कोई नहीं- भाग 2: क्या हुआ था रामगोपाल के साथ

एक दिन बबिता ने उसे बताया कि वह गाड़ी चलाना सीखने के लिए ड्राइविंग स्कूल में एडमिशन ले कर आ रही है. उस ने दिनेश को एडमिशन का फार्म भी दिखाया. हुआ यह कि बबिता के बडे़ भाई नंद कुमार ने उस से कहा कि रोजरोज बस या टैक्सी से आनाजाना न कर के वह अपनी कार से आए और इस के लिए ड्राइविंग सीख ले. आखिर पापा ने दहेज में कार किसलिए दी है.

बबिता को यह बात जंच गई. पर दिनेश इस पर आगबबूला हो गया. अपनी नाराजगी और गुस्से को वह रोक भी नहीं पाया और बोल पड़ा, ‘तुम्हारे पापा ने कार मुझे दी है.’

‘हां, पर वह मेरी कार है, मेरे लिए पापा ने दी है.’

दिनेश बबिता का जवाब सुन कर दंग रह गया. उस ने अपने गुस्से पर काबू करते हुए विवाद को तूल न देने के लिए समझौते का रुख अपनाते हुए कहा, ‘ठीक है पर ड्राइविंग सीखने की क्या जरूरत है. गाड़ी पर ड्राइवर तो है?’

‘मुझे किसी ड्राइवर की जरूरत नहीं. मैं खुद चलाना सीखूंगी और मुझे कोई भी रोक नहीं सकेगा. मैं तुम्हारी खरीदी हुई गुलाम नहीं हूं.’

दिनेश ने इस के बाद एक शब्द भी नहीं कहा. बबिता को कुछ कहने के बजाय उस ने अपने पिता को ये बातें बता दीं. गिरधारी लाल ने तुरंत रामगोपाल को फोन मिलाया और उस से बबिता के व्यवहार की शिकायत की तो उधर से उन की समधिन लक्ष्मी का जवाब आया, ‘भाईसाहब, आप के लड़के से बेटी ब्याही है, कोई बेच नहीं दिया है जो उस पर हजार पाबंदियां लगा रखी हैं आप ने. यह मत करो, वह मत करो, पापामम्मी से बातें मत करो, उन के घर मत जाओ, क्या है यह सब? हम ने तो अपने ही शहर में इसीलिए बेटी की शादी की थी कि वह हमारे पास आतीजाती रहेगी, हमारी नजरों के सामने रहेगी.’

‘पर समधिनजी,’ फोन पर गिरधारी लाल ने जोर दे कर अपनी बात कही, ‘यदि आप की बेटी बराबर आप के घर का ही रुख किए रहेगी तो वह अपना घर कब पहचानेगी? संसार का तो यही नियम है कि बेटी जब तक कुंआरी है अपने बाप की, विवाह के बाद वह ससुराल की हो जाती है.’

‘यह पुरानी पोंगापंथी बातें हैं. मैं इसे नहीं मानती. रही बात बबिता की तो वह जब चाहेगी यहां आ सकती है और वह गाड़ी चलाना सीखना चाहती है तो जरूर सीखे. इस से तो आप लोगों के परिवार को ही फायदा होगा.’

गिरधारी लाल ने इस के बाद फोन रख दिया. उन के चेहरे पर चिंता की गहरी रेखा खिंच आई थीं. परिवार वाले चिंतित थे कि इस स्थिति का परिणाम क्या होगा?

दिनेश ने भी इस घटना के बाद चुप्पी साध ली थी. सास सुलोचना ने सब से पहले बहू से बोलना बंद किया था, उस के बाद गिरधारी लाल भी बबिता से सामना होने से बचने का प्रयत्न करते. राजेश को भाभी से बातें करने की जरूरत ही नहीं पड़ती थी. उस की जरूरतें मां, नौकर और नौकरानी से पूरी हो जाती थीं.

दिनेश और बबिता के बीच सिर्फ कभीकभार औपचारिक शब्दों का संबंध रह गया था. आफिस से छुट्टी के बाद वह ज्यादा समय बाहर ही गुजारता, देर रात में घर लौटता और खाना खा कर सो जाता.

इस बीच बबिता ने गाड़ी चलाना सीख लिया था. वह सुबह ही गाड़ी ले कर मायके चली जाती और रात में देर से लौटती. कभी उस का फोन आता, ‘आज मैं आ नहीं सकूंगी.’ बाद में इस तरह का फोन आना भी बंद हो गया.

कानूनी और सामाजिक तौर पर बबिता गिरधारी लाल के परिवार की सदस्य होने के बावजूद जैसे उस परिवार की ‘कोई नहीं’ रह गई थी. यह एहसास अंदर ही अंदर गिरधारी लाल और उन की पत्नी सुलोचना को खाए जा रहा था कि उन के बेटे का दांपत्य जीवन बबिता के निरंकुश एवं दायित्वहीन आचरण तथा उस के ससुराल वालों की हठवादिता से नष्ट हो रहा है.

आखिर एक दिन दिनेश ने दृढ़ स्वर में बबिता से कहा, ‘हम दोनों विपरीत दिशाओं में चल रहे हैं. इस से बेहतर है तलाक ले कर अलग हो जाएं.’

दिनेश को तलाक लेने की सलाह उस के पिता गिरधारी लाल ने दी थी. वह अपने बेटे के बिखरते वैवाहिक जीवन से दुखी थे. उन्होंने यह सलाह भी दी थी कि यदि बबिता उस के साथ अलग रह कर अपनी अलग गृहस्थी में सुखी रह सकती है तो वह ऐसा ही करे. पर दिनेश को यह प्रस्ताव स्वीकार नहीं था कि वह अपने मातापिता को छोड़ कर अलग हो जाए.

दिनेश के मुंह से तलाक की बात सुन कर बबिता सन्न रह गई. उसे जैसे इस प्रकार के किसी प्रस्ताव की अपेक्षा नहीं थी. इस में उसे अपना घोर अपमान महसूस हुआ.

मायके आ कर बबिता ने अपने मम्मीपापा और भाइयों को दिनेश का प्रस्ताव सुनाया तो सभी भड़क उठे. रामगोपाल को जहां इस चिंता ने घेर लिया कि इतना अच्छा घरवर देख कर और काफी दानदहेज दे कर बेटी की शादी की, वहां इतनी जल्दी तलाक की नौबत आ गई. समाज और बिरादरी में उन की क्या इज्जत रहेगी? पर लक्ष्मी काफी उत्तेजित थीं. वह चीखचीख कर बारबार एक ही वाक्य बोल रही थीं, ‘उन की ऐसी हिम्मत…उन्हें इस का मजा चखा कर रहूंगी.’

 

गरम गोश्त के सौदागर: भाग 2

‘‘मेरे पास उन की तसवीर है, देख कर यहां ही पसंद कर लीजिए.’’ एजेंट ने कहने के बाद अपने कीमती मोबाइल पर एक निजी साइट खोल कर हरीश शर्मा के सामने कर दी. उस ने करीब 10 विदेशी युवतियों के फोटो दिखाए. सभी कयामत बरपा देने वाली हसीन गोरी चमड़ी वाली हसीनाएं. एक से बढ़ कर एक थीं.

हरीश शर्मा के साथ रविकांत भी अपनी जगह बेचैनी से पहलू बदलते रहे, गजब की सुंदर, कोमल, चिकनी मलमली देह वाली विदेशी युवतियां थीं वे. देख कर ही दोनों को नशा होने लगा.

हरीश शर्मा ने एक तसवीर पर अंगुली रख दी, ‘‘इस की कीमत बोलिए.’’

‘‘हरेक की कीमत एक बार बैठने की 15 हजार होगी. कहिए तो मैं आप को इस के आशियाने पर छोड़ने चलूं?’’

 

हरीश शर्मा ने जेब टटोलने का अभिनय किया. अपना पर्स निकाल कर जोश में बोला, ‘‘मैं 15 हजार ही दूंगा.’’

हरीश ने बटुआ खोला और उस में झांक कर निराशा भरी सांस ली, ‘‘ओह! रुपए तो मैं अपनी टेबल पर ही छोड़ आया. सौरी यार… कल आ जाऊंगा.’’

‘‘तुम सात जन्म लोगे तब भी यहां लौट कर नहीं आओगे. यहां कोहिनूर हीरे मिलते हैं, तुम्हारे बाजारों की सड़ी बदबूदार मछलियां नहीं, जो पूरी रात के लिए 2-3 सौ में प्लेट में सजने को तैयार रहती हैं.’’ इस बार एजेंट भड़क कर तूतड़ाक पर उतर आया, ‘‘अबे जब जेब में दमड़ी नहीं थी तो मेरा टाइम खराब करने क्यों आ गए? जाओ, दफा हो जाओ यहां से.’’

हरीश शर्मा ने पर्स जेब में रखा और रविकांत का हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘चल यहां से, कहीं और मूड बनाएंगे.’’

दोनों मोटरसाइकिल की तरफ बढ़े तो एजेंट ने उन्हें फाड़ खाने वाली नजरों से देख कर भद्दी गाली दी. हरीश शर्मा एक बार ठिठका लेकिन रविकांत ने उसे अपनी तरफ खींच कर धीमे से कहा, ‘‘ये इस का इलाका है, यहां यह अकेला नहीं होगा. इस के एक इशारे पर कई साथी आ टपकेंगे. यहां से चुपचाप निकल चलने में ही भलाई है.’’

‘‘यह हरामी हमें भद्दी गालियां दे रहा है. बेशक हम इतना रुपया एक बार के लिए खर्च नहीं कर सकते, लेकिन इसे हमारी बेइज्जती करने का हक नहीं बनता.’’ हरीश शर्मा झुंझलाए स्वर में बोला.

‘‘हमें अपनी औकात देख कर ही यहां आना चाहिए था. वैसे भी विदेशी माल 4-5 सौ में नहीं मिलता.’’ रविकांत ने गहरी सांस भर कर कहा.

‘‘मैं भी जानता हूं, मुझे उन लड़कियों की झलक देखनी थी, वह मैं ने उसे बेवकूफ बना कर देख ली.’’ शर्मा मुसकरा कर बोला.

‘‘चलो, आज की रात किसी बाजार के कोठे पर गुजारते हैं. मूड ठीक हो जाएगा.’’ रवि ने शर्मा का हाथ दबा कर कहा.

‘‘चलेंगे, लेकिन इस भड़वे का दिमाग ठिकाने जरूर लगाऊंगा मैं. इस की बहन की… इस साले ने हमें गाली दी है.’’

‘‘क्या करोगे यार, कहा न यह इन का इलाका है.’’

‘‘इस इलाके में आग लगाऊंगा मैं.’’ हरीश शर्मा गंभीर स्वर में बोला और मोबाइल पर किसी का नंबर डायल करने लगा. नंबर मिल गया. अब वह धीरेधीरे से किसी से बात कर रहा था और इस इलाके मालवीय नगर में देह व्यापार होने की जानकारी दे रहा था.

 

क्राइम ब्रांच थाना पुष्प विहार में इंसपेक्टर प्रमोद कुमार अपने कक्ष में बैठे सुबह का अखबार देख रहे थे तभी कांस्टेबल सोहनवीर ने आ कर उन्हें सैल्यूट किया.

‘‘कैसे हो सोहनवीर?’’ एक नजर सोहनवीर पर डालते हुए इंसपेक्टर प्रमोद कुमार ने पूछा.

‘‘ठीक हूं सर.’’ सोहनवीर ने गंभीरता से कहा, ‘‘मैं एक खास मकसद से आप से मिलने आया हूं.’’

इंसपेक्टर प्रमोद ने तुरंत अखबार एक ओर रख दिया और सोहनवीर की ओर मुखातिब हो गए, ‘‘गंभीर हो और खास मकसद से आए हो तो पहले मैं आप की बात सुनूंगा. कहिए?’’

‘‘जी, मालवीय नगर में देह व्यापार चल रहा है, जिस में कई विदेशी लड़कियों को देह धंधे में उतारा गया है.’’

‘‘क्या कह रहे हैं आप?’’ इंसपेक्टर प्रमोद चौंक कर बोले, ‘‘यह खबर आप को कैसे लगी?’’

‘‘मेरे खास मुखबिर ने यह खबर दी है, वह दरवाजे पर मौजूद है सर.’’

‘‘उसे अंदर बुलवाइए.’’

कांस्टेबल सोहनवीर बाहर गए और अपने साथ एक दुबलेपतले व्यक्ति को ले कर अंदर आ गए. उस व्यक्ति ने इंसपेक्टर प्रमोद को हाथ जोड़ कर नमस्ते की.

‘‘तुम्हें मालवीय नगर में देह व्यापार होने की खबर कैसे लगी?’’ बगैर कोई भूमिका बांधे इंसपेक्टर प्रमोद ने सवाल किया.

‘‘सर, मेरे एक दोस्त ने रात को मुझे फोन से यह जानकारी दी थी. वह दोस्त कौन है, कहां रहता है, मैं यह नहीं बताऊंगा लेकिन यह खबर सोलह आना सच्ची है सर.’’

‘‘कैसे कह सकते हो कि तुम्हारे दोस्त ने तुम्हें जो बताया है वह सच होगा?’’ इंसपेक्टर प्रमोद ने मुखबिर को पैनी नजरों से देखते हुए पूछा.

‘‘वह कल रात को मौजमस्ती के लिए मालवीय नगर गया था सर, सौदा महंगा था वह पे नहीं कर सका तो दलाल ने उसे भद्दीभद्दी गालियां दीं. इस से खफा हो कर उस ने मुझे यह बात बता दी. सर, वह जानता है कि मैं पुलिस के लिए मुखबिरी करता हूं.’’

‘‘हूं. कई दिनों से मुझे भी उड़तीउड़ती जानकारी मिल रही थी कि मालवीय नगर में देह का धंधा किया जा रहा है. आज तुम ने इस की पुष्टि कर दी है, फिर भी मैं पूरी सच्चाई और ठोस प्रमाण पाने के बाद ही कोई कड़ा कदम उठाऊंगा.’’

‘‘मैं इस की सच्चाई पता लगाने में पूरी मेहनत करूंगा सर.’’ मुखबिर ने गंभीर स्वर में कहा.

‘‘सोहनवीर, आप भी मुखबिर के साथ इस के कथन की पुष्टि करने के लिए जुट जाइए. यह काम बहुत सावधानी से और सादे कपड़ों में होना चाहिए. देह व्यापार चलाने वाले बहुत शातिर दिमाग होते हैं और खतरनाक भी.’’

‘‘आप बेफिक्र रहिए सर, एकदो दिन में मैं मुखबिर के साथ मिल कर ठोस जानकारी हासिल कर लूंगा.’’ कांस्टेबल सोहनवीर ने कहा और इंसपेक्टर से इजाजत ले कर मुखबिर के साथ निकल गया.

कांस्टेबल सोहनवीर और मुखबिर (काल्पनिक नाम विनोद) ने मिल कर मालवीय नगर में वह फ्लैट ढूंढ निकाला, जहां विदेशी लड़कियों से देह व्यापार करवाया जा रहा था.

एक कस्टमर को लालच दे कर उन्होंने यह भी मालूम कर लिया कि इस धंधे का दलाल कौन है और उसे कहां और कैसे संपर्क किया जा सकता है. यह पुख्ता जानकारी कांस्टेबल सोहनवीर ने क्राइम ब्रांच पुष्प विहार के सीनियर इंसपेक्टर प्रमोद कुमार को दे दी.

इंसपेक्टर प्रमोद कुमार ने इस की रिपोर्ट तुरंत डीसीपी (क्राइम ब्रांच) विचित्रवीर को दी. उन्होंने इस मामले को बड़ी गंभीरता से लिया और एसीपी एस.के. गुलिया के सुपरविजन में एक जांच दल का गठन कर दिया.

इंसपेक्टर प्रमोद कुमार, प्रदीप कुमार के साथ कांस्टेबल सोहनवीर और एएसआई राजेश तथा अन्य एसआई बहादुर शर्मा, सुमन बजाज, गुंजन सिंह, एएसआई सुनीता, जसबीर, रामचंद्र, नवीन पांडेय और सतीश को शामिल किया गया.

इंसपेक्टर प्रमोद कुमार ने कांस्टेबल सोहनवीर और एएसआई राजेश को नकली ग्राहक बना कर पंचशील विहार भेजा. सोहनवीर को हस्ताक्षरयुक्त 5 सौ रुपए के 30 नोट दिए गए, जिन के नंबर पहले ही डायरी में दर्ज कर लिए गए.

कांस्टेबल सोहनवीर को नकली ग्राहक बना कर एजेंट मोहम्मद अरूप और चंदे साहनी उर्फ राजू से मिल कर सौदा तय करना था. एएसआई को कांस्टेबल सोहनवीर पर नजर रखनी थी और सौदा होने पर सिर पर हाथ घुमा कर रेड करने का संकेत देना था.

कांस्टेबल सोहनवीर ने अपना हुलिया बदल लिया. वह स्मार्ट और मनचले युवक के हुलिए में तैयार हुआ तथा प्राइवेट वाहन से एएसआई राजेश के साथ पंचशील विहार, मालवीय नगर पहुंच गया. इस वक्त राजेश सादे कपड़ों में थे.

दोनों उस पार्क के पास पहुंच कर रुक गए. सोहनवीर ने अपने मोबाइल में दूसरी सिम डाल ली थी. उस ने एजेंट मोहम्मद अरूप का नंबर डायल किया.

‘‘हैलो, आप को किस से बात करनी है?’’ दूसरी ओर से पूछा गया.

‘‘मुझे मोहम्मद अरूप से बात करनी है. मैं अभिषेक बोल रहा हूं.’’

‘‘मैं मोहम्मद अरूप ही बोल रहा हूं. कहिए, आप को मुझ से क्यों मिलना है?’’

‘‘मुझे एक पार्टनर चाहिए, ऐसा पार्टनर जो मेरी तबीयत को मस्त कर दे.’’

‘‘आप को गलतफहमी हुई है जनाब, मैं लड़कियों का दलाल नहीं हूं.’’

कोई नहीं- भाग 1: क्या हुआ था रामगोपाल के साथ

दूसरी ओर से दिनेश की घबराहट भरी आवाज आई, ‘‘पापा, आप लोग जल्द चले आइए. बबिता ने शरीर पर मिट्टी का तेल उडे़ल कर आग लगा ली है.’’

‘‘क्या?’’ रामगोपाल को काठ मार गया. शंका और अविश्वास से वह चीख पडे़, ‘‘वह ठीक तो है?’’ और इसी के साथ उन की आंखों के सामने वे घटनाएं उभरने लगीं जिन की वजह से आज यह स्थिति बनी है.

रामगोपाल ने अपनी बेटी बबिता का विवाह 6 साल पहले अपने ही शहर में एक मध्यमवर्गीय परिवार में किया था. उन के समधी गिरधारी लाल भी व्यवसायी थे और मुख्य बाजार में उन की कपडे़ की दुकान थी, जिस पर वह और उन का छोटा बेटा राजेश बैठते थे.

बड़ा बेटा दिनेश एक फर्म में चार्टर्ड एकाउंटेंट था और अच्छी तनख्वाह पाता था. रामगोपाल की बेटी, बबिता भी कामर्स से गे्रजुएट थी अत: दोनों परिवारों में देखसुन कर शादी हुई थी.

रामगोपाल ने अपनी बेटी बबिता का धूमधाम से विवाह किया. 2 बेटों के बीच वही एकमात्र बेटी थी इसलिए अपनी सामर्थ्य से बढ़ कर दानदहेज भी दिया जबकि समधी गिरधारी लाल की कोई मांग नहीं थी. दिनेश की सिर्फ एक मांग फोरव्हीलर की थी, सो रामगोपाल ने उन की वह मांग भी पूरी कर दी थी.

शादी के कुछ दिनों बाद ही ससुराल में बबिता के आचरण और व्यवहार पर आपत्तियां उठनी शुरू हो गईं. इसे ले कर दोनों परिवारों में तनाव बढ़ने लगा. गिरधारी लाल के परिवार में बबिता समेत कुल 5 लोग थे. गिरधारी लाल, उन की पत्नी सुलोचना, दिनेश और राजेश तथा नई बहू बबिता.

सुलोचना पारंपरिक संस्कारयुक्त और धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं. वह सुबह उठतीं, स्नान करतीं और घरेलू कामों में जुट जातीं. वह चाहती थीं कि उन की बहू भी उन्हीं संस्कारों को ग्रहण करे पर बबिता के लिए यह कठिन ही नहीं, दुष्कर काम था. वास्तविकता यह थी कि वह ऐसे संस्कारों को पोंगापंथी और ढोंग समझती थी और इस के खिलाफ थी.

बबिता आधुनिक विचारों की थी तथा स्वाधीन रहना चाहती थी. रात में देर तक टेलीविजन के कार्यक्रम देखती, तो सुबह साढे़ 9 बजे से पहले उठ नहीं पाती. और जब तक वह उठती थी गिरधारी लाल और राजेश नाश्ता कर के दुकान पर जा चुके होते थे. दिनेश भी या तो आफिस जाने के लिए तैयार हो रहा होता या जा चुका होता.

सास सुलोचना को अपनी बहू के इस आचरण से बहुत तकलीफ होती. शुरू में तो उन्होंने बहू को घर के रीतिरिवाजों को अपनाने के लिए बहुत समझाया, पर बाद में उस की हठवादिता देख कर उस से बोलना ही छोड़ दिया. इस तरह एक घर में रहते हुए भी सासबहू के बीच बोलचाल बंद हो गई.

घर में काम के लिए नौकर थे, खाना नौकरानी बनाती थी. वही जूठे बरतनों को मांजती थी और कपडे़ भी धो देती. बबिता के लिए टेलीविजन देखने और समय बिताने के सिवा कोई दूसरा काम नहीं था. उस की सास सुलोचना कुछ न कुछ करती ही रहती थीं. कोई काम नहीं होने पर पुस्तकें ले कर पढ़ने बैठ जातीं. वह इस स्थिति की अभ्यस्त थीं पर बबिता को यह भार लगने लगा. एक दिन हालात से ऊब कर बबिता अपने मायके फोन मिला कर अपनी मम्मी से बोली, ‘मम्मी, आप ने कहां, कैसे घर में मेरा विवाह कर दिया? यह घर है या जेलखाना? मर्द तो काम पर चले जाते हैं, यहां दिन भर बुढि़या गिद्ध जैसी आंखें गड़ाए मेरी पहरेदारी करती रहती है. न कोई बोलने के लिए है न कुछ करने के लिए. ऐसे में तो मेरा दम घुट जाएगा, मैं खुदकुशी कर लूंगी.’

‘अरे नहीं, ऐसी बातें नहीं बोलते बेटी,’ उस तरफ से बबिता की मम्मी लक्ष्मी ने कहा, ‘यदि तुम्हारी सास तुम से बातें नहीं करती हैं तो अपने पति के आफिस जाने के बाद तुम यहां चली आया करो. दिन भर रह कर शाम को पति के लौटने के समय वापस चली जाना. ससुराल से मायका कौन सा दूर है. बस या टैक्सी से चली आओ. वे लोग कुछ कहेंगे तो हम उन्हें समझा लेंगे.’

यह सुनते ही बबिता की बाछें खिल गईं. उस ने झटपट कपडे़ बदले, पर्स लिया और अपनी सास से कहा, ‘मम्मी का फोन आया था, मैं मायके जा रही हूं. शाम को आ जाऊंगी,’ और सास के कुछ कहने का भी इंतजार नहीं किया, कदम बढ़ाती वह घर से निकल पड़ी.

इस के बाद तो यह उस की रोज की दिनचर्या हो गई. शुरू में दिनेश ने यह सोच कर इस की अनदेखी की कि घर में अकेली बोर होने से बेहतर है वह अपनी मां के घर घूम आया करे पर बाद में मां और पिताजी की टोकाटाकी से उसे भी कोफ्त होने लगी.

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