समुद्र से सागर तक

3 दिनों से बंद फ्लैट की साफसफाई और हर चीज व्यवस्थित कर के साक्षी लैपटौप और मोबाइल फोन ले कर बैठी तो फोन में बिना देखे तमाम मैसेज पड़े थे. लैपटौप में भी तमाम मेल थे. पिछले 3 दिनों में लैपटौप की कौन कहे, मोबाइल तक देखने को नहीं मिला था. मां को फोन भी वह तब करती थी, जब बिस्तर पर सोने के लिए लेटती थी. मां से बातें करतेकरते वह सो जाती तो मां को ही फोन बंद करना पड़ता.

पहले उस ने लैपटौप पर मेल पढ़ने शुरू किए. वह एकएक मैसेज पढ़ने लगी. ‘‘हाय, क्या कर रही हो? आज आप औनलाइन होने में देर क्यों कर रही हैं?’’

‘‘अरे कहां है आप? कल भी पूरा दिन इंतजार करता रहा, पर आप का कोई जवाब ही नहीं आया?’’

‘‘अब चिंता हो रही है. सब ठीकठाक तो है न?’’

‘‘मानता हूं काम में बिजी हो, पर एक मैसेज तो कर ही सकती हो.’’ सारे मैसेज एक ही व्यक्ति के थे.

मैसेज पढ़ कर हलकी सी मुसकान आ गई सरिता के चेहरे पर. उसे यह जान कर अच्छा लगा कि कोई तो है जो उस की राह देखता है, उस की चिंता करता है. उस ने मैसेज टाइप करना शुरू किया.

‘‘मैं अपने इस संबंध को नाम देना चाहती हूं. आखिर हम कब तक बिना नाम के संबंध में बंधे रहेंगे. आप का तो पता नहीं, पर मैं तो अब संबंध की डोर में बंध गई हूं. यही सवाल मैं ने आप से पहले भी किया था, पर न जाने क्यों आप इस सवाल का जवाब टालते रहे. जवाब देने की कौन कहे, आप बात ही करना बंद कर देते हो. आखिर क्यों.?

‘‘एक बात आप अच्छी तरह जान लीजिए. बिना किसी नाम का दिशाहीन संबंध मुझे पसंद नहीं है. हमेशा दुविधा में रहना अच्छा नहीं लगता. पिछले 3 दिनों से आप के संदेश की राह देख रही हूं. गुस्सा तो बहुत आता है पर आप पर गुस्सा करने का हक है भी या नहीं, यह मुझे पता नहीं. आखिर मैं आप के किसी काम की या आप मेरे किस काम के..?

‘‘आप के साथ भी मुझे मर्यादा तय करनी है. है कोई मर्यादा? आप को पता होना चाहिए, अब मैं दुविधा में नहीं रहना चाहती. मैं आप को किसी संबंध में बांधने के लिए जबरदस्ती मजबूर नहीं कर रही हूं. पर अगर संबंध जैसा कुछ है तो उसे एक नाम तो देना ही पड़ेगा. खूब सोचविचार कर बताइएगा.

‘‘मेरे लिए आप का जवाब महत्त्वपूर्ण है. मैं आप की कौन हूं? इतनी निकटता के बाद भी यह पूछना पड़ रहा है, जो मुझे बहुत खटक रहा है. —आप के जवाब के इंतजार में सरिता.’’

सरिता काफी देर तक लैपटौप पर नजरें गड़ाए रही. उन के बीच पहली बार ऐसा नहीं हो रहा था. इस के पहले भी सरिता ने कुछ इसी तरह की या इस से कुछ अलग तरह की बात कही थी. पर हर बार किसी न किसी बहाने बात टल जाती थी. देखा जाए तो दोनों के बीच कोई खास संबंध नहीं था. दोनों कभी मिले भी नहीं थे. एकदूसरे से न कोई वादा किया था, न कोई वचन दिया था.

बस, उन के बीच बातों का ही व्यवहार था. कभी खत्म न हो, ऐसी बातें. उस की बातें सरिता को बहुत अच्छी लगती थीं. दोनों दिनभर एकदूसरे को मेल या चैटिंग करते रहते. बीचबीच में अपना काम कर के फिर चैटिंग पर लग जाते. समयसमय पर मेल भी करते.

दोनों की जानपहचान अनायास ही हुई थी. मेल आईडी टाइप करने में हुई एक अक्षर की अदलाबदली की तरह से. ध्यान नहीं दिया और मेल सैंड हो गया. उस के रिप्लाय में आया. सौरी, सामने से फिर जवाब, करतेकरते दोनों को एकदूसरे का जवाब देने की आदत सी पड़ गई.

जल्दी ही उन की बातें एकदूसरे की जरूरत बन गईं. दोनों का परिचय हुए 3 महीने हो चुके थे, पर ऐसा लगता था, जैसे वे न जाने कब से परिचित हैं, दोनों में गहरा लगाव हो गया था, उन का स्वभाव भी अलग था और व्यवसाय भी, फिर भी दोनों नजदीक आ गए थे.

वह दिल्ली यूनिवर्सिटी के एक कालेज में हिंदी का प्रोफेसर था. साहित्य का भंडार था उस के पास. कभी वह खुद की लिखी कोई गजल या शायरी सुनाता तो कभी अपनी यूनिवर्सिटी की मजाकिया बातें कह कर हंसाता. सरिता उस की छोटी से छोटी बात ध्यान से सुनती और पढ़ती. उस के साथ के क्षणों में, उस की बातों में आसपास का सब बिसार कर खो सी जाती.

पर जब वह 3 दिनों के लिए कंपनी टूर पर मुंबई गई तो मन जैसे अपनी बात कहने को विकल हो उठा. आज दिल की बात कह ही देनी है, यह निश्चय कर के वह दाहिने कान के पीछे निकल आई लट को अंगुलियों में ले कर डेस्क पर रखे लैपटौप की स्क्रीन में खो गई. जैसे वह सामने बैठा है और वह उस की आंखों में आंखें डाल कर अपनी बात कह रही है. वह मैसेज टाइप करने लगी.

‘‘हाय 3 दिनों के लिए कंपनी टूर पर मुंबई गई थी. जाने का प्लान अचानक बना, इसलिए तुम्हें बता नहीं सकी, बहुत परेशान किया न तुम्हें? पर सच कहूं, 3 दिनों तक तुम से दूर रह कर मेरे मन में हिम्मत आई कि मैं अपने मन की बात तुम से खुल कर कह सकूं. क्या करूं, थोड़ी डरपोक हूं न? आज तुम्हें मैं अपने एक दूसरे मित्र से मिलवाती हूं. अभी नईनई मित्रता हुई है जानते हो किस से? जी हां, दरिया से… हां, दरिया, समुद्र, सागर…

‘‘नजर में न भरा जा सके, इतना विशाल, चाहे जितना देखो, कभी मन न भरे. इतना आकर्षक कि मन करता है हमेशा देखते रहो. मेरे लिए यह सागर हमेशा एक रहस्य ही रहा है. कहीं कलकल बहता है तो कहीं एकदम शांत तो कहीं एकदम तूफानी.

‘‘समुद्र मुझे बहुत प्यारा लगता है. घंटों उस के सान्निध्य में बैठी रहती हूं, फिर भी थकान नहीं लगती. पर मेरा यह प्यार दूरदूर से है. दूर से ही बैठ कर उस की लहरों को उछलते देखना, उस की आवाज को मन में भर लेना. इस तरह देखा जाए तो यह सागर मेरा ‘लौंग डिसटेंस फ्रेंड’ कहा जा सकता है, एकदम तुम्हारी ही तरह. हम मन भर कर बात करते हैं, कभीकभी एकदूसरे से गुस्सा भी होते हैं, पर जब नजदीकी की बात आती है तो मैं डर जाती हूं. दूर से ही नमस्कार करने लगती हूं.

‘‘पर इस सब को कहीं एक किनारे रख दो. मैं भले ही सागर के करीब न जाऊं, दूर से ही उसे देखती रहूं, पर वह किसी न किसी युक्ति से मुझे हैरान करने आ ही जाता है. दूर रहते हुए भी उस की हलकी सी हवा का झोंका मेरे शरीर में समा जाता है. मजाल है कि मैं उस के स्पर्श से खुद को बचा पाऊं. एकदम तुम्हारी ही तरह वह भी जिद्दी है.

‘‘उस की इस शरारत से कल मेरे मन में एक नटखट विचार आया. मन में आया कि क्यों न हिम्मत कर के एक कदम उस की ओर बढ़ाऊं. चप्पल उतार कर उस की ओर बढ़ी. एकदम किनारे रह कर पैर पानी में छू जाए इतना ही बढ़ी थी. वह पहले से भी ज्यादा पागल बन कर मेरी ओर बढ़ा और मुझे पूरी तरह भिगो दिया. जैसे कह रहा हो, बस मैं तुम्हारी पहल की ही राह देख रहा था, बाकी मैं तो तुम्हें कब से भिगोने को तैयार था.

‘‘मैं उस के इस अथाह प्रेम में डूबी वहीं की वहीं खड़ी रह गई. मैं ने तो केवल पैर धोने के लिए पानी मांगा था, उस ने मुझे पूरी की पूरी अपने में समा लिया था. कहीं सागर तुम्हारा रूप ले कर तो नहीं आया था? शायद नाम की वजह से दोनों का स्वभाव भी एक जैसा हो. वह समुद्र और तुम सागर. दोनों का स्थान मेरे मन में एक ही है. सच कहूं, अगर मैं एक कदम आगे बढ़ाऊं तो क्या तुम मुझे खुद में समा लोगे? —तुम्हारी बनने को आतुर सरिता’’

क्या जवाब आता है, यह जानने के लिए सरिता का दिल जोजोर से धड़कने लगा था. दिल में जो आया, वह कह दिया. अब क्या होगा, यह देखने के लिए वह एकटक स्क्रीन को ताकती रही.

सागर में उछाल मार रहे समुद्र की एक फोटो भेजी. मतलब सरिता की पहल को उस ने स्वीकार कर लिया था.

प्रकृति के नियम के अनुसार फिर एक सरिता बहती हुई अपने सागर मे मिलने का अनोखा मिलन रचने जा रही थी.

जागरूकता: रेपिस्ट लड़कियों के जाल में मासूम लड़के

मध्य प्रदेश ही नहीं, बल्कि देशभर में सब से साफसुथरे शहर इंदौर के बाणगंगा इलाके में रहने वाली 19 साला कुसुम (बदला हुआ नाम) को हाईकोर्ट ने 15 मार्च, 2023 को जब 10 साल कैद की सजा सुनाई, तो हर कोई हैरान रह गया कि क्या लड़कियां भी रेप करती हैं? पर बात सच थी, इसलिए यकीन न करने की कोई वजह भी नहीं थी.

किसी ने इसे कलियुग की एक और मिसाल बताया, तो किसी ने कमउम्र लड़कियों में सैक्स की बढ़ती इच्छा को जबरदस्ती पूरा करने का जिम्मेदार स्मार्टफोन को ठहराया, क्योंकि उस में कमउम्र लड़केलड़कियां दिनरात ब्लू फिल्में देखा करते हैं.

कुसुम और रोहित (बदला हुआ नाम) की दास्तान फिल्मों सरीखी है, जो आज से तकरीबन 5 साल पहले शुरू हुई थी. 3 नवंबर, 2017 को कुसुम ने रोहित को फोन कर के कहा था कि उस का अपने मम्मीपापा से झगड़ा हो गया है और वह घर छोड़ कर जा रही है.

कुसुम ने रोहित से साथ चलने की बात कही, तो मासूम रोहित का दिल पसीज गया और वह इनसानियत के नाते उस के साथ हो लिया. हो तो लिया, पर जल्द ही उसे छठी का दूध भी याद आ गया.

दरअसल, खीर खाने का शौकीन रोहित उस दिन घर से दूध लाने ही निकला था कि कुसुम का फोन आ गया. जब काफी देर तक बेटा घर नहीं लौटा, तो मांबाप ने उस की टोह लेनी शुरू कर दी, लेकिन वह कहीं नहीं मिला. 5 नवंबर, 2017 को थाने में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करा दी गई.

पुलिस ने रोहित का मोबाइल फोन ट्रेस किया, तो लोकेशन गुजरात की मिली. कुछ दिनों बाद छापा मारा गया, तो वे दोनों मिल गए, लेकिन वहां वे बाकायदा पतिपत्नी की तरह रह रहे थे.

पुलिस ने रोहित से बात की, तो उस ने बताया कि कुसुम उसे बहलाफुसला कर भगा ले गई थी और यहां आ कर उसे एक टाइल्स फैक्टरी में काम भी दिलवा दिया था. वे दोनों किराए के मकान में रहने लगे थे.

बकौल रोहित, कुसुम ने उस का मोबाइल फोन भी छीन लिया था और कभी भी उसे शारीरिक संबंध बनाने के लिए मजबूर करती थी.

मामले की गंभीरता देख कर पुलिस वाले भी हैरान रह गए, क्योंकि उन की जानकारी में यह पहला ऐसा मामला था, जिस में एक लड़की किसी नाबालिग लड़के को अपने साथ भगा कर ले गई थी और जबतब उस का रेप कर रही थी. पुलिस ने पास्को ऐक्ट के तहत कुसुम के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया.

5 साल बाद रेप का यह अनूठा मुकदमा 5 साल चला. इस दौरान कुसुम के वकील ने उसे बेगुनाह साबित करने के लिए तरहतरह की दलीलें दीं, लेकिन उस की दाल नहीं गली. कभी उस ने रोहित को बालिग साबित करने की कोशिश की, तो कभी इसे रजामंदी का मामला बताया.

इसी दौरान कुसुम की शादी कहीं और हो गई और शादी के 2 साल बाद उस ने एक बेटी को जन्म भी दिया. सजा सुनते समय नन्हीं बेटी उस की गोद में थी, जिस की चिंता करते हुए कुसुम ने कहा कि अब वह बेटी को अपने मांबाप के पास छोड़ देगी.

अदालत ने कुसुम को नाबालिग बच्चों की हिफाजत के लिए बनाए गए कानून पास्को ऐक्ट के तहत कुसूरवार पाते हुए उसे 10 साल की सजा सुनाने के साथसाथ उस पर 3,000 रुपए का जुर्माना भी लगाया. साथ ही, रोहित को 50,000 रुपए मदद देने की सिफारिश भी की.

अदालत ने अपने फैसले में कहा कि हर बार मर्द गलत हो, यह जरूरी नहीं. इसी तरह पास्को ऐक्ट में हमेशा मर्द ही  कुसूरवार होगा, ऐसा नहीं है. इस ऐक्ट के तहत औरत या लड़की भी उतनी सजा की हकदार है, जितना कि कोई कुसूरवार मर्द या लड़का होता है.

दरअसल, कुसुम को कुसूरवार साबित करने में वह मैडिकल रिपोर्ट भी अहम रही, जिस में डाक्टरों ने कहा था कि लड़की को सैक्स संबंधों की आदत है, जबकि लड़के के माध्यमिक सैक्सुअल कैरेक्टर विकसित नहीं हुए हैं यानी रोहित सैक्स करने के लिहाज से मैच्योर नहीं था.

इस परिभाषा के मुताबिक लड़के का अंग तो होता है, लेकिन उस की दाढ़ी नहीं आती है, न ही कंधे चौड़े हुए होते हैं और आवाज में भारीपन भी नहीं आता है. ये सब उस के पूरे मर्द होने की निशानी मानी जाती है. आम बोलचाल की भाषा में कहा जाए, तो रोहित सैक्स करने के काबिल नहीं था.

अधूरा सा इंसाफ

अदालत के इस फैसले से कुसुम को उस के किए की सजा मिल गई, जो एक हद तक रोहित के साथ इंसाफ है, लेकिन कुसुम के पति और बेटी को किस बात की सजा मिली, यह कह पाना मुश्किल है. उस का पति तो फिर भी मुमकिन है देरसवेर दूसरी शादी कर ले, लेकिन मासूम बेटी का क्या होगा? ऐसे सवालों के जवाब जाहिर है किसी अदालत में नहीं मिलेंगे, बल्कि इसी समाज में मिलेंगे, जिस में हम सब रहते हैं.

बात यह भी सच है कि यही समाज रोहित पर लानतें नहीं भेजेगा और न ही उसे उतनी हिकारत से देखेगा, जितना कि एक रेप पीडि़त लड़की को देखता है. समाज मर्दों का है, इसलिए कोई रोहित को कुलटा भी नहीं कहेगा. वजह, लड़कों के लिए तो ऐसे शब्द ईजाद ही नहीं किए गए हैं, क्योंकि कभी लड़कों का भी रेप होगा, किसी ने ऐसा सोचा भी नहीं था और जब होने लगा है तो आज नहीं तो कल इस तरफ भी सोचना पड़ेगा ही.

ये रेपिस्ट दिखते क्यों नहीं

इस फैसले से मैसेज यह गया है कि नाबालिग लड़के भी यौन शोषण का शिकार होते हैं और अपराध साबित हो जाए तो दोषी औरत या लड़की को सजा भी हो सकती है. पर लड़कों के साथ होने वाले रेप या यौन शोषण आमतौर पर दिखते नहीं हैं. पर कई मर्द ऐसे मिल जाएंगे, जिन का यौन शोषण या रेप उन की भाभी, चाची, पड़ोसन या किसी दूसरी रिश्तेदार औरत ने किया था, लेकिन बात ढकीमुंदी रह गई. ऐसा लड़कियों के साथ होना तो आम बात है.

पिछले दिनों तकरीबन 200 फिल्मों में काम कर चुकी हीरोइन खुशबू सुंदर और दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने यह खुलासा किया था कि किसी और मर्द ने नहीं, बल्कि उन के सगे पिता ने उन का तब यौन शोषण किया था, जब वे बिलकुल नासमझ थीं और कुछ बोलने या विरोध करने की हिम्मत उन में नहीं थी.

ये मामले तूल नहीं पकड़ पाए, जबकि इन पर जम कर बहस होना जरूरी था, जिस से लड़कियों की हिफाजत की दिशा में कुछ नई हिदायतें सामने आएं. समाज ही नहीं, बल्कि मीडिया भी मर्दों का है, इसलिए बात न केवल दबा दी गई, बल्कि सोशल मीडिया पर धर्म के पैरोकारों ने इन्हीं हस्तियों को चरित्रहीन करार दे दिया.

यह भेदभाव किसी सुबूत का मुहताज कभी नहीं रहा, लेकिन अब बात उलट है कि जरूरत लड़कों को भी यह बताने की है कि वे ऐसी औरतों या लड़कियों से कैसे बचें? यह ठीक है कि नौबत अभी ऐसी नही आई है कि उन्हें मिर्च का स्प्रे रखने का मशवरा दिया जाए, लेकिन इतनी तो आ ही गई है कि वे कुसुम जैसी या भोपाल के 30 साला सुनील (बदला हुआ नाम) की भाभी जैसी औरतों से खुद को कैसे बचाएं.

भोपाल के एक मामूली नौकरीपेशा सुनील की आपबीती उन की जबानी ही सुनें :

‘‘मैं 12 साल का था, जब मेरी भाभी ने मेरा यौन शोषण किया. भैया एक कंपनी में थे और माल बेचने के सिलसिले में अकसर टूर पर हफ्तों

शहर से बाहर रहते थे. ऐसे में मुझे भाभी के पास सुला दिया जाता था.

‘‘पता नहीं, शुरुआत कब हुई, लेकिन मुझे याद है कि भाभी अकसर मेरे अंडरवियर में हाथ डाल कर अंग सहलाने लगती थीं. इस से मुझे मजा तो आता था, लेकिन डर भी बहुत लगता था.

‘‘फिर धीरेधीरे हमारे संबंध बनने लगे, जिस की घर में किसी को भनक भी नहीं लगी. वे मुझे तरहतरह से सैक्स करना सिखाती थीं. फिर कई बार मेरी इच्छा न होने पर भी जबरदस्ती करती थीं और मैं मारे डर के कुछ बोल नहीं पाता था. मुझे लगता था कि बात खुल गई, तो भी मुझे ही मार पड़ेगी.’’

सुनील अब घर से अलग हो गए हैं, लेकिन वह ‘जबरदस्ती’ उन्हें जब कभी याद आ जाती है, तो मारे बेबसी के हाथ मलते रहते हैं. उन का मन कसैला हो जाता है.

सुनील बताते हैं, ‘‘5-6 साल तक यह सिलसिला चला, जिस के चलते मैं 10वीं में लगातार फेल होता गया. फिर पापा ने पढ़ाई छुड़ा कर दुकान पर नौकरी लगवा दी.’’

सुनील अपने कम पढ़ेलिखे होने का जिम्मेदार अपनी भाभी को ठहराते हैं, जिस ने उन से बचपन छीन लिया. शादी के बाद भी अपनी पत्नी से कनैक्ट होने में सुनील को तकरीबन 4 साल लग गए.

मुमकिन है, रोहित के साथ भी ऐसा ही कुछ हो, जिस के नौर्मल जिंदगी गुजारने की गुंजाइश आम लड़कों के मुकाबले बहुत ही कम बची हैं. उस ने

तो 5 साल मुकदमे को भी झेला है. सालोंसाल वह नहीं भूल पाएगा कि कुसुम कैसे उस से जबरदस्ती करती थी और घर वालों से बात भी नहीं करने देती थी.

यह पहला मामला नहीं

इंदौर के मामले के पहले भी ऐसे मामले सामने आते रहे हैं, जिन में बालिग लड़कियों या औरतों ने नाबालिग लड़कों की इज्जत लूटी. एक मामला मार्च, 2021 में देहरादून से उजागर हुआ था, जिस में एक लड़की ने नाबालिग लड़के पर रेप करने का झूठा इलजाम लगाया था.

लड़की का आरोप था कि लड़के ने उसे शादी का झांसा दिया था और शारीरिक संबंध बनाए थे, जिस के चलते वह पेट से हो गई.

पुलिस की जांच में पता चला कि लड़के की उम्र महज 15 साल है, तो उस लड़के के पिता की शिकायत पर लड़की के खिलाफ ही यौन शोषण का मामला दर्ज कर लिया गया, क्योंकि वह लड़की बालिग थी.

इस के कुछ दिन बाद ही छत्तीसगढ़ के जशपुर में भी एक लड़की को नाबालिग लड़के को भगा ले जाने और जबरन दुष्कर्म करने के चलते एक बालिग लड़की के खिलाफ पास्को ऐक्ट के तहत ही मामला दर्ज किया गया था.

इस मामले की रिपोर्ट पत्थलगांव थाने में पीडि़त लड़के के पिता ने दर्ज कराई थी. लड़की को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया गया और पीडि़त लड़के को उस के घर वालों के हवाले कर दिया गया.

गुजरात के गांधीनगर में तो 26 साला एक महिला टीचर तो 8वीं क्लास के अपने 14 साला छात्र को ही ले कर भाग गई… इसी साल जनवरी में एक शाम जब लड़का घर नहीं पहुंचा, तो मांबाप को चिंता हुई. खोजबीन करने पर पता चला कि उस की टीचर ही उसे ले भागी है.

उन्होंने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई, तो पुलिस वाले स्कूल पहुंचे. हैरत तो उस समय और बढ़ गई, जब कमउम्र बच्चों ने यह राज खोला कि टीचर और लड़के के शारीरिक संबंध थे और वह टीचर कभी भी लड़के को ले कर कहीं चली जाती थी. यह बात स्कूल मैनेजमैंट को भी मालूम थी.

मांबाप की रिपोर्ट पर कलोल थाने में आईपीसी की धारा 363 के तहत मामला दर्ज हुआ. इस टीचर को भी सजा होना तय है.

ऐसा ही एक और मामला महाराष्ट्र के अकोला से भी सामने आया था, जिस में एक मिल में काम करने वाली 29 साला एक औरत 17 साल के एक लड़के को ले कर भाग गई थी. उन दोनों में भी शारीरिक संबंध थे. इसी साल 9 फरवरी को मामला उजागर हुआ, तो लड़के के मांबाप की रिपोर्ट पर उस औरत के खिलाफ पास्को ऐक्ट के तहत मामला दर्ज हो गया. अब मुमकिन है कि उस औरत को भी कुसुम की तरह सजा हो.

संभल कर रहें

दरअसल, इस औरत का पति इस के साथ नहीं रहता था, इसलिए सैक्स की अपनी जरूरत को पूरा करने के लिए उस ने नाबालिग लड़के को चुन लिया था. इसे भले ही वह गांधीनगर की टीचर की तरह प्यार कहती रहे, लेकिन कानून की नजर में यह एक नाबालिग लड़के के यौन शोषण का मामला है.

लड़कियां सोचती हैं कि लड़का मासूम है, इसलिए खेलेखाए बालिगों की तरह हल्ला नहीं मचाएगा, पर जब हल्ला मचा तो सभी के मुगालते दूर हो गए.

इन और ऐसे कई मामलों से साफ हो जाता है कि नाबालिग लड़कों से सैक्स संबंध बनाना औरतों के लिए दिखने में तो आसान है, लेकिन पकड़े जाने पर खतरे की घंटी है, इसलिए उन्हें बालिग लड़कों से ही सैक्स संबंध बनाने चाहिए, जिस से वे पास्को ऐक्ट और कानून के फंदे से बची रहें, नहीं तो मजा सजा में बदलना तय है.

अच्छी बात यह है कि नाबालिग लड़कियों की तरह अदालतें और कानून नाबालिग लड़कों के शोषण के मामलों में अलर्ट हो चले हैं और दोनों को बराबरी का दर्जा देते हुए फैसले सुनाने लगे हैं.

शिवानी की मर्डर मिस्ट्री : कौन था कातिल

विश्वप्रसिद्ध ताज नगरी आगरा के थाना शाहगंज क्षेत्र के मोहल्ला पथौली निवासी पुष्कर बघेल की शादी अप्रैल, 2016 में आगरा के सिकंदरा की सुंदरवन कालोनी निवासी गंगासिंह की 21 वर्षीय बेटी शिवानी के साथ हुई थी. पुष्कर दिल्ली के एक प्रसिद्ध मंदिर के सामने बैठ कर मेहंदी लगाने का काम कर के परिवार की गुजरबसर करता था. बीचबीच में उस का आगरा स्थित अपने घर भी आनाजाना लगा रहता था. पुष्कर के परिवार में कुल 3 ही सदस्य थे. खुद पुष्कर उस की पत्नी शिवानी और मां गायत्री.

20 नवंबर, 2018 की बात है. सुबह जब पुष्कर और उस की मां सो कर उठे तो शिवानी घर में दिखाई नहीं दी. उन्होंने सोचा पड़ोस में कहीं गई होगी. लेकिन इंतजार करने के बाद भी जब शिवानी वापस नहीं आई तब उस की तलाश शुरू हुई. जब वह कहीं नहीं मिली तो पुष्कर ने अपने ससुर गंगासिंह को फोन कर के शिवानी के बारे में पूछा. यह सुन कर गंगासिंह चौंके. क्योंकि वह मायके नहीं आई थी. उन्होंने पुष्कर से पूछा, ‘‘क्या तुम्हारा उस के साथ कोई झगड़ा हुआ था?’’

इस पर पुष्कर ने कहा, ‘‘शिवानी के साथ कोई झगड़ा नहीं हुआ. सुबह जब हम लोग जागे, शिवानी घर में नहीं थी. इधरउधर तलाश किया, जब वह कहीं नहीं मिली तब फोन कर आप से पूछा.’’

बाद में पुष्कर को पता चला कि शिवानी घर से 25 हजार की नकदी व आभूषण ले कर लापता हुई है. ससुर गंगासिंह ने जब कहा कि शिवानी मायके नहीं आई है तो पुष्कर परेशान हो गया. कुछ ही देर में मोहल्ले भर में शिवानी के गायब होने की खबर फैल गई तो पासपड़ोस के लोग पुष्कर के घर के सामने जमा हो गए.

उस ने पड़ोसियों को शिवानी द्वारा घर से नकदी व आभूषण ले जाने की बात बताई. इस पर सभी ने पुष्कर को थाने में रिपोर्ट दर्ज कराने की सलाह दी.

जब शिवानी का कहीं कोई सुराग नहीं मिला, तब पुष्कर ने 23 नवंबर को थाना शाहगंज में शिवानी की गुमशुदगी दर्ज कराई. पुष्कर ने पुलिस को बताया कि शिवानी अपने किसी प्रेमी से मोबाइल पर बात करती रहती थी.

दूसरी तरफ शिवानी के पिता गंगासिंह भी थाना पंथौली पहुंचे. उन्होंने थाने में अपनी बेटी शिवानी के साथ ससुराल वालों द्वारा मारपीट व दहेज उत्पीड़न की तहरीर दी. गंगासिंह ने आरोप लगाया कि ससुराल वाले दहेज में 2 लाख रुपए की मांग करते थे.

कई बार शिवानी के साथ मारपीट भी कर चुके थे. उन्होंने ही उन की बेटी शिवानी को गायब किया है. साथ ही तहरीर में शिवानी के साथ किसी अनहोनी की आशंका भी जताई गई.

गंगासिंह ने पुष्कर और उस के घर वालों के खिलाफ थाने में दहेज उत्पीड़न व मारपीट का केस दर्ज करा दिया. जबकि पुष्कर इस बात का शक जता रहा था कि शिवानी जेवर, नकदी ले कर किसी के साथ भाग गई है.

पुलिस ने शिवानी के रहस्यमय तरीके से गायब होने की जांच शुरू कर दी. थाना शाहगंज और महिला थाने की 2 टीमें शिवानी को आगरा के अछनेरा, कागारौल, मथुरा, राजस्थान के भरतपुर, मध्य प्रदेश के मुरैना, ग्वालियर में तलाशने लगीं.

लेकिन शिवानी का कहीं कोई पता नहीं चल सका. काफी मशक्कत के बाद भी शिवानी के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. कई महीनों तक पुलिस शिवानी की तलाश में जुटी रही फिर भी उसे कुछ हासिल नहीं हुआ.

शिवानी का लापता होना पुलिस के लिए सिरदर्द बन गया था. लेकिन पुलिस के अधिकारी इसे एक बड़ा चैलेंज मान रहे थे. पुलिस अधिकारी हर नजरिए से शिवानी की तलाश में जुटे थे, लेकिन शिवानी का कोई पता नहीं चल पा रहा था.

यहां तक कि सर्विलांस की टीम भी पूरी तरह से नाकाम साबित हुई. कई पुलिसकर्मी मान चुके थे कि अब शिवानी का पता नहीं लग पाएगा. सभी का अनुमान था कि शिवानी अपने किसी प्रेमी के साथ भाग गई है और उसी के साथ कहीं रह रही होगी.

उधर गंगासिंह को इंतजार करतेकरते 6 महीने बीत चुके थे, पर अभी तक न तो बेटी लौट कर आई थी और न ही उस का कोई सुराग मिला था. ज्योंज्यों समय बीतता जा रहा रहा था, त्योंत्यों गंगासिंह की चिंता बढ़ रही थी. शिवानी के साथ कोई अप्रिय घटना तो नहीं हो गई, इस तरह के विचार गंगासिंह के मस्तिष्क में घूमने लगे थे.

उन्होंने बेटी की खोज में रातदिन एक कर दिया था. रिश्तेनाते में भी जहां भी संभव हो सकता था, फोन कर के उन सभी से पूछा. उधर पुलिस ने इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया था. लेकिन गंगासिंह ने हिम्मत नहीं हारी.

इस घटना ने गंगासिंह को अंदर तक तोड़ दिया था. वह गहरे मानसिक तनाव से गुजर रहे थे. न्याय न मिलता देख गंगासिंह ने प्रयागराज हाईकोर्ट की शरण ली. जिस के फलस्वरूप जुलाई 2019 में हाईकोर्ट ने इस मामले में संज्ञान लिया. माननीय हाईकोर्ट ने आगरा के एसएसपी को कोर्ट में तलब कर के उन्हें शिवानी का पता लगाने के आदेश दिए. कोर्ट के आदेश के बाद पुलिस हरकत में आई.

एसएसपी बबलू कुमार ने इस मामले को खुद देखने का निर्णय लेते हुए शिवानी के पिता गंगासिंह को अपने औफिस में बुला कर उन से शिवानी के बारे में पूरी जानकारी हासिल की. इस के बाद बबलू कुमार ने एक टीम का गठन किया. इस टीम में सर्विलांस टीम के प्रभारी इंसपेक्टर नरेंद्र कुमार, इंसपेक्टर (सदर) कमलेश कुमार, इंसपेक्टर (ताजगंज) अनुज कुमार के साथ क्राइम ब्रांच को भी शामिल किया गया था.

पुलिस टीम ने अपनी जांच तेज कर दी. लापता शिवानी की तलाश में पुलिस की 2 टीमें उत्तर प्रदेश के अलावा राजस्थान के जिलों में भेजी गईं. पुलिस ने शिवानी के मायके से ले कर ससुराल पक्ष के लोगों से जानकारियां जुटाईं. फिर कई अहम साक्ष्यों की कडि़यों को जोड़ना शुरू किया. शिवानी के पति पुष्कर के मोबाइल फोन की घटना वाले दिन की लोकेशन भी चैक की.

करीब एक साल तक पुलिस शिवानी की तलाश में जुटी रही. जांच टीम ने शिवानी के लापता होने से पहले जिनजिन लोगों से उस की बात हुई थी, उन से गहनता से पूछताछ की. इस से शक की सुई शिवानी के पति पर जा कर रुकने लगी थी.

जांच के दौरान पुष्कर शक के दायरे में आया तो पुलिस ने उसे थाने बुला लिया और उस से हर दृष्टिकोण से पूछताछ की. लेकिन ऐसा कोई क्लू नहीं मिला, जिस से लगे कि शिवानी के गायब होने में उस का कोई हाथ था.

पुष्कर पर शक होने के बाद जब पुलिस ने उस से पूछताछ की तो वह कुछ नहीं बोला. तब पुलिस ने उस का नार्को टेस्ट कराने की तैयारी कर ली थी. नार्को टेस्ट कराने के डर से पुष्कर टूट गया और उस ने 2 नवंबर, 2019 को अपना जुर्म कुबूल कर लिया.

पुष्कर दिल्ली में रहता था, जबकि उस की पत्नी शिवानी आगरा के शाहगंज स्थित अपनी ससुराल में रहती थी. वह कभीकभी अपने गांव जाता रहता था. उस की गृहस्थी ठीक चल रही थी. लेकिन शादी के 2 साल बाद भी शिवानी मां नहीं बनी तो इस दंपति की चिंता बढ़ने लगी.

पुष्कर ने पत्नी का इलाज भी कराया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. इस के बाद बच्चा न होने पर दोनों एकदूसरे को दोषी ठहराने लगे. लिहाजा उन के बीच कलह शुरू हो गई. अब शिवानी अपना अधिकतर समय वाट्सऐप, फेसबुक पर बिताने लगी.

पुष्कर जब दिल्ली से घर आता तब भी वह उस का ध्यान नहीं रखती. वह पत्नी के बदले व्यवहार को वह महसूस कर रहा था. वह शिवानी से मोबाइल पर ज्यादा बात करने को मना करता था. लेकिन वह उस की बात को गंभीरता से नहीं लेती थी. इस बात को ले कर दोनों में अकसर झगड़ा भी होता था.

पुष्कर को शक था कि शिवानी के किसी और से नाजायज संबंध हैं. घर में कलह करने के अलावा शिवानी ने पुष्कर को तवज्जो देनी बंद कर दी तो पुष्कर ने परेशान हो कर शिवानी को ठिकाने लगाने का फैसला ले लिया. इस बारे में उस ने अपनी मां गायत्री और वृंदावन निवासी अपने ममेरे भाई वीरेंद्र के साथ योजना बनाई.

योजनानुसार 20 नवंबर, 2018 को उन दोनों ने योजना को अंजाम दे दिया. उस रात जब शिवानी सो रही थी. तभी पुष्कर शिवानी की छाती पर बैठ गया. मां गायत्री ने शिवानी के हाथ पकड़ लिए और पुष्कर ने वीरेंद्र के साथ मिल कर रस्सी से शिवानी का गला घोंट दिया. कुछ देर छटपटाने के बाद शिवानी की मौत हो गई.

हत्या के बाद पुष्कर की आंखों के सामने फांसी का फंदा झूलता नजर आने लगा. पुष्कर और वीरेंद्र सोचने लगे कि शिवानी की लाश से कैसे छुटकारा पाया जाए. काफी देर सोचने के बाद पुष्कर के दिमाग में एक योजना ने जन्म लिया.

पकड़े जाने से बचने के लिए रात में ही पुष्कर ने शिवानी की लाश एक तिरपाल में लपेटी. फिर लाश को अपनी मोटरसाइकिल पर रख कर घर से 10 किलोमीटर दूर ले गया. वीरेंद्र ने लाश पकड़ रखी थी.

वीरेंद्र और पुष्कर शिवानी की लाश को मलपुरा थाना क्षेत्र की पुलिया के पास लेदर पार्क के जंगल में ले गए, जहां दोनों ने प्लास्टिक के तिरपाल में लिपटी लाश पर मिट्टी का तेल छिड़क कर आग लगा दी. प्लास्टिक के तिरपाल के कारण शव काफी जल गया था.

इस घटना के 17 दिन बाद मलपुरा थाना पुलिस को 7 दिसंबर, 2018 को लेदर पार्क में एक महिला का अधजला शव पड़ा होने की सूचना मिली. पुलिस भी वहां पहुंच गई थी.

पुलिस ने लाश बरामद कर उस की शिनाख्त कराने की कोशिश की लेकिन शिनाख्त नहीं हो सकी. शिनाख्त न होने पर पुलिस ने जरूरी काररवाई कर वह पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. साथ ही उस की डीएनए जांच भी कराई.

पुष्कर द्वारा अपराध स्वीकार करने के बाद मलपुरा थाना पुलिस को भी बुलाया गया. पुष्कर पुलिस को उसी जगह ले कर गया, जहां उस ने शिवानी की लाश जलाई थी.

इस से पुलिस को यकीन हो गया कि हत्या उसी ने की है. मलपुरा थाना पुलिस ने 7 दिसंबर, 2018 को यह बात मान ली कि महिला की जो लाश बरामद की गई थी, वह शिवानी की ही थी.

उस की निशानदेही पर पुलिस ने घटनास्थल से हत्या के सुबूत के रूप में पुलिया के नीचे कीचड़ में दबे प्लास्टिक के तिरपाल के अधजले टुकड़े, जूड़े में लगाने वाली पिन, जले और अधजले अवशेष व पुष्कर के घर से वह मोटरसाइकिल बरामद कर ली, जिस पर लाश ले गए थे. डीएनए जांच के लिए पुलिस ने शिवानी के पिता का खून भी अस्पताल में सुरक्षित रखवा लिया.

पुलिस ने पुष्कर से पूछताछ के बाद उस की मां गायत्री को भी गिरफ्तार कर लिया लेकिन वीरेंद्र फरार हो चुका था. दोनों को कोर्ट में पेश किया गया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. जबकि हत्या में शामिल तीसरे आरोपी वीरेंद्र की गिरफ्तारी नहीं हो सकी थी.

पति और पत्नी के रिश्ते की नींव एकदूसरे के विश्वास पर टिकी होती है, कई बार यह नींव शक की वजह से कमजोर पड़ जाती है.

इस के चलते मजबूत से मजबूत रिश्ता भी टूटने की कगार पर पहुंच जाता है या टूट कर बिखर जाता है. शिवानी के मामले में भी यही हुआ. काश! पुष्कर पत्नी पर शक न करता तो शायद उस का परिवार बरबाद न होता.

अपमान और नफरत की साजिश

मंगेश रणसिंग रुक्मिणी को बहुत चाहता था. थोड़ी कोशिश के बाद न सिर्फ उस की यह मुराद पूरी हुई बल्कि रुक्मिणी से उस की शादी भी हो गई. शादी के कुछ दिनों बाद ही ऐसा क्या हुआ कि उस ने अपनी पत्नी रुक्मिणी के ऊपर पैट्रोल डाल कर आग लगा दी…

पहली मई, 2019 की बात है. दिन के करीब 12 बजे का समय था, जब महाराष्ट्र के अहमदनगर से

करीब 90 किलोमीटर दूर थाना पारनेर क्षेत्र के गांव निधोज में उस समय अफरातफरी मच गई, जब गांव के एक घर में अचानक आग के धुएं, लपटों और चीखनेचिल्लाने की आवाजें आनी शुरू हुईं. चीखनेचिल्लाने की आवाजें सुन कर गांव वाले एकत्र हो गए. लेकिन घर के मुख्यद्वार पर ताला लटका देख खुद को असहाय महसूस करने लगे.

दरवाजा टूटते ही घर के अंदर से 3 बच्चे, एक युवक और युवती निकल कर बाहर आए. बच्चों की हालत तो ठीक थी, लेकिन युवती और युवक की स्थिति काफी नाजुक थी. गांव वालों ने आननफानन में एंबुलेंस बुला कर उन्हें स्थानीय अस्पताल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने उन का प्राथमिक उपचार कर के उन्हें पुणे के सेसूनडाक अस्पताल के लिए रेफर कर दिया. साथ ही इस मामले की जानकारी पुलिस कंट्रोल रूम को भी दे दी.

पुलिस कंट्रोल रूम से मिली जानकारी पर थाना पारनेर के इंसपेक्टर बाजीराव पवार ने चार्जरूम में मौजूद ड्यूटी अफसर को बुला कर तुरंत इस मामले की डायरी बनवाई और बिना विलंब के एएसआई विजय कुमार बोत्रो, सिपाही भालचंद्र दिवटे, शिवाजी कावड़े और अन्ना वोरगे के साथ अस्पताल की तरफ रवाना हो गए. रास्ते में उन्होंने अपने मोबाइल फोन से मामले की जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी.

जिस समय पुलिस टीम अस्पताल परिसर में पहुंची, वहां काफी लोगों की भीड़ जमा हो चुकी थी. इन में अधिकतर उस युवक और युवती के सगेसंबंधी थे. पूछताछ में पता चला कि युवती का नाम रुक्मिणी है और युवक का नाम मंगेश रणसिंग लोहार. रुक्मिणी लगभग 70 प्रतिशत और मंगेश 30 प्रतिशत जल चुका था. अधिक जल जाने के कारण रुक्मिणी बयान देने की स्थिति में नहीं थी. मंगेश रणसिंग भी कुछ बताने की स्थिति में नहीं था.

इंसपेक्टर बाजीराव पवार ने मंगेश रणसिंग और अस्पताल के डाक्टरों से बात की. इस के बाद वह अस्पताल में पुलिस को छोड़ कर खुद घटनास्थल पर आ गए.

घटना रसोईघर के अंदर घटी थी, जहां उन्हें पैट्रोल की एक खाली बोतल मिली. रसोईघर में बिखरे खाना बनाने के सामान देख कर लग रहा था, जैसे घटना से पहले वहां पर हाथापाई हुई हो.

जांचपड़ताल के बाद उन्होंने आग से बच गए बच्चों से पूछताछ की. बच्चे सहमे हुए थे. उन से कोई खास बात पता नहीं चली. वह गांव वालों से पूछताछ कर थाने आ गए. मंगेश रणसिंग के भाई महेश रणसिंग को वह साथ ले आए थे. उसी के बयान के आधार पर रुक्मिणी के परिवार वालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर मामले की जांच शुरू कर दी.

इस मामले में रुक्मिणी का बयान महत्त्वपूर्ण था. लेकिन वह कोई बयान दर्ज करवा पाती, इस के पहले ही 5 मई, 2019 को उस की मृत्यु हो गई. मंगेश रणसिंग और उस के भाई महेश रणसिंग के बयानों के आधार पर यह मामला औनर किलिंग का निकला.

रुक्मिणी की मौत के बाद इस मामले ने तूल पकड़ लिया, जिसे ले कर सामाजिक कार्यकर्ता और आम लोग सड़क पर उतर आए और संबंधित लोगों की गिरफ्तारी की मांग करने लगे. इस से जांच टीम पर वरिष्ठ अधिकारियों का दबाव बढ़ गया. उसी दबाव में पुलिस टीम ने रुक्मिणी के चाचा घनश्याम सरोज और मामा सुरेंद्र भारतीय को गिरफ्तार कर लिया. रुक्मिणी के पिता मौका देख कर फरार हो गए थे.

पुलिस रुक्मिणी के मातापिता को गिरफ्तार कर पाती, इस से पहले ही इस केस ने एक नया मोड़ ले लिया. रुक्मिणी और मंगेश रणसिंग के साथ आग में फंसे बच्चों ने जब अपना मुंह खोला तो मामला एकदम अलग निकला. बच्चों के बयान के अनुसार पुलिस ने जब गहन जांच की तो मंगेश रणसिंग स्वयं ही उन के राडार पर आ गया.

मामला औनर किलिंग का न हो कर एक गहरी साजिश का था. इस साजिश के तहत मंगेश रणसिंग ने अपनी पत्नी की हत्या करने की योजना बनाई थी. पुलिस ने जब मंगेश से विस्तृत पूछताछ की तो वह टूट गया. उस ने अपना गुनाह स्वीकार करते हुए रुक्मिणी हत्याकांड की जो कहानी बताई, वह रुक्मिणी के परिवार वालों और रुक्मिणी के प्रति नफरत से भरी हुई थी.

23 वर्षीय मंगेश रणसिंग गांव निधोज का रहने वाला था. उस के पिता चंद्रकांत रणसिंग जाति से लोहार थे. वह एक कंस्ट्रक्शन साइट पर राजगीर का काम करते थे. घर की आर्थिक स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं थी. फिर भी गांव में उन की काफी इज्जत थी. सीधेसादे सरल स्वभाव के चंद्रकांत रणसिंग के परिवार में पत्नी कमला के अलावा एक बेटी प्रिया और 3 बेटे महेश रणसिंग और ओंकार रणसिंग थे.

मंगेश रणसिंग परिवार में सब से छोटा था. वह अपने दोस्तों के साथ सारा दिन आवारागर्दी करता था. गांव के स्कूल से वह किसी तरह 8वीं पास कर पाया था. बाद में वह पिता के काम में हाथ बंटाने लगा. धीरेधीरे उस में पिता के सारे गुण आ गए. राजगीर के काम में माहिर हो जाने के बाद उसे पुणे की एक कंस्ट्रक्शन साइट पर सुपरवाइजर की नौकरी मिल गई.

वैसे तो मंगेश को पुणे से गांव आनाजाना बहुत कम हो पाता था, लेकिन जब भी वह अपने गांव आता था तो गांव में अपने आवारा दोस्तों के साथ दिन भर इधरउधर घूमता और सार्वजनिक जगहों पर बैठ कर गप्पें मारता. इसी के चलते जब उस ने रुक्मिणी को देखा तो वह उसे देखता ही रह गया.

20 वर्षीय रुक्मिणी और मंगेश का एक ही गांव था. उस का परिवार भी उसी कंस्ट्रक्शन साइट पर काम करता था, जिस पर मंगेश अपने पिता के साथ काम करता था. इस से मंगेश रणसिंग का रुक्मिणी के करीब आना आसान हो गया था. रुक्मिणी का परिवार उत्तर प्रदेश का रहने वाला था. उस के पिता रामा रामफल भारतीय जाति से पासी थे. सालों पहले वह रोजीरोटी की तलाश में गांव से अहमदनगर आ गए थे. बाद में वह अहमदनगर के गांव निधोज में बस गए थे. यहीं पर उन्हें एक कंस्ट्रक्शन साइट पर काम मिल गया था.

बाद में उन्होंने अपनी पत्नी सरोज और साले सुरेंद्र को भी वहीं बुला लिया था. परिवार में रामा रामफल भारतीय के अलावा पत्नी, 2 बेटियां रुक्मिणी व 5 वर्षीय करिश्मा थीं.

अक्खड़ स्वभाव की रुक्मिणी जितनी सुंदर थी, उतनी ही शोख और चंचल भी थी. मंगेश रणसिंग को वह अच्छी लगी तो वह उस से नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश करने लगा.

मंगेश रणसिंग पहली ही नजर में रुक्मिणी का दीवाना हो गया था. वह रुक्मिणी को अपने जीवनसाथी के रूप में देखने लगा था. उस की यह मुराद पूरी भी हुई.

कंस्ट्रक्शन साइट पर रुक्मिणी के परिवार वालों का काम करने की वजह से मंगेश रणसिंग की राह काफी आसान हो गई थी. वह पहले तो 1-2 बार रुक्मिणी के परिवार वालों के बहाने उस के घर गया. इस के बाद वह मौका देख कर अकेले ही रुक्मिणी के घर आनेजाने लगा.

मंगेश रुक्मिणी से मीठीमीठी बातें कर उसे अपनी तरफ आकर्षित करने की कोशिश करता. साथ ही उसे पैसे भी देता और उस के लिए बाजार से उस की जरूरत का सामान भी लाता. जब भी वह रुक्मिणी से मिलने उस के घर जाता, उस के लिए कुछ न कुछ ले कर जाता. साथ ही उस के भाई और बहन के लिए भी खानेपीने की चीजें ले जाता था.

मांबाप की जानपहचान और उस का व्यवहार देख कर रुक्मिणी भी मंगेश की इज्जत करती थी. रुक्मिणी उस के लिए चायनाश्ता करा कर ही भेजती थी. मंगेश रणसिंह तो रुक्मिणी का दीवाना था ही, रुक्मिणी भी इतनी नादान नहीं थी. 20 वर्षीय रुक्मिणी सब कुछ समझती थी.

वह भी धीरेधीरे मंगेश रणसिंग की ओर खिंचने लगी थी. फिर एक समय ऐसा भी आया कि वह अपने आप को संभाल नहीं पाई और परकटे पंछी की तरह मंगेश की बांहों में आ गिरी.

अब दोनों की स्थिति ऐसी हो गई थी कि एकदूसरे के लिए बेचैन रहने लगे. उन के प्यार की ज्वाला जब तेज हुई तो उस की लपट उन के घर वालों तक ही नहीं बल्कि अन्य लोगों तक भी जा पहुंची.

मामला नाजुक था, दोनों परिवारों ने उन्हें काफी समझाने की कोशिश की, लेकिन दोनों शादी करने के अपने फैसले पर अड़े रहे.

आखिरकार मंगेश रणसिंग के परिवार वालों ने उस की जिद की वजह से अपनी सहमति दे दी. लेकिन रुक्मिणी के पिता को यह रिश्ता मंजूर नहीं था. फिर भी वह पत्नी के समझाने पर राजी हो गए. अलगअलग जाति के होने के कारण दोनों की शादी में उन का कोई नातेरिश्तेदार शामिल नहीं हुआ.

एक सादे समारोह में दोनों की शादी हो गई. शादी के कुछ दिनों तक तो सब ठीकठाक चलता रहा, लेकिन बाद में दोनों के रिश्तों में दरार आने लगी. दोनों के प्यार का बुखार उतरने लगा था. दोनों छोटीछोटी बातों को ले कर आपस में उलझ जाते थे. अंतत: नतीजा मारपीट तक पहुंच गया.

30 अप्रैल, 2019 को मंगेश रणसिंग ने किसी बात को ले कर रुक्मिणी को बुरी तरह पीट दिया था. रुक्मिणी ने इस की शिकायत मां निर्मला से कर दी, जिस की वजह से रुक्मिणी की मां ने उसे अपने घर बुला लिया. उस समय रुक्मिणी 2 महीने के पेट से थी. इस के बाद जब मंगेश रणसिंग रुक्मिणी को लाने के लिए उस के घर गया तो रुक्मिणी के परिवार वालों ने उसे आड़ेहाथों लिया. इतना ही नहीं, उन्होंने उसे धक्के मार कर घर से निकाल दिया.

रुक्मिणी के परिवार वालों के इस व्यवहार से मंगेश रणसिंग नाराज हो गया. उस ने इस अपमान के लिए रुक्मिणी के घर वालों को अंजाम भुगतने की धमकी दे डाली.

बदमाश प्रवृत्ति के मंगेश रणसिंग की इस धमकी से रुक्मिणी के परिवार वाले डर गए, जिस की वजह से वे रुक्मिणी को न तो घर में अकेला छोड़ते थे और न ही बाहर आनेजाने देते थे.  रुक्मिणी का परिवार सुबह काम पर जाता तो रुक्मिणी को उस के छोटे भाइयों और छोटी बहन के साथ घर के अंदर कर बाहर से दरवाजे पर ताला डाल देते थे, जिस से मंगेश उन की गैरमौजूदगी में वहां आ कर रुक्मिणी को परेशान न कर सके.

इस सब से मंगेश को रुक्मिणी और उस के परिवार वालों से और ज्यादा नफरत हो गई. उस की यही नफरत एक क्रूर फैसले में बदल गई. उस ने रुक्मिणी की हत्या कर पूरे परिवार को फंसाने की साजिश रच डाली.

घटना के दिन जब रुक्मिणी के परिवार वाले अपनेअपने काम पर निकल गए तो अपनी योजना के अनुसार मंगेश पहले पैट्रोल पंप पर जा कर इस बहाने से एक बोतल पैट्रोल खरीद लाया कि रास्ते में उस के दोस्त की मोटरसाइकिल बंद हो गई है. यही बात उस ने रास्ते में मिले अपने दोस्त सलमान से भी कही.

फिर वह रुक्मिणी के घर पहुंच गया. उस समय रुक्मिणी रसोईघर में अपने भाई और बहन के लिए खाना बनाने की तैयारी कर रही थी. घर के दरवाजे पर पहुंच कर मंगेश रणसिंग जोरजोर दरवाजा पीटते हुए रुक्मिणी का नाम ले कर चिल्लाने लगा. वह ताले की चाबी मांग रहा था.

दरवाजे पर आए मंगेश से न तो रुक्मिणी ने कोई बात की और न दरवाजे की चाबी दी. वह उस की तरफ कोई ध्यान न देते हुए खाना बनाने में लगी रही.

रुक्मिणी के इस व्यवहार से मंगेश रणसिंग का पारा और चढ़ गया. वह किसी तरह घर की दीवार फांद कर रुक्मिणी के पास पहुंच गया और उस से मारपीट करने लगा. बाद में उस ने अपने साथ लाई बोतल का सारा पैट्रोल  रुक्मिणी के ऊपर डाल कर उसे आग के हवाले कर दिया.

मंगेश की इस हरकत से रुक्मिणी के भाईबहन बुरी तरह डर गए थे. वे भाग कर रसोई के एक कोने में छिप गए. जब आग की लपटें भड़कीं तो रुक्मिणी दौड़ कर मंगेश से कुछ इस तरह लिपट गई कि मंगेश को उस के चंगुल से छूटना मुश्किल हो गया. इसीलिए वह भी रुक्मिणी के साथ 30 प्रतिशत जल गया.

इस के बावजूद भी मंगेश का शातिरपन कम नहीं हुआ. अस्पताल में उस ने रुक्मिणी के परिवार वालों के विरुद्ध बयान दे दिया. उस का कहना था कि उस की इस हालत के लिए उस के ससुराल वाले जिम्मेदार हैं.

उस की शादी लवमैरिज और अंतरजातीय हुई थी. यह बात रुक्मिणी के घर वालों को पसंद नहीं थी, इसलिए उन्होंने उसे घर बुला कर पहले उसे मारापीटा और जब रुक्मिणी उसे बचाने के लिए आई तो उन्होंने दोनों पर पैट्रोल डाल कर आग लगा दी.

अपमान और नफरत की आग में जलते मंगेश रणसिंग की योजना रुक्मिणी के परिवार वालों के प्रति काफी हद तक कामयाब हो गई थी. लेकिन रुक्मिणी के भाई और उस के दोस्त सलमान के बयान से मामला उलटा पड़ गया.

अब यह केस औनर किलिंग का न हो कर पति और पत्नी के कलह का था, जिस की जांच पुलिस ने गहराई से कर मंगेश रणसिंग को अपनी हिरासत में ले लिया.

उस से विस्तृत पूछताछ करने के बाद उस के विरुद्ध भादंवि की धारा 302, 307, 34 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. कानूनी प्रक्रिया पूरी करने के बाद रुक्मिणी के परिवार वालों को रिहा कर दिया गया.

अवैद्य संबंध ने ली जान

3 दिसंबर, 2016 को सुबह करीब साढ़े 10 बजे दक्षिणपूर्वी दिल्ली के अमर कालोनी थाने के ड्यूटी अफसर को पुलिस कंट्रोलरूम से सूचना मिली कि कैप्टन गौड़ मार्ग पर नाले के किनारे बैग में किसी की लाश पड़ी है. उस दिन थानाप्रभारी उदयवीर सिंह किसी काम से बाहर गए हुए थे. उन की गैरमौजूदगी में थाने का चार्ज इंसपेक्टर राजेश मौर्य संभाले हुए थे. बैग में लाश मिलने की सूचना मिलते ही इंसपेक्टर राजेश मौर्य एसआई मनोज कुमार, हैडकांस्टेबल सुरेंद्र सिंह और महावीर सिंह को ले कर सूचना में बताए पते की तरफ निकल गए.

कैप्टन गौड़ मार्ग पर स्थित वह नाला थाने से करीब 2 किलोमीटर दूर था, इसलिए पुलिस टीम करीब 10 मिनट में ही वहां पहुंच गई. वहां पहले से काफी लोग खड़े थे. भीड़ को देख कर उधर से गुजरने वाले वाहन चालक भी वहां रुकरुक कर जा रहे थे. सभी लोग नाले के किनारे झाड़ी के पास पड़े उस काले रंग के ट्रैवल बैग को देख रहे थे. उस बैग का फ्लैप खुला हुआ था, जिस से उस में रखी लाश साफ दिखाई दे रही थी.

नोटबंदी के बाद जिस तरह आए दिन कूड़े के ढेर या अन्य जगहों पर करोड़ों रुपए मिलने के समाचार आ रहे हैं, उसी तरह इस बड़े बैग को भी नाले के किनारे किसी व्यक्ति ने देखा होगा तो पैसे मिलने की संभावना को देखते हुए उस ने इस बैग का फ्लैप खोल कर देखा होगा. लाश देख कर उस के होश फाख्ता हो गए होंगे. फिर वह बैग को ऐसे ही खुला छोड़ कर भाग गया होगा. लेकिन यह पता नहीं लग पा रहा था कि उस में रखी लाश किसी आदमी की है या किसी महिला की.

इंसपेक्टर राजेश मौर्य ने उस बैग का ऊपरी मुआयना कर के सूचना डीसीपी रोमिल बानिया, एसीपी सतीश केन, थानाप्रभारी उदयवीर सिंह के अलावा क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को दे दी. वहां मौजूद सभी लोग आपस में यही बातें कर रहे थे कि पता नहीं इस बैग में किस की लाश है. क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम के आने के बाद बैग से जब लाश निकाली गई तो सभी हैरान रह गए.

किसी महिला की लाश का वह कूल्हे से ऊपर का हिस्सा था. बाकी नीचे का हिस्सा वहां नहीं था. वह औरेंज कलर की नाइटी पहने हुए थी. उस के सिर पर किसी भारी चीज से वार करने की चोट थी. उस की कलाई पर कलावा बंधा था. इस के अलावा हाथ की एक अंगुली में अंगूठी थी और गले में पीले रंग का धागा पड़ा हुआ था. महिला की उम्र यही कोई 40-45 साल थी.

बैग से या उस महिला की लाश से कोई ऐसी चीज नहीं मिली जिस से उस की शिनाख्त हो सके. वहां जितने भी लोग खड़े थे, उन में से कोई भी उस की शिनाख्त नहीं कर सका. इस से यही अनुमान लगाया गया कि शायद यह किसी दूसरे इलाके की होगी. पुलिस ने मृतका का पेट के नीचे का हिस्सा आसपास की झाडि़यों में तलाशा पर वह वहां नहीं मिला.

उसी दौरान डीसीपी रोमिल बानिया, एडिशनल डीसीपी राजीव रंजन, एम. हर्षवर्धन, एसीपी सतीश केन आदि भी वहां पहुंच गए. उन्होंने भी लाश का मुआयना किया और इंसपेक्टर राजेश मौर्य को जरूरी दिशानिर्देश दे कर चले गए. पुलिस ने जरूरी काररवाई करने के बाद लाश के आधे हिस्से को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान की मोर्चरी में रखवा दिया.

पुलिस ने अज्ञात हत्यारों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर मृत महिला की शिनाख्त की काररवाई शुरू कर दी. पुलिस ने महिला की लाश के फोटो लगे 4 हजार पैंफ्लेट छपवा कर इलाके में सार्वजनिक स्थानों पर चिपकवा दिए.

इतना ही नहीं, समस्त थानों में सूचना भेज कर यह भी पता लगाने की कोशिश की कि इस हुलिया से मिलतीजुलती कोई महिला लापता तो नहीं है. थानाप्रभारी उदयवीर सिंह जो बाहर गए हुए थे, लाश मिलने की खबर पा कर शाम तक थाने लौट आए. अगले दिन भी पुलिस टीम हर संभावित तरीकों से पता लगाने लगी कि आखिर यह महिला है कौन. पर कहीं से भी उस के बारे में कुछ भी पता नहीं लगा.

4 दिसंबर, 2016 को दोपहर 12 बजे पुलिस कंट्रोलरूम से थाना अमर कालोनी में सूचना मिली कि श्रीनिवासपुरी के क्यू ब्लौक में पास भगेल मंदिर के पास छोटे नाले में किसी महिला का पेट से नीचे का भाग पड़ा हुआ है. थानाप्रभारी उदयवीर सिंह और इंसपेक्टर राजेश मौर्य 15-20 मिनट में ही भगेल मंदिर के पास पहुंच गए.

क्योंकि एक दिन पहले उन्होंने जिस महिला की लाश बरामद की थी, उस का भी पेट से नीचे का हिस्सा गायब था. पुलिस जब भगेल मदिर के पास पहुंची तो वास्तव में वहां किसी महिला के पेट के नीचे का हिस्सा नाले में पड़ा हुआ था. उस के एक पैर पर मांस नहीं था. शायद उसे कुत्तों ने खा लिया होगा.

नाले के पास एक काले रंग का बैग पड़ा हुआ था. उस पर खून के निशान से लगा कि लाश का वह हिस्सा उसी बैग में रख कर लाया गया होगा. जिस जगह से पुलिस ने एक दिन पहले महिला का धड़ बरामद किया था, यह जगह वहां से कोई आधा किलोमीटर दूर थी. जरूरी काररवाई कर के उसे भी पुलिस ने एम्स की मोर्चरी में रखवा दिया.

पुलिस ने नाले के पास से महिला का जो धड़ बरामद किया था, यह हिस्सा उसी महिला का है या नहीं, यह बात डाक्टरी जांच के बाद ही पता लग सकती थी.

बहरहाल, अब पुलिस का पहला मकसद मृतका की शिनाख्त करवाना था. पुलिस के पास लाश के जो फोटो थे, उन्हीं के माध्यम से वह उस की शिनाख्त में जुट गई. बीट का हरेक पुलिसकर्मी अपनेअपने इलाके के लोगों को वह फोटो दिखा कर उस के बारे में पूछने लगा. हैडकांस्टेबल सुरेंद्र भी इसी काम में लगे हुए थे. फोटो देख कर उन्हें अमर कालोनी क्षेत्र के ही एक व्यक्ति ने बताया कि यह महिला तो अन्नू की तरह लग रही है.

‘‘अन्नू…यह अन्नू कौन थी और कहां रहती थी?’’ हैडकांस्टेबल सुरेंद्र ने उस से पूछा.

‘‘सर, यह दशघरा गढ़ी गांव में ही कहीं रहती थी. पर मैं इस के एक रिश्तेदार प्रवीण को जानता हूं जो सपना सिनेमा के पास साउथ इंडियन व्यंजन की रेहड़ी लगाता है.’’ वह व्यक्ति बोला.

सुरेंद्र को यह सुन कर खुशी हुई कि शायद यहां से कुछ बात बन सकती है. वह उस व्यक्ति को ले कर थाना अमर कालोनी क्षेत्र में स्थित सपना सिनेमा के पास ले गए. प्रवीण वहीं मिल गया. हैडकांस्टेबल सुरेंद्र ने प्रवीण को महिला की लाश का फोटो दिखाया तो उस ने उसे पहचानते हुए कहा कि यह अनारकली उर्फ अन्नू हैं. रिश्ते में यह उस की मौसेरी सास (सास की छोटी बहन) हैं.

सुरेंद्र ने यह जानकारी थानाप्रभारी उदयवीर सिंह और इंसपेक्टर राजेश मौर्य को दी. दोनों पुलिस अधिकारी प्रवीण के पास ही पहुंच गए. पुलिस प्रवीण को ले कर दशघरा गढ़ी स्थित अनारकली के कमरे पर पहुंची. पर उस का कमरा बाहर से बंद मिला. करीब 45 कमरों वाला वह मकान श्रीराम नाम के एक शख्स का था. पुलिस ने श्रीराम को बुला कर बात की तो उस ने बताया कि अनारकली एक मद्रासन थी जो करीब 3 महीने पहले उस के यहां आई थी.

इस के साथ बलराम नाम का एक बंदा और रहता था. यह सन 2010 में भी इसी मकान में 6-7 महीने रह कर गई थी. उस समय भी बलराम इस के साथ रहता था. जिस कमरे में अनारकली रहती थी, उस के आसपास के कमरों में रहने वाले लोगों ने बताया कि यह 2 दिसंबर से दिखाई नहीं दे रही.

वहां खड़ेखड़े पुलिस को अनारकली के कमरे से बदबू आती महसूस हुई. पुलिस ने भगेल मंदिर के पास से महिला के पेट से नीचे वाला जो हिस्सा बरामद किया था, उस की अभी डाक्टरी रिपोर्ट नहीं आई थी इसलिए कहा नहीं जा सकता था कि वह उसी की लाश का हिस्सा है. थानाप्रभारी को लगा कि कहीं अनारकली की लाश का आधा भाग इस कमरे में तो नहीं रखा है, इसलिए उन्होंने मकान मालिक और अन्य लोगों के सामने कमरे का ताला तोड़ कर कमरे में खोजबीन की तो वहां सूखी हुई मछलियां मिलीं. वह बदबू उन्हीं से आ रही थी.

कमरे की जांच के दौरान दीवार पर खून के कुछ छींटे भी दिखे. वे छींटे मानव खून के थे या नहीं, यह जांच के बाद ही पता चल सकता था. लिहाजा उन्होंने फोरैंसिक विभाग को फोन कर दिया. डा. नरेश कुमार के नेतृत्व में एक फोरैंसिक टीम वहां आ गई. टीम को दीवार पर 6 जगह खून के छींटे मिले. इस के अलावा एलपीजी के छोटे सिलेंडर पर भी खून के छींटे मिले. कमरे में 3 चाकू मिले. फोरैंसिक टीम ने कमरे से सबूत इकट्ठे कर लिए.

अब तक की जांच में मृतका के साथ रहने वाले बलराम पर ही शक जा रहा था, क्योंकि वह गायब था. पुलिस टीम उसे ढूंढने में जुट गई. इस काम में पुलिस ने अपने मुखबिरों को भी लगा दिया. प्रवीण ने पुलिस को बताया था कि मृतका अनारकली का एक बेटा भी है जो चेन्नै में रहता है. पुलिस ने प्रवीण से उस का, अनारकली और उस के बेटे का फोन नंबर ले लिया. तीनों के फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई.

इस के अलावा इन तीनों नंबरों के द्वारा जिन नंबरों से बात होती थी, उन की भी जांच की. इस जांच में अनारकली के फोन नंबर की लोकेशन उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले की आ रही थी.

अनारकली के इस नंबर से जिनजिन नंबरों से संपर्क हुआ था, उन सब को जांच के दायरे में लिया गया. इन में से एक नंबर दिल्ली के संगम विहार इलाके का मिला. संगम विहार के जिस व्यक्ति का यह नंबर था, वह एक औटो ड्राइवर था. पुलिस उस तक पहुंच गई. उस से पूछताछ की गई तो वह पुलिस को बेकसूर लगा.

उधर पुलिस की बलराम को ढूंढने की कोशिश जारी थी. फिर 7 दिसंबर, 2016 को पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर बलराम को दिल्ली के नेहरू प्लेस मैट्रो स्टेशन के पास से गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने स्वीकार कर लिया कि अनारकली उस के साथ 20 साल से लिवइन रिलेशन में रहती थी. पर उस ने हालात ऐसे खड़े कर दिए थे कि उसे उस की हत्या के लिए मजबूर होना पड़ा. बलराम ने उस की हत्या की जो कहानी बताई, चौंकाने वाली निकली.

अनारकली उर्फ अन्नू मूलरूप से चेन्नै की रहने वाली थी. उस के मातापिता बेहद गरीब थे, इस वजह से वह नहीं पढ़ सकी. उस के मोहल्ले की कई लड़कियां दिल्ली में नौकरी या फिर दूसरे कामधंधे करती थीं. अनारकली जब करीब 16 साल की हुई तो उस के पिता ने उसे काम करने के लिए मोहल्ले की लड़कियों के साथ दिल्ली भेज दिया.

वह कोई पढ़ीलिखी तो थी नहीं, जिस से उस की कहीं नौकरी लग जाती. कुछ कोठियों में उसे झाड़ूपोंछा आदि का काम जरूर मिल गया. बाद में उसे और कोठियों में भी काम मिलते चले गए. कई जगह काम करने से उसे महीने की अच्छी कमाई होने लगी. उन पैसों में से वह कुछ पैसे अपने मांबाप के पास भेज देती थी.

दिल्ली में साल भर काम करने के बाद अनारकली काफी चालाक हो गई थी. अब वह पहले वाली सीधीसादी अन्नू नहीं रह गई थी. उसी दौरान 17 साल की अनारकली उर्फ अन्नू की मुलाकात दुरक्कन नाम के युवक से हुई जो दिल्ली में एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता था. दुरक्कन 20-22 साल का युवक था. वह भी चेन्नै का रहने वाला था, इसलिए दोनों के बीच जल्द ही दोस्ती हो गई जो बाद में प्यार में बदल गई. अपने कामधंधे से निपटने के बाद दोनों मिलतेमिलाते रहते थे.

अनारकली अपने मांबाप से भले ही सैकड़ों किलोमीटर दूर रह कर अपने प्रेमी के साथ मौजमस्ती कर रही थी, इस के बावजूद भी इस की जानकारी उस के घर वालों को हो गई थी. इस बारे में जब उन्होंने अनारकली से बात की तो उस ने साफसाफ बता दिया कि वह दुरक्कन से शादी करना चाहती है. घर वालों ने उस की बात मानते हुए दुरक्कन से उस की शादी कर दी. इस के बाद वह पति के साथ दिल्ली में रहने लगी.

अनारकली और उस का पति दोनों कमा रहे थे, इसलिए उन की घरगृहस्थी बड़े आराम से चल रही थी. इसी दौरान वह एक बेटे की मां बन गई, जिस का नाम श्रीनिवासन रखा. प्यार से सभी उसे सनी कहते थे. शादी के 7-8 साल बाद दुरक्कन पत्नी को अकेला छोड़ कर कहीं चला गया. अनारकली ने अपने स्तर से जब पति के बारे में पता लगाया तो जानकारी मिली कि उस का किसी और लड़की से चक्कर चल रहा था. वह उस लड़की को ले कर चेन्नै भाग गया है. पति के इस विश्वासघात से अनारकली को बड़ा दुख हुआ.

वह दिल्ली में बेटे सनी के साथ अकेली थी. उस ने सनी को अपने मायके भेज दिया ताकि वह अपने नानानानी की देखरेख में पढ़ाई पूरी कर सके. अनारकली की उम्र उस समय करीब 24-25 साल थी. यह उम्र अकेले काटे से नहीं कटती. पति उसे धोखा दे कर चला गया था. उसी दौरान उस की मुलाकात बलराम नाम के व्यक्ति से हो गई.

बलराम प्लंबर था. वह मूलरूप से उड़ीसा के केंद्रपाड़ा जिले का रहने वाला था. वह शादीशुदा था, उस की पत्नी उड़ीसा में ही रहती थी. धीरेधीरे दोनों इतने नजदीक आ गए कि उन्होंने साथसाथ रहने का फैसला कर लिया. वे दोनों दक्षिणपूर्वी दिल्ली के थाना अमर कालोनी के गांव दशघरा गढ़ी में लिवइन रिलेशन में रहने लगे.

अनारकली ने घरों में काम करना बंद कर दिया. वह ईस्ट औफ कैलाश में स्थित नर्सरी के पास फुटपाथ पर चाय की दुकान चलाने लगी. बलराम का साथ मिलने पर अनारकली के जीवन में खुशहाली लौट आई थी. करीब 20 साल तक दोनों लिवइन रिलेशन में रहते रहे.

इस बीच बलराम समयसमय पर उड़ीसा स्थित अपनी पत्नी और बच्चों से मिलने चला जाता था. उस के 2 बेटियां और एक बेटा था. बीवी और जवान बच्चों को इस बात की भनक तक नहीं लग सकी थी कि वह दिल्ली में किसी औरत के साथ रह रहा है.

करीब डेढ़ महीने पहले बलराम उड़ीसा से दिल्ली लौटा तो अनारकली का व्यवहार कुछ बदला हुआ था. हालांकि अनारकली का सारा खर्च वह खुद उठाता था, इस के बावजूद भी वह उस के साथ रूखा व्यवहार कर रही थी. इतना ही नहीं, वह बिस्तर पर भी उसे अपने पास नहीं फटकने देती थी. बलराम को शक हो गया कि जरूर इस के किसी और से संबंध हो गए हैं. वह पता लगाने में जुट गया कि ऐसा कौन आदमी है.

बलराम ने जल्द ही इस बारे में जानकारी जुटा ली. उसे पता चला कि अनारकली के एक नहीं बल्कि 2 औटो ड्राइवरों से नाजायज संबंध हैं. यह जानकारी मिलते ही बलराम के तनबदन में आग सी लग गई. उस का मन तो कर रहा था कि वह अनारकली को अभी ऐसी सजा दे, जिसे वह जिंदगी भर न भूल सके. पर वह कोई बात सोच कर अपना गुस्सा पी गया.

उस ने शाम को अनारकली से उस के बदले व्यवहार के बारे में बात की तो वह उस के साथ लड़ने को आमादा हो गई. दोनों में कुछ देर बहस हुई और मामला शांत हो गया.

एक दिन बलराम दोपहर के समय कमरे पर पहुंचा तो दरवाजा अंदर से बंद मिला. किवाड़ के बीच में जो दरार थी, उस पर आंख गड़ा कर देखा तो कमरे के अंदर जल रही ट्यूबलाइट की रोशनी में सारा नजारा दिख गया. अनारकली एक व्यक्ति के साथ आपत्तिजनक स्थिति में थी. इस के बाद तो बलराम का शक विश्वास में बदल गया.

बलराम ने दरवाजा खटखटाने के बजाय अनारकली को फोन लगाया तो उस ने स्क्रीन पर नंबर देखने के बाद अपना फोन स्विच्ड औफ कर दिया. इस के अलावा उस ने कमरे में जल रही ट्यूबलाइट भी बंद कर दी.

तब बलराम ने दरवाजा खटखटाया. करीब 4-5 मिनट बाद अनारकली ने दरवाजा खोला तो सामने बलराम को देख कर उस के होश उड़ गए. उसी दौरान कमरे में अनारकली के साथ जो युवक था, वह वहां से भाग गया. तब बलराम ने उस से उस युवक के बारे में पूछा तो अनारकली बोली, ‘‘कोई भी हो, तुम्हें उस से क्या मतलब?’’

‘‘मेरे होते हुए तुम किसी और को यहां नहीं बुला सकती.’’ वह बोला.

‘‘क्यों, मैं ने तुम्हारे साथ क्या शादी की है जो मुझ पर इस तरह से हुकुम चला रहे हो. अपनी जिंदगी मैं अपनी तरह से जिऊंगी. इस में कोई भी दखलअंदाजी नहीं कर सकता. इसलिए बेहतर यही है कि तुम इस मुद्दे पर ज्यादा बात मत करो.’’ अनारकली ने जवाब दिया.

बलराम उस का मुंह देखता रह गया. बात भी सही थी, उस ने अनारकली से शादी थोड़े ही की थी. दोनों का स्वार्थ था, इसलिए वे साथसाथ रह रहे थे. बलराम से जब उस का मन भर गया तो उस ने किसी और के साथ नजदीकी बना ली.

अनारकली की बात पर बलराम ने भी बहस करनी जरूरी नहीं समझी. वह उसे समझाने की कोशिश करने लगा. पर उसी समय उस ने यह जरूर तय कर लिया था कि इस धोखेबाज औरत को वह सबक जरूर सिखाएगा. और यह काम उस के साथ रह कर संभव हो सकता था.

बलराम के दिल में कसक तो थी ही. वह बस मौके का इंतजार कर रहा था. बात 2 दिसंबर, 2016 की है. दोपहर के समय बलराम दशघरा गढ़ी स्थित अपने कमरे पर आया. उस के दिल में अनारकली के प्रति गुस्सा तो भरा ही हुआ था. बलराम ने उस के चरित्र को ले कर बात शुरू की तो अनारकली भड़क गई. दोनों तरफ से गरमागरमी होने लगी. तभी बलराम कमरे में स्लैब पर रखा अपना हथौड़ा उठा लिया और उस का एक वार उस के सिर पर किया.

हथौड़े के वार से अनारकली बेहोश हो कर गिर पड़ी और उस के सिर से खून निकलने लगा. इस के बाद उस ने उस की पीठ पर भी हथौड़े से कई वार किए. कुछ ही देर में उस की मौत हो गई.

अनारकली की हत्या करने के बाद बलराम को तसल्ली हुई पर उस के सामने समस्या यह आ गई कि लाश को ठिकाने कैसे लगाए.

कुछ देर सोचने के बाद वह कमरे में रखा किचन में प्रयोग होने वाला चाकू उठा लाया. उस चाकू से उस ने अनारकली को कूल्हे के ऊपर से काट कर 2 हिस्सों में कर दिया. कमरे में बड़ेबड़े 2 ट्रैवल बैग रखे थे. उन में रखे कपड़े निकाल दिए. इस के बाद उस ने उन में लाश के टुकड़े रख दिए. फिर उस ने कमरे का खून साफ किया. अब वह अंधेरा होने का इंतजार करने लगा.

अंधेरा होने पर उस ने वह बैग उठाया, जिस में अनारकली का सिर और धड़ वाला भाग रखा था. उस बैग को रिक्शे में ले कर वह कैप्टन गौड़ मार्ग पर नाले के पास स्थित बसस्टैंड पर उतर गया. कुछ देर वहां बैठने के बाद जब उसे आसपास कोई दिखाई नहीं दिया तो उस ने उस बैग को नाले के किनारे झाडि़यों में डाल दिया.

एक बैग को ठिकाने लगाने के बाद वह कमरे पर आया और दूसरे बैग को रिक्शे में ले कर कैप्टन गौड़ मार्ग पर स्थित मसजिद के पास उतर गया.

फिर वहां से कुछ मीटर आगे चल कर उस ने वह बैग भगेल मंदिर के पास पुलिया के नीचे गिरा दिया. वह इलाका श्रीनिवासपुरी क्षेत्र में आता है. वहां से बह रहे बड़े नाले में 2 छोटे नाले भी जुड़े हुए हैं. वह बैग जिस में अनारकली के कूल्हे और पैर वाला भाग था, लुढ़क कर एक छोटे नाले के किनारे पहुंच गया.

दोनों बैग ठिकाने लगाने के बाद बलराम ने राहत की सांस ली. फिर कमरे की सफाई कर के खून से सनी चादर कूड़े के ढेर पर फेंक आया. इस के बाद वह ताला लगा कर अपने एक जानकार के यहां चला गया.

नोटबंदी के बाद जिस तरह जगहजगह नोट पड़े होने की खबरें सामने आई हैं, उसी तरह नाले के पास झाडि़यों में पड़े उस बैग को किसी व्यक्ति ने लालच में आ कर खोला होगा. पर नोटों की जगह उस में लाश देख कर उसे जरूर पसीना आ गया होगा. डर की वजह से वह बैग को खुला छोड़ कर भाग गया.

उधर भगेल मंदिर के पास छोटे नाले के पास जो बैग गिरा था, उसे कुत्तों ने फाड़ कर उस में से लाश निकाल कर खा ली. केवल एक टांग पर कुछ मांस बचा था. जानवरों की खींचातानी में वह हिस्सा नाले में गिर गया.

पुलिस ने एम्स की मोर्चरी में लाश के जो 2 हिस्से रखवाए थे, उन की डीएनए जांच की गई तो वह दोनों एक ही महिला के पाए गए. बलराम से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त हथौड़ा और चाकू भी कमरे से बरामद कर लिया. खून से सनी चादर जहां फेंकी थी, पुलिस उसे वहां ले कर गई पर नगर निगम की गाड़ी वहां के कूड़े को ले जा चुकी थी, जिस से वह चादर वहां नहीं मिल सकी. पुलिस ने बलराम को भादंवि की धारा 302, 201 के तहत गिरफ्तार कर के साकेत कोर्ट में महानगर दंडाधिकारी अर्चना बेनीवाल की कोर्ट में पेश कर उसे 2 दिनों के रिमांड पर लिया.

रिमांड अवधि में संबंधित स्थानों की तसदीक कराने के बाद उसे फिर से कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया. कथा लिखने तक बलराम जेल में बंद था. मामले की विवेचना इंसपेक्टर राजेश मौर्य कर रहे हैं.

– कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

बिहार के फरेबी टौपरों की कहानी

संगीत में टौपर बने गणेश को यह भी पता नहीं है कि गायन में अंतरा और मुखड़ा किस चिड़िया का नाम है. सारेगामा को हारमोनियम पर बजाना तो दूर वह बोल भी नहीं सकता है. उसे न तो किसी संगीतकार का नाम पता है और न ही किसी क्लासिकल गायक के बारे में रत्तीभर जानकारी है. इस के बाद भी बिहार विद्यालय परीक्षा समिति ने उसे साल 2017 के इंटर का टौपर बना दिया. गणेश को संगीत की लिखित परीक्षा में 100 में से 83 और प्रैक्टिकल में 70 में से 65 नंबर मिले थे. उसे हिंदी में 92, इतिहास में 80, समाजशास्त्र में 80 और मनोविज्ञान में 59 नंबर मिले थे.

कुछ इसी तरह की कहानी पिछले साल की स्टेट टौपर रूबी राय की भी थी, जिसे इतना भी पता नहीं था कि किस सब्जैक्ट में किस चीज की पढ़ाई होती है. इंटर में आर्ट्स टौपर रही रूबी राय से जब यह पूछा गया था कि पौलिटिकल साइंस में किस चीज की पढ़ाई होती है, तो उस ने कुछ देर सोचने के बाद जवाब दिया था कि पौलिटिकल साइंस में खाना बनाने की पढ़ाई होती है. रूबी राय को कुल 500 में से 444 नंबर मिले थे.

इस साल भी बिहार में इंटरमीडिएट की आर्ट्स की परीक्षा में स्टेट टौपर बने गणेश पर कई तरह की गड़बड़ी करने का मामला दर्ज हो चुका है और इस के साथ ही एक बार फिर बिहार की पढ़ाईलिखाई के सिस्टम पर सवाल खड़े हो गए हैं. इस साल के स्टेट टौपर पर उम्र की हेराफेरी करने का मामला दर्ज कर उसे गिरफ्तार कर लिया गया है. फर्जी आर्ट्स टौपर गणेश कुमार के पटना के मुसल्लहपुर महल्ले के घर से कई दस्तावेज बरामद किए गए हैं.

बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के प्रशाखा पदाधिकारी विपिन कुमार सिंह ने जन्मदिन छिपाने और गलत नाम दिखाने के आरोप में गणेश, कालेज के संचालक और प्रिंसिपल समेत दूसरों के खिलाफ आईपीसी की धारा 417, 418, 419, 420, 467, 468, 208, 201 और 120बी के तहत केस दर्ज कराया था. रिजल्ट आने के दूसरे ही दिन गणेश का रिजल्ट रद्द कर दिया गया था.

पटना के एसएसपी मनु महाराज ने बताया कि गणेश झारखंड के गिरीडीह में कोलकाता की रसेल नौनबैंकिंग फाइनैंस कंपनी के लिए काम करता था. वह कंपनी ग्राहकों से 70 लाख रुपए ले कर फरार हो गई थी. गणेश भी मार्केट से उठाए गए 15 लाख रुपए दबा कर बैठ गया था. जब लोग उस से पैसे मांगने लगे, तो साल 2013 में वह पटना भाग आया. पटना के भीड़भाड़ वाले इलाके मुसल्लहपुर में वह किराए का मकान ले कर रहने लगा.

पटना पहुंचने के बाद गणेश ने सरकारी नौकरी पाने के लिए हाथपैर मारने शुरू कर दिए. सरकारी नौकरी पाने की उस की उम्र निकल चुकी थी. इसी बीच उस की मुलाकात संजय सिंह नाम के शख्स से हुई. संजय सिंह ने उस की मुलाकात फर्जी प्रमाणपत्र बनाने वाले गिरोह से कराई. उसी के साथ मिल कर गणेश ने अपनी उम्र कम कर जाली प्रमाणपत्र बनवा लिया था. उस ने संगीत सब्जैक्ट ले कर परीक्षा दी थी और जुगाड़पैरवी लगा कर टौपर भी बन गया. उस का मकसद यही था कि इंटर में टौपर बन जाने के बाद उसे आसानी से सरकारी नौकरी मिल जाएगी.

गिरीडीह शहर के सीआरएसआर हाईस्कूल से साल 1990 में गणेश ने 10वीं की परीक्षा पास की थी और उस के सर्टिफिकेट में नाम गणेश राम दर्ज है. गणेश ने साल 2015 में कम उम्र वाला जाली प्रमाणपत्र बनवाया. साल 1992 में उस ने झुमरी तिलैया, कोडरमा के रामलखन सिंह इंटर कालेज से इंटर की परीक्षा दी थी. दोनों ही इम्तिहान में वह सैकंड डिवीजन से पास हुआ था. उस के बाद उस ने साल 2015 में ही समस्तीपुर के लक्ष्मीनियां इलाके के संजय गांधी हाईस्कूल से दोबारा 10वीं की परीक्षा दी. उस के बाद साल 2017 में उस ने उसी कालेज से इंटर की परीक्षा दी और आर्ट्स का टौपर बन गया. गणेश और उस के कालेज के खिलाफ पटना के कोतवाली थाने में कांड संख्या-270/2017 दर्ज किया गया.

दिलचस्प बात यह है कि पिछले साल भी इंटर टौपर घोटाले के मामले में कोतवाली थाने में दर्ज किए गए मामले की संख्या-270/2016 है. दोनों इंटर टौपर घोटाले का केस नंबर एक ही हो गया है. बस, साल अलग है.

2 जून, 2017 को गणेश को गिरफ्तार किया गया और उस के मैट्रिक और इंटर के रिजल्ट को रद्द कर दिया गया. बिहार विद्यालय परीक्षा समिति की टौपर लिस्ट से गणेश का नाम हटा दिया गया.

गणेश की असली जन्मतिथि 1 नवंबर, 1975 है. साल 1990 में मैट्रिक और साल 1992 में इंटर पास कर चुके गणेश ने जाली जन्म प्रमाणपत्र बना कर दोबारा साल 2015 और साल 2017 में मैट्रिक और इंटर का इम्तिहान दिया. जाली जन्म प्रमाणपत्र में उस का जन्मदिन 2 जून, 1993 दर्ज है.

गणेश के टौपर होने पर जब सवाल उठने लगे, तो बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के अध्यक्ष आनंद किशोर ने कहा कि गणेश के टौपर होने में कोई शक ही नहीं है. उन्होंने बाकायदा प्रैस कौंफ्रैंस कर के कहा कि किसी भी हाल में टौपर को बदला नहीं जाएगा. बोर्ड के पास उस की सारी कौपियां मौजूद हैं.

अध्यक्ष आनंद किशोर ने यह भी दावा किया था कि गणेश दलित परिवार से है, इसलिए उस ने देरी से पढ़ाई शुरू की और साल 2015 में ही उस ने मैट्रिक की परीक्षा पास की थी.

2 बच्चों के पिता गणेश ने साफ लहजे में बताया कि उस ने सरकारी नौकरी पाने के लिए कम उम्र कर के दोबारा परीक्षा दी. इस के लिए उसे कोई पछतावा नहीं है. उस ने अपने बच्चों की रोजीरोटी के लिए ऐसा किया.

फर्जी जन्म प्रमाणपत्र बनाने के सवाल पर गणेश कहता है कि पढ़नालिखना क्या गुनाह है? गरीब होना क्या गुनाह है? उस ने दावा किया कि उस ने मेहनत से पढ़ाई कर के टौप किया है.

वासना का पानी पीकर बनी पतिहंता

सुनील अपनी ड्यूटी से रोजाना रात 9 बजे तक अपने घर वापस पहुंच जाता था. पिछले 12 सालों से उस का यही रूटीन था. लेकिन 21 मई, 2019 को रात के 10 बज गए, वह घर नहीं लौटा.

पत्नी सुनीता को उस की चिंता होने लगी. उस ने पति को फोन मिलाया तो फोन भी स्विच्ड औफ मिला. वह परेशान हो गई कि करे तो क्या करे. घर से कुछ दूर ही सुनीता का देवर राहुल रहता था. सुनीता अपने 18 वर्षीय बेटे नवजोत के साथ देवर राहुल के यहां पहुंच गई. घबराई हुई हालत में आई भाभी को देख कर राहुल ने पूछा, ‘‘भाभी, क्या हुआ, आप इतनी परेशान क्यों हैं?’’

‘‘तुम्हारे भैया अभी तक घर नहीं आए. उन का फोन भी नहीं मिल रहा. पता नहीं कहां चले गए. मुझे बड़ी चिंता हो रही है. तुम जा कर उन का पता लगाओ. मेरा तो दिल घबरा रहा है. उन्होंने 8 बजे मुझे फोन पर बताया था कि थोड़ी देर में घर पहुंच रहे हैं, खाना तैयार रखना. लेकिन अभी तक नहीं आए.’’

45 वर्षीय सुनील मूलरूप से उत्तर प्रदेश के रहने वाले मोहनलाल का बड़ा बेटा था. सुनील के अलावा उन के 3 बेटे और एक बेटी थी. सभी शादीशुदा थे. सुनील लगभग 13 बरस पहले काम की तलाश में लुधियाना आया था. कुछ दिनों बाद यहीं के जनकपुरी इंडस्ट्रियल एरिया स्थित प्रवीण गर्ग की धागा फैक्ट्री में उस की नौकरी लग गई. फिर वह यहीं के थाना सराभा नगर के अंतर्गत आने वाले गांव सुनेत में किराए का घर ले कर रहने लगा. बाद में उस ने अपनी पत्नी और बच्चों को भी लुधियाना में अपने पास बुला लिया.

जब सुनील ने धागा फैक्ट्री में अपनी पहचान बना ली तो अपने छोटे भाई राहुल को भी लुधियाना बुलवा लिया. उस ने राहुल की भी एक दूसरी फैक्ट्री में नौकरी लगवा दी. राहुल भी अपने बीवीबच्चों को लुधियाना ले आया और सुनील से 2 गली छोड़ कर किराए के मकान में रहने लगा.

पिछले 12 सालों से सुनील का रोज का नियम था कि वह रोज ठीक साढे़ 8 बजे काम के लिए घर से अपनी इलैक्ट्रिक साइकिल पर निकलता था और पौने 9 बजे अपने मालिक प्रवीण गर्ग की गुरुदेव नगर स्थित कोठी पर पहुंच जाता. वह अपनी साइकिल कोठी पर खड़ी कर के वहां से फैक्ट्री की बाइक द्वारा फैक्ट्री जाता था. इसी तरह वह शाम को भी साढ़े 8 बजे छुट्टी कर फैक्ट्री से मालिक की कोठी जाता और वहां बाइक खड़ी कर अपनी इलैक्ट्रिक साइकिल द्वारा 9 बजे तक अपने घर पहुंच जाता था.

पिछले 12 सालों में उस के इस नियम में 10 मिनट का भी बदलाव नहीं आया था. 21 मई, 2019 को भी वह रोज की तरह काम पर गया था पर वापस नहीं लौटा. इसलिए परिजनों का चिंतित होना स्वाभाविक था. राहुल अपने भतीजे नवजोत और कुछ पड़ोसियों को साथ ले कर सब से पहले अपने भाई के मालिक प्रवीण गर्ग की कोठी पर पहुंचा.

प्रवीण ने उसे बताया कि सुनील तो साढ़े 8 बजे कोठी पर फैक्ट्री की चाबियां दे कर घर चला गया था. प्रवीण ने राहुल को सलाह दी कि सब से पहले वह थाने जा कर इस बात की खबर करे. प्रवीण गर्ग की सलाह मान कर राहुल सीधे थाना डिवीजन नंबर-5 पहुंचा और अपने सुनील के लापता होने की बात बताई.

उस समय थाने में तैनात ड्यूटी अफसर ने राहुल से कहा, ‘‘अभी कुछ देर पहले सिविल अस्पताल में एक आदमी की लाश लाई गई थी, जिस के शरीर पर चोटों के निशान थे. लाश अस्पताल की मोर्चरी में रखी है, आप अस्पताल जा कर पहले उस लाश को देख लें. कहीं वह लाश आप के भाई की न हो.’’

राहुल पड़ोसियों के साथ सिविल अस्पताल पहुंच गया. अस्पताल में जैसे ही राहुल ने स्ट्रेचर पर रखी लाश देखी तो उस की चीख निकल गई. वह लाश उस के भाई सुनील की ही थी.

राहुल ने फोन द्वारा इस बात की सूचना अपनी भाभी सुनीता को दे कर अस्पताल आने के लिए कहा. उधर लाश की शिनाख्त होने के बाद आगे की काररवाई के लिए डाक्टरों ने यह खबर थाना दुगरी के अंतर्गत आने वाली पुलिस चौकी शहीद भगत सिंह नगर को दे दी. सुनील की लाश उसी चौकी के क्षेत्र में मिली थी.

दरअसल, 21 मई 2019 की रात 10 बजे किसी राहगीर ने लुधियाना पुलिस कंट्रोलरूम को फोन द्वारा यह खबर दी थी कि पखोवाल स्थित सिटी सेंटर के पास सड़क किनारे एक आदमी की लाश पड़ी है. कंट्रोलरूम ने यह खबर संबंधित पुलिस चौकी शहीद भगत सिंह नगर को दे दी थी.

सूचना मिलते ही चौकी इंचार्ज एएसआई सुनील कुमार, हवलदार गुरमेल सिंह, दलजीत सिंह और सिपाही हरपिंदर सिंह के साथ मौके पर पहुंचे. उन्होंने इस की सूचना एडिशनल डीसीपी-2 जस किरनजीत सिंह, एसीपी (साउथ) जश्नदीप सिंह के अलावा क्राइम टीम को भी दे दी थी.

लाश का निरीक्षण करने पर उस की जेब से बरामद पर्स से 65 रुपए और एक मोबाइल फोन मिला. फोन टूटीफूटी हालत में था, जिसे बाद में चंडीगढ़ स्थित फोरैंसिक लैब भेजा गया था. लाश के पास ही एक बैग भी पड़ा था, जिस में खाने का टिफिन था. मृतक के सिर पर चोट का निशान था, जिस का खून बह कर उस के शरीर और कपड़ों पर फैल गया था.

उस समय लाश की शिनाख्त नहीं हो पाने पर एएसआई सुनील कुमार ने मौके की काररवाई पूरी कर लाश सिविल अस्पताल भेज दी थी.

अस्पताल द्वारा लाश की शिनाख्त होने की सूचना एएसआई सुनील कुमार को मिली तो वह सिविल अस्पताल पहुंच गए. उन्होंने अस्पताल में मौजूद मृतक की पत्नी सुनीता और भाई राहुल से पूछताछ कर उन के बयान दर्ज किए और राहुल के बयानों के आधार पर सुनील की हत्या का मुकदमा अज्ञात हत्यारों के खिलाफ दर्ज कर आगे की तहकीकात शुरू कर दी.

एएसआई सुनील कुमार ने मृतक की फैक्ट्री में उस के साथ काम करने वालों के अलावा उस के मालिक प्रवीण गर्ग से भी पूछताछ की. यहां तक कि मृतक के पड़ोसियों से भी मृतक और उस के परिवार के बारे में जानकारी हासिल की गई, पर कोई क्लू हाथ नहीं लगा.

सब का यही कहना था कि सुनील सीधासादा शरीफ इंसान था. उस की न तो किसी से कोई दुश्मनी थी और न कोई लड़ाईझगड़ा. अपने घर से काम पर जाना और वापस घर लौट कर अपने बच्चों में मग्न रहना ही दिनचर्या थी.

एएसआई सुनील की समझ में एक बात नहीं आ रही थी कि मृतक की लाश इतनी दूर सिटी सेंटर के पास कैसे पहुंची, जबकि उस के घर आने का रूट चीमा चौक की ओर से था. उस की इलैक्ट्रिक साइकिल भी नहीं मिली. महज साइकिल के लिए कोई किसी की हत्या करेगा, यह बात किसी को हजम नहीं हो रही थी.

बहरहाल, अगले दिन मृतक की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ गई. रिपोर्ट में बताया गया कि मृतक के सिर पर किसी भारी चीज से वार किया गया था और उस का गला चेन जैसी किसी चीज से घोटा गया था. मृतक के शरीर पर चोट के भी निशान थे. इस से यही लग रहा था कि हत्या से पहले मृतक की खूब पिटाई की गई थी. उस की हत्या का कारण दम घुटना बताया गया.

पोस्टमार्टम के बाद लाश मृतक के घर वालों के हवाले कर दी गई. सुनील की हत्या हुए एक सप्ताह बीत चुका था. अभी तक पुलिस के हाथ कोई ठोस सबूत नहीं लगा था. मृतक की साइकिल का भी पता नहीं चल पा रहा था.

एएसआई सुनील कुमार ने एक बार फिर इस केस पर बड़ी बारीकी से गौर किया. उन्होंने मृतक की पत्नी, भाई और अन्य लोगों के बयानों को ध्यान से पढ़ा. उन्हें पत्नी सुनीता के बयानों में झोल नजर आया तो उन्होंने उस के फोन की कालडिटेल्स निकलवा कर चैक कीं.

सुनीता की काल डिटेल्स में 2 बातें सामने आईं. एक तो उस ने पुलिस को यह झूठा बयान दिया था कि पति ने उसे 8 बजे फोन कर कहा था कि वह घर आ रहा है, खाना तैयार रखना.

लेकिन कालडिटेल्स से पता चला कि मृतक ने नहीं बल्कि खुद सुनीता ने उसे सवा 8 बजे और साढ़े 8 बजे फोन किए थे. दूसरी बात यह कि सुनीता की कालडिटेल्स में एक ऐसा नंबर था, जिस पर सुनीता की दिन में कई बार घंटों तक बातें होती थीं. घटना वाली रात 21 मई को भी मृतक को फोन करने के अलावा सुनीता की रात साढ़े 7 बजे से ले कर रात 11 बजे तक लगातार बातें हुई थीं.

यह फोन नंबर किस का था, यह जानने के लिए एएसआई सुनील कुमार ने मृतक के भाई और बेटे से जब पूछा तो उन्होंने अनभिज्ञता जाहिर की. बहरहाल, एएसआई सुनील कुमार ने 2 महिला सिपाहियों को सादे लिबास में सुनीता पर नजर रखने के लिए लगा दिया. साथ ही मुखबिरों को सुनीता की जन्मकुंडली पता लगाने के लिए कहा. इस के अलावा उन्होंने उस फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि वह नंबर आई ब्लौक निवासी मनदीप सिंह उर्फ दीपा का है.

मनदीप पेशे से आटो चालक था. सन 2018 में वह जालसाजी के केस में जेल भी जा चुका था. मनदीप शादीशुदा था और उस की 3 साल की एक बेटी भी थी. हालांकि उस की शादी 4 साल पहले ही हुई थी, लेकिन उस की पत्नी से नहीं बनती थी. पत्नी ने उस के खिलाफ वूमन सेल में केस दायर कर रखा था.

सुनीता पर नजर रखने वाली महिला और मुखबिरों ने यह जानकारी दी कि सुनीता और मनदीप के बीच नाजायज संबंध हैं. इस बीच फोरैंसिक लैब भेजा गया मृतक का फोन ठीक हो कर आ गया, जिस ने इस हत्याकांड को पूरी तरह बेनकाब कर दिया.

एएसआई सुनील कुमार ने उसी दिन सुनीता को हिरासत में ले कर पूछताछ की तो वह अपने आप को निर्दोष बताते हुए पुलिस को गुमराह करने के लिए तरहतरह की कहानियां सुनाने लगी. जब उसे महिला हवलदार सुरजीत कौर के हवाले किया गया तो उस ने पूरा सच उगल दिया.

सुनीता की निशानदेही पर उसी दिन 3 जून को 30 वर्षीय मनदीप सिंह उर्फ दीपा, 18 वर्षीय रमन राजपूत, 23 वर्षीय सन्नी कुमार और 21 वर्षीय प्रकाश को भाई रणधीर सिंह चौक से जेन कार सहित गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में सभी ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि उन्होंने सुनीता और मनदीप के कहने पर सुनील की हत्या की थी.

पांचों अभियुक्तों को उसी दिन अदालत में पेश कर 3 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया गया. रिमांड के दौरान हुई पूछताछ में सुनील हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, वह पति और जवान बच्चों के रहते परपुरुष की बांहों में देहसुख तलाशने वाली एक औरत के मूर्खतापूर्ण कारनामे का नतीजा थी.

सुनील जब धागा फैक्ट्री में अपनी नौकरी पर चला जाता था तो सुनीता घर पर अकेली रह जाती थी. इसी के मद्देनजर उस ने पास ही स्थित प्ले वे स्कूल में चपरासी की नौकरी कर ली. पतिपत्नी के कमाने से घर ठीक से चलने लगा.

इसी प्ले वे स्कूल में मनदीप उर्फ दीपा की बेटी भी पढ़ती थी. पहले मनदीप की पत्नी अपनी बेटी को स्कूल छोड़ने और लेने आया करती थी, पर एक बार मनदीप अपनी बेटी को स्कूल छोड़ने आया तब उस की मुलाकात सुनीता से हुई.

सुनीता को देखते ही वह उस का दीवाना हो गया. हालांकि सुनीता उस से उम्र में 10-11 साल बड़ी थी, पर उस में ऐसी कशिश थी, जो मनदीप के मन भा गई. यह बात करीब 9 महीने पहले की है.

सुनीता से नजदीकियां बढ़ाने के लिए मनदीप रोज बेटी को स्कूल छोड़ने के लिए आने लगा. इधर सुनीता भी मनदीप पर पूरी तरह फिदा हो थी. आग दोनों तरफ बराबर लगी थी. इस का एक कारण यह था कि अपनी उम्र के 40वें पड़ाव पर पहुंचने के बाद और 3 युवा बच्चों की मां होने के बावजूद सुनीता के शरीर में गजब का आकर्षण था.

दिन भर हाड़तोड़ मेहनत करने के बाद पति सुनील जब घर लौटता तो खाना खाते ही सो जाता था. जबकि उस की बगल में लेटी सुनीता उस से कुछ और ही अपेक्षा करती थी. लेकिन सुनील उस की जरूरत को नहीं समझता था. उसे मनदीप जैसे ही किसी पुरुष की तलाश थी, जो उस की तमन्नाओं को पूरा कर सके.

यही हाल मनदीप का भी था. पत्नी से मनमुटाव होने के कारण वह उसे अपने पास फटकने नहीं देती थी, इसलिए जल्दी ही सुनीता और मनदीप में दोस्ती हो गई, जिसे नाजायज रिश्ते में बदलते देर नहीं लगी थी. पति और बच्चों को स्कूल भेजने के बाद सुनीता स्कूल जाने के बहाने घर से निकलती और मनदीप के साथ घूमतीफिरती. कई महीनों तक दोनों के बीच यह संबंध चलते रहे.

इसी बीच अचानक सुनील को सुनीता के बदले रंगढंग ने चौंका दिया. उस ने अपने बच्चों से इस बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि स्कूल से लौटने के बाद मम्मी बनसंवर कर न जाने कहां जाती हैं और आप के काम से लौटने के कुछ देर पहले वापस लौट आती हैं. सुनील को तो पहले से ही शक था, उस ने सुनीता का पीछा किया और उसे मनदीप के साथ बातें करते पकड़ लिया. यह 2 मई, 2019 की बात है.

मनदीप की बात को ले कर सुनील का सुनीता से खूब झगड़ा हुआ और उस ने सुनीता का स्कूल जाना बंद करवा दिया. यहां तक कि उस ने उस का फोन भी उस से ले लिया.

बाद में सुनीता ने माफी मांग कर भविष्य में ऐसी गलती दोबारा न करने की कसम खाई और स्कूल जाना शुरू कर दिया था. बात करने के लिए मनदीप ने उसे एक नया फोन और सिमकार्ड दे दिया था. वे दोनों फोन पर बातें करते, मिल भी लेते थे. पर अब वे पहले जैसे आजाद नहीं थे.

इस तरह चोरीछिपे मिलने से सुनीता परेशान हो गई. एक दिन सुनीता ने अपने मन की पीड़ा जाहिर करते हुए मनदीप से कहा, ‘‘मनदीप, तुम कैसे मर्द हो, जो एक मरियल से आदमी को भी ठिकाने नहीं लगा सकते. तुम भी जानते हो कि सुनील के जीते जी हमारा मिलना मुश्किल हो गया है.’’

मनदीप ने उसे भरोसा दिया कि काम हो जाएगा. फिर दोनों ने मिल कर सुनील की हत्या की योजना बनाई. अब मनदीप के सामने समस्या यह थी कि वह यह काम अकेले नहीं कर सकता था.

नवंबर, 2019 में मनदीप जब जालसाजी के केस में जेल गया था, तब उस की मुलाकात जेल में बंद पंकज राजपूत से हुई थी. पंकज लुधियाना के थाना टिब्बा में दर्ज दफा 307 के केस में बंद था.

दोनों की जेल में मुलाकात हुई और दोस्ती हो गई थी. कुछ दिन बाद मनदीप की जमानत हो गई और वह जेल से बाहर आ गया. बाहर आने के बाद वह बीचबीच में पंकज से जेल में मुलाकात करने जाता रहता था.

सुनील की हत्या की योजना बनाने के बाद उस ने जेल जा कर पंकज को अपनी समस्या के बारे में बताया. पंकज ने उसे अपने 2 साथियों रमन और प्रकाश के बारे में बताया.

उस ने मनदीप के फोन से रमन को फोन कर मनदीप का साथ देने को कह दिया. रमन ने इस काम के लिए 10 हजार रुपए मांगे, जो मनदीप ने दे दिए थे. रमन और प्रकाश ने अपने साथ सन्नी को भी शामिल कर लिया था.

सुनीता ने किराए के हत्यारों को सुनील का पूरा रुटीन बता दिया कि वह कितने बजे काम पर जाता है, कितने बजे किस रास्ते से घर लौटता है, वगैरह.

इन बदमाशों ने तय किया कि सुनील को घर लौटते समय रास्ते में कहीं घेर लिया जाएगा. सुनील की हत्या के लिए 20 मई, 2019 का दिन चुना गया था पर टाइमिंग गलत होने से उस दिन सुनील बच गया.

अगले दिन 21 मई को रात 8 बजे मनदीप सन्नी को अपने साथ ले कर बीआरएस नगर से अपनी जेन कार द्वारा एक धार्मिक स्थल पर पहुंचा. रमन और प्रकाश भी बाइक से वहां पहुंच गए थे. इस के बाद चारों सुनील के मालिक की कोठी के पास मंडराने लगे.

सुनील अपने मालिक की कोठी पर फैक्ट्री की चाबियां देने के बाद अपनी इलैक्ट्रिक साइकिल से घर के निकला तो चीमा चौक के पास चारों ने उसे घेर कर जेन कार में डाल लिया. उस की साइकिल सन्नी ले कर चला गया जो उस ने लेयर वैली में फेंक दी थी.

सुनील को कार में डालने के बाद मनदीप ने उस के सिर पर लोहे की रौड से वार कर उसे घायल कर दिया. फिर सब ने मिल कर उस की खूब पिटाई की. इस के बाद साइकिल की चेन उस के गले में डाल कर उस का गला घोंट दिया.

सुनील की हत्या करने के बाद वे उस की लाश को सिटी सेंटर ले आए और सड़क किनारे सुनसान जगह पर फेंक कर रात 11 बजे तक सड़कों पर घूमते रहे. इस के बाद सभी अपनेअपने घर चले गए. शाम साढ़े 7 बजे से रात के 11 बजे तक सुनीता लगातार फोन द्वारा मनदीप के संपर्क में थी. वह उस से पलपल की खबर ले रही थी.

रिमांड अवधि के दौरान पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त चेन भी बरामद कर ली, लेकिन कथा लिखे जाने तक मृतक की साइकिल बरामद नहीं हो सकी.

रिमांड खत्म होने के बाद पुलिस ने सुनील की हत्या के अपराध में उस की पत्नी सुनीता, सुनीता के प्रेमी मनदीप उर्फ दीपा, रमन, प्रकाश और सन्नी को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.

आशिक के प्यार में पति से की बेवफाई

मुंबई की ग्लोबल सिटी विरार वेस्ट के गोकुल, राऊत सोसायटी की गोकुल एंपायर इमारत में 40 साल की शिल्पी वर्मा अपने 50 साल के पति सरवेंद्र वर्मा और 20 साल की एकलौती बेटी के साथ रहती थी. सरवेंद्र वर्मा एक कंपनी में मैनेजर थे तो बेटी पढ़ाई कर रही थी. 2 फरवरी, 2016 को शिल्पी सहेली नूपुर श्रीवास्तव के साथ विरार के एक मौल से शौपिंग कर के लौट रही थी, तभी पुराने विभा कालेज और केएफसी रेस्टोरैंट के बीच उन की कार एक आदमी से टकरा गई.

उस आदमी की उम्र 30-35 साल रही होगी. टक्कर लगते ही वह आदमी जमीन पर गिर पड़ा. इस हादसे से शिल्पी और नूपुर घबरा गईं. दोनों सहेलियां अपनी गलती के लिए माफी मांगतीं, उस के पहले ही वह आदमी उठ कर कार का बोनट पीटते हुए चिल्ला कर कहने लगा, ‘‘आप लोग आंखें बंद कर के कार चलाती हैं. आप लोगों को सड़क पर चलने वाला आदमी दिखाई नहीं देता?’’ नूपुर और शिल्पी ने सौरी कहा तो वह आदमी और जोर से चिल्लाया, ‘‘आप के सौरी कह देने से मेरी टांग ठीक हो जाएगी क्या? चलिए आप लोग चल कर मेरी टांग का इलाज कराइए. उस के बाद जाइए.’’ यह कह कर वह आदमी कार का पिछला दरवाजा खोल कर कार के अंदर बैठ गया. शिल्पी और नूपुर उस आदमी को कुछ पैसे दे कर अपना पीछा छुड़ाना चाहती थीं, पर वह नहीं माना. जब उस आदमी ने देखा कि वहां भीड़ इकट्ठा हो रही है तो उस ने शिल्पी को डांट कर कार आगे बढ़ाने को कहा.

शिल्पी उसे ले कर कुछ दूर गई होगी कि उस आदमी ने रूमाल में छिपी रिवौल्वर जैसी कोई चीज दिखाते हुए कहा, ‘‘मैं जैसा कहूं तुम वैसा ही करो, वरना मैं तुम दोनों को गोली मार दूंगा.’’

‘‘नहीं, आप को ऐसा कुछ भी करने की जरूरत नहीं है.’’ शिल्पी ने गिड़गिड़ाते हुए कहा, ‘‘आप जैसा कहेंगे, मैं वैसा ही करूंगी.’’ इस के बाद वह आदमी जैसे कहता रहा, शिल्पी उसी तरह कार चलाती रही. करीब 2 घंटे तक वह उस आदमी के कहे अनुसार नवनिर्माण ग्लोबल सिटी की सड़कों पर कार को घुमाती रही. करीब 5 बजे उस की कार विरार के डोंगर पाड़ा रोड़ पर पहुंची तो कार का अगला टायर फट गया और कार बिजली के खंभे से टकरा गई.

कार रुक गई तो उस आदमी ने दोनों महिलाओं को कार से नीचे उतारा और एक औटो रुकवा कर उस में शिल्पी को बैठा कर नूपुर को इस तरह धक्का दिया कि वह जमीन पर गिर पड़ी. वह उठ पाती, उस के पहले ही वह शिल्पी को ले कर चला गया.  फिल्मी स्टाइल में घटी इस घटना से नूपुर हैरान थी. उस ने शोर भी मचाया, पर लोगों के इकट्ठा होने तक वह आदमी शिल्पी को ले कर चला गया था. नूपुर ने जब यह बात शिल्पी के घर जा कर उस के पति सरवेंद्र वर्मा और बेटी को बताई तो दोनों परेशान हो उठे. उस समय तक रात के साढ़े 8 बज चुके थे. वे नूपुर श्रीवास्तव को साथ ले कर थाना आगासी अरनाला पहुंचे और असिस्टैंट इंसपेक्टर संदीप शिवले को सारी बात बता कर शिल्पी वर्मा के अपहरण का मुकदमा दर्ज करा दिया. मामला एक संभ्रात परिवार की महिला के अपहरण का था, इसलिए संदीप शिवले ने तुरंत घटना की जानकारी एसपी शारदा राऊत, एएसपी श्रीकृष्ण कोकाटे और डीएसपी नरसिंह भोसते के अलावा पुलिस कंट्रोल रूम को दे कर थाने में मौजूद स्टाफ को मामले की जांच में लगा दिया. आमतौर पर अपहरण जैसे मामले पैसों के लिए या दुश्मनी में किए जाते हैं. शुरू में पुलिस को यही लगा कि यह अपहरण भी पैसे के लिए किया गया होगा, इसलिए पुलिस अपहर्त्ता के फोन का इंतजार करने लगी. लेकिन जब अगले दिन तक अपहर्त्ता का कोई फोन नहीं आया तो संदीप शिवले को लगा कि यह अपहरण पैसे के लिए नहीं किया गया. इस में कोई और ही बात है.

वह इस मामले का हल ढूंढ ही रहे थे कि मीडिया ने इस मामले को हवा दे दी, जिस की वजह से पुलिस जांच में तेजी आ गई. संदीप शिवले ने हैडकांस्टेबल मंदार दलवी, आर.डी. बेलधर, मुकेश पवार, अमोल तटकरे, प्रियंका पाटिल, योगिता भोईर और अमोल कांटे की एक टीम बना कर ग्लोबल सिटी की सड़कों पर लगे सारे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखने को कहा. इस से उस औटो के बारे में पता चल गया, जिस से शिल्पी को ले जाया गया था.

औटो वाले से पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि दोनों को उस ने बसई के परिजात गेस्टहाउस के पास छोड़ा था. वे हड़बड़ी में अपना एक मोबाइल फोन उस के औटो में ही छोड़ गए थे. उस ने गलती मानते हुए कहा कि उस मोबाइल का सिम निकाल कर उस में अपना सिम डाल कर वह उस का उपयोग करने लगा था. लेकिन उस ने पुलिस को हैरान करने वाली बात यह बताई कि उस के औटो से जो महिला और आदमी गए थे, वे औटो में पतिपत्नी जैसा व्यवहार कर रहे थे, जबकि उस से कहा जा रहा कि आदमी ने महिला का अपहरण किया था. उन के बातव्यवहार से उसे अपहरण जैसा कुछ नहीं लग रहा था. इस से संदीप शिवले को शिल्पी का चरित्र संदिग्ध लगा. लेकिन शिल्पी की उम्र को देखते हुए उन के मन में एक बार यह भी आया कि औटो वाले को भ्रम भी तो हो सकता है, उन्होंने सरवेंद्र वर्मा और उन की बेटी को थाने बुला कर औटो वाले को मिला मोबाइल दिखाया तो उन्होंने बताया कि यह मोबाइल शिल्पी का ही है.

पुलिस ने बसई के परिजात गेस्टहाउस जा कर वहां के कर्मचारियों को शिल्पी का फोटो दिखा कर पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि यह महिला उन के गेस्टहाउस में अपने पति के साथ पिछले 3 दिनों से ठहरी थी. पुलिस के आने के कुछ घंटे पहले ही दोनों वहां से गए थे. पुलिस को जैसी उम्मीद थी कि दोनों ने गेस्टहाउस के रजिस्टर में अपना सही नामपता नहीं लिखा होगा, वह सच था. रजिस्टर में जो नामपता लिखा था, उस की जांच की गई तो वह झूठा पाया गया. इस के बाद जांच आगे बढ़ाने के लिए पुलिस ने शिल्पी के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस में एक नंबर ऐसा मिला, जिस पर 3 महीने पहले सिर्फ एक बार फोन किया गया था.

वह नंबर पुलिस को संदिग्ध लगा तो पुलिस ने उस नंबर के बारे में पता किया. पता चला कि वह नंबर आगरा के किसी अमरीश कुमार का था, लेकिन वह नंबर अब बंद हो चुका था. मुंबई पुलिस आगरा पहुंची तो पता चला अमरीश कुमार तो 3 महीने पहले दुबई चला गया था. पुलिस खाली हाथ लौट आई. इसी तरह 10 दिन बीत गए, पुलिस के हाथ कुछ नहीं लगा. 14 फरवरी, 2016 को मोबाइल के आईएमईआई नंबर की मदद से पुलिस पंजाब के लुधियाना शहर की एक दुकान पर पहुंची और वहां से शिल्पी और अमरीश कुमार को गिरफ्तार कर लिया.

अमरीश कुमार ने उस दुकान पर अपना मोबाइल फोन ठीक कराने के लिए दिया था. दोनों को मुंबई ला कर थाना आगासी पुलिस ने वसई की अदालत में मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रैट श्रीमती धारे के समक्ष पेश कर विस्तार से पूछताछ के लिए 3 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड के दौरान की गई पूछताछ में पता चला कि प्रेमी के साथ रहने के लिए शिल्पी ने खुद ही अपहरण का ड्रामा रचा था.

30 साल का अमरीश कुमार उत्तर प्रदेश के आगरा शहर का रहने वाला था. वह वहां के एक थ्री स्टार होटल में सेफ था. शिल्पी वर्मा से उस की जानपहचान कोई 4 साल पहले सोशल मीडिया फेसबुक के माध्यम से हुई थी. दोस्त बनने के बाद पहले दोनों के बीच फेसबुक द्वारा चैटिंग शुरू हुई, उस के बाद सीधे फोन से बात होने लगी. इस का नतीजा यह निकला कि दोनों में प्यार हो गया. उस समय शिल्पी पति और बेटी के साथ कोलकाता में रहती थी. उसे पता था कि शिल्पी उस से 10 साल बड़ी थी. इस के बावजूद अमरीश के प्यार में जरा भी कमी नहीं आई. मूलरूप से बिहार के पटना शहर की रहने वाली शिल्पी की शादी सन 1993 में दिल्ली के रहने वाले सरवेंद्र वर्मा के साथ हुई थी. सरवेंद्र कोलकाता में रहते थे, इसलिए वह भी पति के साथ वहीं रहने लगी थी. सरवेंद्र वहीं एक प्रतिष्ठित कंपनी में नौकरी करते थे.

पति के नौकरी और बेटी के स्कूल जाने के बाद शिल्पी घर में अकेली रह जाती तो बोर होने लगती. इस के अलावा न जाने क्यों पति और बेटी का व्यवहार भी उस के प्रति ठीक नहीं था. चैटिंग और बातचीत के बाद शिल्पी और अमरीश एकदूसरे के काफी करीब आ गए. बातचीत में उन के बीच मर्यादा की कोई सीमा नहीं रह गई थी. दोनों एकदूसरे से खुल कर बातें करने लगे थे. इस का नतीजा यह निकला कि दोनों मिलने के लिए बेचैन हो उठे. उन की यह बेचैनी तभी शांत हुई, जब अमरीश कोलकाता जा पहुंचा. शिल्पी ने अपनी दोनों बांहें फैला कर उस का स्वागत किया. जब तक अमरीश कोलकाता में रहा, शिल्पी ने उस का हर तरह से खयाल रखा. एक बार दोनों की मुलाकात हुई तो सिलसिला ही चल निकला. अमरीश को जब भी मौका मिलता, वह शिल्पी से मिलने कोलकाता पहुंच जाता. फिर तो दोनों साथसाथ रहने के सपने देखने लगे.

अपने इस सपने को पूरा करने के लिए शिल्पी जब सन 2013 में कोलकाता से पति और बेटी के साथ दिल्ली अपनी ससुराल आ रही थी तो दिल्ली पहुंचने से पहले ही गायब हो गई. 4 दिनों की अथक कोशिश के बाद पुलिस ने शिल्पी और अमरीश को उस के मोबाइल फोन के जरिए कानपुर के  एक लौज से बरामद किया. शिल्पी की यह हरकत सरवेंद्र और उस के घर वालों को काफी नागवार लगी. अब वह शिल्पी को अपने साथ रखना नहीं चाहते थे, लेकिन रिश्तेदारों के समझाने पर उसे चेतावनी दे कर साथ रख लिया था. पर शिल्पी पर उन की चेतावनी का कोई असर नहीं हुआ. वह अमरीश को भूल नहीं पाई आौर मौका मिलने पर अमरीश से फोन पर बातें करती रही.

पत्नी की हरकतों से तंग आ कर सरवेंद्र ने सन 2015 में अपना ट्रांसफर मुंबई करा लिया. मुंबई में उन्हें विरार की नवनिर्माण ग्लोबल सिटी में रहने के लिए बढि़या फ्लैट मिला ही था, आनेजाने के लिए कार भी मिली थी. हर सुखसुविधा होने के बावजूद शिल्पी का मन नहीं लग रहा था. उस का मन तो अमरीश में बसा था. वह उस के साथ खुले आकाश में उड़ने के लिए तड़प रही थी. बापबेटी शिल्पी की हर गतिविधि पर नजर रख रहे थे, लेकिन उस की हरकतें बंद नहीं हुईं. वह किसी न किसी तरह अमरीश से बातें कर ही लेती थी. इस के लिए वह अलग मोबाइल रखती थी, जिस से वह सिर्फ अमरीश से ही बातें करती थी. मुंबई आने के बाद वह अमरीश से मिल नहीं पा रही थी, इसलिए उस ने उस के साथ भाग जाने की योजना बनाई. इस बार वह उस के साथ इस तरह भागना चाहती थी कि घर वालों की तो छोड़ो, पुलिस उन तक न पहुंच सके. इसीलिए इस बार उस ने भागने को अपहरण के ड्रामे में बदल दिया. लेकिन इस बार भी वह मोबाइल नंबर के जरिए ही पकड़ी गई.

योजना के अनुसार, अमरीश ने 3 महीने पहले यह कह कर घर छोड़ दिया कि उसे दुबई में नौकरी मिल गई है. घर वालों से झूठ बोल कर वह पंजाब के शहर लुधियाना चला गया. वह शेफ का काम जानता ही था, इसलिए उसे वहां एक रेस्टोरेंट में नौकरी मिल गई. इस के बाद वह शिल्पी को भगाने की तैयारी करने लगा. शिल्पी को भगाने के 3 दिन पहले यानी 30 जनवरी को अमरीश लुधियाना से मुंबई पहुंचा तो शिल्पी उस के साथ भागने की तैयारी करने लगी. घर वालों को अमरीश के साथ भाग जाने का संदेह न हो, इस के लिए उस ने सीधे भागने के बजाय अपने अपहरण का ड्रामा रचा, जिस में वह सफल भी रही.

लुधियाना पहुंच कर अमरीश और शिल्पी निश्चिंत हो गए थे और देश छोड़ कर दुबई जाने की तैयारी कर रहे थे. लेकिन शिल्पी ने 3 महीने पहले जो गलती की थी, उसी की वजह से पुलिस ने उसे पकड़ लिया. शिल्पी और अमरीश कुमार ने किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया था, वे बालिग भी थे, इसलिए उन पर कोई अपराध नहीं बनता था. लेकिन अपने अपहरण का ड्रामा रच कर उस ने पुलिस को गुमराह करने का अपराध किया था. इसलिए पुलिस ने उसी का मुकदमा दर्ज कर उन्हें जेल भेज दिया. चूंकि उन का यह अपराध जमानती था, इसलिए जल्दी ही उन की जमानतें हो गईं. जमानत होने के बाद शिल्पी ने पति के साथ जाने से मना कर दिया और प्रेमी अमरीश से विवाह कर के उसी के साथ रह रही है.

सनकी पति ने की अपनी ही पत्नी की हत्या

कल्लू को अकेला घर आया देख कर घर वालों में से किसी ने पूछा कि अंजू कहां है तो उस ने बेहद इत्मीनान से जवाब दिया कि उस की तो उस ने हत्या कर दी है. पहले तो चौंक कर सभी ने कल्लू की ओर देखा. लेकिन उस के हावभाव देख कर सभी को यकीन हो गया कि इस सिरफिरे का कोई भरोसा नहीं कि यह जो कह रहा है, उसे कर चुका हो. भोपाल के कोटरा इलाके के बापूनगर में मामूली खातेपीते लोग रहते हैं. उन्हीं में एक कल्लू विश्वकर्मा भी था. पेशे से वेल्डर कल्लू की एक पहचान निहायत ही सनकी आदमी की भी थी, जो अड़ोसपड़ोस में हर किसी से झगड़ बैठता था, इसलिए लोग उस से दूर रहने में ही अपनी भलाई समझते थे.

30 साल की अंजू कल्लू की पत्नी थी, जो उस के 5 बच्चों की मां थी. पतिपत्नी में आए दिन झगड़ा होता रहता था, जिस के न केवल उन के बच्चे, बल्कि पड़ोसी भी आदी हो चुके थे. 5 बच्चों की मां होने के बावजूद अंजू जवान और आकर्षक दिखती थी. लेकिन इस बात पर खुश होने के बजाय कल्लू को उस पर शक हो चला था कि उस के किसी से अवैधसंबंध हैं. पतियों के इस तरह के शक की न कोई वजह होती है और न ही इस का कोई इलाज है, जिस की मार बेकसूर पत्नियों को झेलनी पड़ती है. अंजू भी उस में से एक थी, जो पति की बातों और तानों को सुनसुन कर परेशान रहती थी. जब कभी वह उस का शक दूर करने की कोशिश करती, कल्लू समझने के बजाय और भड़क उठता था.

26 अक्तूबर, 2016 को जब सभी लोग दिवाली की तैयारियां कर रहे थे, दोपहर कोई एक बजे कल्लू ने अंजू से कहीं घूमने चलने को कहा. पति की इस पेशकश पर पहले तो वह चौंकी, लेकिन जल्द ही खुश भी हो गई. पति शक्की था, झक्की था, लेकिन कभीकभी उस का प्यार उमड़ता था तो अंजू पुराना सब कुछ भूल जाती थी. उस दिन भी जब कल्लू ने अपनी मारुति कार से कलियासोत डैम घूमने चलने को कहा तो वह झटपट यह सोच कर तैयार हो गई कि कहीं ऐसा न हो कि पति का इरादा बदल जाए. दोनों कार में सवार हो कर कलियासोत डैम पहुचे, जहां पतिपत्नी में किसी बात को ले कर विवाद शुरू हो गया. जब दोनों लड़तेझगड़ते डैम के गेट नंबर 13 पर पहुंचे तो कल्लू ने अंजू को काबू कर के उस का गला दबाना शुरू कर दिया. उस समय वहां सुनसान था. क्योंकि आमतौर पर कम लोग ही उतनी दूर तक घूमने जाते हैं. गुस्साए कल्लू ने तब तक पत्नी की गरदन नहीं छोड़ी, जब तक वह लाश बन कर उस की बांहों में नहीं झूल गई. जब पत्नी के मरने की तसल्ली हो गई तो कल्लू ने इत्मीनान से उस की लाश को डैम के बहते पानी में फेंक दिया. लेकिन फरार होने के बजाय वह सीधे घर जा पहुंचा और पत्नी की हत्या की बात दो टूक कह दी. घर वालों ने सकपका कर आसपड़ोस वालों से यह बात कही तो मोहल्ले वालों ने पहले तो जम कर उस की धुनाई की, उस के बाद उसे रस्सी से बांध दिया और पुलिस को खबर कर दी. खबर मिलते ही पुलिस कल्लू के घर पहुंच गई.

एएसपी आर.डी. भारद्वाज ने जब कल्लू से पूछताछ की तो उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद गोताखोरों की मदद से अंजू की लाश और टूटी हुई चूडि़यां भी घटनास्थल से बरामद कर ली गईं. इस के बाद औपचारिक काररवाई पूरी कर के अंजू के शव को पोस्टमार्टम के लिए हमीदिया अस्पताल भिजवा दिया गया. पुलिस के बारबार पूछने पर कल्लू एक ही बात दोहराता रहा कि अंजू बहुत बकबक करती थी, इसलिए उस ने उसे मार डाला. लेकिन इस मामले से यह उजागर हुआ है कि पतिपत्नी के बीच रोजमर्रा की कलह कभीकभी जानलेवा साबित हो जाती है. सनकी और शक्की पति की अक्ल पर इस कदर परदा पड़ जाता है कि वह अपना अंजाम तो दूर की बात, बच्चों के भविष्य की भी परवाह नहीं करता.

लगता तो यही है कि मामूली शक्ल सूरत वाला कल्लू वेल्डिंग के धंधे से कमा तो अच्छा लेता था, पर अपनी जवान और खूबसूरत पत्नी को ले कर हीनभावना से ग्रस्त था, जिस के चलते उस ने उसे हमेशा के लिए ठिकाने लगा कर खुद अपने हाथों अपनी जमीजमाई गृहस्थी उजाड़ दी.

नागिन से जहरीली औरत

घड़ी का अलार्म बजने के साथ ही संगीता सो कर उठ गई. उस समय सुबह के साढ़े 5 बजे थे. संगीता के उठने का रोज यही समय था. उस के पति मुकेश की लुधियाना की दुर्गा कालोनी स्थित अपने घर में ही किराने की दुकान थी. इस कालोनी में अधिकांश मजदूर तबके के लोग रहते थे, जो सुबह ही रोजमर्रा की चीजें दूध, चीनी, चायपत्ती आदि सामान लेने उस की दुकान पर आते थे, इसलिए वह सुबह जल्दी दुकान खोल लेता था. लेकिन उस दिन उस ने दुकान अभी तक नहीं खोली थी.

मुकेश छत पर सो रहा था. गैस चूल्हे पर चाय कापानी चढ़ाने के बाद संगीता ने पति को जगाने के लिए बड़ी बेटी को छत पर भेजा. दरअसल एक दिन पहले स्वतंत्रता दिवस का दिन होने की वजह से पूरे परिवार ने छत पर पतंगें उड़ाने के साथ हुल्लड़बाजी की थी.

उसी मोहल्ले में रहने वाला मुकेश का छोटा भाई रमेश भी अपनी पत्नीबच्चों के साथ वहां आ गया था, लेकिन रात को खाना खाने के बाद वह पत्नीबच्चों सहित अपने घर चला गया था. संगीता अपने बच्चों के साथ सोने के लिए नीचे गई थी. जबकि मुकेश छोटे बेटे करन के साथ छत पर ही सो गया था.

मुकेश को जगाने के लिए बेटी जब छत पर पहुंची तो वहां का दृश्य देख कर उस की चीख निकल गई. बेटी के चीखने की आवाज सुन कर संगीता छत पर गई तो वह भी अपनी चीख नहीं रोक सकी. क्योंकि उस का पति मुकेश लहूलुहान पड़ा था. उस की मौत हो चुकी थी. संगीता रोने लगी. उस की और बेटी की रोने की आवाज सुन कर पड़ोसी भी वहां आ गए. तभी किसी ने पुलिस को और मुकेश के भाई रमेश को यह खबर कर दी.

रमेश चूंकि उसी मोहल्ले में रहता था, इसलिए भाई की हत्या की खबर सुन कर वह तुरंत वहां पहुंच गया. बड़े भाई की लाश देख कर उसे अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हुआ. क्योंकि रात को तो सब ने मिल बैठ कर खाना खाया था.कुछ ही देर में थाना फोकल पौइंट के इंसपेक्टर अमनदीप सिंह बराड़ दलबल के साथ दुर्गा कालोनी पहुंच गए.

इंसपेक्टर अमनदीप ने घटनास्थल का मुआयना किया. मुकेश की खून से लथपथ लाश एक चारपाई पर पड़ी थी. देख कर लग रहा था कि उस के सिर और चेहरे पर किसी भारी चीज से वार किए गए थे.

छत पर 3 कमरे बने थे. एक कमरे में मृतक का दोस्त शामजी पासवान अपनी पत्नी के साथ किराए पर रहता था. एक कमरे में मृतक का 7 वर्षीय बेटा करन सो रहा था और मृतक आंगन में बिछी चारपाई पर था.

जब मृतक पर वार किया गया होगा तो उस की चीख भी निकली होगी. यही सोच कर पुलिस ने शामजी पासवान से पूछताछ की तो उस ने बताया कि गहरीनींद में सोने की वजह से उस ने कोई आवाज नहीं सुनी थी.

निरीक्षण करने पर इंसपेक्टर अमनदीप ने देखा कि छत पर जाने का केवल एक ही रास्ता था. उस दरवाजे में ताला लगाया जाता था. मृतक की पत्नी संगीता से पूछने पर पता चला कि सीढि़यों के दरवाजे पर ताला उस रात भी लगाया गया था. जब ताला लगा था तो वह किस ने खोला. इंसपेक्टर ने संगीता से पूछा तो वह कुछ नहीं बोली.

कुल मिला कर यह बात साबित हुई कि बिना ताला खोले या घर वालों की मरजी के बिना किसी का भी छत पर जाना संभव नहीं था.

बहरहाल घर वालों से प्रारंभिक पूछताछ के बाद अमनदीप सिंह ने लाश पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भेज दी और रमेश की तरफ से अज्ञात हत्यारों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर मामले की तहकीकात शुरू कर दी. यह बात 16 अगस्त, 2018 की है.

पूछताछ करने पर रमेश ने इंसपेक्टर अमनदीप को बताया, ‘‘कल 15 अगस्त होने की वजह से भैया मुकेश ने हमें अपने घर बुला लिया था. दिन भर हम सब लोग मिल कर पतंगें उड़ाते रहे. शाम को संगीता भाभी ने खाना बनाया.

‘‘भैया और मैं ने पहले शराब पी फिर खाना खाया. बाद में मैं अपने बच्चों के साथ रात के करीब 9 बजे अपने घर चला गया था. सुबह होने पर मुझे भैया की हत्या की खबर मिली.’’

अगले दिन पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई. उस में बताया गया कि मुकेश की मौत सिर पर किसी भारी चीज के वार करने से हुई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट पढ़ने के बाद इंसपेक्टर अमनदीप अपने अधीनस्थों के साथ बैठे इस केस पर चर्चा कर रहे थे.

उन की समझ में यह नहीं आ रहा था कि कोई बाहर का आदमी मृतक की छत पर कैसे पहुंच सकता है. क्योंकि मृतक के मकान के साथ ऊंचेऊंचे मकान बने हुए हैं.

उन ऊंचे मकानों से नीचे वाले मकान पर उतरना बहुत खतरनाक था. मान लो अगर कोई किसी तरह नीचे उतर भी गया तो मुकेश की हत्या कर के वहां से कैसे गया. क्योंकि संगीता के अनुसार सीढि़यों वाला और घर का दरवाजा अंदर से बंद था. सुबह उस ने ही सीढि़यों का और घर का मुख्य दरवाजा खोला था.

संदेह करने वाली बात यह थी कि छत पर रहने वाले किराएदार शामजी को इस बात की तनिक भी भनक नहीं थी और ना ही उस ने कोई आवाज सुनी थी. यह हैरत की बात थी. यह सब देखनेसमझने के बाद पुलिस इस नतीजे पर पहुंची कि जो भी हुआ था, घर के अंदर ही हुआ था. इस मामले में बाहर के किसी आदमी का हाथ नहीं था.

क्योंकि मृतक या उस के परिवार की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. पड़ोसियों ने भी किसी को उस के यहां आतेजाते नहीं देखा था. इंसपेक्टर अमनदीप सिंह ने अपने खबरियों को इस परिवार की कुंडली निकलने के लिए कहा.

जल्द ही पुलिस को कई चौंकाने वाली बातें पता चलीं. इस के बाद इंसपेक्टर अमनदीप ने मृतक के छोटे भाई रमेश को थाने बुला कर उस से बड़ी बारीकी से पूछताछ की तो मुकेश की हत्या का कारण समझ में आ गया.

रमेश से पूछताछ के बाद इंसपेक्टर अमनदीप ने पुलिस टीम के साथ संगीता के घर छापा मारा लेकिन तब तक वह और उस का किराएदार शामजी पासवान घर से फरार हो चुके थे.

थानाप्रभारी ने संगीता और शामजी को तलाश करने के लिए एसआई रिचा, एएसआई हरजीत सिंह, हवलदार विजय कुमार, हरविंदर सिंह, अनिल कुमार, बुआ सिंह और सिपाही परमिंदर की टीम को उन की तलाश के लिए लगा दिया.

पुलिस टीम ने सभी संभावित जगहों पर उन्हें तलाशा लेकिन वह नहीं मिले. फिर एक मुखबिर की सूचना पर इस टीम ने 22 अगस्त, 2018 को संगीता और शामजी पासवान को ढंडारी रेलवे स्टेशन से दबोच लिया.

दोनों को हिरासत में ले कर पुलिस टीम थाने लौट आई. दोनों से सख्ती से पूछताछ की तो उन्होंने मुकेश की हत्या करने का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उसी दिन दोनों को अदालत में पेश कर 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया गया. रिमांड में दोनों अभियुक्तों से पूछताछ के दौरान मुकेश की हत्या की जो कहानी सामने आई वह कुछ इस तरह थी—

संगीता बचपन से ही अल्हड़ किस्म की थी. अपने मांबाप की लाडली होने के कारण वह मनमरजी करती थी. मात्र 12 साल की उम्र में उस की शादी मुकेश के साथ कर दी गई. मुकेश बिहार के लक्खीसराय जिले के गांव महिसोनी का रहने वाला था. मुकेश अपने 3 भाइयों में सब से बड़ा था.

मांबाप का नियंत्रण न होने की वजह से संगीता पहले से ही बिगड़ी हुई थी. मुकेश से शादी हो जाने के बाद भी वह नहीं सुधरी. ससुराल में भी उस ने कई लड़कों से संबंध बना लिए. ससुराल वालों ने उसे ऊंचनीच और मानमर्यादा का पाठ पढ़ाया पर संगीता की समझ में किसी की कोई बात नहीं आती थी.

कई साल पहले मुकेश काम की तलाश में लुधियाना आ गया था. लुधियाना में काम सेट होने के बाद मुकेश संगीता को यह सोच कर अपने साथ ले आया कि गांव से दूर एक नए माहौल में शायद वह सुधर जाए. बाद में अपने दोनों भाइयों को भी उस ने लुधियाना बुला लिया था.

लुधियाना आने के बाद मुकेश ने कड़ी मेहनत कर के पैसापैसा बचाया और दुर्गा कालोनी में अपना खुद का मकान बना लिया.

करीब 3 साल पहले मुकेश ने फैक्ट्री की नौकरी छोड़ दी और अपने घर में ही किराने की दुकान खोल ली. अब घर रह कर ही उसे अच्छी आमदनी हो जाती थी. मकान के ऊपर एक कमरा उस ने शामजी पासवान को किराए पर दे रखा था. शामजी मुकेश का दोस्त था. कभी दोनों एक साथ फैक्ट्री में काम किया करते थे.

शामजी बड़ा चतुर था. उस की नजर शुरू से ही संगीता पर थी. मुकेश ने जब साइकिल पार्ट्स फैक्ट्री का काम छोड़ दिया, तब उस की जगह संगीता ने फैक्ट्री में जाना शुरू कर दिया था. संगीता और शामजी दोनों एक ही फैक्ट्री में काम करते थे. यहीं से दोनों में नजदीकियां बढ़ने लगी थीं. जल्दी ही दोनों के बीच अवैध संबंध स्थापित हो गए.

शामजी शादीशुदा था. लेकिन उस का कोई बच्चा नहीं था. उस की पत्नी साधारण और सीधीसादी थी. उसे अपने पति और संगीता के बींच संबंधों का पता नहीं चल पाया था.

एक दिन संगीता के बेटे ने अपनी मां शामजी को एक बिस्तर में देखा तो उस ने यह बात अपने पिता को बता दी. इस के बाद मुकेश सतर्क हो गया. एक दिन उस ने भी अपनी पत्नी को शामजी के साथ रंगेहाथों पकड़ लिया. उस ने शामजी को खरीखोटी सुनाई और उस से कमरा खाली करने के लिए कह दिया.

संगीता मुकेश पर हावी रहती थी उस ने पति से झगड़ा करते हुए कह दिया कि शामजी उसी मकान में रहेगा. अगर उसे निकाला गया तो वह भी उसी के साथ चली जाएगी. इस धमकी पर मुकेश डर गया. फलस्वरूप संगीता ने शामजी को कमरा खाली नहीं करने दिया.

इस बात को ले कर घर में हर समय कलह रहने लगी. मुकेश पत्नी से नौकरी छोड़ने को कहता था, जबकि वह नौकरी छोड़ने को तैयार नहीं थी.

मुकेश ने किसी तरह पत्नी को समझा कर साइकिल फैक्ट्री से नौकरी छुड़वा कर, के.एस. मुंजाल धागा फैक्ट्री में लगवा दी. अलग फैक्ट्री में काम करने से संगीता और शामजी की बाहर मुलाकात नहीं हो पाती थी.

इस से संगीता और शामजी दोनों परेशान रहने लगे. अंतत: दोनों ने मुकेश को रास्ते से हटाने की योजना बना ली. योजना बनाने के बाद संगीता ने पति से अपने किए पर माफी मांग ली और वादा किया कि भविष्य में वह शामजी से नहीं मिलेगी.

योजना को अंजाम देने के लिए शामजी ने 2 हथौड़े खरीद लिए थे. इस के बाद दोनों हत्या करने का मौका तलाशते रहे. संगीता के 5 बच्चे थे. वह अकसर घर पर रहते थे, जिन की वजह से उन्हें हत्या करने का मौका नहीं मिल पा रहा था. आखिर 15 अगस्त वाले दिन उन्हें मौका मिल गया.

मुकेश शराब पीने का आदी था. शाम को मुकेश ने अपने छोटे भाई रमेश के साथ शराब पी थी. खाना खा कर रमेश अपने घर चला गया था. संगीता ने पति से झगड़ा किया. संगीता जानती थी कि झगड़े के बाद पति छत पर ही सोएगा. हुआ भी यही.

मुकेश अपने छोटे बेटे के साथ छत पर सो गया. संगीता नीचे आ गई. इस के बाद जब रात गहरा गई तो रात 2 बजे संगीता छत पर पहुंची. शामजी भी अपने कमरे से बाहर निकल आया. बिना कोई अवसर गंवाए संगीता ने अपने पति के पैर कस कर पकड़े और पासवान ने उस के सिर पर हथौड़े के भरपूर वार कर उसे मौत के घाट उतार दिया.

नशे में धुत होने के कारण उस की चीख तक नहीं निकल सकी. मुकेश की हत्या के बाद शामजी पासवान अपने कमरे में सोने चला गया. जबकि संगीता नीचे कमरे में आ गई. लेकिन उसे सारी रात नींद नहीं आई. सुबह जब बेटी ने छत पर जा कर खून देख कर शोर मचाया. जिस के बाद संगीता ने रोने का ड्रामा करना शुरू कर दिया. पुलिस को पहले से ही संगीता पर शक था. क्योंकि संगीता का रोना महज एक ढोंग दिखाई दे रहा था.

रिमांड अवधि के दौरान पुलिस ने उन दोनों की निशानदेही पर घर के पीछे खाली प्लौट में भरे पानी में फेंका गया हथौड़ा बरामद कर लिया. रिमांड अवधि समाप्त होने के बाद संगीता और शामजी को फिर से अदालत में पेश किया गया. अदालत के आदेश पर दोनों को न्यायिक हिरासत में जिला जेल भेज दिया गया.

इस पूरे प्रकरण में दया की पात्र शामजी की पत्नी थी. वह इतनी साधारण और भोली थी कि उसे अभी तक यह भी विश्वास नहीं हो रहा था कि उस के पति ने मकान मालिक की हत्या कर दी है. वह मृतक मुकेश के पांचों बच्चों का ध्यान रखे हुए है और सभी को सुबहशाम खाना बना कर खिला रही है.     ?

-पुलिस सूत्रों पर आधारित

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