Hindi Story: कौन चरित्रहीन – मांगी बच्चों की कस्टडी

Hindi Story: उसके हाथों में कोर्ट का नोटिस फड़फड़ा रहा था. हत्प्रभ सी बैठी थी वह… उसे एकदम जड़वत बैठा देख कर उस के दोनों बच्चे उस से चिपक गए. उन के स्पर्श मात्र से उस की ममता का सैलाब उमड़ आया और आंसू बहने लगे. आंसुओं की धार उस के चेहरे को ही नहीं, उस के मन को भी भिगो रही थी. न जाने इस समय वह कितनी भावनाओं की लहरों पर चढ़उतर रही थी. घबराहट, दुख, डर, अपमान, असमंजस… और न जाने क्याक्या झेलना बाकी है अभी. संघर्षों का दौर है कि थमने का नाम ही नहीं ले रहा है. जब भी उसे लगता कि उस की जिंदगी में अब ठहराव आ गया है, सबकुछ सामान्य हो गया है कि फिर उथलपुथल शुरू हो जाती है.

दोनों बच्चों को अकेले पालने में जो उस ने मुसीबतें झेली थीं, उन के स्थितियों को समझने लायक बड़े होने के बाद उस ने सोचा था कि वे कम हो जाएंगी और ऐसा हुआ भी था. पल्लवी 11 साल की हो गई थी और पल्लव 9 साल का. दोनों अपनी मां की परेशानियों को न सिर्फ समझने लगे थे वरन सचाई से अवगत होने के बाद उन्होंने अपने पापा के बारे में पूछना भी छोड़ दिया था. पिता की कमी वे भी महसूस करते थे, पर नानी और मामा से उन के बारे में थोड़ाबहुत जानने के बाद वे दोनों एक तरह से मां की ढाल बन गए थे. वह नहीं चाहती थी कि उस के बच्चों को अपने पापा का पूरा सच मालूम हो, इसलिए कभी विस्तार से इस बारे में बात नहीं की थी. उसे अपनी ममता पर भरोसा था कि उस के बच्चे उसे गलत नहीं समझेंगे.

कागज पर लिखे शब्द मानो शोर बन कर उस के आसपास चक्कर लगा रहे थे, ‘चरित्रहीन, चरित्रहीन है यह… चरित्रहीन है इसलिए इसे बच्चों को अपने पास रखने का भी हक नहीं है. ऐसी स्त्री के पास बच्चे सुरक्षित कैसे रह सकते हैं? उन्हें अच्छे संस्कार कैसे मिल सकते हैं? इसलिए बच्चों की कस्टडी मुझे मिलनी चाहिए… एक पिता होने के नाते मैं उन का ध्यान ज्यादा अच्छी तरह रख सकता हूं और उन का भविष्य भी सुरक्षित कर सकता हूं…’

चरित्रहीन शब्द किसी हथौड़े की तरह उस के अंतस पर प्रहार कर रहा था. मां को रोता देख पल्लवी ने कोर्ट का कागज मां के हाथों से ले लिया. ज्यादा कुछ तो समझ नहीं आया. पर इतना अवश्य जान गई कि मां पर इलजाम लगाए जा रहे हैं.

‘‘पल्लव तू सोने जा,’’ पल्लवी ने कहा तो वह बोला, ‘‘मैं कोई छोटा बच्चा नहीं हूं. सब जानता हूं. हमारे पापा ने नोटिस भेजा है और वे चाहते हैं कि हम उन के पास जा कर रहें. ऐसा कभी नहीं होगा. मम्मी आप चिंता न करें. मैं ने टीवी में एक सीरियल में देखा था कि कैसे कोर्ट में बच्चों को लेने के लिए लड़ाई होती है. मैं नहीं जाऊंगा पापा के पास. दीदी आप भी नहीं जाना.’’

पल्लव की बात सुन कर वह हैरान रह गई. सही कहते हैं लोग कि वक्त किसी को भी परिपक्व बना सकता है.

‘‘मैं भी नहीं जाऊंगी उन के पास और कोर्ट में जा कर कह दूंगी कि हमें मम्मी के पास ही रहना है. फिर कैसे ले जाएंगे वे हमें. मुझे तो उन की शक्ल तक याद नहीं. इतने सालों तक एक बार भी हम से मिलने नहीं आए. फिर अब क्यों ड्रामा कर रहे हैं?’’ पल्लवी के स्वर में रोष था.

कोई गलती न होने पर भी वह इस समय बच्चों से आंख नहीं मिला पा रही थी. छि: कितने गंदे शब्द लिखे हैं नोटिस में… किसी तरह उस ने उन दोनों को सुलाया.

रात की कालिमा परिवेश में पसर चुकी थी. उसे लगा कि अंधेरा जैसे धीरेधीरे उस की ओर बढ़ रहा है. इस बार यह अंधेरा उस के बच्चों को छीनने के लिए आ रहा है. भयभीत हो उस ने बच्चों की ओर देखा… नहीं, वह अपने बच्चों को अपने से दूर नहीं होने देगी… अपने जिगर के टुकड़ों को कैसे अलग कर सकती है वह?

तब कहां गया था पिता का अधिकार जब उसे बच्चों के साथ घर छोड़ने पर मजबूर किया गया था? बच्चों की बगल में लेट कर उस ने उन के ऊपर हाथ रख दिया जैसे कोई सुरक्षाकवच डाल दिया हो.

उस के दिलोदिमाग में बारबार चरित्रहीन शब्द किसी पैने शीशे की तरह चुभ रहा था. कितनी आसानी से इस बार उस पर एक और आरोप लगा दिया गया है और विडंबना तो यह है कि उस पर चरित्रहीन होने का आरोप लगाया गया है जिसे कभी झल्ली, मूर्ख, बेअक्ल और गंवारकहा जाता था. आभा को लगा कि नरेश का स्वर इस कमरे में भी गूंज रहा है कि तुम चरित्रहीन हो… तुम चरित्रहीन हो… उस ने अपने कानों पर हाथ रख लिए. सिर में तेज दर्द होने लगा था.

समय के साथ शब्दों ने नया रूप ले लिया, पर शब्दों की व्यूह रचना तो बरसों पहले ही हो चुकी थी. अचानक ‘तुम गंवार हो… तुम गंवार हो…’ शब्द गूंजने लगे… आभा घिरी हुई रात के बीच अतीत के गलियारों में भटकने लगी…

‘‘मांबाप ने तुम जैसी गंवार मेरे पल्ले बांध मेरी जिंदगी खराब कर दी है. तुम्हारी जगह कोई पढ़ीलिखी, नौकरीपेशा बीवी होती तो मुझे कितनी मदद मिल जाती. एक की कमाई से घर कहां चलता है. तुम्हें तो लगता है कि घर संभाल रही हो तो यही तुम्हारी बहुत बड़ी क्वालिफिकेशन है. अरे घर का काम तो मेड भी कर सकती है, पर कमा कर तो बीवी ही दे सकती है,’’ नरेश हमेशा उस पर झल्लाता रहता.

आभा ज्यादातर चुप ही रहती थी. बहुत पढ़ीलिखी न सही पर ग्रैजुएट थी. बस आगे कोई प्रोफैशनल कोर्स करने का मौका ही नहीं मिला. कालेज खत्म होते ही शादी कर दी गई. सोचा था शादी के बाद पढ़ेगी, पर सासससुर, देवर, ननद और गृहस्थी के कामों में ऐसी उलझी कि अपने बारे में सोच ही नहीं पाई. टेलैंट उस में भी है. मूर्ख नहीं है. कई बार उस का मन करता कि चिल्ला कर एक बार नरेश को चुप ही करा दे, पर सासससुर की इज्जत का मान रखते हुए उस ने अपना मुंह ही सी लिया. घर में विवाद हो, यह वह नहीं चाहती थी.

मगर मन ही मन ठान जरूर लिया था कि वह पढ़ेगी और स्मार्ट बन कर दिखाएगी…

स्मार्ट यानी मौडर्न और वह भी कपड़ों से…

ऐसी नरेश की सोच थी… पर वह स्मार्टनैस सोच में लाने में विश्वास करती थी. जल्दीजल्दी 2 बच्चे हो गए, तो उस की कोशिशें फिर ठहर गईं. बच्चों की अच्छी परवरिश प्राथमिकता बन गई. मगर खर्चे बढ़े तो नरेश की झल्लाहट भी बढ़ गई. बहन की शादी पर लिया कर्ज, भाई की भी पढ़ाई और मांबाप की भी जिम्मेदारी… गलती उस की भी नहीं थी. वह समझ रही थी इसलिए उस ने सिलाई का काम करने का प्रस्ताव रखा, ट्यूशन पढ़ाने का प्रस्ताव रखा पर गालियां ही मिलीं.

‘‘कोई सौफिस्टिकेटेड जौब कर सकती हो तो करो… पर तुम जैसी गंवार को कौन नौकरी देगा. बाहर निकल कर उन वर्किंग वूमन को देखो… क्या बढि़या जिंदगी जीती हैं. पति का हाथ भी बंटाती हैं और उन की शान भी बढ़ाती हैं.’’

आभा सचमुच चाहती थी कि कुछ करे. मगर वह कुछ सोच पाती उस से पहले ही विस्फोट हो गया.

‘‘निकल जा मेरे घर से… और अपने इन बच्चों को भी ले जा. मुझे तेरी जैसी गंवार की जरूरत नहीं… मैं किसी नौकरीपेशा से शादी करूंगा. तेरी जैसी फूहड़ की मुझे कोई जरूरत नहीं.’’

सकते में आ गई थी वह. फूहड़ और गंवार मैं हूं कि नरेश… कह ही नहीं पाई वह.

सासससुर के समझाने पर भी नरेश नहीं माना. उस के खौफ से सभी डरते थे. उस के चेहरे पर उभरे एक राक्षस को देख उस समय वह भी डर गई थी. सोचा कुछ दिनों में जब उस का गुस्सा शांत हो जाएगा, वह वापस आ जाएगी. 2 साल की पल्लवी और 1 साल के पल्लव को ले कर जब उस ने घर की देहरी के बाहर पांव रखा था तब उसे क्या पता था कि नरेश का गुस्सा कभी शांत होगा ही नहीं.

मायके में आ कर भाईभाभी की मदद व स्नेह पा कर उस ने ह्यूमन रिसोर्स मैनेजमैंट की पढ़ाई की. फिर जब एक कंपनी में उसे नौकरी मिली तो लगा कि अब उस के सारे संघर्ष खत्म हो गए हैं. बच्चों को अच्छे स्कूल में डाल दिया. खुद का किराए पर घर ले लिया.

इतने सालों बाद फिर से यह झंझावात कहां से आ गया. यह सच है कि नरेश ने तलाक नहीं लिया था, पर सुनने में आया था कि किसी पैसे वाली औरत के साथ ऐसे ही रह रहा था. सासससुर गांव चले गए थे और देवर अपना घर बसा कर दूसरे शहर में चला गया था. फिर अब बच्चे क्यों चाहिए उसे…

वह इस बार हार नहीं मानेगी… वह लड़ेगी अपने हक के लिए. अपने बच्चों की खातिर. आखिर कब तक उसे नरेश के हिसाब से स्वयं को सांचे में ढालते रहना होगा. उसे अपने अस्तित्व की लड़ाई तो लड़नी ही होगी. आखिर कैसे वह जब चाहे जैसा मरजी इलजाम लगा सकता है और फिर किस हक से… अब वह तलाक लेगी नरेश से.

अदालत में जज के सामने खड़ी थी आभा. ‘‘मैं अपने बच्चों को किसी भी हालत में इसे नहीं सौंप सकती हूं. मेरे बच्चे सिर्फ मेरे हैं. पिता का कोई दायित्व कब निभाया है इस आदमी ने…’’

‘‘तुम्हारी जैसी महत्त्वाकांक्षी, रातों को देर तक बाहर रहने वाली, जरूरत से ज्यादा स्मार्ट और मौडर्न औरत के साथ बच्चे कैसे सुरक्षित रह सकते हैं? पुरुषों के साथ मीटिंग के बहाने बाहर जाती है, उन से हंसहंस कर बातें करती है… मैं ने इसे छोड़ दिया तो क्या यह अब किसी भी आदमी के साथ घूमने के लिए आजाद है? जज साहब, मैं इसे अभी भी माफ करने को तैयार हूं. यह चाहे तो वापस आ सकती है. मैं इसे अपना लूंगा.’’

‘‘नहीं. कभी नहीं. तुम इसलिए मुझे अपनाना चाहते हो न, क्योंकि मैं अब कमाती हूं. तुम्हें उस अमीर औरत ने बेइज्जत कर के बाहर निकाल दिया है और तुम चाहते हो कि मैं तुम्हें कमा कर खिलाऊं? नरेश मैं तुम्हारे हाथों की कठपुतली बनने को तैयार नहीं हूं और न ही तुम्हें बच्चों की कस्टडी दूंगी. हां, तुम से तलाक जरूर लूंगी.

‘‘जज साहब अगर बच्चों को अच्छी जिंदगी देने के लिए मेहनत कर पैसा कमाना चारित्रहीनता की निशानी है तो मैं चरित्रहीन हूं. जब मैं घर की देहरी के अंदर खुश थी तो मुझे गंवार कहा गया, जब मैं ने घर की देहरी के बाहर पांव रखा तो मैं चरत्रिहीन हो गई. आखिर यह कैसी पुरुष मानसिकता है… अपने हिसाब से तोड़तीमरोड़ती रहती है औरत के अस्तित्व को, उस की भावनाओं को अपने दंभ के नीचे कुचलती रहती है… मुझे बताइए मैं चरित्रहीन हूं या नरेश जैसा पुरुष?’’ आभा के आंसू बांध तोड़ने को आतुर हो उठे थे. पर उस ने खुद को मजबूती से संभाला.

‘‘मैं तुम्हें तलाक देने को तैयार नहीं हूं. तुम भिजवा दो तलाक का नोटिस. चक्कर लगाती रहना फिर अदालत के बरसों तक,’’ नरेश फुफकारा था.

केस चलता जा रहा था. पल्लवी और पल्लव को आभा को न चाहते हुए भी केस में घसीटना पड़ा. जज ने कहा कि बच्चे इतने बड़े हैं कि उन से पूछना जरूरी है कि वे किस के साथ रहना चाहते हैं.

‘‘हम इस आदमी को जानते तक नहीं हैं. आज पहली बार देख रहे हैं. फिर इस के साथ कैसे जा सकते हैं? हम अपनी मां के साथ ही रहेंगे.’’

अदालत में 2 साल तक केस चलने के बाद जज साहब ने फैसला सुनाया, ‘‘नरेश को बच्चों की कस्टडी नहीं मिल सकती और आभा पर मानसिक रूप से अत्याचार करने व उस की इज्जत पर कीचड़ उछालने के जुर्म में उस पर मानहानि का मुकदमा चलाया जाए. ऐसी घृणित सोच वाले पुरुष ही औरत की अस्मिता को लहूलुहान करते हैं और समाज में उसे सम्मान दिलाने के बजाय उस के सम्मान को तारतार कर जीवन में आगे बढ़ने से रोकते हैं. आभा को परेशान करने के एवज में नरेश को उन्हें क्व5 लाख का हरजाना भी देना होगा.’’

आभा ने नरेश के आगे तलाक के पेपर रख दिए. बुरी तरह से हारे हुए नरेश के सामने कोई विकल्प ही नहीं बचा था. दोनों बच्चों के लिए तो वह एक अजनबी ही था. कांपते हाथों से उस ने पेपर्स पर साइन कर दिए. अदालत से बाहर निकलते हुए आभा के कदमों में एक दृढ़ता थी. दोनों बच्चों ने उसे कस कर पकड़ा था. Hindi Story

News Story: हाथ न मिलाने की सियासत – 19 साल की छात्रा के साथ गैंगरेप

News Story: ओडिशा के पुरी जिले में 19 साल की एक कालेज छात्रा के साथ गैंगरेप किया गया. छात्रा अपने बौयफ्रैंड के साथ कैसुरीना के जंगली इलाके में घूमने गई थी. वहां कुछ लड़कों ने उस के बौयफ्रैंड को बंधक बनाया और उस के सामने ही लड़की का गैंगरेप किया. पुलिस ने घटना में 3 लोगों को गिरफ्तार किया. पुलिस ने बताया कि शुरुआत में सदमे के चलते छात्रा अपराध की रिपोर्ट करने में हिचकिचा रही थी.

‘‘अरे मम्मी, आज मैं मैच खेलने जाऊंगा. बड़े दिनों से मेरे दोस्त बुला रहे हैं. आज संडे है तो सोच रहा हूं कि दोस्तों को भी थोड़ा टाइम दे देता हूं,’’ नाश्ते की टेबल पर बैठे विजय ने चिल्ला कर रसोईघर में आलू के परांठे बना रही अपनी मम्मी से कहा.

विजय के इस तरह चिल्लाने की एक वजह यह भी थी कि उस के पापा ने बाइक का पौल्यूशन चैक कराने को कहा था, पर अभी तक हुआ नहीं था. अगर पापा को याद आ जाता तो वे उसे टोक देते, पर शायद पापा के दिमाग से यह बात निकल गई थी.

हालांकि, मम्मी आलू के परांठे बना रही थीं, फिर भी किसी भी तरह के लालच को छोड़ते हुए विजय ने चाय के साथ एक परांठा ही खाया. हां, 4-5 परांठे पैक जरूर करा लिए कि मैच खत्म होने के बाद भूख लगेगी, तो कुछ तो होगा पेट में जाने के लिए.

मैदान ज्यादा दूर नहीं था तो विजय पैदल ही निकल गया. चूंकि मैच टैनिस गेंद से खेला जाने वाला था, तो विजय ने सिर्फ अपना ट्रैक सूट पहना हुआ था. उस के हाथ में था वही बैट जो कभी अनामिका ने उसे गिफ्ट में दिया था.

विजय ने अनामिका को फोन लगाया और बोला, ‘‘सुनो बेबी, मैं यहीं के पास के मैदान पर क्रिकेट खेलने जा रहा हूं. दोपहर के 1 बजे तक फ्री हो जाऊंगा. तुम वहीं आ जाना, फिर मैं तुम्हें अपने घर ले चलूंगा. मम्मी बोल रही थीं कि बड़े दिन से अनामिका नहीं दिखी.’’

‘ठीक है. मैं आ जाऊंगी. मुझे भी अंकलआंटी से मिलना है,’ उधर से अनामिका की आवाज आई.

विजय जब मैदान पर पहुंचा, तो उस के दोस्त आ चुके थे. दूसरी टीम वाले भी जानपहचान के ही थे. विजय की टीम ने टौस जीत कर पहले बल्लेबाजी करने का फैसला लिया… मैच शुरू हो गया.

विजय की टीम अच्छा खेल रही थी कि इसी बीच विरोधी टीम के एक गेंदबाज ने अंपायर द्वारा आउट न दिए जाने पर गुस्से में बल्लेबाज को गाली दे दी.

इस बात से खेल का माहौल बिगड़ गया और क्रिकेट का मैच लड़ाई के घमासान में बदल गया. वह तो अच्छा था कि ज्यादातर लड़के एकदूसरे को जानते थे, तो थोड़ी सी ?ाड़प के बाद मामला शांत करा दिया गया.

लेकिन इस के बाद दोनों टीमें ऐसे खेलने लगीं, जैसे भारत और पाकिस्तान खेलते हैं. शब्दों के बाण चलने लगे.

विजय ने अपने बल्लेबाज से चीख कर कहा, ‘‘भाई, यह गेंदबाज शाहिद अफरीदी की तरह बड़ा उछल रहा है. इसे इतना बुरी तरह पेल कि खेल और सियासत दोनों भूल जाए. सोशल मीडिया पर भारत के खिलाफ बड़ा गंदा बोलता है. इसे शाहिद अफरीदी समझ कर छक्केचौके की बरसात कर दे.’’

दूसरी टीम वाले कहां कम थे. एक फील्डर बोला, ‘‘देखो, अब पाकिस्तानी खुद को हिंदुस्तानी समझ रहे हैं. हर बार तो हम से हारते हैं और अब हमें ही पाकिस्तानी कह रहे हैं. हमारा जसप्रीत बुमराह अभी तुम्हारे बाबर आजम का बैंड बजाता है.’’

इन्हीं चुटीली बातों के बीच मैच चलता रहा और विजय की टीम हार गई. अब तो विजय का मूड एकदम खराब. संडे खराब हुआ सो अलग, बाइक का पौल्यूशन भी नहीं कराया. पापा को याद गया तो झाड़ पड़ेगी.

गुस्साए विजय ने आलू के परांठे भी नहीं खाए और अनामिका के आने पर भी मुंह फुला कर बैठा रहा.

‘‘अरे यार, एक मैच ही तो हारे हो. इस में इतना बिगड़ने वाली कौन सी बात है,’’ अनामिका बोली.

‘‘बात मैच हारने की नहीं है, बल्कि सामने वाली टीम ने हमें पाकिस्तानी कह कर चिढ़ाया और कहा कि अगले संडे को भी हमारा यही हाल करेंगे. बोल रहे थे कि हम ने ‘आपरेशन सिंदूर’ का बदला क्रिकेट के मैदान पर भी ले लिया,’’ विजय ने कहा.

‘‘इस में ‘आपरेशन सिंदूर’ कहां से बीच में आ गया. वैसे, एक बात तो है कि जब पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्तों में खटास आई थी, तो भारत को एशिया कप में पाकिस्तान के साथ मैच नहीं खेलना चाहिए था,’’ अनामिका बोली.

‘‘पहले घर चलें, फिर तुम्हारे इस टौपिक पर बात करेंगे. तुम ने यह मुद्दा छेड़ कर मेरा मूड और भी खराब कर दिया है,’’ विजय ने कहा.

‘‘मैं क्या तुम से डरती हूं. घर पर ही बात करते हैं अब,’’ अनामिका बोली और तेज कदमों से आगे बढ़ गई. उसे विजय का घर वहां से मालूम था.

घर पर अनामिका सब से मिली और विजय के पापा से बोली, ‘‘अंकल, आप को क्या लगता है, भारत को एशिया कप में भारत के साथ खेलना चाहिए था या नहीं?’’

‘‘पापा क्या बताएंगे. मैं कह रहा हूं कि भारत ने सही किया और पाकिस्तान को उस की औकात दिखा दी,’’ विजय बीच में बोला.

अनामिका ने एशिया कप में भारत और पाकिस्तान के मैच खेलने और इन दोनों देशों के बीच चल रहे तनाव को ले कर विजय को आईना दिखाते हुए कहा, ‘‘तुम भूल रहे हो कि पहलगाम आतंकी हमले और ‘आपरेशन सिंदूर’ के बाद दुबई में हो रहे एशिया कप 2025 क्रिकेट टूर्नामैंट में भारत और पाकिस्तान के बीच मुकाबले को ले कर जम कर सियासत हुई थी. साथ ही, देश में कई जगह धरने और प्रदर्शन भी हुए थे.

‘‘तुम कितना जल्दी भूल गए कि इस हाई वोल्टेज मुकाबले के विरोध में विपक्षी दलों ने 14 सितंबर को पूरे देश में विरोध प्रदर्शन किया था और आम लोगों से आतंकवाद को प्रायोजित करने वाले देश के साथ इस मुकाबले का बहिष्कार करने की अपील की थी. शिव सेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) ने महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और जम्मू में विरोध प्रदर्शन किए थे, जबकि आम आदमी पार्टी के सदस्यों ने दिल्ली में प्रदर्शन किया था.

‘‘भाजपा और केंद्र पर निशाना साधते हुए शिव सेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के नेता संजय राउत ने सत्तारूढ़ पार्टी के राष्ट्रवाद और देशप्रेम का मखौल उड़ाते हुए कहा था कि भाजपा का हिंदुत्व एक तमाशा है. इस मैच को ले कर देश की सामान्य जनता में रोष है, इसलिए प्रधानमंत्री ने इस मैच से जनता का ध्यान भटकाने के लिए मणिपुर जाने का फैसला किया.

‘‘इस पार्टी के कार्यकर्ताओं ने प्रवक्ता आनंद दुबे की अगुआई में विरोध प्रदर्शन किया, टीवी तोड़े और भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड और केंद्र सरकार के खिलाफ नारेबाजी की. मुंबई में महिला कार्यकर्ताओं ने हाथ में सिंदूर ले कर प्रदर्शन किया.’’

‘‘विपक्ष का तो काम ही जनता को भड़काना है,’’ विजय बोला.

यह सुन कर अनामिका ने कहा, ‘‘बात विपक्ष की नहीं है, बल्कि जनता के सामने हकीकत रखने की है.

‘‘कांग्रेस नेता उदित राज ने भी तीखा हमला बोलते हुए कहा था कि मैच की अनुमति देने के पीछे व्यावसायिक हित हैं. उधर, बैंगलुरु में शिव सेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के कार्यकर्ताओं ने पाकिस्तान का झंडा फूंका.

‘‘इतना ही नहीं, एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने पाकिस्तान के साथ क्रिकेट मैच खेलने के फैसले पर सवाल उठाया और भाजपा से पूछा कि क्या मैच से कमाया गया पैसा पहलगाम आतंकी हमले में मारे गए 26 नागरिकों की जान से ज्यादा कीमती है?

‘‘यहां बात सिर्फ विपक्ष की नहीं है, बल्कि भारतीय फिल्म और टैलीविजन निर्देशक संघ के अध्यक्ष अशोक पंडित ने भी मैच का विरोध करते हुए इसे देश के लिए काला दिन बताया और कहा कि क्रिकेटरों को शर्म आनी चाहिए, पैसा ही सबकुछ नहीं है.’’

‘‘पर हमें इस के दूसरे पहलू पर भी गौर करना चाहिए…’’ विजय ने कहा, ‘‘इस मुद्दे पर केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल ने कहा कि दुनियाभर में खेल का अपना एक अनुशासन होता है और कोरम होता है. ये मैच पाकिस्तान में नहीं, बल्कि दुबई में हो रहे हैं.

‘‘पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में ‘आपरेशन सिंदूर’ चलाया गया, जो बड़ा काम था. इस की चारों ओर तारीफ हुई है. आज भी हम ने दुश्मनों को चेतावनी दी हुई है कि नापाक हरकत करने पर कड़ा जवाब दिया जाएगा.

‘‘पाकिस्तान से दुश्मनी स्थायी बनाए रखनी है, ऐसा नहीं है. हां, हमारी कुछ शर्तें हैं. पाकिस्तान को आतंकवाद को खत्म करना होगा और गुलाम जम्मूकश्मीर को वापस भारत को देना होगा. पाकिस्तान ये शर्तें माने तो अच्छे संबंध बनाने में कोई अड़चन नहीं है.

‘‘इतना ही नहीं, शिव सेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) पर पलटवार करते हुए महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा था कि कुछ लोग देश के प्रति नकली देशभक्ति और अवसरवादी प्रेम का दिखावा करते हैं. सशस्त्र बल और प्रधानमंत्री मोदी सिंदूर की देखभाल के लिए हैं.’’

अनामिका बोली, ‘‘पर तुम पहलगाम हमले के पीडि़तों का दर्द भूल रहे हो. पीडि़तों के परिवार के सदस्यों ने मैच के लिए सरकार की आलोचना की. हमले में अपने पिता और भाई को खोने वाले सावन परमार ने इस मैच पर अपनी पीड़ा जाहिर करते हुए कहा कि ‘आपरेशन सिंदूर’ अब बेकार लगता है. पाकिस्तान से किसी भी तरह का संबंध नहीं रहना चाहिए. अगर आप मैच खेलना चाहते हैं, तो मेरे 16 साल के भाई को वापस ले आइए.

‘‘उन की मां किरण यतीश परमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सवाल किया कि अगर ‘आपरेशन सिंदूर’ अभी पूरा नहीं हुआ है, तो यह मैच क्यों कराया जा रहा है? पीडि़त परिवारों के जख्म अभी भरे नहीं हैं.

‘‘हमले के पीडि़त संतोष जगदाले की बेटी असावरी जगदाले ने कहा कि यह बहुत शर्मनाक है. पहलगाम की घटना को अभी 6 महीने भी नहीं हुए हैं. उस के बाद ‘आपरेशन सिंदूर’ हुआ था. मुझे बुरा लगता है कि इतना कुछ होने के बावजूद बीसीसीआई को मैच के आयोजन में कोई शर्म नहीं है.

‘‘उन्होंने क्रिकेटरों पर भी सवाल उठाए और कहा कि उन्हें इस आतंकी हमले में जान गंवाने वालों की कोई परवाह नहीं है.

‘‘कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने तंज कसते हुए कहा कि जब खून और पानी एकसाथ नहीं बह सकते, तो एशिया कप में भारतपाकिस्तान के साथ क्रिकेट मैच कैसे खेल सकता है?

‘‘है कोई जवाब इस का तुम्हारे पास?’’ अनामिका ने तिलमिलाते हुए कहा, ‘‘मोदी सरकार ने मजाक बना कर रख दिया है देशभक्ति को.’’

यह सुन कर विजय का भी पारा हाई हो गया और वह बोला, ‘‘पर भारत ने पाकिस्तान को हरा कर करारा जवाब तो दिया न… हमारे कप्तान सूर्यकुमार यादव की अगुआई में टीम इंडिया ने पाकिस्तान को नानी याद दिला दी. छक्का मार कर 7 विकेट से मैच जिता दिया.

‘‘तुम शायद भूल गई हो कि भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान सूर्यकुमार यादव जब दुबई इंटरनैशनल क्रिकेट स्टेडियम में वे टौस के लिए मैदान पर आए तब उन्होंने पाकिस्तान के कप्तान सलमान आगा को उस की औकात याद दिला दी और पारंपरिक तरीके से हाथ मिलाने से इनकार कर दिया.

‘‘मैच खत्म होने के बाद भारतीय टीम के किसी भी खिलाड़ी ने पाकिस्तानी टीम के साथ हाथ नहीं मिलाया था. पोस्ट मैच प्रैजेंटेशन सैरेमनी में कप्तान सूर्यकुमार यादव ने जीत भारतीय सेना को समर्पित कर दिया.

‘‘मैच के बाद हुई मैच कौन्फ्रैंस में सूर्यकुमार यादव ने साफ किया कि हम सरकार और बीसीसीआई के साथ पूरी तरह से एकजुट थे. हम यहां सिर्फ मैच खेलने आए थे और हम ने सही जवाब दिया.

‘‘कुछ चीजें खेल भावना से भी ऊपर होती हैं. हम पहलगाम आतंकी हमले के सभी पीडि़तों और उन के परिवारों के साथ खड़े हैं और अपनी एकजुटता जाहिर करते हैं.’’

‘‘यह सही है. मैच खेल लो, पर हाथ मत मिलाओ. जब मैच हो ही गया था, तो हाथ मिला लेने में क्या घिस जाता?’’ अनामिका ने सवाल किया.

‘‘यह कोई बहुत बड़ी बात नहीं है. पाकिस्तानी बेकार में हल्ला मचा रहे थे कि यूएई के साथ अगला मैच नहीं खेलेंगे, टूर्नामैंट बीच में छोड़ देंगे, पर ऐसा करते तो वे ही नुकसान में रहते. अकेले इस एशिया कप से पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड को तकरीबन 140 करोड़ रुपए की कमाई होने वाली थी. ऐसे में अगर पाकिस्तान टूर्नामैंट से हटता है तो उस के लिए यह बड़ा ?ाटका साबित हो सकता है.

‘‘वैसे भी इंटरनैशनल क्रिकेट काउंसिल का ऐसा कोई नियम नहीं है कि मैच पूरा होने के बाद दोनों टीमों के खिलाडि़यों का हाथ मिलाना जरूरी है. यह सिर्फ एक परंपरा है और खेल भावना की निशानी है,’’ विजय ने समझाया.

‘‘जो भी हो, पर पहलगाम पीडि़तों के नजरिए यह मैच खेलने की नौटंकी नहीं होनी चाहिए थी. अगर पाकिस्तान हमारा दुश्मन देश है और अभी दोनों देशों के बीच हालात सही नहीं हैं, तो केंद्र सरकार को कड़े कदम उठाने चाहिए थे. दुबई में इस मैच के दौरान स्टेडियम का हाउसफुल न होना इस बात का सुबूत है कि आम जनता भी अभी पाकिस्तान के साथ क्रिकेट मैच होने को ले कर खफा दिख रही थी.

‘‘भले ही 14 सितंबर का मैच भारत ने आसानी से जीत लिया था, पर कूटनीति में भारत सरकार नाकाम दिखी,’’ अनामिका ने इतना कहा और ड्राइंगरूम से उठ कर किचन में चली गई. विजय हैरान सा उसे देखता रह गया. News Story

Hindi Funny Story: कुत्ता कह लें, पर आवारा नहीं

Hindi Funny Story, लेखक – मुकेश विग

कुत्तों के मुखिया ने सभी कुत्तों को शाम को एक आपात बैठक में मैदान में पहुंचने को कहा. शाम के समय बड़ी तादाद में बहुत सारे कुत्ते पूंछ हिलाते हुए मैदान में पहुंचने लगे.

कुछ देर बाद एक कुत्ता कहने लगा, ‘‘दोस्तो, क्या आप जानते हैं कि हमें सड़कों से हटाने की तैयारियां चल रही हैं? हमारा कुसूर क्या है? क्या हम इस देश के नागरिक नहीं हैं? आदमी में और हम में सिर्फ पूंछ का ही तो फर्क है. वे बोलते हैं, तो हम भौंकते हैं.

‘‘हमें आवारा भी कहा जा रहा है, जिस से दिल को बड़ी चोट पहुंचती है. पर हम तो गलियों के राजा हैं, आवारा नहीं. हमें देख कर तो बड़ेबड़े चोर भी भाग जाते हैं.’’

दूसरा कुत्ता बोला, ‘‘इस ‘आवारा’ शब्द को सुन कर खुदकुशी करने का मन करता है, लेकिन हमें तो सुसाइड करना भी नहीं आता. हमारे ही कुछ साथी बड़ेबड़े घरों में शान से रहते हैं, खाते हैं, बिस्तर पर सोते हैं, महंगी गाडि़यों में घूमते हैं. क्या वे भी आवारा हैं?

‘‘2-4 कुत्तों की वजह से हमारी पूरी कौम को बदनाम करना सही नहीं. हम कोई नशा नहीं करते, सिर्फ हड्डी का चसका है.

‘‘पुलिस में भी कई हमारे साथी ट्रेनिंग ले कर चोरों और अपराधियों को पकड़वा रहे हैं. हमारे एहसानों को भी भुला दिया गया है. कोई अगर छेड़खानी करे तो उसे जरूर हम काट लेते हैं, फिर बिना वजह किसी को भी क्यों काटेंगे?

‘‘कई फिल्मों में भी हमारे साथियों ने अच्छा काम किया है. धर्मराज युधिष्ठर ने भी एक कुत्ते को ही इतनी इज्जत और प्यार दिया था, फिर यह अचानक हमें बेदखल व बेघर क्यों किया जा रहा है? हमें मिलवार भौंकते हुए इस के खिलाफ हर हाल में आवाज उठानी होगी.

‘‘अपने हक के लिए लड़ना होगा, लेकिन यह सब शांत तरीके से करना होगा, तभी हम सब इस संकट से निकल सकते हैं.’’

सभी कुत्ते पूंछ हिला कर उस कुत्ते का समर्थन कर रहे थे.

एक कुत्ता बोला, ‘‘भैरवजी भी कुत्ते के साथ ही चलते हैं. जापान में हमारे एक साथी कुत्ते की मूर्ति प्लेटफार्म पर लगाई गई है. हमारे 2 साथी अंतरिक्ष में भी जा चुके हैं फिर हम आवारा कैसे हो गए?’’ इतना कहतेकहते वह कुत्ता भावुक हो गया, तो 2 कुत्ते उस का मुंह चाटने लगे.

एक कुत्ता बोला, ‘‘सुना है कि हमें हटाने वाले कानून में कुछ सुधार किया गया है. हमें फर्स्ट एड दे कर वापस हमारे ठिकाने पर छोड़ दिया जाएगा.

‘‘लेकिन दोस्तो, टीका तो लगवाना पड़ेगा. डरें मत. पर जिन का चालचलन सही नहीं, जो खतरनाक लगते हैं, वे अब हमारे साथ नहीं रह पाएंगे. थोड़ी जुदाई तो सहन करनी पड़ेगी.’’

तभी एक शरारती कुत्ते ने यह गीत बजा दिया, ‘तेरी गलियों में न रखेंगे कदम आज के बाद…’ तो सभी कुत्ते हंसने लगे.

तभी अचानक एक कुत्ता हांफता हुआ वहां पहुंचा, जिस ने एक अखबार पकड़ा हुआ था.

प्रधान कुत्ता उसे देख कर बोला, ‘‘यह सब क्या है? तुम क्या खबर लाए हो?’’

वह कुत्ता बोला, ‘‘सरदार, हमारे लिए एक बड़ी खुशखबरी है. अभी हमारा मामला अमल में आने में कुछ समय लेगा, क्योंकि कई लोग, नेता और हीरो भी हमारे समर्थन में आ रहे हैं. वे इस फैसले को गलत बता रहे हैं. यही खुशखबरी देने मैं यहां दौड़ादौड़ा आ रहा हूं.’’

सभी कुत्ते अखबार देखने लगे. कुछ कुत्ते तो अखबार के पहले पन्ने पर छपी कुत्ते का फोटो देख कर ही मुसकरा रहे थे कि चलो मुफ्त में फोटो तो छप गया.

कुत्तों का सरदार बोला, ‘‘हमारा समर्थन करने वालों का हम धन्यवाद करते हैं. आज लग रहा है कि हम अकेले नहीं हैं.

‘‘कुछ लोग हमें सड़कों और गलियों से भगाना चाहते हैं, तो कुछ लोग हमारे पक्ष में खड़े हैं. समझ नहीं आ रहा हम इन का धन्यवाद कैसे करें, जो मुश्किल घड़ी में हमारा पूरा साथ दे रहे हैं.

‘‘इन कुत्तों के सामने मत नाचना… फिल्म ‘शोले’ के इस डायलौग पर भी हमें गहरा दुख हुआ था, जबकि हमारी वफादारी की तो मिसाल भी दी जाती है. हम नाली का पानी पी लेते हैं, कूड़े से खाना ढूंढ़ कर खा लेते हैं, लेकिन कभी भी शिकवा नहीं करते.

‘‘आज हमारा मामला सुर्खियों में है. जो शैल्टर होम में जाना चाहते हैं, उन्हें वहां आप भेज दें, लेकिन जो सड़कों पर ही खुश हैं, उन्हें वहीं पर रहने दें. उन पर कोई जोरजबरदस्ती न करें.

‘‘अब सभी दोस्त खड़े हो कर अपनीअपनी पूंछ उठा कर जोर से भौंक कर हमारा समर्थन करने वालों का धन्यवाद करेंगे और इस के बाद अपनीअपनी गली और सड़क पर लौट जाएंगे.’’ Hindi Funny Story

Best Hindi Kahani: सही सजा

Best Hindi Kahani: पुरेनवा गांव में एक पुराना मठ था. जब उस मठ के महंत की मौत हुई, तो एक बहुत बड़ी उलझन खड़ी हो गई. महंत ने ऐसा कोई वारिस नहीं चुना था, जो उन के मरने के बाद मठ की गद्दी संभालता.

मठ के पास खूब जायदाद थी. कहते हैं कि यह जायदाद मठ को पूजापाठ के लिए तब के रजवाड़े द्वारा मिली थी.

मठ के मैनेजर श्रद्धानंद की नजर बहुत दिनों से मठ की जायदाद पर लगी हुई थी, पर महंत की सूझबूझ के चलते उन की दाल नहीं गल रही थी.

महंत की मौत से श्रद्धानंद का चेहरा खिल उठा. वे महंत की गद्दी संभालने के लिए ऐसे आदमी की तलाश में जुट गए, जो उन का कहा माने. नया महंत जितना बेअक्ल होता, भविष्य में उन्हें उतना ही फायदा मिलने वाला था.

उन दिनों महंत के एक दूर के रिश्तेदारी का एक लड़का रामाया गिरि मठ की गायभैंस चराया करता था. वह पढ़ालिखा था, लेकिन घनघोर गरीबी ने उसे मजदूर बना दिया था.

मठ की गद्दी संभालने के लिए श्रद्धानंद को रामाया गिरि सब से सही आदमी लगा. उसे आसानी से उंगलियों पर नचाया जा सकता था. यह सोच कर श्रद्धानंद शतरंज की बिसात बिछाने लगे.

मैनेजर श्रद्धानंद ने गांव के लोगों की मीटिंग बुलाई और नए महंत के लिए रामाया गिरि का नाम सुझाया. वह महंत का रिश्तेदार था, इसलिए गांव वाले आसानी से मान गए.

रामाया गिरि के महंत बनने से श्रद्धानंद के मन की मुराद पूरी हो गई. उन्होंने धीरेधीरे मठ की बाहरी जमीन बेचनी शुरू कर दी. कुछ जमीन उन्होंने तिकड़म लगा कर अपने बेटेबेटियों के नाम करा ली. पहले मठ के खर्च का हिसाब बही पर लिखा जाता था, अब वे मुंहजबानी निबटाने लगे. इस तरह थोड़े दिनों में उन्होंने अपने नाम काफी जायदाद बना ली.

रामाया गिरि सबकुछ जानते हुए भी अनजान बना रहा. वह शुरू में श्रद्धानंद के एहसान तले दबा रहा, पर यह हालत ज्यादा दिन तक नहीं रही.

जब रामाया गिरि को उम्दा भोजन और तन को आराम मिला, तो उस के दिमाग पर छाई धुंध हटने लगी.
उस के गाल निकल आए, पेट पर चरबी चढ़ने लगी. वह केसरिया रंग के सिल्क के कपड़े पहनने लगा. जब वह माथे और दोनों बाजुओं पर भारीभरकम त्रिपुंड चंदन लगा कर कहीं बाहर निकलता, तो बिलकुल शंकराचार्य सा दिखता.

गरीबगुरबे लोग रामाया गिरि के पैर छू कर आदर जताने लगे. इज्जत और पैसा पा कर उसे अपनी हैसियत समझ में आने लगी.

रामाया गिरि ने श्रद्धानंद को आदर के साथ बहुत सम?ाया, लेकिन उलटे वे उसी को धौंस दिखाने लगे. श्रद्धानंद मठ के मैनेजर थे. उन्हें मठ की बहुत सारी गुप्त बातों की जानकारी थी. उन बातों का खुलासा कर देने की धमकी दे कर वे रामाया गिरि को चुप रहने पर मजबूर कर देते थे. इस से रामाया गिरि परेशान रहने लगा.

एक दिन श्रद्धानंद मठ के बरामदे में बैठे चाय पी रहे थे. चाय खत्म हुई कि वे कुरसी से लुढ़क गए. किसी ने पुलिस को खबर कर दी. पुलिस श्रद्धानंद की लाश को पोस्टमार्टम के लिए ले जाना चाहती थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से भेद खुलने का डर था, इसलिए रामाया गिरि थानेदार को मठ के अंदर ले गया और लेदे कर मामले को रफादफा करा दिया.

श्रद्धानंद को रास्ते से हटा कर रामाया गिरि बहुत खुश हुआ. यह उस की जिंदगी की पहली जीत थी. उस में हौसला आ चुका था. अब उसे किसी सहारे की जरूरत नहीं थी.

रामाया गिरि नौजवान था. उस के दिल में भी आम नौजवानों की तरह तमाम तरह की हसरतें भरी पड़ी थीं. खूबसूरत औरतें उसे पसंद थीं. सो, वह पूजापाठ का दिखावा करते हुए औरत पाने का सपना संजोने लगा.

उन दिनों मठ की रसोई बनाने के लिए रामप्यारी नईनई आई थी. उस की एक जवान बेटी कमली भी थी. इस के बावजूद उस की खूबसूरती देखते ही बनती थी. गालों को चूमती जुल्फें, कंटीली आंखें और गदराया बदन.

एक रात रामप्यारी को घर लौटने में देर हो गई. मठ के दूसरे नौकर छुट्टी पर थे, इसलिए कई दिनों से बरतन भी उसे ही साफ करने पड़ रहे थे.

रामाया गिरि खाना खा कर अपने कमरे में सोने चला गया था, लेकिन उसे नींद नहीं आ रही थी. चारों ओर खामोशी थी. आंगन में बरतन मांजने की आवाज के साथ चूडि़यों की खनक साफसाफ सुनाई दे रही थी.

रामाया गिरि की आंखों में रामप्यारी की मस्त जवानी तैरने लगी. शायद उसे पाने का इस से अच्छा मौका नहीं मिलने वाला था. उस ने आवाज दी, ‘‘रामप्यारी, जरा इधर आना.’’

रामाया गिरि की आवाज सुन कर रामप्यारी सिहर उठी. वह अनसुनी करते हुए फिर से बरतन मांजने लगी.

रामाया गिरि खीज उठा. उस ने बहाना बनाते हुए फिर उसे पुकारा, ‘‘रामप्यारी, जरा जल्दी आना. दर्द से सिर फटा जा रहा है.’’

अब की बार रामप्यारी अनसुनी नहीं कर पाई. वह हाथ धो कर सकुचाती हुई रामाया गिरि के कमरे में पहुंच गई.

रामाया गिरि बिछावन पर लेटा हुआ था. उस ने रामप्यारी को देख कर अपने सूखे होंठों पर जीभ फिराई, फिर टेबिल पर रखी बाम की शीशी की ओर इशारा करते हुए बोला, ‘‘जरा, मेरे माथे पर बाम लगा दो…’’

मजबूरन रामप्यारी बाम ले कर रामाया गिरि के माथे पर मलने लगी. कोमल हाथों की छुअन से रामाया गिरि का पूरा बदन झनझना गया. उस ने सुख से अपनी आंखें बंद कर लीं.

रामाया गिरि को इस तरह पड़ा देख कर रामप्यारी का डर कुछ कम हो चला था. रामाया गिरि उसी का हमउम्र था, सो रामप्यारी को मजाक सूझने लगा.

वह हंसती हुई बोली, ‘‘जब तुम्हें औरत के हाथों ही बाम लगवानी थी, तो कंठीमाला के झमेले में क्यों फंस गए? डंका बजा कर अपना ब्याह रचाते. अपनी घरवाली लाते, फिर उस से जी भर कर बाम लगवाते रहते…’’

वह उठ बैठा और हंसते हुए कहने लगा, ‘‘रामप्यारी, तू मुझ से मजाक करने लगी? वैसे, सुना है कि तुम्हारे पति को सिक्किम गए 10 साल से ऊपर हो गए. वह आज तक नहीं लौटा. मुझे नहीं समझ आ रहा कि उस के बिना तुम अपनी जवान बेटी की शादी कैसे करोगी?’’

रामाया गिरि की बातों ने रामप्यारी के जख्म हरे कर दिए. उस की आंखें भर उठीं. वह आंचल से आंसू पोंछने लगी.

रामाया गिरि हमदर्दी जताते हुए बोला, ‘‘रामप्यारी, रोने से कुछ नहीं होगा. मेरे पास एक रास्ता है. अगर तुम मान गई, तो हम दोनों की परेशानी हल हो सकती है.’’

‘‘सो कैसे?’’ रामप्यारी पूछ बैठी.

‘‘अगर तुम चाहो, तो मैं तेरे लिए पक्का मकान बनवा दूंगा. तेरी बेटी की शादी मेरे पैसों से होगी. तुझे इतना पैसा दूंगा कि तू राज करेगी…’’

रामप्यारी उतावली हो कर बोली, ‘‘उस के बदले में मुझे क्या करना होगा?’’

रामाया गिरि उस की बांह को थामते हुए बोला, ‘‘रामप्यारी, सचमुच तुम बहुत भोली हो. अरी, तुम्हारे पास अनमोल जवानी है. वह मुझे दे दो. मैं किसी को खबर नहीं लगने दूंगा.’’

रामाया गिरि का इरादा जान कर रामप्यारी का चेहरा फीका पड़ गया. वह उस से अपना हाथ छुड़ाते हुए बोली, ‘‘मुझ से भारी भूल हो गई. मैं समझती थी कि तुम गरीबी में पले हो, इसलिए गरीबों का दुखदर्द समझते होगे. लेकिन तुम तो जिस्म के सौदागर निकले…’’

इन बातों का रामाया गिरि पर कोई असर नहीं पड़ा. वासना से उस का बदन ऐंठ रहा था. इस समय उसे उपदेश के बदले देह की जरूरत थी.

रामप्यारी कमरे से बाहर निकलने वाली थी कि रामाया गिरि ने झपट कर उस का आंचल पकड़ लिया.
रामप्यारी धक से रह गई. वह गुस्से से पलटी और रामाया गिरि के गाल पर एक जोरदार तमाचा जड़ दिया. रात के सन्नाटे में तमाचे की आवाज गूंज उठी. रामाया गिरि हक्काबक्का हो कर अपना गाल सहलाने लगा.

रामप्यारी बिफरती हुई बोली, ‘‘रामाया, ऐसी गलती फिर कभी किसी गरीब औरत के साथ नहीं करना. वैसे मैं पहले से मठमंदिरों के अंदरूनी किस्से जानती हूं. बेचारी कुसुमी तुम्हारे गुरु महाराज की सेवा करते हुए अचानक गायब हो गई. उस का आज तक पता नहीं चल पाया.

‘‘मैं थूकती हूं तुम्हारी महंती और तुम्हारे पैसों पर. मैं गरीब हूं तो क्या हुआ, मुझे इज्जत के साथ सिर उठा कर जीना आता है.’’

इस घटना को कई महीने बीत गए, लेकिन रामाया गिरि रामप्यारी के चांटे को भूल नहीं पाया.

एक रात उस ने अपने खास आदमी खड्ग सिंह के हाथों रामप्यारी की बेटी कमली को उठवा लिया.
कमली नीबू की तरह निचुड़ी हुई लस्तपस्त हालत में सुबह घर पहुंची. कमली से सारा हाल जान कर रामप्यारी ने माथा पीट लिया.

समय के साथ रामाया गिरि की मनमानी बढ़ती गई. उस ने अपने विरोधियों को दबाने के लिए कचहरी में दर्जनों मुकदमे दायर कर दिए. मठ के घंटेघडि़याल बजने बंद हो गए. अब मठ पर थानाकचहरी के लोग जुटने लगे.

रामाया गिरि ने अपनी हिफाजत के लिए बंदूक खरीद ली. उस की दबंगई के चलते इलाके के लोगों से उस का रिश्ता टूटता चला गया.

रामाया गिरि कमली वाली घटना भूल सा गया. लेकिन रामप्यारी और कमली के लिए अपनी इज्जत बहुत माने रखती थी.

एक दिन रामप्यारी और कमली धान की कटाई कर रही थीं, तभी रामप्यारी ने सड़क से रामाया गिरि को मोटरसाइकिल से आते देखा.

बदला चुकाने की आग में जल रही दोनों मांबेटी ने एकदूसरे को इशारा किया. फिर दोनों मांबेटी हाथ में हंसिया लिए रामाया गिरि को पकड़ने के लिए दौड़ पड़ीं.

रामाया गिरि सारा माजरा समझ गया. उस ने मोटरसाइकिल को और तेज चला कर निकल जाना चाहा, पर हड़बड़ी में मोटरसाइकिल उलट गई.

रामाया गिरि चारों खाने चित गिरा. रामप्यारी के लिए मौका अच्छा था. वह फुरती से रामाया गिरि के सीने पर चढ़ गई. इधर कमली ने उस के पैरों को मजबूती से जकड़ लिया.

रामप्यारी रामाया गिरि के गले पर हंसिया रखती हुई चिल्ला कर बोली, ‘‘बोल रामाया, तू ने मेरी बेटी की इज्जत क्यों लूटी?’’

इतने में वहां भारी भीड़ जमा हो गई. रामाया गिरि लोगों की हमदर्दी खो चुका था, सो किसी ने उसे बचाने की कोशिश नहीं की.

रामाया गिरि का चेहरा पीला पड़ चुका था. जान जाने के खौफ से वह हकलाता हुआ बोला, ‘‘रामप्यारी… ओ रामप्यारी, मेरा गला मत रेतना. मुझे माफ कर दो.’’

‘‘नहीं, मैं तुम्हारा गला नहीं रेतूंगी. गला रेत दिया तो तुम झटके से आजाद हो जाओगे. मैं सिर्फ तुम्हारी गंदी आंखों को निकालूंगी. दूसरों की जिंदगी में अंधेरा फैलाने वालों के लिए यही सही सजा है.’’

रामप्यारी बिलकुल चंडी बन चुकी थी. रामाया गिरि के लाख छटपटाने के बाद भी उस ने नहीं छोड़ा. हंसिया के वार से रामाया गिरि की आंखों से खून का फव्वारा उछल पड़ा. Best Hindi Kahani

Story In Hindi: हत्या या आत्महत्या – क्या हुआ था अनु के साथ?

Story In Hindi: अनु के विवाह समारोह से उस की विदाई होने के बाद रात को लगभग 2 बजे घर लौटी थी. थकान से सुबह 6 बजे गहरी नींद में थी कि अचानक अनु के घर से, जो मेरे घर के सामने ही था, जोरजोर से विलाप करने की आवाजों से मैं चौंक कर उठ गई. घबराई हुई बालकनी की ओर भागी. उस के घर के बाहर लोगों की भीड़ देख कर किसी अनहोनी की कल्पना कर के मैं स्तब्ध रह गई. रात के कपड़ों में ही मैं बदहवास उस के घर की ओर दौड़ी. ‘अनु… अनु…’ के नाम से मां को विलाप करते देख कर मैं सकते में आ गई.

किसी से कुछ पूछने की हिम्मत नहीं हो रही थी. लेकिन मुझे वहां की स्थिति देख कर समझने में देर नहीं लगी. तो क्या अनु ने वही किया, जिस का मुझे डर था? लेकिन इतनी जल्दी ऐसा करेगी, इस का मुझे अंदेशा नहीं था. कैसे और कहां, यह प्रश्न अनुत्तरित था, लेकिन वास्तविकता तो यह कि अब वह इस दुनिया में नहीं रही. यह बहुत बड़ी त्रासदी थी. अभी उम्र ही क्या थी उस की…? मैं अवाक अपने मुंह पर हाथ रख कर गहन सोच में पड़ गई.

मेरा दिमाग जैसे फटने को हो रहा था. कल दुलहन के वेश में और आज… पलक झपकते ही क्या से क्या हो गया. मैं मन ही मन बुदबुदाई. मेरी रूह अंदर तक कांप गई. वहां रुकने की हिम्मत नहीं हुई और क्यों कर रुकूं… यह घर मेरे लिए उस के बिना बेगाना है. एक वही तो थी, जिस के कारण मेरा इस घर में आनाजाना था, बाकी लोग तो मेरी सूरत भी देखना नहीं चाहते.

मैं घर आ कर तकिए में मुंह छिपा कर खूब रोई. मां ने आ कर मुझे बहुत सांत्वना देने की कोशिश की तो मैं उन से लिपट कर बिलखते हुए बोली, ‘‘मां, सब की माएं आप जैसे क्यों नहीं होतीं? क्यों लोग अपने बच्चों से अधिक समाज को महत्त्व देते हैं? क्यों अपने बच्चों की खुशी से बढ़ कर रिश्तेदारों की प्रतिक्रिया का ध्यान रखते हैं? शादी जैसे व्यक्तिगत मामले में भी क्यों समाज की दखलंदाजी होती है? मांबाप का अपने बच्चों के प्रति यह कैसा प्यार है जो सदियों से चली आ रही मान्यताओं को ढोते रहने के लिए उन के जीवन को भी दांव पर लगाने से नहीं चूकते? कितना प्यार करती थी वह जैकब से? सिर्फ वह क्रिश्चियन है…? प्यार क्या धर्म और जाति देख कर होता है? फिर लड़की एक बार मन से जिस के साथ जुड़ जाती है, कैसे किसी दूसरे को पति के रूप में स्वीकार करे?’’ रोतेरोते मन का सारा आक्रोश अपनी मां के सामने उगल कर मैं थक कर उन के कंधे पर सिर रख कर थोड़ी देर के लिए मौन हो गई.

पड़ोसी फर्ज निभाने के लिए मैं अपनी मां के साथ अनु के घर गई. वहां लोगों की खुसरफुसर से ज्ञात हुआ कि विदा होने के बाद गाड़ी में बैठते ही अनु ने जहर खा लिया और एक ओर लुढ़क गई तो दूल्हे ने सोचा कि वह थक कर सो गई होगी. संकोचवश उस ने उसे उठाया नहीं और जब कार दूल्हे के घर के दरवाजे पर पहुंची तो सास तथा अन्य महिलाएं उस की आगवानी के लिए आगे बढ़ीं. जैसे ही सास ने उसे गाड़ी से उतारने के लिए उस का कंधा पकड़ा उन की चीख निकल गई. वहां दुलहन की जगह उस की अकड़ी हुई लाश थी. मुंह से झाग निकल रहा था.

चीख सुन कर सभी लोग दौड़े आए और दुलहन को देख कर सन्न रह गए.

दहेज से लदा ट्रक भी साथसाथ पहुंचा. लेकिन वर पक्ष वाले भले मानस थे, उन्होंने सोचा कि जब बहू ही नहीं रही तो उस सामान का वे क्या करेंगे? इसलिए उसी समय ट्रक को अनु के घर वापस भेज दिया. उन के घर में खुशी की जगह मातम फैल गया. अनु के घर दुखद खबर भिजवा कर उस का अंतिम संस्कार अपने घर पर ही किया. अनु के मातापिता ने अपना सिर पीट लिया, लेकन अब पछताए होत क्या, जब चिडि़यां चुग गई खेत.

एक बेटी समाज की आधारहीन परंपराओं के तहत तथा उन का अंधा अनुकरण करने वाले मातापिता की सोच के लिए बली चढ़ गई. जीवन हार गया, परंपराएं जीत गईं.

अनु मेरे बचपन की सहेली थी. एक साथ स्कूल और कालेज में पढ़ी, लेकिन जैसे ही उस के मातापिता को ज्ञात हुआ कि मैं किसी विजातीय लड़के से प्रेम विवाह करने वाली हूं, उन्होंने सख्ती से उस पर मेरे से मिलने पर पाबंदी लगाने की कोशिश की, लेकिनउस ने मुझ से मिलनेजुलने पर मांबाप की पाबंदी को दृढ़ता से नकार दिया. उन्हें क्या पता था कि उन की बटी भी अपने सहपाठी, ईसाई लड़के जैकब को दिल दे बैठी है. उन के सच्चे प्यार की साक्षी मुझ से अधिक और कौन होगा? उसे अपने मातापिता की मानसिकता अच्छी तरह पता थी. अकसर कहती थी, ‘‘प्रांजलि, काश मेरी मां की सोच तुम्हारी मां जैसे होती. मुझे एक बात समझ में नहीं आती कि मातापिता हमें अपनी सोच की जंजीरों में क्यों बांधना चाहते हैं. तो फिर हमें खुले आसमान में विचरने ही क्यों देते हैं? क्यों हमें ईसाई स्कूल में पढ़ाते हैं? क्यों नहीं पहले के जमाने के अनुसार हमारे पंख कतर कर घर में कैद कर लेते हैं? समय के अनुसार इन की सोच क्यों नहीं बदलती? ’’

मैं उस के तर्क सुन कर शब्दहीन हो जाती और सोचती काश मैं उस के मातापिता को समझा पाती कि उन की बेटी किसी अन्य पुरुष को वर के रूप में स्वीकार कर ही नहीं पाएगी, उन्हें बेटी चाहिए या सामाजिक प्रतिष्ठा, लेकिन उन्होंने मुझे इस अधिकार से वंचित कर दिया था.

अनु एक बहुत ही संवेदनशील और हठी लड़की थी. जैकब भी पढ़ालिखा और उदार विचारों वाला युवक था. उस के मातापिता भी समझदार और धर्म के पाखंडों से दूर थे. वे अपने इकलौते बेटे को बहुत प्यार करते थे और उस की खुशी उन के लिए सर्वोपरि थी. मैं ने अनु को कई बार समझाया कि बालिग होने के बाद वह अपने मातापिता के विरुद्ध कोर्ट में जा कर भी रजिस्टर्ड विवाह कर सकती है, लेकिन उस का हमेशा एक ही उत्तर होता कि नहीं रे, तुझे पता नहीं हमारी बिरादरी का, मैं अपने लिए जैकब का जीवन खतरे में नहीं डाल सकती… इतना कह कर वह गहरी उदासी में डूब जाती.

मैं उस की कुछ भी मदद न करने में अपने को असहाय पा कर बहुत व्यथित होती. लेकिन मैं ने जैकब और उस के परिवार वालों से कहा कि उस के मातापिता से मिल कर उन्हें समझाएं, शायद उन्हें समझ में आ जाए,

लेकिन इस में भी अनु के घर वालों को मेरे द्वारा रची गई साजिश की बू आई, इसलिए उन्होंने उन्हें बहुत अपमानित किया और उन के जाने के बाद अनु को मेरा नाम ले कर खूब प्रताडि़त किया. इस के बावजूद जैकब बारबार उस के घर गया और अपने प्यार की दुहाई दी. यहां तक कि उन के पैरों पर गिर कर गिड़गिड़ाया भी, लेकिन उन का पत्थर दिल नहीं पिघला और उस की परिणति आज इतनी भयानक… एक कली खिलने से पहले ही मुरझा गई. मातापिता को तो उन के किए का दंड मिला, लेकिन मुझे अपनी प्यारी सखी को खोने का दंश बिना किसी गलती के जीवनभर झेलना पड़ेगा.

लोग अपने स्वार्थवश कि उन की समाज में प्रतिष्ठा बढ़ेगी, बुढ़ापे का सहारा बनेगा और दैहिक सुख के परिणामस्वरूप बच्चा पैदा करते हैं और पैदा होने के बाद उसे स्वअर्जित संपत्ति मान कर उस के जीवन के हर क्षेत्र के निर्णय की डोर अपने हाथ में रखना चाहते हैं, जैसे कि वह हाड़मांस का न बना हो कर बेजान पुतली है. यह कैसी मानसिकता है उन की?

कैसी खोखली सोच है कि वे जो भी करते हैं, अपने बच्चों की भलाई के लिए करते हैं? ऐसी भलाई किस काम की, जो बच्चों के जीवन से खुशी ही छीन ले. वे उन की इस सोच से तालमेल नहीं बैठा पाते और बिना पतवार की नाव के समान अवसाद के भंवर में डूब कर जीवन ही नष्ट कर लेते हैं, जिसे हम आत्महत्या कहते हैं, लेकिन इसे हत्या कहें तो अधिक सार्थक होगा. अनु की हत्या की थी, मातापिता और उन के खोखले समाज ने. Story In Hindi

Hindi Family Story: नाइंसाफी – मां के हक के लिए लड़ती एक बेटी

Hindi Family Story: बैठक में बैठी शिखा राहुल के खयालों में खोई थी. वह नहा कर तैयार हो कर सीधे यहीं आ कर बैठ गई थी. उस का रूप उगते सूर्य की तरह था. सुनहरे गोटे की किनारी वाली लाल साड़ी, हाथों में ढेर सारी लाल चूडि़यां, माथे पर बड़ी बिंदी, मांग में चमकता सिंदूर मानो सीधेसीधे सूर्य की लाली को चुनौती दे रहे थे. घर के सब लोग सो रहे थे, मगर शिखा को रात भर नींद नहीं आई. शादी के बाद वह पहली बार मायके आई थी पैर फेरने और आज राहुल यानी उस का पति उसे वापस ले जाने आने वाला था. वह बहुत खुश थी.

उस ने एक भरपूर नजर बैठक में घुमाई. उसे याद आने लगा वह दिन जब वह बहुत छोटी थी और अपनी मां के पल्लू को पकड़े सहमी सी दीवार के कोने में घुसी जा रही थी. नानाजी यहीं दीवान पर बैठे अपने बेटों और बहुओं की तरफ देखते हुए अपनी रोबदार आवाज में फैसला सुना रहे थे, ‘‘माला, अब अपनी बच्ची के साथ यहीं रहेगी, हम सब के साथ. यह घर उस का भी उतना ही है, जितना तुम सब का. यह सही है कि मैं ने माला का विवाह उस की मरजी के खिलाफ किया था, क्योंकि जिस लड़के को वह पसंद करती थी, वह हमारे जैसे उच्च कुल का नहीं था, परंतु जयराज (शिखा के पिता) के असमय गुजर जाने के बाद इस की ससुराल वालों ने इस के साथ बहुत अन्याय किया. उन्होंने जयराज के इंश्योरैंस का सारा पैसा हड़प लिया. और तो और मेरी बेटी को नौकरानी बना कर दिनरात काम करवा कर इस बेचारी का जीना हराम कर दिया. मुझे पता नहीं था कि दुनिया में कोई इतना स्वार्थी भी हो सकता है कि अपने बेटे की आखिरी निशानी से भी इस कदर मुंह फेर ले. मैं अब और नहीं देख सकता. इस विषय में मैं ने गुरुजी से भी बात कर ली है और उन की भी यही राय है कि माला बिटिया को उन लालचियों के चंगुल से छुड़ा कर यहीं ले आया जाए.’’

फिर कुछ देर रुक कर वे आगे बोले, ‘‘अभी मैं जिंदा हूं और मुझ में इतना सामर्थ्य है कि मैं अपनी बेटी और उस की इस फूल सी बच्ची की देखभाल कर सकूं… मैं तुम सब से भी यही उम्मीद करता हूं कि तुम दोनों भी अपने भाई होने का फर्ज बखूबी अदा करोगे,’’ और फिर नानाजी ने बड़े प्यार से उसे अपनी गोद में बैठा लिया था. उस वक्त वह अपनेआप को किसी राजकुमारी से कम नहीं समझ रही थी. घर के सभी सदस्यों ने इस फैसले को मान लिया था और उस की मां भी घर में पहले की तरह घुलनेमिलने का प्रयत्न करने लगी थी. मां ने एक स्कूल में अध्यापिका की नौकरी कर ली थी. इस तरह से उन्होंने किसी को यह महसूस नहीं होने दिया कि वे किसी पर बोझ हैं.

नानाजी एवं नानी के परिवार की अपने कुलगुरु में असीम आस्था थी. सब के गले में एक लौकेट में उन की ही तसवीर रहती थी. कोई भी बड़ा निर्णय लेने के पहले गुरुजी की आज्ञा लेनी जरूरी होती थी. शिखा ने बचपन से ही ऐसा माहौल देखा था. अत: वह भी बिना कुछ सोचेसमझे उन्हें मानने लगी थी. अत्यधिक व्यस्तता के बावजूद समय निकाल कर उस की मां कुछ वक्त गुरुजी की तसवीर के सामने बैठ कर पूजाध्यान करती थीं. कभीकभी वह भी मां के साथ बैठती और गुरुजी से सिर्फ और सिर्फ एक ही दुआ मांगती कि गुरुजी, मुझे इतना बड़ा अफसर बना दो कि मैं अपनी मां को वे सारे सुख और आराम दे सकूं जिन से वे वंचित रह गई हैं.

तभी खट की आवाज से शिखा की तंद्रा भंग हो गई. उस ने मुड़ कर देखा. तेज हवा के कारण खिड़की चौखट से टकरा रही थी. उठ कर शिखा ने खिड़की का कुंडा लगा दिया. आंगन में झांका तो शांति ही थी. घड़ी की तरफ देखा तो सुबह के 6 बज रहे थे. सब अभी सो ही रहे हैं, यह सोचते हुए वह भी वहीं सोफे पर अधलेटी हो गई. उस का मन फिर अतीत में चला गया…

जब तक नानाजी जिंदा रहे उस घर में वह राजकुमारी और मां रानी की तरह रहीं. मगर यह सुख उन दोनों के हिस्से बहुत दिनों के लिए नहीं लिखा था. 1 वर्ष बीततेबीतते अचानक एक दिन हृदयगति रुक जाने के कारण नानाजी का देहांत हो गया. सब कुछ इतनी जल्दी घटा कि नानी को बहुत गहरा सदमा लगा. अपनी बेटी व नातिन के बारे में सोचना तो दूर, उन्हें अपनी ही सुधबुध न रही. वे पूरी तरह से अपने बेटों पर आश्रित हो गईं और हालात के इस नए समीकरण ने शिखा और उस की मां माला की जिंदगी को फिर से कभी न खत्म होने वाले दुखों के द्वार पर ला खड़ा कर दिया.

नानाजी के असमय देहांत और नानीजी के डगमगाते मानसिक संतुलन ने जमीनजायदाद, रुपएपैसे, यहां तक कि घर के बड़े की पदवी भी मामा के हाथों में थमा दी. अब घर में जो भी निर्णय होता वह मामामामी की मरजी के अनुसार होता. कुछ वक्त तक तो उन निर्णयों पर नानी से हां की मुहर लगवाई जाती रही, पर उस के बाद वह रस्म भी बंद हो गई. छोटे मामामामी बेहतर नौकरी का बहाना बना कर अपना हिस्सा ले कर विदेश में जा कर बस गए. अब बस बड़े मामामामी ही घर के सर्वेसर्वा थे.

मां का अपनी नौकरी से बचाखुचा वक्त रसोई में बीतने लगा था. मां ही सुबह उठ कर चायनाश्ता बनातीं. उस का और अपना टिफिन बनाते वक्त कोई न कोई नाश्ते की भी फरमाइश कर देता, जिसे मां मना नहीं कर पाती थीं. सब काम निबटातेनिबटाते, भागतेदौड़ते वे स्कूल पहुंचतीं.

कई बार तो शिखा को देर से स्कूल पहुंचने पर डांट भी पड़ती. इसी प्रकार शाम को घर लौटने पर जब मां अपनी चाय बनातीं, तो बारीबारी पूरे घर के लोग चाय के लिए आ धमकते और फिर वे रसोई से बाहर ही न आ पातीं. रात में शिखा अपनी पढ़ाई करतेकरते मां का इंतजार करती कि कब वे आएं तो वह उन से किसी सवाल अथवा समस्या का हल पूछे. मगर मां को काम से ही फुरसत नहीं होती और वह कापीकिताब लिएलिए ही सो जाती. जब मां आतीं तो बड़े प्यार से उसे उठा कर खाना खिलातीं और सुला देतीं. फिर अगले दिन सुबह जल्दी उठ कर उसे पढ़ातीं.

यदि वह कभी मामा या मामी के पास किसी प्रश्न का हल पूछने जाती तो वे हंस कर

उस की खिल्ली उड़ाते हुए कहते, ‘‘अरे बिटिया, क्या करना है इतना पढ़लिख कर? अफसरी तो करनी नहीं तुझे. चल, मां के साथ थोड़ा हाथ बंटा ले. काम तो यही आएगा.’’

वह खीज कर वापस आ जाती. परंतु उन की ऐसी उपहास भरी बातों से उस ने हिम्मत न हारी, न ही निराशा को अपने मन में घर करने दिया, बल्कि वह और भी दृढ़ इरादों के साथ पढ़ाई में जुट जाती.

मामामामी अपने बच्चों के साथ अकसर बाहर घूमने जाते और बाहर से ही खापी कर आते. मगर भूल कर भी कभी न उस से न ही मां से पूछते कि उन का भी कहीं आनेजाने का या बाहर का कुछ खाने का मन तो नहीं? और तो और जब भी घर में कोई बहुत स्वादिष्ठ चीज बनती तो मामी अपने बच्चों को पहले परोसतीं और उन को ज्यादा देतीं. वह एक किनारे चुपचाप अपनी प्लेट लिए, अपना नंबर आने की प्रतीक्षा में खड़ी रहती.

सब से बाद में मामी अपनी आवाज में बनावटी मिठास भर के उस से बोलतीं, ‘‘अरे बिटिया तू भी आ गई. आओआओ,’’ कह कर बचाखुचा कंजूसी से उस की प्लेट में डाल देतीं. तब उस का मन बहुत कचोटता और कह उठता कि काश, आज उस के भी पापा होते, तो वे उसे कितना प्यार करते, कितने प्यार से उसे खिलाते. तब किसी की भी हिम्मत न होती, जो उस का इस तरह मजाक उड़ाता या खानेपीने को तरसता. तब वह तकिए में मुंह छिपा कर बहुत रोती. मगर फिर मां के आने से पहले ही मुंह धो कर मुसकराने का नाटक करने लगती कि कहीं मां ने उस के आंसू देख लिए तो वे बहुत दुखी हो जाएंगी और वे भी उस के साथ रोने लगेंगी, जो वह हरगिज नहीं चाहती थी.

एकाध बार उस ने गुरुजी से परिवार से मिलने वाले इन कष्टों का जिक्र करना चाहा, परंतु गुरुजी ने हर बार किसी न किसी बहाने से उसे चुप करा दिया. वह समझ गई कि सारी दुनिया की तरह गुरुजी भी बलवान के साथी हैं.

जब वह छोटी थी, तब इन सब बातों से अनजान थी, मगर जैसेजैसे बड़ी होती गई, उसे सारी बातें समझ में आने लगीं और इस सब का कुछ ऐसा असर हुआ कि वह अपनी उम्र के हिसाब से जल्दी एवं ज्यादा ही समझदार हो गई.

उस की मेहनत व लगन रंग लाई और एक दिन वह बहुत बड़ी अफसर बन गई. गाड़ीबंगला, नौकरचाकर, ऐशोआराम अब सब कुछ उस के पास था.

उस दिन मांबेटी एकदूसरे के गले लग कर इतना रोईं, इतना रोईं कि पत्थरदिल हो चुके मामामामी की भी आंखें भर आईं. नानी भी बहुत खुश थीं और अपने पूरे कुनबे को फोन कर के उन्होंने बड़े गर्व से यह खबर सुनाई. वे सभी लोग, जो वर्षों से उसे और उस की मां को इस परिवार पर एक बोझ समझते थे, ‘ससुराल से निकाली गई’, ‘मायके में आ कर पड़ी रहने वाली’ समझ कर शक भरी निगाहों से देखते थे और उन्हें देखते ही मुंह फेर लेते थे, आज वही सब लोग उन दोनों की प्रशंसा करते नहीं थक रहे थे. मामामामी ने तो उस के अफसर बनने का पूरा क्रैडिट ही स्वयं को दे दिया था और गर्व से इतराते फिर रहे थे.

समय का चक्र मानो फिर से घूम गया था. अब मां व शिखा के प्रति मामामामी का रवैया बदलने लगा था. हर बात में मामी कहतीं, ‘‘अरे जीजी, बैठो न. आप बस हुकुम करो. बहुत काम कर लिया आप ने.’’

मामी के इस रूप का शिखा खूब आनंद लेती. इस दिन के लिए तो वह कितना तरसी थी.

जब सरकारी बंगले में जाने की बात आई, तो सब से पहले मामामामी ने अपना सामान बांधना शुरू कर दिया. मगर नानी ने जाने से मना कर दिया, यह कह कर कि इस घर में नानाजी की यादें बसी हैं. वे इसे छोड़ कर कहीं नहीं जाएंगी. जो जाना चाहे, वह जा सकता है. मां नानी के दिल की हालत समझती थीं. अत: उन्होंने भी जाने से मना कर दिया. तब शिखा ने भी शिफ्ट होने का प्रोग्राम फिलहाल टाल दिया.

इसी बीच एक बहुत ही सुशील और हैंडसम अफसर, जिस का नाम राहुल था की तरफ से शिखा को शादी का प्रस्ताव आया. राहुल ने खुद आगे बढ़ कर शिखा को बताया कि वह उसे बहुत पसंद करता है और उस से शादी करना चाहता है. शिखा को भी राहुल पसंद था.

राहुल शिखा को अपने घर, अपनी मां से भी मिलाने ले गया था. राहुल ने उसे बताया कि किस प्रकार पिताजी के देहांत के बाद मां ने अपने संपूर्ण जीवन की आहुति सिर्फ और सिर्फ उस के पालनपोषण के लिए दे दी. घरघर काम कर के, रातरात भर सिलाईकढ़ाईबुनाई कर के उसे इस लायक बनाया कि आज वह इतना बड़ा अफसर बन पाया है. उस की मां के लिए वह और उस के लिए उस की मां दोनों की बस यही दुनिया थी. राहुल का कहना था कि अब उन की इस 2 छोरों वाली दुनिया का तीसरा छोर शिखा है, जिसे बाकी दोनों छोरों का सहारा भी बनना है एवं उन्हें मजबूती से बांधे भी रखना है.

यह सब सुन कर शिखा को महसूस हुआ था कि यह दुनिया कितनी छोटी है. वह समझती थी कि केवल एक वही दुखों की मारी है, मगर यहां तो राहुल भी कांटों पर चलतेचलते ही उस तक पहुंचा है. अब जब वे दोनों हमसफर बन गए हैं, तो उन की राहें भी एक हैं और मंजिल भी.

राहुल की मां शिखा से मिल कर बहुत खुश हुईं. उन की होने वाली बहू इतनी सुंदर, पढ़ीलिखी तथा सुशील है, यह देख कर वे खुशी से फूली नहीं समा रही थीं. झट से उन्होंने अपने गले की सोने की चेन उतार कर शिखा के गले में पहना दी और फिर बड़े स्नेह से शिखा से बोलीं, ‘‘बस बेटी, अब तुम जल्दी से यहां मेरे पास आ जाओ और इस घर को घर बना दो.’’

मगर एक बार फिर शिखा के परिवार वाले उस की खुशियों के आड़े आ गए. राहुल दूसरी जाति का था और उस के यहां मीटमछली बड़े शौक से खाया जाता था जबकि शिखा का परिवार पूरी तरह से पंडित बिरादरी का था, जिन्हें मीटमछली तो दूर प्याजलहसुन से भी परहेज था.

घर पर सब राहुल के साथ उस की शादी के खिलाफ थे. जब शिखा की मां माला ने शिखा को इस शादी के लिए रोकना चाहा तो शिखा तड़प कर बोली, ‘‘मां, तुम भी चाहती हो कि इतिहास फिर से अपनेआप को दोहराए? फिर एक जिंदगी तिलतिल कर के इन धार्मिक आडंबरों और दुनियादारी के ढकोसलों की अग्नि में अपना जीवन स्वाहा कर दे? तुम भी मां…’’ कहतेकहते शिखा रो पड़ी.

शिखा के इस तर्क के आगे माला निरुत्तर हो गईं. वे धीरे से शिखा के पास आईं और उस का सिर सहलाते हुए रुंधी आवाज में बोलीं, ‘‘मुझे माफ कर देना मेरी प्यारी बेटी. बढ़ती उम्र ने नजर ही नहीं, मेरी सोचनेसमझने की शक्ति को भी धुंधला दिया था. मेरे लिए तुम्हारी खुशी से बढ़ कर और कुछ भी नहीं… हम आज ही यह घर छोड़ देंगी.’’

जब मामामामी को पता लगा कि शिखा का इरादा पक्का है और माला भी उस के साथ है, तो सब का आक्रोश ठंडा पड़ गया. अचानक उन्हें गुरुजी का ध्यान आया कि शायद उन के कहने से शिखा अपना निर्णय बदल दे.

बात गुरुजी तक पहुंची तो वे बिफर उठे. जैसे ही उन्होंने शिखा को कुछ समझाना चाहा, शिखा ने अपने मुंह पर उंगली रख कर उन्हें चुप रहने का इशारा किया और फिर अपने गले में पड़ा उन की तसवीर वाला लौकेट उतार कर उन के सामने फेंक दिया.

सब लोग गुस्से में कह उठे, ‘‘यह क्या पागलपन है शिखा?’’

गुरुजी भी आश्चर्यमिश्रित रोष से उसे देखने लगे.

इस पर शिखा दृढ़ स्वर में बोली, ‘‘बहुत कर ली आप की पूजा और देख ली आप की शक्ति भी, जो सिर्फ और सिर्फ अपना स्वार्थ देखती है. मेरा सर्वस्व अब मेरा होने वाला पति राहुल है, उस का घर ही मेरा मंदिर है, उस की सेवा आप के ढोंगी धर्म और भगवान से बढ़ कर है,’’ कहते हुए शिखा तेजी से उठ कर वहां से निकल गई.

शिखा के इस आत्मविश्वास के आगे सब ने समर्पण कर दिया और फिर खूब धूमधाम से राहुल के साथ उस का विवाह हो गया.

अचानक बादलों की गड़गड़ाहट से शिखा की आंख खुल गई. आंगन में लोगों की चहलकदमी शुरू हो गई थी. आंखें मलती हुई वह उठी और सोचने लगी, यहां दीवान पर लेटेलेटे उस की आंख क्या लगी वह तो अपना अतीत एक बार फिर से जी आई.

‘राहुल अब किसी भी वक्त उसे लेने पहुंचने ही वाला होगा,’ इस खयाल से शिखा के चेहरे पर एक लजीली मुसकान फैल गई. Hindi Family Story

Hindi Family Story: सोने की बालियां

Hindi Family Story: ईमानदार संसारचंद मेहनत में यकीन रखने वाला नौजवान था. एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखने वाले संसारचंद की 3 बहनें और एक छोटा भाई था. 2 बहनों की शादी पहले ही हो चुकी थी. उन की शादी के बाद संसारचंद के पिता का देहांत हो गया. पिता की मौत के बाद उस ने भी अपने पुरखों का बढ़ईगीरी का काम संभाल लिया.

संसारचंद के हाथों में हुनर था और ईमानदारी के चलते काम की कोई कमी नहीं थी. कड़ी मेहनत से संसारचंद पूरे परिवार की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठाए हुए था. वह अपनी मां, छोटी बहन और छोटे भाई की रोटी, पढ़ाईलिखाई और भविष्य के लिए दिनरात मेहनत करता था.

अब संसारचंद की छोटी बहन कमला ब्याह लायक हो चुकी थी. अपने ब्याह के बारे में सोचे बिना संसारचंद ने मेहनत से जोड़े पैसों से कमला के ब्याह की तैयारी शुरू कर दी. रिश्ता अच्छा था, लेकिन एक अड़चन आ खड़ी हुई. वह थी सोने की बालियां.

गांव का रिवाज था कि लड़की को ब्याह के समय खाली कानों से विदा नहीं किया जाता था. यह केवल रिवाज ही नहीं था, बल्कि इज्जत की बात भी थी.

संसारचंद की इतनी औकात नहीं थी कि वह महंगी सोने की बालियां खरीद सके. पुराने कर्ज अभी चुकाए नहीं गए थे. यह बात संसारचंद की बड़ी बहन विमला को पता चली. विमला अपने पति के साथ पास के गांव में खुशहाल जिंदगी बिता रही थी.

भाई की परेशानी सोचसोच कर विमला बेचैन हो जाती. वह यह सोचती कि संसारचंद कमला के लिए बालियों का इंतजाम कैसे कर पाएगा? शादी के समय अपने मायके से मिली सोने की बालियां, जो वह पहने हुए थी, कमला को देने के बारे में सोचती, तो ससुराल वालों के सवालों से डर कर वह अपने विचार से पीछे हट जाती, लेकिन फिर उस ने फैसला कर ही लिया.

कमला की शादी का दिन निकट आ रहा था. एक दिन, पति के काम पर चले जाने के बाद, विमला घर में अकेली थी. उस ने अपनी अलमारी खोली और उस पोटली को निकाला, जिस में शादी के समय मायके से मिली हुई सोने की बालियां रखी थीं.

उन्हें बहन को देने के बारे में सोच कर विमला कुछ देर के लिए दुविधा में पड़ गई, लेकिन दूसरी ओर, बहन की खुशी और भाई की मजबूरी उस की सोच पर भारी पड़ गई.

अगले दिन विमला अपने मायके पहुंची. हाथ में बालियों की पोटली थी.

‘‘ले भैया, कमला की शादी के लिए बालियों की जरूरत थी. मेरे पास ये थीं. क्या अपनी कमला को खाली कानों से विदा करेंगे? मैं फिर कभी बनवा लूंगी,’’ कहते हुए विमला ने बालियां संसारचंद की हथेली पर रख दीं.

‘‘नहीं बहन, मैं ऐसा नहीं कर सकता. तुम्हारा भी अपना परिवार है. तुम्हारे पति और ससुराल वाले क्या कहेंगे?’’ संसारचंद बोला.

लेकिन विमला अड़ी रही. बारबार कहने पर संसारचंद ने नम आंखों से बालियों वाली पोटली को मजबूती से पकड़ लिया.

कमला की शादी अच्छे से हो गई, लेकिन संसारचंद को भीतर ही भीतर यह टीस बनी रही कि उस की बहन ने अपनी एक कीमती चीज, अपने घर से चोरी कर के छोटी बहन को दे दी.

संसारचंद ने अपनेआप से वादा किया कि वह यह कर्ज जरूर उतारेगा. उस ने जीतोड़ मेहनत जारी रखी और पैसे इकट्ठा करने लगा.

2 साल बीत गए. एक दिन संसारचंद शहर में सुनार की दुकान पर पहुंचा. उस ने एक सुंदर जोड़ी सोने की बालियां तैयार करवाईं.

बालियां ले कर संसारचंद सुबहसुबह अपनी बहन विमला के घर तब पहुंचा, जब उस का पति अशोक काम पर जा चुका था.

चायपानी के बाद संसारचंद ने एक छोटीसी डब्बी विमला के हाथों में रख दी. विमला ने डब्बी खोली तो अंदर नई, चमचमाती सोने की बालियां थीं.

‘‘यह क्या भैया?’’ विमला ने हैरानी से पूछा.

‘‘जो तू ने कभी बिना मांगें दी थीं, आज मैं वे तुझे लौटाने आया हूं. मन पर बड़ा बोझ था इस कर्ज का,’’ संसारचंद भावुक हो गया.

‘‘पर कमला मेरी भी तो छोटी बहन है,’’ विमला बोली.

‘‘लेकिन बहन, मुझे पता है कि तू ने वे बालियां अपनी ससुराल से चुरा कर दी थीं, जिस के बोझ से मेरा मन भारी था,’’ संसारचंद बोला.

‘‘सच कहूं तो वह बोझ मेरे मन पर भी बहुत था. मुझे खुद भी लगता था जैसे मैं ने चोरी की है. मुझ से रहा नहीं गया और मैं ने पहले ही दिन अपने पति को सब सच बता दिया था,’’ विमला बोलती जा रही थी, ‘‘उस भले इनसान ने कहा कि विमला, तू ने ठीक किया. उस ने तो यह भी कहा कि ऐसी चीजें तो मुश्किल वक्त में ही काम आती हैं.’’

संसारचंद सुनता रहा. उस की आंखें भर आईं. वह बोला, ‘‘अशोक के लौट आने तक मैं यहीं रुकूंगा. उस भले इनसान का शुक्रिया अदा करना तो बनता है.’’

चारों ओर रिश्तों की मिठास से महक उठी थीं हवाएं… Hindi Family Story

Hindi Family Story: बिछोह की सांझ

Hindi Family Story, लेखक – संजीव स्नेही

कालेज का गलियारा, वही कैंटीन के ठहाके और लाइब्रेरी की खामोशी. इन सब में एक कहानी पल रही थी, करण और प्रिया की. दोनों एकदूसरे में इस कदर खोए थे कि कालेज की पढ़ाई भी कभीकभी पीछे छूट जाती थी. उन की हंसी, उन की बहसें, उन का छोटीमोटी बातों पर रूठनामनाना, सब कैंपस की फिजा में घुलमिल गया था.

जब कभी प्रिया उदास होती, करण का एक जोक उस के चेहरे पर मुसकान ले आता और जब करण किसी बात से परेशान होता, तो प्रिया की समझदारी उसे राह दिखाती.

उन के दोस्त उन्हें ‘एकदूजे के लिए’ कहते थे, और सच भी यही था. वे कालेज के हर पल को साथ जीते थे. सुबह की पहली क्लास से ले कर शाम की आखिरी चाय तक, उन की दुनिया एकदूसरे के इर्दगिर्द घूमती थी. कैंपस की हर बैंच, हर पेड़ उन के प्यार का गवाह था.

करण एक शांत स्वभाव का लड़का था, जो अपनी दुनिया में खोया रहता था, लेकिन प्रिया ने उस दुनिया में रंग भर दिए थे. वह चंचल, जीवंत और हमेशा खुश रहने वाली लड़की थी.

करण की गंभीरता को प्रिया की चंचलता ने पूरा किया था और प्रिया की उड़ान को करण के ठहराव ने एक ठोस जमीन दी थी. दोनों का तालमेल ऐसा था, मानो 2 अलगअलग ध्रुव एकसाथ मिल कर एक पूर्ण इकाई बन गए हों.

उन के झगड़े भी प्यारे होते थे. कभी प्रिया करण के देर से आने पर रूठ जाती, तो कभी करण उस के फोन न उठाने पर नाराज हो जाता, लेकिन यह रूठनामनाना केवल कुछ पलों का होता था, जिस के बाद प्यार और भी गहरा हो जाता था. उन के दोस्त अकसर उन से जलते थे कि कैसे वे एकदूसरे को इतनी अच्छी तरह समझते हैं.

कालेज का फैस्टिवल हो या कोई असाइनमैंट, वे हमेशा एक टीम में होते थे. साथ में देर रात तक जाग कर पढ़ाई करना, सुबहसुबह कैंटीन में नाश्ता करना और ऐग्जाम के तनाव में भी एकदूसरे का सहारा बनना, यह सब उन की दिनचर्या का हिस्सा था.

वे भविष्य के सपने बुनते थे, एकसाथ घर बनाने के, एकसाथ नई दुनिया घूमने के और एकसाथ हर चुनौती का सामना करने के. उन के सपने हवा में नहीं, बल्कि एकदूसरे के विश्वास पर टिके थे. उन्हें लगता था कि उन का प्यार अमर है और कोई भी चीज उन्हें अलग नहीं कर सकती.

मगर कालेज के दिन ढलते ही, बिछोह का अंधेरा छाने लगा. ग्रेजुएशन पूरी होते ही, जिंदगी ने उन्हें अलगअलग शहरों में धकेल दिया.

करण लौट आया अपने पहाड़ से घिरे छोटे से शहर में, जहां उस की पुरानी यादें सांस लेती थीं. यह शहर शांत और कुदरत के करीब था, ठीक करण के स्वभाव जैसा. यहां उस का पुश्तैनी कारोबार था, जिसे संभालने की जिम्मेदारी उस के कंधों पर थी.

प्रिया अपने परिवार के साथ महानगर की तेज रफ्तार जिंदगी में लौट गई, जहां हर दिन एक नई चुनौती थी और एक नई दौड़. मुंबई की चकाचौंध उसे अपनी ओर खींच रही थी और वह उस में रमने के लिए तैयार थी.

शुरुआत में सब ठीक था. फोन की घंटियां दिन में जबतब बजती रहतीं. घंटों बातें होतीं, जिस में कालेज के किस्से, भविष्य के सपने और एकदूसरे के शहर की कहानियां शामिल होतीं.

करण प्रिया को अपने पहाड़ की ठंडक और शांत नजारों के बारे में बताता और प्रिया उसे मुंबई की जगमगाती रातों और लोकल ट्रेन की भीड़भाड़ के बारे में बताती.

उन की आवाज में वही पुराना प्यार और अपनापन था, वही जुनून और वही चाहत थी. वे एकदूसरे को हर छोटीबड़ी बात बताते, अपने दिन की हर घटना साझा करते.

प्रिया करण को बताती कि कैसे उस ने आज लोकल ट्रेन में एक अजीबोगरीब वाकिआ देखा, तो करण उसे अपने शहर के शांत तालाब के पास सूर्यास्त का नजारा बताता. वे एकदूसरे की जिंदगी का हिस्सा बने रहने की पूरी कोशिश कर रहे थे, चाहे कितनी भी दूरियां हों.

लेकिन धीरेधीरे दूरियों का एहसास चुभने लगा. फोन पर घंटों बात करना भी अब उस छुअन, उस निकटता की भरपाई नहीं कर पाता था जो पहले उन की जिंदगी का हिस्सा था. रातें करवटें बदलते बीततीं.

करण को प्रिया की हंसी नहीं सुनाई देती थी, न ही प्रिया को करण के कंधे पर सिर रख कर सोने की राहत मिलती थी. वे एकदूसरे को मिस करते थे, इस हद तक कि उन के दिल में एक अजीब सा खालीपन महसूस होता था.

वीडियो काल पर एकदूसरे को देख कर कुछ पल की खुशी मिलती, लेकिन वह कभी उस गरमाहट की जगह नहीं ले पाती थी, जो आमनेसामने मिलने में होती है.

वे स्क्रीन पर एकदूसरे को देखते, मुसकराते, कुछ पल के लिए भूल जाते कि उन के बीच हजारों किलोमीटर की दूरी है, लेकिन जैसे ही वीडियो काल खत्म होती, अकेलापन फिर से घेर लेता.

त्योहार आते, दोस्त मिलते, हर कोई अपनेअपने पार्टनर के साथ होता और करण व प्रिया को दूरियों का दर्द और ज्यादा महसूस होता.

दीवाली पर जब सब अपने परिवार के साथ होते, तो करण को प्रिया की कमी खलती थी, उस के साथ पटाके जलाने की याद आती थी. प्रिया को होली पर करण के साथ रंग खेलने की याद आती थी.

हर उत्सव उन्हें उस खालीपन का एहसास कराता जो उन की जिंदगी में आ गया था. वे एकदूसरे को तसवीरें भेजते, शुभकामनाएं देते, पर उन शुभकामनाओं में एक अनकहा दर्द छिपा होता था.

करण को याद आता वह दिन, जब प्रिया को बुखार हुआ था और वह पूरी रात उस के कमरे के बाहर बैठा रहा था, बस उस की खैरियत जानने के लिए. वह एक पल के लिए भी उस से दूर नहीं हुआ था.

प्रिया को याद आता वह वक्त, जब करण ने उस के जन्मदिन पर आधी रात को गिटार बजा कर गाना सुनाया था और उस की आंखों में चमक भर दी थी.

ये छोटीछोटी बातें, ये छोटेछोटे पल, जो अब सिर्फ यादों में थे, उन्हें और भी तड़पाते थे. फोन पर बात करते हुए भी कभीकभी चुप्पी छा जाती. कहने को बहुतकुछ होता, दिल में हजार बातें उमड़तीं, लेकिन दूरियों का बोझ इतना भारी था कि शब्द गले में अटक जाते.

संवाद की कमी नहीं थी, बल्कि भावनाओं को जाहिर करने की ताकत कमजोर होती जा रही थी. वे जानते थे कि कुछ बदल रहा है, लेकिन उसे रोकने में नाकाम थे.

एक शाम, करण छत पर अकेला बैठा था. चांदनी रात थी और तारे टिमटिमा रहे थे, मानो उस की उदासी को और बढ़ा रहे हों. उस ने प्रिया को फोन किया. प्रिया भी अपने बालकनी में बैठी थी, जहां से शहर की रोशनी दिख रही थी.

‘‘प्रिया…,’’ करण ने धीमी आवाज में कहा, ‘‘कब मिलेंगे हम?’’ उस की आवाज में एक अनकहा दर्द था, एक गहरी चाहत थी.

प्रिया की आंखें भर आईं, ‘मुझे नहीं पता करण,’ उस ने हिचकिचाते हुए, आंसुओं को रोकते हुए कहा, ‘बस, इतना जानती हूं कि मुझे तुम्हारा इंतजार रहेगा.’

प्रिया के शब्दों में एक उम्मीद की किरण छिपी थी, एक भरोसा था कि भले ही राहें अनिश्चित हों, पर दिल में इंतजार कायम है.

उन की प्रेमकहानी अब केवल आवाजों और मीठे शब्दों पर टिकी थी. बिछोह का यह लंबा दौर उन्हें मजबूत बना रहा था या कमजोर, यह उन्हें पता नहीं था. वे एक अनजाने रास्ते पर चल रहे थे, जहां हर कदम के साथ चुनौतियां बढ़ रही थीं. लेकिन एक बात तय थी, उन के दिलों में एकदूसरे के लिए जो गहरा प्यार था, वह इन दूरियों से भी कहीं ज्यादा ताकतवर था.

हर फोन काल, हर मैसेज, हर वीडियो काल इस बात का सुबूत था कि उन का प्यार अभी भी जिंदा है, धड़क रहा है, बस इंतजार था उस दिन का, जब ये दूरियां मिटेंगी और बिछोह की यह दर्दनाक सांझ, मिलन के सुनहरे सूरज में बदल जाएगी.

वे जानते थे कि उन की कहानी अभी अधूरी है और मिलन ही उस का सुखद अंत होगा. वे इस अग्निपरीक्षा से गुजर रहे थे, यह जानते हुए कि उन का प्यार इस दूरी से और भी अटूट हो कर उभरेगा.

समय किसी के लिए नहीं रुकता और करण और प्रिया के लिए भी नहीं रुका. बिछोह की सांझ धीरेधीरे एक लंबी रात में बदल रही थी, एक ऐसी रात जिस की सुबह अनिश्चित थी.

शुरुआती महीनों का वह जोश, वह घंटों की बातचीत, अब यादों का हिस्सा बनने लगी थी. जिंदगी की आपाधापी में दोनों अपनेअपने शहर में अपनी जिंदगी को आगे बढ़ाने लगे.

जिम्मेदारियां बढ़ीं, कैरियर की दौड़ तेज हुई और इसी के साथ उन के बीच की बातचीत भी कम होती गई. जो फोन की घंटियां दिन में कभी भी बज उठती थीं, वे अब हर 2-3 दिन में एक बार बजने लगीं.

फिर हफ्ते में एक बार और देखते ही देखते यह सिलसिला महीने 2 महीने और यहां तक कि 4 महीने में भी कभीकभार ही बात होने तक सीमित हो गया. और वह भी बस ‘हायहैलो’ या किसी औपचारिक शुभकामना तक.

दिल की बात कहना तो दूर, हालचाल पूछने का भी समय मानो सिमट गया था. उन के बीच की दूरियां केवल भौगोलिक नहीं रह गई थीं, बल्कि भावनात्मक और मानसिक दूरियां भी बढ़ती जा रही थीं.

इस तरह 2 साल बीत गए. ये 2 साल उन की जिंदगी में बहुत बड़े बदलाव ले कर आए थे.

करण ने अपने पिता के साथ मिल कर कारोबार में पूरी तरह से खुद को झोंक दिया था. पहाड़ों की ठंडी हवाओं में उस का कारोबार फलताफूलता रहा और वह व्यापारिक दांवपेंच सीखने में बिजी हो गया था.

उस ने अपनी कंपनी को नए मुकाम पर पहुंचाने के लिए दिनरात एक कर दिया था. उस की जिंदगी में अब केवल व्यापारिक सौदे, बैलेंस शीट और भविष्य की योजनाएं ही रह गई थीं.

वह सुबह जल्दी उठता, देर रात तक काम करता और हर नया प्रोजैक्ट उस के लिए एक चुनौती और एक जुनून बन गया था. उस ने खुद को इतना ज्यादा बिजी कर लिया था कि पुरानी यादों को सोचने का भी उसे समय नहीं मिलता था या शायद वह जानबूझ कर उन्हें दबाना चाहता था.

उस के दोस्तों ने भी देखा कि करण अब पहले जैसा नहीं रहा था. वह थोड़ा शांत और ज्यादा करोबारी हो गया था, लेकिन वे सम?ाते थे कि यह उस के कैरियर की जरूरत है.

वहीं, प्रिया ने फैशन के क्षेत्र में अपना कैरियर बनाना शुरू किया था. मुंबई की चमकदमक से भरी दुनिया उसे अपनी ओर खींच रही थी.

वह फैशन डिजाइनिंग के बारीक पहलुओं को सीखने में मगन हो गई थी. नएनए डिजाइन बनाना, फैशन शो में हिस्सा लेना और बड़ेबड़े ब्रांड्स के साथ काम करना, यह सब उस की जिंदगी का हिस्सा बन गया था.

उस के आसपास हमेशा एक ग्लैमरस माहौल रहता था, जहां नए चेहरे, नई कहानियां और नई इच्छाएं थीं.

फैशन की दुनिया की चकाचौंध में वह इस कदर खो गई कि उसे करण की याद ही नहीं रही. उस के नए दोस्त थे, नई पार्टियां थीं और एक नई तेजतर्रार जिंदगी थी, जिस में पुरानी यादों के लिए शायद ही कोई जगह बची थी.

करण की शांत, पहाड़ी जिंदगी उस के लिए एक दूर की याद बन गया था, जिसे उस ने अपनी नई, ग्लैमरस दुनिया के पीछे कहीं छोड़ दिया था. उसे लगता था कि उस ने एक नई पहचान बना ली है और उसे पीछे मुड़ कर देखने की जरूरत नहीं है.

2 साल बाद, जिंदगी ने एक बार फिर अपना खेल खेला. दिल्ली के एक फाइव स्टार होटल में एक भव्य समारोह का आयोजन हुआ.

यह एक बड़ा औद्योगिक और व्यावसायिक कार्यक्रम था, जहां देशभर के विभिन्न क्षेत्रों के जानेमाने लोग जमा हुए थे. करण अपनी कंपनी का प्रतिनिधित्व करने आया था और प्रिया अपने फैशन ब्रांड की प्रमोशन के लिए.

होटल का बैंक्वैट हाल रोशनी से जगमगा रहा था. हलकी धीमी संगीत की धुन और लोगों की फुसफुसाहट से हाल में एक जीवंत माहौल था.

करण एक कोने में खड़ा अपने बिजनैस सहयोगियों से बात कर रहा था, जब उस की नजर भीड़ में एक जानीपहचानी आकृति पर पड़ी. एक पल के लिए उसे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ.

वह प्रिया थी. पहले से भी ज्यादा खूबसूरत, आत्मविश्वासी और चमकदार. उस ने एक शानदार, डिजाइनर ड्रैस पहन रखी थी और उस के आसपास लोगों का एक छोटा समूह था, जो उस की बातों पर हंस रहा था और उस की तरफ आकर्षित दिख रहा था. उस के चेहरे पर एक अलग ही चमक थी, जो उस की कामयाबी और आत्मविश्वास को दिखा रही थी.

करण के दिल की धड़कनें अचानक तेज हो गईं. पिछले 2 सालों में उस की जिंदगी में बहुतकुछ बदल गया था, लेकिन प्रिया के लिए उस के मन में जो भावनाएं थीं, वे कहीं गहरे दबी हुई थीं, एक अनदेखी नदी की तरह जो अब अचानक सतह पर आ गई थीं.

उस ने महसूस किया कि उस की यादें, जो समय की धूल से ढकी थीं, एक ?ाटके में ताजा हो गई हैं. कालेज के दिन, प्रिया की हंसी, उन दोनों के साथ बिताए हर पल की तसवीर उस की आंखों के सामने कौंध गई.

उसे लगा जैसे उस ने इतने समय से कुछ खोया हुआ था और आज वह उस के सामने है. वह तुरंत प्रिया से बात करना चाहता था, उसे गले लगाना चाहता था, उस से पूछना चाहता था कि इतने समय से वह कहां थी, कैसी थी और क्या वह उसे भूली तो नहीं थी.

करण धीरेधीरे भीड़ को चीरता हुआ प्रिया की तरफ बढ़ा. उस के कदम भारी थे और उस का दिल एक अजीब से डर से कांप रहा था.

जैसे ही वह उस के करीब पहुंचा, उस ने देखा कि प्रिया लोगों से घिरी हुई थी. हर कोई उस से बात करना चाहता था, उस की तारीफ कर रहा था और उस के साथ तसवीरें खिंचवा रहा था.

प्रिया भी मुसकराते हुए उन से बातचीत कर रही थी, पूरी तरह अपनी नई दुनिया में लीन, अपनी कामयाबी की चमक में डूबी हुई. उस के चेहरे पर एक अलग ही आत्मविश्वास था, जो करण ने पहले कभी नहीं देखा था.

करण ने कई बार कोशिश की कि प्रिया की नजर उस पर पड़े, लेकिन प्रिया की आंखें उसे अनदेखा करती रहीं. वह इतनी बिजी थी कि शायद उसे अपने आसपास किसी और की परवाह ही नहीं थी या शायद वह उसे पहचान ही नहीं पाई.

करण वहीं खड़ा रहा, उम्मीद करता रहा कि प्रिया उसे पहचान लेगी और उस से बात करने आएगी. उस ने इंतजार किया, हर पल को एक सदी की तरह महसूस करते हुए.

5 मिनट, 10 मिनट, फिर 15 मिनट. लेकिन प्रिया अपनी धुन में मगन रही. वह लगातार लोगों से घिरी हुई थी और कभी भी उसकी तरफ मुड़ी ही नहीं, न ही उस की ओर एक नजर डाली.

करण का दिल भारी होता जा रहा था. उसे लग रहा था जैसे प्रिया उसे जानबूझ कर अनदेखा कर रही हो या शायद वह सच में उसे भूल चुकी हो या फिर शायद उस ने उसे पहचाना ही नहीं. उस के मन में एक अजीब सी टीस उठी, एक दर्द जो उसने सोचा था कि अब शांत हो चुका है, वह फिर से जाग गया था.

करण को कालेज के दिन याद आए, जब प्रिया उस से मिलने के लिए किसी भी भीड़ से निकल आती थी, चाहे कितनी भी रुकावटें क्यों न हों. उसे याद आया कि कैसे प्रिया उस की एक आवाज पर दौड़ी चली आती थी, कैसे उस की हर खुशी और हर दर्द में वह उस के साथ खड़ी होती थी.

और अब, वह उस के सामने खड़ा था, बस कुछ ही कदमों की दूरी पर और प्रिया उसे पहचान भी नहीं पा रही थी या शायद पहचानना नहीं चाहती थी. यह एहसास उसे अंदर से तोड़ रहा था.

उसे लगा जैसे वह इस चमकदमक भरी दुनिया में एक अजनबी है, जिसे प्रिया अब नहीं पहचानती, एक भूला हुआ अध्याय.

काफी देर तक इंतजार करने के बाद, जब करण को यह साफ हो गया कि प्रिया उस से बात करने नहीं आएगी, तो उस का दिल पूरी तरह से टूट गया. एक गहरी निराशा ने उसे घेर लिया. उस के चेहरे पर छाई मुसकान फीकी पड़ गई.

उस के मन में एक भयानक खालीपन छा गया. उसे लगा कि उस ने जिसे इतना प्यार किया था, वह अब उस के लिए बस एक याद बन चुकी है और शायद प्रिया के लिए वह अब कुछ भी नहीं रहा. वह बेमन से, भारी कदमों से समारोह से बाहर निकल गया.

दिल्ली की ठंडी हवा करण के गरम आंसुओं को पोंछने की कोशिश कर रही थी, लेकिन दिल में उठे तूफान को शांत करना आसान नहीं था. उस की उम्मीदें बिखर चुकी थीं और उसे लगा कि शायद उनका रिश्ता सचमुच खत्म हो चुका है या फिर कभी था ही नहीं, बस एक भरम था.

वह अपनी कार में बैठा और चुपचाप होटल से दूर चला गया, अपने टूटे हुए दिल और बिखरी हुई यादों के साथ.

करण को एहसास हुआ कि जिंदगी बदल गई है. लोग बदल गए हैं. और शायद सब से बड़ा बदलाव वह था, जो उन के रिश्ते में आया था.

वह जानता था कि इस घटना के बाद, अब उसे प्रिया के लिए अपनी भावनाओं को हमेशा के लिए दफन करना होगा.

यह बिछोह की सांझ अब एक स्थायी रात में बदल चुकी थी, जिस की कोई सुबह नहीं थी. Hindi Family Story

Story In Hindi: हम तो जिनावर हैं

Story In Hindi: फैक्टरी में दूसरी पाली रात को 1 बजे खत्म होती थी. अजय अपनी कार से कंपनी के मकान में जा रहा था. तरक्की होने के बाद उसे पाली पूरी के बाद भी देर तक रुकना पड़ता था, इसलिए कंपनी की टाउनशिप में जाने के समय रात को ज्यादा भीड़ नहीं मिलती थी.

घर से पहले एक बाजार था, जो बंद हो गया था. उमस भरी गरमी का मौसम था, पर कार की खिड़की में से आते ठंडी हवा के ?ांके अजय को अच्छे लग रहे थे.

तभी बाजार से आगे सुनसान जगह पर किसी शख्स को औंधा पड़े हुए देख कर एक बार तो अजय ने सोचा कि पड़ा रहने दो, मुझे क्या करना है. पर तब तक कार उस के नजदीक पहुंच गई.

कार की हैडलाइट की रोशनी में उस ने देखा, तो वह शख्स कंपनी की यूनिफौर्म पहने हुए था.

अजय कार रोक कर उस शख्स के पास गया, जो नशे में इतना बेहोश था कि उसे कोई भी रात के समय अपनी गाड़ी से कुचल कर जा सकता था.

अजय को वह आदमी कुछ जानापहचाना सा लग रहा था. जा कर उसे सीधा किया तो वह उस का पुराना पड़ोसी बलभद्र सिंह था, जिसे सभी बल्लू सिंह के नाम से बुलाते थे.

अजय ने जैसेतैसे बल्लू सिंह को उठा कर कार में लादा और उस के घर छोड़ने के लिए कार आगे बढ़ाई.

बल्लू सिंह अच्छे घर का था. अजय से उम्र में बड़ा होने के बावजूद वह और उस का परिवार, जिस में उस की पत्नी और 2 बच्चे शामिल थे, उसे बहुत इज्जत देते थे.

अजय ने देखा कि बल्लू सिंह की पत्नी कार की आवाज सुन कर डरते हुए घर का दरवाजा खोल रही थी. उसे लग रहा था कि कोई कर्ज मांगने वाला तो नहीं आ गया है.

अजय को देख कर बल्लू सिंह की पत्नी को राहत महसूस हुई और अजय के साथ बल्लू सिंह को कार से उतार कर घर के अंदर ले जाने में मदद करने लगी.

बल्लू सिंह को अजय बिस्तर पर लिटाने लगा, तब उस की पत्नी ने आंसू बहाते हुए बिना कुछ कहे उस की तरफ हाथ जोड़ कर मूक नजरों से उस का धन्यवाद किया. अजय बिना कुछ कहे चुपचाप चला आया.

बल्लू सिंह ज्यादा पढ़ालिखा नहीं था, लेकिन बहुत ही अनुभवी और कुशल क्रेन आपरेटर था. इसी वजह से बड़े अफसर कोई भी बहुत जरूरी और रिस्की काम होने पर उसे ही याद करते थे खासकर प्रोडक्शन ईयर पूरा होने की आखिरी तिमाही में जनवरी से मार्च के समय जब रातभर काम चलता था.

रात की पाली के मुलाजिमों को ओवरटाइम करना पड़ता था, जिस की भुगतान की रकम कई बार तनख्वाह से ज्यादा हो जाती थी.

जैसा कि मेहनतकश तबका होता है, बल्लू सिंह को शराब पीने का शौक लग गया था, जो पहले तो कभीकभार पीने तक था, लेकिन ज्यादा पैसे हाथ में आने पर शराब की मात्रा और पीने का दौर बढ़ने लगा था. साथ में 2-4 यार भी मिल जाते थे, क्योंकि पीने का मजा तो यारों के साथ ही आता है.

कभीकभार पीने वाले बल्लू सिंह को अब रोज पीने की आदत हो गई थी. पहले शाम को ही पीता था, पर अब दिन में भी पीने लग गया था. लेकिन उस की क्रेन चलाने की कुशलता में कमी नहीं आई थी, बल्कि कई बार तो काम पूरा होने पर अफसर खुश हो कर अपनी जेब से रुपए दे कर कहते थे, ‘बल्लू सिंह, जाओ ऐश करो.’

ऐसे मौके रात को टैस्टिंग जैसे काम होने पर अकसर आते थे, क्योंकि टैस्टिंग कब होगी इस का निश्चित समय नहीं रहता था, इसलिए बल्लू सिंह को पहले ही रात को रुकने के लिए बोल देते थे कि यह काम तो बल्लू सिंह ही करेगा, साथ ही उसे ताकीद भी करते थे कि काम पूरा होने के बाद ही पीना.

हर समय हंसीमजाक करने वाला बल्लू सिंह धीरेधीरे शराब का आदी होने लगा. अब वह शराब की दुकान खुलते ही वहां पहुंचने लगा. जो दोस्त रात की पाली वाले होते थे, उन के साथ दिन में और दिन की पाली वालों के साथ रात में महफिल जमने लगी.

कहते हैं कि जब बुराई आती है तब अकेली नहीं आती है. वह दूसरे बुराइयों को साथ ले कर आती है.

शराब के साथ जर्दे वाला पान, गुटखा, सिगरेट और कभीकभी शराब पीने के लिए फैक्टरी से बाहर न जाने के चलते फैक्टरी के अंदर ही गांजे की चिलम का सुट्टा मारने वालों की संगति करने लगा. इन सब वजहों से नौकरी से छुट्टी ज्यादा होने लगी. जब छुट्टी नहीं रही, तो विदाउट पे करने लगा.

बल्लू सिंह को तकरीबन सालभर ओवरटाइम करना पड़ता था. इस वजह से तनख्वाह में कमी की भरपाई हो जाती थी, लेकिन कब तक. उसे अपने साथियों से तनख्वाह ज्यादा मिलती थी, पर अब उस के जुआ खेलने वाले नए साथियों का साथ भी मिलने लगा, जो तनख्वाह ज्यादा मिलने के चलते उसे जुआ खेलने के लिए उकसाने लगे.

शराब का नशा जुए की जीतहार के रोमांच से और बढ़ जाता था, जिस में बल्लू सिंह को बहुत मजा आने लगा. इन सब बुराइयों के एकसाथ आने से वह पत्नी के हाथ में जो तनख्वाह रखता था, उस में कमी आने लगी.

पत्नी समझदार, पढ़ीलिखी, अच्छे संस्कार की थी. उस ने घर और बच्चों को कम पैसों में संभाला, लेकिन समुद्र के पानी को बारबार उलीचने लगो तो समुद्र भी खाली होने लगेगा.

एक समय ऐसा आया कि बल्लू सिंह की तनख्वाह उस के शौक और नशे के आगे कम पड़ने लगी. इस वजह से रात को जब वह पी कर आता, तो घर में कलह होने लगती. अपने गुस्से और बेबसी को वह पत्नी की पिटाई कर के उतारता और फिर शराब की दुकान पर चला जाता.

कम तनख्वाह और बड़ते शौक के तनाव के चलते काम से कई दिनों तक गैरहाजिर रहने से बल्लू सिंह सूदखोरों, लोकल दादाओं के चंगुल में फंस गया, जो महीने की पहली तारीख को उस की तनख्वाह छुड़ा लेते थे और फिर उसे ही ब्याज पर रुपए इसी शर्त पर देते थे कि उसे शराब भी पिलानी पड़ेगी.

बल्लू सिंह को फैक्टरी जा कर काम करने में भी डर लगने लगा कि जो पैसा वह कमाएगा वह सूदखोर दादा ले जाएंगे. इसी डर के चलते वह फैक्टरी कभी जाता, तो कभी नहीं जाता. जो तनख्वाह मिलती, उस से अपने पीने का शौक पूरा करता और घर में फाकाकशी की नौबत आने लगी.

बच्चों की पढ़ाई की फीस जमा नहीं होने के चलते स्कूल वालों ने बच्चों का नाम काट दिया. तब बच्चों को उस ने सरकारी स्कूल में डाल दिया, जहां फीस कम लगती थी.

अब समस्या पीने की थी, जिसे उस ने शराब की दुकान पर सफाई कर के हल कर लिया था. दुकान वाला उसे सफाई करने के बदले शराब पिला देता था.

ब्याज वाले घर पर आ कर तगादा करते और बल्लू सिंह की पत्नी को धमकियां देने लगे, क्योंकि वह घर पर मिलता ही नहीं था. हमेशा हंसीमजाक करने वाले बल्लू सिंह का यह हाल हो जाएगा, किसी ने नहीं सोचा था.

एक रात की बात है. बल्लू सिंह की औरत ने अपने बच्चों को अजय के घर भेजा. एक बच्चे ने रोते हुए बताया, ‘‘अंकल, हमारे पापा मम्मी को मार रहे हैं. आप आ कर उन्हें बचा लो.’’

अजय तुरंत बच्चों के साथ गया और बल्लू सिंह पर चिल्लाया, ‘‘यह तुम क्या कर रहे हो बल्लू सिंह… क्या अपनी बीवी को इस तरह मारते हैं… शराब ने तुम्हें बिलकुल जानवर बना दिया है.’’

बल्लू सिंह ने अजय की आवाज सुन कर पानी बीवी को मारना बंद किया और कहने लगा, ‘‘भाई साहब, आप जानते नहीं कि यह औरत मेरी इज्जत खराब कर रही है. पड़ोस से पैसे उधार ले कर आई है. मैं क्या मर गया हूं, कमाता नहीं हूं…’’

बल्लू सिंह की औरत कहने लगी, ‘‘भाई साहब, कल से बच्चे भूखे हैं. घर में कुछ नहीं है. पिछले एक महीने से बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं.’’

यह सुन कर अजय गुस्से से कहने लगा, ‘‘बल्लू सिंह, तुम्हें अपने बीवी और बच्चों का जरा सा भी ध्यान नहीं है.’’

बल्लू सिंह उस के आगे हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया और बोला, ‘‘साहब, हम तो जिनावर हैं. हम पढ़ेलिखे नहीं हैं. फिर भी इस औरत को इतना तो सोचना चाहिए कि अपने आदमी की इज्जत को बना कर रखे.’’

बल्लू सिंह अपनी बेबसी को, अपनी कमी को, पति की इज्जत को ढकने के नाम पर पत्नी को मार कर दूर करने की कोशिश कर रहा था.

अजय ने कहा, ‘‘वह इज्जत कैसे बनाएगी, इज्जत तो तुम गिरा रहे हो. अपने बीवीबच्चों को भूखा रख रहे हो, उन्हें स्कूल नहीं भेज पा रहे हो. तुम्हारी पत्नी कब तक सब्र करेगी…’’

बल्लू सिंह बस नशे में एक ही बात कहता रहा, ‘‘साहब, हम तो जिनावर हैं. ये बड़ीबड़ी बातें हमें नहीं आती हैं.’’

अजय ने बल्लू सिंह की औरत को अपनी जेब से रुपए निकाल कर दिए और कहा, ‘‘सब से पहले खाने का कुछ सामान ले कर आओ. बच्चों और बल्लू सिंह को भी खिलाओ. और तुम भी भूखी मत रहना, खाना जरूर खाना.’’

बल्लू सिंह चाहे कितना भी खराब था, लेकिन अजय की बहुत इज्जत करता था. दूसरे दिन अजय सुबह की पाली होने के चलते फैक्टरी आ गया था. लंच में घर जाने पर उस की पत्नी ने बताया, ‘‘बल्लू भाई साहब आ कर माफी मांग रहे थे. मैं ने उन से कहा कि जब अजय आएंगे तब जो कहना उन से कहना.’’

दिनोंदिन बल्लू सिंह के घर की हालत खराब होती जा रही थी. वह घर की जिम्मेदारियों से बेपरवाह हो गया था. उसे सिर्फ एक ही चीज चाहिए थी, वह थी शराब, जिस के लिए वह कुछ भी करने को तैयार रहता था.

किसी भी तरह से वह अपने लिए शराब का बंदोबस्त कर लेता था, लेकिन उस के बीवीबच्चों का क्या होगा, नशे के आगे वह कुछ सोचना भी नहीं चाहता था.

बल्लू सिंह, जो कभीकभार फैक्टरी चला जाता था, वह भी उस ने बंद कर दिया था, क्योंकि उसके साथी क्रेन आपरेटर और स्लिंग लगाने वाले सिलिंगर उस को ताना मारने लगते थे कि बल्लू सिंह के बीवीबच्चे भूखे मर रहे हैं, उस के बच्चों का नाम स्कूल वालों ने काट दिया है, पर उसे तो सिर्फ शराब से मतलब है, उसे अपने परिवार की कोई चिंता नहीं है.

यह सब सुन कर बल्लू सिंह को सब के सामने शर्म आने लगती. वह किसी से भी ब्याज पर उधार ले कर तुरंत आउट पास ले कर शराब पीने के लिए फैक्टरी से बाहर चला जाता, जैसे शराब पीना उन के तानों का जवाब हो.

एक दिन की बात है. बल्लू सिंह की दूसरी पाली थी. वह भी आज काम पर आ गया था, लेकिन उस का कोई भरोसा नहीं था कि वह कब शराब पीने के लिए फैक्टरी से बाहर चला जाएगा.

बल्लू सिंह फैक्टरी में टैस्टिंग वाले पार्ट्स को टैस्टिंग एरिया में ले जाने के लिए क्रेन से उठाते हुए देख रहा था कि तभी उसे लगा कि पार्ट्स को उठाने के लिए स्लिंगर ने एक स्लिंग (वायर रोप) ठीक से नहीं लगाई है, क्योंकि वह एक कुशल क्रेन आपरेटर था, जिसे ऊपर क्रेन के केबिन में बैठ कर जल्दी पता चल जाता था कि स्लिंग ठीक से लगी है या नहीं.

बल्लू सिंह ने अपने साथी स्लिंगर को आवाज दे कर चेतावनी दी कि स्लिंग सही नहीं लगी है, पर तब तक पार्ट ऊपर उठ चुका था. कुछ काम की जल्दबाजी, कुछ स्लिंगर का ध्यान न देना, एक पार्ट स्लिंग से तेजी से लहराते हुए नीचे गिरने लगा.

यह सब बल्लू सिंह देख रहा था. उस ने अजय को दौड़ कर धक्का दिया. अजय दूर जा कर गिरा और वह भारी हिस्सा बल्लू सिंह पर गिर गया.

पूरी वर्कशौप में पहले तो सन्नाटा छा गया कि आज तो बल्लू सिंह गया. तब तक अजय खड़ा हो कर बल्लू सिंह के पास पहुंचा. वैसे भी वह शिफ्ट इंचार्ज था. उस ने तुरंत पास खड़े एक मुलाजिम को एंबुलैंस के लिए फोन करने को कहा.

इस बीच बाकी मुलाजिमों ने देखा कि बल्लू सिंह के पैर से खून का फव्वारा निकल रहा था. तभी उस के कराहने की आवाज आई.

अजय भी बल्लू सिंह की हालत देख कर डर गया था और सोच रहा था कि आज बल्लू सिंह नहीं होता, उस का बचना मुश्किल था.

तब तक एंबुलैंस के सायरन की आवाज आने लगी. बल्लू सिंह दर्द और खून बहने के चलते बेहोश हो गया था. मुलाजिमों और अजय ने मिल कर उसे एंबुलैंस तक उठा कर अंदर लिटा दिया.

एंबुलैंस के साथ आए मैडिकल स्टाफ ने प्राथमिक उपचार करना शुरू कर दिया. कंपनी के हौस्पिटल में जाते ही बल्लू सिंह को तुरंत आपरेशन थिएटर में ले जाया गया और उस के आपरेशन की तैयारी शुरू होने लगी.

अजय ने एक मुलाजिम को बल्लू सिंह के घर उस की पत्नी के साथ साथ अपनी पत्नी को भी खबर करने के लिए भेज दिया था. उस समय मोबाइल फोन की सुविधा नहीं थी.

थोड़ी देर बाद अजय की पत्नी बल्लू सिंह की पत्नी और उस के दोनों बच्चों को साथ ले कर आपरेशन थिएटर के बाहर आ गई.

अजय ने अपनी पत्नी को सारी बात बताई और कहा कि बल्लू सिंह ने उस की जान बचाने के लिए अपनी जान को दांव पर लगा दिया. आज बल्लू सिंह को कुछ हो जाता तो अजय अपनेआप को जिंदगीभर माफ नहीं करता.

बल्लू सिंह की पत्नी अपने बच्चों को अपनी छाती से चिपका कर अजय की बात सुनते हुए बस रो रही थी. उस के मुंह से एक शब्द नहीं निकला.

आपरेशन पूरा होने में तकरीबन 2 घंटे से ज्यादा लग गए. डाक्टर ने बाहर आ कर कहा कि आपरेशन ठीक से हो गया है. बल्लू सिंह के पैर में रौड लगा दी है, पर खून ज्यादा बहने के चलते उसे तुरंत खून चढ़ाना होगा.

अजय ने अपना खून के लिए कहा, पर उस का ब्लड ग्रुप मैच नहीं हुआ. तब अजय की पत्नी ने कहा, ‘‘आप मेरा ब्लड टैस्ट करें.’’

अजय की पत्नी का ब्लड ग्रुप मैच हो गया और उस ने अपना खून दे दिया. डाक्टर ने कहा कि और खून की जरूरत पड़ेगी, पर वह कल सुबह तक भी मिल जाएगा, तो कोई चिंता की बात नहीं है.

अजय ने अपने अफसरों को पूरे हालात के बारे में बता दिया था. अफसरों ने तुरंत रात की पाली के कुछ मुलाजिमों को, जिन का ब्लड ग्रुप बल्लू सिंह के ब्लड ग्रुप से मैच हो सकता था, हौस्पिटल भेज दिया.

इस तरह की सामाजिक जिम्मेदारी निभाने में मजदूर तबका हमेशा आगे रहता है. उन मुलाजिमों का ब्लड टैस्ट कर के उन के खून को हौस्पिटल के ब्लड बैंक में रखवा दिया था, जो सुबह काम आता.

उन मुलाजिमों को अजय ने अपने घर जा कर आराम करने के लिए कहा, तो उन्होंने यह कहते हुए मना कर दिया कि बल्लू सिंह के होश में आने के बाद ही वे घर जाएंगे.

रातभर अजय, उस की पत्नी, बल्लू सिंह का परिवार और साथी मुलाजिम आईसीयू के बाहर बैठे उस के होश में आने का इंतजार करने लगे.

सुबह जब बल्लू सिंह को होश आया, तभी डाक्टर का राउंड शुरू होने लगा. अजय ने डाक्टर से बल्लू सिंह के बारे में जानकारी ली.

डाक्टर ने कहा कि आपरेशन तो हो गया है, लिहाजा चिंता की कोई बात नहीं है, लेकिन इसे अपने पैरों पर खड़े होने में 3 महीने लग जाएंगे. तब भी यह पूरी तरह काम करेगा, ऐसा जरूरी नहीं है, क्योंकि पैर में अब रौड लग गई है, तो वह ओरिजनल जैसा काम नहीं करेगा.

3 दिन बाद बल्लू सिंह बात करने की हालत में आया, क्योंकि उसे दर्द और नींद के इंजैक्शन दिए जा रहे थे.

अजय की पत्नी ने अजय के कहने पर बल्लू सिंह की पत्नी को घरखर्च के लिए पैसे दे दिए थे. वह मना कर रही थी, लेकिन उस ने कहा कि ले लो अभी बहुत जरूरत पड़ेगी.

शाम को अजय अपनी पत्नी को साथ ले कर बल्लू सिंह को देखने हौस्पिटल पहुंचा. वहां बल्लू सिंह की पत्नी उस के पास बैठ कर फल खिला रही थी. अजय को देख कर वह खड़ी हो कर नमस्ते करने लगी. बल्लू सिंह ने भी उसे नमस्ते किया.

अजय ने पूछा, ‘‘अब कैसे हो तुम बल्लू सिंह?’’

‘‘सब आप की मेहरबानी है साहब.’’

अजय ने कहा, ‘‘बल्लू सिंह, तुम ने ठीक नहीं किया. मेरी जान बचाने के लिए अपनी जान की परवाह भी नहीं की. अगर तुम्हें कुछ हो जाता, तो इन बच्चों का क्या होता…’’

बल्लू सिंह कहने लगा, ‘‘साहब, हम मर जाते तो अच्छा होता. अपने बीवीबच्चों की जिनगी हमारे चलते खराब हो रही थी. हमारे मरने पर इन को कंपनी से बहुत रुपया मिल जाता और पैंशन भी मिल जाती, जिस से यह अपना और बच्चों का पेट पाल लेती.

‘‘हमारी जिनगी की कोई कीमत नहीं है. हमारे में और जिनावर में क्या फर्क है साहब, आखिर हम जिनावर…’’

बल्लू सिंह के बात पूरी करने से पहले ही अजय ने उस के मुंह पर हाथ रख दिया और कहने लगा, ‘‘तुम जिनावर नहीं हो बल्लू सिंह. जो किसी की जान बचाने के लिए अपनी जान की परवाह नहीं करता है, वह कभी जिनावर नहीं हो सकता है, वह अच्छा इनसान होता है.’’

अजय ने बल्लू सिंह की भाषा में जानवर को जिनावर कहने लगा. यह सुन कर बल्लू सिंह के चेहरे पर वही पुराने वाले बल्लू सिंह की मासूम मुसकराहट उभरने लगी.

अजय ने कहा, ‘‘बल्लू सिंह, मेरी जान तुम ने बचाई है, इसलिए मेरी कसम खा कर कहो कि आज से शराब, जुआ सब बंद कर दोगे और पुराने वाला माहिर क्रेन औपरेटर बन कर दिखाओगे.’’

बल्लू सिंह ने हाथ जोड़ कर वादा किया. यह सुन कर अजय की पत्नी की आंखों में आंसू आ गए.

उधर, खुशी के मारे बल्लू सिंह की पत्नी के आंसू रुक नहीं रहे थे. अजय की पत्नी उस के आंसू पोंछ कर उसे चुप कराने लगी. Story In Hindi

Romantic Hindi Story: इश्क की उड़ान

Romantic Hindi Story: कहते हैं कि जब कोई इश्क में होता है, तो उसे रंगीन ख्वाबों के नए पंख लग जाते हैं और वह अपनी ही बनाई दुनिया के आसमान में उड़ने लगता है. कल्पना और अजीत के इश्क की यह उड़ान उन्हें दिल्ली से भोपाल ले आई थी.

दिल्ली के लक्ष्मी नगर इलाके में पड़ोसी रहे कल्पना और अजीत के लिए भोपाल जाने की यह राह कहने को आसान थी, पर वहां उन के प्यार का एक अलहदा ही इम्तिहान होना था.

हुआ यों कि भोपाल आने से पहले दिल्ली में एक रात अजीत ने कल्पना को मोबाइल फोन पर बताया, ‘‘कल्पू, अब हमें अपने प्लान को आखिरी अंजाम तक ले जाना होगा. मुझे लगता है कि हम दोनों के घर वालों को हमारे प्यार की भनक लग गई है और इस से पहले कि वे जातपांत का वही पुराना राग अलापें, हमें यहां से कहीं दूर चले जाना होगा.’’

‘पर हम जाएंगे कहां?’ कल्पना ने सीधा सवाल किया.

‘‘देखो, हम इश्क के मारों की तरह सीधा मुंबई तो भागेंगे नहीं,’’ अजीत ने कहा.

‘तो मेरा सपनों का राजकुमार मुझे किस शहर में ले जा कर अपने दिल और घर की रानी बनाएगा?’ कल्पना ने ठिठोली की.

‘‘कल्पू, मैं ने सोच लिया है कि हम दोनों भोपाल चलेंगे. वहां मेरा एक दोस्त संजीव रहता है. वह हम दोनों को कोई काम भी दिला देगा और हमारी कोर्ट मैरिज भी करा देगा,’’ अजीत ने कहा.

‘ठीक है, मैं सारी तैयारी कर के रखूंगी,’ कल्पना ने कहा.

24 साल का अजीत ग्रेजुएशन कर चुका था और पढ़ाई में भी बहुत अच्छा था. वह बहुत सुलझा हुआ नौजवान था. वह हद से ज्यादा मेहनती भी था. रंगरूप से भी वह ठीक था. बस, एक ही कमी थी कि वह दलित समाज से था और ब्राह्मणों की लड़की कल्पना को अपना दिल दे बैठा था.

दूसरी तरफ कल्पना 22 साल की बहुत खूबसूरत लड़की थी. वह अपने मांबाप की एकलौती औलाद थी और उन की लाड़ली भी. पर वह अपने मांबाप को अजीत के बारे में बताने से डरती थी.

बहरहाल, एक दिन तय समय पर अजीत और कल्पना अपने घर में बिना बताए निकले और भोपाल की ट्रेन में बैठ कर दिल्ली के लिए जैसे हमेशा के लिए पराए हो गए.

भोपाल जंक्शन पर अजीत का दोस्त संजीव मिला और उन्हें अपने साथ घर ले गया. संजीव काफी साल से भोपाल में अकेला रह रहा था. उस का घर बड़ा तालाब के पास ही था.

जब अजीत और कल्पना ने पहली बार बड़ा तालाब देखा, तो कल्पना के मुंह से अचानक निकला, ‘‘संजीव, यह तालाब है या कोई समुद्र. मुझे तो लगा कि गांव का कोई तालाब होगा, थोड़ा सा बड़ा होगा, पर यह तो बहुत ज्यादा बड़ा है यार…’’

‘‘यह इनसानों द्वारा बनाई गई एक बहुत बड़ी झोल है और लगता है कि कोई समुद्री छोर है. ऐसा माना जाता है कि बड़ा तालाब को 11वीं शताब्दी में बनवाया गया था. तब इस इलाके में पीने की पानी की बड़ी समस्या थी.

‘‘भोपाल आज भी इसी तालाब का पानी पीता है. यही नहीं, बड़ा तालाब आज भोपाल के लोगों के लिए जीवनरेखा के साथसाथ मनोरंजन और रोजगार का जरीया भी बन गया है,’’ संजीव ने बताया.

‘‘मुझे तो भोपाल शहर बड़ा अच्छा लगा. रास्ते में जब हम आटोरिकशा में आ रहे थे तो ढलान और चढ़ाई वाली बलखाती सड़कें देख कर मैं तो रोमांचित हो गई,’’ कल्पना ने कहा.

‘‘यह शहर जितना खूबसूरत है, उस से भी ज्यादा खूबसूरत यहां के लोग हैं. और अब तो तुम भी यहां आ गई हो, तो हमारे शहर का रुतबा और ज्यादा बढ़ गया है,’’ संजीव कल्पना को देख कर बोला.

‘‘अगर तेरी फ्लर्टिंग खत्म हो गई हो तो हमें वह मकान भी दिखा दे, जहां हमारे रहने का इंतजाम किया गया है,’’ अजीत कल्पना को अपनी तरफ खींच कर बोला.

संजीव ने अपने ही इलाके में एक वन बीएचके फ्लैट दिखाया, जो पहली मंजिल पर बना था. ग्राउंड फ्लोर पर मकान मालिक अपने परिवार के साथ रहता था.

कल्पना और अजीत को वह मकान पसंद आया. उन्होंने अपना सामान वहां रखा. सब से अच्छी बात यह थी कि उस फ्लैट में मकान मालिक ने रोजमर्रा का जरूरी सामान रखा हुआ था, जिस का इस्तेमाल वे दोनों कर सकते थे.

ऊपर से तो कल्पना और अजीत बहुत खुश थे, पर मन ही मन वे डरे हुए थे. कल्पना जानती थी कि उस के पापा ने उस की गुमशुदगी की रिपोर्ट पुलिस थाने में लिखवा दी होगी और आज नहीं तो कल उन्हें पता चल जाएगा कि अजीत भी अपने घर से गायब है.

हालांकि, उन दोनों ने अपने मोबाइल फोन में नए सिमकार्ड भी डलवा लिए थे, पर उन की हिम्मत नहीं हो पा रही थी अपनेअपने घर बात करने की.

संजीव अपने मकान पर जा चुका था. उस का अगला काम था कल्पना और अजीत को कहीं कोई काम दिलाना और फिर उन की कोर्ट मैरिज करवाने का इंतजाम करना.

‘‘कल्पू, हम ने सही फैसला लिया है न? अगर तुम चाहो तो हम वापस जा कर अपने बड़ों से माफी मांग सकते हैं,’’ अजीत ने रोटी का कौर कल्पना को खिलाते हुए कहा.

‘‘सही या गलत का तो पता नहीं, पर अब जब हम यहां आ ही गए हैं, तो खुद को तो यह चुनौती दे ही सकते हैं कि चाहे कैसे भी हालात हों, हमें हिम्मत नहीं हारनी है,’’ कल्पना बोली.

कल्पना और अजीत दोनों अच्छे खातेपीते घर के थे. उन के पास इतने पैसे तो थे कि 2 महीने आराम से भोपाल में गुजार दें, पर अगर उन्हें जिंदगीभर साथ रहना था, तो सिर्फ प्यार की किश्ती उन का बेड़ा पार नहीं कर सकती थी. उन्हें कड़ी मेहनत करनी थी और जो भी काम मिलता, उस में अपना सबकुछ झोंक
देना था.

अगले दिन संजीव अजीत को एक अखबार एजेंट करीम मियां के पास ले गया. करीम मियां इस धंधे के पुराने खिलाड़ी थे. उन्होंने अजीत से कहा, ‘‘देखो बरखुरदार, तुम अच्छेखासे पढ़ेलिखे हो, पर फिलहाल मैं तुम्हें सुबह घरघर अखबार डालने का काम दिलवा सकता हूं. सुबह 2 घंटे का काम है. 2,000 रुपए महीना मिल जाएंगे. उस के बाद तुम कोई दूसरा धंधा भी पकड़ सकते हो.’’

‘‘करीम मियां, काम कोई छोटा या बड़ा नहीं होता. मुझे अखबार बांटने में कोई परेशानी नहीं है. पर मेरे पास कोई साइकिल नहीं है और मैं भोपाल में नया हूं,’’ अजीत बोला.

‘‘मुझे पता है बेटा. संजीव ने मु?ो सब बता दिया है. साइकिल तो मैं तुम्हें दे दूंगा और जहां तक अखबार बांटने के इलाके का सवाल है, तो मेरा एक छोकरा तुम्हें वे सारे घर दिखा देगा, जहां तुम्हें अखबार डालना है,’’ करीम मियां ने कहा.

अजीत को साइकिल मिल गई और उसे अगली सुबह से अपनी नई नौकरी पर लग जाना था. कल्पना खुश हुई कि चलो एक को तो नौकरी मिली.

‘‘यार, मैं सोच रहा हूं कि सुबह अखबार बांटने के बाद किसी दुकान पर कोई छोटीमोटी नौकरी भी पकड़ लूंगा. इस से हम दोनों अंटी से और ज्यादा मजबूत हो जाएंगे,’’ अजीत बोला.

‘‘सुनो अजीत, मैं ने कल्पना के लिए एक जगह बात की है. वह इलैक्ट्रोनिक्स आइटम का बड़ा शोरूम है, जहां लड़कियां पैकिंग करती हैं. उस शोरूम का मालिक बड़ा ही शरीफ है.

‘‘सब से अच्छी बात तो यह है कि वह शोरूम मेरे औफिस के ही नजदीक है. मैं ही सुबह कल्पना को अपनी बाइक से ले जाऊंगा और फिर शाम को वापस ले आऊंगा. महीने के 10,000 रुपए मिलेंगे,’’ संजीव बोला.

‘‘यह तो बहुत अच्छी खबर है. मैं घर पर अकेले क्या करती… कुछ पैसा और जुड़ेगा तो हम जल्दी सैटल हो कर शादी भी कर लेंगे,’’ कल्पना ने खुश हो कर कहा.

अगले दिन अजीत सुबह 5 बजे अपनी साइकिल ले कर करीम मियां के पास निकल गया. इधर, 8 बजे के आसपास संजीव कल्पना को ले कर इलैक्ट्रोनिक्स सामान के शोरूम में ले गया.

कल्पना को उसी दिन से काम मिल गया. सुबह 9 बजे से शाम के 6 बजे तक ड्यूटी थी. शाम को 6 बजे संजीव उसे अपनी बाइक से घर वापस ले आया.

घर पर अजीत मौजूद था. वह बोला, ‘‘कल्पू, कैसा रहा आज का दिन?’’

‘‘एकदम बढि़या. पैकिंग करने में ज्यादा दिक्कत नहीं है. मैं सोच रही हूं कि अगर मालिक मुझे ओवरटाइम भी करने दे तो मैं पैकिंग के अलावा वहां के और भी तमाम काम सीखना चाहूंगी, जैसे सेल्स वाले क्या करते हैं, टैलीविजन वगैरह सामान बेचने की कला कैसे आती है,’’ कल्पना ने अपने मन की बात रखी.

‘‘मुझे भी एक दुकान के बाहर मोबाइल फोन के कवर बेचने वाले अंकल ने नौकरी पर रख लिया है. 8,000 रुपए महीना देंगे. सुबह 8 बजे तक अखबार का काम खत्म, उस के बाद मोबाइल कवर बेचने का धंधा.

‘‘मुझे मोबाइल फोन की सारी सैटिंग्स पता हैं, किसी को कोई दिक्कत आएगी, तो उस की समस्या भी सुलझा दूंगा,’’ अजीत बोला.

‘‘फिर तो मेरी पार्टी बनती है. अभी बड़ा तालाब के सामने बने रैस्टोरैंट में चलते हैं और चाइनीज खाते हैं,’’ संजीव बोला.

वे तीनों बाहर खाना खाने चले गए. जब कल्पना और अजीत वापस घर आए, तो कल्पना बोली, ‘‘यार, वैसे तो सब सही जा रहा है, पर अभी भी एक अनजाना डर मन में है कि अगर हमारे घर वालों को पता चल गया, तो क्या होगा…’’

‘‘तुम सही कह रही हो. सारा दिन मुझे बस यही खयाल रहता है कि अगर उन्होंने तुम्हें ढूंढ़ लिया और जबरदस्ती अपने साथ ले गए, तो मेरा क्या होगा…’’ अजीत बोला.

‘‘क्यों न हम यहां के थाने में शिकायत लिखवा दें कि हम दोनों बालिग हैं और अपनी मरजी से यहां रहते हैं. अगर हमें कुछ खतरा महसूस होता है, तो पुलिस को हमारी हिफाजत करनी होगी,’’ कल्पना ने सु?ाव दिया.

‘‘इस सब का एक ही हल है और वह है हमारी कोर्ट मैरिज. हम कल ही अर्जी दाखिल कर देते हैं और मंजूरी मिलते ही शादी कर लेंगे,’’ अजीत बोला.

हुआ भी यही. तकरीबन 2 महीने बाद अजीत और कल्पना ने शादी कर ली. संजीव ने सारा इंतजाम किया था. इसी तरह देखतेदेखते 6 महीने गुजर गए.

अजीत और कल्पना अपनी नौकरी में जैसे खो गए थे. वे दोनों बहुत मेहनती थे और रोजाना 15 घंटे अपने काम को देते थे.

घर वापस आते तो बहुत ज्यादा थके होते थे. खाना खाया और बिस्तर पकड़ लिया. इस से उन दोनों की शादीशुदा जिंदगी नीरस होने लगी थी.

शायद यही वजह थी कि कल्पना अब संजीव के करीब हो रही थी या संजीव को ऐसा महसूस हो रहा था. वह शुरू से ही कल्पना की खूबसूरती का कायल था और उसे घर से शोरूम और शोरूम से घर लाने ले जाने में और ज्यादा जुड़ने लगा था.

कभीकभार जब कल्पना बहुत ज्यादा थकी होती थी, तब वह बाइक पर संजीव के कंधे से लग कर ऊंघने लगती थी. ऐसा कई बार अजीत ने भी देखा था, पर उसे कल्पना पर यकीन था. पर उसे कोई रिस्क भी नहीं लेना था.

एक दिन रविवार को अजीत और कल्पना बड़ा तालाब के सामने बैठे सुहानी शाम का मजा ले रहे थे.

अजीत ने कल्पना का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘क्या तुम इस शादी से खुश हो? मैं जानता हूं कि यह अनजाना शहर है और मेरे सिवा तुम्हारा यहां कोई नहीं है.

‘‘हम दोनों मजबूरी में ऐसा काम कर रहे हैं, जो हमारी पढ़ाई से कमतर है. जो खुशियां मुझे तुम्हें देनी चाहिए, वे मैं फिलहाल नहीं दे पा रहा हूं. कल्पू, तुम मुझे छोड़ कर तो नहीं चली जाओगी न?’’

अजीत के मुंह से अचानक यह सब सुन कर कल्पना एकदम हैरान रह गई. उस की आंखों में आंसू आ गए.

वह बोली, ‘‘अजीत, यह ठीक है कि हमारे दिन अच्छे नहीं चल रहे हैं और जो ख्वाब हम ने देखे थे, वे शायद इस हकीकत से ज्यादा हसीन थे, पर प्यार करने का मतलब यह नहीं होता कि दुख के समय में साथ छोड़ दो.

‘‘मैं इसलिए ज्यादा काम नहीं कर रही हूं कि मुझे घर काटने को दौड़ता है या मुझे ज्यादा पैसे चाहिए, बल्कि मैं चाहती हूं कि काम और मेहनत के मामले में मैं किसी भी तरह तुम से उन्नीस न रहूं. मैं हर हाल में तुम्हारे साथ खुश हूं और हमेशा रहूंगी.’’

अजीत के मन से शक के बादल छंट गए. इसी बीच एक दिन अजीत ने संजीव से कहा, ‘‘यार, तुम एक बार मेरे घर फोन कर के वहां के हालात के बारे में जानो. उन्हें यह जताना कि जैसे तुम्हें पता ही नहीं है कि मैं यहां तुम्हारे पास हूं.’’

‘‘पर अगर उन्हें भनक लग गई तो?’’ संजीव ने कहा.

‘‘आज नहीं तो कल उन्हें पता चल ही जाएगा. हम कब तक यों छिप कर रहेंगे. कल्पना कहती नहीं है, पर उसे अपने मम्मीपापा की बहुत याद सताती है,’’ अजीत बोला.

अगले दिन संजीव ने अजीत के घर फोन लगाया और बोला, ‘‘अंकल, मैं भोपाल से अजीत का दोस्त संजीव बोल रहा हूं. बड़े दिन से अजीत से बात नहीं हो पाई है. सब ठीक तो है न?’’

‘‘बेटा, अजीत तो कई महीने से गायब है. हमारे पड़ोसी ने उन की बेटी को अगवा करने के इलजाम में अजीत का नाम पुलिस थाने में लिखवा दिया है. पता नहीं वे दोनों कहां होंगे… साथ हैं भी या नहीं…’’

यह सुनते ही संजीव के मन में एक बार आया कि वह सब सचसच बता दे, पर कल्पना के बारे में सोच कर वह चुप रह गया.

जब अजीत के पापा ने अपनी पत्नी को संजीव के फोन के बारे में बताया, तो उन्हें शक हुआ कि कहीं अजीत और कल्पना भोपाल में तो नहीं हैं. वे तभी कड़ा मन कर के कल्पना के घर गईं और फोन वाली बात बता दी.

अगले ही दिन अजीत और कल्पना के मांबाप भोपाल जा पहुंचे और संजीव पर दबाव डालने और पुलिस की धमकी देने के बाद अजीत और कल्पना के मकान का पता उगलवा लिया.

घर की डोरबैल बजी. कल्पना को लगा कि संजीव आया होगा. उस ने दरवाजा खोला और सामने मम्मीपापा को देख कर उस का रंग सफेद पड़ गया.

तब तक अजीत भी दरवाजे पर आ गया था. उन्हें देख कर पहले तो वह सकपकाया, पर बाद में धीरे से बोला, ‘‘अंदर आइए.’’

उन सब के साथ संजीव भी था. वह इस सब के लिए खुद को अपराधी सा महसूस कर रहा था.

पहले तो कल्पना के पापा को बड़ा गुस्सा आया, पर जब उन्हें पता चला कि अपनी गृहस्थी को बेहतर करने के लिए वे दोनों इतनी ज्यादा कड़ी मेहनत कर रहे हैं, तो वे मन ही मन खुश भी हुए.

‘‘मैं न तो इस शादी से खुश हूं और न ही तुम दोनों से नाराज हूं. किसी मांबाप को गुस्सा तब आता है, जब उन की औलाद भाग कर शादी तो कर लेती है, पर दुनिया के थपेड़े खा कर उन का प्यार चार दिन में ही हवाहवाई हो जाता है.

‘‘तुम दोनों खुश रहो और हमेशा यहीं भोपाल में रहना, मैं सिर्फ इतना ही चाहता हूं, क्योंकि इस बुढ़ापे में मैं अपने खानदान और चार लोगों से यह नहीं सुनना चाहता कि मेरी बेटी ने छोटी जाति के लड़के से शादी कर के हमारी नाक कटवा दी.

‘‘मैं कुछ पैसे तुम्हें दे दूंगा और वहां पुलिस में दर्ज कराई गई अपनी शिकायत रद्द करवा दूंगा. मुझे लगता है कि अजीत के मांबाप को भी मेरा यह आइडिया सही लगेगा.’’

यह सुन कर अजीत के पापा की तो मानो जान में जान आई. उन के बोलने से पहले ही कल्पना ने कहा, ‘‘हमारा मकसद आप लोगों की बेइज्जती कराना नहीं था. यहां संजीव ने हमें सहारा दे कर हमारा हौसला बढ़ाया था. यह हमारा सच्चा दोस्त है.

‘‘और हां, हम दोनों ने शादी कर के कोई गुनाह नहीं किया है और अगर आप को लगता है कि हम यहीं भोपाल में रहें, तो हमें कोई दिक्कत नहीं है. हम यहीं अपनी गृहस्थी बसाएंगे.’’

‘‘अजीत बेटा, मैं जानता हूं कि तुम एक समझदार बच्चे हो. मैं और तुम्हारी मां भी यही चाहते हैं कि तुम यहां अपनी नई जिंदगी की शुरुआत करो,’’ अजीत के पापा ने कहा. वे सब एक रात वहां रहे और फिर अगले दिन वहां से चले गए. उन्होंने कुछ पैसे भी अपने बच्चों के अकाउंट में डलवा दिए थे.

इस घटना को 6 साल बीत गए थे. एक दिन अजीत और कल्पना के पापा के पास एक ह्वाट्सएप आया, जिस में एक इनविटेशन था. अजीत और कल्पना ने अपनी कड़ी मेहनत से इलैक्ट्रोनिक्स के सामान का अपना शोरूम खोला था. अगले रविवार को उस की ओपनिंग थी.

वे चारों दोबारा भोपाल गए. अजीत और कल्पना बहुत खुश हुए. उन दोनों की मम्मियों ने उस शोरूम का उद्घाटन किया, जिस का नाम था ‘कल्पना इलैक्ट्रोनिक्स’. अजीत और कल्पना की कड़ी मेहनत का सुखद नतीजा. Romantic Hindi Story

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