लिव इन की चोट: भाग 2

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‘‘क्या? ऐबौर्शन… कम से कम एक बार मुझ से पूछ तो लेतीं. वह बच्चा मेरा भी तो था?’’ राहुल भरेमन से बोला.

‘‘ओ मिस्टर, ज्यादा इमोशनल होने की जरूरत नहीं है,’’ शिल्पा कड़क स्वर में चीखते हुए बोली, ‘‘तुम मेरे हसबैंड नहीं हो, जो मैं तुम्हारी राय पूछती. अरे, मौजमस्ती के परिणाम को पैरों की बेडि़यां नहीं बनाया जाता बल्कि समय रहते काट कर फेंक दिया जाता है ताकि आगे चल कर कोई परेशानी न हो.’’

‘‘सौरी मैम, मैं तो भूल ही गया था कि आप उच्च प्रगतिशील सोच की मालकिन हैं…’’ इतना कहतेकहते राहुल की आंखें भर आईं, ‘‘वैसे हम शादी भी तो कर सकते थे.’’

‘‘ओह राहुल,’’ शिल्पा उस के नजदीक जाते हुए बोली, ‘‘जो हुआ उसे भूल जाओ और आज नए तरीके से मुझे सैक्स के मजे दिलवाओ. पताहै, करुण मुझे ड्रिंक पर ले जाना चाहता था पर मैं ने मना कर दिया, क्योंकि अब मुझे सिर्फ तुम्हारा साथ भाता है.’’

‘‘पर मैडम, मैं इतने बड़े दिल वाला नहीं जो अपने बच्चे को खोने का जश्न मनाऊं,’’ राहुल खुद को शिल्पा की गिरफ्त से छुड़ाते हुआ बोला.

‘‘ये क्या, तुम ने मेरे बच्चे, मेरे बच्चे की रट लगा रखी है? अरे, वह बच्चा सिर्फ मेरा था, इसलिए उस का क्या करना था, इस का हक भी सिर्फ मुझे ही था.

‘‘और वैसे भी, यह शादी, यह बच्चे जैसी फुजूल की बातों के लिए मेरे पास समय नहीं है. आज सफलता की जिस सीढ़ी की तरफ मैं बढ़ रही हूं वहां मेरे लिए शादी और बच्चे का बोझ ले कर चढ़ना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन भी है.’’

‘‘तो ठीक है, मैडम,’’ राहुल गुस्से से चीखते हुए बोला, ‘‘तो तुम अब अपनी सफलता के साथ रहो और मुझे अकेला छोड़ दो.’’

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वह गुस्से में पैर पटकता हुआ तेजी से बाहर निकल आया और शिल्पा बदहवास बुत सी बनी बैठी रह गई.

बहुत देर तक खाली विरान सड़कों की खाक छानने के बाद राहुल अचानक विनय के पास पहुंच गया. इस समय वह अपने घर जा कर अपने मातापिता को परेशान नहीं करना चाहता था.

‘‘अरे वाह, आज चांद कहां से निकल आया, भई,’’ विनय मुसकराते हुए उस से पूछने लगा. जवाब में वह फीकी सी हंसी हंस दिया था.

‘‘यार, इस समय तेरे घर आ कर मैं ने तुझे भी परेशान कर कर दिया,’’ राहुल कतर स्वर में विनय से बोला.

‘‘तू भी न, कमाल करता है यार. अगर तू बाहर से ही वापस चला जाता तो राशि भला मुझे बख्शती,’’ इतना कहते ही उस ने राशि को बाहर आने के लिए आवाज लगाई.

‘‘अरे भैया, इतने दिन बाद,’’ राशि मुसकराते हुए उस का स्वागत करने लगी. राशि का ऐसा खुशमिजाज व्यवहार देख कर राहुल उस की तुलना शिल्पा से करने लगा जो उस के दोस्तों को देखते ही बुरा सा मुंह बना लेती है और तब राहुल चाह कर भी कुछ नहीं कर पाता, क्योंकि वह और शिल्पा लिवइन में जो रह रहे थे.

‘‘अरे भैया, कहां खो गए आप…’’ राशि मुन्ने को विनय के हवाले करते हुए बोली, ‘‘आप जरा मुन्ने को संभालिए, मैं झटपट खाना तैयार कर देती हूं. सब्जी और रायता तो तैयार ही है, बस, फुलके सेंकने बाकी हैं.’’

वह फुरती से किचन की तरफ बढ़ गई. इस बीच, राहुल ने मुन्ने को विनय से ले लिया और खुद उस के साथ खेलने लगा.

जब मुन्ने की कोमलकोमल उंगलियों ने राहुल के हाथों का स्पर्श किया तो उस स्पर्शमात्र से ही राहुल का दिल भर आया और वह मन ही मन अपने उस अजन्मे शिशु को याद कर के रो पड़ा, जिसे शिल्पा की  प्रगतिवादी सोच ने असमय अपनी कोख में ही लील लिया था.

थोड़ी देर बाद सभी डाइनिंग टेबल पर थे. सच में राशि के हाथ का खाना खा कर उसे अपनी मां की याद आ गई जो बिलकुल ऐसा ही खाना बना कर उसे खिलाती थीं.

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पर जब से वह शिल्पा के साथ लिवइन में था, तब से उस ने घर के खाने का स्वाद चखा ही नहीं था. शुरुशुरु में जब एक बार राहुल ने शिल्पा से डिनर घर पर बनाने की बात कही, तब वह मानो गुस्से में उस पर फट पड़ी थी और लगभग चीखते हुए बोली, ‘मैं कोई दासी नहीं हूं जो किचन में खड़ी हो कर घंटों पसीना बहाऊं. जो खाना है, बाहर से और्डर कर लो और हां, मेरी चिंता मत करना, क्योंकि मैं डाइटिंग पर हूं.’

‘‘किस सोच में पड़ गए भैया? खाना अच्छा नहीं लगा क्या?’’ राशि के टोकने पर मानो राहुल की तंद्रा भंग हुई और वह अतीत से वर्तमान में आते हुए बोला, ‘‘नहीं भाभी, खाना तो वाकई बहुत बढि़या बना है बल्कि मैं ने तो इतने समय बाद…’’ बाकी बात राहुल ने अपने भीतर ही रोक ली ताकि उसे राशि व विनय के सामने शर्मिंदा न होना पड़े.

‘‘भैया, एक बात कहू,’’करिश्मा का औफर अभी ओपन है आप के लिए, क्योंकि वह आप को अपना क्रश जो मानती है. वैसे, अब उस पर शादी का दबाव बहुत बढ़ रहा है. पर अगर आप चाहें तो मैं सारा मामला तुरंत निबटा सकती हूं, क्योंकि मैं जानती हूं कि अभी भी आप को ही प्राथमिकता दी जाएगी,’’ राशि झूठे बरतन समेटते हुए बोली.

‘‘तुम भी न राशि,’’ विनय उसी की बात काटते हुए बोला, ‘‘भई, राहुल को तो शादी के नाम से ही चिढ़ है और तुम…’’

‘‘मैं तैयार हूं.’’

राहुल विनय की बात पूरी होने से पहले ही बोल पड़ा. राहुल के मुंह से यह सुन कर विनय का दिल भर आया और तब भावातिरेक में उस ने राहुल को अपने गले से लगा लिया.

‘‘यह हुई न बात, अब भैया आप ने हां कर दी है, तो देखिएगा कि मैं और विनय मिल कर कैसे आप का मामला फिट करते हैं,’’ राशि भी उत्साहित हो उठी थी.

‘‘हांहां, बिलकुल, अब तो चटमंगनी पट ब्याह होगा,’’ विनय के मुंह से यह अचानक निकला और फिर तीनों खिलखिला कर हंस पड़े.

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बेचारी दिव्यांशी: भाग 1

मोहल्ले के कई लोग अचरज भरी निगाहों से उस कमरे को देख रहे थे जहां पर कोई नया किराएदार रहने आ रहा था और जिस का सामान उस छोटे से कमरे में उतर रहा था. सामान इतना ही था कि एक सवारी वाले आटोरिशा में पूरी तरह से आ गया था. सब यही सोच रहे थे और आपस में इसी तरह की बातें कर रहे थे कि तभी एक साइकिल रिक्शा से एक लड़की उतरी जो अपने पैरों से चल नहीं सकती थी, इसीलिए बैसाखियों के सहारे चल कर उस कमरे की तरफ जा रही थी.

अब महल्ले की औरतें आपस में कानाफूसी करने लगीं… ‘क्या इस घर में यह अकेले रहेगी?’, ‘कौन है यह?’, ‘कहां से आई है?’ वगैरह. कुछ समय बाद उस लड़की ने उन सवालों के जवाब खुद ही दे दिए, जब वह अपने पड़ोस में रहने वाली एक औरत से एक जग पानी देने की गुजारिश करने उस के घर गई.

घर में घुसते ही शिष्टाचार के साथ उस ने नमस्ते की और अपना परिचय देते हुए बोली, ‘‘मेरा नाम दिव्यांशी है और मैं पास के कमरे में रहने आई हूं. क्या मुझे पीने के लिए एक जग पानी मिल सकता है? वैसे, नल में पानी कब आता है? मैं उस हिसाब से अपना पानी भर लूंगी.’’

‘‘अरे आओआओ दिव्यांशी, मेरा नाम सुमित्रा है और पानी शाम को 5 बजे और सुबह 6 बजे आता है. कहां से आई हो और यहां क्या करती हो?’’ पानी देते हुए सुमित्रा ने पूछा. ‘‘आंटी, आप मेरे कमरे पर आइए, तब हम आराम से बैठ कर बातें करेंगे. अभी मुझे बड़ी जोरों की भूख लगी है. वैसे, मैं शहर के नामी होटल रामभरोसे में रिसैप्शनिस्ट का काम करती हूं, जहां मेरा ड्यूटी का समय सुबह 6 बजे से है. मेरा काम दोहपर के 3 बजे तक खत्म हो जाता है.’’

बातचीत में सुमित्रा को दिव्यांशी अच्छी लगी और उस के परिवार के बारे में ज्यादा जानने की उत्सुकता में शाम को पानी आने की सूचना ले कर वह दिव्यांशी के कमरे पर पहुंच गई. दिव्यांशी अब अपने बारे में बताने लगी, ‘‘आज से तकरीबन 16 साल पहले मैं अपने मातापिता के साथ मोटरसाइकिल से कहीं जा रही थी कि तभी एक ट्रक से भीषण टक्कर होने से मेरे मातापिता मौके पर ही मर गए थे.

‘‘चूंकि मैं दूर छिटक गई थी इसलिए जान तो बच गई, पर पास से तेज रफ्तार से गुजरती बाइक मेरे दोनों पैरों पर से गुजर गई और मेरे दोनों पैर काटने पड़े. तभी से चाचाचाची ने अपने पास रखा और पढ़ायालिखाया.

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‘‘उन के कोई बच्चा नहीं है. इस वजह से भी वे मुझ से बहुत स्नेह रखते हैं. चाचा की माली हालत ज्यादा अच्छी नहीं है, फिर भी वे मेरी नौकरी करने के खिलाफ हैं, पर मैं अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती हूं, इसीलिए शहर आ कर मैं ने इस नौकरी को स्वीकार कर लिया.

‘‘इस होटल की नौकरी के साथसाथ मैं सभी प्रतियोगी परीक्षाओं में हिस्सा लेती हूं ताकि कोई सरकारी नौकरी लग जाए. मैं अपनी योग्यता पर विश्वास रखती हूं इसी कारण किसी तरह की कोचिंग नहीं लेती हूं, बल्कि 3 बजे होटल से आ कर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती हूं. इस से मेरी प्रतियोगिता की तैयारी भी हो जाती है और कुछ कमाई भी.

‘‘इस महल्ले में कोई बच्चा अगर ट्यूशन लेना चाहता हो तो उन्हें मेरे पास भेजिए न भाभी,’’ दिव्यांशी ने अपनेपन से सुमित्रा से कहा. ‘‘जरूर. मैं अपने सभी मिलने वालों से कहूंगी…’’ सुमित्रा ने पूछा, ‘‘और तुम अपने खाने का क्या करती हो?’’ ‘‘सुबह का नाश्ता और दोपहर का खाना तो मैं होटल की पैंट्री में ही खा लेती हूं और शाम को इस आटोमैटिक हौट प्लेट पर दालचावल या खिचड़ी जैसी चीजें पका लेती हूं.’’

यह सुन कर सुमित्रा मन ही मन दिव्यांशी की हिम्मत की तारीफ कर रही थी. तकरीबन आधा घंटे तक दिव्यांशी के साथ बैठने के बाद वह अपने घर वापस आ गई. सुबह साढ़े 5 बजे वही साइकिल रिक्शा वाला जो दिव्यांशी को छोड़ने आया था, लेने आ गया. साफ था, दिव्यांशी ने उस का महीना बांध कर लाने व छोड़ने के लिए लगा लिया था.

सुमित्रा ने भी अपना काम बखूबी निभाया और महल्ले में सभी को दिव्यांशी के बारे में बताया. तकरीबन सभी ने उस की हिम्मत की तारीफ की. हर कोई चाहता था कि कैसे न कैसे कर के उस की मदद की जाए.

कई घरों के बच्चे दिव्यांशी के पास ट्यूशन के लिए आने लगे थे. दिव्यांशी को इस महल्ले में आए अभी पूरा एक महीना होने में 2-3 दिन बचे थे कि एक दिन महल्ले वालों ने देखा कि दिव्यांशी किसी लड़के के साथ मोटरसाइकिल पर आ रही है.

सभी को यह जानने की इच्छा हुई कि वह लड़का कौन है. पूछने पर पता चला कि उस का नाम रामाधार है और उसी के होटल में कुक है और आज ही उस ने यह सैकंड हैंड बाइक खरीदी है. 1-2 दिन के बाद ट्यूशन खत्म होने पर दिव्यांशी ने एक बच्चे को भेज कर महल्ले की 4-5 औरतों को अपने कमरे में बुलवा लिया और कहने लगी, ‘‘मैं इतने दिनों से आप लोगों के साथ रह रही हूं इसलिए आप लोगों के साथ एक बात करना चाहती हूं.

रामाधार हमारे होटल में कुक है और वह चाहता है कि मैं रोज उस के साथ औफिस जाऊं. ‘‘वैसे भी रिक्शे वाला 2,000 रुपए महीना लेता है. अगर आप लोगों को कोई एतराज न हो तो मैं उस के साथ आनाजाना कर लूं?’’

‘‘जब तुम पूछ कर सभी के सामने आनाजाना कर रही हो तो हमें क्या दिक्कत हो सकती है और पिछले एक महीने में इतना तो हम तुम्हें समझ ही गए हैं कि तुम कोई गलत काम कर ही नहीं सकती. तुम निश्चिंत हो कर रामाधार के साथ आजा सकती हो, ‘‘सुमित्रा बाकी सब औरतों की तरफ देख कर बोली. सभी औरतों ने अपनी सहमति दे दी.

रामाधार 26-27 साल का नौजवान था. उस की कदकाठी अच्छी थी. फूड और टैक्नोलौजी का कोर्स करने के बाद दिव्यांशी के होटल में ही वह कुक का काम करता था. वह दिव्यांशी को लेने व छोड़ने जरूर आता था, पर कभी भी दिव्यांशी के कमरे के अंदर नहीं गया था.

अब तक 3 महीने गुजर चुके थे. ट्यूशन पढ़ रहे सभी बच्चों के मासिक टैस्ट हो चुके थे और तकरीबन सभी बच्चों ने कहीं न कहीं प्रगति की थी. इस कारण दिव्यांशी का सम्मान और ज्यादा बढ़ गया था. एक दिन अचानक दिव्यांशी ने फिर से सभी औरतों को अपने घर बुलवा लिया. इस बार मामला कुछ गंभीर लग रहा था.

सुमित्रा की तरफ देख कर दिव्यांशी बोली, ‘‘मैं ने आप सभी में अपना परिवार देखा है, आप लोगों से जो प्यार और इज्जत मिली है, उसी के आधार पर मैं आप लोगों से एक बात की इजाजत और चाहती हूं. मैं और रामाधार शादी करना चाहते हैं. ‘‘दरअसल, रामाधार को दुबई में दूसरी नौकरी मिल गई है और उसे अगले 3 महीनों में कागजी कार्यवाही कर के वहां नौकरी जौइन करनी है. वहां जाने के बाद वह वहां पर मेरे लिए भी जौब की जुगाड़ कर लेगा.

जाने से पहले वह शादी कर के जाना चाहता है, ताकि पतिपत्नी के रूप में हमें एक ही संस्थान में काम मिल जाए. ‘‘मैं ने अपने चाचा को भी बता दिया है. वे भी इस रिश्ते से सहमत हैं, पर यहां आने में नाकाम हैं, क्योंकि उन के साले का गंभीर ऐक्सिडैंट हो गया है.’’

सभी औरतें एकदूसरे की तरफ देखने लगीं. 16 नंबर मकान में रहने वाली कमला ताई दिव्यांशी की हमदर्द बन गई थीं. उन की आंखों में सवाल देख दिव्यांशी बोली, ‘‘ताईजी, रामाधार की कहानी भी मेरे ही जैसी है. उस के मातापिता की मौत बचपन में ही हो गई थी. कोई और रिश्तेदार न होने के कारण पड़ोसियों ने उसे अनाथ आश्रम में दे दिया था. वहीं पर रह कर उस ने पढ़ाई की और आज इस लायक बना.’’

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अब तो सभी के मन में रामाधार के प्रति हमदर्दी के भाव उमड़ पड़े. ‘‘शादी कब करने की सोच रहे हो,’’ 10 नंबर वाली कल्पना भाभी ने पूछा. ‘‘इसी हफ्ते शादी हो जाएगी तो अच्छा होगा और कागजी कार्यवाही करने में भी आसानी होगी.’’

‘‘इतनी जल्दी तैयारी कैसे होगी?’’ सुमित्रा ने सवाल किया. ‘‘तैयारी क्या करनी है, हम ने सोचा है कि हम आर्य समाज मंदिर में शादी करेंगे और शाम का खाना रामभरोसे होटल में रख कर आशीर्वाद समारोह आयोजित कर लेंगे.

कहानी के दूसरे और आखिरी भाग में पढ़िए क्या हुआ दिव्यांशी के साथ?

बेचारी दिव्यांशी: भाग 2

पहला भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें- बेचारी दिव्यांशी: भाग 1

दूसरे दिन सुबह रामाधार अपनी कागजी कार्यवाही के लिए दिल्ली चला जाएगा और 10-12 दिन बाद जब वापस आएगा तो मैं उस के घर चली जाऊंगी. ‘‘मैं आप लोगों से अनुरोध करूंगी कि आप मुझे ट्यूशन की फीस अगले 3 महीने की एडवांस में दे दें.

सामान के बदले में मुझे कैश ही दें क्योंकि सामान तो मैं साथ ले जा नहीं पाऊंगी.’’ सभी को दिव्यांशी की भविष्य के प्रति गंभीरता पसंद आई. 11 नंबर मकान में रहने वाली चंदा चाची उत्सुकतावश बोली, ‘‘बिना जेवर के दुलहन अच्छी नहीं लगती इसलिए शादी के दिन मैं अपना नया वाला सोने का सैट, जो अपनी बेटी की शादी के लिए बनवाया है, उस दिन दिव्यांशी को पहना दूंगी.’’

‘‘जी चाचीजी, रिसैप्शन के बाद मैं वापस कर दूंगी,’’ दिव्यांशी बोली. अब तो होड़ मच गई. कोई अंगूठी, तो कोई पायल, कोई चैन, तो कोई कंगन दिव्यांशी को देने को तैयार हो गया. सुधा चाची ने अपनी लड़की का नया लहंगा दे दिया. कुल 50-55 घरों वाले इस महल्ले में कन्यादान करने वालों की भी होड़ लग गई.

कोई 5,000 रुपए दे रहा था, तो कोई 2,100 रुपए. शादी के दिन महल्ले में उत्सव जैसा माहौल था. सभी छुट्टी ले कर घर पर ही थे. अपनेअपने वादे के मुताबिक सभी ने अपने गहनेकपड़े दिव्यांशी को दे दिए थे.

शादी दोपहर 12 बजे होनी थी. इसी वजह से दिव्यांशी को सुबह 9 बजे ब्यूटीपार्लर पहुंचना था और वहीं से आर्य समाज मंदिर. लेकिन सब से बड़ा सवाल यह था कि दिव्यांशी को ब्यूटीपार्लर ले कर जाएगा कौन?

इतनी सुबह उस के साथ जाने का मतलब था कि खुद को बिना तैयार किए शादी में जाना, इसलिए यह निश्चित हुआ कि सुमित्रा के पति दिव्यांशी को अपने साथ ले कर जाएंगे और ब्यूटीपार्लर की जगह पर छोड़ देंगे. जैसे ही पार्लर का काम पूरा हो जाएगा, दिव्यांशी फोन कर के उन्हें बुलवा लेगी और वहीं से सभी आर्य समाज मंदिर चले जाएंगे.

तय समय के मुताबिक ही सारा कार्यक्रम शुरू हो गया. सुबह साढ़े 8 बजे सुमित्रा के पति अपनी कार ले कर दिव्यांशी के दरवाजे पर पहुंच गए और उस के बताए ब्यूटीपार्लर पर सारे सामान के साथ ले गए.

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पार्लर अभीअभी खुला ही था. वह उसे पार्लर पर छोड़ कर चले गए. अब सभी तैयार होने लगे. चूंकि रिसैप्शन शाम को होना था इसीलिए तकरीबन सभी घरों में या तो सिर्फ नाश्ता बना या खिचड़ी. तकरीबन साढ़े 11 बजे सुमित्रा सपरिवार दिव्यांशी को लेने के लिए पार्लर पहुंची, पर दिव्यांशी तो वहां थी ही नहीं.

ज्यादा जानकारी लेने पर पता चला कि पार्लर तो साढ़े 10 बजे खुलता है. 9 बजे तो सफाई वाला आता है जो पार्लर के कर्मचारियों के आने के बाद चला जाता है. आज सुबह 9 बजे किसी का भी किसी तरह का अपौइंटमैंट नहीं था.

सुमित्रा को चक्कर आने लगे. वह किसी तरह चल कर कार तक पहुंची और पति को सारी बात बताई. पति तुरंत पार्लर के अंदर गए और उन के अनुरोध पर उस सफाई वाले को बुलवाया गया, ताकि कुछ पता चल सके. सफाई वाले ने जो बताया, उसे सुन कर सभी के होश उड़ गए.

उस ने बताया, ‘‘सुबह जो लड़की पार्लर में आई थी, उस ने बताया था कि वह एक नाटक में एक विकलांग भिखारी का रोल कर रही है. उसे हेयर कट और मेकअप कराना है. ‘‘तब मैं ने बताया कि पार्लर तो सुबह साढ़े 10 बजे खुलेगा, तो वह कहने लगी कि तब तक मेरा पैर फालतू ही मुड़ा रहेगा, मैं वाशरूम में जा कर पैरों में लगी इलास्टिक को निकाल लूं क्या? जब तक पार्लर खुलेगा, मैं नाश्ता कर के आ जाऊंगी.

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‘‘मैं ने कहा ठीक है. देखिए, इस कोने में उस की बैसाखियां और निकला हुआ इलास्टिक रखा है.’’ सभी ने देखा, बैसाखियों के साथ एक छोटी सी थैली रखी थी. इस में चौड़े वाले 2 इलास्टिक और दिव्यांशी के फोन का सिम कार्ड रखा हुआ था. आर्य समाज मंदिर में सभी लोग अपनेआप को ठगा सा महसूस करते हुए एकदूसरे की तरफ देख रहे थे.

लिव इन की चोट: भाग 1

आज राहुल के दोस्त विनय के बेटे का नामकरण था, इसलिए वह औफिस से सीधे उस के घर चला गया था. वैसे, राहुल को ऐसे उत्सव पसंद नहीं आते थे, पर विनय के आग्रह पर उसे वहां जाना ही पड़ा, क्योंकि विनय उस का जिगरी दोस्त जो था.

‘‘यार, अब तू भी सैटल हो ही जा, आखिर कब तक यों ही भटकता रहेगा,’’ फंक्शन खत्म होने के बाद नुक्कड़ वाली पान की दुकान पर पान खाते हुए विनय ने राहुल से कहा. ‘‘नहीं यार,’’ राहुल पान चबाता हुआ बोला, ‘‘तुझे तो पता है न कि मुझे इन सब झमेलों से कितनी कोफ्त होती है?

‘‘भई, मैं तो अपनी पूरी जिंदगी पति नाम का पालतू जीव बन कर नहीं गुजार सकता. मैं सच कहूं तो मुझे शादी के नाम से ही चिढ़ है और बच्चा… न भई न.’’

‘‘अच्छा यार, जैसी तेरी मरजी,’’ इत कह कर विनय खड़ा हुआ, ‘‘पर हां, एक बात तेरी जानकारी के लिए बता दूं कि मेरी पत्नी राशि की मुंहबोली बहन करिश्मा फिदा है तुझ पर. उस बेचारी ने जब से तुझे मेरी शादी में देखा है तब से वह तेरे नाम की रट लगाए बैठी है. उस ने जो मुझ से कहा वह मैं ने तुझे बता दिया, अब आगे तेरी मरजी.’’

उस के बाद काफी समय तक दोनों की मुलाकात नहीं हो पाई, क्योंकि अपने घर वालों के तानों से तंग आ कर अब राहुल ज्यादातर टूर पर ही रहता था.

‘‘न जाने क्या है हमारे बेटे के मन में, लगता है पोते का मुंह देखे बिना ही मैं इस दुनिया से चली जाऊंगी,’’ जबजब राहुल की मां उस से यह कहतीं, तबतब राहुल की बेचैनी बहुत बढ़ जाती.

वैसे उस के पापा इस बारे में उस से कुछ नहीं कहते थे. पर उन का चेहरा देख राहुल भी परेशान हो जाता था. राहुल अच्छा कमाता था और उस का व्यक्तित्व भी आकर्षक था. पर शादी के नाम से उसे चिढ़ थी. इसलिए तो वह अब तक अपने लिए आया हर शादी का रिश्ता ठुकराता रहा था.

लेकिन फिर धीरेधीरे उस के मम्मीपापा ने उसे इस बारे में टोकना छोड़ दिया था, क्योंकि वे जानते थे कि शादी का रिश्ता जबरदस्ती से नहीं कायम किया जा सकता.

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मातापिता के इस बदलाव से राहुल बेहद खुश था, क्योंकि यह सब उस के लिए किसी सुकून से कम नहीं था.

एक बार राहुल ट्रेन से सफर कर रहा था, तब उस की मुलाकात शिल्पा से हुई जो मौडल बनने की चाह लिए दिल्ली आईर् थी.

शिल्पा उसी की तरह खुले विचारों वाली युवती थी, जिसे बंधन में बंध कर जीना बिलकुल पसंद नहीं था.

‘‘सच, तुम्हारे व मेरे विचार कितने मिलतेजुलते हैं. सफर खत्म होने से पहले ही राहुल ने यह शिल्पा से कह डाला था. ’’

‘‘वह तो है पर…’’

‘‘हांहां, बोलो न,’’ राहुल बातचीत का सूत्र आगे बढ़ाता हुआ कह रहा था.

‘‘अगर तुम चाहो तो हम दोनों एक राह के मुसाफिर बन कर रह सकते हैं,’’ शिल्पा अपनी जुल्फों पर उंगलियां फेरते हुए बोली.

‘‘सच, तुम ने तो मेरे मन की बात कह डाली,’’ यह कहतेकहते ही राहुल की आंखों में एक अजीब सी चमक कौंध उठी थी.

‘‘तो फिर क्या कहते हो?’’ शिल्पा राहुल की आंखों में गहराई से देखते हुए उस से पूछने लगी थी, ‘‘मेरी फ्रैंड का फ्लैट है यहां दिल्ली में. किराया कुछ ज्यादा है, तो क्या हम फ्लैट शेयर कर लें और बाकी खर्चे भी आधेआधे हो जाएंगे, कैसा रहेगा?’’

‘‘हांहां, नेकी और पूछपूछ,’’ राहुल हंसते हुए बोला, ‘‘दरअसल, मैं खुद एक ऐसे फ्रैंड की तलाश में था, जिस के साथ मैं बिना किसी रोकटोक के सुकून से रह सकूं और रही बात खर्चे शेयर करने की, तो उस में मुझे कोई प्रौब्लम नहीं है.’’

इस तरह दोनों के बीच लिवइन में रहने की डील तय हुई और फिर दोनों जल्दी ही उस फ्लैट में शिफ्ट हो गए.

सच, क्या आजाद जिंदगी थी दोनों की? न किसी की टोकाटाकी न किसी के प्रति कोई जवाबदेही. आकाश में उन्मुक्त पंछियों की तरह दोनों ही अपनीअपनी जिंदगी मजे से जी रहे थे.

हर सुबह राहुल औफिस के लिए निकल जाता तो शिल्पा काम ढूंढ़ने के लिए ऐड एजेंसियों के चक्कर काटती. शाम होने पर तकरीबन दोनों ही लौट आते और अगर कोई देर से भी लौटता तो दूसरे को परेशान होने की जरूरत नहीं थी, क्योंकि उन के फ्लैट की 2 चाबियां थीं.

पर हां, साथसाथ डिनर करना, बाहर से पिज्जा या चाइनीज फूड और्डर करना, यहां तक तो दोनों को मंजूर था पर रात गहराते ही दोनों अपनेअपने बैडरूम में चले जाते ताकि दोनों के बीच कुछ भी ऐसावैसा न हो, जिस की वजह से उन्हें किसी मुसीबत का सामना करना पड़े.

एक बार जब शिल्पा को कई दिनों की दौड़धूप के बाद एक नामी ऐड एजेंसी से मौडलिंग का औफर मिला तब वह मानो खुशी से झूम उठी.

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‘‘यार, आज तो वाकई में सैलिब्रेशन बनता है,’’ राहुल ने कहा.

‘‘हां, बोलो, क्या चाहते हो, मैं ने कब इनकार किया है?’’ शिल्पा आंख से आंख मिलाते हुए राहुल के एकदम पास जा कर बोली.

‘‘तो हो जाए, आज फिर धूमधड़ाका, कुछ मौजमस्ती,’’ राहुल शरारत से एक आंख दबाते हुए बोला तो शिल्पा खुद को रोक न सकी और तुरंत उस के सीने से चिपक गई.

फिर उन दोनों के बीच जो कुछ हुआ वह किसी फन से, मौजमस्ती से कम न था. उस रात दोनों ने एक नए अनुभव से खुद को रोमांचित किया. सच, क्या उन्माद छाया था दोनों पर. फिर तो उन की पूरी रात आंखों ही आंखों में कट गई.

अगली सुबह दोनों ही अलसाए से अपनेअपने काम पर चले गए. अब जब दोनों ने ही अपने ऊपर लगा बंधन तोड़ दिया  तो ऐसे में अब तकरीबन हर रोज ही दोनों के बीच शारीरिक संबंध बनने लगे थे.

‘‘उफ, राहुल, क्या मादकता है तुम्हारे स्पर्श में, मेरा रोमरोम मानो पिघल जाता है,’’ शिल्पा राहुल में समाते हुए कह उठी.

‘‘मैडम, तुम भी तो कम कहर नहीं ढातीं मुझ पर. सच, तुम्हारा यह रूप, यह यौवन मुझे तड़पने को मजबूर कर देता है,’’ प्रत्युत्तर में राहुल उसे चूमते हुए कहता. फिर दोनों एकदूसरे में खो जाते और  घंटों प्रेमालाप में मग्न रहते.

एक दिन जब शिल्पा कुछ बुझीबुझी सी घर पहुंची तब राहुल से रुका न गया. वह शिल्पा का मूड ठीक करने के लिए तुरंत बढि़या कौफी बना कर लाया और उसे कौफी का मग थमाते हुए उस से पूछने लगा, ‘‘क्या हुआ शूटिंग कैंसिल हो गई क्या?’’

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‘‘नहीं, अभीअभी ऐबौर्शन करवा कर आई हूं,’’ शिल्पा ठंडे स्वर में बोली.

अगले भाग में पढ़िए क्या हुआ राहुल और शिल्पा के रिश्ते का?

गलती का एहसास

सौरभ दफ्तर के काम में बिजी था कि अचानक मोबाइल फोन की घंटी बजी. मोबाइल की स्क्रीन पर कावेरी का नाम देख कर उस का दिल खुशी से उछल पड़ा.

कावेरी सौरभ की प्रेमिका थी. उस ने मोबाइल फोन पर ‘हैलो’ कहा, तो उधर से कावेरी की आवाज आई, ‘तुम्हारा प्यार पाने के लिए मेरा मन आज बहुत बेकरार है. जल्दी से घर आ जाओ.’

‘‘तुम्हारा पति घर पर नहीं है क्या?’’ सौरभ ने पूछा.

‘नही,’ उधर से आवाज आई.

‘‘वह आज दफ्तर नहीं आया, तो मुझे लगा कि वह छुट्टी ले कर तुम्हारे साथ मौजमस्ती कर रहा है,’’ सौरभ मुसकराते हुए बोला.

‘ऐसी बात नहीं है. वह कुछ जरूरी काम से अपने एक रिश्तेदार के घर आसनसोल गया है. रात के 10 बजे से पहले लौट कर नहीं आएगा, इसीलिए मैं तुम्हें बुला रही हूं. तनमन की प्यास बुझाने के लिए हमारे पास अच्छा मौका है. जल्दी से यहां आ जाओ.’

‘‘मैं शाम के साढ़े 4 बजे तक जरूर आ जाऊंगा. जिस तरह तुम मेरा प्यार पाने के लिए हर समय बेकरार रहती हो, उसी तरह मैं भी तुम्हारा प्यार पाने के लिए बेकरार रहता हूं.

‘‘तुम्हारे साथ मुझे जो खुशी मिलती है, वैसी खुशी अपनी पत्नी से भी नहीं मिलती है. हमबिस्तरी के समय वह एक लाश की तरह चुपचाप पड़ी रहती है, जबकि तुम प्यार के हर लमहे में खरगोश की तरह कुलांचें मारती हो. तुम्हारी इसी अदा पर तो मैं फिदा हूं.’’

थोड़ी देर तक कुछ और बातें करने के बाद सौरभ ने मोबाइल फोन काट दिया और अपने काम में लग गया.

4 बजे तक उस ने अपना काम निबटा लिया और दफ्तर से निकल गया. सौरभ कावेरी के घर पहुंचा. उस समय शाम के साढ़े 4 बज गए थे. कावेरी उस का इंतजार कर रही थी.

जैसे ही सौरभ ने दरवाजे की घंटी बजाई, कावेरी ने झट से दरवाजा खोल दिया. मानो वह पहले से ही दरवाजे पर खड़ी हो. वे दोनों वासना की आग से इस तरह झुलस रहे थे कि फ्लैट का मेन दरवाजा बंद करना भूल गए और झट से बैडरूम में चले गए.

कावेरी को बिस्तर पर लिटा कर सौरभ ने उस के होंठों को चूमा, तो वह भी बेकरार हो गई और सौरभ के बदन से मनमानी करने लगी.

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जल्दी ही उन दोनों ने अपने सारे कपड़े उतारे और धीरेधीरे हवस की मंजिल की तरफ बढ़ते चले गए. अभी वे दोनों मंजिल पर पहुंच भी नहीं पाए थे कि किसी की आवाज सुनाई पड़ी, ‘‘यह सब क्या हो रहा है?’’

वे दोनों घबरा गए और झट से एकदूसरे से अलग हो गए.

सौरभ ने दरवाजे की तरफ देखा, तो बौखला गया. दरवाजे पर कावेरी का पति जयदेव खड़ा था. उस की आंखों से अंगारे बरस रहे थे.

उन दोनों को इस बात का एहसास हुआ कि उन्होंने मेन दरवाजा बंद नहीं किया था. कावेरी ने झट से पलंग के किनारे रखे अपने कपड़े उठा लिए. सौरभ ने भी अपने कपड़े उठाए, मगर जयदेव ने उन्हें पहनने नहीं दिया.

जयदेव उन को गंदीगंदी गालियां देते हुए बोला, ‘‘मैं चुप रहने वालों में से नहीं हूं. अभी मैं आसपड़ोस के लोगों को बुलाता हूं.’’

कावेरी ने जयदेव के पैर पकड़ लिए. उस ने गिड़गिड़ाते हुए कहा, ‘‘प्लीज, मुझे माफ कर दीजिए. अब ऐसी गलती कभी नहीं करूंगी.’’

‘‘मैं तुम्हें हरगिज माफ नहीं कर सकता. तुम तो कहती थीं कि मैं कभी किसी पराए मर्द को अपना बदन छूने नहीं दूंगी. फिर अभी सौरभ के साथ क्या कर रही थीं?’’

कावेरी कुछ कहती, उस से पहले जयदेव ने सौरभ से कहा, ‘‘तुम तो अपनेआप को मेरा अच्छा दोस्त बताते थे. यही है तुम्हारी दोस्ती? दोस्त की पत्नी के साथ रंगरलियां मनाते हो और दोस्ती का दम भरते हो. मैं तुम्हें भी कभी माफ नहीं करूंगा.

‘‘फोन कर के मैं तुम्हारी पत्नी को बुलाता हूं. उसे भी तो पता चले कि उस का पति कितना घटिया है. दूसरे की पत्नी के साथ हमबिस्तरी करता है.’’

‘‘प्लीज, मुझे माफ कर दो. मेरी पत्नी को कावेरी के बारे में पता चल जाएगा, तो वह मुझे छोड़ कर चली जाएगी.

‘‘मैं कसम खाता हूं कि अब कभी कावेरी से संबंध नहीं बनाऊंगा,’’ सौरभ ने गिड़गिड़ाते हुए कहा.

सौरभ के गिड़गिडाने का जयदेव पर कोई असर नहीं हुआ. उस ने सौरभ से कहा, ‘‘मैं तुम दोनों को कभी माफ नहीं कर सकता. तुम दोनों की करतूत जगजाहिर करने के बाद आज ही कावेरी को घर से निकाल दूंगा. उस के बाद तुम्हारी जो मरजी हो, वह करना. कावेरी से संबंध रखना या न रखना, उस से मुझे कोई लेनादेना नहीं.’’

जयदेव चुप हो गया, तो कावेरी फिर गिड़गिड़ा कर उस से माफी मांगने लगी. सौरभ ने भी ऐसा ही किया. जयदेव के पैर पकड़ कर उस से माफी मांगते हुए कहा कि अगर वह उसे माफ नहीं करेगा, तो उस के पास खुदकुशी करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं रह जाएगा, क्योंकि वह अपनी पत्नी की नजरों में गिर कर नहीं जी पाएगा.

आखिरकार जयदेव पिघल गया. उस ने सौरभ से कहा, ‘‘मैं तुम्हें माफ तो नहीं कर सकता, मगर जबान बंद रखने के लिए तुम्हें 3 लाख रुपए देने होंगे.’’

‘‘3 लाख रुपए…’’ यह सुन कर सौरभ की घिग्घी बंध गई. उस का सिर भी घूमने लगा.

बात यह थी कि सौरभ की माली हालत ऐसी नहीं थी कि वह जयदेव को 3 लाख रुपए दे सके. उसे जितनी तनख्वाह मिलती थी, उस से परिवार का गुजारा तो चल जाता था, मगर बचत नहीं हो पाती थी.

सौरभ ने अपनी माली हालत के बारे में जयदेव को बताया, मगर वह नहीं माना. उस ने कहा, ‘‘तुम्हारी माली हालत से मुझे कुछ लेनादेना नहीं है. अगर तुम मेरा मुंह बंद रखना चाहते हो, तो रुपए देने ही होंगे.’’

सौरभ को समझ नहीं आ रहा था कि वह इस मुसीबत से कैसे निबटे?

सौरभ को चिंता में पड़ा देख कावेरी उस के पास आ कर बोली, ‘‘तुम इतना सोच क्यों रहे हो? रुपए बचाने की सोचोगे, तो हमारी इज्जत चली जाएगी. लोग हमारी असलियत जान जाएंगे.

‘‘तुम खुद सोचो कि अगर तुम्हारी पत्नी को सबकुछ मालूम हो जाएगा, तो क्या वह तुम्हें माफ कर पाएगी?

‘‘वह तुम्हें छोड़ कर चली जाएगी, तो तुम्हारी जिंदगी क्या बरबाद नहीं हो जाएगी? मेरी तो कोई औलाद नहीं है. तुम्हारी तो औलाद है, वह भी बेटी. अभी उस की उम्र भले ही 6 साल है, मगर बड़ी होने के बाद जब उसे तुम्हारी सचाई का पता चलेगा, तो सोचो कि उस के दिल पर क्या गुजरेगी. तुम से वह इतनी ज्यादा नफरत करने लगेगी कि जिंदगीभर तुम्हारा मुंह नहीं देखेगी.’’

सौरभ पर कावेरी के समझाने का तुरंत असर हुआ. वह जयदेव को 3 लाख रुपए देने के लिए राजी हो गया, मगर इस के लिए उस ने जयदेव से एक महीने का समय मांगा.

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कुछ सोचते हुए जयदेव ने कहा, ‘‘मैं तुम्हें एक महीने की मुहलत दे सकता हूं, मगर इस के लिए तुम्हें कोई गारंटी देनी होगी.’’

‘‘कैसी गारंटी?’’ सौरभ ने जयदेव से पूछा.

‘‘मैं कावेरी के साथ तुम्हारा फोटो खींच कर अपने मोबाइल फोन में रखूंगा. बाद में अगर तुम अपनी जबान से मुकर जाओगे, तो फोटो सब को दिखा दूंगा.’’

मजबूर हो कर सौरभ ने जयदेव की बात मान ली. जयदेव ने कावेरी के साथ सौरभ का बिना कपड़ों वाला फोटो खींच कर अपने मोबाइल में सेव कर लिया.

शाम के 7 बजे जब सौरभ कावेरी के फ्लैट से बाहर आया, तो बहुत परेशान था. वह लगातार यही सोच रहा था कि 3 लाख रुपए कहां से लाएगा?

सौरभ कोलकाता का रहने वाला था. उलटाडांगा में उस का पुश्तैनी मकान था. उस की शादी अनीता से तकरीबन 8 साल पहले हुई थी.

सौरभ की पत्नी अनीता भी कोलकाता की थी. अनीता जब बीए के दूसरे साल में थी, तभी उस के मातापिता ने उस की शादी सौरभ से कर दी थी. सौरभ ने उस की पढ़ाई छुड़ा कर उसे घर के कामों में लगा दिया. अनीता भी आगे नहीं पढ़ना चाहती थी, इसलिए तनमन से घर संभालने में जुट गई थी.

शादी के समय सौरभ के मातापिता जिंदा थे, मगर 2 साल के भीतर उन दोनों की मौत हो गई थी. तब से अनीता ने घर की पूरी जिम्मेदारी संभाल ली थी.

मगर शादी के 5 साल बाद अचानक सौरभ ने अपना मन अनीता से हटा लिया था और वह मनचाही लड़की की तलाश में लग गया था.

बात यह थी कि एक दिन सौरभ ने अपने दोस्त के घर ब्लू फिल्म देखी थी. उस के बाद उस का मन बहक गया था. ब्लू फिल्म की तरह उस ने भी मजा लेने की सोची थी. उसी दिन दोस्त से ब्लू फिल्म की सीडी ले कर सौरभ घर आया. बेटी जब सो गई, तो टैलीविजन पर उस ने अनीता को फिल्म दिखाना शुरू किया.

कुछ देर बाद अनीता समझ गई कि यह कितनी गंदी फिल्म है. फिल्म बंद कर के वह सौरभ से बोली, ‘‘आप को ऐसी गंदी फिल्म देखने की लत किस ने लगाई?’’

‘‘मैं ने यह फिल्म आज पहली बार देखी है. मुझे अच्छी लगी, इसलिए तुम्हें दिखाई है कि फिल्म में लड़की ने अपने मर्द साथी के साथ जिस तरह की हरकतें की हैं, उसी तरह की हरकतें तुम मेरे साथ करो.’’

‘‘मुझ से ऐसा नहीं होगा. मैं ऐसा करने से पहले ही शर्म से मर जाऊंगी.’’

‘‘तुम एक बार कर के तो देखो, शर्म अपनेआप भाग जाएगी.’’

‘‘मुझे शर्म को भगाना नहीं, अपने साथ रखना है. आप जानते नहीं कि शर्म के बिना औरतें कितनी अधूरी रहती हैं. मेरा मानना है कि हर औरत को शर्म के दायरे में रह कर ही हमबिस्तरी करनी चाहिए.

‘‘आप अपने दिमाग से गंदी बातें निकाल दीजिए. हमबिस्तरी में अब तक जैसा चलता रहा है, वैसा ही चलने दीजिए. सच्चा मजा उसी में है. अगर मुझ पर दबाव बनाएंगे, तो मैं मायके चली जाऊंगी.’’

उस समय तो सौरभ की बोलती बंद हो गई, मगर उस ने अपनी चाहत को दफनाया नहीं. उस ने मन ही मन ठान लिया कि पत्नी न सही, कोई और सही, मगर वह मन की इच्छा जरूर पूरी कर के रहेगा.

उस के बाद सौरभ मनचाही लड़की की तलाश में लग गया. इस के लिए एक दिन उस ने अपने दोस्त रमेश से बात भी की. रमेश उसी कंपनी में था, जिस में वह काम करता था.

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रमेश ने सौरभ को सुझाव दिया, ‘‘तुम्हारी इच्छा शायद ही कोई घरेलू औरत पूरी कर सके, इसलिए तुम्हें किसी कालगर्ल से संबंध बनाना चाहिए.’’

सौरभ को रमेश की बात जंच गई. कुछ दिन बाद उसे एक कालगर्ल मिल भी गई.

एक दिन सौरभ रात के 9 बजे कालगर्ल के साथ होटल में गया. वह कालगर्ल के साथ मनचाहा करता, उस से पहले ही होटल पर पुलिस का छापा पड़ गया. सौरभ गिरफ्तारी से बच न सका.

सौरभ ने पत्नी को बताया था कि एक दोस्त के घर पार्टी है. पार्टी रातभर चलेगी, इसलिए वह अगले दिन सुबह ही घर आ पाएगा या वहीं से दफ्तर चला जाएगा. इसी वजह से पत्नी की तरफ से वह बेखौफ था.

गिरफ्तारी की बात सौरभ ने फोन पर रमेश से कही, तो अगले दिन उस ने जमानत पर उसे छुड़ा लिया.

सौरभ को लगा था कि उस की गिरफ्तारी की बात कोई जान नहीं पाएगा. मगर ऐसा नहीं हुआ. न जाने कैसे धीरेधीरे दफ्तर के सारे लोगों को इस बात का पता चल गया. शर्मिंदगी से सौरभ कुछ दिनों तक अपने दोस्तों से नजरें नहीं मिला पाया, लेकिन 2-3 महीने बाद वह सामान्य हो गया. इस में उस के एक दोस्त जयदेव ने मदद की था.

जयदेव 6 महीने पहले ही पटना से तबादला हो कर यहां आया था. कालगर्ल मामले में सौरभ दफ्तर में बदनाम हो गया था, तो जयदेव ने ही उसे टूटने से बचाया था.

एक दिन जयदेव उसे अकेले में ले गया और तरहतरह से समझाया, तो उस ने अपने दोस्तों से मुकाबला करने की हिम्मत जुटा ली. अब दफ्तर में सारे दोस्त सौरभ से पहले की तरह अच्छा बरताव करने लगे, तो सौरभ ने जयदेव की खूब तारीफ की और उस से दोस्ती कर ली.

दोस्ती के 6 महीने बीत गए, तो एक दिन जयदेव सौरभ को अपने घर ले गया. जयदेव की पत्नी कावेरी को सौरभ ने देखा, तो उस की खूबसूरती पर लट्टू  हो गया.

कुछ देर तक कावेरी से बात करने पर सौरभ ने महसूस किया कि वह जितनी खूबसूरत है, उस से ज्यादा खुले विचार की है.

सौरभ जयदेव के घर से जाने लगा, तो कावेरी उसे दरवाजे पर छोड़ने आई. कावेरी उस से बोली, ‘जब भी मौका मिले, आप  बेखटक आइएगा. मुझे बहुत अच्छा लगेगा.’

उस समय जयदेव वहां पर नहीं था, इसलिए सौरभ ने मुसकराते हुए मजाकिया लहजे में कहा, ‘‘क्या मैं जयदेव की गैरहाजिरी में भी आ सकता हूं?’’

‘‘क्यों नहीं? आप का जब जी चाहे आ जाइएगा, मैं स्वागत करूंगी.’’

‘‘तब तो मैं जरूर आऊंगा. देखूंगा कि उस की गैरहाजिरी में आप मेरा स्वागत कैसे करती हैं?’’

‘‘जरूर आइएगा. देखिएगा, मैं आप को निराश नहीं होनें दूंगी. तनमन से स्वागत करूंगी. जो कुछ चाहिएगा, वह सबकुछ दूंगी. घर जा कर सौरभ कावेरी की बात भूल गया. भूलता क्यों नहीं? उस की बात को उस ने मजाक जो समझ लिया था.’’

एक हफ्ता बाद जयदेव के कहने पर सौरभ उस के घर फिर गया. मौका पा कर कावेरी ने उस से कहा, ‘‘आप तो अपने दोस्त की गैरहाजिरी में आने वाले थे? मैं इंतजार कर रही थी. आप आए क्यों नहीं? कहीं आप मुझ से डर तो नहीं गए?’’

सौरभ सकपका गया. वह कावेरी से कुछ कहता, उस से पहले वहां जयदेव आ गया. फिर तो चाह कर भी वह कुछ कह न सका.

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उस के बाद सौरभ यह सोचने पर मजबूर हो गया कि कहीं कावेरी उसे चाहती तो नहीं है?

बेशक कावेरी उस की पत्नी से ज्यादा खूबसूरत थी, मगर वह उस के दोस्त की पत्नी थी, इसलिए वह कावेरी पर बुरी नजर नहीं रखना चाहता था. फिर भी वह उस के मन की चाह लेना चाहता था.

3 दिन बाद ही सुबहसवेरे दफ्तर से छुट्टी ले कर सौरभ कावेरी के घर पहुंच गया. सौरभ को आया देख कावेरी चहक उठी, ‘‘मुझे उम्मीद नहीं थी कि मेरे रूप का जादू आप पर इतनी जल्दी असर करेगा.’’

सौरभ ने भी झट से कह दिया, ‘‘आप का जादू मुझ पर चल गया है, तभी तो मैं दोस्त की गैरहाजिरी में आया हूं.’’

‘‘आप ने बहुत अच्छा किया. देखिएगा, मैं आप को निराश नहीं करूंगी. मैं जानती हूं कि आप अपनी पत्नी से खुश नहीं हैं, वरना कालगर्ल के पास जाते ही क्यों? मैं आप को वह सबकुछ दे सकती हूं, जो अपनी पत्नी से आप को नहीं मिला.’’

सौरभ हैरान रह गया. उस ने कभी नहीं सोचा कि कोई औरत इस तरह खुल कर अपने दिल की बात किसी मर्द से कह सकती है.

सौरभ कावेरी से कुछ कहता, उस से पहले ही वह बोली, ‘‘आप मुझे बेहया समझ रहे होंगे. मगर ऐसी बात नहीं है. बात यह है कि मैं आप को अपना दिल दे बैठी हूं…

‘‘दरअसल, जिस तरह आप अपनी पत्नी से संतुष्ट नहीं हैं, उसी तरह मैं भी अपने पति से संतुष्ट नहीं हूं. जब मैं ने आप को देखा, तो न जाने क्यों मुझे लगा कि अगर आप मेरी जिंदगी में आ जाएंगे, तो मेरी प्यास भी बुझ जाएगी.’’

कावेरी को सौरभ ने बुरी नजर से कभी नहीं देखा था. मगर कावेरी ने जब उसे अपने दिल की बात कही, तो उसे लगा कि उस से संबंध बनाने में कोई बुराई नहीं है.

उस के बद सौरभ ने अपनेआप को आगे बढ़ने से रोका नहीं. झट से उस ने कावेरी को बांहों में भर लिया. उस के होंठों और गालों को चूम लिया.

कावेरी ने कोई विरोध नहीं किया. कुछ देर बाद वह बोली, ‘‘आप बैडरूम में चलिए, मैं दरवाजा बंद कर के आती हूं.’’

सौरभ बैडरूम में चला गया. दरवाजा बंद कर कावेरी बैडरूम में आई, तो सौरभ ने बगैर देर किए उसे बांहों में भर लिया. उस के बाद दोनों अपनीअपनी हसरतों को पूरा करने में लग गए.

सौरभ जैसा चाहता था, कावेरी ने ठीक उसी तरह से उस की हवस को शांत किया.

सौरभ ने कावेरी की तारीफ करते हुए कहा, ‘‘मुझे आप से जो प्यार मिला है, वह मैं कभी नहीं भूल सकता.’’

‘‘यही हाल मेरा भी है सौरभजी. मेरी शादी हुए 5 साल बीत गए हैं. देखने में मेरे पति हट्टेकट्टे भी हैं, मगर उन से मैं कभी संतुष्ट नहीं हुई. अब मैं आप से एक गुजारिश करना चाहिती हूं.’’

‘‘गुजारिश क्यों? हुक्म कीजिए. मैं आप की हर बात मानूंगा,’’ कहते हुए सौरभ ने कावेरी के होंठों को चूम लिया.

‘‘आप शादीशुदा हैं. मैं भी शादीशुदा हूं. हम चाह कर भी कभी एकदूसरे से शादी नहीं कर सकते, लेकिन मैं चाहती हूं कि हम दोनों का संबंध जिंदगीभर बना रहे. हम दोनों कभी जुदा न हों. क्या ऐसा हो सकता है?’’

कावेरी ने जैसे उस के दिल की बात कह दी हो, इसलिए झट से उस ने कहा, ‘‘क्यों नहीं हो सकता. मैं भी तो यही चाहता हूं.’’

उस दिन के बाद जब भी मौका मिलता, सौरभ दफ्तर न जा कर कावेरी के घर चला जाता था.

इस तरह 4 महीने बीत गए. इस बीच सौरभ ने 7-8 बार कावेरी से हमबिस्तरी की. हर बार कावेरी ने उसे पहले से ज्यादा मस्ती दी.

सौरभ ने यह मान लिया था कि कावेरी के साथ उस का संबंध जिंदगीभर चलेगा. दोनों के बीच कोई दीवार नहीं आएगी, मगर उस का सोचा नहीं हुआ. आज जो कुछ भी हुआ, उस की सोच से परे था.

सौरभ अपने घर आया, तो वह बहुत परेशान था. अनीता ने उस की परेशानी ताड़ ली. अनीता ने उस से पूछ लिया, ‘‘क्या बात है? आप बहुत परेशान दिखाई दे रहे हैं?’’

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सौरभ ने बहाना बना दिया, ‘‘परेशान नहीं हूं. थका हुआ हूं.’’

सौरभ ने अनीता पर शक तो नहीं होने दिया, मगर उसी दिन से उस की सुखशांति छीन गई. दिनरात वह इस फिराक में रहने लगा कि 3 लाख रुपए का इंतजाम वह कैसे करे?

25 दिन बीत गए, मगर रुपए का इंतजाम नहीं हुआ, तो सौरभ ने मकान पर रुपए लेने का फैसला किया.

सौरभ मकान पर रुपए लेता, उस से पहले अनीता को सबकुछ मालूम हो गया. वह चुप रहने वालों में से नहीं थी.  वह सौरभ से बोली, ‘‘मुझे पता चला है कि आप मकान पर 3 लाख रुपए लेना चाहते हैं. सच बताइए कि रुपए की ऐसी क्या जरूरत आ पड़ी कि आप को मकान गिरवी रखना पड़ रहा है? कहीं आप किसी बजारू लड़की के चक्कर में तो नहीं पड़ गए हैं.’’

सौरभ घबरा गया. उस ने सच छिपाने की बहुत कोशिश की, लेकिन अनीता के सामने उस की एक न चली.

‘‘मैं जानती थी कि आप का शौक एक दिन आप को डुबो देगा.’’

‘‘कैसा शौक?’’ सौरभ हकला गया.

‘‘ब्लू फिल्म की तरह हरकतें करने का शौक,’’ सौरभ हैरान रह गया.

‘‘मैं जानती हूं कि आप अपना शौक पूरा करने के लिए कालगर्ल के साथ होटल में गए थे. वहां रेड पड़ी और पुलिस ने आप को गिरफ्तार कर लिया. अगले दिन आप के दोस्त ने आप को जमानत पर छुड़ाया. मैं ने आप से इसलिए कुछ नहीं कहा कि शर्मिंदगी से आप मुझ से नजरें नहीं मिला पाएंगे.’’

अब सौरभ ने भी अपनी गलती मानने मे देर नहीं की. कावेरी के साथ अपने नाजायज संबंध के बारे में सबकुछ बताने के बाद अनीता से उस ने माफी मांगी. उस से कहा कि वह ऐसी गलती नहीं करेगा.

‘‘मैं तो आप को माफ करूंगी ही, क्योंकि मैं अपना घर तोड़ना नहीं चाहती. मगर सवाल है कि कावेरी के चक्रव्यूह से आप कैसे निकलेंगे?’’

‘‘कैसा चक्रव्यूह?’’

‘‘आप अभी तक यही समझ रहे हैं कि कावेरी के साथ हमबिस्तरी करते समय उस के पति ने आप को अचानक देख लिया और आप के साथ सौदा कर लिया?’’

‘‘मैं तो यही समझ रहा हूं,’’ सौरभ बोला.

लेकिन सच यह नहीं है. मेरी सोच यह है कि कावेरी और उस के पति ने मिल कर आप को फंसाया है. अगर ऐसा नहीं होता, तो उस का पति आप के साथ सौदा क्यों करता? पत्नी की बेवफाई देख कर उसे अपने घर से निकाल देता या माफ कर देता. आप के साथ सौदा किसी भी हाल में नहीं करता.’’

कुछ सोचते हुए अनीता ने कहा, ‘‘जो होना था, वह तो हो गया. अब आप चिंता मत कीजिए. कावेरी के चक्रव्यूह से मैं आप को निकालूंगी.’’

‘‘आप तो जानते ही हैं कि मेरा मौसेरा भाई जयंत पुलिस इंस्पैक्टर है. जब उसे सारी बात बताऊंगी, तो वह हकीकत का पता लगा लेगा और सबकुछ ठीक भी कर देगा.’’

उसी दिन अनीता सौरभ के साथ जयंत से मिली. सारी बात जानने के बाद जयंत अगले दिन से छानबीन में जुट गया. 4 दिन बाद जयंत ने अनीता को फोन पर कहा, ‘‘छानबीन करने के बाद मैं ने जयदेव और कावेरी को गिरफ्तार कर लिया है. दोनों ने अपनाअपना गुनाह कबूल कर लिया है. अब जीजाजी को किसी से डरने की जरूरत नहीं है.

‘‘दरअसल, जयदेव और कावेरी का यही धंधा था. कोलकाता से पहले दोनों पटना में थे. वहां कई लोगों को अपना शिकार बनाने के बाद जयदेव ने अपना ट्रांसफर कोलकाता करा लिया था.

‘‘जब जीजाजी को कालगर्ल के साथ पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था, तो उन के दफ्तर के ही किसी ने थाने में उन्हें देख लिया और दफ्तर में सब को बता दिया.

‘‘दफ्तर बदनाम हो गया, तो जयदेव ने उन्हें अपना अगला शिकार बनाने का फैसला कर लिया.

‘‘अपनी योजना के तहत जयदेव ने पहले जीजाजी से दोस्ती की, उस के बाद उन्हें अपनी पत्नी कावेरी से मिलाया.

‘‘उस के बाद कावेरी ने अपना खेल शुरू किया. उस ने जीजाजी पर अपने रूप का जादू चलाया और उन के साथ वही सब किया, जो अब तक औरों के साथ करती आई थी.’’

जयदेव और कावेरी की सचाई जानने के बाद सौरभ ने राहत की सांस ली. अनीता को अपनी बांहों में भर कर उस की खूब तारीफ की.

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अनीता ने भी सौरभ को निराश नहीं किया. रात में बिस्तर पर उस ने शर्म छोड़ कर उस के साथ वैसा ही सबकुछ किया, जिस की चाह में वह कावेरी के चंगुल में फंस गया था.

भरपूर मजे के बाद सौरभ ने अनीता से कहा, ‘‘तुम तो सबकुछ कर सकती हो, फिर उस दिन जब मैं ने ऐसा करने के लिए कहा था, तो मना क्यों किया था?’’

‘‘सिर्फ मैं ही नहीं, हर पत्नी अपने पति के साथ ऐसा कर सकती है, मगर सभी ऐसा करती नहीं हैं, कुछ ही करती हैं.’’

‘‘जिस तरह मेरा मानना है कि औरतों को शर्म के दायरे में रह कर हमबिस्तरी करनी चाहिए, उसी तरह बहुत सी पत्नियां ऐसा मानती हैं. इसी वजह से बहुत सी पत्नियां ब्लू फिल्म की तरह हरकतें नहीं करतीं.’’

‘‘मैं ने आज शर्म की दीवार तोड़ कर आप का मनचाहा तो कर डाला, मगर बराबर नहीं कर सकती, क्यों कि मुझे बेहद शर्म आती है.’’

अनीता के चुप होते ही सौरभ ने कहा, ‘‘अब इस की जरूरत भी नहीं है. मैं समझ गया कि गलत चाहत में लोग बरबाद हो जाते हैं. मैं अपनी गलत चाहत को आदत नहीं बनाना चाहता, इसलिए हमबिस्तरी के समय वैसा ही सबकुछ चलेगा, जैसा अब तक चलता रहा है.’’

अनीता खुशी से सौरभ से लिपट गई. सौरभ ने भी उसे अपनी बांहों में कस लिया.

आसरा: भाग-3

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लेखिका- मीनू सिंह

बेटी के इस तरह गायब हो जाने से किशन का दुख और चिंता से बुरा हाल था. उधर आशा की स्थिति तो और भी दयनीय थी. उन्हें रहरह कर इस बात का पछतावा हो रहा था कि उन्होंने जया के घर से बाहर जाने वाले मामले की खोजबीन उतनी गहराई से नहीं की, जितनी उन्हें करनी चाहिए थी. इस की वजह यही थी कि उन्हें अपनी बेटी पर पूरा भरोसा था. किशन और आशा बेटी को ले कर एक तो वैसे ही परेशान थे, दूसरे जया के गायब होने की बात फैलने के साथ ही रिश्तेदारों और परिचितों द्वारा प्रश्न दर प्रश्न की जाने वाली पूछताछ उन्हें मानसिक तौर पर व्यथित कर रही थी.

मिलनेजुलने वाले की बातों और परामर्शों से परेशान हो कर किशन और आशा ने घर से बाहर निकलना ही बंद कर दिया था. उधर जया मातापिता पर गुजर रही कयामत से बेखबर नैनीताल की वादियों का आनंद उठा रही थी. करन के प्यार का नशा उस पर इस तरह से चढ़ा हुआ था कि उसे अपने भविष्य के बारे में सोचने का भी होश नहीं था. उसे यह भी चिंता नहीं थी कि जब उस के घर से लाए पैसे खत्म हो जाएंगे, तब क्या होगा? और यह सब उस की उस नासमझ उम्र का तकाजा था जिस में भावनाएं, कल्पनाएं तथा आकर्षण तो होता है, लेकिन गंभीरता या परिपक्वता नहीं होती.

किशन की रिपोर्ट के आधार पर पुलिस ने काररवाई शुरू की तो शीघ्र ही जया की गुमशुदगी का रहस्य खुल कर सामने आ गया. पुलिस द्वारा जया की फोटो दिखा कर की गई पूछताछ के दौरान पता चला कि वह लड़की नैनीताल जाने वाली बस में चढ़ते देखी गई थी. बताने वाले दुकानदार ने पुलिस को यह जानकारी भी दी कि उस के साथ एक लड़का भी था, इतना पता चलते ही पुलिस उसी दिन नैनीताल के लिए रवाना हो गई.

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नैनीताल पहुंचने के बाद पुलिस ने जया की खोज गेस्टहाउसों से ही शुरू की, क्योंकि दिनरात के अनुभवों के आधार पर पुलिस वालों का नजरिया था कि घर से भागे किशोरवय प्रेमीप्रेमिका पैसा कम होने की वजह से होटल के बजाय छोटेमोटे गेस्टहाउसों को ही अपना ठिकाना बनाते हैं. पुलिस का अनुमान ठीक निकला. एक गेस्टहाउस के केयरटेकर ने पुलिस वालों को बताया कि कम उम्र का एक प्रेमीयुगल 4 दिन पहले उस के यहां आ कर ठहरा था. पुलिस ने एंट्री रजिस्टर में उन का नाम और पता देखा, तो दोनों ही गलत दर्ज थे. इस बीच पुलिस द्वारा गेस्टहाउस में की जाने वाली जांचपड़ताल का पता सब को चल चुका था. पुलिस का नाम सुनते ही करन के होश उड़ गए.

उस ने बचे हुए पैसे अपनी जेब में डाले और जया से बोला,

‘‘तुम डरना नहीं जया. मैं 10-15 मिनट में लौट आऊंगा.’’

जया ने करन को रोकने की कोशिश भी की, लेकिन वह एक झटके से कमरे के बाहर हो गया. पुलिस जब तक जया के कमरे पर पहुंची, तब तक करन उस की पहुंच से बाहर निकल चुका था. मजबूरी में पुलिस जया को ले कर लौट आई. जया के बरामद होने की सूचना पुलिस ने उस के घर भेज दी थी. किशन को जब इस बात का पता चला कि जया किसी लड़के के साथ भागी थी तो अपनी बेटी की इस करतूत से उन का सिर हमेशा के लिए झुक गया था.

उन की समझ में नहीं आ रहा था कि वह लोगों का सामना कैसे कर पाएंगे. जया ने उन्हें कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा था. किशन में अब इतनी हिम्मत नहीं बची थी कि वह पुलिस थाने जा कर जया को ले आते. वह यह भी जानते थे कि जया के मिलने की खबर पाते ही रिश्तेदारों और परिचितों का जो तूफान उठेगा, वह उस का सामना नहीं कर पाएंगे. जया की बरामदगी के बाद पुलिस द्वारा किशन को लगातार संदेश दिया जा रहा था कि वह अपनी बेटी को ले जाएं.

जब पुलिस का दबाव बढ़ा तो किशन आपा खो बैठे और थाने जा कर पुलिस वालों से दोटूक कह दिया कि वह बेटी से अपने सारे संबंध खत्म कर चुके हैं. अब उस से उन का कोई रिश्ता नहीं है. वह अपनी रिपोर्ट भी वापस लेने को तैयार हैं. एक झटके में बेटी से सारे नाते तोड़ कर किशन वहां से चले गए. तब मजबूरी में पुलिस ने जया को हवालात से निकाल कर नारीनिकेतन भेज दिया.

जब जया ने वहां लाने की वजह जाननी चाही, तो एक पुलिसकर्मी ने व्यंग्य करते हुए उसे बताया,

‘घर से भागी थी, अपने यार के साथ, अब नतीजा भुगत. तेरे घर वाले तुझे ले जाने को तैयार नहीं हैं. उन्होंने तुझ से रिश्ता खत्म कर लिया है. अब नारीनिकेतन तेरा ‘आसरा’ है.’

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अतीत की लडि़यां बिखरीं तो जया यथार्थ में लौटी. अब उस की जिंदगी का सच यही था जो उस के सामने था. उस ने रोरो कर सूज चुकी आंखों से खिड़की के पार देखना चाहा तो उसे दूरदूर तक फैले अंधेरे के अलावा कुछ नजर नहीं आया. धूप का वह टुकड़ा भी न जाने कब, कहां विलीन हो गया था. जया के मन में, जीवन में और बाहर चारों ओर अंधेरा ही अंधेरा था.

इस अंधेरे में अकेले भटकतेभटकते उस का मन घबराया तो उसे मां का आंचल याद आया. वह बचपन में अकसर अंधेरे से डर कर मां के आंचल में जा छिपती थी, लेकिन अब वहां न तो मां थी और न मां का आंचल ही था. जिंदगी के इस मोड़ पर आ कर जया को अपनों की अहमियत का पता चला. उसे इस बात का एहसास भी अब हुआ कि मांबाप बच्चों की भलाई और उन के सुरक्षित भविष्य के लिए ही उन पर पाबंदियां लगाते हैं.

मातापिता के सख्ती बरतने के पीछे भी उन का प्यार और बच्चों के प्रति लगाव ही होता है. उसे इस बात का बेहद पछतावा था कि उस ने समय रहते मम्मी और पापा की भावनाओं की कद्र की होती तो उस का उज्ज्वल भविष्य नारीनिकेतन के उस गंदे से कमरे में दम न तोड़ रहा होता और जिस करन के प्यार के खुमार में उस ने अपनों को ठुकराया, वही करन उसे बीच मझधार में छोड़ कर भाग खड़ा हुआ. उस ने एक बार भी पलट कर यह देखने की कोशिश नहीं की कि जया पर क्या बीत रही होगी. करन की याद आते ही जया का मन वितृष्णा से भर उठा.

उसे अपने आप पर ग्लानि भी हुई कि एक ऐसे कृतघ्न के चक्कर में पड़ कर उस ने अपनी जिंदगी तो बर्बाद की ही, अपने परिवार वालों का सम्मान भी धूल में मिला दिया. अपनी भूल पर पछताती जया न जाने कब तक रोती रही. जब बैठेबैठे वह थक गई तो सीलन भरे नंगे फर्श पर ही लेट गई. आंखों से आंसू बहतेबहते कब नींद ने उसे अपने आगोश में समेट लिया, जया को पता ही न चला. अपनी बदरंग जिंदगी बिताने के लिए उसे आखिर एक ‘आसरा’ मिल ही गया था. नारीनिकेतन के सीलन भरे अंधेरे कमरे का वह कोना, जहां जिंदगी से थकीहारी जया नंगे फर्श पर बेसुध सो रही थी.

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आसरा: भाग 1

लेखिका- मीनू सिंह

धूप का एक उदास सा टुकड़ा खिड़की पर आ कर ठिठक गया था, मानो अपने दम तोड़ते अस्तित्व को बचाने के लिए आसरा तलाश रहा हो. खिड़की के पीछे घुटनों पर सिर टिकाए बैठी जया की निगाह धूप के उस टुकड़े पर पड़ी, तो उस के होंठों पर एक सर्द आह उभरी. बस, यही एक टुकड़ा भर धूप और सीलन भरे अंधेरे कमरे का एक कोना ही अब उस की नियति बन कर रह गया है. अपनी इस दशा को जया ने खुद चुना था. इस के लिए वह किसे दोष दे? कसूर उस का अपना ही था, जो उस ने बिना सोचेसमझे एक झटके में जिंदगी का फैसला कर डाला.

उस वक्त उस के दिलोदिमाग पर प्यार का नशा इस कदर हावी था कि वह भूल गई कि जिंदगी पानी की लहरों पर लिखी इबारत नहीं, जो हवा के एक झोंके से मिट भी सकती है और फिर मनचाही आकृति में ढाली भी जा सकती है. जिंदगी तो पत्थर पर उकेरे उन अक्षरों की तरह होती है कि एक बार नक्श हो गए तो हो गए. उसे न तो बदला जा सकता है और न मिटाया जा सकता है. अपनी भूल का शिद्दत से एहसास हुआ तो जया की आंखें डबडबा आईं. घुटनों पर सिर टिकाए वह न जाने कब तक रोती रही और उस की आंखों से बहने वाले आंसुओं में उस का अतीत भी टुकड़ेटुकड़े हो कर टूटताबिखरता रहा. जया अपने छोटे से परिवार में तब कितनी खुश थी.

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छोटी बहन अनुपमा और नटखट सोमू दीदीदीदी कहते उस के चारों ओर घूमा करते थे. बड़ी होने की वजह से जया उन दोनों का आदर्श भी थी, तो उन की छोटी से छोटी समस्या का समाधान भी. मां आशा और पिता किशन के लाड़दुलार और भाईबहन के संगसाथ में जया के दिन उन्मुक्त आकाश में उड़ते पंछी से चहकते गुजर रहे थे. इंटर तक जया के आतेआते उस के भविष्य को ले कर मातापिता के मन में न जाने कितने अरमान जाग उठे थे. अपनी मेधावी बेटी को वह खूब पढ़ाना चाहते थे.

आशा का सपना था कि चाहे जैसे भी हो वह जया को डाक्टर बनाएगी जबकि किशन की तमन्ना उसे अफसर बनाने की थी. जया उन दोनों की चाहतों से वाकिफ थी और उन के प्रयासों से भी. वह अच्छी तरह जानती थी कि पिता की सीमित आय के बावजूद वह दोनों उसे हर सुविधा उपलब्ध कराने से पीछे नहीं हटेंगे. जया चाहती थी कि अच्छी पढ़ाई कर वह अपने मांबाप के सपनों में हकीकत का रंग भरेगी. इस के लिए वह भरपूर प्रयास भी कर रही थी. उस के सारे प्रयास और आशा तथा किशन के सारे अरमान तब धरे के धरे रह गए जब जया की आंखों में करन के प्यार का नूर आ समाया.

करन एक बहार के झोंके की तरह उस की जिंदगी में आया और देखतेदेखते उस के अस्तित्व पर छा गया. वह दिन जया कैसे भूल सकती है जिस दिन उस की करन से पहली मुलाकात हुई थी, क्योंकि उसी दिन तो उस की जिंदगी एक ऐसी राह पर मुड़ चली थी जिस की मंजिल नारी निकेतन के सीलन भरे अंधेरे कमरे का वह कोना थी, जहां बैठी जया अपनी भूलों पर जारजार आंसू बहा रही थी. लेकिन उन आंसुओं को समेटने के लिए न तो वहां मां का ममतामयी आंचल था और न सिर पर प्यार भरा स्पर्श दे कर सांत्वना देने वाले पिता के हाथ. वहां थी तो केवल केयरटेकर की कर्कश आवाज या फिर पछतावे की आंच में सुलगती उस की अपनी तन्हाइयां, जो उस के वजूद को जला कर राख कर देने पर आमादा थीं. इन्हीं की तपन से घबरा कर जया ने अपनी आंखें बंद कर लीं.

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आंखों पर पलकों का आवरण पड़ते ही अतीत की लडि़यां फिर टूटटूट कर बिखरने लगीं. जया के घर से उस का स्कूल ज्यादा दूर नहीं था. मुश्किल से 10-12 मिनट का रास्ता रहा होगा. कभी कोई लड़की मिल जाती तो स्कूल तक का साथ हो जाता, वरना जया अकेले ही चली जाया करती थी. उस ने स्कूल जाते समय करन को कई बार अपना पीछा करते देखा था.

शुरूशुरू में उसे डर भी लगा और उस ने अपने पापा को इस बारे में बताना भी चाहा, लेकिन जब करन ने उस से कभी कुछ नहीं कहा तो उस का डर दूर हो गया. करन एक निश्चित मोड़ तक उस के पीछेपीछे आता था और फिर अपना रास्ता बदल लेता था. जब कई बार लगातार ऐसा हुआ तो जया ने इसे अपने मन का वहम समझ कर दिमाग से निकाल दिया और इस के ठीक दूसरे ही दिन करन ने जया के साथसाथ चलते हुए उस से कहा, ‘प्लीज, मैं आप से कुछ कहना चाहता हूं.’

जया ने चौंक कर उस की ओर देखा और रूखे स्वर में बोली, ‘कहिए.’ ‘आप नाराज तो नहीं हो जाएंगी?’ करन ने पूछा, तो जया ने उपेक्षा से कहा, ‘मेरे पास इन फालतू बातों के लिए समय नहीं है. जो कहना है, सीधे कहो.’

‘मैं करन हूं. आप मुझे बहुत अच्छी लगती हैं.’ करन ने कुछ झिझकते और डरते हुए कहा. अपनी बात कहने के बाद करन जया की प्रतिक्रिया जानने के लिए पल भर भी नहीं रुका और वापस मुड़ कर तेजी से विपरीत दिशा की ओर चला गया.

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दूसरे भाग में पढ़िए क्या हुआ करन और जया के रिश्ते का?

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