अग्निपरीक्षा: भाग 2

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लेखिका- रेणु गुप्ता

भाई की यह हालत देख सुरभि का मन पसीज उठा था. लेकिन वह भी परिस्थितियों के हाथों मजबूर थी. मुंह मोड़ कर भर आई आंखों को भाई से छिपाते हुए उस ने राज से कहा था, ‘ठीक है, तू शादी का काम संभाल ले, पर इस बात का ध्यान रखना कि स्मिता से कभी बोलेगा नहीं?’ और राज सिर हिलाते हुए वहां से चला गया था.

आखिरकार स्मिता और भुवन की शादी हो गई थी. विदाई के समय रोते हुए राज को सामने देख कर स्मिता अपनेआप पर काबू नहीं रख पाई और बेहोश हो गई. होश आने पर उसे ऐसा महसूस हुआ था जैसे उस की दुनिया उजड़ गई हो.

खैर, टूटा हुआ दिल ले कर स्मिता भुवन के साथ अपनी ससुराल आ गई थी. सुहागरात को उस ने टूटे मन से रोते हुए भुवन के सामने समर्पण किया था. उन क्षणों में उस के अंतर्मन का सारा संताप उस के चेहरे पर आ गया था, जिसे भुवन ने संकोच और घबराहट समझा था.

भुवन एक बहुत ही अच्छे स्वभाव का, सज्जन युवक था. उस ने स्मिता को अपना पूरा प्यार दिया था, उसे टूट कर चाहा था.

शुरू में राज के बिना स्मिता बहुत बेचैन और उदास रही थी. जबजब भुवन उसे छूता, वह छटपटा उठती. लेकिन धीरेधीरे भुवन के सरल सहज बेशुमार प्यार की छांव में स्मिता सहज होने लगी, तथा उस के मन में भुवन के लिए चाहत पैदा होने लगी. वक्त गुजरने के साथ वह धीरेधीरे राज को भूलने भी लगी थी. हां, जब भी वह भैयाभाभी के घर आती, तो पुराने घाव हरे हो जाते.

भुवन के साथ रोतेहंसते कब 2 साल बीत गए, पता तक न चला था. स्मिता राज को एक हद तक भूल चुकी थी तथा भुवन के साथ अपनी नई जिंदगी में कुछकुछ रमने लगी थी.

राज की शादी भी उस की जाति की एक धनाढ्य परिवार की सुशिक्षित सुंदर लड़की से हो गई थी. राज अपनी शादी का कार्ड देने स्मिता के घर आया था. राज की शादी में जाने के लिए भुवन ने उस से कहा तो वह सिरदर्द का बहाना बना कर शादी में नहीं गई. उस दिन राज सारे दिन उसे बहुत याद आता रहा था तथा वह राज के साथ बिताए पलों को दोबारा जेहन में जीती रही थी. बाद में उस ने भाभी से सुना था कि राज ने यह शादी बहुत मुश्किल से की थी. उस की मां ने बहुत मिन्नतों- खुशामदों के बाद उसे शादी के लिए राजी किया था.

इधर कुछ दिनों से स्मिता कुछ परेशान चल रही थी. उस की शादी हुए 2 वर्ष हो चुके थे लेकिन उस की गोद भरने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे थे. उस की परेशानी देख कर भुवन उसे डाक्टर के पास ले गया था. पूरी जांच करने के बाद डाक्टर ने उसे बताया कि आप की पत्नी में गर्भधारण की क्षमता सामान्य से कुछ कम है, लेकिन सही उपचार के बाद वह गर्भधारण कर सकती है.

डाक्टर की इस बात ने भुवन और स्मिता को हिला कर रख दिया था. उस दिन स्मिता फूटफूट कर रोई थी. रोतेरोते उस ने भुवन से कहा था, ‘भुवन, मैं बहुत बदनसीब हूं. विधाता ने बचपन में ही मेरी मां छीन ली. जिंदगी भर मैं मांबाप के प्यार से वंचित रही और अब मुझे बच्चे का सुख नहीं दिया?’

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स्मिता की गर्भधारण क्षमता में कमी की बात सुन कर भुवन भी बहुत मायूस हो गया था. खैर, स्मिता का उपचार शुरू हो गया. स्मिता की शादी को 4 वर्ष पूरे होने को आए लेकिन उस को मातृत्व का सुख मिलने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे थे.

बच्चों की कमी से उबरने के लिए भुवन ने अपनेआप को पूरी तरह अपने व्यापार में डुबो दिया था. बढ़ते व्यापार की वजह से वह स्मिता को बहुत कम वक्त देने लगा था. उन दोनों के बीच धीरेधीरे शून्य पसरता जा रहा था. इधर व्यापार के सिलसिले में वह अकसर नेपाल जाया करता और 2-2 महीने में वहां से वापस घर आया करता.

उस दिन सुबह ही भुवन नेपाल चला गया तो स्मिता को समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे वह अपना वक्त काटे? शाम को यों ही वह भैयाभाभी से मिलने उन के घर चली गई थी. अचानक वहां राज भी आ गया. एक लंबे अर्से बाद राज और स्मिता में बातचीत हुई थी. लौटते वक्त राज ने स्मिता से कहा था, ‘चलो, गाड़ी से तुम्हें घर छोड़ देता हूं.’

सुरभि भाभी ने भी राज से कहा था, ‘हांहां, तू इसे गाड़ी से इस के घर छोड़ दे. अकेली कहां जाएगी.’

स्मिता राज के साथ उस की गाड़ी में बैठ गई थी. अपने घर उतरते वक्त उस ने औपचारिकतावश राज को घर पर कौफी पीने का आमंत्रण दिया था, जिसे राज ने स्वीकार कर लिया था और वह स्मिता के घर आ गया था.

एक मुद्दत बाद राज और स्मिता एकांत में मिले थे. स्मिता की समझ में नहीं आ रहा था कि राज के साथ बात कहां से शुरू की जाए. तभी मौन तोड़ते हुए राज ने स्मिता से कहा था, ‘स्मिता, सुना है आजकल भुवन लंबे वक्त के लिए नेपाल जाया करते हैं. इस बार कितने दिनों के लिए नेपाल गए हैं?’

‘इस बार भी 2 महीने के लिए वह नेपाल गए हैं,’ स्मिता ने जवाब दिया था.

‘तो तुम 2 महीने यहां अकेली रहोगी?’

‘रहना ही पड़ेगा और कोई चारा भी तो नहीं है.’

‘स्मिता, तुम खुश तो हो?’

जवाब में स्मिता की आंखों से आंसू टपक पड़े थे, जिन्हें देख कर राज छटपटा उठा था और स्मिता के आंसू पोंछते हुए उस ने उस से कहा था, ‘बताओ स्मिता, क्या बात है? मेरा दिल बैठा जा रहा है. मैं सबकुछ देख सकता हूं लेकिन तुम्हारी आंखों में आंसू नहीं देख सकता. बताओ स्मिता, बताओ…’

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जवाब में स्मिता ने उसे अपने गर्भधारण में अक्षमता, इस की वजह से भुवन का अपने व्यापार में ज्यादा से ज्यादा समय देने तथा उसे अकेला छोड़ कर नेपाल में महीनों रहने की बात सुनाई, जिसे सुन कर राज का जी कसक उठा और उस ने अचानक उठ कर स्मिता को अपनी बांहों में समेट लिया और बोला, ‘स्मिता, तो तुम भुवन के साथ सुखी नहीं हो. मैं भी शोभा के साथ बिलकुल सुकून नहीं महसूस करता. मैं उसे अपने जीवन में वह जगह नहीं दे पा रहा हूं जो कभी तुम्हारे लिए सुरक्षित थी. स्मिता, मैं अभी तक तुम्हें पूरी तरह भूल नहीं पाया हूं. क्या तुम मुझे भूल पाई हो? बोलो स्मिता, जवाब दो?’

यह कह कर राज ने स्मिता को जोर से अपने आलिंगन में भींच लिया था. राज की बांहों में स्मिता कसमसा उठी थी और उस ने राज की बांहों के बंधन से अपने को मुक्त करने का प्रयास करते हुए कहा था, ‘राज, यह तुम क्या कर रहे हो? यह गलत है राज, मैं शादीशुदा हूं. तुम भी शादीशुदा हो. राज, प्लीज, तुम चले जाओ यहां से.’ लेकिन राज ने स्मिता को अपनी बांहों के घेरे से मुक्त नहीं किया, उसे चूमता ही चला गया. भावुकता के उन क्षणों में स्मिता भी कमजोर पड़ गई थी. उस रात वे सारे बंधन तोड़ बैठे थे तथा कमजोरी के उन क्षणों में उस रात वह हो गया था जो नहीं होना चाहिए था.

उस रात राज करीब 1 बजे अपने घर लौटा था.

राज के जाने के बाद स्मिता आत्मग्लानि से भर उठी थी. वह सोच रही थी, छि:छि:, वह यह क्या कर बैठी? उस ने भुवन जैसे सीधेसच्चे पति से विश्वासघात किया, नहींनहीं, अब वह दोबारा राज का मुंह तक नहीं देखेगी. उस प्रण ने उस के दिमाग को थोड़ा सुकून दिया था.

लेकिन अगले ही दिन रात को राज फिर उस के घर आया था. राज के आते ही स्मिता ने उस से कहा था, ‘राज, तुम अभी इसी वक्त अपने घर वापस चले जाओ. कल रात जो कुछ हुआ वह बहुत गलत था. हमें वापस अपनी गलती नहीं दोहरानी चाहिए.’

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दिल का तीसरा कोना: भाग 2

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कुहू एकदम से चौंक कर बोली, ‘‘क्यों? वह कोई डरावनी फिल्म तो नहीं थी जो अंधेरे में डर के मारे मेरा हाथ पकड़ लेता.’’

मोनिका को खूब हंसी आई, जबकि वह थोड़ाथोड़ा समझ गई थी. जब उस ने कहा, ‘‘यार मोनिका, आरव की वकालत नहीं चली तो वह अच्छा गायक बन जाएगा. आज उस ने मुझे फिर एक गाना सुनाया, आप की आंखों में कुछ महके हुए से राज हैं… आप से भी खूबसूरत आप के अंदाज हैं…’’

मोनिका ने हंसते हुए उसे हिला कर कहा, ‘‘कहीं, उसे तुम से प्यार तो नहीं हो गया?’’

कुहू थोड़ी ढीली पड़ गई. उस ने हंसते हुए कहा, ‘‘देख मोनिका, ये प्यारव्यार कुछ नहीं होता, बस एक कैमिकल लोचा होता है. तू छोड़ उस को…चल खाना खाने चलते हैं.’’

इस के बाद हम पढ़ाई और परीक्षा की तैयारी में लग गए, कुहू के पेपर पहले हो गए तो वह घर लौटने की तैयारी करने लगी. उस की सुबह 7 बजे की बस थी. मेरे साथ मेरी एक सहेली बिंदु भी उसे बस स्टौप पर छोड़ने आई थी. आरव भी उसे बस पर बिठाने आया था. जातेजाते उस का कुछ अलग ही अंदाज था. उस ने आरव से खुद तो हाथ मिलाया ही बिंदु का हाथ पकड़ कर उस से मिलवाया.

‘‘मोनिका, सही बात तो यह कि मैं वहां से जा नहीं सकी, अभी भी उस का हाथ पकड़े वहीं खड़ी हूं. जब मैं ने उस की ओर हाथ बढ़ाते हुए उस की आंखों में झांका तो उन में जो दिखाई दिया, उसे उस समय तो नहीं समझ सकी. उस की बातें, उस के सुनाए गीत कानों में गूंज रहे थे. उस ने मेरी सगाई की बात सुनी तो उस का चेहरा उतर गया था. मेरा शरीर कहीं भी रहा हो, आत्मा अभी भी वहीं है.’’ आंसू पोंछते हुए कुहू ने कहा और चाय बनाने के लिए किचन में चली गई.

उस के पीछेपीछे मोनिका भी गई. उस ने कहा, ‘‘उस के बाद तुम फेसबुक पर आरव के संपर्क में आई थीं क्या?’’

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कुहू ने हां में सिर हिलाया और कहने लगी, ‘‘हौस्टल से घर आने के बाद कुछ ही दिनों में उमंग से मेरी शादी हो गई. उमंग बहुत ही अच्छा और नेक आदमी था. उस के जीवन का एक ही ध्येय था जियो और जीने दो. पार्टी के शौकीन उमंग को खूब घूमने और घुमाने का शौक था. वह जहां भी जाता, मुझे अपने साथ ले जाता. बेटे की पढ़ाई में नुकसान न हो, इस के लिए उसे हौस्टल में डाल दिया. पर मेरा साथ नहीं छोड़ा.’’

बात सच भी थी. कुहू जब भी मोनिका को फोन करती, यही कहती थी, ‘शादी के 15 साल बाद भी उमंग का हनीमून पूरा नहीं हुआ है.’

कभीकभी हंसती, मस्ती में डूबी कुहू की आंखों के सामने एक जोड़ी थोड़ी भूरी, थोड़ी काली आंखें आ जातीं तो वह खो जाती. ऐसे में ही एक रोज उमंग ने कहा, ‘‘चलो अपना फेसबुक पेज बनाते हैं और अपने पुराने मित्रों को खोजते हैं. अपने पुराने मित्र से मिलने का यह एक बढि़या रास्ता है.’’

इस के बाद दोनों ने अपनेअपने मोबाइल पर फेसबुक पेज बना लिए.

एक दिन कुहू अकेली थी और अपने मित्रों को खोज रही थी. अचानक उस के मन में आया हो सकता है आरव ने भी अपना फेसबुक पेज बनाया हो. वह आरव को खोजने लगी. पर वहां तो तमाम आरव थे उस का आरव कौन है, कैसे पता चले. तभी उस की नजर एक चेहरे पर पड़ी तो वह चौंकी. शायद यही है आरव.

उस के पास उस की कोई फोटो भी तो नहीं. बस, यादें ही थीं. उस ने उस की प्रोफाइल खोल कर देखी. उस की जन्मतिथि और शहर भी वही था. उस ने तुरंत उस के मैसेज बौक्स में अपना परिचय दे कर मैसेज भेज दिया. अंत में उस ने यह भी लिख दिया, ‘क्या अभी भी मैं तुम्हें याद हूं?’

बाद में उसे संकोच हुआ कि अगर कोई दूसरा हुआ तो वह उसे कितना गलत समझेगा. कुहू ने एक बार फिर उस की प्रोफाइल चैक की और उस के फोटो देखने लगी तो उस के फोटो देख कर कुहू की आंखें नम हो गईं. यह तो उसी का आरव है.

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फोटो में उस के हाथ पर वह काला निशान यानी ‘बर्थ मार्क’ था. अगले ही दिन आरव का संदेश आया, ‘हां’. अब इस ‘हां’ का अर्थ 2 तरह से निकाला जा सकता था. एक ‘हां’ का मतलब मैं आरव ही हूं. दूसरा यह कि तुम मुझे अभी भी याद हो. पर कुहू को दोनों ही अर्थों में हां दिखाई दिया.

कुहू ने इस संदेश के जवाब में अपना फोन नंबर दे दिया. थोड़ी देर में आरव औनलाइन दिखाई दिया तो दोनों ही यह भूल गए कि उन की जिंदगी 15 साल आगे निकल चुकी है. कुहू एक बच्चे की मां तो आरव 2 बच्चों का बाप बन चुका था. इस के बाद दोनों में बात हुई तो कुहू ने कहा, ‘‘आरव, तुम ने अपने घर में मेरी बात की थी क्या?’’

आरव की मां को कुहू के बारे में पता था कि दोनों बातें करते हैं. जब उस ने अपनी मां से कुहू की सगाई के बारे में बताया था तो उस की मां ने राहत की सांस ली थी. कुहू को यह बात आरव ने ही बताई थी. आरव पर इस का क्या असर पड़ा, यह जाने बगैर ही कुहू खूब हंसी थी. और आरव सिर्फ उस का मुंह देखता रह गया था.

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हां, तो जब कुहू ने आरव से  पूछा कि उस ने उस के बारे में अपने घर में बताया कि नहीं? इस पर आरव हंस पड़ा था. हंसी को काबू में करते हुए उस ने कहा, ‘‘न बताया है और न बताऊंगा. मां तो अब हैं नहीं, मेरी पत्नी मुझ पर शक करती है. इसलिए मैं उस से कुछ भी बताने की हिम्मत नहीं कर सकता.’’

जाने आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

दिल का तीसरा कोना: भाग 3

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आरव ने कहा, ‘‘एक बात पूछूं, पर अब उस का कोई मतलब नहीं है और तुम जो जवाब दोगी, वह भी मुझे पता है. फिर भी तुम मुझे बताओ, अगर मैं तुम्हारी तरफ हाथ बढ़ाता तो तुम मना तो नहीं करती. पर आज बात कुछ अलग है.’’

और सचमुच इस सवाल का कुहू के पास कोई जवाब नहीं था. और कोई भी…

एक दिन आरव ने हंस कर कहा, ‘‘कुहू कोई समय घटाने का यंत्र होता तो हम 15 साल पीछे चले जाते.’’

‘‘अरे मैं तो कब से वहीं हूं, पर तुम कहां हो.’’ कुहू ने कहा.

‘‘अरे तुम मेरे पीछे खड़ी हो,’’ आरव ने हंस कर कहा, ‘‘मैं ने देखा ही नहीं. तुम बहुत झूठी हो.’’ इस के बाद उस ने एक गाना गाया, ‘बंदा परवर थाम लो जिगर…’

कुहू भी जोर से हंस कर बोली, ‘‘तुम्हारी यह गाने की आदत गई नहीं. अब इस आदत का मतलब खूब समझ में आता है, पर अब इस का क्या फायदा?’’

दिल की सच्ची और ईमानदार कुहू को थोड़ी आत्मग्लानि हुई कि वह जो कर रही है गलत है. फिर उस ने सब कुछ उमंग से बताने का निर्णय कर लिया और रात में खाने के बाद उस ने सारी सच्चाई उसे बता दी. अंत में कहा, ‘‘इस में सारी मेरी ही गलती है. मैं ने ही आरव को ढूंढा और अब मुझ से झूठ नहीं बोला जाता. अब जो सोचना हो सोचिए.’’

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पहले तो उमंग थोड़ा परेशान हुआ, उस के बाद बोला, ‘‘कुहू तुम झूठ बोल रही हो, मजाक कर रही हो. सच बोलो, मेरे दिल की धड़कनें थम रही हैं.’’

‘‘नहीं उमंग, यह सच है.’’ कुहू ने कहा. उस ने सारी बातें तो उमंग को बता ही दी थीं, पर गाने सुनाने और फिल्म देखने वाली बात नहीं बताई थी. शायद हिम्मत नहीं हुई.

उमंग ने इसे गंभीरता से नहीं लिया. उस ने कहा, ‘‘जाने दो, कोई प्राब्लम नहीं, यह सब तो होता रहता है.’’

अगले दिन कुहू ने आरव को सारी बात बताई तो उसे आश्चर्य हुआ. उस ने हैरानी से कहा, ‘‘कुहू, तुम बहुत भाग्यशाली हो, जो तुम्हें ऐसा जीवनसाथी मिला है. जबकि सुरभि ने तो मुझे कैद कर रखा है.’’

‘‘इस में गलती तुम्हारी है, तुम अपने जीवनसाथी को विश्वास में नहीं ले सके.’’ कुहू ने कहा.

‘‘नहीं, ऐसी बात नहीं है, मैं ने बहुत कोशिश की. सुरभि भी वकील है. पर पता नहीं क्यों वह ऐसा करती है.’’ आरव ने कहा.

इस के बाद एक दिन आरव ने कुहू की बात सुरभि को बता दी. उस ने कुहू से तो खूब मीठीमीठी बातें कीं, पर इस के बाद आरव का जीना मुहाल कर दिया. उस ने आरव से स्पष्ट कहा, ‘‘तुम कुहू से संबंध तोड़ लो, वरना मैं मौत को गले लगा लूंगी.’’

अगले दिन आरव का संदेश था, ‘कुहू मैं तुम से कोई बात नहीं कर सकता. सुरभि ने सख्ती से मना कर दिया है.’

उस समय कुहू और उमंग खाना खा रहे थे. संदेश पढ़ कर कुहू रो पड़ी. उमंग ने पूछा तो उस ने बेटे की याद आने का बहाना बना दिया. कई दिनों तक वह संताप में रही. फोन की भी किया, पर आरव ने बात नहीं की. हार कर कुहू ने संदेश भेजा कि अंत में एक बार तो बात करनी ही पड़ेगी, जिस से मुझे पता चल सके कि क्या हुआ है.

इस के बाद आरव का फोन आया. उस ने कहा, ‘‘मेरे यहां कुछ ठीक नहीं है. 3 दिन हो गए हम सोए नहीं हैं. सुरभि को हमारी नि:स्वार्थ दोस्ती से सख्त ऐतराज है. अब मैं आपसे प्रार्थना कर रहा हूं कि मुझे माफ कर दो. मुझे पता है, इन बातों से तुम्हें कितनी तकलीफ हो रही होगी. यह सब कहते हुए मुझे भी. विधि का विधान यही है. हम इस से बंधे हुए हैं.’’

कुहू बड़ी मुश्किल से सिर्फ इतना ही बोल सकी, ‘‘कोई प्राब्लम नहीं, अब मैं तुम से मिलने के लिए 15 साल और इंतजार करूंगी.’’

‘‘ठीक है.’’ कह कर आरव ने फोन काट दिया.

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कुहू ने भी उस का नंबर डिलीट कर दिया, अपनी फ्रैंड लिस्ट से उसे भी बाहर कर दिया.

कुहू ने मोनिका का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘यार मोनिका मैं ने उस का नंबर तो डिलीट कर दिया, पर जो नंबर मैं पिछले 15 सालों से नहीं भूल सकी, उसे इस तरह कैसे भूल सकती हूं. वजह, मुझे पता नहीं, मुझे उस से प्यार नहीं था, फिर भी मैं उसे भूल नहीं सकी. उस के लिए मेरा दिल दुखी है और अब मुझे यह भी पता नहीं कि इस दिल को समझाने के लिए क्या करूं. मेरी समझ में नहीं आता उस ने मेरे साथ ऐसा क्यों किया? जब उसे पता था तो उस ने ऐसा क्यों किया? बस, जब तक उसे अच्छा लगता रहा, मुझ से बातें करता रहा और जब जान पर आ गई तो तुम कौन और मैं कौन वाली बात कह कर किनारा कर लिया.’’

कुहू इसी तरह की बातें कह कर रोती रही और मोनिका ने उसे रोने दिया. उसे रोका नहीं. यह समझ कर कि उस के दिल पर जितना बोझ है, वह आंसुओं के रास्ते बह जाए तो अच्छा है.

वैसे भी मोनिका उस से कहती भी क्या? जबकि वह जानती थी कि वह प्यार ही था, जिसे कुहू भुला नहीं सकी थी, एक बार उस ने आरव से कहा था, ‘‘हम औरतों के दिल में 3 कोने होते हैं. एक में उस का घर, दूसरे में उस का मायका होता है, और जो दिल का तीसरा कोना है, उस में उस की अपनी कितनी यादें संजोई होती हैं, जिन्हें वह फुरसत के क्षणों में निकाल कर धोपोंछ कर रख देती है.’’

मोनिका सोचने लगी, जो लड़की प्यार को कैमिकल रिएक्शन मानती थी और दिल को मात्र रक्त सप्लाई करने का साधन, उस ने दिल की व्याख्या कर दी थी और अब भी वह कह रही थी कि आरव से प्यार नहीं है.

मोनिका ने उसे यही समझाया और वह खुद भी समझतीजानती थी कि उसे जो भी मिला है, अच्छा ही मिला है. जिसे कोई भी विधि का विधान बदल नहीं सकता.

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अग्निपरीक्षा: भाग 1

लेखिका- रेणु गुप्ता

भाग-1

स्मिता आज बहुत उदास थी. उस की पड़ोसिन कम्मो ने आज फिर उसे टोका था, ‘‘स्मिता, यह जो राज बाबू तुम्हारे घर रोजरोज आते हैं और तुम्हारे पास बैठ कर रात के 12-1 बजे घर जाते हैं, पड़ोस में इस बात की बहुत चर्चा हो रही है. कल रात सामने वाले वालियाजी इन से पूछ रहे थे, ‘यह स्मिता के घर रोज रात को जो आदमी आता है, उस का स्मिता से क्या रिश्ता है? अकेली औरत के पास वह 2-3 घंटे क्यों आ कर बैठता है? स्मिता उसे अपने घर रात में क्यों आने देती है? क्या उसे इतनी भी समझ नहीं कि पति की गैरहाजिरी में अकेले मर्द के साथ रात के 12 बजे तक बैठना गलत है.’ ’’

कम्मो के मुंह से यह सब सुन कर स्मिता का चेहरा उतर गया था. उफ, यह पासपड़ोस वाले, किसी के घर में कौन आताजाता है, सारी खोजखबर रखते हैं. उन्हें क्या मतलब अगर कोई उस के घर में आता भी है तो. क्या ये पासपड़ोस वाले उस का अकेलापन बांट सकते हैं? वे क्या जानें कि बिना एक मर्द के एक अकेली औरत कैसे अपने दिन और रात काटती है? फिर राज क्या उस के लिए पराया है? एक वक्त था जब राज के बिना जिंदगी काटना उस के लिए कल्पना हुआ करती थी और यह सब सोचतेसोचते स्मिता कब बीते दिनों की भूलभुलैया में उतर आई, उसे एहसास तक नहीं हुआ था.

स्मिता की मां बचपन में ही चल बसी थी. उस के बड़े भाई उसे पिता के पास से अपने घर ले आए थे. तब वह 7 साल की थी और तभी से वह भाईभाभी के घर रह कर पली थी. भैयाभाभी के 2 बच्चे थे और वे अपने दोनों बच्चों को बहुत लाड़दुलार करते थे. उन के मुंह से निकली हर बात पूरी करते लेकिन स्मिता की हमेशा उपेक्षा करते. भाभी स्मिता के साथ दुर्व्यवहार तो नहीं करतीं, लेकिन कोई बहुत अच्छा व्यवहार भी नहीं करतीं. उन को यह एहसास न था कि स्मिता एक बिन मां की बच्ची है. इसलिए उसे भी लाड़प्यार की जरूरत है.

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भाई भी स्मिता का कोई खास खयाल न रखते. भाई के बेटाबेटी स्मिता की ही उम्र के थे. अकसर कोई विवाद उठने पर भाईभाभी स्मिता की अवमानना कर अपने बच्चों का पक्ष ले बैठते. इस तरह निरंतर उपेक्षा और अवमानना भरा व्यवहार पा कर स्मिता बहुत अंतर्मुखी बन गई थी तथा उस में भावनात्मक असुरक्षा घर कर गई थी.

राज भाभी का भाई था जो अकसर बहन के घर आया करता. उसे शुरू से सांवलीसलोनी, अपनेआप में सिमटी, सकुचाई स्मिता बहुत अच्छी लगती थी और वह जितने दिन बहन के घर रहता, स्मिता के इर्दगिर्द बना रहता. उस की स्मिता से खूब पटती तथा अकसर वे दुनिया जहान की बातें किया करते.

स्मिता को जब भी कोई परेशानी होती वह राज के पास भागीभागी जाती और राज उसे उस की परेशानी का हल बताता. वक्त बीतने के साथ स्मिता व राज की मासूम दोस्ती प्यार में बदल गई थी तथा वे कब एकदूसरे को शिद्दत से चाहने लगे थे, वे खुद जान न पाए थे.

लगभग 3 साल तक तो उन के प्यार की खबर स्मिता के भैयाभाभी को नहीं लग पाई और वे गुपचुप प्यार की पेंग बढ़ाते रहे थे. अकसर वे अपने हसीन वैवाहिक जीवन की रूपरेखा बनाया करते. लेकिन न जाने कब और कैसे उन की गुपचुप मोहब्बत का खुलासा हो गया और भैयाभाभी ने राज के स्मिता से मिलने पर कड़ी पाबंदी लगा दी थी और स्मिता के लिए लड़का ढूंढ़ना शुरू कर दिया.

राज और स्मिता ने भैयाभाभी से लाख मिन्नतें कीं, उन की खुशामद की कि उन का साथ बहुत पुराना है, उन को एकदूसरे के साथ की आदत पड़ गई है और वे एकदूसरे के बिना जिंदगी काटने की कल्पना तक नहीं कर सकते, लेकिन इस का कोई अनुकूल असर भाई व भाभी पर नहीं पड़ा.

स्मिता की भाभी का परिवार शहर का जानामाना खानदानी रुतबे वाला अमीर परिवार था तथा भाभी सुरभि के मातापिता को राज के विवाह में अच्छे दानदहेज की उम्मीद थी. इसलिए उन्होंने सुरभि से साफ कह दिया था कि वे राज की शादी स्मिता से किसी हालत में नहीं करेंगे. इसलिए उन्हें स्मिता का विवाह जल्दी से जल्दी कोई सही लड़का ढूंढ़ कर कर देना चाहिए.

राज के मातापिता ने राज से साफ कह दिया था कि यदि उस ने स्मिता से अपनेआप शादी की तो वे उस को घर के कपड़े के पुराने व्यापार से बेदखल कर देंगे और उस से कोई संबंध भी नहीं रखेंगे. राज के परिवार की शहर के मुख्य बाजार में कपड़ों की 2 मशहूर दुकानें थीं. राज महज 12वीं पास युवक था और अगर वह मातापिता की इच्छा के विरुद्ध स्मिता से शादी करता तो कपड़ों की दुकान में हिस्सेदारी से बाहर हो जाता.

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इधर स्मिता के भैयाभाभी ने उस से साफ कह दिया था कि अगर उस ने अपनेआप शादी की तो वह न तो उस की शादी में एक फूटी कौड़ी लगाएंगे, न ही शादी में शामिल होंगे. इस तरह राज और स्मिता ने देखा था कि यदि वे घर वालों की इच्छा के विरुद्ध शादी कर लेते हैं तो उन का भविष्य अंधकारमय होगा.

स्मिता के पास भी कोई ऐसी शैक्षणिक योग्यता नहीं थी जिस के सहारे वह अपने परिवार का खर्च उठा पाती. अत: बहुत सोचसमझ कर वह दोनों अंत में इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि उन्हें अपने प्यार का गला घोंटना पड़ेगा तथा अपने रास्ते जुदा करने पड़ेंगे. उन के सामने बस, यही एक रास्ता था.

सुरभि स्मिता के लिए जोरशोर से लड़का ढूंढ़ने में लगी हुई थी. आखिरकार सुरभि की मेहनत रंग लाई. उसे स्मिता के लिए एक योग्य लड़का मिल गया था. लड़के का अपना स्वतंत्र जूट का व्यवसाय था तथा वह अच्छा कमा खा रहा था. लड़के का नाम भुवन था तथा उस ने पहली ही बार में स्मिता को देख कर पसंद कर लिया था. उन की शादी की तारीख 1 माह बाद ही निश्चित हुई थी.

शादी तय होने के बाद जब स्मिता राज से मिली तो उस के कंधों पर सिर रख कर फूटफूट कर रोई थी. उस ने राज से कहा था, ‘राज, 15 तारीख को तुम्हारी स्मिता पराई हो जाएगी. किसी गैर को मैं अपनेआप को कैसे सौंपूंगी? नहीं राज नहीं, मैं यह शादी हर्गिज नहीं करूंगी.’

राज ने स्मिता को समझाया था, ‘व्यावहारिक बनो स्मिता, यही जिंदगी की वास्तविकता है. क्या करें, हर किसी को अपनी मंजिल नहीं मिलती, यही सोच कर तसल्ली दो अपने मन को. मैं तुम्हें ताउम्र प्यार करता रहूंगा, कभी शादी नहीं करूंगा. तुम शांत मन से शादी करो, भुवन बहुत अच्छा लड़का है, अच्छा कमाता है, तुम्हें बहुत खुश रखेगा,’ यह कहते हुए डबडबाई आंखों से राज ने स्मिता का माथा चूमा था और चला गया था.

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स्मिता की शादी की तैयारियां जोरशोर से चल रही थीं. सुरभि ने भाई से साफसाफ कह दिया था, ‘राज, मुझ से एक वादा करो, स्मिता की शादी तक तुम घर नहीं आओगे. स्मिता को अपने सामने देख तुम सामान्य नहीं रह पाओगे तथा बेकार में लोगों को बातें करने का मौका मिल जाएगा.’

‘दीदी, मेरे साथ इतना अन्याय मत करो,’ राज गिड़गिड़ाता हुआ बोला, ‘मैं कसम खाता हूं, शादी होने तक मैं किसी के सामने स्मिता से एक शब्द नहीं बोलूंगा. उस की शादी का काम कर के मुझे बहुत आत्मिक संतोष मिलेगा. प्लीज दीदी, तुम ने मुझ से सबकुछ तो छीन लिया, अब यह छोटा सा सुख तो मत छीनो.’

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

19 दिन 19 कहानियां : मां बेटी – कौन थे उन दोनों के जिस्म के प्यासे

मालती काम से लौटी थी… थकीमांदी. कुछ देर लेट कर आराम करने का मन कर रहा था, पर उस की जिंदगी में आराम नाम का शब्द नहीं था. छोटा वाला बेटा भूखाप्यासा था. वह 2 साल का हो गया था, पर अभी तक उस का दूध पीता था.

मालती के खोली में घुसते ही वह उस के पैरों से लिपट गया. उस ने उसे अपनी गोद में उठा कर खड़ेखड़े ही छाती से लगा लिया. फिर बैठ कर वह उसे दूध पिलाने लगी थी.

सुबह मालती उसे खोली में छोड़ कर जाती थी. अपने 2 बड़े भाइयों के साथ खोली के अंदर या बाहर खेलता रहता था. तब भाइयों के साथ खेल में मस्त रहने से न तो उसे भूख लगती थी, न मां की याद आती थी.

दोपहर के बाद जब मालती काम से थकीमांदी घर लौटती, तो छोटे को अचानक ही भूख लग जाती थी और वह भी अपनी भूखप्यास की परवाह किए बिना या किसी और काम को हाथ लगाए बेटे को अपनी छाती का दूध पिलाने लगती थी.

तभी मालती की बड़ी लड़की पूजा काम से लौट कर घर आई. पूजा सहमते कदमों से खोली के अंदर घुसी थी. मां ने तब भी ध्यान नहीं दिया था. पूजा जैसे कोई चोरी कर रही थी. खोली के एक किनारे गई और हाथ में पकड़ी पोटली को कोने में रखी अलमारी के पीछे छिपा दिया.

मां ने छोटू को अपनी छाती से अलग किया और उठने को हुई, तभी उस की नजर बेटी की तरफ उठी और उसे ने पूजा को अलमारी के पीछे थैली रखते हुए देख लिया.

मालती ने सहज भाव से पूछा, ‘‘क्या छिपा रही है तू वहां?’’

पूजा चौंक गई और असहज आवाज में बोली, ‘‘कुछ नहीं मां.’’

मालती को लगा कि कुछ तो गड़बड़ है वरना पूजा इस तरह क्यों घबराती.

मालती अपनी बेटी के पास गई और उस की आंखों में आंखें डाल कर बोली, ‘‘क्या है? तू इतनी घबराई हुई क्यों है? और यहां क्या छिपाया है?’’

‘‘कुछ नहीं मां, कुछ नहीं…’’ पूजा की घबराहट और ज्यादा तेज हो गई. वह अलमारी से सट कर इस तरह खड़ी हो गई कि मालती पीछे न देख सके.

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मालती ने जोर से पकड़ कर उसे परे धकेला और तेजी से अलमारी के पीछे रखी पोटली उठा ली.

हड़बड़ाहट में मालती ने पोटली को खोला. पोटली का सामान अंदर से सांप की तरह फन काढ़े उसे डरा रहे थे… ब्रा, पैंटी, लिपस्टिक, क्रीम, पाउडर और तेल की शीशी…

मालती ने फिर अचकचा कर अपनी बेटी पूजा को गौर से देखा… उसे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ. उस की बेटी जवान तो नहीं हुई थी, पर जवानी की दहलीज पर कदम रखने के लिए बेचैन हो रही थी.

मालती का दिल बेचैन हो गया. गरीबी में एक और मुसीबत… बेटी की जवानी सचमुच मांबाप के लिए एक मुसीबत बन कर ही आती है खासकर उस गरीब की बेटी की, जिस का बाप जिंदा न हो. मालती की सांसें कुछ ठीक हुईं, तो बेटी से पूछा, ‘‘किस ने दिया यह सामान तुझे?’’

मां की आवाज में कोई गुस्सा नहीं था, बल्कि एक हताशा और बेचारगी भरी हुई थी.

पूजा को अपनी मां के ऊपर तरस आ गया. वह बहुत छोटी थी और अभी इतनी बड़ी या जवान नहीं हुई थी कि दुनिया की सारी तकलीफों के बारे में जान सके. फिर भी वह इतना समझ गई थी कि उस ने कुछ गलत किया था, जिस के चलते मां को इस तरह रोना पड़ रहा था. वह भी रोने लगी और मां के पास बैठ गई.

बेटी की रुलाई पर मालती थोड़ा संभली और उस ने अपने ममता भरे हाथ बेटी के सिर पर रख दिए.

दोनों का दर्द एक था, दोनों ही औरतें थीं और औरतों का दुख साझा होता है. भले ही, दोनों आपस में मांबेटी थीं, पर वे दोनों एकदूसरे के दर्द से न केवल वाकिफ थीं, बल्कि उसे महसूस भी कर रही थीं.

पूजा की सिसकियां कुछ थमीं, तो उस ने बताया, ‘‘मां, मैं ले नहीं रही थी, पर उस ने मुझे जबरदस्ती दिया.’’

‘‘किस ने…?’’ मालती ने बेचैनी से पूछा.

‘‘गोकुल सोसाइटी के 401 नंबर वाले साहब ने…’’

‘‘कांबले ने?’’ मालती ने हैरानी से पूछा.

‘‘हां… मां, वह मुझ से रोज गंदीगंदी बातें करता है. मैं कुछ नहीं बोलती तो मुझे पकड़ कर चूम लेता है,’’ पूजा जैसे अपनी सफाई दे रही थी.

मालती ने गौर से पूजा को देखा. वह दुबलेपतले बदन की सांवले रंग की लड़की थी, कुल जमा 13 साल की… बदन में ऐसे अभी कोई उभार नहीं आए थे कि किसी मर्द की नजरें उस पर गड़ जाएं.

हाय रे जमाना… छोटीछोटी बच्चियां भी मर्दों की नजरों से महफूज नहीं हैं. पलक झपकते ही उन की हैवानियत और हवस की भूख का शिकार हो जाती हैं.

मालती को अपने दिन याद आ गए… बहुत कड़वे दिन. वह भी तब कितनी छोटी और भोली थी. उस के इसी भोलेपन का फायदा तो एक मर्द ने उठाया था और वह समझ नहीं पाई थी कि वह लुट रही थी, प्यार के नाम पर… पर प्यार कहां था वह… वह तो वासना का एक गंदा खेल था.

इस खेल में मालती अपनी पूरी मासूमियत के साथ शामिल हो गई थी. नासमझ उम्र का वह ऐसा खेल था, जिस में एक मर्द उस के अधपके बदन को लूट रहा था और वह समझ रही थी कि वह मर्दऔरत का प्यार था.

वह एक ऐसे मर्द द्वारा लुट रही थी, जो उस से उम्र में दोगुनातिगुना ही नहीं, बाप की उम्र से भी बड़ा था, पर औरतमर्द के रिश्ते में उम्र बेमानी हो जाती है और कभीकभी तो रिश्ते भी बदनाम हो जाते हैं.

तब मालती भी अपनी बेटी की तरह दुबलीपतली सांवली सी थी. आज जब वह पूजा को गौर से देखती है, तो लगता है जैसे वही पूजा के रूप में खड़ी है.

मालती बिलकुल उस का ही दूसरा रूप थी. जब वह अपनी बेटी की उम्र की थी, तब चोगले साहब के घर में काम करती थी. वह शादीशुदा था, 2 बच्चों का बाप, पर एक नंबर का लंपट… उस की नजरें हमेशा मालती के इर्दगिर्द नाचती रहती थीं.

चोगले की बीवी किसी स्कूल में पढ़ाती थी, सो वह सुबह जल्दी निकल जाती थी. साथ में उस के बच्चे भी चले जाते थे. बीवी और बच्चों के जाने के बाद मालती उस घर में काम करने जाती थी.

चोगले तब घर में अकेला होता था. पहले तो काफी दिनों तक उस ने मालती की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया और कभी कोई ऐसी बात नहीं कही, जिस से लगे कि वह उस के बदन का भूखा था.

शायद वह उसे बच्ची समझता था. वह काम करती रहती थी और काम खत्म होने के बाद चुपचाप घर चली आती थी.

पर जब उस ने 13वें साल में कदम रखा और उस के सीने में कुछ नुकीला सा उभार आने लगा, तो अचानक ही एक दिन चोगले की नजर उस के शरीर पर पड़ गई. वह मैलेकुचैले कपड़ों में रहती थी.

झाड़ूपोंछा करने वाली लड़की और कैसे रह सकती थी. कपड़े धोने के बाद तो वह खुद गीली हो जाती थी और तब बिना अंदरूनी कपड़ों के उस के बदन के अंग शीशे की तरह चमकने लगते थे.

ऐसे मौके पर चोगले की नजरों में एक प्यास उभर आती और उस के पास आ कर पूछता था, ‘‘मालती, तुम तो गीली हो गई हो, भीग गई हो. पंखे के नीचे बैठ कर कपड़े सुखा लो,’’ और वह पंखा चला देता.

मालती बैठती नहीं खड़ेखड़े ही अपने कपड़े सुखाती. चोगले उस के बिलकुल पास आ कर सट कर खड़ा हो जाता और अपने बदन से उसे ढकता हुआ कहता, ‘‘तुम्हारे कपड़े तो बिलकुल पुराने हो गए हैं.’’

‘‘जी…’’ वह संकोच से कहती.

‘‘अब तो तुम्हें कुछ और कपड़ों की भी जरूरत पड़ती होगी?’’ मालती उस का मतलब नहीं समझती. बस, वह उस को देखती रहती.

वह एक कुटिल हंसी हंस कर कहता, ‘‘संकोच मत करना, मैं तुम्हारे लिए नए कपड़े ला दूंगा. वे वाले भी…’’

मालती की समझ में फिर भी नहीं आता. वह अबोध भाव से पूछती, ‘‘कौन से कपड़े…’’

चोगले उस के कंधे पर हाथ रख कर कहता, ‘‘देखो, अब तुम छोटी नहीं रही, बड़ी और समझदार हो रही हो. ये जो कपड़े तुम ने ऊपर से पहन रखे हैं, इन के नीचे पहनने के लिए भी तुम्हें कुछ और कपड़ों की जरूरत पड़ेगी, शायद जल्दी ही…’’ कहतेकहते उस का हाथ उस की गरदन से हो कर मालती के सीने की तरफ बढ़ता और वह शर्म और संकोच से सिमट जाती. इतनी समझदार तो वह हो ही गई थी.

चोगले की मेहनत रंग लाई. धीरेधीरे उस ने मालती को अपने रंग में रंगना शुरू कर दिया.

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चोगले की मीठीमीठी बातों और लालच में मालती बहुत जल्दी फंस गई. घर का सूनापन भी चोगले की मदद कर रहा था और मालती की चढ़ती हुई जवानी. उस की मासूमियत और भोलेपन ने ऐसा गुल खिलाया कि मालती जवानी के पहले ही प्यार के सारे रंगों से वाकिफ हो गई थी.

तब मालती की मां ने उस में होने वाले बदलाव के प्रति उसे सावधान नहीं किया था, न उसे दुनियादारी समझाई थी, न मर्द के वेष में छिपे भेडि़यों के बारे में उसे किसी ने कुछ बताया था.

भेद तब खुला था जब उस का पेट बढ़ने लगा. सब से पहले उस की मां को पता चला था. वह उलटियां करती तो मां को शक होता, पर वह इतनी छोटी थी कि मां को अपने शक पर भी यकीन नहीं होता था. यकीन तो तब हुआ जब उस का पेट तन कर बड़ा हो गया.

मां ने मारपीट कर पूछा, तब बड़ी मुश्किल से उस ने चोगले का नाम बताया. बड़े लोगों की करतूत सामने आई, पर तब चोगले ने भी उस की मदद नहीं की थी और दुत्कार कर उसे अपने घर से भगा दिया था. बाद में एक नर्सिंगहोम में ले जा कर मां ने उस का पेट गिरवाया था.

अपना बुरा समय याद कर के मालती रो पड़ी. डर से उस का दिल कांप उठा. क्या समय उस की बेटी के साथ भी वही खिलवाड़ करने जा रहा था, जो उस के साथ हुआ था? गरीब लड़कियों के साथ ही ऐसा क्यों होता है कि वे अपना बचपन भी ठीक से नहीं बिता पातीं और जवानी के तमाम कहर उन के ऊपर टूट पड़ते हैं?

मालती ने अपनी बेटी पूजा को गले से लगा लिया. जोकुछ उस के साथ हुआ था, वह अपनी बेटी के साथ नहीं होने देगी. अपनी जवानी में तो उस ने बदनामी का दाग झेला था, मांबाप को परेशानियां दी थीं. यह तो केवल वह या उस के मांबाप ही जानते थे कि किस तरह उस का पेट गिरवाया गया था. किस तरह गांव जा कर उस की शादी की गई थी.  फिर कई साल बाद कैसे वह अपने मर्द के साथ वापस मुंबई आई थी और अपने मांबाप के बगल की खोली में किराए पर रहने लगी थी.

आज उस का मर्द इस दुनिया में नहीं था. 4 बच्चे उस की और उस की बड़ी बेटी की कमाई पर जिंदा थे. पूजा के बाद 3 बेटे हुए थे, पर तीनों अभी बहुत छोटे थे. पिछले साल तक उस का मर्द फैक्टरी में हुए एक हादसे में जाता रहा.

पति की मौत के बाद ही मालती ने अपनी बेटी को घरों में काम करने के लिए भेजना शुरू किया था. उसे क्या पता था कि जो कुछ उस के साथ हुआ था, एक दिन उस की बेटी के साथ भी होगा.

जमाना बदल जाता है, लोग बदल जाते हैं, पर उन के चेहरे और चरित्र कभी नहीं बदलते. कल चोगले था, तो आज कांबले… कल कोई और आ जाएगा. औरत के जिस्म के भूखे भेडि़यों की इस दुनिया में कहां कमी थी. असली शेर और भेडि़ए धीरेधीरे इस दुनिया से खत्म होते जा रहे थे, पर इनसानी शेर और भेडि़ए दोगुनी तादाद में पैदा होते जा रहे थे.

मालती के पास आमदनी का कोई और जरीया नहीं था. मांबेटी की कमाई से 5 लोगों का पेट भरता था. क्या करे वह? पूजा का काम करना छुड़वा दे, तो आमदनी आधी रह जाएगी. एक अकेली औरत की कमाई से किस तरह 5 पेट पल सकते थे?

मालती अच्छी तरह जानती थी कि वह अपनी बेटी की जवानी को किसी तरह भी इनसानी भेडि़यों के जबड़ों से नहीं बचा सकती थी. न घर में, न बाहर… फिर भी उस ने पूजा को समझाते हुए कहा, ‘‘बेटी, अगर तू मेरी बात समझ सकती है तो ठीक से सुन… हम गरीब लोग हैं, हमारे जिस्म को भोगने के लिए यह अमीर लोग हमेशा घात लगाए रहते हैं. इस के लिए वे तमाम तरह के लालच देते हैं. हम लालच में आ कर फंस जाते हैं और उन को अपना बदन सौंप देते हैं.

‘‘गरीबी हमारी मजबूरी है तो लालच हमारा शाप. इस की वजह से हम दुख और तकलीफें उठाते हैं.

‘‘हम गरीबों के पास इज्जत के नाम पर कुछ नहीं होता. अगर मैं तुझे काम पर न भेजूं और घर पर ही रखूं तब भी तो खतरा टल नहीं सकता. चाल में भी तो आवाराटपोरी लड़के घूमते रहते हैं.

‘‘अमीरों से तो मैं तुझे बचा लूंगी. पर इस खोली में रह कर इन गली के आवारा कुत्तों से तू नहीं बच पाएगी. खतरा सब जगह है. बता, तुझे दुनिया की गंदी नजरों से बचाने के लिए मैं क्या करूं?’’ और वह जोर से रोने लगी.

पूजा ने अपने आंसुओं को पोंछ लिया और मां का हाथ पकड़ कर बोली, ‘‘मां, तुम चिंता मत करो. अब मैं किसी की बातों में नहीं आऊंगी. किसी का दिया हुआ कुछ नहीं लूंगी. केवल अपने काम से काम रखूंगी.

‘‘हां, कल से मैं कांबले के घर काम करने नहीं जाऊंगी. कोई और घर पकड़ लूंगी.’’

‘‘देख, हमारे पास कुछ नहीं है, पर समझदारी ही हमारी तकलीफों को कुछ हद तक कम कर सकती है. अब तू सयानी हो रही है. मेरी बात समझ गई है. मुझे यकीन है कि अब तू किसी के बहकावे में नहीं आएगी.’’

पूजा ने मन ही मन सोचा, ‘हां, मैं अब समझदार हो गई हूं.’

मालती अच्छी तरह जानती थी कि ये केवल दिलासा देने वाली बातें थीं और पूजा भी इतना तो जानती थी कि अभी तो वह जवानी की तरफ कदम बढ़ा रही थी. पता नहीं, आगे क्या होगा? बरसात का पानी और लड़की की जवानी कब बहक जाए और कब किधर से किधर निकल जाए, किसी को पता नहीं चलता.

पूजा अभी छोटी थी. जवानी तक आतेआते न जाने कितने रास्तों से उसे गुजरना पड़ेगा… ऐसे रास्तों से जहां बाढ़ का पानी भरा हुआ है और वह अपनी पूरी होशियारी और सावधानी के साथ भी न जाने कब किस गड्ढे में गिर जाए.

वे दोनों ही जानती थीं कि जो वे सोच रही थीं, वही सच नहीं था या जैसा वे चाह रही हैं, उसी के मुताबिक जिंदगी चलती रहेगी, ऐसा भी नहीं होने वाला था.

दिन बीतते रहे. मालती अपनी बेटी की तरफ से होशियार थी, उस की एकएक हरकत पर नजर रखती. उन दोनों के बीच में बात करने का सिलसिला कम था, पर बिना बोले ही वे दोनों एकदूसरे की भावनाओं को जानने और समझने की कोशिश करतीं.

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पर जैसेजैसे बेटी बड़ी हो रही थी, वह और ज्यादा समझदार होती जा रही थी. अब वह बड़े सलीके से रहने लगी थी और उसे अपने भावों को छिपाना भी आ गया था.

इधर काफी दिनों से पूजा के रंगढंग में काफी बदलाव आ गया था. वह अपने बननेसंवरने में ज्यादा ध्यान देती, पर इस के साथ ही उस में एक अजीब गंभीरता भी आ गई थी. ऐसा लगता था, जैसे वह किन्हीं विचारों में खोई रहती हो. घर के काम में मन नहीं लगता था.

मालती ने एक दिन पूछ ही लिया, ‘‘बेटी, मुझे डर लग रहा है. कहीं तेरे साथ कुछ हो तो नहीं गया?’’

पूजा जैसे सोते हुए चौंक गई हो, ‘‘क्या… क्या… नहीं तो…’’

‘‘मतलब, कुछ न कुछ तो है,’’ उस ने बेटी के सिर पर हाथ रख कर कहा.

पूजा के मुंह से बोल न फूटे. उस ने अपना सिर झुका लिया. मालती समझ गई, ‘‘अब कुछ बताने की जरूरत नहीं है. मैं सब समझ गई हूं, पर एक बात तू बता, जिस से तू प्यार करती है, वह तेरे साथ शादी करेगा?’’

पूजा की आंखों में एक अनजाना सा डर तैर गया. उस ने फटी आंखों से अपनी मां को देखा. मालती उस की आंखों में फैले डर को देख कर खुद सहम गई. उसे लगा, कहीं न कहीं कोई बड़ी गड़बड़ है.

डरतेडरते मालती ने पूछा, ‘‘कहीं तू पेट से तो नहीं है?’’

पूजा ने ऐसे सिर हिलाया, जैसे जबरदस्ती कोई पकड़ कर उस का सिर हिला रहा हो. अब आगे कहने के लिए क्या बचा था.

मालती ने अपना माथा पीट लिया. न वह चीख सकती थी, न रो सकती थी, न बेटी को मार सकती थी. उस की बेबसी ऐसी थी, जिसे वह किसी से कह भी नहीं सकती थी.

जो मालती नहीं चाहती थी, वही हुआ. उस की जिंदगी में जो हो चुका था उसी से बेटी को आगाह किया था. ध्यान रखती थी कि बेटी नरक में न गिर जाए. बेटी ने भी उसे भरोसा दिया था कि वह कोई गलत कदम नहीं उठाएगी, पर जवानी की आग को दबा कर रख पाना शायद उस के लिए मुमकिन नहीं था.

मरी हुई आवाज में उस ने बस इतना ही पूछा, ‘‘किस का है यह पाप…?’’

पूजा ने पहले तो नहीं बताया, जैसा कि आमतौर पर लड़कियों के साथ होता है. जवानी में किए गए पाप को वे छिपा नहीं पातीं, पर अपने प्रेमी का नाम छिपाने की कोशिश जरूर करती हैं. हालांकि इस में भी वे कामयाब नहीं होती हैं, मांबाप किसी न किसी तरीके से पूछ ही लेते हैं.

पूजा ने जब उस का नाम बताया, तो मालती को यकीन नहीं हुआ. उस ने चीख कर पूछा, ‘‘तू तो कह रही थी कि कांबले के यहां काम छोड़ देगी?’’

‘‘मां, मैं ने तुम से झूठ बोला था. मैं ने उस के यहां काम करना नहीं छोड़ा था. मैं उस की मीठीमीठी और प्यारी बातों में पूरी तरह भटक गई थी. मैं किसी और घर में भी काम नहीं करती थी, केवल उसी के घर जाती थी.

‘‘वह मुझे खूब पैसे देता था, जो मैं तुम्हें ला कर देती थी कि मैं दूसरे घरों में काम कर के ला रही हूं, ताकि तुम्हें शक न हो.’’

‘‘फिर तू सारा दिन उस के साथ रहती थी?’’

पूजा ने ‘हां’ में सिर हिला दिया. ‘‘मरी, हैजा हो आए, तू जवानी की आग बुझाने के लिए इतना गिर गई. अरे, मेरी बात समझ जाती और तू उस के यहां काम छोड़ कर दूसरों के घरों में काम करती रहती, तो शायद किसी को ऐसा मौका नहीं मिलता कि कोई तेरे बदन से खिलवाड़ कर के तुझे लूट ले जाता. काम में मन लगा रहता है, तो इस काम की तरफ लड़की का ध्यान कम जाता है. पर तू तो बड़ी शातिर निकली… मुझ से ही झूठ बोल गई.’’

पूजा अपनी मां के पैरों पर गिर पड़ी और सिसकसिसक कर रोने लगी, ‘‘मां, मैं तुम्हारी गुनाहगार हूं, मुझे माफ कर दो. एक बार, बस एक बार… मुझे इस पाप से बचा लो.’’

मालती गुस्से में बोली, ‘‘जा न उसी के पास, वह कुछ न कुछ करेगा. उस को ले कर डाक्टर के पास जा और अपने पेट के पाप को गिरवा कर आ…’’

‘‘मां, उस ने मना कर दिया है. उस ने कहा है कि वह पैसे दे देगा, पर डाक्टर के पास नहीं जाएगा. समाज में उस की इज्जत है, कहीं किसी को पता चल गया तो क्या होगा, इस बात से वह डरता है.’’

‘‘वाह री इज्जत… एक कुंआरी लड़की की इज्जत से खेलते हुए इन की इज्जत कहां चली जाती है? मैं क्या करूं, कहां मर जाऊं, कुछ समझ में नहीं आता,’’ मालती बोली.

मालती ने गुस्से और नफरत के बावजूद भी पूजा को परे नहीं किया, उसे दुत्कारा नहीं. बस, गले से लगा लिया और रोने लगी. पूजा भी रोती जा रही थी.

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दोनों के दर्द को समझने वाला वहां कोई नहीं था… उन्हें खुद ही हालात से निबटना था और उस के नतीजों को झेलना था.

मन थोड़ा शांत हुआ, तो मालती उठी और कपड़ेलत्ते व दूसरा जरूरी सामान समेट कर फटेपुराने बैग में भरने लगी. बेटी ने उसे हैरानी से देखा. मां ने उस की तरफ देखे बिना कहा, ‘‘तू भी तैयार हो जा और बच्चों को तैयार कर ले. गांव चलना है. यहां तो तेरा कुछ हो नहीं सकता. इस पाप से छुटकारा पाना है. इस के बाद गांव में रह कर ही किसी लड़के से तेरा ब्याह कर देंगे.’’

एक हसीना एक दीवाना : पहला भाग

जिस कामिनी को पूरे 3 साल तक कहांकहां नहीं ढूंढ़ा, वह एक दिन अचानक खुद सामने आ जाएगी, प्रभात ने ऐसा कभी नहीं सोचा था. प्रभात एक सरकारी बैंक में अफसर था. उस दिन वह अपने काम में मसरूफ था कि किसी औरत की आवाज कानों में सुनाई पड़ी, तो उस ने मुड़ कर देखा. कामिनी बोली, ‘‘कैसे हो प्रभात?’’

प्रभात ने सिर उठा कर देखा, तो वह खुशी से झूम उठा. उस के  सामने उस की प्रेमिका कामिनी खड़ी थी. प्रभात का दिल हुआ कि वह लोकलाज की परवाह न करते हुए कामिनी को बांहों में भर ले, मगर वह ऐसा न कर सका. उस से पूछा, ‘‘मुझे छोड़ कर तुम कहां चली गई थीं?’’

‘‘मेरे लिए तुम अब भी तड़प रहे हो? क्या तुम ने अब तक शादी नहीं की?’’ कामिनी ने पूछा.

‘‘तुम अच्छी तरह जानती हो कि मेरी चाहत तुम हो, फिर मैं किसी और के साथ शादी कैसे कर सकता हूं?’’

‘‘ऐसी बात है, तो मैं तुम्हारी चाहत जरूर पूरी करूंगी. मैं यहां एक काम से आई थी. तुम्हें देख कर तुम्हारे पास आ गई. मेरा घर पास में ही है. तुम ऐसा करो कि अपना काम खत्म कर के मेरे साथ चलो. वहां पर आराम से बातें करेंगे. बैंक में मेरा जो काम है, वह किसी दूसरे दिन कर लूंगी.’’

प्रभात ने कामिनी को ऊपर से नीचे तक बडे़ ही गौर से देखा. गुलाबी रंग की साड़ी और मैचिंग ब्लाउज में वह बड़ी खूबसूरत दिख रही थी. प्रभात का उसे पाने के लिए मन मचल गया.

प्रभात ने कहा, ‘‘तुम कहो, तो मैं अभी छुट्टी ले कर चलूं?’’

यह सुन कर कामिनी मुसकरा उठी, फिर बोली, ‘‘इतने उतावले क्यों हो रहे हो? अब तो तुम्हारी चाहत पूरी हो ही जाएगी. फिलहाल तो तुम अपना काम निबटा लो. मैं कहीं बैठ जाती हूं.’’

‘‘अच्छा यह बताओ कि तुम बैंक में किस काम से आई थीं?’’

‘‘अपना काम शुरू करने के लिए मुझे इस बैंक से अच्छाखासा लोन लेना है. मगर अभी तो तुम मेरे घर चलो.’’

इस के बाद कामिनी सोफे पर जा कर बैठ गई. प्रभात अपना काम खत्म करने में लग गया.

प्रभात बिहार के एक गांव का रहने वाला था. गांव के स्कूल से 12वीं जमात पास करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए वह शहर के कालेज में दाखिल हुआ, तो वहां कामिनी से उस की मुलाकात हुई.

कामिनी भी 12वीं जमात पास करने के बाद 2 दिन पहले ही कालेज में दाखिल हुई थी. कामिनी इतनी ज्यादा खूबसूरत थी कि प्रभात अपने दिल पर काबू न रख सका. उस ने मन ही मन निश्चय किया कि वह हर हाल में उस से शादी करेगा. फिर तो उसी दिन से वह उस के आगेपीछे लट्टू की तरह नाचने लगा था.

ऐसी बात नहीं थी कि कामिनी की खूबसूरती पर सिर्फ प्रभात ही मरता था. कालेज के ज्यादातर लड़के उस पर अपनी जान छिड़कते थे, मगर बाजी प्रभात के हाथ लगी. 6 महीने बाद प्रभात को लगा कि अगर उस ने अपने दिल की बात कामिनी से नहीं कही, तो कोई दूसरा लड़का बाजी मार ले जाएगा.

आखिरकार हिम्मत कर के एक दिन प्रभात ने कामिनी से कहा, ‘‘मैं तुम्हें प्यार करता हूं. ग्रेजुएशन पूरी करने के बाद मैं तुम से शादी करना चाहता हूं.’’

‘‘मैं जानती हूं कि तुम मुझे प्यार करते हो. मैं भी तुम्हें प्यार करती हूं, मगर शादी मैं तभी करूंगी, जब मुझे कोई अच्छी सी नौकरी मिल जाएगी.’’

‘‘मैं भी अपने मांबाप का एकलौता बेटा हूं. मेरी कोई बहन नहीं है. हमारे पास खेती के लिए 80 एकड़ से ज्यादा की जमीन है. उस से हमारा गुजारा मजे से हो जाएगा, फिर तुम्हें नौकरी की क्या जरूरत है?’’ प्रभात ने पूछा.

‘‘मैं गुजारा नहीं करना चाहती, शानशौकत की जिंदगी जीना चाहती हूं. फिर तुम जिस जमीन की बात कर रहे हो, वह तुम्हारी नहीं तुम्हारे पुरखों की है. मैं चाहती हूं कि मेरा होने वाला पति अपने पैरों पर खड़ा हो.’’

‘‘ठीक है, मैं किसानी नहीं करूंगा. गे्रजुएशन होने के बाद मैं कहीं नौकरी कर लूंगा. मगर तुम क्यों नौकरी करना चाहती हो?’’

‘‘मैं अपने पति पर निर्भर नहीं रहना चाहती. मैं खुद पैरों पर खड़ी हो कर अपनी जरूरतें पूरी करना चाहती हूं, इसलिए मैं ने तय किया है कि मैं उसी से शादी करूंगी, जो मेरे रास्ते में दीवार नहीं खड़ी करेगा.’’

‘‘अगर तुम मुझ से प्यार करते हो और मुझ से शादी करना चाहते हो, तो तुम्हें मेरी नौकरी मिलने तक इंतजार करना होगा.’’

प्रभात कामिनी की बात सुन कर राजी हो गया. उस दिन के बाद से प्रभात ने शादी की बात कभी नहीं की. पहले की तरह दोनों एकदूसरे से मिलते रहे. इस तरह ढाई साल बीत गए.

इस के बाद प्रभात मुसीबत में फंस गया. हुआ यह कि एक दिन अचानक उस के पिता ने उसे एक लड़की दिखा कर उस से शादी करने के लिए कहा.

प्रभात कामिनी के सिवा किसी और से शादी नहीं करना चाहता था, इसलिए लड़की के घर से अपने घर आते ही उस ने पिता को कामिनी के बारे में सबकुछ बता दिया.

प्रभात ने अपने पिता को यह चेतावनी भी दी कि अगर कामिनी से उस की शादी नहीं हुई, तो वह खुदकुशी कर लेगा.

प्रभात के पिता ज्यादा पढ़ेलिखे नहीं थे, मगर समझदार थे. वे बेटे का जुनून समझ गए. 2-3 दिनों तक सोचने के बाद उन्होंने प्रभात से कहा, ‘‘पहले कामिनी से मुझे मिलाओ. उस से बात करने के बाद ही उस के घर वालों से बात करूंगा.’’

यह सुन कर प्रभात खुश हो गया. वह उसी दिन कामिनी से बात कर लेना चाहता था, मगर उस दिन कामिनी कालेज नहीं आई थी. प्रभात ने फोन किया, लेकिन उस का मोबाइल फोन स्विच औफ था.

प्रभात परेशान हो गया. उस ने बारबार कामिनी को फोन किया, मगर उस का फोन नहीं लगा. अगले दिन भी कामिनी कालेज नहीं आई, तो उस की परेशानी और बढ़ गई.

प्रभात ने कामिनी की 3-4 सहेलियों से बात की. सभी ने यही कहा कि कामिनी का फोन स्विच औफ है, इसलिए पता नहीं कि वह कालेज क्यों नहीं आ रही है.

तीसरे दिन भी कामिनी कालेज नहीं आई, तो प्रभात उस के घर चला गया.

कामिनी का अपना घर दूरदेहात में था. शहर में वह बूआ के साथ रहती थी. बूआ का घर कालेज से 5 किलोमीटर दूर था. कामिनी बस से कालेज आतीजाती थी.

कामिनी की बूआ से प्रभात बहाने से मिला. बूआ ने बताया कि कामिनी की मां की तबीयत अचानक खराब हो गई थी, इसलिए उसे गांव आना पड़ा.

कामिनी को देखे बिना प्रभात को चैन नहीं मिलने वाला था, इसलिए बूआ से गांव का पता ले कर अगले दिन ही वह मोटरसाइकिल से उस के गांव चला गया.

कामिनी का गांव शहर से 60 किलोमीटर दूर था. गांव की एक बुजुर्ग औरत की मदद से प्रभात कामिनी से एक सुनसान जगह पर मिला.

कामिनी के आते ही प्रभात उस पर बरस पड़ा था, ‘‘फोन पर असलियत बता दी होती, तो मुझे इतना परेशान नहीं होना पड़ता. जानती हो कि एक दिन भी मैं तुम्हें नहीं देखता हूं, तो बेचैन हो जाता हूं. तुम ने अपना फोन भी बंद कर रखा है.’’

कामिनी ने समझाबुझा कर पहले प्रभात का गुस्सा शांत किया, उस के बाद कहा, ‘‘मैं ने फोन बंद नहीं किया था. शहर से गांव आते समय हाथ से छूट कर मोबाइल फोन जमीन पर गिर जाने के चलते खराब हो गया था. तब से बंद पड़ा है. अब शहर जा कर ही फोन को ठीक कराऊंगी.’’

‘‘अच्छा… अब तुम जाओ. यह शहर नहीं गांव है. अगर किसी ने तुम्हारे साथ मुझे देख लिया और मेरे घर वालों को बता दिया, तो मेरी पढ़ाई बंद कर दी जाएगी. तब मेरा सपना भी पूरा नहीं होगा.

‘‘अगर मेरा सपना पूरा नहीं होगा, तो मैं तुम से शादी नहीं कर पाऊंगी. 3-4 दिन बाद मां की तबीयत बिलकुल ठीक हो जाएगी, तो मैं कालेज आ जाऊंगी.’’

कामिनी वहां से चली जाना चाहती थी, लेकिन प्रभात ने उसे जाने नहीं दिया. उस ने कहा, ‘‘दरअसल, मैं तुम्हें एक बात बताने आया हूं.’’

‘‘क्या?’’

‘‘मैं ने तुम्हारे बारे में अपने मातापिता को बता दिया है. वे तुम से मिलना चाहते हैं. तुम से बात करने के बाद ही वे तुम्हारे घर वालों से शादी की बात करेंगे.’’

‘‘क्या बकवास कर रहे हो तुम? मैं ने पहले ही तुम्हें बताया था कि मैं शादी तभी करूंगी, जब मुझे कोई अच्छी नौकरी मिल जाएगी.’’

‘‘अभी शादी करने के लिए मैं कहां कह रहा हूं. तुम मेरे पिता से मिल लो, बात कर लो. शादी तभी करना, जब तुम्हें नौकरी मिल जाए.’’

‘‘मैं अभी तुम्हारे घर वालों से नहीं मिलूंगी. तुम भी मेरे घर वालों से मिलने की कोशिश मत करो. अगर ऐसा करोगे, तो मैं तुम से संबंध तोड़ लूंगी.

‘‘तुम नहीं जानते कि हम कितने गरीब हैं. मेरे पिता बड़ी मुश्किल से मेरी पढ़ाई का खर्च उठा रहे हैं. मेरे पिता के पास कुछ नहीं है. वे मजदूरी कर के परिवार को पाल रहे हैं. मेरी 3 और बहनें हैं. वे तीनों मुझ से छोटी हैं. उन के प्रति भी मेरी जिम्मेदारी है.’’

उस के बाद कामिनी रुकी नहीं. प्रभात ठगा सा वहीं खड़ा रह गया. उस रात प्रभात को नींद नहीं आई. कामिनी की बात से उसे एहसास हो गया था कि वह 4-5 साल से पहले शादी नहीं करेगी.

कामिनी के घर से लौटने के बाद प्रभात ने शादी करने की उस की शर्त पिता को बता दी.

पिता ने बगैर देर किए अपना फैसला प्रभात को सुना दिया था. उन्होंने कहा, ‘‘अब तुम कामिनी को हमेशाहमेशा के लिए भूल जाओ.

‘‘जिस लड़की को मैं ने तुम्हें दिखाया है, 5-6 महीने में उस से शादी कर लो और गे्रजुएशन के बाद खेती में जुट जाओ. अपनी जमीन रहते तुम्हें नौकरी करने की कोई जरूरत नहीं है.’’

प्रभात कामिनी से ही शादी करना चाहता था, मगर पिता का विरोध भी नहीं करना चाहता था. वह कोई ऐसा रास्ता निकालना चाहता था, जिस से सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.

कामिनी से शादी करने का प्रभात को  जब कोई रास्ता दिखाई नहीं पड़ा, तो उस ने कामिनी से जिस्मानी रिश्ता बनाने का फैसला किया. उसे लगा कि रिश्ता हो जाने के बाद कामिनी अपनी शर्त भूल जाएगी और उस से शादी कर लेगी.

(क्रमश:)

क्या प्रभात कामिनी के साथ जिस्मानी रिश्ता बना पाया? इतने साल बाद कामिनी और प्रभात का इश्क क्या रंग लाया? पढि़ए अगले अंक में…

माध्यम: भाग 1

लेखिका- कुसुम गुप्ता

बंबई से आए इस पत्र ने मेरा दिमाग खराब कर दिया है. दोपहर को पत्र आया था, तब प्रदीप दफ्तर में थे. अब रात के 9 बज गए हैं. मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि क्या किया जाए.

फाड़ कर फेंक दूं इसे? डाक विभाग पर दोष लगाना बड़ा सरल है. बाद में कभी प्रदीप या उन की मां ने इस विषय को उठाया तो मैं कह दूंगी कि वह पत्र मुझे कभी मिला ही नहीं.

या फिर प्रदीप से सीधी बात कर ली जाए. जैसेतैसे उन्हें छुट्टी मिली है. छुट्टी यात्रा भत्ता ले कर वह दक्षिण भारत की यात्रा पर जा रहे हैं. सिर्फ हम दोनों. बंगलौर, ऊटी, त्रिवेंद्रम, कोवलम और कन्याकुमारी. पिछले कई दिनों से तैयारियां चल रही हैं और परसों सुबह की गाड़ी से हमें रवाना हो जाना है. प्रदीप को इस पत्र के बारे में बताया तो संभव है कि हमारे पिछले 2 वर्ष के वैवाहिक जीवन में प्रथम बार यह यात्रा कार्यक्रम स्थगित हो जाए.

फिर मन इस मानवीय आधार पर पूरे प्रसंग की विवेचना करने लगा. प्रदीप की मां मेरी सास हैं. सास और मां में क्या अंतर है? कुछ भी तो नहीं. उन की बाईं टांग में प्लास्टर चढ़ा है. स्नानागार में फिसल गईं. टखने और घुटने की हड्डियों में दरार आ गई है. गनीमत हुई कि वे टूटी नहीं. उन्हें 3 सप्ताह तक बिस्तर पर विश्राम करने की सलाह दी गई है.

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घर पर कौन है? प्रदीप के पिता, छोटा भाई और सीमा. अरे, सीमा कहां है? उस का तो पिछले वर्ष विवाह हो गया. पत्र में लिखा है कि सीमा को बुलाने के लिए दिल्ली फोन किया था पर उस की सास ने अनुमति नहीं दी. सीमा की ननद अपना पहला जापा करने मायके आई हुई है. सास का गठिया परेशान कर रहा है. उधर सीमा का पति किसी विभागीय परीक्षा के लिए तैयारी कर रहा है.

प्रदीप के भाई ने पत्र लिखा है. मांजी ने ही लिखवाया है. यह भी लिखा है कि घर के कामकाज में बड़ी दिक्कत हो रही है. नौकरानी भी छुट्टी कर गई है.

घर की इस दुर्दशा का वर्णन पढ़ कर मेरा अंतर द्रवित हो गया. मैं ने सोचा, संकट के समय अपने बच्चे ही तो काम आते हैं. मांजी चाहती हैं कि मैं उन की सेवा के लिए औरंगाबाद से बंबई आ जाऊं. पर शालीनता या संकोचवश उन्होंने लिखवाया नहीं. उन्हें पता है कि हम लोग 2 सप्ताह की छुट्टी ले कर घूमने जा रहे हैं.

एक मन किया, छुट्टी का सदुपयोग दक्षिण भारत की यात्रा नहीं, संकटग्रस्त परिवार की सेवा कर के किया जाए. पर तभी मन कसैला सा हो गया. शादी के पहले वर्ष में मेरे साथ मांजी ने जो व्यवहार किया था उस की कटु स्मृति आज तक मुझे छटपटाती है.

तब प्रदीप बंबई में ही नियुक्त थे. मैं अपने सासससुर के साथ ही रह रही थी. एक दिन नासिक से पिताजी का पत्र आया था. लिखा था कि कौशल्या बीमार है. उसे टायफाइड हुआ और बाद में पीलिया. डाक्टरों ने 4 हफ्ते पूर्ण विश्राम की सलाह दी है. वह बेहद परेशान है. पर मैं और तेरा छोटा भाई उस की देखभाल कर लेते हैं. खाना पकाने में दिक्कत होती है. पर पेट भरने के लिए कुछ कच्चापक्का बना ही लेते हैं. कभी दूध, डबलरोटी ले लेते हैं, कभी बाजार से छोलेभठूरे ले आते हैं.

पत्र पढ़ कर मेरी आंखों में आंसू आ गए. घर की ऐसी दुर्दशा. मेरा दिल किया कि मैं उड़ कर नासिक पहुंच जाऊं. शादी के बाद, पूरे 1 वर्ष में केवल रक्षाबंधन पर मैं 1 दिन के लिए अपने घर गई थी. प्रदीप साथ में थे.

मैं ने मांजी से घर जाने के लिए कहा तो वह संवेदनशून्य स्वर में बोलीं, ‘शादी के बाद लड़की को बातबेबात मायके जाना शोभा नहीं देता. उसे तो सिर्फ एक बार, और वह भी किसी त्योहार पर ही मां के घर जाना चाहिए.’

‘मांजी, मां को पीलिया हो गया है. घर में…’

‘बहू, घर में यह मामूली हारीबीमारी तो चलती रहती है. इस तरह छोटेमोटे बहाने से मायके की तरफ लपकना अच्छा लगता है?’ मांजी ने विद्रूप स्वर में ताना कसा.

‘पर भाई और पिताजी को ठीक से खाना नहीं मिल रहा है…’

‘देखो बहू, उस घर को भूल जाओ. अब तो तुम्हारा घर यह है. तुम्हारा पहला फर्ज बनता है हम लोगों की सेवा.’

‘मांजी, यह तो ठीक है पर जरा सोचिए, जिन मांबाप ने जन्म दिया, जिन्होंने पालपोस कर इतना बड़ा किया, शादीब्याह किया, क्या कोई लड़की उन्हें एकदम भुला सकती है? यह तो खून का अटूट संबंध है. इसे भुलाना संभव नहीं,’ मैं भावावेश में कह गई.

‘बहू, हमारे भी मांबाप थे. हमारे भी खून के संबंध थे. पर एक बार इस घर की चौखट के अंदर कदम रखा नहीं कि एक झटके से मायके को भूल गए. यह तो जग की रीति है. शादी होती है. सात फेरों के साथ लड़की का नया रिश्ता जुड़ता है. पुराना रिश्ता टूट जाता है. ऐसा ही होता आया है.’

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‘वह तो ठीक है, मांजी. लड़की का कर्तव्य है कि वह सासससुर, पति, बच्चों की सेवा करे पर इस का यह अर्थ नहीं कि वह अपने जन्मदाताओं के सुखदुख में भी काम न आए. यह कैसी एकांगी विचारधारा है?’

‘जो शादीशुदा लड़कियां हर समय मायके वालों के चक्कर में पड़ी रहती हैं वे ससुराल में किसी को सुखी नहीं रख सकतीं. 2 घरों की एकसाथ देखभाल असंभव है.’

‘मांजी, क्या दोनों के बीच कोई संतुलन…’

‘मीना, तुम बहुत बहस करती हो, मानती हूं, तुम पढ़ीलिखी हो पर इस का यह मतलब नहीं कि…’

‘मैं बहस नहीं कर रही हूं. मैं 1 हफ्ते के लिए नासिक जाने की आज्ञा मांग रही हूं.’

‘मैं कुछ नहीं जानती. तुम जानो और तुम्हारा पति.’

मांजी का उखड़ा स्वर, फूला मुंह और मटकती हुई गरदन क्या मेरी प्रार्थना की अस्वीकृति के साक्षी नहीं थे? मेरा मन बुझ गया. क्या यह क्रूरता और हृदयहीनता नहीं? अपने स्वार्थ के लिए संबंधियों के सुखदुख में भागीदारी न करना क्या उचित है?

उद्विग्न और निराश मैं चुप लगा गई. जी में तो आया कि मांजी के इस अनुचित व्यवहार के विरुद्ध विरोध का झंडा खड़ा कर दूं.

कहूं, ‘कल को आप की बेटी का विवाह होगा. आप को कोई तकलीफ हो और आप उसे बुलाएं और उस के ससुराल वाले न भेजें तो आप को कैसा महसूस होगा, जरा सोचिए.’

मैं ने आगे बहस नहीं की. उस से कुछ नहीं होना था. केवल धैर्य, सहिष्णुता तथा उदारता के आधार पर ही हम पारिवारिक शांति स्थापित कर सकते हैं. वही मैं ने किया.

पर मेरे अंदर की घुटन को अभिव्यक्ति मिली रात में. जब हम दोनों बिस्तर पर अकेले थे तब प्रदीप ने मेरी उदासी का कारण पूछा था. मैं ने पूरा किस्सा उन्हें सुना दिया. सुन कर वह हंसे और बोले, ‘मांजी के इन विचारों का मैं स्वागत करता हूं.’

‘आप क्यों नहीं करेंगे? अरे, घुटना पेट की तरफ मुड़ता है. एक ही थैली के चट्टेबट्टे हैं आप दोनों.’

‘नहीं श्रीमतीजी, मांजी की बात में सार है. विवाह के बाद इतनी जल्दी पतिपत्नी विरह की अग्नि में जलें, कोई मां ऐसा चाहेगी.’

‘आप सोचते हैं, किसी लड़की के मांबाप. भाईबहन भूखे रहें और वह मिलन के गीत तू मेरा चांद, मैं तेरी चांदनी… गाती रहे.’

इस बार प्रदीप गंभीर हो गए. बोले, ‘भई, नाराज क्यों होती हो? अगर जाना चाहती हो तो ठीक है. कल सुबह मांजी को पटाने की कोशिश करेंगे.’

‘मैं जाऊं या न जाऊं, इस से कोई खास अंतर नहीं पड़ता पर मांजी का यह व्यवहार, संवेदनाशून्य, क्रूर और एकांगी नहीं है क्या? आप ही बताइए?’

‘हर व्यक्ति अपने हिसाब से काम करता है. मां ने जो कुछ कहा और किया वह उन का दृष्टिकोण है, जीवनदर्शन है. और यह दर्शन बनता है हमारी अतीत की अनुभूतियों से. मीना, शायद तुम्हें विश्वास न हो पर यह सच है कि मां एक ऐसे परिवार से आईं जहां लड़की का विवाह एक मुक्ति का एहसास माना जाता था और दोबारा मायके आना अभिशाप.’

‘वह क्यों?’ मैं ने उत्सुक हो कर पूछा.

‘इसलिए कि मां के मायके में 11 बहनभाई थे. 8 बहनें और 3 भाई. नानानानी एकएक लड़की की शादी करते और दोबारा उस का नाम नहीं लेते. मां भी इस घर में आईं. भीड़, अभाव और विपन्नता से शांति, समृद्धि और सुख के माहौल में एक बार इस घर में आईं तो फिर मुड़ कर उस घर को नहीं देखा. बस, शादीब्याह के मौके पर गईं या न गईं.’

‘वह तो ठीक है, पर…’

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‘सच कहूं,’ प्रदीप ने कहा, ‘हम लोग ननिहाल जाते तो वहां पर मां का कोई खास स्वागत नहीं होता. हम लोग एक तरह से उन पर बोझ बन जाते. ज्यादा काम, मेहमानदारी पर खर्चा और लौटने पर बेटी और बच्चों को उपहार देने का संकट.’

‘ठीक है, प्रदीप, मैं मांजी की मनोदशा समझ गई. पर वह यह क्यों नहीं सोचतीं कि उन की और मेरी स्थिति में आकाशपाताल का अंतर है. उन के मायके में संकट में घर का काम करने के लिए और बहनें थीं. मैं अकेली हूं. उन को पीहर में एक बोझ समझा जाता था पर मेरा मेरे घर में अभूतपूर्व स्वागत होता है, आप स्वयं देख चुके हैं.’

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

Short Story : फेसबुकिया प्यार

देर रात को फेसबुक खोलते ही रितु चैटिंग करने लगती. जैसे वह पहले से ही इंटरनैट पर बैठ कर विनोद का इंतजार कर रही हो. उस से चैटिंग करने में विनोद को भी बड़ा मजा मिलने लगा था.

रितु से बातें कर के विनोद की दिनभर की थकान मिट जाती थी. स्कूल में बच्चों को पढ़ातेपढ़ाते थका हुआ उस का दिमाग व जिस्म रितु से चैटिंग कर तरोताजा हो जाता था.

पत्नी मायके चली गई थी, इसलिए घर में विनोद का अकेलापन कचोटता रहता था. ऐसी हालत में रितु से चैटिंग करना अच्छा लगता था.

विनोद से चैटिंग करते हुए रितु एक हफ्ते में ही उस से घुलमिल सी गई थी. वह भी उस से चैटिंग करने के लिए बेताब रहने लगा था.

आज विनोद उस से चैटिंग कर ही रहा था कि उस का मोबाइल फोन घनघना उठा, ‘‘हैलो… कौन?’’

उधर से एक मीठी आवाज आई, ‘हैलो…विनोदजी, मैं रितु बोल रही हूं… अरे वही रितु, जिस से आप चैटिंग कर रहे हो.’

‘‘अरे…अरे, रितु आप. आप को मेरा नंबर कहां से मिल गया?’’

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‘‘लगन सच्ची हो और दिल में प्यार हो तो सबकुछ मिल जाता है.’’

फेसबुक पर चैटिंग करते समय विनोद कभीकभी अपना मोबाइल नंबर भी डाल देता था. शायद उस को वहीं से मिल गया हो. यह सोच कर वह चुप हो गया था.

अब विनोद चैटिंग बंद कर उस से बातें करने लगा, ‘‘आप रहती कहां हैं?’’

‘वाराणसी में.’

‘‘वाराणसी में कहां रहती हैं?’’

‘सिगरा.’

‘‘करती क्या हैं?’’

‘एक नर्सिंग होम में नर्स हूं.’

‘‘आप की शादी हो गई है कि नहीं?’’

‘हो गई है…और आप की?’

‘‘हो तो मेरी भी गई है, पर…’’

‘पर, क्या…’

‘‘कुछ नहीं, पत्नी मायके चली गई है, इसलिए उदासी छाई है.’’

‘ओह, मैं तो कोई अनहोनी समझ कर घबरा गई थी…’

‘‘मुझ से इतना लगाव हो गया है एक हफ्ते में… आप की रातें तो रंगीन हो ही रही होंगी?’’

‘यही तो तकलीफ है विनोदजी… पति के रहते हुए भी मैं अकेली हूं,’ कहतेकहते रितु बहुत उदास हो गई. उस का दर्द सुन कर विनोद भी दुखी हो गया था. उस ने अपना फोटो चैट पर भेजा. रितु ने भी अपना फोटो भेज दिया था. वह बड़ी खूबसूरत थी. गोलमटोल चेहरा, कजरारी आंखें… पतले होंठ… लंबे घने बाल देख कर विनोद का मन उस की मोहिनी सूरत पर मटमिटा था. वह उस से बातें करने के लिए बेचैन रहने लगा. मोबाइल फोन से जो बात खुल कर न कह पाता, वह बात फेसबुक पर चैट कर के कह देता.

रितु का पति मनोहर शराबी था. वह जुआ खेलता, शराबियों के साथ आवारागर्दी करता, नशे में झूमता हुआ वह रात में घर आ कर झगड़ा करता और गालीगलौज कर के सो जाता.

रितु जब तनख्वाह पाती तो वह छीनने लगता. न देने पर वह उसे मारतापीटता. मार से बचने के लिए वह अपनी सारी तनख्वाह उसे दे देती.

रितु विनोद से अपनी कोई बात न छिपाती. वह अपनी रगरग की पीड़ा जब उसे बताती, तब दुखी हो कर वह भी कराह उठता. स्कूल में बच्चों को अब पढ़ाने का मन न करता. पत्नी घर पर होती तो बाहुपाश में उस को… उस की पीड़ा को वह भूल जाता. पर अब तो रितु की याद उसे सोने ही न देती. चैट से मन न भरता तो वह मोबाइल फोन से बात करने लगता. ‘‘हैलो… क्या कर रही हो तुम?’’

‘आप की याद में बेचैन हूं. आप से मिलने के लिए तड़प रही हूं… और आप?’

‘‘मेरा भी वही हाल है.’’

‘तब तो मेरे पास आ जाओ न. आप वहां अकेले हो और मैं यहां अकेली. दोनों छटपटा रहे हैं. मैं आप को पत्नी का सारा सुख दूंगी.’

रितु की बात सुन कर विनोद के बदन में तरंगें उठने लगतीं. बेचैनी बढ़ जाती. तब वह जोश में उस से कहता, ‘‘मैं कैसे आऊं… तुम्हारा पति मनोहर जो है. हम दोनों का मिलना क्या उसे अच्छा लगेगा?’’

‘आप आओ तो मैं कह दूंगी कि आप मेरे मौसेरे भाईर् हो. वैसे, वे कल अपने गांव जा रहे हैं. गांव से लौटने में उन को 2-4 दिन तो लग ही जाएंगे. परसों रविवार है. आप उस दिन आ जाओ न. ऐसा मौका जल्दी नहीं मिलेगा. मैं आप का इंतजार करूंगी,’ रितु का फोन कटा तो विनोद की बेचैनी बढ़ गई. वह रातभर करवटें बदलता रहा.

रविवार को विनोद उस से मिलने वाराणसी चल पड़ा. उस के बताए पते पर पहुंचने में उसे कोईर् दिक्कत नहीं हुई.

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मकान की दूसरी मंजिल पर रितु जिस फ्लैट में रहती थी, उस में 2 कमरे, रसोईघर, बरामदा था. उस ने अपना घर खूब सजा रखा था, जिसे देख कर विनोद का मन खिल उठा. खातिरदारी और बात करतेकरते दिन ढलने लगा तो विनोद ने कहा, ‘‘आप से बात कर के बड़ा मजा आया. वापस भी तो जाना है मुझे.’’

‘‘कहां वापस जाना है आज? आज रात तो मैं कम से कम आप के साथ रह लूं… फिर कब मिलना हो, क्या भरोसा?’’ रितु ने इतना कहा, तो विनोद की बांछें खिल उठीं. इतना कह कर वह उस के गले लग गया. रितु कुछ नहीं बोली.

‘‘मैं आप की बात भी तो नहीं टाल सकता… चलो, अब कमरे में चल कर बातें करें.’’

विनोद ने कमरे में रितु को डबल बैड पर लिटा दिया और उस के अंगों से खेलने लगा.

इतने में पता नहीं कहां से मनोहर उस कमरे में आ घुसा और विनोद को डपटा, ‘‘तू कौन है रे, जो मेरे घर में आ कर मेरी पत्नी का रेप कर रहा है?’’

मनोहर को देख विनोद घबरा गया. उस का सारा नशा गायब हो गया. रितु अपनी साड़ी ओढ़ कर एक कोने में सिमट गई. मनोहर ने पहले तो विनोद को खूब लताड़ा, लातघूंसों से मारा, फिर पुलिस को फोन मिलाने लगा.

विनोद उस के पैर पकड़ कर पुलिस न बुलाने की भीख मांगता हुआ उस से बोला, ‘‘इस में मेरी कोई गलती नहीं है. रितु ने ही फेसबुक पर मुझ से दोस्ती कर के मुझे यहां बुलाया था.’’

‘‘मैं कुछ नहीं जानता. फेसबुक पर दोस्ती कर के औरतों को अपने प्यार के जाल में फांस कर उन के साथ रंगरलियां मनाने वाले आज तेरी खैर नहीं है. जब पुलिस का डंडा पीठ पर पड़ेगा तब सारा नशा उतर जाएगा,’’ कह कर मनोहर फिर से पुलिस को फोन मिलाने लगा.

‘‘नहीं मनोहर बाबू, मुझे छोड़ दो. मेरा भी परिवार है. मेरी सरकारी नौकरी है. मुझे पुलिस के हवाले कर दोगे तो मैं बरबाद हो जाऊंगा,’’ कहता हुआ विनोद उस के पैरों पर अपना माथा रगड़ने लगा.

काफी देर बाद हमदर्दी दिखाता हुआ मनोहर उस से बोला, ‘‘अपनी इज्जत और नौकरी बचाना चाहता है, तो 50 हजार रुपए अभी दे, नहीं तो मैं तुझे पुलिस के हवाले कर दूंगा,’’ इतना कहने के बाद मनोहर कमरे में लगा कैमरा हाथ में ले कर उसे दिखाता हुआ बोला, ‘‘तेरी सारी हरकत इस कैमरे में कैद है. जल्दी रुपए ला, नहीं तो…’’

‘‘इतने रुपए मैं कहां से लाऊं भाई. मेरे पास तो अभी 10 हजार रुपए हैं,’’ कह कर विनोद ने 2-2 हजार के 5 नोट जेब से निकाल कर मनोहर के सामने रख दिए.

गुस्से से लालपीला होता हुआ मनोहर बोला, ‘‘10 हजार रुपए…? 50 हजार रुपए से कम नहीं चाहिए, नहीं तो पुलिस को करता हूं फोन…’’

मनोहर की दहाड़ सुन कर विनोद रोने लगा. वह बोला, ‘‘आप मुझ पर दया कीजिए मनोहर बाबू. मैं घर जा कर बैंक से रुपए निकाल कर आप को दे दूंगा.’’

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‘‘बहाना कर के भागना चाहता है तू. मुझे बेवकूफ समझता है. अभी जा और एटीएम से 15 हजार रुपए निकाल और कल 25 हजार रुपए ले कर आ, नहीं तो… कोई चाल तो नहीं चलेगा न. चलेगा तो जान से भी हाथ धो बैठेगा, क्योंकि तेरी सारी करतूत मेरे इस कैमरे में कैद है.’’

मनोहर की बात मानना विनोद की मजबूरी थी. वह बहेलिए के जाल में फंसे कबूतर की तरह फेसबुक की दोस्ती के जाल में फंस कर छटपटाने लगा था.

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