crime story in hindi

crime story in hindi
‘‘उस का नाम बलवंत राय?है और वह भी अपने बाप की तरह राजनीति में कदम रखना चाहता है. उस ने अपनी छवि एक हिंदूवादी नेता के रूप में बनानी शुरू कर दी है, क्योंकि हमारे देश में लोग जातिवाद पर ही सब से ज्यादा आंदोलित होते हैं, इसलिए धर्म की राजनीति कर के वह अपने पिता की राह पर चलना चाहता है और फिलहाल उस ने कुछ गायों को खरीद कर अपने फार्महाउस पर रखवा दिया है, जिन का इस्तेमाल वह आने वाले समय में दंगे फैलाने में कर सकता है… मेरा मतलब समझ रही हैं न आप?’’
‘‘क्या तुम इसी समय मुझे बलवंत राय के बंगले पर ले जा सकते हो? हमें सुबूत इकट्ठे करने होंगे,’’ आफरीन ने कहा.
‘‘ले जा तो सकता हूं, पर जाने से पहले मैं अपने दिल की बात आप से कहना चाहता हूं,’’ अनुभव ने कहा.
‘‘कहिए,’’ आफरीन ने कहा.
‘‘दरअसल, आप जैसी इनसानियत से प्यार करने वाली लड़की मैं ने आज तक नहीं देखी. आप एक अनजान लड़की को इंसाफ दिलाने के लिए अपनी जान खतरे में डाल रही हो और आप का यह जज्बा देख कर मुझे बहुत अच्छा लगा है.
‘‘मैं ने हमेशा से अपने लिए आप जैसी लड़की ही चाही है और मैं आप से यह कहना चाहता हूं कि मुझे आप से प्यार है और मैं आप से शादी करना चाहता हूं,’’ एक ही सांस में कह गया था अनुभव.
अनुभव की बात सुन कर एक पल के लिए रुखसार के गाल लाल हो उठे, पर उस की जबान खामोश हो गई थी. उस के होंठों पर मुसकराहट दौड़ गई थी. आफरीन के होंठ खामोश थे, पर अनुभव को उस का जवाब मिल गया था.
वे दोनों बलवंत राय के फार्महाउस के बाहर थे. अंदर एक ओर घास का छोटा सा मैदान था, जहां पर कई गाय और बछड़े बंधे हुए थे.
आफरीन ने अपने मोबाइल से वीडियो बनाना शुरू किया और धीरेधीरे खिड़की के पास जा पहुंची. बलवंत राय अंदर दोस्तों के साथ बैठा हुआ शराब पी रहा था और उस के दोस्त उस की मक्खनबाजी करने में लगे थे.
‘‘देखना अगला इलैक्शन तो हमारे भैया ही जीतेंगे,’’ एक दोस्त बोला.
‘‘हां, तो राजनीति में है ही क्या… लोगों को धर्म के नाम पर, जाति के नाम पर एकदूसरे से लड़वाओ और राज करो… एक जाति की लड़की का रेप करो तो दूसरी जाति वाले को फंसाओ और दूसरे धर्म की लड़की का रेप करो तो किसी और धर्म के लोगों को फंसाओ.
‘‘अभी देखो न, जब मैं ने चलती कार में उस लड़की का रेप किया तो वह लगी चिल्लाने… मैं ने भी बस चाकू से उस की जीभ काट दी… न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी…’’ बलवंत राय हंसते हुए बोला.
खिड़की के बाहर वीडियो शूट करते हुए आफरीन की आंखें हैरत से फैल गई थीं कि तभी किसी ने पीछे से आ कर उस को पकड़ लिया और उस का मोबाइल छीन लिया.
‘‘क्या रे चिकनी. क्या जासूसी कर रही थी? और तू हमारे टुकड़ों पर पालने वाला कुत्ता… तू अब हमें ही काटने की तैयारी कर रहा था,’’ बलवंत राय के सामने दोनों को ले जाने के बाद वह आगबबूला हो रहा था.
उस के एक आदमी ने उसे बताया कि आफरीन के मोबाइल में गाय और बछड़ों के वीडियो हैं और दोस्तों के साथ हो रही बातें भी रिकौर्ड हैं.
‘‘देखो छमिया. शक्ल से तो कश्मीरी लगती हो. अगर ये सब ले कर तुम पुलिस के पास चली भी जाओगी तो भी पुलिस हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगी. पर, आज हम तेरे इन गालों को काट कर देखेंगे कि इन में कितना रस है और फिर कल तुम पुलिस में चली जाना अपने साथ हुए रेप की खबर देने,’’ बलवंत राय ने आफरीन के गालों को सहलाते हुए कहा.
‘‘नहीं बलवंत राय, आफरीन मेरी होने वाली बीवी है. उसे कुछ मत करना, नहीं तो ठीक नहीं होगा,’’ अनुभव चीख पड़ा था.
‘‘ओह, तो लव का लफड़ा है,’’ इतना कह कर बलवंत राय ने अपनी शर्ट उतार फेंकी और आफरीन की ओर बढ़ा. उस की आंखों में हवस के कीड़े नाच रहे थे कि तभी उस के मोबाइल पर उस के विधायक पिताजी का फोन आ गया.
‘‘अरे, कुछ दिनों के लिए अपनी नीच हरकतों को बंद करो. वह जो लड़की की जबान काटने वाला केस है, वह मीडिया में पहुंच गया है और तुम्हारा नाम भी उछल रहा है. इस तरह तो मेरी कुरसी भी खतरे में पड़ जाएगी, इसलिए कुछ दिन के लिए शुद्ध भगवाधारी ब्रह्मचारी जैसी जिंदगी बिताओ, नहीं तो मैं बचा नहीं पाऊंगा तुम्हें,’’ और इतना कह कर फोन काट दिया.
बलवंत राय काफी कुछ समझ चुका था. वह बोला, ‘‘इन दोनों को बांध कर रखो. इन का इस्तेमाल हम कल होने वाली रैली में करेंगे.’’
अगले दिन ‘बिटिया बचाएंगे… देश जगाएंगे’ नाम की रैली थी. तमाम पुलिस बल इकट्ठा था. तमाम लोगों के ‘हिंदू हृदय सम्राट’ बलवंत राय जनता को संबोधित करने जा ही रहा था कि माइक पर एक महिला की तेज आवाज गूंज पड़ी, ‘‘पाकिस्तान जिंदाबाद, हिंदुस्तान मुर्दाबाद…’’
सब इधरउधर देखने लगे. भला इस रैली में ऐसा नारा कौन लगा सकता है?
एक आदमी आफरीन और अनुभव के मुंह पर टेप लगा कर स्टेज पर खींचता हुआ लाया, जिसे जनता की ओर दिखाते हुए वह आदमी बोला, ‘‘देखो साथियो, हम एकता की बात करते हैं और ये कश्मीरी लोग ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ करते हैं. इतना ही नहीं, ‘‘यह देखिए, इन के पास से गौमांस भी बरामद हुआ है,’’ यह कह कर उस आदमी ने एक बैग में गौमांस लोगों को दिखाया.
‘‘ओह तो ये लोग गाय काट कर पार्टी करते हैं. अब चलेगा इन पर प्रतिबंधित पशु काटने का केस और देशद्रोह का मुकदमा, तब अक्ल ठिकाने आ जाएगी,’’ बलवंत राय ने आफरीन को पुलिस की तरफ धकेल दिया.
अनुभव और आफरीन चिल्लाते रहे कि ये उन के खिलाफ एक साजिश है, पर भला सत्ता में बैठे विधायक के बेटे के खिलाफ उठती आवाजें कौन सुनता?
बेकुसूर को सजा दी गई. आफरीन को देशद्रोही मान कर जेल में डाल दिया गया.
और उस दिन के बाद से आफरीन और अनुभव कभी मिल नहीं सके… न जाने कितने अनुभव और आफरीन जेल में बंद होंगे…
आज आफरीन यह भी नहीं जानती कि अस्पताल में जंग लड़ती लड़की जिंदा भी है या नहीं. अलबत्ता, उसे हर पल यह जरूर जताया जाता है कि उस ने देश विरोधी नारे लगाए हैं और वह एक देशद्रोही है.
डाक्टरों ने उस लड़की की पूरी जांच करने के बाद जो बताया, उस ने आफरीन और उस नौजवान को अंदर तक हिला दिया था.
‘‘इस लड़की के साथ रेप किया गया और जब वह शोर मचाने लगी होगी तो उन दरिंदों ने न केवल उस की जीभ काट दी, बल्कि उस को इतना मारा कि उस की रीढ़ की हड्डी और पैर टूट गए. हमारे लिए इस लड़की को जिंदा रख पाना किसी चुनौती से कम नहीं है,’’ डाक्टर ने कहा.
रात के 3 बजे चुके थे. आफरीन अब भी अस्पताल में ही थी.
‘‘जी देखिए, अब मुझे जाना होगा और मैं आप की हिम्मत की तारीफ करता हूं, जो आप ने इस लड़की की मदद के लिए जुटाई… वैसे, मेरा यह कार्ड रख लीजिए. आप को किसी भी तरह की मदद की जरूरत पड़े, तो मुझ से बात कीजिएगा,’’ वह नौजवान बोला.
एक फीकी सी मुसकराहट से आफरीन ने उस नौजवान को शुक्रिया कहा.
आफरीन भी अस्पताल में ज्यादा देर न रुकी. लड़की के घर वाले कहां हैं? कौन हैं? यह जानने के लिए पीडि़ता का होश में आना जरूरी था, पर डाक्टरों के मुताबिक अभी उस के होश में आने में समय था.
आफरीन अगले दिन काम पर नहीं गई, मन जो उचाट था. दूसरे दिन ही अस्पताल जा पहुंची और पीडि़ता का हाल जाना. पीडि़ता की आंखों में आंसू थे, जो सिर्फ दर्द बयां कर रहे थे. वह बोल तो नहीं सकती थी, पर लिख तो सकती?है, यह खयाल आते ही आफरीन ने उसे अपना पैन और कौपी दी, जिस पर पीडि़ता ने बड़ी मुश्किल से एक मोबाइल नंबर लिखा और एक कार का नंबर.
मोबाइल नंबर उस लड़की के पिताजी का था, जिन्हें आफरीन ने सीधे अस्पताल आने को कहा और कार का नंबर उस गाड़ी का रहा होगा, जिन लोगों ने उस का रेप कर के उसे बीच रास्ते में फेंक दिया होगा.
इंटरनैट और तकनीक के दौर में कार के असली मालिक का पता लगाना कोई मुश्किल काम नहीं था. आफरीन ने गाड़ी के मालिक का पता लगाया तो उसे पता चला कि गाड़ी का मालिक और कोई नहीं, बल्कि सत्तारूढ़ पार्टी के विधायक का बेटा है.
‘‘नाम इतना बड़ा और काम इतना नीच…’’ तिलमिला उठी थी आफरीन, ‘‘पर, ऐसे भेडि़यों को सजा दिला कर रहूंगी मैं.’’
‘‘पर, तू क्या सजा दिलाएगी उन लोगों को जिन्होंने एक लड़की पर बिलकुल भी दया नहीं दिखाई और उलटा उस की जीभ ही काट ली और फिर मत भूल कि तू इस बड़े और अजनबी शहर में अकेली रह रही है और यहां कोई भी नहीं है जो तेरा साथ दे, तेरे पास सुबूत भी क्या?है उस विधायक के बेटे के खिलाफ?’’ अपनेआप से ही सवाल किया था आफरीन ने.
आफरीन ने अपने हैंडबैग में हाथ डाला तो उस नौजवान का कार्ड हाथ में आ गया, जिस ने आफरीन की मदद की थी. उस का नाम अनुभव शर्मा था और वह उसी विधायक का सचिव था, जिस के बेटे ने रेप किया था.
‘‘तो मुझे सुबूत के लिए अनुभव से मिलना होगा,’’ ऐसा सोच कर आफरीन दिए गए पते पर चली गई और अनुभव से मुलाकात कर उस से मदद मांगी.
‘‘जी बिलकुल. मैं आप की पूरी तरह से मदद करूंगा, पर भला क्या मदद चाहिए आप को?’’
‘‘दरअसल, उस दिन आप ने इस लड़की को अस्पताल पहुंचाने में मेरी मदद की थी. मैं ने उस लड़की से जबरदस्ती करने वाले का पता लगा लिया है और मैं उन लोगों को सजा दिलाना चाहती हूं,’’ आफरीन ने कहा.
‘‘जी, ऐसे लोगों को सजा जरूर मिलनी चाहिए, पर वह कमीना है कौन और कहां रहता है?’’ अनुभव ने पूछा, तो बदले में आफरीन ने उस गाड़ी का नंबर आगे कर दिया, जिसे देख कर अनुभव को समझते देर नहीं लगी कि आफरीन क्या कहना चाह रही है.
‘‘पर आफरीनजी, मैं इन लोगों के लिए काम करता हूं और बदले में ये लोग मुझे पैसे देते हैं. भला मैं इन से गद्दारी कैसे कर सकता हूं?’’
अनुभव की बातें सुन कर आफरीन को धक्का सा लगा था. वह कुछ बोल तो न सकी, पर उस की कश्मीरी आंखों में झील सी लहरा आई थी.
‘‘आप मेरी मजबूरी को समझिए आफरीनजी,’’ अनुभव ने कहा.
‘‘जी हां, आप मर्दों की मजबूरी मैं खूब समझती हूं और आप भला क्यों मजबूर होंगे. वह लड़की आप की रिश्ते में कुछ भी तो नहीं लगती थी, पर भला तब भी आप अपनी मजबूरी इसी तरह तब जाहिर करते जब वह पीडि़ता आप की बहन या बेटी होती?’’ आफरीन गुस्से से बोली और वहां से उठ कर चली गई और अनुभव उसे देखता रह गया.
रेप की उस पीडि़ता के परिवार वालों का बुरा हाल था. खुद पीडि़ता जिंदगी और मौत की जंग लड़ रही थी. पुलिस सुबूतों की कमी में खामोश थी और आफरीन के अंदर अब भी बेचैनी थी.
रात के 9 बजे अनुभव ने आफरीन को फोन कर के उस से मिलने की इच्छा जाहिर की, तो आफरीन ने बेहिचक हो कर उसे अपने फ्लैट पर बुला लिया.
‘‘आफरीन जी देखिए, उस दिन आप की बातों ने मेरे जमीर पर गहरी चोट पहुंचाई थी, पर उस दिन मैं अपनी ड्यूटी पर था और चाह कर भी आप की मदद नहीं कर सकता था. पर आज मैं उस विधायक की नौकरी को लात मार आया हूं और आप के मिशन में आप के साथ हूं. बताइए, मुझे क्या करना होगा?’’
‘‘मुझे आप सिर्फ उस विधायक के बेटे के बारे में कुछ जानकारी दीजिए, मसलन, वे लोग क्या करते हैं? कैसे आदमी हैं? वगैरह…’’
‘‘वे लोग अपनी राजनीति के लिए कुछ भी कर सकते हैं. रेप और खून करना उन के लिए आम बात है और मैं तो आप से यही कहूंगा कि उन लोगों से अपना ध्यान हटा कर आप अपना काम करें तो बेहतर होगा,’’ अनुभव ने आगे बोलना शुरू किया.
‘‘राजनीति का एक रूप यह भी हो सकता है… और वे लोग इस हद तक भी जा सकते हैं… मैं ने कभी नहीं सोचा था,’’ जेल की एक सीलन भरी कोठरी में पड़ी हुई एक लड़की बुदबुदा उठी थी.
वह लड़की, जिस का नाम आफरीन था, को देख कर कोई भी कह सकता था कि उस के चेहरे का उजलापन चांद को भी मात करता होगा, पर अब इस उजलेपन पर अमावस की छाया पड़ गई थी और उस का चेहरा बुझ सा गया था, उस की आंखों को काले गड्ढों ने आ कर दबोच लिया था.
आफरीन के शरीर में जवानी के जितने भी प्रतीक थे, वे सारे अब उस की बदहाली बतलाते थे और भला ऐसा होता भी क्यों न. बेचारी आफरीन पर देशद्रोह का आरोप जो लगा था. जी हां, देशद्रोह का.
अपने देश भारत के दुश्मन पाकिस्तान को ‘जिंदाबाद’ कहने का आरोप लगा था आफरीन पर.
पर आफरीन ही क्यों? भला कोई भी सच्चा भारतीय ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ के नारे क्यों लगाएगा?
आफरीन का जन्म कश्मीर में हुआ था. उस के अब्बू का सूखे मेवों का कारोबार था. आफरीन की नानी पाकिस्तान के लाहौर से थीं, जो बंटवारे के बाद भारत में आ गई थीं और तब से यहीं रह रही थीं.
आफरीन का बचपन लाहौर और पाकिस्तान की बातें और कहानियां सुन कर बीता था. नानी को जब भी समय मिलता, वे अपने लाहौर की मीठी यादों में खो जातीं. आफरीन को लाहौर की हर एक छोटीछोटी बातें बतातीं और अपनी यादें बांटतीं. बचपन में आफरीन को नानी की बातों से कभी यह अहसास नहीं हुआ कि पाकिस्तान एक दुश्मन देश है.
‘अगर नानी का पाकिस्तान इतना ही अच्छा है तो इन दोनों देशों में हमेशा ही जंग क्यों जारी रहती है? क्यों दोनों ही तरफ के लोग मारे जाते हैं? कितना अच्छा हुआ होता कि पाकिस्तान का जन्म ही नहीं हुआ होता, फिर तो दोनों तरफ इतनी नफरत ही न होती,’ आफरीन ऐसी बातें अकसर सोचती थी, पर भला सियासत करने वालों को इन सब जोड़ने वाली बातों से क्या सरोकार, उन्हें तो लोगों को तोड़ कर ही अपनी सियासत चमकाने में मजा आता है.
नानी की बड़ी इच्छा थी कि वे मरने से पहले एक बार लाहौर हो आएं, पर उन की यह इच्छा तब उन के साथ ही सुपुर्देखाक हो गई, जब वे एक लंबी बीमारी के बाद इस दुनिया को छोड़ कर चली गईं.
आफरीन ने दिल्ली आ कर पढ़ाई की और वकालत करने के बाद इसे ही अपना पेशा बना लिया.
एक दिन काम में काफी बिजी रहने के बाद जब रात के 10 बज गए, तो आफरीन ने एक कैब ली और रोहतास एन्क्लेव में अपने फ्लैट की ओर जाने लगी. अभी वह अपने औफिस से कुछ ही दूरी पर पहुंची थी कि उस ने देखा कि सड़क के बीचोंबीच कोई पड़ा हुआ है.
‘‘लगता है, किसी का एक्सीडैंट हुआ है… पर कमाल है कि इतनी गाडि़यां आजा रही हैं, पर इस को मदद देने का समय किसी के पास नहीं?है,’’ आफरीन बुदबुदा उठी थी.
‘‘भैया, जरा गाड़ी रोकना,’’ गाड़ी रुकवा कर आफरीन उस आदमी के पास गई.
और उस के बाद जो आफरीन ने देखा, वह देख कर उस की चीख निकल गई. वह एक लड़की थी, जो बिलकुल नंगी हालत में सड़क पर फेंक दी गई थी. देखने से ही लगता था कि उस के साथ रेप हुआ है. लड़की के मुंह से लगातार ढेर सारा खून निकल रहा था.
आफरीन को कुछ समझ नहीं आया. वह थोड़ा घबराई थी. उस ने देखा कि अभी उस लड़की की सांसें चल रही थीं यानी अगर अभी उसे समय रहते अस्पताल पहुंचा दिया जाए तो उस की जान बच सकती है. आफरीन ने कैब वाले को मदद के लिए बुलाया.
‘‘अरे क्या मैडम, इस को अस्पताल ले जा कर क्यों लफड़े में पड़ती हो? और वैसे भी यह रेप का केस लगता है… मैं किसी तरह के पचड़े में नहीं पड़ना चाहता… जो आप की मरजी हो करो. मैं यहां से जा रहा हूं,’’ इतना कह कर कैब ड्राइवर तेजी से चला गया.
हैरान हो गई थी आफरीन, ‘‘क्या वाकई इनसानियत मर गई थी… एक कैब ड्राइवर एक पीडि़ता को अस्पताल तक नहीं पहुंचा रहा है…’’
आफरीन के अगलबगल से गाडि़यां निकल रही थीं, पर कोई भी रुक कर इस लड़की का हाल तक नहीं पूछना चाह रहा है, पर कुछ भी हो जाए, मैं इस लड़की को अस्पताल तो पहुंचा कर ही रहूंगी,’’ सब से पहले तो आफरीन ने मोबाइल फोन से पुलिस को फोन लगाया, तो पुलिस ने जल्द से जल्द वहां पहुंचने का यकीन दिलाया.
‘‘अगर पुलिस को आने में देर हुई तो ज्यादा खून बहने के चलते यह लड़की मर भी सकती है,’’ यह सोच कर आफरीन ने लोगों को हाथ हिला कर मदद की गुहार लगानी शुरू की, आटोरिकशा और कैब वालों को भी रोका, पर सब बेकार रहा. तकरीबन एक घंटा हो चुका था, पुलिस का कहीं अतापता नहीं था.
इस बीच आफरीन ने लड़की के मुंह से बहता हुआ खून रोकने के लिए रूमाल लड़की के मुंह पर लगाया, तो उसे एहसास हुआ कि खून की एक धार लगातार उस के मुंह से बाहर आ रही थी. वह लड़की चाह कर भी कुछ बोल नहीं पा रही थी. दरिंदों ने रेप करने के बाद उस लड़की की जीभ ही काट दी थी.
‘‘शायद मैं इस लड़की को बचा नहीं पाऊंगी… कोई भी मदद को नहीं रुक रहा है… पर क्या करूं… मैं इसे छोड़ कर जा भी तो नहीं सकती… मेरा जमीर मुझे इस की इजाजत नहीं दे रहा है,’’ अपनेआप से ही बातें कर रही थी आफरीन.
तभी किसी ने रोड के किनारे अपनी लंबी सी कार रोकी. उस में से एक नौजवान निकला और फौरन आफरीन के पास पहुंचा.
‘‘जी कहिए… क्या कोई हादसा हुआ?है… उफ,’’ लड़की के नंगे शरीर और बहते खून को देख कर वह नौजवान भी परेशान हो उठा था. वह जल्दी से अपनी गाड़ी में रखा हुआ एक कपड़ा निकाल कर लाया और लड़की के शरीर को ढक दिया.
‘‘लगता है, किसी ने रेप के बाद इसे फेंक दिया है. क्या आप इसे उठाने में मेरी मदद करेंगी…?’’ उस नौजवान ने आफरीन को देखते हुए कहा.
‘‘जी जरूर,’’ इतना कह कर उन दोनों ने उस लड़की को गाड़ी में लिटा दिया और अस्पताल पहुंचा दिया.
सिमरन ने अपना हेयर बैंड उतारते हुए संजय से कहा कि उस ने न्यूड औरत की तसवीर में औरत के उभारों को ठीक नहीं बनाया. लगता है कि उस ने अब तक किसी न्यूड औरत को देखा ही नहीं है.
संजय ने औरत के प्यार पर एक हरे रंग की नस दिखाई थी. सिमरन का मानना था कि इस तरह की नस न तो अच्छी लग रही है, न ही असलियत है. फिर उस ने अपनी टीशर्ट उतार दी और अगले ही पल अपनी ब्रा उतार कर वह पूरी तरह से टौपलैस हो गई.
सिमरन के गोल, कसे हुए, चिकने और गोरे उभारों को संजय 5 मिनट तक तो देखता ही रहा, फिर तुरंत ही अपनेआप को संभाल लिया. संजय को अभी भी कोई फर्क नहीं पड़ा था.
सिमरन ने अब जबरदस्ती संजय को थिएटर में पड़ी हुई बैंच पर लिटाने की कोशिश की, तो संजय ने साफ मना कर दिया. संजय ने सिमरन के दोनों उभारों को हथेलियों से दबाते हुए परे धकेल दिया और बोला, ‘‘मैडम, मैं किसी और को पसंद करता हूं.
सिमरन अब तक अच्छीखासी गरम हो चुकी थी. उस ने गुस्से में कहा, ‘‘भाड़ में गया तुम्हारा कमिटमैंट… मैं कौन सा तुम्हें अपना बौयफ्रैंड बनाना चाहती हूं. चुपचाप लेटे रहो, वरना मैं चिल्लाने लगूंगी कि तुम जबरदस्ती कर रहे थे मेरे साथ.
‘‘मैं तुम्हारी किस्मत बना सकती हूं, तो बिगाड़ भी सकती हूं. गुरुग्राम में रहना मुश्किल हो जाएगा तुम्हें,’’ यह कहते हुए सिमरन जबरदस्ती उस की पैंट उतारते हुए उस से चिपकने की कोशिश करने लगी.
संजय ने पूरी ताकत से एक बार फिर सिमरन को परे धकेल दिया.
सिमरन को यह संजय के कमिटमैंट की नहीं, बल्कि अपने पैसे और रुतबे की हार लगने लगी थी. दो कौड़ी का सड़कछाप पेंटर उस के खुले औफर को ठुकरा देगा, उसे अभी भी यकीन नहीं हो रहा था.
सिमरन ने गुस्से में कहा, ‘‘तुम जैसे लोग देश पर बोझ हैं और कभी जिंदगी में तरक्की नहीं कर सकते हैं. जिंदगी बदलने का मौका सिर्फ एक बार मिलता है.
‘‘फिर से सोच लो एक बार,’’ कहते हुए सिमरन वापस कपड़े पहन कर जाने लगी. उसे पूरा यकीन था कि संजय उसे वापस बुलाएगा, लेकिन उस ने गाड़ी स्टार्ट कर ली, तब भी अंदर से वापस आने के लिए कोई आवाज नहीं आई.
तीसरे दिन सिमरन ने विशाल को बताया कि आज रात का डिनर हम डैडी औफ टेस्ट रैस्टोरैंट में मेरी यूनिवर्सिटी के समय की दोस्त और उस के पति के साथ करेंगे.
होटल के परिसर में विशाल ने रंजना से मिलते समय ठीक वैसे ही चौंकने की ऐक्टिंग की जैसा कि संजय ने सिमरन के साथ मिल कर किया. चारों ने खाने की टेबल पर एकसाथ हनीमून पर जाने का प्लान बनाया.
रंजना ने अपने जीजाजी को किस करते हुए स्टार्टर पास किया, तो सिमरन ने अपने जीजाजी को फिर से एक किलर मुसकान देते हुए अभी भी सोच लेने का इशारा किया.
पोस्ट क्रेडिट सीन में हम देखते हैं कि अगले दिन सिमरन और रंजना के होने वाले संजय और विशाल गुरुग्राम के सैक्टर 53 के उसी बार में बैठे हुए चियर्स कर रहे थे, जिस में रंजना और सिमरन ने कहानी के पहले सीन में अपनेअपने मंगेतरों के करैक्टर को चैक करने की योजना बनाई थी.
विशाल को पहले दिन ही सिमरन की योजना के बारे में पता चल गया था. उस ने संजय को भी उस की गर्लफ्रैंड के द्वारा उस का इम्तिहान लिए जाने की जानकारी दे दी थी.
पहले दिन रंजना बार से सिमरन को घर छोड़ने आई थी, विशाल ने पोर्च से उन्हें एकसाथ देख लिया था.
विशाल की वैशाली के नाम से फेसबुक पर एक फेक आईडी थी, जिस में सिमरन, रंजना और उन की ढेर सारी फ्रैंड विशाल उर्फ वैशाली की दोस्त थीं. संजय भी उस वैशाली नाम की फेक आईडी से जुड़ा हुआ था.
संजय पहले एक बार वैशाली नाम की फेक आईडी को प्रपोज करते हुए अपना फोन नंबर, विशाल उर्फ वैशाली से शेयर कर चुका था.
इस तरह विशाल को पहले से सिमरन और रंजना के कनैक्शन के बारे में जानकारी थी.
पहली मुलाकात में सिमरन ने रंजना को कस्टमर की तरह मिलाया और दोस्ती के बारे में नहीं बताया. सिमरन ने घर जा कर टैक्नौलाजी सपोर्ट के लिए कहा, जबकि रंजना अपने लैपटौप को औफिस में भी ला सकती थी.
सारी कडि़यों को जोड़ कर विशाल तुरंत ही उन की योजना को भांप गया और समय रहते उस ने संजय को भी सचेत कर दिया.
संजय ने कहा, ‘‘थैंक्स यार, अगर तुम ने समय रहते न बताया होता तो हम इम्तिहान में फैल हो गए होते.’’
विशाल बोला, ‘‘भाई है तू मेरा. यह तो मेरी फेक आईडी की मेहरबानी थी, जिस ने हम दोनों को बचा लिया.’’
संजय बोला, ‘‘हमारी गर्लफ्रैंड सोने के अंडे देने वाली मुरगियां हैं. बहुत ही कम लोगों को ऐसी जुगाड़ मिलती हैं, जो बाकी सब भी दें और खर्च भी उठा सकें.’’
विशाल ने कहा, ‘‘अपनी तो लाइफ सैटल है भाई. कमाऊ गर्लफ्रैंड जो मिल गई है.’’
संजय बोला, ‘‘हां यार. अगर आज हमारी गर्लफ्रैंड हमें छोड़ कर चली जाएं, तो दानेदाने को मोहताज हो जाएं.’’
इस के बाद वे दोनों अपनीअपनी ऐंगेजमैंट रिंग को एकदूसरे को दिखाते हैं.
विशाल बोला, ‘‘यार मानना पड़ेगा, भाभीजी स्मार्ट हैं.’’
संजय ने कहा, ‘‘हां, मगर तुम्हारी वाली खूबसूरत है और कमाती ज्यादा है.’’
विशाल बोला, ‘‘ओके भाई. रात गई बात गई, अब से हम अपनीअपनी भाभियों को मां की तरह ही देखेंगे और समझेंगे.’’
संजय ने कहा, ‘‘पक्का.’’
यहां हमें यह पता चलता है कि संजय और विशाल दोनों जानते हैं कि उन की गर्लफ्रैंड उन के दोस्त के साथ इंटीमेट होने के लिए किस हद तक गिर चुकी थीं, लेकिन इस से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा. वे खुश थे कि उन की कमाऊ गर्लफ्रैंड हाथ से फिसलतेफिसलते बची थीं.
सिमरन के क्रेडिट कार्ड से पेमेंट कर के वे दोनों घर निकल जाते हैं.
रंजना आगे की तरफ झुक कर कंप्यूटर खोलने लगी तो विशाल की नजरें रंजना के उभारों को घूरने लगीं. उसे घूरता देख कर रंजना ने चीयरलीडर की तरह अपने दोनों कूल्हों को ऊपरनीचे डुलाते हुए उस का ध्यान खींचते हुए कहा, ‘‘मिस्टर, वहां नहीं यहां देखिए, स्क्रीन पर.’’
रंजना विशाल को काम समझाने लगी, ‘‘मुझे अपने आउटलेट की डिटेल को इस तरह इकट्ठा करना है, ताकि देख सकूं कि कौन से नंबर, रंग, साइज, कीमत और ब्रांड के प्रोडक्ट हमारे माल में ज्यादा बिक रहे हैं.’’
इसी बीच रंजना ने नोटिस किया कि विशाल बारबार उस की पैंटी को चोरीछिपे देख रहा है, जिस से उसे यकीन हो गया कि जल्द ही वह विशाल को पिघला देगी.
थोड़ी देर बाद रंजना ब्लैक कौफी बना लाई. ब्लैक कौफी तुरंत ही सैक्स का मूड बना देती है.
कौफी को देख कर विशाल ने बुरा मुंह बनाया और बोला, ‘‘कुछ दिन पहले गुरुग्राम में एक घटना हुई थी, जिस में एक औरत ने नशीली कौफी पिला कर एक प्लंबर का रेप कर लिया था.’’
रंजना ने गुस्से से कहा, ‘‘शटअप. मैं कोई मिडिल क्लास लेडी नहीं हूं, बल्कि एक कामयाब बिजनैस वुमन हूं.’’
जितनी देर विशाल रंजना के लैपटौप में मैट्रिक्स को अरेंज करते हुए फार्मूला देता रहा, उतनी देर रंजना बराबर विशाल को क्लू देती रही. गरमी का बहाना कर उस ने शर्ट के ऊपर के 2 बटन खोल लिए. पैरों को एक के ऊपर एक विशाल के सामने ही टेबल तक फैला दिया. उस ने अपने दोनों पैर को इस तरह खोल कर फैला दिया जैसे कह रही हो कि आ जाओ, मुझ में समा जाओ राजा.
रंजना अब एक कैंडी निकाल लाई और उसे विशाल को दिखादिखा कर चूसने लगी. इतनी मेहनत के बाद भी विशाल पर जरा भी असर नहीं हुआ था.
‘‘बड़ा सख्त है,’’ बड़बड़ाते हुए रंजना ने अब जबरदस्ती विशाल के गाल को चूमना और उस के होंठ को चूसना शुरू कर दिया.
यह अब उसे विशाल की जीत नहीं, बल्कि अपनी जवानी की हार लग रही थी.
रंजना ने जबरदस्ती विशाल के हाथों से अपने उभारों को दबवाना शुरू कर दिया, लेकिन विशाल ने एक झटके में रंजना को परे धकेल दिया.
‘‘मैडम सौरी. मैं किसी और को पसंद करता हूं.’’
इस पर रंजना ने बोला, ‘‘अरे, तो कौन सा मैं तुम से सात फेरे लेना चाहती हूं. सब करते हैं, यहांवहां. थोड़ाबहुत. टेक इट ईजी यार. चलता है इतना सब. सत्यवादी बन कर कोई अवार्ड नहीं मिलने वाला तुम्हें.’’
विशाल ने कहा, ‘‘वह मैं नहीं जानता, लेकिन मेरे उसूल अलग हैं, मैं यह सब नहीं कर सकता.’’
रंजना ने कहा, ‘‘ओके.’’
तुरंत ही रंजना लिविंग रूम से बाहर चली गई और कुछ ही देर में सलवारसूट पहन कर वापस आई. 2,000 रुपए के 5 नोट विशाल के मुंह पर मारते हुए उस से चले जाने को कहा. वह बोली, ‘‘मुझे तुम्हारा काम करने का तरीका पसंद नहीं आया. मैं तुम्हें खराब फीडबैक दे दूंगी. जस्ट गैटआउट.’’
विशाल चुपचाप कपड़े ठीक कर बाहर निकल गया. रंजना को अभी भी विशाल के लौट आने का भरोसा था, लेकिन आखिर में नीचे जाती हुई लिफ्ट की आवाज उसे सुनाई दी.
दूसरी तरफ विशाल के रंजना के साथ जाते ही सिमरन शंकर चौक रोड पर बने ओबराय होटल के लिए निकल गई थी, जहां रंजना के होने वाले पति संजय की पेंटिंग एक आर्ट गैलरी में लगी हुई थी.
होटल के मैनेजर ने चोरीचोरी सिमरन की खुली जांघों को देखते हुए अपने स्टाफ से मैडम का स्वागत करने के लिए कहा.
सिमरन ने जल्द ही कोने में खड़े हुए संजय को उस का नाम लगी हुई 2 पेंटिंग से पहचान लिया.
सिमरन ने संजय की पेंटिंग की भरपूर तारीफ की. वह जानती थी कि कलाकार का दिल जीतना है तो उस की कला की तारीफ करो.
सिमरन ने बताया कि वह अपने बंगले के लिए उस की बहुत सारी पेंटिंग खरीद सकती है.
संजय ने रविवार को उस से अपने स्टूडियो में आने को कहा, जिसे सिमरन ने तुरंत ही स्वीकार कर लिया.
अगले दिन सुबह की चाय पर सिमरन ने देखा कि अखबार में संजय की पेंटिंग के साथ उस का फोटो छपा था और संजय की पेंटिंग की तारीफ में ठीक वही बातें लिखी थीं, जो सिमरन ने कही थीं.
विशाल इस बीच किसी हर्बल क्रीम से सिमरन के खुले हिस्सों की मसाज करते हुए उस के नाजुक हिस्सों पर भी छूने लगा था, जिस पर सिमरन ने उसे एक किलर स्माइल दी.
रविवार को सुबह हुड्डा लौनटैनिस कोर्ट में 2 घंटे पसीना बहाने के बाद सिमरन ठीक 8 बजे महीरा बाजार के एक शौपिंग कौंप्लैक्स के बेसमैंट में संजय के बताए पते पर पहुंच गई.
बहुत ही सस्ती जगह थी, लेकिन अंदर से संजय ने अपने थिएटर को बहुत ही आकर्षक बना रखा था. ट्यूबलाइट की रोशनी में एक न्यूड औरत की पेंटिंग बनाते हुए उसे जरा भी होश नहीं था कि सिमरन कमरे में आ चुकी थी और उसे घूर रही थी.
यह वह पल था, जब सिमरन के दिल में संजय के प्रति एक रियल फीलिंग आ गई. उसे रंजना से जलन होने लगी. वह सोचने लगी, ‘रंजना की किस्मत यूनिवर्सिटी के समय से ही अच्छी है. गोयल सर की फेवरेट स्टूडैंट थी और यहां भी उसे उस से अच्छा बौयफ्रैंड मिल गया.’
सिमरन ने खांसी की आवाज की तो चौंक कर संजय ने सिमरन को देखा.
संजय बोला, ‘‘अरे, आप आ गईं. मैं सोच रहा था कि भूल गई होंगी आप.’’
सिमरन ने अपनी चिरपरिचित किलर मुसकराहट देते हुए कहा, ‘‘आप भूलने वाली चीज नहीं हो.’’
सिमरन की मांसल जांघों को ताड़ते हुए संजय ने शर्ट पहनने की कोशिश की, तो सिमरन ने उसे रोकते हुए अपनी पेंटिंग के साथ पोज देने के लिए कहा.
सिमरन अपने आई फोन से उस के फोटो लेने के लिए तरहतरह से खड़ा करने के बहाने उसे रोक रही थी.
सिमरन जानती थी कि अपने भारीभरकम उभारों के चलते वह टैनिस स्कर्ट और टीशर्ट में बहुत ही ग्लैमरस लगती है.
कमरे के बीच में मौडल्स को पोज देने के लिए रखी गई टेबल पर सिमरन इस तरह पैर फैला कर बैठ गई कि संजय चाहे तो तुरंत ही उस में समा जाए.
सिमरन की पैंटी साफ दिखाई दे रही थी. उस पर ‘किस’ के इमोजी बने हुए थे.
family story in hindi
सिमरन और रंजना पूरे 3 साल बाद मिल रही थीं. बीयू से एमबीए फाइनैंस करने के बाद गुरुग्राम में अपना कैरियर सैटल करने में वे दोनों इतना बिजी रहीं कि मिलने की फुरसत ही नहीं मिली.
अब जा कर वे सैटल हुई थीं. सिमरन टैक्नोसौल्यूशन कंपनी में मैनेजर थी, जबकि रंजना मल्टी ब्रांड रिटेल चेन की मार्केटिंग मैनेजर थी.
सिमरन के बियर के गिलास को रंजना ने मना किया, तो सिमरन ने हैरानी से उसे घूरते हुए कहा, ‘‘क्या बकवास है यार… एटीट्यूड मत दिखा… गोयल सर की बर्थडे पार्टी में मैं भी थी. पता है कि तू कितनी बड़ी वाली पियक्कड़ है.’’
रंजना ने हंसते हुए गिलास थाम लिया और बोली, ‘‘वैसे भी बियर थोड़ी न शराब होती है… और सुना सिमरन, शादी, पति, बच्चे का क्या सीन चल रहा है?’’
सिमरन हंसते हुए बोली, ‘‘लिवइन रिलेशनशिप में हूं यार अपने असिस्टैंट के साथ. उम्र में 2 साल छोटा है मुझ से, डाटा ऐनालिस्ट है.’’
‘‘उम्र में 2 साल छोटा और असिस्टैंट,’’ रंजना ने यह कहते हुए सिमरन को बिग चियर्स किया.
रंजना आगे बोली, ‘‘वाह क्या बात है. तुम्हारे शौक ही निराले हैं. यूनिवर्सिटी में भी तुम्हारा जूनियर में ही इंटरैस्ट रहता था. बीकौम औनर्स का अनिकेत याद है, जिस के साथ तुम घूमने चली गई थीं और रात देर होने पर मैटर्न ने जम कर तुम्हारी बैंड बजाई थी?’’
सिमरन ने कहा, ‘‘याद है. वे भी क्या दिन थे यार… टैलीविजन बड़ा हो या छोटा, उन का रिमोट सेम साइज का होता है.’’
इस बात पर उन दोनों ने ठहाके मारते हुए एकदूसरे को ताली दी.
सिमरन ने बात को आगे बढ़ाया, ‘‘डिसाइड नहीं कर पा रही कि लिवइन रिलेशनशिप के साथ शादी करनी चाहिए या नहीं?’’
रंजना ने ड्रिंक को बीच में रोकते हुए कहा, ‘‘सेम प्रौब्लम मेरे साथ भी है. मैं एक पेंटर के साथ कोर्ट में शादी की अर्जी दाखिल कर चुकी हूं. हम साथ में रहते हैं, लेकिन अब अपने परिवार से उसे मिलाने से पहले एक बार उस के कमिटमैंट को टैस्ट करना चाहती हूं.’’
सिमरन बोली, ‘‘वाह, क्या बात है. क्यों न हम एकदूसरे के होने वाले पतियों को टैस्ट करें…’’
रंजना ने हैरान हो कर पूछा, ‘‘मतलब…?’’
सिमरन बोली, ‘‘हम एकदूसरे के पतियों पर लाइन मारते हैं. अगर वे फिसल गए तो हम शादी से मना कर देंगे.’’
इस पर रंजना बोली, ‘‘और अगर हमें एकदूसरे के प्रेमियों से सच्चा वाला प्यार हो गया तो…?’’
सिमरन ने कहा, ‘‘बेवकूफी भरी बातें मत करो. हम कारपोरेट हैं, हमारी कोई बात सच्ची नहीं होती. सब बिजनैस है. फायदे का सौदा जहां हो. वैसे भी सच्चा प्यार सिर्फ किस्सेकहानियों में पाया जाता है. हमारे पैसों पर ऐश करने के लिए, हमारे लग्जरी जिस्म के साथ संबंध बनाने के लिए कोई भी हमें धोखा दे सकता है.’’
रंजना बोली, ‘‘बात तो तेरी सही है. गलत आदमी से शादी हो गई, तो जिंदगी बरबाद समझो अपनी.’’
सिमरन ने कहा, ‘‘ओके डन. करते हैं ऐसा. अगर वे फिसल गए तो हमें मजा मिलेगा और नहीं फिसले तो हमें जीजाजी मिलेंगे.’’
इस बात पर वे दोनों एक बार फिर ठहाके मार कर हंस दीं.
दूसरे दिन तय योजना के मुताबिक रंजना सिमरन के औफिस में बहुत ही टाइट जींस और ढीली शर्ट पहन कर आई थी.
रंजना के बड़ेबड़े नाखून पर नेल्स आर्ट को देख कर सिमरन ने आंख मारते हुए कहा, ‘‘वाहवाह, लगता है अब तुम्हें मास्टरबेट करने की जरूरत नहीं पड़ती है.’’
सिमरन और रंजना बीयू के समता होस्टल में रूममेट रही थीं और एकदूसरे के शौक अच्छी तरह से जानती थीं.
सिमरन ने घंटी बजा कर अपने लिवइन पार्टनर विशाल को अंदर बुलाया और आदेश दिया कि आप मैडम के साथ चले जाइए और इन को रिटेल स्टोर के डैटा को फिल्टर करने में मदद कीजिए.
रंजना अपनी केटीएम मोटरसाइकिल से आई थी. पार्किंग में पहुंच कर उस ने विशाल से मोटरसाइकिल चलाने को कहा.
डीपीजी कालेज रोड पर बनी सिमरन की कंपनी से होंडा चौक, फिर सुभाष चौक होते हुए आर्चीव ड्राइव पर रंजना का फ्लैट 12 किलोमीटर दूर था. केटीएम मोटरसाइकिल को बनाया ही इसलिए गया है कि राइड के दौरान भी प्रेमीप्रेमिका एकदूसरे से अच्छी तरह चिपके रहें.
रंजना कुछ ज्यादा ही खुला बरताव कर रही थी. उस ने अपनी जांघों को विशाल की जांघों से सटा रखा था. उस ने विशाल की पीठ से अपने उभारों को तकरीबन आधा दबा रखा था.
विशाल मोटरसाइकिल को 40 से ज्यादा स्पीड में नहीं चला रहा था, फिर भी रंजना ने तेज भगाने और डर लगने का बहाना बना कर अपने दोनों हाथों से क्रौस बना कर विशाल को आगे की ओर से जकड़ लिया था और अपनी हथेलियों से विशाल के चौड़े सीने को सहला रही थी.
ड्राइव के दौरान ही रंजना ने विशाल की जांघों के बीच अपने काम की तकरीबन हर एक चीज के आकारप्रकार का अंदाजा ले लिया. पैर की पिंडलियों से ले कर कंधों तक रंजना विशाल से इस कदर चिपकी हुई थी कि उन के बीच से हवा भी नहीं गुजर सकती थी.
पूरे रास्ते रंजना को बहुत मजा आया. इस तरीके का करंट उस ने संजय के साथ चिपकते हुए आज तक महसूस नहीं किया था.
महिंद्रा ल्यूमिनेयर के पार्किंग की मंद रोशनी में रंजना ने ध्यान से विशाल को देखा. लिफ्ट में विशाल ने शरमा कर आंखें नीची कर ली थीं, लेकिन रंजना उसे ही ताड़ रही थी. रंजना को सिमरन की किस्मत से जलन हो रही थी.
फ्लैट में पहुंचते ही रंजना विशाल को लिविंग रूम में बैठा कर बाथरूम चली गई. वापस आई तो जींस की जगह तौलिया लपेटे थी. विशाल कंप्यूटर टेबल पर रखा संजय और रंजना का फोटो देख रहा था.
विशाल ने पूछा, ‘‘ये आप के पति हैं?’’
रंजना बोली, ‘‘उन की चिंता छोड़ दो, तुम उन से नहीं मुझ से मिलने आए हो,’’ यह कह कर रंजना ने अपनी कमर पर लिपटे तौलिए को उतार कर फोटो को उस से ढक दिया.
रंजना के गोल, गोरे और चिकने कूल्हे और मांसल जांघें दिखाई देने लगीं, शर्ट के बीच से उस की गुलाबी डोटेड पैंटी भी साफ दिखाई दे रही थी.
रामकुमार खुशीखुशी घर के अंदर गए. लगता था, जैसे वहां खुशी की लहर दौड़ गई थी. कुछ ही देर में वे अपनी पत्नी के साथ उमा का फोटो ले कर आ गए. उमा तो लाजवश कमरे में नहीं आई. उस की मां ने एक डब्बे में कुछ मिठाई गौतम के लिए रख दी. पतिपत्नी अत्यंत स्नेह भरी नजरों से गौतम को देख रहे थे.
अपने कमरे में पहुंचते ही गौतम ने न्यूयार्क के उस विश्वविद्यालय को प्रवेशपत्र और आर्थिक सहायता के लिए फार्म भेजने के लिए लिखा. दिल्ली जाने से पहले वह एक बार और उमा के घर गया. कुछ समय के लिए उन लोगों ने गौतम और उमा को कमरे में अकेला छोड़ दिया था, परंतु दोनों ही शरमाते रहे.
गौतम जब दिल्ली से वापस आया तो रामकुमार ने उसे विभाग में पहुंचते ही अपने कमरे में बुलाया. गौतम ने उन्हें बताया कि मातापिता दोनों ही राजी थे, इस रिश्ते के लिए. परंतु छोटी बहन की शादी से पहले इस बारे में कुछ भी जिक्र नहीं करना चाहते थे.
गौतम के मातापिता की रजामंदी के बाद तो गौतम का उमा के घर आनाजाना और भी बढ़ गया. उस ने जब एक दिन उमा से सिनेमा चलने के लिए कहा तो वह टाल गई. इन्हीं दिनों न्यूयार्क से फार्म आ गया, जो उस ने तुरंत भर कर भेज दिया. रामकुमार ने अपने दोस्त को न्यूयार्क पत्र लिखा और गौतम की अत्यधिक तारीफ और सिफारिश की.
3 महीने प्रतीक्षा करने के पश्चात वह पत्र न्यूयार्क से आया, जिस की गौतम कल्पना किया करता था. उस को पीएच.डी. में प्रवेश और समुचित आर्थिक सहायता मिल गई थी. वह रामकुमार का आभारी था. उन की सिफारिश के बिना उस को यह आर्थिक सहायता कभी न मिल पाती.
गौतम की छोटी बहन का रिश्ता बनारस में हो गया था. शादी 5 महीने बाद तय हुई. गौतम ने उमा को समझाया कि बस 1 साल की ही तो बात है. अगले साल वह शादी करने भारत आएगा और उस को दुलहन बना कर ले जाएगा.
कुछ ही महीने में गौतम न्यूयार्क आ गया. यहां उसे वह विश्वविद्यालय ज्यादा अच्छा न लगा. इधरउधर दौड़धूप कर के उसे न्यूयार्क में ही दूसरे विश्वविद्यालय में प्रवेश व आर्थिक सहायता मिल गई.
उमा के 2-3 पत्र आए थे, पर गौतम व्यस्तता के कारण उत्तर भी न दे पाया. जब पिताजी का पत्र आया तो उमा का चेहरा उस की आंखों के सामने नाचने लगा. पिताजी ने लिखा था कि रामकुमार दिल्ली किसी काम से आए थे तो उन से भी मिलने आ गए. पिताजी को समझ में नहीं आया कि उन की कौन सी बेटी की शादी बनारस में तय हुई थी.
उन्होंने लिखा था कि अपनी शादी का जिक्र करने के लिए उसे इतना शरमाने की क्या आवश्यकता थी.
गौतम ने पिताजी को लिख भेजा कि मैं उमा से शादी करने का कभी इच्छुक नहीं था. आप रामकुमार को साफसाफ लिख दें कि यह रिश्ता आप को बिलकुल भी मंजूर नहीं है. उन के यहां के किसी को भी अमेरिका में मुझ से पत्रव्यवहार करने की कोई आवश्यकता नहीं.
गौतम के पिताजी ने वही किया जो उन के पुत्र ने लिखा था. वे अपने बेटे की चाल समझ गए थे. वे बेचारे करते भी क्या.
उन का बेटा उन के हाथ से निकल चुका था. गौतम के पास उमा की तरफ से 2-3 पत्र और आए. एक पत्र रामकुमार का भी आया. उन पत्रों को बिना पढ़े ही उस ने फाड़ कर फेंक दिया था.
पीएच.डी. करने के बाद गौतम शादी करवाने भारत गया और एक बहुत ही सुंदर लड़की को पत्नी के रूप में पा कर अपना जीवन सफल समझने लगा. उस के बाद उस ने शायद ही कभी रामकुमार और उमा के बारे में सोचा हो. उमा का तो शायद खयाल कभी आया भी हो, पर उस की याद को अतीत के गहरे गर्त में ही दफना देना उस ने उचित समझा था.
उस दिन रवि ने गौतम की पुरानी स्मृतियों को झकझोर दिया था. प्रोफेसर गौतम सारी रात उमा के बारे में सोचते रहे कि उस बेचारी ने उन का क्या बिगाड़ा था. रामकुमार के एहसान का उस ने कैसे बदला चुकाया था. इन्हीं सब बातों में उलझे, प्रोफेसर को नींद ने आ घेरा.
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ठक…ठक की आवाज के साथ विभाग की सचिव सिसिल 9 बजे प्रोफेसर के कमरे में ही आई तो उन की निंद्रा टूटी और वे अतीत से निकल कर वर्तमान में आ गए. प्रोफेसर ने उस को रवि के फ्लैट का फोन नंबर पता करने को कहा.
कुछ ही मिनटों बाद सिसिल ने उन्हें रवि का फोन नंबर ला कर दिया. प्रोफेसर ने रवि को फोन मिलाया. सवेरेसवेरे प्रोफेसर का फोन पा कर रवि चौंक गया, ‘‘मैं तुम्हें इसलिए फोन कर रहा हूं कि तुम यहां पर पीएच.डी. के लिए आर्थिक सहायता की चिंता मत करो. मैं इस विश्वविद्यालय में ही भरसक कोशिश कर के तुम्हें सहायता दिलवा दूंगा.’’
रवि को अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था. वह धीरे से बोला, ‘‘धन्यवाद… बहुतबहुत धन्यवाद.’’
‘‘बरसों पहले तुम्हारे नानाजी ने मुझ पर बहुत उपकार किया था. उस का बदला तो मैं इस जीवन में कभी नहीं चुका पाऊंगा पर उस उपकार का बोझ भी इस संसार से नहीं ले जा पाऊंगा. तुम्हारी कुछ मदद कर के मेरा कुछ बोझ हलका हो जाएगा,’’ कहने के बाद प्रोफेसर गौतम ने फोन बंद कर दिया.
रवि कुछ देर तक रिसीवर थामे रहा. फिर पेन और कागज निकाल कर अपनी मां को पत्र लिखने लगा.
आदरणीय माताजी,
आप से कभी सुना था कि इस संसार में महापुरुष भी होते हैं परंतु मुझे विश्वास नहीं होता था.
लेकिन अब मुझे यकीन हो गया है कि दूसरों की निस्वार्थ सहायता करने वाले महापुरुष अब भी इस दुनिया में मौजूद हैं. मेरे लिए प्रोफेसर गौतम एक ऐसे ही महापुरुष की तरह हैं. उन्होंने मुझे आर्थिक सहायता दिलवाने का पूरापूरा विश्वास दिलाया है.
प्रोफेसर गौतम बरसों पहले कानपुर में नानाजी के विभाग में ही काम करते थे. उन दिनों कभी शायद आप की भी उन से मुलाकात हुई होगी…
आपका,
रवि
प्रोफेसर ने रेफ्रिजरेटर से संतरे के रस से भरी एक बोतल और एक बीयर की बोतल निकाली. जूस गिलास में भर कर रवि को दे दिया और बीयर खुद पीने लगे. कुछ देर बाद चावल तैयार हो गए. उन्होंने खाना खाया. कौफी बना कर वे बैठक में आ गए. अब काम करने का समय था.
रवि अपना बैग उठा लाया. उस ने 89 पृष्ठों की रिपोर्ट लिखी थी. प्रोफेसर गौतम रिपोर्ट का कुछ भाग तो पहले ही देख चुके थे, उस में रवि ने जो संशोधन किए थे, वे देखे. रवि उन से अनेक प्रश्न करता जा रहा था. प्रोफेसर जो भी उत्तर दे रहे थे, रवि उन को लिखता जा रहा था.
रवि की रिपोर्ट का जब आखिरी पृष्ठ आ पहुंचा तो उस समय शाम के 5 बज चुके थे. आखिरी पृष्ठ पर रवि ने अपनी रिपोर्ट में प्रयोग में लाए संदर्भ लिख रखे थे. प्रोफेसर को लगा कि रवि ने कुछ संदर्भ छोड़ रखे हैं. वे अपने अध्ययनकक्ष में उन संदर्भों को अपनी किताबों में ढूंढ़ने के लिए गए.
प्रोफेसर को गए हुए 15 मिनट से भी अधिक समय हो गया था. रवि ने सोचा शायद वे भूल गए हैं कि रवि घर में आया हुआ है. वह अध्ययनकक्ष में आ गया. वहां किताबें ही किताबें थीं. एक कंप्यूटर भी रखा था. अध्ययनकक्ष की तुलना में प्रोफेसर के विभाग का दफ्तर कहीं छोटा पड़ता था.
प्रोफेसर ने एक निगाह से रवि को देखा, फिर अपनी खोज में लग गए. दीवार पर प्रोफेसर की डिगरियों के प्रमाणपत्र फ्रेम में लगे थे. प्रोफेसर गौतम ने न्यूयार्क से पीएच.डी. की थी. भारत से उन्होंने एम.एससी. (कानपुर से) की थी.
‘‘साहब, आप ने एम.एससी. कानपुर से की थी? मेरे नानाजी वहीं पर विभागाध्यक्ष थे,’’ रवि ने पूछा.
प्रोफेसर 3-4 किताबें ले कर बैठक में आ गए.
‘‘क्या नाम था तुम्हारे नानाजी का?’’
‘‘रामकुमार,’’ रवि ने कहा.
‘‘उन को तो मैं बहुत अच्छी तरह से जानता हूं. 1 साल मैं ने वहां पढ़ाया भी था.’’
‘‘तब तो शायद आप ने मेरी माताजी को भी देखा होगा,’’ रवि ने पूछा.
‘‘शायद देखा होगा एकाध बार,’’ प्रोफेसर ने बात पलटते हुए कहा, ‘‘देखो, तुम ये पुस्तकें ले जाओ और देखो कि इन में तुम्हारे मतलब का कुछ है कि नहीं.’’
रवि कुछ मिनट और बैठा रहा. 6 बजने को आ रहे थे. लगभग 6 घंटे से वह प्रोफेसर के फ्लैट में बैठा था. पर इस दौरान उस ने लगभग 1 महीने का काम निबटा लिया था. प्रोफेसर का दिल से धन्यवाद कर उस ने विदा ली.
रवि के जाने के बाद प्रोफेसर को बरसों पुरानी भूलीबिसरी बातें याद आने लगीं. वे रवि के नाना को अच्छी तरह जानते थे. उन्हीं के विभाग में एम.एससी. के पश्चात वे व्याख्याता के पद पर काम करने लगे थे. उन्हें दिल्ली में द्वितीय श्रेणी में प्रवेश नहीं मिल पाया था. इसलिए वे कानपुर पढ़ने आ गए थे. उस समय कानपुर में ही उन के चाचाजी रह रहे थे. 1 साल बाद चाचाजी भी कानपुर छोड़ कर चले गए पर उन्हें कानपुर इतना भा गया कि एम.एससी. भी वहीं से कर ली. उन की इच्छा थी कि किसी भी तरह से विदेश उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए जाएं. एम.एससी. में भी उन का परीक्षा परिणाम बहुत अच्छा नहीं था, जिस के बूते पर उन को आर्थिक सहायता मिल पाती. फिर सोचा, एकदो साल तक भारत में अगर पढ़ाने का अनुभव प्राप्त कर लें तो शायद विदेश में आर्थिक सहायता मिल सकेगी.
उन्हीं दिनों कालेज के एक व्याख्याता को विदेश में पढ़ने के लिए मौका मिला था, जिस के कारण गौतम को अस्थायी रूप से कालेज में ही नौकरी मिल गई. वे पैसे जोड़ने की भी कोशिश कर रहे थे. विदेश जाने के लिए मातापिता की तरफ से कम से कम पैसा मांगने का उन का ध्येय था. विभागाध्यक्ष रामकुमार भी उन से काफी प्रसन्न थे. वे उन के भविष्य को संवारने की पूरी कोशिश कर रहे थे.
एक दिन रामकुमार ने गौतम को अपने घर शाम की चाय पर बुलाया.
रवि की मां उमा से गौतम की मुलाकात उसी दिन शाम को हुई थी. उमा उन दिनों बी.ए. कर रही थी. देखने में बहुत ही साधारण थी. रामकुमार उमा की शादी की चिंता में थे. उमा विभागाध्यक्ष की बेटी थी, इसलिए गौतम अपनी ओर से उस में पूरी दिलचस्पी ले रहा था. वह बेचारी तो चुप थी, पर अपनी ओर से ही गौतम प्रश्न किए जा रहा था.
कुछ समय पश्चात उमा और उस की मां उठ कर चली गईं. रामकुमार ने तब गौतम से अपने मन की इच्छा जाहिर की. वे उमा का हाथ गौतम के हाथ में थमाने की सोच रहे थे. उन्होंने कहा था कि अगर गौतम चाहे तो वे उस के मातापिता से बात करने के लिए दिल्ली जाने को तैयार थे.
सुन कर गौतम ने बस यही कहा, ‘आप के घर नाता जोड़ कर मैं अपने जीवन को धन्य समझूंगा. पिताजी और माताजी की यही जिद है कि जब तक मेरी छोटी बहन के हाथ पीले नहीं कर देंगे, तब तक मेरी शादी की सोचेंगे भी नहीं,’ उस ने बात को टालने के लिए कहा, ‘वैसे मेरी हार्दिक इच्छा है कि विदेश जा कर ऊंची शिक्षा प्राप्त करूं, पर आप तो जानते ही हैं कि मेरे एम.एससी. में इतने अच्छे अंक तो आए नहीं कि आर्थिक सहायता मिल जाए.’
‘तुम ने कहा क्यों नहीं. मेरा एक जिगरी दोस्त न्यूयार्क में प्रोफेसर है. अगर मैं उस को लिख दूं तो वह मेरी बात टालेगा नहीं,’ रामकुमार ने कहा.
‘आप मुझे उमाजी का फोटो दे दीजिए, मातापिता को भेज दूंगा. उन से मुझे अनुमति तो लेनी ही होगी. पर वे कभी भी न नहीं करेंगे,’ गौतम ने कहा.
आगे पढ़ें- अपने कमरे में पहुंचते ही गौतम ने…