ए सीक्रेट नाइट इन होटल, झांसे में न आएं लड़कियां

अप्रैल के तीसरे सप्ताह में नोएडा की रहने वाली रश्मि (बदला नाम) जब भी अपना फेसबुक एकाउंट खोलती, उसे फ्रैंड रिक्वैस्ट में एक अंजान शख्स की रिक्वैस्ट जरूर दिखाई दे जाती. वह जानती थी कि आवारा, शरारती और दिलफेंक किस्म के मनचले युवक लड़कियों की कवर फोटो और प्रोफाइल देख कर ऐसी फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजा करते हैं. अगर इन की रिक्वैस्ट स्वीकार कर ली जाए तो जल्द ही ये रोमांस और सैक्स की बातें करते हुए नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश करने लगते हैं.

आमतौर पर ऐसी फ्रैंड रिक्वैस्ट पर समझदारी दिखाते हुए रश्मि ध्यान नहीं देती थी. इसलिए इस पर भी उस ने ध्यान नहीं दिया, क्योंकि वह बैठेबिठाए आफत मोल नहीं लेना चाहती थी. लेकिन 20 अप्रैल को उस ने इस अंजान फ्रैंड रिक्वैस्ट के साथ एक टैगलाइन लगी देखी तो वह बेसाख्ता चौंक उठी. वह लाइन थी ‘ए सीक्रेट नाइट इन होटल.’

इस टैगलाइन ने उसे भीतर तक न केवल हिला कर रख दिया, बल्कि गुदगुदा भी दिया. उसे पढ़ कर अनायास ही वह 20 दिन पहले की दुनिया में ठीक वैसे ही पहुंच गई, जैसे फिल्मों के फ्लैशबैक में नायिकाएं पहुंचने से खुद को रोक नहीं पातीं.

कीबोर्ड पर चलती उस की अंगुलियां थम गईं और दिलोदिमाग पर ग्वालियर छा गया. वह वाकई सीक्रेट और हसीन रात थी, जब उस ने पूरा वक्त पहले अभिसार में अपने मंगेतर विवेक (बदला नाम) के साथ गुजारा था. जिंदगी के पहले सहवास को शायद ही कोई युवती कभी भुला पाती है. वह वाकई अद्भुत होता है, जिसे याद कर अरसे तक जिस्म में कंपकंपी और झुरझुरी छूटा करती है.

रश्मि को याद आ गया, जब वह और विवेक दिल्ली से ग्वालियर जाने वाली ट्रेन में सवार हुए थे तो उन्हें कतई गर्मी का अहसास नहीं हो रहा था. उस के कहने पर ही विवेक ने रिजर्वेशन एसी कोच के बजाय स्लीपर क्लास में करवाया था. दिल्ली से ग्वालियर लगभग 5 घंटे का रास्ता था. कैसे बातोंबातों में कट गया, इस का अंदाजा भी रश्मि को नहीं हो पाया.

आगरा निकलतेनिकलते रश्मि के चेहरे पर पसीना चुहचुहाने लगा तो विवेक प्यार से यह कहते हुए झल्ला भी उठा, ‘‘तुम से कहा था कि एसी कोच में रिजर्वेशन करवा लें, पर तुम्हें तो बचत करने की पड़ी थी. अब पोंछती रहो बारबार रूमाल से पसीना.’’

विवेक और रश्मि की शादी उन के घर वालों ने तय कर दी थी, जिस का मुहूर्त जून के महीने का निकला था. चूंकि सगाई हो चुकी थी, इसलिए दोनों के साथ ग्वालियर जाने पर घर वालों को कोई ऐतराज नहीं था. यह आजकल का चलन हो गया है कि एगेंजमेंट के बाद लड़कालड़की साथ घूमेफिरें तो उन के घर वाले पुराने जमाने की तरह ऊंचनीच की बातें करते टांग नहीं अड़ाते.

रश्मि को अपनी रिश्तेदारी के एक समारोह में जाना था, जिस के बाबत घर वालों ने ही कहा था कि विवेक को भी ले जाओ तो उस की रिश्तेदारों से जानपहचान हो जाएगी. बारबार पसीना पोंछती रश्मि की हालत देख कर विवेक खीझ रहा था कि इस से तो अच्छा था कि एसी में चलते. उसे परेशानी तो न होती.

प्यार की बात का जवाब भी प्यार से देते रश्मि उसे समझा रही थी कि उस का साथ है तो क्या गर्मी और क्या सर्दी, वह सब कुछ बरदाश्त कर लेगी. बातों ही बातों में रश्मि ने अपना सिर विवेक के कंधे पर टिका दिया तो सहयात्री प्रेमीयुगल के इस अंदाज पर मुसकरा उठे. लेकिन उन्हें किसी की परवाह नहीं थी. ट्रेनों में ऐसे दृश्य अब बेहद आम हो चले हैं.

आगरा निकलते ही विवेक ने उस से वह बात कह डाली, जिसे वह दिल्ली से बैठने के बाद से दिलोदिमाग में जब्त किए बैठा था कि क्यों न हम रिश्तेदार के यहां कल सुबह चलें. वैसे भी फंक्शन कल ही है, आज की रात किसी होटल में गुजार लें. यह बात शायद रश्मि भी अपने मंगेतर के मुंह से सुनना चाहती थी.

क्योंकि स्वाभाविक तौर पर शरम के चलते वह एदकम से कह नहीं पा रही थी. दिखाने के लिए पहले तो उस ने बहाना बनाया कि घर वालों को पता चल गया तो वे क्या सोचेंगे? इस पर विवेक का रेडीमेड जवाब था, ‘‘उन्हीं के कहने पर तो हम साथ जा रहे हैं और फिर बस 2 महीने बाद ही तो हमारी शादी होने वाली है. उस के बाद तो हमें हर रात साथ ही बितानी है.’’

इस पर रश्मि बोली, ‘‘…तो फिर उस रात का इंतजार करो, अभी से क्यों उतावले हुए जा रहे हो?’’

रश्मि का मूड बनते देख विवेक ऊंचनीच के अंदाज में बोला, ‘‘अरे यार, क्या तुम्हें भरोसा नहीं मुझ पर?’’

यह एक ऐसा शाश्वत डायलौग है, जिस का कोई जवाब किसी प्रेमिका या मंगेतर के पास नहीं होता. और जो होता है, वह सहमति में हिलता सिर वह जवाब होता है.

‘‘तुम पर भरोसा है, तभी तो सब कुछ तुम्हें सौंप दिया है.’’ रश्मि ने कहा.

यही जवाब विवेक सुनना चाहता था. जब यह तय हो गया कि दोनों रात एक साथ किसी होटल के कमरे में गुजारेंगे तो बहने वाली पसीने की तादाद तो बढ़ गई, पर बरसती गर्मी का अहसास कम हो गया. दोनों आने वाले पलों की सोचसोच कर रोमांचित हुए जा रहे थे. अलबत्ता रश्मि के दिल में जरूर शंका थी कि धोखे से अगर किसी जानपहचान वाले ने देख लिया तो वह क्या सोचेगा?

अपनी शंका का समाधान करते हुए वह विवेक की आवाज में खुद को समझाती रही कि सोचने दो जिसे जो सोचना है, आखिर हम जल्द ही पतिपत्नी होने जा रहे हैं. आजकल तो सब कुछ चलता है. और कौन हम होटल के कमरे में वही सब करेंगे, जो सब सोचते हैं. हमें तो रोमांस और प्यार भरी बातें करने के लिए एकांत चाहिए, जो मिल रहा है तो मौका क्यों हाथ से जाने दें?

ट्रेन के ग्वालियर स्टेशन पहुंचतेपहुंचते अंधेरा छा गया था, पर इस प्रेमीयुगल के दिलोदिमाग में एक अछूते अंजाने अहसास को जी लेने का सुरूर छाता जा रहा था. स्टेशन पर उतर कर विवेक ने औटोरिक्शा किया. नई सवारियों को देख कर ही औटोरिक्शा वाले तुरंत ताड़ लेते हैं कि ये किसी लौज में जाएंगे. कुछ देर औटोरिक्शा इधरउधर घूमता रहा. दोनों ने कई होटल देखे, फिर रुकना तय किया होटल उत्तम पैलेस में.

ग्वालियर रेलवे स्टेशन के प्लेटफौर्म नंबर एक के बाहर की सड़क पर रुकने के लिए होटलों की भरमार है. चूंकि आमतौर पर रेलवे स्टेशनों के बाहर की होटलें जोड़ों को रुकने के लिए मुफीद नहीं लगतीं, इसलिए विवेक और रश्मि को उत्तम होटल पसंद आया. जो रेलवे स्टेशन से एक किलोमीटर दूर रेसकोर्स रोड पर सैनिक पैट्रोल पंप के पास स्थित है. दोनों को यह होटल सुरक्षित लगा.

औटो वाले को पैसे दे कर दोनों काउंटर पर पहुंचे तो वहां एक बुजुर्ग मैनेजर बैठा था, जिस की अनुभवी निगाहें समझ गईं कि यह नया जोड़ा है. मैनेजर पूरे कारोबारी शिष्टाचार से पेश आया और एंट्री रजिस्टर उन के आगे कर दिया. आजकल होटलों में रुकने के लिए फोटो आईडी अनिवार्य है, जो मांगने पर विवेक और रश्मि ने दिए तो मैनेजर ने तुरंत उन की फोटोकौफी कर के अपने पास रख ली.

खानापूर्ति कर दोनों अपने कमरे में आ गए. 6 घंटों से दिलोदिमाग में उमड़घुमड़ रहा प्यार का जज्बा अब आकार लेने लगा. दरवाजा बंद करते ही विवेक ने रश्मि को अपनी बांहों में जकड़ लिया और ताबड़तोड़ उस पर चुंबनों की बौछार कर दी. एक पुरानी कहावत है, आग और घी को पास रखा जाए तो घी पिघलेगा, जिस से आग और भड़केगी.

यही इस कमरे में हो रहा था. मंगेतर की बांहों में समाते ही रश्मि का संयम जवाब दे गया. जल्द ही दोनों बिस्तर पर आ कर एकदूसरे के आगोश में खो गए. तकरीबन एक घंटे कमरे में गर्म सांसों का तूफान उफनता रहा. तृप्त हो जाने के बाद दोनों फ्रेश हुए तो शरीर की भूख मिटने के बाद अब पेट की भूख सिर उठाने लगी.

रश्मि का मन बाहर जा कर खाना खाने का नहीं था, इसलिए विवेक ने कमरे में ही खाना मंगवा लिया. खाना खा कर टीवी देखते हुए दोनों दुनियाजहान की बातें करते आने वाले कल का तानाबाना बुनते रहे कि शादी के बाद हनीमून कहां मनाएंगे और क्याक्या करेंगे?

एक बार के संसर्ग से दोनों का मन नहीं भरा था, इसलिए फिर सैक्स की मांग सिर उठाने लगी, जिस में उस एकांत का पूरा योगदान था, जिस की जरूरत एक अच्छे मूड के लिए होती है. इस बार दोनों ने वे सारे प्रयोग कर डाले, जो वात्स्यायन के कामसूत्र सोशल मीडिया और इधरउधर से उन्होंने सीखे थे.

2-3 घंटे बाद दोनों थक कर चूर हो गए तो कब एकदूसरे की बांहों में सो गए, दोनों को पता ही नहीं चला. और जब चला तब तक सुबह हो चुकी थी. रश्मि और विवेक, दोनों के लिए ही यह एक नया अनुभव था, जिसे उन्होंने जी भर जिया था. दोनों के बीच कोई परदा नहीं रह गया था, पर इस बात की कोई ग्लानि उन्हें नहीं थी, क्योंकि दोनों शादी के बंधन में बंधने जा रहे थे.

सुबह अपना सामान समेट कर दोनों काउंटर पर पहुंचे और होटल का बिल अदा कर रिश्तेदार के यहां पहुंच गए. रश्मि ने चहकते हुए सभी रिश्तेदारों से विवेक का परिचय कराया, लेकिन दोनों यह बात छिपा गए कि वे रात को ही ग्वालियर आ गए थे और रात उन्होंने एक होटल में गुजारी थी. जाहिर है, यह बात बताने की थी भी नहीं.

उसी दिन शाम को दोनों वापस नोएडा के लिए रवाना हो गए. साथ में था एक रोमांटिक रात का दस्तावेज, जिसे याद कर दोनों सिहर उठते थे और एकदूसरे की तरफ देख हौले से मुसकरा देते थे. बात आई गई हो गई, पर दोनों के बीच व्हाट्सऐप और फेसबुक की चैटिंग में वह रात और उस की बातें और यादें ताजा होती रहीं. अब न केवल दोनों, बल्कि उन के घर वाले भी शादी की तैयारियां और खरीदारी में लग गए थे.

इन यादों से उबरते रश्मि की नजर फिर से टैग की हुई इस लाइन पर पड़ी ‘ए सीक्रेट नाइट इन होटल’ तो वह चौंक उठी कि अजीब इत्तफाक है. फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजने वाले ने जैसे उस की यादों को जिंदा कर दिया था. रश्मि की जिज्ञासा अब शबाब पर थी कि आखिर इस लाइन का मतलब क्या है? लिहाजा उस ने कुछ सोच कर उस अंजान व्यक्ति की फ्रैंड रिक्वैस्ट स्वीकार कर ली.

जैसे ही उस ने इस नए फेसबुक फ्रैंड का एकाउंट खोला, वह भौचक रह गई. भेजने वाले ने एक पैराग्राफ का यह मैसेज लिख रखा था.

‘रश्मिजी, आप का कमसिन फिगर लाखों में एक है. जब से मैं ने आप को देखा है, मेरी रातों की नींद उड़ गई है. वीडियो में आप एक लड़के को प्यार कर रही हैं. सच कहूं तो मुझे उस लड़के की किस्मत से जलन हो रही है. काश! उस युवक की जगह मैं होता तो आप मुझे उसी तरह टूट कर प्यार करतीं. आप को यकीन नहीं हो रहा हो तो अब वीडियो देखिए.’

अव्वल तो मैसेज पढ़ कर ही रश्मि के दिमाग के फ्यूज उड़ गए थे. रहीसही कसर वह वीडियो देखने पर पूरी हो गई, जिस में उत्तम होटल के कमरे में उस के और विवेक के बीच बने सैक्स संबंधों की तमाम रिकौर्डिंग कंप्यूटर स्क्रीन पर दिख रही थी.

वीडियो देख कर रश्मि पानीपानी हो गई. अब उसे लग रहा था कि उस ने और विवेक ने जो किया था, वह किसी ब्लू फिल्म से कम नहीं था. वह हैरान इस बात पर थी कि यह सब रिकौर्ड कैसे हुआ? जबकि विवेक ने कमरे में दाखिल होते ही अच्छे से ठोकबजा कर देख लिया था कि कमरे में कोई कैमरा वगैरह तो नहीं लगा.

पर जो हुआ था, वह कंप्यूटर स्क्रीन पर चल रहा था. वीडियो देख कर सकते में आ गई रश्मि ने तुरंत फोन कर के विवेक को अपने घर बुलाया. विवेक आया तो रश्मि ने उसे सारी बात बताई, जिसे सुन कर वह भी झटका खा गया. यह तो साफ समझ आ रहा था कि वीडियो उसी रात का था, पर इसे भेजने वाले की मंशा साफ नहीं हो रही थी कि वह क्या चाहता है, सिवाय इस के कि वह गलत मंशा से रश्मि पर दबाव बना रहा था.

दोनों गंभीरतापूर्वक काफी देर तक इस बिन बुलाई मुसीबत पर चरचा करते रहे. बात चिंता की थी, इस लिहाज से थी कि अगर यह वीडियो वायरल हो गया तो वे कहीं के नहीं रह जाएंगे. दोनों अब अपनी जवानी के जोश में छिप कर किए इस कृत्य पर पछता रहे थे. लंबी चर्चा के बाद आखिरकार उन्होंने तय किया कि भेजने वाले से उस की मंशा पूछी जाए.

लिहाजा उन्होंने इस बाबत मैसेज किया तो जवाब आया कि अगर इस वीडियो को वायरल होने से बचाना है तो ढाई लाख रुपए दे दो. अब तसवीर साफ थी कि उन्हें ब्लैकमेल किया जा रहा था. विवेक और रश्मि, दोनों निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों से थे, इसलिए ढाई लाख रुपए का इंतजाम करना उन की हैसियत के बाहर की बात थी. पर होने वाली बदनामी का डर भी उन के सिर चढ़ कर बोल रहा था.

आखिरकार विवेक ने सख्त और समझदारी भरा फैसला लिया कि जब पौकेट में इतने पैसे नहीं हैं तो बेहतर है कि पुलिस में रिपोर्ट लिखा दी जाए. दोनों अपनेअपने घर से बहाना बना कर बीती 1 मई को ग्वालियर पहुंचे और सीधे एसपी डा. आशीष खरे से मिले. मामले की गंभीरता और शादी के बंधन में बंधने जा रहे इन दोनों की परेशानी आशीष ने समझी और मामला पड़ाव थाने के टीआई को सौंप दिया.

पुलिस वालों ने दोनों को सलाह दी कि वे ब्लैकमेलर से संपर्क कर किस्तों में पैसा देने की बात कहें. रश्मि ने पुलिस की हिदायत के मुताबिक ब्लैकमेलर को फोन कर के कहा कि वह ढाई लाख रुपए एकमुश्त तो देने की स्थिति में नहीं हैं, पर 5 किस्तों में 50-50 हजार रुपए दे सकती है. इस पर ब्लैकमेलर तैयार हो गया.

सीधे उत्तम होटल पर छापा न मारने के पीछे पुलिस की मंशा यह थी कि ब्लैमेलर को रंगेहाथों पकड़ा जाए. ऐसा हुआ भी. आरोपी आसानी से पुलिस के बिछाए जाल में फंस गया और रश्मि से 50 हजार रुपए लेते धरा गया. जिस युवक को पुलिस ने पकड़ा था, उस का नाम भूपेंद्र राय था. वह उत्तम होटल में ही काम करता था.

भूपेंद्र को उम्मीद नहीं थी कि रश्मि पुलिस में खबर करेगी, इसलिए वह पकड़े जाने पर हैरान रह गया. पूछताछ में उस ने बताया कि वह तो बस पैसा लेने आया था, असली कर्ताधर्ता तो कोई और है.

वह कोई और नहीं, बल्कि होटल का 63 वर्षीय मैनेजर विमुक्तानंद सारस्वत निकला. उसे भी पुलिस ने तत्काल गिरफ्तार कर लिया. इन दोनों ने पूछताछ में मान लिया कि उन्होंने इस तरह कई जोड़ों को ब्लैकमेल किया था.

भूपेंद्र ने बताया कि इस होटल में उसे उस के बहनोई पंकज इंगले ने काम दिलवाया था. काम करतेकरते भूपेंद्र ने महसूस किया कि होटल में रुकने वाले अधिकांश कपल सैक्स करने आते हैं. लिहाजा उस के दिमाग में एक खुराफाती बात वीडियो बना कर ब्लैकमेल करने की आई, जिस का आइडिया एक क्राइम सीरियल से उसे मिला था.

भूपेंद्र ने दिल्ली जा कर नाइट विजन कैमरे खरीदे, जो आकार में काफी छोटे होते हैं. इन कैमरों को उस ने टीवी के औनऔफ स्विच में फिट कर रखा था. इस से कोई शक भी नहीं कर पाता था कि उन की हरकतें कैमरे में कैद हो रही हैं. आमतौर पर ठहरने वाले इस बात पर ध्यान नहीं देते कि टीवी का स्विच औन है, क्योंकि इस से कोई खतरा रिकौर्डिंग का नहीं होता.

ग्राहकों के जाने के बाद भूपेंद्र कैमरे निकाल कर फिल्म देखता था और जिन लोगों ने सैक्स किया होता था, उन के नामपते होटल में जमा फोटो आईडी से निकाल कर फेसबुक, व्हाट्सऐप या फिर सीधे मोबाइल फोन के जरिए ब्लैकमेल करता था. दोनों ने माना कि वे ब्लैकमेलिंग के इस धंधे से लाखों रुपए अब तक कमा चुके हैं. दोनों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.

मामला उजागर हुआ तो ग्वालियर में हड़कंप मच गया. पता यह चला कि कई होटलों में इस तरह के कैमरे फिट हैं और ब्लैकमेलिंग का धंधा बड़े पैमाने पर फलफूल रहा है. इस तरह की रिकौर्डिंग के विरोध में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने प्रदर्शन भी किया.

इस पर पुलिस ने कई होटलों में छापे मारे, पर कुछ खास हाथ नहीं लगा. क्योंकि संभावना यह थी कि भूपेंद्र की गिरफ्तारी के साथ ही ब्लैकमेलर्स ने कैमरे हटा दिए थे. हालांकि उम्मीद बंधती देख कुछ लोगों ने पुलिस में जा कर अपने ब्लैकमेल होने का दुखड़ा रोया.

जब यह सब कुछ हो गया तो विवेक और रश्मि ब्रेफ्रिकी से नोएडा वापस चले गए और दोबारा शादी की तैयारियों में जुट गए. पर एक सबक इन्हें मिल गया कि हनीमून मनाते वक्त  होटल में इस बात का ध्यान रखेंगे कि टीवी के खटके में कैमरा न लगा हो और घर आने के बाद फिर फेसबुक पर यह मैसेज न मिले कि ‘ए सीक्रेट नाइट इन होटल.’

पति परदेस में तो फिर डर काहे का

जिला अलीगढ़ मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर थाना गोंडा क्षेत्र में एक गांव है वींजरी. इस गांव में एक किसान परिवार है अतर सिंह का. उस के परिवार में उस की पत्नी कस्तूरी के अलावा 5 बेटे हैं. इन में सब से छोटा है जयकिंदर. अतर सिंह के तीसरे नंबर के बेटे को छोड़ कर सभी बेटों की शादियां हो चुकी हैं. इस के बावजूद पूरा परिवार आज भी एक ही मकान में संगठित रूप से रहता है. अतर सिंह का सब से छोटा बेटा जयकिंदर आंध्र प्रदेश में रेलवे में नौकरी करता है. डेढ़ साल पहले उस की शादी पुरा स्टेशन, हाथरस निवासी फौजी रमेशचंद्र की बेटी प्रेमलता उर्फ मोना के साथ तय हो गई थी. मोना के पिता के सामने अतर सिंह की कुछ भी हैसियत नहीं थी. यह रिश्ता जयकिंदर की रेलवे में नौकरी लग जाने की वजह से हुआ था.

अतर सिंह ने समझदारी से काम लेते हुए जयकिंदर की शादी से पहले अपने मकान के ऊपरी हिस्से पर एक हालनुमा बड़ा सा कमरा, बरामदा और रसोई बनवा दी थी, ताकि दहेज में मिलने वाला सामान ढंग से रखा जा सके. साथ ही उस में जयकिंदर अपनी पत्नी के साथ रह भी सके. मई 2015 में जयकिंदर और मोना की शादी हुई तो मोना के पिता ने दिल खोल कर दहेज दिया, जिस में घर गृहस्थी का सभी जरूरी सामान था.

मोना जब मायके से विदा हो कर ससुराल आई तो अपने जेठजेठानियों की हालत देख कर परेशान हो उठी. उन की माली हालत ठीक नहीं थी. उस की समझ में नहीं आया कि उस के पिता ने क्या देख कर उस की शादी यहां की. मोना ने अपनी मां को फोन कर के वस्तुस्थिति से अवगत कराया. मां पहले से ही हकीकत जानती थी. इसलिए उस ने मोना को समझाते हुए कहा, ‘‘तुझे उन सब से क्या लेनादेना. छत पर तेरे लिए अलग मकान बना दिया गया है. तेरा पति भी सरकारी नौकरी में है. तू मौज कर.’’

मोना मां की बात मान गई. उस ने अपने दहेज का सारा सामान ऊपर वाले कमरे में रखवा कर अपना कमरा सजा दिया. उस कमरे को देख कर कोई भी कह सकता था कि वह बड़े बाप की बेटी है. उस के हालनुमा कमरे में टीवी, फ्रिज, वाशिंग मशीन और गैस वगैरह सब कुछ था. सोफा सेट और डबलबैड भी. शादी के बाद करीब 15 दिन बाद जयकिंदर मोना को अपने घर वालों के भरोसे छोड़ कर नौकरी पर चला गया.

पति के जाने के बाद मोना ने ऊपर वाले कमरे में न केवल अकेले रहना शुरू कर दिया, बल्कि पति के परिवार से भी कोई नाता नहीं रखा. अलबत्ता कभीकभार उस की जेठानी के बच्चे ऊपर खेलने आ जाते तो वह उन से जरूर बोलबतिया लेती थी. वरना उस की अपनी दुनिया खुद तक ही सिमटी थी.

उस की जिंदगी में अगर किसी का दखल था तो वह थी दिव्या. जयकिंदर के बड़े भाई की बेटी दिव्या रात को अपनी चाची मोना के पास सोती थी ताकि रात में उसे डर न लगे. इस के लिए जयकिंदर ही कह कर गया था. देखतेदेखते जयकिंदर और मोना की शादी को एकडेढ़ साल बीत गया. जयकिंदर 10-5 दिन के लिए छुट्टी पर आता और लौट जाता. उस के जाने के बाद मोना को अकेले ही रहना पड़ता था.

मोना को घर की जगह बाजार की चीजें खाने का शौक था. इसी के मद्देनजर उस के पति जयकिंदर ने एकदो बार नौकरी पर जाने से पहले उसे समझा दिया था कि जब उसे किसी चीज की जरूरत हो तो सोनू को बुला कर बाजार से से मंगा लिया करे. सोनू जयकिंदर के पड़ोसी का बेटा था जो किशोरावस्था को पार कर चुका था. वह सालों से जयकिंदर का करीबी दोस्त था. सोनू बिलकुल बराबर वाले मकान में रहता था. मोना को वह भाभी कह कर पुकारता था. मोना ने शादी में सोनू की भूमिका देखी थी. वह तभी समझ गई थी कि वह उस के पति का खास ही होगा.

जयकिंदर के जाने के बाद सोनू जब चाहे मोना के पास चला आता था, नीचे घर की महिलाएं या पुरुष नजर आते तो वह छज्जे से कूद कर आ जाता. दोनों आपस में खूब हंसीमजाक करते थे. मोना तेजतर्रार थी और थोड़ी मुंहफट भी. कई बार वह सोनू से द्विअर्थी शब्दों में भी मजाक कर लेती थी.

एक दिन सोनू जब बाजार से वापस लौटा तो मोना छत पर खड़ी थी. उस ने सोनू को देखते ही आवाज दे कर ऊपर बुला कर पूछा, ‘‘आज सुबह से ही गायब हो? कहां थे?’’

‘‘भाभी, बनियान लेने बाजार गया था.’’ सोनू ने हाथ में थामी बनियान की थैली दिखाते हुए बताया. यह सुन कर मोना बोली, ‘‘अगर गए ही थे तो भाभी से भी पूछ कर जाते कि कुछ मंगाना तो नहीं है.’’

‘‘कल फिर जाऊंगा, बता देना क्या मंगाना है?’’ सोनू ने कहा तो मोना ने पूछा, ‘‘और क्या लाए हो?’’

‘‘बताया तो बनियान लाया हूं.’’ सोनू ने कहा तो मोना बोली, ‘‘मुझे भी बनियान मंगानी है, ला दोगे न?’’

‘‘तुम्हारी बनियान मैं कैसे ला सकता हूं? मुझे नंबर थोड़े ही पता है.’’ सोनू बोला.

‘‘साइज देख कर भी नहीं ला सकते?’’

‘‘बेकार की बातें मत करो, साइज देख कर अंदाजा होता है क्या?’’

‘‘तुम बिलकुल गंवार हो. अंदर आओ साइज दिखाती हूं.’’ कहती हुई मोना कमरे में चली गई. सोनू भी उस के पीछेपीछे कमरे में चला गया.

कमरे में पहुंचते ही मोना ने साड़ी का पल्लू नीचे गिरा दिया और सीना फुलाते हुए बोली, ‘‘लो नाप लो साइज. खुद पता चल जाएगा.’’

‘‘मुझ से साइज मत नपवाओ भाभी, वरना बहुत पछताओगी.’’

‘‘पछता तो अब भी रही हूं, तुम्हारे भैया से शादी कर के.’’ मोना ने अंगड़ाई लेते हुए साड़ी का पल्लू सिर पर डालते हुए कहा.

‘‘क्यों?’’ सोनू ने पूछा तो मोना बोली, ‘‘महीने दो महीने बाद घर आते हैं, वह भी 2 दिन रह कर भाग जाते हैं. और मैं ऐसी बदनसीब हूं कि देवर भी साइज नापने से डरता है. कोई और होता तो साइज नापता और…’’ मोना की आंखों में नशा सा उतर आया था. अभी तक सोनू मोना की बातों को केवल मजाक में ले रहा था. उस में उसी हिसाब से कह दिया, ‘‘जब भैया नौकरी से आएं तो उन्हीं को दिखा कर साइज पूछना.’’

‘‘अगर पति बुद्धू हो तो भाभी का काम समझदार देवर को कर देना चाहिए.’’ मोना ने सोनू का हाथ पकड़ते हुए कहा.

‘‘क्याक्या काम कराओगी देवर से?’’ सोनू ने शरारत से पूछा.

‘‘जो देवर करना चाहे, भाभी मना नहीं करेगी. बस तुम्हारे अंदर हिम्मत होनी चाहिए.’’ मोना हंसी.

‘‘कल बात करेंगे.’’ कहते हुए सोनू वहां से चला गया.

दूसरे दिन सोनू मां की दवाई लेने बाजार जाने के लिए निकला तो मोना के घर जा पहुंचा. उस वक्त मोना खाना बना कर खाली हुई थी. सोनू को देखते ही वह चहक कर बोली, ‘‘बाजार जा रहे हो क्या?’’

‘‘मम्मी की दवाई लेने जा रहा हूं. तुम्हें कुछ मंगाना हो तो बोलो?’’ सोनू ने पूछा. मोना बोली, ‘‘बाजार में मिल जाए तो मेरी भी दवाई ले आना.’’ मोना ने चेहरे पर बनावटी उदासी लाते हुए कहा.

‘‘पर्ची दे दो, तलाश कर लूंगा.’’

‘‘मुंह जुबानी बोल देना कि ‘प्रेमरोग’ है, जो भी दवा मिले, ले आना.’’

‘‘भाभी, तुम्हें ये रोग कब से हो गया?’’ सोनू ने हंसते हुए पूछा.

‘‘ये बीमारी तुम्हारी ही वजह से लगी है.’’ मोना की आंखों में खुला निमंत्रण था.

‘‘फिर तो तुम्हें दवा भी मुझे ही देनी होगी.’’

‘‘एक खुराक अभी दे दो, आराम मिला तो और ले लूंगी.’’ कहते हुए मोना ने अपनी दोनों बांहें उठा कर उस की ओर फैला दीं.

सोनू कोई बच्चा तो था नहीं, न बिलकुल गंवार था, जो मोना के दिल की मंशा न समझ पाता. बिना देर लगाए आगे बढ़ कर उस ने मोना को बांहों में भर लिया. थोड़ी देर में देवरभाभी का रिश्ता ही बदल गया.

सोनू जब वहां से बाजार के लिए निकला तो बहुत खुश था. मन में कई महीनों की पाली उस की मुराद पूरी हो गई थी.

दरअसल, जब से मोना ने उसे इशारोंइशारों में रिझाना शुरू किया था, तभी से वह उसे पाने की कल्पना करने लगा था. उस ने आगे कदम नहीं बढ़ाया था तो केवल करीबी रिश्तों की वजह से. लेकिन आज मोना ने खुद ही सारे बंधन तोड़ डाले थे. धीरेधीरे मोना और सोनू का प्यार परवान चढ़ने लगा. मोना को सासससुर, जेठजेठानी किसी का डर नहीं था. वह परिवार से अलग और अकेली रहती थी. पति परदेश में नौकरी करता था, बालबच्चा कोई था नहीं. बच्चों के नाम पर सब से बड़े जेठ की 14 वर्षीय बेटी दिव्या ही थी जो रात को मोना के साथ सोती थी. वह भी इसलिए क्योंकि जाते वक्त मोना का पति बडे़ भैया से कह कर गया था मोना अकेली है, दिव्या को रात में सोने के लिए मोना के पास भेज दिया करें.

तभी से दिव्या रात में मोना के पास सोती थी. सुबह को चाय पी कर दिव्या अपने घर आ जाती थी और स्कूल जाने की तैयारी करने लगती थी. उस के स्कूल जाने के बाद मोना 4-5 घंटे के लिए फ्री हो जाती थी. इस बीच वह शरारती देवर सोनू को बुला लेती थी. स्कूल से आने के बाद दिव्या कभी चाची के घर आ जाती तो कभी अपने घर रह कर काम में मां का हाथ बंटाती. कभीकभी वह अपनी सहेलियों को ले कर मोना के घर आ जाती और उसे भी अपने साथ खिलाती. मोना पूरी तरह सोनू के प्यार में डूब चुकी थी. वह चाहती थी कि दिन ही नहीं बल्कि पूरी रात सोनू के साथ गुजारे.

शाम ढल चुकी थी. अंधेरे ने चारों ओर पंख पसारने शुरू कर दिए थे. दिव्या को उस की मां मंजू ने कहा, ‘‘जब चाची के पास जाए तो किताबें साथ ले जाना, वहीं पढ़ लेना.’’ दिव्या ने ऐसा ही किया.

दिव्या चाची के घर पहुंची तो दरवाजे के किवाड़ भिड़े हुए थे. वह धक्का मार कर अंदर चली गई. अंदर जब चाची दिखाई नहीं दी तो वह कमरे में चली गई. कमरे में अंदर का दृश्य देख कर वह सन्न रह गई. वहां बेड पर सोनू और मोना निर्वस्त्र एकदूसरे से लिपटे पड़े थे. दिव्या इतनी भी अनजान नहीं थी कि कुछ समझ न सके. वह सब कुछ समझ कर बोली, ‘‘चाची, यह क्या गंदा काम कर रही हो?’’

दिव्या की आवाज सुनते ही सोनू पलंग से अपने कपड़े उठा कर बाहर भाग गया. मोना भी उठ कर साड़ी पहनने लगी. फिर मोना ने दिव्या को बांहों में भरते हुए पूछा, ‘‘दिव्या, तुम ने जो भी देखा, किसी से कहोगी तो नहीं?’’

‘‘जब चाचा घर वापस आएंगे तो उन्हें सब बता दूंगी.’’

‘‘तुम तो मेरी सहेली हो. नहीं तुम ऐसा कुछ नहीं करोगी.’’ मोना ने दिव्या को बहलाना चाहा, लेकिन दिव्या ने खुद को मोना से अलग करते हुए कहा, ‘‘तुम गंदी हो, मेरी सहेली कैसे हो सकती हो?’’

‘‘मैं कान पकड़ती हूं, अब ऐसा गंदा काम नहीं करूंगी.’’ मोना ने कान पकड़ते हुए नाटकीय अंदाज में कहा.

‘‘कसम खाओ.’’ दिव्या बोली.

‘‘मैं अपनी सहेली की कसम खा कर कहती हूं बस.’’

‘‘चलो खेलते हैं.’’ इस सब को भूल कर दिव्या के बाल मन ने कहा तो मोना ने दिव्या को अपनी बांहों में भर कर चूम लिया, ‘‘कितनी प्यारी हो तुम.’’

26 दिसंबर, 2016 की अलसुबह गांव के कुछ लोगों ने गांव के ही गजेंद्र के खेत में 14 वर्षीय दिव्या की गर्दन कटी लाश पड़ी देखी तो गांव भर में शोर मच गया. आननफानन में यह खबर दिव्या के पिता ओमप्रकाश तक भी पहुंच गई. उस के घर में कोहराम मच गया. परिवार के सभी लोग रोतेबिलखते, जिन में मोना भी थी घटनास्थल पर जा पहुंचे. बेटी की लाश देख कर दिव्या की मां का तो रोरो कर बुरा हाल हो गया. किसी ने इस घटना की सूचना थाना गोंडा पुलिस को दे दी.

सूचना मिलते ही गोंडा थानाप्रभारी सुभाष यादव पुलिस टीम के साथ गांव पींजरी के लिए रवाना हो गए. तब तक घटनास्थल पर गांव के सैकड़ों लोग एकत्र हो चुके थे. थानाप्रभारी ने भीड़ को अलग हटा कर लाश देखी. तत्पश्चात उन्होंने इस हत्या की सूचना अपने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को भी दे दी और प्रारंभिक काररवाई में लग गए.

थोड़ी देर में एसपी ग्रामीण संकल्प शर्मा और क्षेत्राधिकारी पंकज श्रीवास्तव भी पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर जा पहुंचे. लाश के मुआयने से पता चला कि दिव्या की हत्या उस खेत में नहीं की गई थी, क्योंकि लाश को वहां तक घसीट कर लाने के निशान साफ नजर आ रहे थे. मृत दिव्या के शरीर पर चाकुओं के कई घाव मौजूद थे.

जब जांच की गई तो जहां लाश पड़ी थी, वहां से 300 मीटर दूर पुलिस को डालचंद के खेत में हत्या करने के प्रमाण मिल गए. ढालचंद के खेत में लाल चूडि़यों के टुकड़े, कान का एक टौप्स, एक जोड़ी लेडीज चप्पल के साथ खून के निशान भी मिले.

जांच चल ही रही थी कि डौग एक्वायड के अलावा फोरेंसिक विभाग के प्रभारी के.के. मौर्य भी अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

घटनास्थल से बरामद कान के टौप्स और चप्पलें मृतका दिव्या की ही थीं. जबकि लाल चूडि़यों के टुकड़े उस के नहीं थे. इस से यह बात साफ हो गई कि दिव्या की हत्या में कोई औरत भी शामिल थी. डौग टीम में आई स्निफर डौग गुड्डी लाश और हत्यास्थल को सूंघने के बाद सीधी दिव्या के घर तक जा पहुंची. इस से अंदेशा हुआ कि दिव्या की हत्या में घर का कोई व्यक्ति शामिल रहा होगा.

पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी में पंचनामा भर कर दिव्या की लाश को पोस्टमार्टम के लिए अलीगढ़ भिजवा दिया गया. पूछताछ में दिव्या के परिवार से किसी की दुश्मनी की बात सामने नहीं आई. अब सवाल यह था कि दिव्या की हत्या किसने और किस मकसद के तहत की थी.

हत्या का यह मुकदमा उसी दिन थाना गोंडा में अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के अंतर्गत दर्ज हो गया. पोस्टमार्टम के बाद उसी शाम दिव्या का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

दूसरे दिन थानाप्रभारी ने महिला सिपाहियों के साथ पींजरी गांव जा कर व्यापक तरीके से पूछताछ की. दिव्या की तीनों चाचियों से भी पूछताछ की गई. सुभाष यादव अपने स्तर पर पहले दिन ही दिव्या की हत्या की वजह के तथ्य जुटा चुके थे. बस मजबूत साक्ष्य हासिल कर के हत्यारों को पकड़ना बाकी था.

दिव्या की सब से छोटी चाची मोना से जब चूडि़यों के बारे में सवाल किया गया तो उस ने बताया कि वह चूड़ी नहीं पहनती, लेकिन जब तलाशी ली गई तो उस के बेड के पीछे से लाल चूडि़यां बरामद हो गईं, जो घटनास्थल पर मिले चूडि़यों के टुकड़ों से पूरी तरह मेल खा रही थीं. सुभाष यादव का इशारा पाते ही महिला पुलिस ने मोना को पकड़ कर जीप में बैठा लिया. पुलिस उसे थाने ले आई.

थाने में थानाप्रभारी सुभाष यादव को ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी. मोना ने हत्या का पूरा सच खुद ही बयां कर दिया. सच सामने आते ही बिना देर किए गांव जा कर मोना के प्रेमी सोनू को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

सोनू के अलावा नगला मोनी के रहने वाले मनीष को भी धर दबोचा गया. दोनों को थाने ला कर पूछताछ के बाद हवालात में डाल दिया गया. दिव्या हत्याकांड के खुलासे की सूचना एसपी ग्रामीण संकल्प शर्मा और सीओ इगलास पंकज श्रीवास्तव को दे दी गई.

दोनों अधिकारियों ने थाना गोंडा पहुंच कर थानाप्रभारी सुभाष यादव को शाबासी देने के साथ अभियुक्तों से खुद भी पूछताछ की.

पूछताछ में मोना के साथ उस के प्रेमी सोनू व उस के दोस्त ने जो कुछ बताया वह कुछ इस तरह था-

दिव्या ने सोनू को मोना के साथ शारीरिक संबंध बनाते देख लिया था. उस ने चाचा के घर लौटने पर उसे सब कुछ सचसच बता देने की बात भी कही थी. उस समय बात खत्म जरूर हो गई थी. फिर भी डर यही था कि बाल बुद्धि की दिव्या ने अगर यह बात जयकिंदर को बता दी तो उस का क्या हश्र होगा, इसी से चिंतित मोना व सोनू ने योजना बनाई कि जयकिंदर के आने से पहले दिव्या की हत्या कर दी जाए.

दिव्या हर रोज मोना के साथ ही सोती थी और अलसुबह चाची के साथ दौड़ लगाने जाती थी. कभीकभी वह दौड़ने के लिए वहीं रुक जाती थीं. जब कि मोना अकेली लौट आती थी. दिव्या को दौड़ का शौक था, ये बात घर के सभी लोग जानते थे. इसी लिए हत्या में मोना का हाथ होने की संभावना नहीं मानी जाएगी, यह सोच कर मोना ने सोनू के साथ योजना बना डाली, जिस में सोनू ने दूसरे गांव के रहने वाले अपने दोस्त मनीष को भी शामिल कर लिया.

26 दिसंबर को सोनू व मनीष पहले ही वहां पहुंच गए. मोना दिव्या को ले कर जब डालचंद के खेत के पास पहुंची तो घात में बैठे सोनू और मनीष ने दिव्या को दबोच कर चाकुओं से वार करने शुरू कर दिए. दिव्या ने बचने के लिए मोना का हाथ पकड़ा, जिस से उस के हाथ से 2 चूडि़यां टूट कर वहां गिर गईं. हत्यारे उसे खींच कर खेत में ले गए, जहां गर्दन काट कर उस की हत्या कर डाली. इसी छीनाझपटी में दिव्या के कान का एक टौप्स भी गिर गया था और चप्पलें भी पैरों से निकल गई थीं.

दिव्या की हत्या के बाद ये लोग लाश को खींचते हुए लगभग 300 मीटर दूर गजेंद्र के खेत में ले गए. इस के बाद सभी अपनेअपने घर चले गए.

हत्यारा कितना भी चतुर हो फिर भी कोई न कोई सुबूत छोड़ ही जाता है. जो पुलिस के लिए जांच की अहम कड़ी बन जाता है. ऐसा ही साक्ष्य मोना की चूडि़यां बनीं, जिस ने पूरे केस का परदाफाश कर दिया.

रूपाली का घिनौना रूप, कौन बना उस का शिकार

Crime News in Hindi: 13 जून, 2017 को पुलिस कंट्रोलरूप (Control Room) द्वारा उत्तर प्रदेश के जिला जौनपुर (Jaunpur) की कोतवाली मड़िया हूं पुलिस को गांव सुभाषपुर में एक युवक की लाश पड़ी होने की सूचना मिली. सूचना मिलते ही कोतवाली प्रभारी इंसपेक्टर नरेंद्र कुमार सिंह पुलिस बल के साथ सुभाषपुर गांव (Subhashpur Village) स्थित उस जगह पहुंच गए, जहां लाश पड़ी होने की सूचना मिली थी. घटनास्थल केडीएस स्कूल के पीछे था. अब तक वहां गांव वालों की काफी भीड़ जमा हो चुकी थी. लेकिन पुलिस को देखते ही लोग एक किनारे हो गए थे. नरेंद्र कुमार सिंह ने लाश का निरीक्षण शुरू किया. मृतक की हत्या किसी धारदार हथियार से बड़ी बेरहमी से की गई थी. उस की उम्र यही कोई 27-28 साल थी. देखने से ही वह गांव का रहने वाला लग रहा था.

पुलिस कंट्रोलरूम से इस घटना की सूचना पुलिस अधिकारियों को भी मिल गई थी. उसी सूचना के आधार पर एसपी भौलेंद्र कुमार पांडेय भी घटनास्थल पर आ गए थे. उन्होंने भी घटनास्थल और लाश का निरीक्षण किया. काफी प्रयास के बाद भी लाश की शिनाख्त नहीं हो सकी थी. मृतक के कपड़ों की तलाशी में भी कोई ऐसी चीज नहीं मिली थी, जिस से उस की शिनाख्त हो सकती.

पुलिस लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने की तैयारी कर रही थी, तभी कोतवाली प्रभारी नरेंद्र कुमार सिंह एक बार फिर घटनास्थल का निरीक्षण बारीकी से करने लगे. इस का नतीजा यह निकला कि लाश से कुछ दूरी पर उन्हें एक टूटा हुआ सिम मिला. इस से जांच में मदद मिल सकती थी, इसलिए उन्होंने उसे सुरक्षित रख लिया.

एसपी भौलेंद्र कुमार पांडेय मामले का जल्द से जल्द खुलासा करने का आदेश दे कर चले गए थे. इस के बाद नरेंद्र कुमार सिंह भी लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा कर थाने आ गए. थाने में उन्होंने अपराध संख्या 461/2017 पर अज्ञात के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी.

मामले का जल्द से जल्द खुलासा करने के लिए एसपी भौलेंद्र कुमार पांडेय ने थाना पुलिस की मदद के लिए क्राइम ब्रांच के अलावा सर्विलांस टीम को भी लगा दिया था. जांच को आगे बढ़ाते हुए नरेंद्र कुमार सिंह ने घटनास्थल से मिले सिमकार्ड पर लिखे नंबर के आधार पर संबंधित कंपनी से पता किया तो जानकारी मिली कि वह सिम महाराष्ट्र के जिला गढ़चिरौली के थाना देशाई के गांव तुलसी के रहने वाले पंकज का था. वह सिम महाराष्ट्र से खरीदा गया था.

इस का मतलब यह हुआ कि मृतक का आसपास के रहने वाले किसी से कोई संबंध था या फिर वह यहां घूमने आया था. उस का किस से क्या संबंध था, यह पता करने के लिए पुलिस ने नंबर पता कर के उस की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस नंबर से अंतिम नंबर पर जिस से बात हुई थी, उस का नाम सत्यम था.

13 जून को सत्यम की पंकज से कई बार बात हुई थी. यही नहीं, उस के नंबर की लोकेशन भी 13 जून को घटनास्थल की पाई गई थी. अब शक की कोई गुंजाइश नहीं रही. नरेंद्र कुमार सिंह ने सत्यम के नंबर को सर्विलांस पर लगवा कर उस की लोकेशन पता कराई, क्योंकि फोन करने पर उसे शक हो जाता और फरार हो सकता था.

सर्विलांस के आधार पर ही उन्होंने 24 जुलाई, 2017 की सुबह इटाए बाजार के आगे नहर की पुलिया के पास से सत्यम और उस के साथ एक युवक तथा एक युवती को गिरफ्तार कर लिया. तीनों एक मोटरसाइकिल से कहीं जा रहे थे. बाद में पूछताछ में पता चला कि तीनों कहीं दूर भाग जाना चाहते थे, जिस से पुलिस उन्हें पकड़ न सके.

तीनों को थाने ला कर पूछताछ की गई तो उन्होंने अपने नाम सत्यम उर्फ छोटू गौड़, सचिन गौड़ उर्फ चिंटू और रूपाली बताए. इन में सत्यम और सचिन वाराणसी के थाना फूलपुर के गांव करियांव के रहने वाले थे. युवती का नाम रूपाली था. वह मृतक पंकज उर्फ प्रेम उर्फ बबलू की पत्नी थी. वह महाराष्ट्र के जिला गढ़चिरौली के थाना देशाई के गांव तुलसी की रहने वाली थी.

पुलिस ने तीनों से पूछताछ शुरू की तो थोड़ी हीलाहवाली के बाद उन्होंने पंकज की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. पुलिस ने उन की मोटरसाइकिल संख्या यूपी65बी क्यू 7062 जब्त कर ली थी. इस के बाद इन की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त चाकू, दस्ताने भी बरामद कर लिए गए थे. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में तीनों ने पंकज की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

महाराष्ट्र के जिला गढ़चिरौली के थाना देशाई के गांव तुलसी का रहने वाला 28 साल का पंकज उर्फ प्रेम उर्फ बबलू उत्तर प्रदेश के जिला वाराणसी के थाना फूलपुर के गांव करियांव में आ कर रह रहा था. वह यहां शादीविवाहों या किसी अन्य कार्यक्रमों में डांस करता था. इसी से होने वाली आमदनी से उस का और उस के परिवार वालों का भरणपोषण हो रहा था. वह डांस कर के इतना कमा लेता था कि उस का और उस के परिवार का गुजारा आराम से हो रहा था.

करियांव में ही सत्यम उर्फ छोटू गौड़ भी रहता था. पंकज से उस की दोस्ती हो गई तो वह उस के घर भी आनेजाने लगा, घर आनेजाने से उन की दोस्ती तो गहरी हुई ही, पंकज की पत्नी रूपाली से भी उस की अच्छी पटने लगी. वह उसे भाभी कहता था. चूंकि सत्यम की शादी नहीं हुई थी, इसलिए जल्दी ही रूपाली पर उस का दिल आ गया. इस के बाद वह पंकज की अनुपस्थिति में भी उस के घर जाने लगा, क्योंकि उस के सामने वह दिल की बात नहीं कह सकता था.

आखिर एक दिन पंकज की अनुपस्थिति में सत्यम ने रूपाली से दिल की बात कह ही नहीं दी, बल्कि दिल की मुराद भी पूरी कर ली. एक बार मर्यादा भंग हुई तो सिलसिला चल निकला. दोनों को जब भी मौका मिलता, इच्छा पूरी कर लेते. पंकज इस सब से अंजान था. जिस पत्नी को ले कर वह अपने घरपरिवार से इतनी दूर आ गया था, उसी पत्नी ने उस से बेवफाई करने में जरा भी संकोच नहीं किया था.

पंकज की गैरमौजूदगी में सत्यम का आनाजाना कुछ ज्यादा बढ़ गया तो लोगों की नजरों में यह बात खटकने लगी. लोगों ने इस बात पर ध्यान दिया तो उन्हें मामला गड़बढ़ लगा. लोग इस बात को ले कर चर्चा करने लगे तो यह बात पंकज के कानों तक पहुंची. पहले तो उस ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन जब लोगों ने टोकाटाकी शुरू की तो उस ने सच्चाई का पता करना चाहा. इस के लिए उस ने एक योजना बनाई.

एक दिन वह रूपाली से कार्यक्रम में जाने की बात कह कर घर से निकला जरूर, लेकिन थोड़ी देर बाद अचानक वापस आ गया. अचानक पंकज को देख कर रूपाली घबरा गई. इस की वजह यह थी कि उस समय सत्यम उस के घर में ही मौजूद था. पंकज को देख कर सत्यम तो पिछवाड़े से भाग निकला, लेकिन रूपाली पकड़ी गई. उस की हालत ने सच्चाई उजागर कर दी. पंकज ने उसे खरीखोटी तो सुनाई ही, इतने से मन नहीं माना तो पिटाई भी कर दी.

रूपाली ने उस समय वादा किया कि अब वह फिर कभी ऐसी गलती नहीं करेगी. पंकज ने भी उस की बात पर विश्वास कर लिया. माफ करना उस की मजबूरी भी थी. आखिर उसे भी तो अपना घर बचाना था. उसे लगा कि गलती सभी से हो जाती है, रूपाली से भी हो गई. अब संभल जाएगी.

लेकिन रूपाली संभली नहीं, कुछ दिनों तक तो वह सत्यम से बिलकुल नहीं मिली. लेकिन धीरेधीरे दोनों लोगों की नजरें बचा कर फिर चोरीचुपके मिलने लगे. रूपाली पंकज से ऊब चुकी थी. वह पूरी तरह से सत्यम की हो कर रहना चाहती थी, इसलिए वह जब भी सत्यम से मिलती, एक ही बात कहती, ‘‘सत्यम, अब मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रह सकती. इस तरह छिपछिप कर मिलना मुझे अच्छा नहीं लगता. मैं पूरी तरह तुम्हारी हो कर रहना चाहती हूं. चलो, हम कहीं भाग चलते हैं.’’

‘‘मैं भी तुम्हारे बिना नहीं रह सकता रूपाली, लेकिन थोड़ा शांति से काम लो. देखो, मैं कोई उपाय करता हूं.’’ जवाब में सत्यम कहता.

सत्यम उपाय सोचने लगा. उस ने जो उपाय सोचा, उस के बारे में एक दिन रूपाली से कहा, ‘‘रूपाली, क्यों न हम पंकज को हमेशाहमेशा के लिए रास्ते से हटा दें. न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी.’’

रूपाली पहले तो थोड़ा हिचकिचाई, लेकिन उस के बाद धीरे से बोली, ‘‘कहीं हम पकड़े न जाएं?’’

‘‘इस की चिंता तुम बिलकुल मत करो. उसे तो मैं ऐसा निपटा दूंगा कि किसी को कानोकान खबर नहीं होगी.’’ सत्यम ने कहा.

इस के बाद सत्यम ऐसा मौका ढूंढने लगा, जब वह अपना काम कर सके. 12 जून, 2017 को पंकज को कार्यक्रम में डांस करने के लिए थाना मडि़याहूं के गांव सुभाषपुर जाना था. वह अपनी पार्टी के साथ निकल भी गया.

पंकज के घर से निकलते ही रूपाली ने सत्यम को बता दिया. चूंकि वाराणसी और जौनपुर की सीमा सटी हुई है और मडि़याहूं तथा फूलपुर के बीच की दूरी तकरीबन 40 किलोमीटर है, इसलिए सत्यम रूपाली के सूचना देते ही अपने साथी सचिन के साथ सुभाषपुर गांव के लिए निकल पड़ा.

आधी रात के बाद लोगों की नजरें बचा कर सत्यम ने बहाने से पंकज को गांव के बाहर केडीएस स्कूल के पीछे बुलाया और सचिन की मदद से चाकू से उस की हत्या कर दी. इस के बाद पंकज के मोबाइल से उस का सिम निकाल कर तोड़ कर झाडि़यों में फेंक दिया और मोबाइल ले कर चला गया.

पंकज के अचानक गायब होने से उस के साथियों ने सोचा, शायद किसी बात से नाराज हो कर वह घर चला गया होगा और अपना मोबाइल भी बंद कर लिया होगा. पति के इस तरह गायब होने से रूपाली रोनेधोने का नाटक करती रही. काफी दिन बीत जाने के बाद भी जब पुलिस हत्यारों तक नहीं पहुंची तो उचित मौका देख कर उस ने सत्यम के साथ भाग जाने की योजना बना डाली.

संयोग से पुलिस ने उन्हें उसी दिन पकड़ लिया, जिस दिन सत्यम और रूपाली भाग रहे थे. मामले का त्या कर रूपाली और सत्यम को मिला क्या? पंकज तो जान से गया, लेकिन अब उन दोनों की जिंदगी भी अबखुलासा होने के बाद पुलिस ने अज्ञात की जगह सत्यम, सचिन और रूपाली को नामजद कर तीनों को अदालत में पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया. सोचने वाली बात तो यह है कि पंकज की ह जेल में ही कटेगी?

भ्रष्ट पटवारी सब पर भारी

इस सामूहिक हत्याकांड ने एक नई बहस खड़ी कर दी है कि क्या इनसान के जान की कीमत जमीन के टुकड़े से भी कम है? लेकिन इस से बड़ा एक सवाल यह है कि गांवदेहात में जमीन से जुड़े विवाद पैदा ही क्यों होते हैं?

इन विवादों के पीछे ज्यादातर जमीनों का हिसाबकिताब रखने वाला वह मुलाजिम होता है जिसे अलगअलग जगहों पर लेखपाल या पटवारी के नाम से जाना जाता है. ये पटवारी चंद रुपयों के लालच में दबंगों और पहुंच वालों के साथ मिल कर किसी भी जमीन को विवादित बना देते हैं. एक बार जमीन के विवादित होने की दशा में किसान की कोर्ट के चक्कर लगातेलगाते चप्पलें घिस जाती हैं. पटवारियों द्वारा विवादित की गई जमीन के चक्कर में पीढि़यां दर पीढि़यां मुकदमे झेलने को मजबूर होती हैं. कई बार तो बेकुसूरों को अपनी जान तक गंवानी पड़ती है.

चंद रुपयों के लिए पटवारी किसी भी जमीन को कैसे विवादित बना देते हैं, इस की बानगी हम सिद्धार्थनगर के डंडवा पांडेय गांव की 2 बहनों के मामले में देख सकते हैं.

अनीता और सरिता नाम की इन 2 बहनों के मांबाप की मौत पहले ही हो चुकी थी. एक भाई था जिस की मौत भी बाद में गंभीर बीमारी के चलते हो गई. ऐसे में कानूनी रूप से मांबाप की सारी जायदाद इन दोनों बहनों को मिलनी थी, लेकिन जो काम आसानी से होना था उसे यहां के 2 पटवारियों ने पैसों के लालच में विवादित बना दिया.

छोटी बहन अनीता के ससुर रवींद्रनाथ तिवारी ने जब पटवारी से दोनों बहनों के नाम उन जमीनों को करने की बात कही तो पटवारी अजय कुमार गुप्ता ने इस के एवज में पैसे की मांग की. लेकिन इन दोनों बहनों की तरफ से पैसे नहीं मिलने की दशा में उस ने पड़ोसियों से पैसे ले कर जमीन उन के नाम करने का लालच दिया और जमीन को विवादित बना दिया.

ससुर रवींद्रनाथ तिवारी ने बताया कि पटवारी अजय कुमार गुप्ता ने उन से एक लाख रुपए की मांग की थी लेकिन उतने पैसे न होने के चलते उस ने जमीन को विवादित बना दिया. अब उन्हें आएदिन कोर्ट और तहसील के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं.

दूसरे पटवारी रत्नाकर को इन लड़कियों के नाम घर करना था. उस ने इन से 2,000 रुपए वरासत के ले लिए. उस के बावजूद उस पटवारी द्वारा वरासत नहीं की गई, जबकि मांबाप की मौत के बाद कानूनन यह जमीन इन दोनों लड़कियों को मिलनी है.

नहीं रहता डर

जमीनों का हिसाबकिताब रखने वाले पटवारियों को अपने से बड़े अफसरों का भी डर नहीं होता है. ये उन के आदेश को भी ठेंगा दिखा देते हैं. जब कभी बड़े अफसर इन पटवारियों पर कार्यवाही करने की हिम्मत जुटाते भी हैं तो पटवारियों की यूनियन धरने पर बैठ जाती है, इसलिए कामकाज ठप होने के चलते बड़े अफसर भी कार्यवाही करने से बचते हैं.

सरिता और अनीता ने जब सभी जरूरी कागजात के आधार पर वरासत न होने पर स्थानीय एसडीएम से मिल कर शिकायत की तो एसडीएम ने वरासत किए जाने का आदेश भी दिया लेकिन पटवारी अजय कुमार गुप्ता ने एसडीएम के आदेश को भी ठेंगा दिखा दिया.

मजबूत है गठजोड़

अनीता और सरिता का मामला बानगीभर है. पटवारियों द्वारा रिश्वत के लालच में भोलेभाले लोगों को परेशान करना अब आम बात होती जा रही है. ये पटवारी किसी भी आम इनसान की जमीन के भूमाफिया से गठजोड़ कर मोटी रिश्वत के लालच में फर्जी कागजात तैयार कर डालते हैं और फिर उन कागजात के दम पर भूमाफिया दूसरे की जमीनों पर कब्जा कर बैठते हैं.

रिश्वतखोरी बिना काम नहीं

किसी का फर्जी जाति प्रमाणपत्र बनाना हो, जमीन से जुड़े कागजात लेने हों, जमीन की पैमाइश करानी हो तो लेखपाल यानी पटवारी बिना रिश्वत के कोई भी काम नहीं करते हैं. ऐसे कई मामले हैं जिन में नियमकानून को ताक पर रख कर रिश्वत के दम पर काम किया जाता है.

ऐसा ही एक मामला बस्ती जिले की हरैया तहसील के पटवारी घनश्याम चौधरी द्वारा किया गया, जिस ने शासनादेश की आड़ में 3 अनुसूचित जाति के और 2 पिछड़ी जातियों के लोगों को अनुसूचित जनजाति के होने की फर्जी रिपोर्ट लगा कर तहसील में भेज दी.

पटवारी की रिपोर्ट के आधार पर आंख मूंद कर जिम्मेदारों ने अनुसूचित जनजाति का प्रमाणपत्र भी जारी कर दिया. इस मामले की जानकारी जन सूचना अधिकार कानून से मिली.

इसी तरह पटवारी रानी वर्मा द्वारा किसान सम्मान निधि योजना की पत्रावली बनाने के नाम पर हरैया तहसील के ही अमारी बाजार के किसानों से खुलेआम पैसा वसूले जाने के मामले का वीडियो वायरल हुआ. इस की जांच की गई तो मामला सही पाया गया. इस के बाद पटवारी रानी वर्मा को निलंबित कर दिया गया.

जिंदा को बना दें मुरदा

अगर किसी जिंदा को मुरदा साबित करना हो तो पटवारी से बढि़या उदाहरण कोई नहीं हो सकता है. ऐसा ही एक मामला बस्ती जिले के गौर ब्लौक के बुढ़ौवा गांव का है. यहां के रहने वाले छोटेलाल कई महीने से अफसरों की चौखट पर सिर पटक रहे हैं. इस का कारण बस इतना है कि उन्हें उसी गांव के पटवारी ने मरा दिखा कर उन की गाटा संख्या 47 की तकरीबन 40 बीघा जमीन गांव के ही रविंद्र कुमार, विधाराम यादव व सीतापति के नाम कर दी.

यही नहीं, इस जमीन का दाखिल और खारिज भी 22 अक्तूबर, 2018 में हो चुका है. इस मामले की जानकारी छोटेलाल को उस समय लगी जब वे खतौनी लेने पहुंचे. जमीन किसी दूसरे के नाम दर्ज होने पर उन के पैरों तले की जमीन खिसक गई. तकरीबन 8 महीने से जमीन वापस अपने नाम कराने और खुद को जिंदा साबित करने के लिए वे पटवारी से ले कर तहसील तक के चक्कर लगा रहे हैं.

बिना रिश्वत नहीं काम रिपोर्ट

गांवदेहात लैवल पर अगर किसी किसान की किसी आपदा से मौत हो जाए, आपदा से माली नुकसान हो, शादीब्याह का अनुदान हो, इन सभी मामलों में जिला प्रशासन को रिपोर्ट सौंपने की जिम्मेदारी पटवारी की होती है. उस की रिपोर्ट के आधार पर ही तय किया जाता है कि जिसे सरकारी सहायता यानी अनुदान दिया जाना है, वह शख्स सरकारी सहायता हासिल करने की श्रेणी में है भी या नहीं.

लेकिन पटवारी सरकारी सहायता हासिल करने योग्य पात्र लोगों से भी बिना पैसा लिए कोई काम नहीं करते हैं. ऐसे में जो लोग पटवारियों को रिश्वत देने में सक्षम नहीं होते हैं, वे पात्र होते हुए भी सरकारी सहायता हासिल नहीं कर पाते हैं.

पीड़ितों की सुनें

डाक्टर एसके सिंह ने बताया कि बस्ती जिले की रुधौली तहसील में एक पटवारी अंजनी नंदन, जो तकरीबन 13 साल से तहसील में जमा हुआ है, उसे अभी तक रिलीव नहीं किया गया है जबकि उस का ट्रांसफर दूसरी जगह किया जा चुका है. उन्होंने बताया कि भूमाफिया को अवैधानिक कब्जा कराने के आरोपी व विवादित चल रहे पटवारी के साथ ही तहसीलदार की भूमिका भी संदिग्ध है.

अंजनी नंदन नाम के इस पटवारी के ऊपर कई गंभीर आरोप भी हैं, जिन में भूमाफिया की मिलीभगत से जमीनों के नक्शे में फेरबदल करने से ले कर अवैध कब्जा कराने तक की कई लिखित शिकायतें शामिल हैं.

इस पटवारी को तहसील प्रशासन व स्थानीय स्तर की राजनीतिक इकाइयां बचाने में अपनी पूरी ताकत झोंक रही हैं. पटवारी के ट्रांसफर को रोकने के पीछे का बड़ा मकसद भ्रष्ट अफसर और स्थानीय नेताओं की आमदनी में कमी हो जाना बताया जाता है.

रुधौली तहसील में पटवारी द्वारा जमीनों के अभिलेखों में फेरबदल कर के मोटी रकम की कमाई करने के भी आरोप लग चुके हैं.

रुधौली तहसील क्षेत्र के गांव कैडिहा के गाटा संख्या 38 के नक्शे में संशोधन व बटा कटाने की अवैधानिक प्रक्रिया के तहत व्यापक धांधली कर के भूमाफिया को गैरकानूनी कब्जा कराने का काम भी इसी लेखपाल के समय में हो चुका है, जिस की शिकायत तहसील समाधान दिवस पर की गई थी.

भदोही जिले के रहने वाले रमेश दुबे ने बताया कि जमुनीपुर अठगवां मोढ़, भदोही का पटवारी शुभम ओझा ने मोटी रिश्वत न मिलने के चक्कर में पूरे गांव के लोगों का जीना मुहाल कर दिया है. अभी वह नयानया पटवारी नियुक्त हुआ है, इस के बावजूद उस ने गरीबों का जीना मुश्किल किया हुआ है.

इस मसले में रमेश दुबे ने बताया कि उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय से ले कर सभी बड़े अफसरों से इस पटवारी की शिकायत की है, जिस के बाद उस पटवारी ने पूरे गांव को सरकारी जमीन पर बसा होने का आरोप लगाते हुए एकतरफा आरसी जारी करा दिया.

जमीनी मामलों में हत्याओं पर अगर नजर डाली जाए तो इस विवाद की शुरुआत पटवारी द्वारा रिश्वत ले कर किए गए जमीनी कागजात में हेरफेर का नतीजा होता है.

सोनभद्र जिले के गांव उभ्भा में जमीन के पीछे हुई 10 हत्याओं में अगर पटवारी ने सही भूमिका निभाई होती तो आज 10 लोग जिंदा होते.

लेखपालों यानी पटवारियों की रिश्वतखोरी व बढ़ते जमीनी विवादों को अगर रोकना है तो सरकार को राजस्व से जुड़े कानूनों में बदलाव करना चाहिए और कुसूरवार पाए जाने वाले पटवारियों को नौकरी से बरखास्त कर उन्हें सख्त सजा देनी चाहिए, तभी आम जनता इन रिश्वतखोरों से नजात पाएगी.

Crime : एक गुनाह मोहब्बत के नाम

Crime News in Hindi: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के शहर ग्वालियर (Gawalior) के थाना थाटीपुर के थानाप्रभारी आर.बी.एस. विमल 5 अगस्त की रात करीब 3 बजे इलाके की गश्त लगा कर थोड़ा सुस्ताने के मूड में थे. तभी उन के पास किसी महिला का फोन आया. महिला ने कहा, ‘‘सर, मैं तृप्तिनगर से बोल रही हूं. मेरे पति रविदत्त दूबे का मर्डर हो गया है. उन की गोली मार कर हत्या (Murder) कर दी गई है,’’ इतना कहने के बाद महिला सिसकने लगी. अपना नाम तक नहीं बता पाई.

थानाप्रभारी ने उस से कहा भी, ‘‘आप कौन बोल रही हैं? घटनास्थल और आसपास की लोकेशन के बारे में कुछ बताइए. वहां पास में और कौन सी जगह है, कोई चर्चित दुकान, शोरूम या स्कूल आदि है तो उस का नाम बोलिए.’’

‘‘सर, मैं भारती दूबे हूं. तृंिप्तनगर के प्रवेश द्वार के पास ही लोक निर्माण इलाके में टाइमकीपर दूबेजी का मकान पूछने पर कोई भी बता देगा.’’ महिला बोली.

घटनास्थल का किसी भी तरह की छेड़छाड़ नहीं करने की सख्त हिदायत देने के कुछ समय बाद ही थानाप्रभारी पुलिस टीम के साथ घनी आबादी वाले उस इलाके में पहुंच गए. थानाप्रभारी आर.बी.एस. विमल और एसआई तुलाराम कुशवाह के नेतृत्व में पुलिसकर्मियों को अल सुबह देख कर वहां के लोग चौंक गए.

लोगों से भारती दूबे का घर मालूम कर के वह वहां पहुंच गए. जब वह पहली मंजिल पर पहुंचे तो एक कमरे में भारती के पति रविदत्त दूबे की लाश पड़ी थी. पुलिस के पीछेपीछे कुछ और लोग भी वहां आ गए. उन में ज्यादातर परिवार के लोग ही थे.

थानाप्रभारी ने लाश का मुआयना किया तो बिस्तर पर जहां लाश पड़ी थी, वहां भारी मात्रा में खून भी निकला हुआ था. उन के पेट में गोली लगी थी.

मुंह से भी खून निकल रहा था, लाश की स्थिति को देख कर खुद गोली मार कर आत्महत्या का भी अनुमान लगाया गया, किंतु वहां हत्या का न कोई हथियार नजर आया और न ही सुसाइड नोट मिला.

घर वालों ने बताया कि उन्हें किसी ने सोते वक्त गोली मारी होगी. हालांकि इस बारे में सभी ने रात को किसी भी तरह का शोरगुल सुनने से इनकार कर दिया. थानाप्रभारी ने मौके पर फोरैंसिक टीम भी बुला ली.

पुलिस को यह बात गले नहीं उतरी. फिर भी थानाप्रभारी ने हत्या के सुराग के लिए कमरे का कोनाकोना छान मारा. उन्होंने घर का सारा कीमती सामान भी सुरक्षित पाया. इस का मतलब साफ था कि बाहर से कोई घर में नहीं आया था.

अब बड़ा सवाल यह था कि जब बाहर से से कोई आया ही नहीं, तो रविदत्त  को गोली किस ने मारी? फोरैंसिक एक्सपर्ट अखिलेश भार्गव ने रविदत्त के पेट में लगी गोली के घाव को देख कर नजदीक से गोली मारे जाने की पुष्टि की.

जांच के लिए खोजी कुत्ते की मदद ली गई. कुत्ता लाश सूंघने के बाद मकान की पहली मंजिल पर चक्कर लगाता हुआ नीचे बने कमरे से आ गया. वहां कुछ समय घूम कर बाहर सड़क तक गया, फिर वापस बैडरूम में लौट आया. बैड के इर्दगिर्द ही घूमता रहा. उस ने ऐसा 3 बार किया. फिगरपिं्रट एक्सपर्ट की टीम ने बैडरूम सहित अन्य स्थानों के सबूत इकट्ठे किए.

इन सारी काररवाई के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया. साथ ही भादंवि की धारा 302/34 के तहत अज्ञात के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया गया. पुलिस को दूबे परिवार के बारे में भारती दूबे से जो जानकारी मिली, वह इस प्रकार थी—

ग्वालियर के थाटीपुर के तृप्तिनगर निवासी 58 वर्षीय रविदत्त दूबे अपनी पत्नी भारती, 2 बेटियों और एक बेटे के साथ रहते थे. रविदत्त लोक निर्माण विभाग में टाइमकीपर की नौकरी करते थे. उन की नियुक्ति कलेक्टोरेट स्थित निर्वाचन शाखा में थी.

साल 2006 में पहली पत्नी आभा की बेटे के जन्म देते वक्त मौत हो गई थी. उस के बाद उन्होंने साल 2007 में केरल की रहने वाली भारती नाम की महिला से विवाह रचा लिया था. वह अहिंदी भाषी और भिन्न संस्कार समाज की होने के बावजूद दूबे परिवार में अच्छी तरह से घुलमिल गई थी.

दूबे ने भारती से कोर्टमैरिज की थी. शादी के बाद भारती ने दिवंगत आभा के तीनों बच्चों को अपनाने और उन की देखभाल में कोई कमी नहीं रहने दी थी. बड़ी बेटी कृतिका की शादी नयापुरा इटावा निवासी राममोहन शर्मा के साथ हो चुके थी, किंतु उस का ससुराल में विवाद चल रहा था, इस वजह से वह पिछले 3 सालों से अपने मायके में ही रह रही थी. छोटी बेटी सलोनी अविवाहित थी.

पुलिस ने इस हत्या की गुत्थी को सुलझाने के लिए कई बिंदुओं पर ध्यान दिया. मृतक की पत्नी भारती और बड़ी बेटी कृतिका समेत छोटी बेटी सलोनी ने पूछताछ में बताया कि 4-5 अगस्त की आधी रात को तेज बारिश होने कारण लाइट बारबार आजा रही थी.

रात तकरीबन 9 बजे खाना खाने के बाद वे अपने घर की पहली मंजिल पर बने बैडरूम में सोने के लिए चली गई थीं. घटना के समय परिवार के सभी बाकी सदस्य एक ही कमरे में सोए हुए थे.

भारती और बड़ी बेटी कृतिका को रात के ढाई बजे हलकी सी आवाज सुनाई दी थी तो उन्होंने हड़बड़ा कर उठ कर लाइट का स्विच औन किया. इधरउधर देखा. वहां सब कुछ ठीक लगा. वह तुरंत बगल में रविदत्त दूबे के कमरे में गई. देखा बैड पर वह खून से लथपथ पड़े थे. उन के पेट से खून निकल रहा था.

कृतिका और भारती ने उन्हें हिलायाडुलाया तब भी उन में कोई हरकत नहीं हुई. नाक के सामने हाथ ले जा कर देखा, उन की सांस भी नहीं चल रही थी. फिर भारती ने दूसरे रिश्तेदारों को सूचित करने के बाद पुलिस को सूचित कर दिया.

थानाप्रभारी को दूबे हत्याकांड से संबंधित कुछ और जानकारी मिल गई थी, फिर भी वह हत्यारे की तलाश के लिए महत्त्वपूर्ण सबूत की तलाश में जुटे हुए थे. घटनास्थल पर तहकीकात के दौरान एसआई तुलाराम कुशवाहा को दूबे की छोटी बेटी पर शक हुआ था.

कारण उस के चेहरे पर पिता के मौत से दुखी होने जैसे भाव की झलक नहीं दिखी थी. उन्होंने पाया कि सलोनी जबरन रोनेधोने का नाटक कर रही थी. उस की आंखों से एक बूंद आंसू तक नहीं निकले थे.

घर वालों के अलगअलग बयानों के कारण दूबे हत्याकांड की गुत्थी सुलझने के बजाय उलझती ही जा रही थी. उसे सुलझाने का एकमात्र रास्ता काल डिटेल्स को अपनाने की योजना बनी. मृतक और उस के सभी परिजनों के मोबाइल नंबर ले कर उन की काल डिटेल्स निकलवाई गई.

कब, किस ने, किस से बात की? उन के बीच क्याक्या बातें हुईं? उन में बाहरी सदस्य कितने थे, कितने परिवार वाले? वे कौन थे? इत्यादि काल डिटेल्स का अध्ययन किया गया. उन में एक नंबर ऐसा भी निकला, जिस पर हर रोज लंबी बातें होती थीं.

पुलिस को जल्द ही उस नंबर को इस्तेमाल करने वाले का भी पता चल गया. रविदत्त दूबे की छोटी बेटी सलोनी उस नंबर पर लगातार बातें करती थी. पुलिस ने उस फोन नंबर की जांच की तो वह नंबर परिवार के किसी सदस्य या रिश्तेदार का नहीं था बल्कि ग्वालियर में गल्ला कठोर के रहने वाले पुष्पेंद्र लोधी का निकला.

पुलिस इस जानकारी के साथ पुष्पेंद्र के घर जा धमकी. वह घर से गायब मिला. इस कारण उस पर पुलिस का शक और भी गहरा हो गया. फिर पुलिस ने 14 अगस्त की रात में उसे दबोच लिया.

उस से पूछताछ की. पहले तो उस ने पुलिस को बरगलाने की कोशिश की, लेकिन बाद में सख्ती होने पर उस ने दूबे की हत्या का राज खोल कर रख दिया.

साथ ही उस ने स्वीकार भी कर लिया कि रविदत्त दूबे की हत्या उस ने सलोनी के कहने पर की थी. उन्हें देशी तमंचे से गोली मारी थी. पुष्पेंद्र ने पुलिस को हत्या की जो वजह बताई, वह भी एक हैरत से कम नहीं थी. पुलिस सुन कर दंग रह गई कि कोई जरा सी बात पर अपने बाप की हत्या भी करवा सकता है.

बहरहाल, पुष्पेंद्र के अपराध स्वीकार किए जाने के बाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर उस की निशानदेही पर हत्या में इस्तेमाल .315 बोर का तमंचा भी बरामद कर लिया. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में पुष्पेंद्र लोधी ने बताया कि वह पिछले एक साल से सलोनी का सहपाठी रहा है. सलोनी के एक दूसरे सहपाठी करण राजौरिया से प्रेम संबंध थे. दोनों एकदूसरे को दिलोजान से चाहते थे. उस की तो सलोनी से केवल दोस्ती थी.

उस ने बताया कि एक बार करण के साथ सलोनी को रविदत्त दूबे ने घर पर ही एकदूसरे की बांहों में बांहें डाले देख लिया था.

अपनी बेटी को किसी युवक की बांहों में देखना रविदत्त को जरा भी गवारा नहीं लगा. उन्होंने उसी समय सलोनी के गाल पर तमाचा जड़ दिया. बताते हैं कि तमाचा खा कर सलोनी तिलमिला गई थी.

उस ने अपने गाल पर पिता के चांटे का जितना दर्द महसूस नहीं किया, उस से अधिक उस के दिल को चोट लगी. उस वक्त करण तो चुपचाप चला गया, लेकिन सलोनी बहुत दुखी हो गई. यह बात उस ने अपने दोस्त पुष्पेंद्र को फोन पर बताई.

फोन पर ही पुष्पेंद्र ने सलोनी को समझाने की काफी कोशिश की, लेकिन वह उस की सलाह सुनने को राजी नहीं हुई. करण के साथ पिता द्वारा किए गए दुर्व्यवहार और उस के सामने थप्पड़ खाने से बेहद अपमानित महसूस कर रही थी. अपनी पीड़ा दोस्त को सुना कर उस ने अपना मन थोड़ा हलका किया.

उस ने बताया कि उस घटना से करण भी बहुत दुखी हुआ था. उस के बाद से उस ने एक बार भी सलोनी से बात नहीं की, जिस से उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था. सलोनी समझ रही थी कि उस के पिता उस की मोहब्बत के दुश्मन बन बैठे हैं.

इस तरह सलोनी लगातार फोन पर पुष्पेंद्र से अपने दिल की बातें बता कर करण तक उस की बात पहुंचाने का आग्रह करती रही. एक तरफ उसे प्रेमी द्वारा उपेक्षा किए जाने का गम था तो दूसरी तरफ पिता द्वारा अपमानित किए जाने की पीड़ा. सलोनी बदले की आग में झुलस रही थी. उस ने पिता को ही अपना दुश्मन समझ लिया था.

कुछ दिन गुजरने के बाद एक दिन पुष्पेंद्र की बदौलत सलोनी की करण से मुलाकात हो गई. उस ने मिलते ही करण से माफी मांगी, फिर कहा, ‘‘तुम अब भी दुखी हो?’’

‘‘मैं कर भी क्या सकता था उस वक्त?’’ करण झेंपते हुए बोला.

‘‘सारा दोष पापा का है, उन्होंने तुम्हें बहुत भलाबुरा कहा,’’ सलोनी बोली.

‘‘तुम्हें भी तो थप्पड़ जड़ दिया. कम से कम वह तुम्हारी राय तो जान लेते, एक बार…’’ करण बोला.

‘‘यही तकलीफ तो मुझे है. आव न देखा ताव, सीधे थप्पड़ जड़ दिया. मां रहती तो शायद यह सब नहीं होता. मां सब कुछ संभाल लेती.’’ कहती हुई सलोनी की आंखें नम हो गईं.

‘‘कोई बात नहीं, मैं उन से एक बार बात कर लूं?’’ करण ने सुझाव दिया.

‘‘अरे, कोई फायदा नहीं होने वाला, दीदी को ले कर वह हमेशा गुस्से में रहते हैं. दीदी की मरजी से शादी नहीं हुई थी. नतीजा देखो, उस का घर नहीं बस पाया. न पति अच्छा मिला और न ससुराल. 3 साल से मायके में हमारे साथ बैठी है.’’ सलोनी बिफरती हुई बोली.

‘‘तुम्हारी भी शादी अपनी मरजी से करवाना चाहते हैं क्या?’’ करण ने पूछा.

‘‘ऐसा करने से पहले ही मैं उन को हमेशा के लिए शांत कर दूंगी,’’ सलोनी गुस्से में बोली.

‘‘क्या मतलब है तुम्हारा?’’ करण ने पूछा.

‘‘मेरा मतलब एकदम साफ है. बस, तुम को साथ देना होगा. उन के जीते जी हम लोग एक नहीं हो पाएंगे. हमारा विवाह नहीं हो पाएगा.’’ सलोनी बोली.

‘‘मैं इस में क्या मदद कर सकता हूं?’’ करण ने पूछा.

इस पर सलोनी उस के कान के पास मुंह ले जा कर धीमे से जो कुछ कहा उसे सुन कर करण चौंक गया, अचानक मुंह से आवाज निकल पड़ी, ‘‘क्या? यह क्या कह रही हो तुम?’’

‘‘हां, मैं बिलकुल सही कह रही हूं, पापा को रास्ते से हटाए बगैर कुछ नहीं होगा. और हां, यह काम तुम्हें ही करना होगा.’’ सलोनी बोली.

‘‘नहींनहीं. मैं नहीं कर सकता हत्या जैसा घिनौना काम.’’ करण ने एक झटके में सलोनी के प्रस्ताव पर पानी फेर दिया. उस ने नसीहत देते हुए उसे भी ऐसा करने से मना किया.

सलोनी से दोटूक शब्दों में उस ने कहा कि भले ही वह उस से किनारा कर ले, मगर ऐसा वह भी कतई न करे. उस के बाद करण अपने गांव चला गया. उस ने अपना मोबाइल भी बंद कर लिया. करण से उस का एक तरह से संबंध खत्म हो चुका था. यह बात उस ने पुष्पेंद्र को बताई.

पुष्पेंद्र से सलोनी बोली कि करण के जाने के बाद उस का दुनिया में उस के सिवाय और कोई नहीं है, इसलिए दोस्त होने के नाते वह उस की मदद करे.

उस ने तर्क दिया कि अगर उस ने साथ नहीं दिया तो उस का हाल भी उस की बड़ी बहन जैसा हो जाएगा. एक तरह से सलोनी ने पुष्पेंद्र से हमदर्दी की उम्मीद लगा ली थी.

पुष्पेंद्र सलोनी की बातों में आ गया. वह उस की लच्छेदार बातों और उस के कमसिन हुस्न के प्रति मोहित हो गया था. मोबाइल पर घंटों बातें करते हुए सलोनी ने एक बार कह दिया था वह उसे करण की जगह देखती है. उस से प्रेम करती है.

करण तो बुजदिल और मतलबी निकला, लेकिन उसे उस पर भरोसा है. यदि वह उस का काम कर दे तो दोनों की जिंदगी संवर जाएगी. उस ने पुष्पेंद्र को हत्या के एवज में एक लाख रुपए भी देने का वादा किया.

पुष्पेंद्र पैसे का लालची था. उस ने सलोनी की बात मान ली और फिर योजनाबद्ध तरीके से 4 अगस्त, 2021 की रात को तकरीबन 10 बजे उस के घर चला गया. सलोनी ने उसे परिवार के लोगों की नजरों से बचा कर नीचे के कमरे में छिपा दिया, जबकि परिवार के लोग पहली मंजिल पर थे.

कुछ देर बाद जब घर के सभी सदस्य गहरी नींद में सो गए तो रात के ढाई बजे सलोनी नीचे आई और पुष्पेंद्र को अपने साथ पिता के उस कमरे में ले गई, जहां वह सो रहे थे.

रविदत्त अकेले गहरी नींद में पीठ के बल सो रहे थे. पुष्पेंद्र ने तुरंत तमंचे से रविदत्त के पास जा कर गोली मारी और तेजी से भाग कर अपने घर आ गया.

पुलिस के सामने पुष्पेंद्र द्वारा हत्या का आरोप कुबूलने के बाद उसे हिरासत में ले लिया गया. सलोनी को भी तुरंत थाने बुलाया गया. उस से जैसे ही थानाप्रभारी ने उस के पिता की हत्या के बारे में पूछा, तो वह नाराज होती हुई बोली, ‘‘सर, मेरे पिता की हत्या हुई है और आप मुझ से ही सवालजवाब कर रहे हैं.’’

यहां तक कि सलोनी ने परेशान करने की शिकायत गृहमंत्री तक से करने की धमकी भी दी.

थानाप्रभारी बी.एस. विमल ने जब पुष्पेंद्र लोधी से मोबाइल पर पिता की हत्या से पहले और बाद की बातचीत का हवाला दिया, तब सलोनी के चेहरे का रंग उतर गया. तब थानाप्रभारी विमल ने पुष्पेंद्र द्वारा दिए गए बयान की रिकौर्डिंग उसे सुना दी.

फिर क्या था, उस के बाद सलोनी अब झूठ नहीं बोल सकती थी. अंतत: सलोनी ने भी कुबूल कर लिया कि पिताजी की हत्या उस ने ही कराई थी.

पुलिस ने दोनों अभियुक्तों को रविदत्त दूबे की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश कर दिया. वहां से उन्हें हिरासत में ले कर जेल भेज दया गया.

पहले सास के साथ बनाए अवैध संबंध, फिर इस वजह से कर दिया मर्डर

Crime News in Hindi: दिलचस्प और चिंतनीय मामला भोपाल के अशोका गार्डन इलाके का है. जुर्म और देह व्यापार के लिए बदनाम इस इलाके में बीती 20 अक्तूबर को उस वक्त सनसनी मच गई जब एक अधेड़ उम्र की औरत की लाश अशोक विहार कालोनी के एक फ्लेट से बरामद हुई. पुलिस को इसी इलाके के एक वाशिंदे ने खबर दी थी कि कालोनी के एक फ्लेट में कत्ल हो गया है. पुलिस जब फ्लेट पर पहुंची तो वहां उसका सामना खून से लथपथ पड़ी शाहीन नाम की औरत की लाश से हुआ.

लाश को पोस्ट मार्टम के लिए भेजकर पुलिस ने पूछताछ और छानबीन शुरू की तो कई चौंका देने वाली बातें सामने आईं जिनमें से पहली यह थी कि शाहीन देह व्यापार करती थी और इस फ्लेट में एक नौजवान नाम शाहरुख खान के साथ रहते थी जो उसका दामाद है. दरअसल में कुछ साल पहले ही शाहरुख की शादी शाहीन के बेटी शबनम ( बदला नाम ) से हुई थी.

आमतौर पर जैसा होता है कि शादी के बाद के कुछ दिन तो ठीक ठाक गुजरे लेकिन इसके बाद शाहीन और शाहरुख एक दूसरे को दिल दे बैठे. जब सास जवाईं के मन मिल गए तो तन मिलने में भी देर नहीं लगी. दोनों पहले तो चोरी छुपे और फिर चोरी न छुपने पर दिन दहाड़े जिस्मानी ताल्लुकात बनाने लगे. नौबत यहां तक आ पहुंची कि शबनम कुछ न कर पाने की बेबसी के चलते अपने नाना के यहां रहने चली गई और शाहीन ने दामाद शाहरुख को पाने के लिए अपने शौहर को तलाक दे दिया. इसके बाद सास दामाद दोनों अलग लिव इन में रहने लगे.

अब तक बात समाज और रिश्तेदारी में आम हो चुकी थी लेकिन किसी ने इनके चक्कर में अपनी टांग नहीं अड़ाई . कुछ दिनों बाद ही शाहरुख को एक ऐसी बात पता चली जो कुछ लोगों को पहले से ही मालूम थी कि शाहीन देह व्यापार करती है. यह बात जानकारी में आते ही शाहरुख ने उसे इस दलदल से बाहर आने को कहा तो शाहीन ने इंकार कर दिया. लिहाजा दोनों में हर कभी झगड़ा होने लगा. अब शाहरुख को समझ आया कि देह व्यापार करने वाली अपनी सास के लिए उसने शबनम जैसी नेक बीवी को छोडकर भारी गलती कर डाली है लेकिन बात इतनी बिगड़ चुकी थी कि अब कुछ हो भी नहीं सकता था.

शबनम पर जो गुजर रही थी उसका अंदाजा शायद ही कोई लगा सके. एक तरफ जन्म देने वाली मां थी तो दूसरे तरफ वह शख्स था जिसे वह निकाह के बाद सरताज मानने लगी थी लेकिन इन दोनों ने ही उसके जज़्बातों और अपने रिश्ते की कद्र और परवाह ना करते जो किया था वह किसी भी बीवी के लिए किसी सदमे से कम नहीं था .

बहरहाल अपने किए पर पछता रहे शाहरुख ने शाहीन को 19 अक्तूबर को फिर समझाया कि वह जिस्म के कारोबार को छोड़ दे और उसके साथ इज्जत से रहे तो शाहीन ने साफ मना कर दिया. इस पर दोनों में खूब झगड़ा हुआ और गुस्साये शाहरुख ने अपनी सास या लिव इन पार्टनर कुछ भी कह लें का गला रेत दिया और उसे तड़प तड़प कर मरने छोड़ फरार हो गया.

जाते जाते उसने यह बात और शाहीन की हकीकत अपने एक दोस्त को बता दी थी. इसी दोस्त के जरिये पुलिस को पता चला कि मामला क्या था तो पुराने मामले खोलने यानि तफ्शीश में उसे पता चला कि शाहीन एक साल पहले ही देह व्यापार के मामले में गिरफ्तार भी हो चुकी है. इन लाइनों के लिखे जाने तक शाहरुख गिरफ्तार नहीं हो पाया था लेकिन लग नहीं पा रहा कि वह ज्यादा दिनों तक पुलिस से बच पाएगा.

लेकिन सोचने वाली बात यह है कि शाहीन ने क्या सोचकर अपनी ही बेटी का घर उजाड़ डाला और बेटे समान दामाद के साथ शारीरिक संबंध बना डाले, इस बारे में हालफिलहाल सभी खामोश हैं शाहीन का शौहर भी कुछ नहीं बोल रहा और शबनम भी चुप है और यह तय है कि इन दोनों के पास बोलने को कुछ बचा भी नहीं है, एक का शौहर बेईमान निकला तो दूसरे की बीबी बेवफा निकली.

जाने क्यों शाहरुख ने भी यह नहीं सोचा कि अच्छी खासी जवान बीवी को छोड़ अधेड़ उम्र की बदचलन सास के साथ नाजायज तरीके से रहने से उसे क्या मिलेगा. अब अदालत में जो होगा सो होगा लेकिन असल इंसाफ तो हो ही गया है. शाहीन ने बेटी से उसका शौहर छीनने का जो गुनाह किया था उसकी सजा तो उसे वही दामाद दे गया और शाहरुख बीवी को छोड़ सास को ही बीवी बनाने की सजा अभी फरारी की शक्ल में भुगत रहा है और पकड़े जाने के बाद जेल की चक्की पीसते भुगतेगा.

हर मां चाहती है कि बेटी को हेंडसम और स्मार्ट पति मिले जो उसे दुनिया भर के सुख दे लेकिन इस मामले को देख लगता है कि शायद शाहीन शबनम से जलती थी जो उसने जानबूझकर शाहरुख को अपने हुस्न और अदाओं के जाल में फंसाया, तब उसे लगा होगा कि अब शाहरुख भी उसके इशारों पर नाचेगा लेकिन यह वह भूल गई थी कि शाहरुख उसका ग्राहक नहीं बल्कि कम उम्र कच्चा आशिक है जो उसे सही रास्ते पर लाना चाहता था पर वह नहीं मानी तो अंजाम एक हैरतअंगेज जुर्म की शक्ल में सामने आया.

पत्नी का षड्यंत्र, पति को गोली!

Crime News in Hindi: जिन आरोपियों की तलाश में पुलिस इधर-उधर भटकती रही और यहां तक की थाना प्रभारी की पिटाई तक हो गई . उस हत्या के पार्श्व मे कोई और चेहरा, विलेन  नहीं बल्कि उसी की पत्नी का कारनामा उजागर हुआ है. पत्नी मंजू बघेल (Manju Bhagel) ने अपने प्रेमी(Lover) और उसके साथियों के साथ मिलकर अपने ही पति कामता बघेल (Kamta Bhagel) की गोली मारकर हत्या की वारदात को अंजाम दिया था. छत्तीसगढ़ (Chhattishgarh) में घटित इस सनसनीखेज वारदात राष्ट्रीय स्तर पर हुई थी बलौदा बाजार भाटापारा (Balauda Bazar Bhatapara) शांत जिला कहलाता है जहां भाटापारा थाना के एक खेत में सुबह-सुबह एक शख्स को गोली मार दी जाती है पुलिस इस मामले पर सतर्क होती है और या हत्याकांड (Murder) चर्चा का बयास बन जाता है इस एक तरह से अबूझ हत्याकांड की सच्चाई आपको सोचने पर विवश कर देगी कि समाज में आज क्या क्या घटित हो जाता है और उसके दुष्परिणाम परिवार को भोगना पड़ता  है.

पति लगने लगा, जब प्रेम में रोड़ा

बलौदा बाजार भाटापारा जिला की पुलिस कप्तान नीथू कमल ने मामले का खुलासा करते हुए संवाददाता को बताया कि गोलीकांड में मृतक पति कामता बघेल की पत्नी आरोपी मंजू बघेल, आशिक यदु कुमार नवरंगे और साथी रामू यादव व राजा बाबू को गिरफ्तार किया गया है. इन चारों ने ही मिलकर हत्याकांड को अंजाम दिया था.

पुलिस द्वारा हत्या में इस्तेमाल पिस्टल को बरामद कर लिया गया है. पाठकों को बताते चलें कि कामता बघेल की हत्या भाटापारा के ग्राम सुरखी शराब भट्ठी के पास 5 अक्टूबर 2019 को की गई  थी.मृतक की पत्नी मंजू बघेल पूर्व में सब्जी मंडी भाटापारा में मजदूरी का काम करती थी.

यही उसका आलू प्याज,टमाटर बेचने वाले बिटकुली के निवासी यदू नवरंगे से प्यार हो गया था. इसकी जानकारी पति को 6 महीने पहले लगी थी. जिसके बाद पति ने पत्नी को समझाया और ताड़ना भी की.  जब समझाने का बाद भी बात नहीं बनी तो परिवार मे विवाद बढ़ने लगा, कामता बघेल का जीवन दूभर हो गया.

प्रेमी के साथ किया षड्यंत्र

कामता की पत्नी मंजू पति को छोड़कर एक दिन अपने मायके चली गई. कामता परेशान रहने लगा. कामता कोशिश करता रहा कि मंजू बघेल को सद्बुद्धि आ जाए मगर प्रेम के भंवर में फंस कर वह मानो सब कुछ भूल चुकी थी. यही कारण है कि पति को रास्ते से हटाने के लिए उसने अपने प्रेमी के साथ मिलकर षड्यंत्र रचा और 1 दिन गोली मारकर कामता बघेल की हत्या कर दी गई.

पुलिस इस मामले में लगातार कांच तेज करती चली गई परिणाम स्वरूप सूचना मिलने पर आरोपी यदू कुमार नवरंगे को पूछताछ की गयी. पूछताछ में पता चला कि कामता की पत्नी का यदू कुमार नवरंगे से लगातार संपर्क था और दोनों के बीच प्रगाढ़ प्रेम संबंध भी था.

पुलिस जांच में यह भी स्पष्ट होता चला गया कि मृतक के कारण दोनों का मिल पाना संभव नहीं हो पा रहा था जिस पर मृतक की पत्नी ने यदू नवरंगे के साथ मिलकर चन्द्रकात बघेल उर्फ कामता को रास्ते से हटाने का प्लान बनाया. पति को रास्ते से हटाने के बाद एक साथ आंध्र प्रदेश या अन्य किसी प्रांत भाग जाने योजना भी उन्होंने बना रखी थी.

मृतक कामता की पत्नी मंजू के खातिर षड्यंत्र कारी यदू कुमार नवरंगे अपने पत्नी एवं बच्चों को भी छोड़ने के लिए तैयार हो चुका था. सहयोगी आरोपी रामू यादव के पास पिस्तौल थी. जिससे कामता बघेल को मारने  स्वीकृति दे दी. यदू कुमार नवरंगे द्वारा अपने अन्य दो दोस्त रामू यादव और राजा बाबू के साथ मिलकर कामता को मिलने के लिए बुलाया.

शराब भट्टी सुरखी रोड के पास रामू यादव एवं यदू कुमार नवरंगे ने कामता की गोली मारकर हत्या कर दी और रामू यादव ने उपयोग किए गए पिस्तौल को सुरखी पुल के पास छुपा कर रख दिया था. पुलिस ने अब चारों आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है. घटना में इस्तेमाल बाइक एवं पिस्तौल को आरोपियों के कब्जे से मेमोरेंडम के आधार पर बरामद कर लिया गया है.

पीरागढ़ी कांड: मासूम किशोरी के साथ वहशीपन का नंगा नाच

Crime News in Hindi: घरों में अकेले रहना अब मासूमों के लिए ज्यादा मुफीद नहीं रहा है. चोरी के मकसद से आए चोरों ने मासूम किशोरी के साथ दर्दनाक और दिल दहला देने वाली घटना को अंजाम दिया और फरार हो गए.यह घटना दिल्ली के पीरागढ़ी( Peeragarhi Crime) इलाके में 4 अगस्त, 2020 को घटी. मांबाप तो हर रोज की तरह सुबह ही काम पर चले गए थे, वहीं बड़ी बहन भी दोपहर में काम पर चली गई थी. अनुमान है कि शाम के तकरीबन 4 बजे 12-13 साल की किशोरी कमरे में अकेली थी, तभी चोर चोरी के मकसद से घर में घुसे. अजनबी शख्स को कमरे में देख किशोरी ने शोर मचाया, पर उस की चीख कमरे में ही दब गई. चुप कराने की कोशिश में चोरों ने उस के साथ दरिंदगी की. विरोध करने पर कैंची से उस के सिर और शरीर को बुरी तरह गोद डाला.

घायल होने के बाद भी किशोरी बड़ी बहादुरी से इन चोरों से काफी देर तक जूझती रही. खून से नहाई मासूम को आखिर मरा समझ कर आरोपी फरार हो गए.

काफी देर तक वह बच्ची कमरे में बेसुध रही, उस के बाद जैसेतैसे कमरे से घिसटते हुए वह बाहर आई और पड़ोसी के दरवाजे को खटखटा कर इशारे से खुद की हालत बयां करते हुए फिर बेहोश हो गई. उस के निजी अंगों से लगातार खून बह रहा था.

किशोरी की ऐसी बुरी हालत देख पड़ोसी भी सहम गए. तुरंत ही इस की सूचना पुलिस को दी गई. साथ ही, उस के मातापिता को भी इस हादसे के बारे में बताया गया.

सूचना मिलने पर पश्चिम विहार वेस्ट थाने की पुलिस आई और बच्ची को संजय गांधी अस्पताल में भरती कराया. उस के सिर और हिप्स में किसी धारदार हथियार से कई वार किए गए थे. डाक्टरों ने फौरन ही बच्ची के सिर व कटे हुए हिस्सों में टांके लगाए और हाथोंहाथ एम्स रेफर कर दिया.

किशोरी ने जो बयान दिया, उस के आधार पर इस वारदात में 2 लड़के शामिल हैं. पुलिस के मुताबिक, 13 साल की किशोरी अपने परिवार के साथ पीरागढ़ी में किराए के मकान में रहती है. परिवार मूल रूप से बिहार का रहने वाला है. जिस कमरे में परिवार रहता है, वह बिल्डिंग तीनमंजिला है. इस बिल्डिंग में छोटेछोटे तकरीबन 2 दर्जन कमरे बने हुए हैं. ज्यादातर आसपास की फैक्टरियों में लेबर का काम करते हैं. बच्ची के परिवार में मातापिता और एक बड़ी बहन है. वे सभी एक फैक्टरी में लेबर का काम करते हैं.

तकरीबन साढ़े 5 बजे फोन के जरीए पुलिस को सूचना मिली थी. आशंका है कि बच्ची के साथ 4 बजे के आसपास वारदात हुई. शुरुआती जांच में उस मासूम किशोरी के साथ सैक्सुअल एसौल्ट की पुष्टि हुई.

पुलिस ने हत्या की कोशिश और पोक्सो एक्ट समेत कई धाराओं में केस दर्ज कर आरोपियों की तलाश में संभावित ठिकानों पर छापेमारी की. तकरीबन 36 घंटे बाद यानी 3 दिन बाद एक आरोपी को पकड़ने का पुलिस ने दावा किया.

पुलिस के मुताबिक, आरोपी ड्रग एडिक्ट है. उस पर पहले से ही चोरी के अलावा दूसरे आपराधिक मामले दर्ज हैं. इस के कारण वह जेल भी जा चुका है.

हाल ही में आरोपी जेल से बाहर आया था. जेल से छूटने के बाद पास के पार्क में ही आरोपी ठहरता था. पुलिस को आरोपी के बारे में सीसीटीवी कैमरे से सुराग हाथ लगा.

घटना को अंजाम दे कर आरोपी फरार होने के बाद आसपास की जगहों पर छिप रहा था. केस की पड़ताल में पुलिस ने क्रिमिनल अपराधियों की हिस्ट्रीशीट खंगाली. इस के अलावा जमानत पर छूट कर आए चोरउचक्कों की लोकेशन का पता किया. सीसीटीवी, पड़ोसियों और 100 से अधिक संदिग्धों से पूछताछ के बाद जांच की सूई इस आरोपी पर आ कर टिकी.

पुलिस के मुताबिक, वारदात के समय आरोपी नशे में था और चोरी के इरादे से कमरे में घुसा था. कमरे में अकेली बच्ची ने जब उसे टोका और शोर मचाने की कोशिश की तो  उस ने दबोच लिया.

आरोपी ने नशे में बेरहमी से लड़की पर कैंची से ताबड़तोड़ वार किए और उसे मरा हुआ समझ कर फरार हो गया.

पुलिस ने जब आरोपी को पकड़ा, तब उस के शरीर पर खरोंच के निशान पाए गए थे. इस से खुलासा यह हुआ कि बहादुर किशोरी ने जम कर मुकाबला किया.

वहीं दूसरी ओर जांच में जुटी टीम का मानना है कि मासूम बेसुध होने तक आरोपियों से मुकाबला करती रही. कमरे में बिखरा खून और पास ही पड़ी कैंची इस ओर इशारा कर रहे थे.

कैंची खून से सनी फर्श पर पड़ी थी. पास ही में सिलाई की मशीन रखी हुई थी. उसी सिलाई मशीन पर कैंची रखी थी. माता, पिता और बड़ी बहन हर रोज की तरह काम पर चले जाते थे. घर में किशोरी के पास मोबाइल फोन रहता था, पर वह बंद था.

मासूम किशोरी का एम्स में इलाज चल रहा है और वह जिंदगी और मौत से जूझ रही है. पर, उस ने अपने ऊपर हो रहे जुल्म का डट कर विरोध किया और उन से जम कर जूझी भी. वहीं जेल से छूट कर आए अपराधियों पर पुलिस का नकेल न कस पाना ऐसे अपराधों को बढ़ाने में मददगार साबित हो रहा है.

लगता है, समाज में ओछी यानी गिरती हुई सोच और बदली मानसिकता पर लगाम लगा पाना बेहद मुश्किल साबित हो रहा है, तभी तो इनसानियत यों शर्मसार हो रही है. यही वजह है कि आएदिन मासूम बच्चियों व किशोरियों पर हमले की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं.

 

कैंची खून से सनी फर्श पर पड़ी थी. पास ही में सिलाई की मशीन रखी हुई थी. उसी सिलाई मशीन पर कैंची रखी थी. घर में किशोरी के पास मोबाइल फोन रहता था, पर वह बंद था.

इश्क में हुआ अंधा, पर क्या मिला माशूक

Crime News in Hindi: सेक्स की चाहत (Sex Desire) और उसके नशे में, आदमी विवेकशील न हो तो अपना सब कुछ खो बैठता है. और कुछ इस कदर अंधा हो जाता है कि खून के रिश्ते भी छोटे पड़ जाते हैं. छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के जिला भाटापारा (Bhatapara) बलोदा बाजार के थाना बिलाईगढ़ (Bilaigarh Police Station) में एक ऐसा ही हत्याकांड घटित हुआ जिसमें एक भाई ने अपने चचेरे भाई को सिर्फ और सिर्फ इसलिए मौत के घाट उतार दिया क्योंकि वह उसकी पत्नी अर्थात् अपनी भाभी से प्यार करने लगा था और उसे किसी भी हालात में प्राप्त करना चाहता था. दरअसल, देवर ने भाभी की किसी भी हालत में हासिल करने की चाहत में अपने बड़े भाई की हत्या कर दी. पुलिस ने आशिक हत्यारे को अपनी गिरफ्त में ले लिया है.अब हालात यह है कि वह अपने भाई को खो चुका है और अपनी चाहत को भी. पढ़िए छत्तीसगढ़ की ग्रामीण अंचल की एक सनसनीखेज मर्डर मिस्ट्री (Murder Mystrey).

माया  मिली न राम!

हत्या के बाद आरोपी, अपनी भाभी को अपनाना चाहता था, लेकिन मृतक की पत्नी ने उसके चेहरे पर थूक दिया. इस तरह हत्या करने के बाद में कहा जा सकता है कि उस शख्स को ना तो माया मिली और ना ही राम! और जैसा कि अक्सर होता है उसकी पोल खुल गई. हत्या का खुलासा मृतक का कपड़ा मिलने से हुई. जांच में पुलिस ने शव बरामद कर परिजनों से पूछताछ की तो करीबियों पर शक हुआ. पुलिस जांच में जुटी ही थी कि आरोपी ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. थाना बिलाईगढ के प्रभारी  व मामले के जांच  अफसर राजेश साहू के अनुसार महेश्वर साहू की पत्नी ने रविवार सुबह थाने आकर रिपोर्ट दर्ज कराई कि शनिवार रात 8 बजे से उसके पति तालाब जाने के लिए घर से निकले थे, लेकिन अभी तक घर नहीं आये है.
इस शिकायत के आधार पर पुलिस ने गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज की. रिपोर्ट के बाद पुलिस लगातार जांच में जुटी थी.इस दौरान महेश्वर साहू के कपड़े गांव के तालाब के पास मिले. साथ ही तालाब के पास शराब की बोतले भी थी. मौके पर पहुंचकर जब जांच की गई तो उसकी लाश मिल गई. पुलिस को मामला संदेहजनक लगा. मृतक के घर जाकर परिजनों से पूछताछ की गई. पूछताछ में आरोपी संजय भास्कर ने अपने चचेरे बड़े भाई की हत्या करना स्वीकार कर लिया.

भाभी के प्यार मे हत्या 

अंततः हत्यारे ने पुलिस के समक्ष सच्चाई स्वीकार कर ली और सब कुछ सच-सच बता दिया.पहले तो उसने पुलिस को गुमराह करने शराब के लिए हत्या करने की बात कही. जब कड़ाई से पूछताछ की गई तो आरोपी ने अपने भाभी से प्यार करने की बात कबूल कर ली. उसने कहा भाभी को पाने के लिए ही बड़े भाई की हत्या करने की साजिश रची थी.
आरोपी संजय ने बताया कि 25 अप्रैल 2020 को हत्या की योजना बनाकर चचेरे भाई को तालाब के  किनारे शराब पिलाने के बहाने ले गया. नशा चढ़ते ही धारदार तलवार ले उसे मारने की कोशिश की तो वह भागा मगर अंततः वार कर उसने हत्या कर दी. तत्पश्चात स्वयं को बचाने के लिए लाश में पत्थर बांधकर उसे फेंक दिया.अब हालात यह है कि वह एक हत्या का आरोपी बन चुका है और जिसे वह चाहता था वह भाभी भी उससे नफरत करने लगी है और चाहती है कि उसे फांसी हो जाए.

कहीं आप भी तो नहीं हो रहे ‘हेरा फेरी’ जैसी ठगी के शिकार!

Crime News in Hindi: अक्षय कुमार (Akshay kumar), सुनील शेट्टी (Sunil Shetty), परेश रावल ({Paresh Rawal) अभिनीत फिल्म ‘हेरा फेरी’ (Movie Hera Pheri) तो आपको याद होगी. जिसमें ठगी को बड़े ही सरल ढंग से दिखाया गया है. फिल्म में पैसे उधार लेकर के भी लोग दांव लगा देते हैं क्योंकि उन्हें उम्मीद रहती है कि पैसा कई गुना ज्यादा हो जाएगा. सच तो यह है कि यह एक तरह से कुछ चालबाज नेताओं और सत्ताधारी पार्टियों के कार्यकर्ताओं का अघोषित धंधा बना हुआ है. नेताओं के संरक्षण में पुलिस (Police) भी कार्रवाई नहीं करती और प्रार्थी को डपट कर थाने से भगा देने के भी कई किस्से अक्सर हमने सुने हैं. यह भी सच है कि बहुत से मामले स्वंय ही दब जाते हैं और पुलिस तक तो गिनती के ही मामले पहुंचते हैं. यह भी गंभीर तथ्य है कि कई मामलों में फरियादी थाना पुलिस के आगे पीछे घूमता रहता हैं.

क्योंकि कुछ मामलों मे फरियादी के पास पर्याप्त साक्ष्य नहीं होते है. जिससे आरोपी को न्यायालय मे सजा दिलाई जा सके,कई मामलों मे पुलिस जानबूझकर कर अपराध दर्ज नहीं करना चाहती. इस प्रकार पीड़ित व्यक्ति को न्याय नहीं मिल पाता. कई बार पीड़ित ब्याज पर उधार लेकर, पैसा ठग को दे देता है, ठगी का शिकार होने से, जिनसे उधार लिए होते है उनको वापस करना मुश्किल हो जाता है. फिर वे भागते फिरते हैं या आत्महत्या कर लेते हैं.

पहला किस्सा-

छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर के केदारपुर निवासी जगदीश विश्वकर्मा ने घर में गड़े धन और उसके अदृश्य रक्षकों द्वारा बढ़ाई जा रही परेशानी को दूर कराने के चक्कर मे 21 तोला सोना और 40 हजार रुपए नगद गंवा दिया. करीबी महिला रिश्तेदार के झांसे में आए परिवार के बाबा ने जैसा कहा वे वैसा करते चले गए.

बाबा ने पीतल के मटके में लिपटे सांप से बात करके इन्हें औऱ भी आश्चर्य में डाल दिया था. कथित विघ्नहर्ता बाबा ने स्वार्थ पूरा होने पर इनसे दूरी बनाई तब ठगी का एहसास हुआ. कथित तांत्रिक आचार्य संजय शर्मा द्वारा पैसा एवं सोना ठगी करने की रिपोर्ट सरगुजा अंचल के अंबिकापुर कोतवाली थाने में दर्ज कराई गई है.

दूसरा किस्सा- 

संस्कारधानी कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में एक भौमिक नामक शख्स ने पौश इलाके में एक दमकती दुकान खोली और यह विज्ञापन देना शुरू किया कि आइए लोन लीजिए. लोग अपनी जमीन के कागजात के दस्तावेज जमा करते चले गए और ठगराज भौमिक ने बैंक से सांठगांठ करके उनके दस्तावेजों के आधार पर लगभग 9 करोड़ रुपए बिलासपुर की पांच बैंकों से निकलवा लिया.जब यह जानकारी लोगों को हुई तो बिलासपुर पुलिस अधीक्षक के पास शिकायत पहुंची जांच शुरू हुई तो मामला सामने आ गया. पुलिस ने कथित ठग भौमिक के खिलाफ जांच प्रारंभ कर दी है.

तीसरा किस्सा-

छत्तीसगढ़ की औद्योगिक नगर कोरबा में छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत मंडल, रेलवे में नौकरी दिलाने के नाम पर विद्युत मंडल के एक पूर्व कर्मचारी ने जिला चांपा जांजगीर, कोरबा के कुछ बेरोजगारों को भ्रमित कर की उन्हें नौकरी दिलाई जाएगी. लगभग बीस लाख रुपए वसूल कर लिए. लंबे समय तक जब नौकरी नहीं लगी तो युवा थाना पहुंचे और मामला रंग लेने लगा. जांच पड़ताल में मामला सही पाया गया और आरोपी को जेल दाखिल कर दिया गया.

देश में बेरोजगार युवाओं को ठगने का धंधा हर कोने में फल-फूल रहा है. हर दिन कहीं न कहीं से अखबारों में ऐसी खबरें सुर्खियां बटोरती रहती हैं कि किसी बेरोजगार युवक का पिता, परिजन या फिर स्वयं बेरोजगार युवक-युवती नौकरी लगाने के नाम पर, मोबाइल टावर लगाने के नाम पर, रूपये दुगुना-तिगुना करने के नाम पर, इंश्योरेंस के नाम पर, मेडिकल कालेज मे एडमिशन के नाम पर, जमीन खरीदने के नाम से, शादी के नाम पर और न जाने  कितने प्रकार के फ्राड के शिकार युवा बेरोजगार और अभिभावक लोग होते रहते है. इस संदर्भ में छत्तीसगढ़ के आईपीएस रतनलाल डांगी कहते हैं कि-“कई मामलों मे तो पीड़ित व्यक्ति लोकलाज के कारण कहीं पर शिकायत भी नहीं करता, कुछ मामलों मे पीड़ित जब शिकायत करता हैं तब तक बहुत देर हो चुकी होती हैं. ठगने वाले लोग अपना ठिकाना व सम्पर्क नम्बर बदल चुके होते हैं.”

हमारे संवाददाता से बातचीत में रतनलाल डांगी ने बताया की कई मामलों में दोनों पक्षों के बीच कम ज्यादा करके रकम वापसी का प्रयास चलता रहता है, कई मामलों मे रुपये के लेनदेन का कोई साक्ष्य भी नहीं होता हैं, कई मामलों में रूपये की वापसी किश्तों मे देने की बात करके पीड़ित को घुमाते रहते है.

दुखी पीड़ित आत्महत्या भी कर लेते हैं…

परेशान होकर कुछ पीड़ित न्याय मिलने से पहले ही जीवन लीला समाप्त कर लेते है. जिससे परिवार पर और असहनीय दुखों का पहाड़ टूट पड़ता हैं.कुछ संवेदनशील पुलिस अधिकारी मामला दर्ज भी कर लेते हैं. न्यायालय से मामलों में निराकरण तक कोई रकम पीड़ित को वो रकम वापस नहीं मिलती है और आरोपी उसी पैसे से अपना मामला अदालत मे लड़ते  रहते हैं. आज की सच्चाई है की शिक्षित बेरोजगार कानून की जानकारी नहीं होने की कारण और देश की लुंज पुंज व्यवस्था के कारण दोनों हाथों से ठगे जा रहे हैं. इसके लिए कानून भी जहां लचर है वही प्रश्न यह भी है कि एक पढ़ा-लिखा व्यक्ति जबकि आज टीवी और समाचार पत्रों में लगातार ऐसी खबरें आ रही हैं फिर पैसे देकर ठगी का शिकार क्यों हो रहा है. मां-बाप के वर्षों से कमाये हुए पैसों को गंवा कर अपनी इह लीला समाप्त कर रहा है.

युवाओं को सचेत रहना आवश्यक…

ऐसे युवाओं को पुलिस अधिकारी विवेक शर्मा का संदेश पढ़कर गांठ बांध लेना चाहिए की अगरचे रुपये से ही नौकरी लगती तो आज  केवल अमीर लोगों के ही बच्चे सरकारी नौकरी में होते. सरकारी नौकरी शिक्षा से ही मिलती है. असफल रहने वाले और  मेहनत न करके अपने आपको सांत्वना देने और अपनी कमजोरी छिपाने के लिए लोग कहानी गढ़ लेते है कि बिना पैसे दिए लिए कुछ नहीं होता है.

यह समझने की बात है कि आप किसी तरह का शोर्टकट रास्ता न खोजें और न किसी के झांसे में आए. आपको बालक ध्रुव की कहानी स्मरण होनी चाहिए जब वह प्रभु को ढूंढने निकलता है तो उसे नारद मुनि कहते हैं कि प्रभु को पाने के दो रास्ते हैं एक कठिन जिसमें कांटे हैं पत्थर हैं दूसरा सरल. बालक ध्रुव कठिन रास्ते को अपनाते हैं और प्रभु को आप जानते ही हैं कि प्राप्त कर लेते हैं. अतः आप पढ़िए डिग्री प्राप्त करिए नौकरी आपका इंतजार कर रही है किसी के झांसे में ना आइए.

झांसे देने वाले से कहिए…

अगर आपको कोई नौकरी देने की बात कहता है तो उससे एक बात कहिए कि क्या आप स्टांप पेपर पर लिखित में दे सकते हैं की मैं नौकरी दिलाऊंगा. आप देखेंगे यह सुनते ही वह गायब हो जाएगा. वहीं अगर आप झांसे में आ गए हैं तो समझदारी से काम लें और सुबूत इकट्ठा करें कि आपने फलां व्यक्ति को पैसे दिए हैं और निकट के थाना में शिकायत दर्ज कराएं. कोई भी कदम उठाने से पहले हर बात को तस्दीक कीजिए. संदेह होने से पुलिस को अनिवार्य रूप से सूचना दीजिए. लोकलाज मे किसी बात को छिपाने का काम न कीजिए, हो सकता है आपके द्वारा ऐसी घटना उजागर करने से आपके और भी साथी ठगी का शिकार होने से बच जाए. आपकी सावधानी ही आपको ठगी का शिकार होने से बचा सकती हैं. जितना रूपये आपसे कोई ठगता है उससे आप कोई काम-धंधा भी शुरू करेंगे तो अच्छा रहेगा. आप नौकरी करने के बजाय नौकरी देने वाले बन सकते हैं.

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