Satyakatha- मनीष गुप्ता केस: जब रक्षक बन गए भक्षक- भाग 3

सौजन्य: सत्यकथा

Writer- शाहनवाज

वारदात की रात जब मनीष की सांसें थम गई थीं और पुलिसकर्मियों को एहसास हो गया था कि उन की मौत हो गई है, तब आरोपी शव ठिकाने लगाने के प्रयास में जुटे थे. आखिर में जब उन्हें कोई रास्ता नहीं सूझा, तब वे बीआरडी मैडिकल कालेज पहुंचे थे. इसलिए उन को निजी अस्पताल से मैडिकल कालेज पहुंचने में करीब 2 घंटे का समय लगा. एसआईटी ने इस तथ्य को अपनी जांच में भी शामिल किया है.

एसआईटी की जांच में यह तथ्य पाया गया कि बेजान मनीष को सब से पहले आरोपी पुलिस वाले जीप से ले कर पास के मानसी अस्पताल ले कर पहुंचे थे. वहां डाक्टर ने बताया कि मनीष की नब्ज नहीं मिल रही है, तत्काल इन को ले कर बीआरडी मैडिकल ले जाओ. अस्पताल प्रशासन ने मनीष को वहां से रेफर कर दिया था.

एसआईटी की जांच में सामने आया कि जब यहां से पुलिसकर्मी मनीष को ले कर रवाना हुए तो उन को यकीन हो गया था कि मनीष की मौत हो चुकी है. वे तकरीबन 2 घंटे बाद बीआरडी मैडिकल कालेज पहुंचे थे. जहां डाक्टरों ने मनीष को मृत घोषित कर दिया.

लाश ठिकाने लगाना चाहते थे पुलिस वाले

एसआईटी ने जब यह पता करना शुरू किया कि जिस दूरी को 10 मिनट में कवर करना था, उस में पुलिसकर्मियों को 2 घंटे क्यों लगे. तब सीसीटीवी फुटेज व अन्य तथ्यों से स्पष्ट हुआ कि आरोपी पुलिसकर्मी पहले थाने गए थे और उन्होंने गाड़ी भी बदली थी. इस पूरे समय में वे घूमते रहे थे. कुछ जगहों पर वे रुके भी थे.

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इस दौरान मनीष के शव को ठिकाने लगाने के प्रयास में जुटे थे. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करें. अंत तक जब समझ नहीं सके कि शव का क्या जाए तो वे सीधे मैडिकल कालेज पहुंचे.

सूत्रों के मुताबिक एसआईटी की जांच में सामने आया कि जब गाड़ी में बेजान मनीष को ले कर पुलिसकर्मी घूम रहे थे तो एक पुलिसकर्मी ने इंसपेक्टर जगत नारायण सिंह से कहा कि शव को कहीं ऐसे ही फेंक देते हैं. बाद में लावारिस में बरामद होगा. आगे की जांच होती रहेगी.

इस पर जगत नारायण ने कहा कि ऐसा करने से और फंस जाओगे. होटल से जब मनीष को ले कर चले थे तब उस के दोस्त व होटल प्रशासन मौजूद था. मानसी अस्पताल प्रशासन भी इस का गवाह है.

बाकी तमाम फुटेज में भी हम लोग कैद हुए हैं. लिहाजा मैडिकल कालेज चलने के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं है.

मामले के मुख्य आरोपी जगत नारायण सिंह और अक्षय मिश्रा की गिरफ्तारी के ठीक 2 दिनों बाद 12 अक्तूबर के दिन 2 अन्य आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है. एसआई राहुल दुबे और सिपाही प्रशांत कुमार को मंगलवार की दोपहर गोरखपुर पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था.

दोनों कोर्ट में हाजिर होने की फिराक में गोरखपुर आए थे. पुलिस ने आजाद चौक इलाके से दोनों को गिरफ्तार कर एसआईटी कानपुर के सुपुर्द कर दिया था. दोनों पर कानपुर पुलिस की ओर से एकएक लाख रुपए का ईनाम घोषित कर दिया गया था.

जानकारी के मुताबिक कारोबारी मनीष गुप्ता की हत्या में नामजद आरोपी राहुल दुबे और सिपाही प्रशांत कोर्ट में हाजिर होने के लिए गोरखपुर आए थे. इस की भनक गोरखपुर पुलिस को लग गई थी. लिहाजा एसएसपी डा. विपिन ताडा ने घेराबंदी कराई और अलगअलग टीमें लगा दीं.

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इसी बीच कैंट इंसपेक्टर सुधीर कुमार सिंह को मुखबिर से सूचना मिली कि आरोपी एसआई और सिपाही आजाद चौक चौकी के पास मौजूद हैं. दोनों वाहन पकड़ कर कचहरी जाने की फिराक में थे. सूचना मिलने के साथ ही कैंट इंसपेक्टर सुधीर सिंह, रामगढ़ताल इंसपेक्टर सुशील कुमार शुक्ला व फलमंडी चौकी इंचार्ज शेष कुमार शुक्ला पहुंच गए और दोनों आरोपियों को पकड़ लिया.

गिरफ्तार राहुल दुबे मिर्जापुर के कोतवाली देहात के मिश्र पचेर गांव का रहने वाला है, जबकि प्रशांत कुमार गाजीपुर के सैदपुर थानाक्षेत्र के भटौला गांव का रहने वाला है.

इस कांड के 4 आरोपियों की गिरफ्तारी हो चुकी थी, जबकि 2 अभी भी फरार चल रहे थे.

उधर उत्तर प्रदेश सरकार ने मृतक की पत्नी मीनाक्षी गुप्ता को 10 लाख रुपए की आर्थिक सहायता और कानपुर विकास प्राधिकरण में ओएसडी की नौकरी दे कर उन के दुखों पर मरहम लगाने की कोशिश की है.

इस के अलावा सपा नेता अखिलेश यादव ने भी उन्हें 20 लाख रुपए की आर्थिक सहायता दी.

बहरहार, मीनाक्षी गुप्ता ने 11 अक्तूबर को कानपुर विकास प्राधिकरण में ओएसडी पद पर नौकरी जौइन कर ली. उन का कहना है कि आरोपी पुलिसकर्मियों को फांसी दिलाने तक वह अपना संघर्ष जारी रखेंगी.

Crime- चुग्गा की लालच में फंसते, ये पढ़ें लिखे श्रीमान!

आपने एक कहानी पढ़ी होगी- शिकारी “पंछी” को फसाने के लिए दाने डालता है और फिर जाने कितने पंछी उस चुग्गे के लालच में आकर के दाना चुगने लगते हैं और शिकारी उन्हें अपने जाल में फंसा लेता है.
यह कहानी बचपन में पढ़ने के बाद हम मन ही मन हंसते हैं की पंछी बेचारे कितने अनजान होते हैं. और हम जिंदगी में कभी भी ऐसी कोई भूल नहीं करेंगे. इस कहानी का यही संदेश भी है.

मगर बचपन की कहानी जब हम बड़े हो जाते हैं तो शायद भोले भाले इंसान से  एक लालची, लोधी व्यक्ति के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं, जो कहीं थोड़ा भी लाभ दिखाई देता है तो उसे पाने के लिए लालायित हो जाता है. और यह भूल जाता है कि कहीं वह किसी शिकारी का शिकार तो नहीं है.

देश दुनिया में हमारे आसपास ऐसे जाने कितनी घटनाएं घटती जाती है.समाचार पत्रों में सुर्खियां बनती हैं लोग पढ़ते हैं और फिर भूल जाते हैं.

आइए आज हम आपको एक आंख खुलने वाली रिपोर्ट से रूबरू कराएं और देखें कि कैसे पढ़े लिखे लोग ठगी के जाल में फंस जाते हैं लाखों रुपए लुटा के होश आता है.

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प्रथम घटना-नोएडा की श्रीमती रमा शर्मा को फोन कॉल आया कि आपको कौन बनेगा करोड़पति में मौका मिलने वाला है और उनसे दो लाख रुपए ठग  लिए गए.

दूसरी घटना-मध्य प्रदेश के कटनी में एक इंजीनियर को सोशल मीडिया के माध्यम से लाखों रुपए की लाभ का लालच देकर कई लाख रुपए ठग लिए गए.

तीसरी घटना – महाराष्ट्र के नागपुर में एक पुलिस आरक्षक को एक कॉल आया किया की आपको जिओ से लाखों रुपए का लाभ  मिलने वाला है और उससे लाखों  रुपए ठग लिए गए.

हम आपको सावधान करते हैं

ऐसे ही जाने कितने छोटे-छोटे और बड़े-बड़े लालच देकर के लोगों को ठगा जा रहा है, लूटा जा रहा है. पुलिस और समाजिक संस्थाएं यथासंभव यह प्रयास करती हैं कि लोगों में जागरूकता आए. प्रयास जारी है मगर इसके साथ ही ठगी का या खेल और भी ज्यादा बढ़ता चला जा रहा है. अतः हम आपको सावधान करते हैं कि आप किसी शिकारी का चुग्गा फेंकने पर कदापि ना फंसे.

क्योंकि देखा जा रहा है कि  आम लोगों के अलावा भी पढ़े लिखे लोग, शासकीय पदों में बैठे हुए लोग भी छोटे से लाभ के चक्कर में फंस कर के ठगे जा रहे हैं. एक ज्वलंत उदाहरण यह है-

कम दाम में “कार” पाने की लालच में एक युवक दिल्ली के ठगों से 14 लाख रुपए की ठगी का शिकार हो गया. मामला भिलाई के सुपेला थाना क्षेत्र का है. पुलिस के मुताबिक आवेदक मोनिष लोही उम्र 22 साल सेक्टर 2 में रहता है. करीब 3 वर्ष पूर्व 20 दिसंबर 2018 को 24 शपिंग हब के स्वामी हितेश कुमार के कर्मचारी धनराज सिंह ने फोन पर बताया कि हमारे कंपनी से कार खरीदी करने के लिए ऑफर है उसने दाना फेंका-  “प्रमोशनल इवेंट चल रहे हैं, आप टाटा कंपनी की कार नेक्सन जीत सकते हैं.”

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पढ़ा लिखा और दुनिया जाहन  की जानने समझने वाला मनीष उनकी बातों से प्रभावित हो गया और कार जीतने के लालच ने उसे कंपनी के कर्मचारी के बताए अनुसार बैंक खाते में धीरे-धीरे करके 14 लाख रुपए वर्ष 2018 एवं 2019 में किस्तों में भुगतान किया. लेकिन टाटा नेक्सन कार की डिलीवरी मनीष को आज तक अप्राप्त है. इस रिपोर्ट के आधार पर पर पुलिस ने देश की राजधानी दिल्ली की एक महिला ठग सहित तीन लोगों के खिलाफ धोखाधड़ी का अपराध दर्ज करके कार्रवाई की है.

आज चल रही इस ठगी के तारतम्य में पुलिस अधिकारी विकास शर्मा के मुताबिक यह बहुत ही चिंता की बात है कि आम लोग तो ठगी का शिकार हो ही रहे हैं पढ़े लिखे शिक्षित लोग भी सोशल मीडिया के आने के बाद बहुत बड़ी तादाद में जालसाजी और ठगी का शिकार हो रहे हैं इसका मूल कारण सिर्फ लालच ही है.

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सौजन्य: सत्यकथा

दोनों के दिल एकदूसरे के लिए धड़के तो नजदीकियां खुदबखुद बन गईं. इस के बाद दीपक शिवगोविंद की गैरमौजूदगी में रीता से मिलने आने लगा. रीता को उस का आना और उस के साथ लच्छेदार बातें करना अच्छा लगता था. जल्द ही वे एकदूसरे से खुल गए और हंसीमजाक होने लगा.

एक रोज दोपहर में दीपक आया. रीता ने उकसाया तो उस दिन दोनों के बीच की हर दीवार टूट गई और अवैध संबंधों का रिश्ता बन गया.

पति का दोस्त बन गया मीत

उस दिन के बाद रीता और दीपक अकसर देहसुख प्राप्त करने लगे. दीपक ऐसे समय आता, जब शिवगोविंद घर पर नहीं होता. सूने घर में दोनों खूब रंगरलियां मनाते. कभीकभी तो रीता स्वयं ही फोन कर लल्ला को बुला लेती. फिर दो शरीर एक हो जाते.

लेकिन ऐसे संबंध छिपाए नहीं छिपते. धीरेधीरे गांव में रीता और दीपक के संबंधों की चर्चा होने लगी.

रीता के पति शिवगोविंद यादव को जब रीता और दीपक के संबंधों के बारे में पता चला तो उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उस ने इस बारे में पत्नी व दोस्त से बात की तो दोनों ने साफ कह दिया कि ऐसी कोई बात नहीं है.

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लेकिन एक रोज जब उस ने अचानक दोनों को हंसीठिठोली करते देख लिया, तो उस ने रीता की पिटाई की तथा दीपक उर्फ लल्ला को भी फटकारा. पर उन दोनों पर इस का कोई असर नहीं हुआ. दोनों पहले की तरह मौजमस्ती करते रहे.

इस के बाद तो यह रवैया ही बन गया. जिस दिन शिवगोविंद को पता चलता कि दीपक उर्फ लल्ला उस के घर आया था, उस दिन वह रीता से मारपीट करता.

शिवगोविंद का परिवार और गांव वाले इस बात को जान गए थे कि दोनों के बीच तनाव रीता और दीपक के नाजायज रिश्तों को ले कर है.

पत्नी की बेवफाई से तंग आ कर एक दिन शिवगोविंद अपनी भाभी ममता के सामने फूटफूट कर रोने लगा, ‘‘भाभी, कल जिस औरत की मांग में सिंदूर सजा कर मैं ने विधवा होने का कलंक मिटाया तथा समाज में सम्मान दिलाया, आज उस औरत ने समाज में मेरा सिर नीचा कर दिया. जी करता है कि या तो उस नागिन का फन कुचल दूं या फिर खुद जान दे दूं.’’

ममता ने शिवगोविंद को समझाया कि वह सब्र से काम ले. वह रीता को समझाएगी, उसे सही रास्ते पर लाने का प्रयास करेगी. लेकिन ऐसा हो न सका. ममता व उस के पति बालगोविंद ने रीता को समझाया, मानमर्यादा में रहने का पाठ पढ़ाया. लेकिन रीता पर कोई असर नहीं पड़ा.

5 जून, 2021 की शाम शिवगोविंद का दोस्त सतीश उस के घर आया. चायपानी के दौरान दोनों में गपशप होने लगी. सतीश ने रीता की तारीफ की तो शिवगोविंद ने मन की भड़ास निकालनी शुरू कर दी.

सतीश के सामने उस ने रीता की पोल खोल कर रख दी. उस ने कुछ ऐसी भी बातें कह दीं, जो रीता के दिल को चुभ गईं.

पति बना इश्क में रोड़ा

पति की बात दिल में चुभी तो रीता ने पति को मिटाने का निश्चय कर लिया. उस ने प्रेमी दीपक उर्फ लल्ला को घर बुला लिया और घडि़याली आंसू बहाते हुए बोली, ‘‘तुम्हारी वजह से मेरा पति मुझे मारतापीटता है, दूसरों के सामने जलील करता है और तुम दुम दबा कर भाग जाते हो. आखिर तुम कुछ करते क्यों नहीं?’’

‘‘घर का मामला है भाभी, मैं कर ही क्या सकता हूं?’’ दीपक ने मजबूरी जाहिर की.

‘‘विरोध तो कर सकते हो, मुझ पर उठने वाला उस का हाथ मरोड़ तो सकते हो. फिर भी न माने तो…’’ रीता बोली.

‘‘तो क्या भाभी..?’’ दीपक ने आश्चर्य से पूछा.

रीता गुस्से में बोली, ‘‘उस का गला घोट दो, मार डालो उसे, ताकि मैं चैन से रह सकूं.’’

‘‘ठीक है जैसा तुम चाहती हो वैसा ही होगा.’’ इस के बाद रीता और दीपक ने मिल कर शिवगोविंद की हत्या की योजना बनाई. इस योजना में दीपक ने अपने दोस्त अमन व निखिल को भी पैसों का लालच दे कर शामिल कर लिया.

योजना के तहत दीपक उर्फ लल्ला ने 6 जून, 2021 की शाम 5 बजे अमन व निखिल को साबड़ व फावड़े के साथ नोन नदी किनारे खेत पर भेज दिया. फिर वह शिवगोविंद के घर पहुंचा. शिवगोविंद घर पर ही था.

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दीपक ने शिवगोविंद से कहा, ‘‘शौचालय पाटने के लिए लकड़ी चाहिए हो तो मेरे साथ खेत पर चलो. वहां यूकेलिप्टस की लकड़ी दिलवा दूंगा. कीमत भी नहीं चुकानी पड़ेगी.’’

शिवगोविंद ने अंधेरा घिर आने का बहाना बनाया. लेकिन रीता ने उस की बात खारिज कर दी और जबरदस्ती दीपक के साथ भेज दिया. शिवगोविंद नोन नदी के किनारे खेत पर पहुंचा तो वहां अमन और निखिल भी मौजूद थे. उन सब में आपस में बातें होने लगीं.

बातचीत के बीच में ही अमन और निखिल ने शिवगोविंद को दबोच लिया और दीपक ने साबड़ का प्रहार शिवगोविंद के सिर पर कर दिया. साबड़ के प्रहार से शिवगोविंद का सिर फट गया. इस के बाद अमन व निखिल ने फावड़े से प्रहार कर शिवगोविंद को मौत के घाट उतार दिया.

हत्या करने के बाद अमन, निखिल व दीपक शव को उठा कर नदी के किनारे लाए. नोन नदी सूखी थी. वहां तीनों ने मिल कर फावड़े से गहरा गड्ढा खोदा और शिवगोविंद की लाश गड्ढे में दफन कर दी. उन्होंने आलाकत्ल फावड़ा व साबड़ झाडि़यों में छिपा दिए. फिर वापस अपने अपने घर आ गए.

दीपक ने रीता को फोन कर के बता दिया कि उस के सुहाग को मिटा दिया गया है और शव को नोन नदी में दफना दिया है.

इधर जब कई दिनों से शिवगोविंद दिखाई नहीं दिया, तो ममता ने रीता से सवालजवाब किया. शक होने पर उस ने सारी बात पति बालगोविंद को बताई. बालगोविंद ने तब थाना अकबरपुर में भाई की गुमशुदगी दर्ज कराई और शक उस की पत्नी रीता पर किया.

शक होने पर थानाप्रभारी तुलसीराम पांडेय ने रीता को गिरफ्तार किया. उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो शिवगोविंद की हत्या का परदाफाश हो गया और कातिल पकड़े गए.

13 जून, 2021 को थाना अकबरपुर पुलिस ने आरोपी दीपक उर्फ लल्ला, अमन तथा रीता को कानपुर देहात की माती अदालत में पेश किया, जहां से उन को जिला जेल भेज दिया गया. कथा लिखने तक निखिल फरार था. पुलिस उसे गिरफ्तार करने का प्रयास कर रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सहयोगी : जय कुमार मिश्र

Manohar Kahaniya- किडनैपिंग: चंबल से ऐसे छूटा अपहृत डॉक्टर- भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

आगरा के ट्रांसयमुना कालोनी के रहने वाले सीनियर डाक्टर उमाकांत गुप्ता अपने रोजाना की रुटीन के मुताबिक 13 जुलाई, 2021 की शाम साढ़े 7 बजे अपने विद्या नर्सिंग होम जाने के लिए घर से अपनी नीले रंग की बलेनो कार से निकले थे. उन का नर्सिंग होम घर से महज 700 मीटर की दूरी पर रौयल कट चौराहे के पास है और रामबाग क्षेत्र में उन का दूसरा बांकेबिहारी हौस्पिटल भी है.

वह हौस्पिटल और नर्सिंग होम में विजिट कर हमेशा रात 10 बजे तक वापस घर लौट आते थे. लेकिन उस दिन वे रात 11 बजे तक घर नहीं लौटे थे. इस कारण घर वालों को  चिंता हुई. उन की पत्नी डा. विद्या गुप्ता ने उन्हें कई बार फोन मिलाया. हर बार फोन स्विच्ड औफ मिला.

डा. विद्या ने नर्सिंग होम फोन कर स्टाफ से डाक्टर साहब के बारे में पूछा. वहां से पता चला कि आज तो डाक्टर साहब विजिट करने नर्सिंग होम आए ही नहीं. यह सुन कर डा. विद्या गुप्ता का माथा ठनका, वह सोच में पड़ गईं, ‘‘आए नहीं तब कहां गए?’’

उन्होंने तुरंत बांकेबिहारी हौस्पिटल में फोन मिलाया. वहां से भी वही सुनने को मिला कि डाक्टर साहब आज आए ही नहीं. डा. विद्या की अपने पति के सकुशल होने की चिंता अनहोनी की आशंका में बदलती जा रही थी. देरी किए बगैर उन्होंने इस की सूचना पुलिस को दे दी.

सूचना पर थाना एत्माद्दौला के थानाप्रभारी देवेंद्र शंकर पांडेय पुलिस टीम के साथ  डाक्टर के आवास पर पहुंच गए. पूरे घटनाक्रम की जानकारी ले कर परिवार के सभी सदस्यों के मोबाइल नंबरों को सर्विलांस पर लगा दिया. इसी के साथ डा. गुप्ता के मोबाइल की अंतिम लोकेशन का पता लगाया, जो सैयां के गांव रोहता की मिली.

इसे देख कर पुलिस भी किसी अप्रिय घटना से आशंकित हो गई. उस ने घरवालों से पूछा कि डाक्टर साहब वहां क्यों गए होंगे. तब उन्होंने बताया कि इस की उन्हें जानकारी नहीं, क्योंकि वहां उन का कोई परिचित या कोई रिश्तेदार भी नहीं रहता.

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डा. विद्या ने बताया कि उन के पति ने कभी भी उस गांव को ले कर चर्चा तक नहीं की थी. फिर भी सवाल था कि डाक्टर साहब वहां क्यों गए, किसी भी तरह से जवाब नहीं मिलने की स्थिति में पुलिस को उन के अपहरण का शक हुआ.

यानी डा. गुप्ता का अपहरण! यह संदेह उन के परिवार वालों के होश उड़ाने वाला था. दबी आवाज में इस की कानोकान खबर भी पूरे शहर में फैल गई.

डा. उमाकांत गुप्ता के मोबाइल पर 13 जुलाई की शाम साढ़े 7 बजे एक अनजान नंबर से काल आई थी. उस के बाद ही वह घर से कार ले कर निकल पड़े थे. पुलिस ने उन के दूसरे काल की भी डिटेल्स जांची. सभी काल के साथ राहुल नाम दर्शा रहा था. पुलिस ने राहुल के बारे में पूछा तो डाक्टर के घर वालों ने अनभिज्ञता प्रकट की.

डाक्टर को ढूंढने में जुटीं 5 टीमें

पुलिस सोच में पड़ गई कि आखिर राहुल कौन है, उस ने डाक्टर को क्यों बुलाया होगा? क्या वह डाक्टर की कार में ही उन के साथ खंदारी से रोहता तक गया होगा? इन सवालों के जवाब के लिए पुलिस सक्रिय हो गई.

घटना की जानकारी आला अधिकारियों को भी दे दी गई. डाक्टर की तलाश तेजी से की जाने लगी. वारदात को ले कर उन के परिजन, नर्सिंग होम या फिर अस्पताल के लोगों से कोई सहयोग नहीं मिल पाया. उन्होंने डाक्टर साहब के किसी से विवाद या धमकी को लेकर अनभिज्ञता जाहिर कर दी.

पुलिस को अपने स्तर से छानबीन करते हुए डाक्टर गुप्ता को सकुशल वापस लाना बड़ी चुनौती थी. सैयां टोल प्लाजा के सारे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज चेक किए, लेकिन उस से किसी भी तरह का सुराग नहीं मिला.

पुलिस को आशंका थी कि डा. गुप्ता का अपहरण करने से पहले गैंग ने पूरी तैयारी की होगी. वे डाक्टर को सैयां रोड पर रोहता की तरफ अकेले गाड़ी चला कर नहीं जा सकते हैं. इसलिए अनुमान लगाया गया कि उन्हें बहाने से फोन कर बुलाया होगा. उस के बाद बदमाशों ने अपहरण कर लिया हो.

डाक्टर गुप्ता के अपहरण की सूचना पर एडीजी (जोन) राजीव कृष्ण, आईजी नवीन अरोड़ा, एसएसपी मुनिराज और एसपी (सिटी) बोत्रे रोहन प्रमोद भी सक्रिय हो गए. उन्होंने परिजनों को आश्वासन देने के साथसाथ हिदायत भी दी कि फिरौती के संबंध में किसी भी तरह के फोन आने पर वे पुलिस को अवश्य सूचित करें.

डा. विद्या को इस बात का विशेष ध्यान रखने को कहा गया. उन्होंने बताया कि डा. गुप्ता दिल के मरीज भी हैं, उन का 3 महीने पहले औपरेशन हुआ था.

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आगरा में अपहरण की यह पहली घटना नहीं हुई थी. इस से पहले भी अपहरण की कई वारदातों में डाक्टर से ले कर व्यापारी तक को निशाना बनाया जा चुका है. अपहर्त्ताओं के गैंग फिरौती में मोटी मोटी रकम वसूलते रहे हैं.

बताते हैं कि इन की सक्रियता धौलपुर (राजस्थान) में है, वह आगरा से अपहृत को ले जाते हैं और उन्हें चंबल के बीहड़ में छिपा कर रखते हैं. फिरौती वसूलने के काम गैंग के अलगअलग सदस्य करते हैं.

इसे ध्यान में रखते हुए पुलिस ने पहले के अपहरण की वारदातों में लिप्त गैंग के ऐसे सरगना और सदस्यों की सूची तैयार की, जो जमानत पर रिहा थे. एसएसपी मुनिराज के निर्देश पर जांच की 5 टीमें गठित की गईं.  टीमों का नेतृत्व एसपी (सिटी) प्रमोद बोत्रे को सौंपी गई.

जांच की शुरुआत मोबाइल नंबरों से हुई. जांच और सर्विलांस के तहत वारदात के दिन की तमाम संदिग्ध सीसीटीवी कैमरों की फुटेज को भी खंगाला गया. इन से मिली जानकारियों के आधार पर पूछताछ की तैयारी की गई. यह सब काम घटना की रात को ही कर लिया गया.

धौलपुर पुलिस के चंगुल में आया पवन

पुलिस ने रात में ही ट्रांसयमुना कालोनी से ले कर रामबाग, भगवान टाकीज और खंदारी तक के सीसीटीवी कैमरे चेक किए. उन में डाक्टर की कार कहीं नजर नहीं आई. जबकि उस के बाद कार एमजी रोड पर हरी पर्वत, धाकरान और प्रतापपुरा चौराहे से आगे जाती हुई दिखाई दी.

अगले रोज 14 जुलाई, 2021 की सुबह 10 बजे धौलपुर के एसपी केसर सिंह शेखावत ने एसएसपी मुनिराज को घटना के बारे में बताया. उन के आदेश पर आगरा पुलिस की एक टीम एसपी (सिटी) के नेतृत्व में राजस्थान बौर्डर पर पहुंची. उस ने धौलपुर पुलिस से संपर्क किया. वहीं डाक्टर गुप्ता के कार की बरामदगी का पता चला, जो रात साढ़े 12 बजे धौलपुर में जब्त की गई थी.

उस के ड्राइवर द्वारा ओवरटेक किए जाने के कारण स्थानीय सिपाहियों ने पकड़ा था. पकड़े गए ड्राइवर पवन ने बताया कि वह आगरा में निबोहरा का निवासी है और डा. गुप्ता की कार का ड्राइवर है. डाक्टर साहब धौलपुर आए हुए हैं. वह उन की कार ले कर अपने काम से जा रहा था.

सिपाहियों को पवन ने पूछे गए सवालों का सटीक जवाब नहीं दिया. क्योंकि कार छोड़ने के लिए उस ने पुलिस को 500 से ले कर 5 हजार तक रिश्वत देने की पेशकश की थी.

इस कारण उस के किसी गंभीर मामले में शामिल होने का संदेह हो गया और उसे थाने लाया गया. कड़ाई से की गई पूछताछ के बाद उस ने आगरा के डाक्टर के अपहरण की बात कुबूल कर ली.

2 अपहर्त्ता और चढ़े पुलिस के हत्थे

एक अन्य घटना के तहत रात के लगभग एक बजे चैकिंग कर रही पुलिस ने बाइक पर जा रहे एक युवक और युवती को रोकने का प्रयास किया. युवक युवती को उतार कर तेजी से बाइक को भगा ले गया. भागते समय युवक की जेब से उस का मोबाइल गिर गया.

पुलिस ने तुरंत युवती और गिरे मोबाइल को अपने कब्जे में ले लिया. पूछताछ में युवती ने अपना नाम मंगला पाटीदार बताया. उसी से पता चला कि वह भी डाक्टर के अपहरण में शामिल है.

इन 2 घटनाओं में 2 अपहर्त्ताओं के पकड़े जाने की सूचना मिलने से आगरा पुलिस ने थोड़ी राहत की सांस ली. मात्र 15 घंटे में ही डाक्टर की कार बरामद होने के साथसाथ 2 अपहर्त्ता पकड़े गए थे. अब पुलिस को उन के चंगुल से डाक्टर को सकुशल वापस लाने की चुनौती थी.

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डा. गुप्ता के आगरा से अपहरण का समाचार जब समाचार पत्रों के अलावा न्यूज चैनलों पर भी आया तो पूरे शहर में सनसनी फैल गई.

इस प्रकरण पर इंडियन मैडिकल एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने डीएम और एसएसपी से बात कर जल्द से जल्द उन की बरामदगी और दोषियों पर काररवाई की मांग की.

पदाधिकारियों ने वर्चुअल मीटिंग कर  पुलिस प्रशासन पर दबाव बनाते हुए 24 घंटे का अल्टीमेटम दे दिया. डाक्टर की बरामदगी नहीं होने पर आगरा के तमाम डाक्टरों ने हड़ताल पर जाने की धमकी दे डाली.

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Satyakatha: खूंखार प्यार- भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

‘‘अच्छा, ऐसी अंतिम धमकियां तो तुम जाने कितनी बार दे चुके हो. तुम मेरा मुंह बंद कर के गुलछर्रे उड़ाना चाहते हो. मेरी जिंदगी, मेरी बच्ची की जिंदगी बरबाद करना चाहते हो. मैं तुम से डरने वाली नहीं. देखो, एक मैं ही हूं जो तुम्हें बारबार माफ करती हूं. कोई दूसरी औरत होती तो अभी तक तुम जेल में होते.’’ वह गुस्से में बोली.

‘‘दीपू, तुम बारबार मुझे जेल की धमकी मत दिया करो, मैं भी कोई आम आदमी नहीं, मेरी भी ऊंची पहुंच है. चाहूं तो तुम्हें गायब करवा दूं, कोई ढूंढ भी नहीं पाएगा. बहुत ऊंची पहुंच है मेरी.’’

वे दोनों इसी तरह आपस में नोकझोंक करते हुए गृहनगर बिलासपुर की ओर बढ़ रहे थे. अचानक देवेंद्र ने कार रोकी और दीप्ति की तरफ देखते हुए बोला, ‘‘मैं एक मिनट में आता हूं.’’

दीप्ति ने उस की तरफ प्रश्नसूचक भाव से  देखा तो देवेंद्र ने छोटी अंगुली दिखाते हुए कहा, ‘‘लघुशंका.’’

देवेंद्र ने गाड़ी को सड़क से नीचे उतार दिया था. रात के लगभग 10 बज रहे थे, दीप्ति पीछे सीट पर बैठी हुई थी. दीप्ति ने गौर किया देवेंद्र देखतेदेखते कहीं दूर चला गया, दिखाई नहीं दे रहा था.

वह चिंतित हो उठी और इधरउधर देखने लगी. तभी उस ने देखा सामने से 2 लोग उस की ओर तेजी से आ रहे हैं. दोनों के चेहरे पर नकाब था, यह देख दीप्ति घबराई मगर देखते ही देखते दोनों उस पर टूट पड़े.

उन में एक पुरुष था और एक महिला, पुरुष ने जल्दी से एक नायलोन की रस्सी उस के गले में डाल दी और उस का गला रस्सी से दबाने लगा. इस में उस की साथी महिला भी उस की मदद करने लगी और दीप्ति का दम घुटने लगा. थोड़ी देर वह छटपटाती रही फिर आखिर में उस का दम टूट गया.

पुरुष और महिला ने मिल कर के उस का पर्स और मोबाइल अपने कब्जे में लिया. रुपए ले लिए, मोबाइल का सिम निकाला और जल्दीजल्दी उसे अपने कब्जे में ले कर के जेब में रखा. और एक झोले में लाए पत्थर से कार का शीशा तोड़ कर चले गए.

मगर उन लोगों ने यह ध्यान नहीं दिया कि इस आपाधापी में मोबाइल में लगा एक दूसरा सिम वहीं नीचे जमीन पर गिर गया है.

देवेंद्र सोनी और दीप्ति का विवाह 2003 में हुआ था. देवेंद्र के पिता रामस्नेही सोनी नगर के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे और उन का संयुक्त परिवार बिलासपुर के सरकंडा बंगाली पारा में रहता था.

देवेंद्र बीकौम की पढ़ाई कर ही रहा था कि पिता ने जिला कोरबा के उपनगर बालको कंपनी में कार्यरत कृष्ण कुमार सोनी की दूसरी बेटी दीप्ति से उस के विवाह की बात चलाई और दोनों परिवारों की सहमति से विवाह संपन्न हो गया.

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विवाह के बाद मानो देवेंद्र सोनी का असली रूप धीरेधीरे सामने आता चला गया. देवेंद्र चार्टर्ड अकाउंटेंट बनने की तैयारी कर रहा था, मगर परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं हो पा रहा था. इधर उस की आकांक्षाएं बहुत ऊंची थीं. अपनी ऊंची उड़ान के कारण ऐसीऐसी बातें कहता और नित्य नईनई लड़कियों से दोस्ती की बातें दीप्ति को बताता.

शुरू में तो वह नजरअंदाज करती रही, परंतु पैसों की कमी होने के बावजूद वह हमेशा अच्छेअच्छे कपड़े पहनता और नईनई लड़कियों से संबंध बनाता रहता था.

यह बात जब दीप्ति को पता चलने लगी तो दोनों में अकसर विवाद गहराने लगा. इस बीच दोनों की एक बेटी सोनिया का जन्म हुआ, जो लगभग 7 साल की हो गई थी. और बिलासपुर के एक अच्छे कौन्वेंट स्कूल में पढ़ रही थी.

रात के लगभग साढ़े 11 बज रहे थे. जिला चांपा जांजगीर के पंतोरा थाने के अपने कक्ष में थानाप्रभारी अविनाश कुमार श्रीवास बैठे अपने स्टाफ से कुछ चर्चा कर रहे थे कि उसी समय घबराए हुए 2 लोग भीतर आए.

एक के चेहरे पर मानो हवाइयां उड़ रही थीं. उन्हें इस हालत में देख अविनाश कुमार को यह समझते देर नहीं लगी कि कोई बड़ी घटना घटित हो गई है. उन्होंने कहा, ‘‘हांहां बताओ, क्या बात है, क्यों इतना घबराए हुए हो?’’

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दोनों व्यक्तियों, जिन की उम्र लगभग 30-35 वर्ष के लपेटे में थी, में से एक ने खड़ेखड़े ही लगभग कांपती हुई आवाज में बोला, ‘‘सर, मैं देवेंद्र सोनी 2-3 जिलों में कई प्रतिष्ठित लोगों के लिए अकाउंटेंट का काम करता हूं. मैं अपनी पत्नी दीप्ति के साथ कोरबा से बिलासपुर जा रहा था कि कुछ लोगों ने हम से लूटपाट की और मेरी पत्नी को…’’ ऐसा कह कर वह इधरउधर देखने लगा.

‘‘क्यों, क्या हो गया आप की पत्नी को… विस्तार से बताओ. आओ, पहले आराम से कुरसी पर बैठ जाओ.’’ अविनाश कुमार श्रीवास ने  उठ कर दोनों को अपने सामने कुरसी पर बैठाया और पानी मंगा कर के पिलाते हुए कहा.

अगले भाग में पढ़ें- श्रीवास ने फोन लगाया तो उस का फोन दिन भर बंद  मिला

Satyakatha: डॉक्टर की बीवी- रसूखदार के प्यार का वार- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

खुशबू विक्रम के प्यार में ऐसी पड़ी कि हमेशा के लिए उस के साथ रहने के बारे में सोचने लगी. उस ने विक्रम से बात की, ‘‘विक्रम, मैं अब तुम्हारे बिना नहीं रह सकती. हमें अब हमेशा के लिए एक हो जाना चाहिए. साथ रहेंगे तो और भी प्यार बढ़ेगा.’’

विक्रम यह सुन कर सन्न रह गया, ‘‘बोलने से पहले आप एक बार सोच लेती कि क्या कहने जा रही हो. तुम शादीशुदा हो और 2 बच्चों की मां हो और एक प्रतिष्ठित परिवार से हो. ऐसा करने पर तुम्हारा परिवार तो बरबाद होगा ही, मैं भी कहीं का नहीं रहूंगा. राजीव सर भी मुझे नहीं छोड़ेगे, जान से मार देंगे.’’

‘‘मैं ने सब सोच लिया है, अब मैं तुम्हारे साथ ही रहूंगी. चाहे कुछ हो जाए. तुम को मेरी बात माननी ही पड़ेगी. एक बात ध्यान रखो कि मैं जो चाहती हूं, वह पा कर रहती हूं, नहीं तो मैं सामने वाले को बरबाद कर देती हूं. अब तुम सोच लो, क्या करना है.’’ कह कर खुशबू वहां से चली गई.

खुशबू हमेशा के लिए अपना बनाना चाहती थी जिम ट्रेनर को

विक्रम तो सिर्फ खुशबू से संबंध बनाने के लिए जुड़ा था, लेकिन अब वह उस के लिए गले की हड्डी बन रही थी. ऐसे में विक्रम ने उस से दूरी बनानी शुरू कर दी. खुशबू को यह बात समझते देर नहीं लगी.

वह विक्रम के जिम जाने लगी, वहां रोज वह घंटों बैठी रहती. वह विक्रम का पीछा छोड़ने को बिलकुल तैयार ही नहीं थी. दोनों में अब प्यार के बजाय झगड़े होने लगे.

खुशबू अपनी जिद पूरी न होती देख कर बौखला सी गई. उस ने विक्रम के साथ रहने के लिए विक्रम को हर तरह से मना कर देख लिया था, लेकिन विक्रम मानने को तैयार ही नहीं था. खुशबू का दीवानापन या कहें पागलपन अपनी सीमाएं लांघने लगा था.

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विक्रम के न मानने पर वह उसे सबक सिखाने पर आमादा हो गई. वह विक्रम के घर जा कर विक्रम और उस के परिवार को धमकाने लगी कि विक्रम अगर उस की बात नहीं मानता तो वह उसे जान से मार देगी. एक बार तो उस ने विक्रम पर सर्जिकल ब्लेड से हमला भी कर दिया, जिस में विक्रम को 14 टांके लगे थे.

खुशबू गुस्से में बिफरी नागिन की तरह विक्रम को डंसने को आतुर थी. विक्रम को जान से मारने के लिए उस ने अपने पूर्व प्रेमी मिहिर सिंह से संपर्क किया. मिहिर दानापुर के नासरीगंज के यदुवंशी नगर में रहता

था. पिछले 5 सालों से उस के खुशबू से प्रेम संबंध थे.

घटना से डेढ़दो साल पहले ही उन का बे्रकअप हुआ था. अब खुशबू ने उस से प्रेम संबंध बनाए रखने के लिए अपने दूसरे प्रेमी विक्रम की जान का सौदा करवाने के लिए कहा. मिहिर उस का काम करवाने के लिए तैयार हो गया.

मिहिर 2 लोगों की मदद से शूटर अमन तक पहुंचा. अमन समस्तीपुर के किशनपुर बैकुंठ में रहता था. वह पत्राचार से एमबीए कर रहा था, साथ ही डिलीवरी बौय का भी काम करता था. अमन विक्रम की सुपारी लेने को तैयार हो गया. अमन ने अपने साथ आर्यन और शमशाद को मिला लिया.

आर्यन उर्फ रोहित सिंह सारण के सोनपुर के जहांगीरपुर का रहने वाला था. जबकि शमशाद बेगूसराय के चेरिया बरियापुर का रहने वाला था. वह गोवा में रह कर राजमिस्त्री का काम करता था. 5 महीने पहले ही वह वापस आया था.

मिहिर ने तीनों से बात कर के पूरा प्लान बनाया. सुपारी की रकम ढाई लाख रुपए तय हुई, जिस में एक लाख 85 हजार रुपए खुशबू ने 2-3 बार में दिए.

2 महीने पहले ही योजना बन गई थी. तीनों शूटर भागवतनगर इलाके में 14 हजार रुपए महीने के किराए के मकान में आ कर रहने लगे थे. 2 महीने पहले ही रुपए दिए जाने के बावजूद भी शूटर्स ने अपना काम नहीं किया तो मिहिर रुपए वापस ले कर खुशबू को दे कर इस झंझट से बाहर निकलना चाहता था.

मगर ऐसा हुआ नहीं, दबाव बढ़ा तो शूटर जल्द ही काम को अंजाम तक पहुंचाने को तैयार हो गए. शूटर्स ने कुछ दिन विक्रम की रेकी की, फिर 18 सितंबर, 2021 की सुबह एक चोरी की बाइक से कदमकुआं थाना क्षेत्र के लोहा मंडी इलाके में पहुंच गए. अमन

और आर्यन रास्ते में निश्चित स्थान पर खड़े हो गए. शमशाद कुछ दूरी पर बाइक ले कर खड़ा हो गया.

जैसे ही विक्रम स्कूटी से उस रास्ते से उन के पास से गुजरने लगा तो अमन और आर्यन ने उस पर ताबड़तोड़ फायरिंग करनी शुरू कर दी. गोलियां मारने के बाद तीनों शूटर भागवतनगर के किराए के मकान पर वापस आ गए. अंतत: पकड़े गए.

पुलिस ने उन के पास से 2 पिस्टल, मैगजीन और गोलियां बरामद कीं. पुलिस ने डाक्टर दंपति, मिहिर सिंह और तीनों शूटर्स को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया. कथा लिखने तक 2 आरोपी गिरफ्तार नहीं हो सके थे.

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खुशबू अपनी जिद और प्यार के पागलपन में इतनी अंधी हो गई कि उस ने अपना बसाबसाया घर तक बरबाद कर लिया. अच्छीखासी घरगृहस्थी और जिंदगी को छोड़ कर अब खुशबू बेउर जेल की बैरक में तन्हा जिंदगी गुजार रही है.

साजिश का पता होते हुए भी पति राजीव ने साथ दिया, वह भी अलग बैरक में बड़ी मुश्किलों में रह रहा है.

यह कहानी उन लोगों के लिए सबक है जो अपनी जिद, चाहत और पागलपन में सब कुछ बरबाद कर देते हैं. समय रहते अपने को संभाल लें तो उन की और उन के अपनों की जिंदगी बरबाद होने से बच सकती है.

—कथा पुलिस सूत्रों व मीडिया रिपोर्टों पर आधारित

Satyakatha- अय्याशी में गई जान: भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

Writer- प्रमोद गौडि़या

वह फ्लैट सत्यम और विशाल के लिए मौजमस्ती का अड्डा बन कर रह गया था. कई बार वहां सरवन के साथ भी बैठकें होती थीं और पार्टी का दौर चलता था.

उस फ्लैट पर एक और लड़की राधा का भी अकसर आनाजाना लगा रहता था. वह वहां बेधड़क आती थी और अधिकार के साथ कुछ समय वहां गुजार कर चली जाती थी.

हालांकि वह दूसरे मोहल्ल्ले मनीराम बगिया में रहती थी. वास्तव में वह सत्यम की मौसेरी बहन थी. सत्यम ने एक चाबी राधा को भी दे रखी थी. वहीं करीब 2 साल पहले एक बार उस की विशाल से मुलाकात हो गई थी. पहली नजर में ही दोनों एकदूसरे की ओर आकर्षित हो गए थे.

विशाल राधा की खिलती किशोरावस्था को देख कर हतप्रभ रह गया था, जबकि राधा उस की बातें और माचो बदन की दीवानी बन गई थी. उस के बाद से विशाल और राधा अकसर साथसाथ घूमनेफिरने लगे थे, लेकिन दोनों सत्यम की नजरों से बच कर भी रहते थे.

वे नहीं चाहते थे कि उन के प्रेम संबंध के बारे में सत्यम को कोई जानकारी हो. जल्द ही विशाल ने मौका पा कर राधा से शारीरिक संबंध भी बना लिए. राधा की भी उस में स्वीकृति मिल गई थी. सत्यम की गैरमौजूदगी में राधा विशाल को उसी फ्लैट पर बुला लेती थी.

7 सितंबर, 2021 को सत्यम ओमर ने राधा को फोन पर बताया था कि वह आज वहां नहीं आएगा. बाहर बालकनी में उस के कपड़े सूख गए होंगे, उन्हें अलमारी में रख दे. किचन और दूसरे कमरे के बिखरे सामान आ कर ठीक कर दे.

अपने भाई की बातों पर अमल करते हुए राधा ने अपने प्रेमी विशाल के साथ मौज करने की भी योजना बना ली. उस ने तुरंत फोन कर इस की सूचना विशाल को दी और शाम को खानेपीने का सामान ले कर फ्लैट पर आने को कहा.

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शाम होने से पहले वह फ्लैट पर चली गई, किचन और कमरे को दुरुस्त किया. तब तक शाम के साढ़े 8 बज चुके थे. अब तक विशाल को आ जाना चाहिए था, क्योंकि उस ने 8 बजे तक आने को कहा था. देर होने पर राधा ने विशाल को फोन किया, जिसे विशाल ने रिसीव नहीं किया.

करीब 20 मिनट बाद विशाल ने फोन कर राधा को बताया कि वह पहुंचने वाला है. और फिर वह ठीक 9 बजे फ्लैट पर पहुंच गया. वहीं अपार्टमेंट की पार्किंग में उस ने अपनी स्कूटी भी लगा दी.

राधा उस का बेसब्री से इंतजार कर रही थी. उसे देखते ही वह उस के गले लग गई. दोनों अकेले में कई हफ्तों बाद मिले थे. इस मौके को किसी भी सूरत में गंवाना नहीं चाहते थे. राधा के लिए पूरी रात थी. विशाल भी खानेपीने के सामान के साथ आया था.

दोनों बेफिक्र थे. मौजमस्ती के लिए पूरी तरह से तैयार और तत्पर भी थे. इसी तत्परता में उन से एक भूल हो गई. मुख्य दरवाजे की अंदर से कुंडी लगाना भूल गए. वे बैडरूम में थे. ड्राइंगरूम की ओर उन का जरा भी ध्यान नहीं था.

दोनों एकदूसरे पर प्यार की बौछार करते हुए कब यौनाचार में लीन हो गए, पता ही नहीं चला. दूसरी ओर वाटर प्लांट में काम समाप्त हो जाने पर सत्यम फ्लैट पर अचानक आ गया. फ्लैट का दरवाजा खुला होने पर वह सीधे ड्राइंगरूम में दाखिल हुआ. बैडरूम में रोशनी देख कर चौंक गया और वहां जा कर दरवाजे पर लगे परदे को हटाया.

बैड पर अपनी बहन राधा के साथ विशाल को लिपटा देख सन्न रह गया. वे दोनों आंखें मूंदे इतने बेफिक्र थे कि सत्यम के दरवाजे पर आने की जरा भी आहट नहीं हुई. गुस्से की ज्वाला को दबाए सत्यम चुपचाप फ्लैट के नीचे आया.

नीचे से लोहे की रौड निकाली और ऊपर पहुंच कर राधा के आलिंगन में बंधे विशाल के सिर पर दे मारी. एक ही वार में सिर से खून बहने लगा. राधा अपनी जान बचाते हुए दूसरे कमरे में भागी. गुस्से में सत्यम ने विशाल के सिर पर दनादन 3-4 और वार कर दिए.

सिर पर ताबड़तोड़ वार से विशाल की वहीं मौत हो गई. राधा के सामने ही विशाल की मौत हो गई थी, लेकिन वह डर गई थी कि कहीं सत्यम उसे भी न मार डाले.

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सत्यम ने डपटते हुए इस बारे में किसी को बताने की उसे सख्त हिदायत दे दी. उसे जल्दी से दीवार पर लगे खून के दाग मिटाने को कहा. उस के बाद तुरंत अपने दोस्त सरवन को बुलाया.

सरवन भागाभागा आया. लाश देख कर उस के होश उड़ गए, लेकिन जल्द ही सामान्य होने पर लाश को ठिकाने लगाने की योजना बनाई. तब तक रात के साढ़े 11 बज गए थे.

इसलिए सरवन योजना के अनुसार अगले रोज 8 सितंबर को प्लास्टिक का एक ड्रम खरीद लाया. उस में विशाल की लाश ठूंस कर पैक कर दी. ड्रम को उस पर लगी स्टील की स्ट्रिप से पैक कर दिया.

उस के बाद ड्रम को विशाल की स्कूटी पर लादकर कैंट होते हुए जाजमऊ गंगापुल से दही थाने की खेड़ा चौकी क्षेत्र जा पहुंचे. उन्होंने ड्रम को नहर के पास झाडि़यों में फेंक दिया. साथ ही विशाल का मोबाइल फोन भी नहर में फेंक दिया. उस की स्कूटी से वापस कानपुर आ गए.

सत्यम ने विशाल की स्कूटी अपने यशोदा नगर स्थित प्लौट के पास पेड़ के नीचे खड़ी कर दी. जबकि उस के खून से सने कपड़ों को कूड़ाघर में फेंक आया.

आरोपियों द्वारा अपना जुर्म स्वीकार कर लेने के बाद थानाप्रभारी सतीश कुमार सिंह ने आईपीसी की धारा 302/201/120बी के तहत हत्यारोपी सत्यम ओमर, सरवन किशोरी राधा को न्यायालय में पेश किया.

वहां से सत्यम और सरवन को कानपुर के जिला कारागार भेज दिया गया, जबकि साक्ष्य छिपाने के आरोप में राधा को नारी निकेतन के सुरक्षा गृह में भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित है तथा किशोरी राधा का नाम कल्पनिक है

Manohar Kahaniya: डिंपल का मायावी प्रेमजाल- भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

इस गलती का अहसास उन्हें तब हुआ, जब डिंपल और उस के गैंग के सदस्यों ने उन से करीब 60 लाख रुपए ऐंठ लिए. यह शातिर गैंग डिंपल के सहारे मोटी आसामी को इस तरह फांसता था कि…

गुजरात के जिला ऊंझा की गंजबाजार की एक कंपनी में मेहता (मुनीम) की नौकरी करने वाले मेहताजी आ कर अभी गद्दी पर बैठे ही थे कि उन के

फोन की घंटी बजी. उन्होंने फोन उठा कर स्क्रीन देखी तो पता चला फोन किसी अंजान का है, क्योंकि स्क्रीन पर नाम के बजाए नंबर आ रहा था.

किसी व्यापारी का नया नंबर होगा, यह सोच कर मेहताजी ने फोन उठा लिया. उन्होंने फोन उठा कर जैसे ही ‘हैलो’ कहा, दूसरी ओर से शहद में घुली आवाज आई, ‘‘हैलो मेहताजी, मैं डिंपल बोल रही हूं.’’

हैरान हो कर मेहताजी ने पूछा, ‘‘कौन डिंपल, मैं तो किसी डिंपल को नहीं जानता?’’

‘‘नहीं जानते तो अब जान जाएंगे. मैं तो आप को खूब अच्छी तरह जानती हूं मेहताजी.’’ दूसरी ओर से फिर उसी खनकती आवाज में कहा गया.

‘‘आप भले मुझे जानती हैं, पर मैं तो आप को बिलकुल नहीं जानता. खैर, छोड़ो यह सब. यह बताइए कि आप ने फोन क्यों किया है?’’ मेहताजी ने पूछा.

‘‘दोस्ती करने के लिए,’’ डिंपल ने कहा.

‘‘दोस्तीऽऽ आप मुझ से क्यों दोस्ती करना चाहती हैं?’’ मेहताजी ने हैरानी से पूछा जरूर, पर एक लड़की द्वारा दोस्ती करने की बात सुन कर उन के मन में लड्डू फूटने लगे थे. एक लड़की ने खुद ही दोस्ती का औफर जो किया था. लेकिन उसी समय औफिस में कस्टम आ गए तो उन्होंने कहा, ‘‘ऐसा है डिंपलजी, अब औफिस में लोग आ गए हैं, इसलिए इस तरह की बातें नहीं हो सकतीं. दोपहर को लंचटाइम में मैं आप को फोन करता हूं.’’

‘‘कितने बजे होता है आप का लंच?’’ डिंपल ने पूछा.

‘‘एक बजे.’’

‘‘तब तक मुझे इंतजार करना होगा? इतनी देर तक कैसे इंतजार करूंगी मैं?’’ वह बोली.

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‘‘जैसे अब तक किया है. आज से पहले जिस तरह आप का काम चल रहा था, उसी तरह चलाइए,’’ मेहता ने कहा.

‘‘मेहताजी, तब की बात और थी. तब आप से दोस्ती कहां हुई थी. अब दोस्ती हो गई है तो इंतजार करना बहुत मुश्किल लग रहा है.’’

‘‘ऐसा है, अब काम करने दो. दोपहर को एक बजे मैं फोन करता हूं. बाय…’’

‘‘बाय करने का मन तो नहीं कर रहा है, पर आप को काम करना है न, इसलिए बेमन से बाय कह रही हूं.’’ डिंपल बोली.

डिंपल ने जैसे ही बाय कहा, मेहताजी ने काल डिसकनेक्ट कर दी और डिंपल का नंबर अपने फोन में सेव कर लिया.

मेहताजी की भी मजबूरी थी, इसलिए न चाहते हुए उन्होंने फोन तो काट दिया था, पर उन का मन यही कर रहा था कि वह काम छोड़ कर बाहर निकल जाएं और डिंपल को फोन लगा कर आराम से बैठ जाएं और खूब बातें करें.

दूसरी ओर वह यह भी सोच रहे थे कि यह डिंपल कौन है, उन्हें कैसे जानती है, उन से क्यों दोस्ती करना चाहती है. यह सब उन की समझ में नहीं आ रहा था. इसी सोच में डूबे होने की वजह से उस दिन काम में उन का मन नहीं लग रहा था. उन का पैसों के हिसाबकिताब का काम था, अगर कुछ गड़बड़ होती तो उन की साख खराब हो सकती थी.

बहरहाल, किसी तरह उन्होंने दोपहर तक का समय बिताया. लंच होते ही लंच बौक्स खोलने के साथ ही उन्होंने डिंपल को फोन लगा दिया.

दूसरी ओर डिंपल जैसे उन्हीं के फोन का इंतजार ही कर रही थी. क्योंकि मेहताजी का फोन लगते ही दूसरी ओर से फोन रिसीव कर लिया गया था.

मायावी प्यार में फंस गए मेहताजी

फोन रसीव होते ही मेहताजी के कानों में घुंघरू जैसी खनकती आवाज आई, ‘‘हैलो मेहताजी, कैसे हैं आप? लगता है, आप भी मेरी तरह मुझ से बात करने के लिए बेचैन थे. इसीलिए लंच होते ही, लगता है टिफिन भी नहीं खोला और फोन लगा दिया.’’

‘‘सही कह रही हो डिंपलजी, अभी लंच बौक्स नहीं खोला है. सोचा कि फोन लगा लूं, आप से बात भी होती रहेगी और लंच भी होता रहेगा. आप से बात करते हुए लंच करने में आज कुछ ही ज्यादा मजा आएगा. शायद खाने का स्वाद भी बढ़ जाएगा.’’ मेहताजी ने मक्खन लगाते हुए कहा.

मेहताजी कुछ और कहते, डिंपल बीच में ही बोल पड़ी, ‘‘अब बस कीजिए मेहताजी, इतना ज्यादा भी मत चढ़ा दीजिए कि नीचे न आ पाऊं. एक बात और, आप यह जो बारबार आप और डिंपलजी कह रहे हैं, दोस्ती में यह अच्छा नहीं लगता. जो प्यार और अपनापन तुम कहने और नाम लेने में झलकता है, वह आप और डिंपलजी में बिलकुल नहीं. इसलिए अब मैं भी तुम्हें आप नहीं तुम कहूंगी. ठीक कहा न?’’ डिंपल बोली.

‘‘ठीक है, मैं वही कहूंगा, जो तुम्हें अच्छा लगेगा.’’

‘‘मैं तुम से बात कर के ही खुश थी. लेकिन अब लगा कि तुम प्यार भी करने लगे हो. अब तो मेरी खुशी की कोई सीमा ही नहीं है. इसलिए अब तो तुम से मिलने का मन हो रहा है.’’ डिंपल ने हंसते हुए कहा, ‘‘मिलोगे मुझ से?’’

‘‘क्यों नहीं. तुम मिलना चाहोगी तो मैं जरूर मिलूंगा. अरे हां, तुम ने अभी तक अपनी कोई फोटो तो भेजी नहीं. जरा देखूं तो मेरी दोस्त कितनी खूबसूरत है.’’

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‘‘मेहताजी, मैं अब केवल तुम्हारी दोस्त ही नहीं रही. बात आगे बढ़ गई है. तुम्हारे दिल का तो पता नहीं, पर मेरे दिल में तो अब कुछकुछ होने लगा है.’’ डिंपल ने कहा, ‘‘मैं अपना फोटो भेज रही हूं. और हां, मेरा फोटो देखते हुए अपना दिल थामे रखना, क्योंकि धड़कन तो बढ़ेगी ही, पर कहीं इतनी न बढ़ जाए कि…’’

मेहताजी को लगा कि डिंपल यह बात कहते हुए मुसकरा रही थी. फोटो भेजने की बात सुन कर ही मेहताजी की धड़कनें बढ़ गई थीं. बात करते हुए ही उन्होंने वाट्सऐप खोल कर देखा तो डिंपल का फोटो आया हुआ था.

मेहताजी ने झट से फोटो डाउनलोड किया. फोटो देख कर वह उसे देखते ही रह गए. डिंपल की खूबसूरती में वह इस तरह खो गए कि उन्हें खयाल ही नहीं रहा कि वह इतनी खूबसूरत लड़की से बात कर रहे हैं.

दूसरी ओर से डिंपल चिल्लाई, ‘अरे, कहां चले गए तुम,’ तब मेहताजी को खयाल आया.

उन्होंने कहा, ‘‘अरे भाई, मैं तुम्हारा फोटो देख रहा था. सचमुच तुम बहुत खूबसूरत हो. मैं तुम्हें देख कर भूल ही गया कि तुम से बात भी कर रहा हूं.’’

‘‘तुम मजाक बहुत अच्छा कर लेते हो. मैं इतनी खूबसूरत तो नहीं हूं कि तुम बात करना ही भूल गए.’’ डिंपल ने कहा.

‘‘कोेई खुद को सुंदर थोड़े ही कहता है. सुंदर तो वही कहेगा, जिसे लगेगा. तुम सुंदर लग रही हो, इसलिए मैं कह रहा हूं. मन करता है कि बस, तुम्हें ही देखता रहूं.’’

‘‘फोटो देखने से क्या होगा?’’

‘‘अब तो तुम से मिलने का मन हो रहा है.’’ मेहताजी ने कहा, ‘‘मैं ने भी अपनी फोटो भेज दी है.’’

‘‘तो आ जाओ. मैं ने कहां मना किया है. रही बात आप के फोटो की तो मैं ने आप से पहले ही कहा था कि मैं आप को जानती हूं.’’

‘‘खैर, उसे छोड़ो, तुम यह बताओ कि तुम से मिलने के लिए कहां आना होगा?’’ मेहताजी ने पूछा.

‘‘ऐसा करो, तुम ऐठोर चौराहे पर आ कर फोन करो. मैं तुम्हें वहीं मिल जाऊंगी.’’ डिंपल ने कहा.

‘‘अभी तो मैं औफिस में हूं. शाम 6 बजे के बाद ही आ सकता हूं.’’ मेहताजी ने कहा.

‘‘कोई बात नहीं, शाम 6 बजे के बाद ही आना. मैं कहीं जा थोड़े ही रही हूं. पर अब मैं भी आप से मिलने के लिए बेकरार हूं. आप की बातों ने मुझे बेचैन कर दिया है.’’ डिंपल ने थोड़ा नशीले अंदाज में कहा. अब तक लंचटाइम खत्म हो चुका था, इसलिए मेहताजी को न चाहते हुए भी फोन काटना पड़ा.

मेहताजी का वह पूरा दिन डिंपल के खयालों में ही बीता. वह बस यही सोचते रहे कि डिंपल से मिल कर क्या बातें करेंगे? क्या कहेंगे? संयोग देखो, उन्होंने शाम को डिंपल से मिलने का वादा कर लिया था, पर वह उस शाम डिंपल से मिलने जा नहीं पाए.

हुआ यह कि उन की कंपनी के डायरेक्टर ने उन्हें किसी व्यापारी को पैसे देने के लिए भेज दिया था. बड़े दुखी मन से उन्होंने डिंपल से माफी मांग ली थी.

उस रात उन्हें नींद नहीं आई. वह डिंपल को ले कर तरहतरह की बातें सोचते रहे कि मिलेंगे तो क्या बातें करेंगे? वह उन से क्या कहेगी? देर रात नींद आई तो उस ने सपने में भी उसे ही देखा. सपने में वह उन से कह रही थी, ‘‘अब मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकती.’’

मेहताजी अभी कुंवारे ही थे. डिंपल पहली लड़की थी, जो उन के जीवन में आई थी. इस के पहले किसी लड़की से इस तरह की बातें करने की कौन कहे, उन की दोस्ती तक नहीं हुई थी. इसीलिए तो उस की रसीली बातों ने उन्हें पागल कर दिया था. जब भी उन्हें मौका मिलता, वह फोन में आई डिंपल की फोटो देख लेते थे. वह उस से मिलने के लिए बेचैन थे. सुबह वह उस से मिल नहीं सकते थे. क्योंकि सुबह मिलने से डिंपल ने मना कर दिया था. उस ने कहा था कि 11 बजे से पहले वह घर से नहीं निकल पाएगी.

जबकि साढ़े 9 बजे मेहताजी को औफिस पहुंचना होता था. वह छुट्टी भी नहीं ले सकते थे. उस दिन औफिस में डायरेक्टर से उन की जरूरी मीटिंग थी. आखिर मन मार कर वह औफिस पहुंच गए.

उस दिन जरूरी काम की बात कह कर वह घर से आधा घंटा पहले निकल गए थे. औफिस पहुंचते ही उन्होंने डिंपल को फोन मिला दिया. बातचीत शुरू हुई तो मेहताजी ने कहा, ‘‘आज लंचटाइम से मैं छुट्टी ले लूंगा. तुम 2 बजे मिलने के लिए तैयार रहना. औफिस से निकलते ही मैं तुम्हें फोन करूंगा.’’

डिंपल तो उन से मिलने के लिए तैयार ही थी. उस ने हामी भर दी. औफिस से निकल कर मेहताजी ने फोन किया तो डिंपल ऐठोर चौराहे पर आ कर खड़ी हो गई.

दोनों ने एकदूसरे के फोटो देखे ही थे, इसलिए एकदूसरे को पहचानने में जरा भी दिक्कत नहीं हुई. मेहताजी ने डिंपल को देखा तो देखते ही रह गए. इस समय वह फोटो से भी ज्यादा खूबसूरत लग रही थी. जवानी में तो वैसे भी हर लड़की खूबसूरत लगती है. जबकि डिंपल तो वैसे भी खूबसूरत थी.

मेहताजी खूबसूरत डिंपल को पा कर निहाल हो गए थे. कुछ पल तक वह उसे निहारते रहे. चौराहे पर खड़े हो कर किसी लड़की से बात करना ठीक नहीं था, इसलिए मेहताजी ने डिंपल से कहीं एकांत में चलने को कहा तो डिंपल बोली, ‘‘कहीं ऐसी जगह ले चलो, जहां तुम्हारे और मेरे अलावा और कोई न हो.’’

मेहताजी ने सोचा था कि डिंपल किसी रेस्टोरेंट में चल कर फैमिली बौक्स में बैठने की बात कहेगी. पर जब उस ने कहीं ऐसी जगह चलने की बात कही कि जहां उन दोनों के अलावा कोई और न हो तो वह असमंजस में पड़ गए. वह इस तरह की जगह के बारे में सोचने लगे. काफी सोचनेविचारने के बावजूद कोई ऐसी एकांत जगह उन की नजर में नहीं आई, जहां उसे ले कर जाते. क्योंकि वह समझ गए थे कि डिंपल इस तरह की जगह पर चलने के लिए क्यों कह रही है.

पहली मुलाकात में ही हो गईं हसरतें पूरी

आखिर वह उसे ले कर अपने एक दोस्त के औफिस पहुंच गए. तब डिंपल खीझ कर बोली, ‘‘तुम्हें यही एकांत जगह मिली थी? औफिस में क्या होगा?’’

मेहताजी सोच में पड़ गए. जब कुछ देर तक वह कुछ नहीं बोले तो डिंपल ने कहा, ‘‘क्या सोच रहे हो? तुम्हारे पास कोई ऐसी जगह नहीं है क्या, जहां मेरे और तुम्हारे अलावा और कोई न हो?’’

थोड़ा सकुचाते हुए मेहताजी ने कहा, ‘‘हां, मेरे पास ऐसी कोई जगह नहीं है. कहो तो किसी होटल में कमरा ले लेते हैं. पर इस तरह किसी होटल में जाएंगे तो होटल वाला भी हमारे बारे में अच्छा नहीं सोचेगा.’’

‘‘मैं होटल में वैसे भी नहीं जाऊंगी. आप के पास ऐसी कोई जगह नहीं है तो मेरे साथ चलो. मेरे पास है ऐसी जगह. मेरी सहेली का घर है. इस समय वह मायके गई हुई है. देखभाल के लिए घर की चाबी मुझे दे गई है. वहां किसी तरह का कोई डर नहीं है. आराम से बैठ कर जब तक मन होगा, तब तक बातें करेंगे. और हां, खानेपीने के लिए कुछ साथ लेते चलेंगे, जिस से अंदर जाने के बाद फिर किसी चीज के लिए बाहर निकलना न पड़े.’’

मेहताजी भी तो इसी तरह की जगह चाहते थे. डिंपल की सुंदरता और उस की बातों में वह कुछ इस तरह खो चुके थे कि यह भी नहीं सोच पा रहे थे कि डिंपल आखिर उस पर इतना क्यों मेहरबान है कि पहली ही मुलाकात में वह उसे ऐसी जगह ले जा रही है, जहां उन दोनों के अलावा और कोई न हो.

डिंपल के साथ ऐसी जगह जा कर क्या होगा, वह इस से भी अंजान नहीं थे. लेकिन जब आदमी की मति मारी जाती है तो वह अपना भलाबुरा नहीं सोच पाता.

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यही हुआ मेहताजी के साथ. वह भी अपना भलाबुरा नहीं सोच पाए. रास्ते में एक रेस्टोरेंट से खानेपीने का अच्छाखासा सामान बंधवा कर वह डिंपल के साथ उस की सहेली के घर पहुंचे तो घर पर ताला लगा था.

ताला खोल कर दोनों अंदर पहुंचे तो घर एकदम साफसुथरा था. कहीं से ऐसा नहीं लग रहा था कि यह घर कई दिनों से बंद था. पर मेहताजी ने इस बात पर भी ध्यान ही नहीं दिया.

मेहताजी सोफे पर बैठे तो डिंपल भी उन से सट कर बैठी ही नहीं, बल्कि उन की गोद में लेट सी गई. मेहताजी भी डिंपल का इरादा भांप कर अपने काम में लग गए. उन्होंने उस के शरीर पर अपने हाथों से हरकत करनी शुरू कर दी. थोड़ी ही देर में वह सब हो गया,

जो एक मर्द और औरत के बीच में एकांत में होता है.

इस के बाद तो डिंपल और मेहताजी के बीच फोन पर खूब बातें तो होती ही थीं, जब देखो, तब मेहताजी डिंपल से मिलने भी लगे थे. मेहताजी को डिंपल से मिलने में मजा भी खूब आ रहा था.

पर एक दिन जब मेहताजी अपनी कार से डिंपल के कहने पर उसे विसपुर छोड़ने जा रहे थे तो रास्ते में एक युवक मिला जो उन से लड़नेझगड़ने लगा.

वह डिंपल को अपनी पत्नी बता कर मेहताजी पर आरोप लगाने लगा कि इस आदमी ने उस की पत्नी को बहलाफुसला कर अवैध संबंध बना लिए हैं. अब वह ऐसी औरत को कतई नहीं रखेगा, जिस के किसी अन्य पुरुष से संबंध हैं.

डिंपल भी रोने लगी कि अब वह कहां जाएगी. वह मेहताजी से कहने लगी कि अगर उस का पति उसे नहीं रख रहा है तो वह उसे अपने साथ रखें.

मेहताजी तो डिंपल के साथ सिर्फ मौजमजा करना चाहते थे. उन्होंने इस बारे में कभी सोचा ही नहीं था कि मौजमजा के चक्कर में बात यहां तक पहुंच जाएगी. डिंपल अब उन के गले की हड्डी बन गई थी. वह डिंपल के चक्कर में बुरी तरह फंस चुके थे.

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Manohar Kahaniya: सुपरस्टार के बेटे आर्यन खान पर ड्रग्स का डंक- भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां 

जब अभिनेता सुशांत सिंह की रहस्यमय मौत 14 जून, 2020 को हुई थी तभी से उन के निशाने पर फिल्म इंडस्ट्री के वे स्टार्स हैं, जो ड्रग्स का सेवन करते हैं.

सुशांत सिंह की मौत के बाद भी ड्रग माफिया की चर्चा हुई थी और हल्ला भी ज्यादा मचा था, क्योंकि सुशांत और उस के कुछ साथी भी ड्रग्स लेते थे. तब इस की जांच वानखेड़े ने ही की थी.

इस के बाद तो वह बौलीवुड के ड्रग कनेक्शन के पीछे पड़ गए. आर्यन का मामला उसी पीछे पड़ने की एक कड़ी है.

मुंबई हवाई अड्डे पर तैनाती के दौरान उन की कहासुनी आए दिन फिल्म स्टार्स से हुई. 2008 बैच के आईआरएस अधिकारी समीर वानखेड़े एनसीबी से पहले एनआईए यानी राष्ट्रीय जांच एजेंसी में रहते भी सुर्खियों में रहते थे.

हालिया मामले में भी उन्होंने कोई नरमी नहीं बरती और एक दूसरी सनसनी 11 अक्तूबर को यह कहते हुए मचाई कि इस मामले की जासूसी हो रही थी.

इस के पहले सुनवाई कर रही मुंबई की अदालत ने उन की इस मंशा पर पानी फेर दिया था कि आर्यन और दूसरे आरोपियों को एनसीबी की कस्टडी दी जाए, जिस से उन से ढंग से पूछताछ हो सके.

अदालत ने इस दलील से इत्तफाक नहीं रखा और आरोपियों को आर्थर रोड जेल भेज दिया. यहां भी मीडिया बदस्तूर अपना काम करता रहा, मसलन आर्यन फलां बैरक में रहेगा, उसे घर का खाना नहीं मिलेगा और जेल की दिनचर्या और सख्त नियमों का उसे पालन करना पड़ेगा. कपड़े जरूर उसे पसंद के मिल सकते हैं. नाश्ते और लंच डिनर का मेन्यू भी प्रसारित किया गया.

समीर वानखेड़े के साथसाथ चर्चे सतीश मानशिंदे के भी खूब हुए कि वह इस से पहले भी इस तरह के कई मुकदमों में पैरवी कर चुके हैं. सुनील दत्त के अभिनेता बेटे संजय दत्त को जमानत उन्होंने ही दिलवाई थी.

संजय दत्त कभी अव्वल दरजे के ड्रग एडिक्ट थे और मुंबई बम धमाकों में भी उन का नाम आया था. उन की जिंदगी पर फिल्म भी बनी और किताबें भी लिखी गईं.

सलमान खान को ड्रिंक एंड ड्राइव मामले के साथ काले हिरण के शिकार के चर्चित मामले में भी मानशिंदे ने जोरदार तरीके से पैरवी करते हुए उन्हें जमानत दिलवाई थी और फिर बाइज्जत बरी भी करवाने में कामयाबी हासिल की थी.

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अपने दौर के दिग्गज और नामी वकील राम जेठमलानी के 10 साल जूनियर रहे इस धुरंधर वकील की एक पेशी की फीस ही 10 लाख रुपए हुआ करती है.

सुशांत सिंह की गर्लफ्रैंड रिया चक्रवर्ती को जमानत दिलवाने का श्रेय भी मानशिंदे के खाते में दर्ज है और अभिनेत्री राखी सावंत का एक मुकदमा भी वह लड़ चुके हैं. आर्यन के मामले में भी उन्होंने जमानत याचिकाएं दमदार दलीलों के जरिए दायर कीं लेकिन शुरुआती दौर में उन्हें कामयाबी नहीं मिली.

जब आर्यन की चर्चा जरूरत से ज्यादा हो चुकी तो लोगों की दिलचस्पी सतीश मानशिंदे और समीर वानखेड़े में बढ़ी कि देखें कौन किस पर भारी पड़ता है क्योंकि ये दोनों ही अपनेअपने फील्ड के महारथी हैं.

फिल्मों में नशा

फिल्म इंडस्ट्री का नशे से काफी गहरा नाता हमेशा से ही रहा है. शराब तो बेहद आम है जिसे लगभग सभी कलाकार पीते हैं. देखा जाए तो नशा इस इंडस्ट्री का पर्याय और पहचान शुरू से ही है. लेकिन ड्रग्स की विधिवत शुरुआत हुई 70 के दशक से. तब ड्रग्स को आज जितनी मान्यता नहीं मिली थी और यह नशा भी सिर्फ अपराधियों और अभिजात्य वर्ग का नशा माना जाता था.

इसी दौर में देवानंद की फिल्म हरे राम हरे कृष्ण आई. हिप्पी कल्चर वाली इस फिल्म में जीनत अमान ने पेरेंट्स से उपेक्षित एक मध्यमवर्गीय नशेड़ी युवती का रोल इतनी शिद्दत से निभाया था कि दर्शक रातोंरात उन के मुरीद हो गए थे.

लेकिन दिक्कत तब खड़ी होने लगी, जब युवा जीनत के साथसाथ नशे के भी दीवाने होने लगे. तब नशे के लिए गांजा, चिलम, अफीम, चरस सहित एलएसडी जैसी घातक गोलियां इस्तेमाल की जाती थीं.

जीनत अमान पर फिल्माए गाने ‘दम मारो दम मिट जाए गम…’ का असर उलटा हुआ. युवाओं ने नशे के नुकसानों से कोई सबक नहीं सीखा.

नशे से आगाह करती एक और फिल्म एलएसडी पर आधारित भी इसी दौर में रिलीज हुई थी, पर वह ज्यादा चली नहीं थी.

आज के आर्यन नुमा युवाओं का इस गुजरे कल से गहरा ताल्लुक है. फिल्म इंडस्ट्री में बेशुमार पैसा है, जिस पर अंडरवर्ल्ड की नजर पड़ी तो देखते ही देखते उस का हुलिया बदल गया. अंडरवर्ल्ड के सरगना फिल्मकारों को फाइनेंस करने लगे और जुर्म की दुनिया इस सुनहरे परदे की जरूरत बन गई.

हर तीसरी फिल्म में दिखाया जाने लगा कि ड्रग्स के कारोबार में मुनाफा ही मुनाफा है. लेकिन इस से भी ज्यादा प्रचार इस बात का हुआ कि ड्रग्स के सेवन से आप एक ऐसी दुनिया में पहुंच जाते हैं, जहां कोई गम या दुख नहीं होता. आप ध्यान और समाधि की सी अवस्था में होते हैं.

देखते ही देखते हर कोई इस ध्यान में डूबने लगा. ड्रग्स का नशा स्टेटस सिंबल बन गया और यह कारोबार इतनी तेजी से फैला कि आज झुग्गीझोपड़ी वाले युवा भी इस की गिरफ्त में हैं.

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एनसीबी की समस्या यही है कि वह इस कारोबार की जड़ तक नहीं पहुंच पाती. कुछ नशेडि़यों को यहांवहां से गिरफ्तार कर मान लिया जाता है कि अब समस्या हल हो गई.

तालिबानी सत्ता के बाद भारत में बढ़ गई ड्रग तस्करी

हाल ही में अफगानिस्तान पर तालिबानों के कब्जे से नशे के कारोबार पर पड़े फर्क का ही नतीजा है कि ड्रग्स सप्लाई एकाएक ही तेजी से बढ़ी. तय है इसलिए कि तालिबानी सरकार का मूड और नीतियां ड्रग्स के कारोबारी समझ नहीं पा रहे लिहाजा क्लीयरेंस सेल की तरह उन्होंने अपना स्टौक खाली करना और औनेपौने में यहांवहां माल खपाना शुरू कर दिया.

आर्यन खान कांड के चंद दिनों पहले ही गुजरात के कच्छ जिले के मुंद्रा बंदरगाह से 21 हजार करोड़ रुपए की हेरोइन जब्त हुई थी. इस जब्ती के कारोबारी और सियासी मायने और अटकलें अलग हैं, लेकिन यह तय है कि अगर यह खेप न पकड़ी जाती तो अब तक देश के कोनेकोने में फैल चुकी होती.

हल्ला इस बात पर ज्यादा मचा कि यह खेप अडानी समूह द्वारा संचालित बंदरगाह पर उतरी. आर्यन की गिरफ्तारी के बाद यह सवाल भी उठा कि कहीं यह नया ड्रामा मुंद्रा बंदरगाह पर से ध्यान हटाने के लिए तो नहीं रचा गया, क्योंकि अडानी समूह के मौजूदा हुक्मरानों से अंतरंग संबंध हैं और आम लोग भी इस बाबत सवाल पूछने लगे थे.

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इस और ऐसे कई अनसुलझे सवालों का जबाब आधाअधूरा ही सही, हिंदी फिल्मों से मिलता रहा है. 70-80 के दशक की हर तीसरी फिल्म में पुलिस कमिश्नर बने चरित्र अभिनेता इफ्तिखार नए भरती हुए इंसपेक्टर रवि या विजय को एक महत्त्वपूर्ण फाइल सौंपते गंभीरता से यह कहते नजर आते थे कि यह रही ड्रग्स के उन तस्करों और कारोबारियों की जन्मकुंडली, जो हमारे देश की युवा पीढ़ी को खोखला करते, उन्हें नशे के नर्क में धकेलने का संगीन गुनाह कर रहे हैं.

इंसपेक्टर बने अमिताभ बच्चन या शशि कपूर अपनी एडि़यों को घुमा कर एक जोरदार सैल्यूट ठोकते थे और उन की जीप सीधे विलेन के अड्डे पर जा पहुंचती थी.

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Crime: नशे पत्ते की दुनिया में महिलाएं 

एक समय था जब लड़कियां या महिलाएं नशे से दूर रहती थी. अब हालात इतने बदल चुके हैं कि महिलाएं नशे की व्यापार में खुलकर सामने आ रही हैं और पुलिस की दबिश में पकड़ी जा कर जेल  जा रही हैं.

महिलाओं को इस नशे के व्यापार में आखिर कौन और कैसे घसीट लाता है और महिलाओं के नशे की व्यापार में आने से जहां समाज को विकृति पैदा हो रही है वहीं यह चिंता का सबब बनता जा रहा है कि आखिर महिलाओं को इस कृत्य से कैसे रोका जा सकता है.

हाल ही में कुछ ऐसी घटनाएं घटित हुई है जिनके परिपेक्ष्य में कहा जा सकता है कि युवतियां और महिलाएं नशे के व्यापार में बहुत आगे निकल चुकी हैं. जिसका खामियाजा उनके परिवार को भी भुगतना रहा है. जहां एक तरफ परिवार इससे टूट रहे हैं, वही देश के जागरूक नागरिकों के लिए भी एक सोचनीय विषय है कि समाज में ऐसा क्या परिवर्तन आया हुआ है कि महिलाएं जिन्हें यह माना जाता था कि किसी भी नशे और अन्य अपराधिक भूमिकाओं से दूर रहती हैं आज वे उसके आसपास पहुंच चुकी हैं. हम  इस रिपोर्ट में इस सच्चाई को सामने लाते हुए आपको कुछ महत्वपूर्ण चौंकाने वाली जानकारियां दे रहे हैं.

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प्रथम घटना- महाराष्ट्र के नागपुर में एक महिला को नशीली इंजेक्शन के साथ पुलिस ने धर दबोचा महिला ने स्वीकार किया कि वह लंबे समय से नशे के व्यापार में है.

दूसरी घटना- दक्षिण  हैदराबाद में लड़कियां और महिलाओं का एक रैकेट नशीली ड्रग्स के व्यवसाय के केंद्र में था जिसका पुलिस ने खुलासा किया है.
तीसरी घटना – नोएडा के एक संभ्रांत परिवार की महिला को प्रतिबंधित नशीली सामाग्री के साथ पुलिस ने पकड़ा महिला ने बताया रूपए के लिए वह ऐसा कर रही है.

यह कुछ चुनिंदा घटनाएं हैं जो यह इंगित करती है कि महिलाएं अब खुलकर के नशे के व्यापार में अपनी भूमिका निभा रही है जो समाज के लिए एक चिंता का सबब है.

बड़े शहरों से छोटे शहर

यह भी  तथ्य सामने आ रहा है मुंबई, दिल्ली, कोलकाता जैसे महानगरों के बाद अब छोटे शहर कस्बों में भी महिलाएं नशे के व्यापार में केंद्र में आ चुकी है और अपने पति अथवा भाइयों के संरक्षण में निर्भीक होकर के नशे का धंधा कर रही हैं.

छत्तीसगढ़ के जिला कोरिया के पटना थाना अंतर्गत नशीली दवाओं का व्यापार करने वाली महिला को जो लंबे समय से इस व्यवसाय में संलग्न थी आखिरकार पुलिस ने काफी मात्रा में नशीली इंजेक्शन के साथ रंगे हाथ पकड़ा और गिरफ्तार कर लिया है. छत्तीसगढ़ के इस जिले में पुलिस द्वारा महिलाओं को नशे के चंगुल से बाहर निकालने के लिए लगातार अभिनव प्रयास किया जा रहा है.

यहां ऑपरेशन निजात के तहत पुलिस अधीक्षक कोरिया संतोष कुमार सिंह के आदेशानुसार पुलिस सक्रिय हुई तो 9 अक्टूबर 2021 को मुखबिर से सूचना मिली की ग्राम चिरगूड़ा दरीदाड में नशीली दवा इंजेक्शन का अवैध कारोबार चल रहा है. सूचना के आधार पर मीना सोनवानी नामक महिला को पकड़ा गया  उससे नशे के संबंध में पूछताछ की गई और उसके पास से अवैध रूप से बिक्री करने के लिये रखा हुआ नशीला दवा इंजेक्शन जप्त किया गया.

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आरोपी का कृत्य गंभीर अपराध घटित करना सबूत पाये जाने  आरोपी महिला को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है. हमारे संवाददाता ने जब इस  मसले पर खोजबीन की तो यह तथ्य सामने आया कि आरोपी का पति ओम प्रकाश पूर्व में नशीली दवाओं का व्यापार करते हुए पकड़े जाने पर जेल में है फिर भी महिला द्वारा अवैध नशीली दवाओं का व्यापार किया जा रहा था.

सामाजिक कार्यकर्ता एवं लेखक डॉक्टर टी महादेव राव के मुताबिक  समाज में आज जिस तरीके से पैसों की होड़ मची हुई है किसी भी स्थिति में लोग रूपया अजित करने के लिए अपराधिक गतिविधियों में संलग्न हो जाते हैं. उसी का परिणाम है कि महिलाएं भी नसे पत्ते जैसे व्यवसाय को अपना रही हैं जो चिंता का कारण है.

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