4 साल के बच्चे का कत्ल, कातिल जान कर उड़ जाएंगे होश

Crime News in Hindi: 39 साल की सूचना सेठ 6 जनवरी को गोवा के सोल बनयान ग्रांडे होटल में अपने 4 साल के बेटे के साथ आई थीं. 8 जनवरी को जब उन्होंने होटल से चैकआउट किया, तब उन का बेटा साथ नहीं था. होटल स्टाफ ने बेटे के बारे में पूछा तो सूचना सेठ ने कहा कि वह गोवा के फातोर्डा में एक रिश्तेदार के घर पर है. इस के बाद सूचना सेठ ने रिसैप्शनिस्ट से कहा कि वह उन के लिए बैंगलुरु जाने के लिए कोई टैक्सी बुक करवा दे. रिसैप्शनिस्ट ने कहा कि टैक्सी महंगी पड़ेगी, आप फ्लाइट ले कर चली जाइए, वह सस्ती होगी.

मगर सूचना सेठ ने बाई रोड जाने पर ही जोर दिया तो उन के लिए एक कैब बुक करा दी गई. सूचना सेठ अपना सामान ले कर निकलीं. उधर हाउसकीपिंग स्टाफ जब उन का छोड़ा गया कमरा साफ करने पहुंचा, तो उस को वहां खून के धब्बे मिले.

स्टाफ ने इस की सूचना होटल के मालिक को दी और मालिक ने तुरंत पुलिस को बता दिया. पुलिस ने उस कैब ड्राइवर को फोन लगाया और कोंकणी भाषा में बात करते हुए उस से कहा कि जिन मैडम को वह ले कर जा रहा है उन्हें बताए बिना वह कैब को कर्नाटक के चित्रदुर्ग पुलिस स्टेशन ले जाए.

ड्राइवर ने पुलिस के कहे मुताबिक गाड़ी पुलिस स्टेशन पर ला कर खड़ी कर दी, जहां सूचना सेठ को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. उन के सामान की तलाशी लेने पर उस के बच्चे की लाश पुलिस को उस के एक बैग में मिली.

सूचना सेठ ने अपने बच्चे की हत्या क्यों की? इस सवाल के जवाब में जो कहानी निकल कर आई वह एक ऐसी औरत को सामने लाती है जो एक तरफ बहुत पढ़ीलिखी, मेहनती और समाज में अपनी हैसियत रखने वाली औरत है, तो वहीं दूसरी तरफ वह सामाजिक और पारिवारिक चक्रव्यूह में फंसी, टूटन, तनाव, गुस्से, बेइज्जती, नफरत, झगड़े, कानूनी पचड़े में घिरी औरत, जिस के अंदर अपने पति से बदला लेने का लावा उबाल मार रहा था, जिस के चलते उन्होंने अपने बेटे को मौत की नींद सुला दिया.

हत्या की वजह जानने से पहले सूचना सेठ की पढ़ाईलिखाई पर एक नजर डालते हैं. वे एक एथिक ऐक्सपर्ट (नैतिकता विशेषज्ञ) और डाटा वैज्ञानिक है, जिन के पास डाटा विज्ञान टीमों को सलाह देने और स्टार्टअप व उद्योग अनुसंधान प्रयोगशालाओं में मशीन लर्निंग समाधानों को स्केल करने का 12 साल से ज्यादा का अनुभव है. वे एआई ऐथिक्स लिस्ट में 100 प्रतिभाशाली महिलाओं में से एक हैं. वे डाटा ऐंड सोसाइटी में मोजिला फैलो, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के बर्कमैन क्लेन सैंटर में फैलो और रमन रिसर्च इंस्टिट्यूट में रिसर्च फैलो रही हैं और उन के पास प्राकृतिक भाषा (नैचुरल लैंग्वेज) प्रसंस्करण में पेटेंट भी है. ऐसी प्रतिभाशाली लड़की की शादी साल 2010 में वेंकटरमन से हुई थी, जो एक एआई डैवलपर हैं.

शादी के बाद दोनों में वैसी ही नोकझोंक चलती रही जैसी आमतौर पर भारतीय घरों में होती है. शादी के 9 साल बाद 2019 में सूचना सेठ ने एक बेटे को जन्म दिया. मगर बेटे के जन्म के बाद से पतिपत्नी में झगड़े काफी बढ़ गए. साल 2020 से सूचना सेठ और उस के पति के वेंकटरमन के बीच झगड़ा इतना बढ़ गया कि दोनों ने तलाक ले लिया.

कोर्ट ने बच्चे की कस्टडी सूचना सेठ को दी और आदेश दिया था कि वेंकटरमन अपने बच्चे से हर रविवार को मिल सकते हैं. मगर सूचना अपने पति वेंकटरमन से इतनी नफरत करने लगी थीं कि वे नहीं चाहती थीं कि वेंकटरमन अपने बेटे से मिलने आएं और उन की नजरों के सामने पड़ें.

इस नफरत ने सूचना सेठ की अक्ल बंद कर दी और वे एक ऐसे घिनौने अपराध की तरफ बढ़ गईं, जिस को सुन कर एकदम मुंह से यही निकलता है कि यह कैसी मां है?

न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी कहावत को सच साबित करते हुए सूचना सेठ ने बच्चे को ही खत्म करने का भयावह प्लान बना डाला. उन्होंने अपने बेटे को गोवा घुमाने का लालच दिया. 4 साल का मासूम बच्चा घूमने की बात सुन कर खुश हो उठा.

सूचना सेठ बेटे को साथ ले कर गोवा गईं और वहां होटल के कमरे में उस का कत्ल कर के लाश ठिकाने लगाने के मकसद से बैग में भर कर टैक्सी से बैंगलुरु के लिए रवाना हो गईं. यह तो होटल स्टाफ की तेजतर्रारी काम आ गई और सूचना सेठ को बीच राह में ही पुलिस ने लाश के साथ दबोच लिया.

यह आपराधिक वारदात भारतीय समाज में विवाह संस्था में भर चुकी सड़ांध, इनसान की नैतिक गिरावट और आपसी टकराव को उजागर करती है. ऐसी तमाम बातें भारतीय समाज में बहुत तेजी से बढ़ रही हैं जहां मांबाप के बीच चल रहे झगड़े का खमियाजा उन के मासूम बच्चों को उठाना पड़ रहा है.

मांबाप की रोजरोज की लड़ाइयों का ही असर है कि उन के बच्चे उग्र स्वभाव के और आपराधिक हरकतों से जुड़ जाते हैं. घर के सदस्यों के बीच का तनाव बच्चों को शराब और ड्रग्स की तरफ धकेल रहा है.

साढ़ू से करें पक्का दोस्ताना, पर साली बन सकती है अड़चन

Society News in Hindi: आजकल सोशल मीडिया पर साढ़ू के रिश्ते को ले कर एक वीडियो बहुत देखा जा रहा है. इस में बताया जाता है कि ‘साढ़ू एक ही फैक्टरी से ठगे गए 2 इनसान होते हैं’. असल में पत्नी की बहन के पति को साढ़ू कहा जाता है, जिस का मतलब वीडियो में ऐसे निकाला गया है कि एक ही मां की 2 बेटियों से अलगअलग शादी करने वाले 2 इनसान रिश्ते में साढ़ू हो जाते है. जब संयुक्त परिवारों का दौर था, तब इस रिश्ते को बहुत अहमियत नहीं दी जाती थी, पर आज के समय में जब घरों में बच्चों की संख्या कम होने लगी है, ऐसे में साढ़ू का रिश्ता भी खास हो गया है.

ससुराल में साढ़ू का स्टेट्स एकजैसा होता है, जिस वजह से कई बार आपस में संबंध बिगड़ने का खतरा भी रहता है. जब नया दामाद ससुराल में आता है, तो पुराने की अहमियत थोड़ी कम हो जाती है. कई बार जो दामाद ज्यादा अमीर या दबदबे वाला होता है, उस की अहमियत ज्यादा होती है. ऐसे में साढ़ू की आपस में थोड़ी खींचतान हो जाती है.

जरूरत इस बात की होती है कि साढ़ू के साथ किसी भी तरह की होड़ न रखें. दोनों का ही ससुराल में बराबर का हक होता है. दिखावे में आपसी संबंध खराब न करें. एक ही उम्र के साढू के साथ भाई जैसा रिश्ता रखें. सोशल मीडिया के वीडियो केवल दिखावा होते हैं, यह समझ कर उन को देखें.

बदल गया है बहन का रिश्ता

पहले छोटी बहन और बड़ी बहन के बीच आपस में एक दूरी रहती थी. बड़ी बहन छोटी बहन को अनुशासन में रखती थी. कई बार उन के बीच उम्र का भी फर्क होता था. आज के दौर में 2 बहनों के बीच उम्र की दूरी कम हो गई है. कई बार दोनों ही अकेली होती हैं, तो उन के बीच नजदीकियां ज्यादा होती हैं. वे बहन से ज्यादा दोस्त की तरह हो जाती हैं. वे एकदूसरे की बातों को अच्छी तरह से समझती हैं. वे एकदूसरे की मदद भी करती हैं.

कुछ बहनों के बीच तो इतनी गहरी दोस्ती होती है कि वे एकदूसरे के हर राज जानती हैं. एकदूसरे के बौयफ्रैंड वाले रिश्तों को भी समझती हैं. शरीर में होने वाले बदलाव, कैरियर, दोस्ती, पढ़ाईलिखाई और घरेलू झगड़े दोनों मिलजुल कर बांटती हैं.

जिस तरह से 2 बहनों में अच्छी बनती है, उसी तरह से अगर इन के पतियों यानी साढ़ू के बीच बनने लगे, तो एकदूसरे पर भरोसा बन जाएगा और समाज में एक भरोसेमंद रिश्ता मिल जाएगा. जिस तरह से 2 बहनों के बीच आयु वर्ग एकजैसा होता है, वही साढ़ू के साथ भी होता है.

साढ़ू भी अमूमन एक ही उम्र के होते हैं. ज्यादा से ज्यादा आपस में 2-4 साल का फर्क होता है. ऐसे में उन के आपसी विचार मिलते हैं. जरूरत पड़ने पर वे एकदूसरे के काम आ सकते हैं. संयुक्त परिवार जैसा भरोसा कर सकते हैं. इस के बाद भी साढ़ू के साथ आपसी संबंधों में खिंचाव भी होता है. इस की वजह यह है कि साढ़ू की पत्नी साली होती है. समाज में जीजासाली के संबंध अलग तरह से देखे जाते हैं.

जीजासाली के संबंध डालते हैं दरार

साढ़ू के साथ आपसी संबंधों में दरार पड़ने की खास वजह जीजासाली के संबंध होते हैं. जीजासाली के संबंधों में खुलापन होता है. आपस में हंसीमजाक का भी रिश्ता होता है. कई बार आपस में गहरे संबंध भी जीजासाली के बीच होते हैं.

जीजासाली के गलत संबंधों को समाज हलके नजरिए से भले ही देखता हो, पर साढ़ू ऐसे रिश्ते को सही नहीं मानता. ऐसे में जब उस को यह अहसास भी होता है तो साढ़ू के साथ रिश्ते चल नहीं पाते हैं, इसलिए बड़े साढ़ू को इस बात का खयाल रखना चाहिए कि वह अपनी साली के साथ हंसीमजाक का दायरा न पार करे.

कई बार हंसीमजाक ही ऐसा हो जाता है, जिस का सही असर नहीं पड़ता. उस से आपस में शक बढ़ जाता है. जीजासाली के संबंधों के बीच आया शक साढ़ू के साथ रिश्तों में दरार डालने का काम करता है. कई मामलों में तो साढ़ू के साथ रिश्ता टूट सा भी जाता है.

देवरभाभी के बाद जीजासाली का ही रिश्ता इतना खतरनाक होता है, जिस को ले कर तमाम तरह की कहानियां सुनने और पढ़ने को मिलती हैं.

इस की 2 खास वजहें होती हैं. एक तो जीजासाली की बात हो या देवरभाभी की दोनों रिश्तों में ही आपस में उम्र का फासला कम होता है. दूसरे, दोनों ही रिश्तों में हंसीमजाक होता है. मजाकमजाक में बात आगे बढ़ती है. अगर बात सैक्स संबंधों तक नहीं पहुंची तो मसला मजाक का मान लिया जाता है. अगर बात मजाक से आगे बढ़ी तो सैक्स संबंधों तक पहुंच जाती है.

तीसरी एक बात और होती है कि दोनों को आपस में अकेले मिलने के तमाम मौके होते हैं. इस अकेलेपन का फायदा मिल जाता है. अगर बात घरपरिवार तक पहुंचती भी है तो वे आपस में ही इस को दबाने का काम करते हैं. ऐसे में ये रिश्ते खतरनाक बन जाते हैं.

ऐसे में यह बात साफ है कि साढ़ू के आपस में संबंध तभी अच्छे होंगे जब जीजासाली के बीच संबंध सहज होंगे. अगर वहां संबंध सहज नहीं हैं, तो साढ़ू के साथ भी रिश्ते नहीं बनेंगे. इन बातों को दरकिनार कर के देखें तो साढ़ू का आपस में रिश्ता बहुत अच्छा होता है. जरूरत होती है कि इस को दोस्त के जैसा रखा जाए.

ऐसे में साढ़ू एक फैक्टरी से ठगे गए 2 इनसान नहीं होते. अगर वे दोनों समझदार हैं तो उन में खून का रिश्ता न होते हुए भी उतना ही करीबी संबंध बन सकता है.

इलाका नंबर ५२: आखिर रामजी पांडे ने रंजूबाई से क्या कहा?

पोस्ट मास्टर ने डाकिए रामजी पांडे को बुलाया और कहा, ‘‘आज से आप को इलाका नंबर 25 में चिट्ठियां बांटनी होंगी. उस इलाके का डाकिया जयदीप छुट्टी पर गया है.’’

इलाका नंबर 25 का नाम सुनते ही डाकिए रामजी पांडे को झटका लगा, क्योंकि उस पूरे इलाके में कोठेवालियां रहती हैं.

रामजी पांडे बेमन से अपने इलाके में जाने के लिए चिट्ठियों को थैले में रखने लगा. इस के बाद वह उस इलाके की तरफ चल पड़ा.

वह महल्ला कच्चेपक्के मकानों का था. पतली और संकरी गलियां थीं. नुक्कड़ पर पान की दुकान थी, जहां रसिक लोग पान खाते नजर आते थे.

रामजी पांडे गली में एक मकान के पास रुका. मकान पर नामपट्टी लगी थी, ‘रंजूबाई’.

रामजी पांडे ने पुकारा, ‘‘रंजूबाई, आप की चिट्ठी आई है.’’

थोड़ी देर बाद एक खूबसूरत तवायफ ने दरवाजा खोला, ‘‘अरे, डाक बाबू… मेरी चिट्ठी है? कहां से आई है?’’

‘‘शेरपुर से,’’ रामजी पांडे ने कहा.

‘‘अंदर आ जाओ और पढ़ कर सुना दो,’’ रंजूबाई ने कहा.

रामजी पांडे ने भीतर जा कर उस तवायफ को चिट्ठी पढ़ कर सुना दी.

‘‘एक चिट्ठी थी… इसे आप अपने साथ ले जाएं,’’ रंजूबाई ने कहा.

रामजी पांडे ने वह चिट्ठी डाकघर में छोड़ने के लिए ले ली.

यह काम अकसर डाकियों को करना होता था. वजह, तवायफें कोठे से बाहर जो नहीं निकलती थीं.

उस तवायफ के कमरे में फर्श पर दरी बिछी थी. कोने में हारमोनियम और तबला रखा था. दीवार पर 2-3 जोड़ी घुंघरुओं वाली पाजेब टंगी थीं. दरवाजे और खिड़कियों पर रेशमी परदे हवा के ?ोंके से ?ाल रहे थे.

तभी रंजूबाई ने शरबत का गिलास रामजी पांडे के हाथों में थमा दिया.

रंजूबाई की खूबसूरती ने रामजी पांडे को एकटक निहारने पर मजबूर कर दिया.

‘‘ये 2 हजार रुपए इस पते पर भेज दीजिएगा,’’ रंजूबाई ने कहा.

‘‘जी, मैं भेज दूंगा,’’ कह कर रामजी पांडे वहां से चला गया.

धीरेधीरे रामजी पांडे रंजूबाई के हुस्न का मुरीद बन गया.

‘‘रंजूबाई, यह मनीऔर्डर की रसीद रख लो,’’ रामजी पांडे ने कहा.

‘‘डाक बाबू, आज तो तुम बड़े छैलछबीले लग रहे हो,’’ रंजूबाई बोली.

‘‘तुम्हारे हुस्न के आगे मैं कुछ भी नहीं,’’ रामजी पांडे ने प्यार जताया.

‘‘जाओ डाक बाबू, यह भी कोई बात हुई,’’ रंजूबाई ने इठला कर कहा.

‘‘बिलकुल सच, मेरे दिल में ?ांक कर तो देख लो,’’ रामजी पांडे ने कहा.

यह सुन कर रंजूबाई के होंठों पर प्यार भरी मुसकान खिल उठी.

‘‘डाक बाबू, कल लिफाफा लेते आना. एक चिट्ठी भेजनी है.’’

‘‘ठीक है,’’ कह कर रामजी पांडे कोठे से बाहर निकल गया.

दूसरे दिन तेज हवाएं चल रही थीं. दरवाजे पर रामजी पांडे ने आवाज लगाई, ‘‘रंजूबाई, यह लो लिफाफा.’’

‘‘डाक बाबू अंदर आ जाओ. बाहर तेज हवाएं चल रही हैं,’’ रंजूबाई बोली.

रामजी पांडे मौसम का लुत्फ उठाता हुआ बोला, ‘‘रंजूबाई, कुदरत ने तुम्हें बेपनाह हुस्न से नवाजा है.’’

‘‘यह हुस्न तो आप की चाहत का दीवाना है,’’ रंजूबाई ने कहा.

इतना सुन कर रामजी पांडे रंजूबाई का हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘मेरा दिल तुम्हें पाने को बेकरार है.’’

इतना कह कर उस ने रंजूबाई के नाजुक होंठों को चूम लिया. वह भी रामजी पांडे की बांहों में सिमट गई.

इस के बाद तो जैसे रंजूबाई की जिंदगी में बहार आ गई थी, क्योंकि सालों से उसे जिस हमसफर की तलाश थी, वह उसे मिल गया था.

रामजी पांडे एक ब्राह्मण का बेटा था और रंजूबाई एक तवायफ थी. लेकिन उस ने दकियानूसी समाज को धता बता कर मुहब्बत की खिलाफत में उठने वाली सारी ऊंचीऊंची दीवारें गिरा दी थीं.

प्यार का सिलसिला चल निकला. अब रामजी पांडे को हरदम रंजूबाई का खयाल रहने लगा. वह डाकघर का काम खत्म कर के उस के कोठे पर जाना नहीं भूलता था.

‘‘रंजूबाई, आज बहुत खूबसूरत लग रही हो. मु?ो सरेआम लूटने का इरादा है क्या?’’ रामजी पांडे ने उसे बांहों में भरते हुए कहा.

वह उस की बांहों में कसमसाती हुई बोली, ‘‘रामजी, मु?ो जीने का मकसद मिल गया है. मेरे जिस्म में प्यार की प्यास भड़क उठी है.’’

इस के बाद दोनों जवानी की हद पार करते हुए दो जिस्म एक जान हो गए थे.

एक दिन डाकघर का काम खत्म करने के बाद रामजी पांडे शाम को रंजूबाई के कोठे पर आया. रंजूबाई ने आज गजब का मेकअप किया था. जब उस ने देखा, तो देखता ही रह गया.

‘‘रंजूबाई, आज तो तुम्हारे साथ कोठे से बाहर घूमने का इरादा है,’’ रामजी पांडे ने अपने मन की बात कह दी.

‘‘चलो, चलते हैं कहीं,’’ रंजूबाई ने कहा.

वे दोनों बातें करते हुए बाजार में घूम रहे थे कि अचानक रंजूबाई का हाथ एक शख्स ने पकड़ लिया.

रंजूबाई चौंक उठी, ‘‘अरे, यह तो राजू है. इस शहर का नामी बदमाश.’’

‘‘कोठे पर तो बहुत नाच ली. अब चल मेरे साथ. आज की रात मैं तेरे संग रंगीन कर लूं,’’ राजू ने बेशर्मी से कहा.

तभी रामजी पांडे ने राजू की बांह पकड़ कर एक जोर का ?ाटका दिया.

‘‘रास्ता चलते मेरी बीवी को छेड़ता है,’’ रामजी पांडे ने कहा.

रंजूबाई का हाथ ?ाटके से छूट गया. राजू गुर्राया, ‘‘अच्छा, एक तवायफ तेरी बीवी हो गई. खबरदार, आज के बाद कभी इस के साथ दिखा, तो मैं तु?ो जान से मार दूंगा.’’

राजू धमकी दे कर चला गया. रामजी पांडे खून का घूंट पी कर रह गया. रंजूबाई बेहद डर गई.

‘‘रामजी, यह गुंडा इस शहर में हम लोगों को जीने नहीं देगा. मु?ो किसी दूसरे शहर में ले चलो,’’ रंजूबाई ने घबराई हुई आवाज में कहा.

दोनों एकदूसरे का हाथ थामे एक मंदिर में आ गए थे. मंदिर में रामजी पांडे ने रंजूबाई की मांग एक चुटकी सिंदूर से भर दी थी. उस ने एक ही पल में जमाने की सारी दीवारें गिरा दी थीं.

कुछ ही दिनों में रामजी पांडे ने अपना तबादला दूसरे शहर में करा लिया  और वह रंजूबाई को वहां ले गया.

दंश: बृजेश ने श्रेया के सामने ऐसा क्या प्रस्ताव रखा जिसे सुन वो सिहर गयी

मौका: पुरूषवादी सोच वाले सुरेश को बीवी ने कैसे समझाया?

दिन के 11 बज चुके थे और सुरेश अभी भी गहरी नींद में सोया था. आजकल उस की शाम की शिफ्ट चल रही है इसलिए सुबह जल्दी उठने की परवाह नहीं होती. वैसे भी बीवी सुजाता 2 दिन पहले ही मायके गई है. अभी कम से कम 15-20 दिन तो वह बीवी की चिकचिक से भी आजाद था.

सुजाता घर में होती है तो उसे जल्दी उठ कर व्यायाम के लिए जाने की जिद करती है. वैसे सुरेश कभी उस की सुनता नहीं. सुरेश हमेशा से अपनी मरजी का मालिक रहा है. उस की मां ने भी बचपन से उसे यही सिखाया था. कितनी दफा वह सुजाता को मां की बात कह चुका है कि मर्द घर का मालिक होता है और औरत उस की गुलाम. घर कैसे चलाना है इस का फैसला मर्द करता है. औरत कभी भी मर्द को आज्ञा नहीं दे सकती मगर उसे मर्द की आज्ञा माननी जरूर चाहिए. ऐसी बातें सुन कर सुजाता चुप रह जाती और वह हंसता हुआ अपने मन की करने लगता.

दरवाजे पर दस्तक हुई तो सुरेश को उठना पड़ा. दरवाजा खोला तो सामने कुरियर वाला खड़ा था,” सर आप का कुरियर.”

उस के हाथ में एक लिफाफा था. सुरेश ने लिफाफा खोला तो भौंचक्का रह गया. यह तो वकील का नोटिस था जिसे सुजाता द्वारा भिजवाया गया था.

हड़बड़ाते हुए सुरेश ने नोटिस पढ़नी शुरू की. यह तलाक का नोटिस था जिस में लिखा हुआ था,’ श्रीमान सुरेश महाजन, यह नोटिस आप के नाम हमारी मुवक्किल सुजाता कपूर द्वारा भेजा गया है.

हमारी मुवक्किल सुजाता निम्न बातों पर आप को गौर कराना चाहती हैं. उन्होंने क्रम से कुछ घटनाओं का विवरण लिखा है कि आप की ज्यादतियों ने उन के अधिकार छीने और वे घरेलू हिंसा का शिकार हुईं. ऐसी तमाम घटनाओं के मद्देनजर वे आप से आजिज आ चुकी हैं और छुटकारा पाना चाहती हैं.

नोटिस में विस्तार से कुछ घटनाओं का वर्णन था. ये घटनाएं सुरेश के पुरुषवादी रवैये की पोल खोल रही थीं. सुजाता ने क्रम से ये घटनाएं लिखी थीं :

14 फरवरी, 2020 :

मिस्टर सुरेश महाजन यानी माननीय पति महोदय आप को हमारी शादी के करीब 1 सप्ताह बाद की वह रात तो याद ही होगी. लौकडाउन से 1 महीने पहले वैलेंटाइन डे के दिन जब हम हनीमून पर मनाली गए थे तो उस दिन मैं ने अपनी बहन द्वारा दिए गए तोहफे को खोला था. बहन ने चुपके से मेरे बैग में एक ड्रैस रख दी थी और मैं उसे पहन कर तैयार हो गई. ड्रैस कहीं से भी बेकार नहीं लग रही थी. स्लीवलैस जरूर थी मगर भद्दी नहीं थी. उस ड्रैस को पहन कर खुशीखुशी मैं अपने कमरे से बाहर निकली. आप ने बुरा सा मुंह बनाया. अपने हाथ में पकड़ा हुआ अखबार नीचे फेंका और झकझोरते हुए मुझे यह कहते हुए वापस बाथरूम में धकेल दिया कि ऐसी ड्रैस पहन कर साथ चलने की बात सोचना भी मत.

उस वक्त मुझे ऐसा लगा था जैसे मेरे वजूद पर ही सवाल खड़ा किया गया हो. क्या मुझे अपनी पसंद के कपड़े पहनने का हक भी नहीं मिलना चाहिए? क्या अपने हनीमून पर अपने पति के साथ भी मैं वैस्टर्न ड्रैस नहीं पहन सकती?

नोटिस में एक और घटना का विवरण था. सुजाता ने हिंसा का आरोप लगाते हुए एक दिन क्या हुआ था, इस बारे में विस्तार से लिखा था :

23 मार्च, 2020 :

उस दिन मेरी तबीयत ठीक नहीं थी. मुझे उठने में देर हो गई. आप तो मेरे उठाने पर ही उठते हो. इस वजह से आप को औफिस जाने में देर हो गई. मैं ने तबीयत खराब में भी जल्दीजल्दी नाश्ता बनाया मगर आप झल्लाते हुए औफिस गए. शाम तक मुझे 102 डिग्री बुखार हो चुका था. मैं ने फोन करने की सोची फिर रुक गई कि आप का मूड सही नहीं. मैं दवा खा कर पूरे दिन सोई रही. शाम को दरवाजे की घंटी लगातार तेज आवाज में बजती सुन मैं हड़बड़ा कर उठी और चक्कर खा कर गिर पड़ी. किसी तरह लड़खड़ाते हुए मैं ने दरवाजा खोला.

मेरी तरफ एक पल को भी देखे बगैर आप ने मुझे धक्का दिया और चिल्लाते हुए घर में घुसे. अपना बैग बिस्तर पर पटकते हुए चीखने लगे,” दरवाजा खोलने में इतनी देर लगती है? पता नहीं क्यों पूरे दिन बिस्तर तोड़ती रहती है. मैं थकहार कर औफिस से लौटता हूं और एक तुम हो कि दरवाजा भी नहीं खुलता. अब मुंह क्या देख रही हो? पानी लाओ. ”

उस वक्त मुझे खुद पर कितना तरस आया यह केवल मैं ही जानती हूं. तुम ने एक नजर भी मेरे मलिन पड़े चेहरे की तरफ नहीं डाली. मेरी तकलीफ तुम्हें दिखाई ही नहीं दी. तुम ने यह सोचने की कोशिश भी नहीं की कि मैं आज इतनी सुस्त क्यों हो रही हूं. तुम्हारे लिए मैं ने चाय बनाई मगर खाना बनाने की हिम्मत नहीं हुई. तुम्हें कुछ कहने का भी दिल नहीं किया. मैं जा कर सो गई और तुम ने रात में खाना न मिलने पर फिर से हंगामा कर दिया. मेरा हाथ पकड़ कर खींचते हुए तुम थप्पड़ लगाने ही वाले थे मगर हाथ गरम देख कर रुक गए.

यह कैसा रिश्ता है हमारा, जहां पति को अपनी पत्नी की तकलीफ भी नहीं दिखती? यह बात अलग है कि अगले दिन से ही लौकडाउन हो गया और तुम मुझे चायब्रैड खिलाने के लिए घर में थे. मगर आज सोचती हूं कि यदि उस समय मुझे वायरल बुखार के बजाय कोरोना हुआ होता तो तुम मेरी क्या हालत करते.

3 अप्रैल 2020 :

इस दिन मैं ने तुम से बिना पूछे घर के परदे बदल दिए थे जिन्हें कुछ दिन पहले ही खरीदे थे. तुम ने उन पर सरसरी नजर डाली और कोने में पटक दिया. मुझ पर चिल्लाते हुए तुम ने कहा था,” इतने चटकीले रंग के परदे मेरे घर में नहीं लगेंगे.”

उस दिन मैं पूछना चाहती थी कि क्या यह घर केवल तुम्हारा है? मैं यहां मेहमान हूं? यह मेरा घर नहीं? मगर हमेशा की तरह मुझे तुम से कुछ भी पूछने या बताने की इच्छा नहीं हुई. मैं अपने कमरे में जा कर बैठ गई. मेरी आंखें छलछला आईं थीं मगर तुम अपने अहम के नशे में गुम थे.

26 अप्रैल 2020 :

याद करो उस दिन शाम 7 बजे मैं हंसतीमुसकराती अपनी सहेली से बातें कर के मुड़ी और तुम ने मेरे गाल पर एक थप्पड़ जड़ दिया. चीख पड़े थे तुम. मेरी गलती इतनी सी थी कि मैं ने अपनी सहेली से उस के पति की तारीफ कर दी थी. तुम्हारे अंदर जलन की आग ऐसी भड़की कि तुम ने आगेपीछे सोचे बगैर मुझ पर हाथ उठा दिया.

तुम्हें लगता है कि मैं तुम्हारी तारीफ करती रहूं जबकि तुम मेरी खुशी की कोई कदर नहीं करते. मेरी सहेली विभा का पति हमेशा विभा की पसंद और उस की खुशी को तवज्जो देता है. ऐसे में मैं ने उस की तारीफ कर के क्या गलत कर दिया था?

2 मई 2020 :

इस दिन अपनी मां की शह पर तुम ने मेरी बांह मरोड़ दी. कई दिनों तक मैं इस दर्द से परेशान रही. वजह सिर्फ इतनी ही थी कि मैं तुम्हारे शर्ट की बटन टांकना भूल गई जबकि उस दिन तुम्हारी जूम मीटिंग थी. पर क्या इतनी सी बात पर तुम मेरे साथ इतना दुर्व्यवहार करोगे? लौकडाउन में तुम भी तो पूरे दिन घर में बैठे रहते हो. औफिस का काम तो मुश्किल से 3-4 घंटे करते हो बाकी समय कभी दोस्त, कभी टीवी तो क्या कभी बीवी का हाथ बंटाना जरूरी नहीं?

सच तो यह है कि तुम्हारे लिए दूसरी सभी चीजें महत्त्वपूर्ण हैं सिवाए हमारे रिश्ते के. तो फिर इस रिश्ते को ढोते रहने की मजबूरी कैसी? खत्म करते हैं न इस रिश्ते को.

5 मई 2020 :

इस दिन आप ने मेरी औकात समझाई थी. आप ने बताया था कि मुझे औरत होने का धर्म निभाना है. आप को एक बेटा देना है बेटी नहीं. बेटी की तो आप के जीवन में कोई अहमियत ही नहीं है. बेटा पैदा करना बस मेरे ही हाथ में तो है. कभीकभी तो मुझे शक होता है कि क्या वाकई आप पढ़ेलिखे हो? आप से बेहतर तो अनपढ़ हैं जो अपनी बिटिया को कंधों पर बैठाए दुनियाजहान घूम आते हैं. पर आप के लिए बेटी बोझ है. आप को तो सिर्फ बेटा चाहिए. जाने कैसी रूढ़िवादी मानसिकता में जकड़े हुए हो आप कि जब साथ चलती हूं तो एक अजीब सी जकड़न का एहसास होता है. अब आजादी चाहती हूं मैं आप से. आप की धौंस भरी बातों से, आप के पुरुषवादी व्यवहार से.

14 मई 2020 :

उस दिन शाम को सब्जी काटते हुए मेरा हाथ कट गया था. मेरे दाहिने हाथ में पट्टी बंधी थी मगर आप को कोई परवाह नहीं हुई कि मैं खाना कैसे बनाऊंगी. पिछले 2 महीने से मैं आप को पसंद की चीजें बनाबना कर खिला रही हूं न. फिर क्या आप एक दिन मेरे लिए कुछ बना नहीं सकते थे? बेशर्म हो कर मैं ने आप को कहा भी कि हैल्प कर दो तो आप ने कैसा धौंस भरा जवाब दिया था,” खाना बनाना औरतों का काम है. बता दो तुम से नहीं होता तो किसी और को रख लेता हूं.”

आप का जवाब सुन कर मैं बिलकुल चुप रह गई थी. आगे कुछ कहने को बचा ही नहीं था मेरे पास

मैं ने सोचा था कि लौकडाउन के इस समय में आप के साथ ज्यादा वक्त बिता पाऊंगी. ज्यादा बेहतर ढंग से समझ सकूंगी आप को. ज्यादा करीब आ पाऊंगी. मगर अफसोस, करीब आने के बजाय हमेशा के लिए दूर हो जाना चाहती हूं. क्योंकि लौकडाउन के इन दिनों में बेहतर ढंग से समझ लिया है.

मैं ऐसे शख्स के साथ कतई नहीं रह सकती जिस के लिए रिश्तों का कोई अर्थ नहीं. जो अपने जीवनसाथी की तकलीफ न समझ सके, उसे बराबरी का दरजा न दे सके उस की खुशियों का खयाल न कर सके, उस पर विश्वास भी न करे और न ही उसे अपनी जिंदगी में कोई अहमियत ही दे सके.

सुरेश बिस्तर पर लुढ़क गया. कागज छूट कर नीचे जा गिरा. उसे आज रोशनी भी चुभने लगी थी. उस ने जल्दी से अपने चेहरे को तकिए से ढंक लिया. आज पहली दफा किसी ने उसे आईना दिखाया था और अपनी सूरत देख कर उसे शर्म आ रही थी.

उसे सुजाता के साथ बिताए एकएक पल याद आने लगे थे. वे पल जब सुजाता को जीभर कर प्यार किया था उस ने. वे पल जब सुजाता के साथ ने जीवन आनंद से भर दिया था. उसे याद आ रहा था कैसे सुबह से शाम तक सुजाता उस के और घर के कामों में लगी रहती थी. सुजाता को तो हमेशा मुसकराने की आदत थी. तो क्या वाकई वह इतना स्वार्थी और घमंडी था जिस ने सुजाता की हंसी छीन ली?

सुरेश बारबार उस कागज में लिखी बातें पढ़ने लगा. उस में लिखी हर घटना उस की आंखों के आगे सजीव हो उठीं. वाकई सुजाता ने जो भी लिखा था वह 100% सही था. मगर जब घटनाएं हो रही थीं उस वक्त सुरेश ने कभी भी सुजाता की नजरों से नहीं सोचा था. सुजाता जो उस की जीवनसाथी है, कितनी दुखी थी और सुरेश को इस बात का अहसास भी नहीं था. उस ने कभी यह सोचा ही नहीं था कि सुजाता इस तरह सब कुछ छोड़ कर भी जा सकती है.

उसे तो सुजाता की आदत हो गई थी. उस के बिना घर में कितना अकेला हो जाएगा. एक छोड़ा हुआ पति कहलाएगा. दोस्त पीठ पीछे उस का मजाक उड़ाएंगे. ऐसी कितनी ही बातें सुरेश के जेहन में घूमने लगीं.

सुजाता के यों मुंह मोड़ने से उस की जिंदगी कितनी बदल जाएगी. पहले तलाक की भागदौड़ और परेशानियां और फिर सुजाता संपत्ति में से भी तो हिस्सा मांगेगी. उसे गुजाराभत्ता भी देना पड़ेगा. तलाक के बाद दूसरी शादी की टैंशन भी रहेगी.

सुरेश को अपना कुलीग विजय याद आया. तलाक के बाद बहुत मुश्किलों से उसे दूसरी दफा कोई ढंग की दुलहन मिल पाई थी. मगर वह भी फ्रौड निकली.

सुरेश सोफे के कोने में बैठ गया. एक सीधीसादी व पढ़ीलिखी पत्नी को गंवाने के बाद कहीं वह भी परेशानियों के भंवर में न फंस जाए. सुजाता में कोई कमी नहीं. यह तो सचमुच उस का खोखला घमंड था, पुरुषवादी रवैआ था जिस की वजह से उस की शादीशुदा जिंदगी बरबाद होने वाली थी.

सुरेश रातभर करवटें बदलता रहा. वह लगातार यही सोचता रहा कि सुजाता को तलाक न लेने के लिए कैसे राजी किया जाए.

अगले दिन सुबह उठते ही उस ने सुजाता को फोन लगाया और एक दफा मिलने की इच्छा जाहिर की. किसी तरह सुजाता तैयार हो गई. सुजाता का मायका आगरा में था. सुरेश ने सुबहसुबह बस ली और इलाहाबाद से आगरा के लिए रवाना हो गया. सुजाता ने उसे माल में मिलने बुलाया.

सुजाता का हाथ थाम कर सुरेश ने कहा,”बस एक मौका दे दो मुझे सुजाता. तुम्हारी हर शिकायत दूर कर दूंगा. तुम्हें खोने के एहसास ने ही मुझे मेरी औकात समझा दी है. सुजाता बस एक मौका दे दो अपने पति को. फिर जो चाहे कर लेना. तुम ने मुझे आईना दिखा दिया है. यकीन रखो मैं चेहरा बदल लूंगा. बस तुम्हारा साथ नहीं खो सकता.”

सुजाता ने सोचा भी नहीं था कि सुरेश इस तरह उस से माफी मांगेगा.

“एक मौका तो हर अपराधी को दिया जाता है. आप को भी दे दूंगी. पर ध्यान रखना, मौके बारबार नहीं मिलते.” मुसकराते हुए सुजाता ने कहा तो सुरेश ने बढ़ कर उसे गले से लगा लिया. सुजाता के द्वारा भेजे गए नोटिस ने उस की जिंदगी की दिशा ही बदल दी थी. सुरेश को सबक मिल चुका था कि वह तुलसीदास की रामचरित मानस की चौपाइयों पर भरोसा करके सुखी जिंदगी नहीं जी सकता. सुजाता उन में से नहीं है जो सिर पर पल्लू ढांक कर प्रवचनकर्ताओं की ऊलजलूल बातें मान ले. वह एक बराबरी का हक रखने वाली पत्नी है, ताड़न की अधिकारी नहीं.

वर्जिन: कैसे टूटा उन दोनों के सब्र का बांध

रोहित अमला से मिलने उस के कालेज आया था. दोनों कैंटीन में बैठे चाय पी रहे थे. रोहित एमबीए फाइनल ईयर में था और अमला एमए फाइनल में थी. दोनों ने प्लस टू की पढ़ाई एक ही स्कूल से की थी. इस  के बाद वे कालेज की पढ़ाई के लिए दिल्ली आ गए थे. रोहित ग्रेजुएशन के बाद एमबीए करने दूसरे कालेज चला गया था, पर अकसर अमला से मिलने उस के कालेज आता था. उसे कैंपस से अच्छा प्लेसमैंट मिल गया था. दोनों लगभग 6 साल से एकदूसरे को जानते थे और अच्छी तरह परिचित थे.

अमला काफी सुंदर थी और रोहित भी हैंडसम और स्मार्ट था. दोनों पिछले 2 साल से एकदूसरे को चाहने भी लगे थे. दोनों चाय पी रहे थे और टेबल के नीचे अपनी टांगों की जुगलबंदी किए बैठे थे. तभी रोहित का एक दोस्त अशोक भी अपनी गर्लफ्रैंड के साथ वहां आ गया. उस टेबल पर 2 कुरसियां खाली थीं. वे दोनों भी वहीं बैठ गए.

अशोक बोला, ‘‘यार, तुम दोनों की जुगलबंदी हो चुकी हो तो अपनी टांगें हटा लो, अब हमें भी मौका दो.’’

यह सुन कर रोहित और अमला ने अपनेअपने पैर पीछे खींच लिए. अमला थोड़ा झेंप गई थी.

‘‘अच्छा, हम दोनों चाय पी चुके हैं, अब चलते हैं. अब तुम लोगों के जो जी में आए करो,’’ रोहित ने अमला को भी उठने का इशारा किया.

चलतेचलते रोहित ने अमला से पूछा, ‘‘आज शाम मूवी देखने चल सकती हो?’’

‘‘हां, चल सकती हूं.’’

सिनेमाहौल में दोनों मूवी देख रहे थे. रोहित ने अमला का हाथ अपने हाथ में ले कर धीरे से उस के कान में कहा, ‘‘कब तक हम लोग बस हाथपैर मिलाते रहेंगे. इस से आगे भी बढ़ना है कि नहीं?’’

अमला ने संकेत से चुप रहने का इशारा किया और कहा, ‘‘सब्र करो, आसपास और भी लोग हैं. अपना हाथ हटा लो.’’

हाथ हटाते समय रोहित का हाथ अमला के वक्ष को स्पर्श कर गया, हालांकि यह अनजाने में हुआ था. अमला ने मुड़ कर उस की ओर देखा. रोहित को लगा कि अमला की आंखों में कोई शिकायत का भाव नहीं था बल्कि उस की नजरों में खामोशी झलक रही थी.

मूवी देखने के बाद दोनों एक दोस्त मुकेश के यहां डिनर पर गए. वह अपने पिताजी के फ्लैट में अकेला रहता था. उस के पिताजी न्यूजीलैंड में जौब करते थे. मुकेश ने कहा, ‘‘अगले हफ्ते मैं 6 महीने के लिए न्यूजीलैंड और आस्टे्रलिया जा रहा हूं. तुम लोग चाहो तो यहां रह सकते हो. कुछ दिन साथ रह कर भी देखो, आखिर शादी तो तुम्हें करनी ही है. जैसा कि तुम दोनों मुझ से कहते आए हो.’’

यह सुन कर रोहित और अमला एकदूसरे का मुंह देखते रहे. मुकेश बोला, ‘‘तुम लोगों को कोई प्रौब्लम नहीं होनी चाहिए. पिछली बार तुम्हारे पेरैंट्स आए थे तो उन्हें तुम्हारे बारे में पता था. तुम ने खुद बताया था उन्हें. अंकलआंटी दोनों कह रहे थे कि तुम्हारे दादादादी अभी जीवित हैं और बस, उन की एक औपचारिक मंजूरी चाहिए. इत्तेफाक से तुम दोनों सजातीय भी हो तो उन लोगों को भी कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए.’’

‘‘ठीक है, हम सोच कर बताएंगे.’’

डिनर के बाद जब दोनों जाने लगे तो मुकेश बोला, ‘‘तुम एक डुप्लीकेट चाभी रख लो. मैं अपार्टमैंट औफिस में बता दूंगा कि मेरी अनुपस्थिति में तुम लोग यहां रहोगे.’’

इतना कह कर मुकेश ने चाभी रोहित को थमा दी. रास्ते में रोहित से अमला बोली, ‘‘तुम ने चाभी अभी से क्यों रख ली? इस का मतलब हम अभी से साथ रहेंगे क्या? मुझे तो ऐसा ठीक नहीं लगता. मम्मीपापा को शायद उतना बुरा न लगे, पर दादादादी पुराने विचारों के हैं, उन्हें पता चलेगा तो आसमान सिर पर उठा लेंगे.’’

‘‘दादादादी ही पुराने विचारों के हैं, मैं और तुम तो नहीं. और वे गांव में बैठे हैं. उन्हें कौन बताएगा कि हम साथ रह रहे हैं या नहीं. आज जमाना कहां से कहां पहुंच गया है. तुम्हें पता है कि पश्चिमी देशों में अगर कोई युवती 18 साल तक वर्जिन रह जाती है तो उस के घर वाले चिंतित हो जाते हैं, इस का मतलब आमतौर पर लोग यही अंदाजा लगाते हैं कि उस में कोई कमी है.’’

‘‘बेहतर है हम जहां हैं, वहां की बात करें.’’

‘‘तुम किस गलतफहमी में जी रही हो? यहां भी युवकयुवती लिवइन रिलेशन में साल दो साल एकसाथ रहने के बाद एकदूसरे को बायबाय कर देते हैं. वैसे मैं तुम्हें फोर्स नहीं करूंगा. और तुम हां कहोगी तभी हम मुकेश के फ्लैट में शिफ्ट करेंगे. संयोगवश यह मौका मिला है और हम दोनों शादी करने जा ही रहे हैं, पढ़ाई के बाद. तुम कहो तो कोर्ट मैरिज कर लेते हैं इस के पहले.’’

‘‘नो कोर्ट मैरिज. शादी की कोई जल्दबाजी नहीं है. जब भी होगी ट्रैडिशनल शादी ही होगी,’’ अमला ने साफसाफ कहा.

2 हफ्ते तक काफी मनुहार के बाद अमला मुकेश के फ्लैट में रोहित के साथ आ गई. दोनों के कमरे अलगअलग थे. मुकेश की कामवाली और कुक दोनों के कारण खानेपीने या घर के अन्य कामों की कोई चिंता नहीं थी. 4 महीने के अंदर रोहित को नौकरी जौइन करनी थी और उस के पहले अमला को डिग्री भी मिलनी थी.

रोहित और अमला देर रात तक साथ बातें करते और फिर अपनेअपने कमरे में सोने चले जाते थे. धीरेधीरे दोनों और करीब होते गए. अब तो रोहित अमला के बालों से खेलने लगा था, कभीकभी गाल भी सहला लेता. दोनों को यह सब अच्छा लगता. पर एक दिन दोनों के सब्र ने जवाब दे दिया और वे एक हो गए. जब एक बार सब्र का बांध टूट गया तो दोनों इस सैलाब में बह निकले.

कुछ दिन बाद अमला बोली, ‘‘रोहित, इधर कुछ दिनों से मेरे पेट के निचले हिस्से में दर्द सा रहता है. कभीकभी यह ज्यादा ही हो जाता है.’’

‘‘किसी गाइनोकोलौजिस्ट से चैकअप करा लो.’’

‘‘मैं अकेली नहीं जाऊंगी, तुम्हें भी साथ चलना पड़ेगा.’’

‘‘अब लेडी डाक्टर के पास मुझे कहां ले जाओगी?’’

‘‘तब रहने दो, मैं भी नहीं जाती.’’

‘‘अच्छा बाबा, चलो, कल सुबह चलते हैं.’’

अगले दिन सुबह दोनों गाइनोकोलौजिस्ट के पास पहुंचे. वहां कुछ मरीज पहले से ही थे, उन्हें काफी देर तक इंतजार करना पड़ा. इस बीच उन्होंने देखा कि वहां आने वाली ज्यादातर औरतें प्रैग्नैंट थीं और उन के साथ कोई मर्द या प्रौढ़ महिला थी. सब से कम उम्र की पेशैंट अमला ही थी. अमला यह सब देख कर थोड़ी घबरा गई थी. उस की बगल में बैठी एक औरत ने पूछा, ‘‘लगता है तुम्हारा पहला बच्चा है, पहली बार घबराहट सब को होती है. डरो नहीं.’’

रोहित और अमला एकदूसरे को देखने लगे. रोहित बोला, ‘‘डोंट वरी, लेट डाक्टर चैकअप.’’

जब अमला का नाम पुकारा गया तो रोहित भी उस के साथ चैकअप केबिन में जाने लगा. नर्स ने उसे रोक कर कहा, ‘‘आप बाहर वेट करें, अगर डाक्टर बुलाती हैं तो आप बाद में आ जाना.’’

डाक्टर ने अमला को चैक किया. उस की आंखें, पल्स, ब्लडप्रैशर आदि चैक किए. फिर पूछा, ‘‘दर्द कहां होता है?’’

अमला ने पेट के नीचे हाथ रख कर कहा, ‘‘यहां.’’

डाक्टर ने नर्स को पेशैंट का यूरिन सैंपल ले कर प्रैग्नैंसी टैस्ट करने को कहा और पूछा ‘‘शादी हुए कितने दिन हुए.’’

‘‘मैं अनमैरिड हूं डाक्टर.’’

‘‘सैक्स करती हो?’’

अमला ऐसे प्रश्न के जवाब देने के लिए तैयार नहीं थी. उस को कुछ सूझ नहीं रहा था कि वह क्या बोले, वह सिर्फ डाक्टर की ओर देख रही थी. डाक्टर ने नर्स को बुला कर कहा, ‘‘इन के साथ जो आदमी आया है उस को बुला कर लाओ और इन की प्रैग्नैंसी टैस्ट रिपोर्ट लेती आना.’’

रोहित केबिन में गया तो डाक्टर ने पूछा, ‘‘पेशैंट कहती है कि वह अनमैरिड है, पर जब मैं ने सैक्स के बारे में पूछा तो वह कुछ बता नहीं पा रही है. डाक्टर से सच बोलना चाहिए तभी तो इलाज सही होगा.’’

इसी बीच डाक्टर ने उन दोनों से फ्रैंडली होते हुए पूछा कि वे कहां के रहने वाले हैं. बातोंबातों में पता चला कि डाक्टर अमला की मां की सहपाठी रह चुकी हैं. तभी नर्स टैस्ट रिपोर्ट ले कर आई जो पौजिटिव थी. डाक्टर बोली, ‘‘अब तो शक की कोई गुंजाइश नहीं है, अमला तुम प्रैग्नैंट हो. इस का मतलब तुम दोनों अनमैरिड हो लेकिन फिजिकल रिलेशन रखते हो.’’

रोहित और अमला दोनों को यह बात असंभव लगी. उन के बीच रिलेशन तो रहा है, पर उन्होंने सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा है. रोहित अमला की ओर देखे जा रहा था, अमला लगातार सिर हिला कर न का संकेत दे रही थी. रोहित के पास भी अमला पर शक करने की कोई वजह नहीं थी.

रोहित डाक्टर से बोला, ‘‘हम फिजिकल भले रहे हों, पर इस रिपोर्ट पर मुझे भरोसा नहीं है.’’

‘‘ठीक है, मैं दोबारा टैस्ट करा लेती हूं या फिर बगल में एक दूसरी लैब में भेज दूं अगर तुम लोगों को मुझ पर भरोसा नहीं है,’’ डाक्टर ने कहा.

‘‘नहीं डाक्टर, भरोसा कर के ही तो हम आप तक आए हैं. फिर भी एक बार और टैस्ट करा लेतीं तो ठीक था.’’

डाक्टर ने नर्स को बुला कर यूरिन का सैंपल दोबारा टैस्ट करने को कहा. नर्स को थोड़ा आश्चर्य हुआ. उस ने रिपोर्ट अपने हाथ में ले कर पढ़ी और कहा, ‘‘सौरी, यह रिपोर्ट इन की नहीं है. दूसरे पेशैंट की है. दरअसल, दोनों के फर्स्ट नेम एक ही हैं और सरनेम में बस, एक लेटर का फर्क है. इन का सरनेम सिन्हा है और यह रिपोर्ट मैडम सिंह की है. आइ एम सो सौरी, अभी इन की रिपोर्ट ले कर आती हूं.’’

यह सुन कर रोहित और अमला की जान में जान आई. नर्स अमला की रिपोर्ट ले कर आई जो निगेटिव थी. तब डाक्टर ने रोहित से कहा, ‘‘आई एम सौरी फौर दिस मेस. आप बाहर, जाएं, मैं पेशैंट को ऐग्जामिन करूंगी.’’

अमला का बैड पर लिटा कर चैकअप किया गया. फिर रोहित को भी अंदर बुला कर डाक्टर ने कहा, ‘‘डौंट वरी, इन के ओवरी में बांयीं ओर कुछ सूजन है. मैं दवा लिख देती हूं, उम्मीद है 2 सप्ताह में आराम मिलेगा. अगर फिर भी प्रौब्लम रहे तो मुझे बताना आगे ट्रीटमैंट चलेगा.’’

अमला ने चलतेचलते डाक्टर को धन्यवाद देते हुए कहा, ‘‘प्लीज डाक्टर, मम्मी को आप यह नहीं बताएंगी.’’

‘‘मेरा तो पिछले 15 साल से उस से कोई संपर्क नहीं रहा है. वैसे पता रहने पर भी नहीं बताती, डौंट वरी, गेट मैरिड सून. अपनी मम्मी का फोन नंबर देती जाना, अगर तुम्हें कोई प्रौब्लम न हो तो.’’

‘‘श्योर, मैं लिख देती हूं, मुझे कोई प्रौब्लम नहीं है.’’

अमला ने अपनी मां का फोन नंबर एक पेपर पर नोट कर डाक्टर को दे दिया.

क्लिनिक से बाहर आ कर अमला ने कहा, ‘‘आज तो हमारे रिश्ते की बात हम दोनों के सिवा इस डाक्टर और नर्स को भी पता चल गई. उस ने मम्मी का कौन्टैक्ट्स भी मुझ से ले लिया है. उम्मीद है कि वह मम्मी को नहीं बताएगी.’’

‘‘बता भी दिया तो क्या हो जाएगा? हम लोग शादी करने जा रहे हैं. मैं अगले महीने नौकरी जौइन करने जा रहा हूं. कंपनी की ओर से फ्लैट और कार भी मिल रही है. जल्द ही हम शादी कर लेंगे.’’

‘‘वो तो ठीक है, पर मम्मी मुझ से कहती आई हैं युवतियों को अपनी वर्जिनिटी शादी तक बचानी चाहिए.’’

‘‘आजकल सबकुछ हो जाने के बाद भी वर्जिनिटी दोबारा मिल सकती है. तुम्हें पता है कि प्लास्टिक सर्जरी से युवतियां अपना खोया हुआ कौमार्य प्राप्त कर सकती हैं.’’

‘‘क्या कह रहे हो?’’

‘‘सही बोल रहा हूं. बस, कुछ हजार रुपए खर्च कर कुछ घंटे प्लास्टिक सर्जन के क्लिनिक पर हाइमनोप्लास्टी द्वारा हाइमन बनाया जाता है और युवतियां फिर से कुंआरी बन जाती हैं.’’

अमला रोहित की तरफ अचरज भरी नजरों से देखने लगी तो फिर वह बोला, ‘‘देश भर के छोटेबड़े शहरों में सैकड़ों क्लिनिक हैं, जो हाइमनोप्लास्टी करते हैं. इन्हें अपने लिए ज्यादा प्रचार भी नहीं करना होता है. यह तो एक कौस्मेटिक सर्जरी है. इतना ही नहीं कुछ बालबच्चों वाली महिलाएं भी वैजिनोप्लास्टी करा कर दांपत्य जीवन के शुरुआती दिनों जैसा आनंद फिर से महसूस करने लगी हैं.’’

‘‘ओह.’’

‘‘जरूरत पड़ी तो तुम्हारी भी हो सकती है, कह कर रोहित हंसने लगा.’’

‘‘मुझे नहीं चाहिए यह सब. अब इस बारे में मुझे और कुछ नहीं सुनना है.’’

रोहित और अमला को अपनी तात्कालिक समस्या का निदान मिल चुका था. दोनों ने खुशीखुशी अपने फ्लैट पर जा कर चैन की सांस ली.

उम्र के साथ आम बदलाव है सफेद मोतिया

आंखें इस शरीर का वह हिस्सा है, जिस के बिना इस रंगबिरंगे संसार में आना खाने में नमक न होने के बराबर है. आंखोंका न होना या तो जन्मजात होता है या फिर किसी बीमारी या हादसे के चलते ऐसा होता है.

आजकल आंखों की बीमारियां, खासतौर पर दृष्टि दोष, आंखों का कमजोर होना वगैरह जैसे कारण बच्चे हों या जवान या फिर बूढ़े, किसी में भी पाए जा सकते हैं. आंखों की बीमारी मोतियाबिंद एक आम समस्या बन चुकी है. इस का इलाज भी आसान है, पर थोड़ा खर्चीला है.

मोतियाबिंद आंखों की एक ऐसी बीमारी है, जिस में या तो आंखों से धुंधला दिखाई देने लगता है या फिर दिखना बंद भी हो जाता है. इस बीमारी से एक या दोनों आंखें एकसाथ भी प्रभावित हो सकती हैं. इस की वजह आंख के लैंस का धुंधला हो जाना है, जिस से चीजों का साफ प्रतिबिंब नहीं बन पाता और आंख कमजोर हो जाती है.

* आंखों के लैंस घुलनशील प्रोटीन के बने होते हैं. जब किसी वजह से यह प्रोटीन अघुलनशील अवस्था ले लेता है, तो मोतियाबिंद बन जाता है.

* सफेद मोतिया उम्र के साथ होने वाली एक बीमारी (आम बदलाव)  है, जबकि काला मोतिया आमतौर पर 40 साल के बाद होने की संभावना रहती है. काले मोतिया में आंखों का लाल होना, पानी आना और दर्द आम बातें हैं. किंतु सफेद मोतिया में आंखों की रोशनी धीरेधीरे कम होती है और दर्द या लाली नहीं होती.

* सफेद मोतिया में आपरेशन के बाद आंखों की रोशनी दोबारा वापस आ जाती है, पर काले मोतिया में जो रोशनी चली जाती है, वह फिर वापस नहीं आती, इसलिए काले मोतिया को खतरनाक बताया जाता है.

* आमतौर पर सफेद मोतियाबिंद उम्र के साथ लैंस की पारदर्शिता खत्म होने पर होता है. इस में लैंस का पूरी तरह खराब होना जरूरी नहीं है. लैंस का कौन सा भाग खराब हुआ, उस के मुताबिक ही दृष्टि में बाधा आती है. आमतौर पर यह 60 साल की उम्र के  आसपास ही होता है.

* बच्चों में सफेद मोतिया जन्मजात हो सकता है और जवानों में आंखों में चोट लगने या आंखों की कई बीमारियों में स्टेरौयड के ज्यादा सेवन से हो सकता है.

* मोतियाबिंद सूरज की रोशनी आंख पर सीधे पड़ना, दूसरे किसी कारण से आंख में रेडियो थैरेपी होना, आंख में सूजन पैदा करने वाली बीमारी होना, आंख में चोट लगना, गर्भावस्था में संक्रमण व कुछ बीमारियों जैसे मधुमेह से भी हो सकता है.

* सफेद मोतिया आमतौर पर उम्र के साथ बढ़ता है. इस संबंध में कई मिथ हैं. जैसे बाजार में कई देशीविदेशी दवाएं हैं, जिन्हें डालने पर सफेद मोतिया रुक जाता है.

* जब मरीज को काफी कम दिखने लगे, रोजमर्रा का काम करने में उसे असुविधा होने लगे, तो मोतियाबिंद  आपरेशन करा लेना चाहिए.

* सफेद मोतिया का आपरेशन में आंख को सुन्न कर के एक छोटा सा चीरा डाल कर, उस में प्राकृतिक लैंस को जिस की पारदर्शिता खत्म हो चुकी होती है, निकाल देते हैं और उस की जगह एक कृत्रिम लैंस आंख में लगा देते हैं.

* अगर इस में आपरेशन के बाद आंखों के अंदर लैंस न डालें, तो मरीज को 10 नंबर के आसपास का मोटा चश्मा पहनना पड़ता है और बगैर चश्मे के उसे खास कुछ दिखाई नहीं देता. लैंस लगाने के बाद मरीज रोजमर्रा के काम बगैर चश्मे के ही कर सकता है.

* आपरेशन के बाद आमतौर पर केवल पढ़नेलिखने या दूर के बारीक काम के लिए चश्मे की जरूरत पड़ती है.

* बिना टांकों का आपरेशन, एक सूक्ष्म चीरा डाल कर (स्माल इंसीशन केटारेक्ट सर्जरी एसकेएस) या फिर फैकोमल्सीफिकेशन मशीन से हो सकता है.

* फैकोमल्सीफिकेशन मशीन में एक छोटे छेद (माइक्रोस्कोपिक कट) द्वारा मोतिया को अल्ट्रासाउंड से आंख के अंदर गला देते हैं और उसी यंत्र (प्रोब) से गले हुए लैंस को सोख लेते हैं. उसी छेद से हम दूसरा पारदर्शी लैंस आंख के अंदर डाल देते हैं, जिस से मरीज को तुरंत दिखने लगता है.

* सफेद मोतिया का आपरेशन लेजर सर्जरी से नहीं हो सकता. हां, कई बार आपरेशन के बाद वह ?िल्ली, जिस पर लैंस टिका होता है, अगर मोटी हो जाए, तो लेजर से उस ?िल्ली को आसानी से काटा जा सकता है.

इन तीन बातों का आपकी सेक्स लाइफ से है सीधा संबंध

कहा जाता रहा है कि स्त्री-पुरुष के बीच सेक्स संबंध सात साल तक ही चलते हैं और लगता था कि ये तो बहुत कम समय है लेकिन अगर नये सर्वे के नतीजों पर नज़र डालें तो लगेगा सात साल बहुत हैं. म्यूनिख की लुडविग सैक्ज़िमिलान यूनिवर्सिटी ने 25 से 41 साल के बीच के 3000 लोगों से उनकी सेक्स लाइफ के बारे में पूछा. उनके जवाब से पता चला कि सेक्स लाइफ एक साल तक ही चलती है और उसके बाद दोनों एक दूसरे में दिलचस्पी खोने लगते हैं.

दिलचस्प बात ये निकली की बच्चों की संख्या या उनकी उम्र से सेक्स से मिलने वाली संतुष्टी पर कोई फर्क नहीं पड़ता, हालंकि पहले के रिसर्च में इसका सेक्स लाइफ पर बहुत बड़ा प्रभाव माना गया था.

सर्वे से पता चला है कम सेक्स की एक बड़ी वजह लड़ाई है. हम यहां आपको बता रहे हैं कुछ बातें जिनका सीधा संबंध है आपकी सेक्स लाइफ से:

  1.  एक ही समय में दोनों की सेक्स की चाह नहीं होती

एक छत के नीचे रह रहे महिला और पुरुष की सेक्स की इच्छा जरुरी नही कि एक ही समय पर हो. पुरुष जहां सुबह सेक्स करना पसंद करते हैं वहीं महिला रात को. और यही कभी-कभी एक बड़ी समस्या बन जाता है. एक अध्ययन से पता चला है कि 80 फीसदी दंपत्तियों को अलग अलग समय पर सेक्स की इच्छा होती है. ऐसा हफ़्ते में पांच बार होता है यानी दोनों की सेक्स इच्छा का समय अलग अलग.

2. जिन महिलाओं के बहुत से पुरुष दोस्त होते हैं वे ज्यादा सेक्स करती हैं

ये सुनने या पढ़ने में अजीब लग सकता है लेकिन है सच. एक सर्वे के अनुसार अगर किसी महिला के बहुत से पुरुष दोस्त हैं तो उनका पति/पार्टनर उनसे ज़्यादा सेक्स करने की कोशिश करेगा. मजे की बात ये है कि उसे खुद इस बात का एहसास नहीं होगा कि वो ऐसा कर रहा है. दरअसल वह अपनी पत्नी/पार्टनर के पुरुष दोस्तों के खतरे की वजह से ऐसा करता है.

3. जरूरी नहीं बेमेल सेक्स से संबंधों का टूटना

टोरंटो मिसीसौगा यूनिवर्सिटी की एक स्टडी के अनुसार ऐसे लोगों की सेक्स में लिप्त होने (भले की इच्छा न हो या कम हो) की बहुत संभावना रहती है जब वे सोचते हैं कि कैसे सेक्स की वजह से उनके संबंध बेहतर हुए हैं. उन्हें लगता है कि सेक्स से उन्हें कुल मिलाकर संतुष्टि और अधिक मिलेगी. कुल मिलाकर लुब्ब-ए-लुआब ये है कि भले ही आपका मूड सेक्स करने का न हो लेकिन अगर आपको लगता है कि ये संबंधों के लिये फायदेमंद है तो आप सेक्स का ज़रुर और आनंद उठाएंगे.

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