डाक्टर ने शालू का चैकअप किया और बोला कि परेशानी की कोई बात नहीं है. कमजोरी की वजह से इन को चक्कर आ गया था. दवा पिला दीजिए और इन का ध्यान रखिए. ये मां बनने वाली हैं और ऐसी हालत में लापरवाही ठीक नहीं है.’’
डाक्टर के मुंह से मां बनने की बात सुन कर रामबरन हक्केबक्के रह गए. डाक्टर के जाते ही सब से सवालों की झड़ी लगा दी.
दीपा बूआ ने पूरी बात रामबरन को बताई और बोलीं, ‘‘भैया, गौने की तारीख जल्दी से पक्की कर के आइए. अभी कुछ नहीं बिगड़ा है. सब ठीक हो जाएगा.’’
उधर होश में आते ही शालू रोने लग गई. रोतेरोते वह बोली, ‘‘बाबूजी, मुझे माफ कर दीजिए. मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई.’’
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रामबरन शालू के सिर पर हाथ रख कर लंबी सांस ले कर बाहर चले गए.
अगले दिन वे फिर शालू की ससुराल गए. घर पर दीपा और शालू बेचैन घूम रही थीं कि न जाने क्या खबर आएगी.
रामबरन दिन ढले थकेहारे घर आए और आते ही सिर पर हाथ रख कर बैठ गए. उन को इस तरह बैठे देख सब का दिल बैठा जा रहा था. सब सांस रोक कर उन के बोलने का इंतजार कर रहे थे.
रामबरन रुंधे गले से बोले, ‘‘मेरी बेटी की जिंदगी बरबाद हो गई. उन लोगों ने गौना कराने से साफ मना कर दिया. रमेश बोल रहा था कि वह कभी मिलने नहीं आता था. दीपा, वे लोग मेरी बेटी पर कीचड़ उछाल रहे हैं. तू ही बता कि अब क्या करूं मैं?’’
दीपा बूआ और शालू दोनों रोने लगीं. किसी की समझ में कुछ नहीं आ रहा था. उस रात किसी ने कुछ नहीं खाया और सब ने अपनेअपने कमरे में करवटें बदलबदल कर रात बिताई.
सुबह हुई. शालू ने उठ कर मुंह धोया और बहुत देर तक खुद को आईने में देखती रही. मन ही मन एक फैसला लिया और बाहर आई.
रामबरन बरामदे में बैठे थे और शालू उन के पैरों के पास जमीन पर बैठ गई और बोली, ‘‘बाबूजी, मुझ से एक गलती हो गई है. लेकिन इस बच्चे को मारने का पाप मुझ से नहीं होगा. मुझ से यह पाप मत करवाइए.’’
रामबरन ने शालू का हाथ पकड़ लिया और बोले, ‘‘बेटी, क्या चाहती है बोल? मैं तेरे साथ हूं. मैं तेरे लिए सारी दुनिया से लड़ने के लिए तैयार हूं.’’
रामबरन की बात सुन कर शालू बोली, ‘‘बाबूजी, इस नन्ही सी जान को मैं सारी दुनिया से लड़ कर इस दुनिया में लाऊंगी और उस रमेश को नहीं छोडं़ूगी. अपने बच्चे को उस के बाप का नाम और हक दोनों दिलाऊंगी. रमेश बुजदिल हो सकता?है लेकिन मैं नहीं हूं. मैं आप की बेटी हूं, हार मानना नहीं सीखा है.’’
अपनी बेटी की बातें सुन कर रामबरन की आंखें भर आईं. वे आंसू पोंछ कर बोले, ‘‘हां बेटी, मैं हर पल हर कदम पर तेरी लड़ाई में साथ हूं.’’
अगले दिन शालू और रामबरन दोनों जा कर वकील से मिले और उन को सारी बातें समझाईं. वकील ने शालू को इतना बड़ा कदम उठाने के लिए सब से पहले शाबाशी दी और बोले, ‘‘बेटी, तुम परेशान न हो. हम यह लड़ाई लड़ेंगे और जरूर जीतेंगे.’’
धीरेधीरे समय बीतने लगा. रमेश पर केस दर्ज हो गया था. शालू हर पेशी पर अपने बाबूजी के साथ अदालत में अपने बच्चे के हक के लिए लड़ रही थी तो बाहर दुनिया से अपनी इज्जत के लिए. उस का बढ़ता पेट देख कर गांव वालों में कानाफूसी शुरू हो गई थी.
लोग कई बार उस के मुंह पर बोल देते थे, ‘देखो, कितनी बेशर्म है. पहले मुंह काला किया, अब बच्चा जनेगी और केस लड़ेगी.’
शालू सारी बातें सुन कर अनसुना कर देती थी. समय बीतता गया और शालू ने समय पूरा होने पर एक खूबसूरत से बेटे को जन्म दिया.
अदालत की तारीखें बढ़ रही थीं और रामबरन का बैंक बैलैंस खत्म हो रहा था. खेत बेचने तक की नौबत आ गई थी. लेकिन बापबेटी ने हिम्मत नहीं हारी, लड़ाई जारी रखी.
वे कई सालों तक लड़ाई लड़ते रहे. एक दिन रामबरन को एक रिश्तेदार ने एक रिश्ता बताया. वे लोग शालू की सारी सचाई जानते थे. लेकिन जब तक केस खत्म नहीं हो जाता, तब तक शालू अपनी जिंदगी के लिए कोई भी फैसला लेने को तैयार नहीं थी.
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इधर रमेश और उस के घर वाले अदालत के चक्कर लगालगा कर परेशान हो चुके थे. वे लोग चाहते थे कि समझौता हो जाए. शालू उन के घर आ जाए और वे बच्चे को भी अपना खून मानने के लिए तैयार थे, लेकिन शालू ने सख्ती से मना कर दिया और लड़ाई जारी रखी.
आखिरकार शालू की जीत हुई. अदालत ने रमेश को सजा सुनाई और उसे जेल भेज दिया गया. वहीं उसे और उस के बेटे को रमेश की जायदाद में हिस्सेदारी भी दी गई.
शालू ने हिम्मत दिखा कर अपना खोया हुआ मानसम्मान व अपने बेटे का हक सब वापस जीत लिया था. शालू इस जीत पर बेहद खुश थी. इधर शालू की शादी के लिए भी वे लोग जोर देने लग गए थे.
एक दिन रामबरन ने शालू और योगेश की शादी करा दी. योगेश शालू को ले कर मुंबई चला गया. डेढ़ साल बाद शालू और योगेश मुंबई से वापस आए तो शालू की गोद में 6 महीने की एक प्यारी सी बच्ची भी थी.
शाम को रामबरन जब घर आए तो देखा कि आंगन में शालू और योगेश अपने दोनों बच्चों के साथ खेलने में मगन थे. वे अपनी बेटी के उचित फैसले पर मुसकरा कर अंदर चले गए.