दरअसल, इन दिनों रमेश भी साथ वाले कपिलजी की वजह से अपने काले होते चेहरे को ले कर कुछकुछ परेशान था. भाई साहब, आप औफिस में अपना चेहरा चाहे कितना ही क्यों न ढक कर रखें, पर कालिख यहांवहां से उड़ कर कमबख्त चेहरे पर वैसे ही आ कर बैठ जाती है जैसे फूल पर मधुमक्खियां.

जैसे हिरन शिकारी के जाल में एक बार फंस जाता है और उस के बाद वह उस जाल से निकलने की जितनी कोशिश करता है, उतना ही उस जाल में उलझता चला जाता है, ठीक उसी तरह से रमेश भी हिरन की तरह शिकारीरूपी बाजार में आई काले चेहरे को गोरा करने वाली क्रीमों के जाल में एक बार जो फंसा तो उस के बाद बाजार की गोरेपन की क्रीमों के जाल से निकलने की जितनी कोशिश की, उतना ही उस जाल में उलझता चला गया.

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जब रमेश गोरेपन की क्रीमों के बाजार के जाल से निकलने के बजाय उस में उलझताउलझता थक गया कि तभी कपिलजी सामने से अपना काला चेहरा लिए आ धमके.

दरअसल, जब कपिलजी को लगा कि उन का चेहरा अब पूरी तरह से काजल की कोठरी में रहतेरहते काला हो गया है तो वे रमेश के पास काले चेहरे को गोरा करने की सलाह लेने आए.

गोरेपन की क्रीमों के जाल में रमेश को उलझा हुआ देखने के बाद भी वे उस की पीड़ा की परवाह किए बिना बोले, ‘‘यार, मैं देख रहा हूं कि आजकल तेरा काला चेहरा कुछकुछ गोरा हो रहा है. इन दिनों काले चेहरे पर किस बाबा की गोरेपन की क्रीम लगा रहा है तू?’’

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