हैवान बना पति : भाग 1

पवन उर्फ मुरारी जिस वक्त कन्नौज कोतवाली पहुंचा, तब रात के 3 बज रहे थे. एसएसआई आर.पी. सिंह रात की ड्यूटी पर थे. पवन उन के सामने जा पहुंचा और बोला, ‘‘साहब, मैं डबल मर्डर कर के आया हूं. मुझे गिरफ्तार कर लो.’’

‘‘डबल मर्डर?’’ सिंह चौंके, ‘‘कौन हो तुम? किस का खून किया है?’’

‘‘साहब, मेरा नाम पवन है. मैं कलेक्ट्रेट के पीछे हौदापुरवा मोहल्ले में रहता हूं. मैं ने अपनी पत्नी सविता और सास कलावती का खून किया है. दोनों की लाशें घर के बाहर पड़ी हैं.’’

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‘‘तुम यह सब नशे में तो नहीं बक रहे हो?’’ आर.पी. सिंह ने उस से पूछा. ‘‘साहब, हंसिया साथ लाया हूं. मैं ने उन्हें इसी से मारा डाला. देखो, मेरा हाथ और चेहरा भी खून से रंगा है.’’ पवन ने खून सना हंसिया फर्श पर रखते हुए कहा.

अब शक की कोई गुंजाइश नहीं थी. उन्होंने 2 सिपाहियों को बुला कर पवन को हिरासत में ले लिया और आलाकत्ल हंसिया सुरक्षित कर लिया.

इस के बाद एसएसआई ने यह सूचना कोतवाल विकास राय को दी. राय नाइट गश्त से आधा घंटा पहले ही लौटे थे.

थानाप्रभारी विकास राय ने डबल मर्डर का जुर्म कबूल करने वाले पवन उर्फ मुरारी से पूछताछ की फिर वरिष्ठ अधिकारियों को घटना से अवगत कराया और पुलिस टीम ले कर घटनास्थल हौदापुरवा मोहल्ले पहुंच गए.

उस समय वहां भीड़ जुटी थी और कोहराम मचा था. राय ने रोपीट रही महिलाओं को वहां से हटाया, फिर निरीक्षण में जुट गए. घटनास्थल का दृश्य बड़ा ही भयावह था. सविता और कलावती की खून से लथपथ लाशें घर के बाहर पड़ी थीं.

उन की गरदन, पीठ और पेट पर गहरे घाव थे. दोनों की हत्या छत पर की गई थी और लाशों को दूसरी मंजिल से नीचे फेंका गया था. सविता की उम्र 24 साल के आसपास थी, जबकि उस की मां कलावती 50 वर्ष उम्र पार कर चुकी थी.

यह बात 21 अगस्त, 2020 की है. भोर का उजाला फैल चुका था और पवन द्वारा अपनी पत्नी और सास की हत्या की खबर पूरे मोहल्ले में फैल गई थी.

सूचना पा कर मृतका सविता के भाई गोविंद, सोहनलाल तथा पिता जगत राम भी आ गए थे. थानाप्रभारी विकास राय अभी निरीक्षण कर ही रहे थे कि एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह तथा सीओ (सिटी) शेषमणि उपाध्याय भी आ गए. पुलिस अधिकारियों ने फोरैंसिक टीम को भी घटनास्थल पर बुलवा लिया.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. वे उस छत पर भी गए, जहां मांबेटी की हत्या कर उन्हें नीचे फेंका गया था. फोरैंसिक टीम ने जांच कर हत्या से जुड़े साक्ष्य जुटाए.

घटनास्थल पर हत्यारोपी पवन उर्फ मुरारी की मां दयावती तथा भाभी रोमी मौजूद थीं. पुलिस अधिकारियों ने उन से पूछताछ की तो रोमी ने बताया कि सविता और उस के पति पवन के बीच किसी बात को ले कर पिछले 2 दिनों से झगड़ा हो रहा था.

कल दोपहर सविता की मां कलावती आ गई थी. उस के बाद झगड़ा और बढ़ गया था. पवन को सास का आना और उन दोनों के झगड़े में हस्तक्षेप करना नागवार लगा. झगड़े के बाद मांबेटी पवन के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने थाने भी गई थीं, पर उन की रिपोर्ट दर्ज नहीं हुई थी.

थाने से लौटने के बाद सविता का पवन से फिर झगड़ा हुआ. झगड़े में कलावती फिर से कूद पड़ी और बेटी का पक्ष ले कर पवन को भलाबुरा कहने लगी. चूंकि पतिपत्नी का झगड़ा आम बात थी, इसलिए हम लोग हस्तक्षेप नहीं करते थे.

रात 2 बजे चीखपुकार मची तो हम लोगों की नींद खुल गई. उसी दौरान छत से कोई चीज गिरने की आवाज आई. देखा तो सविता और कलावती की लाशें घर के बाहर पड़ी थीं. वे दोनों डर की वजह से छत से कूदीं या फिर पवन ने ढकेला, इस बारे में कुछ नहीं पता. मौकाएवारदात पर मृतका सविता का भाई गोविंद तथा पिता जगतराम भी मौजूद थे.

सीओ शेषनारायण उपाध्याय ने उन से घटना के संबंध में पूछताछ की तो गोविंद ने बताया कि उस का बहनोई पवन बहन को प्रताडि़त करता था. उसे सविता के चरित्र पर शक था. उस के पिता ने 10 लाख रुपए में 10 बीघा जमीन बेची थी. उन पैसों से खूब धूमधाम से सविता की शादी की थी.

इस के बाद भी उस का पेट नहीं भरा. वह सविता पर मायके से रुपए लाने का दबाव डालता था. बात न मानने पर उसे मारतापीटता और झगड़ा करता था. झगड़ा निपटाने में मां को हस्तक्षेप करना पड़ता था, जिस से वह मां से भी खुन्नस खाता था. इसी खुन्नस में पवन ने मां और बहन की हत्या कर दी.

पूछताछ के बाद पुलिस अधिकारियों ने मृतका सविता तथा कलावती के शव पोस्टमार्टम के लिए कन्नौज के जिला अस्पताल भिजवा दिए. साथ ही सुरक्षा के तौर पर आरोपी के घर पुलिस का पहरा बिठा दिया.

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शवों को पोस्टमार्टम हाउस भिजवाने के बाद पुलिस अधिकारी थाना कोतवाली पहुंचे कातिल पवन पहले ही आत्मसमर्पण कर चुका था. पुलिस अधिकारियों ने उस से पूछा, ‘‘तुम ने अपनी पत्नी व सास की हत्या क्यों की?’’

‘‘साहब, उन दोनों ने मेरी जिंदगी में जहर घोल रखा था. जिस से मेरा जीना तक मुहाल हो गया था. रोजरोज की टेंशन से परेशान हो कर मुझे यह करने के लिए मजबूर होना पड़ा.’’

चूंकि पवन अपना जुर्म कबूल चुका था, अत: थानाप्रभारी विकास राय ने मृतका सविता के भाई गोविंद को वादी बना कर भादंवि की धारा 302 के तहत पवन के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. पवन को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया गया.

पवन से की गई पूछताछ और पुलिस जांच में डबल मर्डर की जो कहानी प्रकाश में आई, वह घर की कलह व अवैध संबंधों पर आधारित निकली.

कन्नौज, उत्तर प्रदेश का औद्योगिक नगर है. यहां का इत्र व्यवसाय पूरी दुनिया में मशहूर है. इसलिए कन्नौज को सुगंध की नगरी के नाम से भी जाना जाता है. इसी कन्नौज का एक मोहल्ला हौदापुरवा है, जो कन्नौज कोतवाली के क्षेत्र में आता है. हौदापुरवा पहले कन्नौज से सटा एक गांव था, लेकिन जब कन्नौज को जिले का दरजा मिला और विकास हुआ तो हौदापुरवा शहर का मोहल्ला बन गया.

इसी हौदापुरवा मोहल्ले में विकास कुमार सिंह का अपना दोमंजिला मकान था. उस के परिवार में पत्नी दयावती के अलावा 3 बेटे राजीव, वीर सिंह व पवन उर्फ मुरारी थे. तीनों की शादी हो चुकी थी. राजीव पशुपालन विभाग में काम करता था और अपने परिवार के साथ मकान की पहली मंजिल पर रहता था. वीर सिंह परिवार के साथ भूतल पर रहता था. वह जनरल स्टोर चलाता था.

सब से छोटा पवन उर्फ मुरारी अपने भाइयों से ज्यादा स्मार्ट तथा पढ़ालिखा था. वह अपने मातापिता के साथ मकान की दूसरी मंजिल पर रहता था और अपनी कार बुकिंग पर चलाता था. पवन व सविता की शादी 6 जून, 2014 को हुई थी.

ससुराल में शुरूशुरू में सविता के दिन ठीकठाक गुजरे. फिर धीरेधीरे उस पर गृहस्थी का पूरा बोझ लाद दिया गया. घर के सारे काम करने के अलावा पति व सास की सेवा भी उसे ही करनी पड़ती थी. धीरेधीरे सास के ताने व जेठानियों के व्यंग्य शुरू हो गए थे. सविता सब कुछ सहती रही. जबतब वह अकेले में आंसू बहा कर मन हलका कर लेती थी. पति पवन अपनी मां का ही पक्ष लेता था.

विवाह के 2 साल बाद सविता ने एक बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम रानू रखा गया. रानू के जन्म से सविता के जीवन में नई ज्योति तो जली, साथ ही जिम्मेदारियां भी बढ़ गईं. घर के कामों के अलावा उसे अपनी नवजात के लिए भी समय निकालना पड़ता था. नतीजा यह हुआ कि सास की खींचातानी बढ़ गई.

दरअसल सास दयावती को इस बात का मलाल था कि उस के बेटे को शादी में उस की हैसियत के मुताबिक दहेज नहीं मिला. दहेज कम मिलने को ले कर वह सविता को ताने दे कर प्रताडि़त करती रहती थी.

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एक रोज पवन ने सविता से कहा, ‘‘हमारी कार अब खटारा हो गई है, जिस से बुकिंग कम मिलने लगी है. अगर तुम मायके से 2 लाख रुपया ले आओ, तो हम नई कार फाइनैंस करा लें. इस से हमारी बुकिंग बढ़ जाएगी और अच्छी कमाई भी होने लगेगी.’’

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

अंधविश्वास का अंधेरा : एक “बैगा” की हत्या

छत्तीसगढ़ में अंधविश्वास का अंधेरा फैलता चला जा रहा है. इसके लिए शासन-प्रशासन सबसे अधिक दोषी है. क्योंकि आजादी के इतने साल बाद भी यहां शिक्षा की, जागरूकता की इतनी ज्यादा कमी है कि अभी भी गांव-गांव में “बैगा गुनिया” लोगों का इलाज करते हैं. लोगों की इन पर आस्था और विश्वास है. ऐसे में जब कभी विश्वास की नाव डगमगाती है तो बैगा गुनिया ही मारे जाते हैं. मजे की बात यह है कि वह बैगा गुनिया जो गांव का सबसे गुनी व्यक्ति माना जाता है जिसके हाथों में गांव की डोर होती है जब किसी  बात को लेकर अंधविश्वास के घेरे में आकर लोगों के हाथों मारा जाता है, तब भी गांव वाले यह नहीं सोचते कि जो व्यक्ति अपनी जान नहीं बचा सका, वह गांव के लोगों को भला कैसे भूत प्रेत आदि से बचा सकता है. दरअसल, पूरा मामला अंधविश्वास के मायाजाल का है. जिसका लाभ बैगा गुनिया उठाते हैं. कुल मिलाकर एक धंधा बन चुका है जिसे गांव गांव में मान्यता है . बहरहाल यह नाकामी नि: संदेह छत्तीसगढ़ सरकार की है.

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आइए! आज आपको हम ले चलते हैं छत्तीसगढ़ के बस्तर अंचल जहां नारायणपुर जिले के बेनूर थाना क्षेत्र में एक बैगा को घर से ले जाकर अंधविश्वास के फेर में हत्या कर दी गई. लंबे समय तक पुलिस आरोपियों को ढूंढती रही नगर मामला सुलझ नहीं पा रहा था, अंततः पुलिस को अंधे कत्ल की गुत्थी सुलझाने में बड़ी सफलता मिली तो कई राज खुलकर सामने आ गए.

बैगा के हत्या की अंधी गुत्थी

11 जून 2020 को सोमनाथ मंडावी उम्र 25 वर्ष निवासी स्कूलपारा चियानार द्वारा थाना बेनूर में रिपोर्ट दर्ज कराई गई  कि 10 जून 2020 की रात्रि करीबन 2 बजे अज्ञात व्यक्ति घर आकर उसके पिता रामजी मंडावी को उठाए वे एक बैगा थे लोगों का इलाज करते थे इस बिनाह पर उन्हें ले जाया गया और रामजी मंडावी (उम्र 50)  घर नहीं लौटे तब अगली सुबह जब पतासाजी की गई तो उनका शव भाटपाल जाने वाले मार्ग पर पुलिया के नीचे पड़ा मिला.

अपराध की सूचना पर मामले में लगातार पतासाजी कर अंधे कल्ल के मामले को सुलझाने का अथक प्रयास करने के बावजूद भी पुलिस को कोई सुराग हाथ नहीं लग पा रहा था.प्रकरण में कुछ संदिग्ध मोबाईल नम्बरों का टावर इंप ऐनालिशिस के आधार पर संदेह होने पर मानु करंगा एवं कानसाय नेताम से कड़ाई से पूछताछ की गई. उन्होंने अपराध घटित करना स्वीकार किया और इस तरह घटना का खुलासा चार माह पश्चात अक्टूबर 2020  हुआ.

हत्या की वजह अंधविश्वास

गिरफ्तारी के पश्चात मानूराम करंगा ने बताया कि वर्ष 2019 में मेरा  छोटा सा बच्चा जो एक सप्ताह का था एवं मेरे सबसे छोटे भाई मानसिंग की पत्नी जो पेट से थी दोनों के “बच्चों की मौत” एक ही दिन हो गई. एवं वर्ष  बाद 2020 में होली त्यौहार के कुछ दिन बाद अचानक मेरे भाई मानसिंग की भी मौत हो गयी थी.

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जिस कारण अपने पड़ोस में रहने वाले सिरहा ( बैगा) रामजी मंडावी के पर “जादू-टोना” करने (पांगने) का शक हुआ था. मानू करंगा और उसका छोटा भाई मानसाय करंगा दोनों ने मिलकर सिरहा रामजी मंडावी को मारने की योजना बनाई और मानसाय ने अपने रिश्तेदार कानसाय नेताम को भी साथ मिलाकर 10 जून 2020 को कानसाय अपने साथी मनीराम गावड़े, रजमेन राम मरकाम, जसलाल कुलदीप के साथ रात में सिरहा रामजी मंडावी के घर पहुंचकर रामजी मण्डावी को घर से  ले गये और अपने पास रखे  बदूंक से मारने का प्रयास किया, अचानक बदूंक नहीं चलने पर आरोपियों द्वारा बदूंक के कुंदा से मारकर हत्या कर दी गई और शव को भाट्याल पुलिया के नीचे फेक दिया.बेनूर पुलिस द्वारा आरोपियों के कब्जे से घटना में प्रयुक्त मोबाईल, सिम,  बदूंक व मृतक से छीना हुआ टार्च एवं स्कूटी नीले रंग की जप्त की है.

घटना के सभी छः आरोपियों को न्यायालय के आदेश पर जेल भेज दिया गया है.

अंतरराष्ट्रीय ठग: कानून के हाथों से दूर भी पास भी !

छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले की पुलिस ने एक अंतरराष्ट्रीय ऑनलाइन ठग गिरोह का भंडाफोड़ कर उन्हें जेल की सीखचों में डाल दिया है. न्याय धानी बिलासपुर जिले के पुलिस  अधीक्षक प्रशांत अग्रवाल बताते हैं कि एक अभियान चलाकर अंतरराष्ट्रीय ठग गिरोह का पर्दाफाश करने में सफलता हासिल की है.

दरअसल,पाकिस्तानी सरगना बड़े मामू (असगर) छोटे मामू (असरफ) और सलीम मिलकर डिजिटल करेंसी की हेराफेरी कर ठगी के कारोबार को छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश सहित देश के कई राज्यों में और अन्य दूसरे देशों में भी अंजाम देते  थे. ठगी के इस मामले के तार पाकिस्तान के अलावा सऊदी अरब और मलेशिया से भी जुड़े  हैं. सनसनीखेज तथ्य है कि इस नेटवर्क के अनेक गुर्गे देश के अनेक राज्यों में मौजूद हैं और “ऑनलाइन ठगी” से जुटाए रूपए उन्हें भेजा करते थे.

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जैसा कि आज डिजिटल ठगी का दौर चल रहा है लोगों के फोन पर लगातार कॉल आ रहे हैं और उन्हें ठगा जा रहा है ऐसे में छत्तीसगढ़ की बिलासपुर पुलिस का यह प्रयास अपने आप में महत्वपूर्ण है.इसका सीधा संदेश यह है कि पुलिस और सरकार अगर चाहे तो ठगों को दूसरे देशों के होने के बाद भी उन पर अंकुश लगा सकती है.

ठगी नाक का सवाल बनी!

बिलासपुर पुलिस के लिए यह अंतरराष्ट्रीय ठग नाक के बाल की तरह एक चैलेंज बन गए थे. दरअसल, हुआ यह कि बिलासपुर जिले में पदस्थ जनक राम पटेल नामक एक नगर सैनिक को 65 लाखों रुपए, इस गिरोह ने लालच देकर ठग लिए. जब नगर सैनिक ने मामले की रिपोर्ट बिलासपुर सिविल थाने में दर्ज कराई तो पुलिस अधीक्षक प्रशांत अग्रवाल के लिए यह एक चैलेंज थी. उन्होंने एक टीम बनाई और धीरे-धीरे अंतरराष्ट्रीय गिरोह तक पुलिस पहुंच गई और अंततः पांच लोगों को गिरफ्तार करके बिलासपुर लाया गया.

उल्लेखनीय है कि बिलासपुर पुलिस ने मुंबई, उड़ीसा और मध्यप्रदेश में अभियान चलाकर  ठगों को गिरफ्तार किया है. ठगों के पास से लैपटॉप, मोबाइल और 15 लाख रूपए नगद, अनेक एटीएम कार्ड तथा बैंक की पास बुक बरामद किए गए हैं. इसके अतिरिक्त विभिन्न बैंको में ठगों के खाते में 27 लाख रूपए जमा होने की जानकारी पुलिस के पास है.

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पुलिस अधीक्षक प्रशांत अग्रवाल ने  संवाददाता को बताया कि बिलासपुर जिले के सीपत थाना क्षेत्र के अंतर्गत हरदाडीह निवासी जनक राम पटेल 35  साल को इस वर्ष जनवरी माह के अंतिम सप्ताह और फरवरी माह के प्रथम सप्ताह के मध्य पाकिस्तानी मोबाइल नंबर, व्हाट्सएप कॉल और चैटिंग के माध्यम से ठगों से बातचीत हुई थी. पटेल को झांसा दिया गया कि वह जियो से मालिक मुकेश अम्बानी बोल रहे हैं और जियो के लकी ड्रा के नाम पर उनकी 25 लाख रूपये की लाटरी निकल आई है. अगर वह सोनी टीवी पर चलने वाले आगामी सितंबर 2020 में अमिताभ बच्चन के कौन बनेगा करोड़पति कार्यक्रम में भाग्यशाली विजेता बनकर दो करोड़ रूपए की अतिरिक्त राशि जीतना चाहता है तो कुछ रकम उसे विभिन्न खातों में जमा करनी होगी. नगर सैनिक उनके झांसे में आ गया और उसने इस वर्ष एक फरवरी से आठ सितम्बर तक कुल 65 लाख रूपए ठगों के अलग-अलग खातों में जमा कर दिए. कुछ समय बाद उसे एहसास हुआ कि उसे ठग लिया गया है तो नगर सैनिक ने अपने उच्च अधिकारियों से गुहार लगाई.

पुलिस वाले भी हो रहे ठगी के शिकार

नगर सैनिक की शिकायत पर पुलिस ने मामले की छानबीन शुरू की तब जानकारी मिली कि जनक राम पटेल से उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों के लगभग 12 विभिन्न खातों में पैसे जमा कराए गए हैं. यह तथ्य भी सामने आया कि इस दौरान सबसे बड़ी रकम करीब 50 लाख रूपए मध्यप्रदेश के रीवा जिले के विराट सिंह के विभिन्न बैंकों के खातों में जमा की गई थी. विराट सिंह यह रकम फोन पे और पेटीएम के माध्यम से वर्ली मुंबई निवासी राजेश जायसवाल के खातों और डिजिटल पेमेंट सोल्यूशन उड़ीसा आदि में ऑनलाइन स्थानांतरित करता था.

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आखिरकार  पुलिस दल ने रीवा से विराट सिंह को पकड़ लिया. विराट सिंह ने बताया कि वह पाकिस्तान के छोटे मामू उर्फ़ असरफ और बड़े मामू उर्फ़ असगर तथा सलीम के सरपरस्ती में  काम करता है. विराट सिंह ने  बताया कि वह अपना कमीशन लेकर कर बाकी  रकम बताए गए खातों में भेज देता है. विराट इस रकम को देश भर के अलग-अलग प्रान्तों, हैदराबाद, कर्नाटक, बेंगलोर, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, उड़ीसा, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, असम और दिल्ली के खातों में ट्रांसफर करता था.

आरोपी विराट सिंह की निशानदेही पर खाता धारक शिवम् ठाकुर और संजू चौहान को मध्यप्रदेश के देवास से गिरफ्तार किया गया. वहीं पुलिस ने मुंबई जाकर राजेश जायसवाल को भी गिरफ्तार कर लिया जो रकम को डिजिटल करेंसी बिट क्वाइन में तब्दील कर भेजता था.

पुलिस  ने उड़ीसा में डिजिटल पेमेंट सोल्यूशन के संचालक सीता राम गौड़ा को भी हिरासत में लिया है जिसने अपने खाते में लगभग 15 लाख रूपये की रकम को जमा किया था. पुलिस ने इस रकम को सीज किया है.

यही नहीं 24 परगना पश्चिम बंगाल, गोपालगंज, बिहार, पश्चिम बंगाल के बाखर हाट और कृष नगर, पश्चिम गाजियाबाद, हुगली, सूरत, उत्तराखंड आदि स्थानों के कई आरोपियों की पहचान की जा चुकी है. अब इस ठगी के कुछ आरोपियों  के हाथ आने के बाद छत्तीसगढ़ पुलिस के समक्ष एक बहुत बड़ी चुनौती है  की किस तरह इस अंतरराष्ट्रीय ठगों के मुख्य सरगनाओं व गिरोह के सदस्यों को पकड़ती है. मामला संवेदनशील है क्योंकि मामला पाकिस्तान आदि देशों से जुड़ा हुआ है.

प्यार की सजा

प्यार की सजा : भाग 3

(कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां)

समय बीतता रहा. धीरेधीरे दोनों के प्यार की खुशबू स्कूलकालेज के साथसाथ गांव की गलियों में फैलने लगी. एक कान से दूसरे कान होती हुई यह बात रामप्रसाद के कानों तक पहुंची तो वह सन्न रह गया.

उस ने बेटी को डांटने के बजाए प्यार से समझाया, ‘‘सुलेखा, जब तक तेरा बचपन रहा, मैं ने तुझ पर कोई पाबंदी नहीं लगाई. लेकिन अब तू सयानी हो गई है, इसलिए अंकित के साथ चोरीछिपे बतियाना छोड़ दे. तुझे और अंकित को ले कर लोग तरहतरह की बातें करने लगे हैं. इसलिए मेरी इज्जत की खातिर तू उस का साथ छोड़ दे. इसी में हम सब की भलाई है.’’

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‘‘पापा, लोग यूं ही बातें बनाते हैं. हमारे बीच कोई गलत संबंध नहीं हैं. मैं अंकित से पढ़ाई के बारे में बातचीत कर लेती हूं.’’ सुलेखा ने झूठ बोला.

रामप्रसाद ने सुलेखा की बातों पर विश्वास कर लिया. इस के बाद कुछ रोज सुलेखा अंकित से कटी रही. हालांकि चोरीछिपे दोनों मोबाइल पर बतिया लेते थे. उस के बाद वह पुराने ढर्रे पर आ गई.

एक दिन सुलेखा घर में अकेली थी, तभी अंकित आ गया. उसे देखते ही सुलेखा चहक उठी. सूना घर देख कर अंकित ने उसे अपने आगोश में भर लिया, ‘‘लगता है, तुझे मेरा ही इंतजार था.’’

‘‘क्यों, तुम्हें मेरा इंतजार नहीं रहता क्या?’’ सुलेखा ने आंखें नचाते हुए कहा, ‘‘छोड़ो मुझे, दरवाजा खुला है.’’

अंकित को लगा मौका अच्छा है. सुलेखा भी मूड में थी. उस ने फौरन दरवाजा बंद किया और लौट कर जैसे ही सुलेखा का हाथ पकड़ा, वह अमरबेल की तरह उस से लिपट गई. फिर दोनों सुधबुध खो बैठे.

अवैध संबंधों का सिलसिला इसी तरह चलता रहा. लेकिन यह रिश्ता कब तक छिपा रहता. एक दिन सुलेखा की मां सीता अपनी बड़ी बेटी बरखा के साथ पड़ोसी के घर गई थी. कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम था. एकांत मिलते ही दोनों एकदूसरे की बांहों में समा गए. उसी समय अचानक सीता आ गई.

सुलेखा और अंकित को आलिंगनबद्ध देख कर सीता का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. अंकित को खरीखोटी सुनाते हुए वह उसे थप्पड़ जड़ कर बोली, ‘‘आस्तीन के सांप, मैं ने तुझे बेटा समझा था. तुझ पर भरोसा किया था, लेकिन तूने मेरी ही इज्जत पर डाका डाल दिया.’’

अंकित सिर झुकाए वहां से चला गया तो सीता सुलेखा पर टूट पड़ी. उसे लातघूंसों से मारते हुए बोली, ‘‘आज के बाद अगर तू कभी अंकित से मिली तो मुझ से बुरा कोई न होगा.’’

सीता देवी ने सुलेखा के गलत राह पर जाने की जानकारी पति रामप्रसाद व बेटे सनी कुमार को दी तो उन दोनों ने सुलेखा को मारापीटा तथा घर से बाहर जाने पर पाबंदी लगा दी.

जब पाबंदियां सुलेखा को बेचैन करने लगीं तब उस ने अंकित की चचेरी बहन आरती का सहारा लिया. चूंकि आरती सुलेखा की सहेली थी, सो वह उस की मदद को राजी हो गई. आरती अपने फोन पर अंकित और सुलेखा की बात कराने लगी. मां या बहन बरखा जब कभी सुलेखा का फोन चैक करतीं तो पता चलता कि फोन पर आरती से बात हुई थी.

सुलेखा का चाचा राजीव उर्फ राजी गांव का दबंग आदमी था. जब उसे पता चला कि उस की भतीजी सुलेखा गैरजाति के लड़के अंकित के प्यार में दीवानी है तो उसे बहुत बुरा लगा. उस ने अंकित और उस के घर वालों से मारपीट की. साथ ही हिदायत दी कि वह सुलेखा से दूर रहे वरना अंजाम ठीक नहीं होगा. राजीव ने सुलेखा को भी प्रताडि़त किया तथा उस पर पाबंदी बढ़ा दी.

अंकित और सुलेखा प्यार के उस मुकाम पर पहुंच चुके थे, जहां से वापस लौटना नामुमकिन था. पाबंदी के बावजूद वे एकदूसरे से मिल लेते थे. ऐसे ही एक रोज जब अंकित की मुलाकात सुलेखा से हुई तो वह बोला, ‘‘सुलेखा, तुम्हारी जुदाई मुझ से बरदाश्त नहीं होती और घर वाले मिलने में बाधक बने हुए हैं. इसलिए मैं चाहता हूं कि तुम मेरे साथ भाग चलो. हम दोनों कहीं दूर जा कर अपना आशियाना बना लेंगे.’’

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अंकित की बात सुन कर सुलेखा गंभीर हो गई, ‘‘तुम्हारे साथ भागने से मेरे परिवार की बदनामी होगी. मेरी एक गलती चाचा, पापा और परिवार पर भारी पड़ेगी. मेरी सगी बहन बरखा व चचेरी बहनें भी कुंवारी रह जाएंगी. इस के लिए मजबूर मत करो.’’

‘‘सोच लो सुलेखा, यह हमारी जिंदगी का सवाल है. मैं तुम्हें कुछ वक्त देता हूं. इतना जान लो कि तुम मुझे नहीं मिली तो मैं कुछ भी कर गुजरूंगा.’’ अंकित ने कहा और चला गया.

पर इस के पहले कि सुलेखा कुछ निर्णय कर पाती, मार्च के अंतिम सप्ताह में देश में लौकडाउन की घोषणा हो गई. ऐसी स्थिति में घर से भागना खतरे से खाली न था, अत: अंकित ने इंतजार करना ही उचित समझा.

इधर न जाने कैसे सुलेखा के चाचा राजीव उर्फ राजी को यह पता चल गया कि अंकित और सुलेखा घर से भागने की फिराक में हैं.

इस के पहले कि सुलेखा घर से भागे और उस के परिवार पर दाग लगे, राजीव ने दोनों को ही मिटाने की ठान ली. इस के बाद उस ने अपने भाई रामप्रसाद, बेटे सौरभ कुमार और भतीजे सनी के साथ एक योजना बनाई.

योजना के तहत सौरभ ने 30 मार्च, 2020 की शाम 7 बजे सुलेखा के प्रेमी अंकित को फोन कर के अपनी दुकान पर बुलाया. जब अंकित दुकान पर पहुंचा तो वह दुकान बंद कर रहा था.

सौरभ अंकित को सुलेखा के संबंध में कुछ जरूरी बात करने के बहाने गांव के बाहर अपने गेहूं के खेत पर ले गया. वहां राजीव, रामप्रसाद और सनी पहले से घात लगाए बैठे थे. अंकित के पहुंचते ही उन सब ने मिल कर उसे दबोच लिया और मुंह दबा कर मार डाला.

अंकित को मौत की नींद सुलाने के बाद राजीव अपने भतीजे सनी के साथ घर पहुंचा. सुलेखा उस समय अपनी बहन बरखा के साथ बतिया रही थी. उन दोनों ने सुलेखा से बात की और फिर अंकित और सुलेखा को आमनेसामने बैठा कर बात करने और कोई ठोस निर्णय लेने की बात कही.

सुलेखा इस के लिए राजी हो गई. इस के बाद वे उसे बहला कर गेहूं के खेत पर ले आए. सुलेखा ने पूछा, ‘‘अंकित कहां है?’’

‘‘वह वहां पड़ा सो रहा है. उसे जगा कर बात करो.’’ राजीव के होठों पर कुटिल मुसकान तैर रही थी.

चंद कदम चल कर सुलेखा अंकित के पास पहुंची और उसे हिलायाडुलाया, पर वह तो मर चुका था. सुलेखा को समझते देर नहीं लगी कि घर वालों ने उस के प्रेमी अंकित को मार डाला है. अब वे उसे भी नहीं छोडेंगे.

वह बदहवास हालत में घर की ओर भागी. लेकिन अभी वह खेत की मेड़ भी पार नहीं कर पाई थी कि रामप्रसाद और सौरभ ने उसे सामने से घेर लिया, ‘‘भागती कहां है कुलच्छिनी. अब तुझे भी नहीं छोडेंगे.’’

इसी के साथ रामप्रसाद, राजीव, सनी और सौरभ ने मिल कर सुलेखा को जमीन पर पटक दिया. फिर रामप्रसाद ने मुंह दबा कर बेटी की सांसें बंद कर दीं. हत्या करने के बाद उन लोगों ने बारीबारी से दोनों के शव अंकित के ही कुएं में डाल दिए. ऐसा उन्होंने इसलिए किया ताकि लोगों को लगे कि दोनों ने आत्महत्या की है.

इधर जब अंकित देर रात तक घर नहीं लौटा तो उस के घर वालों ने उस की खोज शुरू की. अंकित को खोजते हुए उस की मां दिलीप कुमारी रामप्रसाद के घर गई तो उस ने इलजाम लगाया कि अंकित उस की बेटी को भगा ले गया है.

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दिलीप कुमारी ने थाने में रिपोर्ट दर्ज कराने की बात कही तो रामप्रसाद अपने बेटे सनी कुमार, भाई राजीव व भतीजे सौरभ के साथ घर से गायब हो गया.

दिलीप कुमारी रिपोर्ट लिखाने गई थी, पर पुलिस ने उस की रिपोर्ट दर्ज नहीं की. 2 अप्रैल, 2020 को घटना का खुलासा तब हुआ जब सुदामा नाम का मजदूर पानी लेने कुएं पर गया. पुलिस ने 8 अप्रैल, 2020 को अभियुक्त राजीव उर्फ राजी, सौरभ कुमार, रामप्रसाद तथा सनी से पूछताछ के बाद इटावा कोर्ट में पेश किया, जहां से चारों को जिला जेल भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्यार की सजा : भाग 2

(कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां)

थाने में पुलिस ने आरती को प्रताडि़त कर पूछताछ शुरू की. दरअसल पुलिस चाहती थी कि आरती यह स्वीकार कर ले कि प्रेमी युगल की हत्या अंकित के घर वालों ने की है. इस बीच आरती के पिता और भाई थाने पहुंच गए तो उन दोनों को भी जम कर पीटा गया. जब आरती नहीं टूटी तो पुलिस उसे उस के घर छोड़ गई.

आरती एवं उस के घर वालों ने एसएसपी आकाश तोमर से प्रताड़ना की शिकायत की. इस पर एसएसपी ने थानाप्रभारी बलिराज शाही को फटकार लगाई, साथ ही सीओ से भी बात की. उन्होंने कहा कि वह केस को वर्कआउट करें, लेकिन किसी को अनावश्यक प्रताडि़त न करें.

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एसएसपी की हिदायत के बाद पुलिस टीम ने जांच आगे बढ़ाते हुए मृतका सुलेखा के पिता, भाई, चाचा और चचेरे भाई पर शिकंजा कस दिया. पुलिस टीम ने उन के मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगा दिए. साथ ही उन की टोह के लिए मुखबिरों को भी लगा दिया. यही नहीं, पुलिस ने घर जा कर मृतका सुलेखा की बहन बरखा से भी मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की.

बरखा ने बताया कि पिता, चाचा व भाई सुलेखा को बहलाफुसला कर गेहूं के खेत पर ले गए थे. उस के बाद वह घर वापस नहीं आई.

बरखा के बयान से स्पष्ट हो गया कि सुलेखा व उस के प्रेमी अंकित की हत्या उस के घर वालों ने ही की थी, अत: पुलिस ने सुलेखा के पिता रामप्रसाद, भाई सनी कुमार, चाचा राजीव उर्फ राजी तथा चचेरे भाई सौरभ को गिरफ्तार करने के लिए कई जगह ताबड़तोड़ दबिश डालीं, लेकिन वे लोग पुलिस के हत्थे नहीं चढ़े. हालांकि उन की लोकेशन भरथना के आसपास के गांवों की मिल रही थी.

7 अप्रैल की सुबह करीब 6 बजे पुलिस को मुखबिर से सूचना मिली कि इटावा कन्नौज हाइवे पर स्थित झिझुआ मोड़ गेट के पास रामप्रसाद अपने भाई राजीव, बेटे सनी और भतीजे सौरभ के साथ मौजूद है.

यह सूचना मिलते ही पुलिस टीम झिझुआ मोड़ गेट के पास पहुंच गई और घेराबंदी कर चारों को गिरफ्तार कर लिया. उन सभी को थाना भरथना लाया गया.

थाने में उन से सुलेखा और अंकित की हत्या के बारे में सख्ती से पूछताछ की गई तो वे टूट गए. उन चारों से गहन पूछताछ के बाद पता चला कि प्रेमी युगल की हत्या का मास्टरमाइंड सुलेखा का चाचा राजीव उर्फ राजी था. उस ने ही पूरा षडयंत्र रचा था और घर के अन्य लोगों को उकसाया था.

चूंकि हत्यारोपियों ने जुर्म कबूल कर लिया था, अत: थानाप्रभारी बलिराज शाही ने मृतका के पिता प्रदीप शाक्य की ओर से भादंवि की धारा 302, 120बी के तहत रामप्रसाद, राजीव उर्फ राजी, सनी कुमार तथा सौरभ कुमार के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली. पुलिस जांच में नादान प्रेमियों की हत्या की सनसनीखेज घटना प्रकाश में आई.

उत्तर प्रदेश के जिला इटावा के थाना भरथना क्षेत्र में एक गांव है दिवरासई. इसी गांव में रामप्रसाद अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी सीता के अलावा 2 बेटे सनी और मनी तथा 4 बेटियां थीं. जिन में सुलेखा तीसरे नंबर की थी. रामप्रसाद के पास 10 बीघा जमीन थी.

रामप्रसाद का एक अन्य भाई राजीव प्रसाद था, जिसे गांव के लोग राजी कहते थे. दोनों भाइयों के बीच जमीन व मकान का बंटवारा हो चुका था. राजीव दबंग था, पढ़ालिखा भी. किसानी के साथ वह किराने की दुकान भी चलाता था. दुकान पर उस का बेटा सौरभ बैठता था. उस की आर्थिक स्थिति मजबूत थी.

सुलेखा और बरखा के अलावा सभी बहनों की शादी हो चुकी थी. बरखा 11वीं कक्षा में पढ़ती थी. घर के कामों के साथसाथ वह पढ़ती भी थी.

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रामप्रसाद के पड़ोस में प्रदीप कुमार शाक्य का मकान था. उस के परिवार में पत्नी दिलीप कुमारी के अलावा 2 बेटे अमन और अंकित थे. प्रदीप कुमार शाक्य खेतीकिसानी के अलावा गल्ले का व्यवसाय भी करता था. इस से उसे अच्छी कमाई हो जाती थी. उन का 17 वर्षीय बेटा अंकित 11वीं में पढ़ रहा था. पढ़ाई के साथसाथ वह पिता के गल्ले के काम में हाथ बंटाता था.

रामप्रसाद व प्रदीप कुमार हालांकि अलगअलग जातिबिरादरी के थे, लेकिन पड़ोसी होने के नाते दोनों परिवारों में मधुर संबंध थे. एकदूसरे के सुखदुख में बराबर शरीक होते थे. सुलेखा और अंकित हमउम्र थे. बचपन से ही दोनों साथ खेलेबढ़े थे. उन में खूब पटती थी.

दोनों अब जवानी की दहलीज पर कदम रख चुके थे. इसलिए वे साथसाथ खेल तो नहीं पाते थे पर आंखों से एकदूसरे को मूक संदेश देने लगे थे. अंकित की शरारत पर सुलेखा शरमा जाती तो अंकित उसे छूते ही मदहोशी के आलम में पहुंच जाता था. हकीकत यह थी कि सुलेखा उस के दिल की गहराइयों तक समा चुकी थी. वह रातदिन उसी के ख्वाब देखता था.

सुलेखा और अंकित एक ही कालेज में पढ़ते थे. सुलेखा अंकित की चचेरी बहन आरती के साथ कालेज जाती थी. वह उस की प्रिय सहेली थी और उसी की कक्षा में पढ़ती थी. एक दिन सुलेखा कालेज जा रही थी तभी अंकित उसे रास्ते में मिल गया.

अंकित ने इशारे से उसे पेड़ की ओट में बुलाया. दोनों की आंखें चार हुईं और दिल धड़कने लगे. अंकित ने अनायास ही सुलेखा का हाथ थामते हुए कहा, ‘‘सुलेखा, मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. तुम्हारा खूबसूरत चेहरा हर समय मेरी आंखों के सामने घूमता रहता है.’’

सुलेखा नजरें नीची कर के मंदमंद मुसकराती हुई पैर के अंगूठे से मिट्टी खुरचती रही. उस की खामोशी से अंकित को उस के दिल की बात पता चल गई. वह समझ गया कि जो हाल उस का है, वही सुलेखा का भी है.

अंकित ने उसे छेड़ते हुए कहा, ‘‘कुछ तो बोलो, मैं तुम्हारा जवाब सुनने को बेचैन हूं. अगर तुम्हें मेरी बात अच्छी नहीं लगी तो मुझे डांट दो. लेकिन एक बात जान लो सुलेखा कि अगर तुम ने इनकार किया तो तुम्हारी कसम मैं जान दे दूंगा. तुम्हारे बिना अब मैं जीने की कल्पना भी नहीं कर सकता.’’

सुलेखा ने आंखें फाड़ कर अंकित को देखा और मुसकराते हुए बोली, ‘‘अंकित, मैं भी तुम्हें उतना ही प्यार करती हूं जितना तुम मुझे करते हो. मैं कब से तुम्हारा इंतजार कर रही थी कि तुम मुझ से यह बात कहो, लेकिन तुम तो निरे बुद्धू हो.’’ अपनी बात कह कर वह घर की तरफ चल दी.

जवाब में अंकित ने कहा, ‘‘सुलेखा, सचमुच मैं बुद्धू हूं, डरपोक हूं. तभी तो सब कुछ जानते हुए भी तुम्हारे सामने नहीं आ पाता था.’’

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इस के बाद अंकित और सुलेखा का प्यार परवान चढ़ने लगा. सुलेखा और अंकित घर से कालेज जाने को निकलते लेकिन वे कालेज न जा कर बागबगीचे में बैठ कर प्यारभरी बातें करते. एकदूसरे के प्रति आकर्षण बढ़ा तो दोनों शारीरिक मिलन के लिए लालायित रहने लगे. और एक दिन उन की यह हसरत भी पूरी हो गई.

जानें आगे की कहानी अगले भाग में…

प्यार की सजा : भाग 1

(कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां)

इटावा जिले के दिवरासई गांव का रहने वाला मेवाराम यादव अपनी गेहूं की पकी फसल काट रहा था. साथ में कई मजदूर भी कटाई कर रहे थे. दोपहर करीब 12 बजे प्यास लगी तो मेवाराम ने मजदूर सुदामा को पानी लाने प्रदीप कुमार के कुएं पर भेजा.

सुदामा कुएं पर पहुंचा तो उसे कुएं से बदबू आती महसूस हुई. जिज्ञासावश उस ने कुएं में झांका तो उस के मुंह से चीख निकल गई. कुएं में लाश पड़ी थी.

सुदामा की चीख सुन कर मेवाराम और मजदूर भी कुएं के पास पहुंच गए. इस के बाद तो पूरे गांव में शोर मच गया. यह बात 2 अप्रैल, 2020 की है.

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अपने कुएं में लाश पड़ी होने की जानकारी प्रदीप कुमार शाक्य को हुई तो उस का माथा ठनका. क्योंकि उस का 17 वर्षीय बेटा अंकित 30 मार्च की शाम 7 बजे घर से निकला था और वापस नहीं लौटा था. उस ने घर वालों के साथ गांव का कोनाकोना छान मारा था, लेकिन अंकित का कुछ भी पता नहीं चला. वह बेटे की गुमशुदगी दर्ज कराने पुलिस के पास भी गया था लेकिन पुलिस ने उसे टरका दिया था.

प्रदीप के मन में तमाम आशंकाओं के बादल उमड़ने लगे. इन्हीं आशंकाओं के बीच उस ने पत्नी दिलीप कुमारी तथा घर के अन्य लोगों को साथ लिया और खेत पर स्थित अपने कुएं पर जा पहुंचा.

उस समय वहां दरजनों लोग थे, जो कुएं में झांकझांक कर लाश को देख रहे थे. प्रदीप कुमार और उस के घर के अन्य लोगों ने भी कुएं में झांक कर लाश देखी, पर यह सुनिश्चित कर पाना मुश्किल था कि लाश किस की है. इस बीच गांव के चौकीदार ने भरथना थाने में फोन कर यह जानकारी दे दी.

सूचना पाते ही थानाप्रभारी बलिराज शाही पुलिस टीम के साथ दिवरासई गांव स्थित उस कुएं पर पहुंच गए, जहां लाश पड़ी थी. गांव के 2 युवकों सूरज और राजू को कुएं में उतारा गया. दोनों अच्छे तैराक थे. कुएं में उतरते ही सूरज चिल्लाया, ‘‘सर, कुएं में एक नहीं 2 लाशें हैं.’’ यह सुन कर पुलिस के साथसाथ गांव वालों की भी सांसें अटक गईं.

उन युवकों के सहयोग से पुलिस ने रस्सी के सहारे खींच कर दोनों शव कुएं से बाहर निकलवाए. शवों को देख कर वहां मौजूद लोगों ने उन की शिनाख्त कर ली. एक शव प्रदीप कुमार शाक्य के बेटे अंकित का था और दूसरा 16 वर्षीया सुलेखा का, जो गांव के ही रामप्रसाद की बेटी थी.

रामप्रसाद तथा उस के घर का कोई सदस्य वहां मौजूद नहीं था. थानाप्रभारी ने उस के घर सूचना भिजवाई. पर सूचना के बाद भी उस के घर से कोई नहीं आया.

घटनास्थल पर मौजूद प्रदीप कुमार व उस की पत्नी दिलीप कुमारी अपने 17 वर्षीय बेटे अंकित के शव को देख कर दहाड़ें मार कर रो रहे थे. परिवार के अन्य लोगों का भी रोरो कर बुरा हाल था. इसी बीच थानाप्रभारी बलिराज शाही ने कुएं से युवकयुवती के शव मिलने की सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. कुछ ही देर में एसएसपी आकाश तोमर तथा सीओ (भरथना) आलोक प्रसाद आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया, फिर मृतक के घर वालों तथा अन्य लोगों से घटना के संबंध में जानकारी जुटाई. जिस से पता चला कि अंकित और सुलेखा एक ही कालेज में पढ़ते थे, दोनों के बीच प्रेम संबंध थे. दोनों के घर वाले इस का विरोध करते थे. 2 दिन पहले ही दोनों देर शाम घर से निकले थे.

जामातलाशी में उन के पास से कोई सुसाइड नोट नहीं मिला. पुलिस अधिकारियों को यह जान कर आश्चर्य हुआ कि सुलेखा के घर वाले वहां नहीं आए थे. लोगों ने बताया कि मृतका के घर पर केवल महिलाएं हैं. पुरुष फरार हैं. सूचना के बावजूद घर की महिलाएं भी मृतका का शव देखने नहीं आईं, यह बात पुलिस की समझ से बाहर थी.

इस से पुलिस अधिकारियों को लगा कि यह मामला औनर किलिंग का हो सकता है. अंकित की मां दिलीप कुमारी भी चीखचीख कर कह रही थी कि उस के बेटे की हत्या सुलेखा के घर वालों ने की है. हत्या कर के शव कुएं में फेंक दिया ताकि लोग समझें कि दोनों ने आत्महत्या की है.

मामला हत्या का था या आत्महत्या का, यह बात तो पोस्टमार्टम के बाद ही पता चल सकती थी. पुलिस ने अंकित व सुलेखा के शव पोस्टमार्टम हेतु जिला अस्पताल इटावा भिजवा दिए.

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3 अप्रैल, 2020 को 3 डाक्टरों के पैनल ने दोनों शवों का पोस्टमार्टम किया. थानाप्रभारी ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट पढ़ी तो चौंके. क्योंकि मामला आत्महत्या का नहीं, हत्या का था. उन की मौत पानी में डूबने से नहीं बल्कि दम घुटने से हुई थी. थानाप्रभारी ने यह जानकारी एसएसपी आकाश तोमर को दे दी.

एसएसपी ने प्रेमी युगल हत्याकांड को गंभीरता से लिया और कातिलों को पकड़ने के लिए सीओ आलोक प्रसाद की निगरानी में एक विशेष पुलिस टीम का गठन कर दिया. इस टीम में थानाप्रभारी बलिराज शाही, एसआई अनिल कुमार, महिला सिपाही सरिता सिंह, एसओजी प्रभारी सत्येंद्र सिंह तथा सर्विलांस प्रभारी बेचैन सिंह को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने सब से पहले मृतक अंकित के घर वालों से पूछताछ की. मृतक की मां दिलीप कुमारी ने बताया कि 30 मार्च को 7 बजे अंकित के मोबाइल पर एक काल आई थी. उस ने काल रिसीव कर बात की फिर घर से चला गया. उस के बाद वापस नहीं लौटा. 2 दिन बाद उस की लाश मिली. उस ने अंकित की हत्या का आरोप सुलेखा के घर वालों पर लगाया.

अंकित का मोबाइल घर पर ही था, जिसे वह चार्जिंग पर लगा गया था. पुलिस टीम ने मोबाइल अपने कब्जे में ले लिया. पुलिस ने जब उस का मोबाइल खंगाला तो पता चला कि उस के मोबाइल पर अंतिम काल 30 मार्च की शाम 7 बजे आई थी. पुलिस ने उस नंबर की जानकारी जुटाई तो पता चला वह नंबर सुलेखा के चचेरे भाई सौरभ का है. पर सौरभ सहित घर के अन्य सदस्य फरार थे.

पुलिस टीम सुलेखा के घर पहुंची तो उस की मां सीता देवी और बहनें फूटफूट कर रोने लगीं. उन्होंने बताया कि सुलेखा की हत्या अंकित के घर वालों ने की है. घर के पुरुष बदनामी और पुलिस के डर से फरार हो गए हैं.

सीता देवी ने यह बात स्वीकार की कि सुलेखा अंकित से प्यार करती थी और परिवार के लोग विरोध करते थे. सुलेखा का मोबाइल फोन भी घर पर ही था. पुलिस ने उस का मोबाइल अपने पास सुरक्षित रख लिया.

प्रेमी युगल की हत्या का इलजाम दोनों परिवार एकदूसरे पर लगा रहे थे. पुलिस परेशान थी कि आखिर अंकित और सुलेखा का कातिल कौन सा परिवार है. इस का पता लगाने के लिए पुलिस ने सुलेखा के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. पता चला कि सुलेखा 2 नंबरों पर दिन में कईकई बार बात करती थी. इन में एक नंबर अंकित का था और दूसरा अंकित की चचेरी बहन आरती का था, जो उस की सहेली थी और उस के साथ ही पढ़ती थी. पुलिस को लगा कि आरती से सच्चाई पता चल सकती है.

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4 अप्रैल की रात 11 बजे पुलिस टीम अंकित के चाचा रामकुमार के घर पहुंची और पूछताछ के बहाने उस की बेटी आरती को जीप में बिठा लिया. घर वालों ने रात में बेटी को थाने ले जाने का विरोध किया तो पुलिस ने कहा कि उस से कुछ पूछताछ करनी है.

जानें आगे की कहानी अगले भाग में…

घर में दफ्न 4 लाशें

घर में दफ्न 4 लाशें : भाग 3

नरेंद्र ने विजय के सामने ससुर की सारी संपत्ति की पोल खोल दी, जिस से उस के मन में भी लालच पैदा हो गया. नरेंद्र के इशारे पर उस ने हीरालाल की मंझली बेटी पार्वती पर निगाहें गड़ा दीं. लेकिन पार्वती समझदार थी. विजय के लाख कोशिश करने के बाद भी वह उस के प्रेम जाल में नहीं फंसी. यह बात नरेंद्र को पता चली तो उस के मन में हीरालाल की पूरी संपत्ति हड़पने का लालच आ गया.

संपत्ति के लालच में वह ससुर के साथसाथ बाकी लोगों को भी मौत के घाट उतारने के लिए षडयंत्र रचने लगा. लेकिन वह अपनी योजना में सफल नहीं हो पा रहा था. उसे पता लग गया था कि विजय पार्वती को पटाने में असफल रहा. इस पर उस ने विजय से कहा कि पार्वती ने यह बात अपने पापा को बता दी तो वह मोहल्ले में नहीं रह पाएगा.

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नरेंद्र की बात सुन विजय घबरा गया. इस के बाद विजय नरेंद्र की हां में हां मिलाने लगा. अपना अगला दांव चलते हुए नरेंद्र अपने घर पर विजय की दावत करने लगा. खातेपीते एक दिन नरेंद्र ने लालच दे कर विजय को अपनी योजना बता दी.

नरेंद्र ने विजय के साथ मिल कर 17 अप्रैल, 2019 को अपने ससुराल वालों की हत्या की योजना को अंतिम रूप दे दिया. योजना बन गई तो नरेंद्र बीवीबच्चों को अपने फूफा के घर देवरनियां, बरेली में छोड़ आया ताकि उन्हें उस की साजिश का पता न चल सके.

बीवीबच्चों को बरेली भेजने के बाद नरेंद्र अपनी योजना को अंजाम देने के लिए मौके की तलाश में लग गया. लेकिन उसे मौका नहीं मिल पा रहा था. नरेंद्र और विजय को यह भी डर था कि अगर किसी वजह से वह इस योजना में फेल हो गए तो न घर के रहेंगे न घाट के.

नरेंद्र को पता था कि उस की सास सुबहसुबह दूध लेने जाती है. उस वक्त ससुर और दोनों सालियां सोई रहती हैं. घर का गेट खुला रहता है. पड़ोसी भी सोए होते हैं. घटना को अंजाम देने के लिए नरेंद्र को यह समय ठीक लगा.

20 अप्रैल, 2019 को नरेंद्र गंगवार और विजय गंगवार सुबह जल्दी उठ गए और हेमवती के जाने का इंतजार करने लगे. उस दिन हेमवती सुबह के साढ़े 5 बजे बेटी पार्वती को साथ ले कर दूध लेने के लिए निकली. उन के घर से निकलते ही नरेंद्र विजय को साथ ले कर हीरालाल के घर में घुस गया.

लेकिन तब तक हीरालाल सो कर उठ चुके थे. सुबहसुबह उन दोनों को अपने घर में देख हीरालाल ने आने का कारण पूछा तो नरेंद्र ने कहा कि आज मैं आखिरी बार आप से पूछने आया हूं कि मेरे हिस्से की संपत्ति मुझे देते हो या नहीं.

सुबहसुबह दामाद के मुंह से ऐसी बात सुन कर हीरालाल का पारा चढ़ गया. दोनों के बीच विवाद बढ़ा तो योजनानुसार नरेंद्र ने वहीं रखी लकड़ी की फंटी से पीटपीट कर हीरालाल की हत्या कर दी. पिता के चीखने की आवाज सुन कर बेटी दुर्गा उन के बचाव में आई तो दोनों ने उसे भी फंटी से पीटपीट कर मार डाला.

दोनों को मौत की नींद सुलाने के बाद नरेंद्र और विजय हेमवती और पार्वती के आने का इंतजार करने लगे. जैसे ही उन दोनों ने घर में प्रवेश किया, दरवाजे के पीछे खड़े नरेंद्र और विजय ने उन्हें भी पीटपीट कर मार डाला.

सासससुर और दोनों सालियों की हत्या करने के बाद नरेंद्र और विजय ने चारों को घसीट कर एक कमरे में ले जा कर डाल दिया. कहीं कोई जिंदा तो नहीं रह गया, जानने के लिए दोनों ने एकएक कर सब की नब्ज चैक की.

जब उन्हें पूरा यकीन हो गया कि चारों की मौत हो चुकी है, तो दोनों ने मकान में फैले खून को धो कर साफ किया और घर के बाहर ताला डाल कर घर लौट आए. नरेंद्र और विजय ने चारों की हत्या तो कर दी, लेकिन समस्या थी लाशों को ठिकाने लगाने की. नरेंद्र जानता था कि लाशों को घर से बाहर ले जाना खतरे से खाली नहीं है.

सोचविचार कर दोनों ने तय किया कि बाजार से प्लास्टिक बैग ला कर लाशों को उस में लपेटा जाए और घर में गड्ढा खोद कर दफना दिया जाए. संभावना थी कि पौलीथिन में लिपटी होने से लाशों के सड़ने की बदबू बाहर नहीं आ पाएगी.

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20 अप्रैल, 2019 को ही नरेंद्र बाजार से पौलीथिन खरीद कर लाया. उसी रात दोनों ने हीरालाल के मकान में जा कर चारों लाशों को पैक कर दिया. अगले दिन 21 अप्रैल, 2019 को सुबह नरेंद्र विजय को साथ ले कर ससुर के घर गया. फिर अपनी योजना के मुताबिक दोनों ने जीने के नीचे गड्ढा खोदना शुरू किया.

कुछ पड़ोसियों ने नरेंद्र से हीरालाल के घर में अचानक काम कराने के बारे में पूछा तो नरेंद्र ने कहा कि ससुर मकान बेच कर कहीं दूसरी जगह चले गए. घर में रिपेयरिंग का काम चल रहा है. वैसे उस मोहल्ले में नरेंद्र से कोई ज्यादा मतलब नहीं रखता था.

नरेंद्र ने विजय के साथ मिल कर लगभग 6 घंटे में गहरा गड्ढा खोदा. उस के बाद दोनों ने प्लास्टिक की शीट में पैक चारों लाशें गड्ढे में डाल दीं. लाशों को गड्ढे में दफन कर दोनों ने वहां पर पक्का फर्श बना दिया. नरेंद्र ने हीरालाल के घर के मुख्य दरवाजे पर ताला डाल दिया.

हीरालाल के घर पर अचानक ताला पड़ा देख लोगों को हैरत जरूर हुई. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि हीरालाल रात ही रात में अपने परिवार को ले कर अचानक कहां गायब हो गए. लेकिन नरेंद्र से किसी ने भी पूछने की हिम्मत नहीं की थी.

अपने सासससुर और सालियों को ठिकाने लगा कर नरेंद्र अपने बीवीबच्चों को भी घर ले आया. घर आते ही लीलावती की नजर पिता के मकान की ओर गई, जहां पर ताला पड़ा था. लीलावती ने नरेंद्र से उन के बारे में पूछा, तो उस ने बताया कि उस के पिता अपना मकान बेच कर हल्द्वानी चले गए हैं. उन्होंने वहां पर अपना प्रौपर्टी का काम शुरू कर दिया है.

यह सुन कर लीलावती चुप हो गई. मातापिता के बारे में नरेंद्र से ज्यादा पूछने की हिम्मत उस में नहीं थी. अगर नरेंद्र संपत्ति हड़पने के लिए मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाने में जल्दबाजी न करता तो यह राज शायद राज ही बन कर रह जाता.

इस केस के खुलते ही पुलिस ने आरोपी नरेंद्र गंगवार और विजय गंगवार को भादंवि की धारा 302/201/120बी के तहत गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया था.

चारों शव पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने उन के रिश्तेदार दुर्गा प्रसाद को सौंप दिए. उन का दाह संस्कार बरेली के गांव पैगानगरी के पास भाखड़ा नदी किनारे किया गया.

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नरेंद्र गंगवार इतना शातिर दिमाग इंसान था कि इस केस में उस ने दुर्गा प्रसाद को भी फंसाने की कोशिश की. लेकिन सच्चाई सामने आते ही पुलिस ने उन्हें छोड़ दिया. हालांकि इस केस की रिपोर्ट दुर्गा प्रसाद की ओर से ही दर्ज कराई गई थी. पुलिस ने लीलावती से पूछताछ करने के बाद उसे छोड़ दिया. वह नरेंद्र के फूफा के साथ बहेड़ी चली गई थी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

घर में दफ्न 4 लाशें : भाग 2

हीरालाल जिला बरेली के गांव पैगानगरी के रहने वाले थे. उन का परिवार सुखीसंपन्न था. गांव में उन की करीब 60 बीघा जुतासे की जमीन थी. उन की 3 बेटियां थीं.

लीलावती उर्फ लवली, पार्वती और सब से छोटी दुर्गा. पत्नी हेमवती सहित घर में कुल 5 सदस्य थे. हीरालाल की एक ही परेशानी थी कि उन का कोई बेटा नहीं था.

हीरालाल ने बेटे की चाह में काफी हाथपांव मारे. वह कई डाक्टरों और तांत्रिकों से मिले, लेकिन उन की बेटा पाने की इच्छा पूरी न हो सकी.

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अंतत: उन्होंने अपना पूरा ध्यान बेटियों की परवरिश में लगा दिया. बेटियां समझदार हुईं तो हीरालाल ने सोचा कि उन्हें अच्छी शिक्षा दिलानी चाहिए. लेकिन गांव में रहते यह संभव नहीं था.

सोचविचार के बाद हीरालाल ने सन 2007 में अपनी खेती की जमीन में से 44 बीघा जमीन बेच दी. उस पैसे को ले कर वह अपने परिवार के साथ रुद्रपुर की राजा कालोनी में आ बसे. वहीं उन्होेंने अपना मकान बना लिया.

रुद्रपुर आ कर हीरालाल ने अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए तीनों बेटियों का अच्छे स्कूल में दाखिला करा दिया था.

बेटियों की तरफ से निश्चिंत हो कर हीरालाल ने बाकी बचे पैसों से प्रौपर्टी डीलिंग का काम शुरू कर दिया. जमीन के पैसों से उन्होंने घर के आसपास कई प्लौट खरीद कर डाल दिए. उसी दौरान हीरालाल की मुलाकात नरेंद्र गंगवार से हुई.

नरेंद्र रामपुर जिले के गांव खेड़ासराय का रहने वाला था. वह उसी मोहल्ले में किराए के मकान में रहता था और सिडकुल की एक फैक्ट्री में काम करता था. उस ने हीरालाल से एक प्लौट खरीदने की इच्छा जाहिर की.

हीरालाल ने उसे अपने घर के सामने पड़ा प्लौट दिखाया तो वह नरेंद्र को पसंद आ गया. नरेंद्र ने वह प्लौट खरीद लिया. प्लौट लेने के बाद नरेंद्र की हीरालाल से जानपहचान हो गई. वह उन के संपर्क में रहने लगा. इसी बहाने वह हीरालाल के घर भी आनेजाने लगा.

इसी बीच नरेंद्र की नजर हीरालाल के बड़ी बेटी लीलावती पर पड़ी. लीला देखनेभालने में सुंदर थी और उस समय पढ़ रही थी. वह जब भी हीरालाल के घर जाता तो उस की निगाहें लीला पर टिकी रहती थीं.

लीला नरेंद्र के बारे में पहले ही सब कुछ जान चुकी थी. जब उस ने नरेंद्र को अपनी ओर आकर्षित होते देखा तो उस के दिल में भी चाहत पैदा हो गई. जल्दी ही दोनों प्रेम की राह पर चल निकले.

लीला स्कूल जाती तो नरेंद्र घंटों उस की राह तकता रहता. उस के स्कूल जाने का फायदा उठा कर वह घर के बाहर ही मिलने लगा. प्रेम बेल फलीफूली तो मोहल्ले वालों की नजरों में किरकरी बन कर चुभने लगी.

दोनों की प्रेम कहानी हीरालाल के सामने जा पहुंची तो बेटी की करतूत सुन कर उन्हें बहुत दुख हुआ. हीरालाल ने लीला को समझाया और नरेंद्र के घर आने पर पाबंदी लगा दी. लेकिन मोबाइल फोन के होते नरेंद्र और लीला के मिलने में किसी तरह की अड़चन नहीं आई. दोनों चोरीछिपे मिलते रहे.

प्रेम कहानी के चलते लीला ने सन 2008 में घर वालों को बिना बताए नरेंद्र से लव मैरिज कर ली. नरेंद्र के साथ शादी करने के बाद लीला उस के साथ किराए के मकान में रहने लगी.

बेटी की इस करतूत से हीरालाल और उन की पत्नी हेमवती दोनों को ही आघात पहुंचा था. उन्होंने बेटी लीला से संबंध खत्म कर दिए.

लेकिन हेमवती मां थी. बच्चों के लिए मां का दिल कोमल होता है. लीलावती ने नरेंद्र से शादी कर भले ही अपनी दुनिया बसा ली थी, लेकिन मां होने के नाते हेमवती उस के लिए परेशान रहने लगी थी. जब उस से बेटी के बिना नहीं रहा गया तो वह पति को बिना बताए उस से मिलने लगी.

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जब कभी वह घर में कुछ अच्छा बनाती, तो चुपके से लीला को दे आती थी. साथ ही वह उस की आर्थिक मदद भी करने लगी थी. यह बात हीरालाल को भी पता चल गई थी. शुरूशुरू में तो इस बात को ले कर मियांबीवी में विवाद होने लगा. लेकिन हीरालाल भी दिल के कमजोर थे. बेटी की परेशानी को देखते हुए उन का दिल भी पसीज गया.

शादी के कुछ समय बाद ही हीरालाल ने नरेंद्र को अपने दामाद के रूप में स्वीकार कर लिया. हीरालाल और हेमवती दोनों को अपने घर ले आए. इस के बाद नरेंद्र और लीला हीरालाल के मकान में रहने लगे.

उसी दौरान नरेंद्र कई बार हीरालाल के साथ उन के गांव पैगानगरी भी गया था. गांव में हीरालाल का मकान था. साथ ही उन की 16 बीघा जमीन भी थी, जिसे उन्होंने बंटाई पर दे रखा था. उस जमीन से उन्हें हर साल इतना रुपया मिल जाता था कि उन के परिवार की जरूरतें पूरी हो जाती थीं, प्रौपर्टी खरीदबेच कर जो कमाते थे वह अलग था.

ससुर के साथ रहते हुए नरेंद्र उन की एकएक बात अपने दिमाग में बैठा लेता था. मातापिता के घर पर रहते हुए लीलावती 2 बेटियों और 2 बेटों की मां बनी.

हीरालाल के घर पर रहते हुए नरेंद्र नौकरी के साथसाथ उन के काम में भी हाथ बंटाने लगा था. हालांकि नरेंद्र के चारों बच्चों का खर्च हीरालाल ही उठाते थे. इस के बावजूद वह अपने खर्च के लिए हीरालाल से पैसे ऐंठता रहता था.

अभी हीरालाल की 2 बेटियां शादी के लिए बाकी थीं. वह चाहते थे कि दोनों बेटियां बड़ी की तरह कोई कदम न उठाएं. यही सोच कर वह टाइम से उन की शादी कर देना चाहते थे.

लेकिन जब से नरेंद्र दामाद बन कर घर में आया था, सालियों को फूटी आंख नहीं देखना चाहता था. वह तेजतर्रार और चालाक था. लीला से शादी कर के उस की निगाह हीरालाल की संपत्ति पर जम गई थी.

उसी दौरान उस ने हीरालाल पर दबाव बनाना शुरू किया कि उस के हिस्से की संपत्ति उस के नाम करा दें. लेकिन हीरालाल ने साफ कह दिया कि जब तक दोनों बेटियां विदा नहीं हो जातीं, वह अपनी संपत्ति का बंटवारा नहीं करेंगे.

हीरालाल जब नरेंद्र की हरकतों से परेशान हो गए तो उन्होंने नरेंद्र के प्लौट पर मकान बनवा दिया. इस के बाद नरेंद्र अपने बीवीबच्चों को साथ ले कर नए मकान में चला गया.

हीरालाल ने सोचा था कि नरेंद्र अपने घर जाने के बाद सुधर जाएगा. लेकिन घर आमनेसामने होने की वजह से उस के बीवीबच्चे तो हीरालाल के घर पर पड़े ही रहते थे, वह भी आ कर बदतमीजी पर उतर आता था. लेकिन ससुर होने के नाते हीरालाल सब कुछ सहन करते रहे.

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उसी दौरान नरेंद्र ने अपने मकान में विजय नाम का एक किराएदार रख लिया. विजय गंगवार जिला बरेली के गांव दमखोदा का रहने वाला था. नरेंद्र विजय गंगवार से पहले से ही परिचित था. सो दोनों में खूब पटने लगी. विजय गंगवार कुंवारा था.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

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