चाहती हूं कि तुम ने मुझे धोखा क्यों दिया? मेरे प्यार में क्या कमी थी?’’

कुछ सोचने के बाद मनोज ने कहा, ‘‘अब मैं तुम्हें धोखे में नहीं रखना चाहता, इसलिए मेरी बात अच्छी तरह से सुन लो.

‘‘दरअसल बात यह है कि सरिता मुझे चाहने लगी थी. वह मुझ से संबंध बनाना चाहती थी. मेरा दिल भी अचानक उस पर आ गया और मैं ने उस के साथ जिस्मानी संबंध बना लिया.

‘‘तुम मेरी पत्नी बने रहना चाहती हो, तो हमारा विरोध करने की कोशिश मत करना.

‘‘मैं वादा करता हूं कि जल्दी ही उस की शादी किसी अच्छे लड़के से कर दूंगा, तब तक तुम्हें सबकुछ अपनी आंखों से देखना और सहना पड़ेगा.’’

उस के बाद मनोज चुपचाप बिस्तर पर लेट गया. थोड़ी देर बाद वह करवट बदल कर सो भी गया.

विमला असहाय हो गई. मनोज को छोड़ कर वह जाती तो कहां जाती? सरिता भी तो अब उस के साथ नहीं थी. अकेले घर कैसे बसाएगी वह?

Family Story : ऐसा कोई सगा नहीं

Family Story : बबलूराम खुद चल कर शादी का प्रस्ताव लाए हैं. इतने बड़े घर में संबंध होने की बात से संतोषीलाल का परिवार फूला नहीं समा रहा था.

चूंकि 2 साल पहले ही बबलूराम की पत्नी की मौत हो चुकी थी, इसलिए घर में सासननद नाम का कोई  झं झट नहीं था. यह दूसरी बड़ी बात थी. यह भी तय ही था कि शादी के बाद उन की लड़की गोपी ही घर की सर्वेसर्वा रहेगी. ऐसे प्रस्ताव को नकारना बेवकूफी ही होगी.

बबलूराम पर कई हत्याओं के आरोप थे और विरोधी भी उन के करैक्टर पर उंगलियां उठाते रहते थे, पर संतोषीलाल ने अपने घर वालों का मुंह यह कह कर बंद कर दिया था, ‘‘देखो, राजनीति में विरोधियों का काम ही आरोप लगाना है. ऐसा कोई नेता नहीं, जिस पर आरोप न लगे हों. अभी कोर्ट में भी कुछ साबित नहीं हुआ है.

‘‘हो सकता है कि बबलूराम ने आगे बढ़ने के लिए कुछ गलत किया हो, पर हम शादी तो उन के एकलौते लड़के दीपक से कर रहे हैं, जिस का राजनीति से दूरदूर तक कोई वास्ता नहीं है. वह अपनी फैक्टरी चलाता है और उस का राजनीति में आने का अभी कोई इरादा भी नहीं है.

‘‘फैक्टरी से अच्छीखासी आमदनी हो जाती है. अगर कल को बबलूराम को सजा हो भी जाती है तो भी गोपी महफूज रहेगी.’’

गोपी 19 साल की एक खूबसूरत लड़की थी जो कालेज के आखिरी साल का इम्तिहान दे रही थी.

एक शादी समारोह में अच्छी तरह से सजीसंवरी गोपी बेहद ही आकर्षक लग रही थी, वहीं पर बबलूराम ने गोपी को देखा और अपने बेटे दीपक के लिए चुन लिया था.

दीपक की उम्र भी 24 साल है. बबलूराम ने अपनी राजनीतिक प्रतिष्ठा के बल पर उस के लिए एक फैक्टरी डलवा दी है जो अच्छीखासी चलती है. उस शादी में दीपक भी था और उसे भी गोपी बहुत अच्छी लगी थी.

बबलूराम ने दीपक की शादी को तड़कभड़क से दूर रखा था. परिवार के अलावा कुछ चुनिंदा लोगों को ही शादी में बुलाया गया था.

शादी होने के साथ ही आए हुए रिश्तेदार भी अपनेअपने घर को चले गए थे. अब घर में वे तीनों ही रह गए थे और कुछ घरेलू नौकर थे, जो समयसमय पर आते थे.

शुरूशुरू में तो गोपी को सब अच्छा लगा, पर जल्दी ही घर पर अकेलापन उसे खलने लगा.

एक दिन गोपी ने दीपक से कहा, ‘‘मैं घर में अकेले बोर हो जाती हूं. क्यों न मैं भी तुम्हारे साथ फैक्टरी चलूं?’’

‘‘अरे नहीं, कारखाने में कई मजदूर हैं और मजदूरों की सोच तो तुम्हें मालूम ही है. मैं नहीं चाहता कि तुम्हारे बारे में कोई अनापशनाप बोले…’’

दीपक उसे सम झाने लगा, ‘‘और वैसे भी पिताजी के आनेजाने का समय तय नहीं है, इसलिए तुम घर पर ही रहो तो बेहतर रहेगा.’’

शादी के 2 साल पूरे होतेहोते गोपी ने एक बेटे को जन्म दे दिया, जिस का नाम राजन रखा गया.

अब गोपी का ज्यादातर समय राजन के साथ ही बीत जाता और उस के बोर होने की शिकायत दूर हो गई.

राजन अब 4 साल का हो गया था और प्रीनर्सरी स्कूल में जाने लगा था.

अब गोपी की पुरानी समस्या फिर से सिर उठाने लगी थी. एक दिन नाश्ते की टेबल पर जब तीनों बैठे थे, तभी गोपी ने दीपक से कहा, ‘‘मु झे भी फैक्टरी ले जाया करो. मैं यहां अकेली घर पर बोर हो जाती हूं.’’

‘‘देखो गोपी, यह मुमकिन नहीं है. मैं तरहतरह के लोगों से मिलता हूं. सभी लोगों से बात करने का लहजा भी अलग होता है. ऐसे में तुम्हारे वहां बैठने से

मु झे भी परेशानी होगी और तुम भी सहज नहीं रह पाओगी,’’ दीपक गोपी को सम झाते हुए बोला.

‘‘तब तो पापाजी आप ही मु झे राजनीति में शामिल करवा लीजिए. इस बहाने कुछ समाजसेवा भी हो जाएगी और मेरा अकेलापन भी दूर हो जाएगा…’’ गोपी बबलूराम से अनुरोध करते हुए बोली, ‘‘वैसे भी आप सीएम के बाद दूसरे नंबर की पोजीशन पर हैं, इसीलिए आप के लिए कुछ भी नामुमकिन नहीं है.’’

‘‘वह तो ठीक है गोपी, पर राजनीति कई तरह के बलिदान मांगती है. हो सकता है, राजनीति में आने के बाद तुम अपने परिवार… मेरा मतलब है कि दीपक व राजन को पूरा समय न दे पाओ. कभी सुबह जल्दी जाना तो रात में देर से घर आना पड़ सकता है. कई उलटेसीधे काम भी करने पड़ सकते हैं,’’ बबलूराम हंसते हुए बोले.

‘‘अरे पापाजी, घरपरिवार का तो आप को मालूम ही है. दीपक तो महीने में 15 दिन तो टूर पर रहते हैं और मैं घर पर अकेली.

‘‘राजन डे बोर्डिंग में जाता है तो शाम को ही घर आ पाता है. आप खुद भी ज्यादातर बाहर ही रहते हैं, इसलिए मेरे अकेले रहने को तो परिवार नहीं कह सकते न,’’ गोपी बोली.

‘‘पापा ठीक कह रहे हैं गोपी. राजनीति बहुत ज्यादा समर्पण मांगती है,’’ दीपक बोला.

‘‘आप तो रहने ही दो. न फैक्टरी जाने देते हो और न समाजसेवा के लिए राजनीति में. जब तक पापाजी मेरे साथ हैं, मु झे कोई डर नहीं,’’ गोपी बनावटी गुस्से से बोली.

‘‘ठीक है, अगले साल नगरनिगम के चुनाव हैं. हम कोशिश करेंगे कि इस में अच्छा पद पाने की, पर इस के लिए अभी से मेहनत करनी पड़ेगी,’’ बबलूराम बोले.

नाश्ता कर के सभी अपनेअपने कामों में लग गए.

उस शाम बबलूराम जल्दी घर आ गए. तकरीबन 15 मिनट बाद गोपी जब चाय देने के लिए कमरे में गई तो यह देख कर हैरान रह गई कि बबलूराम के कमरे में एक गुप्त अलमारी लगी हुई थी जिस में कई तरह की विदेशी शराब रखी हुई थी.

उसे कमरे में देख कर बबलूराम बोले, ‘‘यह राजनीति का पहला सबक है. एक नेता को अपने चेहरे पर कई चेहरे लगाने पड़ते हैं, इसलिए राजनीति में जो जैसा दिखता है, जैसा बोलता है, वैसा होता नहीं. सम झी?’’

‘‘जी, पापाजी,’’ गोपी कुछ घबरा कर बोली.

‘‘अच्छा, ऐसा करो, इस हरे रंग की बोतल में से एक पैग बना कर मुझे दे दो. उस के बाद फ्रिज में से निकाल कर एक क्यूब बर्फ भी डाल दो और चली जाओ. जब दीपक आ जाए तो मु झे भी खाने पर बुला लेना. और हां, राजन आ गया क्या?’’ बबलूराम ने पूछा.

‘‘जी, आ गया वह,’’ कह कर गोपी ने पैग बना कर बबलूराम को दे दिया.

तकरीबन डेढ़ घंटे बाद दीपक फैक्टरी से आ गया और सभी खाने की टेबल पर इकट्ठा हो गए.

बबलूराम दीपक से बोले, ‘‘आज से गोपी की राजनीतिक तालीम शुरू हो गई है. आज मैं ने उसे सम झाया है कि राजनीति में हर आदमी के एक से ज्यादा चेहरे होते हैं.’’

यह सुन कर सभी हंस दिए. खाना खाते समय दीपक ने बताया कि उसे परसों पूना निकलना पड़ेगा. फैक्टरी का कुछ काम है, इसलिए एक हफ्ते तक वहीं रुकना पड़ेगा.

तय कार्यक्रम के अनुसार दीपक सुबह जल्दी पूना के लिए निकल गया.

नाश्ता करते समय बबलूराम ने गोपी से कहा, ‘‘आज दोपहर 12 बजे तुम पार्टी दफ्तर आ जाना. मैं तुम्हें यहां का नगर अध्यक्ष बनवा दूंगा, ताकि चुनाव लड़ने में कोई दिक्कत नहीं आए.’’

गोपी समय पर पार्टी दफ्तर पहुंच गई, जहां पर बबलूराम ने उसे पार्टी की महिला मोरचे की अध्यक्ष अपने गुरगों के जरीए बनवा दिया. दिनभर जुलूस व रैली का कार्यक्रम चलता रहा. शाम को गोपी घर आ गई, पर बबलूराम पार्टी दफ्तर में ही रुक गए.

रात तकरीबन 9 बजे तक इंतजार करने के बाद गोपी ने खाना खा लिया. बबलूराम तकरीबन 11 बजे घर लौटे और गोपी की तरफ देख कर बोले, ‘‘अब तो तुम खुश हो न?’’

‘‘जी पापाजी, मैं बहुत खुश हूं. आप के लिए खाना लगा दूं क्या?’’ गोपी ने बडे़ ही अपनेपन से पूछा.

‘‘नहीं, मु झे भूख नहीं है. लेकिन मेरा सिर दर्द से फटा जा रहा है. तुम थोड़ी मालिश कर दोगी क्या?’’ बबलूराम ने गोपी से पूछा.

‘‘जी हां, क्यों नहीं,’’ गोपी बोली. ‘‘मैं चेंज कर के आती हूं,’’ गोपी ने गाउन पहन रखा था.

‘‘अरे, नहींनहीं, इस की क्या जरूरत है. 10 मिनट में तो मेरी मालिश हो ही जाएगी. फिर तुम क्यों परेशान होती हो. आ जाओ ऐसे ही,’’ बबलूराम ने कहा.

गोपी सकुचाते हुए बबलूराम के कमरे में चली गई.

बबलूराम अपने बैड पर लेट गए और गोपी हलके हाथ से उन की मालिश करने लगी.

धीरेधीरे बबलूराम का सिर गोपी की गोद में आ गया. गोपी सम झी कि शायद बबलूराम को नींद लग गई है और ऐसा हो गया है, पर ऐसा नहीं था. यह सबकुछ जानबू झ कर हो रहा था.

धीरेधीरे बबलूराम ने गोपी को अपनी तरफ खींच लिया. गोपी कुछ सम झ पाती, उस के पहले ही वह सब हो गया, जो नहीं होना चाहिए था.

सुबह राजन अपने स्कूल चला गया. गोपी अभी अपने कमरे में ही पड़ी हुई थी, तभी बबलूराम उस के कमरे में आए और बोले, ‘‘मैं ने तुम्हें सम झाया था कि राजनीति में तुम्हें काफी बलिदान करना पड़ेगा और यह तुम्हारा बलिदान ही है.

‘‘यह भी याद रख लो, इस घटना का जिक्र दीपक या किसी और से किया तो उस आदमी का इस धरती पर वह आखिरी दिन होगा.

‘‘दीपक की मां को भी हम ने ही स्वर्ग में स्थान दिलवाया है, क्योंकि उसे सब पता चल चुका था.

‘‘इस के अलावा जो लोग हमारे विरोध में बोलते थे, उन को भी हम ने ही मुक्ति दिलवाई है. अब यह तुम्हारे ऊपर है कि तुम कैसी जिंदगी चाहती हो. सुख से भरी हुई या एक मैली साड़ी वाली घरवाली की.’’

‘‘पर, यह गलत है. और गलत बात एक न एक दिन सामने आ ही जाती है,’’ गोपी रोते हुए बोली.

‘‘पता तो तब चलेगा न, जब हम दोनों में से कोई बताएगा.

‘‘रही बात गलत होने की, तो प्यार, जंग और राजनीति में सबकुछ जायज है. यही तो रहस्य नीति मतलब राजनीति है.

‘‘अगर तुम आगे बढ़ना चाहती हो तो दोपहर 12 बजे पार्टी दफ्तर पहुंच जाना. अपने सपनों को पूरा करने का सुनहरा मौका तुम्हारे सामने है,’’ बबलूराम सम झाने के अंदाज में धमका कर चले गए.

काफी देर तक रोनेधोने और काफी सोचनेसमझने के बाद गोपी दोपहर12 बजे पार्टी दफ्तर पहुंच गई.

अगले साल होने वाले नगरनिगम के चुनाव में गोपी को अध्यक्ष पद का टिकट दे दिया गया और बबलूराम ने अपने गुरगों के प्रभाव से उसे अच्छे वोटों से जितवा भी दिया.

बबलूराम की सलाह पर दीपक ने कारखाने में एक मैनेजर रख दिया और वह खुद को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से जोड़ने के लिए दुबई चला गया.

अब दीपक 3-4 महीनों के बाद ही घर आ पाता है. राजन को भी दूर के पहाड़ी स्कूल में अच्छी तालीम के लिए भेज दिया गया है.

अब गोपी विधानसभा का चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है. उस का प्रमोशन जारी है. अब वह अकसर प्रदेश अध्यक्ष की गाड़ी से देर रात में उतरती है तो बबलूराम उसे एक पैग बना कर पिला देते हैं, ताकि थकान दूर हो जाए.

Family Story : हस्ताक्षर – आखिर कैसे मंजू बनी मंजूबाई?

Family Story : मंजू आईने में अपने गठीले बदन को निहार रही थी और सोच रही थी कि बिना कलह के दो रोटी भी खाओ, तो सेहत अच्छी हो ही जाती है. वह अपने चेहरे के सामने आए बालों को हाथों से सुलझा कर, अपनी बड़ीबड़ी आंखें में तैरते हुए सपनों को देखने की कोशिश कर रही थी. अभी भी उस के चेहरे पर चमक बाक़ी थी. फिर वह याद करने लगी थी…  कैसे वह मंजू से मंजूबाई बन गई थी. जब शादी कर के इस घर में आई थी, तब उस की सास कितनी खुश हुई थीं.  वे उस की सुंदर काया देख कर घरघर कहती फिरतीं थीं, ‘मेरी बहू बहुत ही खूबसूरत है. वह लाखों में एक है.’

और फिर एक दिन सासुमां ने उसे समझाया था, ‘अब बहू, तुम्हें ही मेरे लल्ला को सुधारना है. थोड़ाबहुत उसे पीने की आदत है.’

‘सुनिए जी, आप शराब पीना बंद कर दीजिए. मुझे यह सब पसंद नहीं है,’ मैं ने पति की बांहों में सिमट कर मनाने की कोशिश की थी.

कुछ दिनों तक उस का पीना कुछ कम हुआ, लेकिन जल्द ही वह पुरानी आदत के कारण पीने लगा था. फिर तो वह मेरी सुनता ही नहीं था. जब मना करती, वह भड़क जाता. उस दिन, पहली बार अपने पति से पीटी गई थी. मैं खूब रोई थी.

मैं अपने समय को कोस रही थी. गरीब मांबाप की बेटी, अपने समय को ही दोष दे कर रह जाती है. शराब की लत ने उसे बीमार कर दिया था. मैं रोज उस से लड़ती. यह लड़ाईझगड़ा मेरी पिटाई पर खत्म होता. आसपास वाले लोग तमाशा देखते. उन लोगों के लिए  यह सब मनोरंजन का साधन था. जबकि, मैं रोज मर और जी रही थी.

मैं उसे सुधार न सकी. देखतेदेखते मैं 2 बेटियों की मां बन गई थी. अब तो सुंदर त्वचा हडि्डयों से चिपक कर, बदसूरत और काली बन चुकी थी.

सासुमां  घर के सारा सामान व जेवरात बेच कर बीमार बेटे को बचाने में लग गई थीं. लेकिन गुरदे की बीमारी ने उस की जान ले ली. सासुमां अपने लल्ला के वियोग में ज्यादा दिन टिक नहीं पाईं.

कुछ जलने की बू आने लगी. तभी उसे याद आया, गैस पर दाल उबल रही थी. वह किचेन की तरह दौड़ पड़ी. जल्दीजल्दी कलछी से दाल को चला कर  चूल्हे से नीचे रख दी. पूरी तरह से नहीं जली थी.

काम से निबट कर  कमरे में खाट पर लेट गई और सोचने लगी, 2 बेटियों की अकेली मां…  बच्चों को पालने के लिए घरघर झाड़ूपोंछा करने लगी थी. बाद में प्राइवेट स्कूल में साफसफाई और झाड़ू लगाने का काम मिल गया . बेटियां उसी स्कूल में पढ़ने लगी थीं.

इन दिनों स्कूल में गरमी की छुट्टी चल रही थी. रिंकी और पिंकी नाश्ता करने के बाद इत्मीनान से सो रही थीं. मैं दोपहर का भोजन तैयार कर रही थी क्योंकि राघव आने वाला था. वह उसी स्कूल में बस का ड्राइवर है. जरूरत पड़ने पर वह मेरी मदद कर देता था. मेरी बेटी बीमार हो जाती थी, तो वह कई बार अस्पताल ले गया था. इतना ही नहीं, उन दिनों जब मैं काफी हताश और निराश थी तो उस ने आगे बढ़ कर सहारा दिया था. फिर कैसे हम दोनों एकदूसरे के दुखसुख के साथी बन गए, पता ही नहीं चला.

अब वह छुट्टियों में मेरे  घर कभीकभी आने लगा था. बच्चों के लिए टॉफियां और मिठाइयां ले कर आता. वह बच्चों के साथ घुलमिल गया था. बच्चे भी उसे अंकल अंकल करने लगे थे.

जब पेट की भूख शांत हुई तो तन की भूख मुझे सताने लगी. पति के साथ झगड़े के कारण असंतुष्ट ही रही. उस का भरपूर प्यार मिला नहीं. आखिर कब तक अकेली रहती. ऐसे में राघव का साथ मिला. वह भी अपनी पत्नी से दूर रहता है. वह इतना भी नहीं कमा पाता है कि हजार किलोमीटर दूर अपनी पत्नी के पास जल्दीजल्दी जा सके. शायद हम दोनों की तनहाइयां एकदूसरे को पास ले आई थीं.

जब कल शाम को बाजार से लौट रही थी तो पड़ोस की कांताबाई मिल गई थी. वह मेरी विपत्तियों  में अंतरंग सहेली बन चुकी थी. उसी ने मुझे शुरू में झाड़ूपोंछा का काम दिलाया था. मेरा हालचाल जानने के बाद  वह पूछने लगी थी, ‘राघव इन दिनों तुम्हारे घर ज्यादा ही आ रहा है?’

‘कांता, तुम तो जानती हो, वह बच्चों के पास आ जाता है, इसीलिए मैं मना नहीं कर पाती हूं.’ मैं ने सफाई देने की कोशिश की थी.

‘मंजू, मैं तुम को बहुत पहले से जानती हूं. महल्ले वाले तुम दोनों के बारे में तरहतरह के किस्सेकहानियां गढ़ रहे हैं. मैं चाहती हूं कि अगर तुम्हारे मन में उस के प्रति कुछ है,  तो तुम जल्दी से  कोई निर्णय ले लो. तुम अकेले कब तक रहोगी.’ उस ने मुझे समझाने की कोशिश की थी.

‘अरे कांता,  तुम भी मुझे नहीं समझ पाईं. मैं अब 2 बेटियों की मां हूं. तुम जो सोच रही हो ऐसा कुछ भी नहीं है. और ये महल्ले वालों का क्या है. उन्हें तो, बस, मनोरंजन होना चाहिए. उन को किसी के दुखसुख से क्या मतलब. वह मेरे साथ स्कूल में काम करता है. बच्चों से ज्यादा हिलमिल गया. बच्चों के बीमार होने पर उस ने कई बार मेरी मदद की है. बस, उस से अपनत्व हो गया है. लेकिन लोगों का क्या है, वे तो गलत निगाह से  देखेंगे ही न. उस के भी अपने बच्चे हैं.  इस बार लौकडाउन होने के कारण वह अपने घर नहीं जा सका है. वह अकेला रहता है, इसीलिए कभीकभी खाने के लिए उसे बुला लेती हूं,’ वह जरा बनावटी गुस्से में बोली थी.

‘मैं जानती थी कि तू कभी ऐसा नहीं करेगी,’ कांता संतुष्ट होते हुए बोली.

‘कांता, मैं विवाहबंधन को अच्छी तरह से झेल चुकी हूं. विवाह के बाद कितना सुख मिला है, वह भी तुझे मालूम है. सो, इस जन्म में तो विवाह करने से रही.’

यह सब कहते हुए मंजू की आंखों में आंसू तैरने लगे थे. कुछ रुक कर उस ने फिर बोलना शुरू किया, ‘रही बात महल्ले वालों की, जिस दिन मैं अपने पति से पीटी जाती थी, उस दिन भी ये लोग मजा लेते थे. लेकिन कभी भी मेरे दुखती रग पर मरहम लगाने नहीं आते थे. हां, वे नमक छिड़कने जरूर आते थे. मैं इन बातों पर ध्यान नहीं देती. मुझे जो मरजी है, वही करूंगी. मैं लोगों की बातों पर ध्यान नहीं देती.’ इस बार मंजू गुस्से से उबलने लगी थी.

कांता ने गहरी सांस ली और उसे समझाने लगी,  ‘मंजू, मैं जानती हूं. लेकिन समाज में रहना है तो लोगों पर ध्यान देना ही पड़ता है. लोग क्या सोच रहे हैं, हम लोगों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, लेकिन हमारे बच्चों पर तो पड़ सकता है न.’

आज मैं सोच रही थी. जैसे ही राघव  मेरे पास आएगा, मैं उसे मना करूंगी कि अब तुम रोजरोज मत आया करो. महल्ले वाले किस्सेकहानियां गढ़ने लगे हैं. अब बच्चे भी बड़े होने लगे हैं. उन पर बुरा असर पड़ेगा. मैं यह भी सोच रही थी कि कैसे राघव को मना करूंगी. मुझे भी लग रहा है कि लोगों से बचने के लिए उसे आने से मना करना ही उचित होगा. अभी इसी उधेड़बुन में थी कि  किसी की आने की आहट मिली.

सामने राघव खड़ा मुसकरा रहा था. आते ही मुझे बांहों में भर लिया था उस ने. न चाहते हुए भी मैं खुद को रोक नहीं पाई. उस के आलिंगन में खिंचती चली गई. उस ने मेरे होंठों पर चुबंन जड़ दिए. और मैं कुछ क्षणों के लिए सुख के सागर डुबती चली गई.

Short Story : महंगाई आज का “भगवान”!

Short Story : कहते हैं- हरि अनंत, हरि कथा अनंता. अगर आपके पास कुबुद्धि नहीं, सुबुद्धि है तो महंगाई के संदर्भ में शोध ग्रंथ तैयार करोगे तो आपका हृदय आनंद से विभोर हो उठेगा. जैसा कबीर दास ने बताया है अनहृदकारी. रोहरानंद से किसी खास मित्र ने कहा- ‘भैय्या ! महंगाई जी के संदर्भ में सारगर्भित बात, अगर अल्प शब्दों में कहना हो तो आप क्या कहेंगे.’

रोहरा नंद ने मंद मुस्कुराते हुए कहा, “भाई! महंगाई  तो मेरा परम सखा है, मैं तो स्वपन में भी उसको भजता रहता हूं. सच कहूं तो वह अगर कृष्ण है तो मैं गरीब सुदामा हूं .”

उसने व्यंग्य से कहा-“द्वापर में हुए थे भगवान कृष्ण, तुम महंगाई की समानता श्री कृष्ण से कर रहे हो. तुम बुरी तरह फंस सकते हो….”

रोहरानंद मुस्कुराया, – “भाई ! कृष्ण को आज आप श्री कृष्ण के विशेषण के साथ आचार – व्यवहार में ला रहे हो, आज उन्हें भगवान कह रहे हो…  द्वापर में उन्हें कौन जानता था कि वे ईश्वर है…”

” लगता है आपका ज्ञान अधूरा है…”  उन्होंने कहा

“ तो कृपया मुझे ज्ञान दीजिए.” रोहरनंद ने विनम्रता पूर्वक कहा.

” विदुर, भीष्म पितामह आदि महाभारत काल के महारथी उन्हें ईश्वर के रूप में ही समकालीन समय में सम्मान देते थे. बॉलीवुड की कोई भी सिनेमा अथवा दूरदर्शन पर प्रसारित धारावाहिक में  हमने यही देखा है.”

“इतिहास से, धर्मग्रंथों से छेड़छाड़ हमारे यहां साधारण बात है. तत्कालीन समय में चंद लोगों को श्री कृष्ण के अवतार की बात जानकारी में थी. वैसे ही आज महंगाई के संदर्भ में बहुत कम लोगों को ज्ञात है.” रोहरानंद ने बात का साधारणीकरण किया. मित्र गंभीर हो गए .उसे लगा कहीं मैं गलत तो नहीं. ऐसा तो नहीं कि मैं गलत राह पर होऊं.

“आखिर आज महंगाई का चहूं और बोल बाला है तो उसमें कुछ तो खास बात, देवत्व होगा. या हो सकता है, मैं बुराई बोलकर क्यों नरक का भागी बनूं.”रोहरानंद ने  पुनः हथौड़ी चलाई-” याद करो भाई ! महाभारत में अगर कर्ण श्री कृष्ण का सम्मान करता था तो दुर्योधन भला बुरा कहता था. भीष्म पितामह श्री कृष्ण को आसन देते थे तो उसके मामा कंस ने उन्हें कितना कष्ट पहुंचाने और हत्या का षड्यंत्र रचा था. कुछ ऐसी ही हमारी महंगाई जी के साथ आज हो रहा है बहुत चुनिंदा लोग ही महंगाई के महात्म्य को जान पाए हैं.”

मित्र गंभीर हो गया.उसे लगा,वह कहीं गलत तो नहीं. कहीं चूक तो नहीं हो रही .अगर भूल से वह महंगाई के दुष्प्रचार में लगा रहा तो इतिहास में वह खलनायक न बन जाए. और फिर महान आत्माओं की खिलाफत का दंड कई जन्म तक भुगतना पड़ता है .अश्वत्थामा की कहानी उसे स्मरण हो आई एक चुक और आज भी अश्वत्थामा दर्द भरी जिंदगी जी रहा है . वह मन ही मन भयभीत हो उठा.

उसके आगे महंगाई का देवत्व! विराट आकार में आकर खड़ा हो गया. उसे प्रतीत हुआ, जिस तरह अर्जुन महाभारत में युद्ध के दरम्यान किंकर्तव्य विमूढ़ हो गए थे और गुरुजन, भाइयों, मित्रों को देखकर हथियार डाल दिए थे. महंगाई के त्रासदी के सामने संपूर्ण भारत वासियों ने हथियार डाल दिए हैं. त्राहि-त्राहि मची हुई है .जिस तरह महाभारत में दुर्योधन ने भरी सभा में द्रोपदी के चीर हरण का काम किया था. हमारी संसद में भी महंगाई की चीर- हरण का दुष्प्रयास विपक्ष ने करना चाहा. मगर जिसके साथ दैवीय शक्ति होती है, भला उसका आज तक कोई बिगाड़ हुआ है ? आखिर संसद में महंगाई का सम्मान बढ़ा कि नहीं .सरकार गंभीर खतरे में फंस गई थी. सत्ता का सिंहासन डोलायमान था.डोल रहा था. सारा देश शंकित था.

सरकार अब गयी कि तब गयी. मत विभाजन पर सरकार का जाना तय माना जाने लगा था. सभी चिंतित थे. मगर अचानक महंगाई का पक्ष किस तरह बनने लगा… विपक्ष का,  विपक्ष का सारा षड्यंत्र धरा का धरा रह गया . सरकार का बाल भी बांका नहीं हुआ. जय हो महंगाई की… प्रभु मेरी रक्षा करना… अपनी शरण धरौ प्रभु…. वह बुड़बुडा कर स्मरण करने लगा .

रोहरानंद मित्र के चेहरे के हाव-भाव देखता खड़ा था. वह समझ रहा था… उसकी बातों का गहरा असर हुआ है… अन्यथा यह मानुष इतनी जल्दी हार मानने वालों में नहीं…

मित्र सोच रहा है – सचमुच मैं पतित पापी हूं…मैंने महंगाई के संदर्भ में धृष्टता पूर्वक सोचा ही क्यों .मेरा पूर्व जन्म इसका कारक होगा. अच्छा है मुझे भाई रोहरानंद मिल गए. मेरे ज्ञानचक्षु खोल दिये.’ वह शून्य में ताकता रहा, सोचता रहा- ‘जिस तरह भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को ‘कर्मन्यावाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचना’ के शब्दघोष के साथ  उन मित्रों, गुरु, भाइयों के संहार का ज्ञान दिया था. मेरे समक्ष भी महंगाई विराट रूप धारण करके खड़ी है. महंगाई कह रही है- ‘वत्स ! मेरी शरण में आओ, देखो मुझे, मुझमें समाहित हो जाओगे एक दिन. तुम मुझमें ही से तो अव तारित हुए हो… एक दिन मुझ में ही तिरोहित हो जाओगे. यह दुनिया, दुनिया का कण कण जो बिकता है मुझसे ही नि:सृत हुआ है और मुझमे ही समा जाएगा. मैं श्री महंगाई हूं . मैं कलयुग का अवतार हूं. मुझसे क्षुद्र कुछ नहीं,मुझसे विराट कुछ नहीं. जो मेरी छाया से जाता है, नष्ट हो जाता है, जो छाया में प्रविष्ट होता है, जीवन का सुख, संपदा प्राप्त करता है.”

वह अर्जुन की भांति घुटनों के बल बैठ गया. उसकी आंखों के आगे ईश्वरीय रूप में महंगाई खड़ी है .रोहरानंद अचंभित है .मित्र को क्या हो रहा है… कहीं उसने ज्यादा डोज तो नहीं दे दिया, जिसके कारण हेलुसीनेशन सन्निपात (मतिभ्रम )में चला गया हो…. रोहरानंद घबरा गया . कहीं मित्र को कुछ हो गया तो? उसने तत्काल मित्र को झकझोरा- मित्र ने उसकी ओर देखा और कहा- “भाई, तुमने मेरा जीवन धन्य कर दिया. देखों ! मेरे समक्ष महंगाई ईश्वरीय रूप में ज्ञान प्रसारित कर रही है.”

रोहरनंद आंखें फाड़कर देखने का प्रयत्न करने लगा. ऊपर नीचे, दाये बांये कहीं कुछ भी नहीं है. उसे लगा कहीं मुन्ना भाई लगे रहो के संजय दत्त की भांति इसे भी तो उस बीमारी ने नहीं जकड़ लिया .  इसे  गांधी की तरह महंगाई ईश्वरीय रूप में दृष्टिगोचर हो रही है. रोहरानंद ने आंखें फाड़ कर सखा की ओर देखा, ‘मित्र तुम ठीक कह रहे हो .’ उसे स्वीकार करना पड़ा . अन्यथा उसका अज्ञानी मित्र उस पर हंसता. मित्र ने महंगाई का श्री महंगाई के रूप में दर्शन प्राप्त कर ज्ञान प्राप्त कर लिया और वह महरूम रह जाए. यह उसे स्वीकार नहीं था. दोनों गले में बाहें डाले- हंसते, गाते, रोते चलते जाते .सभी समवेत गा रहे हैं -तंत्रीनाद कवित्त रस सरस-राग,रति रंग अनबूडे तिरे जे बूडे सब संग .

थोड़ी दूर पर एक माॅल पर महंगाई बैठा आनंद उठा रहा है. अपना भक्ति गीत मित्र  रोहरानंद  व अन्य लोगों के मुख से सुन उसे प्रसन्नता हुई. वह भाव- विभोर हो उठा. महंगाई माॅल से उतर कर उनके पास आया, उसकी आंखें भीग गई थी. गला भर आया था . खुशी के मारे कंठ से आवाज नहीं निकल रही .रोहरानंद ने मित्र को पहचान लिया. गायक दल थम गया . रोहरानंद ने कहा- “मित्र! अन्यथा न लेना, तुम्हारी स्तुति और भक्ति में बड़ा आनंद है .हम सब मानों दुनिया की सारी खुशियों से ओत – प्रोत हैं. तुम्हारी भक्ति हमारे जीवन का आधार बन गई है .हमें मना मत करना. हम पर दया बनाए रखना. अन्यथा हम इस संसार मैं जीव की भांति भटकते रहेंगे. हमें न जुगती मिलेगी न मुक्ति .” महंगाई श्री कृष्ण की भांति मुस्कुराया, – “ तथास्तु ” कह कर अंतर्ध्यान हो गया.

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