‘अरे जनाब, कमाल की बातें करते हैं आप. जिन पैसों पर मेरा हक नहीं, उन्हें कैसे ले लूं? क्या आप मेरे ईमान का इम्तिहान ले रहे हैं? कुदरत का करम है साहब हम पर. हमें अपनी मेहनत के अलावा नया पैसा भी नहीं चाहिए.’ स्पष्ट था कि कैब का ड्राइवर ज्यादा पढ़ालिखा नहीं था,
मगर फालतू पैसे लेना उसे गवारा नहीं था.
‘लीजिए साहब, यह आप के 21 रुपए. यदि पैसा देना ही है तो किसी मांगने वाले फ़कीर को दे दीजिए,’ ड्राइवर पैसे वापस करता हुआ बोला.
रामशरण जी का यह लगातार 3 विभिन्न स्तर के व्यक्तियों द्वारा किया गया अपमान था.
इतनी ईमानदारी व खुद्दारी कि बातें सुन कर रामशरण जी को ऐसा लगा मानो वे भारत में नहीं, किसी और देश में आ गए हैं. वर्ष दो हज़ार पचास (2050) का भारत इतना ईमानदार, खुद्दार. भ्रष्टाचार जैसे शब्दों से कोसों दूर. उन्हें तो यह विश्वास ही नहीं हो रहा था.
इस भारत पर रामशरण जी मन ही मन गर्व कर रहे थे. साथ ही साथ, वे अपनेआप को धिक्कार रहे थे अपने द्वारा किए गए भ्रष्टाचारों के लिए. वे सोच में पड़ गए..काश, स्वयं उन्होंने भी इन युवाओं की भांति राष्ट्रहित को व्यक्तिगत हितों के ऊपर रखा होता तो देश मीलों आगे होता.
मगर इतना बदलाव हुआ कैसे? 2020 में ही तो उन्होंने रिटायरमैंट लिया है. 70 सालों में जो देश भ्रष्टाचार को ख़त्म नहीं कर पाया था, मात्र 30 सालों में भारत इतना परिवर्तित कैसे हो गया? रामशरण जी इस बदलाव का कारण जानने के लिए अतिउत्सुक थे.
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मृतक के अंतिम संस्कार के बाद सभी लोग हौल में बैठे हुए थे. माहौल थोड़ा हलका हो गया था. अपनी उम्र के लोगों के बीच बैठे रामशरण जी ने अपने साथ घटित हुई तीनों घटनाएं सुनाईं.
‘इस में आश्चर्य की क्या बात, अंकल जी. यह तो भारतवर्ष का पुनर्निर्माण चल रहा है. अब इस युवा पीढ़ी ने ठान लिया है कि भ्रष्टाचार नाम का शब्द हमारे शब्दकोष से हटाना ही है. इस भ्रष्टाचार के कारण न सिर्फ अपनों में, बल्कि अजनबियों और अंजानों में भी हमें नीचा देखना
पड़ा है,’ पास ही बैठा एक युवक बोल पड़ा जो इन लोगों की बातें सुन रहा था.
‘मगर यह हो किस की प्रेरणा से रहा है और इस के पीछे कारण क्या हैं?’ रामशरण जी ने कुतूहल से पूछा.
‘इस के पीछे किसी व्यक्तिविशेष की प्रेरणा नहीं है. बस, सब लोग अपने आत्मबल की प्रेरणा से अपने आत्मसम्मान को बचाने के लिए यह कार्य कर रहे है. विदेशियों द्वारा दिया गया भ्रष्ट भारतीय का तमगा इस युवा पीढ़ी को नागवार और अपमानित गुजरा. शायद यही कारण है
कि यहां के लोगों ने रिश्वत, नज़राना, उपहार, ईनाम और बख्शिश जैसे नामों से मिलने वाले पैसों का बहिष्कार पूरी नम्रता के साथ कर दिया है.
‘नई शिक्षा प्रणाली का भी इस में बड़ा योगदान है. आप लोगों के समय में आप लोग हमारे पिछले शासकों की वीरता, अंगरेजों से गुलामी मुक्ति की गाथा, सभ्यता का विकास और प्रेरणाशून्य कहानियां व कविताएं पढ़ा करते थे.
‘नई शिक्षा प्रणाली में पहली कक्षा से ही यह बतलाना शुरू कर दिया जाता है कि भ्रष्टाचार क्या है. भ्रष्टाचार के प्रकार और रूप क्याक्या हैं. भ्रष्टाचार से हमारे देश को क्याक्या नुकसान हैं. इस के कारण से हम प्रगति की रफ़्तार में किस सीमा तक पिछड़ रहे हैं. भ्रष्टाचार करने के बाद पकड़े गए लोगों को दी गई कड़ी सजा का भी पूरे विस्तार से वर्णन किया गया है.
‘इन कहानियों में भ्रष्टाचारियों को मिली सामजिक प्रताड़ना का जिक्र भी किया गया है तथा यह भी सुझाया गया है कि भ्रष्टाचारियों को आजीवन सामाजिक पृथक्करण जैसी सजाएं भी दी जानी चाहिए. इस तरह की कहानियों का आज की युवा पीढ़ी के बाल मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ा है और उसी परिवर्तन को आप देख व महसूस कर रहे हैं.
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‘यही नहीं, ईश्वर क्या है? एक अनजाना, अज्ञात भय ही न? नई शिक्षा प्रणाली में भ्रष्टाचार के प्रति एक अनजाना भय पैदा करने कि सफल कोशिश भी की गई है ताकि लोग भ्रष्टाचार को दूर से ही सलाम करें,’ युवक ने एक ही सांस में अपनी पूरी बात कह दी.
‘काश, हमारे समय में भी शिक्षा प्रणाली ने इस तरह के परिवर्तन स्वीकार किए होते, तो शायद आज भारत की तसवीर भी बेदाग़ और साफ़ छवि वाली होती. हम लोग भी इस दलदल से मुक्त होते. भारत की आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक स्थिति कहीं और अधिक सुदृढ़
होती,’ रामशरण जी बोल उठे.
“अजी, सुबह के 7 बज गए हैं, आज औफिस जाने का मूड नहीं है क्या?” पत्नी उन के चेहरे से कम्बल हटाती हुई बोली.
‘ओह, तो यह एक सपना था,’ रामशरण जी बुदबुदाए.
कहते हैं, सुबह का सपना सच होता है. काश, यह सपना भी सच हो जाए. काश, हमारी शिक्षा प्रणाली में इस तरह के सकारात्मक परिवर्तन आ जाएं. रही बात मेरी स्वयं की, तो मैं स्वयं किसी भी स्तर पर भ्रष्टाचार न करने और अपने काम को पूरी ईमानदारी से करने की कसम खाता हूं.
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रामशरण जी ने मन ही मन प्रण किया और एक झटके में बिस्तर से बाहर आ गए.
काश…