
संतू किसी ढाबे पर ट्रक रोकने का मन बना रहा था, तभी सड़क के किनारे खड़ी सांवरी ने हाथ दे कर ट्रक रुकवाया और इठलाते हुए कहा, ‘‘और कितना ट्रक चलाएगा… चल, आराम कर ले.’’ संतू ने सांवरी पर निगाह डाली. ट्रक की खिड़की से सांवरी के कसे हुए उभारों को देख कर संतू एक बार तो पागल सा हो गया.
संतू को अच्छी तरह मालूम था कि इस रास्ते पर ढाबे वाले ग्राहकों को लुभाने के लिए लड़कियों का सहारा लिया करते हैं. उस ने ट्रक सड़क किनारे लगाया और सांवरी के बताए रास्ते पर चल कर उस की झोंपड़ी में पहुंच गया. सांवरी कह रही थी, ‘‘अरे, ढाबे वाले अच्छा खाना कहां देते हैं, इसलिए तुझे यहां अपना समझ कर ले आई. अब तू आराम से खापी, मौज कर. सुबह निकल लेना.’’
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संतू के ऊपर सांवरी की खुमारी चढ़ती जा रही थी. चूल्हा अभी गरम था. रोटी और मटन की खुशबू ने संतू की भूख और बढ़ा दी थी. चूल्हे की लौ में सांवरी की देह तपे हुए सोने सी लग रही थी. उस ने देशी दारू का पौवा निकाला और संतू को पिला कर दोनों ने खाना खाया.
खाना खाने के थोड़ी देर बाद ही वह सांवरी के आगोश में समा गया. सुबह 5 बजे जब संतू जागा, तब उस ने देखा कि न वहां सांवरी थी और न ही सड़क किनारे ट्रक. ट्रक में कम से कम एक लाख रुपए का सामान भरा हुआ था. अब अगर वह बिना सामान के लौटेगा, तब कंपनी को क्या जवाब देगा और जेल की हवा खानी पड़ेगी सो अलग.
तभी कुछ दूरी पर संतू को अपना ट्रक खड़ा दिखा. जब वह वहां पहुंचा, तब उस ने देखा कि उस का सामान गायब था, लेकिन कुछ दूर खड़ी सांवरी हंस रही थी. संतू कुछ बोले, इस के पहले ही सांवरी ने संतू से कहा, ‘‘ऐ ड्राइवर, अब चुपचाप निकल ले. इसी में तेरी भलाई है, वरना…’’
संतू ने कहा, ‘‘तू ने अपनी कातिल निगाहों से तो मुझे घायल कर ही दिया है, अब एक एहसान और कर कि इस चाकू से मुझे भी घायल कर दे, ताकि…’’ खून से लथपथ संतू किसी तरह ट्रक चला कर कंपनी के दफ्तर पहुंचा. कंपनी ने संतू को इलाज के लिए 10 हजार रुपए दिए और एक महीने की छुट्टी दी.
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कंपनी वाले इसलिए खुश हो रहे थे कि सामान भले ही गया, पर उस का बीमा तो मिल जाएगा, लेकिन संतू ट्रक सहीसलामत ले आया था.
अब घर पर रमिया संतू की दवादारू कर रही थी. संतू ठीक हो गया था और रात को ट्रक ले कर इस उम्मीद से उसी रास्ते से गुजर रहा था कि सांवरी उसे फिर मिलेगी.
वह किसी को कुछ समझा नहीं सकता था न कोई सफाई दे सकता था. ललिता ने सबकुछ क्यों किया यह तो उसे आजतक नहीं पता चला न उस ने जानना चाहा लेकिन उस के दिमाग में कई बार यह बात जरूर कौंधी थी कि सुमन ललिता की एकलौती बेटी थी. क्या इस का मतलब यह कि किशोर में कुछ कम… नहीं नहीं वह इस तरह की कोई बात सोचना भी नहीं चाहता था.
वह अब क्या करेगा नहीं जानता. लेकिन कविता को सब सच बता देगा यह तो तय है. लेकिन, कविता से माफी मांग लेने से या माफी मिल भी जाए तब भी गांववालों और किशोर से कैसे सामना करेगा यह वह नहीं जानता. उस की एक गलती इतने सालों बाद उस का घरौंदा तोड़ देगी मुरली ने इस की कल्पना भी नहीं की थी.
दिन लंबा था और उसे काटना बेहद मुश्किल. कोमल बाहर आंगन में अपने खिलौनों में गुम थी और कविता कभी धम से एक परात पटकती तो कभी भगौना.
सुबह के वाकेया को 3 घंटे बीत चुके थे. धूप गहराई हुई थी. मुरली और कोमल अंदर कमरे में थे और कविता ने रसोई को अपना कमरा बना रखा था. घर में लाइट नहीं थी और यह दिल्ली तो थी नहीं कि इनवर्टर चला पंखें की हवा खा सकें. गरमी से मुरली का सिर भन्ना रहा था, पंखा ढुलकाते हुए उस के हाथ दुखने लगे थे. कोमल सो रही थी और मुरली उसे भी हवा कर रहा था. लेकिन, छोटी सी रसोई में कविता गरमी से कम और आक्रोश से ज्यादा तप रही थी. मुरली को चिंता होने लगी कि कविता कहीं बीमार न पड़ जाए.
“कविता,” मुरली ने रसोई के दरवाजे पर खड़े हो कर कहा
कविता पसीने से लथपथ थी. उस आंखें गुस्से में रोने से लाल थीं यह मुरली देख पा रहा था. कविता की जिंदगी में दुखों के बादल कभी नहीं छाए थे. वह अच्छे घर की लड़की थी, 10वीं पास थी जो उस के लिए कालेज से कम न था. घर में 3 और बहनें थीं जो आसपास के गांवों में बिहा दी गईं थी और दो भाई थे जिन के पास पिता के छोड़े हुए खेतखलिहान थे, मकान था और मां के कुछ गहने भी. कविता के हिस्से नाममात्र की चीजें आईं थी लेकिन घर में सब से छोटी होने के नाते उसे इस की भी कोई उम्मीद नहीं थी, सो वह खुश थी.
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अपने घर और आसपास की सहेलियों में वह पहली थी जो शादी कर दिल्ली आई थी. मुरली सुंदर लड़का था और शादी के बाद जो कुछ एक पत्नी को अपने पति से चाहिए होता है वह सब उस से उसे मिला था. मुरली की बातें, रवैया, बोलचाल सभी से कविता प्रभावित थी और उस पर मर मिटती थी. कोमल के जन्म के बाद से तो उसे जैसे सब कुछ मिल गया था. उस का मानना था कि एक बच्ची को वह जितना सुख दे सकते हैं उतना दो बच्चों को नहीं दे पाएंगे और इसलिए वह दूसरा बच्चा नहीं चाहती थी. मुरली उस की इस बात से बेहद प्रभावित हुआ था और हामी भर दी थी.
जीवन का यह पहला और सब से बड़ा आघात कविता को इस तरह लगेगा यह उस की कल्पना से परे था. वह मुरली को किसी और से बांटने के बारे में सोच भी नहीं सकती थी, और किसी गैर औरत के साथ संबंध रखने की बात उस के दिल में उतर नहीं रही थी. उसे लगने लगा जैसे मुरली इतने साल उस से प्यार करने का केवल ढोंग रचता आया है और उस की खुशियों का संसार केवल झूठ की इमारतों से बना हुआ था.
“कविता, एक बार बात सुन लो,” मुरली ने एक बार फिर कहा लेकिन कविता ने उसे देख कर मुंह फेर लिया था.
“जैसा तुम सोच रही हो वैसा कुछ नहीं है, मेरा उस औरत…” मुरली कह ही रहा था कि कविता ने उस की बात बीच में ही काट दी और बोली, “इसीलिए आते थे तुम यहां. और कितनी औरतों के साथ घर बसाएं हैं तुम ने और कितने बच्चे पाले हुए हैं यहां,” उस का गला रूंध गया था.
“ऐसा कुछ नहीं है, मैं ऐसा आदमी नहीं हूं तुम जानती हो. यह बस सालों पहले की गलती थी और बस एक ही बार हुआ था जो हुआ था. मैं इस औरत से उस के बाद कभी मिला भी नहीं, न मुझे कुछ सालों पहले तक सुमन के बारे में पता था. मेरे लिए तुम और कोमल ही मेरा सब कुछ हो और कोई भी नहीं….”
“हां, इसलिए तो धोखा दिया है इतना बड़ा. मैं कल ही अपने भैया के घर चली जाऊंगी मनीना. रख लेना अपनी दोनों बेटियों को और उस औरत को अपने पास. मुझे न यहां रहना है न किसी से कोई रिश्ता रखना है. यह दिन देखने से अच्छा तो मैं शहर में कोरोना से ही मर जाती,” कविता कहती ही जा रही थी.
“तुम कहीं नहीं जाओगी और न मरने की बातें करोगी,” मुरली की आंखों में आंसू थे. वह कविता के आगे घुटनों के बल झुक गया और उस के दोनों हाथ अपने हाथों में ले कहने लगा, “मैं ने कभी उस से प्यार नहीं किया, किसी से नहीं किया तुम्हारे अलावा, सच कह रहा हूं. हम जल्द ही दिल्ली चलेंगे और इस गांव की तरफ मुड़ कर नहीं देखेंगे. मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई, मुझे माफ कर दो,” मुरली सुबकने लगा था. कविता और मुरली दोनों ही रोये जा रहे थे और अब शब्द भी उन के कंठ में अटक कर रह गए थे.
कुछ देर ही बीती थी कि दरवाजे पर एकबार फिर दस्तक हुई. मुरली उठा और मुंह पोंछ कर दरवाजा खोलने गया. कविता ने सिर पर दुपट्टे से पल्ला डाला और रसोई से बाहर खड़ी हो देखने लगी.
दरवाजे पर खुद को मुखिया समझने वाले कुछ बुजुर्ग, चौधरी बन घूमने वाले कुछ नौजवान जिन में से कईयों को मुरली जानता था, लाठी लिए एक बूढ़ी औरत जिसे उम्र के चलते चौधराइन बनने की पूरी इजाजत थी, कुछ औरतें जो मुंह पर पल्ला डाले चुगली के इस सुनहरे अवसर को छोड़ना नहीं चाहती थीं, और कुछ बिना किसी मतलब के आए बच्चे थे. किशोर भी वहीं था लेकिन उस के चहरे पर कोई गुस्सा नहीं था बल्कि असमंजस के भाव मालूम पड़ते थे.
मुरली ने हाथ जोड़े तो बाहर खड़े लोगों में से मुरली के दूर के ताऊ लगने वाला वृद्ध पूरे अधिकार से आंगन में आने लगा जिन के पीछे पूरी फौज भी आ धमकी. मुरली जानता था अब यहां पंचायती होगी और उस पर खूब कीचड़ उछलेगा पर वह यह नहीं जानता था कि असल कीचड़ में किशोर लथपथ होने वाला है.
लोगों ने आंगन का कोनाकोना घेर लिया और कोई चारपाई तो कोई जमीन पर ही चौकड़ी जमा बैठ गया.
“गांव में सुबह से तुम लोगों के बारे में बाते हो रही हैं, हम ने सोची कि पूछें गाम में का माजरो है,” बुजुर्ग मुखिया ने कहा.
“तेरे और किशोर की लुगाई के बीच का चलरो है तू खुद ही बता दे,” दूसरे बुजुर्ग ने कहा.
“मुखिया जी, मैं तुम से कह रहा हूं के ऐसी कोई बात ना है, दोनों छोरियों की शकल मिल रही है तो बस इत्तेफाक है,” किशोर ने कहा.
किशोर के मुंह से यह सुन कर मुरली को हैरानी हुई. मतलब या तो किशोर सब जानता है या जानना नहीं चाहता है.
“जा दुनिया में एक शक्ल के 7 आदमी होते हैं, तुम लोग गांव के गवार ही रहोगे, बेमतलब बहस कर रहे हैं. मैं तुम से कह रहा हूं ना घर कू चलो, यह पंचायती करने का कोई फायदा नहीं है. बात का बतंगड़ मत बनाओ,” किशोर ने फिर कहा.
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मुरली सब के बीच चुप बैठा था और कविता कोने में खड़ी सब सुन रही थी.
“ऐसे कैसे मान लें के कोई बात ना है. हम कोई आंधरे थोड़ी हैं. तेरी बीवी का चक्कर है इस मुरली के साथ, हम जा बात की सचाई जानीवो चाहत हैं,” एक ने कहा.
“मुखिया जी, तुम मेरे घर के मामले में मत कूदो, मैं तुम्हारे हाथ जोड़ता हूं,” किशोर बोला.
“ऐसे कैसे न बोलें, यह तेरे घर का मामला नहीं है अब गाम को मामला है, गाम की इज्जत को मामलो है,” बूढ़ी औरत ने कहा.
“अरे, चम्पा जा तू जाके इस की लुगाई को बुलाके ला,” दूसरे बुजुर्ग ने कहा.
ललिता भी मुरली के आंगन में आ गई. उस ने मुंह घूंघट से ढका हुआ था और हाथ बांधे खड़ी थी. सुमन उस के साथ ही थी.
“हां, ये छोरी तेरी और मुरली की है बता अब सब को,” पीछे से आवाज आई.
“गाम से निकाल दो ऐसी औरत को तो, पति के पीठपीछे रंगरलियां मनाने वाली औरत है ये,” किसी औरत ने कहा.
“मैं न कहता था ललिता भाभी के चालचलन अच्छे न हैं, अब देख लो,” यह गली का ही कोई लड़का था जिस की किशोर से अच्छी दोस्ती थी और ललिता से भी बेधड़ंग मजाक किया करता था.
गांव के जो एकदो लोग किशोर के साथ दरवाजे पर थे वह भी दोनों बच्चियों की एक सी शक्ल देख कर हैरान थे. किशोर की आंखें भी लगभग फटी हुई थीं, कविता को अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ और सब से अलग मुरली अपनी नजरें सभी से छुपाने लगा.
हरतरफ से आवाज आने लगी, कोई कहता “ये तो एक ही शक्ल की हैं,” तो कहीं से आवाज आती “बिलकुल जुड़वां बहनें लग रही हैं”.
ऐसा लग रहा था जैसे सचमुच किसी फिल्म का दृश्य हो. जैसे गोविंदा की एक फिल्म में उस की दो बीवियों से दो बच्चे थे और दोनों की ही शक्लें बिलकुल एक जैसी थीं.
सुमन और कोमल की उम्र में एक साल का अंतर था लेकिन शक्ल में रत्ती बराबर का भी नहीं. सुमन की आंखें भी बड़ी और गोल थीं, कोमल की आंखें भी. सुमन के होंठ भी पतले थे, कोमल के होंठ भी. सुमन का माथा भी चौड़ा था, कोमल का भी. यहां तक कि सुमन का रंग भी गोरा था और कोमल का भी. आखिर, यह कैसे संभव था कि दो अलगअलग कोख से जन्मी बच्चियां एक सी हों बजाए कि उन का पिता एक हो.
सभी के दिमाग में यह बात आने में देर नहीं लगी. किशोर सुमन को ले कर अपने घर चला गया. किशोर की पत्नी ललिता घर में पसीनापसीना हो रखी थी. किशोर ने उसे देखा और देखते ही उस की बांह कसकर भींच ली.
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“चल कमरे में,” किशोर ने कहा.
“क्या… हुआ?” ललिता ने हकलाते हुए कहा.
“इस छोरी की शक्ल उस मुरली की छोरी से कैसे मिलती है?”
“मुझे क्या पता, और आप पूछ क्यों रहे हैं, भला मुझे कैसे पता होगा.”
किशोर ललिता की बात सुन कर कुछ नहीं बोला. वह वहां से उठ कर बाहर निकल गया.
सुमन समझ नहीं पाई कि उस की शक्ल किसी से मिलने पर पापा खुश होने की बजाए नाराज क्यों हो रहे हैं. उस ने मम्मी से जा कर पूछा, “मम्मी, पापा को क्या हुआ?”
“कुछ नहीं, जा कमरे में जा कर खेल,” इतना कह ललिता कुछ सोचते हुए अपने काम में लग गई.
मुरली ने दरवाजा बंद किया तो कविता की आंखों में उसे ढेरों सवाल साफ दिखाई दे रहे थे. उसे समझ आ गया था कि जो राज उस ने 12 सालों तक छुपा कर रखा था अब वह और नहीं छुपा पाएगा.
“तुम जो सोच रही हो वैसा कुछ नहीं है,” मुरली ने कविता से कहा तो वह रसोई में जा बर्तन धोने लगी जोकि ऐसा लग रहा था जैसे बर्तन पटक रही हो.
मुरली चारपाई पर लेट गया और हाथ अपनी आंखों पर रख अतीत में गुम होने लगा.
मुरली जवान तंदरुस्त लड़का था जिस की सुबह दिनभर खेत में घूमने और रात दोस्तों के साथ महल्ले में मटरगश्ती करते निकलती थी. किशोर मुरली का बचपन का दोस्त था. दोनों का घर अगलबगल में ही था तो जब देखो तब दोनों का एकदूसरे के घर आनाजाना रहता था. किशोर की शादी जब ललिता से हुई थी तब मुरली और किशोर दोनों ही 19 वर्ष के थे और ललिता 18 वर्ष की. शादी में जब पहली बार मुरली ने ललिता को देखा था तो उसे वह बेहद अच्छी लगी थी.
शादी के बाद जब भी मुरली किशोर के घर जाता तो ललिता को निहारने से खुद को रोक नहीं पाता था. ललिता मुरली के सामने अकसर घूंघट में रहती थी. सासससुर के होते हुए तो उसे लगभग 24 घंटे ही घूंघट में रहने की हिदायतें दी गईं थीं. मुरली समझता था कि जिस नजर से वह ललिता को देख रहा है वह सही नहीं है लेकिन उस के खयाल उस के काबू में नहीं थे. ललिता खूबसूरत थी, उस का गोरा रंग, हिरणी सा शरीर, पतली बाहें, सबकुछ मुरली को अपनी तरफ खींचता था, लेकिन उस की ललिता को पाने की ख्वाहिश पूरी नहीं होगी यह वह जानता था.
‘भाभी, किशोर को भेजना तो जरा,’ एक दोपहर मुरली ने दरवाजे पर खड़े हो कर कहा.
‘वह सो रहे हैं, आप जगाना चाहें तो आ जाइए,’ ललिता ने मुरली से कहा.
मुरली ललिता के पीछेपीछे कमरे तक चला गया. ललिता के सासससुर दोनों ही घर पर नहीं थे तो उस ने कमरे में घुसते हुए अपना घूंघट हटा लिया. मुरली किशोर को उठाने तो गया था लेकिन ललिता को देख वह चुपचाप सोते हुए किशोर के बगल में बैठ गया. ललिता की नजरें भी मुरली पर टिकी थीं. मुरली को यकीन नहीं हुआ कि सच में ललिता उसे इस तरह देख रही है. वह थोड़ा सकपका गया और किशोर को जगाने लगा.
अगले दिन से मुरली किसी न किसी बहाने छत पर जाने लगा जहां उसे दूसरे कोने पर ललिता उसी समय पर दिख जाती थी. उसे पता था कि यह कोई इत्तेफाक नहीं है, ललिता जानबूझ कर छत पर आती है.
लेकिन, वह यह नहीं समझ पा रहा था कि आखिर ललिता किशोर की बजाय उस में इतनी दिलचस्पी क्यों दिखा रही है. मुरली तो अविवाहित है लेकिन ललिता किसी की पत्नी होते हुए यह सब क्यों कर रही है.
मुरली ललिता की तरफ आकर्षित था लेकिन ललिता का आकर्षण कितना खतरनाक साबित हो सकता था यह भी वह अच्छी तरह समझता था. और फिर एक दिन वही हुआ जो वह सोच रहा था.
किशोर के मातापिता दूसरे गांव एक शादी में गए हुए थे. घर पर सिर्फ किशोर और ललिता ही थे. मुरली और किशोर अपने बाकी दोस्तों के साथ मुरली के घर खानेपीने में लगे थे. किशोर ने एक के बाद एक गिलास शराब पी ली जिस कारण उस के लिए होश संभालना मुश्किल होने लगा. रात गहराने लगी थी और सभी दोस्त एकएक कर अपने घर जाने लगे. किशोर ने इतनी पी ली थी कि उसे ठीक से खड़े होने में भी परेशानी हो रही थी.
मुरली किशोर को उस के घर ले जाने लगा. रात गहरी थी और लोग अपने घरों में सोए थे. मुरली ने पहले सोचा था कि किशोर को उस की छत से ही छोड़ आए पर फिर सोचा कि उसे सीढ़ियों पर चढ़ाना मुश्किल होगा तो सीधा दरवाजे से ही ले गया.
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घर में घुसा तो मुरली की मदद करने के लिए ललिता किशोर को पकड़ने लगी. किशोर को पकड़तेपकड़ते ललिता के हाथ मुरली के हाथों को बारबार छू रहे थे. मुरली के लिए इस तरह किसी औरत का छूना बहुत नया था. खुद को रोक पाना मुरली के लिए कठिन था, और आज तो मौका भी था और ललिता की ‘हां’ थी यह भी वह जानता था. किशोर को कमरे में लेटा कर वह कमरे से बाहर निकला तो ललिता ने कमरे से निकल दरवाजे पर कुंडी लगा दी और मुरली को देखने लगी.
उस ने मुरली को दूसरे कमरे में आने का इशारा किया और मुरली उस के पीछे चला गया. उसे ललिता से कुछ पूछने की सुध नहीं थी और ललिता उसे कुछ बताना नहीं चाहती थी. लगभग 45 मिनट मुरली और ललिता का जिस्मानी संबंध चलता रहा. मुरली उत्तेजित था और उस ने वासना के चलते एक दोस्त की भूमिका भुला दी थी.
वह अपने घर गया तो इस ग्लानी ने उसे घेर लिया. एक तरफ वह ललिता के साथ इस प्रसंग को दोहराना चाहता था और दूसरी तरफ इस बात को स्वीकारना नहीं चाहता था कि उस ने अपने दोस्त की पीठ में छूरा घोंपा है. उस ने किशोर के घर जाना छोड़ दिया. किशोर और बाकी दोस्त उसे बुलाने आते तो साफ मना कर देता. ललिता की तो शक्ल ही नहीं देखना चाहता था वह.
एक हफ्ता ही हुआ था कि उस ने गांव छोड़ने का फैसला कर लिया था. दिल्ली में उस के दूर की रिश्तेदारी का एक लड़का नौकरी कर रहा था. उसी के भरोसे वह दिल्ली आ गया. समयसमय पर घर पर बात हो जाती तो सभी की खबर मिल जाती. 6 महीने बाद घर आया तो ललिता के गर्भवती होने की बात जान कर भी उसे कोई हैरानी नहीं हुई. वह दो दिन के लिए आया था और किसी से मिले बिना ही चला गया था. किशोर और बाकी दोस्त उसे बड़ा आदमी तो कभी घमंडी कहते और अपनी दिनचर्या में रम जाते.
ललिता की बच्ची को ले कर मुरली को पहली बार हैरानी तब हुई जब उस की बेटी कोमल 4 साल और ललिता की बेटी सुमन 5 साल की थी. वह गांव आया था जमीन के किसी मसले को ले कर जब उस ने सुमन को पहली बार देखा था. उस का चेहरा हूबहू कोमल जैसा था. मुरली समझ चुका था कि उस रात ललिता और उस के बीच जो कुछ भी हुआ उस से ललिता गर्भवती हुई थी और यह बच्ची किशोर की नहीं बल्कि मुरली की थी.
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उस ने फैसला कर लिया था कि कभी दोनों बच्चियों का न सामना होने देगा न किसी को यह बात पता चलने देगा. पर अब इतने सालों बाद बात हाथ से निकल चुकी थी. उस के पास गांव वापस आने के अलावा कोई चारा ही नहीं था. शहर में भूखों मरने की नौबत आने से पहले निकल जाना जरूरी था. राज खुलने की आशंका तो उसे थी लेकिन यह सब इतनी जल्दी हो जाएगा यह उस ने नहीं सोचा था.
“पापा, वहां क्या कुएं से पानी पीते हैं?”
“नहीं, नलका लगा है घर में.”
“मिट्टी के घर हैं क्या वहां?”
“नहीं, जैसे यहाँ हैं वैसे ही हैं.”
“और लालटेन जलानी पड़ेगी क्या?”
“नहीं, लाइट आतीजाती रहती है, अब चुप हो जा गांव जा कर पूछना,” मुरली ने अपनी 11 वर्षीया बेटी के एक के बाद एक प्रश्न से झेंप कर उसे चुप कराते हुए कहा.
मुरली अपनी पत्नी कविता और बेटी कोमल को 11 वर्षों बाद अपने गांव माकरोल ले कर जा रहा था. माकरोल उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले का छोटा सा गांव है. मुरली ने 13 साल पहले यह गांव छोड़ा था. वह गांव से अकेला दिल्ली आया था जिस के एक साल बाद ही उस की मां भी यहां आ गई थीं. यहीं उस की शादी मनीना में रहने वाली कविता से करा दी गई थी. जब मुरली की बेटी दो साल की हुई तो मां उसे हमेशा के लिए छोड़ कर जा चुकी थीं.
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वर्तमान में दिल्ली की हालत तो किसी से छुपी हुई नहीं है. कोरोना के चलते जितना सरकारी धनकोश लोगों के लिए खाली है उस से कही ज्यादा आम आदमी की जेब खाली हो चुकी है. दो महीने से काम न होने के चलते शहर के बोर्डर खुलते ही मुरली ने परिवार के साथ वापस गांव लौटने का फैसला कर लिया था.
बस में 6 घंटों का सफर अब समाप्त हो चुका था. मुरली, कविता और कोमल अपने सामान से लदालद भरे 4 बैग ले कर बस से उतरे. कविता का मुंह उस के दुपट्टे से, मुरली का गमछे और कोमल का मास्क से ढका हुआ था. गांव का नजारा शहर से बेहद अलग था. लग रहा था मानो कोरोना ने यहां किसी को छूआ ही न हो. लोग अब भी गुट बनाए बैठे बातें करते साफ दिख रहे थे.
गांव में जैसेजैसे मुरली बढ़ने लगा, उस के माथे पर बल पड़ने लगे. पसीना ऐसे झूटने लगा जैसे जून की गर्मी ने उस अकेले को ही जकड़ा हो. गली में आगे बढ़तेबढ़ते लोगों की नजरें टकटकी लगाए आने वाले उन छह कदमों को देख रही थीं. मुरली ने अपना गमछा हटाया और गली के कोने में बैठे आदमी को देख बोला, “और भैया का हाल है, सब ठीकठाक है?”
“अरे, भैया, कैसे हो, बहुत दिनों बाद आए हो.”
“हां, हम तो सब ठीक हैं, तुम सुनाओ तुम्हारे का हाल हैं,” मुरली बोला.
“हां भैया, कर रहे हैं हम तो अपना गुजारो,” वह कविता और कोमल की तरफ देखते हुए बोला, “भाभी नमस्ते, हम बिजेंदर, हम जेइ महल्ला में रेहत हैं कभी घर घूमने आइयों.”
कविता ने नमस्ते की मुद्रा में सिर हिला दिया.
“और चाची नजर ना आरीं कहां हैं?” मुरली ने बिजेंदर से पूछा.
“भैया, वो भैंस नभाईवे गई हैं,” बिजेंदर बोला.
यह सुन कोमल जोरजोर से हंसने लगी. वह अपने आसपास के इस नए माहौल को देखने में व्यस्त थी. कभी पूछती कि मम्मी यह कौन है वो कौन है, तो कभी कहती घर कितना दूर है जल्दी चलो. वहीं, मुरली आसपास जो भी जानपहचान का मिलता उसे नमस्ते कहता हुआ तो कभी हालचाल का आदानप्रदान करता हुआ जा रहा था.
थोड़ी दूरी पर ही मुरली एक घर के आगे आ कर रुका और अपना बैग खोल चाबी निकालने लगा. लाल रंग के गेट वाला यह घर मुरली का था. मुरली गेट खोलने लगा, तभी सामने वाले घर से एक बुजुर्ग बाहर निकल कर आए. उन्हें देख मुरली बोला, “ताऊ नमस्ते. ताई नजर नहीं आ रही, कहां गईं.”
“भैया तेरी ताई मर गई,” उन ताऊजी ने जवाब दिया.
“हैं, कैसे?” मुरली ने हैरानी से पूछा.
“खेत में घांस लेने गई, सांप खा गयो,” उन्होंने बात पूरी की.
मुरली सुन कर थोड़ा सकुचाया पर फिर नमस्ते कह घर के अंदर बढ़ गया. कविता और कोमल भी घर में घुस चैन की सांस ले पा रहे थे. कोमल ने अपना मास्क उतारा और घर को निहारने लगी. दो मिनट के लिए मुरली की नजरें कोमल पर टिकीं और लगने लगा जैसे वह किसी खयाल में डूब गया हो. उस ने कोमल से अपना ध्यान हटाया और जूते उतारने लगा.
घर बिलकुल गंदा पड़ा था, कहीं जाले लटक रहे थे, तो कहीं तसवीरों पर मिट्टी की परतें जमी हुई थीं. मुरली साल में दो बार 4-6 दिनों के लिए यहां आता था लेकिन अकेला, इसलिए हलकीफुलकी साफसफाई हो जाती थी.
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सुबह 11 से शाम 7 बजे तक कविता, कोमल और मुरली घर की सफाई में ही रम गए. चारपाई के नीचे से घासफूस हटाई गई, खिड़की से जाले झाड़े गए, बर्तनों को मांजा गया, चादरें बिछाई गईं और ढुलकाने के लिए हाथ वाले पंखें निकाले गए. दिनभर की मशक्कत के बाद तीनों खाना खाने बैठे तो एकबार फिर मुरली किसी सोच में खो गया.
“क्या सोच रहे हो?” कविता ने पूछा.
“नहीं, कुछ नहीं,” मुरली ने कहा.
“पापा, यहां मेरे दोस्त बन जाएंगे न?” कोमल बोलने लगी.
“कोई जरूरत नहीं है किसी से दोस्ती करने की. मेरा मतलब कि… कोरोना फैला है न बेटा तो जितना हो सके घर में रहो बाहर मत जाना,” मुरली की आवाज में हिचकिचाहट थी.
“हां, लेकिन थोड़ा तो बाहर निकलेंगे ही, किसी से हांहूं तो करेंगे ही न,” कविता ने कहा.
“कह दिया न कोई जरूरत नहीं है. तुम किसी को जानते नहीं हो तो ज्यादा रिश्ते जोड़ने की जरूरत नहीं है, वैसे भी हमें जिंदगी भर यहां नहीं रहना है.”
“पर..,” कविता कुछ बोलने ही जा रही थी कि मुरली ने उसे अचानक टोकते हुए कहा, “अब क्या चैन से खाना भी नहीं खाने दोगी क्या?”
कविता ने आगे कुछ नहीं कहा. कोमल का चेहरा भी मुरझाने लगा था, उसे लगा कि इस नए घर में बिना किसी दोस्त के वह बहुत बोर होने वाली है.
मुरली वैसे तो अपने परिवार से बेहद प्यार करता था, उन के साथ हंसताखेलता था, लेकिन इस गांव के जिक्र से ही वह हमेशा खिन्न जाता था. अब गरीबी में आटा गीला वाली बात तो यह हुई थी कि आखिर उसे यहीं रहने आना पड़ा, और इस बार अपने परिवार समेत.
मुरली के घर के बगल वाले घर की दीवार बिलकुल बराबर की थी. दोनों छतें आपस में जुड़ी हुई थीं और उस पर सब से अलग तो यह कि दोनों ही छतों पर बाउंडरी नहीं थी. वह घर किशोर का था. किशोर, एक जमाने में मूरली का दोस्त हुआ करता था पर अब सब बदल चुका था.
अगली सुबह कोमल छत पर अपने खिलौने ले कर गई तो उसे बगल वाली छत पर एक लड़की दिखी. कोमल ने उसे देखा तो देखती ही रह गई. उस ने उसे एक बार देखा, फिर पलक झपका कर एकबार फिर देखा, आंखों को मसल कर फिर देखने लगी. जितनी बार देखती उतनी ही ज्यादा हैरान होती.
वह उस लड़की के पास गई और कहने लगी, “तू कौन है, और तू…. एक मिनट बस यहीं रुक मैं अभी आई,” कह कर कोमल भागती हुई नीचे गई.
“मम्मी….मम्मी… जल्दी चलो देखो उस लड़की को.”
“क्या देखना है, बेटा काम करने दे जा. अभी तेरे पापा उठेंगे तो चिल्लाने लगेंगे,” कविता ने झाड़ू लगाते हुए कहा.
“अरे मम्मी, लेकिन एक बार देखो तो,” कोमल मम्मी के दाएंबाएं घूमती हुई बोली.
“कोमल, बेटा जा कर खेल और काम करने दे मुझे,” कविता ने गुस्से से कहा तो कोमल मुंह बनाते हुए निकल गई.
कोमल वापस छत पर पहुंची तो वह लड़की वहां से जा चुकी थी. उस ने यहांवहां झांकने की कोशिश की तो उसे वह लड़की कहीं नहीं दिखी. आखिर कोमल अपने खिलौने ले कर वापस कमरे में आ गई. खिड़की पर टंगे शीशे में वह बारबार अपना चेहरा देखने लगी. कभी मुंह दाईं तरफ करने लगती तो कभी बाईं तरफ, कभी ऊपर तो कभी नीचे.
उसे देख कविता पूछने लगी, “यह क्या नौटंकी लगा रखी है तू ने सुबहसुबह.”
“अरे, मम्मी आप को नहीं पता वहां छत पर जो लड़की थी न बिलकुल मेरी जैसी दिख रही थी. बिलकुल मेरी जैसी मतलब बिलकुल मेरी ही जैसी.”
“बिलकुल तेरी जैसी का क्या मतलब, कुछ भी बोलती है.”
पास सो रहे मुरली की आंख खुल गई. “क्या हो रहा है,” वह बोला.
“पापा, मैं ने न बिलकुल अपनी जैसी एक लड़की देखी ऊपर छत पर,” कोमल कहने लगी.
“क्या…?” मुरली अचानक उठ कर बैठ गया. “बिलकुल तेरी जैसी नहीं दिख रही होगी, नींद में तुझे कुछ भी दिखता है. और तुझे कहा था न यहांवहां नहीं मंडराना. एक दिन हुआ नहीं और नाटक शुरू.”
“छत पर ही तो गई थी. अब क्या कैद हो जाए घर में, बच्ची एक तो अकेली है यहां ऊपर से छत पर भी न जाए. आप को दो दिन नहीं हुए यहां आए और आप का तो मानो रवैया ही बदल गया है,” कविता शिकायती लहजे में बोलने लगी.
“ऐसा कुछ नहीं है और तुम…..” मुरली कह ही रहा था कि दरवाजे पर दस्तक हुई.
मुरली दरवाजा खोलने गया. सामने किशोर और उस की बेटी सुमन को देख हक्काबक्का हो गया. ऐसा नहीं था कि वह उन दोनों को पहली बार देख रहा हो लेकिन आज वह उसे साक्षात यम नजर आ रहे थे.
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“भैया, शहर ते कब लौटे हो गांव, बताया भी नहीं चुपचाप आ गए,” किशोर कहने लगा.
“कल ही आए हैं. सबेरेसबेरे कैसे आना हुआ?” कहते हुए मुरली के माथे से पसीने की बूंदें गिरने लगीं.
“हमारी छोरी सुमन बोल रही कि पापा बगल वाली छत पर को मेरे जैसे छोरी दीखी, तो हम ने सोची देख लें,” किशोर ने कहा तो अंदर से कविता और कोमल भी निकल आए.
“मम्मी देखो बिलकुल मेरे जैसी दिख रही है,” कोमल कविता से कहने लगी.
अंधेरा होते ही बबली का पति काम कर के अपने घर आ गया था. बबली भी एक कबाड़ी के गोदाम पर गंदगी के ढेर से बेकार चीजों की छंटाई का काम करती थी. उसे 2 सौ रुपए रोजाना मिलते थे. पतिपत्नी दोनों बड़ी लगन से मेहनतमजदूरी करते थे, तभी घर का खर्च चल पाता था.
कबाड़ी के गोदाम पर बबली जैसी 4-5 औरतें काम करती थीं. सभी औरतें झोंपड़पट्टी इलाके की थीं. उन के पति भी किसी चौधरी के खेतों में काम करते थे. सुबह 6 बजे जाते थे और शाम को 6 बजे थकेहारे लौटते थे. घर आते ही उन में इतनी ताकत नहीं होती थी कि अपनी झोंपड़ी से थोड़ी दूर पैदल जा कर नहर में नहा आएं.
बबली का पति मेवालाल तो रोजाना की इस कड़ी मेहनत से सूख कर कांटा हो गया था. उस के बदन का रंग काला पड़ गया था.
गरमी के चलते कई दिनों से नल में पानी नहीं आ रहा था. अगर पानी आ भी जाता था, तो गरीब बस्ती से पहले दबंग लोगों की कालोनी थी, जहां हर घर में बिजली की मोटर लगी थी. जब बड़े घरों में बिजली की मोटरें चलेंगी, तो गरीबों के नल में पानी आना कतई मुमकिन नहीं. ऐसे हालात में गरीब बस्ती वालों का एकमात्र सहारा बस्ती से थोड़ी दूर बहती गंदे पानी की नहर थी.
अंधेरा होने पर बस्ती की जवान बहूबेटियों की इज्जत पर कितनी बार हमले हो चुके थे. गरीब लोग दबंगों के ऐसे हमले सहने को मजबूर थे.
मेवालाल सारा दिन मेहनतमजदूरी करने की वजह से प्यास से मरा जा रहा था. उसे नहाना भी था. घर में पानी की एक बूंद नहीं थी. उस ने बबली को नहर से पानी लाने को कहा.
बबली भी थकी हुई थी. उस ने तुनक कर जवाब दिया, ‘‘इतनी दूर से पानी कैसे लाऊंगी? मैं भी थकी हुई हूं. तुम नहर पर जा कर नहा आओ. देर भी हो गई है. अंधेरा फैला हुआ है.’’
‘‘सारा दिन काम करतेकरते पूरे जिस्म से जान निकली जा रही है. अगर मैं मर गया, तो तुम विधवा हो जाओगी. चलता हूं तो चक्कर आते हैं. कहीं नहर में गिर गया तो…
‘‘मेरी नखरे वाली बिल्लो, जा पानी ले आ. अभी तो 3 बेटियां ब्याहनी हैं. अकेले ही तीनों को कैसे ठिकाने लगाओगी?’’ मेवालाल ने बबली की चिरौरी की, तो वह मान गई.
‘‘हांहां, मैं ही मिट्टी की बनी हूं. मुझ पर ही जवानी चढ़ी जा रही है. सारा दिन मैं भी तो मेहनत करती हूं,’’ बबली ने भी अपनी हालत बयान करते हुए थकेहारे लहजे में कहा, तो मेवालाल खामोश रहा. भारी थकावट के चलते उस का बदन दर्द के मारे दुखा जा रहा था. उस की उम्र अभी 35 साल से ज्यादा नहीं थी, मगर कमजोरी के चलते कितनी बीमारियों ने उस के बदन में घर बना लिया था.
थकीहारी बबली ने दुखी मन से बड़ा बरतन उठाया और पानी लेने चली गई. रास्ता कच्चा और ऊबड़खाबड़ था. अंधेरे के चलते बबली ठोकर खाती नहर
की तरफ बढ़ रही थी, तभी उस के कानों में एक मर्दाना आवाज आई. उस के सामने इलाके का दबंग आदमी रास्ता रोक कर खड़ा हो गया था. वह शायद शराब के नशे में चूर था. वह पहले भी इसी रास्ते पर बबली से जोरजबरदस्ती कर चुका था. बसअड्डे पर उस की मोटर मेकैनिक की दुकान थी.
उस दबंग की 2 बार शादी हुई थी. दोनों ही बार उस की शराब पीने की आदत के चलते घरवालियां भाग चुकी थीं. अब वह दूसरों की घरवालियों पर तिरछी नजर रखता था.
बबली कबाड़ के गोदाम पर काम करती थी. गोदाम का मालिक पाला राम उस का दोस्त था. इसी दोस्ती के चलते वह दबंग बबली पर अपना हक समझने लगा था.
‘‘अरे, इस अंधेरी रात में इतनी दूर से पानी ले कर आओगी. इस तरह तो तेरी जवानी का कचरा हो जाएगा. मेरी रानी, तू अगर रात को मेरे पास आ जाया करे, तो मैं तेरी झोंपड़ी के सामने ही पानी का ट्यूबवैल लगवा दूंगा. बोल, रोज रात को मेरे कमरे पर आया करेगी?’’ सामने रास्ता रोक कर उस मोटर मेकैनिक ने रोमांटिक होते हुए पूछा.
‘‘मुझे अपने घरवाले के लिए नहाने का पानी ले जाना है. मैं सारा दिन काम कर के थकीहारी लौटी हूं. कहीं दूसरी गंदी नाली में मुंह मार,’’ दहाड़ते हुए बबली ने कहा.
‘‘अरे, क्यों उस मरे हुए आदमी के लिए अपनी मस्त जवानी बरबाद कर रही है? उसे छोड़ कर मेरे साथ आ जा. मैं तुझे रानी बना कर रखूंगा,’’ कहते हुए हवस से भरे उस मोटर मेकैनिक ने थकीहारी बबली को गोद में उठा कर साथ ही के खाली प्लाट में जमीन पर गिरा दिया और उस की साड़ी उतारने पर आमादा हो गया.
सारे दिन की थकीहारी बबली अपनेआप को बचा नहीं पा रही थी. मोटर मेकैनिक अपनी मनमानी कर के माना. बबली अपनी आबरू गंवा बैठी.
जातेजाते वह दबंग 5 सौ रुपए का नोट देते हुए बोला, ‘‘ऐसे ही मजे देती रहेगी, तो तुझे मालामाल कर दूंगा.’’
‘‘मैं थूकती हूं तेरे रुपयों पर. आज तो तू ने अपनी मनमरजी कर ली, दोबारा ऐसी कोशिश मत करना. अगर कोशिश की, तो बहुत बुरा अंजाम होगा,’’ बबली ने उसे चेतावनी दी. उस ने अपने कपड़े पहने और रोतीसिसकती पानी लाने नहर पर चली गई.
घर जा कर बबली ने पति को सारी बात बताई और यह भी कहा कि मोटर मेकैनिक की बेहूदा हरकत पर उसे सबक सिखाना बहुत जरूरी हो गया है.
अगली सुबह मेवालाल बबली के साथ बस्ती के नजदीक पुलिस थाने पहुंचा. पहलेपहल तो थानेदार ने उन की शिकायत सुनी ही नहीं, उलटे बबली पर ही देह धंधा करने का आरोप लगा दिया.
जब बबली ने बड़े साहब के पास जाने की धमकी दी, तब थानेदार ने एक पुलिस वाला भेज कर मोटर मेकैनिक को थाने बुला लिया.
थानेदार ने जब मोटर मेकैनिक को बबली के साथ बलात्कार का मुकदमा दर्ज करने की धमकी दी, तो वह थानेदार के साथ मुंशी के केबिन में घुस गया.
पता नहीं, मुंशी के केबिन में उन के बीच क्या कानाफूसी हुई. थोड़ी देर में थानेदार केबिन से मोटर मेकैनिक के साथ बाहर निकला और उस के साथ बबली को धमकाते हुए फिर कभी ऐसी गलती न करने की चेतावनी देते हुए थाने से निकाल दिया.
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बबली ज्वालामुखी की तरह दहक उठी थी. वह तो मोटर मेकैनिक से बदला लेना चाहती थी. तब उस ने अपनी बस्ती की तमाम सयानी औरतों के सामने अपना दर्द रखा. साथ ही, यह गुहार भी लगाई कि अगर ऐसे दबंगों पर शिकंजा न कसा गया, तो ये किसी की भी बहनबेटी पर जबरन हाथ डाल सकते हैं.
सब औरतों ने बबली को भरोसा दिलाया कि अगर अब फिर कभी मोटर मेकैनिक ऐसी हरकत करेगा, तो वह बस्ती की दबंग औरत फुलवा को फोन कर के जगह बता दे.
बबली ने एक पुराना मोबाइल फोन खरीदा. उस ने सोच लिया था कि अगर मोटर मेकैनिक दोबारा ऐसा करता है, तो उस का अंजाम बहुत बुरा होगा. अब वह रोजाना नहर पर रात के अंधेरे में पानी लेने जाती थी.
एक दिन शाम ढलने के बाद वह पानी लेने गई, तभी मोटर मेकैनिक फिर मिल गया.
‘‘क्यों रानी, मेरी शिकायत पुलिस में कर के देख ली? क्या हुआ… कुछ भी नहीं. थानेदार भी मेरा चेला है. मेरे दबदबे से तो उस की हवा निकलती है. मेरी रातें रंगीन कर दे मेरी रानी. मैं तुझे महारानी बना दूंगा,’’ शराब के नशे में झूमते हुए मोटर मेकैनिक ने बबली के उभारों पर हाथ रखा.
‘‘यहां रास्ते में कोई आ जाएगा. मैं नदी पर जा रही हूं. तुम आगेआगे वहीं पहुंचो. नहाधो कर वहीं पर मजे लूटेंगे,’’ मन ही मन सुलगते हुए बबली शहद घुली आवाज में बोली.
बबली की यह बात सुन कर मोटर मेकैनिक खुशी के मारे झूम उठा. वह तेजतेज चलते हुए आगे बढ़ने लगा.
बबली ने अपनी बस्ती की फुलवा को फोन कर दिया. वह धीरेधीरे चलते हुए नहर के किनारे पहुंची.
मोटर मेकैनिक बेसब्री के आलम में जल्दीजल्दी बबली की साड़ी खोलने लगा.
बबली ने झिड़क कर उसे रोक दिया, ‘‘रुको… मैं नहा तो लूं. बदन की थकावट उतर जाएगी, तो मस्ती मारने का मजा भी खूब आएगा,’’ बबली ने रोकना चाहा, तो मोटर मेकैनिक रुका नहीं. उस ने बबली को अपनी बांहों में कस कर जमीन पर गिरा दिया.
मोटर मेकैनिक उस पर झपटने ही वाला था कि तभी एकसाथ कई आवाजें सुन कर वह चौंक उठा.
बस्ती की कितनी औरतें हाथों में जूतेचप्पलें ले कर आई थीं. जवान लड़के भी पूरी तैयारी के साथ वहां पहुंच गए थे. सब के हाथों में टौर्च भी थी.
‘‘बदमाश, तू दूसरों की बहनबेटियों को अपनी जागीर समझता है. बहुत जोश भरा है तेरे अंदर? अभी तेरा इलाज करते हैं,’’ बस्ती की फुलवा गुस्से के मारे दहाड़ उठी थी. इस के बाद तो रात के अंधेरे में सब उस मोटर मेकैनिक पर बरस पड़े.
मोटर मेकैनिक की हालत खराब हो गई थी. उसे कोई बचाने वाला नहीं था. सब उसे पकड़ कर घसीटते हुए बस्ती में ले आए.
‘‘यह ले, इस कागज पर दस्तखत कर दे, वरना तेरी हालत और भी बुरी हो जाएगी,’’ फुलवा ने एक सादा कागज उस के सामने रखते हुए कहा.
‘‘यह क्या है?’’ बुरी तरह घायल मोटर मेकैनिक ने बड़ी मुश्किल से पूछा. उस की आंखों के आगे अंधेरा छा रहा था. अपने पैरों पर खड़ा होने की कोशिश करते ही वह जमीन पर चीखते हुए गिर पड़ा था.
‘‘अगर फिर कभी दोबारा तुम ने किसी भी बहनबेटी की तरफ बुरी नजर से देखा, तो तेरा अंगअंग काट दिया जाएगा. इस सजा की जिम्मेदारी सिर्फ तेरी होगी. किसी दूसरे को आरोपी नहीं माना जाएगा, इसलिए तेरे दस्तखत कराना जरूरी है.
‘‘हम इस कागज की एक कौपी थाने में और एक कौपी कचहरी में जमा कराएंगे,’’ फुलवा ने सारी बात समझाई, तो उस की आंखों के सामने अंधेरा छा गया.
उस की समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था. जबान मानो तालू से चिपक गई थी.
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‘‘अरे, मोटर मेकैनिक बाबा, अभी दस्तखत कर दो, वरना गुस्से में आई ये औरतें तेरा आज ही अंग भंग कर देंगी. अगर तुम इन औरतों से बच गए, तो हम तुझे अभी नहर में फेंक देंगे. बस्ती में हमारी मांबहनें रहती हैं. जल्दी दस्तखत कर,’’ वहां जमा हुए लड़कों में से एक ने कहा.
मोटर मेकैनिक ने कांपते हाथों से कागज पर अपने दस्तखत करने में ही भलाई समझी. दस्तखत करते ही वह बेहोश हो गया.
बबली ने साथ आई औरतों का शुक्रिया अदा किया. उस ने महसूस किया कि हिम्मत और सूझबूझ से बड़ी से बड़ी मुसीबत से पार पाई जा सकती है.
किशोर और मुरली चुपचाप खड़े थे और बोलने वाले मुंह केवल गांव के लोगों के थे. सभी कुछ न कुछ कहे जा रहे थे.
“देखो अब भी कैसे खड़ी है, बोल किसकिस के साथ चक्कर चल रो है तेरा,” मुखिया वृद्ध ने कहा.
“मैं सुमन के सिर पर हाथ रख के बोलरी हूं मेरा किसी के साथ कोई चक्कर नहीं है,” आखिर में सुबकते हुए ललिता ने कहा.
“इतना सब कर के भी मुंह खोलने की हिम्मत है इस की,” एक औरत ने कहा.
“मुंह दिखाने लायक न छोड़ा खानदान को,” यह किशोर की दूर के रिश्ते की बुआ थी जिस ने ललिता के कंधे पर जोर से प्रहार करते हुए कहा था. यह देख गांव की एकदो और औरतें भी ललिता को गाली देने लगीं और कभी उस की पीठ पर कोई जोर से मारती तो कोई सिर पर.
अपनी मम्मी के साथ यह सब होता देख सुमन जोरजोर से रोने लगी. ललिता ने सुमन का हाथ कस कर पकड़ा हुआ था और ऐसा लग रहा था जैसे उन दोनों का ही यहां कोई नहीं है.
“धक्के मार के गांव से निकालो इस औरत को, हमारी संस्कृति को मजाक बनाके रख दियो. गांव की बाकी छोरियां क्या सीखेंगी इस से, जातबिरादरी में किसी को मुंह ना दिखा सकते अब,” मुखिया ने कहा.
“मुझे इतना ज्ञान देने की बजाए आप इन को कुछ क्यों नहीं कहते? इन में कमी है पूछो इन से?” ललिता ने चिल्ला कर कहा.
“यह क्या बके जा रही है?” आसपास मौजूद सभी लोग चौंक कर कहने लगे.
“क्या बके जा रही हूं? शादी के बाद कोई सुख नहीं मिला इन से तो मेरे जो मन में आया मैं ने किया, इन से कोई कुछ क्यूं नहीं पूछा रहा है,” ललिता ने कहा तो किशोर वहां से उठ कर जाने लगा. किशोर के मुंह पर शर्मिंदगी के भाव साफ नजर आ रहे थे.
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“अरे, कैसी बेशर्म छोरी है, जा अपनी नाजायज औलाद को ले कर मर कहीं चुल्लू भर पानी में,” किशोर की दूर की बुआ चिल्ला कर बोली.
“खबरदार जो मेरी बेटी के लिए कुछ भी कहा. मेरा मुंह ना खुलवाओ नहीं तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा. जो सुबह शाम महाभारत देखती हो उस में तो बड़ा गुणगान करती हो अर्जुन का, भीम का, वो कौन सा अपने बाप के जने है. उन्हें तो कभी नाजायज नहीं कहा,” ललिता ने कहा.
यह सुन कर दूर की बुआ के कानों से धुआं निकल गया. उन्होंने ललिता के बाल पकड़ लिए और उसे गालियां देने लगीं, अपशब्द कहने लगीं. वहां मौजूद लोगों में से कोई ललिता के साथ नहीं था न किसी ने उस के हक में कुछ कहा. मुरली भी चुपचाप यह सब देख रहा था. यह सब सुनते हुए कोमल भी कमरे से निकल आई थी और सुमन की ही तरह वह भी यह दृश्य देख रही थी.
ललिता ने उन बुआ का हाथ पकड़ा तो एक और औरत ललिता पर हावी होने आ गई. यह देख कविता अपनी जगह से ललिता के बगल में आई और उन औरतों को हटाते हुए बोली, “गलत क्या कह रही है वो. गलती इस अकेली की तो है नहीं न. इस को मारनेपीटने से या बच्ची को नाजायज कहने से आप लोगों को क्या मिलेगा?”
“तू बीच में मत बोल यह हमारे गाम का मामलो है,” एक आदमी ने कहा.
“आप से ज्यादा यह मेरे घर का मामला है. जाइए आप यहां से सभी,” कविता ने कहा.
“यह औरत हमारे घर नहीं आएगी न इस की छोरी को हम घर में घुसने देंगे,” रिश्तेदार बुआ बोलीं.
इस बात पर अन्य लोग भी हामी भरने लगे कि अब ललिता यहां नहीं रहेगी.
“ललिता, इन की बात मत सुनो, किशोर तुम्हारा पति है ऐसे कैसे छोड़ सकता है तुम्हें,” कविता ने कहा.
ललिता ने कविता के आगे हाथ जोड़ते हुए कहा, “मैं अपनी मां के घर अतरौली चली जाऊंगी, अब मेरा यहां कुछ नहीं है, लेकिन, मेरी छोरी को ले गई तो उस की जिंदगी खराब हो जाएगी. न वो पढ़लिख पाएगी और न उस के सिर पे बाप का साया होगा,” कहते हुए ललिता मुरली की तरफ मुड़ी, “तुम बाप हो न इस के, रख लो इसे. मैं तुम्हारा घर नहीं तोड़ना चाहती लेकिन मैं इसे ले जाने लायक नहीं हूं और इस के पापा को लगता था कि यह भगवान की कृपा से पैदा हुई है लेकिन, सचाई जान कर वो इसे अब नहीं आपनाएंगे. बच्चे किसी की कृपा से नहीं होते यह समझने में उन्हें इतने साल लग गए.”
“पर…,” मुरली कुछ कहता उस से पहले ही कविता बोल पड़ी, “सुमन हमारे साथ रहेगी, मेरी न सही इन की बेटी तो है न.”
लोग बढ़बढ़ाने लगे और ‘कैसी औरत है’, “बेचारा ‘घोर कलयुग आ गया है’, ‘बेचारा किशोर किस के पल्ले पड़ गया’, कहते हुए निकलने लगे.
आखिर में ललिता जाने लगी तो सुमन उस से लिपट गई.
“मम्मी, कहां जारी है,” सुमन ने रोते हुए कहा, “मुझे भी ले चल.”
“नहीं, अब यही तेरा घर है,” ललिता ने घूंघट हटाया और पल्लू से सुमन के आंसू पोंछने लगी.
“नहीं, मुझे अपने घर जाना है, पापा के पास जाना है, मुझे भी ले चल.”
“एकबार कह दिया ना यहीं रहना है. ना मैं तेरी मां हूं न वो तेरे पापा. बचपन में मांग लिया था तुझे हम ने. अब और नहीं पाल सकते, जा अब,” ललिता ने सुमन का हाथ झड़कते हुए कहा.
कविता की आंखे भर आईं थी यह सब देखते हुए. ललिता वहां से चली गई और कुछ देर बाद एक बैग में सुमन के कपड़े और कुछ खिलौने दे गई. मुरली ने ललिता को देने के लिए कविता के हाथ में कुछ पैसे दिए थे जिन्हें लेने से कविता ने यह कह कर मना कर दिया था कि उन के इतने एहसान वह नहीं चुका पाएगी. जाते हुए वह सुमन को गले से लगा कर गई थी और सुमन उसे नहीं छोड़ रही थी. आखिर ललिता को उसे छोड़ जाना ही पड़ा.
किशोर ललिता के जाते ही अपने चाचा के घर रहने चला गया था, लोगों के मुंह से बारबार जो कुछ हुआ वह सुनना उस की बर्दाश्त के बाहर था. जाते हुए वह सुमन से मिल कर भी नहीं गया था.
शाम हो चुकी थी. सुमन कोने में खड़ी रो रही थी. कविता खुद नहीं समझ पा रही थी कि आखिर यह सब कैसे हो गया. कोमल मुरली के साथ चारपाई पर बैठी हुई थी.
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कविता ने सुमन को अपने पास बुलाना चाहा पर वह नहीं आई. वह खुद उठ कर उस के पास गई, बोली, “यह तुम्हारा घर है और यह तुम्हारी बहन है. हमें तुम चाची चाचा कह सकती हो. भूख लगी होगी न कुछ खा लो.”
“मुझे नहीं खाना है,” सुमन ने सुबकते हुए कहा.
“नहीं खाओगी तो बीमार हो जाओगी,” कह कर कविता ने कोमल को देखते हुए कहा, “कोमल इधर आ.”
कोमल आ गई.
“स्कूल में मैडम क्या कहतीं हैं, जब कोई खाना नहीं खाता तो क्या होता है?” कविता ने कोमल से पूछा.
“खाना नहीं खाते तो पेट में दर्द होने लगता है और चक्कर आने लगते हैं और दिमाग कमजोर हो जाता है,” कोमल बोली.
“लेकिन, मम्मी तो कुछ और कहवे है,” सुमन ने कहा.
“क्या कहती है?” कविता ने पूछा.
“मम्मी तो कह रही कि पेट में भूख के मारे चूहे मर जाते हैं और बदबू आने लगती है.”
“तू चिंता मत कर, मैं बिल्ली पकड़ कर ले आउंगी, वो तेरे चूहे खा जाएगी और बदबू भी नहीं आएगी,” कोमल ने कहा तो सुमन उस की बात सुन कर खिलखिला कर हंस दी.
यह देख मुरली और कविता मुस्कराने लगे. उन्हें इस नई जिंदगी में ढलने में वक्त लगेगा पर उम्मीदें थीं कि सब ठीक हो जाएगा.
लेखिका- विनीता कुमार
विभा ने झटके से खिड़की का परदा एक ओर सरका दिया तो सूर्य की किरणों से कमरा भर उठा.
‘‘मनु, जल्दी उठो, स्कूल जाना है न,’’ कह कर विभा ने जल्दी से रसोई में जा कर दूध गैस पर रख दिया.
मनु को जल्दीजल्दी तैयार कर के जानकी के साथ स्कूल भेज कर विभा अभी स्नानघर में घुसी ही थी कि फिर घंटी बजी. दरवाजा खोल कर देखा, सामने नवीन कुमार खड़े मुसकरा रहे थे.
‘‘नमस्कार, विभाजी, आज सुबहसुबह आप को कष्ट देने आ गया हूं,’’ कह कर नवीन कुमार ने एक कार्ड विभा के हाथ में थमा दिया, ‘‘आज हमारे बेटे की 5वीं वर्षगांठ है. आप को और मनु को जरूर आना है. अच्छा, मैं चलूं. अभी बहुत जगह कार्ड देने जाना है.’’
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निमंत्रणपत्र हाथ में लिए पलभर को विभा खोई सी खड़ी रह गई. 6-7 दिन पहले ही तो मनु उस के पीछे पड़ रही थी, ‘मां, सब बच्चों की तरह आप मेरा जन्मदिन क्यों नहीं मनातीं? इस बार मनाएंगी न, मां.’
‘हां,’ गरदन हिला कर विभा ने मनु को झूठी दिलासा दे कर बहला दिया था.
जल्दीजल्दी तैयार हो विभा दफ्तर जाने लगी तो जानकी से कह गई कि रात को सब्जी आदि न बनाए, क्योंकि मांबेटी दोनों को नवीन कुमार के घर दावत पर जाना था.
घर से दफ्तर तक का बस का सफर रोज ही विभा को उबा देता था, किंतु उस दिन तो जैसे नवीन कुमार का निमंत्रणपत्र बीते दिनों की मीठी स्मृतियों का तानाबाना सा बुन रहा था.
मनु जब 2 साल की हुई थी, एक दिन नाश्ते की मेज पर नितिन ने विभा से कहा था, ‘विभा, जब अगले साल हम मनु की सालगिरह मनाएंगे तो सारे व्यंजन तुम अपने हाथों से बनाना. कितना स्वादिष्ठ खाना बनाती हो, मैं तो खाखा कर मोटा होता जा रहा हूं. बनाओगी न, वादा करो.’
नितिन और विभा का ब्याह हुए 4 साल हो चुके थे. शादी के 2 साल बाद मनु का जन्म हुआ था. पतिपत्नी के संबंध बहुत ही मधुर थे. नितिन का काम ऐसी जगह था जहां लड़कियां ज्यादा, लड़के कम थे. वह प्रसाधन सामग्री बनाने वाली कंपनी में सहायक प्रबंधक था. नितिन जैसे खूबसूरत व्यक्ति के लिए लड़कियों का घेरा मामूली बात थी, पर उस ने अपना पारिवारिक जीवन सुखमय बनाने के लिए अपने चारों ओर विभा के ही अस्तित्व का कवच पहन रखा था. विभा जैसी गुणवान, समझदार और सुंदर पत्नी पा कर नितिन बहुत प्रसन्न था.
विलेपार्ले के फ्लैट में रहते नितिन को 6 महीने ही हुए थे. मनु ढाई साल की हो गई थी. उन्हीं दिनों उन के बगल वाले फ्लैट में कोई कुलदीप राज व सामने वाले फ्लैट में नवीन कुमार के परिवार आ कर रहने लगे थे. दोनों परिवारों में जमीन- आसमान का अंतर था. जहां नवीन कुमार दंपती नित्य मनु को प्यार से अपने घर ले जा कर उसे कभी टौफी, चाकलेट व खिलौने देते, वहीं कुलदीप राज और उन की पत्नी मनु के द्वारा छुई गई उन की मनीप्लांट की पत्ती के टूट जाने का रोना भी कम से कम 2 दिन तक रोते रहते.
एक दिन नवीन कुमार के परिवार के साथ नितिन, विभा और मनु पिकनिक मनाने जुहू गए थे. वहां नवीन का पुत्र सौमित्र व मनु रेत के घर बना रहे थे.
अचानक नितिन बोला, ‘विभा, क्यों न हम अपनी मनु की शादी सौमित्र से तय कर दें. पहले जमाने में भी मांबाप बच्चों की शादी बचपन में ही तय कर देते थे.’
नितिन की बात सुन कर सभी खिलखिला कर हंस पड़े तो नितिन एकाएक उदास हो गया. उदासी का कारण पूछने पर वह बोला, ‘जानती हो विभा, एक ज्योतिषी ने मेरी उम्र सिर्फ 30 साल बताई है.’
विभा ने झट अपना हाथ नितिन के होंठों पर रख उसे चुप कर दिया था और झरझर आंसू की लडि़यां बिखेर कर कह उठी थी, ‘ठीक है, अगर तुम कहते हो तो सौमित्र से ही मनु का ब्याह करेंगे, पर कन्यादान हम दोनों एकसाथ करेंगे, मैं अकेली नहीं. वादा करो.’
बस रुकी तो विभा जैसे किसी गहरी तंद्रा से जाग उठी, दफ्तर आ गया था.
लौटते समय बस का इंतजार करना विभा ने व्यर्थ समझा. धीरेधीरे पैदल ही चलती हुई घंटाघर के चौराहे को पार करने लगी, जहां कभी वह और नितिन अकसर पार्क की बेंच पर बैठ अपनी शामें गुजारते थे.
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सभी कुछ वैसा ही था. न पार्क बदला था और न वह पत्थर की लाल बेंच. विभा समझ नहीं पा रही थी कि उस दिन उसे क्या हो रहा था. जहां उसे घर जाने की जल्दी रहती थी, वहीं वह जानबूझ कर विलंब कर रही थी. यों तो वह इन यादों को जीतोड़ कोशिशों के बाद किसी कुनैन की गोली के समान ही सटक कर अपनेआप को संयमित कर चुकी थी.
हालांकि वह तूफान उस के दांपत्य जीवन में आया था, तब वह अपनेआप को बहुत ही कमजोर व मानसिक रूप से असंतुलित महसूस करती थी और सोचती थी कि शायद ही वह अधिक दिनों तक जी पाएगी, पर 3 साल कैसे निकल गए, कभी पीछे मुड़ कर विभा देखती तो सिर्फ मनु ही उसे अंधेरे में रोशनी की एक किरण नजर आती, जिस के सहारे वह अपनी जिंदगी के दिन काट रही थी.
उस दिन की घटना इतना भयानक रूप ले लेगी, विभा और नितिन दोनों ने कभी ऐसी कल्पना भी नहीं की थी.
एक दिन विभा के दफ्तर से लौटते ही एक बेहद खूबसूरत तितलीनुमा लड़की उन के घर आई थी, ‘‘आप ही नितिन कुमार की पत्नी हैं?’’
‘‘जी, हां. कहिए, आप को पहचाना नहीं मैं ने,’’ विभा असमंजस की स्थिति में थी.
उस आधुनिका ने पर्स में से सिगरेट निकाल कर सुलगा ली थी. विभा कुछ पूछती उस से पहले ही उस ने अपनी कहानी शुरू कर दी, ‘‘देखिए, मेरा नाम शुभ्रा है. मैं दिल्ली में नितिन के साथ ही कालिज में पढ़ती थी. हम दोनों एकदूसरे को बेहद चाहते थे. अचानक नितिन को नौकरी मिल गई. वह मुंबई चला आया और मैं, जो उस के बच्चे की मां बनने वाली थी, तड़पती रह गई. उस के बाद मातापिता ने मुझे घर से निकाल दिया. फिर वही हुआ जो एक अकेली लड़की का इस वहशी दुनिया में होता है. न जाने कितने मर्दों के हाथों का मैं खिलौना बनी.’’