बीवी एक तोहफा : शबनम का पति

शबनम और सीमा बचपन से ही साथ पढ़ी थीं. शबनम शुरू से ही सहमीसहमी सी रहती थी. वह किसी से भी ज्यादा बात नहीं करती थी. लेदे कर बस एक सीमा ही थी उस की खास सहेली, जिस से वह अपने सुखदुख की बातें कर लिया करती थी.

एक लड़का रोज शबनम का पीछा करता था और उसे छेड़ता था. शबनम को यह सब अच्छा नहीं लगता था. वह उसे बिलकुल पसंद नहीं करती थी.

एक दिन शबनम स्कूल नहीं आई. सीमा उस से मिलने उस की कोठी पर गई. शबनम गुमसुम बैठी थी और किसी बात पर रोए जा रही थी.

सीमा ने शबनम की बदहवासी की वजह पूछी, तो उस ने बताया, ‘‘बबलू नाम का एक लड़का मेरे बड़े अब्बू के बेटे राज का दोस्त है, जो मुझे हर समय परेशान करता है और राज भी उसे कुछ नहीं कहता है.

‘‘मेरे अब्बू बहुत तेज मिजाज के हैं. उन्हें भनक भी हुई तो वे मेरी तालीम रुकवा देंगे. मैं क्या करूं, कुछ सम?ा नहीं पा रही हूं. अब तू ही कोई बेहतर रास्ता सुझ.’’

सीमा ने उस से कहा, ‘‘कल हम दोनों साथ ही स्कूल चलेंगी.’’

अगले दिन हम एकसाथ स्कूल गईं. वह लड़का बबलू फिर शबनम के सामने आ गया और उस का हाथ पकड़ लिया.

सीमा ने शबनम को हिम्मत दिलाई और उस ने बबलू को एक जोरदार तमाचा जड़ दिया. उस दिन के बाद से बबलू दिखाई नहीं दिया.

समय गुजरा और एक दिन शबनम का निकाह राज से तय हो गया. शबनम तैयार न थी, फिर भी घर वालों के दबाव में उस ने यह निकाह कर लिया.

सुहागरात पर एक लड़की कितने ही सपने संजोती है, आखिर अरमान तो सब के दिल में मचलते हैं. सुहाग सेज पर आने वाली नई जिंदगी के सपनों में खोई शबनम राज का इंतजार कर रही थी. पूरे कमरे में अगरबत्ती की खुशबू में मिली मोगरे और गुलाब के फूलों की खुशबू मदहोश करने वाली थी.

बिस्तर के एक तरफ की टेबल पर बादाम, काजू जैसे मेवों से भरी प्लेट और साथ में एक गिलास दूध का रखा था और दूसरी तरफ की टेबल पर एक देशी ब्रांड की शराब की बोतल के साथ कांच के 2 गिलास थे.

शबनम मन ही मन सोचने लगी, ‘जब राज आएगा तो क्या वह दूध का गिलास आधाआधा कर के पीएगा या आजकल के लोग दूध के बजाय शराब के पैग टकराना पसंद करते हैं, तो क्या राज भी ऐसा करेगा? लेकिन अगर ऐसा हुआ तो मैं ने तो कभी पी ही नहीं, तब तो मुझे जल्दी ही नशा हो जाएगा.’

इतने में अचानक हुई आहट से शबनम चौंक गई. जैसे ही दरवाजा खुला उस के दिल की धड़कनें तेज हो गईं, पलकें शर्म से झक गईं, चेहरे पर इश्क की रंगत की लाली झलकने लगी, सांसें भी तेजी से चलने लगीं, दिल की धड़कन इतनी तेज हो गई कि उसे ‘धकधक’ सुनाई देने लगी.

आज शबनम बला की खूबसूरत लग रही थी. सुर्ख लाल जोड़े में उस का गोरा बदन और भी निखर कर आ रहा था. खूबसूरत जड़ाऊ हार उस की सुराहीदार गरदन को निखार रहा था. माथे का टीका चांद से मुखड़े को चार चांद लगा रहा था. सीना तेज सांस की वजह से ऊपरनीचे ऐसे हो रहा था, मानो कोई 2 गेंद उछाल रहा हो. आज शबनम कयामत ढा रही थी.

जैसेजैसे कदमों की आहट नजदीक आ रही थी, वैसेवैसे शबनम का दिल भी उछल कर बाहर आने को बेताब हो रहा था. लेकिन उस ने खुद पर काबू रखा, अपने अरमानों को अपनी मुट्ठी में दबाए वह राज की छुअन का बेसब्री से इंतजार करने लगी. उस के अरमान मचलने लगे. मन चाहा कि राज जल्दी से आए और उसे अपनी मजबूत बांहों में कस कर बांध ले.

शबनम के होंठ राज के होंठों को अपना रस पिलाने के लिए तड़प उठे कि अचानक उस का घूंघट उठाने के लिए एक हाथ जैसे ही बढ़ा, तो शबनम हाथ के इशारे से रोकते हुए बोली, ‘‘हाय, पहले दरवाजा तो बंद कीजिए.’’

जैसे ही शबनम ने यह कहा, तो जवाब में वह एक अनजान आवाज से चौंकी. वह आवाज बबलू की थी.

बबलू अपने हाथ पर बंधे गजरे की खुशबू सूंघते हुए बोला, ‘‘जानेमन, दरवाजा बंद हो या खुला रहे क्या फर्क पड़ता है, बाहर पहरे पर आप का शौहर राज बैठा है न.’’

शबनम घबरा कर बिस्तर से छलांग लगा कर उठी और बाहर की तरफ भागने लगी, तो बबलू ने उस का हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘जा कहां रही हो? इतने सालों से जो दिल में आग लगी है, उसे तो बु?ा दो, फिर चली जाना जहां जाना हो.’’

शबनम छटपटाते हुए राज को आवाज लगाने लगी. आवाज सुन कर राज अंदर आया और बोला, ‘‘क्यों शोर मचा रखा है… बबलू अपना यार ही तो है, कोई गैर थोड़े ही है. अपना मुंह बंद रखो और चुपचाप बबलू की बात मानो.

‘‘और हां, मैं कहीं काम से जा रहा हूं, सुबह तक आ जाऊंगा. आने पर कोई शिकायत नहीं मिलनी चाहिए,’’ ऐसा कह कर राज बाहर जाते हुए दरवाजा बंद कर गया.

यह सुन कर शबनम की आंखों से केवल आंसू नहीं निकल रहे थे, बल्कि दर्द बह रहा था. क्या करे और क्या न करे, उसे कुछ समझ नहीं आया.

बबलू ने शबनम को अपनी बांहों में जकड़ लिया. शबनम जल बिन मछली की तरह तड़प कर रह गई. उस की आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे और बबलू उस के जिस्म को भूखे भेडि़ए की तरह नोंचनेखसोटने लगा था.

अचानक राज घर पर वापस किसी काम से आया, तो जैसे ही उस ने दरवाजा खोला, तो शबनम दौड़ कर राज के पास आ गई.

‘‘आप ने किस गुनाह की सजा दी है मुझे? मैं ने आप का क्या बिगाड़ा था, जो आप ने इतनी घिनौनी हरकत की? क्या कोई इस तरह सुहागरात पर अपनी बीवी के साथ ऐसा सुलूक करता है, जैसा आप कर रहे हैं?’’

‘‘अरे जानेमन, इस में इतना नाराज होने की क्या बात है? तुम्हें सुहागरात ही तो मनानी थी न, तो मैं या बबलू हो, क्या फर्क पड़ता है?

‘‘बबलू अपना जिगरी यार है. अगर उसे कोई चीज पसंद आए और उसे वह हासिल न करे, ऐसा आज तक हुआ नहीं, तो भला अब कैसे होता? और उस ने मुंहमांगी कीमत भी तो दी है… देख कितने रुपए हैं. तुम ने सारी जिंदगी इतने रुपयों की शक्ल नहीं देखी होगी…’’

ऐसा कहते हुए राज नोटों के बंडल उस के सामने रखते हुए आगे बोला, ‘‘अरे, अब मैं भी परिवार वाला हो गया हूं, भला मेरी तनख्वाह से परिवार कहां से पालूंगा? इसलिए कुछ इंतजाम तो करना था. मुझे यह रास्ता बहुत बढि़या लगा. इस में कमाई अच्छी है. बस, तुम साथ देती रहना.’’

यह सुन कर शबनम के रोंगटे खड़े हो गए कि राज क्या करने की सोच रहा है. हर रात उस के जिस्म का सौदा?

इधर राज को देख बबलू को भी गुस्सा आ गया, ‘‘राज, क्या यार तू इतनी जल्दी वापस आ गया. अभी तो मजा लेना शुरू भी नहीं किया. अभी तक तो देख हम दोनों ने कपड़े पहने हुए हैं.’’

‘‘यार बबलू, माफ कर दे. तेरा मजा खराब करने का मेरा कोई इरादा नहीं था. मैं रोज रात को दवा लेता हूं, तब मेरी रात कटती है. अगर मैं दवा न लेता तो सारी रात तड़पता रहता. मैं वही दवा लेना भूल गया था. बस, वही लेने आया हूं.’’

‘‘चलचल, अब जल्दी से अपनी दवा उठा और चलता बन. मुझ से अब और बरदाश्त नहीं हो रहा. मैं इस कली को मसलने के लिए कब से तड़प रहा हूं,’’ बबलू बोला.

राज जब बिस्तर की दराज में से दवा निकालने लगा, तो उस की नजर शराब की बोतल पर पड़ी, जो ज्यों की त्यों रखी थी.

‘‘यार बबलू, इस के 2 पैग लगा और इसे भी थोड़ी सी पिला दे, फिर देख कैसा मजा आएगा,’’ राज बोला.

‘‘हां यार, यह तो मैं ने देखी ही नहीं. जहां शबनम नाम की बोतल हो, वहां कोई दूसरी बोतल किसे नजर आएगी,’’ बबलू ने कहा, तो वे दोनों हंसने लगे.

राज दवा ले कर चला गया, तो बबलू ने 2 पैग बनाए.

इधर बबलू शराब के पैग बना रहा था, उधर शबनम के दिमाग में भी कुछ चल रहा था. वह सोच रही थी कि अगर आज ?ाक गई, तो राज रोज यही खेल खेलेगा उस के साथ. उसे इस जहन्नुम से निकलने के लिए कुछ न कुछ करना ही होगा.

बबलू ने 2 गिलास में शराब डाल कर एक गिलास शबनम की तरफ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘आज तुम भी इस का स्वाद चख कर देखो. इस के अंदर जाते ही तुम्हें जन्नत का नजारा दिखने लगेगा.’’

जब बबलू शबनम के साथ जबरदस्ती करने लगा, तो शबनम ने चुपचाप गिलास ले कर उसे बातों में उलझ दिया और इस तरह बबलू ने गटागट 4 पैग पी लिए, मगर शबनम ने शराब को छुआ तक नहीं.

बबलू ने नशे में अपने हाथ पर बंधे गजरे की महक को सूंघा और फिर शबनम के बदन को सूंघने लगा, फिर अपने हाथ पर बंधी फूलों की वेणी उतार कर फेंकते हुए कहने लगा, ‘‘इन फूलों में वह महक कहां, जो तेरे बदन में है. तेरे सामने ये फूल सब बेमानी हैं.’’

अब बारी थी शबनम को अपने प्लान को अंजाम देने की. जैसे ही बबलू शराब के नशे में शबनम को पकड़ने लगा, वह शराब की बोतल से उस के सिर पर लगातार वार करने लगी, जिस से उस के सिर से खून की जबरदस्त धारा बहने लगी और कुछ ही पलों में बबलू का शरीर शांत हो कर लुढ़क गया.

इस के बाद शबनम ने राज को फोन कर के खुद ही बुलाया. राज बबलू की लाश और शबनम के हाथ में बोतल देख कर घबरा गया. इस से पहले वह कुछ कहता, शबनम बोल उठी, ‘‘ज्यादा तमाशा करने की जरूरत नहीं है. मैं ने जो किया है, सोचसमझ कर किया है. मैं ने पुलिस को फोन कर के बुला लिया है.’’

राज कुछ सोच कर अचानक से शबनम के कपड़ों को थोड़ा सा कहींकहीं से फाड़ने लगा और उस के बाद खुद के शरीर पर भी चोटें लगाने लगा.

‘‘राज, तुम यह क्या कर रहे हो?’’

‘‘शबनम, तुम्हें जो ठीक लगा वह तुम ने किया, अब मुझे जो सही लग रहा है, वह मैं कर रहा हूं.’’

थोड़ी ही देर में पुलिस आ गई. तब तक शबनम के अब्बूअम्मी और बहुत से रिश्तेदार भी आ गए. सब को अचरज था कि नईनई ब्याहता के कमरे में किसी बाहरी आदमी की लाश पड़ी थी.

एक नए जोड़े के कमरे के हालात बेतरतीब से थे. दुलहन के अधफटे कपड़े थे और दूल्हे के शरीर पर चोटें लगी थीं. सब से अचरज वाली बात यह थी कि एक पराए मर्द की लाश सुहागरात वाले कमरे में कहां से आई?

इंस्पैक्टर के पूछने पर शबनम ने बताया, ‘‘यह आवारा मुझे पहले से ही छेड़ता था और आज पहली रात को मुझे बदनाम करने के लिए कमरे में घुस आया.

‘‘मैं ने समझ कि राज आया है. मैं राज के इंतजार में तड़प रही थी और मैं ने राज के अंदर आते ही बत्ती बुझा दी और अपने ऊपर के कपड़े उतार कर लेट गई.

‘‘इसी बीच कमरे में आया बबलू बिना कुछ बोले मेरे जिस्म के साथ खेलने लगा, तो मैं ने झट से चादर से बदन ढक कर बत्ती जला दी और फटाफट कपड़े पहनने लगी कि तभी राजू भी आ गया और बबलू से उस की लड़ाई होने लगी.

‘‘बबलू राज पर लगातार हमला कर रहा था. किसी अनहोनी के डर से न जाने मुझे क्या सूझ कि मैं ने पास पड़ी शराब की बोतल उठाई और बबलू के सिर पर वार करने लगी. इस तरह बबलू मारा गया.’’

शबनम का पुलिस को इस तरह का बयान दे कर राज को बेगुनाह साबित करना, राज को अंदर तक सालने लगा. जिस शबनम का वह सौदा कर रहा था, आज वही उसे बचा कर खुद सूली पर चढ़ रही थी.

लेकिन न तो पुलिस और न ही शबनम के अम्मीअब्बा शबनम की बात पर यकीन कर रहे थे. पुलिस दोनों को पकड़ कर ले गई.

आखिर में राज को गुनाह कबूल करना पड़ा कि उस ने खुद ही सुहागरात के लिए बबलू को बुला कर शबनम का सौदा किया था.

राज को अदालत ने 10 साल की सजा सुनाई, लेकिन जातेजाते वह शबनम के लिए अदालत में ही ‘तलाक, तलाक, तलाक’ कह कर उसे इस निकाह से आजाद कर गया.

शबनम ने कुछ समय के बाद दूसरा निकाह कर लिया और अपने नए शौहर के साथ दूसरे शहर में जा बसी.

खोटी झांझरें : पंडित जी की पूजा

दालान में पंडितजी बड़े भैया को सामान लिखवा रहे थे, ‘‘ढाई मीटर कपड़ा, एक पसेरी शुद्ध घी, 5 मन लकड़ी, थोड़ी चंदन की लकड़ी, 3 लोटे, 13-13 नग, गीता, तुलसी की माला. तौलिए और खाट वगैरह तो होगी ही बड़े भैया, अगर एक शाल रामसिया की देह के ऊपर डालोगे तो अच्छा रहेगा… आखिरकार बिरादरी में चौधरी खानदान की इज्जत का सवाल है.’’ बड़े भैया ने धीमी आवाज में कहा, ‘‘मगर पंडितजी, इस में तो बहुत खर्च हो जाएगा. कुछ कम पैसों में सारे काम पूरे करवा दीजिए. आखिर अभी तेरहवीं का भोज भी तो करना पड़ेगा.’’

पंडितजी का चमकता चेहरा कुछ बुझने सा लगा. वे बोले, ‘‘जैसा आप ठीक समझें बड़े भैया. आप तो चौधरी घराने के बड़े बेटे ठहरे, आप को क्या कमी.’’ बड़े भैया ने कुछ मायूसी से जवाब दिया, ‘‘आप को तो पता ही है कि रामसिया मेरे मंझले चाचा का एकलौता बेटा था. पुरखों का कमाया हुआ घर में क्या कुछ नहीं था, पर वह बचपन से बिगड़ गया. ‘‘बिना बाप का बेटा मां के लाड़ और बुरी संगत में पड़ कर बचपन से ही शराब और जुए में बरबाद होता गया,

जिस से धीरेधीरे सारी जायदाद खत्म हो गई. ‘‘अब ऐसे वक्त बूढ़ी चाची से रुपया तो मांगा नहीं जा सकता. अपनी जेब से ही खर्चा करना होगा.’’ पंडितजी ऊपर से मातमी सूरत बना रहे थे, पर मन ही मन हिसाब लगाते जा रहे थे कि कहां से, किस तरह से रुपया, दान वगैरह ऐंठा जा सकता है. वे बोले, ‘‘बड़े भैया, आप कुछ भी कहें, हाथी मरता भी है तो सवा लाख का होता ही है.’’ बड़े भैया ने अपने नौकर को बुलाया और कहा, ‘‘पंडितजी को माधव शाह की दुकान पर ले जाओ.

उस से कहना कि मेरे उधार खाते में हिसाब लिख कर, जो भी जरूरी सामान हो दे दे. ‘‘तुम खुद ही लेते आना, ताकि पंडितजी को कोई कष्ट न हो. तब तक मैं दूसरे इंतजाम देखता हूं.’’ बाहर वाले दालान में आदमी और अंदर वाले दालान में औरतें जमा थीं. बीच में कोठा पड़ता था, जहां से लोग आजा रहे थे. कुछ बच्चे भी वहीं बैठ कर अपनीअपनी तरह से बातें कर रहे थे.

अंदर दालान के एक ओर रामसिया की देह बर्फ की सिल्लियों पर रखी हुई थी. बहनों और बहनोइयों का इंतजार किया जा रहा था. बूढ़ी मां एक कोने में देह के सिरहाने बैठी जारजार रो रही थीं. कभीकभी बड़बड़ाना जारी कर देतीं, ‘‘अरी कुलच्छिनी, खा लिया मेरे बेटे को. अब मैं कैसे जी पाऊंगी… मेरा लाड़ला, मेरा रामसिया… रे, तू कहां चला गया.

तेरे बदले मुझे क्यों न मौत आ गई,’’ और वे सिर और छाती पीटना शुरू कर देतीं. महल्ले, बिरादरी की औरतों से भी एक मां का यह बिलखना देखा न जा रहा था. वे भी साथसाथ सुबकती जाती थीं और हमदर्दी जताती जा रही थीं. दूसरे कोने में रामसिया की पत्नी रामसुंदरी बेजान मूरत बनी बैठी थी. उस की आंखों के आंसू सूख चुके थे. जैसे सोचनेसमझने की ताकत ही बाकी न रही हो. न तो उसे रोना आ रहा था और न ही वह यह सोच पा रही थी कि वह विधवा हो चुकी है.

रामसुंदरी को बीते दिन याद आ रहे थे, जिस में उस ने सुहागिन होने का सुख जाना ही न था. बीते हुए दिन आंखों के सामने घूम रहे थे. इस घर में जब रामसुंदरी दुलहन बन कर आई थी, वह दिन उसे आज भी अच्छी तरह याद है. घूंघट के अंदर से वह आवाजें सुन रही थी. कोई औरत कह रही थी, ‘‘मझले चौधरी आज जिंदा होते तो खुशी से फूले न समाते कि कैसी हीरे की कनी सी बहू पाई है. सचमुच रामसिया तो मजनूं बन जाएगा.’’ रूपरंग में सभी बहुओं में बढ़चढ़ कर है,’’

शायद यह बड़ी चौधरानी यानी उस की बड़ी खास होगी, उस ने मन ही मन अंदाज लगाया था. सुना था, उस के 3 भाई थे. बड़े और छोटे अभी भी अच्छे ओहदों पर मुलाजिम थे. उस के अपने मंझले ससुर रियासत के दरबार में मुलाजिम थे. वे 9 साल के बेटे रामसिया और 4 बेटियों को पीछे छोड़ कर जवानी में ही चल बसे थे. मां से रामसुंदरी ने ब्याह से पहले यही सब सुन रखा था.

जब गोदभराई के वक्त उस की सास एक जोड़ी चांदी की खूबसूरत झांझरें उस के पैरों में पहनाने लगी थीं, तो वे बोली थीं, ‘‘बहू, इन झांझरों की शक्ल में मैं अपनी सास की दी हुई धरोहर तुम्हें सौंपती हूं. इन घुंघरुओं से निकलने वाली आवाज की तरह ही तुम्हारी जिंदगी में भी झंकार गूंजती रहे. मेरे लाड़ले को अपने बस में कर के बगिया हरीभरी कर देना.’’

रामसुंदरी तब सास के चरण छूने को उन के पैरों पर झुक गई थी. सांझ ढलने तक रामसुंदरी की 2 शादीशुदा और 2 कुंआरी ननदें दूसरी औरतों के साथ हंसीठिठोली करते हुए रस्में पूरी कराती रहीं. वे जब फूलों से सजे पलंग पर उसे बैठा कर चल दीं, तो अनजाने ही मन में डर के साथसाथ पति से पहले मिलन के खयाल से वह चंचल हो उठी. चूडि़यां जब झनझन बज उठतीं तो वह अपनेआप से शरमा जाती. रामसुंदरी ने गजब की देह पाई थी. जितनी वह सुंदर थी, उतनी ही मादक भी. उस के उभार देखने लायक थे. आज अपनी सुहागरात पर वह शर्म के मारे लाल हो गई थी. देह में अजीब सा रोमांच भर गया था. तभी दरवाजे पर आहट हुई. रामसुंदरी की सांसें ऊपरनीचे होने लगीं.

आज वह कली से फूल जो बनने वाली थी. घूंघट की ओट से पति को आते देखा तो और भी सिकुड़सिमट कर बैठ गई. तभी आवाज आई, ‘‘क्या गठरी सी बनी बैठी है. चल, यह दारू की बोतल पकड़ और गिलास में डाल कर मुझे पिला.’’ रामसुंदरी चौंक कर हैरानी से देखने लगी और सोचा, ‘तो क्या यही हैं चौधरी खानदान के चिराग? जो सपने मैं देख रही थी, क्या वे सब झूठे थे?’

उस रात रामसिया शराब पीता रहा और बड़बड़ाता रहा, ‘‘चल री पैर दबा मेरे. क्या नाम है तेरा? रामसुंदरी या रामप्यारी? खैर, क्या फर्क पड़ता है… मुझे तो काम से मतलब है… नाम कुछ भी हो.’’ शराब की बदबू रामसुंदरी से सहन नहीं होती थी, लेकिन वह मजबूर थी. रामसिया की याद आते ही रामसुंदरी का अल्हड़ मन कसैला हो उठता. जहां तक हो सकता, वह रामसिया की परछाईं से भी बचती रहती. इसी तरह उस की जिंदगी गुजरने लगी. जबजब दोनों ननदों के ब्याह की बात होती, तो रामसिया की बुरी आदतों के चलते रिश्ता टल जाता. कोई कहता, ‘भाई कुछ करता तो है नहीं, शराबी भाई से कैसे निभेगी?’ तो कोई कुछ कह कर टाल देता. एक जगह बात कुछ जमी, तो उन लोगों में से एक ने साफसाफ कह दिया,

‘‘भाई से तो कुछ उम्मीद नहीं है, पिता की जायदाद में बेटी का जो हिस्सा है, अंदाज से उतने जेवर उसे दे देना. हम ब्याह करने को तैयार हैं.’’ रामसुंदरी के जेठ, जिन्हें सभी बड़े भैया कहा करते थे, ने ही बात तय करवाई. यह उम्मीद ले कर कि सुंदरी बहू अपने रूप के बल पर बिगड़ैल बेटे को बांध कर रख सकेगी और बुरी आदतें छुड़वा सकेगी. रामसुंदरी को सोनेचांदी के जेवरों से मढ़ कर मंझली चाची ब्याह लाई थीं. परंतु कुछ सुधार न देख और बहू को बेटे से दूरदूर अलगअलग देख कर उन का सारा गुस्सा रामसुंदरी पर ही उतरता. बातबात में वे बहू को डांटतीं, फटकारतीं.

अब जब बेटी की शादी पर गहनों की बात आई, तो उन्होंने रामसुंदरी के 3-4 गहने उतरवा लिए. कुछ नकद जमापूंजी थी, सो वह बरातियों के स्वागतसत्कार व दूसरे खर्चों में लग गई. जब विदाई हुई, तो रामसुंदरी थकान से चूर कमरे में ही एक कोने में गठरी सी बन कर लेट गई. कुछ ही देर सोई होगी कि रामसिया शराब पी कर आ गया. रिश्तेदारों के बीच शोर मचाता हुआ वह कमरे में आ गया. तब एक ही पल में रामसुंदरी चौकन्नी हो उठी और पास में पड़ी लंबीचौड़ी दरी में लिपट कर आननफानन छिप गई, ताकि कोई यह न जान सके कि वह कहां है. रामसिया ने बहुत ढूंढ़ा. रामसुंदरी को सांस लेने में भी घुटन होने लगी. फिर भी वह बाहर नहीं निकली.

न जाने क्यों वह रामसिया की शराबी बिगड़ैल सूरत को ‘पति परमेश्वर’ का दर्जा न दे पाती थी. फिर रामसिया खर्राटे भरता पलंग पर औंधा सो गया. दबे कदमों से बाहर आते ही रामसुंदरी को देख उस की सास बुरी तरह झुंझलाई, ‘‘क्यों री, कहां छिपी बैठी थी? रामसिया की गरज नहीं सुनाई दी तुझे. यही हैं सुहागिनों के लच्छन?’’ दिन बीतते रहे, चौथी ननद के ब्याह के समय हवेली भी गिरवी रखी गई. रामसुंदरी के पैरों में बस वही झांझरें बची रहीं, बाकी सब गहने एकएक कर के शराब की भेंट चढ़ते गए. रामसुंदरी को सिर्फ लगाव था तो इन्हीं झांझरों से.

आखिर उस के ब्याह की निशानी जो थी. जब पति बिना शराब पिए घर में आता तो मानमनुहार करती और अपना फर्ज निभाती. तीजत्योहार पर अपने सुहाग की निशानी यानी झांझरें जरूर पैरों में पहनती. पहनने से पहले उन्हें खूब चमका कर साफ करती. सारा दिन हंसीखुशी से बीतता. लेकिन शाम ढले रामसिया फिर शराब पी कर आ जाता. दालान से ही उस की ऊंची आवाज सुन कर वह घबरा उठती.

झांझरें बज न उठें, इसलिए जल्दी से उन्हें उतार कर संदूकची में मलमल के कपड़े में लपेट कर रख देती और कहीं किसी कोने में छिप आती. रामसिया शोर मचाता रहता. इसी तरह उन झांझरों से जैसे उस का एक गहरा रिश्ता जुड़ गया. पिछली रात रामसिया घर से निकला तो लौटा ही नहीं. लौटी तो सिर्फ उस की देह, जो एक ट्रक से बुरी तरह कुचली हुई थी.

पुलिस के पूछने पर लोगों ने यही कहा कि शराब पी कर डगमगाता हुआ रामसिया सामने से आते हुए ट्रक के बीचोंबीच घुस गया. शायद उसे तब दीनदुनिया की खबर नहीं थी. जिस ने सुना, दौड़ा आया. सभी मातम मना रहे थे. रामसुंदरी तो जैसे रोरो कर सब से यही पूछ रही थी कि मेरा कुसूर क्या है? आज जैसे उस के लिए सभी मुजरिम थे. चाहे उस की मां हो, सास या ननदें. अपने साथ किए छल से उस का दिल फटा जा रहा था. अचानक रामसुंदरी चौंक उठी.

उस की सास दहाड़ें मारमार कर रो रही थीं, ‘‘मेरा लंबाचौड़ा गबरू जवान बेटा चला गया और यह मनहूस ज्यों की त्यों बैठी है, दो बूंद आंसू भी न बहा सकी, उस के लिए. मैं ही क्यों न चली गई तेरे साथ, ओ मेरे राजा बेटा रे…’’ तभी बड़े भैया आए और बोले, ‘‘चाची, तुम्हें तो पता ही है, मुझ पर कितनी जिम्मेदारियां हैं. जो बन सकेगा, मैं करूंगा ही… फिर भी कुछ रुपए दे देती तो ठीक रहता.’’ सुन कर रामसिया की मां दुखी आवाज में बोली, ‘‘एक वही झांझरें बची हैं बेटा,

जो बहू को गोदभराई में दी थीं, सो ले जा कर बेच दे. अब आखिरी काम में कोई कमी न रखना,’’ फिर आह भर कर वह अपनेआप से कहने लगी, ‘‘मुझ दुखियारी को यह दिन देखना था.’’ चाची का इशारा पा कर 2 औरतें उठीं. वे रामसुंदरी को उठा कर भीतर की ओर चल दीं, जहां संदूकची में झांझरें रखी थीं. रामसुंदरी ने चाबी कमर से निकाल कर संदूकची का ताला खोल दिया.

ढक्कन खोला तो देखा, संदूकची खाली पड़ी है. घबरा कर उस ने लाल मलमल का कपड़ा उठा कर हाथ में ले लिया और संदूकची पलट दी. अचानक ही कपड़े में से शराब की बदबू का भभका उठा और रामसुंदरी के सामने सारी बात साफ कर गया. कल दोपहर को जब वह सो रही थी, तब शायद रामसिया ने चाबी पार कर दी थी और झांझरें बेच कर शराब की शक्ल में मौत खरीद लाया था. तभी तो वह कल शराबखाने में आधी रात तक बैठा रहा था. रामसुंदरी की झांझरें भी आज खोटी निकल गईं. उसे लगा कि अब वह सचमुच ही अनाथ और विधवा हो गई है. रामसुंदरी दहाड़ें मारमार कर रोने लगी, ‘‘हाय रे, मैं लुट गई… बरबाद हो गई… मेरी झांझरें खोटी थीं रे

मजाक: वर्मा साहब गए पानी में

इसी महीने की 30 तारीख को अपने महल्ले के वर्मा साहब रिटायर हो कर गले में अपने भार से ज्यादा भारी फूलों की मालाएं लादे साहब के बगल में पसरे गाड़ी में आए, तो पूरे महल्ले ने दांतों तले उंगलियां दबा लीं. गले में फूलों की मालाएं डाले उस वक्त उन के बगल में उन के साहब उन के पद वाले लग रहे थे, तो वे अपने साहब के पद वाले.

तब उन्होंने अपने गले की मालाएं बड़ी कस कर पकड़ी हुई थीं.वर्मा साहब को उस वक्त चिंता थी तो बस यही कि कहीं उन के साहब उन के गले से माला निकाल कर अपने गले में न डाल लें. जब उन के साहब उन की गले की माला ठीक करने लगते, तो उन्हें लगता जैसे वे उन के गले से माला छीनने की कोशिश कर रहे हों.बहुत शातिर हैं वर्मा साहब के साहब.

सभी के फायदे को यों डकार जाते हैं कि किसी को उस की हवा भी नहीं लगने देते. जितने को हवा लगती है, उतने का साहब हाथ साफ करने के बाद धो भी चुके होते हैं. ये मालाओं का मोह होता ही ऐसा है कमबख्त. जिस के गले में एक बार जैसेकैसे पड़ गईं, उस के बाद उन्हें बचाना बहुत मुश्किल होता है.तब महल्ले वाले वर्मा साहब के गले में उन के भार से ज्यादा भारी मालाएं देख कर इशारों ही इशारों में एकदूसरे से बातें करने लगे,

‘अरे, हम तो वर्मा साहब को यों ही समझते थे कि वे औफिस में क्लास थ्री हैं, पर ये तो इस वक्त साहब के भी बाप लग रहे हैं. हम ने तो सोचा था कि ये रिटायरमैंट वाले दिन भी रोज की तरह पैदल ही घर आएंगे, जैसे रोज आया करते थे,

पर…’महल्ले वाले उन को महल्ले की दाल समझते हों तो समझते रहें, पर वे पकौड़े से कम नहीं, वह भी बेसन वाले नहीं, पनीर वाले. ये तो अपने वर्मा साहब का भला हो कि… जो बाहर को कोई उन के पद जितना ऊंचा मुलाजिम होता,

तो सारे महल्ले को नाकों चने चबवाया करता दिन में 10-10 बार.जैसे ही वर्मा साहब अपने घर के बाहर सड़क पर अपने दफ्तर की गाड़ी से अपनी परवाह किए बिना अपने गले की मालाओं को संभालते उतरे, तो उन की बीवी ने उन की आरती यों उतारी जैसे बलि के बकरे की बलि देने से पहले पुजारी उस की आरती उतारता है.उस के बाद बड़ी देर तक वर्मा साहब के घर में चहलपहल रही.

कुछ देर बाद उन के औफिस वाले खापी कर उन को हाथ जोड़ उन के आगे की बची जिंदगी को शुभकामनाओं में लपेट कर हमदर्दी देते दुम दबाए चलते बने. उस के बाद भी बड़ी देर तक उन के यहां खूब पार्टी उड़ती रही. महल्ले वालों ने डट कर खाया.

उन्होंने भी जो 30 साल तक औफिस में डट कर अपने हिस्से का खाया था, उस में से दिल खोल कर महल्ले वालों को डट कर खिलाया, ताकि औफिस में खाए के पाप को महल्ले वालों के सिर पर भी थोड़ाबहुत डाला जा सके.बड़ी देर तक वर्मा साहब दिल खोल कर अपने औफिस के वे किस्से भी अपने साथ बैठों को कौफी पीते सुनाते रहे, जो उन्होंने बौस के डर के मारे आज तक खुद को भी न सुनाए थे.

मुझे पता था कि कल तक जो ऊंट औफिस में हर काम करवाने वाले को अपने नीचे ले कर ही रखता था, कल से वही ऊंट पहाड़ के नीचे आने वाला नहीं, जब तक जिंदा रहेगा, अब तब तक पहाड़ के नीचे ही रहेगा.आखिरकार जब पार्टी खत्म हुई, तो वर्मा साहब के सब यारदोस्त खापी कर अपनेअपने घर निकल गए, तब उन की बीवी ने उन को समझाते हुए कहा,

‘‘देखोजी, अब ध्यान से सुनो. कान खोल कर सुनो. अब तुम रिटायर पति हो, औफिस वाले पति नहीं…’’‘‘तो क्या हो गया? पति तो हूं न?’’‘‘तो अब हो यह गया कि अपने गले से सारी मालाएं निकाल कर अपनी सामने वाली तसवीर पर डाल दो और यह पकड़ो लिस्ट…’’

‘‘काहे की लिस्ट? तुम्हें पता नहीं कि मैं लिस्ट लेता नहीं, लिस्ट देता रहा हूं…’’‘‘डियर पति, घर के कामों की. लिस्ट देने वाले दिन बीत गए अब. बहुत धमाचौकड़ी कर ली औफिस में.

अब से तुम्हारा औफिस यह होगा और ड्यूटी टाइम 11 से 4 नहीं, बल्कि सुबह 5 बजे से रात को 10 बजे तक रहेगा. जिस दिन काम ज्यादा हुआ, उस दिन रात के 12 भी बज सकते हैं.’’

‘‘मतलब कि ओवर टाइम?’’ वर्मा साहब को काटो तो खून नहीं.‘‘जी हां, ओवर टाइम. पर उस की न छुट्टी, न अलग से पैमेंट. अब तुम्हें कल से ये सारे काम करने हैं. लिस्ट गले में डाल लो, ताकि याद करने में आसानी रहे.’’बीवी ने उन्हें 2 फुट लंबी घर के कामों की लिस्ट थमाई,

तो उन्हें उन के पैर के नीचे से उन्हीं के नाम की रजिस्ट्री हुई जमीन सरकती लगी.‘‘कुछ देर आराम कर लो. दोस्तों से गपें मार कर थक गए होंगे. 30 साल तक बहुत करवा ली सब से अपनी सेवा, अब कल से तुम मेरी सेवा करोगे. पता नहीं फिर अगले जन्म में मुझे तुम से अपनी सेवा करवाने का मौका मिले या न मिले,’’ वर्मा साहब की बीवी ने कहा और सोने चली गई.

तब वर्मा साहब कभी अपने हाथ में बीवी द्वारा थमाई गई कामों की लिस्ट देखते, तो कभी अपनी तसवीर पर अपने गले से उतार कर चढ़ाई गई फूलों की मालाएं. जब उन का रोना निकल आया, तो वे अपनेआप से बोले, ‘‘जरा इन फूलों की खुशबू तो खत्म होने देती,’’

पर उन के सिवा उन की सुनने वाला वहां था ही कौन, जो ऐसा होने देता.सुबह ज्यों ही वर्मा साहब की बीवी ने बांग दी तो वे उछल कर नहीं, छल कर जागे.

फटाफट घर के कामों की लिस्ट देखी. सब से ऊपर वाला काम बीवी के बांग देते ही होना था, सो बेचारे अधजगे ही करने लगे.10 बजे के आसपास मैं ने भी सोचा, ‘चलो, वर्मा साहब के दर्शन कर लेते हैं. बेचारे औफिस जाने को फड़फड़ा रहे होंगे…’मैं उन के घर गया उन की रिटायरमैंट के बाद की जिंदगी का लाइव देखने. उस वक्त वे कमरे में झाड़ू लगा रहे थे. उन्होंने मुझे देखा, तो वे झाड़ू कोने की ओर फेंकते हुए ठिठके तो मैं ने उन से हंसते हुए कहा,

‘‘शरमाओ मत वर्मा साहब. यही होना है अब तो जब तक जिंदा हैं. इसी बहाने अब थोड़ीबहुत एक्सरसाइज भी हो जाया करेगी… और रिटायरमैंट के बाद हर मर्द को देरसवेर कुशल गृहिणी होना ही पड़ता है.’’‘‘पर यार…’’ वे कोने से झाड़ू उठा कर मुझे पकड़ाने की कोशिश करने लगे, तो मैं ने कहा,

‘‘मैं अपने घर में कर के आ गया हूं वर्मा साहब. सोचा, अब आप का भी हालचाल पूछ आऊं. इस बहाने मुझे जरा आराम भी मिल जाएगा. उस के बाद तो…’’‘‘रिटायरमैंट के बाद क्या यह सब के साथ होता है यार?’’ वर्मा साहब ने रुंधे गले पूछा, तो मैं ने हंसते हुए कहा, ‘‘हां, अपने महल्ले में तो तकरीबन हर क्लास वन से ले कर क्लास फोर रिटायरी के साथ यही हो रहा है…’’‘‘मतलब…?’’‘‘सब समझ जाओगे वर्मा साहब. 2-4 दिन और ठहरो,’’ मैं ने कहा, तो उन्होंने चैन की इतनी लंबी सांस ली कि उस वक्त वे मेरे नाक की सारी हवा भी खींच ले गए जालिम कहीं के

विश्वास : अजय राजेश के विश्वास को क्यों नहीं टूटने देना चाहता था

श्वे ता इतनी खूबसूरत थी कि जो कोई भी उसे देखता, तो बस देखता ही रह जाता. वह ग्रेजुएट थी. दूसरे लोगों की तरह अजय भी श्वेता की खूबसूरती पर लट्टू हुए बिना न रह सका. उस ने राजेश की तकदीर पर ईर्ष्या भी की. इस के बावजूद अजय ने श्वेता के प्रति अपने मन में बुरी भावना का जन्म नहीं होने दिया.

देवरभाभी के रिश्ते के चलते वह उस से हंसीमजाक तो कर लेता था,

मगर उस के जिस्म से छेड़छाड़ नहीं करता था.

शादी के बाद राजेश जब कभी कंपनी के काम से शहर से बाहर जाता था, तो श्वेता की देखरेख की जिम्मेदारी अजय को ही दे जाता था. उसे अजय पर पूरा विश्वास था.

अजय और राजेश की दोस्ती उस समय से थी, जब वे दोनों 5वीं जमात में पढ़ते थे. दोनों का घर एकदूसरे से तकरीबन 10 किलोमीटर की दूरी पर था. वे दोनों कोलकाता के रहने वाले थे.

बीकौम करने के बाद अजय को बैंक में नौकरी मिल गई. राजेश ने बीएससी किया था. उस ने दवा बनाने वाली एक बड़ी कंपनी जौइन कर ली.

कंपनी के काम से राजेश हर महीने 5-7 दिनों के लिए किसी न किसी शहर में चला जाता था.

एक हादसे में राजेश के मातापिता का देहांत हो गया था. उस के कोई भाईबहन नहीं थे.

अजय ने राजेश को तुरंत शादी करने की सलाह दी, तो उस ने उस की सलाह मान ली. मातापिता के देहांत के कुछ महीने बाद उस ने श्वेता से शादी कर ली.

अजय राजेश के विश्वास को नहीं टूटने देना चाहता था.

राजेश महीने में 2 हफ्ते टूर पर जाता, पर अजय को रात में अपने घर रोक लेता था. दोनों देर रात तक खूब बातें करते थे. उस दिन भी राजेश ने अजय को रात में अपने घर रोक लिया था.

अगले दिन सुबह 8 बजे अजय बाथरूम जाने के पहले आदमकद आईने के सामने जा कर खड़ा हो गया. उस समय उस ने कमर पर तौलिया लपेट रखा था. कमर से ऊपर उस ने कुछ नहीं पहना था.

वह आईने में अपने गठीले बदन को देख रहा था. उस की छाती शेर के समान चौड़ी और कमर पतली थी. उस का कसरती बदन पत्थर के समान कठोर था.

उसी समय श्वेता उस के लिए चाय ले आई और अजय को आईने में अपना बदन निहारते देख मुसकरा उठी.

‘‘अगर आप आईने को इस तरह से देखेंगे, तो वह टूट कर चकनाचूर हो जाएगा. जरा रहम कीजिए इस आईने पर,’’ अपनी बात खत्म कर श्वेता

वहां रुकी नहीं. वह वहां चाय रख कर चली गई.

उस के जाने के बाद अजय काफी देर तक यह सोचने की कोशिश करता रहा कि श्वेता ने ऐसा क्यों कहा?

उस घटना के 4 दिन बाद अजय जब राजेश की गैरमौजूदगी में उस के घर गया, तो बातों ही बातों में श्वेता ने उस से कहा, ‘‘आप को शादी से पहले देख लेती, तो मैं आप के दोस्त से कतई शादी नहीं करती, बल्कि आप से ही शादी करती.’’

अजय को लगा कि श्वेता ने यह बात मजाक में कही है. उस ने भी मजाक में कह दिया, ‘‘आप के हुस्न का जादू मु?ा पर इतना ज्यादा छाया हुआ है कि मैं अब भी आप से शादी करने को तैयार हूं.’’

‘‘अब शादी तो नहीं हो सकती है, मगर आप चाहें तो मेरे हुस्न का रसपान कर के अपने मन को शांत कर सकते हैं,’’ श्वेता ने हंसहंस कर दोहरी होते हुए कहा.

यह सुन कर अजय चौंक गया. उसे लगा कि यह बात श्वेता ने मजाक में नहीं कही है. वह उस से कुछ कहता, उस से पहले पड़ोस की एक औरत किसी काम से उस के घर आ गई. उस के बाद उस बारे में कोई बात नहीं हुई.

उस रात अजय ठीक से सो नहीं पाया. उसे बारबार श्वेता की बात याद आती रही.

15 दिन बाद भी अजय राजेश की मौजूदगी में रात में उस के घर रह गया था.

राजेश सुबह 8 बजे के बाद सो कर उठता था. उस के बाद चाय पीता था. मगर अजय को सुबह 6 बजे चाय पीने की आदत थी.

उस की आदत श्वेता जानती थी, इसलिए जब अजय रात में उस के घर रह जाता था, तो वह सुबह 6 बजे उठ कर चाय बना कर उसे दे आती थी. मगर उस दिन श्वेता ने रसोई से ही आवाज दे कर उसे चाय ले जाने के लिए कहा.

अजय रसोई में गया, तो श्वेता चाय बना रही थी. उस समय उस ने गाउन पहन रखा था. वह ?ाक कर चाय बनाने में इस तरह मसरूफ थी कि उस के उभार साफसाफ दिखाई पड़ रहे थे.

इस रोमांचक नजारे को देख कर अजय ने अपना आपा खो दिया. मगर इस विचार को यह सोच कर उस ने अपने दिमाग से अलग कर दिया कि श्वेता उस के दोस्त की बीवी है. उस के साथ जिस्मानी संबंध बनाने की सोचना भी पाप है.

थोड़ी देर बाद श्वेता ने मुसकरा कर उसे चाय दी और कहा, ‘‘बेडरूम से सीधे किचन में आ गई थी. कपड़े बदल नहीं पाई, इसलिए आप को ही यहां बुला लिया.’’

अजय ने कुछ नहीं कहा और चाय ले कर चुपचाप अपने कमरे में चला आया.

3 महीने तक अजय का समय कश्मकश में बीता. इस बीच उस की हालत पागलों जैसी हो गई?थी.

श्वेता अजय के दिलोदिमाग पर कुछ इस तरह छा गई थी कि न तो वह दफ्तर में ठीक से काम कर पाता था और न ही रात में उसे ठीक से नींद आती थी.

फैसला लेने के 2 दिन बाद अजय रात के 8 बजे श्वेता के घर गया. राजेश उसी दिन कंपनी के काम से हैदराबाद गया था.

चाय पीने के बाद अजय ने मौका पा कर श्वेता से कहा, ‘‘मैं आप को इतना ज्यादा प्यार करने लगा हूं कि मु?ो लगता है कि जब तक आप का प्यार नहीं पा लूंगा, चैन नहीं मिलेगा.’’

श्वेता तो अजय को चाहती ही थी, इसलिए बगैर देर किए उस ने कह दिया कि वह उसे प्यार करती है. अगर वह उसे नहीं मिलेगा, तो वह मर जाएगी.

खुशी में आ कर अजय ने उसे बांहों में भर लिया.

अजय को श्वेता उस दिन से चाहने लगी थी, जब उस ने उसे अजीबोगरीब हालत में देखा था. उस समय राजेश से उस की शादी हुए महज 10 दिन हुए थे.

दूसरे दिनों की तरह उस दिन भी अजय उस के घर रुक गया था. अगले दिन सुबह नहाने के बाद अजय अपने कमरे में कपड़े बदल रहा था.

उस समय अजय ने अपनी कमर से नीचे तौलिया लपेट रखा था. कमर से ऊपर अभी उस ने कुछ नहीं पहना था.

वह अंडरवियर पहनने जा रहा था कि अचानक उस की पकड़ से तौलिया छूट कर जमीन पर गिर पड़ा और वह ?ोंप सा गया.

श्वेता ठीक उसी समय दरवाजे पर आई और हैरान हो कर वहीं खड़ी हो गई.

अजय का गठीला बदन देख कर श्वेता की आंखें हैरानी से फैल गईं. उस ने कभी सोचा भी नहीं था कि कोई मर्द इतना ज्यादा गठीला हो सकता है.

नतीजतन, श्वेता के दिल में हलचल मच गई. हालांकि वह तुरंत वहां से चली गई. अजय उसे आते या जाते नहीं देख पाया था.

उस दिन पहली बार श्वेता को लगा कि अजय के सामने उस का पति बेकार है.

वैसे भी अजय राजेश से बहुत ज्यादा स्मार्ट था. वह शादी के दिन से ही उस से प्रभावित थी.

उस दिन के बाद श्वेता जब भी राजेश के साथ हमबिस्तर होती, तो उसे उस में कमी नजर आती. उस से वह खुशी महसूस नहीं करती.

अब अजय के सामने श्वेता ऐसेऐसे कपड़े पहनती, ऐसीऐसी हरकतें करती, जिस से उस के बदन का एकएक अंग दिखाई पड़ जाता.

बात यह थी कि श्वेता उसे पाना तो चाहती थी, मगर पहल वह खुद नहीं करना चाहती थी. वह चाहती थी कि पहल अजय की तरफ से हो.

आखिरकार जैसा उस ने सोचा वैसा ही हुआ. अजय उस पर री?ा गया और अब वह उस के साथ बिस्तर पर थी.

अजय इस बारे में सोच ही रहा था कि अचानक उस का विवेक उस पर हावी हो गया. उस ने फैसला किया कि वह श्वेता से जिस्मानी संबंध नहीं बनाएगा.

उस के बाद श्वेता को छोड़ कर अजय पलंग से उतर आया और अपने कपड़े ठीक करने लगा.

यह देख कर श्वेता हैरानी से तड़प कर रह गई.

श्वेता हैरान होते हुए बोली, ‘‘क्या हुआ अजय? आप ने मु?ो छोड़ क्यों दिया?’’

‘‘यह सब गलत है भाभीजी. मु?ो एहसास हो गया है कि मेरी चाहत

गलत थी. आप मेरे दोस्त की बीवी हैं. आप के साथ मेरा जिस्मानी संबंध बनाना गलत होगा.’’

‘‘आसमान की ऊंचाई पर चढ़ा कर आप मु?ो यों ही नहीं छोड़ सकते. आप को मेरी प्यास बु?ानी ही होगी. अगर आप मु?ो छोड़ कर चले जाएंगे, तो मैं पागल हो जाऊंगी.’’

‘‘आप कुछ भी कहें भाभीजी, मगर मैं दोस्त को धोखा नहीं दे सकता.’’

‘‘प्लीज, मु?ो छोड़ कर मत जाइए. बड़ी मुश्किल से मैं ने मर्यादा की

सीमा लांघ कर आप को पाने का मन बनाया है.

‘‘अब आप को पाने की कामना से मेरा बदन जल रहा है, तो आप मु?ो छोड़ कर जाना चाहते हैं.

‘‘विश्वास कीजिए, आप के दोस्त को कभी भी पता नहीं चलेगा कि आप ने मेरे साथ जिस्मानी संबंध बनाया है.’’

‘‘किसी को पता चले या न चले, मगर मु?ो तो जिंदगीभर पता रहेगा कि मैं ने अपने दोस्त के साथ धोखा किया है. उस की बीवी के साथ मैं ने गलत काम किया है.

‘‘मेरी मानिए, तो आप भी अपने पति का विश्वास बनाए रखिए. अपने मर्द को छोड़ कर पराए मर्दों में सुख मत ढूंढि़ए.’’

यह सुन कर श्वेता हैरान रह गई. तब तक अजय घर का दरवाजा खोल कर बाहर निकल गया था.

थोड़ा थोड़ा : जयकिशन का साहस क्या रंग लाया

जयकिशन ईमानदार और मेहनती था. उसे मेहनत से गुजरबसर करना ही पसंद था, लेकिन खुद की ताकत और काबिलीयत पर भरोसा न था. इसी कारण उसे कहीं भी काम नहीं मिल रहा था. जब भी कोई उसे काम देता, वह घबरा जाता और कहता कि इतना काम तो मैं कर ही न पाऊंगा.

जयकिशन के पड़ोस में मदन लाल रहता था. उस की गल्ले की दुकान थी. जयकिशन हर रोज मदन लाल की दुकान के बरामदे में जा कर बैठा रहता.

मदन लाल जयकिशन के अच्छे स्वभाव और ईमानदारी की तारीफ किया करता था, इसलिए उस ने जयकिशन में आत्मविश्वास जगाने के लिए एक नायाब तरकीब सोची.

एक दिन मदन लाल ने जयकिशन से पूछा, ‘‘मेरे साथ काम करोगे?’’

यह सुनते ही जयकिशन ने हैरानी से पूछा, ‘‘क्या कहा?’’

‘‘मेरे लिए बोझ उठाने का काम करोगे,’’ मदन लाल ने दोबारा पूछा.

जयकिशन कुछ सोचता हुआ बोला, ‘‘काम तो करूंगा, मगर पता नहीं बोझ उठा भी सकूंगा या नहीं…’’

‘‘ज्यादा बोझ उठाने वाला काम नहीं दूंगा,’’ मदन लाल ने उसे यकीन दिलाया.

दूसरे दिन सुबह जल्दी ही जयकिशन मदन लाल की दुकान पर जा पहुंचा. मदन लाल भी उसी का इंतजार कर रहा था.

अपनी तरकीब के मुताबिक, मदन लाल ने 5 किलो वजन वाला थैला बरामदे में रखा हुआ था. जयकिशन को देख कर मदन लाल ने कहा, ‘‘अनाज के इस थैले को कसबे की मेरी दुकान में पहुंचा दो और उस दुकान से जो मिले, उसे ला कर यहां पहुंचा दो.’’

जयकिशन ने थैला उठाया और चल दिया. मदन लाल की 2 दुकानें थीं. एक दुकान अपने महल्ले में थी और दूसरी कसबे में थी. कसबे की दुकान उस का भाई सदन लाल संभालता था.

जयकिशन ने अनाज का थैला सदन लाल के पास पहुंचा दिया.

सदन लाल ने 8 किलो वजन वाले शक्कर के थैले की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘इसे ले कर जाओ.’’ जयकिशन ने थैला उठाया और वहां से चल दिया.

कसबे से मदन लाल की दुकान 2 किलोमीटर दूर थी, इसलिए जयकिशन को पहले दिन थोड़ी तकलीफ महसूस हुई थी.

दूसरे दिन मदन लाल ने 10 किलो वजन वाली बोरी दिखा दी. जयकिशन उसे आसानी से उठा कर चल दिया.

उस ने कसबे की दुकान पर जा कर बोरी रख दी. तब सदन लाल ने उसे 14 किलो वजन वाली साबुन की पेटी ले जाने को कहा.

तीसरे दिन मदन लाल ने 16 किलो वजन की मसूर की दाल वाली बोरी दिखाई, जिसे उठा कर वह चल दिया.

कसबे से वापस आ कर जयकिशन ने 20 किलो वजन के गुड़ के ढेले ला कर मदन लाल की दुकान में रख दिए.

हर रोज और हर खेप में 2 से 4 किलो वजन बढ़ जाता था, लेकिन जयकिशन को बढ़ते वजन का बोझ मालूम नहीं पड़ रहा था. उस के अंदर ज्यादा से ज्यादा मेहनत करने के लिए आत्मविश्वास बढ़ रहा था.

इसी तरह एक हफ्ता बीत गया. जयकिशन की हिम्मत और जोश बढ़ता ही जा रहा था. अब वह 40-45 किलो तक वजन उठाने लगा था.

बरसात के दिन थे. रात के समय आसमान में घने बादल घिर आए थे और सुबह तक जाने का नाम नहीं ले रहे थे. तभी अनाज की बोरियों से लदा एक ट्रक दुकान के सामने आ कर रुका.

‘‘सेठजी, जल्दी से गाड़ी में लदी बोरियां उतरवाइए, वरना अनाज भीग जाएगा. गाड़ी में तिरपाल नहीं है,’’ ड्राइवर ने मदन लाल से कहा.

ड्राइवर की बात सुनते ही मदन लाल का चेहरा लटक गया, क्योंकि किसी भी वक्त बारिश हो सकती थी और कोई मजदूर भी वहां दिखाई नहीं दे रहा था.

तभी जयकिशन आ पहुंचा. मदन लाल का उतरा हुआ चेहरा देख कर वह सारा माजरा समझ गया और बोला, ‘‘फिक्र मत कीजिए, मैं ट्रक से बोरियां उतार कर गोदाम में रख दूंगा.’’

जयकिशन की बात सुन कर मदन लाल की चिंता दूर हो गई.

जयकिशन जल्दीजल्दी ट्रक से बोरियां उतारने लगा. देखते ही देखते ट्रक खाली हो गया और गोदाम भर गया.

यह देख कर मदन लाल को बेहद खुशी हुई. दरअसल, उस की तरकीब कामयाब हो गई थी.

जब अनाज की बोरियां गोदाम में उतार कर जयकिशन दुकान में पहुंचा, तब मदन लाल ने कहा, ‘‘आज से तुम्हारी नौकरी पक्की. तुम्हारी पगार भी तय कर दूंगा.’’

जयकिशन की खुशी का ठिकाना नहीं था. वह बोला, ‘‘सच?’’

‘‘बिलकुल सच. जयकिशन, तुम्हारे अंदर मेहनत करने की लगन तो थी, मगर अपनेआप पर भरोसा नहीं था. मैं तुम्हारे अंदर आत्मविश्वास जगाना चाहता था, इसीलिए एक तरकीब निकाली.

‘‘मैं हर रोज थोड़ाथोड़ा वजन बढ़ाता था, ताकि तुम्हें ज्यादा तकलीफ न हो. इस तरकीब में भाई सदन लाल ने भी मेरा साथ निभाया,’’ मदन लाल ने मुसकरा कर बताया.

‘‘वह कैसे?’’ जयकिशन ने हैरानी से पूछा.

‘‘पहले दिन मैं ने तुम से 5 किलो वजन वाला थैला उठवाया. उसी दिन ही सदन लाल ने 8 किलो वजन उठवाया. पहले दिन तुम 8 किलो वजन उठाने में कामयाब हुए.

‘‘तुम्हारी हिम्मत देख कर दूसरे दिन मैं ने 10 किलो वजन उठवाया और सदन लाल ने 14 किलो वजन उठवाया. उस दिन तुम ने 14 किलो बोझ भी उठा लिया.

‘‘इसी तरह हर रोज हम दोनों भाई वजन बढ़ा देते थे, ताकि तुम्हें अचानक इस बात का एहसास न हो.

‘‘इसी बीच धीरेधीरे तुम्हारे अंदर की कमजोरी ताकत में बदलती गई और आत्मविश्वास बढ़ने लगा. 2 हफ्तों के अंदर ही तुम 50 किलो तक वजन उठाने लगे.’’

मदन लाल की यह बात सुन कर जयकिशन बहुत खुश हुआ. उस ने मदन लाल के पैर छू कर कहा, ‘‘आप के इस उपकार को मैं कभी नहीं भूल सकूंगा.’’

अब जयकिशन के अंदर एक नया जोश पैदा हो गया था.

आसमान से बादल साफ हो गए थे. जयकिशन ने नए जोश व उमंग के साथ 50 किलो वाली अनाज की बोरी गोदाम से निकाली और कसबे की दुकान के लिए चल पड़ा.

थोड़े दिनों में जयकिशन ने अपनी खुद की दुकान खोल ली. लेकिन वह हर सुबह खुद 10 बोरियां उठा कर बाहर जरूर रखता, ताकि उसे खुद पर भरोसा बना रहे.

सपना और सचाई : एक नौकरानी और मालिक की प्रेम कहानी

रविवार होने की वजह से रमन घर में बिस्तर पर लेटा शांता के साथ मौजमस्ती कर रहा था. इस की एक वजह तो यह थी कि अपनी कंपनी के झंझंटों से उसे छुट्टी के दिन कुछ राहत मिल जाती और वह अपने ढंग से खापी सकता था, लेकिन इस की दूसरी और ज्यादा अहम वजह यह भी थी कि उसे शांता के साथ सारा दिन गुजारने का सुनहरा मौका जो मिल जाता था.

कोई दूसरा शख्स रमन और शांता के इस नाजायज संबंध को देखता, तो हैरान होने के अलावा रमन की बेवकूफी पर भी उसे कोसता.

शांता कोई मौडर्न या पढ़ीलिखी औरत नहीं थी, बल्कि रमन के घर में काम करने वाली एक नौकरानी थी. दूसरी ओर रमन एक मल्टीनैशनल कंपनी में असिस्टैंट मैनेजर था.

रमन की कंपनी के अपने रिहायशी फ्लैट थे, जिन में कंपनी के दूसरे मुलाजिम भी रहते थे. उन में से ज्यादातर शादीशुदा थे और अपनेअपने परिवारों के साथ रहते थे.

रमन की तरह केवल 1-2 मुलाजिम ऐसे थे, जो अभी कुंआरे थे और उन को घर की देखभाल के लिए नौकर की जरूरत पड़ना लाजिम था.

शांता नेपाल की रहने वाली थी. उस का पति उसे अपने साथ कोलकाता ले आया था, जहां पर वह एक कारखाने में बतौर चपरासी नौकरी करता था. उस का नाम जंग बहादुर था.

जंग बहादुर वैसे तो शांता से बहुत प्यार करता था, लेकिन उस को रोजाना शराब पीने की लत पड़ चुकी थी, जिस से उस का हाथ हमेशा तंग ही रहता था.

पैसे की कमी के चलते शांता और जंग बहादुर का अकसर झगड़ा होता था, इसलिए शांता ने शहर की इस अफसर कालोनी के कुछ घरों में बतौर नौकरानी काम करना शुरू कर दिया था.

शांता खूबसूरत तो थी ही, उस का मिजाज भी बहुत अच्छा था, इसलिए रमन की कालोनी के सभी लोग उस को अपने परिवार के एक सदस्य की तरह ही समझाते थे.

रमन के साथ शांता के रिश्ते मालिक और नौकरानी के न रह कर पतिपत्नी जैसे कैसे बन गए, इस की भी एक अलग ही कहानी है.

दरअसल, जब शांता ने रमन के फ्लैट पर काम करना शुरू किया था, तो शुरूशुरू में तो उन के संबंध मालिक और नौकरानी जैसे ही थे, लेकिन शांता के खूबसूरत चेहरे में पता नहीं रमन को क्या नजर आया कि जब वह उस के घर में काम कर रही होती, तो वह चोरी से उस के अंगों को देखा करता था.

शांता भी रमन के इस झकाव से बेखबर नहीं थी. कई बार जब वह रमन को कनखियों से उसे ताड़ते हुए देखती, तो वह धीरे से मुसकरा देती. इस का नतीजा यह निकला कि उन दोनों में अकसर हंसीमजाक होता रहता.

रमन ने अपने फ्लैट की डुप्लीकेट चाबियां तक शांता को सौंप दी थीं. वह अपनी मरजी और समय के मुताबिक आती और घर का काम कर के चली जाती थी.

बात यहां तक रहती तो ठीक थी, लेकिन चक्कर कुछ ऐसा चला कि उन दोनों की दूरियां और ज्यादा मिटती गईं और वे एक नाजायज रिश्ते में बंध कर रह गए.

इस नाजायज रिश्ते का कोई नाम नहीं था, पर वे दोनों इस से दूर भागने के बजाय अपनी जिंदगी का अहम हिस्सा समझने लगे थे.

इस रिश्ते की बुनियाद उस दिन से शुरू हुई, जब शांता ने रमन से उधार लिए 5 सौ रुपए वापस करने चाहे.

माली तंगी और जंग बहादुर की फुजूलखर्ची की वजह से शांता अकसर अपने कुछ मालिकों से पैसे एडवांस में मांग लिया करती थी और फिर धीरेधीरे अपनी तनख्वाह में से उस रकम को चुकता कर दिया करती थी.

रमन से भी उस ने कई बार पहले भी पैसे उधार लिए थे और अपनी सुविधा के मुताबिक लौटा दिए थे. लेकिन इस बार जब शांता ने पैसे लौटाने चाहे, तो रमन ने उसे मना कर दिया.

ऐसा करते हुए रमन के होंठों पर कुटिल मुसकराहट तैर रही थी और आंखों में वासना की ?ालक साफ दिखाई दे रही थी.

शांता ने भी उस की भावनाओं को पढ़ लिया था. इस सचाई के बावजूद उस ने रमन को पैसे लौटाने की जिद नहीं की. रमन को यही रजामंदी ही तो चाहिए थी.

‘देखो शांता, आगे से तुम मुझ से पैसे वापस करने की बात मत करना. मेरेतुम्हारे पैसे अलग थोड़े ही हैं? मेरा पर्स मेज पर पड़ा रहता है. तुम जब चाहो, इस पर्स में से अपनी जरूरत के मुताबिक पैसे निकाल सकती हो,’ रमन ने शांता को अपने प्यार का मीठा जहर पिलाते हुए कहा था.

शांता तो यही चाहती थी. उस ने सिर हिला कर हामी भर दी थी.

खुशी से पगलाए रमन ने शांता को अपनी बांहों में भर लिया और उस के खिलेखिले चेहरे पर चुंबनों की बरसात कर डाली थी. फिर उस ने शांता को अपनी बांहों में कस कर भींच लिया और ड्राइंगरूम की ओर बढ़ गया था.

तब से दोनों के बीच यह जिस्मानी संबंधों वाला सिलसिला चल रहा था. रमन और शांता की जिंदगी में एक अजीब सा नशा छाया हुआ था. शांता तो यह भूल ही चली थी कि जंग बहादुर उस का पति है.

दूसरी ओर रमन ने भी कुछ महीने पहले अपनी ही कंपनी की दिल्ली में काम कर रही एक मुलाजिम निशा से अपनी मां की मरजी से सगाई की थी.

सगाई होने के कुछ दिन बाद तक तो रमन का निशा के प्रति झुकाव ठीकठाक रहा, लेकिन अब वह कई महीनों से निशा से बिलकुल कट गया था.

निशा ने उस से कई बार फोन पर इस बदलाव की शिकायत भी की थी और शादी की तारीख तय करने के लिए कई बार कह चकी थी, लेकिन रमन पर निशा की शिकायतों का कोई असर नहीं था. वह तो शांता के संगमरमरी जिस्म की जंजीरों में पूरी तरह से कैद हो चुका था.

आज छुट्टी थी, इसलिए तय कार्यक्रम के मुताबिक शांता सुबह से ही उस के फ्लैट पर आ गई थी.

आते ही शांता रमन के बिस्तर में घुस गई. दोनों एकदूसरे की आंखों में आंखें डाले सुख तलाशते रहे.

तकरीबन एक घंटा बीत चुका था. इस दौरान शांता सिर्फ एक बार रमन के बिस्तर से उठी थी और चाय बना कर लाई थी.

अब दोनों एक ही कप से बारीबारी से चाय की चुसकियां ले रहे थे. उन के कपड़े अभी भी नीचे फर्श पर ही पड़े थे.

अचानक बाहर के दरवाजे से किसी के अंदर आने की आहट हुई. शायद, शांता ने अंदर आते समय बाहर का दरवाजा ठीक से बंद नहीं किया था.

इस से पहले कि रमन और शांता कुछ समझ पाते, एक बूढ़ी औरत के साथ एक लड़की अंदर आ गई. वे निशा और उस की मां थीं. उन को देख कर रमन के चेहरे से हवाइयां उड़ने लगीं और चाय का कप छूट कर नीचे गिर गया. अपने कपड़ों की तलाश में वह नीचे फर्श पर हाथ मारने लगा. शर्मिंदगी से उस के मुंह से शब्द नहीं निकल पा रहे थे.

दूसरी ओर शांता का हाल तो रमन से भी ज्यादा बुरा था. उसे जैसे पहली बार अपनी जिंदगी की कड़वी सचाई से सामना करना पड़ा था. लिहाजा, वह एक ही पल में अर्श से फर्श पर आ गिरी थी.

शांता अपने जिस्म को अपनी बांहों से किसी न किसी तरह ढकते हुए उठी और फर्श पर पड़े अपने कपड़े उठा कर तेजी से बगल वाले कमरे की ओर भाग गई.

निशा तब तक पूरे मामले को समझ चुकी थी, इसलिए वह बोली, ‘‘रमन, अब मैं तुम्हारी सारी असलियत जान गई हूं. तुम से शादी कर के मैं कैसे जिंदा रह सकती हूं? यह तो अच्छा हुआ कि मां के ज्यादा कहने पर मैं तुम्हारा हाल पूछने और शादी से आनाकानी करने की वजह जानने के लिए अचानक यहां आ गई. अब मैं अपनी सगाई तोड़ने का फैसला तुम्हें सुनाती हूं.’’

यह कह कर निशा अपनी मां के साथ कमरे से बाहर चली गई.

रमन बौखलाया सा अकेला अपने बिस्तर पर लेटा यह जानने की कोशिश कर रहा था कि जो कुछ उस के साथ हुआ, वह वाकई कोई सचाई थी या एक बुरा सपना.

शोषण : कैसे हुई रमिया की मौत?

अपने खेत की मेंड़ पर बैठे रमिया की सूनी आंखों में बेबसी साफ दिख रही थी. वजह, उस की फसल इतनी नहीं हुई थी कि वह 4 लोगों के परिवार का लंबे समय तक पेट भर सके. महाजन का कर्ज चुकाने की तो वह सोच भी नहीं सकता था.

‘‘अब क्या होगा लज्जो? फसल कट चुकी है, यह बात तो सब को मालूम है. महाजन के आदमी कर्ज लेने के लिए अब आते ही होंगे और हमारी हालत तुम्हें पता ही है,’’ रमिया ने रोंआसी आवाज में अपनी बीवी से कहा.

‘‘हिम्मत से काम लो. महाजन से हम थोड़ा समय और मांगेंगे,’’ लज्जो ने पति को हिम्मत बंधाते हुए कहा.

फसल कटने के चौथे दिन बाद ही महाजन के 3 आदमी रमिया के सामने आ खड़े हुए.

‘‘क्यों बे, महाजन का पैसा कब तक लौटाएगा?’’ उन में से एक ने पूछा.

‘‘हमारी हालत ठीक नहीं है. हम लोग 2-4 दिन में लालाजी से थोड़ा समय और मांगेंगे,’’ रमिया ने डरी हुई आवाज में कहा.

‘‘क्या तेरी लौटरी लगने वाली है? अच्छा, अभी तो हम जा रहे हैं, पर अगर तू ने जल्दी फैसला नहीं किया, तो तेरी हड्डियों का सुरमा बना कर तेरी लुगाई की आंखों में डाल देंगे,’’ उन में से एक ने कहा और वहां से चले गए.

महज 45 साल की उम्र में ही मानो रमिया को उम्मीद की हर डोर टूटती सी लगने लगी थी. 2 बीघा खेत के अलावा उस के पास कुछ था ही नहीं, जिस को बेच कर वह महाजन का कर्ज चुका पाता.

5-6 दिनों के बाद वे लोग फिर आ गए. इस बार जो थोड़ी सी इनसानियत बची थी, उसे भी वे पूरी तरह छोड़ कर आए थे.

‘‘अरे ओ बेशर्म… हमारी बात तेरी समझ में नहीं आई क्या? लालाजी का पैसा देने की क्या सोची है? अब तू कुछ करेगा या हम करें?’’ कह कर एक आदमी ने पूरी ताकत से एक लाठी रमिया को दे मारी.

रमिया दर्द से तिलमिला उठा. इस से पहले कि वह खड़ा हो पाता, दूसरे ने कस कर एक ठोकर उस के पेट पर मार दी. रमिया को लगा कि उस की जान ही निकल जाएगी.

‘‘हम को मत मारो भाई, हम गरीब आदमी हैं. हम ने पैसे देने से कहां मना किया है. हमें थोड़ा और समय दे दो,’’ कराहते हुए रमिया ने गुहार लगाई.

‘‘इन आंसुओं का हम पर कोई असर नहीं पड़ने वाला. 5-7 दिनों में पैसा चुका देना, नहीं तो हम तुझे जिंदा नहीं छोड़ेंगे,’’ एक आदमी ने गुस्से में आखिरी धमकी दी.

रमिया के मन पर पुरानी यादें बारबार उभर कर आतीं. खेत बस इतना भर कि उपज से परिवार बमुश्किल पल सके, पर रमिया फिर भी खुश था. लेकिन पिछले 2-3 सालों के उलट हालात ने उसे झकझोर कर रख दिया था. न चाह कर भी वह महाजन के कर्ज की चपेट में आ गया.

महाजन ने कर्ज दे कर रमिया का खेत गिरवी रख लिया और बिना खेत किसान का वजूद ही दांव पर लग जाता है. अब उस के पास बचा ही क्या था. एक अनपढ़ पत्नी और 2 बच्चे, वे भी उसी की तरह अनपढ़.

रमिया की सारी उम्मीदें टूट गई थीं और साथ ही उस की सहन करने की ताकत भी. इस से पहले कि महाजन के दरिंदे फिर आते, उस ने चौपाल के पास के पेड़ से लटक कर खुदकुशी कर ली.

सुबहसवेरे ही जंगल में लगी आग की तरह यह खबर फैल गई. लज्जो रमिया की दिमागी हालत पहले से जानती थी और समयसमय पर उस की हिम्मत बंधाती थी, पर उसे इस तरह की उम्मीद कभी नहीं थी. वह बेहोश हो कर वहीं गिर पड़ी.

धीरेधीरे लोग इकट्ठा हो गए. लाश को पेड़ से उतार कर चौपाल पर ही लिटा कर कपड़े से ढक दिया गया. लज्जो को किसी तरह होश में लाया गया.

महाजन को रमिया की मौत में अपने दिए गए कर्ज से कुछ सरोकार दिखा और अनजान मुसीबत से बचने के लिए वह थाने जा पहुंचा.

थानेदार चारपाई पर लेटा हुक्का गुड़गुड़ा रहा था. महाजन को आते देख कर उसे लगा कि लक्ष्मी आ रही हैं. उस के चेहरे पर एक मुसकराहट उभर उठी.

‘‘नमस्ते दारोगाजी,’’ तकरीबन आधा झक कर महाजन ने दारोगा के सामने हाथ जोड़े.

‘‘कहिए लालाजी, कैसे आना हुआ?’’ दारोगा ने पूछा.

जवाब देने से पहले महाजन ने एक लिफाफा अपने चौड़े हाथ में दबा कर दारोगा को दे दिया. फिर क्या था. जब साज बदल गए, तो सुर तो मीठे निकलने ही थे.

‘‘माईबाप, रमिया बिना कर्ज चुकाए मर गया. बोलो सरकार, अब हम क्या करें?’’ महाजन ने कहा.

‘‘अरे लाला, तुम्हें हम अच्छी तरह जानते हैं. तुम ने उस का खेत वगैरह तो अपने नाम कराने के लिए खाली कागज पर अंगूठे के निशान लगवा लिए होंगे.

‘‘पोस्टमार्टम के बाद लाश का दाह संस्कार होगा. उस में शामिल हो कर थोड़ा नाटक कर देना. थोड़ा सब्र करो. बाद में तहसील में जा कर जमीन अपने नाम करा लेना.’’

‘‘आप का हुक्म सिरमाथे पर हुजूर,’’ कह कर महाजन ने दोबारा हाथ जोड़े और उन से विदा ली.

दूसरे दिन दोपहर में दाह संस्कार होना तय हुआ. तकरीबन 7 सौ लोगों के उस गांव में सभी एकदूसरे को जानते थे.

रमिया यों तो छोटे से खेत का मालिक था, पर अपने अच्छे बरताव से गांव में काफी मशहूर था, इसलिए उस के दाह संस्कार में काफी लोग आए थे. महाजन और दारोगा के अलावा वहां 2 और पुलिस वाले भी मौजूद थे.

रमिया के बड़े बेटे 16 साला भोला ने आग दी. शाम घिरने लगी थी और चिता की आग हलकी हो चली थी. लोग धीरेधीरे अपने घर जाने लगे थे.

अब तो बच्चों के पालने की सारी जिम्मेदारी लज्जो की थी. इस फसल का धान तो 2 महीने किसी तरह कटा देगा, पर उस के बाद? अनेक उठते सवाल किसी फुफकारते सांप से कम न थे.

महाजन ने रमिया के खेत को अपने नाम कराने की योजना बना ली थी. संबंधित अफसरों से वह पहले ही मिल चुका था.

लज्जो को पता भी नहीं चला कि कब और किस ने उस की वह डोर भी काट दी, जिस के सहारे उस ने जीने की सोची थी. जब उसे पता चला, तो बहुत देर हो चुकी थी. वह महाजन के पास जा पहुंची.

महाजन बोला, ‘‘आओ भौजाई, हमें रमिया की मौत का बहुत दुख है, पर तुम जरा भी चिंता न करना. हम हैं न. कुछ दिनों में बोआई शुरू हो जाएगी और तुम तीनों खेत पर काम करना. कोई कमी नहीं रहेगी.’’

महाजन ने हमदर्दी का मुखौटा ओढ़ लिया. आखिर उसे तो 3 मजदूर अपनी शर्तों पर मिल रहे थे. लज्जो और उस के बच्चों के पास कोई और रास्ता नहीं था.

‘‘तुम किसी दिन रामपाल से मिल लेना. वह तुम्हें सब समझ देगा,’’ महाजन ने कहा.

खेत पर अपनी मां के साथ वे दोनों बच्चे भी मजदूरी करने लगे. महाजन के कारिंदे जम कर काम लेते और शाम को आधीचौथाई मजदूरी उन के हाथ में थमा देते. लज्जो अपने बुरे दिनों पर सौसौ आंसू बहाती. वह अपने नादान बच्चों के लिए दुखी होती.

यों तो सरकारी योजनाओं में ऐसे हालात में पीडि़त परिवार की मदद के लिए कई नियम बने हैं, पर वे सब भ्रष्टाचार रूपी सुरसा के गाल में समा गए हैं.

खाली कागजों पर अनपढ़ लज्जो के अंगूठे के निशान लगते रहे और मिलते रहे झूठे वादे.

प्यार की आग : गब्बर ने मानी रीता की बात?

लकवे ने रीता की जिंदगी तबाह कर दी. पर उस के पति ने हिम्मत नहीं हारी और रीता की सेवा में जुट गया. इस सब के बावजूद रीता को लगा कि गब्बर को उस के तन की भूख सता रही होगी. उस ने अपनी छोटी बहन मीता से गब्बर का दूसरा ब्याह कराने की सोची. क्या गब्बर ने रीता की बात मान ली? वाकई गब्बर को औरत की देह की भूख थी?

सूरज हर रोज की तरह आज भी अपनी धुन में मगन सा निकला, पर अब यह सूरज रीता के लिए और दिन जैसा नहीं रहा था. कहते हैं कि दिन खोटे होने में पलभर भी नहीं लगता, बस ऐसा ही कुछ रीता के साथ हुआ था. एक रात ने उस की जिंदगी को खोटा कर दिया. वह रात में अचानक कांपने लगी. उस की जबान तालू से चिपक गई. वह कुछ बोल नहीं पा रही थी.

गब्बर ने रीता से कई बार पूछा, उस के हाथपैर रगड़े, पर कुछ नहीं हुआ. फिर उस ने रीता को हौस्पिटल ले जाने में थोड़ी भी देरी नहीं की और उसे भरती करा दिया.

डाक्टरों ने जो बताया, उस से गब्बर के तो जैसे होश उड़ गए. वह कांप गया. डाक्टर बोला, ‘‘आप की पत्नी को लकवा मार गया है. उन का कमर से नीचे का हिस्सा पूरी तरह से लुंज हो गया है. कहें तो बेजान हो चुका है.’’

उस रात के बाद रीता ह्वील चेयर पर थी. पहले वह दुबलीपतली गोरीभूरी गुडि़या सी थी, लेकिन अब धीरेधीरे दुबलीपतली सी मरियल और गोरीभूरी की तो जैसे बात ही खत्म हो गई थी.

अब सालभर से गब्बर ही घरबाहर का कामकाज संभाल रहा था, नहीं तो रीता के रहते उसे घर की कैसी चिंता. वह हमेशा सोचता था कि रीता है तो सब देख लेगी. इस बीच उसे यह भी एहसास हुआ कि रीता वाकई कितना काम करती थी.

गब्बर रीता को कोई कमी न होने देता. उसे कहानियां सुनाता, सिर की मालिश करता, दवाओं को समय पर देता. उस से प्यारीभरी बातें करता, ‘‘रीता, कोई बात नहीं. जो हुआ सो हुआ. पर मैं हूं न. मैं तुम्हें कोई कमी महसूस नहीं होने दूंगा.’’

रीता गब्बर के आगे खुश होने का नाटक करती, पर वह मन ही मन गब्बर के लिए बहुत दुखी होती. आखिर वह भी इनसान ही तो ठहरा. उसे क्या खाने के अलावा और चीजों की भूख नहीं लगती. एक साल से ज्यादा का समय बीत चुका था.

रीता यह सोच कर अंदर ही अंदर रोने लगती. उस का शरीर कतई ठंडा हो गया था. इतना ठंडा कि आरी ला कर रेतो तो भी उसे कोई फर्क नहीं पड़ता. फिर वह गब्बर की इच्छा कैसे पूरी करती… वह तो उस के गरम अरमानों पर एक ठंडी बूंद भी नहीं डाल सकती थी.

जिस घर में रीता ने कभी कोई नौकर नहीं लगाया, आज उस घर में 2-2 नौकरानियां काम करने लगी थीं. गब्बर ने उन के कहे मुताबिक उन्हें 1,000-1,000 रुपए ज्यादा दिए थे. बस, उस की एक ही डिमांड थी कि रीता जो कहे वही और वैसा ही काम करना है, उसे जरा सी भी तकलीफ नहीं होनी चाहिए.

दोनों नौकरानियां 1,000 रुपए ज्यादा मिलने की खुशी में वही काम करती थीं, जो रीता कहती थी.

कई बार तो रीता को एक नौकरानी ने उस से कहा, ‘‘दीदी, सब की किस्मत आप जैसी कहां, जो आदमी ऐसे हाथों में छाले रखे? हमारे मर्द को देखो, इतना काम कर के घर जाती हैं, फिर भी दो बोल मीठे नहीं मिलते. वही गालियां और रात को अपने मन की करी और फिर तू कौन, मैं कौन.’’

रीता गब्बर पर अपने से ज्यादा यकीन करती थी, पर न जाने क्यों उस का मन आजकल बड़ा डरा सा रहता था. उस के मन में अब एक घुन लग गया था और वह सोचती, ‘मैं जानती हूं कि वे मुझे बहुत प्यार करते हैं, पर कहीं अपनी उस जरूरत के लिए वे किसी और के पास…’ फिर वह खुद ही मन ही मन कहती, ‘नहींनहीं, मेरा गब्बर ऐसा नहीं है…’ पर दूसरे ही पल उस के भीतर फिर वही पुराना खयाल चलने लगता.

रीता की मां ऐसे तो उस के पास आ ही जाती थीं, पर इस बारे में उस ने कभी अपनी मां से बात नहीं की, लेकिन अब उस से रहा नहीं गया और उस ने अपनी मां को मिलने के लिए बुलाया और कहा, ‘‘मां, मैं सब जानती हूं. वे मुझ से बहुत प्यार करते हैं, पर आखिर वे भी तो इनसान हैं… गला तपने पर प्यास किसे नहीं लगती. मां, वे कहीं इधरउधर किसी के चक्कर में पड़ गए, तो मैं सहन नहीं कर पाऊंगी.’’

मां ने कहा, ‘‘मैं तेरी परेशानी समझती हूं, पर क्या कहूं… तू ऐसा कर कि गब्बर को मीता से शादी करने के लिए बोल कर देख. तुझे अपनी हालत देखते हुए खून के आंसू पीने ही पड़ेंगे. देख, कोई और आ गई तो तू जानती है कि कुछ भी हो सकता है, लेकिन इस घर में तेरी छोटी बहन आएगी तो सब बढि़या चलेगा. इस घर को कोई वारिस भी मिल जाएगा. उस के सहारे तेरी भी जिंदगी कट जाएगी.’’

रीता को एक हद तक अपनी मां की बात सही लगी और उस ने अपनी छोटी बहन मीता को घर बुला लिया, ताकि उन दोनों के बीच कुछ प्यार उपज सके, पर ऐसा कुछ न होते देख रीता ने गब्बर से सबकुछ साफसाफ कहने का मन बना लिया.

कुछ दिन तक तो रीता की शादी करने वाली बात कहने की हिम्मत नहीं हुई, पर एक दिन हिम्मत कर के उस ने गब्बर से कह दिया, ‘‘2 साल होने को हैं. मैं तुम्हें कुछ नहीं दे पा रही हूं. तुम्हें तब की भूख तो लगती ही होगी. तुम मेरी छोटी बहन से शादी कर लो. तुम्हारी और इस घर की सारी जरूरतें पूरी हो जाएंगी.’’

यह बात सुनते ही गब्बर की त्योरियां चढ़ गईं और वह बोला, ‘‘रीता, तुम्हारे मन में यह सब चल रहा है… तभी मैं सोचता हूं कि मेरे इतना करने पर भी तुम खुश क्यों नहीं रहती. तुम्हें हंसता देखे मुझे कितने दिन हो गए.

‘‘रीता, तुम मेरे लिए क्या सोचती हो, मुझे नहीं पता, पर मुझे इस बात

का बहुत दुख हो रहा है कि तुम

बस इतना ही समझ पाई मुझे और मेरे प्यार को.

‘‘रीता, जो तुम्हारे साथ हुआ है, अगर वह मेरे साथ हुआ होता… अगर मुझे लकवा मार जाता, तो तुम्हें पता है कि मैं क्या करता. मैं तुम्हें किसी से शादी करने के लिए नहीं कहता. मैं चाहता कि जिस आग में मैं अपाहिज हो कर जल रहा हूं, तुम्हें भी उस आग में जिंदगीभर मेरे साथ जलना पड़े. पर तुम्हें किसी और का नहीं होने देता.

‘‘जब मैं तुम्हें किसी और का नहीं होने देता तो मैं किसी और का कैसे हो सकता हूं, इसलिए मैं तुम्हारे प्यार में जिंदगीभर जलता रहूंगा. मेरा प्यार किसी भूख को पूरा करने का मुहताज नहीं है. मुझे प्यासा रहना मंजूर है.’’यह सुनते ही रीता गब्बर के गले लग कर फूटफूट कर रोने लगी.

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