लेखक- मनमोहन भाटिया
यह सुन कर सुभाष तो मुसकरा दिए. समीर व साक्षी एकदम सन्न रह गए कि मौके की नजाकत खुद मृतक की पत्नी व साले ही नहीं समझ रहे हैं. तभी डौली के छोटे भाई का मोबाइल फोन बजा. फोन उसी टिंडे नाम के आदमी का था, जिस को अभी भद्दी गालियां निकाली जा रही थीं.
‘‘अबे, कहां मर गया, टिंडे,’’ छोटे भाई ने अभी इतना ही कहा था कि बड़े भाई ने छोटे भाई के हाथ से मोबाइल खींच लिया और चीख कर कहा, ‘‘कुत्ते, यहीं से ट्रिगर दबा दूं…’’ लेकिन दूसरे ही पल वह टिंडे को बधाई देने लगा, ‘‘वेलडन टिंडा, तू जीनियस है, तेरा मुंह मोतियों से भर दूंगा, आज तू ने जीजाजी की शहादत बेकार नहीं जाने दी, वेलडन, टिंडा… अच्छा, पंडित…ठीक है, ठीक है,’’ फोन काट कर बड़ा भाई डौली के गले लग गया, ‘‘बहना, उस हवेली का काम हो गया, टिंडे ने हवेली खाली करवा ली है.’’
‘‘शाबाश भाई, टिंडे ने आज जिंदगी में पहली बार कोई अच्छा काम किया है. खोटे सिक्के ने तो कमाल कर दिया.’’
‘‘बहना,’’ छोटा भाई बोला, ‘‘अच्छा, बड़े, पंडित को कौन ला रहा है?’’
‘‘चिंता न कर, आलू पंडित ला रहा है, बस पहुंचता ही होगा.’’
तभी एक मोटा आदमी पंडित के साथ आया. समीर और साक्षी उस मोटे आदमी को देख कर सोचने लगे, यह मोटा आदमी ही ‘आलू’ होगा.
पंडित के आने पर शोकसभा शुरू हो गई, रिवाज के अनुसार सभास्थल 2 भागों में बंट गया, पुरुष एक ओर व महिलाएं दूसरी ओर बैठ गईं. जो डौली अभी तक स्वीटनेस, क्यूटनेस ढूंढ़ रही थीं, वही दहाड़ें मार कर रो रही थीं, यह क्या मात्र दिखावा. पति मर गया, पत्नी को कोई अफसोस नहीं. सिर्फ बिरादरी के आगे झूठे आंसू.
1 घंटे तक पंडित की कथा चली, लेकिन समीर, साक्षी केवल डौली आंटी और उन के भाइयों के आचरण को ही देखते रहे. पंडित ने क्या कथा की, उन को कुछ नहीं सुनाई दी. सुभाष का मन भी उचाट था. वह भी बिहारी के बारे में सोचते रहे कि उस की मृत्यु सामान्य थी या कुछ और. खैर, 1 घंटे बाद शोकसभा समाप्त हुई. बिरादरी रुखसत होने लगी. सुभाष सभास्थल के बाहर आ गए, वहां कुछ पुराने परिचित वर्षों बाद मिले तो थोड़ीबहुत जानकारी बिहारी के बारे में मिलती रही कि बिहारी कई गैरकानूनी धंधों में लिप्त था, 2 बार जेल की हवा भी खा चुका था, जहां उस की मुलाकात शातिर अपराधियों से हुई और एक पुरानी हवेली पर कब्जे के कारण विरोधियों ने खाने में जहर दे दिया, जिसे फूड पौइजनिंग का नाम दे कर बिरादरी से छिपाया गया. उसी हवेली पर कब्जे का समाचार किसी टिंडे ने दिया था, जो सुभाष ने सुना था.
इधर सुभाष पुरुषों के बीच में और उधर सारिका महिलाओं में व्यस्त थी, जहां गहनों, डिजाइनों की बातें चल रही थीं. शोक प्रकट कर दिया तो दुनियादारी की बातों का सिलसिला चल रहा था.
‘‘सारिका, तू ने तो अपने को मेंटेन कर के रखा है, उम्र का पता ही नहीं चलता है. तेरे साथ तेरी लड़की को देख कर लगता है, हमारी देवरानी हमारी उम्र की है,’’ बबीता ने साक्षी का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘शादी कब कर रही है.’’
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शादी के नाम पर साक्षी एकदम चौंक गई. ताऊजी की शोकसभा पर शादी के रिश्तों की बात कर रही है. लोग क्या कुछ पल भी चुप नहीं रह सकते, वही राग, लेकिन सारिका धीरे से मुसकरा कर बोली, ‘‘दीदी, अभी उम्र ही क्या है, फर्स्ट ईयर में पढ़ रही है, पहले पढ़ाई करे, फिर नौकरी, फिर शादी की सोचेंगे, अभी कोई जल्दी नहीं है.’’
‘‘पढ़ने से कौन रोक रहा है. अच्छा रिश्ता आए तो आंख बंद कर के हां कर देनी चाहिए, बाद में उम्र ज्यादा हो जाए तो अच्छे लड़के नहीं मिलते. मेरे भाई का लड़का एकदम तैयार है, अब तो आफिस जाना शुरू कर दिया है. हमारे से भी ज्यादा काम है उस का. कहे तो बात चलाऊं.’’
‘‘कौन से भाई का लड़का, बड़े या छोटे का?’’ सारिका पूछ बैठी.
साक्षी मन ही मन जलभुन गई पर कुछ बोली नहीं.
‘‘बड़े वाले का बड़ा लड़का. बचपन में जिसे गोलू कहते थे. याद होगा,’’ बबीता बोली.
‘‘अरे, हां, याद आया, गोलू जैसा नाम था वैसा फुटबाल की तरह गोल था…’’
सारिका की बात बीच में ही काटते हुए बबीता ने कहा, ‘‘अब तो जिम जा कर हैंडसम बन गया है, मिलेगी तो गश खा जाएगी.’’
‘‘अभी नहीं दीदी, पहले पढ़ाई पूरी कर ले फिर. अभी सुभाष को कोई जल्दी नहीं है. आजकल लड़कियां जौब भी करती हैं, पढ़ाई बहुत जरूरी है.’’
इतने में रमेश कुछ और रिश्तेदारों के साथ आया, ‘‘भाभीजी, आज हम कितने सालों बाद मिले हैं, भाषी कहां है? अरे, वहां कोने में खड़ा है, भाषी, इधर आ,’’ रमेश की आवाज सुन कर समीर और साक्षी सोचने लगे कि पापा ने एक अलग दुनिया दिखाई है, जिस की कभी कल्पना भी नहीं की थी.
‘‘यार भाषी, देख, आज सभी भाई, भाभी बच्चों सहित जमा हैं, एक यादगार अकसर है, हमसब की एकसाथ फोटो हो जाए,’’ कह कर रमेश ने अपने बेटे को आवाज लगाई, ‘‘जिम्मी, निकाल अपना नया मोबाइल और खींच फोटो. मोबाइल भी क्या चीज निकाली है, छोटा सा मोबाइल और दुनिया भर के फीचर्स.’’
जिम्मी फोटो के साथ वीडियो भी बनाने लगा. सभागार के बाहर शोक का कोई माहौल नहीं था, एक पिकनिक सा माहौल था. कुछ देर बाद सब ने विदा ली.
घर आ कर सुभाष टैलीविजन पर एक न्यूज चैनल देख रहे थे. समीर ने कहा, ‘‘पापा, यह अनुभव जिंदगी भर नहीं भुला पाऊंगा.’’
‘‘बेटे, मृत्यु जीवन का कटु सत्य है. किसी के जाने से संसार का कोई काम नहीं रुकता, हर तरह के लोग दुनिया में तुम्हें मिलेंगे, आज तुम ने देखा कि पत्नी को पति की मृत्यु का कोई दुख नहीं था. शोकसभा एक पार्टी लग रही थी, कहीं ऐसा भी देखोगे कि पत्नी पति की मृत्यु पर टूट जाती है, जितने लोगों के व्यवहार का विश्लेषण करोगे, उतनी ही दुनिया की गहराई को जान पाओगे.
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‘‘हर इनसान अपनी सुविधा के अनुसार जीने का मापदंड स्थापित करता है, अपने लिए कुछ और दूसरों के लिए कुछ और. बेटे, मैं आज तक दुनियादारी नहीं पहचान सका. यह एक विस्तृत विषय है, इसे समझने के लिए पूरा जीवन भी कम है. किताबों से बाहर निकल कर कुछ व्यावहारिक ज्ञान मिले, इसी उद्देश्य से तुम्हें वहां ले कर गए थे. कालेज के बाद असली जिंदगी शुरू होती है, जो रहस्यों से भरपूर है. मुझे लगता है कि बड़े से बड़ा ज्ञानी भी इन रहस्यों को नहीं जान पाया है, हां, अपनी एक परिभाषा वह जरूर दे जाता है.’’